अगले दिन सुबह ।
सुनील ‘ब्लास्ट’ के आफिस में अपने केबन में बैठा अपने प्रिय सिगरेट लक्की स्ट्राइक के लम्बे-लम्बे कश ले रहा था ।
फिर उसने पी बी एक्स बोर्ड से सम्बन्धित अपने टेलीफोन का रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया ।
“मार्निंग, सोनू, डियर !” - दूसरी ओर से रिसेप्शनिस्ट रेणु का मधुर स्वर सुनाई दिया ।
“मार्निंग, रेणु” - सुनील व्यस्तता का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “जरा मुझे डायरेक्ट लाइन दे दो । मुझे तीन चार फोन करने हैं ।”
“ओके ।” - रेणु बोली ।
अगले ही क्षण सुनील को डायल टोन सुनाई देने लगी ।
उसने यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिए ।
दूसरी ओर कई क्षण घन्टी बजती रही लेकिन किसी ने टेलीफोन नहीं उठाया ।
सुनील बड़े धैर्य से सम्बन्ध स्थापित होने की प्रतिक्षा करता रहा ।
अन्त में दूसरी ओर किसी ने रिसीवर उठा लिया ।
“यस, साहब !” - दूसरी ओर से शायद कोई वेटर बोला ।
“रमाकांत है ?”
“नहीं साहब ।”
“कहां चला गया ? वह तो दोपहर तक सोया करता है ?”
“लेकिन आज वे सुबह छः बजे ही कहीं चले गए थे, साहब कोई मैसेज हो तो बोलिये, साहब ।”
“मैसेज नहीं । कोई और है वहां ? जौहरी, राकेश, गोपाल, मोहन...”
“दिनकर साहब और जौहरी साहब हैं, साहब ।”
“दिनकर का बुलाओ ।”
कुछ ही क्षण बाद सुनील को लाइन पर दिनकर का स्वर सुनाई दिया - “हल्लो ।”
“मैं सुनील बोल रहा हूं, दिनकर” - सुनील बोला - “रमाकांत के बारे में कुछ मालूम है ?”
“वे तो आज सुबह के प्लेन से विशालगढ गए हैं । गोपाल, राकेश और मोहन पहले से ही वहीं हैं ।”
“खैर । देखो दिनकर, तुम्हारे लिए एक काम है ।”
“क्या ?”
“ज्यूल बाक्स वाले रामपाल की याद है तुम्हें ? उसका एक फोटो भी खींचा था तुमने ।”
“वह रामपाल जो माइक का पार्टनर था ?”
“बिल्कुल वही । अन्तर केवल इतना है कि अब माइक की जगह माइक की पत्नी कैरोल ने ले ली है ।”
“मैं समझ गया करना क्या है मुझे ?”
“तुम्हें उसकी निगरानी करनी है । चाहो तो जौहरी को भी साथ ले लो लेकिन उसके एक एक एक्शन पर तुम्हारी नजर होना चाहिए । ओके ?”
“ओके ।”
“रमाकांत कब आएगा ?”
“आज ही । अधिक से अधिक शाम तक ।”
“तो फिर तुम अपनी रिपोर्ट भी उसे ही देना ।”
“ओके ।”
सुनील ने पलन्जर दबा कर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया । दुबारा डायल टोन मिलते ही उसने सैन्ट्रल इन्वैस्टीगेशन ब्यूरो के सुपरिन्टैन्डेन्ट रामसिंह के नम्बर डायल कर दिए । रामसिंह से उसके बड़े अच्छे सम्बन्ध थे ।
“रामसिंह स्पीकिंग ।” - दूसरी ओर से रामसिंह का भारी स्वर सुनाई दिया ।
“सुपर साहब को सुनील का नमस्कार पहुंचे ।” - सुनील बोला ।
“ओह सुनील ! आज मैं कैसे याद आ गया तुम्हें ?”
“क्या बताएं सुपर साहब एकदम महत्वपूर्ण हो उठे हैं आप हमारे लिए ।”
“अच्छा ।” - रामसिंह का आश्चर्य भरा स्वर सुनाई दिया ।
“जी हां ।”
“बात क्या है ?”
“आप से कुछ डिपार्टमेंटल जानकारी चाहिए ।”
“किस विषय में ?” - रामसिंह के स्वर में गहरी सतर्कता का आभास था ।
“घबरा क्यों रहे हो, रामसिंह, प्यारे” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला - “विश्वास रखो, कोई सरकारी रहस्य नहीं पूछूंगा तुम से ।”
“बरखुरदार, तुम्हारे जो जी में आए पूछो । फिर जो मेरे जी में आएगा बताऊंगा ।”
“मैं एक पेशेवर मुजरिम के बारे में कुछ जानकारी चाहता हूं । उसकी इकलौती पहचान यह है कि उसके दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई है । क्या ऐसा कोई मुजरिम तुम्हारे रिकार्ड में है ?”
“तुम्हारी क्या दिलचस्पी हैं इसमें ?”
“कोई विशेष बात नहीं है ।”
“बस यही खराबी है तुम अखबार वालों में । तुम जानना तो हर बात चाहते हो लेकिन बताना कुछ नहीं चाहते । यह वन-वे ट्रैफिक का सिलसिला मुझे पसन्द नहीं ।”
“सुपर साहब, इसमें तुम्हारी दिलचस्पी वाली कोई बात है ही नहीं । अब कृपा करके मेरी बात का जवाब दो । क्या ऐसा कोई मुजरिम तुम्हारे रिकार्ड में है ?”
“सम्भव है हो । यह भी सम्भव है कि न हो । और यह भी सम्भव है कि ऐसे दस पन्द्रह मुजरिम हों जिनकी दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई हो ।”
“क्या ?” - सुनील हैरान होकर बोला - “ऐसा मुजरिम दस पन्द्रह भी हो सकते हैं ।”
“सम्भावना तो है ही । पक्की बात तो रिकार्ड देख कर ही बताई जा सकती है ।”
“उसमें कितनी देर लगेगी ?”
“ज्यादा देर नहीं, लगेगी । ऐसे मुजरिम जिनके दायें हाथ में चार उंगलियां हैं, उनकी फाइल अलग होगी । तुम जरा होल्ड करो, मैं फाइल मंगवाता हूं ।”
सुनील कई क्षण रिसीवर कान में लगाये बैठा रहा ।
लगभग पांच मिनट बाद फोन पर रामसिंह की आवाज सुनाई दी - “सुनील हमारे रिकार्ड में ऐसे तीन मुजरिम हैं, जिनके दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई है । उनमें से एक तो पिछले कई महीनों से हांगकांग में है, एक जेल में है और एक ही पिछले दिनों मोटर एक्सीडेन्ट में मृत्यु हो गई है ।”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हांगकांग वाला वापिस राजनगर आ गया हो ?”
“यह लगभग असम्भव ही है, सुनील । प्रथम तो वह वापिस भारत आने का साहस ही नहीं कर सकता क्योंकि वह खून का अपराधी है । पुलिस के हत्थे चढते ही फांसी के तख्ते पर पहुंच जाएगा । दूसरे यह है कि कम से कम राजनगर में तो उसकी मौजूदगी पुलिस को जानकारी में आए बिना रह नहीं सकती ।”
“और वह जेल वाला ? वह जेल में से निकल तो नहीं भागा है ?”
“पागल हुए हो क्या ? जेल में से निकल भागना क्या कोई मजाक है ?”
“शायद वह जेल में से भाग निकला हो और तुम्हें पता ही न लगा हो ?”
“क्या बेवकूफों जैसी बातें कर रहे हो । सात साल की सजा पाया हुआ मुजरिम जेल से भाग निकले और सी आई डी के सुपरिन्टेन्डेन्ट को खबर भी न हो ।” - रामसिंह का झल्लाया हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“तो फिर तुम्हारा रिकार्ड अधूरा होगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं इस समय राजनगर में ही मौजूद एक ऐसे मुजरिम के विषय में जानकारी रखता हूं जो चोरी, डकैती खून इत्यादि हर प्रकार के अपराधों में शामिल है और जिसके दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई है ।”
“देखो, सुनील । हमारे पास केवल उन्हीं मुजरिमों का रिकार्ड होता है जो कम से कम एक बार पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हों । सम्भव है, जिस मुजरिम की तुम बात कर रहे हो वह अभी तक एक बार भी पुलिस के हाथ में न आया हो ।”
“खैर” - सुनील उकता कर बोला - “काम तो नहीं बना । लेकिन थैंक्यू वेरी मच आल दि सेम ।”
“ओके ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसके रिसीवर रखने भर की देर थी कि फोन की घन्टी घनघना उठी ।
“हल्लो ।” - सुनील ने बड़े विरक्ति से रिसीवर उठा कर कहा ।
“सुनील कुमार चक्रवर्ती ?” - एक तेज स्वर सुनाई दिया ।
“यस ।”
“परसन टु परसन ट्रंक काल फ्राम विशालगढ । प्लीज स्पीक आन ।”
“सुनील, मैं रमाकांत बोल रहा हूं ।” - दूसरी ओर से रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
“हल्लो रमाकांत । मैंनेअभी तुम्हें यथ क्लब में फोन किया था । क्या रिपोर्ट है ?” - सुनील उच्च स्वर से बोला ।
“उमाशंकर चोपड़ा के विषय में कुछ दिलचस्प बातें मालूम हुई हैं । सोचा तुम्हें फोन पर ही सूचना दे दूं । राजनगर लौटना तो शाम तक नहीं हो पाएगा ।”
“बड़ा अच्छा किया तुमने । कहो ।”
“पहली बात तो यह है कि जिस दिन राजेश की लाश पाई गई थी उससे पिछले दिन की दोपहर और शाम को उमाशंकर चोपड़ा राजनगर में था । दूसरी बात यह है कि उमाशंकर चोपड़ा को जुआ खेलने की लत है । ज्यूल बाक्स का मालिक रामपाल उसके अच्छे मित्रों में से है । वह जब भी राजनगर में होता है रामपाल के ज्यूल बाक्स की ऊपरली मन्जिल पर स्थित जुआघर में जरूर जाता है । उस रात भी वह वहां गया था । और गौर करने वाली बात यह है, सुनील कि उस रात उसके साथ एक बेहद आकर्षक विदेशी युवती भी थी जबकि उससे पहले वह हमेशा वहां अकेला आया करता था । उमाशंकर चोपड़ा के किसी विदेशी युवती से अवैध सम्बन्धों की सम्भावना पर विचार करते हुए मैंने मिसेज चोपड़ा से कुछ जानकारी हासिल करने की कोशिश की थी । मिसेज चोपड़ा कहती हैं कि उमाशंकर चोपड़ा औरतखोर तो नहीं है लेकिन इतना चरित्रवान भी नहीं है कि अगर अनायास हो कोई युवती उसके सम्बन्ध में आ जाये तो वह मौके से चूक जाए ।”
“तुम उमाशंकर चोपड़ा से मिले थे ?”
“हां ।”
“उसे राजेश की मौत के विषय में बताया था ?”
“हां ।”
“उस पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी ?”
“ऊपरी तौर पर तो उसने अफसोस ही प्रकट किया था लेकिन मुझे ऐसा लगा था जैसे राजेश की मौत की बात सुनकर उसने चैन की सांस ली हो । उसने स्वयं स्वीकार किया है कि राजेश से उसकी मुलाकात हुई है और उसे यह भी मालूम था कि राजेश उसके पिछले जीवन के बखिये उधेड़ने के लिए विशालगढ आया है । आरम्भ में तो उसने राजेश की जरा भी परवाह नहीं की थी लेकिन फिर एकाएक ही वह राजेश से भयभीत दिखाई देना लगा था । सिटी क्लब के एक क्लर्क का बयान है कि उसने एक बार चोपड़ा को राजेश को धमकाते सुना था कि अगर उसने उस मामले में अपनी जबान भी खोली तो वह राजेश को जान से मार डालेगा । बहुत प्रयास करने पर भी अभी यह पता नहीं लग पाया है कि यह मामला कौन सा था जिसके सन्दर्भ में उसने राजेश को जान से मार डालने की धमकी दी थी ।”
“और ?”
“एक और बड़ी जोरदार बात हमारे हाथ लग गई है । विशालगढ में ही इन्टरनेशनल प्राइवेट डिटैक्टिव ब्यूरो नाम की एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी है । उस ऐजेन्सी के डायरेक्टर से चोपड़ा आजकल दिन में पांच-पांच छः-छः बार मिल रहा है । उस एजेन्सी के डिटेक्टिव होटल ज्यूल बाक्स के आस-पास चक्कर लगाते देखे गए हैं । उनका एक आदमी हर समय रामपाल के पीछ साये की तरह लगा रहता है । इन्टरनेशनल प्राइवेट डिटेक्टिव ब्यूरो का एक आदमी मेरे पास भी काम कर चुका है । उसी से मुझे यह जानकारी हासिल हुई है । वे प्राइवेट डिटेक्टिव क्या जानने की कोशिश कर रहे हैं, यह पता नहीं लगा सका है । चोपड़ा आजकल बेहद परेशान दिखाई दे रहा है । हर समय उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ती दिखाई देती हैं । उसे शेव तक करने की सुध नहीं है । वह हर रोज राजनगर का एक चक्कर लगाता है । यह सिलसिला परसों से शुरू हुआ है । इस समय भी वह राजनगर में ही है ।”
“विशालगढ के लोकल अखबार के दफ्तर से कुछ जानकारी हासिल हुई ?”
“नहीं । हमने अखबार की वे तमाम फाइलें टटोल डाली हैं जिन्हें राजेश ने पढा था । उन में उमाशंकर चोपड़ा का जिक्र तो बहुत है लेकिन कोई ऐसी बात नहीं है जो उसके विरुद्ध प्रयुक्त की जा सकती हो ।”
“अखबार में चोपड़ा का जिक्र अक्सर किस सिलसिले में था ?”
“प्रतिरक्षा मन्त्रालय का बहुत काम किया है उसने । प्रतिरक्षा मन्त्रालय का वह जनरल सप्लायर है । वह स्वयं बहुत बड़ा उद्योगपति रहा है और अब भी है । पिछले पन्द्रह वर्षों में उसने जीपें, पैराशूट, गोलियां, राइफिलें और न जाने ऐसी कितनी चीजें डिफैंस को सप्लाई की हैं । कई तकनीकी कामों में भी चोपड़ा की कम्पनी के इन्जीनियरों ने मिलिटरी इन्जीनियरिंग सरविस वालों की सहायता की है । इसी से मिलते जुलते बाकी समाचार थे उन फाइलों में ।”
सुनील चुप रहा ।
“और जहां तक राजेश की किसी विदेशी युवती के साथ देखे जाने की बात है तो हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगा है । विशालगढ या राजनगर में हम एक भी ऐसा आदमी तलाश नहीं कर पाये हैं जिसने राजेश की किसी विदेशी युवती के साथ देखा हो । इस से तो यही प्रकट होता है कि वह किसी युवती के संसर्ग में आया ही नहीं था वर्ना किसी ने तो उन दोनों को इक्ट्टे जरूर देखा होता ।”
“और ?”
“और बस । यही कुछ तो तुमने पूछा था । कुछ और जानना चाहते हो तो बताओ ।”
“फिलहाल कुछ नहीं । तुम एक आदमी चोपड़ा की निगरानी के लिए छोड़ कर वापिस आ जाओ ।”
“मोहन उसकी निगरानी कर ही रहा है । गोपाल और राकेश को मैं वापिस बुला लेता हूं ।”
“ठीक है ।”
“एक बात और सुनील ।”
“क्या ?”
