संदीप सवा दस होटल से बाहर निकला। नहा-धोकर, सबके साथ बैठकर जल्दी-जल्दी नाश्ता करके, ये कहकर बाहर आया था कि वो होटल के बाहर से गाइड (मार्गदशक) को सेट करके आता है। बाहर का वातावरण ठंडा था, परंतु कोहरा छंट चुका था। बाहर खड़ी गाड़ियों पर अभी भी ओस नजर आ रही थी। संदीप ने नीली जीन्स की पैंट के ऊपर कमीज और पूरी बांह के स्वेटर के साथ सिर पर गर्म टोपी ले रखी थी। रात पी व्हिस्की की मस्ती अभी भी उसके सिर पर सवार थी। उसने नजरें घुमाई तो एक तरफ ‘सूमा’ गांव के बारह-पंद्रह लड़के-लड़कियां खड़े दिखे जिनमें से कुछ तेजी से लपक कर उसके पास आ पहुंचे और सब लगभग एक ही स्वर में बोले।
“सर, गाइड की जरूरत है।”
“मैं सब रास्तों को जानता हूं।”
“मैं बढ़िया आइस स्कीइंग का मजा करा दूंगी सर।”
संदीप ने उन्हें देखकर सिर हिलाया और अन्य लड़के-लड़कियों की तरफ बढ़ गया। उसकी निगाह बेहद खूबसूरत लड़की पर टिक चुकी थी। जो कि पहाड़ी लड़की थी। उसके गाल बेहद लाल और आकर्षक थे। वो बाईस की लगती थीं भरी-भरी छातियां थी, मोटी आंखें, रसभरे होंठ, गोरा रंग, नुकीला और शानदार नाक कुल मिलाकर वो बाकी सब से अलग दिख रही थी। मोटी आंखों में उसने काजल लगा रखा था। माल्टा कलर का स्वेटर था उसके शरीर पर। आगे से जिप बंद थी। टांगो पर गर्म पायजामी लिपटी हुई थी। पांवों में स्पोर्ट्स शूज थे। कानों में छोटी-छोटी बालियों के अलावा नाक में भी छोटी-सी सोने की बाली पहन रखी थी जिसने उसकी खूबसूरती को और भी चांद लगा दिए थे।
पास पहुंचकर संदीप मुस्कराया और उससे बोला।
“तुम गाइड हो?”
“यस सर।” वो फौरन मुस्कराई-“मेरे लिए कोई सेवा सर?”
“क्या नाम है तुम्हारा?”
“मोनी।”
“मोनी?” संदीप ने मुस्कराकर सिर हिलाया-“मैं और मेरे साथ दो लोग आइस स्कीइंग पर जाने वाले हैं और मुझे तुम जैसी गाइड की जरूरत है।”
“मैं साथ चलने को तैयार हूं सर।” मोनी खुशी से बोली।
“आओ।” संदीप बोला-“तुमसे इन पहाड़ों के बारे में पूछना है।”
संदीप, मोनी को लेकर एक तरफ बढ़ गया। दोनों धीरे-धीरे चलने लगे।
आसपास खूबसूरत वादियां नजर आ रही थीं। सामने बर्फ से लदे पहाड़ कोहरे के बीच में से नजर आ रहे थे।
“तुम्हें सब रास्तों की जानकारी है मोनी? इन पहाड़ों के रास्तों की पहचान है?”
“मैं सब रास्ते जानती हूं सर।”
“सूमा गांव में रहती हो?”
“हां सर। सर्दियों में हम सात मील नीचे ख्वारो चले जाते हैं।” मोनी ने मुस्कराकर कहा।
संदीप ने मोनी के खूबसूरत चेहरे को देखा।
“तुम बहुत खूबसूरत हो।”
मोनी के चेहरे पर शर्म भरी मुस्कान दौड़ गई।
“तुम्हारी शादी हो गई?”
“नहीं सर। बूढ़े मां-बाप हैं। उनकी देखभाल करनी पड़ती है। मैं उनकी अकेली औलाद हूं।”
“तुम मुझे पहले मिली होती तो मैं तुमसे शादी कर लेता।” संदीप ने गहरी सांस लेकर कहा।
“क्या?” मोनी हड़बड़ा उठी।
“तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि हर कोई तुमसे शादी करना चाहेगा। पर मेरी शादी हो चुकी है।”
“आप मजाक कर रहे हैं सर।” मोनी ने खुद को संभालते-संभालते, मुस्कराकर कहा।
“अब तो मजाक ही समझो। अगर मेरी शादी न हुई होती तो मैं जरूर गम्भीर होता।” संदीप ने मुस्कराकर कहा-“तो तुम गाइड बनने का एक दिन का क्या लेती हो?”
“पांच सौ रुपए।”
“पांच सौ?”
“सब पांच सौ लेते हैं सर। बेशक आप पूछ लीजिए।”
“मैं तुम्हारे को हजार दूंगा।”
“क्या?” मोनी का मुंह खुला का खुला रह गया।
“हजार। परंतु मेरी शर्त है कि तुम मुझे अकेले में संदीप कहोगी और सबके सामने ‘सर’।”
“ठीक है सर।” मोनी ने फौरन सिर हिलाया।
“मुझे संदीप कहो।”
“ज-जी-संदीप।” मोनी बोली।
“तुम्हारे होंठों से संदीप सुनना कितना अच्छा लगता है। तुम आने वाले साल में भी यहां मिलोगी?”
“मैं हर सीजन में, गाइड का काम करती हूं सर-ओह-संदीप।”
“मैं तुमसे आने वाले साल भी मिलूंगा मोनी।” संदीप ने मुस्कराकर उसे देखा।
मोनी ने सिर हिला दिया।
“जब तुम गाइड बनकर बर्फ के पहाड़ों पर जाती हो तो तुम्हें सर्दी लगती है?”
“बहुत लगती है संदीप।”
“तो सर्दी दूर भगाने के लिए तुम क्या करती हो?”
“कुछ नहीं। सर्दी है तो लगेगी ही।”
“मुझे भी बहुत सर्दी लगती है।” संदीप ने मुस्कराकर उसे देखा-“इस बार तुम्हारे साथ रहूंगा तो शायद सर्दी से बच जाऊं। तुम्हारे पास होने पर मुझे सर्दी नहीं लगेगी, मैं तुम्हें भी नहीं लगने दूंगा।”
“मैं आपका मतलब नहीं समझी सर।”
संदीप ने जेब से पर्स निकाला और पांच सौ का नोट निकाल कर मोनी की तरफ बढ़ाया।
“ये रख लो।”
“ये क्या?” मोनी ने तुरंत नोट थाम लिया।
“ये एडवांस है। पांच सौ तब दूंगा जब शाम को आइस स्कीइंग से हम वापस लौटेंगे।”
“ठीक है।” मोनी ने नोट जेब में रख लिया।
“तुम्हें याद है न कि अकेले में मुझे संदीप कहकर बुलाना है।” संदीप ने जैसे याद दिलाया।
“हां सर-मेरा मतलब है संदीप।” मोनी ने जल्दी से कहा।
“बर्फ के पहाड़ों पर जब मुझे सर्दी लगे तो मुझे गर्मी देने की कोशिश करना। ऐसा किया तो वापसी पर हजार रुपया दूंगा।”
“पर बर्फ के पहाड़ों पर आग कैसे जलेगी संदीप?” मोनी ने कहा।
“वो मैं बता दूंगा। तुम मुझे नहीं जानती कि बर्फ के पहाड़ों पर भी आग का इंतजाम कर देता हूं। बस तुम्हारे साथ की जरूरत होगी।” संदीप ने सामान्य स्वर में कहा-“मेरे साथ दो लड़के और भी हैं। हम रिश्तेदार हैं और अपनी पत्नियों के साथ आए हैं। पत्नियां नहीं जाएंगी आइस स्कीइंग पर। तुम मुझे शादी से पहले मिल गईं होती तो मैं तुम्हें जरूर अपनी पत्नी बना लेता। ये बात किसी से कहना नहीं। हम दोनों के बीच ही रहे...”
“आप बहुत शरारती हैं संदीप।”
“अकेले में मुझे आप नहीं, तुम कहो। मैं तुम्हें सारे अधिकार देता हूं क्योंकि मुझे सर्दी बहुत लगती है।”
“तुम बहुत मजेदार इंसान लगते हो।”
“जब मुझे सर्दी लगेगी, तब मजा आएगा। अभी तो कुछ भी नहीं।” संदीप ने मुस्कराकर कहा-“तुम गाइड नहीं मेरी दोस्त हो। मैं तुम्हारे मां-बाप के लिए भी पांच सौ रुपया दूंगा।”
“तुम कितने अच्छे हो संदीप।”
“हां, अब ठीक है। मेरे से ऐसे ही बात किया करो। मैं बहुत अच्छा इंसान हूँ। समस्या तब खड़ी होती है, जब मुझे सर्दी लगती है। तुम मेरा ध्यान रखना, मैं तुम्हारा ध्यान रखूंगा। अब मैं होटल में जा रहा हूं। कुछ ही देर में अपने साथियों के साथ, आइस स्कीइंग का सामान लेकर बाहर आता हूं। तुम्हारे लिए भी ले आऊंगा।”
“उसकी आप फिक्र न करें। आप तीन लोगों ने स्कीइंग के लिए जाना है न?”
“हां तो...?”
“तो मैं अपना मिलाकर चार लोगों का सामान होटल के स्टोर से ले लेती हूं। वो मुझे जानते हैं और दे देंगे। मैं सामान के साथ यहीं मिलूंगी।” मोनी ने मुस्कराकर संदीप को देखा।
“तुम कितनी अच्छी हो।”
“तुम भी तो अच्छे हो। मुझे पांच सौ पहले दे दिया। पांच सौ मेरे मां-बाप के लिए दोगे और वापस आने पर मुझे हजार रुपया भी दोगे। तुम मेरा कितना ध्यान रख रहे हो।” मोनी ने मुस्कुराकर कहा।
“तुमने भी तब मेरा ध्यान रखना है, जब मुझे सर्दी लगे। ये सब कुछ तभी के लिए कर रहा हूं।”
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आधे घंटे बाद तीनों बाहर निकले, साथ में, बेबी-सुधा और जोगना भी थीं। सूर्य अभी तक नहीं निकला था परंतु कोहरा काफी हद तक छंट चुका था, आसमान साफ होने लगा था। रास्ते, जमीन, गीली नजर आ रही थी। खड़े वाहन अभी भी ओस से भीगे हुए थे। मौसम में जबर्दस्त नमी थी। हवा नहीं चल रही थी लेकिन सर्दी बहुत तीखी थी। सामने मौजूद बर्फ के पहाड़ों से आती तीखी सर्दी, शरीर को बराबर महसूस हो रही थी। एक तरफ सूमा गांव के युवक-युवतियां मौजूद थे और वे दो-तीन टूरिस्ट लोगों से बात कर रहे थे। वो लोग भी आइस स्कीइंग पर जाने के लिए बातचीत कर रहें थे। दूसरी तरफ एक परिवार खड़ा बातचीत कर रहा था। ये सुबह का वक्त था, कुछ देर बाद होटल के लोगों ने बाहर निकल आना था और हंसी-खेल, मौज-मस्ती ठहाकों का माहौल गर्म हो जाना था।
मोनी एक तरफ मौजूद दिखी। पास में उसने स्की पोल (छड़ी जो दोनों हाथों में लेकर, स्कीइंग करते वक्त बर्फ पर मारते जाते हैं कि वे तेजी से आगे सरक सके) और स्की (पैरों में फंसाई जाने वाली वो फट्टियों के आकार वाली होती है, जिसके सहारे बर्फ पर स्लिप होते हुए आगे जाया जाता है) को पास में रखे हुए थी। उसके पास आठ स्की पोल थीं और आठ ही स्की थे। यानी कि कुल चार लोगों के लिए सेट हुए। वो उन सबको ही देखने लगी थी। क्योंकि उनमें संदीप भी था। मोनी सच में बहुत खूबसूरत लग रही थी।
बेबी ठिठकते हुए बोली।
“गाइड कहां है संदीप?”
