अगली सुबह लगभग दस बजे सुनील ने यूथ क्लब को फोन किया ।
“हैलो !” - कुछ ही क्षणों बाद उसे लाइन पर रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
“रमाकान्त, मैं सुनील हूं ।” - सुनील बोला - “क्या रिपोर्ट है ?”
“सुनील बड़ी बुरी-बुरी खबरें हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
“इस बार लगता है, तुमने माल के छत्ते में हाथ दे दिया है ।”
“अब कुछ कहोगे भी ?”
“सबसे पहले तो तुम वह बात सुन लो जिसे तुम सबसे अधिक महत्त्व दे रहे थे । माइक की कोठी में तीन आदमी हैं जो इस बात का दावा करते हैं कि अगर हत्यारे को दोबारा देखेंगे तो फौरन पहचान लेंगे ।”
“कौन-कौन ?” - सुनील ने सतर्क स्वर में पूछा ।
“कैरोल, रामपाल और गेट का चौकीदार बहादुर ।”
“रामपाल भी कहता है कि उसने मुझे देखा है !” - सुनील ने आश्चर्य मिश्रित स्वर से पूछा ।
“हां ।”
“लेकिन मेरा और उसका आमना-सामना तो एक बार भी नहीं हुआ ।”
“उसके कथनानुसार तुम्हें तब देखा था जब तुम रोशनदान में चढे हुए बाहर कूदने की तैयारी कर रहे थे ।”
“ओह !” - सुनील के मुंह से निकल गया ।
“और कैरोल ने तो तुम से काफी देर बातचीत भी की थी । वह तो तुम्हें मील भर से पहचान लेगी ।”
“और बहादुर क्या कहता है ?”
“गेट के पास एक छोटा-सा लकड़ी का केबिन है । जिस समय तुम मोटर साइकिल पर भाग रहे थे, बहादुर उस केबिन में था । उसने तुम्हें गेट से बाहर निकलते समय देखा था ।”
“इन के बयान हो गये हैं ?”
“अभी नहीं । प्रभूदयाल ने तीनों से ही हत्यारे का हुलिया बयान करने के लिये कहा था और जो नक्शा उसके सामने खींचा गया था वह तुम से बहुत कुछ मिलता है । फिलहाल प्रभूदयाल सन्देह के आधार पर तुम्हें गिरफ्तार करने के लिये तुम्हारे नाम वारन्ट इशू करवाने की चेष्टा कर रहा है । उसने तुम्हें फ्लैट पर, ब्लास्ट के दफ्तर पर यूथ क्लब पर मतलब यह हर ऐसी जगह पर जहां तुम्हारे मिलने की सम्भावना हो सकती है, अपने आदमी तैनात किये हुये हैं क्योंकि तुम मिल नहीं रहे हो, इसलिये कहीं से तुम्हारी तस्वीर प्राप्त करने की चेष्टा कर रहा है । जब तक शिनाख्त पक्की न हो जाये, वह गवाहों का बयान दर्ज नहीं करना चाहता ।”
“प्रभूदयाल को मेरी तसवीर मिल गयी है ?”
“अभी नहीं ! बेचारा बहुत परेशान है तुम्हारे मित्रों में से तो कोई उसे कोई सहयोग देता नहीं और जो तुम्हारे मित्र नहीं हैं, उनके पास तुम्हारी तसवीर आएगी कहां से ?”
“खैर इसे छोड़ो, तुम और बातें बताओ ।”
“और यह कि माइक की हत्या 22 कैलिवर की रिवाल्वर से हुई है । रिवाल्वर भी उसी कमरे के एक कोने में पड़ी पाई थी ।”
“कोने में ?” - सुनील ने हैरान होकर पूछा क्योंकि उसने तो रिवाल्वर को लाश के पास पड़े देखा था ।
“हां ।” - रमाकांत का स्वर सुनाई दिया - “जिस दीवार में रोशनदान है उसके पास ।”
“कमरे में कोई दूसरी रिवाल्वर नहीं मिली ?”
