राजदान ने विस्तर पकड़ लिया। छुपाने की लाख चेप्टाओं के बावजूद उसे एड्स होने का राज ठकरियाल और भट्टाचार्य को भी पता लग गया। नहीं मालूम था तो सिर्फ बबलृ को। वह दिन रात राजदान की सेवा में लगा रहता। दूसरी तरफ दिव्या और देवांश एक बार अवैध सम्बन्धों की सड़ांध भरी दलदल में क्या गिरे कि उसी में लथपथ होकर रह गये। राजदान के खर्चीले इलाज में जमा-पूंजी यूं उड़ रही थी जैसे खुले में रखा पैट्रोल उड़ा करता है। व्यापार में मंदा था । सब कुछ चौपट होता जा रहा था। जिन फाइनेंसर्स ने राजदान एसोसिएट्स में पैसा लगा रखा था, उनका व्याज तक नहीं पहुंच रहा था इसलिए मूल की मांग करने लगे थे। छः महीने गुजर गये । इन छः महीनों में दिव्या और देवांश इस कदर आर्थिक क्राइसेज का शिकार हो चुके थे कि उनका वश चलता तो जाने कब का राजदान का चल रहा महंगा इलाज बंद करा देते। इस मामले में उनकी नहीं चल रही थी तो केवल भट्टाचार्य के कारण।


उसके रहते वे राजदान का इलाज बंद नहीं करा सकते थे जबकि खुद राजदान नहीं चाहता था उसके इलाज के नाम पर इतना मोटा खर्चा हो । वह खूब समझता था उसके कारण दिव्या और देवांश आर्थिक संकट में फंसे हुए हैं। ऐसा वह नहीं चाहता था । वह तो स्वप्न में भी उन दोनों में से किसी को कष्ट में नहीं देख सकता था। काश वह जानता होता कि दिव्या और देवांश अब वे दिव्या और देवांश नहीं रह गये हैं जो उसके इस 'अंधे प्यार' के हकदार थे । अब तो वे, वे दिव्या और देवांश हैं जो उतनी ही शिद्दत से उसकी मौत की कामना किया करते हैं जितनी शिद्दत से एक बीमार बच्चे की मां ईश्वर से उसके ठीक हो जाने की कामना करती है। नई-नई बीमारियां लग गई थीं राजदान को | ऐसी-ऐसी कि दिव्या-देवांश को लगता, कहीं उनके जर्म्स उनमें भी न समा जायें। उसके नजदीक जाने से बचते ही थे वे । ऐसा महसूस भी कर लिया था राजदान ने । अंदर ही अंदर चोट सी लगी थी उसे । मगर, प्यार तो वह उनसे बेइंतिहा करता ही था । खुद चाहता था उन्हें उससे कोई बीमारी न लग जाये । दिव्या से खुद ही कहा था उसने --- 'तुम मेरे पास --- इस कमरे में नहीं बल्कि बगल वाले कमरे में सोया करो।' क्या मालूम था राजदान को कि दिव्या को उसकी मनमांगी मुराद दे रहा है! अकेला बबलू था जो बार-बार खुद राजदान के मना करने के बावजूद पास आता था बल्कि खूब सेवा भी किया करता था। दोनों के बीच उस लड़की के बारे में भी बातें होतीं जिससे बबलू प्यार करता था । स्वीटी था उसका नाम राजदान के अनुरोध पर एक बार बबलू उसे मिलाने के लिए लाया भी। सचमुच बड़ी स्वीट थी वह । जब उसने राजदान के लिए लम्बी उम्र की दुआएं कीं तो राजदान की आंखें भर आईं। सेवा


