सुनील की अपेक्षा से बहुत पहले प्रभूदयाल घटनास्थल पर पहुंच गया । हत्या की सूचना सुनील ने दी थी, यह बात उसे पुलिस हैडक्वार्टर पर मालूम हो चुकी थी, इस‍लिये सुनील को वहां देखकर वह चौंका नहीं।
प्रभूदयाल ने खा जाने वाली निगाहों से सुनील की ओर देखा और दांत पीसता हुआ बोला - “पता नहीं मेरी जिन्दगी में कब ऐसा मौका आयेगा जब मैं किसी हत्या के केस की तफ्तीश करने घटना स्थल पहुंचूंगा और तुम वहां पहले से ही मौजूद नहीं होओगे ।”
“जिन्दगी बहुत लम्बी है ।” - सुनील जम्हाई लेता हुआ बोला - “जिन्दगी में हर तरह के मौके आते हैं ।”
“कौन मर गया है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तुम्हारा इस सिलसिले से क्या वास्ता है ?”
“पहले बाकी लोगों से मिल लो, फिर वास्ता भी मालूम हो जायेगा ।”
“बाकी लोग कौन ?”
मधु और रोशन लाल कार में बैठे थे । सुनील के आवाज देने पर वे बाहर निकल आये ।
“यह मधु है ।” - सुनील परिचय कराता हुआ बोला - “ईश्वर लाल की भतीजी ।”
“ईश्वर लाल कौन ?” - प्रभूदयाल बोला और फिर एकाएक जैसे उसे याद आ गया - “वही तो नहीं जो सन साठ में राजनगर से बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से गायब हो गया था और जिसका आज तक पता नहीं लगा है ?”
“करैक्ट ।”
“और मेरा नाम रोशनलाल है । मैं ईश्वर लाल का छोटा भाई हूं ।” - रोशन लाल अपना परिचय स्वयं देता हुआ बोला ।
“सुनील आप लोगों के साथ है ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“जी हां ।” - रोशन लाल बोला - “बल्कि यूं कहिये कि हम सुनील के साथ हैं ।”
“आप लोग यहां कैसे पहुंचे ?”
किसी ने उत्तर नहीं दिया । सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे ।
“मैंने एक सवाल पूछा है ?”
“किससे ?” - सुनील बोला ।
“किसी से भी ।” - प्रभूदयाल क्रोधित स्वर में बोला ।
“आज मधु के चाचा ईश्वर लाल ने...”
“तुम चुप रहो ।” - प्रभूदयाल गर्जा ।
“क्यों चुप रहूं ? क्या तुम अपने सवाल का जवाब नहीं चाहते ?”
“तुम चुप रहो ।”
“अच्छी बात है ।”
“मिस मधु, आप बताइये क्या किस्सा है ?”
“आज मेरे चाचा ईश्वर लाल ने मुझे फोन किया था ।” - मधु ने कहना आरम्भ किया ।
“यानी कि वे जीवित हैं ?” - प्रभूदयाल हैरानी से बोला ।
“जी हां ।”
“आपने फोन पर अपने चाचा की आवाज पहचान ली थी ?”
“नहीं, लेकिन मुझे विश्वास है कि वे ईश्वर लाल चाचा जी ही थे ।”
“आपके विचार का आधार ?”
“उन्होंने मुझे मेरे बचपन की कई ऐसी बातें बतायी थीं जो किसी बाहरी आदमी को मालूम नहीं हो सकती थी ।”
“क्या बातें ?”
मधु ने बता दिया ।
“फोन पर क्या कहा उन्होंने ?”
“उन्होंने मुझे कहा कि मैं सुनील के साथ रात को नौ बजे रौनक बाजार में स्थित ब्लिस होटल में पहुंचूं और वहां हीरा नन्द से मिलूं ।”
“सुनील के साथ क्यों ?”
“मुझे नहीं मालूम । चाचा जी ने कहा था कि मैं सुनील को साथ लेकर आऊं ।”
प्रभूदयाल ने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा । सुनील वार्तालाप से अपार निर्लिप्तता प्रकट करता हुआ लकी स्ट्राइक का एक सिगरेट सुलगा रहा था ।
“फिर ?”
“मैं, रोशन लाल चाचा जी और सुनील निर्धारित समय पर ब्लिस होटल पहुंचे, लेकिन वहां न हमें बड़े चाचा ही मिले और न हीरा नन्द नाम का वह आदमी मिला । लेकिन हमारी वहां मौजूदगी में ही होटल के रिसैप्शनिस्ट को टेलीफोन पर किसी ने हीरा नन्द का सन्देश दिया कि हम लोग यहां कारपोरेशन की पानी की टंकी के पास पहुंचे । हम होटल से सीधे यहां आये तो हमें यहां कार में पड़ी लाश मिली ।”
“आप तीनों यहां इकट्ठे पहुंचे थे ?”
“जी हां ।”
“किसी ने” - प्रभूदयाल संदिग्ध नेत्रों से सुनील की ओर देखता हुआ बोला - “लाश के साथ या लाश वाली कार के साथ कोई छेड़छाड़ तो नहीं की थी ?”
“नहीं ।”
“क्या सुनील किसी समय लाश के पास अकेला रहा था ?”
“नहीं । उल्टे मैं और चाचा जी यहां अकेले रहे थे । सुनील तो तत्काल आप लोगों को फोन करने चला गया था ।”
प्रभूदयाल सुनील की ओर घूमा - “तुमने लाश को छुआ था ?”
“इन्स्पेक्टर साहब !” - सुनील ढेर सारा धुंआ उगलता हुआ बोला - “शायद तुम भूल गये हो कि तुमने मुझे चुप रहने के लिये कहा हुआ है।”
“मैं अब तुम्हें बोलने के लिये कह रहा हूं ।” - प्रभूदयाल फिर क्रोधित हो उठा ।
“मैं आदमी न हुआ रेडियो हो गया । जब चाहा आफ कर दिया, जब चाहा आन कर दिया ।”
“देखो मिस्टर, मेरे साथ फालतू बकवास करने की जरूरत नहीं है । मैं एक पुलिस आफिसर की हैसियत से एक कत्ल के मामले की तफतीश के दौरान में तुमसे सवाल पूछ रहा हूं, तुम जवाब देते हो या नहीं ?”
धमकी स्पष्ट थी । पुलिस अधिकारी होने के नाते वर्तमान स्थिति में प्रभूदयाल सुनील के लिये अथारिटी था ।
“नहीं ।” - सुनील धीरे से बोला - “मैंने लाश को नहीं छुआ था ।”
“फिर तुम्हें यह कैसे मालूम हो गया कि वह आदमी मर चुका था ?”
“क्योंकि मैंने अपनी जिन्दगी किसी ऐसे आदमी के बारे में नहीं सुना, जिसकी कनपटी में गोली से आर-पार छेद हो गया हो और वह फिर भी जिन्दा बच गया हो ।”
“लाश किसकी है ?”
“हम में से किसी को नहीं मालूम लेकिन लाश ईश्वर लाल की नहीं है।”
“हीरा नन्द की है ?”
“हो सकता है । हममें से कोई हीरा नन्द को नहीं पहचानता है ।”
प्रभूदयाल चुप हो गया । फिर वह उन लोगों को रोशन लाल की कार के समीप खड़ा छोड़कर लाश वाली कार की ओर बढ गया । पुलिस का फोटोग्राफर, फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट और कुछ सिपाही उसके साथ थे ।
सुनील रोशन लाल की कार से दूरी बड़ी अपनी मोटर साईकिल की गद्दी पर आ बैठा । उसने एक नयी सिगरेट सुलगा ली ।
मधु रोशन लाल के पास खड़ी थी । रोशन लाल अपनी कार के हुड से टेक लगाये खड़ा पुलिस की गतिविधि देख रहा था ।
सुनील ने जोर से गला साफ किया ।
मधु ने उसकी ओर देखा ।
सुनील ने उसे अपने पास आने का संकेत किया ।
मधु ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया, लेकिन वह अपने स्थान से नहीं हिली । कुछ क्षण बाद वह रोशन लाल के समीप से हटी और लापरवाही से चलती हुई सुनील की ओर बढी ।
रोशन लाल का ध्यान मधु की ओर नहीं था ।
मधु सुनील के पास आ खड़ी हुई ।
“प्रभूदयाल बहुत योग्य पुलिस इन्स्पेक्टर है ।” - सुनील धीमे स्वर से बोला - “वह तुमसे बहुत सवाल पूछेगा, लेकिन उसके सवालों का जवाब देते समय एक बात का ख्याल रखना कि केवल उतना ही बताना जितना तुमसे पूछा जाये । अपनी ओर से कोई जानकारी वालन्टियर करने की कोशिश मत करना ।”
“क्या मतलब ?” - मधु उलझनपूर्ण स्वर से बोली ।
“मतलब यह कि उसके सामने गैरजरूरी और उसके सवालों से असम्बन्धित बातों का जिक्र मत करना, जैसे प्रभूदयाल अगर खुद न पूछे, तो तुम्हें उसको यह बताने की जरूरत नहीं है कि जब हम ब्लिस होटल में हीरा नन्द से मिलने गये थे तो तुम्हारा चाचा रोशन लाल हम लोगों के साथ होटल के भीतर नहीं गया था ।”
मधु कुछ क्षण चुप रही और फिर रहस्यपूर्ण स्वर में बोली - “क्या इस बात का कोई महत्व है ?”
“किस बात का ?”
“कि रोशन लाल चाचा जी हमारे साथ होटल में नहीं गये थे ।”
सुनील कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर उसने सहमति ढंग से सिर हिला दिया ।
“क्यों ?”
“मुझे लगता है कि तुम्हारा चाचा रोशनलाल हम लोगों के वहां जाने से पहले ही वहां हो आया था, लेकिन वह यह नहीं चाहता था कि हमें इस बात की खबर लगे । इसलिए वह हमारे साथ होटल में जाने को बात टाल गया था, क्योंकि उसे भय था कि रिसैप्शनिस्ट उसे पहचान लेगा और यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि वह तुम से छिपा कर पहले ही हीरा नन्द से या उसके माध्यम से ईश्वर लाल से मिलने की कोशिश कर चुका था ।”
“यह बात हो सकती है ।” - मधु बोली - “चाचा जी मेरे साथ तुम्हारे पास आने की बात भी टाल गये थे । शायद वे ब्लिस होटल अकेले जाने के लिये ही मुझसे अलग हो गये थे । और उन्होंने मुझे अकेले तुम्हारे पास भेजा...”
मधु एकाएक चुप हो गयी ।
प्रभूदयाल लम्बे डग भरता हुआ उस ओर आ रहा था ।
“अभी सुनील तुमसे क्या कह रहा था ?” - वह उसके समीप आकर मधु से सम्बोधित हुआ ।
सुनील घबरा गया, लेकिन अने चेहरे से उसने अपनी घबराहट प्रकट नहीं होने दी । वह लापरवाही से मोटर साईकिल पर बैठा टांगे हिलाता सिगरेट के केश लगाता रहा ।
प्रभूदयाल सवाल मधु से कर रहा था, लेकिन झुकी निगाहें सुनील पर टिकी हुई थी ताकि अगर सुनील मधु को कोई संकेत करने की कोशिश करे तो वह उसे पकड़ ले ।
“कोई खास बात नहीं कह रहा था ।” - मधु सरल स्वर से बोली ।
“मुझे मामूली बात ही बताओ ।”
मधु चुप रही ।
“तुम्हें सुनील मुझे कोई विशेष बात न बताने के लिये कह रहा था न?”
“प्रभू” - सुनील बोला - “मैंने ऐसी कोई बात...”