“वो रही।” संदीप ने कुछ दूर मौजूद मोनी की तरफ इशारा किया।
सबकी निगाह मोनी पर गई।
“लड़की?” पुनीत बोला।
“खूबसूरत है।” राजीव हंस पड़ा।
बेबी, सुधा और जोगना की नजरें मिलीं।
“इस गाइड को तुमने पसंद किया है संदीप?”
बेबी ने संदीप को देखा।
“हां।” संदीप मुस्कराया।
“तुम्हें किसी लड़के को चुनना चाहिए था।” बेबी ने पुनः कहा।
“ये सबसे बढ़िया गाइड है।” संदीप ने फौरन कहा-“मैंने कई गाइडों की इंटरव्यू लेने के बाद इसे चुना है। ये बहुत अच्छी स्कीइंग जानती है और बर्फ के पहाड़ों के रास्ते भी अच्छी तरह जानती है।” संदीप ने जैसे सफाई दी कि लड़की को क्यों गाइड रखा।
“मुझे कोई एतराज नहीं।” राजीव मुस्कराकर बोली।
“चलेगी।” पुनीत ने संदीप को देखा।
“लड़की का नाम मोनी है और मोनी ने मुझे साफ कह दिया है कि उसके साथ कोई बदतमीजी नहीं होनी चाहिए। खासतौर से कोई उसके कंधे पर हाथ नहीं रखेगा। वो हमारी गाइड है और सिर्फ गाइड है।” संदीप ने राजीव को देखा।
तभी जोगना आगे बढ़ी और संदीप की कलाई पकड़कर एक तरफ ले जाते बोली।
“जरा इधर तो आओ।”
जोगना संदीप को एक तरफ ले जाकर नाराजगी से बोली।
“तुमने लड़की ही क्यों चुनी?”
“बताया तो वो बहुत अच्छी गाइड...”
“तो क्या वहां जो लड़के मौजूद हैं, उनमें से कोई भी पहाड़ों के रास्तों को अच्छी तरह नहीं जानता।” संदीप ने दूर खड़े लड़कों पर निगाह मारी।
“उनमें कई बढ़िया गाइड हैं, लेकिन वो मुझे जंचे नहीं।”
“और वो लड़की जंच गई।” जोगना ने गुस्से से कहा।
“तुम तो बेकार में नाराज हो रही हो, मैंने ऐसा क्या कर डाला जो...”
“कान खोल कर सुन लो, उस लड़की के साथ पहाड़ों पर ‘लग’ मत जाना।” जोगना ने बल खाकर कहा।
“क्या? लग मत जाना। ये तुम कैसी बातें कर रही...”
“मैं ठीक कह रही हूं। तुम्हें जानती नहीं क्या? वैसे भी तुम्हें सर्दी बहुत लगती...”
“सर्दी तो तब लगती है जब तुम पास में होती हो जोगना-मैं तो...”
“अपनी सर्दी को संभाल के रखना। उस लड़की के साथ तुम्हें सर्दी लगी तो मैं तुम्हें तलाक दे दूंगी।”
“तलाक दे दोगी।” संदीप गुस्से से भर उठा-“अभी कुछ भी नहीं हुआ और तुम तलाक देने की बात करने लगी। तुम मेरी ईमानदारी पर उंगली उठा रही हो। तुम-तुम मेरे करैक्टर की तरफ उंगली उठा रही हो। तुम क्या मुझे तलाक दोगी, दिल्ली चलो, में तुम्हें तलाक दे दूंगा। ऐसी शंकालू और परेशान करने वाली पत्नी नहीं चाहिए मुझे। गाइड लड़की को क्या चुन लिया, तुम तो सोचने लगी, मैं उसके साथ फेरे लेने जा रहा...”
“ओह संदीप।” जोगना ने संदीप का हाथ पकड़ा-“मैं तो मजाक कर रही थी। तुम नाराज हो गए।”
“मैं जानता हूं कि तुमने मजाक नहीं किया। राजीव अक्सर तुम्हारे कंधे पर हाथ रखता है, पर मैंने तुम्हें कभी कुछ नहीं कहा। मैं तुम्हारी तरह घटिया सोच रखता तो, मैं भी बहुत कुछ कह सकता था।”
तभी सुधा पास आते कह उठी।
“क्यों जीजू क्या हो गया, बहुत गुस्से में नजर आ रहे हो।”
“ये मुझे तलाक देने की बात कर रही है।” संदीप गुस्से में था।
“क्यों?” सुधा पास आ पहुंची।
“क्योंकि मैंने गाइड के तौर पर लड़की चुन ली है।”
जोगना ने गहरी सांस ली।
“ये तो गलत बात है जोगना।” सुधा बोली।
“मैंने ये कहा कि अगर तुम्हें पहाड़ों पर सर्दी लगी और वो लड़की पास में हुई तो...”
“जैसे कि मैं अकेला लड़की के साथ जा रहा हूं। पुनीत और राजीव तो मेरे साथ हैं ही नहीं। अकेला भी जाऊंगा तो क्या आफत आ जाएगी मैं क्या बुरे करैक्टर का आदमी हूं जो ये मुझे ऐसा कह रही है।” संदीप गुस्से में था।
“गुस्सा मत करो जीजू। तुम लोग आइस स्कीइंग के लिए जाओ। जोगना को मैं समझा दूंगी।”
“सारा मूड खराब कर...”
“जीजू।” सुधा ने संदीप का गाल थपथपाया-“आप जाओ और अपने मूड को ठीक करो। जल्दी वापस आना। जोगना तुम्हारा इंतजार करेगी। हम मजा लेने आए हैं, झगड़ा करने नहीं।”
संदीप बड़बड़ाता हुआ पुनीत और राजीव की तरफ बढ़ गया।
“क्या हो गया?” पुनीत ने पूछा।
“सुधा से पूछ लेना।”
बेबी, सुधा और जोगना की तरफ बढ़ गई।
“चलो, हम निकलें।” राजीव ने कहा।
तीनों मोनी की तरफ बढ़ गए।
मोनी की तरफ बढ़ते संदीप के होंठों पर मधुर मुस्कान फैल गई।
उनके पास पहुंचने पर मोनी ने उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते की।
“ये मोनी है। सबसे बढ़िया गाइड।” संदीप उनका परिचय कराता कह उठा-“और मोनी ये पुनीत, ये राजीव है। उन तीनों को देख रही हो न, वो तीनों बहनें हैं और हम उन तीनों के पति।”
इतने में सुधा, जोगना और बेबी भी पास आ पहुंची।
“मैं स्कीइंग का सामान ले आई हूं।” मोनी ने उन तीनों को नमस्ते करने के बाद कहा-“लेकिन आप लोग होटल में जाकर अपने साईज को स्की शूज ले आएं। मैं वो भी ले आती, परंतु मुझे साईज नहीं पता था।”
पुनीत स्कीइंग के सामान को चेक करने लगा। सब ठीक था, फिर बोला।
“हम स्की शूज लेकर आते हैं।”
“मेरे लिए आठ नम्बर के ले आना।”
पुनीत और राजीव होटल की तरफ बढ़ गए।
संदीप ने बेबी और सुधा पर नजर मारी।
“तुम इधर तो आओ।” जोगना, संदीप को खींचकर एक तरफ ले गईं और बोली-“तुम इतने नाराज क्यों हो गए थे।”
“तुम बात ही ऐसी करती हो।” संदीप ने मुंह फुलाकर कहा-“तुम मेरे करैक्टर पर उंगली...”
“मैं तो मजाक कर रही थी डियर।”
“मजाक?” संदीप ने जोगना को घूरा।
“कसम से।” जोगना ने प्यार से संदीप का हाथ पकड़ा।
संदीप कुछ शांत होता दिखा।
“एक बात कहूं।” जोगना मुस्कराई।
“क्या?”
“मुझे सर्दी लग रही है।”
“सर्दी?” संदीप ने मुंह बनाया-“मैं आइस स्कीइंग के लिए जाने वाला हूं और तुम्हें सदी लगने लगी।”
“होटल में चलें?” जोगना ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा।
“पागल हो। इस वक्त कैसे सब कुछ हो सकेगा।”
“जब तक तुम वापस नहीं आओगे, मुझे सर्दी लगती रहेगी।” जोगना खुलकर मुस्कराई।
“वापस आकर में सर्दी को भगा दूंगा। तब तक अपने पर कंट्रोल रखो और रात को मैं एक पैग नहीं, तीन पैग लूंगा। मुझे रोकना मत। बर्फ पर बैठकर न पी, तो क्या पी।”
“ठीक है, ठीक है, ले लेना।”
संदीप, मोनी, बेबी और सुधा की तरफ बढ़ गया। जोगना भी पीछे-पीछे आई।
“सुलह हो गई तुम्हारी?” सुधा मुस्कराकर बोली।
“सुलह?” संदीप मुस्कराया-“झगड़ा ही कब हुआ था।”
“फिर ठीक है।” सुधा ने गहरी सांस ली।
पुनीत और राजीव स्की शूज लेकर आ गए।
तीनों ने शूज पहने। उतारे शूज तीनों बहनों को थमा दिए।
मोनी स्की और स्की पोल का ढेर उठाने लगी तो संदीप कह उठा।
“तुम सिर्फ अपने उठाओ। हम अपने-अपने उठा लेंगे। सारा बोझ तुम पर डालना ठीक नहीं।”
“जल्दी आना राजीव।” बेबी बोली।
“आज हम स्कीइंग करते हुए दूर तक जाएंगे।” राजीव बोला।
“बेशक दूर तक जाओ, पर जल्दी आना।”
“चार-पांच घंटे बाद लौटेंगे।” पुनीत बोला।
“अंधेरा होने तक तो लौट ही आएंगे।” संदीप कह उठा।
तभी सूर्य की पहली किरण चमक उठी।
“सूर्य निकल आया।” मोनी ने खुशी से कहा-“मौसम साफ है आप लोगों को स्कीइंग का मजा आएगा।”
फिर वे सब अपना-अपना सामान उठाए, सामने नजर आ रहे बर्फ के पहाड़ की तरफ चल पड़े। तीनों के कंधों पर एक-एक छोटा बैग भी लटका था जिसमें खाने-पीने का सामान और पानी था। पुनीत अपनी पीठ पर लादे बैग में व्हिस्की की दो बोतलें भी डाल लाया था, जिसके बारे में किसी को बताया नहीं था।
“मोनी।” राजीव बोला-“एक दिन में हम कितना लम्बा रास्ता स्कीइंग के सहारे तय कर सकते हैं।”
मोनी चेहरे पर सोच के भाव उभरे, फिर कह उठी।
“सर। बर्फ पर एक आदमी पैदल चलकर, दिन भर में जितना रास्ता तय करता है स्कीइंग के सहारे उतना रास्ता एक सवा घंटे में तय कर लिया जाता है। अगर बिना रुके स्की से आगे बढ़ते रहे तो।”
“फिर तो हम काफी दूर तक जा सकते हैं।” पुनीत बोला।
“वापस भी लौटना है।” राजीव बोला उसने घड़ी में वक्त देखा- “ग्यारह बज रहे हैं। दिन कितने बजे छिपता है?”