और वे, जिनके लिए राजदान ने अपनी जिन्दगी गला दी थी - - - वे दुआ कर रहे थे, वह घड़ी में मरता हो तो चौथाई में मर जाये। उनकी तो अब टेंशन ही राजदान का जिये चला जाना थी। एक रात दिव्या ने देवांश से कहा---'अगर वह तीस अगस्त से पहले नहीं मरा, उसके बाद एक दिन के लिए भी जिया तो हमारे उद्धार का जो एकमात्र रास्ता है वह भी बंद हो जायेगा ।' देवांश चौंका । इस बात का मतलब पूछा । तब, दिव्या ने उसे एक बीमा पॉलिसी दिखाई। पांच करोड़ का बीमा था राजदान का। नोमिनी थी दिव्या । तीस अगस्त को प्रीमियम की अगली किस्त ड्र्यू थी। किश्त इतनी मोटी थी कि अपनी वर्तमान अवस्था में चाहकर भी जमा नहीं करा सकते थे। उस हालत में पॉलिसी लैप्स हो जानी थी अर्थात् यदि राजदान तीस अगस्त के बाद मरा तो फूटी कौड़ी नहीं मिलनी थी एल.आई.सी. से । अतः ज्यों-ज्यों तीस अगस्त नजदीक आता जा रहा था, उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उन्हें लगा - - - राजदान का जो इलाज चल रहा था उसे फौरन बंद कर देना चाहिए, ताकि उसके तीस अगस्त से पहले मरने के चांस बढ़ जायें। मगर, वे फैसला नहीं कर पा रहे थे भट्टाचार्य के रहते ऐसा कैसे हो सकता है? उधर राजदान भी अपनी मौत के लिए उतना ही बल्कि उनसे भी कहीं ज्यादा व्याकुल था। एक दिन उसने एकान्त में भट्टाचार्य को पकड़ लिया। कहा --- 'देख दोस्त, मैं दिव्या और देवांश की वर्तमान आर्थिक हालात के बारे में अच्छी तरह जानता हूं । इलाज बंद कर दे यार मेरा। मरने दे मुझे। एकाध दिन पहले मरूं या बाद में, क्या फर्क पड़ता है मुझ पर ! परन्तु मेरी दिव्या और देवांश के भविष्य पर जमीन-आसमान का फर्क पड़ जायेगा ।' राजदान की विडम्बना तथा दिव्या और देवांश के प्रति उसका प्यार देखकर भट्टाचार्य फफक-फफक कर रो पड़ा था । एक हद तक राजदान को ठीक ही मानता था वह परन्तु डॉक्टर होने के नाते भला कैसे दवाएं बंद करके उसे मरने के लिए छोड़ सकता था ? एक ही बात कही उसने--- 'किसी को इस तरह मरने के लिए छोड़ देना उसकी हत्या करना होता है और तेरे मर्डर के इल्जाम में फांसी पर नहीं झूलना मुझे।' जब राजदान की भट्टाचार्य पर एक न चली तो सीधे-सीधे दिव्या और देवांश को ही पकड़ा उसने । सब कुछ बताने के बाद कहा---'उम्मीद है, तुम व्यर्थ की भावुकता में बहकर अपने भविष्य पर कुठाराघात नहीं करोगे । भट्टाचार्य दवाएं लिखता भले ही रहे, उसे दिखाने के लिए भले ही तुम उन्हें खरीदते भी रहो मगर मैं खाऊंगा नहीं। इस काम में तुम्हें मेरी मदद करनी होगी, तभी तीस अगस्त से पहले मर सकूंगा जो कि जरूरी है।' सुनकर, बल्लियों उछलने लगे थे दिव्या और देवांश के दिल । मूर्ख खुद वह कह रहा था जो वे चाहते थे। नाराजगी का ड्रामा करते हुए, उन्होंने राजदान की यह डिमांड मान ली मगर होनी को तो पता नहीं क्या मंजूर था ! दवाएं बंद होने के बावजूद राजदान के प्राण नहीं निकल रहे थे । तीस अगस्त नजदीक आता चला गया । जाहिर है --- दिव्या और देवांश की बेचैनी बढ़ गई । अब चर्चा इस बात पर होने लगी--- वह तीस अगस्त तक नहीं मरा तो क्या होगा? उधर राजदान अपनी मौत को लेकर उनसे कहीं ज्यादा बेचैन था । जब कोई और रास्ता नहीं मिला तो सुसाइड का फैसला कर लिया उसने ।


***


दिव्या और देवांश के नाम एक लेटर लिखा। बहुत ही भावुक लेटर था वह और वही उसका सुसाइड नोट भी था। अपने कमरे के बाहर वॉल्कनी में फांसी लगाकर मरने का प्लान बनाया था उसने । मरने ही वाला था कि.... कि उसने दिव्या और देवांश को एक-दूसरे की बाहों में देख लिया। उफ्फ! पहले तो उस दृश्य को देखकर राजदान को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन सच्चाई को कब तक झुठला सकता है आदमी? जो सच था, वह था । और सच केवल इतना ही नहीं था ।... वे उसकी हत्या का प्लान बना रहे थे। राजदान ने अपने कानों से सुना, दिव्या नामक बोतल के नशे में चूर देवांश ने कहा --- 'अगर उनतीस की रात तक वह खुद नहीं मरा तो हमें करना पड़ेगा यह नामुराद काम । हत्या को आत्महत्या साबित करना हमारे लिए जरा भी मुश्किल नहीं होगा।'


राजदान को तो बस एक ही अफसोस था --- उनके ऐसे 'प्रवचन' सुनकर उसके कानों के पर्दे क्यों नहीं फट गये? क्यों नहीं वह उस नंगे दृश्य को देखने के साथ ही अंधा हो गया? आखिर किन हालात में, आदमी का 'हार्टफेल' होता है ? इतना सब कुछ देखने-सुनने के बावजूद कैसे ... कैसे ठीक-ठाक धड़क रहा था उसका दिल ? क्यों नहीं फट रही थी यह धरती? आसमान आखिर गिर क्यों नहीं रहा था ? किसी सवाल का जवाब नहीं था उस पर ।


