जिस समय सुनील ने ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में प्रवेश किया रात का लगभग एक बज चुका था ।
भीतर घुसते ही रिसेप्शनिस्ट रेणु ने उसे आवाज दे दी ।
“हल्लो उल्लू ।” - सुनील के समीप आ जाने पर वह शरारत-भरे स्वर से बोली ।
“तुम्हारी ये हिम्मत ।” - सुनील आस्तीनें चढाकर उसकी ओर बढता हुआ बोला ।
“अरे, अरे, वहीं खड़े रहो ।” - रेणु हड़बड़ा कर बोली ।
“तुमने मुझे उल्लू क्यों कहा ?”
“और क्या कहती ! रात के एक-एक बजे तक तो उल्लू ही जागते हैं ।”
“तो फिर तुम क्या हुई, उल्लू की मादा ?”
“मेरी तो रात की ड्यूटी है, मेरा जागना तो जरूरी है । तुम्हारे साथ क्या दिक्कत है जो आधी रात को धक्के खाते फिर रहे हो ।”
“रेणु !” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला - “उल्लू के अलावा भगवान की सृष्टि का एक और नमूना भी होता है जो रात को जागता है ।”
“कौन-सा ?”
“आशिक ।” - सुनील सीने पर हाथ मारकर बोला ।
“फिर तो खुश हो जाओ ।”
“क्यों ?” - सुनील माथे पर बल डालकर बोला ।
“क्योंकि तुम्हारी अम्मा भी अभी आज तक घर नहीं गई है ।”
“कहां है वह ?” - सुनील एकदम गम्भीर हो गया । रेणु प्रमिला की बात कर रही थी ।
“अपने केबिन में ।”
सुनील लम्बे डग भरता हुआ प्रमिला के केबिन की ओर बढ गया । द्वार खोलते ही वह ठिठक कर खड़ा हो गया । प्रमिला टाइपराइटर पर सिर टिकाए गहरी नींद सो रही थी ।
सुनील धीरे से उसकी ओर बढा और उसने करीब जाकर उसके सिर पर हाथ रख दिया ।
प्रमिला के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई ।
“पम्मी ।” - सुनील उसके कान के पास मुंह ले जाकर बोला ।
प्रमिला हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई । उसने नींद में डूबी हई आंखों को एक बार अपनी हथेली की पीठ से रगड़ा और फिर सुनील की ओर देखकर बोली - “आ गए नवाब साहब !”
सुनील ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“कितने बजे हैं ?” - वह अपने पैरों को जोर-जोर झटकती हुई बोली - “कम्बख्त पैरों में तो रक्त का प्रवाह ही बन्द हो गया है ।”
“सवा एक ।”
“हूं ।” - प्रमिला बोली । उसने मेज के दराज में से एक थर्मस फ्लास्क, दो कप और एक बिस्कुटों का डिब्बा निकाला । उसने थर्मस में से दोनों कपों में काफी डाली और एक कप, एक बिस्कुट सुनील की ओर बढा दिए ।
“तुम्हारे फ्लैट पर पुलिस की निगरानी हो रही है ।” - वह बोली ।
“क्या !” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“सुनील साहब, रमाकान्त मुझे हर आध घन्टे के बाद फोन करके स्थिति की सूचना दे रहा है । तुम्हारे फ्लैट में घुसने भर की देर है कि तुम्हारे हर कार्यकलाप पर प्रभूदयाल की नजर होगी ।”
“लेकिन वह तो अभी जहाज पर ही है, उसने यह सब इन्तजाम कर कैसे लिया ?”
“जो मोटरबोट तुम्हें किनारे छोड़कर गई थी उसी पर से एक कास्टेबल भी उतरा था । उसी ने पुलिस स्टेशन पर तुम्हारे बारे में सूचना पहुंचाई होगी । प्रभू इस बार नहीं छोड़ेगा तुम्हें ।”
“यह तो बड़ी मुश्किल हो गई ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
“क्यों ?”
“भई, मुझे अपने फ्लैट पर तो जाना ही पड़ेगा । वहां पहुंचते ही मैं एक प्रकार से नजरबन्द ही हो जाऊंगा, फिर काम कैसे होगा ?”
“अपने फ्लैट पर क्यों जाना पड़ेगा तुम्हें ?”
“क्या बच्चों जैसी बात कर रही हो, मैं सड़क पर रहूंगा क्या ?”
“कुछ दिन कहीं और रह लो ।”
“वह तो ठीक है लेकिन एक बार तो जरूरी सामान लेने के लिए घर जाना ही पड़ेगा ।”
“क्या जरूरत है ?”
“तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न ?” - सुनील झल्लाकर बोला ।
“तुम्हारा अपना दिमाग तो ठीक है न ?” - प्रमिला उसके स्वर की नकल करती हुई बोली ।
“प्रमिला !” - सुनील चिल्लाया ।
“धीरे बोलो ! अगर मलिक साहब ने सुन लिया तो फर्मे की जगह मशीन में तुम्हें फिट कर देंगे ।”
सुनील बड़े असहाय भाव से प्रमिला की ओर देखकर चुप हो गया ।
“सोनू !” - प्रमिला गम्भीर स्वर में बोला - “जिस बिल्डिंग में रेणु रहती है उसमें एक फ्लैट खाली था । रेणु का फ्लैट भी उस खाली फ्लैट की बगल में ही है । रेणु ने एक महीने के लिए वह फ्लैट तुम्हारे नाम से किराए पर ले लिया है । तुम्हारी जरूरत का सारा सामान, कपड़े, जूते, जुर्राबें, रुमाल, टाइयां, शेविंग सैट, टूथब्रश, नाइट सूट, स्लीपर वगैरह सब कुछ मैंने वहां पहुंचा दिया है । अब बताओ, तुम्हें अपने फ्लैट पर जाने की क्या जरूरत है ?”
“पम्मी !” - सुनील हर्ष से चिल्लाया ।
“धीरे बोला, भीतर मलिक साहब...”
“ऐसी की तैसी मलिक की ।” - सुनील उसके कन्धों पर दोनों हाथ रख कर बोला - “आज तो, ईमान से जी चाहता है...”
“क्या जी चाहता है ?” - प्रमिला ने आंखें तरेरीं ।
“कि... कि ।”
सुनील चुप हो गया । उसने प्रमिला के कन्धों से हाथ हटा लिए । उसने थर्मस में से अपने कप में काफी डाली और उसके लम्बे-लम्बे घूंट भरने लगा । प्रमिला फिर टाइपराइटर के सामने अपनी सीट पर बैठ गई ।
काफी खत्म कर चुकने के बाद सुनील बोला - “लेकिन रमाकान्त से सम्बन्ध कैसे स्थापित होगा ?”
“वह हर आधे घन्टे बाद मुझे फोन कर रहा है । अभी डेढ बजे फिर उसका फोन आयेगा, तुम बात कर लेना ।”
“लेकिन वे जानते हैं, रमाकान्त की यूथ क्लब मेरे लिए बहुत काम करती है । उन्होंने तो रमाकान्त के टेलीफोन की लाइन टेप की हुई होगी ।”
“तो मैं खुद जाकर रमाकान्त को बुला लाती हूं ।”
“इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी । तुम रमाकान्त का फोन आने दो ।”
“अच्छा ।”
लगभग पांच मिनट बाद फोन की घन्टी बजी ।
“प्रमिला ।” - रेणु का स्वर सुनाई दिया - “रमाकान्त इज आन दि लाइन ।”
“ओके रेणु ।” - प्रमिला बोली ।
“रमाकान्त का फोन है ।” - वह सुनील से बोली ।
“मुझे दो !” - सुनील रिसीवर उसके हाथ से लेता हुआ बोला ।
“हैलो प्रमिला” - लाइन पर रमाकान्त का स्वर सुनाई दिया - “मैं रमाकान्त ।”
“रमाकान्त !” - सुनील घरघराती आवाज से बोला - “दिस इज मलिक स्पीकिंग !”
क्षण-भर के लिए दूसरी ओर से कोई आवाज नहीं आई । शायद मलिक साहब की आवाज सुनकर रमाकान्त बौखला गया था ।
“नमस्कार, मलिक साहब ।” - फिर रमाकान्त शिष्ट स्वर से बोला ।
“नमस्कार, भई उस गधे का भी पता है कि वह कहां है ?”
“आप सुनील की बात कर रहे हैं, मलिक साहब ?”
“हां उसी की । कम्बख्त कल सुबह से गायब है, न रिपोर्ट भेजता है, न दफ्तर आता है ।”
“इस समय तो, मलिक साहब, मुझे मालूम नहीं वह कहां है लेकिन अब से लगभग एक घन्टा पहले तो वह मरीना बीच पर था ।”
“खैर, रमाकान्त, तुम थोड़ी देर के लिए मेरे दफ्तर आ सकते हो ?”
“अभी ?”
“हां ।”
“मलिक साहब ।” - रमाकान्त हिचकिचाया - “क्या बहुत जरूरी...”
“हां बेटा, बहुत जरूरी काम है ।”
“बहुत अच्छा जी । आ जाता हूं ।
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
“रेणु को कह दो कि वह रमाकान्त को यहां भेजे । कहीं वह मलिक साहब के दफ्तर में ही न घुसा चला जाए ।” - प्रमिला बोली ।
सुनील ने फिर फोन उठाया और रेणु को आवश्यक निर्देश ददिए ।
रमाकान्त को पहुंचने में लगभग आधा घण्टा लगा ।
“प्रमिला ।” - रमाकान्त बोला, फिर सुनील पर दृष्टि पड़ते ही वह ठिठक गया ।
“तुम यहां मरे हुए हो ?” - वह बोला ।
“इज्जत से बात करो, रमाकान्त !” - सुनील मलिक साहब के स्वर में बोला - “हमें ‘तुम’ नहीं, ‘आप’ कहो ।”
“ऐसी कही तैसी ‘आप’ की ।” - रमाकान्त झल्लाया - “साले, तो वह फोन मलिक साहब ने ही, तूने किया था ?”
“हां ।”
“क्यों ?”
“मुझे तुम्हारी जरूरत थी ।”
“भाड़ में गई तुम्हारी जरूरत ।” - रमाकान्त जाने के लिए तत्पर होकर बोला - “साले ने इस कड़के की सर्दी में खामख्वाह दस मील का राउन्ड लगवा दिया ।”
“प्यारे भाई, सुनो तो सही ।” - सुनील ने पुचकारा ।
“मर गए प्यारे भाई...”
बड़ी मुश्किल से सुनील रमाकान्त को ठंडा कर पाया ।
“अब मैं शुरू करूं ?” - सुनील अनुनयपूर्ण स्वर से उसकी आज्ञा मांगता हुआ बोला ।
“बको ।” - रमाकान्त होंठ सिकोड़ कर बोला ।
“कल प्रमिला तुम्हारे पास जौहर नाम का एक आदमी भेजेगी, उसे नौकरी दे देना ।”
“बेहतर ।”
“फिर जब भी वह तुमसे मिले उसे हत्या की रात की सारी घटनायें खोद-खोद कर पूछते रहो । विशेष रूप से यह कि जब दीनानाथ की घन्टी सुन कर वह मुरली के आफिस में आया था, उस समय दीनानाथ क्या कर रहा था ।”
“ओ के !”
“यूथ क्लब के सदस्यों की क्या रिपोर्ट है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कोई विशेष बात नहीं है ।” - रमाकान्त बोला - “दीपा तुम्हारे से पौन घन्टा पहले जहाज पर गई थी और उसके कुछ ही मिनट बाद रवीन्द्र भी गया था । रवीन्द्र की निगरानी करने के मामले में दिनकर बड़ा बदनसीब साबित हुआ था । दिनकर गैरीना बीच तक रवीन्द्र के पीछे था लेकिन रवीन्द्र के मोटरबोट पर सवार होते ही कन्डक्टर ने कह दिया कि सवारियां पूरी हो गई थीं । दिनकर किनारे पर ही रह गया । दिनकर को लगभग दस मिनट बाद दूसरी मोटरबोट मिली, लेकिन जहाज पर पहुंचने पर उसे रवीन्द्र कहीं भी दिखाई नहीं दिया । पन्द्रह-बीस मिनट तक वह जहाज का एक-एक कोना देखता रहा लेकिन रवीन्द्र का कोई पता न लगा । अन्त में दिनकर को रवीन्द्र तब दिखाई दिया जब वह वापिस जाने के लिए सीढियां उतर रहा था । इस बार दिनकर भी रवीन्द्र वाली मोटरबोट पर सवार होने में सफल हो गया । फिर रवीन्द्र होटल सेसिल में गया ।”
“फिर ?”
“प्यारयो, रवीन्द्र ने होटल की सेफ में कुछ रुपया रखवाया है । उसने मैनेजर को कहा था कि वह रुपया उसने किसी से उधार लिया हुआ है इसलिए यह नहीं चाहता कि वह खो जाये ।”
“कितना रुपया ?”
“सात हजार ।”
सुनील कई क्षण चुप रहा । वह इस नई सूचना को फ्रेम में फिट करने की चेष्टा कर रहा था - “तो इसका अर्थ यह हुआ कि रवीन्द्र भी दीपा का कागज खरीदने गया था !” - वह बड़बड़ाया ।
“मोहन की क्या रिपोर्ट है ?” - सुनील ने पूछा ।
“वो क्या है कि तुम्हारे कथानुसार गोपाल को जहाज पर नहीं जाना चाहिए था । तुमने कहा था कि अगर दीपा जहाज पर जाये तो मैं गोपाल की जगह मोहन को भेज दूं लेकिन दुर्भाग्य से मोहन को वहां पहुंचने में देर हो गई । इसलिए गोपाल को ही दीपा के पीछे जहाज पर जाना पड़ा । गोपाल की रिपोर्ट के अनुसार दीपा अपना फर का कोट क्लाकरूम में रखकर मुरली के आफिस की ओर चली गई थी । दीपा के भीतर जाने के दो या तीन मिनट बाद रवीन्द्र भी मुरली के आफिस की ओर गया था और लगभग दो मिनट बाद वापिस आया था । थोड़ी देर बाद तुम भीतर गये थे, फिर दीपा वापिस आ गई थी । गोपाल ऐसे स्थान पर खड़ा था जहां वह दीपा और मुरली की ओर जाने वाले गलियारे से दोनों पर नजर रख सकता था । कुछ देर बाद दीनानाथ और एक सब-इन्स्पेक्टर भीतर गए थे । उसके बाद सब-इन्स्पेक्टर और तुम दीनानाथ के आफिस से बाहर निकले थे । तुम्हारे हाथों में हथकड़ियां लगी हुई थीं । तुम्हारे हाथ में लगी हथकड़ी देखकर दीपा का चेहरा फक पड़ गया था । उसके बाद दीनानाथ बाहर निकल गया लेकिन उसी समय दीपा डैक पर चली गई इसलिए गोपाल को अपने स्थान से हटना पड़ा । गोपाल ने दीपा को डैक से सीढियां उतरकर मोटरबोट पर बैठते देखा तो वह भी उसी मोटर बोट पर वापिस आ गया ।”
“इस समय दीपा कहां है ?”
