11 मई : सोमवार (जारी)
जेकब परेरा को अन्डरवर्ल्ड में काफी लोग जानते थे, और उनमें से कुछ ये भी जानते थे कि वो एक लोकल गैंगस्टर स्टीवन फेरा का ख़ास था। इतना ख़ास था कि किसी को फेरा से मुलाकात करनी हो तो वो बाज़रिया जेकब परेरा ही हो सकती थी। ये भी जेकब परेरा ही जानता होता था कि बॉस मुम्बई में ही था कि कहीं बाहर गया हुआ था।
जेकब परेरा फेरा पर इतना निर्भर था कि उसने अन्डरवर्ल्ड में आजू-बाजू कहीं ताल्लुकात बनाने की कोशिश ही नहीं की थी। इस वजह से अपने बॉस की दिल्ली में हुई हत्या से उसे बहुत बड़ा धक्का लगा था। वो हादसा मुम्बई से साढ़े बारह सौ किलोमीटर दर हुआ था, इस वजह से वो फौरन जान भी नहीं पाया था कि आख़िर दिल्ली में क्या हुआ था, काठमाण्डू से ही दिल्ली चले गए उसके बॉस के साथ आख़िर क्या बीती थी! मुम्बई के अखबारों में बड़े महत्त्वहीन ढंग से न्यूज़ छपी थी कि मुम्बई का स्टीवन फेरा नाम का एक नामोनिहाद डॉन दिल्ली में छिड़ी किसी गैंगवार में मारा गया था।
जसमिन माने दिल्ली में गोल्डन गेट' नामक एक हाईफाई रेस्टोरेंट में होस्टेस थी और उसकी ही तरह फेरा की ख़ास थी। फिर भी बॉस के साथ दिल्ली में बीती की उससे ख़बर हासिल होने में तीन दिन लगे थे। फिर जसमिन माने से उसका सम्पर्क की ख़त्म हो गया था क्योंकि बॉस था तो जसमिन माने की अहमियत थी; बॉस नहीं तो जसमिन किस काम की!
खुद जेकब परेरा किस काम का!
गैंग में स्टीवन फेरा की हैसियत कुबेर पुजारी से ऊपर थी लेकिन कहीं डींग हांकनी हो तो वो यही ज़ाहिर करता था कि उसमें और बिग बॉस में कोई फर्क नहीं था। लेकिन जहाँ तक टॉप बॉस का सवाल था, उसका उससे कभी रूबरू वास्ता नहीं पड़ा था। बहुत ही कम बार ऐसा होता था कि कभी टॉप बॉस ने फोन पर सीधे उसे कोई हुक्म जारी किया हो। और जब ऐसा होता था तो वो फूला नहीं समाता था, कभी ख़ुद का दर्जा बिग बॉस से ऊपर पाने के ख़्वाब देखने लगता था।
वस्तुतः स्टीवन फेरा को अपनी ज़िन्दगी में टॉप बॉस की बाबत ये भी नहीं मालूम था कि वो मुम्बई का ही था या उसका मुकाम दुबई या नेपाल या मलेशिया में कहीं था और मुम्बई महज़ वो आता-जाता रहता था।
स्टीवन फेरा का अपने सामाजिक जीवन का जैसे-तैसे स्थापित स्टाइल ऐसा था जैसे कि डॉक्टर जैकिल और मिस्टर हाइड का अनुसरण करता हो। अन्डरवर्ल्ड में उसने अपनी ऐसी फूं-फां बनाई हुई थी जैसे कि बिग बॉस के बाद गैंग वो ही चलाता था। अन्डरवर्ल्ड में बाज़ लोग तो ये भी कहते सने जाते थे कि बिग बॉस कोई था ही नहीं; बस, टॉप बॉस था और उसका अन्डर बॉस खुद स्टीवन फेरा था। या फिर खुद वो ही बिग बॉस था। वो ऐसी अफवाहों को शह देता था क्योंकि उसे ये सुनना भले ही गलत था, बेबुनियाद था अच्छा लगता था और अपनी अन्डरवर्ल्ड में बनी इस भ्रामक छवि का कई मर्तबा वो नाजायज़ फायदा उठा चुका था और गैंग को या बिग बॉस को भनक भी लगने दिए बिना मोटा माल पीट चुका था। टॉप बॉस के सामने पड़ने की तो कभी नौबत ही नहीं आई थी, कभी बिग बॉस के सामने पड़ने का मौका उसे मिल जाता था तो फेरा उसे अपना मिज़ाज ‘युअर मोस्ट ओबीडियंट सर्वेट' वाला बना के दिखाता था और उसकी भरपूर कोशिश होती थी कि बिग बॉस को- किसी अन्डर बॉस को भी – उसके बाहरी इमेज़ की, मिस्टर हाइड वाले इमेज़ की ख़बर न लगती। और, उसकी खुशकिस्मती थी कि, नहीं भी लगती थी।
फेरा की उस दोहरी छवि का ये भी नतीजा था कि उसने दिल्ली वालों को पूरी तरह से भरमा के रखा हुआ था कि वो ही बिग बॉस था और ‘गोल्डन गेट' और उसकी आड़ में चलते खुफ़िया कैसीनो और स्मगलिंग के कारोबार का वो ही वाहिद मालिक था।
फिर दिल्ली वालों की पिछले साल दिसम्बर की क्राइसिस के दौरान काठमाण्डू में साउथ ईस्ट एशिया के माफिया डॉनज़ की हेरोइन के व्यापार को लेकर कोई स्थिर और स्थाई पॉलिसी बनाने के लिए कान्फ्रेंस थी जिसमें शिरकत के लिए स्टीवन फेरा को भेजा गया तो जैसे उसकी लाटरी निकली। दस्तूर के मुताबिक काठमाण्डू जाना बिग बॉस को था लेकिन उन्हीं दिनों टॉप बॉस द्वारा गोवा में बिग बॉस की हाजिरी ज़रूरी समझी गई थी क्योंकि वहाँ एशियन और नाइजीरियन ड्रग माफ़िया में ड्रग ट्रेड में अपना वर्चस्व बना कर रखने के लिए गैंगवॉर छिड़ गई थी और बिग बॉस का वहाँ काम ये था कि क्या वो उस आपसी टकराव में अपने गैंग के लिए कोई एडवांटेज तलाश कर सकता था! एक लम्बा अरसा वो बॉर चली थी और उतना ही अरसा बिग बॉस की वहाँ हाज़िरी ज़रूरी समझी गई थी। लिहाज़ा मजबूरन स्टीवन फेरा को कान्फ्रेंस में शिरकत के लिए नेपाल भेजा जाने का निर्णय लिया गया था।
स्टीवन फेरा ने ख़ामोशी से उस बात को अपने हक में खूब प्रचारित किया था – यानी वो गैंग का मोस्ट इम्पॉर्टेट करके भीड़ न होता तो क्या माफ़िया डॉन्ज़ की कान्फ्रेंस में शामिल होने के लिए नेपाल भेजा जाता! दिल्ली वालों ने तो उस बात का ऐसा रौब खाया था कि जब वो दिल्ली गया था तो वहाँ सब उसके कदमों में बिछे चले गए थे।
दिल्ली में स्टीवन फेरा मारा गया था तो तभी उसके डबल इमेज़ वाली कहानी खत्म हो गई थी। वो दिल्ली जाना कुबूल न करता तो उसका पाखण्ड, कि टॉप बॉस के बाद वो ही गैंग का मोस्ट इम्पॉर्टेट करके भीड़ था, अभी भी जारी होता।
अपने बॉस स्वर्गीय फेरा की गैंग की ऊँची हैसियत से जेकब परेरा इतना उत्साहित था कि उम्मीद कर रहा था कि उसे फेरा की जगह लेने का मौका दिया जाएगा जबकि हकीकत में वैसा तो कुछ हुआ नहीं, जब उसने गैंग में ऊपर अपने लिए काम की अर्जी लगाई तो उसे ऐसा जवाब मिला जिस की उसे कतई उम्मीद नहीं थी।
‘अभी वेट करो!'
