इतने सवालों का जवाब दे चुकने के बाद भी अभी तक प्रमोद यह नहीं समझ सका था कि आखिर उसे इतनी हड़बड़ी में पुलिस हैडक्वार्टर क्यों बुलाया गया था । इन्स्पैक्टर के किसी भी सवाल से अभी तक उसे वास्तविक बात का आभास नहीं मिल पाया था ।


उसी क्षण प्रमोद का ध्यान आत्माराम के दायें हाथ की ओर गया । आत्माराम का दायां हाथ अनजाने में ही मेज के पैनल में लग पुश बटन पर पहुंच गया था। उसकी बांह की हरकत से प्रमोद को महसूस हुआ कि आत्माराम ने तीन बार बटन को धीरे से दबाकर छोड़ दिया था ।


आत्माराम ने रूमाल उठाकर मेज की दराज में रख लिया और प्रमोद के चेहरे का निरीक्षण करने लगा ।


प्रमोद चुपचाप बैठा रहा ।


"आप" - आत्माराम ने नई प्रश्नवाली आरम्भ कर दी - “जगन्नाथ नाम के किसी पुरानी चीजों के संग्रहकर्ता को जानते हैं ?”


"जानता हूं।" - प्रमोद बोला ।


"आप उसे चीन जाने से पहले भी जानते थे ?"


"नहीं, चीन से लौटने के बाद ही मैंने उसे तलाश किया था। "


"क्यों ?"


"चीन में उसने मुझे कुछ पत्र लिखे थे । वह चाहता था कि मैं चीन से उसके लिए एक स्लीव गन (Sleeve Gun) ले आऊं । बदले में उसने मुझे एक मोटी रकम देने का वादा किया था ।"


"स्लीव गन क्या होती है ?"


"स्लीव गन एक लगभग नौ इंच लम्बी बांस की खोखली नली होती है । लोहे की गर्म सलाखों से नली के भीतर का छेद हमवार कर दिया जाता है कि वह भीतर से शीशे की तरह मुलायम और चमकदार हो जाता है । इस नली के भीतर तगड़ा स्प्रिंग और एक शिंकजा लगा हुआ होता है । शिंकजे में एक छोटा सा जहर बुझे हुए लोहे की नोक वाला तीर फंसा दिया जाता है। शिंकजे पर हल्का सा भी दबाव पड़ने पर स्प्रिंग खुल जाता है और तेजी से नाली में से बाहर निकल आता है। किसी जमाने में चीन के पुराने कबीलों में यह नाली एक हथियार की तरह इस्तेमाल की जाती थी । इसका नाम स्लीवगन इसलिए पड़ा है कि क्योंकि पुराने जमाने में चीनी इसे अपने लम्बी बाहों वाले चोगे की आस्तीन (स्लीव) में छुपाकर रखा करते थे । कोहनी को मेज पर या किसी दूसरी सख्त चीज पर हलका सा दबाने से शिकंजा हट जाता है और स्प्रिंग एकाएक खुल जाता है । उस स्प्रिंग की टैंशन के जोर से नाली के बीच में रखा तीर तेजी से बाहर निकलता है और सामने खड़े आदमी के शरीर में जा घुसता है । ऐसा ही एक चीनी हथियार ब्लोगन भी होता है । अन्तर केवल यह होता है कि ब्लोगन की बांस की नली तीन फुट लम्बी होती है और उसका तीर दूसरे सिरे में मुंह से फूंक मार कर चलाया जाता है । वास्तव में ब्लोगन और स्लीवगन में एक तरह से पुराने जमाने की चीनी राइफल और पिस्तौल हैं ।”


"क्या स्लीवगन औरत भी चला सकती है ?"


"कोई भी चला सकता है । बच्चा भी चला सकता है । कोई भी इसे अपनी बांह के साथ बांध सकता है और कोहनी से समीप पहुंचे हुए शिंकजे को हल्का सा दबाव देकर तीर को रिलीज कर सकता है ।"


"क्या यह बहुत खतरनाक हथियार है।"


" बेहद खतरनाक ।"


"खतरनाक से मेरा मतलब है कि क्या यह एक आदमी की हत्या कर सकता है ।"


"इन्स्पेक्टर साहब, स्लीवगन के आविष्कार का बुनियादी मतलब तो हत्या करना है । "


"फिर आप जगन्नाथ के लिए चीन से स्लीवगन लाये थे?"


