मेहर चन्द एण्ड सन्स नाम की दुकान सर्राफा बाजार की बाकी की दुकानों के मुकाबले में एक छोटी सी महत्वहीन सी लगने वाली दुकान थी । दुकान पर लगभग एक पैंसठ साल का वृद्ध मौजूद था । यहां दुकान के नाम के ‘एण्ड सन्स’ वाले भाग का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था ।
सुनील को देख कर वृद्ध के होंठों पर मशीन की तरह व्यवसाय सुलभ मुस्कराहट उभर आई ।
सुनील ने बिना कोई भूमिका बांधे जेब में से नैकलेस निकाला और उसे अपने और बृद्ध के बीच में रखे शीशे के टाप वाले शो केस पर रख दिया ।
“इस नैकलेस को पहचानते हैं आप ?” - सुनील उसके नेत्रों में झांकता हुआ कठोर स्वर से बोला ।
वृद्ध के चेहरे से मुस्कराहट तत्काल गायब हो गई । उसने बड़े असुविधाजनक ढंग से पहले नैकलेस की ओर, और फिर सुनील की ओर देखा और फिर बोला - “मैं आपका मतलब नहीं समझा ।”
“टालने की कोशिश मत कीजिए, बाबा जी ।” - सुनील बोला - “आप मेरा मतलब खूब समझते हैं ।”
“लेकिन, बरखुरदार, तुम यह सवाल क्यों पूछ रहे हो ?”
“आप किसी गजाधर को जानते हैं ?”
“कौन गजाधर ?”
“जो रौनक बाजार के प्रिंस होटल का मालिक है ?”
“मैं किसी गजाधर को नहीं जानता ?”
“आज सुबह किसी आदमी ने आपको यह नैकलेस बेचा था ?”
वृद्ध ने उत्तर नहीं दिया ।
“मैंने आपसे एक सवाल पूछा है ?”
“लेकिन तुम्हें ऐसा कोई सवाल पूछने का कोई हक नहीं है ।”
“अगर यही सवाल आप से पुलिस पूछे तो क्या आप उसका जवाब नहीं देंगे ?”
“पुलिस ?”
“हां ! मेरा मुंह खोलने की देर है और पुलिस आप पर चढ दौड़ेगी । आप चोरी का माल खरीदने का धन्धा करते हैं ।”
“लेकिन यह सरासर झूठ है ।”
“यह एकदम सच है । यह नैकलेस चोरी का है और आपने आज सुबह गजाधर से इसे खरीदा था ।”
“लेकिन मैं सच कह रहा हूं, मैंने यह नैकलेस नहीं खरीदा ।”
सुनील चुप रहा । वृद्ध उसे सच बोलता हुआ महसूस हुआ ।
“आपने यह नैकलेस पहले कभी देखा था ?” - सुनील ने नया प्रश्न किया ।
वृद्ध कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर उसने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“कब ? कहां ?”
“गजाधर यह नैकलेस मेरे पास इसकी कीमत आंकने के लिए छोड़ गया था । लेकिन लगभग दो घण्टे बाद ही वह वापिस आया था और नैकलेस वापिस ले गया था ।”
“क्यों ?”
“वह कहता था, उसने अपना इरादा बदल दिया है । अब वह उस नैकलेस को बेचना नहीं चाहता ।”
“उसने बताया था कि यह नैकलेस किसका है ?”
“मैंने पूछा था । वह कहता था कि नैकलेस उसके किसी रिश्तेदार का है ।”
“आपने इसकी क्या कीमत आंकी थी ?”
“अगर कोई यह नैकलेस मुझे बेचे तो मैं उसे इसके चार सौ रुपये से अधिक नहीं दूंगा ।”
“क्या ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
वृद्ध चुप रहा ।
“वजह ?” - सुनील ने पूछा ।
“यह नैकलेस नकली है ।” - उत्तर मिला ।
“अच्छा !” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला । उसने नैकलेस जेब में रखा, वृद्ध का धन्यवाद किया और वहां से विदा हो गया ।
***
शाम को जिस समय सरिता सुनील के फ्लैट पर आई, उस समय संयोगवश बन्दर वहां नहीं था ।
“नैकलेस मिला ?” - आते ही उसने सबसे पहला प्रश्न किया ।
सुनील एक क्षण हिचकिचाया फिर बोला - “मिल ही गया समझो ।”
“समझने से क्या मतलब ?”
“मुझे नैकलेस का सुराग मिल गया है । कल तक मैं नैकलेस आपको सौंप दूंगा ।”
“नैकलेस तुम्हारे दोस्त के पास था न ?”
“आपने वह कहावत तो सुनी होगी कि आदमी को आम खाने से मतलब रखना चाहिए, पेड़ गिनने से नहीं ।”
सरिता के चेहरे से लगा जैसे वह सुनील की बात का तीव्र प्रतिवाद करना चाहती हो लेकिन फिर वह एक गहरी सांस लेकर बोली - “आलराइट, आलराइट । मैं कल आऊंगी ।”
“थोड़ी देर बैठिए ।”
सरिता ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“पूछो ।” - सरिता के स्वर में अनिच्छा का पुट था ।
“क्या वह नैकलेस वाकई इतना कीमती था जितना आपने मुझे बताया था ?”
“वाकई क्या मतलब ? वह असली हीरों का पूरे पचास हजार रुपये का नैकलेस था ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“क्या कैसे मालूम ?”
“कि वह पचास हजार रुपये का नैकलेस था ?”
“डैडी ने कहा था । मैंने आपको पहले ही बताया था कि वह नैकलेस डैडी ने मुझे मेरे पिछले जन्मदिन पर उपहार दिया था । उन्होंने मुझे जन्मदिन से पहले ही बताया था कि वे मेरे लिए बहुत कीमती नैकलेस बनने देकर आए हैं ?”
“पचास हजार रुपए का ?”
“जी हां ! पचास हजार रुपए का असली हीरों का नैकलेस !”
“आपने उस नैकलेस का बीमा कौन सी कम्पनी से करवाया हुआ था ?”
“जनरल इन्श्योरेंस कम्पनी ।”
“आपके पास और भी बहुत से जेवर होंगे ?”
“हां !”
“वे सब इन्श्योर्ड हैं ?”
“हां । मेरे और मेरी सौतेली मां सूसन के सारे जेवरों का बीमा हुआ है ।”
“अभी तक ठाकुर साहब को मालूम नहीं हुआ है कि आपने इतना कीमती नैकलेस गुम कर दिया है ?”
“नहीं ।”
“आपने उन्हें बताया नहीं ?”
“नहीं !”
“क्यों ?”
“वजह कितनी बार पूछेंगे आप ? मैं आपको पहले ही बता चुकी हूं कि इस मामले में मैं पुलिस का दखल नहीं चाहती और उस नैकलेस से मेरा भारी सेन्टिमैन्टल अटैचमैंट था ।”
“सूसन के अलावा घर में किसी को मालूम है कि नैकलेस गुम हो गया है ?”
“क्यों ?”
“शायद सूसन ने किसी को बताया हो ?”
“मुझे उम्मीद नहीं । जब वह मुझे नैकलेस गुम हो जाने की बात को गुप्त रखने के लिए कह रही थी तो फिर वह खुद भला किसी को इस बारे में क्यों बतायेगी !”
“अगर ठाकुर साहब को पता लग जाये कि आपने नैकलेस गुम कर दिया है तो क्या होगा ?”
“कुछ भी नहीं होगा । वे बीमा कम्पनी से नैकलैस की कीमत क्लेम कर लेंगे ।”
“लेकिन आप ऐसा नहीं चाहती क्योंकि पुलिस का दखल आपको पसन्द नहीं और उस नैकलेस से आपका सैन्टिमैंटल अटैचमैंट है और सूसन भी यह नहीं चहती कि आप नैकलेस के गुम हो जाने के बारे में अपने डैडी को बतायें ? है न ?”
सरिता ने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा और फिर बोली - “और एक कारण यह भी है कि मुझे नैकलेस मिल जाने की पूरी आशा है । आपने अभी खुद ही कहा था कि आप कल मुझे नैकलेस सौंप देंगे ।”
“मैंने ठीक कहा था ।”
“थैंक्यू ।”
“लेकिन आपका नैकलेस आपको वापिस दिलाने के बदले में मुझे क्या मिलेगा ?”
सरिता हैरानी से सुनील का मुंह देखने लगी । वह कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - “आप क्या चाहते हैं ?”
“जो मैं चाहता हूं वह आप देंगी ?”
“मैं आपकी हर न्योयोचित मांग पूरी करने को तैयार हूं ।”
सरिता असुविधापूर्ण स्वर से बोली ।
“यह तो आप पर निर्भर करता है कि आपको मेरी मांग न्यायोचित लगती है या नहीं ?”
“आप भूमिका बहुत लम्बी बांधते हैं साहब । आप बातें बहुत ज्यादा करते हैं लेकिन कहते बहुत थोड़ा हैं ।”
“सारी ! दरअसल मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“किस विषय में ?”
“आपके पिछली रात के कृत्य के विषय में ।”
“क्या यही आपकी मांग है ?”
“हां ।”
“मेरी पिछली रात की हरकतों में आपकी क्या दिलचस्पी है ?”
“दिलचस्पी यही है कि मैं उत्सुकता से मरा जा रहा हूं ।”
“क्या पूछना चाहते हैं आप ?”
“पिछली रात को आपने क्लब में इतनी शराब क्यों पी ?”
सरिता एकाएक बेहद चुप हो गई ।
“और आप अपने होने वाले पति रवि को इतनी गालियां क्यों दे रही थीं ?”
सरिता चुप रही ।
“मैं आपके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूं ।”
“बात ।” - सरिता कठिन स्वर से बोली - “बात दरअसल कुछ भी नहीं थी, सुनील साहब । मुझे रवि पर गुस्सा आ गया था और फिर एकाएक मेरा दिमाग फिर गया था ।”
“बात क्या थी ?”
“उस वक्त तो बात मुझे इतनी बड़ी लग रही थी कि उसने मेरी अक्ल खराब कर दी थी लेकिन अब जब मैं सारी घटना के बारे में सोचती हूं तो अपने पर क्रोध भी आता है और शर्म भी आती है ।”
“जो इल्जाम आपने अभी मुझ पर लगाया था, वही हरकत आप खुद कर रही हैं । आप भूमिका बहुत लम्बी बांध रही हैं लेकिन कह कुछ नहीं रही हैं ।”
सरिता कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - “मिस्टर सुनील आपने कभी किसी से सच्चा प्यार किया है ?”
“यह सवाल आपने बड़े गलत आदमी से पूछा है । लगता है, भगवान ने मुझ में वह मशीनरी फिट नहीं की है जो किसी को किसी से सच्चे प्यार करने के लिए प्रेरित करती है । आप अपनी बात कहिए ।”
“मैं रवि से बहुत प्यार करती हूं । शीघ्र ही मेरी उससे शादी होने वाली है । रवि एक खूबसूरत, सम्पन्न और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति है । लड़कियां उस पर डोरे डोलने की कोशिश करती रहती हैं लेकिन रवि मेरे प्रति पूर्णतया ईमानदार है इसलिए वह ऐसी लड़कियों की कभी परवाह नहीं करता था । लेकिन पिछले कुछ दिनों से क्लब में एक लड़की आ रही थी जो कहीं से कोई ब्यूटी कान्टेस्ट जीतकर आयी थी । क्लब में आने वालों पर उसका प्रभाव पहले ही दिन से पड़ गया था और क्लब में आने वाले मर्द उसकी ओर यूं आकर्षित होते थे जैसे मिठाई पर मक्खियां गिरती हैं ।”
“फिर ?”
“फिर उसकी निगाहें रवि पर भी पड़ी और वह बाकायदा रवि को अपने पर आशिक करवाने की कोशिश करने लगी । ऐसी हरकत बहुत लड़कियों ने की थी लेकिन रवि ने उनमें कभी रुचि नहीं ली थी लेकिन इस बार रवि भी बाकायदा उसे फ्लर्ट करने लगा । जब इसके चर्चे होने लगे तो मैंने रवि से बात की । उत्तर में रवि बोला कि मुझे वहम हो गया है । मुझे ऐसी बात नहीं सोचनी चाहिए और वह केवल लोकाचार की खातिर ही उस लड़की से बोलता-चालता है । मैं रवि पर बहुत भरोसा करती थी इसलिए मैं उस पर विश्वास करके चुप हो गई । लेकिन पिछली रात को मुझे लगा कि रवि सच ही में मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहा है और बस फिर क्रोध से मेरी खोपड़ी उलट गई ।”
“क्या हुआ था ?”
“रवि उस चुड़ैल को किस कर रहा था । मैंने देखा और क्रोध से मैं पागल हो गई । फिर रवि को ऐम्बैरेस करने के लिए मैंने शराब पी और डांस के लिए रवि की बार-बार प्रार्थना ठुकरा कर और युवकों की बांहों में नाचती रही । रवि ने मुझे हर काम से रोकना चाहा । लेकिन मैंने उसकी एक नहीं सुनी ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि बन्दर को तुमने इसलिए लिफ्ट दी थी क्योंकि तुम रवि को जलाना चाहती थीं ?”
“बन्दर ! बन्दर कौन ?”
