अगले दिन सुबह साढे नौ बजे सुनील ने अपनी मोटर साइकिल निकाली और प्रभात नगर की ओर चल दिया ।
रास्ते में एक टेलीफोन बूथ देखकर उसने मोटर साइकल रोक दी ।
क्यों न शारदा को भी स्थिति की सूचना दे दूं ? - उसने सोचा ।
वह बूथ में घुस गया ।
उसने डायरेक्ट्री में होटल रिवर का नम्बर देखा और फिर उस नम्बर पर फोन किया ।
“होटल रिवर ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिला ।
सुनील ने जल्दी से बक्से में सिक्के डाले और कहा - “हैलो, रूम नम्बर चार सौ बारह में एक मिस शारदा है, जरा उन्हें कनेक्ट कर दीजिए ।”
“होल्ड कीजिए ।” - आपरेटर ने मधुर स्वर में कहा - “मैं चार सौ बारह में रिंग देती हूं ।”
“वैरी वैल । होल्डिंग ।” - सुनील ने धैयपूर्ण स्वर में कहा ।
कई क्षण बाद आपरेटर का स्वर सुनाई दिया - “हैल्लो ।”
“यस ?”
“मैंने कई बार शारदा का रूम रिंग किया है लेकिन वे उधर से फोन नहीं उठा रही हैं । या तो वे अभी तक सोई पड़ी हैं या फिर वे अपने कमरे में नहीं हैं ।”
“अच्छी बात है, मैं फिर रिंग कर लूंगा । फिलहाल आप शारदा को बता दीजियेगा कि सुनील ने फोन किया था और वह मुझसे सम्पर्क स्थापित कर ले ।”
“ओके ।”
“थैक्स । दि नेम इज सुनील कुमार चक्रवर्ती ।”
“आई हैव नोटिड डाउन ।”
“थैंक्स अगेन ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया और बूथ के बाहर निकल आया ।
उसने मोटर साइकल सम्भाली और फिर प्रभात नगर का रुख किया ।
वह दस बजकर दस मिनट पर सिल्वर जुबली असाईलम के सामने पहुंच गया ।
चटर्जी बड़ी बेचैनी से गेट पर टहल रहे थे ।
सुनील को देखते ही वे उसकी ओर लपके ।
“मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहा था ?” - वे बोले ।
“मुझे थोड़ी देर हो गई ।” - सुनील मोटर साइकल स्टैंड पर खड़ी करता हुआ बोला ।
“यहां बड़ी गड़बड़ हो सुनील ।” - चटर्जी ने चिन्तायुक्त स्वर में कहा ।
“क्या ?” - सुनील ने सशंक स्वर में पूछा ।
“सुन्दरदास असाईलम में से गायब है ।”
“क्या ?” - सुनील एकदम हैरानी से चिल्ला पड़ा - “यह कैसे हो सकता है ?”
“लेकिन यह हो गया है । सुन्दरदास यहां नहीं है । या तो वह यहां से भाग गया है या फिर शंकरलाल वगैरह उसे यहां से निकाल ले गए हैं ताकि डॉक्टर सिन्हा को उसका मुआयना करने का मौका न मिल सके ।”
“दूसरी बात हो सकती है, लेकिन सुन्दरदास खुद पागलखाने से भाग निकला हो, यह असम्भव है ।”
“क्यों ?”
“मैं कल रात को यहां आया था और मैंने सुन्दरदास को देखा था ।”
“तुमने ?”
“हां । उस समय उसके हाथ मजबूती से उस पलंग के साथ बन्धे हुए थे जिस पर लेटा हुआ था । क्या आप यह स्वीकार कर सकते हैं कि सुन्दरदास जैसा वृद्ध आदमी बन्धन तुड़ाकर भाग निकला हो ?”
“असम्भव ।”
“यहां जरूर कोई चालबाजी हुई है ।”
“अगर चालबाजी हुई है तो सब चालबाजी करने वालों के नाम वारण्ट इशू हो जायेंगे, यह कोर्ट का आर्डर था ।”
“डाक्टर सिन्हा कहां हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“भीतर । आओ चलें ।”
सुनील चटर्जी के साथ फाटक की ओर बढ गया । फाटक खुला हुआ था और उसकी बगल में रात वाला चौकीदार भीगी बिल्ली बना खड़ा था । सुनील को देखते ही हैरानी से उसके नेत्र फैल गए । वह कुछ बोलने ही वाला था कि सुनील ने एक कठोर दृष्टि उसके चेहरे पर डाली । चौकीदार एकदम सकपका गया । उसने दुबारा सुनील से नेत्र नहीं मिलाये । सुनील ने देखा फाटक पर रात वाला वह गत्ते का बोर्ड नाहीं टंगा हुआ था, जिस पर लिखे नोटिस में एक नर्सिंग और खाना पकाना जानने वाली युवती की आवश्यकता प्रकट की गई थी ।
सुनील चटर्जी के साथ मुख्य बिल्डिंग में प्रवेश कर गया ।
“हम उस कमरे चल रहे हैं जिसमें सुन्दरदास को रखा गया था ।” - चटर्जी ने गलियारे में चलते हुए बताया । एक मोड़ घूमने के बाद चटर्जी एक कमरे में घुस गए । सुनील उनके पीछे था । कमरे के बाहर पागलखाने के तीन चार कर्मचारी खड़े थे । भीतर केवल दो व्यक्ति थे । एक कोने में एक नर्स खड़ी थी ।
“सुनील, ये डाक्टर सिन्हा हैं जिनके बारे में मैं तुम्हें बता चुका हूं और ये डाक्टर खन्ना हैं, इस पागलखाने के इन्चार्ज । और साहबान, यह मेरा मित्र सुनील है ।”
सुनील ने दोनों से हाथ मिलाया ।
सुनील ने गौर किया कि डाक्टर सिन्हा का पारा चढा हुआ था । खन्ना उसके सामने बेहद दबा-दबा दिखाई दे रहा था । शायद वह डाक्टर सिन्हा के सामने स्वयं को हीन अनुभव कर रहा था ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला । फिर सिन्हा ने मौन भंग करते हुए कहा - “इलाज के दौरान सुन्दरदास को जो जो दवाइयां दी जाती रही हैं मैं उनका रिकार्ड देखना चाहता हूं ।”
“रिकार्ड नहीं है ।” - खन्ना ने धीरे कहा ।
“क्यों ?” - सिन्हा के माथे पर बल पड़ गए ।
“हम रूटीन दवाइयों का रिकार्ड नहीं रखते ।”
“लेकिन मुझे मालूम हुआ है लिए आप सुन्दरदास को बेहद उत्तेजक औषधियां खिलाते रहे हैं ।”
“हमने तो ऐसा कुछ नहीं किया है । अगर ऐसी कोई दवाई सुन्दरदास को खिलाई गई है तो विद्या ने खिलाई होगी ?”
“विद्या कौन ?”
“वह सुन्दरदास की रिश्ते में भाभी लगती है । वह अनुभवी नर्स है । वह भी कभी-कभार मरीज की तीमारदारी के लिए आती थी ।”
“और आप उसे आने देते थे ?”
“हम कैसे रोकते भला ? वह अनुभवी नर्स है, मरीज की रिश्तेदार है और फिर वह कहती थी कि उनका अपना डाक्टर जो दवाइयां सुन्दरदास के लिए प्रेस्क्राईब करता है, वह भी तो सुन्दरदास को मिलनी चाहिए । और फिर हमारे पास नर्सों और दूसरा काम करने वाली औरतों की भारी कमी रहती है । विद्या के माध्यम से हमें कोई सहायता मिलती थी तो हम उसे क्यों छोड़ते ?”
“चाहे वह आपकी जानकारी में आये बिना पेशेन्ट को जहर खिला देता ?”
“ऐसा कैसे हो सकता हैं, डाक्टर ? आखिर वह सुन्दरदास की रिश्तेदार थी, कोई गैर तो नहीं ती ।” - डाक्टर खन्ना ने एकदम प्रतिवाद किया ।
“सुन्दरदास का सामान कहां गया ?” - इस बार खन्ना से सुनील ने प्रश्न किया ।
“कैसा सामान ?”
“उसके कपड़े वगैरह, उसके रोज की इस्तेमाल की चीजें !”
“ऐसा कुछ था ही नहीं उसके पास ।”
“इसका मतलब तो यह हुआ कि वह यहां जबरदस्ती लाया गया था ।”
“कैसे ।”
“आखिर जब कोई आदमी इलाज के लिए अस्पताल में आता है तो अपने साथ कुछ कपड़े, बनियान, रूमाल, अण्डरवियर, टूथ-ब्रश वगैरह कुछ तो लेकर आता है !”
“बशर्ते कि वह अपने होशो-हवास में हो ।”
“तो आपका मतलब है सुन्दरदास बिल्कुल पागल था !”
“पागल तो वह था ही वर्ना यहां क्यों लाया जाता ?”
“और वह यहां से गायब कैसे हो गया ?”
“वह भाग निकला यहां से ।”
“आपको विश्वास है ?”
“एकदम ।”
“डाक्टर” - सुनील एक-एक शब्द तोलता हुआ बोला - “आपकी जानकारी के लिए मैं एक बात बता देना चाहता हूं । कल रात मैंने सुन्दरदास को यहां इस कमरे में देखा था । उस समय उस के हाथ-पांव बड़ी मजबूती से पलंग की पट्टियों से बंधे हुए थे और...”
“क्या ?” - डाक्टर सिन्हा एकदम चौंक पड़ा ।
“जी हां । मैं सच कह रहा हूं ।” - सुनील ने निश्चयपूर्ण स्वर में कहा ।
“आप भीतर कैसे आए थे ?” - खन्ना मे एकदम तीव्र स्वर में कहा ।
“आप मेरी बात का जवाब दीजिए ।” - डाक्टर सिन्हा बीच में ही बोल पड़ा - “क्या यह सच है कि सुन्दरदास यहां रस्सियों से जकड़ कर रखा जाता था ?”
“हमेशा नहीं ।” - खन्ना ने दबे में कहा ।
“क्या मतलब ?”
“जब सुन्दरदास बहुत भड़क उठता था तो उसे बांधकर रखना पड़ता था ।”
“कल रात सुन्दरदास बहुत भड़का हुआ था इसलिए आपने उसे पलंग के साथ रस्सियों से जकड़वा दिया था ?”
“जी हां ।”
“आप जानते हैं आप कितनी असंभव बात कह रहे हैं ?”
“क्या असंभव है इसमें ?”
“आप मुझे यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि एक आदमी जो इस हद तक पागल हो चुका है कि उसे हाथ पांव बांधकर रखना पड़ता था, इतनी समझ रखता था कि वह स्वयं बन्धन काट ले, पागलखाने के कपड़े उतारकर अपने कपड़े पहन ले, और फिर बड़ी सतर्कता से सबकी नजर बचाकर यहां से भाग निकले जबकि उसके पास बस के लिए भी किराया नहीं था । डाक्टर, या तो आप झूठ बोल रहे हैं या फिर वह पागल नहीं था ।”
“म.. म... मेरा यह मतलब नहीं था ।” - खन्ना हकलाया ।
“तो फिर क्या मतलब था आपका ?”
“सम्भव है किसी ने भागने में उसकी मदद की हो ।”
“किसने ? यहां के किसी कर्मचारी ने ?”
“नहीं । कोई बाहर का आदमी ।”
“डाक्टर ।” - सुनील फिर बीच में बोल पड़ा - “मुझे मालूम हुआ है कि इस कमरे को बाहर से ताला लगाकर चाबी आप अपने पास रखते थे ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - खन्ना हैरानी ये बोला ।
“क्या यह सच है ?” - डाक्टर सिन्हा ने पूछा ।
“ज-जी हां ।”
“तो फिर कोई बाहर का आदमी क्या सहायता कर सकता था ?”
“ताला इतना मजबूत नहीं था । यह तो केवल सावधानीवश लगाया जाता था । कोई बाहरी आदमी उसे थोड़ी सी कोशिश के बाद खोल सकता था ।”
“बशर्ते कि वह ताले वगैरह तोड़ने या खोलने के लिए तैयार होकर आया हो ।”
खन्ना चुप रहा ।
“बहरहाल, जण्टलमैन ।” - डाक्टर सिन्हा निर्णयपूर्ण स्वर में बोला - “मेरा काम खत्म हो गया है । मुझे अदालत द्वारा एक मरीज की जांच के लिए नियुक्त किया गया था । जब मरीज ही नहीं तो जांच कैसी ? मैं अदालत में अपनी रिपोर्ट दे दूंगा ।”
“क्या ?” - खन्ना ने व्यग्रता से पूछा ।
“यही कि मरीज बड़े अविश्वसनीय और रहस्यपूर्ण तरीके से यहां से गायब हो गया है और असाईलम के काम में इतनी लापरवाही, गैरजिम्मेदारी और अव्यवस्था है कि मरीज को बाहर के लोग आकर दवाई खिला जाते हैं और पागलखाने का डाक्टर तक यह जानने की तकलीफ नहीं करता कि वह दवा क्या थी । कम आन, सिस्टर्स ।”
और डाक्टर बिना किसी का अभिवादन किए कमरे से बाहर निकल गया । उसकी नर्स भी उसके पीछे बाहर निकल गई । डाक्टर खन्ना हक्का-बक्का सा सब-कुछ देखता रहा । एकाएक वह भड़क कर सुनील से बोला - “मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूंगा । मैं तुम्हें जेल भिजवाऊंगा । मैं तुम पर ट्रेसपासिंग का मुकदमा चलाऊंगा । तुम कल रात बिना मेरी इजाजत के मेरी प्रापर्टी में घुसे थे और सम्भव है तुम ही ने सुन्दरदास को यहां से निकाला हो । मैं अभी पुलिस में तुम्हारी रिपोर्ट लिखवाता हूं ।”
“पहले अपनी गर्दन बचाने की चेष्टा करो, डाक्टर प्यारे ।” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “और फिर अभी तो तुम्हें यही जानने मे छ: महीने लगेंगे कि मैं कौन हूं ! आइए, चटर्जी ।”
और वह डॉक्टर पर उपेक्षापूर्ण दृष्टि डालकर चटर्जी के साथ बाहर निकल गया ।
“अब ?” - बाहर आकर उसने चटर्जी से पूछा ।
“अब केस में जान आ गई है । अब इस बात की काफी संभावना हो गई है कि जज शंकरलाल पर भी कोई रोक लगा दे या उसके संरक्षक के विशिष्ट अधिकार कैन्सिल कर दे।”
“ओके ।” - सुनील हाथ मिलाता हुआ बोला - “मुझे सूचना भिजवाते रहिएगा ।”
“कार में चलो न ।” - चटर्जी बोले - “तुम्हें तुम्हारे आफिस छोड़ता जाऊंगा ।”
“नहीं, थैंक्यू । मैं मोटर साइकल लाया हूं ।”
“ओके दैन ।”
चटर्जी अपनी कार की ओर बढ गए ।
सुनील ने भी अपनी मोटर साइकल सम्भाली और राजनगर की सड़क पर डाल दी ।
उसकी दृष्टि आसापास कहीं टेलीफोन बूथ तलाश कर रही थी ।
एक जगह उसे एक रैस्टोरेन्ट पर पब्लिक टेलीफोन का साइन बोर्ड लगा दिखाई दिया । सुनील वहां मोटरसाइकल खड़ी करके भीतर घुस गया ।
उसने रमाकांत को फोन किया ।
“रमाकांत !” - रमाकांत के लाइन पर आते ही बोला - “सुन्दरदास पागलखाने से गायब हो गया ।”
“गायब हो गया है !” - रमाकांत का आश्चर्यपूर्ण स्वर सुनाई दिया - “कहां ? कैसे ?”
“मेरे ख्याल से शंकरलाल वगैरह ने कोई करामात दिखाई है । डाक्टर सिन्हा सुन्दरदास का मुआयना न कर सके इसीलिए वे किसी प्रकार पागलखाने के डाक्टर की जानकारी में आए बिना सुन्दरदास को वहां से निकाल कर ले गए हैं ।”
“लेकिन कौन, कैसे ?”
“कल रात को मैं यहां पागलखाने आया था । उस समय मुख्य द्वार पर एक नर्स-कम-खाना पकाने वाली की आवश्यकता का बोर्ड लगा हुआ था । आज सुबह द्वार पर वह बोर्ड नहीं था ! इसका मतलब यही है कि कल रात किसी ने नौकरी के लिए प्रार्थना की और उसको रख लिया गया । इसीलिए सुबह वहां बोर्ड नहीं था । अब रमाकांत, इस बात की पूरी सम्भावना है कि शंकरलाल ने ही किसी औरत को इस नौकरी के लिए पागलखाने में भेजा हो जो रात को मौका लगते ही सुन्दरदास को निकाल कर गई हो । संभव है मेरी थ्योरी गलत हो लेकिन फिर भी इस लाईन पर काम करने से कुछ हाथ लगने की संभावना है ।”
“यह तो बड़ा कठिन काम है । काफी आदमी लगाने पड़ेंगे ।”
“तो लगाओ ।”
“बहुत खर्चा हो जाएग ।”
“तो मरते क्यों हो ? खर्चा कौन-सा तुम्हारी जेब से जा रहा है !”
“बस यही ब्रह्म वाक्य तो मैं सुनना चाहता था । और कुछ ?”
“शंकरलाल और रामनाथ की तो निगरानी करवा रहे हो न ?”
“हां ।”
“तो फिर फिलहाल बस ।”
सुनील ने सम्बन्धविच्छेद किया और फिर होटल रिवर का नम्बर डायल कर दिया ।
“रूम नम्बर चार सौ बारह में शारदा से बात करा दीजिए ।” - सम्बन्ध स्थापित होते ही वह बोला ।
“आप मिस्टर सुनील तो नहीं बोल रहे हैं, जिन्होंने सुबह भी फोन किया था ?” - आपरेटर ने मधुर स्वर पूछा ।
“जी हां मैं सुनील ही हूं ।”
“मिस्टर सुनील, मिस शारदा अपने कमरे में नहीं हैं । मैंने आपका मैसेज देने के लिए वेटर को ऊपर भेजा था लेकिन वह अपने कमरे में नहीं थीं । इस समय भी वह कमरे में नहीं है ।”
“कहां हो सकती है वह ?”
“अब क्या कहा जा सकता है इस विषय में ?”
“अच्छा, आप मुझ पर इतनी कृपा कीजिए कि जब भी शारदा आपको दिखाई दे आप उससे कह दीजिए कि वह फौरन मुझसे मिले ।”
“मैं कह दूंगी ।”
“थैंक्यू ।”
सुनील रिसीवर रखकर बाहर निकल आया । उसे शारदा की चिन्ता होने लगी थी, विशेष रूप से जबकि उसके पास एक लाख रुपये की मोटी रकम थी ।
***
रमाकांत बहुत उत्तेजित था ।
“क्या हो गया है ?” - सुनील हैरानी से उसका मुंह देखता हुआ बोला ।
“सुनील !” - रमाकांत बोला - “वह छोकरी खुद तो मरेगी ही, साथ ही तुम्हें भी मरवाएगी ।”
“किस्सा क्या है ?”
“सुन्दरदास को पागलखाने से निकाल कर ले जाने वाली शंकरलाल द्वारा नियुक्त लड़की नहीं, बल्कि तुम्हारी शारदा थी ।” - रमाकांत ने बम-सा छोड़ा ।
“क्या ?” - सुनील एकदम चौंक पड़ा ।
“मैं ठीक कह रहा हूं । बहुत अच्छी तरह चैक कर लिया है । सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है ।”
“हुआ क्या ?”
