"देवराज चौहान भाई आखिर तुम्हें साठी से इस तरह क्या काम पड़ गया जो उसे ढूंढते फिर रहे... ।”
"साठी के बारे में पता लगा कि वो किधर है।” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
जगमोहन कार को सड़क पर दौड़ाये जा रहा था।
“अभी पता लगाता हूं। कोई पंगा हो गया क्या? तुम तो साठी को जानते हो। एक बार उसके लिये काम किया था तुमने। तब मैं तुम्हारे साथ था उस काम में, अब क्या हो... ।”
आगे बैठे देवराज चौहान ने झटके से हाथ पीछे किया और खुदे के सिर के बाल मुट्ठी में जकड़े।
खुदे छटपटा उठा ।
“छोड़ो भी, ये क्या कर रहे...।"
"साठी...।”
“अभी पता लगाता हूं।”
देवराज चौहान ने उसके सिर के बाल छोड़ दिए।
हरीश खुदे ने चन्द गहरी सांसें लीं। सोच भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
"पता कर, वो कहां है।"
"तारदेव की तरफ ले लो।" खुदे का स्वर गम्भीर हो गया--- "इस वक्त वो तारदेव के ठिकाने पर हो सकता है।"
"तारदेव चलो जगमोहन !"
जगमोहन ने सिर हिला दिया।
"क्या बात है देवराज चौहान ?” हरीश खुदे ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“जुबान बन्द... ।” देवराज चौहान गुर्राया ।
"तुम दोनों इतने गुस्से में क्यों हो। आंखें क्यों लाल हुई पड़ीं...?"
“साले चुप कर जा।” जगमोहन कार चलाता गुर्राया--- "नहीं तो, जान से मार दूंगा।"
खुदे कुछ सहमकर चुप हो गया।
कार तेजी से तारदेव की तरफ दौड़ी जा रही थी।
खुदे ने जेब से मोबाइल निकाला, नम्बर मिलाकर फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाती रही फिर कानों में आवाज पड़ी---
"बोल... ।"
“शंकर भाई...।”
“खुदे बोलता है।” उधर से आवाज कानों में पड़ी ।
"हां मैं... खुदे... ।"
"किधर है तू ? कैसा है तू? काम पे वापस आना मांगता है क्या?"
“सोच रहा हूँ ।" खुदे ने देवराज चौहान पर नज़र मारी--- "साठी भाई किधर होंगे?"
"अभी तो इधर ही है। शाम चार बजे तक इधर ही है, आ जा।"
“आज कुछ काम है। दो-तीन दिन में आऊंगा। काम मिलेगा ना?"
"तेरे को मना नेई है। तू ही छोड़ के गया। आ... वापस आ जा।"
"जल्दी फोन करूंगा।" कहने के साथ ही खुदे ने फोन बन्द करके कहा--- "साठी तारदेव वाले ठिकाने पर ही है। चार बजे तक उधर ही रहेगा। कम-से-कम मुझे ये तो बता देते कि क्या पंगा खड़ा हो गया है?"
"चुप रह...।" देवराज चौहान ने खा जाने वाली निगाहों से खुदे को देखा।
"मैं तुम लोगों को साठी का तारदेव वाला ठिकाना दिखाकर निकल जाऊंगा। मैं पंगे में नेई फंसना चाहता ।"
"तू तब तक हमारे साथ रहेगा, जब तक हम कहें।"
"मैं साथ नहीं रहूंगा। साठी ने मुझे कार में तुम दोनों के साथ देख लिया तो मैं गया। वो मुझे खत्म...।"
"हम भीतर जायेंगे। तू बाहर कार में रहना...।” देवराज चौहान गुर्राया ।
“पर मेरी क्या जरूरत...?"
उसी पल देवराज चौहान का हाथ पीछे आया और खुदे के बालों को मुट्ठी में जकड़ लिया।
“छोड़... छोड़।” खुदे घबरा उठा--- "मैं... मैं बाहर कार में ही रहूंगा।"
देवराज चौहान ने सिर के बाल छोड़ दिए।
"तुम।" खुदे ने लम्बी सांस ली--- "पहले ऐसे नहीं थे देवराज चौहान।”
कार तेजी से दौड़े जा रही थी।
“मैंने पूरबनाथ साठी के कामों को छोड़ दिया है। अब कुछ और करने की सोच रहा हूं।" खुदे बोला।
देवराज चौहान ने पीछे नहीं देखा ।
“छोटे-छोटे कामों में दिल नहीं लगता। तुम्हारी तरह बड़ा हाथ मारना चाहता हूं।”
खुदे की निगाह देवराज चौहान के सिर के पिछले हिस्से पर थी। उसे आशा थी कि देवराज चौहान इस बारे में कोई जवाब देगा, परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। वो पुनः बोला।
"अगर तुम मुझे अपने किसी काम में साथ ले लो तो, मैं तुम्हारा एहसानमन्द रहूंगा।”
खुदे कुछ ना कुछ कहता रहा।
परन्तु उसे, उसकी बात का कोई भी जवाब नहीं मिला।
■■■
पूरबनाथ साठी।
पचास-बावन की उम्र का सख्त किस्म का इन्सान। मुम्बइ अण्डरवर्ल्ड का बड़ा था चार सालों से। जो भी उसके रास्ते में आता, साठी उसे खत्म कर देता था। साठी पुलिस वालों से बनाकर रखता था और उन्हें नोट पहुंचाता रहता था और उसके धन्धे बिना रोक-टोक के चलते रहते थे। परन्तु साठी होशियार रहने वालों में से था। वो जानता था कि इस धन्धे में लोग कभी भी उसकी जान के दुश्मन बन सकते हैं, जो आज उसके साथ हैं। वो बहुत कम दूसरों के सामने आता था, फोन पर ही सब सम्भालता था।
उसके भाई देवेन साठी ने अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते फिर समन्दर के रास्ते ड्रग्स की बहुत बड़ी खेप भेजी थी, जो कि कल रात ही उसे मिली थी। माल गोदाम में पहुंच गया था। आज तारदेव वाले ठिकाने पर साठी, उसी खेप को ऊंचे दामों पर जॉनी डिसूजा को बेचने की चेष्टा में था। उसका भाई देवेन साठी पहले उसके साथ ही काम किया करता था, परन्तु तीन सालों से देवेन साठी ने अफगानिस्तान में ठिकाना बना लिया था, क्योंकि वहां से ड्रग्स मिट्टी के भाव मिलती थी और मुम्बई में तगड़े, ऊंचे दामों पर जाती थी। ड्रग्स के दम पर साठी ब्रदर्स नोटों के ढेर पर जा बैठे थे तीन सालों में। बहुत मोटे नोट बनाते जा रहे थे। इन दिनों देवेन साठी फोन पर अपने भाई को बार-बार ये ही कह रहा था कि उसे बहुत सस्ते में हथियार मिल रहे हैं। मुम्बई में कोई पार्टी देखे, जो हथियार खरीदने में दिलचस्पी रखती हो ।
तारदेव वाले ठिकाने पर ।
आज सतर्कता भरी हलचल थी, क्योंकि पूरब साठी खुद वहां मौजूद था और कई दिनों के बाद साठी इस ठिकाने पर आया था। जॉनी डिसूजा भी वहां था और एक कमरे में बैठे दोनों बातें कर रहे थे। सामने बियर के गिलास भरे पड़े थे। ये सजा-सजाया कमरा था और साठी जब भी आता था, इसी कमरे का इस्तेमाल करता था।
जॉनी डिसूजा ने बियर का घूंट भरा और कह उठा---
“मैंने गोदाम में तुम्हारा माल देख लिया है। वो बढ़िया हैं। कीमत बोलो और काम खत्म करो।”
"माल इस बार खास ही बढ़िया क्वालिटी का है।" साठी मुस्कराया।
"वो तो हर बार होता है।"
"इस बार माल खास है।"
जॉनी डिसूजा ने साठी की आंखों में देखा।
साठी मुस्कराकर कह उठा---
"मैंने सुना था कि पिछली बार तुमने मुझसे सत्तर करोड़ का जो माल खरीदा था, वो तुमने आगे दो सौ करोड़ में बेचा।"
"जिसकी जितनी पहुंच है, वो वैसा ही काम करेगा। विदेशी लोगों से मेरे अच्छे सम्पर्क हैं जो कि तुम्हारे नहीं हैं।"
"माल तुमने देख लिया है। अच्छी कीमत क्या लगाते हो?"
"जो तुम कहो।"
"डेढ़ सौ करोड़....।"
"ये तो ज्यादा है।"
"जिस क्वालिटी का माल गोदाम में पड़ा है, उसे लेकर तुम्हारी विदेशी पार्टियां खुश हो जायेंगी। वैसा माल कहीं भी नहीं मिलने वाला। मेरा भाई देवेन अफगानिस्तान में इसी कारण मौजूद है कि वे बढ़िया क्वालिटी के माल का इन्तजाम कर सके। इस बार माल भी ज्यादा है और डेढ़ सौ करोड़ मैंने कम ही कहे। तुम्हें फौरन हां कर देनी चाहिये।”
"ये ज्यादा हैं, मैं इतने नहीं दे सकता ।"
“बाद में दे देना। तुमसे पैसे लेने की मुझे कोई समस्या नहीं है।" साठी मुस्कराकर बोला।
“मैं सौ करोड़ से ज्यादा नहीं दे सकता।”
“फिर तो मुझे किसी और को ढूंढना पड़ेगा।"
"ये गलत बात है। जब से तुमने ड्रग्स का काम शुरू किया है, तुमसे मैं ही ड्रग्स ले रहा हूं। अब तुम भाव बढ़ाते जा रहे हो ।"
“तुम मेरे से भी कहीं ज्यादा कीमत कमाते हो डिसूजा।”
“ठीक है।” जॉनी डिसूजा ने कहा--- "या तो तुम किसी और पार्टी को ढूंढ लो या मुझे एक सौ दस करोड़ में माल दे दो। परन्तु तुम्हें ऐसी कोई पार्टी नहीं मिलेगी, जो इतना ज्यादा माल एक साथ...।"
'भड़ाक'
तूफान की भांति दरवाजा खुला और शंकर ने भीतर प्रवेश किया।
“साठी साहब! यहां गड़बड़ हो रही है। आप भाग जाइये यहां से।" वो कुछ घबराया-सा लगा।
पूरबनाथ साठी और जॉनी डिसूजा फौरन खड़े हो गये।
"क्या हुआ ?" साठी के माथे पर बल पड़े।
"वो....दे...देवराज चौहान। पागल हुआ पड़ा है साला। साथ में हरामी जगमोहन भी है। दोनों बहुत गुस्से में हैं और रिवाल्वरें हाथों में लिए आपको पूछ रहे हैं। इसी ठिकाने में...।"
तभी बाहर फायर की आवाज हुई।
"निकल जाइये साठी साहब...!" घबराये से शंकर ने आगे बढ़कर, दीवार के साथ लगी खड़ी लकड़ी की अलमारी का पल्ला खोला और पलटकर साठी को देखा--- "ये वक्त रुकने का नहीं है। देवराज चौहान का दिमाग खराब हुआ... ।”
"मैं यहां से निकल जाना चाहता हूं।” जॉनी डिसूजा बेचैन-सा कह उठा।
"हैरानी है कि देवराज चौहान मेरे ठिकाने पर, हथियार थामे मुझे ढूंढता फिर रहा...।"
"जल्दी कीजिये साठी साहब...!" अलमारी का पल्ला खोले खड़े शंकर ने व्याकुल भाव में कहा।
“लेकिन।" साठी ने उलझन भरे स्वर में कहा--- "देवराज चौहान ऐसा क्यों कर रहा...।"
तभी दरवाजे पर किसी के गिरने की आवाज आई। इसी के साथ दरवाज़ा खुल गया और एक आदमी लुढ़कता हुआ भीतर आ गिरा। उसी पल दरवाजे पर देवराज चौहान दिखा। हाथ में रिवाल्वर थी।
पीछे जगमोहन भी आ गया था।
शंकर ने उसी पल अलमारी को छोड़ा और देवराज चौहान की तरफ दौड़ लगा दी।
"निकल जाइये साठी साहब!" इसके साथ ही उसने दरवाज़े पर खड़े देवराज चौहान पर छलांग लगा दी।
साठी हक्का-बक्का-सा खड़ा था।
“यहां से निकलने का कोई चोर रास्ता है?" जॉनी डिसूजा जल्दी से साठी का हाथ हिलाकर बोला।
तभी शंकर दरवाजे पर खड़े देवराज चौहान से जा टकराया।
ऐसा होते ही देवराज चौहान पीछे खड़े जगमोहन से टकराया।
दोनों पीछे को लुढ़कते चले गये।
शंकर नीचे जा गिरा, परन्तु फुर्ती से उठा और किसी तरह दरवाजा बन्द करके सिटकनी चढ़ा दी। कमरे में सन्नाटा छा गया था। बाहर से आवाजें उभर रही थीं।
शंकर उछलकर खड़ा हो गया।
"आ शंकर! तू भी आ... ।" कहते हुए साठी अलमारी की तरफ बढ़ गया।
जॉनी डिसूजा उसके साथ हो गया।
वो अलमारी खुफिया रास्ता था। पल्ला खोलते ही सामने आगे बढ़ने को अन्धेरे से भरा रास्ता दिखाई दे रहा था। वो तीनों एक-एक करके उस रास्ते में प्रवेश कर गये। शंकर ने अलमारी का पल्ला भीतर से बन्द कर दिया था कि तभी जॉनी डिसूजा ने पूछा।
"ये रास्ता कहां निकलता है?"
“इमारत के पीछे के मकान में। वो भी अपना है।" पूरबनाथ साठी ने परेशान स्वर में कहा--- “शंकर।"
"जी...।"
"बात क्या है। देवराज चौहान से तो हमारे अच्छे सम्बन्ध हैं। साल भर पहले उसने हमारा एक काम भी किया था। तब उसके काम का पैसा दे दिया था ना?"