“यू शट अप” - प्रभूदयाल गला फाड़कर चिल्लाया - “स्पीक ओनली वैन यू आर स्पोकन टु ।”
सुनील के होंठ भिंच गये ।
“अभी सुनील तुम्हें क्या पढाने की कोशिश कर रहा ?” - प्रभूदयाल ने अपना सवाल दोहराया ।
“इन्स्पेक्टर साहब” - मधु मीठे स्वर से बोली - “सुनील आप की तारीफ कर रहा था । वह कह रहा था कि आप बहुत योग्य पुलिस अधिकारी हैं और मैं आपके हर सवाल का जवाब पूरी जिम्मेदारी और ईमानदारी से दूं ।”
प्रभूदयाल ने अविश्वास पूर्ण नेत्रों से सुनील की ओर देखा । सुनील की जान में जान आ गई ।
“और क्या कहा था उसने ?”
“और....”
“हां.. हां बोलो ।”
“सुनील कल मुझे पिक्चर के लिये इनवाइट कर रहा है ।” - मधु शरमा कर बोली ।
“इस लड़के के चक्कर में मत पड़ना” - प्रभूदयाल बोला - “तुम इसे नहीं जानती लेकिन मैं इसे बरसों से जानता हूं । यह खतरनाक आदमी है ।”
“शर्म करो...” - सुनील शिकायत भरे स्वर में बोला - “मैं तो मधु के सामने तुम्हारी पीठ पीछे भी तारीफ कर रहा था और तुम मेरे सामने ही मेरी तौहीन कर रहे हो ।”
“किसी भली लड़की को तुम्हारे जैसे लड़के के सम्पर्क में आने के खतरे से आगाह करना मैं अपना फर्ज समझता हूं ।”
“राजनगर में मधु के अलावा और भी सैकड़ों भली लड़कियां हैं । मेरे बारे में शहर में इश्तिहार क्यों नहीं लगवा दो ।”
“वह भी दिन आयेगा । अगर अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे तो इश्तिहारी मुजरिम तो तुम बनोगे ही ।”
“अब मैंने क्या किया है ?”
“कुछ तो किया होगा । आदत से मजबूर हो । फर्क सिर्फ यह है कि अभी तुम्हारी किसी गड़बड़ की मुझे खबर नहीं लगी है ।”
“यहां खड़े-खड़े तो लगेगी भी नहीं ।”
प्रभूदयाल ने एक कहर भरी निगाह सुनील पर डाली और फिर जमीन को रौंदता हुआ वापिस घटना स्थान की ओर बढ गया ।
“थैंक यू !” - सुनील मधु से बोला ।
“इस इन्स्पेक्टर से तो तुम्हारी अच्छी खासी दोस्ती मालूम होती है ।” - मधु बोली ।
“मैडम” - सुनील बोला - “इसके चीखने चिल्लाने पर मत जाना । प्रभूदयाल एक बहुत ही अच्छा आदमी है और एक बहुत ही कर्त्तव्यपराण पुलिस इन्स्पेक्टर है । ऐसे जिम्मेदार पुलिस अधिकारी हमारे पुलिस विभाग में इने गिने ही होंगे । मेरे से इसकी कोई निजी दुश्मनी नहीं है लेकिन यह मुझे क्रिमिनल माइन्डिड आदमी समझता है। यह समझता है कि अगर कोई खूबसूरत लड़की आठ आठ आंसू बहाती हुई मेरे गले में बाहें डाल दे और मुझसे कहे कि मैं उसकी खातिर फलां आदमी का कत्ल कर दूं तो मैं फौरन उस आदमी का कत्ल कर आऊंगा ।”
“जबकि वास्तव में ऐसा है नहीं !”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर धीरे से बोला - “आई कैन नाट सी ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस - मैं किसी हसीना को मुसीबत में नहीं देख सकता ।”
“यानी कि इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल का सन्देह सच हो सकता है ?”
“बहुत लड़कियों की वजह से बहुत बखेड़े मेरे गले पड़े हैं । मैंने बहुत लोगों के फटे में खामखाह टांग अड़ाई है ।”
“बहुत गोल मोल जवाब दे रहे हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुम तो गोपियों में कान्हा हुए ।”
सुनील मुस्कराया ।
“बहुत लड़कियां दोस्त हैं तुम्हारी ?”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और बोला - “दोस्त कोई भी नहीं है जानकार बहुत हैं । अहसानमन्द तो बहुत ही ज्यादा है । मैं जब भी किसी नई लड़की से मिलता हूं, एक बात कील की तरह उसके दिमाग में ठोक देता हूं ।”
“क्या ?”
“दो दिन की ये महफिल साथी, हमसे हंस बोल के काट ।
हम भी राह लगेंगे अपनी, तेरा हमारा नाता क्या !”
“कहीं मुझे भी तो तुम यही बात नहीं समझा रहे हो ?”
“मैडम” - सुनील हंसता हुआ बोला - “आप के नाम के अलावा अभी आपके बारे में जानता ही क्या हूं ?”
“जान जाओगे” - मधु धीरे से बोली - “बहुत कुछ जान जाओगे । दिल से दिल को राह होती है ।”
“मेरा दिल तो नेशनल हाइवे बना हुआ है । वहां से तो बहुत ट्रैफिक गुजारता है ।”
“क्या मतलब ?”
“कुछ नहीं । और वह प्रभूदयाल से पिक्चर वाली बात आप ने गम्भीरता से कही थी ?”
“मैंने तो सिर्फ कही थी । हकीकत में तुम मुझे इनवाइट कर थोड़े रहे हो ।”
“मैं...”
“वैसे अगर तुम मुझे इनवाइट करोगे तो मैं इन्स्पेक्टर से कह दूंगी कि तुम मुझे रिश्वत देने की कोशिश कर रहे हो ।”
“आप सब लोग यहां आइये ।” - प्रभूदयाल की ऊंची आवाज उनके कानों में पड़ी ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दी और मोटर साईकिल की सीट से उतर आया ।
सुनील, मधु और रोशन लाल लाश वाली कार के समीप खड़े प्रभूदयाल के पास पहुंचे ।
प्रभूदयाल के हाथ में सफेद रुमाल की एक पोटली सी थी उसने रूमाल को खोल कर कार के हुड पर फैला दिया । उसके संकेत पर एक सिपाही ने टार्च का तीव्र प्रकाश खुले रुमाल पर डाला । रुमाल पर एक घड़ी, फाउन्टेन पैन और एक पर्स पड़ा था ।
“आप में से कोई इन चीजों में किसी को पहचानता है ?” - प्रभूदयाल ने प्रश्न किया ।
“क्या मैं जरा पास आ सकता हूं” - किसी और के बोलने से पहले सुनील बोल पड़ा - “यहां से मैं इन चीजों को ठीक से देख नहीं पा रहा हूं।”
“पास जाओ लेकिन किसी चीज को हाथ मत लगाना । हमें अभी इन चीजों पर से फिंगर प्रिंट्स उठाने हैं ।”
सुनील आगे बढा । वह रुमाल पर रखी चीजों पर झुक गया और बड़ी बारीकी से उनका निरीक्षण करने लगा । मुख्यत: उस की निगाहें रुमाल और घड़ी को टटोल रही थीं । घड़ी बहुत कीमती थी । उस पर एक छोटा सा अतिरिक्त डायल था । जो अक्सर आम घड़ियों में नहीं देखा जाता । सुनील उस डायल के उपयोग को पहचानता था । वह डायल यह याद रखने के काम आता था कि घड़ी को चाबी कब दी जानी थी । उस डायल के अनुसार शाम के चार बजे चाबी दी गई थी । घड़ी चल रही थी और उस समय साढे दस बजा रही थी ।
सुनील ने एक आखिरी निगाह रुमाल के कोने में लगे लान्ड्री के निशान पर डाली और फिर वहां से हट गया । लाण्ड्री का निशान उसके मस्तिष्क में लिख गया ।
“मैं इन में से किसी चीज को नहीं पहचानता !” - सुनील निर्णयात्मक स्वर में बोला ।
“यह घड़ी तो मेरे भाई ईश्वर लाल की मालूम होती है” - एकाएक रोशन लाल बोला - “इन्स्पेक्टर साहब उसे उलट कर देखिये, इसके पीछे ईश्वर लाल का नाम खुदा हुआ होगा ।”
प्रभूदयाल ने बिना घड़ी को हाथ लगाये रुमाल का कोना पकड़ कर और उसे घुमाकर घड़ी को उलट दिया । घड़ी के पृष्ठ भाग में अंग्रेजी में ईश्वर लाल नाम खुदा हुआ था ।
“इस पर ईश्वर लाल लिखा है ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“मैं दावा तो नहीं करता लेकिन यह पेन भी ईश्वर लाल की ही मालूम होती है ।” - रोशन लाल बोला ।
“वैरी गुड ।” - प्रभूदयाल सन्तुष्ट स्वर में बोला - “और पर्स ?”
“पर्स के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता ।”
“और आप ?” - प्रभूदयाल ने मधु से प्रश्न किया ।
“मैं कोई चीज नहीं पहचानती ।” - मधु बोली ।
“ये चीजें आपको कहां मिली ?” - रोशन लाल ने पूछा ।
“ये चीजें इस रुमाल में बंधी अगली सीट पर लाश के समीप पड़ी थीं।” - प्रभूदयाल ने उत्तर दिया ।”
“और लाश किसकी है ?”
प्रभूदयाल ने बड़े अनिश्च‍ित ढंग से सुनील की ओर देखा ।
“छुपाने से क्या फायदा ?” - सुनील बोला - “मैं अखबार में काम करता हूं । ज्यादा से ज्यादा एक घण्टे में मुझे वैसे भी मालूम हो जायेगा कि मरने वाला कौन है ।”
“मरने वाला हीरा नन्द है ।” - प्रभूदयाल बोला - “इसकी जेब में इसका ड्राइविंग लाइसेंस मिला है । जिस पर इसकी तस्वीर लगी हुई है और लाइसेंस पर स्थायी पते के स्थान पर ब्लिस होटल का पता लिखा हुआ है । जिससे जाहिर होता है कि हीरा नन्द ब्ल‍िस होटल में काफी अरसे से रह रहा था । हीरा नन्द की मौत एक 38 कैलिबर की रिवाल्वर से हुई है । गोली कार के बाहर से चलाई गई थी और हालात से जाहिर होता है कि हत्यारा ड्राइविंग सीट की ओर कार के एकदम साथ लगकर खड़ा हुआ था ।”
“हीरा नन्द हमें ईश्वर लाल के पास ले जाने वाला था ।” - सुनील धीरे से बोला - “हमें फौरन ब्लिस होटल में हीरा नन्द के कमरे की तलाशी लेनी चाहिये । शायद वहां कोई ऐसा सूत्र मिल जाये जिससे मालूम हो सके कि ईश्वर लाल अब कहां है ।”
“हमसे क्या मतलब है तुम्हारा ?” - प्रभूदयाल तीव्र स्वर से बोला ।
“मेरा मतलब है हम सब । तुम, रोशन लाल, मधु, मैं ।”
“मेरी वहां जाने की तो कोई जरूरत है नहीं ।” - रोशन लाल जल्दी से बोला - “मुझे इन्स्पेक्टर की काबलियत पर पूरा भरोसा है । मुझे पूरा विश्वास है कि ये अपने ढंग से काम करके इस रहस्य के जरूर सुलझा लेंगे । मैं किसी मामले में अड़ंगा नहीं बनना चाहता । वैसे जब भी मेरी जरूरत होगी मैं हाजिर हूं ।”
“मेरे ख्याल से हमें फौरन ब्लिस होटल चलना चाहिये ।” - सुनील जोर से बोला ।
“तुम अपना ख्याल अपने पास रखो । मुझे तुम्हें ब्लिस होटल अपने साथ ले जाने की जरूरत नहीं दिखाई देती और न ही खुद मुझे इस वक्त ब्लिस होटल जाना जरूरी लग रहा है । और एक बात नोट कर लो। तुम अगर ब्लिस होटल के पास भी फटके तो मैं समझूंगा कि तुम तफ्तीश में फिर कोई अड़चन डालने की कोशिश कर रहे हो । मैं अभी इसी वक्त ब्लिस होटल पर एक सिपाही तैनात कर रहा हूं जो खासतौर पर तुम्हारी निगरानी करेगा । इसलिये अगर खैरियत चाहते हो तो ब्ल‍िस होटल में हीरानन्द के कमरे में घुसने की कोशिश मत करना ।”
“लेकिन...”