जी चाहा---कूदकर उनके सामने पहुंच जाये | जाने क्या-क्या कहे उन्हें! मगर, फिर लगा... देवांश अभी, यहीं गला दबाकर उसकी ईहलीला समाप्त कर देगा और वह इतना कमजोर हो चुका है कि देवांश की मजबूत पकड़ के बीच एक मिनट से ज्यादा छटपटा तक नहीं सकेगा । अतः देवांश और दिव्या को वहां अपनी मौजूदगी का भान नहीं होने दिया उसने। उन्हें नहीं पता लगने दिया वह क्या देख और जान चुका है।


उसके बाद, दो दिन तक राजदान का व्यवहार बड़ा अजीब और रहस्यमय रहा ।


ऐसा, जैसे वह किसी प्लान पर काम कर रहा हो ।


पर जो अपनी बीमारी के कारण पिछले चार महीने से किसी से नहीं मिला था, उसने समरपाल को विला पर बुला लिया। उससे मिला। बंद कमरे में जाने क्या बातें कीं उससे । मारे सस्पैंस के दिव्या का बुरा हाल था । उस वक्त वह उन बातों को जानने के लिए मरी जा रही थी जब विला में एक नया करेक्टर आ धमका। वकीलचंद था उसका नाम । वह नाम ही से नहीं, पेशे से भी वकील था । और बस - - - यह बात दिव्या के दिमाग को 'भक्क' से उड़ाये हुए थी कि राजदान ने वकील को क्यों बुलाया है जबकि राजदान का कहना --- वकीलचंद मेरे बचपन का दोस्त है, मिलने का मन था उससे । दिव्या का दिलो-दिमाग मानने को तैयार नहीं था कि बात बस इतनी सी है ।


रात के वक्त उसने देवांश से राजदान की दिनभर की गतिविधियों का जिक्र किया, परन्तु देवांश ने कहा --- 'बेवजह की बातें सोचकर अपना दिमाग खराब मत करो । वह जो करेगा हमारे अच्छे के लिए करेगा। हमारे खिलाफ कुछ करना तो दूर, सोच तक नहीं सकता वह ।' परन्तु अगले दिन, राजदान को बाहर जाने के लिए तैयार देखकर दिव्या हैरान रह गई। उसके बार-बार पूछने पर भी राजदान ने नहीं बताया कि वह कहां जा रहा था? दिव्या ने साथ चलने के लिए कहा। इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ वह | अकेला गया । ड्राइवर के रूप में केवल बन्दूकवाला साथ था । करीब दो घण्टे बाद लौटा। दिव्या ने फिर पूछा कहां गया था । राजदान ने नहीं बताया और उस वक्त तो दिव्या की खोपड़ी बुरी तरह घूमकर रह गई जब उसने इस बारे में बन्दूकवाला से बात की | बन्दूकवाला ने बताया---'मेरे साथ तो ये केवल जुहू बीच तक गये थे। वहां गाड़ी रुकवाई। एक टैक्सी पकड़ी। मुझे वहीं रुककर इन्तजार करने के लिए कहा और टैक्सी में बैठकर जाने कहां चले गये? करीब डेढ़ घण्टे बाद दूसरी टैक्सी में लौटे । गाड़ी में बैठे और 'यहां' आ गये ।' बन्दूकवाला का यह बयान दिव्या के ही नहीं, देवांश के दिमाग में भी खलबली मचा देने के लिए काफी था । उस वक्त वह राजदान से उसकी रहस्यमय गतिविधियों के बारे में बात करने के बारे में सोच ही रहा था जब खुद राजदान ही ने उन दोनों को अपने कमरे में बुलवाया। एक लिफाफा दिया । उसमें करीब पचास लाख के शेयर्स थे। राजदान ने कहा---'मेरे बैंक लॉकर में पड़े थे ये। आज ही दिन में निकालकर लाया हूं। कल समरपाल ने बताया था कि रामभाई शाह बार-बार अपनी रकम मांगकर तुझे परेशान कर रहा है । साइन कर दिये हैं मैंने। कल उसके कर्जे से मुक्त हो जाना । तब, देवांश ने दिव्या की तरफ ऐसी नजरों से देखा जैसे कह रहा हो --- 'देखो, मैं न कहता था - - - ये शख्स जो भी कर रहा होगा, हमारे फायदे के लिए कर रहा होगा ।


राजदान ने उन्हें एक रिवाल्वर भी दिखाया।


उसका लाइसेंसी रिवाल्वर था वह । कहा- 'यह भी बैंक लॉकर में ही रखा था ।'


