चार बज गए ।
रामू भूखा-प्यासा परेशानी की हालत पेड़ों के झुरमुट में छिपा चट्टान पर बैठा प्रतीक्षा करता रहा ।
दिलीप, हीरासिंह और सुनील में से किसी के भी दर्शन नहीं हुए थे।”
रामू को भय था कि कहीं काम करने के स्थान पर लालच में आकर हीरासिंह मोटर साइकिल ही न ले उड़ा हो ।
प्रतीक्षा करते रहने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था ।
रामू पिछले छः घन्टों में इमारत की चारदीवारी के कई चक्कर लगा चुका था लेकिन उसे कोई असाधारण बात दिखाई नहीं दी थी ।
उसी क्षण उसे दूर सड़क पर एक धूल उड़ाती हुई मोटर दिखाई दी ।
रामू फुर्ती से चट्टान से उठ खड़ा हुआ और एक पेड़ की ओट में छुपकर सावधानी से सड़क पर झांकने लगा ।
कार कच्ची सड़क से काफी दूर ही रुक गई ।
धूल का गुब्बार शांत होते ही रामू उस कार को फौरन पहचान गया ।
वह सुनील की एम्बेसेडर थी ।
रामू ने शांति की सांस ली ।
उसी क्षण एम्बेसेडर की ड्राइविंग सीट का द्वार खुला और उसमें से सुनील निकल आया । उसके होंठों में एक सिगरेट दबा हुआ था । वह कमर पर दोनों हाथ रखे अपने चारों ओर देखने लगा ।
रामू पेड़ों की झुरमुट में से बाहर निकल आया और सुनील की ओर बढा ।
सुनील ने रामू को अपनी ओर आते देखा । उसने सिगरेट को जमीन पर फेंक दिया और वापिस कार में जा बैठा ।
रामू कार के समीप पहुंचा और सुनील की बगल में बैठ गया ।
“क्या किस्सा है, विंग कमान्डर साहब ?” - सुनील ने पूछा ।
रामू ने उसे शुरू से आखिर तक सारी घटना कह सुनाई ।
“प्यारे !” - सारी बात सुन चुकने के बाद सुनील बोला - “मैं तो समझा था कि तुम बीत गए । मैं जब लौटकर बारह नम्बर में आया था तो बाहर हस्तक्षेप के आसार तो दिखाई दे ही रहे थे । इमारत का मुख्य द्वार टूटा था और कम्पाउन्ड की हालत देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वहां फौज घुस आई हो ।”
“वे आए ही यूं थे जैसे कोई किला जीतना हो ।”
“फिर मैंने देखा, इमारत में से तुम और सोनिया दोनों गायब थे । पहले तो मैं यही समझा कि तुम तो हुस्न की हिफाजत के चक्कर में शहीद हो गये और दुश्मन सोनिया के साथ-साथ तुम्हें भी गिरफ्तार करके ले गए हैं । लेकिन जब बाद में मैं तहखाने में गया तो मेरी धारणा बदल गई । वहां से एक मोटर साइकिल गायब थी फिर मुझे सारी बात का एक अचछा-खासा अनुमान हो गया । मैं बारह नम्बर में ही बैठ गया और फिर तुम्हारे टेलीफोन की प्रतीक्षा करने लगा लेकिन टेलीफोन के स्थान पर आये तुम्हारी मोटर साइकिल पर दिलीप और हीरासिंह ।”
“फिर भी तुमने यहां आने में इतनी देर कर दी ।”
“मैंने कतई देर नहीं की है । मैं तो तुम्हारा सन्देश मिलते ही कार को उड़ाता हुआ केवल पैंतालीस मिनट में वहां आ पहुंचा था । मुझे तुम्हारा सन्देश ही देर से मिला था । साढे तीन बजे ।”
“लेकिन हीरासिंह और दिलीप ने इतनी देर कहां कर दी ? वे यहां से तो नौ बजे ही चले गये थे ।”
“उसकी भी सुनो । वे बेचारे तो हमारी मदद करते-करते अच्छे खासे झमेले में फंस गये थे । राजनगर से बाहर हाइवे पर ट्रैफिक पुलिस की स्पेशल चैकिंग चल रही थी । उन्होंने चैकिंग के लिए मोटर साइकिल पर आते हुए हीरासिंह के पास लाइसेंस था नहीं । पुलिस ने उसका चालान कर दिया । बाद में पुलिस के ही किसी आदमी ने उससे मोटर साइकिल के बारे में कुछ प्रश्न पूछे । उसने बतया कि मोटर साइकिल उसकी अपनी नहीं है और फिर तुम्हारे सम्बन्धित सारी घटना सच-सच बयान कर दी । पुलिस को विश्वास नहीं हुआ । पुलिस ने समझा कि वे मोटर साइकिल चुरा के लाए हैं और जब अपने बचाव के लिये झूठ-मूठ कहानी गढ रहे हैं । पुलिस ने उससे मोटर साइकिल छीन ली और दोनों को अन्दर कर दिया ।”
“अरे !” - रामू के मुंह से निकला - “फिर ?”
“हवालात में पड़े वे दोनों चिल्लाते रहे और अपनी निर्दोषिता सिद्ध करने का प्रयत्न करते रहे... लेकिन कौन सुनता था । तुमने उन्हें मुखर्जी के टेलीफोन का नम्बर लिखकर दिया था । वे प्रार्थना करते रहे कि कम-से-कम उन्हें उस नम्बर पर टेलीफोन तो करने दिया जाये । लेकिन किसी ने उनकी बात ही नहीं सुनी । शाम को तीन बजे कहीं जाकर सब इन्स्पेक्टर का दिल पसीजा और उसने उन्हें पुलिस स्टेशन के टेलीफोन से 88321 पर टेलीफोन करने की अनुमति दे दी । हीरा सिंह ने फोन किया और सारी स्थिति मुखर्जी को कह सुनाई । बाद में मुखर्जी ने उन्हें वहां से छुड़वाया और तब मुझे तुम्हारे बारे में सूचना मिली । प्यारे मुखर्जी, इस सारे सिलसिले से संतुष्ट नहीं हैं ।”
“क्यों ?”
“दिलीप और हीरासिंह के पकड़े जाने की वजह से खामखाह ढेर सारी पब्लिसिटी हो गई है । मुखर्जी को स्वयं दखल देकर उन दोनों को हवालात से निकलवाना पड़ा था और तुम तो जानते ही हो कि मुखर्जी पब्लिसिटी से कितना कतराते हैं । वे तो अपने विभाग के अस्तित्व को भी लोगों की जानकारी में नहीं आने देना चाहते ।”
“लेकिन इसमें मेरी क्या गलती है । जैसी स्थिति थी उनमें किसी बाहरी आदमी की मदद लिए बिना कोई चारा ही नहीं था ।”
“तुम्हारी कोई गलती नहीं है लेकिन आज की घटना ने मुखर्जी को यह निश्चय करने पर मजबूर कर दिया है कि भविष्य में वे अपने आदमियों को सम्पर्क स्थापित करने के लिये जेबी ट्रांसमीटर दिया करेंगे ।”
“दिलीप और हीरासिंह कहां गए हैं ?”
“वे मेरे साथ ही आए थे लेकिन रास्ते में उतर गये थे ।”
रामू कुछ नहीं बोला ।
“सोनिया अभी भी भीतर इमारत में ही है न ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां । मेरी जानकारी में आये बिना उसके कहीं निकल पाने की सम्भावना ही नहीं है । इमारत से मुख्य सड़क पर आने का यही तो एक रास्ता है ।”
“सारे दिन में इमारत से कोई आदमी इमारत से बाहर निकला है ?”
“लगभग साढे बारह बजे एक आदमी इमारत से बाहर निकाला था । यहां से थोड़ी दूर पर समुद्र के समीप किनारे के पानी में काफी आगे तक घुसा हुआ एक लकड़ी का प्लेटफार्म सा बना हुआ है जो शायद जेटी के रूप में इस्तेमाल होता है वह आदमी उस प्लेटफार्म पर गया था । प्लेटफार्म के खम्बों के साथ एक छोटी-सी मोटरबोट बन्धी हुई थी । वह आदमी उस मोटरबोट में जा बैठा था और उसे चलाता हुआ समुद्र में कहीं तो गया था और दृष्टि से ओझल हो गया था । लगभग पन्द्रह मिनट बाद वह उसी स्थान पर वापिस लौट आया था और मोटरबोट को वहीं छोड़कर वापिस इमारत में लौट गया था ।”
“बस ?”
“बस ।”
सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाल लिया । दोनों ने एक-एक सिगरेट सुलगाया ।
“पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे हैं ।” - रामू सिगरेट का कश लगाता हुआ बोला ।
“खेलने दो ।” - सुनील बोला - “फिलहाल यह सोचो कि इस इमारत में से सोनिया का उद्धार कैसे किया जाये ?”
“पुलिस को बुला लें ?”
“किस आधार पर ।”
“कि इस इमारत के लोग एक लड़की को जबरदस्ती यहां भगा लाए हैं ।”
“पुलिस हमारी बात मान जाएगी ?”
“क्यों नहीं मानेगी ?”
“और अगर सोनिया इस इमारत में न निकली तो ?”
“निकलेगी क्यों नहीं । वह है ही इस इमारत में । ऐसा करिश्मा कैसे हो जायेगा कि पुलिस के आने पर ही वह वहां से गायब हो जाये ।”
“जब सामना कार्ल प्लूमर से हो तो कई करिश्मे हो जाने की सम्भावना होती है । सम्भवना तो इस बात की भी है कि पुलिस इमारत में जाये और सोनिया को बरामद ही कर ले लेकिन सोनिया ही यह कहे कि वह अपनी मर्जी से उस इमारत में मौजूद है ।”
“यह कैसे हो सकता है ?”
“तुम्हें शायद याद नहीं रहा है कि नेशनल रिसर्च लैबोरेट्री में से चन्द्रशेखरन खुद अपनी मर्जी से चलकर कार्ल प्लूमर के साथ गया था और यहां तक कि उसने अपने आविष्कार डेस्ट्रायर को भी खुद अपने आदमी बुलवाकर कार में रखवाया था बाद में तफ्तीश से पता चला कि चन्द्रशेखर को ट्रूथ सीरम नाम की एक दवा का इन्जेक्शन दिया गया था । जिसके कारण वे मानसिक रूप से इतने निष्क्रिय हो गए थे कि उनकी किसी भी संगत असंगत बात का विरोध करने की शक्ति ही समाप्त हो गई थी । (देखिये उपन्यास - खतरनाक अपराधी) । क्या ऐसा ही एक इन्जेक्शन सोनिया को देकर उसके मुंह से यह नहीं कहलाया जा सकता कि वह अपनी मर्जी से इस इमारत में मौजूद है । कोई उसे जबरदस्ती वहां रोके हुए नहीं है । फिर हमारी स्थिति क्या होगी ।”
रामू चुप रहा ।
“और फिर मुखर्जी भी तो यह नहीं चाहेंगे कि हम लोग पुलिस की जानकारी में आयें । जब हम पुलिस में यह रिपोर्ट करेंगे कि कुछ लोग इस इमारत में सोनिया नाम की एक लड़की को जबरदस्ती बन्दी बनाकर रखी हुए हैं तो पुलिस हमसे भी तो बहुत सवाल पूछेगी । जैसे हमारा सोनिया से क्या सम्बन्ध है ? हमें कैसे मालूम है कि वहां इस इमारत में बन्दी बनाकर रखी गई है ? वगैरह ।”
“तो फिर हम ही इस इमारत में घुस पड़ें ?”
“वो लोग हमें भूनकर रख देंगे ।”
“हम भी तो आदमी बुला सकते हैं ।”
“बुला सकते हैं लेकिन उन लोगों से सीधा भिड़ जाने से बेहतर तरीका मेरे दिमाग में है ।”
“क्या ?”
“क्यों न हम सोनिया के बाप सेठ मनसुखानी को बीच में लायें ?”
“उससे क्या होगा ?”
“मनसुखानी करोड़पति सेठ है । राजनगर में उसका अच्छा खासा दबदबा है । उसकी बेटी को घर से गायब हुए चौबीस घंटे हो गए होंगे । विशेष रूप से जबकि वह नैट्सीकाप राष्ट्र के हाई कमीशन की इमारत में से गायब हुई है और यह बात जगविदित है कि नैट्सीकाप से हमारे सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं । वह राष्ट्र हमारा शत्रु है । नैट्सीकाप हाई कमीशन की इमारत में से एक करोड़पति सेठ की लड़की के अगुवा प्रत्यक्षतः साधारण-सी लगने वाली बात के पीछे तगड़ा राजनैतिक उद्देश्य भी हो सकता है, और है । जब मनसुखानी सेठ को यह मालूम होगा कि नैट्सीकाप हाई कमीशन से ही सम्बन्धित कुछ लोग उसे जबरदस्ती बन्दी बनाये हुए हैं तो वह खुद ही अपनी बेटी की रिहाई के लिये कुछ करेगा ।”
“आई सी !” - रामू बोला ।
“रामू ।” - सुनील बोला - “मैं इस इमारत की निगरानी करता हूं तुम इस कार पर फौरन राजनगर चले जाओ और मनसुखानी सेठ को इस बात की सूचना दे दो कि सोनिया यहां कैद है । राजनगर जाने से तुम्हें अपने पेट में कबड्डी खेलते हुए चूहे भगाने का भी मौका मिल जाएगा ।”
“सोनिया का बाप मेरी बात पर विश्वास कर लेगा ?”
“विश्वास कर ही लेना चाहिये उसे ।”
“अगर उसने मुझसे पूछा कि मैं कौन हूं तो ?”
