शनिवार : बीस मई : मुम्बई, कल्याण दिल्ली
अगले रोज हर राष्ट्रीय दैनिक के लेट सिटी एडीशन में दिल्ली के ‘व्यापारी’ माताप्रसाद ब्रजवासी के कत्ल की खबर छपी ।
पुलिस के एक प्रवक्ता के बयान के अनुसार कत्ल बहुत रहस्यमय परिस्थितियों में हुआ था । मकतूल उसी शाम को ग्रांट रोड पर स्थित होटल स्वागत में आकर ठहरा था जहां कि चन्द ही घन्टों के बाद उसका कत्ल हो गया था । कातिल कौन था, किधर से आया था, किधर से गया था, किसी को कुछ मालूम नहीं था । न ही कत्ल की कोई वजह सामने आयी थी ।
गढ कर तैयार की गयी वो खबर वास्तव में इलाके के थाने के अध्यक्ष इन्स्पेक्टर और होटल वालों की मिलीभगत का नतीजा था । होटल वालों को जल्दी ही अहसास हो गया था कि रेड फर्जी थी, पुलिस नकली थी और उन बहुरूपियों की वहां आमद का असल मकसद उस वाहित शख्स की लाश गिराना था जो कि रूम नम्बर पांच सौ दो में बुक था और जो औरतों का पक्का रसिया था । असल बात सामने आती तो ठीये के तौर पर होटल का एक्सपोज होना लाजमी था, फिर होटल का धन्धा तो चौपट होता ही होता, थानाध्यक्ष का वो मोटा हफ्ता भी मारा जाता जो कि उसे नियमित रूप से हासिल होता था । लिहाजा ये ही फैसला हुआ कि नकली पुलिस वालों की फर्जी रेड का और कत्ल के वक्त मकतूल के साथ एक कॉलगर्ल की मौजूदगी का जिक्र गोल कर दिया जाये । नतीजतन जो लिपीपुती खबर अखबारों में छपी वो सिवाय इसके कुछ भी नहीं बताती थी कि किसी ने होटल में ठहरे एक गैस्ट को शूट कर दिया था ।
वो खबर दिल्ली वालों ने पढी तो उन्होंने उसे बेहिचक सोहल के कारनामे के तौर पर तसलीम किया ।
मुबारक अली ने अपने भांजों से वो खबर सुनी तो वो बड़े सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से बोला - “बाकी बचे तीन ।”
झामनानी ने वो खबर पढी तो वो अपने बिल में और गहरा दुबक गया । उसे खबर लग चुकी थी कि पुलिस को उसकी बड़ी शिद्दत से तलाश थी लेकिन मौजूदा हालात में पुलिस के काबू में आने का और उनके सवालों की बौछार झेलने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
ब्रजवासी ने मुम्बई पहुंचते ही सोहल के खिलाफ जो पहला कदम उठाया था, उससे वो बहुत सन्तुष्ट हुआ था लेकिन जब उसे पता लगा था कि वार खाली गया था तो उसे मायूसी तो हुई थी लेकिन ब्रजवासी की गैरमामूली दिलेरी से नाउम्मीदी नहीं हुई थी । उसे पूरा यकीन था कि उसका अगला - अगला नहीं तो उससे अगला - कदम जरूर कारगर होने वाला था; लेकिन ऐसा नहीं हुआ था, कर्टसी सोहल, पहले ही उसका अगला कदम जहन्नुम की देहरी पर पड़ गया था ।
भोगीलाल ने वो खबर पढ़ी तो उसके मुंह से एक ही बात निकली: ‘घना साहस तो विडम्बना होवे ही है भैय्या स्वर्गवासी । जो शेर की मूंछ का बाल नोचने का दुस्साहस करेगा, वो उसका निवाला तो बने ही बने । मन्ने तो पहले ही बेरा था कि वो मायावी मानस है, माया दिखा गया अपनी’ ।
मन ही मन वो खुश था कि अब ब्रजवासी का विलायती शराब का कमाऊ धन्धा भी उसके कब्जे में था ।
लिहाजा एक बार सोहल से पीछा छूट जाता तो फिर पौ बारह थे उसके ।
और उसे पूरा यकीन था कि कोई सोहल से उसका पीछा छुड़ा सकता था तो वो ‘भाई’ था ।
पवित्तर सिंह ने वो खबर पढी तो उसे पूरी तसल्ली हो गयी कि सोहल के आगे हथियार डाल कर उससे सुलह करने का, उससे अपनी खता बख्शवाने का उसका फैसला एकदम दुरुस्त था ।
“अपना खालसा वीर भ्रा ।” - मौके के मुताबिक गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला महापाखण्डी, महामतलबपरस्त पवित्तर सिंह बोला - “मैं नईं कैत्ता था कि उसदे सिर ऊपर दशमेश पिता दा हत्थ ए । कल्ला ही सवा लक्ख ए । न डरौ अरिसौ जब जाई लरौ निसचै करि अपनी जीत करौ । शाबाशे पुत्तरा !”
अभी कल तक ‘सोल दे घोर शत्रु’ पवित्तर सिंह ने अभी खता माफ की अर्जी ही लगाई थी, उसकी कोई मंजूरी उसे हासिल नहीं हो गयी थी लेकिन वो पहले ही अपने आपको अपने ‘खालसा वीर भ्रा’ की तरफ और अपने बिरादरीभाइयों के बरखिलाफ समझने लगा था ।
ऐसा मौकापरस्त शख्स था सरदार पवित्तर सिंह ।
‘भाई’ को वो खबर मोबाइल पर दफेदार से सुनने को मिली ।
“क्या मतलब हु आ इसका ?” - ‘भाई’ हैरानी से बोला - “मुम्बई से किनारा करने की जगह एक होटल से निकला और दूसरे में जा बसा ?”
“यहीच किया उसने ।” - दफेदार बोला ।
“ऐसे शख्स की मौत का क्या अफसोस ?”
“यहीच मैं बोला । खुदकुशी करने जैसा काम किया भीड़ू ने । कहना मानता, मुम्बई से कूच कर जाता तो सलामत होता ।”
“निकम्मे ! नालायक ! नाकारे ! तमाम दिल्ली वाले ।”
“बरोबर बोला, बाप ।”
“बहरहाल हमारी मंशा ये थी कि वो हमारे रास्ते में न आये । कैसे भी हुई, हमारी मंशा पूरी हुई ।”
“बरोबर ।”
“हैदर की क्या खबर है ?”
“अभी तो दिन चढा है, बाप । दोपहर तक खबर करूंगा ।”
“डिडोलकर से मिला ?”
“मिलूंगा तो सही क्योंकि वो मेरे को शनिवार आने को बोला था लेकिन हाथ कुछ नहीं आने वाला, बाप । राजा साहब की बाबत जो जवाब उसने देना है, वो आधा पौना तो मुझे मिल भी चुका है, बाकी जो मिलेगा उसका अन्दाजा मुझे पहले से हो रहा है ।”
“तू मिलने फिर भी जा और उसे हड़का के आ । ये सरकारी अमले वाले कोल्हू के बैल की माफिक होते हैं, अटकते रहना इनका इस्टाइल है, इन्हें चलाये रखने के लिये गाहेबगाहे इनका पुट्ठा सेंकना जरूरी होता है ।”
“मैं समझ गया, बाप । मैं अभी सीधा उसी के पास जा रहा हुं । अच्छी तरह हड़का के आऊंगा ।”
“उसको बोल राजा साहब का एनकाउन्टर करा दे । लाश पोस्टमार्टम के लिये पहुंचेगी, दाढी मूंछ नकली निकलेंगी तो सब खताये माफ हो जायेंगी, बल्कि शाबाशी मिलेगी । इनाम मिलेगा । सरकार से भी और ‘भाई’ से भी ।”
“बोलूंगा, बाप ।”
***
सुबह सवेरे बारबोसा धारावी में छत्रपति प्रायमरी स्कूल के परिसर में पहुंचा ।
हैडमास्टर रामोजीराव काशीकर बारबोसा को स्कूल के ऑफिस में बैठा मिला ।
बारबोसा ने उसका अभिवादन किया, उसके सामने एक कुर्सी पर बैठा और बोला - “आपके पड़ोसी अलैक्स पिंटो ने मेरा जिक्र किया होगा ?”
“हां ।” - काशीकर बोला - “आज सुबह तुम्हारे यहां आने के बारे में बोला था लेकिन नाम नहीं बोला था ।”
“तो क्या बोला था ?”
“यही कि उसका एक फ्रेंड मिलना चाहता था, बाकी सब वो खुद आके बतायेगा ।”
“आई सी । सर, मेरा नाम बी.बी. ओसा है ।”
उस अजीब नाम पर काशीकर की भवें तनीं ।
“अब बोलो ।” - फिर वो बोला - “क्या चाहते हो ?”
“सबसे पहले तो चैम्बूर से चन्दा हासिल करने वालों की लिस्ट ही देखना चाहता हूं ।”
काशीकर ने चार फुलस्केप पृष्ठों की एक लिस्ट पेश की ।
बारबोसा ने बड़े गौर से उसका मुआयना किया ।
“तो” - फिर वो बोला - “आपने इनमें से कई लोगों को चन्दा लौटाने के लिये तैयार किया था !”
“मरता क्या न करता के अन्दाज से कुछ से बात की थी क्योंकि वो आदमी मुझे हुक्म देकर गया था कि जब मैं उठ कर अपने पैरों पर खड़ा हो सकूं तो इस लिस्ट में दर्ज लोगों में से एक एक के पास जाकर अपनी आपबीती सुनाऊं और उन्हें बताऊं कि मैं इसलिये जिन्दा बच गया था क्योंकि मैंने तमाम देनदारों तक रकम लौटाने का या रकम का हिसाब देने का अल्टीमेटम पहुंचाने का अहम काम करना था । उस आदमी ने मुझे ऐसा खौफजदा किया था कि उसकी हुक्मउदूली की मेरी मजाल नहीं हुई थी । हे भगवान ! मारा पीटा तो मुझे उसके साथी ने लेकिन खौफ मैंने उसका खाया । देखता था तो लगता था जैसे आंखों में अंगारे दहक रहे हों । जरा सी भृकुटि टेढी करता था तो मेरा दिल जूते में पहुंच जाता था । मैं चन्दा लौटाने की बाबत लोगों से बात न करता तो जरूर वो फिर मेरे सिर पर आन खड़ा होता और मेरी पहले से भी ज्यादा दुरगत करके जाता ।”
“आया वो ?”
“नहीं ।”
“आपकी कनवैसिंग किसी काम आयी ? लोगों ने चन्दा लौटाने की बाबत आपकी राय मानी ?”
“मेरी बात तो सब ने संजीदगी से सुनी लेकिन उसका असर मिला जुला हुआ ।”
“मतलब ?”
“कुछ ने हासिल चन्दे का पूरा, चौकस, इमानदाराना हिसाब पेश कर दिया । सुना है कि ऐसे लोगों को और रकम की पेशकश हुई थी लेकिन उन्होंने ये कह के उसे ठुकरा दिया था कि अभी तो पहले मिली रकम ही खर्च नहीं हो पायी थी ।”
“वैरी नोबल ऑफ दैम ।”
“कुछ लोग मेरे से बात होने के बाद हमेशा के लिये गायब हो गये तो कुछ ने हजार हजार माफियां मांगते हुए पैसा वापिस कर दिया । कुछ ने हासिल हुई रकम का एक हिस्सा लौटा दिया और बाकी को लौटाने के लिये वक्त की मोहलत मांग ली ।”
“आई सी ।”
“लेकिन ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि देखेंगे, सोचेंगे । बाद में उन्होंने क्या देखा, क्या सोचा, इसकी मुझे खबर नहीं ।”
“आपके कहने पर पार्ट पेमेंट करने को तैयार हुए किसी शख्स को आप जाती तौर से जानते हैं ?”
“हां, जानता हूं ।”
“कौन है वो ?”
“सोशल वर्कर है । नाम एलेना मोनटीरो है । शिवाजी पार्क में रहती है । स्लम्स में रहने वाले बच्चों के लिये काम करती है । धारावी को एशिया का सबसे बड़ा स्लम बताया जाता है इसलिये ये तो ऐसी औरत का फील्ड होना ही था । इसी सिलसिले में अक्सर मेरे स्कूल भी आती है ।”
“आई सी ।”
“उसने स्लम्स में रहने वाले बच्चों की शिक्षा और विकास के नाम पर चैम्बूर से दो किस्तों में बारह लाख रुपये हासिल किये थे लेकिन....”
“आपकी सूरत से लगता है कि मेजर रकम खुद ही हज्म कर गयी ?”
“मेजर नहीं, भाई, टोटल । एक काला पैसा बच्चों पर खर्च न किया ।”
“सान्ता मारिया !”
“लेकिन मेरे अंजाम ने उसे बहुत डराया । वो फौरन उधर चैम्बूर पहुंची तो उसे गम्भीर वार्निंग के साथ पैसा लौटाने के लिये एक महीने का टाइम दिया गया ।”
“फिर एक महीने बाद क्या किया उसने ?”
“पार्ट पेमेंट की । पांच लाख रुपया लौटा कर आयी और बाकी का पैसा लौटाने के लिये तीन महीने की मियाद हासिल की । लेकिन वो मियाद भी अब दो हफ्ते में खत्म होने वाली है ।”
“उसका शिवाजी पार्क का पता ?”
