रात होने तक मैं स्वयं को काफी नियन्त्रित कर चुका था और भयंकर-से-भयंकर स्थिति से दो-चार करने के लिए पूरी तरह तैयार था ।
मैं सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और शान्ता मेम साहब के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था ।
मैंने अपने क्वार्टर का दरवाजा भीतर से बन्द नहीं किया था ।
रात को लगभग साढ़े बारह बजे एक कश्मीरी गाउन में लिपटी हुई शान्ता बिना दरवाजा खटखटाये मेरे क्वार्टर में प्रविष्ट हुई । भीतर आकर उसने द्वार भिड़का दिया ।
मैंने सिगरेट ऐश-ट्रे में झोंक दिया और उठकर खड़ा हो गया ।
वह चुपचाप एक कुर्सी पर बैठ गई । उसने एक सरसरी निगाह से मुझे सिर से पांव तक देखा और फिर भावहीन स्वर में बोली - “बैठो ।”
“थैंक्यू, मैडम ।” - मैं बोला और पलंग के सिरे पर बैठ गया ।
शान्ता की पैनी निगाह मेरे चेहरे को टटोल रही थी ओर मैं भारी असुविधा का अनुभव करता हुआ पहलू बदल रहा था । मुझे यूं लग रहा था जैसे शान्ता मुझे देख नहीं रही थी बल्कि माइक्रोस्कोप के नीचे रखे किसी कीड़े का परीक्षण कर रही थी ।
“सोच रही हूं” - अन्त में वह धीरे से बोली - “जब तुम सरदार थे तब भी क्या इतने ही खूबसूरत लगते थे ।”
मैं चौका नहीं । मैं केवल भयभीत हो गया । सारा दिन इसी बात को सोचते गुजर गया था इसलिये में किसी भी झटके के लिए काफी हद तक तैयार हो गया था ।
“मैं आपकी बात नहीं समझा ।” - प्रत्यक्षतः मैं उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“नादान मत बनो, सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल । मैं तुम्हारी हकीकत जानती हूं । अब मुझसे झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं होगा ।”
“मैं किसी सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल को नहीं जानता ।”
“यानी कि तुम अपने आप को नहीं जानते ?”
“मेरा नाम वो नहीं है जो आप बता रही हैं । मेरा नाम विमल कुमार खन्ना है ।”
“नाम बदल लेने से आदमी नहीं बदल जाता, मिस्टर ।” - शान्ता कर्कश स्वर में बोली - “और यह मत समझो कि मैंने तुम्हें अब पहचाना है । मैंने तुम्हें तभी पहचान लिया था जब तुम विक्टोरिया टरमिनस स्टेशन पर उस गुजराती से दो रुपये का सौदा कर रहे थे ।”
अब मैं वाकई चौंका ।
“नहीं ।” - मैं अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला ।
“मुझ पर अविश्वास मत जाहिर करो । बल्कि मुझसे यह पूछो कि मैंने तुम्हें इतनी आसानी से कैसे पहचान लिया ?”
“कैसे पहचान लिया ?” - मेरे मुंह से अपने आप निकल गया ।
“क्योंकि मैं तुम्हें तब से जानती हूं जब तुम इलाहाबाद में एरिक जानसन एण्ड कम्पनी में असिस्टैंट एकाउन्टेट थे ।”
“कैसे ?” - मेरे मुंह से निकला ।
“तुम्हारी पत्नी सुरजीत मेरी सहेली थी । मैं कई बार इलाहाबाद में तुम्हारे घर भी गई थी लेकिन तुम तो अपनी नवविवाहित पत्नी पर इस कदर फिदा थे कि तुम्हें किसी दूसरी लड़की की ओर आंख उठाकर देखने की फुरसत नहीं थी ।”
“मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा ।”
“देखा भी होता तो शायद अब पहचानते नहीं । क्योंकि तब मैं एक मामूली लड़की थी और अब मैं एक करोड़पति की पत्नी हूं ।”
मैं चुप रहा ।
उसने अपने गाउन में से अखबार की एक कटिंग निकाली और उसे खोलकर मेरे सामने फैला दिया ।
उस कटिंग में तीन तीन की कतार में बारह आदमियों की तस्वीरें छपी हुई थीं । ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था - फरार । सब तस्वीरों के नीचे नाम छपे हुए थे । उनमें से एक तस्वीर एक नौजवान सिख की थी जिसके नीचे जो नाम लिखा हुआ था, वह था - सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल ।
नीचे समाचार छपा था ।
समाचार पढ़ने की जरूरत नहीं थी । मैं वह समाचार पहले भी देख-पढ़ चुका था । मुझे मालूम था उसमें क्या लिखा था ।
मैंने कटिंग को लपेटकर लापरवाही से शान्ता की गोद में डाल दिया ।
“मिस्टर विमल कुमार खन्ना” - शान्ता एक-एक शब्द पर जोर देती हुई बोली - “तुम इलाहाबाद की सैन्ट्रल जेल से फरार मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल हो । तुमने एरिक जानसन में अपनी नौकरी के दौरान पचास हजार रुपये का गबन किया था । तुम पकड़े गये थे । तुम पर मुकदमा चला था और तुम्हें दो साल की सजा हुई थी । डेढ़ साल पहले जब तुम्हारी सजा के चार महीने बाकी रह गये थे तो तुम जेल से भाग निकले थे । तुम्हें बताने की जरुरत नहीं कि तुम जेल से भागने में सफल कैसे हो गए थे ।”
हां, मुझे बताने की जरूरत नहीं थी । उस रात को बिजली के शार्ट-सर्कट से जेल में भयंकर आग लग गयी थी, आग से मची आपाधापी के दौरान कई कैदियों को भाग निकलने का मौका मिल गया था । अन्य कैदियों के साथ बिना सोचे-समझे मैं भी भाग निकला था । बाद में कई कैदी फिर पकड़े गए थे लेकिन, मैं नहीं पकड़ा गया था क्योंकि मैंने अपनी दाढ़ी-मूंछें और सिर के बाल कटवा लिये थे और मैं इलाहाबाद से बहुत दूर निकल आया था ।
“आज अगर पुलिस को मालूम हो जाए कि उनका फरार मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल दाढ़ी-मूंछ व केश कटाकर विमल कुमार खन्ना बन गया है और इस समय गोकुलदास एस्टेट में नौकरी कर रहा है तो तुम पलक झपकते ही जेल के सीखचों के पीछे दिखाई देने लगोगे ।”
मैं चुप रहा । मेरा दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था ।
“और अगर तुम फौरन यहां से भाग खड़े होने के बारे में सोच रहे हो तो यह ख्याल अपने दिमाग से निकाल दो । तुम अब तक इसलिये पकड़े नहीं गये हो क्योंकि तुमने अपना हुलिया बदल लिया है । एक बार पुलिस को तुम्हारी नयी सूरत की जानकारी होने की देर है कि तुम फौरन धर लिए जाओगे ।”
मैं हैरानी से शान्ता का मुंह देखने लगा । मैं वाकई गोकुलदास एस्टेट से, बल्कि मुम्बई से, फौरन निकल भागने के बारे में सोच रहा था ।
“अब, मिस्टर, तुमने अभी, फौरन, यह फैसला करना है कि तुम वापिस जेल जाना चाहते हो या लखपति बनकर ठाठ की जिन्दगी गुजारना चाहते हो ।” - शान्ता बोली । उसके स्वर में धमकी का स्पष्ट पुट था ।
“मैडम” - मैं अपने स्वर को भरसक सन्तुलित रखने का प्रयत्न करता हुआ बोला - “अगर मैंने किसी की हत्या करके ही आजादी हासिल करनी है तो मैं उस असहाय वृद्ध की हत्या करने के स्थान पर आप जैसी क्रूर और कमीनी औरत का गला क्यों न दबा दूं ?”
“जैसे मेरा गला दबाने की हिम्मत और ताकत तुम्हारे में है ।” - शान्ता उपहासपूर्ण स्वर में बोली - “वैसे भी मेरी हत्या करके जरूर-जरूर फांसी पर लटक जाओगे । लेकिन सर गोकुलदास को दो मजबूत झटके देने से ही उनके प्राण निकल जाएंगे और किसी को खबर भी नहीं होगी कि उनकी हत्या की गयी थी । आज जैसे तुम उनको उठाते समय लड़खड़ा कर संभल गए थे एक दिन ऐसे ही लड़खड़ाने के बाद मत संभलना । कहानी खत्म । मैं आजाद हो जाऊंगी । मैं सर गोकुलदास की आधी सम्पत्ति की स्वामिनी बन जाऊंगी और तुम भी लखपति बन जाओगे । और फिर आगे भी तो तुम्हारा मेरा सम्पर्क बना रहेगा । मैं तुम्हारा अहसान जिन्दगी भर याद रखूंगी और उस अहसान के बदले में पता नहीं कब मैं तुम पर कितनी मेहरबान हो जाऊं !”
“आपने यह काम बासको से क्यों नहीं करवाया ? बासको को भी आप ही ढूंढकर लायी थीं ।”
“हां, मैंने उससे भी यही बात की थी लेकिन बासको गधा था । उसके भेजे में धेले की अक्ल नहीं थी । उसने ऐसे बेहूदे ढंग से सर गोकुलदास को हैंडल किया था कि अन्धे को भी पता लग जाता कि जो कुछ वह कर रहा था जानबूझकर कर रहा था । उसे एक मौका मिला था और उस बार नर्स एलिस की तत्परता से सर गोकुलदास जमीन पर गिरने से बच गये थे । शाम तक उसे नौकरी से निकाल दिया था । वह तो गनीमत थी कि नर्स एलिस को यह नहीं सूझा कि बासको सर गोकुल दास को जानबूझकर गिराने की कोशिश कर रहा था । उसने बासको के एक्शन को उसकी मूर्खता और लापरवाही ही समझा । लेकिन तुम समझदार हो । मुझे तुमसे बहुत उम्मीदें हैं । खास तौर से अब जबकि तुम जानते हो कि तुम मेरी बात न मानने की स्थिति में नहीं हो ।”
“बासको को भी अपने उस ख्वाब की कहानी सुनाई थी जो आपने पिछली रात मुझे सुनाई थी ?”
“हां । लेकिन तुम्हारी तरह उसे मेरी ख्वाब की कहानी पर सन्देह नहीं हुआ था । उसको पूरा विश्वास था कि मैंने सचमुच ही ऐसा ख्वाब देखा था और जब भय और आतंक का अभिनय करते हुए मैंने अपने गाउन में से उसे अपने लगभग नग्न शरीर की झलक दिखाई थी और फिर सहारा लेने के बहाने उसके साथ लिपट गई थी तो उसके होश उड़ गये थे । तुम्हारी तरह मुझे उसको समझाने की जरूरत नहीं पड़ी थी कि अगर वह सर गोकुलदास को उठाने समय उन्हें अपने हाथों से फिसल जाने देगा तो वह उन्हें उस नरकीय जीवन से छुटकारा दिलाकर उन पर अहसास करेगा । मैंने तो उसे केवल यह बताया था कि सर गोकुलदास की वसीयत के अनुसार उनकी मौत के बाद उनकी एस्टेट के हर कर्मचारी को पचास हजार रुपये मिलेंगे । पचास हजार रुपयों का नाम सुनते ही उसने खुद ही मेरा सपना सच करने का फैसला कर लिया था लेकिन मुझे उससे इतनी जल्दी और इतने बेहूदे ढंग से काम करने की उम्मीद नहीं थी । उसने तो जरा भी इन्तजार नहीं किया था । उसने तो अगले ही दिन सर गोकुलदास को जमीन पर गिरा देने की कोशिश की थी । नर्स एलिस की वजह से सर गोकुलदास को तो कुछ हुआ नहीं हुआ, उल्टे डॉक्टर कशयप के कहने पर मुझे बासको को फौरन नौकरी से निकाल देना पड़ा ।”
शान्ता एक क्षण रुकी और फिर बोली - “उस रोज मैं वी टी स्टेशन पर अपनी एक सहेली को सी ऑफ करने गई थी । संयोगवश ही मेरी तुम पर निगाह पड़ गई थी और मैंने तुम्हें फौरन पहचान लिया था कि तुम मेरे काम के आदमी सिद्ध हो सकते हो । तुम पढ़े-लिखे हो, सूरत से शरीफ लगते हो, न कि बासको जैसे मवाली । मुझे विश्वास था कि तुम यहां जल्दी ही सबका विश्वास जीत लोगे । और फिर जब कोई गड़बड़ होगी तो किसी को ख्वाब में भी नहीं सूझेगा कि वह गड़बड़ जानबूझकर की गयी थी । मैंने मन से एक स्कीम बना ली थी और उसके अनुसार स्टेशन से ही मैं तुम्हारे पीछे लग गयी थी । जिस रेस्टोरेन्ट में तुमने खाना खाया था, उसके टेलीफोन बूथ में मैंने जानबूझकर अपना बैग छोड़ दिया था । मुझे पूरा विश्वास था कि अपनी मुफलिसी की हालत में बैग में मौजूद दस हजार रुपये के नोटों का लालच तुम पर जरूर हावी हो जायेगा । विशेषरूप से तब जबकि तुम पहले भी एरिक जानसन से पचास हजार रुपये का गबन कर चुके हो । और मुझे केवल चिन्ता थी तो इस बात की थी कि कहीं ऐसा न हो कि तुम यह बात नोट ही न करो कि जब मैं टेलीफोन बूथ में घुसी थी तो मेरे पास हैंड बैग था और जब मैं वहां से निकली थी तो बैग मेरे पास नहीं था और यह जब कि यही बात होटल में मौजूद कोई दूसरा आदमी नोट करके तुमसे पहले टेलीफोन बूथ में घुस जाए । लेकिन ऊपर वाले की मेहरबानी है कि कोई गड़बड़ न हुई । जैसा मैंने सोचा था, वैसा ही हुआ । तुम्हें यहां पर नौकरी पर रख लिये जाने तक मेरी स्कीम में कोई गड़बड़ नहीं हुई । लेकिन पिछली रात के तुम्हारे रवैये ने मुझे इस बात के लिये मजबूर कर दिया कि अब मैं तुम्हें ब्लैकमेल करूं ।”
“आपने पहले ही ऐसा क्यों नहीं किया ?”
“क्योंकि तुम नौजवान हो, जेल जाने के बाद से पता नहीं कब से किसी औरत के संसर्ग में नहीं आये हो, तुम फुटपाथ की जिन्दगी जी रहे थे और लम्बे-लम्बे फाके काट रहे थे । मुझे उम्मीद थी कि थोड़ी सैक्स अपील और एक लाख रुपये की रकम का लालच ही तुम्हें मेरा काम करने के लिए तैयार कर देगा । मैंने सुना था कि जो आदमी एक बार अपराध कर चुका हो, वह दुबारा अपराध करने के लिए जल्दी तैयार हो जाता है ।”
“आपने शायद ठीक सुना है, लेकिन यह बात मुझ पर इसलिये लागू नहीं होती क्योंकि मैंने एक बार भी अपराध नहीं किया है ।”
“क्या तुम पचास हजार रुपये के उस गबन को कोई अपराध नहीं कहते जिसकी वजह से तुम्हें दो साल की जेल की सजा हुई ?”
