सुनील जब अपने होटल में पहुंचा, तो डाक से, वह लिफाफा जिसमें उसने लाकर की चाबी रखी थी वहां पहुंच चुका था । सुनील ने चाबी निकालकर जेब में रखी और लिफाफे को फाड़कर फेंक दिया ।
फिर उसने एयरोड्रोम टेलीफोन किया तो मालूम हुआ कि लगभग एक घन्टे बाद एक प्लेन राजनगर की ओर छूटने वाला था । सुनील ने उसमें एक सीट बुक करा ली ।
फिर उसने स्टेशन जाकर लाकर में से ब्रीफकेस निकाल लिया और लाकर छोड़ दिया ।
लगभग एक घन्टे के बाद सुनील प्लेन में बैठा राजनगर की ओर उड़ रहा था ।
सुनील चन्द्रशेखर की डायरी, जो उसने उसके फ्लैट से चुराई थी, निकाली और उसके पृप्ठ पलटने आरम्भ कर दिये ।
एक स्थान पर लिखा था - चाचा जी को अस्पताल में दाखिल हुए आज चौथा दिन है । उनकी हालत दिन ब दिन गिरती जा रही है लेकिन फिर भी वे अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं । चाचा जी माधुरी नाम की एक नर्स में बड़ी दिलचस्पी ले रहे हैं । वह नर्स भी पता नहीं कैसी लड़की है कि हर वक्त उन्हीं के आसपास मंडराती रहती है । चाचा जी तो पक्के औरतखोर हैं ही । मुझे डर है कि कहीं वे मरते-मरते भी कोई गड़बड़ न कर जायें । जानकी भी इस बात को महसूस कर रही है ।
दो तीन तारीखों के बाद लिखा था -
आज मैंने चाचा जी को माधुरी का चुम्बन लेते देखा । चाचा जी माधुरी से कह रहे थे कि वे स्वस्थ हो गये तो माधुरी से शादी कर लेंगे । माधुरी भी अपनी सम्मति प्रकट कर रही थी । मैंने जानकी को सारी बात बताई । उत्तर में मुझे जानकी ने जो संकेत दिया है उससे मैं बहुत भयभीत हो गया हूं । वह कहती है कि अगर माधुरी ने चाचा जो को फंसाकर शादी करने के लिये तैयार कर लिया तो हमें चाचा जी की जायदाद से एक कौड़ी भी नहीं मिलेगी । चाचा जी बच नहीं सकते । अगर अब न भी मरे तो छ: महीने बाद मर जायेंगे । उनका जीवन डॉक्टर कहता है, छ: मास से अधिक लम्बा नहीं है । लेकिन अगर चाचा जी माधुरी से शादी करके मरे तो हमें कुछ भी नहीं मिलेगा, सब कुछ माधुरी हड़प कर जायेगी । मैं बहुत चिन्तित हूं ।
सुनील ने अगले पृष्ठ पलटे । दो तीन तारीखें खाली थीं । फिर एक स्थान पर लिखा था -
जानकी ने एक सुझाव दिया है लेकिन मैं उसका साथ नहीं दे सकता जो काम भगवान का है उसे मैं करना नहीं चाहता ।
अगले दिन की तारीख में लिखा था - आज फिर मैंने माधुरी और चाचा जी को शैतानी हरकतें करते देखा । मैं जल गया । अब तो जी चाहता है कि जान‍की का ही सुझाव मान लिया जाये ।
अगले दिन की तारीख में केवल एक वाक्य लिखा हुआ था - चाचा जी आज साढे नौ बजे सवेरे स्वर्ग सिधार गये ।
अगले पृष्ठ खाली था ।
उससे आगामी तारीख में लिखा था - चाचा जी मर गये । उनकी मृत्यु पर मैं और जानकी रोये भी । लेकिन अगर कोई हमारे दिलों में झांक सकता तो मुझे पश्चाताप हो रहा है । न जाने जानकी की मनोभावना कैसी होगी ।
फिर कुछ तारीखों में चन्द्रशेखर ने केवल अपनी मानिसक भावनाओं का ही विश्लेषण किया था ।
फिर लिखा था - आज वसीयत पढी गई । मुझे और जानकी को बीस-बीस हजार रुपये और एक-एक मकान मिला चाचा जी की गांव की जमीन केवल मुझे मिली । माधुरी के नाम पांच हजार रुपये थे । बूढा मरते-मरते भी गड़बड़ कर ही गया । अच्छा हुआ मैंने समय पर जानकी का कहा मान लिया - वरना सब कुछ माधुरी के ही नाम लिखा होना था ।
आगे कई पृष्ठ खाली थे ।
फिर एक स्थान पर लिखा था - अब चाचा जी की मृत्यु का पश्चाताप नहीं होता । मन नैतिक बातों के विरुद्ध बहुत कठोर हो चुका है । चाचा जी से मिला रुपया खत्म होता जा रहा है । मेरे दिमाग में घर बैठे रुपया कमाने की एक स्कीम है । मैं उसी का अनुकरण करने वाला हूं ।
आगे के सारे पृष्ठ खाली थे । सुनील ने डायरी बंद कर दी । उसने प्लेन से बाहर झांका । प्लेन राजनगर के हवाई अड्डे पर उतर रहा था ।
सुनील प्लेन से सीधा अपने बैंक स्ट्रीट स्थित फ्लैट पर पहुंचा ।
सुनील अपने फ्लैट में जाने के स्थान पर प्रमिला के फ्लैट का द्वार खुला देखकर उसमें घुस गया । प्रमिला अपने बिस्तर में बैठी ‘लाइफ’ पढ रही थी ।
“हैलो ।” - सुनील एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला ।
“तुम ?” - प्रमिला आश्वर्यचकित स्वर में बोली ।
“हैरान क्यों हो रही हो ?” - सुनील बोला - “मेरे सिर पर सींग उग आये हैं क्या ?”
“सोनू तुम्हारे सिर पर सींग उग आना मेरे लिए कतई हैरानी की बात नहीं है । हैरानी तो इस बात की होती है कि तुम्हारे सिर के सींग गायब कहां हो गये ।”
“तो मैं गधा हूं ?” - सुनील गरजकर बोला ।
“अब मैं अपने मुंह से तुम्हारी तारीफ कैसे कर सकती हूं ?”
सुनील उछलकर खड़ा हो गया ।
“लड़की ।” - वह नाटकीय स्वर जो गरजा - “तूने हमारे अस्तित्व को चेलैंज किया है ।”
“तो तुम्हारा भी कोई अस्तित्व है !” - प्रमिला व्यंग से बोली ।
“अगर तुम अपने शब्द वापिस ले लो तो हम अब भी तुम्हारी जान बख्शी कर सकते हैं वरना...”
“वरना क्या ?”
“वरना हम तुम्हें हजम कर जायेंगे और डकार भी नहीं लेंगे ।”
“घास खाओ, घास ।” - प्रमिला उसे पुचकारती हुई बोली - “गधों को मांस हजम नहीं होता ।”
“बस लड़की ! हमारे सब्र का प्याला भर चुका है । अब देख हम कैसे तेरी इस कोमल काया को क्षण भर में छिन्न-भिन्न और नष्ट भ्रष्ट करते हैं ।”
और सुनील प्रमिला की ओर झपटा ।
“ओ सीनू के बच्चे ।” - प्रमिला जल्दी से चिल्लाई - “मैं दीवान चन्द की बात नहीं बताऊंगी ।”
सुनील वहीं थमक गया ।
“अभी क्या कहा था तुमने ?” - सुनील उत्सुक स्वर में बोला ।
“गधा ।” - प्रमिला होंठ दबाकर बोली ।
“वह तो मैं हूं ही ।” - सुनील नम्र स्वर में बोला - “उसके बाद तुमने क्या कहा था ?”
“उसके बाद मैंने तुम्हें घास खाने के लिये कहा था ।”
सुनील का पारा चढने लगा लेकिन वह सब्र करके बोला - “दीवान चन्द के विषय में तुम क्या कह रही थीं ?”
“कुछ नहीं ।”
“नहीं बताओगी ?”
“ये कौन सा तरीका है पूछने का ? तुम तो धमकी दे रहे हो । मेरी मिन्नत करो, प्लीज कहो ।”
“अच्छा प्रमिला देवी जी ।” - सुनील हाथ जोड़कर बोला - “सुनील कुमार चक्रवर्ती, स्पेशल कारस्पान्डेन्ट ब्लास्ट आपसे प्रार्थना करता है कि आप दीवान चन्द के बारे में जो जानती हैं बता दें ।”
“हां, यह हुई न बात ।”
“अब कह भी चुको ।” - सुनील झुंझला कर बोला ।
“दीवान चन्द अपनी पत्नी सहित तुमसे मिलने विशालगढ गया है ।”
“कब ?” - सुनील उछलकर बोला ।
“आज शाम को । तुम्हें मिले नहीं वे लोग ?”
“नहीं । लेकिन वे विशालगढ गये क्यों हैं ?”
“निर्मला को चन्द्रशेखर का पत्र मिल गया है । दीवान चन्द ने निर्मला की डाक पर पूरी नजर रखी थी लेकिन फिर भी किसी प्रकार पत्र निर्मला तक पहुंच ही गया । पत्र पढकर वह दीवान चन्द पर फट पड़ी । दीवानचन्द ने बड़े आज्ञाकारी पति की तरह अपना सारा दोष स्वीकार कर लिया है ।”
“फिर ?”
“अब निर्मला दीवान चन्द को लेकर तुमसे मिलने विशालगढ गई है । वह कहती है कि अगर उसके पति से अनजाने में या अनिच्छा से कोई कुकर्म हो गया है तो वह उसे माफ कर देगी । और अगर उसने जान बूझकर अपनी मर्जी से सिर्फ सैक्स की तुष्टि के लिए ही सोनिया से संबंध स्थापित किया है तो वह उससे तलाक ले लेगी ।”
“पम्मी ।” - सुनील ब्रीफकेस उठाकर द्वार की ओर झपटता हुआ बोला - “मैं विशालगढ वापिस जा रहा हूं ।”
“लेकिन सुनो तो ।” - प्रमिला अधीर स्वर से बोली ।
“फुरसत नहीं है ।” - और सुनील फ्लैट से बाहर निकल गया ।
बाहर आकर उसने एक टैक्सी ली और एयरपोर्ट पहुंच गया ।
लगभग एक घन्टे बाद एक प्लेन विशालगढ जाने वाला था ।
सुनील ने उसमें अपने लिये सीट बुक कराई और फिर मार्किट में आ गया ।
दुकानें अभी तक खुली हुई थीं ।
सुनील ने एक लेदर स्टोर से एक अटैची केस और एक फैल्टहेट खरीदा ।
फिर उसने ब्रीफकेस को, डायरी और पत्रों की प्रतिलिपियों सहित उस अटैची में रख दिया और अटैची की चाबी को एक नाली में फेंक दिया ।
फिर वह राजनगर के रेलवे स्टेशन पर पहुंचा ।
उसने अटैची केस को क्लाक रूम में जमा करा दिया । क्लाक रूम की रसीद को उसने फैल्ट के आसपास लिपटे रिबन में इस प्रकार खोंस लिया कि वह बाहर से दिखाई न दे ।
जब वह वापिस एयरपोर्ट पर पहुंचा तो जहाज फ्लाईट लेने के लिए तैयार खड़ा था ।
***
सुनील, दीवानचंद और निर्मला सुनील के विशालगढ के होटल के कमरे में बैठे थे ।
“देखो मिस्टर सुनील !” - निर्मला कह रही थी - “मैं पुराने जमाने की औरतों जैसी नहीं हूं जो पति के किसी भी प्रकार के व्यवहार को अपना भाग्य समझकर स्वीकार कर लेती थीं, न ही पति से दब कर रहने में विश्वास करती हूं । मैं अपने पति की हजार गलतियां माफ कर सकती हूं लेकिन धोखेबाजी या विश्वासघात नहीं ।”
दीवानचंद यूं सहमा बैठा था जैसे कसाई के सामने भेड़ ।
“आप विश्वास कीजिए, मिसेज दीवान चंद ।” - सुनील शिष्ट स्वर से बोला - “आपके पति ने अपनी इच्छा से कोई ऐसा काम नहीं किया है जिसे आप धोखेबाजी या विश्वासघात की श्रेणी में रख सकें ।”
“लेकिन मुझे चंद्रशेखर नाम के एक आदमी ने लिखा है कि...”
“वह झूठा है ।” - सुनील उसकी बात काटकर बोला - “चंद्रशेखर दीवानचंद को ब्लैकमेल करने की चेष्टा कर रहा है ।”
“मुझे चंद्रशेखर से मिलाओ ।” - निर्मला आदेशात्मक स्वर में बोली ।
“यह सम्भव नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि चंद्रशेखर अब इस संसार में नहीं है । उसने आत्महत्या कर ली है ।” - सुनील ने ‘आत्महत्या’ शब्द पर विशेष जोर देते हुए कहा ।
“क्यों ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“लेकिन उसके आत्महत्या कर लेने से मेरे पति के कुकर्म की गम्भीरता तो नहीं घटती ।”
“ओफ्फोह डार्लिंग ।” - दीवानचंद उखड़े स्वर से बोला - “मैंने किया ही क्या है ?”
“तुमने कसर ही किस बात की छोड़ी है ?” - निर्मला चिल्ला कर बोली ।
“मैं कहता हूं मुझे धोखे से अधिक शराब पिलाई गई थी । मैं नशे में अपने होश-हवास खो बैठा था ।”
“मैं तुम्हारे शराब पीने की बात नहीं कर रही हूं । तुम रात भर किसी लड़की के साथ उसी के फ्लैट पर गुलछर्रे उड़ाते रहे हो ।”
“मैं कहता हूं मुझे धोखे से वहां ले जाया गया । मैं अपनी इच्छा से नहीं गया था और मैने कोई गुलछर्रे नहीं उड़ाये हैं ।”
“झूठ ।” - वह मुंह बिचकाकर बोली - “तुम दूध पीते बच्चे हो न जो कोई तुम्हें धोखे से ले गया ।”
दीवानचन्द मौन हो गया ।
“मिसेज दीवान चन्द ।” - सुनील बोला - “अगर वह लड़की यह कहे कि दीवान चन्द ने उसके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया है तो आप स्वीकार कर लेंगी ?”
“नहीं ।” - निर्मला दृढ स्वर से बोली - “मैं ऐसी पेशेवर लड़कियों का विश्वास नहीं कर सकती । अगर ये उसे जरा तगड़ी रिश्वत दे दें तो शायद वह इन्हें भाई ही कह दे ।”
“निर्मला !” - दीवानचन्द ने क्षीण सा प्रतिवाद किया ।
“आप चुप रहिये ।” - निर्मला बोली ।
“लेकिन फिर भी उससे मिल लेने में हर्ज क्या है ?” - सुनील बोला - “कम से कम सुन तो लीजिए कि वह क्या कहती है ?”
“वह चौबारे की ईंट खाकर कुछ कहेगी ?” - निर्मला अपने स्थान से उठती हुई बोली - “मैं ही पूछूंगी उस हरामजादी से ।”
“अब उठते क्यों नहीं ?” - निर्मला चिल्लाई - “बैठे-बैठे मुंह क्या देख रहे हो ?”
दोनों चुपचाप उठे और निर्मला के साथ चल दिए ।
वे लोग जाफर मेंशन पहुंच गये ।
सुनील ने सोनिया का द्वार खटखटाया ।
सोनिया ने द्वार खोला । उसकी वेशभूषा से प्रतीत होता था कि वह कहीं जाने की तैयारी में थी ।
“तुम !” - वह सुनील को देखकर बोली - “मैं पूछती हूं तुम क्यों बार-बार यहां आ जाते हो ?”