“लिस्ट में दर्ज है ।”
बारबोसा ने लिस्ट में पता तलाश करके जुबानी याद किया, सधन्यवाद लिस्ट काशीकर को लौटाई और वहां से रुख्सत हुआ ।
***
सुबह सवेरे ही विमल भी पुनीत कोटक के साथ जेकब सर्कल पर स्थि त पुलिस लॉकअप के परिसर में पहुंचा ।
पुनीत कोटक कोई तीसेक साल का, संजीदासूरत, जहीन, नौजवान था जो विमल को मिलते ही भा गया था । उसके चेहरे पर बुद्धिमत्ता की स्पष्ट छाप थी । वो हैदर के वकील के तौर पर उससे मुलाकात की दरख्वास्त पहले ही लगा चुका था और सुबह साढे आठ बजे का टाइम हासिल कर चुका था ।
शोहाब ने जब उसे बताया था कि उसका बॉस - विमल - उसके साथ जाना चाहता था तो पहले तो उसने यही जवाब दिया था कि ऐसा हो पाना सम्भव नहीं था लेकिन फिर उसने खुद ही समझाया था कि वकील के साथ उसके एसोसियेट के तौर पर दूसरा वकील जा सकता था । नतीजतन तब विमल भी उसके जैसा काला कोट पहने था और गले में वकीलों वाला कॉलर लगाये था । सूरत उसने पी.एन. घड़ीवाला वाली अख्तियार की थी, यानी कि फ्रेंचकट दाढी मूंछ, अधपके सिर के बाल, आंखों में नीचे कान्टैक्ट लेंस और ऊपर सोने के फ्रेम और प्लेन ग्लासिज वाला चश्मा । उस नाम और सूरत वाला उसके पास बड़ौदा से जारी हुआ ड्राइविंग लाइसेंस था जो कि कोई जरूरत आन पड़ने पर उसकी शिनाख्त का माकूल और कारआमद जरिया बन सकता था ।
उन्हें मुलाकाती कक्ष में ले जाया गया ।
कक्ष के बीचोंबीच जाली की एक स्क्रीन थी जिसके एक तरफ मुलाकाती बैठता था और दूसरी तरफ वो कैदी बैठता था जिससे मिलने का तमन्नाई बन कर मुलाकाती वहां पहुंचा होता था ।
कैदी पेश किया गया ।
विमल ने हैदर को फौरन पहचाना ।
“मैं एडवोकेट पुनीत कोटक हूं ।” - कोटक बोला ।
हैदर ने एक सरसरी निगाह विमल पर डाली ।
“एडवोकेट घड़ीवाला ।” - कोटक बोला - “मेरे सहायक हैं ।”
सहायक शब्द सुनते ही हैदर ने उसे पूरी तरह से नजरअन्दाज कर दिया और कोटक की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मैंने तो कोई वकील नहीं किया ।” - वो बोला ।
“मूर्ख !” - कोटक बोला ।
हैदर सकपकाया, तिलमिलाया ।
“मैं उसका वकील हूं, जिसके लिये तुमने पैगाम भेजा था ।”
“ओह !”
“सिर्फ दस मिनट का टाइम मिला है इसलिये पहले जो पूछा जाये, उसका जवाब दो और फिर वो बोलो जो चाहते हो । टाइम जाया करोगे तो पछताओगे” - कोटक एक क्षण ठिठका और फिर उसने जोड़ा - “अन्दर बैठ कर ।”
“पूछिये, क्या पूछना चाहते हैं ।”
“‘भाई’ के गैंग के हो ?”
“हां ।”
“‘भाई’ से सीधा वास्ता है ?”
“नहीं ।”
“किस की हाजिरी भरते हो ?”
“इनायत दफेदार की ।”
“फिर भी ‘भाई’ का पता जानते हो ?”
“हां ।”
“लोकल ?”
“लोकल या आसपास का ।”
“कैसे ?”
“ये बताना मैं जरूरी नहीं समझता ।”
“रोजनामचे में कोकीन का डीलर बताया गया है तुम्हें । कितनी बरामद हुई थी तुम्हारे पास से ?”
“मेरे पास से बरामद नहीं हुई थी, गवाह कहते हैं कि....”
“माल तुम्हारा था । एक ही बात है । कितनी बरामद हुई ?”
“पैंसठ ग्राम ।”
“दस साल के लिये नपोगे ।”
“मालूम है । तभी तो पैगाम भिजवाया । रिहाई की गुहार लगाई ।”
“गवाह कौन थे ?”
“मेरे ही साथी थे ।”
“खिलाफ कैसे हो गये ?”
“साथ गिरफ्तार हुए थे । पुलिस ने पटा लिया । मेरे खिलाफ मुखबिरी कर दी । पकड़े जाने से पहले कोकीन की जो पुड़िया मैंने फेंक दी थी, बोल दिया मेरी थी । अब वो दोनों आजाद हैं, वो एक्टर भी आजाद हैं, जिसे मैंने खुद पच्चीस ग्राम की पुड़िया दी थी लेकिन उसके पास से बरामदी एक ग्राम दिखाई गयी ।”
“पैसे का खेल है ।”
“जो मैं नहीं खेल सकता, क्योंकि मेरे पास नहीं है ।”
“दफेदार को बोलना था ।” - विमल बोला ।
“बोला था । बोला, गवाहों के होते कुछ नहीं किया जा सकता था ।”
“गवाहों को तो किया जा सकता था ।”
“उनको पुलिस की प्रोटेक्शन हासिल है ।”
“जब गैंग के ही आदमी हैं तो उन्हें मजबूर किया जा सकता है अपने बयान से मुकरने के लिये ।”
“दफेदार बोलता है पुलिस किसी को उनके पास भी नहीं फटकने दे रही ।”
“ओह !”
“पुलिस ने उन पर कब्जा ही इसलिये बनाया हुआ है कि वे बहकाये न जा सकें, धमकाये न जा सकें या कहीं खिसक न जायें ।”
“खिसक न जायें ?”
“मुकरने से तो अच्छा ही है खिसक जाना ।”
“जब राजी से पुलिस के साथ हैं तो क्यों मुकरेंगे, क्यों खिसकेंगे ?”
“जोश में किये गये फैसलों से होश में आने पर वैसे भीड़ू आम फिर जाते हैं । ‘भाई’ के आदमी के खिलाफ गवाह बन के खड़ा होना कोई हंसी खेल है !”
“तुम्हारे केस में तो हंसी खेल ही लग रहा है ।”
“इसी बात का तो अफसोस है । ‘भाई’ से भी अफसोस है, दफेदार से भी अफसोस है जिन्होंने आराम से मेरे से पल्ला झाड़ लिया ।”
“अपना सगा न बना इसलिये बेगाना सूझा ?”
“अब क्या बोलूं, बाप ? पण ऐसीच है ।”
“‘भाई’ का खौफ नहीं सताता ?”
“अगर सोहल ‘भाई’ को लुढकाने में कामयाब हो गया तो फिर कैसा ‘भाई’ ? कैसा खौफ ?”
“क्या कहने !”
“और फिर एक बार बाहर आ गया तो मैं किसी को ढूंढे नहीं मिलने वाला ।”
“सोहल को भी ?”
“उसका काम करके किसी को ढूंढे नहीं मिलेन वाला, बाप । वादा वादा है । सौदा सौदा है ।”
“काफी श्याना है । है कहां वो दोनों गवाह ?”
“दफेदार बोलता था एक कल्याण के किसी होटल में है और दूसरा अपने घर पर नजरबन्द है ।”
“होटल का नाम ? घर का पता ?”
“होटल का नाम कंचन । घर का पता फ्लैट नम्बर बत्तीस, हाउसिंग बोर्ड कालोनी, आजाद नगर । टेलीफोन नम्बर 5229194 ।”
“गवाहों के नाम ?”
“कल्याण वाले का नाम अरुण खोपड़े । आजाद नगर वाले का शरद भैय्या ।”
“कड़क कौन है ?”
“शरद भैय्या । इसीलिये वो अपने घर पर ही है और खोपड़े - जो कि पिलपिला सकता है - कल्याण के उस गुमनाम होटल में है ।”
“हूं ।”
“तुमने” - कोटक ने पूछा - “कुछ कनफैस किया ?”
“नहीं ।”
“जबकि गवाह तुम्हारे ही जोड़ीदार हैं ?”
“मैंने ये कुबूल नहीं किया ।”
“समझदारी की । लेकिन गवाहों का तो ये ही दावा होगा कि वो तुम्हारे जोड़ीदार थे ? इसके बिना उनका ये बयान कैसे चलेगा कि को कीन तुम्हारे पोजेशन में थी ?”
“वो पुलिस के काबू में है, कुछ भी दावा कर सकते हैं ।”
“अब पोजीशन क्या है ?”
“साढे दस बजे मुझे डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट के कोर्ट में रिमांड के लिये पेश किया जायेगा ।”
“गवाहों को भी ?”
“रिमांड के वक्त नहीं । रिमांड की अर्जी के साथ उनके हल्फिया बयान नत्थी किये जायेंगे ।”
“कैसे मालूम ?”
“मालूम किया पुलिस के एक आदमी से किसी तरीके से ।”
“आई सी ।”
“मेरा बचाव हो सकता है ?”
“तुम्हारा बचाव कोई बात कर सकती है तो वो ये ही है कि कोकीन तुम्हारे कब्जे में नहीं पायी गयी थी ।”
“लेकिन गवाह ?”
“हां, गवाह । वो मुकर जायें तो तुम्हारे खिलाफ कोई केस नहीं है ।”
“वो नहीं मुकरने वाले ।”
“क्या पता लगता है ?” - विमल बोला ।
“दफेदार बोलता है....”
“वो क्या जानता है ?”
हैदर ने हैरानी से विमल की तरफ देखा ।
“तुमने सोहल को रिहाई की गुहार लगायी तो ये सोच के ही लगायी न कि वो तुम्हें रिहा करा सकता है ?”
“वो तो है ।”
“कोई जादू का डण्डा तो है नहीं उसके पास इसलिये जाहिर है कि जो कुछ होगा, केस की उथल पुथल से ही होगा ।”
“कैसे ?”
“इस बात की क्या गारन्टी है कि तुम ‘भाई’ का पता जानते हो ?”
“जानता हूं न ।”
“क्या गारन्टी है कि रिहाई की खातिर इस बाबत तुम झूठ नहीं बोल रहे हो ?”
“मैं झूठ बोल के रिहा हुआ तो सोहल मुझे छोड़ देगा ? लाश नहीं गिरा देगा मेरी ?”
“पता नहीं वो क्या करेगा ? साबित करके दिखाओ कि तुम ‘भाई’ का पता जानते हो ।”
“वो तो पता बताने से ही हो सकता है । मैंने पता ही बता दिया तो मुझे छुड़ाना क्या जरूरी रह जायेगी ?”
“सोहल अपने कौल करार से नहीं फिरता ।”
“मुझे सोहल ये बात कहे तो मैं मान लूंगा ।”
“समझ लो सोहल ने कही ।”
“समझने और होने में फर्क होता है ।”
“काफी पहुंचे हुए हो ।”
वो खामोश रहा ।
कोटक ने अर्थपूर्ण ढंग से अपनी कलाई पर बन्धी घड़ी का डायल एक उंगली से ठकठकाया ।
“फाइनल बात सुनो ।” - विमल बोला - “पता मत बताओ, ये साबित करके दिखाओ कि वो मुम्बई में या उसके आसपास कहीं है । ये भी नहीं कर सकते हो तो मुलाकात खत्म हुई ।”
“कर सकता हूं ।”
“कैसे ?”
“मैं ‘भाई’ के मोबाइल का नम्बर बताता हूं ।”
“उससे क्या होगा ? इन्टरनेशनल सिम कार्ड वाला मोबाइल सारी दुनिया में कहीं भी बज सकता है । उसके बजने से ये कहां पता चलता है कि फोन रिसीव करने वाला मुम्बई में है या दुबई में ! कराची में है या कुआला लम्पूर में....”
“सुनो तो, भाई, सुनो तो ।”
“क्या ? क्या सुनें ?”
“हाल में जो सरकारी मोबाइल फोन नैटवर्क चला है उसका सिम कार्ड मुम्बई से सौ किलोमीटर तक काम करता है । मालूम ?”
विमल ने कोटक की तरफ देखा ।
“हां ।” - कोटक बोला ।
“फर्ज करो, ‘भाई’ दुबई में है या कराची में है । ऐसे सिम कार्ड वाले फोन से तुम ‘भाई’ का नम्बर लगाओगे तो वो बजेगा ?”
“नहीं ।”
“क्यों नहीं बजेगा ? क्योंकि वो सरकारी सिम कार्ड सिर्फ सौ किलोमीटर तक काम करता है । बरोबर ?”
“हां ।”
“पण अगर फोन बजता है और ‘भाई’ जवाब देता है तो इसका क्या मतलब होगा ?”
“तुम बोलो ।”
“तो इसका ये मतलब होगा कि ‘भाई’ सौ किलोमीटर के दायरे के भीतर है । होगा या नहीं होगा ?”
“होगा ।”
“तो फिर वो मुम्बई में या उसके आसपास हुआ या नहीं हुआ ?”
कोटक ने विमल की तरफ देखा ।
“मोबाइल का नम्बर बोलो ।” - विमल बोला ।
हैदर ने बोला ।
वो वही नम्बर था जो कि छोटा अंजुम ने पास्कल के बार में उससे हुई अपनी पहली मुलाकात में उसे बताया था ।
कोटक ने सवाल करती निगाह से विमल को देखा ।
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
“ओके ।” - कोटक हैदर की तरफ आकर्षित हुआ - “अब सुनो, तुमने क्या करना है ? जब तुम्हें मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाये तो तुमने जी जान से अपनी बेगुनाही का राग अलापना है ।”
“गवाह ?” - हैदर सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“कोई गवाह नहीं....”
“मतलब झूठे हैं ?”
“झूठे नहीं, फर्जी हैं । झूठे - या सच्चे - वो होते हैं जिनका कोई वजूद होता है । तुम्हारी हालदुहाई ये होगी कि जिन गवाहों का हल्फिया बयान अदालत में पेश किया गया है, उनका कोई वजूद नहीं है; जिनके वो बयान हैं, पुलिस उन दोनों को अदालत में नहीं पेश कर सकती क्योंकि पेश किये जाने के लिये कोई है ही नहीं ।”
“है न ? वो अरूण खोपड़े, वो शरद भैय्या....”
“ईडियट !”
“क्या !”
“बात समझते तो हो ही नहीं, सुनते भी नहीं हो । पहले पूरी बात सुनो ।”
“सुनाओ, बाप ।”
“तुम्हारे खिलाफ जैसा केस है, उसमें पुलिस को लम्बा रिमांड देने में मैजिस्ट्रेट दो मिनट भी नहीं लगाने वाला लेकिन जब तुम्हारी हालदुलाई ये होगी कि पुलिस द्वारा पेश किये गये गवाहों के हल्फिया बयान बोगस हैं तो मैजिस्ट्रेट को मजबूरन ये हुक्म देना पड़ेगा कि गवाहों के बयानों को सबस्ट्रैंशियेट करने के लिये अगले रोज खुद गवाह अदालत में पेश हों ।”
“अगले रोज ? यानी कि कल ?”
“कल इतवार है । अगले रोज का मतलब है अगला कार्यकारी दिवस । नैक्स्ट वर्किंग डे ।”
“सोमवार ?”