“नहीं तो ।”
“मेरे विचार से वहां एक और रिवाल्वर होनी चाहिये थी । 22 कैलीवर की रिवाल्वर जिसकी मूंठ में एक छोटा सा छेद था ।”
“ऐसी कोई रिवाल्वर वहां नहीं थी ।” - रमाकांत के स्वर में निश्चय की झलक थी - “पुलिस ने कमरे की भरपूर तलाशी ली थी अगर कोई रिवाल्वर वहां होती तो वह पुलिस की नजर में जरूर आती और जो रिवाल्वर पुलिस को वहां मिली थी । उस की मूठ में कोई छेद नहीं है । पुलिस ने रिवाल्वर फिंगर प्रिंट सैक्शन में भेज दी है ।”
“मारे गए ।” - सुनील बड़बड़ाया । स्पष्ट था कि उसकी रिवाल्वर रोशनदान पर चढते समय उसी कमरे में गिर गई थी और पुलिस के आने से पहले ही किसी ने माइक की लाश के पास पड़ी रिवाल्वर गायब कर दी थी ।
“क्या हो गया ?”
“कुछ नहीं तो आगे कहो ।”
“माइक के पार्टनर रामपाल का बयान है कि हत्या से केवल आधा घन्टे पहले माइक की जेब में हजार-हजार रुपये के पचास नोट थे जो जब लाश की तलाशी ली गई तो उसकी जेब में नहीं मिले थे और सुनील यही बात है जो प्रभूदयाल को खटक रही है वह तुम्हें हत्यारा समझकर तफतीश कर रहा है । उसकी थ्योरी यह है कि क्योंकि माइक ने तुम्हारे साथ बहुत दुर्व्यवहार किया था, दो बार तुम्हें अपने आदमियों द्वारा पिटवाया था और तुम्हारे फ्लैट पर तुम्हारी हत्या करने की भी चेष्टा की थी इसलिये क्रोध में अन्धे होकर तुमने माइक को गोली मार दी । यहां तक तो ठीक है लेकिन माइक की हत्या करके उसकी जेब में से पचास हजार रुपये निकाल लेने वाली बात उसके गले से नहीं उतर रही है । यही एक बात इस ओर संकेत करती है कि हत्या का उद्देश्य बदला लेने की भावना नहीं थी, धन हथियाने का इरादा था ।”
“फिर तो मेरे विरुद्ध प्रभूदयाल का केस कमजोर पड़ जाएगा ।”
“वह ऐसी कच्ची गोलियां नहीं खेला है । सुनील इस बार वह तुम्हें आसानी से नहीं छोड़ेगा । प्रथम तो वह पचास हजार रुपये वाली बात एकदम से हजम ही कर जाएगा और अगर यह बात जाहिर हो भी गई तो वह यही बताएगा कि यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है ।
“लेकिन रमाकांत यह कोई जरूरी थोड़े ही है कि जिसने माइक की हत्या की हो पचास हजार रुपये भी उसी ने उसकी जेब में से निकाले हों ।”
“जरूरी तो नहीं है लेकिन प्रभूदयाल तो वही बात सोचेगा जो तुम्हें फंसाने में सहायक सिद्ध होती हो ।
“और फिर इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि हत्या के समय रुपये माइक की जेब में थे ही । क्या पता उसने रुपये कहीं रख दिये हों, किसी को दे दिये हों या किसी ने उसके जीवन काल में ही उसकी जेब में से निकाल लिये हों ।”
“सब-कुछ सम्भव है ।” - रमाकांत का गम्भीर स्वर सुनाई दिया ।
“और कुछ ?” - सुनील ने बात बदली ।
“और यह कि माइक के मर जाने के बाद उसकी प्रापर्टी पर कैरोल का अधिकार हो गया है । अतः सारे बिजनेस में रामपाल और कैरोल पार्टनर हैं । मैंने उड़ती-2 खबर सुनी है कि कैरोल नकद धन लेकर पार्टनरशिप समाप्त करना चाहती है और रामपाल ज्यूल बाक्स का अकेला मालिक होगा ।”
“और जुआ घर का भी ?”
“जुआ घर कौन सा ?”