“पूरे तीन करोड़ दिया था। मैंने ही अपने हाथों से गिना था।" शंकर ने कहा।
उस अन्धेरे से भरे रास्ते पर वे तीनों धीरे-धीरे आगे बढ़ते जा रहे थे।
"तो अब देवराज चौहान मेरे को क्यों मारना चाहता है?"
“आपने कुछ किया हो ?"
"नहीं। मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया, जिससे कि देवराज चौहान का वास्ता हो। वो डकैती करता है और मेरा काम दूसरा है। हम दोनों के रास्ते अलग-अलग हैं। फिर वो क्यों...?"
“उसके किसी साथी को खत्म करवाया हो ?”
"ये बात भी नहीं है। देवराज चौहान ने आते ही तुमसे क्या कहा था?"
"मैं तो बाद में वहां पहुंचा साठी साहब! वो हाथों में रिवाल्वरें लिए आदमियों को धमकाता पूछ रहा था कि आप कहां पर हैं। सब आदमी हक्के-बक्के थे कि ये क्या हो रहा है। मैं वहां ना पहुंचता तो उसी वक्त गोलियां चल जानी थीं। अपने आदमियों की जेबों में भी हथियार थे।” शंकर आगे बढ़ता कहे जा रहा था--- "मेरे को देखते ही देवराज चौहान मेरे पास आ गया और मेरी छाती से रिवाल्वर लगाकर आपके बारे में पूछने लगा। मैंने कहा कि आप यहां नहीं हैं, परन्तु वो जैसे जानता था कि आप यहाँ हैं। तभी जगमोहन की दो आदमियों के साथ तू-तड़ाग हो गई और मैं मौका पाकर सीधा भागा-भागा आपके पास आ गया।"
"ये गम्भीर बात है।"
"साठी।" जॉनी डिसूजा नाराजगी से बोला--- “कोई बाहरी आदमी तुम्हारे ठिकाने पर कैसे घुस आया?"
"तुम चुप रहो।" साठी ने सख्त स्वर में कहा।
"साठी साहब!” शंकर बोला--- “आपने देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे नहीं देखे। मैंने देखे हैं। आंखें लाल हैं दोनों की। चेहरों पर गुस्सा है। वे किसी की नहीं सुन रहे सिर्फ अपनी बात कह रहे हैं और जवाब चाहते हैं। बिल्कुल पागलों की तरह। उनके चेहरों पर किसी तरह का पागलपन सवार है।"
“पर बात क्या है। मुझे समझ क्यों नहीं आ रहा। देवराज चौहान कोई बच्चा नहीं है। वो जानता है कि मुझसे पंगा लेने का क्या अन्जाम हो सकता है, जरूर कोई बात है, देवराज चौहान तो...।"
"क्या पता अब तक अपने आदमियों ने उन्हें शूट कर दिया हो।"
पूरबनाथ साठी की आवाज नहीं आई।
उस अन्धेरे में उनके कदमों की आवाजें गूंज रही थीं वहां ।
“ये कितना लम्बा रास्ता है?" जॉनी डिसूजा कह उठा।
“बस पहुंच गये डिसूजा साहब!” शंकर बोला।
"वे लोग जो भी हैं, इस रास्ते से हमारे पीछे भी आ सकते हैं।"
“चिन्ता मत करो डिसूजा!” साठी बोला--- “हम सुरक्षित हो चुके हैं।”
तभी वो रास्ता खत्म हो गया। सामने बन्द दरवाजा था।
साठी ने जोरों से वो दरवाज़ा थपथपाया।
साठी के पीछे जॉनी डिसूजा फिर शंकर था।
बीस सैकिण्ड में ही दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाली औरत थी। भीतर से बच्चों के लड़ने बोलने की आवाजें आ रही थीं। वो तीनों दरवाज़े से भीतर प्रवेश कर गये। ये मध्यम वर्गीय मकान था।
"इस रास्ते से हमारे पीछे कोई आये तो उसे भी इसी तरह दरवाजा खोल देना। हमें पूछे तो कहना चले गये।" साठी ने उस औरत से कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया।
जॉनी डिसूजा और शंकर उसके पीछे थे।
औरत ने उसी पल वो दरवाजा बन्द कर दिया।
वे तीनों उस मकान से निकलकर पन्द्रह फीट की गली में पहुंचे। वहां सब कुछ सामान्य था। लोग आ-जा रहे थे। साठी तेज-तेज कदमों से गली के बाहर की तरफ बढ़ गया।
"मैंने तो सोचा था यहां कोई गाड़ी होगी।" जॉनी डिसूजा बोला।
"गाड़ी के पास ही जा रहे हैं। पन्द्रह कदम और चलना पड़ेगा।" शंकर ने कहा।
वे गली से बाहर निकले तो इधर खुली जगह थी। सामने ही एक तरफ टाटा सफारी खड़ी थी।
“डिसूजा!” पूरबनाथ साठी सफारी की तरफ बढ़ता कह उठा--- "उस तरफ सड़क है, तू निकल जा... ।”
"लेकिन वो ड्रग्स...।”
“बाद में बात करेंगे। फोन करना मुझे। डेढ़ सौ करोड़ से कम में बात नहीं बनेगी। माल महंगा आया है।"
“सवा सौ करोड़ में बात तय कर लो। ऊपर एक पैसा भी नहीं ।" जॉनी डिसूजा ने जल्दी से कहा।
शंकर ने सफारी खोली और ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। स्टार्ट किया उसे।
साठी दरवाज़ा खोलकर भीतर बैठता कह उठा---
“फोन करना मुझे। बात करेंगे।”
शंकर ने गाड़ी बैक की और सड़क की तरफ लेता चला गया।
पूरबनाथ साठी ने बेहद शान्त ढंग से सिगरेट सुलगाकर कश लिया। चेहरे पर गम्भीरता थी।
"देवराज चौहान ने बहुत गलत किया।" वो कह उठा।
“आज तो वो पागल लग रहा था। एक बार तो लगा जैसे वो नशे में है। पर वो नशे में नहीं था। वो...।"
"मेरे ठिकाने पर आकर, रिवाल्वर थामे मेरे को पूछता फिर रहा है। बहुत ही गलत बात है।" साठी का स्वर सख्त हो गया।
"मर गया होगा अब तो ।” गाड़ी ड्राइव करता शंकर, मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाता कह उठा--- "अभी पता करता हूं कि हमारे आने के बाद वहां क्या हुआ। हिम्मत तो देखिये देवराज चौहान की कि...।"
"अगर वो नहीं मरा तो जल्दी मरेगा।" साठी के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।
उधर बेल जा रही थी, लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुई।
शंकर ने वो नम्बर काटकर दूसरा नम्बर मिलाया।
"हैलो।" उधर से पीड़ा भरी आवाज उभरी।
"घोरपड़े...।” शंकर के होंठों से निकला--- “वो देवराज चौहान... ।”
"मुझे गोली लगी है। चार लाशें मेरे पास पड़ी हैं और... ।”
"देवराज चौहान मर गया?” शंकर ने खतरनाक स्वर में पूछा ।
“नहीं। वो और उसका साथी तुम लोगों के पीछे गये हैं। उस जैसा पागल इन्सान मैंने आज तक नहीं देखा। बात बाद में करता है और गोली पहले चलाता है, वो तो...।"
शंकर ने फोन बन्द करके साठी से कहा--
“घोरपड़े घायल है। हमारे चार साथियों के मारे जाने की खबर दी है उसने और देवराज चौहान, जगमोहन उसी रास्ते से हमारे पीछे गये थे। कमीना बच निकला...।"
“मेरे को अगली लाल बत्ती के बाद उतार देना।" साठी ने सख्त स्वर में कहा--- “और पता कर कि मामला क्या है। क्यों देवराज चौहान मेरे पीछे पड़ा है। बाकी मैं देखता हूं।”
“लेकिन आपका इस तरह गाड़ी छोड़ना ठीक होगा क्या?" शंकर बोला।
"मेरी चिन्ता छोड़, जो काम तुझे कहा है, वो करके मुझे फोन पर बताना ।”
■■■
धधक रहा था देवराज चौहान का चेहरा।
जगमोहन का हाल जुदा नहीं था।
दोनों उसी रास्ते से उस मकान के बाहर निकले थे। दरवाजा खोलने वाली औरत से पूछा तो उसने बताया वो इधर से ही गये हैं। गली खाली थी, मतलब कि वहां पूरबनाथ साठी नहीं दिखा।
दोनों गली के बाहरी तरफ बढ़ गये। रिवाल्वरें जेब में पहुंच चुकी थीं।
“बच गया हरामजादा!” देवराज चौहान गुर्राया ।
"उसके पास गुप्त रास्ता ना होता तो बचता नहीं।" जगमोहन ने दांत किटकिटाकर कहा।
"वो जहां भी होगा, हम उसे ढूंढकर बुरी मौत देंगे...।" देवराज चौहान की आंखें अंगारों की तरह दहक रही थीं।
दोनों गली पार करके चक्कर काटकर वहां खड़ी कार तक पहुंचे।
हरीश खुदे बेचैनी से भरा कार की पीछे वाली सीट पर बैठा था। उन्हें देखते ही बोला---
"मैंने भीतर गोलियां चलने की आवाज सुनी। वो तुम लोगों ने चलाई थीं क्या?"
जगमोहन ने ड्राइविंग सीट सम्भाल ली।
देवराज चौहान के बगल में बैठते ही कार आगे बढ़ा दी।
“मैं तो सोच रहा था कि तुम दोनों गये। पर जिन्दा बच आये हो। साठी भीतर था क्या?"
"हां...।" देवराज चौहान ने भिंचे होंठों से कहा।
“उसके साथ क्या किया?” खुदे बहुत बेचैन था-- "मार दिया उसे?"
"भाग गया।"
“भाग गया? म...मैंने तो उसे बाहर निकलते नहीं देखा...।”
"उसने ठिकाने पर गुप्त रास्ता बना रखा था। वहीं से...।"
"समझ गया। समझ गया।” हरीश खुदे ने पहलू बदला-- "वो गोलियां किसने चलाई...।"
“हमने वहां छः सात लोगों को मारा है।" जगमोहन गुर्राया--- "साठी भाग गया, वरना वो भी मरता। अब जुबान बन्द रख वरना कार रोक कर तेरा मुंह तोड़ दूंगा।"
हरीश खुदे गहरी सांस लेकर, थोड़ा पीछे हटकर बैठ गया।
"तो तुम लोग पूरबनाथ साठी की हत्या करना चाहते हो ?"
देवराज चौहान ने गर्दन मोड़ी और लाल आंखों से खुदे को देखकर कहा---
"साठी यहां से भाग निकला है। अब वो कहां होगा?"
"म....मुझे क्या पता...।"
दांत भींचे देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकाली और हाथ बढ़ाकर खुदे की तरफ कर दी।
खुदे का रंग फक्क पड़ा।
"ये... ये क्या कर रहे हो?"
"तूने सालों साठी के लिए काम किया है। तेरे से बेहतर कौन बता सकता है, साठी के बारे में...।"
"काम काम किया है उसके लिए, उसकी पत्नी बनकर तो नहीं रहा।" खुदे के होंठों से निकला।
देवराज चौहान खतरनाक अन्दाज में थोड़ा और आगे झुका और रिवाल्वर उसकी छाती से लगा दी।
"इसे पीछे करो।" खुदे घबराये स्वर में कह उठा--- "चल गई तो मैं मारा जाऊंगा।"
"साठी?" देवराज चौहान गुर्राया।
"सो....सोचने दो। इसे पीछे करो...।"
देवराज चौहान ने रिवाल्वर वाला हाथ पीछे किया और गुर्राकर बोला---
"तू तब तक हमारे साथ रहेगा, जब तक साठी नहीं मारा जाता।"
"ये... ये क्या मतलब हुआ। तुम लोगों का मामला है, मुझे क्यों बीच में खींच रहे...।"
तभी जगमोहन ने कार के ब्रेक लगा दिए। होंठों से गुर्राहट निकली।
कार तीव्र झटके के साथ सड़क के बीचों-बीच रुक गई।
दरवाजा खोलकर जगमोहन बाहर निकला। सुलग रहा था उसका चेहरा। आंखें लाल ही होकर चमक रही थीं। पीछे आते वाहन एकाएक रुकने लगे थे। हार्न बजने लगे थे।
जगमोहन ने पीछे का दरवाजा खोला और भीतर बैठे खुदे पर झपट पड़ा।
"क्या हो गया है तुम्हें...।" खुदे चीखा।
जगमोहन के घूंसे खुदे पर पड़ने लगे थे।
खुदे हड़बड़ाकर या दर्द में चीख रहा था।
“तूने सुना नहीं कि जब तक साठी नहीं मरता, तू हमारे साथ रहेगा। उसे खत्म करना है हमने। तू हमें साठी तक पहुंचने का रास्ता बताता रहेगा। हमसे छुट्टी चाहता है तो जल्दी से हमें साठी तक पहुंचा।" चीख कर जगमोहन कहे जा रहा था--- "अब फालतू बात बोली तो गोली मारूंगा तुझे समझा हरामजादे।"
इसके साथ ही जगमोहन पीछे हुआ और दरवाजा बन्द कर दिया। पीछे काफी ज्यादा वाहन रुक चुके थे और हार्न बजने का शोर सुनाई दे रहा था। जगमोहन स्टेयरिंग सीट पर बैठा और कार आगे बढ़ा दी।
हरीश खुदे पीछे वाली सीट पर पसरा पड़ा था। शरीर के कई हिस्सों से दर्द उठ रहा था और वो ये जानने की चेष्टा कर रहा था कि जहां-जहां घूंसे पड़े थे, वहां का क्या हाल है।
वो समझ चुका था कि बुरी तरह खामखा फंस गया है।
हरीश खुदे ने गहरी सांस ली और नाराज़गी भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा जो कि उसे ही खा जाने वाली निगाहों से घूर रहा था।
"बता। पूरब नाथ साठी अब कहां मिलेगा?” देवराज चौहान गुर्राया ।
"मैं कोई जादूगर हूं जो बता दूंगा कि...।"
देवराज चौहान झटके के साथ आगे हुआ और जोरदार चांटा खुदे के गाल पर मारा।
"मेरी मान तो साले को गोली मार दे।” जगमोहन ने दांत पीसकर कहा--- "बहुत उछल रहा है साला।"
देवराज चौहान की आंखों की सुर्खी बढ़ गई थी।
खुदे तो जैसे शिकंजे में फंसा छटपटा रहा था।
"क्यों मेरे पीछे पड़े हो।” खुदे तड़पकर कह उठा--- “कैसा बुरा व्यवहार कर रहे हो मेरे साथ ?"