“म... मेरा मतलब है... व... वह चश्मे वाला युवक जो उस रात तुम्हारा साथी था ।”
“तो तुम स्वीकार करते हो उस रात मैं किसी ऐसे युवक के साथ थी ।”
सुनील चुप रहा ।
“और तुमने उसे बन्दर क्यों कहा ?”
“डार्विन की थ्यौरी के अनुसार किसी भी आदमी को उसके पुरातन नाम से पुकारा जा सकता है ।”
“तुम बहुत रहस्यपूर्ण आदमी हो । पूछते सब कुछ हो । बताते कुछ नहीं हो ।”
“फिर क्या हुआ ?”
“फिर वह हुआ जो मैं चाहती थी कि हो । मैं शराब पीती रही और उस चश्मे वाले युवक के साथ नृत्य करती रही और रवि अंगारों पर लौटता रहा ।”
“उस दौरान नाच के साथ गाने का प्रोग्राम नहीं हुआ ?”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि ऐसी सिचुऐशन अगर फिल्म में हो तो नाच के साथ-साथ गाने का भी तो सिलसिला होता है न । जैसे - ‘कैसे रहूं चुप कि मैंने पी ही क्या है’ या ‘गैरो पे करम, अपनो पे सितम, ऐ जाने वफा ये जुल्म न कर’ या रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन’ या...”
“मिस्टर !” - सरिता नाराज होकर बोली ।
“ओके ! ओके ! आई एम सारी ! आई जस्ट आस्क्ड !”
सरिता चुप रही ।
“सारे सिलसिले में गड़बड़ यह हुई कि मुझे यह मालूम नहीं था कि शराब मुझ पर इतनी ज्यादा हावी हो जायेगी कि मैं कतई होश खो बैठूंगी । मैं उस चश्मे वाले युवक के साथ क्लब से बाहर यह सोचकर निकली थी कि वह मुझे मेरे घर लेकर जायेगा लेकिन वह पता नहीं कहां ले गया मुझे और परिणामस्वरूप इतना हंगामा हो गया ।”
“हंगामा तो कुछ नहीं हुआ । केवल एक नैकलेस ही तो गुम हुआ है और पचास हजार रुपयों का नैकलेस आप जैसे पैसे वाले लोगों के लिए क्या अहमियत रखता है । और फिर वह भी इन्श्योर्ड था । आप आराम से बीमा कम्पनी से उसकी कीमत वसूल कर सकती हैं ।”
“मेरे डैडी पर मेरा बहुत बुरा प्रभाव पड़ा ।”
“वह तो अगर नैकलेस न भी गुम होता तो भी पड़ता । आपने हरकत ही ऐसी की थी । वह तो आपकी खुशकिस्ती थी कि आपके पल्ले बन्दर जैसा आदमी पड़ा अगर कोई दूसरा आदमी होता तो वह आपकी वो दुर्गति करता जो आप और आपका खानदान जिन्दगी भर याद रखता ।”
सरिता चुप रही ।
“अब रवि साहब का क्या हाल है ?”
“रवि ने अपनी गलती स्वीकार की थी । उसे इस बात का खेद है कि वह उस लड़की के बहकावे में आ गया । उसने मुझ से माफी मांगी और कसम खाई है कि वह दोबारा कभी ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा जिससे मेरी भावनाओं को ठेस पहुंचे ।”
“वैरी गुड ! अब एक बात और बताइये । कभी उस नैकलेस का कोई डुप्लीकेट भी तैयार किया गया था ?”
“नहीं... क्यों ?”
“यूं ही पूछा था मैंने । रवि भी हरनाम सिंह पैलेस में ही रहता है ?”
“नहीं । शंकर रोड पर उसकी अपनी कोठी है ।”
“शंकर रोड पर तो केवल रईस लोग ही रहते हैं । रवि बहुत पैसे वाला आदमी होगा ।”
“हां । उसका अपना केमीकल बनाने का कारखाना है । विशेष प्रकार के रसायनों के उत्पादन में उसने बहुत रुपया कमाया है ।”
सुनील चुप हो गया ।
***
सुनील यूथ क्लब पहुंचा ।
रमाकांत अपने दफ्तर में बैठा था और चारमीनार के लम्बे कश लगा रहा था । हमेशा की तरह खिड़की बन्द थी और कमरा चारमीनार के कड़वे धुंए से भरा हुआ था ।
“आओ, प्यारो !” - सुनील को देखकर रमाकान्त बोला ।
“आ गये ।” - सुनील बोला । सबसे पहले उसने कमरे की खिड़की खोली और फिर रमाकांत के सामने एक कुर्सी पर बैठ गया । उसने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“कैसे आए ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“रमाकांत प्यारे !” - सुनील विनयशील स्वर में बोला - “मैं तुम्हारे पास एक बहुत जरूरी काम से आया हूं और कसम है तुम्हें अपनी अरेबियन बैली डान्सर यासमीन की, उसे करवाने से इन्कार मत करना ।”
“क्या काम है ?” - रमाकांत सावधान स्वर से बोला ।
सुनील ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ।
“लेकिन ठहरो ।” - रमाकांत जल्दी से बोला ।
“क्या हुआ ?”
“तुमने यासमीन की कसम दिला दी है इसलिए मैं इन्कार नहीं करता लेकिन इस सिलसिले में मेरी भी एक दो शर्तें हैं ।”
“क्या ?”
“काम के सिलसिले में मैं अपना कोई आदमी राजनगर से बाहर नहीं भेजूंगा । कोई ऐसा काम नहीं करवाऊंगा जिसमें पुलिस लाइन क्रास होती हो । कोई ऐसा काम नहीं करवाऊंगा जिसमें रुपया खर्च होने की आशंका हो और पुलिस हैडक्वार्टर में मेरा जो सोर्स है वह राजनगर से बाहर गया हुआ है । इसलिए वहां की कोई इनसाईड इनफर्मेशन मैं तुम्हारे लिए हासिल नहीं कर सकता ।”
“मन्जूर ।”
“अब कौन सी लौंडिया का चक्कर है ? क्या किस्सा है ?”
“किस्सा फिर बताऊंगा ।”
“किस्सा फिर बताऊंगा । यह तो तुम्हारा पेटेन्ट सवाल है ।”
“क्या किस्सा है यह भी तो तुम्हारा पेटेन्ट सवाल है ।”
“लौंडिया कैसी है ?”
“क्या मतलब ?”
“खूबसूरत है ?”
“हां ।”
“जवान है ?”
“है ।”
“पैसे वाली है ?”
“हां ।”
“तुम पर मरती है ?”
“नहीं ।”
“नहीं ?”
“नहीं ।”
“फिर क्या फायदा हुआ । फिर क्यों बखेड़े में पड़ते हो ? जाकर भुट्टे भुनो ।”
“तुम बकवास छोड़ो और काम की बात करो ।”
“मैं तो काम की बात कर चुका । सौ रुपए निकालो ।”
“क्यों ?”
“मेरे आदमियों की मूमेन्ट की खातिर ।”
“उधार ।” - सुनील आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“नहीं... नकद... अभी ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और अपनी जेब से एक सौ का नौट निकाल कर रमाकांत के सामने रख दिया ।
रमाकांत ने नोट को दोनों हाथों से पकड़ा और उसे रोशनी की और करता हुआ बोला - “असली है न ।”
“लानत है ।” - सुनील जलकर बोला ।
“थैंक्यू । थैंक्यू ।” - रमाकांत बोला और उसने नोट जेब में रख लिया ।
“भगवान करे तुम आज बीमार हो जाओ और ये सौ रुपए तुम्हें दवा के लिए डाक्टर को देने पड़ें ।”
“वाह, वाह ! क्या दुआ मांगी है मेरे लिए लेकिन मेरे रिपोर्टर बेटे, कव्वों के कांव-कांव करने से भैंसे नहीं मर जातीं ।”
सुनील कहर भरी निगाहों से रमाकान्त को घूरता रहा ।
“काम बताओ ।” - रमाकांत बदले स्वर से बोला ।
सुनील ने नैकलेस निकालकर उसके सामने रख दिया । कमरे के तीव्र कृत्रिम प्रकाश में नैकलेस सितारों की तरह झिलमिलाने लगा ।
रमाकांत के नेत्र फैल गए । उसने झपटकर नैकलेस उठा लगा ।
“नकली है ।” - सुनील भावहीन स्वर से बोला ।
रमाकांत का उत्साह फौरन ठण्डा पड़ गया ।
“क्या किस्सा है ?”
“तुम्हें यह पता लगाना है कि यह नैकलेस किसने बनाया है ?”
“ऐलीमैंट्री वाटसन !” - रमाकांत नाटकीय स्वर में बोला - “यह नैकलेस किसी सुनार ने बनाया है ।”
“बकवास मत करो ।”
“ओके ।” - रमाकांत बड़ी शराफत से बोला ।
“राजनगर के सारे सुनारों के पास घूम जाओ । कारीगर अपनी कारीगरी को फौरन पहचान लेता है । जिस सुनार ने यह नैकलेस तैयार किया होगा वह इसे पहचान लेगा ।”
“काम तो बड़ा मामूली है ।” - रमाकांत व्यंग्पूर्ण स्वर में बोला - “लेकिन इसमें तीन छोटी-छोटी अड़चनें हैं ।”
“क्या ?”
“नम्बर एक, यह जरूरी नहीं है कि यह नैकलेस राजनगर के ही किसी सुनार ने घड़ा हो ।”
“और ?”
“नम्बर दो, राजनगर में कितने सुनार हैं इसके बारे में अभी तक कोई सरकारी गाईड नहीं छपी है ।”
“और ?”
“नम्बर तीन, सम्भव है कोई सुनार अपनी इस कारीगरी को पहचान ले लेकिन फिर भी यह स्वीकार नहीं करे कि वह नैकलेस उसने बनाया है ।”
“क्यों ?”
“शायद उसे ऐसी किसी स्वीकृति की वजह से किसी बखेड़े में फंस जाने की सम्भावना दिखाई देने लगे ।”
“तुम्हारी तीनों बातें ठीक हैं लेकिन फिर भी तुम पूछताछ करवाओ अगर कोई नतीजा न हासिल हुआ तो मेरी किस्मत ।”
“ओके ।”
“और कहने की जरूरत नहीं कि शुरूआत सर्राफा बाजार से करना ।”
“ठीक है । और ?”
“लिटन रोड पर हरनामसिंह पैलेस नाम की एक इमारत है । मालिक का नाम ठाकुर हरनामसिंह है । उनकी सरिता नाम की एक लड़की है जिसकी रवि नाम के युवक से शादी होने वाली है । शंकर रोड पर उसकी अपनी कोठी है । मुझे उस आदमी के बारे में जानकारी चाहिए ।”
“कैसी जानकारी ?”
“उसकी जनरल सोशल बैकग्राउन्ड । उसका कैमिकल्स बनाने का कारखाना है । वह उस कारखाने का मालिक कैसे बना ?”
“मालिक कैसे बना, क्या मतलब ? उसके पास पैसा होगा, उसने कारखाना बना लिया ।”
“मैं रवि से मिला हूं । मुझे वह कोई खानदानी रईस नहीं लगा था । मैं यह जानना चाहता हूं कि इतना सम्पन्न व्यक्ति कैसे बना ?”
“अच्छा ।”
“यह नैकलेस जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी में इन्श्योर्ड है । मैं यह जानना चाहता हूं कि इसका बीमा कितनी रकम के लिए हुआ है ?”
“यह सबसे आसान काम है ।” - रमाकांत बोला - “जनरल इन्श्योरेंस कम्पनी का एक कर्मचारी हमारी क्लब में आता है । मैं कल दफ्तर खुलते ही उसे पकड़ लूंगा ।”
“वैरी गुड ।”
“और ?”