“वही जो ये लोग छिपे तौर पर चलाते रहे हैं और जिसके ठिकाने की भनक लाख कोशिशें करने के बाद भी पुलिस को नहीं लग पायी है ।”
“बशर्ते ही ऐसा कोई जुआ घर वाकई हो ।”
“जुआ घर तो है ही, सवाल तो यह है कि उसे तलाश कैसे किया जाए ।”
रमाकांत चुप रहा ।”
“तुम्हारा कोई आदमी सोनिया की निगरानी कर रहा है ?” - सुनील ने कई क्षण चुप रहने के बाद पूछा ।
“हां ।” - रमाकांत बोला - “राकेश और मोहन दोनों बारी-2 से उस पर नजर रख रहे हैं । लेकिन सुनील, अब वह तुम्हारे फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में नहीं रहती है ।”
“अच्छा ।”
“हां, आज सुबह ही उसने वह फ्लैट खाली किया है ।”
“अब कहां है वह ?”
“अब वह होटल एम्बैसडर के तीन सौ तेरह नम्बर कमरे में हैं । उसकी निगरानी अब भी जारी है ।”
“रमाकांत, अपने आदमियों से कहो कि वे उससे मिलने-जुलने के लिये आने वाले आदमियों पर भी नजर रखें ।”
“यह तो वे कह ही रहे हैं । केवल एक ही आदमी सोनिया से मिलने आता है और वह है रामपाल ।”
“और कैरोल के विषय में क्या हो रहा है ?”
“उसकी चिन्ता मत करो । कैरोल के पीछे यूथ क्लब के सदस्यों की एक पूरी बटालियन लगी हुई है । वे तो उसके जन्म से लेकर अब तक का सारा कच्चा चिट्ठा खोल डालेंगे ।”
“फाइन !” - सुनील सन्तुष्ट स्वर से बोला ।
“और कुछ ?” रमाकांत ने पूछा ।
“और यह कि अब से ठीक दो घन्टे के बाद मैं तुम्हें हर्नबी रोड की नुक्कड़ पर मिलूंगा । तुम अपनी कार लेकर आना और साथ में एक चीज और भी ?”
“वह क्या ?”
“अपने साथ चार-पांच नये एक्टरों की केबनिट साइज तस्वीरें ले आना ।”
“मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा ।” - रमाकांत के स्वर से आश्चर्य स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था ।
“किसका मतलब नहीं समझे । नये एक्टरों का या तस्वीरों का ?”
“नये एक्टरों का ।”
“भाई, मैं चार पांच ऐसे एक्टरों की तस्वीरें चाहता हूं जिन्हें फिल्म इन्डस्ट्री में आये एक-आध वर्ष से अधिक नहीं हुआ है और जिन की सूरत-शक्ल, कद काठी स्थूल रूप से मुझसे मिलते-जुलते हों जैसे मनोज कुमार, जितेन्द्र, सुधीर, शैलेन्द्र कुमार वगैरह ।”
“लेकिन ये तस्वीरें मिलेगी कहां से ?” - रमाकांत का परेशान स्वर सुनाई दिया ।
“किसी फिल्मी अखबार के आफिस में चले जाना । हम उन्हें अधिक से अधिक एक दो दिन में ये तस्वीरें वापस कर देंगे ।”
“लेकिन उनका करोगे क्या ?”
“तुम पहले तस्वीरें लेकर निर्दिष्ट स्थान पर पहुंची । बाकी बातें फिर बताऊंगा ।”
“ओ के ।”
“सी यू आफ्टर टू आवर्स ।”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
थोड़ी देर चुप बैठे रहने के बाद उसने रिसीवर फिर उठाया और प्रमिला को फोन कर दिया ।
“हैलो, प्रमिला हेयर ।” - दूसरी ओर प्रमिला का मधुर स्वर सुनाई दिया ।
“पम्मी ?” - सुनील आवाज बिगाड़कर बोला - “पहचानो तो मैं कौन हूं ।”
“लानत है तुम पर !” - प्रमिला गरजी - “कहां मरे हुये हो तुम ?”
स्पष्ट था कि उसने सुनील को पहचान लिया था ।
“पहचाना मुझे ?”
“ओ सोनू के बच्चे !” - प्रमिला की दहाड़ से सुनील के कान बज उठे - “फौरन बताओ कहां हो तुम नहीं तो गोली मार दूंगी ।”
“टेलीफोन पर ।” - सुनील ने उपहासपूर्ण स्वर से पूछा ।
“हां, टेलीफोन पर ।”
“आखिर तुमने मुझे पहचाना कैसे ?”