“अपने घर !”
“गुड ।” - सुनील सन्तुष्ट स्वर में बोला - “सुनो रमाकान्त, दीपा की दादी कलावती भी जहाज पर थी लेकिन पुलिस के भरपूर पहरे के बावजूद वह न जाने कैसे जहाज पर से गायब हो गई थी । तुम, जैसे भी हो सके, उसका पता लगाओ ।”
“बेहतर !”
“रमाकान्त !” - सुनील बड़े विचारपूर्ण स्वर से बोला - “क्या गोपाल यह बात दावे के साथ कह सकता है कि जिस समय रवीन्द्र मुरली के आफिस की ओर गया था, उस समय तक दीपा भी वहीं थी ?”
“सन्देह की कोई गुंजाइश ही नहीं है ।”
“और रवीन्द्र वहां से फौरन ही बाहर आ गया था ।”
“हां, वह एक या दो मिनट से अधिक वहां नहीं ठहरा था ।”
“और कुछ ?”
“और यह, मोतियांवालयो !” - रमाकान्त गम्भीर स्वर से बोला - “कि हत्या करने वाला और हत्यारे को सहायता देने वाला दोनों ही अपराधी होते हैं ।”
“तुम कहना क्या चाहते हो ?”
“मैं यह कहना चाहता हूं कि दीपा को बचाने के चक्कर में तुम अपनी गरदन फंसा बैठोगे । अगर किसी प्रकार प्रभू दयाल को इस बात की भनक पड़ गई कि तुम दीपा को कवर करने के लिए बला अपने सर ले रहे हो तो वह तुम्हें रगड़ देगा ।
“देखा जायेगा ।” - सुनील लापरवाही से कन्धे झटकता हुआ बोला ।
“तुम्हारी मर्जी ?” - रमाकान्त उठता हुआ बोला
“रमाकान्त, अबके बाद तुम रिपोर्ट प्रमिला को दोगे ।”
“क्यों, तुम्हें क्या हुआ है ?”
“मैं गायब हो रहा हूं !”
“क्यों ?”
“मुझे भय है कि सुबह होते ही प्रभूदयाल की कृपा से मेरे नाम में कोर्ट के समन इशू होने वाले हैं और दीपा के हित में अदालत में बयान नहीं देना चाहता ।”
“अच्छा तो फिर मैं कल फूल भिजवा दूंगा ।” - रमाकान्त गम्भीरता से बोला ।
“फूल ।” - सुनील हैरान होकर चिल्लाया - “अबे यह फूल...”
“बात यह है, काकाबल्ली ।” - रमाकान्त एकदम गमगीन स्वर से बोला - “तुम्हारी मौत तो अब निश्चित हो ही गई है । लेकिन न जाने तुम्हें कब और किन परिस्थितियों में फांसी पर लटकाया जाए इसलिए तुम्हारा मित्र होने के नाते तुम्हारी मौत पर दुख प्रकट करने के लिए फूल तो मैं कल ही भिजवा दूंगा । क्या पता तुम्हें पतझड़ के दिनों में फांसी हो और फूल मिलें ही न ।”
अबे रमाकान्त के बच्चे !” - सुनील घूंसा तानकर उसे मारने दौड़ा ।
लेकिन रमाकान्त केबिन से बाहर निकल चुका था ।
***
अगली सुबह ।
नौ बजकर तीस मिनट हो चुके के थे । सुनील अपने नए फ्लैट में बैठा था ।
“एक बुरी खबर है, सोनू ।” - रेणु ने आकर बताया ।
“क्या ?”
“रमाकान्त के आदमी गोपाल ने ‘क्रानिकल’ के रिपोर्टरों के सामने सब कुछ उगल दिया है । क्रानिकल वालों ने गोपाल को बहुत रुपया दिया मालूम होता है नहीं तो वह इस प्रकार रमाकान्त के साथ विश्वासघात नहीं करता ।”
सुनील एकदम चिन्तित हो उठा ।
“मैंने ‘क्रोनिकल’ की गोपाल के बयान पर आधारित रिपोर्ट पढी है ।” - रेणु बोली - “उसके अनुसार जिस समय तुम मुरली के आफिस में गये थे, दीपा वहीं थी और तुम्हारे से पहले वहां से बाहर निकल आई थी । इसका अर्थ यह हुआ कि या तो दीपा हत्या के समय वहां मौजूद थी, या हत्या उसके वहां पहुंचने से पहले ही चुकी थी और या फिर हत्या उसके लौट जाने के बाद हुई ।”
“यह भी कोई तर्क हुआ ।” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला - “यह तो यूं कहने जैसा हुआ कि या तो दीपा मुरली के आफिस में बैठी हुई थी और या फिर चल रहीं थी ।”
“मजाक की बात नहीं, सुनील । ‘क्रानिकल’ का यही सबसे मजबूत तर्क है । अगर दीपा हत्या हो चुकने के बाद वहां पहुंची थी तो फिर हत्या तुमने की होगी क्योंकि दीपा के बाद तो मुरली के आफिस में तुम ही गये थे और उसकी लाश के करीब भी तुम ही पाये गये थे ।”
सुनील चुप रहा ।
“मैं आफिस जा रही हूं ।” - रेणु क्षण भर के बाद बोली ।
“अच्छा !”
लगभग आधे घण्टे बाद सुनील भी उठा । उसने कपड़े पहने, फ्लैट में ताला लगाया और बाहर आ गया ।
बड़ी सतर्कता से वह एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के सामने पहुंचा ।
उसने यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिए ।
कुछ क्षणों बाद उसने लाइन पर रमाकान्त का स्वर सुनाई दिया ।
“हल्लो, रमाकान्त स्पीकिंग ।”
“रमाकान्त, मेरी आवाज से पहचान सकते हो कि मैं कौन हूं ।” - सुनील ने पूछा ।
“हां, लेकिन तुम हो कहां ?”
“पल्लिक टेलीफोन बूथ में । कोई नई खबर ?”
“प्यारयो, इस गोपाल के बच्चे ने तो बड़ा घोटाला कर दिया । मैं उसके सारे वाकई बहुत शर्मिन्दा हूं । मैं तो...”
“गोपाल की बात छोड़ो । जो होना था हो गया । अब कोई काम की बात करो ।”
“जौहर मेरे पास आ गया ।” - रमाकान्त बोला - “मैंने उसे नौकरी दे दी है ।”
“मैं उसस फौरन बात करना चाहता हूं । मुझे भय है कि उसके नाम भी कहीं समन इशू न हो जाये ।”
“प्यारयो, मैंने भी उससे बात की है । वह तो बड़ी जोरदार बातें बता रहा है । ऐसी कि तुम पर या दीपा पर हत्या के सन्देह की जरा भी गुंजाइश न रह जाये ।”
“रमाकान्त, तुम उसे साथ लेकर मेहता रोड के क्रासिंग पर आ जाओ । लेकिन इस बारे में सावधान रहना कि कोई तुम्हारा पीछा न कर रहा हो ।”
“अच्छा ।”
“ओ के दैन ।” - सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
लगभग आधे घण्टे बाद सुनील मेहता रोड के चौराहे से गुजरा । रमाकान्त और जौहर वहां खड़े थे ।
सुनील ने टैक्सी वहीं छोड़ दी । और उन दोनों के पास आ गया ।
“मैं कार लाया हूं ।” - रमाकान्त बोला - “इसमें बैठकर बातें करेंगे ।”
तीनों रमाकान्त की कार तक पहुंचे । रमाकान्त अगली सीट पर बैठ गया और सुनील और जौहर पिछली सीट पर ।
“सुनील” - रमाकान्त बोला - “जौहर से बात करने से पहले एक जरूरी खबर सुन लो ।”
“क्या ?”
“आज सुबह रवीन्द्र भागता हुआ अपने होटल के कमरे में से निकाला और चटर्जी एन्ड मुखर्जी नाम की एक वकीलों की फर्म में गया । लगभग आध घण्टा वह वहां रहा । उसके बाद दो सिपाहियों के साथ प्रभूदयाल वहां आया और रवीन्द्र को अपने साथ ले गया ।”
“गिरफ्तार करके ?” - सुनील ने पूछा ।
“ऐसा ही लगता था ।”
“अब वह कहां है ?”
“पुलिस स्टेशन । लेकिन सुनील ‘क्रानिकल’ का रिपोर्टर ललित उसका इन्तजार होटल सेसिल में ही कर रहा है । ऐसा लगता है कि उसे कहीं से भनक पड़ गई है कि रवीन्द्र अधिक देर पुलिस स्टेशन टिकने वाला नहीं है ।”
सुनील चुपचाप इस नई सूचना पर गौर करता रहा ।
“जौहर ?” - सुनील जौहर की ओर आकर्षित हुआ - “इस केस के विषय में तुम्हें क्या मालूम है ?”
“ऐसे मैं क्या बता सकता हूं ?” - जौहर विनम्र स्वर में बोला - “आप बताइये आप क्या मालूम करना चाहते हैं ?”
“मुरली की हत्या किसने की है ?”
“किसी ने भी नहीं ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील ने हैरानी से पूछा ।
“देखिए, सुनील साहब, आप जानते ही हैं कि इन लोगों के पास दीपा का सात हजार का कागज था और ये उसे रवीन्द्र के हाथ महंगे दामों में बेचना चाहते थे । दीनानाथ क्योंकि पार्टनरशिप समाप्त करने की फिराक में था इसलिए वह चाहता था कि उस कागज के बदले जल्दी से जल्दी रुपया मिल जाए । हत्या की शाम को इसी बात पर दोनों का खूब झगड़ा हुआ था । फैसला इस बात पर हुआ था कि उस रात के नौ बजे तक मुरली जैसे भी हो सकेगा उस कागज को बेच देगा । अगर अधिक पैसे नहीं मिल पायेंगे तो मुरली सात हजार में ही उसे दीपा को लौटा देगा । मुरली की हत्या का पता लगाने से बीस मिनट पहले मैं मुरली से मिला था । उसने मुझे एक काम के लिए हाल में भेजा था । उस समय तक किसी ने मुरली को सात हजार रुपये देकर कागज वापिस नहीं लिया था क्योंकि अगर ऐसा हुआ होता तो वह आदमी मुझे मुरली के आफिस की ओर जाता अवश्य दिखाई देता । उसके बाद तीन आदमी भीतर गये - दीपा, रवीन्द्र और आप । बाद में जब दीनानाथ को मुरली की हत्या का पता चला, उस समय कागज गायब था लेकिन मेज की दराज में सात हजार रुपये मौजूद थे । तो मैं समझ गया कि रवीन्द्र ने सात हजार रुपये देकर कागज ले लिया था । शायद मुरली उसे सात हजार से अधिक में कागज खरीदने के लिए तैयार नहीं कर सका था ।”
“फिर तो रवीन्द्र मुरली के पास बातचीत के लिए काफी देर ठहरा होगा ?”
“जरूर ठहरा होगा । मैंने उसे मुरली के पास जाते तो देखा था लेकिन उसे बाहर निकलते नहीं देखा था । शायद उस समय मैं हाल में रहा होऊं और मेरी दृष्टि गलियारे से बाहर आते रवीन्द्र पर न पड़ सकी हो ।”
“तो तुम यह सिद्ध करना चाहते हो कि मुरली की हत्या रवीन्द्र ने की है ?”
“नहीं” - जौहर जोर से गर्दन हिलाता हुआ बोला - “मैं यह सिद्ध करना चाह रहा हूं कि मुरली की हत्या रवीन्द्र ने नहीं की । क्योंकि अगर रवीन्द्र ने रुपये देकर कागज ले लेने के बाद मुरली की हत्या की होती तो वह रुपये भी निकालकर ले गयता होता और अगर उसने कागज के बदले में रुपये देने से पहले उसकी हत्या की होती तो वह रुपये देता ही नहीं । मुरली की मेज में सात हजार रुपयों की मौजूदगी यह सिद्ध करती है कि जिसने कागज खरीदा हत्या उसने नहीं की ।”
“तो फिर कैसे मर गया वह ?”
“उसने आत्महत्या की थी ।” - जौहर पूर्ण विश्वास से बोला ।
“क्या ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“जी हां, उसने आत्महत्या की थी । दरअसल सुनील साहब, मुरली पार्टनशिप का बहुत रुपया गबन कर रहा था और दीनानाथ को भी यह मालूम था कि मुरली की नीयत बिगड़ गई हैं । मुरली यह बात खूब जानता था कि अगर दीनानाथ चाहे तो उसे जेल भिजवा सकता है । दीनानाथ द्वारा कोई मुश्किल खड़ी की जाने से पहले ही मुरली चुराई हुई रकम ज्यों की त्यों लौटा देना चाहता था । ऐसा करने का एक ही तरीका था कि वह किसी प्रकार दीपा का कागज रवीन्द्र को बारह-तेरह हजार में बेचने में सफल हो जाये । दीनानाथ को तो ऐसी बातों की जानकारी होती नहीं थी । न ही वह इन बातों में दखल देता था । अगर मुरली को उसका इच्छित धन मिल जाता तो वह बड़ी आसानी से गबन छुपा सकता था ।”
“लेकिन इसमें आत्महत्या वाली बात कहां आ गई ?” - सुनील तिक्त स्वर से बोला ।
“बताता हूं, जब मुरली और दीनानाथ ने यह धन्धा शुरू किया था उस समय दोनों ने एक दूसरे के हक में बीस-बीस हजार रुपये का बीमा करा लिया था यानी अगर एक पार्टनर मर जाता तो दूसरे को बीस हजार रुपये मिल जाते । इस इन्तजाम से लाभ यह होता है कि एक हिस्सेदार के मर जाने पर धन्धा बन्द नहीं करना पड़ता । बजाय इसके कि जीवित पार्टनर सारा धन्धा खतम करके आधा धन मृतक के वारिसों को दे दे, यह अधिक अच्छा था कि मृत पार्टनर के बीमे से से प्राप्त बीस हजार रुपये उसके वारिसों को दे दिए जायें और धन्धा दूसरा पार्टनर चलाता रहे । लेकिन इन दोनों के बीमे की पलिसी में एक शर्त यह भी थी कि अगर कोई पार्टनर आत्महत्या कर लेता है तो दूसरे पार्टनर को कुछ भी नहीं मिलेगा और अगर उसकी हत्या की जाती है या वह दुर्घटना द्वारा मर जाता है तो जीवित पार्टनर को बीस के स्थान पर चालीस हजार रुपया मिलेगा । अब देखिए मुरली की मृत्यु पर दीनानाथ की क्या पोजीशन हो जाती है । अगर यह सिद्ध हो जाए कि मुरली ने आत्महत्या की है तो दीनानाथ को न सिर्फ बीमा कम्पनी से ही कुछ नहीं मिलेगा बल्कि उसे सारा धन्धा बन्द करके आधा रुपया मुरली के वारिसों को देना पड़ेगा । लेकिन अगर यह सिद्ध हो जाए कि मुरली की हत्या की गई है तो दीनानाथ को बीमे के चालीस हजार रुपये मिल जायेंगे । जिनमें से केवल बीस हजार ही उसे मुरली के वारिसों को लौटाने पड़ेंगे ।”
“फिर ?”