मैंने एक गहरी सांस ली और धीरे से कहा - “मैं आपको अपनी बात पर विश्वास करने के लिए नहीं कहता लेकिन मैं वाहे गुरु की सौगन्ध खाकर कहता हूं कि मैंने गबन नहीं किया था । मुझे फंसाया गया था ।”
“झूठ !”
“अगर मैं झूठ बोलूं तो मुझे जिन्दगी में दोबारा वाहेगुरु की देहरी पर मत्था टेकना नसीब न हो ।”
शान्ता हैरानी से मेरा मुंह देखने लगी ।
“तो फिर तुम निर्दोष कैसे फंस गये ?” - उसने पूछा ।
“कहानी बहुत लम्बी है ।” - मैं दुखी स्वर में बोला - “मोटे तौर पर इतना जान लीजिये कि उन दिनों मुझे यह दुनिया बहुत खूबसूरत लगती थी और इसमें बसा हर आदमी मुझे देवता मालूम होता था । मैं हर आदमी को तब तक भला आदमी समझता था जब तक कि वह अपने आपको बुरा आदमी साबित न कर दे । मैडम, मैंने अपने बुरे दिन इसलिए नहीं देखे क्योंकि मैं बहुत भला था, मेरी पत्नी सुरजीत कौर, जिसे मैं संसार की सबसे अच्छी औरत मानता था और ग्रन्थ साहिब के बाद जिसकी मैं सबसे ज्यादा पूजा करता था, एरिक जानसन के मैनेजर डोगरा से प्यार करती थी । मेरा मैनेजर मेरे घर आता रहा, मेरी आंखों के सामने मेरी बीवी पर डोरे डालता रहा और मुझे खबर तक नहीं हुई । फिर मैनेजर ने ही मुझे गबन के केस में फंसा दिया । मैंने पुकार-पुकार कर कहा कि मैंने गबन नहीं किया लेकिन किसी ने नहीं सुनी । ट्रेजेडी यह थी कि मेरी बीवी ने भी अपनी शहादत में पुलिस को बताया कि उस रात को उसने मेरे पास सौ-सौ के नोटों की गड्डियां देखी थीं और उसके उस रुपये के बारे में पूछने पर मैंने उसे कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं दिया था । नतीजा यह हुआ कि मुझे पचास हजार रुपये के गबन के इल्जाम में दो साल की सजा हो गयी ।”
मैं कुछ क्षण चुप रहा । पिछले तीन सालों का जीवन चलचित्र की तरह मेरे मानसपटल पर उभर आया ।
“और कुछ क्षण जब मेरी सजा के चार महीने बाकी रह गए थे” - कुछ क्षण बाद मैं फिर बोला - “तो जेल में आग लग जाने की घटना घटी । कैदियों को जेल से भाग निकलने का मौका मिल गया । और कैदी भाग रहे थे इसलिए जेल से मैं भी भाग खड़ा हुआ । एक बार आजाद हो गया तो अपने आपको पुलिस की निगाहों से दूर रखने का मुझे यही कारगर तरीका सूझा कि मैं दाढ़ी-मूंछ और केश मुंडा दूं और इलाहाबाद से बहुत दूर निकल जाऊं । मैंने ऐसा ही किया और तभी से मेरा जेल की जिन्दगी से भी ज्यादा कठिन जिन्दगी का दौर आरम्भ हो गया । मैं बी.कॉम. एल.एल बी. हूं लेकिन अपने आपको शिक्षित सिद्ध नहीं कर सकता । क्योंकि शिक्षित तो सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल था, विमलकुमार खन्ना नहीं । विमलकुमार खन्ना अपने आपको शिक्षित सिद्ध करने के लिए कोई सर्टिफिकेट पेश नहीं कर सकता इसलिए वह दर-दर की ठोकरें खाता रहा । डाकखाने के सामने बैठकर चार-चार आने लेकर लोगों के मनीआर्डर फार्म भरने और चिट्ठियां लिखने से लेकर मुसाफिरों के लिए स्टैण्डों पर भाग-भागकर टैक्सी लाने तक मैंने सैकड़ो काम किए हैं लेकिन इसे मेरी शराफत का तकाजा कहिए या मेरी सिंगल सिलेंडर बॉडी की कमी कि भरपूर जानमारी के बाद भी मैं कभी दो वक्त का भरपेट खाना नहीं जुटा पाया । आपने नौकरी दी तो लगा कि अब वाहेगुरु को भी महसूस हो गया था कि मुझे बहुत सजा मिल चुकी थी । लेकिन हकीकत यह है कि मैं आसमान से गिरा और खजूर में अटक गया ।”
“सुरजीत की तुम्हें कोई खबर नहीं ?”
मेरे होंठों पर विषादपूर्ण मुस्कराहट आ गई ।
“क्या मालूम कहां है वह ?” - मैं बोला - “कहीं एरिक जानसन के मैनेजर के साथ और गबन किये पचास हजार रुपयों के साथ गुलछर्रे उड़ा रही होगी । लेकिन मैडम, अब न मुझे अपनी खूबसूरत बीवी का ख्याल आता है न मुझे उसकी बेवफाई पर अफसोस होता है । मुझ पर जो गुजरी है, उसमें गलती दुनिया की नहीं, मेरी अपनी है । यह दुनिया सीधे और ईमानदार आदमी के काबिल नहीं है । यह दुनिया उन लोगों के काबिल है जो हर वक्त उन्हीं लोगों का गला काटने की फिराक में रहते हैं जो उन पर भरोसा करते हैं । आज की दुनिया में अगर कोई आपसे गले मिलता है तो वह आप पर अपना प्यार नहीं जता रहा होता बल्कि आपकी पीठ में ऐसा मुनासिब स्थान टटोल रहा होता है जहां छुरा आसानी से घोंपा जा सके । जमाने की ठोकरों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है, मैडम । अब मेरे सिद्धान्त वे नहीं हैं जो कि कभी थे । अब मैं हर आदमी को तब तक चोर समझता हूं जब तक कि वह अपने आपको ईमानदार साबित न कर दे । अब मुझे दुनिया की हर औरत हरजाई और बेवफा लगती है ।”
मैं चुप हो गया ।
शान्ता भी चुप थी । फिर एकाएक वह बहुत थोड़ी विचलित दिखाई देने लगी ।
कई क्षण हम दोनों में से कोई नहीं बोला ।
फिर धीरे-धीरे उसके चेहरे पर पहले जैसी कठोरता उभरने लगी ।
“मैंने तुम्हारी जीवन-कथा सुन ली ।” - वह कठोर स्वर में बोली - “अब तुम मेरी बात का जवाब दो । मेरा काम करोगे या जेल जाओगे ?”
“आप अपने इरादे से बाज नहीं आ सकतीं, मैडम ?” - मैं अनुनयपूर्ण स्वर में बोला - “बड़े साहब वैसे ही किसी भी क्षण प्राण त्याग सकते हैं । आप उनके खून का पाप अपने सिर क्यों लेती हैं ? जहां आपने इतनी देर उनकी मौत का इन्तजार किया है, थोड़ी देर और सही ।”
“मैं अब और इन्तजार नहीं कर सकती ।” - वह उफनते स्वर में बोली - “मैं पिछले चार साल से उस अपाहिज की कैद में सड़ रही हूं । पिछले चार सालों का हर क्षण मैंने उसकी मौत की इन्तजार में गुजारा है । मुझे बूढ़ा आपने आप यह दुनिया छोड़ता दिखाई नहीं देता । मुझे लग रहा है कि अगर उसे इस दुनिया से धक्का नहीं दिया गया तो वह अगले पचास साल में भी यहां से नहीं हिलने वाला । पचास साल बाद मेरी निगाहों में उसकी दौलत की कीमत मिट्टी के ठीकरों जितनी भी नहीं रहेगी । और तुम मुझे उपदेश मत दो, मिस्टर । तुम मेरे सवाल का दो टूक जवाब दो । तुम मेरा काम करोगे या नहीं ?”
“नहीं करूंगा ।” - मैं शान्त स्वर में बोला ।
शान्ता का मुंह खुला रहा गया । वह हैरानी से मेरा मुंह देखने लगी । शायद उसे मुझसे ऐसे जवाब की आशा नहीं थी ।
“क्या ?” - वह हड़बड़ाकर बोली - “क्या कहा तुमने ?”
“मैंने कहा है कि मैं तुम्हारा काम नहीं करूंगा ।” - मैं पूर्ववत् शान्त स्वर में बोला । अब मैं उसे ‘आप’ नहीं, ‘तुम’ कह रहा था - “क्योंकि, लेडी शान्ता गोकुलदास, तुम मुझे ब्लैकमेल नहीं कर सकतीं । ब्लैकमेल का जो हथियार तुमने मेरे खिलाफ उठाया है वह उतना मजबूत नहीं है जितना कि तुम समझ रही हो । मैं उस निरीह वृद्ध के खून से हाथ रंगकर लाख रुपया कमाने के मुकाबले में जेल जाना ज्यादा पसन्द करूंगा । मैडम, सच पूछो तो मैंने जेल से भागकर ही गलती की थी । मेरी सजा के केवल चार महीने बाकी रह गये थे । और पेशेवर मुजरिमों की देखा-देखी झोंक में आकर मैं जेल से निकल भागा था जो कि मेरी भारी गलती थी । जेल से भागने के स्थान पर मैं बाकी के चार महीने जेल में काट लेता तो शायद मैं समाज में फिर से अपना स्थान बनाने में सफल हो जाता । शायद मैं लोगों को विश्वास दिलाने में सफल हो जाता कि मैं बेगुनाह था लेकिन जेल से भागकर मैं घर का रहा, न घाट का । मैडम, मेरी सिर्फ चार महीने की सजा बाकी थी । अब अगर मुझे पुलिस के हवाले कर दोगी तो वे लोग मुझे फांसी पर नहीं लटका देंगे । मुझे चार महीने के बदले में जेल से भागने के इल्जाम में आठ महीने की सजा हो जायेगी, दो साल की सजा हो जायेगी । मैं वह सजा काट लूंगा । जिन्दगी बहुत लम्बी है, मैडम । जिन्दगी भर एक अपाहिज वृद्ध के खून का बोझ अपनी अन्तरात्मा पर ढोने के स्थान पर मैं जेल में दो साल काट लेना ज्यादा पसन्द करूंगा । लेकिन तुम मुझे जेल भी नहीं भिजवा सकतीं । अगर तुम ऐसा कोई कदम उठाओगी तो तुम्हारी बहुत दुर्गति होगी ।”
“मेरी क्या दुर्गति होगी ?”
“मैं सारी दुनिया को बता दूंगा कि तुम मुझसे अपने पति की हत्या करवाना चाहती हो ताकि तुम्हारा उस अपाहिज से पीछा छूट सके और तुम उसकी लाखों की जायदाद की मालिक बन सको ।”
“और लोग तुम्हारी बात का विश्वास कर लेंगे ।” - वह उपहासपूर्ण स्वर में बोली ।
“जब मैं ढेर सारा नमक-मिर्च लगाकर अपनी बात कहूंगा तो लोगों को मेरा विश्वास करना ही पड़ेगा । मैं कहूंगा कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं । जब तुम इलाहाबाद में रहती थीं, तब भी मेरा तुमसे अवैध सम्बन्ध था । और अब भी तुम मुझे अपने नौकर के रूप में गोकुलदास एस्टेट में इसीलिए रखे हुए हो क्योंकि अपनी जवानी की आग बुझाने के लिए तुम्हें एक नौजवान चाहिए । लेकिन अब क्योंकि तुम मुझ से छुप-छुपकर मिलने से तंग आ चुकी हो और तुम्हें उस बेशुमार दौलत का लालच भी सता रहा है जिस तक तुम्हारे हाथ नहीं पहुंच सकते जब तक कि सर गोकुलदास इस दुनिया से कुच न कर जाएं । और मैडम, तुम्हारी जानकारी के लिए कल रात को मार्था ने हम दोनों को पेड़ों के झुरमुट से निकलकर कोठी की ओर आते देखा था । मार्था को मालूम है कि कल आधी रात के बाद तुम मेरे क्वार्टर में आयी थीं । अकेला मार्था का बयान ही यह सिद्ध करने के लिए काफी होगा कि तुम्हारा मुझसे अवैध सम्बन्ध है । हो सकता है आज भी उसने तुम्हें मेरे क्वार्टर की ओर आते देखा हो और वह अपने कमरे की खिड़की के पर्दे के पीछे नर्स एलिस के या घर के किसी और नौकर के साथ बैठी तुम्हारे लौटने की प्रतीक्षा कर रही हो ताकि और लोगों को भी सर गोकुलदास जैसे असहाय आदमी की बद्कार पत्नी की करतूतों की जानकारी हो सके ।”
शान्ता पत्थर का बुत बनी उसके सामने बैठी रही । उसका चेहरा राख की तरह सफेद हो गया था ।
“और यह तमाम बात मैं सर गोकुलदास को भी बता सकता हूं । वे बोल नहीं सकते, हिल-डुल नहीं सकते, इसलिए लिख नहीं सकते लेकिन मुमकिन है कि वो कोई ऐसी तरकीब निकाल लें जिससे वे नयी वसीयत तैयार करा कर तुम्हें अपनी जायदाद से बेदखल कर दें तथा चरित्रहीनता का आरोप लगाकर तुम्हें तलाक ही दे दें । लेडी शान्ता गोकुलदास, तुम मुझे क्या खा कर ब्लैकमेल कर करोगी । उल्टे मैं चाहूं तो तुम्हें ब्लैकमेल कर सकता हूं । तुमने मेरे बारे में जुबान खोली तो मैं तुम्हारा पूरा बेड़ागर्क करके यहां से जाऊंगा । लेकिन अगर तुम चुप रहोगी तो मैं चुप रहूंगा । क्या ख्याल है ? सौदा मंजूर है ?”
