मुमरी माहू दो घंटे में आ पहुंचा। मुमरी माहू चालीस बरस का, गठे जिस्म का चुस्त, चाक-चौबंद रहने वाला व्यक्ति था। उसका रंग सांवला था और वो किसी पहलवान की तरह लगता था। वोमाल के साथ वो पंद्रह साल से था। उसका काम संगठन में आ चुके गलत लोगों को सजा देना था। ऐसे लोग जो ठीक से काम नहीं करते, या जो हेराफेरी से माल को खिसका लेते हैं। जो पैसों की हेराफेरी करते हैं। मुमरी माहू को संगठन का जासूस कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उसके जासूस संगठन के भीतर तक फैले थे और गलत लोगों की खबर उसे दिया करते थे।
“आप कैसे हैं सर?” मुमरी माहू ने आते ही पूछा –“तबीयत में कोई सुधार हुआ।”
“जब सुधार हुआ तो बता दूंगा।” वोमाल ने कहा।
मुमरी माहू ने सिटवी को देखकर हाथ हिलाया।
सिटवी छोटे-से दायरे में खामोशी से टहल रहा था।
“कोई खास बात है क्या सर? मुझे फौरन आने को कहा सिटवी ने?” मुमरी माहू ने पूछा।
“बैठो। तुमसे बात करनी है।”
मुमरी माहू तुरंत बेड के पास पड़े ऊंचे स्टूल पर बैठ गया।
“तुम्हें एक बार फिर बेवू को वापस लाना होगा।” वोमाल बोला।
“ओह, बेवू सर, फिर भाग गए?”
“हां। पर इस बार उसने चालाकी का इस्तेमाल किया है। अपनी जगह पर, अपना हमशक्ल तैयार करके छोड़ गया है। जो उसी की तरह का है। बेवू ने सोचा कि पापा धोखा खा जाएंगे। पर मैंने पहचान लिया कि वो मेरा बेटा नहीं है। कल रात मेरे दोस्त की बेटी की शादी में गया था बेवू और वहीं से वो बदलकर लौटा।”
“बेवू सर के साथ तो गनमैन होते हैं।”
“इस काम के लिए गनमैन को धोखा देना बहुत आसान है। बेवू ने अपना हमशक्ल तैयार करके वहां कहीं पहले से ही तैयार रखा होगा और उसे अपनी जगह भेज दिया। ये काम वो कहीं भी कर सकता था। जैसे कि बाथरूम में बेवू जाए और बाहर उसका हमशक्ल निकले और गनमैनों के साथ चल दे।”
“समझ गया। ये काम कर लेना बहुत आसान है।”
“अपना हमशक्ल अपनी जगह पर छोड़कर बेवू पूर्व के जंगलों में, उसी जंगली लड़की के पास गया है। तुम उसे वापस लाओ। वैसे इस बार वो निश्चिंत होगा कि उसे कोई ढूंढ़ने नहीं आएगा। क्योंकि यहां पर उसका हमशक्ल मौजूद है।”
“हमशक्ल से पूछा कि बेवू कहां...।”
“मैं उससे कुछ नहीं पूछना चाहता और बेवू को लाकर उसके सामने खड़े कर देना चाहता हूं। बेवू ने मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश की तो मैं उसे बता देना चाहता हूं कि उसका बाप बेवकूफ नहीं है।”
“ठीक है सर। मैं आज रात ही अपने लोगों को लेकर निकल जाता हूं।”
“शायद अभी बेवू उस बस्ती तक पहुंचा नहीं होगा। तुमने बताया था वो बस्ती काफी दूर है। लेकिन जब तक तुम वहां पहुंचोगे, बेवू वहीं मिलेगा तुम्हें। उसे कोई तकलीफ न हो। आराम से लाना उसे।”
“मुमरी अपना काम इस तरह करता है कि शिकायत न हो।” कहते हुए वो स्टूल से उठा –“सर, मैं एक बार बेवू सर के हमशक्ल को देखना चाहता हूं अगर आप हां कहें तो?”
वोमाल जगवामा ने मुमरी माहू को देखा। मुस्कराया।
“तो तुम समझते हो कि असली-नकली बेवू को समझने में मुझसे भूल हो रही है।” वोमाल बोला।
“ये बात नहीं सर। बस मैं एक नजर बेवू सर के हमशक्ल को देख लेना चाहता हूं।”
“जाओ। देख लो। रात तक बेवू को वापस लाने के लिए चले जाना।”
“जी सर। तैयारी पूरी होते ही मैं चल दूंगा।”
☐☐☐
जगमोहन कुछ बेचैनी महसूस कर रहा था। जाने क्यों उसे लग रहा था कि वोमाल जगवामा के पास जाकर कुछ ठीक नहीं हुआ। पहली बात तो उसे ये चुभ रही थी कि जगवामा को वो ठीक से उठा नहीं सका। ऐसा नहीं होना चाहिए था। उसे पहले से ही पता होना चाहिए था कि जगवामा को कैसे उठाया जाता है। दूसरी बात उसे ये चुभ रही थी कि जगवामा ने कहा कि जंगली लड़की से शादी कर ले, संगठन संभाले तो। ये बात जगवामा ने उससे कल कही थी, जबकि उसे नहीं पता था कि ऐसी कोई बात बेवू से हुई थी। इन्हीं बातों का उसे डर था कि पहले बाप-बेटे के बीच क्या चल रहा है, उसे नहीं पता। इन्हीं बातों को लेकर गड़बड़ हो सकती थी, पर खैर रही कि जगवामा को कोई बड़ा शक नहीं हुआ था। हुआ होता तो पकड़ा जाता। वो सिटवी भी कम खतरनाक नहीं लग रहा था। ये जगवामा इस्टेट थी। हर तरफ जगवामा के लोग फैले थे। फंस जाता तो बचने का रास्ता कहीं से भी नहीं था। जगमोहन मन-ही-मन सोच चुका था कि वो जगवामा के पास कम ही जाएगा। ये वक्त उसे सतर्कता से, समझदारी से निकालना है कि जगवामा को शक न हो सके।
जगमोहन कुर्सी पर बैठा सीटिंग रूम में नजरें दौड़ा रहा था और सोच रहा था कि अब फिर वो यहां की एक-एक जगह की तलाशी लेगा कि शायद उसे पाकिस्तानी लोगों के बारे में जानकारी मिल सके। इसके लिए उसे कमरे का दरवाजा भीतर से बंद करना होगा। जगमोहन कुर्सी से उठा और बेवू का फोन उठा लिया। रात से कोई भी फोन नहीं बजा था। जबकि उसने पहले सोचा था कि बेवू को अक्सर फोन आते रहते होंगे। वो फोन में ‘फीड’ नम्बरों को दोबारा से चेक करने लगा। एक बार फिर हर नम्बर को चेक करने लगा। जो तीन नम्बर उसे लगे थे कि वो पाकिस्तान के हो सकते हैं, उन्हें मिर्जा को दे दिया था। उस बारे में मिर्जा खुद ही सोहन गुप्ता से बात कर...।
तभी जगमोहन की सोचें ठिठकी।
कानों में बेवू सर के पुकारे जाने की आवाज पड़ी थी।
बेवू सर उसे सिटवी कहकर बुला रहा था। इसका मतलब संगठन के बड़े ओहदेदार बेवू के नाम के आगे सर लगाकर उसे पुकारते हैं। जगमोहन फोन हाथ में दबाए तुरंत ड्राइंग रूम में जा पहुंचा।
दरवाजे पर मुमरी माहू को खड़े पाया।
जगमोहन ने इसकी तस्वीर देखी थी। नाम भी याद आ गया, मुमरी माहू। ये संगठन में होने वाली गड़बड़ियों को रोकने का काम करता था और ये ही दो बार बेवू को पूर्व के जंगलों की बस्ती से वापस लाया था।
मुमरी माहू के चेहरे पर मुस्कान उभरी। वो तीन कदम भीतर आ गया।
“आप कैसे हैं बेवू सर।”
“मैं एक बार फिर यहां से भाग जाना चाहता हूं।” जगमोहन मुस्कराकर कह उठा –“परंतु ये सोचकर रुक जाता हूं कि तुम फिर मुझे ढूंढ़कर वापस ले आओगे। तुम ऐसा ही करोगे न?”
“बड़े सर जो हुक्म देंगे। वो ही करूंगा।” मुमरी माहू बोला।
“मेरा हुक्म तो तुम मानते ही नहीं। बस वहां से पकड़कर ले आते हो।”
“बेवू सर। आप संगठन संभाल लें तो सबसे पहले आप ही का हुक्म माना करूंगा।”
“संगठन से मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। तुम कहो, मेरे पास कैसे आए?”
“बड़े सर के पास आया था तो सोचा जाते वक्त आपसे मिल लूं। कोई लड़की पसंद आई?”
“लड़की?”
“भूल गए क्या? सप्ताह पहले आप ही ने तो कहा था कि एक लड़की है जो शायद आपको पसंद आ जाए।” मुमरी माहू ने झूठ कहा।
जगमोहन को खतरे का एहसास हुआ।
उसे नहीं पता कि बेवू की मुमरी माहू से क्या बात हुई थी या हुई ही नहीं थी।
बीते दिनों की बातों का उसे कुछ नहीं पता था।
वोमाल ने भी कल की बात उससे की थी और मुमरी माहू सप्ताह पहले की बात कर रहा था।
“आपने कहा था कि इस बात को अपने तक रखूं। आप मुझे दोबारा उस लड़की के बारे में बताएंगे।” मुमरी माहू मुस्कराया।
“वो मैंने, तुमसे मजाक में कहा था।” जगमोहन ने संयत स्वर में कहा –“ऐसी कोई बात नहीं है।”
“ओह, मैंने समझा आपको सच में कोई शहरी लड़की पसंद आ गई है।”
जवाब में जगमोहन मुस्कराकर उसे देखने लगा।
“मैं चलता हूं बेवू सर। मुझे कई काम करने हैं।” मुमरी माहू ने कहा और कमरे से बाहर निकलकर, बाहर जाने वाले रास्ते पर बढ़ते हुए मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाया। फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल गई फिर सिटवी की आवाज कानों में पड़ी।
“कह मुमरी।”
“बड़े सर से कह देना कि उनका खयाल ठीक है वो बेवू सर नहीं, उसकी जगह कोई और है।” मुमरी माहू बोला।
“तुम्हें यकीन है?”