“फिर यह कि दीनानाथ चालाक आदमी है । उस रात जब वह सब इन्स्पेक्टर से साथ मुरली के दफ्तर में गया तो उसने मुरली को मरा पाया । वह खूब जानता था कि मुरली ने आत्महत्या कर ली थी । लेकिन वह तो यही चाहता होगा कि मुरली की हत्या की गई सिद्ध हो । उस समय दीनानाथ को वहां पर कोई ऐसा सबूत दिखाई दे गया होगा जिससे यह सिद्ध होता हो कि मुरली ने आत्महत्या की थी । उस सबूत को वहां से हटाने का मौका पाने के लिए उसने चिल्लाना शुरू कर दिया कि किसी ने मुरली की हत्या कर दी है और साथ ही वह आप पर इल्जाम भी लगाता गया । नतीजा यह हुआ कि सब-इन्स्पेक्टर आपकी तलाशी लेने के लिए आपको साथ लेकर वहां से बाहर चला गया और दीनानाथ वहां अकेला रह गया । नहीं तो आप ही बताइये, क्या आपकी तलाशी उसी कमरे में नहीं हो सकती थी ? जिस समय आप और सब-इन्स्पेक्टर मुरली के कमरे से बाहर निकलते थे, मैं गलियारे की ओर आ रहा था । जब मैं कमरे में घुसा था उस समय दीनानाथ उस कुर्सी की गद्दी को उलट-पलट रहा था जिस पर कुछ समय पहले आप बैठे थे । हुआ यह होगा कि दीनानाथ को मुरली की मेज के पास वह रिवाल्वर पड़ी मिली होगी । आप लोगों के बाहर निकलने के बाद उसने वह रिवाल्वर उठा ली होगी और वह उसे आपकी कुर्सी में छुपाने की चेष्टा कर रहा होगा ताकि हत्या का इल्जाम आप पर लग सके । लेकिन उसी समय मैं पहुंच गया इसलिए उस समय तो शायद उसने रिवाल्वर जेब में रख ली और बाद में उसे कहीं फेंक-फांक दिया । दीनानाथ की तलाशी तो आप जानते हैं हुई ही नहीं थी ।”
“यह बहुत महत्वपूर्ण बात है, रमाकांत ।” - सुनील बोला - “अगर जौहर के बयान से यह सिद्ध हो जाये कि मुरली ने आत्महत्या की है तो न सिर्फ मैं, दीपा, रवीन्द्र, कलावती वगैरह हत्या के इलजाम से बरी हो जायेंगे बल्कि बीमा कम्पनी को भी चालीस हजार रुपये की बचत हो जायेगी । जौहर, यह बात किसी को मालूम नहीं होनी चाहिए ।”
“बहुत अच्छा, जी ।” - जौहर बोला - “अब मेरे जहाज पर जाने की जरूरत है ?”
“नहीं । वहां अब तुम्हारी जरूरत नहीं ।”
“सुनील ।” - रमाकांत जल्दी से बोला - “एक बात तुम्हें बतानी भूल गया मैं ?”
“क्या ?”
“पुलिस को मुरली की मेज पर दीपा की पूरी हथेली और पांचों उंगलियों के निशान मिले हैं ।”
सुनील पर इस समाचार की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई । वह कार में से निकलकर बाहर आ गया और रमाकांत से बोला - “मैं चला, रमाकांत । प्रमिला को रिपोर्ट देते रहना ।”
और वह लम्बे डग भरता हुआ एक ओर चल दिया ।
***
एम्बेसेडर होटल के सामने सुनील टैक्सी से उतरा ।
एक अखबार वाला जोर-जोर से चिल्ला रहा था ।
“रिपोर्टर फरार ! ब्लास्ट के रिपोर्टर पर हत्या का संदेह ! रिपोर्टर फरार !!!!”
सुनील ने अखबार की एक कापी ले ली । वह ‘क्रानिकल’ था ।
“ब्लास्ट नहीं है तुम्हारे पास ?” - सुनील ने अखबार वाले से पूछा ।
“आज ‘ब्लास्ट’ में क्या रखा है, साहब ।” - अखबार वाला बोला - “इस केस की प्रमाणिक और सबसे नई खबरें तो केवल क्रानिकल छाप रहा है ।”
और वह ‘रिपोर्टर फरार’ चिल्लाया हुआ आगे बढ गया ।
सुनील ने अखबार खोला । पहले ही पेज पर वह हैडलाइन छपी हुई थी जो अखबार वाला चिल्लाता फिर रहा था । उसके सामने मलिक साहब का चेहरा घूम गया । अगर सुनील उनके सामने पड़ जाता तो वह वाकई पेपर की जगह उसे मशीन में झोंक देता ।
वह होटल की लाबी में घुस गया । दीपा उसे हॉल में ही मिल गई ।
“मैं सुबह फोन पर तुमसे सम्पर्क स्थापित करने की चेष्टा कर रही हूं लेकिन तुम्हारे आफिस से तुम्हारे फ्लैट से यही उत्तर मिलता है कि तुम्हारा कुछ पता नहीं है । आखिर तुम भागे क्यों फिर रहे हो ?” - दीपा उसे देखकर बोली ।
सुनील ने ‘क्रानिकल’ का प्रथम पृष्ठ खोलकर उसके सामने कर दिया ।
“ओह ।” - हैडलाइन पर दृष्टि पड़ते ही उसके मुंह से निकल गया ।
“उस रात मैंने तुम्हें मेन हाल में प्रतीक्षा करने के लिए कहा था । तुम भाग क्यों आई थीं ?”
“मुझे भागना पड़ा था, सुनील । रवीन्द्र भी वहीं था ।”
“तुमने देखा था उसे ?”
“नहीं, मुझे एक आदमी ने बताया था ।”
“उसने क्या कहा था तुमसे ?”
“उसने मेरे समीप आकर कहा था - दीपा, भागो, रवींद्र भी यहीं है । मैं उसकी यह चेतावनी सुनकर हड़बड़ाहट में वहां से भाग निकली थी ।”
दोनों हाल में आकर एक कोने की मेज पर आमने-सामने बैठ गये ।
“उस रात क्या हुआ था ?” - सुनील ने सीधा प्रश्न किया ।
“उस शाम किसी ने फोन किया था कि मुरली रवीन्द्र को मेरा प्रोनोट बेचने वाला है । मैं भयभीत हो उठी थी और इसीलिए उस रात मुरली से मिलने जहाज पर पहुंच गई थी ।”
“तुम्हारे पास अपना प्रोनोट वापिस लेने लायक रुपये थे ?”
“नहीं थे । सुनील, तुमने मेरा पर्स देखा ही था, उसमें सात-आठ सौ रुपये से अधिक नहीं थे । मेरा ख्याल था कि इतने रुपये ले लेने पर मुरली मेरा कागज कुछ और रोज रोके रखने के लिए तैयार हो जायेगा । तब तक मैं किसी प्रकार सात हजार रुपये का इन्तजाम कर लूंगी ।”
“फिर ?”
“मैं मुरली के दफ्तर में गई । बाहर वाले कमरे में कोई भी नहीं था और प्राइवेट आफिस का दरवाजा भी खुला था । इससे पहले मैं जब भी वहां गई थी मैंने वह द्वार भीतर की ओर से बन्द पाया था । मुरली पहले एक छेद में से झांककर आगन्तुक को देखा करता था और अपनी तसल्ली कर लेने के बाद ही द्वार खोला करता था ।”
“मुझे मालूम है । तुम आगे कहो ।”
“मैं कुछ देर मुरली द्वारा द्वार खोले जाने की प्रतीक्षा करती रही । मुरली को उसके आफिस की ओर आने वाले हर आदमी की सूचना तो पहले ही मिल जाया करती थी क्योंकि ज्यों ही कोई गलियारे में कदम रखता था, उसके कमरे की घण्टी बज जाती थी । लेकिन फिर भी जब मुरली ने द्वार नहीं खोला और न ही कोई उत्तर दिया तो मैंने द्वार खटखटाया और आवाज दी - भीतर कोई है ? ...मुरली मैं दीपा हूं, भीतर आ जाऊं ? जब फिर भी कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं द्वार ढकेल कर भीतर घुस गई और कमरे में जो पहली चीज मुझे दिखाई दी वह मुरली की लाश थी ।”
“फिर ?”
“पहले तो मैंने वहां से निकल भागने की सोची लेकिन उसी समय मेरी दृष्टि मेज पर पड़े अपने प्रोनोट पर गई । मैं उसे उठाने ही वाली थी तुम गलियारे में प्रविष्ट हुए और कमरे में घण्टी बजने लगी । मैं कागज वहीं मेज पर छोड़कर झपट कर समरे से बाहर निकल आई । मैंने द्वार को फिर पहले की तरह बन्द कर दिया और बाहर आकर बैठ गई और एक पत्रिका पढने का बहाना करने लगी । मेरा इरादा यह था कि आगन्तुक से किसी प्रकार पीछा छुड़ा कर मैं वह कागज उठा लूंगी ।”
“फिर ?”
“फिर कुछ क्षणों बाद तुम भीतर प्रविष्ट हुए ।”
“दीपा ।” - सुनील उसके चेहरे पर दृष्टि गड़ाता हुआ बोला - “सच कह रही हो ?”
“शत-प्रतिशत !”
“तुमने मेरे हाथ से अपना बैग क्यों छीन लिया था ?”
“क्योंकि बैग में एक रिवाल्वर था और मैं नहीं चाहती थी कि किसी नजर उस पर पड़े ।”
“अब वह रिवाल्वर कहां है ?”
“मैंने उसे जहाज से वापिस आने से पहले समुद्र में फेंक दिया था ।”
सुनील के नेत्र फिर उसके चेहरे पर टिक गये । कई क्षण उसे घूरते रहने के बाद वह स्थिर स्वर से बोला - “तुम झूठ बोल रही हो ।”
“क्या ?” - उसका चेहरा आत्माभिमान से दमक उठा ।
“तुम्हारी कहानी कई जगह लचर हो गई है । उदाहरण के लिए गलियारे को पार करने में मुझे पांच या छः सेकेन्ड से अधिक नहीं लगे थे और घण्टी की आवाज सुनने के बाद जितने काम तुमने किये उनके लिए बहुत समय चाहिए ।”
“लेकिन मुझे घण्टी सुनाई देने के कम से कम दो-तीन मिनट के बाद तुम भीतर आए थे । तुम काफी देर द्वार पर रुके रहे होगे ।”
“नहीं, मैं सीधा वहां आया था और मुझे वहां आने में छः सैकन्ड से अधिक नहीं लगे थे ।”
“लेकिन मैं दावा करती हूं कि तुम घण्टी बजने के कम से कम दो मिनट बाद भीतर आए थे ।”
“समय के विषय में तुम्हारा अनुमान गलत हो सकता है ।”
“थोड़ा-बहुत हो सकता है । लेकिन छः सैकण्ड दो मिनट में बहुत अन्तर होता है ।” - वह निर्णयात्मक स्वर में बोली ।
“यह बेल तो मुंडेर चढती दिखाई नहीं दे रही ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
“सुनील !” - उसे दीपा का भयपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
“क्या बात है ?” - सुनील ने देखा, दीपा के चेहरे का रंग उड़ गया था ।
“उधर देखो ।”
सुनील ने दीपा की दृष्टि का अनुसरण किया । दो-तीन मेजें छोड़कर बैठा एक आदमी ‘क्रानिकल’ का ईवनिंग एडीशन पढ रहा था । पिछले पृष्ठ पर मोटे शब्दों में छपा था - रवीन्द्र का बयान :
‘धरती के स्वर्ग’ पर मुरली की हत्या दीपा ने की ।
“तुम यहीं बैठो ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं अखबार खरीदकर लाता हूं ।”
सुनील बाहर जाकर ‘ब्लास्ट’ और ‘क्रानिकल’ की दो-दो प्रतियां खरीद लाया । उसने एक प्रति दीपा को दे दी ।
उसने ‘क्रानिकल’ पढना आरम्भ कर दिया, लिखा था :
रवीन्द्र के अप्रत्याशित बयान द्वारा मुरली की हत्या का मामला पूर्णरूपेण हल हो गया है । केस के साथ ब्लास्ट के विशेष सम्वाददाता । सुनील कुमार चक्रवर्ती के सम्बन्ध जैसी कुछ साधारण बातों को छोड़ कर पुलिस ने केस को पूरी तरह हल कर लिया है । रवीन्द्र का बयान चटर्जी एण्ड मुखर्जी नामक वकीलों की फर्म द्वारा प्रकाश में लाया गया है ।
मेरी पत्नी कई महीनों से मेरे से अलग रह रही थी - रवीन्द्र ने हमारे विशेष सम्वाददाता को बताया - और अपना अधिकतम समय जुए में व्यतीत कर रही थी । इसी जुए की लत के कारण उसे मुरली को सात हजार रुपये का प्रोनोट लिखकर देना पड़ा । मुझे किसी ने बताया था कि मुरली कानूनी कार्यवाही करके दीपा से सात हजार रुपया वसूल करने वाला था । अगर ऐसा हो जाता तो इससे हमारी भारी बदनामी होती जिसका सबसे बुरा असर हमारे बच्चे बबली पर पड़ता । इसलिए मैंने बबली के हित के लिए किसी से उधार मांगकर सात हजार रुपये इकट्ठे किए और ‘धरती के स्वर्ग’ पर पहुंच गया । मैंने एक वेटर से मुरली के विषय में पूछा तो उसने मुझे गलियारे का रास्ता दिखा दिया । मैं गलियारे में से होकर मुरली के आफिस में पहुंचा । भीतरी द्वार बन्द था लेकिन मुझे देखकर मुरली ने द्वार खोल दिया । उस समय मैं मुरली को पहचानता नहीं था । बाद में उसी ने मुझे बताया था कि वह मुरली था । मैंने उसे बताया कि मैं अपनी पत्नी का प्रोनोट लेने आया हूं । मुरली सात हजार ने अधिक रुपया लेना चाहता था । बड़ी मुश्किल में उसे मैं सात हजार में ही वह प्रोनोट देने पर तैयार कर पाया । मैंने दीपा का कागज अपनी जेब में रखा और मुरली के आफिस के बाहर आ गया ।
लगभग दस मिनट मैं जहाज देखता रहा, फिर लौटते समय मुझे ख्याल आया कि मैंने मुरली के सात हजार रुपये की रसीद तो ली ही नहीं थी । मैं फिर मुरली के आफिस की ओर लौट पड़ा । बाहर के कमरे में कदम रखते ही मैंने देखा कि भीतरी कमरे का द्वार खुला था । मैं हैरान हो गया क्योंकि मुरली ने तो बताया था कि वह द्वार कभी भी खुला नहीं छोड़ा जाता था । कुछ कदम आग बढकर जो कुछ मैंने देखा वह मुझे हक्का-बक्का कर देने के लिए काफी था । भीतर दीपा खड़ी थी । उसके दायें हाथ में रिवाल्वर था और मुरली मेज पर मरा पड़ा था । उसकी कनपटी गोली का सुराख दिखाई दे रहा था । मैं उल्टे पांव वहां से लौट आया । मुझे भय था कि कहीं दीपा मुझे भी गोली न मार दे । मैं गलियारे से बाहर आ गया और एक ओर छुपकर खड़ा हो गया जहां से कि मैं गलियारे पर नजर रख सकता था । मुझे दीपा की प्रतीक्षा थी । मैं उससे पूछना चाहता था कि उसने मुरली की हत्या क्यों कर दी ? उसी समय मैंने सुनील को मुरली के आफिस की ओर जाते देखा । मैंने सोचा जो मैंने देखा है, वह सुनील को भी दिखाई देगा ही इसलिए मैं हत्या की सूचना पुलिस को देने की जिम्मेदारी सुनील पर छोड़कर जहाज से वापिस चला आया । लेकिन फिर भी मैं डरता रहा ! मुझे हत्या की सूचना पुलिस को देनी चाहिए थी । मैंने अपने वकील मैसर्ज चटर्जी एण्ड मुखर्जी से राय ली उन्होंने मुझे एक लिखित बयान देने पर बाध्य किया । उन्हीं के निर्देशानुसार मैंने एक लिखित बयान पुलिस में दे दिया । सुनील के भीतर जाने के बाद क्या हुआ मुझे मालूम नहीं । लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूं कि जिस समय मैं जहाज से वापिस आया था, दीपा और सुनील दोनों मुरली के कमरे में थे । मैं पुलिस द्वारा पुलिस स्टेशन ले आया था और बाद में रिहा कर दिया गया था ।
(शेष पृष्ठ तीन कालम पांच पर)
सुनील ने तीसरा पृष्ठ खोला । उस पृष्ठ पर छपी सबसे महत्वपूर्ण चीज दीपा के प्रोनोट की प्रतिलिपि थी । उस पर दीपा के हस्ताक्षर स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहे थे ।
“रवीन्द्र के बयान में कितनी सच्चाई है ?” - पढ चुकने के बाद सुनील ने दीपा से पूछा ।
“रत्ती भर भी नहीं । वह सफेद झूठ बोल रहा है । उसने मुझे मुरली के दफ्तर में नहीं देखा था ।”
“रवीन्द्र को तुम्हारा प्रोनोट कैसे मिल गया ?” - सुनील ने उसे अखबार में छपी प्रोनोट की प्रतिलिपि दिखाते हुए पूछा ।
“या तो वह इसे मुरली की मेज से उठाकर लाया था या फिर...”
