एक-दूसरे में गुंथे विजय और ठाकुर निर्भयसिंह ढलान पर लुढ़कते चले गए, किंतु हाथ में दबे रिवॉल्वर पर ठाकुर साहब ने अपनी पकड़ ढीली न पड़ने दी थी।
हिंसक और उन्मादी गुमटीवासियों का हुजूम खूंखार आदिवासियों के समान उनकी तरफ लपका—उनमें से कुछ के हाथों में मशालें थीं, बाकी के हाथों विभिन्न में किस्म के हथियार।
भाले, बल्लम, खुखरी और लाठियां।
ढलान के अंत पर जब वे रुके तो विजय ठाकुर साहब के नीचे दबा हुआ था, दोनों हाथ उसकी गरदन पर जमाए ठाकुर साहब गुर्रा उठे—"हमें जाने दे कुत्ते, हम तुझे इतनी आसान मौत मारना नहीं चाहते।"
"और मैं आपको मारना चाहता हूं बापूजान, भले ही वह चाहे जितनी आसान मौत हो।" कहने के साथ ही विजय ने उन्हें अपने दोनों पैरों से हवा में उछाल दिया।
ठाकुर साहब दूर जा गिरे।
विजय उछलकर खड़ा हो गया।
उधर!
ठाकुर साहब ने भी उससे कम फुर्ती न दिखाई थी—हाथ में रिवॉल्वर लिए वे खूंखार अंदाज में उसे घूर रहे थे और कुछ ऐसा ही अंदाज विजय का भी था—प्रतिपल नजदीक आते जा रहे ग्रामवासियों के हुजूम पर एक नजर डालने के बाद ठाकुर साहब ने कहा— "बेहतर ये है कि हम अपना हिसाब फिर चुकता कर लें, अगर वे यहां पहुंच गए तो हममें से कोई जिंदा नहीं बचेगा।"
"उन्हें तुम्हारी तलाश है बापूजान, मैंने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा है—आज से बीस साल पहले इस गांव को लाशों से पाट देने वाले तुम ही थे और मेरा काम तब भी हो जाएगा जब वे तुम्हें कत्ल डालें।"
"वे बहुत नजदीक आ गए हैं, विजय।" चीखने के बाद ठाकुर साहब पलटे और हाथ में रिवॉल्वर लिए विपरीत दिशा में भागे।
किंतु!
विजय ने किसी गोरिल्ले की तरह जंप लगाकर उन्हें दबोच लिया, बोला— "दुम दबाकर भागते कहां हो बापूजान, फैसला यहीं होगा।"
मजबूरन ठाकुर साहब को उससे भिड़ना पड़ा।
अभी दोनों में से कोई भी किसी पर हावी नहीं हो पाया था कि गांव वालों में से किसी ने एक बल्लम विजय की तरफ फेंका—वो बल्लम निश्चित रूप से विजय की कमर में पैवस्त होने जा रहा था...!
ठाकुर साहब ने बल्लम पर फायर किया।
झन्नाता हुआ बल्लम विपरीत दिशा में जा गिरा और ठाकुर साहब की इस हरकत पर आश्चर्य के सागर में डूबा विजय अभी उभर न पाया था कि उसने स्वयं को सशस्त्र ग्रामीणों से बुरी तरह घिरा पाया।
कुछ ग्रामीण ठाकुर साहब पर भी झपटे थे।
वे विपरीत दिशा में भागे।
अब विजय का सबसे पहला काम खुद को ग्रामीणों से बचाना था। अतः उसका जिस्म हवा में इस तरह उछला जैसे पैरों में स्प्रिंग लगे हों और हवा में कलाबाजियां खाता वह ग्रामीणों के घेरे से बाहर।
हवा में सन्नाता एक भाला नजर आया।
विजय ने उसे लपका और फिर उस भाले को अपने शरीर के चारों ओर लाठी के समान घुमाता हुआ गांव वालों के हुजूम के बीच से निकलने के लिए जूझ पड़ा।
सशस्त्र ग्रामीण उसके चारों तरफ थे।
हाथों में दबा भाला इतनी तेजी से उसके जिस्म के चारों ओर घूम रहा था जैसे फुल स्पीड पर ऑन बिजली का पंखा—अतः उसके जिस्म के चारों तरफ एक कवच-सा बन गया था।
ऐसा कवच जो किसी भी ग्रामीण या हथियार को उसके जिस्म तक नहीं पहुंचने दे रहा था। मगर इतनी तेज गति से विजय भाले को हमेशा नहीं घुमाता रह सकता था। अतः जल्दी-से-जल्दी ग्रामीणों के घेरे से बाहर निकलने का प्रयत्न कर रहा था।
मगर ग्रामीणों की उम्मीद को देखकर विजय को नहीं लग रहा था कि वह अपने प्रयास में कामयाब हो सकेगा—इस हालत में अभी मुश्किल से उसे पांच मिनट ही गुजरे थे कि—
एक चमत्कार हुआ।
सारा गांव गोलियों की आवाज से गूंज उठा और उनके साथ ही गूंज गई गांव वालों की चीखें।
विजय को घेरे ग्रामीणों में से कई कटे वृक्ष की तरह गिरे। विजय सहित कोई यह नहीं जान सका कि गोलियां किस तरफ से चलाई जा रही हैं—हां, उनके फलस्वरूप ग्रामीणों में भगदड़ जरूर मच गई।
भाले को उसी तरह अपने जिस्म का कवच बनाए विजय तेजी से एक तरफ भागा—अंधेरे में गुम होकर उसने भाला घुमाना बंद किया। अब वह छुपने के लिए कोई उपयुक्त स्थान तलाश कर रहा था और दिमाग में घुमड़ रहा था यह विचार कि गोलियां चलाकर उसकी मदद करने वाला व्यक्ति कौन था, कहीं ठाकुर साहब ही तो नहीं?