“इस ट्रंक काल के बारह मिनट हो गए है । ये पैसे मैं तुम से लूंगा ।”
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।
उस का मस्तिष्क सारे सूत्रों को एक लड़ी में पिरोने का उपक्रम करने लगा ।
एक बात उसे बुरी तरह चुभ रही थी ।
एक विदेशी युवती ।
और ज्यूल बाक्स का जुआघर ।
ये दो नाम ऐसे थे जो किसी न किसी सूत्र के माध्यम से घूम फिर कर सामने आ जाते थे ।
राजेश चोपड़ा के पीछे था ।
चोपड़ा एक विदेशी युवती के साथ होटल ज्यूल बाक्स के जुआघर में देखा गया था ।
चोपड़ा रामपाल का मित्र था ।
चोपड़ा के रखे हुए प्राइवेट डिटेक्टिव ज्यूल बाक्स की निगरानी कर रहे थे ।
ज्यूल बाक्स के जुआघर में डाका पड़ा था । रिंग लीडर एक ऐसा बदनाम था जिसके दायें हाथ में चार उंगलियां थीं ।
जुआघर के सेफ में से धन के साथ कुछ कागज भी चोरी गए थे ।
राजेश की हत्या
चोपड़ा आजकल बहुत चिन्तित रहता है ।
क्या इन सब बातों का आपस में सम्बन्ध है ?
सुनील का दिमाग भन्ना गया ।
***
शाम को सुनील अपनी मोटर साइकल पर यूथ क्लब पहुंचा ।
क्लब में अभी रौनक नहीं थी क्योंकि अभी क्लब आने वालों का समय नहीं हुआ था लेकिन एक मनोरंजन भरी शाम की तैयारियों के लक्षण अभी से दिखाई दे रहे थे ।
सुनील ने देखा क्लब का डांस प्लोर बड़े शानदार ढंग से सजाया जा रहा था ।
“गुड ईविंनग सर ।” - एक वेटर जो सुनील को पहचानता था उसके समीप आकर बोला ।
“आज यह सजावट किसलिए हो रही है ?” - सुनील ने पूछा ।
“आज रात को ट्विस्ट कम्पिटीशन है, साहब ।”
“अच्छा ।”
“जी हां । जीतने वाले जोड़े को श्रीनगर का पन्द्रह दिन का की ट्रिप इनाम में दिया जाएगा । आप आ रहे हैं न, साहब ?”
“मैं तो आ ही गया हूं” - सुनील बोला - “रमाकांत कहां है ?”
“अपने आफिस में, साहब ।”
सुनील रमाकांत के आफिस में घुस गया ।
रमाकांत अपनी महोगनी की विशाल टेबल के पीछे बैठा था । उसके दोनों पांव मेज पर रखे थे, आंखें बन्द थीं, होठों में चारमीनार का एक ताजा सुलगाया हुआ सिगरेट लटक रहा था जिसका वह कभी कभार कश ले लेता था । कमरा सिगरेट के धुएं से भरा हुआ था ।
“अबे ओए चार मीनार के आशिक ।” - सुनील जोर से बोला ।
रमाकांत ने आंखें खोल दीं । सुनील को देख कर वह मुस्कुराया, सिगरेट उसने हाथ में ले लिया लेकिन पांव मेज से नहीं हटाये ।
“बैठो” - वह बोला - “मैं अभी विशालगढ से आया हूं ।”
“बैठने का समय नहीं है, मैं जा रहा हूं ।”
“आज क्लब में बड़ा तगड़ा प्रोग्राम है ।”
“मैंने सुना है लेकिन वह मेरी किस्मत में नहीं लिखा है ।”
“क्यों ?”
“बहुत काम है । तुम बताओ कोई नई बात पता लगी है ?”
“कोई विशेष बात नहीं है । केवल दिनकर ने फोन किया था कि रामपाल के पीछे एक प्राइवेट डिटेक्टिव भी लगा हुआ है । उस विषय में मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूं ।”
“रामपाल क्या कर रहा है ?”
“वह सारा दिन शहर के उन गन्दे इलाकों में घूमता रहता है जहां अधिकतर जरायमपेशा लोग रहते हैं । दरअसल वह उस चार उंगलियों वाले बदमाश को खोजता फिर रहा है जिसने ज्यूल बाक्स में डाका डाला था । उन इलाकों में रहने वाले बदमाशों से वह एक ही सवाल पूछता है कि क्या वे चार उंगलियों वाले किसी दादा को जानते हैं लेकिन अभी तक उसे कोई सफलता नहीं मिली है ।”
“उसका जुआघर कैसा चल रहा है ?”
“लगभग ठप्प ही समझो । बहुत कम लोग आते हैं वहां । रामपाल भी उस ओर ध्यान नहीं दे पा रहा है । ढंग के लोगों ने तो बिल्कुल ही आना छोड़ दिया है । लोग उस डकैती की वारदात से बहुत आंतकित हो उठे हैं ।”
“खैर छोड़ो” - सुनील बोला - “तुम अभी कहीं जाओगे तो नहीं ?”
“मैं कहां जा सकता हूं । सारा इन्तजाम करना है ।”
“तो फिर मैं तुम्हारी गाड़ी ले जाऊं ?”
“ले जाओ लेकिन वापिस आने की कोशिश करना । बड़ा रंगीन प्रोग्राम है । रात के बारह एक बजे तक चलेगा । ट्विस्ट का ओपन कम्पिटीशन है । तुम भी पार्टनर ले आओ और शामिल हो जाओ । शायद श्रीनगर का ट्रिप तुम्हारी ही किस्मत में लिखा हो ।”
“तुम कार की चाबी दो ।” - सुनील उखड़ कर बोला - “मेरी किस्मत में तो प्यारे, धक्के खाना ही लिखा है ।”
रमाकांत ने जेब से चाबी निकाल कर सुनील की ओर उछाल दी ।
सुनील चाबी लेकर बाहर की ओर बढ गया ।
“फिर भी लौटने की कोशिश करना ।” - रमाकांत पीछे से बोला ।
“अच्छा ।”
सुनील बाहर निकल आया ।
उसने अपनी मोटर साइकिल वहां छोड़ दी और रमाकांत की शानदार इम्पाला गाड़ी को ड्राइव करता हुआ खुली सड़क पर ले आया ।
उसने गाड़ी उस पुलिस स्टेशन की ओर मोड़ दी जहां उसे इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल से मिलने की आशा थी ।
सौभाग्य से प्रभूदयाल पुलिस स्टेशन पर मौजूद था ।
“हल्लो, शरलक होम्ज ।” - प्रभूदयाल उसे देखकर विषाक्त स्वर से बोला ।
सुनील ने उसके व्यंग्य को अनसुना कर दिया । अवसर भी ऐसा था । वह निर्विकार भाव से प्रभूदयाल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया ।
“कोई रिपोर्ट लिखवाने आये हो क्या ?” - प्रभूदयाल ने फिर व्यंग्य कसा ।
“प्रभूदयाल” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “क्या तुमने फैसला कर लिया है कि तुम मुझे कभी सहयोग नहीं दोगे ।”
“मुझे कानून से खिलवाड़ करने वाले लोग पसन्द नहीं हैं ।”
“इस बार कौन सा कानून भंग कर दिया है मैंने ?”
“किया नहीं है तो करोगे । तुम अपनी आदत से मजबूर हो ।”
सुनील चुप रहा । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कुछ क्षणों के लिए प्रभूदयाल को किस प्रकार अपने पक्ष में करे ।
“सुनील, आज तक कोई भी आदमी कानून के हाथों से बच नहीं सका है । तुम अपने आपको पुलिस वालों से ज्यादा चालाक समझते हो इसलिए कहीं न कहीं अपनी गरदन फंसाये ही रहते हो । लेकिन एक न एक दिन तुम ऐसे फंसोगे कि संसार की कोई शक्ति तुम्हें बचा नहीं सकेगी ।”
“मैं यहां उपदेश सुनने नहीं आया था ।” - सुनील अपने स्वर को भरसक उत्तेजना रहित रखने की चेष्टा करता हुआ बोला ।
“तुम चाहते क्या हो ?” - प्रभू ने तीखे स्वर से पूछा ।
“राजेश की हत्यारे के विषय में कुछ पता लगा ?”
“तुम कौन होते हो यह प्रश्न पूछने वाले ?”
“प्रभूदयाल, शायद तुम यह भूल रहे हो कि राजेश ‘ब्लास्ट’ के लिए काम करता था । ‘ब्लास्ट’ जल्दी से जल्दी राजेश के हत्यारे को अपने अपराध की सजा पाते देखना चाहता है । मैं ‘ब्लास्ट’ का प्रतिनिधि हूं । ऐसी सूरत में क्या मुझे यह जानने का हक नहीं पहुंचता है कि पुलिस उसके हत्यारे को पकड़ने के लिए क्या कर रही है ?”
“हम अभी तक कुछ भी नहीं जान पाये हैं । तफ्तीश जारी है ।” - प्रभूदयाल अपेक्षाकृत नम्र स्वर से बोला ।
“उसकी लाश उसके सम्बन्धियों को सौंप दी गई है ?”
“हां ।”
“और उसका सामान ?”
“कैसा सामान ?”
“जो उसकी जेब में था ।”
“नहीं । वह अभी हमारे पास ही है । मैंने सोचा था शायद उसमें से कोई ऐसा सूत्र हाथ आ जाये जो हत्यारे को पकड़ने में सहायक सिद्ध हो सके ।”
“मुझे दिखा सकते हो वह सामान ?”
प्रभूदयाल कुछ क्षण सोचता रहा फिर उसने मेज का दराज खोला और उसमें से रूमाल में बंधी एक गठरी सी निकालकर मेज पर रख दी । उसने रूमाल को खोलकर फैला दिया ।
सुनील उस सामान का निरीक्षण करने लगा ।
“पर्स में लगभग साढे चार सौ रुपये हैं” - प्रभू बोला - “डायरी पिछले दस दिनों से नहीं लिखी गई है । यह विशालगढ से राजनगर तक का प्लेन का टिकट है, ‘ब्लास्ट’ का आइडेंटिटी कार्ड है, एक...”
“यह क्या है ?” - सुनील एक वस्तु की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“माचिस है ।” - प्रभू ने उत्तर दिया ।
सुनील ने माचिस उठा ली । वह पतली सी कार्ड बोर्ड की बनी हुई माचिस थी जिसके फ्लैप पर सुनहरी शब्दों में लिखा था - ज्यूल बाक्स, होटल और क्लब । उसने फ्लैप हटाकर देखा भीतर बीस की बीस तीलियां सही सलामत मौजूद थीं । उस पेपर-मैच में से एक भी तीली प्रयोग के लिए फाड़ी नहीं गई थी ।
सुनील उठ खड़ा हुआ । उसने माचिस प्रभूदयाल की ओर उछाल दी और बोला - “इन्स्पेक्टर साहब, ऐसा लगता है कि आपने इस माचिस को तनिक भी महत्व नहीं दिया है ।”
“इस माचिस में महत्व वाली कौन-सी बात है ?”
“राजेश सिगरेट नहीं पीता था ।” - सुनील बोला और लम्बे डग भरता हुआ बाहर निकल गया ।
प्रभूदयाल असमंजस पूर्ण मुद्रा बनाये उसे जाता देखता रहा ।
सुनील फिर आकर कार में बैठ गया ।
एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के सामने उसने गाड़ी रोक दी ।
बूथ में जाकर उसने यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दये ।
“रमाकांत” - दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज सुनाई देते ही बोला - “एक आदमी को ‘ब्लास्ट’ के आफिस में भेज दो । वहां से उसे राजेश की फोटो मिल जाएगी । उसे कहो कि वह उसे फोटो की सहायता से यह जानने की कोशिश करे कि जिस दिन उमाशंकर चोपड़ा एक विदेशी युवती के साथ होटल जुआघर में देखा गया था क्या उस दिन राजेश भी वहां था ।” - रमाकान्त के कुछ बोलने से पहले ही सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
वह फिर वापिस गाड़ी में आ बैठा ।
सुनील कार को उस ओर ड्राइव कर रहा था, जिधर नगर के मध्यम वर्ग के लोग रहते थे ।
शीघ्र ही कार उस इलाके में पहुंच गई वहां सड़कें तंग थीं और आबादी बहुत घनी थी । ऐसे इलाके में वह रमाकांत की हवाई जहाज जैसी लम्बी चौड़ी गाडी चलाने में भारी कठिनाई का अनुभव कर रहा था ।
अन्त में उसने गाड़ी एक स्थान पर पार्क कर दी और पैदल ही आगे बढने लगा ।
एक रेस्टोरेन्ट के सामने आकर वह रुक गया ।
रेस्टोरेन्ट पर एक विशाल नियोन साइन लगा हुआ था लिखा था - ‘फ्रैंक्स काफी बार’ और ये ही शब्द रेस्टोरेन्ट के झूलने वाले द्वार पर लिखे हुए थे ।
सुनील द्वार ठेल कर भीतर घुस गया ।
द्वार के साथ ही काउन्टर था जिसके पीछे लगभग चालीस वर्ष का एक एंग्लो इन्डियन सिर झुकाए बैठा हुआ था ।
सुनील काउन्टर के सामने जा खड़ा हुआ और उंगलियों से काउन्टर ठकठकाता हुआ बोला - “फ्रैंक ।”
उस व्यक्ति ने सिर उठाया । सुनील को देखते ही उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव छा गये । वह एकदम उछलकर खड़ा हो गया ।
“मास्टर, आप !” - वह आश्चर्य पूर्ण स्वर से बोला और काउन्टर से बाहर निकल आया । उसने सुनील के दायें हाथ को अपने दोनों हाथों में लेकर माथे से लगा लिया और फिर बोला - “आपने क्यों तकलीफ की ? गुलाम को ही बुला भेजा होता ।”
“मैंने खुद ही आना ठीक समझा, फ्रैंक ।” - सुनील बोला ।
“बहुत कृपा की, मास्टर । फरमाइए मैं क्या खिदमत कर सकता हूं ?”
“वह भी बताता हूं ।” - सुनील बोला और उसकी दृष्टि हाल में घूमने लगी । हाल में साफ सुथरी मेजें लगी हुई थीं । हर मेज पर एक सीमित प्रकाश वाला बल्ब जल रहा था जिसके कारण हाल में जगमगाहट नहीं थी लेकिन वह अर्द्ध प्रकाश का वातावरण बड़ा रोमान्टिक लग रहा था । हाल में अधिक ग्राहक नहीं थे ।
फ्रैंक बड़े श्रद्धाभाव से सुनील को देख रहा था ।
एक जमाना था जब फ्रैंक राजनगर को सबसे बड़ा दादा माना जाता था । जरायमपेशा लोगों का वह बेताज का बादशाह था । उन दिनों वह विलायती शराब की स्मगलिंग किया करता था । फिर नगर के कुछ बदमाश उसके विरुद्ध हो गए थे और स्वयं फ्रैंक किसी भी क्षण पुलिस के हत्थे चढ सकता था । उन बदमाशों ने फ्रैंक को एक हत्या के केस में फंसा दिया था । वह गिरफ्तार हो गया था और उसके बच निकले की तनिक भी सम्भावना नहीं दिखाई दे रही थी । सुनील ने अखबार के लिए उसका इण्टरव्यू लिया था । फ्रैंक की बातें सुनकर उसे अनुभव हुआ था कि हत्या के अपराध में वह बेगुनाह फंसाया जा रहा है । केवल अपनी एडवैंचरस नेचर से मजबूर होकर सुनील उसकी सहायता करने के लिए तैयार हो गया । बाद में सुनील के ही प्रयत्नों से वह साफ बरी हो गया था । बरी होने के बाद उसने किनारा कर लेगा और ईमानदारी की रोटी से पेट भरने का प्रयत्न करेगा । उसने शराब की स्मगलिंग बन्द कर दी थी और फ्रैंक काफी बार खोल लिया था । आज फ्रैंक अपनी वर्तमान स्थिति से बेहद खुश था और स्वयं को सौभाग्यशाली समझता था कि सुनील के कहने पर उसने भले समय अपराध और अपराधियों का पल्ला छोड़ दिया था ।
एक कोने की मेज पर सुनील को एक लम्बा-तगड़ा नवयुवक बैठा दिखाई दिया । उसके सामने सोडे की दो खुली हुई बोतलें रखी थीं और उसके हाथ में थमे गिलास में पीले रंग का तरल परार्थ चमक रहा था ।
“तो तुमने अपना पुराना धन्धा फिर शुरू कर दिया है ?” - सुनील फ्रैंक को घूरता हुआ बोला ।
“नहीं मास्टर ।” - फ्रैंक बोला ।
“झूठ बोल रहे हो ?”
