विजय ने उसे गहरी दृष्टि से देखा।
टुम्बकटू बड़े इत्मीनान के साथ, ठीक इस प्रकार, मानो अपने
ही कमरे में बैठा हो, उसके सोफे पर बैठा था। उसके पतले-पतले होंठों पर धीमी- धीमी मुस्कान
थी। उसकी छोटी-छोटी, किंतु चमकीली आंखों में गजब का आकर्षण था। पतला तो वह इतना था
कि जीवन में शायद ही किसी ने ऐसा व्यक्ति देखा हो ।
टुम्बकटू एक विचित्र नमूना था ।
न जाने क्यों विजय को बार-बार ऐसा लगता कि ये टुम्बकटू नामक
नमूना अत्यधिक खतरनाक है। विजय उस अजीब नमूने को घूरता ही रहा।
"बेकार चाय ठंडी करने से क्या लाभ?"
अचानक टुम्बकटू की आवाज ने उसे चौंकाया ----- लेकिन जब उसने
टुम्बकटू की ओर देखा तो उससे भी अधिक बुरी तरह चौंका।
टुम्बकटू ने चाय का कप उठा लिया था और इस समय वह चाय की चुस्की
ले रहा था। न जाने क्यों विजय ने टुम्बकटू को हैंडिल करने का ढंग बदल दिया। उसे लगा
कि अगर उसने फिर इस घाघ व्यक्ति पर जंप लगाई तो वह फिर धोखा दे सकता है। अत: अब वह
दूसरे ढंग से बोला।
"हां... बेटा, तुम्हारे बाप की चाय है... पी जाओ।"
---- " मैं दुनिया की हर वस्तु को अपनी समझता हूं।"
टुम्बकटू उसी प्रकार मुस्कराता हुआ शांत और संयत स्वर में बोला।
"सब पर तुम्हारे बाप का नाम खुदा है ना?"
"पहले शांति से बैठ जाओ।" टुम्बकटू चाय की चुस्की
लेता हुआ मुस्कराकर बोला ----- "मैं तुमसे कुछ बातें करने आया हूं।"
विजय आराम से उसके सामने वाले सोफे पर बैठ गया।
अब स्थिति ये थी कि विजय और टुम्बकटू आमने-सामने के सोफों
पर बैठे थे। दोनों सोफों के बीच सिर्फ एक लंबी मेज थी।
'अगर चाय पीना चाहते हो तो दूसरा कप मंगाऊं?" टुम्बकटू
कृत्रिम गंभीर स्वर में बोला-----"केतली में अभी थोड़ी चाय है।"
"कह तो ऐसे रहे हो, जैसे तुम्हारे बाप का घर है । दोस्ती
का रिश्ता बाप से भी कहीं बड़ा होता है । "
"तुम जैसे नमूने कबसे मेरे दोस्त बन गए ?"
"लगता है, तुम मुझसे नाराज हो।'' टुम्बकटू मुस्कराकर
बोला।
"अबे ओ पूरे शेर...!" अचानक विजय दहाड़ा।
"कहिए सरकार !"
तुरंत पूर्णसिंह कमरे में प्रविष्ट होता हुआ बोला।
कहते-कहते उसकी दृष्टि टुम्बकटू पर पड़ गई और भला
ऐसा कैसे हो सख्ता था कि किसी व्यक्ति की दृष्टि उसकी ओर
उठे और बिना उस नमूने का दस-पांच मिनट निरीक्षण किए वापस आ जाए। अत: पूर्णसिंह आश्चर्य
के साथ सोफे पर बैठे टुम्बकटू को देखता रहा।
"अबे, उधर क्या देखता है?" विजय ने उसे डाटा-----"एक
खाली कप ला।"
टुम्बकटू को आश्चर्य के साथ घूरता हुआ वह चला गया।
कुछ देर बाद वह कप दे गया, किंतु इस सारे समय में वह आश्चर्य
के साथ टुम्बकटू के जिस्म की बनावट देखता रहा, जहां मांस का नामो-निशान ही नजर नहीं
आता था। ऐसा लगता था, जैसे वह केवल हड्डियों का ढांचा हो । मानो किसी कंकाल के जिस्म
पर पतली-दुबली इंसानी त्वचा का लबादा किसी ने जबरदस्ती पहना दिया हो ।
हड्डियों के इंसानी ढांचे पर लिपटी यह खाल ही उसे कंकालों
से भिन्न प्रकट कर रही थी और उससे भी आश्चर्य की बात ये थी कि उसके एक हाथ में दस उंगलियां
थी ।
-"क्यों मियां टुम्बकटू!" पूर्णसिंह के जाने के
पश्चात विजय चाय अपने कप में डालता हुआ बोला--- "जानते हो, वह तुम्हें इस तरह
आश्चर्य के साथ क्यों देख रहा था ?"
"क्यों देख रहा था?'' टुम्बकटू ने उसी प्रकार मुस्कराते
हुए पूछा।
" पहले एक बात मैं तुमसे पूछना चाहता हूं।"
"क्या?"
- "यही कि तुम्हारे जिस्म का ये ढांचा क्या उसी खुदा
पहलवान के क्राखाने में तैयार हुआ था, जिसमें हम सब इंसानों का ?"
-"क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता?"
- "लगता तो ऐसा ही है प्यारे टुम्बकटू!" विजय ने
कहा-----"ढांचा तो तुम्हारा भी वहीं पर तैयार हुआ है, लेकिन...।"
"लेकिन क्या?"
-''मैं ये सोच रहा हूं कि खुदा पहलवान के कारखाने में वह
कौन-सा इंजीनियर है, जिसने तुम्हारा ढांचा पास कर दिया?"