¶¶
"न...नहीं...!" चीखता हुआ ब्लैक ब्वॉय किसी चट्टान की तरह झोंपड़ी के दरवाजे पर अड़कर खड़ा हो गया। हाथ में दबे रिवॉल्वर से रघुनाथ, रैना और उर्मिलादेवी को कवर किए वह गुर्राया—"मैं किसी को भी, किसी भी हालत में झोंपड़ी से बाहर नहीं निकलने दूंगा।"
"म...मगर हमें उनकी मदद के लिए बाहर जाना चाहिए।" उर्मिलादेवी चीख पड़ीं—"वे केवल दो हैं और गांव वाले सैंकड़ों।"
झोंपड़ी में सन्नाटा छा गया।
सभी हक्के-बक्के खड़े थे, दिमाग कुंद हो गए थे। रैना, रघुनाथ और उर्मिलादेवी की तो बात ही कौन करे—अशरफ, विक्रम, नाहर और आशा जैसे सीक्रेट एजेंट किंकर्त्तव्यविमूढ़ रह गए।
किसी की समझ में न आ रहा था कि क्या करे?
ब्लैक ब्वॉय का चेहरा बुरी तरह भभक रहा था, आंखें अंगारा बनी हुई थीं—यही पल था जब बाहर से गोलियां चलने की आवाज उभरी।
"न...नहीं—मैं नहीं रुक सकती।" जज्बातों के भंवर में फंसी उर्मिलादेवी ब्लैक ब्वॉय पर झपट पड़ीं।
समस्त आशाओं के विपरीत ब्लैक ब्वॉय ने उन्हें वापस इतनी जोर से धकेला कि वे फर्श पर गिर पड़ीं और यह देखकर रैना चीख पड़ी—"ये क्या कर रहे हो, अजय भइया!"
"कोई बाहर नहीं जाएगा।" ब्लैक ब्वॉय का खूनी स्वर गूंजा।
"ये क्या बकवास है?" रघुनाथ दहाड़ा—"खुद को बचाए रखने के लिए क्या हम विजय और ठाकुर साहब को मर जाने दें?"
उसके सवाल का जवाब देने के स्थान पर ब्लैक ब्वॉय ने अशरफ, विक्रम और नाहर से कहा—"देख क्या रहे हो—इन तीनों को काबू में करो—भले ही बेहोश करना पड़े।"
और सीक्रेट एजेंट अचंभित रह गए।
उर्मिलादेवी पुनः दरवाजे पर झपटी।
इस बार ब्लैक ब्वॉय ने उनकी कनपटी की उस नस पर प्रहार किया जिसके दबते ही व्यक्ति की चेतना गुम हो जाती है।
उर्मिलादेवी को कटे वृक्ष-सी गिरते देख रैना और रघुनाथ उनकी ओर लपके, जबकि ब्लैक ब्वॉय ने अशरफ आदि से कहा—"सुना नहीं तुमने?"
और!
अशरफ रघुनाथ पर झपटा, आशा रैना पर।
बड़ी ही अजीब दृश्य बन गया वहां—एक दूसरे को जी-जान से चाहने वाले आपस में भिड़ गए—मुश्किल से एक मिनट बाद रैना और रघुनाथ भी बेहोश अवस्था में उर्मिलादेवी के जिस्म के नजदीक पड़े थे।
झोंपड़ी में ब्लेड की धार-सा पैना सन्नाटा।
तीनों की दृष्टि ब्लैक ब्वॉय पर स्थिर थी, उस ब्लैक ब्वॉय पर जिसने काफी देर से रोकी हुई सांस एक झटके से छोड़ी—ऐसे अंदाज में जैसे किसी मुसीबत से पीछा छूटा हो।
"उफ!" उसने रिवॉल्वर जेब में रखते हुए कहा—"भावनाओं में बहकर ये लोग सारा खेल ही बिगाड़ दे रहे थे।"
"खेल?" विक्रम ने पूछा।
"हां—क्या तुम लोग भी नहीं समझते कि जो कुछ ये कर रहे थे, उसके बाद हममें से कोई भी सुरक्षित नहीं रहता।"
"ले...लेकिन अजय।" आशा बोली— "क्या जरूरी है कि इन संवेदनशील हालातों में जो कदम हमने उठाया है, वही सही हो।"
"क्या मतलब?"
"क्या विजय और ठाकुर साहब को उनके हाल पर छोड़ देना, खुद को बचाए रखने के प्रयास में मदद न करना जायज है?"
"बिल्कुल जायज है।"
"कौन-से तर्क से?"
"जब तक यह बिल्कुल निश्चित न हो कि हमारी मदद से कुछ हो सकेगा, तब तक मदद के लिए खुद को खतरे में फंसा लेना बुद्धिमत्ता नहीं, भावकुता है और सीक्रेट एजेंट भावुकता से कोसों दूर रहते हैं।"
"यानि तुम कहना चाहते हो कि हम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते थे?"
"मेरी रीडिंग यही है।"
"वह किस आधार पर?"
