रात 9:30 बजे समरपाल चित्रा उसके साथ उसके तीन बेहतरीन निशानेबाज अर्जुन भारद्वाज, नीना और बंसल, रेड रोज कैसीनो आ पहुँचे । तेज रोशनी में नहाया कैसीनो रूपी जहाज चमक रहा था । भीतर पर्याप्त हलचल व्याप्त थी । रोज की तरह रौनक और विदेशी पर्यटकों का ढेर-सा दिख रहा था । किनारे से बोट उन्हें जहाज तक ले आई थी । बोट से लकड़ी की सीढ़ी पर पाँव रखा, जिसका पायदान बेहद सुरक्षित था और वो ऊपर चढ़ते जहाज में प्रवेश कर गए । समरपाल चित्रा के चेहरे पर बेचैनी दिख रही थी ।

"अपने चारों लोगों को फोन करो, जो पहले से ही यहाँ मौजूद है ।" समरपाल चित्रा ने अपने आदमी से कहा ।

वो तुरंत फोन निकालकर व्यस्त हो गया ।

अर्जुन भारद्वाज की नजरें हर तरफ जा रही थी । ये कैसीनो का बाहरी हिस्सा था । यहाँ से लोगों का किनारे पर आना-जाना होता था । जो बोट उन्हें छोड़ गई थी, वो जाते-जाते तीन लोगों को वापस भी ले गई । तभी अर्जुन ने एक आदमी को उनकी तरफ बढ़ते देखा । वो कैसीनो की वर्दी में था ।

"वेलकम सर ।" पास आकर वो समरपाल चित्रा से बोला, "आइए मैं आपको कैसीनो का रास्ता दिखा दूँ ।"

"मैं यहाँ जुआ खेलने नहीं आया ।" समरपाल चित्रा कह उठा ।

"तो ?"

"ऊपर का कमरा मैंने बुक करा रखा है ।"

"ओह ।" वो मुस्कुराया, "आप समरपाल जी हैं । आइए मैं आपको... ।"

"अभी मुझे अकेला छोड़ दो ।"

वो आदमी तुरंत एक तरफ हटता चला गया । उसका आदमी फोन बंद करता बोला ।

"साहब जी, वो चारों इधर पहुँच रहे हैं । इस वक्त कैसीनो के भीतर हैं ।"

समरपाल सिंह ने कुछ नहीं कहा और रात के काले समंदर पर नजर दौड़ाने लगा ।

"ये चारों वही है जो हीरा लेकर गोवा पहले ही पहुँच चुके हैं ।" अर्जुन भारद्वाज बोला ।

"हाँ ।"

"खरीददार पार्टी आ गई ?"

"वो रात ग्यारह बजे आएगी ।" समरपाल चित्रा ने कहा, "अर्जुन भारद्वाज, तुम ध्यान रखना कि अगर कोई मेरे से हीरा छीनना चाहे तो तुमने उसे सफल नहीं होने देना है ।"

"आप फिकर न करें । बेहतर होगा कि सौदा होने तक हीरा मेरे हवाले कर दें ।" अर्जुन भारद्वाज ने कहा ।

"हीरा मेरे पास ही रहेगा । मेरे पास ज्यादा सुरक्षित है ।"

अर्जुन भारद्वाज ने कुछ नहीं कहा ।

दस मिनट में ही चार आदमी वहाँ आ पहुँचे । एक ब्रीफकेस थामे हुए था ।

"हीरा दिखाओ ।" समरपाल चित्रा ने कहा ।

ब्रीफकेस खोलकर भीतर रखी काली थैली निकाली । ऐसा करते हुए चारों ने इस तरह से घेरा बना लिया था कि कोई देख न सके कि वहा क्या कर रहे हैं ।

हीरा देखकर समरपाल चित्रा ने तसल्ली से सिर हिलाया । थैली में हीरा डालकर उसे अपनी जेब में रखा और ब्रीफकेस हाथ में थाम लिया । अर्जुन ने भी हीरा देख लिया था ।

"लगता नहीं कि ये हीरा आठ सौ करोड़ का होगा ।" अर्जुन ने धीमे स्वर में कहा ।

"ये बात सिर्फ खरीदने वाला और बेचने वाला ही समझ सकता है ।" समरपाल ने तीखे स्वर में कहा, " यहाँ से चलो । हमें ऊपर बने कमरे में पहुँचना है ।"

"मैं भी वो कमरा देखना चाहता हूँ ।"

सब वहाँ से कैसीनो के भीतर प्रवेश कर गए ।

समरपाल चित्रा कैसीनो के मैनेजर से मिला । उन्हें अपने आने की खबर दी । एक आदमी उन्हें जहाज के ऊपर बने कमरे में छोड़ा गया । कैसीनो से उठती आवाजें यहाँ तक आ रही थीं । अर्जुन भारद्वाज कमरे के बाहर ही ठिठका और आस-पास की जगह का जायजा लेने लगा ।

नीना समंदर को निहारती कह उठी ।

"कितना अच्छा मौसम है सर । अंगड़ाई लेने का मन कर रहा है ।"

"तो ले लो ।" अर्जुन ने बंसल के पास आने का इशारा किया जो कि आस-पास नजरें घुमा रहा था ।

"यस सर ।"

"तुम इन सीढ़ियों के पास रहोगे । अभी से यही डट जाओ और हर आने-जाने वाले पर नजर रखोगे । इस काम में तुम्हारी सहायता नीना करेगी । किसी पर जरा भी शक हो तो उसे कमरे में जाने से रोक लेना ।"

