रूपाली माधवन की उम्र 38 वर्ष थी लेकिन वो सुंदर भी थी और अपनी फिटनेस की भी ध्यान रखती थी इसलिए उसे देखकर मुश्किल से 30-35 साल के होने का अनुमान ही लगाया जा सकता था।

वो 'सनशाइन अपार्टमेंट्स’ की मालकिन थी।

उसके पति विपुल माधवन की मृत्यु हो चुकी थी, जिसके बाद रूपाली ही बिल्डिंग का काम-काज देखती थी।

बिल्डिंग के निवासियों और समाज के लिए भी वो एक गंभीर, अपने काम-से-काम रखने वाली, किसी से ज्यादा मेलजोल न रखने वाली महिला थी। बिल्डिंग में निवासरत किराएदारों से भी वो बहुत कम वास्ता ही रखती थी। वो खुद बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर स्थित एक फ्लैट में अकेली रहती थी।

'सनशाइन अपार्टमेंट्स’ में लिफ्ट दूसरी मंजिल पर आकर रूकी।

रूपाली ने लिफ्ट से बाहर कदम रखा।

गलियारा उस वक्त खाली था। सर्दी की रातों में वैसे भी लोग बाहर रहना पसंद नहीं करते।

वो प्रताप के फ्लैट के सामने पहुंची।

उस बिल्डिंग का ही कोई निवासी देखता तो उसे हैरानी होती।

क्योंकि रूपाली किराएदारों से मिलने उनके फ्लैट में बहुत कम ही जाती थी।

कोई छोटी-मोटी बात होती थी तो वो फोन पर ही कर लिया करती थी। या किराएदार को ही ऊपर अपने फ्लैट में बुलावा भेज देती थी।

उसने डोरबेल की ओर हाथ बढ़ाया लेकिन दरवाजा पहले से खुला देखकर हाथ को बीच रास्ते में ही रोक लिया।

उसने दरवाजे को धकेलते हुए अंदर प्रवेश किया।

अगले ही पल उसकी झनझनाती हुई चीख से पूरा फ्लोर गूंज उठा।

निरंजन ने लाश का एक और फोटो खींचा।

''हो गया?’’-इंस्पैक्टर प्रधान की आवाज उसके जेहन से टकराई।

''हां।’’-निरंजन ने कहा और लाश से एक ओर हट गया। हालांकि उसकी नजरें अब भी लाश पर ही थीं।

प्रताप की पथराई हुई आंखें छत को घूर रहीं थीं।

उसके सीने में बने गोली के सुराख से खून बहने के कारण शर्ट के सामने का हिस्सा लाल हो रहा था। इसके अलावा लाश फर्श पर पीठ के बल पड़ी होने के कारण उसके नीचे भी खून का छोटा-सा तालाब जैसा बना हुआ था।

पुलिस की पूरी टीम वहां मौजूद थी। फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट फिंगरप्रिंट उठाने का काम कर चुका था।

इंस्पैक्टर रितेश प्रधान 32 वर्षीय, सूरत से ही काफी सख्त किस्म का लगने वाला पुलिसिया था।

उसे सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर आ रहा था कि सिक्योरिटी के मामले में बिल्डिंग की हालत बेहद खराब थी। एक ही सीसीटीवी कैमरा था, जो मेनगेट पर ही लगा था। उस कैमरे में कोई भी संदिग्ध आदमी आता नहीं दिखाई दिया था।

इतनी बड़ी बिल्डिंग में सिर्फ एक सीसीटीवी कैमरा?

वैसे इसका एक कारण ये भी था कि वो इलाका कदरन सुरक्षित समझा जाता था।

वहां छोटी-मोटी चोरी की वारदातें भी कम ही होती थीं।

प्रधान ने एक बार फिर लाश पर नजर डाली, फिर बाहर गैलरी में पहुंचा, जहां वो शख्स मौजूद था, जिसने लाश बरामद की थी।

रूपाली माधवन।

'सनशाइन अपार्टमेंट्स’ की मालकिन।

इंस्पैक्टर प्रधान को पता चला था कि वो उस बिल्डिंग की मालकिन थी।

और प्रताप वहां किराए से रहता था।

लेकिन प्रधान को इस बात की हैरानी थी कि रूपाली की आंखों में आंसू थे।

पुलिस जब वहां पहुंची थी, उस वक्त भी वो रो रही थी और बिल्डिंग में रहने वाले लोग उसे संभाले हुए थे। अब वो पहले की तरह रो तो नहीं रही थी लेकिन चेहरे से अब भी उजाड़ लग रही थी।

''ये रो क्यों रही है?’’-प्रधान ने अपने साथ आए एक पुलिस वाले से पूछा।

''नहीं पता, सर।’’-पुलिस वालेे ने तत्परता से जवाब दिया-''हमने बाकी किराएदारों से भी पूछा। उन्हें भी कुछ नहीं पता।’’

प्रधान रूपाली के पास पहुंचा।

''आपने सबसे पहले लाश को देखा?’’-उसने रूपाली से सवाल किया।

उसने सहमति में सिर हिलाया।

''आप रो क्यों रही हैं?’’-प्रधान अपनी उत्सुकता को दबाए नहीं रख सका।

''वो...वो मेरा भाई था।’’

''ओह।’’-प्रधान ने समझने वाले भाव से सिर हिलाया, फिर अफसोस जाहिर करते हुए कहा-''हमें इस घटना का बेहद अफसोस है। लेकिन कातिल का पकड़े जाना जरूरी है। इसलिए आपको हमारे कुछ सवालों के जवाब देने होंगें।’’

''पूछिए।’’-उसने आंसू पोंछते हुए कहा।

''आप तो इस बिल्डिंग की मालकिन हैं न?’’

''जी हां।’’

''फिर आपका भाई एक आम किराएदार की तरह इस फ्लैट में क्यों रहता था?’’

''प्रताप कुछ महीनों से यहां रह रहा था। पहले वो दूसरी जगह किराए पर रहता था। किसी कारणवश उसे वो मकान छोडऩा पड़ा। उसने मुझे बताया कि उसे रिहायश की प्रॉब्लम हो रही है। उसने पूछा कि अगर हमारे यहां कोई फ्लैट खाली हो तो वो रहना चाहता था।’’

''तो आपने उसे ये फ्लैट दे दिया?’’

''हां।’’

''आप उसे अपने घर में भी रख सकतीं थीं।’’

''वो रहने के लिए तैयार नहीं हुआ। वैसे भी प्रताप अपनी जिंदगी खुलकर जीना चाहता था। उसे किसी तरह की रोक-टोक पसंद नहीं थी। इसके अलावा...वो एक पल के लिए हिचकिचाई, फिर बोली-भले ही मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं हैं लेेकिन फिर भी ये एक तरह से मेरी ससुराल ही है। वो अपनी बहन के ससुराल में नहीं रहना चाहता था।’’

''लेकिन ये तो पूरी बिल्डिंग ही आपकी है।’’

''पूरी बिल्डिंग मेरा ससुराल नहीं है। बिल्डिंग बिजनेस है। घर मेरा सबसे ऊपर वाले फ्लोर पर है।’’

''ओह।’’

एक पल की खामोशी के बाद प्रधान ने पूछा-''आप कुछ बता सकती हैं प्रताप का खून किसने किया होगा? किसी पर शक है आपको?’’

''मुझे नहीं पता।’’-उसने हिचकी ली-''प्रताप आजकल किन लोगों के संपर्क में था, किनसे उनकी बात होती थी, इसके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है।’’

''कमाल है? भाई-बहन एक ही बिल्डिंग में रहते थे। वो भी अनजान बनकर?’’

''शादी के बाद एक औरत की जिंदगी बदल जाती है। प्रताप तो वैसे भी अपनी जिंदगी में मस्त रहता था। रक्षाबंधन पर भी मैं ही उसे फोन लगाती थी, तब राखी बंधवाने आता था। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसने अपनी ओर से फोन लगाकर आने के लिए कहा हो।’’

''ओह। यानि लापरवाह किस्म का इंसान था। चलिए, ये तो उसकी बात हो गई। लेकिन कम-से-कम आपको तो उसके बारे में जानकारी रखनी चाहिए थी। एक ही बिल्डिंग में रहते हुए आप कह रहीं हैं कि आपको उसके बारे में कुछ नहीं पता।’’

''समझ लीजिए, जैसा वो भाई था, मैं भी वैसी ही बहन थी।’’

''मतलब?’’

''कोई भी रिश्ता दोतरफा होता है। ताली दोनों हाथ से बजती है। जब उसने कभी परवाह नहीं की कि मैं-उसकी मां जाई बहन-किस हाल में थी, किन समस्याओं से गुजर रही थी, मुझे अपने भाई की जरूरत थी या नहीं, तो मैं ही कब तक उसकी परवाह करती?’’

प्रधान ने सिर हिलाया। फिर गैलरी में थोड़ी दूरी पर खड़े आसपास के अन्य फ्लैट्स के निवासियों की ओर इशारा करते हुए कहा-''ये भी नहीं जानते कि प्रताप आपका भाई था?’’

''ये मेरे बारे में और भी बहुत कुछ नहीं जानते होंगें। मैं किराएदारों से ज्यादा वास्ता नहीं रखती। प्रताप को यहां रहते हुए कई महीने हो गए। लेकिन मैं दो-तीन बार ही उससे मिलने यहां आई हूं।’’

''इतना नाराज रहती थीं आप अपने भाई से?’’

''इसमें नाराज होने वाली कौन-सी बात है? उसे मेरे इस बर्ताव से कोई दिक्कत नहीं थी। बल्कि वो तो और खुश ही रहता था। कि उसकी बहन उस पर नजर नहीं रखती। उसकी जातीय जिंदगी में दखल नहीं देती। और सच पूछिए तो, मैं खुद भी उसकी निजी जिंदगी में इसीलिए कम-से-कम दखल देती थी। क्योंकि मुझे पता था कि मेरे भाई को आजाद जिंदगी पसंद है। जब मेरी शादी हुई थी, उस वक्त उसके चेहरे पर जो भाव थे, उनसे ही जाहिर हो गया था कि वो चैन की सांस ले रहा था कि उसे बहन की जिम्मेदारी से मुक्ति मिल गई है। छुटकारा मिल गया है। अब वो अपने मन की करने के लिए आजाद है। उस वक्त हमारी मां ही थी। वो भी मेरी शादी के कुछ साल बाद ही चल बसीं थीं।’’

''मतलब शादी के बाद से ही आपका अपने भाई से मिलना-जुलना कम हो गया था?’’