“हां ।”
“यानी कि मुझे एक दिन और लॉकअप में गुजारना होगा ?”
“करतूत कैलेंडर देख कर की होती तो क्यों होता ऐसा ?”
वो कसमसाया, फिर बोला - “बहरहाल मैजिस्ट्रेट का जो हुक्म होगा, वो ये होगा कि मेरे खिलाफ जो गवाह, हैं, वो सोमवार सुबह खुद अदालत में पेश हों ?”
“हां । ऐसा ही दस्तूर है । कानून की निगाहों में तुम बेगुनाह भी हो सकते हो । तुम्हें नाहक लॉकअप में बन्द रखा जाये, ये मैजिस्ट्रेट को कुबूल न होगा इसलिये उसका हुक्म होगा कि गवाह अगले ही रोज उसके सामने पेश हों । अब सोचो, जब गवाह पेश नहीं होंगे तो मैजिस्ट्रेट क्या करेगा ?”
“क्या करेगा ? मुझे छोड़ देगा ?”
“छोड़ नहीं देगा, जमानत पर रिहा कर देगा । पुलिस को रिमांड नहीं मिलेगा और तुम उस जूत पुजार से बच जाओगे जो कि नारकाटिक्स का व्यापार करने वाले की रिमांड में होनी लाजमी होती है ।”
“ओह !” - हैदर ने चैन की लम्बी सांस ली - “ये तो बड़ी खुशी की बात है । लेकिन, बाप, गवाह ! वो क्यों पेश नहीं होंगे ?”
“ये तुम्हारी सिरदर्द नहीं । तुम्हें जो समझाया गया है वो करो, कल अदालत में तुम्हें तुम्हारे जोड़ीदार तुम्हारे खिलाफ गवाही देते नहीं दिखाई देंगे । एक बार बाहर आ जाओगे तो अक्ल होगी तो दोबारा कभी अन्दर नहीं जाओगे ।”
“नहीं जाऊंगा ।” - वो दृढता से बोला ।
“आज तुम्हें एक वकील की जरूरत होगी । कल वकील और जमानती की । कर लोगे इन्तजाम ?”
“वकील तो, बाप, आप....”
“मेरी फीस तुम अफोर्ड नहीं कर सकते ।” - कोटक शुष्क स्वर में बोला ।
“ओह !”
“और अपने बारगेन पर कायम रहना । बाहर आकर मुकर गये या ‘भाई’ का खौफ खा गये तो जानते हो न क्या होगा ?”
“क्या होगा ?”
जवाब विमल ने दिया ।
“सोहल कच्चा चबा जायेगा ।” - वो उठता हुआ बोला - “समझ गया है... है... हैदर !”
हैदर के नेत्र फट पड़े ।
जब तक वो अपनी सकते की उस हालत से उबरा, तब तक विमल और कोटक वहां से जा चुके थे ।
***
बारबोसा शिवाजी पार्क पहुंचा ।
उस सम्पन्न इलाके में एलेना मोनटीरो जिस फ्लैट में रहती थी वो भी इलाके जैसा ही सम्पन्न और फैंसी निकला ।
कालबैल के जवाब में उसने खुद दरवाजा खोला ।
वो पचास के पेटे में पहुंची - या पहुंचती - गोरी रंगत और अच्छे नयननक्श वाली औरत निकली । वो पैंतालीस की लगती थी, चालीस की लगने की कोशिश करती थी और तीस की लगने की अभिलाषा रखती जान पड़ती थी ।
रामोजीराव काशीकर के हवाले से बारबोसा ने उसे अपना परिचय दिया तो वो दरवाजे पर से हटी, फिर उसने उसे एक सजी हुई बैठक में लाकर बिठाया ।
“अब बोलो, मैन ।” - वो उसके सामने बैठती हुई बोली - “क्या कहना मांगता है ?”
“बात गम्भीर है ।” - बारबोसा बोला - “मेरी राय मानें तो अपने हसबैंड को भी इधर बुला लें ।”
“हसबैंड किधर है मैन ! वो तो सिक्सटीन इयर्स हुआ, मेरे को छोड़ के चला गया गॉड आलमाइटी के पास ।”
“ओह ! बहुत अफसोस हुआ सुन कर कि आप भरी नौजवानी में बेवा हो गयीं ।”
“आई वाज ट्वेन्टी टू दैन... मे बी ट्वेन्टी थ्री ।”
साली ! साबित करके ही मानेगी कि अभी चालीस की भी नहीं हुई ।
“बाबा लोग ?” - उसने पूछा ।
“दो हैं न ! पण इस टेम नहीं हैं । कॉलेज गये हैं ।”
“आई सी !”
“कोई वान्दा है ? किसी का इधर होना जरूरी ?”
“नहीं । जरा भी नहीं । मैंने सोचा शायद आप पसन्द करें ।”
“क्यों ? मैं छोटा बेबी है ? अभी अंगूठा चूसता है ?”
“हा हा हा । नहीं, ऐसा कुछ नहीं है ।”
“रामोजीराव मेरे को फोन लगाया कि तुम उसका फिरेंड था और मेरे से कोई सीरियस बात करना मांगता था । मैन, एनी फिरेंड ऑफ रामोजीराव इज ए फिरेंड ऑफ माइन । नो ?”
“यस ।”
“सो देयर ।”
“थैंक्यू ।”
“अब बोलो, क्या सीरियस बात करना मांगता है ?”
“मैडम, मैं सीधे असल बात पर आऊं ?”
“डेफिनेटली ।”
“फरवरी में चैम्बूर वाले तुकाराम से आपने चेरिटी पर खर्च करने के लिये दो किस्तों में बारह लाख रुपये हसिल किये थे ।”
उसके नेत्र फैले ।
“कैसे मालूम ?” - वो बोली ।
“मामूली बात है । रामोजीराव के पास ऐसे तमाम क्रेडिटर्स की लिस्ट है ।”
“ओह !”
“उस रकम में से पांच लाख रूपये आपने मार्च में लौटा दिये थे लेकिन सात लाख रुपये अभी भी लौटाने हैं । करैक्ट ?”
“करैक्ट ।”
“लौटाने में क्या वान्दा है ?”
“मेजर पोर्शन खर्च कर दिया ।” - उसकी निगाह स्वयंमेव ही सजे धजे फ्लैट में फिर गयी ।
“फ्लैट की डेकोरेशन पर ? फरनिशिंग पर ?”
“यस ।”
“क्योंकि चैरिटी के लिये पैसा था और चैरिटी बिगिंस एट होम ?”
“अब क्या बोलेंगा !”
“अब क्या पोजीशन है ?”
“टू वीक्स में सेवन लैक्स वापिस करने का है । नहीं है ।”
“क्या करेंगी ?”
“पार्ट पेमेंट करेंगा । बैलेंस अमाउन्ट के लिये हाथ पांव जोड़ कर और टेम मांगेगा ।”
“हाथ पांव जोड़ कर ?”
“वो सोहल । बहुत कड़क । बहुत डेंजर । रामोजीराव को इतना मार लगाया कि दो दिन बाद उठ कर खड़ा हो सका । महाबलेश्वर में डॉक्टर कुलकर्णी के साथ भी ऐसीच किया । पुअर मैन उधर अपना होटल रूम में दम तोड़ता पड़ा पाया गया । इसीजियेटली हास्पीटल न पहुंचा जाता तो खलास था । उसका सबार्डीनेट डॉक्टर जो उधर चिंचपोकली की चेरीटेबल डिस्पेंसरी में उसकी जगह ड्यूटी करता था...” - एलेना के शरीर ने झुरझुरी ली ।
“उसको क्या किया ?”
“फ्रैक्चर । बोथ लैग्स । वन मंथ हास्पीटल में रहा । अभी भी क्रचिज पर ही थोड़ा बहुत वाक कर पाता है ।”
“आपको ये कैसे मालूम कि जो कुछ किया, सोहल ने किया ?”
“और कौन करेंगा । वो ही तुकाराम का खास ।”
“फिर भी ?”
“अरे, मैन, क्या फिर भी ? ये बात अक्खी मुम्बई को मालूम । आस्क ऐनी क्रेडिटर । एक ही नाम सुनने को मिलेंगा । सोहल ।”
“हूं ।”
“ऐसा डेंजर आदमी तो” - उसके शरीर ने फिर झुरझुरी ली - “मेरे को हाथ भी लगायेंगा तो मेरा हार्ट फेल हो जायेंगा । ऊपर से हमारा बच्चा लोग । दो लड़कियां । ट्विन्स । उनका रेप करेंगा तो...”
“ऐसा कौन बोला ?” - बारबोसा हैरानी से बोला - “सोहल बोला कि अगर आप तुकाराम से लिया पैसा नहीं लौटायेंगी तो वो आपकी बेटियों का रेप करेंगा ?”
“नहीं, वो तो नहीं बोला पण....”
“क्या पण ?”
“जिधर जोर चलेंगा, उधर ही तो चलायेंगा ? ऐसीच तो होता है ।”
“फिल्मों में ।”
“मैं अपना डाटर्स को सेव करने का वास्ते खुद को रेप के लिये आफर करेंगा ।”
“क्यों नहीं ? क्यों नहीं ? लगता है आप मुम्बईया फिल्में बहुत देखती हैं ।”
“करैक्ट लगता है पण कैसे जाना ?”
“आपकी बातों से जाना । मैडम, सोहल ऐसा आदमी नहीं है ।”
“तुम जानता है सोहल को ?”
“जानता तो नहीं है पण....”
“फिर तुम्हेरे को क्या मालूम वो कैसा आदमी है ? किसी को डबल फ्रैक्चर करता है, किसी को हाफ डैड करता है, किसी को थ्री क्वार्टर डैड करता है....”
“फुल डैड भी करता है ।”
“पण ऐसा आदमी नहीं है !”
“कैसे होयेंगा । इधर का पब्लिक तो उसे राबिनहुड, सखी हातिम, दीन का बन्धु बोलता है ।”
“बंडल मारेला है ?”
“मैं जो सुना वो बोला ।”
“गलत सुना । राबिनहुड एक बार चैरिटी के लिये पैसा देकर वापिस वसूल करता है ?”
“यू सैड इट, मैडम ।”
“आई सैड वॉट ?”
“चैरिटी के लिये देकर । होम डेकोरेशन के लिये देकर नहीं ।”
“जो दिया सो दिया ।” - वो पूरी ढिठाई से बोली - “उस पर निगाह रखना गलत ।”
“अपना अपना खयाल है ।”
“मैन, तुम सोहल का फैन मालूम पड़ता है । एडमायरर जान पड़ता है ।”
“आप हैं ?”
“नो । नैवर ।”
“रामोजीराव ?”
“कैसे होयेंगा ? इतना मार लगाया । पुअर मैन को पैसा वापिस करने के लिये अपना नासिक का मकान बेचना पड़ा । कैसे होयेंगा ?”
“मैडम, अब जब मैं रामोजीराव का फ्रेंड, रामोजीराव आगे आपका फ्रेंड तो हम सब एक जैसे न हुए ?”
“हुए तो सही ?”
“सोहल के मुखालिफ । एक थैली के चट्टे बट्टे ।”
“क्या बोलना मांगता है, मैन ?”
“आपका हैल्प करना मांगता है । ऐसा हैल्प जो रामोजीराव और उस जैसे लोगों का हैल्प अपने आप बन जायेगा ।”
“रामोजीराव अब हैल्प का क्या करेंगा ? वो तो पैसा चुकता किया ।”
“पण हाथ पांव तो अभी भी सहला रहा है । बदला तो मांगता होयेंगा ।”
“बदला ! किससे ?”
“सोहल से, और किससे ?”
“कैसे मिलेंगा ?”
“सोहल के खलास होने से मिलेंगा ।”
एलेना के नेत्र फैले ।
“क्या डेंजर बात बोलता है, मैन ?” - वो बोली ।
“मैडम, जो करेंगा, मैं करेंगा । आप तो खाली थोड़ा सा हैल्प करेंगा, थोड़ा सा सपोर्ट करेंगा, थोड़ा सा इन्स्ट्रक्शन्स फालो करेंगा ।”
“तुम्हेरे को सोहल से कोई रंजिश ?”
“हां ।”
“क्या ?”
“मैं तुकाराम से पन्द्रह लाख निकाला ।”
“क्या बोल कर ?”
“नौजवान विधवाओं के रीहैबिलिटेशन काम करता था । उनके लिये रोजगार पैदा करता था, दोबारा शादी में मदद करता था, लाइफ में नये स्टार्ट को फाइनांस करता था ।”
“करता था ये सब ?”
“नक्को । ऐसीच बोल दिया ।”
“मैन, कैसा आदमी है तुम ?”
“क्या हुआ ?”
“खुद क्रेडिटर है, फिर भी अभी मेरे को पूछता था कि कैसे मालूम जो कुछ किया, सोहल ने किया ।”
बारबोसा हंसा और फिर बोला - “आपको परखता था । सोहल ही है तमाम मुसीबत की जड़ । मेरे को मालूम ।”
“अब सुर में बोला ।”
बारबोसा फिर हंसा ।
“पैसा न लौटाने का वास्ते तुम क्या किया ?”
“फरवरी में जब सोहल ने मेरे जैसे, आप जैसे, रामोजीराव जैसे लोगों के खिलाफ अपना चक्कर चलाया तो मैं गायब हो गया । अब सोहल ढूंढता है । ढूंढ लेगा तो मारेंगा । क्योंकि पैसा तो अपुन के पास है नहीं ।”
“किधर गया ?”
“फास्ट लाइफ में गया ।”
“वॉट फास्ट लाइफ ?”
“वाइन । वूमेन । परसूट आफ हैपीनैस ।”
“दैट्स सुपर ।”
“ऊपर से वूमेन वैरी फास्ट । हार्सिज वैरी स्लो ।”
“हार्सिज ! रेस भी लगाता है ?”
“अब क्या बोलेंगा, मैडम । वो सब करता है जो असल पैसे वाला लोग करता है ।”
“फरवरी से अब तक सब खलास कर दिया ?”
“सब तो नहीं । पण काफी । मोर दैन हाफ ।”
“मैन, यू डू एनजॉय युअरसैल्फ ।”
“एनजॉय तो कर लिया, मैडम - बचा खुचा अभी और कर लेंगा - पण क्वेश्चन इज कि अब आगे जान कैसे छूटे ! वो साला सोहल कभी तो सिर पर आन खड़ा होयेंगा ही न !”