“नहीं मास्टर, बाई गाड नहीं ।” - फ्रैंक अपने गले में जंजीर के सहारे लटके हुए छोटे से क्रास को निकालकर चूमता हुआ बोला ।
“वह कोने में बैठा हुआ आदमी क्या कर रहा है ?”
फ्रैंक ने युवक को देखा और उसके चेहरे पर हताशा के भाव छा गए ।
“वह” - फ्रैंक दबे स्वर से बोला - “टामी मोरगन है । बहुत खतरनाक बदमाश है । मैं उसे शराब नहीं देता हूं । शराब वह खुद लाता है लेकिन मैं उसे यहां बैठ कर पीने से रोक नहीं सकता ।”
“क्यों ?”
“वह बहुत खतरनाक आदमी है । बात-बात पर रिवाल्वर निकाल लेता है । हर समय उसके सिर पर खून सवार रहता है । अगर मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो वह मुझे जान से मार देगा ।”
“तुम उससे डरते हो ?”
“हां ।” - फ्रैंक कठिन स्वर से बोला ।
“यह तुम कह रहे हो । यह बात मैं फ्रैंक की जबान से सुन रहा हूं कि वह डरता है ।”
“मास्टर” - फ्रैंक का स्वर तनिक तीखा हो उठा - “पुराना फ्रैंक इस जैसे एक हजार बदमाशों से भी नहीं डरता । लेकिन वह फ्रैंक जो इस समय आपके सामने खड़ा है हर अपराधी, हर अपराध से, हर बुराई से डरता है ।”
“तुम पुलिस में रिपोर्ट क्यों नहीं करते ?”
“इस इलाके की पुलिस भी इससे डरती है, मास्टर” - फ्रैंक बोला - “और फिर वह कोई ऊधम तो मचाता नहीं है । यहां से पीकर चुपचाप चला जाता है और आता भी उस समय है जिस समय ग्राहक नहीं होते ।”
“खैर गोली मारो उसे” - सुनील बोला - “जिस काम से मैं यहां आया था वह तो बीच में ही रह गया ।”
“हुक्म कीजिए ।”
“फ्रैंक, नगर का कोई भी नया या पुराना दादा तुम्हारी आंखों से छुपा हुआ नहीं है । मैं ठीक कह रहा हूं न ?”
“ठीक कर रहे हो मास्टर लेकिन यह मेरे लिए कोई तारीक की बात नहीं है ।”
“तुम किसी ऐसे दादा को जानते हो जिसकी दाएं हाथ की छोटी उंगली कटी हुई है और राजनगर में जिसकी सरगर्मियां आज कल जोरों पर हैं ?” - सुनीपल की खोजपूर्ण दृष्टि फ्रैंक के चेहरे पर जम गई ।
“जानता हूं ।” - फ्रैंक धीर से बोला ।
“कौन है वह ?” - सुनील ने आशापूर्ण स्वर से पूछा ।
“उसका नाम जंगबहादुर है लेकिन लोग उसे जेबी के नाम से पुकारते हैं । अभी तक न केवल वह पुलिस के हाथ में नहीं आया है बल्कि वह पुलिस की जानकारी में भी नहीं है । इसका कारण यह है कि बदमाशों के बीच में उसने अपनी वह स्थिति बनाई हुई है जो पहलवानों के बीच में उनके उस्ताद की होती है । काम तो पहलवान ही करते हैं । जेबी तो केवल अखाड़े के किनारे पर बैठा उनकी पीठ थपथपाता रहता है ।”
“क्या मतलब ?”
“खुद उसने आज तक कभी कोई बड़ा काम नहीं किया है । उसका कमाल तो ये ही है कि लोग उसकी खातिर सिर कटा देने से नहीं हिचकते । उसके कहने पर लोग हत्याएं कर देते हैं, बड़े-बड़े डाके डाल देते हैं लेकिन स्वयं अधिक से अधिक यह काम करता है कि उन लोगों में शामिल हो जाता है । इसका लाभ यह है कि अगर पुलिस की नजरों में आ भी गया तो उसके विरुद्ध कुछ भी सिद्ध नहीं किया जा सकेगा ।”
“लेकिन यह बदमाशों को अपने वश में करता कैसे है ?”
“उनका कोई हित करके या उन्हें किसी संकट से बचा कर अगर कोई अपराधी पुलिस विभाग से भागा फिरता है तो जेबी उसे शरण दे देता है या अगर कोई पुलिस के चंगुल में फंसा हुआ है या फंसने वाला है तो वह ऐसी व्यवस्था कर देता है कि अपराधी निकल भागे और उसके बाद उसे पुलिस की हवा न लगे । ऐसे अपराधी जेबी के जरखरीद गुलाम बन जाते हैं और उसके बाद जो जेबी कहता है वे करते हैं । नमूना आपके सामने बैठा है ।”
“क्या मतलब ?” - फ्रैंक का अन्तिम वाक्य सुनते ही सुनील चौंक पड़ा ।
“मैं टामी मोरगन की बात कर रहा हूं ।” - फ्रैंक कोने में बैठ युवक की ओर दृष्टिपात करता हुआ बोला ।
“तुम्हारा मतलब है यह भी जेबी का चमचा है ?”
“सबसे बड़ा, सबसे लाभदायक और सबसे नया । मास्टर, यह आदमी तो पैदाइशी हत्यारा है । यह तो हर समय किसी की हत्या करने के लिए फड़कता रहता है । जेबी के एक संकेत पर यह किसी को भी शूट कर देने में एक सैकेंड की भी देर लगाएगा ।”
“तुमने ज्यूल बाक्स में पड़े डाके के विषय में सुना है ?” - सुनील विषय बदलता हुआ बोला ।
“सुना है ।”
“क्या उसका कोई सम्बन्ध जेबी या टामी मोरगन से हो सकता है ?”
“हो सकता है ।”
“वैसे मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि डाकुओं में एक ऐसा आदमी भी था जो सबका सरदार मालूम होता था और जिसके दायें में चार उंगलियां थीं अर्थात उसके दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई थी ।”
“वह जरूर जेबी होगा ।”
“लेकिन वहां दो हत्यायें भी हुई थीं । क्या जेबी हत्या कर सकता है ।”
“जेबी हत्या करे इस बात का सवाल ही पैदा नहीं होता । मास्टर, कोई भी ऐसा अपराध करना, जिसकी कि सजा लम्बी ही जेबी की आदतों से मेल ही नहीं खाती । टामी पिछले कई दिनों से जेबी का दायां हाथ बना हुआ है । ऐसे किसी स्थान में जहां जेबी रहा है वहां टामी भी जरूर होगा और टामी होगा वहां हत्यायें भी जरूर होंगी । ज्यूल बाक्स में भी उन दो आदमियों की हत्या टामी ने ही की होगी ।”
“तब तो इस बात में किसी सन्देह की गुंजायश नहीं है कि वह काम जेबी, टामी और उनके आदमियों का था ।”
“यह मालूम हो जाने से कुछ फर्क नहीं पड़ता है, मास्टर । आप जेबी या उसके आदमियों के विरुद्ध कुछ भी सिद्ध नहीं कर सकेंगे । ये लोग अपने पीछे कोई सूत्र तो छोड़ते ही नहीं हैं ।”
“ठीक कह रहे हो तुम” - सुनील बोला - “पुलिस जेबी पर एक सूरत में हाथ डाल सकती थी लेकिन रामपाल ने गड़बड़ कर दी ।”
“क्या ?”
“रामपाल ज्यूल बाक्स का मालिक है । उसने यह बात नोट की थी कि डाकुओं के सरदार के दायें हाथ की छोटी उंगली कटी हुई है लेकिन उस गधे ने यह बात पुलिस को बताई ही नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वह नहीं चाहता था कि पुलिस जेबी तक पहुंच जाए । पुलिस से पहले वह स्वयं जेबी से सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है और इसी चक्कर में वह आजकल सारे नगर में जेबी को तलाश करता फिर रहा है ।”
“लेकिन क्यों ?”
“तुम नहीं समझोगे ।” - सुनील बोला ।
फ्रैंक ने भी उसे कुरेदा नहीं ।
“तुम जानते हो जेबी कहां रहता है ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वह कभी एक जगह टिक कर नहीं रहता । वह इतनी तेजी से अपना निवास स्थान बदलता रहता है कि आप कभी यह दावा नहीं कर सकते कि जहां जेबी आपको पहली बार मिला था वहां दुबारा भी मिल जाएगा ।”
उस समय हाल के कोने की मेज पर बैठा हुआ युवक जिसका नाम फ्रैंकी ने टामी मोरगन बताया था, उठ खड़ा हुआ । उसने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाल कर सुलगाया और फिर लड़खड़ाते कदमों से मेजों के बीच में से होता हुआ मुख्य द्वार की ओर बढा ।
“आज कलयह जेबी से मिलता है ?” - सुनील ने जल्दी से पूछा ।
“जी हां । हर रोज मिलता है ।”
“मैं उसका पीछा करूंगा । शायद यह मुझे जेबी तक पहुंचा दे ।”
“मास्टर” - फ्रैंक एकदम व्यग्र स्वर से बोला - “जरा सम्भल कर रहिएगा । यह हर समय अपनी जेब में भरा हुआ रिवाल्वर रखता है ।”
“चिन्ता मत करो ।” - सुनील बोला और फिर टामी की ओर पीठ करके खड़ा हो गया ।
टामी सिगरेट के लम्बे कश लेता हुआ उसकी बगल में से गुजर गया और रेस्टोरेन्ट से बाहर निकल गया ।
सुनील भी बाहर आ गया ।
टामी उस ओर जा रहा था जिधर सुनील ने रमाकांत की इम्पाला पार्क की थी ।
सुनील बड़ी सावधानी से उसके पीछे चल रहा था ।
सुनील की कार से लगभग पचास गज दूर उसी ओर के फुटपाथ के साथ सटी हुई एक खिलौने सी खूबसूरत दो सीटों वाली कार खड़ी थी । उससे एकदम सट कर पुराने ढंग की एक लम्बी चौड़ी आस्टिन खड़ी थी । जिसके हुड से पीठ सटाये हुए ड्राइवर की वर्दी पहने एक आदमी खड़ा था ।
टामी ने एक बार अपनी टू सीटर और उस आस्टिन को देखा और फिर आस्टिन के ड्राइवर के सामने जा खड़ा हुआ ।
“यह ट्रक तुम्हारा है ?” - वह आस्टिन की ओर संकेत करता हुआ ड्राइवर से बोला ।
ड्राइवर ने एक बार उसे सिर से पांव तक देखा और फिर उपेक्षापूर्ण स्वर से बोला - “हां ।”
“इसे तुम्हीं ने पार्क किया है यहां ?”
“हां ।” - इस बार ड्राइवर का स्वर और भी रूखा था ।
“तुम्हें यहां यह टू सीटर नहीं दिखाई दी थी जो इतनी सटा कर गाड़ी खड़ी की है तुमने । अगर उसे खरोंच लग जाती तो ?”
उत्तर देने के स्थान पर ड्राइवर मुंह बिचका कर दूसरी ओर देखने लगा ।
“अबे ओ उल्लू के पट्ठे” - टामी गर्जा - “मैंने तुमसे कुछ पूछा है ।”
“जबान सम्भाल कर बात करो साहब ।” - ड्राइवर गर्म होकर बोला ।
टामी के दायें हाथ का एक भरपूर घूंसा ड्राइवर के जबड़े पर पड़ा । ड्राइवर एक लम्बी हाय के साथ गाड़ी के हुड पर लम्बा पेट गया । टामी ने उसे गिरहबान पकड़ कर उठाया और ताबड़तोड़ तीन चार घूंसे उसके पेट में जड़ दिये ।
ड्राइवर हुड पर से फिसल कर फुटपाथ पर लोट गया ।
आस-पास भीड़ इकट्ठी हो गई थी लेकिन किसी ने भी पिटते हुए ड्राइवर की सहायता करने की चेष्टा नहीं की ।
सुनील ने देखा एक पुलिस का सिपाही वह घटना देख कर घटनास्थल की ओर बढने के बजाय उल्टे पांव से विपरीत दिशा की ओर चल दिया ।
“हरामजादा” - टामी ड्राइवर के शरीर पर थूककर बोला - “साले को अब फर्क पता लगेगा अपने बाप की आस्टीन में और टामी की रेसिंग कार में ।”
फिर वह एकदम घूमा और टू सीटर में बैठ गया ।
अगले ही क्षण टू सीटर सड़क पर फर्राटे भर रही थी ।
क्षण भर के लिए सुनील स्तब्ध सा खड़ा रहा । जो कुछ उसकी आंखों ने देखा था, उस पर उसका मन विश्वास नहीं कर रहा था । ऐसे दृश्यों की कल्पना तो वह केवल फिल्मों में ही कर सकता था । टामी जैसा खूंखार आदमी उसने पहले नहीं देखा था । प्रत्यक्ष था कि जान-बूझ कर लड़ाई मोल लेता फिरता था । लड़ना भिड़ना तो जैसे उसका मनोरंजन था ।
एकाएक उसे टामी की टू सीटर का ख्याल आया ।
उसकी गाड़ी बहुत दूर निकल गई थी ।
सुनील फुर्ती से अपनी कार की ओर झपटा ।
उसने अपनी गाड़ी उसी दिशा में दौड़ा दी जिधर टामी गया था ।
चौड़ी सड़क पर आते ही उसे टामी की टू सीटर दिखाई देने लगी ।
टामी असाधारण गति से कार को दौड़ाए लिए जा रहा था ।
सुनील बड़ी अनिच्छा से अपनी कार की रफ्तार भी बढाये जा रहा था । वह तेज ट्रैफिक से भरी सड़कों पर तेज गाड़ी चलाने के हक में नहीं था लेकिन टामी की टू सीटर पर नजर रखने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि वह तेज रफ्तार से गाड़ी चलाये ।
टामी ने अपनी टूसीटर मेहता रोड की ओर मोड़ दी ।
सुनील ने अपनी ओर टामी की गाड़ी में फासला बढा दिया ।
मेहता रोड पर ट्रैफिक कम था इसलिए टामी के यह जान जाने की सम्भावना थी कि उसका पीछा किया जा रहा है ।
एकाएक टामी ने अपनी गाड़ी सड़क से उतार ली और एक कोठी के कम्पाउन्ड में घुमा दी ।
सुनील ने अपनी गाड़ी की गति धीमी कर दी ।
लगभग एक मिनट के बाद सुनील धीमी गति से कार ड्राइव करता हुआ उस कोठी के सामने से गुजरा जिसमें टामी घुसा था ।
पोर्टिको में टामी की टू सीटर खड़ी दिखाई दे रही थी ।
उसने उस कोठी से लगभग पचास गज दूर गाड़ी रोक दी और गाड़ी में से बाहर निकल आया ।
वह टहलता हुआ कोठी के सामने पहुंचा ।
गेट के पास बने एक छोटे से केबिन में दरबान बैठा था ।
“सुनो ।” - उसने दरबान को बुलाया ।
दरबान उठकर सुनील के सामने आ खड़ा हुआ ।
“यहां कौन रहता है ?” - उसने पूछा ।
दरबान ने संदिग्ध नेत्रों से सुनील को देखा और फिर बोला - “आप से मतलब ?”
“यूं ही ।” - सुनील बोला ।
“तो फिर जवाब भी यूं ही ।”
सुनील कुछ नहीं बोला । उसने बड़ी शान्ति से जेब में से दस-दस के कई नोट निकाले और बड़ी तन्मयता से उन्हें गिनने लगा ।
“यहां कौन रहता है, प्यारे दरबान जी ?” - सुनील ने धीरे से पूछा और उसी प्रकार नोट गिनता रहा ।
“आपके पास बड़े नोट हैं ?” - दरबान लालच भरी निगाहों से नोटों को देखता हुआ बोला ।
“तुम लोगे ?”
दरबान चुप रहा ।
सुनील ने दस-दस के चार नोट उसकी ओर बढा दिए । दरबान ने व्यग्र हाथों से नोट थामे और अपनी वर्दी की जेब में ठूंस लिए ।
“यहां कौन रहता है, दरबान साहब ?” - इस बार सुनील ने अधिकारपूर्ण स्वर से पूछा ।
“यहां जंग बहादुर साहब रहते हैं । परसों ही आये हैं ये ।”
“अच्छा, ये जंग बहादुर साहब नही हैं न जो दुबले पतले से हैं, चश्मा लगता हैं और जिनका दायां हाथ कोहनी से कटा हुआ है ?”