“तो तुम कह देना कि तुम शत्रुओं के ही साथी हो । कुछ ऐसी बातें हो गई हैं जिनकी वजह से तुम उनसे अलग हो गये हो और अब उनका अहित करना चाहते हो । इसलिये तुम उनसे गद्दारी करके मनसुखानी सेठ का साथ देना चाहते हो ।”
रामू कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “अच्छी बात है ।”
सुनील कार में से बाहर निकल आया ।
रामू अपने स्थान से सरककर ड्राइविंग सीट पर आ गया । उसने कार स्टार्ट कर दी । उसने कार को गियर में डालकर क्लच दबाया, एक्सीलेटर पर पांव का दबाव बढाया तथा कार को एक गहरा यू-टर्न दे दिया ।
अगले ही क्षण कार वापिस राजनगर की ओर ले जाने वाले रास्ते पर उड़ी जा रही थी ।
कार के दृष्टि से ओझल होते ही सुनील मुड़ा और बीच लेन की बगल में उगे पेड़ों के झुरमुट की ओर बढ गया ।
***
रात के नौ बज गये ।
सुनील रामू की प्रतीक्षा में बैठा सिगरेट फूंक रहा था ।
उसी क्षण सुनील के कानों में एक मोटर के इन्जन की आवाज पड़ी ।
सुनील ने घूमकर इमारत की ओर देखा ।
इमारत की चारदीवारी का विशाल फाटक खुल रहा था । एक आदमी फाटक के बड़े-बड़े पल्लों में से एक को धकेलकर खोल रहा था । फाटक के दूसरी ओर एम्बूलेन्स खड़ी थी ।
फाटक पूरा खुलते ही एम्बूलेन्स की हैडलाइट चमक उठी और उस प्रकाश से बीच लेन का सारा रास्ता जगमगा उठा था ।
एम्बूलेन्स फाटक से बाहर निकल गई ।
फाटक दोबारा बन्द हो गया ।
एम्बूलेन्स तेज गति से चलती हुई सुनील की बगल में से गुजर गई और राजनगर को जाने वाली सड़क पर दौड़ने लगी ।
एम्बूलेन्स का पिछला भाग बन्द था और वह ड्राइविंग सीट पर बैठे ड्राइवर की हल्की-सी झलक के अतिरिक्त और कुछ नहीं देख सका था । उसके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि सोनिया उस एम्बूलेन्स में थी या नहीं ।
कोई सवारी न होने की वजह से वह एम्बूलेन्स का पीछा करने की स्थिति में भी नहीं था ।
उसे मालूम नहीं था कि रामू राजनगर में इतनी देर लगा देगा । वर्ना वह उसे कभी कार न ले जाने देता ।
सुनील परेशान-सा चट्टान पर बैठ गया और उसने एक नया सिगरेट जला लिया ।
रामू की प्रतीक्षा करते रहने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था ।
उसने एक उड़ती-सी दृष्टि इमारत की ओर डाली । इमारत के सामने की कुछ खिड़कियों में से प्रकाश की किरणें फूट रही थीं । सम्भव है एम्बूलेन्स वापिस खाली राजनगर गई हो ।
लेकिन रह-रहकर उसे यह अनुभव हो रहा था कि जैसे वह घोड़ा चुराया जा चुकने के बाद खाली तबेले की निगरानी कर रहा हो ।
उसके बाद एक घण्टा इसी सस्पैंस की हालत में गुजर गया ।
रामू लौट कर नहीं आया ।
सुनील बेहद बेचैन हो उठा ।
उसी क्षण कहीं दूर समुद्र की छाती पर प्रकाश की तीव्र किरणें फूट पड़ी । एक क्षण के लिये तेज रोशनी का झमाका-सा दिखाई दिया और फिर अन्धकार छा गया ।
एक मिनट बाद फिर वैसी ही रोशनी दिखाई दी और लुप्त हो गई ।
सुनील सतर्क हो गया ।
वह आंखें फाड़-फाड़कर समुद्र की ओर देखता रहा लेकिन प्रकाश दुबारा नहीं दिखाई दिया ।
सुनील ने घूमकर इमारत की ओर देखा ।
वातावरण में गहरी निस्तब्धता छाई हुई थी ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ ।
समुद्र की ओर प्रकाश दुबारा नहीं झलका ।
सुनील इमारत पर दृष्टि जमाये रहा ।
उसी क्षण इमारत के अग्रभाग की कई खिड़कियों में से प्रकाश लुप्त हो गया । फिर पोर्टिको की बत्ती जली और उसकी प्रकाश में पोर्टिको में साये दिखाई दिये ।
कुछ क्षण वे लोग वहीं खड़े रहे और फिर वह फाटक की ओर बढे ।
किसी ने पोर्टिको की बत्ती बुझा दी ।
चांद के धुंधले प्रकाश में उन्हें चार मानवाकृतियां इमारत से फाटक की ओर बढती दिखाई दीं ।
सुनील बड़ी सावधानी से पेड़ के पीछे छुपा खड़ा रहा और प्रतीक्षा करता रहा ।
फाटक खुला और चारों आकृतियां बाहर निकल आई और बीच लेन पर चलने लगीं ।
फाटक दुबारा बन्द हो गया ।
आकृतियां चलती हुई उसके एकदम समीप आ गई और फिर उसके सामने से गुजरती हुई बीच लेन पर आगे बढ गई ।
उन चार आकृतियों में से दो को सुनील ने फौरन पहचान लिया ।
एक सोनिया थी । उसके हाथ उसकी पीठ के पीछे बंधे हुए थे और उसके दोनों पांवों में भी एक ही रस्सी के दो सिरों का फन्दा इस प्रकार डाला हुआ था कि वह चलते समय एक बार में बाहर-तेरह इन्च से आगे पांव नहीं बढा पाती थी । सोनिया एकदम शांत थी उसके चेहरे पर किसी प्रकार के भय या व्यग्रता के चिन्ह नहीं थे ।
दूसरा आदमी रफीक था ।
बाकी के दो चेहरे उसके लिये नये थे लेकिन उनमें से एक के बारे में सुनील का विचार था कि वह महाराज कुमार आफ विजयनगर था । वह एक सुन्दर युवक था और बेहद शानदार सफेद रंग का सूट पहने हुए था । सोनिया ने महाराज कुमार का जो हुलिया उसे बताया था, वह उससे काफी मेल खाता था ।
सुनील ने शांति की सांस ली । कम से कम वह खाली तबेले की निगरानी नहीं कर रहा था । सोनिया एम्बूलेन्स में नहीं गई थी ।
वह पेड़ों के झुरमुट के पीछे होता हुआ सावधानी से उसके साथ चलने लगा ।
बीच लेन के मोड़ पर आकर वे लोग एक क्षण के लिये रुके ।
सोनिया रास्ते से एकदम किनारे पर खड़ी थी । पेड़ के पीछे छुपकर खड़े सुनील से वह अधिक से अधिक दो गज दूर खड़ी थी ।
एकाएक सुनील को न जाने क्या सूझा उसने जमीन से एक छोटा-सा पत्थर उठाया और सोनिया की ओर उछाल दिया, पत्थर सोनिया के शरीर से टकराया और बिना किसी प्रकार की आवाज किये जमीन पर गिर गया ।
सोनिया ने घूरकर पेड़ों की ओर देखा ।
एक क्षण, केवल एक क्षण के लिये सुनील पेड़ के पीछे से निकल आया । सोनिया से उसकी दृष्टि मिली, उसने आश्वासन पूर्ण ढंग से हाथ उठाया और लपककर फिर पेड़ की ओट में हो गया ।
सोनिया के चेहरे पर किसी प्रकार के भाव नहीं उभरे लेकिन फिर भी सुनील को पूरा भरोसा था कि सोनिया ने उसे पहचान लिया है ।
वे लोग फिर आगे बढ गये ।
वे लोग समुद्र की उस दिशा में बढ रहे थे जिधर रामू ने लकड़ी की जेटी का जिक्र किया था ।
सुनील ने पेड़ों के झुरमुट में से निकलने का उपक्रम नहीं किया । बीच लेन के समुद्र के किनारे तक किसी प्रकार की ओट नहीं थी । बाहर निकलने पर उसके देख लिये जाने की पूरी संभावना थी ।
वे लोग समुद्र की ओर बढे जा रहे थे ।
सुनील ने राजनगर की ओर जाने वाली सड़क पर दूर तक दृष्टि दौड़ाई । सड़क उजाड़ पड़ी था । रामू का कहीं पता नहीं था ।
जब वे लोग काफी आगे निकल गये तो सुनील भी पेड़ों के पीछे से निकल आया । वह अपने और उन लोगों के बीच में प्रयाप्त फासला रखता हुआ आगे बढा । उतने फासले से उसका देख लिया जाना सम्भव नहीं था ।
वे लोग जेटी पर पहुंच गए ।
सुनील जमीन पर बैठ गया और अन्धकार में आंखें फाड़-फाड़कर उनकी ओर देखने लगा ।
जेटी से एक-एक करके वे चारों दृष्टि से ओझल हो गये । फिर मोटरबोट का इन्जन स्टार्ट होने की आवाज आई । मोटर बोट की हैडलाइट आन हुई और समुद्र की छाती पर प्रकाश फैल गया ।
मोटरबोट काफी आगे निकल गई तो सुनील जेटी की ओर आगे बढा । जेटी पर पहुंचकर वह जेटी के लकड़ी के प्लेटफार्म पर पेट के बल लेट गया और मोटरबोट को देखने लगा ।
मोटरबोट तीर की तरह सीधी समुद्र में बढी जा रही थी ।
किनारे से लगभग आधा मील आगे बढ जाने के बाद एकाएक मोटरबोट की गति धीमी पड़ गई । फिर मोटरबोट की हैडलाइट का तीव्र प्रकाश किसी अवरोध पर पड़ा । वह अवरोध एक जहाज था जो समुद्र के बीच में लंगर डाले खड़ा था । मोटरबोट धीमी गति से चलती हुई जहाज की बगल में जा लगी । किसी ने जहाज पर से टोर्च का प्रकाश मोटरबोट पर फेंका और फिर जहाज के रेलिंग से रस्सी की सीढी लटका दी गई । मोटरबोट में लाइट बुझ गई फिर टार्च के प्रकाश में चारों आकृतियां जहाज पर पहुंच गई ।
फिर टार्च का प्रकाश भी गायब हो गया ।
प्रकाश के दोनों साधन लुप्त हो जाने के बाद किनारे से जहाज की स्थिति भी देख पाना भी असम्भव था ।
सुनील उठ खड़ा हुआ । उसने एक बार फिर राजनगर वाले रास्ते पर देखा ।
रास्ता सुनसान पड़ा था । रामू का अभी भी कहीं पता नहीं था ।
उसने एक-एक करके अपने शरीर के सारे कपड़े उतारने आरम्भ कर दिये । शरीर पर केवल अन्डरवियर रह जाने के बाद उसने अपने कोट और पैंट वगैरह को टैरालिन की कमीज में बांधकर गठरी सी बना ली । उसने गठरी को अपने सिर पर जमाया और कमीज की बांहों को अपनी ठोडी के नीचे बांध लिया । उस प्रकार उसने अपने कपड़ों को पानी में भीगने से सुरक्षित कर लिया ।
जेटी से वह पानी में उतर गया और एकदम नाक की सीध में तैरने लगा । उसका सिर पानी से बाहर था इसलिये सिर पर बंधी हुई गठरी पानी के सम्पर्क से एकदम परे थी ।
वह केवल दिशा के अनुमान से ही सीधा तैरता जा रहा था । समुद्र की छाती पर फैले गहरे अन्धकार में रास्ता देख पाना असम्भव था ।
यह उसका सौभाग्य था कि उसे दिशा भ्रम नहीं हुआ और वह सीधा जहाज के समीप जा पहुंचा ।
उसने बड़ी सावधानी से जहाज का एक चक्कर लगाया । कहीं उसे ऊपर चढने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया ।
वह मोटरबोट के समीप पहुंचा । मोटरबोट खाली थी और किसी अदृश्य सहारे के द्वारा जहाज से सम्बद्ध थी । सुनील मोटरबोट पर चढ गया । उसने अपने हाथों द्वारा शरीर से पानी झटका और फिर सिर से कपड़ों की गठरी खोल ली ।
उसने दुबारा अपने सारे कपड़े पहन लिये । गीला अन्डरवियर उसने समुद्र में फेंक दिया ।
उसने देखा जहाज पर से रस्सी की सीढी अभी भी मोटरबोट की ओर लटक रही थी ।
सुनील बिना एक क्षण हिचके रस्सी की सीढी पर चढने लगा ।
ऊपर के सिरे पर पहुंचकर उसने सावधानी से सिर उठाकर जहाज के डैक पर झांका ।
डैक खाली था ।
सुनील डैक पर कूद गया ।
ऊपर ब्रिज पर प्रकाश था और वहां कभी-कभार इक्का-दुक्का साया भी चलता दिखाई दे जाता था ।
सुनील सावधानी से उस ओर बढा जिधर केबिन होने की सम्भावना थी ।
उसे एक पोर्ट होटल में से प्रकाश की किरणें बाहर फूटती दिखाई दीं ।
सुनील सावधानी से उस पोर्ट होल के समीप पहुंचा और उसने धीरे से सिर उठाकर पोर्ट होल के रास्ते भीतर झांका ।
भीतर दो व्यक्ति बैठे थे । उनके सामने मेज पर विस्की की बोतल और दो गिलास रखे हुए थे ।
उन दोनों आदमियों में से एक ही सफेद रंग का सूट पहने हुए युवक था जो सुनील के ख्याल से महाराज कुमार आफ विजयनगर था ।
दूसरे आदमी को भी वह शीघ्र ही पहचान गया ।
वह रफीक था ।
“अभी कितनी देर है ?” - सफेद सूट वाला युवक एकाएक बोला ।
“लगभग एक घन्टा और लगेगा महाराज कुमार ।” - रफीक बोला - “कैप्टेन रेडियो द्वारा बॉस को सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न कर रहा है ।”
“किसलिए ?”
“बॉस की ऐसी ही इच्छा थी कि शुरुआत से पहले उसे सूचित कर दिया जाए ।”
“सूचित करने में एक घन्टा लग जायेगा ?”
“नहीं पन्द्रह बीस मिनट ही लगेंगे लेकिन उसके बाद लगभग आधा घन्टा और इन्तजार करना पड़ेगा ।”
“क्यों ?”
“ताकि इन्जैक्शन अपना पूरी तरह प्रभाव दिखा सके ।”
युवक चुप हो गया । उसने विस्की का एक बड़ा-सा सूट हलक से नीचे उतरा और बोला - “वह कौन से केबिन में है ?”
“कौन ?”
“सोनिया ।”
रफीक एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “एक नम्बर केबिन में ।”
“एक नम्बर कहां हुआ ?”
“इसी लाइन में पहला केबिन ।”
सुनील ने अपनी दाईं ओर देखा । सिरे के केबिन से पोर्ट होल में प्रकाश दिखाई दे रहा था ।
“चाबी मुझे दो ।” - युवक बोला ।
रफीक हिचकिचाया ।
“चाबी दो ।” - इस बार युवक अपेक्षाकृत अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
रफीक ने अनिच्छापूर्ण ढंग से एक चाबी निकालकर युवक को थमा दी और बोला - “कोई ऐसी हरकत नहीं होनी चाहिए जो बॉस को पसन्द न आये ।”
“ऐसी कोई हरकत नहीं होगी ।” - युवक बोला ।
वह उठा और द्वार की ओर बढ गया । अगले ही क्षण वह द्वार खोलकर बाहर निकल गया । रफीक वहीं बैठा रहा ।
दूसरी ओर गलियारे में किसी के भारी कदमों के लकड़ी के फर्श पर पड़ने की आवाज आ रही थी ।
सुनील ने एक बार अपने चारों ओर देखा ।
डैक अभी भी सुनसान पड़ा था ।
वह लपककर कोने के उस केबिन के समीप पहुंचा जिसके पोर्ट होल में से उसने रोशनी निकलती देखी थी । वह दीवार के साथ चिपक कर खड़ा हो गया । उसने धीरे से सिर उठाकर भीतर झांका ।
सोनिया उदास सी पलंग पर बैठी हुई थी ।
उसी क्षण द्वार खुला और सफेद सूट वाले युवक ने भीतर प्रवेश किया ।
सुनील ने जल्दी से अपना सिर पोर्ट होल से नीचे खींच लिया ।
फिर द्वार बन्द होने की आवाज आई और फिर उस युवक का मधुर स्वर उसके कानों में पड़ा - “गुड ईवनिंग ।”
सोनिया ने उत्तर नहीं दिया ।
सुनील ने सावधानी से पोर्ट होल से भीतर झांका । युवक सोनिया के सामने स्टूल पर बैठ चुका था । दोनों में से किसी का ध्यान पोर्ट होल की ओर नहीं था ।
“मुझे पहचान तो गई हैं न आप ?” - युवक वैसे ही मधुर स्वर से बोला ।
“जी हां ।” - सोनिया घृणापूर्ण स्वर से बोली - “तो आप भी इन अपराधों में शामिल हैं ।”
“आपको गलतफहमी हो रही है ।” - युवक बोला - “यहां कोई अपराधी नहीं है । आपको यहां जबरदस्ती इसलिए लाया गया है क्योंकि वैसे आप यहां आने के लिए तैयार नहीं होती ।”
“लेकिन मुझे यहां क्यों लाया गया है ?”
“ताकि आप विधिवत मुझसे विवाह करके मेरी धर्मपत्नी बन सकें ।”
“क्या ?” - सोनिया एकदम चिल्ला पड़ी ।
“जी हां । अब तक वैसे भी आपकी राय मेरे बारे में बदल चुकी होगी और आपको मुझसे शादी करने में कोई एतराज वाली बात...”
“मैं तुमसे शादी नहीं करना चाहती ।” - सोनिया उसकी बात काट कर चिल्लाई ।
युवक केवल मुस्कराया ।
“तुम जबरदस्ती मुझसे शादी करोगे ?”
“शादी तो आपकी मर्जी से ही होगी ।”
“मेरी मर्जी से । इस जन्म में तो यह बात सम्भव नहीं है ।”
“यह बात इसी जन्म से आज ही, अभी यहीं सम्भव है ।” - युवक विश्वासपूर्ण स्वर से बोला - “तुम मुझसे शादी करोगी और अपनी मर्जी से करोगी । मैरिज रजिस्ट्रार हमारी विधिवत शादी करवाने के लिए यहां विशेष रूप से बुलवाया गया है । करोड़पति सेठ मनसुखानी की लड़की की शादी रजिस्टर करने के लिये इतनी रात को यहां बुलवाये जाने में उसने इसे अपने लिए गौरव का विषय ही समझा है विशेष रूप से जबकि वह समझ रहा है कि वह सेठ मनसुखानी के अनुरोध पर यहां आया है । जहाज भी तुम्हारे बाप का है । इस जहाज का कैप्टन अपनी जानकारी में तुम्हारे आदेशों का पालन कर रहा है और बाद में तुम इस बात से इन्कार भी नहीं करोगी ।”
“शायद तुम पागल हो गये हो ।” - सोनिया सहज स्वर से बोली ।
“अच्छे घर की लड़कियां अपने भावी पति को पागल की उपाधि नहीं देती हैं ।”
“भावी पति । माई फुट ।” - सोनिया मुंह बिचका कर बोली ।
“देखो, मैं तुम्हें अपनी लाइन आफ एक्शन समझाता हूं ।” - युवक बोला - “अभी पन्द्रह बीस मिनट बाद तुम्हें एक इन्जक्शन दिया जायेगा । उस इन्जेक्शन का प्रभाव यह है कि तुम्हारा मस्तिष्क एकदम निष्क्रिय हो जाएगा । उसके बाद तुम वही करोगी जो तुमसे करने को कहा जाएगा । अगर तुम्हें कहा जाएगा - सोनिया, समुद्र में कूद पड़ो, तो तुम समुद्र में कूद पड़ोगी । अगर तुम्हें कहा जायेगा - सोनिया, कैप्टन का गला काट दो - तो तुम काट दोगी । तुम्हें हंसने के लिये कहा जायेगा, तुम नाचोगी । तुम्हें कहा जायेगा, सोनिया, महाराज कुमार आफ विजयनगर से अर्थात मुझसे शादी कर लो, तुम खुशी-खुशी से मुझसे शादी कर लोगो । तुम्हें...”
