पेड़ के नीचे पड़ी वो चिड़िया धीरे-धीरे हिल रही थी। उसका आकार कुछ बड़ा हो चुका था। मध्यम-सी, हल्की-हल्की आवाज, कभी-कभार वहीं से उठ रही थी। जैसे दर्द या थकान से भरी कराहट में डूबी हो वो।

ये देखते हुए सबके मस्तिष्क और मन की स्थिति अजीब-सी हो रही थी।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट का कश लिया।

“नीलू!” राधा के स्वर में हैरानी थी।

“हां-।”

“ये मैं क्या देख रही हूं। ये तो छोटी-सी, नन्ही-सी प्यारी चिड़िया थी। बड़ी कैसे हो गई?”

होंठ भींचे महाजन की निगाह चिड़िया पर ही थी।

“थारे को तरस आयो हो कि चिड़िया के भीतर तीरो धंसो हो। तम तीर निकालो हो। ईब मज्जे भी तो लयो।”

राधा ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

“देवराज चौहान।” मोना चौधरी शब्दों को चबाते कह उठी-“शैतान का अवतार अपनी किसी जादुई चाल में सफल हो गया है। राधा को वो तीर नहीं निकालना चाहिये था चिड़िया के शरीर से।”

“बीता वक्त हाथ में नहीं आ सकता।” देवराज चौहान गम्भीर

था-“अब जाने क्या होता है।”

“मेरे ख्याल में हमारे हथियार भी शैतान के अवतार की नगरी

में बेकार साबित होंगे।” जगमोहन बोला।

“अवश्य ऐसा ही होगा।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा-“पिछली बार जब हम सब मिलकर दालू बाबा और शैतान हाकिम की टक्कर पर उतरे थे, तब उनकी जादुई शक्तियों के सामने सब कुछ बेकार रहा था।”

सबकी नज़रें पेड़ के नीचे हो रही हलचल पर ही थीं। वो चिड़िया धीरे-धीरे बड़ा आकार लेती जा रही थी। उसके चटकीले रंग अब बदल रहे थे।

“तब हम मायावी-जादुई और तिलस्मी शक्तियों से टक्कर ले रहे थे तो हमारी सहायता के लिये, पेशीराम हमारे साथ था।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“मुद्रानाथ था। बेला थी। कुछ तिलिस्मी चीजें भी थीं। जो हमारी सहायक बनी थीं। लेकिन अब हमारे पास ऐसा कुछ नहीं कि ऐसी शक्तियों का सामना करने की सोच भी सकें।

“यहां भी अवश्य ऐसा कुछ होगा, जो हमारी रक्षा करेगा।” मोना चौधरी दृढ़ स्वर में कह उठी-“शैतान और भगवान कभी भी दूर-दूर नहीं रह सकते। यहां अगर शैतान है तो भगवान भी दूर नहीं होगा।”

“अंम सबको ‘वड’ के रख दयो।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया। हाथ में रिवाल्वर दबी थी।

राधा ने उसे देखा फिर बड़बड़ा उठी।

“पहले अपनी मूंछों को ‘वड’ तब मानूं कि तू मर्द है।”

पास खड़ी नगीना ने राधा को देखा फिर मुस्कराकर धीमे से बोली।

“वो सुन लेगा तुम्हारी बात तो-।” नगीना ने कहना चाहा।

“मैं क्या डरती हूं उससे। नीलू मेरे साथ है। नीलू की बहादुरी के सामने वो हार जायेगा।”

तभी पेड़ के नीचे से चमक सी उभरी और वो चिड़िया धुंधली, सफेद रंग की मध्यम सी रोशनी में घिर गई। अब उन सबको वो

धुंधली, सफेद मध्यम सी रोशनी ही नज़र आ रही थी। चिड़िया उस रोशनी में जाने कहां छिप चुकी थी। उसके बाद धीरे-धीरे वो रोशनी बड़ा आकार लेने लगी।

सबके चेहरों के भाव बदलने लगे।

“अब कुछ होएला बाप।”

“पीछे हट जाओ।” पारसनाथ सख्त स्वर में बोला-“ये जाने

क्या ‘बला’ है।”

धीरे-धीरे वो सब चंद कदम पीछे हटे।

वो सफेद-धुंधली रोशनी जमीन पर फैलकर पांच-छः फीट लम्बी और करीब चार फीट चौड़ी हो चुकी थी। उस रोशनी में वहां का जर्रा-जर्रा स्पष्ट नज़र आने लगा था।

सबकी एकाएक निगाह उस रोशनी पर ही थी।

धीरे-धीरे वो रोशनी सिमटने लगी। उसका धुंधलापन गायब होने लगा। अब वो रोशनी स्पष्ट और तीखी सी हो गई थी, कुछ तेज हो गई थी। कुछ पलों तक यही आलम रहा। फिर वो रोशनी अपने आप में सिमटने लगी। रोशनी की वजह से जो स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा था, अब वो स्पष्ट दिखने लगा।

वो रोशनी सिमटकर एक शरीर बनकर ठहर गई।

सफेद, पारदर्शी, खूबसूरत कपड़े में लिपटा युवती का शरीर। जो कि जमीन पर पीठ के बल निश्चल लेटा था। उसके माथे पर सफेद, चांदी सा चमकता छोटा मुकुट था। गले में मोतियों की माला। हाथों की चार उंगलियों में बेहद खूबसूरत अंगूठियां थीं। उसका चेहरा ऐसा कि देखने वाला देखता ही रह जाये। चांद का टुकड़ा थी उसके आगे शायद बदसूरत ही महसूस होता। ऐसी थी वो।

उसके शरीर में कोई हरकत नहीं थी।

परन्तु उसकी तीखी कजरारी आंखें खुली थीं। जो कि धीमे-धीमे हिलती हुई सबको देख रही थी। गुलाब की पंखुड़ियों के समान उसके होंठों पर जैसे मध्यम सी मुस्कान थी।

“मां कसम।” बांकेलाल राठौर बड़बड़ा उठा-“अगर गुरदास पुरो वाली के पासो दिल न छोड़ी हो तो, इसी से ब्याह करो लो

अभ्भी। पर म्हारो दिल तो उसो के पास पड़ो हो।”

“ऐसी खूबसूरत युवती आज से पहले कभी नहीं देखी।” सोहनलाल का स्वर बेहद शांत था।

“नीलू!” राधा फौरन कह उठी-“ये क्या मेरे से ज्यादा खूबसूरत है?”

उसी क्षण उसने लेटे ही लेटे बांहें ऊपर की जैसे अंगड़ाई ली हो। शरीर को थोड़ा सा हिलाया। धीरे-धीरे उसका शरीर सामान्य हरकत करने लगा। दूसरे ही पल वो उठ बैठी फिर खड़ी हो गई। चेहरे पर देवताओं की तरह फैली पवित्र मुस्कान जमी पड़ी थी। वो बारी-बारी सब को देख रही थी। उसके आसपास मध्यम सी सफेद रोशनी का दायरा बना पड़ा था। जैसे जुगनू के संग रोशनी होती है।

“ये शैतानी-मायावी ताकत अब अपना कोई रंग दिखाएगी।” जगमोहन कठोर स्वर में कह उठा।

उसकी निगाह जगमोहन पर जा टिकी।

वो करीब साढ़े पांच फीट लम्बी थी। कंधे कुछ इस तरह चौड़े थे कि, वो उसकी सुन्दरता को सैकड़ों चाँद लगा रहे थे। जैसे कपड़े थे। पांवों में उन्हीं कपड़ों की बनी ‘बैली’ जैसा कुछ पहन रखा था। फिर उसकी आंखें राधा पर जा टिकीं तो राधा हड़बड़ाकर बोली।

“नीलू! मेरे पास आ-जा। ये तो मुझे कच्चा चबाने की सोच

रही है।”

“राधा।” उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ हिले-“मैं तुम्हें

दिल से धन्यवाद देती हूं कि अस्सी बरस के तकलीफ देह वक्त से तूने मुझे मुक्ति दिलाई।”

“ये-ये तो मेरा नाम भी जानती है।” राधा जल्दी से एक कदम

पीछे हट गई।

“मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि तुम लोग मनुष्य हो। जिस तकलीफ से मैं गुजर रही थी, उससे मुझे कभी मनुष्यों ने ही मुक्ति दिलानी थी।” उसके चेहरे पर मीठी मुस्कान थी-“तुम लोग मनुष्य ही हो ना?”