“नहीं । ये साहब तो बड़े लम्बे चौड़े हैं । चश्मा नहीं लगाते हैं और भगवान की कृपा से दायां हाथ सही सलमात है । केवल दायें हाथ की छोटी उंगली नहीं है उनकी ।”
“मैं तो कोई और ही आदमी समझा था उन्हें । वैसे इनके मिलने वाले इन्हें बेबी के नाम से पुकारते हैं न ?”
“बेबी नहीं जेबी के नाम से पुकारते हैं ।”
“कमाल है । आज मुझसे कदम-कदम पर गलती हो रही है । खैर, मजे करो, प्यारे ।”
सुनील वहां से हट गया ।
उसने कोठी का नम्बर देखा । नम्बर इक्कीस था ।
सामने ही एक रेस्टोरेन्ट था जिसके बाहर डाक तार विभाग का नीला बोर्ड लगा हुआ था जिस पर लिखा था - आप यहां से स्थानीय टेलीफोन कर सकते हैं ।
सुनील रेस्टोरेन्ट में घुस गया ।
उसने हुक से रिसीवर उठाया और यूथ क्लब के नम्बर डायल कर दिये ।
“यूथ क्लब, गुड ईवनिंग !” - दूसरी ओर से रिसेप्शनिस्ट का मधुर स्वर सुनाई दिया ।
सुनील ने जल्दी से फोन में सिक्के डाले और फिर बोला - “जरा रमाकांत से बात करवाओ और अब भगवान के लिए में आई नो हू इज स्पीकिंग - मत कहना ।”
“नहीं कहूंगी, सुनील साहब । अब मैं आपको पहचान गई हूं ।” - रिसेप्शनिस्ट हंसकर बोली ।
सुनील कुछ नहीं बोला ।
थोड़ी देर बाद उसे फोन में रमाकांत का स्वर सुनाई दिया - “हल्लो । आ रहे हो ?”
“रमाकांत” - सुनील बोला - “दो आदमी फौरन इक्कीस मेहता रोड पर भेज दो मैं वहां...”
“आज कहीं कोई नहीं जायेगा, बेटा” - रमाकांत का झूमता हुआ स्वर सुनाई दिया - “आज सब यूथ क्लब में आयेंगे । तुम भी फौरन आ आओ ।”
“ओ रमाकांत बात यह है कि...”
“कोई बात नहीं है । अगर करनी है तो ट्विस्ट की बात करो, समझे ।”
“रमाकांत के बच्चे...”
“हये, लेट्स ट्विस्ट अगेन” - सुनील की बात अनसुनी करके रमाकांत फोन पर ही चिल्लाने लगा - “प पप्पा पपा पा... प पप्पा पपा पा... पा पपा पा पा पपा पा... पा... पा... पा ।”
“ओ रमाकांत के बच्चे !” - सुनील एकदम गला फाड़ कर चिल्लाया ।
“क्या हो गया ?” - रमाकांत को जैसे ब्रेक लग गया । वह एकदम बौखला कर बोला ।
“मैं जो बक रहा हूं, वह सुनो ।” - सुनील बोला ।
“सुनाओ ।” - रमाकांत एक दम गम्भीर हो उठा ।
“दो आदमियों को इक्कीस मेहता रोड पर भेज दो । उस घर में एक चार उंगलियों वाला जंग बहादुर नाम का आदमी है और दूसरा एक लम्बा तड़ंगा खूंखार सा युवक है । उन्हें उन दोनों पर नजर रखनी है ।”
“मैं गोपाल और राकेश को भेज रहा हूं ।” - रमाकांत बोला ।
“ठीक है, जब तक वे नहीं आते मैं यहीं हूं ।”
“अच्छा ।”
“मोहन ने कोई रिपोर्ट भेजी है ?”
“मोहन ने तुम्हारे जाने के थोड़ी ही देर बाद फोन किया था । वह बदस्तूर उमाशंकर चोपड़ा का पीछा कर रहा है । मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि चोपड़ा इस समय राजनगर में है । आज शाम को वह ज्यूल बाक्स में रामपाल से मिला था । वहां एक वेटर का कथन है कि वहां चोपड़ा और रामपाल में किसी बात पर तू तू मैं मैं हो गई थी जल्दी ही एक भारी झगड़े की सूरत ले बैठी थी । उसके बाद चोपड़ा क्रोध में उफनता हुआ ज्यूल बाक्स से बाहर निकल गया था ।”
“झगड़ा किस बात पर हुआ था ?”
“यह पता नहीं लग पाया है ।”
“चोपड़ा इस समय कहां है ?”
“राजनगर में ही है ।”
“मेरा मतलब है, वह ठहरा कहां हुआ है ?”
“सिसिल होटल के तीन सौ बहत्तर नम्बर कमरे में ।”
“ओके । मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा । मैं चौपड़ा से मिलने जा रहा हूं ।”
“तुम यहां नहीं आ रहे हो ?”
“नहीं ।”
“बड़ी बुरी बात है । ट्विस्ट...”
सुनील ने बाकी बात नहीं सुनी । उसने रिसीवर हुक पर लटकाया और रेस्टोरेस्ट की एक ऐसी टेबल पर आ बैठा जहां से इक्कीस नम्बर कोठी दिखाई दे रही थी ।
उसने कलाई पर बन्धी घड़ी देखी - आठ बजने को थे ।
उसने लक्की स्ट्राईक का एक सिगेरट सुलगाया और बड़े इत्मीनान से उसके हल्के हल्के कश लेने लगा ।
उसने काफी का आर्डर दिया जो उसे फौरन ही सर्व हो गई ।
लगभग पन्द्रह मिनट बाद उसे इक्कीस नम्बर कोठी से जरा हट कर एक मोटर साइकिल रुकती दिखाई दी जिस पर गोपाल और राकेश बैठे हुए थे ।
सुनील ने काफी का आखिर घूंट हलक में उंडेला, सिगरेट को ऐश ट्रे में डाला और काफी का पेमेन्ट कर के बाहर निकल आया ।
उसने गोपाल और राकेश से सम्पर्क स्थापित करने की चेष्टा नहीं की । वे अपने काम में दक्ष थे उन्हें किसी प्रकार के निर्देश देने की आवश्यकता नहीं थी ।
वह फिर अपनी कार के स्टियरिंग पर आ बैठा और उसे सिसिल होटल की ओर ड्राइव करने लगा ।
***
सुनील सिसिल होटल के तीन सौ बहत्तर नम्बर कमरे का द्वार खटखटा रहा था । नीचे रिसेप्शन काउन्टर पर ही उसे पता लग गया था कि चोपड़ा अपने कमरे में है ।
“कौन है ?” - भीतर से चोपड़ा का उखड़ा हुआ स्वर सुनाई दिया ।
“जरा द्वार खोलिये ।” - सुनील बोला ।
“मैं इस समय किसी से नहीं मिल सकता ।”
सुनील क्षण भर चुप रहा और फिर बोला - “आपका टैलीग्राम है ।”
“उसे द्वार के नीचे से कमरे के भीतर सरका दो ।” - भीतर से आवाज आई ।
“टैलीग्राम तो सरका दूंगा लेकिन आपको हस्ताक्षर करने पड़ेंगे ।”
कई क्षण शान्ति रहीऔर फिर द्वार खुल गया ।
चोपड़ा एक ड्रेसिंग गाउन पहने द्वार पर खड़ा था । उसके बाल बिखरे हुए थे और शेव बढ़ी हुई थी । जो उमाशंकर चोपड़ा पहले दनदनाता हुआ ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में आया था, उस के मुकाबले में वह बेहद टूटा हुआ इन्सान लग रहा था ।
“वह तार वाला कहां गया ?” - उसने उलझन पूर्ण स्वर से पूछा ।
“मैं ही तार वाला हूं । आप से कुछ बातें करना चाहता हूं ।”
“मैं इस समय किसी से कोई बात करने के मूड में नहीं हुई हूं ।” - और चोपड़ा ने द्वार बन्द करने का उपक्रम किया ।
लेकिन सुनील ने द्वार बन्द नहीं होने दिया । उसने अपने कन्धे का एक जोरदार धक्का द्वार को दिया ।
द्वार का पल्ला भड़ाक से चोपड़ा के हाथ से छूट गया ।
सुनील भीतर घुस गया और बड़ी शान्ति से जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“यह क्या बदतमीजी है ?” - चोपड़ा क्रोध से आग बबूला हो कर बोला - “मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं ।”
“कोई फायदा नहीं होगा चोपड़ा साहब” - सुनील अन्धेरे में तीर छोड़ता हुआ बोला - “आप पहले ही इस दलदल में बहुत गहराई तक फंसे हुए हैं । पुलिस के बुलाने से भी आप को कोई लाभ नहीं होगा ।”
चोपड़ा कई क्षण चुप रहा और धीमे स्वर से बोला - “तुम चाहते क्या हो ?”
“द्वार बन्द कर दीजिये और मेरे सामने आकर बैठिए ।”
चोपड़ा ने द्वार बन्द कर के भीतर से चिटकनी लगा दी और सुनील के सामने आ बैठा ।
“मुझे पहचानते हैं आप ?” - सुनील ने पूछा ।
“सूरत तो तुम्हारी जानी पहचानी लग रही है लेकिन याद नहीं आ रहा है कि कहां देखा है ?” - चोपड़ा परेशान स्वर से बोला ।
“मेरा नाम सुनील है... मैं ब्लास्ट से सम्बन्धित हूं ।”
“याद आ गया मुझे” - चोपड़ा जल्दी से बोला - “तुम वही सुनील हो जिस से उस झूठी खबर के सिलसिले में मैंने ‘ब्लास्ट’ के आफिस में बात की थी ।”
“केवल बात ही नहीं की थी, साथ में मानहानि के मुकदमे की धमकी भी दी थी ।”
“लेकिन अब तो वह किस्सा ही खत्म हो चुका है ।”
“आपकी ओर से वह किस्सा खत्म हो चुका है लेकिन हमारी ओर से नहीं ।”
“अब उस में बाकी क्या है । मैंने तो तुम लोगों को उस समाचार के प्रकाशन की किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था ।”
“यही तो मेरी दिलचस्पी का विषय है ।”
“क्या ?” - चोपड़ा ने हैरान होकर पूछा ।
“कि आपके विचारों में एकाएक ऐसा भारी परिवर्तन कैसे आ गया है ?”
“क्या मतलब ?”
“आप जब पहली बार ब्लास्ट के आफिस में तशरीफ लाए थे उस समय ऐसा लग रहा था जैसे लग रहा था जैसे समाचार के प्रकाशन के मामले में आप ब्लास्ट का तख्ता उलट कर रख देगे । फिर एकाएक ही आखिर ऐसा क्या हो गया कि आपने अपनी पत्नी और अपने वकील को मामला रफा-दफा करने के लिए राजनगर दौड़ा दिया ।”
चोपड़ा ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“आप राजेश को जानते थे ?”
“कौन राजेश ?”
“ऐसा अनजानापन दिखाने में काम नहीं चलेगा, चोपड़ा साहब । आप खूब जानते हैं राजेश कौन था ? वह ब्लास्ट का रिपोर्टर था और ब्लास्ट के लिए आपके पिछले जीवन के बखिए उधेड़ डालने की खातिर आपके पीछे हाथ धो कर पड़ा हुआ था । आप न केवल यह जानते थे कि राजेश कौन है बल्कि यह भी जानते थे कि वह विशालगढ क्या करने आया था । वह आप से मिला भी था ।”
“नहीं ।” - चोपड़ा कठिन स्वर से बोला ।
“आप झूठ बोल रहे हैं” - सुनील कठोर स्वर से बोला - “मैं आपके सामने एक ऐसा गवाह पेश कर सकता हूं जिसने सिटी क्लब में आपको राजेश से बातें करते देखा था । आपने उसे धमकी दी थी कि अगर वह किसी ‘मामले’ में अपनी जबान बन्द नहीं रखेगा तो आप उसे जान से मार डालेंगे । मैं यह भी जानना चाहता हूं कि वह मामला क्या था जिसके बारे में आप राजेश को जबान नहीं खोलने देना चाहते थे ?”
चोपड़ा के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं ।
“चोपड़ा साहब, आपके कई कृत्यों ने आपको भारी सन्देहास्पद स्थिति में ला खड़ा किया है । राजेश की हत्या हो गई है । अभी यह बात पुलिस तक नहीं पहुंची है कि आपने राजेश को मार डालने की धमकी दी है लेकिन पहुंच सकती है । तब आप की क्या स्थिति होगी, आप स्वयं सोच सकते हैं । पुलिस यह परवाह नहीं करेगी कि हत्यारा एक बड़ा उद्योगपति है या बैंक का डायरेक्टर है या सिटी क्लब का प्रेसीडैन्ट है या भावी एम पी है या इण्डियन चेम्बर आफ कामर्स के एडवायजरी बोर्ड का मेम्बर है ।”
“लेकिन सुनील, भगवान की सौंगन्ध, मैंने राजेश की हत्या नहीं की ।”
“तो फिर किसने की ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“आप झूठ बोल रहे हैं ।”
चौपड़ा के माथे पर पसीने की बूंदे चमकने लगीं ।
“आपने एकाएक ब्लास्ट के प्रति अपना रवैया क्यों बदल दिया ?”
चोपड़ा चुप रहा ।
“मैं आपसे पहले भी कह चुका हूं, चोपड़ा साहब, और फिर कह रहा हूं कि चुप रहने से काम नहीं चलेगा । राजेश ब्लास्ट का आदमी था । ब्लास्ट राजेश के हत्यारे के गले में फांसी का फंदा देखना पसन्द करेगा । इस समय हर सूत्र केवल आप ही की ओर संकेत कर रहा है ।”
“मैंने राजेश की हत्या नहीं की है ।” - चोपड़ा ने फिर दोहराया ।
सुनील ने कुछ बोलने के लिए मुंह खोला ही था कि फोन की घन्टी बज उठी । उसने प्रश्न सूचक दृष्टि से चोपड़ा को देखा ।
चोपड़ा ने उठ कर रिसीवर उठा लिया ।
“हल्लो !” - वह बोला ।
कुछ क्षण फोन सुनता रहा और फिर सुनील की ओर देख कर हैरानी भरे स्वर से बोला - “तुम्हारा फोन है ।”
सुनील ने उठ कर रिसीवर उसके हाथ से ले लिया ।
“सुनील स्पीकिंग ।” - वह माउथ पीस में बोला ।
कुछ क्षण सुनील के कानों में ट्विस्ट के उत्तेजक संगीत की स्वर लहरियां गूंजती रहीं और फिर रमाकांत का स्वर सुनाई दिया - “सुनील, तुम्हारी पूछी हुई एक बात जरूरत से ज्यादा जल्दी पता लग गई थी इसलिए मैंने सोचा तुम्हें सूचना दे दूं । तुमने कहा था कि तुम चोपड़ा से मिलने जा रहा हो, इसलिए मेंने तुम्हें यहां फोन कर लिया ।”
“बड़ा अच्छा किया । क्या बात है ?” - सुनील बोला ।
“मेरा आदमी तुम्हारे दफ्तर से राजेश की फोटो ले आया था । उसने वह फोटो ज्यूल बाक्स के वेटरों को दिखाई थी । एक वेटर को वह अच्छी तरह याद था । सुनील, जिस रोज चोपड़ा उस विदेशी युवती के साथ ज्यूल बाक्स के जुआघर में गया था, उस रोज राजेश भी वहां था ।”
“श्योर ?”
“यस । श्योर ।”
“ओके थैंक्स ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया और वापिस अपने स्थान पर आ बैठा ।
“जो बात मैं अब आपसे पूछने जा रहा हूं, आप उसके बारे में झूठ मत बोलियेगा ।” - सुनील गम्भीर स्वर में चोपड़ा से बोला ।
“क्या ?”
“जिस दिन राजेश की लाश पाई गई थी उससे पहले दिन की शाम को आप एक विदेशी युवती के साथ ज्यूल बाक्स के जुआघर में गए थे ?”