“इस वास्ते सोहल को खलास करना मांगता है ?”
“हां ।”
“कर सकेंगा ?”
“आप हैल्प करेंगा, सपोर्ट करेंगा तो कर सकेंगा । बोला न ?”
वो सोचने लगी ।
“मैडम, सोहल खलास तो पीछे रोकड़ा वसूल करने वाला कोई नहीं । तो आपका वास्ते सेविंग, मेरा वास्ते सेविंग और रामोजीराव जैसा का वास्ते रिवेंज । बदला ।”
एलेना मोनटीरो की आंखों में लालच की चमक आयी ।
“कैसे होयेंगा ?” - वो धीरे से बोली ।
“मैं बताता है न कैसे होयेंगा ?”
बारबोसा ने धीरे धीरे अपनी नयी स्कीम बयान करना शुरू किया ।
***
विमल वापिस होटल सी-व्यू पहुंचा ।
चौथी मंजिल के ऑफिस में पहुंच कर सबसे पहले उसने पी. एन. घड़ीवाला के मेकअप को तिलांजलि दी ।
तब तक इरफान और शोहाब वहां पहुंच गये ।
“कैसी बीती ?” - शोहाब उत्सुक भाव से बोला ।
“बढिया ।” - विमल बोला ।
“तफसील से बता, बाप ।”
विमल ने बताया ।
“हैदर वो ही है अपना जाना पहचाना” - आखिर में वो बोला - “और इस बात की भी तसदीक हुई है कि ‘भाई’ मुम्बई से सौ किलोमीटर के दायरे में कहीं मौजूद है ।”
“फोन लगा के देखा, बाप ?” - इरफान बोला ।
“हां । ‘भाई’ ही बोला ।”
“आवाज बराबर पहचानी ?” - शोहाब बोला - “किसी ने मिमिकरी का कमाल तो नहीं दिखाया ?”
“जब मोबाइल मुझे मालूम है ‘भाई ’ का था तो उस पर किसी मिमिकरी मास्टर का क्या काम ?”
“शायद ‘भाई’ ने फोन येहीच साबित करेन के लिये किसी और को दे दिया हो” - इरफान बोला - “कि वो मुम्बई में या आसपास था और खुद आराम से दुबई में बैठेला हो ।”
“होने को तो कुछ भी हो सकता है” - विमल बोला - “लेकिन इन्टरनेशनल सिम कार्ड वाला मोबाइल, जिस पर सारी दुनिया के डॉन और गैंगस्टर फोन लगाते हों, उसने किसी और को दे दिया हो, ताकि एक सोहल धोखा खा सके, ये बात मेरे एतबार में नहीं आती ।”
“जब बाहर निकलेगा” - शोहाब बोला - “तो ये हैदर ‘भाई’ का असल ठिकाना भी तो बतायेगा । तब देख लेंगे ।”
“बाहर तभी निकलेगा” - विमल बोला - “जबकि हम बहुत थोड़े वक्फे में, अड़तालीस घन्टे से भी कम वक्त में, एक मेजर काम करके दिखाने में कामयाब होंगे ।”
“मेजर काम ?”
“दो गवाहों का मुंह बन्द करने का मेजर काम । दोनों के नाम पते हमें मालूम हैं लेकिन प्राब्लम ये है कि वो पुलिस प्रोटेक्शन में हैं । कैसे होगा ?”
इरफान और शोहाब की निगाहें मिलीं ।
फिर इरफान संजीदा लहजे में बोला - “कोई तरकीब निकालेंगे, बाप ।”
“सोचेंगे ।” - शोहाब बोला ।
“मैं भी सोचूंगा ।” - विमल बोला - “अभी टाइम है सोचने के लिये ?”
“टाइम है ?”
“हां । तब तक का टाइम है जब तक कि हमारे पास ये खबर नहीं पहुंच जाती कि हैदर के साथ कोर्ट में क्या बीती ? मैजिस्ट्रेट ने हैदर की हालदुहाई को खातिर में लाये बिना पुलिस को रिमांड दे दिया हुआ तो गवाहों का मुंह खुलता है या बन्द होता है, इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । मैजिस्ट्रेट ने गवाहों को अगले दिन पेश होने का हुक्म देने की जगह उससे अगले दिन या उससे अगले दिन पेश होने का हुक्म दिया हुआ तो उसी हिसाब से हमारे पास वक्त की मोहलत बढ जायेगी । कोटक यहां फोन करेगा इसलिये उसका फोन आने तक तो सोचने विचारने का टाइम है ही ।”
“तब तक हम इन गवाहों की कोई खर निकालते हैं ।” - इरफान बोला - “ये अरुण खोपड़े और शरद भैय्या ‘भाई’ के आदमी हैं तो अन्डरवर्ल्ड में बहुत लोगों को इनकी खबर होगी ।”
“ठीक ।”
***
ढाई बजे के करीब एक टैक्सी पर सवार होकर पवित्तर सिंह एयरपोर्ट पर पहुंचा ।
टैक्सी मारकी में जाकर रुकी । उससे उतरने से पहले उसने बहुत सावधानी से चारों तरफ निगाह दौड़ाई ।
किसी की भी तवज्जो उसने अपनी तरफ लगी न पायी, न कोई उसके पीछे लगा वहां पहुंचा था और न कोई उसे ताड़ता पहले से वहां मौजूद था ।
उसने टैक्सी का किराया अदा किया, अपना छोटा सा सूटकेस सम्भाला और बाहर निकला ।
गेट पर टिकट दिखा कर वो डिपार्चर लाउन्ज में पहुंचा ।
वहां पैसेंजर्स के अलावा कोई मौजूद नहीं हो सकता था इसलिये उसको और भी तसल्ली हो गयी कि कोई उसके पीछे नहीं लगा हुआ था । पिछले रोज जैसे उसे वहां ब्रजवासी मिल गया था, वैसे भी कोई नहीं मिलने वाला था । वैसा इत्तफाक, जो कि लाखों में एक बार होता था, दोबारा नहीं होने वाला था ।
बड़े इत्मीनान से वो चैक-इन काउन्टर की तरफ बढा ।
एकाएक वो थमक कर खड़ा हो गया । फिर झपट कर अपने एक पिलर की ओट ली ।
झामनानी के दो आदमी ।
चैक-इन काउन्टर के करीब !
वाहेगुरु - वो मन ही मन बोला - माईंयवे पिच्छे नईं, अग्गे लगे हुए थे ।
वो झामनानी का बिरादरीभाई था इसलिये उसके काफी आदमियों को पहचानता था । इत्तफाक से वो दो उनमें से थे जिन्हें वो पहचानता था ।
क्या नाम थे कमीनों के ?
हां । मुरली मनोहर और लक्ष्मी शंकर ।
वो डिपार्चर लाउन्ज में मौजूद थे, इसका मतलब था कि उनके पास टिकट थे ।
वो पिलर के पीछे से परे सरक गया और टायलेट में दाखिल हुआ । टायलेट में उस घड़ी वहां के अटेंडेंट के सिवाय कोई नहीं था । अटेंडेंट पच्चीसेक साल का एक लड़का था जो शक्ल से सयाना जान पड़ता था ।
सरदार की परसनैलिटी का रौब खाकर उसने अभिवादन किया ।
“की नां ऐ तेरा ?” - पवित्तर सिंह ने पूछा ।
“शिवनाथ ।”
“पढा लिखा है ?”
“बारहवीं पास हूं ।”
“इक छोटा सा कम्म कर । सौ रुपये दवांगा । एडवांस ।”
लड़के की आंखों में लालच की चमक आयी ।
“करेगा ?” - पवित्तर सिंह उतावले स्वर में बोला ।
“मेरे से होने लायक होगा तो जरूर करूंगा ।”
“होने लायक है । मामूली कम्म है ।”
“बोलिये ।”
पवित्तर सिंह ने जेब से स्क्रैच पैड और बालपैन निकाला, उस पर अपनी मुम्बई की इन्डियन एयरलाइन्स की फ्लाइट का नम्बर लिखा और झामनानी के आदमियों के नाम लिखे ।
“ये फ्लाइट का नम्बर और दो बन्दों के नाम हैं ।” - पवित्तर सिंह पैड से वरका फाड़ कर उसे देता हुआ बोला - “फ्लाइट दी पैसेंजर लिस्ट देख के आ कि ये दो नाम उस विच हैन या नई । समझ गया ?”
“हां जी ।”
“कर लेगा ?”
“हां जी । पैसेंजर लिस्ट तो चैक-इन काउन्टर के करीब बोर्ड पर लगी होती है, उसे पढना ही तो है ।”
“शाबाशे ! ए फड़ सौ दा पत्ता । जल्दी जा और जल्दी वापिस आ ।”
लड़का बाहर को लपका ।
लगभग उलटे पांव ही वो वापिस लौटा ।
“हैं ।” - वो बोला - “इकानमी क्लास में सीट नम्बर जी पांच और छ: ।”
“नाम मुरली मनोहर और लक्ष्मी शंकर ?” - पवित्तर सिंह ने फिर भी पूछा ।
“हां जी ।”
“एहोई फ्लाइट ? मुम्बई दी ? चार बजे दी ?”
“हां जी ।”
“शावाशे ।”
पवित्तर सिंह ने उससे वरका लेकर फाड़ दिया और चुपचाप बाहर निकला ।
वो हरगिज नहीं मान सकता था कि ये इत्तफाक था कि झामनानी के दो आदमी उसी फ्लाइट पर बुक थे जिस पर कि वो मुम्बई का सफर करने वाला था । जरूर पिछले रोज वहां उसकी मौजूदगी से ब्रजवासी ही कुछ भांप गया था जिसकी खबर उसने आगे झामनानी को कर दी थी और अब झामनानी उसकी मुम्बई तक निगाहबीनी का इन्तजाम किया बैठा था ।
चंगा होया मर गया माईंयवा ।
इत्तफाक से वो उन्हें पहचानता न होता तो वो दोनों तो मुम्बई में उसकी सोहल से मुलाकात के भी गवाह बन जाते । मुलाकात के नहीं तो इस बात के गवाह तो बन ही जाते कि वो मुम्बई पहुंच कर एयरपोर्ट से सीधा होटल सी-व्यू पहुंचा था ।
बचाव हो गया ।
वो चुपचाप वापिस लौट पड़ा ।
गेट पर खड़े व्यक्ति ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“गड्डी विच कुज समान रह गया ।” - वो बोला - “जरूरी ।”
उस व्यक्ति ने सहमति में सिर हिलाया ।
बाहर निकलते ही उसे एक खाली टैक्सी मिल गयी ।
“कनॉट प्लेस चल, पुत्तरा ।” - टैक्सी में सवार होता वो बोला ।
वहां एक ट्रैवल एजेन्सी थी जिसका मालिक उसका दोस्त था और जो रेलवे स्टाफ से मिलीभगत होने की वजह से उसी रात की या अगली सुबह की मुम्बई की किसी गाड़ी की टिकट उसे दिला सकता था ।
***
इरफान विमल के पास पहुंचा ।
“शोहाब परचुरे को साथ लेकर कल्याण चला गया है ।” - वो बोला - “मैं अभी विक्टर के साथ आजाद नगर जाऊंगा दूसरे गवाह के पीछे पड़ने ।”
“अभी गया नहीं ?” - विमल बोला ।
“जा ही रहा था कि चैम्बूर से कॉल आ गयी ।”
“जरूरी ?”
“जरूरी जैसी ही है ।”
“चौकीदार ने की ?”
“बाप, तू अपना कल सुबह का खुद का फैसला भूल गया ।”
“कौन सा फैसला ?”
“येहीच कि कोई ऐसा ठिकाना होना चाहिये जहां सोहल के कद्रदान मेहरबान उस तक पहुंच बना सकते हों । ख्वाजा के हश्र की वजह से ऐसा बोला था न, बाप ।”
“अब याद आ गया । उस ठिकाने के तौर पर तुका का चैम्बूर में पड़ा खाली घर चुना था जहां तू दो आदमी बिठाने वाला था बिठाये ?”
“कल ही बिठाये, बाप । सामने का जो कमरा है न जिसका दरवाजा बाहर गली में खुलता है, उसका सोफा वगैरह डाल कर रिसैप्शन बना दिया और उससे पिछले कमरे को ऑफिस टेबल एग्जीक्यूटिव चेयर, विजिटर चेयर वगैरह डाल कर ऑफिस बना दिया । पिछले कमरे को इस वास्ते ऑफिस बनाया क्योंकि वहां इमारत के पिछवाड़े के रास्ते भी पहुंचा जा सकता है ।”
“गुड ।”
“अब दिन में वो दोनों भीड़ू ऑफिस का टेम का माफिक ही उधर ड्यूटी करते हैं, बाकी टेम का जिम्मेदार पहले का माफिक चौकीदार ।”
“हूं ।”
“ऑफिस से ही फोन इधर आया कि एलेना मोनटीरो करके कोई बाई कर्जे का रोकड़ा लौटाना मांगती है ।”
“लौटा दे ।”
“बोलती है सात लाख की रकम का मामला है इसलिये ऐेरे गैरे को नहीं थमा सकती ।”
“तो किसे थमायेगी ? जिससे हासिल की थी” - तुकाराम के खयाल से ही विमल का मन भारी हो उठा और गला रुंधने लगा - “वो तो मर गया ।”
“उसे जिसे पहली किस्त थमायी थी ।”
“वो कौन हुआ ?”
“बाप, तू खुद ।”
“अच्छा !”
“बाप, तू भूल गया कि फरवरी और मार्च के दौरान तू थोड़ा टेम के लिये उधर अक्सर जाता था क्योंकि तेरी धमकी के तहत बहुत लोग पैसा लौटाने या लौटाने के लिये टेम मांगने आने लगे थे । वो बाई बोलती है कि उसने मार्च के शुरू में पांच लाख रुपया लौटाया था और बाकी सात लाख लौटाने के लिये तीन महीने की मोहलत मांगी थी ।”
“तब मैंने किसी को ये तो नहीं बोला था कि मैं सोहल था ।”
“नहीं बोला था, मेरे को मालूम । पण लोग समझ ही जाते हैं कि तुका की गैरहाजिरी में रोकड़ा वसूली के लिये जो भीड़ू उधर बैठेला था, वो सोहल नहीं होगा तो कौन होगा ? फिर मैं हमेशा तेरे साथ । और मेरे को उधर लोग नाम और शक्ल दोनों से जानते पहचानते थे कि मैं तुका का खास था ।”
“अब प्राब्लम क्या है ?”