अब हाल ये था कि पिछले चार महीनों से अपनी अर्जी का, जो अब अपील में तब्दील हो चुकी थी, हर बार उसे एक ही जवाब मिला था कि वो अभी वेट करे।
क्यों वेट करे? स्टीवन फेरा का शुमार गैंग के टॉप बॉसिज़ में था और वो उसका इतना इम्पॉर्टेट कर के 'खास' था तो क्यों वेट करे? उसकी बाबत ऊपर जो फैसला होना था - भले ही उसे अपने स्वर्गीय बॉस की खाली जगह न दी जाती – वो फौरन होना चाहिए था जो फौरन तो हुआ नहीं, चार महीने बाद तक भी नहीं हुआ और अभी आगे पता नहीं कब होता!
अब उसकी नाउम्मीदी का आलम ये था कि हमेशा ‘अभी वेट करो' ही सुनते रहने की जगह वो किसी और गैंग का आसरा तलाश करने की सोचने लगा था।
जो कि कोई मुश्किल काम नहीं था।
दूसरे गैंग उससे नावाकिफ़ नहीं थे, जानते थे कि वो स्टीवन फेरा के अन्डर में चलने वाला इम्पॉर्टेट कर के भीड़ था।
लेकिन दिक्कत ये थी कि नए गैंग में उसकी कोई मज़बूत हैसियत बनते बनते बनती, स्टीवन फेरा के साथ पहले से बनी हुई थी। यही एक वजह थी कि चार महीने इन्तज़ार कर चुकने के बाद भी उसकी दिली ख्वाहिश यही थी कि उसे गैंग न बदलना पड़ता क्योंकि आख़िर जब भी उसकी सुनवाई होती, उसका मुकाम कम से कम फेरा जैसे किसी बड़े बाओहदेदार के अन्डर में ज़रूर होता।
यानी उसका धीरज अभी पूरी तरह से नहीं छूटा था। फेरा की सरपरस्ती में उसने खूब चान्दी काटी थी। वैसे वो कैसा भी था, रुपए पैसे के मामले में बहुत जनरस बॉस था, इस वजह से उसकी सरपरस्ती में उसने पैसा खूब कमाया था और इसी वजह से वो रोज़ शाम को मनपसन्द, खूब खर्चीली भी, तफरीह अफोर्ड कर सकता था।
ऐसी ही तफरीह का तालिब उस शाम वो ग्रांट रोड पर स्थित 'अप्सरा' बार में मौजूद था।
उस घड़ी रात के नौ बजने को थे जब कि विमल ने इरफ़ान के साथ बार में कदम रखा। वहाँ इरफ़ान का काम विमल को जेकब परेरा की शिनाख्त कराना था।
इरफ़ान ने बिना इशारा किए विमल को बताया कि रात की उस घड़ी बार में परेरा कहाँ बैठा हुआ था।
उसकी टेबल पर उसके साथ एक नौजवान लड़की थी जिसकी अपेक्षा वो दोनों नहीं कर रहे थे। शोहाब ने यही ख़बर निकाली थी कि जेकब परेरा शाम को अप्सरा बार में अकेला होता था।
“क्या करेगा?” - इरफ़ान धीरे से बोला।
“करूँगा कुछ।” – विमल बोला – “तू अपना काम कर।”
इरफ़ान चला गया।
उसका काम अब परेरा को सन्देशा पहुँचवाना था कि एक लड़की बाहर पार्किंग में उसका इन्तज़ार कर रही थी जो भीतर इसलिए नहीं आ सकती थी क्योंकि वो तो पहले ही फीमेल कम्पनी के साथ था। इरफ़ान ने जैसे-तैसे परेरा को तब तक बाहर अटका के रखना था जब तक उसकी कम्पैनियन लड़की बार से रुखसत न हो जाती।
विमल बार पर पहुँचा।
उसकी उस घड़ी की शान-बान देखकर बारमैन फौरन बार के पार उसके रूबरू हुआ। उसने मुस्कुराते हुए विमल का अभिवादन किया।
“फ्रेंड आ रहा है।” – विमल बोला – “आता है तो ऑर्डर करता हूँ।”
“राइट, सर।”
बारमैन परे हट गया।
विमल एक बार स्टूल पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा।
पाइप के बिना वो काम अभी भी उसे मुश्किल जान पड़ता था।
‘खबरदार!’ – नीलम उसे उसके कान में कहती लगी – ‘जो फिर खयाल भी किया!’
‘नहीं, सोहनयो, नहीं करना। हरगिज़ नहीं करना।’
‘शावाशे, जवान दी मुच्छ!’
कुछ वक्त गुजरा। फिर विमल ने लाल वर्दीधारी डोरमैन को परेरा के करीब देखा। डोरमैन ने झक कर परेरा के कान में कुछ कहा।
तत्काल परेरा सहमति में सिर हिलाता उठ खड़ा हुआ।
डोरमैन पहले ही वहाँ से चल दिया था।
परेरा ने युवती को कुछ कहा और उसे हामी भरती छोड़ कर बाहर की ओर बढ़ गया। वो निगाहों से ओझल हो गया तो विमल ने बार पर से किनारा किया
और मेज़ों के बीच से गुज़रता परेरा की मेज़ पर पहुँचा। बेतकल्लुफ वो परेरा द्वारा खाली की कुर्सी पर बैठ गया।
“एक्सक्यूज़ मी!” – युवती ने प्रतिवाद किया – “दिस इज़ ऑकूपाइड।”
जवाब देने से पहले विमल ने युवती का मुआयना किया। वो उम्र में कोई पच्चीस साल की थी और निःसन्देह खूबसूरत थी।
“यू सैड समथिंग?” – विमल अनजान बनता बोला।
“आर यू डैफ़?” — वो गुस्से से बोली – “आई सैड दिस इज़ ऑकूपाइड।”
“यस!”– विमल बोला- “आई ऑकूपाइडइट। सो दिसश्योरइज़ ऑकूपाइड।”
“बट . . .”