"यस सर ।" कह कर बंसल सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया ।

"मैं भी जाऊँ सर ?" नीना कह उठी ।

"तुम्हें अब तक चले जाना चाहिए था ।"

नीना, बंसल की तरफ बढ़ गई । अर्जुन भारद्वाज कमरे के भीतर पहुँचा ।

शानदार कमरा था । लंबे कमरे की एक तरफ लम्बी टेबल और उसके आस-पास 16 कुर्सियाँ रखी थीं । दूसरी तरफ सोफे लगे थे और चौड़ी सेंटर टेबल थी । कोने में डबल बेड लगा था । पास ही खिड़की थी कि बेड पर बैठे ही बैठे समंदर का नजारा किया जा सके । कमरे के एक कोने में छोटा-सा बार काउंटर था । पीछे 15 से 20 विदेशी व्हीस्की की बोतल लगी हुई थी । परंतु इस वक्त बार मैन वहाँ मौजूद नहीं था ।

समरपाल चित्रा कमरे में टहल रहा था । ब्रीफकेस को एक तरफ रख चुका था । उसके सातों आदमी इस वक्त वहीं मौजूद थे । तभी अर्जुन भारद्वाज, समरपाल चित्रा से कह उठा ।

"तुम्हारे ये आदमी क्या कमरे के भीतर रहेंगे ?"

"ये तीन मेरे साथ ही रहेंगे जो प्लेन में हमारे साथ आए हैं ।"

"बाकी 4 को मैं बाहर पहरे पर लगा सकता हूँ ?" अर्जुन ने पूछा ।

"बेशक ।"

अर्जुन भारद्वाज उन चारों के साथ बाहर निकल गया ।

समरपाल चित्रा ने अपने तीनों आदमियों को देखकर कहा ।

"सतर्क रहना । अगर कोई हीरा छीनने की कोशिश करें तो बेशक शूट कर देना ।" उसने कलाई पर बँधी घड़ी में वक्त देखा । रात के साढ़े दस बज रहे थे, "जो लोग हीरा खरीदने आ रहे हैं वो भी कोई चालाकी कर सकते हैं । तुम तीनों की नजर सौदे पर नहीं, हीरे पर होनी चाहिए ।"

"हम पूरी तरह सतर्क रहेंगे ।"

समरपाल आगे बढ़ा और नरम सोफे पर बैठ गया । सोफा धँसा-सा दिखने लगा ।

तभी कमरे में मोना चौधरी ने प्रवेश किया । वो मोना चौधरी ही थी परंतु मेकअप से चेहरा इस हद तक बदल लिया था कि सीधे-सीधे कोई पहचान न सके । वो काली और सफेद ब्लाउज के ऊपर काली छोटी-सी कोटी डाली हुई थी । ये कैसीनो की ड्रेस थी वेट्रेस के लिए । सिर पर कपड़े की काली टोपी कुछ तिरछी करके रखी हुई थी कि निगाह उस पर जा टिकी थी ।

मोना चौधरी मस्तानी चाल चलते समरपाल चित्रा के गरीब पहुँचकर ठिठकी ।

"सर, आपकी सेवा में रेड रोज कैसीनो की तरफ से, मैरी हाजिर है ।" मोना चौधरी मीठे स्वर में कह उठी ।

"हेलो ।" समरपाल चित्रा ने मंत्रमुग्ध-सा हाथ आगे बढ़ा दिया ।

मोना चौधरी ने हाथ मिलाया ।

"तुम कितनी खूबसूरत हो मैरी ।" समरपाल चित्रा ने अभी तक उसका हाथ थाम रखा था, "तुम फिल्मों में काम क्यों नहीं करती ?"

"मेरी ऐसी किस्मत कहाँ सर ?" मोना चौधरी ने गहरी साँस ली ।

समरपाल ने उसी पल हाथ छोड़ा और जेब से कार्ड निकालकर मोना चौधरी की तरफ बढ़ाया ।

"ये मेरा कार्ड है । पाँच दिन बाद मुझे फोन करना । मैं तुम्हें हीरोइन बना दूँगा ।"

"सच सर ?" मोना चौधरी खुशी से कह उठी ।

"मिलना मुझे । तुम्हारा सब कुछ ठीक कर दूँगा ।" समरपाल सारी चिंता भूलकर मुस्कुरा पड़ा ।

"थैंक यू सर । आपने तो मुझे जीत लिया । थैंक्यू, थैंक्यू । मैं आपके लिए गिलास तैयार करती हूँ ।"

"रहने दो मैरी । अभी मैं जरूरी काम पर हूँ । पिऊँगा नहीं ।"

"सर, मेरे हाथ से हल्का वाला पैग ।" मोना चौधरी ने कहा और इठलाकर बार काउंटर की तरफ बढ़ गई ।

मोना चौधरी ने एक गिलास तैयार किया और काजू की प्लेट के साथ समरपाल के पास जा पहुँची । बड़े अदब के साथ गिलास उसे थमाया । प्लेट टेबल पर रखी ।

"तुम सच में हीरोइन बनने के काबिल हो ।" समरपाल, मोना चौधरी को प्रशंसा भरी निगाहों से देखता कह उठा ।

"ये तो आपकी पारखी नजरें हैं वरना मैं हूँ ही क्या ।"

उसी पल अर्जुन भारद्वाज ने भीतर प्रवेश किया और बोला ।

"सब ठीक है । यहाँ कोई भी गड़बड़ नहीं कर सकता । मैं ज़रा कैसीनो का चक्कर लगाकर आता हूँ ।"