“ऐसा कोई इन्जेक्शन सम्भव नहीं है ।” - सोनिया अविश्वासपूर्ण स्वर में बोली ।
“क्या सम्भव है और क्या सम्भव नहीं है, यह अभी तुम्हारे सामने आ जायेगा ।”
“अगर ऐसा इन्जेक्शन सम्भव भी है तो वह जिन्दगी भर मुझे उस मानसिक स्थिति में नहीं रख सकता जिसका तुम जिक्र कर रहे हो ।”
“एकदम ठीक कहा तुमने । उस इन्जेक्शन का प्रभाव केवल अड़तालीस घन्टे रहता है । लेकिन आधे दर्जन प्रतिष्ठित मेहमानों के सामने मैरिज रजिस्ट्रार की मौजूदगी में एक बार मुझसे अपनी मर्जी से शादी करने के बाद तुम इस बात को कभी झुठला नहीं पाओगी । न सिर्फ यह तुम खुद भी इसी अनिश्चय की हालत में रहोगी कि शायद तुमने सच ही अपनी मर्जी से ही मुझसे शादी तो नहीं की है । तुम जिन्दगी भर इस शादी का विरोध नहीं कर सकोगी और करोगी तो कोई भी तुम्हारी बात मानेगा नहीं । हर कोई तुम्हें ही झूठा ठहरायेगा और कहेगा कि तुम जान-बूझकर मुझे जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति की इज्जत उछालने का प्रयत्न कर रही हो ।”
सोनिया के चेहरे पर परेशानी के भाव दिखाई देने लगे ।
“तुम ।” - वह परेशान स्वर से बोली - “तुम यह सब कुछ मुझे क्यों बता रहे हो ?”
“मैं चाहता हूं कि तुम अपनी स्थिति को अच्छी तरह समझ लो । शादी तो तुम्हारी मुझ से होगी ही । इसलिए क्या यही अच्छा न होगा कि तुम वैसे ही मुझसे शादी करना स्वीकार कर लो ताकि हमें इन्जेक्शन के झमेले में पड़ना ही न पड़े ।”
सोनिया चुप रही ।
“मैं उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूं ।” - युवक शान्ति से बोला ।
“गो टु हैल (जहन्नुम में जाओ) ।” - सोनिया दांत पीसती हुई बोली ।
“अच्छी बात है ।” - युवक उठ खड़ा हुआ - “मैं जाकर इन्जेक्शन का इन्तजाम करता हूं तब तक तुम महाराज कुमार आफ विजयनगर चन्द्रकान्त की अपने भावी पति के रूप में कल्पना करो ।”
“चन्द्रकान्त नाम का एक कुत्ता है मेरे पास ।” - सोनिया घृणापूर्ण स्वर में बोली ।
“बड़ी अच्छी बात है ।” - युवक सहज स्वर में बोला - “शीघ्र ही तुम्हें इस नाम का एक पति भी मिलने वाला है ।”
और वह द्वार की ओर बढा ।
सुनील पोर्ट होल से हट गया । डैक पर पड़े रस्सियों के ढेर पर एक मोटा-सा डंडा पड़ा था । सुनील ने वह डंडा उठा लिया और लपककर केबिन के उस मोड़ पर पहुंच गया जहां केबिन की कतार समाप्त होती थी । केबिन की दो समानान्तर कतारों के बीच का लम्बा गलियारा खाली पड़ा था ।
युवक केबिन से बाहर निकला । उसने केबिन को बाहर से ताला लगाया और चाबी कोट की जब में डाल ली । वह गलियारे में उस ओर बढा जिधर सुनील खड़ा था ।
सुनील डंडा हाथ में लिये उसके समीप आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
युवक ज्यों ही उसकी बगल में से गुजरा, सुनील ने डंडे का एक भरपूर वार उसकी खोपड़ी पर जमा दिया । युवक के मुंह से हाय भी नहीं निकली और उसका शरीर फर्श पर ढेर हो गया सुनील ने डंडा फेंक दिया । उसने जल्दी से झुक कर युवक की जेब से सोनिया वाले केबिन के ताले की चाबी निकाल ली । उसने युवक के अचेत शरीर की बगलों में अपनी बांहें डाल दीं और उसे तेजी से घसीटता हुआ सोनिया के केबिन के सामने ले गया ।
उसने केबिन का द्वार खोला और युवक के शरीर को केबिन में घसीटकर द्वार भीतर से बन्द कर दिया ।
सोनिया हक्की-बक्की-सी सुनील का मुंह देख रही थी । फिर उसकी दृष्टि युवक के सिर पर पड़ी और उसके बहते हुये खून और उसके खून से सने हुए चेहरे को देखकर उसके मुंह से एक आतंकपूर्ण सिसकारी निकल गई ।
“घबराओ नहीं ।” - सुनील आश्वासन पूर्ण स्वर से बोला - “मरा नहीं है यह । अभी होश में आ जायेगा ।”
सोनिया कुछ नहीं बोली ।
“यहां पानी है ?”
सोनिया ने बगल की मेज पर पड़ा पानी का जग उठा लिया ।
सुनील ने युवक के शरीर को घसीट कर केबिन को लकड़ी की दीवार के साथ बैठा दिया । उसने सोनिया के साथ से पानी का जग लिया और युवक के सिर पर पानी के छींटे मारने लगा ।
शीघ्र ही उसने आंखें खोल दी ।
सुनील ने जग सोनिया को थमा दिया और युवक के सामने बैठ गया ।
कुछ क्षण युवक भावहीन ढंग से सुनील को देखता रहा और फिर उसके चेहरे पर भय और आतंक के मिले-जुले भाव उभर आये । एकाएक उसकी मुंह खुला ।
“अगर चिल्लाने की कोशिश की ।” - सुनील फुंफकार कर बोला - “तो गर्दन दबा दूंगा ।”
युवक का मुंह बन्द हो गया ।
“क... कौन हो तुम ?” - उसने हकलाते हुए पूछा ।
“सवाल मत करो ।” - सुनील गुर्राया - “अगर जीवित रहना चाहते हो तो जो मैं पूछता हूं, उसका जवाब दो ।”
युवक चुप रहा ।
“तुम सचमुच ही विजयनगर के महाराज कुमार चन्द्रकान्त हो या कोई बहरूपिये हो ?”
युवक अपने स्वर में अधिकार का पुट देने का प्रयत्न करता हुआ बोला - “मैं महाराज कुमार ऑफ विजयनगर का चन्द्रकान्त ही हूं ।”
“तुम सोनिया से शादी करने के लिए इतने लालायित क्यों हो ?”
“यह मेरा निजी मामला है । तुम्हें इसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है ।”
सुनील का दाएं हाथ का भरपूर घूंसा युवक के पेट पर पड़ा । युवक बिलबिला कर दोहरा हो गया । उसके चेहरे पर तीव्र पीड़ा के भाव उभर आये ।
सुनील ने एक क्षण प्रतीक्षा की और फिर उसके कोट कालर पकड़कर झटके से उसकी गर्दन को सीधा कर दिया ।
“तुम्हारी और सोनिया की शादी में कार्ल प्लूमर की क्यों दिलचस्पी है ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
युवक चुप रहा ।
सुनील की दांए हाथ की उंगलियां फिर घूंसे के रूप में कस गई ।
“बताता हूं । बताता हूं ।” - युवक हांफता हुआ बोला ।
सुनील ने उंगलियां खोल दीं ।
“तुम... तुम कार्ल प्लूमर के बारे में क्या जानते हो ?” - युवक ने पूछा ।
“मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं कि सवाल मत पूछो । केवल जवाब दो । तुम सोनिया से शादी कार्ल प्लूमर की वजह से कर रहे हो या तुम्हारी कोई निजी दिलचस्पी भी है ?”
“दोनों ही बातें हैं ।” - युवक बोला - “मैं विजयनगर का महाराज कुमार हूं । हमारा आय का साधन केवल प्रीवीपर्स की वह रकम ही है जो हमें भारत सरकार से हमारे परिवार को मिलता है । मेरे पिता का स्वर्गवास हो चुका है । हमारी जो खानदानी चल और अचल सम्पत्ति थी वह बेईमानी से हमारे चाचा ने हथिया ली है । जिस ढंग से एश्वर्यपूर्ण रहन-सहन के हम आदी हो गये हैं, वह प्रीवीपर्स की रकम के द्वारा सम्भव नहीं है । विशेष रूप से मैं भारत से निकलना चाहता हूं और स्थाई रूप से योरोप में कहीं बस जाना चाहता हूं । लेकिन मेरे पास अपनी इच्छापूर्ति का कोई प्रत्यक्ष साधन नहीं है ।”
युवक एक क्षण के लिए रुका और फिर बोला - “पिछले दिनों कार्ल प्लूमर से मेरी मुलाकात हुई । मुझे यह जानकर बहुत हैरानी हुई कि वह मेरे बारे में पहले से ही सब कुछ जानता था । उसने मुझे कहा कि अगर मैं उसके कहने पर चलूं तो वह मेरी सारी मुश्किलें हल कर सकता है । मैंने उसके प्रस्ताव को सुन लेने में कोई हर्ज नहीं समझा । उसने मुझे बताया कि वह करोड़पति सेठ मनसुखानी की इकलौती लड़की सोनिया से मेरी शादी करवा सकता है । शादी के बाद एक अति सुन्दर युवती तो मुझे पत्नी के रूप में प्राप्त होगी ही साथ ही वह मुझे एक मोटी रकम के साथ यूरोप भिजवाने का इन्तजाम भी कर देगा । अपनी बात की सत्यता की पुष्टि के रूप में उसने तभी मुझे एक लाख रुपये एडवांस दे दिये । मुझे सारे सिलसिले में कोई एतराज वाली बात दिखाई नहीं दी । मैं...”
“लेकिन तुम्हारी और सोनिया की शादी में कार्ल प्लूमर की क्या दिलचस्पी है ?”
“वह भी बताऊंगा ।” - युवक गहरी सांस लेकर बोला ।
“अच्छी बात है लेकिन जवाब जल्दी-जल्दी क्योंकि समय बहुत कम है ।”
“कार्ल प्लूमर मुझे मनसुखानी सेठ के यहां ले गया । मैंने वहां पर सोनिया को देखा और उसकी सुन्दरता से बेहद प्रभावित हुआ । मैंने मन ही मन सोच लिया कि अगर कार्ल प्लूमर सत्य मेरी सोनिया से शादी करवा दे और चालीस-पचास लाख रुपये का फारेन एक्सचेंज दिलवाकर मुझे योरोप में कहीं फिक्स कर दे तो सौदा बुरा नहीं है । मनमुखानी सेठ मुझसे काफी प्रभावित भी हुआ था और उसे मेरी और सोनिया की शादी में कोई एतराज वाली बात दिखाई नहीं दी थी लेकिन सोनिया ने अड़ंगा अड़ा दिया । इसने कहा कि वह किसी अन्य युवक से प्यार करती हैं इसलिये मुझसे शादी नहीं कर सकती मैं तो निराश हो गया था लेकिन कार्ल प्लूमर ने वह अड़ंगा भी रास्ते से निकाल दिया ।”
“तुम लोगों ने वह मोटर ऐक्सीडन्ट करवा दिया जिसकी वजह से मेरे प्रेमी की मृत्यु हो गई ।” - सोनिया उत्तेजना भरे स्वर से बोली ।
“हां ।” - युवक बिना सोनिया की ओर देखे धीमे स्वर में बोला - “लेकिन अपने प्रेमी की मृत्यु के बाद भी तुम मुझसे शादी करने के लिये तैयार नहीं हुई तो उसने वह तरीका सोचा जो अब तुम पर आजमाया जाने वाला था ।”
“उसे छोड़ो !” - सुनील व्यग्र स्वर में बोला - “उसके बाद का मुझे सब मालूम है । अब तुम बताओ कि तुम्हारी और सोनिया की शादी में कार्ल प्लूमर की क्या दिलचस्पी है ?”
युवक हिचकिचाया ।
“जल्दी बोलो !” - सुनील आग्नेय नेत्रों से उसे घूरता हुआ बोला ।
“कार्ल प्लूमर की दिलचस्पी मेरी और सोनिया की शादी में नहीं है, मनसुखानी सेठ की दौलत में है । मेरी और सोनिया की शादी तो मनसुखानी सेठ की दौलत हासिल करने का केवल माध्यम है ।”
“कैसे ?”
“मनसुखानी के पास करोड़ों रुपया है । सोनिया उसकी इकलौती बेटी है । मनसुखानी का अपनी बेटी के अतिरिक्त कोई दूर का रिश्तेदार भी जिन्दा नहीं है । अगर मनसुखानी सेठ की मृत्यु हो जाये तो उसकी सारी सम्पत्ति की इकलौती मालकिन सोनिया होगी । मेरी और सोनिया की शादी के बाद कार्ल प्लूमर मनसुखानी सेठ की इस ढंग से हत्या देता कि वह स्वाभाविक मौत मालूम होती । अपने बाप की सारी सम्पत्ति की मालकिन सोनिया बन जाती और...”
“और फिर तुम वह दौलत कार्ल प्लूमर के हाथों में पहुंचा देते ।”
“हां ।”
“लेकिन सम्पत्ति की मालकिन तो सोनिया होती, तुम तो नहीं होते ।”
“ठीक है लेकिन जिस इन्जेक्शन की सहायता से सोनिया का विरोध समाप्त करके उसे मुझसे शादी करने के लिये तैयार किया जा सकता है वही इन्जेक्शन बाद में सोनिया की सम्पत्ति हथियाने के लिये इस्तेमाल भी किया जा सकता है ।”
“तुम सोनिया की सम्पत्ति कार्ल प्लूमर को सौंपने के लिये तैयार हो ?”
“क्यों नहीं । यहीं तो मेरा कार्ल प्लूमर के साथ एग्रीमेंट था । वह मुझे पचास लाख रुपया देगा और बदले में मनसुखानी सेठ की सम्पत्ति उसके हाथ पहुंचने के बारे में वह जो मुझसे कहेगा मैं करूंगा ।”
“तुम्हें इसमें कोई ऐतराज नहीं है ?”
“मुझे क्या ऐतराज होगा ? वैसे तो मुझे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिल रही है । पचास लाख रुपये की रकम भी मेरे लिये कारूंन के खजाने की हैसियत रखती है और साथ ही मुझे सोनिया जैसी सुन्दर पत्नी भी मिलती ।”
सोनिया हैरान-सी युवक का मुंह देख रही थी ।
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर एकदम गम्भीर स्वर से बोला - “चंद्रकांत, तुम्हें मालूम है कार्ल प्लूमर कौन है और वह मनसुखानी सेठ की करोड़ों की सम्पत्ति के पीछे क्यों पड़ा हुआ है ?”