“पूरा यकीन है। मैंने उससे ऐसी बात की, जो पहले उससे की ही नहीं थी और उसने ऐसे जवाब दिया जैसे ये बात उसके और मेरे बीच पहले हो चुकी हो।”
“ओह।”
“मुझे तो इस वाले बेवू सर की लम्बाई भी कुछ कम ही लगी। बड़े सर का खयाल ठीक है कि बेवू सर ने चालाकी से अपनी जगह पर किसी और को छोड़ दिया, जिसका चेहरा बेवू सर जैसा बना दिया गया है। ऐसा करके खुद बेवू सर पूर्व के जंगलों की बस्ती की तरफ चले गए होंगे, जहां उस लड़की की बस्ती है। दो बार बेवू सर ने भाग जाने की चेष्टा की परंतु गनमैनों की वजह से सफल नहीं हो सके तो उन्होंने ये रास्ता अपना लिया।” फोन पर बातें करते-करते मुमरी माहू बंगले से बाहर पोर्च में खड़ी अपनी कार तक पहुंचा और दरवाजा खोलकर भीतर बैठ गया। ड्राइवर ने कार आगे बढ़ा दी तो मुमरी माहू पुनः बोला –“बंद करता हूं। रात बेवू सर के पीछे जाना है। तैयारी करने के लिए कई जगह फोन करने हैं।”
☐☐☐
मुमरी माहू के फेरा लगा जाने के बाद जगमोहन और भी बेचैन हो गया। दो घंटे पहले वो जगवामा से मिलकर आया था तो अब मुमरी माहू उसके पास आ पहुंचा। सप्ताह भर पहले की बात करने लगा। जगवामा ने उससे कल की बात की। ये बातें, ऐसी बातें उसके फंसने की वजह बन सकती थी। बेवू किससे क्या बात करता रहा है, उसे भनक तक नहीं थी। ऐसी बातें उसे मुसीबत में फंसा सकती थी।
शाम तीन बजे उसने इंटरकॉम पर लोएस से कॉफी लाने को कहा। कॉफी आई तो सोचों में डूबे आराम से उसने कॉफी पी। अब वो फिर बेवू के कमरों को खंगालने की सोच रहा था।
तभी मिर्जा आ पहुंचा।
“मेरे लायक कोई सेवा बेवू सर?” मिर्जा ने आदर भाव से कहा।
जगमोहन ने गर्दन हिलाकर मिर्जा को पास आने का इशारा किया।
मिर्जा पास आया।
जगमोहन ने उसे मुमरी माहू से हुई बातचीत बताई।
मिर्जा सतर्क हो गया।
“मुझे विश्वास नहीं आता कि बेवू सर ने मुमरी माहू से ऐसी कोई बात की होगी।” मिर्जा ने धीमे स्वर में कहा।
“क्यों?”
“बेवू सर, संगठन के लोगों से बात करना पसंद नहीं करते। फिर सब जानते हैं कि बेवू सर पूर्व के जंगलों की बस्ती में रहने वाली किसी लड़की को चाहते हैं तो वो किसी अन्य लड़की की बात मुमरी माहू से क्यों करेंगे।”
जगमोहन की आंखें सिकुड़ गईं।
“तुम्हारा मतलब कि मुमरी माहू ने मुझसे ये बात झूठ कही?” जगमोहन ठगा-सा रह गया।
“लगता तो ऐसा ही है।”
“इसका मतलब वोमाल ने पहचान लिया है कि मैं बेवू नहीं हूं।”
“इतनी जल्दी बात का नतीजा मत निकालो। अगर ऐसा होता तो तुम आजाद न होते।”
“तो मुमरी माहू का वो सवाल?”
“मेरा जो खयाल था वो मैंने बताया था। हो सकता है सब ठीक हो। तुम्हें सब्र से काम लेना चाहिए।”
“जो नम्बर मैंने तुम्हें दिए थे उनका क्या हुआ?”
“वो मैंने सोहन गुप्ता को दे दिए हैं। वो नम्बरों को चेक करेगा। सोहन गुप्ता ने बताया कि बेवू से पूछताछ हो रही है परंतु वो पाकिस्तान के उन लोगों के नाम बताने को तैयार नहीं। बेवू जिद्दी है।”
जगमोहन गहरी सांस लेकर बोला।
“यहां मेरा दम घुटने लगा है।”
“बाहर घूमने जा सकते हो।”
“गनमैन साथ होंगे?”
मिर्जा ने सहमति से सिर हिलाया।
“मैं बेवू के कमरों को चेक करने के बाद, शाम को बाहर जाऊंगा।” जगमोहन ने सोच भरे स्वर में बोला।
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जगमोहन को बेवू के सामान में से ऐसा कुछ नहीं मिला कि जिससे पाकिस्तानी लोगों के बारे में कुछ पता चल पाता। साढ़े पांच बजे तक जगमोहन इसी काम में व्यस्त रहा फिर इंटरकॉम पर तीन नम्बर का बटन दबाकर कहा कि वो छः बजे बाहर जाएगा। उसके बाद जगमोहन तैयार होने लगा। उसे ध्यान आया कि अपने साइज के कपड़े मिर्जा को भेजकर मंगवाने थे। कपड़े तो बेवू के भी फिट थे लेकिन पैंट आधा इंच लम्बी थी। मन-ही-मन जगमोहन ने सोचा कि कल मिर्जा को भेजकर कपड़ों का सूटकेस सोहन गुप्ता से मंगवा लेगा।
साढ़े छः बजे जगमोहन, बेवू के रूप में बंगले से बाहर निकला। पोर्च में तीन कारें तैयार खड़ी मिलीं। एक विदेशी लम्बी कार उसके लिए थी और दो अन्य कारें गनमैनों के लिए। छः गनमैन वहां तैयार खड़े मिले। वो रात वाले नहीं थे। एक ने विदेशी कार का पिछला दरवाजा खोल दिया। जगमोहन कार में बैठा और दरवाजा बंद हो गया।
पांच मिनट बाद तीनों कारें जगवामा इस्टेट से बाहर निकल गईं।
कार में जगमोहन के अलावा ड्राइवर था। पीछे आ रही दोनों कारों में छः गनमैन थे।
जगमोहन ने अभी तक ड्राइवर को कुछ नहीं बताया था कि कहां जाना है।
“कहां ले चलूं छोटे सर?” ड्राइवर ने पूछ लिया।
“एक घंटा सड़कों पर घूमते रहो फिर किसी क्लब में ले चलना।”
“बेहतर। किस क्लब में जाना पसंद करेंगे?”
“जहां भी तुम कार रोकोगे। उसी क्लब में चला जाऊंगा।”
ड्राइवर कार चलाने में व्यस्त हो गया।
“मैं इस कैद वाली जिंदगी से तंग आ गया हूं।” कुछ देर बाद जगमोहन बोला।
“जरूर सर। आपको जरूर परेशानी होती होगी।”
“क्या तुम मेरे भागने में मेरी सहायता करोगे?”
“नहीं सर।” ड्राइवर ने कार चलाते सिर हिलाकर कहा –“मैं ऐसा नहीं कर सकता।”
“क्यों?”
“बड़े सर मुझे शूट कर देंगे।”
“तो तुम मेरी सहायता नहीं करोगे?”
“मजबूर हूं सर। बड़े सर का हुक्म मानना पड़ता है।”
कार सड़क पर पचास की स्पीड से दौड़ती रही। पीछे गनमैनों की दोनों कारें थीं। जगमोहन की नजरें बाहर देखती रहीं। वो यहां के बाजार, यहां के लोग देखता रहा। अभी पूरा दिन था। सूर्य की मध्यम होती रोशनी फैली थी। कार में चल रहे ए.सी. की वजह से गर्मी का एहसास नहीं हो रहा था। तभी एक सड़क पर उल्टी दिशा से कार आती दिखी। ड्राइवर ने अपनी कार उनसे बचाने की चेष्टा की। ये बात जगमोहन ने भी देखी परंतु सामने से गलत आती कार एकाएक मुड़ी और धड़ाम से इस कार से आ टकराई।
जगमोहन को समझते देर न लगी कि एक्सीडेंट जानबूझकर किया गया है। वो पिछली सीट से उछलकर आगे की सीट से जा टकराया। टक्कर ज्यादा जबर्दस्त नहीं थी परंतु टक्कर तो टक्कर ही थी। कार का बोनट खड़ा हो गया था टक्कर लगने से। आगे कुछ नहीं दिखा। सब कारें रुक चुकी थीं।
धीरे-धीरे सड़क पर वाहन इकट्ठे होने लगे।
पीछे गनमैनों की दोनों कारों के दरवाजे खुले और वो भागते हुए पास आ पहुंचे। एक ने दरवाजा खोला।।
“छोटे सर। आप ठीक तो हैं।” जगमोहन से गनमैन ने पूछा।
“बिल्कुल ठीक हूं।” जगमोहन ने अपने को संभालते हुए कहा।
“आप हमारी कार में आ जाइए। हमारा एक आदमी एक्सीडेंट करने वाले को देख लेगा।”
टक्कर लगते ही वहां एकाएक काफी ज्यादा लोगों की भीड़ लग गई। इतनी जल्दी इतने लोगों की भीड़ नहीं लग सकती थी। इस बात को नोट किया जाता तो ये भीड़ जरूर अजीब लगती।
जगमोहन कार से बाहर निकला।
लेकिन तब तक सब गनमैनों के शरीरों से रिवॉल्वरें सट गई थीं। गनें उनके हाथों में थीं, परंतु शरीर से रिवॉल्वरें सटी थीं और खतरनाक चेहरे अपने पास खड़े दिखाई दिए।
अभी भीड़ में से दो आदमी आगे बढ़े और उनके हाथों से गनें ली जाने लगी। जगमोहन ने ये सब होते देखा तो उसकी आंखें सिकुड़ी।
“ये क्या हो रहा है?” जगमोहन ने उन लोगों को देखते, गनमैनों से उलझन भरे स्वर में पूछा।
“छोटे सर।” एक गनमैन बोला –“हमारे शरीरों पर रिवॉल्वरें लगी हैं। ये एक्सीडेंट साजिश थी।”
जगमोहन ने चौंककर वहां इकट्ठे हो चुके लोगों को देखा।
तभी उन गनमैनों को धकेल-धकेलकर एक तरफ इकट्ठे खड़े कर दिया गया। ये काम मात्र बीस सेकंड में हो गया कि फिर एक आदमी ने पकड़ रखी गन को सीधा किया और छः गनमैनों पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगा। चारों तरफ गोलियों की तड़तड़ की आवाजें गूंज उठीं। गनमैनों के शरीर में सुराख नजर आने लगे। इसके साथ ही वो गिरने लगे। दो की चीखें निकली थीं गोलियां लगते ही। कुछ सेकेंड में वो सब नीचे गिर चुके थे।
जगमोहन ये देखकर स्तब्ध रह गया। हक्का-बक्का ठगा-सा खड़ा रह गया। कितनी बेरहमी से से देखते ही देखते गनमैनों पर गोलियां चलाकर उनकी जान ली गई थी।
“ये क्या किया तुम लोगों ने।” जगमोहन एकाएक गला फाड़कर चीख उठा।
उसी पल एक आदमी जगमोहन के पास पहुंचकर बोला।
“मेरा नाम चिकी है। मिस्टर बेवू ने मेरा नाम सुन रखा होगा।”
“नहीं।” जगमोहन के होंठों से निकला। चेहरा क्रोध से भरा था।
“वोमाल और संगठन के ओहदेदार मेरा नाम जानते हैं। तुम्हें मेरे साथ चलना है, जल्दी करो।” चिकी बोला।
“तुम्हारे साथ...।”
“बातें नहीं।” चिकी ने जगमोहन का हाथ पकड़ा –“हमारे साथ चलो।”
“मैं नहीं जाऊंगा। तुम...।”
तभी तीन आदमी भीड़ में से पास पहुंचे और जबरन जगमोहन को पकड़ते धकेलकर वहां से आगे खड़ी कार तक ले गए। जगमोहन के विरोध करने पर ठूंस कर उसे कार में डाला गया। वो खुद भी भीतर बैठे तो उसी पल कार स्टार्ट हुई और तेजी से दौड़ती आगे निकल गई।
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सिटवी तब जाने की तैयारी कर रहा था। जब पुलिस चीफ जामास का फोन आया और उसने शूटआउट के बारे में खबर दी। बेवू के अपहरण हो जाने की खबर दी और ये भी बताया कि शूटआउट में एक गनमैन वहां पुलिस के पहुंचने के बाद मरा और मरने से पहले उसने बताया कि कि गाठम का आदमी चिकी है इस मामले के पीछे।
सिटवी ये सुनकर स्तब्ध रह गया था। उसने घर जाने की तैयारी छोड़ दी। कोई खास काम नहीं होता था तो सिटवी शाम को कोई काम पूरा करने में व्यस्त हो जाता था या घर चला जाता था। सुबह फिर हाजिर हो जाता था। कभी-कभी काम और जरूरत के वक्त वो रात भर वोमाल जगवामा के पास रुकता था।
बेवू का अपहरण हो गया? ये बात उसे हिला देने के लिए काफी थी।
सिटवी फोन बंद करके बेड के पास पहुंचा।
वोमाल जगवामा टेक लगाए बैठा सिटवी को ही देख रहा था।
“सर–सर।” सिटवी परेशान स्वर में बोला –“बुरी खबर है। बेवू सर का अपहरण कर लिया गया है। छः के छः गनमैनों को शूट कर दिया गया। खुली सड़क पर ये सब किया गया।”
वोमाल जगवामा के माथे पर बल उभरे।
“तुम्हें किसने बताया?”
