मंगलवार, 16 जनवरी
लवलेश भाटिया घर में अकेला बैठा पत्नी के साथ हुए दुराचार पर मन ही मन उबल रहा था। जबकि उसके पास दुःखी और क्रोधित होने के लिए कहीं ज्यादा बड़ी वजह थी, ‘पत्नी की हत्या’ जो उसके जेहन में नहीं आ रहा था। मतलब उसे ज्यादा दुःख उसके साथ किये गये दुराचार का था ना कि उसके कत्ल का। वह ये सोचकर दांत पीस रहा था, गुर्रा रहा था कि किसी कमीने उसकी बीवी पर हाथ डालने हिम्मत कर दिखाई थी।
भीतर का मर्द उसे चैन नहीं लेने दे रहा था।
‘छोड़ूंगा नहीं कमीने को - वह शब्दों को चबाता हुआ सा बड़बड़ाया - ऐसा हश्र करूंगा कि जिंदगी भर के लिए अपाहिज बनकर रह जायेगा। दोनों आंखे निकाल लूंगा, जुबान काट लूंगा, नपुंसक भी बना दूंगा कमीने को। तब ना तो जिंदा में रह जायेगा, ना मुर्दा में।’
इतनी दूर की सोचे जा रहा था वह, जबकि अभी ये पता लगना बाकी था कि कत्ल किसने किया था। उसके दिल में धधकती आग बस विधायक चरण सिंह को जलाकर भस्म कर देना चाहती थी। ये बात तो उसने अभी तक एक बार भी नहीं सोची थी कि चरण सिंह मर्डर करने खुद नहीं पहुंच गया होगा उसके घर।
बहुत देर तक यूं ही अपना खून जलाता वह घर से बाहर निकला और वहां खड़ी अपनी नैक्सन में सवार होकर नर्सिंग होम की तरफ रवाना हो गया, जो कि उसके घर से करीब ही था।
वहां पहुंचकर उसने गाड़ी रोकी फिर भीतर दाखिल हो गया। पूरे स्टॉफ को पता था कि उसके साथ क्या घटित हो गया था, इसलिए रास्ते में जो भी मिला उसने हमदर्दी जताने की कोशिश की, मगर इससे पहले कि सामने वाला कुछ कह पाता डॉक्टर ने हाथ के इशारे से हर बार उन्हें चुप करा दिया था।
उसका खुद का केबिन दूसरी मंजिल पर था, जिसके आगे चीफ मेडिकल ऑफिसर की तख्ती लगी हुई थी। लिफ्ट में सवार होकर वह ऊपर पहुंचा और केबिन में दाखिल होकर अपनी चेयर पर बैठ गया। बैठकर नेता से बदला लेने की योजना बनाने लगा।
दो मिनट बाद फोन की घंटी बजी।
उसने बजने दिया, मगर एक बार घंटी बजनी बंद होकर जब दोबारा बज उठी तो उसने कॉल ले ली, “हैलो।”
“हैलो सर, दो लोग आपसे मिलने आये हैं।”
“बोल दो मैं बिजी हूं।”
“कहते हैं बहुत जरूरी काम है।”
“नाम?”
“जलाल खान और निशांत सिंह।”
सुनकर डॉक्टर का तन बदन सुलग सा उठा।
“ठीक है भेज दो।” कहकर उसने रिसीवर को जोर से क्रेडिल पर पटक दिया।
मिनट भर बाद दो लोग उसके केबिन में दाखिल हुए और पूरी धृष्टता का प्रदर्शन करते हुए डॉक्टर के सामने बैठ गये।
जलाल खान उर्फ जल्ली 35 साल का दैत्याकार कद काठी वाला युवक था, जिसका पूरा चेहरा पुराने जख्मों के निशानों से भरा हुआ था। जबकि निशांत सिंह जिसे सब निन्नी कहकर बुलाते थे, तीस साल का युवक था और जलाल के मुकाबले सभ्य भी दिखाई देता था।
दोनों एमएलए चरण सिंह के खास आदमी थे, और पिछली बार वसूली के लिए वहां पहुंचे उन चार लोगों में से थे, जिन्हें डॉक्टर की कंप्लेन पर पुलिस ने पकड़ा तो था मगर थाने तक नहीं ले जा पाये थे।
“कैसे हो डॉक्टर?” जल्ली ने पूछा।
“तुमसे मतलब?”
“सुना है किसी ने तुम्हारी बीवी के साथ ऐश कर के उसकी इज्जत का कचड़ा कर दिया। बहुत बुरा हुआ, मगर वह भी क्या करता, तुम्हारी सैक्सी बीवी को देखकर पगला गया होगा।”
“और मजे करने के बाद उसे खत्म कर दिया।” निन्नी ने जोड़ा।
“यहां क्यों आये हो?” डॉक्टर ने बड़ी मुश्किल से खुद को फट पड़ने से रोका।
“अफसोस जताने आये हैं और किसलिए आयेंगे। नेता जी ने कहा है कि इस दुःख की घड़ी में वह पूरी तरह आपके साथ हैं, कफन दफन के लिए पैसे चाहिये हों तो वह भी बता सकते हैं। बहुत बड़ा दिल है नेता भईया का, किसी को ना नहीं बोलते।”
सुनकर डॉक्टर का चेहरा तमतमा उठा।
“कंधा देने वालों की कमी हो - जल्ली हंसता हुआ बोला - तो उसका इंतजाम भी कर सकते हैं। फिर हम दोनों तो उसके लिए एकदम तैयार होकर आये हैं यहां, सोचा इसी बहाने आपकी खूबसूरत बीवी को अपने ऊपर सवार कराने का मौका मिल जायेगा, क्योंकि मर चुका होने के कारण हम तो सवारी कर नहीं सकते उसकी।”
“दफा हो जाओ यहां से?” डॉक्टर गुर्राता हुआ बोला।
“खामख्वाह, जबकि अभी हमारी बात पूरी भी नहीं हुई है।”
“तुम जाते हो या मैं पुलिस बुलाऊं?”
“यानि सबक नहीं लिया अभी? - जल्ली ठहाके लगाता हुआ बोला - पिछली बार हमारा क्या उखाड़ लिया था डॉक्टर जो फिर से पुलिस की धमकी दे रहे हो? या बीवी की मौत का गम इतनी जल्दी भूल गये जो अब अपने मां बाप का भी मरा हुआ मुंह देखना चाहते हो।”
डॉक्टर हकबकाया सा उसकी शक्ल देखने लगा।
“कोमल मैडम को हमने नहीं, तुमने मारा है डॉक्टर। हमारी बात मान ली होती तो आज बीवी की मौत पर मातम न मनाना पड़ रहा होता। हां जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए थी निन्नी को कोमल के साथ। मगर ये साला भी क्या करता, बेड पर लेटी तुम्हारी बीवी को देखकर बौरा गया। वैसे उस बात पर नेता जी इसकी जमकर खबर ले चुके हैं, ये कहकर कि भेजा जब कत्ल करने के लिए गया था, तो एक्स्ट्रा काम करने की क्या जरूरत थी - फिर उसने निन्नी की तरफ देखा - चल बे सॉरी बोल डॉक्टर साहब को।”
“सॉरी, मगर तुम्हारी बीवी थी ही इतनी बढ़िया बनी हुई कि मैं खुद को रोक नहीं पाया, फिर ये सोचकर उसपर चढ़ दौड़ा कि मरने तो जा ही रही थी, ऐसे में जाते जाते अगर मुझे खुश कर गयी तो हो सकता है स्वर्ग के दरवाजे खुल जायें उसके लिए।” कहते हुए वह बड़े ही कुत्सित भाव से हंसा।
डॉक्टर अपना आपा खो बैठा, कुर्सी से उठकर उसने तेजी से अपना हाथ निन्नी की गर्दन की तरफ बढ़ाया, मगर तभी जलाल खान ने उसे गर्दन से पकड़कर चेहरा मेज पर इतनी जोर से दबा लिया कि डॉक्टर का सांस लेना दूभर हो गया।
“बहन...औकात में रहना नहीं सीखा, हाथ उठायेगा हमपर?”
“ये क्या चल रहा है यहां?” एक चौथी आवाज गूंजी, जिसने दोनों को चौंककर पीछे देखने पर मजबूर कर दिया।
ग्यारह बजे के करीब अलीशा अटवाल डॉक्टर के घर पहुंची तो पता लगा वह क्लिनिक गया हुआ था। सुनकर उसे थोड़ी हैरानी हुई। हस्बैंड को अपनी पत्नी के मारे जाने का गम था या नहीं, वह जुदा बात थी, मगर गमजदा होने का नाटक तो उसने जरूर करता होना चाहिए था। जो अगर किया होता तो इस वक्त घर में होता ना कि काम पर।
थोड़ी देर बाद वह भाटिया नर्सिंग होम पहुंची। वहां पहुंचकर उसने डॉक्टर के बारे में दरयाफ्त किया तो ये भी पता लग गया कि दो लोग उससे मिलने आये हुए थे। रिसेप्शन पर बैठी लड़की उसे पहचानती थी इसलिए उसकी बाबत डॉक्टर से इजाजत लेना जरूरी नहीं समझा।
अलीशा दूसरी मंजिल पर स्थित डॉक्टर के केबिन तक पहुंची तो वहां का नजारा देखकर हैरान रह गयी, फिर गुस्से से बोली, “ये क्या चल रहा है यहां?”
सुनकर जल्ली और निन्नी ने एक साथ पलटकर उसकी तरफ देखा।
“डॉक्टर को छोड़ो।”
“तू कौन है छमिया?”
“तेरी अम्मा हूं साले, अब छोड़ता है या मुझे सच में अम्मा बनकर ही दिखाना पड़ेगा?”
“तू अम्मा ही बन जा - निन्नी जोर से हंसा - इसी बहाने स्तनपान का मौका हासिल हो जायेगा हमें।”
“एक नंबर के मादर... जान पड़ते हो?”
“बचपन से ही हूं कोई नई बात कह।”
“डॉक्टर को छोड़ो।”
“दफा हो जा लड़की - जल्ली का लहजा एकदम से बदल गया - वरना वो हाल करूंगा कि जिंदगी भर उठ बैठ नहीं पायेगी।”
“या तू किसी लड़की का बुरा हाल करने के काबिल नहीं रह जायेगा। जब हथियार ही सलामत नहीं बचेगा साले तो गोली कैसे चलायेगा?”
“ठहर जा साली।” कहता हुआ निन्नी अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ।
उसी वक्त अलीशा ने जींस में पीठ पीछे खुंसी गन निकालकर उसकी तरफ तान दी, फिर गुर्राती हुई बोली, “सालों क्यों अपनी जान के दुश्मन बन रहे हो, दफा क्यों नहीं हो जाते यहां से?”
गन देखकर दोनों सकपका से गये, प्रत्यक्षतः वैसी कोई उम्मीद जो नहीं थी। फिर जल्ली का हाथ खुद ब खुद डॉक्टर की गर्दन से अलग हट गया।
“ये दोनों चरण सिंह के आदमी हैं।” डॉक्टर हांफता हुआ बोला।
“नेता जी का नाम इज्जत के साथ ले डॉक्टर, वरना बीवी के बाद अगली अर्थी तेरी ही उठेगी - कहते हुए निन्नी ने अलीशा की तरफ देखा - सुन लिया हम कौन हैं?”
“हां सुन लिया।”
“तो अब यहां से निकल ले, इससे पहले कि हम तुझे अपना दुश्मन समझने लगें, जो कि तुझे बहुत भारी पड़ जायेगा।”
“तेरा नाम क्या है भड़वे?”
“मुझे भड़वा बोला, रुक अभी बताता हूं।” कहते हुए वह रिवाल्वर की परवाह किये बिना कुर्सी से उठकर तेजी से अलीशा की तरफ झपटा।
वह सावधान थी, इसलिए ज्यों ही निन्नी ने उसकी गन पर झपट्टा मारने की कोशिश की, अपना रिवाल्वर वाला हाथ पीछे खींचते हुए उसने सेकेंड के दूसरे हिस्से में एक जोरदार लात उसके पेट में जमा दी।
निन्नी संभलने की तमाम कोशिशों के बावजूद कुर्सी से टकराया और उससे उलझकर पीठ के बल फर्श पर गिर गया।
“अगर तुझे भी गब्बर सिंह बनने का शौक है - वह जल्ली की तरफ देखकर बोली - तो आगे बढ़कर ट्राई कर सकता है।”
“तू पछतायेगी लड़की।”
“पछता लूंगी, उससे तेरे पिछवाड़े में खुजली क्यों हो रही है?”
“इतना बढ़ चढ़कर भी इसलिए बोल रही है क्योंकि जानती नहीं है कि हम कौन हैं।”
“डॉक्टर ने बताया तो कि तुम दोनों नेता के टट्टू हो, उससे बढ़िया पहचान तुम्हारी और हो भी क्या सकती है।”
“बर्बाद कर दूंगा तुझे।” जल्ली दांत पीसता हुआ गुर्राया।
तब तक निन्नी उठकर खड़ा हो चुका था।
“वो तो तब करेगा न जब जिंदा बचेगा, जो फौरन यहां से दफा नहीं हो गये तुम दोनों तो नहीं बच पाओगे, अब जल्दी से फैसला करो कि मरना चाहते हो, या अपने बाप को जाकर अपनी नाकामी की दास्तान सुनाओगे, ये कि एक लड़की के हाथों मार खाकर आ रहे हो। वैसे जरा भी शर्म हो तो नेता के पास मत जाना, वरना वह अपने हाथों से तुम्हें गोली मार देगा।”
“अरे तू है कौन?”
“पहले पूछना नहीं सूझा?”
“यानि नाम बताने से डरती है?”
“हां बहुत डरती हूं, इसलिए क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम दोनों फिर से मेरे सामने पड़ो और मुझे मजबूरन ही सही तुम्हें खत्म करना पड़े। अब अगर मेरी बात तुम्हारी समझ में आ गयी हो तो दफा हो जाओ यहां से।”
“ठीक है जाते हैं, लेकिन अगली बार जब हमारा आमना सामना होगा तो तू शेखी बघारने की बजाये हमारे कदमों में लोटकर अपनी जान की भीख मांग रही होगी।”
“इज्जत की भी - निन्नी बोला - जो हम लूटकर रहेंगे।”
अलीशा ने बिना किसी चेतावनी के गोली चला दी, जोर की आवाज हुई, बुलेट जल्ली के कान को हवा देती हुई सामने की दीवार में जा घुसी।
वह मन ही मन कांपकर रह गया, फिर वहां रुके रहने की हिम्मत भी वे लोग नहीं कर पाये। दोनों दरवाजे की तरफ बढ़े तो अलीशा सावधानी बरतते हुए वहां से दो कदम पीछे हटकर खड़ी हो गयी। ये सोचकर कि कहीं दोनों फिर से उसकी रिवाल्वर छीनने की कोशिश न कर बैठें।
दोनों बाहर निकले और सीढ़ियों की तरफ बढ़ चले।
“एक आखिरी बात सुनकर जाओ।”
दोनों ठिठके, पलटकर उसकी तरफ देखा।
“डॉक्टर भटनागर अब खट्टर साहब की शरण में हैं, जिनकी मैं उतनी ही खास हूं, जितना कि तुम्हारा लीडर ओमकार चरण सिंह का खास है। मतलब दोबारा इनकी तरफ टेढ़ी निगाहों से देखने से पहले इतना जरूर सोच लेना कि पंगा डॉक्टर से नहीं, एमपी हर्षदेव खट्टर साहब से लेने जा रहे हो। जाकर ये बात अपने बाप को भी समझा देना।”
सुनकर दोनों बुरी तरह हैरान होते हुए आगे बढ़ गये।
“आप ठीक हैं?” डॉक्टर के सामने कुर्सी पर बैठते हुए अलीशा ने पूछा।
“हां मैं ठीक हूं, लेकिन तुमने बर के छत्ते में हाथ डाल दिया है, आगे संभलकर रहना।”
“मैं हमेशा संभलकर ही रहती हूं डॉक्टर साहब, तभी आज तक जिंदा हूं।”
“ये एमपी हर्षदेव खट्टर का क्या मामला है?”
“चरण सिंह की उसके साथ सालों पुरानी दुश्मनी है, दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे भी हैं, और आये दिन उनके आदमी एक दूसरे पर घात भी लगाते रहते हैं, बस इसीलिए वह नाम उछाल दिया मैंने। अब नेता वह बात सुनेगा तो बुरी तरह तड़पकर रह जायेगा।”
“तुम्हारा बात झूठी पड़ते कितनी देर लगेगी?”
“आसानी से तो नहीं पकड़ में आने वाली, क्योंकि हर्षदेव और चरण सिंह के बीच उसको लेकर कोई सवाल जवाब नहीं होने वाला। फिर भी नेता ने पूछ लिया तो हेकड़ी दिखाने के चक्कर में खट्टर उस बात की फौरन हामी भर देगा, ना कि चरण सिंह को ये समझाने में जुट जायेगा कि उसने कुछ नहीं कराया है।”
“मतलब जल्ली और निन्नी तुम्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करेंगे?”
“कर सकते हैं, मगर अपने बूते पर करेंगे ना कि चरण सिंह के आदेश पर। इसलिए मेरी चिंता छोड़िये और अपने बारे में सोचिये। दे क्यों नहीं देते बारह लाख उन्हें। आपके लिए इतनी बड़ी रकम तो नहीं है कि उसके लिए जान का रिस्क ले सकें?”
“बात रकम के बड़ी या छोटी होने की नहीं है, बात है उसूलों की, मैं अपनी गाढ़ी कमाई किसी गुंडे मवाली की धमकी में आकर क्यों लुटाता फिरूं?”
“क्योंकि उसी में आपकी भलाई है।”
“समझ लो ऐसी भलाई नहीं चाहता मैं, भला ये भी कोई जिंदगी है कि चार लोग आकर तुम्हें धमकाकर वसूली कर जायें? इससे तो बेहतर है कि वे लोग मुझे मार ही दें। और सौ बातों की एक बात ये कि मेरी किस्मत में अगर चरण सिंह के आदमियों के हाथों ही मरना लिखा है तो उसे मैं बदल नहीं सकता।”
“मुझे आपकी फिक्र है डॉक्टर साहब, क्योंकि आप मर गये तो मैं कोमल के कातिल का पता लगाने के बाद भी अपनी बाकी की फीस हासिल नहीं कर पाऊंगी।”
“उसमें पता लगाने जैसा अब कुछ नहीं बचा है अलीशा, वो काम निन्नी का था, अभी यहां बैठकर कबूल भी किया था उसने। इस धमकी के साथ कि अगर मैं अपने पेरेंट्स का हश्र भी अपनी बीवी जैसा नहीं हुआ देखना चाहता तो उनकी बात मान जाऊं।”
“उसने साफ कहा था कि कोमल की हत्या उसी ने की थी?”
“रेप की बात भी कबूली थी, वह भी इतने भौड़े ढंग से कि मुझे उसपर गुस्सा आ गया, फिर मैं उसकी गर्दन थामने ही जा रहा था कि तभी जल्ली ने मेरा सिर मेज पर रखकर जोर से दबा लिया। सांड जैसा बना हुआ है कमीना, इसलिए मैं हिल भी नहीं पा रहा था।”
“तो फाईनली आप मुझे केस से हट जाने को कहने वाले हैं?”
“अरे नहीं यार, वो बात तो मैंने तुम्हें इसलिए बताई है ताकि कातिल की तलाश में भटकने की बजाये निन्नी के खिलाफ एविडेंस तलाशना शुरू करो, तभी उसके किये की सजा दिला पाऊंगा मैं।”
“कैसे दिला पायेंगे? कोई रास्ता सूझ रहा है? क्योंकि यहां के थाने में तो उसके खिलाफ कोई कंप्लेन तक लिखकर राजी नहीं होगा?”
“थाने से आगे पुलिस महकमा खत्म नहीं हो जाता, मेरे पास एविडेंस होंगे तो कमिश्नर के पास जाऊँगा, अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकता हूं, मगर कोमल को हर हाल में इंसाफ दिलाकर रहूंगा। समझ लो आज की तारीख में मेरे जीवन का इकलौता मकसद यही है।”
“कहीं ऐसा तो नहीं है डॉक्टर साहब कि वह बात निन्नी ने बस आपको धमकाने की गरज से कह दी हो, मतलब वह चाहता था कि उसके मुंह से ये सुनकर कि कोमल को उसी ने मारा था, आप खौफजदा होकर उन्हें पैसे देने को तैयार हो जायें।”
“नहीं, जिस वक्त उसने वह बात कही थी, मेरी निगाहें उसके चेहरे पर ही गड़ी हुई थीं, तब रेप की बात करते वक्त उसकी आंखों में ऐसे भाव उत्पन्न हुए थे जैसे वह कमीना उस वक्त भी मेरी बीवी के नग्न जिस्म की कल्पना कर रहा हो।”
“अगर कातिल सच में वही है डॉक्टर साहब, तो सवाल ये है कि आपके घर में दाखिल कैसे हो पाया? क्योंकि उसका मतलब तो यही बनता है कि कोमल की हत्या आपके बेडरूम में पहुंचने से पहले ही की जा चुकी थी।”
“अब तो मुझे भी यही लगता है, वरना सुबह दरवाजा भीतर से बंद नहीं मिला होता। रही बात उसके भीतर दाखिल होने की तो पार्टी में सब के सब डांस करने में मगन थे, खासतौर से तब जब मैं और मीनाक्षी ग्राउंड फ्लोर वाले कमरे में चले गये। हो सकता है उसी दौरान वह ऊपर चला गया हो।”
“जाते वक्त किसी ने नहीं देखा समझ में आता है, मगर पंद्रह मिनट बाद आप खुद कंपाउंड में खड़े थे, उस दौरान अगर निन्नी वहां से निकला होता, तो क्या आपकी निगाह उसपर नहीं पड़ी होती?”