युवक कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर अनिश्चित स्वर से बोला - “नहीं ।”
“तुम भारतवर्ष के नागरिक हो । भारत के एक प्रतिष्ठित राज घराने का आधारस्तम्भ हो । तुम्हें यह जानकर कैसा लगेगा कि तुम हमारे एक शत्रु राष्ट्र के एजेन्ट के चक्कर में फंसकर देश को तबाह करने की साजिश में सहायक बन रहे हो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं है ।” - युवक उत्तेजित स्वर से बोला ।
“ऐसी ही बात है डियर !” - सुनील दांत पीसता हुआ बोला - “कार्ल प्लूमर एक इन्टरनेशनल स्पाई रिंग का संचालक है और हमारे पड़ोसी शत्रु, राष्ट्र नैट्सीकाप के हितों की खातिर वह भारतवर्ष को युद्ध के मुंह पर ले जाकर खड़ा करना चाहता है । वह अपने जासूसों और रुपये से खरीदे हुए लोगों की सहायता से ऐसी स्थिति पैदा कर देना चाहता है कि हमारे अपने मित्र राष्ट्रों से सम्बन्ध बिगड़ जायें, हम अपने मित्रों पर इस हद तक अविश्वास करने लगें कि हम उन्हें अपना शत्रु समझ लें और अन्त में नौबत यहां तक पहुंच जाये कि हम कार्ल प्लूमर की बदमाशी द्वारा फैलाई गई गलतफहमी के कारण अपने मित्र राष्ट्रों से ही लड़ाई मोल ले बैठें ।”
“लेकिन अगर यह बात सच भी है तो इन बातों से मनसुखानी सेठ की दौलत से क्या सम्बन्ध है ?”
“बड़ा गहरा सम्बन्ध है । नैट्सीकाप कोई समृद्ध देश नहीं है । नैट्सीकाप भूखे-नंगे लोगों का देश है, वहां घोर गरीबी का वास है । अमेरिका और रूस की आर्थिक सहायता की वजह से ही वे लोग जीवित हैं । नैट्सीकाप का शासक जनरल ब्यूआ संसार के हर राष्ट्र के सामने आर्थिक सहायता के लिये हाथ फैलाता है । चीन और रूस जैसे कम्युनिस्ट देश अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये नैट्सीकाप की सहायता करते हैं । नतीजा यह है कि नैट्सीकाप पूरी तरह बड़ी सत्ताओं के हाथों बिक चुकी है । नैट्सीकाप के चप्पे-चप्पे पर बड़ी सत्ताओं के मिलटरी बेस बने हुए हैं । जनरल ब्यूआ शूरू से ही हमें अपना शत्रु समझता आया है । नैट्सीकाप के मुकाबले में हमारे देश ने बहुत तरक्की की है और सारे संसार में प्रतिष्ठा पाई है इसलिये जनरल ब्यूआ हमसे जलता है और हमें बरबादी की राह पर लाना चाहता है । हमें बरबाद करने के लिये ही उसने कार्ल प्लूमर को अपना सहायक बनाया है । कार्ल प्लूमर भारत के गरीब लोगों का ईमान खरीद कर उन्हें डबल एजेन्ट के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है जिसका परिणाम बड़ा भयंकर सिद्ध हो सकता है लेकिन कार्ल प्लूमर की अपनी स्कीम को कार्यरूप में परिणित करने के लिये धन की जरूरत है । नैट्सीकाप जैसे भूखे राष्ट्र के पास इतना धन नहीं है । धन प्रप्ति के लिये ही कार्ल प्लूमर ने पहले यार्क लाइन के नाम के जहाज में अमेरिकन सरकार का सोना लूटने की कोशिश की थी । लेकिन वह असफल रहा था । धन प्राप्ति के लिये ही कार्ल प्लूमर ने मनसुखानी सेठ के आस-पास अपना नया कुचक्र रचा है, कार्ल प्लूमर मनसुखानी सेठ के रुपयों से हमारे देश को बरबाद करने से साधन बनाना चाहता है और.. तुम उसे सहायता देकर अपने देश के साथ गद्दारी कर रहे हो ।”
युवक के चेहरे की रंगत बदल गई । उसके नेत्र फैल गए और वह भयभीत स्वर से बोला - “हे भगवान ! मिस्टर, मैं भगवान की सौगन्ध खाकर कहता हूं मुझे यह सब मालूम नहीं था । मैं तो केवल रुपये के लालच में...”
उसी क्षण किसी ने बाहर से केबिन का द्वार खटखटाया ।
युवक एकदम चुप हो गया ।
सुनील ने एक क्षण भी नष्ट नहीं किया । उसके दायें हाथ का घूंसा वज्र की तरह युवक के जबड़े पर पड़ा, साथ ही बायें हाथ का घूंसा युवक के पेट से टकराया । युवक के मुंह से आवाज भी नहीं निकली और उसका सिर उसके कन्धे पर लटक गया ।
सुनील ने फुर्ती से उसके शरीर को घसीट कर बाथरूम में डाल दिया और द्वार बाहर से बन्द कर दिया ।
उसी क्षण द्वार दुबारा खटखटाया गया और साथ ही रफीक का स्वर सुनाई दिया - “महाराज कुमार ।”
“ठहरो ।” - सुनील घरघराती आवाज से बोला । वह द्वार की बगल में जा खड़ा हुआ और उसने सोनिया को संकेत किया ।
सोनिया ने आगे बढकर द्वार खोल दिया ।
सौभाग्यवश रफीक अकेला था । उसने पहले सोनिया को देखा, फिर भीतर केबिन में दृष्टि दौड़ाई और फिर केबिन में दृष्टि दौड़ाई और फिर तनिक संदिग्ध स्वर से बोला - “महाराज कुमार कहां है ?”
“भीतर बाथरूम में हैं ।” - सोनिया मधुर स्वर से बोली - “आओ ।”
रफीक हिचकिचाता हुआ केबिन में घुस आया ।
सुनील ने पांव की उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाकर दोनों हाथों का भरपूर वार रफीक की गरदन पर किया । रफीक के चेहरे पर पीड़ा के भाव छा गये और वह एकदम पीछे की ओर घूमा । सुनील पर दृष्टि पड़ते ही उसके नेत्र फैल गये और वह आतंकित दिखाई देने लगा । सुनील ने पांच-छः घूंसे उसके शरीर के विभिन्न भागों पर जमाये । रफीक की चेतना लुप्त होने लगी और उसका शरीर लहरा गया । सुनील ने उसका शरीर फर्श पर गिरने से पहले ही उसे अपनी बाहों में सम्भाल लिया और उसे बाथरूम में ले जाकर महाराज कुमार आफ विजयनगर के अचेत शरीर के ऊपर फेंक दिया ।
“भागो ।” - सुनील सोनिया से बोला ।
उसने द्वार खोलकर बाहर झांका । गलियारा सुनसान पड़ा था । सुनील ने सोनिया की बांह पकड़ी और बाहर गलियारे में आ गया । गलियारा पार करके वह बिनों के सिरे के समीप से दाईं ओर घूम गया और वापिस डैक पर आ गया ।
डैक सुनसान था ।
वह सोनिया का हाथ थामे रेलिंग के उस भाग की ओर बढा जिधर सीढी लटकी हुई थी ।
चार कदम आगे बढते ही वह ठिठक गया ।
रेलिंग के समीप को डैक पर पड़े जाल और रस्सियों के ढेर के पीछे जाने के लिये कहा और स्वयं दबे पांव रेलिंग पर खड़े आदमी की ओर बढा ।
समीप आकर उसने देखा वह आदमी एक सेलर था और रेलिंग के साथ बधी रस्सियों की सीढी को ऊपर खींच रहा था ।
अभी सुनील उससे छः सात कदम दूर था कि उसे सुनील की उपस्थिति का आभास हो गया । वह एकदम घूमा । सुनील वहीं ठिठक कर खड़ा हो गया और अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “ऐ, यहां आओ ।”
“अई यई सर ।” - सेलर बड़े स्वभाविक स्वर से बोला और रस्सियों की सीढी को रेलिंग पर ही छोड़कर सुनील की ओर बढा ।
सुनील बड़ी सर्तकता से जेब में हाथ डाले उसके समीप आने की प्रतीक्षा करता रहा ।
सेलर के समीप आते ही सुनील ने झपट कर उसे दबोच लिया । सुनील का एक हाथ उसकी गरदन पर लिपट गया और वह दूसरे हाथ से उसके पेट में घूंसे जमाने लगा । शीघ्र ही सेलर का शरीर निष्क्रिय हो गया । सुनील ने उसे कन्धे पर लादा और उसे वापिस लाकर जाल और रस्सियों के ढेर के पीछे पटक दिया ।
उसने दोबारा सोनिया का हाथ थामा और वापिस रेलिंग की ओर बढ गया ।
समीप आकर उसने सीढी दुबारा रेलिंग से नीचे लटका दी, उसने सोनिया को नीचे उतरने का संकेत किया । सोनिया सावधानी से रेलिग के दूसरी ओर लटक गई और धीरे-धीरे सीढियां उतरने लगी ।
उसके मोटरबोट में पहुचते ही सुनील भी नीचे उतर गया ।
“तुम्हें तैरना आता है ?” - मोटरबोट में पहुंचकर सुनील ने सोनिया से पूछा ।
“क्यों ?” - सोनिया हैरानी से बोली - “किनारे की ओर मोटरबोट पर नहीं चलेंगे हम ?”
“मोटरबोट पर जाने में बहुत खतरा है । इंजन की आवाज जहाज पर जरूर सुन ली जायेगी ।”
“फिर क्या हुआ ! सुन ली जाये । ये लोग फौरन हमारे पीछे तो नहीं आ सकते ।”
“फौरन हमारे पीछे नहीं आ सकते लेकिन वे लोग हमें जहाज की सर्च लाईट के दायरे में लेकर गोली से उड़ा सकते हैं ।”
सोनिया चुप हो गई ।
“लेकिन ।”- कुछ क्षण बाद वह धीरे से बोली - “मुझे तो तैरना नहीं आता ।”
“दैट सैट्ल्स इट ।” - सुनील बोला - “अब तो मोटरबोट पर जाना ही पड़ेगा ।”
“आई एम सॉरी ।” - सोनिया खेदपूर्ण स्वर से बोली ।
“यू नीड नाट बी ।” - सुनील बोला और वह उस रस्से को खोलने लगा जो मोटरबोट को जहाज के साथ बांधे हुये था ।
एक ही मिनट बाद मोटरबोट जहाज के सम्पर्क से मुक्त हो गई ।
सुनील ने मोटर बोट का इंजन धीरे से चालू कर दिया और बिना हैडलाइट जलाये स्टीयरिंग को दाईं ओर घुमाने लगा ।
सोनिया सहमी-सी उसके पीछे बैठी रही ।
सुनील मोटरबोट को बहुत धीमी गति से चलाता हुआ जहाज से दूर से ले जाने लगा । रात के सन्नाटे में मोटरबोट की धीमी-सी चग-चग की आवाज भी कानों में नगाड़े की आवाज की तरह सुनाई पड़ती थी ।
जहाज से लगभग पचास गज दूर पहुंच जाने के बाद सुनील ने एकदम मोटरबोट की स्पीड बढा दी । मोटरबोट तीर की तरह समुद्र की छाती को चीरती हुई आगे बढ गई ।
यह उनका सौभाग्य था कि जहाज में किसी ने मोटरबोट की ओर ध्यान नहीं दिया था ।
“बच गये ।” - सुनील शान्ति की दीर्घ निश्वास लेता हुआ बोला - “रिलैक्स मैडम ।”
सोनिया मुस्सरा दी ।
जब जेटी के प्लेटफार्म का धुंधला-सा प्रकाश दिखाई देने लगा तो सुनील ने मोटरबोट की हैडलाइट आन कर दी ।
वे निर्विघ्न प्लेटफार्म पर पहुंच गए । प्लेटफार्म पर पहुंचकर उसने हैडलाइट बुझा दी और फिर इंजन भी बन्द कर दिया ।
वह पहले स्वयं जेटी पर चढ गया और उससे सोनिया को हाथ का सहारा देकर जेटी पर चढाया ।
दोनों प्लेटफार्म से होते हुए किनारे की रेती की ओर बढे ।
“यहां से हम राजनगर कैसे पहुंचेंगे ?” - सोनिया ने पूछा ।
“रामू कार ले कर राजनगर गया है ।” - सुनील बोला - “अभी तक वह जरूर लौट चुका होगा ।”
सोनिया कुछ नहीं बोली ।
दोनों चलते हुए बीच लेन पर पहुंच गये ।
रामू का कहीं पता न था ।
“सोनिया !” - सुनील बोला - “तुम यहां थोड़ी देर के लिये पेड़ो के पीछे ठहरो । मैं रामू को तलाश करता हूं ।”
“अच्छा ।” - सोनिया बोली ।
सुनील बीच लेन पर पत्थर की इमारत की दिशा में बढ गया ।
वह एक स्थान पर रुका । फिर उसने अपने मुंह से उल्लू के बोलने जैसी आवाज निकाली और फिर कान लगाकर सुनने लगा ।
कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला ।
यही किया उसने तीन-चार बार दोहराई ।
परिणाम में कोई अन्तर नहीं आया ।
अगले दस मिनट में उसने बीच लेन के और इमारत की चार दीवारी के आस-पास के सारे इलाके को छान डाला ।
लेकिन न उसे कहीं अपनी एम्बेसेडर कार मिली और न ही रामू दिखाई दिया ।
वह वापिस सोनिया के पास लौट आया ।
“इन्तजार करना पड़ेगा । रामू शायद अभी तक राजनगर से वापिस नहीं लौटा है ।”
“शायद कोई कार आ रही है ।” - एकाएक सोनिया चौककर बोली ।
सुनील ने राजनगर से आने वाली सड़क की ओर देखा । दूर सड़क पर हैडलाइट्स चमक रही थी ।
“यह रामू ही होगा ।” - सुनील बोला - “आओ ।”
दोनों पेड़ों के पीछे से निकलकर सड़क पर आ गये ।
“अगर यह कार रामू की न भी हुई ।” - सुनील बोला - “तो भी इसे रुकवाने की कोशिश करेंगे । शायद वह हमें लिफ्ट दे दे । कम से कम हम यहां से निकल तो जायेंगे ।”
सोनिया ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
कार समीप आती जा रही थी ।
सुनील सोनिया का हाथ थामे बीच सड़क पर आ खड़ा हुआ तथा जोर-जोर से हाथ हिलाने लगा ।
कार की गति धीमी पड़ गई तथा कार उनसे लगभग बीस गज दूर रुक गई ।
कार की हैडलाइट्स का चौंधिया देने वाला प्रकाश उनके नेत्रों में पड़ा ।
सुनील आंख मिचमिचाता हुआ हैडलाइट्स के पीछे देखने का प्रयत्न करने लगा । हैडलाइट्स की चमक के कारण वह कार या ड्राइवर की सूरत नहीं देख पा रहा था ।
उसी क्षण कार दुबारा स्टार्ट हुई तथा उनके एकदम सामने आकर रुक गई । फौरन ही कार के दोनों ओर के द्वार खुले और दो आदमी उनके सामने आ खड़े हुए । लम्बा-तगड़ा अंग्रेज था ।
दूसरे व्यक्ति के चेहेर पर घनी दाढी मूछें थीं और सिर एकदम गंजा था । उसकी पीठ कुबड़ी थी तथा वह एक छड़ी का सहारा लिये हुए खड़ा था ।
सुनील उसे फौरन पहचान गया ।
वह कार्ल प्लूमर था ।
अंग्रेज के हाथ में मशीनगन थी जो सुनील तथा सोनिया को कवर किये हुए थी ।
“दोनों अपने हाथ ऊपर उठा लो ।” - अंग्रेज ने आदेश दिया ।
“आसमान से गिरे खजूर में अटके ।” - सुनील अपने हाथ ऊपर उठाता हुआ बड़बड़ाया ।
कार्ल प्लूमर छड़ी के सहारे चलता हुआ सुनील के समीप पहुंचा । वह कुछ देर उसे घूरता रहा तथा फिर बोला - “पहचाना मुझे ?”