“बोला न ! वो बाई बाकी का सात लाख रुपया लौटाना मांगती है पण बोलती है रोकड़ा उसी भीड़ू को सौंपेगी जिसको पहले पांच लाख सौंपा था ।”
“जो कि मैं हूं ?”
“हां । और ये चिट्ठी देख ।”
“किस की है ?”
“बोरीवाली के सेंट थामस चर्च के पादरी की । तुकाराम के नाम । चैम्बूर के पते पर । लगता है कि उसे खबर नहीं कि तुकाराम अब इस दुनिया में नहीं है ।”
“अभी नौ दिन पहले की तो बात है ।” - विमल उदास भाव से बोला - “वो कोई नेता या फिल्म स्टार थोड़े ही था जिसकी मौत की खबर अखबार में छपती या टी.वी. पर आती ।”
इरफान खामोश रहा ।
“क्या चाहता है ये पादरी ?”
“चन्दा चाहता है और क्या चाहता है ?”
“कितना ?”
“जितना मिल जाये ।”
“जरूरत क्या बतायी ?”
“बहुत पुराना चर्च है । पिछली बरसातें भारी पड़ी । मरम्मत की जरूरत है । अभी हाल में ननों के क्वार्टरों की छत गिर गयी । अपने लोगों ने कुछ चन्दा दिया पण वो न होने जैसा । सरकारी एड के लिये अर्जी दाखिल, कोई जवाब नहीं । कोई तुकाराम की बाबत बोला इसलिये चिट्ठी लिखी ।”
“सब की एक ही कहानी है । इस मुल्क की जरूरियात तो भगवान नहीं पूरा कर सकता । वो औरत... क्या नाम बोला ?”
“एलेना मोनटीरो ।”
“कितना पैसा लौटाने को बोली ?”
“सात लाख ।”
“कोई अता पता छोड़ा अपना ?”
“पता तो हमारी लिस्ट में ही है, फोन नम्बर छोड़ा । पादरी की चिट्ठी में भी फोन नम्बर है ।”
“जाने से पहले दोनों को फोन लगा के जा । दोनों को बोल कल सुबह ग्यारह बजे चैम्बूर पहुंचें ।”
“ठीक ।”
***
परचुरे के साथ शोहाब कल्याण पहुंचा ।
होटल कंचन कल्याण के एक बसे हुए इलाके में एक चार मंजिला इमारत में निकला ।
होटल के ग्राउन्ड फ्लोर पर उसका रेस्टोरेंट था जिसमें जाकर वो दोनों बैठ गये । वहां पांच मिनट में शोहाब ने एक वेटर से यारी कर ली और दस मिनट में रेस्टोरेंट के मैनेजर को सांठ लिया । और दस मिनट बाद परचुरे रेस्टोरेंट में ही बैठा रहा जबकि शोहाब मैनेजर के साथ - जिसका नाम गायकवाड था - उसके ऑफिस में बैठा हुआ था ।
वहां मैनेजर की भरपूर आर्थिक सेवा करके उसने जो जानकारी हासिल की वो इस प्रकार थी:
सरकारी गवाह अरुण खोपड़े और उसके साथ के पुलिसिये, जिनके कि वो हवाले था, चौथी मंजिल के अगल बगल के दो कमरे थे ।
वो लोग परसों से वहां थे ।
पुलिसियों की तीन तीन की दो टीमें थीं जो कि बारह बारह घन्टे की शिफ्ट में काम करती थीं ।
उस वक्त जो शिफ्ट चालू थी वो शाम पांच बजे शुरू होकर सुबह पांच बजे खत्म होती थी जबकि दूसरी टीम के तीन पुलिसिये वहां पहुंचते और मौजूदा टीम को रिलीव करते ।
हर टीम में दो हवलदार और और एक सब-इन्सपेक्टर था ।
जो टीम ड्यूटी पर नहीं होती थी वो ऑफ ड्यूटी आवर्स में नजदीकी पुलिस चौकी पर पायी जाती थी ।
बाकी का सारा दिन उन दोनों ने उन छ: पुलिसियों की गुपचुप पड़ताल में गुजारा ।
जो नतीजा सामने आया वो ये था:
शाम वाली टीम के पुलिसियों के नाम प्रभात अहिरे, हरीश डोलस और अभय जोशी थे । उनमें से प्रभात अहिरे सब-इन्सपेक्टर था और बाकी दोनों तीन फीती वाले हवलदार थे ।
तफ्तीश का खास नतीजा ये था कि सब-इन्स्पेक्टर प्रभात अहिरे उनके काम का आदमी हो सकता था ।
प्रभात अहिरे से तत्काल सम्पर्क साधने की कोशिश की गयी ।
जिसका माकूल नतीजा न निकला ।
अलबत्ता बात बिलकुल ही आयी गयी न हो गयी क्योंकि उसने शोहाब को ऑफ ड्यूटी आवर्स में चौकी में आकर मिलने को बोला ।
ऑफ ड्यूटी आवर्स, जो कि अगली सुबह शुरू होते ।
***
एक पी.सी.ओ. से लक्ष्मी ने मुकेश बजाज को फोन लगाया ।
“लक्ष्मी बोल रहा हूं ।” - वो बोला ।
“कहां है ?” - बजाज ने पूछा ।
“एयरपोर्ट पर ।”
“क्या हुआ ?”
“वो नहीं आया । फ्लाइट चली गयी ।”
“आया ही नहीं ?”
“क्यों भई ? नहीं आया और आया ही नहीं में फर्क होता हैं ?”
“यार, तू चिड़ चिड़ करके जवाब न दिया कर ।”
“जब सारे वाहियात, नाशुक्रे काम मेरे पल्ले पड़ते हैं तो चिड़ूं नहीं तो और क्या करूं ?”
“मैं भी तो कह सकता हूं कि जो काम तुझे सौंपा जाता है, वो ही फुस्स हो जाता है ।”
“कह लो भाई, जो जी में आये कह लो ।”
“तो वो नहीं गया मुम्बई ?”
“उसके नाम की पब्लिक अड्रैस सिस्टम पर अनाउन्समेंट भी होती रही लेकिन आखिरी अनाउन्समेंट तक भी वो चैक-इन काउन्टर पर नहीं पहुंचा था ।”
“उसकी टिकट की क्या पोजीशन है ?”
“पता किया मैंने । वो एक्सटेंशन या रिफंड के लिये पेश नहीं की गयी थी ।”
“कहां गायब हो गया ?”
“अब हमारे लिये क्या हुक्म है ?”
जवाब में कुछ क्षण खामोशी रही ।
“वापिस आ जाओ ।” - फिर बजाज बोला ।
“शुक्र है ।”
***
रविवार : इक्कीस मई : कल्याण मुम्बई दिल्ली
प्रभात अहिरे छत्तीस साल का, अभी से गंजा हो चला और तेजी से मोटापे की ओर अग्रसर व्यक्ति था जो कि अपनी जिन्दगी से सख्त नाखुश था । वो ऐसी धर्म कर्म वाली औरत से विवाहित था जो समझती थी कि औलाद पैदा करने के इरादे के अलावा सम्भोग की इच्छा करना पाप था । नौ साल से वो उसकी बीवी थी जो कि विवाहित जीवन के पहले पांच सालों में पांच बच्चे पैदा कर चुकी थी और उसके बाद और बच्चे नहीं चाहती थी इसलिये अपने पति की तरफ पीठ करके सोती थी । निरोध में उसकी आस्था नहीं थी क्योंकि ‘भगवान की मर्जी’ में विघ्न डालना भी पाप था । निरोध नहीं, और बच्चा नहीं तो इसका साफ मतलब था कि ‘वो’ भी नहीं ।
पांच बच्चों की कल कल और साध्वी बीवी के रवैये से वो इतना बेजार था कि ड्यूटी खत्म होने के बाद उसका घर में कदम रखने को जी नहीं चाहता था ।
ऐसे माहौल में उसे एक नौजवान लड़की से इश्क हो गया था । लड़की का नाम सुलभा खरे था, वो मुश्किल से बाईस साल की थी, खूब लम्बी ऊंची थी, गोरी चिट्टी थी, भरी भरी छातियां थीं - जो कि उसकी खास पसन्द थीं, उसकी बीवी जैसी नहीं जिसकी पांच बच्चों को, अमूमन दो दो को इकट्ठे, दूध पिला पिला कर भुरते के लिये भूने गये बैंगन जैसी हो गयी थीं - पतली कमर थी, भारी कूल्हे थे, आधुनिक परिधान में खूब सजधज कर रहती थी और बड़े कलरफुल धन्धे में थी ।
बैस्ट की बसों में जेबें काटती थी ।
प्रभात अहिरे ने उसे रंगे हाथों गिरफ्तार किया था ।
तब सुलभा ने ऐन एस.एच.ओ. की नाक के नीचे उसे वो पेशकश की थी जिसकी वजह से एक साल बाद आज भी उसके उससे ताल्लुकात थे:
मेरे को छुड़ा और जो मर्जी कर, जब मर्जी कर, जब तक मर्जी कर ।
अहिरे ने खुद ही पकड़ कर कैसे उसे रिहा कराया, वो एक लम्बी कहानी थी लेकिन तदोपरान्त उस लड़की ने उसे जो ऐश कराई, वो कल्पनातीत थी । उसने वादा भी खूब निभाया और दोस्ती भी खूब निभाई लेकिन उसकी वजह से अहिरे की जिन्दगी एक्सपेंसिव हो गयी । धारावी की उसकी खोली छुड़ा कर उसने सायन में उसे एक कमरे की डीसेंट फ्लैट लेकर दिया जिसने उसके बैंक बैलेंस में खासा छेद कर दिया और किराया भरने में जेब में छेद तो रेगुलर हो रहा था । ऊपर से उसको घुमाने फिराने में होने वाला खर्चा, कभी फैंसी डिनर का तो कभी फैंसी ड्रैस का खर्चा और और पता नहीं क्या क्या ! थाने में उसकी जो ड्यूटीज थीं वो ऐसी थीं कि उनमें रिश्वत की गुंजायश बहुत कम होती थी । जबरन गुंजायश वो बराबर निकालता रहता था लेकिन उससे उसका पूरा नहीं पड़ता था । लिहाजा अब आने वाले दिनों में अतिरिक्त आय का कोई जुगाड़ उसके लिये निहायत जरूरी था वरना सुलभा के सामने उसकी नाक नीची हो सकती थी और देर सवेर उससे उन ताल्लुकात में भी विघ्न आ सकता था जिसकी वजह से एक साल से वो जैसे जन्नत के मजे लूट रहा था ।
उसकी निजी जिन्दगी के ऐसे दौर में शोहाब अपनी ‘पेशकश’ के साथ सब-इन्सपेक्टर प्रभात अहिरे के रूबरू हुआ था जो अपने घर से साठ मील दर कल्याण में एक खास ड्यूटी कर रहा था ।
एक विटनेस को प्रोटेक्ट करने की ड्यूटी ।
शोहाब एक ब्रीफकेस के साथ, जिसमें पांच पांच सौ के नोटों की सूरत में दो लाख रुपयों के एक पैकेट के अलावा कुछ नहीं था, चौकी में ही, वहां के एक कमरे में, अहिरे से मिला । दस मिनट बाद जब वो वहां से रुख्सत हुआ तो ब्रीफकेस खाली था ।
यूं शोहाब को ‘काम’ हो जाने का आश्वासन मिला और अहिरे की लव लाइफ को आक्सीजन मिली ।
***
इरफान के साथ विमल चैम्बूर पहुंचा ।
पिछवाड़े के रास्ते से इमारत में दाखिल होकर वो ऑफिस तक पहुंचे । विमल एग्जीक्यूटिव चेयर पर बैठ गया और इरफान से बोला - “जा के पता कर ।”
सहमति में सिर हिलाता वो बाहर गया और लगभग उलटे पांव वापिस लौटा ।
“वो औरत तो” - वो बोला - “पौने ग्यारह बजे की यहां पहुंची हुई है । पादरी अभी आया ।”
विमल ने वाल क्लाक पर निगाह डाली ।
ठीक ग्यारह बजे थे ।
“औरत को ही बुला पहले” - वो बोला - “ताकि हम लेडीज फर्स्ट के दस्तूर को कायम रख सकें ।”
“अभी ।”
खूब सजी धजी एलेना मोनटीरो ने ऑफिस में कदम रखा । उसके पास एक ब्रीफकेस था जिसे हाथ में लटकाये होने की जगह वो यूं अपनी छाती से भींचे थी जैसे उसके छिन जाने का खतरा हो ।
“हल्लो ।” - विमल मधुर स्वर में बोला - “गुड मार्निंग ।”
“गुड मार्निंग ।” - वो झिझकती सी बोली ।
“प्लीज सिट डाउन ।”
“थैंक्यू ।” - वो एक विजिटर्स चेयर पर बैठ गयी ।
“एलेना नाम है आपका ?”
“यस । एलेना मोनटीरो । शिवाजी पार्क से आया ।”
“पैसा लौटाना चाहती हैं ?”
“यस ।” - उसने एक उंगली से ब्रीफकेस को दस्तक दी - “सेवन लैक्स ।”
“आपकी तसल्ली हो गयी कि मैं पैसा लौटाने के लिये सही आदमी हूं ?”
“यस । यू आर दि सेम जन्टलमैन जिसको मैं टू एण्ड ए हाफ मंथ्स पहले फाइव लैक्स लौटाया ।”
“पक्की बात ?” - विमल विनोदपूर्ण स्वर में बोला ।
“यस । पक्की बात ।”
“तो फिर कीजिये अपना काम ।”
एलेना ने ब्रीफकेस को मेज पर रख कर खोला और उसे मेज पर विमल की तरफ सरकाया ।
“सेवन लैक्स ।” - वो बोली - “दो लाख हंड्रड रूपीज में । बीस बंडल । पांच लाख फाइव हंड्रड रूपीज में । दस बंडल । प्लीज काउन्ट ।”
विमल ने नोटों पर एक सरसरी निगाह डाली और फिर सहमति में सिर हिलाता बोला - “ठीक है ।”
“काउन्ट नहीं करेंगा, मैन ?”
“आपने गिनती की ?”