“क्या मालूम वह पंद्रह की बजाये दस मिनट में ही निकल गया हो?”
“नहीं, वो बात हजम होने के काबिल नहीं है। दस मिनट में कोमल के साथ जबरदस्ती कर के उसकी हत्या करने के बाद वह बाहर नहीं जा सकता था।”
“क्यों नहीं जा सकता था?”
“क्योंकि मर्द को तैयार होने में वक्त लगता है।”
“सामने खड़ी औरत खूबसूरत हो, सैक्सी हो, जवान हो, और उससे पहली बार मुलाकात हो रही हो तो मर्द को तैयार होने के लिए वक्त की दरकार नहीं होती, वह काम तो महज एक स्पर्श से ही हो जाता है। और बलात्कार के मामले में तो पलक झपकते ही हो जाता है, क्योंकि हमलावर के दिमाग पर शैतान सवार होता है। आगे हम मान लेते हैं कि कोमल के साथ दुराचार करने में उसे पांच से सात मिनट लग गये होंगे, फिर उसके दिल में छुरा भोंककर वहां से निकल जाना एक मिनट के भीतर हो जाने वाला काम था। यानि आठ मिनट के अंदर कातिल सबकुछ कर के वापिस सीढ़ियों पर होता, जहां से बाहर निकलकर बाउंड्री फांदने और गायब होने में दो मिनट भी मान लें तो उसका मतलब बनता है कि दस मिनट के अंदर वह अपना काम कर के मेरे घर से जा चुका था, जिसके पांच मिनट बाद मैं कंपाउंड में पहुंचा था।”
“हत्यारे ने कंडोम का इस्तेमाल किया था।”
“जो वह साथ लेकर गया हो सकता है।”
“क्यों? उसे क्या सपना आना था कि आपकी वाईफ को देखकर उसकी नीयत खराब हो जायेगी, और कत्ल से पहले वह रेप पर उतर आयेगा?”
“रेप एंड मर्डर की प्लानिंग पहले से कर रखी होगी।”
“अगर ऐसा था भी तो उसने वही वक्त क्यों चुना जब घर में दर्जन भर लोग मौजूद थे?”
“वह जानता था कि जितने ज्यादा लोग होंगे उतना ही पुलिस का ध्यान भटकता चला जायेगा, जो कि भटककर रहेगा अगर वे लोग मुझे ही कातिल मानकर अपनी ड्यूटी की इति श्री ना समझ लें।”
“और ऐसा शख्स, जो नहीं चाहता कि पुलिस का ध्यान उसकी तरफ जाये, आपके सामने बैठकर अपने कुकर्मों का गुणगान कर रहा था, क्यों?”
“क्योंकि उससे निन्नी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, हां मुझे धमकाने में जरूर कामयाब होना चाहता था, जो कि नहीं हो पाया। मैं क्या चाहकर भी साबित कर सकता हूं कि मेरे सामने वह अपना गुनाह कबूल कर के गया है?”
“वो तो खैर नहीं कर सकते।”
“तो फिर मान क्यों नहीं लेती कि कातिल वही है।”
“क्योंकि मेरा मन हिचकिचा रहा है। मत भूलिये कि आप कोमल के हत्यारे को गिरफ्तार हुआ देखना चाहते हैं ना कि निन्नी को, इसलिए सबसे पहले इस बात की गारंटी होना बहुत जरूरी है कि कातिल वही है।”
“और वह गारंटी कैसे होगी?”
“किसी को उसपर थोपना पड़ेगा, जो कि आसान काम नहीं है। मगर उसके अलावा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। ड्रिंक का शौकीन हुआ तो काम बन जायेगा, वरना तो उसे हत्यारा साबित कर पाना मुमकिन नहीं दिखता।”
“ड्रिंक का शौकीन हुआ भी तो उससे हमारा क्या भला होगा?”
“नशे में लोग अक्सर अपना राज उगल बैठते हैं डॉक्टर साहब।”
“दोस्तों के सामने, ना कि अजनबियों के।”
“तो समझ लीजिए मैं किसी को उसका दोस्त ही बनाने वाली हूं।”
“है कोई ऐसा आदमी निगाहों में?”
“हां है, और ऐसे कामों में माहिर भी है।”
“कौन?”
“मेरा असिस्टेंट गजानन चौधरी।”
“ठीक है जो करना है करो, फीस बढ़ानी हो बढ़ा लो, लेकिन किसी भी तरह से निशांत सिंह उर्फ निन्नी का जुर्म साबित कर के दिखाओ। ये मेरी आज तक की सबसे बड़ी विश है, जिसे तुम्हारे अलावा कोई और पूरा नहीं कर सकता।”
“डोंट वरी डॉक्टर साहब, मैं सब पता लगा लूंगी। एक बार क्लियर हो गया कि सब किया धरा निन्नी का ही है, तो जरूरत पड़ने पर उसके खिलाफ सबूत प्लांट भी किये जा सकते हैं, और वह काम क्योंकि मेरा है इसलिए आपको केस पर दिमाग खपाने की कतई जरूरत नहीं है।”
“थैंक यू।”
“ये साहिल कौन है?”
“साहिल?”
“आप नहीं जानते?”
“एक साहिल कोमल के मामा का लड़का है।”
“वह घर आता था आपके?”
“हां, अक्सर आ जाया करता है।”
“पहली बार कब मिले थे उससे?”
“पंद्रह रोज पहले।”
“और आखिरी बार?”
“पंद्रह रोज पहले, मतलब अभी तक मैं बस एक बार ही मिला हूं उससे।”
“उसका पता ठिकाना जानते हैं?”
“रोहिणी में रहता है, एड्रेस मैं तुम्हें व्हॉट्सअप कर दूंगा।”
“ठीक है - कहती हुई वह उठ खड़ी हुई - अपना ध्यान रखिये डॉक्टर साहब, तभी मेरी बाकी की फीस देने तक जिंदा रह पायेंगे। और उसके लिए ये जरूरी दिखाई दे रहा है कि कुछ दिनों के लिए कहीं और चले जाईये।”
“कहां?”
“कहीं भी, चाहें तो दिल्ली के किसी होटल में शिफ्ट हो जाइये, क्योंकि फरीदाबाद में बने रहना, खास करके इस इलाके में आपकी मौजूदगी सेफ नहीं लग रही मुझे।”
“जयंत शुक्ला ने कहा था कि आज दो बजे तक कोमल की डेडबॉडी मुझे मिल जायेगी। उसकी अंत्योष्टि के बाद मैं करता हूं कुछ।”
“अच्छा करेंगे, अब चलती हूं मैं।” कहकर वह उठी और केबिन से बाहर निकल गयी।
“छोड़ूंगा नहीं साली को।” निन्नी दांत पीसता हुआ बोला।
“मत छोड़ना - जल्ली बोला - लेकिन वो बाद की बात है, अभी तो मेरा दिमाग ये सोचकर चकराये जा रहा है कि भाटिया खट्टर के पास कैसे पहुंच गया?”
“बड़ा आदमी है भाई, खोज लिया होगा कोई ऐसा बंदा जो खट्टर को जानता था। या किसी की सिफारिश के बिना ही उसके पास पहुंचकर अपना दुःखड़ा सुना बैठा होगा। तू तो जानता ही है कि हर्ष देव खट्टर हर उस आदमी को गोद में बैठाने के लिए तैयार रहता है, जिसके दुश्मन नेता जी हों।”
“एक और बात भी तो है।”
“क्या?”
“खट्टर जैसा आदमी लड़कियों को कब से अपने यहां रखने लगा निन्नी? उसने ये भी कहा था कि वह खट्टर की उतनी ही खास है जितना ओमकार भाई नेता जी के खास हैं। जबकि हम अच्छी तरह से जानते हैं कि खट्टर का सबसे खास आदमी महीप सिंह है।”
“अब नहीं होगा।”
“अरे ये कोई मानने वाली बात है कि महीप सिंह जैसे दबंग आदमी को बाहर का रास्ता दिखाकर खट्टर ने उसकी जगह एक लड़की को दे दी?”
“लड़की है न इसलिए दे दी, फिर दिलेर तो है ही। या फिर उतनी खास नहीं होगी, जितना हमें बताया था। मतलब रौब गालिब करने के लिए झूठ बोल दिया होगा।”
“हां ये हो सकता है।” जल्ली बड़े ही विचारपूर्ण भाव से बोला।
“यही बात रही होगी।”
“ओमकार भाई को बताना पड़ेगा।”
“बेइज्जती हो जायेगी यार।”
“पूरी बात नहीं बतायेंगे, सिर्फ इतना कहेंगे कि हम जब डॉक्टर को धमकाने पहुंचे, तो वहां एक लड़की हमपर रिवाल्वर तानकर खड़ी हो गयी, जो कि खट्टर की कोई चमची है।”
“बहुत नाराज होंगे ओमकार भाई, ये सुनकर कि हम एक लड़की के डर से दुम दबाकर भाग निकले थे।”
“नहीं भागे नहीं थे, बस हालात के मुताबिक फैसला लिया था।”
“झूठी तसल्ली मत दे, सच यही है कि उसके गोली चलाते के साथ ही हमारे कस बल ढीले पड़ गये थे।”
“बेशक पड़ गये थे, लेकिन उसे डरना नहीं अक्लमंदी से काम लेना कहते हैं। वह गोली चला देती तो हमारी मौत तय थी। और जहां हार साफ दिखाई दे रही हो, वहां महज अपनी जिद के चलते मुकाबला करना बेवकूफों का काम होता है, जो कि हम नहीं हैं।”
“चल वही सही लेकिन ओमकार भाई को मामले की जानकारी देना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।”
“बहुत जरूरी है निन्नी, उन्हें पता होना चाहिए कि खट्टर किस तरह हमारे साथ पंगे लेने की कोशिश कर रहा है। तभी तो वह कोई रास्ता निकाल पायेंगे।”
“उससे पहले हमारी मिट्टी पलीत कर के रख देंगे।”
“कुछ नहीं होगा, तू बस मेरे कहे कि हामी भर देना, बाकी मैं संभाल लूंगा।”
“ठीक है तुझे जो सही लगता है कर।”
तत्पश्चात दोनों वहां खड़ी बोलेरो में बैठकर निकल गये।
फरीदाबाद सैक्टर 12 के इलाके में विधायक चरण सिंह का खूब बड़ा और भव्य बंगला बना हुआ था, जिसकी छटा देखते बनती थी। परिवार में बीवी के अलावा बस एक बेटा था जो आजकल एमबीए की पढ़ाई कर रहा था। दौलत की कोई कमी एमएलए के पास नहीं थी, क्योंकि आधा फरीदाबाद उसी का बसाया हुआ था। वह सरकार से फॉर्म लैंड खरीदता और उसपर प्लॉटिंग कर के रिहाईश के लिए बेच देता। साथ में इस बात का भी ख्याल रखता कि पूरी कॉलोनी बस चुकने से पहले नगर निगम वहां बुल्डोजर न चलवा दे। इसलिए लोग उसके बेचे गये प्लॉट आंख बंद कर के खरीद लेते थे। यहां तक कि कई जगहों पर उसने ग्रीन लैंड भी बेच खाया था, मगर वहां अब क्योंकि हजारों की संख्या में घर बनाये जा चुके थे, इसलिए सरकार के बूते से बाहर का काम था उन्हें डेमोलिश करा पाना। ऊपर से वह उनका वोट बैंक था, कैसे उतना बड़ा रिस्क ले सकते थे। इसलिए कुछ सालों बाद ऐसी कॉलोनियों को नियमित कर दिया जाता था।
जल्ली और निन्नी बंगले पर पहुंचे तो पता लगा ओमकार सिंह उस वक्त किसी पत्रकार के साथ मीटिंग में व्यस्त था। वह जर्नलिस्ट मुकुल देसाई नाम का एक अति उत्साही नौजवान था, इसकी खबर दोनों को पहले से थी, क्योंकि दो महीनों से वह लगातार नेता के बारे में सच्ची खबरें, मगर उनकी निगाहों में अनाप शनाप स्टोरी किये जा रहा था। उससे चरण सिंह की छवि को अभी कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा था, मगर आगे चलकर पहुंच सकता था, इसलिए उसका समाधान जरूरी हो उठा।
दोनों उस कमरे के बाहर बैठकर ओमकार के फारिग होने का इंतजार करने लगे, जिसके अंदर वहां पहुंचे पत्रकार के साथ ओमकार की मीटिंग चल रही थी।
कमरा खूब बड़ा और हॉलनुमा था, जबकि सामान के नाम पर दो सोफे और बीच में एक सेंटर टेबल भर रखा हुआ था। बाकी का कमरा खाली था। ओमकार और मुकुल देसाई आमने सामने बैठे बड़ी गंभीरता से बातचीत कर रहे थे। सेंटर टेबल पर चाय के दो कप रखे थे जिसे दोनों ने अभी तक छुआ भी नहीं था।
‘ओमकार’ नाम सुनने में जितना अच्छा लगता था, उसका किरदार उतना ही भयानक था। सही मायने में कहा जाये तो राक्षस था, ऐसा राक्षस जो शिकार करने के लिए खुद बहुत कम ही फील्ड में जाता था, मगर इस बात में कोई शक नहीं था कि चरण सिंह का पूरा एम्पायर उसी के बूते पर चल रहा था।
उसकी कद काठी बहुत अच्छी थी, और सूरत से कम से कम खतरनाक तो नहीं ही दिखता था। शराब और शबाब का रसिया था, लेकिन पापकर्म हमेशा रात के अंधेरे में किया करता था। दिन के वक्त उसकी पूरी कोशिश जैंटलमैन बनकर रहने की होती थी, जिसका मुखौटा वह मुकुल से बात करते वक्त अपने चेहरे पर चढ़ाये था।
“मेरी समझ में नहीं आ रहा मुकुल साहब कि आप हाथ धोकर अचानक विधायक जी के पीछे क्यों पड़ गये? या किसी के कहने पर वैसा कर रहे हैं?”
“नहीं, मैं बस अपना काम कर रहा हूं।”
“काम! यानि पत्रकारिता?”
“जी हां।”
“जिसकी ओट में आप पिछले दो महीनों से लगातार जहर उगले जा रहे हैं, ऐसी भी क्या नाराजगी हो गयी हमसे?”
“मैंने कोई जहर नहीं उगल रहा ओमकार जी, जर्नलिस्ट होने के नाते सच को सामने लाना मेरी जिम्मेदारी है। हां मैंने विधायक जी के खिलाफ बोली गयी मेरी कोई एक बात भी झूठी निकल आये तो बेशक मुझे गोली मार दीजिएगा।”
“अरे कैसी बात कर रहे हैं सर? आप जैसे होनहार पत्रकार के साथ कुछ बुरा कर के मरना है हमें। वैसे भी नेता जी को खून खराबा जरा भी पसंद नहीं है। वह तो भाईचारे और दोस्ती में यकीन रखते हैं। तभी मुझसे कहा कि मुकुल साहब को बुलाकर उनकी खातिरदारी करो, देखो वह क्या चाहते हैं, जो चाहते हैं उसे पूरा करो।”
“थैंक यू, मैं आपका इशारा समझ गया। लेकिन स्टोरी ऐसी नहीं है, जिसे मैं अपने स्तर पर किल कर सकूं। मेरे एडिटर को पहले से पता है कि मैं क्या कर रहा हूं, बल्कि उसी ने गहराई में जाने के लिए कहा था। वरना नेता जी से मेरी कोई व्यक्तिगत अदावत थोड़े ही है।”
“अदावत होनी भी नहीं चाहिए सर, हम आपसे कोई बाहर थोड़े ही हैं। इसलिए अपने एडिटर से बात कर के कोई बीच का रास्ता निकालिये, और इस बखेड़े को यहीं खत्म कर दीजिए। चार दिनों की जिंदगी है, आप भी खुश रहिए और हमें भी रहने दीजिए।”
“बात मैं पहले ही कर चुका हूं, क्योंकि जानता था ऐसा वक्त कभी न कभी आकर रहेगा। कई बार समझाने की भी कोशिश की कि नेता जी के खिलाफ स्टोरी करने से पहले एक बार उनसे जाकर मिल ले, तो गिले सिकवे वैसे ही दूर हो जायेंगे।”
“उसने नहीं सुनी?”
“आखिरकार तो सुनी, लेकिन सशर्त सुनी।”
“यानि कोई रास्ता निकाल चुके हैं आप लोग?”
“हां।”
“बताईये।”
“रास्ता थोड़ा महंगा है ओमकार जी, लेकिन विधायक जी की हैसियत को ध्यान में रखकर कहूं तो उनके लिए बस अपनी उंगली का बढ़ा हुआ नाखून काट कर फेंक देने जैसा है, और आप तो जानते ही हैं कि काटा जा चुका नाखून किसी को याद तक नहीं रहता, उसका अफसोस करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता।”
“ये तो और भी अच्छी बात है, बताईये क्या डिमांड है आपकी?”
“मेरी नहीं है, मेरे न्यूज चैनल की है, जो इस तरह के मामलों में हमेशा हुआ ही करती है।”
“वही सही।”
“एडिटर साहब चाहते हैं कि विधायक जी के खिलाफ स्टोरी को किल करने के एवज में नेता जी महीने भर के लिए हमारे किसी शो के स्पांसर कर दें। इसके अलावा कोई कुछ नहीं चाहता। मैं तो वह भी नहीं चाहता था ओमकार जी, लेकिन अपने न्यूज चैनल का महज एक छोटा सा पुर्जा हूं मैं, जिसके कहे को अहमियत देने के लिए कोई तैयार नहीं है। फिर आप तो जानते ही होंगे कि निजी चैनल विज्ञापनों के बूते पर ही चलते हैं, विज्ञापन न मिलें तो बड़े से बड़े न्यूज चैनल को भी ताला लग जायेगा।”
“भई हम कोई प्रोडक्शन हाउस थोड़े ही चलाते हैं जो आपके किसी शो को स्पांसर कर दें? इसलिए आप हमें कोई एकमुश्त रकम बताईये, जो जायज होनी चाहिए, जिसे चुकता करने के बाद हम आपके चैनल की तरफ से बेफिक्र हो जायें।”
“माफ कीजिए मीडिया रिश्वत नहीं लिया करती।”
“अच्छा! - ओमकार सिंह हैरानी से बोला - और अभी जो आप हमें किसी शो को स्पांसर करने की बात कह कर हटे हैं, वो क्या रिश्वत की श्रेणी में नहीं आती?”
“नहीं आती, क्योंकि आप शो स्पांसर करेंगे तो बदले में हम आपका विज्ञापन चलायेंगे, जो कि एक तरह का बिजनेस होगा, ना कि रिश्वत।”
“बांह मरोड़कर हासिल की गया विज्ञापन।”
“हम ऐसा नहीं सोचते, फिर पूरी दुनिया लेन देन पर ही टिकी हुई है। आप किसी को कुछ देते हैं, तो बदले में उससे भी कुछ पाने की चाह रखते हैं। परसस्पर सहयोग एक ऐसी नदी है ओमकार जी जो एकतरफा नहीं बह सकती।”
“सहयोग! मुझे तो ये सरासर ब्लैकमेलिंग जान पड़ता है।”
“अगर ऐसा है तो मना कर दीजिए, हम कोई जबरदस्ती थोड़े ही कर रहे हैं आपके साथ। हां इंकार करने से पहले इतना जरूर सोच लीजिएगा कि कहीं आपकी ‘ना’ का खामियाजा विधायक जी को अगले इलेक्शन में करारी हार के रूप में न भुगतना पड़ जाये।”
“इलैक्शन अभी बहुत दूर हैं।”
“तो भी जो होगा बुरा ही होगा, अभी तक हमने जानबूझकर छोटी छोटी बातें परोसी हैं, ऐसी बातें जो लोगों का ध्यान तो खींच सकती हैं, मगर उससे विधायक जी पर कोई आंच नहीं आने वाली। मगर उसका मतलब ये नहीं है कि हमारे पास कोई विस्फोटक सामग्री है ही नहीं। उल्टा इतना कुछ है जो कहर ढा कर रख देगा। शुक्र मनाईये कि बात अभी तक बस मेरे और मेरे एडिटर के बीच की है। वरना तो कैसी भी डीलिंग के कोई मायने नहीं रह जाते।”
“सौदा करने से पहले हमें मालूम तो होना चाहिए कि वाकई में आपके पास ऐसी जानकारियां हैं जो नेता जी को डैमेज कर सकती हैं। महज आपके कहे पर कैसे यकीन कर सकते हैं।”
“सौदा एक गलत लफ्ज है, क्योंकि हम तो बस आपको अपने शो का स्पांसर बना देखना चाहते हैं। जिसके लिए आप पर कोई दबाव भी नहीं है, यानि मानना या न मानना पूरी तरह आपकी मर्जी पर डिपेंड करता है।”
“चलिए वही सही, लेकिन जिस चीज के बूते पर आप हमारी स्पांसरशिप हासिल करना चाहते हैं, उसके वजन का पता लगे बिना मैं हामी कैसे भर सकता हूं?”
