विमल बैठक में सोफे पर सोने की तैयारी कर रहा था कि बीच के दरवाजे पर मंजुला प्रकट हुई । वह एक झीनी-सी सफेद नाइटी पहने थी और प्रकाश का साधन उसकी पीठ के पीछे होने के कारण विमल को उसके जिस्म की हर गोलाई का, हर खम का साफ नजारा हो रहा था । नाइटी के नीचे वह काला अंडरवियर और काली अंगिया पहने थी । नाइटी के नीचे से अंडरवियर और अंगिया के किनारों पर लगी लेस तक साफ दिखाई दे रही थी ।
विमल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“अभी नींद नहीं आ रही” - वह एक मादक अंगड़ाई लेती हुई बोली - “मैं दो मिनट यहां तुम्हारे पास बैठ जाऊं ?”
“हां, हां, क्यों नहीं !” - विमल अपने सामने पड़ी सोफाचेयर की ओर संकेत करता बोला - “आओ, बैठो ।”
मंजुला सोफाचेयर पर बैठने की जगह सोफे पर उसके करीब बैठ गई । उसके लिए सुविधाजनक जगह बनाने के लिए विमल तनिक परे सरक गया । मंजुला ने बैठकर अपनी एक टांग पर दूसरी टांग चढाई तो उसकी एक टांग घुटने से ऊपर तक नाइटी के बाहर निकल आई ।
“वार्डरोब में मौजूद नोटों से भरे सूटकेसों के रोज में थर्राई जा रही हूं ।” - वह बोली ।
विमल मुस्कराया ।
“मैंने सपने में भी कभी इतने नोट नहीं देखे । कभी कल्पना भी नहीं की मैंने इतने नोटों की । ख्वाहिश भी दस बीस लाख से आगे दम तोड़ देती थी । यह तो एक डेढ करोड़ रुपया होगा ।”
“छ: करोड़ !”
“छ: करोड़ !” - उसके नेत्र फैल गए - “हे भगवान ! इतना रुपया भी कहीं दुनिया में होता है !”
“होता है । है । तुम्हारे बैडरूम में ही है ।”
“तभी तो मुझे डर लग रहा है ।”
“किस बात का ?”
“रात को फ्लैट में कोई चोर घुस आया और उस रुपये की खातिर मेरा गला काट गया तो ?”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं जो हूं यहां !”
“तुम तो बाहर के कमरे में हो !”
“जो भीतर के कमरे में पहुंचेगा, वो यहां से होकर ही तो पहुंचेगा !”
“बाल्कनी के रास्ते भी तो पहुंच सकता है ?”
“तुम बाल्कनी का दरवाजा भीतर से बंद रखोगी तो कैसे पहुंच जाएगा ?”
“सुना है चोर बड़े-बड़े ताले खोल लेते हैं ।”
“तुम खामखाह वहम कर रही हो । तुम निश्चिंत होकर सोओ । कुछ नहीं होता । यहां कोई नहीं आता ।”
“निश्चिंत ही तो नहीं हो पा रही हूं। तभी तो सो नहीं पा रही हूं ।”
“तुम खामखाह...”
“सुनो, आज तुम भी भीतर बैडरूम में सो जाओ न !”
“इसकी जरूरत नहीं है । मैं कहता हूं वहां...”
“तुम सोफे पर कोई आराम से थोड़े ही सोते होवोगे ?”
“सोफा खूब आरामदेय है ।”
“बैड जितना आरामदेय तो नहीं हो सकता न ?”
“मेरे लिए कोई फर्क नहीं । कैसी भी जगह सो सकने की मुझे आदत है । मैं...”
तभी मंजुला उस पर ढेर हो गई ।
विमल ने हड़बड़ाकर परे सरकने की कोशिश की लेकिन सोफे पर परे सरकने लायक जगह बाकी नहीं थी ।
मंजुला लता की तरह उसके साथ लिपट गई ।
विमल ने जबरन उसे अपने से अलग किया ।
“क्या बात है ?” - वह रुआंसे स्वर में बोली - “मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती ?”
“तुम बहुत अच्छी हो ।” - विमल तनिक उखड़े स्वर में बोला ।
“अच्छी हूं लेकिन तुम्हें अच्छी नहीं लगती हूं !”
“तुम भण्डारी की अमानत हो । अमानत में खयानत डालने वाली किस्म का आदमी नहीं हूं मैं ।”
“मैं भण्डारी की बीवी नहीं हूं ।”
“फिर भी उसकी अमानत हो ।”
“उसकी मेरे पर मोहर नहीं लगी हुई ।”
विमल खामोश रहा ।
“मैं तुम्हारी खातिर उसे छोड़ सकती हूं ।”
“मेरी खातिर ?” - विमल भवें उठी ।
“हां ।”
“या भीतर पड़ी दौलत की खातिर ?”
“वह दौलत तो भण्डारी की भी है ।”
“तो ?”
“तुम मुझे अच्छे लगते हो ।”
“पहले भण्डारी भी अच्छा ही लगता होगा !”
“मतलब ?”
“आज तुम्हें भण्डारी की जगह मैं अच्छा लगता हूं । कल तुम्हें मेरी जगह कोई और अच्छा लग सकता है । आज तुम मेरी खातिर भण्डारी को छोड़ सकती हो, कल तुम किसी और की खातिर मुझे छोड़ सकती हो ।”
“मिस्टर, तुम मेरा अपमान कर रहे हो ।” - वह तमककर बोली ।
“नहीं” - विमल सहज भाव से बोला - “ऐसी कोई बात नहीं । मैं सिर्फ अपना एक खयाल जाहिर कर रहा हूं ।”
“तुम्हारा खयाल गलत भी हो सकता है ।”
“सरासर हो सकता है । लेकिन ऐसी औरत मुझे फिर भी पसंद नहीं जो मंदिर के प्रसाद की तरह अपना प्यार किसी को भी बांट सकती हो ।”
मंजुला का चेहरा कानों तक लाल हो गया । वह एकाएक उठी और पांव पटकती वहां से चली गयी ।
विमल ने एक गहरी सांस ली, असहाय भाव से गरदन हिलाई और सोफे पर ढेर हो गया ।
उसे लग रहा था कि लड़की उसके लिए कोई बखेड़ा खड़ा कर सकती थी ।
***
“रात को फ्लैट में घुसना मुमकिन नहीं ।” - भीम बोला ।
वह उसी क्षण फ्लैट से लौटा था ।
“क्यों ?” - उसके एक साथी ने पूछा ।
“दरवाजा खटखटाये जाने पर या कालबैल बजाई जाने पर कोई भीतर से दरवाजा नहीं खोलता । जाहिर है कि वे यही जाहिर करते हैं कि भीतर कोई है ही नहीं ।”
“लेकिन ताला...”
“ताला दरवाजे के पल्ले में फिट हो जाने वाली किस्म का है...”
“स्प्रिंग लॉक !”
“वही । वह अंदर बाहर दोनों तरफ से खोला जा सकता है और बंद हो तो पता नहीं लगता कि भीतर से बंद है या बाहर से ।”
“कोई और रास्ता भी तो होगा !”
“पीछे बाल्कनी है । उसके पहलू से फायर एस्केप की सीढियां गुजरती हैं । मैं उन सीढियों पर से बाल्कनी में उतरा था । उधर का दरवाजा भी मजबूती से भीतर से बंद था ।”
“तुम ताला खोल भी तो सकते हो, उस्ताद !”
“खोल सकता हूं लेकिन फायदा क्या ! भीतर से चिटकनी भी तो लगी होगी ।”
“तो ?”
“तो यह कि भीतर सिर्फ एक आदमी और एक औरत है । वह आदमी दिन में कभी तो बाहर निकलेगा ! फिर उसकी गैरहाजिरी में हम औरत से निपट लेंगे ।”
“चाहे उसे खल्लास करना पड़े ?”
“हां, चाहे उसे खल्लास करना पड़े । और फिर” - भीम खुशी से हाथ मलने लगा - “वे चारों सूटकेस हमारे हाथ में होंगे ।”
“चाहे उनमें से झुनझुना भी न निकले !”
“तेरे मुंह में खाक ! साले, रोकड़ा निकलेगा उनमें से ।”
“जो होगा सामने आ जायेगा ।”
“उस्ताद” - भीम का दूसरा साथी बोला - “जब जो होना है, दिन में ही होना है तो रात को यहां हलकान होने का क्या फायदा ?”
“फायदा है । अगर ये लोग सूटकेसों के साथ रात को ही कहीं खिसक गये तो हमें कैसे पता चलेगा ?”
“ठीक !”
***
इंस्पेक्टर चटवाल ने जीप को पहाड़ी सड़क पर एक पेड़ के नीचे रोका ।
“गाड़ी यहां क्यों रोकी ?” - रुस्तमभाई बोला ।
“उतरो ।” - चटवाल बोला - “बताता हूं ।”
दोनों जीप से उतरे ।
“वो पगडण्डी देख रहे हो” - चटवाल बोला - “जो पेड़ के करीब से झाड़ियों में से होकर नीचे को जा रही है ?”
“देख रहा हूं ।”
“इस पगडण्डी पर थोड़ा नीचे उतरने पर वो इमारत दिखाई देने लगती है जिसमें वो फ्लैट है जहां कि रोकड़े के साथ सोहल मौजूद है ।”
“फिर ?”
“मैं जीप को इमारत के सामने नहीं ले जाना चाहता । पुलिस की जीप का ज्यादा देर तक उस इमारत के सामने खड़े देखा जाना कोई पेचीदगी पैदा कर सकता है । और नहीं तो उसे देखकर सोहल ही सावधान हो सकता है ।”
“तो ?”
“मैं जीप यहीं खड़ी छोड़ जाता हूं और इमारत की तरफ इस पगडण्डी के रास्ते उतर जाता हूं । तुम पगडण्डी पर झाडियों से निकलकर वहां खड़े हो जाना जहां से कि इमारत और उसके बाजू की सड़क दिखाई देती है । जब मैं नीचे से इशारा करूं तो तुम जीप लेकर वहां पहुंच जाना ।”
“तुम इशारा कब करोगे ?”
“जब काम हो जायेगा । जब चारों सूटकेस मेरे काबू में आ जायेंगे ।”
“काम हो जायेगा ?”
“यकीनन ।”
“इशारा कैसे करोगे ?”
“टार्च जलाकर ।” - चटवाल ने वर्दी से निकालकर उसे एक छोटी सी टार्च दिखाई - “यूं ।”
उसने टार्च को विशिष्ट तरीके से जला-बुझाकर दिखाया ।
“ओके ?” - वह बोला ।
रुस्तमभाई ने सहमति में सिर हिलाया ।
“यह जीप की चाबी सम्भालो ।”
“अगर किसी ने जीप को देख लिया ?” - रुस्तमभाई चाबी लेता सशंक स्वर में बोला ।
“तो क्या होगा ? किसी की मजाल है पुलिस की जीप के बारे में कोई सवाल करने की !”
“अगर पुलिस ने ही देख लिया ?”
“पुलिस ने ?”
“आधी रात होने को आ रही है । कोई पुलिस की गश्ती गाड़ी भी तो यहां से गुजर सकती है ! तुम्हारे भाईबंद पुलिस की जीप को लावारिस खड़ी पाकर क्या सोचेंगे ?”
“यह तो तुम ठीक कह रहे हो ।” - चटवाल सोचता हुआ बोला - “मैं इसे पेड़ के पीछे झाड़ियों की ओट में कर देता हूं । फिर यह सड़क पर से दिखाई नहीं देगी । ठीक ?”
रुस्तमभाई ने सहमति में सिर हिलाया ।
जीप को नई जगह पार्क करके दोनों आगे पीछे पगडण्डी पर उतरने लगे । रुस्तमभाई आगे था और चटवाल उसके पीछे । थोड़ा आगे आने पर चटवाल एकाएक ठिठक गया । पगडण्डी उस वक्त ऊंची झाड़ियों की कतार के बीच में से गुजर रही थी । चटवाल के हाथ धीरे से अपनी वर्दी की जेबों में सरक गये ।
रुस्तमभाई, जो इस बात से बेखबर था कि चटवाल पीछे रुक गया था, पगडण्डी पर चलता रहा ।
“रुस्तमभाई !” - एकाएक चटवाल ने धीमे से आवाज लगाई ।
रुस्तमभाई ठिठका, घूमा, उसने अपने पीछे देखा । उसकी निगाह अपने से दस कदम परे खड़े चटवाल पर पड़ी तो एकाएक उसके नेत्र फैल गये ।
चटवाल के हाथ में साइलेंसर लगी रिवाल्वर थी जिसका रुख रुस्तमभाई की छाती की तरफ था ।
“क.. .क.. .क्या.. .क्या ?” - वह हकलाया ।
उस घड़ी वातावरण एकदम स्तब्ध था और उस स्थान पर मरघट का सा सन्नाटा छाया हुआ था ।
“अपने बनाने वाले को याद कर लो, रुस्तमभाई ।” - चटवाल धीरे से बोला ।
“तुम.. .मुझे.. .म - मारना चा - चाहते हो ?”
“यह भी कोई पूछने की बात है !”
“लेकिन क्यों ?”
“रुस्तमभाई, तुमने क्या सचमुच ही सोच लिया था कि मैं रोकड़े में तुम्हारे से फिफ्टी फिफ्टी का हिस्सा बंटाऊंगा ?”
“तुम सारा माल खुद डकार जाना चाहते हो ?”
“यह भी कोई पूछने की बात है !”
“ऐसा करना चाहते हो तो कर लो, मुझे क्यों मारते हो ?”