"नहीं । जगन्नाथ के लिए नहीं लाया था ।"


"क्यों ?"


"पहला और सबसे बड़ा कारण तो यह था कि मैं जगन्नाथ को जानता तक नहीं था, उसे किसी प्रकार मालूम हो गया था कि मैं राजनगर से चीन गया हूं और कभी न कभी लौटकर राजनगर आऊंगा, किसी प्रकार उसने मेरा नाम और पता हासिल कर लिया था । और फिर उसने मुझे एक मोटी रकम के बदले में उसके लिए एक स्लीवगन ले आने की बात लिख डाली थी । दूसरा कारण यह था कि स्लीवगन कम से कम 100 साल पुराना हथियार था । उस जमाने का जबकि बन्दूक पिस्तौल जैसी चीजों का आविष्कार नहीं हुआ था । आजकल के आधुनिक चीन में स्लीवगन एक दुर्लभ चीज हो गयी है । और तीसरा कारण यह था कि मैं चीन में जगन्नाथ के लिए संग्रह योग्य वस्तुऐं खरीदने नहीं गया था।"


"चीन से लौटने के बाद आप जगन्नाथ से कब मिले थे?"


“राजनगर पहुंचने के लगभग एक सप्ताह बाद मैं राबर्ट स्ट्रीट स्थित उसके फ्लैट में उससे मिलने गया था।"


"क्यों ?"


"मेरे पास एक अपनी स्लीवगन थी जो मुझे चीन में एक मित्र ने उपहार स्वरुप दी थी । जगन्नाथ के पत्रों से मुझे मालूम हुआ था कि वह एक संग्रहकर्ता है । वास्तव में मैं मैं इस धारणा की पुषित चाहता था कि जगन्नाथ की स्लीवगन में दिलचस्पी केवल इसलिए थी क्योंकि इस प्रकार की दुलर्भ वस्तुओं का संग्रह करना उसकी हॉबी थी। इस धारणा की पुष्टि हो जाने पर मेरा अपना स्लीवगन उसे भेंट दे देने का इरादा था । लेकिन जगन्नाथ से मिलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि जगन्नाथ स्लीवगन को एक हथियार के रूप में चाहता था । संग्रह करने के लिए क्यूरियो आइटम के रुप में नहीं।"


"इसलिए आपने उसे स्लीवगन नहीं दी ?"


"हां ।"


“आपने जगन्नाथ के व्यक्तित्व में कोई असाधारण बात नोट की ?"


"मेरी तो उससे बड़ी मामूली और बड़ी औपचारिक बातें हुई थी, उतने समय में मैं उसके व्यक्तित्व की कोई असाधारणता नहीं नोट कर पाया था। केवल एक बात मुझे मालूम हुई थी कि वह कभी चीन में नहीं रहा लेकिन फिर भी चीन के बारे में बहुत जानता था और चीनी भाषा का अच्छा ज्ञान रखता था।"


"पिछली रात को भी जगन्नाथ से मिलें थे ?" इन्स्पेक्टर आत्माराम ने सहज भाव से पूछा । -


"नहीं।"


"या कल दिन में किसी समय ?"


"कहीं।"

"कविता ओबेराय जगन्नाथ को जानती हैं ?"


"मुझे नहीं मालूम ।"


"तो सुषमा ओबेराय जानती हैं उसे ?”


"मुझे नहीं मालूम । अगर दोनों बहनों में से कोई जगन्नाथ को जानती है तो कम से कम उन्होंने मेरे सामने कभी जिक्र नहीं किया है इस बात का ।”


"क्या दोनों में से किसी ने कभी जगन्नाथ की एक पोर्ट्रेट का जिक्र किया था ?"


"पोर्ट्रेट ?" - प्रमोद ने विचित्र स्वर में पूछा ।


“जी हां, पोर्ट्रेट जगन्नाथ का कैनवस पर बनाया हुआ तैल चित्र ।”


"नहीं।”


“क्या आपने दोनों बहनों में से किसी के सामने जगन्नाथ का जिक्र किया था ?"


"नहीं।"


“पिछली रात आप कविता ओबेराय को उसके फ्लैट पर छोड़कर आए थे ?"


" जी हां । "


"किस समय ?"