“और चाय पिलाओ ।”
“क्यों नहीं... क्यों नहीं ।” - रमाकांत खीसें निपोरता हुआ बोला - “आज तो तुमने मुझे सौ रुपए दिए हैं । आज तो चाहे मेरा खून पियो ।”
सुनील चुप रहा ।
***
अगले दिन के ‘ब्लास्ट’ में प्रिंस होटल के मैनेजर और मालिक गजाधर की हत्या का समाचार छपा ।
पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार हत्या दो बजे के आस-पास हुई थी । एक पैंतालिस कैलिबर की रिवाल्वर की गोली ने गजाधर का भेजा उड़ा दिया था ।
गजाधर की 38 कैलिबर की रिवाल्वर में से निकली गोली हत्यारे को लगी थी, इस बात का संकेत अखबार में प्रकाशित विवरण में भी था ।
पुलिस के विशेषज्ञों ने लाश और कमरे के वातावरण का निरीक्षण करके यह नतीजा निकाला था कि कमरे की तलाशी पहले ली गई थी और हत्या बाद में हुई थी । शायद जब हत्यारा या हत्यारे किसी विशेष वस्तु के लिए गजाधर का कमरा टटोल रहे थे । तभी ऊपर से गजाधर आ गया था और हत्यारे उसको शूट करके वहां से निकल भागे थे लेकिन मरने से पहले गजाधर अपनी रिवाल्वर में से एक फायर करने में सफल हो गया था और उसकी रिवाल्वर में से निकली गोली निश्चय ही हत्यारे को [अगर वह एक था ] या हत्यारे में से एक को अगर वे एक से ज्यादा थे लगी थी । पुलिस का अनुमान था कि कम से कम दो व्यक्ति गजाधर के कमरे में घुसे थे और गजाधर की हत्या करने के बाद पिछवाड़े के रास्ते निकल भागे थे । पिछवाड़े की लकड़ी की गोल सीढियों पर एक दो स्थान ताजे रक्त के चिन्ह मिले थे । इससे भी इस बात की पुष्टि होती थी कि हत्यारों में से एक गजाधर की रिवाल्वर से निकली गोली से घायल हुआ था ।
कमरे में से फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को जो उंगलियों के निशान मिले थे, उन्हें पुलिस लैबोरेट्री में क्लासीफाई करने का प्रयत्न किया जा रहा था ।
अन्त में उस रहस्यपूर्ण व्यक्ति का भी जिक्र था जिसने पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके हत्या की सूचना दी और पूछे जाने पर अपना नाम जवाहरलाल नेहरू बताया था ।
केस की तफ्तीश पुलिस इन्सपैक्टर प्रभूदयाल कर रहा था ।
यही कुछ बाकी अखबारों में भी छपा था ।
सुनील ने उस दिन दफ्तर से छुट्टी ले ली और सुबह ही फ्लैट से खिसक गया । वह बन्दर को विशेष रूप से निर्देश दे गया कि अगर सरिता फ्लैट में आये तो वह उसके लिए दरवाजा हरगिज न खोले और अगर उसका फोन आये तो वह कह दे कि सुनील खुद उससे सम्पर्क स्थापित कर लेगा ।
दिन भर सुनील यूथ क्लब में डेरा जमाए बैठा रहा ।
रमाकान्त हमेशा की तरह बारह बजे सो कर उठा और नित्यक्रम से निवृत होकर बिना सुनील की ओर विशेष ध्यान दिये क्लब से विदा हो गया ।
सुनील उसके दफ्तर में बैठा सिगरेट फूंकता रहा और काफी पीता रहा ।
तीन बजे रमाकान्त वापिस लौटा ।
“तुम्हारी तकदीर अच्छी है ।” - वह आफिस में अपनी कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला ।
“काम हो गया ?”
रमाकान्त ने पहले चारमीनार का एक सिगरेट सुलगाया, उसके तीन चार लम्बे कश लगाए और फिर स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“शूट !” - सुनील व्यग्र स्वर में बोला ।
“जिस सुनार ने वह नैकलेस घड़ा है, उसका नाम कांजीलाल है और सर्राफा बाजार में घुसते ही बायीं ओर की पहली दुकान उसकी है ।”
“उसने वह नैकलेस पहचान लिया था ?”
“फौरन लाइक ए शाट ! और पहचान इसलिए लिया था क्योंकि उसके हीरे नकली थे । यह नैकलेस उसने बनाया था । इस बात को उसने फौरन स्वीकार इसलिए कर लिया था क्योंकि मेरे आदमी ने उसे कहा था कि वह भी एक ऐसा ही असली सोने का लेकिन असली से लगने वाले नकली हीरों का नैकलेस बनवाना चाहता है ।”
“और ?”
“यह नैकलेस जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी में अपनी पूरी कीमत के लिए इन्श्योर्ड है अर्थात पचास हजार रुपए के लिए । कम्पनी के इन्श्योरेन्स के कागजों में इस नैकलेस का जो विवरण लिखा हुआ है वह एकदम इससे मिलता है ।”
“तुमने यह नैकलेस अपने दोस्त को दिखाया था ?”
“नहीं ! मैंने केवल इसका हुलिया बयान किया था और यह बताया था कि नैकलेस ठाकुर हरनाम सिंह की प्रापर्टी है ।”
“इसका मतलब यह हुआ कि जब इस नैकलेस का बीमा करवाया गया था, उस समय इसमें असली हीरे जड़े हुए थे और असली हीरे निकाल कर नकली हीरे इसमें बाद में लगाए गए हैं ।”
“जाहिर है । बीमा कम्पनी वाले तो माल का बीमा करने से पहले कीमत बड़ी सावधानी से आंकते हैं । अगर इन्होंने नैकलेस का पचास हजार का बीमा किया है तो नैकलेस उस समय जरूर पचास हजार की कीमत का होगा । बीमा कम्पनी को ऐसे मामलों में धोखा नहीं दिया जा सकता । नैकलेस में नकली हीरे निश्चय ही बाद में लगाये गए हैं । लेकिन किसी ने ऐसा क्यों किया ?”
“फिर बताऊंगा, तुम आगे बढो ।”
रमाकांत जेब से एक कागज निकालकर सुनील को देता हुआ बोला - “यह उन जेवरों की कम्पलीट लिस्ट है जो इस नैकलेस के साथ जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी में इन्श्योर्ड हैं ।”
सुनील से लिस्ट ले ली । उसने देखा कुल तेइस आइटम थीं और जेवरों का लगभग दस लाख रुपये का बीमा था ।
उसने लिस्ट जेब में रख ली ।
“अब रवि के बारे में सुनो ।” - रमाकांत बोला ।
“कहो ।”
“तुम्हारा ख्याल ठीक था । रवि खानदानी रईस नहीं है । वह हमेशा ही इतना सम्पन्न आदमी नहीं था जितना कि वह आज है । पहले वह एक बड़ी मामूली हैसियत का इन्सान था लेकिन सरिता उससे तब भी इश्क करती थी । ठाकुर हरनामसिंह सरिता का रवि जैसे मामूली और बेहैसियत इन्सान से मेलजोल कतई पसन्द नहीं करते थे और सरिता की रवि से शादी उनकी इजाजत से हो पानी असम्भव थी ।”
“लेकिन अब तो दोनों की शादी हो रही है । अब तो ठाकुर हरनामसिंह खुद रवि को अपना दामाद बताता है ।”
“अब स्थति बदल गयी है । ठाकुर हरनामसिंह का दामाद बनने के लिए जिस एक गुण की रवि में कमी थी वह पूरी हो गई है । अब रवि के पास बहुत रुपया है और भविष्य में और भी ज्यादा रुपया होने की सम्भावना है ।”
“लेकिन रवि का यह काया पलट हुआ कैसे ?”
“रवि इन्डस्ट्रियल कैमिस्ट था और अनुसन्धान कार्यों में भारी रुचि रखता था । उसने इन्डस्ट्री में अक्सर और भारी मात्रा में इस्तेमाल होने वाले कुछ ऐसे रसायनों का आविष्कार किया था जो उत्पादन में कीमत के लिहाज से बेहद सस्ते साबित हो सकते थे और कैमिकल इन्डस्ट्री में इन्कलाब ला सकते थे लेकिन तब रवि के साथ समस्या यह थी कि उसके पास उन कैमिकल्स का केवल फारमूला ही था । उनका बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करने के लिए कारखाना लगाने की पूंजी नहीं थी ।”
“वह अपने आविष्कारों का पेटेन्ट किसी को बेच सकता था या रायल्टी पर दे सकता था ।”
“उससे उसे इतना पैसा हासिल नहीं हो सकता था कि ठाकुर हरनामसिंह उसे रुपए पैसे के मामले में अपनी बेटी के योग्य सम्पन्न आदमी समझ लेते ।”
“खैर, फिर ?”
“फिर रवि ने कहीं से रुपया हासिल किया और अपना कैमिकल्स वर्क्स शुरू कर लिया । इन्डस्ट्री में उसके उत्पादनों का वैसा ही स्वागत हुआ जैसी कि उसे अपेक्षा थी । परिणामस्वरूप अब रवि एक अच्छा खासा रईस आदमी है और ठाकुर हरनामसिंह की निगाहों में उनकी बेटी के लिए योग्य वर है ।”
“रवि के पास कारखाना शुरू करने के लिए पैसा कहां से आया ?”
“मालूम नहीं ।”
“तुमने मालूम करने की कोशिश नहीं की ?”
“केवल कही हुई बातें सुनीं, जैसे कोई कह रहा था कि रवि ने किसी से कर्जा लेकर कारखाना लगाया है । कोई और कह रहा था कि उसका अफ्रीका में कोई रईस रिश्तेदार मर गया है और उसी का ढेर सारा रुपया रवि को विरासत में मिला है ! कोई कह रहा या कि रवि को कारखाना लगाने के लिए रुपया खुद ठाकुर हरनामसिंह ने दिया है । एक साहब यह भी कह रहे थे कि दरअसल रवि उस कारखाने का मालिक है ही नहीं । रवि केवल वेतन पर का करने वाला कारखाने का कर्मचारी है । वास्तविक मालिक कोई और है जो इन्कम टैक्स बचाने के लिए रवि को कारखाने का मालिक जाहिर कर रहा है ।”
“अर्थात यह जानने का कोई साधन नहीं है कि इनमें से कौन सी बात सच है ?”
“कोई साधन नहीं !”
“लेकिन ये ही कौन सा जरूरी है कि इनमें से कोई बात सच ही हो । शायद ये सभी बातें गलत हों । रवि ने कारखाना लगाने के लिए रुपया कहीं और से ही हासिल किया हो । और इस विषय में किसी को भी जानकारी न हो ।”
“सम्भव है ।”
“रवि की कोई लाटरी तो नहीं निकली ?”
“निकली होती तो इस बात की जानकारी सब को होती ।”
“हूं !” - सुनील विचारपूर्ण स्वर से बोला - “यानी कि यह तो अच्छा खासा रहस्य का विषय हो गया कि कारखाना लगाने के लिए रवि के पास रुपया कहां से आया ?”
“ऐसा ही लगता है ।”
“अच्छा, प्यारेलाल, अब मेरी एक आखिरी प्रार्थना और स्वीकार कर लो ।”
“क्या ?” - रमाकान्त सशंक स्वर में बोला ।
“एक रिवाल्वर दिलवाओ ।”
“क्या ?” - रमाकान्त आंखें निकाल कर बोला - “पागल हुए हो क्या ?”
“इसमें पागल होने वाली कौन सी बात है । मैंने रिवाल्वर ही तो मांगी है तुम्हारी वह यासमीन नाम की सहेली तो नहीं मांगी ।”
“सहेली मांगो तो शायद दे भी दूंगा लेकिन तुम्हें रिवाल्वर हरगिज नहीं दूंगा ।”
“ऐसी क्या नाराजगी हो गयी ?”
“यह नाराजगी का सवाल नहीं है लेकिन मैं रिवाल्वर तुम्हें इसलिए नहीं दूंगा क्योंकि मैं अभी पिछला किस्सा भूला नहीं हूं । पिछली बार मैंने तुम्हें रिवाल्वर दी थी तो उसी रिवाल्वर से सोहनलाल की हत्या हो गयी थी । रिवाल्वर पुलिस ने जब्त कर ली थी और मैं खुद भारी बखेड़े में फंसता-फंसता बचा था और रिवाल्वर मुझे पुलिस हैडक्वार्टर से दो महीने बाद मिली थी ।”
“इस बार ऐसा नहीं होगा ।”
“कैसा नहीं होगा ? किसी की हत्या नहीं होगी या हत्या के बाद रिवाल्वर पुलिस के कब्जे में नहीं आएगी ?”
“कुछ भी नहीं होगा यार, मैं केवल सावधानीवश रिवाल्वर मांग रहा हूं ।”
“सारी ।”
“दे दो ना, यार ।”
“बाजार से खरीद लो ।”
“अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं ।”
“तो जब पैसे हों तब खरीद लेना ।”
“मगर इस बीच मैं मर गया तो मेरी हत्या तुम्हारे सिर होगी ।”
“मेरे से रिवाल्वर लेकर तुम जिस आदमी को शूट कर आओगे, उसकी हत्या भी तो मेरे ही सिर होगी ।”
“लेकिन यार तो तुम्हारा मैं हूं ।”
“भगवान बचाए तुम जैसे यार से ।”
“अब दे भी चुको, यार ! क्यों खामखाह बहस किए जा रहे हो ? प्यारे भाई पिछली बार केवल संयोगवश ही तुम्हारी रिवाल्वर से सोहन लाल की हत्या हो गयी थी (देखिए उपन्यास ‘विक्षिप्त हत्यारा’) । इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा । मैं केवल सावधानीवश अपने पास रिवाल्वर रखना चाहता हूं ।”
रमाकांत हिचकिचाया ।
“रमाकान्त, प्लीज !”
“अगर तुम्हें रिवाल्वर की ऐसी ही जरूरत रहती है तो वादा करो कि जल्दी ही तुम रिवाल्वर खरीद लोगे ।”
“वादा करता हूं ।” - सुनील बड़ी शराफत से बोला ।
रमाकान्त ने चाबी लगाकर मेज का दराज खोला और उसमें से एक 22 कैलीबर की छोटी से खिलौने सी खूबसूरत रिवाल्वर निकाल कर सुनील के सामने मेज पर रख दी ।
सुनील ने रिवाल्वर देखी और बोला - “मैंने रिवाल्वर मांगी थी, रिवाल्वर का नमूना नहीं मांगा था ।”
“यह रिवाल्वर ही है ।”
“लेकिन प्यारेलाल असली चीज दो ना इससे तो बिल्ली भी नहीं मरेगी ।”
“लेकिन तुम्हें तो रिवाल्वर सावधानीवश चाहिए । तुमने किसी का खून थोड़े ही करना है ।”
“लेकिन...”