“और अब आप लोग जाइये यहां से ।”
“आल राइट !” - सुनील मरे स्वर से बोला । उसने मधु और रोशन लाल को संकेत किया ।
तीनों वापिस लौट चले ।
“जल्दी से यहां से निकल चलो ।” - रास्ते में सुनील धीरे से बोला - “कहीं प्रभूदयाल अपना इरादा न बदल दे ।”
“क्या मतलब ?” - रोशन लाल चौंककर बोला ।
“मैं प्रभूदयाल की आदत जानता हूं । जिस काम के लिये मैं कहूंगा, वह कभी नहीं करेगा । मैंने ब्लिस होटल जाने की जिद की तो उसने मुझे वहां फटकने से भी मना कर दिया । वैसे शायद वो हम लोगों को जबरदस्ती ब्लिस होटल में हीरानन्द के कमरे में लेकर जाता ।”
“तो फिर क्या होता ?” - रोशन लाल बोला - “यहां से फौरन निकल चलना क्यों जरूरी है ?”
“एक ऐसी घटना हो गई है जिसका पुलिस इनवैस्टिगेशन के इस हंगामे में मैं जिक्र नहीं कर सका ।”
“क्या हो गया है ?” - मधु बोली ।
“तुम्हारी चाची विद्या को किसी ने जहर दे दिया है । वह इस वक्त विक्टोरिया हस्पताल में है ।”
“हे भगवान !” - मधु के मुंह से निकला ।
“उसकी हालत कैसी है ?” - रोशन लाल बोला ।
“मालूम नहीं । हस्पताल चल कर पता लगाते हैं ।”
मधु और रोशन लाल कार में सवार हो गये । सुनील अपनी मोटर साईकिल पर आ बैठा ।
वे विक्टोरिया हस्पताल की ओर उड़ चले ।
***
विद्या विक्टोरिया हस्पताल की दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे में शांत पड़ी थी ।
“चाची !” - मधु कमरे में घुसते ही घबराये स्वर से बोली - “कैसी हो?”
“यह कैसे हो गया विद्या !” - रोशन लाल चिन्ता का प्रदर्शन करता हुआ बोला ।
“तुम लोगों को मेरे बारे में कैसे पता लगा ?” - विद्या ने अधिकारपूर्ण स्वर में पूछा ।
“भागी राम ने बताया था ।”
“और यह लड़का कौन है ?” - विद्या का संकेत मधु और रोशन लाल के पीछे खड़े सुनील की ओर था ।
“इसका नाम सुनील है ।” - रोशन लाल बोला ।
“मैंने नाम नहीं पूछा । यह है कौन और यहां क्या कर रहा है ? क्या यह मधु का कोई...”
“नहीं-नहीं चाची ।” - मधु जल्दी से बोली - “तुम गलत समझ रही हो।”
“मुझे पहेलियां मत सुनाओ । मेरी तबियत ठीक नहीं है । जल्दी बोलो और साफ-साफ बोलो ।”
“विद्या तुम्हारी तबियत...” - रोशन लाल बोला ।
“तबियत की बात बाद में ।”
रोशन लाल ने मधु की ओर देखा ओर फिर धीरे से बोला - “विद्या, एक बहुत असाधारण घटना हो गई है ।”
“भूमिका छोड़ो ।”
“ईश्वर लाल जिन्दा है ।”
“इसमें असाधारण क्या है ? मुझे शुरु से ही मालूम है कि वे जिन्दा है और किसी छिनाल के साथ ऐश कर रहे हैं । लेकिन तुम्हें उनका जिक्र करना कैसे सूझा ?”
“आज उन्होंने मधु को फोन किया था ?”
विद्या ने मधु की ओर देखा ।
“तुमने मुझे तो बताया नहीं ?” - वह तिरस्कारपूर्ण स्वर से बोली ।
“बड़े चाचा जी ने मना किया था ।” - मधु यूं बोली जैसे कोई अपराध स्वीकार कर रही हो ।
“उन्हें मेरे से डर लगता है न । हिम्मत कैसे करेंगे वे मेरे सामने आने की । जिस कमीनी लड़की के साथ भागे थे उसने धक्का दे दिया होगा न जो अब घर की याद आ गई । लेकिन एक बार मेरे सामने आयें तो सही । मैंने भी उनकी छटी का दूध न याद दिला दिया तो मेरा नाम विद्या नहीं ।”
“चाची !” - मधु दहशत भरे स्वर में बोली ।
“अब हैं कहां वे ?”
उसी समय एक नर्स कमरे में प्रविष्ट हुई ।
“देखिये ।” - नर्स बोली - “मरीज की हालत खराब है । आप लोग उसे ज्यादा उत्तेजित मत कीजिये और जो बात करनी है शांति से जल्दी से जल्दी कीजिये ।”
“मैं एकदम ठीक हूं ।” - विद्या चिल्लकर बोली ।
“लेकिन...”
“कहा न मैं ठीक हूं । तुम निकलो यहां से ।”
“मैं डाक्टर को बुलाती हूं ।” - नर्स बोली और जल्दी से कमरे से निकल गई ।
“अब कहां है मेरे पतिदेव ?” - विद्या ने व्यंगपूर्ण स्वर से अपना प्रश्न दोहराया ।
“हमारी उनसे मुलाकात नहीं हुई ।” - रोशन लाल बोला ।
“क्यों ?”
“उन्होंने मधु को इस सुनील के साथ रात नौ बजे रौनक बाजार में स्थित ब्लिस होटल में आने के लिये कहा था जहां हमें हीरा नन्द नाम के एक आदमी से मिलना था । हीरा नन्द हमें ईश्वर लाल के पास ले जाने वाला था । लेकिन हीरा नन्द हमें होटल में नहीं मिला । उसके निर्देश पर हम लोग नेपियन हिल पर स्थित कारपोरेशन की पानी की टंकी के पास पहुंचे जहां हमें एक कार में हीरा नन्द की लाश मिली । किसी ने उसे शूट कर दिया था ।”
“किसने ?”
“पता नहीं ।”
“और उनका कुछ पता लगा ?”
“नहीं ।”
“तुम लोगों को इस बारे में मुझे फौरन बताना चाहिये था ।”
“हमने सोचा था कि एक बार पहले हम ईश्वर लाल से मिल लें और फिर उसके बाद हम तुम्हें उसके बारे में बतायेंगे क्योंकि मुझे सन्देह था कि वह कोई बहरूपिया न हो जो हमें किसी प्रकार का धोखा देने की कोशिश कर रहा हो ।”
“वे जरूर वहीं होंगे ।” - विद्या विश्वासपूर्ण स्वर से बोली - “उन्हें जो बुढौती में इश्क में सवार हुआ था । उसके वास्ते मैं ऐसे ही किसी मजाक की अपेक्षा कर रही थी । मुझे पता था जब वह लड़की उन्हें धक्का दे देगी तो वे यूं ही चोरों की तरह घर में दोबारा अपना अस्तित्व जमाने की कोशिश करेंगे । लेकिन वे एक बार मेरे सामने आ तो लें । न उन्होंने यह कहा कि वे जहां थे वहीं अच्छे थे तो मेरा नाम बदल देना ।”
“आपको जहर किसने दिया ?” - सुनील ने शांति से पूछा ।
विद्या ने एक बार घूरकर सुनील की ओर देखा फिर कठोर स्वर से बोली - “यह तुम्हें किसने कहा है कि मुझे किसी ने जहर दिया है ?”
“आपके नौकर भागीराम ने ।”
“उस गधे की अक्ल खराब हो गई है । मुझे किसी ने जहर नहीं दिया। मैं अपनी गलती से गलत गोलियां खा गई थी ।”
“गलती से जहर की गोलियां कैसे खा गयीं आप ? आप घर में जहर की गोलियां रखती हैं ?”
“तुमसे मतलब ?”
“यही सवाल आपसे पुलिस भी पूछ सकती है ।”
“पुलिस का इससे क्या वास्ता है ?”
“वास्ता तो हो ही जायेगा । ऐसे मामलों की रिपोर्ट हस्पताल वालों को फौरन पुलिस को करनी पड़ती है ।”
“लेकिन वह एक दुर्घटना थी ।”
“तफतीश फिर भी होगी ।”
विद्या चिन्त‍ित दिखाई देने लगी ।
“क्या आपने यह सोचा है कि आपके घर में जहर देने की जो दो घटनायें हुई हैं, उनसे आपके पति की वापसी का कोई सम्बन्ध हो सकता है ।”
“दो घटनायें ! दो घटनायें कौन सी ?”
“मैंने सुना है कि पहले किसी ने मधु की बिल्ली को जहर दिया था और फिर आप....”
“बिल्ली वाली बात ठीक होगी, लेकिन मुझे किसी ने जहर नहीं दिया। मैं केवल गलती से जहर की गोलियां खा गयी थी ।”
“मैं वही सवाल आपसे फिर पूछता हूं । आप गलती से जहर की गोलियां कैसे खा गयीं ? आप घर में जहर की गोलियां रखती हैं ?”
“और मैं वही जवाब तुम्हें फिर दे रही हूं - तुम्हारा इसमें कोई मतलब नहीं है ।”
उसी क्षण किसी ने द्वारा खटखटाया ।
“वह डाक्टर होगा ।” - रोशन लाल बोला - “अब डाक्टर हमें यहां से जबरदस्ती निकालेगा ।”
द्वार खुला ।
जिस आदमी ने कमरे में कदम रखा, वह पुलिस इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल था ।
“मैडम ।” - सुनील विद्या से बोला - “यह पुलिस इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल है । जिस सवाल का जवाब आप मुझे नहीं देना चाहती थीं, वही सवाल आपसे यह पूछेगा ।”
प्रभूदयाल सुनील के सामने आ खड़ा हुआ ।
“सुनिये ।” - वह दांत भींच कर बोला - “तुम्हारे नेपियन हिल से रवाना होते ही मुझे सूझ गया था कि तुम मुझे घिस्सा देने में कामयाब हो गये हो ।”
“कैसा घिस्सा ?” - सुनील ने भोलेपन से पूछा ।
“नादान मत बनो । तुम ब्लिस होटल कतई नहीं जाना चाहते थे । तुम वास्तव में यहां आना चाहते थे । तुम मेरा ध्यान बटाने के लिये ही बार-बार ब्लिस होटल जाने पर जोर दे रहे थे । यह तो मैं फौरन ही समझ गया था कि तुम कहीं और जाना चाहते थे, लेकिन जब मैं मिसेज विद्या के निवास स्थान पर ईश्वर लाल के बारे में तफतीश के लिये पहुंचा और मुझे यह मालूम हुआ कि वे विक्टोरिया हस्पताल में पड़ी हैं और यह कि नौकरी भागी राम ने फोन पर किसी को मिसेज विद्या की हालत के बारे में बताया था तो मुझे समझते देर नहीं लगी कि तुम कहां गये हो ।”
“अगर तुम मेरी नीयत पर किसी तरह का शक कर रहे हो तो गलती कर रहे हो । मैं केवल औपचारिकता के नाते मधु और रोशन लाल के साथ यहां आ गया हूं ।”
“मुझे तुम्हारी औपचारिकता का अच्छा तर्जुबा है । यह आपसे क्या पूछ रहा था, मैडम ?”