फिर उसकी दृष्टि दीवान चन्द पर पड़ी ।
“हे भगवान ।” - वह घबराई - “तुम दीवानचन्द के साथ ?”
“अभी तो तुमने हमारे तीसरे साथी को नहीं देखा ।” - सुनील निर्मला की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“यह निर्मला है ।” - दीवानचन्द जल्दी से बोला - “मेरी पत्नी ।”
सोनिया ने द्वार का पल्ला छोड़ दिया । सब लोग भीतर आ गए ।
“बैठिये, आप लोग भी ।” - सोनिया निराशापूर्ण स्वर से बोली ।
“क्या और भी कोई है ?” - सुनील ने पूछा ।
“और मैं हूं ।” - एक पुरूष स्वर सुनाई दिया ।
सुनील ने देखा । दूसरे कमरे में से पाल‍ निकल रहा था ।
“यह कौन है ?” - निर्मला ने पूछा ।
“ये सीक्रेट सर्विस के आफिसर हैं ।” - सुनील ने बताया - “ये चन्द्रशेखर की मृत्यु की तफतीश कर रहे हैं । इनका ख्याल है चन्द्रशेखर की हत्या हुई है ।”
“क्या तुम्हारा यह ख्याल नहीं है ?” - पाल ने पूछा ।
“नहीं ।” - सुनील बड़ी सावधानी से बोला - “मेरे ख्याल से उसने आत्महत्या की है ।”
“अच्छा !” - पाल व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“जी हां ।” - सुनील निर्विकार स्वर से बोला ।
“फिर तो शायद तुम्हें यह भी मालूम होग कि वह रिवाल्वर कहां गई जिससे चन्द्रशेखर ने स्वयं को गोली मारी थी ।”
“शायद कोई ऐसा आदमी बाद में रिवाल्वर उठाकर ले गया हो जो यह चाहता हो कि इस हत्या का केस समझा जाये ।”
“लेकिन कोई ऐसा क्यों चाहेगा और ऐसा आदमी कौन हो सकता है ?”
“कोई ऐसा आदमी...”
“पहले आप सब लोग मेरी बात सुनिये ।” - सोनिया ऊंचे स्वर से बोली - “यह मेरा फ्लैट है । साधारणतया यह मकान मालिक की इच्छा पर निर्भर होता है कि वह अपने घर में किसी व्यक्ति विशेष की उप‍स्थिति वांछनीय समझाता है या नहीं । मुझे काम है, मैं बाहर जाना चाहती हूं इसलिए मैं आप सब लोगों से प्रार्थन करती हूं कि आप मेरे फ्लैट से तशरीफ ले जायें । कुछ देर पहले मैंने यही बात मिस्टर पाल से कही थी लेकिन वे कहते हैं कि वे अतिथि के रूप में नहीं, एक पुलिस अफसर की हैसियत से यहां आये हैं इसलिए मैं उन्हें अपनी इच्छा से अपने फ्लैट से नहीं निकाल सकती हूं । क्योंकि मैं लेट नहीं होना चाहती इसलिए मैं अपना फ्लैट आप लोगों के सहारे छोड़ कर जाने वाली हूं ।”
निर्मला ने एक नजर सोनिया की ओर देखा और फिर पाल से बोली - “मैं मिसेज दीवान चन्द हूं । पिछले दिनों मेरे पति एक सेल्ज कांफ्रेंस के सिलसिले में विशालगढ आये थे । यहां से किसी प्रकार सोनिया के ताल्लुकात में आ गये और फिर किन्हीं अनैतिक भावनाओं को लेकर रात भर सोनिया के फ्लैट में रहे । इस बात की सूचना मुझे चन्द्रशेखर नाम के एक व्यक्ति ने दी थी । मेरे पति ने सुनील की नियुक्ति इस बात के लिये की थी कि मुझे उनके कुकर्मों के विषय में मालूम न हो सके । मेरे पति और सुनील मिलकर मुझे धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं और मैं यह जानना चाहती हूं कि यह स‍ब क्या है ?”
“आपको इस विषय में चन्द्रशेखर ने कैसे बतलाया ?” - पाल ने पूछा ।
“पत्र लिख कर ।”
“वह पत्र कहां है ?” - पाल एकदम दिलचस्पी लेता हुआ बोला ।
“मेरे पास है ।”
“मुझे दो ।” - पाल हाथ फैल कर बोला ।
“तुम्हें क्यों दूं ?” - निर्मला माथे पर बल डालती हुई बोली ।
“क्योंकि उस पत्र का संबंध चन्द्रशेखर की हत्या से है इसलिए वह पुलिस के लिए महत्व की चीज है । अगर आप उसे देने से इन्कार करेंगी तो आप गिरफ्तार की जा सकती हैं ।”
निर्मला क्षण भर कसमसाई फिर उसने पर्स में से पत्र निकाल कर पाल को दे दिया ।
पाल क्षण भर पत्र पढता रहा फिर उसे जेब के हवाले करता हुआ बोला - “आप केवल इस पत्र के आधार पर ही अपने पति पर संदेह कर रही हैं ?”
“नहीं ।” - निर्मला सोच कर बोली - “और भी बातें है ।”
“क्या ?”
“सुनील ने विशालगढ से मेरे पति को फोन किया था कि उसने चन्द्रशेखर का पता पा लिया है और वह विश्वनगर के नवीन होटल के चौबीस नम्बर कमरे में है ।”
“क्या ?” - पाल हैरान होकर बोला - “सुनील ने ऐसा कहा था ?”
निर्मला ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“आपको यह कैसे मालूम हुआ ?” - पाल ने पूछा ।
“मैंने एक्सटेन्शन पर इन दोनों का वार्तालाप सुना था ।”
“यह फोन कब आया था ?”
“लगभग पांच बजे ।”
“फिर ?”
“फिर मेरे पति ने एक जरूरी काम का बहाना बनाया और प्लेन द्वारा विशालगढ आ गए ।”
“तुम कितने बजे विशालगढ पहुंचे थे ?” - पाल ने दीवानचन्द से पूछा ।
“रात को तीन बजे ।” - दीवानचन्द धीमे स्वर से बोला ।
एकाएक सोनिया जो बाहर जाने की तैयारी कर रही थी कुर्सी के पीछे आ खड़ी हुई और जोर-जोर से सिर हिला कर निर्मला को संकेत करने लगी । लेकिन निर्मला उसका संकेत समझ नहीं सकी । फिर सोनिया एक बार धीरे से खांसी और जब निर्मला ने उसकी ओर देखा तो उसने अपने होंठों पर उगली रखकर उसे चुप रहने का संकेत किया । लेकिन मन्द बुद्धि निर्मला ने उसके संकेत का अनुसरण करने का कोई उपक्रम नहीं किया ।
“ये झूठ बोल रहे हैं ।” - वह चिल्लाई ।
“निर्मला ।” - दीवानचन्द बोला ।
“यू शट अप ।” - पाल चिल्लाया । फिर व‍ह मीठे स्वर से निर्मला को संबोधित करता हुआ बोला - “और वास्तविकता क्या है, मिसेज दीवानचन्द ?”
“ये सात बजे के प्लेन पर राजनगर चले थे और इस प्रकार दस बजे विशालगढ पहुंच गये होंगे ।”
सोनिया निराश होकर पाल की कुर्सी से पीछे हट गई ।
“तुम क्या कहते हो ?” - पाल दीवानचन्द से बोला ।
“मैं बारह बजे के प्लेन से विशालगढ आया था और तीन बजे रात को यहां पहुंचा था ।” - दीवानचंद अपने स्वर में दृढता उत्पन्न करने की चेष्टा करता हुआ बोला ।
“क्यों झूठ बोल रहे हो ?” - निर्मला शिकायत भरे स्वर से बोली ।
दीवानचन्द चुप रहा ।
सुनील हैरान था कि दीवानचंद इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेता कि वह दस बजे विशालगढ में था । अब अगर झूठ बोलकर पाल को विश्वास दिला भी दे कि उनकी पत्नी झूठ बोल रही है तो बाद में तो उसे अपनी गरदन बचानी और भी मुश्किल हो जायेगी जब पाल को यही तथ्य होटल के क्लर्क द्वारा मालूम होगा ।
निर्मला पति के सामने जाकर खड़ी हो गई और बड़े निर्णयात्मक स्वर से बोली - “आप मेरी कसम खाकर कहिये कि आप बारह बजे के प्लेन से विशालगए आये थे ।”
दीवानचन्द क्षण भर हिचकिचाया और फिर कम्पित स्वर से बोला - “तुम्हारी कसम ।”
“क्या तुम्हारी कसम ?”
“कि मैं बारह बजे के प्लेन से विशालगढ आया था ।”
“तो फिर” - निर्मला अपने पर्स में से एक कागज निकाल कर दीवानचन्द के मुंह के सामने करती हुई बोली - “यह रसीद कैसी है जिससे यह सिद्ध होता है कि तुमने उस रात दस बजे न्यू मोटर एजेन्सी विशालगढ से एक कार किराये पर ली थी ।”
पाल बिजली की फुर्ती से झपटा और उसने निर्मला के हाथ से रसीद छीन ली । कुछ क्षण वह उसे देखता रहा और बोला - “इसमें तुमसे पांच घंटे का किराया चार्ज किया गया है और यहां से विश्वनगर जाने, वहां कुछ देर ठहरने और लौट आने में भी लगभग इतना ही समय लगता है ।”
दीवानचन्द का सिर लटक गया था ।
“अब शुरु हो जाओ दीवानचन्द ।” - पाल सख्त स्वर से बोला - “तुम जानते थे कि चन्द्रशेखर विश्वनगर में है । तुम दस बजे विशालगढ एयेरपोर्ट पर उतरे और सुनील से संबंध स्थापित करने के स्थान पर एक कार किराये पर लेकर विश्वनगर की ओर चले गए । वहां तुम बारह बजे पहुंचे । तुम चन्द्रशेखर से मिले क्योंकि वह तुम्हें ब्लैकमेल कर रहा था । वहां तुम्हारा उससे झगड़ा हो गया । तुमने उसे गोली मार दी । फिर तीन साढे तीन बजे तुम वापस आ गये और सुनील से मिले और उससे कहा कि तुम बारह बजे के प्लेन से आये हो और सीधे उसी के पास आ रहे हो । ठीक है न ?”
“यह झूठ है ।” - दीवानचन्द भयभीत स्वर से चिल्लाया - “मैंने चन्द्रशेखर को नहीं मारा ।”
“शट अप ।” - पाल भी गरजा - “तुम बहुत झूठ बोल चुके हो । दीवानचन्द तुमने उसकी हत्या की है ।”
“नहीं ।”
“लेकिन तुमने यह स्वीकार किया है कि तुमने न्यू मोटर एजेन्सी से कार किराये पर ली थी और उस पर विश्वनगर गये थे ।”
“उसने कुछ स्वीकार नहीं किया है ।” - सुनील हस्तक्षेप करता हुआ बोला ।
“ओ यू शट अप ।” - पाल सुनील पर गरजा ।
“यू कैन नाट मेक मी शट अप ।” - सुनील पाल से भी ऊंचे स्वर से चिल्लाया - “आई हैव एवरी राइट टू एडवाइज माई क्लायेन्ट । दीवानचन्द जबान बन्द रखो और इसकी किसी बात का उत्तर मत दो ।”
पाल का एक भरपूर घूंसा सुनील के जबड़े पर पड़ा । सुनील भरभरा कर पीछे गिरा और एक कुर्सी से उलझता हुआ जमीन पर आ गिरा । पाल फिर आगे बढा और उसने बायें हाथ से सुनील का गिरेहबान पकड़ लिया । उधर सुनील ने पाल का गिरेहबान खींचकर एक जारेदार झटका दिया और फिर उसने अपनी दोनों टांगें पाल के पेट में अड़ाईं और उसे पूरी ताकत से पीछे धकेल दिया । पाल एक मेज से उलझा और उसे लिये हुए दीवार से जा टकराया ।
सुनील उठा और जल्दी से बोला - “दीवानचन्द, पाल की किसी भी बात का उत्तर देने के लिए तुम बाध्य नहीं हो । फौरन किसी वकील से मिलो और अब के बाद एक भी शब्द अपने वकील से सलाह किए बिना जबान से मत निकलाना नहीं तो मारे जाओगे । पाल को कोई बयान मत देना ।”
उस अल्प समय में सुनील जो कुछ दीवनचंद को समझा सकता था उसने समझा दिया । पाल कहर की नजरों से उसे घूरता हुआ उसकी तरफ बढ रहा था । सुनील फुर्ती से फ्लैट से बाहर निकला और उसने बाहर की कुंडी लगा दी ।
सुनील तेजी से राहदारी पार करता हुआ जाफरी मेंशन से बाहर भागा ।
एकाएक उसे एक ख्याल आया । उसका हाथ अपने सिर से छुआ । उसका हैट सोनिया के फ्लैट में ही रह गया था ।
“मर गये ।” - सुनील बड़बड़ाया ।
हैट में राजनगर रेलवे स्टेशन के क्लाक रूम में रखी हुई अटैची की रसीद थी । अगर रसीद पाल के हाथ पड़ गई तो वह खुद भी रगड़ा जाएगा ।
सुनील ने एक टैक्सी ली और जबड़ा सहलाता हुआ अपने होटल में वापिस आ गया ।
वह बीती घटनाओं पर मनन करने लगा ।
उसी समय फोन की घंटी बजी ।
“हैलो !” - सुनील जले-फुंके स्वर से बोला ।
“क्या हो रहा है, सोनू डियर ?” - उधर प्रमिला का स्वर सुनाई दिया ।
“जो होना था वह तो हो चुका ।”
“क्या मतलब ?”
“पिट कर आ रहे हैं ।” - सुनील जबड़ा सहलाता हुआ बोला ।
“सच कह रहे हो ?”
“बिल्कुल, अभी तक जबड़ा हिल रहा है ।”
“मैं आ रही हूं ।” - प्रमिला जल्दी से बोली ।
“कहां ?” - सुनील ने हैरान होकर पूछा ।
“विशालगढ ।”
“क्यों ?”
“जरा मैं भी तो उस सूरमा के दर्शन कर लूं जिसने मेरे सोनू का जबड़ा हिला दिया ।” - प्रमिला पुचकार भरे स्वर से बोली ।
“ओ पम्मी की बच्ची ।” - सुनील चिल्लाया ।
“अब क्या हो गया ? क्या वह सूरमा यहां भी आ पहुंचा ?”
“मैं कहता हूं बकवास बन्द ।”
“च, च धीरे, धीरे, जोर से बोलोगे तो एक आध दांत और हिल जायेगा । वाह वाह क्या हाथ घुमाये होंगे उस खलीफा ने ! मुझे दुख है मैं न हुई वहां ।”
“प्रमिला !”
“हां ।” - प्रमिला हंसती हुई बोली ।
“यहां बेजार बैठे हैं तुझे अठखेलियां सूझी हैं ।” - सुनील एक लम्बी सांस भर कर बोला ।
“क्या लटक-लटक कर शेर कह रहे हो । सुनील साहब, ये ट्रंक काल है, पन्द्रह पैसे वाला मामला नहीं है । दुगने पैसे ठुक जायेंगे ।”
“तो मतलब की बात करो न ।”
“यही तो मैं तुम्हें कह रही हूं और तुम हो कि अपने जबाड़े के ही राग गाए जा रहे हो ।”
सुनील चुप रहा ।
“हैलो !” - प्रमिला का स्वर सुनाई दिया - “यू आर देयर ।”
“हां, हां बाबा ।”
“मिस्टर एण्ड मिसेज दीवानचन्द मिले ?”
“हां और दीवानचन्द गिरफ्तार हो गया ।”
“कैसे ?”
उत्तर में सुनील ने सब कुछ सुना दिया ।
“और तुम्हारा क्या हाल है ?”