कुछ पलों के लिये वो सब एक-दूसरे को देखने लगे।

“मेरे से तुम लोगों को डरने की आवश्यकता नहीं है। मुझ पर

शक मत करो। मेरी नीयत नेक है और मैं तुम लोगों का भला चाहती हूं क्योंकि तुम लोगों ने मेरा भला किया है। मुझे अपना दोस्त समझो।” वो पुनः उसी लहजे में कह उठी।

“हम मनुष्य ही हैं।” देवराज चौहान का स्वर गम्भीर था-“लेकिन तुम कौन हो? जब तक हम लोग तुम्हारे बारे में जानकर तुम पर विश्वास न कर लें, तब तक हमारा शक तुम पर बना रहेगा।”

“ऐसा क्यों देवा या तुम्हें देवराज चौहान कहूं।”

देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।

“तुम मुझे जो भी कहो।” देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा-“तुम्हारे सवाल का जवाब ये है कि इस वक्त हम सब शैतान के अवतार की धरती पर हैं। हम उसकी जान लेना चाहते हैं और वो हमारी जान लेना चाहता है। यहां पर कदम-कदम पर न समझ में आने वाले खतरे हैं। यही वजह है कि शैतान के अवतार ने हमें कुछ न कहकर, हमें अपने ही रहमो-करम पर छोड़ दिया है कि, किसी न किसी बुरे हादसे का सामना करते हुए हम अपनी जान गवां देंगे। ऐसे में हम यहां किसी पर भी यकीन नहीं कर सकते हैं। तुम पर भी नहीं कर सकते। जाने तुम कौन हो।”

वो हौले से हंसी।

“मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं। तुम लोगों द्वारा शक करना

बहुत ही जायज है।”

“कौन हो तुम?” मोना चौधरी भिंचे स्वर कह उठी।

“मिन्नो। मोना चौधरी।” वो मधुर शांत स्वर में कह उठी-“मैं भामा परी हूं।”

“भामा परी?”

“हां। परियों में सबसे ऊंची जाति होती है भामा। वो ही भामा परी हूं। कई आसमानों के पार, भगवान के आसमान से कुछ दूर हमारी नेक और अच्छी दुनिया है।” भामा परी ने कहा।

कुछ देर के लिये वहां खामोशी छा गई।

तभी बांकेलाल राठौर कह उठा।

“अंम काहे मानो कि तम भामा परी हौवो। अंम तो थारो को भामो चुडैल कहो। तम तो शैतान के अवतारो की चालो हौवो। अंम ही मिल्लो थारो को बेवकूफ बनानो वास्तो। छोरे!”

“हां बाप!”

“अंम ठीको ही कहो ना?”

“मालूम नेई बाप। इधर दो कदम-कदम पर सच-झूठ का होएला

तभी भामा परी ने उसी मुस्कान के साथ अपनी दोनों बांहें उठाईं तो कमर पर से सफेद, दुधिया, पंख फैलते चले गये। वो पंख ऊपर-नीचे हिले। उसी पल ही भामा परी जमीन से ऊपर उठने लगी। उससे आती रोशनी जैसे उसी के ही पास थी। वो सब हैरानी से उसे देखने लगे। भामा परी आकाश में उड़ने लगी और देखते ही देखते वो इतनी ऊपर उड़ गई के देखने पर वो मात्र एक तारा लगने लगी।

“वो तो खिसकेला बाप।”

“छोरे! म्हारे को तो वो जादू का ही खेलो लगो हो।”

“मुझे लगता है वो वास्तव में परी है।” जगमोहन बोला।

“मेरा भी यही ख्याल है।”

“मैंने तो परी की बातें सुनी थीं।” राधा बोली-“आज पहली बार परी को देखा। वो भी पंखों से उड़ते हुए।”

“ये सब मायावी-जादुई या शैतानी ताकत का खेल भी हो सकता है।” पारसनाथ अपना हाथ खुरदरे चेहरे पर फेरने लगा।

वहां अब पूरी तरह अंधेरा छा गया था।

“मुझे तो ये सब कोई धोखा लगता है।” नगीना बोली-“वरना शैतान के अवतार की धरती पर परी का क्या काम।”

देवराज चौहान और मोना चौधरी की नज़रें मिलीं।

“तुम क्या कहते हो देवराज चौहान?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“दालू बाबा और हाकिम वाले हादसों पर नज़र डालूं तो विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता कि वो परी है या शैतान के अवतार का कोई खेल।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा-“अपने तौर पर कहूं तो इस वक्त ऐसे अजीब हालातों में सिर्फ यही कह सकता हूं कि अगर वो वास्तव में परी थी और किसी कारणवश यहां फंसी पड़ी थी तो उस तीर के निकलने की वजह से आजाद हो गई। अब वापस अपने देश चली गई। अगर वो शैतान के अवतार का कोई खेल है तो वो वापस आयेगी और पुनः ये साबित करने की चेष्टा करेगी कि वो कोई मासूम परी है। ये सब मेरी व्यक्तिगत सोच है।”

“तुम्हारा इस बारे में क्या ख्याल है मोना चौधरी?” नगीना ने पूछा।

“मैं किसी तरह का ख्याल जाहिर करने की स्थिति में नहीं हूं।

क्योंकि यहां हर चीज में शक है।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में

बोली-“किस पर विश्वास करें और किस पर नहीं, इस बात का

फैसला नहीं किया जा सकता।”

“म्हारी मन्नो तो-।”

तभी उन्हें अपने पीछे से खिलखिलाहट सुनाई दी। वो ही मधुर,

मीठी आवाज।

सब फुर्ती के साथ पलटे।

वो अंधेरे में खड़ी थी। काला साया लगती अगर उसके शरीर पर चमकदार सफेद कपड़े न होते। उनके देखते ही देखते पुनः उसके जिस्म से सफेद मध्यम सी रोशनी पहले के समान फूट पड़ी। अंधेरे का थोड़ा-सा हिस्सा रोशनी में बदल गया। जरूरत के लायक आस-पास की जगह स्पष्ट रूप से नज़र आने लगी।

सामने भामा परी ही खड़ी थी।

“तुम?” नगीना के होठों से निकला।

भामा परी के पंख अभी तक फैले थे। वो धीरे-धीरे सिमटने लगे थे।

“हाँ नगीना।” भामा परी मुस्कान के साथ कह उठी-“तुम लोगों की नजरों में आये बिना मैं आसमान से उतर कर तुम सबकी बातें सुनने के लिये पीछे आ खड़ी हुई थी।”

“ऐसा क्यों किया तुमने?” मोना चौधरी बोली।

“क्योंकि तुम मनुष्य हो और शैतान के अवतार की दुनिया में फंस चुके हो। ऐसे में मुझ पर विश्वास नहीं करोगे कि मैं सच कह रही हूं। मुझे शैतान के अवतार का साथी मानोगे। मैं तुम लोगों के मन के विचार जानना चाहती थी कि मेरे बारे में क्या सोच रहे हो और वो मैंने जान लिया।”

“जिस तरह से तुम हम सबके नाम जानती हो, उसी तरह हमारे

मन की बात भी जान सकती-।”

“मोना चौधरी!” भामा परी कह उठी-“मुझमें ऐसी शक्ति नहीं

कि किसी के मन की बात को जान लूं। इसके अलावा मेरे पास

दूसरी तरह की कई शक्तियां हैं।”

“तो तुम ये साबित करना चाहती हो कि तुम्हारा शैतान के

अवतार से कोई रिश्ता नहीं।” देवराज चौहान बोला-“तुम परीलोक से वास्ता रखती हो। हम तुम पर किसी तरह का शक न करें।”

भामा परी के चेहरे पर शांत-गम्भीरता नजर आने लगी।

“हां। मैं तुम मनुष्यों का दोस्त बनना चाहती हूं।”

“क्यों?”

“क्योंकि अस्सी बरस से इस तीर की वजह से बहुत तकलीफ में थी।” भामा परी बोली-“तकलीफ से तुम लोगों ने ही मुझे मुक्ति दिलाई। ऐसे में मैं नहीं चाहती कि तुम लोग मेरे पर शक करो। और मैं परीलोक में वापस पहुंचकर दुःख से रहूं कि मुझे तकलीफ से निकालने वालों ने मुझ पर विश्वास नष्ट किया।”

“झूठ बोलो हो यो। अंम न मानो इसकी बातों को।”

“यकीन करो। मैं सच कह रही-।”

“अम नेई मानो थारी बात।” बांकेलाल राठौर हाथ हिलाकर कह उठा।

“ये सच कहती भी हो सकती हो।” सोहनलाल गम्भीर था।

“तुम कैसे ये साबित करोगी कि, तुम सच कह रही हो।” मोना

चौधरी ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“जैसे भी तुम लोग कहोगे, मैं विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश

करूंगी।” भामा परी ने शांत स्वर में कहा।

“तुम चिड़िया कैसे बनीं। वो तीर क्या था जिसे राधा ने निकाला था?”