प्रमिला कई क्षण चुप रही और बोली - “सुनील कुमार चक्रवर्ती नाम के सूअर को छोड़कर और किसी की मां ने सवा सेर सोंठ खाई है जो मुझे इस बेबाकी से पम्मी कहकर पुकारे ।”
“और लोग तुम्हें क्या कहकर पुकारते हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“मिस कपूर ।” - प्रमिला गर्व से बोली - “और बड़ी हद हुई तो प्रमिला ।”
“ओ के मिस कपूर !” - सुनील बोला - “यू विन । अब मैं मतलब की बात कहूं ।”
“नहीं, पहले यह बताओ, तुम हो कहां ?”
“इसी नगर में हूं ।”
“लेकिन कहां ?”
“एक होटल में ।”
“कौन से होटल में ?”
“बड़ा अच्छा होटल है । माड्रन भी है । सुन्दर भी है । चुलबुली लड़कियां भी हैं और...”
“स्टाप इट, यू सन आफ ए गन ।” - प्रमिला एकदम चिल्ला पड़ी - “मैं होटल का नाम पूछ रही हूं ।”
“यह एक फ्रैंच होटल है । गज-भर का नाम इसका । मुझे तो क्या मैनेजर को भी इसका नाम याद नहीं रहता ।”
“नहीं बताओगे ?” - प्रमिला ने धमकाया ।
“नहीं । नहीं ? नहीं ।”
“आखिर क्यों ?”
“क्योंकि मैंने अगर तुम्हें होटल का नाम बता दिया तो तुम दनदनाती हुई यहां आ धमकोगी और तुम्हारे पीछे-पीछे ही प्रभूदयाल या उसका कोई आदमी यहां पहुंच जाएगा और सुनील कुमार चक्रवर्ती पलक झपकते ही जेलखाने के सींखचों के पीछे दिखाई देने लगेंगे । तुम जानती हो जब भी प्रभूदयाल को किसी केस के सिलसिले में मेरी जरूरत होती है वह तुम्हारी निगरानी जरूर करवाता है ।”
“अच्छा, वह मतलब की बात क्या कर रहे थे तुम ?” - क्षण भर बाद प्रमिला का नम्र स्वर सुनाई दिया ।
“वह यह कि प्रभूदयाल पूरी तरह मेरे पीछे पड़ा हुआ है । अगर मैं उसकी पकड़ में आ गया तो मेरी जमानत फौरन होनी चाहिये ।”
“अच्छा ।”
“तुम इस विषय में मलिक साहब से बात कर लेना ।”
“ओ के !” - प्रमिला बोली ।
“आल राइट दैन, बाई ।” - सुनील रिसीवर कान से हटाकर बोला ।
सुनील रिसीवर रखने ही वाला था कि उसे प्रमिला का तेज और उतावला स्वर सुनाई दिया - “सोनू !”
सुनील ने इयरपीस कान से लगा लिया और बोला - “यस ।”
“सोनू” - प्रमिला भावुक स्वर में बोली - “प्लीज टेक गुड केयर आफ यौर सेल्फ, विल यू ?”
“ओ, नैवर माइन्ड ।” - सुनील ने कहा और जल्दी से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
सुनील ने अपने कमरे को ताला लगाया, चाबी काउण्टर पर सौंपी और बाहर निकल आया ।
अगले ब्लाक में उसे एक फोटोग्राफर की दुकान दिखाई दे गई ।
सुनील ने वहां से एक फोटो खिंचवाई और उसने दुगने दाम देकर फोटोग्राफर को इस बात के लिये तैयार कर लिया कि वह तस्वीर का कैबिनेट साइज प्रिंट सुनील को एक घन्टे भर में दे देगा ।
फिर उसने एक जनरल स्टोर से एक हैट खरीदा ।
एक घन्टे बाद सुनील ने फोटोग्राफर से अपनी तस्वीर ली और एक काफी हाउस में जाकर बैठ गया और काफी के साथ लक्की स्ट्राइक के सिगरेट फूंकने लगा ।
जब दो घन्टे के समय में दस मिनट रह गये तो वह काफी हाउस से बाहर निकला और एक टैक्सी पर हर्नबी रोड की ओर चल दिया ।
रमाकांत ने हर्नबी रोड की नुक्कड़ पर एक ऐसे स्थान पर कार खड़ी की हुई थी जहां कार पार्क करना मना था । वह स्टियरिंग पर कोहनियां टिकाये बैठा अपना प्रिय सिगरेट चारमीनार फूंक रहा था और हर दो मिनट बाद एक भरपूर नजर अपने आस-पास डाल लेता था ताकि अगर ट्रैफिक का कोई सिपाही चालान के इरादे से उसकी ओर बढे तो वह पहले ही ‘नो पार्किंग’ वाले एरिया से अपनी कार निकाल ले जाये ।”
सुनील ठीक समय पर वहां पहुंच गया । रमाकांत की कार खोजने में उसे तनिक भी दिक्कत नहीं हुई ।
सुनील ने कार का द्वार खोला और चुपचाप रमांकात के साथ वाली सीट पर जा बैठा ।
रमाकांत ने एक कहर भरी दृष्टि सुनील पर डाली और फिर बोला - “कहां ले जाकर पटकूं तुम्हें ?”