“जामास ने सर। उसका फोन आया था। मरने से पहले एक गनमैन ने बताया कि उन लोगों के साथ चिकी था।”
“चिकी?” वोमाल जगवामा, सिटवी को देखता रहा –“चिकी ने मेरे आदमियों पर गोलियां चलाई। उन्हें मार दिया। शूटआउट करके वो बेवू का अपहरण करके ले गया। उनका दिमाग खराब हो गया है जो उन्होंने ऐसा कर डाला।”
“वो चिकी ही था सर। पूर्व के जंगलों में रहने वाला अपहरणकर्ता गाठम का दाहिना हाथ।” सिटवी बोला –“चिकी स्वयं कम ही मैदान में आता है। जब कोई खास काम हो तो तभी मैदान में आता...।”
“बेवू का अपहरण करना खास काम ही तो है।” वोमाल जगवामा सर्द स्वर में बोला –“मेरे बेटे की तरफ देखने की हिम्मत किसी में नहीं है। गाठम ने मेरे पर हाथ डालकर अपने पैर फैलाने की कोशिश की है।”
“वो अपहरण करने का धंधा करता है।”
“तो?”
“अब वो आपसे फिरौती मांगेगा। वो जानता है कि आपसे उसे बहुत बड़ी रकम मिल सकती है।”
वोमाल जगवामा मुस्करा पड़ा।
“ये बात मैं जानता हूं कि वो बेवू नहीं है। तुम जानते हो। मुमरी माहू जानता है पर गाठम तो नहीं जानता।”
“बात ये नहीं है सर। बात ये है कि इस तरह गाठम ने आपकी गर्दन पकड़ने की चेष्टा की है।”
“ये बात तो है ही। गाठम को इसका अंजाम भुगतना होगा।” वोमाल जगवामा ने सिर हिलाया।
“आपका ऑर्डर हो तो तैयारी करूं गाठम के लिए?”
“अभी नहीं।” वोमाल जगवामा कड़वे स्वर में बोला –“अभी खेल को जरा लम्बा होने दो।”
“मैं समझा नहीं।”
“गाठम को खुश हो लेने दो कि उसने बेवू का अपहरण कर लिया है। उसे फिरौती मांगने दो। तब तक मुमरी माहू पूर्व के जंगलों की उस बस्ती में से बेवू को पकड़कर ले आएगा। जब तक बेवू हमारे पास नहीं आ जाता, तब तक चुप रहो।”
“पुलिस चीफ जामास के बार-बार फोन आ रहे हैं। वो आपके लिए भागदौड़ करना चाहता है कि बेवू को ढूंढ़े। उसे आपकी हां का इंतजार है। वो पूरे शहर को सील कर देगा। इससे शायद चिकी हाथ आ जाए।”
“गलत सोच रहे हो सिटवी । गाठम के लोग इस तरह काम करते हैं कि वो कभी हाथ में नहीं आते। पहले कभी सुना है कि गाठम का कोई आदमी पकड़ा गया? कभी नहीं पकड़ा गया गाठम का आदमी। गाठम हर काम बहुत सोच-समझकर करता है। शायद वो मेरी तरह है। कहीं भी चूकता नहीं। गाठम के लोग पूर्व के जंगलों से तभी बाहर आते हैं जब किसी का अपहरण करना होता है और अपहरण करके वो सुरक्षित पूर्व के जंगलों में चले जाते हैं।” वोमाल जगवामा के चेहरे पर क्रोध दिखा –“कमाल कर दिया गाठम ने। मेरे बेटे का अपहरण कर लिया। बहुत हिम्मत दिखाई हरामजादे ने।”
“हम गाठम को जड़ से खत्म कर सकते हैं। हमारी ताकत ज्यादा है।”
“बेशक हमारी ताकत ज्यादा है, परंतु गाठम पर काबू पाना आसान नहीं। उसके ठिकाने सैकड़ों मील में फैले जंगल में बने हुए हैं। वहां की बस्तियां भी गाठम का साथ देती हैं। डर से, पैसे के लालच में, परंतु लोग गाठम से दुश्मनी नहीं लेते। अगर हमारे लोग गाठम के लिए जंगल भी गए तो शायद कामयाब न हो सकें। वहां गाठम तक जाने का रास्ता बताने वाला कोई नहीं मिलेगा। अपने जंगल में वो लोग और भी खतरनाक हो जाते हैं। वो हमारे आदमियों को मार देंगे। हम तो ये भी नहीं जानते कि गाठम के गिरोह में कितने लोग हैं। गाठम को खत्म कर में घुस पाना आसान होता तो सरकार कबका ये काम कर चुकी होती। उन घने जंगलों में गाठम ताकतवर है। हमसे भी, सरकार से भी ताकतवर है। मेरे लिए सबसे अच्छी बात इस समय ये ही है कि गाठम चूक गया। वो बेवू के हमशक्ल का अपहरण करके ले गया। जब इस बात का उसे पता चलेगा तो अपना सिर पीट लेगा। लेकिन जो भी हो, गाठम ने मुझ पर हाथ डाला है अब परेशानी तो उसे उठानी ही पड़ेगी।”
“मैं कुछ और भी सोच रहा हूं सर।” सिटवी व्याकुल-सा कह उठा।
“क्या?” वोमाल जगवामा ने उसे देखा।
“आप कहते हैं कि बेवू सर का हमशक्ल है, पर मुझे तो अभी भी ये ही लगता है कि वो बेवू सर ही हैं।”
“मुमरी माहू ने भी ये ही कहा था कि वो बेवू नहीं है।”
“ये ही कहा था।”
“अपनी तसल्ली करने के बाद ही मुमरी ने ये बात कही है। बिना वजह मुमरी ऐसा क्यों कहता, फिर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वो बेवू नहीं था। उसकी आंख की पुतली के सफेद हिस्से से वो लाल निशान वाला बिंदु नहीं था जो कभी हट नहीं सकता।” वोमाल जगवामा ने दृढ़ स्वर में कहा –“मुमरी को फोन लगा सिटवी, मेरी बात करा।”
सिटवी ने टेबल पर वोमाल का मोबाइल उठाया और नम्बर मिलाकर फोन वोमाल को दिया। वोमाल ने फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जा रही थी। वोमाल के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।
“हैलो।” मुमरी माहू का स्वर कानों में पड़ा।
“मुमरी।” वोमाल बोला –“सफर की तैयारी हो गई।”
“हम निकलने ही जा रहे हैं सर।” मुमरी माहू ने उधर से कहा।
“बेवू का अपहरण हो गया है। गाठम के आदमी चिकी ने खुद ये काम किया है।”
“क्-क्या सर?” उधर से मुमरी माहू का हक्का-बक्का स्वर कानों में पड़ा।
“उसी बेवू का अपहरण हुआ है, जिससे तू दिन में मिला था।”
“स-समझ गया सर।”
“वो शाम को इस्टेट से बाहर गया और चिकी उसे उठा ले गया। वो उसे बेवू ही समझ रहे हैं। मैं भी ये ही चाहूंगा कि गाठम उसे बेवू समझे। तू उस बस्ती से बेवू को सुरक्षित ले आना। ये काम चुपचाप करने की कोशिश करना। गाठम का गिरोह भी उसी जंगल में है, जहां उस लड़की के पास बेवू गया है। समझा मेरी बात?”
“समझा सर। पर गाठम ने ये काम गलत किया है। उसे बेवू पर हाथ नहीं डालना चाहिए था।”
“गाठम की अक्ल ठीक कर दी जाएगी। पहले बेवू को तू ठीक से वापस ले आ। फिर गाठम को भी देख लेंगे।”
“गाठम जल्दी ही फिरौती के लिए आपसे सम्पर्क करेगा।”
“मालूम है। हम उससे बातचीत जारी रखेंगे। उसे कोई शक नहीं होने देंगे कि वो बेवू के हमशक्ल को ले गया है। तब तक तू बेवू को ले आएगा। उसके बाद गाठम की गर्दन तोड़ने के बारे में सोचा जाएगा। सतर्कता से काम करना।”
“स-समझ गया सर।” मुमरी माहू की सोचों में डूबी आवाज आई।
वोमाल जगवामा ने फोन बंद करके अपने पास ही रखा और सिटवी से कहा।
“मुमरी को बेवू के साथ वापस आने में एक सप्ताह लग जाएगा। हमारे पास एक सप्ताह का वक्त है। गाठम या उसके लोगों का फोन कभी भी आ सकता है। एक सप्ताह तक हमें उनसे सौदेबाजी करते रहना है। उन्हें उलझाए रखना है।”
“मैं समझ गया सर। आज रात मैं यहीं रुक जाता हूं।” सिटवी सिर हिलाकर उठा –“फोन आया तो यहीं पर आएगा। शायद आपके फोन पर आए। मेरा यहीं पर रहना ठीक होगा।”
☐☐☐
आठ बज रहे थे। सोहन गुप्ता ट्रेवल्स एजेंसी के पीछे बने कमरों में मौजूद था। सोफे पर बैठा हुआ था। सोचों में डूबा लग रहा था। भसीन और रोशन चार बजे से ही किसी काम के लिए बाहर गए हुए थे। कुछ देर पहले ही उनका फोन आया था कि वो आधे घंटे में पहुंच जाएंगे। तब सोहन गुप्ता ने कहा कि डिनर पैक कराकर लेते आएं। बेवू के लिए भी लाना, सुबह से उसे खाने को कुछ खास नहीं दिया है। उसके बाद सोहन गुप्ता ने कॉफी बनाकर पी थी। यही वो वक्त था कि जब उसका मोबाइल बजने लगा। उसने कॉल रिसीव की और फोन कान से लगाया।
“हैलो।”
“गड़बड़ हो गई सोहन।” उधर से उसके एजेंट की तेज आवाज कानों में पड़ी।
“क्या?” सोहन गुप्ता के होंठ भिंच गए।
“घंटा भर पहले बेवू, यानी कि जगमोहन का अपहरण, गाठम के दाहिने हाथ चिकी ने कर लिया।”
“ओह।” सोहन गुप्ता बुरी तरह चिहुंक उठा।
“खुली सड़क पर इस काम को अंजाम दिया गया। साथ में जगवामा के छः गनमैन थे, उन्हें मार दिया गया।”
“गाठम इसी तरह से काम करता है कि सामने वाला कुछ न कर सके।” सोहन गुप्ता ने शब्दों को चबाकर कहा –“ये तो बुरा हुआ। जगमोहन वहां से पता लगाने गया था कि बेवू पाकिस्तान के किन लोगों को जगवामा का संगठन बेच रहा है। लेकिन ये तो नई मुसीबत खड़ी हो गई। लगता नहीं कि अब जगमोहन ये काम पूरा करेगा।”
तभी दरवाजा खुला और भसीन, रोशन ने भीतर प्रवेश किया।
उन पर निगाह मारकर, सोहन गुप्ता ने फोन पर कहा।
“उसके बाद जगमोहन की कोई खबर मिली?”
