नीलेश ने कोंसिका क्लब में कदम रखा ।
जहां कि शांति थी । काम का कोई रश नहीं था ।
वो बार के पीछे पहुंचा, उसने वहां मौजूद पुजारा का अभिवादन किया ।
“कैसा है ?” - पुजारा सहज भाव से बोला ।
“ठीक ।”
“रात को ज्यास्ती लेट हो गया !”
“वांदा नहीं ।”
“इधर सर्विस का कोई प्रेशर नहीं है । चाहे तो आफिस में चला जा और जा के रैस्ट कर ले । झपकी-वपकी मार ले ।”
“जरूरत नहीं ।”
“फिर भी...”
“ठीक है इधर ।”
“यानी मजबूत आदमी है ! हैल्थ चौकस है !”
“है तो ऐसीच ।”
“बढ़िया । आगे भी चौकस रहे, इसके लिये कोई एहतियात बरतता है ?”
“बोले तो ?”
“अच्छी तंदरुस्ती बरकरार रखने के लिये टांग का खास खयाल रखना पड़ता है ।”
“अभी भी बोले तो ?”
“किसी के फटे में नहीं अड़नी चाहिये ।”
“अरे बॉस, क्या पहेलियां बुझा रहे हो ?”
“रोमिला बहुत डीसेंट लड़की है, उससे डीसेंटली पेश आने का । जंटलमैन का माफिक पेश आने का । क्या !”
“ओह ! तो टांग वाली मिसाल उसकी बाबत थी !”
“वो अपने काम से काम रखती है, मैं अपने काम से काम रखता हूं । इधर हर कोई अपने काम से काम रखता है । तेरे को ये बात फालो करने में कोई प्राब्लम ?”
“नहीं । काहे को होगी !”
“बढ़िया ।”
“रोमिला ने कोई शिकायत की है मेरी ?”
“नहीं, भई । मैंने एक जनरल बात की है । तुझे एक आम राय दी है जो तेरे काम आने वाली है । वैसे रोमिला की बात की है तो सुन । वो जिस धंधे मे है, उसमें उससे कोई दायें बायें के सवाल पूछना उसको परेशान करना है । वो बारबाला है, सबको एंटरटेन करना, सबसे हंस के बात करना उसका काम है, उसकी ड्यूटी है । तेरे को पसंद आ गयी है तो बोल उसको ऐसा । वो तेरी, तेरी पसंद की, पूरी पूरी कद्र करेगी ।”
“मैंने कब कहा कि…”
“नहीं कहा तो अब तो कह के देख । मेरे को पक्की करके मालूम वो किसी से फिट नहीं है । तू बढ़िया भीङू है, उसे क्या ऐतराज होगा तेरे से फिट होने में !”
“लेकिन…”
“ऐसा हो तो जो बातें करनी हैं, खुशी से कर, जितनी मर्जी कर । उसमें ऐसा कोई इंटरेस्ट तेरा नहीं है तो उसे हलकान नहीं करने का आजू बाजू के गैरजरूरी सवाल पूछ पूछ कर, उसके फटे में टांग नहीं अड़ाने का, वर्ना…”
“वर्ना क्या ?”
“अंजाम बुरा होगा ।”
“किसका ?”
“सोच !”
तत्काल उसने नीलेश की तरफ से पीठ फेर ली और उससे परे हट गया । नीलेश के दिल की धड़कन बढ़ा कर । उसको एक नयी फिक्र लगा कर ।
***
इंस्पेक्टर महाबाले ने थाने में कदम रखा ।
हवलदार जगन खत्री उसे रिपोर्टिंग रूम में टेबल के पीछे बैठा मिला ।
महाबोले को देखते ही वो उछल कर खड़ा हुआ और उसने महाबोले को ठोक के सैल्यूट मारा ।
“क्या खबर है ?” - महाबोले बोला ।
“सब शांति है, सर जी । राक्सी सिनेमा वाली सड़क पर एक एक्सीडेंट की खबर थी । महाले जा के हैंडल किया ।”
“कैसा था एक्सीडेंट ?”
“मामूली निकला, सर जी । एक टैम्पो एक कार से टकरा गया था । किसी को कोई चोट नहीं आयी थी, खाली कार का अगला बम्फर उखड़ गया था । अपना महाले जा कर सब सैटल किया ।”
“और ?”
“और आइलैंड की पुलिस की दिलचस्पी के काबिल तो कोई खबर नहीं, सर जी, एक और टाइप की खबर है जिसमें शायद आपकी कोई दिलचस्पी हो !”
“बोले तो ?”
“आपको वो भीङू याद है जो कल लेट नाइट में इधर आया और इधर से श्यामला को साथ ले के गया ?”
महाबोले तत्काल चौकन्ना हुआ ।
“हां ।” - वो बोला - “उसकी क्या बात है ?”
“मार्निग में बीच पर फिरता था । पहले रोमिला के साथ बतियाता था, फिर रेस्टोरेंट में श्यामला के साथ, फिर उधरीच दोनों के साथ ।”
“अच्छा !”
“बोले तो कुछ ज्यादा ही फास्ट वर्कर है भीङू ।”
“मैंने बोला था उस भीङू को चैक करने का था !”
“किया न, सर जी !”
“क्या जाना ?”
“मुम्बई से है । उधर भी यहीच जॉब करता था जो इधर कोंसिका क्लब में करता है । बांद्रा में । ठीये का नाम पिकाडिली । उधर का फैंसी बार । ये भीङू उधर बाउंसर । ‘पिकाडिली’ के मैनेजर की सिफारिशी चिटठी लेकर इधर आया । अपने पुजारा को ऐसे एक भीङू की अर्जेंट करके जरूरत थी, उसने फौरन रख लिया ।”
“इधर ही क्यों आया ?”
“सर जी, जब जॉब में चेंज मांगता था तो किधर तो जाना था !”
“मुम्बई से पिच्चासी किलोमीटर दूर किस वास्ते ?”
“होगी कोई प्राब्लम उसे मुम्बई से ! किसी छोटी जगह पर सैटल होना
मांगता होगा !”
“छोटी जगहों का मुम्बई के करीब तोड़ा है ! इधर ही क्यों ?”
“अभी मैं क्या बोलेगा, बॉस !”
“मुझे वो भीङू पसंद नहीं । पता नहीं क्यों खटकता है मेरे को । कल उसकी इधर आमद की वजह से नहीं । वैसे ही खटकता है । मेरे इनसाइड में घंटी बजती है उस भीङू में कोई लोचा ।”
“क्या ?”
“आयेगा पकड़ में ।”
“सर जी, लोचा तो पुजारा को आर्डर दो निकाल बाहर करे । बल्कि आइलैंड पर आर्डर करो कि कोई भी दूसरा बार उसे ऐंगेज करने की कोशिश न करे । साला अपने आप ही इधर से नक्की करेगा ।”
“कोई गारंटी नहीं । इधर कोइ दूसरी जॉब न मिलने के बावजूद वो इधर टिका रह सकता है । इधर रिहायश के लिये किधर का भाड़ा भरा । माहीना भाड़ा भरा । क्या पता भाड़ा बरोबर करने के लिये ही इधर से न टले !”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“तो फिर ?”
“कुछ और करना होगा ।”
“क्या ?”
“सुन । उसको हड़काने का । ताकत बताने का । आज रात को रोनी डिसूजा को लेकर उधर जा । उधर तेरे को खाली वाच करने का-ताकि ये न लगे पुलिस ने हड़काया-जो करेगा रोनी डिसूजा करेगा । वो इन कामों में एक्सपर्ट है । उसका पढ़ाया लैसन जल्दी भीङू की समझ में आयेगा ।”
“ठोक देगा ?”
“देखना ! नीलेश को लालेश कर देगा, कालेश कर देगा ।”
“ओह !”
“डिसूजा को बोल के रखने का कोई हड्डी न टूटे, कोई खून बहने वाली चोट न लगे, इतना दम खम उसमें बराबर छोड़ दे कि वो खुद अपने पांव पांव चल कर आइलैंड से नक्की हो सके । क्या !”
“मै सब समझ गया, सर जी । पण बोले तो…”
“क्या कहना चाहता है ?”
“ये काम मैं भी तो कर सकता हूं ? ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ से भीङू बुलाने की क्या जरूरत है ?”
“है जरूरत । तू साला ठोकेगा तो पुलिस वालों की माफिक ठोकेगा । उसको स्ट्रेचर केस बना देगा । हास्पीटल केस बना देगा । मेरे को नहीं मांगता । मेरे को उस भीङू का जैसा हैंडलिंग मांगता है उसका तजुर्बा खाली डिसूजा को है । वही उस भीङू को पर्फेक्ट करके हैंडल करेगा । एण्ड दैट्स फाइनल ।”
“यस, बॉस ।”
“क्या टेम है उसके घर पहुंचने का ?”
“लेट ही पहुंचता है । एक तो आम बज जाता होगा ! पण मेरे को मालूम आज के दिन उसकी शार्ट डयूटी होती है । नौ बजे उधर से नक्की कर जाता है ।”
“उसका किराये का कॉटेज मालूम किधर है ? कौन सा है ?”
“मालूम ।”
“बढ़िया । उससे पहले उधर पहुंचने का और भीतर घुस के उसके समान को भी टटोलने का । क्या !”
“मै समझ गया, सर जी ।”
“कोई बात पूछनी हो तो बोल !”
“नहीं, सर जी ।”
“मै जाता हूं ।”
“इधर नही ठहरने का अभी ?”
“नहीं ।”
“जरूरत पड़े तो किधर कांटैक्ट करें ?”
“मालूम है तेरे को । लेकिन खामखाह कांटैक्ट नहीं करना । कोई बड़ी इमरजेंसी आन खड़ी हो, तो ही कांटैक्ट करना । क्या !”
“बरोबर, सर जी ।”
***
साढ़े सात बाजे के करीब इंस्पेक्टर महाबोले उस होस्टलनुमा इमारत पर पहुंचा तो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस के नाम से जानी जाती थी और जिसके दूसरी मंजिल के एक कमरे में रोमिला सावंत की रिहायश थी ।
बाजू के रास्ते वो दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
अभी शाम ढ़ली ही थी इसलिये वो जानता था सामने के रास्ते पर बहुत आवाजाही स्वाभाविक थी ।
वो रोमिला के कमरे के बंद दरवाजे पर पहुंचा । उसने हैंडल ट्राई किया तो पाया कि वो मजबूती से बंद था ।
साली !
अपने गुस्से की तर्जुमानी करती मजबूत दस्तक उसने दरवाजे पर दी ।
भीतर से कोई आावाज न अयी, फिर ऐसा लगा जैसे भीतर कोई खुसर पुसर हुई हो, फिर खामोशी छा गयी ।
कुतरी भीतर कोई यार घुसाये बैठी थी ।
उसने फिर, पहले से ज्यादा गुस्से से, ज्यादा जोर से, दरवाजा खटखटाया । दरवाजा खुला, चौखट पर रोमिला प्रकट हुई ।
“ठहर के आना ।” - वो दबे कंठ से बोली - “प्लीज ! दस मिनट में ।”
“बाजू हट !” - दांत पीसता वो बोला ।
साथ ही उसने दरवाजे को जोर का धक्का दिया तो दरवाजे ने ही रोमिला को परे धकिया दिया ।
“बॉस, प्लीज ! प्लीज…”
उसकी फरियाद को पूरी तरह से नजरअंदाज करते महाबोले ने भीतर कदम डाला ।
बैड के बाजू में एक ड्रेसिंग टेबल थी जिसके सामने एक सूटधारी अधेड़ व्यक्ति खड़ा था जो शीशे में झांकता बड़ी हड़बड़ी में अपने बालों में कंघी फिरा रहा था ।
महाबोले उस शख्स से वाकिफ नहीं था लेकिन उसे उसकी सूरत पहचानी जान पड़ रही थी । उसने दिमाग पर जोर दिया तो वजह उसे सूझ गयी । दिन में जब वो जीप पर सवार मनोरंजन पार्क वाली सड़क से गुजर रहा था तो उसने पुल पर रोमिला को उस श्ख्स के साथ हंस हंस कर बतियाते देखा था ।
उसने घूम कर रोमिला की तरफ देखा ।
वो दरवाजा बंद कर चुकी थी और अब भयभीत सी उसके साथ पीठ लगाये खड़ी थी ।
महाबोले की निगाह उसके चेहरे पर से फिसली तो उसकी पोशाक पर फिरी ।
वो एक झीनी नाइटी पहने थी जो वो जरा हिलती थी तो इधर उधर हो जाती थी और उसका पुष्ट, सैक्सी जिस्म नुमायां होने लगा था ।
“इधर आ !” - वो फुम्फकारा ।
बड़ी मुश्किल से दरवाजा छोड़कर उसने दो कदम आगे बढ़ाये !
“कौन है ये ?”
“य-य-ये…ये…”
“यहां क्या कर रहा है ?”
“सदा” - वो अधेड़ व्यक्ति से सम्बोधित हुई - “तुम चलो ।”
उस व्यक्ति ने व्याकुल भाव से महाबोले की तरफ देखा ।
“मै सम्भालती हूं इधर ।”
वो व्यक्ति डरता झिझकता परे परे से दरवाजे की ओर बढ़ा ।
“नाम बोल !”
“स-सदा…सदानंद रावले ।”
“मेरे को जानता है ?”
उसका सिर जल्दी से सहमति में हिला ।
“वर्दी में नही हूं फिर भी पहचानता है ?”
उसका सिर पहले से ज्यादा तेजी से सहमति में हिला ।
“बाप” - साथ ही बोला - “मैं कुछ नहीं किया । मैं कोई पंगा नहीं मांगता ।”
“शादीशुदा है ?”
“हां, बाप । इसी वास्ते कोई पंगा नही मांगता ।”
“बॉस” - गिड़गिड़ाती सी रोमिला बोली - “इसको जाने दो न !”
“साला जोरूवाला है” - “महाबोले तिरस्कारपूर्ण स्वर में बला - “फिर भी इधर उधर मुंह मारता है । प्रास्टीच्यूशन को प्रोमोट करता है । अंदर करता हूं ।”
“बाप” - रावले गिड़गिड़ाया - “मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं ।”
“लो ! बच्चे भी हैं ! नीडी हो तो कोई बात भी है, ये तो साला ग्रीडी है ! साला फुल नपेगा ।”
“इसको जाने दो ।” - इस बार रोमिला, गिड़गिड़ाने की जगह दृढ़ता से बोली ।”
महाबोले हड़बड़ाया
“तेरे कहने पर ?” - फिर उसे घूरता हआ बोला ।
“हां ।” - रोमीला ने दृढ़ता से उससे आंख मिलाई - “मेरे कहने पर ।”
“क्यों ? होशियारी आ रही है ?”
“हां । यही बात है ।”
महाबोले फिर हड़बड़ाया ।
रोमिला ने रावले को इशारा किया ।
मन मन के कदम उठाता, किसी भी क्षण वापीस घसीट लिये जाने कि उम्मीद करता, वो दरवाजे पर पहुंचा, उसने दरवाजा खोला और फिर बगूले की तरह वहां से बाहर निकल गया ।
उसके पीछे दरवाजा खुद ही झूल कर बंद हो गया ।
कुछ क्षण उसके धड़ धड़ सीढ़ियों पर पड़ते कदमों की आवाज वहां पहुंचती रही, फिर खामोशी छा गयी ।
पीछे कमरे में भी कुछ क्षण खामोशी छाई रही, जिसे आखिर महाबोले ने ही तोड़ा ।
“साली ! तेरी ये मजाल !”