“बड़े कमीने आदमी हो !” - वह सांप की तरह फुंफकारती हुई बोली ।
“तुमसे कम कमीना हूं, लेडी शान्ता गोकुलदास ।” - मैं सिर नवाकर आदरपूर्ण स्वर में बोला ।
वह सामने बैठी कहरभरी निगाहों से मुझे घूरती रही ।
“मैडम, दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है । मैं जिन्दगी में एक औरत से भारी धोखा खा चुका हूं । यदि मैं फिर किसी औरत से धोखा खा जाऊं तो लानत है मुझ पर ।”
शान्ता अपने स्थान से उठ खड़ी हुई ।
“एक बात और सुनती जाओ ।” - मैं बोला ।
उसने खा जाने वाली निगाहों से मेरी ओर देखा ।
“मुझे नौकरी से निकालने की इच्छा हो तो कोई बड़ा ठोस बहाना तलाश करना । छोटा-मोटा आरोप नहीं चलेगा क्योंकि यहां हर कोई मेरे काम से सन्तुष्ट है । मुझे खामखाह नौकरी से जवाब दोगी तो लोग तुम पर शक करने लगेंगे । और वैसे भी मेरी जगह जो तीसरा आदमी आयेगा वह बेहद शक की निगाहों से देखा जायेगा । पहले तुम बासको को लाई तो उसके हाथ से सर गोकुलदास गिरते-गिरते बचे, फिर तुम मुझे लाई तो मेरे द्वारा भी वैसी दुर्घटना होते-होते बची । तीसरे आदमी की वजह से ऐसी कोई दुर्घटना स्वाभाविक रूप से भी होगी तो भारी शक की निगाह से देखी जाएगी । इसलिए तुम्हारी सेहत के लिए यही अच्छा है कि तुम रोज मन्दिर में घन्टियां बजाकर भगवान से प्रार्थना करो कि वह सर गोकुलदास को जल्दी-से-जल्दी अपनी पास बुला ले । अब अपनी ओर से उन्हें जबरदस्ती भगवान के पास भेजने की कोशिश करने का ख्याल छोड़ दो । इसी में तुम्हारा कल्याण है ।”
शान्ता मुंह से कुछ नहीं बोली । उसने एक आखिरी कहरभरी निगाह मुझ पर डाली और फिर एकदम घूमकर दनदनाती हुई मेरे क्वार्टर से बाहर निकल गई ।
***
अगले दिन लगभग ग्यारह बजे जबकि सर गोकुलदास ब्रेकफास्ट के बाद पलंग पर लेटे आराम कर रहे थे, शान्ता ने मुझसे कार निकालकर लाने के लिए कहा ।
मैं गैरेज से शान्ता की पसन्दीदा आस्टिन कार निकाल लाया और उसे लाकर पोर्टिको में खड़ा कर दिया ।
मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और पोर्टिको के खम्भे के साथ लगकर खड़ा हो गया ।
शायद शान्ता मुझे कार ड्राइव करने के लिए कहे ।
सुबह से लेकर तब तक मेरा मार्था से कई बार सामना हो चुका था लेकिन हर बार वह मेरे साथ बड़े स्वाभाविक ढ़ंग से पेश आई थी । उसके किसी ऐक्शन से ऐसा नहीं मालूम होता था जैसे पिछली रात भी उसने शान्ता को मेरे क्वार्टर में आते देखा हो । पिछली बार के वार्तालाप से मेरी मार्था से इतनी घनिष्ठता पैदा हो चुकी थी कि अगर पिछली रात कुछ देखा होता तो वह मुझसे सवाल जरूरी करती ।
उसी समय शान्ता कोठी से बाहर निकली ।
वह एक सादी-सी साड़ी पहने थी और आंखों पर बड़े-बड़े शीशों वाला धुप का चश्मा लगाये थी ।
वह बिना मुझसे आंख मिलाए कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठी । बड़ी दक्षता से उसने कार स्टार्ट की, गियर बदला और फिर कार को ड्राइव-वे पर मोड़ दिया ।
मैं कुछ क्षण स्थिति से उदासीन वहीं खड़ा रहा फिर मेरे मन में एक ख्याल आया । मैंने सिगरेट फेंक दिया और तेजी से अपने क्वार्टर की ओर लपका ।
गैरेजों के पास पहुंचकर मैंने जल्दी से वह गैरेज खोला जिसमें इम्पाला खड़ी रहती थी । मैंने इम्पाला को गैरेज से बाहर निकालकर बड़ी फुर्ती से गैरेज को बन्द किया और वापिस इम्पाला में आ बैठा । मैंने इम्पाला को कोठी से बाहर की ओर चला दिया ।
चारों कारों की चाबियां मेरे अधिकार में रहती थी । लेकिन मुझसे बिना किसी से पूछे कार इस्तेमाल कारने की अपेक्षा नहीं की जाती थी ।
लेकिन आज थोड़ी मनमानी कर लेने में ही मुझे अपना हित दिखाई देता था । मुझे भय था कि पिछली रात की गर्मागर्मी के बाद शान्ता कहीं मेरे बारे में पुलिस को सूचना देने पुलिस स्टेशन न पहुंच जाये । इसलिए आज मैंने उसका पीछा करने का फैसला किया था ।
शीघ्र ही मुझे सड़क पर ट्रैफिक में शान्ता की आस्टिन दिखाई पड़ी ।
मैं सावधानी से शान्ता का पीछा करने लगा ।
शान्ता माहिम काजवे की ओर बढ़ रही थी ।
मुझे तसल्ली हो गयी शान्ता पुलिस स्टेशन नहीं जा रही थी । अगर उसे पुलिस स्टेशन जाना होता तो वह सान्ताक्रूज, अन्धेरी, ब्रांद्रा वगैरह किसी भी इलाके के पुलिस स्टेशन पर जा सकती थी ।
मैं उत्सुकतावश उसका पीछा करता रहा ।
माहिम गया, माटुंगा गया, दादर गया और फिर वह जेकब सर्कल के इलाके में पहुंच गयी ।
फिर एकाएक कार को उसने महालक्ष्मी के पुल की ओर मोड़ दिया ।
महालक्ष्मी पुल के समीप एक स्थान पर उसने कार रोक दी और बाहर निकल आयी ।
मैंने अपनी कार उससे काफी दूर सड़क से एक किनारे पर रोक दी । मैं कार से बाहर नहीं निकला । ड्राइविंग सीट पर बैठा मैं उसकी एक-एक गतिविधि नोट करता रहा ।
शान्ता महालक्ष्मी पुल के पास धोबी लेन के झोंपड़-पट्टे के समीप पहुंची ।
मोड़ पर एक दस-बारह साल का एक लड़का खड़ा था । शान्ता ने उस लड़के को अपने पर्स से निकालकर एक सिक्का दिया और उसे कुछ कहा ।
लड़के ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और झोंपड़ियों की कतार में आगे बढ़ चला ।
थोड़ी देर बाद मुझे शान्ता की ओर बढ़ता हुआ बासको दिखाई दिया ।
बासको पर दृष्टि पड़ते ही शान्ता वापिस घूमी और अपनी कार की ओर बढ़ चली ।
बासको अपने और उसमें फासला बनाये उसके पीछे चलता रहा ।
शान्ता अपनी कार में आ बैठी ।
बासको कार के समीप पहुंचा । शान्ता के संकेत पर वह कार के फ्रन्ट से घूमकर दूसरी ओर पहुंचा और कार का दरवाजा खोलकर कार में शान्ता की बगल में बैठ गया ।
शान्ता ने कार स्टार्ट करने का उपक्रम नहीं किया ।
प्रत्यक्षतः वे बातें कर रहे थे । मुझे बासको थोड़ी-थोड़ी देर बाद हां या न में सिर हिलाता दिखाई दे जाता था ।
लगभग दस मिनट बाद बासको कार से बाहर निकला । उसने शान्ता का अभिवादन किया और वापिस झोंपड़-पट्टे की ओर बढ़ गया ।
शान्ता ने कार स्टार्ट की, वह उसे सावधानी से बैक करने लगी ।
मेरी कार उससे दूर ऐसे स्थान पर खड़ी थी जिसकी दायीं ओर एक संकरी-सी सड़क थी । मैंने कार स्टार्ट की और उसे फौरन उस सड़क पर मोड़ दिया ।
शान्ता अभी कार बैक ही कर रही थी कि मैं वापिस जुहू की ओर उड़ा जा रहा था ।
शान्ता का बासको से सम्पर्क स्थापित करना मुझे भारी खतरे का संकेत दे रहा था लेकिन खतरा मेरी समझ से बाहर था ।
मैं वापिस गोकुलदास एस्टेट पहुंच गया । मैंने कार को गैरेज में बन्द कर दिया और अपने क्वार्टर में चला गया ।
लगभग दस मिनट बाद मुझे शान्ता की कार एस्टेट के द्वार से भीतर प्रविष्ट होती दिखाई दी । मैं कार को गैरेज में ले जाने के लिए शान्ता द्वारा बुलाए जाने की प्रतीक्षा करने लगा ।
शान्ता ने मुझे नहीं बुलाया ।
कार पोर्टिको में खड़ी रही ।
***
शाम को चाय के बाद लगभग दो घण्टे मैंने सर गोकुलदास को एक उपन्यास पढ़कर सुनाया ।
आठ बजे के करीब नर्स एलिस ने उन्हें उनका उचित भोजन दिया और फिर मैंने उन्हें व्हील चेयर से पलंग पर ट्रांसफर कर दिया ।
लगभग सवा आठ बजे मुझे शान्ता ने बुलाया ।
“नर्स एलिस को कोलाबा जाना है ।” - वह बोली - “मेरी आस्टिन पोर्टिको में खड़ी है । तुम एलिस को उस पर कोलाबा छोड़ आओ ।”
“राइट, मैडम ।” - मैं शिष्ट स्वर में बोला ।
नर्स एलिस मेरे साथ हो ली ।
मैंने उसे कार में बिठाया और कोलाबा की ओर चल दिया ।
“वापसी में मुझे कितना इन्तजार करना पड़ेगा, मैडम ?” - रास्ते में मैंने पूछा ।
“तुम्हें वापसी में इन्तजार नहीं करना पड़ेगा ।” - एलिस बोली - “तुम मुझे कोलाबा छोड़कर वापिस आ जाना । मैंने रात को वहीं रहना है । मेरी मां की तबियत ठीक नहीं है । कल सुबह मैं खुद वापिस आ जाऊंगी ।”
“ओह !” - मैं बोला - “आपकी गैरहाजिरी में साहब की तीमारदारी कौन करता है, मैडम ?”
“साधारणतया मार्था करती है लेकिन आज यह तकलीफ शान्ता मेमसाहब को उठानी पड़ेगी ।”
“वजह ?” - मैंने सशंक स्वर से पूछा ।
“मार्था बीमार है । उसकी दाढ़ में दर्द है । मैंने उसे सिडेटिव दे दिया था । वह अपने कमरे में पड़ी सो रही होगी ।”
मेरे कानों में घंटियां बजने लगीं । यानी कि असहाय गोकुलदास एस्टेट में शान्ता के साथ एकदम अकेला था और शान्ता दिन में बासको के साथ बहुत घुट-घुटकर बातें करके आई थी ।
जरूर कोई गड़बड़ थी ।
कहीं शान्ता ने जानबूझकर तो वह मौका नहीं पैदा किया था !
मेरे दिल की धड़कन तेज हो गयी । मुझे लगने लगा कि सर गोकुलदास का शान्ता के साथ अकेला कोठी में मौजूद होना जरुर कोई गड़बड़ पैदा करने वाला था ।
रह-रहकर मेरे नेत्रों के सामने कभी शान्ता का और कभी बासको का चेहरा घूमने लगा ।
कोलाबा में जहां एलिस को जाना था, वह स्थान गोकुल दास एस्टेट से कम-से-कम बीस मील दूर था । भीड़भरी सड़कों पर मोटर चलाते समय आने-जाने में कम-से-कम एक घण्टा लग जाने की पूरी सम्भावना थी ।
एक घण्टे में शान्ता और बासको, या शान्ता अकेली, पता नहीं क्या कर गुजरे !
मैंने मन-ही-मन फैसला किया । मैंने दो-तीन बार ब्रेक और एक्सीलेटर के पैडलों पर पांव बदले और फिर कार रोक दी ।
“क्या हुआ ?” - एलिस बोली ।
“इंजन में कुछ गड़बड़ हो गई मालूम होती है ।” - मैं कार से बाहर निकलता हुआ बोला - “अभी देखता हूं ।”
मैंने कार का बोनट खोला और इन्जन पर झुक गया ।
एलिस व्यग्रता से मेरी एक-एक गतिविधि नोट कर रही थी ।
लगभग पांच मिनट यूं ही इंजन में हाथ मारते रहने के बाद मैंने कमर सीधी की ।
“गाड़ी ठीक होने में पता नहीं कितनी देर लगे ! इंजन की खराबी मेरी समझ में नहीं आ रही है । अच्छा यही होगा कि आप टैक्सी कर लें ।”
“आल राइट ।” - वह बोली ।
मैंने एक जाती हुई टैक्सी को रोका और उसमें एलिस को बिठा दिया ।
टैक्सी के दृष्टि से ओझल होते ही मैंने बोनट गिराया और फुर्ती से वापिस कार की ड्राइविंग सीट पर आ बैठा ।
अगले ही क्षण मैं वापिस गोकुलदास एस्टेट की ओर उड़ा जा रहा था ।
पांच मिनट में मैं वापिस एस्टेट के समीप पहुंच गया ।
मैंने आस्टिन एस्टेट से थोड़ी दूर ही फुटपाथ पर चढ़ाकर पार्क कर दी ।
मैं साईड से एक लम्बा चक्कर लगाकर एस्टेट के पिछवाड़े में पहुंचा जिधर कि समुद्र ठांठे मार रहा था ।
सर गोकुलदास के बैडरूम की सारी खिड़कियां समुद्र की ओर खुलती थीं ।
मैं दबे पांव बैडरुम की एक खुली खिड़की के नीचे पहुंच गया ।
“माई डियर डार्लिंग हसबैंड !” - भीतर से शान्ता का विषैला स्वर मेरे कानों में पड़ा - “कहानियां सुनने का तुम्हें शौक है । आज मैं तुम्हें एक कहानी सुनाती हूं । लेकिन उस कहानी को सुनाने के लिए मुझे कोई किताब पढ़ने की जरूरत नहीं है । वह कहानी मैं तुम्हें जुबानी सुनाऊंगी और शायद तुम्हें जानकर खुशी होगी कि उस कहानी के मुख्य पात्र तुम खुद हो ।”
मैं जड़-सा खिड़की के नीचे खड़ा रहा । मैं बड़ी सावधानी से शान्ता के मुंह से निकला एक-एक शब्द सुन रहा था ।
“स्वीटहार्ट” - शान्ता बोली - “कहानी का तुम्हें पूरा आनंद आये इसलिये कहानी मैं शुरू से शुरू करती हूं । बूढ़े बाबा, मुझसे शादी करके जितनी मायूसी तुम्हें मुझसे हुई थी, तुमसे शादी करके उससे चौगुनी मायूसी मुझे तुमसे हुई थी, तुमने शायद सोचा था कि तुम्हें शान्ता के रुप में एक ऐसी पतिव्रता पत्नी मिलेगी जो हर रोज सुबह तुम्हारे पांव धो-धोकर पिया करेगी । तुम्हारी इच्छा पूरी नहीं हुई । तुम्हें ऐसी पत्नी नहीं मिली । और मैंने सोचा था कि मैं अपने अधेड़ पति के उन लाखों रुपयों से ऐश करूंगी जिनका उसको कोई इस्तेमाल नहीं था । मेरी इच्छा पूरी नहीं हुई । मुझे ऐसा पति नहीं मिला । तुम बेहद शक्की और सनक की भावनाओं से भरे हुए खूंसट बूढ़े निकले । मैं किसी नौजवान की ओर देख भर लेती थी तो तुम्हारा कलेजा फटने लगता था । तुम मुझे सोसायटी में घूमने नहीं देते थे क्योंकि तुम्हें हमेशा डर लगा रहता था कि कोई नौजवान तुम्हारी जवान बीवी न मार ले जाये । तुम मुझे केवल ऐसी पार्टियों में ही ले जाते थे जहां तुम्हारे जैसे ही खूंसट बूढ़े अपनी बूढ़ी, खा-खा कर मुटियाई हुई बीवियों को या जवान रखैलों को लेकर आया करते थे । तुम्हारा बस चलता तो तुम मुझे भी अपनी लाखों की सम्पति के साथ किसी बैंक के लॉकर में बन्द करके रख आते और मुझे वहां से तभी निकाला करते जब तुम्हें मेरी जरूरत पड़ती । और उस दौलत की तो तुमने मुझे हवा भी नहीं लगने दी जिसके लालच में पड़कर मैंने तुमसे शादी की थी जबकि मैं यह सपना देख रही थी कि तुमसे शादी कर लेने के बाद तुम्हारी सारी दौलत नहीं तो कम-से-कम उसका एक बहुत बड़ा भाग मेरी मुट्ठी में होगा । कहां मैं तुम्हारी दौलत चूसने की स्कीमें बना रही थी और कहां तुम मेरा खून चूसने लगे । तुमने मुझे पूरी तरह गिरफ्तार करके रख लिया और एक जोंक की तरह मेरी जवानी से चिपक गये । लेकिन मैं शायद उस जिन्दगी से भी समझौता कर लेती अगर मुझे यह न मालूम हो जाता कि तुम अपनी वसीयत भी बदलने जा रहे थे ।”