''हां। मिलना-जुलना तो तब होता, जब वो अपनी बहन की परवाह करने वाला भाई होता। इतने सालों में एक बार भी उसने अपनी ओर से फोन करके मुझसे नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं।’’

प्रधान ने गर्दन घुमाकर प्रताप के फ्लैट के दरवाजे पर नजर मारी।

बड़ी बेहिस औरत थी।

अपने भाई की लाश बरामद किए मुश्किल से एक घंटा नहीं गुजरा था और उसी फ्लैट के बाहर खड़े होकर-जिसमें भाई की लाश पड़ी थी-उसकी बुराई कर रही थी।

''उसे बुरा नहीं लगेगा।’’-रूपाली ने ऐसे कहा, जैसे उसके मन की बात भांप ली हो-''ये हकीकत थी। ये सब अगर मैं उसके मुंह पर भी कहती तो भी वो बुरा नहीं मानता। वो काफी प्रैक्टिकल किस्म का इंसान था।’’

''प्रैक्टिकल तो ठीक है।’’-प्रधान ने गहरी सांस ली-''लेकिन फिर भी...आप ऐसे शख्स की बुराई कर रहीं है, जो अब इस दुनिया में नहीं है। ऊपर से वो आपका भाई था।’’

''बस नाम के लिए ही भाई था। शादी के बाद जब मैं घर से चली गई तो उसने ऐसा एक भी काम नहीं किया, जिससे मुझे लगता कि इस दुनिया में मेरा कोई भाई भी था।’’

''अब तो सचमुच नहीं है। खैर, तो आप यहां क्या करने आईं थीं?’’

''वही जो एक बहन को करना चाहिए।’’

''मतलब?’’

''उसने तो कभी भाई होने का फर्ज नहीं निभाया। लेकिन मुझे बहन का फर्ज पता है। हाल ही में पता चला था कि उसे पैसों की दिक्कत चल रही थी। मैं उसे पैसे देने के लिए आई थी। लेकिन यहां देखा तो...।’’-उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।

''आपको कैसे पता चला उसे पैसों की दिक्कत थी?’’

''उसने खुद फोन करके बताया था।’’

''उसने आपसे पैसे मांगे थे?’’

''नहीं। पैसे वो कभी नहीं मांगता था। वो मुझसे कम-से-कम वास्ता रखने की कोशिश करता था। जैसे मैं इस दुनिया में हूं ही नहीं।’’

''ऐसा क्यों?’’

''शायद इसलिए क्योंकि मां ने मेरी शादी एक पैसे वाले घर में करवा दी थी। जबकि प्रताप...।’’-वो बोलते-बोलते चुप हो गई।

''प्रताप क्या?’’-प्रधान ने पूछा।

''फिर आप कहेंगें कि मैं उसकी बुराई कर रही हूं।’’

''जो बात है, वो बताइए।’’

''प्रताप आवारागर्द था। फिजूलखर्च था। घर का जो थोड़ा-बहुत पैसा था, वो सब उसने उड़ा दिया। यहां तक कि मां के गुजरने के बाद घर भी बेच दिया और किराए के घर में रहने लगा। वो छोटे-मोटे काम करके अपना काम चलाता था। कहीं टिक कर नहीं रहता था। मां के लाख कहने पर भी उसने शादी नहीं की। कहता था कि सैटल हो जाएगा, उसके बाद ही शादी-ब्याह के बारे में सोचेगा। लेकिन सैटल होने का भी उसका कोई इरादा नहीं दिखता था। कुल मिलाकर अगर मुझे न गिना जाए-जो कि शायद वो गिनता भी नहीं था-तो वो इस दुनिया में अकेला ही था। पास-पल्ले की रकम खत्म होने के बाद वो जैसे-तैसे गुजारा करता था। मुझसे कॉन्टैक्ट न के बराबर रखता था, शायद इसीलिए मुझसे आर्थिक मदद भी नहीं मांगता था।’’

''मांगता तो आप कर देतीं?’’

''क्यों नहीं करती? जैसा भी था, भाई था मेरा। आज भी उसकी मदद करने ही आई थी, जब उसने बताया था कि वो आर्थिक रूप से समस्याग्रस्त है। पहली बार मैं पैसों से उसकी मदद करने जा रही थी। लेकिन यहां देखा तो...।’’-वो आगे नहीं बोल पाई।

''सुनने में आया है, वो यहां किसी रूम पार्टनर के साथ रहता था?’’

''हां। लेकिन मैं इस बारे में ज्यादा नहीं जानती। दरअसल, इस अपार्टमेंट्स का एक रूल है। यहां सिंगल पर्सन या फैमिली वालों को ही फ्लैट दिया जाता है। पार्टनरशिप में रहने वालों को फ्लैट नहीं दिया जाता।’’

''ये नियम आपने बनाया है?’’

''मेरे पति विपुल माधवन ने बनाया था। कुछ साल पहले उनकी मृत्यु हो गई थी। वो अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपार्टमेंट्स को कैसे चलाना है, येे मैं उनके बनाए रूल्स के हिसाब से ही तय करती हूं। असल में’’-उसका स्वर थोड़ा नर्वस हो गया-''मुझे इस सबके बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं है। इसलिए मैं एक कठोर लैंडलेडी होने का दिखावा करती हूं। इसीलिए किराएदारों से वास्ता भी कम-से-कम रखने की कोशिश करती हूं।’’

''तो आपने सिर्फ प्रताप को रूम पार्टनर रखने की छूट दी हुई थी?’’

''मुझे ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली थी कि उसने फ्लैट में अपने साथ किसी और को रखा है या उस रूम पार्टनर के कारण किसी को परेशानी हो रही है। न ही प्रताप ने मुझसे ऐसा कुछ कहा था-हमारी वैसे ही बहुत कम बातचीत होती थी-कि उसे फ्लैट में पार्टनर रखने के लिए इजाजत चाहिए। फिर भी अगर वो मुझसे कहता तो मैं उसे इजाजत दे ही देती।’’

प्रधान उससे कुछ देर तक और भी पूछताछ करता रहा। फिर उसने पूछताछ के लिए आसपास के फ्लैट में रहने वाले लोगों का नंबर लगाया।

अगले दिन सुबह ऋषभ नहा-धोकर कुछ खाने की तलाश में किचन में पहुंचा।

''क्या बना रही हो, भाभी?’’-उसने गैस पर चढ़े तवे पर झांकते हुए कहा।

''परांठे।’’-वर्षा ने जवाब दिया, वर्षा उसकी भाभी का नाम था-''तुम बैठो मैं अभी लेकर आती हूं।’’

ऋषभ की भाभी वर्षा की उम्र 26 वर्ष थी। वो बेहद खूबसूरत थी और अपनी उम्र से कम ही दिखती थी। विनीत भी दिखने में अच्छा-खासा स्मार्ट था इसलिए दोनों की जोड़ी काफी जमती थी।

ऋषभ बाहर वाले कमरे में पहुंचा तो वहां विनीत ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठा गंभीर नजरों से उसी को देख रहा था। दूसरी कुर्सी पर ऋषभ की छ: वर्षीय भतीजी मोनिका स्कूल ड्रैस पहनकर स्कूल जाने के लिए तैयार बैठी हुई थी। उसके सामने एक प्लेट में एक परांठा रखा था लेकिन परांठे के साथ वो जो कर रही थी, उसे देखकर ये कहना मुश्किल था कि वो उसे खा रही थी या उसके साथ खेल रही थी।

''चाचा।’’-अपने प्रिय चाचा को देखकर मोनिका ने किलकारी भरी।

''ढंग से खा, मोनू।’’-ऋषभ उसके सामने मेज के पार रखी कुर्सी पर बैठते हुए बोला, फिर उसने विनीत के सामने सामने रखी प्लेट में रखे दो परांठों को देखकर कहा-''अकेले-अकेले ठूंस रहे हो।’’

कहने के साथ ही उसने उनमें से एक परांठा उठा लिया और टेबल पर पहले से रखी एक छोटी प्लेट पर रखकर खाने लगा।

विनीत अब भी उसे घूर रहा था।

''क्या हुआ?’’-उसे घूरते देखकर ऋषभ ने पूछा। पूरा मुंह भरा होने के कारण उसकी आवाज भारी हो गई थी।

''वो सौरभ है न।’’-विनीत ने कहा-''जिसकी परसों रात बार में तुम्हारे साथ लड़ाई हुई थी।’’

''क्या किया उसने?’’-ऋषभ ने पूछा।

''खून।’’

ऋषभ के चलते हुए मुंह पर ब्रेक लग गया।

''खून?’’-वो बोला-''किसका?’’

''प्रताप का। वो भी तो मौजूद था न उस रात? जब तुम्हारी सौरभ के साथ लड़ाई हुई थी?’’

''क्या लड़ाई-लड़ाई लगा रखा है? बस थोड़ी धक्का-मुक्की हुई थी। कोई पानीपत का युद्ध नहीं हुआ था उसके साथ।’’

''थोड़ी धक्का-मुक्की?’’-किचन से वर्षा ने आकर उसके सामने एक प्लेट में दो परांठें और रायता रखते हुए कहा-''तीस हजार का कैमरा तुड़वा आए और उसे थोड़ी धक्का-मुक्की कहते हो? फिर किसी से लड़ाई करोगे तो जरूर खजाने लुटवा दोगे।’’

''लुटवा कहां से दूंगा, जब मेरे पास कोई खजाना है ही नहीं।’’-ऋषभ ने कहा लेकिन वर्षा उसकी बात सुनने के लिए रूकी नहीं थी। वो उल्टे पांव किचन में वापस लौट गई थी।

''प्रताप का खून हो गया?’’-फिर वो अपने भाई से मुखातिब हुआ-''कब? कैसे? तुम्हें ये सब किसने बताया?’’