"जब कोई विपत्ति अचानक टूट पड़ती है तो जरूरी नहीं होता कि लिए गए फैसले के पीछे कोई आधार ही हो—वही किया जाता है जो पहले झटके में दिमाग कहे और उस पहले झटके में मेरे दिमाग ने कहा कि बाहर निकलकर भी हम उनकी कोई खास मदद न कर सकेंगे, अतः ऐसी कोई हरकत नहीं करनी चाहिए जिससे गांवों वालों को यह इल्म हो कि हम यहां हैं।"
तीनों चुप रह गए।
कुछ देर की खामोशी के बाद आशा बोली—"बाहर पूरी तरह सन्नाटा छा गया है—जाने वहां क्या हो रहा है?"
"हमें देखना चाहिए।" कहने के साथ ही ब्लैक ब्वॉय एक सुराख की तरफ आकर्षित हुआ—उन चारों ने भी अलग-अलग सुराखों से आंख सटाकर बाहर का दृश्य देखा।
किंतु!
अंधेरे के अलावा किसी को कुछ नजर न आया।
"अजीब खामोशी छा गई है।" विक्रम बड़बड़ाया। ब्लैक ब्वॉय ने सुराख पर आंख टिकाए कहा—"या तो वे गांव वालों को धोखा देकर भागने में कामयाब हो गए हैं या...।"
"या?"
"पकड़े गए हैं।"
"इन दोनों में से बात तो होनी ही है।" अशरफ ने अजीब चिढ़े हुए अंदाज में कहा— "सवाल ये है कि कैसे पता लगे कि क्या हुआ है?"
पुनः खामोशी छा गई।
करीब दस मिनट बाद अशरफ ने कहा— "ये बात समझ में नहीं आई कि विजय और ठाकुर साहब आपस में क्यों लड़ने लगे थे?”
"वाकई यह एक बड़ा रहस्य है।" ब्लैक ब्वॉय बड़बड़ाया।
नाहर ने कहा— "रहस्य तो ये भी है कि दोनों पेशाब के बहाने बाहर गए, हमारे यह कहने पर कि इसकी व्यवस्था तो झोंपड़ी के अंदर भी है, दोनों का जवाब लगभग एक ही था।"
"यह कि खुले में जाना चाहते हैं।" बात आशा ने पूरी की।
इसी विषय पर बहस और तर्क-वितर्क करते उन्हें करीब तीस मिनट गुजर गए—कोई नतीजा न निकला और उस वक्त वे इस पर विचार कर रहे थे कि किसी को झोंपड़ी से बाहर निकालकर हालातों का जायजा लेना चाहिए या नहीं। जब सुराख से आंख सटाए नाहर के मुंह से निकला—"कोई झोंपड़ी की तरफ आ रहा है।"
तीनों सुराखों पर झपटे।
आशा बोली—"ये तो विजय लगता है ।"
"हां!" ब्लैक ब्वॉय ने समर्थन किया— "चाल तो वही है।"
उस वक्त स्थिति साफ हो गई जब उन्होंने देखा कि आगंतुक खुद को छिपाए रखने का प्रयास करता हुआ झोंपड़ी की तरफ बढ़ रहा है—दरवाजे पर दस्तक होने तक वे जान चुके थे कि आगंतुक विजय ही है, सो दरवाजा खोला गया।
अंदर कदम रखते ही विजय की नजर बेहोश जिस्मों पर पड़ी, मुंह से निकला—"इन्हें क्या हुआ?"
"तुम्हारी और ठाकुर साहब की मदद के लिए बाहर निकलना चाहते थे।"
"ओह!" विजय जैसे सबकुछ समझ गया। बोला—"ये निर्णय जिसका भी था, उसकी तारीफ करनी होगी।"
"क्यों?" ब्लैक ब्वॉय ने पूछा।
"यदि इस झोंपड़ी के बारे में गांव वालों को इल्म हो जाता तो इस वक्त हममें से कई उनके चंगुल में होते और शेष उनके चंगुल से बचने के लिए गुमटी की पहाड़ियो में मारे-मारे फिर रहे होते—एक-दूसरे का शायद किसी को पता न होता।
"क्या मतलब ?"
"ठीक उसी तरह जैसे इस वक्त मुझे नहीं मालूम कि बापूजान कहां हैं—उनके चंगुल में फंस गए हैं या मेरी तरह बच निकले—यही हालत बापूजान की होगी, उन्हें नहीं मालूम कि मैं फंस गया हूं या...।"
"ऐसा क्या हुआ था?"
"ये न पूछो झानझरोखे कि क्या हुआ, बल्कि ये पूछो कि क्या नहीं हुआ ?"
"मतलब?"
"सशस्त्र और आदिवासियों की तरह हिंसक नजर आने वाले ग्रामीण हम पर यूं झपटे जैसे मधुमक्खियां अपना छत्ता तोड़ देने वाले पर झपटती हैं।"
"सबसे पहले यह बताइये कि आप और ठाकुर अंकल आपस में लड़े क्यों थे?" यह सवाल ब्लैक ब्वॉय ने किया। विजय एकदम जवाब न दे सका—एक नजर उसने बेहोश पड़े रैना, रघुनाथ और उर्मिलादेवी पर डाली—जाने कहां-कहां से सिमटकर चेहरे पर गंभीरता के लक्षण विराजमान हो गए—चारों सीक्रेट एजेंट उसके जवाब की प्रतीक्षा कर रहे थे और विजय ने एक झटके से कहा— "बापूजान हमारा राज जान गए हैं।"
"कैसा राज?" सबके मुंह से एकसाथ निकला।
अपनी दृष्टि ब्लैक ब्वॉय के चेहरे पर टिकाकर विजय ने अर्थपूर्ण ढंग से कहा—"वही राज, वह सब कुछ जो एक दिन दिलजला जान गया था।"
ब्लैक ब्वॉय अवाक् रह गया, उसके मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा, जबकि विक्रम ने कहा—"हम समझे नहीं?"