“मैं ही बता देता हूं ।” - सुनील बोला - “ये फरमा रही हैं कि ये गलती से जहर की गोलियां खा गयी हैं । मैं इनसे यह पूछ रहा था कि ऐसी गलती कैसे हुयी और ये घर में जहर की गोलियां रखती क्यों हैं ? ये कहती हैं कि मेरा इस बात से कोई मतलब नहीं । मैंने इन्हें यह समझाया था कि यह सवाल पुलिस भी इनसे जरूर पूछेगी । अब तुम्हीं बताओ प्रभूदयाल क्या तुम इनसे यह सवाल नहीं पूछोगे ?”
“अब तुम थोड़ी देर के लिये अपना थोबड़ा बन्द रक्खो ।”
सुनील फौरन चुप हो गया । उसे भय था कि कहीं प्रभूदयाल उसे कमरे से न निकाल दे लेकिन सौभाग्यवश या तो प्रभूदयाल को यह ख्याल नहीं आया था और या वह खुद वहां सुनील की मौजूदगी चाहता था ।
“मैडम !” - प्रभूदयाल ने मीठे स्वर से पूछा - “आप गलती से जहर की गोलियां कैसे खा गयी थीं ?”
“मैं रात को नींद की गोलियां खाकर सोती हूं । आज गलती से मैं दूसरी गोलियां खा गयी ।”
“दूसरी गोलियां कौन सी ?”
विद्या ने उत्तर नहीं दिया ।
“दूसरी गोलियां कौन सी, मैडम !” - प्रभूदयाल ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“स्ट्राइचिन की ।” - विद्या धीरे से बोली ।
“आप घर में स्ट्राइचिन की गोलियां रखती हैं ?” - प्रभूदयाल हैरानी से बोला ।
“एमरजेन्सी के लिये ।” - विद्या बोली - “मुझे दिल की बीमारी है । स्ट्राइचिन की गोलियां हार्ट स्टिमुलैंट होती हैं । अपने डाक्टर की राय पर मैंने उन्हें एमरजेन्सी के लिये रखा हुआ है ।”
“आप यह कहना चाहती हैं कि आप नींद की गोलियां खाने वाली थी, लेकिन गलती से स्ट्राइचिन की गोलियां खा गयीं जो कि जहर होता है।”
“हां ! मेरी दवाईयां बाथरूम की एक कैबिनेट में रखी होती हैं । यह केवल एक संयोग था कि मैं गलत शीशी में से गोलियां निकाल बैठी ।”
“आपने कितनी गोलियां खाई थीं ?”
“दो ।”
“स्ट्राइचिन की शीशी में अभी और भी गोलियां थीं ?”
“हां । कई थीं ।”
“और आपने वह शीशी वापिस कैबिनेट में रख दी थी ?”
“हां ।”
“कहां ?”
“वहीं जहां मेरी नींद की गोलियां की शीशी पड़ी थी ।”
“मैडम !” - प्रभूदयाल गहरी सांस लेकर बोला - “आप झूठ बोल रही हैं ।”
“क्या ?” - विद्या चिल्लाई ।
“आप झूठ बोल रही हैं ।” - प्रभूदयाल एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “किसी ने आपको जहर दिया है । आपके किसी अजीज ने ही आपको जानबूझ कर जहर देकर मार डालने की कोशिश की है, लेकिन सौभाग्यवश आप बच गयी हैं और अब आप उस अपने अजीज को बचाने की खातिर हमें यह झूठी कहानी सुना रही हैं कि आप गलती से नींद की गोलियां खाने की जगह स्ट्राइचिन की गोलियां खा गयी थीं । मैडम, आपकी कोठी से होकर आ रहा हूं । मैंने आपके बाथरूम की कैबिनेट की तलाशी ली है । मुझे उसमें न नींद की गोलियां मिली हैं और न स्ट्राइचिन की ।”
“मेरी गैर हाजिरी में तुम मेरे घर में घुसे ?” - विद्या क्रोधित स्वर में बोली - “और तुमने मेरे कमरे की तलाशी ली ?”
“सिर्फ आपके दवाइयों के कैबिनेट की ।”
“क्या अधिकार था तुम्हें ?”
“आप मेरे अधिकार को बाद में चैलेंज कर लीजियेगा जब आप अच्छी हो जायें । और आपकी जानकारी के लिये जहर की तलाश में या आपको और या उससे पहले आपकी भतीजी की बिल्ली को जहर देने के केस से सम्बन्धित किसी सूत्र की तलाश में मैं आपकी पूरी कोठी की तलाशी करवाने वाला हूं ।”
“मैं तुम्हें ऐसी कोई बेहूदी हरकत नहीं करने दूंगी । मैं अभी घर वापिस जा रही हूं । मैं भी ईश्वर लाल की बीवी हूं । नगर के बहुत बड़े-बड़े लोग मुझे जानते हैं । मैं तुम्हारी वर्दी उतरवा दूंगी ।”
उसी क्षण सफेद गाउन पहने एक आदमी कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
“मैं डाक्टर हूं ।” - वह बोला - “यह क्या हंगामा है ? पेशेन्ट की हालत इतनी सीरियस है और आप लोग उसे डिस्टर्ब कर रहे हैं ।”
“मैं इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल हूं ।” - प्रभूदयाल बोला ।
“आप जो भी हैं ।” - डाक्टर नाराजगी भरे स्वर में बोला - “किसी भी नाते आपको इतने सीरियस पेशेन्ट को डिस्टर्ब करने का हक नहीं पहुंचता है ।”
“ये तो यहां से जाना चाहती हैं ।”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । ये यहां से जा पाने की स्थिति में नहीं हैं । जहर की वजह से तो इनकी हालत खराब है ही और फिर ये हार्ट की पेशेन्ट भी हैं । ये किसी भी क्षण कौलैप्स कर सकती है । ऐसी स्थिति में मैं इन्हें यहां से निकलने की भी इजाजत नहीं दे सकता ।”
“वैरी गुड ।” - प्रभूदयाल सन्तुष्ट स्वर में बोला ।
“अब आप लोग फौरन निकलिये यहां से ।” - डाक्टर बोला ।
सब लोग बाहर की ओर चल दिये ।
“मैं आपसे फिर मिलूंगा मैडम ।” - प्रभूदयाल नम्र स्वर से बोला - “तब तक आप फैसला कर लीजियेगा कि आप सच बोलना चाहती हैं या नहीं ।”
“भाड़ में जाओ ।” - विद्या जलकर बोली ।
प्रभूदयाल कमरे से बाहर निकल गया ।
***
“किसी को क्रास क्वेश्चन करने के मामले में प्रभूदयाल बहुत जिद्दी आदमी है ।” - हस्पताल से बाहर आकर सुनील बोला - “इस सिलसिले में वह आदमी के रुतबे की भी परवाह नहीं करता और ऐसे आदमी के पीछे तो वह हाथ धोकर पड़ जाता है जो नगर के बड़े लोगों से अपने सम्बन्धों का जिक्र करके उसे डराने की कोशिश करें ।”
“तुम्हारा इशारा विद्या की ओर है ?” - रोशनलाल बोला ।
“हां । फिलहाल डाक्टर ने उसे विद्या के कमरे से बाहर निकाल दिया है, लेकिन यह निश्चित समझो कि विद्या घर तभी पहुंचेगी जब वह प्रभूदयाल के तमाम सवालों का जवाब दे लेगी । देख लेना प्रभूदयाल विद्या के हस्पताल के कमरे पर पहरा बिठा देगा । जब भी डाक्टर यह कहेगा कि वह ठीक हो गयी है और अब पुलिस के सवालों का जवाब दे सकने की स्थिति में है, प्रभूदयाल या तो उसे अस्पताल में ही धर लेगा और फिर पुलिस हैडक्वार्टर ले जाकर विद्या से पूछताछ करेगा ।”
“बड़ा भयंकर पुलिस वाला है यह ।” - रोशन लाल चिन्तित स्वर से बोला ।
“बहुत ज्यादा । जिस बात के पीछे पड़ जाता है, उसकी पाताल तक जड़ खोद देता है ।”
“अब तुम्हारा क्या इरादा है ?”
“अगर तुम्हारा इशारा इस केस की ओर है तो मेरा सम्बन्ध तो इससे तब तक के लिये खत्म ही समझो जब तक ईश्वर लाल किसी से दोबारा सम्पर्क स्थापित नहीं करता । वैसे एक अखबार का रिपोर्टर होने के नाते हीरा नन्द की हत्या में तो मेरा दिलचस्पी है ही । और कम से कम एक ऐसी बात है जिसकी वजह से मेरी दिलचस्पी आप में भी है ।”
“क्या ?”
“आप ब्लिस होटल में मेरे और मधु के साथ नहीं गये थे ?” - सुनील बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है । मैं पहले ही कह चुका हूं कि मेरी दिलचस्पी अपने भाई में थी हीरा नन्द में नहीं ।”
“लेकिन मेरे ख्याल से आपके होटल में कदम न रखने की कोई और वजह थी ।”
“और क्या वजह थी ?”
“आप होटल के रिसेप्शनिस्ट के सामने नहीं पड़ना चाहते थे । आप पहले ही वहां हो आये थे ।”
“नानसेंस ।” - रोशन लाल मुंह बिगाड़कर बोला ।
“मधु के चाचा जी ।” - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला - “आप हर मामले में इतनी आसानी से झूठ नहीं बोल सकते । प्रभूदयाल के कान में अगर इस बात की भनक भी पड़ गई तो वह किसी बहाने से आपको या आपकी तस्वीर को ब्लिस होटल में ले जायेगा और ले जाकर वहां से रिसेप्शनिस्ट को दिखायेगा । अगर रिसेप्शनिस्ट ने वह तस्वीर पहचान ली और यह ध्यान दिया कि आप वहां हीरा नन्द से मिलने के लिये पहले भी तशरीफ ला चुके हैं तो आपके दाने बिक जायेंगे और हो सकता है आप हीरा नन्द की हत्या के मामले में सस्पैक्ट नम्बर वन बन जायें ।”
“और प्रभूदयाल के कान में भनक कैसे पड़ेगी ?”
“मैं रिपोर्टर हूं । प्रभूदयाल पुलिस वाला है । मगर मैं उसके पेशे से सम्बन्धित कभी उसका कोई भला करूंगा तो हो सकता है कभी वह मेरे पेशे से सम्बन्धित कोई मेरा भला करे ।”
“मधु !” - रोशन लाल एकाएक निर्णयात्मक स्वर में बोला - “तुम घर जाओ । मुझे सुनील से कुछ जरूरी बातें करनी हैं । चाहो तो मेरी गाड़ी ले जाओ ।”
“नहीं, मैं टैक्सी ले लूंगी ।”
“ओके । सॉरी बेबी ।”
“नैवर माइन्ड, चाचा जी ।”
मधु चली गई ।
“आओ सामने रेस्टोरेन्ट में बैठते हैं ।” - रोशन लाल सुनील की बांह थामता हुआ बोला ।
हस्पताल के सामने ही रेस्टोरेन्ट था । दोनों उसमें जा बैठे । रात के उस समय रेस्टोरेन्ट लगभग खाली पड़ा था ।
रोशनलाल ने चाय का आर्डर दिया । चाय आने तक वह एक शब्द नहीं बोला । एकाएक वह बहुत चिन्तित दिखाई देने लगा था ।
“तुम तो मेरे बारे में बहुत कुछ जानते मालूम होते हो ।” - अन्त में रोशन लाल धीरे से बोला ।
“जानता कुछ नहीं हूं ।” - सुनील बोला - “लेकिन आपको व्यवहार से, मधु से सुनी कुछ बातों से और दस साल पहले आपके भाई के गायब होने के साय हुई कुछ बातों से मैंने बड़े जोरदार नतीजे निकाले हैं ।”
“क्या ?”
