अचानक !


एक चौंका देने वाली घटना घटी !


लोग कांपकर रह गए, कुछ लोगों के चेहरे हल्दी की भांति पीले पड़ गए ।


जो कुछ हुआ था-पलक झपकते में ही हो गया था । -'धायं ।'


कहकहों के बीच एक फायर की आवाज ।


और पल-भर में !


रघुनाथ और रैना के ठीक ऊपर फुलों की वर्षा हुई । गोली शायद उस ग्लोब में लगी थी, जो उनके ठीक ऊपर बंधा था । एक क्षण !


और विजय खतरनाक चीते की भांति हवा में लहराया । वह फायर करने वाले व्यक्ति को देख चुका था । वह एक बैरा था । ठाकुर साहब सहित समस्त मेहमान विजय का करिश्मा देख रहे थे ।


फायर करने वाला बैरा भी कम फुर्तीला नहीं था । फायर करते ही वह भी हवा में लहराया । उसका रुख दरवाजे की ओर था ।


-'धायं !'


गोली विजय ने चलाई थी । निशाना था वही रहस्यमय बैरा । किंतु बैरा मानो मौत को भी मात देने वाला व्यक्ति था । इससे पूर्व कि गोली उसे लगे, वह ठीक छलावे की भांति हवा में लहराता हुआ हॉल से नदारद ।


लेकिन विजय भी उस व्यक्ति को सरलता से फरार नहीं होने देना चाहता था । उसने भी उसके पीछे ही जंप लगाई।


किंतु आश्चर्य!


महान आश्चर्य!


बाहर बैरे का कोई पता न था । अंदर से अन्य लोग भी बाहर आ गए । बैरे को खोजा गया, लेकिन बैरा गधे का सींग साबित हुआ ।


लोगों में एक अजीब-सा आतंक फैल गया था । कोई नहीं समझ सका था कि यह रहस्यमय बैरा था कौन ?


रैना का चेहरा पीला पड़ चुका था ।


लेकिन विकास, बेबी विकास के नन्हे-नन्हे अधरों पर ऐसी मुस्कान थी, मानो इस फायर की ध्वनि को सुनकर ही वह नेत्र खोलेगा ।


फिर !


तरह-तरह की बातें होने लगी। विजय के दिमाग में प्रश्न उभरे । यह व्यक्ति कौन था? इस तरह से फायर करने का क्या मतलब? और फिर फायर उसने किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं किया था । उसका निशाना तो वह ग्लोब था, तभी वह चौंका उसने उस ग्लोब से होने वाली फूलों की वर्षा देखी थी ।


ये फूलों की वर्षा क्या रहस्य रखती हैं?


प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वह उस स्थान पर पहुंचा, जहां फूलों की वर्षा हुई थी । वहां देखकर विजय चौंक पड़ा! उसकी आंखें एक गुलाबी कागज पर जम गइ । उसने सावधानी के साथ कागज उठाया । लोग उत्सुक हुए! उसके चारों ओर वहां भी जमघट-सा लग गया । ठाकुर साहब के दिमाग में इस करिश्मे को देखकर आश्चर्य था !


विजय ने कागज खोला । कुछ लिखा था । सुन सभी रहे थे । विजय पढ़ रहा था :


'आदरणीय भाभीजी'


चरण स्पर्श,


सोच तो आप अवश्य रही होंगी कि मुबारकबाद देने का यह क्या विचित्र ढंग है और यह मुबारक देने वाला कौन हो सकता है, लेकिन भाभी, हैरान ना हों। आपने तो मुझे बुलाया ही नहीं, परंतु ऐसा कैसे संभव है कि हमारी भाभी हमारे भतीजे के रूप में एक रल को जन्म दें और हम मुबारकबाद भी न दें ।


मुबारकबाद देने का यह ढंग गलत नहीं, बल्कि बहादुर व्यक्तियों का सराहनीय ढंग है। विकास, हमारा और तुम्हारा विकास-जो आज नन्हा विकास है । कल तक ऐसा विकास करेगा कि संसार उसके नाम पर गर्व करेगा। भारत माता उस पर नाज़ करेगी ।


