एक घंटे बाद फकीर बाबा नदी से बाहर निकला। उसके बाल, शरीर का हर हिस्सा साफ हो चुका था। बाल कंधों तक आ रहे थे लेकिन गालों के बाल, जो कुछ देर पहले फैले हुए छाती को छू रहे थे वह सब अब गालों पर नहीं थे। लगता था जैसे किसी ने शेव कर दी हो और जो लंगोट शरीर पर था, वो भी अब गायब था। 


उसकी जगह नया और सूखा हुआ लंगोट नजर आ रहा था। फकीर बाबा ने सूर्य की तरफ मुंह करके हाथ जोड़कर सिर झुकाते हुए नमस्कार किया फिर वापस आया और मोना चौधरी के पास से होते हुए वापस झोंपड़े में प्रवेश करता चला गया। दरवाजा बंद कर लिया।


बाहर ही घास पर छाया में मोना चौधरी खामोश बैठी रही।


पांच मिनट बाद फकीर बाबा जब झोंपड़े का दरवाजा खोलकर बाहर निकला तो शरीर पर मैली कुचैली कमीज और वैसी ही बुरे हाल पैंट डाल रखी थी।


मोना चौधरी ने उन कपड़ों को पहचाना। फकीर बाबा को उसने जब भी देखा था इन्हीं पेंट कमीज में देखा था।


वो पास आया। मुस्कराया।


मोना चौधरी, अब तक उसे देखे जा रही थी।


फकीर बाबा उसके सामने तीन कदमों की दूरी पर बैठ गया।


"इस वक्त तुम मेरे यहां हो।" फकीर बाबा ने शांत स्वर में कहा- "तुम्हारी आवभगत करना मेरा फर्ज बनता है। किसी चीज की इच्छा हो तो कह दो मिन्नो।


मोना चौधरी ने गहरी निगाहों से फकीर बाबा को देखा।


"तुम्हारे अपने पास खाने को कुछ नहीं, ऐसे में मुझे तुम क्या खिलाओगे। "


"मैं तो फकीर हूं और फकीरों को कुछ भी चाह नहीं होती। " फकीर बाबा के होंटों पर मुस्कान उभर आई "लेकिन तुम्हें जिस चीज की इच्छा होगी, वो पलक झपकते ही

हाजिर हो जाएगी।" 


"मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं।" मोना चौधरी का स्वर एकाएक तीखा हो गया--"मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूं कि आपने मुझे इस तरह यहां क्यों बुला लिया ?" 


फकीर बाबा के चेहरे पर गंभीरता आ गई। तुम्हें बुलाने के लिए मुझे अपनी समाधि को बीच में ही रोकना पड़ा। भंग करना पड़ा। मुझे समझ नहीं आता कि तीन जन्मों से तुम दोनों मुझे चैन से भी नहीं रहने देते और मुझे मुक्ति भी नहीं पाने देते। कितने जन्म और भटकाते रहोगे मुझे ?"


"क्या मतलब?" मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी-"कौन

दोनों?"


"तुम और देव—।"




मोना चौधरी का चेहरा सख्त हो उठा- "देवराज चौहान की बात कर रहे हो फकीर बाबा।" वो दांत भींचकर

बोली।


"हां। अगर तुम दोनों अपनी दुश्मनी छोड़ दो तो मुझे मुक्ति मिल जाएगी। तुम दोनों की वजह से ही मैं वही शरीर लेकर भटक रहा हूं और तुम दोनों का यह तीसरा जन्म है। हर बार पैदा होते हो और आपस में लड़कर दोनों ही मर जाते हैं। इस जन्म में भी यही हो रहा है। फिर से तुम दोनों में झगड़ा शुरू हो चुका है। लेकिन याद रखना इस जन्म में तुम दोनों का झगड़ा एक की मौत के साथ खत्म होगा। दोनों नहीं मरोगे। झगड़े में तुम्हारी या देव किसी एक की मौत होगी लेकिन मैं चाहता हूं, तुम दोनों में झगड़ा ही न हो। कोई भी न मरे और दोस्त बन जाओ। ऐसा होते ही मुझे मुक्ति मिल जाएगी। तीन जन्मों से भटकते इस बूढ़े शरीर को त्यागने की शक्ति मुझमें आ जाएगी और — ।


मोना चौधरी का चेहरा गुस्से से सुर्ख हो उठा था।


"काम की बात करो बाबा " मोना चौधरी दांत भींचकर कह उठ —"मुझे यहां क्यों बुलाया। "