विजय एक झटके से उसकी तरफ पलटकर बोला— "यह राज कि हम सब आवारा नहीं, बल्कि भारतीय सीक्रेट सर्विस के सदस्य हैं।"
सबको एकसाथ लकवा मार गया।
विजय कहता चला गया—"वे यह भी जान गए हैं कि अपनी वास्तविकता छुपाए रखने के लिए मैं जानबूझकर मूर्खतापूर्ण हरकतें करता हूं।"
"उफ!
"म...मगर!" आशा हकला गई—"यह सब हुआ कैसे ?"
"कैसे हुआ, कब हुआ—यह तो लाल लंगोटी वाला ही जाने, हम तो सिर्फ यह जानते हैं कि हममें से किसी का भी ऐसा कोई राज बाकी नहीं बचा है जिसे वे जानते न हों—उनका कहना तो यह है कि वे गुमटी में आने से पहले ही यह सबकुछ जानते हैं।"
झोंपड़ी में गहरा सन्नाटा खिंच गया।
सब हक्के-बक्के एक-दूसरे का चेहरा ताक रहे थे। किसी के मुंह से बोल न फूटा। काफी देर बाद ब्लैक ब्वॉय बोला—"इसलिए आप उन्हें...?"
"यकीनन।" विजय ने कहा— "जैसे ही हमें विश्वास हुआ कि वे वास्तव में हर राज जानते हैं, तो हमने उन्हें ईश्वरपुरी पहुंचाने का निश्चय कर लिया—आप सब साहेबान जानते हैं कि हममें से कोई भी, ऐसे किसी 'बाहरी' व्यक्ति को जिंदा नहीं छोड़ सकता, जो हमारा राज जानता हो।''
"फ...फिर?" ब्लैक ब्वॉय ने सूखे कंठ से कहा।
"हम अपने नेक इरादों में कामयाब न हो सके—कुछ बापूजान का प्रतिरोध और कुछ ऐन वक्त पर गांव वालों का हमला।"
"ल...लेकिन...।" कहकर विक्रम अटक गया।
विजय उसकी तरफ पलटकर बोला—"बात पूरी करो प्यारे विक्रमादित्य ।"
"अगर वे सारा राज पहले से ही जानते थे तो राजनगर से यहां तक के रास्ते या इस झोंपड़ी में क्यों नहीं—वहां, बाहर ही उन्होंने तुमसे सबकुछ क्यों कहा?"
"यह सब ऐसा राज है प्यारे, जिसने खुद हमारी खोपड़ी को भी ठस कन्ने वाली पतंग की तरह हवा में 'टीप' कर दिया है।"
"क्या मतलब ?"
"झोंपड़ी से बाहर निकलकर उन्होंने सिर्फ यही नहीं कहा—कि वे हमारा राज जानते हैं, बल्कि यह भी कहा कि जो कुछ गांव वाले उनके बारे में कहते हैं, वह अक्षरशः सच है।"
"क...क्या ?" सभी उछल पड़े।
"जी हां, उन्होंने अपने मुंह से स्वीकार किया कि आज से बीस साल पहले उन्होंने इस गांव में लाशों के ढेर लगाए थे—लोगों को नग्न करके पेड़ों पर उल्टा लटकाकर आग में भूना था—उन्होंने यह स्वीकार किया कि वह वे ही थे जिन्होंने बीस साल पहले शेरबहादुर के समूचे परिवार को मौत के घाट उतारा था।"
"य...यह तुम क्या कह रहे हो?"
"वही—सिर्फ वही जानेमन, जो बापूजान ने फरमाया।"
"म...मगर यह सब कुछ उन्होंने क्यों किया?"
"यह सवाल न हमें उनसे पूछने की फुरसत थी, न उन्हें बताने की।" विजय कहता चला गया—"उन्होंने यह भी कहा कि गुमटी में रश्मि वाला ड्रामा रचकर उन्हें मैं नहीं, बल्कि वे हम सबको यहां लाए हैं।"
"वे लाए हैं ?"
"हां ।"
"क्यों ?"
"हम सबसे बदला लेने के लिए।"
"ब...बदला—कैसा बदला ?" व्यग्रता की ज्यादती के कारण ब्लैक ब्वॉय लगभग चीख पड़ा—"ये आप क्या पहेलियां बुझा रहे हैं। एक बार में ही साफ-साफ क्यों नहीं बता देते कि बात क्या है, ये सब क्या चक्कर है?"
"हम तो सिर्फ वही बता सकते हैं न प्यारे काले लड़के, जो हमें मालूम है और जो कुछ हमें मालूम है, वह सचमुच हमारे लिए भी केवल पहेलियां ही हैं।"
पुनः सन्नाटा छा गया, किसी के मुंह से बोल न फूटा।
विजय ने कहा—"जाने वे कौन-से और कैसे बदले की बात कर रहे थे, मगर इतना मालूम है कि 'कर रहे थे' कह रहे थे कि रैना, रघुनाथ और उर्मिलादेवी सहित हम सबको मौत के घाट उतार देना ही उनका उद्देश्य है और अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही वे हम सबको यहां लाए हैं।"
"अजीब हैरतअंगेज बातें कर रहे हो तुम।"
"निश्चय ही ये बातें हैरतअंगेज हैं, तभी तो उस वक्त से अब तक खुद हमारी खोपड़ी भी बिगड़ी पतंग की तरह चकरा रही है—और मजे की बात ये कि सबकुछ उन्होंने सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि अमल में लाने की भी कोशिश की।"
"कैसे ?"