“माइक की कोठी से दस पन्द्रह गज पर ।” - सुनील बोला - “वहां से कोठी का गेट दिखाई देता रहे ।”
“इरादा क्या है ?”
“बहादुर से बात करेंगे ।”
रमाकांत ने कार माइक की कोठी से थोड़ी दूर फुटपाट के साथ लगा कर खड़ी कर दी ।
“तस्वीरें लाये हो ?” - सुनील ने पूछा ।
रमाकांत ने कैबिनेट साइज की कुछ तस्वीरें उसकी ओर बढा दी ।
सुनील ने देखा, तस्वीरें मनोज कुमार, जितेन्द्र, सुधीर और संजय की थीं । उसने अपनी तस्वीर भी उनमें मिला दी ।
“रमाकांत ।” - सुनील कार में से निकलता हुआ बोला - “मैं बहादुर से बात करता हूं । तुम ठीक दो मिनट बाद कार को गेट के सामने ले आना । इन्जन स्टार्ट रखना ।”
“ओ के ।”
सुनील ने अपने हैट का सामने का कोना जरा और झुका लिया और गेट की ओर बढ गया ।
कोठी के भीतर पुलिस के आदमी दिखाई दे रहे थे ।
सुनील क्षण भर हिचका और फिर सिर को एक झटका देकर बहादुर के सामने जा खड़ा हुआ ।
“तुम्हारा नाम बहादुर है ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां साहब ।” - बहादुर शिष्ट स्वर में बोला ।
“तुमसे माइक की हत्या के सिलसिले में कुछ बातें करनी हैं ।”
“आप कौन है ?”
“प्रैस रिपोर्टर ।”
“माफ कीजिये, साहब । पुलिस वालों ने मुझे किसी से माइक साहब की हत्या के सिलसिले में बात करने से मना किया हुआ है ।”
उसी समय रमाकांत ने कार गेट के सामने लाकर खड़ी कर दी ।
“आल राइट, बहादुर ।” - सुनील घूमकर ऐसी पोजीशन में आ गया कि अब बहादुर रमाकांत की कार और उसके बीच में था - “जैसी तुम्हारी मर्जी ।”
“मुझे अफसोस है, साहब ।” - सुनील बोला ।
“नैवर माइन्ड ।” - सुनील अपना दायां हाथ उसके कन्धे पर लाता हुआ बोला । बातचीत समाप्त समझकर बहादुर भीतर जाने के लिये घूमने ही वाला था कि सुनील का एक भरपूर घूंसा उसके जबड़े पर पड़ा । बहादुर लड़खड़ाया और एकदम उलटकर रमाकांत की कार के उस ओर के खुले दरवाजे से भीतर जाकर पड़ा ।
उसी समय भीतर से एक सिपाही चिल्लाया - “थानेदार साहब, जल्दी बाहर आइए । बहादुर को...”