“यस । सैवरल टाइम्स ।”
“गुड ।”
“पैसा का मामला । मिस्टेक नहीं मांगता । कमीबेशी नहीं मांगता । खुद काउन्ट किया । डाटर को भी बोला काउन्ट करने को । हंड्रड इनटु हंड्रड टवन्टी एण्ड फाइव हंड्रड इनटु हंड्रड इनटु टैन । सैवन लैक्स ।”
“जब आपने गिन लिया तो समझिये मैंने भी गिन लिया ।”
“तो मैं बन्द करेंगा इसको ?”
“यस । प्लीज ।”
एलेना ने ब्रीफकेस बन्द करके मेज पर एक ओर सरका दिया और फिर उठ खड़ी हुई ।
“अब मैं परमिशन लेंगा ।” - वो विमल की तरफ हाथ बढाती हुई बोली - “विद मैनी मैनी थैंक्स ।”
विमल ने उसका हाथ थामा तो उसे बर्फ सा सर्द पाया ।
एलेना ने अपना हाथ खींचा और जल्दी से वहां से बाहर निकल गयी ।
दरवाजे पर से इरफान ने भीतर झांका ।
“पादरी को बुला ।” - विमल धीरे से बोला ।
कुछ क्षण बाद सफेद चोगा पहने, झुकी कमर वाले एक वृद्ध ने भीतर कदम रखा ।
विमल ने उठ कर उसका अभिवादन किया और कुर्सी पेश की ।
“गॉड ब्लैस यू, माई सन ।” - वो बैठता हुआ बोला - “आई एम फादर वुड्स फ्राम सेंट थामस चर्च, बोरीवली ।”
“जी हां । आपने लैटर में लिखा था ।”
“तुम तुकाराम है ?”
“जी नहीं । तुकाराम मेरे पिता थे । वो अब इस दुनिया में नहीं हैं ।”
“ओह ! आई एम सो सॉरी टु लर्न । मेरे को नहीं मालूम था । मैं तो ये सोच के लैटर लिखा कि... फिर तो...”
वो उठने लगा ।
“नहीं, नहीं । बैठिये । बैठिये ।”
“जब डोनर इस दुनिया में नहीं है तो....”
“तो भी आपका काम होगा ।”
“इज दैट सो ?”
“यस । सद्पुरुष चले जाते हैं लेकिन अपने सद्कार्यों को आगे चलाये रखने के लिये पीछे किसी न किसी को जरूर छोड़ जाते हैं । जैसे कि तुकाराम मुझे छोड़ गये ।”
पादरी के चेहरे पर उलझन के भाव आये ।
“यूं समझिये कि डोनेशन की पावर्स मुझे डेलीगेट कर गये ।”
“ओह ! ओह !”
“क्यों चाहिये आपको पैसा ?”
“लैटर में लिखा था ।”
“वो ही वजह है ?”
“यस ।”
“जेनुइन ?”
“वॉट डु यू मीन ? ...ओह ! मैं समझा । ...तुम मेरे साथ चल कर इंस्पेक्शन कर सकते हो ।”
विमल खामोश रहा ।
“माई सन, आई एम एटी टू इयर्स ओल्ड । इन एटी टू इयर्स में से फिफ्टी सेवन इयर्स मैंने लार्ड की सर्विस में गुजारे हैं । तुम समझते हो कि मेरी जिन्दगी के जो गिनती के दिन बाकी हैं उनमें मैं... मैं... आई विल सैल माई सोल टु डेविल ?”
“आप ऐसा नहीं करेंगे, मैं जानता हूं आप ऐसा नहीं करेंगे, मुझे आप में वैकुण्ठ राव अचरेकर की झलक दिखाई देती है ।”
“वॉट वाज दैट ? आई मीन, हू इज ही ?”
“इसलिये इन्स्पेक्शन की जरूरत नहीं । कोई एस्टीमेट बनाया ?”
“यस । बड़ा काम है लेकिन कुछ पैसा है चर्च के पास इसलिये....”
“सात लाख में काम चल जायेगा ?”
वृद्ध ने पलकें झपकाईं ।
“मैं पांच लाख की उम्मीद ले के आया था ।” - फिर वो बोला - “आधे भी मिल जाते तो कमाल समझता । लेकिन सेवन लैक्स...”
“विल डू ?”
“विल डू वैरी वैल, माई सन । फिर तो चर्च की टूटी हुई सीटें भी बदली जा सकेंगी । और भी कई फुटकर काम हो जायेंगे । अब शायद मैं अपनी सैलरी विदड्रा करना भी अफोर्ड कर सकूं ।”
“जी !”
“चर्च ने मेरी जो तनखाह मुकर्रर की हुई है, वो मैंने अपनी मर्जी से पांच महीने से नहीं ली ।”
विमल ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“माई मोस्ट हम्बल कन्ट्रीब्यूशन टु दि काज ।”
“महजनो येन गत: सा पंथा ।”
“क्या बोला, माई सन ?”
“महान लोग जिधर जाते हैं उधर रास्ता होता है । समझिये कि मैंने आपके पीछे चलने का लाभ कमाया । ये सात लाख रुपये हैं” - विमल ने ब्रीफकेस पादरी की तरफ सरका दिया - “कुबूल फरमाइये ।”
“थैंक्यू ।” - पादरी ब्रीफकेस उठाता हुआ बोला - “एण्ड गॉड ब्लैस यू, माई सन । मैं खुद चर्च में तुम्हारे लिये कैंडल जलायेगा ।”
“तुकाराम के लिये । मैं तो निमित्त हूं ।”
“आई विल प्रे फार दि डिपार्टिड सोल ।”
पादरी विदा हुआ ।
इरफान ऑफिस में दाखिल हुआ ।
“कम ईजी गो ईजी ।” - विमल हंसता हुआ बोला ।
“क्या बोला, बाप ?”
“इस हाथ ले उस हाथ दे ।”
“ओह पादरी राजी गया ?”
“हां । बहुत ।”
“और वो बाई ?”
“वो भी राजी हो गयी होगी । पैसा अंटी से निकल गया तो क्या हुआ ? जान तो सांसत से छूटी । ‘गब्बर आ जायेगा’ से तो निजात मिली ।”
“बरोबर बोला, बाप । अब ?”
“अब एक प्याली चाय का इन्तजाम कर, फिर चलते हैं वापिस और....”
तभी बाहर कहीं एक भीषण धमाका हुआ ।
सड़क के मोड़ पर बारबोसा एक काले शीशों वाली कार में मौजूद था ।
रियरव्यू मिरर में से उसने एलेना मोनटीरो को करीब आते देखा तो उसने पहले ही हाथ बढा कर पैसेंजर साइड का दरवाजा खोल दिया ।
एलेना करीब आकर कार में उसके साथ सवार हो गयी ।
“क्या हुआ ?” - बारबोसा बोला ।
“वही जो होना मांगता था ।” - एलेना संतोषपूर्ण स्वर में बोली ।
“काम हो गया ?”
“ऐन फिट हो गया । मैन, पिछली बार मार्च में जब मैं इसी आदमी से मिला था तो ऐवरी सैकंड मुझे ऐसा लगता रहा था जैसे शेर मेरे सामने बैठा था जो अभी मुझे खा जायेंगा । पण आज ! मक्खन का माफिक पिघला जा रहा था ।”
“भीड़ू ठीक से पहचाना न ?”
“ऐन ठीक से पहचाना । वो ही था तभी तो ब्रीफकेस का सीक्रेट बटन दबा के छोड़ा ।”
“गुड ।”
“पैसा काउन्ट नहीं किया । बोला मेरे पर यकीन । दि ट्रस्टिंग सन ऑफ बिच ।”
बारबोसा हंसा ।
“पण मैन” - फिर वो बोली - “अगर वो काउन्ट करता तो क्या उसको मालूम पड़ जाता कि तकरीबन नोट नकली ?”
“एक एक नोट परखता तो पड़ जाता पण मेरे को गारन्टी था कि वो काउन्ट नहीं करेगा ।”
“काहे ?”
“सोचो । मैडम, आप जेनुइन केस के तौर पर पैसा लौटाने पहुंची होती तो आपकी मजाल होती नोटों में हेराफेरी की या रकम में कमीबेशी की ?”
“नैवर । मैं ऐसा कुछ करता, मैन, तो वो हरगिज मुझे जिन्दा न छोड़ता, फिर मेरी डाटर्स को रेप से कौन बचाता ?”
“रेप आपकी अभिलाषा जान पड़ती है । बहुत फैंसी है आपको रेप की ।”
“क्या बोला, मैन ?”
“कुछ नहीं ।”
“अब तुम मेरा साथ शिवाजी पार्क चलेंगा ।”
“क्यों ?”
“पूछता है क्यों ? अरे, सक्सेस को सेलीब्रेट करेंगा । मैन, आई विल गिव यू टाइम ऑफ युअर लाइफ ।”
“एंड इन रिटर्न गैट टाइम ऑफ युअर लाइफ ।”
“बट आफकोर्स ।”
“कैसे ? मेरे को रेप को बोलेंगा ?”
उसकी आंखों में रंगीन डोरे तैर गये ।
“बोलना पड़ेंगा ?” - वो मादक स्वर में बोली ।
बारबोसा ने जवाब न दिया, उसने चिन्तित भाव से अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली ।
“ज्यास्ती टेम लग रहा है ।” - एलेना भी चिन्तित भाव से बोली - “कहीं...”
तभी एक भीषण धमाका हुआ ।
“गुड ।”
बारबोसा ने तत्काल कार आगे बढा दी ।
इरफान बद्हवास सा ऑफिस में दाखिल हुआ ।
“पादरी !” - वो हांफता सा बोला - “खलास !”
विमल हक्का बक्का सा उसका मुंह देखने लगा ।
“कैसे ?” - फिर उसके मुंह से निकला - “क्या हुआ ?”
“जिस टैक्सी में इधर पहुंचा, वो बाहर वेट करती थी, जा के उसमें बैठा, टैक्सी मोड़ के करीब तक ही पहुंची कि धड़ाम । कुछ नहीं बचा टैक्सी का । डिरेवर भी खलास ।”
“ओह !”
“टैक्सी में बम होयेंगा ।”
“टैक्सी में नहीं, ब्रीफकेस में ।”
“क्या बोला, बाप ?”
“मेरे कत्ल की कोशिश की गयी थी, बेचारा पादरी शहीद हो गया । चर्च के लिये चन्दा न लेना होता तो वो यहां न आया होता । तो बम यहां फूटा होता ।”
इरफान का मुंह खुले का खुला रह गया ।
“मैं तो लगता है कि मौत का हरकारा बन गया हूं । किसी को मैं मारता हूं तो कोई मेरी वजह से मरता है । किसी को बचा तो पाता नहीं, मरने के लिये जरूर आगे कर देता हूं । क्या अचरेकर, क्या तुकाराम, क्या वागले, क्या फादर वुड्स, सब की मौत का मैं जिम्मेदार हूं ।”
“बाप !”
“बेचारा पादरी । चन्दा लेने आया, मौत लेकर गया ।”
“बाप, तू जज्बाती हो रहा है ।”
“उस औरत को थाम ।”
“एलेना मोनटीरो को ?”
“उसी को और किस को ? उसका शिवाजी पार्क का पता तुका के क्रेडिटर्स की लिस्ट में है ।”
“वो मैं करता है पण अब तेरा इधर होना ठीक नहीं ।”
“क्यों ?”
“बाप, अक्ल पर से जज्बात का पर्दा हटा । जैसा हुआ, वैसा क्या कोई पहली बार हुआ है ? खूनखराबे के खेल में खूनखराबा नहीं होगा तो और क्या होगा ?”
“मन्दे कम्मी नानका जद कद मंदा होये ।”
“बरोबर बोला । गेहूं के साथ घुन पिसता ही है । अब दीमाक से सोच दीमाक से ।”
“क्या ?”
“जो उस औरत के जरिये तेरे वास्ते बम भेजा, उसको मालूम तू इधर । अब जल्दी ही उसे मालूम पड़ जायेंगा कि बम वहां न फटा जहां फटना चाहिये था । फिर वो फिर कोशिश कर सकता है और ज्यादा डेंजर हरकत कर सकता है । बाप, अभी तू फौरन नक्की कर इधर से, आगे की आगे देखेंगे ।”
“ठीक है ।”
***
बारबोसा ने इनायत दफेदार के मोबाइल पर फोन लगाया ।
“बारबोसा बोलता है ।” - वो बोला ।
“क्या खबर है ?”
“बढिया खबर है । तुम्हेरा काम हो गया । पण एक शिकायत ।”
“क्या ?”
“मेरे को बोला काहे नहीं कि राजा साहब सोहल था ?”
“मैं तेरे को कनफ्यूज नहीं करना मांगता था ।”
“झूठ ! दफेदार, वजह मेरे को मालूम ।”
“वजह ?”
“हां, वजह । अभी कल तक, कर्टसी बिग बासेज ऑफ ‘कम्पनी’, सोहल के सिर पर पचास पेटी और ‘कम्पनी’ की ओहदेदारी का ईनाम था । तू मेरे को बताता कि मैंने असल में सोहल की सुपारी उठानी थी तो मैं क्या बारह पेटी में हामी भर गया होता ? जब राजा साहब का मरना और सोहल का मरना एक ही बात थी तो ओहदेदारी न सही, सुपारी तो पचास पेटी की होने की मैं बराबर जिद करता ।”
“अब क्या कहता है ? तू मुझे पचास पेटी का आइडिया सरका रहा है तो उसे भूल जा, ‘भाई’ उसे हरगिज नहीं मानेगा ।”
“नो प्राब्लम । अब जब काम ही हो चुका है तो ऐसी कोई मांग करने की तुक भी नहीं है । पण तू मुझे मेरी ओरिजिनल अमाउन्ट तो दिला ।”
“ओरीजिनल अमाउन्ट ?”
“बीस पेटी । जो मैं शुरू में बोला ।”
“ठीक है । मैं ‘भाई’ से बात करूंगा । अब बोल, काम कब हुआ ? किधर हुआ ?”
“अभी एक घन्टा पहले हुआ । चैम्बूर में हुआ । वहां उस ऑफिस में हुआ जो पहले तुकाराम का घर होता था ।”
“राजा साहब वहां था ?”
“सोहल वहां था ।”
“आंखों से देखा ?”
“मैंने नहीं देखा लेकिन अपने जिस जोड़ीदार के हाथ मैंने उस तक बम पहुंचाया, उसने देखा ।”
“बम ?”