“मेरी कोई मजाल न है” - रोमिला शांति से बोली - “न हो सकती है ।”
“तो फिर उस भीङू को…”
“तुम्हारा यहां क्या काम है ?”
“क्या बोला ?”
“जाओ, पीछे जा के पकड़ लो उसे । फिर जो इलजाम उस पर लगाओ, वो खुद पर भी लगाना ।”
“क्या !”
“वर्दी में नहीं हो । चोरों की तरह यहां पहुंचे हो । मेरे किरदार से बाखूबी वाफिक हो । अपने बारे में क्या जवाब दोगे ?”
महाबोले मुंह बाये उसे देखने लगा ।
“बोलोगे पहला नम्बर तुम्हारा था, वो लाइन तोड़कर आगे आ गया, इसलिये भड़के !”
“साली बहुत श्यानी हो गयी है ।”
“मैं किधर की श्यानी !” - रोमिला ने आह सी भरी - “मजबूर की श्यानपंती कहीं किसी काम आती है !”
“फिर भी की !”
“नहीं की ।”
“बराबर की । तेरे को मालूम मैं आने वाला था । ये भी मालूम जब मेरे आने की खबर हो तो दरवाजा लॉक नहीं करने का । फिर भी साला लॉक करके रखा । साथ में मेरे को हूल देने के वास्ते एक भीङू घुसा के रखा ।”
“बिल्कुल नहीं ।”
“तो क्या उस भीङू पर रौब गांठना मांगती थी कि आइलैंड का दारोगा तेरा…फ्रेंड था ?”
“कौन नहीं जानता कैसा दारोगा हो तुम ! तुम्हारे से दोस्ती रौब गांठने के काम की नहीं, छुपा के रखने के काम की है ।”
“कुतरी ! ये कैसी जुबान बोल रही है तू आज मेरे से ?”
“पुलिस वाले कालगर्ल्स से हफ्ता वसूल करते हैं । सब जगह हफ्ता वसूल करते हैं । लेकिन तुम्हें हफ्ता नहीं मांगता । फ्री राइड मांगता है । इसलिये जब जी चाहे चले आते हो ।”
“साली धीरे बोल !”
“क्या होगा धीरे बोलने से ! लैंडलेडी को पहले से मालूम है सब । लाख छुप के आओ, उसको तुम्हारी हर आमद की खबर । तुम्हारे नक्की करते ही इधर पहुंचती है और पूछती है - ‘थानेदार गया ?’ यकीन न आये तो जा के आओ । लौटोगे तो वो इधर ही मिलेगी ।”
“सच कह रही है ?”
“आजमा के देखो । जैसा मैं बोली, वैसा करके देखो ।”
“तो तू मेरे को पहले क्यों नहीं बोली ?”
“क्योंकि हर बार कहते हो, ‘बस ये आखरी बार’ । ‘बस ये आखिरी बार’ ।”
“हू !”
“कचरा कर दिया मेरा तुम्हारे आने ने ।”
“क्या बोला ?”
“जैसा तूम समझते हो कि मैंने उसको-सदानंद रावले को-इधर सैट करके रखा, वैसे वो भी तो समझ सकता है कि मैंने तुमको इधर सैट करके रखा ।”
“क्या मतलब ?”
“समझो ।”
“तू समझा ।”
“कोई मेरे साथ हो, उपर से थाने का थानेदार आ जाये, उसे हूल देने लगे, मुझे हूल देने लगे तो क्या कोई मेरे साथ को सेफ समझेगा ? ओवरनाइट में सारे आइलैंड की अडल्ट, मेल पापुलेशन को खबर लग जायेगी कि मेरे पास भी फटकने में लोचा । फिर कौन मेरे साथ का इच्छुक रह जायेगा ?”
“मैं एकाएक नहीं पहुंच गया था, कमीनी ! जब तेरे को मालूम था मैं आ रहा हूं तो…”
“खता हुई मेरे से । मैं भूल गयी तुम्हारी आमद की बाबत । मेरे से नादानी हुई तो तुम्हें तो दानाई से काम लेना चाहिये था ।”
“क्या करना चाहिये था ?”
“यहां दरवाजा हमेशा तुम्हें अनलॉक्ड मिलता था, आज लॉक्ड मिला तो हिंट लेना चाहिये था । नहीं भीतर आने पर जोर देना चाहिये था । एक ही बार तो खता हुई !”
“क्या हिंट लेना चाहिये था ? तू भीतर ठुक रही है इसलिये मेरे को जा के आना चाहिये था ?”
“तुम वल्गर आदमी हो, इसलिये हर बात को वल्गर ढंग से कहने में अपनी शान समझते हो ।”
“ठहर जा, साली ! ऐसी दुम ठोकूंगा कि….”
“जालिम जुल्म ही कर सकता है । करे । मैं तैयार हूं सहने को ।”
दृढ़ता से उसकी तरफ बढ़ता वो थमक गया । उसने अपलक उसकी तरफ देखा ।
रोमिला ने निडरता से उससे आंख मिलाई ।
“तू बहुत बढ़ बढ़ के बोल रही है ।” - आखिर वो अपेक्षाकृत नम्र स्वर में बोला - “नहीं जानती कि दरिया में रह के मगर से बैर नहीं चलता ।”
“जानती हूं ।” - रोमिला बोली - “दरिया से बाहर की क्या पोजीशन है ?”
“बोले तो ?”
“मै तुम्हारे दरिया को नक्की बोलती हूं ।”
“नक्की बोलती है ! क्या करेगी तू ?”
“अभी करती हूं । देख के जाना ।”
सबसे पहले वो बाथरुम में गयी जहां से बाहर निकली तो नाइटी की जगह जींस के साथ एक पूरी बांह की टी-शर्ट पहने थी । फिर वो वार्डरोब पर पहुंची जहां से उसने एक बड़ा सा सूटकेस निकाला और उसे बैड पर डाल कर खोला । सूटकेस खाली था जिसे वो वार्डरोब से निकाल निकाल कर कपड़ों से और अपने बाकी सामान से भरने लगी ।
“ये क्या कर रही है ?” - वो तीखे स्वर में बोला ।
“तुम्हारी बादशाहत, ये आइलैंड छोड़ कर जा रही हूं । हमेशा के लिये ।”
“साली, कुतरी ! जब तू जानती है कि ये मेरी बादशाहत है तो बादशाह के हुक्म के बिना तू ये कदम नहीं उठा सकती । मुलाजमत के लिये यहां जो कोई भी आता है, मेरी इजाजत से आता है इसलिये मेरी इजाजत से जाता है । साली, मै बोलूंगा तेरे को तू कब इधर से जा सकती है । अब आगे जुबान चलाई तो ले जा के हवालात में बंद कर दूंगा । ऐसा कचरा करूंगा कि नौजवानी की सारी हेंकड़ी भूल जायेगी । क्या !”
वो खामोश रही ।
“यहां तेरा सिफारिशी, तेरा हिमायती रोनी डिसूजा था, तू उसकी खाट थी लेकिन मैं क्या जनता नहीं कि वो अब तेरी सूरत से बेजार है ! उसका खिलौना अब कोई और ही है । अब कौन है यहां जो तेरे को महाबोले के कहर से बचायेगा ? गोपाल पुजारा ! जब उसे खबर लगेगी कि तूने मेरे से पंगा किया, मेरे से भाव खाया तो वो तेरी तरफ से पीठ फेर के खड़ा हो जायेगा । तो और कौन ? नाम ले किसी का जिसे तू समझती है कि तेरा मुहाफिज बन सकता है !”
वो बगलें झांकने लगी ।
“जिसका कोई नहीं होता ।” - फिर हिम्मत करके बोली - “उसका भी कोई होता है ।”
“यानी तेरा भी है ?”
“शायद हो ? ”
“नाम ले उसका ?”
“उसका मिजाज इधर वालों से मेल नहीं खाता । वो जुदा ही किस्म का है । वो इधर वालों जैसा नहीं है । मैं तो पहले ही दिन भांप गयी थी कि…”
“अरे, नाम ले उसका !”
“नीलेश गोखले !”
“वो नवां भीङू ! कोंसिका क्लब का बाउंसर !”
“सब निगाह का धोखा है । वो कोई सरकारी आदमी है । पुलिस आफिसर भी हो तो कोई बड़ी बात नहीं । वो बनेगा मेरा मुहाफिज तुम्हारे जुल्म के खिलाफ !”
“मगज में लोचा साली के । कहानियों से दिल बहला रही है अपना । और समझती है कि उस मामूली नवें भीङू के नाम का हौवा खड़ा करके मेरे को उल्लू बना लेगी । साली, इस बात पर तो मैं तेरी खास दुम ठोकूंगा ।”
आंखों में बड़े हिंसक भाव लिये महाबोले उसकी तरफ बढ़ा ।
रोमिला के प्राण कांप गये ।
एकाएक उसने दरवाजे की तरफ छलांग लगाई । महाबोले ने उसे हाथ फैलाकर थामने की कोशिश की तो वो डुबकी मार गयी और निर्विघ्न दरवाजे पर पहुंच गयी । एक झटके से उसने दरवाजा खोला और उसको पार करके, गलियारे में पहुंच के आगे सीढ़ियों की तरफ भागी ।
पीछे जब तक महाबोले सम्भला तब तक वो हवा से बातें करती एक मंजिल सीढ़िया उतर भी चुकी थी ।
महाबोले ने उसके पीछे जाने का खयाल छोड़ दिया । वो कमरे में उपलब्ध इकलौती कुर्सी पर बैठ गया और जेब से पैकेट निकाल कर एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
जाये साली जहां जाती थी । सब तामझाम तो उसका वहां पड़ा था-पोशाकें, जूते, सैंडलें, चप्पलें, छोटी मोटी ज्वेलरी, जो पता नहीं असली थी या नकली, सूटकेस, हैंडबैग, सब-तन के कपड़ों के अलावा क्या था उसके पास जिसके बूते वो आइलैंड से निकासी का खयाल करती !
उसने उसका हैण्डबैग उठा कर खोला और भीतर झांका ।
आम जनाना आइटम्स के अलावा उसमें कोई चौदह सौ रुपये मौजूद थे ।
उसने हैण्डबैग को बंद किया और उसे परे उस मेज की तरफ उछाला जिस पर टीवी पड़ा था । हैण्डबैग टीवी कैबिनेट के ऊपर जाकर गिरा और फिर वहां से सरक कर टीवी के पीछे कहीं गुम हो गया ।
कोई और रोकड़ा उसके पास था-होना तो लाजमी था-तो क्या पता कहां रखती थी !
जो ड्रेस पहन कर वो वहां से गयी थी, आनन फानन उसने उसमें नोट भी ठूंस लिये हों, ये मुमकिन नहीं जान पड़ता था । वैसे भी बाथरूम में नोटों का क्या काम !
कहीं नहीं जा सकती थी । जहाज का पंछी थी, साली । जहाज का पंछी उड़ता था तो जहाज ही लौट कर आता था । कुतरी रेंगती हुई लौटेगी और गिड़गिड़ा के माफी की भीख मांगेगी ।
उसने सिग्रेट का लम्बा कश लगाया ।
साली गोखले की हूल देती थी । पुलिस अफसर बताती थी बार के गिलास चमकाने वाले भीङू को !
पुलिस अफसर !
पुलिस की काफी नहीं, अफसर भी !
अफसर !
किसी हाल में वो गोखले की कल्पना एक पुलिस आफिसर के तौर पर न सका-बावजूद इसके कि उसका दिल गवाही देता था कि उस भीङु मे कुछ खास था, कुछ खुफिया था । तभी तो उसने उसकी पड़ताल का हुक्म जारी किया था ।
और ये भी साली का फट्टा था कि लैंडलैडी को उसकी हर आवाजाही की खबर थी । कैसे हो सकती थी ! लैंडलेडी को उसकी खबर लगती तो उसे भी तो लैंडलेडी की खबर लगनी चाहिए थी ! किधर लगी !
देखूंगा साली को ! - उसने जानबूझकर बचा हुआ सिग्रेट रोमिला की सबसे नयी, सबसे कीमती जान पड़ती ब्रा में मसला और उठ खड़ा हुआ-ऐसा सीधा करूंगा साली को कि उस घड़ी को याद करके विलाप करेगी जबकि उसने महाबोले से पंगा लिया था ।
अब किसी को इधर की निगरानी पर भी लगाना होगा ताकि रोमिला लौटे तो उसको फौरन खबर लगे ।
किसको ?
दयाराम भाटे ठीक रहेगा ।
वहां से रुखसत होने के लिये उसने बाजू का ही रास्ता अख्तियार किया । उसे बिल्कुल न लगा कि वो किसी भी क्षण किसी की निगाह में था । महाबोले से ब्लफ खेली साली कुतरी ! और समझा चल गया !
***
कोंसिका क्लब में गोपाल पुजारा की तवज्जो का मरकज उसकी खास बारबाला रोमिला सावंत थी ।
उसने आठ बजे वहां पहुंचना था और अब साढ़े आठ बज चुके थे, नहीं पहुंची थी ।mnयार घ्ुसासय आयी ”
कहां मर गयी साली ! ऐसी गैरजिम्मेदार थी तो नहीं !
पुजारा ने उसके बोर्डिंग हाउस में उसकी लैंडलेडी को फोन लगाया ।
पता लगा वो वहां नहीं थी, लैंडलेडी ने कोई आधा घंटा पहले उसे उधर से निकल कर जाते देखा था ।
निकल कर कहां गयी !
जहां पहुंचना था, वहां पहुंची नहीं !
पौने नौ बजे उसने फिर बोर्डिंग हाउस का फोन बजाया ।
पहले वाला ही जवाब फिर मिला ।
तभी उसकी निगाह प्रवेश द्वार की ओर उठी तो उसे हिचकिचाती हुई श्यामला मोकाशी क्लब में कदम रखती दिखाई दी ।
वो अकेली वहां पहुंची थी और खामोशी से जा कर प्रवेश द्वार के करीब के एक केबिन में बैठ गयी थी ।
पता नहीं किस फिराक में थी !
उसके ऐसा सोचने के पीछे वजह ये थी कि वो अकेली वहां बहुत कम आती थी ।
रोमिला के लिये फिक्रमंद होने की वजह से जल्दी ही उसकी तवज्जो श्यामला की तरफ से हट गयी ।
नीलेश सहज भाव से उसके केबिन के दरवाजे पर पहुंचा ।
श्यामला ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा और मुस्कराई ।
“हल्लो !” - वो बोली ।
जवाब में नीलेश स्टाफ वाले अदब से मुस्कराया और बोला - “मे आई हैव युअर आर्डर प्लीज !”
श्यामला हड़बड़ाई, उसने सकपकाये भाव से नीलेश की तरफ देखा ।
“यू मे हैव माई रिक्वेस्ट ।” - फिर बोली ।
“मैं समझा नहीं ।”
“समझाने ही आयी हूं ।”
“क्या ?”
“मैं सुबह वाले अपने बीच के व्यवहार से शर्मिंदा हूं ।”
“खामखाह ! शर्मिंदगी वाली तो कोई बात हुई ही नहीं थी !”
“मेरे तब के व्यवहार में शालीनता की कमी थी । मैं रुखाई से, बल्कि बद्तमीजी से पेश आयी थी ।”
“ऐसी कोई बात नहीं थी ।”
“आई एम सारी !”
“नैवर माइंड !”
“मैं तुम्हारी कलीग को भी सारी बोलना चाहती हूं । है वो यहां ?”