“आपकी हर हरकत यह जाहिर करती है कि आप ईश्वर लाल से सबसे पहले मिलना चाहते थे ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि दस जनवरी उन्नीस सौ साठ की रात को, गायब होने से पहले ईश्वर लाल अपनी कोठी में स्थित अपने आफिस में एक अजनबी से बात करता सुना गया था । वह आदमी ईश्वर लाल से धन की मांग कर रहा था । आपकी भाभी विद्या के कानों में उस अजनबी की आवाज पड़ी थी और उसने सन्देह व्यक्त किया था कि वह आदमी आप थे लेकिन जब आपसे इस बारे में पूछा गया तो आपने साफ इन्कार कर दिया था कि आप तो उस रात कोठी के पास फटके भी नहीं थे । आज अगर आपके भाई साहब लौट आये और आकर यह कहे कि उस रात को जो आदमी उनसे धन की मांग कर रहा था वह आप ही थे तो आपकी क्या स्थिति होगी और ईश्वर लाल का आपको छोड़ कर मधु से टेलीफोन पर सम्पर्क स्थापित करना भी इसी बात की ओर संकेत करता है कि आप दोनों के सम्बन्ध सन साठ में ईश्वर लाल के गायब होने के समय अच्छे नहीं थे । विद्या तो कर्कशा औरत है । उसको ईश्वर लाल का फोन न करना समझ में आता है लेकिन उसका आपको फोन न करना यही जाहिर करता है कि आपका भाई आपको मैत्रीपूर्ण निगाहों से नहीं देखता । वर्तमान स्थिति में क्या यह उचित नहीं लगता कि आप ईश्वर लाल से पहले मिलने की कोशिश करें ताकि आप उससे प्रार्थना कर सकें कि वह आपकी पोल न खोले कि सन साठ की रात को उससे धन की मांग करने वाले आदमी आप ही थे ।”
रोशन लाल चुप रहा ।
“मैंने हीरा नन्द की लाश को अच्छी तरह देखा था ।” - सुनील फिर बोला - “लाश की हालत देखकर मालूम होता था कि उसे मरे लगभग चार पांच घन्टे हो चुके थे । अब अगर प्रभूदयाल को यह मालूम होता है कि हीरा नन्द की मौत के आसपास ही आप ब्लिस होटल में उसे तलाश करते फिर रहे थे और हीना नन्द की आपके और आपके भाई के बीच की कड़ी था तो क्या प्रभूदयाल आप पर ही हीरा नन्द की हत्या का सन्देह नहीं करेगा । इस सन्दर्भ में वह तो यहां तक की सोचेगा कि शायद आपने ईश्वर लाल की भी हत्या कर दी है, लेकिन उसकी लाश गायब कर दी है ।”
रोशन लाल चाय पीना भूल गया ।
“मैं तो अनजाने में ही बहुत बखेड़े में फंस गया ।” - रोशन लाल बड़बड़ाया ।
सुनील चुप रहा ।
“सुनील, बाई गाड, हीरा नन्द की हत्या से मेरा कोई वास्ता नहीं है।”
“जरूर नहीं होगा, लेकिन आप रात को नो बजे हमारे साथ ब्लिस होटल जाने से पहले भी वहां गये थे ?”
रोशन लाल ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“किस्सा क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“शुरू से बताता हूं ।” - रोशन लाल बोला ।
“यह और भी अच्छा है ।”
“सुनील, सन साठ की उस रात को ईश्वर लाल के कमरे में जिस आदमी की आवाज सुनी गई थी, वह मैं ही था ।”
“लेकिन बाद में पूछे जाने पर आपने इस बात से साफ इन्कार कर दिया था ।”
“हां । स्थिति ही ऐसी थी । मेरा और ईश्वर लाल का ढेर सारा वार्तालाप सुन लिया गया था और लोगों की जानकारी में आ गया था । हर किसी को मालूम हो चुका था कि उस रात को कोई ईश्वर लाल से धन की मांग कर रहा था । उन दिनों स्थिति ऐसी थी कि अगर यह बात प्रकट हो जाती कि ईश्वर लाल से रुपया मांगने वाला मैं था और ईश्वर लाल मुझे रुपया देने के लिये तैयार नहीं हो रहा था तो मेरी ऐसी की तैसी हो जाती । मैं बरबाद हो जाता और शायद मुझे जेल भी जाना पड़ जाता ।
“ऐसा क्या हो गया था ?”
“उन दिनों जो बिजनेस मैं करता था, उसमें ऐसी स्थिति आ गई थी कि मैंने अपने धन्धे के एक जानकार श्री प्रकाश नाम के एक आदमी से बहुत बड़ी क्रेडिट ले ली थी । श्रीप्रकाश ने उधार मुझे यह सोचकर दिया था कि मेरी पीठ पर मेरा लाखों का मालिक भाई ईश्वर लाल था, लेकिन किसी ने उसके कान में यह बात डाल दी कि मेरे बिजनेस से मेरे भाई का कोई वास्ता नहीं था । श्रीप्रकाश यह बात मालूम होते ही एकदम मेरे खिलाफ हो गया और मुझसे फौरन अपना रुपया वापिस मांगने लगा । उस समय बिजनेस की हालत इतनी नाजुक थी कि अगर लोगों को इस बात की खबर लग जाती कि मेरे पास रुपया नहीं तो श्रीप्रकाश जैसे कई लोग अपना रुपया मुझसे वापिस मांगने लगते । नतीजा यह होता कि मैं तबाह हो जाता लेकिन अगर मैं श्रीप्रकाश का रुपया लौटा देता और उसे यह अनुभव हो जाता कि रुपये पैसे के मामले में मेरी पीठ पर मेरा भाई था तो सारा मामला सुधर जाता । श्रीप्रकाश को देने के लिये मुझे चालीस हजार रुपये की फौरन जरूरत थी और उसी रकम की मांग उस रात को मैंने अपने भाई की कोठी पर उससे की थी ।”
“लेकिन सुना तो यह गया था कि र्ईश्वर लाल ने आपकी मदद करने से साफ इन्कार कर दिया था । उस रात ईश्वर लाल यह कहता सुना गया था कि अगर वह हर किसी को यूं रुपया उधार या दान देने लगा तो जल्दी ही सड़क पर मूंगफली बेचता दिखाई देगा ।”
“ईश्वर लाल ने यह तो कहा था, लेकिन बाद में मेरे हाथ-पांव जोड़ने पर उसने मुझे चालीस हजार रुपया उधार देना स्वीकार कर लिया था । ईश्वर लाल का मुझे यूं डांट फटकार कर रुपया देना स्वीकार करने की भी यह वजह थी कि मैं इस बात से इन्कार करता रहा कि उस रात को ईश्वर लाल से बात करने वाला आदमी मैं नहीं था । अगर मेरे बिजनेस से सम्बन्धित लोगों को यह मालूम हो जाता कि पहले ईश्वर लाल ने मुझे रुपया देने से साफ इन्कार कर दिया था तो मेरी साख मिट्टी में मिल जाती ।”
“खैर फिर ?”
“वादा करो कि जो बात मैं तुम्हें अब बताने जा रहा हूं, उसका जिक्र तुम हरगिज किसी से नहीं करोगे ?”
“ऐसा वादा मैं एडवांस कैसे कर सकता हूं ? पहले बात तो मालूम हो।”
“मैं तुम पर बहुत ज्यादा भरोसा कर रहा हूं ।”
“कोई बुरा काम नहीं कर रहे हो । मैं कोई ब्लैकमेलर या पुलिस नहीं हूं ।”
“आल राइट ।” - रोशन लाल गहरी सांस लेकर बोला - “बताता हूं।”
थोड़ी देर की खामोशी के बाद वह कहने लगा - “मेरे भाई ने मेरा हाथ-पांव जोड़ने पर मुझे चालीस हजार रुपये देने का वादा कर लिया । उसने मुझे कहा कि वह चालीस हजार रुपये की चैक सीधा श्रीप्रकाश को डाक से भेज देगा, लेकिन मेरे साथ ट्रेजेडी यह हुई कि श्रीप्रकाश के नाम चालीस हजार रुपये का चैक काटने से पहले ही मेरा भाई एकाएक कहीं गायब हो गया ।”
“फिर ?”
“इस विश्वास पर कि मेरा भाई चालीस हजार का चैक काट कर श्रीप्रकाश को भेज चुका होगा, अगली सुबह मैंने श्रीप्रकास को फोन कर दिया कि ईश्वर लाल का चालीस हजार का चैक डाक से उसके पास आ रहा है । उसके बाद मुझे मालूम हुआ कि ईश्वर लाल गायब हो गया और चैक वह काट कर नहीं गया है । मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गयी। उस मुसीबत की घड़ी में मेरे को जो मुनासिब सूझा मैंने कर दिया ।”
“आपने क्या किया ?”
“मैंने ईश्वर लाल की चैक बुक में से एक चैक फाड़ कर उस पर श्रीवास्तव के नाम चालीस हजार रुपये की रकम भरी, चैक पर ईश्वर लाल के जाली दस्तखत किये और चैक डाक से श्रीप्रकाश को भेज दिया।”
“और किसी को इस बात की खबर नहीं हुई ?”
“नहीं हुई । विशेष रूप से इसलिये क्योंकि उस रात को गायब होने से पहले ईश्वर लाल ने अपने एकाउन्टेन्ट को फोन करके बता दिया था कि वह श्री प्रकाश नाम के एक आदमी के नाम चालीस हजार रुपये का चैक काट रहा है, लेकिन यह रुपया एकाउन्टेन्ट ने श्री प्रकाश को नहीं, उधार की शक्ल में मेरे नाम करना है ।”
“ईश्वर लाल के गायब हो जाने की वजह से श्रीप्रकाश को उस चैक पर कोई शक नहीं हुआ ?”
“शक तो हुआ, लेकिन उसका शक जल्दी ही दूर हो गया । चैक मिलते ही उसने ईश्वर लाल के एकाउन्टेन्ट को फोन करके चैक के बारे में पूछा । एकाउन्टेन्ट ने उसे बताया कि उस चैक के बारे में उसे जानकारी थी । ईश्वर लाल ने खुद फोन पर उसे बताया था । श्रीप्रकाश ने चैक अपने एकाउन्ट में जमा करवा दिया और चैक का भुगतान भी हो गया । कहीं किसी को इंच मात्र भी संदेह नहीं हुआ कि उस चैक कर किये हुये दस्तखत जाली थे ।”
“फिर ?”
“फिर बात आई गई हो गयी । बिजनेस में मेरी स्थिति सुधर गयी । जो आदमी यह बात सिद्ध कर सकता था कि चालीस हजार के चैक के मामले में मैंने जालसाजी की थी, वह गायब हो गया । मेरे गुनाह पर पर्दा पड़ गया । धीरे-धीरे मैं यह बात भूल ही गया कि मैंने कोई गुनाह किया था । लेकिन आज जब मधु ने मुझे यह बताया कि ईश्वर लाल राजनगर वापिस लौट आया है और उसने मधु को फोन किया है तो मेरे होश उड़ गये । अब तुम खुद ही समझ सकते हो कि उसके किसी से मिलने से पहले ईश्वर लाल से मेरा मिलना क्यों जरूरी था ।”
“फिर आपने क्या किया ?”
“मैंने मधु को तुम्हारी ओर रवाना किया और खुद मैंने ब्लिस होटल फोन किया । मुझे मालूम हुआ कि हीरा नन्द थोड़ी देर पहले किसी आदमी के साथ होटल से चला गया है । वह आदमी ईश्वर लाल हो सकता था । इसीलिये मैंने होटल में जाकर इन्तजाम करने का फैसला कर लिया । मैं सीधा ब्लिस होटल जा पहुंचा ।”
“हीरा नन्द लौटा ?”