“पांच बजते ही दिन छिपने लगता है।” मोनी ने कहा।
“तो हमारे पास छ: घंटे हैं। पुनीत बोला-“तीन घंटे हम स्कीइंग करते दूर तक जाएंगे और फिर वापस लौटेंगे। शाम हो जाएगी तब तक। आज तो मजा ही आ जाएगा।”
“बड़ा मजा आएगा।”
इन बातों में संदीप ने हिस्सा नहीं लिया था। वो चुप था। परंतु मौका मिलते ही धीमे से मोनी से बोला।
“तुम्हें सर्दी तो नहीं लग रही मोनी?”
“नहीं सर, मैं तो...।”
“धीमे बोलो और मुझे सर मत कहो।” संदीप ने जल्दी से कहा।
“मुझे सर्दी नहीं लग रही संदीप। धूप से तो मुझे और भी अच्छा लग रहा है।” मोनी बोली।
“जब सर्दी लगे तो मुझे इशारा कर देना।”
“ठीक है संदीप। पर मैं समझी नहीं कि क्यों इशारा कर दूं?” मोनी ने संदीप को देखा।
“ये बात इशारे के बाद समझ जाओगी। मुझे भी सर्दी बहुत लगती है। खासतौर से इन पहाड़ों पर और मैं जानता हूं कि सर्दी को कैसे भगाया जाता है। इंसान ही इंसान के काम आता है, सर्दी लगते ही मुझे फौरन बता देना।”
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राजीव और पुनीत आइस स्कीइंग करते, तेज रफ्तार से बर्फ पर फिसल रहे थे और साथ ही साथ खुशी से चीखे चिल्लाए जा रहे थे। हर तरफ बर्फ की मोटी चादर बिछी थी। सूर्य स्पष्ट तौर पर आसमान पर चमक रहा था और उसकी रोशनी में कहीं-कहीं बर्फ चमकती, आंखों को चौंधिया देती थी। दोनों कभी-कभी आपस में रेस लगाने लगते। पहाड़ों के ऊंचे नीचे रास्ते थे जिन्हें स्कीइंग से पार करते बहुत मजा आ रहा था उन्हें। एक घंटे से ऊपर का वक्त हो गया था उन्हें इसी प्रकार एक ही दिशा में बढ़ते। संदीप स्कीइंग कर रहा था परंतु जानबूझ कर उनसे पीछे रह रहा था कि मोनी के करीब ज्यादा रह सके। इस समय राजीव-पुनीत और मोनी संदीप के बीच काफी फासला था। राजीव-पुनीत रेस लगाते काफी आगे निकल गए थे फिर एक पहाड़ की ओट में हो जाने के कारण दिखने बंद हो गए।
ऐसे में संदीप फौरन स्कीइंग करके आगे जाती मोनी के पास जा पहुंचा।
“हैलो।” संदीप उत्साह से बोला।
मोनी उसे देखकर मुस्कराई।
“कैसा लग रहा है मोनी बर्फ पर?”
“मैंने बर्फ बहुत देखी है। मुझे सब एक-सा लगता है।”
“दिल्ली में रहने वालों को यहां बहुत मजा आता है।” संदीप उसके साथ आगे बढ़ता कह उठा।
“हम तो बर्फ देखने आने वालों को बेवकूफ मानते हैं। बर्फ में क्या खास है जो इतना पैसा खर्च करके लोग...”
“तुम नहीं समझोगी। दिल्ली में रहती होती तो यहां आने का मजा समझती। मुझे नाम से बुलाओ।”
“क्या?”
“संदीप कहो न।”
“संदीप।” साथ ही मोनी हंस पड़ी-“मैं तुम्हें नाम से बुलाती हूं तो तुम्हें अच्छा लगता है।”
“बहुत अच्छा लगता है। तुमसे बातें करके तो और भी अच्छा लगता है। तुम बहुत खूबसूरत हो।”
मोनी के चेहरे पर गहरी मुस्कान दिखने लगी।
“तुम मुझे मेरी शादी होने से पहले मिलती तो मैं तुमसे जरूर शादी कर लेता।”
“मैंने आपकी पत्नी देखी है। वो भी तो अच्छी है।”
“पर तुम मुझे ज्यादा अच्छी लगती हो।”
“आपकी पत्नी ने सुन लिया तो आपको पीट देगी।” मोनी खिलखिलाकर हंसी।
“जोगना की बात मत करो। इस वक्त अपनी और मेरी बात करो।”
“तुम्हारी पत्नी का नाम जोगना है? अच्छा नाम है।” मोनी ने ऊंचे स्वर में कहा।
दोनों स्कीइंग करते आगे बढ़े जा रहे थे।
“यहां पहाड़ों पर तो हमेशा ही सर्दी रहती है। तुम्हें ठंड लगती रहती होगी।” संदीप बोला।
“अब तो आदत-सी हो गई है इस सर्दी की।”
“तो तुम्हें सर्दी नहीं लगती?”
“लगती है, कभी-कभी।”
“आज लग रही है?” संदीप ने जल्दी से पूछा।
“आज तो खुला मौसम है। धूप निकली है। सर्दी कहां से लगेगी?” मोनी ने कहा।
“पर इस बर्फ से तो मुझे तीखी ठंड लगने लगी है। देखो, मेरी नाक भी लाल हो गई है।”
“इतना तो होता ही है।”
“संदीप कहो न।”
“संदीप।” मोनी हंस पड़ी-“तुमने गाइड के तौर पर मुझे इसलिए चुना कि मैं सुंदर हूं।”
“हां। तुम्हें देखते ही मैंने सोचा कि तुम मुझे शादी से पहले क्यों नहीं मिली?”
“मान लो, मैं मिल जाती। तुम मुझसे शादी कर लेते।”
“ओह, ऐसा हो गया होता तो कितना मजा आ रहा होता।” संदीप ने गहरी सांस ली।
“उसके बाद तुम्हें मेरे से खूबसूरत युवती दिखती तो तुम उसे भी ये कहते कि वो पहले क्यों न मिली?”
“क्या?” संदीप पल भर के लिए सकपका उठा-“ये तुम क्या कह रही हो। मैं तुम्हें ऐसा दिखता हूं?”
“इंसान जो दिखता है, असल में वो होता नहीं।”
“ये तुमसे किसने कहा?” संदीप हड़बड़ा उठा था।
“मेरी मां ने।”
“कितनी उम्र है तुम्हारी मां की?”
“सत्तर।”
“सत्तर? तो क्या तुम्हारी मां ने तुम्हें अड़तालीस-पचास की उम्र में पैदा किया।”
“उससे क्या फर्क पड़ता है?” स्कीइंग करते मोनी ने संदीप को देखा-“पहले उसे बच्चा नहीं हुआ था।”
“तुम्हारी मां ठीक कहती है कि इंसान जो दिखता है, असल में वो होता नहीं, तुम्हारी मां के पुराने वक्त में लोग ऐसे ही होते थे। तब लोगों को सर्दी लगती थी तो वो किसी को कहते नहीं थे, अपना काम चला लेते थे। पर आजकल तो दुनिया बहुत तेज हो गई है। ठंड लगी नहीं कि तुरंत गर्मी का इंतजाम कर लिया...”
“तुम बार-बार ठंड की बात क्यों करने लगते हो?”
“क्योंकि जब मुझे ठंड लगती है तो फिर कुछ भी होश नहीं रहता और गर्मी को ढूँढ़ने लगता हूं। अब तो...”
“तब तो तुम्हें होटल में ही रहना चाहिए था। वहां कमरे में रूम हीटर होता है।”
“मुझे यहां रूम हीटर की क्या जरूरत है। उससे होगा भी क्या। मैं तो जलती अंगीठी अपने साथ लाया हूं। बस इंतजार तो इस बात का है कि जबर्दस्त ठंड लगनी शुरू हो जाए।” संदीप ने दांत फाड़कर कहा।
“कहां है आग की अंगीठी?” मोनी ने पूछा।
“तुम। तुम हो आग की अंगीठी। जो गर्मी तुम में, मुझे नजर आती है वो कहीं नहीं दिखती, खासतौर से बर्फ के इन पहाड़ों पर तो तुम मेरे लिए डायमंड जैसा महत्व रखती हो।” संदीप ने बहुत खुशी से कहा।
दोनों स्कीइंग करते आगे बढ़े जा रहे थे।
मोनी ने संदीप को आंखें सिकोड़कर देखा।
“तुम मुझे आग की अंगीठी क्यों कह रहे हो?”
“अभी वक्त नहीं आया। पता चल जाएगा। मेरे सर्दी लगने पर, जब तुम अंगीठी बनकर मुझे गर्म से ठंडा कर दोगी तो मैं तुम्हारे मां-बाप के लिए तुम्हें पांच हजार रुपए दूंगा। शाम को होटल लौटने पर हजार रुपया अलग से। पांच सौ मैं तुम्हें दे ही चुका हूं। कुल मिलाकर साढ़े छः हजार हो गया, चलो सात पूरा कर दूंगा। बस तुम मेरी सर्दी को ठंडा कर देना।”
“मैं नहीं समझ रही तुम क्या अजीब-अजीब बातें कर रहे हो।”
“बोला तो वक्त आने पर समझ जाओगी।”
“तुम सच में मुझे सात हजार रुपए दोगे?”
“कसम से सच। अगर तुमने मेरी सर्दी को दूर भगा दिया।”
“सर्दी को कैसे दूर भगाऊंगी। मुझे क्या करना होगा?”
“तुम्हें कुछ नहीं करना होगा। करना तो मुझे होगा। बहुत आसान काम है। तुम्हें अभी से इसी बारे में सोचने की जरूरत नहीं। मैं नहीं चाहता कि खामख्वाह ही तुम पहले ही तनाव महसूस करने लगो। तनाव वाली बात ही नहीं है। तुम सात हजार के नोट गिनती रहना और मैं सर्दी भगाता रहूंगा तुम्हारी आग की अंगीठी से। तुम सच में बहुत खूबसूरत हो।”
“तुम्हारे पास बहुत पैसे हैं?”