“नहीं । होना तो चाहिये था, आठ से पहले होना चाहिये था, पता नहीं क्या हुआ, अभी तक पहुंची नहीं ।”
“आई सी ।”
“तुम्हारी तो प्रीशिड्यूल्ड अप्वायंटमेंट थी ! जो कि अच्छा हुआ था तुम्हें वक्त पर याद आ गयी थी !”
“छोड़ो वो किस्सा ! तुम जानते हो क्यों मैंने उस अप्वायंटमेंट का जिक्र किया था । मैं खामखाह तुम्हारी कलीग से...क्या नाम था उसका ?”
“रोमिला ।”
“हां, रोमिला । मैं खामखाह उससे भाव खा गयी थी । तुम्हारी कलीग है, तुम्हारा उसका रोज का लम्बा वास्ता है, नतीजतन तुम्हारे उससे मधुर सम्बंध हैं तो मेरे को क्या प्राब्लम है ?”
नीलेश खामोश रहा ।
“मैंने अपने पापा से भी डिसकस किया…”
“क्या !” - नीलेश चौंका ।
“उनका भी यही खयाल है...आई एक्टिड रादर हरिड्ली । बारबाला होना कोई बुरी बात तो नहीं !”
“ये तुम्हारे पापा का खयाल है ?”
“हां ।”
“क्यों न हो ! उनसे बेहतर इन बातों को कौन जान समझ सकता है ! अंदर की जानकारी अंदर वालों को ही बेहतर होती है ।”
“खुद मेरा भी अब यही खयाल है ।”
“कोई बड़ी बात नहीं । ज्ञान की सरिता जब घर में ही बह रही हो तो...कोई बड़ी बात नहीं ।”
“उन्हीं ने मुझे समझाया” - नीलेश की बातों में निहित व्यंग्य को बिना समझे वो अपनी ही झोंक में कहती रही - “कि सुबह मुझे विशालहृदयता का परिचय देना चाहिये था । आई शुड हैव बिन ब्राडमाइंडिड ।”
“अपने पिता से बहुत मुतासिर हो !”
“है तो ऐसा ही ! जिसकी मां न हो, उसके पिता को मां की जगह भी लेकर दिखाना पड़ता है । मेरी मां मेरे बचपन में ही मर गयी थी, तब से मेरे पापा माता-पिता का डबल रोल निभाते चले आ रहे हैं । जिंदगी में दो ही चीजों में उनकी खास तवज्जो रही है-एक ये आइलैंड और दूसरी मैं-और तुम देख ही सकते हो दोनों को ही उन्होंने क्या खूब परवान चढ़ाया है !”
“ठीक !”
“अंदाजन कह रहे हो । मुझे उम्मीद नहीं कि सारा आइलैंड तुमने घूमा है ।”
“इतना तो टाइम लगा नहीं मेरे को ! बोले तो अभी बस कदम ही तो रखा है मैंने यहां !”
“मैं दिखाती हूं न !” - वो उत्साह से बोली - “तुम्हारी गाइड ।”
“बढ़िया । गाइड कब से ड्यूटी करेगा ?”
“आज ही से ।” - उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली - “अभी से ।”
“अभी से ?”
“भई, तुमने खुद बोला था आज नौ बजे इधर से फ्री हो जाओगे !”
“नौ बजने में अभी टाइम है ।”
“सात आठ मिनट बस ।” - वो उठ खड़ी हुई - “मैं बाहर इंतजार करूंगी तुम्हारा ?”
“बाहर नहीं ।”
श्यामला की भवें उठीं ।
“घर जाओ । नौ बजे मैं भी चेंज के लिये घर जाता हूं । फिर साढे़ नौ बजे तुम्हारे दौलतखाने पर पहुंचता हूं जहां मुमकिन है मुझे तुम्हारे पिता से मिलने का फख्र भी हासिल हो जाये ।”
“ठीक है । पता याद है ?”
“फाइव, नेलसन एवेन्यू ।”
“गुड । नाइन थर्टी एट माई प्लेस !”
“यस ।”
“नो हार्ड फीलिंग्स ?”
“नो हार्ड फीलिंग्स ।”
“वुई आर फ्रेंडस नाओ ?”
“इफ यू से सो ।”
“आइ से सो ।”
“दैन वुई आर ।”
“गुड । आई एम ग्लैड ।”
वो चली गयी ।
नौ बज कर पांच मिनट तक नीलेश वहां की वर्दी अपनी काली टाई और काले सूट को तिलांजलि दे चुका था और वहां से रवाना होने के लिये तैयार था ।
तभी पुजारा उसके करीब पहुंचा ।
“अरे !” - वो बोला - “तुम तो चल भी दिये !”
“बॉस” - नीलेश विनयशील स्वर में बोला - “तुम्हें मालूम, तुमने खुद सैटल किया, आज मेरी शार्ट ड्यूटी । आज मैं नौ बजे ऑफ !”
“ठीक ! ठीक ! पण कोई स्टाम्प पेपर पर लिख के तो नहीं दिया ! नोटरी से ठप्पा लगवाकर तो नहीं दिया !”
“क्या कहना चाहते हो ?”
“अनएक्सपैक्टिड रश हो गया है । रोमिला की वजह से भी शार्टहैंडिड हूं, एक दो घंटे लिये रुक जाते !”
“मैं क्लोजिंग टाइम तक बाखुशी रुक जाता, बॉस, लेकिन आज नहीं ।”
“आज क्या है ?”
“है कुछ ।”
“डेट ?”
“हो सकता है ।”
“बोलता है हो सकता है । मेरे को अंधा समझता है ।”
“जब जानते हो तो पूछते क्यों हो ?”
“’श्यामला !”
नीलेश हंसा ।
“लगता है दिन में मैं जो कुछ तेरे को बोला वो सब तेरे सिर के ऊपर से गुजर गया !”
“सब याद है । लेकिन जो बोला था, रोमिला को लेकर बोला था । मेरी डेट रोमिला नहीं है ।”
“जो बात एक जगह लागू हो, वो दो जगह भी लागू हो सकती है, चार जगह भी लागू हो सकती है, दस जगह भी लागू हो सकती है ।”
“बॉस” - नीलेश तनिक चिड़कर बोला - “ये कोनाकोना आइलैंड है या फॉरबिडन प्लेनेट है ?”
“बात का मतलब समझ । बाल की खाल न निकाल ।”
“क्या समझूं ?”
“अपनी औकात में रह । अपने लैवल पर एक्ट कर । टॉप शैल्फ पर हाथ डालने कोशिश न कर ।”
“बॉस, तुम्हारी बातें मेरी समझ से परे हैं...”
“तू सब समझता है ।”
“अगर तुम्हें कोई ऐतराज है...”
“मुझे नहीं है । उसके बाप को हो सकता है । उसको न हुआ तो महाबोले को हो सकता है । होगा । यकीनन । क्या फायदा नाहक पंगा लेने का ! ऐसा पंगा लेने का जो झेला न जाये ! क्या फायदा किसी के फटे में टांग देने का !”
“पहले भी बोला ऐसा । टांग मेरी है न !”
पुजारा हड़बड़ाया ।
“मैं नहीं समझता किसी को मेरी पर्सनल लाइफ को डिक्टेट करने का कोई हक पहुंचता है ।”
“ठीक । ठीक ।”
“नमस्ते । कल हाजिर होता हूं ।”
“हां । दोपहर से पहले आ जाना ।”
“दोपहर से पहले ! काहे को ?”
“भई, वो खाली वक्त होता है । तेरा फाइनल हिसाब किताब करने में मेरे को सहूलियत होगी ।”
“फाइनल हिसाब किताब ! क्या बात है ? डिसमिस कर रहे हो ?”
“अभी क्या बोले मैं !”
“हैरानी की बात है कि इतनी सी बात को डिसमिसल की वजह बना रहे हो कि मैं रुक नहीं सकता ।”
“अरे, ये बात नहीं है ।” - पुजारा खोखली हंसी हंसा - “ये बात तो इत्तफाक से उट खड़ी हुई । असल में मैं वैसे भी तेरे को जवाब देने ही वाला था । तू रुकता तो मैं क्लोजिंग टाइम पर तेरे को बोलता कि कल आकर हिसाब कर लेना । अभी बिजनेस है न ! सोचा था तीन चार घंटे की ड्यूटी तेरे से निचोड़ लूं । पण, वांदा नहीं । कल आ के फाइनल हिसाब करना ।”
“मेरे काम से कोई शिकायत हुई ?”
“अरे, नहीं रे ! काम तो तेरा ऐन फर्स्ट क्लास ।”
“तो फिर ?”
“एक भांजा है न मेरा ! साला मेरे को पता ही न चला कि जवान हो गया ! उसको जॉब मांगता है न ! बहन को कैसे ‘नो’ बोलेगा !”
“ओह !”
“फिर उसकी टांग भी तेरी जितनी लम्बी नहीं है ।”
“बॉस, आई कैन टेक ए हिंट । आई हैव टेकन दि हिंट । नाओ डोंट रब इट इन ।”
“ओके ! ओके ! डोंट गैट ऑफ दि हैंडल । हैव ए नाइस टाइम टुनाइट आई विश यू आल दि बैस्ट ।”
“थैंक्यू ।”
“गैट अलांग ।”
कोंसिका क्लब से बाहर निकल कर सिग्रेट के विचारपूर्ण कश लगाता नीलेश कई क्षण फुटपाथ पर ठिठका खड़ा रहा ।
उसकी निगाह स्वयंमेव ही सामने ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ की ओर उठ गयी । वो वक्त दूसरी मंजिल पर स्थित कैसीनो में गेम्बलर्स का जमावड़ा बढ़ता जाने का था । वहां हाउसफुल हो जाने पर-जो कि वीकएण्ड्स पर तो जरूर ही होता था-ऐन्ट्री रिस्ट्रिक्ट कर दी जाती थी और दूसरी मंजिल की तमाम फालतू बत्तियां-खास तौर से बाहर सड़क पर से दिखाई देने वाली-बंद कर दी जाती थीं ।
उसने सड़क पार की और ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ के बाजू की गली में दाखिल हुआ ।
वहां पिछवाड़े में ‘इम्पीरियल’ रिट्रीट’ का अपना प्राइवेट पायर था जहां कि फ्रांसिस मैग्नारो की अत्याधुनिक स्पीड बोट खड़ी होती थी । उस ने सुना था कि उससे ज्यादा रफ्तार पकड़ने वाली स्पीड बोट कस्टम वालों के पास भी नहीं थी, कोस्ट गार्ड्स के पास भी नहीं थी ।
वो पिछवाड़े की सड़क पर पहुंचा और दायें बाजू आगे बढ़ा ।
सड़क कदरन संकरी थी और उस पर सैलानियों की भरपूर आवाजाही थी । नौजवान लड़के लड़कियां बांहों में बांहें पिरोये वहां विचार रहे थे । कई सैलनियों के हाथ में बियर का कैन था या बकार्डी ब्रीजर की बोतल थी जिसका वो गाहेबगाहे घूंट लगाते चलते थे ।
उस सड़क पर कितने ही छोटे बड़े बार और कैफे थे, आगे बढ़ते नीलेश ने जिन में से हर एक में झांका लेकिन रोमिला उसे कहीं दिखाई न दी ।
कहां चली गयी !
वो सिग्रेट के कश लगाता आगे बढ़ता रहा ।
उस सड़क पर सबसे ज्यादा रौनक और शोरशराबे वाली जगह मनोरंजन पार्क ही थी । वहां भीतर और बाहर दोनों जगह बराबर भीड़ थी । वहां चालक समेत या चालक के बिना बोट किराये पर मिलती थी जिस पर विशाल झील की सैर करना सैलनियों का-खासतौर से नौजवान जोड़ों का-पसंदीदा शगल था ।
मनोरंजन क्लब के लोहे के पुल के करीब वो ठिठका । वहां एक पब्लिक फोन था जहां सं उसने रोमिला के बोर्डिंग हाउस में फोन लगाया ।
उसके पास मोबाइल था लेकिन उस रोज इत्तफाकन वो उसे अपने काटेज पर भूल आया था ।
तभी दूसरी ओर से फोन उठाया गया, उसे लैंडलेडी की रूखी ‘हल्लो’ सुनाई दी तो उसने रोमिला की बाबत सवाल किया ।
“नहीं है ।” - लैंडलेडी चिड़े स्वर में बोली - “कितने लोग पूछोगे ? कितनी बार पूछोगे ? बोला न, आठ बजे इधर से गई । मेरे को बोल के नहीं गयी किधर जाती थी या कब लौट के आने का था । बोले तो अभी कल मार्निंग में फोन करना ।”
भड़ाक !
उसने फोन वापिस हुक पर टांग दिया और वापिस सड़क पर पांव डाला । आगे सड़क झील के साथ साथ बायें घूमती थी और मोड़ काटते ही दायें बाजू उसका किराये का कॉटेज था । उसका कॉटेज मेन रोड पर होने की जगह पिछवाड़े की एक गली में था जिस तक कॉटेजों के बीच से गुजरती, ऊपर को उठती एक संकरी सड़क जाती थी ।
वो अपनी मंजिल पर पहुंचा ।
गली से कॉटेज के मेन डोर तक पहुंचने के लिये पांच सीढि़यां चढ़नी पड़ती थीं जो कि उसने चढ़ीं । उसने जेब चाबी निकालकर की-होल में डाली और उसे घुमाने की कोशिश की तो पाया कि ताला पहले से खुला था ।
वजह ?
क्या वहां से अपनी रवानगी के वक्त वो ही दरवाजे को पीछे अनलॉक्ड छोड़ गया था ?
वो कोई फैसला न कर सका ।
ऐसी लापरवाही उससे पहले कभी नहीं हुई थी लेकिन आखिर कभी तो पहल होनी ही होती थी !
हिचकिचाते हुए उसने नॉब को घुमाया और हौले से दरवाजे को भीतर की तरफ धक्का दिया । दरवाजा धीरे धीरे भीतर को सरका । दरवाजा कोई फुट भर चौखट से अलग हो गया तो उसने भीतर के अंधेरे में निगाह दौड़ाई और कान खड़े करके कोई आहट लेने की कोशिश करने लगा ।
खामोशी !
वो कुछ क्षण और स्तब्ध ठिठका खड़ा रहा, फिर उसने भीतर हाथ डाला । भीतर चौखट की बाजू में ही स्विच बोर्ड था, बाहर खड़े खड़े ही जिस तक उसका हाथ पहुंच गया । उसने एक स्विच आन किया, तत्काल हाथ वापिस खींचा और दरवाजे पर से एक बाजू हट गया ।
भीतर रोशनी हुई लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया सामने न आई । उसने दरवाजे को धकेला और भीतर कदम डाला । वहीं ठिठककर उसने दरवाजे के बिल्ट-इन लॉक का मुआयना किया । ऐसे कोई निशान उसे ताले पर या उसके आसपास दरवाजे पर न दिखाई दिये जिनसे लगता कि उसके पीछे उसे जबरन खोला गया था ।
लिहाजा वहां से निकलते वक्त खुद वो ही दरवाजा लॉक करना भूल गया था ।
उसने ड्राईंगरूम में कदम रखा तो उसका वो खयाल हवा हो गया ।
ड्राईंगरूम की हर चीज अस्तव्यस्त थी । दीवार पर लगी दो पेंटिंग अपनी जगह से हिली हुई थीं और तिरछी हो कर लटक रही थीं । फर्श का कार्पेट अपनी जगह से नदारद था, वो रोल किया हुआ बायीं तरफ दीवार के सहारे लम्बवत् खड़ा था । सोफासैट का कोई कुशन अपनी जगह पर नहीं था । दायें बाजू वाल कैबिनेट थी जिसके सारे दराज खुले थे ।
ड्राईंगरूम को पार करके वो आगे बैडरूम के दरवाजे पर पहुंचा । पूर्ववत् उसने सावधानी से दरवाजे को भीतर की तरफ धकेला और चौखट पर से ही भीतर हाथ डाल कर बिजली का स्विच आन करके भीतर रौशनी की ।
बैडरूम का भी ड्राईंगरूम से मिलता जुलता ही हाल था ।
वो एक कुर्सी पर ढ़ेर हुआ और एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
सिग्रेट के कश लगाता वो सोचने लगा ।
जैसा बुरा हाल वहां का हुआ दिखाई दे रहा था, वैसा या तो कोई चोर कर सकता था या फिर पुलिस कर सकती थी । वो चोर का कारनामा था तो उसने नाहक जहमत की थी, मेहनत की थी, क्योंकि चुराने लायक वहां कुछ था ही नहीं । वो कॉटेज उसे फर्निश्ड किराये पर मिला था, जहां उसका अपनासामान खाली एक सूटकेस था जिसमेंउसके कुछ कपड़े थे और रोजमर्रा के इस्तेमाल का कुछ सामान था । अपना कीमती सामान-जैसे कैश, कैमरा - वो हर घड़ी अपने साथ अपनी जेबों में रखता था ।
मोबाइल !