“वाह, मेरे भोले बलम, तुम्हारे जिंदा रहते यह क्या मुमकिन होगा ? तुम क्या मुझे सारा रोकड़ा यूं डकार जाने दोगे ? जाकर अपने जोड़ीदारों को बता नहीं दोगे कि असल में माल कौन पीट ले गया ? रुस्तमभाई, तुम्हारे अलावा कोई मेरे वजूद से भी वाकिफ नहीं इसलिए तुम्हारा मरना जरूरी है ।”
“लेकिन...”
“खुदा हाफिज, मेरे दोस्त !”
“मैंने सबको तुम्हारे बारे में बता दिया है ।” - रुस्तमभाई जल्दी से बोला ।
चटवाल ठिठक गया । उसके नेत्र सिकुड़ गये ।
“तुम झूठ बोल रहे हो ।” - फिर वह पुरजोर आवाज में बोला ।
“मैं सच कह रहा हूं ।”
“तुम समझ रहे हो कि यह झूठ बोलने से तुम्हारी जान बच जायेगी ।”
“यह झूठ नहीं है ।”
“तुम सबको कैसे बता सकते हो ? सबसे मिल पाने लायक तो तुम्हारे पास वक्त भी नहीं था ।”
“मैंने ठिंगु को बताया था ।”
“रामन्ना को ?”
“हां । उसने आगे बता दिया होगा ।”
चटवाल खामोश हो गया ।
“अब तक तुम्हारे वजूद से सब वाकिफ हो चुके होंगे ।”
“मैं सबको खत्म कर दूंगा ।” - एकाएक वह कहरभरे स्वर में बोला ।
“लेकिन...”
साइलेंसर लगी रिवाल्वर ने तीन बार आग उगली । तीनों गोलियां रुस्तमभाई की छाती से टकराईं । रुस्तमभाई त्योराकार झाड़ियों में जाकर गिरा ।
चटवाल कुछ क्षण यथास्थान खड़ा रहा और रुस्तमभाई के जिस्म में कोई हरकत होने का इंतजार करता रहा । जब ऐसा न हुआ तो वह वापिस आकर जीप पर सवार हुआ, उसने जीप को झाड़ियों की ओट में से निकाला, उसका रुख नीचे सड़क की तरफ किया और वहां से रवाना हो गया ।
***
दरवाजे पर हौले से दस्तक पड़ी ।
विमल की तुरंत आंख खुल गयी । उसने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि बारह बजने को थे ।
दस्तक फिर पड़ी ।
वह सोफे पर उठकर बैठ गया और सांस रोक फिर कोई आहट होने की प्रतीक्षा करने लगा ।
तीसरी बार क्षण भर को काल बैल बजी ।
तभी बीच के दरवाजे पर मंजुला प्रकट हुई ।
उसे बोलने को तत्पर पाकर विमल ने अपने होंठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया और लपककर उसके करीब पहुंचा । उसने उसकी बांह थामी और उसे बैडरूम में ले आया ।
“कौन होगा ?” - मंजुला फुसफुसाई ।
“होगा कोई ।” - विमल भी वैसे ही स्वर में बोला - “कोई जवाब मिलता न पाकर चला जायेगा. ..वैसे ही जैसे पहली बार यूं दस्तक देने वाला चला गया था ।”
“क्या पता भण्डारी साहब हों !”
“नहीं । हमारा कोई आदमी नहीं हो सकता । मैंने सबको एक खास तरीके से काल बैल बजाने के लिए कहा हुआ है और दरवाजे पर दस्तक देने के लिए मना किया हुआ है । घंटी खास तरीके से नहीं बज रही और दरवाजे पर दस्तक पड़ रही है ।”
काल बैल फिर बजी । उसके साथ ही इस बार दरवाजे पर दस्तक भी पड़ी ।
“कौन होगा ?” - मंजुला व्याकुल भाव से बोली ।
“कोई तुम्हारा वाकिफकार तो नहीं आने वाला था यहां ?”
“नहीं, नहीं” - वह हड़बड़ाकर बोली - “इतनी रात गये यहां आने वाला मेरा कोई वाकिफकार नहीं हो सकता ।”
लेकिन मन ही मन वह दीपक मेहरा के बारे में सोच रही थी ।
कहीं वही तो फिर नहीं आ गया था ।
अगर बाहर दीपक मेहरा था - उसने सोचा - तो उसका निराश होकर चला जाना ही श्रेयस्कर था ।
“कहीं पुलिस न आयी हो ?” - एकाएक वह बोली ।
“पुलिस !” - विमल सकपकाया ।
“यहां इतना रुपया जो मौजूद है !”
“पुलिस को क्या पता इस रुपये का ?”
“शायद चल गया हो किसी तरीके से !”
“अव्वल तो यह मुमकिन नहीं, चल गया हो तो पुलिस क्या ऐसे आती है ? अगर बाहर पुलिस वाले होते तो अभी तक तो उन्होंने दरवाजा पीट पीटकर सारा इलाका इकट्ठा कर लिया होता । दरवाजा तोड़ भी डाला होता तो कोई बड़ी बात नहीं होती ।”
“लेकिन...”
“फिलहाल चुप रहो ।”
मंजुला चुप हो गयी । वह कुछ क्षण व्याकुल भाव से पहलू बदलती रही, फिर वह विमल के साथ सट गयी । उसे एतराज करता न पाकर वह और भी कसकर उसके साथ लग गयी । उसकी गर्म गर्म सांसें विमल की गरदन फूंकने लगी तो विमल की तवज्जो उसकी तरफ गयी । उसने बड़ी दृढता से उसे अपने से अलग किया और उसे वापिस उसके पलंग पर धकेल दिया ।
“मैं खौफ से मरी जा रही हूं” - वह शिकायतभरे स्वर में बोली - “और तुम हो कि मुझे तसल्ली नहीं दे सकते, जरा सहारा नहीं दे सकते । तुम...”
“खामोश !”
“कैसे कठोर हो तुम ! तुम तो...”
“अगर खामोश नहीं रह सकती हो तो भगवान के लिए धीरे बोलो ।”
“जानते हो ?”
“क्या ?”
“लोग मुझ पर जान छिड़कते हैं । मेरी एक निगाह के लिए तरसते हैं ।”
“जरूर छिड़कते होंगे । जरूर तरसते होंगे ।”
“और तुम हो कि...”
“मैं भी छिड़कूंगा । मैं भी तरसूंगा ।”
“कब ?” - वह आशापूर्ण स्वर में बोली ।
“सन् दो हजार एक में । तब इक्कीसवीं सदी शुरू जायेगी । ऐसा इन्कलाबी कदम मैं इक्कीसवीं सदी में ही उठा सकता हूं । राजीव भैया भी तो यही चाहते थे कि. ..”
“तुम मेरा मजाक उड़ा रहे हो ।” - वह तुनककर बोली ।
विमल खामोश रहा ।
“अगर तुम विश्वामित्र हो तो समझ लो कि मैं भी मेनका हूं । मैं तुम्हारी तपस्या भंग करके रहूंगी ।”
“मैं कोई तपस्या नहीं कर रहा ।”
“जान-बूझकर मेरा तिरस्कार तो कर रहे हो ?”
विमल ने उत्तर न दिया । उसका सारा ध्यान दरवाजे की तरफ था ।
“जानते हो तिरस्कार से औरत क्या बन जाती है ?”
“क्या बन जाती है ?”
“जहरीली नागिन ।”
“तो ?”
“मैंने तुम्हें डस लिया तो..”
अभी बहुत वक्त पड़ा है ।”
“लेकिन...”
“लगता है जो आया था वो चला गया है । अब जाकर सो जाओ ।”
विमल दरवाजे के बाहर निकलने लगा तो मंजुला ने उसकी बांह थाम ली । विमल ने उसे जबरन वापिस पलंग पर धकेल दिया और बाहर आ गया ।
इस बार उसने बीच का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ।
बाकी की रात एक ही बात हथौड़े की तरह उसके जेहन में बजती रही - कौन था जो दरवाजे पर दस्तक देता रहा था और घंटी बजाता रहा था ।
कई बार दस्तक देने और घंटी बजाने पर भीतर से जवाब न मिला तो इंस्पेक्टर चटवाल को मायूसी तो हुई लेकिन हैरानी न हुई । वस्तुत: वह दरवाजा न खुलने की ही अपेक्षा कर रहा था । अलबत्ता दरवाजा खुल जाता तो उसका काम आसान हो जाता । दरवाजा जोरों से पीट पीटकर और शोर मचा मचाकर तो वह उसे खुलवा नहीं सकता था । वह ऐसा करता तो सारा पड़ोस वहां इकट्ठा हो जाता । फिर उसके लिए भीतर मौजूद लोगों को शूट करके माल हथिया लेना सम्भव न रह जाता । उनको शूट करके स्थायी रूप से उनका मुंह बंद किए बिना वह माल हथिया नहीं सकता था ।
उस घड़ी उसने ठंडे-ठंडे वापिस लौट जाना ही मुनासिब समझा ।
***
“उस्ताद !” - भीम का एक साथी बोला - “यह पुलिसिया इधर काहे कू आयेला है ?”
“अबे, होगी कोई वजह ।” - भीम डपटकर बोला ।
“उस्ताद, वह उसी इमारत में घुसेला है जिसमें...”
“तो फिर क्या हुआ ? सोलह फ्लैट हैं उस इमारत में । कहीं किसी केस की तफ्तीश में आया होगा !”
“केस की तफ्तीश में ! आधी रात को ?”
“तो क्या हुआ ? पुलिस वालों के लिए दिन क्या, रात क्या ?”
“वो तो बराबर बोला, बाप, लेकिन वो अकेला आयेला है ।”
“तो ?”
“केस पकड़ने कू वास्ते आधी रात को कोई पुलिसिया अकेला काहे कू आयेंगा ? अकेले पुलिसिये को तो लोगबाग काट पीटकर फ्लश में डाल देते हैं ?”
“तो फिर यहां किसी यार दोस्त से मिलने आया होगा !”
“बाप, आधी रात कू...”
“साला ! हलकट !” - एकाएक भीम फट पड़ा - “बातें ठोके जा रहा है । जाकर देख के नहीं आ सकता कि वो पुलिसिया किधर गयेला है ।”
“अब्बी का अब्बी देखता है, बाप ।”
भीम का साथी सड़क पार करके चुपचाप इमारत में दाखिल हो गया ।
वह लगभग उलटे पांव वापिस लौटा ।
“बाप” - उसने खबर दी - “वो तो अपने वाले फ्लैट के दरवाजे पर ही खड़ेला है ।”
“हो गया काम ।” - भीम निराश स्वर में बोला - “फिर गया पानी सारी मेहनत पर । अब अक्खा रोकड़ा तो पुलिस वालों के हाथ...”
“बाप !”
“अब क्या है ?”
“वो वापिस आयेला है ।”
भीम ने इमारत की तरफ निगाह उठाई ।
उसने इंस्पेक्टर चटवाल को जीप में सवार होते देखा ।
खाली हाथ ।
उसकी जान में जान आयी ।
यानी कि रोकड़े वाले सूटकेस अभी भी फ्लैट में ही थे ।
***
“अगर मैं भण्डारी को कह दूं तो ?”
विमल और मंजुला तभी ब्रेकफास्ट करके हटे थे जबकि मंजुला पर पिछली रात वाला जुनून फिर से हावी होने लगा था ।
“क्या कह दो ?” - विमल बोला ।
“कि तुमने यहां तनहाई का फायदा उठाकर मेरे साथ.. . जोर जबरदस्ती करने की कोशिश की थी !”
“कह देना ।” - विमल लापरवाही से बोला ।
“भण्डारी तुम्हारा खून कर देगा ।”
“ऐसा सूरमा नहीं है वो ।”
“मेरे कहे बन जायेगा ।”
“नहीं बनेगा । खून खराबे में पड़कर वो पौन करोड़ रुपये के अपने हिस्से का रिस्क नहीं लेने वाला ।”
“मेरे कहे वह कुछ भी करने को आमादा हो जायेगा ।”
“वो ऐसा करेगा तो मूर्ख होगा । अपनी जान और माल दोनों से हाथ धो बेठेगा ।”
“यानी कि तुम उसे मार डालोगे ?”
“खामखाह नहीं । लेकिन अगर वो मुझे मारने की कोशिश करेगा तो यकीनन ।”
वह खामोश हो गयी ।
“और फिर मुझे यकीन है कि जब तुम उसे जोर जबरदस्ती वाली बात कहोगी तो वह यही कहेगा कि..”
विमल जानबूझकर ठिठक गया ।
“क्या कहेगा ?” - मंजुला उत्सुक भाव से बोली ।
“कहेगा कि भाई, जोर जबरदस्ती की क्या जरूरत थी ?”
मंजुला का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।
“तुम बार बार मेरा अपमान कर रहे हो ।” - वह गुस्से से बोली ।
“अव्वल तो मैं ऐसा कुछ कर नहीं रहा” - विमल शांति से बोला - “कर रहा हूं तो इसके लिए तुम खुद जिम्मेदार हो ।”
“लेकिन तुम...”
“पहले मेरी बात सुनो । देखो, अभी चौदह दिन और हमने इस फ्लैट में यूं ही अकेले रहना है । मेरी दरखास्त है कि तुम खुद चैन से रहो और मुझे चैन से रहने दो । जो तुम चाहती हो वो नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ? नपुंसक हो ?”
“स्टूपिड !”
“तो फिर क्यों नहीं हो सकता ?”
“तुम बात को यूं समझो कि मेरी. ..मेरी बीवी मर गई है, मेरी ऐसी ब्याहता बीवी मर गयी है जिसे मैं दिलोजान से चाहता या और मैं उसे अभी अभी श्मशान घाट पर आग के हवाले करके वापिस लौटा हूं । अब तुम मुझे बताओ कि ऐसे में वो सब मुमकिन है जो तुम्हारे जेहन में है ?”