चोपड़ा एकदम हड़बड़ा गया ।
“आपकी जानकारी के लिए मैं आपको एक बात और बता देता हूं ताकि अगर आप झूठ बोलें तो वह कम से कम विश्वसनीय तो हो । उस रोज जुआघर में राजेश भी मौजूद था । वह आपके एक-एक एक्शन को नोट कर रहा था । और मिस्टर चोपड़ा” - सुनील ने अंधेरे में तीर छोड़ा - “जो बात आप मुझसे छिपाने की चेष्टा कर रहे हैं, उसे राजेश जान गया था ।”
चोपड़ा भौंचक्का सा उसका मुंह देखने लगा ।
सुनील को महसूस हुआ कि तीर निशाने पर लगा था । अपनी बात के प्रभाव को और लम्बा करने के लिए उसने जेब से एक सिगरेट निकालकर सुलगाया और फिर लापरवाही से उसके लम्बे लम्बे कश लेने लगा ।
चोपड़ा कई क्षण चेहरे पर दुविधा और भय के मिले जुले भाव लिए बैठा रहा ।
“आप अपनी सन्देहास्पद स्थिति को स्पष्ट करने के लिए कोई उपक्रम नहीं करना चाहते ?”
“मैं मजबूर हूं ।”
“आपकी चुप्पी आपका भारी अहित कर सकती है ।”
“मुझे अपने हित की चिन्ता नहीं है ।”
“तो फिर ?”
चोपड़ा फिर चुप हो गया ।
सुनील परेशान हो उठा । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह चोपड़ा का रिकार्ड कैसे चालू करवाये ।
“सुनील, सुनो” - एकाएक चोपड़ा बोल पड़ा । उसके स्वर में असाधारण गम्भीरता थी - “अगर तुम यह समझते हो कि तुम मुझे धमका कर या मुझ पर किसी प्रकार का मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालकर मेरे से कोई बात उगलवा सकते हो तो यह तुम्हारी गलती है । मैंने ऐसी बहुत धमकियां सुनी हैं । मैं अपनी इच्छा से तुम्हें देश के प्रति ईमानदार आदमी समझ कर एक कहानी सुनाता हूं और साथ ही यह आशा भी है मुझे कि शायद तुम मेरी कोई सहायता कर सको ।”
सुनील भी गम्भीर हो उठा ।
“फरमाइये ।” - वह बोला ।
“यह मेरी महान मूर्खता की कहानी है और यही मेरी सारी मुसीबतों की जड़ है ।”
सुनील चुप रहा ।
“मैं प्रतिरक्षा मन्त्रालय का भारी विश्वासपात्र कान्ट्रैक्टर हूं । यह विश्वास मैंने प्रतिरक्षा मन्त्रालय की पन्द्रह साल अनथक सेवा करके जीता है । इसका परिणाम यह है कि कई बार मुझे ऐसे कान्ट्रैक्ट मिले हैं जिनकी कोई प्राइवेट कान्ट्रैक्टर स्वप्न में भी आशा नहीं कर सकता । मैं प्रतिरक्षा मंत्रालय के लिए जीपों और रायफलों तक का निर्माण करता रहा हूं । पिछले दिनों मुझे मन्त्रालय से एक बहुत गुप्त और बहुत बड़े काम की आफर मिली । मन्त्रालय बड़े ही गुप्त रूप से और एक बड़े ही गुप्त स्थान पर भीषण विस्फोट पदार्थ बनाने की एक फैक्ट्री लगा रहा है । उस फैक्ट्री की इमारत बनकर तैयार हो चुकी है लेकिन यह कोई नहीं जानता है कि वास्तव में वह फैक्ट्री कहां है ।”
“आपका उस फैक्ट्री से क्या सम्बन्ध है ?”
“मुझे उस फैक्ट्री में मशीनरी फिट करने के लिए कहा गया है । मैं अपने डिजाइनरों और इन्जीनियरों के साथ प्रतिरक्षा मन्त्रालय के विशेषज्ञों से कई दिनों से मिल रहा हूं । मुझे केवल फैक्ट्री के ब्लूप्रिंट दिखाए जाते थे लेकिन जब तक हर चीज फाइनल नहीं हो गई थी मुझे यह नहीं बताया गया था कि फैक्ट्री कहां है । मेरे इन्जीनियर बेहद देशभक्त और विश्वासपात्र हैं इसलिए उनकी ओर से रहस्य के प्रकाट हो जाने की चिन्ता नहीं थी और लेबर का सारा काम फौजी जवान करने वाले थे ।”
“लेकिन उस फैक्ट्री को इतना गुप्त क्यों रखा जा रहा है ?”
“क्योंकि कैरोलाइटस नाम के जिस विस्फोटक पदार्थ का निर्माण उस फैक्ट्री में होने वाला है, उसका आविष्कार एक भारतीय वैज्ञानिक ने किया है और भारत के अतिरिक्त उसकी निर्माण विधि किसी अन्य राष्ट्र को मालूम नहीं है । कैरोलाइट की कार्य क्षमता अद्वितीय है । ईंधन के रूप में प्रयोग किये जाने पर यह एटामिक-एनर्जी से भी अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है । जिस दिन राजेश की लाश मिली थी, उससे पहले दिन दोपहर के बाद लगभग तीन बजे मुझे प्रतिरक्षा मन्त्रालाय में उस फैक्ट्री और उसमें फिट होने वाली मशीनरी के ब्लूप्रिंट मिले थे । वे ब्लूप्रिंट आठ गुणा दस इंच के एक मोटे से भूरे रंग के लिफाफे में थे । मुझे वे ब्लूप्रिंट स्टडी करने के लिए दिए गए थे ताकि मैं एक सप्ताह के भीतर काम आरम्भ करवा सकूं । मन्त्रालय की इमारत से निकलते ही मुझे अपनी एक पूर्व परिचित युवती मिल गई ।”
“कौन थी वह ?” - सुनील ने सतर्क स्वर से पूछा ।
“वह एक लगभग छब्बीस वर्ष की बेहद आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी विदेशी युवती थी ।”
“आपका मतलब उसी विदेशी युवती से है जिसके साथ आप ज्यूल बाक्स के जुआघर में देखे गए थे ?”
“हां वही ।”
“आपके उसके साथ कैसे सम्बन्ध थे ?”
चोपड़ा एकदम नर्वस हो उठा ।
“आपके उसके साथ कैसे सम्बन्ध थे ?” - सुनील ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“सुनील” - चोपड़ा धीरे से बोला - “मेरे उसके साथ वह सम्बन्ध थे जो नैतिकता की दृष्टि से अच्छे नहीं समझे जाते । जूली यह उसका नाम था, बेहद स्वतन्त्र विचारों की लड़की थी । मैं उससे पहली बार राजनगर में ही एक क्लब में मिला था और तभी से मैं उससे काफी घुल-मिल गया था ।”
“किस हद तक ?”
“कोई हद ही नहीं थी । मैंने कहा न, वह बहुत स्वतन्त्र विचारों की लड़की थी ।”
“और यह मित्रता कितनी पुरानी है ?”
“आज से लगभग एक महीना पहले मैं पहली बार मिला था उससे ।”
“खैर, फिर ?”
“मैं क्या कह रहा था ?”
“मन्त्रालय के बाहर निकलते ही आप जूली से मिले थे ।”
“हां । यह संयोग ही था कि वह मुझे वहां दिखाई दे गई थी । मैं भी उससे मिल कर प्रसन्न ही हुआ था । वैसे भी मैं प्रतिरक्षा मन्त्रालय से मिले कान्ट्रैक्ट के कारण जरा अच्छे मूड में था । वहां से हम एक बार में चले गए थे ।”
“उसने आपसे किस ढंग से बातें की थीं ?”
“रुटीन सोशल बातें । कोई विशेष बात नहीं थी । वह मुझसे शिकायत कर रही थी कि मैं राजनगर में आते ही सबसे पहले उससे क्यों नहीं मिलता हूं ।”
“बातचीत के बीच में उस भूरे लिफाफे का भी कोई जिक्र आया था जिसमें ब्लूप्रिंट थे ?”
“मेरा ख्याल है” - चोपड़ा कुछ क्षण सोचता हुआ बोला - “कि मैंने ही उत्साह के अतिरेक में कोई बात की थी उस लिफाफे के विषय में । मैंने उसे लिफाफा दिखा कर कहा था कि इसमें मेरी सफलता की कुंजी बन्द है । या ऐसी ही कोई बचकानी बात कही थी मैंने ।”
“उत्तर में जूली ने क्या कहा था ?”
“कुछ भी नहीं । उसको उस लिफाफे में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वास्तव में वह तो उसका जिक्र सुनकर बोर ही हुई थी ।”
“खैर - फिर क्या हुआ ?”
“बार में मैंने जूली के साथ काफी मात्रा में शैम्पेन पी थी । मैं रेगुलर शराब पीने वाला हूं । शराब का मुझ पर ऐसा प्रभाव नहीं होता है कि मैं अपने होश हवास खो बैठूं । लेकिन उस दिन मैं काफी भारीपन महसूस करने लगा था । एक दो बार मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसे मैं हवा में उड़ा जा रहा होऊं लेकिन फिर भी मैंने होशहवास नहीं खोये थे ।”
“उस दौरान आप महत्वपूर्ण कागजों से भरे लिफाफे को जेब में रखे फिरते रहे ?” - सुनील ने हैरान होकर पूछा ।
“यही तो मेरी मूर्खता थी । लेकिन यह सब हुआ इसलिए कि एक तो मुझे जूली मिल गई दूसरे मैं अच्छे मूड में था और तीसरे शैम्पेन के चार पांच पैग पी लेने से मुझे नशा नहीं हो जाता लेकिन एक बार शुरूआत हो जाने के बाद मैं उतना सतर्क नहीं रह पाया जितना कि मुझे रहना चाहिए था । शराब से अधिक मुझ पर जूली का नशा छाया हुआ था । मेरी तबीयत खराब हो रही थी इसलिए उसने मुझे कहा था कि या तो मैं अपने होटल में चलूं या फिर उसके फ्लैट पर चलूं । मुझे दोनों ही बातें पसन्द नहीं आ रही थीं । वास्तव में मैं जूली से अलग होना चाहता था ताकि मैं उस लिफाफे को किसी सुरक्षित स्थान पर रख सकूं । लेकिन जूली उस हालत में मुझे अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी । फिर मैंने ही कहा था कि पहले थोड़ी देर खुली हवा में घूमते हैं और उसके बाद रामपाल के जुआघर में चलते हैं । वहां थोड़ा मनोरंजन भी हो जाएगा और तबीयत भी सम्भल जाएगी ।”
“फिर ?”
“फिर हम रामपल के जुआघर में आ गए । वहां शायद एक या दो काकटेल हमने और पी और फिर हमने रौलेट की मेज पर दांव लगाने आरम्भ कर दिए । लगभग दस मिनट बाद ही मेरी आंखों के सामने अन्धकार छाने लगा और मुझे यूं अनुभव होने लगा जैसे मेरी चेतना लुप्त हुई जा रही हो । मुझे अपने कोट की भीतरी जेब में रखे लिफाफे की भारी चिन्ता होने लगी । मुझे डर लग रहा था कि अपनी उस हालत में कहीं खो न बैठूं । अपने को उस हालत में पहुंचाने का जिम्मेदार मैं था और उसके लिए मैं अपने आपको हजार-हजार गालियां दे रहा था । फिर मुझे एक तरकीब सूझी । मैंने जूली को कहा कि मैं जरा क्लाक रूम जा रहा हूं और फिर स्वयं को चेतनावस्था में रखने का भरसक प्रयत्न करता हुआ जूली को रौलेट टेबल के पास खड़ा छोड़ कर चुपचाप रामपाल के आफिस में घुस गया । रामपाल अपने आफिस में था । मैंने उसे वास्तविक बात तो नहीं बताई लेकिन इतना जरूर कहा कि वह लिफाफा मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है और वह उसे अपने सेफ में रख ले । कल सुबह मैं उसे वापिस ले जाऊंगा । रामपाल मेरा अच्छा मित्र है । मैं जानता था कि उस भरोसा किया जा सकता है । उसने मेरे सामने ही लिफाफे को सेफ में रख कर ताला लगा दिया । एक बार लिफाफे के सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाने के बाद मैं निश्चिंत हो गया था । अब मुझे परवाह नहीं थी कि मुझे पर क्या गुजरती है । मैं फिर जूली के पास लौट आया । उसने मेरी तबीयत के बारे में पूछा । मैंने कहा कि तबीयत अब भी बहुत खराब है । उसने वहां से चलने का इसरार किया लेकिन उसी समय मैं जुए में जीतने लगा इसलिए मैं अपनी बुरी हालत की परवाह किये बिना वहां टिका रहा । लगभग एक घण्टे बाद मैं वहां से निकला और एक टैक्सी पर जूली को उसके फ्लैट पर ले गया । मैं उसे उसके फ्लैट पर छोड़ कर बाहर से ही लौट आना चाहता था लेकिन जूली कहती थी कि मैं थोड़ा सा भीतर आराम कर लूं । मैंने उसकी बात स्वीकार कर ली । अपने फ्लैट में ले जाकर उसने मुझे कुछ पीने के लिए दिया । वह क्या था मुझे नहीं मालूम लेकिन उसने कहा था कि उससे मेरी तबीयत सुधर जाएगी । इन्कार करने वाली तो मेरी हालत ही नहीं थी । उस समय तो कोई मुझे छत से धकेल देता तो मैं उसे रोक नहीं सकता था । जो कुछ मुझे जूली ने दिया मैं पी गया । लेकिन तबीयत सुधरने के स्थान पर और खराब हो गई । जूली घबरा गई । उसने कहा कि मैं कुछ क्षण बिस्तर पर आराम कर लूं । मुझे भी उसकी बात अपील कर गई और मैं जाकर उसके बिस्तर पर लेट गया । बिस्तर से पीठ लगते ही मेरी चेतना लुप्त हो गई । मैं कब तक वहां पड़ा रहा मुझे याद नहीं ।”
“फिर आपकी नींद कब खुली ?”
“अगली सुबह लगभग दस बजे । लेकिन उससे पहले एक घटना और घटी ।”
“क्या ?”
“बिस्तर पर लेट जाने के बाद के किसी समय में जूली ने मुझे झिंझोड़ कर जगाया । उसने मुझसे पूछा कि मेरे पास जो आठ गुणा दस का भूरा लिफाफा था वह कहां गया । कहीं वह मैंने रास्ते में कहीं गिरा तो नहीं दिया । वह उसे लिफाफे के लिए बहुत चिन्ता प्रकट कर रही थी ।”
“आपने उसे यह नहीं पूछा कि उसे पता कैसे लगा कि लिफाफा आपके पास नहीं है ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं । ऐसा समझदारी भरा सवाल करने वाली मेरी हालत ही कहां थी । शायद उसने मेरे कोट की जेब देखी हो । बिस्तर पर लेट जाने के बाद उसने मेरी मेरी टाई की नाट ढीली की थी और कोट के बटन भी खोले थे ।”
“खैर, फिर ?”
“मैंने उसे कहा कि लिफाफे की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है । वह रामपाल के सेफ में एकदम सुरक्षित है ।”
“इस उत्तर की उस पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी ?”
“वह और अधिक चिन्तित हो उठी थी ।”
“फिर ?”