उसके बाद, राजदान ने जितनी बातें कीं उनसे एक ही बात ध्वनित हो रही थी। यह कि --- वह उन्हें पांच करोड़ दिलाने के लिए समय रहते आत्महत्या करने वाला है। उसने उन्हें यह आभास भी दिया कि लॉकर से वह इसी इरादे को पूरा करने के लिए रिवॉल्वर निकालकर लाया है। वास्तव में राजदान क्या खिचड़ी पका रहा था, इस बारे में तो वे सोच तक नहीं सकते थे।


***


शाकाहारी खंजर ---


उस खिचड़ी के बारे में उन्हें उनतीस अगस्त की रात को पता लगा । तब जबकि वे दिव्या के कमरे में रंगरलियां मना रहे थे। राजदान ने उन्हें अपने बैडरूम में बुलाया। कम से कम शुरू में राजदान ने बिल्कुल जाहिर नहीं किया उसे उनकी रंगरलियों के बारे में कुछ पता है । उस वक्त वह व्हिस्की रहा था । दिव्या और देवांश चौंके क्योंकि राजदान ने पहले कभी व्हिस्की नहीं पी थी। उसने उनसे भी पीने के लिए कहा। उनके लिए दो गिलासों में व्हिस्की डाल भी दी परन्तु उनके द्वारा उसे पीने की नौबत न आ सकी ।


बड़ा ही भावुक सीन था वह !


शनैः-शनैः वार्ता आगे बढ़ी! और उस वक्त तो उनके पैरों तले से मानो जैसे जमीन ही सरक गई जब पता लगा ---राजदान न केवल उनके बीच स्थापित हो चुके अवैध सम्बन्धों के बारे में जान गया है बल्कि यह भी जान गया है कि वे उसका कत्ल करने के मंसूबे बनाये बैठे हैं। शुरू में भले ही दिव्या और देवांश को झटका लगा हो परन्तु थोड़ा संभलते ही वे पूरी नंगाई पर उतर आये । राजदान की हालत देखकर उन्हें लगा --- अगर वे उसके सामने ही आपस में 'संभोग' करें तो राजदान हार्ट अटैक से मर जायेगा । राजदान को मार डालने की यह तरकीब उन्हें सबसे उत्तम लगी क्योंकि हार्ट फेल हो जाने के कारण हुई उसकी मौत को कोई भी 'कत्ल' साबित नहीं कर सकता था। कत्ल के ख्वाहिशमंद लोगों के लिए भला इससे बेहतर स्थिति क्या हो सकती थी ! सो --- ऐसा ही प्रयास किया उन्होंने । और तब, जब वे इतनी नीचता पर उतर आये कि राजदान को मार डालने की मंशा दिल में संजोये उसी के सामने अश्लील हरकतें करने लगे तो राजदान के धैर्य के सभी बांध टूट गये । रिवाल्वर निकाल लिया उसने। दिव्या और देवांश यह सोचकर कांप उठे कि अब वह उन्हें गोली मार देगा | मगर नहीं... ऐसा नहीं किया राजदान ने। ऐसा कोई प्लान ही नहीं था उसका । उसका प्लान सुनकर दोनों के छक्के छूट गये । उसने कहा --- 'मैं कल ही रजिस्टर्ड डाक से बीमा कम्पनी को एक लेटर पोस्ट कर चुका हूं। उसमें लिखा है --- 'अगर मेरा मर्डर हो जाये या मैं स्वाभाविक मौत मर जाऊं तो पॉलिसी की नोमिनी अर्थात् मेरी पत्नी को पांच करोड़ रुपये दे दिये जायें लेकिन अगर मैं किसी वजह से आत्महत्या कर लूं तो यह रकम किसी को न दी जाये । दिव्या और देवांश अभी ठीक से समझ भी नहीं पाये थे राजदान क्या चाहता है कि उसने आगे कहा---‘मैं खुद को गोली मारकर आत्महत्या करने वाला हूं। तुम समझ सकते हो मेरे इस अंत को किसी भी तरह स्वाभाविक मौत साबित नहीं किया जा सकता । मेरी मौत के बाद पांच करोड़ कमाने का तुम्हारे पास केवल एक ही तरीका बचेगा, यह कि मेरी सुसाइड को किसी के द्वारा किया मर्डर साबित करो ।' ऐसा ही कुछ कहने के बाद राजदान ने सचमुच रिवाल्वर की साइलेंसर युक्त नाल अपने मुंह में घुसेड़ी और ट्रेगर दबा दिया ।'


उसका सिर बीसवीं मंजिल से गिरे तरबूज की तरह फट गया ।


चारों तरफ खून ही खून!


चेहरा वीभत्स !