“तुम्हें कैसे भूल सकता हूं प्यारे भाई !” - सुनील सहज स्वर से बोला ।
“मिस्टर !” - कार्ल प्लूमर बोला - “मैं बयान नहीं कर सकता कि तुम्हें यहां देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है । अगर तुम्हारा दूसरा साथी भी मुझे मिल जाये तो मैं समझूंगा कि मेरा खुदा मुझसे बहुत खुश है । तुम लोगों की खातिर पिछली बार मुझे बड़ी करारी हार खानी पड़ी थी । अच्छा हुआ उस हार का बदला चुकाने का मौका मिल गया ।”
सुनील चुप रहा ।
“सोनिया दोबारा तुम्हारे हाथ में कैसे आ गई ?” - कार्ल प्लूमर ने पूछा - “इसे तो इस समय अपने बाप के जहाज में होना चाहिए था ।”
“यह वहीं थी ।” - सुनील शान्ति से बोला ।
“और तुम इसे अकेले उस जहाज में से निकाल लाए हो ।”
सुनील मुस्करा दिया ।
“मैं आपकी तारीफ करता हूं ।” - कार्ल प्लूमर प्रशंसात्मक स्वर से बोला - “लेकिन आज के बाद मैं तुम्हें अपने मार्ग में रोड़े अटकाने का मौका नहीं दूंगा ।”
कार्ल प्लूमर अंग्रेज की ओर मुड़कर बोला - “पीटर, इनको कार में बैठाओ ।”
पीटर ने मशीनगन की नाल से सुनील की तरफ संकेत किया ।
उसके आदेश पर दोनों कार की पिछली सीट पर जा बैठे । कार्ल प्लूमर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तथा पीटर उसकी बगल की सीट पर मशीनगन का रुख सुनील तथा सोनिया की ओर किये हुए बैठ गया ।
कार्ल प्लूमर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी तथा उसे बीच लेन पर मोड़ दिया ।
***
मनसुखानी सेठ लगभग पचास साल के इकहरे बदन का स्वस्थ आदमी था । वह अपने बदन पर एक शानदार काला सूट पहने हुए था तथा उसके मुंह में एक सिगार दबा हुआ था ।
उसने रामू को कार को बीच लेन पर मोड़ते देखा तो वह बोला - “इधर कहां जा रहे हो ?”
“इधर ही वह इमारत है सेठ जी !” - रामू बोला - “जहां बदमाशों ने आपकी बेटी को बन्दी बनाकर रखा हुआ है । इमारत पेड़ों के पीछे है इसलिये यहां से दिखाई नहीं दे रही है ।”
“न जाने क्यों मुझे अभी भी तुम्हारी बात पर पूर्णतया विश्वास नहीं हो पाया है ।” - सेठ मनसुखानी बोला ।
“अब जब आप यहां तक आ गये हैं तो शीघ्र ही आपको मेरी बात का विश्वास भी हो जायेगा ।” - रामू बोला - “वैसे सेठ जी, मेरी अब भी यही राय है कि आपको यहां पुलिस के साथ आना चाहिए था । आप यहां अकेले आकर गलती कर रहे हैं ।”
“देखा जाएगा !” - मनसुखानी लापरवाही से बोला ।
“ओके बाई मी !” - रामू बोला ।
उसने कार को बीच लेन के सिरे पर इमारत की चारदीवारी के फाटक के सामने लाकर खड़ा कर दिया ।
एक आदमी फाटक की बगल में से कहीं से निकलकर गेट के सामने पहुंचा ।
“दरवाजा खोलो !” - रामू अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “कार्ल प्लूमर के लिए सन्देश है ।”
“लेकिन साहब तो बंगले में नहीं है ।” - वह आदमी बोला ।
“मुझे मालूम है, गधे !” - रामू चिल्लाया - “मैंने कहा है कार्ल प्लूमर ने सन्देश भेजा है । जल्दी फाटक खोलो ।”
उस आदमी ने हिचकिचाते हुए फाटक का ताला खोला और फाटक दरवाजे को ठेलकर खोल दिया ।
रामू ने कार फाटक के भीतर ड्राइव कर दी ।
फाटक के भीतर घुस आने के बाद उसने फाटक खोलने वाले को दुबारा आवाज दी - “ऐ इधर आओ ।”
जब तक वह आदमी कार के द्वार तक पहुंचा, रामू भी कार से बाहर निकल आया । रामू ने अपनी रिवाल्वर उसकी ओर तान दी ।
“घूम जाओ !” - रामू ने आदेश दिया ।
वह आदमी भयभीत-सा घूम गया ।
रामू ने रिवाल्वर को नाल की ओर से पकड़ा और उसकी मूठ का प्रहार उस आदमी की खोपड़ी पर कर दिया ।
वह आदमी कटे वृक्ष की तरह जमीन पर ढेर हो गया ।
रामू ने उसके शरीर को घसीटकर एक ओर डाल दिया और वापिस कार में आ बैठा ।
उसने कार को लाकर इमारत की पोर्टिको में खड़ा कर दिया ।
“आइये !” - वह कार से बाहर निकलता हुआ बोला ।
मनसुखानी उसके साथ हो लिया ।
रामू सीढियां चढकर मुख्य द्वार पर पहुंचा और उसने कालबैल के पुश पर उंगली रख दी ।
एक गंजे आदमी ने द्वार खोला ।
रामू ने रिवाल्वर की नाल उसकी छाती पर टिका दी ।
“भीतर चलो !” - रामू बोला ।
वह आदमी उल्टे पांव भीतर चल दिया ।
रामू कुछ क्षण द्वार पर ही खड़ा रहा ।
वह एक विशाल कमरा था । कमरे के दूसरे सिरे पर एक मेज थी जिस पर बड़ी-बड़ी मूंछों वाला एक आदमी बैठा था ।
रामू को देखकर वह एकदम उठ खड़ा हुआ ।
“अपनी जगह से हिलना मत !” - रामू ने आदेश दिया । फिर उसने गंजे को मूंछों वाले के समीप जा खड़ा होने का संकेत किया ।
रामू ने देखा गंजे के मुकाबले में मूंछों वाला अच्छे कपड़े पहने हुए था और वह सूरत से भी ऊंचे दर्जे का आदमी मालूम हो रहा था ।
रामू दोनों को अपनी रिवाल्वर से कवर किये हुए खड़ा रहा ।
“कौन हो तुम ?” - मूंछों वाला अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “और इस हरकत का क्या मतलब है ?”
“इन्हें पहचानते हो ?” - रामू ने मनसुखानी की ओर संकेत करते हुए पूछा ।
“नहीं ।”
“ये सेठ मनसुखानी हैं ।”
“मैं इस आदमी को पहचानता हूं ।” - एकाएक मनसुखानी बोल पड़ा ।
“आप इसे पहचानते हैं ?”
“हां !” - मनसुखानी बोला - “इसका नाम करीम है । मैंने इसे नैट्सीकाप हाई कमीशन के कार्ल प्लूमर के साथ देखा था ।”
“आपने मुझे बिल्कुल ठीक पहचाना ।” - मूंछों वाला सिर नवाकर आदरपूर्ण स्वर से बोला - “मेरा नाम करीम ही है । मैं नैट्सीकाप हाई कमीशन से ही सम्बन्धित हूं ।”
“मिस्टर !” - मनसुखानी अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “यह आदमी कहता है कि मेरी बेटी सोनिया इस समय इमारत में मौजूद है । पहले तुम्हीं लोग नैट्सीकाप हाई कमीशन की इमारत से निकलकर लिटन रोड की सिल्वर हाउस नाम की इमारत में गये थे । उसके बाद सोनिया किसी अन्य स्थान पर ले जाई गई थी और वहां से तुम लोग उसे एक एम्बूलैंस में डाल कर इमारत ले आये हो । मैं पूछता हुं क्या यह सच है ? क्या सोनिया यहां है ?”
“यह सब झूठ है सेठ जी । कोरी बकवास है ।” - करीम तीव्र विरोधपूर्ण स्वरजमें बोला - “आपकी लड़की यहां नहीं है और न ही उसके यहां होने का कोई तुक है । मुझे हैरानी है कि आपने इस मूर्खतापूर्ण तथा आधारहीन बात पर विश्वास कर लिया है ।”
“मैं तुमसे यह पूछता हूं कि क्या मेरी बेटी यहां है ?”
“नहीं । अगर आप चाहें तो शौक से इमारत की तलाशी ले सकते हैं । मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा ।”
मनसुखानी ने प्रश्नसूचक दृष्टि से रामू को ओर देखा ।
“इसका मतलब यह हुआ” - रामू बोला - “कि या तो सोनिया को यहां से हटा लिया गया है या फिर वह इस इमारत में ऐसी जगह छुपाई गई है जो किसी बाहरी आदमी को ढूंढे नहीं मिलेगी । लेकिन इसमें इस बात की हकीकत पर कोई असर नहीं पड़ता है कि सोनिया यहां थी और तुम लोग उसे जबरदस्ती यहां भगाकर लाए हो । मैंने खुद अपनी आंखों से उसे एम्बूलैंस में यहां लाई जाते देखा है ।”
“यह सरासर बकवास है !” - करीम चिल्लाया - “सेठ जी आपको इस पागल की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए । मुझे यह आदमी बहुत खतरानाक मालूम होता है । आपको इस प्रकार असुरक्षित ढंग से इस आदमी के साथ यहां नहीं आना चाहिए था ।”
“मैं यहां असुरक्षित ढंग से नहीं आया हूं ।” - मनसुखानी बोला - “मैं अपनी सुरक्षा का पूरा इन्तजाम करके आया हूं । मैं अपने सेक्रेटरी को कहकर आया हूं कि मैं तीन घन्टे तक उसे फोन न करूं तो वह पुलिस लेकर यहां आ जाए ।”
“लेकिन मेरी समझ में नहीं आया, मैं आपको कैसे विश्वास दिलाऊं कि आपकी बेटी यहां नहीं है ।”
“तरीका मैं बताता हूं ।” - एकदम रामू बोला ।
“क्या ?” - करीम संदिग्ध स्वर से बोला ।
“तुम्हारी मेज पर टेलीफोन रखा है । तुम टेलीफोन उठाओ और राजनगर में नैट्सीकाप हाई कमीशन टेलीफोन नम्बर पर कार्ल प्लूमर के नाम एक अर्जेन्ट परसन टू परसन काल बुक कर दो । रात का समय है काल दस-पन्द्रह मिनट में मिल जायेगी ।”
“फिर ?”
“फिर ज्यों ही तुम्हें कार्ल प्लूमर की आवाज लाइन पर सुनाई दे तुम उसे अपना नाम बताना और कहना और कहना कि सोनिया दुबारा तुम्हारे हाथ से निकल गई है और उसके बाद तुम रिसीवर सेठ जी को दे देना ताकि वह कार्ल प्लूमर का उत्तर सुन सके । कार्ल प्लूमर का उत्तर इस बात पर अच्छा प्रकाश डाल देगा कि सोनिया यहां है या नहीं ।”
करीम के नेत्रों में बेचैनी झलकने लगी जो मनसुखानी से भी छुपी न रह सकी ।
“मैं तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूं !” - मनसुखानी उतावले स्वर से बोला ।
“मैं... मैं रात के इस समय” - करीम अटकता हुआ बोला - “कार्ल प्लूमर को फोन नहीं कर सकता । ...वह ...वह आधी रात को टेलीफोन पर डिस्टर्ब किया जाता पसन्द नहीं करता ।”
“मतलब यह कि तुम इस आदमी की कही हुई बात पर अमल करने से इन्कार करते हो ?”
“मैं... मैं..”
“आल राइट ! तुम्हारी हिचकिचाहट ही मेरे लिए काफी अच्छा जवाब है ।” - मनसुखानी बोला और फिर निर्णयात्मक ढंग से करीब की मेज पर रखे टेलीफोन की ओर बढा ।
रामू अपनी रिवॉल्वर से करीम और गंजे को कवर किए खड़ा रहा ।
मनसुखानी मेज के समीप पहुंचा । अभी उसने टेलीफोन की ओर हाथ बढाया ही था कि कमरे का रामू के पीछे का दरवाजा एक भड़ाक की आवाज के साथ खुल गया ।
रामू मशीन की तरह द्वार की ओर घूमा । द्वार पर उसे जो पहला व्यक्ति दिखाई दिया वह एक लम्बा ऊंचा अंग्रेज था जिसके हाथ में मशीनगन थी ।
फिर दो घटनानाएं एक साथ घटी ।
रामू ने मशीनगन वाले की ओर फायर झोंक दिया ।
करीम ने झपटकर मेज पर रखा टेलीफोन उठाया और उसके तारों को एक जोर का झटका दिया । तार प्लग सहित साकेट में ऐसे बाहर निकल आई । उसने टेलीफोन को पूरी शक्ति से रामू की ओर खींच मारा ।
टेलीफोन रामू के रिवॉल्वर वाले हाथ से टकराया और फिर भड़ाक से फर्श पर आ गिरा ।
टेलीफोन के परखच्चे उड़ गए ।
रामू का निशाना चूक गया । उसकी रिवाल्वर से निकली गोली द्वार के पैनल में धंस गई । रिवॉल्वर उसके हाथ से छिटककर जमीन पर जा गिरी और वह टेलीफोन की चोट से बिलबिलाकर फर्श पर दोहरा हो गया ।
और उसके उसी एक्शन ने उसकी जान बचा दी ।
अंग्रेज की मशीनगन में से निकली हुई कई गोलियां उसके सिर के ऊपर से गुजर गई ।
“स्टाप !” - कमरे में एक अधिकारपूर्ण आवाज गूंज गई ।
मशीनगन की रेट फौरन बन्द हो गई ।
रामू ने सिर उठाकर देखा ।
उसके दांये हाथ में रिवॉल्वर जो सुनील और सोनिया को कवर किए हुए थे ।
सुनील ने रामू की ओर देखा और उसके चेहरे पर फीकी मुस्कराहट दौड़ गई ।
“हमारा लंगड़ा यार अभी तुम्हारे बारे में पूछ रहा था ।” - सुनील रामू से बोला ।
कार्ल प्लूमर ने अंग्रेज को संकेत किया ।
अंग्रेज मशीनगन हाथ में लिए द्वार के एक ओर खड़ा हो गया ।
करीम और गंजे ने कार्ल प्लूमर का अभिवादन किया । फिर करीम मेज के पीछे से हट गया । उसने आगे बढकर रामू के हाथ से निकली हुई रिवॉल्वर उठा ली और उसको सुनील वगैरह की ओर तान सतर्कता की प्रतिमर्ति बना एक ओर खड़ा हो गया ।
“डैडी !” - सोनिया की दृष्टि मनसुखानी पर पड़ी और वह उसकी ओर लपकी ।
किसी ने उसे रोकने का प्रयत्न नहीं किया ।
रामू भी लड़खड़ता हुआ उठ खड़ा हुआ ।
सोनिया अपने पिता के साथ लिपट गई ।
मनसुखानी ने कार्ल प्लूमर को देखा और घृणापूर्ण स्वर से बोला - “तो इस सारी बदमाशी के पीछे तुम्हारा हाथ है कार्ल प्लूमर ।”
“मुझे दुख है, मनसुखानी सेठ !” - कार्ल प्लूमर लापरवाही से बोला - “कि आपको मेरे इस रूप की जानकारी हुई ।”
“हम लोग इस समय इन बदमाशों के पंजे में आपको वजह से हैं, सेठ जी !” - रामू बोला - “अगर आप मेरी बात पर विश्वास कर लेते और यहां अकेले आने को जिद न करते तो इस समय पासा उल्टा हुआ होता ।”
कार्ल प्लूमर ने अपनी रिवॉल्वर अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली और छड़ी के सहारे चलता हुआ करीम के समीप पहुंचा ।
करीम धीमे शब्दों में उसे जल्दी-जल्दी कुछ बताने लगा ।
“इतनी देर कहां लगा दी थी तुमने ?” - सुनील ने रामू से पूछा ।
“सेठ जी का कहीं पता ही न लग रहा था ।” - रामू बोला - “कितनी ही देर तलाश करने पर तो कहीं ये हाथ में आये । फिर इन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ । थोड़ा बहुत विश्वास हुआ तो ये यहां पहले अकेले आकर मेरी बात की हकीकत को अच्छी तरह परख लेने की जिद करते रहे । मजबूरन मुझे उनके साथ अकेले यहां आना पड़ा ।”
उसी क्षण कार्ल प्लूमर वापिस घूमा और लंगड़ाता हुआ फिर कमरे के बीच में पहुंच गया ।
“सेठ जी !” - वह मनसुखानी से सम्बोधित हुआ - “करीम ने मुझे बताया है कि आप अपने सेक्रेट्री को कह आए हैं कि अगर आप तीन घन्टे के अन्दर-अन्दर उससे सम्पर्क स्थापित न करें तो वह पुलिस को लेकर यहां आ जाए ?”
“हां !” - मनसुखानी विजयपूर्ण स्वर से बोला ।
“तो इसका मतलब यह हुआ कि मुझे इस ड्रामे को जल्दी ही समाप्त करना पड़ेगा ।”
“तुम बच नहीं सकते, कार्ल प्लूमर !” - मनसुखानी बोला ।
“अच्छा !” - कार्ल प्लूमर लापरपवाही से बोला - “देखते हैं ।”
“लंगड़े भाई !” - एकाएक सुनील बोला - “अगर इजाजत हो तो एक सिगरेट पी लूं ?”