“नहीं।”
“वोमाल ने क्या किया? पुलिस चीफ जामास से कहा होगा कि सारे शहर को सील करके बेवू को ढूंढ़े।”
“वोमाल की तरफ कुछ नहीं हुआ। वो चुप है।”
“चुप है। वोमाल जगवामा चुप रहने वाले लोगों में नहीं है। उसके बेटे का अपहरण किया है गाठम ने। वो गाठम को जड़ से उखाड़ देगा। वो जल्द-से-जल्द अपने बेटे को वापस पाकर रहेगा।”
“मैं नहीं जानता, लेकिन वोमाल की तरफ से कुछ भी नहीं हो रहा।”
“ये अजीब बात है।”
“कहीं वोमाल को पता तो नहीं लग गया कि जिसका अपहरण किया गया है, वो उसका बेटा नहीं है।”
“ऐसा कुछ होता तो मिर्जा हमें खबर कर देता।”
“मिर्जा का फोन नहीं आया?”
“अभी तक तो नहीं।” सोहन गुप्ता ने होंठ भींचे कहा –“इस बारे में कोई नई खबर हो तो मुझे बताना।”
सोहन गुप्ता के फोन बंद करते ही रोशन कह उठा।
“क्या हुआ?”
“जगमोहन का अपहरण गाठम ने कर लिया है।” सोहन गुप्ता ने बताया।
“गाठम ने?”
“चिकी खुद मैदान में आया था ये काम करने के लिए।”
“बुरा हुआ।”
“हमें ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। जगमोहन बेवू के रूप में है। वो वोमाल का बेटा बना हुआ है। वोमाल हर हाल में उसे छुड़ा लेगा। फिरौती देकर या गन के जोर पर। वो जगमोहन को कुछ नहीं होने देगा।”
“ये हैरानी है कि गाठम ने बेवू पर हाथ डाल दिया। उसे वोमाल जगवामा की ताकत का पता है। फिर भी...।”
“वोमाल जगवामा से गाठम बहुत बड़ी रकम ले सकता है।”
“रकम के साथ जगवामा की दुश्मनी भी तो ले लेगा।”
“मेरे खयाल में दुश्मनी से गाठम को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि गाठम पूर्व के जंगलों में सुरक्षित है। जगवामा उसे छू भी नहीं सकता। जंगल में गाठम का राज चलता है। वहां जगवामा की फौज भी पहुंच जाए तो गाठम आसानी से फौज को खत्म कर देगा। गाठम के लोग पूर्व के जंगलों के राजा हैं। वो जंगल का जर्रा-जर्रा जानते हैं, जबकि बाहरी आदमी घने जंगलों में रास्ता भटक कर अपना लक्ष्य भूल जाएगा। वो ये भी नहीं समझ पाएगा कि अपना पेट किस चीज से भरे?”
“तुम्हारा मतलब कि गाठम, जगवामा पर भारी है।”
“लगता तो है।”
“गाठम को।” भसीन बोला –“जब पता लगेगा कि वो बेवू नहीं किसी और का अपहरण कर लाया है तो...।”
“नहीं पता लग सकता। जगमोहन पर प्लास्टिक सर्जरी वाला मेकअप है।” सोहन गुप्ता ने कहा।
“अगर जगमोहन ही गाठम से कह दे कि वो बेवू नहीं...।”
“पागलों वाली बात मत करो। जगमोहन ऐसी बेवकूफी नहीं करेगा। वो जानता है कि जब तक वो वोमाल जगवामा के बेटे के रूप में स्थापित है, तब तक गाठम के पास सुरक्षित है। गाठम बेवू की जान नहीं लेगा। ये पता लगते ही कि वो बेवू नहीं, कोई और है तो उसे मार देगा। जगमोहन ने ये बात खोली तो अपनी मौत का वो स्वयं जिम्मेवार होगा।”
“ऐसा हो जाएगा, हमने तो सोचा भी नहीं था।” रोशन ने कहा –“जगमोहन का मिशन तो बीच में ही रह गया।”
“बेवू हमारे पास है। हम उससे पूछकर रहेंगे कि जगवामा के संगठन के कौन-से खरीददार हैं पाकिस्तान के।”
“तुमने देखा तो है कि वो मुंह खोलने को तैयार नहीं।”
“उसे तैयार करना पड़ेगा।” सोहन गुप्ता ने दृढ़ स्वर में कहा –“आओ भसीन बेवू के पास चलते हैं। उसे बताना पड़ेगा कि बाहर क्या हो रहा है। रोशन, बेवू के लिए खाना ले आओ।”
सोहन गुप्ता और भसीन आगे बढ़े और एक दरवाजा खोलकर चलते रहे। पंद्रह फुट लम्बी गैलरी थी ये। गैलरी के अंत में एक दरवाजा नजर आ रहा था। बाहर कुंडी लगी थी। सोहन गुप्ता ने कुंडी खोली और भीतर प्रवेश कर गए। इस कमरे में कुर्सियों और टेबल के अलावा कुछ नहीं था। वो साथ लगते दरवाजे की तरफ बढ़े और भीतर प्रवेश कर गए। वहां अंधेरा था। भसीन ने रोशनी कर दी।
बेवू फर्श पर बंधा पड़ा था। पांवों को मजबूती से बांधा हुआ था और दोनों हाथ पीठ पीछे बेहद सख्ती से बांध रखे थे। सोहन गुप्ता का इशारा पाकर भसीन बेवू के बंधन खोलने लगा।
बेवू ने नजरें उठाकर सोहन गुप्ता को देखा।
बेवू के चेहरे पर मारपीट के निशान दिखाई दे रहे थे।
“तुमने तो कहा था कि तुम्हारा बाप जगवामा तुम्हें ढूंढ़ लेगा। पर अभी तक तो कुछ नहीं हुआ।”
“एक-दो दिन इंतजार करो। तुम सबकी लाशें यहां पड़ी होंगी।” बेवू ने थके स्वर में कहा।
सोहन गुप्ता मुस्करा पड़ा।
भसीन बेवू के बंधन खोलकर पीछे हट गया।
बेवू उठ बैठा और अपने हाथ-पांव मसलने लगा। बार-बार दोनों को देख रहा था।
“जगवामा तुम्हें तब ढूंढ़ता, अगर तुम उसके पास न होते। पर तुम तो, उसके पास ही हो।”
“मेरे हमशक्ल की बात कर रहे हो।” बेवू ने सख्त स्वर में कहा।
“सही समझे।”
“उसका खेल ज्यादा देर नहीं चलने वाला। पापा इस भेद को पहचान लेंगे कि वो बेवू नहीं है।”
“अभी तक तो सब ठीक चल रहा है। इस हाल में तुम्हें जगवामा इस्टेट की याद तो बहुत आ रही होगी।”
बेवू ने कुछ नहीं कहा।
“मैंने फैसला किया है कि रात-रात में तुमसे ये बात जान लेंगे कि कौन पाकिस्तानी लोग, तुम्हारे बाप के संगठन को खरीद लेना चाहते हैं या तो तुम मुंह खोलोगे या सुबह तक जान गंवा दोगे। तुम्हारे लिए खाना आ रहा है, हो सकता है ये खाना तुम्हारे जीवन का आखिरी खाना हो।” सोहन गुप्ता एकाएक दरिंदगी से कह उठा।
“जब तक मेरा मुंह बंद है, तुम मुझे जिंदा रखोगे।" बेवू कह उठा।
“भूल में हो।” सोहन गुप्ता कहर से बोला –“अगले दो घंटों में तुम्हें इस बात का एहसास होने लगेगा कि तुम मरने वाले हो। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। बहुत व्यस्त रहते हैं हम। तुम या तो मुंह खोलो या मरो। तुम्हारी मौत के बाद हम जामास पर हाथ डालेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि खुद को फंसा पाकर वो आसानी से सब कुछ बता देगा।”
तभी रोशन ने भीतर प्रवेश किया। उसके हाथ में खाने का थाल था। जो कि बेवू के सामने रख दिया गया। बेवू ने खाने को देखा। वो अच्छा था। खामोशी से बेवू खाना खाने लगा।
सोहन गुप्ता दूसरे कमरे से कुर्सी लाया और उस पर बैठ गया।
“जो हम जानना चाहते हैं वो बता दो तो तुम्हारी जान बच जाएगी।” भसीन ने कहा –“हम तुम्हारी जान नहीं लेना चाहते।”
“तुम लोग मेरी जान लोगे भी नहीं। पापा से दुश्मनी मोल लेकर इस दुनिया में कहीं भी बचे नहीं रह सकते।” खाना खाते हुए बेवू ने कहा –“मेरे हमशक्ल का राज खुलते ही, पापा मुझे तलाश कर लेंगे और तब तुम लोग बचोगे नहीं।”
“तुम्हारे हमशक्ल का राज कभी नहीं खुलेगा। वजह जानना चाहोगे बेवू।” सोहन गुप्ता ने कहा।
“कोई वजह नहीं है। शायद पापा अब तक पहचान भी चुके हों कि वो बेवू नहीं है।”
“तुम्हारे हमशक्ल का गाठम ने अपहरण कर लिया है।”
खाना खाते बेवू थम से रुक गया।
“तुम्हारा मतलब कि गाठम ने मेरा अपहरण कर लिया?” बेवू के होंठों से निकला।
“ये ही कहा मैंने। ये बात सात बजे के करीब की है। तब हमशक्ल गनमैनों के साथ इस्टेट से बाहर था।”
बेवू गहरी सांस लेकर रह गया।
“अब समझे तुम के जगवामा क्यों नहीं जान सकता कि वो नकली बेवू है।”
बेदू की निगाह उन तीनों पर जाती रही।
“जगवामा हमारे आदमी को ही अपना बेटा समझ रहा है अब उसे छुड़ा लाने के प्रयास में लग जाएगा।”
“उसका अपहरण होने पर तुम लोगों का प्लान तो फेल हो गया कि वो वहां रहकर, पाकिस्तान के उन लोगों के बारे में जान लेगा। तुम लोगों की सारी मेहनत बेकार गई।” बेवू ने पुनः खाना, खाना शुरू कर दिया।
“हम तो तुम्हारा मुंह खुलवा लेंगे।”
“अच्छा यही होगा कि जामास पर हाथ डालो। शायद वो तुम्हारे मतलब की बात बता दे।”
“तो तुम्हारा इरादा नहीं बताने का?”
“नहीं।”
“अभी तक तो तुम पर हाथ-पांव जमाए थे अब हम तुम्हें टॉर्चर करने वाले हैं।”
“मुझे खाना खाने दो। उसके बाद जो मन में आए करना।”
रोशन ने सोहन गुप्ता को देखा।
“आज रात हम तुम्हारा मुंह खुलवा लेंगे बेवू।” भसीन ने सख्त स्वर में कहा –“रोशन हम भी खाना खा लेते हैं।”
“जरूर। आज ये नहीं या हम नहीं । देखता हूं कैसे मुंह बंद रखता है।”
बेवू ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हें हमारी बात मानकर, पाकिस्तान के उन लोगों के नाम बता देने चाहिए।”
बेवू खाना खाने में लगा। वो किसी भी तरह के डर-खौफ में नहीं था।
“आज रात इसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी।” रोशन कड़वे स्वर में कह उठा।
बेवू के खाना खा लेने के पश्चात भसीन ने उसके बर्तन उठाए। रोशन ने उसे पुनः पहले की ही तरह बांधा। फिर जल्दी आने को कहकर तीनों बाहर निकल गए।
“जैसे भी हो इसका मुंह खुलवाओ।” सोहन गुप्ता ने चलते हुए कहा और फोन निकालकर मार्शल का नम्बर मिलाने लगा। जगमोहन के साथ जो हुआ, उसकी खबर मार्शल को देना जरूरी हो गया था।
☐☐☐
रात के दस बज रहे थे। सिटवी बेचैनी भरे अंदाज में चहल-कदमी कर रहा था। उसके चेहरे पर सख्ती दिखाई दे रही थी। अभी तक उसने खाना भी नहीं खाया था। जबकि वोमाल जगवामा ने खाना खा लिया था। पूरे बंगले में ये बात जाहिर हो चुकी थी कि बेवू सर का अपहरण हो गया है। जबकि वो इस बात से अंजान थे कि जिसे वो बेवू समझ रहे हैं, वो कोई और है। वोमाल ने ये बात बंद ही रखी थी।
वोमाल जगवामा इस वक्त लेटा हुआ था। उसकी आंखें खुली थी और गर्दन घुमाकर वो टहलते सिटवी को देख रहा था। इन दोनों के अलावा कमरे में और कोई नहीं था।
“इधर आ।” वोमाल जगवामा ने उसे पुकारा।
सिटवी फौरन पास आ गया।
“जी सर।”
“तू परेशान क्यों है?”