"रिवॉल्वर निकालकर हमारा क्रियाकर्म कर देने में उन्होंने अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी थी—वह तो हम ही संगआर्ट की मदद से बच गए—हां, वे बार-बार यह जरूर कह रहे थे कि वे हमें इतनी आसान मौत नहीं मारना चाहते हैं, मगर जब हमें मरने के लिए तैयार देखा तो कोई कमी भी न छोड़ी।"
"माई गॉड!” आशा के मुंह से निकला।
नाहर ने सवाल किया— "फिर तुम लोग अलग-अलग कैसे हो गए ?"
"गांव वालों के हमले से और हां—!" विजय ने एकदम इस तरह कहा जैसे कुछ याद आया हो, बोला— "इस सारे परिवेश में खोपड़ी घुमा देने वाली एक बात ये भी है, कि गांव वालों के हमले से उन्होंने हमारी मदद की—एक गांव वाले का फैंका हुआ बल्लम जो निश्चय ही हमारी पीठ मैं पैवस्त होने जा रहा था, उसे गोली मारकर उन्होंने विपरीत दिशा में उछाल दिया।"
"यानि उन्होंने आपकी जान बचाई?"
"बेशक।"
"फिर भी आप कहते हैं कि...।"
"बिल्कुल कहते हैं प्यारे, इसलिए कहते हैं क्योंकि कहने के लिए मजबूर हैं—हकीकत ये है कि इस सारे झमेले में बापूजान एक बहुत बड़ी पहेली बन गए हैं—ऐसी पहेली जो कम-से-कम इस वक्त तो हमारी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही है।"
"अजीब बातें कर रहे हैं आप !"
"हमें नहीं मालूम कि वे गांव वालों के हत्थे चढ़ गए या बच निकले—मगर हमारा गांव वालों से बच निकलना भी एक रहस्यमय चमत्कार है।"
"वह कैसे?"
"किसी अज्ञात व्यक्ति ने गोलियां चलाकर हिंसक गांव वालों को तितर-बितर किया, जो हमें घेरे हुए थे—अज्ञात इसलिए, क्योंकि बच निकलने के बाद उसे जानने का हमें सौभाग्य नहीं मिला।"
"कहीं वे ठाकुर साहब ही तो नहीं थे?"
"यह बेहतरीन ख्याल हमारे दिमागे-खास में भी आया था, मगर सोचने वाली बात ये है कि अगर वे गोलियां उन्होंने ही चलाई थीं तो उनकी कथनी और करनी में ये हनुमान की पूंछ जैसा लंबा फर्क क्यों है—और यदि वह वे नहीं थे तो कौन था?"
"मुझे तो लगता है कि वे ठाकुर साहब ही थे।" अशरफ ने कहा।
"कैसे?"
"मेरा ख्याल है कि वे अपने किसी खास उद्देश्य के लिए हमारे साथ कोई चाल चल रहे हैं।”
"कैसा उद्देश्य और कैसी चाल?"
"यह तो वही जानें, मगर कथनी और करनी के फर्क से जाहिर है कि वे वास्तव में वह करना नहीं चाहते जो कह रहे हैं।"
"फिर?"
विजय की इस 'फिर' का अशरफ कोई जवाब न दे सका और इसीलिए झोंपड़ी में एक बार पुनः सन्नाटा छा गया—हां, वह लगातार विजय की तरफ देख जरूर रहा था। अचानक ब्लैक ब्वॉय ने सन्नाटा तोड़ा—"आपने बताया था कि जिस रात रश्मि (साधना) द्वारा पेश किए गए सबूत गायब हुए, उसके अगले दिन पुलिस फोर्स के साथ वे आपको गिरफ्तार करने कोठी पर आए थे?"
"बिल्कुल आए थे। सोलह आने सच।"
"क्यों?" ब्लैक ब्वॉय ने पूछा—"क्यों नहीं ले गए तब गिरफ्तार करके?"
"उन्हें ताव आ गया था।" विजय ने बताया—"दरअसल वे अच्छी तरह जानते थे कि सबूत हम ही ने गायब कराए हैं, मगर ये साबित करने के लिए उनके पास कोई सबूत नहीं था—इसीलिए हमारे मुकर जाने पर बुरी तरह तिलमिला उठे और गुस्से में भरे दोनों हाथों से हमारा गिरेबान पकड़कर बोले—"मगर हम तुम्हें चैलेंज दे रहे हैं, हमारा और तुम्हारा टकराव शुरू हो चुका है—जितने पैंतरे तुम्हें आते हों उनका इस्तेमाल करना और उनके जवाब में देखना अपने बाप के पैंतरे।"
"हां !" आशा उछल पड़ी—"उस वक्त मैं भी वहीं थी। मुझे अच्छी तरह याद है विजय कि जब वे तुम्हें गिरफ्तार किए बिना लौटने लगे तो रघुनाथ ने उनसे पूछा कि 'हम तो विजय को गिरफ्तार करने आए थे न सर?' जवाब में उत्तेजित ठाकुर साहब ने कहा था—“जरूर आए थे, लेकिन अगर यूं गिरफ्तार कर लिया रघुनाथ तो यह ये कहेगा कि ठाकुर साहब ने अपने पद और रुतबे का इस्तेमाल करके बगैर कुछ करने का मौका दिए गिरफ्तार कर लिया—हम इसे गिरफ्तार नहीं करेंगे, बल्कि उस हालत तक पहुंचा देंगे जब यह खुद हमारे पास आएगा—हमारे सामने घुटने टेककर कहेगा कि मैंने शिकस्त मान ली है—हमारी जीत वह होगी।"
"यह सब तो हमें याद है, मिस गोगियापाशा, मगर बापूजान के उस डायलॉग को यहां फिट करके तुम कहना क्या चाहती हो?"