“तुम्हारी बीवी मर गई है ?”
“हां ।”
“फिर तो तुम्हें मेरी और भी ज्यादा जरूरत है ।”
और वह फिर उस पर ढेर हो गयी ।
“दाता !” - विमल उसे परे धकेलता हुआ उठ खड़ा हुआ ।
“मैंने तुम्हारे जैसा कठोर मर्द नहीं देखा ।” - वह रुआंसे स्वर में बोली ।
“और मैंने तुम्हारे जैसी छिनाल औरत नहीं देखी ।”
मंजुला का चेहरा लाल भभूका हो गया । उसकी आंखों से शोले बरसने लगे । फिर वह पांव पटकती वहां से चली गयी और जाकर बैडरूम में बंद हो गयी ।
विमल ने चैन की सांस ली । वह अपना पाइप तैयार करने लगा । उस बार पाइप भरने में उसके पाउच का सारा तम्बाकू खत्म हो गया ।
दो घंटे यूं ही खामोशी में गुजरे ।
उस दौरान मंजुला ने एक बार भी उसके करीब आने की कोशिश नहीं की । विमल इसी नतीजे पर पहुंचा कि उसे अक्ल आ गयी थी ।
फिर एकाएक बाथरूम से नलका चलने की आवाज आने लगी ।
पंद्रह बीस मिनट तक यही सिलसिला रहा । फिर बाथरूम से आवाजें आनी बंद हो गयी और खामोशी छा गयी ।
दस मिनट की खामोशी के बाद एकाएक मंजुला की आवाज आयी ।
“सुनो ।”
“क्या है ?” - विमल बोला ।
“जरा यहां आओ ।”
“क्या है ?”
“अरे, आओ तो ।”
विमल सोफे से उठा और बैडरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ा । उसने बैडरूम का दरवाजा खोला । वह भीतर कदम रखने ही लगा था कि थमक कर खड़ा हो गया । वह अपलक सामने देखने लगा ।
सद्य:स्नाता मंजुला नग्नावस्था में पलंग पर खड़ी थी । उसके बाल खुले थे और कृत्रिम प्रकाश में रेशम की तरह चमक रहे थे । उसके बालों में और चेहरे पर पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थीं । नहाने के बाद खूब रगड़ रगड़कर पोंछे हुए उसके पुष्ट शरीर पर से ट्यूब लाइट का कृत्रिम प्रकाश शीशे की तरह प्रतिबिम्बित हो रहा था । उसकी तनी हुई कठोर छातियां एक चैलेंज की तरह विमल की तरफ उठी हुई थीं, उसके पेट पर गोल-गोल लहरें उठती मालूम हो रही थी और जांघें मछली की तरह फड़क रही थीं । विमल को मुंह बाये अपनी तरफ देखता पाकर उसके होंठों पर एक विद्रुपपूर्ण मुस्कराहट आयी । उसके होंठ बड़े चित्ताकर्षक भाव से आधे खुले तो उनके पीछे से उसके सुडौल, सफेद दांत मोतियों की तरह चमके । फिर एकाएक वह अपने पंजों पर खड़ी हो गयी और उसने अपने दोनों हाथ अपने सिर से ऊपर उठाकर एक तौबाशिकन अंगड़ाई ली ।
“कैसी लग रही हूं ?” - वह मादक स्वर में बोली ।
“शानदार !” - विमल के मुंह से निकला - “लाजवाब ! दिलफरेब । करिश्मासाज !”
“मैं किस की हूं ?”
“पहले का पता नहीं । अब मेरी ।”
“तो अपनी चीज अपने काबू में क्यों नहीं करते हो ?”
“अभी करता हूं । जरा बाहर का दरवाजा चैक कर आऊं कि ठीक तरह से बंद है कि नहीं !”
“जल्दी आना ।”
“बस गया और आया ।”
विमल फ्लैट से बाहर निकला ।
लड़की की निडर हरकतें बढती ही जा रही थीं और लग रहा था कि अगर उसे कोई काबू कर सकता था तो भण्डारी ही कर सकता था । भण्डारी से संपर्क का कोई साधन उसके पास नहीं था लेकिन ‘मराठा’ में वह तुकाराम को फोन कर सकता था ।
पब्लिक टेलीफोन वहां से कोई आधा किलोमीटर दूर एक टी स्टाल में लगा हुआ था ।
पब्लिक टेलीफोन उसने खराब पाया ।
कोई और टेलीफोन तलाश करने में उसे वक्त लग सकता था और अब उसे महसूस हो रहा था कि वह अपने पीछे फ्लैट का दरवाजा खुला छोड़ आया था जो कि ठीक नहीं था ।
फोन करने का खयाल उसने छोड़ दिया । उसने अपने पाइप के लिए तम्बाकू का एक पैकेट खरीदा और वापिस लौटा ।
मंजुला फ्लैट में मरी पड़ी थी ।
विमल हक्का बक्का-सा बैडरूम की चौखट पर खड़ा सामने का हौलनाक नजारा देखता रहा ।
वह तब भी सम्पूर्ण नग्नावस्था में थी और पलंग पर चित्त पड़ी थी । दीवार पर से दोनों तलवारें गायब थीं । एक जमीन पर दरवाजे के करीब पड़ी थी और दूसरी मंजुला की छाती में इस प्रकार धंसी हुई थी कि वह अपने स्थान से हिल भी नहीं सकती थी । तलवार उसकी छाती में से गुजरकर पलंग की मैट्रेस को भेदती हुई उसकी लकडी की सतह में दाखिल हो गयी थी । ऐसा किसी बहुत शक्तिशाली आदमी के बहुत शक्तिशाली वार से ही सम्भव हो सकता था । सारा पलंग खून से सराबोर था । मंजुला की ऐंठी हुई बांहें उसके पहलू में दायें बायें फैली हुई थीं । उसकी टांगें फिरी हुई थीं और उसकी पथराई हुई आंखें पंखे की तरफ उठी हुई थीं ।
फिर उसकी तवज्जो बैडरूम के उस दरवाजे की तरफ गयी जो कि बाल्कनी में खुलता था ।
वह दरवाजा, जो हमेशा बंद रहता था, उस वक्त खुला था ।
उसने दरवाजे के पास जाकर बाल्कनी से बाहर झांका, उसके पहलू से गुजरते फायर एस्केप की गोल सीढियों पर ऊपर नीचे निगाह दौड़ाई ।
कहीं कुछ नहीं । कहीं कोई नहीं । कहीं आहट तक नहीं ।
पिछली रात का रहस्यमय आगंतुक, जो दरवाजा खटखटाता रहा था और घंटी बजाता रहा था, उसे फिर याद आने लगा ।
वह बाल्कनी के दरवाजे से हटा ।
अब वहां ठहरना उसके लिए निहायत खतरनाक साबित हो सकता था । मंजुला की लाश के साथ उसका वहां पाया जाना उसके लिए भारी समस्या बन सकता था ।
वह बाहर की ओर बढ़ा ।
ड्राइंगरूम में कदम रखते ही एकाएक वह थमककर खड़ा हो गया ।
दो पुलिसिये फ्लैट में कदम रख रहे थे ।
उनमें से एक कोई ताजा भरती हुआ सब-इंस्पेक्टर था तथा दूसरा एक भारी तोंद वाला थुलथुल-सा हवलदार । सब-इंस्पेक्टर की वर्दी की बैल्ट में लगे होल्स्टर में एक रिवाल्वर शोभायमान थी ।
“शुक्र है आप आ गये ।” - उन दोनों में से किसी के मुंह भी खोल पाने से पहले विमल बोल पड़ा ।
युवा सब-इंस्पेक्टर सकपकाया ।
“बहुत फुर्ती दिखाई आप लोगों ने ।” - विमल अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डालता हुआ बोला - “अभी तो पांच मिनट भी नहीं हुए मुझे फोन किए हुए !”
“फोन आपने किया था ?” - सब-इंस्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला ।
घूर उसे हवलदार भी रहा था । लेकिन उसके चेहरे पर संदेह के स्थान पर उलझन के भाव थे ।
“हां ।” - विमल बोला । सब-इंस्पेक्टर के सवाल ने इस बात की तसदीक कर दी थी कि उसका अंदाजा सही था । जो कोई भी उसके पीछे वहां आया था, उसने न केवल मंजुला की हत्या की थी बल्कि मंजुला की हत्या के इलजाम में उसे फंसाने के लिए पुलिस को फोन भी कर दिया था ।
“फोन पर आपने अपना नाम क्यों नहीं बताया था ?”
“मैं बता ही रहा था” - विमल बोला - “कि लाइन कट गयी थी ।”
“फोन दोबारा किया होता ?”
“मैंने पब्लिक टेलीफोन से फोन किया था । मेरे पास दोबारा फोन करने के लिए और अठन्नी नहीं थी ।”
“पुलिस का 100 नम्बर डायल करने के लिए कामन बाक्स में अठन्नी नहीं डालनी पड़ती ।”
“मुझे नहीं मालूम था ।”
“हुआ क्या है ?”
“मैं अपने पाइप के लिए तम्बाकू लेने” - विमल ने तब भी हाथ में थमा तम्बाकू का पैकेट सब-इंस्पेक्टर को दिखाया - “थोड़ी देर के लिए बाहर गया था । वापिस लौटा तो मैंने अपनी बीवी को मरा पड़ा पाया ।”
दोनों पुलिसिये उचककर खुले दरवाजे में से बैडरूम में झांकने लगे ।
“यह आपकी बीवी है ?” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
“हां ।” - विमल बोला ।
“यह नं.. .इसने कपड़े क्यों नहीं पहने हुए ?”
“मैं इसे बाथरूम में नहाती छोड़कर गया था । मेरे पीछे यह नहाकर बाथरूम से निकली होगी कि तभी. ..”
विमल ने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“यह तलवार हमलावर अपने साथ लाया था ?”
“नहीं । दो तलवारें यहां बैडरूम की दीवार पर क्रॉस की सूरत में लगी हुई थीं । सजावट के लिए । हत्यारे ने वही तलवारें दीवार से उतार ली थीं ।”
“दोनों क्यों ?”
“शायद वह मेरा भी कत्ल करना चाहता था लेकिन बाद में उसने अपना इरादा बदल दिया था और दूसरी तलवार यहां फर्श पर दरवाजे के पास फेंककर भाग गया था ।”
“यहां से कुछ चोरी तो नहीं गया ?”
“नहीं ।”
“कैसे मालूम ?”
“जी !”
“आप यहां आये, आपने अपनी बीवी को मरा पड़ा पाया, आप उलटे पांव वापिस पब्लिक टेलीफोन से पुलिस को फोन करने चले गये । अभी हमारे आगे आगे ही आप यहां वापिस लौटे होंगे । आपने यह कब को देख लिया कि यहां से कुछ चोरी नहीं हुआ ?”
“मेरा मतलब है कि मुझे उम्मीद नहीं कि यहां से कुछ चोरी गया हो । चुराने लायक यहां कुछ है ही नहीं । ज्वेलरी वगैरह तो हम बैंक के लाकर में रखते हैं ।”
“आई सी ।”
अधेड़ हवलदार अभी भी बड़े उलझनपूर्ण भाव से विमल को देख रहा था और बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रहा था ।
विमल भी उसी से फिक्रमंद था । सब-इंस्पेक्टर को तो वह बाखूबी हैंडल कर रहा था ।
“आप देखिए कुछ चोरी तो नहीं गया !” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
विमल ने किचन, बाथरूम, ड्राइंगरूम और बैडरूम में इधर उधर निगाहबीनी करने का बहाना किया ।
“कुछ चोरी नहीं गया ।” - फिर उसने घोषणा की ।
“ये जो दो दरवाजे बंद हैं” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “इन्हें तो आपने खोला नहीं ! उधर तो आपने देखा नहीं !”
“उन दो दरवाजों वाले कमरे हमारे अधिकार में नहीं है ।” - विमल बोला ।
“क्या मतलब ?”
“यह फ्लैट मेरे एक दोस्त का है जो विदेश गया हुआ है । उन दो कमरों में वह अपना सारा सामान बंद करके गया हुआ है । हमारे इस्तेमाल के लिए इतना ही हिस्सा है ।”
“ओह ! आप यहां दो ही जने रहते हैं ?”
“जी हां ।”
“बाल बच्चे ?”
“कोई नहीं ।”
“आपने वह वार्डरोब नहीं खोली ?”
विमल ने देखा सब-इंस्पेक्टर बैडरूम की उस वार्डरोब की तरफ इशारा कर रहा था जिसमें नोटों से भरे चार सूटकेस बंद थे ।
“क्या वो आपके अधिकार में नहीं ?”
“हैं तो हमारे अधिकार में लेकिन...”
“लेकिन क्या ?”
“उसमें चोरी जाने लायक कुछ नहीं है ।”
“क्यों ? कपड़े तो होंगे ?”
“कपड़े कौन चुरायेगा, जनाब ?”
“आजकल के चोरों के ईमान का कुछ पता नहीं लगता, वह बहुत मामूली बात पर डिग सकता है । कुछ और हाथ न लगता पाकर क्या पता चोर आपके सारे कपड़े ही बटोरकर चल दिया हो !”
“जनाब, मैं कहता हूं वहां चोरी लायक कुछ नहीं है । वहां जो कपड़े हैं वो निहायत मामूली हैं ।”
“फिर भी देखिए ।”
“लेकिन...”
“अरे, देखिये तो ! यह भी कोई हुज्जत करने लायक बात है !”