बाकी बात सुनील को सुनाई नहीं दी । वह झपट कर गाड़ी में घुसता हुआ चिल्लाया - “स्टार्ट ।”
रमाकांत गाड़ी मेन रोड पर ले आया और फिर एक्सीलेटर की कम्बख्ती आ गई ।
“कहां चलूं ?” - वह स्टियरिंग को मजबूती से थामे हुये बोला ।
“कहीं भी । जहां इस बहादुर के बच्चे से दो बातें की जा सकें ।”
रमाकांत ने कार नगर से बाहर वाली सड़क की ओर मोड़ ली ।
“पीछे पुलिस की मोटर साईकिल आ रही है ।” - सुनील पीछे देखता हुआ बोला ।
“चिन्ता मत करो, प्यारे । जब ओखली में सिर ही दे दिया है तो मूसल तो पड़ेंगे ही ।”
मोटर साइकिल और कार में फासला कम होता गया ।
मोटर साइकिल पर बैठा थानेदार उन्हें गाड़ी खड़ी करने का संकेत कर रहा था ।
जब मोटर साइकिल और कार में केवल पांच फुट का फासला रह गया तो रमाकांत ने इतनी तेजी से कार को बांई ओर मोड़ा कि कार के दांईं ओर के दोनों पहिये हवा में उठ गये । ब्रेकों की चरचराहट और पहियों के सड़क पर घिसटने का कर्कश स्वर वातावरण में गूंज गया । रमाकांत की उंगलियां पूर्ण आत्म-विश्वास के साथ स्टियरिंग पर जमी हुई थीं ।
रमाकांत ने गाड़ी को बांईं ओर इतने अप्रत्याशित ढंग से मोड़ा कि थानेदार की मोटर साइकिल तीर की तरह सड़क पर निकल गई ।
“अब जब तक थानेदार साहब अपनी मोटर साइकिल को मोड़कर वापस इस सड़क पर लायेंगे तब तक उन्हें मेरी गाड़ी की हवा भी नहीं मिलेगी ।” - रमाकान्त बोला ।
घूमकर वह फिर नगर से बाहर जाने वाली बड़ी सड़क की ओर बढ रहा था ।
बड़ी सड़क पर उसने गाड़ी दायीं ओर मोड़ दी । अब वह वापस उसी रास्ते पर जा रहा था जिससे कि वह आया था ।
“लेकिन तुम कहां जा रहे हो ?”
“हर्नबी रोड पर ।”
“तुम्हारा सिर तो नहीं फिर गया है !”
“क्यों ?”
“जहां से हम भागे हैं वहीं फिर जा रहे हो ।”
“बरखुरदार वही सबसे अच्छा स्थान है । वह मोटर साइकिल वाला थानेदार ख्वाब में भी यह नहीं सोच सकता कि हम लौटकर वहीं वापस आ सकते हैं, जहां से हम भागे थे । वह हमारी गाड़ी की तलाश में सारा नगर उधेड़ कर रख देगा लेकिन यहां नहीं आएगा ।”
“बड़ी जोर की बात सोची है, प्यारे ।” - सुनील प्रशंसापूर्ण दृष्टि से उसकी ओर देखता हुआ बोला ।
रमाकांत ने कार फिर हर्नबी रोड पर माइक की कोठी से खूब दूर लाकर खड़ी कर दी ।
सुनील बहादुर की ओर आकर्षित हुआ जिसके नेत्र भय और विस्मय से फट पड़ने को हो रहे थे ।
“बहादुर !” - सुनील शांत स्वर से बोला - “जो बात मैं पूछूं उसका ठीक-ठीक जवाब दो । विश्वास रखो, तुम्हारा कोई अहित नहीं होगा ।”
बहादुर ने थूक निगली लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं फूटा ।
“जिस रात माइक की हत्या हुई थी । उस रात तुमने किसी को मोटर साइकिल पर कोठी से बाहर भागते देखा था ?”
“जी हां ।”
“उस रात से पहले या बाद में ? कभी तुमने उसे देखा था ?”
“नहीं ।”
“यानी कि पहली और आखिरी बार तुमने उसे तब देखा था जब वह मोटर साइकिल पर सवार कोठी से बाहर की ओर भाग रहा था ?”
“जी हां ।”
“एक आदमी को अच्छी तरह पहचान लेने में तुम्हें कम से कम कितनी देर लगती है ?”
“तीन-चार मिनट ।”
“और अगर तुमने किसी आदमी को सिर्फ एक मिनट के लिये देखा हो तो क्या उसे दोबारा देखने पर पहचान लोगे ।”
“शायद पहचान लूं । लेकिन दावा नहीं कर सकता ।”
“और आधे मिनट में ।”
“आधे मिनट में तो कुछ भी पता नहीं लगता, साहब ।”
“अच्छा !” - सुनील बात बदलता हुआ बोला - “हत्या की रात जिस समय वह आदमी मोटर साइकिल पर भाग रहा था तब तुम कहां थे ?”