“बहुत। मैं तो तुम्हें दस हजार भी दे देता, पर जोगना को कैसे समझाऊंगा कि इतने पैसे कहां गए। सात हजार ठीक है। सुनो।”
“हाँ।”
“संदीप कहो न।”
“संदीप।” कहने के साथ ही मोनी मुस्करा पड़ी।
“तुम कितनी अच्छी हो मोनी।” संदीप ने प्यार से कहा-“कुछ और भी कहो न।”
“और क्या?”
“जो भी तुम्हारे मन में है मेरे लिए।”
“मेरे मन में-तुम्हारे लिए?”
“कुछ तो आया ही होगा, मेरी बातें सुनकर, कह दो, मुझे अच्छा लगेगा। शायद कुछ गर्मी का एहसास भी मुझे मिल जाए। बर्फ की इस ठंड ने तो मेरे नाक को सुन्न कर दिया है। कुछ कहो न गर्मा-गर्म।”
“समोसा।” मोनी कह उठी-“मुझे गर्म समोसा खाना बहुत पसंद है।”
संदीप का मुँह लटक गया और बड़बड़ा उठा।
“मुझे संदेह है कि ये मेरी सर्दी को दूर भगा सकेगी।” फिर ऊंचे स्वर में बोला-“कुल मिलाकर सात हजार तुम्हें तभी दूंगा, जब तुम मेरी सर्दी को भगा चुकी होगी। नहीं तो मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा।”
“तुम बताते भी तो नहीं कि तुम्हारी सर्दी मैं कैसे भगाऊंगी?”
“गर्म समोसे से काम नहीं चलेगा। कुछ और गर्म खाने की सोचो। कल्पना करो कि और क्या गर्म हो सकता है पैसे पेड़ पर नहीं लगते। हासिल करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। सात हजार बहुत बड़ी रकम होती है।”
तभी सूर्य के सामने बादलों का झुंड आ गया।
एकाएक छाया हो गई और सर्दी का तीव्र एहसास हुआ।
“ओह, कहीं मौसम न बिगड़ रहा हो।” मोनी आसमान को देखती कह उठी।
“ऐसे मौसम में ही मुझे सर्दी लगती है, अब मेरा क्या होगा।” संदीप ने खराब मन से कहा।
“मैं तुम्हारी सर्दी भगा दूंगी।” मोनी ने सामान्य स्वर में कहा-“सात हजार पाने की मैं पूरी कोशिश करूंगी।”
“वो तो ठीक है, पर राजीव और पुनीत भी तो साथ में है। काम कैसे होगा?”
“क्या उनकी सर्दी भी भगानी है?”
“नहीं-नहीं। तुम उनके बारे में कुछ मत सोचो। ये सिर्फ मेरा और तुम्हारा मामला है।”
मोनी ने स्की पोल के सहारे, अपनी रफ्तार कम की और रुक गई। आसमान को देखा।
संदीप भी रुका और बोला।
“रुकी क्यों मोनी?”
“मुझे लगता है मौसम खराब होने वाला है। आसमान में जाने कहां से आकर बादल घिरते जा रहे हैं। मौसम ज्यादा न बिगड़ जाए, इससे पहले ही हमें वापस चल देना चाहिए।” मोनी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ये तुम क्या कह रही हो। अभी तो मुझे सर्दी भी नहीं लगी।”
एकाएक सर्द हवा का एहसास होने लगा।
“हमें उन दोनों को आगे बढ़ने से रोकना होगा।” मोनी बोली।
“अभी तो वक्त कुछ भी नहीं हुआ, तुम चिंता न करो मोनी। मौसम नहीं बिगड़ेगा।”
“तुम यहां के मौसम को नहीं जानते कि पल-पल कैसे करवट लेता है।ये पहाड़ों का मौसम है। अभी धूप, अभी बरसात और बर्फ गिरने लगती है। मौसम बिगड़ा तो हम बर्फ में बुरी तरह फंस जाएंगे।”
स्की पोल के सहारे, संदीप मोनी के करीब आ पहुंचा।
“जरा अपना हाथ देना मोनी।”
“क्यों?”
“दो तो।”
मोनी ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया।
संदीप ने मोनी का हाथ पकड़ा और चूम लिया।
मोनी ने हड़बड़ा कर हाथ पीछे खींचते कहा।
“ये क्या कर रहे हो?”
संदीप ने प्यार से मोनी को देखा और मुस्कराकर बोला।
“तुम्हें बुरा लगा मोनी?”
“न-नहीं।“ पर ये बात ठीक नहीं है।” मोनी के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ पड़ी-“तुम बड़े शरारती हो।”
“क्या करूं, तुम बहुत खूबसूरत हो। अपने दिल को रोक नहीं सका प्यारी मोनी।”
“अब चलो भी, मैं तुमसे फंसने वाली नहीं। तुम शहरी लोग बहुत चालू होते हो। कैसे मेरा हाथ चूम लिया।”
“मेरी एक बात मानोगी?”
“क्या?” मोनी के चेहरे पर अभी भी शर्म की लाली थी। वो और भी हसीन दिखने लगी थी।
“एक बार अपना हाथ फिर दो...” संदीप ने अपना हाथ आगे बढ़ाया।
“हट।” मोनी ने शर्म भरे स्वर में कहा और दोनों हाथों में स्की पोल को बर्फ में मारते, आगे बढ़ गई।
“ये जरूर, मेरी सर्दी को दूर तक भगा देगी।” संदीप खुशी से बड़बड़ाया और स्की पोल के सहारे, पुनः अपने को आगे बढ़ाया और जूते में फंसी स्की (SKI) के सहारे बर्फ पर फिसलते हुए आगे बढ़ता चला गया।
सामने के पहाड़ का लम्बा चक्कर काटकर मोनी और संदीप उस पार पहुंचे तो पुनीत और राजीव को बर्फ पर बैठे पाया। वो उन्हीं के आ जाने के इंतजार में रुक गए थे।
दोनों उनके पास पहुंचकर थम गए।
“तू तो बहुत पीछे रह गया था।” राजीव ने संदीप से कहा।
“तुम दोनों रेस लगा रहे थे। मैं मोनी के साथ आराम से आ रहा था।” संदीप बोला।
“ज्यादा आराम अच्छा नहीं होता।” पुनीत ने मोनी पर निगाह मारी। मुस्कराया।
जवाब में संदीप ने दांत दिखा दिए।
वातावरण में ठंडक आ चुकी थी। सूर्य बादलों के पीछे गायब होने के बाद फिर नहीं दिखा था और आसमान में बादल घिरते जा रहे थे। मध्यम-सी, बेहद ठंडी हवा चलने लगी थी। इस तरह बर्फ का वीराना हर तरफ दिख रहा था। वो सब गर्म कपड़े पहने हुए थे, जिस कारण वे सर्दी से कुछ बचे हुए थे।
“मौसम खराब हो रहा...” मोनी ने कहना चाहा कि पुनीत बोला।
“हम कितनी आगे आ चुके हैं?”
“काफी आगे निकल आए हैं।” मोनी ने कहा-“एक घंटे से ऊपर का वक्त हो गया, तेज रफ्तार स्कीइंग करते हुए। जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि बर्फ पर एक आदमी, दिन भर में जितना पैदल आगे बढ़ सकता है, उससे कुछ ज्यादा सफर हम स्कीइंग द्वारा एक घंटे में तय कर लेते हैं।” मोनी ने आसमान पर नजर मारी-“मौसम बिगड़ रहा है। हमें वापस जाना चाहिए।”
पुनीत ने आसमान को देखा।
“मौसम ठीक है।” पुनीत बोला।
“मुझे भी मौसम ठीक लग रहा है। जरा से बादल आ गए तो क्या हो गया।” संदीप फौरन बोला और मोनी को देखकर मुस्कराया-“कितना सुहावना मौसम हो रहा है मोनी।”
पुनीत ने राजीव को देखकर कहा।
“क्या मौसम बिगड़ रहा है?”
“बादल आ गए हैं। ये मामूली बात है।” राजीव बोला-“थोड़ी ठंडक बढ़ गई है-बस...”
“आप समझ नहीं रहे। पहाड़ों पर इसी तरह मौसम बिगड़ना शुरू होता है।” मोनी कह उठी।
“वक्त क्या हुआ है?” पुनीत ने राजीव से पूछा।
राजीव ने बताया।
“इसका मतलब एक घंटा दस मिनट हमने बिना रुके स्कीइंग की।”
पुनीत खड़ा हुआ-“शाम के पांच बजने में काफी वक्त हैं। अभी हम डेढ़ घंटा और स्की कर सकते हैं।”
“मैंने कहा है मौसम बिगड़ने लगा है।” मोनी ने कहा-“मैं गाइड हूं, आप लोगों को मेरी बात माननी चाहिए। यहां के मौसम को मैं आप लोगों से बेहतर जानती हूं।” मोनी ने आसमान पर फैले गहरे बादलों को देखा-“बरसात कभी भी शुरू हो सकती है। नहीं तो सर्दी इतनी बढ़ जाएगी कि...”
“सर्दी?” संदीप ने मुस्कराकर मोनी को देखा-“सच में सर्दी बढ़ने वाली है।”
“हां। अगर मौसम ज्यादा बिगड़ा तो बर्फ भी गिर सकती है।”
“बर्फ गिर जाए तो मजा आ जाएगा।” राजीव खड़ा होते मुस्कराकर बोला-“अभी सब ठीक है। मुझे स्कीइंग में बहुत मजा आ रहा है और अभी वापस लौटने का तो कोई मतलब ही नहीं है, क्यों पुनीत?”
“मैं भी तो ये ही कह रहा हूं।” संदीप जल्दी से कह उठा-“ऐसा मौका कभी-कभी आता है, क्यों मोनी?”
“तू मेरी बात का जवाब दे रहा है या मोनी से बात कर रहा है?” राजीव कह उठा।
“इस वक्त तो हम सब एक ही हैं।” संदीप मुस्कराया-“मैं सबकी बातों का जवाब दे रहा हूं।”
राजीव ने सिर हिलाकर संदीप और मोनी को गहरी निगाहों से देखा।
“तुम दोनों पीछे रह गए थे।” राजीव बोला-“पीछे क्या कर रहे थे?”
“क्या कर रहे थे?” संदीप ने अजीब-से स्वर में कहा-“क्या कर सकते हैं हम?”
“वो ही तो पूछ रहा हूं।”
“समझा।” संदीप उखड़ा-“तू क्या सोच रहा है, जरा कपड़े उतारकर बर्फ पर लेट।”
“क्यों?”
“ताकि तेरे को पता चले कि, तू जो कहना चाहता है, वो नहीं हो सकता यहाँ...”