“कल रात को आठ बजे शारदा पागलखाने गई थी और उसने विज्ञापित नौकरी के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर दिया था । पागलखाने में नाइट ड्यूटी वाली नर्स एकाएक काम छाड़कर चली गई थी जिसके कारण डॉक्टर बहुत दिक्कत महसूस कर रहा था इसलिए उसने बिना किसी हुज्जत के शारदा को रख लिया था । शारदा की ड्यूटी फौरन ही लगा दी गई थी । डाक्टर ने कहा था कि वह नौकरी की बाकी बातें दिन में तय करेगा । शारदा की ड्यूटी रात दस बजे से सुबह सात सात बजे तक थी । रात को डाक्टर ने दो-तीन बार उठकर उसे चैक किया था । शारदा बड़ी होशियारी से ड्यूटी दे रही थी । उसके बाद डाक्टर पूरी तरह सन्तुष्ट होकर अपने क्वार्टर में सोने चला गया था । सुबह पांच बजे सफाई करने वाले लोग और रसोइया आया था । उस समय तक शारदा वहां मौजूद थी ।उसने रसोइये को बताया था कि वह रात को दो बार कमरों का राउन्ड लगा आई थी और हर कोई आराम से सो रहा था । सुबह छ: बजे कमरा साफ करने वाले ने देखा था कि सुन्दरदास अपने कमरे से गायब था । जिन रस्सियों से वह पलंग के साथ जकड़ा हुआ था, वे एक तेज औजार द्वारा काटी गई थीं । उसके बाद किसी को नई नर्स भी दिखाई नहीं दी । प्रत्यक्ष है कि वही अपने अंकल को उस दशा में देख कर उसे वहां से निकालकर ले गई है ।”
रमाकांत क्षण भर के लिए रुका ।
सुनील विचारपूर्ण मुद्रा में सब सुनता रहा ।
“सबसे मजेदार बात यह है, सुनील” - रमाकांत बोला - “कि अभी तक डाक्टर खन्ना को या पागलखाने के किसी कर्मचारी को नई नर्स अर्थात शारदा पर सन्देह नहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“उसकी ड्यूटी रात दस बजे से प्रात: सात बजे तक थी । सब यही समझ रहे हैं कि वह सुबह अपनी ड्यूटी समाप्त करके चली गई है और समय पर फिर लौट आएगी ।”
“तुम्हें इस बात का पूरा भरोसा है कि वह शारदा ही थी ?”
“हां, मेरे आदमियों ने पागलखाने के कई लोगों को शारदा का हुलिया बयान करने के लिए कहा था और विश्वास जानो सुनील, वह सौ फीसदी शारदा का हुलिया था । अगर वह लड़की शारदा न हुई इसे करिश्मा ही मानूंगा ।”
“लेकिन शारदा ने ऐसा क्यों किया ?” - सुनील बड़बड़ाया ।
“यह तुम उसी से पूछना ।”
“वह कहीं मिले भी । सुबह से बार मैं उसे फोन कर चुका हूं हर बार यही उत्तर मिलता है कि वह होटल में नहीं है ।”
“आखिरी बार उसके होटल में कब फोन किया था तुमने ?”
“लगभग एक घन्टा पहले ।”
“इस समय वह अपने होटल में है ।” - रमाकांत ने बताया ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“यहां आने से पहले मेरे आदमी ने मुझे सूचना दी थी कि वह थोड़ी देर के लिए होटल में आई थी और फिर फौरन ही बाहर निकल गई थी । उसने एक डिपार्टमेंटल स्टार से कुछ रेडीमेड कपड़े तौलिये और टायलेट का सामान वगैरह खरीदा था । उसके बाद वह एक होटल में गई थी और उसने वहां कुछ भोजन का सामान खरीदा था । यह सब सामान लेकर वह प्रताप रोड पर स्थित एक छोटे-से मकान में गई थी । वह लगभग आधा घंटा भीतर ठहरी थी और फिर वहां से वापिस अपने होटल में आ गई थी । इस समय वह अपने होटल में ही है ।”
“कार लाए हो ?” - सुनील उठता हुआ बोला ।
“हां ।”
“चलो ।”
रमाकांत उसके साथ हो लिया ।
“लेकिन सुबह से लेकर अब से दो घन्टे पहले तक शारदा कहां थी ?” - सुनील ने ब्लास्ट की सीढियां उतरते हुए पूछा ।
“मालूम नहीं । मेरे आदमी तो होटल की निगरानी कर रहे थे । उन्हें तो शारदा की उसी गतिविधि की जानकारी है जो शारदा के होटल में आने के बाद हुई ।”
“प्रताप रोड के उस मकान में शारदा किसके पास गई थी ?”
“मालूम नहीं लेकिन सुनील, गधा भी यह अनुमान लगा सकता है कि वहां सुन्दरदास ही होगा ।”
दोनों नीचे आकर कार में बैठ गए । कार रमाकांत ड्राइव कर रहा था ।
“रमाकांत !” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “इस लड़की ने सुन्दरदास को वहां से निकाल कर भारी मुसीबत मोल ले ली है ।”
“कैसी मुसीबत ?”
“मैं इस बात की भविष्यवाणी कर सकता हूं कि चौबीस घन्टे के अन्दर सुन्दरदास की हत्या होने वाली है ।”
“क्या ?” - रमाकांत एकदम चौंक पड़ा ।
“इस लड़की ने स्थिति ही ऐसी उत्पन्न कर दी है । सुन्दरदास अब किसी के बन्धन में नहीं है और शारदा के पास एक लाख रुपया है । अगर सुन्दरदास वास्तव में पागल नहीं है तो वह एक बार तो तूफान खड़ा कर देगा । शंकरलाल और डाक्टर खन्ना तो जेल की हवा खाएंगे ही, सम्भव है विद्या और रामनाथ का भी पुलन्दा बन्ध जाए । इस स्थिति से बचने का शंकरलाल के पास एक ही तरीका है ।”
“वह क्या ?”
“सुन्दरदास मर जाए । या तो उसकी मौत को स्वाभाविक मौत समझ लिया जाए या फिर अगर उसे हत्या समझा जाए तो इल्जाम शारदा के सर आए । इसी में शंकरलाल का कल्याण है वर्ना उसे सुन्दरदास की ओर से तो चरका लगेगा ही, रामनाथ भी नहीं छोड़ेगा उसे । मेरा तो ख्याल है कि अभी भी शंकरलाल मन में बड़े भयानक इरादे लिए सुन्दरदास को तलाश करता फिर रहा होगा ।”
“लेकिन अगर सुन्दरदास ठीक है तो वह सामने क्यों नहीं आता ? वह पुलिस और अदालत की सहायता क्यों नहीं लेता ?”
“सम्भव है पागलखाने की टार्चर का प्रभाव अभी भी हो उस पर और फिलहाल वह स्वयं को कोई सक्रिय काम करने के योग्य न समझता हो और वह स्वंय को व्यवस्थित कर लेने तक छुपा रहना ही श्रेयस्कर समझता हो ।”
रामाकांत चुप रहा ।
उसने कार होटल रिवर के कम्पाउन्ड में ले जाकर पार्क कर दी ।
उसी समय एक आदमी कार की ओर बढा ।
वह जौहरी था ।
सुनील और रमाकांत कार से बाहर निकल आए ।
सुनील ने जौहरी से हाथ मिलाया ।
“शारदा भीतर है ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“फिलहाल तो है ।” - जौहरी ने बताया ।
“ठीक है । तुम यहीं ठहरना । मैं सुनील के साथ भीतर जा रहा हूं ।”
“ओके ।”
सुनील और रमाकांत होटल में घुस गए ।
कुछ ही क्षण बाद वे चार सौ बारह नम्बर कमरे का द्वार खटखटा रहे थे ।
“कौन है ?” - भीतर से आवाज आई ।
आवाज शारदा की थी ।
“शारदा, द्वार खोलो, मैं सुनील हूं ।”
असाधारण देरी के बाद शारदा ने द्बार खोला ।
सुनील रमाकांत के साथ भीतर घुस गया ।
“कैसे आए ?” - शारदा विचित्र स्वर में बोली ।
“यह क्या सवाल हुआ ?” - सुनील एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला - “तुम ही ने प्रमिला से कहा था कि तुम मुझसे मिलने के लिए बहुत इच्छुक हो ।”
“ओह, हां... अच्छा !” - शारदा मरे स्वर में बोली ।
“तुम मुझसे मिलने के लिए क्यों इच्छुक थीं ?” - सुनील उसके नेत्रों में झांकता हुआ बोला ।
“कुछ नहीं । यूं ही ।” - वह नर्वस स्वर में बोली - “कोई विशेष बात नहीं थी । मैं तो केवल तुम्हारी कृपाओं के लिए तुम्हारा धन्यवाद करना चाहती थी ।”
“धन्यवाद कैसा ? तुम तो खुद ही इतनी होशियार हो कि तुम्हें मेरी कृपाओं की न तो तब जरूरत थी और न अब है ।”
“मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी ।”
“अगर तुम्हें मेरी कृपाओं की जरूरत होती तो कम-से-कम तुम मुझे या चटर्जी को एक बार बताती तो सही कि तुम सुन्दरदास को पागलखाने से निकाल ले जाने वाली हो । न... न आंखें फैलाने या अनजान बनने का ड्रामा करने का प्रयत्न मत करो । तुम मुझसे झूठ नहीं बोल सकती । मुझे तुम्हारी एक-एक गतिविधि की जानकारी है ।”
शारदा चुप रही, उसके चेहरे पर गहरी परेशानी के भाव छा गए ।
“तुमने ऐसा क्यों किया ?” - सुनील ने कठोर स्वर में पूछा ।
“दरअसल ।” - वह उलझनपूर्ण स्वर में बोली - “ऐसा कुछ करने का मेरा कतई इरादा नहीं था । तुमसे यह पता लगने के बाद कि अंकल सिल्वर जुबली असाइलम में हैं मैं वहां केवल अंकल की हालत देखने गई थी । भीतर प्रवेश पाने का मुझे यही तरीका सूझा कि मैं स्वयं को उस नौकरी के लिए प्रस्तुत कर दूं जिसका गेट पर विज्ञापन लगा हुआ था । मैंने ऐसा ही किया । सौभाग्य से डाक्टर ने मुझे रख लिया । लगभग आधी रात को जब डाक्टर आखिरी बार मुझे चैक करने आया तो उसने मुझे एक चाबी दी और एक कमरा दिखाकर कहा कि उसमें एक भयानक पागल बन्द है और सुबह मुझे उसे एक दवाई खिलानी है । उसने कहा कि डरने की कोई बात नहीं क्योंकि पागल पलंग के साथ बंधा हुआ है । डाक्टर के जाते ही मैंने वह कमरा खोजकर भीतर झांका । भीतर अंकल थे ।”
“उनकी हालत कैसी थी ? मेरा मतलब उनकी दिमागी हालत ?”
“वे एकदम स्वस्थ थे, सुनील साहब । उल्टी-सीधी दवाइयों और भद्दे व्यवहार ने उन्हें विक्षिप्त तो जरूर बना दिया था लेकिन वे किसी भी हालत में पागल नहीं थे । मुझे उन्होंने देखते ही पहचान लिया । अंकल ने मुझे बताया कि अगर उन्हें वहां से न निकाला गया तो वे वहां का अत्याचार सहते-सहते मर जाएंगे ।” - शारदा का गला भर आया - “मैं ऐसी दयनीय दशा में उन्हें वहां कैसे छोड़ देती ? मैं तीन महीने बाहर रही और उन तीन महीनों में ही हत्यारों ने उनकी ऐसी दशा बना दी थी कि देखकर दिल छलनी हुआ जाता था । उस समय के बाद पहला सुरक्षित अवसर मिलते ही मैं अंकल को वहां से निकालकर ले गई ।”
“इस समय अंकल कहां हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
शारदा चुप रही ।
“मैंने कुछ पूछा है ?” - सुनील उत्तेजित स्वर में बोला ।
“मैं नहीं बताऊंगी ।” - शारदा ने दृढ स्वर में कहा ।
“क्या ? तुम मुझे भी बताने में हर्ज समझती हो ?”
“अंकल कहां हैं, यह बात मैं अपनी परछाई से भी छिपाकर रखना चाहती हूं, मिस्टर । मैं इस बात की किसी के कान में भनक तक नहीं पड़ने दूंगी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मुझे भय है कि अगर अंकल के शत्रुओं को पता लग गया कि वे कहां हैं तो वे उन्हें फिर पागलखाने में पहुंचा देंगे जहां उनके लिए घुट-घुटकर प्राण तज देने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं होगा ।”
“लेकिन अगर वह पागल नहीं हैं तो कोई कैसे पागलखाने में बन्द कर देगा उन्हें ?”
“शंकरलाल वगैरह बहुत चालाक हैं, वे जरूर कोई गड़बड़ कर देंगे । मैं तो अब अंकल की भतीजी न होकर एक अनजानी लड़की हो गई हूं एक नाजायज औलाद हो गई हूं । मेरी कौन सुनेगा ?”
“शंकरलाल या कोई और आदमी कोई गड़बड़ नहीं कर सकता, शारदा । यह सब तुम्हारा वहम है विशेष रूप से अब जब कि अदालत द्वारा भी सुन्दरदास की डॉक्टरी जांच का ऑर्डर हो गया है ।”
“मुझे किसी का भरोसा नहीं है ।” - शारदा ने निश्चयपूर्वक स्वर में कहा ।
“इस वक्त सुन्दरदास की हालत कैसी है ?” - सुनील बात बदल कर बोला ।
“ठीक है लेकिन सिल्वर जुबली असाइलम या शंकरलाल का जिक्र भी जा जाए तो वे एकदम भड़क उठते हैं । उस समय तो मुझे यह भय लगने लगता है कि वे कभी गुस्से में सच ही पागल न हो जाएं ।”
“तुम्हारे ऊटी चले जाने के बाद की घटनाओं के बारे में कुछ नहीं बताया उन्होंने ?”
“बहुत कुछ, बल्कि सब कुछ । उन्होंने बताया कि मेरे कोठी से बाहर कदम रखते ही शंकरलाल और विद्या उनके आगे-पीछे घूमने लगे थे । उनका यूं ख्याल रखने लगे जैसे कि वे छोटे बच्चे हों वे लोग जान-बूझकर या अनजाने में हमेशा कोई ऐसा काम कर देते थे जिससे वे उत्तेजित हो जाते थे और भारी नर्वस टैंशन का अनुभव करने लगते थे । विद्या उन्हें कोई दवा देती थी जिससे वे उस समय ठीक हो जाते थे लेकिन उस दवा को खाते रहने से उन्हें अनिद्रा का रोग हो गया । परिणामस्वरूप विद्या उन्हें नींद की गोलियां खिलाने लगी । तीस-चालीस दिनों बाद वे नींद की दो गोलियों के ऐसे आदी हो गए कि उनकी काफी मात्रा खाये बिना उन्हें नींद आती थी ।”
“उन्हें यह ख्याल नहीं आया कि वे लोग उन्हें जानबूझकर ऐसी स्थिति में ला रहे थे ।”
“उस समय नहीं आया । विद्या उन्हें हमेशा यह समझाती रहती थी कि वे इसलिए उत्तेजित और नर्वस हो जाते हैं क्योंकि उन्हें मेरे सामीप्य की आदत पड़ गई थी । अंकल अनमने मन से मान जाते । विद्या नींद की गोलियों की मात्रा बढाती रही, फिर एकाएक एक बार अंकल को अनुभव हुआ कि वे लोग चाहते क्या थे ? तभी उन्होंने मुझे वह पत्र और चैक भेजा था । लेकिन इससे पहले कि मैं वापिस राजनगर पहुंच पाती या वे अपनी सुरक्षा का कोई इन्तजाम कर पाते, शंकरलाल वगैरह ने उन्हें ने उन्हें पागल करार देकर कोर्ट में ले जा खड़ा किया और उसकी सम्पत्ति के संरक्षक बन बैठे । वे लोग अंकल को कोई ऐसी भयानक प्रभाव छोड़ने वाली दवा खिलाकर कोर्ट में ले गए थे कि वे जज के किसी भी प्रश्न का संतुलित उत्तर न दे सकें । जज यह बात नोट न कर सका कि अंकल उस समय किसी नीशीली दवा के प्रभाव में हैं । परिणामस्वरूम वे पागल करार दे दिये गये और शंकरलाल की बन आई ।”
“तुमने उन्हें बताया कि शंकरलाल कहता है कि तुम उन के छोटे भाई की नहीं, बल्कि नौकरानी रुकमणी की नाजायज औलाद है ?”
“मैंने बताया था वे कहते हैं कि शंकरलाल बकता है और कि उस प्रकार के किसी रिस्क को कवर करने के लिए उन्होंने अपनी सारी चल और अचल सम्पत्ति एक वसीयत करके मेरे नाम लिख दी है ।”
“वह वसीयत कहां है ?”
“मेरे पास है ।”
“दिखाओ ।”
शारदा कुछ क्षण हिचकिचाई फिर उसने एक अलमारी में से वसीयत निकालकर सुनील के हाथ में रख दी ।
सुनील कुछ क्षण वसीयत पढता रहा और फिर बोला - “गवाहियों के स्थान पर किसने हस्ताक्षर किये ?”
“कोठी के दो नौकरों ने जो कोठी की नौकरी छोड़ चुके हैं ।”
“तुम उन्हें अंकल के पास लाई थी ?”
“नहीं । अंकल ने वसीयत लिख दी थी और फिर मैं वसीयत लेकर उन लोगों के पास चली गई थी और उन्होंने हस्ताक्षर कर दिए थे ।”
“शारदा, गवाही का यह तरीका एकदम गैरकानूनी है ।”
“होगा ।” - शारदा लापरवाही से बोली - “वे बड़े वफादार नौकर हैं । वे हमेशा यहीं कहेंगे कि उन्होंने अंकल के सामने वसीयत पर हस्ताक्षर किए थे और उस समय अंकल पूरे होशोहवास में थे ।”
“और उस एक लाख रुपये का क्या हुआ जो मैंने तुम्हें भिजवाया था ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह रुपया जिसका था उसे मिल गया ।”
“अर्थात तुमने वह रुपया अपने अंकल को दे दिया ?”
“हां ।”
सुनील कुछ क्षण तक चुप रहा । और फिर एकदम उठ खड़ा हुआ ।
“चलो ।” - उसने शारदा से कहा ।
“कहां ?” - शारदा ने हैरानी से पूछा ।
“तुम मुझे अपने अंकल के पास ले जा रही हो ।”
“सवाल ही पैदा नहीं होता ।” - शारदा यू बोली जैसे बहुत हास्यास्पद बात कह दी गई हो ।
“अच्छा, तुम मत ले जाना मुझे । मैं ले चलता हूं ।”
“तुम्हें मालूम है अंकल कहां है ?” - उसने संदिग्ध स्वर में कहा ।
“तुम यहां से चलो तो सही ।”
“मैं चलती हूं, मिस्टर सुनील, लेकिन अगर तुम्हें यह वहम हो कि मेरे किसी असतर्क एक्शन से तुम अंकल का पता जान जाओगे तो तुम भारी गलती कर रहे हो ।”
“आओ रमाकांत ।” - सुनील उसकी बात अनसुनी करके रमाकांत से बोला ।
***
तीनों ही अगली सीट पर बैठे थे । रमाकांत गाड़ी चला रहा था । शारदा बीच में थी ।
जिस समय गाड़ी मोड़ काटकर प्रताप रोड पर प्रविष्ट हुई सुनील ने कनखियों से शारदा की ओर देखा ।
शारदा का चेहरा एकदम भावहीन था ।
“वह कोने वाला मकान है ।” - रमाकांत एक मकान की इशारा ओर करता हुआ बोला ।
सुनील ने फिर देखा, शारदा का चेहरा अब भी निर्विकार था ।
उसी समय रमाकांत ने मकान आने से पहले ही एकाएक गाड़ी रोक दी ।
एक आदमी सामने सड़क पर खड़ा गाड़ी रोकने का संकेत कर रहा था ।
वह दिनकर था ।
“क्या बात है ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“एक हत्या हो गई है ।” - दिनकर ने समीप आकर कहा ।
“कहां ?” - रमाकांत हैरानी से बोला ।
“मकान नम्बर बीस में । यह वही मकान है जहां जो श्रीमती जी आपके साथ बैठी हैं, रेडीमेड कपड़े और खाना वगैरह लेकर गई थी । किसी को खाने के साथ नींद लाने वाली गोलियां खिला दीं और जब वह अपनी चेतना खो बैठा तो किसी ने उसकी गरदन में चाकू भोंक दिया । पुलिस तफ्तीश कर रही है ।”
शारदा का चेहरा राख की तरह सफेद हो उठा ।
“इन्चार्ज कौन है ?” - सुनील ने पूछा ।
“इंस्पेक्टर प्रभूदयाल ।”
“बेड़ा गर्क ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
“क्यों ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“अगर उसे पता लग गया कि इस केस से मैं भी सम्बन्धित हूं तो एकदम से उसकी लाइन ऑफ एक्शन ही बदल जागगी । जिस आदमी को कवर करने की मैं सबसे ज्यादा चेष्टा कर रहा हूंगा, वह उस पर सबसे अधिक संदेह करेगा । क्या यह मालूम हुआ है कि मरने वाला कौन है ?”