“अगर पाल को यह पता लग गया कि मैं दीवानचन्द के साथ विशालगढ गया था तो शायद मैं भी अपराध में उसके सहायक रूप में धर लिया जाऊं ।”
“तुम अगले कुछ घंटों के लिए होटल में ही हो न ?”
“आगे का पता नहीं । शायद मेरा ट्रांसफर इस होटल के कमरे से विशालगढ की जेल में हो जाये ।”
“मैं आ रही हूं ।” - प्रमिला का स्वर सुनाई दिया ।
“अरे नहीं, पम्मी डियर क्यों...”
लेकिन दूसरी ओर से लाइन कट चुकी थी । सुनील ने भी रिसीवर क्रेडिल पर पटक‍ दिया ।
वह जानता था कि अगर प्रमिला एक बार कुछ करने का फैसला कर ले तो उसे भगवान भी नहीं रोक सकता ।
***
सुनील चिन्तित था ।
पिछले कुछ घंटों में परिस्थ‍ितियों ने जो करवट बदली थी उसमें वह अपना कर्तव्य निर्धारित नहीं कर पा रहा था क्योंकि अगर सत्य ही दीवानचन्द ने चन्द्रशेखर की हत्या की थी तो वह स्वयं को दीवानचन्द के साथ डुबाना नहीं चाहता था और दीवान चन्द निर्दोष पकड़ा गया तो उसका बचाने का प्रयत्न करना उसका कर्तव्य था क्योंकि सुनील ने उससे रुपये लिए थे ।
उसी समय फोन की घंटी घनघना उठी ।
“हैलो सुनील ।” - दूसरी ओर से सोनिया का स्वर सुनाई दिया - “मैं सोनिया हूं ।”
“हैलो ।” - सुनील बेमन से बोला ।
“क्या हाल है ?”
“अभी तक तो जिन्दा हूं ।” - सुनील जबड़ा सहलाता हुआ बोला । उत्तर में सोनिया की हल्की सी हंसी सुनाई दी ।
“तुम्हारा हैट मेरे फ्लैट पर रह गया है ।” - वह बोली - “तुम्हें चाहिए नहीं क्या ?”
“जरूर चाहिये । तुम इस समय अपने फ्लैट पर ही हो न ?”
“नहीं ।”
“पाल, दीवानचन्द वगैरह का क्या हुआ ?”
“वे लोग तो तुम्हारे जाने के थोड़ी देर बाद ही चले गये थे ।”
“मेरा हैट तुम्हारे फ्लैट पर है ?”
“नहीं, मेरे पास है ।”
“और तुम कहां हो ?”
“वे साईड होटल में । आ रहे हो ?”
“मैं वहां आकर क्या करुंगा ?”
“बातें करेंगे ।”
“बस, सिर्फ बातें ही ?”
“और जो तुम्हारा जी चाहे ।”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा फिर बोला - “मैं आ रहा हूं ।”
“सुनील ने रिसीव रख दिया ।”
उसने कपड़े पहने, कमरे को ताला लगायपा और नीचे आ गया उसने काउन्टर पर आकर चाबी क्लर्क को दी और बोला - “राजनगर से मेरी गैस्ट आने वाली है । उसे मेरे कमरे की चाबी दे देना और कह देना कि मेरी प्रतीक्षा करे ।”
क्लर्क ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील वे साइड होटल में पहुंच गया ।
“बड़ी देर की मेहरबां आते आते ।” - सोनिया उसे देखकर बड़ रोमान्टिक अंदाज से बोली ।
सुनील ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह चुपचाप सोनिया के सामने वाली सीट पर बैठ गया ।
“मेरा हैट कहां है ?” - वह क्षण भर बाद बोला । उसे हैट के रिबन में रखी रसीद की चिन्ता थी ।
“कार में रख है ।”
“तुम्हारे पास कार भी है ?”
“मेरी नहीं है, मगन भाई की उधार मांगी है ।”
“अब कहो ।” - सुनील क्षण भर बाद बोला ।
“क्या ?”
“कि तुम्हारी समस्या क्या है ?”
“मेरी समस्या ?” - सोनिया ने आश्चर्यपूर्ण स्वर से पूछा ।
“हां । मेरे ख्याल से तुम किसी मुश्किल में फंस गयी हो और मेरी सहायता चाहती हो इसीलिये तुमने मुझे यहां बुलाया है ।”
“यह बात नहीं है ।” - सोनिया धीरे से बोली ।
“ये बात है । नहीं तो यह कैसे सम्भव हुआ कि कुछ घंटे पहले तक तो तुम मेरी शक्ल से चिढती थीं, मैं तुम्हारे फ्लैट पर जाता था और तुम समझती थीं कि मुसीबत गले पड़ गई है और अब मुझे खुद फोन करके यहां बुला बैठी हो ।”
“तुम्हें यह भ्रम इसलिए हुआ है सुनील क्योंकि तुमने तस्वीर का दूसरा रुख देखने की चेष्टा नहीं की ।” - वह भावुक स्वर से बोली ।
“क्या मतलब ?” - सुनील उलझ कर बोला ।
“सुनील डियर ?” - सोनिया उसके हाथ पर अपना हाथ रख कर धीरे से दबाती हुई बोली - “मैं भी औरत हूं और अपने सीने में एक धड़कता हुआ दिल रखती हूं ।”
सुनील खूब समझ रहा था कि सोनिया कहां मार कर रही है लेकिन वह अनजान बनकर बोला - “मैं अब भी नहीं समझा ।”
“कभी शीशे में अपना मुंह देखा है ?”
“कई बार लेकिन...”
“क्या कभी तुम्हें यह अनुभव नहीं हुआ कि तुम बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी हो ?”
सुनील चुप रहा ।
“मेरे ख्याल से तो लड़कियां मरती होंगी तुम पर ।” - सोनिया बोली ।
“मुझे तो कभी पता नहीं लगा ।”
क्योंकि तुमने कभी जानने की कोशिश नहीं की ।
“अब तुम मुझ पर मर रही हो क्या ?” - सुनील ने सीधा प्रश्न किया ।
सोनिया क्षण भर हिचकिचाई और फिर एक दम उसकी आंखों में झांकती हुई बोली - “हां ।”
सुनील बोखला कर दूसरी ओर देखने लगा । उसे सोनिया से स्पष्टवादिता की आशा नहीं थी । सुनील ऐसा अनुभव कर रहा था कि सोनिया उसे अपने शारीरिक आकर्षण से प्रभावित करके उससे कुछ काम निकलवाना चाहती है ।
“देखो सोनिया ।” - सुनील दृढ स्वर से बोला - “मैं दूध पीता बच्चा नहीं हूं जो बातों से बहल जाऊं और न ही लड़की होने का लाभ उठाकर तुम मुझे किसी ऐसे काम के लिये प्रेरित कर सकती हो जिसे मैं करना न चाहता होऊं । मैं अब समझ रहा हूं कि तुम्हारी कोई परेशानी है जिसमे तुम मेरी सहायता चाहती हो लेकिन मैं तुम्हारे किसी काम नहीं आ सकूंगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं दीवान चन्द के लिए काम कर रहा हूं ।”
“तुम मेरी कोई सहायता नहीं करोगे ?” - सोनिया परेशान स्वर से बोली ।
“तो तुम स्वीकार करती हो कि तुम्हे मेरी सहायता की जरूरत है और इसी सिलसिले में तुमे मुझे यहां बुलाया है ?”
सोनिया के नेत्र झुक गये ।
“सुनील ।” - वह बोली - “मैं बहुत परेशान हूं । मेरा दिमाग इस बोझ को सहन नहीं कर पा रहा है । मुझे अपनी परेशानी किसी न किसी को सुनानी ही पड़ेगी ।”
“लेकिन मुझे सुना कर तुम घाटे में रहोगी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि शायद मैं दीवानचन्द की रक्षा के लिए उन्हीं बातों को तुम्हारे विरुद्ध प्रयोग कर बैठूं ।”
“तुम ऐसा करोगे ?”
“अगर जरूरत पड़ी तो जरूर करुंगा ।”
“फिर मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊंगी ।”
“लेकिन मुझे मालूम है, तुम क्या कहना चाहती हो ।”
“असम्भव ।” - वह अविश्वासपूर्ण स्वर से बोली - “तुम कुछ नहीं जानते ।”
“कहो तो सारी दास्तान आरम्भ से ही सुनाऊं ?”
“सुनाओ !” - सोनिया के स्वर में चेलैंज था ।
“तो सुनो” - सुनील बोला - “जब तुमने चन्द्रशेखर से शादी की थी तो तुम उसके विषय में बहुत कम जानती थी । तुमने तो उसे उसके रहन सहन के आकर्षण से प्रभावित होकर फांसा था । लेकिन शादी के बाद जब चन्द्रशेखर से तुम्हारे अधिक नजदीकी संबंध पैदा हो गये तो तुम्हें उसकी कई आदतें पसंद नहीं आईं ।”
“जैसे ?” - सोनिया सशंक स्वर से बोली ।
“जैसे चन्द्रशेखर की डायरी लिखने की आदत । चन्द्रशेखर नियमित रूप से डायरी लिखा करता था और उसमें अपने दिल का सही नक्शा उतार कर रख देता था । तुम चन्द्रशेखर से छुप कर उसकी डायरी पढा करती थीं । यह पढ कर तुम्हें भारी झटका लगा था कि चन्द्रशेखर ब्लैकमेलर था । तुमने चन्द्रशेखर से शादी की थी अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए लेकिन ऐसा आदमी तुम्हारे भविषय की क्या गारन्टी दे सकता था जिसका अपना ही भविष्य सुरक्षित नहीं था । न जाने कब वह पुलिस के हाथों पड़ जाये या उसकी ब्लैकमेलिंग का कोई शिकार ही तंग आकर उसे जान से मार डाले । फिर कुछ दिनों बाद तुम्हें मालूम हुआ कि चंद्रशेखर के व्यक्तित्व की तरह उसका प्यार भी झूठा था । वह तुम से अपनी शारीरिक भूख मिटाने की हद तक ही दिलचस्पी लेता था । तुमने चन्द्रशेखर से तलाक ले लेने का निश्चय कर लिया । क्योंकि अभी तो तुममें आकर्षण था, तुम अपने लिये कोई दूसरा चन्द्रशेखर से अच्छा आदमी तलाश कर सकती थीं । बाद में तो तुम्हें उसी के रहमोकरम पर रहना पड़ता । लेकिन तुम्हें भय था कि कहीं चन्द्रशेखर तुम्हें तलाक देने में कोई अड़ंगा न खड़ा कर दे क्योंकि तलाक लेने का कोई ठोस कारण तो तुम उ‍पस्थ‍ित कर नहीं सकती थीं । इसलिए अगर चन्द्रशेखर अकड़ जाता तो तलाक होना असम्भव हो जाता । तुमने चन्द्रशेखर का मुंह बन्द रखने की एक तरकीब खोज निकाली । तुमने उसकी डायरी चुरा ली, वह डायरी जिसमें उसने अपने चाचा की मृत्यु तक का हाल लिखा था ।”
“सु.. नी.. ल ।” - सोनिया का चेहरा फक पड़ गया था और उसके नेत्र मानो फटे जा रहे थे - “तुम... तुम... तुम ने कैसे जाना ?”
“वह भी सुनो । चन्द्रशेखर की डायरी उसके चाचा की मृत्यु तक तो बड़े नियम पूर्वक ढंग से लिखी हुई थी लेकिन उसके बाद छ: महीने तक की तारीखें खाली पड़ी थीं । इसका क्या अर्थ हो सकता था ? यही न कि उन छ: महीनों में डायरी चन्द्रशेखर के पास रही ही नहीं इसलिए वह उसमें कुछ लिख नहीं सका । तुम्हारा सेपरेशन का आर्डर हो जाने के बाद तुम जेफरी मेंशन में रहने लगीं और चन्द्रशेखर की डायरी भी अपने साथ ले आईं । क्या मैं गलत कह रहा हूं ?”
“लेकिन तुमने यह सब जाना कैसे ?” - वह हैरान स्वर से बोली ।
“अपने चाचा की मृत्यु के बाद डायरी चन्द्रशेखर के पास नहीं रही और शायद फिर अपने जीवन में वह डायरी उसने देखी भी नहीं क्योंकि वह डायरी तुम्हारे पास थी । लेकिन फिर भी डायरी चन्द्रशेखर के फ्लैट पर पाई गई थी । अब प्रश्न यह उठता है कि डायरी उसके फ्लैट पर कैसे पहुंची ?”
“कैसे पहुंची ?” - सोनिया यन्त्र चलित सी पलकें झपका कर बोली ।
“तुमने उसे चन्द्रशेखर के फ्लैट पर रखा ।”
“अगर यह मान लिया जाये कि डायरी मैंने ही चुराई थी तो फिर मैं उसे वापिस चन्द्रशेखर के फ्लैट पर भला क्यों रखने जाती ?”
“क्योंकि तुम चन्द्रशेखर को फंसाना चाहती थीं । तुम चन्द्रशेखर से तंग आ चुकी थी । वह सैपरेशन के बाद भी तुमसे संबंध कायम रखे हुए था । तुम जानती थीं कि उसके फ्लैट की तलाशी होगी इसलिए तुमने डायरी ऐसी जगह पर रख दी जहां से वह सीधी पुलिस के हाथ में लगे ।”
“यह गलत है ।” - वह तनिक उत्तेजित स्वर से बोली - “अगर मैं चन्द्रशेखर को फंसाना चाहती तो मैं डायरी सीधी पुलिस के हाथ भी दे सकती थी ।”
“तो फिर ?”
“मैंने डायरी चन्द्रशेखर को वापिस लौटा देने की नीयत से ही उसके फ्लैट पर रखी थी । मेरे लिए डायरी तभी तक महत्वपूर्ण थी जब तक चन्द्रशेखर मुझे तलाक नहीं देता था । मेरा छुटकारा हो जाने के बाद मुझे इस बात में दिलचस्पी नहीं थी कि चन्द्रशेखर अपने अपराधों की सजा भुगतता है या नहीं । उसने मेरे साथ कोई बुरा व्यवहार तो किया नहीं था । मैंने चन्द्रशेखर को फुसला कर उससे शादी की थी और उस सूरत में अगर वह मुझे अपना पूर्ण प्रेम नहीं दे पाता था तो उसमे उसका क्या अपराध था । मुसीबत तो उस दिन से शुरु होती है जिस दिन तुमने विशालगढ में कदम रखा । तुमने मुझे बताया कि चन्द्रशेखर मेरे माध्यम से दीवानचन्द को ब्लैकमेल कर रहा है और तुम्हारे कहने का ढंग कुछ ऐसा था कि मुझे विश्वास हो गया कि इस बार वह जरूर फंस जायेगा । मैं नहीं चाहती थी कि चन्द्रशेखर कम से कम इस केस में फंसे क्योंकि इसमें मेरी भी भारी बदनामी होने की संभावना थी । उस दिन जिस समय तुम मेरे फ्लैट में बैठे मुझसे बातें कर रहे थे, चन्द्रशेखर बिहारी के फ्लैट में मौजूद था । तुम्हारे से पीछा छूटते ही मैं बिहारी के फ्लैट में गई और उसे वह सब कुछ अक्षरश: कह सुनाया जो तुम मुझे बताकर गए थे ।”
“बिहारी के सामने ही ?”
“नहीं, अकेले में । मैंने उसे समझाया कि अगर वह ब्लैकमेल के चक्कर में पकड़ा गया तो संभव है पुलिस उस पर उसके चाचा की मृत्यु के मामले में भी शक करने लगे । वह भयभीत हो उठा ।”
“तुमने उसे डायरी का भी हवाला दिया ?”