फकीर बाबा कई पलों तक मोना चौधरी को देखता रहा।



"वही आदत जो पहले जन्म में थी, दूसरे में भी और अब तीसरे में भी। बात-बात पर गुस्सा हो जाना। अपनी मर्जी चलानी और—।"


"बाबा। मुझे क्यों बुलाया यहां?" मोना चौधरी जैसे अपने गुस्से पर काबू पाने की चेष्टा कर रही थी।


फकीर बाबा ने दो पल के लिए आंखें बंद कीं, फिर खोली।


"मैं तुम्हें सिर्फ पन्द्रह दिन के लिए अपनी मेहमान बनाना चाहता हूं मिन्नो। "


"मेहमान! क्यों?" मोना चौधरी उखड़े स्वर में कह उठी।


"वजह, मत पूछ-।"


"पूछे बिना काम नहीं चलेगा। इस मेहमाननवाजी का कारण तो पता चले। 


"मिन्नो, आने वाले पन्द्रह दिन बीत गए तो बहुत खतरनाक झगड़ा टल जाएगा। " फकीर बाबा बोला।


"किसके साथ होगा झगड़ा ?"


"देवा के—।"


मोना चौधरी के होंठ भिंचते चले गए। 


"मैं तो अपनी मुक्ति पाने की कोशिश में समाधि में था। अभी मेरी समाधि का आधा वक्त भी पूरा नहीं हुआ था कि मेरी अनजानी ताकत ने मुझे इस बात का अहसास कराया कि देव और मिन्नो के रास्ते एक बार फिर एक होने वाले हैं। बहुत खतरनाक जंग होगी। कोई भी मर सकता है। इस बात का एहसास होते ही मुझे समाधि से बाहर आना पड़ा। क्योंकि मैं तुम दोनों का जन्मों का झगड़ा हमेशा-हमेशा के लिए रोकना चाहता हूं। इसमें मेरा ही स्वार्थ है। तुम दोनों का झगड़ा रुकते ही मुझे मुक्ति मिल जाएगी। मुझे यही श्राप मिला था कि मैं तब तक अपने जन्म से मुक्ति नहीं पा सकूंगा, जब तक तुम दोनों में दोस्ती नहीं करा दूंगा।"


"किसने दिया था श्राप ?"


“बहुत लंबी कहानी है। मेरे गुरुवर ने दिया था। तीन जन्म पहले की बात है। जब तुम मिन्नी होती थी और देवराज चौहान, तब देवा होता था। " फकीर बाबा ने कहा- "बताऊंगा, सब बताऊंगा। लेकिन ऐसे नहीं।"


"तो कैसे ?"


"जब तुममें और देवा में दोस्ती हो जाएगी और श्राप से मुक्त होकर मैं इस पुराने शरीर को त्यागने जा रहा होऊंगा। तुम और देवा मेरे सामने होगे। तब सब कुछ बताऊंगा। अभी वक्त नहीं आया बताने का जवाब दे मिन्नो पन्द्रह दिन के लिए मेरी मेहमानदारी कबूल करके यहां रहेगी ?"


मोना चौधरी के दांत भिंच गए।


"इसलिए कि देवराज चौहान से मेरा टकराव न हो?"


"कुछ भी समझ लो।"


"मैं इस मेहमानदारी को कबूल नहीं करती, फकीर बाबा। मुझे तो कब से उस वक्त का इंतजार है, जब देवराज चौहान मेरे सामने होगा और तड़प-तड़प कर मर रहा होगा।" मोना चौधरी गुर्रा उठी


"पागल मत बन मिन्नो! " फकीर को इस शरीर से मुक्ति दिला दे। इस जन्म में तुम दोनों की लड़ाई का अंत किसी एक की मौत पर जाकर होना है। यही ऊपर वाले का लेखा है। ऐसे में दूसरा जिंदा रहेगा। जब उसकी मौत होगी दोबारा फिर वो जन्म लेगा और चौथे जन्म में तुम दोनों का फिर टकराव होगा, तब तक मैं भटकता रहूंगा और अपने को मिले श्राप से मुक्ति पाने के लिए, फिर से तुम दोनों की दोस्ती कराने की कोशिश करूंगा। क्यों मुझे तकलीफ देती हो। मेरे को मिले श्राप की उम्र को क्यों बढ़ावा देती हो। इंसान मरता है। दोबारा जन्म लेता है तो बीते जन्म की बात भूल जाता है। तू भी भूल गई मेरे को। मैं तो हमेशा तेरे कितने काम आता था, तू मुझे— ।