शान्ता की आवाज आनी बन्द हो गई । उसके स्थान पर उसकी तेज सांसों की आवाज आने लगी ।
मेरे कान खिड़की से आने वाली हल्की से हल्की आवाज को भी ग्रहण करने के लिए तैयार थे ।
“शादी के आरम्भ के दिनों में तुमने एक वसीयत तैयार करवाई थी जिसके अनुसार तुम्हारी मृत्यु के बाद तुम्हारी लगभग सारी जायदाद मुझे और तुम्हारी बेटी माधुरी में बंटने वाली थी । लेकिन शादी के एक साल बाद ही तुम इस कदर मेरे खिलाफ हो गए थे कि तुमने अपनी वसीयत बदलने का फैसला कर लिया । मैं जी रही थी इस उम्मीद में कि तुम कभी तो मरोगे और फिर तुम्हारी लाखों की सम्पति मेरे हाथ आयेगी लेकिन तुमने मेरी वह उम्मीद भी तोड़ने का फैसला कर लिया । मुझे अपने भविष्य को अन्धकार के गर्त में डूबने से बचाने के लिए कुछ करना था और मैंने फौरन कुछ किया । ...कहानी ठीक चल रही है न, पतिदेव ? मजा आ रहा है न ? अगर बोल नहीं सकते हो तो गर्दन ही हिला दो ।”
कुछ क्षण शान्ति रही । उसके बाद शान्ता की आवाज फिर सुनाई दी - “अब इस कहानी का सबसे ज्यादा चौंका देने वाला अध्याय शुरू होता है । इससे पहले कि तुम वसीयत बदल पाते मैंने तुम्हारी हत्या करने का फैसला कर लिया । चौंक गए न ? तुम्हारी सूरत से जाहिर हो रहा है कि यह बात तुमने कभी ख्वाब में भी नहीं सोची थी कि जिस मोटर दुर्घटना की वजह से तुम आज की हालत में पहुंचे हो, वह मेरी वजह से हुई थी । मैंने ब्रेक आयल के टैंक में छेद कर दिया था जिसकी वजह से तुम्हारी कार की ब्रेकों ने काम करना बन्द कर दिया था । तुम तेज कार चलाने के आदी थे । मुझे पूरी उम्मीद थी कि ब्रेक न लगने से तुम्हारी कार का एक्सीडेण्ट होगा तो तुम्हारा जरूर काम-तमाम हो जाएगा लेकिन मेरी तकदीर ! उस भयंकर एक्सीडेण्ट में भी तुम्हारे प्राण नहीं निकले । तुम केवल लकवे के शिकार होकर रह गए और साथ ही अपनी वाणी भी खो बैठे । बाद, में, जैसा कि मैंने सोचा था, पुलिस ने यही नतीजा निकाला कि ब्रेक आयल के टैंक में छेद भी दुर्घटना के दौरान ही हुआ था । सर गोकुलदास, तुम मरे तो नहीं लेकिन इस काबिल भी नहीं रहे कि अपनी वसीयत बदल सको और मुझे अपनी लाखों की जायदाद से बेदखल कर सको । और उस दिन के बाद मैंने तुम्हारी मौत की प्रतीक्षा आरम्भ कर दी । उस वक्त तो ऐसा लगता था कि तुम आज नहीं तो कल मर जाओगे । लेकिन मेरी बद्किस्मती, चार साल गुजर गए लेकिन तुम्हें मौत नहीं आई । तुम मौत से भी बुरी हालत में मेरे भविष्य पर कालख पोतने के लिए इस दुनिया में अड़े रहे लेकिन मरे नहीं । मैं चार साल तक तुम्हारी मौत का इन्तजार करते-करते हार गई लेकिन तुम मौत से नहीं हारे । अब मुझे लग रहा है कि अगर तुम्हें जबरदस्ती इस दुनिया से धक्का नहीं दिया गया तो तुम सौ साल तक यहां से नहीं हिलोगे, लेकिन इस बार तुम ऐसी मौत मरोगे कि तुम यह कामना करने लगोगे कि तुम पहली बार ही क्यों म मर गये । सर गोकुलदास, यही मेरा प्रतिशोध है । यही तुम्हारी सजा है ।”
फिर सन्नाटा छा गया । शान्ता शायद बहुत उत्तेजित हो चुकी थी । उसकी सांसों की आवाज मुझे बाहर साफ सुनाई दे रही थी ।
“कल तुम्हारी लाडली बेटी माधुरी यहां आयेगी ।” - शान्ता इस बार शान्त स्वर में बोली - “अगले शनिवार को दशहरा है । अगले शनिवार को मार्था सहित घर के सारे नौकर-चाकरों की छुट्टी होगी । नर्स एलिस पहले ही तुम्हें और डॉक्टर कश्यप को बता चुकी है कि वह शनिवार को दो दिन के लिये छुट्टी पर जाएगी और डॉक्टर कश्यप ने उसे इजाजत भी दे दी है । अगले शनिवार को इस कोठी में मेरे, माधुरी और विमल के अलावा कोई नहीं होगा । फिर शनिवार की रात को माधुरी अपने कमरे में मरी पाई जाएगी । उसके शरीर पर कपड़े की एक धज्जी नहीं होगी । तफ्तीश द्वारा मालूम होगा कि किसी ने उसके साथ बलात्कार करके उसका गला घोंट दिया है । माधुरी से बलात्कार और फिर उसकी हत्या तुम्हारा पुराना सेवक बासको करेगा । मैं उसकी सहायता करूंगी लेकिन हत्या का इल्जाम विमल पर लगेगा ।”
मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई ।
“पुलिस को मैं बुलाऊंगी । मैं कहूंगी कि मैंने माधुरी के कमरे में खटपट की आवाज सुनी थी । फिर मैंने उसके कमरे की खिड़की में से कूदकर विमल को भागते देखा था । मैं माधुरी के कमरे में गई थी तो मैंने उसे मरा पड़ा पाया था । जाहिर है कि विमल ने उसके साथ बलात्कार करने के बाद उसका गला घोंट दिया था । तुम्हारी जानकारी के लिए विमल एक जेल से भागा हुआ मुजरिम है । न जाने कब से उसे स्त्री के सहवास का सुख प्राप्त नहीं हुआ है । उसने माधुरी को शायद कपड़े उतारते देख लिया और फिर उस पर शैतान सवार हो गया । वह खिड़की के रास्ते माधुरी के कमरे में घुस गया । वासना के ज्वार ने उसमें अमानुषिक शक्ति पैदा कर दी । उसने माधुरी के साथ जबरदस्ती अपना मुंह काला किया । जब उसका जुनून उतरा तो वह भयभीत हो उठा । माधुरी पर क्या गुजरी थी, इसकी जानकारी दुनिया को माधुरी से ही हो सकती थी । माधुरी किसी के सामने अपना मुंह न खोले इसका उसे एक ही तरीका दिखाई दिया और उसने वही तरीका अपनाया भी । उसने माधुरी का गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी और फिर वहां से भाग खड़ा हुआ । लेकिन उसके दुर्भाग्यवश मैंने उसे भागते देख लिया । उसका पुराना पुलिस रिकार्ड और मेरा बयान उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा देने के लिए काफी होगा । पुलिस को पहले से ही विमल की तलाश है । उसको अपने अधिकार में करके उन्हें बहुत खुशी होगी । स्वीटहार्ट, कहानी कैसी चल रही है ? यह किसी ऐसी कहानी से कम दिलचस्प तो नहीं जो विमल तुम्हें पढ़कर सुनाया करता है ?”
मैं सन्न-सा खिड़की से बाहर खड़ा सबकुछ सुनता रहा ।
“माई डियर डार्लिंग हसबैंड !” - शान्ता का ब्लेड की धार जैसा पैना स्वर फिर सुनाई दिया - “यह मत समझना कि जो कुछ मैं कह रही हूं सिर्फ तुम्हें डराने के लिए कह रही हूं । जो कुछ मैंने तुम्हें कहा है, वह सब कुछ होने वाला है । अगले शनिवार की रात को तुम्हारी लाडली बेटी माधुरी का वही भयंकर अन्त होने वाला है जो मैंने तुम्हें बताया है । अगर डॉक्टर कश्यप तुम्हारे दिल की हालत के बारे में ठीक कहता है तो मुझे पूरा विश्वास है कि अपनी लड़की की बलात्कार के बाद हुई वीभत्स मौत का समाचार सुनकर तुम्हारे दिल की धड़कन जरूर रुक जाएगी । अगर तुम्हारे दिल की धड़कन अपने-आप नहीं रुकी तो उसे मैं रोकूंगी । मैं तुम्हारे मुंह पर आधा मिनट तकिया दबाकर बैठ जाऊंगी और तुम्हारा कच्चे धागे से बंधी अपनी जिन्दगी से नाता टूट जाएगा । हर कोई यही समझेगा कि सर गोकुलदास अपनी बेटी की मौत का सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके और अपनी बेटी के पीछे-पीछे ही परलोक सिधार गए । और उसके बाद तुम्हारी एक करोड़ रुपये की सम्पति की अकेली मालकिन होगी लेडी शान्ता गोकुलदास यानी कि मैं । कितने अफसोस की बात होगी कि जिस औरत को तुम अपनी दौलत की हवा नहीं लगने देना चाहते, वही तुम्हारी सारी जायदाद की इकलौती वारिस बनेगी । और अब, स्वीटहार्ट, जो कुछ मैंने कहा है, उसके बारे में अच्छी तरह सोचो, अगले शनिवार को तुम्हारी बेटी का क्या अंजाम होने वाला है, उसकी कल्पना करो और नर्क की आग में जलो । तुम अपने स्थान से खुद हिल नहीं सकते, तुम बोल नहीं सकते इसलिए तुम मेरी स्कीम के बारे में किसी को बता नहीं सकते । तुम अपनी बेटी को चेतावनी तक नहीं दे सकते । तुम अगले शनिवार को मार्था सहित घर के सारे नौकर-चाकरों को कोठी से बाहर जाते देखोगे । तुम नर्स एलिस को दो दिन की छुट्टी जाते देखोगे । नौकरों में से सिर्फ विमल कोठी में मौजूद होगा और मैं इस बात का पूरा इन्तजाम कर लूंगी कि उस रात को वह कोठी से कहीं न जाये । तुम्हें मालूम होगा कि बासको तुम्हारी बेटी के साथ बलात्कार करने और फिर उसकी हत्या करने आ रहा है लेकिन तुम कुछ कर नहीं सकोगे । सर गोकुलदास, मैं बयान नहीं कर सकती कि अगले नौ दिन तुम्हारी सूरत देखकर मुझे कितनी खुशी होगी । तुम तड़फोगे, रोओगे, अपनी बेटी के बारे में सोच-सोचकर तुम्हारा कलेजा छलनी हो जाएगा लेकिन तुम कुछ नहीं कर पाओगे । तुम्हें जहन्नुम की आग में जलाने के लिए नौ दिन पहले ही मैंने तुम्हें अपनी स्कीम बता दी है । सर गोकुलदास, यही तुम्हारी सजा है । यही मेरा बदला है ।”
शान्ता एडि़यां ठकठकाती हुई तेजी से कमरे से बाहर निकल गई और फिर कमरे में शांति छा गई ।
कुछ क्षण बाद मैंने सावधानी से सिर उठाकर खिड़की में से कमरे में झांका ।
पलंग पर सर गोकुलदास का स्पंदनहीन शरीर पड़ा था । नर्स एलिस के बगल के कमरे का दरवाजा खुला था लेकिन शान्ता कहीं दिखाई नहीं दे रही थी ।
मैं खिड़की के पास से हट गया ।
सारी एस्टेट का चक्कर लगाकर मैं फिर सामने सड़क पर पहुंच गया । मैं वहां पहुंचा, जहां मैं कार खड़ी छोड़कर आया था ।
मैं कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया । मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और सोचने लगा ।
स्थिति बड़ी विकट थी - मेरे लिए नहीं, सर गोकुलदास और माधुरी के लिए । मुझे अपनी चिन्ता नहीं थी । अब जबकि मुझे शान्ता के नापाक इरादों की खबर हो गई थी । मैं बड़ी आसानी से सारे सिलसिले से हाथ झाड़कर अलग हो सकता था । अगले शनिवार तो क्या, मैं कल माधुरी के आने से भी पहले सारे सिलसिले से हाथ झाड़कर अलग हो सकता था । मैं फौरन गोकुलदास एस्टेट से दूर, यहां तक कि मुम्बई से भी दूर कूच कर सकता था ।
लेकिन क्या मेरे भाग जाने से माधुरी या सर गोकुलदास की मौत टल सकती थी ?
नहीं ।
वह बासको की सहायता से जरूर कोई ऐसा इन्तजाम कर लेगी के मेरे बिना भी उसकी स्कीम में अड़चन न आए । जैसे वह यह तय कर सकती थी कि जब बासको माधुरी के साथ बलात्कार करके और उसकी हत्या करके भाग रहा हो तो वह उसको गोली मार दे । और बाद में यह मानवीय दावा करे कि उसने बासको को माधुरी की हत्या करते भागते देखा था और उसको भागते हुए बासको को रोकने का इससे बेहतर तरीका नहीं सूझा था कि वह उसे शूट कर दे ।
या फिर एसी ही कोई और स्कीम ।
शान्ता जैसी बद्कार औरत जब अपनी मनमानी कर गुजरने पर तुल ही गई थी तो कोई छोटी-मोटी अड़चन उसे उसके इरादों से नहीं रोक सकती थी ।
मुझे कुछ-न-कुछ करना होगा - मैं स्टियरिंग व्हील पर घूंसा जमाता हुआ दृढ़ स्वर में बुदबुदाया ।
लेकिन मैं क्या कर सकता था ?
जो कुछ मैंने सुना था, उसे मैं पुलिस को, डॉक्टर कश्यप को या किसी और को नहीं बता सकता था । अगर मैं बताता तो मुझे यह भी बताना पड़ता कि मुझे पहले से ही शान्ता पर शक था और मैंने जान-बूझकर कार खराब हो जाने का बहाना बनाकर नर्स एलिस को टैक्सी पर कोलाबा भेजा था ताकि मैं वापस आकर शान्ता को चैक कर सकूं ! मुझे शान्ता पर सन्देह क्यों था ? इस सन्दर्भ में मुझे शुरु से सारी कहानी सुनानी पड़ती और फिर पुलिस को मालूम हो जाता कि मैं खुद जेल से फरार मुजरिम था !