विमल पशोपेश में पड़ गया । वार्डरोब खोलने पर सब-इंस्पेक्टर भीतर पड़े एक ही तरह के नये नकोर चार सूटकेसों को खोलने का आग्रह कर सकता था ।
“खोलिये बार्डरोब !”
वाहे गुरु सच्चे पातशाह ! - विमल होंठों में बुदबुदाता हुआ वार्डरोब की तरफ बढा - तू मेरा राखा सबनी थांही ।
उसने वार्डरोब का दरवाजा खोला ।
भीतर उसे सूटकेस दिखाई न दिए ।
घबराकर उसने वार्डरोब के दरवाजे के दोनों पट पूरे खोल दिये ।
चारों सूटकेस वहां से गायब थे ।
“क्या हुआ ?” - सब-इंस्पेक्टर उसके करीब पहुंचा और उसके साथ वार्डरोब में झांकता हुआ उत्सुक भाव से बोला - “कोई चीज गायब है ?”
“जी नहीं ।” - विमल बोला ।
“तो फिर वार्डरोब खोलते ही आप चौंके क्यों थे ?”
“मैं तो नहीं चौंका ।”
“आप न सिर्फ चौंके थे बल्कि घबरा भी गये थे ।”
“जनाब, आपको वहम हुआ है ।”
“यहां से कोई चीज गायब नहीं है ?”
“जी नहीं ।”
“लेकिन जब आप...”
“साहब !”
सब-इंस्पेक्टर ठिठका । वह अपने हवलदार की तरफ घूमा । उसने हवलदार के चेहरे पर उत्कंठा के ऐसे भाव पाये जैसे उसके प्राण निकलने वाले हों । वह फटी-फटी आंखों से विमल को देख रहा था ।
“क्या है ?” - सब-इंस्पेक्टर हत्प्रभ स्वर में बोला - “क्या हुआ ?”
“साहब.. .यह.. .यह” - उसकी एक कांपती हुई उंगली विमल की ओर उठी ।
“क्या यह ? अरे, कुछ बोलेगा भी ?”
“यह” - हवलदार फट पड़ा - “सोहल है ।”
सब-इंस्पेक्टर की प्रतिक्रिया देखने में विमल ने वक्त जाया नहीं किया । उसने सब-इंस्पेक्टर को बांह से पकड़ा और पूरी शक्ति से उसे हवलदार पर धकेल दिया । दोनों एक दूसरे से उलझते भरभराकर बैडरूम के फर्श पर गिरे तो विमल ने उनके ऊपर से दरवाजे की ओर छलांग लगा दी । एक ही छलांग में वह दरवाजा पार कर गया । उसके दरवाजे को बंद करके बाहर से चिटकनी लगा दी ।
उसके हिप्पी परिधान, नकली दांत, कांटैक्ट लैंस वगैरह समेत उसका कैनवस का एक बैग ड्राइंगरूम में सैंटर टेबल के नीचे पड़ा था । उसने उसे कब्जाया और बाहर को भागा ।
तभी एक फायर हुआ ।
गोली बैडरूम के लकड़ी के दरवाजे को भेदती हुई निकली और उसके बहुत करीब से गुजरी ।
साथ ही दरवाजे पर चोटें पड़ने लगीं ।
तूफानी रफ्तार से वह फ्लैट से बाहर निकला ।
दोबारा फायर हुआ लेकिन इस बार वह यह न जान सका कि गोली कहां गयी ।
उसने मुख्य द्वार को भी बाहर से बंद कर दिया और नीचे भागा ।
सीढियां तय कर चुकने के बाद उसने भागना बंद कर दिया ।
भीतर बंद पुलिसियों को किसी भी क्षण खयाल आ सकता था कि फ्लैट से बाहर बाल्कनी और फायर एस्केप के रास्ते भी निकला जा सकता था इसलिए उसका फौरन वहां से कूच कर जाना निहायत जरूरी था ।
यह देखकर उसे सख्त हैरानी हुई कि नीचे पुलिस की एक नहीं दो जीपें खड़ी थी । एक जीप एकदम खाली थी लेकिन दूसरे के स्टियरिंग के पीछे एक ऊंघता-सा पुलिसिया बैठा था ।
ऊपर दरवाजा पीटे जाने की आवाज सड़क पर नहीं पहुंच रही थी ।
वह ड्राइवर वाली जीप के करीब पहुंचा ।
“आपको” - वह ड्राइविंग सीट पर बैठे पुलिसिये से बड़े सहज भाव से सम्बोधित हुआ - “आपके सब-इंस्पेक्टर साहब ऊपर बुला रहे हैं ।”
“क्यों ?” - पुलिसिया उसे घूरता हुआ बोला ।
“मुझे क्या पता ?”
“तुम उस फ्लैट में रहते हो जिसकी बाबत हमें फोन आया था ?”
“मुझे नहीं मालूम तुम्हें किस फ्लैट की बाबत फोन आया था । मैं तो तीसरे माले पर रहता हूं । सीढियां उतर रहा था तो एक सब-इंस्पेक्टर साहब एक फ्लैट से निकले और कहने लगे कि नीचे जीप में हमारा आदमी बैठा है, उसे कहो कि ऊपर आये । मैंने मैसेज दे दिया है । और मुझे कुछ नहीं मालूम ।”
और विमल आगे बढ चला ।
दस कदम चलने पर उसने घूमकर देखा तो पाया कि पुलिसिया जीप से निकलकर इमारत में दाखिल हो रहा था ।
वह वापिस लौटा ।
वह दूसरी जीप के करीब पहुंचा ।
तब तक पुलिसिया निगाहों से ओझल हो चुका था ।
उसने देखा जीप की चाबियां इग्नीशन में लटक रही थीं ।
वह जीप में सवार हो गया ।
उसने इग्नीशन ऑन किया और जीप आगे बढ़ा दी ।
किसी ने उसे रोका नहीं । किसी ने उसे टोका नहीं ।
धन्न करतार ! - उसके मुंह से निकला ।
***
एक पब्लिक टेलीफोन से विमल ने कोलीवाडे के होटल ‘मराठा’ में टेलीफोन किया ।
जीप उसने फ्लैट से दो मील परे ही छोड़ दी थी । फिर एक पब्लिक टायलेट में जाकर उसने फिर से अपना हिप्पी लिबास पहना था और अब वह तुकाराम से संपर्क करने की कोशिश कर रहा था ।
दूसरी ओर फोन उठाया गया तो उसने होटल के मालिक सलाउद्दीन से बात करने की इच्छा व्यक्त की ।
सलाउद्दीन लाइन पर आया तो उसने उससे तुकाराम की बाबत पूछा ।
“वो यहां नहीं है ।” - सलाउद्दीन बोला, उसके बात करने के ढंग से लग रहा था कि वह विमल के बिना बताये ही समझ गया था कि कौन बोल रहा था ।
“कहां गया ?” - विमल बोला ।
“वरसोवा । मछुआरों की बस्ती में । कहता था कि बस्ती में वह कहां होगा, तुम्हें मालूम है ।”
“वरसोवा कैसे पहुंच गया ? उसे तो तुम्हारे यहां होना चाहिए था ?”
“होना चाहिए था । लेकिन नहीं है ।”
“क्यों ?”
“उसकी टांग टूट गयी है । मेरे पास ग्राउण्ड क्लोर पर कोई कमरा नहीं है । तुम्हें मालूम ही है मेरे होटल में ग्राउण्ड फ्लोर पर रिसैप्शन, आफिस, किचन और डायनिंग हाल के अलावा कुछ नहीं है । ऊपर उसे दिक्कत होती इसलिए वह वरसोवा चला गया है ।”
“टांग कैसे टट गयी उसकी ?”
“सीढियों से फिसल गया ।”
“ओह ! कोई फिक्र की बात तो नहीं ?”
“नहीं, कतई नहीं ।”
“वागले कहां है ?”
“उसी के साथ । वरसोवा में ।”
“ठीक है । शुक्रिया ।”
वरसोवा की मछुआरों की बस्ती में तुकाराम का ठिकाना विमल को मालूम था । वह वो जगह थी जहां से बखिया के सिपहसालार मैक्सवेल परेरा ने तुकाराम और उसके बाकी बचे एक भाई देवाराम को गिरफ्तार किया था ।
एक टैक्सी में सवार होकर विमल पहले वरसोवा और फिर पैदल उस मकान तक पहुंचा जिसमें तुकाराम मौजूद था ।
तुकाराम उसे वहां आया देखकर सख्त हैरान हुआ ।
“वागले कहां है ?” - विमल ने पूछा ।
“कहीं गया है ।” - तुकाराम बोला - “तू यहां कैसे पहुंच गया ?”
“टांग कैसे तोड़ ली ?”
“उसे छोड़ । अपनी बता । फ्लैट से क्यों निकला ?”
विमल ने वजह बताई ।
“ओह !” - सारी बात सुन चुकने के बाद तुकाराम के मुंह से यूं आह निकली जैसे पिचक गये गुब्बारे में से गैस निकली हो ।
“मैं भी बाल-बाल बचा हूं ।” - विमल बोला - “वहां दो की जगह बीस पुलिसिये भी पहुंच सकते थे । मेरी किस्मत अच्छी थी जो नहीं पहुंचे ।”
“ये सब हो कैसे गया ?”
“कई बातें मुमकिन हैं ।” - विमल बोला - “पहले तो मैंने यही सोचा था कि लड़की से किसी की कोई रंजिश थी, कोई अदावत थी । शायद कातिल उसके प्यार में खता खाया हुआ उसका कोई यार था जो फ्लैट पर यही घात लगाये बैठा था कि कब मैं वहां से निकलूं और कब वह पीछे अकेली रह गयी मंजुला तक पहुंचे । लेकिन जब मैंने नोटों से भरे सूटकेस गायब पाये तो मेरा खयाल बदल गया ।”
“क्यों ? नोट क्या कातिल को काटते थे ?”
“नहीं । लेकिन उसे नोटों की वहां मौजूदगी की खबर नहीं हो सकती थी । मैं सिर्फ दस मिनट फ्लैट से बाहर रहा था । इतने थोड़े वक्फे में उसने आकर मंजुला का खून भी कर दिया, फ्लैट की तलाशी लेकर माल भी बरामद कर लिया, माल से भरे चार सूटकेसों को वहां से मूव भी कर दिया, फिर मुझे फंसाने के लिए जाकर पुलिस को फोन भी कर दिया, यह सब दस मिनट में नहीं हो सकता ।”
“जिस किसी ने भी यह काम किया, किया तो दस मिनट में ही !”
“दुरुस्त । लेकिन ज्यादा वक्त खाने वाला काम फ्लैट की तलाशी थी । अगर कातिल कोई ऐसा आदमी हो जिसे फ्लैट में माल की मौजूदगी की पहले से खबर हो तो ये सारे काम दस मिनट से कहीं कम वक्त में हो सकते हैं ।”
“तेरा इशारा हमारे ही साथियों में से किसी की तरफ है ?”
“है भी और नहीं भी ।”
“मतलब ?”
“यह करतूत भण्डारी, रुस्तमभाई, अकबर, जयरथ और रामन्ना में से किसी की हो सकती है । मंजुला का कत्ल उनमें से किसी ने किसी अदावत की वजह से नहीं बल्कि इसलिए किया हो सकता है कि वह उसके रास्ते में रुकावट बन रही थी । लेकिन एक बात है जो कहती है कि यह करतूत हमारे साथियों में से किसी की नहीं हो सकती ।”
“क्या ?”
“हमारा हर साथी मेरी असलियत से वाकिफ है । अगर उसने पुलिस को फोन करके मुझे फंसाना होता तो पुलिस को यह भी बताया होता कि मैं कौन था । फिर उस फ्लैट में से सरदार सुरेंद्र सिंह सोहल की गिरफ्तारी के लिए वहां दो नहीं, दो सौ पुलिसिये पहुंचे होते ।”
“यह उसकी चालाकी भी हो सकती है । वह समझता होगा कि अगर उसने सोहल का नाम लिया तो हम फौरन समझ जायेंगे कि करतूत हमारे ही किसी साथी की है ।”
“हो सकता है । तभी तो मैंने कहा कि हत्यारा हमारे साथियों में से कोई हो भी सकता और नहीं भी हो सकता ।”
“हूं ।”
“अब तुम यह बताओ कि ऐसा चालाक, ऐसी बारीक बात सोच सकने लायक कौन है हमारे साथियों में से ? भण्डारी ! रुस्तमभाई ! अकबर ! जयरथ । या रामन्ना !”
“भण्डारी तो नहीं हो सकता !”
“क्यों ?”
“क्योंकि लड़की उसकी माशूक थी ।”
“छ: करोड़ की रकम के लिए आदमी अपनी सगी मां का गला काट सकता है, वह तो सिर्फ माशूक थी ।”
“वह फ्लैट भण्डारी के अधिकार में है, अड़ोस पड़ोस से पूछताछ से यह बात खुल सकती है । फिर पुलिस को उसके और मंजुला के रिश्ते की भी खबर लग सकती है जो कि उसे तगड़ी पुलिस इन्क्वायरी का शिकार बना सकती है । यह बात भण्डारी भला क्यों चाहेगा ?”
“उसने एक रखैल रखी हुई थी, यह बात सिर्फ उसके चरित्र पर लांछन लगा सकती थी । जब जेब छ: करोड़ की रकम से गर्म हो चुकी हो तो चरित्र पर लांछन की भला क्या परवाह होगी उसे ?”
“भण्डारी का काम लड़की का कत्ल किए बिना भी चल सकता था ।”
“उसने यह रिस्क नहीं लेना चाहा होगा । यह भी हो सकता है कि ऐन मौके पर लड़की ने कोई समस्या खड़ी कर दी हो जिसकी वजह से भण्डारी के लिए उसका काम तमाम करना जरूरी हो गया हो ।”
तुकाराम चुप रहा ।
“अगर भण्डारी न हो” - विमल बोला - “तो फिर किसकी करतूत हो सकती है ये ?”