“शैल्व दि बट।” — विमल का स्वाभाविक स्वर एकाएक ऐसी फुफकार में बदल गया कि युवती सिहर उठी – “आई एम शॉर्ट ऑफ टाइम। लिसन टु मी केयरफुल्ली । ओके?”
मशीन की तरह युवती का सिर सहमति में हिला।
ऐसा ही रौब था, दबदबा था, उस घड़ी विमल का जिस का असर युवती पर हुए बिना नहीं रहा था।
“शक्ल बढ़िया है तो”– विमल आगे बढ़ा – “नाम भी बढ़िया ही होगा!”
“श्यामला। श्यामला शिन्दे।”
“स्टेडी या वन-नाइट-स्टैण्ड?”
“वन . . . वन . . .”
“हाउ मच?”
“फाइव।”
“कम हैं। वैसे क्या होना?”
“टैन।”
“इसके लिए फाइब क्यों?”
“अन्डरवर्ल्ड का ख़ास है। फाइव भी देता है तो समझो अहसान करता है। मैं भाव खाएगी तो बैली में स्ट्रेट घुमा देगा। आंतें बाहर होंगी।”
“इतना कड़क है?”
“हाँ।”
“इसलिए फाइव! हाफ रेट!”
“हाँ।”
“मिल गए?”
“अभी नहीं।”
“फाइव प्लस फ्री ड्रिंक, डिनर?”
“हाँ।”
“क्या पी रही है?”
“वोदका विद स्प्राइट एण्ड लाइम जूस।”
“साथी?”
“व्हिस्की। ब्लैक डॉग।”
“कौन सा राउन्ड है?”
“पहला। दोनों का।”
“गिलास खाली कर।”
उसने एक साँस में वो काम किया, फिर यूँ सावधानी से होंठ पोंछे कि लिपस्टिक न पुंछ जाती।
“यहाँ पहले आई कभी?” – विमल ने पूछा।
“हाँ। कई बार।”
“फिर तो जगह से अच्छी तरह से वाकिफ़ होगी?”
“हाँ।”
“पीछे से रास्ता है?”
“नहीं।”
“हम्म!" विमल ने बटुवा निकाला, उसमें से दो हज़ार के तीन नोट बरामद किए और युवती को सौंपे।
उसने झिझकते हुए नोट थामे और बोली – “क्या करना है?”
“कुछ नहीं।” — विमल बोला – “ये तेरी आज रात की डिस्काउन्टिड फीस है और ड्रिंक डिनर की मद में पार्ट पेमेन्ट है।”
"मैं ड्रिंक नहीं करती। कम्पनी मजबूर करती है तो साथ देना पड़ता है।”
“गुड। फिर तो डिनर के लिए हज़ार रुपए काफी है। नाओ गैट अलांग।”
“ऐसे तो पैसा मुझे कभी किसी ने नहीं दिया!”
“अब के बाद ये बात नहीं कह सकेगी।”
“कैसे आदमी हो! पैसा दे रहे हो! बिना किसी हासिल की उम्मीद के?”
“हासिल है न! आज रात चैन से सोएगी।”
“वो तो मुझे हासिल है – मेरा हासिल है – तुम्हें क्या हासिल है?”
“माई डियर, तेरा हासिल ही मेरा हासिल है।”
“कमाल है!”
“अब उठ के टॉयलेट में जा। आती बार देखा था मैंने, गेट के बाजू में ही है। वहाँ बाहर की तरफ तवज्जो रखना। जब परेरा यहाँ वापिस लौटता दिखे तो उस की पीठ पीछे चुपचाप निकल लेना।”
युवती पहले ही उठ खड़ी हुई थी। मेज़ों के बीच से गुज़रती वो मेन गेट के बाजू में उधर बढ़ी जहाँ रेस्ट रूम्स’ का नियोन साइन चमक रहा था।
विमल ने टेबल का मुआयना किया।
वहाँ परेरा के ड्रिंक के अलावा सिर्फ एक बड़ी प्लेट थी जिसमें छ: सीख कबाब पड़े थे। ज़ाहिर था कि वो डिश सर्व हुई ही थी कि उसे डोरमैन के दखल की वजह से उठना पड़ गया था।
विमल दोनों जांघों पर हाथ रखे प्रतीक्षा करने लगा।
आख़िर वो लौटा। पहले तो उसने ठिठक कर आजू-बाजू देखा कि कहीं वो गलत टेबल पर तो नहीं पहुँच गया था, फिर सीख कबाब देख कर उसे यकीन आया कि वो उसी की टेबल थी।
वो कोई पैंतालीस साल का हट्टा-कट्टा, क्लीन शेव्ड, सिर पर बिना माँग के घने काले बालों वाला आदमी था जो चैक की महरून कमीज और लाइट कलर की मैचिंग पैंट पहने था। उसकी आँखों के नीचे की गोश्त की थैली बता रही थीं कि हैवी ड्रिंकर था।
“ये मेरी टेबल है।” – बो रुष्ट स्वर में बोला।
“मालूम!” – विमल मुस्कुराया – “बैठ!”
“वो . . . वो लड़की . . . जो यहाँ थी . . . वो कहाँ गई?”
“पता नहीं। एकाएक उठ के चली गई। खाली इतना बोली कि कोई ज़रूरी काम याद आ गया था।”
“कमाल है! यकीन नहीं आता।”
“बैठ। यकीन भी आएगा, और भी बहुत कुछ होगा।”
“और क्या?”
“और तू एक ऐसी बात जानेगा जिससे जान से जाने से बच जाएगा।”
“ये... ये क्या बकवास है?”
“बैठ। प्लीज़!”
“है कौन?”
“बोलूँगा न! पहले बैठतो सही! और नहीं तो अपने मतलब की, अपने फायदे की बात सनने के लिए तो बैठ!”
बड़े अनिश्चित भाव से वो उसके सामने युवती द्वारा खाली की कुर्सी पर बैठा। विमल ने उसका जाम उसकी तरफ सरकाया। उसने अपने जाम की तरफ तवज्जो देने से पहले वोदका के खाली गिलास को निहारा।
“सच में चली गई!” – वो बड़बड़ाता-सा बोला – “कहीं टॉयलेट-वॉयलेट तो नहीं ....”
“वहाँ गई होगी तो आ जाएगी। क्या प्रॉब्लम है?”