बेहद शांत अवस्था में भामा परी ने सिर हिलाया फिर बोली।

“मैं सब बताती हूं। अस्सी बरस पहले की बात है, लेकिन लगता है जैसे अभी की बात हो। परीलोक से मैं अपनी सहेली परियों के साथ भ्रमण पर निकली। हम चार परियां थीं। हमें घूमने का बहुत मजा आया। कभी इस देश तो कभी उस नगरी। बहुत मोहक लगा हमें नई-नई जगह देखना। महीना भर हो गया था, हमारे वापस लौटने का समय हो गया था। देरी से पहुंचते तो घर वालों की डांट सुननी पड़ेगी। हम चारों वापस जाने का विचार कर रही थीं कि हमें ये देश नज़र आया। तब हमने आपस में फैसला किया कि दो-तीन दिन यहां रुक कर इस देश को भी देख लेते हैं। दोबारा इतनी दूर आना शायद सम्भव न हो। हमारा ये फैसला जैसे हादसा था हमारे लिये। हम नहीं जानती थीं कि ये देश शैतान के अवतार की नगरी है। यहां शैतान का राज है। हम चारों यहां उतर आईं और घूमने-फिरने, खेलने, मस्ती करने लगीं। जहां हम रुकी, वो बहुत ही खूबसूरत बाग था। रंग-बिरंगे फूल और फलों से लदे वृक्ष थे वहां। मखमली घास थी। स्वर्ग जैसा लग रहा था सब कुछ। तब तो सोचा भी नहीं था कि ये जगह नर्क से भी बुरी है।”

“ऐसा क्या हुआ?” नगीना की गम्भीर निगाह भामा परी पर थी।

“वो जादुई बाग था। उस जादुई बाग का रखवाला कारी राक्षस था।”

“कारी राक्षस?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“हां। उस राक्षस का नाम है कारी।” भामा परी ने सिर हिलाया-“एक रात हम चारों परियां आंख-मिचौली को खेल खेल रही

थी कि कारी राक्षस ने जाल फेंक कर हम चारों परियों को कैद कर लिया। राक्षसों का प्रिय भोजन होती हैं हम परियां। कारी राक्षस के सामने हमने हाथ-पांव जोड़े। गिड़गिड़ाईं। फिर कभी यहां न आने का वायदा किया। माफी मांगी। लेकिन राक्षस के पास दया नाम की कोई चीज नहीं होती। मजबूत जाल में उसने हम चारों को कैद कर लिया था। कैद में हम परियों की पवित्र शक्तियां क्षीण हो जाती हैं। चार-चार परियों को कैद करके कारी राक्षस बहुत खुश था। दूसरे राक्षसों द्वारा हम पर पहरा बिठा दिया। पहली शाम उसने उसी बाग में बैठकर ढेर सारी मदिरा पी। उसके सेवक उस की सेवा में लगे रहे। जब खाने का समय आया तो उसने जाल में कैद मेरी एक साथी परी को निकलवाया। वो बहुत रोई। उसके पांवों में पड़ गई। लेकिन कारी राक्षस ने हंसते हुए उसके पंखों को पकड़ कर तोड़ा। इतने में ही वो मर गई। उसके बाद उसे खाने लगा। उसका खून पीने लगा। मैं देख रही थी। बाकी को दोनों सहेली परियां देख रही थीं। लेकिन हम उसे क्या बचातीं। हमें तो अपनी जान की पड़ गई थी। ये बात अच्छी तरह समझ चुकी थी कि हम भी नहीं बचेंगी। हमारे पास अपनी ताकत थी, परन्तु कारी राक्षस की शैतानी ताकत के सामने हमारी ताकतें कमजोर थीं। वो अगली रात दूसरी परी को भी खा गया। उसने अगली रात तीसरी परी को भी खा लिया। आखिरी में मैं बची थी। जानती थी आज मेरी बारी है। जबकि मैं खुद को पहले ही मरा हुआ मान चुकी थी। अपना परीलोक मुझे सपने जैसा लगता कि अब मैं वहां

कभी भी वापस नहीं जा सकूँगी। और फिर अपनी जिन्दगी के उस आखिरी दिन में मैंने खुद को बचाने की हिम्मत की। मैं जाल में कैद थी। बाग में पड़ी थी। राक्षस पहरेदार इधर-उधर नींद में थे। पूरा दिन वो नींद में रहते थे और शाम होते ही वो जागने लगते थे। रात में उनकी शैतानी ताकतें बढ़ जाती थीं। मैंने किसी तरह उस मजबूत जाल की दो-तीन डोरियां काटीं और उसमें से बाहर निकल आई। अपनी सहेली परियों की मौत का मुझे दुःख था लेकिन फिर भी खुश थी कि मैं बच

गई। इससे पहले कि पंख फैलाकर मैं वापस अपने परीलोक के लिये उड़ान भर पाती। एकाएक कारी राक्षस को अपने सामने मौजूद पाया।”

“वो दिन में वहां कैसे आ गया?” सोहनलाल ने कहा।

“मैं नहीं जानती। जबकि उस दिन से पहले वो दिन में कभी बाग में नहीं आया था। हो सकता है उसकी किसी शक्ति ने उसे

इस बात का अहसास करा दिया हो कि मैं उसकी कैद से फरार

हो रही हूं। उसने मुझे गुस्से से वापस जाल में जाने को कहा। तब तक नींद में पड़े सब राक्षस उठ खड़े हुए थे। मैंने एक बार फिर खुद को फंसा महसूस किया। मौत मुझे सामने नज़र आने लगी कारी राक्षस ने मुझे धमकी दी कि अगर मैं वापस जाल में न गई तो वो अभी मेरी जान ले लेगा। जान तो उसने लेनी ही थी। अब न लेता तो रात को मदिरा पीने के बाद मुझे खा जाता। अगर मौत मेरी किस्मत बन चुकी थी तो यही सही। मैंने हिम्मत से काम लेते हुए उड़ जाने की सोची। उसी पल मैंने पंख फैलाये और फिर आसमान में उड़ती चली गई। पीछे से कारी राक्षस की गुस्से से भरी आवाज मेरे कानों में पड़ी कि अगर मैं फौरन वापस नीचे नहीं आई तो वो मेरी जान लेगा। आसमान की तरफ उड़ते हुए मैंने नीचे देखा तो उसके हाथ में लोहे का तीर-कमान था। तब मैं उसकी पकड़ से दूर होती जा रही थी। उसी पल उसने तीर छोड़ दिया। जो कि मेरे पेट में जा धंसा। मैं घायल हो गई। मेरे उड़ने की शक्ति मेरा साथ छोड़ने लगी और मैंने महसूस कर लिया कि मैं ज्यादा दूर नहीं जा सकूँगी। मेरे नीचे गिरने की देर थी कि कारी राक्षस ने फिर मुझे दबोच लेना था। मैंने अपने देवता को स्मरण किया और उसकी दी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए खुद को नन्ही-सी चिड़िया बना लिया

कि कारी राक्षस दोबारा मुझ पर वार न कर सके। मेरे जिस्म में धंसा वो लोहे का तीर जहर बुझा था। लेकिन अपनी शक्ति से मैंने तीर पर लगे ज़हर के असर को खत्म कर दिया। जब मैं तीर से घायल नन्ही-सी चिड़िया के रूप में होकर नीचे गिरी तो, कारी राक्षस ने अपने सेवक राक्षसों को हुक्म दिया कि वो मुझे तलाश करें मैं जब चिड़िया में बदली तो मेरे जिस्म में धंसा लोहे का तीर भी उसी के अनुरूप छोटा सा हो गया। सारे राक्षस महीनों तलाश करते रहे, परन्तु मुझे ढूंढ़ नहीं पाये। क्योंकि मैं पेड़ की ऊपरी शाख के बड़े से पत्ते पर गिरी थी। नन्ही-सी चिड़िया बन चुकी थी। पत्ते पर पड़ी रही। महीनों की तलाश के बाद भी मैं उनकी पकड़ में नहीं आ सकी। धीरे-धीरे कारी राक्षस के लिये मेरा मामला आया-गया हो गया।”

“ऐसा है तो फिर तुम वापस अपने परीलोक क्यों नहीं गईं?” जगमोहन बोला।

“कैसे जाती। मेरे जिस्म में तीर धंसा था। नन्ही-सी चिड़िया बना लिया था खुद को मैंने। ऐसे में तो तीर भी नन्हा-सा बन गया। और जब तक वो तीर मेरे शरीर से न निकलता, मैं वापस अपने

रूप में नहीं आ सकती थी।”

“ओह!”