और उसने बड़े स्वाभाविक ढंग से अपना हाथ अपनी जेब की ओर बढाया ।
“स्टाप !” - कार्ल प्लूमर का कठोर स्वर वातावरण में गूंज गया ।
सुनील का जेब की ओर बढता हुआ हाथ फौरन रुक गया ।
“अपने हाथों को अपनी जेबों से दूर रखो ।”
“लेकिन बड़े भाई । सिगरेट...”
“सिगरेट मैं पिलाता हूं तुम्हें । रफीक के मुंह से मैं तुम्हारे करामती सिगरेटों की बहुत तारीफ सुन चुका हूं ।”
कार्ल प्लूमर ने आगे बढकर सुनील की जेब से उसका सिगरेट केस निकाल लिया । उसने सिगरेट केस को मेज पर उछाल दिया । फिर उसने अपनी जेब में से एक सिगरेटों को एक पैकेट निकाला और उसमें से एक सिगरेट निकालकर सुनील की ओर बढा दिया ।
“मैं सिर्फ अपना ब्रांडी ही पीता हूं ।”
कार्ल प्लूमर ने सिगरेट का पैकेट जेब के हवाले किया । उसने वही सिगरेट अपने होंठों से लगाया और लाइटर निकाल कर उसे सुलगा लिया ।
“सेठ जी ।” - कार्ल प्लूमर मनसुखानी से सम्बोधित हुआ - “यहां आकर आपने अच्छा नहीं किया ।”
“अगर मैं यहां नहीं आता तो मुझे तुम्हारी असलियत का पात कैसे चलता ?”
“यही आपके लिये बुरा हुआ है । अब मुझे इस बात का भी इन्तजाम करना पड़ेगा कि जो कुछ आप जानते हैं वह आपके द्वारा कोई और न जान पाये ।”
“तुम मेरा मुंह बन्द नहीं कर सकते ।” - मनसुखानी आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “तुम...”
“बात को समझने की कोशिश करो मनसुखानी सेठ ।” - सुनील शान्त स्वर में बोला - “कार्ल प्लूमर हम लोगों के साथ ही तुम्हें भी परलोक भेजने की बात कर रहा है ।”
मनसुखानी के चेहरे की रंगत बदल गई ।
“तुम बहुत समझदार हो ।” - कार्ल प्लूमर सुनील से बोला ।
“आदाब अर्ज है ।” - सुनील सिर नवाकर मजाक भरे स्वर से बोला ।
कार्ल प्लूमर गंजे की ओर घूमा - “रस्सियां लाओ !”
दो मिनट में ही गंजा रस्सियां ले आया ।
“साहब लोगों को कुर्सियों के साथ बांध दो ।” - कार्ल प्लूमर ने आदेश दिया ।
गंजे ने अपना कार्य आरम्भ कर दिया ।
“पिछली बार ।” - कार्ल प्लूमर फिर बोला - “तुम्हें और तुम्हारे साथी को जीवित छोड़कर मैंने भारी गलती की थी लेकिन इस बार मैं ऐसी गलती नहीं करूंगा ।”
“एक बात बताओगे प्यारे लाल ।” - सुनील सहज स्वर से बोला ।
“क्या ?”
“तुम जिन्दा कैसे बच गये ? यह करिश्मा कैसे हो गया ? हमने तो अपनी आंखों के सामने तुम्हारे वाले जहाज लिंकन के परखच्चे उड़ते देखे थे और ‘डेस्ट्रायर’ के आविष्कार चन्द्रशेखरन की गारन्टी है कि जहां डेस्ट्रायर का विस्फोट हो वहां एक मील के क्षेत्रफल में से एक चूहा भी नहीं निकल सकता है ।”
“संयोगवश ही मेरी जान बच गई थी ।” - कार्ल प्लूमर बोला - “वरना तुमने तो मेरा समूल नाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।”
“कैसे ?”
“मेरी तकदीर अच्छी थी । मैं किसी कारण से ‘लिंकन’ के चार नम्बर कार्गो होल्ड में उतर गया था । संयोगवश ही मेरी दृष्टि एक कोने में छिपाये हुए ‘डेस्ट्रायर’ पर पड़ गई । डेस्ट्रायर को वहां देखकर मेरी जान सूख गई । मैंने खुद प्रोफेसर चन्द्रशेखरन से डेस्ट्रायर को आठ बजे फटने के लिये तैयार करवाया था और उस समय आठ बजने में केवल बीस मिनट बाकी थे । मैं समझ गया कि तुमने ही कोई चालाकी की है जिसकी वजह से डेस्ट्रायर लिंकन पर ही रह गया था जबकि अपनी जानकारी में मैं उसे तुम्हारे जहाज पार्क लाइन में रखवाकर आया था ।”
“फिर ?”
“मैं जानता था कि बीस मिनट के अल्पकाल में मैं डेस्ट्रायर को चार चम्बर कार्गो होल्ड में से निकालकर समुद्र में नहीं फिकवा सकता था । जहाज पर मौजूद बाकी लोगों को बीस मिनट बाद होने वाली तबाही की जानकारी देना बेवकूफी थी । क्योंकि उस सूरत में जहाज पर भगदड़ मच जाती और नतीजा यह होता कि हममें से कोई भी बच नहीं पाता इसलिए मैंने चुपचाप भाग निकलना ही उचित समझा । समय इतना कम था कि मैं जहाज पर से समुद्र लाइफ बोट भी नहीं उतार सकता था । मैंने अपने इर्द-गिर्द एक सेफ्टी बैल्ट लपेटी और चुपचाप समुद्र में कूद गया था । समुद्र में पहुचंकर मैं पूरी शक्ति से लिंकन से दूर तैरने लगा । ठीक आठ बजे डेस्ट्रायर फटा और लिंकन के परखच्चे उड़ गये । तब तक मैं डेस्ट्रायर के घातक प्रहार से काफी दूर निकल चुका था इसलिए बच गया । उसके बाद पांच दिन मैं भूखा प्यासा समुद्र की छाती पर पड़ा रहा । यह मेरा सौभाग्य था कि उस अरसे में मुझे कोई समुद्र जीव नहीं खा गया । पांच दिन बाद एक जर्मनी जहाज की मुझ पर नजर पड़ी और उन्होंने मुझे बचा लिया । मिस्टर तुम्हारी वजह से, सिर्फ तुम्हारी वजह से ही, सह सब कुछ हुआ । मैंने नरक जैसी यातना सही, मेरे कितने ही साथी मारे गये और करोड़ों रुपये का अमरीकी सोना भी मेरे हाथ नहीं लगा । मुझे खुशी है कि आज मुझे अपनी उस हार का बदला चुकाने का मौका मिला है और बदला मैं केवल तुमसे और तुम्हारे साथी से नहीं तुम्हारे पूरे देश से लूंगा ।”
कार्ल प्लूमर का चेहरा कोध से लाल हो गया था और वह आवेश में हांफने लगा था ।
गंजा, रामू, सोनिया और मनसुखानी को कुर्सियों से बांध चुका था और अब रस्सियां लेकर सुनील की ओर बढ रहा था ।
“मैं तुम्हारे देश को युद्ध की दहलीज पर ला खड़ा करूंगा ।” - कार्ल प्लूमर फिर बोला - “मैं ऐसी स्थिति पैदा कर दूंगा कि तुम लोग अपने से ज्यादा शक्तिशाली राष्ट्र के साथ युद्ध की घोषणा कर बैठोगे और तबाह हो जाओगे । तुम्हारा देश दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है, एकदम लड़खड़ा कर गिर जायेगा ।”
“हमें तुम्हारे, इरादों की पूरी-पूरी जानकारी है ।” - सुनील बोला - “लेकिन हमारा देश तुम्हारी गन्दी हरकतों के चंगुल में फंसने वाला नहीं है । हम तुम्हारी हर गन्दी स्कीम से पूरी तरह सावधान हैं ।”
“तुम्हारी सावधानी किसी काम न आयेगी ।” - कार्ल प्लूमर विषैले स्वर में बोला - “तुम्हें स्थिति की गम्भीरता का वास्ताविक अनुमान हो नहीं रहा है । तुम्हारे देश में ऐसी-ऐसी घटनाए घटित होने वाली हैं कि तुम्हारे देश की जनता भड़क उठेगी, विरोधी पार्टियां पार्लियामेंट में चिल्ला-चिल्लाकर कहेंगी कि या तो युद्ध करके देश के शुत्रओं को सिर कुचल दो नहीं तो गद्दी छोड़ दो ।”
“ऐसा क्या कर सकते हो तुम ?”
“जो कुछ मैं कर सकता हूं, उसकी शुरूआत आज ही रात को होने वाली है । लेकिन जो कुछ होने वाला है, तुम केवल उसे देखने के लिए जीवित नहीं रहोगे ।”
“क्या होने वाला है ?”
“सुन लो क्या होने वाला है । जो होने वाला है, अगर तुम उसे होने से रोक सकते हो तो रोक लो ।” आज रात तुम्हारे देश के सबसे बड़े नेता की हत्या होने वाली है ।”
सुनील सकते में आ गया । वह नेत्र फैलाये कार्ल प्लूमर का मुंह देखने लगा ।
गंजा उसे कुर्सी के साथ बांध चुका था । उसने सुनील की दोनों टांगें कुर्सी की टांगो के साथ बाध दी थीं और उसके हाथ कुर्सा की पीठ के पीछे ले जाकर एक दूसरे से बांध दिए गये थे ।
“क... कैसे ?” - उसने हकलाकर पूछा ।
“सुन लो ।” - कार्ल प्लूमर पूर्ववत उत्तेजित स्वर से बोला - “तुम्हारे देश का सबसे बड़ा नेता आज रात विशालगढ एक्सप्रैस द्वारा राजधनी से विशालगढ जा रहा है । इस समय रात के साढे ग्यारह बजे है । अब से ठीक चार घन्टे बाद विशालगढ से अस्सी मील इधर चमनगढ नाम के एक सुनसान इलाके में विशालगढ एक्स्प्रेस को बारूद से उड़ा दिया जायेगा । यह काम करेगा पीटर जो इस समय मशीनगन लिए तुम्हारे सामने खड़ा है । इस बात का पूरा इन्तजाम किया जा चुका है कि पीटर को गिरफ्तार कर लिया जाये । गिरफ्तारी के बाद उसके पास कुछ ऐसे कागजात बरामद होंगे जो निर्विवाद रूप से यह सिद्ध कर देगे कि वह तुम्हारे एक मित्र राष्ट्र का सिपाही है और जो कुछ उसने किया है वह राष्ट्र के खुफिया विभाग के आदेश पर ही किया है । इतनी बड़ी घटना के बाद तुम्हारे और तुम्हारे मित्र राष्ट्र के बीच में क्या गुजरेगी इसका अनुमान तुम अच्छी तरह लगा सकते हो ।”
सुनील सोच रहा था कि मुखर्जी का सन्देह कितना सच था ।
“रही-सही कसर बाद की अन्य घटनाओं से पूरी करवा दी जायेगी । तुम्हारे उसी मित्र राष्ट्र का एक अन्य एजेन्ट तुम्हारे देश के सबसे बड़े बांध को बारूद से उड़ा देने के प्रयत्न में पकड़ लिया जायेगा । फिर तुम्हारे किसी अन्य प्रतिष्ठित नेता की हत्या कर दी जायेगी । फिर एक अन्य सिपाही तुम्हारे किसी मिलिट्री बेस की तस्वीर लेता पकड़ा जाएगा । तुम अपने मित्र राष्ट्र से उन घटनाओं की सफाई मांगते रहोगे लेकिन कभी-भी कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं पाओगे । हर बार तुम्हें यही सुनने को मिलेगा कि पकड़े गये जासूसों से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है । लेकिन पकड़े गये जासूसों से बारूद, कागजात और अन्य सबूत उस बात को सरासर झूठ सिद्ध करेंगे । नतीजा यह होगा कि तुम अपने कथित मित्र राष्ट्र के साथ युद्ध की घोषणा कर दोगे । तुम्हारे पास इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं होगा । अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो सारा संसार तुम्हें धिक्कारेगा । तुम्हारे अपने देश की जनता तुम्हें धिक्कारेगी ।”
कार्ल प्लूमर चुप हो गया ।
कोई कुछ नहीं बोला । वातावरण में एक विचित्र प्रकार का सन्नाटा छाया हुआ था ।
फिर कार्ल प्लूमर पीटर के समीप पहुंचा और उससे अंग्रेजी में बोला - “तुमने सब समझ लिया है ?”
“यस बॉस ।”
“कोई गड़बड़ तो नहीं होगी ?”
“नो बॉस ।”
“मशीनगन करीम को दे दो और तुम फौरन रवाना हो जाओ । मेरी कार में सारा सामान तैयार है । चमनगढ यहां से लगभग डेढ सौ मील दूर है । मेरी कार द्वारा तुम तीन घन्टे से भी कम समय में वहां पहुंच जाओगे । तुम्हें अपना कार्य करने के लिये पर्याप्त समय मिल जायेगा । ओके ?”
“ओके बॉस ।”
“प्रोसीड, दैन ।”
पीटर ने मशीनगन करीम को दे दी । करीम ने अपनी रिवाल्वर गंजे को को थमा दी और स्वयं उसने पीटर की मशीनगन सम्भाल ली ।
पीटर लम्बे लम्बे डग भरता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
सोनिया का चेहरा सलेट की तरह साफ था । उसके चेहरे पर किसी प्रकार का कोई भाव नहीं था ।
मनसुखानी प्रत्यक्षत: भयभीत था ।
रामू और सुनील एकदम शान्त थे ।
सुनील विशेष रूप से अपनी कुर्सी के साथ बन्धे होने से परेशान नहीं था । वह अपने हाथों के बन्धन किसी भी क्षण काट सकता था लेकिन वर्तमान स्थिति में उसके हाथों का स्वतंत्र होना भी उसके लिए लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता था । पीटर अपने भयानक अभियान पर पहले भी रवाना हो चुका था और एक मशीनगन और एक रिवाल्वर उन लोगों को पूरी तरह से कवर किये हुये थी । जरा-सी गलती या असावधानी पूर्ण हरकत उनकी तत्काल मृत्यु का कारण बन सकती थी ।
कार्ल प्लूमर ने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया और स्वत: भाषण करता हुआ बोला - “अभी बहुत समय बाकी है ।”
सुनील ने मन ही मन एक आखिरी प्रयास करने का निश्चय कर लिया ।
उसकी कलाई पर बंधी हुई घड़ी में लगभग एक इंच लम्बा और पतला चाकू छुपा हुआ था जो घड़ी के एक विशेष भाग में हल्का-सा दबाव पड़ने पर घड़ी की बाडी में से बाहर निकल आता था ।
सुनील ने घड़ी के उस विशेष स्थान को कुर्सी की लकड़ी के साथ दबाया और चाकू बाहर निकल आया । फिर उसने धीरे-धीरे अपने हाथों को इस प्रकार तोड़ना-मरोड़ना आरम्भ कर दिया कि चाकू की पैनी धार उसकी कलाई पर बंधी रस्सियों के साथ रगड़ खाने लगी । इस प्रकार कलाई की रस्सियां काट पाना बड़ी लम्बी और धैर्यपूर्ण क्रिया थी लेकिन कर्नल मुखर्जी ने अपने विशिष्ट एजेन्टों को ऐसी स्थितियों का मुकाबला करने की विशेष रूप से ट्रेनिंग दिलवाई थी ।
“सेठ जी !” - कार्ल प्लूमर मनसुखानी से बोला - “आप अपने सैक्रेट्री को तीन घन्टे का नोटिस देकर आये हैं । तीन घंटे समाप्त होने में अभी काफी समय बाकी है । जब तक आपका सैक्रेट्री पुलिस लेकर यहां पहुंचेगा तब तक आप, अपनी बेटी और ये दोनों आदमी एक भयंकर दुर्घटना का शिकार होकर परलोक सिधार चुके होंगे ।”
“दुर्घटना !” - मनसुखानी के मुंह से निकला - “कैसी दुर्घटना ?”