“अभी नहीं ।” - दिनकर बोला - “वहां भीड़ लगी हुई है । पुलिस के आदमी अन्दर मकान में हैं और किसी को मकान के समीप नहीं आने दिया जा रहा है ।”
“हत्या की सूचना पुलिस को किसने दी थी ?”
“मकान मालकिन ने । मकान मालकिन एक विधवा वृद्धा है । वह कहती है कि मकान उसने एक वृद्ध सज्जन और उसकी कथित भतीजी को मुंहमांगा किराया प्राप्त करके किराये पर दिया था । भतीजी कहती थी कि वृद्ध बीमार हैं और कुछ दिन वहां आराम करने के लिए आए हैं । दोपहर का खाना तो भतीजी बाजार से ले आई थी । लेकिन शाम से खाना भी वृद्ध को मकान मालकिन ने ही देना था । जिसके पैसे उसे किराए से अलग मिल चुके थे । दोपहर में भतीजी होटल से खाना लाने के लिए मकान मालिक को टिफिन कैरियर ले गई थी । शाम को वृद्धा टिफिन कैरियर ही वापिस लेने आई थी कि उसने भीतर लाश देखी थी । लाश ओंधे मुंह पड़ी थी और उसकी गरदन में से रक्त बह-बहकर जमीन पर जम रहा था । वृद्धा ने किसी प्रकार पुलिस को तो फोन कर दिया था लेकिन तभी से उसे दौरे पड़ रहे हैं ।”
शारदा अपने होंठ काट रही थी और नेत्रों में उमड़ आए आंसू रोकने का प्रयत्न कर रही थी ।
सुनील ने रमाकांत की ओर देखा ।
“तुम गाड़ी ले जाओ !” - रमाकांत बोला - “मैं यहां स्थिति भांपने का प्रयत्न करता हूं ।”
“ओके ।” - सुनील ने कहा - “मैं होटल में शारदा के कमरे में जा रहा हूं ।”
रमाकांत गाड़ी से बाहर निकल गया बोला - “तुम्हारी भविष्यवाणी सच निकली ।”
सुनील ने कोई उत्तर नहीं दिया ! उसने ड्राइविंग सीट संभाली, गाड़ी बैक की और वापिस होटल रिवर की ओर चल दिया ।
होटल में वह शारदा के कमरे में पहुंचने तक एक शब्द नहीं बोला ।
“देख लिया ज्यादा होशियारी दिखाने का नतीजा ?” - सुनील ने कहा ।
शारदा के नेत्रों से झर-झर आंसू बहने लगे ।
“अभी तो शुरुआत हुई है । तुमने हर कदम पर अपने लिए कांट बोए हैं । अब तम्हारे ऊपर अपने अंकल की हत्या का इल्जाम आएगा ।”
शारदा ने डबडबाई आंखों से उसकी ओर देखा लेकिन मुंह से कुछ न बोली ।
“परिस्थति ही ऐसी है कि इस हत्या का नम्बर वन सस्पैक्ट तुम बन गई हो । तुम्हारा सुन्दरदास से कोई खून का रिश्ता नहीं इसलिए वसीयत के बिना उसकी जायदाद से तुम्हें एक धेला नहीं मिल सकता था । शंकरलाल वगैरह तम्हें अदालत में एक सुन्दरदास के पैसे के पीछे पड़ी चालाक औरत के रूप में प्रस्तुत कर चुके हैं सुन्दरदास की सम्पत्ति प्राप्त करने का तुम्हारा कोई चांस नहीं था, तुमने नकली नाम से सिल्वर जुबली असाइलम में नौकरी की और मौका मिलते ही वहां से अपने चाचा को निकाल कर ले गयी और फिर उसे अपने साथ रखने के स्थान पर तुमने उसे अकेला रखा ताकि कोई उसे तुम्हारे माध्यम से खोज न निकाले । फिर तुमने सुन्दरदास से वसीयत लिखवा ली जिसमें उसने अपनी सारी सम्पत्ति तुम्हारे नाम कर दी । वसीयत लिखने के कुछ ही घण्टों बाद सुन्दरदास का मृत शरीर मिलता है । इन सारी बातों से क्या प्रकट होता है ?”
“मैंने अंकल की हत्या नहीं की ।” - वह रोती हुई बोली - “मैं तो ऐसी बात सोच भी नहीं सकती । उन पर कोई आंच आने से पहले तो मैं खुद मर जाना पसन्द करती ।”
“मैंने कब कहा है कि तुमने हत्या की है ! मैंने तो तुम्हें वह बताया है जो पुलिस समझेगी ।”
शारदा सिसकियां भरती रही ।
सुनील ने उसको तनिक भी सांत्वना देने का उपक्रम किए बिना अपनी जेब में से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और उस में से एक सिगरेट चुनकर अपने होंठों से लगा लिया । उसने सिगरेट सुलगाया और उसके लम्बे-लम्बे कश लेने लगा ।
पांच मिनटों के बाद किसी ने द्वार खटखटाया ।
सुनील ने उठकर द्वार खोला ।
वह रमाकांत था ।
“कोई नई बात ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं मालूम हुई, प्यारयो ।” - रमाकांत एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला - “प्रभूदयाल एक बेहद चालाक आफिसर है । जब तक वह केस का हर ऐंगल खुद कवर न कर ले, वह किसी को पास नहीं फटकने देता । केवल इतनी ही बात किसी तरह लीक हो पाई है कि किसी ने नींद की गोलियों को अच्छी तरह पीस कर पाउडर बना लिया था और फिर उन्हें खाने में मिला दिया था । खाना सारा नहीं खाया गया था, खाने के बचे हुए भाग और मृतक के पेट में नीद की गोलियों की पर्याप्त मात्रा पाई गई है ।”
“तुम्हारे अंकल ने तुम्हारे सामने खाना खाया था ?” - सुनील ने शारदा से पूछा ।
“नहीं !” - वह धीमे स्वर में बीली - “उन्होंने खाना शुरू ही किया था कि मैं वहां से चली आई थीं । मैंने वहां अधिक देर ठहरना उचित नहीं समझा था ।”
“तुम्हारे अंकल के पास नींद की गोलियों थी ?”
“हां !”
“कहां से आईं ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“मैंने दी थी पूरी शीशी ।”
“तुम्हें पूरी शीशी कहां से मिल गयी ?”
“उस डाक्टर से जब में अंकल के साथ कोठी में रहती थी तो जो अंकल की देखभाल किया करता था । अंकल ने मुझे बताया था कि विद्या के कारण उन्हें नींद की गोलियां खाने की आदत पड़ चुकी थी इसिलए मैं पूरी शीशी ही ले आई थी ताकि मुझे बार-बार अंकल से सम्पर्क स्थापित करने की आवश्यकता न पड़े ।”
सुनील ने फिर कोई प्रश्न नहीं पूछा ।
शारदा उठी और चुपचाप बाथरूम में घुस गयी ।
रामकांत लपककर सुनील के पास आया और धीमे स्वर में बोला - “सुनील, शारदा जो वसीयत तुम्हें दिखा रही थी, वह कहां है ?”
“मेरे पास है ।” - सुनील अपने कोट की जेब थपथपाता हुआ बोला ।
“उसे फौरन फाड़ दो ।” - रमाकांत बोला ।
“क्यों ?”
“अकेली वह वसीयत ही शारदा को फांसी के फन्दे पर पहुंचाने के लिए काफी है ।”
“मैं सोचूंगा ।”
“सोचूंगा कुछ नहीं अभी कल्याण कर दो उसका । मुझे तो अब इस लड़की पर ही सन्देह होने लगा है । अब यह मुझे पहले जैसी दया और ममता की मूर्ति नहीं मालूम होती । अब तो यह मुझे एक बेहद चालक और सैडिस्ट औरत लग रही है ।”
सुनील ने उत्तर देने के लिए मुंह खोला ही था कि बाहर गलियारे में धम-धम करते भारी कदमों की आवाज सुनाई दी और फिर बड़े जोर से कमरे का द्वार भड़भाड़ाया जाने लगा ।
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से रमाकांत की ओर देखा ।
शारदा मुंह धोकर बाथरूम से बाहर निकली ।
“दरवाजा खोलो ।” - किसी की अधिकारपूर्ण आवाज सुनाई दी ।
“यह प्रभूदयाल की आवाज है ।” - रमाकांत बोला ।
सुनील एकदम टेलीफोन की ओर लपका ।
उसने आपरेटर से चटर्जी का नम्बर मांगा ।
“चटर्जी साहब !” - नम्बर मिलते ही वह बोला - “फौरन यहां चले आइए ।”
“यहां कहां ?” - चटर्जी का हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया ।
“होटल रिवर, रूम नम्बर चार सौ बारह । शारदा को आपकी जरूरत पड़ेगी ।”
और सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
“दरवाजा खोलो ।” - कोई और जोर से चिल्लाया और साथ ही द्वार को यूं भड़भड़ाया गया जैसे वे उसे तोड़ देना चाहते हों ।
सुनील ने आगे बढकर द्वार खोल दिया ।
“स्टैप राइट इन, इन्स्पेक्टर ।” - वह द्वार से एक ओर हटकर बड़े नाटकीय ढंग से सिर झुकाता हुआ बोला ।
प्रभूदयाल धमधमाता हुआ कमरे में आ घुसा ।
उससे पीछे एक वृद्धा और दो सिपाही थे ।
“तुम !” - सुनील को देखकर वह आश्चर्यचकित स्वर में बोला - “तुम यहां क्या कर रहे हो ?”
“तुम्हारे स्वागत के लिए ही खड़ा था, इंस्पेक्टर साहब ।”
प्रभू क्षण भर चुप रहा, उसने एक उड़ती-सी दृष्टि रमाकांत पर डाली ।
“तो आप भी हैं ?” - वह वह व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“जी हां, मैं भी हूं ।” - रमाकांत बोला ।
अन्त में प्रभू की दृष्टि शारदा पर आकर टिक गई ।
“तुम्हारा नाम शारदा है ?” - उसने पूछा ।
शारदा ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
प्रभू वृद्धा से बोला - “इस कमरे में खड़े किसी आदमी को पहचानती हो ?”
वृद्धा ने उतर देने में एक क्षण की भी देर नहीं लगाई ।
“इस लड़की को पहचानती हूं ।” - वह निश्चयपूर्ण स्वर में बोली - “इसी को मैंने अपना मकान किराये पर दिया था । इसने कहा था कि मकान में इसके कोई वृद्ध चाचा रहेंगे ।”
“यह कौन सा तरीका हुआ शिनाख्त का ?” - सुनील बीच मैं बोल पड़ा ।
“तुम अपनी चोंच बन्द रखो वर्ना तुम्हें कमरे से बाहर फिकवा दूंगा ।” - प्रभूदयाल इतनी जोर से गर्जा कि सिपाही सहम गए ।
“जैसे तुम्हारे बाबा का राज है !” - सुनील दुगने जोर से बोला - “इन्सपेक्टर साहब इस कमरे की मालकिन शारदा है, तुम नहीं हो । और अभी तक तुमने शारदा पर कोई इल्जाम नहीं लगाया है । मैं शारदा का हितचिन्तक हूं और तम्हारे किसी गलत एक्शन का यूं ही प्रतिवाद करूंगा । अगर तुम शारदा को मेरी अनुपस्थिति में क्रास-क्वेश्चन करना चाहते हो तो इसे हिरासत में ले लो कोतवाली ले जाओ । यहां नगर कम से कम दो सम्मानित नागरिक मौजूद हैं यहां तुम्हारी धांधली नहीं चलेगी ।”
“इसे तो हिरासत में लूंगा ही ।” - प्रभू दांत पीसकर बोला - “साथ में तुम्हें भी नहीं छोडूंगा ।”
“मैंने कौन से तुम्हारे खेत में से गन्ने उखाड़ लिए हैं !”
“तुम समझते हो कि जिस ढंग से तुमने नेशनल बैंक में से डेढ लाख रुया निकलवा लिया है उसकी किसी को जानकारी नहीं है ? अपनी उस गैरकानूनी हरकत के लिए कम से कम तीन साल के लिए जेल जाओगे ।”
“क्या गैरकानूनी था मेरी उस हरकत में ? वह चैक जाली था, उस पर एकाउन्ट होल्डर के हस्ताक्षर ठीक नहीं थे या रकम डेढ लाख नहीं था ? इंस्पेक्टर साहब, वह एक बेयरर चैक था और शारदा के प्रतिनिधि के रूप में उस चैक को बैंक में पेश करने का मुझे पूरा अधिकार था । बैंक में सुन्दरदास के हिसाब में डेढ लाख रुपया ता इसलिए भुगतान हो गया ।”
“लेकिन बैंक को मालूम था कि सुन्दरदास की सम्पत्ति पर संरक्षक नियुक्त कर दिया गया है !”
“कैसे ?”
“बैंक को शंकरलाल के वकील द्वारा अदालत के हुक्म के साथ एक नोटिस इशू किया गया था कि बैंक सुन्दरदास का सारा एकाउन्ट शंकरलाल के नाम ट्रांसफर कर दे ।”
“बैंक ने कोर्ट आर्डर नहीं माना ?”
“माना लेकिन...”
“बैंक को इशू किया गया वह कोर्ट आर्डर मैंने देखा है, इंस्पेक्टर साहब ।” - सुनील उसकी बात काटता हुआ बोला - “उसमें लिखा है कि शंकरलाल सुन्दरदास के धन का संरक्षक नियुक्त कर दिया गया है । उसमें बैंक के लिए यह निर्देश था कि वह मुकदमे के फैसले की तारीख तक सुन्दरदास के एकाउन्ट में जितना धन है, वह शंकरलाल के नाम ट्रांसफर कर दिया जाये । ऐसा ही बैंक ने किया भी था । उस तारीख के बाद अगर सुन्दरदास के एकाउंट में कोई डिपाजिट किया जाता है तो उसके बारे में बैंक को क्या करना चाहिए, ऐसा कोई निर्देश उस आर्डर में नहीं था ।”
“इसकी कोई जरूरत नहीं थी ।”
“इसकी जरूरत थी । जरूरत इसी से जाहिर है कि मैं कोर्ट आर्डर के बावजूद भी डेढ लाख का चैक कैश करवाने में सफल हो गया ।”
“वही तो तुम्हारी जालसाजी है किसके कारण तुम जेल जाओगे ।”
“तुम्हारे कहने से क्या होता है ! मैं चैलेंज करता हूं, जो कुछ मैंने किया है उसे दुनिया की कोई भी अदालत गैरकानूनी साबित नहीं कर सकती । गलती शंकरलाल के वकील की थी । उस गलती के कारण वह चोट खा गया है और अब खुद तो भड़क ही रहा है, शायद तुम्हें भी भड़का रहा है ।”
“वकील की क्या गलती थी ?”
“उसने स्वयं को जरूरत से ज्यादा होशियार जाहिर करने की चेष्टा की थी । उसने बैंक को इशू किए नोटिस में यह लिख कर बड़ी होशियारी दिखाई थी कि फलां तारीख तक सुन्दरदास के एकाउन्ट में जो इतने रुपये और इतने पैसे हैं वे अदालत द्वारा नियुक्त सरक्षक शंकरलाल के नाम ट्रांसफर कर दिए जाएं । उसे यह लिखने का ख्याल ही नहीं रहा कि क्योंकि शंकरलाल सुन्दरदास की सारी चल और अचल सम्पत्ति का स्वामी नियुक्त किया गया है इसलिए भविष्य में भी सुन्दरदास के एकाउन्ट में जमा किए गए धन का स्वामी शंकरलाल ही होगा । वकील की इस गलती के कारण मेरा छोटा-सा दांव चल गया जिसे तुम गैरकानूनी हरकत की संज्ञा देने का प्रयत्न कर रहे हो ।”
प्रभू ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि कमरे में चटर्जी ने प्रवेश किया । वे बुरी तरह हांफ रहे थे ।
“आप कहां घुसे चले आ रहे हैं ?” - प्रभू तीखे स्वर में बोला ।
“मैं वहीं घुसा चला आ रहा हूं, जहां मुझे आना चाहिए ।” - चटर्जी अपनी सांस व्यवस्थित करने का प्रयत्न करते हुए बोले - “मैं शारदा का वकील हूं । जबकि आप इस पर कोई इल्जाम लगाने जा रहे हैं, मैं अपने क्लायन्ट के पास अपनी मौजूदगी जरूरी समझता हूं ।”
“आपको कैसे मालूम, हम इस पर कोई इल्जाम लगाने जा रहे हैं ?” - प्रभू हैरान होकर बोला ।
“और आप यहां क्या करने आए हैं ?”
“मैं इस लड़की से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“किस सिलसिले में ?”
“सिलसिला मैं अभी बताना नहीं चाहता ।”
“आप सवाल पूछिए लेकिन इस बात का ख्याल रखिए कि अभी शारदा मुजरिम नहीं है । वह आपके किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं है । वह आपके उन्हीं सवालों का जवाब देगी जो इसे उचित लगेंगे ।”
“तुम्हारे पास नींद की गोलियां हैं ?” - प्रभू ने शारदा से पूछा ।
“जरूरी नहीं है कि तुम इस सवाल का उत्तर दो ।” - चटर्जी शांत स्वर में बोले ।
प्रभूदयाल ने कहर भरी दृष्टि से चटर्जी की ओर देखा और फिर दुबारा शारदा से बोला - “जो खाना तुम अपने चाचा के लिए लाई थीं, उसमें तुमने नींद की गोलियां पीसकर क्यों मिला दी थीं ?”
शारदा ने एक असहाय दृष्टि चटर्जी पर डाली ।
चटर्जी ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
शारदा चुप रही ।
“ओफ्फोह !” - प्रभूदयाल उखड़कर चटर्जी से बोला - “आप एकाएक यहां बीच में कहां से आ टपके ?”
“यही तो मैं आपसे पूछना चाहता हूं । आप एकाएक शारदा के पीछे क्यों पड़ गए हैं ?”
“क्योंकि हमें पता लगा है कि यही लड़की मृतक को प्रताप रोड वाले मकान में लाई थी । संयोगवश हमें वह टैक्सी वाला मिल गया था जो प्रताप रोड से इस होटल तक शारदा को लाया था । शारदा के पास किराया देने के लिए टूटे पैसे नहीं थे । उसने होटल के काउन्टर क्लर्क से कुछ पैसे उधार लेकर टैक्सी वाले को दिए थे । बाद में काउन्टर क्लर्क से यह जान लेना कठिन काम नहीं था कि वह लड़की कौन से कमरे में थी । अब आप बताइए, आप एकाएक यहां कैसे आ पहुंचे ?”
“मैं अपने मुवक्किलों का बहुत ख्याल रखता हूं ।” - चटर्जी एक गुप्त दृष्टि सुनील पर डालते हुए मुस्कराए - “मेरा कोई मुवक्किल मुश्किल में हो तो मुझे इलहाम हो जाता है । आज भी लगभग आधा घण्टा पहले कोई मेरे दिल में पुकार-पुकारकर कह रहा था कि शारदा खतरे में है । बस जिस प्रकार भगवान भक्तों की पुकार सुनकर भागे चले आते हैं उसी प्रकार मैं भी अपने क्लायन्ट की पुकार पर भागा चला आया । देख लीजिये चप्पल में ही आ गया हूं । बूट भी नहीं पहन पाया हूं ।”
प्रभू हत्थे से उखड़ गया ।
“यह सब गड़बड़ तुमने की है ।” - वह दांत पीसकर सुनील से बोला ।
“मैंने क्या किया है ?” - सुनील भोले स्वर में बोला ।
“तुम ही ने इन वकील साहब को बुलाया है ।”
“अच्छा, मैंने बुलाया है । फिर ?”