“परेशानी वाली तो बात है ही सर। गाठम ने हमारी इज्जत पर चोट की है। उसने शूटआउट किया। छः गनमैनों को मारा और बेवू सर का अपहरण करके ले गया। मुझे बहुत शर्म आ रही है कि हम अभी तक चुप हैं।”
“तेरे को पता है न कि हम चुप क्यों हैं।” वोमाल बोला।
“इसलिए कि वो बेवू सर नहीं थे। कोई और था। पर तब भी ये बात जंचती नहीं कि हम चुप रहें। गाठम तो नहीं जानता कि उसने गलत आदमी का अपहरण किया है। वो तो यही सोचता है कि चिकी ने बेवू सर का अपहरण कर लिया। हमारा फर्ज बनता है कि गाठम को जबर्दस्त चोट दें। जामास के कई फोन आ चुके हैं वो हर बार कहता है कि मुझे बताओ मैं क्या करूं? क्या चिकी को पकड़ने की कोशिश करूं। जामास भी उलझन में है कि हम लोग चुप हैं।”
“अब तक तो चिकी, बेवू को लेकर इस शहर से दूर निकल चुका होगा।”
“आप पहले ही जामास को इशारा दे देते तो, वो नहीं निकल पाता।”
“वो तब भी निकल जाता। चिकी बहुत खतरनाक है। वो अपना काम करना जानता है।” वोमाल जगवामा ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैं सिर्फ तब तक ही चुप हूं जब तक मुमरी माहू, बेवू को जंगल की बस्ती से पकड़कर वापस नहीं ले आता। मैं बेवू को सुरक्षित देखना चाहता हूं। मुमरी माहू को लौटाने में कितने दिन लगेंगे?”
“शायद छः दिन। तीन दिन के सफर के बाद जंगल की उस बस्ती में पहुंचा जा सकता है, जहां वो लड़की रहती है।”
“इसका मतलब कि हमें छः या सात दिन इंतजार करना...।”
तभी वोमाल जगवामा का फोन बज उठा।
सिटवी ने आगे बढ़कर मोबाइल उठाकर देखा फिर बोला।
“मैगवी है फोन पर। आप बात करेंगे या मैं करूं?”
“मैगवी के पास ऐसा काम नहीं कि हमें फोन करे। वो कोई काम कर रहा है क्या?”
“मैगवी महीने भर से छुट्टी पर है। उसका बेटा हुआ है। उसने पहले ही कहा था कि बेटा हुआ तो दो महीने की छुट्टी लेगा।”
“तुम बात करो।” वोमाल जगवामा बोला।
सिटवी ने कॉल रिसीव की और बोला।
“हां मैगवी?”
“मेरा ये ही ख्याल था सिटवी कि तू सर के पास ही होगा। बेवू सर के अपहरण के बारे में सुना। गाठम की मौत आ गई है जो उसने ये काम कर डाला। मैं अभी वापस आ रहा हूं। हम गाठम को...।”
“सुनो मैगवी।” सिटवी तेज स्वर में कह उठा –“अभी तुम्हारे आने की जरूरत नहीं है।”
“मेरे आने की जरूरत नहीं है। ये तुम क्या कहते हो।” उधर से मैगवी ने कहा –“गाठम ने बेवू सर का अपहरण कर लिया है और तुम मुझे आने से रोक रहे हो। तुम्हारा दिमाग तो ठीक है।”
“सर नहीं चाहते कि अभी कुछ किया जाए।”
“क्यों नहीं चाहते। मैगवी चाहता है तो सर क्यों नहीं चाहते। सर से मेरी बात कराओ।”
सिटवी हिचकिचाया। चुप रहा।
“सिटवी।” मैगवी की आवाज पुनः आई –“सर से मेरी बात कराओ।”
सिटवी, वोमाल जगवामा से कह उठा।
“मैगवी आपसे बात करना चाहता है सर।”
“अभी नहीं। वो जो भी कहता है तुम ही उसे समझा दो।” वोमाल जगवामा गम्भीर स्वर में बोला।
“मैगवी।” सिटवी फोन कान में लगाकर बोला –“सर अभी आराम कर रहे हैं। तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो।सर गाठम की तरफ से आने वाले फोन का इंतजार कर रहे हैं। पता तो चले कि वो क्या चाहता...।”
“भाड़ में गया गाठम। वो कुछ नहीं चाहता। अब तो हम उसकी मौत चाहते हैं। बेवू सर को सही-सलामत वापस लाने का मेरा वादा रहा। गाठम की गर्दन काटने का मेरा वादा रहा। मैं वापस आ रहा...।”
“सर को अभी तुम्हारी जरूरत नहीं। अभी वक्त नहीं आया। शायद मैं तुम्हें दो दिन बाद फोन करूं।”
“सर ऐसे तो नहीं थे कि शांत रहें। वो भी बेवू सर के मामले में...।”
“हम दो दिन बाद बात करेंगे मैगवी। तुम्हारी जरूरत तो पड़ेगी ही इस काम में।”
उधर से मैगवी ने फोन बंद कर दिया।
फोन रखता सिटवी बोला।
“मैगवी बहुत गुस्से में है कि गाठम ने बेवू का अपहरण...।”
उसी पल फोन पुनः बज उठा।
सिटवी ने फोन उठाकर देखा फिर कहा।
“कोई नया नम्बर है सर।”
“मुझे दो। ये कॉल गाठम की तरफ से हो सकती है।” वोमाल जगवामा ने हाथ बढ़ाया।
सिटवी ने मोबाइल जगवामा को थमाया तो जगवामा ने बात की।
“हैलो।”
“वोमाल जगवामा बोल रहा है?” उधर से तीखे स्वर में कहा गया।
“हां।”
“तुम्हारा बेटा बेवू हमारे कब्जे में है तुम...।”
“तुम कौन हो?”
“मैं गाठम की तरफ से बोल रहा हूं। समझ गया न?”
“अपना बोलने का लहजा ठीक करो।” वोमाल का स्वर कठोर हो गया।
“लगता है तेरे को अपने बेटे की लाश चाहिए।”
“इतनी हिम्मत है तो बेवू की लाश भेजकर दिखाओ।” वोमाल जगवामा गुर्रा उठा।
“तेरे शब्द मैं गाठम तक पहुंचा दूंगा।”
“चिकी से मेरी बात करा।” वोमाल के चेहरे पर गुस्सा नजर आ रहा था।
“उसके पास फालतू का टेम नहीं है। तेरे को ये कहने के वास्ते फोन किया कि बेवू की खैरियत चाहता है तो हाथ-पांव मत मारना बेवू के लिए। हमारे अगले फोन का इंतजार करना।”
“चिकी से...।”
परंतु तब तक उधर से फोन बंद कर दिया गया था।
वोमाल जगवामा ने कान से फोन हटाया। चेहरे पर क्रोध था।
“क्या हुआ सर?”
“अगले फोन तक हमें इंतजार करने को कहा गया है। हमें चुपचाप बैठने को कहा गया है। बहुत बुरे ढंग से मेरे से बात की गई। मुमरी, बेवू को ले आए तो गाठम को, उसकी हरकत का जवाब दूँगा।” जगवामा का स्वर खतरनाक हो गया –“उसने मेरी तरफ देखकर बहुत बड़ी गलती की है। फोन करने वाला बेवू को मारने की धमकी दे रहा था। क्या गाठम को इतना ज्यादा अहंकार हो गया कि वो मुझे भी कुछ नहीं समझ रहा।”
सिटवी सतर्क भाव से वोमाल जगवामा को देखने लगा।
“जब तक गाठम समझता है कि उसने बेवू का अपहरण किया है तो हमें भी ये ही सोचकर चलना होगा कि बेवू का अपहरण हो गया है। केली को फोन लगा सिटवी। उसे बोल कि पूर्व के जंगलों का पूरा नक्शा चाहिए मुझे। गाठम जहां रहता है नक्शे में वो जगह भी होनी चाहिए। उसे समझा देना कि शोर डालकर ये काम न करे।”
सिटवी ने केली को फोन करके समझा दिया।
केली ने कहा कि कल सुबह तक वो सारा इंतजाम कर देगा।
“सर ये भी सम्भव है कि गाठम के सामने बेवू के नकली होने का भेद ही न खुले। वो उसे असली...।”
“ऐसा नहीं होगा। बेवू ने जिसे अपना हमशक्ल बनाकर छोड़ा है, वो अपनी जान छुड़ाने के लिए ये ही कहता फिरेगा। दो-तीन दिन में गाठम को इस बात का पता चल जाएगा कि वो गलत आदमी को उठा लाए हैं।” वोमाल ने कहा।
“जो भी हो। हमने गाठम को अक्ल सिखानी है।” सिटवी बोला।
“बेवू को आ जाने दो। उसके बाद इसी बात का प्रोग्राम बनाया जाएगा। कल केली वहां का नक्शा ले आएगा उसे देखकर ही मैं आगे का प्रोग्राम बनाऊंगा। हमने अपनी तैयारी चुपचाप ढंग से करनी है। गाठम के लोग इस शहर में भी हैं। वो हम पर जरूर नजर रख रहे होंगे कि हम क्या कर रहे हैं।”
“उन्हें कुछ नहीं पता चलने वाला कि हम क्या कर रहे हैं।” सिटवी होंठ भींचकर कह उठा।
☐☐☐
जगमोहन को लेकर जब कार चली तो वो अपने अगल-बगल बैठे लोगों के बीच फंसा पड़ा था। एक आदमी कार चला रहा था। बगल की सीट पर चिकी बैठा था। पीछे उसके अलावा तीन लोग ठूँसे बैठे थे। सब-के-सब खतरनाक लग रहे थे। उनकी तेज सांसों की आवाजें जगमोहन को स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
“तुम लोगों ने उन सबको गोलियों से भून दिया।” जगमोहन गुस्से से बोला –“पापा तुम लोगों को मार देंगे।”
“चुप कर।” चिकी पीछे मुंह घुमाकर गुर्रा उठा।
“तुम लोगों का दिमाग खराब है जो मेरा अपहरण...।”
जगमोहन ठिठका। उसने देखा कि चिकी ने पीछे बैठे व्यक्ति को सिरिंज दी है, जिसमें दवाई भरी हुई थी। समझते देर न लगी उसे कि वह इंजेक्शन उसे लगाया जाएगा।
“ये क्या है, तुम लोग मुझे...।”
उसी पल उस व्यक्ति ने इंजेक्शन की सुई जानवरों की तरह उसकी बांह में घुसेड़ी और सिरिंज दबा दी। सारी दवा जगमोहन के शरीर में प्रवेश कर गई। मिनट भर में ही वो बेहोश हो गया।
☐☐☐
अंधेरा गहरा होता जा रहा था। जगमोहन कार की पीछे वाली सीट पर बेहोश पड़ा था। एक आदमी कार से टेक लगाए खड़ा सिग्रेट के कश ले रहा था। ये जगह शहर की सीमा पर थी। नई कॉलोनी बनी थी। कई प्लाट खाली थे अभी। जो मकान बन चुके थे, वो शानदार थे। पक्की गलियां, सड़कें थी। उस आदमी ने सिगरेट एक तरफ फेंकी और कार के भीतर जगमोहन पर निगाह मारकर मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा। बात हुई।
“तुम अभी तक नहीं पहुंचे ढली?” उसने फोन पर कहा।
“रास्ते में हूं मोक्षी। दस मिनट इंतजार करो।”
“साथ में कौन है?”