“उसके फूटने के बाद ही मैं उधर से हिला । सोहल के सिरहाने बम फूटा, सोहल खलास हुआ तो मैं फोन लगाया । अब मेरे को बाकी रोकड़ा मांगता है । पण छ: पेटी नहीं, चौदह पेटी ।”
“सुबह ग्यारह सवा ग्यारह बजे के करीब चैम्बूर में जो बम फूटा, वो तेरा कमाल था ?”
“बट आफकोर्स ।”
“बारबोसा, शुक्र मना कि तूने मुझे फोन लगाया, ‘भाई’ को न लगाया ।”
“क्या बोलता है ?”
“और तू अपनी हालिया चन्द कामयाबियों से ऐंठ गया है, इतरा गया है । पहले ही पक्की कर लेता है कि ऐसीच तो हो ही नहीं सकता कि तेरा कोई तीर निशाने पर न बैठा हो । जो आदमी इतना मगरूर हो गया हो, वो सुपारी किलर के धन्धे में चलता नहीं रह सकता । समझा ?”
“अरे, दफेदार, तेरी बात तो मैं समझा पण ये सब तू क्यों कह रहा है, ये नहीं समझा । क्या बोलना मांगता है तू ?”
“सुन । जिस बम का तूने तुकाराम के मकान में फटने का इन्तजाम किया था, वो वहां नहीं फटा ।”
बारबोसा के छक्के छूट गये ।
“वहां नहीं फटा ?” - वो आतंकित भाव से बोला - “तो कहां फटा ?”
“तुका के मकान से परे बाहर वाली सड़क पर एक टैक्सी में । ड्राइवर और पैसेंजर दोनों खलास ।”
“सान्ता मारिया ! पण बम टैक्सी में कैसे पहुंच गया ?”
“खुद पता कर ।”
“अरे, टैक्सी में सोहल होगा, वोहीच बम वास्ते ब्रीफकेस के साथ उसमें सवार हुआ होगा ।”
“ऐसा होगा तो तेरे को बधाई । अब जा, जा के पता कर और मुझे फिर फोन लगा ।”
लाइन कट गयी ।
***
थर थर कांपती एलेना मोनटीरो को विमल के सामने पेश किया गया ।
“तशरीफ रखिये ।” - विमल सहज स्वर में बोला ।
डरती झिझकती वो एक कुर्सी पर ढेर हुई ।
“आप इसलिये खौफजदा हैं क्योंकि मैं आपको जिन्दा दिखाई दे रहा हूं । ठीक ?”
उसके मुंह से बोल न फुटा ।
“जिस काम का खौफ खाना पड़े, जिसका अंजाम न झेला जाये, वो करना चाहिये ?”
“म... मैं... मैं कुछ नहीं किया ।”
“तो कौन किया ? ब्रीफकेस में बम लगा कर कोई और लाया ?”
“मेरे को... मेरे को मजबूर किया गया था ।”
“किसने किया ऐसा ? नाम बोलिये उसका ?”
“बी. बी. ओसा ।”
“क्या ?”
“बी.बी. ओसा । यहीच नाम बोला वो अपना ।”
“कैसे मजबूर किया ?”
“मेरा दो कॉलेज गोईंग डाटर्स । बोला मेरे सामने उनका रेप करेंगा । एक मदर अपना फूल का माफिक डाटर्स के साथ ऐसा कैसे होने देना सकता ! मैं मजबूर । जो वो बोला, किया ।”
“क्या ? क्या किया ?”
“जो पैसा वापिस करना मांगता था, वो उसके दिये ब्रीफकेस में रखा । ब्रीफकेस में फाल्स बाटम । उसमें बम । हैंडल में टाइम क्लाक का सीक्रेट बटन । मैं दबा कर उधर छोड़ा । टैन मिनट्स में धड़ाम ।”
“ये बी .बी. ओसा मेरे को... सोहल को खलास करना मांगता था ?”
“हां ।”
“वजह ?”
“बोला, वो भी क्रेडिटर । फिफ्टीन लैक्स सरकाया । सब खर्च कर दिया । वापिस नहीं करना सकता था । इसलियें सोहल को खलास करना मांगता था ताकि सोहल उसको खलास न कर दे ।”
विमल ने इरफान की तरफ देखा ।
“पन्द्रह लाख के ऐसे किसी देनदार की खबर है ?” - उसने पूछा ।
“नहीं ।” - इरफान बोला ।
“लिस्ट ले के आ ।”
इरफान लिस्ट लाया ।
विमल ने खुद लिस्ट का मुआयना किया, उसमें किसी बी. बी. ओसा का नाम दर्ज नहीं था ।
“वो आप तक कैसे पहुंचा ?” - विमल ने नया सवाल किया ।
“क्या बोला, मैन ?”
“उसे कैसे सूझा कि आप उसके काम आ सकती थीं ? आपकी खबर कैसे लगी उसे ?”
“काशीकर से लगी न ?”
“वो कौन हुआ ?”
“रामोजीराव काशीकर ।”
“धारावी वाले बच्चों के स्कूल का हैडमास्टर ।” - इरफान धीरे से बोला ।
“ओह ! तो ये बी. बी. ओसा रामोजीराव काशीकर का वाकिफकार है ?”
“जब मेरा पास भेजा तो होगा ही ।”
रामोजीराव काशीकर को पकड़ मंगवाया गया ।
एलेना मोनटीरो को वहां मौजूद पाकर वो सख्त हैरान हुआ ।
फिर विमल और इरफान पर निगाह पड़ते ही उसके प्राण कांप गये ।
“घबराइये नहीं, मास्टर जी ।” - विमल मीठे स्वर में बोला - “आपने एक बेजा हरकत की, जिसका खामियाजा आपने भुगत लिया । ऊपर से अपने जैसे हमारे और क्रैडिटर्स को कर्जा वापिस करने के लिये मोटीवेट किया । हम आपके काम से खुश हैं इसलिये डरने की कोई बात नहीं है ।”
उसने चैन की मील लम्बी सांस ली ।
“तो फिर” - वो झिझकता सा बोला - “मैं यहां... किसलिये ?”
“मामूली पूछताछ के लिये । बी. बी. ओसा को कैसे जानते हैं ?”
“मैं नहीं जानता ।”
विमल ने घूर कर उसे देखा ।
“मेरा मतलब है” - काशीकर जल्दी से बोला - “मैं नहीं जानता था । कल जब सुबह वो स्कूल में मेरे से मिलने आया था तो मैंने जिन्दगी में पहली बार उसकी सूरत देखी थी ।”
“क्या चाहता था ?”
“चन्दे के देनदारों की लिस्ट देखना चाहता था ।”
“क्यों ?”
“ये तो मैंने पूछा नहीं था । मैंने समझा था कि वो भी कोई देनदार था जो किसी वजह से बाकी देनदारों की जानकारी चाहता था ।”
“आपके पास लिस्ट थी, उसमें नाम देखा होता उसका ?”
“तब मुझे नहीं सूझा था उसका नाम देखना ।”
“बी. बी. ओसा एक असाधारण नाम है, ये तो आपको लिस्ट देखे बिना भी सूझना चाहिये था ?”
“मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है लेकिन... नहीं सूझा था ।”
“मैडम की बाबत” - विमल ने एलेना की तरफ संकेत किया - “आपने उसे खासतौर से बताया था ।”
“क्योंकि” - काशीकर व्यग्र भाव से बोला - “उसने खासतौर से पूछा था ।”
“क्या ?”
“यही कि क्या मैं पार्ट पेमेंट के लिये तैयार हुए किसी शख्स को जाती तौर से जानता था ? मैं मैडम को जानता था क्योंकि ये सोशलवर्कर हैं और हमारे स्कूल में आती रहती हैं । मैंने इनका नाम ले दिया ।”
“लेकिन ये न पूछा कि ऐसे किसी शख्स की बाबत वो क्यों जानना चाहता था ?”
काशीकर ने डरते हुए इनकार में सिर हिलाया ।
“बहरहाल आपने उसे मैडम को रैफर किया ?”
“हां ।”
“कैसे रैफर किया ? मैडम के नाम चिट्ठी दी ?”
“फोन । फोन किया ।”
“क्या बोला फोन पर ?”
काशीकर घबराया ।
“ये बोला” - एलेना जल्दी से बोली - “कि बी. बी. ओसा इनका फिरेंड था जो मेरे से कोई सीरियस बात करना मांगता था ।”
“फ्रेंड !” - विमल काशीकर को घूरता हुआ बोला - “आपने ऐसे शख्स को अपना फ्रेंड बोला जिसके बारे में आप कहते हैं कि कल सुबह से पहले आपने उसकी सूरत नहीं देखी थी !”
“वो... वो... वो” - काशीकर भयभीत भाव से बोला - “अब कुछ तो बोलना ही था ।”
“इसलिये दोस्त बोल दिया ?”
“किसी दोस्त के दोस्त को दोस्त बोलने में हर्ज तो कोई नहीं ।”
“तो ये बी. बी. ओसा आपके किसी दोस्त का दोस्त था ?”
“हां । उसी ने इस शख्स को मेरे पास भेजा था ।”
“कौन हुआ ये दोस्त ?”
“धारावी में मेरा पड़ोसी है ।”
“नाम बोलिये ।”
“अलैक्स पिंटो ।”
“ओह ! तो ये बी.बी. ओसा असल में आपके दोस्त और पड़ोसी अलैक्स पिंटो का दोस्त है ?”
“हां ।”
“क्या करता है ये अलैक्स पिंटो ?”
“इधर ही सर्विस करता है ।”
“इधर ही ! इधर किधर ? होटल सी-व्यू में ?”
“हां ।”
“क्या सर्विस करता है ?”
“सुपरवाइजर है । या शायद असिस्टेंट मैनेजर है ।”
“नया भरती हुआ ?”
“नहीं । इधर का पुराना मुलाजिम है ।”
“पुराना मुलाजिम है” - बड़े अर्थपूर्ण भाव से शोहाब और इरफान की तरफ देखता विमल बोला - “और उस शख्स का दोस्त है जिसने चैम्बूर में वो गुल खिलाया ?”
“मैं अभी मालूम करता हूं ।” - शोहाब गम्भीरता से बोला ।
पांच मिनट में अलैक्स पिंटो विमल के सामने खड़ा थर थर कांप रहा था ।
उसने वहां रामोजीराव काशीकर को भी मौजूद पाया तो उसे ये समझते भी देर न लगी कि असल माजरा क्या था !
उसे अपना भविष्य मुकम्मल तौर से अन्धकारमय दिखाई देने लगा ।
“एक सैकंड में बोल” - विमल कहरभरे स्वर में बोला - “कि कल किस शख्स को तूने मास्टर जी के पास भेजा था, वो कौन था और तू उसे कैसे जानता था ?”
पिंटो ने बोलना शुरू किया तो बोलता ही चला गया । अपने कथित दोस्त से सम्बन्धित उसने हर बात बतायी, वो बातें भी बताई जो उससे पूछी नहीं गयी थीं ।
“ओह !” - विमल बोला - “तो ये बी. बी. ओसा असल में बारबोसा है जो कि प्रोफेशनल असासिन है, सुपारी किलर है, जो परसों रात को यहां राजा साहब की फिराक में विचर रहा था ?”
पिंटो ने भयभीत भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“हुलिया बोल ।”
उसने बोला ।
बारबोसा नाम तो विमल के जेहन में बज ही रहा था, हुलिया सुन कर उसे यकीन हो गया कि वो वो ही शख्स था जिसे गजविलास फोर्ट की डकैती के सिलसिले में सुबीर बापट ने अपने बॉस मोघे के कत्ल के लिए एंगेज किया था और जिससे वो सोमवार चौदह फरवरी को दपोली के होटल मालाबार में मिला था ।
अब उसी बारबोसा के पास राजा साहब की सुपारी थी ।
“कहां पाया जाता है ये बारबोसा ?” - उसने पूछा ।
“मुझे नहीं मालूम ।” - पिंटो बोला - “मैं बहुत अरसे से उससे नहीं मिला । परसों इत्तफाक ही था जो आमना सामना हो गया था ।”
“जब मिलता था तब कहां पाया जाता था ।”
“उसने अन्धेरी का एक पता बोला ।”
“आज की तारीख में तूने उसे ढूंढना हो तो कहां ढूंढेगा ?”
“अन्धेरी वाले पते पर ही ढूंढूंगा ।”
“वहां न हुआ तो ?”
“तो मुश्किल है । सर, आजकल का तो मुझे ये भी नहीं पता कि वो मुम्बई में भी रहता है या नहीं !”
“‘कम्पनी’ के निजाम में किस के अन्डर में चलता था ?”
पिंटो का पहले से फक चेहरा और फक पड़ गया । उसके मुंह से बोल न फूटा ।
इरफान ने एक जोर का झांपड़ उसके चेहरे पर रसीद किया और सांप की तरह फुंफकारा - “सुना नहीं, बड़ा बाप क्या बोला ?”
“का... कावस बिलीमोरिया ।” - वो बड़ी कठिनाई से बोल पाया ।
“होटल जब फिर से शुरू हुआ था” - विमल बोला - “तो नये जी.एम. कपिल उदैनिया साहब ने सारे स्टाफ को गुण्डा एलीमेंट के लिये स्क्रीन किया था, तब तू कैसे बच गया था ?”
“आप्शन थी ।” - वो मिमियाता सा बोला ।
“क्या ?”
“सुधर कर स्ट्रेट जॉब करने की ।”
“सुधरा किधर ? अन्त पन्त तो ‘कम्पनी’ का ही वफादार रहा ?”
“नो, सर...”
“वॉट नो सर । एक सुपारी किलर राजा साहब की लाश गिराने की मुराद लेकर होटल में घुसा, तेरे से मिला, अपनी मंशा तक न छुपायी तेरे से, तूने उसको पकड़वाने की जगह, उसकी बाबत किसी को खबर करने की जगह उसका साथ दिया, राजा साहब के खिलाफ उसके हाथ मजबूत किये, उसकी वो रूट बनाने तक में मदद की जिस पर चल कर उसने अपनी मंजिल पाने की कोशिश को तो क्या ये पूछने की जरूरत है कि तेरी वफादारी आज भी ‘कम्पनी’ के साथ है या होटल के नये मालिक के साथ ?”
“सर, जो हुआ अनजाने में हुआ, मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी ।”
“बराबर थी । वरना क्यों तू बारबोसा की बाबत खामोश रहा ?”