प्रभू कुछ क्षण चुप रहा और फिर उत्तेजित स्वर में बोला - “मैं इस लड़की को एक लाश की शिनाख्त के लिए प्रताप रोड स्थित मकान नम्बर बीस में ले जा रहा हूं । किसी को कोई एतराज है ?”
“किसी को कोई ऐतराज नहीं है ।” - चटर्जी बोले - “लेकिन इस लड़की के वकील की हैसियत से मैं शिनाख्त के समय इसके पास रहना चाहूंगा ताकि आप इस पर कोई अनुचित दबाव न डाल सकें ।”
“और ये लोग किस हैसियत से लड़की के पास रहना चाहेंगे ?” - प्रभू सुनील और रमाकांत की ओर हाथ झटककर बोला ।
“हमने कहा है कि हम इसके पास रहना चाहते हैं ?” - सुनील चिढकर बोला ।
“अच्छा !” - प्रभू आश्चर्य का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “नहीं कहा तुमने ?”
सुनील ने चुप रहना ही श्रेयस्कर समझा ।
“तशरीफ लाइए ।” - प्रभू शारदा और चटर्जी से बोला ।
प्रभू और शारदा चटर्जी के साथ बाहर निकल गए । उनके पीछे मकान मालकिन वृद्धा और दोनों सिपाही थे ।
“अब ?” - रमाकांत बोला ।
“प्रताप रोड चलते हैं ?” - सुनील बोला - “शायद कुछ सूंघने को मिल जाए ।”
सुनील ने देखा, चाबी भीतर की ओर से द्वार के ताले में ही लगी हुई थी । उसने चाबी निकाल ली और रमाकांत के साथ बाहर निकल आया । फिर उसने द्वार को ताला लगाया और चाबी लापरवाही से अपनी जेब में डाल ली ।
***
रमाकांत की शानदार इम्पाला गाड़ी प्रतीप रोड पर बीस नम्बर मकान से जरा हटकर एक ओर खड़ी थी ।
सुनील और रमाकांत का की अगली सीट पर बैठ बड़ी शांति से अपने प्रिय सिगरेटों के कश लगा रहे थे ।
बीस नम्बर मकान के सामने कुछ सिपाही, एक एम्बूलेन्स और दो पुलिस की गश्ती गाड़ियां खड़ी थीं । उनसे कुछ हटकर तमाशा देखने के शौकीन अड़ौसियों-पड़ौसियों का एक छोटा सा समूह खड़ा था ।
“रमाकांत !” - सुनील बोला - “अपनी ओर की खिड़की का शीशा नीचे गिरा दो ।”
“क्यों ?”
“तुम्हारे चारमीनार के कड़वे धुएं से मेरा दम घुटा जा रहा है ।”
“कोई दम वम नहीं घुटता प्यारयो, बाहर ठन्डी हवा चल रही है ।”
“थोड़ा सा तो शीशा नीचा करो ।”
रमाकांत ने हैंडल घुमाकर शीशे में लगभग एक इन्ज की झिरी सी उत्पन्न कर दी ।
“एक तो तुम चारमीनार पीते हो और फिर तुम दो सिगरेटों के बीच में एक मिनट का भी तो फासला नहीं रखते हो । जितनी देर में मैं एक सिगरेट पीता हूं, उतनी देर में तुम चार पी जाते हो । कोई तरीका है यह सिगरेट पीने का ? तुम सिगरेट थोड़े ही पीते हो, उलटे सिगरेट तुम्हें पीती है इस ढंग से तो ।”
“क्या करें, भाई, मजा ही यूं आता है । अगर मैं तुम्हारी तरह और तुम्हारे ढंग से लक्की स्ट्राईक पीने लगूं तो...”
“जरा हार्न देना ।” - सुनील जल्दी से बोला - “शारदा और चटर्जी आ रहे हैं ।”
रमाकांत ने बाजे की तरह हार्न बजाना शुरू कर दिया ।
“बस-बस काफी है । उन्होंने देख लिया है ।” - सुनील बोला ।
चटर्जी लम्बे डग भरते हुए कार के समीप आ गए ।
सुनील कार से बाहर निकल आया ।
“क्या हुआ ?” - सुनील ने उत्सुकता से पूछा ।
“शारदा से पूछो ।” - चटर्जी बोले ।
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से शारदा को देखा ।
“लाश अंकल की नहीं थी ।” - शारदा धीरे से बोली ।
“तो फिर ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“लाश रामनाथ की थी ।”
“रामनाथ, शंकरलाल का दोस्त ?”
“हां ।”
“मकान मालकिन वृद्धा को भी लाश की सूरत दिखाई गई थी ।” - चटर्जी बोले - “उसने भी यही कहा है कि मृतक वह आदमी नहीं है जो शारदा के साथ आया था ।”
“लेकिन उसी वृद्धा ने तो पुलिस को हत्या की सूचना दी थी यह बात उसने तब क्यों नहीं कही ?”
“उस समय वह लाश की सूरत नहीं देख पाई थी । लाश तो पीठ के बल पड़ी थी और फिर वह तो लाश को देखते ही वहां से एकदम चिल्लाती हुई वापस भाग खड़ी हुई थी ।”
“प्रभूदयाल ने शारदा को छोड़ दिया ?” - सुनील ने पूछा ।
“फिलहाल हां । साथ में उसने शारदा को वार्निग दे दी है कि वह बिना उसे सूचना दिए कहीं जाए नहीं, विशेष रूप से शहर से बाहर ।”
“शारदा !” - सुनील शारदा से सम्बोधित हुआ - “जिस समय तुम अपने अंकल को लेकर उस मकान में आई थीं, उस समय कोई तुम्हारा पीछा तो नहीं कर रहा था ?”
“नहीं !” - वह निश्चयपूर्ण स्वर में बोली ।
“तुम्हें पूरा भरोसा है ?”
“बिल्कुल । मैंने अंकल को यहां लाते समय इसी विषय में विशेष रूप से सावधानी बरती थी ।”
“फिर भी रामनाथ इस मकान तक पहुंच गया ।”
“मुझे खुद हैरानी है कि वह यहां तक पहुंचा कैसे ?”
“और तुम्हारे ख्याल से तुम्हारे अंकल इस मकान में से कहां गायब हो गए हैं ?”
“मेरा ख्याल पूछते हो तो वे गायब नहीं हुए हैं ।” - शारदा उत्तेजित स्वर में बोली - “उन्हें जबरदस्ती यहां से ले जया गया है ।”
“जबरदस्ती कौन ले जाएगा उन्हें ?”
“शंकरलाल चाचा । अगर रामनाथ अंकल का पता जानता था तो शंकरलाल चाचा भी जरूर जानते होंगे । अब वे उन्हें फिर उलटी-सीधी जहरीली दवाइयां खिलाएंगे और जब उन दवाइयों के प्रभाव से वे पूर्णरूपेण अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठेंगे तो वे उन्हें डाक्टरी जांच के लिए प्रस्तुत कर देंगे ।”
“इतना कुछ जानती हो तो लगे हाथों यह भी बता डालो कि रामनाथ की हत्या किसने की है ?” - सुनील विचित्र स्वर में बोला ।
शारदा चुप रही, प्रत्यक्ष था कि इस बात का उसके पास कोई उत्तर नहीं था ।
“वैसे वर्तमान स्थिति में केवल दो व्यक्तियों पर सन्देह किया जा सकता है ।” - सुनील बोला ।
“कौन ?”
“या तो हत्या तुम्हारे अंकल ने की है जो कि हत्या करके यहां से भाग निकले या...”
“यह झूठ है ।” - शारदा एकदम बोल पड़ी - “अंकल हत्या नहीं कर सकते ।”
“यह बात मत भूलो शारदा कि अभी तक यह कतई सिद्ध नहीं हो पाया है । कि तुम्हारे अंकल वाकई पागल थे या नहीं । तुमने मुझे खुद बताया था कि पागलखाने का उनके मन में इतना भारी भय बैठा हुआ था कि उसका जिक्र भी याद आ जाने से वह विक्षिप्त हो उठते थे । ऐसी स्थिति में क्या यह सम्भव नहीं है कि रामनाथ ने उन पर कोई अनुचित दबाव डाला हो और उन्हें फिर पागलखाने में पहुंचा देने की धमकी दी हो ! उस स्थिति से बचने के लिए सुन्दरदास ने रामनाथ को किसी प्रकार खाने में नींद की गोलियां खिला दी हों ! शायद पहले उनका इरादा रामनाथ को बेहेश करके भाग निकलने का ही हो लेकिन बाद में उसे बेहोश पड़ा देखकर उन पर पागलपन सवार हो गया हो और उन्होंने रामनाथ की गरदन में चाकू घुसेड़ दिया हो !”
“लेकिन अंकल के पास चाकू कहां से आया ?”
“सम्भव है चाकू रामनाथ के पास हो ।”
“मैं नहीं मानती । अंकल हत्या नहीं कर सकते । वे तो अगर उनके हाथों एक चींटी भी मर जाए तो दुख का अनुभव करने लगते हैं ।”
“तो फिर...”
“क्या ?”
“तो फिर हत्या तुमने की है ।”
“मैंने ?”
“हां तुमने ।”
“आखिर आप मेरे और अंगल के पीछे ही क्यों पड़े हुए हैं ?” - शारदा रुआंसे स्वर में बोली - “आप लोग मेरी मदद कर रहे हैं या मेरे से दुश्मनी निकल रहे हैं । आखिर आप शंकरलाल चाचा पर सन्देह क्यों नहीं करते ? आप वह क्यों नहीं सोचते कि रामनाथ का कोई और दुश्मन होगा ?”
“मैंने तुम्हें तस्वीर का वह रुख दिखाया है जो पुलिस के सामने है । पुलिस अब भी तुम्हारी कल्पना एक ऐसी चालाक लड़की के रूप में करती है जो सुन्दरदास की जबरदस्ती रिश्तेदार बनकर उनका माल हड़प कर जाना चाहती है । प्रत्यक्ष में अपनी भलाई का तुमने केवल एक काम किया है वह यह है कि तुमने अपने अंकल को वह धन दे दिया जो मैंने बैंक से निकलवाया था बशर्ते कि यह बात सच हो ।”
शारदा चुप रही ।
“मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता ।” - सुनील बोला - “लेकिन तुम्हें हकीकत बता देना ही श्रेयस्कर है । जैसे संदिग्ध काम तुमने किए हैं उनकी बिना पर इस बात की पूरी सम्भावना है कि कल सुबह तक तुम जेल में होवो ।”
“अगर वाकई ऐसा हो जाए ।” - चटर्जी बीच में बोल पड़े - “तो याद रखो, तम्हें फौरन मुझे टेलीफोन करना है । बिना मेरी मौजदगी के तुम्हें पुलिस की किसी भी बात का उत्तर नहीं देना है । और मैं जो कुछ भी करूं, उस पर ऐतराज जाहिर नहीं करना है ।”
“क्या मतलब ?”
“सम्भव है तुम्हें बचाने के लिए मुझे तुम्हारे अंकल को चारे की तरह इस्तेमाल करना पड़े ।” - चटर्जी बोले ।
“मैं आपका मतलब नहीं समझी ।”
“मैं पुलिस के दिमाग में यह विचार बैठाना चाहता हूं कि सुन्दरदास ने रामनाथ की हत्या की है और हत्या के समय उसे अपने दिमाग पर काबू नहीं था क्योंकि जहरीली दवाइयों के प्रभाव से वह पागल हो चुका था ।”
“आप ऐसा करेंगे ?” - शारदा हैरान होकर बोली ।
“क्यों नहीं करूंगा ? मेरी मुवक्किल तो तुम हो, न कि सुन्दरदास । मेरा कर्त्तव्य अपने मुवक्किल को बचाना है, हर किसी की फिक्र मैं कैसे कर सकता हूं ? और फिर सुन्दरदास बूढे हो गए हैं । बहुत जमाना देखा है उन्होंने । तुमने तो अभी जवानी में ही एकदम रखा है ।”
“आप कैसी बातें कर रहे हैं ? वे मेरे अंकल हैं ।”
“वे तुम्हारे कुछ नहीं हैं ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन मैं उन्हें अपना अंकल मानती हूं ।”
“बहस छोड़ो ।” - चटर्जी बीच में बोले - “चलो मैं तुम्हें तुम्हारे होटल में छोड़ जाऊं ।”
“और भगवान के लिए इस बार होटल में ही रहना । इस बार फिर कोई करामात न कर दिखाना ।” - सुनील बोला ।
शारदा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन चटर्जी ने उसकी बांह पकड़ी और अपनी कार की ओर ले चले ।
सुनील भी वापस कार में आ बैठा ।
“अब तुम कहां जाओगे ?” - सुनील ने रमाकांत से पूछा ।
“यूथ क्लब ।” - रमाकांत ने बताया ।
“मुझे बैंक स्ट्रीट छोड़ते जाना ।”
“ओके।” - रमाकांत गाड़ी स्टार्ट करता हुआ बोला ।
अपने स्वभाव के विरुद्ध इस बार उसने कोई हुज्जत नहीं की थी ।
***
रात के लगभग दस बजे थे ।
सुनील यूथ क्लब पहुंच गया ।
रमाकांत अपने कमरे में था ।
“आज इस समय कैसे आ गए यहां ?” - रमाकांत उसे देखकर बोला - “आज तो यूथ क्लब में कोई हंगामा नहीं होने वाला है ।”
“मैं तुम्हारी यूथ क्लब के हंगामों की खातिर यहां नहीं आया हूं ।” - सुनील एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला ।
“तो फिर ?”
“मैं तो तुम्हारा चांद सा मुखड़ा देखने आया हूं, चन्द्रमुखे ।”
“शटअप !” - रमाकांत यूं शरमाकर बोला जैसे सत्य ही उसका मुखड़ा चांद सा हो ।
“मर्जी तुम्हारी ।” - सुनील सिगरेट सुलगाता हुआ बोला - “मैंने तो सोचा था कि अपना रिकार्ड चालू करने से पहले तुम्हें मूड में लाने के लिए तुम्हारी थोड़ी सी तारीफ कर दूं ।”
“एक सिगरेट देना मुझे ।” - रमाकांत बोला ।
“तुम्हारे चारमीनार का क्या हुआ ?” - सुनील उसकी ओर लक्की स्ट्राइक का पैकेट फेंकता हुआ बोला ।
“खत्म हो गया ।” - रमाकांत ने उत्तर दिया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया । पहला ही कश लेने के बाद उसने यूं घूरकर सिगरेट को देखा जैसे उसे विश्वास न आ रहा हो कि जिसका उसने कश लिया है वह सिगरेट ही था ।
“क्या हुआ ?” - सुनील वह प्रतिक्रिया देखकर बोला ।
“कुछ नहीं ।” - रमाकांत ने मुंह बिगाड़कर उत्तर दिया - “तुम्हारी पसन्द के सिगरेट की शान में कुछ कह दूंगा तो उखड़ जाओगे ।”
“क्या कहना चाहते हो ?”
“यह सिगरेट घास की बनी मालूम होती है ।”
“पन्द्रह रुपये का पैकेट आता है प्यारेलाल । इसके एक पैकेट के बदले में चारमीनार के पन्द्रह पैकेट आते हैं ।”
“फिर भी है ये घास की ही बनी हुई ।”
“चारमीनार जैसी सख्त सिगरेट पीकर तुम्हारा टेस्ट तो खराब हुआ ही है दिमाग भी खराब हो गया है इसीलिए तुम्हें इतनी अच्छी सिगरेट घास मालूम हो रही है ।”
“होगी । मुझे पसन्द नहीं ।”
“तो फिर पीते क्यों हो ?”
“यह लो, नहीं पीता ।” - रमाकांत ने साथ ही सिगरेट को ऐशट्रे में कुचल दिया ।
“यह क्या बात हुई ?” - सुनील हैरानी से बोला - “खामखाह एक सिगरेट खराब कर दी ।”
“मरो मत । इसकी कीमत तुम्हारे क्रेडिट में लिख दूंगा ।”
“खैर छोड़ो । कोई नई बात...”
“कोई नई बात नहीं है ।” - रमाकांत उखड़कर बोला ।
“रोते क्यों हो !” - सुनील उसे पुचकारता हुआ बोला - “चलो तुम्हें सैर करवा लाऊं ।”
“मैं यहीं ठीक हूं ।”
“अरे, तुम आओ तो सही । ठण्डी हवा में घूमोगे तो तुम्हारा दिमाग ठिकाने लग जाएगा । साथ ही चारमीनार भी मिल जाएगी ।
रमाकांत अनिच्छा से उठ खड़ा हुआ ।
सुनील उसे लेकर बाहर निकल आया ।
रमाकांत गेट की ओर बढा ।
“कार नहीं ले चलोगे ?” - सुनील मीठे स्वर में बोला ।
“कार का क्या होगा ?”
“फास्ट ड्राइविंग से तबियत फड़क जाएगी ।”
“इस समय !”
“क्या हर्ज है ?”
रमाकांत ने चाबी सुनील की ओर बढा दी ।
सुनील गैरेज में से गाड़ी निकाल लाया । रमाकांत उसकी बगल में आ बैठा ।
सुनील गाड़ी को मेन रोड पर ले आया ।
“कोई नई बात ?” - सुनील मुख्य विषय पर आता हुआ बोला ।
“एक-दो बातें हैं जो मेरी नजर में तो साधारण हैं लेकिन पुलिस उन्हें बहुत महत्व दे रही है ।”
“जैसे ?”
“बीस नम्बर मकान में, जहां सुन्दरदास रहता था, वहां बाथरूम में एक गिलास मिला है जिस पर नींद की गोलियों के पाउडर का कुछ अंश मिला है । लगता है उस गिलास की सहायता से नींद की गोलियों को पीसकर पाउडर बनाया गया था ताकि उसे खाने में मिलाने में सहूलियत रहे । उस गिलास पर उंगलियों के निशान तो मिले हैं लेकिन अभी तक उनकी शिनाख्त नहीं हो पाई है ।”
“शंकरलाल और विद्या का भी कुछ पता लगा है कि हत्या के समय वे कहां थे ?”
“दोनों के पास बचाव के लिए एलीबाई है । पुलिस की मैडिकल रिपोर्ट में हत्या का जो समय निश्चित किया गया है, उस समय दोनों सुन्दरदास की कोठी में शारदा के कमरे का ताला तोड़कर उसका सामान निकालकर बाहर फेंक रहे थे । वे शारदा की हर चीज की अच्छी तरह तलाशी ले रहे थे और उसकी हर छोटी-बड़ी चीज की लिस्ट बना रहे थे । बाद में उन्होंने सामान का एक बड़ा-सा गट्ठर बनाकर गैरेज में फेंक दिया था । लिस्ट उन्होंने इसलिए बनाई थी ताकि शारदा बाद में कोई उल्टा-सीधा क्लेम न करे । घर की पुरानी नौकरानी ने विद्या और शंकरलाल को इस काम से बहुत मना किया था लेकिन विद्या ने उसे डांट दिया था ! नौकरानी नीचे बैठी रोती रही थी और बार-बार विद्या को यही कहती रही थी कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था । उसने नौकरानी को डांट-फटकार कर नौकरों के क्वार्टर में भगा दिया था । शंकरलाल और विद्या शारदा के कमरे को खाली करने में तीन घन्टे लगे रहे थे ।”
“और कुछ ?”
“बस ।”
सुनील ने गाड़ी एक कम्पाउन्ड में मोड़ दी ।
“यहां कहां आए हो ?” - रमाकांत खिड़की से बाहर झांकता हुआ बोला ।
“पहचानो” - सुनील इग्नीशन को लाक करके बाहर निकलता हुआ बोला - “यहां पहली बार तो नहीं आए हो ।”
रमाकांत गाड़ी से बाहर निकल आया । वह होटल रिवर था ।
“यहां क्या है अब ?”