देवराज चौहान ने खुदे की तरफ रिवाल्वर की और वहशी में स्वर में कह उठा---
"साठी किधर जायेगा अब ?"
देवराज चौहान के चेहरे के भाव देखकर हरीश खुदे मन-ही-मन कांप उठा।
“सो... सोचने दो।”
“अभी तक तूने सोचा नहीं कि...।"
“सोचने का मौका तो दो।” खुदे जल्दी से बोला--- “अ... अभी बताता हूँ।”
"गोली मार दे इसे। ये हमारे काम का नहीं...।" जगमोहन ने कहना चाहा।
“म... मैं बहुत काम का हूं। तुम लोगों को साठी तक ले जाऊंगा।” मौत के डर से खुदे जल्दी से बोला--- “सोचकर अभी बताता हूं कि अब साठी कहां पर गया हो सकता है।”
"बता।" देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
खुदे सीधे होकर बैठा। चेहरे पर पौने पांच बज रहे थे। अब वो कुछ सतर्क और डरा-डरा-सा भी दिख रहा था। वो समझ गया था कि देवराज चौहान और जगमोहन को साठी तक ना पहुंचाया गया तो वो नहीं बचने वाला। दोनों पर मौत सवार थी। इनकी लाल आंखों से अब उसे डर लगने लगा था।
“सि... सिगरेट होगी तुम्हारे पास। सिर्फ एक सिगरेट ।” खुदे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा।
देवराज चौहान ने पैकिट और लाइटर निकालकर उसके ऊपर उछाल दिया ।
खुदे ने सिगरेट सुलगाई और पैकिट लाइटर देवराज चौहान को थमा दिया।
"साठी।"
“मुझे एक मिनट सोचने का मौका दो।” कश लेता खुदे परेशान स्वर में कह उठा।
"वो... वो कौन है।" जगमोहन के होठों से निकला--- "सा-साठी लगता है।"
देवराज चौहान और खुदे की निगाह भी उस तरफ घूमी ।
फुटपाथ पर लापरवाही से भरी चाल से साठी ही था जो आगे बढ़ा जा रहा था।
"साठी इस तरह खुले में नहीं घूम सकता।” देवराज चौहान के होठों से गुर्राहट निकली।
“हे भगवान!” हरीश खुदे घबराया-सा कह उठा--- "वो पूरबनाथ साठी ही है। इस तरह सड़क पर? मुझे विश्वास नहीं आता।"
जगमोहन ने उसी पल सड़क किनारे कार रोकी।
कार रुकने की देर थी कि देवराज चौहान ने दरवाजा खोला और कार से निकलकर साठी की तरफ भागा।
“तू जाना मत।" जगमोहन कार का दरवाजा खोलता कह उठा--- "यहीं रहना ।"
“अब मेरी क्या जरूरत...।"
“साले तू कार में ही दिखे जब हम वापस आयें।” जगमोहन ने दरिन्दगी से कहा और दरवाजा बन्द करके, वो भी साठी की तरफ दौड़ पड़ा।
“कहां फंस गया मैं।” खुदे बड़बड़ाया और नजरें बाहर उन लोगों पर लगा दीं।
■■■
शंकर जब सफारी से उसे उतारकर गया तो तब से साठी पैदल ही, आम लोगों की तरह फुटपाथ पर आगे बढ़ता रहा। उसे पूरा यकीन था कि उसे कोई नहीं पहचान सकेगा। उसे याद नहीं आया कि इस तरह पहले कभी खुले में, कब गया था वो। वरना हमेशा ही उसके साथ पांच-सात लोग होते। वो सुरक्षा में रहना पसन्द करता था। दुश्मन बहुत थे, कभी भी कोई भी उस पर गोलियां चला सकता था।
परन्तु इस वक्त उसके दिमाग में देवराज चौहान ही घूम रहा था।
साल भर पहले देवराज चौहान ने उसके लिए एक काम किया था। सब कुछ ठीक-ठाक निपट गया था और उसके बाद देवराज चौहान से कोई मतलब नहीं पड़ा। अब अचानक ही देवराज चौहान सामने आया और उसके पीछे पड़ गया, जबकि ऐसी कोई बात नहीं हुई थी। उसका और देवराज चौहान का कोई वास्ता नहीं था।
बात क्या है?
देवराज चौहान कोई बच्चा तो है नहीं कि इतनी बड़ी हरकत खामखाह ही कर देगा।
कुछ तो है जो उसकी समझ में नहीं आ रहा।
यूँ उसे इस बारे में कोई चिन्ता नहीं थी कि देवराज चौहान पीछे पड़ गया है। देवराज चौहान को रास्ते से हटाना उसके लिए मामूली काम था। परन्तु जब तक वो रास्ते से हट नहीं जाता, तब तक के लिये परेशानी तो थी ही। साठी ये भी जान लेना चाहता था कि आखिर मामला क्या है। परन्तु देवराज चौहान से बात किए बिना ये बात पता नहीं लगने वाली थी।
फुटपाथ पर चलते-चलते साठी ने मोबाइल निकाला और शंकर से बात की।
"जी साठी साहब...!”
“ये भी पता करना कि मामला क्या है। देवराज चौहान मेरे पीछे क्यों पड़ गया है ?" साठी बोला--- “जबकि हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं हुई कि उसे ये सब करना पड़े।"
“किसी ने उसे आपकी हत्या की सुपारी दी...।"
"ये सम्भव नहीं। हत्या का ठेका लेने वाला इस तरह हाथी की तरह अपने शिकार की तलाश में नहीं दौड़ता।" साठी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "बात कुछ और ही है। अपने आदमियों को पूरे मुम्बई में फैला दो। देवराज चौहान दिखे तो ख़त्म कर दें उसे।"
"जी। पर अभी-अभी एक बात मेरे दिमाग में आई।" उधर से शंकर की आवाज कानों में पड़ी।
“क्या?"
"देवराज चौहान के ठिकाने पर पहुंचने के आधा घण्टा पहले हरीश खुदे का फोन आया...।"
"कौन हरीश खुदे ?"
"हमारे लिए आठ साल काम किया खुदे ने। जब हमने साल भर पहले देवराज चौहान से अपना काम लिया तो हमारी तरफ से हरीश खुदे ही देवराज चौहान के साथ था काम पर...।"
"वो...समझा...तो क्या बोला तू?"
“देवराज चौहान के आने से पहले हरीश खुदे का फोन आया। मैंने समझा वो काम पर वापस आने का मन बना रहा है। उसने आपके बारे में पूछा कि आप कहां हैं, मैंने बताया आप ठिकाने पर ही हैं तो उसने फिर आने को कहकर फोन बन्द कर दिया।”
“तेरा मतलब कि हरीश खुदे, इस वक्त देवराज चौहान के साथ है?"
“लगता तो ऐसा ही है। खुदे साल भर पहले देवराज चौहान के साथ रहा था हमारी तरफ से। अब अचानक ही खुदे का फोन आना और उसके बाद देवराज चौहान का वहां पहुंच जाना... ।”
“खुदे को टटोल। जहां वो रहता है, वहां पता कर।"
“जी।”
पूरबनाथ साठी ने फोन बन्द करके जेब में रखा और फुटपाथ पर आगे बढ़ता रहा।
अभी सौ कदम ही आगे गया होगा कि पीछे से कदमों की आहट पाकर फौरन घूमा ।
मात्र पांच कदमों की दूरी पर देवराज चौहान को पाया, जो कि उस पर झपटने जा रहा था।
साठी की आंखें हैरानी से फैल गई।
बचने का कोई रास्ता नहीं था।
देवराज चौहान उससे टकराने जा रहा था।
एकाएक साठी नीचे झुका और सिर की जोरदार टक्कर देवराज चौहान के पेट पर मार दी। चूंकि देवराज चौहान तेजी से उस पर झपट रहा था इसलिए सिर की टक्कर का प्रभाव डबल वेग से हुआ।
लगा जैसे सिर पेट में जा घुसा हो।
देवराज चौहान के होंठों से पीड़ा भरी आवाज निकली और वो छटपटाते हुए उछलकर चार कदमों की दूरी पर गिरा और पेट पकड़े लोट-पोट होता कराहने लगा।
तब तक जगमोहन को देख लिया था साठी ने।
जगमोहन के हाथ में रिवाल्वर थी और उस पर गोली चलाने के लिए अपना हाथ सीधा कर रहा था। जगमोहन की आंखों में लाली देखकर साठी सतर्क हो उठा था। इससे पहले कि जगमोहन हाथ सीधा कर पाता साठी गोली की तरह दौड़ा और जगमोहन से जा टकराया।
जगमोहन के पांव उखड़ गये। वो पीठ के बल पीछे जा गिरा। सिर का पिछला हिस्सा जमीन से टकराया तो मस्तिष्क झनझना उठा। रिवाल्वर हाथ से छूटकर इधर-उधर जा गिरी थी।
साठी ने नहीं देखा कि जगमोहन को क्या हुआ। उसने फुटपाथ से छलांग लगाई और सड़क पर आ गया। वहां पर उनकी ही कार खड़ी थी। जिसके भीतर खुदे बैठा था। साठी ने फुर्ती से कार का दरवाजा खोला तो चाबी कार में लगी पाकर जल्दी से भीतर बैठा और कार स्टार्ट की ।
तभी पिछला दरवाजा खुलते पाकर उसने चौंककर पीछे देखा।
खुदे जल्दी से दरवाज़ा खोले बाहर निकल रहा था।
इससे पहले भीतर किसी के बैठे होने का एहसास नहीं हुआ था साठी को।
खुदे का चेहरा देखते ही साठी की आंखें सिकुड़ीं। गियर डालकर कार को आगे बढ़ाता बोला---
"तू हरीश खुदे है ना, मैंने तेरे को पहचान लिया है।"
इसके साथ ही कार आगे दौड़ पड़ी।
परन्तु तब तक खुदे कार से बाहर निकल चुका था।
खुदे हक्का-बक्का रह गया था। साठी के आखिरी शब्दों को उसने सुन लिया था। साठी ने उसे पहचान लिया था। अब वो बचने वाला नहीं। खुदे की हालत पतली होने लगी।
देवराज चौहान अपनी जगह से खड़ा हो चुका था। उसका एक हाथ पेट पर था। लाल सुर्ख, धधकते चेहरे पर पीड़ा के भाव नज़र आ रहे थे। जगमोहन ठीक-ठाक हाल में था और दूर गिरी अपनी रिवाल्वर उठा चुका था। तब तक वहां लोग इकट्ठे होना शुरू हो गये थे। किसी को नहीं पता लगा कि हुआ क्या था।
"वो हमारी कार ले गया। भाग गया।" जगमोहन खुदे पर गुर्राया--- “तूने उसे रोका तक नहीं ।"
"तुम दोनों ने मरवा दिया मुझे...।" खुदे का चेहरा फक्क था।
"क्यों?"
"उसने मुझे पहचान लिया है। वो मेरा नाम भी जानता है।"
"सारी फिक्र छोड़ दे।" जगमोहन मौत भरे स्वर में कह उठा--- “वो जिन्दा बचने वाला नहीं।"
“उसका तो पता नहीं, पर मैं नहीं बचूंगा। तुम लोगों ने उसे खत्म करने का बेहतरीन मौका खो दिया।”
जगमोहन ने वहां इकट्ठे हो रहे लोगों पर निगाह मारते गुस्से से कहा---
"यहां तमाशा हो रहा है क्या? भागो यहां से।" कहने के साथ ही जगमोहन ने हवाई फायर किया।
लोग उसी पल खिसकने लगे।
तभी देवराज चौहान दांत किटकिटाकर कह उठा---
“यहां से चलो। साठी को फौरन ढूंढना है हमने।”
■■■
जगमोहन कार को तेजी से दौड़ा रहा था। चैम्बूर से निकल रहे थे वो और वाशी तक जाना था। ये कार उन्होंने एक पार्किंग से उठाई थी। हरीश खुदे ही उन्हें वाशी ले जा रहा था।
“वहां पर पूरबनाथ साठी मिलेगा ?" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में पूछा।
"शायद मिल जाये।” खुदे ने व्याकुल स्वर में कहा।
“तो यकीन नहीं है तुम्हें?"
“यकीन कहां से आयेगा।" खुदे ने झल्लाकर कहा--- “कोशिश तो कर रहा... ।”
देवराज चौहान का हाथ उसके सिर पर पड़ा।
खुदे फौरन पीछे हो गया।
"तुम इस तरह मुझ पर हाथ उठाते रहे तो मैं सब कुछ भूल जाऊंगा कि साठी कहां-कहां आता-जाता है।" खुदे बोला।
"मैं तुम्हें याद दिला दूंगा।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
खुदे अपने होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।
"वाशी में साठी अक्सर जाता था?" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में पूछा।
"जाता ही है। वहां उस औरत का एक बच्चा है। उनका बाप साठी ही है। दो बार मैं उसकी गाड़ी चलाकर उसे वाशी ले गया था। जब वो वाशी जाता है तो साथ में गनमैनों को नहीं रखता। हो सकता है अब भी वो भागकर उधर ही गया हो। ऐसा मेरा ख्याल है। वैसे उसके बीसियों ठिकाने हैं, वो कहीं भी जा सकता है।"
“खुद को खतरे में पाकर वो कहां जायेगा ?"