"समय याद नहीं ।"


"फिर भी याद करने की कोशिश कीजिए। आप साढे बारह बजे पार्टी छोड़कर चले गए थे। उसके बाद आप चायना टाउन भी गये थे, शायद कहीं और भी गये हों ।" आत्माराम कहीं और पर विशेष जोर देता हुआ बोला - " अन्त में आप कविता ओबेराय के फ्लैट पर पहुंचे थे । उस समय लगभग क्या समय हुआ था । आपको याद नहीं तो कम से कम अन्दाज ही लगाइये । "


“मैं उल्टे सीधे अन्दाजे लगाने का शौकीन नहीं । "


“आप कोशिश तो कीजिए। आपका काई अन्दाजा उल्टा सीधा नहीं होगा । आप एक समझदार आदमी हैं । जो कुछ भी आप कहेंगे वह एकदम तथ्यहीन नहीं होगा ।"


प्रमोद चुप रहा ।


"कविता ओबेराय के फ्लैट पर आप एक बजे से पहले पहुंचे थे ?"


"नहीं एक तो शायद रास्ते में ही बज गया था ?"


"मतलब यह कि आप वहां एक बजे के बाद पहुंचे ?"


"जी हां । "


"कितना बाद में । दो बजे तक ?"


"सम्भव है, मुझे याद नहीं ।"


"तीन बजे तक ? "

प्रमोद समझ गया कि आत्माराम उसके मुंह से समय के माले में कोई निश्चित बात कहलवाये बिना उसे छोड़ेगा नहीं ।


"मेरे खयाल से" - वह बोला- "मैं एक और दो बजे के बीच या एक और ढाई बजे के बीच कविता को उसके फ्लैट पर छोड़ कर आया था ।”


"गुड ।" - आत्माराम सन्तुष्ट स्वर में बोला ।


"आपकी जानकारी में क्या कविता ओबेराय पिछली रात को किसी समय जगन्नाथ से मिली हैं ?" - आत्माराम ने फिर पूछा ।


"मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता ।"


"मतलब कि आप उत्तर देना नहीं चाहते ।"


"नहीं । बल्कि इसलिए क्योंकि मेरे पास वह जानने का कोई साधन नहीं है कि जब मैं कविता के साथ नहीं था तब वह क्या कर रही थी । इस बात की मैं गारंटी कर सकता हूं कि जब तक मैं उसके साथ था, वह जगन्नाथ से नहीं मिली थी । आखिर आप ये सवाल मुझसे क्यों पूछ रहे हैं । "


"तो फिर किससे पूछूं ?"


“जगन्नाथ से या फिर कविता ओबेराय से । "


“जगन्नाथ से कुछ पूछ पाना असम्भव है ।"


"

असम्भव तो बड़ा निश्चित शब्द होता है, इन्स्पेक्टर साहब।"

"मुझे मालूम है । एक निश्चित बात कहने के लिए एक निश्चित शब्द का प्रयोग ही उपुयक्त होता है ।"


"मतलब !"


आत्माराम एक क्षण स्थिर नेत्रों से प्रमोद को देखता रहा और फिर एकदम यूं भावहीन स्वर में बोलने लगा जैसे कोई टेपरिकार्डर चालू कर दिया गया है - "मिस्टर प्रमोद, पिछली रात तीन बजे से थोड़ी देर पहले जगन्नाथ अपने राबर्ट स्ट्रीट वाले फ्लैट में कत्ल कर दिया गया है । मौत का कारण एक जहर से बुझी हुई तीखी नोक वाला छोटा सा तीर बिना किसी प्रकार की आवाज किए सीधा उसके दिल में घुस गया था । जगन्नाथ के चेहरे के भावों से ऐसा प्रकट होता था कि वह वार उसके लिए अप्रत्याशित था । हमारा विश्वास है वह वैसा ही तीर था जो, जैसा अपने अभी बताया है, कि स्लीव गन में रख कर चलाया जाता है। आपका इस विषय में क्या खयाल है ?"