“जब वो राक्षस मेरी तलाश कर रहे थे तो मैंने उनकी बातें सुनी थीं। तब वो कह रहे थे कि परी, चिड़िया बन गई है। बेशक से छिप जाये। वापस अपने रूप में कभी नहीं आ पायेगी। उसके जिस्म से अगर कोई धरती वाला मनुष्य तीर निकालेगा तो तभी वो वापस अपने परी के रूप में आ सकेगी। और शैतान के अवतार की दुनिया में कोई मनुष्य कभी भी नहीं आ सकता। यही वजह थी कि मैंने यही बात तुम लोगों से यही कही थी कि तुम लोग मनुष्य हो।” भामा परी ने धीमे स्वर में कहा।

सबके चेहरों पर गहरी गम्भीरता थी।

कुछ क्षणों बाद देवराज चौहान ने कहा।

“अब तुम क्या चाहती हो?”

“तुम मनुष्यों ने मेरे साथ दया की है। मेरा भला किया है। मैं तुम लोगों का भला करना चाहती हूं-।”

“कैसा भला?”

“मैं नहीं जानतीं कि शैतान के अवतार की दुनिया में तुम लोग

कैसे आ फंसे। लेकिन इतना जानती हूं कि किसी भी हालत में यहां से बाहर नहीं निकल सकते। शैतान का अवतार तुम सब की जान लेगा। मैं तुम लोगों को शैतान के अवतार की दुनिया से बाहर ले जा सकती हूं। वरना देर-सवेर में अपनी जान से हाथ धो बैठोगे।” भामा परी ने कहा।

“तुम नहीं जानतीं कि हम यहां क्यों आये हैं?” देवराज चौहान

की निगाह उस पर थी।

“मैं नहीं जानती-।”

“तो फिर हम लोगों के नाम कैसे जानती हो तुम?”

“मनुष्यों के नाम जान लेने की शक्ति हर परी के पास होती है। ये मामूली विद्या है हमारे लिए-।” भामा परी बोली।

कोई कुछ नहीं बोला।

सब एक-दूसरे को देखने लगे।

“क्या हुआ?” भामा परी कह उठी-“तुम सब खामोश क्यों हो गये?”

देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखकर गम्भीर स्वर में कहा।

“यहां तक तो इससे बातें कर लेने में कोई बुराई नहीं थी। लेकिन अब इससे बात करना मैं ठीक नहीं समझता। जब तक कि ये विश्वास न हो जाये कि ये जो कह रही है, वास्तव में सच है। ये शैतान के अवतार की भेजी कोई चाल नहीं, बल्कि वास्तव में परीलोक की भामा परी ही है जो कभी कारी राक्षस की चालों में आ फंसी थी।”

“नन्ही चिड़िया बनी, अस्सी बरस तक, कारी राक्षस के उस तीर की तकलीफ को सहन करती रही।” मीठी मुस्कान और मधुर स्वर में भामा परी कह उठी-“अगर तुम लोग तीर न निकालते तो हो सकता था शायद मैं कभी भी वापस अपने असली रूप में न आ पाती। मेरे सच पर विश्वास करो मनुष्यों-।”

“तीर तो मैंने निकाला था।” राधा जल्दी से कह उठी।

“शुक्रिया।” भामा परी ने उसी अंदाज में राधा को देखा।

“तुम्हारा क्या ख्याल है!” मोना चौधरी ने देवराज चौहान से पूछा-“ये सच कह रही है या झूठ?”

“मैंने पहले ही कह दिया है कि इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। जो तुम लोगों का फैसला होगा, वही मेरा होगा।”

मोना चौधरी ने भामा परी को देखा।

“तुम पर विश्वास किया जाये?” मोना चौधरी बोली।

“हां।”

“तुम झूठी भी हो सकती हो। शैतान के अवतार की-।”

“मुझ पर विश्वास कर लो मोना चौधरी। मैं तुम सब का भला चाहती हूं।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा।

मोना चौधरी भारी तौर पर उलझन में दिखने लगी।

“तुमने तो सारी बात का बोझ बेबी पर डाल दिया है।” महाजन ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई। कहा कुछ नहीं।

“तुम लोगों की क्या राय है?” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये सोचकर अपनी राय जाहिर करना कि यहां का माहौल बहुत हद तक वैसा ही है जैसा कि दालू बाबा और हाकिम के समय में था। जादुई-तिलिस्मी और मायावी चीजें किसी भी रूप में हमारी जान के लिये हमारे सामने-।”

“मोना चौधरी!” पारसनाथ ने गम्भीर सपाट स्वर में कहा-“मैंने

पहले भी कहा था कि अगर ये शैतान की अवतार की कोई चाल है और हम इसकी बातों में नहीं फंसते तो शैतान का अवतार कोई और ‘पासा’ फेंकेगा। यानि कि हम इन मायावी-जादुई बातों से ज्यादा देर खुद को सुरक्षित नहीं रख सकते।”

“तुम्हारा मतलब कि भामा परी अपने बारे में जो कह रही है, वो सच मान लो।” जगमोहन बोला।

“हां। अगर अब सच नहीं मानोगे तो शैतान के अवतार की किसी दूसरी बात को सच मानोगे।” पारसनाथ ने कहा।

“पारसनाथ ठीक कहेला। जो होगा, हम सब देखेला।”

“अंम शैतान के अवतारो को ‘वड’ कर रख दो।” बांकेलाल राठौर गुस्से से कह उठा।

मोना चौधरी की दृढ़ता भरी निगाह भामा परी पर जा टिकी।

“अगर हम तुम पर विश्वास न करें तो तुम क्या करोगी?”

“तब मैं क्या कर सकती हूं।” भामा परी ने गम्भीरता से कहा-“तुम लोगों का अहसान सिर पर लिए वापस अपने परीलोक चली जाऊंगी, परन्तु मन में दुःख रहेगा कि मैं तुम लोगों के किसी काम न आ सकी।”

“ठीक है।” मोना चौधरी उसी दृढ़ता भरे लहजे में बोली-“हम तुम पर विश्वास करते हैं कि तुमने अपने बारे में जो कहा, सच कहा है। तुम वास्तव में अच्छी परी हो और शैतान के अवतार का मोहरा नहीं हो।”

भामा परी का चेहरा खिल उठा। मुस्कराहट से भरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह फैल गये। आंखों में चैन से भरी चमक साफ तौर पर दिखाई देने लगी थी।

“मेरा विश्वास करके एक बार फिर तुम मनुष्यों ने मुझ पर एहसान किया है।” वो मधुर स्वर में कह उठी।

“अब बताओ, तुम यहां पर हमारे लिये क्या कर सकती हो?” मोना चौधरी की एक टक निगाह उस पर थी।

“शैतान का भेजा अवतार, यहां तुम सब लोगों की जान ले लेगा।” भामा परी गम्भीर स्वर में कह उठी-“ये ऐसी जगह है जहां से मनुष्यों के बाहर जाने का रास्ता नहीं है। तुम सब मनुष्य अपनी जान गवां बैठोगे। मैं तुम सबको शैतान के अवतार से बचाकर, इस शैतानी दुनिया से बाहर ले जा सकती हूं।”

“बहुत-बहुत शुक्रिया इस बात का।” मोना चौधरी कह उठी-“हम यहां से जाने के लिये, इस शैतानी जगह पर नहीं आये हैं। हमारा यहां आने का मकसद, शैतान के अवतार को खत्म करना है।”

“असम्भव।” भामा परी के होंठों से निकला-“ये कभी नहीं

हो सकता।”

“क्यों?”

“तुम नहीं जानते कि शैतान का अवतार शैतानी ताकतों का मालिक है।” भामा परी एकाएक बेचैन हो उठी थी-“और तुम लोग मामूली मनुष्य, उसे तो छू भी नहीं सकते।”

“हम जो करने आये हैं, वो करेंगे।” देवराज चौहान की आवाज में कठोरता आ गई-“हम ये नहीं कहते कि हम सफल होंगे। लेकिन जो करने आये हैं, उससे पीछे नहीं हटेंगे।”

भामा परी परेशान नज़र आने लगी।

“देवराज चौहान!” बांकेलाल राठौर दांत भींच कर कह उठा-“अंम ‘वडेगा’ शैतान के अवतारो को। वो म्हारे को नेई जान्नो। अंम शैतान के बापो हौवो, वो सामनो आ गयो तो-।”

“तुम मनुष्य मेरी बात को मजाक समझ-।” भामा परी ने कहना चाहा।

“हम तुम्हारी बात को मजाक नहीं समझ रहे, बल्कि तुम हमारी बात को मजाक समझ रही हो।” देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा-“अब ये बात तो तुम्हारी समझ में आ गई होगी कि तुम हमारी कैसी भी, कोई सहायता नहीं कर सकतीं। बेहतर होगा कि तुम अपने लोक चली जाओ।”

“तुम मनुष्य, शैतान के अवतार की जान क्यों लेना चाहते हो?” भामा परी वास्तव में परेशान थी।