मोना चौधरी को आवाज सुनी-सुनी लगी । वो तुरंत पलटी ।

अर्जुन भारद्वाज पर नजर पड़ते ही मोना चौधरी का दिल धक से थम गया (अर्जुन भारद्वाज और मोना चौधरी, पूर्व प्रकाशित उपन्यास "बबूसा और राजा देव" एवं "बबूसा खतरे में" में मिल चुके हैं) जैसी वो हक्की-बक्की रह गई हो । अगले ही पल ये सोचकर खुद को सामान्य किया कि मेकअप से चेहरा बदल रखा है ।

मोना चौधरी पर निगाह पड़ते ही अर्जुन भारद्वाज ठिठका ।

तभी मोना चौधरी मुस्कराकर अदा के साथ बोली ।

"आप भी बैठिए । आपके लिए भी गिलास तैयार करती हूँ ।"

"नहीं ।" अर्जुन भारद्वाज के होंठों से निकला, "तुम्हें कहीं देखा है ।"

"जरूर देखा होगा सर । ऐसी जगह पर । पहले मैं ग़ज़ल क्लब में काम करती थी ।"

"नहीं नहीं, ऐसी जगह पर नहीं । पर लगता है कि तुम्हें कहीं देखा है । खैर ।" कहने के साथ ही अर्जुन ने समरपाल से कहा, "मैं अभी आता हूँ । आपको यहाँ कोई खतरा नहीं है ।"

समरपाल चित्रा ने सिर हिला दिया ।

अर्जुन भारद्वाज बाहर निकल गया ।

■■■

देवराज चौहान ने अपने सामने रखे सारे टोकन टेबल की बीच अन्य टोकन के ढेर पर धकेले और सामने बैठे बूढ़े आदमी को देखकर बोला ।

"शो ।"

बूढ़े ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । नजरें देवराज चौहान पर थीं ।

अन्य चार और खिलाड़ी जो पैक हो चुके थे वो गेम का अंत देख रहे थे ।

बूढ़े व्यक्ति ने पत्ते उठाएँ, देखें और टेबल पर खोल दिए हैं ।

दो चौके और एक नहला था ।

देवराज चौहान मुस्कुराया । अपने पत्ते उठाएँ, देखें और पत्तों को टेबल पर मौजूद गड्डी में मिलाकर बूढ़े से कह उठा ।

"तुम्हारे पास दो गुलाम थे । बाजी तुम्हारी थी ।" तभी देवराज चौहान के कानों में फुसफुसाहट पड़ी ।

देवराज चौहान ने उसी पल गर्दन घुमाकर देखा । पीछे अर्जुन भारद्वाज खड़ा था । देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे । वो उठ खड़ा हुआ ।

"तुम यहाँ कैसे अर्जुन भारद्वाज ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

दोनों टेबल से दूर हट गए ।

"यही बात मैं तुमसे पूछने वाला था कि तुम... ।"

"मैं तो यहाँ खेलने आया था ।"

"लेकिन ये बाजी तुम्हारी थी, तुम्हारे पास दो गुलाम... ।"

"उस बूढ़े को पैसे की जरूरत है । "

"कैसे जाना ?"

"उसके हाव-भाव बता रहे हैं । वो बेचैन और परेशान है । जीतने के लिए जुआ खेलने आया है ।"

अर्जुन भारद्वाज ने कुछ नहीं कहा । देवराज चौहान को देखता रहा ।

"क्या देख रहे हो ?" देवराज चौहान बोला ।

"हिंदुस्तान के सबसे बड़े डकैती मास्टर को देख रहा हूँ ।" कहते हुए अर्जुन भारद्वाज ने गहरी साँस ली ।

"तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? कम से कम मैं ये बात नहीं मान सकता कि प्राइवेट जासूस यहाँ जुआ खेलने आया है ।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा, "किसी काम पर हो ?"

"हाँ ।" अर्जुन भारद्वाज ने सिर हिलाया, "बहुत ही खास काम पर हूँ ।"

"मेरी जरूरत हो तो कह देना ।" देवराज चौहान ने कहा, "मुझे वो वक्त याद है जब बबूसा के मामले में तुम मेरी सहायता करने आए थे (जानने लिए पढ़ें "बबूसा और राजा देव") मैं तब... ।"

"उस काम के तुम्हारी पत्नी ने मुझे पैसे दिए थे ।"

"फिर भी तुम मेरे काम आए थे । मुझे हमेशा याद रहेगा ।"

"तुम... तुम सच में यहाँ खेलने आए हो । किसी काम के लिए तो यहाँ नहीं हो ?" एकाएक अर्जुन भारद्वाज ने पूछा ।

देवराज चौहान चंद पल खामोश रहकर बोला ।

"तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा । मैं यहाँ किसी की सहायता करने आया हूँ ।"

"मतलब की कोई काम कर रहे हो इस कैसीनो में ?" अर्जुन भारद्वाज की आँखें सिकुड़ीं ।

"काम किसी और का है, मैं सिर्फ उसकी सहायता कर रहा हूँ ।"

"वो काम समरपाल से तो वास्ता नहीं रखता ?" अर्जुन भारद्वाज के होंठों से निकला ।

देवराज चौहान चौंका । नजरें अर्जुन भारद्वाज पर टिकी रहीं । कई पल इसी तरह बीत गए ।

देवराज चौहान से कुछ कहते न बना ।

"तो तुम्हारा काम समरपाल चित्रा से वास्ता रखता है ?" अर्जुन एकाएक बेचैन दिखा ।

"मेरा ये काम नहीं है । पर मैं जिसकी सहायता कर रहा हूँ, उसका काम समरपाल से वास्ता रखता है ।" देवराज चौहान बोला ।

"हीरा ?"