विजय की इस बात पर टुम्बकटू ठहाका लगाकर हंस पड़ा।
परंतु उसके ठहाके की आवाज भी बड़ी विचित्र थी। उस आवाज में
कुछ अजीब-सा भय और डरावनापन था।
विजय आश्चर्य के साथ पलकें झपकाता हुआ कुछ देर तक तो टुम्बकटू
को घूरता रहा, फिर वह उसे चिढ़ाने के अंदाज में बोला।
-"पहले हंसने भी नहीं आता।" का तरीका सीखो----तुमको
हंसना तक
----- "शायद ये भी किसी गलत इंजीनियर की हरकत है।"
कहकहे के बाद टुम्बकटू बोला।
उसके इस उत्तर पर विजय कुछ देर तक तो उसे घूरता रहा कि सामने
बैठा ये विचित्र नमूना आखिर है किस प्रवृत्ति का ? उसके जीवन में शायद यह पहला ऐसा
व्यक्ति था, जिसके विषय में विजय को यह सब सोचना पड़ रहा था ।
-"बेटा टुम्बकटू!" विजय बोला----- "लगता हैं
तुम भी पूरे खलीफा हो, लेकिन पहले शराफत से मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दो।"
- "तुम प्रश्न कर सकते हो।" चाय का कप खाली करने
के पश्चात उसने दुनिया से अलग-थलग एक विचित्र - सी सिगरेट निकालकर होंठों में फंसाते
हुए कहा ।
विजय फिर प्रश्न भूलकर आश्चर्य के साथ टुम्बकटू को घूरने
लगा। जैसी सिगरेट वह इस समय टुम्बकटू के अधरों के बीच फंसी हुई देख रहा था ---- - ऐसी
उसने अभी तक के समूचे जीवन में आज से पूर्व कभी नहीं देखी थी।
उस सिगरेट का रंग गुलाबी था। सिगरेट किसी चित्रकार की खासी
लंबी-कूची के बराबर थी और वह गोल न होकर चौखुंटी थी। उसमें हरा-सा तंबाकू भरा था। पीछे
उस स्थान पर, जहां से मुंह में लगाई जाती है, वहां एक अजीब-सा टोपा था।
उसने वह सिगरेट सुलगाई।
एक कश लगाकर धुआं छोड़ा तो विजय एक बार फिर चकराकर रह गया
!
टुम्बकटू के पतले-पतले होंठों के मध्य से निकलने वाला हरे
रंग का धुआं बड़ा विचित्र लग रहा था। आज तक विजय ने नहीं देखा था कि किसी की सिगरेट
से हरा धुआं निकलता हो!
"क्यों मियां टुम्बकटू, ये सिगरेट कौन-से कारखाने की
है?"
-'"जिसका मैं हूं।'' टुम्बकटू ने मुस्कराकर उसे टका-सा
उत्तर दिया।
"तुम किसके हो ?"
"जिसकी ये सिगरेट है । "
'अबे, दोनों कहां के हो?" विजय झुंझला गया।
"एक ही कारखाने के।" टुम्बकटू शरारत के साथ बोला।।
-"देखो मियां टुम्बकटू!"
विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि टुम्बकटू बीच ही में बोल
पड़ा।
-"क्यों-----बोर हो गए? मैंने तो सुना था कि तुम बोर
करने में माहिर हो।"
विजय को लगा कि यह व्यक्ति उसका दिमाग खराब कर देगा। अत:
वह बोला ।
***
“मियां, ये बताओ कि तुम कौन-से खेत के गन्ने हो ? और यूं
खेत-खेत क्यों घूम रहे हो?"
"क्या तुम ये जानना चाहते हो कि मैं यहां क्यों आया
हूं?"
"तुम्हारा ढांचा तो निःसंदेह सठियाए हुए इंजीनियर ने
पास किया ----- लेकिन दिमाग बनाने वाला इंजीनियर कोई बिरला ही रहा होगा।'
"क्या वास्तविकता बता दूं कि मैं यहां पर क्यों आया
हूं?"
"आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।" विजय उसे चिढ़ाने वाले
अंदाज में बोला।
"मैं ये जानने आया हूं कि तुम्हें मेरा तोहफा कैसा लगा?"
"कैसा तोहफा?"
"वही, जो तुम्हारी कोठी के बाहर पड़ा है ? "
"अच्छा...!" विजय मुस्कराकर बोला--- "तो तुम
अपने उस शिकार की बात कर रहे हो ?"
" ---" नि:संदेह उसी की कर रहा हूं।
-----"आखिर प्यारे टुम्बकटू... इन अजीब हरकतों के पीछे तुम्हारा उद्देश्य क्या
है?"
-"कोई विशेष उद्देश्य नहीं।"
"तो फिर इसका मतलब?"
"सिर्फ मनोरंजन... या यूं समझ लो कि मैं ये देखना चाहता
हूं कि धरती पर कोई ऐसा प्राणी भी है, जो टुम्बकटू से टकरा सके?"
"अजीब आदमी हो यार ! " विजय उलझता हुआ बोला-----''लगता
है, तुम्हारे दिमाग का भी कोई स्क्रू ढीला है, यह भला मनोरजंन का कौन-सा साधन है?"
"ये तुम्हारे सोचने का ढंग है प्यारे जासूस महोदय
!' टुम्बकटू बोला-----"प्रत्येक व्यक्ति के अपने अलग-अलग ढंग होते हैं। मैंने
समूचे विश्व को चैलेंज दिया है कि मेरी हत्या कर दें। इसीलिए मैंने सोचा है कि जब तक
जीवित हूं इसी प्रकार मनोरंजन करता रहूं।"
"और वह जांघ में माइक्रोफिल्म वाली गप्प तुमने कौन-से
उपन्यास में पड़ी थी ?"
"वह गप्प नहीं प्यारे जासूस मियां!" टुम्बकटू विचित्र
सिगरेट का कश लेता हुआ बोला ----- "हर बात इसी प्रकार सत्य है, जैसे सूर्य का
पूर्व में उदय होना।"
-----" यानी कि तुम यारों को भी नहीं बताओगे कि वास्तविकता
क्या है?"
---- "इस समय मैं कुछ भी कहूं-----लेकिन तुम्हें विश्वास
नहीं होगा, किंतु जिस दिन कोई भी व्यक्ति मेरी हत्या करने में सफल हो जाएगा तो तुम्हें
ज्ञात होगा कि टुम्बकटू कभी झूठ नहीं बोला करता।"
"तुम्हारा मतलब है कि वास्तव में वह गप्प सत्य है।"
"अगर तुम विश्वास करो।"
" तो फिर प्यारे, कर लिया विश्वास ।" विजय एकदम
इस प्रकार बोला, मानो उसने टुम्बकटू की बात का विश्वास करके उस पर कोई बहुत बड़ा एहसान
किया हो । फिर वह तुरंत बोला-----"लेकिन प्यारे टुम्मकटूं! इतना धन भला तुम्हारे
पास कहां से आ गया ?"