“आदिन और होपिन।”
“मुझे भूख लग रही है। सुबह से इतना व्यस्त रहा कि कुछ भी खाया नहीं।” मोक्षी ने कहा।
“हमने भी कुछ नहीं खाया। खाना लगा रहा हूं। सब इकट्ठे ही खाएंगे। बेवू ठीक है?”
“बेहोश है।”
“उसे आधी रात से पहले होश नहीं आने वाला।” उधर से ढली ने हंसकर कहा।
“तुम हंस रहे हो। जानते हो वोमाल जगवामा इस वक्त पागल हो रहा होगा।
“अभी तो बहुत कुछ होगा। ये तो शुरुआत है।” दूसरी तरफ से ढली पुनः हंसा।
“हंसो मत। हम खतरनाक खेल, खेल रहे हैं।”
“ये तो हमारा काम है।”
“पर इस बार खेल ज्यादा खतरनाक है। वोमाल जगवामा के बेटे का अपहरण किया है। उसके छः गनमैनों को हमने शूट किया।”
“तभी तो जगवामा सुलगेगा। तभी तो कुछ होगा, जो हम चाहते हैं। तुम डर रहे हो क्या?”
“पागल जो ऐसा कह रहे हो। मोक्षी ने डरना नहीं सीखा। मकान कौन-सा है। जिसकी चाबी तुम्हारे पास है?”
“एक सौ बारह नम्बर।”
“तो मैं तुम्हें 112 के बाहर मिलता हूं।” कहकर मोक्षी ने फोन बंद करके जेब में डाला और आस-पास देखते हुए पलटकर कार के भीतर पीछे की सीट पर पड़े जगमोहन को देखा।
जगमोहन के हाथ-पांव बंधे हुए थे। वो बेहोश था।
‘तेरा बेटा हमारे पास है वोमाल जगवामा।’ वो बड़बड़ा उठा – ‘अब तू क्या करेगा?’
☐☐☐
मोक्षी, ढली, होपिन, आदिन ने 112 नम्बर मकान में प्रवेश किया। आदिन के पास चाबी थी। वो सब दरवाजे खोलता जा रहा था। लाइट जला ली गई। मकान के भीतर सामान पूरा था। सोफा था। बेड था। ए.सी. था। पर्दे लगे थे। फ्रिज और किचन में खाने-पीने का सामान भी था। नया बना मकान था।
होपिन और मोक्षी वापस कार तक पहुंचे। कार मकान के गेट के भीतर खड़ी थी। होपिन ने जगमोहन को सीट से खींचकर बाहर किया फिर पकड़कर कंधे पर लादकर भीतर की तरफ चल पड़ा।
“जगवामा अपने बेटे का हाल देखे तो हमें गोली मार दे।” मोक्षी ने मुंह बनाकर कहा।
“वो नहीं कर सकता।” आगे जाते होपिन ने कहा।
भीतर ले जाकर जगमोहन को एक बेड पर लिटा दिया गया।
“हाथ-पांव खोलने हैं क्या?” ढली ने कहा।
“कोई जरूरत नहीं।” आदिन ने कहा –“हम किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते। खेल अभी बहुत लम्बा है।”
“पहले खाना खा ले। उसके बाद बात करते हैं।” मोक्षी ने कहा।
होपिन और ढली ने साथ लाए खाने को बर्तनों में डाला और खाने को बैठ गए।
ढली का पूरा नाम रत्ना ढली था। जगमोहन के अपहरण के वक्त इसने ही खुद को चिकी कहा था।
आदिन, मोक्षी और होपिन भी अपहरण के वक्त भीड़ में शामिल थे। इनके और साथी भी तब वहां थे।
“ये काम कल ही हो जाता, जब बेवू शादी में आया था।” खाना खाते होपिन ने कहा – “परंतु शादी में आते वक्त अचानक ही इन लोगों ने रूट बदल लिया और हम काम न कर सके।”
“मेन मकसद तो काम को ठीक से होना था। कल नहीं तो आज ठीक से काम हो गया।” आदिन ने कहा।
“साहब जी हमारे काम से खुश हैं।” रत्ना ढली ने कहा।
“बात हुई साहब जी से?”
“थोड़ी-सी। आधा मिनट बात करके ही फोन काट दिया था।”
“अपहरण के वक्त मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था। आखिर हम जगवामा के बेटे को उठा रहे थे।” आदिन ने कहा।
“मुझे उन गनमैनों से खतरा था कि कहीं उनको कुछ करने का मौका मिल जाता तो हमारी लाशें पड़ी होतीं।” रत्ना ढली कह उठा –“पर हमने उन्हें मौका ही नहीं दिया कि वो कुछ कर पाते।”
आदिन की उम्र पचास बरस थी।
रत्ना ढली तीस का, मोक्षी पैंतीस का और होपिन पैंतालीस का। चारों पढ़े-लिखे जिम्मेवार व्यक्ति लग रहे थे। लेकिन इस वक्त उनके हाव-भाव में सख्ती भरी पड़ी थी।
चारों ने खाना समाप्त किया।
“कॉफी कौन पिलाएगा?” होपिन ने कहा।
“मैं बना दूंगा।” मोक्षी बोला।
“स्ट्रांग बनाना।”
“हमें काम की बातें भी कर लेनी चाहिए।” आदिन ने कहा।
“कॉफी के साथ काम की बातें होंगी।” कहकर होपिन उस कमरे में पहुंचा जहां जगमोहन था। जगमोहन बेड पर पेट के बल बेसुध पड़ा था। उसके दोनों हाथ पीठ की तरफ बंधे थे और पैरों को भी बांध रखा था। होपिन उसके करीब पहुंचकर, कपड़ों की तलाशी लेने लगा।
आदिन ने भीतर प्रवेश किया और उसे देखकर बोला।
“हमने सब सामान निकाल लिया था।”
होपिन पीछे हटता बोला।
“क्या मिला?”
“रूमाल, पर्स, रिवॉल्वर, मोबाइल। बस।”
“ये खतरनाक है। अपने बाप का संगठन नहीं संभालना चाहता, वो अलग बात है। हमें इस पर कड़ी नजर रखनी होगी।”
“ये कितना भी खतरनाक सही, पर हमारे काबू में रहेगा। हम इसे मौका नहीं देने वाले।”
“हमारे प्लान का अहम हिस्सा था इसका अपहरण कर लेना। हम ठीक से सफल हो गए।”
“ये तो मात्र शुरुआत भर है।”
“हां। ये सिर्फ शुरुआत है। काम अभी बाकी है। कुर्सियां ले आओ। हम यहीं, इसके पास ही बैठेंगे। मेरे खयाल में दो घंटे तक इसे होश आ जाएगा।” होपिन बोला –“दो आदमी तो हर वक्त इसके पास रहने चाहिए।”
कुछ देर बाद ही वे चारों उसी कमरे में कुर्सियों पर बैठे कॉफी के घूंट भर रहे थे।
“तो अब आगे क्या करना है?” रत्ना ढली ने कहा।
“आगे?”
“मैं वोमाल जगवामा की बात कर रहा हूं। उसे फोन करना होगा।”
“अभी नहीं।” आदिन ने इंकार में सिर हिलाया –“शाम को उसे फोन किया था। इतनी जल्दी मत करो। कल उसे फोन करेंगे।”
“कल नहीं, अभी फोन करना ठीक होगा।” होपिन ने कहा –“उसे बार-बार फोन करो। उसे उलझाए रखो और सोचने का मौका मत दो उसे परेशान कर देना है कि वो ठीक से सोच भी न सके।”
“वोमाल जगवामा को परेशान करना इतना आसान भी नहीं।”
“क्यों?”
“वो बहुत सब्र से काम लेता...।”
“सब्र?” होपिन ने आदिन को घूरा –“उसके बेटे को अपहरण कर लिया गया। अपहरण के वक्त शूटआउट हुआ और उसके छः गनमैन मारे गए। ऐसे में जगवामा को सब्र कहां होगा। वो बर्मा में कितना पावरफुल इंसान है, ये बात हम सब जानते हैं। वो इस बात को कैसे सह सकता है कि कोई उसके बेटे को उठा ले जाए।”
“खासतौर से गाठम।”
“हमने चिकी का नाम लिया था अपहरण के वक्त। वो ये ही सोच रहा है कि बेवू को गाठम ने उठाया है। गाठम तो वैसे भी अपहरण के धंधे का बेताज बादशाह है, इसलिए शक की कोई गुंजाइश नहीं कि जगवामा, गाठम को ही जिम्मेवार मान रहा है। ऐसा ही तो हम चाहते थे। ये ही हमारी प्लानिंग का हिस्सा था।”
“हमें पक्की खबर चाहिए कि जगवामा ये ही सोच रहा है।”
“पक्की खबर है।” होपिन ने कहा –“साहब जी से मेरी बात हुई थी। उन्होंने ये ही कहा कि जगवामा ये बात सच मान बैठा है कि बेवू का अपहरण गाठम ने किया है।”
“इसका मतलब हम सही जा रहे हैं।” मोक्षी ने घूंट भर कर सिर हिलाया।
“मेरा मानना है कि।” रत्ना ढली बोला –“जगवामा को एक फोन और कर देना चाहिए।”
“मैं सहमत हूं।” होपिन ने कहा।
“मेरे खयाल में ऐसा करना जल्दबाजी होगी।” आदिन कह उठा।
“तुम बात को समझो आदिन। जगवामा को खुला मत छोड़ो। उसे उलझाए रखो। इस वक्त कम-से-कम वो नींद नहीं ले रहा होगा। वो इन्हीं हालातों पर सोच रहा होगा। तिगड़म लगा रहा होगा कि गाठम से कैसे निबटा जाए। हमारा फोन उसे जाता रहेगा तो साला और कल्पेगा। ऐसे में गाठम के लिए वो कुछ बड़ा सोचेगा।”
आदिन ने मोक्षी से पूछा।
“तुम क्या कहते हो कि जगवामा को फोन किया जाए?”
“मेरा बस चले तो मैं उसकी छाती पर बैठ जाऊं।” मोक्षी बोला –“मेरी राय है कि अगर फोन करना है तो आधी रात को करो। जब वो अपने सोचों से थकने जा रहा होगा। तब हमारा फोन उसके दिमाग पर ज्यादा असर करेगा। ये बात मुझे ठीक लगी कि उसे चैन मत लेने दो, फोन करते रहो।”
“हम सिर्फ जगवामा से ही बात करेंगे।” होपिन ने कहा।
“मतलब?”
“अगर सिटवी हमारा फोन सुनना चाहे तो उसे कहेंगे कि हमने सिर्फ वोमाल से बात करनी है। सिटवी नहीं मानता तो हम फोन बंद कर देंगे। इससे जगवामा पर हमारा ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। वो हमें गम्भीरता से लेगा।”
“जब शाम को मैंने उसे फोन किया तो मेरे को कहता है चिकी से बात कराओ।” रत्ना ढली ने कड़वे स्वर में कहा –“मेरा जवाब सुनकर सुलग गया होगा कि कोई उससे इस तरह भी बात कर सकता है।”
“ये अच्छी बात है कि बेवू के अपहरण के पीछे वो गाठम का हाथ समझ रहा है।”
“इस बार तुम नहीं बात करोगे।” आदिन ने कहा –“हममें से कोई और करेगा। हर बार नई आवाज होगी तो उस पर ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। क्या जगवामा ने चिकी से बात की होगी कभी? कभी उसे देखा होगा?”