और आत्माराम के नेत्र कील की तरह प्रमोद के चेहरे पर गड़ गये ।


प्रमोद बड़े निर्भीक भाव से आत्माराम के नेत्रों से नेत्र मिलाये रहा । आत्माराम को यह देखकर बहुत निराशा हुई कि प्रमोद के चेहरे के भावों में रंच मात्र भी परिवर्तन नहीं आया था ।


"मेरा इस विषय में क्या खयाल हो सकता है, इन्स्पेक्टर साहब ।” - प्रमोद जमहाई लेता हुआ बोला - "लोग मरते ही रहते हैं। आजकल के जमाने में कोई किसी से संतुष्ट नहीं है इसलिये हत्यायें भी होती ही रहती हैं । अगर आपने मुझे केवल यह बताने के लिए यूं नींद से जगा कर यहां बुला भेजा है तो आपने बहुत ज्यादती की है मेरे साथ।”


"मुझे आप से ढेर सारी महत्वपूर्ण बातें मालूम होने की आशा थी और इसी धारणा के अंतर्गत आपको यहां आने का कष्ट दिया गया था लेकिन मालूम होता है आप पुलिस को सहयोग देने के मूड में नहीं हैं । "


"मैं आपके हर प्रश्न का उत्तर दे रहा हूं । "


"कई बार केवल मशीन की तरह प्रश्नों का उत्तर ही दिये जाना पर्याप्त नहीं होता । आप उत्तर जरूर दे रहे हैं लेकिन सहयोग की भावना से नहीं ।"


प्रमोद चुप रहा ।


"हमें मालूम हुआ है" - आत्माराम फिर बोला "कि एक बहुत सुन्दर चीनी युवती आधी रात के थोड़ी देर बाद जगन्नाथ के फ्लैट में घुसती देखी गई थी।" -


“अच्छा ।" - प्रमोद सहज स्वर में बोला ।


“आप राजनगर के चायना टाउन में रहने वाले कई ऊंचे तबके के चीनियों से परिचित हैं ?"


“जी हां । "


"क्या आप किसी ऐसी चीनी लड़की को जानते हैं ?"


“जो आधी रात के बाद जगन्नाथ के फ्लैट पर गई हो ?" - प्रमोद ने पूछा ।


“हां ।”

" आपके प्रश्न में ही आपका उत्तर निहित है, इन्स्पेक्टर साहब । कोई ऊंचे तबके की चीनी लड़ीक आधी रात को जगन्नाथ के या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के फ्लैट पर नहीं जायेगी।"


"

आप जगन्नाथ की हत्या के प्रति ऐसी उदासीनता का प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं ?"


"क्योंकि मेरा जगन्नाथ से कोई सम्बन्ध नहीं है । "


"शायद कविता ओबेराय का हो ।”


"तो आप यह सब कविता ओबेराय से ही क्यों नहीं पूछते ?"


"क्योंकि दुर्भाग्यवश, हमें कविता ओबेराय का कहीं पत नहीं चल रहा है । पिछली रात से अपने फ्लैट में नहीं सोई थीं । आज सुबह भी अपने फ्लैट में नहीं थी । उन्हें ऐसे सब स्थानों पर तलाश किया जा चुका है जहां उनके होने की सम्भावना थी । उनके लगभग सभी मित्रों से संपर्क स्थापित किया जा चुका है लेकिन कोई नहीं जानता कि वे कहां हैं । "


“क्या आपको ऐसा कोई सबूत मिला है जिससे यह सिद्ध हो कि कविता का जगन्नाथ की हत्या से कोई सम्बंध है ?"


"मैं फिलहाल इस प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में नहीं हूं।" - इन्स्पेक्टर बोला ।


" "आप यह कैसे जानते हैं कि कविता पिछली रात जगन्नाथ के फ्लैट पर गई थी ?"

"इसका उत्तर भी मैं नहीं दूंगा ।"


"आपने यह कैसे सोच लिया था कि मैं इस केस पर कोई प्रकाश डाल सकता हूं।"


" उन पत्रों की प्रतिलिपियों के कारण जिनमें जगन्नाथ ने आपको उसके लिए चीन से एक स्लीव गन लाने के लिए लिखा था । यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि हत्या स्लीव गन से ही हुई है ।"


" "आप इस केस से मेरा सम्बंध इसलिये तो नहीं जोड़ रहे हैं क्योंकि पिछली रात मैं कविता ओबेराय के साथ था ?”


"इसका जवाब भी मैं नहीं दूंगा ।"


"लगता है आप जवाब हासिल करने में ही विश्वास रखते हैं, जवाब देने में नहीं । "


"यह तो हमारे आफिस का ध्येय है, प्रमोद साहब ।”


“आपको और कुछ पूछना है मुझसे ?"


"फिलहाल बस ।" - इन्स्पेक्टर बोला - "क्योंकि वास्तव में आप इस समय कुछ बताने के मूड में नहीं हैं । शायद अगली बार आपका इरादा कुछ बदल जाये ।”


"तो फिर मैं जा सकता हूं ?"