"बाबा" मोना चौधरी कह उठी- "मुझसे वो बातें मत करो। जो समझ न आएं। मैं सिर्फ इस जन्म की

बात जानती हूं और देवराज चौहान को जानती हूं, जिसे जबर्दस्त हार देनी है मैंने।"


"मनुष्य की योनि में जन्म लेकर इंसान बहुत मतलबी हो जाता है। सिर्फ अपने को ही देखता है। अपना भला कैसे हो। तेरे को कैसे समझाऊं कि.. ।"


"मनुष्य सलाह बहुत देते हैं। लेकिन दूसरे की सलाह पर नहीं चलते। मिन्नो तू--।"


"देवराज चौहान को अपने पास, मेहमान बना लो। अगर खतरा पन्द्रह दिन के भीतर है तो ...।" मोना चौधरी कड़वे स्वर में कह उठी— "ऐसा करने में तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी। "


"बाबा" मोना चौधरी होंठ भींचकर कह उठी-  "एक सलाह दूं।" 


"मुझे सलाह मत दे मिन्नो। मैं जानता हूं मुझे क्या करना है। " फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा –"तू क्या समझती है, मैं तेरे को अपने वश में करके, जबर्दस्ती यहां नहीं रख सकता? रख सकता हूं। मेरे लिए तो बहुत ही मामूली बात है। लेकिन मैं चाहकर भी ऐसा इसलिए नहीं कर सकता कि मुझे मिले श्राप में यह बात शामिल थी कि तुम दोनों को ताकत का इस्तेमाल करके नहीं, बल्कि दोनों की रजामंदी से दोस्ती कराऊंगा। तभी श्राप से मुक्ति मिल सकती है। जोर-जबर्दस्ती करके श्राप से मुक्त नहीं हो पाऊंगा।" 


मोना चौधरी फकीर बाबा को देखती रही।


"मेरा वही जन्म चला आ रहा है और तुम दोनों का तीसरा जन्म है।" फकीर बाबा ने गहरी सांस ली-"जाने कितने बरस हो गए मुझे भटकते-भटकते। मिन्नो क्या तुझे मुझ पर रहम नहीं आता कि बाबा ये पुराना शरीर त्याग कर नया जन्म लें। बाकी लोगों की तरह मैं भी सामान्य जिंदगी व्यतीत करूं। "


जाने क्यों मोना चौधरी फकीर बाबा से निगाहें नहीं मिला सकी। 


"मैं तुम्हें या तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती बाबा।"


"ठीक कहती हो। जब तक तुम मुझे जानोगी नहीं, तब तक मेरा भला नहीं करोगी। क्या मालूम जानने के बाद भी तुम मेरा भला न करो। मैंने पहले ही बोला है कि इंसान की योनि बहुत मतलबी होती है। बिना मतलब के किसी का भला नहीं करती। "फकीर बाबा ने मोना चौधरी की आंखों में झांका-एक बात बता मिन्नो ।"


"क्या?"


“अगर मैं तेरे को, तुम्हारे बीते जन्मों की बात बता दूं। देवा के साथ तुम्हारे झगड़े की वजह जो कि तीन जन्म पहले शुरू हुई थी, बता दूं। मुझे मिले श्राप की वजह बता दूं तो क्या तू देवा से झगड़ा छोड़ देगी?"


"नहीं। " मोना चौधरी के दांत भिंच गए- "देवराज चौहान को हार का मुंह दिखाना मेरा मकसद है। मैं उसके सामने से नहीं हट सकती। इसके अलावा कोई और बात हो तो, कहो बाबा।" 


फकीर बाबा के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान उभरी।


"मैं जानता हूं तेरे जिद्दी स्वभाव को तू कोई नई नहीं है मेरे लिए। अगर तू जिद्दी नहीं होती तो तेरे तीन जन्म पहले झगड़ा ही शुरू नहीं होता। आज सब ठीक होता। मेरे समझाने पर देवा तो मेरी बात मान गया था, लेकिन तू नहीं मानी थी। बहुत समझाया था तेरे को। जैसे आज समझा रहा हूं।"


मोना चौधरी फकीर बाबा को देखती रही।


"ठीक है मिन्नो। इस बार भी तेरी ही जिद सही। तुम और देवा मुझे श्राप से मुक्त नहीं होने दोगे। मैं यूं ही इसी तरह भटकता रहूंगा, तुम दोनों के इस जन्म में भी। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा। हर कदम पर पूरी कोशिश करूंगा कि तुम दोनों में झगड़ा खत्म हो जाए और दोस्ती हो जाए। अपने स्वार्थ की खातिर मैं हर वो काम करूंगा कि तुममें और देवा में झगड़ा ज्यादा न बढ़ पाए।"