"हाँ !" देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया ।

अर्जुन भारद्वाज ठगा-सा खड़ा देवराज चौहान को देखता रह गया ।

"क्या हुआ ?" देवराज चौहान गंभीर दिखने लगा ।

"मैं समरपाल के साथ आया हूँ कि उस हीरे को सुरक्षा दे सकूँ ।" अर्जुन भारद्वाज ने कहा, "मेरी तुमसे रिक्वेस्ट है कि इस बात को मत करो । मैं ये नहीं होने दूँगा ।"

"मैं तुम्हारी स्थिति अच्छी तरह समझ गया हूँ ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा, "परंतु मैं ये काम नहीं कर रहा । कोई और कर रहा है । मैं सिर्फ उसकी सहायता कर रहा हूँ ।"

"तुम उसकी सहायता भी मत करो ।"

"करना जरूरी है । वो तुम्हारी ही तरह कभी मेरे काम आया था ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, "अगर समरपाल के पास से हीरा गायब हो जाए तो मुझे फोन करना तभी ।" देवराज चौहान ने अपना फोन नंबर बताया ।

"तब तुम क्या करोगे ?"

"तब तुम्हारी सहायता करूँगा कि तुम हीरा वापस समरपाल के हवाले कर दो ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ गया ।

■■■

ठीक 11:00 बजे देवराज चौहान का फोन बजा ।

"हेलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।

"11:30 बजे तीस सेकंड के लिए लाइट बंद कर देना ।" मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी ।

"क्या तब तक तुम मुझे दोबारा फोन करोगी ?"

"तुम्हें कॉल करूँगी परंतु बात नहीं करूँगी । उसी वक्त तुमने लाइट ऑफ कर देनी है ।"

"समझ गया ।" कह कर देवराज चौहान ने फोन बंद किया और सिगरेट सुलगाई । नजरें हर तरफ मारी । इस वक्त वो कैसीनो की पहली मंजिल पर था जहाँ हर तरफ रौनक ही रौनक नजर आ रही थी । लोग दाँव लगाने में व्यस्त थे । 10 मिनट तक देवराज चौहान वहीं पर चलता रहा फिर सीढ़ियाँ उतरकर नीचे की फ्लोर पर पहुँचा । यहाँ अधिकतर महिलाएँ-बच्चे थे । महिलाएँ हल्की-फुल्की मशीनों पर जुआ खेलकर दिल बहला रही थीं । कई परिवार कैसीनो की डाइनिंग हॉल में बैठे डिनर का मजा ले रहे थे । देवराज चौहान उस तरफ बढ़ गया जिस तरफ बेसमेंट में जाने का रास्ता था । शाम को ही इस रास्ते के बारे में उसने जानकारी ले ली थी ।

■■■

अर्जुन भारद्वाज वापस ऊपरी कमरे में पहुँचा । देवराज चौहान की बातें सुनने के बाद वो चिंता में था । इतना तो स्पष्ट हो चुका था कि समरपाल के हीरे पर हाथ डालने की कोशिश की जाएगी । देवराज चौहान कहता है कि ये काम उसका नहीं है । कोई और ये काम कर रहा है, वो तो इस काम में उसकी सहायता कर रहा है ।

हीरा समरपाल के हाथों से नहीं निकलना चाहिए । वो हीरे की रखवाली के लिए पास में मौजूद है, ऐसे में हीरा चला गया तो उसकी इज्जत खराब होगी । कमरे में प्रवेश करते ही अर्जुन ठिठक गया । वहाँ एक शेख के अलावा पाँच लोग और मौजूद थे और इस वक्त समरपाल से हाथ मिलाने, गले मिलने की रस्म निभाई जा रही थी । जाहिर था कि वे लोग अभी-अभी यहाँ पहुँचे थे । शेख की उम्र 60 साल लग रही थी । तीन लोग सूट पहने पास में मौजूद थे और बाकी के दोनों व्यक्तियों की उम्र 45-50 के करीब थी और बड़ा वाला ब्रीफकेस एक ने थाम रखा था । मिलने-मिलाने के प्रोग्राम के बाद वे लोग लम्बे टेबल की कुर्सियों पर बैठने शुरू हो गए ।

कैसीनो की तरफ से वहाँ छः युवतियाँ सजी-सँवरी सर्विस के लिए मुस्कान के साथ गिलासों को टेबल पर, उनके सामने रख रही थीं । एक युवती काजू और तरह-तरह के नमकीन की प्लेटें सजा रही थीं । मोना चौधरी छोटे-से बार काउंटर के पीछे रहकर, गिलास तैयार करने में व्यस्त थी ।

समरपाल चित्रा और शेख तथा उसके लोगों में हल्की बातचीत चालू थी । सबने गिलास उठाये और चियर्स की, घूँट भरे कि तभी अर्जुन भारद्वाज, समरपाल चित्रा के पास पहुँचा और झुककर कान में बोला ।

"सौदे के दौरान मैं भी यहीं रहूँ तो आपको एतराज तो नहीं ?"

समरपाल चित्रा ने सिर उठाकर अर्जुन भारद्वाज को देखा ।

"तुम बाहर रहो । यहाँ तुम्हारी जरूरत नहीं ।"

"मेरे ख्याल में मेरा भीतर रहना जरूरी है ।" अर्जुन बोला, "क्योंकि यहाँ पर... ।"

"पर मैं नहीं चाहता कि सौदे के वक़्त तुम यहाँ रहो । ये मेरा गुप्त मामला है । मैं नहीं चाहता कि तुम इस डील के बारे में जानो ।"

अर्जुन, समरपाल चित्रा के पास से हट गया और बार काउंटर पर पहुँचा । मोना चौधरी उसे देखकर मुस्कुरायी ।

"क्या लेंगे सर ?"