“फिर क्या ?”
“या फिर तुमने उसे दिया होगा ।”
“दीपा !” - सुनील सन्तुलित स्वर से एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “वह प्रोनोट मैंने सात हजार रुपये देकर खरीदा था !”
“क्या ?” - दीपा हैरानी से चिल्लाई ।
“मैं सच कह रहा हूं ।”
“लेकिन कब ? मुरली के मर जाने के बाद तक तो वह वहीं था ।”
“मैंने मुरली की मेज में सात हजार रुपये डालकर वह प्रोनोट ले लिया था और फिर उसे वहीं जलाकर राख कर दिया था ।”
“लेकिन क्या यह अपराध नहीं है ?”
“अपराध क्या है इसमें ? वह प्रोनोट तुम्हारा था और तुम्हारे प्रतिनिधि की हैसियत से मैंने उसका रुपया चुकाकर उसे वापिस ले लिया ।
दीपा चुप हो गई ।
“दीपा !” - सुनील फिर बोला - “जरा अखबार में छपे प्रोनोट को गौर से देखो ।”
दीपा कितनी ही देर तस्वीर का आलोकन करती रही और फिर आश्चर्य मिश्रित स्वर से बोली - “यह तो जाली है ।”
“हां, लेकिन तुम्हारे हैडराइटिंग की ए-वन नकल की गई है ।”
दीपा चुप रही ।
“सुनो ।” - सुनील विचारपूर्ण स्वर में बोला - “हो सकता है रवीन्द्र ने तुम्हें वाकई वहां देखा हो ।”
“यह झूठ है । यह...”
“सुनो, सुनो । जोश में मत आओ । गोपाल नाम का एक आदमी तुम्हारा पीछा कर रहा था । उसका कथन है कि जिस समय रवीन्द्र आफिस की ओर गया था तुम भी वहीं थीं । लेकिन रवीन्द्र एक दो मिनट में ही वापिस लौट आया था । अब, तर्क के लिए, मान लो कि उस समय तुम बाहर वाले कमरे में थी । इसलिए रवीन्द्र के आगमन की सूचना देने के लिए भीतर के कमरे में बजती हुई घण्टी तुम्हें सुनाई नहीं दी होगी । क्यों कि बाहर के कमरे में भीतर की आवाजे नहीं पहुंचती हैं । उसी समय तुम भीतर के कमरे में चली गई जहां मुरली मरा पड़ा था और रवीन्द्र ने बाहर के कमरे में प्रवेश किया । उसने तुम्हें भीतर कमरे में मुरली की लाश के पास खड़े देखा और उसे मेज पर पड़ा हुआ तुम्हारा प्रोनोट भी दिखाई दे गया । तुम पर हत्या का इलजाम लगाने का इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था । यह वह समझ ही गया था कि अपने कागज को मेज पर पड़ा देखकर तुम अवश्य ही उसे नष्ट कर दोगी । लोग यही समझेंगे कि तुमने अपना कागज वापिस लेने के लिए मुरली की हत्या कर दी । अतः वह उलटे पांव वापिस लौट गया । जिस समय वह गलियारे में से गुजरा, भीतरी कमरे में घण्टी बज गई । तुमने भी वह घण्टी सुनी क्योंकि इस बार तुम भीतर कमरे में थीं । तुम झपट कर बाहर आ गई । तुमने पहले की तरह द्वार बन्द कर किया और बाहर के कमरे में बैठकर पत्रिका पढने का बहाना करने लगी । उसी समय मैं गलियारे में प्रविष्ट हुआ लेकिन इस बार तुम्हें घण्टी सुनाई नहीं दी क्योंकि अब तुम बाहर वाले कमरे में थीं । इस थ्योरी से हर बात स्पष्ट हो जाती है । भीतरी कमरे में जो घन्टी तुमने सुनी थी वह मेरे आगमन की नहीं थी बल्कि रवीन्द्र के वापिस जाने की थी ।”
दीपा की आंखें डबडबा आई । वह मरे स्वर से बोली - “तो फिर... मैं... मैं... तो... रवीन्द्र के हाथ का खिलौना बन गई ?”
“चिन्ता मत करो !” - सुनील उसे आश्वासन देता हुआ बोला - “रवीन्द्र को नीचा मैं दिखाऊंगा ।”
“कैसे ?”
“रवीन्द्र यह समझता है कि असली प्रोनोट नष्ट हो चुका है । नहीं तो वह जाली प्रोनोट बनाने का हौसला न करता और दुर्भाग्य से यह बात सच भी है । लेकिन वह प्रोनेट तो आखिरकार तुम्हारा ही लिखा हुआ था न । तुम अखबार में छपी प्रतिलिपी देखकर वैसा ही एक प्रोनोट और लिख डालो । तुम्हारा लिखा प्रोनोट तो असली होगा । जब रवीन्द्र को असली प्रोनोट दिखाया जाएगा तो उसके लिए यह जवाब देना कठिन हो जाएगा कि उसके पास तुम्हारा प्रोनोट कहां से आया ? जब उसका एक झूठ पकड़ा जाएगा तो मैं ‘ब्लास्ट’ में यह प्रचार कर दूंगा कि उसकी बाकी कहानी भी झूठ है । डन ?”
“डन !”
सुनील ने एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से यूथ क्लब फोन किया ।
“हल्लो, रमाकान्त !” - सुनील बोला - “कोई नई खबर ?”
“केवल यही रवीन्द्र ने सेसिल होटल छोड़ दिया है ।”
“अब कहां है वह ?”
“एम्बैसेडर में ।”
“क्या ?” - सुनील हैरान होकर बोला - “तुम्हारा मतलब है उसी होटल में जहां दीपा ठहरी हुई है ?”
“हां ! दीपा तीसरी मन्जिल के दो सौ चौदह नम्बर कमरे में है और रवीन्द्र चौथी मंजिल के चार सौ बत्तीस नम्बर में ।”
सुनील क्षण भर चुप रहा और बोला - “आजकल गोपाल कहां है, रमाकांत ?”
“कहीं हो ।” - रमाकांत जल कर बोला - “मेरी बला से । सुनील, क्रानिकल को बयान देकर उसने मेरे साथ भारी विश्वासघात किया है ।
“ये बातें छोड़ो, यार । उससे मिलना बहुत जरूरी है ।”
“अगर बहुत जरूरी है तो उसके घर ही चलते हैं ।” - रमाकांत जरा ठण्डे स्वर से बोला ।
“यह ठीक है । तुम मुझे उसके घर का पता बता दो और स्वयं भी वहीं पहुंच जाओ । मैं भी आ रहा हूं ।”
रमाकांत ने उसे गोपाल का पता बता दिया ।
सुनील ने टैक्सी को और गोपाल के घर से थोड़ी दूर ही उतर गया । वह बड़ी सावधानी से चलता हुआ उसके घर के पास पहुंचा । रमाकांत वहां पहले ही खड़ा था ।
“गोपाल एकदम तुम्हारी नजरों में महत्वपूर्ण क्यों हो उठा है ?” - रमाकांत ने उसे देख कर पूछा ।
“क्योंकि वही एक आदमी है जो हत्या के समय मुरली के आफिस की निगरानी कर रहा था । जो रिपोर्ट उसने तुम्हें भेजी थी उसके विषय में मैं उसके मुंह से सुनना चाहता हूं ।”
दोनों गोपाल के घर में घुस गये । रमाकांत ने द्वार खटखटया ।
द्वार गोपाल की पत्नी ने खोला ।
“गोपाल है ?” - रमाकांत ने सीधा प्रश्न किया ।
“आप लोग भीतर आ जाइये ।” - वह द्वार से हटती हुई बोली - “अभी आध घन्टे पहले उनका फोन आया था कि वे घर आ रहे हैं । बस अब पहुंचने ही वाले होंगे ।”
दोनों जाकर भीतर बैठ गये ।
लगभग आधे घन्टे गोपाल घर आया । सुनील और रमाकांत को देखते ही उसके चेहरे पर परेशानी के भाव झलकने लगे ।
“कम आन, गोपाल !” - सुनील बोला ।
“क्रॉनिकल को बयान देते समय घबराहट नहीं हुई, तुम्हें !” - रमकांत क्रोधित स्वर से बोला - “और अब...”
“शट अप, रमाकांत ।” - सुनील रमाकांत को टोक कर बोला - “भीतर आओ, गोपाल ।”
गोपाल रामाकांत और सुनील के सामने आ बैठा ।
“गोपाल !” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “तुम्हें रमाकांत ने कहा था न कि अगर दीपा जहाज पर जाये तो तुम उसके पीछे वहां नहीं जाओगे बल्कि बीच पर ही रुक कर मोहन का इन्तजार करोगे और उसके बाद से मोहन दीपा की निगरानी करेगा ?”
“जी हां, कहां था ?” - गोपाल धीमे स्वर से बोला ।
“तो फिर तुम मोहन की प्रतीक्षा में बीच पर रुकें क्यों नहीं ? दीपा के पीछे जहाज पर क्यों गए तुम ?”
“कारण था ।”
“क्या कारण था ?”
“बात यह है, सुनील साहब ।” - गोपाल पहलू बदलता हुआ बोला - “मैं मिस्टर रमाकान्त की नजर में कोई महत्वपूर्ण आदमी नहीं हूं । यूथ क्लब में जो महत्व जौहरी का था या दिनकर का या राकेश का या मोहन का है, वह मेरा नहीं है । मुझे कभी भी कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं सौंपा जाता । उस दिन भी जब दीपा के पीछे जहाज पर जाने का मौका आया था तो इन्होंने मुझे हटाकर मोहन को लगा दिया था । संयोगवश मोहन समय पर वहां नहीं पहुंच सका था इसलिए मैंने सोचा कि अगर मैं जहाज पर चला जाऊं और वहा पर आपकी कुछ सहायता कर सकूं तो ये मुझे भी कार्यदक्ष आदमी समझने लगेंगे और बड़े काम सौंपने के मामले में मेरा भी भरोसा करने लगेंगे ।”
“अगर यही बात थी ।” - रमाकान्त एकदम बोला - “तो फिर तुम दीपा के...”
“बीच में दखल मत दो रमाकान्त ।” - सुनील बोला - “मुझे बात करने दो ।”
“अगर तुम रमाकांत के काम के लिए इतनी ईमानदारी दिखाते थे ।” - सुनील गोपाल से बोला - “तो ‘क्रॉनिकल’ को बयान देने वाली बात कहां से आ टपकी ?”
“हत्या के बाद जहाज से किनारे पर जो भी आदमी पहुंचता था अखबार के रिपोर्टर जहाज का समाचार जानने के लिए उसे घेर लेते थे । ‘क्रॉनिकल’ का रिपोर्टर ललित मुझे जानता था और यह भी जानता था कि मैं यूथ क्लब का मेम्बर हूं और यूथ क्लब आपके लिए काम करती है । ललित ने मुझे जहाज पर घटी सारी घटनाओं को बताने के बदले ‘क्रॉनिकल’ से भारी रकम दिलवाने का वायदा किया । उसने कहा कि आप जहाज पर गिरफ्तार हो गये थे और अगले चौबीस घन्टों में वैसे भी सारी कहानी सामने आ जाती थी इसलिए मेरे कुछ बता देने से रमाकान्त और सुनील को तो कोई फर्क तो नहीं पड़ने वाला था । हां, न बताने से मुझे जो रुपया मिलने वाला था, वह नहीं मिलेगा । ललित की मेरे बयान में यह दिलचस्पी थी कि वह चाहता था कि धरती के स्वर्ग की घटनाओं का प्रमाणिक विदरण ‘क्रॉनिकल’ में ही छपे ।”
“तुमने जो रिपोर्ट मुझे दी थी, वह तो ठीक थी न ?” - रमाकान्त ने पूछा ।
“मेरी दी हुई रिपोर्ट शतप्रतिशत सच थी, मिस्टर रमाकान्त !” - वह तमक कर बोला - “मैंने अखबार के जरिए रुपया हासिल करने का मौका छोड़ने का लोभ संवरण नहीं कर सका, इसका अर्थ यह नहीं कि मैं बेईमान हूं ।”
“खैर छोड़ो ।” - सुनील बोला - “तुम मेरी बात का जबाब दो । जहाज पर पहुंचने के कितनी देर बाद दीपा मुरली के आफिस की ओर गई थी ?”
“दो-तीन मिनट बाद ही ।”
“और उससे कितनी देर बाद मैं जहाज पर आया था ?”