“यहां से थोड़ी ही दूर राजनगर से आने वाली सड़क एक छोटी-सी पहाड़ी पर से गुजरती है । उस पहाड़ी के ऊपर एक स्थान पर सड़क एकदम अन्धा मोड़ काटती है । उस मोड़ के दाईं ओर एक लगभग सौ फुट गहरा खड्डा है । पुलिस आपकी कार को उस खड्डे में जलता हुआ पायेगी । कार में आपके मृत शरीर जल रहे होंगे । पुलिस यही समझेगी कि असावधानीवश गाड़ी आपके कण्ट्रोल से निकलकर खड्डे में जा गिरी । नीचे खड्डे में गिरने पर गाड़ी में आग लग गई । आप लोग गाड़ी के साथ ही उस आग में भस्म हो गये और सेठ जी, विश्वास कीजिये दुर्घटना का इन्तजाम इतनी होशियारी से किया जायेगा किसी को हरगिज भी किसी शरारत का सन्देह नहीं होगा । पुलिस यही समझेगी कि आप यहां पहुंचने से पहले ही दुर्घटना के शिकार हो गये ।”
मनसुखानी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
सुनील के चेहरे पर कोई भाव प्रकट नहीं हुआ । उसकी कलाइयां धीरे-धीरे एक्शन करती रहीं । चाकू की धार धीरे-धीरे रस्सी से रगड़ खाती रही ।
कार्ल प्लूमर करीम की ओर घूमा ।
“करीम ।” - वह बोला - “इमारत के सामने साहब लोगों की एम्बेसेडर गाड़ी खड़ी है । तुम कार ड्राइव करते हुए राजनगर के रास्ते की पहाड़ी पर ले जाओ । कार को यहां से ले जाकर तुम पहाड़ी पर से नीचे खड्डे में धकेल देना लेकिन इतना ख्याल रखना, कार के मुख से यही मालूम हो कि कार राजनगर की ओर से आ रही थी ।”
“ख... ख्याल रखूंगा ।” - करीम बोला ।
“कार को खड्डे में गिराकर तुम वापिस आ जाना और गैरेज से तीन-चार टीन पैट्रोल ले जाना । पहाड़ी पर पहुंचकर तुम पगडंडी के रास्ते खड्डे में उतर जाना और फिर दुर्घटनाग्रस्त कार के समीप मेरी प्रतीक्षा करना ।”
“ओके बॉस ।” - करीम बोला ।
“जाओ ।”
करीम ने गंजे को संकेत किया । गंजे ने रिवाल्वर अपनी जेब में रख ली और करीम से मशीनगन ले ली ।
करीम कमरे से बाहर निकल गया ।
“आपकी कार खड्डे में जा गिरने के बाद आप लोगों को हाथ और मुंह बांधकर पहाड़ी के ऊपर ले जाया जायेगा ।” - कार्ल प्लूमर बोला - “वहां से आपको एक-एक करके कार के पीछे खड्डे में फेंक दिया जायेगा । आप लोगों के प्राण तो खड्डे में गिरने से ही निकल जायेंगे । नीचे खड्डे में करीम आप लोगों के मुर्दा शरीरों का आखिरी संस्कार करने के लिये मौजूद होगा वह आप लोगों के हाथ और मुंह खोल देगा और फिर आप पर और कार पर पैट्रोल छिड़ककर माचिस दिखा देगा । च... च... च कितनी भयंकर दुर्घटना होगी ।”
सुनील ने धीरे से अपनी कलाइयों को उमेठा । कलाई के साथ लिपटी हुई रस्सियों का बन्धन धीरे से टूट गया । सुनील अपनी कलाइयों को उमेठता रहा । एक बन्धन टूटने के परिणाम स्वरूप उसकी कलाइयों पर से रस्सियां एकदम ढीली पड़ गई लेकिन सुनील ने खुली हुई रस्सियों से अपना हाथ निकालने का प्रयत्न नहीं किया । वह रस्सियों को अपनी कलाइयों के इर्द-गिर्द इस प्रकार समेटता रहा कि देखने पर वह अभी भी बन्धी हुई ही मालूम हों ।
“बड़ी शानदार स्कीम है ।” - प्रत्यक्ष में सुनील बोला - “स्कीम की सफलता में मेरी एडवांस में बधाई ।”
कार्ल प्लूमर चुप रहा । उसने अपनी जेब से अपना सिगरेट का पैकेट निकाला और एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
“लंगड़े भाई ।” - सुनील निवयपूर्ण स्वर से बोला - “मरने से पहले मेरे दिल की एक छोटी-सी तमन्ना तो पूरी कर दो ।”
“बको ।” - कार्ल प्लूमर होंठ सिकोड़कर बोला ।
“एक सिगरेट पिला दो ।”
“लेकिन तुम मेरा ब्रांड पीने से इन्कार करते हो और तुम्हारा अपना शरारती सिगरेट मैं तुम्हें दूंगा नहीं ।”
“अपनी ही सिगरेट पिला दो बड़े भाई । जब जान ही जाने वाली है तो पसन्द नापसन्द का सवाल कहां रह जाता है ।”
रामू विचित्र नेत्रों से सुनील को घूर रहा था । उसे सुनील की इस हरकत में से किसी शरारत की बू आ रही थी ।
“ओके ।” - कार्ल प्लूमर बोला । उसने अपने सिगरेट के पैकेट में से एक सिगरेट निकाला और उसे सुनील के समीप आ कर उसके होंठों में लगा दिया ।
“थैंक्यू, वैरी मच ।” - सुनील कृतज्ञतापूर्ण स्वर से बोला । साथ ही उसने धीरे से अपनी कलाई से इर्द-गिर्द लिपटी रस्सियों में से अपने हाथ निकाल लिये । उसने कुर्सी के पैरों के साथ बन्धे अपने पैर बड़ी मजबूती से फर्श पर जमा लिये । उसने एक सतर्क दृष्टि कार्ल प्लूमर की पतलून की बैल्ट में घुसी हुई रिवाल्वर पर डाली ।
कार्ल प्लूमर ने अपना सिगरेट लाइटर जलाया और उसे सुनील के सिगरेट के समीप लाने के लिये सुनील की ओर झुका ।
सुनील ने सहज भाव से अपना सिर लाइटर की ओर झुकाया ।
फिर बिजली की फुर्ती से उसका दायां हाथ कुर्सी के पीछे से निकालकर कार्ल प्लूमर की पतलून की बैल्ट में घुसी रिवाल्वर की ओर लपका । इससे पहले कि कार्ल प्लूमर संभल पाता, रिवाल्वर सुनील के हाथ में थी और उसकी नाल कार्ल प्लूमर के पेट से सटी हुई थी । वह एकदम कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ।
“अगर एक इन्च भी हिले तो गोली मार दूंगा ।” - सुनील कर्कश स्वर से बोला ।
सुनील की आवाज कोड़े की फटकार की तरह वातावरण में गूंज गई । कार्ल प्लूमर के हाथ से जलता हुआ सिगरेट लाइटर फर्श पर आ गिरा और बुझ गया ।
“गंजे को कहो कि मशीनगन जमीन पर फेंक दे ।” - सुनील ने आदेश दिया ।
कार्ल प्लूमर चुप रहा ।
“कार्ल प्लूमर !” - सुनील बोला - “मैं तीन तक गिनूंगा । उतने समय में अगर तुमने मेरे आदेश का पालन नहीं किया तो मैं गोली चला दूंगा... एक ।”
“मशीनगन जमीन पर फेंक दो, अभी ।” - कार्ल प्लूमर स्थिर स्वर से बोला ।
गंजे ने मशीनगन जमीन पर गिरा दी ।
“गंजे भाई ।” - सुनील बोला - “मशीनगन से दूर हटकर कोने में खड़े हो जाओ ।”
गंजे ने तत्काल आज्ञा का पालन किया ।
“और तुम भी वहीं पहुंचो ।” - सुनील कार्ल प्लूमर से बोला ।
कार्ल प्लूमर छड़ी के सहारे लगंड़ाकर चलता हुआ गंजे के समीप जा खड़ा हुआ ।
सुनील ने सावधानी से दोनों पर दृष्टि जमाये-जमाये अपने पैरों के बन्धन खोल डाले !
फिर उसने आगे बढकर मशीनगन उठा ली और रिवाल्वर अपनी जेब में रख ली ।
वह कार्ल प्लूमर पर दृष्टि जमाये रामू की ओर बढा । एक क्षण के लिये भी कार्ल प्लूमर और गंजे से दृष्टि हटाये बिना सुनील ने रामू को बन्धन मुक्त कर दिया । उसने मशीनगन रामू के हाथ में दे दी । और बोला - “इन लोगों को संभालो, मैं करीम के पीछे जाता हूं । कार को बचाना बहुत जरूरी है ।”
और सुनील बिना मनसुखानी सेठ और सोनिया की स्थिति पर ध्यान दिये बगोले की तरह कमरे से बाहर निकल गया ।
वह इमारत से बाहर निकल आया और पूरी शक्ति से बाहर की ओर भागा ।
बाहर आकर मेन रोड पर जाने के स्थान पर वह झाड़ियों के बीच में से होती हुई एक पगडंडी की ओर भागा । वह पहाड़ी तक पहुंचने के लिये बहुत छोटा रास्ता था ।
शायद... शायद वह पहाड़ी पर करीम से पहले पहुंच जाये ।
वह जान छोड़कर पगडंडी पर भागता रहा । चढाई शुरू होते ही उसकी गति धीमी पड़ गई और उसका सांस उखड़ने लगा । लेकिन वह अपनी पूरी शक्ति से चढाई पर भागता रहा ।
पगडंडी के सिरे पर पहुंचकर वह मुख्य सड़क पर आ गया और जी तोड़ अन्धे मोड़ की ओर भागा ।
उसी क्षण उसके कानों में एक जोरदार भड़ाक की आवाज पड़ी ।
उसका दिल हिल गया ।
गाड़ी का काम तमाम हो चुका था ।
मोड़ पर पहुंचकर उसने देखा । कार सड़क के किनारे लगे बैरियर को तोड़ती हुई नीचे खड्डे में जा गिरी ।
खड्डे के दहाने पर करीम खड़ा नीचे खड्डे में झांक रहा था ।
सुनील ने भागना बन्द कर दिया । वह चुपचाप उसके पीछे पहुंच गया । उसने अपनी जेब में से कार्ल प्लूमर वाली रिवाल्वर निकाल ली ।
“करीम मियां !” - सुनील ने प्यार भरे स्वर से आवाज लगाई ।
करीम एकदम चिहुंककर पीछे घूमा । सुनील पर दृष्टि पड़ते ही उसके चेहरे पर भय, आतंक और आश्चर्य के मिले-जुले भाव उभर आए ।
“अपने अल्ला मियां को याद करो और मेरी खूबसूरत कार के पीछे रवाना हो जाओ ।” - सुनील शांत स्वर में बोला ।”
इससे पहले कि करीम के मुंह से कोई बोल फूट जाता सुनील ने फायर कर दिया ।
रिवॉल्वर की नाल में से एक शोला-सा करीम की ओर लपका । करीम के मुंह से बोल भी नहीं फूटा और उसका शरीर कटे वृक्ष की तरह पीछे खड्डे में उतरतर दृष्टि से ओझल हो गया ।
सुनील ने रिवॉल्वर जेब में रख ली और भारी कदमों से वापिस बीच लेन की ओर चल दिया ।
वह वापिस इमारत में आ गया ।
तब तक रामू सोनिया और मनसुखानी सेठ को बन्धन मुक्त कर चुका था और उसके स्थान पर गंजे को और कार्ल प्लूमर को कुर्सियों के साथ बांध चुका था ।
मशीनगन जब रामू के हाथ में थी और वह अब भी उन दोनों को कवर किये हुए था ।
“क्या हुआ ?” - सुनील को देखकर रामू ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“चोट हो गई ।” - सुनील निराश स्वर से बोला - “मेरे पहुंचने से पहले ही करीम कार को खड्डे में फेंक चुका था !”
कार्ल प्लूमर के बदसूरत चेहरे पर एक कुटिलतापूर्ण मुस्कराहट दौड़ गई ।
“अब क्या होगा ?” - रामू चिंतापूर्ण स्वर से बोला ।
“लगता है जिस ट्रेजेडी का इन्तजाम कार्ल प्लूमर ने किया है, वह होकर रहेगी । कार तबाह हो चुकी है, टेलीफोन टूटा पड़ा है और हम यहां दुनिया के सम्पर्क से एकदम कटे हुये इस उजाड़ इलाके में पड़े हैं । पीटर को विशालगढ एक्सप्रेस को बारूद से उड़ा देने से रोकने का हमारे पास कोई साधन नहीं है ।”
“सुनील ।” - एकाएक रामू बोला - “महन्तपुर के डाकखाने में टेलीफोन है । जो लड़का तुम्हें राजनगर से बुलाकर लाया था, सुबह उसने बताया था कि डाकखाने का टेलीफोन खराब है और मैकेनिक उसे ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं । शायद वह टेलीफोन अब तक ठीक हो चुका हो ।”
सुनील के मन में आशा की एक क्षीण-सी किरण चमकी ।
“मैं महन्तपुर जाता हूं ।” - वह एकदम बोला ।
“और मेरा सेक्रेट्री भी पुलिस को लेकर किसी भी क्षण यहां पहुंच सकता है ।” - मनसुखानी बोला ।
सुनील दुबारा कमरे से बाहर निकल गया ।
***
एक घण्टे बाद सुनील वापिस लौटा । असफलता उसके चेहरे पर स्पष्ट रूप से अंकित थी ।
“पुलिस आई ?” - उसने निरर्थक-सा प्रश्न किया ।
रामू और मनसुखानी दोनों ने नकरात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“महन्तपुर के डाकखाने का टेलीफोन अभी भी खराब है ।” - सुनील बोला - “और गांव में बैलगाड़ी से ज्यादा तेज चलने वाली कोई सवारी मौजूद नहीं है ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“इस स्थान से बीस मील दूर तक किसी भी स्थान पर टेलीफोन या सम्पर्क का कोई अन्य साधन मौजूद नहीं है । साढे चार बजने में केवल दो घण्टे बाकी हैं । इतने थोड़े समय में कहीं पहुंच कर कुछ कर पाने का एक ही तरीका हो सकता है कि मेरे पंख निकल आएं और मैं फौरन उड़कर कहीं पहुंच जाऊं ।”
“पंख...” - रामू एकाएक उत्तेजित स्वर से बोला - “सुनील !”
“क्या हुआ ?” - सुनील हड़बड़ाकर बोला ।
“हे भगवान !” - रामू बड़बड़ाया - “यह बात मुझे पहले क्यों नहीं सूझी... सेठ जी, मशीनगन सम्भालो और इन लोगों को कवर करके रखो । सुनील, तुम मेरे साथ आओ ।”
“कहां ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“आओ ।” - रामू बाहर की ओर दौड़ता हुआ बोला - “मुझे पंख मिल गये हैं ।”
अधिक प्रश्न पूछने या सोचने का मौका नहीं था । सुनील रामू के पीछे भागा ।
दोनों भागते हुए इमारत से बाहर निकल आये ।
रामू तीर की तरह इमारत के विशाल कम्पाउण्ड में बने विशाल अर्धवृत्ताकर हैंगर की ओर भागा ।
हैंगर का विशाल फाटक बन्द था और उस पर बड़ा-सा पैड लाक झूल रहा था ।
“किस्सा क्या है ?” - सुनील हांफता हुआ उसके समीप पहुंच कर बोला ।
“तुम्हारे ख्याल से इस हैंगर में क्या है ?” - रामू बोला ।
“मैं कैसे बता सकता हूं । कुछ भी हो सकता है इसमें ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
“मुझे मालूम है इसमें क्या है ।”
“क्या है ?”
“इस हैंगर में वे पंख मौजूद हैं जिनकी हमें फौरन जरूरत है ।”
“क्या मतलब ?”