“मैं देखना चाहता हूं कि शारदा अभी होटल में ही है या खिसक गई । मुझे अब इस लड़की पर भरोसा नहीं रहा ।”
दोनों रिसेप्शन काउन्टर पर आ गए ।
“मिस शारदा अपने कमरे में है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कौनसा कमरा है उनका ?” - क्लर्क ने पूछा ।
“चार सौ बारह ।”
क्लर्क ने की-बोर्ड पर दृष्टि डाली ।
“अपने कमरे में ही होंगी ।” - क्लर्क बोला - “मैं तो लगभग डेढ घन्टा पहले ड्यूटी पर आया हूं । मेरे सामने तो वे बाहर गई नहीं हैं ।”
“आप जरा बोर्ड से रिंग करवाकर देखिए ।”
“आल राइट ।” - क्लर्क बोला । उसने काउन्टर पर रखा टेलीफोन उठा लिया और बोला - “हैलो, आपरेटर । कनैक्ट मी टू फोर ट्वैल्व ।”
क्लर्क कई क्षण रिसीवर कान से लगाए रहा । फिर उसने फोन रख दिया ।
“उधर से कोई उत्तर नहीं मिल रहा है ।” - क्लर्क बोला - “सम्भव है वे सो गई हों ।”
सुनील ने घड़ी देखी, पौने ग्यारह बज गए थे ।
“क्या हम ऊपर उनके रूम तक जा सकते हैं ?” - उसने पूछा ।
“जी हां । शौक से जाइए ।” - क्लर्क बोला ।
“थैक्यू ।” - सुनील बोला और लिफ्ट की ओर बढा गया ।
सुनील रूम नम्बर चार सौ बारह के सामने जा पहुंचा ।
द्वार की नॉब के साथ ‘डोंट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी हुई थी ।
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से रमाकांत की ओर देखा ।
“सो रही होगी ।” - रमाकांत बोला ।
“इतनी गहरी नींद कि घन्टी बजने पर फोन न उठा सके ।” - सुनील बोला ।
“सम्भव है । कई लोग बहुत गहरी नींद सोते हैं ।”
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने द्वार भड़भड़ा दिया ।
“तुम चाहते क्या हो ?”
“मैं यह जानना चाहता हूं कि शारदा भीतर है या नहीं ? अगर वह भीतर है तो किस हालत में है ? कहीं वह भी तो नीद की गोलियों की शिकार नहीं हो गई है ?”
“और अगर वह भीतर न हुई ?”
“रात के इस समय उसका अपने कमरे में न होना क्या मतलब रखता है ? अगर वह यहां से भाग निकली है तो विश्वास जानो उसने अपनी गरदन और फांसी के फन्दे के बीच का फासला बहुत कम कर दिया है । प्रभू ने उसे कहा था कि वह बिना कोई सूचना दिए गायब नहीं हो जाएगी ।”
सुनील ने फिर द्वार भड़भड़ा दिया ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
एकएक सुनील को एक ख्याल आया । उसने कोट की जेब में हाथ डालकर चाबी निकाल ली ।
“यहा कौन सी चाबी है ?” - रमाकांत न पूछा ।
“इसी कमरे की है । जब प्रभूदयाल शारदा को शिनाख्त के लिए ले गया था तो इस कमरे को ताला मैंने लगाया था, लेकिन मैं काउन्टर पर चाबी देना भूल गया था ।”
“फिर शारदा भीतर कैसे घुसी होगी ?”
“डुप्लीकेट चाबी द्वारा । होटल वाले ऐसी तीन-तीन, चार-चार चाबियां रखते हैं ।”
सुनील ने ताले में चाबी लगाकर ताला खोल दिया, फिर उसने द्वार को धक्का दिया ।
द्वारा नहीं खुला ।
“दरवाजा भीतर से बन्द है ।” - सुनील बोला ।
सुनील ने द्वार दुगने जोर से भड़भड़ाना शुरू कर दिया ।
कोई उत्तर नहीं मिला ।
“मैनेजर को बुलाना पड़ेगा ।” - सुनील बोला - “भीतर जरूर कोई गड़बड़ है ।”
उसी समय भीतर से चिटखनी गिराई जाने का स्वर सुनाई दिया और फिर द्वार खुल गया ।
द्वार पर शारदा खड़ी थी । वह नाइट सूट पहने हुए थी । उसकी आंखे मुंदी जा रही थीं और वह पूरी शाक्ति से उन्हें खोलने का प्रयत्न कर रही थी ।
“क... कौन ? ...क्या है... मुझे... मुझे नींद... आ रही है...” - और उसका शरीर एकाएक लहरा गया ।
सुनील ने लपककर उसे थाम लिया ।
“रमाकांत !” - सुनील उत्तेजित स्वर में बोला - “जल्दी से मैनेजर को फोन करो । उसे कहो फौरन कोई डाक्टर भेजे । यह जिन्दगी और मौत का सवाल है ।”
“इसे बिस्तर पर लिटा दो ।” - रमाकांत टेलीफोन की ओर लपका ।
“नहीं ।” - सुनील उसे सहारा देकर कमरे के भीतर ले आया - “इसे लिटाया तो समझो गई यह । एक बार यह सो गई तो फिर सोई ही रह जाएगी । यहां भी अगर नींद की गोलियां काम कर रही हैं तो इसका चलते रहना ही श्रेयस्कर है ।”
रमाकांत ने फोन कर दिया ।
“बाथरूम से तौलिया गीला करके लाओ, मैं इसे चलाता हूं ।”
रमाकांत द्वार की ओर झपटा ।
“अबे, वह बाथरूम का दरवाजा नहीं है ।” - सुनील - “वह द्वार शायद बगल के कमरे का है । बाथरूम उधर है... शारदा ! ...शारदा,चलने की कोशिश करो ।”
शारदा दो-तीन कदम चली फिर एकाएक उसका शरीर ढीला पड़ गया और वह गड़बड़ाई - “ओह ! ...मैं... मुझे नींद आ रही है ।”
सुनील जबरदस्ती उसे कमरे में चलाता रहा ।
“शारदा !” - वह जोर से बोला - “होश में आओ । चलने की कोशिश करो ।”
शारदा फिर उसके सहारे चलने का प्रयत्न करने लगी ।
“क्या हुआ था ?” - उसने पूछा ।
“किसी ने मुझे कुछ खिला दिया था ?” - वह धीमे स्वर में बोली ।
“क्या ? कब ? कैसे ?” - सुनील ने उतावले स्वर में पूछा ।
“डिनर के बाद मैं नीचे काफी पीने गई थी । उसी समय वेटर ने मुझे बताया था कि मेरा फोन है । मैं सुनने चली गई । लौटकर मैं फिर काफी पीने लगी । मुझे काफी का स्वाद कुछ बदला-सा लगा, लेकिन उस समय मैंने ख्याल नहीं किया । मेरे बगल की टेबल पर एक औरत बैठी थी । शायद उसी ने...”
और शारदा का शरीर एकदम सुनील के हाथों में लटक गया ।
सुनील ने बड़ी मुश्किल से उसे सम्भाला ।
रमाकांत गीला तौलिया ले आया ।
“जरा इसे सम्भालो ।” - वह रमाकांत के हाथ से तौलिया लेता हुआ बोला ।
रमाकांत ने शारदा की एक बांह अपनी गर्दन के आसपास डाली और दूसरे हाथ से उसकी कमर थाम ली । शारदा निर्जीव से शरीर का सारा भार उसके शरीर पर था ।
सुनील हाथ में तौलिया लिए कई क्षण खड़ा हिचकिचाता रहा, फिर उसने अपने सिर को एक झटका दिया और बड़ी फुर्ती से शारदा की बुशशर्ट के बटन खोल दिए । अगले क्षण उसने बुशशर्ट शारदा के शरीर से अलग कर दी ।
“अबे,यह क्या कर रहा है ?” - रमाकांत चिल्लाया ।
“इसकी जिन्दगी बचाने कि लिए यह जरूरी हैं ।” - सुनील उसकी पीठ पर गीला तौलिया हुआ बोला ।
“बेटा, अगर यह होश में आ गई तो तुझे खिड़की के नीचे धकेल देगी ।”
“तब की तब देखी जाएगी ।”
“उफ !” - शारदा एकदम उछली - “बहुत ठण्डा है ।”
“मेरे से नहीं संभलती यह, भई ।” - रमाकांत बोला ।
“इसे मैं सम्भालता हूं । तुम तौलिया गीला करके लाओ ।”
दोनों ने अपनी स्थिति बदल ली ।
रमाकांत तौलिया लेकर बाथरूम की ओर भाग ।
सुनील उसे फिर चलाने लगा ।
“मुझे लिटा दो न ।” - वह याचनापूर्ण स्वर में बोली - “नींद आ रही है ।”
“नहीं, तुम्हें सोना नहीं है ।”
रमाकांत गीला तौलिया ले आया ।
“इसकी पीठ पर फेरो ।”
“मुझे ठण्ड लग रही है ।” - वह बुदबुदाई ।
“रमाकांत, बाथरूम में गीजर है ?”
“है ।”
“बाथ टब को गर्म पानी से आधा भर लो । पानी इतना ही गर्म हो कि शरीर को सहन हो जाए । मैं इसे गर्म पानी में लिटाना चाहता हूं ।”
“मेरे आठ हाथ नहीं हैं ।” - रमाकांत तमककर बोला - “एक वक्त में एक काम बताया करो ।”
“तौलिया छोड़ दो और गर्म पानी भर लो ।”
शारदा का शरीर फिर उसके हाथ मे लहरा गया । उसके घुटने मुड़ने लगे और आंखे मुंदने लगी ।
“शारदा !” - सुनील चिल्लाया - “सीधी हो जाओ । तुम्हें सोना नहीं है । मैं कहता हूं चलो, चलो, चलो ।”
लेकिन शारदा का शरीर झुकता ही चला गया ।
सुनील ने क्षण-भर के लिए अपना हाथ उसकी कमर में से निकालकर उसकी हिप पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया ।
शारदा तड़पकर सीधी हो गई ।
“यू !” - वह चिल्लाई - “सन आफ ए बिच...”
उसी क्षण वह फर्श पर ढेर हो गई । उसको दुबारा अपने पैरों पर खड़ा करने के सुनील के सारे प्रयास असफल रहे ।
सुनील टेलीफोन की ओर लपका ।
“हैलो !” - वह बोला - “अभी डाक्टर आने में कितनी देर लगेगी ?”
“डाक्टर अभी लिफ्ट में घुसा है ।” - उत्तर मिला - “आप तक पहुंचने वाला होगा ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया और द्वार पर आकर बाहर गलियारे में झाकने लगा ।
गलियारे में एक आदमी हाथ मे बैग लिए लपका चला आ रहा था ।
“आप डाक्टर हैं ?” - सुनील ने जल्दी से पूछा ।
“हां ।”
“जल्दी कीजिए ।” - सुनील उसे कमरे के भीतर लागा हुआ बोला - “किसी ने काफी के साथ नींद लाने वाली गोलिया खिला दी है इसे ।”
“कितनी देर हो गई है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
डाक्टर ने बैग नीचे रख दिया । उसने शारदा की बांहें पकड़ लीं ।
“दूसरी ओर से पकड़ो ।” - वह सुनील से बोला ।
दोनों ने उसे उठाकर पलंग पर डाल दिया, डाक्टर ने उसे गले तक एक कम्बल से ढंक दिया ।
“कोई बाल्टी या चौड़ा बर्तन ले आओ । अभी यह उल्टियां करेगी ।”
सुनील बाथरूम से बाल्टी उठा लाया ।
डाक्टर ने शारदा को एक इन्जेक्शन दे दिया ।
कुछ ही देर बाद शारदा बाल्टी में उल्टियां करने लगी ।
काफी उल्टियां कर चुकने के बाद शारदा रुक गई । उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी ।
डाक्टर ने उसे सीधा कर दिया और उसके दिल पर स्टेथस्केप लगाकर काफी देर दिल की धड़कन सुनता रहा ।
सुनील चुपचाप बाथरूम में चला गया ।
“पानी गर्म हो गया है ।” - रमाकांत बाथटब में हाथ डालकर गर्मी अनुभव करता हुआ बोला ।
“उसे बहा दो और टब को एकदम ठण्डे पानी से भर दो ।”
“क्या ? अभी पहले मुझे बेकूफ बना रहे थे तुम ?” - रमाकांत एकदम नाराज हो उठा ।
“रमाकांत, प्लीज ! समझने को कोशिश किया करो ।” - सुनील याचनापूर्ण स्वर में बोला ।
रमाकांत ने चुपचाप बाथटब का कैच खोल दिया ।
सुनील वापिस डाक्टर के पास लौट आया ।
“कैसी है यह अब ?” - उसने पूछा ।
“एक अजीब बात सामने आ रही है । वोमेटिंग के बाद इसकी नब्ज भी रेगुलर हो गई है, हार्ट बीटिंग भी स्ट्रांग है, रेस्पीरेशन भी नार्मल है लेकिन इसके पेट में से उल्टी के साथ नींद की साबुत गोलियां निकली हैं जो पच नहीं पाई हैं ।”
“यह कैसे हो सकता हैं ? वह तो कहती थी कि किसी ने उसकी काफी में कुछ घोल दिया था ।”
“ये गोलियां उसके पेट में काफी के साथ नहीं पहुंची थीं । काफी तो उसने कम से कम दो घण्टे पहले पी है । नींद लाने वाली गोलियां काफी से बहुत बाद में पेट में पहुंची हैं । अगर गोलियां काफी के साथ इसके पेट से पहुंची होती तो अब तक साबुत कैसे बची रहती ? और फिर यह अभी तक होश में नहीं आ रही है ।”
“डाक्टर ।” - सुनील ऊंचे स्वर में बोला - “अगर थोड़ी देर इसे गरम पानी में लिटाया जाए तो शायद इसकी तबियत सुधर जाए ।”
डाक्टर ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन सुनील ने उसे आंख मार दी । डाक्टर से सकपका गया !
“हम इसे गरम पानी में लिटाते हैं ।” - सुनील उसे कन्धों की ओर से थमाता हुआ बोला - “अगर इसकी हालत सुधरने लगी तो ठीक है, नहीं तो हम इसे बाहर निकाल लेंगे, आप इसकी टांगें पकड़िए ।”
दोनों ने शारदा को उठा लिया ।
“शारदा ! होश में हो ?” - सुनील ने पूछा ।
शारदा की पलकें फड़फड़ायीं लेकिन आंखे नहीं खोलीं ।
दोनों शारदा का शरीर टब के पास ले आए । सुनील ने डाक्टर को संकेत किया । दोनों ने एक साथ शारदा को टब में छोड़ दिया ।
एक जोरदार चीख सुनाई दी ।
“यह क्या बदतमीजी है ?” - शारदा कोध से आगबबूला होती हुई चिल्लाई - “पानी बर्फ जैसा ठन्डा है । तुम कहते थे यह गरम है । और मेरे कपड़े किसने उतारे हैं ? शर्म नहीं आती आप लोगों को, यू... यू... ब्लडी...”
और वह झपटकर बाथ टब से बाहर निकल आई । उसने हैंगर से उठाकर एक तौलिया अपने चारों ओर लपेट लिया । वह बुरी तरह ठिठुर रही थी ।
“बहुत ड्रामा हो चुका, शारदा ।” - सुनील कड़े स्वर में बोला - “तुम्हारे सारे प्रयत्नों को बावजूद भी तुम्हारी चालबाजी चल नहीं पाई है । ये गीले कपड़े उतार दो, मैं तुम्हें सूखे कपड़े देता हूं । कपड़े बदलकर बाहर निकल आओ और अपना रिकार्ड चालू किर दो ।”
तीनों बाहर निकल आए ।
सुनील ने वार्डरोब में से कुछ कपड़े निकाले और बाथरूम में फेक दिए ।
शारदा ने भड़ाक से द्वार बन्द कर दिया ।
“तुम्हें शक कैसे हुआ ?” - रमाकांत ने पूछा ।
“जब इसने हमें द्वार खोला था तो यह एकदम बेहोशी में लहरा गई थी । मैंने इसे सहरा देकर चलाने की चेष्टा की थी । पहले दो-तीन कदम इसने एकदम नार्मल ढंग से उठाए थे, फिर एकाएक इसे अपनी गलती का ख्याल आ गया और इसने अपना शरीर मेरे सहारे छोड़ दिया । थोड़ी देर बाद वह स्वयं को एकदम ही निर्जीव प्रकट करने लगी, फिर एक बार मैंने इसकी हिप पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया था तो वह एकदम दर्द से दोहरी हो गयी थी और मुझे गाली देने लगी थी । अगर उस पर नींद की गोलियों का असर होता तो उसे मेरी इस हरकत का पता भी नहीं लगता । बाद में गर्म पानी के धोखे से ठन्डे पानी में डाल दिए जाने पर यह जैसे भड़की थी, वह तो तुमने देखा ही था । मेरे ख्याल से इसने नींद की गोलियां हमारे कमरे में प्रविष्ट होने से अधिक से अधिक एक मिनट पहले खाई थीं ।”
“लेकिन क्यों ?” - डाक्टर ने पूछा ।
“शायद अपने लिए हमदर्दी का वातावरण बनाने के लिए । यह प्रकट करने के लिए कि जिसने रामनाथ की हत्या की थी वही उसका भी काम तमाम करना चाहता था । इस तरीके से वह हत्या के मामले में काफी हद तक अपनी निर्दोषिता प्रकट करने में भी सफल हो जाती ।” - रमाकांत ने अपनी राय दी ।
“नहीं ।” - सुनील नकारात्मक ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “स्वयं गोलियां खाकर उसने अपने जीवन का जितना बड़ा रिस्क लिया है, उसके प्रकाश में तुम्हारा तर्क वजनी नहीं मालूम होता । मान लो फौरन हमें डाक्टर न मिल पाता तो ? शारदा अपनी जान से हाथ धो बैठती । महज अपने लिए हमदर्दी जीतने के लिए या अपनी निर्दोषिता सिद्ध करने के लिए इस छोटे-से और किसी हद तक हास्यास्पद से ध्येय के लिए जीवन का दाव बहुत बडा मालूम होता है ।”
“तो फिर इसने खुद जान-बूझकर नींद की गोलियां क्यों खायी ?” - रमाकांत बोला ।
“क्योंकि वह हमें नहीं जानने देना चाहती थी कि जब हम बाहर खड़े द्वार खटखटा रहे थे, वह भीतर क्या कर रही थी । भीतर वह कोई ऐसा काम कर रही थी जिसे वह हमारी जानकारी में नहीं आने देना चाहती थी ।”
“लेकिन ऐसा काम क्या हो सकता है ?”
“यही तो सवाल है ।” - सुनील बाथरूम के बन्द द्वार की ओर उचटती हुई दृष्टि डालता हुआ बोला - “ऐसा क्या काम हो सकता है ? शारदा को टेलीफोन की घंटी क्यों नहीं सुनाई दी ? क्यों, क्यों ?”
एकाएक एक विचार बिजली की तरह उसके दिमाग में कौध गया ।
“रमाकांत” - वह उत्तेजित स्वर में बोला - “जरूर यहां सुन्दरदास था ।”
“तो फिर अब कहां गया ?”
“जरूर वह बगल के कमरे में होगा ।” - सुनील उस द्वार की ओर संकेत करता हुआ बोला जिसे रमाकांत ने पहले बाथरूम का द्वार समझा था - “शारदा भी वहीं थी, इसीलिए उसे टेलीफोन की घण्टी नहीं सुनाई दी थी । हमारे द्वार खटखटाने पर वह उस कमरे में से निकलकर अपने कमरे में आ गई, उसने कुछ नींद की गोलियां हलक से नीचे उतारीं जो उसने सुन्दरदास की शीशी में से निकाली होंगी और फिर लडखड़ाते हुए आकर यूं द्वार खोल दिया होगा जैसे वह शोर सुनकर किसी प्रकार जागने में सफल हो गई हो ।”
“लेकिन अब सुन्दरदास कहां होगा ?”