“भर सकते हैं, और जब आप हां कर देंगे तो मैं वह सारे एविडेंस अपने घर से लाकर आपके हवाले कर दूंगा, जो मेरी महीनों की मेहनत का नतीजा हैं।”
“किस सूरत में हैं, कागजात की? या कोई वीडियो वगैरह बना रखी है?”
“दोनों चीजें हैं।”
“आपके पास जो बैग है उसमें नहीं है?”
“नहीं, ऐसी चीजें मैं साथ लेकर नहीं घूम सकता।”
“इसकी भी क्या गारंटी उन चीजों की कोई कॉपी आपने किसी और को नहीं सौंप रखी है?”
“नहीं सौंपी, क्योंकि ऐसे मामलों में किसी का विश्वास करना मैंने नहीं सीखा है। यहां तक कि मेरे एडिटर को भी बस उस बात की खबर भर है, ना कि मैंने विधायक जी के खिलाफ कोई एविडेंस उसे हैंडओवर कर दिया है।”
“डिटेल्स तो उसे मालूम ही होंगी, मतलब बाद में चाहे तो फिर से उन जानकारियों को हासिल कर सकता है?”
“इतना आसान काम नहीं है ये। पूरे आठ महीने मेहनत की है मैंने इस स्टोरी पर, तब जाकर अपने मतलब की जानकारियां जुटा पाने में कामयाब हो पाया। फिर आप हमारी बात मान लेंगे तो वैसा कुछ क्यों करेगा वह?”
“यानि आप दो बातों की गारंटी कर रहे हैं, पहली ये कि एविडेंस आपके पजेशन में हैं, और दूसरी ये कि आपके एडिटर को उसकी बस मौखिक जानकारी भर उपलब्ध है?”
“हां कर रहा हूं।”
“ये भी कि आप दोनों के अलावा उस बारे में तीसरा कोई नहीं जानता?”
“नहीं जानता।”
“ठीक है थैंक यू, अब आप ये बताईये कि हम विज्ञापन करें तो किस चीज का करें, ऐसा क्या है हमारे पास जिसे आप लोग टीवी पर दिखा सकें?”
“नेता जी ने ओल्ड फरीदाबाद में एक रैन बसेरा खोल रखा है। सिविल अस्पताल के बाहर पेशेंट्स के साथ वहां ठहरने वालों के लिए रोज दोपहर के खाने का इंतजाम भी करते हैं, ऐसी ही कोई और बात भी हो सकती है, जिसके जरिये हम उनकी महिमा मंडित करेंगे। इस तरह से देखें तो हर तरफ से ये फायदे का ही सौदा है।”
“और वह काम आप एक महीने करेंगे?”
“आप चाहें तो लंबा भी खींच सकते हैं, लेकिन मौजूदा स्टोरी को किल करने के लिए, एक महीने तक हमारे किसी शो को स्पांसर करना जरूरी होगा। बाकी आप सोच विचार कर लीजिए, क्योंकि विज्ञापन को आगे भी चलते रहने देने का आईडिया बुरा नहीं है।”
“खर्चा कितना आयेगा एक महीने की स्पांसरशिप का?”
“ऑनली ट्वैंटी करोड़।”
“बस बीस करोड़?” ओमकार हकबकाया सा उसका मुंह तकने लगा।
“हां, अब जो रेट है वह है, हम आपकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए उसे बढ़ा थोड़े ही देंगे। नहीं इस मामले में हमारा चैनल पूरी तरह पारदर्शिता बरतता है, आप चाहें तो विज्ञापन का रेट कार्ड देख सकते हैं - कहकर उसने पूछा - बताईये क्या फैसला है आपका?”
“मुझे मंजूर है, लेकिन साथ में कुछ और भी करूंगा।”
“क्या?”
“तुम्हारा और तुम्हारे एडिटर का सिर, चांदी की तश्तरी में सजाकर पेश करूंगा तुम्हारे घरवालों को, अब कहो कि आईडिया बुरा नहीं है।”
“अ...आप मजाक कर रहे हैं - वह हड़बड़ाया सा बोला - एक जर्नलिस्ट की जान लेंगे आप?”
“और तू क्या कर रहा है साले? तुझे पता भी है बीस करोड़ में कितने जीरो होते हैं?”
“गाली मत दीजिए वरना डील नहीं हो पायेगी।”
“डील की मां....” - गुर्राता हुआ वह अपनी जगह से उठा और सेंटर टेबल के उस पार पहुंचकर मुकुल का टेंटुआ पकड़ लिया, फिर अपना घुटना उसके पेट में अड़ाता हुआ बोला - बहन... अपनी औकात देखी है? हाथ में माईक और थोबड़ा टीवी स्क्रीन पर आ रहा हो तो कुछ भी बोलेगा, चाहे जिसके बारे में बोल देगा?”
“त...तुम पछताओगे ओमकार सिंह।”
“सही कहा तुझे जिंदा छोड़ दिया तो पछताना ही पड़ेगा।” कहते हुए उसने गर्दन से पकड़े पकड़े ही उसे थोड़ा ऊपर उठाया और सोफे के पुश्त की तरफ गिरा दिया। फिर खुद भी उधर पहुंचा और मुकुल को जूतों की ठोकर पर रख लिया।
उसकी दर्दनाक चींखें हॉल में गूंजने लगीं, शुरू में उसने विरोध किया, फिर गालियां बकीं, मगर थोड़ी देर बाद माफ कर देने की मिन्नतें करने लगा, मगर जल्लाद को उसपर जरा भी रहम नहीं आया, वह तब तक उसे पीटता रहा जब तक कि मार खा खाकर मुकुल देसाई बेहोश नहीं हो गया।
तत्पश्चात ओमकार वापिस पहले वाली जगह पर पहुंचा और सेंटर टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाकर एक सांस में खाली कर गया। अगले ही पल वह यूं शांत दिखाई देने लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो।
उसके दो मिनट बाद उठकर दरवाजा खोला और बाहर निकलने ही लगा था कि तत्काल उसकी निगाह वहां बैठे जल्ली और निन्नी पर पड़ी, जो उसे देखते के साथ ही उठकर खड़े हो गये थे।
“राम राम भाई।”
“राम राम, डॉक्टर से मिले?”
“जी भाई।”
“क्या रहा?”
“कोई असर नहीं हुआ, उल्टा अब हर्षदेव खट्टर की सरपरस्ती हासिल हो गयी है उसे - जल्ली ने बताया - हम वहां पहुंचे तो एक हथियारबंद लड़की पहले से मौजूद थी, जिसने हमपर गन तान दी। हम फिर भी टलने को तैयार नहीं हुए तो उसने खट्टर का नाम लिया और कहा कि जाकर नेता जी से बोल दें कि डॉक्टर भाटिया अब खट्टर साहब की शरण में था। ऐसे में जो कोई भी उसकी तरफ आंख उठाकर देखेगा उसका नामोनिशान मिटा दिया जायेगा।”
“और तुम दोनों वह धमकी सुनकर चुपचाप लौट आये?”
“लड़की जात थी भाई, उसे मारकर भी क्या हासिल होता? फिर मुझे ज्यादा ठीक यही लगा कि पहले आपको मामले की जानकारी दे दी जाये। हां आप कहें तो हम अभी वापिस जाकर उसे सबक सिखा आते हैं। ऐसा सबक जिसके बाद वह किसी को प्रोटक्शन देने के काबिल ही नहीं रह जायेगी।”
“हैरानी की बात है।”
“क्या भाई?”
“यही कि खट्टर ने एक लड़की को भेज दिया डॉक्टर की सुरक्षा के लिए? आदमियों का क्या अकाल पड़ गया था उसके पास?”
“लड़की ही थी भाई - निन्नी उत्साहित लहजे में बोला - उस बात की तो हम गारंटी कर सकते हैं।”
ओमकार ने घूरकर उसे देखा।
“कोई गलत बात कह दी भाई?”
“गलत नहीं फिजूल की बात कही है। तुम दोनों क्या अंधे हो जो लड़का लड़की में फर्क नहीं कर पाये होगे। लेकिन बात कुछ हजम नहीं हो रही।”
“अजीब तो हमें भी लगा था भाई - जल्ली बोला - लेकिन उसने बताया यही था।”
“आप कहें तो पकड़ लाते हैं उसे?”
“अभी नहीं, बाद में बताऊंगा कि उसका क्या करना है, बल्कि खट्टर को भी सबक सिखाना पड़ेगा, वरना वह यूं ही हमारे मामलों में टांग अड़ाता रहेगा - फिर थोड़ा ठहरकर बोला - भीतर एक लड़का पड़ा है उसे ले जाकर बेसमेंट में डाल दो, और अपने तमाम आदमियों को यहां इकट्ठा करो।”
“सबको?”
ओमकार ने क्षण भर उस बात पर विचार किया फिर बोला, “नहीं भीड़ इकट्ठा करने की जरूरत नहीं है, लेकिन आठ दस ढंग के लड़कों को फिर भी बुला लो।”
“करना क्या है भाई, मेरा मतलब है क्या हम दोनों नहीं कर सकते?”
“नहीं ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ेगी।”
“ठीक है।” कहकर दोनों हॉल में दाखिल हुए, फिर जल्ली ने फर्श पर पड़े मुकुल को अपने कंधे पर टांगा और निन्नी के साथ बेसमेंट की तरफ बढ़ गया।
अलीशा अटवाल सैक्टर 37 स्थित थाने पहुंची।
ड्यूटी रूम में बैठे एक सिपाही से उसने सब इंस्पेक्टर जयंत शुक्ला की बाबत दरयाफ्त किया तो उसने ये कहते हुए कि साहब अपने कमरे में बैठे हैं, बाहर निकलकर इशारे से बता दिया कि वह कमरा कौन सा था।
वहां पहुंचकर अलीशा ने हौले से खुले दरवाजे को नॉक किया फिर पूछा, “मैं अंदर आ सकती हूं?”
“अरे मैडम जी आप?”
“शुक्र है आपने पहचान लिया।” कहती हुई वह अंदर दाखिल हो गयी।
“आज तो हमारा थाना धन्य हो गया।”
“वो तो मैं पहले भी कई बार कर चुकी हूं।”
“मेरे सामने तो पहली बार कर रही हैं न?”
“बैठने को नहीं कहेंगे शुक्ला जी?”
“अरे मेरी क्या मजाल, प्लीज सिट डाऊन।”
“थैंक यू।”
“चाय मंगाई जाये आपके लिए?”
“सिगरेट पीने पर कोई पांबदी तो नहीं होगी यहां?”
“आपके लिए नहीं है।”
“और आपके लिए है?”
शुक्ला हौले से हंसा, फिर बोला, “शौक से सुट्टे लगाईये।”
सुनकर उसने अपने हैंडबैग से इंसिग्निया का पैकेट निकाला फिर दो सिगरेट सुलगाने के बाद एक शुक्ला को थमा दिया, जिसकी नजर सिगरेट के पैकेट पर गड़कर रह गयी थी।
“डोंट वरी सिगरेट ही है।”
“नीट है?”
“और क्या चरस गांजा भरकर लाऊंगी?”
“बड़ा अजीब सा नाम है, पहले कभी नहीं सुना, जरूर महंगी होगी?”
“ज्यादा महंगी नहीं है, सात सौ में एक पैकेट आ जाता है।”
“फिर तो बहुत महंगी है मैडम, यहां तो गोल्ड फ्लैक की 110 रूपये की डिब्बी ही जेब पर भारी पड़ती दिखती है - कहकर उसने एक गहरा कश खींचा फिर सीलिंग की तरफ मुंह कर के धुआं उगलता हुए बोला - किसी खास वजह से आई हैं?”
“कोई पिन प्वाइंट करने लायक वजह तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर सोचा कि शुक्ला जी के पास मेरे मतलब की कोई जानकारी हो सकती है, इसलिए चली आई।”
“कोमल भाटिया के केस की बात कर रही हैं?”
“हां फिलहाल तो बस वही एक मामला है जिसके साथ हम दोनों जुड़े हुए हैं - कहकर उसने पूछा - पार्टी में पहुंचे मेहमानों से पूछताछ मुकम्मल हो गयी है आपकी?”
“कहां मैडम, अभी तो बस दो लोगों से मिल पाया हूं। पहला अमन सिंह और दूसरा सूरज चौधरी, लेकिन पल्ले तो कुछ नहीं पड़ा। जैसे दोनों अंधे हो गये थे। अमन सिंह तो खैर टल्ली होकर सोफे पर पड़ रहा था, मगर हैरानी है कि सूरज चौधरी ने भी कुछ नहीं देखा।”
“क्या देखना चाहिए था उसे?”
“किसी को ऊपर जाते हुए, हॉल कोई इतना बड़ा थोड़े ही था कि उनकी निगाहों से बचकर कातिल फर्स्ट फ्लोर पर पहुंच जाता और किसी को दिखाई भी नहीं देता।”
“शुक्र है आप डॉक्टर साहब के अलावा भी किसी के कातिल होने की संभावनाओं पर विचार कर रहे हैं।”
“करना पड़ता है मैडम, कई बार जो दिखाई दे रहा होता है, वही सच नहीं होता, खासतौर से कत्ल के मामले में अक्सर हमारी थ्योरीज बनती बिगड़ती रहती हैं।”
“लेकिन दूसरा कोई सस्पेक्ट सामने नहीं आया अभी तक, है न?”
“नहीं आया, एक बार पार्टी में मौजूद रहे तमाम लोगों से पूछताछ कर लेने दीजिए, तब शायद कुछ कहने की पोजिशन में पहुंच जाऊं मैं।”
“कॉल डिटेल्स तो निकलवा ही ली होगी आपने कोमल भाटिया की?”
“मियां बीवी दोनों की निकलवा चुका हूं।”
“कोई खास बात दिखी?”
“कोमल के रिकॉर्ड में दिखी।”
“क्या?”
“एक खास नंबर पर बहुत लंबी लंबी बातें की गयी हैं।”
“किसके नंबर पर?”
“नाम है साहिल कुमार, अशोका इंक्लेव में ही रहता है, लेकिन अभी उससे पूछताछ नहीं कर पाया हूं मैं, फोन उठा नहीं रहा और एक सिपाही को उसे लिवाने भेजा तो पता लगा उसके फ्लैट पर ताला लगा हुआ था।”
“वह कोमल का ममेरा भाई है शुक्ला जी।”
“अच्छा, सरनेम के हिसाब से तो काफी फर्क है?”
“क्या पता ‘कुमार’ उसका सरनेम न हो?”
“मतलब उसके पीछे पड़ना बेकार होगा?”
“नहीं, क्योंकि कोई ऐसा भी है जो कहता है कि दोनों के बीच भाई बहन जैसा कुछ भी नहीं था।”
“आप वही कह रही हैं न मैडम, जो मैं समझ रहा हूं?”
“जी हां, दोनों का अफेयर निकल आने की गुंजाईश पूरी पूरी है।”
“अगर ऐसा कुछ साबित हो गया न मैडम, तो मैं इस साहिल कुमार की बहुत बुरी गत बनाऊंगा, क्योंकि रिश्तों को कलंकित करने वाले लोग मुझे जरा भी पसंद नहीं आते।”
“जरूर बनाईयेगा, लेकिन पहले साबित तो हो जाये कि सच में उसका कोमल के साथ कोई अनैतिक रिश्ता था।”
“पता लगा लेंगे, सब पता लगा लेंगे।”
“फॉरेंसिक से कोई नई जानकारी नहीं मिली?”
“अभी उनकी फाईनल रिपोर्ट हमारे पास नहीं पहुंची है, वैसे कुछ हासिल होने की उम्मीद कम ही है। सच पूछिये तो कत्ल में कोई बहुत बड़ी मिस्ट्री नहीं छिपी हुई है, वह बस उतना ही है जितना दिखाई देता है, जो अगर किसी पब्लिक प्लेस पर किया गया होता, तो एविडेंस खोज निकालना उतना मुश्किल नहीं होता जितना कि अभी के हालात में दिखाई दे रहा है। बल्कि सबसे ज्यादा तो 14 की रात वहां चली पार्टी उलझाये दे रही है। क्योंकि इस बात की पूरी पूरी संभावना है कि कातिल अगर डॉक्टर साहब नहीं हैं तो पार्टी के मेहमानों में से कोई एक हो सकता है।”
“आप वादा करें कि मैं जिसका नाम लूंगी उसे फौरन धर नहीं दबाचेंगे, बल्कि गुपचुप तरीके से उसकी इंक्वायरी करेंगे, तो एक राज की बात बता सकती हूं, जिसके बारे में जानने में आपको वक्त लग जायेगा, हो सकता है ना भी पता लगे।”
“अगर उस शख्स का वारदात में कोई रोल निकल आया मैडम, तो मैं ढिलाई कैसे बरत सकता हूं?”
“मैं बरतने को कह भी नहीं रही। वैसे भी मेरे क्लाइंट डॉक्टर भाटिया हैं ना कि कोई और, जिसका मैं लिहाज करूं। मैं तो बस इतना चाहती हूं कि आप उसके मुंह से राज उगलवाने के लिए जोर जबरदस्ती करने की बजाये पूरी सीक्रेसी के साथ जांच पड़ताल करें, उसके बाद अगर आपको लगे कि हत्या उसी ने की है तो बेशक उठा लीजिएगा।”
“ठीक है बताईये।”
“मीनाक्षी का डॉक्टर भाटिया के साथ अफेयर चल रहा है।”
“क्या कह रही हैं आप?”
“सच कह रही हूं, इसलिए कातिल खुद अमन सिंह भी हो सकता है, भले ही अभी तक सबने यही बताया है कि पार्टी के दौरान वह टुन्न होकर सोफे पर पड़ रहा था। मुझे वो बात भी बहुत खटक रही है इंस्पेक्टर साहब, बेशक वहां ड्रिंक का पूरा पूरा इंतजाम था, मगर पीकर टल्ली होने से पहले उसने इतना तो सोचना चाहिए था कि अपने परिवार के साथ आया हुआ था, जहां से उसने कार ड्राईव कर के वापिस घर भी जाना था।”
“बेवड़े ऐसे ही होते हैं मैडम, एक बार पीना शुरू कर दें तो फिर किसी बात का होश नहीं रह जाता उन्हें।”
“हमें ये भी कहां पता है कि अमन सिंह बेवड़ा है?”
“पता लग जायेगा, अब आपने जानकारी दे ही दी है तो जल्दी ही कुछ न कुछ खोज निकालूंगा मैं।”
“और बतौर कातिल विधायक चरण सिंह के आदमियों के नामों पर विचार किया आपने?”
“नहीं, कहते शर्म आती है मैडम, लेकिन सच यही है कि उनके बारे में सोचना या ना सोचना सब बराबर है। मैं चाहूं भी तो मेरे अफसर उनके खिलाफ केस नहीं बनाने देंगे, भले ही पुख्ता एविडेंस ही क्यों न खोज निकालूं।”
“आप बस अपना काम कीजिए शुक्ला जी, मतलब कल को अगर ये साबित करने की पोजिशन में पहुंच जाते हैं, कि कोमल भाटिया का कत्ल चरण सिंह के इशारे पर ही किया गया था, तो अपराधी को सजा दिलवाने का कोई दूसरा रास्ता भी निकाला जा सकता है।”
“आप कोई खास बात जान गयीं दिखती हैं उस फ्रंट पर?”
“हां, तभी तो कह रही हूं कि आपको उनपर ध्यान देना चाहिए।”
“क्या जाना?”
जवाब में अलीशा ने उसे डॉक्टर के साथ हुई जल्ली और निन्नी की बदमजा बातचीत कह सुनाई, फिर बोली, “अगर दोनों ने बस डॉक्टर को हड़काने के लिए वह बात नहीं कह दी थी, तो जाहिर है कातिल निन्नी ही है। जो घर में दाखिल कैसे हुआ ये समझ पाना अभी थोड़ा मुश्किल नजर आ रहा है, मगर नामुमकिन बात तो नहीं थी।”
“अगर निन्नी ने कहा था मैडम कि कोमल भाटिया का रेप एंड मर्डर उसी ने किया था, तो ज्यादातर उम्मीद इसी बात की है कि किया होगा। मैं उन दोनों को बहुत अच्छे से जानता हूं, इसलिए कह सकता हूं कि उनकी कथनी और करनी में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता। ऐन उसी वजह से आपको भी सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि बदला लेने दोनों आप तक बस पहुंचते ही होंगे।”
“आप मुझे डरा रहे हैं शुक्ला जी?”