***


उस वक्त दिव्या और देवांश अपने स्थानों पर खड़े सूखे पत्तों की मानिंद कांप रहे थे और मुश्किल से दो ही मिनट गुजरे थे कि किसी ने बहुत ही धीमे से बाथरूम का दरवाजा खटखटाया। वह कमरे की तरफ से बंद था । इस एहसास ने तो होश ही फाख्ता कर दिये उनके कि वहां कोई है! और... वक्त तो पटठों के देवता तक कूच कर गये जब बाथरूम के अंदर से किसी ने बहुत ही धीमी आवाज में कहा --- 'राजदान साहब!'  


आवाज पहचानने की उन्होंने बहुत-बहुत कोशिश की मगर नहीं पहचान सके । मारे खौफ के दिव्या के हलक से तो चीख ही निकलने वाली थी । देवांश ने झपटकर उसका मुंह दबोचा ! घसीटता हुआ कमरे से बाहर लाया और उसके बाद... वे विला के टैरेस पर पहुंचे। जाना--- दरवाजा खटखटाने वाला इंस्पैक्टर ठकरियाल था । यह पता लगते ही न केवल उनके दिमागों में सैकड़ों सवाल कौंध उठे बल्कि तिरपन भी कांप गये ।


उधर, ठकरियाल विला के मुख्यद्वार पर पहुंचा।


बाकायदा कॉलबेल बजाने लगा वह ।


मारे खौफ के दिव्या और देवांश का बुरा हाल था । यह बात उनकी समझ में आकर नहीं दे रही थी कि रात के इस वक़्त ठकरियाल वहां कर क्या रहा है? क्यों वह चोरों की तरह बाथरूम में पहुंचा? क्यों धीमी आवाज में राजदान को पुकार रहा था और अब क्यों धड़ाधड़ कॉलबेल बजाये चला जा रहा है? जिस अवस्था में लाश थी, उसे उसी अवस्था में ठकरियाल द्वारा देख लिये जाने का मतलब था - यह भेद खुल जाना कि राजदान ने आत्महत्या कर ली और... इस भेद के खुलने का मतलब था --- उनका पांच करोड़ से हमेशा के लिए वंचित रह जाना । और ... ऐसा वे होने नहीं दे सकते थे। सो, उधर ठकरियाल बार-बार कॉलबेल बजा रहा था इधर, हड़बड़ाये हुए वे घटनास्थल को ऐसा रूप देने में जुटे थे जिससे राजदान का अंत हत्या लगे । उन्होंने लाश के हाथों से रिवाल्वर गायब किया । लॉकर से जेवर हटाये । राजदान के खून से सने अपने कपड़े चेंज किये। उन सबको दिव्या के कमरे में छुपाया । इतने कम समय में इस सबसे ज्यादा और वे कर भी क्या सकते थे? उस वक्त तक ठकरियाल सात बार कॉलबेल बजा चुका था और आठवीं बार बजाना चाहता था जब देवांश ने दरवाजा खोला। इसी के साथ शुरू हो गये ठकरियाल के चुभते हुए सवाल जब पता लगा---ठकरियाल को ठीक एक बजे बाथरूम के रास्ते से आने के लिए खुद राजदान ने कहा था तो उन्हें पहली बार एहसास हुआ -- राजदान ने पूरा प्लान बनाने के बाद आत्महत्या की है क्योंकि उसने ठीक एक बजने में दो मिनट पहले खुद को गोली मारी थी और अब पता लग रहा था --- ठकरियाल से उसने ठीक एक बजे आने के लिए कहा था । जाहिर था --- राजदान ने यह सब उस वक्त उनकी वही हालत करने के लिए किया था जो हुई या हो रही थी । उन्होंने ठकरियाल को वहीं से टालने की, राजदान के बैडरूम में न पहुंचने देने की भरपूर कोशिश की मगर ठकरियाल को न टलना था ! न टला ! उनकी सभी कोशिशों को लांघता वह अंततः बैडरूम में पहुंच गया ।