"मैं नहीं जानता ।"
“सोचो...।"
“तुम समझते क्यों नहीं।” खुदे थोड़ा आगे हुआ--- "मैं उसका आदमी था। उसके लिए काम करता था। मैं साठी के ज्यादा करीब नहीं था कि मुझे उसके ठिकानों के बारे में ज्यादा पता हो।"
देवराज चौहान का हाथ हिला और खुदे के गाल पर पड़ा।
खुदे अपने चेहरे को रगड़ता पीछे हुआ और बड़बड़ा उठा।
“किस मुसीबत में फंस गया मैं...।”
“अगर तुमने हमें साठी तक नहीं पहुंचाया तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।” देवराज चौहान गुर्राया ।
"क्यों नहीं पहुंचाऊंगा। अब तो मेरी भी जरूरत बन गई है कि तुम साठी को खत्म कर दो। उसने मुझे पहचान लिया है कि तुम दोनों के साथ मैं हूं। वो मुझे जिन्दा नहीं छोड़ने वाला। तुम दोनों की वजह से मैं मुसीबत में पड़ गया हूं। अच्छा-भला अपने घर में बैठा था कि तुम लोगों ने मुझे नई मुसीबत में डाल दिया। साठी से पंगा करवा दिया मेरा।”
“हमें तुमसे नहीं अपने काम से मतलब है।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा ।
“ये तुम दोनों की आंखें क्यों लाल हुई पड़ी हैं?” खुदे ने पूछा।
"लाल हैं?"
"बहुत लाल। मैं तो... ।"
"तू सिर्फ साठी के बारे में सोच कि वो कहां पर मिल सकता है।"
"कम-से-कम अब तो बता दो कि साठी से क्या पंगा हो जो उसके पीछे...।”
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा।
परन्तु इस बार खुदे खुद को बचा गया।
“समझ में नहीं आता कि तुम हाथ क्यों उठाते हो मुझ पर। आराम से बात क्यों नहीं करते।"
"मैं बताऊं।" जगमोहन कार चलाता गुर्राया--- “साले कार रोककर अभी ठोकना शुरू कर दूंगा।"
हरीश खुदे होंठ भींचकर रह गया ।
कार तेजी से दौड़ी जा रही थी।
कुछ देर कार में चुप्पी रही, फिर खुदे कह उठा---
“अब कोई डकैती करने वाले हो क्या?"
कोई जवाब नहीं मिला।
"मैं ज्यादा पैसा कमाना चाहता हूं। मुझे भी अपने साथ डकैती में ले लो... ।”
देवराज चौहान का हाथ घूमा और खुदे के गाल पर पड़ा।
खुदे तड़पकर पीछे हुआ।
“पूरबनाथ साठी के अलावा और किसी बारे में बात मत कर।" देवराज चौहान कहर भरे स्वर में बोला।
खुदे नाराज़गी भरे अन्दाज में अपना गाल मसलता रहा।
तभी खुदे का मोबाइल बजने लगा।
"बात कर लूं?" खुदे ने आगे की सीट पर बैठे देवराज चौहान से पूछा ।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"हैलो।" खुदे ने बात की।
दूसरी तरफ उसकी पत्नी टुन्नी थी।
“कब आओगे ?" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी।
“बड़े प्यार से पूछ रही है।" खुदे जले-भुने स्वर में कह उठा ।
"थोड़ी सब्जी मंगानी थी।"
"सब्जी ?” खुदे और भी सड़ गया।
“दो-तीन सब्जियां लेते आना और हर बार की तरह इस बार भी करेले मत ले आना। रोज-रोज करेले भी अच्छे नहीं लगते। मटर जरूर लाना और पनीर भी। तुम्हें मटर-पनीर खिलाऊंगी।"
"मटर-पनीर ?” खुदे कड़वे स्वर में बोला--- “आज ऐसा क्या हो गया जो तू मटर-पनीर... ।”
"वो सुबह देवराज चौहान ने तुम्हारी ठुकाई की थी ना?"
"तो इस खुशी में तू मुझे मटर पनीर...।"
"तरस आ गया तुम पर... इसलिए... ।”
"फिर तो लगातार दो महीने तक तेरे को मटर पनीर बनाने पड़ेंगे।”
“ऐसा क्यों?"
"अभी तक मेरी ठुकाई हो रही है और मेरी घर वापसी की कोई गारण्टी नहीं है।"
"कोई गारण्टी नहीं है का क्या मतलब, किसी और से तो आंख नहीं लड़ गई ?”
“उल्लू की पट्ठी अभी तक देवराज चौहान से मेरी आंख लड़ी हुई है...।"
"समझी। समझ गई...।"
“ये पागल हुआ पड़ा है। बड़ी बात नहीं मुझे मार भी दे।"
“अब जैसे काम करोगे, वैसा ही फल मिलेगा।" उधर से टुन्नी ने कहा।
“अभी तो तू मुझे मटर-पनीर खिलाने पर लगी थी और अब... ।"
“मतलब कि तुम सब्जी नहीं ला सकते।”
“साली समझती नहीं है।” खुदे ने गुस्से से कहा--- “यहां मेरे को डण्डा चढ़ा रखा है।"
"डण्डा चढ़ा रखा है, वो कहां चढ़ाते हैं ? "
"नहीं जानती ?"
“नहीं, मुझे नहीं...।”
"तेरे को तो एक ही काम आता है। ये नहीं पता कि आदमी को जब डण्डा चढ़ता है तो उसका मतलब क्या होता है। जरा भी अकल नहीं है कि डण्डा...।"
“मुझे नहीं पता तो तुम बता दो।” टुन्नी की आवाज आई--- " कहां चढ़ता है डण्डा ?"
हरीश खुदे ने फोन बन्द किया और बड़बड़ा उठा।
“औरतों को तो सिर्फ बोलना आता है। अब डण्डा कहां चढ़ता है, ये भी मुझे बताना पड़ेगा।"
■■■
वाशी की शानदार सोसायटी में वो फ्लैट था जहां हरीश खुदे, देवराज चौहान और जगमोहन को लेकर पहुंचा। तीसरी मंजिल पर वो फ्लैट था। खुदे ने ही बेल बजाई थी।
फौरन ही दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाला पन्द्रह बरस का लड़का था। उसने स्कूल की यूनीफार्म पहन रखी थी। शायद वो कुछ पहले ही स्कूल से लौटा था।
तीनों उसे धकेलते हुए भीतर प्रवेश कर गये।
खुदे ने भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया।
देवराज चौहान और जगमोहन के हाथ में रिवाल्वरें दिखने लगीं।
"तेरा बाप कहां है?" देवराज चौहान गुर्राया ।
लड़के के होंठों से कोई बोल ना फूटा।
“इसे सम्भाल ।” देवराज चौहान ने लड़के को खुदे की तरफ धकेला और खुद फ्लैट के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़े।
जगमोहन पहले ही सामने के दरवाज़े की तरफ बढ़ चुका था।
तभी दूसरे दरवाजे से एक चालीस साल की औरत निकलकर सामने आई। इन लोगों के हाथ में रिवाल्वरें देखकर वो घबरा गई। देवराज चौहान ने रिवाल्वर का रुख उसकी तरफ कर दिया।
“मम्मा...।” पन्द्रह वर्षीय लड़का भागा और अपनी मां से जा लिपटा ।
वो खूबसूरत औरत थी।
"साठी कहां है?” देवराज चौहान गुर्रा उठा ।
“वो... वो यहां नहीं हैं।" औरत ने घबराये स्वर में कहा।
“अभी पता चल जायेगा।" देवराज चौहान ने क्रूर स्वर में कहा--- “अपने बेटे को लेकर, सोफे पर बैठ जा। कोई चालाकी नहीं। जरा भी गड़बड़ की तो गोली मार दूंगा।"
औरत अपने बेटे को सटाये सोफे पर आ बैठी।
तभी जगमोहन दिखा तो देवराज चौहान ने कहा---
“पूरे घर को देख...!"
जगमोहन दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गया।
हरीश खुदे एक तरफ खामोशी से खड़ा था।
देवराज चौहान उस औरत के पास पहुंचकर, रिवाल्वर आगे करता बोला---
"नाम बता?"
"शि... खा... ।"
"ये तेरा बेटा है?" देवराज चौहान गुर्राया।
औरत ने अपना फक्क चेहरा सहमति से हिला दिया।
"पूरबनाथ साठी तेरा पति है?"
"हमारी शादी नहीं हुई। पर ये बच्चा उसी का है।" शिखा ने जल्दी से कहा--- "भगवान के लिए, साठी से तुम्हारी कोई बात है तो उसी से निपटाओ। साठी के काम से मेरा कोई भी वास्ता नहीं है।"
"तो साठी यहां नहीं है?" देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।
"न... नहीं।"
"कब आया था वो यहां ?"
"पन्द्रह-बीस दिन हो गये।" औरत ने बच्चे को अपने से सटा रखा था।
"साठी कहां पर मिलता है, बता?"
"मैं नहीं जानती।” औरत की आंखों में आंसू चमक उठे।
"हरामजादी झूठ बोलती है।"
"मैं सच कह रही हूं। मुझे नहीं पता वो कब कहां होता है।" औरत जल्दी से बोली।
देवराज चौहान आगे बढ़ा और रिवाल्वर की नाल उस लड़के के गाल से लगाई।
शिखा ने अपने बेटे को कसकर पकड़ लिया। आंखों से आंसू बह निकले।
“भगवान के लिए मेरे बेटे को कुछ मत कहो। ये...।"
"ये पूरबनाथ साठी का बेटा है?"
"ये... ये मेरा बेटा है।" शिखा रो पड़ी।
देवराज चौहान एक कदम पीछे हटता गुर्राया---
"कितना चाहता है साठी अपने बेटे को ?"
औरत की आंखों से आंसू बहते रहे। वो देवराज चौहान को देखती रही।
“जवाब दो।" देवराज चौहान ने दांत किटकिटाये ।
"जितना एक बाप, अपने बेटे को चाहता है।" रोते हुए शिखा बोली--- "प्लीज इसे कुछ मत कहना।"
"तो साठी इसे चाहता है। अपने बेटे को चाहता है।" देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव थे--- “क्या उसे नहीं पता कि वो जो धन्धा करता है, उसमें औलादें होनी ठीक नहीं। वो सलामत नहीं रहती।"
"नहीं, ऐसा मत कहो। ये मेरा बेटा है।” शिखा रो रही थी।
तभी जगमोहन वहां पहुंचकर बोला---
"फ्लैट खाली है। वो हरामजादा यहां नहीं पहुंचा।"
"ये बच्चा पूरबनाथ साठी का है।” देवराज चौहान गुर्राया ।
"काम खत्म कर देते हैं इसका।" जगमोहन के दांत भिंच गए।
"नहीं...।" शिखा चीख उठी--- “ऐसा मत कहो। मेरे बच्चे को कुछ मत कहो।"
तभी वो लड़का कह उठा---
“बात क्या है मम्मा ! पापा ने कुछ गलत कर दिया क्या, जो ये लोग पापा को ढूंढ रहे हैं?"
"तेरे को नहीं पता कि तेरा बाप क्या चीज है।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
“प्लीज, बच्चे से ऐसी बातें मत करो।” शिखा जल्दी से कह उठी--- "ये कुछ नहीं जानता ।"
“कुछ नहीं जानता तो अब जान जायेगा।” देवराज चौहान बोला--- “खड़ी हो, अपने मोबाइल से साठी को कॉल लगा। जरा हरामजादे से बात तो करूं कि क्या सोचकर उसने बच्चा पैदा किया था।"
शिखा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
खुदे गम्भीर-सा अपनी जगह पर खड़ा था।
“उठ... ।” देवराज चौहान गुर्राया ।
“फोन-फोन उधर कमरे में है।" शिखा ने कांपते स्वर में कहा।
"ले के आ... ।"
“म... मेरा बच्चा... ।” शंका-आशंका में घिरी शिखा का स्वर कांपा।
“अभी इसे कुछ नहीं होगा। फोन ला। तू इसके साथ रहना जगमोहन!" देवराज चौहान ने दरिन्दगी से कहा।
शिखा उठी। कातर निगाहों से देवराज चौहान को देखा, गालों पर आंसू थे।
"म... मेरे बेटे को कुछ मत कहना।"
"जल्दी जा।" देवराज चौहान गुर्राया--- “फोन ले के आ...।"
तभी जगमोहन आगे बढ़ा और शिखा की कलाई पकड़कर खींचते हुए बोला---
"चल।"
शिखा गालों पर आंसू समेटे एक कमरे की तरफ बढ़ गई।
जगमोहन उसके पीछे था।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
"क्या किया है मेरे पापा ने ?” लड़का कह उठा।
देवराज चौहान की सुलगती निगाह उस पन्द्रह साल के बच्चे पर जा टिकी।
“नाम बोल?" देवराज चौहान गुर्राया ।
"राहुल... ।”
“पूरा नाम बोल?"
“राहुल साठी ।"
“साला सांप की औलाद ... ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ा और जोरदार चांटा उसके गाल पर मारा।
राहुल हल्की-सी चीख के साथ सोफे से कालीन पर जा गिरा ।
तभी खुदे जल्दी से आगे बढ़ता कह उठा---
"तुम्हारा पंगा बाप से है। बच्चे को क्यों बीच में लाते हो ?"
"ये उसी हरामजादे की औलाद है।"
"लेकिन बच्चा है। साठी जैसा नहीं है ये...।"
"चुप कर। मुझे सलाह मत दे।” देवराज चौहान ने दांत भींचकर खुदे को देखा।
खुदे बच्चे के पास आ रुका था। वो देवराज चौहान का ध्यान बच्चे से हटाना चाहता था और इस कोशिश में वो सफल भी रहा था। देवराज चौहान ने दोबारा बच्चे की तरफ नहीं देखा था।
तभी शिखा वहां पहुंची। राहुल को नीचे पड़ा देखकर कांपकर कह उठी---
“क्या हुआ तुझे, तू ठीक तो... ।”
मैं ठीक हूं मम्मा।" राहुल फौरन उठकर सोफे पर जा बैठा।
"फालतू बातें मत कर।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा--- "अपने मोबाइल से हरामी साठी को फोन लगा।"
"क... क्या कहूँ उससे?" शिखा के होठों से कांपता स्वर निकला।
"फोन लगा। बता उसे यहां क्या हो रहा है...।" देवराज चौहान ने दरिन्दगी से कहा।
"म... मैं तुम्हारा नाम नहीं जानती...।"
"नाम की जरूरत नहीं। वो वैसे ही सब कुछ पहचान जायेगा। लगा फोन ।”
शिखा ने कांपते हाथ से साठी का नम्बर लगाया और फोन कान से लगा लिया। परन्तु अपनी टांगों में कम्पन पाकर वो राहुल के पास सोफे पर जा बैठी। आंखों में आंसू भरे थे।
दूसरी तरफ बेल गई फिर साठी की आवाज कानों में पड़ी।
"बोल शिखा!”