बहादुरों का बचपन भी बहादुरी से ही शुरू होता है इसीलिए विकास के जन्मावसर पर गोलियों की बौछार कर रहा हूं, क्योंकि का विकास सनसनाती हुई गोलियों के बीच कहकहे लगाने वाला विकास होगा ।


मैं इसे इसके पिता की भांति लफाड़िया नहीं बनने दूंगा । यह अपने अंकल की भांति मौत के मुंह में कहकहे लगाने वाला इंसान होगा । अपने अंकल से भी कहीं आगे मौत को भी कंपकंपा देने वाला विकास! और मेरा स्वप्न तभी पूरा होगा जब विकास मेरे पास पलेगा। मैं इसे खतरों से खेलना सिखाऊंगा । मौत से गले मिलना सिखाऊंगा ।


भाभी ! इस समय तो विकास के लिए मां के दूध की जरूरत के है । अत: इस समय तो मैं इसे ले जा नहीं सक्ता, किंतु उस दिन अवश्य ले जाऊंगा, जब विकास खतरों से खेलने लायक होगा ।


विकास के लिए कितनी कामनाएं है, इस पत्र में नहीं बता पाऊंगा । अब अंत में सिर्फ ये लिखूंगा कि मेरी इच्छा सुनने के बाद आप दुखी न होंगी, क्योंकि विकास पर मेरा भी कुछ अधिकार है ।


तुम्हारा भैया-अलफांसे ।


पत्र सुनकर सभी स्तब्ध रह गए । एक-दूसरे के मुंह को ताकने लगे । रैना के तो मानो होश उड़ गए -भय से वह कांपने लगी ।


"साले लूमड़, तुम यहां भी किमारबाजी दिखा ही गए । " विजय होंठों-ही-होंठों में बुदबुदाया-वैसे अलफांसे का वह पत्र पाकर वह भी सोचने पर मजबूर हो गया था । वह जानता था कि अलफांसे जो सोंच लेता है, वह करता भी अवश्य है । तो क्या वह विकास को उठा ले जाएगा?


खैर, फिलहाल वह इस बात में दिमाग नहीं खपाना चाहता था । उसने देखा - रैना बहुत घबरा गई है । अत: वह उसे सांत्वना देने के लिए आगे बढा ।


अजीब-सा तनाव उत्पन्न हो गया था पार्टी में । सभी ने मिलकर रैना को सांत्वना दी । तब कहीं जाकर वह सामान्य हालत में आई।


और फिर तब ।


जबकि सब लोग फिर खाने की मेजों पर जमे ।


एकाएक सब चौंके ! कुछों के अतिरिक्त समस्त चेहरे पीले पड़ गए ।


मौत को भी कंपकंपा देने वाला सर्द कहकहा ! भयानक हंसी, मानो प्रेतात्माएं अट्टहास लगा रही हों ! लोगों की रीढ़ की हड्डियों में ठंडी लहर दौड़ गई ।


बहुत ही भयावह हंसी थी यह !


विजय सहित सभी लोग हंसने वाले को खोज रहे थे, किंतु किसी को कुछ दृष्टिगोचर न हो रहा था । वातावरण में गूंज रहा था, सिर्फ वह सर्द कहकहा !


सब स्तब्ध थे ! आश्चर्यचकित ! भय से कांपते जिस्म ! कुछ देर पश्चात!


-"सर्व उपस्थित सज्जनों को सिंगही का प्रणाम ! " एक अत्यंत भयानक सर्द आवाज हॉल में गूंजी ।


सिंगही -- अपराध-जगत का सरताज सिंगही !


ये ठीक है कि इस भयानक और अहंकारी अपराधी को यहां उपस्थित कुछ ही लोगों ने देखा था, किंतु उसके नाम से लगभग सभी परिचित थे । सिंगही का नाम से ही सारे हॉल में भय व्याप्त हो गया। लोगों की आखों में सिंगही की परछाइयां नृत्य करने लगी । कुछ स्त्रियों की चीखें निकल गई । विजय की खोपड़ी खुद हवा में चक्कर काट रही थी, उसने स्वयं को कुछ संभाला और जोर से नारा लगाया ।


"नमस्कार प्यारे वनस्पति चचा, लेकिन इस समय तुम हो कहां?" 