“फिर तो यह करतूत रुस्तमभाई की ही हो सकती है क्योंकि अकबर, जयरथ और रामन्ना तो मेरे मुरीद हैं । वे तीनों लड़के मेरे से बाहर नहीं जा सकते । वे मेरे साथ ऐसी दगाबाजी नहीं कर सकते । मुझे उन पर पूरा विश्वास है ।”
“जहां पूरा विश्वास स्थापित हो, वहीं विश्वासघात की सबसे ज्यादा गुंजाइश होती है ।”
तुकाराम चुप रहा ।
“फिर भी गद्दार साथी के तौर पर मुझे रुस्तमभाई ज्यादा पसंद है । वो कहां पाया जाता है ?”
“अंधेरी में ।”
“मेरा मतलब है अंधेरी के अलावा ! अपने आफिस के अलावा ! अपने आफिस में वह चौबीस घंटे तो नहीं रहता होगा ।”
“उसके घर का पता तो” - तुकाराम खेदपूर्ण स्वर में बोला - “मुझे मालूम नहीं ।”
“ओह ।”
“लेकिन उसके आफिस में बहुत लोग जानते होंगे ।”
“ठीक है । मैं मालूम कर लूंगा । अब भण्डारी का पता बोलो ।”
तुकाराम ने उसे भायखला का एक पता बताया ।
“और वे तीनों छोकरे कहां पाये जाते हैं ?”
“उनके बारे में मुझे कतई कुछ नहीं पता ।”
“कमाल है !”
तुकाराम खामोश रहा ।
“तुम उनको ढूंढते थे तो कहां ढूंढते थे ?”
“कमाठीपुरे में । वहां एक ईरानी का रेस्टोरेंट है । वहीं ।”
“वह रेस्टोरेंट है, उनका घर तो नहीं । वहां वे चौबीस घंटे थोड़े ही बैठे रहते होंगे ?”
“मुझे तो वे हमेशा ही वहां मिल जाते थे । वागले के साथ भी हमेशा यही हुआ था ।”
“उनका कोई और पता ठिकाना नहीं मालूम ?”
तुकाराम ने इंकार में सिर हिलाया ।
“वे काम धाम कुछ नहीं करते थे ?”
“जयरथ तो फाल्स सीलिंग बनाने वाला कारीगर था और जब मिलता था तो यही काम करता था । अकबर कुछ करता है तो मुझे उसकी खबर नहीं ।”
“और रामन्ना ?”
“वो किराये की टैक्सी चलाता था ।”
“कोई पक्का अड्डा तो होगा उसका ?”
“फारस रोड का टैक्सी स्टैंड उसका पक्का अड्डा था ।”
“तुम्हारा मतलब है अब वो टैक्सी नहीं चलाता होगा ?”
“अब काहे को चलायेगा वो टैक्सी ! और चंद दिनों में वह पिचहत्तर लाख की रकम का मालिक नहीं बनने वाला !”
“ठीक है । मैं कोशिश करता हूं इन लोगों को तलाश करने की और तलाश करके टटोलने की ।”
“यह काम तू करेगा ?”
“और कौन करेगा ? तुम्हारी टांग टूटी हुई है । वागले पता नहीं कहां है और कब लौटेगा । और अपनी देखभाल के लिए तुम्हें उसकी जरूरत भी है ।”
“तेरा मुम्बई में यूं सरेआम घूमना मुनासिब होगा ?”
“मुनासिब तो नहीं होगा लेकिन यह जरूरी भी तो बहुत है ! हमने अपने साथियों को टटोलने में देर की तो रोकड़ा कहीं का कहीं पहुंच जायेगा ।”
“मुझे तो तेरी फिक्र लग रही है ।”
“फिक्र की कोई बात नहीं । होना वही है जिसमें वाहे गुरु की मर्जी है । जो तुध भावे नानका सोई भली कार ।”
“फिर भी सावधान रहना, बेटा ।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
“और यह रख ले ।”
विमल ने देखा तुकाराम उसकी तरफ एक रिवाल्वर बढ़ा रहा था ।
विमल ने रिवाल्वर लेकर अपने बैग में रख ली ।
“एक बात मुझे बहुत हैरान कर रही है ।” - विमल बोला ।
“क्या ?”
“बांद्रा के फ्लैट वाली इमारत के सामने एक पुलिस की जीप खड़ी थी ।”
“उस पर वो दोनों पुलिसिये वहां पहुंचे होंगे न जो कि...”
“नहीं, नहीं । वो जीप अलग थी । उसके अलावा एक और जीप वहां खड़ी थी । उसमें कोई ड्राइवर भी नहीं था ।”
“इमारत में कई फ्लैट है । कोई पुलिसिया वहां अपने किसी यार दोस्त या रिश्तेदार से मिलने आया होगा !”
“सरकारी जीप पर ?”
“क्यों नहीं ! सरकारी मुलाजिमों द्वारा व्यक्तिगत कामों के लिए सरकारी वाहनों का इस्तेमाल क्या बहुत बड़ी बात है ?”
“तुका, पता नहीं क्या बात है, उस जीप की वहां मौजूदगी मुझे विचलित कर रही है ।”
“सरदार, अब तो वो किस्सा ही खतम हो गया ! अब वह जीप वहां किसी भी वजह से मौजूद हो, क्या फर्क पड़ता है ! अब हमने कौन-सा उस फ्लैट पर कभी वापिस लौटना है !”
“यह भी ठीक है ।” - फिर विमल एकाएक उठ खड़ा हुआ - “मैं चलता हूं ।”
तुकाराम ने सहमति में सिर हिलाया ।
***
विमल अंधेरी पहुंचा ।
न्यू बाम्बे टूरिस्ट टैक्सी सर्विस के आफिस से उसे मालूम हुआ कि रुस्तमभाई वहां नहीं था । उस रोज उसके पांव वहां नहीं पड़े थे ।
“रुस्तमभाई अपने घर पर होगा ?” - विमल ने रिसैप्शनिस्ट से पूछा ।
“वो वहां नहीं है ।” - रिसैप्शनिस्ट बोला - “मैं सुबह से चार बार वहां फोन कर चुका हूं ।”
“एक बार फिर करो ।”
“आपको काम क्या है ?”
“हमने गोवा के लिए एक एयरकन्डीशन्ड बस बुक कराई थी जो कि एक बजे हमारे होटल में पहुंचनी थी । बस अभी तक नहीं पहुंची है ।”
“मुझे तो ऐसी किसी बुकिंग की खबर नहीं ।”
“वैसे” - विमल उसे घूरता हुआ बोला - “तुम्हें हर बुकिंग की खबर होती है ?”
रिसैप्शनिस्ट एक क्षण हिचकिचाया और फिर उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“तो ?”
“मैं फोन करता हूं ।”
वह टेलीफोन पर नम्बर घुमाने लगा ।
विमल ने वह नम्बर जुबानी याद कर लिया ।
“रुस्तमभाई घर पर नहीं है ।” - रिसैप्शनिस्ट ने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रखते हुए घोषणा की - “अब तो रुस्तमभाई की बीवी भी फिक्र कर रही है ।”
“बीवी भी फिक्र रही है !” - विमल बोला - “वो किसलिये ?”
“वो पिछली रात से ही घर नहीं लौटा है ।”
“अच्छा ! कल यहां तो वो था ! आखिर हमने उसके पास बस की बुकिंग करवाई थी ।”
“रुस्तमभाई रात साढे दस बजे तक यहां था । दस बजे वो पुलिसिया यहां आया था तो वह उसके साथ ही यहां से गया था । तब से पता नहीं वो कहां है ।”
“पुलिसिया कौन ?”
“अरे, वही इंस्पेक्टर । चटवाल । पिछले कुछ दिनों से उसके यहां कुछ ज्यादा ही चक्कर लगने लगे हैं ।”
“वह इंस्पेक्टर - चटवाल नाम बताया जिसका तुमने - रुस्तमभाई का यार है ?”
“पहले तो नहीं था, अब पता नहीं कैसे हो गया है ! साला जब चाहे जीप लेकर दनदनाता हुआ यहां आ घुसता है ।”
“जीप लेकर !”
“और वर्दी पहनकर । शुरू में एक दो बार तो हम सब लोग डर ही गये कि पता नहीं वो कोई केस बनाने तो नहीं आया था ।”
“लेकिन हकीकतन ऐसी बात नहीं थी ?”
“न ।”
“वो कहां का इंस्पेक्टर है ?”
“इसी इलाके के जाने का ।”
“और तुम्हारे मालिक रुस्तमभाई का यार है ?”
“कहा न, अब हो गया है ।”
“और वो हमेशा यहां वर्दी पहनकर, जीप पर सवार होकर आता है ?”
“हां । क्यों ?”
“जीप का नम्बर एमआर 2626 तो नहीं ?” - विमल ने अंधेरे में तीर छोड़ा । वह नम्बर उस जीप का था जो उसे बांद्रा वाले फ्लैट के सामने खड़ी मिली थी और जिस पर सवार होकर वह वहां से भागा था ।
“यही है । तुम्हें कैसे मालूम ?”
“कल जब मैं बस बुक कराने आया था तो वह जीप यहां खड़ी थी ।”
“लेकिन..”
“रुस्तमभाई और कहां हो सकता है ?”
“होने को तो दर्जनों जगह हो सकता है लेकिन होगा कहां इसके बारे में मैं क्या कह सकता हूं ।”
“नैवर माइंड । रुस्तमभाई यहां आये या उसका तुम्हारे से संपर्क हो तो कह देना कि वह बस फिलहाल न भेजे । बस दोबारा कब भेजनी होगी यह मैं उसे फोन करके बताऊंगा ।”
“ठीक है ।”
विमल वहां से विदा हो गया ।
रुस्तमभाई कल रात से गायब था और उसका किसी पुलिस इंस्पेक्टर से ताजा ताजा गठजोड़ हुआ था, ये दोनों बातें और उनका आपसी तालमेल, विमल को बहुत चिंताजनक लगा ।
ऊपर से ऐन रोकड़ा चोरी होने के वक्त रुस्तमभाई के ताजा बने यार इंस्पेक्टर की जीप बांद्रा वाले फ्लैट के ऐन सामने खड़ी थी ।
सारा सिलसिला ही एक तगड़े डबल क्रास की तरफ मजबूत इशारा था ।
***
भण्डारी खुद कार चलाता गेटवे आफ इंडिया पहुंचा ।
विमल समुद्र और सड़क के बीच की दीवार पर बैठा पाइप के कश लगा रहा था । उसने भण्डारी को उसके आफिस में फोन करके वहां बुलाया था । भण्डारी फौरन वहां पहुंचा था ।
भण्डारी ने एक बार हौले से हार्न दबाया ।
विमल अपने स्थान से उठा । वह कार के करीब पहुंचा और उसमें भण्डारी के बगल में जा बैठा ।
“मैं” - भण्डारी बोला - “जाने ही लगा था जबकि तुम्हारा टेलीफोन आया था ।”
“अच्छा हुआ कि चले नहीं गये” - विमल बोला - “वर्ना तुम्हारी तलाश में मुझे तुम्हारे घर जाना पड़ता ।”
“क्या बात है ? खैरियत तो है ?”
“यह तो तुम बताओ ।”
“क्या मतलब ?”
“माल को ठीक से सम्भालकर रखा है न ?”
“माल ! कौन-सा माल ?”
“वही माल जो हम सबका है लेकिन जिसे तुम सिर्फ अपना बनाना चाहते हो । बना चुके हो ।”
“क्या बकते हो ? माल तो तुम्हारे पास है ।”
“मेरे पास था । अब तो तुम्हारे पास है ।”
“सोहल ! तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया ? यह क्या पहेलियां बुझा रहे हो ?”
“आज दोपहर में तुम कहां थे ?”
“वहीं, जहां हमेशा होता हूं । अपने आफिस में ।”
“बारह बजे के आसपास तुम अपने आफिस में थे ?”
“मैं सारा दिन अपने आफिस में था । सुबह भी, दोपहर को भी और शाम को भी ।”
“बीच में थोड़ी देर के लिए भी तुम कहीं नहीं गये ?”
“नहीं गया । मैंने कहां जाना था ?”
“मसलन बांद्रा ।”
“वहां किसलिए ?”
“अपनी माशूक से मिलने ।”
“तुम्हारी मौजूदगी में ?”
“मेरे कहीं चले जाने के बाद अपनी माशूक से मिलने ।”
“यानी कि मैं तुम्हारे वहां से चले जाने का इंतजार करता ?”
“हां ।”
“वो किसलिए ? मेरी ऐसी कोई ख्वाहिश होती तो मैं तुम्हें वैसे ही थोड़ी देर के लिए वहां से चले जाने को नहीं कह सकता था ? मैं तुम्हें ड्राइंगरूम में बिठाकर और खुद बैडरूम में जाकर अपनी ख्वाहिश पूरी नहीं कर सकता था ? आखिर वह फ्लैट मेरा है । वह छोकरी मेरी है ।”
“कोई तो वजह होगी जो...”
“देखो, यह पहेलियां बुझानी बंद करो और साफ- साफ बताओ क्या माजरा है ! बाई गॉड, मैं सस्पैंस से मरा जा रहा हूं ।”
“तुम्हारी सहेली का कत्ल हो गया है ।”
“क्या !”