“नहीं ।”
“फिर ?”
“फिर मैंने उसे कहा कि उसकी भलाई इसी में है कि जब तक तुम विशालगढ में मौजूद हो, वह कहीं बाहर चला जाये । उसने विश्वनगर जाना स्वीकार कर लिया । वह इतना डर गया कि वह अपना सामान लेने के लिये अपने फ्लैट पर भी नहीं गया । उसने अपने फ्लैट की चाबियां मुझे दे दीं और मुझे बताया कि उसके कमरे में उन पत्रों की कार्बन कापियां रखी हैं जो उसने लोगों को ब्लैकमेल करने के सिलसिले में लिखे थे । मैंने उसे आश्वासन दिया कि मैं वे कापियां उसके फ्लैट में से निकाल लाऊंगी । वह उसी दम विश्वनगर के नवीन होटल में चला गया । मैं उसके फ्लैट पर जाकर कार्बन कापियां निकाल लाई ।”
“फिर ?”
“फिर मैं आधी रात तक तो विशालगढ में ही रही और फिर मैं विश्वनगर रवाना हो गई । मैं लगभग डेढ बजे वहां पहुंची । जब मैं चन्द्रशेखर के कमरे में पहुंची तो वह... वह मरा पड़ा था ।”
“फिर तुमने क्या किया ?”
“मैंने चन्द्रशेखर के फ्लैट की चाबियां उसकी लाश पर ही फेंकी और जितनी जल्दी हो सकता था वापिस विशालगढ लौट आयी । घर आकर मैं कितनी ही देर तक सोच विचार करती रही । सुनील मुझे जानकी से नफरत है और मेरा सदा ही यह ख्याल रहा है कि चन्द्रशेखर को तबाह करने में जानकी का ही हाथ था । मैंने चन्द्रशेखर की डायरी पढी थी और उससे यह स्पष्ट प्रकट होता था कि चाचा जी को मार देने के लिए भी उसी ने चन्द्रशेखर को उकसाया था । मैं जानकी से नफरत करती थी और उसी नफतरत की आग में जलकर मैंने जानकी को फंसाने का फैसला कर लिया । मुझे मालूम था कि चन्द्रशेखर की हत्या का पुलिस को पता लगने के बाद चन्द्रशेखर के फ्लैट की तलाशी तो होगी ही । इसीलिए मैं वापिस चन्द्रशेखर के फ्लैट पर गई और कार्बन कापियां और डायरी वहां रख आयी । इरादा यही था कि अगर चन्द्रशेखर मर गया तो जानकी भी क्यों बचे ।”
“लेकिन चन्द्रशेखर के फ्लैट की चाबियां तो तुम विश्वनगर में उसकी लाश पर फेंक आईं थीं, फिर तुमने उसके द्वार का ताला कैसे खोला ?”
“सुनील चन्द्रशेखर मेरा पति था और सैपरेशन से पहले मैं भी उसी फ्लैट में रहती थी । लेकिन सैपरेशन के बाद जब मैं जाफरी मैंशन में रहने लगी तो उसके फ्लैट की चाबियां भी मेरे पास रह गयीं । चन्द्रशेखर शायद यह भूल चुका था कि मेरे पास उसके घर की भी चाबियां है ।”
सुनील चुप रहा ।
“लेकिन सुनील, मुझे हैरानी इस बात की है कि चन्द्रशेखर के घर की तलाशी ले चुकने के बाद भी पुलिस ने डायरी का जिक्र क्यों नहीं...”
फिर एकाएक वह बोलना बंद करके सुनील को यूं घूरने लगी जैसे उसे पहली बार देख रही हो ।
“सु-नी-ल ।” - वह आश्वर्यचकित स्वर से बोली - “तुम, शैतान की आंत...”
“क्या हो गया ?” - सुनील घबरा कर बोला ।
“मुझे अब समझ आयी है कि तुम इतनी बातें कैसे जानते हो ? चन्द्रशेखर के फ्लैट से डायरी और कार्बन कापियां तुम चुराकर लाये हो, इसीलिए वे पुलिस को नहीं मिली ।”
“पागल हुई हो ।” - सुनील नाराज होकर बोला - “मैं भला उसके फ्लैट में कैसे घुस सकता था ?”
“तुम नहीं गए वहां ?” - वह सुनील को घूरती हुई बोली ।
“नहीं ।” - सुनील ने साफ झूठ बोल दिया ।
“खैर छोड़ो ।” - सोनिया बोली - “तुम मुझे बताओ, मैं क्या करूं । मुझे डर लग रहा है कहीं मैं ही पुलिस के फेर में न आ जाऊं । पाल हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ है ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील ।” - वह विनय पूर्ण स्वर से बोली - “मैंने तुम्हें सब कुछ बता दिया है अब तो...”
“तुमने क्या बताया है मुझे ! नब्बे प्रतिशत बातें तो तुम्हें मैंने बताई हैं ।”
“कम से कम मुझे जरा-सा संकेत तो दे दो कि मुझे क्या करना चाहिए ?”
“मैं सोचूंगा ।”
सोनिया चुप हो गई ।
“खाना नहीं खाओगे ?” - सोनिया क्षण भर बाद बोली ।
“यह तो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम्हारे पर्स में कितने रुपये हैं ?”
“यह होटल कैसा है ?” - सोनिया ने पूछा ।
“बहुत महंगा ।”
“और तुम्हें भूख कैसी लगी है ?”
“बहुत तगड़ी ।”
“फिफ्टी-फिफ्टी नहीं चलेगा ।” सोनिया कुछ क्षण सोच कर बोली ।
“चलेगा ।”
“तो फिर उठो ।”
और वे एस्प्रेसो बार से उठ कर डाइनिंग हाल की ओर चल दिये ।
***
ड्राइवर कार चला रहा था ।
सुनील और सोनिया पिछली बर्थ पर बैठे हुए थे ।
“सुनील !” - सोनिया शिकायत भरे स्वर से बोली - “तुमने मुझे बहुत निराश किया है ।”
सुनील हल्की सी हूं करके रह गया ।
“सुनील, तुम्हारा मेरे बारे में क्या ख्याल है ?”
“तुम बहुत सुन्दर हो ।”
“ये मुझे बहकाने के लिए कह रहे हो न ?”
“तुम ऐस बातों से बहक जाती हो क्या ?”
सोनिया चुप होकर खिड़की से बाहर देखने लगी ।
“सुनील ।” - वह फिर बोली - “तुम मेरे जैसी लड़कियों के बारे में क्या सोचते हो ?”
“मैंने कभी सोचा ही नहीं ।” - सुनील धीरे से बोला । वह उसकी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहता था ।
“क्यों झूठ बोल रहे हो ?” - सोनिया शिकायत भरे स्वर से बोली - “सुनील, मैंने गरीबी में जन्म लेकर ऐशो इशरत की जिन्दगी के ख्याब देखे हैं । और जब मैंने यौवन में कदम रखा था तो मैंने अपनी शारीरिक आकर्षण के दम पर जो चाहा था, पाया भी था । चाहे वह मेरी गलती ही थी लेकिन अब मेरी आदतें बिगड़ चुकी हैं और मैं एक पारिवारिक महिल की तरह जीवन नहीं बिता सकती । मुझे बाल बच्चों के बंधनों और चूल्हे चौके की चख-चख से घृणा है । मैं जीवन में हंसी-खुशी, बेफिक्री, रवानगी और तेज रफ्तार की कायल हूं । मुझे रंगीनी चाहिए नित नये मित्र चाहिए । मैं किसी आकर्षक युवक को देखती हूं तो उस पर मर मिटती हूं और उसे प्राप्त करने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देती हूं । लेकिन जब वह मुझे प्राप्त हो जाता है तो मुझे यह अनुभव होता है कि जैसे सौ मील की रफ्तार से भागती हुई गाड़ी को एकाएक ब्रेक लग गई हो और फिर वह मुझे ऐसा ही साधारण और बदमजा लगने लगता है जैसे पिछली रात का बचा हुआ भोजन, सुनील, आई लाइक एक्साइटमैंट, वैरायटी आई हैव मैच्योर्ड ए हैबिट ऑफ कन्सिडरिंग मैन लाइक माई ब्रेसियर्स, विच शुड बी चेंजड वैरी फ्रीक्वैंटली ।”
“यह सब तुम इसलिए चाहती हो क्योंकि तुमने किसी को सच्चे दिल से नहीं चाहा । अगर तुम जिन्दगी को जरा ईमानदारी से समझने की चेष्टा करती तो तुम किसी एक की होकर रहना पसन्द करतीं । नारी के जीवन की पूर्णता ही इसी में है कि किसी एक पुरुष में अपना विलय कर दे । तुमने चन्द्रशेखर से विवाह किया लेकिन तुमने उसे प्यार की नजर से नहीं, अपने भविष्य की गारन्टी के रूप में देखा और जब तुमने अपना वह ध्येय असफल होते देखा तुमने उसे छोड़ दिया । अब तुम फिर किसी ऐसे आदमी की तलाश में हो जो तुम्हारे सुख सुविधापूर्ण भविष्य की गारन्टी कर सके । क्या उम्र है तुम्हारी सोनिया ?”
“छब्बीस साल ।”
“सोनिया, अब और अधिक देर मत करो । अभी तो तुम खुश हो लेकिन और कुछ वर्षो बाद जब यौवन का ज्वार उतर जायेगा तो तुम रोओगी । मेरी सलाह मानों, दुबारा शादी कर लो । जिस फ्री-लाइनिंग के चक्कर में तुम हो, वह तुम्हारा जीवन भर साथ नहीं दे सकती । अब तुम्हें एक प्रेमी की नहीं, एक पति की जरूरत है, जिसका तुम घर बसाओ, जिसका शाम को घर के द्वार पर खड़ी होकर तुम इन्तजार करो, जिसके लिए खाना पकाओ, जिसकी कमीजों में तुम बटन टांको, जिसके बच्चों का तुम पालन पोषण करो अपने जिस भविष्य की सुरक्षा की तुम इच्छा करे रही हो, वह तुम्हें एक पति से ही प्राप्त हो सकता है । तुम केवल आज की सोच रही हो अभी तुम्हारे शरीर में कसाव है, मन में उमंग है और नेत्रों में निमंत्रण है । कभी कल के बारे में ठण्डे दिमाग से सोचकर देखो जब पुरुष तुम में किसी प्रकार के आकर्षण का अभाव पाकर तुमसे कतराने लगेंगे ।”
“तुम्हारी बातें सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं सुनील, लेकिन यह सब मेरे लिए संभव नहीं । घर गृहस्थी संभालने योग्य काबलियत मुझमें नहीं है । मेरा मरना जीना तो अब इन्हीं बातो में है जो समाज में बुरी समझी जाती हैं । सैक्स अब मेरा सिम्बल बन चुका है । मैं इसे छोड़ना चाहूं तो यह मुझे नहीं छोड़ेगा ।”
“यह सब तुम्हारी इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है ।”
“खैर छोड़ो ।” - सोनिया प्रतिवाद करती हुई बोली - “तुम्हारी बातें मुझे चिन्ता में डाल रही हैं । कहीं तुम्हारी कुछ और बातें सुन कर मैं आत्महत्या की इच्छा न करने लगूं ।”
सुनील चुप हो गया ।
सोनिया की दृष्टि क्षण भर के लिए आपा छुड़ा कर भागती हुई सड़क पर जा टिकी रही ।
“सुनील !” - वह क्षण भर बाद बोली ।
“हां ।”
“सैक्स के विषय में तुम्हारी दिलचस्पी कैसी है ?”
“खासी है ।” - सुनील आश्वासनपूर्ण स्वर से बोला ।
“सुनील ।” - सोनिया चिढकर बोली - “तुम बात मुझ से कर रहे हो लेकिन दिमाग शायद तुम्हारा राजनगर में घूम रहा है । तुम और लोगों की तरह व्यवहार क्यों नहीं करते ?”
“और लोग क्या करते हैं ?” - सुनील ने भोलेपन से पूछा ।
“और लोग तो... तुम जानते ही हो क्या करते हैं ।”
“क्या ?”
“हर आदमी जो मुझे से मिलता है सबसे पहले तो वह वस्त्रों के नीचे छिपे मेरे शरीर की कल्पना करता है । फिर वह अपनी कल्पना में मेरे कपड़े उतारने में जुट जाता है ।”
“तुम्हें वह अच्छा लगता है ।”
“यह तो आदमी आदमी पर निर्भर करता है ।”
“और तुम्हारा ख्याल है कि मैं अपनी कल्पना का उचित प्रयोग नही कर रहा हूं ।” - सुनील ‘मैं’ शब्द पर जोर देता हुआ बोला ।
“तुम्हारी कल्पना तो राजनगर में ही घूमती रहती है शायद प्रमिला के आस पास ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील ।” - सोनिया निश्चयात्मक स्वर से बोली - “मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं ।”
“क्या ?” - सुनील चौंक कर बोला ।
“मैं ठीक कह रही हूं । मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत है और मैं उसे हासिल करके रहूंगी ।”
सुनील ने उत्तर देने के लिए मुंह खोला ही था कि कार जाफरी मैंशन के सामने आ रुकी ।
वे उतर पड़े । ड्राइवर कार ले गया ।
सोनिया सीढियों की ओर बढ गई ।
इमारत सुनसान पड़ी थी ।
“बत्ती तो जला लो ।” - सुनील बोला ।
“नहीं ।” - सोनिया एक-एक सीढी तय करती हुई बोली ।
“तुम्हारी इच्छा ।” - और सुनील भी अंधेरे में उसके साथ सीढियां चढने लगा । सोनिया ने कस कर सुनील का हाथ पकड़ लिया ।
सुनील बेचैनी का अनुभव करने लगा ।
सीढियों के मोड़ पर स्थ‍ित एक चौड़ी सीढ़ी पर सोनिया रुक गई । वह घूम कर सुनील के एकदम सामने खड़ी हो गई ।
“सुनील !” - वह स्वप्निल स्वर से बोली ।
“हूं !” - सुनील ने उलझनपूर्ण स्वर से कहा ।
सोनिया ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और अपनी बाहें सुनील के गले में डाल कर बड़े भावपूर्ण स्वर से बोली - “सुनील किस मी ।”
“नो ।” - सुनील दृढ स्वर से बोला ।
“यू बास्टर्ड ।” - वह चिल्लाई और छिटक कर उससे अलग हो गई ।
“धीरे बोलो । कोई सुन लेगा ।” - सुनील बोला ।
सोनिया ने बत्ती जला दी और धड़धड़ाती हुई सीढियां चढ गई ।
जब वह अपने फ्लैट का ताला खोलने लगी तो उसे कुंडे में एक चिट घुसी हुई दिखाई दी । लिखा था - सोनिया फ्लैट पर आते ही मुझे से मिलो । चाहे कितने ही क्यों न बजे हों ।
- जानकी ।
वे फ्लैट में आ गये । सोनिया ने पत्र सुनील की ओर बढा दिया ।
“मिलोगी उससे ?” - सुनील ने पूछा ।
“मेरी जूती मिलती है, मुझे क्या जरूरत...”