“गेट के साथ एक लड़की का केबिन है ।” - बहादुर बोला - “मैं उसमें बैठा हुआ था ।”
“तो तुमने उस केबिन को खिड़की से उसे देखा था ?”
“जी हां ।”
“और वह मोटर साइकिल सवार कितनी रफ्तार से जा रहा था ?”
“तीस मील प्रति घन्टा ।”
“अच्छा बहादुर, तुम तो पढे-लिखे आदमी हो । हिसाब का एक सीधा-साधा सवाल बताओ ।”
“फरमाइये ।”
“अगर कोई आदमी एक घन्टे में तीस मील तय करता है तो चार फुट कितनी देर में तय करेगा ?”
बहादुर कितनी ही देर मन ही मन हिसाब लगाता रहा और फिर बोला - “एक बटा ग्यारह सैकिन्ड में ।”
“तो इसका अर्थ यह हुआ कि उस मोटर साइिकिल सवार की सूरत तुमने एक सैंकिड से भी कहीं कम समय के लिये देखी है ?”
“जी हां ।” - बहादुर झिझक भरे स्वर से बोला ।
“और रात के समय मेन गेट पर रोशनी भी बहुत कम होती है ?”
“जी हां ।”
“और एक आदमी को अच्छी तरह पहचान लेने के लिये तुम्हारे अपने कथनानुसार तुम्हें कम से कम दो मिनट की जरूरत होती है ।”
“जी हां ।” - बहादुर थूक निगलता हुआ बोला ।
“फिर भी तुम दावा करते हो कि तुम उसको पहचान लोगे ?”
बहादुर चुप रहा ।
“जानते हो, यही अयुक्तिसंगत बात जब तुम अदालत में कहो की तुम्हारी क्या दशा होगी ? सफाई का वकील तुम्हारे परखच्चे उड़ा कर रख देगा । तुम्हारा बयान अच्छा खासा मजाक बन जायेगा ।”
बहादुर चिन्तित दिखाई देने लगा ।
“तो फिर मैं क्या करूं, साब ?” - वह बोला ।
“यह तो तुम्हारा अपना मामला है, तुम जो ठीक समझो करो ।”
“मैं तो कह दूंगा कि मैंने हत्यारे को अच्छी तरह नहीं देखा है, इसलिये दोबारा देखने पर यह जरूरी नहीं कि मैं उसे पहचान ही लूं ।”
सुनील ने शांति की गहन निश्वास ली । यही तो वह बहादुर से कहलवाना चाहता था ।
“अच्छा बहादुर ।” - सुनील क्षण भर बाद बोला - “मैं तुम्हें कुछ तस्वीरें दिखाता हूं । इन्हें गौर से देखकर बताओ कि इनमें से किसकी सूरत मोटर साइकिल सवार से मिलती-जुलती है ?”
“मैं कहां पहचान पाऊंगा साहब !”
“फिर भी कोशिश तो करो ।”
बहादुर ने तस्वीरें सुनील के हाथ से ले लीं । कई क्षण वह तस्वीरें उलटता-पलटता रहा । उसके चेहरे से उलझन के भाव स्वष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे थे । फिर वह एक तस्वीर पर उंगली रखकर बोला - “शायद यह था ।”
सुनील ने बहादुर की बताई तस्वीर को देखा । उसके चेहरे पर मुस्कराहट फूट पड़ी । वह मनोज कुमार की तस्वीर थी ।
“श्योर !” - उसने स्वर को भरसक गम्भीर बनाते हुये पूछा ।
“श्योर तो नहीं साहब । लेकिन अगर मोटर साइकिल सवार यह नहीं था तो इन तस्वीरों में से कोई और भी नहीं था ।”
“तो फिर इस तस्वीर की अच्छी तरह देख लो । जब पुलिस तुम्हें शिनाख्त के लिये कहेगी तो तुम्हें काफी सहूलियत हो जायेगी ।”
बहादुर मनोज की तस्वीर लेकर उसे गौर से देखने लगा । कुछ देर बाद उसने तस्वीर लौटा दी ।
“बहादुर ।” - सुनील अपने सिर से आंखों तक झुका हुआ हैट उतारता हुआ बोला - “मेरी ओर देखो ।”
“देख रहा हूं साब ।”
“कहो वह मोटर साइकिल सवार मैं तो नहीं था ?”