“और अगर तुम्हें खून खराबे के लिए रिवाल्वर चाहिए तो नमस्ते ।” - और रमाकान्त ने रिवाल्वर की ओर हाथ बढाया ।
लेकिन सुनील ने जल्दी से रिवाल्वर उठा ली । उसने रिवाल्वर जेब में रख ली और फिर गहरी सांस लेकर बोला - “भागते चोर की लंगोटी ही सही ।”
“और यह लंगोटी जल्दी से जल्दी वापिस आनी चाहिए ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और उठ खड़ा हुआ - “मैं चला ।”
“एक बात और सुनते जाओ ।”
“क्या ?”
“अगर यह रिवाल्वर तुमने किसी घपले में फंसा दी तो किसी को यह बताने की तकलीफ मत करना कि यह रिवाल्वर तुम्हें मैंने दी थी । मैं साफ मुकर जाऊंगा ।”
सुनील ने विचित्र नेत्रों से रमाकान्त की ओर देखा ।
“घूरो मत । इस रिवाल्वर पर से नम्बर घिसकर मिटाया हुआ है इसलिए इसकी सेल मुझ तक... या जो भी इस रिवाल्वर का मालिक है उस तक, ट्रेस नहीं की जा सकती ।”
“यह रिवाल्वर तुम्हारी नहीं है ?”
“आम खाने से मतलब रखा, पेड़ गिनने से नहीं । और अगर तुम्हें इस रिवाल्वर से कोई ऐतराज है तो बेशक इसे यहीं छोड़ जाओ ।”
“मुझे रिवाल्वर से कोई ऐतराज नहीं । थैंक्यू, मैं चला ।”
“हां जरूर जाओ और नवम्बर तक लौट कर मत आना ।”
“रिवाल्वर लौटाने भी न आऊं ?”
“मुझे फोन कर देना । मैं रिवाल्वर खुद तुम्हारे पास से ले जाऊंगा ?”
“ओके । थैंक्स अगेन !”
और सुनील कमरे से बाहर निकल गया ।
***
कांजीलाल सुनार एक लगभग पैंतालीस वर्ष का डरपोक सा लगने वाला आदमी था । सर्राफा बाजार में उसकी दुकान किसी पनवाड़ी की दुकान जितनी छोटी थी ।
सुनील ने उसके सामने नैकलेस रख दिया ।
कांजीलाल ने पहले नैकलेस को और फिर प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील को देखा ।
“इस नैकलेस को पहचानते हो ?” - अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
कांजीलाल का सिर एक बार स्वीकृतिसूचक ढंग से हिला और फिर स्थिर हो गया । उसने सन्दिग्ध नेत्रों से सुनील की ओर देखा और फिर धीरे से बोला - “क्या बात है, भाई साहब ?”
“तुम इस नैकलेस को पहचानते हो ?” - सुनील ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“लेकिन साहब किस्सा क्या है ? पहले भी एक आदमी इस नैकलेस को लेकर मेरे पास आया था । आखिर मुझे भी तो पता लगे कि मुझसे इस नैकलेस के बारे में क्यों पूछा जा रहा है ?”
“यह पुलिस इन्क्वायरी है, मिस्टर ।”
“पुलिस इन्क्वायरी !” - कांजीलाल का मुंह खुले का खुला रह गया ।
“हां ।”
“आप पुलिस के आदमी हैं ?”
“हां । मैं खुफिया पुलिस से सम्बन्धित हूं ।”
कांजीलाल ने सन्दिग्ध नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
सुनील ने एक बार घूरकर कांजीलाल को देखा और फिर बड़े ड्रामेटिक अन्दाज से उसने अपनी जेब से अपना ब्लास्ट का प्रेस रिपोर्टर का आइडेन्टिटी कार्ड निकाला । उसने झटके से कार्ड को खोला और उसे इस प्रकार कांजीलाल की नाक के आगे कर दिया कि उसे केवल सुनील की तस्वीर और उसका नाम दिखाई दे । फिर लगभग फौरन ही उसने कार्ड बन्द करके अपनी जेब में रख लिया ।
कांजीलाल पर सुनील के इस एक्शन का अप्रत्याशित प्रभाव पड़ा । वह तत्काल बोला - “जी हां... मैं इस नैकलेस को अच्छी तरह पहचानता हूं । मैंने लगभग एक महीने पहले इस नैकलेस पर कुछ काम किया था ।”
“कुछ काम किया था, क्या मतलब ?”
“यह नैकलेस जब मेरे पास लाया गया था, तब यह असली हीरों का था । मैंने नैकलेस में से असली हीरे निकालकर इसमें नकली हीरे जड़े थे ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि जो आदमी मेरे पास नैकलेस लेकर आया था, वह ऐसा ही चाहता था ।”
“तुम्हारे पास यह काम कौन लाया था ?”
कांजीलाल हिचकिचाया ।
सुनील के नेत्र कठोर हो उठे ।
“यह नैकलेस मेरे पास माइकल नाम का एक आदमी लाया था ।”
“तुम माइकल को जानते हो ?”
“हां ।”
“कौन है वह ?”
“मैजेस्टिक सर्कल पर सेठ सोनामल एण्ड सन्स नाम की एक बहुत बड़ी जौहरियों की फर्म है । माइकल वहां पर सेल्समैन है । मेरा उससे काफी पुराना सम्पर्क है । वह मुझे अक्सर घड़ाई का काम दिलवाता रहता है ।”
“तुम्हें माइकल ने कहा था कि तुम नैकलेस में से असली हीरे निकालकर उनके स्थान पर नकली हीरे जड़ दो ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“मैंने वजह नहीं पूछी थी लेकिन इस प्रकार की हरकतें एक विशेष प्रकार के लोग अक्सर करते हैं ।”
“क्या मतलब ?”
“किन्हीं साहब ने अपनी खुशहाली के जमाने में बड़े अरमान से असली हीरों का कीमती नैकलेस खरीदा होगा । फिर रुपये पैसे के मामले में तकदीर दगा दे गई होगी । यारी दोस्ती में दबदबा बना रहे इसलिए उन्होंने नैकलेस को बेचा तो नहीं होगा लेकिन नैकलेस के अलली हीरे निकलवाकर बेच दिए होंगे और उसकी जगह नकली हीरे जड़वा लिए होंगे । उनकी जानकारी के दायरे में उनकी पोल भी नहीं खुली होगी और उनका काम भी हो गया होगा । नकली रईस तो ऐसा करते ही हैं, कई बार मजबूरी में अच्छे खासे खानदानी लोगों को ऐसा करना पड़ जाता है ।”
“नैकलेस माइकल का था ?”
“सवाल ही पैदा नहीं होता । माइकल इतना समर्थ आदमी नहीं है जो पचास हजार रुपये का नैकलेस अपने पास रख सके ।”
“तो फिर ?”
“माइकल नैकलेस के मालिक का घनिष्ट मित्र होगा । नैकलेस का मालिक खुद किसी जौहरी या सुनार के पास जाना नहीं चाहता होगा ताकि कहीं वह ठग न लिया जाये । इसलिए उसने यह काम माइकल के माध्यम से करवा लिया होगा ।”
“माइकल केवल सेल्समैन ही है या इस ट्रेड के बारे में निजि जानकारी भी रखता है ?”
“माइकल इस लाईन का बड़ा तजुर्बेकार आदमी है । वह इस ट्रेड की पूरी जानकारी रखता है ।”
“ऐसे और भी काम उसने करवाये हैं तुमसे ?”
“मैंने ऐसे बहुत काम किए हैं उसके लिए । पिछले तीन महीनों में वह कम से कम बीस पच्चीस जेवर मेरे पास भेज चुका है ।”
“वे सब हीरों से जड़े जेवर थे ।”
“जी हां । असली हीरों से जड़े जेवर । किसी राजा महाराजा का माल मालूम होता था । कम से कम नहीं तो दस लाख रुपये के जेवर तो जरूर होंगे वे ।”
“और तुम्हें उन सब में से असली हीरे निकालकर उनके समान पर नकली हीरे जड़ने के लिए कहा गया था ?”
“जी हां ।”
“और आखिरी गहना जो तुम्हारे पास भेजा गया था, वह नैकलेस था ।”
“जी हां । यह नैकलेस माइकल लगभग एक महीना पहले मेरे पास लाया था ।”
“और उसके बाद ?”
“उसके बाद कुछ नहीं । उसके बाद से मेरी माइकल से मुलाकात नहीं हुई है ।”
“तुम्हें याद है, माइकल तुम्हारे पास कौन-कौन से जेवर लाया था ?”
“खूब याद है ।”
सुनील ने अपनी जेब से तेइस गहनों की वह लिस्ट निकाली जो रमाकांत ने उसे दी थी ।
“जरा यह लिस्ट देखो ।” - सुनील लिस्ट उसके हाथ में देता हुआ बोला - “क्या यह लिस्ट में दर्ज जेवर ही वे थे जिनमें से तुमने असली हीरे निकालकर उनके स्थान पर नकली हीरे जड़े थे ?”
कांजीलाल ने लिस्ट ले ली । वह बड़ी सावधानी से लिस्ट को पढता रहा और फिर अपने आप ही उसका सिर स्वीकृतिसूचक ढंग से हिलने लगा । उसने लिस्ट सुनील को वापिस लौटा दी और बोला - “जी हां । एक-एक आइटम वही है जो माइकल पिछले तीन महीनों में मेरे पास लाता रहा था ।”
“धन्यवाद ।” - सुनील लिस्ट लेकर जेब में रखता हुआ बोला ।
वह दुकान से बाहर निकल आया ।
***
मैजेस्टिक सर्कल पर स्थित सेठ सोनामल एम्ड सन्स नाम की दुकान पर माइकल मौजूद नहीं था । पूछने पर मालूम हुआ कि वह थोड़ी ही देर पहले छुट्टी लेकर चला गया था और अब दुकान बन्द होने तक उसके लौटकर आने की कोई सम्भावना नहीं थी ।
“आपको माइकल के घर का पता मालूम है ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह अमर कालोनी के क्वार्टर नम्बर के - 35 में रहता है ।”
“धन्यवाद ।” - सुनील बोला और दुकान से बाहर निकल आया ।
उसने अपनी मोटर साइकिल सम्भाली और अमर कालोनी की ओर उड़ चला ।
अमर कालोनी राजनगर की घनी आबादी वाले इलाकों से एकदम बाहर समुद्र से समीप एक नई बनी कालोनी थी । कालोनी में अभी बहुत कम मकान बने थे । अधिकतर प्लाट या तो खाली थे और या अभी उन पर इमारतें उठाई जा रही थीं ।
जिस समय सुनील अमर कालोनी पहुंचा, उस समय तक सूरज डूब चुका था । उसने अपनी मोटर साईकिल ब्लाक के कोने पर मुख्य सड़क पर ही रोक दी ।
उसने अपनी जेब से नैकलेस निकाला और उसे मोटर साईकिल के कैरियर के साइड में लटके कैनवस के थैले में डाल दिया फिर वह अपनी जेब में रखी रमाकान्त की दी हुई बाइस कैलिबर की रिवाल्वर को टटोलता हुआ आगे बढा ।
के - 35 से थोड़ी दूर पहले ही सुनील ठिठक गया । वह एकमंजिली इमारत थी जिसके सामने छोटा सा लान बना हुआ था । लान के सड़क की ओर के सिरे पर झाड़ियों की हदबन्दी थी जिसमें एक छोटा सा लकड़ी का फाटक लगा हुआ था । इमारत की शीशे लगी खिड़कियों में से भीतर का प्रकाश बाहर फूट रहा था ।
के - 35 के आस-पास के तीन-तीन चार-चार प्लाट खाली थे ।
सुनील कुछ क्षण हिचकिचाता हुआ वहीं खड़ा रहा । फिर उसने अपनी जेब से रिवाल्वर निकाली और उसने उसे अपने कोट की दांई आस्तीन के भीतर धकेल दिया । बाइस कैलिबर की छोटी सी रिवाल्वर आस्तीन में कलाई के ऊपर कोट में जाकर इस प्रकार अटक गई कि बाहर से देखने पर कोट की आस्तीन में रिवाल्वर का आभास नहीं होता था ।
सुनील ने अपनी बांह को अपने शरीर के समानान्तर सीधा किया और उसे एक जोर का झटका दिया । रिवाल्वर कोट की आस्तीन से निकल कर सीधी उसके हाथ में आ गई ।
उसने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और रिवाल्वर को वापिस कोट की आस्तीन में धकेल दिया ।
वह इमारत के सामने पहुंचा और लकड़ी का फाटक ठेलकर भीतर प्रविष्ट हो गया । बरामदे में जाकर उसने कालबैल के पुश पर उंगली रख दी ।
फिर कुछ क्षण बाद द्वार खुला ।
एक ठिगना सा आदमी दरवाजे पर दिखाई दिया एक छोटा सा हाथ सुनील की ओर बढा ओर उस हाथ में थमी रिवाल्वर की नाल सुनील की छाती पर आ टिकी ।
“भीतर आओ, बेटा ।” - उसके कानों में एक विषैला स्वर पड़ा - “हम तुम्हारा ही इन्तजार करे रहे थे ।”
रिवाल्वर वाला आदमी पीछे हटा । अब कमरे में जलती ट्यूब लाइट का प्रकाश सीधा उसके चेहरे पर पड़ा । सुनील ने देखा वह वही ठिगना था जो परसों रात को सुनील के फ्लैट में घुस आया था ।
सुनील कमरे में प्रविष्ट हुआ और फिर बोला - “नमस्ते भाई साहब, उम्मीद नहीं थी कि आपसे दुबारा मुलाकात होगी ।”
“शटअप !” - ठिगना गुर्राया और उसने चेतावनी भरे ढंग से अपना रिवाल्वर वाला हाथ सुनील की ओर लहराया ।
सुनील फौरन चुप हो गया ।
दरवाजे के समीप एक और आदमी खड़ा था । उसके हाथ में भी रिवाल्वर थी और उसका निशाना सुनील की कनपटी थी । वह दूसरा आदमी ठिगने का परसों रात वाला ही लम्बे ओवरकोट वाला साथी था ।
“बिहारी, दरवाजा बन्द कर दो ।” - ठिगना बोला ।
दरवाजे के समीप खड़ा आदमी आगे बढा । उसने दरवाजा बन्द करके बोल्ट चढा दिया ।
“अपने हाथ ऊपर उठा लो और भीतरी कमरे की ओर बढो ।” - ठिगना बोला ।
सुनील ने तत्काल आज्ञा का पालन किया ।
तीनों भीतर के कमरे में आ गए ।
ठिगना बिहारी से बोला - “इसकी तलाशी लो ।”
बिहारी आगे बढा ।
“दीवार की ओर मुंह कर लो ।” - वह बोला - “अपने दोनों हाथ दीवार के साथ टिका लो और आगे की ओर झुक जाओ ।”
सुनील ने वैसा ही किया ।
बिहारी ने रिवाल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली और आगे बढा । उसने बड़ी सावधानी से सुनील का गरदन से नीचे का सारा शरीर टटोल डाला । दीवार के सहारे तनी सुनील की बाहों की ओर उसके हाथ नहीं बढे । फिर वह सुनील से अलग हट गया और बोला - “इसके पास कुछ नहीं है ।”
“गुड !” - उसे ठिगने का स्वर सुनाई दिया - “घूम जाओ ।”
सुनील ने दीवार से हाथ हटा लिए और वापिस घूम पड़ा । बिहारी की रिवाल्वर फिर उसके हाथ में आ गई थी ।
“माइकल तुम्हारा नाम है ?” - सुनील ठिगने की ओर देखकर बोला ।
माइकल के होठों पर एक कडुवी मुस्कराहट फैल गई । वह कुछ क्षण सुनील को घूरता रहा और फिर बोला - “मेरी आशा से जल्दी आ गये तुम ।
“तुम्हें मालूम था मैं यहां आ रहा हूं ?”