“डरकर अगर जिंदगी बच जाये मैडम, तो मेरे ख्याल से डरने में कोई बुराई नहीं है।”
“ठीक है मैं सावधान रहूंगी।”
“और कोई प्रॉब्लम दिखाई दे तो फौरन मुझे कॉल करियेगा, रात हो या दिन परवाह करने की जरूरत नहीं है।”
“थैंक यू, अब जरा साहिल का एड्रेस मुझे नोट करा दीजिए, मेहरबानी होगी।”
“उसके घर पर ताला लगा है, बताया तो था।”
“कभी तो वह ताला खुलेगा।”
“ठीक है ले लीजिए एड्रेस।”
कहकर उसने केस फाईल निकाली और उसमें से देखकर साहिल का पता उसे नोट करा दिया। तब अलीशा ने वह पता देखा जो डॉक्टर ने उसे व्हॉटसअप किया था। दोनों में कोई समानता नहीं थी। वैसे भी डॉक्टर पहले ही बता चुका था कि साहिल रोहिणी में रहता है, जबकि शुक्ला का दिया पता अशोका इंक्लेव का था, जहां खुद भाटिया की भी रिहाईश थी।
“इस एड्रेस पर भले ही ताला लगा मिला था, लेकिन इतना तो आपने पता करवा ही लिया होगा कि वहां कोई साहिल कुमार रहता है या नहीं रहता?”
“रहता है।”
“ठीक है थैंक यू।” वह उठ खड़ी हुई।
“कोई खास जानकारी हाथ लग जाये मैडम तो मुझे इंफॉर्म कीजिएगा।”
“पक्का करूंगी।” कहकर अलीशा वहां से बाहर निकल गयी।
हॉल में उस वक्त ओमकार सिंह, जल्ली और निन्नी को मिलाकर कुल जमा ग्यारह लोग मौजूद थे। वह सब के सब छंटे हुए गुंडे थे, जिन्हें नेता से महाना पगार मिला करती थी।
“अविनाश निगम - ओमकार सिंह बोला - वो बंदा है जो नेता जी के खिलाफ अपने एक पत्रकार के जरिये लगातार जहर उगल रहा है। पत्रकार हमारे काबू में है, इसलिए बस निगम को उठाना बाकी है। तुममें से अजय और मुकुंद अभी से उसके घर की निगरानी पर जुट जायेंगे, और तीन लोग रमेश, जीता, बहादुर रात दस बजे वहां पहुंचेंगे। क्योंकि दस बजे से पहले निगम अपने घर में नहीं होगा। आगे जो करना है वह बहुत होशियारी से करना है, कैसे करना है वह ध्यान से सुनो। किसी को कोई सवाल करना सूझ जाये तो कर सकता है, समझ गये?”
“जी भाई।” सब समवेत स्वर में बोले।
“निगम के घर पर दो सिक्योरिटी गार्ड हमेशा तैनात रहते हैं, उनमें से कोई एक, या दोनों हथियारबंद भी हो सकते हैं। मगर तुम लोगों ने इस बात का खास ख्याल रखना है कि गोली चलने की नौबत न आने पाये। अगर गार्ड्स को पूरी खामोशी के साथ काबू करने में कामयाब हो गये तो घर में एंट्री मारना कोई बड़ी बात नहीं होगी। तुम उनमें से किसी के जरिये निगम को फोन करवाओगे कि मुकुल देसाई उससे मिलने आया है, जिसके बाद अंदर का दरवाजा या तो पहले ही खोला जा चुका होगा, या तुम्हारी दस्तक के जवाब में खुल जायेगा, समझ गये?”
“जी भाई।”
“भीतर पहुंचकर तुम लोग निगम को काबू में करोगे, और उस वक्त जो कोई भी वहां मौजूद होगा - बीवी तो यकीनन होगी, क्योंकि हाउस वाईफ है - उसे धमकाते हुए बोलोगे कि एक करोड़ रूपये का इंतजाम कर के रखे, वरना उसके पति को खत्म कर दिया जायेगा। मतलब तुम लोगों को फिरौती के लिए अगवा किये जाने का सीन क्रिएट करना है, समझ गये?”
“जी भाई।”
“आगे सब लोग जल्ली के ऑर्डर फॉलो करेंगे, मतलब ये जो भी कहे उसे कर के दिखाना है, बिना कोई सवाल किये। और एक चेतावनी अभी दिये देता हूं कि फेलियर के लिए यहां कोई जगह नहीं है।”
हॉल में सन्नाटा पसर गया।
“आज रात अगर निगम मेरे पास नहीं पहुंचा, तो तुममें से कोई कभी अपने बीवी बच्चों, शादी नहीं हुई है तो मां बाप के सामने जिंदा हरगिज भी नहीं जा पायेगा।”
सन्नाटा!
“अब बाकी के पांच लोग सुनें कि क्या करना है - कहते हुए ओमकार ने एक नजर उन सब पर डालकर बताना शुरू किया - दूसरी टीम का इंचार्ज निन्नी होगा, बाकी सब उसके कहे मुताबिक आगे बढ़ेंगे। करना ये है कि जिस वक्त निगम को उसके घर से उठाया जा रहा होगा, उसी वक्त तुम पांचों मुकुल देसाई के घर पहुंचोगे, मैंने पता लगाया है कि वह ओल्ड फरीदाबाद के एक दो मंजिला मकान में अपनी बीवी और छह साल के बच्चे के साथ रहता है। बीवी और बच्चे को काबू में कर के घर की हर चीज को आग लगा देनी है, ध्यान रहे कुछ भी सलामत नहीं बचना चाहिए - कहकर उसने निन्नी की तरफ देखा - कोई सवाल?”
“नहीं भाई।”
“कर लोगे?”
“मामूली काम है भाई।”
“बढ़िया, अब जल्ली और निन्नी को छोड़कर सब लोग हॉल से बाहर निकल जायें, और इंतजार करें।”
सुनकर आठों लड़के वहां से चले गये।
“निगम को खत्म नहीं करना है भाई?” जल्ली ने पूछा।
“अभी नहीं, लेकिन अंत पंत तो कर के रहेंगे। उससे पहले हम मामले में फिरौती का रंग भरकर ये देखेंगे कि आगे पुलिस कैसा कदम उठा रही है, मीडिया क्या कर रही है। क्योंकि नामचीन शख्सियत है इसलिए उसकी मौत पर बवेला तो मचकर रहेगा।”
“वो तो फिरौती वाली स्थिति में भी मचेगा भाई।”
“जरूर मचेगा, लेकिन तब सीधा सीधा आरोप नेता जी पर लगाने की हिम्मत कोई नहीं कर पायेगा, जबकि मर्डर हुआ तो हम वैसा आरोप लगाने से किसी को नहीं रोक पायेंगे, मीडिया को तो हरगिज भी नहीं, क्योंकि डेढ़ दो महीने से उनका चैनल जहर तो बस नेता जी के खिलाफ ही उगल रहा था। ऐसे में हम इंतजार करेंगे ये देखने के लिए कि उसके गायब होने की वजह से हमपर कोई आंच आती है या नहीं, अगर आती दिखाई दी तो उसे किसी दूसरे शहर में ले जाकर आजाद कर देंगे।”
“और मुकुल को?”
“नहीं उसे छोड़ना हम अफोर्ड नहीं कर सकते, वरना ऐसा बवेला मचेगा कि संभाले नहीं संभलेगा। वैसे भी नेता जी के खिलाफ उसने जो कुछ भी इकट्ठा कर रखा है, वो या तो उसके घर में है, या दिमाग में। घर हम फूंक चुके होंगे, और जिंदा वह बचा नहीं रहेगा, यानि किस्सा खत्म। मगर कत्ल उसका भी किसी दूसरे शहर में ही करना होगा।”
“मैंने सुना है भाई कि पुलिस मोबाईल की लोकेशन भी निकलवा लेती है।”
“ठीक सुना है, मगर उसकी चिंता करने की हमें कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि उसका मोबाईल मैं पहले ही मथुरा के लिए रवाना कर चुका हूं, आगे उसकी लोकेशन से बस इतना ही पता लगेगा कि वह यहां आया था, लेकिन चला गया। फिर मोबाईल जब उसकी लाश के पास से बरामद होगा तो कोई इस बात की गारंटी नहीं कर पायेगा कि उसे यहां बंद कर के रखा गया था।”
“समझ गया भाई।”
“बढ़िया, अब ध्यान से सुनो कि तैयारी क्या करनी है।”
“बताईये।”
“दो मारूति वैन उठा लो, बल्लभगढ़ या पलवल से।”
“ठीक है उठा लिया।”
“रात से पहले उसे चेक कर लेना कि अच्छी कंडीशन में है, फिर एक दूसरी गाड़ी जो कि हमारी होगी, उसे बमय ड्राईवर निगम के घर से थोड़ी दूरी पर किसी ऐसी जगह खड़ी करा देना जहां आस-पास कोई कैमरा न लगा हो। मेरे ख्याल से बाईपास रोड पर किसी जगह का चुनाव करना बेहतर होगा। बाद में जब तुम लोग उसे अगवा करने में कामयाब हो जाओ, तो अपनी गाड़ी में बैठाकर यहां भेज देना, जबकि वैन में अपने किसी आदमी का मुंह ढककर और उसे निगम के कपड़े पहनाकर यूं बैठा देना कि दूर से देखने पर यही लगे कि वह शख्स जबरन कहीं ले जाया जा रहा था। फिर वैन को ड्राईव करते हुए मथुरा पहुंचना और उसे हाईवे पर ही कहीं छोड़ देना। यहां तुम लोगों को चोरी की दूसरी गाड़ी की जरूरत पड़ेगी, जो पहले से उस जगह पर मौजूद होनी चाहिए। कोशिश यही करना कि तुम्हारा गाड़ी बदलना किसी की निगाहों में आ जाये, चाहो तो उस काम को किसी टोल के करीब अंजाम दे सकते हो। मतलब बाद में पुलिस को ये दिखाई देना चाहिए कि निगम को वैन से निकालकर किसी दूसरी गाड़ी में शिफ्ट किया गया था।”
“समझ गया भाई।”
“आगे तुम लोगों ने मथुरा में दाखिल होकर गाड़ी को वहां के राधाकृष्णा मॉल के बाहर खड़ा कर के निकल जाना है। वहां इसलिए क्योंकि करीब ही एक ऐसे बिजनेसमैन का घर है, जिसके खिलाफ छह महीने पहले भारत न्यूज ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था। यहां तक का काम अगर तुम लोग होशियारी से कर गुजरो तो आगे पुलिस जाने या वह बिजनेसमैन जाने, हमारा कोई नाम उसमें नहीं आने वाला।”
“जरूर कर दिखायेंगे भाई।” जल्ली बड़े ही जोशीले अंदाज में बोला।
“वारदात को अंजाम देने के दौरान दो बातों का खास ख्याल रखना है, पहली ये कि तुम्हारे चेहरे ढके होने चाहिए, जिसके लिए मंकी कैप का इस्तेमाल कर सकते हो, दूसरा दस्ताने पहनकर जाना, ताकि तुममें से किसी की भी उंगलियों के निशान कहीं छूटने न पायें।”
“ठीक है भाई।”
“यही सावधानी - ओमकार ने निन्नी की तरफ देखा - तुम्हें और तुम्हारे साथ मुकुल के घर पहुंचे लड़कों को भी बरतनी है। जल्ली की अपेक्षा तुम्हारा काम आसान है, बस जरूरत पड़ेगी तेजी बरतने की, मतलब वहां पहुंचने के बाद पांच मिनट के भीतर निकल भी जाना है। वरना कोई पड़ोसी ही पुलिस को इत्तिला कर देगा। किचन या बॉथरूम जैसी जगहों पर पेट्रोल उड़ेलने की भी कोई जरूरत नहीं है। मगर ऐसी किसी जगह को हरगिज भी मत भूल जाना, जहां किन्हीं डॉक्युमेंट्स के रखे होने की उम्मीद हो। बल्कि किचन और बॉथरूम को छोड़कर हर जगह पर पैट्रोल फैला देना है। इतना पैट्रोल कि फायर ब्रिगेड वाले वहां पहुंचकर भी घर को खाक होने से न बचा पायें।”
“ठीक है भाई।”
“अब जाओ और जाकर काम में लग जाओ।”
“एक बात कहूं भाई।” जल्ली बोला।
“क्या?”
“मुझे एक आदमी और चाहिए।”
“क्यों?”
“मथुरा के पास हाईवे पर दूसरी वैन के साथ मौजूद रहने के लिए।”
“ठीक है, बुला ले।”
“थैंक यू भाई।”
तत्पश्चात दोनों उठकर हॉल से बाहर निकल गये।
अलीशा पिछले एक घंटे से साहिल के फ्लैट वाली बिल्डिंग के सामने अपनी कार में बैठी हुई थी। वहां टिकने से पहले वो ये देख आई कि साहिल के फ्लैट को सच में ताला लगा हुआ था।
पार्टी में शामिल रहे बाकी लोगों से वह पूछताछ बराबर करना चाहती थी, मगर उससे पहले साहिल से मिलना जरूरी लगने लगा था, क्योंकि दोनों एड्रेसेज में समानता न होना उसे कुछ और ही सोचने पर मजबूर कर रहा था।
ये कि एड्रेस की तरह दोनों साहिल भी अलग अलग शख्स हो सकते थे। और अगर ऐसा था तो अशोका इंक्लेव में रहते साहिल के साथ कोमल का अफेयर कोई बड़ी बात नहीं थी। वैसे भी जबसे डॉक्टर ने बताया था कि कोमल बिस्तर पर कोई उत्साह नहीं दिखाती थी, तभी से वह उसके किसी यार की कल्पना करने लगी थी। आगे मीनाक्षी और नूरजहां भी उस बात को हवा देती ही दिखाई दी थीं, इसलिए सबसे पहले उसने साहिल से ही मिलने का फैसला किया।
इंतजार बहुत लंबा और उबाऊ साबित हो रहा था, मगर अपने धंधे में वह इससे कहीं ज्यादा बोरियत झेल चुकी थी, इसलिए साहिल के वहां पहुंचने की उम्मीद में चिप्स और कुरकुरे के पैकेट दर पैकेट खाली किये जा रही थी।
देखते ही देखते अंधेरा घिर आया मगर साहिल वहां पहुंचता नहीं दिखा। वह उसे पहचानती भले ही नहीं थी, लेकिन कोई तीसरे फ्लोर पर जाता दिखाई देता तो वह उसके अलावा भला कौन हो सकता था।
आखिरकार रात आठ बजे, जब वह पूरी तरह निराश हो चुकी थी। सूट बूट पहने एक शख्स पैदल चलता बिल्डिंग तक पहुंचा और भीतर दाखिल हो गया।
अलीशा की निगाहें इमारत पर ठहर कर रह गयीं, क्योंकि भीतर दाखिल होकर वह शख्स दिखाई देना बंद हो गया था। मगर उसे ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पड़ा। मुश्किल से दो मिनट बाद उसे थर्ड फ्लोर की लाईट जलती दिखाई दी।
वह गाड़ी से उतरी और इमारत में दाखिल हो गयी। सीढ़ियां एकदम सेपरेट बनी थीं, मतलब तीसरी मंजिल पर पहुंचने के लिए पहली या दूसरी मंजिल से होकर नहीं गुजरना था।
थर्ड फ्लोर पर पहुंचकर उसने वहां मौजूद इकलौते दरवाजे पर दस्तक दे दी।
“कौन है?” भीतर से पूछा गया।
“मैं हूं।” संक्षिप्त जवाब।
दरवाजा खुला, सामने वही युवक खड़ा था जिसे थोड़ी देर पहले वह बिल्डिंग में दाखिल होते देख चुकी थी।
“बड़ी देर कर दी, मेहरबां आते आते।” वह मुस्कराती हुई बोली।
“कौन हो तुम?”
“अलीशा, अलीशा अटवाल।”
“मैं तुम्हें नहीं जानता।”
“वक्त कितना लगता है साहिल साहब।”
“किस काम में?”
“जान पहचान होने में?”
“मैं वह भी नहीं चाहता, अब जाओ यहां से।”
“कमाल है, इतनी हॉट और सैक्सी लड़की के साथ क्या ऐसे पेश आया जाता है? या कोमल के साथ भी ऐसा ही विहैव करते थे? हैरानी हो रही है मुझे।”
“कौन कोमल?”
“कोमल भाटिया, डॉक्टर लवलेश भाटिया की वाईफ, तुम्हारी फुफेरी बहन, या और भी जो कुछ वह तुम्हारी लगती थी।”
“मैं ऐसी किसी लड़की को नहीं जानता।”
“लड़की नहीं औरत थी, बताया तो मिसेज लवलेश भाटिया।”
“तुम कौन हो?”
“शुक्र है।”
“किस बात का?”
“तुम्हें मेरे बारे में सवाल करना याद आ गया।”
“देखो मेरे पास फालतू बातों के लिए जरा भी वक्त नहीं है, इसलिए जो कहना है कहो और दफा हो जाओ।”
“अजीब आदमी हो।”
“हूं, तो?”
“तो ये कि मेरे जीवन में आज तक ऐसा नहीं हुआ मिस्टर, जब मैं किसी से मिलने पहुंचूं और बैरंग लौट जाऊं।”
“तुम पागल हो?”
“पक्का नहीं कह सकती।”
“अरे चाहती क्या हो?”
“दो चार मीठी मीठी बातें करना, और क्या चाहूंगी? चलो बेडरूम में चलते हैं।”
“यहीं करो।”
“यूं खड़े खड़े भी कहीं प्यार भरी बातें की जाती हैं?”
“मैं तुम्हें अंदर इन्वाईट नहीं करने वाला।”
“करो ना, बहुत मजा आयेगा।”
“किसे?”
“हम दोनों को।”
“वो कैसे?”
“अरे समझो, मैं यहां कोमल के कत्ल के बाद खाली हुई जगह भरने के लिए आई हूं।”
“या तुम कोई गश्ती हो?”
“वो भी हूं, क्योंकि गश्त तो बराबर लगाती हूं।”
“कमाल है, आजकल कॉल गर्ल डोर टू डोर खुद की मार्केटिंग करने लगी हैं क्या?”
“करना पड़ता है, क्योंकि सड़क पर खड़े होकर ग्राहक तलाशना अब ट्रेंड में नहीं रह गया।”
साहिल ने हैरानी से उसे देखा, जबकि उम्मीद कर रहा था कि अपने लिए ‘गश्ती’ शब्द का इस्तेमाल सुनकर वह फट पड़ेगी।
“आखिरी बार पूछ रहा हूं क्या चाहती हो?”
“पांच मिनट तुमसे बात करनी है, सच्ची बस पांच मिनट करूंगी।”
“किस सिलसिले में?”
“कोमल भाटिया के कत्ल के सिलसिले में, हां तुम अंदर नहीं आने देना चाहते तो बात यहां खड़े होकर भी कर लूंगी - कहकर वह चिल्लाने वाले अंदाज में बोली - बताओ कोमल का कत्ल क्यों किया तुमने?”
“अरे अरे क्या कर रही हो?”
“बात, वह भी यहीं खड़े खड़े।”
“मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी।” कहकर उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की ही थी कि अलीशा ने एक जोर की लात गेट पर जमा दी। साहिल को धक्का लगा और संभलने की कोशिश में वह दो तीन कदम पीछे हट गया।
अगले ही पल उसके नेत्र फैल गये, ये देखकर कि लड़की ने उसपर गन तान दी थी। वह हकबकाया सा जहां का तहां खड़ा रह गया, जबकि अलीशा ने भीतर दाखिल होकर दरवाजा बंद कर दिया।
“आराम से बैठ जा भई, क्यों खामख्वाह अपना खून जला रहा है, फिर मैंने बस पांच मिनट ही तो मांगे हैं, जो कि गोली खा जाने से कहीं अच्छा है कि दे दे मुझे।”
सुनकर खिसियाया सा वह सोफे पर बैठ गया।
“गुड, अब कबूल करो मिस्टर आशिक कि कोमल के साथ तुम्हारे नाजायज ताल्लुकात थे?”
“मैंने उसका कत्ल नहीं किया है।”
“अरे कर भी दिया तो क्या हो गया, औरतों का क्या है, आती जाती रहती हैं।”
“तुम हो कौन?”
“अलीशा अटवाल, पहले भी बताया था।”
“नाम के अलावा क्या हो?”
“कुछ नहीं, जितनी दिखती हूं तुम्हारे सामने हूं, अब बताओ कैसी दिखती हूं मैं?”
“खूबसूरत हो।”
“थैंक यू - कहकर उसने पूछा - कोमल को क्यों मारा जमूरे?”
“तमीज से बात करो।”
“ठीक है बहन..., बता कोमल को क्यों मारा तूने? और खबरदार जो फिर से तमीज की बात कही, पूरे एक सौ एक गालियां पता हैं मुझे।”
“मैंने नहीं मारा।”
“फिर किसने मारा?”
“लवलेश ने।”
“क्यों?”
“क्योंकि उसे मेरे और कोमल के रिश्ते के बारे में पता लग गया था।”
“रिश्ता जो भाई बहन वाला था?”
“नहीं, उस तरह का मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं है।”
“कमाल है जबकि सब यही कहते हैं कि कोमल तुम्हारी फुफेरी बहन थी। वैसी बहन जो गाना गाती है ‘भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना’, छोटी बहन, देखी है?”
“क्या?”
“फिल्म देखी है?”
“नहीं।”
“क्यों?”