“शौक से।"


प्रमोद उठ खड़ा हुआ । उसने मिलाने के लिए इन्स्पेक्टर की ओर हाथ बढ़ा दिया ।

"सहयोग के लिये धन्यवाद ।” - आत्माराम हाथ मिलाता हुआ तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।


व्यंग्य की ओर ध्यान देना प्रमोद ने उचित नहीं समझा । उसने इन्स्पेक्टर से हाथ मिलाया और उसके आफिस से बाहर निकल आया ।


***

पुलिस हैडक्वार्टर की इमारत से बाहर निकल कर प्रमोद कुछ क्षण फुटपाथ पर ही खड़ा रहा । उसने माचिस की एक तीली जलाई और उसकी लपट को अपने दोनो हाथों का कप सा बनाकर बीच में ढक लिया । फिर नेत्र उस लपट पर एकदम स्थिर हो गये । जगन्नाथ की हत्या के विषय में इन्स्पेक्टर से मालूम हुए सारे तथ्यों को वह अपने मस्तिष्क के अग्रभाग में ले आया और फिर उसकी सारी मानसिक शाक्तियां उसी एक विचारा पर केन्द्रित हो गई ।


आधे सैकेण्ड के समय में ही उसके कानों में ट्रैफिक का भारी शोर धीमी आवाजों के रूप में पड़ने लगा और फिर वे धीमी आवाजे भी उसे सुनाई देनी बन्द हो गई । अब उसे अपने आसपास चलते लोग, भागती हुए बसें, कारें, तांगे वगैरह नहीं दिखाई दे रहे थे। उसके नेत्र केवल माचिस की जलती हुई लपट देख रहे थे, जिसके माध्यम से वह अपने मस्तिष्क को एक शार्प फोकस पर केन्द्रित किये हुए था ।


कन्सन्ट्रेशन के चार सैकेण्ड के समय में प्रमोद केवल जगन्नाथ की हत्या की समस्या पर विचार कर रहा था ।


जगन्नाथ की हत्या हो गयी थी और इन्स्पेक्टर आत्माराम की बातों से लगता था कि कविता ओबेराय किसी न किसी रूप से हत्या के साथ सम्बंधित है । हत्या चीनी स्लीव गन से हुई थी, जो कि किसी प्रकार का शोर नहीं मचाती । आत्माराम के कथनानुसार हत्या रात तीन बजे के करीब हुई थी । इस समय दस बजे थे । इन्स्पेक्टर ने प्रमोद के विषय में जानकारी केवल छ: घण्टे में हासिल की जिसका मतलब है कि हत्या की खबर पुलिस को फौरन ही लग गई थी ।


प्रमोद ठीक डेढ बजे कविता ओबराय को उसके फ्लैट पर छोड़ कर आया था। उस समय कविता ने जाते ही सो जाने का इरादा प्रकट किया था। लेकिन इन्स्पेक्टर के कथनानुसार कविता ओबेराय के बैडरूम से मालूम होता था कि वह सोई नहीं थी । इसका अर्थ यह हुआ कि कविता प्रमोद के जाने के फौरन बाद ही फिर फ्लैट में से निकल पड़ी होगी । अर्थात् डेढ बजे के बाद से वह अपने फ्लैट में नहीं थी और जगन्नाथ की हत्या भी डेढ बजे के बाद हुई थी । आत्माराम पूरी कोशिश के बावजूद भी कविता को तलाश नहीं कर पाया था । आत्माराम ने उसके सब ठिकाने खोज डाले थे । इसका मतलब था कि कविता जानबूझ कर ऐसे स्थान पर छुपी हुई थी जहां उसके होने का किसी को खयाल न आये ।


और फिर आत्माराम ने इन्टरव्यू के दौरान मेज पर लगे एक बटन को तीन बार दबा कर छोड़ दिया था । अवश्य ही वह किसी को किसी प्रकार का सिग्नल था । लेकिन उस सिग्नल के जवाब में कोई इन्स्पेक्टर के कमरे में नहीं आया था । अत: इस बात की पूरी संभावना थी कि आत्माराम ने किसी को उसका पीछा करने का संकेत किया था ।