वो उठ कर किचन में गया जहां की एक सॉकेट में चार्ज पर लगा कर वो उसे वहां से हटाना भूल गया था ।
मोबाइल अपनी जगह मौजूद था ।
लिहाजा वो चोर का नहीं, पुलिस का कारनामा था । मोबाइल बीस हजार का था, चोर ने भागते भूत की लंगोटी जान कर उसे जरूर काबू में किया होता ।
उसने बिजली का स्विच आफ किया, चार्जर पर से मोबाइल हटाया और उसे अपनी जेब के हवाले किया ।
फिर किसी अज्ञात भावना से प्ररित हो कर उसने जेब से कैमरा निकाला और उसे चाय के जार में चाय के बीच धकेल दिया । उसने जार का ढ़क्कन लगा कर उसे वापिस यथास्थान रख दिया । फिर उसने अपने कपड़े बदले, बालों में कंघी फिराई, जिस्म पर सेंट की फुहार छोड़ी और शीशे में अपना मुआयना किया ।
गुड !
अब वो डेट के लिये तैयार था ।
उसने कॉटेज की तमाम बत्तियां बुझाई, बाहर निकल कर उसके मेन डोर को सावधानी से लॉक किया और घूम कर सीढि़यां उतरने लगा ।
गली में उसने अभी कुछ ही कदम बढ़ाये थे कि एक बात उसे खटकी । वो ठिठका ।
अभी दस मिनट पहले जब वो वहां पहुंचा था तो गली में रोशनी थी-गली के मिडल में बिजली का एक खम्बा जिस पर शेड के नीचे बिजली का एक बल्ब जल रहा था ।
क्या हुआ बल्ब को !
फ्यूज हो गया एकाएक !
लेकिन...
तभी उसे अपने पीछे एक आहट महसूस हुई ।
तत्काल वो वापिस घूमा ।
अंधेरे में उसे एक बांह हवा में लहराती दिखाई दी । उसने सिर को नीचा करके जिस्म को एक बाजू झुकाया तो कोई चीज ‘शू’ की आवाज के साथ हवा को चीरती उसके कान के करीब से गुजरी ।
डंडा !
जो अपने निशाने पर पड़ जाता तो उसकी खोपड़ी तरबूज की तरह खुली होती ।
सिर झुकाये पूरे वेग के साथ वो उस साये से टकराया जिसके हाथ में डंडा था ।
तभी पीछे से उसके दायें कंधे पर जोर का प्रहार हुआ । उसके सारे जिस्म में दर्द की तीखी लहर दौड़ी । बड़ी मुश्किल से वो अपने पैरों पर खड़ा रह पाने में कामयाब हुआ ।
पीछे वाले ने उसकी कनपटी पर वार किया ।
नीलेश का सारा जिस्म झनझना गया, उसके पांव जमीन पर से उखड़ गये और वो सामने वाले पर ढ़ेर हुआ । अंदाजन उसने दायें हाथ का घूंसा हवा में घूमाया । घूंसा किसी के मुंह पर कहीं टकराया, किसी के मुंह से पहले घुटी हुई चीख ओर फिर किसी ‘रोनी’ को पुकारती फरियाद निकली ।
पीछे से उनकी खोपड़ी पर वार हुआ ।
उसके घुटने मुड़ गये और वो औंधे मुंह गली में गिरा ।
फिर पसलियों में ठोकर ।
फिर भारी जूते का छाती पर प्रहार ।
फिर !
फिर !
एकाएक कहीं हार्न बजा और गली में एक मोटर साइकल दाखिल हुई ।
तत्काल उसके आक्रमणकारियों ने अपने काम से हाथ खींचा और विपरीत दिशा में भाग निकले ।
इतनी धुनाई होने के बावजूद नीलेश को चेतना लुप्त नहीं हुई थी । उसने सिर उठा कर भागते दोनों जनों पर निगाह दौड़ाई तो उसे लगा एक जना पुलिस कर वर्दी में था ।
लड़खड़ाता सा वो उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ ।
मोटरसाइकल उसके बाजू से गुजर गयी ।
वो वापिस लौटा, बड़ी मुश्किल से पांच सीढि़यां चढ़ा और वापिस अपने कॉटेज में दाखिल हुआ । बत्तियां जलाता वो बाथरूम में पहुंचा और वहां वाशबेशिन के ऊपर लगे शीशे में उसने अपनी सूरत का मुआयना किया और उंगलियों से अपनी खोपड़ी टटोली ।
उसकी पड़ताल का जो नतीजा सामने आया वो ये था कि खोपड़ी में अंडे के आकार का गूमड़ था, ठोडी और दोईं आंख के ऊपर खाल छिली हुई थी, और सारा जिस्म फोड़े की तरह दुख रहा था ।
फिर भी खैरियत थी कोई हड्डी नहीं टूटी थी, कोई गहरा घाव नहीं लगा था । यानी हास्पीटल केस बनने से वो बच गया था ।
फिर उसने अपनी पोशाक का मुआयना किया तो वो उसे बदलने लायक ही लगी ।
उसने कलाई घड़ी पर निगाह डाली औार असहाय भाव से गर्दन हिलाई ।
उस घड़ी उसे नेलसन एवेन्यू में पांच नम्बर इमारत की कालबैल बजाते होना चाहिये था ।
अब अपनी डेट पर पहुंचने से पहले उसने कहीं और पहुचना था ।
उसने खुद को फर्स्ट एड दी, मुंह माथा धोया, बाल संवारे, फिर कपड़े तब्दील किये और कॉटेज से निकल पड़ा ।
पुलिस स्टेशन पहुंचने के लिये ।
थाने में दाखिल होते ही तो पहला शख्स नीलेश को दिखाई दिया वो लोकल म्यूनीसिपैलिटी का प्रेसीडेंट बाबूराव मोकाशी था । मैचिंग शर्ट और एग्जीक्यूटिव टेबल के पीछे बैठा सिगार के कश लगा रहा था । उसका जिस्म थुलथुल था, तोंद निकली हुई थी और सिर के तकरीबन बाल सफेद थे ।
उसके बाजू में ही एक चेयर पर बावर्दी थानाध्यक्ष अनिल महाबोले मौजूद था ।
और कोई पुलिसिया उस घड़ी इर्द गिर्द दिखाई नहीं दे रहा था ।
महाबोले ने यूं उसे देखा जैसे राजमहल में चोर घुस आया हो ।
“क्या है ?” - वो कर्कश स्वर में बोला ।
“मैं नीलेश गोखले” - नीलेश बोला - “आप मुझे जानते हैं । हम पहले मिल चुके हैं ।”
“तो ?”
“एफआईआर लिखाना चाहता हूं ।”
“किस बाबत ?”
“मेरे कॉटेज में चोर घुसे । मेरे पर कातिलाना हमला हुआ ।”
“किसने किया सब ?”
“मालूम होता तो यहां आता ?”
“क्या करते ? खुद ही निपट लेते ?”
नीलेश खामोश रहा ।
महाबोले ने बड़े नुमायशी अंदाज से अपने सामने फुलस्केप शीट्स का चुटकी लगा एक पुलंदा खींचा और हाथ में बालपैन थामता बोला - “जो कहना है तफसील से कहो ।”
नीलेश ने कहा ।
जब वो खामोश हुआ तो महाबोले बोला - “हमलावरों में से किसी को पहचाना ?”
नीलेश खामोश रहा ।
“जवाब दो, भई !”
क्या उसे बोलना चाहिये था कि एक तो शर्तिया कोई पुलिसिया था !
उसने उस बाबत फिलहाल खामोश रहना ही मुनासिब समझा ।
“नहीं ।” - वो बोला ।
“कितने थे ?”
“शायद दो थे ।”
“शायद ?”
“दो थे ।”
“किसी को पहचाना ?”
“नहीं ।”
“किसी का हुलिया बयान कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“अंधेरा था ।”
“जहां रहते हो वहां बाहर अंधेरा होता है ?”
“नहीं । गली में रोशनी होती है लेकिन जब मेरे पर हमला हुआ था, तब अंधेरा था ।”
“कहीं ये तो नहीं कहना चाहते कि अंधेरा इत्तफाकन नहीं था, इरादतन था ?”
“यही कहना चाहता हूं ।”
“हमलावरों ने गली में अंधेरा करके रखा ताकि पहचान में न आ पाते ?”
“हो सकता है ।”
“हथियार क्या थे उनके पास ?”
“हथियार !”
“भई, कातिलाना हमला हुआ बताते हो, ऐसा हमला हथियार के बिना तो नहीं होता !”
“हथियार के बिना भी होता है लेकिन मुझे किसी हथियार की खबर नहीं । एक डंडा था शायद दोनों में से एक के पास ।”
“डंडा ! वो भी शायद !”
नीलेश खामोश रहा ।
“शायद बहुत प्रधान है तुम्हारे बयान में । नशे में तो नहीं हो ?”
“नहीं ।”
“तुम्हारे कहने से क्या होता है ?”
“और किसके कहने से होता है ?”
“जुबान बहुत लड़ाते हो ! जबकि थाने में खड़े हो ।”
“ये भी तो दुख की बात है ।”
“क्या ?”
“खड़ा हूं ।”
महाबोले सकपकाया ।
“बहस करते हो ।” - फिर बोला - “कानून छांटते हो ।”
“तो रपट लिख रहे हैं आप ?”
“तफ्तीश होगी । तुम्हारे बयान में कोई दम पाया जायेगा तो फिर देखेंगे ।”
“क्या देखेंगे ?”
“पंचनामा करेंगे, भई । एफआईआर दर्ज करेंगे । यही तो चाहते हो न ?”
“जी हां ।”
“तो इंतजार करो ।”
“इंतजार करूं ?”
“वक्त लगता है न हर काम में ! प्रोसीजर का काम है, प्रोसीजर से होगा, कोई इंस्टेंट फूड तो नहीं, टू-मिनट्स-नूडल्स तो नहीं जो झट तैयार हो जायेंगी !”
“लेकिन...”
“अभी भी लेकिन !”
एकाएक बाबूराव मोकाशी अपने स्थान से उठा और विशाल टेबल का घेरा काटकर उसके सामने पहुंचा ।
“तो” - वो अपलक उसे देखता बोला - “तुम हो गोखले ?”
“जी हां ।”
“नीलेश गोखले ?”
“जी हां ।”
“मेरी बेटी श्यामला की डेट ?”
“जी हां ।”
“लेट नहीं हो गये हो ?”
“हो गया हूं, सर । वजह बन गयी न, सर !”
“वजह ?”
“जो मैंने अभी बयान की ।”
“मैंने सुनी । लेकिन कोई बड़ा डैमेज तो मुझे दिखाई नहीं दे रहा ! नौजवान हो, मजबूत हो, मैं नहीं समझता कि कोई छोटी मोटी टूट फूट तुम्हारे जोशोजुनून में कोई कमी ला सकती है ।”
नीलेश खामोश रहा ।
“कहां से हो ?” - मोकाशी ने नया सवाल किया ।
“मुम्बई से ।”
“कोई प्रूफ आफ आइडेंटिटी है ?”
“ड्राइविंग लाइसेंस है । वोटर आई कार्ड है ।”
“दिखाओ ।”
नीलेश ने दोनों चीजें पेश कीं ।
मोकाशी ने दोनों का मुआयना किया और उन्हें आगे महाबोले को सौंपा ।
महाबोले ने दोनों पर से सीरियल नम्बर वगैरह अपने सामने पड़ी शीट पर नोट किये और दोनों कार्ड नीलेश को लौटा दिये ।
“आइलैंड पर बतौर टूरिस्ट हो ?” - मोकाशी बोला ।
“जी नहीं ।” - नीलेश बोला - “नौकरी के लिये आया ।”
“मिली ?”
“जी हां ।”
“कहां ?”
“कोंसिका क्लब में ।”
“क्या हो तुम वहां ?”
“बाउंसर ! बारमैंस असिस्टेंट । जनरल हैंडीमैंन ।”
“आई सी ।”
“लेकिन था ।”
“क्या मतलब ? अब नहीं हो ?”
“नहीं हूं ।”
“क्यों ? क्या हुआ ?”
“जवाब मिल गया ।”
“मतलब ?”
“आई वाज फायर्ड ।”
“कब ?”
“आज ही ।”
“वजह क्या हुई ?”
“मालूम नहीं । एम्पालायर ने बताई नहीं, मैंने जानने की जिद न की ।”
“जो बात मालूम हो” - महाबोले बोला - “उसको जानने की जिद नहीं की जाती ।”
“जी !”
“वजह मुझे मालूम है ।”
“आ-आपको मालूम है ?”
“गल्ले में हाथ सरकाया होगा, पुजारा ने रंगे हाथों थाम लिया होगा !”
नीलेश को पूरा पूरा अहसास था कि महाबोले उसे जानबूझ कर हड़काने की कोशिश कर रहा था । वो जानता था उस घड़ी वो आइलैंड के दो बड़े महंतो के रूबरू था इसलिये जब्त से काम लेना जरूरी था ।
“ऐसी कोई बात नहीं, सर ।” - वो विनयशील स्वर में बोला ।
“कैसी कोई बात नहीं ?”
“मैं आदतन ईमानदार आदमी हूं । जो आप कह रहे हैं, वो न मैंने किया था, न कर सकता था ।”
“तो डिसमिस क्यों किये गये ?”
“पुजारा साहब ने कोई वजह न बताई । बस बोला, कल आके हिसाब कर लेना ।”
“बेवजह कुछ नहीं होता ।” - मोकाशी बोला - “वजह कोई भी रही हो, आइलैंड को बदनाम करने वाली नहीं होनी चाहिये । यहां की गुडविल खराब करने वाली नहीं होनी चाहिये । बाहर से मुलाजमत के लिये यहां आये किसी शख्स पर चोरी चकारी का, या किसी दूसरी तरह की बद्सलूकी का इलजाम आये, ये हैल्दी ट्रैंड नहीं है । तुम सुन रहे हो, महाबोले ?”
महाबोले ने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।
“यहां लॉ एण्ड आर्डर तुम्हारा महकमा है, तुम्हारी जिम्मेदारी है इसलिये बोला ।”
“मैंने सुना बराबर, मोकाशी साहब ।”
साले , हवा में मछलियां मार रहे हैं । वजूद में कुछ भी नहीं , और कानून छांट रहे हैं ।
मोकाशी नीलेश की तरफ वापिस घूमा ।
“गोखले !” - वो बोला - “मेरे आइलैंड पर...”