“फिर मैं सो गया था और सुबह दस बजे उठा था । सुबह मैंने जूली के ही फ्लैट में अखबार देखा था । उसमें ज्यूल बाक्स क्लब में पड़े डाके का वर्णन था । लिखा था कि डाकुओं ने सेफ को ही लूटा है । मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई । मैं बदहवास होकर ज्यूल बाक्स भागा । वहां रामलाल ने बताया कि डाकू वह ब्लू प्रिंट्स वाला लिफाफा भी ले गये हैं । मैं सिर पीट कर रह गया । अपनी इस असावधानी के कारण न केवल मेरी मान प्रतिष्ठा समाप्त हो सकती थी बल्कि मैं जेल जा सकता था । रामपाल ने मुझे चार उंगलियों वाले रिंग लीडर के विषय में बताया था । मैं किसी भी कीमत पर चोरी की बातें गुप्त रखना चाहता था । मैंने विशालगढ के प्राइवेट डिटेक्टिवों की सहायता ली । मैंने उन्हें बेहद मोटी रकम देकर कहा कि वे किसी भी प्रकार चार उंगलियों वाले रिंग लीडर को ढूंढ निकालें । इस घटना के फौरन बाद ही सिटी क्लब में मुझे राजेश मिला । उसने मुझे बताया कि वह पिछली रात साये की तरह मेरे पीछे लगा रहा है और वह भूरे लिफाफे के विषय में भी जान गया है जो मैंने रामपाल के सेफ में रखवाया था । हड़बड़ाया हुआ तो मैं पहले ही था उसकी बात सुनते ही मैं और परेशान हो गया । उसी अर्धविक्षिप्तावस्था में मैं उसे धमकी दे बैठा कि अगर उसने इस मामले में जबान खोली तो मैं उसे जान से मार दूंगा ।”
“लेकिन वास्तव में तुमने उसे नहीं मारा ?”
“नहीं । मेरे में इतना हौसला कहां है कि मैं किसी का खून कर दूं । लेकिन राजेश कोई ब्लैकमेलर तो नहीं था जो अनजाने में हाथ आ गई उस जानकारी का अनुचित लाभ उठाता । लेकिन यह बात आपके अखबार में आ सकती थी क्योंकि हर्जाना वसूल करने की धमकी देकर मैं आपसे लड़ाई मोल ले बैठा था । आप लोग इस बात को न छापें, इसका बड़ा सीधा तरीका मुझे यह दिखाई दिया कि मैं आपसे झगड़ा ही समाप्त कर दूं । परिणाम स्वरूप मैंने अपनी पत्नी और वकील को आप लोगों के पास कम्प्रोमाइज के लिए भेज दिया ।”
“तो फिर राजेश को किसने मारा ?”
“मुझे मालूम नहीं । मैंने उस घटना के बाद उसकी सूरत नहीं देखी ।”
“मृत्यु से पहले उसने मुझे फोन किया था कि वह किसी विदेशी युवती के चक्कर में है । वह विदेशी युवती जरूर जूली होगी । और मिस्टर चोपड़ा, हर बात इस ओर संकेत कर रही है कि जूली आप से वे कागजात हथियाना चाहती थी जो उस लिफाफे में थे । मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ज्यूल बाक्स में पड़े डाके से भी जूली जरूर सम्बन्धित है । जूली को शायद पहले से ही मालूम था कि प्रतिरक्षा मन्त्रालय से आपको कोई महत्वपूर्ण कागजात मिलने वाले हैं । उन कागजों को हथियाने के लिए ही उसने आपसे मित्रता गांठी थी । आपने स्वयं कहा था कि आप आदी शराब पीने वाले हैं फिर उस दिन शराब पीकर आपकी हालत इतनी खराब क्यों हो गई ? अवश्य ही जूली ने आप की शराब में कोई ऐसी चीज मिला दी होगी जिसके कारण आप अपने होश हवास खोने लगे थे । अपने फ्लैट में ले जाकर उसने आपके वस्त्रों की तलाशी ली थी । उसने आपसे लिफाफा न मिलने के विषय में पूछा था । आपने बता दिया कि वह ज्यूल बाक्स के सेफ में है । उसके कुछ ही घण्टों बाद ज्यूल बाक्स में डाका पड़ गया और डाकुओं ने रुपये से अधिक ध्यान सेफ में रखे पेपरों की ओर दिया । क्या आपको ये सब बातें आपस में सम्बन्धित नहीं मालूम होती हैं ?”
चोपड़ा भौंचक्का सा उसका मुंह देखता रहा ।
“कागजों की चोरी की सूचना प्रतिरक्षा मन्त्रालय को न देकर आपने भारी मूर्खता का परिचय दिया है । आप के किराये पर लिए हुए प्राइवेट जासूस क्या कर सकते हैं कागजों की खोज में ? आपने इस थ्योरी पर प्राइवेट जासूस किराये पर लिये कि डाकू अनजाने में आपका लिफाफा ले गये हैं जबकि उन्हें तलाश ही उस लिफाफे की थी । यही मूर्खता रामपाल कर रहा है । आप को चाहिये था आप लिफाफे की चोरी की सूचना फौरन प्रतिरक्षा मन्त्रालय को देते और फिर सी आई बी के सुयोग्य जासूस स्थिति को सम्भालने की चेष्टा करते ।”
चोपड़ा की कंपकंपी छूटने लगी । वह घबराकर बोला - “अब... अब... मैं क्या करूं ?”
सुनील ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह चुपचाप सोचता रहा फिर उसने झटके से क्रेडिल से रिसीवर उठा लिया । उसने आपरेटर से ब्लास्ट का नम्बर मांगा ।
“हल्लो, ब्लास्ट हियर ।” - कुछ क्षण बाद उसे एक पुरुष स्वर सुनाई दिया ।
“मैं सुनील बोल रहा हूं” - सुनील बोला - “राय है ?”
“जी हां है ।”
“जरा बात करवाओ ।”
कुछ देर बाद उसे राय का स्वर सुनाई दिया - “राय स्पीकिंग ।”
“राय मैं सुनील बोल रहा हूं ।”
“कहो ।”
“राय, पिछले दिनों राजेश ने पुलिस स्टेशन से जूली नाम की एक विदेशी लड़की और मुरारीलाल नाम के एक आदमी के विषय में रिेपोर्ट भेजी थी । वे लोग एक एक्सीडेंट के कारण पकड़े गये थे । बाद में वह आदमी उमाशंकर चोपड़ा के कागजात वगैरह दिखाकर छूट गया था । तुम्हें वह घटना याद है न ?”
“यह घटना कैसे भूल सकती है मुझे - वही तो सारे फसाद की जड़ थी । उसी चक्कर में तो बेचारा राजेश मारा गया ।”
“मैं तुम से यह पूछना चाहता था कि राजेश ने उन दोनों की कोई तस्वीर भी खींची थी ? मेरा मतलब जूली और मुरारीलाल उर्फ उमाशंकर चोपड़ा से है ।”
“नहीं । दरअसल पेपर प्रैस में जाने में केवल तीस-चालीस मिनट बाकी थे । राजेश के पास उस समय कैमरा भी नहीं था । उस समय अगर वह तस्वीर खींच भी लेता तो भी वह न्यूज के साथ जा नहीं सकती थी क्यों कि समय नहीं था ।”
“ओह !” - सुनील निराश हो उठा ।
“क्या बात थी ?”
“बस थी कुछ ।” - सुनील बोला ।
वह फोन रखने ही लगा था कि उसे राय की आवाज सुनाई दी - “लेकिन सुनील...”
“हां ।”
“राजेश ने बताया था कि हमारा प्रतिद्वन्द्वी अखबार क्रानिकल का रिपेार्टर ललित भी उस समय वहां था । शायद उसने उन दोनों की फोटो खींची हो ।”
“तुम्हें अच्छी तरह याद है राजेश ने ललित का जिक्र किया था ।” - सुनील तनिक आशान्वित हो उठा ।
“हां ।”
“ओके थैंक्यू फार दि टिप ।” - और उसने लाइन डिस्कनैक्ट कर दी ।
फिर उसने आपरेटर से क्रानिकल का नम्बर मांगा ।
“योर पार्टी इज आन दी लाईन” - उसे आपरेटर का स्वर सुनाई दिया - “प्लीज स्पीक आन ।”
“हल्लो !” - सुनील बोला ।
“यस प्लीज क्रानिकल हियर ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिला ।
“ललित है ?” - सुनील ने पूछा ।
“जरा होल्ड कीजिये । अभी बुलाते हैं ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और बड़ी बेसब्री से रिसीवर कान से लगाये बैठा रहा ।
“हल्लो, ललित स्पीकिंग ।” - कई क्षण बाद उसे ललित का परिचित स्वर सुनाई दिया ।
“ललित” - सुनील व्यग्रता से बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं । शुक्र है तुम यही मिल गये वर्ना तुम्हारा घर खोजना पड़ता ।”
“बस मैं जाने ही वाला था लेकिन, गुरु, आज ललित कैसे याद आ गया तुम्हें ?”
“ललित, तुम्हें जूली नाम की एक विदेशी युवती और एक मिस्टर मुरारीलाल की याद है जो एक ट्रैफिक ऐक्सीडेन्ट के चक्कर में गिरफ्तार हुए थे लेकिन बाद में उमाशंकर चोपड़ा के कागजात दिखाकर छूट गए थे ?”
“बड़ी अच्छी तरह याद है । उस न्यूज को तो राजेश बड़ी सफाई से मेरी नाक के नीचे से निकाल कर ले गया था ।”
“तुम्हारे पेपर में तो वह न्यूज नहीं छपी ?”
“नहीं । प्रभूदयाल ने मुझे उसके बारे में बहुत देर बाद बताया था और तब तक हमारा पेपर प्रेस में जा चुका था ।”
“तुमने जूली और मुरारीलाल का कोई चित्र खींचा था ?”
“खींचा था लेकिन साला किसी काम नहीं आया ।”
“क्या ?” - सुनील एकदम उतावला हो उठा - “खींचा था चित्र तुमने ?”
“हां हां भई, खींचा था लेकिन इसमें कमाल कौन सा कर दिया मैंने ?”
“अभी वह चित्र तुम्हारे पास है ?”
“शायद हो ।”
“शायद नहीं । ठीक ठीक बताओ ।”
“भई, मेरी मेज की दराज में कहीं रखा होगा । ढूंढूंगा तो मिल जाएगा । आखिर जाएगा कहां ।”
“तुम वह चित्र ढूंढ कर रखो मैं आ रहा हूं ।”
“लेकिन बात क्या है ?”
“बात वहीं आकर बताऊंगा ।” - और सुनील ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
“उठिये” - वह चोपड़ा से बोला - “और चलिए ।”
“कहां ?” - चोपड़ा ने हैरानी से पूछा ।
“आप जल्दी कीजिए । सवाल मत पूछिए ।”
चोपड़ा उठ खड़ा हुआ । उसने गाउन उतार कर कोट और पैन्ट पहना और उलझे हुए बालों में उंगलियां फिराता हुआ सुनील के साथ चल दिया ।
सुनील पांच मिनट से भी कम समय में क्रानिकल के आफिस के सामने जा पहुंचा ।
उसने कार को फुटपाथ के साथ ही खड़ी छोड़ दिया और चोपड़ा का हाथ पकड़े इमारत में घुस गया ।
“ललित कहां बैठता है ?” - उसने एक चपरासी से पूछा ।
चपरासी ने एक कमरे की ओर संकेत कर दिया ।
सुनील उस में घुस गया । चोपड़ा उसके पीछे था ।
उस कमरे में कई मेजें लगी हुई थीं लेकिन वहां ललित के अतिरिक्त कोई नहीं था ।
द्वार के साथ वाली मेज पर ललित बैठा था । उसके हाथ में एक कैबिनेट साइज का फोटोग्राफ था ।
“मिला ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां, यह रहा” - ललित वही फोटो उस की ओर बढाता हुआ बोला - “लेकिन किस्सा क्या है ?”
“किस्सा भी बताऊंगा ।” - सुनील चित्र उसके हाथ से झपटता हुआ बोला । उसने एक सरसरी निगाह चित्र पर डाली और उसे चोपड़ा साहब के सामने कर दिया ।
“यह चित्र देखिए, चोपड़ा साहब” - उसने पूछा - “आप इस लड़की को पहचानते हैं ?”
“यह तो जूली है ।” - चोपड़ा एकदम बोल पड़ा ।
“जूली तो यह है ही । आप यह बताइए कि क्या यह वही लड़की है जिस से आप पिछले एक महीने से मिल रहे हैं और जिसे आप उस रात रामपाल के जुआघर में लेकर गए थे ?”
“वही है यह ।” - चोपड़ा बोला ।
“आप को पूरा भरोसा है ?”
“हां ।”
“और तस्वीर में जो आदमी है, उसे देखा है कभी आपने ?”
“नहीं ।”
“जरा तस्वीर को गौर से देखिए और फिर खूब सोच कर बताइए ।”
“मैंने खूब गौर से देख लिया है । मैंने इस आदमी को पहले कभी नहीं देखा ।”
सुनील तनिक निराश हो उठा ।
“चोपड़ा साहब” - वह बोला - “यह वह आदमी है जिसने पकड़े जाने पर पुलिस स्टेशन पर स्वयं को उमाशंकर चोपड़ा बताया था और अपनी बात को सिद्ध करने के लिए इसने आपके कई कागजात पुलिस इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल को दिखाये थे ।”
चोपड़ा चुप रहा ।
“इसके पास आपके व्यक्त्रित कागजात कैसे आये ?”
“मैं पहले ही बता चुका हूं कि पिछले दिनों मेरी जेब कट गई थी । मेरे पर्स में मेरी डायरी, बैंक की चैक बुक, ड्राइविंग लाइसेंस क्लब का मेम्बरशिप कार्ड वगैरह सब कुछ था । शायद इसी आदमी ने मेरी जेब काटी हो ।”
“आप यह कहना चाहते हैं कि आपकी जूली एक जेबकतरे से सम्बन्धित थी ?”
“आवश्यक नहीं है । तुम्हीं लोगों ने ब्लास्ट में छापा था कि जूली ने कहा था कि उसने इस आदमी से लिफ्ट मांगी थी और उस दिन से पहले जूली ने इसे देखा भी नहीं था ।”
“तुम्हारा मतलब है कि जूली सच बोल रही थी ?”
“इसकी मैं गारन्टी तो नहीं कर रहा हूं लेकिन सम्भावना तो है ही कि वह सच बोल रही हो ।”
सुनील कई क्षण चुप रहा । फिर उसे एक दूसरी मेज पर रखा फोन दिखाई दिया ।
उसने लपक कर रिसीवर उठाया और सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह के घर के नम्बर डायल कर दिए ।
“हल्लो, रामसिंह ?” - सम्बन्ध स्थापित होते ही वह बोला ।
“यस - हू इज स्पीकिंग ।” - रामसिंह का भारी स्वर सुनाई दिया ।
“मैं सुनील हूं” - वह बोला - “घर पर ही रहना । मैं अभी आ रहा हूं ।”
और उसने रिसीवर को क्रेडिल पर पटक दिया ।
उसने वापिस आकर चोपड़ा के हाथ से तस्वीर लेकर जेब में रखी और उसका हाथ पकड़ कर द्वार की ओर बढता हुआ ललित से बोला - “मैं यह तस्वीर भी ले जा रहा हूं ललित ।”
“तस्वीर तो ले जाओ” - ललित व्यग्रता से बोला - “लेकिन किस्सा क्या है ?”
“किस्सा भी मालूम हो जाएगा । जब भंडा फूटेगा तो किसी से कुछ भी छुपा नहीं रहेगा । न क्रानिकल से न ब्लास्ट से ।”
और वह चोपड़ा को लगभग घसीटता हुआ वहां से बाहर निकल गया ।
वह वापिस कार में आ बैठा और चोपड़ा के साथ रामसिंह के घर की ओर उड़ चला ।
रामसिंह की छोटी सी कोठी की पोर्टिको में उसने कार खड़ी की और फिर चोपड़ा के साथ भीतर घुस गया ।
रामसिंह ड्राइंग रूम में गाउन पहने टहल रहा था । उसके दायें हाथ में एक असाधारण लम्बाई का सिगार था जिसे वह अपने विशिष्ट ढंग से अपने अंगूठे और पहली उंगली में फिरा रहा था ।
सुनील को देखते ही वह बोल पड़ा - “यह क्या बदतमीजी थी ? तुमने तो मुझे डरा ही दिया था । आखिर पूरी बात तो करते फोन पर ? मैं समझा आधी रात को न जाने क्या हो गया ?”