''मुझे कौन बताएगा? अखबार में पढ़ा। कभी अपनी फोटोग्राफी वाली मैग्जीन्स को छोड़कर अखबार भी उठा लिया करो। लोकल न्यूज वाले सेक्शन में देखना।’’

''कहां है अखबार?’’-ऋषभ ने इधर-उधर देखा।

विनीत ने पीछे दीवार से चिपककर रखी एक छोटी टेबल पर रखा अखबार उठाकर उसकी ओर बढ़ा दिया।

ऋषभ एक ही सांस में पूरी खबर पढ़ गया।

युवक की नृशंस हत्या, रूम पार्टनर गिरफ्तार

कल रात माहेश्वरी लेक इलाके में एक युवक की निर्मम हत्या की घटना प्रकाश में आई है। युवक का नाम प्रताप सालुंके था और वो माहेश्वरी लेक के पास 'सनशाइन अपार्टमेंट्स’ नामक एक बिल्डिंग में रहता था। घटना का पता तब चला, जब बिल्डिंग की मालकिन-जो कि मृतक की बहन भी थी-उससे मिलने फ्लैट में गई। वहां अपने भाई की लाश देखकर वो चीख पड़ी, जिस पर आस-पड़ोस में रहने वाले लोगों ने आकर उसे संभाला। सूचना मिलने पर पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचते हुए हत्या का प्रकरण पंजीबद्ध कर मामले की जांच आरम्भ की।

जांच में सामने आया कि सौरभ रस्तोगी नामक एक युवक कुछ दिनों पहले तक प्रताप के साथ उसी फ्लैट में रूम पार्टनर के तौर पर रहता था। बाद में प्रताप से किसी बात से झगड़ा होने पर वो फ्लैट छोड़कर दूसरी जगह जाकर रहने लगा। पिछली रात को ही सौरभ का 'पार्टी ऑन’ नामक स्थानीय बार में प्रताप के साथ झगड़ा हुआ था, जिसमें सौरभ ने प्रताप पर हाथ भी उठाया था और उसे जान से मारने की धमकी भी दी। शक के आधार पर पुलिस ने आरोपी सौरभ को उसके घर से गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस केस से जुड़े अन्य संदिग्ध आरोपियों से भी पूछताछ कर रही है।

''सौरभ।’’-ऋषभ के मुंह से निकला-''उसे तो मैंने देखा था।’’

''सौरभ को देखा था? कहां?’’-विनीत ने पूछा।

ऋषभ ने जवाब नहीं दिया। उसने जल्दी-जल्दी नाश्ता खत्म किया और अपना बैग उठाकर दरवाजे से बाहर निकल गया।

''अरे मोनू को स्कूल तो छोड़ दो।’’-पीछे से विनीत ने आवाज लगाई।

मोनिका बैग कंधे पर लादकर तैयार खड़ी थी।

ऋषभ वापस अंदर आया और मोनिका की बगलों में हाथ डालकर उसे किसी खिलौने की तरह उठाकर दरवाजे से बाहर निकल गया।


मोनिका को स्कूल छोडऩे के बाद ऋषभ स्टूडियो पहुंचा। वहां अपने रूम से उसने निरंजन को फोन लगाया।

''तुम कल रात कहां थे?’’-कॉल लगते ही ऋषभ ने पूछा।

''वहीं, जहां तुम सोच रहे हो।’’-उधर से निरंजन का शांत स्वर सुनाई दिया-''प्रताप की लाश की फोटुएं खींच रहा था।’’

''हे भगवान।’’

''मुझे भी यकीन नहीं हो रहा है।’’

''कितना अजीब है न?’’

''उसका खून हो जाना? हां, अजीब तो है। ऐसी वारदातें होती रहतीं हैं। लेकिन जब हमारी जानकारी के किसी आदमी के साथ होती हैं तो अजीब लगता है।’’

''अरे वो नहीं। जो अजीब है, वो बताऊंगा तो तुम यकीन नहीं करोगे।’’

''ऐसी क्या बात है?’’

''कल रात हम चारों फिर एक साथ, एक जगह पर थे। थोड़े अंतराल से थे। लेकिन एक साथ थे।’३

''हम चारों?’’

''प्रताप, मैं, तुम और सौरभ।’’

''क्या कह रहे हो?’’

''और पिछली रात बार में लड़ाई हुई थी। कल रात तो खून ही हो गया।’’

''यार, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। साफ-साफ कहो।’’

''अखबार में छपा है प्रताप का खून होने का समय 9.30 बजे से लेकर करीब साढ़े दस बजे के बीच का है।’’

''हां। तो?’’

''सवा दस बजे मैं सनशाइन अपार्टमेंट्स की पार्किंग में मौजूद था।’’

''तुम वहां क्या कर रहे थे?’’

''पलक को लेने गया था।’’

''पलक? वो भी वहां थी? वो वहां क्या कर रही थी?’’

ऋषभ को एक पल के लिए जवाब नहीं सूझा।

''उसने कहा था कि वो किसी सहेली से मिलने आई थी।’’-फिर वो बोला।

''सहेली से? इतने बड़े शहर में उसकी सहेली उसी बिल्डिंग में रहती है, जिसमें खून होने वाला था?’’

''अब...इसमें मैं क्या कह सकता हूं?’’

''उसने सहेली का नाम बताया किस सहेली से मिलने गई थी?’’

''नहीं। न मैंने पूछा। न उसने बताया।’’

''और ये सौरभ का क्या चक्कर है?’’

''वही तो मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है। मुझे वो ऐसा आदमी लगता तो नहीं, जो किसी का खून कर दे।’’

''अरे वो नहीं। तुमने कहा कल रात हम चारों एक ही जगह पर फिर से मौजूद थे। उनमें तुमने सौरभ का नाम भी लिया। सौरभ वहां मौजूद था ये तुम्हें कैसे पता? या पुलिस ने उसे कातिल होने के शक में गिरफ्तार किया है, उसके आधार पर ऐसा कह रहे हो?’’

''उसके आधार पर नहीं कह रहा। मैंने अपनी आंखों से उसे बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर निकलते देखा था।’’

दूसरी ओर सन्नाटा छा गया।

''क्या हुआ?’’-ऋषभ ने पूछा।

''तुमने सचमुच उसे बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर निकलते देखा था?

''हां। पलक ने मुझे पार्किंग में मिलने के लिए कहा था। मैं वहीं बाइक खड़ी करके उसका इंतजार कर रहा था। तभी पिछले गेट से सौरभ बाहर निकला। वो कुछ घबराया हुआ भी लग रहा था। फिर उसने अपनी बाइक उठाई और वहां से रफू चक्कर हो गया। बाइक भी उसने झाडिय़ों के पीछे इस तरह खड़ी की हुई थी कि सरसरी नजर डालने पर दिख भी नहीं रही थी।’’

''उस समय क्या समय हुआ था?’’

''दस बजकर पन्द्रह मिनट।’’

''अरे।’’-निरंजन के स्वर में उत्तेजना थी-''ये तो करीब-करीब कत्ल की घटना के पास का ही समय है।’’

''करीब-करीब? मतलब कन्फर्म नहीं है?’’

''कन्फर्म ही समझ लो। उसके हाथ में गन थी?’’

''नहीं। खाली हाथ था।’’

''वो तो होगा ही। मैं भी कैसा पागल हूं, जो ऐसा वाहियात सवाल पूछ रहा हूं। खून करके क्या वो खुलेआम गन लहराते हुए बाहर निकलेगा? गन उसने अपने कपड़ों में कहीं छिपा ली होगी। बाद में कहीं ले जाकर ठिकाने लगा दी होगी।’’

''ठिकाने लगा दी होगी? यानि पुलिस गन बरामद नहीं कर पाई है?’’

''नहीं। लेकिन सौरभ के जबान खोलते ही गन भी बरामद हो जाएगी। पुलिस के सामने अच्छे-अच्छे जबान खोल देते हैं। वो बेचारा चीज ही क्या है?’’

''तुम्हें...’’-ऋषभ हिचकिचाया-''सचमुच लगता है कि सौरभ प्रताप का खून कर सकता है?’’

''लगता तो नहीं है। लेकिन वो गुस्से में होश खो देने वाला इंसान है। हो सकता है मामला कुछ इधर-उधर हो गया हो। हो सकता है उसके और प्रताप के बीच जो भी झगड़ा चल रहा हो, वो इतना ज्यादा बढ़ गया हो कि नौबत यहां तक आ गई। वैसे भी हमें पता थोड़े ही है कि बार में उनके बीच झगड़ा किस बात को लेकर हुआ था।’’

''लगता तो मुझे भी नहीं कि वो खूनी हो सकता है। इसीलिए मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?’’

''तुम पुलिस स्टेशन जाओ और जो कुछ मुझे बताया है, इंस्पैक्टर प्रधान को बताओ।’’

''पुलिस को? पुलिस को बताने से तो वो और फंस जाएगा।’’

''ऋषभ, वहां एक कत्ल हुआ है। सच्चाई पुलिस को पता होनी चाहिए। सौरभ को खुद बताना चाहिए था कि वो वहां पर था। लेकिन वो पुलिस से लगातार इस बात को छिपा रहा है। इससे उसकी भूमिका और भी संदिग्ध हो जाती है।’’

''तो मैं सचमुच जाकर पुलिस को बता दूं?’’

''हां। मैं भी इंस्पैक्टर प्रधान को फोन करके बता देता हूं। और सुनो, तुम्हें टाइम पक्के से याद है न? तुमने दस बजकर पन्द्रह मिनट पर ही उसे बिल्डिंग से बाहर निकलते देखा था न? टाइम के आगे-पीछे होने से भी गड़बड़ हो सकती है।’’

''टाइम मुझे याद भी है और मेरे पास सबूत भी है।’’

''सबूत?’’

''कैमरा। संयोग से नया कैमरा होने के कारण मैं उससे दिन भर फोटो खींचता रहा था। उस समय सौरभ को गेट से निकलते देखकर भी मैंने तुरंत फोटो खींच लिया। लेकिन उस वक्त मैंने ये नहीं सोचा था कि उस फोटो की जरूरत इस तरह पड़ेगी।’’

''फोटो है? फिर याद रखना, वो फोटो भी इस केस में महत्त्वपूर्ण सबूत साबित हो सकती है। उस फोटो को संभालकर रखना। हो सके तो उसे कम्प्यूटर में भी कॉपी कर लो।’’

''उसकी जरूरत नहीं। मैंने प्रिंटआउट निकाल लिए थे।’’

''प्रिंटआउट निकाल लिए? गुड। उन्हें लेकर पुलिस स्टेशन पहुंचो। और सब कुछ इंस्पैक्टर को बताओ।’’

''लेकिन निरंजन...।’’-ऋषभ हिचकिचाया।

''क्या हुआ?’’