शान्ता को यह कहना, कि मैं फिर कितने भी समय के लिए जेल जाने को तैयार था, और बात थी; वास्तव में जेल जाना और बात थी ! जेल के जीवन का ख्याल आते ही मेरे शरीर में कंपकंपी दौड़ जाती थी !
वास्तव में मैं दोबारा जेल जाने के लिए कतई तैयार नहीं था । और फिर इस बात की क्या गारन्टी थी कि मेरे कहने पर- एक जेल से फरार मुजरिम के कहने पर - पुलिस ये मान ही लेगी कि शान्ता के इरादों के बारे में जो कुछ मैं उन्हे बता रहा था, वह सच था । शान्ता मेरी निगाहों में गन्दी औरत थी लेकिन समाज की निगाहों में वह एक बहुत प्रतिष्ठाप्राप्त महिला थी । वह एक करोड़पति की बीवी थी ।
उसके लिए मुझे झूठा साबित करना कोई बहुत कठिन काम नहीं था । शान्ता बहुत बड़ी एक्ट्रेस थी । और उसे अपनी सुन्दरता और सैक्स अपील को तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करना खूब आता था ।
सारे सिलसिले में मेरा ही नुक्सान होने की सम्भावना थी । पुलिस के सामने मेरी हकीकत खुल जाती और मैं फिर जेल में पहुंच जाता ।
लेकिन मैं माधुरी को या सर गोकुलदास को शान्ता की बदमाशियों का शिकार भी नहीं होने देना चाहता था ।
फिर एक शैतानी ख्याल बिजली की तरह मेरे मस्तिष्क में कौंध गया ।
इससे पहले कि शान्ता सर गोकुलदास या माधुरी की हत्या का सामना कर सके, क्यों न मैं शान्ता की हत्या कर दूं ।
शान्ता जैसी खतरनाक और हरजाई औरत को जिन्दा रहने का क्या हक था ?
शान्ता के मर जाने से माधुरी जैसी कमसिन लड़की का जीवन बच सकता था ।
शान्ता के मर जाने से सर गोकुलदास का जीवन बच सकता था ।
शान्ता के मर जाने से मैं दुबारा जेल जाने से बचा रह सकता था । क्योंकि जब से मैं जेल से भागा था, तब से शान्ता ही पहली इन्सान थी जिसने मुझे सुरेन्द्र सिंह सोहल के रूप में पहचाना था ।
अब मुझे कोई ऐसी तरकीब सोचनी थी कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे । मैं शान्ता की हत्या कर दूं लेकिन किसी को मुझ पर सन्देह तक न हो ।
मैंने सिगरेट फेंक दिया और इंजन स्टार्ट कर दिया । ऐसी कोई तरकीब सोचने के लिए अभी बहुत वक्त बाकी था
***
अगले दिन दस बजे नर्स एलिस लौट आई । दस बजकर पांच मिनट पर वह सर गोकुलदास के पास पहुंची और दस बजकर सात मिनट पर उसने डॉक्टर कश्यप को फोन किया ।
डॉक्टर कश्यप सब काम काज छोड़कर फायर ब्रिगेड के इन्जन की रफ्तार से गोकुलदास एस्टेट पहुंचा ।
वह सर गोकुलदास के बैडरूम में पंहुचा । आते ही उसने नर्स एलिस को और शान्ता के कमरे से बाहर निकाल दिया और दरवाजा भीतर से बन्द कर दिया ।
कोई विशेष बात हो गई है, इसकी जानकारी मिनटों में एस्टेट के सारे कर्मचारियों को हो गई । मैं और मार्था भी सर गोकुलदास के बैडरूम के बाहर के गलियारे मे आ खड़े हुए । शान्ता और नर्स एलिस पहले से ही गलियारे में मौजूद थीं । और किसी नौकर-चाकर ने बैडरूम के पास फटकने के जुर्रत नहीं की थी ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद डॉक्टर कश्यप ने द्वार खोलकर गलियारे में कदम रखा । वह बेहद गंभीर था । उसने बारी बारी से हम सबको घूरकर देखा और फिर कठोरता और अधिकार मिश्रित स्वर में पूछा - “क्या हुआ था ?”
कोई कुछ नहीं बोला । सवाल उसने किसी व्यक्तिविशेष से नहीं किया था । हम सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे । कोई कुछ नहीं बोला ।
“बात क्या है डॉक्टर ?” - थोड़ी देर बाद शान्ता बोली ।
“सर गोकुलदास एकाएक बुरी तरह कौलेप्स हो गए हैं ।” - डॉक्टर बोला - “कल सुबह मैं उन्हें बड़ी अच्छी हालात में छोड़कर गया था । और आज वह यूं भयभीत और उत्तेजित दिखाई दे रहे हैं जैसे उन्होंने भूत देख लिया हो । मैं कहता हूं कल और आज में जरूर कोई ऐसी अप्रिय घटना घटित हुई है जिसके वजह से साहब इतना आतंकित हो उठे हैं । उन्हें देखकर लगता है जैसे उन्हें कोई भारी सदमा पंहुचा है । वे...”
“लेकिन डॉक्टर” - शान्ता हड़बड़ाये स्वर में बोली - “यह कैसे हो सकता है ? कल नर्स की जगह मैं साहब के पास रही थी । मुझे तो उनके मूड में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया था । और नर्स एलिस के लौटने तक मेरे अतिरिक्त कोई उनके पास नहीं आया था ।”
“आपको उनमें कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया था ?”
“मुझे वे कुछ उत्तेजित तो जरूर लगे थे लेकिन उनका उत्तेजित होना मुझे बड़ा स्वाभाविक लगा था । आज छः महीने बाद माधुरी वापिस आने वाली है और आप जानते ही हैं कि वे माधुरी से कितना प्यार करते हैं । माधुरी से मुलाकात होने की कल्पना ने ही उन्हें थोड़ा उद्वेलित कर दिया होगा ।”
“थोड़ा उद्वेलित ! मैडम, वे इस बुरी तरह आतंकित हैं कि आतंक से उनके नेत्र फटे जा रहे हैं । हर क्षण ऐसा लगता है जैसे वे कुछ कह पाने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं । उनकी नब्ज तेज हो गई है और वे इतनी बेचैनी का अनुभव कर रहे हैं जैसे उनके दिल में तूफान उठ रहा हो । इसे आप थोड़ा उद्वेलित हो जाना कहती हैं । माधुरी पहले भी आया करती थी । पहले तो उनकी ऐसी बुरी हालत कभी नहीं हुई ।”
“फिर तो भगवान् जाने क्या हो गया है ।” - शान्ता चिन्तित स्वर में बोली ।
“किसी और को कुछ मालूम हो ?” - डॉक्टर कश्यप हम लोगों की ओर दृष्टिपात करता हुआ बोला ।
हममें से कोई कुछ नहीं बोला ।
“खैर ।” - डॉक्टर बोला - “मैंने उन्हें इन्जेक्शन दे दिया है । इस समय वे सोये हुए हैं । कोई उन्हें डिस्टर्ब न करे और नर्स, इस बात का तुम्हें खासतौर से ख्याल रखना है । अगर तुम्हें उनकी तबीयत ज्यादा खराब होती दिखाई दे तो मुझे फौरन फोन करके बुला लेना । जब तक उनकी तबीयत सुधर नहीं जाती, मैं यहां रोज आया करूंगा । मैंने नई प्रेस्क्रिप्शन लिख दी है । दवाइयां और इन्जेक्शन मंगवा लेना और अगर अगले सप्ताह के दौरान साहब की हालत नहीं सुधरी तो नर्स, तुम्हारी छुट्टी कैंसिल ।”
नर्स ने धीरे से सहमतिसूचक ढंग में सिर हिला दिया ।
शान्ता की आंखों में बेचैनी दिखाई देने लगी लेकिन उसकी बेचैनी को मेरे अतिरिक्त कोई नहीं भांप सकता था । केवल मुझे मालूम था कि नर्स एलिस की छुट्टी कैंसिल हो जाने से शान्ता की माधुरी और सर गोकुलदास की हत्या की सारी स्कीम फेल हो जानी थी लेकिन शान्ता एक अनुभवी अभिनेत्री थी । शीघ्र ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव प्रकट होने लगे जैसे वह सर गोकुलदास की वर्तमान दशा के प्रति बेहद चिन्तित हो ।
“डॉक्टर साहब” - शान्ता भाव-विहल स्वर से बोली - “कोई भारी चिन्ता की बात तो नहीं है ?”
“फिलहाल तो स्थिति कन्ट्रोल में है” - डॉक्टर कश्यप धीरे से बोला - “लेकिन साहब शॉक की जिस स्थिति से गुजर रहे हैं, उसमें कुछ भी सम्भव है ।”
“शायद माधुरी के आ जाने के बाद उनकी तबीयत सुधर जाये ।”
“शायद । लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि हो क्या गया है । वे एकाएक इतने आतंकित क्यों दिखाई देने लगे ? लगता है जैसे कोई भारी चिन्ता एकाएक उन्हें भीतर-ही-भीतर से खाने लगी हो । मैंने आज से पहले उन्हें कुछ कह पाने की इतनी तीव्र चेष्टा करते नहीं देखा । काश मैं जान पाता कि वे मुझे क्या बताना चाहते हैं । काश वे बोल पाते ।”
डॉक्टर कश्यप ने एक गहरी सांस ली और चुप हो गया । उसने नर्स को अपने पीछे आने का संकेत किया और वापस बैडरूम में घुस गया ।
शान्ता ने भी बैडरूम की ओर कदम बढ़ाया लेकिन कुछ सोचकर वहीं ठिठकी खड़ी रही ।
लगभग पांच मिनट बाद डॉक्टर वहां से विदा हो गया ।
डॉक्टर के जाने के बाद शान्ता बैडरूम में घुसी लेकिन अधिक देर भीतर नहीं टिकी । कुछ ही देर बाद वह बैडरूम से निकलकर अपने कमरे में चली गई ।
नर्स एलिस ने बैडरूम का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया ।
शाम को चार बजे शान्ता मुझे लेकर सान्ताक्रूज एयरपोर्ट गई ।
माधुरी का प्लेन ठीक समय पर एयरपोर्ट पर उतरा ।
माधुरी प्लेन से उतरी ।
शान्ता ने उसे यूं आगे बढ़कर उसे गले लगाया जैसे माधुरी उसकी अपनी बेटी हो और सारी दुनिया में उसे माधुरी से ज्यादा प्यारा कोई न हो । उन दोनों का मधुर मिलन देखकर एक क्षण के लिए तो मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं शान्ता ने माधुरी की हत्या करने का भयानक ख्याल छोड़ तो नहीं दिया था ।
माधुरी एक जवानी की दहलीज पर खड़ी बेहद खूबसूरत और सलीके वाली किशोरी थी । मेरा यह सोचकर भी दिल दहल जाता था कि उसकी सौतेली मां की वजह से शनिवार की रात को वह बासको नाम के राक्षस का शिकार बनने वाली थी और उसका इतना भयानक अन्त होने वाला था ।
माधुरी की सूरत देखकर मेरा शान्ता नाम की चुड़ैल की हत्या करने का विचार और दृढ़ हो गया ।
दोनों कार में आ बैठी । मैं कार ड्राइव करता हुआ उन्हें एस्टेट में ले आया ।
माधुरी सीधी अपने पिता के पास पहुंची ।
मुझे यह देखने का अवसर नहीं मिला कि माधुरी से मुलाकात की सर गोकुलदास पर क्या प्रतिक्रिया हुई ।
***
अगले छ: दिन निर्विघ्न गुजर गये ।
उस दौरान डॉक्टर रोज आता रहा ।
गुरुवार शाम को उसने घोषणा की कि सर गोकुलदास की तबीयत अब पहले से बहुत बेहतर थी । साथ ही उसने नर्स एलिस को भी अपने पूर्वनिर्धारित प्रोग्राम के अनुसार छुट्टी पर जाने की आज्ञा दे दी ।
उस रोज शान्ता की आंखों में एक शैतानी चमक मुझे फिर दिखाई दी ।
मुझे विश्वास-सा हो चला कि अब शान्ता बासको से एक बार फिर जरूर मिलेगी । वैसे तो पिछले छ: दिन भी मैंने शान्ता को बहुत कम अपनी दॄष्टि से ओझल होने दिया था लेकिन अब तो मैं साये की तरह उसके पीछे लग गया ।
शुक्रवार की रात को ग्यारह बजे के करीब मैंने शांता को चुपचाप कोठी से बाहर निकलते देखा । वह अपने शरीर को एक रेशमी गाउन में लपेटे हुये थी और वह अपने कमरे की खिड़की के रास्ते निकलकर बाहर आई थी ।
अगर उस रोज मैंने उसे खिड़की के रास्ते अपने कमरे से न निकलते देखा होता तो शायद मैं उसका पीछा नहीं करता । मैं उससे इस बात की अपेखा नहीं करता था कि वह महालक्ष्मी पुल के पार धोबी लेन के झोंपड़-पट्टे में नाइट गाउन पहनकर जायेगी ।
मैं उस समय कोठी की किचन से अपने लिए चाय लेकर वापस लौटा रहा था ।
शान्ता खिड़की से निकली और इमारत की साइड से होकर पीछे समुद्र की ओर बढ़ी ।
मैंने चाय की थर्मस को फव्वारे के पास रख दिया और दबे पांव शान्त के पीछे बढ़ा ।
कोठी के पिछवाड़े समुद्र के समीप एक छोटा-सा केबिन बना हुआ था, जिसमें स्विमिंग और फिशिंग का सामान रखा जाता था और जो छोटे-मोटे रैस्ट हाउस के रूप में भी इस्तेमाल होता था ।
शान्ता ने केबिन का ताला खोला और भीतर प्रविष्ट हो गई उसने केबिन की खिड़कियों और दरवाजों पर पर पर्दे खींच दिये और फिर भीतर की बत्ती जला दी ।
केबिन कोठी से दूर था और पेड़ों के झुरमुट से ढका हुआ था इसलिए कोठी से न केबिन दिखाई देता था और न उसके भीतर का प्रकाश । वैसे भी पर्दों की वजह से प्रकाश बहुत कम बाहर फूट रहा था ।
मैं दबे पांव केबिन के समीप पहुंचा और उसकी साइड की लकड़ी की दीवार से लगकर खड़ा हो गया ।
मैंने देखा, केबिन की समुद्र की ओर की खिड़की खुली थी और उस पर से पर्दा भी हटा हुआ था ।
फिर मुझे समुद्र के पानी में चप्पू चलने की आवाज आई ।
थोड़ी देर बाद एक छोटी-सी किश्ती किनारे से आ लगी । किश्ती में मुझे एक लम्बे-चौड़े आकार वाले मानव शरीर का आभास मिला ।
बासको ।
मैं सांस रोके प्रतीखा करने लगा ।
कोई किश्ती से उतरा, उसने किश्ती को खींचकर रेत पर चढ़ा दिया और पेड़ों के झुरमुट की ओर बढ़ा जिधर केबिन था ।
वह केबिन के द्वार की ओर बढने के स्थान पर उसकी प्रकाशित खिड़की की ओर बढ रहा था ।
खिड़की के समीप आकर उसने भीतर झांका ।
केबिन के भीतर के कृत्रिम प्रकाश सीधा उसके चेहरे पर पड़ा ।
वह बासको ही था ।
वह द्वार की ओर बढा ।
शान्ता शायद उसे खिड़की से भीतर झांकते पहले ही देख चुकी थी । बासको के द्वार के समीप पहुंचते ही द्वार खुल गया । बासको केबिन के भीतर प्रविष्ट हो गया । फौरन द्वार भीतर से बन्द हो गया ।
कुछ क्षण बाद समुद्र की ओर से खुली खिड़की भी बन्द हो गई ।
मैं लपपकर उस खिड़की के समीप पहुंच गया ।
भीतर का प्रकाश अब बाहर नहीं फूट रहा था । खिड़की पर पर्दा खींचा जा चुका था इसलिए खिड़की में मौजूद किसी झिरी में से भीतर झांकना भी सम्भव नहीं था ।
मैंने खिड़की के साथ कान लगा दिया ।
“शुक्र है, वक्त पर आ गये हो ।” - भीतर से आता शान्ता का मद्धम स्वर उसके कानों में पड़ा ।
“शनिवार का प्रोग्राम पक्का है ।” - शान्ता फिर बोली - “मैं इसी केबिन में शनिवार को तुम्हारा इन्तजार करूंगी । अगर समुद्र से तुम्हें आज की तरह इस केबिन की बत्ती जलती दिखाई दे तो समझना कि कोठी में सब ठीक-ठाक है और तुम यहां आ जाना । लेकिन अगर इस केबिन की बत्ती न जल रही हो तो एस्टेट के पास फटकना भी नहीं । यहां बत्ती न जलती होना इस बात का संकेत होगा कि कोई गड़बड़ हो गई है । समझ गये ?”