“हां । है न मजेदार बात ? अगर तुम यहां न आते तो मुझे बहुत हैरानी होती ।”
“तुम्हें कैसे मालूम था ?”
“तुम्हारे सर्राफा बाजार से प्रस्थान करते ही कांजीलाल ने मुझे मैजेस्टिक सर्कल पर फोन कर दिया था । वह कह रहा था कि कोई सुनील कुमार चक्रवर्ती नाम का खुफिया पुलिस का जासूस नैकलेस के बारे में तफ्तीश कर रहा था... तो तुम अब खुफिया पुलिस के जासूस हो गए हो ?”
सुनील चुप रहा ।
“नैकलेस कहां है ?” - माइकल कठोर स्वर में बोला - “और मार्क रिचर्डसन और गफूर कहां है ?”
“कौन मार्क रिचर्डसन ? कौन गफूर ?” - सुनील बोला ।
“तुम नहीं जानते उन्हें ?”
“नहीं ।”
“झूठ मत बोलो ।”
“मुझे क्या जरूरत है झूठ बोलने की ।”
वह कुछ क्षण चुप रहा और दुबारा सुनील से सम्बोधित हुआ - “चलो तुम्हें एक नजारा दिखाऊं शायद उससे तुम्हें थोड़ी अक्ल आ जाए । बगल के दरवाजे में आगे बढो ।”
सुनील माइकल द्वारा निर्देशित दरवाजे से भीतर प्रविष्ट हुआ । वह बाथरूम था जिसकी एक दीवार के साथ एक बहुत बड़ा बाथटब बना हुआ था । बाथटब लबालब पानी से भरा हुआ था और उसमें डूबी हुई कांजीलाल की लाश पड़ी थी ।
“बेचारा !” - सुनील को अपने पीछे से माइकल की आवाज सुनाई दी - “समुद्र में गिर गया और पानी में डूब कर जाना दे बैठा ।”
सुनील के शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी । उसने बाथटब की ओर से निगाह हटा ली ।
“अगर तुम मुझसे यूं ही झूठ बोलते रहे तो, बाई गाड, तुम्हारी इससे भी बुरी हालत होगी ।”
सुनील बाथरूम से निकलकर फिर बाहरी कमरे में आ गया ।
“लोग विश्वास कर लेंगे कि कांजीलाल समुद्र में बहकर मरा था ?” - सुनील बोला ।
“क्यों नहीं करेंगे ?” - माइकल बोला - “इसके शरीर पर एक खरोंच तक नहीं है और इसकी लाश समुद्र में ऐसे स्थान पर पाई जाएगी जहां इस प्रकार की दुर्घटनायें अक्सर होती देखी गई हैं ।”
बातावरण में कुछ समय खामोशी छाई रही ।
“और हां । नैकलेस कहां है वो ?” - वातावरण की खामोशी तोड़ते हुए माइकल बोला ।
“कौन सा नैकलेस ?”
“अब अनजान बनने से काम नहीं चलेगा, बेटे ! पिछली बार हम तुम्हारे फ्लैट पर तुम्हें इसलिए सलामत छोड़ आए थे क्योंकि तब खुद हमें भरोसा नहीं था नैकलेस तुम्हारे पास है या नहीं लेकिन अब मुझे पक्का मालूम है कि नैकलेस तुम्हारे पास है । दो तीन घन्टे पहले ही तुमने नैकलेस कांजीलाल को दिखाया था । अब तुम उसके बारे में झूठ नहीं बोल सकते । तुम मुझे नैकलेस के बारे में भी बताओगे और मार्क रिचर्डसन और गफूर के बारे में भी बताओगे ।”
“लेकिन मार्क रिचर्डसन और गफूर हैं कौन और मेरा उनसे क्या वास्ता है ?”
माइकल का रिवाल्वर वाला हाथ भड़ाक से सुनील के चेहरे से टकराया । सुनील के मुंह से एक कराह निकल गई । उसने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा थाम लिया ।
“हाथ ऊपर रखो ।” - माइकल गरज कर बोला ।
सुनील ने फौरन हाथ उठा लिए । उसका चेहरा पीड़ा से विकृत हो उठा था ।
“लेकिन, मेरे बाप !” - सुनील पीड़ा और झुंझलाहट मिश्रित स्वर से बोला - “मैं किसी मार्क रिचर्डसन और गफूर को नहीं जानता ।”
“यह नहीं हो सकता ।” - माइकल निश्चयपूर्ण स्वर में बोला - “मार्क रिचर्डसन और गफूर कल सुबह तुम्हारी निगरानी कर रहे थे । तुम मुझे और बिहारी को पहचानते थे इसलिए तुम्हारे पीछे मार्क रिचर्डसन और गफूर को लगाया गया था । दोनों कल से ही गायब हैं ।”
एकाएक सुनील को उस काली बैल्ट वाले आदमी की याद आई जो उसके ख्याल से प्रिंस होटल में गजाधर के कमरे के बाहर खड़ा गजाधर और सुनील की बातचीत सुन रहा था और जिसका बाद में सुनील ने पीछा करने की कोशिश की थी और जो एक दुबले पतले आदमी के सुनील से आ टकराने के दौरन कहीं गायब हो गया था ।
“मुझे यह नहीं मालूम कि वे लोग कल क्या पहने हुए थे ।”
“शायद वे दोनों तुम्हें धोखा देकर कहीं खिसक गये हों ?”
“मार्क रिचर्डसन ऐसा नहीं कर सकता । इस सारे बखेड़े में सबसे ज्यादा लाभ तो उसका है और गफूर वही करता है जो मार्क रिचर्डसन उसे करने के लिए कहता है ।”
फिर एकाएक सुनील को ख्याल आया कि गजाधर की हत्या एक पैंतालिस कैलिबर की रिवाल्वर से हुई थी ।
“क्या मार्क रिचर्डसन अपने पास पैंतालीस कैलिबर की रिवाल्वर रखता है ?”
“मार्क रिचर्डसन रिवाल्वर नहीं रखता । रिवाल्वर के नाम से ही उसके प्राण निकलने लगते हैं । शायद गफूर रिवाल्वर रखता हो । क्यों पूछा यह सब तुमने ?”
“क्योंकि उन्हीं दोनों में से किसी ने गजाधर की हत्या की है ।”
“मैंने तुम से यह नहीं पूछा कि उन दोनों ने क्या किया है ? मैंने तुमसे पूछा है वे दोनों हैं कहां ?”
“मुझे उनके बारे में कुछ नहीं मालूम ।”
“तुम...”
“माइकल !” - एकाएक बिहारी बोला - “शायद यह सच कह रहा हो । तुम इससे पहले नैकलेस के बारे में पूछो । नैकलेस के बारे में यह झूठ नहीं बोल सकता ।”
माइकल ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और फिर बड़े ही कठोर स्वर में सुनील से सम्बोधित हुआ - “नैकलेस कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
माइकल ने रिवाल्वर को बायें हाथ में थामा । उसने अपने दायें हाथ के दो तीन घूंसे ताबड़तोड़ सुनील के पेट में जड़ दिए ।
पीड़ा से सुनील के नेत्र उबल पड़े । उसने दोनों हाथों से अपना पेट थाम लिया ।
“हाथ ऊपर... हाथ ऊपर !” - माइकल कर्कश स्वर में बोला - “मिस्टर, नैकलेस के बारे में जुबान नहीं खोलोगे तो तुम्हारी बहुत बुरी हालत होगी ।”
“और अगर मैं नैकलेस के बारे में जुबान खोलूगा तो मेरी और भी बुरी हालत होगी । तब मेरी कांजीलाल जैसी बुरी हालत होगी ।” - सुनील बोला ।
“समझदार आदमी हो ।” - माइकल बोला - “लेकिन तुम अपनी जुबान बन्द नहीं रख सकते । मरना तो तुम्हें है ही । अगर जुबान बन्द रखोगे तो बेहद तकलीफ उठाने के बाद मरोगे ।”
सुनील चुप रहा ।
“ओके ओके !” - माइकल गहरी सांस लेकर बोला - “अब मैं तुम्हें बताता हूं कि हम तुम्हारी जुबान कैसे खुलवायेंगे, पहले हम तुम्हारी नाक काटेंगे फिर हम बारी-बारी तुम्हारी दोनों आंखें निकाल देंगे । उसके बाद मैं चाकू से तब तक तुम्हारे जिस्म से मांस के टुकड़े उखाड़ता रहूंगा जब तक तुम मुझे नैकलेस के बारे में बता नहीं दोगे । तब तक अगर तुम मर नहीं गए तो मैं तुम्हारे सारे शरीर पर मिर्चे मल दूंगा । मुझे उम्मीद नहीं कि इन तमाम यातनाओं से गुजरने के बाद भी तुम अपनी जुबान बन्द रख सको । क्या ख्याल है ?”
सुनील के माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहा आयीं । माइकल कोरी धमकी नहीं दे रहा था । उसकी आंखों के सामने कांजीलाल की बाथ टब में तैरती लाश घूम गई ।
“नैकलेस मेरे फ्लैट में है ।” - सुनील बोला ।
“फ्लैट में कहां ?”