- "तुम लोगों ने तो हमें निमंत्रण भी नहीं दिया बेटे, लेकिन कोई बात नहीं, हम भी तुम्हारे चचा हैं और अपने पोते को आशीर्वाद देने चले आए।" सिंगही कहीं नजर नहीं आ रहा था, जबकि उसकी भयानक और सर्द आवाज सब स्पष्ट सुन रहे थे ।


- - - "हैलो भतीजे! " सिंगही के होंठों में कंपन हुआ। 


"यह चचा तुमने तो...।"


और अभी विजय बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि रैना की चीख से हॉल कांप गया - वह बेहोश हो गई और इससे पूर्व कि वह गिरे-रघुनाथ ने उसके बेहोश जिस्म को संभाल लिया।


आशा ने लपककर विकास को रैना की गोद से ले लिया । और एक पल उसने देखा, मानो इस नन्हे-मुन्ने विकास के अधरों पर मुस्कान थी, विचित्र मुस्कान !


इधर रैना की यह स्थिति देखकर ठाकुर साहब की आंखों में खून उतर आया । उनका शरीर क्रोध से कांपने लगा। अपने आवेश को वे छिपा न सके और चीखे ।


"कमीने.. .कुत्ते, तुम्हें बुलाया किसने था ?


"क्या विकास पर मेरा कोई अधिकार नहीं ?


"जलील! " ठाकुर साहब संपूर्ण आवेश में चीखे और भयानक ढंग से सिंगही पर एक जप लगाई, किंतु तभी एक अन्य करिश्मा! विजय की इस हरकत को देखकर सभी दंग रह गए । वास्तव में बड़ी ही बेहूदा हरकत थी यह विजय की । इधर ठाकुर साहब ने सिंगही पर जप लगाई, लेकिन इससे पूर्व कि वह सिंगही के जिस्म तक पहुंचें, विजय भयंकर तरीके से हवा में लहराया और उसने अपने पिता के जबड़े पर एक जोरदार घूंसा जड़ दिया ।


ठाकुर साहब के मुंह से एक चीख निकली और वह दूसरी पर पलट गए-इससे पूर्व कि वह उठें ।


विजय चीखा- ''अशरफ, इन्हें पकड़ लो ।'


अशरफ विद्युत-गति से उछला और उसने ठाकुर साहब को बंधनों में कस लिया । ठाकुर साहब अकेले अशरफ के संभालने में नहीं आए तो विक्रम और नाहर को भी लगना पड़ा।


विजय की मां की आंखों में ज्वाला धधक उठी- उनके हृदय में जैसे सांप लोट गया । आज उन्हें मालूम हुआ कि विजय वास्तव में कितना नालायक है । उसकी छोटी दस वर्षीय बहन की आंखों में भी विजय के प्रति घृणा जाग गई ।


ठाकुर साहब ने चीख-चीखकर विजय को क्या नहीं कहा, लेकिन इससे पूर्व कि पुलिस का अन्य अफसर विजय को इस बेहूदा हरकत पर पकड़े ।


तभी विजय ने मेज से प्लेट उठाई और सिंगही के जिस्म पर खींच मारी। टकराते ही आग की चिंगारियां और प्लेट के अनगिनत टुकड़े हो गए।


सब समझ गए कि सिंगही के जिस्म में विद्युत तरंगें फैली हुई हैं। सबकी आंखों की नफरत विजय के प्रति प्यार में बदल गई । ठाकुर साहब तो विचित्र - सी निगाहों से विजय को देखते रह गए थे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उनका ये बेटा है क्या?


सिंगही का सर्द लहजा हॉल में गूंजा-


" आज तुम्हारे बेटे ने तुम्हें बचा लिया ठाकुर, वरना मेरे जिस्म से टकराते ही तुम्हारी मौत निश्चित थी, तुम्हारा नालायक बेटा तुमसे अधिक जानता है ।'


सारा हॉल स्तब्ध था!


"लेकिन चचा, अब तो दर्शन दो । "


'पहले अपने पोते को आशीर्वाद तो दे लेने दो बेटे, दर्शन देते ही तुम लोग काटने दौड़ोगे।'' सिंगही की आवाज गूंजी तथा साथ ही !


एक अनहोनी घटना !


लोगों के विवेक को झटके !