वो ख़ामोश रहा।
“मेरे लिए ड्रिंक मँगा।”
वो हिचकिचाया।
“ऑर्डर कर देता हूँ”– फिर बोला – “बिल तू खुद पे करेगा।”
“हाँ।” — विमल बोला – “बोलेगा तो तेरा भी।”
उसने संदिग्ध भाव से विमल की तरफ देखा।
“आज़माना!” - विमल मुस्कुराया – “देखना!”
उसने वेटर को इशारा किया। वेटर करीब आया तो उसने आगे विमल की तरफ इशारा कर दिया।
गलैनफिडिक।” — विमल बोला – “लाजी विद वॉटर एण्ड आइस।”
अप्रत्याशित फुर्ती से विमल को ड्रिंक सर्व हुआ। उसने जबरन विमल के साथ चियर्स बोला।
“नाम परेरा।” – विमल बोला – “जेकब परेरा। ओके?”
“कैसे मालूम?” – वो बोला।
“जैसे ये मालूम कि अभी तू मरते-मरते बचेगा।”
“बंडल।”
“ये सीख! चिकन है कि मटन? या .... वो?”
“मटन।”
“इन छ: सीखों में से एक में ज़हर है। कौन-सी छोड़ेगा?”
वो चौंका।
“चेताया न होता तो अब तक सब खा गया होता, अगरचे कि किस्मत में सब खाना होता, वर्ना क्या पता पहली ही जान ले लेती।”
“तेरे को कैसे पता है सीखों में ज़हर है?”
“क्योंकि...”
“क्या क्योंकि? हँसता क्यों है?”
“क्योंकि मिलाया ही मैंने है।”
वो भौंचक्का-सा विमल का मुँह देखने लगा। विमल ने निर्विकार भाव से ड्रिंक की चुसकी ली।
“कब मिलाया?” – परेरा सब्र से बोला।
“जब तू यहाँ से उठकर बार से बाहर कहीं गया था।”
परेरा ने गौर से प्लेट का मुआयना किया।
“मेरे को तो नहीं लगता” — फिर बोला – “कि सीखों में कोई फर्क है! मेरे को तो छ: की छः एक जैसी लग रही हैं।”
“क्योंकिज़हर लीक्विडथा।ड्रापर से सीख के सलाख से बने लम्बे छेद में डाला।”
“बोम मारता है। मसखरी करता है।”
“तू समझ ऐसा! कौन रोक सकता है तेरे को!”
“अगर तेरी मर्जी जान लेने की है तो मेरे को ख़बरदार क्यों करता है?”
“डमडम! कोई बात आसानी से नहीं समझता!”
“जा-जाहिर किया कि कितना आसान तेरे वास्ते मेरी जान लेना!”
“देखा! अक्ल को चैलेंज दिखाई दिया तो ऑन दि डबल काम करने लगी!”
“वो लड़की ...वो...जो यहाँ थी..." विमल मुस्कुराया।
“अच्छी लड़की थी।” – फिर बोला – “मुझे जानती तक नहीं थी, फिर भी कहना माना। याद आएगी मुझे।”
“तूने . . . तूने उसे चलता कर दिया!”
“यहाँ नहीं है न!”
“देख, अगर सच में तूने सीख में ज़हर मिलाया है तो तूने अपनी मौत बुलाई है।”
“तू नादान है। मैंने सीखों के साथ रशियन रूले खेला और बोला कि छ: में से एक सीख में ज़हर था। मैं छ: की छ: में ज़हर मिलाता और तेरे को ख़बर भी न करता तो फिर तेरा क्या होता रे कालिया!”
उसके चेहरे पर असमंजस के भाव आए, उसने ज़ोर से थूक निगली। अपने जाम की तरफ उसकी तवज्जो अभी नहीं थी।
“खजूर!” – एकाएक वो हँसा – “मैं नहीं खाऊँगा। नई प्लेट मँगवा लूँगा।”
“तू यही खाएगा।” – विमल इत्मीनान से बोला – “और प्लेट खाली करेगा।”
“तू मुझे मजबूर कर सकता है?”
“हाँ।”
“क्या! हाँ बोला?”
“हाँ।”
“जानता है मैं कौन हूँ?”
“हाँ।”
“कर। कर मजबूर।”
उसके स्वर में चैलेंज का पुट था।
“ऐसा करने से पहले” – विमल शान्ति से बोला – “मैं तेरी तवज्जो एक खास बात की तरफ दिलाना चाहता हैं। तने देखा होगा कि जब त लौटा था तो तुझे टेबल पर मेरे हाथ नहीं दिखाई दे रहे थे। फिर जब मुझे ड्रिंक सर्व हुआ था तो मैंने उसे बाएं हाथ से हैंडल किया था, मेरा दायां हाथ तूने फिर भी नहीं देखा था। अभी भी नहीं देखा। ठीक?”
“क्या ठीक? ऐसा है भी तो क्या?”
“ये कि अब देखेगा। जरा पीछे हो के, झक के मेज़ के नीचे झाँक।”
उसने हिचकिचाते हुए वो काम किया, जब सिर उठाया तो उसके चेहरे पर सख्त हैरानी के भाव थे।
“क्या देखा?” – विमल सहज भाव से बोला।
“ग-गन।”
“अभी बोल, मैं तेरे को सीख खाने को, प्लेट खाली करने को मजबूर कर सकता हूँ या नहीं?”
उसने जवाब न दिया।
“ज़हर से शायद बच जाए, गोली से नहीं बच सकेगा।”
उसके गले की घन्टी जोर से उछली।
“तू कहता है, सीख में ज़हर मिला कर मैंने अपनी मौत बुलाई है। बड़ा मवाली है, बड़े डॉन्ज़ के अंडर में चलता है, तू ऐसी धमकियाँ जारी कर सकता है, लेकिन हमेशा उन पर खरा उतर कर नहीं दिखा सकता। नमूना सामने है, जो कहता है कि ऐसे ही मर जाने की मर्जी अभी मेरी नहीं है। जो मेरी मौत को बुलाना चाहता हो, उसकी मौत को मैं पहले आवाज़ दे सकँ, ऐसा ज़रिया मेज़ के नीचे झाँक के तूने अभी देखा। अब क्या कहता है?”
“तू . . . तू भरे बार में गोली नहीं चला सकता।”
“मेज़ के नीचे ठीक से नहीं झाँका! एक बार फिर झाँक, तुझे गन की नाल पर साइलेंसर चढ़ा दिखाई देगा।”
उसने वैसी कोई कोशिश न की।
“क-कौन हो?” — फिर उसके मुंह से निकला – “क्या चाहते हो?”