“नहीं लौटा । और लौटता भी कैसे ? यह बात तो मुझे अब मालूम है न कि तब तक उसका कत्ल हो चुका होगा । पौने नौ बजे तक उस होटल की लाबी में रिसैप्शन डैस्क के सामन बैठा मैं हीरा नन्द का इन्तजार करता रहा, लेकिन हीरा नन्द वापिस नहीं लौटा । तब तक तुम्हारे और मधु के वहां पहुंचने का वक्त हो गया था, इसलिये मैं होटल से निकल कर अपनी कार में आ बैठा । अब तुम्हीं सोचो तुम्हारे आने पर मैं वापिस तुम्हारे साथ होटल में कैसे जा सकता था । रिसैप्शनिस्ट मुझे फौरन पहचान लेता कि मैं वही आदमी था जो घंटों होटल की लाबी में बैठा हीरा नन्द का इन्तजार करता रहा था । वह तुम लोगों से इस बात का जिक्र कर सकता था ।”
“अगर हीरा नन्द आपको आपके भाई से मिलवा देता तो आप उसे क्या कहते ?”
“यह भी कोई बताने की बात है ? यह बात अखबारों तक में छप चुकी थी कि ईश्वर लाल के गायब होने के बाद चालीस हजार रुपये का एक चैक उसके एकाउन्ट से कैश करवाया गया था । मैं ईश्वर लाल के हाथ-पांव जोड़ कर उसे इस बात के लिये तैयार करना चाहता था कि वह किसी को यह न बताये कि वह उसका साइन किया हुआ नहीं था।”
“आपके ख्याल से ईश्वर लाल मान जाता ?”
“क्यों नहीं मानता ? मुझे पूरी उम्मीद थी, वह जरूर मान जाता । आखिर ईश्वर लाल ने वह चैक काटना स्वीकार किया था । यह तो महज एक इत्तफाक था कि गायब होने से पहले वह भूल गया था कि उसने मेरा खातिर मुझसे श्रीप्रकाश को चालीस हजार रुपये का चैक भेजने का वादा किया था । मुझे माफ कर देगा ।”
“लेकिन ईश्वर लाल से आपकी मुलाकात हुई नहीं ?”
“नहीं हुई । ईश्वर लाल से क्या हीरा नन्द से भी मेरी मुलाकात नहीं हुई, जो कि वास्तव में मुझे ईश्वर लाल के पास पहुंचा सकता था ।”
“मधु के चाचा जी ।” - सुनील गहरी सांस लेकर बोला - “जो बातें आपने मुझे बतायी हैं, अगर इनकी जानकारी इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की हो गयी तो आपका भगवान ही मालिक है ।”
“जैसे मुझे मालूम नहीं है ।”
सुनील ने अपनी चाय की प्याली एक ओर सरकाई और अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ ।
रोशन लाल भी जल्दी से उठा । उसने एक रुपये का नोट अपनी चाय की प्याली के नीचे रख दिया और सुनील के साथ हो लिया ।
“तुम्हारी राय में अब मुझे क्या करना चाहिये ?” - रेस्टोरेन्ट से बाहर आकर वह सुनील से बोला ।
“फिलहाल तो आप तेल देखिये और तेल की धार देखिये ।” - सुनील बोला और बेहद चिन्तित रोशन लाल को वहीं खड़ा छोड़कर अपनी मोटर साइकिल की ओर बढ गया ।
***
मधु कोठी के अपने कमरे में अकेली थी और सोने की तैयारी कर रही थी ।
उसी क्षण उसके कानों में एक आवाज पड़ी, जिससे उसके कान खड़े हो गये ।
विद्या चाची के कमरे में से छड़ी की ठक-ठक की और उसके लंगड़े पांव के जमीन पर पड़ने से उत्पन्न होने वाली धप्प-धप्प की आवाज आ रही थी ।
मधु के नेत्र फैल गये । वह एकदम उठकर बैठ गई ।
मधु ने खिड़की से बाहर की ओर देखा ।
बाहर लान में उसे गोरखा चौकीदार दिखाई दिया जो रात को ही ड्यूटी पर आता था ।
मधु खिड़की के समीप पहुंची और धीरे से बोली - “गोरखा !”
गोरखा खिड़की के समीप आ गया और बोला - “हां बीबी जी ।”
मधु ने उसे धीरे बोलने का संकेत किया और बोली - “तुम विद्या चाची के कमरे से आती आवाज सुन रहे हो ?”
“जी हां ।” - गोरखा बोला - “बड़ी बीबी जी अपने कमरे में चल फिर रही हैं ।”
“लेकिन वे तो अस्पताल में हैं ।”
“जी !” - गोरखा हैरानी से बोला । शायद उसे विद्या के अस्पताल पहुंच जाने की खबर नहीं हुई थी - “क्या हुआ उन्हें ?”
“वे बीमार हो गयी थीं ।” - मधु जल्दी से बोली ।
“तो वे अस्पताल से वापिस लौट आयी होंगी । यह आवाज तो साफ बड़ी बीबी जी के चलने फिरने की है ।”
“असम्भव । विद्या चाची इतनी जल्दी अस्पताल से वापिस नहीं लौट सकती ।”
“तो फिर...”
“उनके कमरे में जरूर कोई और है ।”
गोरखा एक क्षण चुप रहा और फिर निश्चयात्मक स्वर में बोला - “मैं देखता हूं ।”
“इधर से ही भीतर आ जाओ ।” - मधु बोली ।
गोरखा खिड़की के रास्ते मधु के कमरे में प्रविष्ट हुआ । दबे पांव वह बाहर गलियारे की ओर बढा । उसका एक हाथ अपनी कमर में बंधी खुखरी पर कसा हुआ था । मधु भी उसके पीछे चल पड़ी ।
विद्या के कमरे में ठक-ठक की आवाज आनी एकाएक बन्द हो गयी थी । वातावरण में ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा छाया हुआ था । विद्या के कमरे का द्वार बन्द था ।
गोरखा द्वार के सामने जा खड़ा हुआ ।
भीतर से कोई आवाज नहीं आ रही थी ।
गोरखा कुछ क्षण हिचकिचाया, फिर उसने पांव की ठोकर मारकर भड़ाक से कमरे का दरवाजा खोल दिया ।
कमरे में एकदम अन्धेरा था । द्वार के एकदम सामने की खुली खिड़की में से तेज हवा का झोंका आया । गोरखा द्वार के समीप दीवार पर बिजली का स्विच टटोलने लगा ।
उसी क्षण विद्या के पलंग के समीप से वातावरण में एक शोला सा लपका । साथ ही एक धांय की आवाज हुई । सनसनाती हुई कोई चीज गोरखे के सिर के ऊपर से गुजरी और द्वार की चौखट के ऊपरले भाग से टकरा गयी ।
मधु के मुंह से सिसकारी निकल गयी । उसे यह समझते देर नहीं लगी कि विद्या के कमरे में से किसी ने गोली चलाई थी ।
उसी क्षण दुबारा फायर हुआ । गोरखे के मुंह से एक भयंकर चीख निकली । रिवाल्वर की गोली की मार से उसका शरीर फिरकनी की तरह घूम गया । वह मधु से टकराया । उसका हाथ सहारे के लिये मधु के कंधे से लिपटा और फिर वह मधु को लिये-लिये कटे वृक्ष की तरह द्वार की चौखट पर ढेर हो गया ।
मधु ने एक साये को विद्या के पलंग के समीप से उछलकर खिड़की की चौखट पर चढते और फिर बाहर कूदते देखा ।
पलक झपकते ही वातावरण में मौत का सन्नाटा छा गया ।
***
आधी रात के बाद सुनील क्लब में पहुंचा ।
रमाकांत रमी के टेबल पर जमा हुआ था ।
“आओ ।” - सुनील को देखते ही वह हर्षित स्वर से बोला - “आओ, माई डकी-डकी डार्लिंग सोनू बॉय ।”
“जीत रहे हो ?” - सुनील एक कुर्सी घसीट कर उसकी बगल में बैठता हुआ बोला ।
“जीत रहा है तभी तो मुंह से तरह-तरह की आवाजें निकाल रहा है।” - रमाकांत से अगली कुर्सी पर बैठा एक खिलाड़ी हंसता हुआ बोला ।
“कल हारा भी तो था ।” - रमाकांत आंखें निकाल कर बोला ।
“तो किसी पर अहसान किया था ?” - वही खिलाड़ी बोला ।
उसी समय रमाकांत ने पत्ता उठाया और शो कर दी । उसके अलावा पांच खिलाड़ी और खेल रहे थे, उसे सबसे अच्छे प्वायन्ट मिले ।
रमाकांत की बांछें खिली हुई थीं ।
“क्या भाव चल रहा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“छोटा गेम है ।” - रमाकांत बोला - “चार आने । आठ आने ।”
“यह छोटा गेम है ?”
“और नहीं तो क्या ? आदमी सारी रात खेले और सारी रात तकदीर दगा देती रहे, तब कहीं जाकर मुश्किल से चार पांच सौ रुपये हारेगा ।”
“अक्सर चार आने, आठ आने ही चलता है ?”
“मर्दों में यही चलता है, लेकिन जब सेठ लोगों की मेमें आती हैं न तो एक रुपया प्वायन्ट चलता है । जैसे यह सामने मोटू बैठा है न । चालीस हजार रुपये महीना कमाता है, लेकिन रमी दस परसेन्ट से ज्यादा कभी खेलते इसका दम निकलता है, लेकिन इसकी विलायती मेम आती है तो कहती है, दो रुपये प्वायन्ट खेलो । आज भी साले को निहायत शर्मिन्दा करके चार आने आठ आने खिलाया है ।”
“ओह, शटअप !” - मोटू के नाम से पुकार जाने वाला आदमी नाराजगी भरे स्वर में बोला ।
“साला हार रहा है ।” - रमाकांत जोर से अट्टहास करता हुआ बोला - “इनकम टैक्स आफीसर को दस हजार रुपये रिश्वत दे देगा, लेकिन यहां सौ रुपये हार जायेगा तो एक हफ्ता मातम मनायेगा और पन्द्रह दिन क्लब आने से कतराता रहेगा ।”
“तुम्हारे भी बांटें ?” - पत्ते बांटने वाले ने सुनील से पूछा ।
“नहीं ।” - सुनील बोला - “और यह रमाकांत का भी आखरी गेम है।”
“ओह, नो !” - रमाकांत तीव्र विरोधपूर्ण स्वर से बोला ।
“ओह, यस ।” - सुनील बोला और उसने पूरी शक्ति से रमाकांत की पसलियों में उंगली गुबो दी ।
“मैं आज जीत रहा हूं ।”
“ज्यादा खेलोगे तो हारने लगोगे ।”
“देखूंगा ।”
“नहीं देखोगे ।”
“सुनील ।” - रमाकांत आहत स्वर से बोला - “तुम पिछले जन्म में मेरी बीवी तो नहीं थे । ए डैम्ड नैगिंग वाइफ ।”
“हो सकता है हो सकता है ।” - सुनील बोला ।
“हो सकता है । हो सकता है ।” - रमाकांत मुंह चिढाता हुआ बोला - “ब्लडी । शिट ।”
सुनील चुप रहा ।
पत्ते बंटे ।
रमाकांत ने अपने पत्ते देखे और फिर मुंह बिगाड़ कर उन्हें मेज के बीच फेंक दिया । उसने एक नोट पत्तों पर उछाला और बोला - “मैं अभी थोड़ी देर में आता हूं । मेरे पिता जी आ गये हैं । जरा इनकी सुन आऊं ।”
“कोई इसका इन्तजार न करे ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “मेरा यह बूढा बेटा थोड़ी देर में नहीं लौटेगा ।”
रमाकांत सुनील के साथ चल दिया । वे दोनों रिसेप्शन के पीछे बने रमाकांत के आफिस में पहुंच गये । रमाकांत महोगनी की विशाल मेज के पीछे पड़ी गद्देदार कुर्सी पर ढेर हो गया । सुनील उसके पास मेज के सिरे पर टांगे नीचे लटकाकर बैठ गया । रमाकांत ने अपना चार मीनार का पैकेट निकाला । सुनील ने भी अपनी प्रिय सिगरेट लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला । दोनों ने एक-एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“क्या मुसीबत है ?” - रमाकांत चार मीनार के कड़वे धुयें में लिपटे शब्द उगलता हुआ बोला ।
सिगरेट समाप्त होने तक सुनील ने रमाकांत को शुरू से आखिर तक सारी घटना कह सुनाई । सुनील ने जब तक अपने पहले सिगरेट का आखिरी कश लगाकर उसे ऐश-ट्रे में झोंका था, तब तक रमाकांत तीसरा सिगरेट सुलगा चुका था और सारा कमरा चार मीनार के कड़वे धुयें से महक चुका था ।
“फिर छोकरी का चक्कर !” - सारी बात सुन चुकने के बाद रमाकांत मुंह बिगाड़ कर बोला - “अगेन ए डैमसेल इन डिस्ट्रेस एण्ड अगेन ए गैलेन्ट मिस्टर सुनील आल आउट फार हर हैल्प ।”
“अबे, इस बार छोकरी का चक्कर कहां है ?” - सुनील झल्ला कर बोला - “इस बार तो छोकरी के दस साल से लापता चाचा का चक्कर है।”
“एक ही बात है । ग्रैगरी पैक की कसम खाकर कहो कि तुम्हारी दिलचस्पी छोकरी में है या चाचा में ?”