कुछ कहने के पहले ही शिखा फफक पड़ी।
देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।
जगमोहन दांत भींचे शिखा को घूर रहा था।
जबकि हरीश खुदे गम्भीरता में डूबा हुआ था।
"शिखा!" उधर से साठी का परेशान स्वर शिखा के कानों में पड़ रहा था--- "क्या बात है, क्या हुआ जो तुम रो रही हो। सब ठीक तो है। जवाब दो मेरी बात का। क्या बात है... ?”
"यहां बहुत बुरा हो रहा है।” शिखा रोते हुए कह उठी।
“क्या?" उधर से साठी का बेचैन स्वर कानों में पड़ा उसके ।
“तीन लोग घर में आ गये हैं। उनके हाथ में रिवाल्वरें हैं और आपको पूछ रहे...।”
"नहीं, वो यहां नहीं पहुंच सकता...।”
“कौन ?” रोते-फफकते शिखा कह रही थी।
“देवराज चौहान... ।”
शिखा ने कान से फोन हटाकर देवराज चौहान से पूछा---
“तुम देवराज चौहान हो?"
जवाब में देवराज चौहान के चेहरे पर विषैली मुस्कान नाच उठी।
“शायद वो देवराज चौहान ही है। बहुत खतरनाक लग रहा है वो और उसका साथी भी।" कहते हुए शिखा की निगाह सब पर जा रही थी--- "उन दोनों की अपेक्षा तीसरा कुछ शान्त है।"
"उसका नाम हरीश खुदे है।" उधर से साठी ने गम्भीर स्वर में कहा।
शिखा ने खुदे से पूछा---
"तुम हरीश खुदे हो?"
“हाँ।" खुदे ने बल खाकर कहा--- "मैं तो खामखाह ही बदनाम हो गया।"
"तुम ठीक कहते हो, वो हरीश खुदे ही है। तुम्हें पूछ रहे हैं वो...म.... मैं क्या करूं। मेरे साथ राहुल भी... ।”
"उन्हें फोन दो।" उधर से साठी ने कहा।
"किसे ?"
"देवराज चौहान को ।”
शिखा ने कान से फोन हटाया और देवराज चौहान से बोली---
"साठी तुमसे बात करना चाहता है।"
“अब तो वो मेरे पांवों में भी पड़ेगा।” देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा और आगे बढ़कर शिखा के हाथ से फोन लेते कश लिया, फिर मोबाइल कान से लगाकर बोला--- “पूरबनाथ साठी! मुम्बई अण्डरवर्ल्ड किंग। ये ही है ना तू, पर अब तू मेरी मुट्ठी में है। मुट्ठी में। सुना है तू अपने बेटे से बहुत प्यार करता है।"
"देवराज चौहान, मेरी बात सुनो... ।” उधर से साठी का व्यग्र स्वर कानों में पड़ा।
"लेकिन मुझे राहुल ज़रा भी पसन्द नहीं आ रहा। क्योंकि वो तुम्हारा बेटा है। तुमने तो बहुत जोर से मेरे पेट में सिर मारा और मैं बचा भी नहीं सका खुद को। अभी तक पेट में दर्द उठ रहा हैं, लेकिन मैं तेरे बेटे के साथ ऐसा नहीं करूंगा, बिल्कुल भी नहीं। मैं उसके सिर से नाल लगाकर गोली चला दूंगा। उसे दर्द का एहसास भी नहीं हो पायेगा और वो मर जायेगा।” देवराज चौहान की आवाज में वहशीपन छाया था।
“न...हीं...ऽऽऽ... ।” देवराज चौहान की बात सुनकर शिखा के होंठों से चीख निकली और वो राहुल के साथ लिपट गई--- "मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। तुम मेरे बच्चे को कुछ नहीं... ।"
“बहुत शान से तू अपनी जिन्दगी जी रहा है। कितनी ताकत रखता है, तो अब बचा अपने बच्चे को। पता चला कि शिखा तेरी पत्नी नहीं है, वो सिर्फ तेरे बच्चे की मां...।”
"वो मेरी पत्नी से भी ज्यादा है देवराज चौहान!"
"पत्नी से भी ज्यादा है।" देवराज चौहान ठठाकर हंस पड़ा--- "खूब, तो तेरा प्यारा बेटा, तेरी प्यारी औरत अब मेरे रहमोकरम पर है। वो मरने वाले हैं साठी...वो...।”
"मेरी बात सुनो देवराज चौहान!" उधर से साठी की परेशान आवाज आई।
"तेरी बात में रखा ही क्या है, तू कहेगा इन दोनों को छोड़... ।”
"हमें बात करनी चाहिये देवराज चौहान!"
"बात? तू इस काबिल कहां जो तेरे से बात करूं, ठीक है, बोल क्या भौंकता है।” देवराज चौहान गुर्राया ।
उधर से पूरबनाथ साठी के गहरी सांस लेने की आवाज आई ।
फोन कान से लगाये देवराज चौहान ने कश लिया।
शिखा ने राहुल को अपनी बांहों में दबोच रखा था।
हरीश खुदे के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
“बात क्या है देवराज चौहान ?” साठी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।
“मैं तेरी जान लेना चाहता हूं।" देवराज चौहान ने क्रोध में दांत पीसे ।
“वो ही पूछ रहा हूं क्यों ?"
"मैंने तेरे को मौत देनी है। तेरे को... ।”
“वो ही तो पूछ रहा हूं क्यों मुझे मारना चाहता है?" उधर से साठी ने पूछा--- "मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है ?"
“मैंने तेरे को खत्म करना है हरामजादे ।”
“मैं समझ गया हूं पर तू मुझे क्यों खत्म करना चाहता है। मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है। हमारे रास्ते अलग-अलग हैं। तूने साल भर पहले मेरे एक काम को निपटाया था और मेहरबानी के तौर पर मैंने तेरे को अच्छा-खासा पैसा दिया था। उसके बाद हम कभी मिले नहीं। हमारे सम्बन्ध नहीं बिगड़े। अब तू अचानक ही मेरे को मारने के लिए ढूंढने लगा। कम-से-कम ये तो बता दे कि मेरी गलती क्या है?"
“मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा।” देवराज चौहान का चेहरा दहक उठा।
“ये नहीं बतायेगा कि मुझे क्यों मारना चाहता है।" उधर से साठी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा।
"क्यों मारना है तुझे?" देवराज चौहान गुर्राया--- "मुझे याद नहीं आ रहा कि क्यों मारना है तुम्हें। मैं भूल गया हूं पर ये तो पक्का है हरामजादे कि मैं तुझे कुत्ते की मौत मारूंगा...। मैं तुझे...।"
"वजह नहीं बतायेगा ?"
“मुझे याद नहीं आ रहा, परन्तु तेरे को बुरी मौत.... ।”
"जगमोहन से पूछ... ।" उधर से साठी ने गम्भीर स्वर में कहा।
"क्या ?"
"वजह। मुझे क्यों मारना चाहते हो। तू तो भूल गया, पर जगमोहन को तो पता होगा ।"
जगमोहन की सुलगती नज़रें देवराज चौहान पर थीं।
देवराज चौहान ने दांत भींचकर जगमोहन से कहा---
"हरामजादा पूछता है हम क्यों उसे मारना चाहते हैं। तू बता क्यों मार रहे हैं हम उसे?"
जगमोहन की लाल हुई पड़ी आंखें जैसे सुलग उठीं।
“हम पागल तो हैं नहीं, जो साठी जैसे हरामजादे को मारने खामखाह ही चल पड़े। कोई तो वजह होगी।"
"बता दे कमीने को कि वो क्यों मरने जा रहा... ।”
“मुझे भी ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा।" जगमोहन ने गुर्राहट भरे स्वर में कहा--- “पर इससे क्या फर्क पड़ता है कि उसे वजह पता चले या ना चले। मरना तो उसने है ही ।"
हरीश खुदे के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
शिखा, राहुल को बांहों में जकड़े बैठी थी।
देवराज चौहान फोन कान से लगाकर कठोर स्वर में कह उठा---
“जगमोहन को भी याद नहीं आ रहा कि हम तुम्हें क्यों मार रहे...।"
"होश में आ देवराज चौहान!" उधर से साठी गम्भीर स्वर में बोला--- "ये बात विश्वास करने के काबिल नहीं है कि मुझे मारने की वजह तू भी भूल गया और जगमोहन को भी याद नहीं...।"
"तू क्या समझता है हम झूठ बोल रहे हैं।" देवराज चौहान ने दांत भींचे।
“हां। तुम दोनों झूठ बोल रहे हो। असल खेल तुम मुझे बताना नहीं चाहते।”
"असल खेल ?"
"कितने की सुपारी ली है मेरे नाम की ?"
“सुपारी, मतलब कि तुझे मारने का ठेका ?"
"हां। कितनी रकम मिली ?"
"बकवास मत कर। ऐसा कुछ भी नहीं है।” देवराज चौहान गुर्राया--- "हम खुद ही तुझे खत्म कर देना चाहते...।”
"क्यों?"
"क्योंकि... मुझे याद नहीं आ रहा कि क्यों तुझे मार देना चाहता हूं। परन्तु ये तो पक्का है कि तू...।”
"सुपारी विलास डोगरा ने दी ?"
"किसी ने नहीं...।” देवराज चौहान ने कहना चाहा।
“मंसूर सिद्दीकी ने दी?”
"ये सब कौन हैं, जिनके नाम तुम ले रहे हो?"
“वो लोग जो हर हाल में मेरी मौत देखना चाहते हैं। या फिर करीम शाही ने मेरी सुपारी दी ?”
"बकवास। मैं ही तुझे मारना चाहता...।"
“सच बता दे तो फायदे में रहेगा देवराज चौहान !”
"फायदे में?"
“जितनी रकम तुझे मिली है मुझे मारने की, मैं उससे चार गुणा तेरे को दूंगा, बस तू मुझे सच बता दे।”
"रकम ?" देवराज चौहान पल भर के लिए ठिठका फिर जगमोहन से बोला--- “इस काम की हमने कोई रकम ली है?"
“नहीं।" जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा।
"हमने तेरे को मारने की कोई रकम नहीं ली।" देवराज चौहान फोन पर बोला ।
“तुमने और जगमोहन ने मुझे मारने की कोई रकम किसी से नहीं ली।” उधर से पूरबनाथ साठी शान्त स्वर में कह रहा था--- "ठीक है, कुछ देर के लिए मैं मान लेता हूं। तुम सच कहते हो कि तुम लोगों ने किसी से रकम नहीं ली मुझे मारने की। पर किसी के कहने पर तो मुझे मारने निकले हो। मेरा-तुम्हारा तो कोई पंगा है नहीं। किसके कहने पर मुझे मारने जा रहे हो?"
“मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा साठी!” देवराज चौहान दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा।
"तुमने कसम खा रखी है कि मुझे मारने की वजह, मुझे नहीं बताओगे।"
"मुझे याद नहीं...।"
"ये बहाना है तुम्हारा कि तुम्हें याद नहीं। सच बात तो ये है कि तुम मुझे उसका नाम नहीं बताना चाहते, जिसके लिए तुम काम कर रहे हो। जिसके कहने पर मुझे मारने की चेष्टा...।"
"इससे काम की बात कर।" एकाएक जगमोहन ने दरिन्दगी से कहा।
"साठी! तूने फालतू बातें खूब कर लीं। अब तेरे बेटे के बारे में बात... ।”
“मुझे आधे घण्टे का वक्त दो देवराज चौहान!" साठी की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी।
“आधा घण्टा ? समझा तो तू यहां पर अपने आदमी भेज रहा... ।”
"कभी नहीं।" साठी का दृढ़ स्वर कानों में पड़ा--- "मैं पागल नहीं हूं कि वहां अपने आदमी भेज दूं। मेरा बेटा तुम्हारे कब्जे में है और शिखा मेरे जीवन में बहुत महत्व रखती है। कम-से-कम ये तो मैं कभी भी नहीं चाहूंगा कि शिखा और राहुल को मेरी वजह से नुकसान हो। मैं तुमसे सिर्फ आधे घण्टे की छुट्टी मांग रहा हूं। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा कि ये क्या हो रहा है। मैं एक ड्रिंक लेना चाहता हूं। बाजी तुम्हारे हाथ में है। शिखा और राहुल तुम्हारे कब्जे में हैं और दोनों को ही मैं बहुत चाहता हूं।"
“तू कोई चालाकी करना चाहता है आधे घण्टे में। लेकिन मैं तेरी चालाकी का जवाब देने को तैयार हूं। तू जो भी करेगा उससे तेरे को नुकसान होगा। तू ही... ।”
"मैं कुछ नहीं करने वाला ।” साठी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा ।
"ठीक तीस मिनट बाद तू मुझे फोन करेगा। अगर तेरा फोन नहीं आया तो मैं तेरे बेटे को गोली मार दूंगा। यहां पर अपने आदमी भेजे तो ये औरत और तेरा बेटा गये। हम अपने को यहां से बचा ले... ।”
“शक-वहम में मत पड़ो। मैं कुछ भी नहीं करूंगा।”
देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया।
“क्या हुआ ?” जगमोहन गुर्राया ।
“आधे घण्टे का वक्त मांगता है हरामजादा।” देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा— “कहता है एक ड्रिंक लेनी है और सोचना है। अगर हमारे खिलाफ कोई तैयारी करता है तो ये दोनों तो गये।"
जगमोहन आगे बढ़ा और शिखा को सुर्ख निगाहों से देखता बोला---
"कुत्ते साठी को तुम्हारी और इस लड़के की परवाह होगी?"