“तुम गलियारे में जाओ, मैं इधर से द्वार खोलता हूं ।” - सुनील बोला ।
रमाकांत बाहर निकल गया ।
डाक्टर मुंह बाये कभी सुनील और कभी रामाकांत को देख रहा था ।
शारदा अब भी बाथरूम में थी ।
सुनील ने शारदा के कमरे वाली चाबी ली और उसे बीच के द्वार में लगाया ।
द्वार खुल गया । उसने भीतर झांका ।
कमरा खाली था ।
वह बाहर गलियारे में आ गया ।
“कोई दिखाई दिया ?” - उसने रमाकांत से पूछा ।
“नहीं । - वह बोला ।”
“बूढा भाग गया ।” - सुनील रमाकांत की बांह पकड़कर लिफ्ट की ओर भागता हुआ बोला - “शारदा की चाल सफल हो गई । वह हमें अपने ड्रामे में उलझाये रही और सुन्दरदास को भाग निकलने का अवसर मिल गया ।”
वे लिफ्ट के सहारे नीचे पहुचे ।
सुनील काउन्टर की ओर लपका ।
“अभी कोई चार सौ दस नम्बर कमरा खाली करके गया है ?” - उसने काउन्टर पर क्लर्क से पूछा ।
“जी हां । अभी कुछ मिनट पहले ।” - क्लर्क बोला ।
“कैसा था वह आदमी ?”
“वे एक लगभग साठ वर्ष के वृद्ध थे, बहुत जल्दी में थे... वह देखिए, वे द्वार से बाहर निकले जा रहे हैं ।”
“कहां ?” - सुनील उत्तेजित स्वर में बोला ।
“वे रिवाल्विंग डोर से बाहर निकले जा रहे हैं ।”
सुनील ने एकदम घूमकर देखा । रिवाल्विंग डोर से बाहर निकलते हुए एक वृद्ध की झलक मात्र ही देखाई दी उसे ।
सुनील द्वार के ओर लपका । वह लगभग वृद्ध के पीछे ही बाहर निकल आया ।
वृद्ध हाथ में एक अटैची केस थामे तेज कदमों से होटल के कम्पाउन्ड से बाहर चला जा रहा था ।
“रुकिये !” - सुनील चिल्लाया ।
लेकिन वृद्ध न घूमकर भी नहीं देखा ।
सुनील लपककर उसके समीप पहुंच गया ।
“सुन्दरदास जी ।” - वह बोला - “मैं आपको ही आवाज दे रहा था ।”
वृद्ध रुक गया, उसके चेहरे पर गहन वितृष्णा के भाव प्रकट हो उठे थे ।
“कौन हो तुम ?” - वह बोला ।
“आप वापिस होटल मे तशरीफ लाइए । वहां मैं आपको बहुत-कुछ बताऊंगा और आपसे बहुत पूछंगा ।”
“मुझे जल्दी है । मैं होटल छोड़ चुका हूं ।”
“मुझे आपसे बहुत सहयोग की अपेक्षा है, सुन्दरदास जी ।” - सुनील क्षमापूर्ण स्वर में बोला ।
“आई एम सारी ।”
“सुन्दरदास जी ।” - सुनील कड़े स्वर में बोला - “शारदा की भालई बहुत-कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि आप मुझसे दो बातें कर लें ।”
वृद्ध ठिठक गया ।
“और आपकी भी भलाई है इसमें । निश्चय ही गलत हाथों मे पड़कर आप दोबारा पागलखाने में जाना पसन्द नहीं करेंगे ।”
धमकी काम कर गयी, वृद्ध ठिठक गया ।
“तुम हो कौन ?” - वृद्ध नम्र स्वर में बोला ।
“मेरा नाम सुनील है । मैं आपके वकील चटर्ची के लिए काम कर रहा हूं । फिलहाल आप इतना ही परिचय समझिए ।”
“चलो ।” - वृद्ध निश्चयपूर्ण स्वर में बोला ।
“अटैची केस मुझे दे दीजिए ।” - सुनील बोला ।
तीनों वापिस होटल में आ गए ।
काउन्टर क्लर्क आश्चर्य से तीनों का मुंह देखने लगा ।
“चार सौ दस दोबारा इनके नाम लिख दो ।” - सुनील बोला ।
“यस सर !” - क्लर्क बोला ।
वे लिफ्ट द्वारा चौथी मंजिल पर पहुंचे ।
सुनील वृद्ध को लिए शारदा के कमरे में घुस गया ।
शारदा तब तक बाथरूम से बाहर निकल आई थी और डाक्टर के सामने बैठी थी ।
सुन्दरदास को देखते ही उसके मुंह से निराशापूर्ण चीख निकल गई ।
“इट्स आलराइट, बेबी ।” - सुन्दरदास बोला ।
“तुम्हारी चाल सफल नहीं हो सकी, शारदा ।” - सुनील बोला - “खामखाह ही नींद की गोलियां खाकर अपनी जान जोखम में डाली तुमने ।”
शारदा ने एक कहरभरी दृष्टि सुनील पर डाली लेकिन मुंह से कुछ न बोली ।
“मैं आपसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं ।” - सुनील बोला ।
“एक मिनट ठहरो ।” - वृद्ध बोला - “शारदा, तुम सुनील को जानती हो ?”
“जी हां । ये चटर्जी के मित्र हैं । इनकी ही होशियारी से आपको चैक कैश हो सका था । इन्होंने मेरी बहुत सहायता की है और मैंने इनकी शराफरत का बहुत नाजायज फायदा उठाया है । मैंने...”
“काफी है ।” - वृद्ध हाथ उठाकर उसे रोकता हुआ बोला - “सुनील, पूछो क्या पूछना चाहते हो ?”
“तुम बीच में नहीं बोलोगी ।” - सुनील ने शारदा को चेतावनी दी ।
“अच्छा ।” - शारदा अनमने स्वर में बोली ।
“आप रामनाथ को जानते हैं ?” - सुनील सुन्दरदास से बोला ।
“हां, वह एक तीसरे दर्जे का इंसान है । मेरे कुछ रिश्तेदारों के साथ काफी अरसा मेरे घर रहता रहा है ।”
“था ।”
“क्या मतलब ?”
“रामनाथ की हत्या हो गयी है ।”
वृद्ध ने उत्तर नहीं दिया ।
“आप उसकी हत्या के विषय में क्या जानते हैं ?”
वृद्ध कुछ क्षण चुप रहा और फिर एकदम नपे-तुले स्लर में बोला - “अगर वह प्रताप रोड स्थित मकान नम्बर बीस मे मरा पाया गया था तो उसकी हत्या मैंने की है ।”
“अंकल !” - शारदा एकदम बोल पड़ी ।
“मैंने कहा या तुम चुप रहोगी !” - सुनील कड़े स्वर में बोला ।
“मैं चुप क्यों रहूं ?” - शारदा तमककर बोली - “तुम क्या कोई मजिस्ट्रटे लगे हुए हो ?”
“शारदा, शटअप !” - वृद्ध शांत स्वर में बोला ।
शारदा ने एक आश्चर्यपूर्ण नजर वृद्ध पर डाली और फिर होंठ भींच लिए ।
“हां, बेटे ।” - वह सुनील से बोला - “मैंने उसकी हत्या की है । मैंने उसे ढेरे सारी नींद की गोलियां खिला दी थीं ।”
“लेकिन अंकल !” - शारदा फिर बोल पड़ी ।
“तुम चुप रहो बेटी ।” - वृद्ध बोला ।
शारदा बेमन से चुप हो गई ।
“क्या आप स्थिति पर प्रकाश डालेंगे ?” - सुनील बोला - “काफी कुछ तो मैं जानता हूं लेकिन...”
“तुम नहीं जानते कैसे कभी-कभी नीच प्रवृत्तियों वाले रिश्तेदार आस्तीन के सांप बन जाते हैं । कैसे एकाएक आपको अपने ही घर में अजनबी बना दिया जाता है । कैसे एक दिन एकाएक आपको मालूम होता है कि आपकी जिन्दगी भर की खून-पसीने की कमाई, आपकी अपनी मेहनत का फल आपकी लाखों की सम्पत्ति, आपकी नहीं है । आप अपने ही धन के एक नये पैसे के हकदार नहीं हैं । बेटा, तुम अभी जवान हो अभी तुम्हारा वास्ता ऐसे लोगों से नहीं पड़ा है जो आपको ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर देते हैं कि आप अजीव हो जायें । आप अपनी मर्जी से अपना हाथ तक न हिला सकें, आप अपनी मर्जी से एक गिलास पानी तक पीने के लिए तरस जाएं, लोग आपको उल्टी-सीधी दवाइयां खिलाते रहें, दिन-रात आपके मरने की कामनाए करते रहें और फिर आपको पागलखाने भिजवा दें जहां आपको पलग के साथ रस्सियों द्वारा जकड़कर रखा जाए । यह तो एक हत्या की बात है, मैं उन इम्तहान की घड़ियों में से, उस नारकीय जीवन में से कभी दोबारा नहीं गुजरूंगा चाहे मुझे एक हजार हत्यायें करनी पड़ें ।”
सुनील मंत्र-मुग्ध-सा सब-कुछ सुनता रहा ।
“उस यातनापूर्ण जीवन से मुझे शारदा ने छुटकारा दिलवाया है । अपनी आने वाली जिन्दगी के मैं जितने भी दिन जिऊंगा, शारदा का आभारी रहूंगा ।”
“आप हत्या के विषय में कुछ बताने वाले थे ?” - सुनील ने कहा ।
“बताता हूं । पागलखाने से निकालकर शारदा मुझे प्रताप रोड के उस मकान में छोड़ गई थी । फिर वह मेरे लिए कुछ रेडीमेड कपड़े, टायलेट का सामान और उस समय का भोजन लेने चली गई थी । भोजन लाने के लिए वह मकान मालकिन का टिफिन कैरियर ले गई थी । उसके बाद मकान मालकिन ही मेरे भोजन का प्रबन्ध करने वाली थी । शारदा भोजन और बाकी सामान लेकर लौट आई और फिर सारा सामान मुझे देकर फौरन ही वापिस चली गयी । वह मुझे कह गई थी कि अब काफी अरसे तक वह मुझसे सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगी ताकि उसके माध्यम से कोई मुझ तक न पहुंच पाये । शारदा के जाने कुछ ही मिनट बाद किसी ने द्वार खटखटाया । मैं कई क्षण तो चुप बैठा रहा लेकिन जब द्वार निरन्तर खटखटाया जाता रहा तो मुझे द्वार खोलना पड़ा क्योंकि द्वार ने खोलने पर अड़ौसी-पड़ौसी सन्देह करते । मैंने द्वार खोला और रामनाथ दनदनाता हुआ भीतर आ घुसा । वह मुझे धमकियां देने लगा ।”
“कैसी धमकियां ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह बोला कि अकेला वह जानता था कि मैं कहां हूं ! अगर वह यह बात शंकरलाल पर प्रकट कर देता तो मैं दोबारा पागलखाने पहुंच जाऊंगा, मेरी स्वतन्त्रता छिन जाएगी और मैं फिर लालची रिश्तेदारों के हाथ का खिलौना बन जाऊंगा और मैं अपने धंधे का कुछ उपयोग नहीं कर पाऊंगा । अपनी जुबान बंद रखने के लिए वह मुझसे एक लाख रुपया मांगता था । वह कहता था कि शंकरलाल उसका एक लाख रुपये का कर्जदार है । वह शंकरलाल से बेहद चिढा हुआ भी है । अगर वह रुपया मैं उसे दे दूं तो वह शंकरलाल को भी धमका सकता है कि वह मेरे विरुद्ध कोई कार्यवाही न करे और साथ ही वह खुद भी इस बात की शहादत देगा कि मैं न तो पहले पागल था न अब पागल हूं । उसे तो अपने धन से मतलब है, चाहे वह शंकरलाल से मिले या मुझसे । लेकिन अगर मैं उसकी बात नहीं मानूंगा तो मेरा शेष जीवन पागलखाने में गुजरेगा ।”
“फिर ?”
“मैं डर गया । प्रथम तो मेरे पास एक लाख रुपये थे नहीं और फिर इस बात का कोई भरोसा नहीं था कि रुपये लेकर वह मुझे छोड़ देगा । सम्भव था वह मुझे ब्लैकमेल करना ही आरम्भ कर देता । दोबारा पागलखाने भेज दिए जाने के नाम से ही मेरी आत्मा कांप उठती थी ।”
“फिर ?”
“मैंने उसे बताया कि मैं उसकी बात से सहमत हो सकता हूं । मैं बाथरूम में चला गया । वहां मैंने एक शीशे के गिलास की सहायता से कुछ नींद की गोलियां पीसकर उनका पाउडर सा बना लिया । अब समस्या केवल यह भी कि मैं वह पाउडर उसे खिलाऊं कैसे ? लेकिन मेरी समस्या खुद उसने ही हल कर दी । शारदा का टिफिन कैरियर में लाया हुआ खाना अभी वैसे का वैसा पड़ा था । रामनाथ ने खाना देखा और बोला कि थोड़ा खाना वह भी खाएगा । मैंने खाने का एक भाग उसे दे दिया । वह बाथरूम में हाथ धोने गया तो मैंने उसके खाने मे वह नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया । वह वापिस आकर बिना सन्देह किए खाना खा गया । खाना समाप्त करने के लगभग फौरन बाद ही बिस्तर पर पसर गया । और गहरी नींद सो गया । मैं उसे ऐसी स्थिति छोड़कर बाहर निकल आया और होटल रिवर में पहुच गया । शारदा उस समय कमरे में नहीं थी । उसकी बगल का कमरा खाली था । वह मैंने ले लिया ।”
“अभी आधा घंटा पहले क्या हुआ था ?”
“शारदा मेरे कमरे में थी । पहली बार तो उसे द्वार खटखटाये जाने की आवाज सुनाई नहीं दी थी । उसने द्वार के बाहर ‘डोंट डिस्टर्ब’ का साइन बोर्ड लटकाया हुआ था । और कमरे के अन्दर से चिटकनी भी लगाई हुई थी । यही उसकी गलती थी । इससे आप लोग जान गए कि भीतर कोई है । मेरी ओर किसी का ध्यान आकर्षित न हो, इसीलिए उसने मेरी कुछ नींद की गोलियां खा ली । फिर उसने बीच का द्वार बन्द किया और अपने कमरे में जाकर कपड़े बदले और द्वार खोल दिया । नींद की गोलियां फौरन तो असर करती नहीं इसीलिए उसे कुछ देर उनके प्रभाव में होने का झूठा अभिनय करना पड़ा । वह कहती थी कि उसे ऐसी दशा में देखकर आप लोग उसी की फिक्र करने लगेंगे और मुझे भाग निकलने का मौका मिल जाएगा । शारदा के अपने कमरे में जाते ही मैंने अटैची में अपना जरूरी सामान पैक किया और गलियारा खाली मिलते ही भाग निकला लेकिन फिर भी या मैं काफी फुर्ती नहीं दिखा सका या आप लोग जरूरत से ज्यादा होशियार थे कि मैं पकड़ा ही गया ।”
वृद्ध चुप हो गया ।
“क्या यह सच है ?” - सुनील ने सावधानी से एक-एक शब्द का चयन करते हुए पूछा - “कि शारदा आपकी एक पुरानी नौकरानी रुकमणी की लड़की है ?”
वृद्ध ने एक नजर शारदा के विवर्ण चेहरे पर डाली और स्थिर स्वर में बोला - “यह सच है और यह भी सच है कि मैं शारदा का बाप हूं ।”
“क्या ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“अंकल !” - शारदा एकदम चिल्ला पड़ी ।
“जो मैंने कहा है बिल्कुल सच है । शारदा अब बच्ची नहीं रही इसीलिए उसे बता देने में कोई हर्ज नहीं है । रुकमणी एक अच्छे खानदान से सम्बन्ध रखती थी । उसका पति उससे आयु में बीस वर्ष बड़ा और बेहद दुराचारी आदमी था । किन्हीं पारिवारिक मजबूरियों के कारण रुकमणी को उससे शादी करनी पड़ी थी, बाद में उसके अत्याचारों से तंग आकर रुकमणी घर से भाग निकली थी । मैंने उसे शरण दी थी । मेरे घर में वह नाम की ही नौकरानी थी, वास्तव में वह एक कुशल गृहणी की तरह मेरी तथा मेरे घर की देखभाल करती थी । मैं उससे शादी करना चाहता था लेकिन कानूनी तौर पर यह सम्भव नहीं था क्योंकि उसका पहला पति जीवित था और तलाक में भी कई विषमताएं थी । रुकमणी के पेट में मेरी बच्ची शारदा पल रही थी । मैं बहुत चिन्तित था । उन्हीं दिनों मेरा छोटा भाई और उसकी पत्नी एक दुर्घटना में मारे गए । उन्हीं दिनों रुकमणी ने शारदा को जन्म दिया । मैंने यही प्रकट किया कि यह मेरे मृत भाई की लड़की है । लेकिन यह बात शंकरलाल से नहीं छिपाई जा सकती थी क्योंकि वह जानता था कि वास्तव में मेरी कोई भतीजी नहीं हुई थी । इसीलिए शंकरलाल को मैंने यही लिखा कि शारदा घर की नौकरानी की लड़की है भी और यह नौकरानी हमारे यहां आने से पहले ही गर्भवती थी और मैंने उस बच्चे को केवल एक खानदानी नाम देने के लिए, ताकि बड़ी होकर उस पर नाजायज औलाद होने का कलंक न आये, अपनी भतीजी घोषित कर दिया था ।”
“शंकरलाल कैसा आदमी है ?”
“एक बेहद हरामजादा इन्सान है बेटा, मैं हमेशा ही पैसे वाला नहीं था । आज से बीस साल पहले मैं दर-दर की ठोकरें खाता फिरता था । उस समय शंकरलाल मुझे कुत्ते की तरह दुत्कारता था, मुझे अपना रिश्तेदार मानते हुए शर्म महसूस करता था । फिर मेरे भी दिन फिरे । अथक परिश्रम का फल मुझे मिला । मैंने बहुत रुपया कमाया । शंकरलाल को शायद कभी मालूम नहीं पड़ा कि मैं लखपति हो गया हूं वर्ना वह पहले ही मुझ पर चढ दौड़ता । वह तो यही सोचता होगा कि मैं भूखा-प्यासा कहीं मर-खप गया हूंगा । मेरा ख्याल है रामनाथ ने ही उसे बताया था कि मेरे पास बहुत पैसा है । वह दल-बल सहित मेरे पास आ धमका । बीस साल बाद मैंने अपने उस रिश्तेदार की सूरत देखी । लेकिन उस समय मुझे उसके इरादों की जानकारी नहीं थी । मैंने पुरानी बातें भुलाकर उनकी इज्जत ही की जिसके बदले में उन्होंने मेरे साथ बूरा सलूक किया, तुम जानते ही हो । बेटे, सांप की जात नहीं बदलती । आप उसे कितना ही दूध पिलाइए मौका मिलते ही आपको डसे बिना वो नहीं मानेगा ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
“खैर !” - वृद्ध एक गहरी सांस भरकर बोला - “जो हो गया, सो हो गया । अब तो हकीकत यह है कि मैंने रामनाथ को नींद की गोलियां खिलाई हैं । अगर वह उसी ओवरडोज से मर गया है तो जिम्मेदार मैं हूं लेकिन मेरा इरादा उसकी हत्या करने का नहीं था । मैं तो केवल उसे बेहोश करके वहां से भाग निकलना चाहता था ।”
“रामनाथ नींद की गोलियां खाकर नहीं मरा है ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“तो फिर ?” - वृद्ध की भवें सिकुड़ गई ।
“किसी ने उसकी गरदन में चाकू घूसेड़ दिया था ।”
“क्या ?” - वृद्ध हैरानी से चिल्ला पड़ा ।
शारदा के मुंह से छुटकारे की एक गहन निःश्वास निकल गई ।
“कोर्ट ने आपकी जांच लिए एक डाक्टर को नियुक्त किया था मैं उस डाक्टर के अतिरिक्त नगर के दो अन्य सुयोग्य मेंटल सर्जनों को यहां बुला रहा हूं । वे आपका मुआयना करके अपनी रिपोर्ट दे देंगे । कल सुबह ही चटर्जी आपकी ओर से केस की री-ओपनिंग के लिए प्रार्थना पत्र दे देंगे । शंकरलाल को अपने अधिकरों से बेदखल कर दिया जाएगा, आपकी सारी सम्पत्ति फिर आपके अपने अधिकार में होगी, आप बेफिक्र हो जाइए । संसार की कोई शक्ति आपको दोबारा पागलखाने नहीं ले जा सकती ।”
“शारदा का क्या होगा ?”