नजर राजदान की लाश पर पड़ी । ठकरियाल का माथा ठनका | दिव्या और देवांश ने ऐसी एक्टिंग शुरू कर दी जैसे अभी-अभी राजदान के 'मर्डर' के बार में पता लगा हो परन्तु ठकरियाल उनके झांसे में आने को तैयार नहीं था । उस वक्त दिव्या और देवांश को अपने सभी इरादों पर पानी फिरता नजर आया जब ठकरियाल ने कहा --- 'यह मर्डर नहीं आत्महत्या है। ऐसा आत्महत्या जिसे कोई मर्डर साबित करने का ख्वाहिशमंद है।' बात अगर यहीं तक सीमित रहती तब भी दिव्या और देवांश शायद खुद को नियंत्रित रख सकते थे मगर, जब ठकरियाल ने एक सोफे के पीछे से 'कुछ' उठाकर अपनी जेब में डाल लिया और उनके लाख पूछने के बावजूद नहीं बताया कि उसे वहां से क्या मिला है तो दिव्या और देवांश के सभी हौसले पस्त हो गये । घटनास्थल के बारे में ठकरियाल ने ऐसे-ऐसे सवाल उठाये जिनके उनके पास कोई जवाब नहीं थे । अंत में वह उन्हें कमरे में ही रुके रहने का हुक्म सा देकर बाथरूम में चला गया। दरवाजा बाथरूम की तरफ से बंद कर लिया । ये वे क्षण थे जब दिव्या और देवांश पूरी तरह टूट चुके थे। उन्हें लगा था --- वे किसी हालत में ठकरियाल को धोखा नहीं दे सकेंगे। ऐसी कोशिश की तो लम्बे नप जायेंगे । यही सब सोचकर उन्होंने सरेण्डर करने का फैसला कर लिया । निश्चय कर लिया कि भले ही पांच करोड़ हाथ न लगें, ठकरियाल को बता देंगे राजदान ने असल में आत्महत्या की है। ऐसा फैसला करने के बाद उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खटखटाना शुरू किया । ऊंची आवाज में कहा---'किसी इन्वेस्टिगेशन की जरूरत नहीं है इंस्पैक्टर! सारी हकीकत हम खुद ही बताने को तैयार हैं।' मगर... बाथरूम में कोई हो तो उनकी आवाज सुने भी । इस एहसास ने उनका खून जमाकर रख दिया कि ठकरियाल बाथरूम में नहीं है। दिमाग में अनेक सवाल कौंधे --- कहां गया ठकरियाल? ऐसा क्यों किया उसने ? क्या वे किसी जाल में फंस गये हैं? घबराकर बैडरूम के मुख्यद्वार की तरफ लपके और.... उस वक्त तो पित्ते ही ढीले हो गये जब उस कमरे को भी बाहर से बंद पाया । अर्थात्... उन्हें घटनास्थल पर राजदान की लाश के साथ बंद कर दिया गया था। मारे खौफ के बुरा हाल गया उनका | समझ में नहीं आकर दे रहा था ठकरियाल ने ऐसा किया तो किया क्यों? आखिर किस जाल में फंसाना चाहता है वह उन्हें? बौखलाहट में फंसा देवांश उस वक्त बैडरूम का मुख्यद्वार तोड़ डालने पर आमादा था जब, अचानक ठकरियाल ने बाहर की तरफ से दरवाजा खोल दिया | मुस्करा रहा था जालिम । भरपूर मजा ले रहा था दिव्या और देवांश की हालत का ।

***

पता लगा, बल्कि खुद ठकरियाल ने बताया- - - इस बीच वह दिव्या के कमरे में हो आया है। वहां उसने रिवाल्वर और जेवर ही नहीं, राजदान के खून से सने उनके कपड़े भी देख लिये हैं। अगर अब भी दिव्या और देवांश की मंशा वही साबित करने की होती जो वे 'शुरू' में साबित करना चाहते थे तो यकीनन ठकरियाल के इतना सब जान लेने पर उनके होश फाख्ता हो जाते --- मगर क्योंकि वे पहले ही ठकरियाल को राजदान की आत्महत्या के बारे में बताने का फैसला कर चुके थे इसलिए ठकरियाल को हकीकत पता लगने पर ज्यादा हलकान नहीं हुए। अब देवांश को अपने और दिव्या के अवैध सम्बन्धों को छुपाये रखकर ठकरियाल को राजदान की आत्महत्या के बारे में बताना था। हालांकि यह काफी कठिन था फिर भी, देवांश ने किया । मगर, जब ठकरियाल ने यह सवाल उठाया कि जो राजदान सारे जीवन उनका और केवल उन्हीं का भला चाहता रहा, वह अंत में उनके पांच करोड़ तक पहुंचने के सभी रास्ते बंद करके क्यों मरा, तब उनके पास टकरियाल को संतुष्ट करने वाला कोई जवाब नहीं था । ठकरियाल को संतुष्ट करने की कोशिश में उस वक्त वे आंय - बांय- शांय गा रहे थे जब अचानक कमरे में राजदान के ठहाका लगाने की आवाज गूंजने लगी। हालत बैरंग हो गई दोनों की । काटो तो खून नहीं। कभी सोफे पर लुढ़की पड़ी राजदान की लाश को देख रहे थे, कभी बौखलाये हिरन 
की तरह दायें। फिर, उन्हें सम्बोधित करते राजदान की आवाज भी गूंजी वहां । और अंततः पता लगा - - - वह आवाज उन्हें ठकरियाल सुनवा रहा था । जेब से एक छोटा सा टेपरिकार्डर निकालकर उसने मेज पर रख दिया। दिव्या और देवांश उसे इस तरह देख रहे थे जैसे अचानक उसके सिर पर सींग नजर आने लगे हों! तब, ठकरियाल ने भेद खोला --- राजदान ने रात आठ बजे उसे फोन करके कहा था- - - ‘रात के ठीक एक बजे तुम्हें लॉन की तरफ खुलने वाली खिड़की के जरिए मेरे बाथरूम में पहुंचना है।' वह पहुंचा। बाथरूम में उसे पांच लाख रुपये और राजदान का एक लेटर मिला । उस लेटर को ठकरियाल यहां दिव्या और देवांश को भी पढ़ा देता है। उसमें लिखा था---'पांच लाख उस काम की फीस है जिसे तुम्हें मेरे लिए करना है। अगर तुम्हारे खटखटाने और मुझे आवाज देने के बाद भी दरवाजा न खुले तो सीधे विला के मुख्यद्वार पर पहुंच जाना | कॉलबेल बजाकर दरवाजा खुलवाना । दिव्या और देवांश भले ही तुम्हें बाहर ही से टालने की चाहे जितनी कोशिश करें मगर तुम्हें हर हालत में मेरे बैडरूम में पहुंचना है। वहां तुम्हें उस सोफे के पीछे से कुछ मिलेगा जहां मैं 'विराजमान' होऊंगा।'