"हाँ।" शिखा घबराई-सी कह उठी--- "वो हम दोनों को बहुत चाहता है। हम ही उसकी दुनिया हैं। हम ही सब कुछ हैं।”
"पता चल जायेगा कि असल बात क्या है।" जगमोहन क्रूरता भरे स्वर में कह उठा।
हरीश खुदे गम्भीर था। वो सब कुछ देख-सुन, समझ रहा था।
■■■
पूरबनाथ साठी ने फोन बन्द किया और उस कमरे से निकलकर आगे बढ़ता चला गया। उसके चेहरे पर गम्भीरता और कठोरता थी । मोबाइल हाथ में पकड़ा हुआ था। ये जगह, वो गोदाम की तरह इस्तेमाल करता था। बहुत कम वो यहां आता था। साठी ने अन्य कमरे में प्रवेश किया तो वहां उसके दो खास आदमी मौजूद थे। पाटिल और कर्मा खत्री ।
पाटिल पैंतीस बरस का था।
कर्मा खत्री पचपन का ।
यहां पहुंचते ही साठी ने उन्हें फोन करके यहां पहुंचने को कहा था।
"क्या बात है साठी साहब?" उसके भीतर प्रवेश करते ही कर्मा खत्री ने पूछा।
“बैठ जाओ।" कहते हुए साठी खुद भी बैठ गया। वे भी बैठे--- "मैं इस वक्त अजीब-सी मुसीबत में फंस गया हूं।"
“क्या हुआ?" पाटिल ने पूछा।
पूरबनाथ साठी ने उन दोनों को सारी बात बताई।
शिखा और राहुल के बारे में भी बताया, जो कि वो पहले नहीं जानते थे।
साठी के चेहरे पर गम्भीरता और चिन्ता टपक रही थी।
दोनों ने साठी की बातें सुनी तो पाटिल कह उठा---
"हम उन्हें वाशी के उस फ्लैट में घेर सकते हैं।”
साठी ने पाटिल को घूरा।
"वो औरत मेरी जिन्दगी है। राहुल मेरा बेटा है। प्यारा बेटा।" साठी ने शब्दों को चबाकर कहा--- "अगर हमने कुछ भी किया तो वो दोनों शिखा और राहुल को मार देंगे। पागल हुआ पड़ा है देवराज चौहान!"
"देवराज चौहान ये नहीं बता रहा कि वो आपकी जान क्यों लेना चाहता है?" कर्मा खत्री बोला।
"कहता है उसे याद नहीं। पर मैं सब समझता हूं कि किसी ने उसे, मेरे नाम की बहुत मोटी सुपारी दी है। वो उसका नाम बताने को तैयार नहीं, जिसके कहने पर वो मेरी हत्या करना चाहता है।" साठी सख्त स्वर में बोला ।
"देवराज चौहान तो डकैतियां करता है। वो हत्या की सुपारी कब से लेने लगा ?" पाटिल कह उठा।
"रकम मोटी ली होगी। तभी वो मेरे पीछे पड़ा ।" साठी ने सिगरेट सुलगा ली--- “मेरे ख्याल में देवराज चौहान के पीछे विलास डोगरा या मंसूर सिद्दीकी या करीम शाही हैं। इन तीनों में से कोई एक जरूर है।"
"हमें इनसे बात करनी चाहिये।” कर्मा खत्री ने गम्भीर स्वर में कहा।
"वो मानेंगे नहीं कि देवराज चौहान उनके इशारे पर चल रहा है।"
"बात करने में क्या हर्ज है, मैं बात करूं या आप करेंगे ?"
साठी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर अपना फोन उठाता कह उठा---
"मैं बात करता हूं।”
साठी ने मंसूर सिद्दीकी का नम्बर मिलाया और मोबाइल कान से लगाकर कश लिया।
दूसरी तरफ से बेल जाने लगी फिर मर्दाना आवाज कानों में पड़ी---
“हैलो ।”
“मंसूर ...!” साठी शान्त स्वर में बोला--- “मैं साठी, कैसे हो?"
“ओह साठी साहब, आज मुझे कैसे याद कर लिया, खैर तो है?" उधर से मंसूर सिद्दीकी की आवाज आई।
"खैर नहीं है। "
“ऐसी क्या बात हो गई?" अब मंसूर सिद्दीकी का स्वर सतर्क-सा हो गया था।
"मेरे पीछे डकैती मास्टर देवराज चौहान पड़ा है और मुझे शक है कि ये काम तुमने किया है। कितना पैसा दिया उसे?"
"मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।"
"अगर तुमने किया है तो पता चल जायेगा मुझे...।" साठी कठोर स्वर में बोला।
"मैं दूसरी बार नहीं कहूंगा कि ये काम मैंने नहीं किया। मंसूर सिद्दीकी की आवाज आई--- “फिर साठी भाई, तुम्हारे लिए तो ये मामूली बात है देवराज चौहान को साफ करना, चिन्ता किस बात की?"
"अन्जाने में उसने मेरी गर्दन पकड़ ली है। मैं कुछ नहीं कर सकता।" साठी दांत पीसकर कह उठा।
“ओह...।"
"देवराज चौहान अगर तुम्हारा भेजा है तो उसे वापस बुला लो। वरना बाद में तुम कहीं के नहीं रहोगे।"
"ये काम मैंने नहीं किया।"
साठी ने फोन काटा और विलास डोगरा का नम्बर मिलाने लगा।
"मुझे नहीं लगता कि इस तरह कोई बात बने ।” पाटिल गम्भीर स्वर में बोला ।
साठी ने फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी। फिर भारी आवाज कानों में पड़ी---
"हैलो।"
"डोगरा...!" साठी बोला।
उधर से कुछ चुप्पी के बाद आवाज आई---
"कौन हो तुम?"
“पूरबनाथ साठी।" साठी गम्भीर स्वर में बोला।
“फोन क्यों किया?" उधर से विलास डोगरा का भारी, शान्त स्वर कानों में पड़ा।
"देवराज चौहान को मेरे पीछे लगाकर तूने ठीक नहीं किया। दुश्मनी क्यों बढ़ा रहा है।"
“कौन देवराज चौहान ?"
“तू सब जानता है और मेरे से पूछता है कि कौन देवराज चौहान?" साठी ने सख्त स्वर में कहा।
"देवराज चौहान जो भी हो, क्या उसने बोला कि मैंने उसे भेजा है ?"
"अभी तक तो ऐसा नहीं बोला।"
"तो जब वो बोले तब फोन करना।" कहने के साथ ही उधर से विलास डोगरा ने फोन बन्द कर दिया था।
होंठ भींचे साठी ने करीम शाही को फोन किया।
"इस तरह कोई फायदा नहीं होने वाला साठी साहब...।" पाटिल ने कहा।
करीम शाही से बात हो गई।
“कैसा है करीम शाही? मैं साठी बोल रहा हूं...।" साठी ने कहा।
"पहचाना साठी! फोन कैसे कर दिया तूने?" उधर से लापरवाही भरा स्वर सुनाई दिया।
"देवराज चौहान को तूने मेरे पीछे लगा के बहुत गलत काम किया ।" साठी सख्त स्वर में बोला।
"इस नाम के किसी आदमी को मैं नहीं जानता। मैंने किसी को नहीं भेजा।"
"अच्छा ये ही है इसे हटा ले मेरे पीछे से, नहीं तो झगड़ा हो जायेगा।"
“झगड़े की मुझे परवाह नहीं, लेकिन मैंने तेरे पीछे किसी को नहीं लगाया। तेरे को किसने बोला कि मैंने ऐसा किया है?"
"मुझे लगा कि ये काम तूने किया है।"
"गलत लगा।" इसके साथ ही उधर से करीम शाही ने फोन बन्द कर दिया।
साठी कान से फोन हटाता बोला---
"ऐसा करके कोई फायदा नहीं मिला।"
"जिसने भी देवराज चौहान को भेजा होगा आपके फोन के बाद शायद सम्भल जाये।" कर्मा खत्री ने कहा।
साठी ने नई सिगरेट सुलगा ली। वो परेशान दिख रहा था।
“मैंने तुम दोनों को इसलिए बुलाया है कि देवराज चौहान से निपटने का कोई रास्ता बताओगे।”
“ये तो पक्का है कि देवराज चौहान के पीछे इन तीनों में से ही कोई है।” कर्मा खत्री ने कहा--- "देवराज चौहान को काफी मोटा पैसा दिया होगा, तभी वो आपके पीछे पड़ा। वरना वो आपके पीछे पड़ने वाला नहीं था।"
“इन बातों में वक्त बरबाद मत करो।" साठी बहुत ज्यादा परेशान था।
कर्मा खत्री और पाटिल की नजरें मिलीं।
"साठी साहब!" पाटिल गम्भीर स्वर में बोला--- “वो औरत और बच्चा आपके लिए बहुत महत्व रखता है?"
"हां।" साठी के होंठ भिंच गये।
"फिर तो समस्या हो गई। देवराज चौहान उन पर काबू किए हुए है, ऐसे में हम कुछ नहीं कर सकते।”
"अगर औरत और बच्चे को बचाना नहीं होता तो देवराज चौहान को आसानी से खत्म कर देते ।”
"कोई रास्ता सोचो।”
"देवराज चौहान आपसे पैसा लेकर भी पीछे हटने को तैयार नहीं...।"
"वो ठीक से मेरी बात सुनने को भी तैयार नहीं। एक ही बात कह रहा है कि वो मुझे मारेगा।" साठी ने दांत भींचकर कहा--- “हरीश खुदे की गद्दारी की वजह से ही देवराज चौहान मेरे परिवार तक पहुंच सका।" साठी ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा--- "बीस मिनट हो चुके हैं और मैंने देवराज चौहान से तीस मिनट का वक्त लिया था।”
“मेरे ख्याल में आप उसे बातों में उलझाएं रखें, हम कोई रास्ता सोचते...।"
“शायद ऐसा ना हो सके। वो सीधी बात कर रहा है। बातों में फंसने वाला नहीं। जबकि मैं किसी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे परिवार को कोई नुकसान हो। मैं तो...।"
तभी साठी का फोन बजने लगा।
"हैलो।" साठी ने फोन पर बात की।
"साठी साहब!” उधर से शंकर की आवाज आई--- "मैं हरीश खुदे के घर से बोल रहा हूं।"
“कहो।"
“खुदे की पत्नी का कहना है कि सुबह दस बजे के आस-पास देवराज चौहान, किसी के साथ वहां पहुंचा और खुदे के साथ मारपीट करने लगा। उससे आपका ठिकाना पूछ रहा था फिर खुदे को जबर्दस्ती अपने साथ ले गया।”
“उससे पूछो कि देवराज चौहान ने तब और क्या कहा ?"
“पूछा। पर उसके सामने इतनी ही बात हुई।”
"पता करते रहो कि देवराज चौहान मेरे पीछे क्यों है ।" साठी ने कहा और फोन बन्द करके बोला--- “देवराज चौहान, हरीश खुदे को शायद जबर्दस्ती अपने साथ रखे हुए है कि उससे मेरे बारे में जानकारी लेता रहे।"
"हमें कुछ सोचना चाहिये।" कर्मा खत्री बोला--- “पर पहले वहां अपने आदमी फैला देने चाहिये कि...।"
"नहीं। हमने ऐसा कुछ भी नहीं करना है।" साठी सख्त स्वर में बोला।
"लेकिन... ।"
"समझा करो खत्री, अगर देवराज चौहान को वहां पर हमारे आदमियों की मौजूदगी का एहसास हो गया तो वो मेरे परिवार को खत्म कर देगा। जिन्हें मैं बचाना चाहता हूं।"
कर्मा खत्री पाटिल से बोला---
"कुछ सोच पाटिल ! कोई रास्ता निकाल ।”
“हमें देवराज चौहान से मुलाकात करने जाना चाहिये। उसे समझाने की कोशिश करनी है। उसे पैसे का लालच देना है कि वो वहां से साठी साहब के परिवार को छोड़कर निकल जाये। बाद में हरामजादे से निपट लेंगे।"
"हालांकि उसके पास जाना खतरे वाली बात है, पर उसके पास जायेगा कौन?"
"तुम या मैं?"
तभी साठी कह उठा---
"देवराज चौहान से बात करने का वक्त हो गया है। मैं उसे फोन करने जा रहा हूं। तब तक तुम दोनों ये सोचो कि हमारे पास कौन कौन-सा रास्ता है कि जिससे मैं अपने परिवार को बचा सकूं।"
कर्मा खत्री और पाटिल के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
साठी मोबाइल से नम्बर मिलाने लगा।
■■■
उस फ्लैट के ड्राइंगरूम में सन्नाटा छाया हुआ था। जबकि वो सब वहां मौजूद थे।
देवराज चौहान हाथ में रिवाल्वर थामे वहां घूम रहा था। जगमोहन दोनों हाथों की मुट्ठियां भींचते कभी इधर टहलता तो कभी उधर टहलता। होठों से मध्यम-सी गुर्राहटें निकल रही थीं। हरीश खुदे गम्भीर-सा एक तिपाई पर बैठा हुआ था।
शिखा सोफे पर राहुल की बांह पकड़े बैठी थी। वो डरी हुई थी। जबकि राहुल गम्भीर दिख रहा था।
कोई किसी से बात नहीं कर रहा था।
तभी फोन बज उठा। हरीश खुदे का फोन बजा था। उसने बात की।
"हैलो।"
“अब क्या हाल है तुम्हारा?" टुन्नी की आवाज कानों में पड़ी--- "देवराज चौहान ने तुम्हें छोड़ा कि नहीं ?"
"नहीं।” खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा।
“उससे पूछ तो लो कि कब तक तुम्हें छोड़ेगा। तब तक मैं मटर-पनीर बनाकर रखूंगी। बाजार गई थी मैं। तुम्हारा तो कोई भरोसा नहीं कि कब लौटोगे, कब सब्जी लाओगे। मैंने भी तो पेट भरना है। एक किलो पनीर और दो किलो मटर ले आई हूं। बाकी घिया, टिण्डे, तोरी तुम लेते आना। मैं तो अब मटर पनीर बनाने जा रही हूं... ।”
खुदे चुप रहा। उसकी निगाह कमरे में घूम रही थी।
"चुप क्यों हो गये...।"
"सुन रहा हूं...।"
"तुम्हारे डण्डे का क्या हाल है?" उधर से टुन्नी ने पूछा ।
"डण्डे का ?"