“मेरा कपड़ों वाली अलमारी में । मेरे ओवरकोट की जेब में ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।” - माइकल बोला - “तुम्हारे जैसे सख्त जान आदमी का इतनी जल्दी जुबान खोल देना ही यह सिद्ध करता है कि तुम झूठ बोल रहे हो । तुम्हारा यह ब्लफ नहीं चल सकता ।”
“लेकिन यह ब्लफ नहीं है । मैं सच कह रहा हूं ।”
“अच्छी बात है लेकिन फिर भी यह विश्वास करने के लिए कि तुम सच बोल रहे हो हम तुम्हारी थोड़ी बहुत ऐसी तैसी तो करेंगे ही । अगर पन्द्रह मिनट बाद भी तुम यही राग अलापते रहे कि नैकलेस तुम्हारे फ्लैट में तुम्हारे ओवरकोट की जेब में है तो मैं तुम्हारी बात पर विश्वास कर लूंगा । बिहारी ! साहब के हाथ पांव बांधने के लिए रस्सी लाओ ।”
बिहारी दूसरे कमरे में चला गया ।
यही मौका था । सुनील के कोट की आस्तीन में छुपी नन्ही सी रिवाल्वर उसकी छाती पर तनी दो रिवाल्वरों का मुकाबला नहीं कर सकती थी लेकिन एक रिवाल्वर के मुकाबले में थोड़ा चांस था ।
बिहारी किसी भी क्षण वापिस लौट सकता था ।
माइकल सावधानी की प्रतिमूर्ति बना सुनील की आर रिवाल्वर ताने खड़ा था ।
एकाएक सुनील ने अपनी दृष्टि माइकल के पीछे की खिड़की पर जमा दी उसका मुंह खुल गया और चेहरे पर आतंक के भाव छा गए । माइकल, जिसने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि सुनील की सूरत देखकर चुप हो गया लेकिन उसने सुनील की अपेक्षानुसार घूमकर खिड़की की ओर नहीं देखा । फिर एकाएक सुनील बड़ी जोर से चीखा और उसने दायीं ओर छलांग लगा दी ।
सुनील के इस अप्रत्याशित एक्शन का असर माइकल पर केवल एक क्षण के लिए हुआ । लगभग तत्काल ही उसने सुनील की दिशा में फायर कर दिया ।
सुनील बाल-बाल बचा । उसका शरीर फर्श से टकराया । गोली उसके समीप से गुजर गई । उसने अपनी दायीं बांह को जोर से झटका दिया । रिवाल्वर तत्काल आस्तीन से निकलकर उसके हाथ में आ गई । सुनील ने फौरन माइकल की ओर हाथ फैलाकर लगातार दो फायर कर दिए ।
माइकल को दुबारा ट्रिगर दबाने का अवसर नहीं मिल सका । रिवाल्वर की दोनों गोलियां माइकल की नाक से जरा ऊपर माथे में घुस गयीं । माइकल क्योंकि सुनील के बहुत समीप था इसलिए बाइस कैलिबर की रिवाल्वर की छोटी-छोटी गोलियां भी माइकल के लिए घातक सिद्ध हुई थी । माइकल के हाथ से रिवाल्वर निकल गया, उसके मुंह से एक हृदय विदारक चीख निकली और फिर वह कटे वृक्ष की तरह फर्श पर ढेर हो गया ।
सुनील बिजली की तरह उसके हाथ से निकली रिवाल्वर की ओर लपका ।
उसी क्षण बाहरी कमरे से भागता हुआ बिहारी प्रविष्ट हुआ । सारी स्थिति को समझने में उसे केवल एक क्षण लगा । उसका रिवाल्वर वाला हाथ सीधा हुआ और उसने तत्काल फायर कर दिया ।
सुनील ने माइकल की रिवाल्वर को झपटने के स्थान पर अपने आपको फर्श पर गिरा दिया । गोली उसकी खोपड़ी से एक इन्च ऊंची गुजर गई और उसके पीछे फर्श में जा घुसी ।
सुनील ने लेटे-लेटे ही करवट बदली और फिर उसने बिहारी पर फायर कर दिया ।
गोली बिहारी के पेट में लगी । उसके मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली, एक क्षण के लिए उसका रिवाल्वर वाला हाथ नीचे आ गया लेकिन उसके पांव नहीं उखड़े ।
सुनील ने फिर रिवाल्वर का ट्रिगर दबाया लेकिन इस बार ट्रिगर नहीं दबा । ऐन मौके पर रिवाल्वर का ट्रिगर जाम हो गया था ।
बिहारी का रिवाल्वर वाला हाथ दुबारा सुनील की ओर उठ रहा था ।
सुनील ने हाथ में थमी रिवाल्वर जोर से बिहारी की ओर खींच मारी । रिवाल्वर भड़ाक से बिहारी के चेहरे से टकराई । वह लड़खड़ा कर एकदम पीछे हट गया । सुनील फुर्ती से उठा और तोप से छूटे गोले की तरह बाहर की ओर भागा । बिहारी की बगल से होता हुआ वह दरवाजे से बाहर निकल गया । बाहर निकलते समय उसने खींच कर दरवाजा बन्द कर दिया लेकिन उसे चिटखनी लगाने का मौका नहीं मिला ।
उसी क्षण बिहारी ने फायर किया ।
गोली दरवाजे को भेदती हुई सुनील के समीप ने निकल गयी ।
सुनील तत्काल दरवाजे से अलग हट गया । बाहर भागने से लाभ नहीं था । वह भाग कर बिहारी की रिवाल्वर की मार की रेंज से बाहर नहीं निकल सकता था ।
उसने आंतकित भाव से कमरे में चारों ओर देखा ।
एक कोने में पीतल का नक्काशीदार पैडेस्टल लैम्प पड़ा था । उसने झपट कर भारी लैम्प उठा लिया । उसने लैम्प को एक जोर का झटका दिया बिजली का प्लग सर्किट से फौरन बाहर निकल आया ।
उसी क्षण भड़ाक से भीतरी कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से हाथ में रिवाल्वर लिए बिहारी प्रकट हुआ । उसकी निगाह सुनील पर पड़ी ।
सुनील ने लाठी की तरह पैडेस्टल लैम्प को अपने सिर के ऊपर से घुमाया । बिहारी के ट्रिगर दबा पाने से पहले ही पीतल के भारी पैडेस्टल लैम्प का बेस बिहारी की खोपड़ी से टकराया । खोपड़ी की हड्डी चटकने की आवाज से कमरा गूंज उठा ।
सुनील ने पैडेस्टल लैम्प जमीन पर गिरा दिया फिर बिना बिहारी पर दुबारा दृष्टिपात किए कमरे से बाहर निकल गया ।
बड़ी मुश्किल से वह अपनी धौंकनी सी चलती सांसों पर काबू कर पाया । फिर उसने क्वार्टर का दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया । बरामदे में ही बिजली का मीटर और मेन स्विच लगे हुए थे । सुनील ने मेन स्विच ऑफ कर दिया । इमारत में अन्धेरा छा गया ।
वह बरामदे से निकल कर सड़क पर आ गया ।
मोड़ पर आकर उसने अपनी मोटर साईकिल सम्भाली और नगर की ओर चल दिया ।
सुनील जानता था कि वह बहुत भारी बखेड़े में फंस चुका था । पीछे माइकल के घर में जो कुछ हुआ था उसे वह पुलिस से छुपा नहीं सकता था और पुलिस को सारी दास्तान मालूम हो चुकने के बाद उसके पास अपने कथन की सत्यता प्रमाणित करने का कोई साधन नहीं था और चुप रहने से भी काम बनने वाला नहीं था । मेहर चन्द एण्ड सन्स की दुकान पर, जहां कि माइकल काम करता था । पूछताछ होनी निश्चित थी और फिर यह बात भी जरूर प्रकट होती कि माइकल की मौत से थोड़ी देर पहले सुनील की शक्ल सूरत का एक आदमी दुकान पर माइकल के घर का पता पूछ कर गया था और फिर माइकल के क्वार्टर में कई जगह सुनील की उंगलियों के निशान सकते थे ।
सारे सिलसिले में एक ही स्थान से सुनील को थोड़ी सहायता मिलने की आशा दिखाई दे रही थी ।
शायद ठाकुर हरनाम सिंह के बीच में पड़ने से पुलिस उसके कथन की सत्यता पर विश्वास कर ले । एक पब्लिक काल के सामने उसने अपनी मोटर साईकिल रोक दी ।
टेलीफोन डायरेक्ट्री में उसने हरनाम सिंह पैलेस का नम्बर देखा और फिर उस नम्बर पर रिंग कर दिया ।
थोड़ी देर बाद उसके कानों में ठाकुर हरनाम सिंह का स्वर पड़ा ।
“ठाकुर साहब !” - सुनील जल्दी से बोला - “मैं सुनील कुमार चक्रवर्ती बोल रहा हूं । आपको याद होगा, परसों रात को मैं आपकी बेटी को आपके घर छोड़ने आया था ।”
“हां, मुझे याद है ।” - ठाकुर हरनामसिंह का स्वर सुनाई दिया - “मैं भी तुमसे बात करना चाहता था ।”
“आप मुझसे बात करना चाहते थे ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“मैं तुमसे उस नैकलेस के बारे में पूछना चाहता हूं ।”
“नैकलेस के बारे में ? यानि कि सरिता ने आपको सब कुछ बता दिया है ?”
“हां । मुझे अफसोस है कि मेरी बेटी ने मुझसे यह बात छुपायी और तुम्हें उसको परेशान करने का मौका मिल गया ।”
“मैं उसे परेशान कर रहा हूं ?”
“और नहीं तो क्या ? मैं तुमसे आखिरी बार पूछ रहा हूं । तुम नैकलेस लौटाते हो या मैं पुलिस को रिपोर्ट करूं ?”
“आप मुझे धमका रहे हैं ?”
“मैं तुमसे एक सवाल पूछ रहा हूं ।”
“पुलिस को रिपोर्ट करने से क्या होगा ?”
“पुलिस को रिपोर्ट करने से यही सवाल पुलिस तुमसे पूछेगी । तुम्हें पुलिस को अपने उस चश्मे वाले दोस्त के बारे में बताना पड़ेगा जो परसों रात को सरिता के साथ था । उसी ने सरिता का नैकलेस चोरी किया है और मुझे विश्वास है कि पुलिस बड़ी आसानी से उससे नैकलेस वापिस हासिल कर लेगी ।”
“और अगर पुलिस अपने प्रयत्न में सफल न हो सकी तो ?”
“तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । वह नैकलेस इन्श्योर्ड है । मैं उस नैकलेस की कीमत बीमा कम्पनी से वसूल कर लूंगा ।”
सुनील एक क्षण चुप रहा फिर धीरे से बोला - “ऐसा मत कीजिएगा ठाकुर साहब ।”
“क्या मतलब ?”
“मेरा मतलब है आप उस चार सौ रुपए के नैकलेस के बदले में बीमा कम्पनी से पचास हजार रुपए झटकने की कोशिश मत कीजिएगा ।”
“क्या बक रहे हो ? वह नैकलेस असली हीरों का है और पूरे पचास हजार रुपए का है ।”
“वह नैकलेस नकली हीरों का हैं और हाल ही में एख जौहरी ने उसकी कीमत चार सौ रुपए लगाई है ।”
“लेकि... लेकिन... यह कैसे हो सकता है ? मैंने खुद वह नैकलेस पचास हजार रुपए में खरीदा है और मुझे इतनी अक्ल है कि मैं नकली और असली हीरों में फर्क महसूस कर सकूं ।”
“जब आपने वह नैकलेस खरीदा होगा, तब वह असली हीरों का होगा लेकिन अब उसमें नकली हीरे जड़े हुए हैं ।”
उत्तर में सुनील को ठाकुर हरनामसिंह का स्वर सुनायी नहीं दिया ।
“हल्लो !” - सुनील बोला ।
“तुम इस समय कहां हो ?” - ठाकुर ने पूछा ।
“मैं जहां भी हूं, मोटर साईकिल पर बीस मिनट में आपके पास पहुंच सकता हूं ।”
“ठीक है । मैं तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूं । तुम नैकलेस लेकर फौरन यहां आ जाओ ।”
वह बूथ से निकला और आकर मोटर साईकिल पर सवार हो गया ।
अगले ही क्षण वह हरनामसिंह पैलेस की ओर उड़ा जा रहा था ।
***
हरनामसिंह पैलेस के विशाल हाल में ठाकुर हरनाम सिंह, सूसन, सरिता और रवि बैठे थे । सब के चेहरे बेहद गम्भीर थे लगता था ठाकुर हरनाम सिंह नैकलेस के बारे में बाकी लोगों के सामने पहले ही बात चला चुके थे ।
“नैकलेस दिखाओ ।” - ठाकुर साहब हरनाम सिहं अधिकारपूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील ने नैकलेस निकालकर उसके सामने रख दिया ।
ठाकुर ने नैकलेस उठा लिया । कुछ क्षण वह कृत्रिम प्रकाश में नैकलेस का निरीक्षण करता रहा । फिर वह बिना एक शब्द बोले नैकलेस साथ लिए लम्बे डग भरता हुआ हॉल से बाहर निकल गया ।
सूसन, सरिता और रवि गम्भीरता की प्रतिमूर्ति बने चुप-चाप बैठे रहे ।
सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया ।
सुनील जब भी रवि की ओर देखता था, उसे अपनी ओर घूरता पाता था । सुनील से निगाहें मिलते ही वह दूसरी ओर देखने लगता था लेकि उसके चेहरे पर सुनील के प्रति उपेक्षा और क्रोध के भाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे थे ।
वातावर्ण में ब्लेड की धार जैसा पैनापन छाया हुआ था ।
लगभग पांच मिनट बाद ठाकुर वापिस हॉल में लौटा । उसने नैकलेस को अपने हाथ में यूं लटकाया हुआ था जैसे वह मरे हुए चूहे को पूंछ से थामे हुए हो और उसे कूड़े के ड्रम में डालने जा रहा हो ।
“नकली है ।” - ठाकुर बोला और उसने नैकलेस को सबके बीच में पड़ी बड़ी मेज पर उछाल दिया ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
ठाकुर एक कुर्सी पर बैठ गया और फिर किसी व्यक्ति विशेष की ओर देखे बिना बोला - “लेकिन यह कैसे हुआ ?”