पता लगता है --- ठकरियाल ने जो भी किया राजदान के लेटर के मुताबिक किया । जब दिव्या और देवांश ने पूछा--- 'सोफे के पीछे से तुम्हें क्या मिला था तो ठकरियाल ने बताया--- यह टेप और एक अन्य लेटर।' उन्होंने पूछा --- उस दूसरे लेटर में क्या लिखा है ? जवाब में ठकरियाल ने लेटर उन्हें पकड़ा दिया। उसमें सबकुछ साफ साफ लिखा था। ये भी कि दिव्या और देवांश के बीच अवैध संबंध कायम हो चुके है। यह भी कि वे उसकी हत्या का प्लान बना रहे हैं और यह भी कि वे किस तरह दिव्या और देवांश को पांच करोड़ के लालच में फंसाकर आत्महत्या करेगा। इस लेटर के ठकरियाल को दो काम सौंपें गए था । पहला : कदम पर दिव्या और देवांश को आतंकित और हलकान करना, उन्हें सताना और दूसरा: अंततः उन्हें जेल में ठूंस देना । पहला काम ठकरियाल अब तक कर ही चुका था। पूरी तरह नंगे हो चुके थे वे ठकरियाल के सामने । न बच निकलने का कोई रास्ता बाकी बचा था, न ही बचकर निकल जाने की कोई आरजू रह गई थी। केवल एक ही तमन्ना थी। वही कहा दिव्या ने- "ठकरियाल, बेशक तुम राजदान के लेटर में लिखे का अक्षरशः पालन करो। जेल में ढूंस दो हमें | मगर... हो सके तो एक कृपा हम पर भी कर दो। यह कि मेरे और देवांश के संबंधों को सार्वजनिक मत करो । लोग जब मुझ पर थू-थू करेंगे तो जी नहीं सकूंगी मैं । तब ठकरियाल ने पूछा --- 'तुम लोगों का प्लान क्या था ? देवांश ने बता दिया कि वे किस तरह राजदान की हत्या के इल्जाम में बबलू को फंसाना चाहते थे । ठकरियाल को प्लान जमा । बोला --- 'पांच में से ढाई करोड़ मुझे मिलें तो इस प्लान पर अब भी अमल हो सकता है ।” 

दिव्या और देवांश अवाक् मुद्रा में उसकी तरफ देखते रह गये ।

***

यहां सामने आया --- ठकरियाल का असली रूप ! दिव्या झूम उठी । देवांश हैरान । उन्होंने पूछा --- क्या तुम राजदान के लेटर में लिखे को भूल जाओगे ? ठकरियाल का जवाब था --- उसके मुझे केवल पांच लाख रुपये मिले हैं। इस रकम में जितना काम हो सकता था उतना उसके लिए कर चुका हूं। अब मेरे सामने ढाई करोड़ कमाने का स्वर्णिम मौका है । कैसे गंवा सकता हूं इसे ? दिव्या तो मारे खुशी के मानो पागल हो गई। वह ठकरियाल के साथ मिशन पर आगे काम करने के लिए तैयार थी परन्तु देवांश का विचार ऐसा नहीं था । बोला --- 'दिव्या, मुझे लगता है --- ठीक यही होगा कि हम सबकुछ कुबूल करके जेल चले जायें | जाने क्यों मुझे लग रहा है --- अगर हम ठकरियाल के कहने में आये तो बुरी तरह उस झमेले में फंस जायेंगे जिसे फंसाने का जाल राजदान अपने मरने से पहले बुन गया है ।' दिव्या ने उसकी एक नहीं सुनी । बल्कि बेवकूफ कहा उसे । बोली --- 'बेवजह डर रहे हो तुम ! राजदान का जाल ठकरियाल के पलटते ही तार-तार हो चुका है। जिसे राजदान मर्डर केस की इन्वेस्टीगेशन करनी है जब वही हमारा पार्टनर वन गया है तो काहे का डर रह गया ?" देवांश ने समझाने की काफी कोशिश की कि वह बीमे की रकम के लालच में न पड़े मगर दिव्या नहीं मानी I अन्ततः देवांश को भी उनका साथ देने पर मजबूर होना पड़ा।' ? 