“मुझे इस तरह की मूवीज पसंद नहीं है।”
“फिर कैसी पसंद है?”
उसने जवाब नहीं दिया।
“मस्तराम वेबसीरीज देखी है?”
“मैं पॉर्न नहीं देखता।”
“तुझे कैसे पता कि वह पॉर्न है?”
“नाम से ही लग रहा है कि पॉर्न ना भी हो तो सेमी पॉर्न तो बराबर होगी, और वैसी फिल्मों में मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं है।”
“इसलिए नहीं है क्योंकि तेरी खुद की फितरत भी कुछ वैसी ही है, है न?”
इस बार साहिल ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“ठीक है मत बता, लेकिन इतना तो कबूल कर कि कोमल तेरी फुफेरी बहन ही थी।”
“साहिल भाटिया की थी, ना कि मेरी।”
“दोनों बातों में कोई अंतर है?”
“हां है, क्योंकि मैं साहिल कुमार हूं, ना कि भाटिया।”
“बात कुछ समझ में नहीं आ रही यार, खोलकर क्यों नहीं बता देता?”
“साहिल भाटिया से ना तो लवलेश कभी मिला था, ना ही उसके मां बाप, ऐसे में जब मेरे साथ कोमल की जान पहचान बढ़ी, तो एक रोज घर बुला लिया और सबको ये कहकर मेरा परिचय दे दिया कि मैं उसके मामा का लड़का हूं जो कि रोहिणी में रहता है।”
“जरूरत क्या थी?”
“बहुत जरूरत थी, यूं मैं जब चाहता मुंह उठाये उसके घर पहुंच जाता और किसी को हम दोनों के संबंधों पर शक भी नहीं होता।”
“फिर बाद में डॉक्टर को शक क्यों हो गया?”
“क्योंकि एक रोज साहिल भाटिया उससे मिलने नर्सिंग होम पहुंच गया, वह साहिल जो रिश्ते में उसका साला लगता था। तब डॉक्टर की समझ में फौरन ये बात आ गयी कि कोमल क्या गुल खिला रही थी।”
अलीशा हकबकाकर उसकी शक्ल देखने लगी।
“फिर क्या हुआ?”
“दोनों में जमकर कहासुनी हुई, मगर डॉक्टर उसपर हावी नहीं हो पाया, क्योंकि वह खुद भी इधर उधर मुंह मारता फिरता है। हां इतना नुकसान जरूर हुआ कि मेरा उस घर में आना जाना हमेशा के लिए बंद हो गया।”
“और कोमल ने तुझसे मिलना जुलना भी बंद कर दिया, है न?”
“हां उसके बाद हमारी कोई मुलाकात नहीं हुई।”
“एक आखिरी मुलाकात को छोड़कर जो तूने कल रात की थी?”
“नहीं कल उससे मेरी मुलाकात नहीं हुई थी।”
“फिर कत्ल कैसे कर पाया?”
“मैंने नहीं किया।”
“और रेप क्यों, क्या पहले जो नियामतें तुझे हासिल थी, वह कल रात नहीं हो पाईं, इसलिए तुझे गुस्सा आ गया और तूने उसका कत्ल कर दिया?”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
“तो फिर अपने फ्लैट से दूरी बनाकर क्यों रह रहा है?”
“क्योंकि मैं खामख्वाह पुलिस के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था।”
“जब तू कातिल नहीं है तो डर किस बात का?”
“कोमल के साथ मेरे संबंधों के कारण मेरी इमेज को नुकसान पहुंच सकता था, जो कि बहुत बुरा होगा क्योंकि दो महीने बाद मेरी शादी है।”
“साले, तब तुझे अपनी इमेज का ख्याल नहीं आया जब उसके साथ ऐश कर रहा था, और अब जबकि वह मर चुकी है तो सामने आकर जो जानता है वह बताने की बजाये तू इमेज बचाने के चक्कर में पड़ा है?”
“तुम पुलिसवाली हो?”
“तुझे क्या लगता है?”
“नहीं हो।”
“फिर पूछ क्यों रहा है?”
“क्योंकि मेरी समझ में नहीं आ रहा कि कोमल के कत्ल पर तुम इतना तड़पकर क्यों दिखा रही हो।”
“इसलिए दिखा रही हूं क्योंकि वह मेरी जान थी, कई बार हम इकट्ठे ऐश कर चुके थे।”
“बकवास, वो लैस्बियन नहीं हो सकती।”
“मत मान, मुझे क्या फर्क पड़ता है। लेकिन इस बात का जवाब मैं तुझसे लेकर रहूंगी कि तूने कोमल को मारा तो आखिर मारा क्यों? कोई जायज वजह बता देगा तो जान बख्श दूंगी, वरना तो आज की रात तेरे जीवन की आखिरी रात साबित होगी।”
“अरे मैं उसे क्यों मारूंगा, जबकि उसे बहुत चाहता था। वह तो कोमल तैयार नहीं हो रही थी वरना उससे ही शादी कर लेता मैं।”
“बहुत चाहता था?”
“हां तुम्हारी सोच से भी ज्यादा।”
“और तुझे इस बात का भी यकीन है कि उसका कत्ल डॉक्टर ने ही किया था?”
“हां पूरा पूरा यकीन है।”
“अगर ऐसा है भाई, तो जाकर बदला ले उससे अपनी माशूका की मौत का, और दुनिया के सामने साबित कर के दिखा दे कि मोहब्बत आज भी उतनी ही जुनूनी होती है, जितनी सैकड़ों साल पहले हुआ करती थी। तू कहे तो उस काम में मैं तेरी मदद भी कर सकती हूं, आखिर डॉक्टर ने हम दोनों की चाहत का एक साथ गला घोंटा है।”
तभी साहिल ने एक ऐसी हरकत की, जिसकी अलीशा को जरा भी उम्मीद नहीं थी। उसने दोनों पैर उठाकर जोर से उसे दुलत्ती जमाई और सोफे से उठकर तेजी से गेट की तरफ दौड़ा।
जिस जगह अलीशा खड़ी थी उसके पीछे एक सोफा चेयर थी, जिसके कारण वह फर्श पर गिरने से तो बच गयी, मगर तब तक साहिल दरवाजे तक पहुंच चुका था।
बला की फुर्ती दिखाते हुए वह उठकर उसके पीछे लपकी, तभी वह दरवाजे की चिटखनी हटाकर बाहर निकल गया। फिर दूसरी तरफ कुंडी लगा ही रहा था कि अलीशा ने अंदर का हैंडल पकड़कर पूरी ताकत से अपनी तरफ खींच दिया।
साहिल को झटका लगा, मगर गिरने से उसने खुद को बचा लिया, हां भाग तो फिर भी नहीं पाया, क्योंकि तभी अलीशा ने उसे बालों से पकड़कर वापिस अंदर खींच लिया।
इतनी जोर से खींचा कि वह मुंह के बल फर्श पर जा गिरा, फिर उसे एक कस की लात जमाने के बाद उसने दोबारा दरवाजे की चिटखनी चढ़ा दी।
साहिल अपनी नाक से निकलता खून पोंछता हुआ उठ बैठा।
“क्यों पंगे ले रहा है यार? - वह एक बार फिर उसपर गन तानती हुई बोली - दो मिनट तसल्ली से नहीं बैठ सकता?”
“मेरी नाक तोड़ दी कमीनी।”
“नहीं अभी नहीं टूटी है, सर्दी का मौसम है न इसलिए दर्द ज्यादा महसूस हो रहा होगा, तू कहे तो बॉथरूम से तेजाब या फिनाईल की बोतल लाकर थोड़ा पिला दूं।”
“उससे दर्द कम हो जायेगा?”
“नहीं, लेकिन जो नया दर्द शुरू होगा वह इतना भयानक होगा कि नाक की चोट तुझे याद भी नहीं रह जायेगी - कहकर उसने पूछा - लेकर आऊं?”
“अरे क्यों मेरे पीछे पड़ी है?”
“बोला तो बात करनी है।”
“ठीक है कर।”
“थैंक यू, अब संजीदा होकर बताओ कि कोमल को क्यों मारा तुमने?”
“मैंने नहीं मारा।”
“फिर इतना बौखलाया हुआ क्यों है बहन...?”
“किसी पर गन तानकर उससे सवाल जवाब करोगी तो वह बौखलायेगा नहीं तो और क्या करेगा?”
“गन? - अलीशा ने जोर का ठहाका लगाया - अरे ये तो नकली है, बस डराने के काम आती है। यकीन न हो तो बोल ट्रिगर दबाकर दिखा दूं, खूब आवाज करती है।”
सुनकर साहिल के जिस्म में बिजली सी भर गयी। वह झटके के साथ उठा और पूरी ताकत से एक पंच अलीशा के चेहरे पर चला दिया। लड़की सावधान थी, इसलिए पीछे को झुकाई देकर ना सिर्फ उसका वार बचा गयी, बल्कि अगले ही पल उसके पेट में कस की एक लात जमाने में भी कामयाब हो गयी।
नतीजा ये हुआ कि साहिल पुनः फर्श पर जा गिरा।
“कसरत करना और करवाना बंद कर साले - वह गुर्राती हुई बोली - वरना प्राण खींच लूंगी।”
“अब तू नहीं बचेगी कमीनी?” कहता हुआ वह उठकर तेजी से अलीशा पर झपटा, तो वह एकदम से साईड हो गयी और पलटकर एक लात उसके घुटने के पीछे जमा दी। दर्द से कराहता हुआ साहिल फिर धूल चाट गया।”
तत्पश्चात उसने अगला वार करने के लिए पैर उठाया ही था कि लड़का बुरी तरह गिड़गिड़ा उठा, “मारना नहीं, मारना नहीं, प्लीज।”
“क्यों दर्द हो रहा है?”
“हां हो रहा है।”
“कमाल है, मैंने तो सुना था कि मर्द को दर्द नहीं होता।”
“गलत सुना था, मुझे बहुत दर्द हो रहा है।”
“साले अगर मार खाने से इतना ही डर लगता है, तो हीरो बनने की कोशिश क्यों कर रहा है, आराम से बैठकर मेरे सवालों का जवाब क्यों नहीं दे देता?”
“ठ...ठीक है।”
“क्या ठीक है?”
“पूछो जो पूछना है, अब मैं कुछ नहीं करूंगा।”
“जैसे पहले कुछ उखाड़ ही लिया था मेरा। चल बता कोमल का कत्ल क्यों किया तूने?”
“मैंने नहीं किया - वह कलपता हुआ बोला - बाई गॉड मैंने नहीं मारा उसे।”
“फिर किसने मारा?”
“डॉक्टर ने, क्योंकि उसे हम दोनों के संबंधों की खबर लग गयी थी।”
“चल यही बता दे कि कल रात दस से ग्यारह के बीच कहां था तू, यहां नहीं था, वह बात मैं पहले ही पता लगा चुकी हूं।”
“मैं यहीं था, आठ बजे घर लौटने के बाद कहीं नहीं गया था।”
“एक बार फिर सोच ले, वरना कहीं मेरा इरादा बदल गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।”
“अरे मैं सच कह रहा हूं, कल रात आठ बजे के बाद मैं बाहर नहीं गया था।”
“चल थोड़ी देर के लिए तेरे कहे का विश्वास किये लेती हूं, मगर ये कहने का कोई फायदा नहीं होगा कि कातिल डॉक्टर है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वह नहीं है।”
“फिर अमन सिंह ने मारा होगा कोमल को।”
“वह क्यों मारेगा?”
“डॉक्टर के साथ उसकी बीवी का चक्कर चल रहा था।”
“तो डॉक्टर को क्यों नहीं खत्म कर दिया?”
“क्योंकि बीवी का बदला बीवी से लेना चाहता होगा।”
“हां अब की कोई काम की बात, थैंक यू।”
साहिल के चेहरे पर तत्तकाल राहत के भाव उभर आये।
“बस इतनी सी बात कहनी थी तुझे, फिर भी पंगा ले बैठा। अच्छा अब जो हो गया सो हो गया, चल माफ कर दे मुझे।”
“तू यहां से चली क्यों नहीं जाती?”
“क्योंकि तुझपर मेरा दिल आ गया है।”
साहिल ने हैरानी से उसे देखा।
“सच कहती हूं, पहली बार तुझपर नजर पड़ते ही मन से आवाज आई थी कि ‘यही है राईट चॉयस बेबी’ अब तू बोल।”
“क्या बोलूं?”
“अरे ‘आ हा’ नहीं बोलेगा?”
साहिल चुप।
“बोल न यार सुनने में बहुत मजेदार लगता है।”
“आ हा।”
“हद है यार, खुश होकर बोल कराह कर क्यों बोल रहा है?”
“क्योंकि दर्द हो रहा है।”
“उसके लिए सॉरी बोल तो चुकी हूं, फिर इस बात का ही कोई लिहाज कर ले कि मैं तुझे पसंद करने लगी हूं, मतलब आगे हम दोनों मिलकर बड़े बड़े सपने देख सकते हैं। वैसे सपने जो तुम और कोमल अक्सर देखा करते होगे।”
लड़के ने इस बार भी जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“अब मैं फिर से बोलूंगी ‘यही है राईट चॉयस बेबी’ और तू बोलेगा ‘आ हा’ वह भी खुश होकर, फिर देखना मैं तुझे किस कदर खुश कर के जाती हूं यहां से।”
“पक्का चली जायेगी?”
“हां वादा करती हूं।”
“ठीक है बोल।”
“यही है राईट चॉयस बेबी।”
“आ हा।”
“हां इस बार बढ़िया ढंग से बोला तू, अब जरा मुस्कराकर दिखा।”
साहिल ने वो भी किया।
“एक चुटकला सुनेगा?”
“क्या? नहीं मुझे नहीं सुनना।”
“अरे सुन ले न यार, प्लीज।”
“तू पागल तो नहीं है?”
“पहले भी पूछ चुका है, लेकिन जवाब मुझे नहीं मालूम। हां कल एक लड़का मुझे देखकर अपने दोस्त से इतना जरूर बोला था कि उसे लगता है कि मेरा कोई स्क्रू ढीला था।”
“वह तो बराबर दिखता है।”
“अच्छा तुझे भी दिख गया?”
“तू बात ही ऐसी करती है।”
“ठीक है अब कोई और बात करती हूं, ऐसी बात जिसे सुनकर तू खुश हो जायेगा, फिर मुझे यहां से जाने के लिए भी नहीं कहेगा।”
“ऐसी कोई बात नहीं हो सकती।”
“अरे सुन तो ले।”
“ठीक है बोल?”
“पहले ये बता कि क्या इस वक्त तू सैक्स करने की हालत में है?”
“ये क्या सवाल हुआ?”
“तू जवाब तो दे।”
“अगर हूं भी तो उससे क्या हो जायेगा?”
“अरे मैं हूं न, अब बोल करेगा?”
“तुम मजाक कर रही हो?”
“पागल हो गया है, ऐसी बातें क्या कोई मजाक में करता है?”
“तुम यहां सेक्स करने आई थीं?”
“और क्या तुझे पीटने आई थी, अब बोल राजी है।”
“तुम मजाक ही कर रही हो?”
“नहीं, बाई गॉड नहीं।”
“मैं अब तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला।”
“मतलब तेरा बाई गॉड सच, और मेरा झूठ।”
“त...तुम सच में वैसा चाहती हो?”
“हां यार, बताया तो था कि तुझे देखते के साथ ही मेरे दिल ने क्या कहा था, अब बोल की राजी है, फिर हमारे बीच के सारे गिले शिकवे खुद ब खुद दूर हो जायेंगे।
“अ....अगर तुम राजी हो तो मैं राजी ही राजी हूं।”
“साले हराम के जने, अभी तेरी माशूका को मरे दो दिन भी नहीं बीते और तू दूसरी के साथ रंगरेलियां मनाने को तैयार भी हो गया, जबकि अभी अभी उससे मोहब्बत का दम भर के हटा था।” कहते हुए उसने एक जोर का घूंसा उसके चेहरे पर खींच दिया।
“त...तुमने ही तो पूछा था।” वह रोता हुआ बोला।
“हां मैंने पूछा था, तो क्या तू इंकार नहीं कर सकता था?”
“अरे तू पागल तो नहीं है कमीनी।”
“शुक्र है दो सवालों में से एक का जवाब तूने खोज लिया, मतलब जान चुका है कि मैं कमीनी हूं, तो अब यहां बैठकर मजे कर ये सोचते हुए कि मैं पागल हूं या नहीं।”
कहकर उसने एक जोर की लात उसे जमाई और दरवाजे की चिटखनी खोलकर बाहर निकल गयी। उसके पीठे पीछे गंदी गंदी गालियां बकता साहिल बहुत देर तक जहां का तहां पड़ा रहा, फिर उठकर बॉथरूम में पहुंचा और मुंह धोने के बाद तौलिये से पोंछ ही रहा था कि कॉल बेल बज उठी।
‘कहीं फिर से तो नहीं आ गयी कमीनी?’ सोचते हुए वह दरवाजे तक पहुंचा, जिसे बंद करना तक याद नहीं रहा था। आगे ये देखकर उसके होश उड़ गये कि वहां पुलिस खड़ी थी।
सब इंस्पेक्टर जयंत शुक्ला ने हैरानी से उसकी तरफ देखा, फिर सवाल किया, “पिटकर आ रहे हैं साहिल साहब?”
“नहीं प..पांव फिसल गया था।”
“अभी ठीक हैं?”
“हां हूं।”
“हमें कोमल भाटिया के कत्ल के सिलसिले में आपसे कुछ बात करनी है, और पहला सवाल ये है कि जवाब यहां देंगे या थाने चलकर?”
“फांसी पर लटकर दूंगा, ले चलो और लटका दो - वह एकदम से फट पड़ा - या एक गोली उतार दो मेरे भेजे में, ताकि किस्सा ही खत्म हो जाये।”
“तुम ठीक तो हो?” शुक्ला हकबकाया सा बोला।
“मैं...मैं ठीक हूं, सॉरी।”
“चिल्लाये क्यों थे?”
“हिस्टीरिया की बीमारी है मुझे।”
“बहुत नामुराद बीमारी है, इलाज नहीं कराया कभी?”
“आप मेरी बीमारी के बारे में जानने आये हैं?”
“नहीं।”
“तो फिर वो पूछिये जो पूछना चाहते हैं।”
सुनकर उसने अजीब निगाहों से साहिल को देखा फिर सोफे पर जाकर बैठ गया। उसके साथ दो सिपाही भी वहां पहुंचे थे जिन्होंने गेट से भीतर कदम रखने की कोशिश नहीं की थी।
साहिल उसके सामने आकर बैठ गया।
“कोमल भाटिया को कैसे जानते थे आप?”
“आपने कैसे जाना कि मैं उसे जानता था?”
“सवाल के बदले सवाल मत कीजिए।”
“मेरी फ्रैंडशिप थी उसके साथ।”
“एक शादीशुदा औरत के साथ किसी मर्द की कैसी फ्रैंडशिप हो सकती है, ये मैं अच्छी तरह समझ सकता हूं।”
“तो फिर पूछ क्यों रहे हैं?”
“क्यों मेरे सब्र का इम्तिहान ले रहा है भई, मैं इतने प्यार से तुझसे सवाल कर रहा हूं और तू उखड़े जा रहा है, ऐसे कैसे काम चलेगा?”
“सॉरी सर, मैं घायल हूं न इसलिए समझ ही नहीं पा रहा कि क्या बोल रहा हूं।”
“तो पहले शांत कर लो खुद को, चाहो तो किसी डॉक्टर के पास भी ले जा सकता हूं तुम्हें, लेकिन अगली बार अगर ढंग से जवाब नहीं दिया तो सीधा हवालात ले जाऊंगा, समझ गये?”
“जी हां समझ गया।”
“गुड अब बताओ कोमल को कैसे जानते थे?”
“मेरा उसके साथ अफेयर था।”
“रिश्तेदारी भी थी?”
“नहीं थी।” कहकर उसने वही कहानी शुक्ला को सुना दी जो थोड़ी देर पहले अलीशा को सुनाकर हटा था।
“डॉक्टर ने तुमसे कुछ नहीं कहा?” पूरी बात सुनकर शुक्ला ने पूछा।
“नहीं, क्योंकि उसे नहीं मालूम कि मैं कहां रहता हूं।”
“या मालूम है, और उसी ने यहां पहुंचकर तुम्हारे चेहरे का भूगोल बदल दिया। फिर से ये कहने की जरूरत नहीं है कि तुम फिसल गये थे, साफ दिखाई दे रहा है कि किसी ने तुम्हारी ठुकाई की है, बताओ कौन था वो?”
“कोई लड़की थी।”
“हद है यार, एक लड़की के हाथों मार खा गये तुम?”
“उसके पास गन भी थी।”
“तो भी थी तो लड़की ही न, एक भी ढंग का लगा देते तो यहीं गिरी पड़ी होती - कहकर उसने पूछा - कोई नाम वाम नहीं बताया उसने अपना?”
“अलीशा अटवाल बताया था, जो पता नहीं सच था भी या नहीं।”
शुक्ला चौंका, फिर खुद को जब्त कर के बोला, “पिटाई क्यों की?”
“क्योंकि आपकी तरह वह भी मुझसे जानना चाहती थी कि कोमल के साथ मेरा क्या रिश्ता था, और उसका कत्ल मैंने क्यों किया?”