"डबल पैग, सोडे के साथ । व्हिस्की बढ़िया होनी चाहिए ।" अर्जुन भारद्वाज ने कहा ।

"यहाँ पड़ी हर बोतल बढ़िया है सर ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी गिलास तैयार करने लगी ।

हर तरफ घूमती निगाह अर्जुन की मोना चौधरी पर आ टिकी ।

"तुम्हारा चेहरा पहचाना-सा क्यों लगता है मुझे ?" अर्जुन भारद्वाज बोला ।

"मामूली बात है सर । कहीं भी मुझे देखा होगा । मैं कई जगह काम कर चुकी हूँ ।" मोना चौधरी मुस्कुराकर बोली और गिलास तैयार करके अर्जुन भारद्वाज की तरफ सरका दिया, "लीजिए सर ।"

अर्जुन ने गिलास उठाया और घूँट भरा ।

"आप उन लोगों में क्यों नहीं बैठे ?" मोना चौधरी मीठे स्वर में बोली ।

"मेरा काम भीतर नहीं, बाहर है ।" अर्जुन भारद्वाज ने कहा और गिलास थामे बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।

अर्जुन भारद्वाज उस कमरे से निकलकर खुले में पहुँचा और नजरें घुमाईं । नीना और बंसल नीचे जाने वाली सीढ़ियों के पास टहल रहे थे । वहाँ कैसीनो की तरफ से भी तीन लोग मौजूद थे । दो गॉर्ड और एक गनमैन । वो एक तरफ पड़ी कुर्सी खींचकर वहीं पर बैठ गया । तभी नीना पास आ पहुँची ।

"सर, आप ड्यूटी पर भी पी रहे हैं ?" नीना कह उठी ।

"मुफ्त का माल है ।" अर्जुन भारद्वाज ने मुँह बनाया ।

"मुफ्त का माल आपका जासूसी का धंधा चौपट कर देगा ।"

"कोई संदिग्ध दिखा ?"

"नहीं सर, सब ठीक है ।"

"मेरी बात सुनो नीना । बंसल से भी कह देना ।" अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा, "यहाँ कुछ होने वाला है । हीरा ले जाने की कोई कोशिश करेगा । वो भीतर का आदमी है या बाहर का, कह नहीं सकता । वो जो भी है, उसकी सहायता देवराज चौहान कर रहा है ।"

"देवराज चौहान, वो डकैती मास्टर ?"

"वही ।"

"वो, वो यहाँ, इस कैसीनो पर है ?" नीना हक्की-बक्की हो उठी ।

"यहीं है । मैं मिला उससे । उसी ने हीरा ले जाने की बात बताई । सावधान रहो, कभी भी खतरे की घण्टी बज सकती है । बंसल से कह देना कि कोई भी यहाँ से हीरा ले जाने में कामयाब न हो सके । ये हमारी इज्जत का सवाल है ।"

"देवराज चौहान तो बहुत कमीना निकला । आपने उसकी सहायता की थी । उसे कहते कि आप हीरे को सुरक्षा दे रहे हैं ।"

"कहा था । परन्तु वो कह रहा है कि वो हीरे को नहीं ले जा रहा है । कोई और ये काम करेगा । वो तो बस उसकी सहायता ही कर रहा है ।"

"झूठ बोलता है । बहाना मारता है । इतने कीमती हीरे पर वही हाथ डालेगा । मेरे हाथ लग गया तो ऐसे पकड़ लूँगी कि पुलिस के आने तक उसे छोड़ने वाली नहीं । चालबाज कहीं का ।" कहते हुए नीना, बंसल की तरफ बढ़ गई ।

अर्जुन भारद्वाज ने घूँट भरा । नजरें हर तरफ घूम रही थीं ।

***

देवराज चौहान आगे बढ़ता हुआ एकाएक सतर्क हो गया । ये पतली-सी गैलरी थी और आगे एक जगह खड़े दो गार्ड दिखने लगे थे । देवराज चौहान जानता था कि वो दोनों गार्ड बेसमेंट में जाने वाली सीढ़ियों के मुहाने पर खड़े पहरा दे रहे हैं । शोर अब मध्यम हो गया था । इस तरफ सिर्फ कैसीनो के कर्मचारी ही आते थे । गैलरी में रोशनी के लिए दो-तीन जगह मध्यम से बल्ब जल रहे थे । अब देवराज चौहान के कानों में भारी जनरेटरों की चलने की आवाज पड़ने लगी थी ।

जब देवराज चौहान दोनों गार्डों के पास पहुँचा तो वो दोनों भी उसे ही देख रहे थे ।

"इधर कहाँ जा रहे हैं सर ? यहाँ कुछ नहीं है । वापस जाइए ।" एक गार्ड सामान्य स्वर में कह उठा ।

"ये रास्ता ।" देवराज चौहान गार्डों के पीछे नजर आती सीढ़ियों को देखकर बोला, "बेसमेंट में जाता है ?"