“जो, तुम बता रहे थे कि चढ़ा हुआ है। क्या वो अभी भी चढ़ा हुआ है।"
“वो फंस गया है।”
"कहां?"
"वहीं जहां चढ़ता है। लगता नहीं आसानी से निकले।" खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- “तू मटर पनीर खा।"
“लेकिन तुमने बताया नहीं कि डण्डा चढ़ता कैसे है ?"
“सही-सलामत घर पहुंच गया तो तब बताऊंगा कहां चढ़ता है।" खुदे ने गहरी सांस ली।
“एक बात तो तुम्हें बताना भूल गई, ये शंकर कौन है?"
“शंकर?” खुदे चौंककर सम्भला--- "क्या बात है?"
"जब मैं बाजार से वापस लौटी तो दरवाज़े पर ही खड़ा था। चार आदमी और थे। उसने बताया कि उसका नाम शंकर है और साठी के लिए काम करता है। वो बोला, खुदे ने आठ साल मेरे साथ काम किया है। तुम्हारे बारे में पूछताछ करने लगा। मैंने उसे सब कुछ बता दिया कि सुबह देवराज चौहान आया और साठी के बारे में पूछ रहा था। तुम्हें मारा भी। फिर तुम्हें जबर्दस्ती अपने साथ ले गया। वो पन्द्रह मिनट तक मेरे से सवाल करता रहा, फिर चला गया।”
खुदे ने गहरी सांस ली। वो व्याकुल हो उठा।
"तुम चुप क्यों हो गये?"
"मेरी मुसीबत के दिन शुरू हो गये हैं। देवराज चौहान से बच गया तो साठी मुझे मार देगा।”
"ऐसा क्यों कहते हो। तुमने तो कुछ नहीं किया जो...।"
"तेरे को नहीं पता जब साठी का डण्डा चढ़ता है तो बन्दा ऊपर पहुंच जाता है।"
"फिर डण्डा ? कभी देवराज चौहान का डण्डा चढ़ गया तो कभी साठी का। क्या सब डण्डे लिए घूमते हैं जो...।"
“तू मटर पनीर खा।” खुदे ने कहा और फोन बन्द करके तिपाई से उठा और देवराज चौहान की तरफ बढ़ गया।
खुदे को पास आते पाकर देवराज चौहान ठिठका और सुर्ख आंखों से उसे देखने लगा।
खुदे पास पहुंचकर ठिठका और कह उठा---
"कम-से-कम मुझे तो बता दो कि तुम साठी की जान क्यों लेना चाहते...।"
उसी पल देवराज चौहान का हाथ घूमा और खुदे के गाल पर पड़ा।
खुदे तड़पकर दो कदम पीछे हो गया।
“अब मुझे क्यों मारते हो। तुम्हारा साथ तो मैं भी दे रहा हूं।" खुदे ने गुस्से से कहा ।
तभी देवराज चौहान उसके पास पहुंचा और उसकी कमीज का कॉलर पकड़कर बोला--- "सवाल मत पूछ। समझा क्या ?"
"मैं तो, मैं तो...।"
"चुप...।" देवराज चौहान गुर्राया ।
हरीश खुदे मुंह बन्द करके रह गया ।
इसी पल शिखा के पास पड़े मोबाइल की बेल बजने लगी।
सबका ध्यान फोन की तरफ हो गया।
“उसी हरामजादे का फोन है।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा--- “पूरा आधा घण्टा बीता है।"
"बात कर।" देवराज चौहान ने गुस्से से शिखा से कहा।
शिखा ने फौरन डरे अन्दाज में फोन उठाकर बात की।
"ह... हैलो।"
"तुम ठीक हो ?" उधर से साठी का गम्भीर, चिन्ता भरा स्वर कानों में पड़ा ।
"ह... हां, ठीक हूं।"
"उन्होंने तुम्हें या राहुल को कुछ कहा तो नहीं?"
"न...हीं...।"
"घबरा मत, सब ठीक हो जायेगा। मैं सब सम्भाल लूंगा। तुम दोनों पर कोई आंच नहीं आने दूंगा। वहां पर हरीश खुदे होगा। देवराज चौहान से पहले, जरा उससे बात करा दे। पूछ ले देवराज चौहान से, उसे एतराज तो नहीं ?"
शिखा ने फोन कान से हटाया और डरे स्वर में देवराज चौहान से बोली---
"साठी है। वो तुमसे बात करेगा, पर पहले वो चाहता है खुदे से बात कर ले। अगर तुम्हें एतराज ना हो तो।"
“तड़प रहा है हरामजादा।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा--- “छटपटा रहा है, बात कर खुदे ।”
हरीश खुदे उसी पल आगे बढ़ा और शिखा के हाथ से मोबाइल लेकर बात की।
“नमस्कार साठी साहब! मैं तो खामखाह ही इस मामले में...।" खुदे ने कहना चाहा।
"मालूम है मुझे। शंकर तेरे घर गया था। तेरी पत्नी ने बताया कि देवराज चौहान तेरी ठुकाई करके तुझे अपने साथ ले गया और तेरे से मेरे बारे में पूछ रहा था। ऐसे में देवराज चौहान का साथ देना तेरी मजबूरी बन गया।”
"ये ही हुआ साठी साहब!” खुदे गम्भीर स्वर में बोला ।
“पर तूने यहां का पता बताकर गलती कर दी। मेरे को तूने कहीं का नहीं छोड़ा।"
“माफी चाहता हूं, परन्तु मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। देवराज चौहान बात-बात पर मेरी ठुकाई कर रहा था। अभी-अभी भी मुझे मारा। ये वो देवराज चौहान नहीं है, जिससे मैं साल भर पहले मिला था। बहुत बदल गया है।"
सबकी निगाह हरीश खुदे पर, उसकी बातों पर थीं।
“तेरे पास रिवाल्वर है?" उधर से साठी ने पूछा।
"नहीं।"
"अगर तू मेरे लिये देवराज चौहान और जगमोहन को मार दे तो मैं तुझे बहुत बड़ी दौलत दूंगा।”
"ये...।" खुदे ने गहरी सांस ली--- “सम्भव नहीं...।"
"क्यों?"
"मेरी अपनी जान की कोई गारण्टी नहीं तो... ।”
"कोशिश करना कि तू ये काम कर सके। तब तेरी सारी गलती माफ और तगड़ा इनाम।"
हरीश खुदे चुप रहा।
"तेरे को पता है देवराज चौहान मेरे पीछे क्यों पड़ा है। किसके कहने पर....।"
"नहीं पता।"
"देवराज चौहान को फोन दे।"
खुदे आगे बढ़ा और देवराज चौहान की तरफ फोन बढ़ाया।
"साठी से बात करो... ।"
देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे। फोन लेते ही बोला---
"खुदे से बात करके कोई फायदा हुआ हरामजादे ?" देवराज चौहान गुर्राया ।
"गुस्सा नहीं देवराज चौहान, हमें आराम से बात करनी...।"
"आराम से बात करने का वक्त नहीं है। मैं तेरे को खत्म करना चाहता हूं। तेरा परिवार मेरे कब्जे में है। तू मेरे पास आता है या इन दोनों को खत्म करके तेरी तलाश जारी रखूं। तू किसी भी हाल में बचने वाला नहीं ।"
“ये मामला खत्म करने के लिए मैं सौ करोड़ से शुरू होता हूं। बोल, कितने पे सौदा पटाता है। सौ करोड़, दो सौ करोड़, तीन सौ करोड़, चार सौ करोड़ या पांच सौ करोड़...।"
“अपनी जान की कीमत लगा रहा है।” देवराज चौहान ने दांत पीसे ।
“कुछ भी समझ ले। कहेगा तो पांच सौ करोड़ से भी ज्यादा की कीमत दे दूंगा। जहां कहेगा, पैसा वहीं... ।”
“बेकार की बातों में तू वक्त खराब कर रहा है। मुझे सिर्फ तेरी जान चाहिये।”
उधर से साठी की आवाज नहीं आई।
“अब तक तेरे कितने आदमी आस-पास फैलने शुरू गये...।"
"एक भी नहीं ।" साठी की गम्भीर आवाज आई--- “बाहर का चक्कर लगा ले। एक भी आदमी हुआ तो तू मेरे परिवार को खत्म कर देना। ऐसा कुछ नहीं है। मैं किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता।"
“अब मेरी बात सुन। यहां मैंने बहुत टाइम खराब कर लिया और सब्र नहीं है मेरे में। मैं इस औरत को और राहुल को शूट करने जा रहा हूं। फोन खुला रख और गोलियों की आवाजें...।"
"ऐसा मत करना देवराज चौहान!” उधर से साठी के चीखने जैसा स्वर आया ।
“ना करूं।" देवराज चौहान की लाल आंखों में चमक आ गई।
"नहीं, ऐसा सोचना भी मत। वो मेरा परिवार है, उन्हें मत मारना।" उधर से साठी तड़प भरे स्वर में बोला।
“तो तेरे को मेरे पास आना होगा।” देवराज चौहान गुर्राया ।
साठी की आवाज नहीं आई ।
"पास में कोई हथियार नहीं होना चाहिये। कोई आदमी नहीं। साथ में भी नहीं, बाहर भी नहीं। बिल्कुल शरीफों की तरह मेरे पास आ-जा। मैं तेरे को एक घण्टे का वक्त देता हूं यहां पहुंचने को। अगर तू एक घण्टे तक यहां नहीं पहुंचा तो मैं इन दोनों को शूट कर दूंगा, जिन्हें तू अपना परिवार समझता है।”
“मेरी बात सुनो देवराज चौहान... मैं तुम्हें...।"
“सिर्फ एक घण्टा साठी! उसके बाद मैं इन दोनों को शूट करके तेरी तलाश फिर से शुरू कर दूंगा। तूने मुझसे आधा घण्टा मांगा, मैंने दिया। तूने खुदे से बात करने को कहा, मैंने बात करा दी। इसी से तेरे को समझ जाना चाहिये कि इस वक्त मैं हर वो काम कर सकता हूं जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। मुझे तेरी जान लेनी है तो लेनी है। तेरे तक पहुंचने के लिए मुझे रास्ते में लाशें बिछाते हुए भी आना पड़े तो मैं ऐसा ही करूंगा। याद रखना हरामजादे, सिर्फ एक घण्टा उसके बाद तेरा परिवार खत्म और तू तब भी नहीं बचने वाला।”
“मेरी एक बात तो सुन... ।”
“जो कहना हो यहां आकर कहना। मैं तुझे पूरा मौका दूंगा कहने का ।” देवराज चौहान ने गुर्राहट भरे स्वर में कहा और फोन बन्द करके आगे बढ़ा और शिखा के पास सोफे पर उछाल दिया। दरिन्दे जैसा लग रहा था वो।
एकाएक शिखा फफक पड़ी।
"चुप।" देवराज चौहान दांत भींचे गुर्रा उठा।
"तुम साठी से मुंहमांगा पैसा ले लो। वो दे देगा, मैं गारण्टी लेती...।"
तभी देवराज चौहान का हाथ घूमा और शिखा के गाल पर जा पड़ा।
"शिखा के होंठों से चीख निकली और राहुल से टकराकर रह गई ।
"मुझे पैसा नहीं साठी की जान लेनी है। उसे खत्म करना है।" देवराज चौहान गुर्रा उठा।
तभी हरीश खुदे पास आता गम्भीर स्वर में शिखा से बोला---
"तुम चुप रहो। कुछ भी मत बोलो। कुछ भी नहीं। समझ जाओ।"
शिखा सिसकती रही। बोली कुछ नहीं।
"वो आ रहा है?" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
“नहीं आयेगा तो एक घण्टे बाद इन दोनों को शूट करके, उसकी तलाश में चल पड़ेंगे।” देवराज चौहान ने सुलगते स्वर में कहा।
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“मुझे देवराज चौहान के पास जाना होगा।” पूरबनाथ साठी ने गम्भीर स्वर में कहा।
पाटिल और कर्मा खत्री चौंके।
"ये आप क्या कह रहे हैं साठी साहब! वो आपकी जान ले सकता है। " पाटिल बोला।
“आपको वहां नहीं जाना चाहिये। हम कुछ सोच लेते हैं। कि हमें क्या करना चाहिये।” कर्मा खत्री ने बेचैन स्वर में कहा।
“एक घण्टे तक मैं वहां ना पहुंचा तो वो मेरे परिवार को खत्म कर देगा।"
“आप वहां गये तो वो आपको खत्म कर देगा मैं कभी भी सलाह नहीं दूंगा कि...।"
“मुझे विश्वास है कि मैं उसे समझाकर रास्ते पर ले आऊंगा। दौलत में बहुत ताकत होती है। मैं देवराज चौहान को बड़ी-से-बड़ी दौलत की ऑफर दूंगा कि वो मेरे रास्ते से हट जाये। ये बुरा वक्त है। इस वक्त को हमने सब्र के साथ सम्भालना है। सब ठीक रहा तो देवराज चौहान से बाद में निपट लिया जायेगा। परन्तु इस वक्त झुक जाना मेरी मजबूरी है। क्योंकि मेरे परिवार की जिन्दगी का सवाल है। उन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं।"
"आप गलत कर रहे हैं।” कर्मा खत्री ने नाराजगी से कहा।
"तुम्हारा परिवार खतरे में होता तो तुम क्या करते ?” साठी ने गम्भीर निगाहों से कर्मा खत्री को देखा।
"मैं अपनी जान खतरे में डाले बिना कोई रास्ता निकालता। इतना बड़ा रिस्क कभी ना लेता कि...।”
"मुझे अपने बेटे से और शिखा से प्यार है। वो दोनों मेरे लिए बहुत महत्व रखते हैं।"
"और अगर देवराज चौहान ने आपको मार दिया तो?" पाटिल बेचैन स्वर में बोला।
चन्द पलों की खामोशी के बाद साठी गम्भीर स्वर में कह उठा---
"तो देवेन को खबर कर देना ।"
कर्मा खत्री और पाटिल की नजरें मिलीं।
"मेरे यहां से जाने के बाद तुम दोनों आराम से रहोगे और आने वाले वक्त का इन्तज़ार करोगे। वहां पर किसी भी आदमी को नहीं भेजोगे और ना ही खुद वहां आओगे। मैं अकेला जाऊंगा।"
“तो हमें कैसे पता चलेगा कि वहां क्या हुआ है?" कर्मा खत्री बोला।
“मेरे फोन का इन्तज़ार करना।" पूरबनाथ साठी ने गम्भीर, बेहद शान्त स्वर में कहा।
“आपको देवराज चौहान के पास नहीं जाना चाहिये। वो आपकी जान लेना चाहता है। उसने अगर आपको गोली मार दी तो हम देवेन साहब को क्या जवाब देंगे साठी साहब!"