“अभी तो ग्यारह बजे हैं, सुपर साहब ।” - सुनील बोला ।
“सर्दियों में ग्यारह बजे आधी रात ही होती है ।”
“खैर, बाकी बातें छोड़ो” - सुनील बोला - “इनसे मिलो । ये मिस्टर चोपड़ा हैं । विशालगढ के बहुत बड़े आदमी ।”
“नाम सुना है मैंने आपका” - रामसिंह आगे बढ कर हाथ मिलाता हुआ बोला - “लेकिन साक्षात्कार का संयोग आज ही हुआ है । मैं रामसिंह हूं ।”
चोपड़ा के चेहरे पर विषादभरी मुस्कुराहट छा गई । उसने बड़े ही मरे हुए ढंग से रामसिंह से हाथ मिलाया ।
“रामसिंह” - सुनील जेब से तसवीर निकाल कर रामसिंह को दिखाता हुआ बोला - “यह तसवीर देखो । इन दोनों में से किसी को पहचानते हो ?”
रामसिंह ने बड़े स्वाभाविक ढंग से तसवीर को सुनील के हाथ से ले लिया लेकिन तसवीर के चेहरों पर दृष्टि पड़ते ही वह एकदम चौंक पड़ा ।
“यह... यह तसवीर ?” - आश्चर्य मिश्रित स्वर से वह बोला - “कहां से मिली तुम्हें ?”
“तुम इन दोनों में से पहचानते हो किसी को ?” - सुनील एकदम उत्साहित हो उठा ।
“बहुत अच्छी तरह से” - रामसिंह बोला - “यह आदमी असलम है और अगर यह असलम है तो यह औरत जरूर मार्था होगी ।”
“मार्था कौन है ? असलम कौन है ? यह तुम पहेलियां सी क्यों बुझा रहे हो ?” - सुनील उतावले स्वर से बोला ।
“ये दोनों अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्ट हैं ।”
“अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्ट, क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि ये दोनों किसी राष्ट्र विशेष के एजेन्ट नहीं हैं । इनका काम है किसी एक राष्ट्र के किन्हीं गुप्त किन्तु महत्वपूर्ण रहस्यों को हथिया लेना और फिर उन्हें किसी भी दूसरे उस राष्ट्र के शत्रु को बेच देना । कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि अगर इन्होंने अमेरिका का कोई गुप्त रहस्य रूस के हाथ बेचा है तो अगली ही बार रूस का कोई गुप्त रहस्य अमेरिका के हाथ बेच दिया है । सारे संसार के राष्ट्र इनसे भयभीत हैं और मजे की बात यह है कि वही राष्ट्र इनसे मित्रता भी स्थापित करना चाहते हैं ताकि वे किसी शत्रु राष्ट्र के रहस्य जान सकें । यही कारण है कि ये अभी तक किसी भी राष्ट्र के इन्टैलीजेंस ब्यूरो के हत्थे नहीं चढे हैं । कोई भी राष्ट्र यह नहीं जानता है कि वास्तव में ये किस राष्ट्र से सम्बन्धित हैं न ही कोई इनकी राष्ट्रीयता के विषय में जानता है । वैसे आम अनुभव यह है कि असलम पाकिस्तानी है और मार्था आधी चीनी, एक बटा चार फ्रेंच, एक बटा आठ इंगलिश और बाकी बची खुची जर्मन है ।”
“लेकिन तुम इनके बारे में इतना कुछ कैसे जानते हो ?”
“हर राष्ट्र के गुप्तचर विभाग के पास इनकी फाइल है । हमारे पास भी है । असलम के विषय में तो हमें पूरी जानकारी है लेकिन मार्था के विषय में हमारा विभाग बहुत कम जानता है । इसका बड़ा कारण यह है कि कोई मार्था की असली सूरत नहीं पहचानता । मार्था के नाम पर हर राष्ट्र की फाइल में एक ऐसा चित्र है जो स्थूल रूप से किसी भी विदेशी युवती का हो सकता है । मार्था मेकअप की मास्टर है । इसलिए कोई भी राष्ट्र मार्था को पहचानने का दावा नहीं कर सकता । इस तसवीर वाली लड़की की सूरत स्थूल रूप से हमारी फाइल में रखी मार्था की तसवीर से मिलती है लेकिन हम दावा नहीं कर सकते कि वह मार्था ही है । लेकिन इस आदमी के विषय में मैं दावा कर सकता हूं कि वह असलम है । असलम और मार्था हमेशा इकट्ठे काम करते हैं । कभी ऐसा सुनने में नहीं आया कि जहां मार्था हो वहां असलम न हो या जहां असलम हो वहां मार्था न हो । इसलिए मैंने कहा था कि अगर यह तसवीर वाला आदमी असलम है तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि औरत मार्था है ।”
सुनील ने देखा चोपड़ा का चेहरा राख की तरह सफेद हो उठा था ।
“लेकिन तुम्हें यह तसवीर कहां से मिल गई ?” - रामसिंह ने उत्सुक स्वर से पूछा ।
सुनील के उत्तर देने से पहले ही फोन की घन्टी घनघना उठी ।
रामसिंह ने बड़े विरक्ति पूर्ण ढंग से फोन की ओर देखा और फर आगे बढकर रिसीवर उठा लिया ।
वह कुछ क्षण फोन सुनता रहा, फिर उसने रिसीवर सुनील की ओर बढा दिया ।
“तुम्हारा फोन है ।” - वह बोला ।
सुनील ने रिसीवर ले लिया और बोला - “हल्लो, सुनील हियर ।”
“सुनील” - फोरन ही रमाकांत का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “मैं रमाकांत बोल रहा हूं । गोपाल और राकेश ने रिपोर्ट भेजी है ।”
“क्या ?”
“वह चार उंगलियों वाला जिसका नाम तुमने जंग बहादुर बताया था और दूसरा लम्बा तगड़ा युवक दोनों कुछ देर पहले महात्मा गांधी रोड की बीस नम्बर कोठी के सामने गए थे । फिर जंग बहादुर कोठी के भीतर घुस गया था और वह युवक बाहर खड़ा रहा था । इस बात को लगभग दस मिनट गुजर चुके हैं । अब भी वही स्थिति है । जंग बहादुर इमारत के अन्दर है और वह युवक बड़ी बेचैनी से बाहर टहल रहा है । गोपाल का कथन है कि वह हर एक मिनट बाद अपनी जेब से रिवाल्वर निकालता है, उसका चैम्बर चैक करता है, इमारत की ओर कदम बढाता है और फिर रुक जाता है । लगता है वहां जल्दी कोई बखेड़ा खड़ा होने वाला है ।”
“उस कोठी का क्या पता बताया था तुमने ?”
“बीस - महात्मा गांधी रोड ।”
“लेकिन तुम्हें यह कैसे पता लगा कि मैं यहां हूं ?”
“मैंने चोपड़ा के होटल में फोन किया था, तुम वहां नहीं थे । फिर मैंने तुम्हारे फ्लैट पर फोन किया, तुम वहां भी नहीं थे । मैंने तुम्हारे आफिस फोन किया, वहां, राय ने बताया कि तुम शायद क्रानिकल के ललित से मिलने गए हो । मैंने ललित को फोन किया, उसने बताया कि तुम रामसिंह की कोठी पर गये हो । मैंने यहां फोन किया और तुम मिल गये ।”
“और कुछ ?”
“और कुछ नहीं । राकेश और गोपाल के लिए क्या निर्देश है ?”
“उन्हें कहो अभी वे वहीं रहें और उन दोनों पर नजर रखें । लेकिन किसी मामले में अपनी टांग न अड़ायें ।”
“ओके ।” - दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने भी रिसीवर रख दिया ।
“चोपड़ा साहब” - उसने चोपड़ा से पूछा - “जिस फ्लैट में आपको उस दिन जूली ले गई थी और जहां आप रात भर रहे थे, उसका पता क्या है ?”
“बीस महात्मा गांधी रोड ?”
“क्या ?”
“बीस महात्मा गांधी रोड ।”
सुनील क्षण भर विचित्र नेत्रों से चोपड़ा को देखता रहा और फिर रामसिंह से बोला - “रामसिंह जल्दी चलो ।”
“कहां ?” - रामसिंह ने घबरा कर पूछा ।
“यह रास्ते में बताऊंगा । फिलहाल चलो । और रिवाल्वर भी ले लेना ।”
“लेकिन...”
“रामसिंह, प्लीज ।”
रामसिंह ड्राईंग रूम से भीतर की ओर लपका ।
“आपने बताया था कि आपके पर्स में आपकी डायरी भी थी ?” - सुनील ने चोपड़ा से पूछा ।
“हां ।”
“डायरी में आप क्या लिखा करते थे ?”
“वही जो दुनिया लिखती है । अपाइन्टमैंट्स वगैरह...”
“फिर तो आप उसमें यह भी लिखते होंगे कि प्रतिरक्षा मंत्रालय में आपकी अगली आपइन्टमेंट कब है ?”
“हां । लेकिन बात क्या है ?”
“साफ जाहिर है कि उस डायरी की ही खातिर आप की जेब में से आपका पर्स मारा गया था । ताकि उन लोगों को पता रहे कि आप अगली बार प्रतिरक्षा मन्त्रालय कब जाने वाले हैं । इसी कारण उस रोज आपके मन्त्रालय से निकलते ही आपसे जूली टकरा गई थी । आपने उस बात को संयोग समझा जब कि वास्तविकता यह थी कि वह आपके बाहर निकलने की प्रतीक्षा में ही वहां खड़ी थी ।”
“ओह !” - चोपड़ा मरे स्वर से बोला ।
उसी समय रामसिंह लौट आया ।
“रिवाल्वर है न ?” - सुनील ने पूछा ।
“है ।” - रामसिंह ने बताया ।
तीनों बाहर निकले और सुनील की कार में आ बैठे ।
सुनील ने कार महात्मा गांधी रोड की ओर उड़ा दी ।
बीस नम्बर से थोड़ी दूर उसने कार रोक दी । उसने कार की हैडलाइट बुझा दी ।
एक लैम्प पोस्ट के पीछे से निकल कर एक आदमी कार की ओर बढा ।
सुनील ने देखा वह गोपाल था ।
“क्या पोजीशन है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कोई फर्क नहीं पड़ा है । जगबहादुर अभी भी भीतर है । और वह लम्बा युवक अभी भी इमारत के बाहर टहल रहा है । वह सामने देखिए ।”
सुनील को बीस नम्बर के सामने टामी मोरगन बड़ी बेचैनी से टहलता दिखाई दिया ।
“राकेश कहां है ?” - उसने पूछा ।
“वह भी यहा है ।” - गोपाल ने उत्तर दिया ।
उसी समय एक साथ दो धमाके सुनाई दिये ।
“यह गोली चलने की आवाज थी ।” - रामसिंह बोल पड़ा ।
“और बीस नम्बर से आई थी” - गोपाल बोला ।
सुनील ने देखा, टामी क्षण भर ठिठका, फिर उसने जेब से रिवाल्वर निकाला और तेजी से इमारत में घुस गया ।
सुनील ने एकदम गाड़ी स्टार्ट कर दी और उसे गियर में डालता हुआ बोला - “गोपाल तुम पुलिस को फोन कर दो ।”
इम्पाला तीर की तरह बीस नम्बर के सामने आ रुकी । तीनों बाहर निकले और इमारत की ओर लपके ।
वह तीन मन्जिली इमारत थी । पहली मन्जिल के एक फ्लैट में प्रकाश था और उसका मुख्य द्वार खुला था ।
रामसिंह ने रिवाल्वर निकाल कर हाथ में ले लिया और वे तीनों भीतर घुस गये ।
एक छोटी सी राहदारी के दूसरे सिरे पर एक द्वार था जिसके पट थोड़े से खुले थे और उसमें से भीतर का दृश्य दिखाई दे रहा था ।
जेबी का निश्चेष्ट शरीर फर्श पर पड़ा था । उसकी छाती और जांघ में से खून बह रहा था ।
टामी ने एक नजर जेबी की ओर देखा और फिर उसने अपने सामने खड़े आदमी की ओर फायर झोंक दिया ।
वह आदमी साफ बच गया ।
“वह असलम है ।” - रामसिंह फुसफुसाया ।
“जूली भी है ।” - चोपड़ा असलम से कुछ हट कर खड़ी एक विदेशी युवती को देख कर बोला ।
“जूली नहीं मार्था ।” - रामसिंह बोला ।
टामी ने फिर फायर किया लेकिन क्रोध के कारण उसके हाथ कांप रहे थे ।
निशाना फिर चूक गया ।
उसी समय असलम के हाथ में रिवाल्वर दिखाई दिया ।
एक फायर हुआ और टामी के हाथ से रिवाल्वर छिटक कर दूर जा गिरा ।
टामी के हाथ से खून बहने लगा ।
वह गालियां बकता हुआ रिवाल्वर की ओर झपटा ।
असलम के रिवाल्वर से एक और गोली निकली ।
गोली टामी की कनपटी में धंसती चली गई । वह एक बार तड़फड़ाया और जेबी की बगल में ढेर हो गया ।
“मार्था” - असलम रिवाल्वर जेब में रखता हुआ अंग्रेजी में बोले - “इस की जेबें देखो, शायद ब्लू प्रिन्ट इसके पास हो ।”
मार्था आगे बढी । उसने टामी की लाश उल्टी और फिर उस की जरकिन की जिप खोल दी ।
एक आठ गुणा दस आकार का भूरे रंग का लिफाफा और एक रबड़ के बैंड में बन्धा हुआ कागजों का पुलन्दा फर्श पर आ गिरा ।
“यह... यह... यह लिफाफा...” - चोपड़ा एकदम उत्तेजित हो उठा और कमरे के भीतर की ओर लपका ।
सुनील ने उसे बांह पकड़ कर वापिस घसीट लिया और दबे स्वर से बोला - “क्यों मरने जा रहे हैं आप ? चुप-चाप खड़े रहिये ।”
मार्था ने फर्श पर से कागजों का पुलन्दा और भूरा लिफाफा दोनों उठा लिये । पहले उसने रबड़ बैंड हटा कर कागजों के पुलन्दे को खोला । वह कुछ क्षण उन कागजों को उलटती पलटती रही फिर उसने लापरवाही से फर्श पर फेंक दिया । फिर उसने भूरे रंग का लिफाफ खोल कर उसके भीतर के कागज बाहर खींच लिये ।
वे ब्लू प्रिन्ट थे ।
“यही हैं ।” - मार्था उत्साहपूर्ण स्वर से बोली ।
असलम का चेहरा चमक उठा ।
मार्था ने पेपर वापिस लिफाफे में रख दिये ।
उसी समय रामसिंह ने पांव की ठोकर मार कर भड़ाक से द्वार खोल दिया और मार्था और असलम की ओर रिवाल्वर तानता हुआ बोला - “आप दोनों अपनी जगह से हिलेंगे नहीं और असलम साहब आप अपने हाथ अपने सिर से जितने अधिक ऊपर उठा सकते हैं, उठा लीजिये ।”
असलम के चेहरे पर आश्चर्य और हताशा के मिले जुले भाव प्रकट हुए और उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिये ।
लेकिन मार्था के चेहरे पर एक शिकन भी नहीं आई थी ।
एकाएक चोपड़ा आगे बढा और उसने मार्था के हाथ से लिफाफा झपट लिया । उसने लिफाफे को कोट की भीतरी जेब में डाला और फिर वहां से यूं भागा जैसे भूत देख लिया हो ।
रामसिंह हैरानी से उस का मुंह देखता रहा लेकिन उसने उसे रोकने की चेष्टा नहीं की ।
“सुनील” - वह बोला - “असलम की जेब में से रिवाल्वर निकाल लो ।”
सुनील असलम के समीप जा पहुंचा । उसने असलम की जेब में हाथ डाला ।
एकाएक असलम के दोनों हाथ बिजली की तरह नीचे गिरे । उस की बाईं कलाई सांप की तरह सुनील के गले से लिपट गई और दायां हाथ जेब की ओर लपका ।
उसके दायें हाथ में फिर रिवाल्वर चमक उठा ।
“खबरदार” - वह सुनील के शरीर को अपने सामने जकड़े हुए चिल्लाया - “गोली मत चलाना वर्ना तुम्हारे साथी का भेजा उड़ा दूंगा ।”
रामसिंह बौखलाया सा उस की ओर देखता रहा । पलक झपकते ही स्थिति बदल गई थी ।
सुनील पूरी ताकत से असलम के चंगुल से छूटने की चेष्टा कर रहा था लेकिन असलम की लोहे जैसी पकड़ के सामने उस के सारे प्रयत्न निष्फल हो रहे थे ।
“हिलो मत ।” - असलम ने रिवाल्वर उसकी पीट से सटाते हुए कहा ।
सुनील ने हाथ पांव ढीले छोड़ दिये ।
“रिवाल्वर जमीन पर फेंक दो ।” - वह रामसिंह से बोला ।
रामसिंह ने बड़ी अनिच्छा से रिवाल्वर अपनी उंगलियों में फिसल जाने दिया ।
मार्था रामसिंह के रिवाल्वर की ओर बढी ।
उसी समय एक साथ दो फायर हुए ।
असलम के मुंह से एक लोमहर्षक चीख निकल गई । सुनील की गरदन से उस की पकड़ ढीली पड़ गई और वह फर्श पर ढेर हो गया । दोनों गोलियां उस के चेहरे पर लगी थीं जिस के कारण उस के चेहरे की धज्जियां उड़ गई थीं ।
क्षण भर के लिये सब स्तब्ध खड़े रहे ।
एक और फायर हुआ ।
गोली मार्था की कनपटी से एक इन्च दूर से निकल गई ।
मार्था एकदम रामसिंह के गिराये हुये रिवाल्वर की ओर झपटी ।
रामसिंह और सुनील मार्था की ओर लपके ।
लेकिन रिवाल्वर मार्था के हाथ आ चुका था । बिजली की तेजी से उसने एक फायर कमरे को प्रकाशित करने वाले एक मात्र साधन ट्यूब लाइट की ओर झोंक दिया ।
कमरे में गहन अन्धकार छा गया ।
सुनील अनुमान से ही मार्था की ओर झपटा लेकिन अन्धकार में वह रामसिंह के विशाल शरीर से टकरा गया ।
“तुम्हारे पास माचिस होगी, रामसिंह” - सुनील चिल्लाया - “उसे जलाओ ।”
“मार्था के पास... रिवाल्वर है” - एक टूटा सा पुरुष स्वर कमरे में गूंज गया - “और... उसका निशाना चूकता नहीं है ।”
“यह तो शायद जेबी की आवाज थी” - सुनील आश्चर्य भरे स्वर से बोला - “जेबी जंग बहादुर... तुम जिन्दा हो ?”