“समझ गया ।” - बासको का भारी स्वर सुनाई दिया ।
“अगर बत्ती जलती हुई हो तो ठीक साढ़े ग्यारह बजे तुम यहां पहुंच जाना । मैं तुम्हें यहीं मिलूंगी । लेकिन समय का ख्याल रखना ।”
“वह तो मैं रखूंगा मेमसाहब, लेकिन आप मुझे एक बात बताइये ।”
“पूछो ।”
“अगर परसों रात को साढ़े ग्यारह बजे के आस-पास विमल अपने क्वार्टर में या एस्टेट में न हुआ तो ?”
“मैंने उस संभावना पर भी विचार कर लिया है । अगर विमल परसों रात एस्टेट में न हुआ तो हमारी स्कीम एकदम फेल हो जाएगी । लेकिन इस बात की संभावना न के बराबर है कि वह परसों आधी रात को कहीं चला जायेगा । विमल कहीं आता-जाता नहीं है । जब से वह नौकरी पर आया है मैंने उसे एक बार भी अपनी मर्जी से एस्टेट से बाहर कदम रखते नहीं देखा है । इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि शनिवार रात को भी वह अपने क्वार्टर में ही होगा ।”
“लेकिन मान लो परसों रात ही वह अपने क्वार्टर पर न हुआ तो ?”
“कैसे नहीं होगा ? अव्वल तो वह कहीं जायेगा नहीं और अगर कहीं जाना चाहेगा तो मैं उसे इजाजत नहीं दूंगी । मैं कोई काम का बहाना बना दूंगी ।”
“लेकिन अगर वह फिर भी चला गया तो ?”
“तो फिर हमें अपनी स्कीम छोड़नी पड़ेगी ।” - इस बार शान्ता के स्वर में झुंझलाहट का पुट था - “तुम बात का बतंगड़ मत बनाओ, मिस्टर । मुझे मालूम है विमल कहीं नहीं जायेगा । वह कभी कहीं नहीं जाता ।”
“ऑल राइट । ऑल राइट ।”
“और हाथों में दस्ताने पहनना मत भूलना । और इस बात की पूरी कोशिश करना कि माधुरी चीखने-चिल्लाने न पाये । हालांकि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसकी चीख सुनने के लिए कोई मौजूद नहीं होगा । सर गोकुलदास के सुनने या न सुनने से कोई फर्क नहीं पड़ता और माधुरी अगर गला फाड़कर भी चिल्लायेगी तो उसकी आवाज विमल के क्वार्टर तक नहीं पहुंचेगी लेकिन फिर भी तुम्हें सावधानी बरतनी पड़ेगी । हमें अनहोनी के लिए तैयार रहना चाहिये । शायद कोई भूला-भटका आदमी समुद्र की ओर आ जाये और वही माधुरी की चीख सुन ले ।”
“मैं ख्याल रखूंगा । माधुरी जरा-सी तो लड़की है । उसको बस में करना मेरे लिए क्या मुश्किल होगा ।”
“ठीक है । अब जाओ । परसों रात को ठीक साढ़े ग्यारह बजे यहां पहुंच जाना ।”
“बशर्ते कि इस केबिन की बत्ती जलती हो ।”
“करैक्ट । शाबाश ।”
केबिन से आवाजें आनी बन्द हो गई ।
“अब जाओ यहां से ।” - कुछ क्षण बाद शान्ता का उतावला स्वर सुनाई दिया ।
“जाता हूं ।” - बासको का स्वर सुनाई दिया - “आज एक बात मैं घर से ही सोचकर आया था । उस पर अमल कर लूं फिर जाता हूं ।”
“क्या ?”
“यह ।”
“छोड़ो । छोड़ो, बदमाश ।” - शान्ता का छटपटाता हुआ स्वर सुनाई दिया - “यह क्या बेहूदगी है...”
साथ ही कमरे से कोई भारी चीज उलटने की आवाज आई ।
“यह बेहूदगी नहीं है, मेमसाहब ।” - बासको का भारी स्वर सुनाई दिया - “यह मेरी दिली इच्छा है । अगर आप यह चाहती हैं कि परसों रात को साढ़े ग्यारह बजे बासको यहां आपकी सेवा में हाजिर न हो तो छोड़ देता हूं ।”
“तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो ?”
“मेरी सेवाओं के बदले में जो कुछ आप मुझे दे रही हैं मैं उससे ज्यादा हासिल करने की सोच रहा हूं । अगर आपको मेरी हरकत बहुत ऐतराज के काबिल लग रही है तो यह लीजिये, छोड़ दिया आपको । अब आप परसों का कोई और इन्तजाम कर लीजियेगा । मुझे आपका काम नहीं करना । मुझे आपका रुपया नहीं कमाना ।”
“और जो रुपया तुम मुझसे पहले ही ले चुके हो ?”
“कौन-सा रुपया ? कैसा रुपया ? कब दिया था ?” - बासको का उपहासपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
कमरे में चुप्पी छा गई ।
“मैं कहती हूं, बासको, इन बातों के लिए बाद में भी बहुत मौके आयेंगे ।”
“बाद में तो आप मुझे पहचानेंगी भी नहीं । बाद में तो आप मुझे पास भी नहीं फटकने देंगी । और बाद में तो मैं ही आपके पास फटकना पसन्द नहीं करूंगा ।”
थोड़ी देर चुप्पी रही ।
फिर बासको का स्वर सुनाई दिया - “थैंक्यू, मेमसाहब ! थैंक्यू, वैरी मच । मुझे पूरा विश्वास था कि आप मेरी छोटी-सी इच्छा टालेंगी नहीं, खासतौर पर जबकि आपका सेवक जल्दी ही आपको लाखों की जायदाद की मलिका बनाने में आपकी मदद करने वाला हो ।”
मैं कान खिड़की के साथ चिपकाये बाहर खड़ा रहा ।
“दरअसल मेमसाहब, मैंने आज तक कभी कोई मक्खन और मुरब्बों से पला हुआ जिस्म नहीं देखा । मैं ठहरा पैदायशी झोंपड़-पट्टे में रहने वाला आदमी । मेरे जैसे आदमी को आप जैसी ऊंचे घरों की, खूबसूरत कपड़ों में लिपटी औरतें दिखाई दे जाती हैं, यही मेरी बड़ी तकदीर रही है । जो कुछ मैं अब देख रहा हूं - और कर रहा हूं - इसका मुझे ख्वाब तक नहीं आया कभी ।”
“जैसे तुमने जिन्दगी में कोई औरत नहीं देखी ।” - शान्ता का नफरतभरा स्वर सुनाई दिया ।
“देखी है । लेकिन मैंने रोड़ी कूटने वाली, मछली बेचने वाली, मिलों में काम करने वाली, भीख मांगने वाली और पेशा करने वाली औरतें ही देखी हैं जिनके ढले हुए काले खुरदरे शरीरों पर हाथ फेरने में उतना ही मजा आता है जितना कि किसी बरगद के पेड़ के तने पर हाथ फेरने में आता है । मेमसाहब, जैसा कि पहले भी कह चुका हूं, मक्खन और मुरब्बों पर पले जिस्म का स्पर्श करने का सौभाग्य मुझे पहली बार प्राप्त हो रहा है ।”
“अब बकवास बन्द करो ।”
“ओके, मैडम ।”
केबिन से आवाज आनी बन्द हो गयी लेकिन खटपट शुरू हो गयी ।
मैं केबिन के पास से हट गया और एक पेड़ के पीछे छुप कर खड़ा हो गया ।
शान्ता केबिन में बासको नाम के वहशी को कत्ल की कीमत चुकाती रही ।
लगभग दस मिनट बाद दरवाजा खुला ।
बासको केबिन से बाहर निकला और मैली-कुचैली कमीज के बटन बन्द करता हुआ समुद्र की ओर बढ़ गया ।
बासको के विदा होने के दो मिनट बाद केबिन की बत्ती बुझ गई । शान्ता केबिन से बाहर निकली । उसने केबिन का द्वार बन्द करके ताला लगाया और कोठी की ओर बढ़ी ।
उसके बाल बिखरे हुए थे, कपड़े अस्त-व्यस्त थे और कदम लड़खड़ा रहे थे ।
शान्ता मेरी दॄष्टि से ओझल हो गयी लेकिन उसके बाद भी पूरे पांच मिनट तक मैं पेड़ के पीछे छुपा खड़ा रहा ।
बासको अपनी किश्ती पर रवाना हो चुका था ।
मैं पेड़ के पीछे से निकला और केबिन के द्वार के पास पहुंचा । मैंने जेब से रूमाल निकालकर अपने दायें हाथ पर लपेट लिया और फिर रूमाल से ढके हाथ से द्वार पर लगे ताले को टटोल कर देखा ।
ताला मामूली था ।
मैनें अपनी जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला । उस गुच्छे में कारों की, चारों गैरेजों की और मेरे क्वार्टर की भिन्न भिन्न आकार और प्रकार की चाबियां थीं ।
मैं बारी-बारी से चाबियां उस ताले में ट्राई करने लगा ।
तीसरी ही चाबी से ताला खुल गया ।
मैं दरवाजा खोलकर भीतर घुस गया । दरवाजा मैंने भीतर से बन्द कर लिया और उस पर पर्दा सरका दिया । खिड़कियों पर पर्दे पहले ही पड़े हुए थे और वह मैं पहले ही बाहर से देख चुका था कि वैसी स्तिथि में भीतर का प्रकाश बाहर नहीं फूटता था । मैंने टटोल-टटोलकर बिजली का स्विच तलाश किया और उसे ऑन कर दिया ।
मेरी खोजपूर्ण निगाहें केबिन में फिरने लगीं ।
कोने में एक मेज पर टेबल लैम्प के नीचे एक वीनस की प्रतिमा पड़ी थी ।
मैं मेज के समीप पहुंचा ।
रूमाल में लिपटे हाथों से मैंने उस प्रतिमा को उठा लिया । वह लगभग डेढ़ फुट ऊंची ठोस संगमरमर की प्रतिमा थी । कुछ क्षण मैं उस प्रतिमा को अपने हाथ में तोलता रहा फिर मैंने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाते हुए प्रतिमा को यथास्थान रख दिया ।
मैंने केबिन की बत्ती बुझाई, बाहर निकलकर द्वार बन्द किया, द्वार को पूर्ववत्‌ ताला लगाया और दबे पांव अपने क्वार्टर की ओर बढ़ चला ।
***
अगले दिन डॉक्टर कश्यप ने फिर सर गोकुलदास का मुआयना किया और घोषणा की कि अब साहब एकदम ठीक थे । उनकी नब्ज और हृदय की गति व्यवस्थित हो गयी थी और वे अपनी पहले जैसी स्थिति में पहुंच चुके थे । उसके कथनानुसार पिछले दिनों में उनकी जान को जो नया खतरा पैदा हो गया था, वह टल गया था ।
मैं जानता था कि सर गोकुलदास एकाएक केवल ऊपरी तौर पर ही ठीक लगने लगे थे । उनके दिल की धड़कन वगैरह केवल काफी समय गुजर जाने की वजह से और सावधानीपूर्ण इलाज की वजह से सुधर गयी थी लेकिन भीतर से वे अवश्य अपनी बेटी की सम्भावित हत्या के भय से घुले जा रह थे ।
दोपहर के भोजन के बाद मैंने सर गोकुलदास को व्हील चेयर से बिस्तर पर ट्रांसफर कर दिया और फिर मैं मार्था के पास पहुंचा । मैंने बड़े विनीत शब्दों में उससे पचास रुपये एडवांस मांगे जो मुझे फौरन मिल गए । मुझे मार्था से यही आशा भी थी ।
मैंने मार्था को सूचित कर दिया कि मैं एक घण्टे के लिए बाहर जा रहा हूं ।
मार्था ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
बाजार से मैंने अपने लिए एक दस्तानों का जोड़ा खरीदा । चार गिरह बिन्नी की मजबूत जीन का कपड़ा खरीदा और सूई और धागा खरीदा । उसके अतिरिक्त एक रेडीमेड कमीज खरीदी ताकि मार्था को मेरा पचास रुपये मांगना और बाजार जाना न्यायोचित लगता ।
मैं वापिस लौटा ।
शान्ता मुझे एस्टेट के मुख्य द्वार और कोठी के पेड़ों से ढके अर्धवृत्ताकार रास्ते में मिल गई ।
“कहां गये थे ?” - उसने संदिग्ध स्वर में पूछा ।
“बाजार ।” - मैं सहज भाव से बोला ।
“क्यों ?”
“एक कमीज खरीदकर लाया हूं ।” - मैं उसे कमीज दिखाता हुआ बोला ।
“कहीं जाओ तो बताकर जाया करो ।”
“मैं मार्था को बता गया था ।”
“मुझे बताकर जाया करो ।”
“बहुत अच्छा, जी ।” - मन-ही-मन मैं सोच रहा था कि आज के बाद क्या मैं तुम्हारी भूत को अपने बारे में बताने आया करूंगा ।
“और क्या लाये हो ?” - वह नम्र स्वर से बोली ।
“कुछ नहीं ।” - जीन का कपड़ा, सुई धागा और दस्ताने मेरी जेब में थे ।
“कभी कोई रुपये-पैसे की जरूरत पड़े तो मुझे बताना ।”
“जरूर बताऊंगा, जी ।”
“और सुनो ।” - एकाएक उसका स्वर बड़ा धीमा हो गया ।
“फरमाइये ।”
शान्ता ने एक बार अपने दायें-बायें देखा और फिर पूर्ववत्‌ धीमे स्वर में बोली - “आज रात को साढ़े ग्यारह बजे अपने क्वार्टर में मेरा इन्तजार करना ।”
“क्यों ?”