इस सवाल पर सब एक-दूसरे को देखने लगे।
“पता नहीं।” मोक्षी बोली।
“मेरे पास इस तरह की कोई खबर नहीं है।”
“साहब जी से पूछना पड़ेगा। पर तुमने ये बात क्यों कही?”
“इसलिए कि जगवामा चिकी से बात करने की जिद करता है तो हममें से कोई भी चिकी बन सकता है।”
“ये बात भी सही है।”
“साहब जी को फोन करके पूछो कि जगवामा चिकी को जानता हैं?”
“मैं पूछता हूं।” मोक्षी ने फोन निकाला और नम्बर मिलने लगा।
पहली बार में ही नम्बर लगा। बात हो गई।
“साहब जी नमस्कार।” मोक्षी बोली।
“सब ठीक तो है?” उधर से भारी, सख्त स्वर कानों में पड़ा।
“एकदम ठीक।”
“बेवू कैसा है?”
“अभी होश नहीं आया।”
“मुझे सारा काम ठीक चाहिए। अब वापस पलटने के लिए हमारे पास रास्ता नहीं है। छ: महीनों से हम इस काम की तैयारी दिन-रात कर रहे थे। अब मैं सिर्फ सफलता देखना चाहता हूं।”
“काम शुरू कर दिया तो सफलता भी मिलेगी।”
“तुम चारों समझदार हो। सोच-समझकर प्लान की मुताबिक ही काम करना। दिक्कत आए तो मेरे से बात करो।”
“बिल्कुल साहब जी। एक बात तो बताइए कि चिकी की बात जगवामा से हुई होगी?”
“कभी नहीं। पर क्यों?”
“पिछले फोन में जगवामा चिकी से बात करने को कह रहा था। हममें से कोई भी चिकी बनकर उससे बात कर सकता है। आखिरकार चिकी को जगवामा से देर-सवेर में बात तो करनी ही पड़ेगी।”
“मैं समझ गया तुम्हारी बात। जरूरत पड़ने पर किसी को भी चिकी बनाकर बात करा दो। प्लान के हिसाब से चलते रहो। बाकी की तैयारी में इधर कर रहा हूं। बेवू पर कड़ी निगाह रखना। एकदम कड़ी, उसे अकेला मत छोड़ना।”
“जी साहब जी।”
साहब जी ने उधर से फोन बंद कर दिया।
मोक्षी फोन को जेब में रखता बोला।
“हममें से कोई भी चिकी बन सकता है। ढली तुम चिकी नहीं बनोगे। क्योंकि तुम जगवामा से बात कर चुके हो। जो भी जगवामा से बात कर लेगा, वो चिकी नहीं बन सकता। हममें से एक को चिकी बनने के लिए, अभी जगवामा से बात नहीं करनी होगी। हम तीन ही जगवामा से बात करेंगे। चिकी कौन बनना चाहेगा?”
“मैं बनूंगा।” आदिन ने कहा।
☐☐☐
वोमाल जगवामा की आंखों से नींद गायब थी। होती भी क्यों न, गाठम ने उसके गिरेबान में हाथ डालकर, उसे इस बात का एहसास दिलाने की कोशिश की है कि वो बूढ़ा हो गया है। कमजोर हो गया है। जगवामा सोच रहा था कि गाठम ने उसकी बीमारी को देखकर ऐसा किया। दो साल पहले उसकी तबीयत बहुत बिगड़ गई थी। डॉक्टरों ने लगभग जवाब दे दिया था, परंतु वो ठीक हो गया था। जिंदा रहा और बखूबी अपने काम संभाल रहा था। परंतु गाठम की हरकत ने उसे हिलाकर रख दिया था।
ये ठीक था कि जिसका अपहरण हुआ वो बेवू नहीं था, परंतु उसका बेवू न होना भी इत्तेफाक ही था, बेवू ने चुपचाप भागने के लिए अपना हमशक्ल तैयार किया और उसे छोड़कर खुद खिसक गया, वरना गाठम ने तो बेवू का ही अपहरण किया है। गाठम को इस हरकत का सख्ती से जवाब देना होगा कि कोई उसके खिलाफ सिर उठाने की न सोचे।
वोमाल जगवामा के मस्तिष्क में ऐसी ही सोचें दौड़ रही थी।
खुली आंखों से वो छत को देखे जा रहा था।
गाठम के विरुद्ध योजनाएं बनाने में लगा हुआ था। ‘उसे ये साबित करना ही होगा कि वो संगठन को संभालने और आने वाली मुसीबतों का जवाब देने में सक्षम है। तभी वो आगे भी सफलता से अपना संगठन चला सकेगा। अगर कुछ नहीं किया तो उसके संगठन के लोग ही उसे कमजोर समझने लगेंगे। पुलिस और सरकार भी ये ही सोचेगी कि वो कमजोर हो गया है। गाठम को अक्ल सिखानी होगी।’ परंतु जगवामा की सोचों में समस्या भी आ रही थी।
पूर्व के जंगलों में गाठम का ठिकाना था।
और वहां से कोई खबर भी बाहर नहीं आती थी कि गाठम कब कहां जा रहा है। क्या कर रहा है, वो किधर मिलेगा, कुछ पता नहीं चलता था। परंतु जगवामा जानता था कि इसका भी कोई रास्ता निकालना होगा।
तभी आहट पाकर जगवामा सोचों से बाहर निकला तो पास में सिटवी को खड़े पाया।
“आप नींद ले लीजिए सर।” सिटवी गम्भीर स्वर में बोला।
“जब तक गाठम को सबक नहीं सिखा देता, तब तक चैन की नींद नहीं ले सकता।”
“मैं समझता हूं सर। पर आप नींद नहीं लेंगे तो आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी।”
“मेरी तबीयत ठीक रहेगी।” जगवामा ने कठोर स्वर में कहा –“अभी मैंने गाठम को ठीक करना है।”
सिटवी, वोमाल जगवामा को देखता रहा।
“केली कल पूर्व के जंगलों का नक्शा लेकर आएगा।” वोमाल जगवामा ने कहा।
“जी सर।”
“पानी पिला सिटवी।”
सिटवी ने फौरन पास के टेबल के जग से गिलास में पानी डाला और आगे बढ़कर एक हाथ से जगवामा का सिर ऊपर उठाया तो जगवामा ने मुंह खोला, सिटवी मुंह में थोड़ा-थोड़ा पानी डालने लगा।
चार-पांच ट के पश्चात जगवामा ने मुंह बंद कर लिया।
सिटवी ने जगवामा के सिर को तकिए पर लगाकर अपना हाथ निकाला और गिलास वापस टेबल पर रखने के बाद, नेपकिन से जगवामा का मुंह साफ किया और नेपकिन वापस रख लिया।
वोमाल जगवामा गहरी-गहरी सांसें ले रहा था।
“क्या बजा है?”
“दो बज गए हैं सर।”
“तू सोया नहीं?”
“सोया था सर। अचानक आंख खुली तो आपको देखने आ गया।”
“मैं सोचता हूं मैगवी को आने को कह दूं।” जगवामा बोला।
“मैगवी?” सिटवी दो पल के लिए चुप हुआ –“अभी नहीं सर।”
“क्यों?”
“मैगवी जल्दबाज है। वो शोर डालेगा कि कुछ करो। वो पागल है और हमारे पास अभी कोई योजना नहीं है।”
“ऐसे पागलों के दम पर ही तो संगठन सलामत रहता है। मैगवी मेरे लिए जरूरी है सिटवी।”
“जानता हूं परंतु उसे अभी मत बुलाएं। पहले हम तो कुछ सोच लें कि...।”
वोमाल जगवामा चुप रहा।
“पैथिन किधर है?”
“पैथिन?” सिटवी ने होंठों पर जीभ फेरी –“वो आपके पैसों पर कहीं ऐश कर रहा होगा।”
“कल पैथिन को फोन करके हाल पूछना उसका । मेरी भी बात करा देना।”
“जी।”
“मैं गाठम को मार देना चाहता हूं।”
“मैं भी ऐसा ही चाहता हूं लेकिन जल्दी मत करें। हम जबर्दस्त योजना बनाकर गाठम को मारेंगे। पहले केली को नक्शा लेकर आने दीजिए। हमारे पास पर्याप्त वक्त है गाठम को घेरने का। तब तक मुमरी भी बेवू सर को लेकर आ...।”
इसी पल वोमाल जगवामा का फोन बज उठा।
सिटवी ने फौरन फोन उठाया। स्क्रीन पर आया नम्बर देखा।
“कोई नया नम्बर है सर।”
“मुझे दे। इनसे मुझे ही बात करने दो।” जगवामा ने हाथ बढ़ाया।
चंद पलों बाद जगवामा ने बात की ।
“हैलो।”
“अपने बेटे का हाल नहीं पूछेगा।" उधर से खतरनाक स्वर में कहा गया।
“बता।”
“बुरा हाल है। मैं भी नहीं जानता वो किधर है। बेवू पूर्व के जंगलों में गुम हो चुका है वोमाल जगवामा और वहां से वो ही वापस आता है जिसे गाठम जिंदा देखना चाहे। मुझे तो लगता है बेवू कुत्तों की मौत मरेगा।”
वोमाल जगवामा के होंठ भिंच गए।
“चुप क्यों हो गया? बोलेगा नहीं?”
“तुम सबको मैं कुत्ते की मौत मारूंगा।”
जगवामा गुर्रा उठा।
“मरने को पड़ा है और भौंक रहा है। मुझे तो लगता है तू बेवू से पहले ही मर जाएगा।”
“क्या चाहते हो?”
“वो कल बताया जाएगा। ये ही कहने के लिए तेरे को फोन किया। तूने पुलिस को नहीं दौड़ाया ये अक्लमंदी की। आगे भी ऐसे ही चल अगर अपने बेटे को जिंदा चाहता है तो। हमारी बात मानेगा तो बेवू जिंदा रहेगा।”
“चिकी से बात करा।”
“चिकी तेरे जैसों से बात नहीं करता। उसके पास इतने काम हैं कि वो पागल हुआ पड़ा है। कल फोन आएगा तेरे को। आगे की बात होगी। गाठम से पंगा लिया तो बेवू को साफ कर दिया जाएगा।” इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
जगवामा ने कान से फोन हटाया। सिटवी फोन थामता कह उठा।
“कोई खास बात सर?”
"”कुछ नहीं। कुत्ता भौंके जा रहा है।” वोमाल जगवामा खतरनाक स्वर में कहा।
☐☐☐
जगमोहन को होश आने लगा।
तब वहां पर होपिन और मोक्षी थे।
“होश आ रहा है।” मोक्षी जगमोहन पर निगाहें टिकाए कह उठा।
होपिन बेड के पास जाकर खड़ा हो गया।
जगमोहन के होंठों से कराह निकली। उसने अपनी बांहों को अलग करना चाहा, परंतु सफल नहीं हो सका। टांगें हिली लेकिन वो बंधी होने की वजह से जुदा न हो सकीं। एकाएक जगमोहन की आंखें खुल गईं। बीता वक्त तेजी से उसके मस्तिष्क में घूमा। हाथ-पांवों के बंधे होने का एहसास हुआ, तभी उसने करवट ली और होपिन-मोक्षी को देखा।
“कैसे हो बेवू जगवामा साहब।” होपिन मुस्कराकर बोला।
जगमोहन के मस्तिष्क को झटका लगा। याद आया कि वो तो बेवू के रूप में है। उसका नहीं, बेवू का अपहरण किया गया है।
“कौन हो तुम लोग?” जगमोहन बेवू की आवाज में कह उठा।
“दोस्त ही समझो।” होपिन बोला।
“तुम जैसे लोग मेरे दोस्त नहीं हो सकते।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।
“बेवू साहब। हम आपके दोस्त ही हैं।”
“मेरे बंधन खोलो।”
होपिन ने मोक्षी को देखा तो मोक्षी बोला।
“ठीक है। एक तरफ के बंधन हम खोल सकते हैं। हाथों के खोले या पांवों के?”