जब माचिस की लपट से प्राद की उंगलियां जलने लगी, तो वह एकदम फिर पहले शोर-शराबे वाले संसार में लौट आया। उसने तीली फेंक दी और अपनी हथेलियों से अपनी आंखें रगड़ने लगा। उसने एक गहरी सांस ली और फिर अपने होंठों में लगा सिगरेट माचिस की एक नई तीली जला कर सुलगा लिया ।


वह एक बार भी पीछे घूम कर देखने की गलती किये बिना टैक्सी स्टैण्ड की ओर चल दिया ।

स्टैण्ड से उसने एक टैक्सी ली और बड़ी निश्चिन्तता से पिछली सीट पर जा बैठा ।


टैक्सी चल पड़ी ।


आत्माराम के जो दो जासूस प्रमोद का पीछा कर रहे थे, बाद में उन्होंने दावे के साथ यह रिपोर्ट दी थी कि प्रमोद को इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि उसका पीछा किया जा रहा था । उसने एक बार भी पीछे घूम कर नहीं देखा था ।


टैक्सी मार्शल हाउस के सामने आकर रुक गई ।


प्रमोद टैक्सी से बाहर निकल आया । उसने ड्राइवर को कुछ कहा और फिर घूम कर इमारत के भीतर घुस गया ।


टैक्सी ड्राइवर ने इन्जन बन्द नहीं किया था । जिससे पुलिस के जासूसों ने अनुमान लगाया कि प्रमोद लौट कर आने वाला था ।


प्रमोद ने इमारत की लाबी मे से अपने वफादार चीनी नौकर याट-टो को फोन किया ।


कुछ ही देर बाद याट-टो नीचे आया । उसकी बगल में कपड़ों का एक बन्डल था । वह बाहर जाकर प्रतीक्षा करती हुई टैक्सी में जा बैठा ।


तब तक प्रमोद इमारत के पिछले रास्ते से दूसरी गली में पहुंच चुका था जहां उसकी अपनी कार खड़ी थी ।


पुलिस के जासूस धोखा चुके थे । वे यह भी दावा नहीं कर सकते थे कि प्रमोद इमारत में है भी या नहीं ।


हर्नबी रोड पर स्थित एक इमारत के सामने प्रमोद ने कार रोक दी ।


वह कार के बाहर निकला और सीढियों द्वारा इमारत की चौथी मंजिल पर पहुंच गया ।


चौथी मंजिल के एक फ्लैट के द्वार पर लिखा था | मिस कमला माथुर । प्रमोद ने काल बैल का पुश दबा दिया ।


उसे भीतर किसी ने होने का आभास तो मिला लेकिन घण्टी के जवाब में किसी के द्वार खोलने का उपक्रम नहीं किया ।


प्रमोद ने इस बार घण्टी बजाने के स्थान पर धीरे से द्वार खटखआया और फिर बोला- "मैं प्रमोद हूं, कविता ।”


द्वार फौरन ही खूल गया । द्वार पर एक बेहद सुन्दर महिला खड़ी थी ।


प्रमोद भीतर घुस गया । महिला ने द्वार बन्द कर लिया । "तुम्हें कैसे मालूम हुआ, मैं यहां हूं ?" - उसने हैरानी से पूछा ।


"ऐलीमैंन्ट्री, वासटन ।" - शरलाक होम्ज के अन्दाज से बोला ।


"शरलक होम्ज बनने की कोशिश न करो । वह ऐसी ऐलीमैन्ट्री बात नहीं थी । मेरे यहां होने की जानकारी किसी को नहीं है । "

पिछले सप्ताह तुमने खुद ही बताया था कि तुम्हारी सहेली कमला माथुर कहीं बाहर जा रही है और वह तुम्हें कह गई है कि तुम उसके फ्लैट में जाकर शीशे के टैंक में रखी उसकी मछलियों को खाना खिला दिया करो और कभी कभार पानी बदल दिया करो । स्वाभाविक यह है कि कमला तुम्हें चाबी भी देकर गई होगी और जब मुझे यह पता लगा कि तुम किसी भी सम्भाविक स्थान पर नहीं हो तो मैं समझ गया कि तुम कमला के फ्लैट में ही हो सकती हो । कमला भी आर्टिस्ट है, उसका स्टूडियों उसके फ्लैट में ही है, यह तुमने मुझे बताया ही था यहां रहने से वह भी न होती इसलिये तुम्हारे यहीं होने की सबसे अधिक संभावना थी ।"


"

ओह !" - कविता गहरी सांस लेकर बोली ।


"

अभी क्या कर रही थीं तुम ?" - प्रमोद ने पूछा ।


"कुछ नहीं । यूं ही बैठी थी ।" - कविता बोली लेकिन साथ ही उसकी दृष्टि फ्लैट के भीतर कमरे के बन्द द्वार की ओर घूम गई ।


- "पिछली रात को मेरे जाने के बाद तुम कहां गई थीं ?" प्रमोद ने सहज स्वर में पूछा ।


“कहीं नहीं । रात को डेढ बजे तुम मुझ से कहां जाने की आशा करते हो ?"