उसी समय द्वार पर से जानकी का स्वर सुनाई दिया - “सोनिया ।”
“मैं अभी आई हूं ।” - सोनिया चिढे स्वर से बोली ।
“मैं केवल एक मिनट लूंगी ।” - जानकी भीतर आकर बोली ।
“कहो ।” - सोनिया अनिशिचत स्वर से बोली ।
सुनील ने अपना हैट उठा कर रेडियो पर रख दिया और स्वयं एक ओर बैठ गया ताकि वे दोनों सुविधा से बात कर सकें । हैट के रिबन में से रसीद का कोना तनिक बाहर निकल हुआ था लेकिन सुनील ने उसे ठीक करने की चेष्टा नहीं की ।
“आज का अखबार देखा ?” - जानकी ने पूछा ।
“नहीं ।” - सोनिया बोली ।
“मैं अभी लाती हूं ।” - जानकी उठी और बाहर जीने के लिए लपकी । वह इतनी तेजी से बाहर की ओर जा रही थी कि सुनील के फैले हुए पैरों से ठोकर खा गई । वह लड़खड़ाई लेकिन गिरने से पहले उसने उस मेज का सहारा ले लिया जिस पर रेडियो रखा था । वह सम्भल गई लेकिन सुनील का हैट फर्श पर आ गिरा । जानकी ने हैट उठा कर मेज पर रखा और फ्लैट से बाहर निकल गई ।
“पता नहीं यह हरामजादी औरत क्या करना चाहती है ?” - सोनिया बड़बड़ाई ।
उसी समय जानकी अखबार लेकर लौट आई ।
“उसी शाम का अखबार है ।” - वह बोली - “इसमें चन्द्रशेखर की हत्या का समाचार छपा है ।”
“फिर ?” - सोनिया ने पूछा ।
“इसमें लिखा है कि चन्द्रशेखर की हत्या धन के लिए नहीं की गई । उसके कमरे में से एक पैसा भी नहीं चुराया गया था । लेकिन उसकी चाबियां वहां नहीं मिलीं थीं ।”
“क्या ?” - सोनिया हैरान होकर बोली - “उसकी चाबियां वहां नहीं थी लेकिन मैं तो खुद...”
सोनिया फौरन ही संभल गई ।
“क्या तुम तो खुद...” - जानकी में सशंक स्वर से पूछा ।
“कुछ नहीं ।”
“मैं कहती हूं” - जानकी ऊंचे स्वर से बोली - “तुम दोनों में से ही कोई चन्द्रशेखर के कमरे से चाबियां चुराकर लाया है ।”
“क्या कह रही हो ?” - सोनिया बोली ।
“मैं ठीक कह रही हूं । चन्द्रशेखर की हत्या वाले दिन सुनील दीवानचन्द को लेकर विश्वनगर गया था । वह जरूर वहां से चाबियां चुरा लाया है ।”
किसी ने प्रतिवाद नहीं किया ।
“जिस दिन चन्द्रशेखर विश्वनगर गया था, उसी दिन उसने मुझे पहली बार बताया था कि वह डायरी लिखा करता था । वह समझता था कि चाचा जी अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरे । फिर उसने मुझे बताया कि उसकी डायरी खो गई है और अगर डायरी पुलिस के हाथ पड़ गई तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी । और सोनिया चन्द्रशेखर की डायरी तूने चुराई थी अब शायद तूने डायरी सुनील को दे दी है ताकि तुम मुझे फंसा सको । सोनिया की बच्ची, मैं तुम्हारी सारी करतूत जानती हूं । तुम वेश्याओं के से हाव भाव दिखा कर सुनील को फांस रही हो । जब भी वह तुम्हारे फ्लैट पर आता है तुम उसके सामने बिछी चली जाती हो । तुम अपने शरीर की नुमायश करके...”
“शट अप ।” - सोनिया गला फाड़ कर चिल्लाई ।
“यू शट अप ।” - जानकी भी गरजी - “बदमाश जमाने भर की । मैं अन्धी नहीं हूं । मैं खूब जानती हूं, तुझे भी और तुम्हारे फ्लैट के चक्कर लगाने वाले आशिकों को भी । इसीलिए तुमने मेरे भाई से तलाक लिया था ताकि तुम अपने फ्लैट को रंडी का कोठा बना सको ।”
“चुप हरामजादी, हत्यारी ।” - सोनिया अपनी कुर्सी से उछल कर बोली । जानकी भी झपटी और सोनिया से लिपट गई । फिर दूसरे ही क्षण वे बिल्लियों की तरह गुर्रा रही थीं, एक दूसरे पर झपट रही थीं, एक दूसरे को मार रही थीं, नोच खसोट रही थीं, हाथ चल रहे थे, पांव चल रहे थे, कपड़े फटे जा रहे थे, बाल बिखर रहे थे । वे एक दूसरे से लिपटी-लिपटी फर्श पर लुढकनियां खा रही थीं । धर्म युद्ध की तो भावना उनमें थी ही नहीं । दोनों किसी न किसी तरह विपक्षी को मार गिराने के पक्ष में थीं । वे बुरी-बुरी गालियां बक रही थीं, एक-दूसरे के लिये ऐसे गन्दे गन्दे शब्द प्रयोग कर रही थीं जिन्हें एक महिला के मुख से सुनने की आशा तो सुनील को स्वप्न में भी नहीं थी ।
सुनील चुपचाप खड़ा तमाशा देखता रहा ।
एक क्षण के लिए जबवे एक दूसरे से अलग हुई तो सुनील शांत स्वर से बोला - “झांसी की रानियों, अब शांत हो जाओ । मैंने पुलिस को टेलीफोन कर दिया है ।”
“तुमने क्या कर दिया है ?” - सोनिया ने हैरान होकर पूछा ।
“पुलिस को टेलीफोन ।” - सुनील भाव रहित स्वर से बोला - “फ्लाईंग स्क्वायड एक दो क्षण में यहां पहुंचती ही होगी ।”
“तुमने पुलिस बुलाई है ?” - जानकी चीख कर बोली - “मैं अभी निपटती हूं तुमसे । तुम यहीं ठहरना ।”
जानकी झपटती हुई बाहर निकल आई ।
सोनिया कुछ क्षण फर्श पर ही पड़ी-पड़ी अपनी सांसों पर काबू करने की चेष्टा करती रही और फिर उसने सहायता के लिए अपना हाथ सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने उसे उठाने के लिए उसका हाथ थाम लिया ।
“तुमने वाकई पुलिस को फोन किया है ?” - सोनिया सुनील के हाथ के सहारे उठने की चेष्टा करती हुई बोली ।
“नहीं ।”
“तो ।”
“अगर मैं ऐसा न कहता तो तुम एक दूसरी को भंभोड़ना बंद कैसे करती ?”
“अच्छा । अब मुझे उठाओ ।”
सुनील उसके हाथ को अपनी ओर खींचने लगा ।
उसी समय एक झटके से कमरे का द्वार खुला और सुनील को कमरे में प्रविष्ट होती हुई प्रमिला दिखाई दी । सुनील ने एकदम सोनिया का हाथ छोड़ दिाय । सोनिया फिर फर्श पर आ गिरी ।
“अच्छा ।” - प्रमिला व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोली - “तो ये हो रहा है यहां ।”
“वह कौन है ?” - सोनिया ने उलझन पूर्ण स्वर से पूछा ।
“प्रमिला ।” - सुनील ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
प्रमिला की खोजपूर्ण दृष्टि क्षण भर के लिए सोनिया को परखती रही, फिर वह सुनील की ओर मुड़कर बोली - “यह कुश्ती तुमने लड़ी है ?”
“पागल हुई हो क्या ?” - सुनील झिड़क कर बोला ।
“तो फिर इसके साथ नोच-खसोट किसने की है ?” - प्रमिला सोनिया की ओर संकेत करती हुई बोली ।
“प्रमिला ।” - सुनील बोला - “यह सोनिया है । यह अपनी ननद जानकी के साथ लड़ी है । अभी तो इन्टरवल हुआ है । जानकी जरा बाहर गई है, उसके आने पर मैच शुरू होगा, तुम भी देखना ।”
उसी समय भड़ाक से द्वार खुला और कमरे में जानकी प्रविष्ट हुई । जानकी आते ही सोनिया पर झपट पड़ी । जानकी ने एक जोर का हाथ सोनिया के मुंह की ओर घुमाया लेकिन सोनिया बच गई । फिर सोनिया ने जानकी की चोटी पकड़ कर एक जोर का झटका दिया तो चोटी उसके हाथ में ही आ गई । वह क्षण भर के लिए आश्चर्य चकित होकर चोटी को देखने लगी फिर उसने चोटी जानकी को खींच मारी जानकी सोनिया की ओर झपटी और उससे लिपट गई । अगले ही क्षण दोनों फिर एक दूसरे से गुथी हुई फर्श पर लुढकनियां खा रही थीं ।
“मेरे ख्याल से, प्रमिला” - सुनील परिस्थ‍िति का आनन्द लेता हुआ बोला - “इन्हें एक रेफरी की जरूरत है ।”
“नहीं ।” - प्रमिला दृढता से होंठ भींच कर बोली - “इन्हें मेरी जरूरत है ।”
प्रमिला आगे बढी । उसने जानकी की टांग पकड़ी और उसे घसीटती हुई कमरे के दूसरे सिरे की ओर खींचने लगी । कुछ कदम तो सोनिया भी उसके साथ खिंची लेकिन फिर सोनिया ने जानकी को छोड़ दिया । प्रमिला ने जानकी को घसीट कर यूं कोने में फेंका जैसे वह मरे चूहे को पूंछ पकड़ कर घूरे में फेंक रही हो ।
जानकी संभल कर उठी उसने एक बार घूर कर प्रमिला की ओर देखा फिर वह सिर नीचा करके प्रमिला के शरीर को निशाना बना कर झपटी । प्रमिला ने रास्ते में ही एक हाथ से उसका सिर पकड़ा और दूसरे हाथ का भरपूर झापड़ जानकी के मुंह पर दिया । जानकी उलट कर फर्श पर जा गिरी । प्रमिला ने उसकी बगलों में हाथ डालकर उसे उठाया और उसे एक कुर्सी पर पटक दिया ।
“अब अगर तुम यहां से हिली” - प्रमिला उसके सिर को झटकती हुई गरजी - “तो तिमंजिले से उठाकर नीचे गली में फेंक दूंगी । समझी ? और अगर लड़ने का इतना ही शौक है तो तुम्हारा यह अरमान भी पूरा कर दिया जायेगा । एक ही मिनट में तुम्हारे सारे दांत कमरे में बिखरे हुए दिखाई देने लगेंगे ।”
“तुम... तुम कौन हो ?” - जानकी लड़खड़ाये स्वर से बोली ।
“मैं प्रमिला हूं सुनील की मित्र । अब तुम बको ।”
“यह आदमी सोनिया से मिल कर मुझे हत्या के अपराध में फांसना चाहता है ।”
“क्या मामला है सुनील ?” - प्रमिला सुनील से बोली ।
“यह क्या बतायेगा ?” - जानकी बोली - “अभी जिसे मैं फोन करके आई हूं, उसे आ लेने दो ।”
उसी समय किसी ने द्वार खटखटाया ।
प्रमिला ने द्वार खोला ।
आगन्तुक निर्मला थी ।
निर्मला पहले हतप्रभ सी कमरे के अस्त व्यस्त सामान को देखती रही, फिर जानकी से बोली - “मैं तुम्हारा फोन मिलते ही आ पहुंची हूं ।”
प्रमिला ने नीचे झुक कर नकली बालों की चोटी उठाई जो सोनिया ने जानकी के सिर से उखाड़ ली थी, और उसे जानकी की ओर फेंकती हुई बोली - “इसे सम्भालो ।”
“आप कैसे तशरीफ लाई हैं ?” - प्रमिला निर्मला की ओर देख कर व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोली ।
“मुझे जानकी ने बुलाया है । और मिस्टर सुनील, शायद आपको यह जानकर दुख होगा कि मेरे पति ने मुझे सब कुछ बता दिया है ।”
“मुझ से बात करो ।” - प्रमिला ऊंचे स्वर से बोली - “क्या सब कुछ बता दिया है ?”
“कि चन्द्रशेखर की मृत्यु के दिन क्या हुआ था ।”
“क्या हुआ था ?”
“सुनील ने मेरे पति को फोन पर बताया था कि चन्द्रशेखर विश्व नगर के नवीन होटल के चौबीस नम्बर कमरे में है । मेरे पति चन्द्रशेखर से फौरन मिलने के लिए उत्सुक थे क्योंकि वे उसे रुपया देकर उसका मुंह बन्द कर देना चाहते थे ताकि वह मुझे उनके कुकर्म के विषय में कोई सूचना न दे सके । इसलिए वह सात बजे के प्लेन पर राजनगर से चलकर दस बजे ही विशालगढ पहुंच गये । फिर वे न्यू मोटर एजेन्सी की किराये की कार पर लगभग आधी रात को विश्वनगर के नवीन होटल में पहुंचे । उन्होंने चौबीस नम्बर कमरे का द्वार खटखटाया लेकिन भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला । वे वापिस आ गये । उन्होंने रेस्टोरेन्ट से एक कप काफी पी और लगभग पन्द्रह मिनट बाद चन्द्रशेखर के कमरे का द्वार फिर खटखटाया फिर कोई उत्तर नहीं मिला । इसी प्रकार लगभग एक घन्टे तक उन्होंने चन्द्रशेखर से कोई संबंध स्थापित करने की चेष्टा की लेकिन जब भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला तो वे वापिस विशालगढ लौट आये । फिर वे सुनील से मिले । अगले दिन सुबह सुनील उन्हें फिर विश्वनगर लेकर आया । सुनील मेरे पति को बाहर ही छोड़कर स्वयं चन्द्रशेखर के कमरे में गया । वह कुछ क्षण भीतर रहा और फिर बाहर आकर उसने मेरे पति को बताया कि चन्द्रशेखर भीतर नहीं है । लेकिन वह झूठ था । चन्द्रशेखर भीतर था लेकिन वह मर चुका था ।”
“यह सब तुम्हें दीवानचन्द ने बताया है ?”
“हां ।”
“तो इसका मतलब यह हुआ ।” - जानकी एकदम बोली - “कि चाबियां सुनील ने चुराई हैं । सुनील चन्द्रशेखर के होटल वाले कमरे से चाबियां लाया है । उसी की सहायता से सुनील और सोनिया चन्द्रशेखर के फ्लैट से उसकी डायरी चुराकर लाये हैं और अब सोनिया ने उस डायरी में चन्द्रशेखर के हैंड राइटिंग की नकल करके मेरे विरुद्ध उल्टी सीधी बातें लिख दी हैं जिससे यह सिद्ध हो सके कि चाचा जी स्वाभाविक मौत नहीं मरे बल्कि मैंने उनकी हत्या की थी । और अब सुनील वह डायरी पुलिस के हाथ में पहुंचाना चाहता है ताकि मैं फंस जाऊं ।”
“यह ठीक कह रही है ?” - प्रमिला ने सुनील से पूछा ।
“पागल हुई हो क्या प्रमिला ?”
“यह झूठ बोलता है ।” - जानकी चिल्लाई ।
“ओह, शट अप ।” - प्रमिला गरजी ।
“यह बेईमान है इसने मेरे पति को भी धोखा दिया है । यह...”
“आई से शट अप एण्ड गैट आउट ।” - प्रमिला गला फाड़कर चिल्लाई ।
“तुम कौन होती हो मुझे बाहर निकालने वाली ?”