"यह कि कहीं वे सचमुच अपने उस वक्त के कहे पर ही तो अमल नहीं कर रहे हैं?" आशा के स्थान पर ब्लैक ब्वॉय ने कहा— "उन्होंने आपको चैलेंज दिया था, यह साबित करने का चैलेंज कि वे नाम के-ही-नहीं, काम में भी आपके 'बाप' हैं—कहीं वे यही साबित करने के लिए तो कोई चाल नहीं चल रहे हैं?"
"मगर कैसी चाल?"
"यह तो वही जानें, लेकिन मुझे लगता है कि वास्तव में वे आपके दिए गए चैलेंज पर ही अमल कर रहे हैं—बीस साल पहले जो कुछ यहां हुआ, उसे स्वीकारने के पीछे उनकी कोई गहरी चाल है, वे झूठ बोल रहे हैं।"
"हालांकि मैं तुमसे सहमत नहीं प्यारे काले लड़के, लेकिन कुछ देर के लिए अगर यह बात मान भी लें कि वे झूठ-मूठ बीस साल पूर्व की घटना को स्वीकार कर रहे थे, तब भी यह हकीकत अपनी जगह है कि वे हमारा राज जान गए हैं और हमारी डिक्शनरी में साफ-साफ लिखा है कि जो हमारा राज जान जाए, उसे जिंदा नहीं छोड़ सकते ।"
सब चुप, जैसे सांप सूंघ गया हो।
दिल हथौड़े में बदलकर पसलियों पर चोट कर रहे थे।
विजय ने शुष्क एवं दृढ़ स्वर में कहा— "मतलब ये कि अब के बाद उन पर पहली नजर पड़ते ही तुम्हें उनका तिया—पांचा कर देना है।"
सख्त सर्दी के बावजूद चारों के चेहरों पर पसीना उभर आया।
"तुम लोग खामोश क्यों हो?" एकाएक विजय का लहजा पत्थर की तरह कठोर हो गया—"क्या भारतीय सीक्रेट एजेंट इतने बुजदिल हैं कि संस्था की एक क्लॉज पर अमल करने के नाम पर पसीने से नहा जाएं?"
"य...ये बात नहीं है विजय!"
"फिर...फिर क्या बात है?"
"क्या हमें यह पता लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि ठाकुर साहब को ये राज कब और कैसे पता लगा?"
"अगर हम यह जानने के फेर में रहे तो मुमकिन है कि बापूजान के साथ-साथ रैना, मोन्टो, रघुनाथ और मां (उर्मिलादेवी) को भी खत्म करने की नौबत आ जाए, क्योंकि यह राज अगर उन्होंने इन लोगों के सामने उगल दिया तो...।"
"हम ऐसा नहीं होने देंगे।" ब्लैक ब्वॉय ने दृढ़तापूर्वक कहा।
¶¶
झोंपड़ी के रोशनदान पर लटका धनुषटंकार कमरे के दृश्य को साफ देख सकता था और वह देख रहा था—एक कुर्सी, उस पर बेहोश पड़ा विकास—उसे चारों ओर से घेरे खड़े सशस्त्र ग्रामीण और—विकास के कंधे वाले जख्म पर कोई 'लेप' लगाता वैद्य। 'लेप' के प्रभाव से धनुषटंकार के देखते-ही-देखते जख्म से चमत्कारी ढंग से न सिर्फ खून बहाना बंद हो गया, बल्कि जख्म भी पहले से कम वीभत्स नजर आने लगा। विकास के ठीक सामने खड़े युवा ग्रामीण ने वैद्य से कहा— "इसका इलाज पूरी होशियारी से करना वैद्यजी, इसकी जान बहुत कीमती है—यही हमें बता सकता है कि इसके बाकी साथी और हमारे गांव का रावण कहां छुपे हैं?”
"फिक्र मत करो हरिया, यह लेप इसकी हड्डी में आए 'बाल' तक को भर देगा।'' कहते हुए वैद्य ने लेप के ऊपर पट्टी बांधनी शुरू कर दी।
पट्टी बांधने तक सभी खामोश रहे, जबकि इस काम से फारिग होने के बाद वैद्य बोला— "अब इसे होश में लाना पड़ेगा।"
"क्यों?" हरिया नाम के युवक ने पूछा।
"तुमने बताया था कि यह जख्म खुखरी से बना है। इसके जिस्म में लोहे का जहर फैल जाने का खतरा है। मेरी दवा से न सिर्फ वह खतरा खत्म हो जाएगा, बल्कि जो जहर फैल चुका होगा, वह भी साफ हो जाएगा।"
"ठीक है।" हरिया के होठों पर कुटिल मुस्कान फैल गई—"इसके होश में आने का इंतजार तो हम भी कर रहे हैं।"
एक लोटा पानी मंगाया गया।
मोन्टो सोच रहा था कि विकास गुरु का इन लोगों के हत्थे चढ़ जाना ही बेहतर रहा—कम-से-कम प्राथमिक उपचार तो मिल ही गया है।
मगर!