''कहीं सौरभ और न फंस जाए।’’

''सौरभ को पुलिस को सब सच बताना चाहिए था। वो तो पुलिस से यही कह रहा है कि वो घटनास्थल के आसपास भी नहीं फटका। कल पूरी रात अपने घर पर ही था। ये बात तो मुझे अभी तुमने बताई है कि कल रात तुमने उसे बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलते देखा था। यानि साफ है कि वो झूठ बोल रहा है। और वो झूठ क्यों बोल रहा है, ये पता चलना ही चाहिए। तुमने जो देखा है, तुम सिर्फं वही बता रहे हो। हो सकता है इसमें सौरभ का ही भला हो।’’

''उसका भला कैसे?’’

''देखो’’-निरंजन ने समझाते हुए कहा-''वो घटना की रात कत्ल वाली जगह के पास मौजूद था। लेकिन पुलिस से ये बात छुपा रहा है। वो और भी बहुत कुछ छुपा रहा हो सकता है। अगर वो कातिल नहीं भी है, तो भी सच को पुलिस से छिपाकर वो कई और बातों को भी छिपा रहा हो सकता है। यानि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कातिल की मदद कर रहा हो सकता है। अगर वो प्रत्यक्ष रूप से कातिल की मदद नहीं कर रहा, किसी और कारण से घटनास्थल के आसपास मौजूद था, प्रताप के खून से उसका कोई लेना-देना नहीं है, तो हो सकता है कि तुम्हारे रूप में गवाह सामने आने से वो झूठ बोलना बंद कर दे। स्वीकार कर ले कि वो बिल्डिंग में क्यों मौजूद था? वहां क्या कर रहा था? ऐसा करके वो अपना गला इस मामले में फंसने से बचा सकता है। अभी तक वो इसी दम पर पुलिस से झूठ बोल रहा है क्योंकि उसे लगता है कि उसे बिल्डिंग के अंदर या बिल्डिंग से निकलते हुए किसी ने नहीं देखा। तुम्हारे बयान के बाद उसे सच्चाई स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। और उसके बाद इस मामले में उसकी जो भी भूमिका होगी, वो सामने आ जाएगी। फिर कत्ल के इल्जाम से उसका अपने-आप ही पीछा छूट जाएगा, अगर’’-निरंजन ने अगर पर जोर देते हुए कहा-''वो कातिल नहीं हुआ तो।’’

''और हुआ तो?’’

''तो उसे उसके किए की सजा मिलनी ही है। तो तुम एक कत्ल के केस के महत्त्वपूर्ण गवाह हो, जिसने कातिल को हत्या के बाद घटनास्थल से भागते हुए देखा है।’’

''ठीक है। मैं पुलिस स्टेशन जाता हूं।’’

''ठीक है।’’

कॉल डिस्कनेक्ट करने के बाद ऋषभ ने सामने पड़ी दोनों फोटुएं उठाकर एक लिफाफे में डालीं और उठ ही रहा था कि तभी उसे दरवाजे पर आहट सुनाई दी।

किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी।

''ऋषभ।’’-पलक की आवाज सुनाई दी।

''पलक?’’-ऋषभ के मुंह से निकला-''आओ न। अंदर आओ।’’

दरवाजा खुला और पलक ने कमरे में प्रवेश किया।

ऋषभ ने उसे आंख भरकर देखा।

पलक ने उस वक्त एक सादा सलवार सूट पहना हुआ था लेकिन उसमें भी वो बला की खूबसूरत लग रही थी।

''बैठो’’-वो सामने कुर्सी की ओर इशारा करते हुए बोला-''इतनी सुबह-सुबह यहां कैसे?’’

वो हिचकिचाती हुई कुर्सी पर बैठ गई।

फिर उसने अपने हैण्डबैग से एक कार्ड निकालकर उसकी ओर बढ़ाया।

''क्या है ये?’’-ऋषभ ने कार्ड लेते हुए कहा।

''तुम्हारा प्रेस कार्ड। जिसके लिए तुमने पापा से बोला था।’’

''ओह। थैंक्स। एडीटर साहब को भी मेरा थैंक्स कहना।’’

ऋषभ ने नोट किया कि वो किसी बात को लेकर परेशान थी।

''मतलब तुम्हें भी सनशाइन अपार्टमेंट वाली घटना का पता चल गया है।’’-ऋषभ ने कहा।

उसने सहमति में सिर हिलाया।

''कल रात तुम वहां क्या करने गईं थीं?’’-अनजाने में ही ऋषभ का स्वर सख्त हो गया।

पलक ने उसकी ओर ऐसे देखा, जैसे ऋषभ के उसके साथ इस लहजे में बात करने की उम्मीद न हो।

उसे इस ढंग से अपनी ओर देखते पा कर ऋषभ को भी अपने लहजे पर अफसोस होने लगा।

वो उससे माफी मांगने की सोच ही रहा था कि उससे पहले ही पलक बोल पड़ी-''मैं तुम्हारे घर भी गई थी। वहां भैया से पता चला कि तुम स्टूडियो चले गए हो। इसलिए यहां चली आई।’’

''यहां आकर तुमने ठीक किया। लेकिन मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया?’’

''तुम्हारे सवाल का जवाब तो मैं कल ही दे चुकी हूं। मैं अपनी एक सहेली से मिलने वहां गई थी।’’

''कौन-सी सहेली?’’

''तुम उसे नहीं जानते।’’

''मैंने ये नहीं पूछा है कि तुम्हारी उस सहेली को मैं जानता हूं या नहीं? मैंने उस सहेली का नाम पूछा है।’’

''कीर्ति।’’

''कौन-से फ्लैट में रहती है वो?’’

''तुम मुझसे इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हो?’’

''क्योंकि मुझे नहीं लगता कि तुम कल रात वहां अपनी किसी सहेली से मिलने गई थी।’’

''तुम्हीं बता दो, किससे मिलने गई थी मैं?’’

''सौरभ से।’’

वो खामोश रहकर उसे घूरती रही।

''यानि मैं सच कह रहा हूं?’’-ऋषभ ने कहा।

''बकवास कर रहे हो तुम। और पता नहीं क्यों ऐसी बकवास कर रहे हो।’’

''मैं बकवास कर रहा हूं तो तुम ही बता दो सच क्या है?’’

''मैं अपनी सहेली से ही मिलने गई थी।’’

ऋषभ कुछ देर तक उसे देखता रहा।

पता नहीं क्यों उसे लग रहा था कि वो उससे झूठ बोल रही थी।

ऐसा शायद पहली बार हुआ था, जब वो पलक के साथ स्टूडियो के उस रूम में इस तरह अकेला था।

वो पल तो रोमांटिक होना चाहिए था।

लेकिन यहां मामला उल्टा हो रहा था।

ऋषभ को एक साथ कई चीजें सोच-सोचकर गुस्सा आ रहा था।

क्या पलक सचमुच सनशाइन अपार्टमेंट में सौरभ से ही मिलने गई थी?

क्योंकि  सौरभ को बिल्डिंग से निकलते हुए तो उसने अपनी आंखों से देखा था।

क्या सचमुच उस बिल्डिंग में-जिसमें कुछ दिन पहले तक ही सौरभ प्रताप के साथ रूम पार्टनरशिप में रहता था-पलक की सहेली भी रहती थी? जिससे मिलने पलक गई थी? क्या ये सब संयोग मात्र था?

या पलक जान-बूझकर उससे झूठ बोल रही थी?

और पहले तो जो झूठ बोला, वो बोला।

अब जब ऋषभ उससे साफ-साफ पूछ रहा था, तब भी वो सच कबूलने की जगह वहां अपनी किसी सहेली से ही मिलने जाने की बात कह रही थी।

''तुम मेरे पास क्यों आई हो?’’-फिर उसने कहा।

वो हिचकिचाई।

''एक मदद मांगने।’’-फिर उसने कहा।

''कैसी मदद?’’

''पहले तुम वादा करो कि जो मैं कहूंगी, वो तुम करोगे।’’

''काम क्या है?’’

''पहले वादा करो।’’

''पलक, इनफ विद दिस। सीधे-सीधे बताओ, बात क्या है?’’

''मुझे पता है कि कल रात तुमने सौरभ को सनशाइन अपार्टमेंट के पिछले गेट से बाहर निकलते देखा था।’’

''तो?’’

''और उसका फोटो भी खींचा था।’’

''तो?’’

''तुम अब क्या करने वाले हो?’’

''करना क्या है? पुलिस स्टेशन जा रहा हूं पुलिस को बताने।’’

''और वो फोटो भी पुलिस को दिखाओगे?’’

''वो तो दिखाने ही पड़ेंगें। अब वो एक मर्डर केस का सबूत बन चुके हैं।’’

''ये जानते-बूझते हुए भी पुलिस को वो फोटो दिखाओगे कि उन्हें दिखाने से सौरभ के खिलाफ केस मजबूत होगा? सब उसे कातिल समझेंगें।’’

''ओह। तो ये बात है।’’

''क्या हुआ?’’

''तुम सौरभ को बचाना चाहती हो।’’

''उसने हां में सिर हिलाया।’’

''लेकिन क्यों?’’

''क्यों?’’-वो हकबकाई-''क्योंकि...क्योंकि वो मेरा अच्छा दोस्त है।’’

जिस ढंग से उसने 'अच्छा दोस्त’ कहा, उससे ऋषभ को अपना पारा हाई होता महसूस हुआ।

''तो मैं क्या करूं?’’-उसका स्वर शुष्क हो गया-''अब तक तुम्हारी खिदमतें तो करता आया था। अब तुम्हारे दोस्तों को भी खिदमत करनी पड़ेगी?’’

''ऋषभ, तुम बात को समझ नहीं रहे हो...।’’

''मैं बात को खूब समझ रहा हूं। बल्कि तुम नहीं समझ रही हो कि तुम क्या कह रही हो। और क्या कर रही हो। तुम मुझसे पुलिस से सच छिपाने के लिए कह रही हो।’’

उसने बेचैनी से पहलू बदला।

''मुझे ये बताओ कि तुम्हें पता था कि सौरभ बिल्डिंग में ही था? या तुम वहां मिलने ही उसी से गई थीं?’’

''नहीं।’’-उसने प्रतिवाद किया-''मैं सौरभ से मिलने नहीं गई थी। और...और न ही मुझे पता था कि वो वहां पर था।’’

"यानि तुम वहां उसकी मौजूदगी से बिल्कुल अंजान थीं?"