“इस बात से तुम्हारा कोई मतलब नहीं।” देवराज चौहान ने कश लिया।

“शायद मैं तुम मैं लोगों की सहायता कर सकूँ।”

“क्या मतलब?” मोना चौधरी के माथे पर बल उभरे।

क्षणिक चुप्पी के पश्चात भामा परी कह उठी।

“शैतान के अवतार की दुनिया के बारे में तुम लोग कुछ नहीं जानते। यहां की हर चीज से अंजान हो। जबकि मैं बीते अस्सी बरसों से यहां की दुनिया में भटकते हुए, यहां की बहुत बातों से वाकिफ हो चुकी हूं। मेरे पास ऐसी-ऐसी जानकारी है, जो शायद शैतान के अवतार की दुनिया के लोग भी नहीं जानते। नन्ही-सी चिड़िया के रूप में, मैंने बहुत जगह जाकर, बहुत कुछ देखा है। शैतान के अवतार की दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं, जो शैतान के अवतार को पसन्द नहीं करते, परन्तु उसके खिलाफ बोल भी नहीं सकते। ऐसे बहुतों से मेरी दोस्ती है। वो मेरे जिस्म में धंसा तीर निकालना चाहते थे। लेकिन मैंने मना कर दिया। क्योंकि कोई मनुष्य के ही तीर निकालने से मैं परी के असली रूप में आ पाती। अगर तुम शैतान के अवतार की दुनिया से बाहर नहीं जाना चाहते तो तब भी मैं तुम लोगों की बहुत सहायता कर सकती हूं। मैं जानती हूं कि मेरी सहायता से भी तुम लोग शैतान के अवतार पर विजय नहीं पा सकते। फिर भी

ये काम तुम लोगों के लिये इसलिये करूंगी कि तुम लोगों ने दया दिखाकर मेरे शरीर से तीर निकाला। मुझे अपने असली रूप में वापस लाकर मेरे पर अहसान किया। जहां तुम लोग इस वक्त मौजूद हो, ये जगह तो शैतान के अवतार की दुनिया की शुरूआत भी नहीं है। जब शैतान के अवतार की दुनिया का असली चेहरा देखोगे तो-।” इसके साथ ही भामा परी ने गहरी सांस ली और खामोश हो गई।

सबकी अजीब-सी निगाह भामा परी पर थी।

भामा परी के शरीर से मध्यम सी सफेद रोशनी फूट रही थी। दूर शहर की रोशनियां टिमटिमा रही थीं।

“ये-ये तो हमारे बहुत काम आ सकती है।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“ऐसे नहीं आऊंगी, तुम लोगों के काम।” भामा परी गम्भीर स्वर में कह उठी।

“क्या मतलब?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

“ये ठीक है तुम लोगों ने, मुझे मेरा रूप वापस दिलाकर, मुझ पर अहसान किया है लेकिन उस अहसान की खातिर में गलत लोगों की सहायता नहीं कर सकती। ऐसा करूंगी तो उसी पल जल कर राख हो जाऊंगी।”

“हम गलत लोग नहीं हैं।” कहने के साथ ही महाजन ने घूंट

भरा।

“मुझे क्या मालूम कि तुम लोग शैतान के अवतार को मारकर

वास्तव में अच्छा काम कर रहे हो।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये भी तो हो सकता है कि उसको मारकर, तुम लोग उससे भी बड़े शैतान बन जाओ।”

“कैसे दिलाएं तुम्हें विश्वास कि हम-।” महाजन ने कहना चाहा।

“मुझे बताओ कि शैतान के अवतार से तुम लोगों की क्या से

दुश्मनी है? क्यों उसकी जान लेना चाहते हो? शैतान के अवतार की दुनिया में कैसे आ गये, जबकि कोई मनुष्य शैतान के अवतार की मर्जी के बिना इस दुनिया में प्रवेश नहीं पा सकता।” भामा परी की आवाज में गम्भीरता थी-“तुम लोगों की बातें सुनने के बाद ही मैं बता सकूँगी कि मैं तुम लोगों की सहायता कर सकती हूं या नहीं।”

“मैं बताता हूं सब कुछ-।” देवराज चौहान ने कहा।

भामा परी की निगाह, देवराज चौहान पर जा टिकी।

देवराज चौहान ने भामा परी को कम शब्दों में पेशीराम, गुरुवर

और शैतान के अवतार से वास्ता रखती बात बताई।

जब तक देवराज चौहान बोलता रहा, वहां गहरी शान्ति छाई

रही। उसके खामोश होते ही भामा परी ने दायां हाथ उलटा करके आगे किया तो उंगलियों में मौजूद अंगूठियां चमक उठीं।

“हे देवता!” भामा परी बुदबुदाई-“मुझे बता इनकी बातें सच है या झूठ?”

भामा परी के शब्द पूरे ही हुए थे कि सफेद अंगूठी वाला नग फौरन पीला हो गया। ये देखते ही भामा परी के चेहरे की मुस्कान और भी मधुर हो गई उसने हाथ नीचे किया और देवराज चौहान को देखा।

“तुमने जो कहा है, सच कहा है। मुझे खुशी है कि तुम लोग धोखेबाज नहीं हो।” भामा परी बोली।

“कैसे जाना?” मोना चौधरी ने पूछा-“अपनी उल्टी हथेली में

तुम क्या देख रही थीं।”

जवाब में भामा परी खिलखिलाई। कहा कुछ नहीं।

“छोरे!” बांकेलाल राठौर ने गहरी सांस ली-“यो तो बोत खूबसूरत हौवे।”

“शर्म नहीं आती, पराई औरतों पर बुरी नज़र डालते हुए।” राधा कह उठी।

“शर्म काहे को आवे म्हारे को।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ

पर पहुंच गया-“महाजन ने पैले थारे पर बुरो नज़र डालो, तम्भी

तो तम, उसो से ब्याहो हो।”

“खबरदार जो नीलू को ऐसा कहा। मेरा नीलू तुम जैसा नहीं है। बहुत शरीफ है।” राधा तीखे स्वर में कह उठी-“नीलू पर तो मैंने प्यार वाली नज़र डाली थी।”

“सुन्नो छोरो तन्ने यो ईमानदारो वालो बात-।”

“बच्ची होएला बाप। स्पष्ट कहेला-।”

“अंम का इसो को बुरी बातो कहो जो म्हारे पे बरसो।”

तभी सोहनलाल भामा परी से कह उठा।

“तुम अचानक ही गम्भीर क्यों हो गईं?”

“क्योंकि, तुम लोग शैतान की दुनिया से वापस जाने को तैयार नहीं हो और आगे हर जगह मौत है।” भामा परी ने गम्भीर स्वर

में कहा-“और मैं तुम लोगों को मौत का रास्ता बताने वाली हूं।”

“तुम ये क्यों सोचती हो कि हम मारे जायेंगे।” पारसनाथ बोला।

“तुम लोग नहीं समझ सकोगे।” भामा परी ने कहा-“क्योंकि मैं उन सब जगहों को जानती हूं, जहां से गुजर कर शैतान के अवतार तक पहुंचा जा सकता है और उन रास्तों को पार नहीं किया जा सकता। तुम लोग तो साधारण मनुष्य हो। करिश्मों से भरा कोई व्यक्ति भी शैतान के अवतार की मर्जी के बिना उस तक नहीं पहुंच सकता।”

“बेहतर होगा कि तुम हमें डराना छोड़ दो और आगे का रास्ता

बताओ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

भामा परी ने मोना चौधरी को देखा, फिर सबको।

“इस वक्त तुम लोग जिस जगह पर मौजूद हो, ये नगर तो शैतान के अवतार की बाहरी दुनिया का खोल है। कवर मात्र है। आओ। मैं तुम लोगों को, शैतान की दुनिया के किसी दरवाजे से भीतर प्रवेश कहकर उस रास्ते पर डाल देती हूं, जहां से शैतान के अवतार तक पहुंच सकोगे, लेकिन पहुंच कभी नहीं पाओगे। क्योंकि रास्ते में आने वाले हादसे तुम सब को खत्म कर देंगे।”

“बताओ कहां से हम शैतान के अवतार की असल दुनिया में

प्रवेश कर सकते हैं?” मोना चौधरी दांत भींच कर बोली।

“आओ। उस दिशा में-।”

उसी वक्त उन सबको ऐसा झटका लगा, जैसे किसी ने जमीन को झंझोड़ दिया हो। कुछ पलों के लिये सब हड़बड़ा उठे। जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“ये क्या हुआ?”

“मालूम नहीं।” इधर-उधर देखते देवराज चौहान ने कहा।

“कोई बात अवश्य है।” मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया था।

“बातो न हौवो तो का, यूं ही धरती हिल्लो हो।”

“भूचाल होएला बाप।”

“नीलू-!”