धनुषटंकार को चिंता इस उपचार के बाद की थी—वह अच्छी तरह जानता था कि ये लोग इलाज के बाद विकास को टॉर्चर करने वाले हैं और उसे उसी टॉर्चर से छुटकारा दिलाने की तरकीब सोच रहा था।
पानी के छींटे चेहरे पर पड़ने से सर्वप्रथम विकास की पलकों में कंपन हुआ, होंठों के मध्य से हल्की-सी कराह निकली और कुछ देर बाद उसने अपने चारों ओर की स्थिति का जायजा लिया।
वैद्य अपने थैले से शीशी निकालकर विकास की तरफ बढ़ा ही रहा था कि हरिया ने अपने बाजू के इशारे से रोका।
स्वयं आगे बढ़ा।
इस वक्त उसके चेहरे पर बड़े ही खतरनाक भाव थे। कुर्सी के नजदीक पहुंचकर उसने दोनों हाथों से विकास का गिरेबान पकड़ा और गुर्राया—"सबसे पहले अपना नाम बता।"
"व...विकास।" उसने बिना किसी हिचक के जवाब दिया।
"रावण कहां है?"
"र...रावण कौन?"
"मैं ठाकुर निर्भयसिंह की बात कर रहा हूं कुत्ते!"
उसके चेहरे पर दृष्टि टिकाए विकास ने कहा—"मुझे नहीं मालूम।"
विकास का जवाब सुनकर हरिया का चेहरा दहकती अंगीठी में कोयले की तरह भभक उठा, बोला—"याद है न कि तुझे खुखरी लगी थी?"
विकास ने 'हां' में गरदन हिलाई।
"ये तेरे सामने वैद्य खड़ा है।" उसने वैद्य की तरफ इशारा किया— "जख्म तो यह भर चुका है, मगर खुखरी के लोहे का जहर धीरे-धीरे तेरे समूचे जिस्म में अभी भी फैल रहा है। वैद्य के हाथ में मौजूद शीशी को देख, जब तक ये दवा तेरे हलक में नहीं जाएगी, तब तक जहर यूं ही फैलता रहेगा और तेरी जान ले लेगा—दवा तेरे हलक में उस वक्त तक नहीं जाएगी जब तक कि यह नहीं बता देगा कि तेरे साथी कहां छुपे हैं।"
मोन्टो के जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई।
वस्तुस्थिति समझ में आते ही खुद विकास का चेहरा भी पीला पड़ गया और उस पीले चेहरे को देखकर हरिया कह उठा—"तेरा चेहरा बता रहा है कि सारे हालात समझ चुका है तू। अगर अपने जिस्म में फैलते जहर को रोकना चाहता है तो जल्दी बोल, रावण कहां है?"
"ये क्या बेवकूफी कर रहा है हरिया बेटे?" वैद्य बोला—"इस तरह तो यह आधे-पौने घंटे में ही मर जाएगा।"
वैद्य की बात का जवाब देने के स्थान पर हरिया ने उल्टे विकास ही से कहा—"सुना तूने, सिर्फ आधा या पौन घंटा!"
"तुम मुझे मार नहीं सकते।" विकास ने कहा—"क्योंकि अगर मैं मर गया तो तुम्हें मेरे साथियों का पता बताने वाला कोई नहीं मिलेगा।"
हरिया बड़ी ही जहरीली मुस्कराहट के साथ बोला—"तुम शहरी लोग अपने-आपको बहुत चालाक समझते हो मगर गुमटी में ये चालाकी नहीं चलेगी कुत्ते—अगर आधे घंटे के अंदर तूने मेरे सवालों के जवाब नहीं दिए तो मैं ये समझ जाऊंगा कि किसी भी टॉर्चर से सारी जिंदगी तुझे तोड़ा नहीं जा सकता—और मेरे ये समझने के बाद हमें तेरी जिंदगी की कोई जरूरत नहीं रहेगी।"
विकास उसे देखता रहा।
"खुखरी का जहर तेरे जिस्म में लगातार फैल रहा है—जाहिर है कि तू हर पल मौत के और ज्यादा नजदीक सरकता जा रहा है—अगर बचना चाहता है तो बोल, बता कि तेरा मददगार बंदर कहां गया?"
"ये ठीक नहीं है, हरिया!" वैद्य ने कहा— "मुझे इसे दवा दे लेने दो, फिर भले ही चाहे जिस तरह पूछताछ करना।"
"मत भूलो वैद्य चाचा कि यह गुमटी के सबसे बड़े दुश्मन, इस गांव के रावण का साथी है, हमारा दुश्मन है।"
"मगर मेरे पेशे की सबसे पहली तालीम ये होती है बेटे कि जिसे हम अपने इलाज से बचा सकते हैं, उसे बचाने की पूरी योग्यताओं के साथ जी-जान से कोशिश करेंगे, भले ही वह दुश्मन हो।"
"अपना पेशा और उसकी तालीम अपने पास रखो चाचा, ये ऐसे दुश्मन नहीं हैं, जिन पर रहम किया जाए—बीस साल पहले निर्भयसिंह ने इस गांव की धरती को हमारे पुरखों की लाशों से पाट दिया था—हमें खून की एक-एक बूंद का हिसाब लेना है, एक-एक बूंद का।"
"म...मगर बेटे...।"
"आप खामोश रहें और अगर अपनी आंखों से नहीं देख सकते तो यहां से चले जाएं!" वैद्य को कुछ भी कहने का अवसर दिए बिना हरिया विकास की तरफ मुखातिब होकर बोला— "जवाब दो।"
"उनका पता क्यों जानना चाहते हो तुम?"