लगता था फैसला नहीं कर पा रहा था कि अदब से बोले या तू तकार की जुबान ही जारी रख्ने।
“जानना चाहता है तो सुन, क्या चाहता हूँ! मैं तेरे साथ दोस्ताना माहौल में चियर्स बोलना चाहता हूँ और ये लजीज़ सीख कबाब खाना चाहता हूँ।”
“इ-इन में तो ज़हर है!”
“एक सीख में। बारी-बारी एक-एक खाते हैं, फिर देखते हैं कौन मरता है!”
“ऐसे तू वही करेगा जो तू कहता है तू नहीं करना चाहता।”
“नहीं करूँगा, अगरचे कि तू मेरे साथ कोऑपरेट करे।”
“कोऑपरेट करूँ?”
“न भी करे तो जान के दाँव में तेरे सामने फिफ्टी-फिफ्टी चांस फिर भी है।”
“तेरे सामने भी!”
“वो तो है!”
“तू . . . तुम काहे को मरोगे? जब तुम्हीं ने मिलाया है तो तुम्हें तो मालूम है कि ज़हर किस सीख में है!”
“भूल गया। तुम सीखों को शफल कर दो, फिर मालूम है भी तो नामालूम हो जाएगा।”
“मैं . . . मैं ऐसा जानलेवा खेल खेलने को तैयार नहीं।”
“मैं तैयार हूँ।”
“क्यों?”
“क्योंकि ज़िन्दगी से जी भर गया है। क्योंकि मौत का इन्तज़ार नागवार गुज़रने की जगह अब खुशामदीद बन गया है।”
फैंसी बातें हैं, ऐसे कोई नहीं मरता।”
“वो मरता है जिसने मर-मर के जीना सीखा हो।”
“फैंसी बातें हैं।”
“डरता है! क्योंकि अभी पक्का मवाली नहीं बना!”
“देख, तू इस वक्त कुछ भी कह सकता है क्योंकि बाज़ी तेरे हाथ में है और बाज़ी तूने ही सैट की है। कभी ये मौका मुझे देना, फिर देखना कैसे चाँद सितारे नज़र आते हैं!”
“मौका तुझे देना! कौन-सा मौका तुझे देना! तू समझता है तू यहाँ से ज़िन्दा बच के जाने वाला है?”
“भरे रेस्टोरेंट में तू मुझे शूट नहीं कर सकता, भले ही गन की नाल पर साइलेंसर हो। और सीख की प्लेट को मैं छुऊँगा भी नहीं।”
“जहर वाली सीख मैं जबरन तेरे हलक में धकेल दूँगा। देखने वाले समझेंगे दो दोस्तों की आपसी चुहलबाज़ी है। फिर जब तक तेरे प्राण निकलेंगे, मैं ग्रांट रोड से कहीं . . . दूर पहुँच चुका होऊँगा।”
“तू तो कहता है तू भूल गया ज़हर किस सीख में है?”
“ज़रूरत के वक्त याद आ जाएगा न! देखना!”
“बहुत हो चुकी श्यानपंती!” – परेरा एकाएक उखड़ कर बोला – “बहुत हो चुकी लिफाफेबाज़ी! साफ बोल, कौन है, क्या चाहता है?”
“पहले कौन-सी बात का जवाब दूं?”
“कौन है?”
“हौसले से सुनना। सुन कर दिल बैठ जाए तो मेरे को ब्लेम न करना।”
“बोले तो?”
“मैं वो शख़्स हूँ, चौबीस दिसम्बर मंगलवार को दिल्ली में जिसने तेरे बॉस स्टीवन फेरा को उसके तमाम लोकल हिमायतियों समेत हौजखास की गारमेंट फैक्ट्री में जहन्नुमरसीद किया था। इतना परिचय काफी है कि आगे बढूँ?”
परेरा के नेत्र फट पड़े, वो मुँह बाये विमल को देखने लगा।
“तू . . . तू . . . तुम” – फिर बड़ी मुश्किल से बोल पाया – “सो . . . सो . . . सोहल!”
“अब गन की परवाह न कर और ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला के सब को बता। ताकि तेरे को पाँच पेटी ईनाम मिल सके।”
“सो-सोहल!”
“बैठा हूँ न तेरे सामने!”
“क-क्या . . . क्या चाहते हो?”
“पहले घुट लगा ले ताकि हिम्मत आ जाए। अभी तो तेरे से ठीक से बोला भी नहीं जा रहा!”
उसने सच में ही अपना गिलास ख़ाली किया और वेटर को रिपीट का इशारा किया।
“मु-मुम्बई ल-लौट आए?” — फिर बोला।
“तकदीर ले आई।”
“बाप, मैं गैंग का बहुत मामूली भीड़। समझो, प्यादों से ऊपर। दिल्ली में तुम्हेरे को और फेरा बॉस को लेकर जो खूनखराबा हुआ, वो बड़े लोगों की बातें। मेरा उनसे कोई मतलब नहीं। इसलिए....”
“मैंने तो सुना है तू गैंग में स्टीवन फेरा की जगह लेने वाला है!”
“सपना देखता था, बाप। खुद को फेरा बॉस की जगह लेने के काबिल भी समझता था पण ऊपर किसी को कद्र नहीं हुई।”
“वो जुदा मसला है। अभी मैंने तेरे एक सवाल का जवाब दिया, दूसरे का जवाब अभी बाकी है। दूसरा सवाल मालूम या भूल गया?”
“मालूम।”
“क्या था दूसरा सवाल?”
“क्या चाहते हो?”
“दो तीन छोटे-छोटे सवाल हैं जिनके ऑनेस्ट जवाब चाहता हूँ। देना कुबूल करोगे तो मेहरबानी होगी।”
“कैसे सवाल?”
“मालूम पड़ेगा। पहले अपना रवैया तो उजागर करो!”
“सवाल जाने बिना मैं कैसे कुछ कह सकूँगा?”
“जाने बिना ही कहना होगा।”
ऐसा कैसे होगा?”
“होगा। इसलिए होगा क्योंकि मैं कहता हूँ। जेकब परेरा” – विमल आँखें तरेरता बोला – “या तो तू जवाब देगा या अपने बॉस स्टीवन फेरा के साथ जहन्नुम में हाथ मिला रहा होगा। और ये काम”– विमल का मिजाज और उग्र हुआ – “तू मेरे सब्र का इम्तिहान लिए बिना करेगा और अभी करेगा, वर्ना तेरा अंजाम बुरा होगा। क्या बुरा होगा, मालूम तेरे को।”
परेरा के शरीर में सिहरन दौड़ गई। एकाएक उसे उसकी आँखों में ऐसी ज्वाला धधकती दिखाई दी जैसे उसके सामने बैठा वो शख़्स सारी दुनिया फूंक के रख सकता हो।
“क्या जानना चाहते हो?” – वो दबे स्वर में बोला। तब तक वेटर उसे रिपीट सर्व कर गया था।
“ऑनेस्ट जवाब मिलेगा?”