अब सीढ़ियों की तरफ से जनरेटरों की तेज आवाज आ रही थी ।

"हाँ । इधर कैसीनो का बिजली घर है ।" दूसरे गार्ड ने कहा ।

उसी पल देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकालकर उन पर तान दी ।

"नीचे चलो । मुझे बेसमेंट में ही जाना है ।" देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला ।

रिवॉल्वर देखकर दोनों गार्ड अचकचाए ।

"लेकिन नीचे तो सिर्फ जनरेटर ही... ।" एक गार्ड ने कहना चाहा ।

"नीचे चलो । सीढ़ियाँ उतरो ।" देवराज चौहान उन्हें रिवॉल्वर दिखाता गुर्राया ।

उलझन में फँसे दोनों गार्ड्स पलटे और सीढ़ियाँ उतरने लगे ।

रिवॉल्वर थामे देवराज चौहान सावधानी से उनके पीछे सीढ़ियाँ उतरने लगा कि तभी एक गार्ड बिजली की थी तेजी से पलटा और देवराज चौहान पर झपट पड़ा । दो पलों के लिए देवराज चौहान हड़बड़ाया फिर सीढ़ी पर बैठते हुए उसने गार्ड की गर्दन थामी और रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी सिर पर किया तो तीव्र कराह के साथ वो देवराज चौहान के पास ही सीढ़ी पर लुढ़क गया । दूसरा गार्ड घबराया-सा खड़ा ये सब देख रहा था ।

"कोई चालाकी मत करना ।" देवराज चौहान ने दाँत भींचकर दूसरे गार्ड से कहा, "उसे उठाओ और नीचे ले जाकर फर्श पर लिटा दो । तुम दोनों के अलावा नीचे कितने लोग हैं ?"

"दो ।" वो जल्दी से बोला ।

"दो क्यों, तीन होते हैं ।" देवराज चौहान का स्वर सख्त था ।

"आज एक आया नहीं ।"

"इसे उठाकर नीचे चलो ।" देवराज चौहान ने रिवॉल्वर हिलाकर कहा ।

■■■

समरपाल और शेख के बीच करीब आधा घंटा यूँ ही बातचीत होती रही । गिलास खाली होते रहे । तभी बातचीत का सिलसिला थमा और शेख कह उठा ।

"चित्रा साहब । आप हीरा दिखाइए । उस नायाब हीरे को तो देख लूँ जो अब मेरा होने वाला है ।" कहकर वो हँस पड़ा था ।

"जरूर शेख साहब । आपके लिए ही तो हीरा लाया हूँ ।" कहकर समरपाल ने जेब से छोटी काली थैली निकाली ।

"मेरे एक्सपर्ट ।" शेख ने दो की तरफ इशारा किया, "हीरे को 10 मिनट में परख लेंगे । उनका इशारा मिलते ही मैं डील फाइनल कर दूँगा । आज रात में ही आपको सारी पेमेंट उसी तरह मिल जाएगी जैसे कि आप चाहते हैं ।"

काली थैली के हाथ में आते ही मोना चौधरी ने बार काउंटर के पीछे से देवराज चौहान को फोन मिलाया । फोन मिलाकर जेब में रखा और ट्रे में तैयार कर रखें गिलासों की ट्रे उठाकर खुद ही टेबल की तरफ बढ़ गई । अन्य वेट्रेस सर्विस देने के लिए एक तरफ तैयार खड़ी थीं । मोना चौधरी ने उनसे कहा ।

"टेबल से खाली गिलास उठाओ ।"

दो वेट्रेस जल्दी से गिलास उठाने पर लग गई ।

मोना चौधरी टेबल की करीब पहुँची और अदाओं भरे अंदाज में गिलास सबके सामने रखने लगी । समरपाल ने थैली में से गुलाबी हीरा निकाला । वो इतना खूबसूरत था कि शेख कह उठा ।

"वाह, क्या चीज है । लाजवाब । नजर पड़ते ही मन मोह लिया । बहुत नाम सुना था इस हीरे का ।"

"ये दुनिया में इकलौता ऐसा हीरा है जनाब जो अंधेरे कमरे को गुलाबी रोशनी से चमका देता है । "समरपाल चित्रा ने कहा, "दिल तो नहीं करता कि इसे बेचूँ पर लगता है ये अब आपकी किस्मत में है । मैं तो... ।"

ठीक इसी पल लाइट गुल हो गई । गहरा अंधेरा छा गया ।

"ये क्या हुआ ?" समरपाल चित्रा की आवाज उभरी ।

"लाइट चली गई है ।" समरपाल के साथी की आवाज आई ।

"कैसा घटिया कैसीनो है, जहाँ लाइट... ।"

तभी कुछ छीना-झपटी की आवाजें आईं ।

"आह, मेरा हीरा किसने छीना ?" समरपाल चित्रा की घबराहट भरी आवाज सबने सुनी ।

"हीरा ?"

"हीरा कौन छीन सकता है ?"

उसी पल समरपाल चित्रा के हाथ में हीरा थमा दिया गया ।

"मिल गया । मेरा हीरा, मेरे पास है ।" समरपाल चित्रा की राहत भरी आवाज सुनाई दी, "लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि किसी ने मेरे हाथ से हीरा लिया और फिर मुझे वापस दे दिया ।"

"हीरा आपके पास है न ?" शेख की आवाज गूँजी ।

"हाँ, मेरे पास है । मेरी मुट्ठी में । अब ठीक है । मैं तो घबरा ही गया था ।"

उसी पल रोशनी वापस आ गई ।

सब कुछ दिखने लगा । सब पहले जैसा था ।

मोना चौधरी पास खड़ी गिलासों को पुनः टेबल पर रखने लगी ।

समरपाल चित्रा ने हाथ में हीरा देखकर राहत की साँस ली ।

दरवाजे पर खड़े अर्जुन भारद्वाज ने ऊँची आवाज में पूछा ।

"सब ठीक है ?"