“किसी को ढेर सारे रुपए की जरूरत होगी । उसने इस नैकलेस में से असली हीरे निकालकर बेच डाले और उनके स्थान पर नकली हीरे लगवा कर नैकलेस को यथास्थान पहुंचा दिया । और ठाकुर साहब आपकी जानकारी के लिए जनरल इन्श्योरेन्स कम्पनी के पास इन्श्योर्ड आपकी पत्नी और आपकी बेटी के दस लाख रुपए की कीमत के सारे जेवरों का यही हाल हो चुका है ।” - सुनील बोला ।
“क्या ?” - ठाकुर का मुंह खुले का खुला रह गया ।
“आप चाहें तो बाकी जेवरों का भी मुआयना कर आएं ।”
“लेकिन ऐसा किसने किया ?”
“आप ही लोगों में किसी ने किया होगा । और कौन कर सकता है ?”
“क्या मतलब ?” - ठाकुर सुनील को घूर कर बोला ।
“मतलब यह कि और सुनाइए क्या हाल-चाल है ।” - सुनील सरल स्वर में बोला - “और रुपए पैसे की तबियत कैसी है ?”
रवि एकदम क्रोधित हो उठा । वह चिल्लाकर बोला - “तुम्हें शर्म नहीं आती ठाकुर साहब जैसे आदमी पर ऐसा बेहूदा इल्जाम लगाते हुए ? तुम साले दो कौड़ी के आदमी...”
“रवि !” - ठाकुर क्रोधित स्वर से बोला - “अगर तुम अपने आप पर कन्ट्रोल नहीं रख सकते तो यहां से उठकर चले जाओ । तुम्हें इतनी अक्ल नहीं कि यह आदमी हमारा दुश्मन नहीं हमारा मददगार है । और जो कुछ यह हमसे पूछ रहा है, हमारे हित के लिए ही पूछ रहा है ।”
रवि ने सिर झुका लिया ।
“मिस्टर !” - ठाकुर सुनील की ओर घूमकर धीरे से बोला - “दस लाख रुपया काफी बड़ी रकम होती है । और जरूरत पड़ने पर शायद मैं ऐसी हरकत कर भी डालता ताकि रुपया भी हाथ में आ जाए और इज्जत भी बनी रहे । लेकिन फिलहाल मुझे इस तरीके से रुपया हासिलि करने की जरूरत नहीं है । फिलहाल रुपए पैसे की तबियत बहुत अच्छी है और भविष्य में भी अच्छी रहने की पूरी आशा है । तुम्हारी जानकारी के लिए हमारे राज परिवार को पांच लाख रुपए का प्रिवीपर्स मिलता है जिसमें से तीन लाख रुपए का मैं अकेला हकदार होता हूं ।”
“तो फिर” - सुनील बोला - “यह काम आपकी बेटी, आपके दामाद और आपकी पत्नी में से किसी का है ।”
रवि जहर भरी नजर से सुनील को घूरता हुआ बोला - “हम तीनों में से ही कोई क्यों ? हरनाम सिंह पैलेस में इतने नौकर चाकर हैं । शायद यह हरकत उनमें से किसी ने की हो ?”
“यह हरकत नौकरों में से किसी की नहीं है ?” - सुनील बोला - “इसलिए नहीं है क्योंकि परसों रात को जब मैं सरिता को यहां लेकर आया था उस समय आप लोगों के अलावा कोई नौकर चाकर यहां मौजूद नहीं था । अगर सारी गड़बड़ कोई नौकर कर रहा था उसे फौरन यह कैसे मालूम हो सकता था कि सरिता अपना नैकलेस गुम कर आई है ? यह बात उसे अगले दिन किसी सन्दर्भ में नैकलेस गुम हो जाने का जिक्र चलने पर ही मालूम होती और शायद तब भी न मालूम होती । लेकिन फिर जब मैं सरिता को यहां छोड़कर सीधा अपने घर पहुंचा था तो माइकल और बिहारी नाम के दो आदमी पहले से ही मेरे फ्लैट वाली इमारत के बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने उस नैकलेस की तलाश में मेरी कार की और खुद मेरी भरपूर तलाशी ली थी । और फिर किसी नौकर को यह भी नहीं मालूम हो सकता था कि मैं कौन हूं और कहां रहता हूं । नैकलेस के गायब होने की जानकारी उस रात आप चारों के अतिरिक्त किसी को नहीं हो सकती थी । और केवल आप लोगों को ही मालूम था कि मैं कौन हूं और कहां रहता हूं । क्योंकि मैं यहां अपना विजिटिंग कार्ड छोड़ गया था । मेरे यहां से विदा होते ही आप चारों में से ही किसी ने माइकल और बिहारी को मेरे फ्लैट पर भेजा था । अब जब कि ठाकुर साहब यह कह चुके हैं कि हेरफेर उन्होंने नहीं की है तो फिर हरकत जरूर आप तीनों में से ही किसी ने की है ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“लेकिन यह काम किसका है ?” - ठाकुर बोला ।
“आप पूछिए इन लोगों से ।” - सुनील बोला - “यह आपका परिवार है । इन लोगों को आप से झूठ बोलने की क्या जरूरत है ?”
ठाकुर ने बारी-बारी से रवि, सरिता और सूसन की ओर देखा । कोई कुछ नहीं बोला ।
“बाई दि वे, आप रवि से ही पूछिए, उसके पास कारखाना लगाने के लिए इतना ढेर सारा रुपया कहां से आया ?”
“अगर तुमने” - रवि गर्ज कर बोला - “मुझ पर ऐसा कोई जाम लगाया तो मैं...”
“रवि !” - ठाकुर साहब कठोर स्वर से बोले - “तुम्हारे पास कारखाना लगाने के लिए इतना पैसा कहां से आया ?”
“ठाकुर साहब !” - रवि हैरानी से बोला - “आप भी मुझ पर शक कर रहे हैं ?”
“मैंने तुमसे एक सवाल पूछा है ?”
“मैंने कर्जा लिया था ।”
“किससे ?”
“मैं नाम नहीं बताना चाहता ।”
“तुम तब बहुत मामूली आदमी थे । तुम्हें इतनी मोटी रकम कर्जे में किसने दे दी और क्यों दे दी ?”
“जिसने मुझे कर्जा दिया था वह समझदार आदमी था, वह जानता था कि उसका रुपया डूब नहीं सकता और उसने मुझए कर्जा क्यों दिया इसकी वजह सुनना आपको अच्छा नहीं लगेगा ।”
“लेकिन मैं सुनना चाहता हूं ।”
“जिसने मुझए कर्जा दिया था, वह जानता था कि आप बहुत पैसे वाले आदमी हैं और यह भी जानता था कि आपकी बेटी मुझसे शादी करना चाहती है और आपको मुझसे ये शिकायत है कि रुपये पैसे के मामले में मेरा कोई स्टेटस नहीं है । कर्जा देने वाला जानता था कि अगर मेरी सरिता से शादी हो गई तो फिर मेरा कारखाना चले ने चले, उसका रुपया उसे जरूर मिल जायेगा ।”
“तुमने किससे कर्जा लिया है ?” - ठाकुर साहब ने फिर प्रश्न दोहराया ।
“मैं उस आदमी का नाम नहीं बताना चाहता । मुझे कर्जा देने वाले की एक शर्त यह भी थी कि मैं आपको उसके बारे में कुछ नहीं बताऊंगा ।”
“मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं । मैं शुरू से ही इस बात में बड़ा हैरान था कि तुम्हारे पास कारखाना लगाने के लिए रुपया कहां से आया ?”
“और अब आपको ऐसा लग रहा है कि वह रुपया मैंने सरिता और सूसन के जेवरों के हीरे बेचकर हासिल किया है ?”
ठाकुर साहब चुप रहे ।
“और फिर मुझे तो यह भी मालूम नहीं है कि हरनाम सिंह पैलेस में वह जेवर कहां रखे जाते हैं ?”
“जेवर सरिता के भी थे ?” - सुनील धीरे से बोला - “उसे तो मालूम है ।”
“तुम चुप रहो ।” - रवि चिल्लाकर बोला ।
“सुनील ठीक कह रहा है ।” - ठाकुर साहब बोले - “सरिता हर हालत में तुमसे शादी करना चाहती थी । तुम्हारे कारखाने के लिए पैसा हासिल करने के लिए शायद उसी ने यह स्कीम बनाई हो या शायद स्कीम तुम्हारी हो और सरिता ने इसमें तुम्हारी मदद की हो । सरिता एक-एक करके वे जेवर तुम्हें देती रही हो और तुम उनमें से असली हीरे निकालकर उनके स्थान पर नकली हीरे जड़वा कर जेवर वापिस लौटाते रहे ।”
“लेकि डैडी” - सरिता तीव्र स्वर में बोली - “मैंने ऐसा नहीं किया है ।”
“मैंने यह नहीं कहा कि तुमने ऐसा किया है । मैंने केवल एक सम्भावना प्रकट की है ।”
“लेकिन आप मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं । आप अपनी बेटी को चोर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“मैंने सुना है ।” - ठाकुर धीरे से बोले - “कि इश्क में आदमी कुछ भी कर सकता है ।”
“लेकिन...”
“क्रोधित होने की जरूरत नहीं । अगर तुम कहती हो कि तुमने ऐसा नहीं किया है तो मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं ।”
सरिता चुप रही ।
“अब केवल सूसन बाकी रह जाती है ।” - ठाकुर बोला - “अगर यह काम सुनील के कथनानुसार हम चारों में से ही किसी का है और मैं कहता हूं यह काम मैंने नहीं किया । रवि और सरिता भी यही कहते हैं । तो फिर यह काम जरूर सूसन का है ।”
सूसन चुप रही ।
“लेकिन मुझे उम्मीद नहीं सूसन ने ऐसा किया हो ।” - ठाकुर बोला ।
सूसन ने निगाहें उठाकर ठाकुर की ओर देखा । उसके नेत्रों में कृतज्ञता का भाव था ।
“क्यों ?” - सुनील बोला ।
“क्योंकि सूसन मेरी पत्नी है ।” - ठाकुर बोला - “रुपये की खातिर सूसन को ऐसी हरकत करने की जरूरत नहीं थी । जरूरत पड़ने पर वह हमेशा मुझसे रुपया मांग सकती है ।”
“लेकिन दस लाख रुपये काफी बड़ी रकम होती है ।”
“फिर क्या है ? मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं कि रुपए पैसे के मामले में मैं काफी सम्पन्न हूं । सूसन के मांगने पर मैं बड़ी सहूलियत से उस दस लाख रुपए दे सकता हूं ।”
“बिना यह पूछे कि वह उन रुपयों का क्या करेगी ?”
ठाकुर हिचकिचाया । उसने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“शायद सूसन को रुपये की जरूरत किसी ऐसे काम के लिए हो जिसका जिक्र वह आपके सामने न कर सकती हो ।”
“मेरा ऐसा कोई काम नहीं है ।” - सूसन बोली - “और अगर होता भी तो मैं उसे ठाकुर साहब से छुपाती नहीं । ठाकुर साहब खुद जानते हैं कि मैंने अपने से सम्बन्धित बुरी से बुरी बात ठाकुर साहब से नहीं छुपाई है । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं बम्बई की थ्री स्टार नाइट क्लब में कैब्रे डान्सर थी । ठाकुर साहब ने जब मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा था तब उन्हें यह मालूम नहीं था कि मैं नाइट क्लब में आने वाले रईस लोगो का मनोरंजन करने वाली कैब्रे डान्सर हूं । ये मुझे एक सभ्रांत ऐंग्लो इण्डियन परिवार की बड़ी सम्मानित महिला समझते थे । मैं ठाकुर साहब से शादी करके चुपचाप बम्बई से राजनगर आ जाती और ठाकुर साहब को कभी नहीं मालूम होता कि मैं वास्तव में क्या थी लेकिन फिर भी मैंने ठाकुर साहब को एक-एक बात बतायी थी और यह ठाकुर साहब की माहनता थी कि मेरे बारे में सब कुछ सुन लेने के बावजूद भी उन्होने मुझे स्वीकार किया था । मैं...”
“बस !” - एकाएक ठाकुर बोला - और कुछ कहने की जरूरत नहीं । मुझे तुम पर पूरा भरोसा है सूसन ।”
सूसन चुप हो गई ।
“आप सब लोग अपनी-अपनी सफाई दे चुके हैं ।” - सुनील बोला - “और बारी-बारी यह सिद्ध कर चुके हैं कि जेवरों में से असली हीरे आप में से किसी ने नहीं निकलवाये । लेकिन यह बात भी एक कठोर सत्य है कि हरकत आप चारों में से ही किसी की है । जाहिर है आप चारों में से एक आदमी जरूर झूठ बोल रहा है । मेरी राय में जिस किसी ने भी यह हरकत की है उसे अभी यह स्वीकार कर लेना चाहिए, नहीं तो बाद में भारी गड़बड़ी जाने की सम्भावना है ।”
कोई कुछ नहीं बोला । सुनील से बारी-बारी सब की सूरतों पर निगाह डाली । सबके चेहरे सलेट की तरह साफ थे ।
“आल राइट !” - सुनील बोला और अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ - “अब मैं आप लोगों से एक आखिरी सवाल पूछना चाहता हूं ।”
सब प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखने लगे ।
“आप लोगों में से कोई मार्क रिचर्डसन नाम के किसी आदमी को जानता है ?”