“हाँ।”
“बिना किसी श्यानपंती के?”
“हाँ”
“जिस गाँड को मानता है, उसकी कसम खा। भले ही झठी कसम खा।”
“आई स्वियर बाई वर्जिन मैरी, मदर ऑफ जीसस, कि जो पूछोगे उसका सीधा, सच्चा जवाब दूंगा।”
“गुड। आई ट्रस्ट यू| अबे ड्रिंक ऐसे ही हलक में न उड़ेल, साथ में कबाब खा, इनमें ज़हर नहीं है। मैं भी खाता हूँ। तू बोल, कौन-सा खाऊँ?'
उसने कोई सलाह न दी। हिचकते हुए एक सीख उसने उठा ली। एक विमल ने ली। विमल ने इत्मीनान से, उसने हिचकिचाते हुए, सीख खाई और व्हिस्की का घुट भरा।
“अब मेज़ के नीचे” – विमल बोला – “तेरे पर तनी गन भी नहीं है। देख!”
विमल ने मेज़ के नीचे से निकाल कर उसे अपना दायां हाथ खाली दिखाया। बायां पहले ही मेज़ के ऊपर था।
परेरा ने चैन की साँस ली।
“स्टीवन फेरा” – फिर विमल बोला- “जैसा कि वो दिल्ली में पाखंड करता था, गैंग में टॉप बॉस नहीं था?”
“नहीं था।” – परेरा बोला।
“टॉप बॉस कौन है?”
“मेरे को नहीं मालूम।”
विमल ने उसे घूर कर देखा।
“बाई जीसस, मेरे को नहीं मालूम।” — वो व्यग्र भाव से बोला – “मेरे जैसी हैसियत के भीड़ का टॉप बॉस से कभी वास्ता ही नहीं पड़ता।”
“वास्ता पड़े बिना भी मालूम हो सकता है कि टॉप बॉस कौन है! कभी शक्ल भले ही न देखी हो, कम से कम नाम तो मालूम हो ही जाता है! अब अगर तूने कहा कि तुझे टॉप बॉस का नाम भी नहीं मालूम तो मैं कहूँगा तूने वर्जिन मैरी की झठी कसम खाई।”
“आई स्वियर, नाम नहीं मालूम। लेकिन जिस नाम से उसका हवाला दिया जाता है, उसका ज़िक्र किया जाता है, वो नाम मेरे को मालूम।”
“क्या है वो नाम? वही बोल।”
“किंग”
“क्या बोला?”
“किंग। उसकी गैरहाज़िरी में टॉप बॉस का ज़िक्र आए तो किंग। रूबरू ज़िक्र आए तो मिस्टर किंग।”
“मिस्टर किंग टॉप बॉस! गैंग लीडर! 'भाई!”
“हाँ।”
“किंग होता तो है टॉप बॉस! शाह! बादशाह! क्योंकि उसके ऊपर और कोई नहीं होता! नहीं?”
वो ख़ामोश रहा।
“कहाँ पाया जाता है?”
“मालूम नहीं।”
“ये तो मालूम होगा कि मुम्बई में रहता है या मुम्बई से बाहर?”
“नहीं मालूम। ऑनेस्ट, नहीं मालूम।”
विमल ने घूर कर उसे देखा।
“अरे, मैं बोले तो मेरी हैसियत के भीड़ लोगों में से ये बात किसी को भी नहीं मालूम।”
“बादशाह लोकल है तो कहीं तो रहता होगा! बाहर से आता है तो भी कोई लोकल ठीया-ठिकाना तो होगा!”
“मेरे को ख़बर नहीं। मेरी पोज़ीशन तो देखो! हैसियत तो देखो! फेरा मेरे को मुँह लगाता था, उसकी मेहरबानी थी, वर्ना कौन मेरे को-प्यादों से ज़रा बेहतर औकात वाले भीड़ को – मुँह लगाता है! मुँह लगाता होता तो बोलता वेट करो'?”
“हूँ। फेरा के ऊपर बस किंग ही था?”
“नहीं, बीच में एक ओहदेदार और था।”
“फेरा के ऊपर, किंग से नीचे?”
“हाँ।”
“नाम?”
“क्वीन।”
“क्या?”
“एल्फ्रेड क्वीन। वो – नम्बर टू – इसी नाम से जाना जाता है। वैसे हो सकता है ये उसका असली नाम न हो।”
“नाम असली हो या नकली लेकिन वो टॉप बॉस, गैंग लीडर, मिस्टर किंग का नैक्स्ट-इन-कमांड है!”
“मैं नम्बर टू बोला न!”
“वो तो बाहर से नहीं होगा न! नम्बर वन और नम्बर टू दोनों बाहर से होंगे तो गैंग का निज़ाम कैसे चलेगा? गैंग का डे-टु-डे कारोबार कौन मॉनीटर करेगा?”
“नम्बर टू लोकल होगा।”
“होगा! पक्का नहीं पता?”
“न!”
“कोशिश करे तो जान लेगा?”
“जब तक गैंग में मेरी बहाली नहीं होती, मैं कुछ नहीं कर सकता। गैंग में बहाली बिना मेरी औकात सिफर है।”
“जब फेरा के अन्डर में चलता था, तब की बोल!”
“मैं तब भी छोटा भीड़। मेरी पहुँच फेरा बॉस से आगे कभी न हुई।”
“अब फेरा का फेरा जहन्नुम में है तो तू किस को रिपोर्ट करता है?”
“मैं किस को रिपोर्ट करता हूँ?”
“हाँ। बहुत मुश्किल सवाल पूछ लिया मैंने?”
“बाप, अभी तो रिपोर्ट करने की नौबत ही नहीं आ रही! फेरा बॉस की मौत के बाद से अभी तो टका-सा जवाब मिला रहा है – अभी वेट करो लेकिन आखिर जब नौबत आएगी तो मेरे को कुबेर पुजारी के पास पेश होना पड़ेगा।”
“वो कौन है?”
“गैंग में इम्पॉर्टेट कर के भीड़ है। बोले तो हैसियत में फेरा बॉस के बराबर का।”
“वो कहाँ पाया जाता है?”
“कुबेर पुजारी?”
“नहीं, शाहरुख। ये सोच के जवाब दे कि मेरे को 'मन्नत' के बारे में कुछ नहीं मालूम!”
“जोक मारता है! मसखरी करता है!”
“तेरा मेरा जोक-मसखरी वाला कौन-सा रिश्ता है?”
वो गड़बड़ाया, फिर दबे स्वर में बोला – “शिवाजी चौक में जो चैरिटेबल ट्रस्ट का ऑफिस चलता है, उसके पीछे ही – फ्रंट से तीन गुणा बड़ा – कुबेर पुजारी का अपना ऑफिस है। दाखिले का रास्ता भी पिछवाड़े में अलग से है।”
“आई सी।”
“लेकिन ये न समझना कि मैं या कोई मेरे जैसी औकात का भीड़ जब चाहे मुँह उठाए वहाँ चला आ सकता है। सीधे से कोई मेरे को उसके पास भी नहीं फटकने देगा।”
“तो कैसे फटकने देगा?”