“मैंने ऐसा तो नहीं कहा।”
“चुप कर।” संदीप ने तीखे स्वर में कहा-“मैं सब समझता हूं कि तेरी सोच क्या है।”
“क्या कह रहे हैं सर?” मोनी ने संदीप से पूछा।
“वो मेरे काम की बात है, तुम्हारे सुनने वाली बात नहीं है।” संदीप, मोनी को देखकर मुस्कराया।
तभी पुनीत कह उठा।
“इस तरह बातों में हमें वक्त खराब नहीं करना है। हम स्कीइंग करने आए हैं, चलो आगे बढ़ते हैं।”
“हम तीनों रेस लगाएंगे कि...”
“मैं सलाह नहीं दूंगी कि आगे जाया जाए।” मोनी गम्भीर स्वर में बोली-“मौसम बिगड़ गया तो हम फंस सकते हैं।”
“ये तो बहुत शानदार मौसम है मोनी। इस मौसम में जब सर्दी लगती है तो बड़ा मजा आता है।”
“हम आगे बढ़ेंगे।”
मोनी की बात किसी ने नहीं मानी।
राजीव और पुनीत ने जूतों को स्की में फिट कर लिया। स्की पोल पुनः थाम ली।
“संदीप।” राजीव बोला-“अब हम तीनों एक साथ रेस लगाएंगे और...।”
“तुम दोनों ही रेस लगाओ।” संदीप कह उठा।
“क्या मतलब?”
“मैं और मोनी तुम दोनों के पीछे आते रहेंगे। मैं भी तुम दोनों की तरह तेज भागा तो, मोनी पीछे रह जाएगी।”
राजीव ने पुनः पुनीत पर नजर मारी जैसे कह रहा हो, इसे तो मोनी ही की चिंता है।
“तू यहां मोनी का ध्यान रखने आया है।” राजीव मुस्कराकर बोला।
“मैं मजे लेने आया हूं स्कीइंग को एन्जॉय करने आया हूं। मुझे जैसे मजे मिल रहे हैं, ले रहा हूं।”
“ज्यादा मजे मत लेना।”
“मोनी इस वक्त हम सबके लिए जरूरी है।” संदीप ने कहा-“हम स्की करते, पहाड़ों पर काफी आगे आ चुके हैं और वापसी का रास्ता सिर्फ मोनी ही जानती है। मोनी पास में न हो तो हमें वापस पहुंचने में...”
“मोनी हमारे साथ ही है। तू हमारे साथ रेस...”
“नहीं। मैं और मोनी पीछे-पीछे आ रहे हैं।” संदीप ने मोनी से कहा-“ठीक है न मोनी।”
“मुझे क्या पता। ये आप लोगों का मामला है।” मोनी बोली-“आप लोग अगर तेजी से आगे बढ़ेंगे तो में आप लोगों के साथ ही रहूंगी, इस बात की चिंता न करें।”
“सुन लिया।” राजीव बोला-“अब आ, हम तीनों रेस लगाएंगे।”
संदीप को राजीव की बात माननी पड़ी।
तीनों रेस लगाने को तैयार हो गए। संदीप बार-बार मोनी को देख रहा था।
“क्या बात है?” पुनीत संदीप के कान में मुस्कराकर बोला।
“क्या बात है?” संदीप ने पुनीत को देखा।
“तू मोनी को ही देख रहा है।”
“मैं-नहीं तो, में तो उधर वाले पहाड़ को देख रहा हूं।” संदीप कह उठा।
“पहाड़ पर क्या है?”
“जो भी हो, मैं तो उधर के पहाड़ को देख रहा था।”
“मुझे पता है पहाड़ पर क्या है।”
“क्या है?”
“वहां मोनी बैठी है।” पुनीत हंस पड़ा।
“मजाक मत कर।”
“ये मजाक नहीं है। सच बात कह रहा हूं। तूने बढ़िया लड़की चुनी गाइड के लिए। काफी खूबसूरत है।”
“मैंने उसकी खूबसूरती नहीं देखी, काबिलियत देखी। वो अच्छी गाइड है।” संदीप ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तूने एक ही नजर में पहचान लिया कि वो अच्छी गाइड है।”
“यार तुम मुझे खींचने पे क्यों लगे हो।” संदीप झल्ला उठा।
उसके बाद उन तीनों ने अपना आगे का सफर शुरू कर दिया। जबकि मोनी ने कई बार आगे आने पर एतराज दिखाया और वापस चलने को कहा था। परंतु किसी ने उसकी बात नहीं मानी थी।
संदीप पंद्रह-बीस मिनट तक तो उनके साथ रेस लगाता रहा। तीनों तेजी से बर्फ पर फिसलते आगे बढ़ते रहे। संदीप और पुनीत ऊंची जगहों से जम्प लगाते रहे थे। उनके ठहाके, आवाजें सुनाई दे रहीं थीं। मोनी फासला रखें, बराबर उनके पीछे आ रही थी। तभी संदीप ने उन दोनों का साथ छोड़ा और रफ़्तार कम कर दी। पीछे से आती मोनी उसके साथ आ मिली तो वो मोनी के साथ आगे बढ़ने लगा।
“तुम पीछे क्यों आ गए?” मोनी ने पूछा।
“तुम्हारे लिए।” संदीप ने मुस्कराकर कहा।
“मेरे लिए?” मोनी मुस्कराई-“वो क्यों?”
“मैंने सोचा तुम अकेली हो। बोर हो रही होगी। इसलिए मैं तुम्हारे पास...”
“मैं कहां बोर हो रही हूं।”
“मेरे पास कम्बल है, बर्फ पर बिछाने के लिए। पीठ पर लदे बैग में रखा है।” संदीप ने कहा।
“कम्बल? वो किसलिए?”
“जब मुझे सर्दी लगेगी तो, हमें नीचे बिछाने के लिए भी तो कुछ चाहिए होगा। बर्फ पर कैसे लेटेंगे।”
“तुम अपनी बात कर रहे हो या मेरी?”
“हम दोनों की।”
“मेरी हालत ऐसी नहीं होने वाली कि मुझे बर्फ पर कम्बल बिछाकर लेटना पड़े।”
“मेरे लिए तो तुम्हें ऐसा करना होगा। तभी तो मेरी सर्दी भागेगी।”
“मैं नहीं समझी तुम क्या कह रहे हो।”
“जब मुझे सर्दी लगेगी और मैं तुमसे कहूंगा कि मेरी सर्दी को भगाओ तो तुम क्या करोगी?”
“मैं तुम्हारे हाथ-पैर रगड़ दूंगी।”
“हाथ-पैर रगड़ने से मेरी सर्दी नहीं भागेगी।”
“तो कैसे भागेगी?”
“बहुत कुछ रगड़ना पड़ेगा।” संदीप ने मुस्कराकर कहा-“उससे तुम्हारी सर्दी भी भाग जाएगी।”
मोनी ने गर्दन घुमाकर संदीप को देखा।
संदीप खुलकर मुस्कराया।
“मुझे अभी तक नहीं समझ आया कि तुम मुझे सर्दी-सर्दी क्यों सुना रहे हो?”
“समझ आ जाएगा। तुम कहो तो मैं कम्बल बिछाऊं।” संदीप ने बहुत आगे जा चुके पुनीत और राजीव को देखा-“बर्फ पर कम्बल बिछाकर लेटने का बहुत मजा आएगा।”
“अपने साथियों के पास पहुंचो। वो काफी आगे जा चुके हैं। रास्ता भटक गए तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी। तब उन्हें ढूंढ़ पाना आसान नहीं होगा।” मोनी ने कहा-“तेज चलो। कम्बल पर लेटना है तो ये काम अपने साथियों की मौजूदगी में करो कि वो भी आराम कर सकें।” मोनी ने सिर उठाकर आसमान को देखा जहां काले बादल फैलते जा रहे थे-“मौसम खराब होने वाला है। शायद बरसात आ जाए। हमें वापस जाना चाहिए। हम लोग काफी आगे निकल आए हैं। बरसात में स्की करना खतरनाक हो जाता है। स्लिप हो जाने का खतरा रहता है।”
“तुम सात हजार को भूल रही हो मोनी।” संदीप ने नाराजगी भरे भाव में कहा।
“मुझे याद है। तुम दोगे न?”
“मैं तो तुम्हें पहले भी कह चुका हूं कि पैसा कमाने के लिए कुछ तो करना होगा। मैंने भी मेहनत करके पैसा कमाया है, तुम भी मेहनत करके मेरी सर्दी दूर करना और सात हजार ले लेना।”
“तुम्हें सर्दी लगी कि नहीं?”
“तुम एक इशारा करो, सर्दी तो मुझे फौरन लग जाएगी।” संदीप मुस्कराया।
“तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती।”
“अच्छा जरा रुको। एक मिनट के लिए रुको।”
मोनी ने सकी पोल के सहारे अपनी गति कम की और रुक गईं।
संदीप उसके करीब आकर रुका और प्यार से मुस्करा पड़ा।
मोनी भी मुस्कराई।
“मुझे प्यार से संदीप कहो।”
“संदीप।”
“ओह, कितना अच्छा लगता है जब तुम मेरा नाम लेती हो। अब अपना हाथ तो दो...”
“नहीं-तुम...।”
“मना मत करो। इस तरह मुझे सर्दी लगनी शुरू हो जाएगी।”
“मेरा हाथ थामकर तुम्हें सर्दी लगेगी?” मोनी ने अजीब से स्वर में कहा।
“मेरी सर्दी ऐसी ही है। हाथ तो दो।”
मोनी ने हाथ बढ़ाया। संदीप ने हाथ थामा।
“चूमना मत, मैं...”
परंतु संदीप ने कसकर हाथ पकड़ा और बार-बार चूमने लगा।
“ऐ ये क्या कर रहे हो शरारती।” मोनी घबराकर कह उठी। हाथ छुड़ा लिया। चेहरे पर शर्म आ गई थी।
“तुम बहुत अच्छी हो। अब मुझे सर्दी लगनी शुरू हो गई है। कम्बल बिछा लूं!” संदीप ने प्यार से कहा-“हम दोनों कम्बल पर लेटेंगे। तुम मेरे साथ सट जाना। मुझे गर्मी मिलने लगेगी। बाकी सब मैं देख लूंगा। तुम्हें तो सिर्फ मेरे से सटके रहना है। बाकी सब कुछ मैं ही...”