प्रमिला तेजी से उसकी ओर बढी ।
जानकी उछलकर खड़ी हो गई । उसने अनजाने में ही अपने नकली बालों की चोटी उठाई और कमरे से बाहर निकल गई ।
सुनील सोच रहा था कि कहां बिफरी हुई बिल्लियों में फंस गया ।
“मैं अविवाहित लड़कियों में इतनी बेशर्मी पसंद नहीं करती ।” - निर्मला अधिकारपूर्ण स्वर में बोली ।
“लेकिन मैं पसंद करती हूं ।” - प्रमिला बोली - “अगर मेरे जैसी बेशर्म लड़की की मौजूदगी में तुम्हारा दम घुट रहा हो तो तुम भी दफा हो सकती हो ।”
“तो मिस्टर सुनील, मेरे पति में और आप में जो व्यापारिक समझौता हुआ था, उसे कैन्सिल समझिये ।”
“शायद आप यह भूल गई हैं निर्मला देवी ।” - सुनील बोला - “कि मैं आपके पति के लिए काम कर रहा हूं, आपके लिए नहीं इसलिए आपको अपनी ओर से या अपने पति की ओर से मुझे किसी प्रकार की आज्ञा देने का हक नहीं पहुंचता है । और दूसरी बात यह है कि दीवानचन्द ही मेरे फ्लैट पर सहायता के लिए नाक रगड़ता हुआ आया था । मैंने उससे संबंध स्थापित नहीं किया था ।”
निर्मला कसमसाई ।
“अब आप तशरीफ ले जाना चाहती हैं ?” - प्रमिला व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
निर्मला आग्नेय नेत्रों से उसकी ओर घूरती हुई कमरे से बाहर निकल गई ।
प्रमिला ने फिर द्वार बन्द कर लिया ।
वह वापिस आकर सुनील के नेत्रों में झांकती हुई बोली - “जब तुम नवीन होटल के चौबीस नम्बर कमरे में गये थे तो चन्द्रशेखर मर चुका था ?”
“हां ।” - सुनील हिचकिचाहट भरे स्वर में बोला ।
“तुमने चन्द्रशेखर की डायरी में कोई जालसाजी की है ?” - उसने सोनिया से पूछा ।
सोनिया ने सुनील की ओर देखा ।
“उत्तर दो ।” - सुनील बोला ।
“नहीं । कुछ समय पहले मैंने चन्द्रशेखर की डायरी चुराई जरूर थी । लेकिन मैंने उसमें कोई जालसाजी नहीं की । उस डायरी से यह प्रकट होता था कि जानकी ने अपने चाचा की हत्या की है । मैंने चन्द्रशेखर की मृत्यु के बाद वह डायरी वापिस उसके फ्लैट में रख दी थी लेकिन मेरा ख्याल है कि वह डायरी सुनील वहां से चुरा लाया है ।”
“जरूर लाया होगा ।” - प्रमिला विश्वासपूर्ण स्वर में बोली - “यह केस में अपनी गर्दन फंसवाये बिना मानता ही नहीं । यह हमेशा कोई न कोई ऐसा काम कर देता है जिससे पुलिस इसी पर सन्देह करने लगती है । किसी दिन इसी आंखमिचौली के चक्कर में यह फांसी के तख्ते पर पहुंच जाएगा ।”
उसी समय किसी ने द्वार भड़भड़ाया ।
“अब कौन आ मरा ?”
“दरवाजा खोलो ।” - बाहर से पाल का अधिकारपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
“प्रमिला ।” - सुनील बोला - “यह पाल है, सीक्रेट सर्विस का आफिसर है । दरवाजा खोल दो ।”
प्रमिला ने द्वार खोल दिया ।
“तुम फिर आ गये ?” - पाल सुनील को देखते ही बोला - “मैंने तुम्हें मना किया था यहां आने से ।”
उसी समय सुनील को अपने हैट का ख्याल आया । उसने रेडियो पर से हैट उठाया और अपनी उंगलियों से रिबन टटोलने लगा ।
क्लाक रूम की रसीद वहां नहीं थी ।
सुनील घबरा गया । अगर क्लाक रूम की रसीद पाल के हाथ पड़ गई और वह राजनगर रेलवे स्टेशन के क्लाक रूम से वह अटैची निकाल लाया जिसमें चन्द्रशेखर की डायरी, उसके फ्लैट की चाबियां और ब्लैकमेलिंग वाले पत्रों की प्रतिलिपियां थीं तो सुनील के फंसने में कोई कसर बाकी नहीं रह जाती थी ।
“ये कौन है ?” - पाल ने अपनी व्यवसाय सुलभ उत्सुकता से प्रमिला की ओर संकेत करते हुए पूछा ।
“यह प्रमिला है, मेरी मित्र ।” - सुनील ने बताया ।
उसी समय पाल की दृष्टि सोनिया के चेहरे की खरोंचों, उसके उलझे बालों और फटे कपड़ों पर पड़ी ।
“तुम्हें क्या हुआ है ?” - उसने हैरान होकर पूछा ।
“तुम्हें दिखाई नहीं देता ?” - सोनिया जलकर बोली ।
“लेकिन मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं ।”
“लड़ाई हो गई थी ।”
“किससे ?”
“सुनील से ।” - प्रमिला जल्दी से बोली - “सुनील सोनिया से शरारत करने की चेष्टा कर रहा था, सोनिया ने उसे थप्पड़ दे मारा । सुनील यह तौहीन सहन नहीं कर सका कि कोई लड़की उसका प्रणय-निवेदन अस्वीकार करने के साथ-साथ उसे पीट भी दे । उसे क्रोध आ गया और उस थप्पड़ के बदले में उसने सोनिया को उधेड़ कर रख दिया ।”
पाल ने एक बार सुनील की ओर देखा और फिर बेतहाशा हंसने लगा ।
“प्रमिला !” - सुनील क्रुद्ध स्वर में बोला ।
“अच्छा ।” - प्रमिला भी उखड़कर बोली - “जो जी में आये करो । मैं तो चाहती थी झंझट खत्म हो तो वापिस चलें लेकिन तुम...”
प्रमिला खिड़की के पास कुर्सी घसीट कर उनकी ओर पीठ करके बैठ गई ।
“सुनो पाल ।” - सुनील दृढ स्वर में बोला - “इस केस के दौरान में मैं अनजाने में ही कुछ ऐसी बातें जान गया हूं जिनकी कीमत बीस हजार रुपये है । कहने का मतलब यह है कि केवल उस जानकारी को प्रयोग में लाने भर से ही मुझे बीस हजार रुपये मिल सकते हैं । अगर तुम चाहो तो मैं इतनी बड़ी रकम पर तुम्हारी खातिर अपना हक छोड़ सकता हूं । तुम्हें बीस हजार रुपये तो मिलेंगे ही साथ ही तुम्हें इतनी प्रसिद्धि मिलेगी कि देश का बच्चा-बच्चा तुम्हारा नाम जान जायेगा और मैं खुद ‘ब्लास्ट’ के माध्यम से तुम्हें ऐसी भारी पब्लिसिटी देने का वायदा करता हूं कि तुम्हारा सबसे बड़ा अफसर भी तुम्हें स्पर्द्धा की दृष्टि से देखने लगेगा ।”
“अब कुछ कहोगे भी ।” - पाल बेचैन स्वर से बोला ।
“कहूंगा बशर्ते कि तुम मेरी कुछ शर्तें मंजूर करो ।”
“मैं पूरी बात सुने बिना कोई वायदा नहीं कर सकता ।” - पाल के स्वर में दृढता का अभाव था ।
“तो फिर मैं मजबूर हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि बाद में तुम मुझे तो गधा बता दो और स्वयं वाहवाही लूट लो ।”
“लेकिन कम से कम कुछ संकेत तो दो कि तुम क्या कहना चाहते हो ?”
“संकेत के रूप में मैं केवल इतना कह सकता हूं कि मैं एक पुराने केस का जिक्र करने वाला हूं जिसमें तुम्हारे विभाग को मुंह की खानी पड़ी थी । वह केस आज भी तुम्हारे विभाग की फाइलों में बिना सुलझा पड़ा है ।”
“और तुम उसे सुलझा सकते हो ?”
“केवल सुलझा ही नहीं सकता अपराधी को पकड़वा भी सकता हूं ।”
“और यह बीस हजार रुपये का क्या किस्सा है ?”
“यह इनाम की रकम है जो उस गुत्थी को सुलझाने वाले को मिलने वाली है और जो देश के प्रख्यात उद्योगपति सेठ हर गोपाल चांदी वाले ने घोषित की हुई है और जो उसे...”
“मैं समझ गया ।” - पाल उत्तेजित स्वर में बोला - “तुम उस रकम की बात कर रहे हो जो हर गोपाल के लड़के को तलाश करके लाने वाले को मिलने वाली थी । लेकिन अब उस केस में क्या खाक किया जा सकता है ?”
“क्यों ? क्या सेठ हर गोपाल के लड़के की तलाश नहीं की जा सकती है ?”
“नहीं की जा सकती ।”
“क्यों ?” - सुनील माथे पर बल डालकर बोला ।
“क्योंकि वह लड़का कभी का मर-खप चुका होगा । वह तो ब्लैकमेलिंग का केस था । बदमाश सेठ हर गोपाल के लड़के को सेठानी की गोद में से छीन कर ले गये थे और बाद में उन्होंने लड़के के बदले में सेठ से पचास हजार रुपये की मांग की थी । सेठ ने रुपया दे दिया था लेकिन लड़का उसे फिर भी नहीं मिला था । क्योंकि इस प्रकार के ब्लैकमेलिंग के मामलों में मूर्ख से मूर्ख आदमी भी लड़के को वापिस करने की चेष्टा नहीं करता । रुपया मिल जाने के बाद उन्हें इस बात में दिलचस्पी नहीं होती कि लड़का अपने मां बाप के पास पहुंचा या नहीं । वे तो बच्चा भगाकर लाते हैं तो पहले उसका गला घोंटते हैं और बाद में रुपये की मांग करते हैं । बच्चे को सम्भाल कर रखने में या उसे वापिस मां बाप तक पहुंचाने की ईमानदारी दिखाने में सौ फीसदी चांस पुलिस की पकड़ में आ जाने के होते हैं । इस मामले में भी यह यकीन करना कि सेठ का लड़का अभी तक जीवित ही होगा मूर्खता से अधिक कुछ नहीं है ।”
“फिर भी संभावना तो हो ही सकती है ।”
“सम्भावना भी नहीं है ।” - पाल निश्चयात्मक स्वर में बोला - “अगर वह बच्चा जिन्दा होता तो या तो वह अपने मां बाप के पास पहुंच चुका होता या फिर बदमाशों ने अब तक फिर रुपये की मांग कर दी होती ।”
“लेकिन कई बार ऐसा हुआ है कि रुपया दे देने के बाद अभिभावकों को बच्चा वापिस मिल गया है ।”
“हुआ है लेकिन सौ में से निन्यानवे ऐसे केसों में बदमाश पकड़े भी गये हैं । अभी पिछले दिनों की बात है हालीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता फ्रैंक सिनैट्रा के लगभग बीस बाइस वर्ष के लड़के को बदमाश भगाकर ले गये थे और उन्होंने फ्रैंक सिनैट्रा से उसके बदले में कई लाख डालर की मांग की थी । सिनैट्रा ने उनकी मांग पूरी कर दी थी और उसका लड़का वापिस घर आ गया लेकिन कुछ ही दिनों बाद बदमाश पकड़े गये थे और उनसे सारा रुपया वसूल कर लिया गया था । अब बताओ लड़के को वापिस घर भेजने की शराफत दिखाना उनके लिए घातक सिद्ध हुआ या नहीं ।”
“तुम्हारी बात ठीक है लेकिन फिर भा इस केस में बच्चा अभी भी जीवित है ।”
“तुम जानते हो वह कहां है ?”
“हां ।”
“तो बताओ फिर ।” - पाल के स्वर में चैलेंज था ।
“बशर्ते कि तुम मेरी शर्तें मानना स्वीकार करो ।”
पाल क्षण भर चुप रहा फिर बोला - “क्या शर्तें हैं तुम्हारी ?”
“पहली यह कि तुम दीवानचन्द को निर्दोष सिद्ध करने में कम से कम मेरी न्यायोचित सहायता तो अवश्य ही करोगे ।”
“और अगर वह अपराधी सिद्ध हुआ ?”
“तो मैं केस से अपना हाथ खींच लूंगा ।”
“खैर मंजूर है, आगे कहो ।”
“दूसरी शर्त यह है कि जब तक इस केस का सारा विवरण ‘ब्लास्ट’ में छपने के लिए प्रेस में न पहुंच जाए तुम किसी और अखबार के रिपोर्टर को इन्टरव्यू नहीं दोगे ।”
“मंजूर, और ?”
“तीसरी और आखिरी शर्त यह है कि उन बीस हजार रुपयों में से दस हजार तुम मुझे दोगे । इस केस में जो प्रसिद्धी तुम्हें मिलेगी, उसमें तो मैं हिस्सा नहीं बंटा सकता लेकिन रुपया तो मैं हासिल कर ही सकता हूं ।”
“यह भी मंजूर है बशर्ते कि बीस हजार रुपया मिले ।”
“जरूर मिलेगा ।” - सुनील विश्वासपूर्ण स्वर में बोला - “और अब” - वह सोनिया की ओर घूमा - “सोनिया, तुम थोड़ी देर के लिए हमें अकेला छोड़ दोगी ?”
“क्या मतलब ?” - सोनिया हैरान होकर बोली ।
“मतलब मैं बताती हूं ।” - प्रमिला आगे बढती हुई बोली - “मार्च टु बाथरूम ।”
“वह !” - सोनिया तमक कर बोली - “मेरे ही फ्लैट में आप लोग मुझे...”
“जल्दी करो ।” - प्रमिला ऊंचे स्वर में बोली - “बाथरूम में चलो ।”
“मैं नहीं जाऊंगी और आप सब लोग दफा हो जाइये यहां से ।”
प्रमिला ने उसकी बांह पकड़ी और उसे खींचती हुई ले जाकर बाथरूम में बन्द कर आयी ।
प्रमिला के वापस लौटते ही पाल की प्रश्नसूचक दृष्टि सुनील की ओर उठ गई ।
“पाल ।” - सुनील बोला - “सेठ हरगोपाल के लड़के को भगाने वाले बदमाश कई नहीं थे, केवल एक था और वह भी पुरुष नहीं एक औरत थी ।”
“औरत ?” - पाल हैरान होकर उसका मुंह देखने लगा ।
“हां, एक औरत जिसमें मातृत्व की भावनाओं का प्राबल्य था । जो एक बच्चा चाहती थी लेकिन स्वयं एक बच्चे को जन्म देने में दैवयोग से असमर्थ थी ।”
“अगर उस औरत ने मां ही बनने के शौक में बच्चा भगाया था तो उसने पचास हजार रुपये की मांग क्यों की ?”
“ताकि पुलिस इसे साधारण ब्लैकमेलिंग का ही केस समझे और जैसा कि समझा भी गया । रुपये की मांग करके एक तो उस औरत ने पुलिस को डाज दे दी और दूसरे हराम का माल आता किसे बुरा लगता है ।”
“खैर फिर ?”
“क्योंकि मामला सेठ हरगोपाल चांदी वाले जैसे प्रसिद्ध और धनी व्यक्ति का था इसलिए उसे बच्चा-बच्चा जान गया । अब अगर किसी औरत के पास एकाएक छः महीने का बच्चा दिखाई देने लगे तो क्या पड़ोसी संदेह नहीं करेंगे कि यह बच्चा कहां से टपक पड़ा और अगर कोई पड़ौसी इस परिस्थिति की असाधारणता का अनुभव करके पुलिस स्टेशन जाकर अपना यह संदेह व्यक्त कर आये कि सेठ हरगोपाल का बच्चा शायद उसके पड़ौसी परिवार ही के पास है तो वह औरत फंस गई या नहीं ?”