“माफ कर दीजिये, सर ।”
“क्यों माफ कर दूं ? एक ही कारोबार है मेरा ? हर किसी को माफ करना ?”
“सर, गलती इंसान से ही होती है ।”
“सजा भी इंसान को ही मिलती है ।”
“सर...”
“शटअप ।”
वो सहम कर चुप हो गया ।
“स्टैण्डबाई ।” - विमल बोला ।
शोहाब ने पिंटो की बांह पकड़ी और उसे घसीट कर एक बाजू कर दिया ।
पिंटो को शोहाब साक्षात यमराज लग रहा था क्योंकि तब तक वो उसे उस शख्स की सूरत में पहचान चुका था परसों रात पास्कल के बार में बारबोसा ने जिसकी कम्पयूटर से निकाली गयी तसवीर उसे दिखाई थी ।
“अब आप बोलिये” - पीछे विमल काशीकर से बोला - “आपके साथ क्या सलूक किया जाये ?”
काशीकर के मुंह से बोल न फूटा ।
“मास्टर जी, मैं आपको सन्देहलाभ दे रहा हूं कि आपने अपने कम्बख्त पड़ोसी की वजह से बारबोसा को मुंह लगाया और आगे जो कुछ किया, अनजाने में किया । लेकिन आइन्दा अनजाने में भी ऐसा न हो ।”
“नहीं होगा ।” - काशीकर कम्पित स्वर में बोला ।
“वादा कीजिये ।”
“वादा करता हूं ।”
“जाइये ।”
काशीकर के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे उसे अपने कानों पर यकीन न आया हो, फिर वो लम्बे डग भरता वहां से रुख्सत हुआ ।
“आप” - विमल एलेना से बोला - “समझती हैं कि मुझे आपकी कहानी पर यकीन आ गया है ?”
“क... क... क्या ?” - एलेना के मुंह से निकला ।
“आपने जो किया, किसी की धमकी में आकर नहीं किया, अपने लालच के हवाले होकर किया ।”
“ल... ला... लालच !”
“आप औरत हैं इसलिये मैं आपके साथ वो बर्ताव नहीं करना चाहता जो कि आप मर्द होतीं तो मैं करता ।”
“म... मतलब ?”
“अभी समझ जायेंगी । आप सात लाख रुपये की अभी भी देनदार हैं और ये देनदारी आपने मियाद के बाकी बचे वक्त में भुगतानी है ।”
“क... क्या ? बट मैन, आई मीन सर, मैं दिया ।”
“आपको मालूम था ब्रीफकेस में बम था फिर भी आपने उसमें जेनुइन रकम रखी, इस बात पर कोई अहमक भी यकीन नहीं करेगा । अब बोलिये, नोट नकली थे या नोटों के साइज में कटे कोरे कागज थे ।”
“न... नकली थे । बारबोसा लाया । पण...”
“क्या पण ?”
“दो लाख रूपीज” - वो रुआंसे स्वर में बोली - “असली थे । बंडल्स के ऊपर नीचे के नोट जेनुइन थे । वो मर्डरस स्काउन्ड्रल बोला कि दो लाख रूपीज लूज करके भी मुझे पांच लाख का फायदा था ।”
“फिर तो समझिये आपको कम सजा मिली, सिर्फ दो लाख का जुर्माना भुगतना पड़ेगा ।”
“बट, सर...”
“नो बट । नो सर । जवान बेटियों की मां को इतने बट नहीं लगाने चाहियें, अपनी बेटियों की खैर मनानी चाहिये और जो कहा जाये उस पर अमल करना चाहिये वरना...”
“व... वरना क्या ?”
विमल ने हाथ बढा कर उसका गला पकड़ लिया और इतनी जोर से दबाया कि उसका चेहरा लाल हो गया और आंखें उबल पड़ी । फिर चेहरा लाल से बैंगनी होने लगा तो उसने गला छोड़ दिया ।
“वरना ये ।” - वो क्रूर भाव से बोला ।
अपने दोनों हाथों से गला थामे, बद्हवास एलेना अपनी उखड़ी सांसों पर काबू पाती, पत्ते की तरह कांपती विमल के सामने खड़ी रही ।
“फैंसी मेम साहब” - विमल बोला तो उसे उसकी आवाज बहुत दूर से आती लगी - “आपकी जन्दगी और मौत में अभी एक सांस की दूरी थी । वो एक सांस सात लाख रुपये से भी पहले मेरा कर्जा है आप पर जिसे मैं जब चाहूं, वसूल कर लूंगा । ताकीद रहे ।”
मशीनी अन्दाज से उसका सिर ऊपर से नीचे हिलने लगा ।
“तशरीफ ले जाइये ।”
मन मन के कदम रखती वो वहां से रुख्सत हुई ।
विमल ने परे खड़े पिंटो की दिशा में देखा ।
शोहाब ने उसे आगे धकेल दिया ।
पिंटो ने आतंकित भाव से विमल की तरफ देखा ।
वो एलेना से भी ज्यादा बुरी तरह से कांप रहा था ।
“इधर मेरी तरफ देख ।” - विमल कर्कश स्वर में बोला ।
पिंटो ने बड़ी मुश्किल से सिर उठाया ।
“एक सूरत में तेरी सजा माफ हो सकती है ।”
उसके चेहरे पर आशा के भाव आये ।
“उसे ढूंढ ।”
“कि... किसे ?”
शोहाब ने पीछे से उसकी खोपड़ी पर एक चपत जमायी ।
“बा... बार... बारबोसा को ?” - वो हकलाता सा बोला ।
“जो कि तेरा यार है । जिगरी । जिसके लिये तू कुछ भी कर सकता है । अपने एम्पलायर के साथ दगा भी । उसे ढूंढ ।”
“म... मैं कहां से ढूंढूं ?”
“उसने तुझे कहां से ढूंढा ?”
“मैं तो उसे इत्तफाक से मिल गया था ।”
“दुआ कर कि वो भी तुझे इत्तफाक से मिल जाये ।”
“सर...”
“मुम्बई में भटक । धक्के खा । दिन रात एक कर । आसमानी बाप तुझे तेरी मेहनत का सिला देगा । दिल से दुआ करेगा तो वो तेरे बीवी बच्चों पर से अपनी रहमत का साया नहीं हटने देगा ।”
“बीवी !” - उसकी आंखे फट पड़ी - “बच्चे !”
“हैं न ?”
उसने हौले से हामी भरी ।
“एक अच्छा खाविन्द, एक जिम्मेदार बाप और सी-व्यू का वफादार मुलाजिम बन कर दिखायेगा तो आगे भी रहेंगे । समझा ?”
“ज... जी हां ।”
“अब बोल, क्या जवाब है तेरा ?”
“ढूंढता हूं । ढूंढता हूं । जी जान से उसकी तलाश में लगता हूं ।”
“शाबाश । फूट ले ।”
वो सिर पर पांव रख कर वहां से भागा ।
“वो करेगा कुछ ?” - पीछे शोहाब सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“देखेंगे ।” - विमल लापरवाही से बोला ।
“बाप” - इरफान अप्रसन्न भाव से बोला - “तू पिलपिला रहा है ।”
“ऐसे लोग” - शोहाब बोला - “नर्माई को दूसरे की कमजोरी और अपनी फतह मानते हैं ।”
“लातों के भूतों पर बातों का असर नहीं होता ।”
“काशीकर को छोड़ा सो छोड़ा, उस औरत को और इस भीड़ू को नहीं छोड़ना चाहिये था ।”
“मेरे भाइयों” - विमल बोला - “इतना खूनखराबा अच्छा नहीं ।”
“अच्छा !” - शोहाब व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“दूसरों के लिये अच्छा है ?” - इरफान बोला - “सुबह का वाकया भूल भी गया ? भूल गया कि ऊपर वाले ने साथ न दिया होता तो उधर चैम्बूर में पादरी की जगह तू मरा पड़ा होता ?”
“वो सब ठीक है” - विमल बोला - “लेकिन खामखाह....”
“कुछ खामखाह नहीं होता ।”
“तुम लोग मेरी बात का मतलब नहीं समझ रहे हो ।”
“क्या नहीं समझ रहे ?”
“कुछ समझाओगे तो समझेंगे न !” - शोहाब बोला ।
“जितना ज्यादा खूनखराबा होगा, उतनी ही ज्यादा सम्भावनायें कानून की पकड़ में आने की बनेंगी । अपने सिर पर मंडराते इस खतरे को कम करने का, पुलिस का फोकस अपने पर बनने से रोकने का, ये भी एक तरीका है कि खून का खेल कम से कम खेला जाये । हम कितने ही ताकतवर क्यों न बन जायें, कायदे कानून की व्यापक मशीनरी को अपना गुलाम नहीं बना सकते । हमारी किस्म की जिन्दगी जीने वालों पर गलती से भी, धोखे से भी, एक बार कानून के शिकंजे में जकड़ा जाना भारी पड़ सकता है । इसलिये हमें अपनी हालत आ बैल मुझे मार जैसी नहीं करनी चाहिये । हम गुंडे बदमाशों का मुकाबला करने के लिये ताकत बना सकते हैं लेकिन इतने ताकतवर कभी नहीं हो सकते कि मुल्क के वसीह और आला निजाम का मुकाबला कर सकें । आज सोहल पकड़ा जाये तो सरकार उसे इसलिये माफ नहीं कर देगी कि उसने मुम्बई शहर से गुण्डाराज का खात्मा किया । तुम लोग पकड़े जाओ तो इसलिये माफी नहीं पा जाओगे क्योंकि इस आला और पब्लिक के लिये मुफीद मिशन में तुमने मेरी मदद की । ईश्वर नश्वर प्राणियों के अच्छे बुरे कर्मों की बैलेंस शीट निकालना होगा, मुल्क का कानून ऐसा नहीं करता । कानून ईनाम नहीं देता, सजा देता है । ईनाम का हकदार अदालत में पेश नहीं किया जाता, सजा का हकदार किया जाता है । कानून मुजरिमों की अच्छाइयों के लिये अन्धा होता है । मैंने भले ही जन्नतशीन होने लायक, खुदा के पहलू में बैठाये जाने लायक सद्कार्य किये हों लेकिन इस फानी दुनिया में वो मेरे तमाम के तमाम सद्कार्य मेरे किसी एक दुष्कर्म को भी नहीं धो सकते । आज सोहल इस समाज में मुजरिम का दर्जा रखता है तो अपने गुनाहों की वजह से और फांसी पर लटकाया जायेगा तो अपने गुनाहों की वजह से । बोलो, मैंने क्या गलत कहा ?”
दोनों में से कोई कुछ न बोला ।
“मुझे वो दिन नहीं भूलता जबकि मैं जयपुर में ऐसे कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार हुआ था जो मैंने नहीं किया था । मैं बिलकुल बेगुनाह था लेकिन मुझे गिरफ्तार करने वाला पुलिसिया, मानक चौक थाने का एस.एच.ओ. महिपाल सिंह, मुझे एक नौजवान लड़की के कत्ल का अपराधी साबित करने के लिये उधार खाये बैठा था । मैं तब भी इश्तिहारी मुजरिम था और कई जुर्म कर चुका था जिसमें से एक के लिये भी पकड़ा जाना मुझे फांसी के फन्दे से लटकवा सकता था लेकिन वो मूढ पुलिसिया - जिसने मेरी शिनाख्त की कोई कोशिश ही नहीं की थी, जो इसी बात से ऐंठा हुआ था कि उसने कत्ल होने के चौबीस घन्टों के भीतर कातिल को गिरफ्तार कर भी लिया था - मेरे से वो गुनाह कुबुलवाना चाहता था, जो मैंने नहीं किया था । तब तक मैं इधर मुम्बई में लेडी शान्ता गोकुलदास का कत्ल कर चुका था, मद्रास में अन्ना स्टेडियम की गेट मनी की डकैती में शिरकत कर चुका था, दिल्ली में यूनियन बैंक की वैन डकैती में शामिल हो चुका था, अमृतसर में भारत बैंक का अभेद्य वाल्ट लूट चुका था, पणजी में टॉप के गैंगस्टर विशम्भरदास नारंग, उसकी साइडकिक रणजीत चौगुले और सोनवलकर नाम के एक पुलिस इन्सपेक्टर का कत्ल कर चुका था, जयपुर में बीकानेर बैंक की वैन लूट चुका था, और भी कई कत्ल कर चुका था और दो बार - एक बार इलाहाबाद में और दूसरी बार दिल्ली में - जेल से फरार हो चुका था । लेकिन गिरफ्तार मैं ऐसे अपराध के लिये था जो मैंने नहीं किया था । फांसी भी चढ गया होता अगरचे कि वक्त रहते असली अपराधी न पकड़ा गया होता । असली अपराधी के पकड़े जाने के बावजूद फांसी पर चढ गया होता क्योंकि जितनी देर उसके पकड़े जाने में लगती उतने ही ज्यादा चान्सिज मेरी असलियत उजागर हो जाने के बन जाते । बहरहाल वाहेगुरु ने रक्षा की, ऐसा न हुआ और मुझे रिहा कर दिया गया । कहने का मतलब ये है, मेरे भाइयों, कि खामखाह पंगा लेने का नहीं है । कोहनियों तक तो हमारे हाथ खून से पहले ही रंगे हुए हैं, अब कन्धों तक रंगने से तो गुरेज करो ।”
इरफान ने शोहाब की तरफ देखा ।
“बाप, तू इलैक्शन लड़ ।” - फिर इरफान बोला ।
“क्या ?” - विमल सकपकाया ।
“अभी नहीं । जब बतौर राजा साहब सैट हो जाये तब । पब्लिक तेरा एकीच भाषण सुन कर ढेर हो जायेगी और बोलेगी कि तेरे सिवाय वोट किसी को देने का ही नहीं है ।”
“खिल्ली उड़ाता है ?”
इरफान ने जवाब न दिया ।
“बाप” - शोहाब बोला - “मैं कोई आलम फाजिल तो नहीं फिर भी मेरी हकीर राय ये ही कि गुनहगार का गुनाह से वो ही रिश्ता होता है जो हामला औरत का हमल से होता है । जैसे हमल बढता ही जाता है, वैसे ही गुनाह के साथ होता है । मुहावरे में कहते हैं कि नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली लेकिन...”
“नौ सौ चूहे खा के ।” - इरफान जल्दी से बोला - “अभी नहीं । अभी नहीं, बाप, अभी टेम है । क्या ?”
विमल फिर न बोला ।
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