"तुम फ्लैट में पहुंचते ही सो गई थीं ?"


" और क्या ?"


"कविता ।" - प्रमोद गहरी सांस लेकर बोला - "जब तुम झूठ बोलने की चेष्टा करती हो तुम्हारे व्यक्तितत्व की स्वभाविक गम्भीरता समाप्त हो जाती है और तुम एकदम सुषमा लगने लगती हो ।"


"क्या मतलब ?"


"मतलब यह है कि तुम झूठ बोल रही हो । "


" प्रमोद मैं...

"


"पुलिस हैडक्वार्टर में आत्माराम नाम का एक इन्स्पेक्टर है । उसने मुझे बताया है कि पिछली रात तुम अपने बिस्तर पर नहीं सोई थीं ।"


कविता एकदम चुप हो गई ।


"कविता यह मत समझो कि मैं तुम्हारी निजी बातों मे दखल देने की कोशिश कर रहा हूं । जो सवाल मैं अब तुमसे पूछ रहा हूं, किसी समय यही सवाल पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम भी तुमसे पूछने वाला है । इसलिये क्या यह अच्छा नहीं होगा कि तुम अपने जवाब पहले से ही तैयार कर रखो ।”


"लेकिन प्रमोद, पुलिस को इस बात से क्या लेना देना है कि मैं पिछली रात कहां सोई थी ?"


"पुलिस एक हत्या के केस की तफ्तीश कर रही है । "


"हत्या ! किसकी ?"


“जगन्नाथ की । जानती हो उसे ? "

"नहीं कौन था वह ?"


"कोई ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं का संग्रहकर्ता था । सुना है बड़ा अमीर आदमी था । वह पिछली रात तीन बजे के करीब कत्ल कर दिया गया था ।" - प्रमोद उनके चेहरे पर नेत्र गड़ा कर बोला - " और हत्या स्लीव गन से हुई थी । स्लीव गन का तीर सीधा उसकी छाती में घुस गया था ।”


कविता ने नेत्र झुका लिये ।


“स्लीव गन तो तुम जानती हो न क्या होती है ?"


"हां।" - कविता नर्वस स्वर में बोली- " अपनी स्लीव गन तुमने मुझे दिखाई थी ।”


" और जगन्नाथ के फ्लैट पर एक छोटा सा चौकोर रूमाल पाया गया था जिसके एक किनारे पर 'ओ' कढा हुआ था । रूमाल में एक विशेष प्रकार की सुगन्ध प्रयुक्त की गई थी।"


"प्रमोद !" - कविता व्यग्र स्वर में बोली ।


"हां ।”


“क्या तुमने उस रूमाल की शिनाख्त कर ली थी ?"


"नहीं।"


"क्या... क्या यह रूमाल मेरा था ?"


"मेरे खयाल से यह रूमाल सुषमा का था । उस रूमाल में से वही विशेष सुगन्ध आ रही थी जो सुषमा इस्तेमाल करती है ।”


"लेकिन सुषमा का भला जगन्नाथ से क्या सम्बंध ?"


"यही तो मैं जानना चाहता हूं।"


कविता चुप रही ।


"तुम अभी पेन्टिंग कर रही थीं क्या ?"