"बाबा" मोना चौधरी एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठी-"तुम्हें जो करना है करो। लेकिन देवराज चौहान से मेरी होने वाली टक्कर को कोई नहीं रोक सकता।" 


फकीर बाबा शांत भाव में मुस्कराया।


"होनी को कौन टाल पाया है मिन्नो। जो होना है, वही होता है। मैं श्राप ग्रस्त होकर अपने कर्मों का फल भुगत रहा हूं, और तुम दोनों भी अपने कर्मों की वजह से ही झगड़े पर उतारू हो। कोशिश करना इंसान का फर्ज होता है। मैंने कोशिश की। बाकी गुरुवर के हाथ।" बाबा के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था। 


मैं यहां से जाना चाहती हूं बाबा।


"जाने वाले को कोई नहीं रोक पाया। मैं तुम्हें भी नहीं रोकूंगा। अपने कर्मों का फल तो मुझे भी भुगतना ही है। जा मिन्नो। भगवान तेरे मन से उस मैल को दूर करे जो देवा के प्रति तेरे मन में है। "


"देवराज चौहान के मन में भी मेरे लिए दुश्मनी की मैल है बाबा। " मोना चौधरी तीखे स्वर में बोली।


" है। लेकिन इसके बावजूद भी वो तेरे को तब तक कुछ नहीं कहेगा, जब तक तू उसे कुछ करने को मजबूर नहीं करेगी। देवा की तीन जन्मों पुरानी आदत से मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं। "


मोना चौधरी के दांत भिच गए।


"अगर तू अपनी जिद्द पर काबू पा ले तो शायद बहुत कुछ ठीक हो जाएं। " 


"बहुत हो गया बाबा। मैं आपकी इज्जत करती हूं।" मोना

चौधरी एकाएक उठ खड़ी हुई— "मैं यहां से जाना चाहती हूं। मुझे बताओ, यहां से जाने का रास्ता किधर से है। " 


"तू ऐसी जगह है, जहां कोई रास्ता बाहर नहीं जाता। " फकीर बाबा ने गंभीर स्वर में कहा फिर आंखें बंद करते हुए अपना हाथ ऊपर किया तो— 


अगले ही पल मोना चौधरी का शरीर धुआं बनता हुआ, हवा में गुम होता चला गया।


दो पलों बाद फकीर बाबा ने आंख खोली। अपने बूढ़े, झुर्रियों वाले चेहरे पर गंभीरता समेटे गहरी सोच में डूब गया। फिर उठकर झोंपड़े में प्रवेश करता चला गया।

*****

फोन की घंटी बजी।

बराबर बजती रही। 

मोना चौधरी की आंख खुली तो उसे ऐसा लगा जैसे गहरी नींद से उठी हो। खुद को उसने बैड पर पाया। तभी उसे ध्यान आया कि वो तो फकीर बाबा के पास थी। वो समझ गई कि फकीर बाबा ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके उसे, उसके फ्लैट में पहुंचा दिया।

मोना चौधरी ने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठाया। "हैलो।"

"बेबी।" महाजन का व्याकुलता से भरा स्वर उसके कानों में पड़ा।

हां। " मोना चौधरी के चेहरे पर गंभीरता थी। 

"तुम्हारी वजह से मैं परेशान हुआ पड़ा था। तुम ठीक तो हो।" 

महाजन का स्वर अजीव सा था। 

"हां। " मौना चौधरी के होंठ हिले।

"तुम अचानक, वहां से कहां गुम हो गई थी, धुआं बनकर।" 

"बाद में बात करना महाजन । "

"बाद में, मैं तुम्हारे गायब होने की वजह से पागल हुआ पड़ा हूं, और तुम कह रही हो कि - ।"

"फोन की बैल पर ही मेरी आंख खुली है। तुम्हारी बातों का जवाब बाद में दूंगी। पहले मुझे संभल लेने दो।"

"मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा वेबी। मैं पारसनाथ के यहां से बोल रहा हूं और फोन बंद करके सीधा तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं। "इसके साथ ही महाजन ने लाइन काट दी थी।

सोचों में डूबे मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और बैड से उतरकर, बाथरूम की तरफ बढ़ गई। मस्तिष्क में इतनी उलझनें थीं कि चाहकर भी वो उलझनों को तार-तार करके अलग नहीं कर पा रही थी।

*****