“आठ या दस मिनट बाद । लेकिन सुनील साहब, आपके आने से पहले रवीन्द्र भी वहीं घूम रहा था ।”
“लेकिन तुम रवीन्द्र...” - रमाकान्त ने कहना शुरू किया लेकिन सुनील की आंखों में चेतावनी का भाव देखकर चुप हो गया ।
“रवीन्द्र के गलियारे से बाहर आने के बाद मैं भीतर गया था, ठीक है ?” - सुनील ने पूछा ।
“जी हां ! और आप वहीं थे कि दीपा लौट आई थी । फिर दीनानाथ और सब-इन्स्पेक्टर भीतर गये थे और फिर आप सब-इन्स्पेक्टर के साथ बाहर निकले थे । आपके हाथों में हथकड़ियां थीं ।”
“अच्छा, फिर ?”
“फिर आप से तीन या चार मिनट बाद दीनानाथ भी बाहर आ गया ।”
“फिर ?”
“फिर उसी समय दीपा मुझे वापिस जाने के लिए मोटरबोट पर जाती दिखाई दी । मैं उसी बोट पर उसके साथ किनारे आ गया । उसके बाद मोहन ने चार्ज ले लिया और मेरी छुट्टी कर दी ।”
“तुमने दीपा से कोई बात की थी ?”
इस बार गोपाल का सिर नकारात्मक ढंग से हिला और फिर वह एकाएक उत्साह से बोला - “हां, मैंने दीपा से कहा था, दीपा ! भागो ! ! रवीन्द्र भी यहीं है ।”
“ओह !” - सुनील एक दीर्घ निःश्वास लेकर बोला - “तो वह तुम थे । लेकिन तुम्हें दीपा को ऐसी चेतावनी देने की क्या जरूरत थी ?”
“मुझे शुरु से ही ऐसा लग रह था कि कहीं न कहीं जरुर कोई गड़बड़ हो गई है । मैंने आपको हथकड़ियां लगी देखी थीं । इस नगर में आप बड़े प्रतिष्ठित आदमी हैं । आपको हथकड़ियां लगने का मतलब था कि वाकई कोई गम्भीर बात हो गई है । मेरे ख्याल से आप दीपा को बचाने के लिए बला अपने सर ले रहे थे इसलिए आप यह चाहेंगे कि दीपा जहाज पर न रहे । अतः मैं एकदम दीपा के पीछे जाकर जोर से चिल्ला पड़ा - दीपा ! भागो ! ! रवीन्द्र भी यहीं है और स्वयं पहले ही नीचे प्रतीक्षा करती हुई मोटरबोट पर जा बैठा । दीपा भी भागी हुई आई और उसी मोटरबोट में सवार हो गई ।”
“अब गोपाल !” - सुनील एकदम बदले स्वर से बोला - “मैं तुमसे वह प्रश्न पूछने जा रहा हूं जिसे पूछने की रमाकान्त दो बार चेष्टा कर चुका है । तुम दीपा के पति रवीन्द्र को कैसे जानते हो ?”
गोपाल कई क्षण चुप रहा और फिर धीरे से बोला - “यूथ क्लब जायन करने से पहले एक बार मैंने रवीन्द्र के लिए काम किया था ।”
“क्या काम ?” - सुनील एकदम चिलचस्पी लेता हुआ बोला ।
“मैं रवीन्द्र के कहने पर लगभग दो सप्ताह दीपा की निगरानी करता रहा था ।”
“किस लिए ?”
“उसके चरित्र में कोई ऐसी खराबी जानने के लिए जिसके दम पर रवीन्द्र दीपा से तलाक ले सके और उसे अपने बच्चे बबली की सरपरस्ती के अयोग्य सिद्ध करके लाखों रुपये की सम्पत्ति स्वयं हथिया सके ।”
“तुमने जाना कुछ ?”
“कुछ होता तो जानता न ! दीपा तो बेहद शरीफ और वफादार बीवी सिद्ध हुई । कभी-कभी जुआ खेलने को छोड़कर उसने अपने जीवन में नैतिक या सामाजिक दृष्टि से शायद ही कोई बुरा काम किया हो ।”
“तुमने दीपा को समुद्र में रिवाल्वर फेंकते देखा था ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं मैं तो दीपा को डेक पर पहुंचने से पहले ही किश्ती में जा बैठा था ।”
“अच्छा गोपाल !” - सुनील उठता हुआ बोला - “रमाकान्त ने अभी तुम्हें यूथ क्लब से निकाला नहीं है और मैं चेष्टा भी यही करूंगा कि तुम यूथ क्लब के सदस्य बने रहो ।”
“बहुत, बहुत धन्यवाद, सुनील साहब ।” - गोपाल कृतज्ञतापूर्ण स्वर में बोला ।
दोनों गोपाल के घर से बाहर आ गए ।
“अच्छा रमाकान्त ।” - सुनील मिलाने के लिए हाथ बढाता हुआ बोला - “मैं चला ।”
“कहां ?” - रमाकान्त उसका हाथ थामता हुआ बोला ।
“होटल एम्बेसेडर, रूम नम्बर चार सौ बत्तीस ।”
“रवीन्द्र के पास ?”
“हां !”
“सुनील, हमने यह पता लगा लिया है कि रवीन्द्र को सात हजार रुपये किसने दिए हैं ?”
“कौन है वह ?” - सुनील से उत्सुकता से पूछा ।
“नैशनल बैंक का मैनेजर, रामास्वामी । रामास्वामी ने रवीन्द्र को यह रुपया अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर दिया है । उससे रवीन्द्र ने यह रुपया बिजनेस में लगाने के बहाने मांगा है । रामास्वामी को अगर यह मालूम होता कि रवीन्द्र इस रुपये रुपये से दीपा का प्रोनोट खरीदने वाला है तो शायद वह उसे रुपया नहीं देता ।”
“हूं ।”
***
सुनील एम्बेसेडर होटल के चार सौ बत्तीस नम्बर में रवीन्द्र के सामने बैठा था ।
“होटल सेसिल से तुम एकाएक ही भाग निकले ?” - सुनील बातचीत शुरू करता हुआ बोला ।
“मैं अखबार के रिपोर्टरों से बचना चाहता था ।” - वह बोला ।
“रिपोर्टरों से या पुलिस से ?”
“रिपोर्टरों से ।”
“बाई दि वे, मैं भी...”
“मुझे मालूम है । तुम सुनील कुमार चक्रवर्ती हो, ‘ब्लास्ट’ के स्पेशल कारस्पान्डेन्ट ।”
“यह तो बड़ी अच्छी बात है । फिर तो मुझे भीतर आने देकर मुझ पर बड़ी मेहरबानी की तुमने ।”
“मेहरबानी तो हो चुकी ।” - रवीन्द्र तिक्तता का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “अब मतलब की बात करो ।”
“मैंने क्रॉनिकल में तुम्हारा बयान पढा था ।”
“फिर ?”
“तुमने मुरली से दीपा का प्रोनोट खरीदा था ।”
“तो फिर क्या हुआ ?”
“नकद रुपया देकर ?”
“और मुरली क्या मेरा चाचा लगता था जो वह सात हजार का कागज मुझे मुफ्त में देता !”
“जो सात हजार रुपये मुरली की मेज की दराज में पाये गए थे, वे तुम्हारे दिए हुए थे ?”
“मेरे ही होंगे ! मुरली ने सात हजार रुपये मुझसे लेकर दराज में रखे तो थे ।”
सुनील ने बड़ी शान्ति से वह प्रोनोट निकाला जो उसने दीपा से बाद में लिखवाया था और उसे रवीन्द्र के सामने करते हुए बोला - “जरा एक नजर इसे भी देखना ।”
लेकिन सुनील को यह देख कर भारी निराशा हुई कि रवीन्द्र के चेहरे पर इस नई परिस्थिति की तनिक भी प्रतिक्रिया नहीं हुई थी ।
“क्या देखूं इसमें ?” - वह भावहीन स्वर में बोला ।
“असली प्रोनोट यह है ।” - सुनील बोला ।
उत्तर में रवीन्द्र ने जम्हाई ली और अपने होंठों के आगे अपने दायें हाथ से दो-तीन चुटकियां बजायीं ।
“क्या यह बात तुम्हारे दिमाग में घुसी है कि इस असली प्रोनोट की मौजूदगी में तुम्हारे प्रोनोट की, जो कि जाली है, कहानी एकदम लचर हो गई है ?”
“मुझे मुरली से यह आशा नहीं थी ।” - रवीन्द्र सरल स्वर में बोला ।
“क्या ?”
“कि वह मुझे जाली प्रोनोट देकर मुझसे सात हजार रुपये ठग लेगा ।”
“असली प्रोनोट की मौजूदगी में तुम्हारे वाले प्रोनोट को बड़ी आसानी से जाली सिद्ध किया जा सकता है ।”
“तो पड़े करते रहो, बड़े भाई ।” - रवीन्द्र तनिक खीझकर बोला - “इससे मेरी सेहत पर क्या असर पड़ता है । अगर तुम मेरा प्रोनोट जाली सिद्ध कर दोगे तो ‘धरती के स्वर्ग’ के बटवारे के बाद अदालत मुझे मुरली के हिस्से में से सात हजार रुपये दिलवा देगी क्योंकि मुरली ने मुझे नकली प्रोनोट देकर ठगा है । और अगर मेरे वाला प्रोनोट असली है तो मैं दीपा से सात हजार रुपये लेने का हकदार हूंगा । मुझे तो दोनों ही तरह से लाभ है ।”
“तो इसका अर्थ यह हुआ” - सुनील बोला - “कि तुमने पहले से ही तैयारी कर रखी थी कि अगर अभी असली प्रोनोट प्रकाश में आ गया तो तुम्हारा जवाब क्या होगा ?”
“सब फालतू बातें हैं ।” - रवीन्द्र सिर हिलाता हुआ बोला - “तुम कभी भी यह सिद्ध नहीं कर सकते कि मेरा प्रोनोट नकली है ।”
“क्यों ?”
“सारा शहर जानता है कि तुम दीपा को कवर करने की कोशिश कर रहे हो । तुम्हारे कहने पर ऐसे जितने प्रोनोट तुम चाहो वह लिखकर दे सकती है और यही हमने किया भी है । तुमने सोचा होगा कि जब तुम मुझे यह प्रोनोट दिखाओगे तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल जायगी । सुनील साहब, मैं इतनी आसानी से हथियार डाल देने वाला नहीं हूं । अगर तुम्हारे वाला कागज दीपा का साइन किया हुआ है तो इससे यह मतलब हरगिज भी नहीं है कि मेरे वाला कागज उसका साइन किया नहीं है । क्या पता उसने ऐसे-ऐसे कितने प्रोनोट लिखे हुए हैं ।”
“बात कुछ जमी नहीं ।”
“बात तुम्हारी नहीं जम रही, बड़े भाई ।” - रवीन्द्र उपहासास्पद स्वर में बोला - “तुम दीपा को बचाने की चेष्टा कर रहे हो लेकिन दीपा ने - मुरली की - हत्या - की - है ।”
“क्यों ?”
“अपना प्रोनोट हासिल करने के लिए ।”
“तो फिर हासिल किया क्यों नहीं उसने ?”
“क्योंकि वह मुरली के पास था नहीं । मैं उसे पहले ही मुरली से ले आया था ।”
सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राईक का पैकेट निकाला, उसमें एक सिगरेट निकालकर सुलगाया और फिर एक गहरा कश लेकर ढेर-सा धुआं उगलता हुआ बोला - “अब मैं अपनी थ्योरी बताऊं ?”
“बताओ ! सुनें, तुम क्या कहते हो ?”
“दीनानाथ और मुरली की पार्टनरशिप समाप्त होने वाली थी । इसलिए वे जल्दी से दीपा के प्रोनोट से पीछा छुड़ाना चाहते थे लेकिन दीपा के पास उस समय रुपया नहीं था । उन्होंने दीपा का प्रोनोट तुम्हें ले लेने के लिए कहा । तुम्हें दीपा के विरुद्ध किसी ऐसे सबूत की जरूरत थी ही जो तुम्हें उससे तलाक दिलवा सकता । इसलिए तुमने किसी प्रकार सात हजार रुपये इकट्ठे किये और जहाज पर पहुंच गये । मुरली के आफिस में तुमने मुरली की लाश के पास अपनी पत्नी को खड़े पाया । तुम्हें दीपा के मुरली के कत्ल में फंसने की सम्भावना दिखाई देने लगी । अगर दीपा पर हत्या का इल्जाम लग जाता तो वह और भी आसानी से तुम्हारे रास्ते से हट जाती । उस दिन तो तुम चुपचाप वहां से लौट आये लेकिन बाद में जब अखबार में तुमने यह पढा कि मुरली की मेज की दराज में सात हजार रुपये पाये गये हैं तो तुम्हें यह बेईमानी सूझी । तुमने सोचा शायद दीपा ने सात हजार रुपये देकर अपना प्रोनोट वापिस ले लिया था और उसे नष्ट कर दिया था । तुम मुरली की लाश के पास दीपा की मौजूदगी वाली बात तो पुलिस को बताने का इरादा कर ही रहे थे ताकि दीपा फंस जाये, तो क्यों न यह दावा भी कर दिया जाये कि प्रोनोट के बदले मुरली को सात हजार रुपये देने वाले तुम थे । दीपा तुम्हारी पत्नी थी । उसके हस्ताक्षार नकल करना तो मुश्किल काम था नहीं । तुमने दीपा की किसी पुरानी चिट्ठी से अपने बनाये प्रोनोट पर उसके हस्ताक्षर ट्रेस कर डाले होगे ।”
“बड़ी बोर कहानी है ।” - रवीन्द्र जमहाई लेता हुआ बोला - “मैं तो तुम्हें बड़ी ऊंची प्रतिभा का आदमी समझता था ।”
“जाली प्रोनोट बनाने की तुम्हारी हिम्मत यूं हुई क्योंकि असली प्रोनोट सामने आने की सम्भावना नहीं थी । अगर दीपा ने असली प्रोनोट नष्ट कर दिया होता तो वह इस बात को कभी स्वीकार नहीं करती और अगर दीपा के अलावा किसी और ने वह प्रोनोट खरीदा होता तो वह आदमी भी कभी इस तथ्य को स्वीकार करने का हौसला नहीं कर पाता क्योंकि इससे तो यह सिद्ध हो जाता है कि मुरली को जीवित देखने वाला वह आखिरी आदमी था वर्ना रुपया दराज में होने के स्थान पर स्ट्रांगरूम में होता ।”
“बकवास !” - रवीन्द्र होंठ सिकोड़कर बोला ।
“और अगर फिर भी असली प्रोनोट सामने आ जाता ।” - सुनील कहता गया - “तो तुम बड़ी आसानी से यह कह सकते थे कि मुरली ने तुम्हें नकली कागज देकर ठग लिया था... और प्यारेलाल, जो कुछ मैं कह रहा हूं मैं उसे सिद्ध भी कर सकता हूं ।”
“कैसे ?” - रवीन्द्र ने लापरवाही से पूछा ।
“मेरा आदमी तुम्हारा पीछा कर रहा था । मुझे तुम्हारी हर गतिविधि की जानकारी है । तुम कहते हो कि तुम दो बार मुरली के आफिस में गये । एक बार प्रोनोट खरीदने और दूसरी बार रसीद लेने । लेकिन जो रिपोर्ट मुझे मिली है उसके अनुसार तुम केवल एक बार ही मुरली के आफिस की ओर गये थे ।”
“मुझे हैरानी है उन लोगों पर” - रवीन्द्र हंसता हुआ बोला - “जो तुम्हें दुर्लभ प्रतिभा का आदमी बताते हैं । सुनील साहब, मुझे मालूम था कि मेरा पीछा किया जा रहा था । अगर तुम्हारा जासूस यह कहता है कि वह मेरे पीछे जहाज पर गया था तो वह बकता है । मैं जानबूझकर उसी समय मोटरबोट पर चढा था जब केवल एक यात्री के लिए स्थान रह गया था । तुम्हारा आदमी तो मोटरवोट पर चढ ही नहीं सका था ।”
“लेकिन जहाज पर हमारा एक और आदमी भी था जो गलियारे पर नजर रख रहा था । उसने तुम्हें एक ही बार भीतर जाते देखा था ।”
“मैं जानता हूं तुम गोपाल की बात कर रहे हो लेकिन वह मुझ पर नहीं, दीपा पर नजर रख रहा था । सम्भव है उसने मुझे दूसरी बार भीतर जाते न देखा हो !”