“हूँ-।”

“तेरे को डर लग रहा हो तो मेरे पास आ-जा।” कहते हुए राधा महाजन के पास पहुंची और उसकी बांह थाम ली। महाजन ने बोतल से घूंट भरा। नज़रें हर तरफ घूम रही थीं।

भामा परी के शरीर से फूटते प्रकाश से आसपास की जगह बहुत हद तक साफ नज़र आ रही थी।

देवराज चौहान ने भामा परी को देखा तो चेहरे पर अजीब-से भाव आ गये।

“भामा परी।” देवराज चौहान ने कहा-“तुम चिन्तित क्यों हो उठी हो?”

“मैं तुम लोगों के लिये परेशान हो गई हूं।” भामा परी के होंठों

से निकला।

“क्यों?”

“कारी राक्षस पास ही में मौजूद है। वो तुम सब को खत्म कर देगा। तुम लोगों के पास मेरी तरह पंख भी नहीं है कि उड़ान भर

कर यहां से दूर चले जाओ।”

“तुम्हें कैसे मालूम कि कारी राक्षस पास में है।”

“धरती का कम्पन उसके आगमन का सूचक था देवराज चौहान।” भामा परी के माथे पर पसीने की बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थीं-“और इस हवा में, मैं कारी राक्षस के शरीर की महक को महसूस कर रही हूं। वो ही महक, जो मैंने अस्सी बरस पहले, कारी राक्षस की मौजूदगी पर महसूस की थी।”

तभी उनके कानों में खतरनाक सा ठहाका पड़ा।

सब चौंके।

“नीलू! मेरे और पास आ-जा। तेरे को ज़रा भी डर नहीं लगेगा।” राधा ने जल्दी से कहा और उससे सट गयी।

“तुम चली जाओ।” मोना चौधरी ने भामा परी से कहा।

“तुम लोगों ने मेरे बुरे वक्त पर मेरी सहायता की और अब तुम सब पर बुरा वक्त आया तो भाग जाऊं। भला ये कैसे हो सकता

है।”

“तुम कारी राक्षस से हमारी जान नहीं बचा सकतीं तो यहां

रहकर क्यों अपनी जान देतीं-”

“तुम लोगों को खतरे में छोड़कर नहीं जाऊंगी।” भामा परी

ने डरे और परेशान स्वर में कहा-”अगर मैंने ऐसा कर दिया तो

मैं को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी। इस वक्त मेरे लिये न्याय

यही है कि तुम सब के साथ ही मेरी जान-।”

उसी पल सामने से एक साया आता महसूम हुआ।

सबकी निगाहें उसी दिशा में जा ठहरीं।

“यही है कारी राक्षस-।” भामा परी के होंठों से निकला डरा

सा स्वर सबके कानों में पिघले शीशे के समान पड़ता चला गया।

सब उसी साये को देख रहे थे, जो कि धीरे-धीरे पास आता जा रहा था। भामा परी के शरीर से फूटते प्रकाश में अब उसका

आकार-प्रकार स्पष्ट होने लगा था। कुछ पास आकर जब वो ठिठका तो स्पष्ट तौर पर वो सिर से पांव तक नज़र आने लगा।

छः फीट लम्बा, गोरा-चिट्टा गठा हुआ कामदेव जैसा दिखाई दे रहा था वो। कमर पर सफेद धोती थी। वास्तव में उसके इस रूप पर हर कोई फिदा हो जाये।

“नीलू!” राधा कह उठी-“देखा, ये परी कितना झूठ बोलती है। ये कोई राक्षस है। ये तो बिलकुल तुम जैसा गठीला जवान दिखता है। जो इससे ब्याह करेगी, वो कितनी भाग्यवान होगी। क्यों नगीना, मैंने ठीक कहा ना?”

नगीना गम्भीर थी। बंद होंठों पर कसाव था। नज़रें कारी राक्षस

पर थीं।

“इसके रंग-रूप पर मत जाओ।” भामा परी व्याकुल सी कह

उठी-“यही कारी राक्षस है। बिल्कुल भी नहीं बदला। मनचाहे रूप बना लेता है ये। शैतान के अवतार का कारिन्दा है ये।”

कारी राक्षस शांत भाव में हंसा। नज़रें भामा परी पर थीं।

“तम कारी राक्षसो हौवे?”

“हां।” कारी राक्षस ने बांकेलाल राठौर को देखकर सिर हिलाया। उसकी आवाज बेहद शांत थी-“मैं ही हूं कारी राक्षस। शैतान के अवतार की इस तरफ की दुनिया की निगरानी करना मेरे हवाले है।” कहने के पश्चात पुनः उसकी निगाह भामा परी पर जा टिकी-“तुम अस्सी बरसों से मेरे मस्तिष्क में सुई की तरह चुभ रही थीं। मेरा शिकार कभी भी मेरे हाथों से बच नहीं सका, परन्तु तुम धोखा देकर बच निकली थी। अपना रूप बदल लिया और फिर पकड़ में नहीं आई। लेकिन मैं जानता था कि तुम शैतानी धरती से बाहर नहीं जा सकतीं। मेरे मायावी तीर को अगर कोई मनुष्य तुम्हारे शरीर से निकालेगा तो तभी तुम परी के रूप में वापस आकर अपनी दुनिया में वापस जा सकोगी। और अब जब इन मनुष्यों ने तुम्हारे शरीर से मेरा मायावी तीर निकाला तो फौरन मेरी शक्तियों ने यहां के सारे हालातों की खबर मुझे दी। तुम बच सकती थीं अगर तीर निकलते ही फौरन अपने परीलोक को उड़ जातीं। लेकिन वक्त गवां दिया। अब अस्सी साल पुराना शिकार, आज रात मेरे पेट की भूख शांत करेगा।” इसके साथ ही वो क्रूरता भरी हंसी हंसा।

पल भर के लिये वहां सन्नाटा छा गया।

भामा परी के खूबसूरत चेहरे पर पसीने की बूंदें स्पष्ट नज़र के आ रही थीं। आंखों में खौफ का समन्दर नाच रहा था। चेहरे की रंगत पीली सी दिखने लगी थी।

“ओ कारो राक्षसो।” बांकेलाल राठौर दांत भींच कह उठा-“थारे को तो अंम ‘वडो’ हो।” कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर ने हाथ में पकड़ी रिवाल्वर सीधी की और एक-के-बाद-एक गोलियां चलाता गया, जब तक चैम्बर खाली न हो गया।

तीव्र धमाके थम गये।

गहरा सन्नाटा छा गया।

सब गोलियां कारी राक्षस की छाती में लगीं। वहां पर हल्के-हल्के छेद नज़र आने लगे। दूसरे ही क्षण देखते ही देखते शरीर में पैदा हुए वो सारे छेद भरते चले गये। फिर कारी राक्षस के शरीर की रंगत बदलकर नीले-स्याह जैसी होने लगी। वो मौत भरे अंदाज में गुर्रा उठा।

“मनुष्य जात की ये हिम्मत कि वो राक्षस जात को खत्म करने की कोशिश करे-।”

“अंम थारो से बड़ो राक्षसो हौवे।” बांकेलाल राठौर गुस्से से दहाड़ उठा-“अपणो गली में तो कुत्तो भी शेर हो जावे। तम अपणो को राक्षसो बोलो हो। थारी तो-।”

“बांके-।” मोना चौधरी चीखी।

“रुक जा बांके।” जगमोहन ने आगे बढ़कर बांकेलाल राठौर की बांह पकड़नी चाही।

लेकिन तब तक बांकेलाल राठौर आगे भागते हुए, कारी राक्षस पर छलांग लगा चुका था।

उसका शरीर कारी राक्षस की छाती से जा टकराया। इससे पहले कि वो नीचे गिरता, उसने बांकेलाल राठौर की कमर के गिर्द बांह कस ली। कारी राक्षस का शरीर अब तक नीला-स्याह जैसा हो चुका था।

“छोड़ मारे को।” बांकेलाल राठौर गुस्से से बोला-“अंम थारे को ‘वडेगा’।”

अब कारी राक्षस के शरीर का आकार फैलने लगा था। उसका

शरीर चौड़ा और लम्बा होने लगा था। उसके होंठों के दायें-बायें से सफेद-पीले दांत चार-चार इंच बाहर आ निकले थे। कानों के ऊपर छः-छः इंच ऊंचे, काले-भद्दे टेढ़े-मेढ़े सींग आ निकले थे।

इसके साथ ही उसने बांकेलाल राठौर को एक तरफ उछाल दिया। अब कारी राक्षस करीब दस फीट ऊंचा और उसी अनुपात में चौड़ा दिखाई दे रहा था। उसका पेट बड़ा और थुलथुल था। गले में छोटी-छोटी हड्डियों की माला और कानों में लोहे के बड़े-बड़े कुण्डल थे। नाक के बीचों-बीच चूड़ी जैसी नथनी झूल रही थी।