“वहीं आकर बताऊंगी ।” - शान्ता अपने धीमे स्वर को रहस्य का पुट देती हुई बोली - “बात तुम्हारे ही फायदे की है ।”
“अच्छी बात है ।”
“और बत्ती जली मत रखना ।”
“अच्छा, जी ।”
“ऐन मौके पर कहीं चले मत जाना ।”
“नहीं जाऊंगा । मैंने कहां जाना है ?”
“फिर भी कहीं जाओ तो बताकर जाना ।”
“अच्छा, जी ।”
शान्ता एक क्षण चुप रही फिर बोली - “मेरी गाड़ी निकाल लाओ, मैंने शहर जाना है ।”
“अभी लाता हूं ।” - मैं बोला और गैरेज की ओर चल दिया ।
मैंने गैरेज से आस्टिन निकाली और उसे ले जाकर ड्राइव वे में शान्ता की बगल में खड़ा कर दिया । मैं कार से बाहर निकल आया । शान्ता ड्राइविंग सीट पर आ बैठी और कार को ड्राइव करती हुई बाहर की ओर चल दी ।
मैं वापिस कोठी में पहुंचा ।
उस समय तीन बजने को थे । यह वह समय था जब अधिकतर नौकर-चाकर कहीं-न-कहीं पड़े ऊंघ रहे होते थे और इसलिए कोठी में आवाज नहीं के बराबर रह जाती थी ।
मैं चुपचाप शान्ता के कमरे में घुस गया ।
शान्ता के पास एक बहुत कीमती सच्चे मोतियों का हार था जो वह कभी-कभार ही पहनती थी और जिसको मैंने उसे डिब्बे में बंद करके अपनी ड्रेसिंग टेबल के दराज में रखते देखा था । मार्था के कथनानुसार उस हार की कीमत एक लाख रुपये से अधिक थी और वह हार शादी के बाद शान्ता को सर गोकुलदास की पहली और आखिरी कीमती भेंट थी ।
ड्रेसिंग टेबल के दराज का ताला केबिन के ताले से भी मामूली था । मैंने उसे एक मिनट में खोल दिया ।
भीतर मखमल की लाइनिंग वाले डिब्बे में वह मोतियों का हार मौजूद था ।
मैंने हार निकालकर अपनी जेब के हवाले किया और डिब्बे को यथास्थान रख दिया । मैंने दराज बन्द करके उसका ताला फिर लगा दिया ।
मैं शान्ता के कमरे से बाहर निकला । मैंने अपने पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
उसी क्षण मोड़ घूमकर मार्था ने उस गलियारे में कदम रखा ।
मैं बौखला गया ।
मार्था ने निश्चय ही मुझे शान्ता के कमरे से निकलते देख लिया था । उसकी संदिग्ध निगाहें मेरी ओर देख रही थीं ।
हालांकि मैंने विपरीत दिशा में जाना था लेकिन मैं जान-बूझकर गलियारे में उस ओर बढ़ा जिधर मार्था खड़ी थी । तब तक मैं स्वयं को काफी हद तक नियन्त्रित कर चुका था ।
“तुम तो बाजार गये हुए थे ?” - मार्था संदिग्ध स्वर में बोली ।
“बाजार से हो आया हूं ।”
“शान्ता के पास क्या कर रहे थे ?”
“शान्ता मेमसाहब अपने कमरे में कहां हैं, मैडम !” - मैं हंसता हुआ बोला ।
“तो फिर तुम उसके कमरे में क्या कर रहे थे ?”
“उनका कुछ सामान रखने आया था । अभी उन्होंने मेरे से कार निकलवाई थी । कल वे कुछ नावल खरीद कर लाई थीं जो कार में ही पड़े थे । उन्होंने मुझे कहा कि मैं नावल उनके कमरे में रख आऊं और वे खुद शहर की ओर रवाना हो गई ।”
“मैंने कार के पोर्टिको में आने की आवाज नहीं सुनी ।”
“मैं कार पोर्टिको में लाया ही नहीं था । शान्ता मेमसाहब गेट पर खड़ी थीं ।”
“ओह !”
मैंने शान्ति की सांस ली । प्रत्यक्षत: मार्था को मेरी बात पर विश्वास हो गया था ।
“पचास रुपये का क्या खरीदा ?”
“एक कमीज लाया हूं ।” - मैं मार्था को कमीज दिखाता हुआ बोला - “बाकी रुपये मेरे पास हैं ।”
“बाकी रुपये ऊट-पटांग खर्च मत कर देना । पैसा जमा करने की आदत डालो ।”
“यस, मैडम ।” - मैं स्कूल जाने वाले बच्चे जैसी आज्ञाकारिता से बोला ।
मैंने मार्था का अभिवादन किया और वहां से यूं खिसका जैसे चोर जेल से छूटकर भागता है ।
मैं अपने क्वार्टर में पहुंच गया ।
फिर मैं जीन का कपड़ा और सुई-धागा लेकर बैठ गया ।
लगभग दस मिनट बाद मैंने जीन के कपड़े की लगभग दो इन्च चौड़ी और बारह इन्च लम्बी थैली तैयार कर ली ।
फिर मैं एक थैला लेकर बीच पर पहुंचा और उसमें बीच की रेत भर लाया ।
जीन के कपड़े की थैली में मैंने ठूंस-ठूंस कर रेत भरी और फिर उसका मुंह सी दिया ।
बाकी की रेत मैं वापिस बीच में फेंक आया । जीन के कपड़े की बची कतरने मैंने कूड़ेदान में डाल दीं ।
मैंने रेत की थैली को अपने हाथ में तोला । मैं अपने कार्य से सन्तुष्ट था ।
मेरी स्कीम पूर्णरूपेण तैयार थी ।
आज रात साढ़े ग्यारह बजे शान्ता बीच के केबिन में बैठी बासको का इन्तजार कर रही होगी ।
मैं ग्यारह बजकर पच्चीस मिनट पर केबिन में पहुचूंगा और केबिन में पड़ी वीनस की संगमरमर की प्रतिमा से शान्ता की खोपड़ी पर भरपूर प्रहार से उसका काम तमाम कर दूंगा । फिर मैं समुद्र के पास एक पेड़ के पास एक पेड़ के पीछे छुप जाऊंगा ।
साढ़े ग्यारह बजे बासको आयेगा ।
मैं पीछे रेत की थैली से उसकी गरदन पर प्रहार करूंगा । बासको को कोई बाहरी चोट नहीं आयेगी । साथ ही वह लम्बा-चौड़ा मजबूत आदमी है, इसलिए शायद रेत की थैली के प्रहार से मरेगा नहीं लेकिन वह कितना ही मजबूत क्यों न हो और मैं कितना ही कमजोर क्यों न होऊं, मुझे पूरा विश्वास था कि वह बेहोश जरूर हो जायेगा ।
फिर मैं उसके शरीर को घसीटकर समुद्र के उस भाग में ले जाऊंगा जहां पानी में से कुछ चट्टानें निकली हुई हैं । वहां मैं बासको को पानी में डुबो दूंगा । सांस न आ पाने से उसके प्राण निकल जायेंगे । मैं उसकी लाश को किसी एक चट्टान के समीप डालकर उसके समीप ही उसकी किश्ती उलट दूंगा ।
मैं उसकी जेब में शान्ता का कीमती हार डाल दूंगा ।
अगले दिन जब पुलिस तफ्‍तीश करेगी तो उसे मालूम होगा कि बासको एक बड़ा ही फसादी आदमी था । वह गोकुल दास एस्टेट से नौकरी से निकल दिये जाने के बावजूद भी एक महीने की फालतू पगार मांगने और झगड़ा करने आया था । हालात से यही जाहिर होगा कि उस रात वह शायद शान्ता से कुछ रुपया झटकने की नीयत से आया था । शान्ता उस समय अपना मोतियों का कीमती हार पहने हुए थी । बासको ने वीनस की संगमरमर की मूर्ति उठाकर शान्ता के सिर पर दे मारी जिसकी वजह से उसके प्राण निकल गये । बासको उसकी गर्दन से मोतियों का हार निकालकर वहां से भागा । वह अपनी किश्ती पर सवार हुआ और समुद्र में आगे बढ़ा । दुर्भाग्यवश अन्धकार और उसकी जल्दबाजी के कारण किश्ती किसी चट्टान से टकराकर पहले बेहोश हो गया और फिर पानी में दम घुट जाने से मर गया ।
किस्सा खत्म !
***
शनिवार की शाम को कोठी का सारा स्टाफ दशहरा देखने चला गया । नर्स एलिस भी माधुरी को सर गोकुलदास की दवाइयों वगैरह के बारे में समझाकर वहां से विदा हो गई ।
अन्धकार होने तक कोठी में केवल सर गोकुलदास, माधुरी, शान्ता और मैं बाकी रह गये थे ।
रात के साढ़े आठ बजे के करीब मैंने सर गोकुलदास को उनके बिस्तर पर लिटा दिया । उसके बाद माधुरी ने मेरी छुट्टी कर दी और वह स्वयं सर गोकुलदास को एक उपन्यास पढ़कर सुनाने लगी ।
मैं अपने क्वार्टर में आ गया ।
दस बजे के करीब कोठी की सारी बत्तियां बुझ गयीं ।
मैं अपने क्वार्टर में बिस्तर पर लेटा एक पत्रिका पढ़ने लगा । मैंने अपने पलंग को खिड़की के पास इस स्थिति में सरका लिया था कि देखने वाले को बाहर से ही मालूम हो जाता कि मैं अपने क्वार्टर में मौजूद था । मैं नाम को पत्रिका पढ़ रहा था लेकिन वास्तव में मैं बाहर की राहदारी की ओर देख रहा था ।
लगभग आधे घण्टे बाद मुझे अपने क्वार्टर से थोड़ी दूर पेड़ों के पास एक स्त्री की आकृति का आभास मिला । कुछ देर वह आकृति वहां खड़ी रही और फिर वापिस कोठी की ओर बढ़ गई । मैं उसे चाल से ही पहचान गया था । वह निश्चय ही शान्ता थी जो वह चैक करने आई थी कि मैं अपने क्वार्टर पर मौजूद था या नहीं । मैने उसी की सहूलियत के लिए अपने पलंग को अपनी वर्तमान स्थिति में सरकाया था ताकि शान्ता को दूर से ही मालूम हो जाता कि मैं क्वार्टर में मौजूद था ।
मैंने पत्रिका फेंक दी और प्रतीक्षा करने लगा ।
दूर कहीं घड़ियाल पर ग्यारह चोटें पड़ीं तो मैं अपने क्वार्टर की बत्ती बुझाकर बाहर निकल आया ।
मैं दबे पांव बीच पर स्थित केबिन की ओर बढ़ा ।
केबिन में अभी अन्धकार था ।
मैं केबिन के पिछवाड़े के एक पेड़ के पीछे छुपकर खड़ा हो गया ।
मैं तैयार था ।
मैंने हाथों में दस्ताने पहले हुए थे । मेरी पतलून की बायीं जेब में शान्ता का मोतियों का हार था और दायीं जेब में रेत से भरी लम्बी थैली थी ।
मैं प्रतीक्षा करने लगा । मेरे पास घड़ी नहीं थी । मैं केवल समय का अनुमान लगाकर ही काम चला रहा था ।
लगभग दस मिनट बाद मुझे शान्ता केबिन की ओर बढ़ती दिखाई दी ।
मैं सतर्क हो गया और सांस रोके पेड़ के पीछे खड़ा रहा ।
शान्ता केबिन के मुख्य द्वार पर पहुंची । उसने केबिन का ताला खोला और दरवाजा ठेलकर भीतर प्रविष्ट हो गई ।
मैं दबे पांव आगे बढ़ा और जाकर केबिन की दीवार के साथ लगकर खड़ा हो गया ।
केबिन के भीतर की बत्ती जल गई । पहले की तरह समुद्र की ओर की एक खिड़की को छोड़कर केबिन के बाकी सारे खिड़की-दरवाजे बन्द थे और उन पर पर्दे पड़े हुए थे ।
मैं अपने स्थान पर निशब्द खड़ा रहा ।
सब ओर सन्नाटा था ।
जब मेरे अनुमान से ग्यारह पच्चीस हो गए तो मैं अपने स्थान से हिला । मैं दबे पांव केबिन के मुख्य द्वार के समीप पहुंचा ।
मैंने द्वार को धीरे-से धक्का दिया ।
द्वार खुला था ।
“बासको !” - शान्ता की फुसफुसाहट जैसी धीमी आवाज सुनाई दी ।
मैं पर्दा हटाकर केबिन में प्रविष्ट हो गया ।
मेरी सूरत देखते ही शान्ता यूं घबराई जैसे भूत देख लिया हो । कुछ क्षण उसके मुंह से बोल नहीं फूटा, जब बोली तो केवल इतना ही कह पाई - “तुम !”
मेरी सूरत वहां देखकर उसका भयभीत हो उठना स्वाभाविक था । बासको किसी भी क्षण वहां पहुंच सका था और बासको से मेरा सामना हो जाने से उसकी पोल खुल सकती थी और फिर उसकी सारी स्कीम धरी की धरी रह जाती ।
“साढ़े ग्यारह तो बज गए थे, मेमसाहब” - मैं सहज स्वर से बोला - “और आप आई नहीं । फिर मुझे केबिन में लाइट दिखाई दी । मैंने सोचा शायद आप यहां हों तो मैं यहां चला आया ।”
शान्ता कितनी त्रस्त थी, उसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता था कि मेरे क्वार्टर से केबिन की लाइट तो क्या, केबिन तक नहीं दिखाई देता था लेकिन शान्ता को यह बात नहीं सूझी थी ।
उसने व्याकुल नेत्रों से द्वार की ओर देखा ।
“नहीं नहीं ।” - वह हड़बड़ाये स्वर में बोली - “तुम अपने क्वार्टर में जाओ । मैं वहीं आती हूं ।”
“लेकिन मेमसाहब, जब मैं यहां आ ही गया हूं तो...”
“अरे, कहा न अपने क्वार्टर में जाओ । मैं वहीं आती हूं ।”
“लेकिन मेमसाहब, बात क्या है ? और आप इतनी डरी हुई क्यों हैं ?”