अब सारी बागडोर ठकरियाल के हाथ में थी । उसने राजदान के लेटरपैड के कागज पर बबलू के नाम एक ऐसा लेटर लिखा जिसे बबलू राजदान का लिखा समझे । इस लेटर को रात के उसी वक्त बबलू के कमरे में फैंककर आने का काम देवांश को सौंपा गया । दिल में वह सब न करना चाहकर भी देवांश को करना पड़ा।

बबलू के फ्लैट की खुली खिड़की तक देवांश रेनवाटर पाइप के जरिए पहुंचा। लेटर उसके कमरे में फेंका। उस वक्त वह पाइप पर वापस उतर रहा था जब बिल्डिंग के टैरेस पर मौजूद किसी शख्स ने उसका फोटो खींच लिया। देवांश की हालत खराब हो गई। जब इस बारे में विना में जाकर टर्कारयाल और दिव्या को बताया तो दिमाग तो उनके भी घूम गये मगर टर्कारयाल अपने आगे बढ़े कदम वापस खींचने को तैयार नहीं था।

राजदान के नाम से लिखे लैटर के जरिए उसने उसी वक्त वाथरूम के जरिए बवल की रात वैडरूम में बुलाया था। बबलू आया । ठकरियाल ने ऐसा इन्तजाम कर रखा था कि बबलू की नजर कमरे में पड़ी राजदान की लाश पर न पड़ सके और वह ठकरियाल को ही राजदान समझे। सव कुछ वैसा ही हुआ जैसा ठकरियाल चाहता था । अर्थात बबलू उसे राजदान समझता रहा । उसने बबलू को जेवर दिये। उस रिवाल्वर पर बबलू की अंगुलियों के निशान लिये जिससे राजदान का अंत हुआ था। इतना ही नहीं, कमरे में बबलू के फुट स्टैप्स भी ले लिये उसने । यह कहकर बबलू को वापस उसी रास्ते से निकाल दिया जिससे आया था कि जेवर को वह संभालकर रखे ।

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सुबह ! लाश के इर्द-गिर्द ठकरियाल, दिव्या और देवांश की नहीं -- समरपाल, भागवंती, काका, बन्दूकसिंह, भट्टाचार्य और एस. एस. पी. रणबीर राणा भी मौजूद था। शुरू में राणा को लगा --- मामला आत्महत्या का है परन्तु जल्द ही ठकरियाल द्वारा बिछाये गये सुबूतों ने अपना रंग दिखाना शुरू किया । राणा को विश्वास होता चला गया राजदान का खून बबलू ने इस तरीके से किया था कि वह आत्महत्या नजर आये।

सभी लोग बबलू के फ्लैट पर पहुंचे। बबलू के पिता सत्यप्रकाश और माँ के तो यह सुनकर होश ही उड़ गये कि वे उनके बबलू को राजदान की हत्या और वहां से लूटे गये जेवर के इल्जाम में गिरफ्तार करने आये हैं मगर, उनकी किसी भी हालत से पुलिस की कार्यवाई तो बहरहाल रुकनी नहीं थी । ठकरियाल ने सुबूत ही ऐसे बिछाये थे कि बबलू को हत्यारा और लुटेरा साबित होना ही था। उस वक्त उसके मां-बाप की आंखें हैरत से फट पड़ीं जब दिव्या के जेवर बबलू के स्कूल बैग से मिले। ठकरियाल की सोचों के मुताबिक उस वक्त बबलू को चीखना चाहिए था, चिल्लाना चाहिए था | कहना चाहिए था कि किस तरह राजदान ने उसे लेटर लिखकर रात में बुलाया था, क्या कहकर ये जेवर उसको दिये थे। परन्तु उस वक्त मारे आश्चर्य के खुद ठकरियाल की ही हालत देखने लायक हो गई जब बबलू ने ऐसा कुछ नहीं कहा। और उस क्षण तो ठकरियाल को अपना दिमाग ‘भक्क' से उड़ गया महसूस हुआ जब अपने गुलाबी होठों पर बहुत ही जहरीली और रहस्यमय मुस्कान लिए बबलू ने बहुत आहिस्ता से उसके कान में कहा---'इंस्पेक्टर अंकल, मुझे चाचू का हत्यारा सिद्ध करके आप अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल कर चुके हैं।'