दांत पीसते हुए हरिया ने कहा— "उन्हें कच्चा चबा जाने के लिए।"
"उनसे इतनी नफरत क्यों करते हो?"
"क्या तुझे नहीं मालूम?"
"सुना है कि तुम लोग यह समझते हो कि बीस साल पहले जब वे एस.पी. के रूप डिक्की थाने पर आए थे, तब सुच्चाराम का अंत करने के बाद उन्होंने गांव में नरसंहार किया था।"
"हां, नरसंहार।" हरिया ने खूनी स्वर में एक झटके से कहा—"ऐसा नरसंहार, जिसके बारे में सुनकर जंगली भेडियों के भी कलेजे दहल जाएं—ऐसा खून-खराबा कि जिसे अपने बुजुर्गों से सुन-सुनकर हमारे दिलों में आग भर चुकी है—पागल हो गए हैं हम।"
"अगर मैं ये कहूं कि तुम सब भ्रम के शिकार हो, धोखे में हो।"
"बको मत।" उसने विकास के बाल पकड़ लिए।
"जोश से नहीं, होश से काम लो हरिया।" विकास ने उसे समझाने वाले लहजे में कहा—"जरा सोचो, अगर निर्भयसिंह ने सचमुच वह सब किया होता जो तुम्हारे बुजुर्ग बताते हैं तो निर्भयसिंह यहां आते ही क्यों?"
"उसे उसकी मौत खींच लाई यहां।"
"नहीं।"
"फिर क्यों आया है?"
"यह जानने कि गुमटी में उनके बारे में ऐसी भ्रांतियां क्योंकर फैल गई हैं? वे स्वयं चकित हैं! हम सबको साथ लेकर वे यहां सिर्फ यह जानने आए हैं कि आखिर किस वजह से सारा गांव उन्हें रावण समझता है।"
"इन बेकार बातों में जितना समय तू गंवा रहा है उसका नुकसान हमें नहीं, बल्कि तुझे होगा—मत भूल कि तेरे जिस्म में लगातार जहर फैल रहा है। समय रहते यदि यह दवा न खिलाई गई तो तुझे भगवान भी नहीं बचा सकेगा।"
"अगर एक वादा करो तो मैं तुम्हें उनका पता बता सकता हूं।"
"कैसा वादा?"
"सिर्फ यह कि तुम लोग उऩ्हें देखते ही हमला नहीं करने लगोगे—पहले उनकी बात ठंडे दिमाग से सुनोगे, मुमकिन है कि वे अपनी बेगुनाही का कोई सबूत देने में कामयाब हो जाएं।"
"ठीक है, हम ऐसा ही करेंगे।" हरिया ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा— "तुम ये बताओ कि वे कहां छुपे हैं?"
"वादा करते हो न?"
"हां, वादा करते हैं।"
विकास ने कहा—"मैंने सुना है कि गुमटी वाले अपने वादे के पक्के होते हैं?"
“ ठीक सुना है तूने—वादा रहा कि उस आज के रावण को अपनी सफाई देने का पूरा मौका दिया जाएगा।”
इस बार विकास कुछ बोला नहीं, सिर्फ ऐसी नजरों से उसे देखता भर रहा, जैसे सोच रहा हो कि पता बताना चाहिए या नहीं?
"जवाब दे!" हरिया गुर्राया।
"जहां से तुम मुझे लाए हो, वहां से ठीक एक मील दूर पूर्व में दो पहाडियों के बीच एक दर्रे में वे सब छुपे हुए हैं।"
हरिया की आंखें हीरे की मानिन्द चमक उठीं, बोला— "सब लोग वहीं हैं?"
"हां !"
"तो तू और बंदर रास्ते में क्या कर रहे थे?"
"यहां पहुंचकर हमने देखा कि कोई भी गांव वाला कुछ सुनने को तैयार नहीं है, शक्ल देखते ही सीधे मरने-मारने पर आमादा हो जाते हैं और हम लोग ये व्यर्थ का खून-खराबा नहीं चाहते थे—सो पुलिस की मदद लेने डिक्की जा रहे थे।"
"तेरा वह बंदर साथी कहां गया?"
"या तो दर्रे में छुपे बाकी साथियों को मेरी हालत की सूचना देने जाएगा या पुलिस की मदद लेने सीधा डिक्की—वह क्या करेगा, यह उसके विवेक पर निर्भर है।"
एकाएक वैद्य बोला—"अब तो मैं इसे दवा दे सकता हूं, हरिया?"
"अगर ये बातें झूठ निकलीं तो कसम से, हम तेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे।" इस चेतावनी के बाद एक तेज झटके के साथ उसने विकास के बाल छोड़ दिए।
उधर वैद्य ने विकास को दवा पिलाई, इधर हरिया ने कमरे में मौजूद ग्रामीणों से कहा—"हमें फौरन उस दर्रे को घेर लेना है, कहीं ऐसा न हो कि खतरा भांपकर वे स्थान बदल लें।"
एक स्वर में सबने सहमति प्रकट की।
हरिया ने कहा—"मगर जाने से पहले हमें यहां पहरे का ऐसा जबरदस्त इंतजाम करना है कि यह यहां से भाग न सके।"
धनुषटंकार ने निश्चिंतता की सांस ली।
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