वो वास्तव में भयानक दिखाई देने लगा था।

“मारो दयो अंमको।” वेग के साथ जमीन पर गिरते ही बांकेलाल राठौर चीख उठा-“ओ छोरे! म्हारी हड्डियों तो गिन्नो जरा। कित्ती कम हो गयो। शैतान के अवतारो की नगरी में तो स्पेयर पार्ट्स भी न मिल्लो हो।”

कारी राक्षस एकाएक वहशी ठहाका लगा उठा।

“अगर तुम सब मनुष्यों को भी भोजन के रूप में इस्तेमाल कर पाता तो कितना अच्छा लगता मुझे। मजा ही आ जाता। लेकिन शैतान के अवतार का हुक्म है कि धरती से आये मनुष्यों को कुछ नहीं कहा जायेगा। वो खुद ही अपनी मौत तलाश करेंगे। और तड़प-तड़प कर मरेंगे। इसलिये तुम सब मेरा भोजन बनने से बच गये।”

“शर्म कर कारी।” भामा परी कह उठी-“मर कर तूने भगवान को अपने कर्मों का हिसाब...।”

“भगवान-। कर्मों का हिसाब।” कारी राक्षस दरिन्दगी से भरा ठहाका लगा उठा-“नादान परी, मुझे भगवान को नहीं बल्कि चार आसमान ऊपर बैठे शैतान को अपने कर्मों का हिसाब देना है। शैतान के सेवक का भगवान से क्या वास्ता। मेरे शैतानी कर्म जितने ज्यादा बड़े होंगे, दोबारा जनम होने पर शैतान मुझे और भी ज्यादा ताकत वाला राक्षस बनाएगा। राक्षस शैतानी कर्मों के लिये धरती पर आता है। शैतान की पूजा करता है और मैं अपना धर्म दिल से पूरा करता हूं। अब तेरे को यहां से ले जा रहा हूं। पहले मदिरा से पेट भरूंगा। उसके बाद तेरे शरीर के नाजुक गोश्त से पेट भरूंगा। आज तो जश्न जैसा वक्त होगा मेरे लिये।”

भामा परी ने घबराकर सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“नीलू!” राधा कह उठी-“मैं जानती हूं कि तू बहादुर है। ये राक्षस तो तेरे से हार जायेगा। लेकिन हम अच्छे लोग हैं। बुरे लोगों के मुंह नहीं लगते। मूंछों वाले का हाल देखा। अभी तक नीचे पड़ा है।”

चेहरे पर गम्भीरता समेटे महाजन ने घूंट भरा। आंखें जल रही

थीं गुस्से से।

ठीक इसी पल देवराज चौहान के हाथ में लम्बे फल वाला चाकू चमका और वो वेग की तरह कारी राक्षस की तरफ दौड़ा। किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है। कारी राक्षस के पास पहुंचते ही देवराज चौहान ने उछाल भरी। दोनों टांगें राक्षस के पेट पर जा टिकी। इसके साथ ही दांत भींचे, आंखों में मौत समेटे देवराज चौहान ने चाकू वाला हाथ खास अंदाज में घुमाया तो उसका तेज फल, कारी राक्षस की गर्दन को आधा काटता चला गया। गले से निकलने वाले लहू से देवराज चौहान का हाथ लथपथ हो गया।

कारी राक्षस के गले से भयानक चीख निकली। उसका शरीर

जोरों से हिला तो उसके पेट पर खड़े देवराज चौहान ने कठिनता से खुद को संभाला। तभी कारी राक्षस ने हाथ से देवराज चौहान को पकड़ा और गुस्से से दूर उछाल दिया। देवराज चौहान अंधेरे में जाने कहां जा गिरा।

चाकू अभी भी कारी राक्षस की आधी गर्दन को काटे, वहीं अटका हुआ था। कारी राक्षस ने गुस्से से चाकू को निकालकर फेंका और मुट्ठियाँ भींच कर सीधा खड़ा हो गया। उसका चेहरा बेहद खूंखार हो गया था। आंखें अंगारों की तरह सुर्ख दिखाई दे रही थी। वो मुट्ठियां भींचे वैसे ही खड़ा हो रहा।

“बेबी!” महाजन गम्भीर स्वर में कह उठा-“अब क्या किया जाये? इस राक्षस को हम नहीं संभाल सकते।”

“तुम ठीक कहते हो, हम कुछ नहीं कर सकते।” मोना चौधरी

सख्त स्वर में कह उठी-“देवराज चौहान का हाल तुमने देखा ही है। देवराज चौहान के इस घातक वार से राक्षस का कुछ नहीं बिगड़ा तो, किसी दूसरे वार से भी कुछ नहीं बिगड़ेगा।”

“गोलियों का असर भी इस पर नहीं हुआ।”

“मेरे ख्याल में इसके आगे हम बेबस हैं।” मोना चौधरी के होंठों से विवशता भरी गुर्राहट निकली-“शैतान के अवतार के हुक्म से बंधा है ये राक्षस। वरना ये हमें भी जिन्दा नहीं छोड़ता।”

“पेशीराम ने तगड़ी मुसीबत में फंसा दिया है हमें।”

“वो देखो।” मोना चौधरी उसी स्वर में कह उठी-“राक्षस का कटा गला जुड़ गया है। खून बहना भी बंद हो गया है।”

तभी पारसनाथ अपनी जगह से हिला और कारी राक्षस की तरफ बढ़ने लगा। उसकी आंखें शोलों की तरह दिख रही थीं। खुरदरे चेहरे पर भयानकता के भाव थे। चलने के ढंग में कुछ कर जाने के भाव थे। और हाथ में आठ इंच लम्बे दोधारी फल वाला चाकू थमा था। वो ऐसा चाकू था कि पलों में शेर को भी उससे चीर-फाड़ दिया जाये।

पारसनाथ पर निगाह पड़ते ही सब चौंके।

“रुक जाओ।” सोहनलाल ने आगे बढ़कर उसकी बांह थामी-“कुछ नहीं हो सकता। दूसरों का हाल देख ही लिया है।”

पारसनाथ ने उसके हाथ को इतनी तीव्रता से झटका दिया कि

सोहनलाल लड़खड़ाकर रह गया। उसका आगे बढ़ना जारी रहा तो मोना चौधरी तेज स्वर में कह उठी।

“कोई फायदा नहीं पारसनाथ। रुक जाओ।”

परन्तु पारसनाथ तो जैसे रुकना भूल चुका था।

तपता चेहरा। सुर्ख आंखें। दरिन्दा-सा लग रहा था वो।

सनसनाता सा सन्नाटा छा चुका था वहां।

“पारसनाथ-।” महाजन ने पुकारना चाहा।

“नीलू तू चुप रह।” राधा महाजन के कान में फुसफुसा उठी-“वो तो बेवकूफ है। सबसे अक्लमंद तो तू है। जो ये समझता है कि बुरे इन्सान के मुंह लगकर अपना मुंह काला कराने का क्या

फायदा।”

“जुबान बंद रख।” महाजन ने दांत भींचकर कहा।

“ठीक है। मैं तो वैसे भी चुप थी। सच में राक्षस को पहली बार आंखों के सामने देखा है।”

भामा परी का चेहरा पीला सा हुआ पड़ा था, परन्तु उसकी खूबसूरती कम नहीं हुई थी।

कारी राक्षस की निगाह पारसनाथ पर जा टिकी।

“बेवकूफ मनुष्य।” कारी राक्षस के स्वर में भयानकता थी-“क्यों अपनी ताकत बरबाद करता है। आगे के लिये संभाल कर रख। मामूली सी परी के लिये कारी से टक्कर लेता है।”

तब तक पारसनाथ पास पहुंच चुका था और उसका चाकू वाला हाथ हवा में लहराया।

कारी राक्षस ठहाका लगा उठा ठहाके की आवाज किसी नगाड़े से कम नहीं लग रही थी।

पासरनाथ ने चाकू का वार किया।

कारी राक्षस की टांगों के ठीक बीचो-बीच।

कारी राक्षस का ठहाका, उसी पल पीड़ा भरी चीख में बदल गया। वो तड़प कर जोरों से उछला और फिर दोनों हाथ टांगों के बीच रखते हुए नीचे बैठता चला गया। वो अभी भी चीख रहा था। पारसनाथ ने बस नहीं की। कारी राक्षस का जो भी हिस्सा सामने आता वहीं पर चाकू का वार कर देता। तभी महाजन पास आ पहुंचा। हाथ में व्हिस्की की टूटी हुई बोतल थी। वो बोतल से कारी राक्षस के शरीर पर वार करने लगा। शरीर पर जख्म बनते जा रहे थे। खून रिस रहा था।