“किनारे पर पहुंचते ही तुम्हारा फिर पीछा किया गया था ।” - सुनील शान्ति से बोला ।
“मुझे सब मालूम है भाई, और होटल पहुंचने तक मैंने उसे डाज भी दे दी थी... यार, तुम तो किसी दिन मेरे साथ फ्लैश खेलो । मैं तो ब्लफ खेलकर पांच मिनट में तुम्हारी जेबें खाली करवा लूंगा ।”
“यह तो तुम समझते हो न कि तुमने मेरे आदमी को डाज दे ली थी । वास्तव में तुम्हारे एक-एक एक्शन पर उसकी नजर रही थी ।” - सुनील उसके कथन की जरा भी परवाह किए बिना बोला ।
स्वीन्द्र ने अपनी कलाई पर से घड़ी उतारी और समय देखकर उसे अपने सामने रख लिया ।
“सुनील !” - वह बोला - “मैं तुम्हें तीन मिनट और देता हूं । उसके बाद या तो दफा हो जाना या फिर मैं पुलिस को फोन कर दूंगा कि उनका फरार मुजरिम इस समय यहां है ।”
“तुमने सेसिल होटल की सेफ में सात हजार रुपये रखवाये थे । तुम उसी समय जहाज पर मुरली की लाश देखकर आये थे । रुपया होटल की सेफ में रखवाने का कारण यह था कि बाद में मैनेजर यह गवाही दे सकता कि उस रात तुम्हारे पास सात हजार रुपये थे और तुम यह दावा कर सकते कि तुम मुरली से मिल नहीं पाये थे । लेकिन जब तुमने सुबह का अखबार देखा तो तुम्हारी स्कीम बदल गई । तुम्हें हराम में सात हजार रुपये हथियाने का मौका दिखाई देने लगा । प्यारेलाल, होटल का मैनेजर इस बात की गवाही देगा कि उस रात तुम्हारे पास सात हजार रुपये थे ।”
“तो फिर क्या हुआ ?” - रवीन्द्र बोला - “मैं बड़ी आसानी से यह दावा कर सकता हूं कि मैं जहाज पर चौदह हजार रुपये लेकर गया था । मैं समझता था कि मुरली मुझे यह कागज बहुत मंहगा बेचेगा । इसलिए मैं चौदह हजार रुपये लेकर वहां गया था लेकिन सौदा सात हजार रुपये में ही पट गया था । तुम सात जन्म यह सिद्ध नहीं कर सकते कि जहाज पर जाते समय मेरे पास सात हजार रुपये ही थे । मैं तो कहता हूं कि मैं चौदह हजार रुपये लेकर गया था ।”
“एक आदमी है जिसका बयान यह सिद्ध कर सकता है कि जहाज पर जाते समझ तुम्हारे पास सात हजार रुपये से अधिक नहीं थे ।”
“कौन ?”
“नेशनल बैंक का मैनेजर रामास्वामी, जिसने तुम्हें रुपया उधारे दिया है ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “और यही नहीं जब उसे यह पता लगेगा कि रुपया तुमने बिजनेस में नहीं एक प्रोनोट खरीदने में लगाया था तो वह सारे तकल्लुफ ताक पर रखकर तुम्हें रुपया लौटाने के लिए मजबूर कर देगा । रुपया अगर तुम लौटा भी दोगे तो भी इस धोखेबाजी का तुम्हारे बिजनेस पर ऐसा बुरा असर पड़ेगा कि मार्केट से तुम्हारी साख उड़ जायेगी । ...तीन मिनट हो गये हैं, रवीन्द्र साहब । मैं रामास्वामी से मिलने जा रहा हूं, चाहो तो पुलिस को फोन कर दो ।”
और वह उठकर द्वार की ओर चल दिया ।
रवीन्द्र के चेहरे से मुस्कराहट उड़ गई । वह एकदम घबरा उठा ।
“अरे सुनो-सुनो !” - वह सुनील को टोकता हुआ बोला ।
सुनील रुक गया और प्रश्नसूचक दृष्टि से उसकी ओर देखने लगा ।
“हालांकि कुछ फर्क तो नहीं पड़ता है ।” - रवीन्द्र बोला - “लेकिन फिर भी मैं नहीं चाहता कि तुम कोई ऐसी बात करो जिससे मेरे और रामास्वामी में फ्रिक्शन पैदा हो ।”
सुनील वापिस आ गया और रवीन्द्र के सामने आकर क्षण भर उसे घूरता रहा । रवीन्द्र विचलित हो उठा । फिर सुनील ने अपनी जेब में से प्रोनोट निकाला और उसके टुकड़े-टुकड़े करके ऐश-ट्रे में डाल दिए ।
“तुम भी क्या याद करोगे किसी रईस से पाला पड़ा था !” - सुनील बोला - “चलो हम तुम्हारे वाले डिमाण्ड नोट को असली मान लेते हैं ।”
“हां !” - रवीन्द्र चैन की सांस लेता हुआ बोला - “यह तो कुछ बात हुई । अब तुम इसके बदले में क्या चाहते हो ?”
“कुछ भी नहीं ।” - सुनील बोला - “तुम्हारी कुछ क्षण पहले की हड़बड़ाहट ने यह सिद्ध कर दिया है कि जहाज पर जाते समय तुम्हारे पास सात हजार रुपये ही थे । ‘क्रॉनिकल’ में दिये अपने बयान के जरिए तुम पहले ही मान चुके हो कि जहाज पर तुम मुरली से मिले थे । तुमने यह भी दावा किया है कि तुम ने उससे प्रोनोट खरीदा था और तुमने अखबार के फोटोग्राफरों से उसकी फोटो भी ले लेने दी थी । लेकिन जहाज से वापिस लौट आने के बाद भी तुम्हारे पास सात हजार रुपये थे, सेसिल का मैनेजर इस बात का गवाह है । अब सवाल यह पैदा होता है कि मुरली को एक पैसा भी दिए बिना तुम उससे प्रोनोट लेने में सफल कैसे हो गये । इसका एक ही उत्तर हो सकता है, मेरे जिगर के टुकड़े कि तुमने मुरली की हत्या करके उससे प्रोनोट हथिया लिया । और मिस्टर रवीन्द्रकुमार, तुम्हारी जानकारी के लिए मैं यह भी बता दूं कि तुम्हारी बीवी अदालत में जाएगी । तुम्हारे वाले जाली प्रोनोट को देखेगी और बेहिचक वह कह देगी कि वही असली कागज था जो उसने मुरली को लिखकर दिया था । यह कहने से उसे सात हजार रुपये का घाटा तो होगा लेकिन तुम फांसी पर लटक जाओगे ।”
रवीन्द्र का चेहरा फक पड़ गया । सुनील उसकी ओर ध्यान दिए बिना द्वार की ओर बढ गया ।
“सुनो... सुनो !” - वह हकलाया - “तुम... तुम...”
“और जहां तक तुम्हारे साथ फ्लैश खेलने का सवाल है ।” - सुनील द्वार खोलता हुआ बोला - “मुझे तुम्हारा निमन्त्रण ठुकराना ही पड़ेगा । मैं नहीं चाहता कि तुमसे फ्लैश खेलकर मैं तुम्हारे कपड़े भी उतरवा लूं । गुड बाई !”
सुनील ने भड़ाक से द्वार बन्द कर दिया ।
सुनील तीसरी मन्जिल पर उतर आया और दीपा के कमरे में घुस गया ।
“अब तुम्हें रवीन्द्र की चिन्ता करने की जरूरत नहीं ।” - सुनील बोला - “अब वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । अगर मेरी जरूरत पड़े तो मुझे 271193 पर फोन कर लेना ।”
सकपकाई-सी दीपा ने सहमति में सिर हिलाया ।
सुनील बाहर निकल आया ।
सुनील अपने नये फ्लैट में लौट आया ।
वह अभी एक सिगरेट सुलगा कर पलंग पर बैठा ही था कि रेणु के फ्लैट की ओर से किसी ने वह द्वार खटखटाया जो दोनों फ्लैटों को मिलाता था ।
सुनील ने उठ कर द्वार खोल दिया ।
दूसरी ओर रेणु के साथ कलावती खड़ी थी ।
“आप ?” - सुनील तनिक आश्चर्य से बोला ।
कलावती कोई उत्तर दिए बिना भीतर आ गई ।
“आप जहाज से कैसे गायब हो गई थीं ?”
“मैं क्या” - कलावती बोली - “कम से कम एक दर्जन लोग पुलिस की भरपूर निगरानी के बावजूद भी जहाज से खिसक गए थे ।”
“लेकिन कैसे ?”
“जहाज के एक अन्धेरे कोने से बाहर की ओर रस्सी लटका दी गई थी, नीचे एक नाव खड़ी थी, जो एक आदमी को किनारे पहुंचाने के सौ-सौ रुपये ले रही थी । इसी प्रकार कई लोग किनारे पहुंच गए थे । और मजेदार बात यह थी बरखुरदार, कि मुझे छोड़कर बाकी स्त्री-पुरुष सब ऐसे थे जो या तो दूसरों की बीवियों को साथ लाये थे या कालेज के ऐसे लड़के थे जो आम जगहों पर अपनी प्रेमिकाओं से मिलने का हौसला नहीं कर पाते । यह तो गनीमत समझो कि उन्हें सौ रुपये में नाव मिल गई वरना वे तो अपने सम्मान और प्रतिष्ठा की खातिर समुद्र में छलांग लगाने को तैयार थे ।”
सुनील चुप रह ।
“दीपा कहां है ? मैं उससे मिलना चाहती हूं ।”
“आपका दीपा से मिलना खतरे से खाली नहीं है । पुलिस को आप की तलाश है । आप कभी भी...”
उसी समय फोन की घन्टी घनघना उठी । रेणु ने फोन रिसीव किया । क्षण भर सुनने के बाद उसने रिसीवर सुनील के हाथ में थमा दिया ।
“हल्लो, सुनील हेयर ।” - सुनील बोला ।
“सुनील, मैं दीपा हूं ।” - दूसरी ओर से दीपा का घबराया स्वर सुनाई दिया - “बड़ी गड़बड़ हो गई है ।”
“क्या हो गया है ?”
“मैं कमरे में बैठी थी कि किसी ने खिड़की से मेरे कमरे में एक रिवाल्वर फेंक दी ।”
“तुमने उसे हाथ तो नहीं लगाया ?” - सुनील न जल्दी से पूछा ।
“मैंने... मैंने उसे उठा लिया था ।”
“अब कहां है वह ?”
“मैंने उसे मेज पर रख दिया है । वह 38 कैलिबर की रिवाल्वर है । लेकिन मैं क्या करूं उसका ?”
“तुन्हें कुछ भी करने का मौका नहीं मिलेगा । पुलिस वहां पहुंचने ही वाली होगी । लेकिन तुम कोई बयान मत देना । तुम...”
“कोई द्वार खटखटा रहा है ।” - दीपा का भयभीत स्वर सुनाई दिया ।
“फोन बन्द कर दो ।” - सुनील ने आदेश दिया ।
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटका और कलावती की ओर घूमकर बोला - “दीपा को किसी ने फंसा दिया है । पुलिस उसके कमरे का द्वार खटखटा रही है । वे फौरन पता लगा लेंगे कि दीपा ने कहां टेलीफोन किया था । पुलिस किसी भी क्षण यहां भी पहुंच सकती है । यहां से भागना ही श्रेयष्कर है ।”
उसने पलंग के नीचे से अपना सूटकेस निकाला और आनन-फानन अपना सामान भरना शुरू कर दिया ।
“तुम भागो, सुनील ।” - रेणु बोली - “सूटकेस यहीं छोड़ जाओ ।”
“नहीं रेणु । अगर यह सूटकेस यहां पाया गया तो तुम भी फंस जाओगी । मैं नहीं चाहता...”
उसी समय रेणु के फ्लैट का द्वार खटखटाया जाने लगा ।
सुनील चुप हो गया ।
कलावती ने तब बड़े सलीके से सारा सामान सूटकेस में रखकर उसे बन्द कर दिया ।
“दरवाजा खोलो ।” - दूसरी ओर से कोई चिल्ला रहा था ।
सुनील ने अटैची केस उठाया और बोला - “अपने फ्लैट में चलो, रेणु !”
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से कलावती की ओर देखा ।
“मेरी चिन्ता न करो ।” - वह बोली - “तुम रेणु के फ्लैट में जाओ । मैं यह द्वार इस ओर से बन्द कर लेता हूं । वे लोग तुम्हारी तलाश में आए हैं और तुम्हें पा जाने के बाद चले जायेंगे ।”
सुनील ने ऐसा ही किया ।
“द्वार खोलो ।” - दूसरी ओर से द्वार एकदम भड़भड़ाया जा रहा था - “नहीं तो इसे तोड़ दिया जाएगा ।”
सुनील ने आगे बढकर दरवाजा खोल दिया ।
प्रभूदयाल चार कांस्टेबलों के साथ धमधमाता हुआ भीतर आ घुसा ।
“सुनील ।” - वह सुनील से बोला - “यू आर अण्डर अरैस्ट ।”
“किस अपराध में ?” - सुनील बोला ।
“तुम्हारे ऊपर भारतीय दण्ड-विधान की कम-से-कम आधी दर्जन धाराए लगती हैं । और देवी जी” - वह रेणु की ओर घूमकर बोला - “आप जानती हैं कि फरार अपराधी को शरण देना अपराध होता है ?”
“पागल मत बनो, प्रभू !” - सुनील बोला - “रेणु ने मुझे कोई शरण नहीं दी है । मैं तो अभी पांच मिनट पहले यहां आया हूं । मैं शहर से बाहर जा रहा था, इससे मिलने चला आया ।”
और सुनील ने अपने सूटकेस की ओर संकेत कर दिया ।
“यह द्वार कौन-सा है ?” - प्रभूदयाल दूसरे फ्लैट को मिलाने वाले द्वार की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“बगल वाले फ्लैट का ।” - रेणु ने बताया ।
“कौन रहता है वहां ?”