“लेकिन वह औरत है कौन ?” - पाल उत्सुक स्वर में बोला ।
“निर्मला, दीवानचन्द की पत्नी । किसी न किसी प्रकार वह जानती होगी कि वह स्वयं बच्चा पैदा नहीं कर सकती । शायद विवाह के पहले उसने कोई कुकर्म किया होगा और फिर अपने उस पाप को छुपाने के लिए आपरेशन करा डाला होगा जिसके कारण वह गर्भ धारण करने के लिए अयोग्य हो गई होगी । लेकिन निर्मला में मातृत्व की भावनाएं बहुत प्रबल थीं । उसने किसी दूसरे का बच्चा हासिल करने का फैसला किया और पहले ही ऐसी ग्राउन्ड तैयार कर ली कि अगर छः महीने का एक बच्चा उनके घर आ जाये तो पड़ौसियों को कुछ अस्वाभाविक न लगे । उसने पहले से ही अपनी सौतेली बहन के चर्चे शुरू कर दिये जो गर्भवती है लेकिन उसका पति मर गया है । फिर कुछ दोनों बाद वह पड़ौसियों को बताती है कि उसकी विधवा बहन के लड़का हुआ है । फिर छः महीने बाद वह एक दिन रोती बिलखती पड़ौसियों को बताती है कि उसकी बहन की मृत्यु हो गई है और छः मास का दूध पीता बच्चा अनाथ रह गया है । निर्मला उस काल्पनिक बहन के क्रियाकर्म के लिए चली जाती है और जब वापिस आती है तो उसके साथ छः मास का एक बच्चा भी होता है । सब यही समझते हैं कि वह दया करके अपनी बहन के अनाथ बच्चे को खुद पालने के लिए साथ ले आई है । निर्मला यह भी बताती है कि उसकी बहन उसके लिए पचास हजार रुपये छोड़कर मरी है । किसी को ख्याल भी नहीं आता कि बच्चा और रुपया दोनों ही सेठ हरगोपाल के हैं और सबसे दिलचस्प बात यह है कि स्वयं दीवानचंद भी यही समझता है कि बच्चा उसकी साली का है और उसकी पत्नी को रुपया भी अपनी सौतेली बहन से ही मिला है । फिर समय के साथ-साथ लोग हरगोपाल के बच्चे को भूल गये और पुलिस भी यही सोच बैठी कि बच्चा मर-खप गया । और यह बात कभी सामने न आती अगर बीच में चन्द्रशेखर न आ टपकता ।”
“चन्द्रशेखर का क्या संबंध है निर्मला के इस कृत्य से ?” - पाल अपलक नेत्रों से सुनील को देखता हुआ बोला ।
“पिछले दिनों दीवानचन्द एक सेल्ज कान्फ्रेंस के सिलसिले में अपनी कम्पनी के प्रतिनिधि के रूप में विशालगढ आया । उसने एक ऐसी कार डिजाइन की थी, जो स्वयं उसके शब्दों में कारों के इतिहास में क्रान्ति उत्पन्न करने वाली थी । उसकी अपनी फर्म के पास इतना रुपया नहीं था कि वह उसका उत्पादन स्वयं कर सके । दीवानचंद को एक पार्टनर की या ऐसे आदमी की जरूरत थी जो उसके पैटेन्ट को खरीद ले । लगभग सभी व्यापारियों की रुचि दीवानचंद की स्कीम में थी लेकिन कान्फ्रेंस का प्रेसीडेन्ट मगन भाई तो उस स्कीम से ऐसा प्रभावित हुआ था कि उसने फौरन इस बात का इंतजाम कर डाला कि दीवानचंद किसी और व्यापारी के संबंध में आये नहीं । इसा मामले में उसने सोनिया की सहायता ली । सोनिया उसे रात को अपने फ्लैट में ले गई । लेकिन बिहारी और उसकी पत्नी जानकी को, जो कि इसी मंजिल पर रहते हैं, इस बात का पता लग गया कि सोनिया रात को किसी आदमी को अपने साथ लाई है । उन्होंने यह बात चन्द्रशेखर को बता दी । चन्द्रशेखर तलाक के चक्कर में पहले ही जला बैठा था । उसे सोनिया को बदनाम करने का एक मौका मिल गया । वह एक बाजारू लड़की को अपने साथ लेकर सोनिया के फ्लैट पर पहुंचा । सोनिया और दीवानचंद दो विभिन्न कमरों में सोये हुए थे । चन्द्रशेखर उस लड़की के साथ दीवानचंद वाले कमरे में घुस गया । दीवानचंद शराब के नशे में बेसुध पड़ा था । वहां चन्द्रशेखर ने उस लड़की की सहायता से दीवानचंद के कुछ बड़े ही भद्दे चित्र खींचे । दीवानचंद को तो उस समय पता भी नहीं लगा कि उसके किसी लड़की के साथ चित्र खींचे गये हैं । इसीलिए बाद में चित्र देखने पर वह स्वयं भी फैसला न कर सका कि उसने सोनिया के फ्लैट पर कोई बुरा काम किया है या नहीं । बाद में चन्द्रशेखर को मालूम हुआ कि दीवानचंद अमीर आदमी है । उसने उसे चित्र और धमकी भरा पत्र लिख भेजा । फिर ऐसा ही एक पत्र उसने निर्मला को भी लिखा । पत्र में इस बात पर विशेष जोर दिया गया था कि वह जानता है कि दीवानचंद और निर्मला एक यतीम बच्चे को पाल रहे हैं और वह इस बात की सूचना पुलिस को दे देना अपना नैतिक कर्तव्य समझता है ताकि वह मासूम बच्चा एक चरित्रहीन बाप की छत्रछाया में पलने के स्थान पर किसी अच्छे वातावरण में परवान चढे । चन्द्रशेखर का पत्र पाकर निर्मला परेशान हो उठी, इसलिए नहीं कि उसका पति किसी लड़की के साथ कोई गड़बड़ कर आया है बल्कि इसलिए कि अगर चन्द्रशेखर ने बच्चे की सूचना पुलिस में दे दी तो कहीं पुलिस को सारी भूली बिसरी दास्तानें फिर से न याद आ जाएं और वे गड़े मुर्दे उखाड़ने पर उतारु हो जाये । यदि ऐसा हो जाता तो बच्चा तो हाथ से जाता ही साथ ही निर्मला को जेल भी जाना पड़ता । इसलिए चन्द्रशेखर का अपनी जुबान बंद रखना, दीवानचंद से भी अधिक महत्वपूर्ण निर्मला के लिए था । दीवानचंद सहायता के लिए मेरे पास आया । मैंने विशालगढ जाकर चन्द्रशेखर का पता लगा लिया कि वह विश्वनगर में नवीन होटल के चौबीस नबर कमरे में है । यह बात निर्मला ने भी एक्सटेन्शन फोन पर सुन ली । उसने सूचना का फायदा उठाने का निश्चय कर लिया । दीवानचंद के घर से निकलने के थोड़ी देर बाद ही वह भी घर से निकल पड़ी । दीवानचंद प्लेन लेकर पहले विशालगढ आया और वहां से कार पर विश्वनगर गया क्योंकि विश्वनगर का इरादा शायद उसने विशालगढ पहुंचने के बाद बनाया था यानी घर से वह मुझसे ही मिलने के लिए चला था लेकिन निर्मला ने राजनगर से सीधा विश्वनगर जाने वाला प्लेन पकड़ा और इस प्रकार अपने पति से पहले विश्वनगर पहुंच गई । वहां वह चन्द्रशेखर के कमरे में गई । उसने बड़े इत्मीनान से उसे गोली मारी और अगले ही प्लेन से वापिस राजनगर चली गई । उसके जाने के थोड़ी ही देर बाद दीवानचंद भी विश्वनगर पहुंच गया । जब वह नवीन होटल के चौबीस नम्बर कमरे में पहुंचा तो वहां उसे चन्द्रशेखर के स्थान पर उसकी लाश दिखाई दी । वह घबरा गया । उसने अपना बचाव इसी में समझा कि चुपचाप भाग निकले और यही उसने किया भी । मेरे होटल में वह साढे तीन बजे पहुंचा और मुझे उसने यही कहा कि वह सीधा राजनगर से आ रहा है ।”
पाल उल्लुओं की तरह पलकें झपकाता हुआ सुनील को देख रहा था । प्रमिला उसे यूं घूर रही थी, जैसे वह अभी-अभी टोप में से खरगोश निकालने का तमाशा करके हटा हो ।
“लेकिन” - पाल हकलाया - “तुम यह सब सिद्ध करोगे ?”
“सिद्ध मैं नहीं” - सुनील उसकी छाती में उंगली गड़ाता हुआ बोला - “तुम करोगे । अपनी तफ्तीश शुरू कर दो । तुम्हारी सहायता करने के लिए तुम्हारा सारा विभाग है । तुम निर्मला से सवाल करो कि चन्द्रशेखर की हत्या के समय वह कहां थी ? उस प्लेन को लोकेट करने की चेष्टा करो - जिसमें वह विश्वनगर गई थी । सेठ हरगोपाल से उनके बच्चे का चित्र लेकर उसका मिलान निर्मला के बच्चे से करो और भगवान ने चाहा तो एक तीर से दो शिकार करोगे । चन्द्रशेखर का हत्यारा पकड़ा जायेगा और सेठ हरगोपाल का खोया बच्चा भी मिल जाएगा ।”
पाल विचारपूर्ण मुद्रा में बैठा रहा ।
“एक बात और सुनो ।” - सुनील ने गर्म लोहे पर चोट की - “चन्द्रशेखर डायरी लिखा करता था । उसने डायरी में कुछ ऐसी बातें लिखी हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि जानकी ने अपने चाचा की हत्या की है । जानकी चन्द्रशेखर की डायरी के विषय में जानती थी और इस तथ्य को भी अनुभव करती थी कि अगर वह डायरी पुलिस के हाथ में पड़ जाये तो वह पकड़ी जायेगी । जानकी के पास चन्द्रशेखर के फ्लैट की चाबी थी । जिस दिन चन्द्रशेखर विश्वनगर गया उसी दिन जानकी उसके फ्लैट में घुस गई और डायरी निकाल लाई । उस डायरी को वह नष्ट नहीं करना चाहती थी । वह तो उसमें से केवल वे बातें उड़ा देना चाहती थी जिससे यह सिद्ध होता था कि उसने अपने चाचा की हत्या की थी ताकि वह डायरी को वापिस चन्द्रशेखर के फ्लैट में रखकर आ सके । लेकिन उसके पास इतना समय नहीं था क्योंकि वह जानती थी कि मैं भी इसी लाइन पर काम कर रहा हूं । इ‍सलिए उसने डायरी और शायद चन्द्रशेखर के फ्लैट में से निकाली हुई कई और चीजों को एक अटैची केस में रखा और अटैची केस को ले जाकर राजनगर रेलवे स्टेशन के क्लाक रूम में जमा करा दिया । वर्तमान भागदौड़ खत्म हो जाने के बाद जानकी वह अटैची केस लेने राजनगर जरूर जायेगी । तुम पाल, ऐसा करो कि राजनगर के किसी पुलिस आफिसर को फोन करके कहो कि वह उस अटैची को चेक करे कि उसमें डायरी है या नहीं । अगर डायरी अटैची में हो तो क्लाक रूम पर कुछ आदमी नियुक्त करवा दो ताकि जो भी आदमी क्लाक रूम में उस अटैची की रसीद लेकर पहुंचे उसे गिरफ्तार किया जा सके ।”
“हां, यह तो मैं कर सकता हूं ।”
“तो फिर शुरू हो जाओ, मुंह क्या देख रहे हो ?”
“वह सब तो मैं करूंगा ही ।” - पाल उठता हुआ बोला - “लेकिन सुनील इसका यह मतलब हरगिज भी नहीं है कि तुम छुटकारा पा गये हो । चन्द्रशेखर की हत्या के मामले में मुझे अब भी तुम पर संदेह है कि तुमने या तो हत्या स्वयं की है या उसमें सहायता की है । अगर बाद में मुझे इसमें तुम्हारा हाथ दिखाई दे गया तो मैं अगली बार तुम्हारे हाथों में हथकड़ियां देखना अधिक पसंद करूंगा । अच्छा हुआ तुमने अपने बचाव के लिए कोई शर्त नहीं रखी ।”
पाल द्वार की ओर बढ गया ।
“पाल !” - सुनील ने उसे आवाज दी ।
“अब क्या है ?” - पाल द्वार के समीप रुक कर बोला ।
“जरा पास आओ ।” - सुनील पैंट की जेबों में हाथ ठूंसे हुए बोला - “अभी एक हिसाब बाकी रह गया है ।”
“कौन सा ?” - पाल उलझनपूर्ण ढंग से आगे बढता हुआ बोला ।
“यह ।” - सुनील का हाथ बिजली की तरह पैंट की जेब में से निकला और एक भरपूर घूंसे के रूप में पाल के जबड़े पर जाकर गिर पड़ा ।
“उस दिन के घूंसे के जवाब में ।” - सुनील हाथ झाड़ता हुआ बोला ।
पाल के पांव उखड़ गये और वह भरभराकर फर्श पर जा गिरा ।
प्रमिला आश्चर्यचकित होकर सुनील का मुंह देखने लगी ।
पाल क्रोध से उफनता हुआ उठा और सुनील की ओर झपटा । लेकिन फिर न जाने क्या सोचकर वह रुक गया और फिर ठठा कर हंस पड़ा ।
“ओ के चैप ।” - वह जबड़ा सहलाता हुआ बोला - “हैव इट योर ओन वे ।”
और पाल कमरे से बाहर निकल गया ।
“यह क्या बात हुई ?” - प्रमिला बोली ।
“तुम नहीं समझोगी ।”
प्रमिला क्षण भर चुप रही, फिर बोली - “यह दास्तान जो अभी तुमने पाल को सुनाई है, क्या सच थी ?”
“एकदम झूठ ।”
“क्या ?” - प्रमिला की आंखें फैल गयीं - “तो यह इतना बड़ा इल्जाम तुमने बिना कुछ जाने बूझे ही निर्मला पर ठोक दिया है । तुमने ख्वमखाह ही निर्मला को चन्द्रशेखर का खूनी...”
“अब मैं क्या करता पम्मी । यह झूठ बोलना बहुत जरूरी हो गया था । अगर मैं इतना बड़ा झूठ न बोलता तो पाल आज मुझे नहीं छोड़ता ।”
“और हरगोपाल के लड़के का क्या मामला था ?”
“देखो प्र‍मिला, सेठ के लड़के के गायब होने के मामले में मैंने भी दिलचस्पी ली थी और उसी दिन से मेरा यही ख्याल था जो मैंने आज पाल को बताया है । अंतर केवल इतना है कि मुझे यह मालूम नहीं था कि यह औरत कौन है ? इस केस की शुरुआत में दीवानचंद ने मुझे अपनी साली के लड़के के बारे में जो बातें बताई थीं उससे मुझे निर्मला पर सन्देह हो गया था और आज मैंने जरा और अच्छी तरह से इस बात को महसूस किया था कि मेरी थ्यौरी निर्मला पर बहुत फिट बैठती है । बस मैंने इसी ग्राउन्ड पर पाल को उल्लू बना दिया ।”
“लेकिन क्या यह जरूरी है कि तुम्हारा यह सन्देह सच ही हो ?”
“सम्भावना तो है ही । पम्मी, मेरा उद्देश्य था पाल का ध्यान अपनी ओर से हटाना और वह मैंने कर दिया है ।”
“और वह राजनगर रेलवे स्टेशन के क्लाक रूम के अटैची केस का क्या मामला है ?”