"देवेन को जवाब देने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि मैं वहां सब ठीक कर लूंगा।” साठी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
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पैंतीस मिनट बीत गये।
वहां पर हर पल खतरनाक माहौल से गुजर रहा था। शिखा ने सोफे पर राहुल को अपने साथ सटा रखा था। चेहरे पर डर के भाव नाच रहे थे। आंखों से रह-रहकर आंसू निकल जाते। पन्द्रह बरस के राहुल के चेहरे पर गम्भीरता नज़र आ रही थी। वो सब कुछ समझने की चेष्टा कर रहा था परन्तु डर नहीं रहा था।
देवराज चौहान हाथ में रिवाल्वर थामे यहां से वहां टहल रहा था।
खुदे तिपाई पर बैठा, गम्भीरता से देवराज चौहान और जगमोहन को देखने लगता था।
आंखों में सुर्खी थी जगमोहन की। एकाएक वो ठिठककर शिखा से बोला---
"तुम दोनों की जिन्दगी के पच्चीस मिनट बाकी रह गये हैं।" आवाज में वहशीपन था ।
“ऐसा मत कहो। राहुल को मत मारना।" शिखा रो पड़ी--- "हमें छोड़ दो, जाने दो हमें।”
देवराज चौहान ने होंठ भींचे जगमोहन से कहा---
“बाहर नजर मारकर आ। देख तो, साठी के कितने आदमी आ पहुंचे हैं।"
"कुत्ता साला।" जगमोहन दरवाज़े की तरफ बढ़ा--- “बहुत आदमी लगा दिए होंगे यहां।"
“मैं भी साथ चलूं...।” खुदे ने जगमोहन को देखा।
"क्यों?"
"साठी के आदमियों को मैं पहचानता हूं।"
“ऐसे आदमी दूर से ही पहचाने जाते हैं।" जगमोहन ने खा जाने वाले स्वर में कहा--- “तू मौका देखकर भागना चाहता है ।"
"नहीं, मैं तो तुम्हारी सहायता... ।”
"चुपचाप यहीं बैठा रह।" जगमोहन ने सावधानी से दरवाजा खोला। बाहर झांका।
बाहर सब ठीक था।
“मैं चक्कर लगा के आता हूं। तू दरवाजा बन्द कर ले।” जगमोहन ने कहा और बाहर निकल गया।
खुदे ने तुरन्त उठकर दरवाजा बन्द किया फिर देवराज चौहान से बोला---
“साठी अब मुझे छोड़ने वाला नहीं। वो मुझे खत्म करा देगा। तुमने मुझे मुसीबत में डाल दिया देवराज चौहान!”
“वो जिन्दा बचेगा तो तुझे खत्म करायेगा।” देवराज चौहान गुर्राया ।
खुदे ने कुछ नहीं कहा।
"क्या बोला वो फोन पर तेरे को?" देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
"पूछ रहा था कि मेरे पास रिवाल्वर है। वो चाहता है कि मैं तुम दोनों को खत्म कर दूँ। मुझे तगड़ा इनाम देने को बोला ।”
"तो तूने क्या बोला?"
"मेरे पास रिवाल्वर नहीं है।"
"होती तो तू हम दोनों पर गोली चला देता।” देवराज चौहान गुर्राया ।
"पागल नहीं हो गया मैं जो ऐसा करता ।” हरीश खुदे ने मुंह बनाकर कहा--- “पूरबनाथ साठी को मैं अच्छी तरह जानता हूं। आठ साल उसके लिए काम किया है। जो भी उसके खिलाफ चले, उसे वो खत्म कर देता है। मैं पहले तुम्हें उस ठिकाने तक ले गया जहां साठी मौजूद था। साठी ने मुझे कार में बैठे देखा भी और पहचाना भी। उसके बाद मैं तुम दोनों को यहां ले आया, जहां उसका बेटा और पत्नी है। जबकि इन दोनों के बारे में किसी को नहीं पता था कि साठी से इनका सम्बन्ध है। इसके बाद तो साठी मुझे किसी भी कीमत पर छोड़ने वाला नहीं। बेशक उसे कुतुबमीनार खरीदकर क्यों ना दे दूं।"
देवराज चौहान ने दीवार पर लगी घड़ी देखी फिर खतरनाक स्वर में शिखा को देखकर बोला---
“पन्द्रह मिनट बाद तुम दोनों की जिन्दगी खत्म होने वाली है।"
“नहीं, ऐसा मत कहो। मुझे मार दो। मेरी जान ले लो, पर मेरे बेटे को कुछ नहीं कहना। ये मासूम है, ये...।"
“तुम दोनों मरोगे।” देवराज चौहान गुर्राया--- "तुम दोनों की वजह से साठी अपनी जान नहीं गंवाना चाहेगा। वो यहां नहीं आने वाला। पर मैंने उसे एक घण्टे का वक्त दिया है तो वो वक्त मुझे निकालना ही है।"
“व... वो आयेगा।” शिखा कांपते स्वर में कह उठी।
"ये तुम्हारा भ्रम है, जो कि जल्दी टूटने वाला है।” देवराज चौहान ने पहले वाले लहजे में कहा।
“नहीं, वो हमें चाहता है। अपने बेटे को तो बहुत चाहता है।" शिखा की आंखों से आंसू बह रहे थे--- “उसे इस बात की बहुत खुशी है कि राहुल शराफत की दुनिया में पल-बढ़ रहा है। बेटा, उस जैसा नहीं है। वो राहुल को डॉक्टर बनाना चाहता है, इसे पढ़ने के लिये अमेरिका भेजेगा। राहुल के साथ उसके बहुत सपने जुड़े...।"
"मुझे विश्वास नहीं आता कि अपने बेटे के बारे में वो ऐसा सोचता है।" हरीश खुदे ने व्याकुलता से कहा--- “साठी तो एक नम्बर का हरामजादा है, वो किसी के भले के लिए सोच ही नहीं सकता।"
“उसे अपने बेटे से प्यार है।” शिखा फफकती कह उठी।
"वो यहां नहीं आने वाला।” खुदे ने गहरी सांस लेकर कहा।
शिखा अपना कांपता हाथ राहुल के सिर पर फेरती कह उठी---
"तू घबरा मत राहुल! तेरे पापा जरूर आयेंगे। वो जरूर आयेंगे। तुझे कुछ ना होने देंगे।"
"ये सब क्या हो रहा है मम्मा ?” राहुल हालातों को समझने की कोशिश में था।
"कुछ नहीं हो रहा। ये बुरा वक्त है, जो कि निकल... ।”
तभी कॉलबेल बजी।
एकाएक सब ठिठक गये। नजरें एक-दूसरे पर गईं।
देवराज चौहान के दांत भिंच गये।
“जगमोहन होगा।” कहने के साथ ही खुदे दरवाजे तक पहुंचा और बोला--- “कौन ?”
"साठी...।"
दो पलों के लिए हरीश खुदे सकते की हालत में खड़ा रह गया।
"कौन है?” देवराज चौहान गुर्राया ।
"साठी...।"
“आ गया हरामजादा। दरवाजा खोल... ।” देवराज चौहान की सुर्ख आंखें खतरनाक अन्दाज में चमक उठीं।
“तेरे पापा आ गये राहुल! मैं ना कहती थी वो जरूर आयेंगे।” शिखा खुशी से कांपते-रोते स्वर में कह उठी ।
खुदे दरवाजे के पास मुंह ले जाकर हड़बड़ाये स्वर में बोला---
“देवराज चौहान जानना चाहता है कि आपके साथ कितने लोग हैं?"
जवाब में जगमोहन की आवाज आई।
“दरवाजा खोल... ।"
खुदे ने फौरन दरवाजा खोल दिया।
आगे साठी, पीछे सुलगता-सा जगमोहन खड़ा था।
साठी ने खुदे को देखा।
"सलाम साठी साहब!" खुदे घबराकर बोला--- “मेरा कोई कसूर नहीं, ये लोग ही मुझे....।"
जगमोहन ने साठी को भीतर धकेला और खुद भी भीतर आ गया।
खुदे ने जल्दी से दरवाजा बन्द कर लिया।
“ये अकेला आया है। खुद कार चलाकर लाया है। मैंने देखा और बाहर इसके आदमी भी नहीं हैं।" जगमोहन ने दांत भींचकर कहा।
देवराज चौहान की चमक भरी लाल आंखें साठी पर टिक गई थीं।
साठी ने वहां नज़र मारी फिर शिखा और राहुल के पास जा पहुंचा।
“घबराओ मत। सब ठीक हो जायेगा।"
“पापा!” राहुल कह उठा--- "ये लोग कौन हैं और क्यों यहां पर...।"
"सब ठीक है। जो होना था हो गया। अब मैं आ गया हूं। शिखा, राहुल को लेकर दूसरे कमरे में चली जाओ। दरवाजा भीतर से बन्द कर लेना। कुछ ही देर में पहले वाला वक्त लौट आयेगा ।"
शिखा आंसू साफ करके उठी और राहुल को लिए सामने वाले कमरे में चली गई। दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया। साठी ने खुदे, जगमोहन को देखने के बाद देवराज चौहान से कहा---
"मैं तुमसे बात करना चाहता हूं।”
"ज्यादा वक्त नहीं है मेरे पास।” देवराज चौहान गुर्राया--- “तेरे को सामने पाकर मैं बहुत खुश हो रहा हूं।"
“मैं भी...।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
“सवाल वो ही है मेरा कि क्यों मेरी जान लेना चाहते हो?" साठी गम्भीर स्वर में बोला।
“बताया तो, मुझे याद नहीं आ रहा, परन्तु जब सोचा होगा तेरी जान लेनी है तो वजह भी रही होगी। जाने क्यों भूल गया मैं। लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अब तू मरने वाला है।” देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
साठी ने जगमोहन को देखकर कहा।
“तुम भी भूल गये।"
"मुझे भी याद नहीं आ रहा हरामजादे! लेकिन तुझे नहीं भूला जो कि...।"
“ये बात विश्वास करने लायक नहीं कि मुझे मारने की वजह तुम दोनों ही भूल जाओ।"
“क्या कहना चाहते हो?"
"तुम लोग उसका नाम नहीं बताना चाहते, जिसने तुम्हें मुझे मारने के लिए मोटी रकम दी है।"
“हमें किसी ने पैसा नहीं दिया।” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला--- “जो बात करनी है, जल्दी कर ।"
साठी ने सिगरेट सुलगाई और खुदे को देखकर कहा---
“तू बता खुदे, ये मुझे क्यों मारना चाहते हैं?"
"म... मैं कुछ भी नहीं जानता। मैं इनके साथ नहीं हूं।” खुदे घबराकर बोला।
"तो तू भी बताने को तैयार नहीं।"
“सच में मैं नहीं जानता साठी साहब...!” खुदे ने जल्दी से कहा।
साठी ने देवराज चौहान को देखा फिर कश लेकर कहा---
“मैं ये मामला खत्म करना चाहता हूं देवराज चौहान! मेरी ताकत का तेरे को अन्दाजा जरूर है, परन्तु इस वक्त मैं अपने परिवार की खातिर कह रहा हूं कि ये मामला खत्म कर देना चाहता हूं।"
"तेरे से ज्यादा जल्दी तो मुझे है मामला खत्म करने की।”
देवराज चौहान रिवाल्वर थामे क्रूरता भरे अन्दाज में कहता आगे बढ़ा और पास पहुंचकर रिवाल्वर की नाल साठी के दिल वाली जगह से सटा दी।
"ऐसे नहीं ।" साठी गम्भीर स्वर में बोला--- “दोस्तों की तरह खत्म करना चाहता हूं।”
“तू दोस्ती के काबिल नहीं...।"
"मैं तुम्हें हजार करोड़ तक की दौलत दे सकता... !”
तभी देवराज चौहान ने ट्रेगर दबा दिया।
गोली चलने का तेज धमाका हुआ।
साठी के शरीर को झटका लगा और वो पीछे जा गिरा। गोली ठीक दिल वाली जगह में प्रवेश कर गई थी। नीचे गिरा साठी एक बार भी नहीं तड़पा और शान्त पड़ा रह गया। उसकी आंखें खुली हुई थीं। पलकों को बन्द होने का भी मौका नहीं मिला था और जान निकल गई थी। दिल वाली जगह पर जरा-सा निशान नज़र आ रहा था कि तभी भीतर से खून बाहर निकलने लगा। कमीज का वो हिस्सा लाल होने लगा।
"साठी को मार दिया?” खुदे के होठों से फटा-फटा-सा स्वर निकला ।
तभी बन्द कमरे का दरवाजा खुला और बदहवास-सी शिखा बाहर निकली। तभी उसकी निगाह नीचे पड़े साठी पर पड़ी तो वो स्तब्ध-सी खड़ी रह गई।
“चलो।” देवराज चौहान गुर्राया और रिवाल्वर जेब में रख ली।
जगमोहन ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।
खुदे और देवराज चौहान भी बाहर निकलते चले गये।
भीतर से शिखा के रोने- चीखने की आवाजें सुनाई देने लगी थी।
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