" ये जानोगे तो और भी आश्चर्य करोगे।"
" अब हम कोई आश्चर्य नहीं करेंगे।" विजय सोफे पर
ही पलौथी मारकर बैठता हुआ बोला-----"क्योंकि फिलहाल आश्चर्य जैसी बोगस वस्तु का
स्टॉक हमारे पास से खत्म हो गया है।"
"तो सुनो।'
"सुनाओ।" विजय इस तरह से बोला मानो वह सत्यनारायण
की कथा सुनने जा रहा हो।
-"क्या तुमने मुझे कल से पहले कहीं देखा था या मेरे
विषय में किसी से कुछ सुना था ?"
-"बिल्कुल नहीं।
"तो फिर मैं अचानक कहां से आ गया ?" "कहां
से आ गए?"
.'' मैं धरती का निवासी नहीं हूं।"
-----"अब तुम्हारी गप्पें जरूरत से कुछ ज्यादा ही ऊंची
होती जा रहीं हैं। "
----- "मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं झूठ नहीं बोलता।"
." तो फिर कहां के निवासी हो?"
"वास्तविकता ये है कि मैं चांद से आया हूं।"
."क्या...?" विजय का चौंकना एकदम स्वाभाविक था।
"मैंने पहले ही कहा था कि तुम्हें आश्चर्य होगा।"
टुम्बकटू उसी प्रकार मुस्करा रहा था।
. "तो तुम चंद्र निवासी हो?"
. ''सौ प्रतिशत।" टुम्बकटू बोला ----- "क्या तुम
मेरी दस उंगलियां नहीं देख रहे हो? क्या धरती के किसी निवासी के एक हाथ में दस उंगलियां
हैं? या धरती पर कोई भी व्यक्ति ऐसी सिगरेट पीता है, जैसी मैं पी रहा हूं ? "
"बेटा ठुम्मकटूं, तुम तो यार, हमारे दिमाग को चकरा रहे
हो । " विजय बोला-----"जब धरती के मानव चंद्रमा पर गए तो उन्होंने यह बताया
कि चंद्रमा प्राणीरहित है । "
. " उन्होंने बिल्कुल सही कहा था। "
."तो फिर तुम कहां से आ गए?"
"चंद्रमा से ही । "
."अबे मियां, क्या उलझी पुलझी बातें कर रहे हो
?"
"मैंने सुना था विजय, कि तुम काफी बुद्धि रखते हो, लेकिन
देख रहा हूं कि तुम मजाक के अतिरिक्त दूसरी कोई बढ़िया बात नहीं सोच सकते-- -जरा ये
तो सोचो कि अगर किसी अन्य ग्रह का व्यक्ति धरती की यात्रा के लिए चले और वह धरती पर
आकर हिमालय की चोटी पर उतरे तो क्या दूर-दूर तक भी उसे सांस लेने के लिए वायु मिलेगी
अथवा किसी प्राणी के दर्शन होंगे?"
"तो, तुम्हारे कहने का तात्पर्य यह कि पृथ्वी के अंतरिक्ष
यात्री चंद्रमा पर पहुंचकर किसी ऐसे स्थान पर उतरे हैं जो भाग धरती के हिमालय पर्वत
की भांति है-----जहां न सांस लेने हेतु पर्याप्त वायु है और प्राणी के होने का तो प्रश्न
ही नहीं उठता।"
."अब तुम सिद्ध कर रहे हो कि तुम कुशाग्र बुद्धि के
मालिक हो।"
"तो इसका मतलब ये हुआ कि चंद्रमा पर मानव हैं।
" ." जिनमें से एक तुम्हारे सामने है।"
--"क्या तुम अकेले ही धरती की यात्रा के लिए निकले थे?"
"बिल्कुल अकेला!" टुम्बकटू बोला ----- " और
ये भी
बता दूं कि मैं चंद्रमा से किसी का भेजा हुआ नहीं हूं बल्कि
मैं चंद्रमा का एक अपराधी हूं-----चांद की सारी सरकार मुझसे परेशान है। लाख प्रयास
के पश्चात भी वे कभी मुझे गिरफ्तार नहीं कर सके। मैं चांद पर हमेशा बड़े-बड़े अपराध
करता रहा, लेकिन जब वहां से मन भर गया तो धरती पर देखने आया हूं कि क्या यहां का मानव
इतना महान है कि वह टुम्बकटू पर विजय प्राप्त कर ले?"
." और प्यारेलाल, वह खजाना?"
"वह खजाना, मैं अपने साथ चंद्रमा से ही लाया हूं-----
तुम्हें शायद इस बात का विश्वास नहीं हो रहा है कि वास्तव में किसी खजाने में इतना
धन हो सकता है, जितना समूची धरती पर नहीं है। तुम्हारी समझदारी के लिए मैं तुम्हें
खुद बता दूं कि हीरे, पन्ने, सोने इत्यादि अनेक वस्तुएं जो धरती पर धन मानी जाती है,
वे सभी वस्तुएं चंद्रमा पर निरर्थक होती हैं। "
"क्या मतलब?" विजय की उलझन बड़ी ।
"मतलब ये प्यारे जासूस, कि हीरे और पन्नों इत्यादि को
चंद्रमा पर कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। वहां तो ये सब वस्तुएं इस प्रकार फैली रहती
हैं, जैसी तुम्हारी धरती पर मिट्टी इत्यादि, वे वस्तुएं, जिन्हें तुम इतना महत्त्व
नहीं देते। जरा गौर से सोचो कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि धरती की कोई भी वह वस्तु जिसे
तुम उपेक्षीय समझते हो-----ब्रह्मांड के किसी अन्य ग्रह पर उसे ही धन समझा जाता हो।"
-"तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि वे वस्तुएं जो धरती
पर अत्यधिक कीमती समझी जाती हैं अथवा जिन्हें धरती पर धन या मुद्रा की संज्ञा प्राप्त
है, उन वस्तुओं का चंद्रमा पर कोई महत्त्व नहीं है। वहां ये सब वस्तुएं उसी प्रकार
पड़ी रहती ये हैं ----- जिस प्रकार धरती पर मिट्टी इत्यादि वे वस्तुएं, जिनका यहां
महत्त्व नहीं है?"
"तुम काफी हद तक ठीक सोच रहे हो। "
."तो फिर उन वस्तुओं को तुम्हारा साथ लाने का अभिप्राय
?"