मेरे आइलैंड पर ! क्या कहने !
“…तुम्हारे साथ कोई बुरी वारदात वाकया हुई, इसका मुझे अफसोस है । लेकिन तुम निश्चिंत रहो, एसएचओ साहब पूरी पूरी तफ्तीश करेंगे और ये भी पक्की करेंगे कि जो तुम्हारे साथ हुआ, वो आइंदा न हो ।”
“मैं मशकूर हूं, जनाब ।”
“अब जाओ, घर जा कर आराम करो ।”
“अभी तो मैं घर नहीं जा सकता, जनाब ।”
मोकाशी की भवें उठीं ।
“वजह आपको मालूम है ।”
“डेट !”
“जी हां ।”
“यू आर लेट । अभी स्टैण्ड करती है ?”
“उम्मीद तो है, सर !”
“हूं !” - मोकाशी ने संजीदगी से सिर हिलाया - “निकल लो ।”
“थैंक्यू, सर । थैंक्यू, एसएसओ साहब ।”
वो वहां से बाहर निकला ।
बाहरी बरामदे में उसे बैंच पर एक सिपाही बैठा दिखाई दिया ।
नीलेश उसके करीब से गुजरता ठिठका ।
सिपाही ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा ।
“हवलदार जगन खत्री है थाने में ?” - नीलेश ने पूछा ।
“नहीं ।” - सिपाही सहज भाव से बोला - “छुट्टी करके घर गया ।”
“कहां ?”
“अरे, बोला न, घर गया ?”
“मैंने बराबर सुना न ! मैं पूछ रहा हूं घर कहां है उसका ?”
“अच्छा वो ! तिलक स्ट्रीट में है । ग्यारह नम्बर ।”
“शुक्रिया ।”
एक आटो पर सवार होकर वो तिलक स्ट्रीट पहुंचा ।
ग्यारह नम्बर एक छोटा सा एकमंजिला मकान निकला ।
मकान के दायें बाजू में एक संकरी सी गली थी जिसमें मकान की एक खिड़की थी जो खुली थी और रात की उस घड़ी सिर्फ उसी में रोशनी दिखाई दे रही थी ।
दबे पांव वो उस खिड़की पर पहुंचा । सावधानी से सिर उठा कर उसने भीतर झांका ।
वो एक छोटा सा बैडरूम था जहां एक बिना बांहों की कुर्सी पर हवलदार खत्री बैठा हुआ था । उसकी वर्दी की कमीज कुर्सी की पीठ पीछे टंगी हुई थी । उसका मुंह दायीं तरफ यूं सूजा हुआ था कि गाल का रंग बदरंग था और आंख के नीचे सूजन का ये हाल था कि वहां तब तक काला पड़ चुका गूमड़ निकल आया हुआ था जिसकी वजह से उधर की आंख लगभग बंद हो गयी थी । एक महिला - जो कि जरूर उसकी बीवी थी - गर्म प्रैस से कपडे़ की गद्दी को गर्मा कर उसका गूमड़ सेंक रही थी और जब भी गर्म गद्दी उसके गाल को छूती थी, उसके मुंह से कराह निकल जाती थी ।
नीलेश खिड़की पर से हट गया ।
अपने एक हमलावर की शिनाख्त अब उसे निश्चित रूप से हो चुकी थी ।
अब वो संतुष्ट था कि सारे वार उसी ने नहीं झेले थे, उसका भी कोई वार किसी को झेलना पड़ा था ।
पीछे थाने में दोनों बडे़ खलीफा संजीदासूरत एक दूसरे के रूबरू थे ।
“क्या हो रहा है ?” - फिर मोकाशी बोला ।
“क्या होना है ?” - लापरवाही से कंधे उचकाता महाबोले बोला - “एक श्याना पल्ले पड़ गया है ।”
“गोखले !”
“और कौन ?”
“इस वास्ते ठोक दिया !”
“श्यानपंती तो निकालने का था न ! श्यानपंती कौन मांगता है इधर ! या मांगता है ?”
“नहीं । लेकिन इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत थी ?”
“जल्दबाजी !”
“पहले मेरे से जिक्र किया होता !”
“सर, दिस इज पोलिस मैटर !” - महाबोले अप्रसन्न भाव से बोला - “आपसे जिक्र करने लायक बात कौन सी थी इसमें ?”
“पुलिस मैटर था इसलिये तुमने खुद हैंडल किया । क्योंकि तुम्हें अपने तजुर्बे पर नाज है, समझते हो तुम पुलिस मैटर को बढ़िया हैंडल करते हो । ठीक !”
“क्या कहना चाहते हैं ?”
“मुम्बई से आयी वो टूरिस्ट महिला भी पुलिस मैटर थी, नशे में जिस पर लार टपकाने लगे थे, जिसके गले पड़ गये थे, जिसका जिगजैग ड्राइविंग का चालान करने की धमकी दी थी और जिसके हैण्डबैग में मौजूद दो सौ डालर निकाल लिये थे !”
महाबोले ने मुंह बाये मोकाशी की तरफ देखा ।
“मोस्ट इम्पार्टेंट पुलिस मैटर था जिस वजह से उसे खुद हैण्डल किया । ट्रैफिक कॉप का काम थाने के एसएचओ ने किया । और क्या खूब किया ! हाइवे रॉबर्स को मात कर दिया ।”
“कौन बोला ?” - महाबोले के मुंह से निकला ।
“कोई तो बोला ! गजट में तो छपा नहीं था जहां से कि मैंने पढ़ लिया !”
“इधर से किसी ने मुंह फाड़ा ?”
मोकाशे ने जवाब न दिया ।
“जान से मार दूंगा ।” - महाबोले दांत पीसता बोला ।
“यानी नये स्टाइल से खुदकुशी करोगे !”
“मेरा कोई बाल नहीं बांका कर सकता ।”
“कोई नहीं कर सकता । खुद तो कर सकते हो न ! जाने अनजाने यही कर रहे हो तुम । क्या !”
महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“एक बात ऐसी है जो तुम्हें नहीं मालूम लेकिन किसी तरीके से मेरे तक पहुंची है । सुनो, क्या बात है ! सुन रहे हो ?”
महाबोले ने तनिक हड़बड़ाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“वो टूरिस्ट महिला, जिसे तुम भूल भी चुके हो- नाम मीनाक्षी कदम - अपनी बद्किस्मती समझो कि एक सिटिंग एमपी की करीबी निकली है जिसको कि मुम्बई लौट कर उसने अपनी आपबीती सुनाई थी । एमपी उसे सीधा मंत्रालय में होम मिनिस्टर के पास ले कर गया था जिसने आगे मुम्बई के पुलिस कमिश्नर को तलब किया था...”
“ब-बात इतनी ऊपर तक पहुंच गयी !”
“हां ।”
“लेकिन कोई...कोई रियेक्शन तो सामने आया नहीं ! हुआ तो कुछ भी नहीं !”
“इसी बात की मुझे हैरानी है ।”
“लेकिन...”
“एक बात हो सकती है ।”
“क्या ?”
“कई शातिर चोर उचक्कों की माडस अप्रांडी है कि वो पुलिस का बहूरूप धारण करके आपरेट करते हैं । ऊपर शायद ये बात किसी को हज्म नहीं हुई कि खुद इलाके का एसएचओ ऐसी कोई टुच्ची हरकत कर सकता हो । उन्हें यही मुमकिन लगा हो कि इंस्पेक्टर की वर्दी में कोई बहुरूपिया था जो यहां उस टूरिस्ट महिला से-मीनाक्षी कदम से-टकराया था ।”
“ऐसा हो तो सकता है लेकिन-खानापूरी के लिये ही सही-कोई छोटी मोटी इंक्वायरी तो फिर भी सामने आयी होनी चाहिये थी !”
“क्या पता सामने आयी हो और वो इतनी खुफिया रही हो कि तुम्हें खबर ही न लगी हो !”
महाबोले के चेहरे पर विश्वास के भाव न आये ।
“उस रोज तुम इतने टुन्न थे कि थाने में लौट के मुंह फाड़ा था, अपनी करतूत की शेखी बघारी थी । याद तो होगा नहीं कुछ !”
महाबोले खामोश रहा ।
“अपनी म्यूनीसिपैलिटी के प्रेसीडेंट की हैसियत में मैं एक तरह से इस आइलैंड का एडमिनिस्ट्रेटर हूं । इसलिये यहां के ठहरे पानी में कोई पत्थर आ के गिरता है तो उसकी मुझे खबर होनी चाहिये । अब इस बात की रू में जवाब दो - गोखले पुलिस मैटर है ? सिर्फ पुलिस मैटर है ?”
महाबोले का सिर स्वयमेव इंकार में हिला ।
“तुम खुद कुबूल करते हो कि खानापूरी के लिये ही सही, तुम्हारी उस करतूत की रू में कोई छोटी मोटी इंक्वायरी सामने आनी चाहिये थी । ऐसी कोई इंक्वायरी होगी तो जरूरी है कि तुम्हें उसकी खबर लगे ?”
“जरूरी है । थाने आये बिना कैसे होगी इंक्वायरी उस बाबत ?”
“वो बात मेरे को मालूम है । मैं थाने आया था ?”
“नहीं । इस काम के लिये तो नहीं !”
“फिर भी बात मुझे मालूम हुई न ! कैसे हुई ?”
“आप बताइये ।”
“जवाब कोई इतना मुश्किल तो नहीं कि खुद तुम्हें न सूझे !”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“मेरे आदमी मेरे वफादार हैं” - फिर बोला - “फिर भी किसी ने मुंह फाड़ा !”
“इंसानी फितरत का ऊंट कब किस करवट बैठेगा, कोई नहीं जानता । बहरहाल बात गोखले की हो रही थी । क्या वो खुफिया इंक्वायरी एजेंट हो सकता है ?”
“वो ! नहीं ! उसकी उतनी ही औकात है जितनी उसकी कोंसिका क्लब की नौकरी में उजागर है ।”
“वो बाहरी आदमी है...”
“शुरू में हर कोई बाहरी आदमी ही होता है ।”
“हर कोई बराबर । लेकिन उन्हीं में से कोई हर कोई होने की जगह खास भी निकल आता है । गोखले मुझे दूसरी टाइप का हर कोई जान पड़ता है ।”
“गलत जान पड़ता है । कुछ नहीं है वो । आपका अंदेशा अपनी जगह सही है लेकिन वो अंदेशा आपकी आदत भी तो बन चुका है !”
मोकाशी की भवें उठीं ।
“फ्रांसिस मैग्नारो के कदम आइलैंड पर पडे़ थे, तब भी आपको ऐसे ही अंदेश ने सताया था । आपको लगा था वो हम दोनों पर हावी हो जायेगा । अब क्या कहते है ?”
“मैंने क्या कहना है ! वो और उसका गैंग तुम्हारी वजह से आइलैंड पर है । तुमने उसे यहां आने को न्योता था । उसकी बाबत जो जानते हो, तुम्हीं बेहतर जानते हो ।”
“तो मेरी जानकारी पर ऐतबार लाइये । ही इज ए सेफ बैट एण्ड ही इज विद अस लाइक हैण्ड इन ग्लव ।”
“फिर क्या बात है !”
“मैग्नारो बहुत स्मार्ट आपरेटर है । जुए और प्रास्टीच्यूशन और ड्रग पैडलिंग का जो सिलसिला इतना उम्दा तरीके से यहां चल रहा है, वैसे उसे हम नहीं चला सकते । सब कुछ वो हैंडल करता है, वो आर्गेनाइज करता है, कोई खतरा सामने आता है तो कामयाबी से उसका मुकाबला वो करता है लेकिन उसके साथ चांदी हम भी काटते हैं । मैं मौजूदा सिलसिले से संतुष्ट हूं, आपको भी होना चाहिये ।”
“वो तो मैं हूं लेकिन मेरी चिंता दूसरी किस्म की है ?”
“क्या है आपकी चिंता ?”
“अब तक जब कभी भी सरकारी तौर पर हमारे खिलाफ कुछ हुआ है, प्रत्यक्ष हुआ है । हमारा अपना खुफिया तंत्र है इसलिये जो कुछ होने वाला होता है, हमें उसकी एडवांस में खबर लग जाती है इसलिये हम खबरदार हो जाते हैं । नतीजतन रेड मारने आये बाहरी लोगों के हाथ कुछ नहीं लगता । कोई इक्का दुक्का डोप पुशर पकड़ा जाता है या कालगर्ल पकड़ी जाती है तो वो अपनी इंडिविजुअल कैपेसिटी में पकड़ी जाती है इसलिये हम पर कोई हर्फ नहीं आता...”
“क्योंकि ये बात प्रत्यक्ष है कि पुलिस की लिमिटेशंस होती हैं, हम हर एक टूरिस्ट पर एक सिपाही नहीं अप्वायंट कर सकते इसलिये कहने को कोई इक्का दुक्का काली भेड़ निकल ही आती है जिसकी हमें खबर नहीं हो पाती ।”
“ठीक । ठीक । लेकिन मेरी चिंता ये है कि अगर कभी हमारा खुफिया तंत्र फेल हो गया, हमारे खिलाफ होने वाली कार्यवाही की वक्त रहते हमें खबर न लगी तो...तो क्या होगा ?”
“आप खातिर जमा रखिये । ऐसा नहीं होगा । मेरे होते ऐसा नहीं हो सकता । मेरी जर्रे जर्रे पर नजर है ।”
“महाबोले, ओवरकंफीडेंस ही वाटरलू बनता है ।”
“मेरे साथ-हमारे साथ-ऐसा कुछ नहीं होने वाला । आप मेरे पर ऐतबार लाइये और यकीन जानिये, इधर सब कुछ काबू में है ।”
“सब कुछ?”
“जी हां ।”
“कोई लूपहोल नहीं ?”
“लूपहोल !”
“हां ।”
“आपकी निगाह में है कोई ? आप कुछ कहना चाहते हैं ?”
“आइलैंड पर प्रास्टीच्यूट्स बढ़ती जा रही हैं, मुझे उनसे अंदेशा है ।”
“सब हफ्ता देती हैं, इसलिये सब हमारी निगाह में हैं ।”
“सब ?”
“क्या कहना चाहते हैं ?”
“सुना है कोई तुम्हें भा जाये तो वो हफ्ता और तरीके से देती है !”
“मैं समझा नहीं !”
“मिसाल दे कर समझाता हूं । जैसे कि कोंसिका क्लब की बारबाला रोमिला सावंत ।”
“देवा ! ये कौन है...कौन है जो मेरी मुखबिरी पर लगा है ?”
“तुम्हारे उससे ताल्लुकात हैं ?”
“बिल्कुल नहीं । अभी मेरे इतने बुरे दिन नहीं आये कि मैं एक बारबाला ते ताल्लुकात बनाऊंगा ।”
“वो कहती है...”
“कहती है तो झूठ बोलती है । मुझे बदनाम करती है ।”
“सुन तो लो क्या कहती है !”
“मैं नहीं सुनना चाहता । मुर्दा बोलेगा तो कफन ही फाडे़गा ! दुम ठोकूंगा मैं साली की । बल्कि आइलैंड से निकाल बाहर करूंगा ।”
“ज्यादा ताकत बताओगे तो सारी रंडियां खिलाफ हो जायेंगी । आइलैंड पर प्रास्टीच्यूशन का धंधा ही ठप्प हो जायेगा ।”
“ऐसा न होगा, न हो सकता है । जब ये सृष्टि बनी थी, तब ये धंधा मौजूद था; जब खत्म होगी, तब भी ये धंधा मौजूद होगा ।”
“अब गोखले के बारे में फाइनल बात बोलो, क्या कहते हो ! वो सीक्रेट एजेंट हो सकता है ?”