“ये तुम कैसी बातें कर रहे हो...” मोनी हड़बड़ा कर बोली।
“तुम बहुत अच्छी हो मोनी। मेरी सर्दी भगाकर तुम सात हजार ले लोगी मुझसे।”
मोनी, संदीप को देखने लगी।
“तुम नाराज तो नहीं हो गई मेरी बात सुनकर।” संदीप ने मुंह लटका लिया।
एकाएक मोनी मुस्कराई और स्की पोल बर्फ पर ठोकती आगे बढ़ गई।
संदीप उसके पीछे बढ़ गया और बड़बड़ाया।
‘इसका कुछ समझ में नहीं आता कि ये सात हजार कमाना चाहती है या नहीं।’
राजीव और पुनीत कहीं भी नजर नहीं आ रहे थे। वो काफी आगे निकल गए थे।
“जल्दी चलो।” मोनी आसमान में देखते चिल्लाकर बोली-“बरसात शुरू होने वाली है। मैंने पहले ही कहा था कि मौसम खराब होने वाला है। हमें वापस चलना चाहिए। हम बहुत ज्यादा आगे आ चुके हैं। बरसात हो गईं तो हम वापस कैसे जाएंगे। यहां पर तो ओट लेने के लिए भी कोई जगह नहीं है।”
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मौसम बहुत बिगड़ गया था। आसमान में काले बादलों की वजह से अंधेरा छा गया था। जानलेवा तीखी हवा बहने लगी थी। कोहरा-सा फैलने लगा था। एकाएक सर्दी बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। ऐसे खराब मौसम में तो कमरे में रजाई लेकर बैठे होना चाहिए, परंतु ये लोग स्कीइंग में व्यस्त थे।
राजीव और पुनीत स्कीइंग करने में इतने व्यस्त थे कि जैसे मौसम बिगड़ने का एहसास ही न हो जैसे उन्हें सर्दी लग ही नहीं रही हो। वो तो उस आजाद पंछी की तरह लग रहे थे जो बरसों बाद पिंजरे से छूट निकले हों। दोनों में होड़ लगी थी कि वे एक-दूसरे से आगे निकल जाएं। इस बार डेढ़ घंटा हो गया था उन्हें आगे बढ़ते हुए। जाने कितना लम्बा रास्ता वो पार कर आए थें। हर तरफ बर्फ फैली थी। अब तो वहां इतनी रोशनी भी नहीं थी कि दूर तक स्पष्ट देखा जा सके। कोहरे के बादल बर्फ को छूते मंडरा रहे थे। वो नहीं जानते थे कि मोनी और संदीप पीछे तेजी से आ रहे है कि उन्हें वापस चलने को कह सकें परंतु उनकी रफ्तार ही इतनी तेज आगे बढ़ने की कि उन्हें पकड़ पाना सम्भव नहीं हो पा रहा था। दोनों रह-रहकर ठहाके और एक-दूसरे को पुकारने की आवाजें सुनसान बर्फ जंगल में, गूंज रही थीं। मौसम की उन्हें कोई परवाह नहीं थी। लेकिन तभी उनके साथ हादसा पेश आ गया। उनकी खुशी हवा हो गई वक्त जैसे एकाएक ही ठहर गया हो।
उस वक्त पुनीत, राजीव से पचास कदम आगे के फासले पर स्की पर तैजी से फिसला जा रहा था। एकाएक पुनीत की चीख गूंजी और खामोशी छा गईं। फिर उसकी कोई आवाज नहीं उभरी।
“पुनीत।”–राजीव गला फाड़कर चिल्ला उठा। साथ ही फुर्ती से उसने खुद को वहां रोका, जहां पुनीत की चीख गूंजी थी।
परंतु पुनीत कहीं भी नहीं दिखा।
राजीव का दिल धड़क उठा।
“पुनीत-ऽ-ऽ-ऽ...।” राजीव गला फाड़कर चिल्ला उठा।
परंतु पुनीत की तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
राजीव की निगाहें हर तरफ जा रही थीं, परंतु पुनीत कहीं भी नहीं था।
राजीव का डर से दिल धड़कने लगा कि पुनीत कहां चला गया। वो चीखा क्यों था?
“पुनीत-पुनीत।” राजीव जैसे दहशत में डूबा चीखा-“तुम कहां हो?”
लेकिन जवाब में सन्नाटा छाया रहा।
राजीव की हालत बुरी हो रही थी। उसकी आंखों के सामने तो पुनीत स्की पर फिसलता जा रहा था कि अचानक ही वो चीख के साथ गायब हो गया। वो कहां गया? एकाएक राजीव को बर्फ के उस वीराने से डर लगने लगा। अब पहली बार उसे मौसम का एहसास हुआ कि वो बिगड़ गया है। सर्दी बढ़ गई है। वातावरण में नमी आ गई है। कोहरा बर्फ को छूता, लहरा रहा है। आसमान काले बादलों की ओट में छिप चुका है और अंधेरे जैसा माहौल हर तरफ फैल चुका है। ये मौसम तो स्कीइंग करने के लिए ठीक नहीं था। एकाएक कोहरे के बादल ने उसे घेर लिया और उसे धुंध के अलावा कुछ भी नजर नहीं आया। मस्तिष्क में हथौड़ों की तरह एक हीं सवाल घूम रहा था
कि पुनीत कहां है? वो अचानक ही गायब कहां हो गया? वो चीखा क्यों था?
कोहरे का बादल, उसके गिर्द से छंट गया।
राजीव की नजर हर तरफ घूमी। स्की के सहारे वो धीरे-धीरे पुनीत की तलाश में आगे बढ़ने लगा। आस-पास घूमने लगा। परंतु पुनीत कहीं भी नहीं दिख रहा था। बुरी आशंका से उसका दिल धड़क उठा।
“पुनीत-ऽ-ऽ-ऽ...।” राजीव गला फाड़कर चिल्ला उठा। उसकी
आवाज में तड़प थी। भय था।
राजीव की आवाज जैसे उस खराब मौसम में दबकर खत्म हो गई।
कड़कती सर्दी में, राजीव के चेहरे पर पसीना छूटने लगा। हाथों और चेहरे पर जैसे पसीने की गर्मी महसूस होने लगी। सर्दी का नामोनिशान भी उसे महसूस नहीं हो रहा था। चेहरा फक्क पड़ चुका था। अपनी जगह ठगा-सा खड़ा नजरें हर तरफ घुमा रहा था, पुनीत कहीं भी दिख नहीं रहा था। हर तरफ बर्फ की सफेद चादर थी, जो कि इस नमी वाले मौसम में धुंधली हो चुकी थी। सामने सिर उठाए पहाड़ खड़ा था। राजीव को समझ नहीं आ रहा था कि पुनीत अचानक ही कहां गायब हो गया? गायब होने से पहले चीखा क्यों था? राजीव ने स्की पोल को बर्फ में मारा और आहिस्ता-आहिस्ता पुनीत की तलाश में इधर-उधर घूमने लगा। दस मिनट इसी कोशिश में बीत गए।
परंतु पुनीत कहीं नहीं मिला।
राजीव की हिम्मत जवाब देने लगी। उसका मन किया, रो पड़े।
अंजाना-सा डर उनके सिर पर सवार होता जा रहा था कि पुनीत कहां गया? देखते ही देखते आंखों के सामने कहां गायब हो गया।
उसी पल बरसात की मोटी-सी बूंद उसके चेहरे पर पड़ी।
तभी संदीप को मध्यम-सी आवाज उसके कानों में पड़ी।
राजीव चौंका। पुनीत के गुम होने पर ऐसा खोया था वो कि संदीप और मोनी को तो भूल ही गया था। उसने फौरन गर्दन घुमाकर देखा, काफी दूर बर्फ पर हिलते दो लोग दिखे। राजीव एकाएक उत्साह से भर उठा। डर कुछ कम हुआ। उन दोनों का उसे बहुत सहारा मिला।
दो मिनट लगे कि स्की करते वे दोनों पास आ पहुंचे।
“मौसम खराब हो रहा है।” मोनी गुस्से से कह उठी-“बरसात की बूंदें पड़ने लगी हैं। हम लोग इतनी दूर आ चुके हैं कि खराब मौसम में वापस पहुंचने में डबल वक्त लगेगा और कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।”
राजीव, मोनी को देखता रहा।
“पुनीत कहां हैं?” संदीप ने पूछा।
“व-वो पता नहीं।” राजीव ने कांपते स्वर में कहा-“हम दोनों स्की करते आगे बढ़ रहे थे कि एकाएक चीख के साथ गायब हो गया। तब वो मेरे से कुछ आगे था। उसकी चीख सुनकर मैंने उसे देखा तो वो कहीं नहीं दिखा। मैं तब से उसे ढूंढ़ रहा हूं। आवाजें दे रहा हूं परंतु कोई फायदा नहीं हो रहा है, वो...नहीं मिल रहा।”
ये सुनते ही संदीप स्तब्ध-सा रह गया।
बरसात की बूंदें कुछ तेज हुईं।
बर्फ का सुंदर नजारा, अब उन्हें नर्क की तरह महसूस होने लगा था। उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें स्की करते इतनी दूर नहीं आना चाहिए था। मुसीबत में यहां उन्हें किसी की मदद भी नहीं मिल सकती थी। वे दुनिया से कट चुके हैं।
“कहां पर गायब हुआ वो?” मोनी के होंठों से निकला।
“यहीं-कहीं।” राजीव ने फीके स्वर में कहा-“जहां हम खड़े हैं। हैरानी है कि पुनीत कहां चला गया?”
मोनी ने सिर उठाकर सामने खड़े पहाड़ की तरफ देखा।
टप-टप बरसात की बूंदें बर्फ में गिर रही थीं।
“यहां कहीं खोह होगी।” मोनी ने कहा।
“खोह?” संदीप ने उसे देखा।
“हां। पहाड़ के नीचे की खाली जगह। जब बर्फ पड़ती है तो वो जगह बर्फ से समतल हो जाती है। परंतु जब इंसान उसके ऊपर पहुंचता है तो बर्फ की परत नीचे दब जाती है और इंसान भीतर जा गिरता है। बर्फ के पहाड़ों पर ऐसी जगहें साधारणतया पाई जाती हैं।” मोनी ने गम्भीर स्वर में कहा-“हमें खोह को ढूँढ़ना होगा। ऐसी खोह दूर से नजर नहीं आती, क्योंकि वो बर्फ से घिरी होती है।हमें बर्फ पर चलकर उस जगह को ढूंढ़ना है। स्की को पैरों से अलग करो। बरसात शुरू हो चुकी है। हम बुरे मौसम में फंस गए हैं।”
उसके बाद तीनों ने पैरों से स्की को अलग किया और मोनी के कहे मुताबिक खोह ढूंढ़ने लगे। बरसात की बूंदें पड़ रही थीं। वो गीले हो रहे थे। सर्दी तीखी होती जा रही थी। वो ठिठुरने लगे थे। ऐसे में बर्फ पर चलना भी आसान नहीं था। बीस मिनट बाद संदीप ने वो खोह ढूंढ़ ली।
“ये देखो, ये क्या है।” संदीप जोरों से बोला।
मोनी और राजीव वहां पहुंचे।
सामने बर्फ से घिरा दस फुट व्यास का गड्ढा-सा नजर आ रहा था। जहां बर्फ नहीं थी। उन्होंने भीतर झांका। परंतु कुछ दिखाई नहीं दिया। संदीप और राजीव ने, पुनीत को आवाजें लगाईं, लेकिन कोई भी फायदा नहीं हुआ। मोनी गड्ढे के आस-पास की बर्फ को देखने लगी तो उसे स्की के निशान मिले, जो कि गड्ढे पर जाकर खत्म हो रहे थे। मोनी ने आसपास देखा तो दस फुट के फासले पर बड़ा-सा पहाड़ी पत्थर, बर्फ से ढंका देखा तो उसने अपने कंधे से बैग निकाला और नीचे रखकर उसे खोलकर मोटा-सा रस्सा भीतर से निकाला।
“ये तुम क्या कर रही हो?” संदीप कह उठा।
“आपका साथी इसी खोह के भीतर है।” मोनी बोली-“ये रस्सा उस पत्थर से बांधों। मैं रस्सा पकड़कर नीचे जाऊंगी। वो बेहोश है, तभी उसकी आवाज नहीं आ रही।”
“तुम भीतर जाओगी।” संदीप के होंठों से निकला।
“चिंता की कोई बात नहीं, ऐसी खोह, दस से बीस फुट गहरी होती है।”
मोनी ने कहा-“रस्सा पत्थर से बांधो।”
संदीप और राजीव ने मिलकर रस्सा उस भारी पहाड़ी पत्थर से बांधा।
मोनी रस्सा थामे गड्ढे में उतरती चली गई।
“भीतर तो अंधेरा है मोनी।”
“हां। लेकिन मैं देख लूंगी।” मोनी की, नीचे से आवाज आईं।
“मेरे पास माचिस है।” राजीव ने कहा और पीठ पर लदे बैग से माचिस निकाली-“फेकूं क्या?”