."सच पूछो तो मैंने वे वस्तुएं अपने साथ इसलिए रख ली
थी, कि मेरा चंद्रयान कुछ इस प्रकार का है कि जब तक उसमें एक टन वजन न हो, वह ठीक प्रकार
से चलता नहीं है। मुझमें कितना वजन है, यह तुम देख ही रहे हो, उस वजन को पूरा करने
हेतु मैने चांद पर मौजूद ये बेकार की वस्तुएं अपने यान में भर ली । "
'और इत्तफाक से वे यहां मुद्रा बन गई । "
***
“यस।"
"और वह वस्तु क्या है, जिसकी प्राप्ति पर धरती का मानव
ईश्वर पर विजय प्राप्त कर सकेगा?"
"वह वस्तु तो मेरे लिए भी और चंद्र निवासियों के लिए
भी उतना ही महत्त्व रखती है, जितना कि तुम्हारे यानी धरती निवासियों के लिए वह वस्तु
तो मैं बड़े प्रयासों के पश्चात वहां से लाने में सफल हुआ हूं। उस वस्तु की चंद्र सरकार
को भी बहुत अधिक आवश्यकता है। अत: वे मेरी तलाश में समूचे चंद्रमा की खाक छान रहे होंगे।
ये समझ लो कि वह वस्तु इतनी महत्त्वपूर्ण है कि अगर चंद्र सरकार को यह पता लग गया कि
मैं उसे लेकर धरती की ओर रवाना हो गया हूं, तो संभव है ----- वे भी यहां की यात्रा
करें।"
."तो फिर प्यारेलाल, शीघ्र बताओ कि वह वस्तु क्या है?"
."ये मैं अभी नहीं बताऊंगा... सिर्फ ये कहूंगा कि उसकी
प्राप्ति मानव को ईश्वर से भी ऊंचा ले जाएगी।
"वह खजाना कहां है?"
"मेरी जांघ में समझो।"
उसके इस उत्तर पर विजय उसे घूरता रह गया, किंतु फिर बोला-~~~~"लेकिन
तुम हमारी भाषा में कैसे बोल लेते हो?''
."धरती के कालचक्रानुसार मैं यहां एक माह पूर्व आया
था और इस एक माह में मैंने यहां की भाषा, यहां का रहन-सहन, बड़ी-बड़ी हस्तियों के नाम
बड़ी शांति के साथ
एकत्रित किए हैं।'' टुम्बकटू की सिगरेट समाप्त हो गई तो उसने
उसे मेज पर रखी ऐश-ट्रे में मसलकर डाल दिया।
----- " यानी कि मियां टुम्बकटू! तुम बड़े खतरनाक आदमी
। हो । "
-----"अब जैसा भी तुम समझो। "
"लेकिन मियां, तुम्हारा ये कसरती बदन तो यह नहीं कहता।"
- "इस बदन के विषय में भी वास्तविकता बताऊं?'
"एक गप्प और मारो।"
"वास्तविकता ये है कि मेरी हैल्थ चंद्रमा पर सबसे अच्छी
है।"
‒‒‒‒‒ ----"क्या...! " विजय टुम्बकटू की इस बात
पर उछले बिना नहीं रह सका- - परंतु अगले ही पल उसका मन चाहा कि वह टुम्बकटू की इस बात
पर एक जोरदार कहकहा लगाए । वह कुछ देर तक तो उसके गन्ने जैसे बदन को ध्यान से देखता
रहा, फिर बोला ।
"तो फिर प्यारे, तुम चंद्रमा के सबसे हैल्थी व्यक्ति
हो ।" -"निःसंदेह ।
विजय को लग रहा था कि या तो यह विचित्र नमूना जो कुछ कह रहा
है, वह एकदम सत्य है अथवा एकदम खूबसूरत गप्प। उसकी समझ में अभी तक नहीं आया था कि आखिर
ये नमूना है क्या? और वह वस्तु क्या है, जिसकी प्राप्ति पर मानव ईश्वर पर विजय प्राप्त
कर लेगा? परंतु इन सब बातों को फिर खटाई में डालकर विजय बोला----"लेकिन मियां
टुम्बकटू! तुमने जो ये चैलेंज दिया है----उसे हमारे चचा और वह साली मम्मी पड़ेंगी तो
निश्चित रूप से तुम्हारा कचूमर निकाल देंगे।"
-"यही तो मैं चाहता हूं।"
-"मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारी प्राप्ति के लिए कहीं
चचा और मम्मी की ही न ठन जाए।"
"तुम्हारा संकेत सिंगही और जैक्सन की ओर ही है ना?"
- "बिल्कुल उसी ओर है।"
"बस तो, यहीं मैं चाहता हूं कि उन दोनों का टकराव हो
और ये पता लगे कि उनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है ?"
" यानी कि तुम उन दोनों की टक्कर कराना चाहते हो
?"
"ताकि देख सकूं कि उनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है,
और उससे मैं स्वयं टकरा सकूं। टुम्बकटू मुस्कराता हुआ बोला।
'प्यारे टुम्बकटू!" विजय उसे घूरता हुआ व्यंग्यात्मक
लहजे में बोला-----''माना कि तुम भी खलीफा हो, लेकिन उन दोनों में से किसी से भी टकराने
के ख्वाब देखना छोड़ दो ----- क्योंकि उनके लिए तुम एक चिराग के आसपास घूमते अनेक कीड़ों
में से एक से अधिक महत्त्व नहीं रखते। "
"यह तो वक्त बताएगा।" टुम्बकटू लापरवाही के साथ
बोला।
"तो क्या...।" विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था
कि!