“और सारा माल फ्लैट से चोरी हो गया है ।”
“क्या !” - इस बार भण्डारी इतनी जोर से चीखा कि उसकी आवाज उसके गले में घुटकर रह गई । उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी और आंखों में ऐसा वहशी भाव आया कि विमल सकपका गया ।
उसे वह अभिनय करता न लगा ।
“भण्डारी” - वह तीखे स्वर में बोला - “कंट्रोल युअरसैल्फ ।”
भण्डारी कुछ क्षण बुत बना बैठा रहा, फिर क्षीण स्वर में बोला - “क्या हुआ था ?”
विमल ने बताया ।
“ओह !” - भण्डारी एक गहरी सांस लेकर बोला - “और तुम समझते हो कि यह काम मेरा है ?”
विमल खामोश रहा ।
“मैं उस लड़की से बहुत मुहब्बत करता था” - भण्डारी भर्राए स्वर में बोला - “मैं उसे अपने दिलोजान की जीनत मानता था । उसी की खातिर तो मैंने अपनी मुकम्मल जिंदगी का खाना खराब कर देने वाला यह कदम उठाया था और अपनी ही आर्ट गैलरी को लुटवाने की योजना का अंग बना था । जिसकी खातिर मैंने इतना कुछ किया, उसी की जान मैं कैसे ले सकता था !”
“कोई वजह पैदा हो गई हो सकती है ।”
“क्या ? क्या वजह पैदा हो गई हो सकती है ?”
“तुम उससे मुहब्बत करते थे । जिससे मुहब्बत हो, उसकी बेवफाई बर्दाश्त नहीं होती । तुमने अपनी प्रेमिका को अभिसार के लिए तत्पर, सम्पूर्ण नग्नावस्था में पाया तो तुम आपे से बाहर हो गए । तुमने दीवार पर रखी तलवार उतारकर उसका खून कर डाला । खून तुमने वहीं मौजूद तलवार से किया, इससे भी साबित होता है कि तुम घर से ही कत्ल का इरादा लेकर वहां नहीं पहुंचे थे । तुम वहीं, वक्ती जुनून के हवाले होकर कत्ल के लिए आमादा हुए थे और फिर दूसरी तलवार हाथ में लेकर मेरे कत्ल के लिए तैयार हो गए थे ।”
“मैंने तुम्हारा कत्ल क्यों नहीं किया ?”
“कोई वजह हो गई होगी । कोई ऐसी वजह हो गई होगी जिसकी रू में तुम्हें मेरा कत्ल करने के लिए वहां रुकने और माल लेकर भागने में से एक ही काम को अंजाम देना मुमकिन लगा होगा ।”
भण्डारी ने बड़ी संजीदगी से इंकार में सिर हिलाया ।
“क्यों ?” - विमल ने उसे पूरा - “क्या नुक्स है मेरी थ्योरी में ?”
“तुम्हारी थ्योरी में कोई नुक्स नहीं लेकिन है तो यह थ्योरी ही !”
“हकीकत क्यों नहीं ?”
“क्योंकि हकीकतन मैंने दोपहर के आसपास अपने आफिस के बाहर कदम तक नहीं रखा ।”
“लेकिन यह बात तुम साबित नहीं कर सकते ।”
“साबित भी कर सकता हूं बेहतरीन तरीके से साबित कर सकता हूं ।”
“कैसे ?”
“आज दोपहर को एसीपी मनोहर देवड़ा फिर मेरी जान का जंजाल बनने के लिए आया था । वह साढे ग्यारह बजे आया था और साढे बारह बजे तक मेरे से दुनिया जहान के सवाल पूछता रहा था । वो एसीपी मेरी एलीबाई है कि यह काम मेरा नहीं हो सकता ।”
“तुमने यह काम किसी से करवाया हो सकता है ।”
“मैंने किसी को कहा होगा कि वह जाकर मंजुला का कत्ल कर दे और माल उड़ाकर ले जाए ?”
“तुमने माल उड़ाने किसी को भेजा होगा । मंजुला उसके रास्ते में आ रही होगी इसलिए उसने रास्ता साफ करने के लिए उसका खून कर दिया होगा ।”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया । मेरी बात पर विश्वास करना या न करना तुम्हारी मर्जी पर मुनहसर करता है । इससे आगे कहने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है ।”
“मंजुला के कत्ल की वजह से पुलिस तुम्हारे तक पहुंच सकती है ?”
“सरासर पहुंच सकती है । अब तक नहीं पहुंची, यही कम हैरानी की बात नहीं ।”
“कैसे पहुंच सकती है ?”
“वह फ्लैट मेरे दोस्त को एक हाऊसिंग सोसायटी से मिला है, जिसकी कीमत की माहाना किस्त अपने दोस्त की गैरहाजिरी में मैं चुकाता हूं । हाऊसिंग सोसायटी वालों को मालूम है कि मेरे दोस्त की गैरहाजिरी में फ्लैट मेरे कब्जे में है । किसी अड़ोसी पड़ोसी को भी मेरी खबर हो सकती है । जहां रोज का आना जाना हो, वहां किसी न किसी की जानकारी में ऐसी बातों का आ जाना लाजिमी होता है ।”
“फिर तो पुलिस तुम्हारे तक पहुंची कि पहुंची !”
“हां ।” - वह बोला, उसके चेहरे पर गहन चिंता और परेशानी के भाव थे ।
“फिर तो यह बात छुपी नहीं रहेगी कि वह लड़की तुम्हारी रखैल थी !” - विमल बोला ।
“यही फिक्र तो इस वक्त मेरी ऐसी तैसी फेर रही है । मेरी बीवी तो मेरा खून पी जाएगी । बड़े बड़े बच्चे है । क्या सोचेंगे वे ?”
“तुम पुलिस को क्या कहोगे ?”
“यही कि कत्ल की बाबत मुझे कुछ नहीं मालूम । कत्ल का इलजाम तो वे मुझ पर लगा नहीं पायेंगे । यह मेरी खुशकिस्मती है कि उनके महकमे का एक उच्चाधिकारी खुद मेरी एलीबाई है ।”
विमल खामोश रहा ।
“क्या किस्मत पाई है जयंत भण्डारी ने !” - भण्डारी गमगीन स्वर में बोला - “चौबे गए छबे बनने, दुबे बने के लौटे । माल के नाम पर एक झुनझुना भी हाथ नहीं आया ।”
“अगर तमाम किया धरा तुम्हारा नहीं है तो...”
“मेरा नहीं है ।”
“अभी से नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं । मैं इतनी बड़ी रकम का, जिसके लिए मैंने इतनी मेहनत की है, यूं आसानी से गम खाकर बैठ जाने वाला नहीं ।”
“तुम क्या करोगे ?”
“मैं चोर को ढूंढूंगा, ढूंढ रहा हूं और उससे माल बरामद करके दिखाऊंगा ।”
“चोर हममें से कोई है ?”
“अभी कुछ कहना मुहाल है लेकिन फिलहाल मैं इसी लाइन पर काम कर रहा हूं ।”
“मुझ पर शक करना बेकार है । मैं...”
“कबूल । फिलहाल मैं जाता हूं । बहुत जल्द हम इकट्ठे मिल बैठेंगे और इस बाबत विचार करेंगे ।”
“तुकाराम क्या कहता है ?”
“वह अभी कुछ नहीं कहता ।” - विमल ने उसके एक्सीडेंट की बाबत बताया ।
“ओह !” - भण्डारी के मुंह से निकला ।
“मैं जाता हूं । एक बात और याद रखना । तुकाराम अब अपने चैम्बूर वाले मकान में नहीं है ।”
“तो कहां है ?”
“वरसोवा में । पता मुझे ठीक से मालूम नहीं । मैं तुम्हें फोन करके बताऊंगा । तुम घर पर ही होओगे ?”
“अगर पुलिस न पकड़ ले गई तो घर पर ही होऊंगा ।”
“मीटिंग की खबर कैसे भी तुम तक पहुंचा दी जाएगी ।”
“ठीक है ।”
विमल कार से बाहर निकल गया ।
***
फारस रोड के टैक्सी स्टैंड पर कई टैक्सियां मौजूद थीं । एक ओर एक लकड़ी का खोखा बना हुआ था जिसके भीतर एक टेलीफोन रखा था और जिसके सामने एक तख्तपोश बिछा हुआ था । तख्तपोश पर कई ड्राइवर लोग बैठे गप्पें हांक रहे थे ।
विमल उनके करीब पहुंचा ।
“किधर जाने का है, साहब ?” - एक ड्राइवर बोला ।
“किधर भी नहीं ।” - विमल बोला - “मुझे एक ड्राइवर की तलाश है ।”
“कौन - सा ड्राइवर ?”
“रामन्ना ।”
“विजय रामन्ना ! वो ठिंगु ?”
“वही ।”
“वो तो कई दिनों से इधर अड्डे पर नहीं आयेला है ।”
“क्यों ?”
“अपुन को क्या मालूम ?”
“उसने टैक्सी चलाना बंद तो नहीं कर दिया ?”
“बाप, टैक्सी नहीं चलायेगा तो और क्या करेंगा !”
“या शायद वह किसी और अड्डे पर जाने लगा हो ?”
“नहीं । अपना ठिंगु आयेगा तो इधर ही आयेगा ।”
करीब ही जमीन पर एक चाय और पान, बीड़ी, सिगरेट वाला बैठा था । विमल ने नोट किया कि वह वार्तालाप को बहुत गौर से सुन रहा था ।
“कोई उसका पता-ठिकाना जानता हो ?” - विमल आशापूर्ण स्वर में बोला ।
सबके सिर इनकार में हिले ।
“किसी को यह भी नहीं मालूम कि वह रहता कहां है ?”
“यहां किसी को नहीं मालूम ।” - पहले वाला ड्राइवर बोला ।
विमल ने फिर भी आशापूर्ण ढंग से बाकी ड्राइवर्स की तरफ देखा ।
सबकी गर्दनें इंकार में हिली ।
विमल वहां से हटा और सड़क की तरफ बढ गया । अड्डे से टैक्सी लेने के स्थान पर राह चलती टैक्सी पकड़ना उसे ज्यादा मुनासिब काम लगा था ।
वह सड़क पर पहुंचा और टैक्सी की तलाश में एक ओर चलने लगा ।
तभी उसे अपने पीछे कदमों की आहट सुनाई दी ।
उसने घूमकर पीछे देखा तो पाया कि जो आदमी उसने चाय और पान, बीड़ी सिगरेट की दुकान पर बैठा देखा था, वह उसके पीछे लपका चला आ रहा था ।
विमल ठिठका ।
वह आदमी उसके करीब पहुंचा । वह विमल को देखकर मुस्कराया ।
“क्या है ?” - विमल कर्कश स्वर में बोला ।
“बाप” - वह आदमी चिकने-चुपड़े स्वर में बोला - “अपुन अभी उधर डिरेवर लोगों से तुम्हेरा डायलाग सुनेला है ।”
“तो ?”
“तुम अपने रामन्ना का फ्रेंड तो नहीं होयेंगा ?”
“क्यों नहीं होयेंगा ?”
“क्यूंकि तब तुम्हेरे को उसके घर का पता मालूम होने का था ।”
“मुझे उसके घर का पता नहीं मालूम लेकिन मैं फिर भी उसका फ्रेंड हूं ।”
“अब तुम्हेरे को उसके घर का पता मांगता है जो कि तुम्हेरे को उधर डिरेवर लोगों से नहीं मिलेला है ?”
“हां । तुम्हें मालूम है उसके घर का पता ?”
“बाप, तुम रामन्ना को क्यों तलाश करेला है ?”
“उसने मेरा एक हजार रुपया देना है ।”
“और अपुन का दो सौ ।”
“क्या ?”
“अपुन गरीब आदमी है । रामन्ना अपुन से एक दिन का वास्ते दो सौ रुपया उधार लियेला था । अक्खा वीक गुजर गया पण अपना रोकड़ा अपुन को नहीं मिलेला है । ऊपर से वो इधर आता नहीं ।”
“तुम्हें तो उसके घर का पता मालूम होगा ?” - विमल आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“पता तो मालूम है पण अपना रोकड़ा उधर जाकर मांगने का अपुन का हौसला नहीं है ।”
“क्यों ? तुम उस पिद्दी से आदमी से डरते हो ?”
“बाप, वो देखने में पिद्दी है पण है बहुत खतरनाक । उसके दो दोस्त हैं जो उससे भी जबर मवाली हैं ।”
“वे दोस्त उसके साथ ही रहते हैं ?”
“यह तो अपुन को नहीं मालूम ।”
“मुझे रामन्ना का पता बताओ ।”
“बाप, पता जानकर क्या करोगे ? मेरे को भी साथ लेके चलो तो पता खुद का खुद मालूम हो जायेगा ।”
“तुम क्यों साथ जाना चाहते हो ?”
“जब तुम अपना हजार रुपया वसूल करोगे तो अपुन भी दो सौ रुपया मांग लेंगा । वो क्या बोलते हैं ग्रेट लोग कि एक से दो भले ।”
“अगर वो ठिंगु ऐसा ही खतरनाक है तो मेरा क्या रोब खायेगा ?”
“तुम्हेरा खायेगा ।”
“कैसे मालूम ?”
“बस, मालूम है । बाप, तुम्हेरे में ऐसा कुछ है जो सायलेंटली बोलता है कि वो तुम्हेरा रोब खायेंगा । अब अगर अपुन तुम्हेरे साथ होयेंगा तो अपुन का रोकड़ा वापिस मिलने का भी चांस बन जायेंगा ।”
“तुम मुझे उसका पता बताओ, तुम्हारा रोकड़ा मैं तुम्हें अभी दे दूंगा । फिर आगे वह रोकड़ा मैं अपने आप वसूल कर लूंगा ।”
उसने हैरानी से विमल की तरफ देखा ।
“अगर उसने न दिया तो ?” - वह बोला ।
“तो दो सौ का नुकसान मेरा । मैं तुमसे दो सौ रुपये वापिस नहीं मांगूंगा ।”
“कमाल है !”