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने प्रमिला की ओर देखा और फिर उसने अपनी बांई आंख दबा दी ।
“तुम्हारा बेड़ा गर्क, सोनू ।” - प्रमिला बोली - “तुम जरूर एक दिन जेल की हवा खाओगे ।”
“वह तो जब होगा देखा जायेगा । तुम कम से कम फ्लैट की मालकिन को तो बाथरूम से निकालो जहां उसे बन्द कर आई हो ।”
***
सुनील, प्रमिला के साथ राजनगर वापिस आ गया ।
सुनील को सबसे अधिक ताव दीवानचन्द पर आ रहा था जिसने उससे कदम-कदम पर झूठ बोला था । अगर उसने दीवानचन्द से रुपये न लिये होते तो शायद वह इस बात की परवाह भी न करता कि वह मरता है या जीता है । हालांकि सुनील को दीवानचंद अब अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन क्योंकि वह उसका मुवक्किल था और उससे अभी हजार रुपये और मिलने वाले थे इसलिए सुनील अनिच्छा से ही सही, उसके लिए काम करता जरूर रहा ।
राजनगर में कदम रखते ही वह रामसिंह से मिला । उसने रामसिंह को सारी घटना कह सुनाई । रामसिंह उसके साथ स्टेशन चलने को तैयार हो गया । पाल तो उसे क्लाक रूम के पास भी नहीं फटकने दे रहा था ।
सुनील, रामसिंह के साथ रेलवे स्टेशन पर आ गया ।
“तुम फिर आ गए ?” - पाल क्रुद्ध स्वर में बोला ।
“लेकिन इस बार तुम्हारे बाप के साथ आया हूं ।” - सुनील अकड़ कर रामसिंह‍ की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
रामसिंह ने अपना परिचय दिया ।
पाल ने बड़े आदरपूर्ण ढंग से रामसिंह से हाथ मिलाया ।
“क्या चल रहा है ?” - रामसिंह अपने विशिष्ट ढंग से सिगार का एक लम्बा कश लेकर बोला ।
“निगरानी हो रही है सुपर साहब ।” - पाल विनम्रतापूर्ण स्वर से बोला - “हमने अटैची केस देखा है । उसमें चन्द्रशेखर की डायरी, दो पत्रों की प्रतिलिपियां और उसके घर की चाबियां मौजूद हैं ।”
“अभी तक कोई अटैची लेने नहीं आया ?” - सुनील ने पूछा ।
पाल ने आग्नेय नेत्रों से सुनील की ओर घूरा और फिर बड़े कठोर स्वर से बोला - “नहीं, लेकिन जो भी आयेगा, धर लिया जायेगा ।”
सुनील एक लम्बी सी ‘हूं’ करके रह गया ।
पाल उन्हें पूछताछ केबिन में ले गया । वहां से क्लाक रूम का मुख्य द्वार स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था ।
प्रतीक्षा आरम्भ हो गई ।
पाल बोर होकर जम्हाईयां लेने लगा ।
रामसिंह ने न जाने कितने सिगार पी डाले ।
सुनील अनुमान लगाने की चेष्टा कर रहा था कि उसके हैट के रिबन में से क्लाक रूम की रसीद निकालने वाला कौन हो सकता है !
उसी समय उसे एक जानी पहचानी सूरत क्लाक रूम की ओर बढती दिखाई दी ।
सुनील उत्तेजना से पाल की पसलियों में उंगली खोंसता हुआ बोला - “देखो ।”
पाल ने अपनी उनींदी सी आंखों से क्लाक रूम की ओर देखा और फिर उसकी नींद उड़ गई ।
“बिहारी !” - वह आश्चर्य चकित स्वर से चिल्लाया ।
सुनील पाल की ओर देखकर हंस पड़ा ।
“सुनील ।” - पाल बोला - “तुम अब भी दावा करते हो कि चन्द्रशेखर की हत्या निर्मला ने की है ?”
“बरखुदार अपने परिणाम खुद निकालने की आदत डालो ।” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला - “फिलहाल तो तेल देखो, तेल की धार देखो ।”
पाल चुपचाप क्लाक रूम की ओर देखने लगा ।
बिहारी बड़े अलसाये ढंग से कदम रखता हुआ क्लाक रूम में घुसा । शायद विशालगढ से राजनगर तक का सफर उसने आराम से नहीं किया था । उसने क्लाक रूम के क्लर्क रसीद थमाई और अटैची केस लेकर बाहर निकल आया । उसकी आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं और वह बार-बार जम्हाईयां ले रहा था । क्लाक रूम से निकलते ही न जाने सादी वर्दियों में कई आदमी कहां से टपक पड़े और उन्होंने बिहारी को घेर लिया । बिहारी ने बिना किसी प्रतिवाद के आत्मसमर्पण कर दिया ।
वे लोग आनन फानन ही उसे हैडक्वार्टर ले गए ।
सुनील, रामसिंह और पाल भी उनके साथ ही हैडक्वार्टर पहुंच गये ।
बिहारी से उसके अपराध की स्वीकृति पाने के लिए पुलिस को तनिक भी सिर खपाई नहीं करनी पड़ी । उसके बोलने का तरीका ऐसा था जैसे वह स्वयं ही अपना अपराध स्वीकार करने की इच्छा रखता हो ।
“ऑफिसर ।” - बिहारी बोला - “यह मेरी बदकिस्मती है कि मेरे जैसे धर्म भीरु इन्सान को भी कभी पुलिस हैडक्वार्टर का मुंह देखना पड़ा और इस सारे झगड़े की शुरुआत उस दिन हुई जब चन्द्रशेखर को यह वहम हो गया कि चाचा जी की हत्या जानकी ने की है । वह आरम्भ से ही जानकी को चाचा जी की हत्यारी मानता था लेकिन वह चुप था क्योंकि वह स्वयं भी चाचा जी की मृत्यु की कामना किया करता था ताकि उसे विरासत में एक लम्बी चौड़ी जायदाद और नगद धन मिल सके । लेकिन मुझे बाद में पता चला कि चन्द्रशेखर केवल इसी रूप में चुप था कि वह जुबान से कुछ नहीं कहता था लेकिन अपने मन की भावनाएं अक्षरश: अपनी डायरी में लिखा करता था । फिर चन्द्रशेखर का सोनिया से तलाक हो गया । चन्द्रशेखर केवल सोनिया को बदनाम करने के लिए दीवानचंद से ब्लैकमेल करने की चेष्टा करने लगा । इसी सिलसिले में उसने उसको और उसकी पत्नी निर्मला को धमकी भरे पत्र भी लिखे और फिर राजनगर से सुनील आया । और उसने विशालगढ में चन्द्रशेखर की तलाश शुरु कर दी । सुनील सबसे पहले सोनिया से मिला । सोनिया ने उसे कोई पुलिस का जासूस समझा इसलिए उसने सुनील को चन्द्रशेखर का पता नहीं बताया । कारण यह था कि चन्द्रशेखर के फंसने से उसका भी नाम बीच में आता था और वह बदनामी नहीं चाहती थी । लेकिन सोनिया यह भी अनुभव कर रही थी कि अगर चन्द्रशेखर विशालगढ में ही रहा तो सुनील उसे कभी न कभी जरूर खोज निकालेगा । इसलिए वह चन्द्रशेखर से मिली उसे वास्तविक बात बताने के स्थान पर सोनिया ने उसे यह कहकर डरा दिया कि केन्द्र से एक अधिकारी उसके चाचा की हत्या की फिर से जांच पड़ताल करने के लिए आया है । चन्द्रशेखर भयभीत हो उठा और फिर सोनिया की सलाह पर विश्वनगर चला गया । जाती बार चन्द्रशेखर मुझे यह तो बता गया कि वह विश्वनगर जा रहा है लेकिन उसने एकाएक विशालगढ से भाग निकलने का कारण नहीं बताया । फिर सुनील ने मुझे बेवकूफ बनाकर मुझसे चन्द्रशेखर का पता जान लिया । फिर उसी दिन रात को लगभग साढे आठ बजे मुझे चन्द्रशेखर ने फोन किया और कहा कि अगर मैं फौरन उससे विश्वनगर आकर न मिला तो भारी गड़बड़ हो जायेगी । मैं उसी समय विश्वनगर के लिए चल पड़ा और लगभग ग्यारह बजे चन्द्रशेखर से उसके होटल के कमरे में जाकर मिला । तब चन्द्रशेखर ने मुझे पहली बार बताया कि जानकी ने चाचा जी की हत्या की है और क्योंकि वह स्वयं इस घपले में नहीं फंसना चाहता और न ही वह यह चाहता है कि कोई बाद में चाचा जी की हत्या में उसका भी हाथ समझे इसलिए वह पुलिस को सूचना देने जा रहा है कि चाचा जी वाकई स्वाभाविक मौत नहीं मरे थे बल्कि जानकी ने उनकी हत्या की थी । मैंने उसे खूब समझाया कि उसे गलफहमी हो गई है, जानकी ने ऐसा कोई काम नहीं किया है लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ा रहा । बहस-बहस में ही बात बढ गई । मैं क्रोधित - होकर उसे थप्पड़ मार बैठा, उसने रिवाल्वर निकाल ली । मैं रिवाल्वर की ओर झपटा । मुझे भय था कि कहीं चन्द्रशेखर एक थप्पड़ के जवाब में मुझे गोली ही न मार दे । इसी छीना झपटी में रिवाल्वर चल गई । गोली चन्द्रशेखर को लगी और वह वहीं ढेर हो गया । मैं घबराया और उसी घबराहट में मैं फौरन नवीन होटल से निकला और जितनी जल्दी हो सकता था वापिस विशालगढ लौट आया । मैंने जानकी को सारी घटना कह सुनाई । जानकी भी भयभीत हो उठी । उसने चाचा जी की हत्या के बिषय में सोचा तो जरूर था और अपना विचार चन्द्रशेखर पर प्रकट भी किया था लेकिन वह हत्या करने योग्य साहस अपने में नहीं जुटा पाई थी । उन्हीं दिनों चाचा जी मर गये और चन्द्रशेखर ने समझा कि जानकी ने उन्हें मार डाला है । उसे अपनी फिक्र हो गई और वह अनुभव करने लगी कि चन्द्रशेखर की डायरी फौरन उसके हाथ में आनी चाहिये । अगर वह डायरी पुलिस के हाथ पड़ गई तो वह सात जन्म भी अपनी निर्दोषिता सिद्ध नहीं कर सकेगी । वह चन्द्रशेखर के फ्लैट पर गई लेकिन वहां उसे डायरी नहीं मिली । वह समझ गई कि डायरी या तो सोनिया के पास है या फिर सुनील के पास । और उसी दिन वह सोनिया से डायरी के बारे में बात करने के लिए उसके फ्लैट पर गई ! वहां सुनील भी मौजूद था । वहां सोनिया और जानकी में मार-पिटाई हो गई और उसी लड़ाई के दौरान में जानकी को रेडियो पर देखे हुए सुनील के हैट के रिबन में से क्लाक रूम की रसीद झांकती दिखाई दे गई । जानकी ने वह रसीद चुपचाप निकाल ली । फिर जानकी ने वह रसीद मुझे दिखाई । मैं समझ गया कि सुनील ने ही डायरी को सरकुलेशन से बाहर रखने के लिए उसे अटैची केस में डालकर राजनगर के क्लाक रूम में जमा करा दिया होगा । मैं यहां से डायरी निकालने के लिए आया और आप लोगों की पकड़ में आ गया ।”
“लेकिन” - पाल ने पूछा - “अगर चन्द्रशेखर की हत्या अनजाने में हो गई थी, तो तुमने उसी समय पुलिस को इसकी सूचना क्यों नहीं दी ?”
“क्योंकि अगर मैं ऐसा करता तो डायरी सीधी पुलिस के हाथ में पहुंच जाती और जानकी बेचारी खामखाह फंस जाती । मैंने सोचा था कि डायरी हाथ में आते ही मैं स्वयं को पुलिस के हवाले कर दूंगा लेकिन इसकी नौबत ही नहीं आई । लेकिन फिर भी मुझे अपने पकड़े जाने का दुख नहीं है । सुपर साहब, चाहे चन्द्रशेखर की हत्या संयोग से ही हुई थी लेकिन फिर भी उस घटना ने मुझे पागल बना रखा था । उस घटना का मेरे मन पर इतना बोझ था कि मेरी रातों की नींद हराम हो गई थी और आज यह सब कुछ कह चुकने के बाद मुझे ऐसा अनुभव हो रहा है, जैसे मेरे दिल पर से एक भारी बोझ हट गया हो ।”
बिहारी चुप हो गया ।
“सुनील साहब !” - बिहारी क्षण भर बाद बोला - “आपने तो उल्लू सीधा करने के लिए स्वयं को कला पारखी बताया था और मेरी एक पेन्टिंग पर नब्बे रुपये भी बरबाद कर दिये थे और फिर मुझे ‘सीता बनवास’ का आइडिया भी दिया था ताकि मुझे बेवकूफ बनाने में जो कसर बाकी रह गई थी वह भी पूरी हो जाये । लेकिन भाई साहब मैंने आपके मजाक को बड़ा सक्रिय रूप दे दिया है । मैंने ‘सीता बनवास’ को बिल्कुल आपके द्वारा बताये गये ढंग से ही पेन्ट किया है और उसे कला अकादमी की मॉडर्न आर्ट की प्रतियोगिता में भेज दिया है ।”
सुनील ने सिर झुका लिया ।
***
‘ब्लास्ट’ के अगले अंक में इस केस का संपूर्ण विवरण प्रथम पृष्ठ पर था । अपनी प्रतिज्ञानुसार सुनील ने पाल को खूब फूंक दी थी और रिपोर्ट को इस प्रकार लिखा था कि सारा श्रेय पाल को ही प्राप्त हो ।
सेठ हरगोपाल के बच्चे के विषय में सुनील ने जो थ्यूरी दी थी, उसे सारे देश ने पढा । फिर प्रभात नगर में एक आदमी को ख्याल आया कि उसके पड़ौस में भी एक बच्चा बिल्कुल इसी रहस्यपूर्ण ढंग से आया था और अब जो दम्पत्ति उसे पाल रहे हैं, वे उसके सगे माता पिता नहीं हैं । उसने सन्देहवश ही पुलिस में रिपोर्ट कर दी । पुलिस ने उस विषय में खोजबीन की तो वह सेठ हरगोपाल का ही लड़का निकला ।
बच्चा हरगोपाल के पास पहुंचा दिया गया । अपने खोये हुए बच्चे को पाकर सेठ हरगोपाल और उसकी पत्नी के आनंद का पारावार न रहा । उन्होंने खुशी-खुशी पाल को बीस हजार रुपये दे दिये जिनमें से दस हजार रुपये पाल बड़ी शराफत से सुनील को दे गया ।
फिर एक दिन दीवानचंद भी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ सुनील के फ्लैट पर आया और उसे एक हजार रुपये का चैक दे गया ।
लेकिन एक मास बाद एक ऐसी अप्रत्याशित घटना घटी जिसके प्रभाव से सुनील, उसके अपने कथनानुसार, पागल होते-होते बचा । कला अकादमी की माडर्न आर्ट वार्षिक प्रतियोगिता का परिणाम निकला ।
प्रथम पुरस्कार ‘सीता बनवास’ को मिला ।
कला अकादमी की रिपोर्ट में बिहारीलाल को एक असाधारण प्रतिभा सम्पन्न चित्रकार बताया गया था । ‘सीता बनवास’ ने माडर्न आर्ट के संसार में एक क्रान्ति उत्पन्न कर दी थी, वैसी आत्मा, वैसी गहराई, विषय वस्तु की वैसी पकड़ आज तक संसार का कोई भी चित्रकार अपनी कलाकृति में पैदा नहीं कर सका था । ‘सीता बनवास’ का फ्रेम भी असाधारणता से रहित नहीं था । फ्रेम के मामले में तो बिहारी की कल्पना शाक्ति अपनी चरम सीमा पर जा पहुंची थी । ‘सीता बनवास’ को एक दस कोनों वाले फ्रेम में जड़ा गया था लेकिन फ्रेम की दसों भुजाओं में से कोई भी भुजा लम्बाई में किसी दूसरी भुजा के बराबर नहीं थी । इस प्रकार के फ्रेम के माध्यम से चित्रकार ने सीता के भविष्य के कठिनपूर्ण जीवन का संकेत दिया था । चित्रकार आजकल जेल में है । उसे एक हत्या के केस में तीन वर्ष की सजा हुई है ।
समाप्त