'अगर हिले तो गोलियां तुम्हारे जिस्म के पार हो जाएंगी।"
एकाएक वहां सुपरिंटेंडेंट का चेतावनी - भरा सख्त लहजा गूंजा।
विजय स्वयं आश्चर्यचकित रह गया। वास्तव में विजय भी न जान
सका था कि रघुनाथ ने इस कमरे को घेर लिया था। उसने टुम्बकटू की ओर देखा तो एक बार फिर
चकरा गया-----क्योंकि वह उसी इत्मीनान के साथ सोफे पर बैठा मुस्करा रहा था।
."वो मारा साले पकौड़ी वाले को।" विजय कहता हुआ
एकदम सोफे से खड़ा हो गया।
. ----- "मैं जानता हूं प्यारे रघुनाथ, कि तुम यहां
मेरे इस तोहफे को देखने आए थे। विजय की कोठी पास ही देखकर तुम यहां आए, किंतु यहां
मुझे देखकर तुमने दो-चार सिपाही लगाकर यह समझा कि तुमने टुम्बकटू को घेर लिया।"
टुम्बकटू के किसी भी चिंह से ऐसा प्रतीत न हो रहा था कि इस समय वह किसी विशेष परिस्थिति
में है।
"अब "प्यारे टुम्बकटू!" विजय ने हाथ नचाए
तुम्हारी कोई भी हरकत तुम्हें बचा नहीं सकती।" कहता हुआ विजय कमरे की हर खिड़की
से झांकती बंदूक की नाल देख रहा था। दरवाजे पर स्वयं रघुनाथ डटा था।
- "मुझे तुम्हारी ये बचकानी हरकतें देखकर हंसी आती है।"
टुम्बकटू अपनी विचित्र सिगरेट सुलगाता हुआ बोला।
-"बोल लाल लंगोटे वाले की जय..." कहते हुए विजय
ने आव देखा न ताव, तुरंत उस पर जंप लगा दी । किंतु वह रिक्त सोफे से टकराया।
"तुमसे इस बात को मैं स्पष्ट रूप से लगातार कहता आ रहा
हूं कि मैं इस तरह गिरफ्तार नहीं हो सकता।" टुम्बकटू उसके पीछे खड़ा कह रहा था।
-'धायं... धायं... धायं ।'
एक साथ अनेकों गोलियां चलीं।
विजय सोफे से ही छिपकली की भांति चिपक गया। अगर कोई भी अंग
उठाता तो गोलियां उसके जिस्म को बेंध सकती थीं। "पहले ही कह चुका हूं कि ये सब
हरकतें बेकार हैं । " टुम्बकटू की आवाज एक अन्य सोफे के पीछे से आई, "फिलहाल
विदा।"
और उसी क्षण !
टुम्बकटू की अगली हरकत देखकर स्वयं विजय हतप्रभ रह गया! उसकी
आंखें आश्चर्य से फैल गई! उसे लगा कि वह संसार का सर्वश्रेष्ठ आश्चर्य देख रहा है।
वह नहीं मान सकता था कि यह सब हो सकता है, जो हो रहा है, किंतु...किंतु उस समय उसे
सब कुछ मानना पड़ा जब टुम्बकटू ने अपने गन्ने जैसे जिस्म को एक विचित्र ढंग से सिकोड़ा
और कमरे के बाहर जाने वाली नाली में समा गया।
.... धाय.... -' धाय ।'
अनगिनत गोलियां चली।
परंतु तब तक वह खतरनाक छलावा किसी लंबे सांप की भांति रेंगता
हुआ उस नाली के माध्यम से कमरे से बाहर था।
उसके निकलने का ढंग ठीक ऐसा था, जैसे सांप अपने बिल में घुसता
चला जाए। विजय को लगा कि टुम्बकटू की हड्डियां ठीक सर्प की भांति लचीली हैं, जिन्हें
कहीं से भी, किसी भी ढंग से मोड़ा जा सकता है।
उसके पश्चात!
रघुनाथ ने विजय के साथ समूची कोठी में टुम्बकटू को खोजा,
किंतु टुम्बकटू गधे के सींग की भांति गायब था।
टुम्बकटू चला गया ----किंतु इस बार वह अपने पीछे अनेक महान
आश्चर्य और रहस्य छोड़ गया था। विजय उलझकर रह गया था।
विकास!
तेरह वर्षीय एक अत्यधिक खूबसूरत किशोर !
वह लड़का सौंदर्य का एक उदाहरण था।
गोरा-चिट्टा रंग... नक्श मानो स्वयं ईश्वर ने निर्मित किए
हों, पलकें काली और बड़ी, मस्तक चौड़ा, घुंघराले बाल, गठा हुआ सुदृढ़ कसरती जिस्म...
कद तेरह वर्षीय बालक की अपेक्षा इतना बड़ा कि वह सोलह-सत्रह वर्ष का लगता। ऐसा सुंदर
किशोर कि
एक बार देख लो तो बस ऐसा मन करे कि देखते ही रहो ।
परंतु यह खूबसूरत किशोर जितना खूबसूरत था, उससे कहीं अधिक
खतरनाक भी! इतना दिलचस्प भी कि स्वयं विजय परेशान हो जाए। यह तेरह वर्षीय किशोर इतनी
अधिक कुशाग्र बुद्धि का मालिक था कि साधारण व्यक्तियों को तो समूचे जीवन में इतनी बुद्धि
प्राप्त न हो। अपनी उस छोटी-सी बुद्धि से वह ऐसी-ऐसी हरकतें सोचता कि बड़े से बड़ा
व्यक्ति दांतों तले उंगली दबाकर रह जाता।
उस समय एक व्यक्ति कितना खतरनाक होता है, जब उस पर बुद्धि
के साथ हुनर और शक्ति भी हो ? बुद्धि और शक्ति तो विकास ईश्वर के घर से ही लेकर आया
था और हुनर अलफांसे ने उसमें भर दिए थे। अलफांसे ने विकास को एक-से-एक अधिक खतरनाक
कार्य में दक्ष कर दिया था।
विकास के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के लिए 'राजा पॉकेट
बुक्स' द्वारा प्रकाशि वेदप्रकाश शर्मा के रोमांचकारी उपन्यास 'दहकते शहर और 'आग के
बेटे' अवश्य पढ़ें ।
यह खतरनाक लड़का नित्य नई-नई और आश्चर्यचकित कर देने वाली
योजनाएं सोचता। 'आग के बेटे' अभियान में उसने एक ऐसी गहरी मजाक. भरी साजिश की थी, जिससे
उसने समूचे भारत में हलचल मचा दी थी और दूसरी ओर ' आग के बेटों' को चकरा दिया था। जिसके
परिणामानुसार जैक्सन जैसी खतरनाक अपराधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था।
विकास!