“क्यों किया?”
“नहीं किया।”
“तो बता देते उसे, इसमें मार कुटाई कहां से आ घुसी?”
“पहली बात तो ये है इंस्पेक्टर साहब कि मुझे उसकी तरफ से हमले की कोई उम्मीद नहीं थी, और दूसरी बात ये कि उसका लहजा बड़ा अजीब था। जिसके कारण मुझे लगने लगा कि वह मुझे किसी जाल में फांसने की कोशिश कर रही है।”
“इसलिए जुबान बंद कर ली।”
“कोशिश की थी, मगर वह दरवाजे को धकेलकर अंदर आ घुसी थी।”
“और आते के साथ ही तुम्हें पीटना शुरू कर दिया, है न?”
“नहीं, वो तो मेरे जुबान बंद रखने पर मारा था उसने।”
“बाद में खोली या नहीं खोली?”
“खोली बराबर थी, मगर बताने को मेरे पास कुछ होता तब तो बताता।”
“तुम ये कहना चाहते हो कि कोमल भाटिया के रेप एंड मर्डर में तुम्हारा कोई हाथ नहीं था?”
“नहीं था, मैं भला क्यों मारूंगा उसे?”
“अच्छा सवाल है, चलो थोड़ी देर के लिए मैं तुम्हारे कहे पर यकीन भी कर लेता हूं, अब इस बात का जवाब दो कि अगर तुमने उसे नहीं मारा तो किसने मारा?”
“अगर कातिल डॉक्टर नहीं है, तो मैं नहीं जानता, जान भी कैसे सकता हूं, मैं क्या उसके साथ रहता था?”
“किसी काम के आदमी नहीं हो तुम, कोई तुम्हारी माशूका को खत्म कर गया और तुम इतना भी नहीं बता पा रहे कि किसने किया?”
“अब जो बात मुझे मालूम ही नहीं है वह मैं आपको कैसे बता सकता हूं।”
“यही बता दो कि बीती रात दस बजे के बाद तुम कहां थे?”
“यहीं था, और कहां होना था मुझे।”
“करते क्या हो, मेरा मतलब है लोगों की बीवियां कतरने के अलावा?”
“एक कंपनी में सेल्स टीम का हिस्सा हूं।”
“शादी हो गयी है?”
“अभी नहीं लेकिन जल्दी ही होने वाली है।”
“कितनी जल्दी?”
“दो महीने बाद।”
“किससे?”
“ऑफिस की ही एक कलीग है दीक्षा चौधरी।”
“वह क्या करती है?”
“सेल्स मैंनेजर है।”
“यानि तुमसे बड़ी पोस्ट पर है?”
“हां है।”
“मंगनी हो गयी है?”
“जब दो महीने बाद शादी है इंस्पेक्टर साहब तो जाहिर है हो ही गयी होगी।”
“बैकग्राउंड कैसा है उसका?”
“अच्छे परिवार से है, एक भाई जापान में जॉब करता है, बाप इंकम टैक्स डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर है, बहन डॉक्टर है।”
“ऐसी लड़की को अगर तुम्हारे और कोमल के संबंधों की खबर लग जाती तो क्या होता?”
“रिश्ता टूट जाता और क्या होता?”
“सही कहा, रिश्ता टूटकर रहना था जो कि तुम होने देना नहीं चाहते थे। मगर सबसे बड़ी समस्या ये थी कि कोमल भाटिया तुम्हारे रास्ते में रूकावट बन रही थी। जिसे खत्म कर के तुमने अपने अफेयर का भेद खुलने का रास्ता ब्लॉक कर दिया।”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया था, फिर कोमल पहले से शादीशुदा थी, वह किस मुंह से मुझे शादी ना करने को कहती? वैसे भी पति को छोड़ने का उसका कोई इरादा नहीं था, क्योंकि जो सुख सुविधायें उसे डॉक्टर दे सकता था वह मैं अपनी नौकरी में तो क्या दे पाता?”
“कत्ल की दूसरी वजह, तुम कोमल को हमेशा हमेशा के लिए अपना बना देखना चाहते थे जिसके लिए वह तैयार नहीं हो रही थी, ऐसे में तुम्हें गुस्सा आ गया और तुमने उसका कत्ल कर दिया।”
“खामख्वाह! उसकी जान लेकर क्या हासिल हो जाता मुझे, फिर दीक्षा के कारण मैं तो खुद उससे दूर जाने वाला था।”
“देखो या तो तुम मुझे ये बताओ कि कोमल का कत्ल किसने किया, या फिर जेल जाने को तैयार हो जाओ, क्योंकि कत्ल का मोटिव बराबर दिखाई दे रहा है तुम्हारे पास।”
“हत्या डॉक्टर ने ही क्यों नहीं की हो सकती?”
“वह क्यों मारेगा अपनी बीवी को?”
“क्योंकि उसके पास दोहरी वजह थी, नंबर एक उसे मेरे और कोमल के संबंधों की खबर लग गयी थी, नंबर दो उसका मीनाक्षी नाम की एक औरत के साथ चक्कर चल रहा था। क्या पता वह मीनाक्षी के साथ ब्याह रचाने के सपने देख रहा हो, जो कि कोमल के रहते संभव नहीं था, इसलिए उसे खत्म कर दिया। और जानबूझकर घर में पार्टी अरेंज की ताकि किसी का खास ध्यान उसकी तरफ न जाने पाये। मैं ये नहीं कहता कि कातिल वही है, लेकिन अगर मैं हो सकता हूं तो वह क्यों नहीं हो सकता, मीनाक्षी का हस्बैंड अमन सिंह क्यों नहीं हो सकता?”
शुक्ला लाजवाब हो गया।
“तक वितर्क अच्छे कर लेते हो।”
“खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए जुबान खोलनी ही पड़ती है इंस्पेक्टर साहब। मुझे कातिल मानकर आप बस अपना वक्त ही बर्बाद करेंगे। उससे तो अच्छा है अमन सिंह के पीछे पड़िये, डॉक्टर के पीछे पड़िये। फिर आपका केस भी सॉल्व हो जायेगा, और मैं बेगुनाह भी साबित हो जाऊंगा।”
“तुम्हें बेगुनाह साबित करने का ठेका मैंने नहीं ले रखा है, हां कातिल साबित करने की कोशिश में बेगुनाह निकल आये तो और बात है।”
“जरूर निकल आऊंगा, क्योंकि मैंने कुछ नहीं किया है।”
“घर से गायब क्यों थे?”
“आप लोगों के डर से ही गायब था। जानता था कोमल के कत्ल के बाद पुलिस यहां जरूर पहुंचेगी।”
“अगर ऐसा था तो हमेशा के लिए गायब हो जाते।”
“कैसे हो सकता था, मैं क्या नौकरी छोड़ देता, या दीक्षा से अपनी शादी की बात भूल जाता?”
“कोई और बात जो तुम अपनी तरफ से बताना चाहो?”
“इसके सिवाये कुछ नहीं कि मैंने कोमल को नहीं मारा है।”
“ठीक है अभी के लिए मुझे तुम्हारा जवाब कबूल हो गया, मगर जल्दी ही मैं तुमसे फिर मिलूंगा, ये बताने के लिए कि तुमने कोमल को क्यों मारा, या ये गुड न्यूज देने के लिए कि कोमल का हत्यारा गिरफ्तार हो गया है। और जाते जाते मेरी आखिरी चेतावनी है तुम्हारे लिये कि फरार होने की कोशिश मत करना, वरना अभी जो लिहाज तुम्हारा कर रहा हूं, उसे भूलकर तुम्हें ही कातिल तस्लीम कर लूंगा, फिर मेरा केस एक ही झटके में सॉल्व हो जायेगा।” कहकर वह उठा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
अपने पीछे बेहद फिक्रमंद साहिल को बैठा छोड़कर जिसने पुलिस के जाते ही दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया था।
कोमल के पार्थिव शरीर को चिता के हवाले करने के बाद शाम पांच बजे के करीब डॉक्टर भाटिया घर वापिस लौटा। लौटकर किचन में गया और फ्रीज में रखी व्हिस्की की बोतल, रोस्टेड काजू और कांच का एक गिलास उठा लाया। फिर सारा सामान उसने सेंटर टेबल पर रखा और एक सिगरेट सुलगाकर होंठों में फंसाने के बाद अपने लिए ड्रिंक तैयार करने जुट गया।
वह ना तो अधिक पीता था, ना ही डेली ड्रिंकर था। मगर आज उन दोनों बातों को दरकिनार कर के नशे में डूबता चला गया। कुछ इस कदर कि उठकर खड़े हो जाने की ताकत उसके भीतर शेष नहीं बची।
ड्रिंक और स्मोक के दौरान कई बार उसका ध्यान कोमल की तरफ गया, मगर हर बार उसे बीवी की दुर्गति ही दिखाई दी, ना कि उसके सीने में घुसा पड़ा छुरा उसे दिखाई दिया था।
देखते ही देखते शाम का धुंधलका रात के अंधेरे में तब्दील हो गया, मगर वह पीता रहा, कोमल को याद कर के उसके रेपिस्ट को भयानक से भयानक सजा देने की योजनायें बनता रहा, फिर नौ बजे के करीब उसके मोबाईल की घंटी बजी।
कई बार बेल जाने के बाद थोड़ा सीधा होकर बैठते हुए उसने बेमन से कॉल पिक कर ली। आंखें मुंदी जा रही थीं, इसलिए ये तक देखने की कोशिश नहीं की कि कॉल किस नंबर से आ रही थी।
“है..लो।”
“डॉक्टर साहब?” किसी की भर्राई हुई आवाज उसके कानों में पड़ी। जो जानी पहचानी नहीं लगी, या फिर अत्यधिक नशे में होने के कारण उस तरफ डॉक्टर का ध्यान ही नहीं गया।
“बो...ल र..हा हूं।”
“डॉक्टर लवलेश भाटिया?”
“क्यों दि..माग ख..राब कर रहे हो, कहा तो मैं ही हूं।”
“दर्द कुछ कम हुआ या नहीं?”
“म..त..लब?”
“अरे बीवी की मौत का गम कुछ हल्का हुआ या नहीं, या कोई गम था ही नहीं तुम्हें, और इस वक्त ये सोचकर खुश हो रहे हो कि अच्छा हुआ कोमल तुम्हारी जिंदगी से दूर चली गयी?”
सुनकर डॉक्टर की नशे में डूबती जा रही चेतना को जैसे झटका सा लगा, “कौन बोल रहा है?” इस बार वह बोला तो उसकी आवाज में लड़खड़ाहट नहीं थी।
“नहीं पहचाना?”
“नहीं।”
“अपनी मौत को नहीं पहचान पाये डॉक्टर?”
“क्या बकवास कर रहे हो?”
“साले, कुत्ते की औलाद, मैं वो इंसान बोल रहा हूं, जिसने चौदह जनवरी की रात तेरी बीवी के साथ ऐश किया था। सच कहता हूं मजा ही आ गया। बाद में उसे खत्म करते हुए बहुत दुःख हो रहा था मुझे, लेकिन मजबूरी थी इसलिए मारना पड़ा उस कोमल नाम की कोमलांगी को।”
“कमीने, मर्द का बच्चा है तो यही बात मेरे सामने खड़े होकर बोल के दिखा, फिर देखना मैं तेरा क्या हश्र करता हूं।”
“मैं सामने आ गया तो पतलून गीली हो जायेगी डॉक्टर।”
“निन्नी?”
“कौन निन्नी?”
“यानि तू कोई दूसरा भड़वा है नेता का?”
“कौन नेता?”
“कोई नहीं, तू अपनी कह।”
“मैंने ये बताने के लिए फोन किया है मादर... कि बीवी की मौत से अगर तुझे कोई तड़प महसूस नहीं हो रही, तो उसपर खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बहुत जल्द मैं तेरी तमाम माशूकाओं का भी वैसा ही बुरा हाल करने वाला हूं, जिसके बाद तू पक्का तड़पेगा, ऐसे तड़पेगा जैसे बिना कपड़ों के गर्म तवे पर बैठा दिया गया हो।”
“अरे तू है कौन?”
“वो भी बताऊंगा, तब जब हम दोनों आमने सामने होंगे।”
“मैं फोन रख रहा हूं।”
“मत रखना वरना किसी की जाती हुई जान, जो तू कोशिश कर के बचा सकता है, बचाने में कामयाब नहीं हो पायेगा, क्योंकि तुझे पता ही नहीं लगेगा कि अगला नंबर किसका है। जबकि फोन पर बना रहेगा तो उसका नाम मैं तुझे बता दूंगा, समझ गया?”
“हां समझ गया।”
“बचाना चाहता है?”
“हां चाहता हूं, बता किसकी जान लेने वाला है तू?”
“मीनाक्षी का।”
डॉक्टर भीतर तक हिलकर रह गया।
“क्या हुआ बोलती बंद हो गयी?”
“तू पक्का विधायक का ही कोई चमचा है।”
“चाहे जो समझता रह, मुझे क्या फर्क पड़ता है। लेकिन समझने में टाईम बर्बाद करेगा डॉक्टर तो मीनाक्षी का खून तेरे सिर होगा। इसलिए उठ और दौड़कर उसके घर पहुंच, फिर वहीं डेरा डालकर बैठ जाना, क्या पता तब उसकी जान बचाने में कामयाब हो ही जाये।”
“तू मीनाक्षी को क्यों मारना चाहता है?”
“क्योंकि मुझे हर उस औरत से नफरत है, जो तेरे करीब है। इसलिए मैं उनको हमेशा हमेशा के लिए तुझसे दूर कर दूंगा। उन तमाम औरतों को जिन्होंने जीवन में कभी एक पल को भी तुझे सुख पहुंचाया होगा, इसलिए पहला नंबर मीनाक्षी का है, बचा सकता है तो बचा ले उसे।”
“यानि अभी जिंदा है वह?”
“हां है, लेकिन रहेगी नहीं, बहुत जल्द मैं उसका चैप्टर क्लोज कर दूंगा।”
“मुझसे तेरी क्या दुश्मनी है कमीने?”
“वो तो बहुत गहरी है डॉक्टर, दिमाग दौड़ाना, क्या पता याद आ ही जाये कि मेरे और तेरे बीच दुश्मनी क्यों पैदा हो गयी। नहीं याद आया तो भी कोई बात नहीं, क्योंकि तुझसे मारने से पहले उस बात की जानकारी जरूर दूंगा मैं।”
“देखो, मुझसे अगर तुम्हारी कोई दुश्मनी है भी, तो सीधा मुझे ही क्यों नहीं मार देते, बेचारी मीनाक्षी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? या मेरा सामना करने की हिम्मत नहीं है तुम्हारे अंदर?”
“तेरी औकात क्या है डॉक्टर जो मैं तुझसे खौफ खाऊं? तू जिंदा बस इसलिए है क्योंकि मैं तुझे तड़पता हुआ देखना चाहता हूं। जितना ज्यादा तड़पेगा, मेरे मन को उतनी ही शांति मिलेगी, और जब तू तड़प तड़पकर खुद अपनी जान देने पर उतारू हो जायेगा, तब मैं तुझसे मिलूंगा, वो हम दोनों की आखिरी मुलाकात होगी।”
“यानि पहले हम मिल चुके हैं?”
“कई बार, मुझे तो गिनती तक याद नहीं।”
“फिर मैं तेरी आवाज क्यों नहीं पहचान पा रहा?”
“क्योंकि तू गधा है, पता नहीं किसने तुझे एमबीबीएस की डिग्री थमा दी, जबकि तू साला कहीं चपरासी लगने के काबिल भी नहीं है। अब कॉल कट कर रहा हूं, इंतजार करना बहुत जल्द तुझसे मिलने आऊंगा मैं।”
कहकर उसने सच में कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
डॉक्टर ने मोबाईल को सेंटर टेबल पर उछाला और एक नया पैग तैयार करने के बाद एक ही सांस में गिलास खाली कर गया।
‘मार डालेगा - वह बड़बड़ाया - कोमल के बाद अब मीनाक्षी को भी मार डालेगा? जैसे उसके बाप का राज है। छोड़ूंगा नहीं कमीने चरण सिंह को। म...मैं जान से मार दूंगा उसे। न...हीं छोड़ूंगा, किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ूंगा। सब मरेंगे, क्योंकि सबको एक दिन तो मरना ही होता है। बस मैं जिंदा रहूंगा, मी..नाक्षी जिंदा रहेगी, ह..म दोनों जिंदा रहेंगे।’ यूं ही जाने क्या क्या बकते हुए उसने कई कोशिशों के बाद बड़ी मुश्किल से एक सिगरेट सुलगाया और गहरे गहरे कश लगाने लगा।
थोड़ी देर बाद नया सुर पकड़ लिया, ‘अ...लीशा सब ठीक कर देगी। मीनाक्षी को मरने नहीं देगी वह, को...मल के साथ रेप भी नहीं होने देगी। ब...हुत बहादुर लड़की है। हिम्म...त वाली है, उसके रहते कोई कोमल के साथ रे...प कैसे कर सकता है? नहीं वह सब ठीक कर देगी, कर देगी न अलीशा? तू सब ठी...क कर देगी न?’
फिर उसने मोबाईल उठाकर उसका नंबर डॉयल कर दिया।
कॉल भी तुरंत अटैंड कर ली गयी।
“है...लो, अ...लीशा?”
“मेरे नंबर पर और कौन होगा डॉक्टर?”
“उसने धमकी दी है कि को...मल के साथ रेप करेगा।”
“कोमल मर चुकी है डॉक्टर।”
“अ..च्छा, कब? तुमने मुझे ब...ताया क्यों नहीं?”
“आप नशे में हैं?”
“न...नहीं, हां हूं।”
“आप डॉक्टर हैं नशे में धुत्त होना आपको शोभा नहीं देता।”
“उ...सने कहा है कि अब अ...गली बारी मीनाक्षी की है।”
“किसने कहा है?”
“उसी ने जि...सने फोन किया था।”
“आप बहुत ज्यादा नशे में मालूम पड़ते हैं।”
“हां हूं, लेकिन कॉ..ल बराबर आई थी।”
“किसकी?”
“हत्यारे की।”
“अच्छा! और क्या कहा उसने?”
“यही कि मीनाक्षी को खत्म कर देगा।”
“उसके अलावा भी तो कुछ बोला होगा।”
“हां बोला था।”
“क्या?”
“कहता था मीनाक्षी को जिंदा नहीं छोड़ेगा।”
“और कुछ नहीं बोला?”
“कुछ त..ड़पने तड़पा...ने की बात कर रहा था, जो मुझे ढंग से याद नहीं आ रही, मगर एक खास बात उसने जरूर कही थी जो मुझे याद है, पूरी त...रह याद है, भूल ही नहीं सकता।”
“क्या?”
“उसने कहा था कि मी..नाक्षी का कत्ल कर देगा।”
“ठीक है मैं समझ गयी, क्या ये भी बताया था कि कब करेगा?”
“नहीं वक्त तो नहीं बताया, देखो तो कितना बेवकूफ इंसान है।”
“हां बेवकूफ तो बराबर है, आपने कहीं उसके कहे की खबर पुलिस को भी तो नहीं कर दी?”
“नहीं बस तुम्हें बता रहा हूं। राज की बात है ह..र किसी को कैसे बोल सकता हूं। म...गर तुम्हें बोल सकता हूं, क्योंकि तु...म मेरी जान हो। मेरी दोस्त हो।”
“अच्छा बन भी गयी?”
“क्या बन गयी?”
“मैं, आपकी जान बन भी गयी?”
“वो तो तु...म बराबर हो, आई लव यू अलीशा अटवाल।”
सुनकर वह जोर से हंसी।
“म...मैं सच कह रहा हूं।”
“जानती हूं।”
“अब एक राज की बात सुनो।”
“बताईये।”
“मीना...क्षी का कत्ल होने वाला है।”
“इसमें राज जैसा क्या है डॉक्टर?”
“है, क्योंकि ये बात अभी बस मुझे ही मालूम है।”
“ठीक है मैं समझ गयी, अब ये बताईये कि मुझे फोन क्यों किया?”
“मी...नाक्षी को सावधान कर दो प्लीज। उससे कहना कि हत्यारा जब उसका कत्ल करने पहुंचे, तो उसे अपने नैनो के बाण चलाकर मारने की कोशिश न करे, क्योंकि उन बाणों पर बस मे...रा हक है। उनसे घायल भी बस मैं होना चाहता हूं।”
“फिर और कैसे मारेगी वह कातिल को?”
“बोलना गोली मार दे, बाद में जो होगा मैं देख लूंगा।”
“आप देख लेंगे?”
“और नहीं तो क्या, मैं अप..ने जीते जी उस..पर आंच भी नहीं आने दे सकता। और तुम ये म...त समझो कि मैं नशे में हूं। वैसे मैं हूं, लेकिन धमकी उस कमीने ने सच में दी है - फिर गिड़गिड़ाने वाले अंदाज में बोला - प्लीज अलीशा उसे सावधान कर दो, मैं उसके बिना जी नहीं पाऊंगा, क्योंकि वह मे..री जान है।”
“वो तो मैं हूं, अभी अभी बताकर हटे हैं आप।”
“ओह, ये तो गड़बड़ हो गयी।” डॉक्टर बड़बड़ाया।
“ये क्यों नहीं हो सकता कि किसी ने आपके साथ मजाक किया हो?”