“नहीं हो सकता । जब आप जानते ही हैं कि मैंने उसे ठुकवाया है तो बाकी भी सुनिये । मैंने उसकी गैरहाजिरी में उसके कॉटेज की तलाशी का भी इंतजाम किया था । आपकी जानकारी के लिये कोई शक उपजाऊ चीज तलाशी में बरामद नहीं हुई थी । उसकी ठुकाई के पीछे भी मेरी यही मंशा है कि वो खुद ही आइलैंड छोड़कर चला जाये ।”
“जब तुम्हें यकीन है कि वो खुफिया एजेंट नहीं है तो क्यों तुम ऐसा चाहते हो ?”
“क्योंकि आपकी बेटी के पीछे पड़ा है ।”
“मेरी बेटी को तुम इस डिसकशन से बाहर रखो ।”
“उसने मेरी बाबत आपसे कुछ बोला ?”
“लगता है तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा ! श्यामला का जिक्र, श्यामला का खयाल छोड़ दो । जो तुम चाहते हो, वो नहीं हो सकता । किसी सूरत में नहीं हो सकता ।”
“आपको मालूम है मैं क्या चाहता हूं ?”
“मालूम है । तभी बोला ।”
“फिर तो मैं आपको थैंक्यू बोलता हूं...”
“जज्बाती होने का कोई फायदा नहीं ।”
“मैं जज्बाती नहीं हो रहा, मैं तसलीम कर रहां हूं कि श्यामला के मामले में मैं कहां स्टैण्ड करता हूं, मैंने अच्छी तरह से समझ लिया है । अब एक बात आप भी समझ लीजिये । अच्छी तरह से ।”
“क्या ?”
“अभी मुझे कोई जल्दी नहीं है लेकिन मैं जब चाहूंगा श्यामला पर अपना क्लेम लगा दूंगा । और आप इस बाबत कुछ नहीं कर सकेंगे । देखना आप ।”
मोकाशी हड़बड़ाया । फिर परे देखने लगा । फिर सिगार के कश लगाने लगा तो पाया वो बुझ चुका था । हड़बड़ी में वो सिगार को सुलगाने की कोशिश करने लगा ताकि महाबोले को मालूम न हो पाता कि वो कितना आशंकित, कितना आंदोलित हो उठा था ।
“वो आइलैंड पर नवां भीङू” - महाबोले कह रहा था - “नीलेश गोखले, जिसके आगे पीछे का कुछ पता नहीं, आपकी बेटी से ताल्लुकात बना रहा है, आपको कोई एतराज नहीं । रात के एक एक, दो दो बजे तक श्यामला बार हॉपर्स छोकरों के साथ मस्ती मारती है, आपको कोई ऐतराज नहीं । क्योंकि आप माडर्न बाप हैं, लिबरल बाप हैं । मैं तवज्जो दिलाऊं तो आप मुझे हसद का मारा बताने लगते हैं । मैं पूछता हूं क्या पसंद आया है आपको गोखले में जिसकी वजह से आप उसक तरफदार बने हैं ? क्या जानते हैं आप उसके बारे में ?”
“कुछ जानने की जरूरत नहीं । वैसे मुझे मालूम है कि अभी ऐसी कोई नौबत नहीं आयी है लेकिन जब आयेगी तो मैं यही कहूंगा कि जो मेरी बेटी की पसंद, वो मेरी पसंद ।”
“आप खता खायेंगे ।”
“देखेंगे ।”
“वो सीक्रेट एजेंट निकला तो क्या करेंगे ?”
“अरे, अभी तो कहके हटे हो, खुद कनफर्म करके हटे हो, कि वो सीक्रेट एजेंट नहीं है ।”
“फिर भी हुआ तो ?”
“तुम्हारे कहने से !”
“जवाब दीजिये ।”
“तो फिक्र की बात होगी ।”
“दुश्मन का साथ देंगे ! ताकि वो गोद में बैठ कर दाढ़ी मूंड सके ! ताकि हमारा यहां का जमा जमाया निजाम उखाड़ने में वो आपको हथियार बना सके !”
“तुम बात को बहुत बढ़ा चढ़ा कर कह रहे हो । वो ऐसा निकला तो उसको हैंडल करने के लिये मुझे किसी से ट्रेनिंग लेने जाने की जरूरत नहीं होगी, तो मैं उसको तुमसे बेहतर सजा दे के दिखाऊंगा ।”
महाबोले हंसा ।
“तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं ?” - मोकाशी गुस्से से बोला ।
“देखेंगे, जनाब, देखेंगे कि वक्त आने पर कौन किसको सजा देता है । लेकिन” - एकाएक महाबोले का स्वर असाधारण रूप से कर्कश हो उठा - “मैं वो वक्त नहीं आने दूंगा ।”
“क्या करोगे ?”
“ना छोङूंगा बांस, न बजने दूंगा बांसुरी ।”
“मतलब ?”
“वक्त आने दीजिये, समझ जायेंगे । और यकीन जानिये, जिस वक्त ने आना है, वो कोई ज्यादा दूर नहीं खड़ा ।” - उसने वाल क्लॉक पर निगाह दौड़ाई - “अब रात खोटी करने का कोई फायदा नहीं । वैसे मुझे कोई एतराज नहीं है, आप भले ही जब तक मर्जी ठहरिये ।”
“नहीं । चलता हूं । गुड नाइट ।”
“गुड नाइट, सर ।”
चिंतित भाव से सिगार के केश लगाता बाबूराव मोकाशी वहां से रुखसत हो गया ।
पीछे उतने ही चिंतित थानेदार महाबोले को छोड़ कर ।
नीलेश गोखले महाबोले की तवज्जो का मरकज बराबर था लेकिन उस वक्त उसके जेहन पर रोमिला और सिर्फ रोमिला छाई हुई थी ।
साली ने क्या मुंह फाड़ा था उसकी बाबत ?
किसके सामने मुंह फाड़ा था ?
खबर मोकाशी तक क्योंकर पहुंची थी ?
फिर वो थी कहां ?
पुजारा से वो दो बार मालूम कर चुका था कि वो कोंसिका क्लब में अपनी ड्यूटी पर नहीं पहुंची थी ।
रोमिला और मुंह न फाडे़ इसके लिये उसका कोई अतापता मालूम होना जरूरी था । आइलैंड छोटा था लेकिन इतना छोटा भी नहीं था कि चुटकियों में उसकी तलाश में हर जगह छानी जा सकती ।
खामोशी से वो कमरे में चहलकदमी करने लगा ।
उसका खुराफाती दिमाग कोई ऐसी तरकीब सोचने में मशगूल था कि एक तीर से दो शिकार हो पाते । एक ही हल्ले में वो गोखले और रोमिला दोनों का सफाया कर पाता ।
फिर नैक्स्ट कैजुअल्टी बाबूराव मोकाशी ।
उस खयाल से ही उसे बड़ी राहत महसूस हुई और वो श्यामला के रंगीन सपने देखने लगा ।
***
नीलेश नेलसन एवेन्यू पहुंचा ।
उस वक्त वो एक आल्टो पर सवार था जो उसने एक ‘ट्वेंटी फोर आवर्स ओपन’ कार रेंटल एजेंसी से हासिल की थी ।
पांच नम्बर इमारत एक ब्रिटिश राज के टाइम का खपरैल की ढ़लुवां छतों वाला बंगला निकला । उसके सामने की सड़क काफी आगे तक गयी थी लेकिन वहां तकरीबन प्लॉट खाली थे, पांच नम्बर के आजू बाजू के ही दोनों प्लाट खाली थे ।
वो कार से निकला और बंगले पर पहुंचा । मालती की झाडि़यों की बाउंड्री वाल में बना लकड़ी का, बूढ़े के दांत की तरह हिलता, दरवाजा ठेल कर भीतर दाखिल हुआ, बरामदे में पहुंचा और वहां एक बंद दरवाजे की चौखट के करीब लगा कालबैल का बटन दबाया ।
दरवाजा खुला । चौखट पर सजी धजी श्यामला प्रकट हुई ।
“हल्लो !” - नीलेश मुस्कराया ।
उसने हल्लो का जवाब न दिया, त्योरी चढ़ाये उसने अपनी कलाई पर बंधी नन्हीं सी घड़ी पर निगाह डाली ।
“आई एम सारी !” - पूर्ववत् मुस्काराता, लेकिन अब स्वर में खेद घोलता, नीलेश बोला - “वो क्या है कि...”
“प्लीज, कम इन ।”
“थैंक्यू ।”
उसने भीतर कदम रखा और खुद को एक फर्नीचर मार्ट सरीखे सजे ड्राईंगरूम में पाया ।
“बैठो ।” - वो बोली ।
“काहे को ?” - नीलेश ने हैरानी जाहिर की - “अभी तैयार नहीं हो ?”
“वो तो मैं साढे़ नौ बजे से भी पहले से हूं ।”
“फिर काहे को बैठने का ! या खयाल बदल गया ?”
“नानसेंस ! मेरे को देख के लगता है कि खयाल बदल गया है ?”
“ओह ! सारी !”
“पापा घर पर नहीं हैं इसलिये मैं तुम्हारा परिचय उनसे नहीं करवा सकती ।”
“नो प्राब्लम । बैटर लक नैक्स्ट टाइम ।”
उसने उसे न बताया कि उसके पिता का परिचय उसे प्राप्त हो चुका था और उस परिचय का भी उसके वहां लेट पहुंचने में काफी योगदान था ।
“मैंने तुम्हे आइलैंड की सैर कराने का वादा किया था” - वो बोली - “लेकिन उस लिहाज से अब बहुत टाइम हो चुका है ।”
“तो ?”
“ड्राइव पर चलते हैं । मैं कार निकालती हूं ।”
“जरूरत नहीं । कार है ।”
“तुम्हारे पास !”
“किराये की ।”
“ओह ! मुझे लगा तो था कि कोई कार यहां पहुंची थी । फिर सोचा पहुंची नहीं थी, यहां से गुजरी थी ।”
“तो चलें ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया, एक साइड टेबल पर पड़ा अपना-पोशाक से मैच करता-पर्स उठाया और उसी टेबल पर पड़ी कार्डलैस कालबैल का बटन दबाया ।
एक नौजवान गोवानी मेड वहां प्रकट हुई जिसने उनके बाहर कदम रखने के बाद उनके पीछे दरवाजा बंद कर लिया ।
सड़क पर पहुंचकर वो कार पर सवार हुए । नीलेश ने कार को संकरी सड़क पर यू टर्न देने की तैयारी की तो श्यामला ने बताया कि आगे से भी रास्ता था । सहमति में सिर हिलाते उसने कार आगे बढ़ा दी ।
“आइलैंड की शान-बान की” - एकाएक वो बोली - “कोई ज्यादा ही तारीफ तो नहीं कर दी मैंने !”
“काबिलेतारीफ आइटम की तारीफ की ही जाती है ।”
“तारीफ के काबिल तो कोनाकोना आइलैंड बराबर है लेकिन मौनसून में नर्क है । मूसलाधार बारिश होती है । लगता है पूरा आइलैंड ही समुद्र में बह जायेगा ।”
“आई सी ।”
“गाहे बगाहे समुद्री तूफान भी उठते हैं । कोई कोई इतना प्रबल होता है कि लगता है कि आइलैंड बह नहीं जायेगा, अपनी पोजीशन पर ही डूब जायेगा ।”
“हुआ तो नहीं ऐसा कभी !”
“जाहिर है । कहां मौजूद हो, भई ?”
नीलेश हंसा, फिर बोला - “यू आर राइट ।”
“आजकल भी स्टॉर्म वार्निंग है । रोजाना वायरलैस पर इशु होती है कि आने वाले दिनों में सुनामी जैसा तूफान उठने वाला है जिसका कहर पूरे अरब सागर, हिन्द महासागर और खाड़ी बंगाल को झकझोर सकता है ।”
“अच्छा ! मुझे खबर नहीं थी ।”
“रेडियो नहीं सुनते होगे !”
“यही बात है ।”
“मियामार और बंगलादेश में तो उसका नामकरण भी हो चुका है ।”
“अच्छा ! क्या ?”
“हरीकेन ल्यूसिया ।”
“यहां तो इस खबर से काफी खलबली होगी !”
“फिलहाल यहां कोई खलबली नहीं है क्योंकि सुनने में आया है कि तूफान की मार होगी तो कोस्टल एरियाज पर ही होगी और कोनाकोना आइलैंड किसी भी कोस्ट से कम से कम पिच्चासी किलोमीटर दूर है ।”
“आई सी ।”
“फिर मैंने बोला न, समुद्री तूफान इधर गाहेबगाहे उठते ही रहते हैं ।”
“समुद्री तूफान और सुनामी जैसे तूफान में फर्क होता है ?”
“होता ही होगा ! क्योंकि सभी तूफान तो इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड वगैरह से उठकर यहां नहीं पहुंचते ! सिर्फ अरब सागर में-जिसमें कि ये आइलैंड है-भी तो तूफान की खलबली मचती रहती है !”
“ठीक !”
“बहरहाल यहां जैसी पोजीशन होती है, उसकी एडवांस वार्निंग हमेशा इधर पहुंचती हैं । यहां के रैगुलर बाशिंदे तो तूफानों के आदी हैं, टूरिस्ट्स खतरा महसूस करते हैं तो कूच कर जाते हैं । तकरीबन तूफान गुजर जाने के बाद फिर लौट आते हैं ।”
“आने वाले तूफान की रू में कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि सरकारी घोषणा हुई हो कि सारा आइलैंड खाली कर दिया जाये ?”
“नहीं, ऐसी नौबत कभी नहीं आयी ।”
“फिर तो गनीमत है ।”
यूं ही आइलैंड की विभिन्न सड़कों पर नीलेश गाड़ी दौड़ाता रहा और वो दोनों बतियाते रहे । नीलेश का असल मकसद श्यामला से अपने मतलब की कोई जानकारी निकलवाना था जो और नहीं तो अपने पिता और थानाध्यक्ष महाबोले के बारे में उसे हो सकती थी ।
“एक बात बताओ ।” - एकाएक वो बोली ।
नीलेश ने सड़क पर से निगाह हटाकर क्षण भर को उसकी तरफ देखा ।
“पूछो !” - फिर बोला ।
“तुम्हारी कितनी उम्र है ?”
“उम्र ! भई, काफी पुराना हूं मैं ।”
“कितना ?”
नीलेश से झूठ न बोला गया ।
“थर्टी नाइन ।” - वो बोला ।
“लगते तो नहीं हो !”
“लगता क्या हूं ?”
“बत्तीस ! तेतीस !”
“सलमान भाई का असर है ।”
“शादी बनाई ?”
“हां ।”
“बाल बच्चे हैं ?”
“अरे, बीवी ही नहीं है ।”
“क्या हुआ ?”
“चाइल्ड बर्थ में मर गयी ।”
“ओह ! जानकर दुख हुआ । दोबारा शादी करने की कोशिश न की ?”
“मेरे कोशिश करने से क्या होता है ? हर काम ने अपने टाइम पर ही होना होता है ।”
“इरादा तो है न ?”
“हां, इरादा तो है क्योंकि...”
वो ठिठक गया ।
“क्या क्योंकि ?” - वो आग्रहपूर्ण स्वर में बोली - “क्या कहने लगे थे ?”