“अब पता बोलो ।”
“वह इधर कमाठीपुरे में ही रयेला है । अपुन को मकान नम्बर तो नहीं मालूम...”
“फिर क्या फायदा हुआ ?”
“पण बाप, अपुन तुम्हेरे को उसके मकान तक ले के जायेंगा ।”
“ठीक है । चलो ।”
वह आदमी उसके साथ हो लिया ।
“तुम्हारा नाम क्या है ?” - रास्ते में विमल ने पूछा ।
“बाप” - उसने खीसें निपोरीं - “मां का रखा नाम तो अपुन कब का भूल गया है । वैसे आजूबाजू का लोग अपुन को चिलम के नाम से पुकारता है ।”
“चिलम !”
“हुक्के वाली ।” - वह फिर हंसा ।
विमल भी मुस्कराया । वह उसके साथ चलता रहा ।
वह विमल को फारस रोड से कोई आधा मील चलाकर एक स्थान पर ले आया । फिर वह एक स्थान पर ठिठका ।
“बाप” - वह बोला - “उधर वो सामने लकड़ी की सीढियां हैं । बरोबर ?”
“हां ।”
“उनके सिरे पर एक बंद खिड़कियों वाला कमरा है ?”
“है ।”
“वहीं अपना रामन्ना रयेला है ।”
“अगर पता गलत हुआ तो...”
“बाप, पहले जाकर कनफर्म करो कि पता ठीक है । अपुन इधर ही वेट करता है ।”
“जरूरत नहीं ।” - विमल ने जेब से सौ सौ के दो नोट निकालकर उसकी मुट्ठी में ठूंस दिए - “यह लो अपना रोकड़ा और फूटो इधर से ।”
“अपुन साथ चलेगा ।”
“नहीं ।”
“तो इधर वेट करेगा ।”
“कहा न, नहीं । तुम फूटो यहां से ।”
“पण...”
“तुम्हारा काम हो गया । तुम फूटो ।”
“पण, बाप...”
“वापिस करो दो सौ रुपये ।”
“नहीं, नहीं” - वह हड़बड़ाकर बोला - “अपुन तो अब्बी का अब्बी फूटेला है ।”
“शाबाश !”
वह तेजी से कदम रखता हुआ वहां से कूच कर गया ।
वह दृष्टि से ओझल हो गया तो विमल ने लकड़ी की सीढियों की दिशा में कदम उठाया ।
विमल की दस्तक के जवाब में दरवाजा रामन्ना ने नहीं, एक लड़की ने खोला ।
लड़की मुश्किल से सत्रह, अट्ठारह साल की थी । उसकी रंगत सांवली थी, शक्ल सूरत मामूली थी लेकिन जिस्म उसने बेहद शानदार निकाला था । उसकी कमर बहुत पतली थी, उरोज बहुत पुष्ट थे और कूल्हे बहुत भारी थे । कद उसका खूब लम्बा था । उसके बाल बेतरतीबी की हालत में थे और वैसी ही हालत में उसके कपड़े थे । उसके ब्लाउज के दो बटन खुले थे और साड़ी उसने जैसे-तैसे जिस्म पर लपेट ली मालूम होती थी । उसकी आंखों में उस क्षण तैरती रंगीनी भी यही जाहिर कर रही थी कि कपड़े उसने दरवाजे पर दस्तक होने के बाद ही जैसे तैसे पहने थे ।
“क्या है ?” - वह बोली ।
“रामन्ना है ?” - विमल बोला ।
“सो रहा है ।”
“उसे जगाओ ।”
“जो कहना है मेरे को कहो । या फिर बाद में आना ।”
“उसे जगाओ ।” - विमल कठोर स्वर में बोला ।
“अरे, सुना नहीं मैंने क्या कहा है ?”
“मैंने सुना है, तुमने नहीं सुना । जाकर जगाओ उसे ।”
“वह बहुत थककर सोया है ।”
“तो इतना नहीं थकाना था उसे ।”
लड़की का चेहरा लाल हो गया । उसने विमल के मुंह पर दरवाजा बंद करने का उपक्रम किया ।
विमल ने दरवाजे को इतनी जोर से धक्का दिया कि दरवाजा लड़की के हाथ से छूट गया । वह घबराकर एक कदम पीछे हटी तो विमल ने भीतर कदम रखा । उसने अपने पीछे दरवाजा बंद कर दिया ।
“मैं शोर मचा दूंगी ।” - वह बोली ।
विमल ने कंधे पर लटके बैग में से रिवाल्वर निकालकर उसे दिखाई ।
लड़की के छक्के छट गये ।
“तुम.. .तुम” - वह हईकलाती हुई बोली - “उसे म.. .मार डालोगे ?”
“नहीं । है कहां वो ?”
लड़की ने उत्तर न दिया लेकिन उसकी व्याकुल निगाह एक बंद दरवाजे की ओर उठ गयी ।
वहां वास्तव में दो कमरे थे । बंद खिड़कियों वाले कमरे के पीछे एक कमरा और था ।
विमल ने अपने खाली हाथ से लड़की की एक बांह थामी और उसे बंद दरवाजे की तरफ धकेला । उसके पीछे-पीछे वह पिछले कमरे में दाखिल हुआ ।
रामन्ना सो नहीं रहा था । वह सम्पूर्ण नग्नावस्था में एक पलंग पर लेटा हुआ था । विमल को देखकर वह बौखलाया और उठकर जल्दी जल्दी अपनी कमर के गिर्द लुंगी लपेटने लगा ।
“तुम यहां ?” - वह बोला ।
“लड़की शोर मचाने की धमकी दे रही थी” - विमल बोला - “इसे समझा दो कि मैं तुम्हारा दोस्त हूं और इसने ऐसा नहीं करना है ।”
“लक्ष्मीबाई” - रामन्ना बोला - “सुना !”
लड़की ने जल्दी से सहमति में सिर हिलाया और फिर आतंकित भाव से बोली - “लेकिन इसके पास गन है । यह तुम्हें...”
तब शायद पहली बार रामन्ना की निगाह विमल के हाथ में थमी रिवाल्वर पर पड़ी । उसने जोर से थूक निगली और भयभीत भाव से विमल की तरफ देखा ।
विमल ने रिवाल्वर वापिस बैग में रख ली ।
रामन्ना की जान में जान आयी ।
“मैंने सोचा” - विमल बोला - “पता नहीं यहां कौन हो !”
“यहां मेरे और लड़की के सिवाय कोई नहीं है ।”
“गुड ! लड़की को यहां से चलता करो ।”
“तुम यहां कैसे पहुंच गये ?”
“बताता हूं पहले लड़की को चलता करो ।”
“लक्ष्मीबाई, थोड़ी देर जाकर बाहर के कमरे में बैठ और बीच का दरवाजा बंद कर दे ।”
“लेकिन” - लड़की ने विरोध किया - “यह आदमी...”
“जिगरी यार है अपना ।”
“अपनी हरकतों से तो नहीं लगता !”
“इसे मजाक करने की आदत है ।” - रामन्ना खोखली हंसी हंसा और लड़की को घुमाकर उसका मुंह दरवाजे की तरफ करके उसके नितम्बों पर एक धौल जमाता बोला - “अब जरा कहना मान और हमें जरा मर्दाना बातें करने दे ।”
लड़की ने फिर सशंक भाव से विमल की तरफ देखा ।
रामन्ना से वह लड़की कम-से-कम एक फुट लम्बी थी । ऐसी लम्बी ऊंची कद्दावर लड़की के पहलू में खड़ा ठिंगु रामन्ना बहुत ही अजीब लग रहा था ।
फिर लड़की वहां से विदा हो गयी । बीच का दरवाजा बंद हो गया ।
“लड़की शानदार है ।” - विमल बोला ।
“और जानदार भी ।” - रामन्ना खुशी से दमकता हुआ बोला - “अपने साथ फिट है । बस यूं समझो मेरी तो लाटरी निकल आई है ।”
“इतनी शानदार लड़की के पहलू से तो हिलने का भी दिल नहीं करता होगा !”
“और नहीं तो क्या !”
“फिर भी तुम हिले ! न सिर्फ हिले बल्कि बांद्रा पहुंच गये !”
“कौन बांद्रा पहुंच गया ?” - वह सकपकाया ।
“तुम !”
“कब ?”
“आज दोपहर को ।”
“पागल हुए हो ! मैंने तो परसों शाम के बाद से इस मकान की चौखट से बाहर कदम नहीं रखा ।”
“अच्छा !”
“हां । मैं बांद्रा क्या करने जाऊंगा ? क्यों जाऊंगा बांद्रा ? तुम्हें किसने कहा मैं बांद्रा गया ?”
“किसी ने नहीं ।”
“फिर यह बांद्रा वाली क्या कहानी हुई ? और तुम यहां कैसे पहुंच गये ?” - वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “कैसे क्या, पहले यह बताओ क्यों पहुंच गए ? तुम्हें तो बांद्रा वाले फ्लैट से बाहर कदम भी नहीं रखना चाहिए था ! तुम्हें तो हर घड़ी माल के पास होना चाहिए था !”
“तुम्हारी सहेली को माल के बारे में कुछ मालूम है ?”
“नहीं ।”
“यानी कि” - विमल व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “वह तुम्हारे आकर्षक व्यक्तित्व और तुम्हारी खूबसूरती से प्रभावित होकर तुम पर निछावर है ?”
तुरंत रामन्ना के चेहरे पर क्रोध के भाव आए । उसने आग्नेय नेत्रों से विमल की तरफ देखा । विमल को अपने घूरने की तनिक भी परवाह न करता पाकर बड़ी कठिनाई से उसने अपने आप पर जब्त किया और बोला - “लड़की को यह पता है कि आने वाले दिनों में एक मोटी रकम मेरे हाथ लगने वाली है लेकिन रकम कितनी है और कैसे हाथ लगने वाली है, इस बाबत यह कुछ नहीं जानती ।”
“हूं ।”
“बात माल की हो रही थी । तुम्हें तो माल के पास होना चाहिए था !”
“माल गया ।”
“गया ! कहां गया ?”
“और मंजुला का कत्ल हो गया ।”
“क्या !”
“मैं दस मिनट के लिए फ्लैट से बाहर गया था । वापिस लौटा था तो लड़की मरी पड़ी थी और माल से भरे चारों सूटकेस वहां से गायब थे ।”
“अरे, लड़की भाड़ में गयी । तुम माल की बात करो । कौन ले गया माल ?”
“वही ले गया जिसने लड़की का कत्ल किया था ।”
“कौन था वो ?”
“तुम्हारा अपने बारे में क्या खयाल है ?”
“तुम मुझ पर शक कर रहे हो ?”
“फ्लैट में माल की मौजूदगी की खबर हम लोगों के सिवाय किसी को नहीं थी ।”
“और आठ जनों में से तुमने मुझे चुना है !”
“फिलहाल । तुम साबित कर सकते हो कि यह काम तुम्हारा नहीं है ?”
“बाकी लोग साबित कर सकते हैं ?”
“इस वक्त सवाल तुमसे हो रहा है ।”
“तुम कौन होते हो ऐसी जवाबतलबी करने वाले ?”
विमल की आंखों में एकाएक बड़ा सर्द भाव आया । उसने अपलक रामन्ना की तरफ देखा । साथ ही उसका हाथ हौले से वापिस अपने बैग में सरक गया ।
रामन्ना उससे निगाह मिलाने की ताब न ला सका । उसने बेचैनी से पहलू बदला और बड़े नर्वस भाव से बोला - “मैं यहीं था । मैं आज सारा दिन यहीं था । चाहो तो लड़की से पूछ लो ।”
“लड़की तुम्हारी है और इस वक्त तुम्हारे हाथों से चुग्गा चुग रही है । वह तुम्हारी खातिर कुछ भी कह सकती है ।”
“कह सकती है लेकिन यह क्या जादू के जोर से उसकी समझ में आयेगा कि उसने क्या कहना है ? तुम जैसे आनन फानन यहां मुझ पर चढ दौड़े हो, उसमें लड़की को कुछ लिखा-पढा सकने की गुंजाइश कब थी ?”
“तुम्हें पहले से उम्मीद होगी मेरे यहां आने की ! तुमने इसे पहले से सिखाया पढाया हुआ होगा !”
“सोहल, अगर माल मैंने उड़ाया होता तो तुम इतनी आसानी से मुझ तक न पहुंच गये होते । माल मैंने कब्जाया होता तो मुझे क्या कुत्ते ने काटा था जो मैं यहां आया होता ! अब तक तो मैं मुम्बई से सैकड़ों मील दूर निकल गया होता !”
“माल के साथ न निकल पाये होते ।”
“मैं माल यहां कहीं छुपा जाता और खुद खिसक जाता । तुमने देखा ही है कि लड़की किस बुरी तरह मुझ पर फिदा है ! और इसे कोई जानता भी नहीं । मैं माल इसके पास छोड़ जाता और खुद गायब हो जाता । फिर बाद में या तो मैं माल समेत लड़की को अपने पास बुला लेता या खुद यहां लौट आता । तुम लोग उम्र भर मेरी फिराक में लगे नहीं रह सकते थे और साल दो साल का अज्ञाततवास मैं खुशी से भुगत लेता ।”
विमल खामोश रहा । ठिंगु की बात में दम था ।
“तुमने किसी और को टटोला ?” - रामला ने पूछा ।
“सिर्फ भण्डारी को ।” - विमल बोला - “रुस्तमभाई मुझे मिला नहीं और तुकाराम और वागले से पूछना मैंने जरूरी नहीं समझा ।”
रामन्ना बड़े व्यंग्यपूर्ण भाव से हंसा ।
विमल ने उसके हंसने की परवाह न की ।
“तुम्हारा अपने बारे में क्या खयाल है ?” - रामन्ना बोला ।
“स्टूपिड !” - विमल बोला - “जो चीज वैसे ही मेरे पास थी उसकी चोरी का ड्रामा करने की और फिर उस लड़की का कत्ल करने की मुझे क्या जरूरत थी ?”