“वो तो तुम कर रही हो, जबकि मैं अभी अभी तुम्हें बताकर...”
“हां जानती हूं, उसने मीनाक्षी के कत्ल की धमकी दी है।”
“एग्जैक्टली।”
“ठीक है मैं उससे सावधान रहने को बोल दूंगी।”
“हां बोल दो, साथ में चेतावनी भी दे देना।”
“कैसी चेतावनी?”
“यही कि कोई उसकी जान लेना चाहता है इसलिए सावधान रहे।”
“मैं बात करती हूं उससे।”
“थैंक यू।” कहकर उसने मोबाईल को सेंटर टेबल पर रखा और एक नया पैग तैयार करने में जुट गया।
कम्बख्त शराब! पहले डॉक्टर ने उसे पिया और अब वह डॉक्टर के दिमाग को पी गयी थी। वह होश में होता तो अलीशा को कॉल करने की बजाये मीनाक्षी को फोन कर के उस धमकी की जानकारी दी होती, बल्कि पुलिस को फोन कर सकता था। मगर नहीं वह तो बस बकबक किये जा रहा था, ऐसी बकबक जिसे पता नहीं अलीशा ने सीरियस लिया भी था या नहीं।
डॉक्टर की कॉल अलीशा अटवाल ने डिनर के दौरान रिसीव की थी। इसलिए बातचीत पूरी होने के बाद वह खाना खत्म करने में जुट गयी। ना कि उस कॉल के फौरन बाद उसने मीनाक्षी को फोन खटका दिया।
प्रत्यक्षतः कोमल और मीनाक्षी में कोई ऐसी समानता भी नहीं दिखाई दे रही थी, जिससे कोई एक ही शख्स दोनों की जान का दुश्मन बन जाता। इसलिए फोन पर कही गयी डॉक्टर की बात उसे पूरी तरह नशे की ही देन जान पड़ी थी।
किसी ने वैसा कुछ करना भी होता तो वह एडवांस में डॉक्टर को फोन कर के उसकी चेतावनी भला क्यों देता? और ये क्या कोई मानने वाली बात थी कि हत्यारा उसकी तमाम चहेती औरतों को खत्म कर देने का संकल्प लिये बैठा था। लिहाजा जल्दी ही उसने डॉक्टर की बातों को अपने दिमाग से निकाल दिया।
डिनर खत्म करने के बाद उसने जूठे बर्तनों को सिंक में पहुंचाया और साफ करने में जुट गयी, क्योंकि अपने सारे काम खुद किया करती थी। फिर रहती भी वह वन बीएचके के फ्लैट में थी, इसलिए काम में कोई परेशानी नहीं होती थी।
साफ सफाई से फारिग होकर उसने दूध गर्म किया और गिलास में उडे़ल कर ड्राईंगरूम में टहलते हुए चाय की तरह चुस्कियां लेने लगी। तब एक बार फिर उसका ध्यान डॉक्टर की कही बातों की तरफ चला गया।
‘अगर उसका कहा सच हो तो?’ वह एकदम से ठिठक गयी।
इस ‘तो’ ने उसे उलझाकर रख दिया। कुछ देर तक वह नये सिरे से उन बातों पर विचार करती रही फिर सेंटर टेबल पर रखा मोबाईल उठाकर डॉक्टर का नंबर डॉयल कर दिया, ये सोचते हुए कि अगर वह फिर से पुरानी बातें रिपीट करता है तो मीनाक्षी को कॉल करने या उससे मिलने के बारे में सोचा जा सकता था।
मगर कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि कई बार नंबर डॉयल करने के बाद भी दूसरी तरफ से कॉल रिसीव नहीं की गयी। जो कि पहले कभी नहीं हुआ था, इसलिए भी अलीशा को यकीन आ गया कि उसने बहुत ज्यादा पी ली थी।
तब तक रात के दस बज चुके थे।
‘क्या उसे मीनाक्षी को सावधान करना चाहिए?’ उसने खुद से पूछा।
‘करना चाहिए।’ - जवाब भी खुद दे दिया - ‘अगर डॉक्टर की बात झूठी भी थी, मतलब उसकी कल्पना की उपज थी, तो भी मीनाक्षी को इंफॉर्म कर के कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता।’
पहले तो उसने सोचा कॉल कर के उसे बता दे कि डॉक्टर ने क्या कहा था, मगर अगले ही पल उससे रूबरू मिलने का फैसला कर लिया। फिर उसका ध्यान गजानन की तरफ चला गया, जिसे उसने मीनाक्षी की निगरानी का जिम्मा सौंपा था।
गजानन चौधरी को फोन किया तो पता लगा आठ बजे के करीब निगरानी छोड़कर वह अपने घर लौट गया था। जिसमें उसकी कोई गलती नहीं थी, क्योंकि अलीशा ने उसे बस दिन दिन की निगरानी करने को कहा था।
कुछ क्षण विचार करने के बाद उसने एसआई जयंत शुक्ला का नंबर डॉयल किया, इसलिए क्योंकि इतनी रात को वह मीनाक्षी से अकेले मिलने जाती, तो उसके साथ अकेले में बात करने का मौका हासिल होना मुश्किल दिखाई दे रहा था, जबकि शुक्ला साथ होता तो उसे अमन सिंह के साथ बिजी कर के वह मीनाक्षी से बात कर सकती थी।
कॉल तुरंत अटैंड कर ली गयी, यानि अभी वह जाग रहा था।”
“गुड ईवनिंग शुक्ला जी।”
“गुड ईवनिंग मैडम, सब खैरियत?”
“लग तो यही रहा है कि सब खैरियत है, मगर आपको एक कष्ट फिर भी देना चाहती हूं।”
“जरूर दीजिए, बताईये क्या बात है?”
“अभी कहां हैं आप?”
“थाने में ही हूं।”
“थोड़ी देर के लिए अमन सिंह के घर पर आ सकते हैं?”
“आप वहीं हैं?”
“नहीं, लेकिन दस मिनट में पहुंच जाऊंगी।”
“कोई खास बात हो गयी?”
“सच पूछिये तो मैं नहीं जानती।”
“फिर भी कोई तो वजह होगी?”
“हां है, पहुंचिए फिर बताती हूं, बिजी हैं तो रहने दीजिए।”
“नहीं व्यस्तता जैसी कोई बात नहीं है, क्योंकि ड्यूटी खत्म हो चुकी है। मैं बस अपने घर के लिए ही निकल ही रहा था, कि आपका फोन आ गया। और घर एक दो घंटे बाद भी पहुंचा जा सकता है।”
“थैंक यू, बिल्डिंग के बाहर मिलियेगा मुझे।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट की, बेडरूम में पहुंचकर एक जींस पहनी, फिर ऊपर से ओवरकोट डाला और शूज पहनकर निकलने ही लगी थी कि उसे गन का ख्याल हो आया, जिसे आलमारी से निकालकर अपनी कमर में खोंस लिया।
फ्लैट को ताला लगाकर वह नीचे पहुंची और वहां खड़ी अल्ट्रोज में सवार हो गयी। वह सैक्टर सैंतीस के इलाके में डीएवी स्कूल के सामने की बिल्डिंग में रहती थी, जबकि अमन सिंह सैक्टर 91 में, जो वहां से करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित सूर्या नगर के इलाके में था।
मुश्किल से छह मिनट बाद वहां पहुंचकर उसने कार रोकी ही थी कि एक पुलिस जीप उसकी गाड़ी के बगल में आ खड़ी हुई। शुक्ला और अलीशा एक साथ नीचे उतरे, फिर उसने पूछा, “अब बताईये मैडम, क्या बात है?”
“मेरा नाम अलीशा है इंस्पेक्टर साहब, अलीशा अटवाल।”
“मैं जानता हूं।”
“फिर ये बार बार ‘मैडम’ का इस्तेमाल क्यों करते हैं?”
“इज्जत देने के लिए।”
“वो आपके मुंह से ‘अलीशा’ सुनकर ज्यादा मिलेगी मुझे।”
“ठीक है अलीशा बताईये क्या बात है?” वह हंसता हुआ बोला।
“डॉक्टर ने साढ़े नौ बजे कॉल कर के मुझसे एक बड़ी अजीब बात कही थी। वह उस वक्त गहरे नशे में मालूम पड़ते थे, इसलिए बात उनके दिमाग की कल्पना भी हो सकती है, मगर मैंने रिस्क लेना ठीक नहीं समझा इसलिए आपको तकलीफ दी।”
“इट्स ओके, क्या कहा था?”
जवाब में उसने सारा किस्सा कह सुनाया।
“लगता तो कल्पना ही है मैडम।”
“सच भी हो सकता है?”
“कातिल की इतनी हिम्मत हो गयी?”
“जब वह कत्ल कर सकता है इंस्पेक्टर साहब तो फोन पर धमकी देना क्या बड़ी बात है? जबकि उससे कुछ बिगड़ने वाला भी नहीं था उसका, हां डॉक्टर को हलकान करने में बराबर कामयाब हो गया दिखता है।”
“और मान लीजिए किसी ने खामख्वाह, महज डॉक्टर को परेशान करने के लिए कॉल कर दी हो, जैसे कि जल्ली या निन्नी में से किसी ने? आखिर वे लोग पहले भी वैसी कोशिश कर चुके हैं।”
“नहीं की हो तो?”
“तो भी उसने ये तो नहीं कहा था कि मीनाक्षी का कत्ल आज रात ही करने वाला है। बल्कि नहीं ही करना होगा, तभी तो एडवांस में डॉक्टर को उस बारे में बता दिया।”
“बात चाहे जो भी हो इंस्पेक्टर साहब, लेकिन मियां बीवी को चेतावनी देना बहुत जरूरी है। फिर ये तो आप भी नहीं चाहेंगे कि कल को एक और लाश आपके गले पड़ जाये।”
“हरिगज भी नहीं चाहता।”
“चलिए फिर मिले लेते हैं।”
तत्पश्चात दोनों बाउंड्री गेट की अर्धचंद्राकार सांकल हटाकर भीतर दाखिल हुए, और सीढ़ियां चढ़कर पहली मंजिल पर पहुंचे, जहां के दो फ्लैट्स में से एक अमन सिंह का था। आगे ये देखकर उन्हें बहुत हैरानी हुई कि रात के सवा दस बज रहे थे, और फ्लैट का दरवाजा खुला पड़ा था।
“इतना लापरवाह भी होता है कोई?” शुक्ला बड़बड़ाया।
“क्या पता किसी वजह से अभी खोला गया हो।” कहते हुए अलीशा ने कॉलबेल पुश कर दी।
दोनों इंतजार करने लगे।
भीतर घंटी बजने की आवाज उनके कानों तक साफ पहुंची, मगर दरवाजा खोलने कोई नहीं आया। किसी ने घंटी के जवाब में ये तक नहीं कहा कि ‘आ रहा हूं’, बरबस ही अलीशा का दिल जोर से धड़क उठा।
उसने फिर से बेल पुश कर दी।
“आ रहा हूं भाई - कोई झल्लाये अंदाज में बोला - बार बार बेल क्यों बजा रहे हो?”
अलीशा ने मन ही मन चैन की सांस ली, वरना तो वह पूरे परिवार की लाशें बरामद होने की कल्पना करने लगी थी, क्योंकि गेट खुला पड़ा था, और जवाब नहीं मिल रहा था।
दस सेकेंड बाद अमन सिंह दरवाजे पर प्रगट हुआ, उसने अपने शरीर को कंबल में लपेटा हुआ था और नंगे पांव चलता वहां तक पहुंचा था। फिर जैसे ही उसका ध्यान इस बात की तरफ गया कि दरवाजा पहले से खुला पड़ा था, वह थोड़ा सकपका सा गया, रही सही कसर बाहर खड़े जयंत शुक्ला को देखकर पूरी हो गयी।
“क्या बात है इंस्पेक्टर साहब?”
“कुछ खास नहीं, बस आपसे थोड़ी बातचीत करनी है।”
“सुबह नहीं हो सकती थी?”
“हो सकती थी, लेकिन मुझे अभी बात कर लेना ज्यादा जरूरी दिखाई दिया। और आप कम से कम इसी बात का ख्याल कर लीजिए कि सर्दी की रातों में हर कोई जब रजाई में दुबका पड़ा है, मैं और अलीशा जी यहां आपके दरवाजे पर खड़े हैं। मैं तो चलिए पुलिस की नौकरी में हूं, लेकिन अलीशा मैडम को तो तकलीफ उठाने की कोई जरूरत नहीं थी, फिर भी ये इस वक्त यहां हैं, और मैं खुद भी इनके कहने पर ही यहां आया हूं।”
“दरवाजा कैसे खोल लिया?”
“क्या?”
“मेरे फ्लैट का दरवाजा कैसे खोला इंस्पेक्टर साहब?”
“हम आपको तालातोड़ दिखते हैं?”
“सॉरी लेकिन खोला किसने, मीनाक्षी ने?”
“हमें नहीं पता, क्योंकि हमें तो यह दरवाजा खुला ही मिला था।”
“ओह, लगता है मीनाक्षी बंद करना भूल गयी थी।”
“आप सो रहे थे?”
“इतनी रात को और क्या करूंगा? - कहकर उसने सवाल किया - अब बताईये क्या बात करना चाहते हैं।”
“आपको चेतावनी देनी थी।”
“कैसी चेतावनी?”
“आपकी वाईफ को...
“साथ में स्वराज और आपको भी - शुक्ला को बीच में रोकते हुए अलीशा जल्दी से बोल पड़ी, नहीं चाहती थी कि शुक्ला पूरी बात ज्यों की त्यों उसके आगे दोहरा देता, क्योंकि तब अमन सिंह सहज ही समझ जाता कि डॉक्टर और मीनाक्षी के बीच जरूर कुछ चल रहा था - जान से मार देने की धमकी दी गयी है।”
“किसे दी गयी है, हमें तो नहीं दी।”
“डॉक्टर भाटिया को दी गयी है।”
“बात कुछ समझ में नहीं आई मैडम, अगर कोई हमें जान से मारना चाहता है तो वह लवलेश को धमकी क्यों देगा, फिर हमारी किसी के साथ कोई रंजिश भी तो नहीं है।”
“आपके साथ भले ही न हो, लेकिन डॉक्टर भाटिया के साथ बराबर है। कोमल के हत्यारे ने धमकी दी है कि डॉक्टर के जानने वाले किसी एक शख्स को भी जिंदा नहीं छोड़ेगा। हम सबको इंफॉर्म कर रहे हैं, सावधान रहने की चेतावनी दे रहे हैं, इसलिए आपके फ्लैट पर भी आना जरूरी हो गया।”
“जरूर किसी ने मजाक किया होगा। लवलेश क्या बस दो चार लोगों को जानता होगा? उल्टा पचासों लोगों से उसकी पहचान होगी, ऐसे में कोई कितनी लाशें गिरायेगा? मतलब आप लोग खामख्वाह ही परेशान हो रहे हैं।”
“मीनाक्षी मैडम कहां हैं?” शुक्ला ने पूछा।
“सो रही होगी।”
“आप दोनों एक बेडरूम में नहीं सोते?” उसने हैरानी से पूछा।
“सोते हैं भई, क्यों नहीं सोयेंगे? लेकिन अभी कॉलबेल की आवाज सुनकर यहां तक आने से पहले मैंने ये थोड़े ही देखा था कि मीनाक्षी सो रही है या जगी हुई है। वैसे उठ ही गयी होगी, क्योंकि कुत्ते की नींद सोती है, जबकि कॉलबेल दो बार बजाई थी आप लोगों ने।”
“एक बार चेक कीजिए प्लीज।”
“बेटे को भी देख लीजिएगा।” अलीशा बोली।
“क्या देख लूं? - अमन सिंह अजीब से लहजे में बोला - ये कि दोनों सो रहे हैं या नहीं?”
“बिल्कुल देखिये, और मैडम अगर सो भी रही हों तो उन्हें जगा दीजिए प्लीज, हम पांच मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं लेंगे उनका।”
“यानि अभी कुछ कहना बाकी रह गया है?”
“अमन साहब मत भूलिये कि हम सिर्फ आप लोगों की भलाई के बारे में सोचकर यहां हाजिर हुए हैं, ऐसे में कुछ तो लिहाज आपने करना ही चाहिए न?”
“ठीक है, अंदर आ जाईये, मैं उसे बुलाकर लाता हूं।” कहते हुए उसने दरवाजे की चौखट के करीब लगे स्विच बोर्ड का एक बटन दबाकर वहां रोशनी कर दी।
दोनों भीतर दाखिल हुए और वहां रखे सोफों की तरफ बढ़े, मगर दो कदम आगे जाते ही उन्हें ठिठक जाना पड़ा। सेंटर टेबल के पास फर्श पर मीनाक्षी पड़ी हुई थी, और आस-पास इतना खून फैला दिखाई दे रहा था कि जिंदा निकल आने की उम्मीद करना सरासर मूर्खता थी।
लाश एकदम चित पड़ी थी। नाईट गाऊन से एक टांग बाहर झांक रही थी और थोड़ी मुड़ी हुई थी, छुरा जिसका की बस दस्ता ही बाहर दिख रहा था, ऐन दिल वाले स्थान पर घुसा हुआ था।
यानि सबकुछ एकदम कोमल की हत्या वाले पैर्टन पर ही किया गया दिखाई देता था। इसलिए शुक्ला और अलीशा मीनाक्षी के साथ रेप किया गया होने की कल्पना किये बिना नहीं रह सके।
बीवी की वह हालत देखकर अमन सिंह जोर से चींखा और तेजी से उधर को झपटा, मगर उतनी ही फुर्ती के साथ शुक्ला ने उसे बांह पकड़कर वापिस घसीट लिया।
“छोड़ो मुझे।” वह छटपटाता हुआ बोला।
“खुद को काबू में रखिये सर, अब ये पुलिस का मैटर है।”
“अरे बीवी मरी है मेरी।” कहता हुआ वह एकदम से रो पड़ा।
“मैं जानता हूं सर, लेकिन आपका लाश के करीब जाना ठीक नहीं होगा। एविडेंस बिगड़ सकते हैं, इसलिए यहीं खड़े रहिये प्लीज।”
“हे भगवान! हे भगवान! ये...ये क्या हो गया?”
इस बार शुक्ला ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
उसी वक्त बाप के चींखने की आवाज सुनकर हड़बड़ाया सा स्वराज कमरे से बाहर दरवाजे पर खड़ा हुआ, “क्या हो गया?” वह सकपकाया सा बोला।
अलीशा लपककर उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी, “अपने कमरे में जाओ प्लीज। और तब तक वहीं रहो जब तक कि तुम्हें बाहर आने को न कहा जाये।”
“हुआ क्या है आंटी, और आप इतनी रात को यहां क्यों हैं?”
“तेरी मां अब नहीं रही स्वराज।” अमन सिंह रोता हुआ बोला।
सुनकर उसने तेजी से उधर को बढ़ने की कोशिश की मगर अलीशा ने उसे रोका और अपने सीने से लिपटाती हुई बोली, “धैर्य रख बेटा, और अपने कमरे में जा प्लीज।”
“मुझे देखने तो दो आंटी कि क्या हुआ है?”
“नहीं देख पाओगे, इसलिए कमरे में जाओ, बात मानों मेरी।”
“कम से कम दूर से तो देख लेने दो।” उसकी रूलाई फूट पड़ी।
सुनकर अलीशा ने उसका हाथ कस के पकड़ा और थोड़ा आगे ले जाकर लाश का नजारा कराने के बाद वापिस खींच लिया, “अब यहीं रूको या फिर कमरे में जाओ प्लीज।”
उधर शुक्ला ने अमन सिंह को जहां का तहां खड़े रहने की चेतावनी दी, फिर वहां फैले खून से बचता हुआ डेडबॉडी तक पहुंचा और उसकी नब्ज टटोलने लगा। नहीं मिली तो धड़कनें चेक कीं, मगर जीवन के कोई लक्षण दिखाई नहीं दिये।
वह एक गहरी सांस लेकर उठा और मोबाईल निकालकर एसओ मंजीत सिंह का नंबर डॉयल कर दिया। फिर कॉल कनैक्ट हुई तो उसे घटना की जानकारी देने के बाद ये भी बता दिया कि क्योंकर मीनाक्षी का कत्ल कोमल के हत्यारे का कारनामा हो सकता है, तत्पश्चात सवाल किया, “लोकल थाने को इंफॉर्म करूं सर, या ये जांच हमें ही करनी है।”
“पांच मिनट दो, मैं एसीपी साहब से बात कर के बताता हूं।”
“ठीक है।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट की और अमन सिंह को वहां से बेडरूम में लिवा ले गया, उसके पीछे पीछे अलीशा भी स्वराज को लेकर वहीं पहुंच गयी।
दोनों बाप बेटों को बेड पर बैठाने के बाद शुक्ला बोला, “मैं जानता हूं सर कि सवाल जवाब के लिए ये सही वक्त नहीं है, लेकिन अभी क्योंकि कई लोगों की जान खतरे में दिखाई दे रही है, इसलिए मजबूरन मुझे आपसे क्वेश्चन करने ही पड़ेंगे।”
“मार डाला, कमीने ने मेरी बीवी को मार डाला।”
“धैर्य रखिये सर, क्योंकि जो घटित हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता।”
“कैसे धैर्य रखूं इंस्पेक्टर, फिर आपको क्या पता कि किसी अपने को खोने का दुःख क्या होता है। बेचारी को जीवन में कभी चैन नहीं मिला। मां बाप बचपन में अनाथ छोड़ गये, चाचा ने परवरिश की भी तो ऐसे की जैसे वह उसकी भतीजी न होकर घर की नौकर हो। और अब जबकि वह पुराने जख्मों को भूल चुकी थी तो उसे भी भगवान ने अपने पास बुला लिया।” कहता हुआ वह फफककर रो पड़ा, जबकि बेटे का हाल उससे कहीं ज्यादा बुरा हो रहा था। उसे देखकर साफ पता चल रहा था कि ढंग से सांस तक नहीं ले पा रहा था।
अलीशा अभी भी उसे खुद से लिपटाये लगातार उसकी पीठ सहलाये जा रही थी मगर उसकी हिचकियां थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं।
थोड़ी देर बाद जब अमन सिंह शांत होता नजर आया तो शुक्ला ने सवाल किया, “क्या हुआ था यहां?”