“अभी नहीं।” मोनी की आवाज आई-“मेरे पांव जमीन पर लग गए हैं। दस-बारह फुट गहरी है खोह। लाओ फेंक दो माचिस। सीधी नीचे फेंकना मैं गड्ढे के ठीक नीचे खड़ी हूं।”
राजीव ने माचिस को सीधी नीचे गिरा दिया।
कुछ पलों बाद नीचे माचिस की मध्यम-सी रोशनी चमकी।
“पुनीत नीचे है?” राजीव का व्याकुल स्वर, परेशानी से भरा था।
“हां।” मोनी की आवाज आई-“मुझे दिख गया है। ठहरो मैं चेक करती हूं...ये बेहोश है, पर ठीक लग रहा है। मैं रस्सा इसकी कमर से बांधती हूं तुम लोग इसे ऊपर खींचना।”
“ऊपर बरसात तेज होती जा रही है।” संदीप बोला-“और ये बेहोश है।”
चंद पल रुककर मोनी की आवाज आईं।
“तुम दोनों रस्सा पकड़कर मेरी तरह खोह में उतर आओ। इस तरह हम बरसात और सर्दी से काफी हद तक बच सकते हैं जब बरसात थम जाएगी तो हम रस्सा पकड़कर बाहर आ जाएंगे। तब तक इसे भी होश आ जाएगा मैं इसकी स्की पांवों से अलग कर देती हूं। बैग भी इसकी पीठ से निकालती हूं तुम दोनों नीचे आ जाओ।”
बाहर बरसात में अब तेजी आ गई थी। दोनों ने नीचे उतर जाना ही बेहतर समझा।
रस्सा थामे किसी प्रकार वे गड्ढे में उतर आए, खोह में घुप्प अंधेरा था और वो एक तरफ को कुछ गहरी थी। बरसात तो क्या सर्दी से भी बहुत बचाव हो रहा था खोह में आकर।
संदीप के कहने पर मोनी ने माचिस की तीली जलाई। उस रोशनी में पुनीत को चेक किया। वो बेहोश था। हाथ-पांव सलामत थे। मोनी ने पुनीत की स्की और पीठ का बैग उतार दिया था। उन्होंने भी अपने बैग पीठ से हटा दिए थे।
“तुमने अपने बैग में रस्सा क्यों रखा हुआ था?” संदीप बोला।
“क्योंकि बर्फ की इन जगहों पर इस तरह के खतरे आते हैं। हर गाइड के पास ऐसा ही, तीस फुट लम्बा रस्सा जरूर होता है कि टूरिस्ट, ऐसी मुसीबत में फंसे तो उसे बचाया जा सके।”
“शुक्रिया।” संदीप ने गम्भीर स्वर में कहा-“तुम हमारे साथ न होती तो पता नहीं हमारा क्या होता। तुम्हें चुनकर मैंने गलत काम नहीं किया। तुम सच में काबिल हो।”
“पर इसे कब तक होश आएगा?” राजीव चिंता भरे स्वर में कह उठा।
बाहर बरसात की तेज बूंदें गिरने की आवाजें आ रही थीं।
“सिर में चोट न लगी हो।” मोनी ने कहा।
राजीव ने अंधेरे में बेहोश पुनीत के चेहरे पर हाथ फेरा। अच्छी तरह चेक किया।
“सिर में चोट लगी तो, नहीं लग रही।” राजीव बोला।
वहां अंधेरा था। वे एक-दूसरे को ठीक से देख नहीं पा रहे थे। खोह के गड्ढे में जहां रस्सा लटक रहा था, वहां से अब तेजी से बूंदें गिरनी शुरू गई थीं।
“शुक्र है कि इस बुरे मौसम में हमें ये जगह मिल गई।” संदीप बोला।
“वक्त क्या हुआ है?” राजीव बोला।
मोनी ने माचिस जलाकर, अपनी कलाई में बंधी घड़ी पर निगाह मारकर कहा।
“दोपहर के तीन बजे हैं।”
“यहां तो रात जैसा मौसम लग रहा है।” गड्ढे के मुंह से आती मध्यम रोशनी को देखते राजीव ने कहा-ये बरसात रुके तो हम वापस चलें। हमने गलती की इतनी दूर आकर, मोनी।”
“हां।”
“हम कितनी दूर आ गए हैं?”
“बहुत दूर। मेरे ख्याल से करीब ढाई घंटे कुल स्कीइंग की गई है। वो भी तेजी से। ऐसे में हम इस तरह समझ सकते हैं कि चार-पांच दिन में इंसान जितना पैदल चल सकता है, हम उतना दूर आ पहुंचे हैं।”
“ओह, फिर तो हमें वापस पहुंचते-पहुंचते रात हो जाएगी।”
“पहले पुनीत को तो होश आए। इसका हाल-चाल पता चले। ये घायल हुआ तो वापस कैसे जा सकेंगे।”
“कोई हड्डी वगैरह न टूट गई हो।” मोनी बोली।
“हड्डी नहीं टूटी।” संदीप गम्भीर स्वर में बोला-“टूटी होती तो बेहोशी में भी इसकी आवाजें निकल रही होतीं।”
“यहां अगर रोशनी का इंतजाम हो जाए तो हमें आसानी हो जाए, रुकने में।” राजीव ने कहा।
“रोशनी का इंतजाम नहीं हो सकता।” संदीप बोला-“सिर्फ माचिस ही...”
तभी पुनीत के होंठों से कराह की आवाज आई।
“इसे होश आ रहा है।” मोनी के होंठों से निकला।
“पुनीत।” राजीव बेचैनी से कह उठा।
पुनीत के होंठों से कुछ पल कराह निकलती रही फिर उसे होश आ गया।
“तुम ठीक तो हो?” संदीप ने जल्दी से कहा।
“आह, क्या हुआ था मुझे?” पुनीत ने धीमे स्वर में पूछा।
“तुम स्कीइंग करते-करते पहाड़ी खोह में गिर गए थे। वो जगह ऊपर से बर्फ से ढकी थी, तुम समझ नहीं सके थे कि नीचे खाली जगह है।” राजीव ने कहा-“ऐसी जगह को कोई नहीं भांप सकता था।”
“मुझे इतना पता है कि अचानक मैं नीचे गिरने लगा फिर जाने क्या चीज मेरे सिर से टकराई और मेरे होश गुम हो गए। ये-ये कौन-सी जगह है।” पुनीत ने उठ बैठने की चेष्टा की।
राजीव ने उसे सहारा देकर बिठाया।
“ये वो ही पहाड़ी खोह है जहां तुम गिरे थे। मोनी ने हमारी बहुत सहायता की, वरना जाने क्या हो जाता।” संदीप बोला।
“शुक्रिया मोनी। आह...”
“क्या हुआ!”
“मेरी टांग में दर्द हो रहा है।”
“मुड़ गई लगती है।” संदीप ने कहा और उसकी टांग की तरफ पहुंच कर बोला-“कौन-सी वाली?”
“बाईं वाली।”
संदीप उसकी बाईं टांग को धीमे-धीमे दबाने लगा।
“स्कीइंग के काबिल हो या नहीं?” राजीव ने पूछा-“हम बहुत दूर आ गए हैं, वापस भी जाना है।”
“काबिल हूं। कर लूंगा। बाहर बरसात आ रही है?”
“हां। मौसम बिगड़ चुका है।”
“आप लोगों ने भरपूर अपनी मर्जी की।” मोनी ने उखड़े स्वर में कहा-“मैंने तो बहुत पहले ही कह दिया था कि मौसम खराब हो रहा है, हमें वापस चल देना चाहिए। तब वापस चलते तो अब तक ‘सूमा’ में होते।”
“तुम ठीक कहती हो।” संदीप गम्भीर स्वर में बोला-“तुम्हारी बात न मानकर हमने गलती की।”
“गाइड की बात जरूर माननी चाहिए।” मोनी बोली-“मुझे यहां के पहाड़ी मौसम का बहुत अनुभव है।” कहने के साथ ही मोनी उठी और खोह के उस रास्ते के पास पहुंची जहां रस्सा लटक रहा था अगले ही पल वापस आकर बोली-“अभी हम वापस नहीं चल सकते। बरसात बहुत तेज है।”
“हम बरसात में भी स्कीइंग कर लेंगे।” राजीव बोला।
“बरसात में रास्ता ही नहीं दिखेगा तो आगे कैसे बढ़ेंगे। भटक जाएंगे।” मोनी बोली।
“इंतजार कर लेते हैं, बरसात थम जाएगी।” पुनीत बोला।
“बरसात में बर्फ गीली होकर आपस में चिपक-सी जाती है, ऐसे में स्कीइंग करते वक्त स्लिप हो जाने का खतरा रहता है।” मोनी ने कहा-“हमें वापसी पर बहुत ध्यान से स्कीइंग करनी होगी।”
“संदीप।” पुनीत बोला-“मुझे उठाओ। हाथ लगाओ।”
पुनीत, को संदीप ने सहारा देकर खड़ा किया।
पुनीत अंधेरे में दो-चार कदम चला। बाईं टांग में हल्का-सा दर्द अभी भी था, परंतु ऐसा नहीं कि स्कीइंग करने में रुकावट बने। वो मुस्कराकर कह उठा।
“मैं ठीक हूं। चिंता की कोई बात नहीं। मोनी जब कहेगी हम वापस चल पड़ेंगे।”
“बरसात रुकने पर ही हम वापस चलेंगे।” मोनी ने चिंता भरे स्वर में कहा-“परंतु रास्ते में अंधेरा हो जाएगा। अंधेरे में स्कीइंग करने में परेशानी आएगी। तब रफ्तार धीमी रखनी होगी।”
“वापसी का रास्ता तो याद है न?”