“हां” - वही पुरुष स्वर फिर सुनाई दिया - “लेकिन अधिक देर... जिन्दा नहीं रह पाऊंगा ।”
नीचे फ्लाईंग स्क्वायड का सायरन गूंज उठा ।
रामसिंह ने माचिस जला ली ।
कमरे में पीला सा सीमित प्रकाश फैल गया ।
असलम मरा पड़ा था ।
मार्था गायब थी ।
उसी समय पुलिस के कई सिपाही वहां आ गए । कमरा कई टार्चों के प्रकाश से जगमगा उठा ।
रामसिंह को देख कर इन्स्पेक्टर ने सैल्यूट मारा ।
“तुमने इस इमारत में से किसी को भागते देखा है ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“नो सर ।” - इन्स्पेक्टर ने उत्तर दिया ।
“अभी एक विदेशी युवती इस फ्लैट में से भागी है । उसे तलाश करने की चेष्टा करो । यहां तुम लोगों की आवश्यकता नहीं ।”
“ओके सर ।”
“एक टार्च मुझे दे जाओ और एम्बूलेन्स को फोन कर दो ।”
इन्स्पेक्टर एक टार्च रामसिंह को थमा कर सिपाहियों के साथ कमरे से बाहर निकल गया ।
टार्चों के प्रकाश में सुनील को कोने की एक मेज पर रखी ब्रांडी की आधी भरी बोतल दिखाई दे गई । उसने वह बोतल उठा ली और अगले ही क्षण वह उसमें से जेबी के मुंह में ब्रांडी टपका रहा था ।
जेबी की उखड़ी हुई सांस किसी हद तक व्यस्थित होने लगी । उसके दायें हाथ में अब भी रिवाल्वर दिखाई दे रहा था और उसकी नाल में से धुआं निकल रहा था ।
रामसिंह भी वहीं आ खड़ा हुआ ।
“अभी गोली तुमने चलाई थी न ?” - सुनील ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“हां” - जेबी क्षीण स्वर से बोला - “लेकिन उस समय मेरी उंगलियों में रिवाल्वर का ट्रिगर दबाने की भी शक्ति शेष न थी वर्ना इस हरामजादे के साथ-साथ उस कुतिया का भी खात्मा कर देता ।”
“तुम्हें गोली किसने मारी ?”
“इसने” - वह आंखों से असलम की ओर संकेत करता हुआ बोला - “इस सूअर की औलाद ने ।”
“लेकिन हुआ क्या था ?”
“इसने मुझे ज्यूल बाक्स के जुआघर के सेफ में से कुछ कागजात निकाल लाने के बदले में पचास हजार रुपये देने का वायदा किया था । बीस हजार रुपये इसने मुझे तुरन्त दे दिये थे और बाकी के तीस हजार यह मुझे काम हो जाने पर देने वाला था । मैंने कुछ आदमियों की सहायता से ज्यूल बाक्स में डाका डाला और वे कागजात निकाल लाया । सेफ में से मुझे एक भूरा लिफाफा और रबड़ बैंड से बन्धा कागजों का एक पुलन्दा मिला था । ये चीजें असलम को सौंपने से पहले मैंने स्वयं खोलकर देखी थीं । कागजों के पुलन्दे में कुछ प्रेमपत्रों, कुछ बेहद अश्लील चित्रों और इन्कम टैक्स के हिसाब-किताब के कुछ कागजों के अतिरिक्त कुछ नहीं था और भूरे लिफाफे में कुछ नक्शे थे । मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया कि आखिर इन कागजों में ऐसा महत्वपूर्ण क्या था जिसके कारण असलम पचास हजार रुपये की मोटी रकम खर्च करने के लिए तैयार हो गया था । लेकिन मैंने सोचा जब वह इतना रुपया इन कागजों को प्राप्त करने के लिए दे रहा है तो इसमें कुछ तो होगा ही । मैंने मौके से फायदा उठाना चाहा । मैंने कागजों के बदले में बाकी के तीस हजार रुपयों के स्थान पर इससे अस्सी हजार रुपये मांगे । यह भड़क उठा लेकिन मैं तटस्थ रहा । फिर इसने अस्सी हजार रुपये देने स्वीकार कर लिए थे और मुझे यह कहा था कि मैं आज कागजात लेकर पहुंच जाऊं मुझे फौरन रुपया दे दिया जाएगा । लेकिन मुझे लग रहा था कि यह मुझे धोखा देने की चेष्टा कर रहा है इसलिए मैं टामी मोरगन को साथ लेकर आया था । टामी पैदाइशी हत्यारा है । हत्या करने से यह तनिक भी नहीं हिचकता । टामी की इसी विशेषता के कारण मैंने इसे अपने साथ मिलाया था । आज भी मैं इसे सावधानीवश ही ले आया था हालांकि खूनखराबा होने की कोई सम्भावना नहीं थी । मैंने कागजात टामी को दे दिए थे और इसे इमारत से बाहर खड़ा कर दिया था । मैंने इसे कहा था कि अगर मैं आधे घण्टे में बाहर न आ जाऊं तो वह यहां से भाग आए और पुलिस को फोन कर दे कि बीस महात्मा गांधी रोड पर कोई मुझे जबरदस्ती रोके हुए है । मैं भीतर चला आया । यहां मेरा असलम से झगड़ा हो गया । यह रिवाल्वर निकाल कर मुझे धमकाने लगा और कागजों के विषय में पूछने लगा । मैंने कहा कि अस्सी हजार रुपये दिए बिना उसे कागजों की भनक भी नहीं लग सकती । यह क्रोध से भड़क उठा और उसने मुझे गोली मार दी । टामी ने गोली की आवाज सुनी । वह वहां से भाग खड़ा होने के स्थान पर मूर्खों की तरह रिवाल्वर हाथ में लिए भीतर आ घुसा । उसका परिणाम आप लोगों ने देखा ही है । असलम ने मुझे मरा समझा था लेकिन वास्तव में मैं मरा नहीं था लेकिन मेरे में इतनी शक्ति भी नहीं थी कि मैं कुछ कर पाता । फिर जिस समय असलम आपको दबोचे हुए था मैंने अपनी सम्पूर्ण शक्ति का संचय करके रिवाल्वर निकाल लिया और दो फायर कर दिए । मुझे इस बात की खुशी है कि वह कुत्ता मेरे हाथ से मरा । मेरी उंगलियों में ट्रिगर दबाने की भी शक्ति बाकी नहीं थी । मैंने बड़ी कोशिश करके मार्था पर फायर किया लेकिन वह बच गई । उसके बाद मैं ट्रिगर नहीं दबा सका । मुझे अफसोस है इसका ।”
जेबी की सांस फिर उखड़ने लगी ।
सुनील ने थोड़ी ब्रांडी और उसके मुंह में डाली ।
“राजेश को किसने मारा था ?” - सुनील ने व्यग्रता से पूछा ।
“कौन राजेश ?”
“जिसकी लाश राजनगर के बाहर एक उजाड़ स्थान पर पाई गई थी ?”
“उसे टामी मोरगन ने मारा था । राजेश पता नहीं कैसे इस पैकेट का पता जान गया था । यह जुआघर के डाके से अगले दिन की बात है । मैं टामी मोरगन के साथ यहां मार्था और असलम से मिलने आया था । उस समय पहली बार मैंने कहा था कि उन कागजात के बदले अस्सी हजार रुपये और लूंगा । इस कमरे के रोशनदानों के बाहर की ओर कन्क्रीट का प्रोजेक्शन है । राजेश उस पर बैठा हम लोगों की बातें सुन रहा था ।”
“क्या ?” - सुनील हैरानी भरे स्वर से बोला ।
“हां । शायद आपको यह मालूम नहीं है कि इस इमारत का यही फ्लैट आबाद है । बाकी फ्लैट अभी खाली पड़े हैं । यह इमारत हाल ही में बनकर तैयार हुई है और किरोयदार अभी आये नहीं है इसीलिए राजेश चुपचाप वहां आ गया था । लेकिन असलम की उस पर नजर पड़ गई थी । उस रोशनदान की सीध में कमरे में मेज पर एक शीशा रखा था, उसमें राजेश का प्रतिबिम्ब पड़ रहा था । असलम और टामी ने उसे पकड़ लिया था । टामी ने उसके सिर पर एक लेाहे का डंडा दे मारा था । उसकी तत्काल मृत्यु हो गई थी । फिर टामी उसे राजनगर के बाहर फेंक आया था ।”
जेबी चुप हो गया । उसके हावभाव से यूं लग रहा था जैसे उसकी शक्ति का तिल तिल खर्च हो चुका हो ।
“एम्बुलेन्स पहुंचने ही वाली होगी ।” - सुनील बेचैनी भरे स्वर से बोला ।
“मुझे कोई लाभ नहीं होगा । एम्बुलेन्स के आने या न आने से मैं बच नहीं सकता हूं । मुझे तो हैरानी है कि मैं अभी तक जीवित कैसे रह गया । शायद असलम की मौत मेरे ही हाथों लिखी थी और... और मेरी मौत असलम के हाथों ।”
“जेबी” - सुनील भावुक स्वर से बोला - “तुम नहीं जानते हो अनजाने में ही तुमने देश का कितना बड़ा हित किया है । अगर तुमने वे कागजात उसी दिन इन लोगों को सौंप दिये होते या आज तुमने असलम को गोली न मार दी होती तो हमारे देश को एक ऐसी हानि उठानी पड़ती जिसकी पूर्ति शायद कभी न हो पाती ।”
“मैंने कुछ नहीं किया है” - जेबी बोला - “मैंने किसी का हित नहीं किया है । किसी का हित करना मेरे स्वभाव से मेल ही नहीं खाता है । मैं तो केवल अहित कर सकता हूं । अगर किसी का कोई हित हुआ है तो सब उसकी कृपा से ।”
उसने आसमान की ओर हाथ उठाने की चेष्टा की लेकिन हाथ अभी शरीर से दो इंच ऊपर भी नहीं उठे थे कि उसके प्राण निकल गये ।
सुनील उठ खड़ा हुआ । उसका मन भारी हो उठा था ।
वह कुछ क्षण यूं ही खड़ा रहा फिर उसने उन कागजों को बटोरना आरम्भ कर दिया जिन्हें मार्था ने बड़ी लापरवाही से कमरे के फर्श पर फेंक दिया था ।
रामसिंह विचित्र दृष्टि से उसे देख रहा था ।
उसने वे सारे कागज इकट्ठे किये और जेब से माचिस निकालकर उनमें आग लगा दी ।
“यह क्या कर रहे हो ?” - रामसिंह बोला ।
“एक हाईकोर्ट के जज, एक कैबिनेट मिनिस्टर, एक पुलिस कमिश्नर एक सी आई बी के डायरेक्टर, एक नगर के प्रमुख उद्योगपति और ऐसे ही कुछ और लोगों की जिन्दगी आसान कर रहा हूं ।”
“क्या मतलब ?”
“रामपाल इन्हीं कागजों के दम पर इन लोगों को ब्लैकमेल कर रहा था ।”
“तुम बात को खोलकर क्यों नहीं कहते हो ? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है ।”
“सब समझ में आ जाएगा ।”
“कैसे ?”
“कल सुबह का ‘ब्लास्ट’ पढकर ।”
***
जब यह बात प्रकट हुई कि प्रसिद्ध अन्तराष्ट्रीय एजेन्ट असलम मारा गया है तो संसार भर के राष्ट्रों ने आश्चर्य तो व्यक्त किया ही साथ ही शान्ति की सांस भी ली ।
मार्था का कहीं पता नहीं चला और न ही उस दिन के बाद फिर कहीं भी उसका नाम सुनने में आया । आम राय यह थी कि असलम के अभाव के कारण उसने अपना पुराना काम छोड़ दिया है ।
उमाशंकर चोपड़ा के विषय में सुनील ने रामसिंह को सब कुछ सुना डाला । रामसिंह ने वादा किया कि वह इस विषय में कभी किसी को कुछ नहीं बताएगा कि कभी वे ब्लू प्रिंट चोपड़ा के हाथों से निकल भी गए थे । अखबार में भी उनका हवाला नहीं था । अखबार में केवल यह लिखा गया था कि भारत सरकार के किन्हीं गुप्त रहस्यों की प्राप्त करने के उपक्रम में असलम मारा गया था ।
चोपड़ा का कथन था कि वह सुनील का जन्म भर का ऋणी हो गया है । चोपड़ा ने राजेश की विधवा पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चों के लिए आजन्म तीन सौ रुपया महीना देने का वादा किया ।
मलिक साहब की अध्यक्षता में हुई एक शोक सभा में ब्लास्ट के कर्मचारियों ने राजेश की पत्नी को पांच हजार रुपये भेंट दिए ।
इस केस की सबसे दिलचस्प बात यह थी कि सारा केस ही एक संयोग पर आधारित था । केस की शुरूआत में अगर असलम ने वह मामूली सा एक्सीडैंट न कर डाला होता और पुलिस का सिपाही उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के अभियोग में पकड़ कर पुलिस हैडक्वार्टर न ले आया होता तो न राजेश की होड़ में ललित असलम और मार्था का चित्र खींचता और न ही अन्त में वह चित्र उन दोनों की शिनाख्त के काम आता ।
राजेश सिगरेट नहीं पीता था लेकिन फिर भी उसकी जेब में माचिस क्यों निकली थी, यह बात सुनील को केस समाप्त हो जाने के बाद मालूम हुई । रामपाल ने बताया कि वैसी माचिसें ज्यूल बाक्स होटल विज्ञापन के लिए ज्यूल बाक्स होटल या क्लब उर्फ जुआघर में आने वाले हर आदमी को दी जाती थीं । वे माचिसें देखने में इतनी खूबसूरत होती थीं कि सिगरेट न पीने वाले भी एक आकर्षक वस्तु समझकर उसे लेने से इन्कार नहीं करते थे ।
रामपाल का जुआघर सदा के लिए ठप्प हो गया था ।
समाप्त
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