"ठीक है ।" समरपाल चित्रा के साथी ने कहा ।

अर्जुन भारद्वाज दरवाजे के बाहर निकल गया ।

मोना चौधरी ने खाली ट्रे अन्य वेट्रेस को थमाई और बोली ।

"मैं अभी फ्रेश होकर आती हूँ ।" कहने के साथ ही वो बाहर जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी ।

"लीजिए शेख साहब । अपनी अमानत संभालिये ।" समरपाल चित्रा ने शेख को हीरा दिया ।

शेख ने हीरा अपने हाथों में लिया और प्यार से उसे निहारने लगा ।

"ये मेरे लिए ही बना है । कितना सुंदर है । जितनी भी देखो, मन नहीं भरता ।" कहने के बाद शेख ने हीरा अपने दोनों आदमियों की तरफ बढ़ा के बोला, "अच्छी तरह चेक करो ।"

उन्होंने हीरा लिया, अपना ब्रीफकेस खोला और लेंस निकालकर उसे चेक करने लगे ।

"अगर मुझे मौका मिलता तो उसे मैंने चुरा लेना था ।" शेख हँसकर कह उठा ।

"अब तो आप इसके मालिक बन गए ।"

"बकवास ।" एकाएक हीरा चेक करने वाला लेंस को वापस ब्रीफकेस में डालता हुआ कह उठा, "ये साधारण गुलाबी रंग का काँच है । नकली हीरा है ये । ये धोखेबाजी हो रही है आपके साथ शेख साहब ।"

समरपाल चित्रा सन्न रह गया ।

शेख ने हीरा उठाया और समरपाल चित्रा की तरफ सरकाकर बोला, "ये कैसा मजाक है समरपाल साहब ?"

"ये, ये नकली नहीं हो सकता । मैं इसे कई बार शौकिया तौर पर चेक कराता रहता... ।" एकाएक वो कहते हुए रुका, "ओह ! जब लाइट गई तो किसी ने अंधेरे का फायदा उठाकर मेरे से हीरा छीन लिया था और तभी मेरे हाथ में ये हीरा रख दिया था । उसी वक़्त नकली हीरा मुझे वापस दिया गया ।" कहने के साथ ही शेख की निगाह बार काउंटर की तरफ घूमी, "तब वो लड़की मेरे पास खड़ी थी । वो कहाँ है ?" समरपाल घबराया-सा उठ खड़ा हुआ । हर तरफ देखा । मोना चौधरी नहीं दिखी, "वो लड़की कहाँ चली गई ?"

"वो अभी आ रही है ।" अन्य वेट्रेस ने कहा, "बाथरूम गई है ।"

"ढूँढो उसे । वो मेरा असली हीरा ले गई है ।" समरपाल चित्रा चीख उठा ।

समरपाल के आदमी उसी समय कुर्सियाँ छोड़ते बाहर की तरफ दौड़े । दरवाजे पर अर्जुन दिखा जो कि ऊँची आवाज सुनकर आया था ।

"क्या हुआ ?"

"वो लड़की हीरा ले गई है और नकली हीरा साहब जी को थमा गई है ।" पास से निकलते आदमी ने तेज स्वर में बताया ।

अर्जुन भारद्वाज भी पलटकर दौड़ पड़ा ।

"नीना बंसल । जो लड़की पाँच मिनट पहले नीचे गई है, उसे ढूँढो । वो कैसीनो में ही होगी । वो हीरा ले उड़ी है ।" अर्जुन ने ऊँचे स्वर में कहा ।

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रात के 1.40 बजे ।

देवराज चौहान होटल में अपने कमरे में पहुँचा और हाथ-मुँह धोकर नाइट सूट डाला और सोने के लिए बेड पर जा लेटा । कमरे में हल्की लाइट रोशनी फैलाता नाइट बल्ब ऑन था । इससे पहले कि वो नींद में डूबता, मोबाइल बज उठा । देवराज चौहान ने फोन उठाया और कॉल रिसीव किया ।

"हेलो ।"

"देवराज चौहान ।" अर्जुन की गंभीर आवाज कानों में पड़ी, "समरपाल चित्रा का हीरा चोरी हो गया । एक लड़की जो कि मुझे देखी हुई लग रही थी, उस वक्त वहाँ बार काउंटर संभाले थी, वो असली हीरा उड़ाकर ले गई और नकली हीरा वहाँ रख दिया । जब तक नकली की पहचान होती, वो वहाँ से खिसक चुकी थी ।" देवराज चौहान सीधा होकर बैठ गया, "तुम जिसकी सहायता कर रहे थे, वही लड़की थी न ?"

"हाँ ।"

"तुमने कहा था कि अगर हीरा चोरी हो जाए तो उसे वापस लाने में तुम मेरी सहायता करोगे ।"

"इसलिए कि एक बार तुमने मेरे सहायता की थी ।" (विस्तार से जानने के लिए पढ़े 'बबूसा और राजा देव')

"मुझे हीरा वापस चाहिए ।"

"ये तो तुम पर है कि तुम हीरा वापस ले पाते हो या नहीं । मैं तुम्हें ये बता सकता हूँ कि हीरा इस वक्त कहाँ पर है ।"

"कहाँ पर है ?"

"होटल डी-वामा मारो । रूम नंबर 122 ।"

"वो लड़की कौन है ?"

"मोना चौधरी ।"

"ओह । हे भगवान, वो मोना चौधरी ही थी । सच में वो मोना चौधरी थी । मेकअप करके अपना चेहरा इस हद तक उसने बदल रखा था कि मैं सीधे-सीधे उसे पहचान नहीं सका । बहुत बड़ा धोखा खा गया मैं ।"

"मुझे डर है कि कहीं अब धोखा न खा जाओ ।"

"क्या मतलब ?"