***
वही खतरनाक लड़का इस समय अपनी साइकिल पर विजय की कोठी की
ओर जा रहा था। उसके मस्तिष्क में इस समय एक ऐसी योजना थी, जिससे वह विजय को पागल बना
सकता था। और वह अपने अंकल को बोर ही करने जा रहा था।
तब, जबकि विकास विजय की कोठी से अधिक दूर नहीं था, अचानक
वह बुरी तरह चौंक पड़ा। वह लड़का इतना दक्ष था कि आवाज सुनते ही उसने अनुमान लगा लिया
कि ये गोलियां उसके झकझकिए अंकल को कोठी में ही चल रही हैं।
इस विचार के मस्तिष्क में आते ही उसने दो-तीन पैर पैडिल पर
कसके मारे।
उसने काफी दूर से ही देखा कि विजय की कोठी के आगे खलबली-सी
फैली हुई है।
इस समय विकास कोठी के पीछे से गुजरने वाली सड़क पर था।
एकाएक वह चौंक पड़ा।
उसने आज तक ऐसा विचित्र दृश्य नहीं देखा था।
उसने साफ देखा कि एक व्यक्ति विजय के कमरे की नाली से क्षणमात्र
में पार होकर बाहर आ गया। एक ही नजर में विकास ने उसे पहचान लिया। टुम्बकटू को उसने
कल ही अपनी बर्थ-डे पर देखा था और आज सुबह अखबार में भी पढ़ा था।
उसके छोटे, किंतु कुशाग्र मस्तिष्क ने एक साथ कई कार्य किए।
क्षणमात्र में विकास के मस्तिष्क में आ गया कि गोली चलने का कारण क्या है। और अगले
ही पल उस खतरनाक लड़के रूपी शैतान ने भयानक फुर्ती का परिचय दिया।
पल-भर में उसने अपनी साइकिल सड़क के एक ओर खड़ी के झाड़ियों
में इस सतर्कता के साथ लुढ़का दी कि टुम्बकटू को इसका आभास भी न हो सका। लिखने की आवश्यकता
नहीं कि वह तेरह वर्षीय शैतान भी पूर्णतया झाड़ियों के पीछे छुप गया था।
उसने देखा कि टुम्बकटू का ध्यान लेशमात्र भी उसकी ओर नहीं
गया। उसका समूचा ध्यान शायद विजय, रघुनाथ और पुलिस इत्यादि पर था।
विकास उसकी फुर्ती देखकर आश्चर्यचकित था।
टुम्बकटू ने एक पल भी कुछ नहीं सोचा और फिर अगले
ही पल विकास ने जो करिश्मा देखा, वह उतना ही आश्चर्यजनक था,
जितना देखते ही देखते दो मिनटों में सागर का जलरहित हो जाना। -
विकास रूपी यह शैतान स्वयं अपने अंदर कम खतरनाक नहीं था,
किंतु टुम्बकटू की यह हरकत वास्तव में ऐसी थी कि उसे इंसान कहने के लिए मन नहीं करता।
एक पल के लिए तो विकास आंखें फाड़े हैरत के साथ उसे देखता रह गया।
विजय की कोठी की यह दीवार अत्यधिक चिकनी और सपाट थी, जिस
पर टुम्बकटू बिना किसी आधार के इस प्रकार ऊपर रेंगता जा रहा था मानो वो छिपकली रहा
हो।
वास्तव में वह गजब की फुर्ती के साथ निरंतर चिकनी दीवार पर
तीव्र वेग से ऊपर की ओर रेंगता जा रहा था! उसके हाथों की बीसों उंगलियां ठीक जोंक की
भांति चिकनी दीवार से चिपकी हुई थीं और उंगलियों से भी लंबे नाखून ऐसा लगता था, जैसे
चिकनी दीवार में धंस गए हों। उसका कोई भी अंग ऐसा नहीं था, जिसका चिकनी दीवार से स्पर्श
न हो ! वह ठीक किसी छिपकली की भांति ऊपर रेंगता चला जा रहा था!
एक पल के लिए तो विकास इस आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर जैसे
सब कुछ भूल गया, किंतु अगले ही पल उस शैतान में जैसे हरकत हुई।
वह लड़का किसी भी प्रकार किसी शातिर से कम नहीं था !
उसने टुम्बकटू को गिरफ्तार करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और
फिर वह खूबसूरत लड़का अपनी पूर्ण भयानकता लेकर मैदान में उतर आया।
वह भी तेजी के साथ दौड़ा और अगले ही पल वह टुम्बकटू के पीछे-पीछे
किसी दक्ष जासूस की भांति फुर्ती के साथ गंदे पानी के एक पाइप के जरिए ऊपर बढ़ता जा
रहा था। इस कार्य में उसने इतनी सतर्कता का परिचय दिया था कि टुम्बकटू जैसा व्यक्ति
भी आभास न पा सका था कि शातिरों का शातिर तेरह वर्षीय खतरनाक शैतान मौत बनकर उसके ऊपर
मंडरा रहा है। विकास के प्यारे मुखड़े पर किसी भी खतरे से टकराने हेतु सख्त भाव थे।
टुम्बकटू तो था ही अपने नाम का एक छलावा अपराधी, लेकिन विकास
उससे भी कहीं अधिक बढ़कर खौफनाक भूत था!
टुम्बकटू फुर्ती के साथ रेंगता हुआ विजय की कोठी की छत पर
पहुंच गया, ऊपर पहुंचते ही उसने एक दृष्टि नीचे की ओर मारी ----- परंतु तब तक विकास
पाइप के पीछे इस प्रकार हो चुका था कि टुम्बकटू उसे देख न सका। टुम्बकटू ने तो नीचे
देखा था, उसे तो स्वप्न में भी ख्याल न था कि तेरह वर्षीय वह खतरनाक शैतान उसके निकट
मंडरा रहा है ।
जैसे ही टुम्बकटू छत की ओर से गायब हुआ, विकास फुर्ती के
साथ पाइप पर चढ़ता हुआ उसके पीछे छत पर पहुंच गया। उस्ने देखा कि उस समय तक टुम्बकटू
छत के दूसरे सिरे पर पहुंच गया। टुम्बकटू अपनी ओर से पूर्णतया सतर्क था, उसने एक बार
और पीछे मुड़कर देखा, किंतु इसका क्या किया जाए कि उस समय वह किशोर शैतान छत पर रखे
एक ड्राम के पीछे था।
जहां टुम्बकटू खड़ा था, वहां विजय की कोठी की छत समाप्त हो
गई थी और सड़क के पार ऐसी कोठी थी, जो अक्सर खाली पड़ी रहती थी।
यूं उस सड़क को पार करके दूसरी छत पर पहुंचना, कोई अधिक हैरत
की बात न थी, लेकिन जिस ढंग से उसे टुम्बकटू ने पार किया, वह अवश्य ही आश्यर्चजनक बात
थी। सड़क इतनी चौड़ी थी कि उसके पार जंप लगाने में थोड़ा रन अवश्य लेना पड़ता था, किंतु
उस भयानक छलावे अपराधी ने कोई रन न लिया। वह तो बस विजय की कोठी की मुंडेर पर था।
किंतु अगले ही पल विकास ने उसे दूसरी कोठी की मुंडेर पर देखा।