ठीक विकास के ऊपर सौ-सौ के नोटों की वर्षा !


क्षण मात्र में सारे कमरे में नोट-ही-नोट बिखर गए अनगिनत नोट! ऐसा लगता था, मानो देवता विकास के ऊपर रुपयों की वर्षा कर रहे हों ।


लगभग दो मिनट तक नोटों की वर्षा जारी रही । सब लोग मूर्तिवत् खड़े थे, मानो पत्थर की शिलाएं हों । अचानक विजय बोला ।


- "यह आशीर्वाद देने का कौन-सा ढंग है चचा?'' - ''हर व्यक्ति का अपना अलग-अलग ढंग होता है बेटे । "


नोटों की वर्षा के बाद !


अचानक !


हॉल के दाई ओर--जहां थोड़ा-सा रिक्त स्थान था । आग का एक शोला लपलपाया !


लोगों की चीखें निकल गई !


आग की लपटें धीरे-धीरे नीले धुएं में बदलने लगी और फिर धीरे-धीरे नीला धुआं विलुप्त होने लगा । वहां नजर आने लगी एक भयानक शक्ल, मानो वहा कोई जीवित मुर्दा खड़ा हो । साधारण इंसानों की कल्पनाओं से भी परे, एक जीता-जागता कंकाल !


उफ ! बड़ा ही डरावना था ये चेहरा । हल्दी की भांति पीला रंग, गड्ढे में धंसी हुई छोटी-छोटी, किंतु गजब की चमकीली

आंखें । पिचके हुए गाल और काली- सफेद दाढ़ी । -


सभी कुछ भयानक था ।


दर्शन करके बेहोश होने वालों की संख्या में वृद्धि हो गई ।


और अचानक !


उसके पीले और शुष्क होंठों पर मुस्कान उभरी ।


- "अच्छा सज्जनो, अब विकास के लिए शुभकामनाएं देता हुआ सिंगही यहां से प्रस्थान करता है । " सिंगही ने कहा और फिर पलक झपकते ही वह अदृश्य हो गया ।


सभी को जैसे कुछ होश आया। अधिकतर लोग बेहोश रैना की ओर बढे, लेकिन अभी रैना होश में नहीं आ पाई थी कि एक बार फिर सब बुरी तरह चौंक पड़े ।


अचानक हॉल में संगीत की लहरें गूंजने लगीं।


विजय को लगा, जैसे ये संगीत की लहरें उसने कहीं सुनी हैं । उसके दिमाग ने तेजी में कुछ सोचा, संगीत की लहरें क्षण-प्रतिक्षण तीव्र होती जा रही थीं। सहसा आशा चीखी !


"विजय, ये संगीत तो मर्डरलैंड का है !"


और विजय के विवेक को एक तीव्र झटका लगा, वास्तव में आशा ठीक कह रही थी । वह संगीत की इन लहरों को पहचान चुका था-ये लहरें मर्डरलैंड में ही उसने सुनी थी । मर्डरलैंड की शहजादी जैक्सन हमेशा इन्हीं लहरों के साथ आती थी । मर्डरलैंड, विचित्र कानूनों की अजीबोगरीब धरती, लेकिन ये लहरें यहां क्यों बज रही हैं?


और फिर अगले ही क्षण सब चौंके !


हॉल के एक ओर ।


अचानक ही एक प्रतिमा प्रकट हुई, सौंदर्य की अनमोल प्रतिमा ! सौंदर्य मानो उसका गुलाम हो, प्रत्येक व्यक्ति के मुख से उसे देखकर सिसकारी-सी निकल गई । लगता था, संसार में उससे खूबसूरत कोई वस्तु ही नहीं रही होगी। सौंदर्य को भी लजा देने वाली अपूर्व सुंदरी ! उसके संगमरमरी जिस्म पर शहजादियों जैसा लिबास था । कमल समान कोमल और प्यारे अधरों पर मधुर मुस्कान ! सिर पर लगा हुआ एक विचित्र मुकुट!


- ''अरे मम्मी, तुम?'' एकदम विजय उसे देखकर उछला। सौंदर्य की यह मूर्ति वास्तव में प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड, यानी जैक्सन ही थी । विजय उसे मम्मी शब्द से ही संबोधित किया करता था ।