उसने 'हां’ में सिर हिलाया।

''फिर क्यों चाहती हो कि मैं पुलिस से झूठ बोलूं? हो सकता है उसने सचमुच प्रताप का खून किया हो।’’

''नहीं।’’-उसने इनकार में सिर हिलाया-''सौरभ कातिल नहीं हो सकता।’’

''क्यों नहीं हो सकता? जब तुम्हें यही पता नहीं है कि सौरभ उस वक्त बिल्डिंग में था या नहीं, तो वो वहां क्या करने गया था, क्या करके निकल रहा था, इसकी गारंटी तुम कैसे ले सकती हो?’’

उसके मुंह से बोल न फूटा।

''बता सकती हो कि वो चोरों की तरह पिछले दरवाजे से क्यों निकल रहा था? मेनगेट से क्यों नहीं निकल रहा था? बाहर निकलते वक्त उतना बदहवास और घबराया हुआ क्यों लग रहा था? उसकी सूरत ही बयान कर रही थी कि वो अंदर कोई गुल खिलाकर बाहर आ रहा था। अपनी बाइक उसने झाडिय़ों के पीछे छिपाकर क्यों खड़ी की थी? जाहिर है कि वहां आते समय ही उसके मन में खोट था। वो जो भी करने आया था, सोची-समझी साजिश के तहत करने आया था।’’

''मैं यहां इस उम्मीद में आई थी’’-उसका स्वर रूआंसा हो उठा-''कि तुम मेरी मदद करोगे। लेकिन तुम तो सौरभ को ही हत्यारा साबित करने लगे।’’

''मैं उसे हत्यारा साबित नहीं कर रहा। उसने जो हरकतें की हैं, उन हरकतों ने उसके हत्यारे होने पर मुहर लगा दी है। पुलिस ने भी उसे इसीलिए गिरफ्तार किया है। तुम क्या पुलिस को बेवकूफ समझती हो?’’

''मतलब तुम मेरी मदद नहीं करोगे?’’

''मैं इस मामले में तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

''तुम पार्किंग में ही मौजूद थे’’-उसने कहा-''पुलिस को बयान देने जा रहे हो कि तुमने सौरभ को बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलते हुए देखा था। अगर तुम पुलिस को इस बारे में कुछ न बताओ तो...तो शायद सौरभ बच सकता है।

ऋषभ ने इनकार में सिर हिलाया।

''क्या हुआ?’’-वो बोली।

''मेरी अभी-अभी निरंजन से फोन पर बात हुई थी। उसने कहा था कि वो पुलिस इंस्पैक्टर को मेरे बारे में बता देगा। अब तक वो बता भी चुका होगा। पुलिस मेरे बयान के लिए इंतजार कर रही होगी। अब मैं इस बात को छिपा नहीं सकता कि मैं उस वक्त पार्किंग में मौजूद था और मैंने सौरभ को देखा था।’’

''तुमने निरंजन को सब कुछ बता दिया?’’-उसने अविश्वास भरे लहजे में कहा।

''हां। क्यों? क्या हो गया? वो मेरा दोस्त है। पुलिस फोटोग्राफर है। ऐसे मामलों का अनुभव है उसे। उससे सलाह नहीं लेनी चाहिए थी?’’

उसने एक पल के लिए सोचा, फिर आंखों में चमक भर कर बोली-''तुमने निरंजन को ही बताया है न? पुलिस को लिखित बयान तो नहीं दिया है। पुलिस सेे तुम कह सकते हो कि तुमने सौरभ को बिल्डिंग से निकलते हुए नहीं बल्कि...बल्कि बिल्डिंग की ओर जाते हुए देखा था।’’

''अच्छा?’’-ऋषभ के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान आ गई-''बिल्डिंग की ओर जाते हुए देखा था? उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद वो हवा में विलीन हो गया? शायद तुम भूल रही हो कि सौरभ ने तो पुलिस को ये बयान दे रखा है कि वो प्रताप के समय घटनास्थल के आसपास भी मौजूद नहीं था।’’

''हां। ये बात तो है। तुम कह देना कि तुमने सौरभ को वहां देखा ही नहीं।’’

''मतलब तुम जो पट्टी पढ़ा रही हो, उसे जाकर पुलिस के सामने पोयम की तरह सुना दूं? पुलिस को सच की भनक तक न लगने दूं?’’

''सच? सच का मतलब जानते हो क्या होगा? पुलिस उसे ही प्रताप का कातिल मान लेगी।’’

''पुलिस क्या करेगी, वो पुलिस जाने। मेरा काम पुलिस को वो बताना है, जो मैंने देखा है।’’

''जो तुमने देखा है, उसका तुम्हारे सिवा कोई गवाह नहीं है। तुम अगर अपने बयान को थोड़ा-सा बदल दो तो एक निर्दोष आदमी की जिंदगी बच सकती है।’’

''ये नेक कार्य मैं जरूर करता लेकिन मेरे पास फोटो भी हैं।’’

''फोटो?’’

''हां। संयोग से उस वक्त मैंने सौरभ का फोटो भी खींच लिया था, जब वो बिल्डिंग से निकल रहा था। और मैंने निरंजन से भी ये बात कह दी है। उसका कहना है कि सबूत के रूप में मैं वो फोटो भी पुलिस को सौंप दूं।’’

''तुम ऐसा नहीं कर सकते।’’

''मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है। निरंजन ने अब तक इंस्पैक्टर प्रधान से बात कर ली होगी। उसे फोटो के बारे में भी बता दिया होगा। अब मैं फोटो भी गायब नहीं कर सकता।’’

''प्लीज।’’-पलक की आंखों में आंसू आ गए-''मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं।’’

''उसकी जरूरत नहीं है।’’-ऋषभ ने कहा-''अगर मैं तुम्हारी मदद कर सकता तो जरूर करता।’’

''कर सकते? क्यों नहीं कर सकते? तुम्हें सिर्फ इतना ही तो कहना है कि तुमने सौरभ को वहां नहीं देखा था।’’

''हां। लेकिन ये झूठ है।’’

पलक उसे देखती रही।

''पलक’’-ऋषभ ने कहा-''समझने की कोशिश करो। ये गलत है। ये एक मर्डर केस है। मर्डर केस में असली कातिल के पकड़े जाने के लिए सारी चीजें सही-सही पता होनी बहुत जरूरी हैं। इसलिए मैं झूठा बयान नहीं दे सकता। क्या तुम नहीं चाहतीं कि जिसने प्रताप का खून किया है, वो गिरफ्तार हो?’’

''मैं चाहती हूं। लेकिन वो सौरभ नहीं है।’’

''ये पता लगाने की जिम्मेदारी पुलिस पर छोड़ दो।’’

''तुम...तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते?’’

''तुम इसे पर्सनल बनाने की कोशिश कर रही हो। लेकिन मैं इसे दूसरे नजरिए से देख रहा हूं। सौरभ को बचाने की दृष्टि से मैं झूठ बोल सकता हूं। लेकिन मैं इस केस को उस नजरिए से देख ही नहीं रहा।’’

''फिर किस नजरिए से देख रहे हो?’’

''उसी नजरिए से, जिस नजरिए से इसे देखा जाना चाहिए। जो हुआ, जिस समय हुआ, उसे अगर गलत ढंग से दर्शाया जाएगा-जो कि अगर मैं पुलिस के सामने झूठ बोल देता हूं, गलत बयान दे देता हूं, तो होगा-तो ऐसा भी हो सकता है कि वो इस केस को और भी उलझा दे। कातिल के बच निकलने के लिए एक और नई विंडो खुल जाए। पहले ही केस क्या कम उलझा हुआ है? अगर तुम्हारी बात ही मान लें कि सौरभ कातिल नहीं है-वैसे मुझे भी यही लगता है-तो भी कम-से-कम कत्ल के समय घटनास्थल के आसपास क्या हुआ था, इसकी जानकारी तो पुलिस को होनी चाहिए न? तभी तो वो असली कातिल तक पहुंच पाएगी। सौरभ तो पुलिस से सच छिपाने पर तुला हुआ है।"

''यही उसके बचने का एकमात्र रास्ता है।’’-पलक की आंखों में आंसू थे।

ऋषभ ने गहरी सांस ली, फिर बोला-''देखो पलक, मुझे पता है कि तुम्हें सौरभ की चिंता है। तुम उसका भला चाहती हो। लेकिन ये सामान्य परिस्थितियां नहीं हैं। ये एक कत्ल का केस है। वो भी एक बेहद जटिल कत्ल का केस। गलत बयान देना भी एक अपराध है। और वो अपराध तब और भी बढ़ जाता है, जब उससे कातिल को बच निकलने का मौका मिल सकता हो।’’

''तुम सब कुछ अपने मन से ही सोच लो। अगर तुम मेरे लिए, सौरभ के लिए ये बोल दोगे कि तुमने उसे बिल्डिंग से निकलते हुए नहीं देखा था, बल्कि वहां आसपास भी देखा ही नहीं था, तो इससे कातिल कैसे बच निकलेगा?’’

''पलक, तुम मेरी बात को गलत ढंग से ले रही हो...।’’

''मैं तुम्हारी बात को सही ढंग से ले रही हूं। साफ है कि तुम्हारा मेरी मदद करने का कोई इरादा नहीं है।’’

''ऐसा नहीं है। अगर ये इतना ही सीधा मामला होता तो मैं...।’’

''ये इतना ही सीधा है। मैंने तुमसे कोई पहाड़ तोडऩे या कोई एकदम बड़ा झूठ बोलने के लिए नहीं कहा है। सौरभ को तुमने वहां देखा था। मैं बस इतना मांग रही हूं कि तुम कह दो कि तुमने सौरभ को वहां नहीं देखा था। पता नहीं तुम्हें गवाह बनने की इतनी क्या जल्दी पड़ी थी, जो तुमने इतनी जल्दी निरंजन को फोन करके सब बता भी दिया।’’

''तुम दस मिनट लेट से आती तो पुलिस स्टेशन जाकर पुलिस को भी बता चुका होता। और हमारे बीच इतनी लंबी बहस नहंी हुई होती। न ही मुझे सौरभ के प्रति तुम्हारे इस डीप कन्सर्न का पता चलता।’’-उसने जान-बूझकर 'डीप कन्सर्न’ पर जोर दिया।

''यहां आने से याद आया’’-उसने इधर-उधर देखते हुए कहा-''एक गिलास पानी मिलेगा? या अब तुमसे इतनी उम्मीद भी न रखूं?’’