“चाचा में ।”
“और चाचा में तुम्हारी दिलचस्पी तब भी इतनी ही होती अगर मधु नाम की फुलझड़ी के स्थान पर तुम्हारे पास उसकी वह लंगड़ी बुढिया खूसट चाची आती, जो इस वक्त अस्पताल में पड़ी है ?”
“बिल्कुल ।”
“क्यों दाई से पेट छुपाने की कोशिश कर रहे हो ?”
“अरे, मेरे बाप, मेरी छोकरी में कोई दिलचस्पी नहीं है, नहीं है, नहीं है । मेरी जान खाने के लिये पहले ही थोड़ी पलटन है जो मैं नई भर्ती करूं ?”
रमाकांत ने चौथा सिगरेट सुलगा लिया और बोला - “अब तुम मुझसे क्या चाहते हो ? क्या मैं यह पता लगाऊं कि वह छोकरी कितने नम्बर की ब्रेसियर पहनती है ?”
“उस बारे में तुम्हें तकलीफ करने की जरूरत नहीं है । वैसी जानकारी की जब मुझे जरूरत होगी, मैं खुद हासिल कर लूंगा, फिलहाल तुम वह कक्ष करो जो तुमसे अपेक्षित हैं ।”
“मुझसे क्या अपेक्षित है ?”
“सबसे पहले तो हीरा नन्द की अगली पिछली जिन्दगी के बखिये उधेड़ो । उसके बारे में जितनी ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल कर सकते हो करो ।”
“फिर ?”
“फिर ईश्वर लाल के घरबार से सम्बन्धित लोगों को टटोलो । विशेष रूप से यह जानने की कोशिश करो कि ईश्वर लाल के गायब होने के बाद से उन लोगों के जीवन में कोई ऐसी घटना घटी है जो सन्देहास्पद हो या जिसने लोगों का ध्यान उस ओर आकर्षित किया हो ।”
“और ?”
सुनील ने अपने जेब से एक कागज निकाला और उसे खोल कर रमाकांत के सामने रख दिया ।
“यह क्या है ?” - रमाकांत बोला ।
“मैंने तुम्हें बताया था कि कार में हीरा नन्द की लाश की बगल में एक सफेद रुमाल में बंधी एक पोटली सी मिली थी, जिसमें ईश्वर लाल की घड़ी, फाउन्टेन पैन वगैरह कुछ निजी सामान पाया गया था । यह उस सफेद रुमाल के कोने में लगे लान्ड्री के निशान की नकल है । तुमने लान्ड्री का पता लगाना है ।”
“चाहे वह हिन्दुस्तान के किसी कोने में हो ?” - रमाकांत व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“बकवास मत करो । तुम्हें वही करना है जो तुम्हारे बस का है । तुम सिर्फ राजनगर की ही लान्ड्रियां चैक कर लो तो गनीमत है ।”
“इससे क्या फायदा होगा ?”
“इससे हमें ईश्वर लाल को ढूंढने में सहायता मिल सकती है ।”
“और ?”
“मधु की बिल्ली को किसी ने जहर दिया था । उसी रात को विद्या भी जहर की वजह से अस्पताल पहुंच गई थी । जहर देने की इन दोनों घटनाओं में कोई सम्बन्ध हो सकता है । तुमने यह पता लगाना है कि क्या बिल्ली और विद्या को एक ही प्रकार का जहर दिया गया था ?”
“यह मैं कैसे पता लगा सकता हूं ? मेरे पास कोई जादुई...”
“आज तुम अक्ल से काम नहीं ले रहे हो । प्रभूदयाल भी निश्चय ही इसी लाइन पर काम कर रहा होगा । तुमने एक बार मुझे बताया था कि पुलिस हैडक्वार्टर में तुम्हरा कोई सोर्स है । प्रभूदयाल की तफतीश का नतीजा तुम उससे जान सकते हो ।”
“कभी कोई बात भूल भी जाया करो यार ।”
“जैसे मैं यह भूल जाऊं कि तुम मेरे दोस्त और मददगार हो ?”
रमाकांत फौरन चुप हो गया और सिगरेट के कश लगाने लगा ।
उसी क्षण मेज पर रखे टेलीफोन की घन्टी बज उठी । रमाकांत ने हाथ बढाकर रिसीवर उठा लिया । वह कुछ क्षण दूसरी ओर से आती आवाज सुनता रहा । बीच में एक बार उसने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा और फिर बोला - “ही इज राइट हेयर । होल्ड दि लाइन ।”
“कोई छोकरी बोल रही है ।” - रमाकांत सुनील की ओर रिसीवर बढाता हुआ बोला - “तुम्हें पूछ रही है ।”
“मुझे ?” - सुनील हैरानी से बोला - “इस वक्त ?”
“हां । तुमने मेल प्रास्टीच्यूशन का धंधा तो शुरू नहीं कर दिया है ?”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया । उसने रमाकांत के हाथ से रिसीवर लेकर कान से लगा लिया और बोला - “हल्लो । मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“सुनील ।” - दूसरी ओर से मधु का घबराया स्वर सुनाई दिया - “मैं मधु बोल रही हूं । मैंने तुम्हारे लिये कई जगह फोन किया था । मुझे मालूम हुआ था कि तुम यहां मिल सकते हो । मैंने...”
“बात क्या है ?” - सुनील उसकी बात काटकर बोला ।
“अभी थोड़ी देर पहले विद्या चाची के कमरे में कोई चोर घुस आया था । चोर हमारे गोरखा चौकीदार को शूट करके भाग गया है । मैंने सोचा शायद यह घटना भी तुम्हें पहले हुई तमाम घटमाओं का ही अंग मालूम हो ।”
“तुमने पुलिस को फोन किया था ?”
“पुलिस को तो मैंने तभी फोन कर दिया था ।”
“तुम इस वक्त कहां हो ?”
“सिटी अस्पताल में । गोरखा की हालत बहुत खराब है । उसका एमरजेन्सी आपरेशन हो रहा है । पता नहीं वह बचेगा भी या नहीं ।”
“कोठी पर पुलिस पहुंच गई है ?”
“अब तक जरूर पहुंच गई होगी ।”
“आल राइट । थैंक्यू फार कालिंग । मैं पता लगाने की कोशिश करता हूं कि क्या किस्सा है ?”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया और उठ खड़ा हुआ ।
“उठो ।” - वह रमाकांत से बोला ।
“क्यों ?”
“मेरे साथ चलो । और कहां ? क्यों ? वगैरह फिर पूछना ।”
“लेकिन...”
“अब हिल भी चुको ।”
रमाकांत ने सिगरेट एश-ट्रे में झोंक दिया और उठ खड़ा हुआ ।
***
रात के एक बजे शंकर रोड एकदम सुनसान पड़ी थी ।
रमाकांत ने अपनी शानदार इम्पाला गाड़ी ईश्वर लाल की विशाल कोठी की सामने लाकर रोक दी ।
सुनील ने देखा, कोठी के बाहर की सड़क उजाड़ पड़ी थी । भीतर विशाल कम्पाउन्ड से आगे पोर्टिको में एक पुलिस की जीप खड़ी दिखाई दे रही थी, लेकिन कहीं किसी प्रकार की उत्तेजना या हंगामे के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे ।
कोठी के ग्राउन्ड फ्लोर के कई कमरे प्रकाशित थे । उसी क्षण दायीं ओर के कमरों की एक खिड़की पर फ्लैश लाइट का चौंधिया देने वाला प्रकाश पड़ा और गायब हो गया ।
“कम्पाउन्ड खाली है ।” - सुनील बोला - “मैं थोड़ी ताक-झांक की कोशिश करता हूं । तुम कम्पाउन्ड पर नजर रखना । अगर तुम्हें कोई मेरी ओर बढता दिखाई दे तो धीरे से कार का हार्न बजा देना ।”
रमाकांत ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील कार से बाहर निकल आया ।
वह चुपचाप कम्पाउन्ड में दाखिल हो गया । पेड़ों के झुरमुट में से गुजरता हुआ वह उस खिड़की की ओर बढा जहां फ्लैश लाइट का प्रकाश देखा था ।
वह खिड़की के समीप पहुंचा । इससे पहले कि वह भीतर झांक पाता, उसे रमाकांत की कार के हार्न की आवाज सुनाई दी । लेकिन अभी वह वापिस भी नहीं घूम पाया था कि एक मजबूत हाथ उसके कन्धे पर पड़ा और सुनील उस हाथ के दबाव से फिरकनी की तरह 180 अंश के कोण पर घूम गया ।
सामने एक वर्दीधारी सिपाही खड़ा था ।
“नमस्ते दरोगा जी ।” - सुनील दांत निकालकर बोला ।
“कौन हो तुम ?” - सिपाही कठोर स्वर से बोला ।
“मेरा नाम सुनील है । इस कोठी के बहुत लोग मुझे जानते हैं ।”
“तुम यहां क्या कर रहे थे ?”
“कोठी के भीतर जा रहा था ।”
“खिड़की के रास्ते ?”
“नहीं । यहां तो मैं उत्सुकतावश चला आया था ।”
“मेरे साथ आओ ।”
“कहां ?”
“जहां जाने के लिये तुम यहां गये हो । कोठी के भीतर ।”
“लेकिन दरोगा जी...”
“नाक की सीध में चलो ।” - सिपाही उसका मुंह जबरदस्ती मुख्य द्वार की ओर करके उसे आगे धकेलता हुआ बोला ।
सुनील आगे बढा ।
सिपाही उसे कोठी के भीतर ले आया । जिस कमरे में सिपाही उसे लाया, वहां पुलिस के कई आदमियों के अलावा इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल, और रोशन लाल मौजूद थे । रोशन लाल सूरत से काफी परेशान लग रहा था ।
स्थिति से सुनील को लगा कि वही वह कमरा था, जिसमें से उसने फ्लैश बल्ब की चमक देखीं थी ।
“साहब !” - सिपाही आदर पूर्ण स्वर से प्रभूदयाल से बोला - “यह आदमी बाहर कम्पाउन्ड में खड़ा खिड़की में ताक-झांक करने की कोशिश कर रहा था ।”
प्रभूदयाल की निगाह सुनील पर पड़ी और उसके चेहरे ने कई रंग बदले ।
“हैल्लो, इन्स्पेक्टर साहब !” - सुनील मासूम स्वर से बोला - “आप यहां कैसे ?”
प्रभूदयाल कुछ क्षण कहरभरी निगाहों से सुनील को घूरता रहा और फिर सिपाही से बोला - “तुम जाओ ।”
सिपाही सलाम ठोककर कमरे से बाहर निकल गया ।
“तुम खिड़की से ताक-झांक कर रहे थे ?” - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला ।
“मैं खिड़की के पास से गुजर रहा था ।” - सुनील सरल स्वर से बोला - “मैं भीतर आ रहा था ।”
“खिड़की के रास्ते ?”