“अकेले जवानी कट जाती है, बुढ़ापा नहीं कटता ।”
श्यामला ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।
“अब अपनी बोलो !”
“क्या ?” - वो हड़बड़ाई ।
“भई, उम्र ।”
“उम्र ! मेरी !”
“हां ।”
“तुम बोलो, तुम्हारा क्या अंदाजा है ?”
“सोलह !”
“मजाक मत करो ।”
“स्वीट सिक्सटीन !”
“अरे, बोला न, मजाक मत करो ।”
“तो खुद बोलो ।”
“चौबीस ।”
“अट्ठारह से ऊपर नहीं लगती हो । आनेस्ट ।”
“अगर ये कम्पलीमेंट है तो थैंक्यू ।”
“आइलैंड का दारोगा तुम्हारे पर टोटल फिदा है ।”
“टोटल फिदा क्या मतलब ? कौन सी जुबान बोल रहे हो ?”
“तुम पर दिल रखता है । तुम्हें अपना बनाना चाहता है ।”
“उसके चाहने से क्या होता है ?”
“तुम्हें मंजूर नहीं वो ?”
“हरगिज नहीं ।”
“तुम्हारे पापा को हो तो ?”
“तो भी नहीं । वैसे जो तुम कह रहे हो, वो किसी सूरत में मुमकिन नहीं ।”
“क्यों ? दोनों की गाढ़ी छनती है । मालिक बने बैठे हैं आइलैंड के । रिश्तेदारी में बंध जायेंगे तो एक और एक मिल कर ग्यारह होंगे ।”
“शट युअर माउथ ।”
“यस, मैम ।”
“आगे लैफ्ट में एक कट आ रहा है, उस पर मोड़ना ।”
“उस पर क्या है ?”
“अमेरिकन स्टाइल का एक डाइनर है । नाम ही ‘अमेरिकन डाइनर’ है ।”
“आई सी ।”
“बहुत बढि़या जगह है । सुपीरियर फूड, सुपीरियर सर्विस, सुपीरियर एटमॉस्फियर !”
“फिर तो महंगी जगह होगी !”
“बिल मैं दूंगी ।”
“नानसेंस ! मैंने जगह की ऊंची औकात की तसदीक में ये बात कही थी ।”
“ड्राइविंग की ओर ध्यान दो, मोड़ मिस कर जाओेगे ।”
अमेरिकन डाइनर वस्तुतः एक होटल में था जिसकी इमारत एक टैरेस पर यूं बनी हुई थी कि उसके पिछवाड़े से दूर तक नजारा किया जा सकता था । वहां काफी दूर ढ़लान से आगे जहां जमीन समतल हो जाती थी, वहां उसे रात के अंधेरे में रोशनियां चमकती दिखाई दीं ।
“वहां क्या है ?” - नीलेश ने पूछा ।
“कहां ?” - श्यामला ने उसके बाजू में आ कर सामने झांका ।
“वो, जहां पेड़ों के झुरमुट में रोशनियां चमक रही हैं ?”
“अच्छा, वो ! वो कोस्ट गार्ड्स की बैरकें हैं ।”
“ओह ! मुझे नहीं मालूम था रात के वक्त फासले से, हाइट से उनका ऐसा नजारा होता था ! इसीलिये पहचान न सका ।”
“वैसे पहचानते हो ? कभी गये हो उधर ?”
“हां ।”
“क्या करने ?”
“यूं ही आइलैंड की सैर पर निकला था तो उधर पहुंच गया था ।”
“बैरकों में ?”
“नहीं, भई । खाली सामने से गुजरा था ।”
“आई सी ।”
“तुम तो उनसे वाकिफ जान पड़ती हो !”
“नहीं । बस, इतनी ही वाकफियत है कि वहां मिलिट्री की छावनी जैसी बहुत तरतीब से बनी बैरकें हैं जो कि सुना है कि आधे से ज्यादा खाली हैं । ये वाकफियत भी इसलिये है कि यहां मैं आती जाती रहती हूं और कोई न कोई अंधेरे में चमकती उन रोशनियों का जिक्र कर ही देता है ।”
“आई सी ।”
“तुम आइलैंड की सैर करते उधर से गुजरे थे तो मालूम ही होगा कि यहां आने के लिये जिस रोड को हमने छोड़ा था, वही आगे बैरकों तक जाती है ।”
“मालूम है । अभी डाइनर भी न मालूम कर लें कैसा है ! तुम्हें तो मालूम ही है, कैसा है, मेरा मतलब था कि...”
“मैं समझ गयी तुम्हारा मतलब । आओ ।”
दोनों होटल में दाखिल हुए और सीढि़यों के रास्ते पहली मंजिल पर पहुंचे जहां कि डाइनर था ।
***
रात के बारह अभी बजे ही थे जबकि नीलेश ने आल्टो फाइव, नेलसन एचैन्यू के सामने ले जा कर, झाड़ियों की दीवार से सटा कर खड़ी की ।
नीलेश ने हैडलाइट्स बंद कीं, इंजन बंद किया और उसकी ओर घूमा ।
“सो” - डाइनर में पी विस्की का सुरूर तभी भी महसूस करता वो बोला - “हेयर वुई आर ।”
“कैसी लगी नाइट पिकनिक !” - मादक भाव से मुस्कराती वो बोली । शैब्लिस नाम की जो रैड वाइन उसने वहां पी थी, उसके असर से वो भी बरी नहीं थी और उसके स्वर की उस घड़ी की मादकता शायद उसी का नतीजा थी ।
“बढि़या !” - नीलेश बोला ।
“मैं !”
नीलेश हड़बड़ाया, उसने घूमकर उसकी तरफ देखा ।
परे कहीं स्ट्रीट लाइट का एक बीमार सा बल्ब टिमटिमा रहा था जिसकी वैसी ही रोशनी उन तक महज इतनी पहुंच रही थी कि वो वहां घुप्प अंधेरे में बैठे न जान पड़ते । उसने देखा, वो अपलक उसकी तरफ देख रही थी ।
“मुश्किल सवाल पूछ लिया मैंने ?” - वो बोली ।
“नहीं, नहीं । वो बात नहीं...”
“है भी तो क्या है ! मैं मदद करती हूं जवाब देने में ।”
एकाएक वो उसके साथ लिपट गयी ।
नीलेश की बांहें स्वयंमेव ही फैलीं और उसने उसे अपने अंक में भर लिया । स्वयंमेव ही नीलेश के होंठ उसके आतुर होंठो से जा मिले ।
आइंदा कुछ क्षणो के लिये जैसे वक्त की रफ्तार थम गयी ।
“नीलेश !” - वो फुसफुसाई ।
“यस !”
“से यू लव मी ।”
“आई लव यू, माई डियर ।”
“दिल से कहा न ! वक्त की जरूरत जान के तो नहीं कहा न ! कहलवाया गया इसलिये तो नहीं कहा न !”
“दिल से कहा । आई लव यू फ्राम दि कोर आफ माई हार्ट ।”
“थैंक्यू !”
“लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“मैं बेरोजगार हूं, उम्र में तुम से पंद्रह साल बड़ा हूं, विधुर हूं । तुम बड़े बाप की बेटी हो । मुझे ऐसा कहने का कोई अख्तियार नहीं ।”
“अब कह चुके हो तो क्या करोंगे ? जो घंटी बज चुकी, उसको अनबजी कैसी करोगे ?”
“कैसे करूंगा ?”
“तुम बोलो ।”
“पता नहीं, लेकिन...”
तभी भीतर पोर्च की लाइट जली ।
श्यामला तत्काल छिटक कर उससे अलग हुई ।
“मेड को मेरे लौटने की खबर लग गयी है” - अपनी ओर का दरवाजा खोलती वो फुसफुसाई - “मैं कितना भी लेट लौटूं, उसके बाद ही वो सोती है इसलिये उसका ध्यान बाहर की तरफ ही लगा रहता है । जाती हूं ।”
“एक बात बता के जाओ ।”
“पूछो । जल्दी ।”
“कल महाबोले तुम्हें थाने क्यों ले के गया था ? क्या चाहता था ?”
“वही जो हर मर्द चाहता है ।”
“लाइक दैट !”
“है न कमाल की बात ! हौसले की बात !”
“वहां हवलदार जगन खत्री मौजूद था । अपनी चाहत उसके सामने पूरी करता ?”
“नशे में था । मत्त मारी हुई थी । हवलदार को खासतौर से दरवाजे पर ठहरा के रखा था ताकि मैं भाग न निकलूं । उसको बोल के रखा था कि जब तक मैं उसके साथ तरीके से पेश न आऊं, तब तक मैं वहां से जाने न पाऊं ।”
“तौबा !”
“वो तो अच्छा हुआ तुम आ गये वर्ना...”
“वर्ना क्या करता ? थाने में रेप करता ? अपने हवलदार के सामने ?”
“इतनी मजाल तो उसकी नशे में भी नहीं हो सकती थी लेकिन कोई छोटी मोटी जोर जबरदस्ती जरूर करता ताकि मेरी बाबत उसका इरादा मोहरबंद हो पाता ।”
“ये न सोचा कि जो कुछ वो करता, तुम उसकी बाबत अपने पापा को जरूर बोलती ?”
“तब अक्ल पर नशे का पर्दा पड़ा था इसलिये जाहिर है कि न सोचा लेकिन मेरे जाने के बाद जब होश ठिकाने आये तो बराबर सोचा । तब मुझे फोन लगाया और रिक्वेस्ट करने लगा कि उस बाबत मैं अपने पापा से कोई बात न करूं ।”
“तुमने की थी ?”
“नहीं ।”
“तो ?”
“कुछ हुआ तो था नहीं ! तुम्हारी एकाएक वहां आमद ने एक बुरी घड़ी को टाल दिया था । पापा से बात करती तो पंगा पड़ता । रंजिश बढ़ती । क्या फायदा होता ? किसे फायदा होता ? मैंने खामोश रहना ही ठीक समझा ।”
“मोकाशी साहब चाहें तो महाबोले का कुछ बिगाड़ सकते हैं ? उसे कोई सबक सिखा सकते हैं ?”
श्यामला ने कुछ क्षण उस बात पर विचार किया ।
“नहीं ।” - फिर बोली - “जब से महाबोले का उस गोवानी रैकेटियर फ्रांसिस मैग्नारो से गंठजोड़ हुआ है, वो पापा पर भारी पड़ने लगा है ।”
“फिर भी...”
“अब बस करो । कल मार्निंग में फोन लगाना । दस-साढे़ दस बजे । काल न लगे तो बीच पर तलाश करना ।”
उसने हौले से अपनी ओर का दरवाजा खोला और ये जा वो जा ।
वापिसी में नीलेश उस सड़क पर से गुजरा जिस पर कोंसिका क्लब थी ।
क्लब के सामने उसने कार को रोका और उसकी विशाल प्लेट ग्लास विंडो से भीतर निगाह दौड़ाई तो उसे यासमीन तो उस घड़ी वहां मौजूद मेहमानों के बीच विचरती दिखाई दी, डिम्पल की झलक भी उसे मिली, रोमिला न दिखाई दी ।
उसने कार आगे बढ़ाई ।
उसका अगला पड़ाव रोमिला का बोर्डिंग हाउस था ।
इमारत के सामने सड़क के पार एक मार्केट थी जिसके सामने एक लम्बा बरामदा था । मार्केट कब की बंद हो चुकी थी इसलिये वो बरामदा सुनसान था ।
लेकिन वीरान नहीं था ।
वहां एक स्टूल पर एक खम्बे से पीठ सटाये ऊंघता सोता जागता एक सिपाही मौजूद था जिसे फासले से भी, नीमअंधेरे में भी, उसने फौरन पहचाना ।
सिपाही दयाराम भाटे !
एसएचओ का खास !
वो कोई और पुलिसिया होता तो उसकी वहां मौजूदगी को नीलेश कोई अहमियत नहीं देता लेकिन खास वो वहां था इसलिये उसकी अक्ल ने यही फैसला किया कि रोमिला की फिराक में था । अगर ऐसा था तो उसकी तब भी वहां मौजूदगी ही ये साबित करने के लिये काफी थी कि रोमिला बोर्डिंग हाउस में अपने कमरे में सोई नहीं पड़ी थी, वो वहां लौटी ही नहीं थी ।
वो अपने कॉटेज पर वापिस लौटा ।
वो सीढियां चढ़ रहा था जबकि उसे भीतर बजती फोन की घंटी की आवाज सुनाई दी । वो झपट कर मेन गेट पर पहुंचा, ताले में चाबी फिराई, भीतर दाखिल हुआ और लपकता हुआ फोन पर पहुंचा ।
उसके रिसीवर की तरफ हाथ बढ़ाते ही फोन बजना बंद हो गया ।
उसने असहाय भाव से गर्दन हिलाई और बैडरूम का रुख किया । वहां उसने कपड़े तब्दील किये और बिस्तर के हवाले होने की जगह एक सिग्रेट सुलगा लिया और वहां से बाहर निकल कर टेलीफोन के करीब एक कुर्सी पर बैठ गया ।
उसको टेलीफोन के फिर बजने की उम्मीद थी ।
जो कि पूरी हुई ।
सिग्रेट अभी आधा खत्म हुआा था कि वो बजा ।
उसने सिग्रेट को तिलांजलि दी और झपट कर फोन उठाया ।
“हल्लो !” - वो व्यग्र भाव से बोला ।
“नीलेश !”
“हां । कौन ?”
“रोमिला । कब से तुम से कांटैक्ट करने की कोशिश कर रही हूं ! क्लब में फोन किया, तुम वहां नहीं थे, यहा कई बार फोन किया, अब जाके जवाब मिला ।”
“तुम कहां हो ?”
“मुझे तुम्हारी जरूरत है ।”
“मैं हाजिर हूं लेकिन तुम हो कहां ?”
“जहां हूं ,मुसीबत में हूं और मेरी मुसीबत के लिये तुम जिम्मेदार हो…”
“मैं ! मैं कैसे ?
“तुम ! तुम्हारे सवाल ! जो तुम खोद खोद कर पूछते थे ।”
“क्-क्या कह रही हो ?”
“अभी भी पूछ रहे हो ।”
“लेकिन…”
“मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है ।”
“वो तो ठीक है लेकिन तुम हो कहां ?”
“मेरा इधर से निकल लेना जरुरी है....”
“क्यों ?”
“वो लोग मेरे पीछे पडे़ हैं....”
“कौन लोग ?”
“तुम्हें मालूम कौन लोग ! मेरा इधर से निकल लेना किसी की मदद के बिना मुमकिन नहीं हो सकता । मेरी जेब खाली है, मेरा सब सामान बोर्डिंग हाउस के मेरे कमरे में है । मुझे अंदेशा है कि वहां की निगरानी हो रही होगी इसलिये मैं वहां वापिस नहीं जा सकती...”
“तुम्हारी आखिरी बात ठीक है । वहां सड़क के पार बरामदे में औना पौना छुप के बैठा थाने का एक सिपाही तुम्हारे लौटने का इंतजार कर रहा है ।”
“देवा ! इतनी रात गये भी ?”
“हां ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“खुद अपनी आांखों देखा ।”
“यानी मेरा अंदेशा ठीक निकला । अच्छा हुआ मैं अपना सामान लेने न गयी । सुनो ! तुम कुछ पैसा उधार दे सकते हो ?”
“कुछ ही दे सकता हूं ।”
“कितना ?”
“तुम बोलो ।”
“पांच ।”
“सारी ! मै दो स्पेयर कर सकता हूं ।”
“तीन कर दो । अहसान होगा ।”
“ओके । कहां हो ?”