“रहता होगा कोई ।”
“तुम्हें यह मालूम नहीं, तुम्हारे पड़ोस में कौन रहता है ?”
“नहीं !”
प्रभूदयाल क्षण-भर तिलमिलाया और फिर बोला - “इसे खोलो ।”
“मैं कैसे खोलूं ?” - रेणु उखड़ कर बोली ।
“यह दूसरे फ्लैट का द्वार नहीं हो सकता ।” - प्रभूदयाल अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “यह इसी फ्लैट का एक भाग है, तुमने जरूर कुछ छुपा रखा है वहां । तुम्हें खोलना पड़ेगा इसे ।”
उतर में रेणु ने खिड़की की ओर मुंह फेर लिया ।
“यह द्वार तोड़ तोड़ दो ।” - प्रभूदयाल झल्लाकर कान्स्टेबलों से बोला ।
आधे मिनट में उन्होंने द्वार के दोनों पल्ले उखाड़कर रख दिये ।
प्रभूदयाल भीतर घुस गया ।
कलावती पलंग पर रजाई ओढे लेटी हुई थी ।
“यह क्या तमाशा है ?” - वह चिल्लाई ।
प्रभूदयाल वुद्धा को देखकर हक्का-बक्का रह गया ।
“माफ कीजियेगा ।” - वह हकलाया - “हमने समझा था यह रेणु के ही फ्लैट का एक भाग है ।”
“कमाल की समझ है तुम्हारी !”
“जी, गलती हो गई ।” - प्रभूदयाल विनयपूर्ण स्वर से बोला ।
“जाओ, माफ किया ।” - कलावती बड़ी दयानतदारी से बोली ।
“आपका सामान कहां है ?” - प्रभूदयाल ने फिर संदिग्ध स्वर में पूछा ।
“मैंने यह फ्लैट आज ही किराए पर लिया है । अभी मैं सामान नहीं लाई ।”
प्रभूदयाल कई क्षण चुपचाप खड़ा रहा । एकाएक उसके दिमाग में वह वृद्धा घूम गई जो बड़े रहस्यमय ढंग से जहाज पर से गायब हो गई थी ।
“श्रीमती जी !” - वह कर्कश स्वर से बोला - “उठकर मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलिए । बहुत तमाशा हो चुका ।”
***
दीपा, रमाकान्त, कलावती, गोपाल, वह सब-इन्स्पेक्टर जिसने जहाज पर सुनील को हथकड़ी लगाई थी, रेणु, सुनील, प्रभूदयाल, जौहर, दीनानाथ, सब पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह के आफिस में बैठे हुए थे ।
रामसिंह अपना सिगार अपने विशिष्ट ढंग से अंगूठे और पहली उंगली में नचाता हुआ बोला - “आप सब लोग मुरली की हत्या के मामले से किसी न किसी प्रकार सम्बन्धित हैं और आप लोगों के नाम सम्मन भी इशू हो चुके हैं । आप हमारे देश के सम्मानित नागरिक हैं और आपको यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि कानून से खिलवाड़ करने का क्या नतीजा होता है आप में से कई तो केवल सुनील की शह पर ही कानून से लुका-छुपी का खेल खेलते रहे हैं । आप लोगों को केवल इसलिए यहां इकट्ठा किया गया है ताकि आपको अदालत में जाने से पहले अपनी स्थिति की भरपूर जानकारी हो जाए और आप यह समझ सकें कि एक अखबार-रिपोर्टर के पीछे चलने में - जिसकी दिलचस्पी आप में इतनी ही है कि वह अपने अखबार के लिए चटपटी खबरें चाहता है - आपकी भलाई है कानून का साथ देने में । रवीन्द्र ने पहले ही अपना बयान पुलिस में दे दिया है । रवीन्द्र... रवीन्द्र कहां है ?”
“वह तो अपने होटल से एकाएक गायब हो गया !” - प्रभूदयाल अपराधपूर्ण स्वर से बोला ।
“कैसे गायब हो गया ?” - रामसिंह बरस पड़ा - “क्या तमाशा है ?”
“सुपर साहब, हमारी पूरी निगरानी के बावजूद भी...”
“सफाई देने की जरूरत नहीं । उसको फौरन पकड़कर लाओ ।”
“जी कोशिश जारी है । वैसे हमारे पास उसका लिखित बयान तो है ही ।”
“हां तो मैं कह रहा था ।” - रामसिंह खंखार कर बोला - “कि सुनील ही ने आप लोगों को...”
“लेकिन सवाल तो यह है, रामसिंह ।” - सुनील बोला - “कि मुझे ही बलि का बकरा क्यों बनाया जा रहा है ?”
“क्यों कि तुमने ही सबसे ज्यादा होशियार बनने की चेष्टा की है ।” - रामसिंह बोला ।
“लेकिन मुझ पर इल्जाम क्या है ?”
“तुमने हत्यारे की सहायता की है ।”
“मैंने हत्यारे की नहीं, केवल दीपा की सहायता की है ।”
“एक ही बात है ।”
“एक ही बात नहीं है । अगर मैं यह सिद्ध कर दूं कि हत्या दीपा ने नहीं की है तो मुझ पर कौन-सा इल्जाम बाकी रह जाएगा ?”
“दीपा को तुम हरगिज भी बेकसूर सिद्ध नहीं कर सकते जबकि वह रिवाल्वर भी, जिससे मुरली की हत्या हुई है, उसके पास से बरामद की जा चुकी है ।”
“दीपा को फंसाया गया है । किसी ने खिड़की में से रिवाल्वर उसके कमरे में फेंक दी थी ।”
“मैं यह कहानी पहले भी सुन चुका हूं ।” - रामसिंह लापरवाही से बोला ।
“लेकिन एक कहानी बाकी है जो जो तुमने नहीं सुनी ।”
रामसिंह ने प्रश्नसूचक दृष्टि से सुनील की ओर देखा ।
“जौहर !” - सुनील जौहर की ओर मुड़ते हुए बोला - “शुरू हो जाओ ।”
“आपका मतलब है ।” - जौहर अचकचाकर बोला - “कि मैं...”
“हां, अपनी कहानी कह डालो ।” - सुनील उसे प्रोत्साहित कहता हुआ बोला ।
“सुपर साहब ।” - जौहर गला साफ करता हुआ बोला - “मुरली ने आत्महत्या की थी ।”
“क्या ?” - रामसिंह हैरानी से चिल्लाया ।
“मुरली ने आत्महत्या की थी ।”
“असम्भव ।”
“मैं ठीक कह रहा हूं, सुपर साहब ।” - जौहर बोला ।
और फिर उसने वे सारी बातें दोहरा दीं जो वह रमाकान्त और सुनील को पहले बता चुका था ।
“जो कुछ तुमने कहा है, तुम इसे सिद्ध कर सकते हो ?” - रामसिंह कठोर स्वर से बोला ।
“इसमें सिद्ध करने वाली कौन-सी बात है ? मुरली अपनी ही रिवाल्वर से मरा था और आप जानते ही हैं कि सुनील और सब-इन्स्पेक्टर के चले जाने के बाद दीनानाथ उस कमरे में अकेला रह गया था और रिवाल्वर को मुरली के पास से गायब करके आत्महत्या में हत्या की सम्भावना पैदा करने में सफल हो गया था ।”
“यह झूठ है ।” - दीनानाथ उबल पड़ा - “सुनील, तुम तो जानते ही हो कि तुम्हारे कमरे में से निकलने के पहले ही मैंने जौहर को बुलाने के लिए घन्टी बजा दी थी ।”
सुनील ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“और जौहर, तुम घन्टी सुनने के कितनी देर बाद आफिस पहुंच गये थे ?”
“पांच या छः सैकेण्ड में ।” - जौहर सोचता हुआ बोला ।
“जब तुम गलियारे में आ रहे थे, उस समय सुनील कहां था ?”
“वह कमरे में से बाहर निकल रहा था । उसके हाथों में हथकड़ियां लगी हुई थीं । साथ में यह सब-इन्स्पेक्टर भी था ।”
“और तुम्हारा ख्याल है कि सुनील के बाहर निकलने और तुम्हारे भीतर आने के बीच में मैंने रिवाल्वर गायब कर दी ?”
जौहर चुप रहा ।
“और फिर अगर मुरली ने आत्महत्या की भी थी तो मैं उसे भला हत्या सिद्ध करने की चेष्टा क्यों करता ?”
“ताकि तुम्हें बीमे के चालीस हजार रुपये मिल जाते ।”
“बेवकूफ आदमी, हम लोगों ने ऐसा कोई बीमा नहीं करवाया हुआ था ।”
“झूठ मत बोलो, दीनानाथ ।” - जौहर बोला - “तुमने और मुरली ने मेरे सामने एक-दूसरे के हक में बीस-बीस हजार रुपये का बीमा करवाया था । मैंने स्वयं तुम दोनों को प्रपोजल फार्म पर हस्ताक्षर करते देखा था ।”
“जरूर देखा होगा, लेकिन मुरली डाक्टरी परीक्षा पास नहीं कर सका था ।”
“तो... तो !” - जौहर हकलाया - “तुम्हारा मतलब है कि... कि बीमा नहीं हुआ था ?”
“कतई नहीं हुआ था ।” - दीनानाथ बोला - “अब बताओ इस बात से मुझे क्या फर्क पड़ता है कि मुरली ने हत्या की थी या आत्महत्या ?”
जौहर के मुंह से बोल नहीं निकला ।
रामसिंह मुस्कराये बिना न रह सका ।
“सुनील !” - वह बोला - “हमारे हक में तो यह और भीर अच्छा है कि तुम यह दावा करो कि वह रिवाल्वर मुरली की ही थी जिससे उसे गोली मारी गई थी । दीपा के हाथ की हथेली और पांचों उंगलियों के निशान मुरली की मेज पर पाये गये थे । दीपा हाथ के सहारे मेज पर झुकी होगी मौका मिलते ही उसने मुरली की मेज से रिवाल्वर निकालकर उसे शूट कर दिया होगा ।”
“अगर हत्या दीपा ने की है तो फिर रवीन्द्र क्यों भाग निकला ?” - सुनील ने तर्क किया ।
“शायद पब्लिसिटी से बचने के लिए ।”
और इससे पहले कि सुनील कोई नया तर्क उपस्थित कर पाता, रामसिंह दीपा की ओर घूमकर बोला - “आप अपनी सफाई में कुछ कहना चाहती हैं ?”
“नहीं !” - सुनील जल्दी से बोला - “इसे कुछ नहीं कहना है ।”
“मैंने तुमसे नहीं पूछा था ।” - रामसिंह कड़े स्वर से बोला ।
“तो फिर उसी से पूछ लो ।”
“मुझे कुछ नहीं कहना ।” - दीपा धीरे से बोली ।
“रामसिंह, दीपा जो कुछ भी कहेगी, उसके कारण मैं खामख्वाह साथ लपेटा जाऊंगा क्योंकि तुम लोगों के शब्दों में मैं उसे कवर करने की चेष्टा कर रहा था इसलिए क्या यह अच्छा नहीं होगा कि मैं ही सब कुछ कह दूं ।”
“तुम क्या कहना चाहते हो ?”
“सुनो !”- सुनील ने कहना शुरू किया - “दीपा जहाज पर मुरली से मिलने गई थी । जब वह उसके आफिस में पहुंची तो उसने मुरली को मरा पाया । दीपा का लिखा हुआ प्रोनोट उसके सामने मेज पर पड़ा था । लेकिन इससे पहले कि वह प्रोनोट अपने अधिकार में ले पाती कमरे में वह घन्टी बज उठी जो गलियारे में किसी के कदम रखने की सूचना देती थी । वह घबरा गई और वहां से निकलकर बाहर के कमरे में आ बैठी और किताब पढने का बहाना करने लगी । उसी समय मैं भीतर प्रविष्ट हुआ । मैंने दीपा को बाहर भेज दिया और स्वयं भीतर वाले कमरे में चला गया । मैंने मुरली की मेज का दराज खोला, उसमें सात हजार रुपये रखे, मेज पर से प्रोनोट उठाया और उसे आग लगा दी ।”
“क्या ?” - रामसिंह के नेत्र फैल गए ।
“मैंने दीपा का प्रोनोट नष्ट कर दिया ।”
“सुनील, यह एक और अपराध किया है तुमने ।”
“अपराध क्या है इसमें ? वह प्रोनोट दीपा का था, जिसे उसके प्रतिनिधि के रूप में मैंने सात हजार रुपये अदा करके वापिस ले लिया । अपराध तो यह तब होता जब मैं वह प्रोनोट बिना रुपये का भुगतान किए उठा लाया होता ।”
“लेकिन वह प्रोनोट जलाकर तुमने एक सबूत नष्ट कर दिया है ।”
“किस बात का सबूत ?”
“वह हत्या का ध्येय प्रकट करता था ।”
“अगर हत्या उस प्रोनोट की खातिर हुई होती तो वह लाश के पास मेज पर न पड़ा होता, सुपर साहब ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन तुम्हारी कहानी रवीन्द्र के लिखित बयान से भी तो मेल नहीं खाती है । प्रोनोट रवीन्द्र ने खरीदा था ।”
“वह बकता है ।”
“अगर वह बकता है तो फिर इस बात का क्या सबूत है कि तुम सच कह रहे हो ?”
“रवीन्द्र को सामने आने दो । मैं चैलेन्ज करता हूं कि वह हरगिज-हरगिज भी यह नहीं कहेगा कि प्रोनोट उसने खरीदा था ।”
“खैर, तुम और कुछ कहना चाहते हो ?” - रामसिंह यूं बोला जैसे वह केवल दिल बहलाने के लिए सुनील की बकवास सुन रहा हो ।
“मेरे द्वारा प्रोनोट जलाए जा चुकने के फौरन बाद ही कमरे में घन्टी बज उठी थी जिससे यह प्रकट होता था कि कोई दफ्तर की ओर आ रहा है । मैं भीतर का द्वार बन्द करके बाहर आ बैठा था । उसी समय दीनानाथ ने सब-इन्स्पेक्टर के साथ कमरे में प्रवेश किया था । - आपको याद है, सब-इन्स्पेक्टर साहब ।” - सुनील उस सब-इन्सपेक्टर को सम्बोधित करता हुआ बोला जो हत्या की रात जहाज पर दीनानाथ के साथ था - “कि दीनानाथ स्ट्रांगरूम के द्वार की ओर यह कहता हुआ बढा था कि वह उसे खोलकर भीतर देखना चाहता है कि वहां दीपा का प्रोनोट था या नहीं । उसने द्वार का पहिया पकड़कर घुमाना शुरू कर दिया था और तुमने उसे ऐसा करने से मना किया था ?”