“पुलिस शारदा के विरुद्ध केस बना रही है । कल तक शायद शारदा गिरफ्तार हो जाएगी लेकिन आप चिंता मत कीजिये । आप तनिक भी उत्तेजना प्रकट किए बिना चुपचाप अपने कमरे में रहिए । आपका बयान पुलिस और जनता के सामने ब्लास्ट के माध्यम से आएगा । वह बयान पढते ही पुलिस हम पर भी चढ दौड़ेगी और आप पर भी लेकिन जब तक वे आपको गिरफ्तार करने की सोचेंगे, असली हत्यारा आपके सामने होगा और आपका जो बयान ब्लास्ट में छपेगा वह खुद आपके लिए न्यूज होगा लेकिन उसका विरोध नहीं करना है । मैं हत्यारे को फांसने के लिए बहुत बड़ा दांव लगा रहा हूं । आपको मन्जूर है ?”
“हां ।”
“थैंक्यू ! चलो रमाकांत ।” - सुनील उठकर द्वार की ओर बढता हुआ बोला ।
“मिस्टर !” - डाक्टर उसके पीछे लपका ।
“ओह यस डाक्टर, आपको तो मैं भूल ही गया था ।” - सुनील बोला ।
“मिस्टर, ये अटैम्पटिड सुसाइड का केस था ।” - डाक्टर बोला - “मुझे पुलिस में रिपोर्ट करनी होगी ।”
“ओह नो, डाक्टर ।” - सुनील जेब से एक सौ का नोट निकालकर उसकी हथेली में ठूंसता हुआ बोला - “छोटे-छोटे घरेलू मामलों को पुलिस केस नहीं बनाया करते और फिर तुम तो होटल के डाक्टर हो । पैट्रन की पसन्द, नापसन्द का तुम्हें भी उतना ही ख्याल रखना चाहिए जितना कि होटल के मैनेजर को । मैंने ठीक कहा है न ? वह डाक्टर का कंधा थपथपाता हुआ बोला - “कम आन, मैन । फारगेट ऐवरीथिंग । बी ए पाल । स्माइल आई से । यस दैट्स द स्पिरिट । थैंक्स डाक्टर । हेयर । शेक हैंडस विद मी ।”
और सुनील ने उसका हाथ थामकर एक दो बार पम्प की तरह ऊपर नीचे चलाया और फिर बोला - “गुड नाईट, डाक्टर ।”
डाक्टर हक्का-बक्का-सा सौ का नोट थामे सुनील को गलियारे में जाता देखता रहा, फिर उसने सिर को एक झटका दिया और नोट जेब में ठूंस लिया ।
***
अगले दिन शाम को ।
कैपीटल रोड पर आठ नम्बर कोठी से लगभग तीस गज दूर एक कोने में एक शानदार इम्पाला कार खड़ी थी । कार के स्टेयरिंग पर सुनील बैठा था । उसकी उंगलियां बड़ी बेचैनी से स्टेयरिंग पर तबले की तरह थाप दे रही थीं और वह एकाएक आठ नम्बर कोठी के फाटक को घूर रहा था ।
फाटक के पास एक लगभग बारह साल का लड़का हाथ में अखबारों का पुलन्दा लिए बड़ी बेचैनी से टहल रहा था ।
उसी समय वह लड़का हाथ में एक अखबार लेकर उसे जोर-जोर से हवा में लहराता हुआ चिल्ला पड़ा - “प्रताप रोड हत्याकांड का रहस्य खुल गया । पागल बूढे का अनोखा बयान । मैंने हत्या होते देखी है । मैंने हत्यारे को देखा है । नगर के तीन मेन्टल सर्जनों की रिपोर्ट । बूढा पागल नहीं है । बूढे के पागलपन का अनोखा रहस्योद्घाटन । प्रताप रोड हत्याकांड का रहस्य खुल गया । ब्लास्ट के विशेष संवाददाता का पागल बूढे से इन्टरव्यू । बूढे का अनोखा बयान...”
उसी समय एक आदमी झपटता हुआ कोठी से बाहर निकला, उसने लड़के के हाथ में कुछ सिक्के ठूंसे और अखबार ले लिया । वह अखबार लेकर उल्टे पांव कोठी में घुस गया ।
“प्रताप रोड हत्याकांड का रहस्य खुल गया ।” - लड़का उसी तरह चिल्लाता हुआ सुनील की गाड़ी की ओर बढा ।
जब वह आठ-दस कदम दूर रह गया तो वह एकदम चिल्लाने लगा - “प्रताप रोड हत्याकांड का रहस्य खुल गया । पागल बूढे का अनोख बयान ! हत्यारा सुनील है, हत्या सुनील ने की है ! इस भयानक समाचार के सदमे से ब्लास्ट के एडीटर का हार्टफेल हो गया । आज की ताजा खबर पढिए । एडीटर की मौत के साथ ‘ब्लास्ट’ ब्लास्ट हो गया ।”
“अब ओ शुतुरमुर्ग की औलाद !” - सुनील एकदम कार से निकलकर उसकी खोपड़ी पर धप्प जमाता हुआ बोला - “यह क्या बक रहा है ?”
“गलती हो गई, मास्टर ।” - लड़का एकदम बोला - “मुझे क्या पता था आप सुन रहे हैं ।”
“साले, इतने जोर से चिल्लाएगा तो सुनूंगा नहीं ?”
“लेकिन आपके दफ्तर की दर्शनी लड़की तो कह रही थी कि आप ब्लैक काफी पी-पीकर बहरे हो गए हैं ।”
“दर्शनी लड़की कौन ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“अरे वही, रेणु । जिसे आप रिस... रिस... रिसेप्शनिस्ट कहते हैं ।”
“साले, किसी दिन उसके हाथ आ गया तो उल्टा टांग देगी तुझे ।”
“खूबसूरत लड़कियों में जोर नहीं होता, मास्टर ।”
“तुझे कैसे मालूम ?”
“अपन को क्या नहीं मालूम ।”
“अच्छा-अच्छा । भाग यहां से ।” - सुनील गाड़ी में बैठता हुआ बोला - “यहां आसपास एक मील के दायरे में दिखाई नहीं देना चाहिए तू ।”
“वह कलदार तो देते जाओ ।” - लड़का एकदम बोला ।
“ले बेटा, तू भी क्या याद करेगा ।” - सुनील उसे पांच का नोट देता हुआ बोला - “पांच कलदार ले ।”
“मास्टर !” - लड़का भागती हुई गाड़ी के पीछे चिल्लाया - “यू आर ग्रेट ।”
सुनील ने गाड़ी अपने मित्र पुलिस सुपरिटेन्डेन्ट रामसिंह की छोटी-सी लेकिन खूबसूरत कोठी के सामने रोक दी । वह पहले ही रामसिंह को टेलीफोन पर अपने आने की सूचना दे चुका था ।
रामसिंह उसी की प्रतीक्षा कर रहा था ।
“रामसिंह ।” - सुनील उसके सामने बैठता हुआ बोला - “एक काम है ।”
“वह तो होगा ही ।” - रामसिंह व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “वर्ना तुम्हें रामसिंह थोड़े ही याद आता !”
“यह बात नहीं है ।”
“बिल्कुल यही बात है ।”
“अच्छा, मैं मान लेता हूं यही बात है । मेरी गलती हुई । मैं माफी चाहता हूं । फिलहाल मुझसे बहस मत करो ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं तुम्हें बहुत सी बातें सुनाना चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत है ।”
“कहीं फिर प्रभू से भिड़ गए हो क्या ?”
“यह भी सच है, लेकिन सहायता मांगने का यही अकेला कारण नहीं है ।”
“और क्या कारण है ?”
“एक अपराधी को फांसने के लिए मैंने एक चाल चली है । उसमें मुझे पुलिस की सहायता की जरूरत है । अगर मैं प्रभू के पास गया तो वह मेरी बात तो सुनेगा नहीं, उल्टा यह सिद्ध करने का प्रयत्न करेगा मैंने एक गैरकानूनी हरकत की है और इसके लिए मैं जेल जा सकता हूं ।”
“तुम प्रभूदयाल को मूर्ख समझते हो ?”
“मूर्ख तो नहीं, झक्की जरूर समझता हूं ।”
“किस्सा क्या है ?”
“मेरा ख्याल है, तुम सिगार सुलगा लो । तब मेरी बात तुम ज्यादा गौर से सुन सकोगे ।”
“बड़ी नेक राय दी है तुमने ।” - रामसिंह बोला । उसने जेब से एक असाधारण लम्बाई का सिगार निकाला, दांत से ही उसका कोना काटा और फिर माचिस जलाकर सिगार सुलगाने का उपक्रम करने लगा ।
सिगार सुलग चुकने तक सुनील बड़ी धैर्यपूर्ण मुद्रा बनाए खामोश बैठा रहा ।
“कहो ।” - वह एक गहरा कश लेने के बाद सिगार को अंगूठे और पहली उंगली में नचाता हुआ बोला ।
“किस्सा यह है...”
और सुनील ने आद्योपांत सारी घटना कह सुनाई ।
“और हत्यारे को फांसने की तुम्हारी चाल क्या है ?” - रामसिंह ने पूछा ।
उत्तर में सुनील ने ‘ब्लास्ट’ का ईवनिंग एडीशन रामसिंह के सामने रख दिया ।
“इसे पढो ।” - सुनील बोला ।
“कलकत्ते में बम फटने से नौ घायल...” - रामसिंह ने पढना शुरू किया ।
“यहां नहीं । दाईं ओर ।” - सुनील ने उसे टोका ।
“अच्छा यह ।” - रामसिंह बोला - “प्रताप रोड हत्याकांड रहस्य...”
“हां ।”
“ब्लास्ट के प्रतिनिधि का वृद्ध सुन्दरदास से इन्टरव्यू ।” - रामसिंह ने उच्च स्वर में पढना आरम्भ किया - “यह बात सर्व विदित है कि ‘ब्लास्ट’ ही एक ऐसा समाचार पत्र है जो अपराधी प्रवृत्तियों की रोकथाम के लिए सदा ही पुलिस का सहयोगी रहा है और अपराधियों को कानून के पंजों तक पहुंचाने के लिए भी सदा ही प्रयत्नशील रहा है ऐसे कई उदाहरण पाठकों के सामने है कि कई बार ऐसे जटिल केस जो पुलिस के अफसर न सुलझा सके, ब्लास्ट के सुयोग्य रिपोर्टरों ने सुलझाए हैं । हमें यह घोषित करते हुए हर्ष का अनुभव होता है कि इस बार भी प्रताप रोड पर पाई रामनाथ नामक व्यक्ति की हत्या का सबसे अधिक सम्भावित हल ‘ब्लास्ट’ ही प्रस्तुत कर रहा है । यहां कई ऐसे तथ्य भी प्रकाशित किए जा रहे हैं जिनकी जानकारी अभी तक पुलिस को भी नहीं है । अदालत द्वारा पागल घोषित कर दिए वृद्ध सुन्दरदास का पता लाख कोशिश के बावजूद भी पुलिस नहीं पा सकी, जबकि हमारे विशेष प्रतिनिधि सुनील कुमार चक्रवर्ती ने उसे होटल रिवर के चार सौ दस नम्बर कमरे में खोज निकाला । आश्चर्य की बात यह है कि उसी होटल के चार सौ बारह नम्बर कमरे में से पुलिस ने आज सुबह सुन्दरदास की कथित भतीजी शारदा को रामनाथ की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया है । लेकिन क्या शारदा ने रामनाथ की हत्या की है ? वृद्ध सुन्दरदास ने अपने बयान में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि शारदा हत्यारी नहीं है, क्योंकि स्वयं सुन्दरदास उस हत्या का एक चश्मदीद गवाह है । उसने रामनाथ की हत्या होते देखी है ।
सुन्दरदास ने ‘ब्लास्ट’ को दिए गए अपने बयान में कहा है - मैं प्रताप रोड स्थित बीस नम्बर मकान में गुप्त रूप से रह रहा था, क्योंकि प्रत्यक्ष में मैं पागलखाने से भागा हुआ पागल था । मुझे भय था कि अगर किसी को मेरे गुप्त निवास स्थान का पता लग गया तो मैं फिर पागलखाने में धकेल दिया जाऊंगा । लेकिन पागलखाने के उस यन्त्रणापूर्ण जीवन में नहीं जाना चाहता था क्योंकि मैं पागल नहीं हूं । मैं यह बात इस अखबार के माध्यम से सारे अधिकारियों तक पहुंचाना चाहता हूं, मैं पागल नहीं हूं । कुछ स्वार्थी रिश्तेदारों ने मुझे पागल बना दिया है । मैं पुकार-पुकार कर कहता हूं, मैं पागल नहीं हूं, मैं पागल नहीं था ।
मेरी तमाम सावधानियों के बावजूद भी न जाने कैसे रामनाथ को मेरे गुप्त निवास स्थान का पता लग गया और वह वहां आ धमका ! उसने मुझे धमकाना आरम्भ कर दिया कि अगर मैं उसे कम से कम एक लाख रुपया नहीं दूंगा तो वह सबको बता देगा कि मैं कहां छुपा हूं, परिणामस्वरूप मेरे लालची रिश्तेदार फिर मुझ पर चढ दौड़ेंगे और मैं अच्छा-भला होते हुए भी दुबारा पागलखाने में ठूंस दिया जाऊंगा ।
पागलखाने के नारकीय जीवन का मुझे बड़ा गन्दा अनुभव था । मैं किसी भी कीमत पर पागलखाने में ठूंसा जाना नहीं चाहता था और फिर इस बात की भी कोई गारन्टी नहीं थी कि रुपया मिल जाने के बाद रामनाथ मेरे बारे में जुबान बन्द रखेगा । फिर मुझे उससे पीछा छुड़ाने की एक तरकीब सूझ गई । रामनाथ के आने से पहले मैं भोजन करने वाला था । रामनाथ ने भी खाना खाने की इच्छा व्यक्त की । मैंने उसके खाने में कुछ नींद की गोलियां पीसकर मिला दीं । कुछ ही देर बाद रामनाथ गहरी नींद में बेहोश हो गया । अब मेरे लिए भाग निकलने का अच्छा अवसर था । मैंने अपनी आवश्यक चीजें संभालीं और कमरे से बाहर की ओर लपका । मुझे मकान के कम्पाउन्ड में हत्यारा प्रविष्ट होता दिखाई दिया । मैं भयभीत हो गया । वही स्थिति दौबारा पैदा हो गई थी । वह भी तो मुझे पागलखाने पहुंचा सकता था । मैं उल्टे पांव वापिस कमरे में घुस गया । मैं वार्डरोब में छुपकर खड़ा हो गया । वह भीतर कमरे में आया । उसने रामनाथ को हिलाकर जगाने का प्रयत्न किया लेकिन उसके कान में जूं भी नहीं रेंगी । वह यूं ही औंधे मुंह फर्श पर पड़ा रहा । फिर उसने बाथरूम में झांका, बिस्तर के नीचे देखा । फिर वार्डरोब की ओर बढा । मेरी आत्मा कांप गई । लेकिन उसने वार्डरोब के द्वार का केवल एक ही पट खोला । जिस पट के पीछे मैं खड़ा थर-थर कांप रहा था, उसने नहीं खोला । वह फिर रामनाथ के अचेत शरीर के पास लौट गया । उसने अपनी जेब से एक लम्बा चाकू निकाला । उसकी मूठ के इर्द-गिर्द एक रूमाल लपेटा और फिर उसे पूरी शक्ति से अचेत रामनाथ की गर्दन में मूठ तक घुसेड़ दिया और फिर चुपचाप बाहर निकल गया । उसके चले जाने के कितनी ही देर बाद मैं बाहर निकलने का साहस कर सका । मैं भय और आतंक से थरथराता हुआ वहां से भाग निकला ।
ब्लास्ट ने सुन्दरदास से पूछा कि क्या वह हत्यारे को जानता है । उत्तर में उसने कहा कि वह हत्यारे को जानता नहीं है लेकिन दुबारा देखने पर वह उसे पहचान जरूर लेगा ।
‘ब्लास्ट’ का दावा है कि सुन्दरदास जान-बूझकर हत्यारे के नाम को छुपा रहा है, वह हत्यारे को खूब जानता है, खूब पहचानता है । वह हत्यारे का नाम केवल इसीलिए नहीं बताना चाहता क्योंकि उसे भय है कि कहीं अपनी गरदन बचाए रखने के लिए हत्यारा उसकी भी हत्या न कर दे । अगर सुन्दरदास हत्यारे को अच्छी तरह जानता न होता तो उसे हत्यारे के मकान के कम्पाउन्ड में कदम रखते ही डरकर भीतर भाग जाने की क्या आवश्यकता थी ? वह चुपचाप आगन्तुक की बगल में से गुजर जाता । अवश्य ही आगन्तुक कोई सुन्दरदास का जाना-पहचाना आदमी था, जिसके भय से सुन्दरदास वार्डरोब में जा छुपा था ।
‘ब्लास्ट’ एक अखबार है । कोई पुलिस जैसी नागरिक सुरक्षा के हेतु निर्मित संस्था नहीं है, जो किसी व्यक्तिविशेष की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले सके । सुन्दरदास अपने जीवन की सुरक्षा की खातिर ‘ब्लास्ट’ के सामने झूठ बोल सकता है और हत्यारे का नाम प्रकाश में आने से बचाए रख सकता है । लेकिन पुलिस का काम तो नागरिकों की सुरक्षा करना ही है । अगर पुलिस सुन्दरदास के बयान में दिलचस्पी ले और जिसे फांस लिया उसी के खिलाफ सबूतों का ताना-बाना बुन डालने का मोह त्याग कर सुन्दरदास की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी ले, तो कोई कारण नहीं है कि सुन्दरदास वास्तविक हत्यारे का नाम न बता दे ।
जहां तक सुन्दरदास के पागल होने का प्रश्न है, ‘ब्लास्ट’ ने स्वयं नगर के तीन सुप्रतिष्ठित मैन्टल सर्जनों द्वारा (जिनमें एक अदालत द्वारा नियुक्त किए गए डाक्टर सिन्हा भी है) सुन्दरदास की डाक्टरी जांच करवाई है । तीनों विशेषज्ञों का दावा है कि सुन्दरदास पूर्णरूपेण मानसिक रूप से स्वस्थ है ।
पुलिस से हमारी अपील है कि वह शारदा के विरुद्ध केस गढने के स्थान पर सुन्दरदास के बयान पर गौर करे ।
सुन्दरदास अभी भी होटल रिवर के चार सौ दस नम्बर कमरे में है ।
(डाक्टरों की रिपोर्ट देखिए आखिरी पृष्ठ पर)
रामसिंह ने अखबार रख दिया ।
“इस जाली समाचार को ‘ब्लास्ट’ के ईवनिंग एडीशन की केवल दो प्रतियों में छापा गया है ।” - सुनील ने बताया ।
“क्यों ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“मलिक साहब तैयार नहीं हो रहे थे । इतना घोटाला भी मैंने उसकी इजाजत के बिना ही कर डाला है । दूसरी बात यह थी कि कहीं ऐसा न हो कि जो इस समाचार को पढे, वही होटल रिवर की ओर लपक पड़े । मसलन दूसरे अखबार वाले या पुलिस वाले ।”
“अखबार की दूसरी प्रति कहां गई ?”