“सारे बंधन क्यों नहीं खोलते?”
“जो हम कह रहे हैं, वो सुनो। उस पर ध्यान दो।”
“हाथों के खोलो।”
मोक्षी ने हाथों के बंधन खोल दिए।
जगमोहन बेड के नीचे बंधे पर लटकाकर उठ बैठा। दोनों को गहरी निगाहों से देखा।
“तुम लोगों ने छः गनमैनों को शूट करके, मेरा अपहरण किया। अब पापा से बच नहीं सकोगे।”
“वोमाल जगवामा हम तक नहीं पहुंच सकता दोस्त।”
“तुम लोग कौन हो?”
“ये तुम नहीं जान सकोगे। इतना जान लो कि हम तुम्हारा बुरा नहीं करेंगे। तुम हमारी कैद में हो और एक खास वक्त तक हमारी कैद में ही रहोगे। उसके बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा।” होपिन ने कहा –“इस दौरान अगर तुमने कोई चालाकी की या भागने की कोशिश की तो फिर हम तुम्हारा हाल बुरा कर देंगे।”
“मुझे बताओ ये क्या हो रहा है?”
“मनाही है बताने को।”
“किसने मना किया?”
“साहब जी ने।”
“साहब जी कौन है?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
“तुम वो सवाल नहीं पूछो जिसका जवाब तुम्हें नहीं मिलने वाला । साहब जी जब चाहेंगे तुम्हें बता देंगे। नहीं चाहेंगे तो नहीं बताएंगे।”
“मेरा अपहरण करने का मतलब जानते हो। पापा तुम सबको मार देंगे।” जगमोहन गुर्राया।
“वोमाल को अब इतनी फुर्सत ही कहां मिलेगी कि हमें ढूंढ सके।”
“क्या मतलब?”
“फालतू की बातों में मत पड़ो। हम तुम्हारे हाथ इतनी देर भी खुले नहीं रखने वाले। हाथ खुलने का फायदा उठाओ और कुछ खा लो। भूख लगती है तो खाने को मिल सकता है।”
“मेरा अपहरण करके आखिर तुम लोग चाहते क्या हो?”
“मिस्टर बेवू।” होपिन ने शांत स्वर में कहा -“हमें कुछ नहीं पता। जो हमारे साहब जी ने कहा, हम वो ही कर रहे हैं।”
जगमोहन मिनट भर सोच भरी निगाहों से दोनों को देखता रहा।
“खाना दो।”
मोक्षी उसी पल बाहर निकल गया।
जगमोहन सोच रहा था कि ये लोग उसे बेवू जगवामा ही समझ रहे हैं। इन्होंने बेवू का अपहरण किया है। ऐसे में उसे बेवू ही बने रहना चाहिए। ये बर्मा (म्यांमार) का मामला है। यहां उसकी नहीं, वोमाल जगवामा की चलती है। ऐसे में वोमाल जगवामा का बेटा बनकर, यहां ज्यादा सुरक्षित रह सकेगा। उसे नहीं समझ आ रहा था कि ये क्या चक्कर है। छ: गनमैनों को शूट करके, उसका अपहरण क्यों किया गया?
“तुम लोगों की दुश्मनी किससे है? मेरे से या पापा से?” जगमोहन ने पूछा।
“हम किसी के भी दुश्मन नहीं हैं।” होपिन ने कहा।
“तुम हो, तभी तो मेरा अपहरण...।”
“ये हमारे काम का हिस्सा है।”
“काम का हिस्सा?”
“हां। साहब जी हमें जो करने को कहते हैं, करना पड़ता है। तभी तो हमें पैसे मिलते हैं।”
“मेरी बात सुनो। पैसों की तुम फिक्र मत करो। करोड़ों रुपया तुम लोगों को दिया जाएगा। ये बेवू का वादा है। मुझे वापस इस्टेट पहुंचा दो और करोड़ों रुपया लेकर बाहर निकलो। पापा ये जरूर पूछेगे कि तुम लोगों ने ये सब किसके कहने पर किया है। उसका नाम तुम्हें बता देना होगा। इस तरह पापा की दुश्मनी से बच जाओगे।”
“आप मुझे गलत समझ रहे हैं।” होपिन मुस्कराया –“मेरा ये मतलब नहीं था कि आप मुझे करोड़ों रुपया दें।”
“तुम इतनी बड़ी रकम को गंवा रहे हो।”
“बहुत हो गया।” होपिन तीखे स्वर में बोला –“अब चुप कर जाओ।”
“तुम्हारे कितने साथी हैं यहां?” जगमोहन ने पूछा।
“क्यों?”
“सबको एक-एक करोड़...।”
तभी खाने का थाल लिए मोक्षी आया। उसने बेड के सामने स्टूल खींचा और उस पर थाल रख दिया। जगमोहन ने खाने को देखा फिर मोक्षी को।
“क्यों खाना पसंद नहीं आया।” मोक्षी बोला –“हमने भी ये ही खाया है। बढ़िया है।”
“बेवू हम सबको एक-एक करोड़ देगा, अगर हम इसे जगवामा इस्टेट पहुंचा दें तो।” होपिन मुस्कराकर कह उठा।
“एक-एक करोड़। बढ़िया रकम है।” मोक्षी ने गहरी सांस लेकर कहा –“मैं जरूर ले लेता अगर मेरे पास रखने को जगह होती। सारी जगह तो पहले ही फुल है मिस्टर बेवू।”
“तुम लोगों को ये जरूर पता होगा कि पापा मुझे ढूंढ़ ही लेंगे।” जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा –“तब तुम लोग बचने वाले नहीं । तुम्हारे साहब भी नहीं बचेंगे। मेरी बात मानने में ही तुम्हारी भलाई है।”
“तुम्हें हमारी भलाई की बहुत चिंता है।” मोक्षी ने व्यंग्य-भरे स्वर में कहा –“बेहतर होगा कि अपनी चिंता करो। जल्दी से खाना खाओ। रात के तीन बज रहे हैं। इतनी सेवा तो तुम्हारी बीवी भी नहीं करने वाली।”
जगमोहन ने खाना शुरू कर दिया।
“मेरा अपहरण करके अपना कौन-सा मतलब निकालना चाहते हो?”
“हमारा कोई मतलब नहीं। साहब जी का कोई मतलब हो तो पता नहीं।”
“फिरौती चाहिए?”
“हम ऐसे घटिया काम नहीं करते।”
जगमोहन खाना खाता रहा। इनसे बातें करके उसे ये बात तो पता चल गई थी कि ये पेशेवर नहीं हैं। उससे बहुत प्यार से बात कर रहे हैं। तो फिर कौन हो सकते हैं ये लोग?”
“चिकी कौन है?” जगमोहन ने खाना खाते पूछा।
“तू नहीं जानता?”
“नहीं।”
“साले झूठ बोलता है।” होपिन गुर्रा उठा –“चिकी का नाम तुमने जरूर सुना होगा।”
“नहीं सुना, मैं...।”
तभी होपिन का हाथ घूमा और जगमोहन के गाल पर जा पड़ा।
जगमोहन का सिर झनझना उठा।
“साले, कुत्ते अब तक तो बातें मजाक में चल रही थी। कोई साहब जी नहीं है हमारा । तूने चिकी का नाम नहीं सुना। एक तरफ तेरे बाप का नाम चलता है तो दूसरी तरफ गाठम का नाम चलता है कि नहीं?”
गाठम का नाम भी जगमोहन ने नहीं सुन रखा था। वो खामोशी से होपिन को देखता सोच रहा था कि इन बातों की उसे जानकारी नहीं है।
“अब भी चिकी का नाम याद नहीं आया?”
जगमोहन चुप रहा।
“हम गाठम के आदमी हैं। वो ही गाठम जो अपहरण के धंधे का बादशाह है। चिकी उसका दायां हाथ है। तेरा अपहरण गाठम ने किया है। तब चिकी भी साथ था, समझा न?”
अब जगमोहन कुछ समझा।
“तो गाठम पापा से फिरौती चाहता है। तगड़ी रकम...।”
“ये ही तो गाठम का धंधा है। ज्यादा सयाना न बन कि चिकी का नाम तूने पहले नहीं सुना।”
“उस चिकी का मुझे ध्यान नहीं आया था।” जगमोहन ने कहा।
“खाना खा।”
जगमोहन ने खाना, खाना शुरू किया।
“पापा को फोन किया। रकम मांगी। मुझे वापस पाने के लिए वो रकम दे देंगे।”
“हमें नहीं पता। हमारा काम तेरी सेवा करना है। गाठम ही बात करेगा तेरे बाप से।”
“मैं इस वक्त शहर में हूं या कहीं और?”
“चुपचाप खाना खा। सवाल मत कर।”
जगमोहन ने खामोशी से खाना खाया।
इस दौरान वो सोच रहा था कि उसके अपहरण के बारे में सोहन गुप्ता जान चुका होगा। उस पर अपहरण की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी? शायद वो भी उसे ढूंढ रहा हो।
“गाठम के साथ पापा की दुश्मनी है?” जगमोहन ने पूछा।
“नहीं।”
“तो गाठम ने मेरे पर हाथ क्यों डाला? पापा से दुश्मनी लेना आसान काम तो नहीं।”
“तू हमसे कोई बात मत कर। गाठम सामने आए तो ये बात उससे पूछना।” होपिन ने कठोर स्वर में कहा।
“गाठम आने वाला है क्या?”
“नहीं। वो तेरे जैसों की परवाह नहीं करता।”
जगमोहन ने खाना खत्म किया। मोक्षी बर्तन ले जाने लगा तो जगमोहन बोला।
“कॉफी मिल जाएगी?”
मोक्षी ने होपिन को देखा और बोला।
“रात के तीन बजे ये कॉफी मांग रहा है।”
“बना दे। नहीं तो अपने बाप से शिकायत लगा देगा कि इसे कॉफी नहीं पिलाई। मेरे लिए भी बना देना।”
मोक्षी चला गया।
“चिकी मुझसे मिलने आएगा?”
“तूने क्या करना है चिकी को?”
“यूं ही पूछा...।”
“कोई भी बात यूं ही मत पूछा कर। चुपचाप बैठा रह। ये तेरे बाप की इस्टेट नहीं है।”
उसके बाद जगमोहन ने कॉफी पी। होपिन भी उसे देखता कॉफी के घूंट भरता रहा। मोक्षी कमरे में टहलता रहा। उसके बाद मोक्षी ने इंजेक्शन तैयार किया और जगमोहन के इंकार करने पर भी उसे लगा दिया गया। जबकि जगमोहन इन नए हालातों पर आराम से सोचना चाहता था। परंतु जल्दी ही वो बेहोशी में डूबता चला गया।
“अब इसे आठ घंटों से पहले होश नहीं आने वाला।” मोक्षी बोला –“हाथ बांध दे।”
होपिन ने जगमोहन के हाथ पीठ पीछे करके बांध दिए।
“अब आगे क्या करना है?” मोक्षी ने पूछा।
“सुबह बात करेंगे। इस वक्त हमें नींद ले लेनी चाहिए। मैं इसके पास ही सोऊंगा। तुम दूसरे कमरे में चले जाओ जहां आदिन और ढली सोए पड़े हैं।” होपिन ने जगमोहन की बगल में लेटते हुए कहा।
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