''ऐसा क्यों कह रही हों?’’-ऋषभ ने आश्चर्य से कहा।

''सही तो कह रही हूं। हो सकता है मुझे पानी देने से कातिल बच कर निकल जाए। असली कातिल पुलिस की पकड़ में न आ पाए। कातिल के पकड़े जाने की नई विंडो खुल जाए।’’

''ताने मारना बंद करो।’’-ऋषभ खड़े होते हुए बोला-''पानी लेकर आता हूं।’’

कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया।

वाटर प्यूरीफायर बाहर स्टूडियो के मेन रूम में था। स्टूडियो का शटर अब भी बंद था। विनीत अब तक स्टूडियो खोलने नहीं आया था।

वो 10 बजे के बाद ही आता था।

एक गिलास में पानी लेकर वो वापस अपने रूम में पहुंचा।

पलक एक ही सांस में पानी पी गई।

''निखिल को चाय के लिए बोलूं?’’-ऋषभ ने कहा। निखिल की चाय की दुकान स्टूडियो से थोड़ी ही दूर थी। वे लोग वहीं से चाय-कॉफी मंगाते थे।

''नहीं।’’-पलक ने हाथ के इशारे से मना किया-''चाय का बिल्कुल मन नहीं है। तो तुम मेरी मदद नहीं करोगे?

''जो तुम कह रही हो, वो मैं नहीं कर सकता।’’

''इतना बड़ा कोई काम नहीं बता रही हूं।’’

''पहले तुमने कहा कि झूठ बोलूं कि सौरभ को मैंने बिल्डिंग से बाहर निकलते हुए ही नहीं देखा।’’-फिर ऋषभ ने कहा-''अब चाहती हो, फोटो वाली बात को भी, बल्कि फोटो को ही छुपा लूं। तुम चाहती हो कि मर्डर केस से जुड़ा एक अहम सबूत पुलिस से छुपा लूं?’’

उसने तमककर ऋषभ की ओर देखा।

''मर्डर केस का सबूत?’’-वो बोली-''यानि तुम्हें भी लगता है कि सौरभ खूनी है?’’

''सौरभ खूनी हो या न हो। लेकिन वो फोटो एक कत्ल की वारदात के घटनाक्रम से जुड़ा है। वो एक बड़ा सबूत हो सकता है।’’

''सबूत तो वो तभी होगा न, जब तुम मानते हो कि सौरभ ने ही प्रताप का खून किया है।’’

''मेरे मानने या न मानने से कुछ नहीं होता, पलक। मैं बस संयोग से उस घड़ी वहां मौजूद था और संयोग से ही मैंने सौरभ की फोटो खींच ली थी। लेकिन वो दोनों ही संयोग अब एक मर्डर केस से जुड़े हैं। अगर सौरभ कातिल न भी हो तो भी गलतबयानी, सबूत छिपाने जैसी हरकत से अगर किसी तरीके से कातिल को फायदा मिल जाए-जो कि हम अभी नहीं सोच पा रहे-तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? बाद में कातिल नहीं पकड़ा जाता है तो कातिल के बच निकलने का दोष किसके सिर होगा?’’

''ये सब तुम क्या कह रहे हो? अगर तुम एक छोटा-सा झूठ बोल दोगे तो इससे कातिल कैसे बच जाएगा?’’

''देखो, कई बार चीज दिखने में छोटी लगती है लेकिन उसका बड़ा असर हो सकता है। और ऐसे केसेज में पुलिस छोटी-छोटी बातों को भी बड़े ध्यान से देखती है। बड़े ध्यान से उनकी जांच करती है। हो सकता है मेरे झूठ बोलने को भी वो लोग पकड़ लें और सौरभ के साथ-साथ मैं भी फंस जाऊं।’’

वो ऋषभ को देखती रही।

''और ये सब तो बाद की बात है।’’-ऋषभ ने कहा-''सबसे पहली बात तो यही कि मेरी कॉन्शियस ही मुझे ऐसा झूठ बोलने से इनकार कर रही है। ऊपर से फोटो वाली बात भी है। वो फोटो एक सबूत के तौर पर मेरे पास है। कि सौरभ 10.15 बजे सनशाइन अपार्टमेंट्स के पिछले दरवाजे से बाहर निकला था। झूठ बोलने के साथ ही उस सबूत को भी छिपाना होगा। माफ करना लेकिन मुझे ऐसा करना मंजूर नहीं है।’’

''सबूत?’’-वो बोली-''यानि तुम सौरभ को कातिल मानते हो?’’

''उसके खिलाफ जैसे सबूत सामने आए हैं, वो इसी बात की ओर इशारा करते हैं।’’

''अगर मैं तुमसे किसी बात का विश्वास करने को कहूं तो तुम विश्वास करोगे?’’

''किस बात का?’’

''करोगे या नहीं?’’

''करूंगा।’’

''सौरभ ने प्रताप का खून नहीं किया है।’’

''तुम्हें कैसे मालूम?’’

''मुझे मालूम है। सौरभ ऐसा नहीं कर सकता।’’

''तुम्हें ऐसा लगता है, पलक। जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो। हम वही-वही बातें दोहरा रहे हैं।’’

कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।

''ठीक है।’’-फिर वो बोली-''तुम्हें तकलीफ देने के लिए माफी चाहती हूं।’’

कहकर उसने अपना हैण्डबैग उठाया और रूम से बाहर निकल गई।


ऋषभ पुलिस स्टेशन में इंस्पैक्टर प्रधान के सामने मेज के पार कुर्सी पर बैठा हुआ था।

''क्या नाम है तुम्हारा?’’-इंस्पैक्टर ने अक्खड़ स्वर में कहा।

''ऋषभ।’’-ऋषभ ने शांत स्वर में कहा।

''तुमने सनशाइन अपार्टमेंट्स के पिछले गेट से सौरभ को बाहर निकलते देखा था?’’

''हां।’’

''टाइम क्या हुआ था?’’

''दस बजकर पन्द्रह मिनट।’’

''तुम सच तो बोल रहे हो न?’’

''मैं भला झूठ क्यों बोलूंगा?’’

''हो सकता है तुम्हारी सौरभ के साथ कोई दुश्मनी हो।’’

''मेरी उसके साथ ऐसी कोई दुश्मनी नहीं है कि उसे कत्ल के केस में फंसाता घूमूं।’’

''हो सकता है दुश्मनी हो। पिछली रात ही तुम्हारी एक बार में उसके साथ हाथापाई हुई थी।’’

''उसकी हाथापाई किसी और के साथ हो रही थी। मैं संयोग से बार में मौजूद था। उसे रोकने की कोशिश की तो वो मुझ पर ताकत आजमाने लगा। इसीलिए एक-दो हाथ झाडऩे पड़े।’’

''बस?’’

''बस।’’

इंस्पैक्टर ने घूरकर उसे देखा, फिर बोला-''रात की उस घड़ी तुम वहां क्या कर रहे थे?’’

''मैं अपने एक दोस्त को लेने वहां गया था।’’

''किसे?’’

''ये बताना भी जरूरी है?’’

''जो पूछा जा रहा है, उसका जवाब दो।’’

''पलक।’’

''ये कौन है?’’

''अखबार में काम करती है।’’

''अपने एक दोस्त को? शुरू में तो तुमने कहा, जैसे तुम किसी आदमी की बात कर रहे थे?’’

''मैंने सोचा उसके बारे में बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी।’’

''ऐसा क्यों सोचा तुमने।’’

''सौरभ को बिल्डिंग से बाहर निकलते हुए मैंने देखा था। उसकी फोटो भी मैंने ही खींची थी। पलक बाद में वहां पहुंची थी। इसलिए मुझे लगा उसका इस सबसे कोई वास्ता नहीं।’’

''इस बात का फैसला पुलिस करेगी।’’

''करिए।’’

''क्या?’’-उसने घूरकर ऋषभ को देखा।

''आप ही ने तो कहा कि पलक का इस सबसे वास्ता है या नहीं, इसका फैसला पुलिस करेगी।’’

वो कुछ पल तक ऋषभ को देखता रहा, फिर बोला-''कोर्ट में ये कहने से पीछे तो नहंी हटोगे कि तुमने सौरभ को बिल्डिंग के पिछले दरवाजे से बाहर निकलते देखा था?’’

''क्यों पीछे हटूंगा? और हटना भी चाहूं तो मेरा ईमानदार कैमरा मुझे पीछे नहीं हटने देगा।’’

''ईमानदार कैमरा?’’

''इंग्लिश में कहते हैं न। माई कैंडिड कैमरा।’’

''कैमरे की क्या बात है?’’

''कैमरे से मैंने सौरभ की फोटो खींची थी, जब वो बिल्डिंग से बाहर निकल रहा था।’’

''कैमरा कहां है?’’

''कैमरा इस बैग में हैं"-ऋषभ ने अपने शोल्डर बैग को थपथपाया-"लेकिन उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। मैं फोटो के प्रिंट निकाल कर लाया हूं।’’-कहकर ऋषभ ने अपनी जेब से फोटो वाला लिफाफा निकालकर उसकी ओर बढ़ा दिया।

इंस्पैक्टर ने लिफाफा खोला और उसमें रखी दोनों फोटुओं को देखा।

वो कुछ पल तक फोटो को देखता रहा।

''क्या है ये?’’-फिर वो बोला।

''फोटो।’’

''वो तो मुझे भी दिख रहा है। लेकिन इसमें बिल्डिंग के बाहर से निकल रहा सौरभ कहां है?’’

''दरवाजे से बाहर निकलकर अपनी बाइक की ओर बढ़ तो रहा है।’’

''कौन-सी बाइक? इसमें न कोई बाइक है। न सौरभ।’’

ऋषभ ने फोटो इंस्पैक्टर से लेकर देखा।

फोटो देखकर एक पल के लिए उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ।

फोटो में बिल्डिंग के पीछे के गेट का दृश्य तो दिख रहा था...

लेकिन उसमें सौरभ नहीं था।



''ऐसा कैसे हो सकता है?’’-कुछ देर की खामोशी के बाद ऋषभ के मुंह से निकला।

''क्या हुआ?’’-इंस्पैक्टर ने कहा।

''फोटो में...फोटो में सौरभ था। ये बिना सौरभ की फोटो कहां से आ गईं? मैंने खुद...।’’-बोलते-बोलते वो बीच में ही खामोश हो गया।

''तुमने खुद क्या?’’-इंस्पैक्टर ने कहा।

तस्वीरों को ध्यान से देखने के बाद ऋषभ को ये तो समझ में आ गया कि गड़बड़ कहां थी।

लेकिन उसे ये समझ में नहीं आ रहा था कि वो इंस्पैक्टर को क्या जवाब दे?