“वजह बतानी होगी।”
“किसको?”
“पिछवाड़े के ऑफिस में ड्यूटी करते किसी प्यादे को।”
“वो प्यादा फैसला करेगा कि मुलाकात के तमन्नाई भीड़ का केस कुबेर पुजारी को पुट अप करने के काबिल है या नहीं!”
“नहीं, वहाँ पुजारी का एक मातहत ओहदेदार होता है, उसको।”
“उस मातहत ओहदेदार का नाम?”
“उसका नाम जानना तुम्हारे किसी काम नहीं आएगा। वो मातहत बदलता रहता है।”
“रहता कहाँ है?”
“मातहत?”
विमल ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई।
“पुजारी?”
“शुक!”
“मेरे को सिर्फ इतना मालूम है कि वो वरली में कहीं रहता है।”
“वहाँ कहाँ रहता है, अगर तू चाहे तो पता निकालना बहुत मुश्किल काम तेरे वास्ते?”
“नहीं, मुश्किल तो नहीं!”
“तो फिर उस मुश्किल तो नहीं काम को करने की तेरी कोई फीस है तो बोल!”
“क्या बात करता है, बाप!”
“तो पुजारी का रिहायशी पता मालूम कर। अहसान होगा।”
“बिना अहसान जताए करूँगा। आई स्वियर” – उसने अपने गले में लटके क्रॉस को छुआ – “बाई ऑल दैट इज़ होली।”
“बहुत धार्मिक आदमी है?”
“अब . . . है तो सही!”
“गॉड फियरिंग भी?”
“हाँ।”
“फिर भी भाईगिरी के धन्धे में है!”
“क्या बोलेगा, बाप! काम मिलता किधर है? अपने मौजूदा काम में भी थोड़ा कम्फर्टेबल फील करना शुरू किया था तो फेरा बॉस गॉड के पास पहुँच गया। अभी चार महीना से साला यहीच फैसला नहीं हो रहा है कि मैं गैंग में है या नहीं है।”
“तेरे को तनखाह वाली नौकरी करने का था। काम करता या न करता, काम
होता या न होता, तनखाह मिल जाती। ठीक?”
“बाप, काहे वास्ते खुश्की उड़ाता है?”
“कुबेर पुजारी का घर का पता मालूम कर लेगा तो मेरे को ख़बर कैसे करेगा?”
“तुम बोलो, बाप। जैसा बोलेगा मैं अर्नेस्टली फॉलो करेगा।”
विमल ने एक पेपर नैपकिन उसके सामने रखा।
“पैन मेरे को तेरी पॉकेट में दिखाई दे रहा है” – वो बोला – “इस पर अपने घर का पूरा पता और मोबाइल नम्बर लिख।”
उसने वो काम किया।
“पते में या नम्बर में कोई करतब तो नहीं किया?”– विमल उसे घूरता हुआ बोला।
“करतब!” – उसके चेहरे पर उलझन के भाव आए – “बोले तो?”
“पता कहीं, किसी और का हो! फोन नम्बर के डिजिट इधर-उधर मिक्स कर दिए हों?”
उसने आहत भाव से विमल की तरफ देखा। अपलक उसे देखता विमल खामोश रहा। उसने अपनी जेब से एक इनलैंड लैटर निकाल कर विमल के सामने रखा। "देख, बाप।” – फिर बोला। विमल ने लैटर पर सरसरी निगाह डाली।
उस पर परेरा का वही पता दर्ज था जो उसने विमल को नैपकिन पर लिख कर दिया था।
उसने लिफाफे की बगल में अपना मोबाइल रखा।
“नैपकिन वाला नम्बर बजा, बाप।”
“ज़रूरत नहीं।” – विमल निर्णायक भाव से बोला – “मेरे को मालूम तूने मेरे को करैक्ट नम्बर दिया।”
“फिर भी...”
“दोनों चीजें उठा।”
उसने आदेश का पालन किया।
उसके बताए नम्बर को न बजाने के पीछे वजह थी कि अगर वो ऐसा करता तो परेरा को उसके मोबाइल नम्बर की ख़बर हो जाती जो कि वो नहीं चाहता था।
“बिल मँगा।” — विमल बोला – “मेरे को जाने का।”
“बिल मैं देगा न!' – वो पुरइसरार लहजे से बोला।
“देना। अगर गॉड ने फिर मुलाकात का मौका दिया तो देना। अभी मेरे को देने दे क्योंकि मैंने कमिट किया।”
“पण, बॉस ...”
“वेटर को बुला।”
उसने दर खड़े वेटर को इशारा किया।
“अमूमन क्या लिमिट तेरी?”
“पूछा है तो बोलता है। अकेला पिए तो चार लार्ज। कम्पनी के साथ पिए तो कोई लिमिट नहीं।”
“कम्पनी! फीमेल!”
“कोई भी।”
तभी वेटर करीब पहुंचा।
विमल ने उसे अपने लिए एक लार्ज, और उसके लिए दो लार्ज और साथ ही बिल लाने का आदेश दिया।
उन्हें ड्रिंक्स सर्व हुए।
वो विमल के साथ चियर्स बोलने लगा था लेकिन बिमल की सर्द निगाह से हतोत्साहित होकर अपने जाम के हवाले हो गया।
“बाप” — फिर हिम्मत कर के बोला – “तू इतना सवाल किया, मैं सबका ऑनेस्ट जवाब दिया। अभी एकाध सवाल मेरे को भी पूछने की इजाज़त दे न!”
विमल की सवालिया निगाह उस पर उठी। “देता है क्या?” - बो आशापूर्ण स्वर में बोला।
“बोल।”
“टॉप बॉस की बाबत तेरे को क्यों जानना माँगता है?”
“बाज़रिया फेरा उधर दिल्ली में एक बड़ा बिज़नेस डील सैट हुआ था जिसको फेरा ने बंगल किया। अपने लोकल हिमायतियों की बातों में आकर उसने बिना टॉप बॉस को – या बिग बॉस को ख़बर लगने दिए डील को यूँ सेबोटाज करने की कोशिश की कि उससे बड़ा फायदा या लोकल हिमायतियों को होता या फेरा को होता। वही सिलसिला फेरा की गलत पॉलिसीज़ की वजह से एक छोटी-मोटी गैंगवार में तब्दील हो गया। नतीजतन.वहाँ बडाखन खराबा हआ जिसमें फेरासमेत कई लोग मारे गए। अभी वो डील न इधर है, न उधर है, अधर में लटकता है। उसको किसी अंजाम तक पहुँचाने के लिए मेरे को सिर्फ और सिर्फ टॉप बॉस से मिलना माँगता है, किसी स्टीवन फेरा जैसे डम्ब डबल-क्रॉसर से मिलना नहीं माँगता।”
“पण बाप, इधर तो हर कोई बोलता था कि तू 'उस’ लाइफ़ को हमेशा के लिए नक्की बोल दिया!”