“सुन्दरदास की कोठी पर उनके रिश्तेदारों के बीच ।”
“तो ।” - रामसिंह आश्चर्यपूर्ण स्वर में बोला - “तुम्हारा मतलब है कि शंकरलाल हत्यारा है ?”
“या फिर विद्या, जिसकी सम्भावना बहुत कम है । रामसिंह, मुझे पूरा विश्वास है कि सुन्दरदास का यह बयान पढकर शंकरलाल या जो भी हत्यारा है, सुन्दरदास की हत्या करने का प्रयत्न जरूर करेगा ।”
“तुम मुझसे क्या सहायता चाहते हो ?”
“तुम मेरे साथ होटल रिवर चलो । रमाकांत के आदमी वहां निगरानी के लिए फैले हुए हैं । अगर मेरे जाल में पंछी फंस जाए तो तुम टेक ओवर कर लेना वर्ना छुट्टी ।”
“ओके !” - रामसिंह बोला ।
***
लगभग साढे छ: बजे एक अधेड़-सी महिला एक छोटा-सा सूटकेस सम्भाले होटर रिवर के रिसेप्शन काउन्टर पर पहुंची ।
“यस मैडम ।” - रिसेप्शनिस्ट क्लर्क मुस्कराकर उसका स्वागत करता हुआ बोला ।
“मुझे एक कमरा चाहिए ।” - महिला बोली ।
“शौक से लीजिए ।”
“कमरा एकदम नीचे या एकदम ऊपर नहीं होना चाहिए ।”
“चौथी या पांचवीं मंजिल में दे दूं ।”
“पांचवी मंजिल में कौन-सा है ?”
“पांच सौ एक ।”
“न, कोने का कमरा पसन्द नहीं मुझे ।”
“तो फिर चौथी मंजिल पर ले लीजिए ।”
“वह कौन-सा है ?”
“चार सौ दो, चार सौ आठ, चार सौ...”
“चार सौ आठ दे दीजिए । यह ठीक रहेगा ।”
“बेहतर । आपका नाम ?”
“रानी ।”
“पता ?”
“न्यू टाउन, विशालगढ ।”
क्लर्क ने रजिस्टर सामने रख दिया - “यहां साइन कर दीजिए ।”
महिला ने साइन कर दिए ।
“फ्रंट ।” - वह बैल पर हाथ मार कर बोला ।
एक बैल ब्वाय आ उड़ा हुआ ।
“मेम साहब को चार सौ आठ में छोड़कर आओ ।” - क्लर्क की-बोर्ड से चार सौ आठ की चाबी उतार कर उसे देता हुआ बोला ।
बैल ब्वाय अटैची उठाकर लिफ्ट की ओर चल दिया । महिला उसके पीछे थी ।
सुनील रामसिंह के साथ खम्बे की ओट से बाहर निकला ।
“यह विद्या थी ।” - सुनील ने बताया ।
“शुक्र है भगवान का ।” - रामसिंह गहरी सांस लेकर बोला बोला - “शुरुआत तो हुई ।”
“अभी तो शायद माहौल का सर्वे करने के लिए फारवर्ड पार्टी आई है । एक्शन कमेटी तो आनी बाकी है ।” - सुनील बोला ।
प्रतीक्षा फिर आरम्भ हो गई ।
पौने आठ बजे सुन्दरदास अपने कमरे से निकला और नीचे डाइनिंग हाल में आ गया ।
आठ बजे जौहरी ने सूचना दी कि शंकरलाल नौकरों की ऐन्ट्रेस से होटल में प्रविष्ट हुआ था और चुपचाप चार सौ आठ नम्बर कमरे में घुस गया था ।
उसके पांच मिनट बाद विद्या नीचे डाइनिंग रूम में पहुंची । उसने अपनी साड़ी का पल्ला अपने इर्द-गिर्द अच्छी तरह लपेटा हुआ था और वह अर्ध-प्रकाशित विशाल डाइनिंग रूम में सुन्दरदास से कई मेजें दूर हटकर बैठी, जहां दोनों का साक्षात्कार हो जाने की तनिक भी सम्भावना न हो ।
साढे आठ बजे सुन्दरदास उठा और अपने कमरे में चला गया ।
उसके फौरन बाद ही विद्या भी डाइनिंग रूम से निकल गई ।
रामसिंह और सुनील भी उठे और चौथी मंजिल पर आकर सावधानी से चुपचाप चार सौ बारह में घुस गए । शारदा के गिरफ्तार हो जाने के कारण वह कमरा खाली पड़ा था ।
सुनील ने बीच के द्वार पर धीरे से दस्तक दी ।
अगले ही क्षण द्वार खुला और सुन्दरदास अपने कमरे में से चार सौ बारह में आ गया ।
“आपने अपना द्वार भीतर से बंद कर लिया था न ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।”
“अब आप आराम से सोइये ।”
“इतनी टैंशन में नींद कहां आयेगी, बेटा ! मेरा दिल बड़ी जोर से धड़क रहा है ।”
“आप चिन्ता मत कीजिए ।”
सुनील ने बीच का द्वार बन्द कर दिया ।
ग्यारह बजे तक कुछ नहीं हुआ ।
लगभग ग्यारह बजकर पांच मिनट पर फोन की घन्टी घनघना उठी ।
“यस ।” - वह बोला ।
“सुनील !” - दूसरी ओर से रमाकांत का धीमा किन्तु उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “सुनील, अभी-अभी कोई चार सौ आठ की खिड़की से बाहर निकला है ।”
“खिड़की से ?” - सुनील आश्चर्य से बोला ।
“हां, हर कमरे की खिड़की के नीचे कोई एक फुट चौड़ा प्रोजेक्शन है, यह उसी को पकड़कर चार सौ दस में अर्थात सुन्दरदास के कमरे में पहुंचने का प्रयत्न कर रहा । उस कमरे की खिड़की खुली है । सावधान रहना ।”
“तुम बोल कहां से रहे हो ?”
“होटल के सामने के टेलीफोन बूथ से ।”
“ओके ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसने अपने कमरे की खिड़की को धीरे से खोला और बड़ी सावधानी से बाहर अन्धकार में झांका ।
बगल के कमरे की खिड़की के बाहर उसे एक साया-सा लटका दिखाई दिया, फिर वह साया एकाएक ऊपर उठा और चुपचाप कमरे में कूद गया ।
सुनील झपटकर बीच के दरवाजे पर पहुंचा । उसने की-होल पर आंख लगा दी ।
दूसरी ओर के अन्धकार में उसे एक साया बड़ी सावधानी से पलंग की ओर बढता दिखाई दिया ।
पलंग पर किसी के खर्राटे भरने की आवाज सुनाई दे रही थी ।
साया पलंग के पास पहुंचा । उसका दायां हाथ अपने कपड़ों में घुसा और अगले ही क्षण उस हाथ में एक तेज और चमकदार चाकू दिखाई देने लगा ।
साये का दायां हाथ हवा में उठा और फिर पूरे जोर से पलंग पर आकर गिरा ।
सुनील ने रामसिंह को संकेत किया ।
खर्राटे भरने की आवाज बन्द हो गई ।
रामसिंह लपककर सुनील के पास आ गया ।
साये का हाथ तीन चार बार हवा में उठा और पलंग पर गिरा ।
उसी समय सुनील ने भड़ाक से द्वार खोल दिया ।
रामसिंह हाथ में रिवाल्वर लिए कमरे में घुस गया ।
“अपनी जगह से हिलना नहीं, वर्ना गोली मार दूंगा ।” - वह डपटकर बोला ।
साये के मुख से एक आश्चर्यपूर्ण चीख निकल गयी ।
सुनील ने बत्ती जला दी ।
“चाकू हाथ से फेंक दो ।” - रामसिंह ने आदेश दिया ।
साये ने चाकू फेंक दिया ।
“अपने चेहरे से नकाब हटा दो ।”
उसने चेहरे पर बंधा काला कपड़ा खोल दिया ।
वह शंकरलाल था ।
“हमें तुम्हारी सूरत देखकर कोई हैरानी नहीं हुई है, शंकरलाल !” - सुनील बोला - “यहां सारी तैयारियां तुम्हारे ही स्वागत के लिए की गयी थीं ।”
उसी क्षण सुन्दरदास भी उस कमरे में आ गए ।
सुन्दरदास की सूरत देखते ही एक बार फिर शंकरलाल के मुंह से हैरानी की चीख निकल गयीं । वह हक्का-बक्का-सा बिस्तर की ओर देखने लगा ।
“जिस पर तुमने चाकू से प्रहार किए हैं ।” - सुनील बोला - “वह मोम की डमी थी और खर्राटों की आवाज तुम्हें बिस्तर में छिपाकर रखे गए टेप रिकार्डर में से सुनाई दी थी । टेप रिकार्डर का स्विच दूसरे कमरे में है । तुम्हारे पहले वार के बाद ही स्विच बन्द कर दिया गया था ताकि तुम्हें सन्देह न हो ।”
शंकरलाल चुप रहा ।
“शंकरलाल ।” - सुन्दरदास धीमे स्वर में बोला - “ऐसे मौकों पर अक्सर यह कहा जाता है कि मुझे तुमसे ऐसी आशा नहीं थी, लेकिन मैं यही कहूंगा कि मुझे तुमसे ऐसी ही आशा थी । तुम्हारे जैसे नीच इन्सान से इससे बेहतर की अपेक्षा नहीं की जा सकती । फिर भी मुझे सन्तोष है कि तुम्हें अपनी बुराइयों का फल तो मिला ।”
शंकरलाल की नजर झुक गयी ।
“सुनील !” - रामसिंह बोला - “प्रभू को फोन कर दो । उसे कहना, दो जोड़े हथकड़ियां लेकर फौरन यहां पहुंचे । हमें रानी उर्फ विद्या की भी तो फिक्र करनी है ।”
सुनील टेलीफोन की ओर बढ गया ।
***
“शंकरलाल ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है ।” - अगले दिन रामसिंह सुनील को फोन पर बताया ।
“फाइन ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन तुम्हें उस पर संदेह कैसे हुआ ?”
“रामसिंह, मैंने शंकरलाल पर सन्देह करके कोई शरलक होम्स जैसी असाधारण सूझ-बूझ का परिचय नहीं दिया है । जैसी स्थिति थी, उसमें शंकरलाल के अतिरिक्त किसी और पर सन्देह किया ही नहीं जा सकता था । हत्या के लिए उसी के पास सबसे बड़ा उद्देश्य था । रामनाथ अपने धन की खातिर शंकरलाल के पीछे लगा हुआ था जिसकी वसूली सुन्दरदास को पागलखाने पहुंचा देने के बाद भी होती दिखाई नहीं दे रही थी । शंकरलाल के सिर पर हमेशा रामनाथ की धमकियों की तलवार लटकी रहती थी इसलिए शंकरलाल को जब रामनाथ सुन्दरदास के कमरे में बेहोश पड़ा मिला तो उसने उसकी हत्या कर दी । उसने सोचा था कि इल्जाम सुन्दरदास के सिर लगेगा । शारदा को वह पहले ही ऐसी नाजायज औलाद सिद्ध कर चुका है जिसका सुन्दरदास से कोई रिश्ता ही नहीं । सुन्दरदास की सम्पत्ति का अकेला और लीगल वारिस वही रह जाता था । दरअसल केवल एक बात थी । जो मुझे न पहले समझ आई थी और न अब समझ आ रही है ।”
“क्या ?”
“आखिर रामनाथ को या फिर बाद में शंकरलाल को यह पता कैसे लगा कि सुन्दरदास को शारदा ने प्रताप रोड के मकान में छिपाया हुआ है । शंकरलाल ने इस विषय में बताया कुछ ?”
“हां । सुन्दरदास को दरअसल रामनाथ के विशालगढ के साथियों ने तलाश किया था । वे आरम्भ से ही उसकी निगरानी कर रहे थे । उन्होंने ही रामनाथ को बताया था कि शारदा सुन्दरदास को बीस नम्बर मकान में ले गई है और यह उन्हीं की राय भी थी कि जो माल शंकरलाल से वसूल नहीं हो रहा, क्यों न उसकी मांग सुन्दरदास से की जाए । वे खुद खुलकर सामने नहीं आना चाहते थे क्योंकि इससे खामखाह उनकी विशालगढ की क्लब की बदनामी होती । फिर रामनाथ ने बात शंकरलाल को बताई थी और साथ ही उसने उसे अपनी स्कीम भी बता दी थी कि वह सुन्दरदास से रुपया वसूल करने की कोशिश करने जा रहा है । शंकरलाल चिन्तित हो उठा । उसे भय था कि रुपया पाकर कहीं रामनाथ उसके विरुद्ध न हो जाए और उसकी पोल न खोल दे कि वह सुन्दरदास को जबरदस्ती पागल बनाकर उसका धन हथियाना चाहता है । शंकरलाल उस समय घर में अपनी पत्नी के साथ शारदा के सामान की उठा-पटक कर रहा था और नीचे खड़ी नौकरानी उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी । फिर विद्या ने नीचे आकर नौकरानी को डांटकर नौकरों की क्वार्टरों में भगा दिया था । उसी समय शंकरलाल चुपचाप पिछले दरवाजे से खिसक गया । नौकरानी यह समझ रही थी कि शंकरलाल भी ऊपर ही था और पूरे तीन घण्टे अपनी पत्नी के साथ शारदा के सामान के बखिए उधेड़ता रहा था । शंकरलाल प्रताप रोड पर बीस नम्बर मकान में पहुंचा । वहां उसने सुन्दरदास को गायब पाया और रामनाथ को अचेत अवस्था में पड़ा पाया । उसने इसे अपने लिए सुनहरी अवसर समझा । उसने रामनाथ की गरदन में छुरा भोंका और चुपचाप वहां से खिसक आया । और वापिस आकर फिर अपनी पत्नी का हाथ बंटाने लगा । उसकी पत्नी ने उसके लिए झूठ बोल दिया कि एक क्षण के लिए भी कोठी से बाहर नहीं गया था । शेष तो तुम जानते ही हो । शंकरलाल तुम्हारे झांसे में आकर मारा गया ।”
“सब तकदीर के चक्कर हैं ।” - सुनील फिलासफर की तरह बोला ।
“एक बात और है ।” - रामसिंह की आवाज सुनाई दी ।
“क्या ?”
“इस केस के हल में प्रभूदयाल भी थोड़ा श्रेय चाहता है ।”
“तो फिर मैं क्या करूं ?”
“क्या अपने अखबार के माध्यम से तुम ऐसा नहीं प्रकट कर सकते कि इस अभियान में तुम्हारा सहयोगी रामसिंह नहीं, इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल था ।”
“कर सकता हूं, लेकिन करूंगा नहीं ।”
“क्यों ?”
“रामसिंह मेरा दोस्त है । प्रभूदयाल मेरे से ईंट, कुत्ते का बैर रखता है ।”
“तुम इस बार जो मैं कहता हूं, वह करो । शायद ये ही बात तुम्हारे और उसके बीच सद्भावना का एक पुल खड़ा कर दे ।”
“अच्छा, करूंगा ।” - सुनील अनिच्छापूर्ण स्वर में बोला ।
“थैंक्यू, ब्वाय ।” - रामसिंह का उत्साहपूर्ण स्वर सुनाई दिया - “यू रियली आर ए पाल ।”
सुनील ने फोन बन्द कर दिया था ।
उसी समय चपरासी ने उसके केबिन का द्वार खोला और सुन्दरदास और शारदा भीतर प्रविष्ट हुए ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
“आइये सुन्दरदास जी । तशरीफ रखिए ।” - सुनील आदरपूर्ण स्वर में बोला ।
“तुम भी बैठो बिटिया रानी ।” - वह शारदा से बोला ।
शारदा शरमा गई । वह एक बच्चे की तरह सुन्दरदास की बांह से चिपटी हुई थी जैसे उसे वर्षों बाद संसार की अनन्यतम सम्पत्ति मिल गई हो ।
“मैं किन शब्दों में तुम्हारा धन्यवाद दूं, बेटा ।” - वृद्ध स्नेह युक्त स्वर में बोला ।
“अजी” - सुनील एकदम बोल पड़ा - “धन्यवाद तो ऊपर वाले को दीजिए, मैं किस गिनती में हूं ।”
“फिर भी तुमने मेरी और मेरी बच्ची की खातिर बहुत कुछ किया है ।”
“कुछ भी तो नहीं किया है मैंने । और अगर कुछ किया भी है तो अपने स्वार्थ के लिए अपने अखबार के लिए । सैन्सेशनल मैटर हंटिंग के लिए ।”
“तुम बहुत उदार हृदय व्यक्ति हो, बेटे ।” - वृद्ध भावपूर्ण स्वर में बोला - “इस बूढे को शुक्रगुजार भी नहीं होने देना चाहते ?”
सुनील चुप रहा । वह बेहद उलझन का अनुभव कर रहा था । तकल्लुफ में पड़ना उसके बस की बात नहीं थी ।
“शंकरलाल के लिए मुझे दुख है ।” - वह बोला - “शायद वह उतना बुरा आदमी नहीं था । जितना कि वक्त की जरूरत ने उसे बना दिया था । अपने ही मन में चोर होने के कारण वो मुझ पर भरोसा प्रकट नहीं कर सका । मैं इस दुनिया में अकेला आदमी अपनी लाखों की सम्पत्ति अपनी छाती पर रखकर तो ले नहीं जाता । अगर वह मुझे बताता कि उसने रामनाथ का कर्जा देना है तो बिना यह सोचे कि कभी उसने मेरा भारी अहित किया था, मेरा अपमान किया था, मुझे दुतकारा था, मैं उसे रुपया दे देता । खैर ।” - वृद्ध ठंडी सांस भरकर बोले - “उसके बुरे काम से भी मेरा एक भला तो हो ही गया ।”
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखा ।
“मुझे मेरी बेटी मिल गयी ।” - वृद्ध शारदा के सिर पर हाथ फेरता हुआ बोला - “एक अप्रिय रहस्योद्घाटन के बाद ही सही, मेरे मन से बोझ उतर गया । अब मैं शांति से मर सकूंगा ।”
“अंकल !” - शारदा विनोदपूर्ण स्वर से बोली ।
“अच्छा बेटा, अच्छा !” - वृद्ध बोला - “और सुनील बेटे, यह लो !”
वृद्ध ने एक चमचमाती हुई चाबी मेज पर रख दी ।
“यह क्या ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“चाबी ! कार नीचे खड़ी है । यह कार का रजिस्ट्रेशन है । तुम्हारे नाम ।”
“आप क्या कह रहे हैं ?” - सुनील और भी हैरान हो उठा ।
“बेटा, मैंने बहुत सोच-विचार के बाद तुम्हारे लिए यह उपहार खरीदा है । मैं इन्कार नहीं सुनूंगा ।”
“लेकिन सुनिये तो, मैं तो मोटरसाइकिल में पैट्रोल उधार डलवाता हूं, कार कैसे मेनटेन कर सकूंगा । कार जितनी तो मेरी अपनी कीमत नहीं है ।”
“क्या कह रहे हो ? ऐसी बातें नहीं किया करते । मेरी नजर में शारदा और सुनील में कोई फर्क नहीं है और फिर तुम्हारे अहसानों का बदला तो म चुका ही नहीं सकते । बी एम्बीशस माई ब्वाय । यू आर आल आउट टु बी ए बिग मैन । यू आर जीनियस !”
सुनील चुप रहा ।
“और मुझे भी तुमसे माफी मांगनी है ।” - शारदा बोली - “मैंने बहुत परेशान किया तुम्हें ।”
“यह तुम्हारा कसूर नहीं है ।” - सुनील हंसकर बोला - “शायद मेरा जन्म ही परेशानियां उठाने के लिए हुआ है ।”
“अच्छा !”
“जी हां ! सारे जहां का दर्द हमारी मेज की दराज में है ।”
कहने का ढंग कुछ ऐसा था कि वृद्ध भी हंसे बिना न रह सके ।
समाप्त
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