पलक ने उसे पानी लेने के बहाने अंदर भेजा था। उसी दौरान उसने फोटुएं बदल दी होंगीं।

पलक को मालूम था कि प्यूरीफायर स्टूडियो के बाहर वाले कमरे में रखा रहता है। उसे पता था कि पानी मांगने पर ऋषभ बाहर वाले कमरे में जाता।

और इस दौरान पलक को फोटुएं बदलने का मौका मिल गया।

पलक के पास बिल्डिंग के पिछले गेट की रात के समय की ही फोटुएं कहां से आईं?

इसका एक ही जवाब हो सकता था।

जब वे दोनों पार्किंग से निकलने लगे थे तो पलक ईयररिंग गिरने का बहाना करके थोड़ी देर के लिए पार्किंग में वापस गई थी।

उसी दौरान उसने वो फोटुएं खींचीं होंगीं।

लेकिन ऐसा हुआ भी था तो एक बड़ा सवाल और भी था।

पलक ने वैसा क्यों किया?

उसने बिल्डिंग के पिछले गेट की तस्वीरें क्यों लीं?

क्या उसे पहले से पता था कि सौरभ को बेगुनाह साबित करने के लिए उसे वैसी तस्वीरों की जरूरत पडऩे वाली थी?

पलक ने इतनी लंबी-चौड़ी प्लानिंग की थी?

क्या वो बिल्डिंग में हुए प्रताप के मर्डर के बारे में भी उसी समय से जानती थी?

ऋषभ को लगने लगा कि उसका दिमाग ही घूम जाएगा।

''ये वे फोटो नहीं हैं’’-फिर उसने निर्णायक स्वर में कहा-''जो मैंने खींचे थे।’’

''तो जो फोटो तुमने खींचे थे, वो कहां हैं?’’

''वो...वो किसी ने बदल दिए।’’

''बदल दिए? किसने बदल दिए?’’

ऋषभ जितना हैरान था, उतना ही खुद को दुविधा में फंसा हुआ भी अनुभव कर रहा था।

''पता नहीं।’’-ऋषभ ने कहा-''लेकिन आप चिंता मत करिए। जिसने भी फोटो बदले हैं, वो प्रिंटेड कॉपी ही बदल पाया है। फोटो अब भी मेरे कैमरे में सेव होंगें। उनसे मैं जितनी चाहे, उतनी कॉपी निकाल सकता हूं।’’

''हमारा काम फिलहाल एक कॉपी से ही चल जाएगा। आप दिखाइए तो सही।’’

''अच्छा हुआ मैं कैमरा साथ ले आया।’’-कहते हुए ऋषभ नेे अपने बैग से कैमरा निकाला।

''इसकी कोई जरूरत नहीं है।’’-तभी दरवाजे की ओर से आवाज आई।

ऋषभ ने पलटकर देखा।

दरवाजे पर पलक खड़ी थी।

वो एक पल तक पलक को घूरता रहा।

उसके कमरे में, उसे धोखा देकर लिफाफे से तस्वीरें बदल देने के बाद वो उसके सामने ऐसे निर्लिप्त भाव से खड़ी थी, जैसे उसे कुछ पता ही न हो।

''क्यों जरूरत नहीं है?’’-ऋषभ ने तल्ख स्वर में कहा।

''देखो, ऋषभ।’’-वो पास आकर उसे समझाने वाले भाव से बोली-''मैं मानती हूं कि तुम सौरभ से नाराज हो। बार में तुम्हारा उसके साथ झगड़ा भी हुआ था। तुम दोनों के बीच मारपीट भी हुई थी। उसने तुम्हारा कीमती कैमरा भी तोड़ दिया था। लेकिन...लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम...।’’

''मैं क्या?’’-ऋषभ ने तीखे स्वर में कहा।

''उससे बदला लेने के लिए झूठ बोलो।’’

''लगता है तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।’’

''तुम मुझे चाहे जो कह लो, लेकिन तुम्हें सच को मानना पड़ेगा।’’

''कैसा सच?’’

''कि तुमने बिल्डिंग के पिछले गेट से सौरभ को बाहर आते हुए नहीं देखा। बाहर आते देखना तो दूर की बात, उसे बिल्डिंग के आसपास भी नहीं देखा था।’’

''तुमने फिर अपनी बकवास शुरू कर दी?’’

''बहुत हुआ ऋषभ।’’

''हां। बहुत हुआ। अब बंद करो ये ड्रामा। और पुलिस के सामने कबूल करो कि तुमने ही लिफाफे से फोटुएं गायब की थीं।’’

''क्या बकवास कर रहे हो?’’

''बकवास तुम कर रही हो। मैंने सोचा भी नहीं था कि तुम मेरे साथ ऐसा करोगी। एक तरफ तुम मुझसे झूठा बयान देने के लिए मिन्नतें कर रहीं थीं, दूसरी ओर मौका पाकर फोटुएं गायब कर दीं।’’

''क्या बकवास है? मैं तुमसे झूठा बयान देने के लिए मिन्नतें क्यों करूंगीं? मैं तो चाहती हूं कि तुम पुलिस से सच बोलो।’’

''सच तुम्हें पच कहां रहा है?’’

''ये क्या मचा रखा है तुम दोनों ने?’’-प्रधान सख्त स्वर में बोला-''ये पुलिस स्टेशन है। कोई मछली बाजार नहीं।’’

''इंस्पैक्टर साहब।’’-पलक विनीत भाव से बोली-''मैं इनकी ओर से आपसे माफी मांगती हूं। ये मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। लेकिन दो दिन पहले इनका सौरभ के साथ झगड़ा हो गया था, जिसको लेकर ये अपनी खुन्नस निकालने की कोशिश कर रहे हैं।’’

''खुन्नस निकालने के लिए क्या मैं किसी को कत्ल के झूठे इल्जाम में फंसवा दूंगा?’’-ऋषभ भन्नाकर बोला।

''यही तो मैं कह रही हूं। ऐसा नहीं करना चाहिए।’’

''ये सब ड्रामेबाजी बंद करो।’’-प्रधान ने दोनों से कहा, फिर वो ऋषभ से मुखातिब हुआ-''इन्होंने’’-उसका इशारा पलक की ओर था-''आपके पुलिस स्टेशन आने से पहले ही फोन करके बता दिया था कि आप पुलिस स्टेशन आकर हमें ऐसी कोई कहानी सुनाने वाले हैं, जिसमें आपने सौरभ को प्रताप के खून के बाद सनशाइन अपार्टमेंट के पिछले गेट से बाहर निकलते हुए देखा था।’’

''ये कहानी नहीं है इंस्पैक्टर साहब।’’-ऋषभ ने प्रतिरोध किया-''आप खुद सोचिए। अगर कहानी होती तो क्या मैं आपको ऐसे फोटो दिखाता, जिसमें सौरभ है ही नहीं। मैंने असली फोटो लिफाफे में रखे थे। लेकिन वे दूसरे फोटो से बदल दिए गए हैं।’’

इंस्पैक्टर के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

''कल रात मैं भी वहीं पर थी, इंस्पैक्टर साहब।’’-पलक ने जल्दी से कहा-''बल्कि इन्हें मैंने ही वहां बुलाया था।’’

''हां। और तुम्हारे आने से पहले मैं सौरभ के फोटो खींच चुका था। या’’-ऋषभ ने याद करते हुए कहा-''तुम आ गईं थीं लेकिन ध्यान सौरभ पर होने के कारण मैं तुम्हें देख नहीं पाया। तुमने मुझे फोटो खींचते हुए देख लिया था। इसीलिए बाद में बहाना बनाकर वापस पार्किंग में आईं और गेट के पिछले हिस्से का खाली फोटो खींच लिया। जिससे मेरी खींची फोटो को झूठा साबित कर सको।’’

''बकवास। तुम जब पार्किंग में पहुंचे, उस वक्त मैं पहले से वहां मौजूद थी। तुम्हारे आते ही हम दोनों एक साथ वहां से रवाना हो गए थे। सौरभ बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर नहीं निकला था। इसलिए न तुमने उसे देखा और न मैंने। और न ही तुमने उसका कोई फोटो खींचा था।’’

ऋषभ चेहरे पर अविश्वास के भाव लिए पलक को देखता रह गया।

सौरभ के लिए वो इस हद तक जा सकती थी, ये उसने सोचा भी नहीं था।

''कोई मुझे बताएगा’’-प्रधान ने कहा-''यहां हो क्या रहा है?’’

''कुछ नहीं हो रहा है, इंस्पैक्टर साहब। ऋषभ को कुछ गलतफहमी हो गई थी। इसकी ओर से मैं आपसे माफी मांगती हूं।’’

''नहीं।’’-ऋषभ ने उसके हाथ जोड़ते हुए नाटकीय स्वर में कहा-''मेरी ओर से माफी मांगने की आपको कोई जरूरत नहीं है। आप मेरे लिए जो कर रहीं हैं, वही कुछ कम नहीं है। इसे ही मैं सारी जिंदगी नहीं भूल पाऊंगा।’’

''एक तो मैं तुम्हारी ओर से इंस्पैक्टर साहब से माफी मांग रही हूं और तुम हो कि मेरा ही मजाक उड़ाने पर तुले हो।’’

''मेरे ऑफिस का तमाशा बना कर रख दिया है।’’-प्रधान बड़बड़ाया।

''एक मिनट रूको।’’-पलक की चोरी और सीनाजोरी ऋषभ की बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी-''तुम ये कहना चाहती हो कि मैंने सौरभ को बिल्डिंग के पिछले गेट से बाहर निकलते हुए नहीं देखा था? उसकी फोटो नहीं खींची थी?’’