“हां, याद है मुझे ।” - सब-इन्स्पेक्टर बोला ।
“जो कुछ मैंने कहा है, वह ठीक है ?” - सुनील ने दीनानाथ से पूछा ।
दीनानाथ क्षण भर सोचता रहा और फिर बोला - “हां, ठीक है ।”
“और उस समय जौहर कहां था ?” - सुनील उसके चेहरे पर दृष्टि गड़ाता हुआ बोला ।
“तुम जानते ही हो कि वह बाहर मेन हाल में था । मेरी घन्टी बजाने पर वह फौरन ही आफिस में आ गया था । क्यों जौहर ?”
“मुझे आफिस में पहुंचने में कुछ सैकिन्डों से अधिक समय नहीं लगा था ।” - जौहर बोला ।
“तुम्हें एकाएक स्ट्रांगरूम खोलने का ख्याल कैसे आया था ?” - सुनील ने दीनानाथ से पूछा ।
“क्योंकि मैं देखना चाहता था कि भीतर सब कुछ सुरक्षित था या नहीं ।” - दीनानाथ बोला ।
“तो फिर देखा क्यों नहीं था ?”
“क्योंकि सब-इन्स्पेक्टर ने मुझे ऐसा करने से मना कर दिया था ।”
“दीनानाथ ।” - सुनील एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “वास्तव में तुम्हारा स्ट्रांगरूम खोलने का इरादा कभी था ही नहीं । तुम उस समय द्वार को खोल नहीं रहे थे बल्कि खुले हुए द्वार को बन्द कर रहे थे ।”
“तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है ?” - दीनानाथ चिल्लाया - “तुम कहना क्या चाह रहे हो ?”
“यह कि मुरली की हत्या कर चुकने के बाद तुम्हारा सहयोगी जौहर अभी भीतर कमरे में ही था कि बाहर के कमरे में दीपा पहुंच गई थी । जौहर चूहे की तरह भीतर फंस गया था । दीपा किसी भी क्षण भीतर प्रवेश कर सकती थी । भीतर केवल एक ही स्थान था जहां जौहर छुप सकता था - वह था स्ट्रांगरूम । दरअसल हत्या की पूरी स्कीम पहले ही तुम्हारे और जौहर के बीच में तय हो चुकी थी । तुम मुरली को अपने रास्ते से हटाना चाहते थे । स्कीम थी कि मुरली के बुलाने पर जौहर भीतर जायेगा, मौका मिलते ही दराज में से उसकी रिवाल्वर निकालकर वह उसे शूट कर देगा, रिवाल्वर को वहीं छोड़ देगा ताकि केस आत्महत्या का लगे और फिर वापिस मेनहाल में खिसक जायेगा । स्कीम के अनुसार जौहर ने मुरली को गोली मार दी, बाहर चलती हुई मोटरबोट की आवाज में गोली की आवाज दबकर रह गई लेकिन साथ ही उस शोर में उस घण्टी की आवाज भी दब गई जो दीपा का गलियारा पार करते समय भीतर बज उठी थी । इससे पहले कि जौहर रिवाल्वर को ऐसी जगह रख पाता जहां से यह महसूस होता कि आत्महत्या कर चुकने के बाद रिवाल्वर मुरली के हाथ से निकलकर नीचे जा पड़ी है, दीपा ने द्वार खटखटाते हुए आवाजें लगानी शुरू कर दीं । - भीतर कोई है... मुरली, मैं दीपा हूं, भीतर आ जाऊं । जौहर रिवाल्वर समेत स्ट्रांगरूम में घुस गया और द्वार भिड़काकर भीतर बैठ गया । भीतर से स्ट्रांगरूम के ताला या कुन्डा नहीं लगाया जा सकता था । जब तुम जहाज पर लौटे तो तुम्हें जौहर कहीं भी दिखाई नहीं दिया । तुम सब-इन्स्पेक्टर के साथ मुरली के आफिस में आए तो तुमने मुझे बैठा देखा और भीतर के कमरे में मुरली को पाया । तुम तो इसे आत्महत्या का केस जताना चाहते थे इसलिए तुमने आस-पास रिवाल्वर देखना शुरू किया । लेकिन रिवाल्वर तुम्हें कहीं भी दिखाई नहीं दिया । तुम समझ गए कि तुम्हारी स्कीम कहीं न कहीं गड़बड़ा गई थी । तुम्हें वह गड़बड़ समझते देर नहीं लगी । तुम समझ गए कि जौहर जरूर रिवाल्वर समेत स्ट्रांगरूम में छुपा बैठा है । तुम्हें भय था कि सब-इन्स्पेक्टर या मैं स्ट्रांगरूम का द्वार न खोल दें, इसलिए तुमने द्वार खोलने का बहाना करके उलटा उसे बन्द कर दिया । लेकिन क्योंकि जौहर को बाहर निकलना जरूरी था । इसलिए तुमने मुझ पर इल्जाम लगाने शुरू कर दिए कि मैंने प्रोनोट चुरा लिया था । सब-इन्सपेक्टर मुझे तलाशी लेने के लिए दूसरे कमरे में ले चला । मेरे सामने ही तुमने जौहर को बुलाने के लिए घन्टी बजा दी । जब तुम अकेले रह गए तो तुमने स्ट्रांगरूम का द्वार खोलकर जौहर को बाहर निकाल लिया और इस बात को अधिक बल देने के लिए कि जौहर घण्टी की आवाज सुनकर ही वहां पहुंचा था तुमने अपने बयान में जौहर को यह कहने के लिए कहा कि तुम उस कुर्सी में कुछ छुपाने की चेष्टा कर रहे थे जिस पर मैं बैठा हुआ था । तुम यह भी महसूस कर रहे थे कि हत्या का अपराध दीपा के सिर मंढा जा सकता है । बाद में जब तुमने यह देखा कि पुलिस दीपा के ही पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई थी और उसके विरुद्ध कई सबूत भी इकट्ठा कर चुकी थी तो तुमने आत्महत्या वाली थ्योरी पर जोर देना बन्द कर दिया । दीपा को फंसाने की रही-सही कसर तुमने उसके होटल एम्बेसेडर वाले कमरे में मुरली की रिवाल्वर फेंककर पूरी कर दी ।”
“मैंने इतनी तगड़ी बकवास आज तक नहीं सुनी थी ।” - दीनानाथ अट्टहास करता हुआ बोला ।
“यह बकवास नहीं है, दीनानाथ ! मेरे पास सबूत है इसका ।”
“कौन-सा सबूत ?”
“यह कि गोपाल गलियारे की निगरानी कर रहा था । उसके अनुसार पहले दीपा भीतर गई थी और फिर रवीन्द्र थोड़ी ही देर बाद वापिस आ गया था । फिर मैं भीतर गया था । फिर दीपा बाहर आ गई थी । फिर दीनानाथ और सब-इन्स्पेक्टर भीतर गए थे । फिर मैं और सब-इन्स्पेक्टर बाहर आए थे । फिर तुम बाहर आए थे । अगर गोपाल ने इन सबको देखा था तो उसने जौहर को भीतर जाते कैसे नहीं देखा ? अगर जौहर ने गलियारे में कदम रखा होता तो गोपाल को वह जरूर दिखाई दिया होता । क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि जौहर पहले से ही भीतर था ।”
“तुमने जौहर को भीतर जाते देखा था ?” - रामसिंह ने विचारपूर्ण स्वर में गोपाल से पूछा ।
“नहीं ।” - गोपाले उत्तेजित स्वर मे बोला - “भगवान कसम, मैंने जौहर को भीतर जाते नहीं देखा था ।”
रामसिंह बोला - “हैरानी की बात है । आज तक मैंने किसी केस में...”
“सुपर साहब !” - कलावती, जो इतनी देर से चुपचाप बैठी रही थी बोल उठी - “मैं भी कुछ कहना चाहती हूं ।”
“कहिए जी, आप भी कहिए ।” - रामसिंह तिक्तता का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
“मुझे नहीं मालूम जो कुछ मैंने किया है, उसकी सजा क्या होगी ?” - वृद्धा नाटकीय स्वर में बोली - “लेकिन फिर भी मैं हर सजा भुगतने के लिए तैयार हूं । मैंने बहुत दुनिया देख ली है । मेरे मरने-जीने से कोई फर्क नहीं पड़ता । लेकिन मेरी पोती दीपा अभी जवान है, उसके आगे अभी सारा जीवन पड़ा है । दीपा, मुरली और दीनानाथ के कारण बहुत दुखी थी । ये बदमाश जीवित रहने के योग्य नहीं थे । उस रात मैं दोनों की हत्या कर डालने के इरादे से जहाज पर गई थी । मेरे पास 38 केलीबर का रिवाल्वर था । मैं जहाज पर पहुंच कर मौके का इन्तजार करती रही । मैंने दीपा को आते देखा । फिर रवीन्द्र भीतर गया और वापिस आ गया । फिर सुनील भीतर गया और दीपा आ गई । फिर दीनानाथ और सब-इन्स्पेक्टर भीतर गये । फिर मैंने सुनील और सब-इन्स्पेक्टर को बाहर निकलते देखा । वह अच्छा अवसर था । उस समय मुरली और दीनानाथ दोनों भीतर थे । और मैं दोनों को गोली मार देना चाहती थी । मैं गलियारे में घुस गई । मैं मुरली के प्राइवेट आफिस के द्वार पर आ खड़ी हुई । मेरे हाथ में रिवाल्वर था । मुझे मालूम नहीं था कि मुरली मरा पड़ा था । मैं तो समझी थी कि वह मेज पर सिर रखे लेटा हुआ था । दीनानाथ उस समय स्ट्रांगरूम का द्वार खोल रहा था । मैं दीनानाथ को निशाना बनाकर रिवाल्वर को घोड़ा दबाने ही वाली थी कि मैंने दीनानाथ को स्ट्रांगरूम का द्वार खोलकर जौहर को बाहर निकालते देखा । मैं जौहर की मौजूदगी में दीनानाथ को नहीं मारना चाहती थी इसलिए मैं चुपचाप वापिस आ गई । थोड़ी देर बाद दीनानाथ बाहर निकला । मैंने उसका उस कमरे तक पीछा किया जहां सुनील की तलाशी हो रही थी । मैं द्वार से लगी भीतर की बातचीत सुनती रही । वहां से मुझे पता चला कि मुरली की हत्या हो गई थी । यह सुनकर मैं वापिस डैक पर भाग आई । मैंने रिवाल्वर समुद्र में फेक दिया । उस समय दीपा डैक पर आई और सीढियां उतरकर मोटरबोट पर जा बैठी ।”
“आप यह बात कसम खाकर कह सकती हैं ?” - रामसिह उत्तेजित स्वर में बोला - “कि आपने दीनानाथ को स्ट्रांगरूम का द्वार खोलते और जौहर को उसमें से निकलते देखा था ?”
“मैं दुनिया की बड़ी से बड़ी कसम खाकर कहती हूं कि जो मैंने कहा है, सौ फीसदी सच है ।” - वृद्धा बोली ।
रामसिंह के कठोर नेत्र दीनानाथ के चेहरे पर टिक गये ।
दीनानाथ कई क्षण रामसिंह से नजर चुराता रहा और फिर लड़खड़ाये स्वर से बोला - “मैं इस मामले में जौहर का सहयोगी नहीं हूं । मुझे मालूम नहीं था कि वह स्ट्रांगरूम में घुसा बैठा था और न ही सुनील के कथनानुसार मैंने स्ट्रांगरूम का द्वार बन्द किया था । हां, सुनील के चले जाने के बाद मैंने वह द्वार खोला जरूर था, और आप विश्वास कीजिए मुझ पर आश्चर्य का पहाड़ टूट पड़ा था, जब मैंने जौहर को भीतर से निकलते देखा था । उसने मुझे बताया कि मुरली ने उसे कुछ कागज निकालकर जाने कि लिए स्ट्रांगरूम में भेजा था । उसी समय बाहर से दीपा की आवाज सुनाई दी थी । मुरली ने उसे कुछ देर भीतर ही रहने के लिए कहकर द्वार बन्द कर दिया था । जौहर कहता था कि वह भीतर ही था कि उसे बाहर गोली, चलने की आवाज सुनाई दी थी । वह डर के मारे भीतर ही बैठा रहा था । उसे भय था कि दीपा उसे वहां देखकर कहीं उसे भी गोली न मार दे । मैं जानता था कि अगर किसी को पता लग गया कि उस समय जौहर स्ट्रांगरूम में था तो मैं खामख्वाह उसका सहयोगी समझ लिया जाऊंगा । इसलिए मैंने यही बेहतर समझा कि मैं जौहर को चुपचाप वहां से निकल जाने दूं और पुलिस को दीपा के ही पीछे पड़ा रहने दूं लेकिन अगर मुझे यह मालूम होता कि कलावती ने मुझे देख लिया था तो...”
“उसने कुछ नहीं देखा था उल्लू के पट्ठे ।” - जौहर एकाएक चीख पड़ा - “हरामजादे, यह बुढिया झूठ बोल रही है । गोपाल गलियारे की निगरानी कर रहा था, उसने इसे तुम्हारे बाहर निकलने से पहले भीतर जाते नहीं देखा और फिर अगर इसने गलियारे में कदम रखा होता तो भीतर की घन्टी तो बजती । तू इसके झांसे में आ गया है । सूअर के बच्चे ! तू खुद तो फंसा ही साथ मझे भी फंसा दिया ।”
“जीता रह पट्ठे !” - सुनील चैन की सांस लेता हुआ बोला - “और यही रिकार्ड चालू रख । तू जरूर जन्नतनशीन होगा ।”
***
“दीपा को तो अच्छा सबक मिल गया है । अब तो वह शायद ही कभी जुए में दिलचस्पी लेगी ।” - कलावती ने मुस्कराकर कहा ।
“और रवीन्द्र के बारे में आपका क्या ख्याल है ?” - सुनील बोला ।
“मैं आज ही दीपा से सैपरेशन की अर्जी कोर्ट में दाखिल करवा दूंगी । और बेटे” - वृद्ध हस्ताक्षर किया हुआ कोरा चैक उसकी ओर बढाती हुई बोली - “यह ले लो ।”
“यह क्या ?” - सुनील ने हैरानी से पूछा ।
“यह ब्लैंक चैक है । जितनी रकम मुनासिब समझो भर लेना ।”
“देखिए ।” - सुनील उसे चैक लौटाता हुआ बोला - “आप पहले ही मुझे बहुत रुपया दे चुकी है अब इसकी जरूरत नहीं ।
“बेटा, तुमने मेरे लिए जो तकलीफ उठाई है, उसकी कीमत रुपये से तो नहीं चुकाई जा सकती लेकिन फिर भी मेरी प्रार्थना को ठुकराओ मत । कुछ रुपया और ले लो ।”
“अच्छा तो लाइए ।” - सुनील ने चैक ले लिया और उसमें सात रुपये बारह आने की रकम भर दी ।
“सात रुपये बारह आने ।” - वृद्धा हैरानी से बोली ।
“जी हां ढाई-ढाई रुपये की दो सिनेमा की टिकट, दो रुपये टैक्सी के और बारह आने इस बिल्ली के गोलगप्पों के लिए ।” - और उसने प्रमिला की ओर संकेत कर दिया ।
वृद्धा ने नेत्रों में वात्सल्य झलक उठा ।
समाप्त
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