“इधर के सैट अप को। दिल्ली में नया सैट अप खड़ा करने का था न!”
“यकीन नहीं आता।”
“जैसा ‘कम्पनी' के टाइम में दिल्ली के डॉन गुरुबख्श लाल मरहूम का 'कम्पनी' से था। पार्टनरशिप डील। ‘कम्पनी' की सरपरस्ती, गुरुबख्श लाल का बन्दोबस्त। बढ़िया चलता था। फिर पता नहीं क्या हुआ! सब तबाह हो गया।”
“पण, बाप, इधर अन्डरवर्ल्ड में तो हर कोई बोलता था कि तुम्हीं सब तबाह किया!”
“अफवाहों का क्या पता लगता है! उनका क्या कोई ओर छोर होता है?”
“बरोबर नहीं बोलता था इधर हर कोई?”
“नहीं बोलता था। अफवाहें सुनता था, आगे फैलाता था।”
“हम्म! तो अभी दिल्ली वाले डील को ही कन्टीन्यू रखने को, फाइनल करने को तुम्हेरे को इधर मिस्टर किंग से मीटिंग माँगता है?”
“अर्जेंट कर के।”
“तुम समझता है वो मीटिंग कुबेर पुजारी अरेंज कर सकता है?”
“अभी है तो ऐसीच!”
“हम्म! ठीक है, मैं करता है पूरा कोशिश।”
“मैं एडवांस में बैंक्यू बोलता है। और बोल!”
“श्यामला को कैसे चलता किया?”
“श्यामला!” – विमल ने जानबूझ कर अनजान बन के दिखाया।
“वो लड़की! जो इधर थी! मेरी कम्पेनियन!”
“अच्छा, वो! वो तो मेरे वास्ते टेबल खाली करने को ख़ुद ही उठ के चली गई थी।”
“बाप!”– वो आहत भाव से बोला – “ऐसे जवाब देगा तो मैं और कुछ पूछने की हिम्मत कैसे करेगा?”
“अभी और भी कुछ पूछना है?”
“है तो सही!”
“वो भी बोल!”
“श्यामला कैसे चली गई?”
“उस बात का पीछा छोड़! तेरी वाकिफ़ है, ख़ुद पूछना।”
“सॉरी!” – वो एक क्षण ठिठका, फिर बोला – “गन कैसे ले आया? गेट पर मैटल डिटेक्टर था।”
“मैं पहुँचा था तो डिटेक्टर की तवज्जो मैटल डिटेक्ट करने की तरफ नहीं थी, मेरे को सैल्यूट मारने की तरफ थी।”
“बोम मारता है! मसखरी करता है!”
विमल ने घूर कर उसे देखा। तत्काल वो अपने आप में सिकुड़ कर रह गया। विमल इस बात से बाखूबी वाकिफ़ था कि परेरा जैसे लोगों की स्थापित आदत होती थी कि ज़रा छूट मिलती पाते थे तो यार बनने की कोशिश करने लगते थे।
वेटर बिलबुक में बिल पहले ही टेबल पर रख गया था।
विमल ने अपना गिलास खाली किया, पेमेंट की रकम जमा जनरस टिप कैश में बिलबुक में रखी और उठ खड़ा हुआ।
“काम आना, परेरा।” – वो संजीदगी से बोला – “घाटे में नहीं रहेगा।”
“मालूम, बाप, बरोबर मालूम।” – गिलास परे सरकाता वो व्यग्र भाव से बोला – “पण एक बात फाइनली बोल के जा।”
“कौन-सी बात?”
“सोहल ही है न?”
“तेरी इस बाबत तसल्ली के लिए मुझे बड़ा बोल बोलना पड़ेगा लेकिन मेरी गैरत इजाजत नहीं देती।”
“अरे, बाप, बोल न बड़ा बोल! मैं सुनता है न!”
“और किसकी माँ ने सवा सेर सोंठ खाई है जो सोहल होगा!”
उसके चेहरे पर उलझन के भाव आए।
“नहीं समझा?”
मशीनी अन्दाज़ से उसका सिर इंकार में हिला। “देहाती कहावत है। कभी देहात में रहा है?”
उसका सिर फिर इंकार में हिला।
“तभी!”
“तू . . . तुम देहात में रहा कभी?”
“अरे, मैं तो पैदा ही देहात में हुआ था। बड़ा भी देहात में हुआ था। सोहल . मेरे गाँव का नाम है जहाँ मैं पैदा हुआ था।”
“कम्माल है!”
“है न! अभी एक और कमाल है।”
“वो क्या?”
“तेरे लिए एक तोहफा है।”
“क्या ?”
“ये!” – विमल ने उस के सामने गन रखी।
“अरे, क्या करता है, बाप!” — वो हड़बड़ाया – “आजू बाजू के भीड़ लोग देखेगा तो....”
“तो बोलेगा भतीजे, भांजे के लिए खिलौना लाया अंकल।”
“खि-खिलौना!”
“प्लास्टिक का।”
“ओह! तभी मैटल डिटेक्टर की पकड़ में न आया!”
“कितना श्याना है, भीड़!”
तत्काल विमल वहाँ से रुख़सत हुआ। पीछे जेकब परेरा अब संजीदासूरत था, वो अपलक विमल को वहाँ से रुखसत होता देखता रहा।
दरबान ने उसके पीछे प्रवेशद्वार बन्द किया तो परेरा उछल कर खड़ा हुआ और बाहर को लपका।
“सर, आप का ड्रिंक!” – पीछे से वेटर बोला।
“तू पी ले।” – बिना वापस गर्दन घुमाए परेरा बोला।
“सर, अनटच्ड ड्रिंक ..." परेरा तब तक उसकी आवाज़ की ज़द से बाहर निकल चुका था। लपकता सा वो प्रवेशद्वार पर पहुँचा। उसने सावधानी से बाहर झाँका तो विमल को एक काली-पीली टैक्सी में सवार होता पाया। तत्काल टैक्सी आगे बढ़ चली।
पार्किंग में परेरा की मोटरसाइकल थी जिसके हैंडल पर हैल्मेट लटक रही थी। उसने दोनों चीज़ों को काबू में किया और सावधानी से टैक्सी के पीछे लग लिया।
दोपहिया वाहन में ये एडवांटेज था कि उसके हैल्मेटधारी सवार की सूरत का अन्दाज़ा किसी को नहीं हो पाता था।
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