“नहीं ।”
“तो खिड़की के पास से कैसे गुजर रहे थे तुम ?”
“मैं रास्ता भटक गया था । मैंने ड्राइव वे से आने के स्थान पर मुख्य द्वार तक सीधे आने की कोशिश की थी और अन्धेरे में रास्ता भटक गया था ।”
“यहां कौन जानता है तुम्हें ?”
“रोशन लाल जी जानते हैं ।”
“रोशन लाल यहां नहीं रहता । मेरा मतलब है इतनी रात को तुम यहां किसलिये आये थे ?”
“मिलने ।”
“किससे ?”
“मधु से ।”
“क्यों ?”
सुनील शरमाया ।
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतने नीचे दर्जे का झूठ बोलोगे । पुलिस के सवालों से बचने के लिये मधु की ओट लेते तुम्हें शर्म आनी चाहिये ।”
“इसमें शर्म की क्या बात है ?” - एकाएक सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “मुझे मधु ने फोन पर बताया था कि थोड़ी देर पहले विद्या के कमरे में कोई चोर घुसा था और उसने गोरखे चौकीदार को गोली मार दी थी । मैं स्थिति देखने चला आया था । और क्योंकि बाहर पुलिस ने कोई ‘प्रवेश निषेध’ का बोर्ड नहीं लगाया हुआ था, इसीलिये मैंने समझा कि अपने परिचितों की कोठी में कहीं भी घूमने या ‘भटकने’ का मुझे पूरा हक पहुंचता है । जो मैंने किया है, उसकी वजह से कोठी के मालिक की शिकायत के बिना अगर तुम मुझ पर कोई चार्ज लगा सकते हो तो लगा लो ।”
“तुम्हें इस आदमी की यहां मौजूदगी से कोई ऐतराज है ?” - प्रभूदयाल ने रोशन लाल से पूछा ।
“इनके एतराज करने से कुछ नहीं होता । मैं मधु के बुलाने से यहां आया हूं । यह सवाल तुम मधु से करो या विद्या से करो ।”
“तुम अपना थोबड़ा बन्द रखो ।” - प्रभूदयाल गर्जा ।
“मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है ?” - रोशन लाल बोला - “बल्कि मुझे तो खुशी है कि सुनील एकाएक यहां आ गया है । अब तुम इसी से पूछ सकते हो कि यहां जो घटना घटी हैं, उस दौरान मैं उसके साथ था ।”
“क्या किस्सा है ?”
“इन्स्पेक्टर साहब मुझ पर सन्देह कर रहे हैं कि शायद विद्या के कमरे में घुसने वाला चोर मैं था ।”
“तुम यह शहादत देते हो कि इस घटना के समय रोशन लाल तुम्हारे साथ था ?” - प्रभूदयाल बोला ।
“लेकिन प्रभूदयाल भाई साहब ।” - सुनील विनयपूर्ण स्वर से बोला - “पहले मुझे तो मालूम हो कि किसी घटना का जिक्र किया जा रहा है वह कब घटित हुई थी ?”
“तुम्हें मधु से कुछ नहीं बताया ?”
“जो मुझे मधु ने बताया है कि वह न बताने जैसा है ।”
प्रभूदयाल हिचकिचाया ।
“अगर इन्स्पेक्टर साहब नहीं बताना चाहते तो मैं ही बता देता हूं ।” - रोशन लाल जल्दी से बोला ।
“आप बराय मेहरबानी तभी बोलिये, जब आपको बोलने को कहा जाये ।”
“आल राइट ।”
प्रभूदयाल कुछ क्षण चुप रहा और फिर हिचकिचाता हुआ बोला - “जिस कमरे में हम लोग खड़े हैं, यह विद्या का कमरा है । कोई इसकी खिड़की के रास्ते भीतर घुसा था । मधु ने अपने कमरे में से यहां पहले किसी चीज के उलटने की और फिर विद्या की छड़ी की ठक-ठक की आवाज सुनी थी । अगर मधु को पहले से ही न मालूम होता कि विद्या हस्पताल में है तो वह उन आवाजों की ओर ध्यान भी नहीं देती, लेकिन उस स्थिति में वह समझ गयी कि विद्या के कमरे में कोई चोर था जो अन्धेरे में किसी चीज से टकरा गया था और अब उस आवाज को कवर करने के लिये विद्या की चाल की नकल करके सुनने वालों का ध्यान उस ओर से हटाने की कोशिश कर रहा था । मधु गोरखे चौकीदार के साथ यहां आयी । गोरखा जब दीवार पर बिजली का स्विच टटोल रहा था, तभी चोर ने गोली चला दी थी । पहली गोली द्वार की चौखट से टकरायी, दूसरी गोरखे को लगी । उसके बाद चोर खिड़की के रास्ते ही यहां से भाग गया ।”
प्रभूदयाल एक क्षण रुका और फिर बोला - “मैंने द्वार की चौखट में घुसी गोली निकाली है । वह एक 38 कैलिबर की रिवाल्वर से निकली गोली है । वैसी ही गोली हीरा नन्द की कनपटी से निकाली गयी थी और जाहिर है कि वैसी ही गोली का शिकार गोरखा हुआ है । अभी गोलियों की लैबोरेट्री में जांच तो नहीं हुई है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि वे तीनों गोलियां एक ही रिवाल्वर से निकली है और सम्भवतः एक ही आदमी द्वारा चलाई भी गई हैं ।”
“यह बात इन्सपेक्टर साहब तुम्हें इसलिये बता रहे हैं क्योंकि इन्हें सन्देह है कि शायद हीरा नन्द की हत्या भीं मैंने की है ।” - रोशन लाल बोला
“आप बोले बिना मानेंगे नहीं ।” - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला ।
रोशन लाल चुप हो गया ।
“तुम्हें हीरा नन्द की हत्या का सन्देह रोशन लाल पर क्यों है ?” - सुनील ने पूछा ।
प्रभूदयाल हिचकिचाया ।
“इसमें हिचकिचाने की क्या बात है ? तुम नहीं बताओगे तो रोशन लाल जी बता देंगे और ऐसे बातें तो प्रेस से वैसे भी छुपी नहीं रहती हैं ।”
“हमें ब्लिस होटल के रिसैप्शनिस्ट के बयान से मालूम हुआ था कि हीरा नन्द से होटल में मिलने के निर्धारित समय पर जब आप लोग ब्लिस होटल पहुंचे थे तो भीतर केवल तुम और मधु गये थे । रोशन लाल ने होटल में कदम नहीं रखा था मुझे इस बात ने सन्देह में डाल दिया था । जब रिसैप्शनिस्ट को रोशन लाल का हुलिया बताया गया था तो उसने बड़ी चौंका देने वाली बात बताई थी । उसने बताया था कि रोशन लाल वहां शाम को भी आया था और कई घण्टे होटल की लाबी में बैठा हीरा नन्द का इन्तजार करता रहा था । मुझे सन्देह है कि रोशन लाल शाम को हीरा नन्द से मिला था और उसके साथ नेपियन हिल पर पानी की टंकी पर गया था, जहां उसने हीरा नन्द की हत्या कर दी थी और वापिस ब्लिस होटल आकर यह जाहिर करने के लिये वह रिसैप्शनिस्ट के सामने लाबी में बैठा रहा था कि वास्तव में उसकी हीरा नन्द से मुलाकात हुई ही नहीं थी और वह अभी भी मुलाकात का इच्छुक था ।”
“लेकिन रोशन लाल को हीरा नन्द की हत्या करने की जरूरत क्या थी ?”
“यह भी मालूम हो जायेगा । जब इतनी बातें मालूम हो गई हैं तो यह भी मालूम हो जायेगा ।”
“और तुम्हारी थ्योरी है कि गोरखे पर गोली भी उसी आदमी ने चलाई है जिसने हीरा नन्द की हत्या की है ?”
“हालात से साफ जाहिर है ।”
“लेकिन जिस वक्त गोरखे पर गोली चलाई गई थी, उस वक्त रोशन लाल मेरे साथ था ।”
“मुझे तुम्हारा भरोसा नहीं । मैं तुम्हें बरसों से जानता हूं । मैंने तुम्हें बहुत बार और लोगों के लिये झूठ बोलते देखा है ।”
“फिर भी गोरखे पर गोली चलाने वाला आदमी रोशन लाल नहीं हो सकता ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि जो चोर विद्या के कमरे में घुसा था, उसे यह तो मालूम था कि विद्या हस्पताल में है, लेकिन उसे यह नहीं मालूम था कि मधु को भी यह मालूम है कि विद्या हस्पताल में है ।”
“क्या मतलब ?” - प्रभूदयाल तीव्र स्वर से बोला ।
“मतलब साफ है ।” - सुनील सन्तुलित स्वर से बोला - “चोर ने विद्या की लंगड़ी चाल की नकल करने की कोशिश की थी, ताकि मधु समझे कि अपने कमरे में विद्या ही चल रही है । अगर उसे यह मालूम होता कि मधु जानती है कि विद्या हस्पताल में है तो वह ऐसी कोई हरकत हरगिज नहीं करता, क्योंकि उस सूरत में मधु का धोखा खा पाना असम्भव था ।”
“फिर ?”
“फिर यह कि रोशन लाल को मालूम था कि मधु जानती है कि विद्या हस्पताल में है । अगर विद्या के कमरे में घुसने वाला चोर वह होता तो वह विद्या की चाल की नकल करके मधु को धोखा देने की कोशिश नहीं करता । उल्टे कोई चीज उलटते ही वह फौरन कमरे से भाग खड़ा होता ।”
प्रभूदयाल सोच पड़ गया । प्रत्यक्ष था कि सुनील के तर्क ने उसे प्रभावित किया था ।
रोशन लाल के चेहरे पर चमक आ गई ।
“फिर भी रोशन लाल सन्देह से परे नहीं है ।” - प्रभूदयाल निर्णायात्मक स्वर से बोला - “इसने मुझे यह अभी भी नहीं बताया है कि यह ब्लिस होटल की लाबी में बैठा घन्टों हीरा नन्द का इन्तजार क्यों करता रहा था ।”
रोशन लाल ने ऐसा मुंह बनाया, जैसे उसका बताने का कोई इरादा ही न हो ।
प्रभूदयाल ने एक सिपाही को अपने पास बुलाया और सुनील की ओर उसका ध्यान आकर्षित करता हुआ बोला - “साहब को बाहर सड़क पर छोड़ जाओ और इनकी सूरत अच्छी पहचान लो । अगर मेरी मौजूदगी में ये कोठी में दोबारा जबरदस्ती घुसने की कोशिश करें तो मेरी जिम्मेदारी पर इनकी टांगे तोड़ देना ।”
“और टूटी हुई टांगें बड़ी हिफाजत से इन्सपेक्टर साहब के घर पहुंचा देना ।” - सुनील प्रभूदयाल के स्वर की नकल करता हुआ बोला - “ताकि ये उन्हें मैडल की तरह अपने ड्राईंगरूम में सजा सकें ।”
सिपाही ने सुनील की बांह थाम ली । सुनील ने सिपाही का हाथ अपनी बांह से झटक दिया और लम्बे डग भरता हुआ कमरे में बाहर चल दिया ।
सिपाही तेजी से उसके पीछे चल पड़ा ।
सुनील कोठी से निकला और ड्राइव वे पार करके कम्पाउण्ड से बाहर निकल आया ।
सिपाही कम्पाउन्ड के द्वार पर आ खड़ा हुआ ।
सुनील उलझनपूर्ण मुद्रा बनाये फुटपाथ पर खड़ा रहा ।
रमाकांत की इम्पाला शंकर रोड पर दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रही थी ।