इस बीच उसने सिर्फ ऐसा महसूस किया था कि जैसे टुम्बकटू का जिस्म हवा में तैर रहा हो
।
विकास अभी तक उस ड्राम के पीछे ही छिपा हुआ था। निकला इसलिए
नहीं था ----- क्योंकि इसके अतिरिक्त कोई ऐसा स्थान न था, जहां वह स्वयं को उस खौफनाक
छलावे की नजरों से बचाता। कुछ ही देर में टुम्बकटू दूसरी छत के दूसरी ओर की एक दीवार
के पीछे विलुप्त हो गया।
विकास के जिस्म में जैसे एकाएक विद्युत का संचार हुआ।
वह फुर्ती के साथ ड्राम के पीछे से निकला और भयानक जिन्न
की भांति दौड़ता हुआ वह बीच की सड़क पार करके दूसरी छत के उस किनारे पर पहुंचा, जहां
टुम्बकटू विलुप्त हुआ। वहां आकर उसने नीचे झांका तो एक तीव्र झटके के साथ उसे अपनी
गरदन वापस खींच लेनी पड़ी। उसी छिपकली की भांति रेंगता हुआ टुम्बकटू सपाट दीवार के
माध्यम से नीचे जा रहा था।
विकस फुर्ती के साथ दौड़ता इस इमारत के पिछवाड़े पहुंचा और
फिर अगले ही पल वह भयानक फुर्ती के साथ एक पाइप के माध्यम से नीचे उतर रहा था ।
खूबसूरत और भयानक किशोर शैतान कुछ ही देर बाद नीचे था। न
सिर्फ नीचे, बल्कि उस दिशा में दौड़ता चला जा रहा था, जिधर टुम्बकटू उतर रहा था।
जब वह उस स्थान पर पहुंचा तो उसने टुम्बकटू को बड़े इत्मीनान
के साथ एक पतली-सी गली में प्रविष्ट होते हुए देखा। परंतु वह शैतान भला इतना शरीफ कहां
था कि छलावे का पीछा छोड़ दे वह भी सड़क के उस मोड़ तक आया।
विकास ने गरदन घुमाकर विजय की कोठी की ओर देखा तो पाया कि
वहां लोगों की भीड़ में उसी प्रकार खलबली मची हुई है। किंतु विकास ने इस ओर कोई विशेष
ध्यान न दिया और टुम्बकटू के पीछे अपनी पूर्ण फुर्ती व सतर्कता के साथ गली में लपका।
अब टुम्बकटू एक बार भी पीछे घूमकर नहीं देख रहा था। वह तंग
गली में बड़े इत्मीनान के साथ बढ़ता जा रहा था। हालांकि उसकी चाल में कोई तीव्रता न
थी, किंतु उसकी लंबी सिगरेट जैसी टांगों के कदम कुछ इतने लंबे पड़ रहे थे कि विकास
को उसका पीछा करने हेतु काफी तीव्र वेग से चलना पड़ रहा था।
गली में चलते-चलते ही टुम्बकटू ने अपने रंग-बिरंगे कोट की
जेब से एक कैप निकाली और सिर पर रख ली । यह देखकर विकास के नन्हे, प्यारे और गुलाबी
अधर मुस्कराए बिना न रह सके क्योंकि कैप भी कोट की ही भांति रंग-बिरंगी थी।
कुछ ही देर में वे इसी प्रकार एक अन्य सड़क पर पहुंच गए।
उस समय विकास चौंके बिना न रह सका, जब टुम्बकटू उसी प्रकार
शाही ठाट से चलता हुआ फुटपाथ पर खड़ी एक कार की ओर ऐसे बढ़ा मानो वह कार उसके बाप-दादा
की कोई जायदाद रही हो। किंतु चौंकने में विकास ने कोई अधिक समय नहीं गंवाया, उसने फुर्ती
और सतर्कता के साथ इधर-उधर देखा और सबकी दृष्टि से बचता हुआ, वह कार की डिक्की में
समा गया।
***
उधर टुम्बकटू कार का दरवाजा खोलकर उसकी ड्राइविंग सीट पर
बैठने में तनिक भी तो नहीं हिचका, अगले ही पल उसने जेब से 'मास्टर की' निकाली और फिर
कार एक झटके के साथ आगे बढ़ गई।
विकास ने डिक्की की झिरी में से देखा कि तभी पीछे से कार
वाले ने शोर मचाया, वहां खलबली-सी मची और इससे पूर्व कि विकास कुछ और देख सके
----- कार एक मोड़ परं मुड़ चुकी थी। और अब तो वह हवा से बातें कर रही थी ।
विकास डिक्की में बैठा आराम से दिलजली गुनगुना रहा था और
झिरी से उन सभी मार्गों को अपने मस्तिष्क में सुरक्षित करता जा रहा था, जिनसे कार पास
हो रही थी। एकाएक विकास के मस्तिष्क में एक धमाका-सा हुआ। उसका पैर किसी पतले-से धागे
में उलझ गया था। उसने हाथ से टटोलकर देखा तो पाया कि यह रेशम की एक मजबूत डोरी है।
डोरी को देखते ही उस नन्हे शैतान के मस्तिष्क में एक भयानक योजना किसी जहरीले कीड़े
की भांति कुलबुला उठी और वह रेशम की डोरी को अपने हाथ में लपेटता हुआ धीमे-धीमे कुछ
सोचने लगा।
क्रम इसी प्रकार चलता रहा।
उसने देखा कि कार हवाई अड्डे के निकट से गुजरती हुई उस सड़क
पर घूम गई, जो राजनगर से बाहर की ओर जाती थी।
अधिक नहीं, थोड़ी ही देर बाद कार एक झटके के साथ रुक गई।
विकास किसी चतुर सांप की भांति रेंगता हुआ कार से बाहर आया।
डिक्की बंद करने में उसने इतनी सावधानी तो अवश्य बरती थी कि टुम्बकटू का ध्यान उस ओर
आकर्षित न हो। इस समय विकास कार के नीचे सड़क पर लेटा हुआ था।
इस समय उसे टुम्बकटू की लंबी-लंबी टांगें दीख रही थीं, जो
कार को बीच सड़क पर छोड़कर लापरवाही के साथ सड़क के एक ओर बढ़ रहा था।
विकास का टुम्बकटू का पीछा करने का उद्देश्य सिर्फ यह था
कि वह उस स्थान तक पहुंच सके, जहां वह छलावा रहता है, इसलिए विकास फुर्ती के साथ कार
के नीचे से निकलकर टुम्बकटू के पीछे लपका।
टुम्बकटू ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था। शायद उसे
विश्वास था कि कोई उसका पीछा नहीं कर सकता।
अब वे एक जंगल से गुजर रहे थे।
उसके चारों ओर वृक्ष थे। धरती पर वृक्षों के सूखे पत्ते पड़े
थे जिन पर टुम्बकटू के चलने के कारण विचित्र-सी ध्वनि आसपास के मौंन वातावरण में गूंज
रही थी। जबकि विकास इस सतर्कता के साथ चल रहा था कि उसके चलने से उसकी दृष्टि में लेशमात्र
भी ध्वनि नहीं हो रही थी। पीछा यूं ही जारी था।
अपनी ओर से विकास ने पूर्ण सतर्कता का परिचय दिया था किंतु...