''हां।’’-पलक ने दृढ़ स्वर में कहा।

''अभी तुम्हारी सारी चालाकी धरी रह जाएगी। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।’’-कहते हुए ऋषभ ने बैग से कैमरा निकाल लिया।

कैमरा देखकर पलक सकपका गई।

''ये रहा मेरा कैंडिड कैमरा।’’-ऋषभ कैमरे को लहराते हुए विजेता के-से भाव से बोला-''कहते हैं तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं। लेकिन तस्वीरें बदली जा सकतीं हैं। आज से नई कहावत बनेगी। कैमरे झूठ नहीं बोलते। ये देखिए, इंस्पैक्टर साहब।’’-उसने कैमरा ऑन किया-''इसमें वो सारी तस्वीरें हैं, जो मैंने कल रात खींचीं थीं। इन्हीं में सौरभ की बिल्डिंग के पिछले गेट से निकलने की तस्वीर भी...।’’-बोलते-बोलते वो बीच में ही चुप हो गया।

''अब क्या हो गया?’’-प्रधान ने कहा।

कैमरे में कोई फोटो नहीं दिख रही थी।

ऋषभ ने फुर्ती से कैमरा खोलकर चैक किया।

कैमरे का मेमोरी कार्ड गायब था।

उसने सिर उठाकर पलक की ओर देखा।

पलक उसकी ओर मासूमियत से देख रही थी।

लेकिन जब दोनों की नजरें मिलीं तो एक पल के लिए-केवल एक पल के लिए-पलक की आंखों में विजेता की चमक नजर आई।

ऋषभ ने इंस्पैक्टर के सामने ही अपना सिर पकड़ लिया।

वो जब पलक के कहने पर पानी लेने गया था तो कैमरा पलक के सामने टेबल पर ही छोड़ गया था।


पलक ने दरवाजा खोला।

पुलिस स्टेशन में हुए ड्रामे के बाद वो ऋषभ को वहीं छोड़कर अपने घर आ गई थी

ऋषभ पर नजर पड़ते ही उसकी आंखें फैल गईं।

''तुम?’’-वो बोली।

''हां। झूठा इंसान। पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करने वाला। झूठा बयान देने वाला। सौरभ को मर्डर केस में फंसाने की साजिश रचने वाला।’’

उसने कुछ नहीं कहा। लेकिन वो थोड़ी व्याकुल दिखाई दे रही थी।

''अब अंदर आने दोगी या मेरे मुंह पर दरवाजा बंद करने का इरादा है?’’

वो सामने से हट गई।

ऋषभ ने कमरे में प्रवेश किया और सोफे पर जाकर बैठ गया।

''कुछ लोगे?’’-पलक ने सामने सोफे पर बैठते हुए कहा-''चाय? कॉफी?’’

''नहीं। चाय-कॉफी रहने दो। और पानी पिलाने की तो सोचना भी मत। पता चले तुम मेरे लिए पानी लेने किचन में गईं और मैंने यहां तुम्हारी कोई कीमती, कोई काम की चीज गायब कर दी। ये सब भी बहुत होने लगा है आजकल। और ये तो बिल्कुल मत सोचना कि तुम मुझे जानती हो, मेरी दोस्त हो, तो मैं ऐसा नहीं करूंगा। आजकल किसी का कोई भरोसा नहीं है।’’

वो खामोश रही।

''क्यों किया तुमने ऐसा?’’-ऋषभ ने ही खामोशी तोड़ी।

''कैसा?’’

''अंजान बन कर दिखाने की जरूरत नहीं है। तुम्हें अच्छी तरह पता है कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं।’’

''पता नहीं तुम क्या कह रहे हो।’’

''कल रात जब तुम घर आकर सौरभ को पन्द्रह मिनट बाद देखे जाने का बयान देने की रिक्वेस्ट कर रहीं थीं, उस वक्त तुमने लिफाफे में फोटो बदल दिए थे। और फोटो ही नहीं बदल दिए थे, मेरे कैमरे से मेमोरी कार्ड भी निकाल लिया था।’’

''तुम मुझ पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हो?’’

''पलक, मैं तुम्हें बहुत मानता हूं। तुम्हें मेरे साथ नाटक करने की जरूरत नहीं है।’’

''मानते हो तभी तो मेरी एक छोटी-सी रिक्वेस्ट भी नहीं मानी तुमने।’’

''मैंने तुम्हें कल ही, विस्तार से, अच्छी तरह समझाकर बताया था कि जैसा तुम कह रही थीं, वैसा क्यों नहीं हो सकता था। लेकिन शायद तुम्हारी समझ में नहीं आया। शायद तुम सौरभ को लेकर कुछ ज्यादा ही परेशान थीं।’’

''मैं तो छोटी रिक्वेस्ट कर रही थी। उसे न मानकर तुमने मुझे बड़ा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया।’’

''बड़ा कदम। जैसे कैमरे से मेमोरी कार्ड को गायब कर देना।’’

''मैंने कोई मेमोरी कार्ड गायब नहीं किया।’’

''लिफाफे से फोटो भी तुमने नहीं बदले होंगें।’’

वो खामोश रही।

''मुझे तो हैरानी इस बात की है कि तुम पहले ही पूरी तैयारी करके आईं थीं। तुमने रात में पार्किंग की उसी जगह से लगभग उसी एंगल से बिल्डिंग के पिछले गेट के फोटो लिए थे, जहां मैं खड़ा था। और वो फोटो अपने साथ लेकर आईं थीं। जिससे मौका पाकर उन्हें बदल सको।’’

''मैंने कोई फोटो नहीं बदले। मुझे उम्मीद थी तुम मेरी रिक्वेस्ट मान लोगे। मुझे बहुत भरोसा था तुम पर। लेकिन तुमने मेरे भरोसे को तोड़ दिया।’’

''भरोसा था। लेकिन तुम मुझे जानती भी थीं कि मैं गलत काम करने में तुम्हारा साथ नहीं दूंगा। इसलिए तुम पहले से तैयारी करके आई थीं। फोटो बदलने के अलावा कैमरे से मेमोरी कार्ड गायब करने में भी तुम जरा भी नहीं हिचकिचाईं। मुझे किचन से पानी लाने में समय ही कितना लगा था। बड़ी फुर्ती से काम किया तुमने। बिना किसी गिल्ट के। बिना किसी डर या फिक्र के।’’

''पता नहीं तुम किस बारे में बात कर रहे हो।’’

''मुझे वो मेमोरी कार्ड वापस चाहिए।’’

''पता नहीं तुम किस बारे में बात कर रहे हो।’’

''पलक, उसमें मेरी और भी कुछ जरूरी फोटुएं हैं। मुझे विश्वास है कि सौरभ की फोटुएं तो तुमने अब तक डिलीट भी कर दी होंगीं। अब वो मेमोरी कार्ड तुम्हारे किस काम का? मेरा कार्ड वापस कर दो।’’

''ऐसे भी सॉफ्टवेयर आते हैं, जिनसे डिलीटेड फाइल्स को रिकवर किया जा सकता है।’’

''चलो, तुमने ये तो माना कि मेमोरी कार्ड तुम्हारे ही पास है।’’

''पता नहीं तुम किस बारे में बात कर रहे हो।’’

''पलक, भगवान के लिए ये नाटक बंद करो।’’

''मेरे ऑफिस जाने का टाइम हो रहा है।’’-वो व्यस्तता का प्रदर्शन करते हुए बोली-''अगर तुम्हें यही सब फिजूल की बातें करनी हैं तो किसी खाली टाइम में आना।’’

''मेरा कार्ड दे दो।’’

''पता नहीं तुम किस बारे में बात कर रहे हो।’’

''मैं कह रहा हूं मेरे कैमरे का मेमोरी कार्ड वापस कर दो, जो तुुमने कल रात मेरे घर पर कैमरे से निकाल लिया था।’’

''मैंने कोई कार्ड नहीं निकाला था।’’

''सौरभ तुम्हारे लिए इतना खास है? कि उसके लिए तुम मेरे साथ भी ये सब कर सकती हो?’’

''क्या किया मैंने?’’

''फोटो बदल दिए और कैमरे से मेमोरी कार्ड भी गायब कर दिया। जिसके चलते मुझे पुलिस के सामने जलील होना पड़ा। वो तो अच्छा हुआ इंस्पैक्टर अच्छा आदमी था। वरना हो सकता है वो मुझे झूठा बयान देने के मामले में ही धर लेता।’’

''धरा तो नहीं न?’’

''धर लेता, शायद तब ही तुम्हें सुकून मिलता।’’

''देखो ऋषभ’’-उसने गहरी सांस ली-''सौरभ मेरे लिए बहुत खास है। मैंने कल तुम्हारे सामने बहुत मिन्नत-समाजत की। लेकिन तुम एक छोटा-सा झूठ बोलने के लिए तैयार नहीं हुए। मैं तुम्हें तो अपना साथ देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। जैसे कल रात ही नहीं कर पाई थी। लेकिन सौरभ को बचाने के लिए जो मुझे करना है, वो तो मुझे करना ही पड़ेगा।’’

''चलो, मेरा भ्रम तो टूटा कि तुम मुझे भी कुछ समझती हो।’’

''मैं तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त समझती हूं। और यकीन मानो, सौरभ की जगह तुम होते और तुम्हारी जगह सौरभ, तो तुम्हारे लिए भी मैं यही सब कर रही होती। बाकी ये बात अलग है कि तुम्हारी जगह सौरभ होता तो नौबत यहां तक आती ही नहीं। सौरभ मेरे लिए एक छोटा-सा झूठ बोलने से कभी इनकार नहीं करेगा।’’

''झूठ, जो पुलिस से बोलना था। झूठ, जिससे एक मर्डर केस को लेकर गलतबयानी होती।’’

''तुम्हें इतनी दूर की सोचने की जरूरत नहीं है। अच्छा, एक बात बताओ, सौरभ की जगह अगर मैं होती, तब भी क्या तुम पुलिस को बता देते कि तुमने मुझे बिल्डिंग से बाहर आते हुए देखा था?’’

ऋषभ कुछ न कह सका।

''तुम सौरभ को नहीं जानते हो, इसलिए उसकी मदद करने से हिचक रहे हो। लेकिन मैं उसे जानती हूं। मैं उसे बचाने की हरसंभव कोशिश करूंगी।’’

''चाहे उस कोशिश में किसी अपने का दिल ही क्यों न दुखाना पड़े?’’

''किसी की जिंदगी बर्बाद होने से बचाने के लिए थोड़ी देर के लिए किसी अपने का दिल दुखाना पड़े तो मुझे उसमें कोई ऐतराज नहीं है।’’

फिर शायद तुमसे कुछ कहने का फायदा ही नहीं है।

उसने कुछ नहीं कहा।

ऋषभ उठा और घर से बाहर निकल गया।