शान्ता ने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया । उसने अपनी कलाई पर बन्धी घड़ी पर दृष्टिपात किया तो वह और घबरा गई । वह मुझे अपने स्थान पर खड़ा छोड़कर तेजी से बिजली के स्विच की ओर बढ़ी और बोली - “चलो, मैं तुम्हारे साथ चलती हूं ।”
उसने बासको को निर्देश दिया था कि अगर केबिन की बत्ती न जल रही हो तो वह बीच पर कदम न रखे । वह बत्ती बुझाने जा रही थी ताकि बासको आगे न बढ़ सके ।
उसकी पीठ मेरी ओर होते ही मैंने मेज से वीनस की प्रतिमा उठा ली । मैंने प्रतिमा को मजबूती से अपने हाथ में दबोच लिया । मेरी प्रतिमा वाला हाथ मेरे सिर से ऊंचा उठा ।
उसी क्षण किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर शान्ता वापस घूम पड़ी ।
उसने मेरा वीनस की प्रतिमा वाला उठा हुआ हाथ देखा । उसने मेरी आंखों में मौत का साया देखा, उसने मेरे हाथों में दस्ताने देखे, और एक सैकण्ड के हजारवें भाग में उसकी समझ में आ गया कि अगले ही क्षण उसका क्या अंजाम होने वाला था ।
दहशत से उसके नेत्र फट पड़े । चिल्लाने के लिए उसका मुंह खुला, उसके दोनों हाथ बचाव के लिए सामने फैल गए लेकिन इससे पहले कि उसके मुंह से आवाज निकल पाती मेरा वीनस की प्रतिमा वाला हाथ बिजली की तरह नीचे गिरा । संगमरमर की भारी प्रतिमा शान्ता की खोपड़ी से टकराई ।
शान्ता की खोपड़ी तरबूज की तरह फट गई । उसकी खोपड़ी में से खून फव्वारे की तरह फूट निकला । वह भरभरा कर मेरे पैरों के पास फर्श पर ढेर हो गई ।
उसके प्राण निकल चुके थे ।
मैं खून से रंगी वीनस की प्रतिमा अपने हाथ में लिए अपने स्थान पर खड़ा हांफता रहा ।
फिर मेरी निगाह अपने आप ही खुली खिड़की से बाहर की ओर उठ गई ।
दूर समुद्र की छाती पर मुझे किश्ती का आकार दिखाई दिया ।
बासको आ रहा था ।
मैंने वीनस की प्रतिमा को शान्ता की लाश के समीप फेंक दिया और तेजी से केबिन से बाहर निकल आया । मैंने केबिन का द्वार भिड़का दिया और समुद्र की ओर बढ़ा । मेरा दायां हाथ अपने आप मेरी जेब में सरक गया था और मेरी उंगलियां मजबूती से रेत की थैली के गिर्द लिपट गई थीं ।
बासको की किश्ती अभी किनारे से दूर थी ।
मैं पेड़ों के बीच से गुजरता हुआ आगे बढ़ा ।
“विमल !”
मेरा खून सूख गया । मैं एकदम यूं ठिठक गया जैसे मैंने एक भी कदम आगे बढ़ाया तो मैं किसी गहरे कुएं में जा गिरूंगा ।
एक पेड़ के पीछे से एक साया निकला और मेरे सामने आ खड़ा हुआ ।
उस नाजुक घड़ी में अपने इतने समीप किसी दूसरे आदमी की मौजूदगी के विचार से ही मेरे प्राण निकले जा रहे थे ।
“विमल !”
इस बार मैंने साये की आवाज भी पहचान ली और सूरत भी ।
वह डॉक्टर कश्यप था ।
“हां, जी ।” - मेरे मुंह से घुटी हुई आवाज निकली ।
“तुम यहां क्या कर रहे हो ?” - डॉक्टर कश्यप बोला । उसने मेरे उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की । उसने मेरी बांह थामी और मुझे एक पेड़ की ओट में खींच लाया ।
“अभी यहां बासको आने वाला है ।” - डॉक्टर कश्यप बोला - “तुम उसे दिखाई दे जाते तो गड़बड़ हो सकती थी । तुम यहां क्या कर रहे हो ?”
“म.. मैं.. मेरा.. मुझे नींद नहीं आ रही थी । ज.. जरा दिल घबराने लगा था । समुद्र की खुली हवा खाने आ गया था ।”
“तुम केबिन के पास से गुजरे थे ?”
“हां ।”
“भीतर तो नहीं गये थे ?”
“नहीं । क्यों ?”
“केबिन की बत्ती जल रही थी । तुम्हें हैरानी हुई होगी ।”
“हुई थी ।” - आवाज मेरे गले से फंस-फंसकर निकल रही थी ।
“फिर भी तुमने यह जानने की कोशिश नहीं की कि भीतर कौन था ?”
“नहीं । दरअसल मैंने परवाह नहीं की थी ।”
“अच्छा ही हुआ वरना शान्ता को चेतावनी मिल जाती ।”
“शान्ता ?”
“हां । केबिन में शान्ता है ।”
“ज.. जी !”
“हां । तुम्हें मालूम है वह बदकार औरत क्या करने वाली है ?”
“क... क्या करने वाली है ?” - मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं रह पाऊंगा । जैसे मैं अभी लड़खड़ाकर गिर पड़ूंगा ।
“शान्ता और बासको माधुरी की हत्या करने वाले हैं । शान्ता केबिन में बैठी बासको का ही इन्तजार कर रही है । बासको किसी भी क्षण यहां पहुंच सकता है । मैंने उसके लिए जाल फैला रखा है । तुम्हारी जानकारी के लिए पुलिस ने सारी एस्टेट को घेरा हुआ है ।”
मैं कुछ नहीं बोला । मैं कुछ बोलने के काबिल रहा भी नहीं था । मुझे लग रहा था जैसे किसी भी क्षण मेरे दिल की धड़कन रुक जायेगी ।
“वह औरत तो पैदायशी हत्यारी मालूम होती है ।” - डॉक्टर कश्यप बोलता रहा - “तुम्हें सुनकर हैरानी होगी कि सर गोकुलदास का मोटर एक्सीडेंट शान्ता की ही वजह से हुआ था । उसने सर गोकुलदास की कार की कार की ब्रेकें खराब कर दी थीं ताकि वे मर जाते और उनकी वसीयत के अनुसार, जो वे शीघ्र ही बदलने वाले थे, उनकी आधी दौलत शान्ता को मिल जाती । लेकिन तकदीर से सर गोकुलदास मरे नहीं, सिर्फ पैरेलाइसिस के ही शिकार हुए । अब शान्ता जब उनकी मौत का इन्तजार करते-करते थक गई है तो आज रात वह बासको से मिलकर एक नयी चाल चलने वाली है । पहले बासको माधुरी के साथ बलात्कार करेगा और फिर उसकी हत्या कर देगा । सर गोकुलदास का या तो यह समाचार सुनकर ही हार्ट फेल हो जायेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे लोग उनकी भी हत्या इस ढंग से कर देंगे कि ऐसा लगे कि वृद्ध बेटी की वीभत्स मौत का सदमा न बर्दाश्त कर सकने के कारण स्वर्ग सिधार गये । और उन्होंने तुम्हें फंसाने का पूरा इन्तजाम किया हुआ है । उन्होंने एसी स्कीम बनाई हुई है कि माधुरी की मौत का इल्जाम तुम पर आए ।”
“ल... लेकिन, ड... डाक्टर साहब... आ.. आपको.. आपको यह सब क... कैसे मालूम है?” - मैंने डूबते स्वर में पूछा ।
“सर गोकुलदास को त्रस्त करने के लिए शान्ता ने खुद अपनी घिनौनी स्कीम का सारा खाका उनके सामने खींचा था । क्योंकि वह जानती थी कि सर गोलकुदास न बोल सकते थे, न लिख सकते थे । लेकिन हुआ यह कि शान्ता की बातों से उन्हें इतना भारी सदमा पहुंचा, वे अपनी प्यारी बेटी माधुरी के सिर पर मंडराती मौत से सबको आगाह करने के लिए इस हद तक व्याकुल हो उठे कि उनकी वाणी लौट आई । मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि उनकी वाणी लौट आने की यही एक मनोवैज्ञानिक संभावना है कि उन्हें कोई भारी सदमा पहुंचे या वे बेहद आतंकित हो उठें या बेहद घबरा जायें - इस हद तक कि वे अपने मन की बात किसी से कहने के लिए व्याकुल हो उठें - तो उनकी वाणी लौट सकती थी । जब से शान्ता ने सर गोकुलदास को माधुरी की हत्या की स्कीम सुनाई थी तभी से वे कुछ कहने के लिए बेताब हो रहे थे और कुछ बोल पाने के लिए अपनी शारिरिक शक्क्ति से बुरी तरह जूझ रहे थे । कड़ी मेहनत, उंचे मनोबल और बोल पाने की इच्छा और जरूरत की वजह से परसों वे अपनी जुबान चलाने में सफल हो गये और उन्होंने मुझे सारी कहानी कह सुनाई । मैंने पुलिस को सूचना दे दी । परिणामस्वरूप आज पुलिस ने बासको और शान्ता को रंगे हाथों पकड़ने के लिए जाल फैलाया हुआ है ।”
वाहेगुरु सच्चे पातशाह ! - मैं असहाय भाव से मन-मन सोचने लगा - तो मैंने खामखाह ही शान्ता का खून कर दिया वह वैसे भी पुलिस के चंगुल में फंसने वाली थी । मैंने खामखाह एक खून का इलजाम अपने सर पर लिया । मैं अपनी ओर से किसी की भलाई कर रहा था और भलाई करते-करते मैंने अपना सर्वनाश कर लिया था । अब बासको को पुलिस गिरफ्तार कर लेगी और मैं अपनी स्कीम के मुताबिक शान्ता की हत्या का इल्जाम बासको के सर नहीं थोप पाऊंगा ।
मैं बुरी तरह फंस गया था ।
“और विमल ।” - डॉक्टर कश्यप फिर बोला - “सारे सिलसिले में एक भारी नुकसान तुम्हें भी पहुंचने वाला है । सर गोकुलदास ने यह भी बताया है कि शान्ता को मालूम था कि तुम जेल से फरार मुजरिम सुरेन्द्र सिंह सोहल हो । अब यह बात सर गोकुलदास के माध्यम से पुलिस को भी मालूम हो चुकी है । इस समय सारी एस्टेट को पुलिस ने घेरा हुआ है इसलिए तुम्हें दुबारा भाग निकलने का मौका भी नहीं मिल सकता । शान्ता और बासको के साथ तुम भी गिरफ्तार होने वाले हो ।”
मेरे घुटने कांपने लगे । अपनी पतलून की जेबों में रखे मोतियों का हार और रेत की थैली मुझे टाइम-बम से मालूम होने लगे जो किसी क्षण फट सकता था ।
“विमल !” - डॉक्टर सशंक स्वर में बोला - “यह तुम्हारी कमीज पर छींटे कैसे हैं ?”
मैंने सर झुकाकर अपनी कमीज का सामने का हिस्सा देखा तो मेरा मुंह सूख गया । तकदीर मुझे झटके पर झटका दिए जा रही थी । शान्ता की खोपड़ी से फव्वारे की तरह फूटे खून के छींटों से मेरी कमीज रंग गई थी और मुझे खबर ही नहीं हुई थी ।
डॉक्टर कश्यप ने हाथ बढ़ाकर मेरी कमीज को एक स्थान पर छुआ ।
“अरे !” - वह आतंकित स्वर में बोला - “यह तो खून है !”
अपना अगला एक्शन मैंने एक सेकण्ड में निर्धारित कर लिया । पहले गिरफ्तार होने पर डेढ़ साल जेल में काटने का ही खतरा था लेकिन अब गिरफ्तार होने पर मैं शर्तिया फांसी पर लटकता ।
उसी क्षण डॉक्टर कश्यप मेरे पास से हटकर तेजी से आगे बढ़ा ।
एक भी क्षण नष्ट किए बिना मैंने जेब से रेत की थैली निकाल ली । मैं लपककर आगे बढा । मैंने थैली का भरपूर प्रहार डॉक्टर कश्यप की गरदन पर किया ।
डॉक्टर कश्यप मुंह से एक शब्द भी निकाले बिना भरभरा कर रेत पर ढेर हो गया ।
मैं पेड़ों के पीछे छुपता हुआ उस ओर बढ़ा जिधर सर गोकुलदास की मोटरबोट खड़ी रहती थी ।
मैं बिना किसी रुकावट के काफी आगे बढ़ गया ।
फिर मुझे अपने और मोटरबोट के बीच में एक बंदूकधारी सिपाही दिखाई दिया ।
मुझे देखकर सिपाही ने बन्दूक मेरी ओर तान दी ।
“कौन है ?” - सिपाही कर्कश स्वर में बोला ।
“श श ।” - मैं धीरे-से बोला । मैंने अपने होंठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत किया और अपना रेत की थैली वाला हाथ अपनी पीठ पीछे छुपाए बेधड़क सिपाही की ओर बढ़ा ।
मेरे एक्शन का सिपाही पर प्रत्याशित प्रभाव पड़ा । उसने बन्दूक थोडी़ नीचे झुका ली लेकिन वह एकदम असावधान नहीं हुआ ।
“मैं डॉक्टर कश्यप हूं ।” - मैं उसके समीप आकर बोला - “इन्स्पेक्टर साहब कहां हैं ?”
“वे दूसरी ओर हैं । क्या बात है ?” - सिपाही नम्र स्वर में बोला ।
डॉक्टर कश्यप के नाम का उस पर प्रत्याशित प्रभाव पडा़ था ।
प्रत्यक्ष था कि उसने डॉक्टर कश्यप को देखा नहीं था लेकिन नाम जरूर सुना था ।
“विमल भागने की कोशिश कर रहा है ।” - मैं बोला - “मैंने उसे रोकने की कोशिश की थी लेकिन मैं सफल नहीं हो सका । वह मुझे घायल करके भाग गया है । मैं चाहता हूं कि तुम अपने आदमियों को सावधान कर दो ।”
और साथ ही मैंने उसका ध्यान अपनी खून से रंगी कमीज की ओर आकर्षित किया ।
“अरे ! आप तो काफी घायल हो गए मालूम होते हैं ।”
“घबराओ नहीं । खून ही ज्यादा निकला है, चोट ज्यादा नहीं लगी है । मैं चाहता हूं कि तुम अपने आदमियों को विमल के बारे में सावधान कर दो ।”
“आप चिंता मत कीजिए, डॉक्टर साहब” - सिपाही विश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “हमारे घेरे से निकलकर कोई नहीं भाग सकता ।”
“वैरी गुड ।” - मैं संतोष दर्शाता हुआ बोला - “जब तक इन्स्पेक्टर साहब इधर नहीं आते, मैं तुम्हारे पास ठहर जाऊं ?”
“जरूर ठहर जाइए लेकिन जरा एक ओर हटकर खड़े होइये ।”
“थैंक्यू ।” - मैं बोला और उससे दो कदम पीछे जाकर खड़ा हो गया ।
सिपाही फिर अपने पहरे पर मुस्तैद हो गया ।
उसका ध्यान मेरी ओर से हटते ही मैंने अपना रेत की थैली वाला हाथ उसकी गरदन का निशाना बनाकर घुमा दिया ।
रेत की थैली उनकी कनपटी से टकराई । बन्दूक उसके हाथ से निकल गई, उसके घुटने मुड़ गए और वह नि:शब्द रेत पर ढेर हो गया ।
मैं तेजी से मोटरबोट की ओर लपका ।
मैं मोटरबोट में सवार हो गया । मोटरबोट की चाबी हमेशा ही मेरे पास रहती थी । मैंने उसे पायर से खोल दिया । फिर मैंने इन्जन स्टार्ट किया और उसे अन्धेरे में अथाह समुद्र की छाती पर दौड़ा दिया ।
सारी मुम्बई जानती थी कि गोकुलदास की मोटरबोट से तेज मोटरबोट सारी मुम्बई में किसी के पास नहीं थी - पुलिस या कस्टम वालों के पास भी नहीं ।
जब तक पुलिस को मेरा ध्यान आया तब तक मैं समुद्र में बहुत दूर निकल गया था ।

समाप्त