।
." बेटे विकास!" एकाएक ही विकास के कानों में टुम्बकटू
की थरथराती-सी आवाज पड़ी । विकास इस तरह चौंका, मानो समीप ही कहीं भयानक अणु विस्फोट
हुआ हो। इस बात की उसे कतई आशा नहीं थी । वह तो यह सोच रहा था कि टुम्बकटू उसकी उपस्थिति
से पूर्णतया अनभिज्ञ है-----किंतु यहां तो परिस्थिति बिल्कुल ही विपरीत थी। उसने चौंककर
आगे जाते टुम्बकटू की ओर देखा तो पाया कि वह उसी प्रकार इत्मीनान के साथ चल रहा था
। उसे देखने से बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगता था, जैसे टुम्बकटू ने ये शब्द कहे हों। विकास
को लगा कि कहीं यह उसका भ्रम तो नहीं है ।
इस अजीब-सी गुत्थी में उलझकर उसके कदम एक ही स्थान पर ठहर
गए। टुम्बकटू उसी प्रकार बिना एक कदम भी रुके आराम से बढ़ रहा था। एकाएक वीरान सन्नाटे
को चीरती हुई टुम्बकटू की आवाज फिर विकास के कानों से टकराई!
."क्यों? ठहर क्यों गए?"
इस बार विकास जान गया कि यह उसका भ्रम नहीं है ।
परंतु इससे पूर्व कि वह कुछ कर पाए, टुम्बकटू उसकी ओर घूम
गया। टुम्बकटू के होंठो पर वही चिर स्थायी मुस्कान थी। जबकि विकास इस प्रकार सकपकाया
मानो उसे पिता ने जेब से पैसे चुराते रंगे हाथों पकड़ लिया हो।
उधर टुम्बकटू ने इत्मीनान से अपनी विचित्र सिगरेट सुलगाई
और एक कश लगाकर बोला-----"बच्चों को बड़ों के बीचमें आना शोभा नहीं देता।"
परंतु इस समय में तो वह शैतान अपनी सकपकाहट पर
प्रभुत्व जमा चुका था, तभी तो वह बिना घबराए संयत स्वर में
बोला।
"लंबू अंकल... आपके पास शिष्टाचार नाम की कोई चिड़िया
नहीं है। "
-----''वह क्यों?'' टुम्बकटू भी हरा धुआं निकालता हुआ आराम
से बोला।
. "सबसे पहले आपको ये पूछना था कि मैं आपके पीछे क्यों
आ रहा हूं?"
"चलो।" टुम्बकटू लापरवाही के साथ बोला-----"वह
भी पूछ लेते हैं। "
"मैंने एक दिलजली बनाई है। "
"तुम उसे सुनाना चाहते हो । "
"मैं जानता हूं कि आप समझदार हैं।" वह शैतान टुम्बकटू
को फंसाने का सामान जुटा रहा था।
-" लेकिन मुझे नहीं सुननीं।" उसी प्रकार मुस्कराता
हुआ टुम्बकटू बोला ।
."क्यों अंकल?'' विकास एकदम इस प्रकार बोला मानो अभी
रो पड़ेगा- -"क्या आप मेरा दिल तोड़ देंगे?"
-----"क्या बक्ते हो?" इस बार विकास की इस हरकत
पर टुम्बकटू उलझकर रह गया।
.-''सच अंकल!'' विकास उसी प्रकार रुआंसे स्वर में बोला-
-"अगर आपने मेरी दिलजली नहीं सुनी तो मेरा दिल उसी तरह टूट जाएगा, जैसे पत्थर
मारने से शीशा । "
विकास के ढंग और कहने की हरकत पर टुम्बकटू बिना मुस्कराए
न रह सका, जबकि उसके दिमाग में यह बात भी आ गई थी कि कहीं यह लड़का आवश्यकता से अधिक
खतरनाक न हो-----किंतु फिर भी वह अपने ही लहजे में बोला----- "अच्छा तो सुनाओ।"
टुम्बकदू आराम से कश लेकर बोला ।
. "वो मारा साले कल्लू के ताऊ को।" विकास के नारा
लगाते ही टुम्बकटू यह सोचकर मुस्करा उठा कि विकास पर विजय का कितना प्रभाव है। उसके
कहने का ढंग ठीक विजय जैसा ही था। वह खतरनाक लड़का अजीब ढंग से उछलता हुआ कह रहा था।
-"हां तो लंबू अंकल... आपको देखकर मेरा फर्ज होता है
कि मैं आपसे बिना कर्ज लिए एक असली मिट्टी के तेल में तली हुई दिलजली अर्ज करू।"
कहने के साथ उसने जो दिलजली पेश की वह कुछ इस प्रकार थी।
"जंगल में मंगल होगा, गाने का दंगल होगा।
आएंगे सियार चाचा, गाएगी कुतिया रानी ।।
बंदर बजाए बाजा, नाचे बंदरिया रानी |
इतने में खबर मिली कि मर गई उसकी नानी ।।
गधे की टांग टूटी, बंदर की ताल टूटी ।
कौए का राग टूटा, लोमड़ी ने माल लूटा।।
शेर को रह गया जूठा, उसने जूठा ही सूता। चील उड़कर भागी,
चूहा पैदल ही भागा ।। बिल्ली ने उसे दबाया, कुत्ता भी भागा आया।
भागकर वह पछताया, सब कुछ खाली जो पाया। दुख बहुत हुआ उसको,
लक्स से क्यों नहीं नहाया ।।
जंगल में मंगल होगा, गाने का दंगल होगा।
आए सियार चाचा, गाती कुतिया रानी । '
***
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