“इस हैंगर में जरूर हवाई जहाज होगा, ईडियट ।” - रामू बोला - “हमने भी इतने साल भारतीय एयरफोर्स की नौकरी की है कोई घास नहीं खोदी है ऐसे हैंगर केवल हवाई जहाज रखने के लिये बनाये जाते हैं और रात का अन्धेरा इतना ज्यादा नहीं है हैंगर के फाटक के एकदम सामने पक्का रनवे बना हुआ है जो कम्पाउण्ड के दूसरे सिरे पर जाता दिखाई दे रहा है ।”
“हुहि !” - सुनील एकदम खुशी से चिल्ला पड़ा - “बन गया काम प्यारेलाल । ब्रेवो, विंग कमान्डर रामू । यू स्टिल आर ए वार हीरो ।”
“अभी इतनी खुशी दिखाने का मौका नहीं आया है ।” - रामू गम्भीरता से बोला - “अभी हमने हवाई जहाज की सूरत नहीं देखी है । संभव है जहाज बिगड़ा हुआ हो और उड़ने के काबिल न हो और यह भी संभव है कि उसमें पैट्रोल ही न हो । तुम पहले फाटक का ताला तोड़ने का इन्तजाम करो ।”
“यह क्या मुश्किल है, अभी लो ।”
और सुनील ने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाली और उसे ताले के हुक के साथ लगाकर लगातार दो फायर कर दिये । ताला टूटकर लैच के साथ झूल गया ।
सुनील ने टूटा हुआ ताला निकालकर फर्श पर फेंक दिया ।
दोनों ने हैंगर के फाटक को धकेलकर पूरा खोल दिया ।
सुनील ने हैंगर की साइड की दीवार टटोलनी आरम्भ की शीघ्र ही उसे स्विच मिल गया । स्विच बोर्ड पर जितने स्विच थे सुनील ने सभी ऑन कर दिये ।
हैंगर प्रकाश से जगमगा उठा । और उस प्रकाश में उन्हें हैंगर के बीचों बीच खड़ा हुआ एक छोटा-सा फोल्डिंग प्रोपेलर वाला खूबसूरत जहाज दिखाई दिया ।
रामू लपककर जहाज के काकपिट में घुस गया । उसने आटोमैटिक बटन दबाकर जहाज के प्रोपेलर खोल डाले और फिर उसके अनुभवी हाथ और निगाहें कन्ट्रोल और डैशबोर्ड पर फिरने लगीं ।
“पैट्रोल काफी है ।” - रामू बोला - “मैं इन्जन स्टार्ट करके देखता हूं ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला ।
“तुम प्रोपेलर से अलग रहना ।”
“अच्छा ।”
रामू ने इन्जन स्टार्ट किया । इन्जन एक बार जोर से खांसा प्रोपेलर थोड़ा घूमा और फिर रुक गया ।
सुनील कभी रामू को और कभी हवाई जहाज के अग्रभाग को देखता रहा ।
रामू ने फिर इन्जन स्टार्ट किया । पहले की तरह फिर इन्जन खांसा, प्रोपेलर घूमा और फिर शान्ति छा गई ।
रामू ने तीन-चार बार इन्जन चलाने की चेष्टा की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला ।
“क्या बात है ?” - सुनील ने उतावले स्वर में पूछा ।
“इन्जन में कुछ खराबी मालूम हो रही है ।” - रामू ने उत्तर दिया - “ठीक से कनटैक्ट एस्टेब्लिश नहीं हो रहा है । घबराओ नहीं । मैं ठीक करने की कोशिश करता हूं ।”
“वक्त बहुत कम है ।”
“मैं अभी देखता हूं इसे । एक बार यह स्टार्ट हो जाये तो फिर मैं डेढ सौ फिट के फासले तक इस गुड़िया को यों उड़ाकर ले जाऊंगा ।” - और रामू ने बड़े व्यवसायिक अन्दाज से चुटकी बजाई - “तुम जरा हैंगर में टूलकिट तलाश करो ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला और हैंगर के पिछले भाग की ओर बढा ।
अगले एक घण्टे तक रामू इन्जन के साथ उलझा रहा । उतनी देर तक सुनील की जान सूली पर टंगी रही । अब जहाज उनका आखिरी सहारा रह गया था अब समय इतना कम रह गया था कि अगर पुलिस वहां पहुंच भी जाती तो वह भी कुछ नहीं कर पाती ।
रामू फिर काकपिट में छुप गया । उसने फिर इन्जन स्टार्ट किया । इन्जन फिर एक बार थोड़ा-सा खांसा, प्रोपेलर धीरे से घूमा ।
सुनील सांस रोके प्रोपेलर को देखता रहा ।
लेकिन इस बार प्रोपेलर रुका नहीं । इन्जन की हल्की-सी आवाज एकाएक दहाड़ में बदल गई और प्रोपेलर इतनी तेजी से घूमने लगा कि उसके पंखे दीखने बन्द हो गये ।
“बन गया काम ।” - रामू, खुशी से चिल्लाया - “सुनील !”
“हां ।”
“तुम हैंगर से बाहर निकल जाओ मैं हवाई जहाज को बाहर रनवे पर लाता हूं । अगर इसके पंख साइडों से टकराने लगे तो मुझे चेतावनी दे देना ।”
रामू बड़ी सफाई से जहाज को चलाता हुआ हैंगर से बाहर निकाल लाया ।
“आओ ।” - रामू चिल्लाया ।
सुनील भी लपककर हवाई जहाज पर चढा और उसके काकपिट में घुस कर रामू के बगल में बैठ गया ।
“लक !” - रामू दाएं हाथ का अंगूठा उठाता हुआ बोला ।
“लक ।” - सुनील ने भी उसका अनुकरण किया ।
हवाई जहाज एक झटके के साथ सामने रनवे पर चढा चला कुछ दूर आगे चलने पर जहाज का अगला भाग एकाएक आगे को उड़ गया । अगले ही क्षण हवाई जहाज के पहियों का रनवे का सम्पर्क समाप्त हो गया और जहाज तीन अंश का कोण बनाता हुआ कम्पाउन्ड की चारदीवारी के समीप उगे पेड़ों को लगभग छूता हुआ आकाश की ओर उड़ चला ।
रामू ने एक बटन दबाया और जहाज के पहिये अपने आप जहाज के उदर में सिमट गये ।
“केवल पचास मिनट बाकी हैं ।” - सुनील व्यग्र स्वर से बोला ।
“पचास मिनट बहुत होते हैं ।” - रामू विश्वासपूर्ण स्वर से बोला ।
“कहीं तुम्हें दिशा भ्रम न हो जाये ।”
“कुछ नहीं होगा । तुम मुझ पर विश्वास रखो । मैंने इससे ज्यादा खराब परिस्थितियों में जहाज उड़ाये हैं ।”
अगले चालीस मिनट तक रामू पूरे वेग से हवाई जहाज उड़ाता रहा ।
सुनील धड़कते दिल से प्रतीक्षा करता रहा । रह-रह कर उसकी दृष्टि घड़ी की ओर उठ जाती थी ।
“नीचे दायीं ओर देखो ।” - एकाएक रामू बोला ।
सुनील ने नीचे झांका । चांद की रोशनी में चमकती रेलवे लाइन दो समानान्तर लकीरों जैसी दिखाई दे रही थी । और उस पर खिलौने-सी लगने वाली विशालगढ एक्सप्रेस पूरी गति से भागी जा रही थी ।
“चमनगढ यहां से दस बारह मील से अधिक दूर नहीं है ।” - सुनील बोला - “हमें शीघ्र ही गाड़ी रुकवाने का कोई इन्तजाम करना होगा ।”
“लेकिन क्या ?”
सुनील सोचने लगा ।
“एक फौजी तरीका मुझे आता है ।”
“क्या ?”
“मैं जहाज को रेलगाड़ी से आगे रेलवे लाइन पर क्रैश कर देता हूं । फिर ड्राइवर को गाड़ी रोकनी ही पड़ेगी ।”
“और जहाज के साथ-साथ हमारे भी परखच्चे उड़ जाएंगे ।”
“हां लेकिन नेताजी की और ट्रेन में मौजूद बाकी सैकड़ों व्यक्तियों की जान बच जायेंगी ।”
एकाएक सुनील को काकपिट में पड़ा हुआ एक सिल्क की रस्सी का गुच्छा दिखाई दिया ।
सुनील के मस्तिष्क ने बिना एक क्षण भी नष्ट किये एक फैसला कर लिया ।
“रामू ।” - सुनील जल्दी से बोला - “तुम जहाज को कितना नीचा उड़ा सकते हो ?”
“जितना नीचा तुम चाहो ?”
“तुम जहाज को ट्रेन के ऊपर उसी रफ्तार से उड़ा सकते हो जिस रफ्तार से ट्रेन जा रही है ।”
“डेजी । उड़ा सकता हूं ।”
“तो फिर तैयार हो जाओ ।”
“तुम करना क्या चाहते हो ?”
“देखते जाओ ।”
सुनील ने रस्सी का गुच्छा निकाल लिया । उसने रस्सी को झटका देकर देखा । रस्सी पतली थी लेकिन बेहद मजबूत थी, सुनील ने रस्सी का एक सिरा कसकर काकपिट के साइड के साथ बांध दिया । उसने बाकी रस्सी को खोल दिया । रस्सी लगभग पन्द्रह गज लम्बी थी ।
जहाज तब तक ट्रेन से बहुत आगे निकल गया था रामू ने जहाज को एक गहरा यू टर्न दिया और उसे वापिस ट्रेन की ओर उड़ा ले चला । रस्सी की सूरत देखते ही रामू की समझ में आ गया था कि सुनील क्या करना चाहता है ?
सुनील ने रस्सी के दूसरे सिरे को एक छोटे से फन्दे का रूप दे दिया । और फिर रस्सी हाथ में थामे काकपिट से बाहर निकल आया ।
उसके बाद रामू ने वह दृश्य देखा जिसे वह जिन्दगी में नहीं भूल सकता था । उसने देखा सुनील काकपिट से निकलकर जहाज के बायें पंजे पर कूद पड़ा । वेगवान हवा के झोंके से उसके पांव उखड़े जा रहे थे और ऐसा लग रहा था कि अभी हवा के साथ पत्ते की तरह उड़ जायेगा लेकिन वह किसी प्रकार संभल गया । सुनील रस्सी हाथ में थामे धीरे-धीरे सरकता हुआ पंखे के आखिरी सिरे पर पहुंच गया । फिर रामू ने उसे नीचे झुकता देखा । अगले ही क्षण सुनील पंखे के सहारे नीचे हवा में लटका हुआ था । पहले उसने हाथ छोड़ा, फिर वह रामू की दृष्टि से ओझल हो गया ।
रामू के दिल में न जाने क्यों एकाएक सुनील के प्रति बेहद अनुराग उमड़ पड़ा । उसके नेत्र भर आये । एक क्षण के लिये नेत्र मुन्द गये और बरबस उसके मुंह से निकल पड़ा - “हे भगवान रक्षा करना ।”
फिर उसने अपने सिर को एक जोर का झटका दिया और नीचे झांका ।
सुनील रस्सी के दूसरे सिरे में फन्दे में अपना पांव उटकाए हवा में लटका हुआ था ।
रामू ने जहाज को फिर एक गहरी झोल दी और जहाज एकदम नाक की सीध में ट्रेन की ओर लपका ।
रस्सी के सहारे लटके सुनील को एक क्षण के लिये यूं लगा कि जहाज सीधा जा टकरायेगा । लेकिन ट्रेन के समीप पहुंचते ही जहाज की नाक सीधी हो गई और जहाज एकदम रेलगाड़ी ऊपर उड़ने लगा ।
सुनील रस्सी के सिरे पर लटका उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगा ।
जहाज अब ट्रेन की ही गति से उड़ रहा था और धीरे-धीरे और नीचा होता जा रहा था ।
फिर जहाज इतना नीचे आ गया कि सुनील के पैरों में और ट्रेन की छत में केवल दस फुट का फासला रह गया ।
एकाएक जहाज एक झटके के साथ थोड़ा और नीचे हुआ और सुनील के रस्सी के फन्दे में से अपना हाथ निकालकर रस्सी छोड़ दी ।
एक भड़ाक की आवाज के साथ वह ट्रेन के एक डिब्बे की छत पर गिरा । एक क्षण उसे यूं लगा जैसे ट्रेन उसके नीचे उखड़ी जा रही हो । और उसकी चमड़ी उसके शरीर से अलग होती जा रही हो । उस पर एक विचित्र प्रकार की अचेतना-सी छा गई । उसका शरीर डिब्बे की ढलवा छत से नीचे की ओर फिसलने लगा । फिर एकाएक सुनील का हाथ किसी चीज से टकराया और अनजाने से ही उसकी हाथ की पकड़ उस चीज से मजबूत हो गई । एक मिनट के लिए वह नेत्र बन्द किये उसी स्थिति में लटका रहा ।
ट्रेन भीषण वेग से तबाही की ओर भागी जा रही थी ।
सुनील ने अपने सिर को एक जोर का झटका दिया और फिर स्वयं को धीरे-धीरे ट्रेन की छत पर समेट लिया । उसके शरीर के कई भागों से चमड़ी उधड़ गई थी और पीड़ा के अधिकतर के कारण उसे लग रहा था कि वह किसी भी क्षण चेतना खो बैठेगा ।
सुनील ने सिर ऊपर उठाया और जहाज की ओर अपना हाथ हिलाया ।
रामू ने उसे सुरक्षित ट्रेन की छत पर पहुंचते देख लिया था । वह जहाज को ट्रेन से अलग उड़ा ले गया ।
सुनील रेल के डिब्बे पर उठकर खड़ा हो गया और फिर बेगवान विपरीत हवा का जी तोड़कर मुकाबला करता हुआ रेल के अपने सामने के डिब्बे फांदता हुआ इन्जन की ओर भागा ।
अगले ही क्षण वह इन्जन में फायरमैन और ड्राइवर की पूर्व प्रतीक्षित बांहों में जाकर गिरा । दोनों हक्के-बक्के से सुनील का मुंह देख रहे थे । शायद उन्होंने सुनील को हवाई जहाज में से ट्रेन की छत पर कूदते हुए भी देख लिया था ।
“ट्रेन को फौरन रोको ।” - सुनील हांफता हुआ बोला ।
“क्यों ?” - ड्राइवर ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“आगे रेलवे लाइन पर बम बिछे हुए हैं । इस ट्रेन को उड़ाने की कोशिश की जा रही है ।”
ड्राइवर के नेत्र बाहर की ओर उबल पड़े । वह एकदम आतंकित होकर कन्ट्रोल बोर्ड की ओर भागा और कन्ट्रोल से उलझ गया । वायुवेग भागती हुई विशालगढ एक्सप्रेस की रफ्तार फौरन घटने लगी, गाड़ी की रफ्तार और कम हुई । और कम हुई और फिर गाड़ी एक थके हुए अजगर की तरह रेंगती हुई एकदम रुक गई ।
सुनील के होंठों पर मुस्कराहट दौड़ गई । वह अपने अभियान में सफल रहा था । कार्ल प्लूमर द्वारा निर्धारित तबाही के समय एक मिनट पहले ही वह गाड़ी को रुकवाने में सफल हो गया था । उसके नेत्रों से हर्ष के आंसू आ गए । उसने सिर उठाकर ऊपर आकाश में झांका ।
रामू शायद सुनील की सफलता के प्रति अपना उल्लास प्रकट करने के लिये हवाई जहाज को ट्रेन के इर्द-गिर्द चक्कर खिलाए जा रहा था ।
फिर जहाज सीधा होकर एक ओर उड़ चला । शायद रामू जहाज को लैंड करने का कोई स्थान ढूंढ रहा था ।
फिर सुनील के नेत्र मुंदने लगे और फिर उसका सिर निर्जीव-सा उसके कन्धे पर लुढक गया ।
***
सुनील का अनुमान गलत था । गाड़ी तबाही के सामने से एक मिनट पहले नहीं कुछ सैकिन्ड पहले रुकी थी रेलवे लाइन पर जहां बम बिछे हुए थे, गाड़ी वहां से केवल सौ फुट दूर रुकी थी ।
बमों को सुरक्षित रूप से रेलवे लाइन से हटा दिया गया था ।
पीटर गिरफ्तार कर लिया गया था ।
विशालगढ एक्सप्रेस किस तबाही के मुंह में जाने से बच गई थी । इस बात की कतई पब्लिसिटी नहीं की गई थी । उसमें क्या होने वाला था इस बात की जानकारी, गाड़ी के ड्राइवर दो फायरमैनों, गार्ड और गाड़ी के एक कम्पार्टमेंट में मौजूद नेता जी और उनके मिलट्री अटैची के अतिरिक्त किसी को नहीं हो सकी थी ।
कार्ल प्लूमर बीच लेन वाली इमारत में से भाग निकला था । मुखर्जी सीक्रेट पुलिस टुकड़ी के साथ फौरन उस इमारत में पहुंचे थे लेकिन वहां से कार्ल प्लूमर गायब था । कमरे में गंजा, सोनिया और मनसुखानी सेठ तीनों मरे पड़े थे ।
सुनील को आज तक यह बात नहीं मालूम हो पाई कि कार्ल प्लूमर वहां से बच कैसे निकला ।
सुनील कौन था और रेलगाड़ी की तबाही से बचाने के लिये ऐन मौके पर कहां से टपक पड़ा था । इस विषय में नेता जी के अतिरिक्त किसी को कुछ नहीं बताया गया था ।
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