"वो मोना चौधरी है, ये मत भूल जाना । तुम उसके सामने कुछ भी नहीं हो । अगर ये सोचते हो कि उससे हीरा वापस ले लोगे तो मुझे नहीं लगता कि ऐसा तुम कर सकोगे ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा, "मेरी बात ध्यान से सुनो अर्जुन भारद्वाज । मोना चौधरी के सामने बहादुरी दिखाने की कोशिश मत करना । मारे जाओगे । चालाकी भी मत दिखाना, मोना चौधरी के सामने तुम्हारी चालाकी भी नहीं चलेगी । अगर चतुराई से काम लोगे तो तभी सफल हो सकते हो ।"

"चालाकी और चतुराई में क्या फर्क है ?" उधर से अर्जुन भारद्वाज ने पूछा ।

"सोचोगे तो समझ में आ जाएगा कि चालाक बनना और चतुराई दिखा पाना, दोनों अलग-अलग बातें हैं । तुम कभी मेरे काम आए थे तो अब मैंने तुम्हारी सहायता कर दी, ये बताकर कि हीरा कहाँ पर है ।" देवराज चौहान गंभीर था, "एक खास बात मैं तुमसे ये कहना चाहता हूँ कि मोना चौधरी को ये शक न हो कि मैंने तुम्हें उसके बारे में बताया है । काम इस तरह से करना कि वो सोच भी न सके कि इसमें मैंने कुछ किया हो सकता है । अगर मोना चौधरी को ऐसा कोई आभास हो गया तो वो मेरे से झगड़ा कर सकती है और इस वक्त मैं झगड़ा करने की स्थिति में नहीं हूँ । एक डकैती की तैयारी में लगा हूँ । मेरा ख्याल है कि सुबह तक मोना चौधरी होटल छोड़ देगी । तुम्हारे पास सिर्फ रात ही बची है ।"

"मेरे लिए इतना ही बहुत है । शुक्रिया तुम्हारा कि तुमने... ।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

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रात के 3:25 बजे थे ।

मोना चौधरी होटल डी-वामा मारो में कमरा नंबर 122 में गहरी नींद में डूबी थी । नाइटी डाले वो बेड पर पड़ी मासूम गुड़िया की तरह खूबसूरत लग रही थी । उसके बाल तकिए पर लहराते से बिछे हुए थे । सीने का उभार हौले-से उठ-बैठ रहा था । खूबसूरत, हसीन टाँगें बेड पर आकर्षक अंदाज में फैली हुई थीं । हर तरफ गहरा सन्नाटा छाया हुआ था । पूरे होटल में गहरी शांति थी । चुप्पी थी, खामोशी का आलम था ।

'क्लिक'

बेहद मध्यम-सी आवाज कमरे में उभरी और सन्नाटे में गुम हो गई । इसके साथ ही दरवाजे का हैंडल नीचे की तरफ झुकता दिखा और धीरे-धीरे दरवाजा खुलने लगा । कोई आवाज नहीं उठ रही थी । डेढ़ फुट तक दरवाजा खुल गया और दबे पाँव सरकते हुए अर्जुन भारद्वाज ने भीतर प्रवेश किया । उसकी निगाह तुरंत सारे कमरे में घूमती चली गई और बेड पर गहरी नींद में डूबी मोना चौधरी पर जा टिकी ।

फिर अर्जुन भारद्वाज ने सावधानी से, आहिस्ता-आहिस्ता दरवाजा वापस बंद किया कि कोई आवाज नहीं उभर सकी । वो दबे पाँव मोना चौधरी के बेड के करीब आ पहुँचा । बिना वक़्त गँवाए वो मोना चौधरी के सिर की तरफ पहुँचा और जेब से रुमाल निकालकर अपने चेहरे पर बाँध लिया कि फौरन पहचाना न जा सके । उसके बाद कमीज के भीतर हाथ डालकर एक लिफाफा निकाला और उसके भीतर से क्लोरोफॉर्म से भीगा रुमाल निकाला । क्लोरोफॉर्म की मध्यम-सी स्मेल कमरे में फैलने लगी । अर्जुन भारद्वाज ने चीते की तरह झपट्टा मारा और एक हाथ से मोना चौधरी को दबाता, दूसरे हाथ में थमा रुमाल मोना चौधरी की नाक पर दबा दिया । 

मोना चौधरी की आँखें उसी पल खुलकर फैल गई । वो तड़पी । खुद को आजाद करवाना चाहा । रुमाल से ढका अर्जुन भारद्वाज का चेहरा उसे दिखा । जिसे वो पहचान नहीं पाई । उसे ऊपर से हटाने के लिए मोना चौधरी ने उसकी पीठ पर टाँग की ठोकर भी मारी, परंतु तब तक क्लोरोफ़ार्म का तेज असर उसकी मस्तिष्क पर सवार हो चुका था । क्लोरोफ़ॉर्म उसकी साँसों में बस चुकी थी । देखते ही देखते वो शिथिल पड़ती चली गई । महज डेढ़ मिनट में ही मोना चौधरी पूरी तरह बेहोश हो चुकी थी ।

अर्जुन भारद्वाज ने रुमाल उसकी नाक से हटाकर एक तरफ फेंका और खड़ा हो गया । चेहरे पर बँधे रुमाल को खोलकर जेब में डाला । मोना चौधरी की नाइटी अस्त-व्यस्त हो चुकी थी । अर्जुन ने एक तरफ पड़ी चादर उठाकर उसके ऊपर डाल दी और बड़बड़ा उठा ।

"देवराज चौहान, इसे ही चतुराई कहते हैं ।"

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