सुनील को यूं लगा जैसे रवि और सूसन मार्क रिचर्डसन का नाम सुनकर चौंके हों लेकिन सबने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“और गफूर को ?”
गफूर को भी कोई नहीं जानता था । सुनील ठाकुर की ओर घूमा और फिर बोला - “मैं आपसे बात करना चाहता हूं ।”
“कहो ।” - ठाकुर बोला ।
“मैं केवल आपसे बात करना चाहता हूं ।”
“ओह, आई सी ।” - ठाकुर बोला और उठ खड़ा हुआ । उसने सुनील को संकेत किया और बगल के कमरे की ओर बढ चला । सुनील उसके पीछे हो लिया ।
सुनील के कमरे में प्रविष्ट होते ही ठाकुर ने दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया । वह सुनील के समीप आ खड़ा हुआ और बोल - “कहो ।”
सुनील ने उसे आद्योपांत सारी घटना कह सुनाई । माइकल के मकान पर हुए हत्याकांड का जिक्र करते समय सुनील बेहद गम्भीर हो उठा था ।
“अब समस्या यह है, ठाकुर साहब कि मैं इस मामले में अपनी गरदन तक फंसा हुआ हूं ।” - अन्त में सुनील बोला - “मैं शतप्रतिशत सच बोलूं तभी इसकी आशा है कि शायद पुलिस मेरी बात पर विश्वास कर ले । उस सूरत में आपके घर में हुई जेवरों की गड़बड़ का जिक्र भी मुझे करना पड़ेगा और फिर आपको और आपके परिवार के सदम्यों को भी इस सिलसिले में जरूर घसीटा जाएगा । जाहिर है कि आपके परिवार का जो सदस्य सारी गड़बड़ कर रहा था, वह माइकल को अच्छी तरह जानता था, क्योंकि जेवरों में से असली हीरे माइकल के माध्यम से ही निकलवाए गए थे और बेचे भी शायद माइकल के ही माध्यम से गए थे । सारा सिलसिला पुलिस को आपके परिवार के पीछे लगा देगा और शायद आपके परिवार वाले पुलिस से झूठ नहीं बोल पायेंगे । इस सन्दर्भ में अखबारों में आपके परिवार का नाम खूब उछाला जाएगा और आपको भारी बदनामी का सामना करना पड़ेगा । लोग तरह-तरह की अटकलें लगायेंगे और आप किसी का मुंह बन्द नहीं कर सकेंगे ।”
“इस सिलसिले में तुम कुछ कर सकते हो ?” - ठाकुर धीरे से वोला ।
सुनील ने स्वीकृतिसूचक सिर हिला दिया
“मैं पुलिस को यह बताऊंगा कि शायद जेबरों की इस गड़बड़ में आपके घर का कोई नौकर शामिल था । वह एक-एक करके माइकल को जेवर लाकर देता रहा था और माइकल उनमें से असली हीरे निकलवाकर उनके स्थान पर नकली हीरे जड़वाकर उन्हें वापिस नौकर को देता रहा था और नौकर नकली हीरे वाले जेवरों को यथास्थान पहुंचाता रहा था । कहने का मतलब यह है कि यह चोरी का केस था जिसमें आपके घर के एक या एक से अधिक नौकर शामिल थे । इससे यह जाहिर नहीं होगा कि आपके परिवार का ही कोई आदमी इस गड़बड़ में शामिल था ।”
“लेकिन इस प्रकार तुम इसे साधारण चोरी का केस कैसे जाहिर कर सकते हो ? अगर यह साधारण चोरी का काम था तो उन्होंने नकली हीरों वाले जेवर वापिस रखना जरूरी क्यों समझा ?”
“एक तो इसलिए कि घर के उस नौकर पर सन्देह न हो सके जो कि इस गड़बड़ में शामिल था । दूसरे इसलिए कि भविष्य में भी ऐसी गड़बड़ की गुंजाइश बनी रहे और तीसरा और सबसे बड़ा कारण यह है कि अगर चोर सीधे-सीधे जेवर चुराकर ले जाए तो आप चोरी की रिपोर्ट पुलिस को करेंगे, इन्शयोरेंस वालों को सूचित करेंगे । फिर आपके चोरी गए जेवरों का विवरण अखबार में छपेगा और आप जानते ही हैं कि चोरी का माल कौड़ियों के मोल बिकता है । चोर जब उसे बेचने की कोशिश करता तो वह दस लाख रुपए का माल मुश्किल से पचास हजार रुपए में बेच पाता क्योंकि खरीदने वाले को पहले ही मालूम हो चुका होता कि माल चोरी का है । लेकिन असली हीरों के जेवरों के स्थान पर नकली हीरों के जेवर रखता देने से क्योंकि चोरी की बात नहीं फूटती इसलिए चोर हीरों को पूरी कीमत में बेचने में सफल हो जाता । विशेष रूप से तब जबकि चोर माइकल था जो कि खुद इस काम की जानकारी रखता था ।”
“ठीक है । फिर ?”
“फिर सरिता एक नैकलेस गुम कर बैठी और संयोगवश वह नैकलेस मेरे हाथ पड़ गया । माइकल शायद तब तक हीरे बेच नहीं पाया था । शायद वह उनकी अधिक कीमत हासिल करने के लिए भाव-ताव कर रहा था । उसे आपके घर के नौकर से किसी प्रकार मालूम हो गया कि सरिता को रात को घर पर मैं छोड़ने आया था । उसे लगा कि नैकलेस जरूर मेरे पास है । वह नहीं चाहता था कि उसके हीरे बेच पाने से पहले ही सबको मालूम हो जाता कि नैकलेस नकली हीरों का है और और गड़बड़ का राज खुल जाए । उसकी निगाह में तो सरिता का नैकलेस मैंने हजम कर जाने के लिए ही उसके गले से उतारा था । अगर मैं उसे बेचने जाता तो मुझे फौरन मालूम हो जाता कि नैकलेस नकली हीरों का है । उस स्थिति में मैं उसे आपको वापिस कर देना ही मुनासिब समझता ताकि मैं इस बात की वाहवाही लूट सकूं कि मैंने सरिता का नैकलेस तलाश कर दिया ताकि आप मेरा अहमान मानें । ऐसी सूरत में मैं आपको इस बात का भी संकेत दे सकता था कि नैकलेस नकली हीरों का है और परिणामस्वरूप माइकल की सारी स्कीम बिगड़ जाती ।”
“फिर ?”
“फिर अवसर मिलते ही माइकल ने अपने साथी बिहारी की सहायता से मुझे अपने अधिकार में कर लिया । वे दोनों मुझे पकड़कर अमर कॉलोनी में माइकल के फ्लैट में ले गए और मुझ से मारपीट करके नैकलेस के बारे में पूछने लगे । उसके बाद जो कुछ हुआ वह मैं ज्यों का त्यों पुलिस के सामने बयान कर सकता हूं ।”
“कहानी अच्छी है । तुम्हारे खयाल से पुलिस तुम्हारी इस कहानी पर विश्वास कर लेगी ?”
“शायद नहीं करेगी । लेकिन विश्वास करने के अतिरिक्त उनके पास कोई चारा भी तो नहीं होगा । विशष रूप से तब जब कि आप परोक्ष में मेरी सहायता कर रहे होंगे ।”
“मैं परोक्ष में तुम्हारी सहायता कर रहा होऊंगा ?”
“आप मेरी सहायता नहीं करेंगे तो पुलिस वाले मेरी चटनी नहीं बना देंगे ? आपकी सहायता की आशा पर ही तो मैंने पुलिस को सुनाने के लिए इतनी बढिया कहानी घड़ी है ।”
“तुम मुझसे किस सहायता की अपेक्षा कर रहे हो ?”
“आप बड़े आदमी हैं । आपको प्रिवीपर्स मिलता है । सरकारी तौर पर आपको कई ऐसे अधिकार प्राप्त हैं जो साधारण नागरिक को प्राप्त नहीं । बड़े-बड़े सरकारी अधिकारियों से आपनी निजी मित्रता है । अगर आप प्रयत्न करेंगे तो मैं पुलिस के प्रकोप से बच जाऊगा । एक बार ऊपर से दबाव पड़ने पर पुलिस की मुझ पर थर्ड डिग्री इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं होगी ।”
“आल राइट !” - ठाकुर अनिश्च‍ित स्वर से बोला - “मैं कोशिश करता हूं ।”
“कोशिश नहीं, साहब ।” - सुनील आग्रहपूर्ण स्वर से बोला - “कोई पक्का काम कीजिए ।”
“ओके, ओके !” - ठाकुर बोला - “मैं अभी फोन करता हूं ।”
“थैंक्यू !” - सुनील बोला - “मैं जाता हूं । मैं अपनी मोटर साइकिल यहीं छोड़े जा रहा हूं । अगर आपके पास कोई विश्वसनीय ड्राइवर है तो उसे कहिए कि वह मुझे आपकी किसी कार पर अमर कालोनी छोड़ आए वर्ना यह तकलीफ आपको करनी पड़ेगी ।”
“तुम अगर कालोनी अपनी मोटर साइकिल पर ही क्यों नहीं जाते ?”
“क्योंकि अगर मेरी मोटर साइकिल अमर कालोनी में माइकल के क्वार्टर के आस-पास खड़ी पाई जायेगी तो पुलिस को यह कैसे विश्वास होगा कि मैं माइकल और बिहारी द्वारा वहां जबरदस्ती पकड़ कर लाया गया था ?”
“ठीक है, मैं ड्राइवर को कह देता हूं ।”
“ड्राइवर विश्वसनीय है ?”
“हां ।”
“धन्यवाद ! मैं फाटक के पास खड़ा होता हूं ।”
“ओके ।”
सुनील कमरे से बाहर निकल आया ।
बाहरी कमरे में सूसन और सरिता गम्भीरता की प्रतिमूर्ति बनी बैठी थीं लेकिन रवि वहां नहीं था । सुनील दोनों महिलाओं की ओर एक उड़ती हुई दृष्ट‍ि डालता हुआ हाल से बाहर निकल आया ।
वह इमारत से बाहर निकला और अर्धवृताकार ड्राइव-वे से होता हुआ बाहर की ओर बढा ।
फाटक के पास रवि खड़ा था ।
“हल्लो !” - सुनील बोला उसने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और उसे खोल कर रवि की ओर बढाता हुआ बोला - “सिगरेट ?”
“मैं सिगरेट नहीं पीता ।” - रवि बोला ।
“ओह !” - सुनील बोला, उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और उसके लम्बे-लम्बे कश लगाने लगा ।
“तुमने मार्क रिचर्डसन का नाम क्यों लिया था ?” - रवि बोला ।
“तुम मार्क रिचर्डसन के बारे में कुछ जानते हो ?”
“मैंने जो तुम से पूछा है, उसका जवाब दो ।”
“यार, तुम तो बहुत ही सिड़ी आदमी हो ।” - सुनील चिड़े स्वर से बोला - “हर वक्त लट्ठ मारने पर ही उतारू रहते हो । कभी तो मुहब्बत से बात किया करो ।”
एक क्षण के लिए सुनील को लगा जैसे रवि फिर कोई कठोर बात कहने वाला हो लेकिन जब वह बोला तो उसका स्वर अप्रत्याशित रूप से नम्र था - “मार्क रिचर्डसन नाम के व्यक्ति का इस सारे सिलसिले से कोई वास्ता हो सकता है ?”
“शायद हो, मैं दावा नहीं कर सकता । देखो रवि साहब अगर मार्क रिचर्डसन के बारे में कुछ जानते हो तो मुझे बता दो इस सिलसिले में इस वजह से चुप मत रहना क्योंकि मैं तुम्हें पसन्द नहीं ।”
उसी क्षण ड्राइव वे से एक बड़ी सी कार घूमी और सुनील की बगल में आ खड़ी हुई । कार को एक वर्दीधारी शोफर चला रहा था ।
सुनील कार का पिछला दरवाजा खोल कर भीतर बैठ गया ।
“मैं मार्क रिचर्डसन को नहीं जानता लेकिन मैंने उसका जिक्र सुना है ।” - रवि तनिक उतावलेपन से बोला ।
“कहां ?”
रवि हिचकिचाया ।
“अभी मुझे समय नहीं है ।” - सुनील जल्दी से बोला - “मैं तुमसे फिर मिलूंगा । तब तक तुम यह फैसला कर डालना कि इस विषय में मुझे कुछ बताना चाहते हो या नहीं ।”
रवि चुप रहा ।
“चलो ड्राईवर ।” - सुनील बोला ।
कार आगे बढ गई ।
“प्यारे !” - सुनील ड्राइवर से बोला - “कार यूं चलाओ जैसे तुम किसी रेस में हिस्सा ले रहे हो । तुमने रिकार्ड टाइम में अमर कालोनी पहुंचना है और चालान की परवाह मत करना । जिस काम के लिए हम जा रहे हैं उसके सामने सौ चालानों का भी कोई महत्व नहीं है ।”
“यस सर ।” - ड्राइवर तत्पर स्वर से बोला ।
कार बन्दूक से छूटी गोली की तरह लिटन रोड पर भाग निकली ।
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