“हम सबको गुमराह करने के लिए ।”
“तुम्हें गुमराह करना क्यों जरूरी था ?”
“ताकि हम तुम पर शक न कर सकें ।”
“तुम्हारा शक मेरा क्या बिगाड़ सकता है ? तुम बाकी के पांचों जने मिलकर भी मेरे, तुकाराम और वागले से नहीं भिड़ सकते हो ?”
रामन्ना को जवाब न सूझा ।
“मैं तुम्हें अभी इसी वक्त शूट कर सकता हूं । ऐसी ही सहूलियत से मैं बाकी चारों का भी सफाया कर सकता हूं । फिर क्या समस्या बाकी रह जाती ?”
रामन्ना खामोश रहा ।
“हरामजादे !” - विमल कहरभरे स्वर में बोला - “किसी मामूली मवाली में और सोहल में फर्क नहीं पहचानता !”
रामन्ना ने बेचैनी से पहलू बदला और फिर बोला - “खता हुई, बाप ।”
“तेरे यार कहां हैं ?” - विमल बोला ।
“कौन ? अकबर और जयरथ ?”
“हां । मुझे मालूम हुआ है कि वे भी यही तेरे साथ रहते हैं ।”
“पहले रहते थे । अब नहीं रहते ।”
“अब क्यों नहीं रहते ?”
“वे इस जगह को अपने लिए सेफ नहीं महसूस कर रहे थे ।”
“अब वो कहां है ?”
“धारावी में । वहां के इसी नाम के होटल में । लेकिन यह काम उन दोनों का नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मेरा नहीं हो सकता । अगर यह काम मैं नहीं कर सकता तो वो भी नहीं कर सकते । जैसा भरोसा तुम्हें तुकाराम और वागले पर है, वैसा ही भरोसा मुझे अकबर और जयरथ पर है ।”
“तो फिर कौन ? भण्डारी ?”
“न । वो बाबू टाइप आदमी है । वो ऐसा हौसला नहीं कर सकता ।”
“फिर तो बाकी रुस्तमभाई ही रह गया ।”
रामन्ना खामोश रहा । उसने फिर पहलू बदला ।
“रुस्तमभाई ऐसा कर सकता है ?”
“अब मैं अपनी जुबान से क्या कहूं ?”
“यानी कि कर सकता है ?”
“बाप, कर तो कोई भी नहीं सकता लेकिन फिर भी यह काम अगर हम आठों में से ही किसी का है तो मैं तो रुस्तमभाई को ही चुनूंगा ।”
“तुमने उसे कहा था कि माल मैं हजम कर गया हूं ?”
“मैंने क्या कहा था ?” - वह अचकचाकर बोला ।
“कि माल मैं अकेला हजम कर गया हूं ?”
“मैंने ऐसा कब कहा उसे ?”
“कभी भी ?”
“मैंने नहीं कहा । कब को कहता मैं ऐसा ? वारदात के बाद से तो मैंने उसकी शक्ल भी नहीं देखी । तब से तो मैं इस कमरे से ही बाहर नहीं निकला । लक्ष्मीबाई से पूछ लो ।”
“हूं ।”
“ऐसा किसने कहा तुम्हें ?”
“खुद रुस्तमभाई ने ।”
“झूठ बोलता है साला । मैंने तो. ..”
“मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास है ।”
“कहता क्या था वो ?”
“कहता था कि तुमने उसे आकर भड़काया था कि ऐसी कोई गारंटी होनी चाहिए थी कि पेंटिंगों के बदले में माल हाथ लग चुका था और वह चौकस था इसलिए तुम्हारी शह पर वह माल को अपनी आंखों से देख लेने के लिए बांद्रा पहुंचा था ।”
“बकता है साला ।”
“दुरुस्त । लेकिन यह भी दुरुस्त है कि वहां पहुंचा वह किसी के भड़काने से ही था ।”
“मैंने नहीं भड़काया । हमारे साथियों में से भी किसी ने उसे भड़काया हो, ऐसा नहीं हो सकता ।”
“तो किसी बाहरी आदमी ने भड़काया होगा ।”
“बाहरी आदमी कौन ?”
“ऐसा एक आदमी है मेरी निगाह में ।” - विमल इंस्पेक्टर चटवाल को याद करता हुआ बोला ।
“कौन ?”
“छोड़ो । तुम्हारे सिर खपाने लायक बात नहीं ।”
रामन्ना कुछ न बोला ।
विमल कुछ क्षण खामोश रहा, फिर एकाएक पटाक्षेप-सा करता हुआ बोला - “ठीक है । फिलहाल मैं तुम्हारे यारों से मिलने जा रहा हूं ।”
“मैं साथ चलूं ?” - वह व्यग्र भाव से बोला ।
“नहीं । जरूरत नहीं ।”
“तुम्हें शक है कि मैं उन्हें कोई इशारा विशारा कर दूंगा ?” - वह शिकायतभरे स्वर में बोला ।
“नानसेंस ! मुझे सच ही तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं । और फिर यहां तुम्हारी ज्यादा जरूरत है ।”
“किसे ?”
“जो बाहर बैठी है, उसे ।”
रामन्ना बड़े संकोचपूर्ण ढंग से हंसा ।
“जाता हूं ।” - विमल बोला - “फिर मिलूंगा ।”
रामन्ना ने सहमति में सिर हिला दिया ।
विमल वहां से बाहर निकल गया ।
लक्ष्मीबाई बाहरले कमरे में एक बेंत की कुर्सी पर बैठी थी और एक फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रही थी । विमल को दरवाजे के बाहर कदम रखता पाकर वह उठकर खड़ी हो गयी ।
विमल ने बड़े सहज भाव से मुस्कराकर उसकी तरफ देखा ।
लड़की ने मुंह बिचकाया ।
विमल हंसा । उसने सीढियों का दरवाजा खोला और बाहर निकल गया । पीछे लड़की ने बहुत जोर से यूं दरवाजा बंद किया जैसे उसे जताना चाहती हो कि वह दरवाजा अब दोबारा उसके लिए खुलने वाला नहीं था ।
विमल लकड़ी की सीढियां उतरने लगा ।
फुटपाथ से अभी वह तीन चार सीढियां परे ही था कि एकाएक कहीं कोई जोर से चिल्लाया । साथ ही एक फायर की आवाज हुई ।
किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर विमल ने फौरन नीचे को डुबकी सी लगाई । वह फुटपाथ पर एक कंधे के बल गिरा ।
फिर एक फायर हुआ ।
विमल ने फुटपाथ पर एक कलाबाजी खाई और अपने शरीर को एक कूड़े के ड्रम की ओट में लुढक जाने दिया ।
फिर फायर हुआ । इस बार गोली ऐन कूड़े के ड्रम से आकर टकराई ।
फिर दूर कहीं भागते कदमों की आवाज हुई ।
विमल ने ड्रम की ओट में से सामने झांका ।
सामने सड़क के पार एक पतली गली थी जिसमें बिल्कुल अंधेरा था । गोलियां चलाने वाला निश्चय ही उस गली में था और वह विमल की ताक में था कि कब वह सीढियां उतरे और कब वह उसे शूट करे ।
विमल ड्रम की ओट से निकला और अपनी रिवाल्वर निकालता सामने गली की तरफ भागा ।
गली में तब भी कोई भाग रहा था लेकिन अंधेरे की वजह से दिखाई नहीं दे रहा था । विमल ने अंदाजन गली में दो फायर झोंक दिये लेकिन भागते कदमों की आवाज बदस्तूर आती रही ।
विमल अंधेरी गली में दाखिल होने ही लगा था कि एकाएक उसके कानों में एक क्षीण-सी आवाज पड़ी - “बाप !”
विमल सकपकाया । पहले तो उसकी समझ में ही न आया कि आवाज कहां से आई थी, लेकिन फिर उसने देखा कि गली के दहाने पर दायीं ओर दीवार के करीब एक गठरी-सी पड़ी थी ।
तभी गठरी में तनिक हरकत हुई ।
विमल नीचे झुका और आंखें फाड़ फाड़कर गठरी को देखने लगा ।
गठरी एक दोहरा हुआ मानव शरीर निकला ।
तभी विमल ने उसे पहचाना ।
वह चिलम था ।
“चिलम !” - विमल व्यग्रभाव से बोला - “तुझे क्या हुआ ?”
“उसने.. .मुझे.. .गोली.. .मार दी ।” - वह बड़ी कठिनता से बोल पाया - “बाप, वह तुम्हारे पर गो.. .गोली चलाने लगा तो.. .तो अपुन.. .चि.. .चिल्ला पड़ा । उसने.. .म.. .मेरे.. .को.. .गो.. .गो.. .गोली मार दी ।”
“वो कौन था ?”
“प.. .पता नहीं ।”
“तू अभी तक यहां क्या कर रहा था ? मैंने तो मुझे फौरन चले जाने के लिए कहा था ।”
“अ.. .अपुन रुका.. .रुका जा.. .जान.. .जानने कू कि रा.. .रामन्ना .. .तु.. .तुम्हारे कू.. .मेरे वाला.. .दो.. .दो.. .सौ.. .रुपया दियेला था... या.. .या नहीं ।”
“चिलम, तेरे चिल्लाने ने मेरी जान बचा दी । अगर तू...”
विमल बोलता-बोलता रुक गया । तभी चिलम की गर्दन लुढक गई थी ।
असहाय भाव से गर्दन हिलाता हुआ विमल उठ खड़ा हुआ ।
बेचारा खामखाह मारा गया था । उसकी इतनी ही गलती थी कि वह विमल को शूट करने को तत्पर हत्यारे के रास्ते में आ गया था ।
कौन था हत्यारा ?
उन्हीं का कोई साथी ?
या कोई अजनबी ?
सड़क पर तब तक लोग प्रकट होने लगे थे ।
विमल जल्दी से चिलम के पास से हट गया और सड़क पार करके फिर लकड़ी की सीढियां चढने लगा ।
सड़क पर ‘क्या हुआ, गोली कहां चली’ की आवाजें गूंजने लगी थीं ।
ऊपर जाकर विमल ने फिर दरवाजा खटखटाया । दरवाजा फौरन न खुला तो विमल ने झुंझलाकर बहुत जोर से दरवाजा भड़भड़ाया ।
दरवाजा फिर लक्ष्मीबाई ने खोला । विमल पर निगाह पड़ते ही उसके चेहरे पर सख्त एतराज के भाव आए । विमल ने उसे एक ओर धकेला और पिछले कमरे में पहुंचा ।
पलंग पर लेटा रामन्ना हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ ।
“क्या हुआ ?” - वह बोला ।
“तुमने गोली चलने की आवाज नहीं सुनी ?” - विमल बोला ।
“वह गोली चलने की आवाज थी !” - रामन्ना सकपकाया - “मैंने तो समझा था कि कोई कार बैकफायर कर रही थी ।”
“अभी बाहर किसी ने मेरा खून करने की कोशिश की थी । मेरी तकदीर ही अच्छी थी जो मैं बच गया ।”
“लेकिन...”
“थोबड़ा बंद रखो और मेरी बात सुनो । मौजूदा हालात में यह जगह तुम्हारे लिए सेफ नहीं । मेरी तरह तुम्हारे कत्ल की भी कोशिश हो सकती है । अगर यह करतूत हमारे किसी साथी की है तो वह हम सबको खत्म कर देने का ख्वाहिशमंद हो सकता है । ऊपर से किसी भी क्षण यहां पुलिस पहुंच सकती है ।”
“पुलिस ! पुलिस किसलिए ?”
“तुम्हारे घर के ऐन सामने एक कत्ल हो गया है । जिसका कत्ल हुआ है, वो तुम्हारा वाकिफकार है ।”
“मेरा वाकिफकार ?”
“हां । तुम्हारे टैक्सी स्टैंड का वो चाय पान बीड़ी सिगरेट वाला जिससे तुमने दो सौ रुपये उधार लिए हुए हैं । चिलम !”
“वह यहां कैसे पहुंच गया ? उसका कत्ल कैसे हो गया ?”
“न मेरे पास यह बताने का वक्त है और न तुम्हारे पास यह सब सुनने का । एक तो वह तुम्हारा वाकिफकार है, ऊपर से ऐन तुम्हारे घर के सामने उसका कत्ल हुआ है । पुलिस यहां शर्तिया आयेगी और विश्वास जानो तुम्हारी नाक में दम कर देगी । इसलिए यहां से किनारा करो और कहीं और चले जाओ । अकेले नहीं जाना चाहते हो तो अपनी सहेली को भी साथ ले जाओ लेकिन यहां से टलो । फौरन । फौरन से पेश्तर ।”
“मैं कहां जाऊं ?” - उसके मुंह से निकला ।
“कहीं भी । यहां से तो कहीं भी निकल चलो । बेहतर जगह बाद में तलाश कर लेना । समझे ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“जाना कहीं भी, लेकिन कल सुबह नौ बजे वरसोवा के लोकल बस स्टैंड पर जरूर पहुंच जाना ।”
“वहां किसलिए ?”
“आने पर मालूम हो जायेगा ।”
“अच्छी बात है ।”
विमल फौरन वहां से कूच कर गया ।