तभी कारी राक्षस ने दांत पीसते हुए पारसनाथ को पकड़ा और दूर उछाल दिया। उसके पेड़ की टहनियों से टकरा कर नीचे गिरने का अहसास हुआ। कारी राक्षस ने महाजन को भी पकड़ना चाहा, परन्तु महाजन फुर्ती के साथ पीछे हटता चला गया।

“शाबाश नीलू।” राधा की आवाज आई-“अब पास मत जाना।”

मोना चौधरी दांत भींचे ये सब देख रही थी।

बहुत भयानक नज़र आ रहा था कारी राक्षस। वो उसी प्रकार नीचे बैठा चीख कर कह उठा।

“हे शैतान के अवतार! तूने मेरे हाथ क्यों बांध दिये ये कहकर कि मनुष्यों को कुछ नहीं कहना है। देख, तेरे बंदे का ये क्या हाल कर रहे हैं। क्या यही इन्साफ है तेरा। जो मेरे फूंक मारने से उड़ जाये। वो मुझ पर वार कर रहे हैं।”

जवाब में खौफ से भरी अजीब सी खामोशी छा गई।

मोना चौधरी दो कदम उठाकर भामा परी के पास पहुंची।

“इसे खत्म करने का कोई रास्ता  भामा परी?” मोना चौधरी ने कहा।

“मैं नहीं जानती।” भामा परी ने सूखे ने स्वर में कहा-“मेरे ख्याल में इसे खत्म नहीं किया जा सकता। इसके सारे जख्म अभी ठीक हो जायेंगे और-और फिर ये मुझे खा जायेगा।”

मोना चौधरी ने खुद को बेबसी के कुएं में महसूस किया। हालात और माहौल ऐसा था कि वो चाह कर भी भामा परी को कारी राक्षस के हाथों नहीं बचा सकती थी। इस पर किसी भी वार का असर नहीं हो रहा था। तभी सोहनलाल कह उठा।

“हम इस राक्षस का मुकाबला नहीं कर सकते।”

“बेहतर तो यही था कि चिड़िया बनी परी के शरीर से तीर न निकाला जाता।” नगीना गम्भीर स्वर में कह उठी-“कम से कम

भामा परी की जान पर तो न बन आती।”

“लो-।” राधा मुंह फुलाकर कह उठी-“अब सारी गलती मुझ पर थोप दी कि मैंने तीर क्यों निकाला।”

भामा परी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और बांह आगे करके हाथ उल्टा किया तो हाथ की उंगलियों में पड़ी अंगूठियों के नगीने चमक उठे।

“देवता!” भामा परी बुदबुदाई-“अस्सी साल का तकलीफदेह वक्त बिताकर भी मैं खुद को बचा नहीं पाई और आज राक्षस का भोजन बनने जा रही हूं। मेरे बचने का कोई रास्ता हो तो बता देवता।”

भामा परी के शब्द पूरे होते ही अंगूठी के एक नग में स्पष्ट तौर पर लोहे का तीर चमकने लगा। पुराना, जंग खाया तीर। भामा परी की आंखें सिकुड़ीं।

दूसरे ही पल वो चौंकी। हाथ से नज़रें हटाकर आस-पास देखा। उसके शरीर से फूट रही मध्यम सी रोशनी में जमीन का काफी हिस्सा स्पष्ट नज़र आ रहा था।

“सुनो।” भामा परी के होंठों से धीमा-कांपता सा स्वर निकला-“वो तीर तलाश करो, जो मेरे चिड़िया वाले शरीर से निकला था। जल्दी करो, देर न हो जाये।”

मोना चौधरी और नगीना ने उसके शब्द सुने।

“उस तीर से क्या होगा?”

“कारी राक्षस उस तीर से मरेगा। मेरे देवता ने अभी मुझे इसी बात का संकेत दिया है। शायद कारी राक्षस की मौत अपने ही हथियार से लिखी हुई है।” बेचैन-सी भामा परी कह उठी-“जल्दी करो।”

सोहनलाल ने भी ये बात सुन ली थी।

वो सब जमीन पर पड़े तीर की तलाश में नज़रें घुमाने लगे।

“वहां, उधर तीर निकाला गया था।” सोहनलाल ने पास ही एक तरफ इशारा किया।

“उधर अंधेरा है।” मोना चौधरी बोली।

“तुम हमारे साथ चलो।” नगीना बोली-“अंधेरे में हम तीर नहीं ढूंढ़ सकते।”

भामा परी उनके साथ आगे बढ़ी और दस कदम चलकर रुक गई। उसके शरीर से फूट रही रोशनी में, सब की निगाहें जमीन पर हर तरफ तीर की तलाश में फिर रही थीं।

तभी मोना चौधरी की निगाह तीर पर जा ठहरी।

चिड़िया रूपी भामा परी के शरीर से तीर निकलने के पश्चात वो अपने असली रूप-आकार में आ गया था। वो तीर ही था, जिसे जमीन पर पड़े मोना चौधरी ने देखा। आधा इंच मोटा। करीब पांच फीट लम्बा और किनारे पर भाले के समान तीखापन था। लोहे का पुराना तीर होने की वजह से जंग खाया हो रहा था वो। दांत भींचे मोना चौधरी आगे बढ़ी और तीर को उठा लिया। वो कुछ वजनी था।

सबकी निगाहें मोना चौधरी की तरफ उठीं।

तीर पर नजर पड़ते ही भामा परी का चेहरा खिल उठा।

“यही है तीर।” वो खुशी से बोली।

“इसका क्या करूं?” मोना चौधरी का स्वर कठोर था।

“ये...ये इसी से कारी राक्षस मरेगा। मेरे देवता ने शायद यही इशारा किया था।” भामा परी कह उठी।

“लेकिन-।” मोना चौधरी ने कहा-“कमान तो है नहीं। इसे छोड़ूँगी कैसे? निशाना कैसे लूंगी-? ये मैं नहीं जानती।”

नगीना और सोहनलाल की नजरें मिलीं।

कारी राक्षस के जख्म अब बहुत हद तक सामान्य हो चले थे। “अगर मुनासिब वक्त होता तो मैं जैसे-तैसे कमान तैयार कर देता।” कहते हुए सोहनलाल की निगाह कारी राक्षस पर गई-“लेकिन, अब वक्त नहीं रहा हमारे पास-।”

भामा परी के मस्तिष्क में मौत की छाया घर बनाने लगी।

महाजन और राधा भी उनके पास आ पहुंचे थे।

“हा-हा-हा।” कारी राक्षस जोरों से हंसा-“इस तीर से मेरा क्या बिगड़ेगा मनुष्यों। फेंक दो इसे। सबने देख लिया है कि मेरा बाल भी बांका नहीं हो सकता। चल भामा परी, तेरे को आग में भून कर मसाले लगाकर मदिरा के साथ खाऊंगा। मन को चैन मिलेगा अस्सी साल पुराना शिकार स्वादिष्ट-।”

तभी मोना चौधरी के होंठों से गुर्राहट निकली और तीर को भाले की तरह थामे तेजी के साथ कारी राक्षस की तरफ दौड़ी। कोई कुछ नहीं समझ पाया। मोना चौधरी ने एक पांव उसके घुटने पर रखा। दूसरा पेट पर और लोहे के तीर को दोनों हाथों में जकड़े पूरी शक्ति के साथ उसकी छाती में घोंप दिया।

तीर का आगे का भाले जैसा हिस्सा, कारी राक्षस के शरीर में धंस गया।

कारी राक्षस के गले से दिल दहला देने वाली चीख निकली। तड़प कर उसने मोना चौधरी को दोनों हाथों से पकड़ा और पूरी

ताकत के साथ आसमान की तरफ उछाल दिया। मोना चौधरी कमान से निकले तीर की तरह आकाश की तरफ जाती चली गई।

और मोना चौधरी नजरों से ओझल हो गई।

“नीलू!” राधा कह उठी-“मोना चौधरी तो मुफ्त में आसमान की सैर कर रही होगी। कितना मजा-।”

“मोना चौधरी, इतने ऊपर से गिर कर बचेगी नहीं-।” सोहनलाल के होंठों से निकला।

तब तक भामा परी पंख फैला चुकी थी और देखते ही देखते आसमान की तरफ उड़ गई।

महाजन, जगमोहन सोहनलाल और राधा की निगाह कारी राक्षस पर जा टिकी। जो कि इस वक्त सूखे पत्ते की भांति कांप रहा था। तीर उसकी छाती में धंसा हुआ था। वो ज्यादा देर अपने पैरों पर खड़ा न रह सका। घुटने मुड़ने लगे। धीरे-धीरे वो नीचे गिरने लगा। दोनों हाथ तीर पर थे। लेकिन उस तीर को वो अपनी छाती से निकाल नहीं पा रहा था।


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