"नहीं तो ।"


"तुम्हारी उंगलियों के नाखूनों में रंग के हल्के-हल्के धब्बे दिखाई दे रहे हैं । लगता है तुमने जल्दबाजी में हाथ पोंछे थे । इसलिये कहीं कहीं रंग लगा रह गया है । "


और इससे पहले कि कविता कुछ समझ पाती प्रमोद बन्द द्वार की ओर बढ़ गया ।


"नहीं, नहीं ।" - कविता एकदम चिल्ला पड़ी और उसने झटक कर प्रमोद की बांह पकड़ ली - "भगवान के लिये वहां मत जाओ।"


प्रमोद ने बड़ी आसानी से अपनी बांह छुड़ा ली और द्वार खोल दिया ।


भीतर का कमरा कमला माथुर का स्टूडियो था । दिवारों पर कमला माथुर के पेन्ट किए हुए बड़े-बड़े चित्र लगे हुए थे । कमरे के बीचोंबीच इजाल रखा हुआ था जिस पर एक लगभग तीन फुट लम्बा और ढाई फुट चौड़ा कैनवस टिका हुआ था। पेंटिंग बहुत शानदार थी । जब जगन्नाथ के चेहरे की एक-एक लकीर सजीव मालूम होती थी । उसकी गहरी काली आंखों में मक्कारी और क्रूरता का भाव तस्वीर में भी एकदम उतर कर सामने आता था ।


“शानदारा पेंटिंग है ।"


कविता के चेहरे का रंग उड़ गया था ।


"तुम तो कहती थी कि तुम जगन्नाथ को जानती नहीं?"


कविता चुप रही ।


" यह तस्वीर कब बनाई तुमने ?”


“प्रमोद !”


"हां ।”


"प्लीज !”


"क्या प्लीज !"


"भगवान के लिए मुझसे इस विषय में सवाल मत पूछो।”


“क्यों ?"


"लेकिन कविता मैं तुम्हारा हितचिंतक हूं। मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं।"


"नहीं प्रमोद ! भगवान के लिए तुम इस झमेले से अलग ही रहो । "

"लेकिन मैं अब इस झमेले से अलग कैसे रह सकता हूं । पुलिस मुझसे भी क्रॉस क्वेश्चन कर रही है।"


कविता ने कोई उत्तर नहीं दिया ।


"तुम यहां कितने बजे आई थी ?"


"सुबह चार बजे ।"


"तुमने जगन्नाथ का कत्ल किया है ?"


"नहीं।" - कविता कांप कर बोली और उसने कस कर प्रमोद की बांह थाम ली- “नहीं।"


“कांपो नहीं ।" - प्रमोद उसका हाथ थपथपाता हुआ बोला - " और शान्ति से मेरे प्रश्नों का उत्तर दो ।"


“प्रमोद ।" - कविता एकदम कठोर स्वर में बोल पड़ी - " मैं तुम्हें पहले भी कह चुकी हूं और फिर कर रही हूं। मैं तुम्हारे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दूंगी।"


"क्यों ?"


"मैं इस क्यों का उत्तर भी नहीं दूंगी ।"


"तुम किसका बचाव करने की कोशिश कर रही हो ?"


"मैं कुछ नहीं बताऊंगी ।"


"तुम राजेन्द्र नाथ को कवर करने की कोशिश कर रही हो ?"

"मैं कुछ नहीं बताऊंगी ?"


"यह सुषमा से कोई नादानी हो गई ?"


"मैं कुछ नहीं बताऊंगी।" - कविता एक-एक शब्द पर जोर देती हुई बोली ।


"सुषमा कहां है ?"

"मुझे नहीं मालूम ।"


" आल राइट।" - प्रमोद हथियार डालता हुआ बोला "मत बताओ, कुछ मत बताओ । लेकिन एक बात अच्छी तरह समझ लो । मैं तुम्हारे हित की चिंता करना अपना धर्म मानता हूं । मैं नहीं चाहता कि तुम किसी और के खातिर किसी पचड़े में पड़ो कविता ! मेरा सहयोग केवल तुम्हारे लिए है । मुझे इस बात की परवाह नहीं कि तुम्हारे अतिरिक्त और लोगों पर क्या गुजरती है। मैं किसी दूसरे के बचाव की खातिर तुम्हें अपने आप को मुश्किल में नहीं डालने दूंगा और वह दूसरा चाहे राजेन्द्र नाथ हो या सुषमा।”


और प्रमोद लम्बे डग भरता हुआ द्वार की ओर बढ़ गया


" प्रमोद ।" - कविता व्यथित स्वर में बोली ।


“हां ।” प्रमोद रुक गया ।


"ठहर जाओ।"


"मुझे सब कुछ साफ-साफ बताओगी ?”

"नहीं।" - कविता कड़े स्वर में बोली । "तो फिर मैं जाता हूं।"


और प्रमोद फ्लैट से बाहर निकल गया ।


***