“ओल्ड यॉट क्लब मालूम ?”
“मालूम ।”
“उसके बाजू में सेलर्स बार ?”
“तुम वहां हो ?”
“हां ।”
“इस वक्त खुला है ?”
“हां ।”
“मेरे पहुंचने तक खुला होगा ?”
“उम्मीद तो है ।”
“उम्मीद है ?”
“अभी खुला है न ! पलक झपकते तो बंद नहीं हो जायेगा ! बंद होते होते होगा । मैं यहीं मिलूंगी ।”
“आता हूं ।”
उसने सम्बंध विच्छेद किया और बैडरुम में जा के फिर से घर से निकलने को तैयार होने लगा ।
जानकारी के सिलसिले में रोमिला से उसे बहुत उम्मीदें थीं । उस वक्त वो जरुरतमंद थी और अहसान का बदला चुकाने के लिये कुछ भी कर सकती थी, उसे वहां के करप्ट निजाम के वो भेद भी दे सकती थी, आाम हालात में जिन्हें वो हरगिज जुबान पर न लाती । वहां के बडे़ महंतों के खिलाफ उसका कोई इकबालिया बयान उसकी खुद की हासिल की जानकारी के साथ जुड़ कर वहां की बदनाम त्रिमूर्ति की हालत काफी खराब कर सकता था ।
वो रामिला से बयान ही नहीं हासिल कर सकता था बल्कि ऐसा इंतजाम भी कर सकता था कि जब तक उस प्रोजेक्ट का समापन न हो जाता, वो मुम्बई पुलिस की सेफ कस्टडी में रहती ।
काटेज से निकलने से पहले उसने घड़ी पर निगाह डाली ।
एक बजने को था ।
***
इंस्पेक्टर अनिल महाबोले थाने में बैठा घूंट लगा रहा था और ये सोच सोच कर तड़प रहा था कि रोमिला तब भी उसकी पकड़ से बाहर थी । उसके हुक्म पर रामिला की तलाश में आइलैंड का हर बार, हर बेवड़ा अड्डा, हर रेस्टोरेंट छाना जा चुका था । उन जगहों पर भी उसकी तलाश करवाई जा चुकी थी जहां उसके होने की सम्भावना नहीं थी-जैसे कि इम्पीरियल रिट्रीट, मनोरंजन पार्क । उसकी हर सखी-सहेली, कालगर्ल को इस उम्मीद में टटोला जा चुका था कि शायद वो उसके पास पनाह पाये हो ।
सिपाही दयाराम भाटे उसके बोर्डिंग हाउस की निगरानी पर तब भी तैनात था लेकिन वो वहां नहीं लौटी थी ।
इतनी महाबोले का गारंटी थी कि थी वो आाइलैंड पर ही कहीं क्योंकि वहां से कूच करने के लिये पायर पर पहुंचना लाजमी था और पायर भी उसकी मुस्तैद निगरानी में था ।
उसकी गैरबरामदी उसे एक ही तरीके से मुमकिन जान पड़ती थी:
साली किसी कस्टमर के साथ सोई पडी़ थी ।
ऐसे हर भीङू की खबर लेना किसी भी हाल में मुमकिन नहीं था ।
रोमिला के अलावा एक बात और भी थी जो उसे नशा नहीं होने दे रही थी ।
अपनी गश्त की ड्यूटी से लौट कर सिपाही अनंत राम महाले ने उसे बताया था कि उसने सवा दस बजे के करीब श्यामला मोकाशी को कोंसिका क्लब के नवें बाउंसर भीङू के साथ एक आल्टो में सवार देखा था ।
नीलेश गोखले !
श्यामला की डेट !
बाप की जानकारी में बेटी की डेट !
बाज न आया साला हरामी !
थाने से निकला और सीधा श्यामला को पिक करने पहुंच गया !
खून पी जाऊंगा हरामजादे का ।
कच्चा चबा जाऊंगा ।
आधी रात हो गयी ।
रोमिला की कोई खोजखबर उस तक न पहुंची ।
तब तक वो लिटर की एक तिहाई बोतल खाली कर चुका था । नशे के जोश में उसने खुद गश्त लगाने का फैसला किया ।
जैसे वो रोमिला की तलाश में निकलता तो रोमिला उसकी जहमत की लाज रखने के लिये ही उसके सामने आ खड़ी होती ।
वो बाहर आकर जीप पर सवार हुआ ।
ड्राइवर की ड्यूटी करने वाला ऊंघता सिपाही इंजन स्टार्ट होने की आवाज से चौकन्ना हुआ और उठ कर जीप की तरफ लपका लेकिन थानेदार साहब के हाथ के इशारे ने उसे परे ही ठिठक जाने के लिये मजबूर कर दिया ।
फिर जीप सड़क पर पहुंच गयी और उसकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
महाबोले दिशाहीन ढ़ण्ग से सड़क पर कार दौड़ाने लगा । असल में वो बेवड़ों वाली सनक के हवाले था, ठीक से खुद नहीं जानता था कि कैसे वो अकेला आधी रात को सुनसान पड़ी तकरीबन सड़कों पर से रोमिला की बरामदी की उम्मीद कर सकता था ।
बहरहाल ड्राइव से उसको इतना फायदा जरुर हुआा कि ठंडी हवा उसको आानंदित करने लगी, उसके उखडे़ मूड को जैसे थपक कर शांत करने लगी और अब वो विस्की का वैसा सुरूर भी महसूस करने लगा जैसा वो थाने में तनहा बैठा पीता नहीं महसूस कर पा रहा था ।
जीप जमशेद जी पार्क के बाजू से गुजरी ।
एक बैंच पर उसे कोई पसरा पड़ा दिखाई दिया । उसने कार को बिल्कुल स्लो किया ।
दीन दुनिया से बेखबर एक बेवड़ा बैंच पर पड़ा था । उसका एक हाथ बैंच से नीचे लटका हुआा था और उसकी उंगलियों को छूती एक खाली बोतल घास पर पड़ी थी ।
वो नजारा करके थानेदार फिर हत्थे से उखड़ने लगा ।
अपने मातहतों को उसकी खास हिदायत थी कि आइलैंड कि छवि खराब करने वाले ऐसे बेवड़ों को थाने लाकर लॉक अप में बंद किया जाये और सुबह उनके होश में आने पर उनकी करारी खबर ली जाये । ये काम खास तौर से हवलदार जगन खत्री के हवाले था जो कि पता नहीं कहां दफन था ।
दुम ठोकूंगा साले की ।
उसने कार की रफ्तार बढ़ाई तो इस तार वो दिशाहीन सड़कों पर न दौड़ी, इस बार वो निर्धारित दिशा में दौड़ी और आखिर मिसेज वालसन के बोर्डिंग हाउस पर पहुंची ।
सड़क के पार बरामदे में उसे खम्बे से पीठ सटाये स्टूल पर बैठा सिपाही दयाराम भाटे बड़ी असम्भव मुद्रा में सोया पड़ा मिली ।
महाबोले ने जीप से हाथ निकाल कर उसकी कनपटी सेंकी तो वो स्टूल पर से गिरते गिरते बचा । उसने घबराकर आांखें खोलीं, सामने एसएचओ को देख कर उसके होश उड़ गये । स्टूल के करीब पडे़ अपने जूतों में पांव फंसाने का असफल प्रयत्न करते उसने अटैंशन होने की असफल कोशिश की और जैसे सैल्यूट मारा ।
“साले !” - महाबोले गुर्राया - “सोने भेजा मैंने तेरे को इधर ? वो लड़की दस बार आके जा चुकी होगी और तेरे कान पर जूं नहीं रेंगी होगी ।”
“अरे, नहीं, साब जी” - वो गिड़गिड़ाता सा बोला - “मैं पूरी चौकसी से सामने की निगरानी कर रहा था । वो तो अभी दो मिनट पहले जरा सी आंख झपक गयी...”
“जरा सी भी क्यों झपकी ?”
“खता हुई, साब जी । अब नहीं होगा ऐसा ।”
“स्साला !”
महाबोल जीप से उतर कर बोर्डिंग हाउस की इमारत की ओर बढ़ा ।
गिरता पड़ता भाटे उसके पीछे लपका ।
“खबरदार !”
एक ही घुड़की से भाटे जहां था, वहीं फ्रीज हो गया ।
“वहीं ठहर !”
“जी,साब जी ।”
महाबोले जानता था बाजू की गली की सीढ़ियों का दरवाजा लाक्ड नहीं होता था, वो भीतर की तरफ से यूं अटकाया गया होता था कि धक्का देने से नहीं खुलता था लेकिन वो तीन बार आराम से हिलाने डुलाने पर खुल जाता था ।
वो इंतजाम इसलिये था ताकि वहां रहती पार्ट टाइम या फुल टाइम कालगर्ल्स की-या उनके क्लाइंट्स की रात-ब-रात आवाजाही से लैंडलेडी को कोई परेशानी न हो ।
वो चुपचाप, निर्विघ्न दूसरी मंजिल पर पहुंचा ।
उसने रोमिला का रूम अनलॉक्ड पाया । उसने हौले से धक्का देकर दरवाजा खोला, भीतर दाखिल हुआ और दीवार पर स्विच बोर्ड तलाश करके बिजली का एक स्विच आन किया । कमरे में रोशनी हुई तो उसकी निगाहे पैन होती एक बाजू से दूसरे बाजू फिरी ।
कमरा ऐन उसी हालत में था जिसमें वो दिन में उसे छोड़ कर गया था । उसका सूटकेस बैड पर तब भी खुला पड़ा था और उसके कपडे़ कुछ सूटकेस में और कुछ सूटकेस से बाहर बिखरे हुए थे ।
नहीं, वहां वापिस नहीं लौटी थी वो ।
उसने बत्ती बुझाई, बाहर निकल कर अपने पीछे दरवाजा बंद किया और जिस रास्ते आया था, उसी रास्ते वापिस लौट चला ।
वो जीप के करीब पहुंचा तो वहीं खड़ा बेचैनी से पहलू बदलता भाटे तन गया ।
“शुक्र मना वो वापिस नहीं लोटी ।” - महाबोले उसे घूरता बोला - “वर्ना आज तेरी खैर नहीं थी । क्या !”
“चूक हो गयी, साब जी, फिर नहीं होगी ।”
“अभी स्टूल पर नहीं बैठने का, वर्ना साला फिर ऊंघ जायेगा । ये बाजू से वो बाजू वाक करने का । समझ गया ?”
“जी, साब जी ।”
“मैं लौट के आऊंगा । ये भी समझ गया ?”
“जी, साब जी ।”
“सोता मिला, या स्टूल पर बैठा भी मिला, तो किचन में बर्तन मांजने की ड्यूटी लगाऊंगा ।”
“अरे, नहीं साब जी, मैं ऐन चौकसी से...”
“टल !”
भाटे कई कदम पीछे हट गया ।
महाबोले जीप में सवार हुआ और वहां से निकल लिया ।
वो जानता था नशे में वो लापरवाह हो जाता था, कभी कभार तो इतनी पी लेता था कि विवेक से उसका नाता टूट जाता था । ऐसे में उसने कई बार कई बेजा हरकतें की थीं लेकिन वो उनको सम्भाल लेता था, उनसे होने वाले डैमेज को कंट्रोल कर लेता था । अपनी हालिया दो हरकतों पर उसे फिर भी पछातावा था । एक तो उसे मुम्बई से आयी उस टूरिस्ट महिला पर लार नहीं टपकानी चाहिये थी, जिसका नाम मोकाशी ने मीनाक्षी कदम बताया था, उसके दो सौ डालर तो हरगिज ही नहीं हड़पने चाहियें थे । दूसरे, रोमिला जैसी बारबाला से संजीदा ताल्लुकात नहीं बनाने चाहिये थे । औरतों का रसिया वो बराबर था लेकिन उसकी पालिसी ‘फक एण्ड फारगेट’ वाली थी । रोमिला में जाने क्या खूबी थी जो वो उसके साथ यूं पेश नहीं आ सका था । नशे में उसके पहलू में गर्क हो कर जाने क्या कुछ वो बकता था । अब लड़की उससे उखड़ गयी थी, उखड़ कर पता नहीं वो कहां क्या वाहीतबाही बकती । जो कुछ उस आइलैंड पर खुफिया तरीके से चल रहा था, उसकी रू में लड़की का उसके अंगूठे के नीचे से निकल जाना मेजर सिक्योरिटी रिस्क बन सकता था ।
नहीं, नहीं - वो खुद अपनी सोच से घबरा गया - ऐसा नहीं होना चाहिये था । उसका मिलना जरुरी था ।
ताकि उसको फौरन इलीमिनेट किया जा सकता और सिक्योरिटी रिस्क कवर किया जा सकता ।
वापसी में उसने खुद कई क्लबों और बारों के चक्कर लगाये और रोमिला सावंत की बाबत दरयाफ्त किया । वो आइलैंड का थानेदार था इसलिये उसे यकीन था कि कोई उससे झूठ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकता था ।
हर जगह से एक ही जवाब मिला ।
नहीं, रोमिला वहां नहीं आयी थी ।
सिवाय लीडो क्लब से ।
हां, कोई तीन घंटे पहले रोमिला वहां आयी थी और उसने वहां की कारमला नाम की एक बारबाला से कुछ रोकड़ा उधार हासिल करने की कोशिश की थी ।
कोशिश कामयाब हुई थी ?
नहीं । बारबाला उसको उधार देने की स्थिति में नहीं थी, या उधार देना नहीं चाहती थी । तब रोमिला फौरन ही वहां से चली गयी थी ।
वापिसी में फिर वो जमशेद जी पार्क के सामने से गुजरा ।
बेवड़ा तब भी दीन दुनिया से बेखबर बैंच पर पड़ा था । उसके पोज तक में कोई तब्दीली नहीं आयी थी । उसकी एक बांह तब भी बैंच से नीचे लटकी हुई थी और उंगलियां घास पर पड़ी खाली बोतल को छू रही थीं ।
जरुर पूरी बोतल अकेला ही चढ़ा गया था ।
एकबारगी उसे खयाल आया कि वो ही उसे जीप पर लाद ले और थाने ले चले लेकिन फिर उसे मंजूर न हुआ कि मातहत हवलदार का काम खुद एसएचओ करे ।
वो ही करेगा अपना काम-उसने खुद को समझाया-थाने पहुंच कर तलब करता हूं साले को ।
जीप को फिर आगे बढ़ाने से पहले उसने डैश बोर्ड पर चमकती घड़ी पर निगाह डाली ।
एक बजा था ।
तब एकाएक उसे खयाल आया, उसने इतने ठीयों की नाकाम खाक छानी थी लेकिन एक जगह उसके जेहन से उतर गयी थि जो कि एकाएक उसे तब याद आयी थी ।
सेलर्स बार!
जो कि औल्ड यॉट क्लब के करीब था ।
वो उस बार से बाखूबी वाकिफ था-आखिर आइलैंड का मालिक-था इसलिये जानता था कि वो बहुत घटिया दर्जे का बार था और वैसी ही उसकी क्लायंटेल थी । रोमिला जैसी चिकनी, ठस्सेदार लड़की की वो वहां कल्पना नहीं कर सकता था । लेकिन क्या पता लगता था ! क्या पता वो इसी वजह से वहां गयी हो क्योंकि कोई उसकी वहां कल्पना नहीं कर सकता था !
उसने सेलर्स बार का भी चक्कर लगाने का फैसला किया ।
जब इतनी जगहों की खाक छानी थी तो एक जगह और सही ।
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