“मैं नहीं जानता, मुझे तो अभी भी यकीन नहीं आ रहा कि मीनाक्षी का कत्ल हो गया है।” वह सिसकता हुआ बोला।
“दरवाजा किसने खोला?”
“मैं वह भी नहीं जानता, शायद मीनाक्षी ने ही खोला होगा।”
“यानि कॉलबेल की आवाज नहीं सुनाई दी थी आपको?”
“नहीं।”
“सोने कितने बजे गये थे?”
“पौने नौ बजे, जिसके पंद्रह मिनट बाद ही नींद आ गयी थी।”
“रोज इतनी ही जल्दी सो जाते हैं आप?”
“नहीं, आज मेरे सिर में तेज दर्द था इसलिए दवाई खाकर पौने नौ बजे बिस्तर पर जाकर लेट गया था, जबकि आम दिनों में दस बजे के बाद सोया करता हूं। लेकिन मीनाक्षी तब भी जगी हुई थी और किचन में काम निबटा रही थी। बाद में क्या हुआ मैं नहीं जानता, क्योंकि एक बार सो चुकने के बाद मैं थोड़ी देर पहले आपके कॉलबेल बजाने पर ही उठा था।”
“तुमने कुछ सुना था?” उसने स्वराज से पूछा।
“मम्मी को जोर से ये कहते सुना था कि ‘आ रही हूं’।”
“मतलब किसी ने कॉलबेल बजाई थी?”
“नहीं, घंटी की आवाज मैंने नहीं सुनी थी।”
“लेकिन तुम उस वक्त जग रहे थे?”
“जग रहा था, सो रहा था, मतलब अभी गहरी नींद में नहीं पहुंचा था, लेकिन मम्मी का कहा जब मुझे सुनाई दे गया था, तो कॉलबेल की आवाज तो पक्का सुन ली होती।”
“मुझे भी सुनाई दे गयी होती - अमन सिंह बोला - अगर किसी ने बेल बजाया होता। इसलिए हो सकता है हत्यारे ने दरवाजे को महज खटखटा भर दिया हो।”
“तुमने मम्मी को ये कहते कितने बजे सुना था कि ‘आ रही हूं’?”
“मैंने साढ़े नौ बजे पढ़ना बंद किया और लाईट बुझाकर बिस्तर पर लेट गया - वह सिसकता हुआ बोला - उसके बाद नींद आने में दस पंद्रह मिनट तो लग ही गये होंगे, तभी मैंने मम्मी की आवाज सुनी थी।”
“मतलब पौने दस बजे के करीब?”
“उसके बाद कभी भी।”
“आप घर कब लौटे थे अमन साहब?”
“आठ बजे।”
“और उससे पहले कहां थे?”
“अपनी दुकान पर था, जहां से सवा सात बजे निकल गया था।”
“करते क्या हैं आप?”
“कैमिस्ट शॉप चलाता हूं, सिविल हॉस्पिटल के बाहर।”
“वहां और लोग भी काम करते होंगे?”
“जी हां, क्योंकि शॉप चौबिसों घंटे खोलकर रखी जाती है, अभी एक लड़का वहां मौजूद होगा। जबकि दिन में मेरे अलावा तीन और लोग होते हैं। कभी कभार स्वराज भी स्कूल की छुट्टी के बाद हाथ बंटाने के लिए पहुंच जाता है, क्योंकि इसका स्कूल उधर ही है।”
“आज नहीं गया था?”
“नहीं।”
“स्कूल गये थे बेटा?”
“जी हां।”
“लौटे कब थे?”
“ढाई बजे तक आ गया था।”
“तब मम्मी घर में ही थीं?”
“हां।”
“उसके बाद कहीं गयी हों?”
“घंटा भर के लिए मार्केट गयी थीं, पांच बजे के करीब।”
“यानि छह बजे वापिस लौट आईं?”
“जी हां।”
“उसके बाद कोई खास बात हुई हो?”
“एक फोन आया था जिसपर उनकी लंबी बातचीत चली थी, मैं अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था, मगर आवाज बीच बीच में कानों तक पहुंचती रही थी।”
“ये नहीं पता लगा कि दूसरी तरफ कौन था?”
“लवलेश अंकल थे, मम्मी उन्हें धैर्य बंधाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हो चुका है उसे भूलकर आगे की सोचें - कहकर उसने जोर की हिचकी ली - वह अंकल को धैर्य बंधा रही थीं, और हम छोड़कर चली गयीं, ये तक नहीं सोचा कि हमें तसल्ली कौन देगा।” कहता हुआ वह जोर जोर से रोने लगा।
बाप तो फिर भी जैसे तैसे खुद को शांत करने में कामयाब हो गया था मगर बेटे के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। जबकि अलीशा अभी भी उसे शांत कराने की कोशिश में जुटी हुई थी।
“मैडम ने बिना ये जाने तो दरवाजा नहीं खोल दिया होगा अमन साहब कि बाहर कौन खड़ा था?”
“नहीं, फिर रात में वैसा करने का कोई सवाल ही नहीं उठता - उसने बताया - इधर आये दिन चोरी चकारी की वारदातें घटित होती रहती हैं, इसलिए गेट खोलने से पहले उसने कंफर्म जरूर किया होगा कि बाहर कौन था।”
“जो कि कोई जाना पहचाना शख्स ही रहा होगा?”
“हां, वरना दरवाजा खोलने से पहले उसने मुझे जरूर जगा दिया होता।”
“कौन हो सकता है?”
“मैं कैसे बता सकता हूं?”
“कोई अंदाजा?”
“नहीं लगा सकता क्योंकि आमतौर पर यहां कोई नहीं आता। कभी कभार डॉक्टर भाटिया या सूरज आ जाया करते हैं, मगर वह दोनों भी जब आते हैं तो हमें एडवांस में उनके आने की खबर होती है। फिर डॉक्टर के आने का तो इन दिनों वैसे भी कोई मतलब नहीं बनता।”
“यानि सूरज चौधरी पर शक है आपको?”
“नहीं, वह भला क्यों मारेगा मीनाक्षी को?”
“आप ये भी तो नहीं बता रहे कि किसने मारा हो सकता है?”
“उस बारे में तो आपने खुद बताया था कि कोमल के हत्यारे ने डॉक्टर को धमकी दी थी, कि उसके सभी पहचान वालों को मार गिरायेगा। अगर ऐसा है तो कातिल के साथ मेरी कोई जान-पहचान होना क्यों जरूरी है?”
“और मान लीजिए कि वैसी कोई धमकी वजूद में नहीं आई होती, तो आप किसपर शक करते?”
“नहीं कर सकता था, क्योंकि दुश्मनी जैसी बात मेरी किसी के साथ है नहीं, और बिना दुश्मनी के कोई किसी का कत्ल करता नहीं है। इसलिए मुझे डॉक्टर को दी गयी धमकी वाली बात ही सच साबित हुई दिखाई दे रही है।”
“दुश्मनी ना सही किसी के साथ कोई छोटा मोटा झगड़ा ही हो गया हो कभी?”
“याद नहीं पड़ता, फिर झगड़ा हुआ भी हो तो उस तरह का कोई शख्स मीनाक्षी के लिए तो सरासर अंजान ही रहा होगा, वैसे आदमी के लिए वह दरवाजा क्यों खोल देती?”
शुक्ला निरूत्तर हो गया।
अलीशा मन ही मन ये सोचकर हैरान हो रही थी कि बीवी की मौत पर आंसू बहाते शख्स को तर्क वितर्क करना बखूबी सूझ रहा था। जबकि अक्सर ऐसी स्थिति में लोगों की बुद्धि कुंद होकर रह जाया करती है, उन्हें जवाब नहीं सूझते, जो जानते होते हैं वह भी ढंग से नहीं बता पाते।
जरूर अमन सिंह उसका अपवाद था।
शुक्ला का मोबाईल बजा। कॉल मंजीत सिंह की थी, जिसने उसे बताया कि एसीपी साहब ने कहा है कि दूसरे कत्ल की जांच भी उसी को करनी होगी, क्योंकि दोनों मामले एक दूसरे से कनैक्टेड दिखाई दे रहे हैं।
“ठीक है सर, ये बताईये फॉरेंसिक को बुलाना है या नहीं?”
“बुला लो यार, उसमें हमारा भला क्या नुकसान है?”
“ओके, मैं कॉल कर देता हूं।”
“यहां से किसी को भेजना है?”
“तीन चार सिपाहियों को तो भेज ही दीजिए सर।”
“भेजता हूं।” कहकर दूसरी तरफ से कॉल डिस्कनैक्ट कर दी गयी।
अमन सिंह और स्वराज को वहीं बैठे रहने की हिदायत देकर जयंत शुक्ला अलीशा के साथ वापिस हॉल में पहुंचा। इस बार दोनों ने पहले से कहीं ज्यादा ध्यान से लाश का मुआयना किया, तो एक खास बात फौरन उनकी निगाहों में आ गयी। वह ये थी कि मीनाक्षी के चेहरे पर भी वैसी ही खरोंचें बनी थीं, जैसी कोमल के चेहरे पर बनी दिखाई दी थीं।
उस बात ने दोनों को थोड़ा उलझाकर रख दिया, क्योंकि रेप वाली बात कुछ हजम नहीं हो रही थी। हत्यारे के पास उतना वक्त नहीं था। वह फिर भी कोशिश करता तो कोई बड़ी बात नहीं होती कि मीनाक्षी चिल्ला पड़ने में कामयाब हो जाती और बेडरूम में सोया उसका पति उठकर बाहर आ जाता।
तो क्या वह निशान महज हाथा पाहीं की वजह से बने थे?
उस बात पर भी यकीन नहीं आया क्योंकि मरने वाली ने कांच की चूड़ियां पहन रखी थीं, जो एकदम सही सलामत दिखाई दे रही थीं। मतलब कातिल के साथ संघर्ष हुआ होने के चांसेज निल थे।
लाश का जमकर मुआयना कर चुकने के बाद शुक्ला ने फॉरेंसिक टीम को इत्तिला दी, फिर वह और अलीशा दरवाजा खोलकर बाहर जा खड़े हुए। उसमें स्टॉपर लगा था, जिसे दरवाजा पूरा खोल चुकने के बाद शुक्ला ने नीचे गिरा दिया। ये सोचकर कि अगर बाप बेटे में से कोई लाश के पास फटकने की कोशिश करे तो उन्हें दिखाई दे जाये।
“कितना मुश्किल होता है ऐसे वक्त में किसी धैर्य बंधाना, नहीं?”
“ठीक कहा, मौत को जस्टीफाई कर के दिखाने लायक कोई शब्द आज तक दुनिया में बना ही नहीं है। मरने वाला अगर बुजुर्ग हो, और अपनी आई मौत मरा हो, तो एक बार को ये कहकर उसके होते सोते को तसल्ली दे दी जाती है कि उम्र हो गयी थी, अच्छा हुआ चलते फिरते निकल लिए बुर्जुगवार। मगर यहां तो एक जवान औरत का कत्ल कर दिया गया है, कैसे मुमकिन है कि उसके हस्बैंड या बेटे को तसल्ली बंधाई जा सके।”
“यहां सिगरेट पीना गलत तो नहीं होगा?”
“अगर अकेले पियेंगी तो गलत ही होगा।”
सुनकर अलीशा ने दो सिगरेट सुलगाये और एक शुक्ला के हवाले करती हुई बोली, “कुछ समझ में आया?”
“सिर्फ इतना कि मरने वाली के चेहरे पर जो खरोंचे दिखाई दे रही हैं, वह कत्ल के बाद जानबूझकर बनाई गयी हो सकती हैं।”
“हासिल?”
“कोमल और मीनाक्षी की हत्या में समानता पैदा करने की कोशिश के अलावा और क्या रहा हो सकता है।”
“उससे हत्यारे को क्या फायदा होगा?”
“दिखाई तो नहीं देता।”
“एक फायदा हो सकता है - कहते हुए अलीशा ने एक लंबा कश खींचा फिर धुआं उगलती हुई बोली - अगर दोनों अपराधी जुदा शख्स हैं तो फायदा हो सकता है।”
“क्या?”
“हम मीनाक्षी के कत्ल को कोमल के हत्यारे का किया धरा मानकर केस को इंवेस्टिगेट करेंगे तो वह दूसरा शख्स साफ बच निकलेगा। या उसके बारे में विचार करने की बारी तब आयेगी, जब कोमल का कातिल गिरफ्तार हो जायेगा, और आप जान चुके होंगे कि उसने मीनाक्षी को नहीं मारा।”
“नहीं मारा?”
“दोनों बातें हो सकती हैं, लेकिन कातिल अगर एक की बजाये दो हैं तो दूसरे का पता लगा लेना आपके लिए जरा भी मुश्किल काम नहीं होगा, कम से कम पहले की अपेक्षा तो आसान ही होगा, क्योंकि वह तो जैसे सामने खड़ा दिखाई दे रहा है।”
“आपका इशारा कहीं अमन सिंह की तरफ तो नहीं है?”
“बिल्कुल है, जरा सोचकर देखिये कि वह शख्स बेडरूम में सो रहा था और कोई दरवाजा खुलवाकर ड्राईंगरूम में उसकी बीवी की हत्या कर गया, जिसकी उसे भनक तक नहीं लगी, क्योंकर मुमकिन हो पाया ऐसा?”
“आदमी गहरी नींद में हो अलीशा, तो आये गये की भनक न लगना कोई बड़ी बात नहीं मानी जा सकती, मतलब अमन सिंह का ये कहा सच भी हो सकता है कि उसे नहीं मालूम मीनाक्षी की जान किसने ली है।”
“अगर स्वराज का अंदाजा ठीक है, तो कातिल यहां पौने दस से दस के बीच पहुंचा हो सकता है। तब अमन सिंह को ज्यादा गहरी नींद में तो नहीं ही होना चाहिए था, क्योंकि मीनाक्षी किचन में बर्तन धो रही थी, और वह एक ऐसा काम था, जिसमें ना चाहते हुए भी आवाजें उत्पन्न होकर रहती हैं। ऐन उसी वजह से उसकी नींद में भी विघ्न पड़ना चाहिए था जो कि नहीं पड़ा।”
“अगर कत्ल उसी ने किया है तो दरवाजा खुला छोड़ने की जरूरत क्यों पड़ी उसे?”
“क्योंकि दरवाजा बंद होता तो हम फौरन इसे इनसाईड जॉब तसलीम कर लेते, जैसे कोमल के मामले में आप डॉक्टर पर शक कर के कर रहे थे। जबकि दरवाजा खुले होने की सूरत में हत्यारा कोई भी हो सकता है, इसलिए सीधा सीधा आरोप अमन सिंह पर नहीं लगाया जा सकता।”
“डॉक्टर पर तो अभी भी शक है मुझे।”
“खामख्वाह कर रहे हैं, वह कातिल नहीं हो सकता।”
“जाने दीजिए, क्योंकि उस बात पर बहस करना बेकार है।”
“चलिए आप कहते हैं तो जाने देती हूं।”
“थैंक यू, अब बताईये कोमल और मीनाक्षी का कातिल अगर एक ही है, तो कौन हो सकता है?”
“हत्या का मोटिव तो बराबर मौजूद है अमन सिंह के पास। कत्ल उसने किया या नहीं किया, वह अभी जांच का मुद्दा है।”
“बात कुछ समझ में नहीं आई मैडम, सॉरी अलीशा।”
“क्या नहीं समझ में आया आपके?”
“मीनाक्षी की हत्या तो चलिए एक बार को अमन सिंह ने इसलिए भी कर दिया हो सकता है क्योंकि उसका डॉक्टर के साथ अफेयर चल रहा था, मगर कोमल को क्यों खत्म किया, उससे भला हासिल ही क्या होना था अमन सिंह को?”
“उस बारे में हम पहले ही डिस्कस कर चुके हैं।”
“आपने कहा था कि बीवी का बदला बीवी से लिया गया था।”
“क्या बड़ी बात है?”
“है बड़ी बात, इसलिए है क्योंकि दुश्मनी उसकी डॉक्टर से थी।”
“कोमल को खत्म करके एक तरह से उसने डॉक्टर को ही तो चोट पहुंचाई है। बल्कि ये दूसरी चोट भी असल में डॉक्टर पर ही पड़ने वाली है। मीनाक्षी से कोमल जितना नजदीकी रिश्ता उसका भले ही नहीं था, मगर है बहुत ही इमोशनल इंसान, इसलिए मीनाक्षी की मौत उसे तोड़कर रख देगी। मतलब नुकसान तो डॉक्टर भाटिया को बराबर पहुंचता दिखाई दे रहा है। फिर हमें ये भी कहां पता है इंस्पेक्टर साहब कि हत्यारा, डॉक्टर को जी भरकर तड़पाने के बाद उसका कत्ल भी नहीं देगा?”
“आपकी आखिरी बात में थोड़ा दम है, लेकिन उसका मतलब तो ये हुआ कि डॉक्टर की जान को खतरा है। कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर कातिल अपना अगला शिकार उसी को बना ले।”
“बना सकता है, बनायेगा, और हम बस देखते ही रह जायेंगे, क्योंकि पुलिस प्रोटक्शन उसे हासिल होने से रही, और हम दोनों उसके घर की पहरेदारी कर नहीं सकते। रही बात डॉक्टर की तो वह खुद को बचाने के लिए अपनी उंगली तक नहीं हिला पायेगा, क्योंकि वैसा कुछ जीवन में पहले कभी नहीं किया होगा।”
“आपको क्या मालूम?”
“अंदाजा है, डॉक्टर बनना कोई मजाक नहीं होता इंस्पेक्टर साहब, उसके लिए पढ़ाकू बनना पड़ता है, किताबों को चाटना पड़ता है, उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि आप ‘एनईईटी’ (नीट) में हाई रेंकिंग ले ही आयेंगे।”
“प्राईवेट कॉलेज भी तो कराते हैं एमबीबीएस?”
“जरूर कराते हैं, मगर कोई आम आदमी वहां एडमिशन के बारे में सोच भी नहीं सकता। उनकी फीस करोड़ों में होती है, जिसके सामने गर्वनमेंट कॉलेजों की फीस तो किसी गिनती में नहीं आती।”
“तो कुल मिलाकर आपकी दलीलों पर यकीन किया जाये, तो डॉक्टर का किसी के भी कत्ल से कोई लेना देना नहीं हो सकता, है न?”
“जी अभी तो यही लगता है।”
“चलिए देखते हैं कौन निकलता है कातिल।”
“आपको यहां लंबा रुकना होगा, है न?”
“जी हां, दो घंटा तो मानकर चलिए।”
“फिर तो मुझे इजाजत दीजिए।”
“जाने से पहले एक वादा कर के जाईये।”
“क्या?”
“डॉक्टर को अभी नहीं बतायेंगी कि मीनाक्षी का कत्ल हो गया है।”
“कब तक?”
“जब तक कि मेरी उससे पूछताछ मुकम्मल नहीं हो जाती, जो कि कल सुबह ठीक दस बजे मैं कर के रहूंगा। वादा नहीं कर सकतीं तो साफ बताईये ताकि मैं कोई दूसरा इंतजाम सोच सकूं।”
“मुझे उठाकर हवालात में डाल देंगे?”
“नहीं, जो काम अपनी व्यस्तता के चलते मैं कल सुबह करना चाहता हूं, वह मजबूरन अभी करना पड़ेगा, और तब आपको भी साथ ले चलना होगा, ताकि आप यहां से निकलकर डॉक्टर को फोन न खटका दें। लेकिन उन हालात में एक बात याद रखियेगा कि सहयोग की जो गंगा बह रही है, वह आगे बहती नहीं रह पायेगी।”
“धमकी भी शहद की चाशनी में डुबोकर परोसते हैं शुक्ला जी।”
जवाब में इस बार वह खामोश रह गया।
“नहीं बताऊंगी, प्रॉमिस।”
“थैंक यू।”
“अब चलती हूं।” कहकर वह सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी।
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