“मैं यहां, इतनी दूर तक कभी नहीं आई। टूरिस्ट सूमा के पास के पहाड़ों पर दो-चार किलोमीटर तक ही जाते हैं। परंतु तुम लोग तो बहुत ज्यादा दूर आ चुके हो। इतनी दूर तो हमें आना ही नहीं चाहिए था।”
“तुम वापसी का रास्ता जानती हो कि नहीं?” राजीव ने पुनः परेशान स्वर में पूछा।
“चिंता मत करो।” मोनी ने गम्भीर स्वर में कहा-“सूमा तक ले चलूंगी तुम लोगों को।”
“ये बरसात भी तो रुक नहीं रही।” संदीप बोला।
“मुझे भूख लगी है।” पुनीत बोला-“कुछ खाने को दो।”
राजीव ने अपने बैग से बर्गर निकालकर सबको दिए और कहा।
“खाने को काफी सामान है हम लोगों के पास। उसकी कोई चिंता नहीं।”
“बोतलें भी हैं!” पुनीत बोला-“मैं अपने बैग में दो बोतलें भी लाया हूं।”
“आप लोग पीने मत लग जाना।” मोनी ने तुरंत कहा-“बरसात रुकते ही हमने वापस चलना है।”
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शाम घिर आई। अंधेरा होना शुरू हो गया। परंतु बरसात अभी तक नहीं रुकी थी। बल्कि अब तो तेज, तीखी, सर्द हवा भी चलने लगी थी और उस हवा के झोंके खोह के भीतर आकर उन्हें कांपने पर मजबूर कर रहे थे। खोह में गहरा अंधेरा मौजूद था। वे एक-दूसरे को देख नहीं पा रहे थे, परंतु दूसरे की मौजूदगीं का एहसास अवश्य हो रहा था। सन्नाटा-सा छाया हुआ था खोह में। उनके हिलनें-सरकने की आवाजें उठ रही थीं।
“हम फंस गए लगते हैं।” संदीप बोला।
“ये बरसात तो रुकने का नाम नहीं ले रही।” पुनीत कह उठा।
“हमें रात को यहीं रुकना होगा।” मोनी ने कहा।
“रात यहां...?” संदीप के होंठों से निकला-“ये क्या कह रही हो?”
“मौसम खराब है। रात का अंधेरा फैला है। पहाड़ों पर पड़ी बर्फ गीली हो चुकी है और ऐसे में बर्फ के धंसने का खतरा बना रहता है। इस मौसम में स्कीइंग करने का खतरा मोल नहीं लिया जा सकता। रास्ते में कोई भी हादसा पेश आ सकता है।” मोनी गम्भीर स्वर में कह रही थी-“अगर रात के वक्त चंद्रमा निकला होता तो हम आसानी से स्कीइंग करके वापस जा सकते थे। तब रास्तों को आसानी से देखा जा सकता था। परंतु बरसात और कोहरे में बर्फ पर स्कीइंग करना खतरे से भरा है।”
“हम वापस न पहुंचे तो हमारी पत्नियों का बुरा हाल हो जाएगा।” राजीव बोला।
“वो तो सारे होटल को सिर पर उठा लेंगी कि हम वापस नहीं आए।” संदीप ने कहा।
“हमें वापस चलने की कोशिश करनी चाहिए।” पुनीत ने गम्भीर स्वर कहा।
वहां खामोशी छा गई।
मोनी खोह की दीवार से टेक लगाए बैठी थी।
“तुम कुछ कहो मोनी?” संदीप बोला।
“मैंने जो कहना था कह दिया।” मोनी ने शांत स्वर में कहा-“आप लोगों ने पहले मेरी बात नहीं मानी। वापस नहीं लौटे तो इस मुसीबत में फंस गए। अब चलने की जबर्दस्ती की तो फिर कोई मुसीबत में पड़ सकते हैं। बरसात जोरों की लगी है। ऐसे में बर्फ पर स्कीइंग करना खतरे से खाली नहीं। बरसात में कई जगह बर्फ धंसने का खतरा होता है।”
“ये हम किस मुसीबत में फंस गए।” पुनीत कह उठा।
तभी आसमान में बिजली चमकी। बादलों की दिल दहला देने वाली गर्जना उभरी और आसमानी बिजली की चमक दो पल के लिए, खोह के भीतर तक आई और लुप्त हो गई।
“इन सब बातों में सबसे अच्छी बात तो ये रही कि हमें पहाड़ की ये खोह मिल गई है।” मोनी बोली-“नहीं तो कड़ाके की सदी में कुछ ही घंटों में जान गंवा बैठते। इस इलाके में कहीं भी रुकने-ठहरने की जगह नहीं है।”
“हम सच में अभी वापस नहीं लौट सकेंगे?” राजीव कह उठा।
“आप देख ही रहे हैं कि मौसम हद से ज्यादा खराब हैं।” मोनी बोली।
“मुझे वापस आया न पाकर तो बेबी परेशान हो जाएगी।” राजीव परेशानी से कह उठा।
“तो क्या जोगना परेशान नहीं होगी?” संदीप बोला।
“उन तीनों बहनें की नींद उड़ जाएगी। होटल में हंगामा खड़ा कर देंगी।” पुनीत कह उठा।
बरसात की बूंदें पड़ने की आवाजें, उनके कानों में पड़ रही थी।
“मोनी जो कह रही है, हमें उसकी बात माननी होगी।” पुनीत गम्भीर स्वर में बोला-“इस हलाके को ये हमसे बेहतर जानती है। हमें पहले ही इसकी बात मानकर वापस चल देना चाहिए था।”
“तब तो तुम लोगों पर स्कीइंग करने का भूत सवार था।” संदीप झल्लाया।।
“वो भूत तुम पर भी तो था।” राजीव कह उठा।
“मैं कहां स्कीइंग कर रहा था, मैं तो मोनी के साथ था, क्यों मोनी?” संदीप ने कहा।
“मोनी के साथ क्या कर रहे थे?”
“करना क्या है, इस बात से तुम्हारा क्या मतलब कि मैं मोनी के साथ क्या कर रहा था।”
जवाब में राजीव हंसा।
“इन बेकार की बातों को छोड़ो।” पुनीत बोला-“तो क्या अब हमें रात यहीं बितानी है।”
“मोनी तो ये ही कहती है।” संदीप बोला।
“रात यहीं बिताना ठीक होगा। इस मौसम में हम वापस नहीं जा सकते।” मोनी कह उठी।
“ठीक है। रात यहीं रहेंगे।” पुनीत ने कहा-“हमारे पास खाने-पीने का इतना सामान तो है कि पेट भर सके। मेरा बैग कहां है, देखो तो, बोतल खोलते हैं, कुछ सर्दी तो कम होगी।”
“तुमने अच्छा किया जो बोतलें साथ ले आए।” राजीव के स्वर में मुस्कराहट थी।
“यूं ही मन में आया तो उठा ली बोतलें। बैग देखो, कहां है।”
“यहां रोशनी का इंतजाम होता तो मजा आ जाता।”
“माचिस तो है, पर उससे क्या होगा।” संदीप बोला-“बोतलों के साथ गिलास भी है कि नहीं?”
“पेपर गिलास है।”
“फिर तो काम चल जाएगा।”
“तुम्हारा बैग मिल गया पुनीत।” राजीव बोला-“बोतलें और गिलास भीतर हैं।”
“पानी भी है।” संदीप ने कहा-“बढ़िया काम चल जाएगा।”
“पानी रहने दो।” पुनीत बोला-“पीने के काम आएगा। अभी वक्त का कुछ पता नहीं। बिना पानी के ही व्हिस्की लेनी होगी।”
“मैं तो थोड़ा पानी जरूर डालूंगा।” राजीव ने कहा-“नीट से मेरा गला खराब हो जाता है।”
तीनों अपनी तैयारी में जुट गए।
“हमारे वापस न पहुंचने पर तीनों बहनों का क्या हाल होगा रात भर।” राजीव परेशान हो उठा।
“हम क्या कर सकते हैं।” पुनीत ने कहा-“मौसम खराब होने की वजह से हम फंस गए हैं।”
“मोनी।” संदीप बोला-“तुम्हारे मां-बाप भी तो चिंता करेंगे न लौटने पर।”
“हां, पर वो समझ जाएंगे कि मौसम खराब होने की वजह से मुझे कहीं रुक जाना पड़ा होगा।” मोनी बोली।
तभी पुनीत ने कहा।
“ध्यान से गिलासों में डाल, नीचे मत गिरा।”
“क्या करूं अंधेरा है।” राजीव बोला।
तभी मोनी ने कहा।
“मुझे सर्दी लग रही है।”
“सर्दी लग रही है।” संदीप कह उठा-“शुक्र है तुम्हें सर्दी तो लगी। मैं तुम्हें कम्बल देता हूं। मुझे भी सर्दी लगनी शुरू हो रही है। तुम चिंता मत करो मोनी, मैं सब ठीक कर दूंगा। ये रहा मेरा बैग।” फिर संदीप ने बैग में से कम्बल निकाला और मोनी के पास पहुंच गया-“कम्बल ले लो मोनी मैं ओढ़ा देता हूं...”
“मैं ले लूंगी।” मोनी ने कम्बल थामा।
संदीप ने मोनी के शरीर को टटोला।
मोनी ने संदीप का हाथ पीछे धकेल दिया।
“मैं तुम्हारी सर्दी भगा दूंगा। इस तरह मेरी सर्दी भी भाग जाएगी।” संदीप ने धीमे स्वर में कहा और हाथ फिर मोनी के शरीर पर पहुंच गया कि तभी मोनी ने उसका हाथ पीछे करते हुए कहा।
“ये क्या कर रहे हो?”
“तुम्हें कम्बल दे रहा हूं। ठीक है, तुम खुद ले लो। मैं बाद में तुम्हारा हाल पूछने आऊंगा।”
“वो बच्ची नहीं है, कम्बल ले लेगी।” राजीव ने कहा-“तू इधर आ-जा।”
“आ गया भाई, आ गया।” संदीप वापस सरकता हुआ उनके पास पहुंच गया।
“ये ले गिलास पकड़...”
संदीप ने गिलास पकड़ा और कहा।
“खाने को भी कुछ निकाल लो। बिना पानी के व्हिस्की पीना, मुसीबत जैसा होता है।”
तभी पुनीत ने मोनी से कहा।
“तुम भी थोड़ी सी पी लो, सर्दी नहीं लगेगी।”
“मैं नहीं पीती।” मोनी ने कहा।
“इस वक्त दवा समझ कर पी लो। ऐसी सर्दी में पीना जरूरी हो जाता है।”
“मुझे नहीं चाहिए।”
“क्यों उसे बुरी आदत डाल रहे हो। उसकी सर्दी की तुम चिंता न करो। सब ठीक कर दूंगा।” संदीप ने कहा।
तीनों का पीना शुरू हो चुका था।
मोनी छः-सात कदम दूर दीवार के पास, कम्बल ओढ़ कर लेट गई थी।
गिलास खाली होता तो फिर तैयार कर लिया जाता।
“तुम्हें भूख लगी होगी।” राजीव ने मोनी से कहा-“कुछ खा लो। खाने से भी गर्मी आती है।”
“अभी भूख नहीं है।” मोनी ने जवाब दिया।
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