“अजी साब आप तो मजाक कर रहे हैं ।” - बहादुर बोला ।
“एक बार फिर सोच लो ।”
“नहीं साहब, आप नहीं थे ।”
सुनील पूरी तरह निश्चित हो गया ।
“रमाकांत, चलो बहादुर को कोठी के सामने छोड़ आयें ।”
रमाकांत ने कार स्टार्ट की और उसे कोठी पर खड़ा कर दिया ।
“ओ के बहादुर, थैंक्यू वैरी मच ।” - सुनील बोला और उसने बहादुर के लिये कार का द्वार खोल दिया ।
उसी समय तूफान की गति से पुलिस की मोटर साइकिल कोठी के सामने पहुंची और एक प्रचण्ड चरमराहट के साथ रमाकांत की कार की बगल में आ खड़ी हुई । क्रोध की साक्षात मूर्ति बना थानेदार उछलकर मोटर साइकिल से उतरा । उसने अपनी जेब से हथकड़ियां निकाली और उन्हें हाथों में लहराता हुआ सुनील की ओर झपटा ।
“मिस्टर ।” - वह गरजा - “मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं ।”
“किस इलजाम में ?” - सुनील आश्चर्य से पलकें झपकाता बोला ।
“तुमने इस बादमी पर ।” - वह बहादुर की ओर संकेत करता हुआ बोला - “घातक हमला किया और उसे जबदरस्ती भगाकर ले गये ।”
इससे पहले सुनील कोई उत्तर देता बहादुर बोल पड़ा - “लेकिन थानेदार साहब, मैं तो अपनी मर्जी से इनके साथ गया था ।”
“क्या ?” - थानेदार चिहुंककर बोला ।
“मैंने कहा न, कि मैं अपनी इच्छा से इनके साथ गया था ।”
“और वह घूंसा भी तुमने अपनी मर्जी से खाया था ?”
“कैसा घूंसा ?” - बहादुर हैरान होकर बोला - “मुझे किसी ने कोई घूंसा नहीं मारा ।”
“इस आदमी ने तुम्हें घूसा मारकर कार में नहीं गिराया ?” - थानेदार सुनील की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“नहीं तो ।”
थानेदार हताश भाव से कभी सुनील को और कभी बहादुर को देखता रहा । उसका हथकड़ियों वाला हाथ आप ही नीचे लटक गया । फिर वह एकाएक अपने साथ खड़े सिपाही पर बरस पड़ा - “हरमजादे उल्लू के पट्ठे, साले अन्धे हैं । उल्टी-सीधी रिपोर्ट दे देते है । सूअर का बच्चा कहता था कि कोई आदमी मार-पीट कर बहादुर को जबरदस्ती भगाकर ले गया है ।”
“लेकिन थानेदार साहब ।” - सिपाही हकलाया - “मैंने अपनी आंखों से...”
“चुप ।” - थानेदार गरज पड़ा ।
“आदाब अर्ज है, थानेदार साहब ।” - सुनील बोला और अगले ही क्षण कार तीर की तरह वहां से निकल गई ।
“आज तो भले बचे बेटा ।” - रमाकांत शांति की सांस लेता हुआ बोला ।
“बुरे बचे या भले, बहरहाल बचे तो सही ।” - सुनील बोला ।
“लेकिन बहादुर ने झूठ क्यों बोला ?”
“लगता है माइक की हत्या की तफ्तीश के दौरान पुलिस ने इन लोगों को बहुत परेशान किया है । इसलिये पुलिस के लिये असहयोग की भावना के अन्तर्गत उसने हमारी खातिर झूठ बोल दिया और फिर हमने उसे कोई नुकसान भी तो नहीं पहुंचाया । प्रकट में तो हमने उसके मूर्खतापूर्ण बयान की कमियों की ओर उसका ध्यान आकृष्ट करके उस पर उपकार ही किया हे ।”
“लेकिन तुम्हें बहादुर से यह झक मारने का क्या लाभ हुआ ?”
“बहुत लाभ हुआ है । पहले बहादुर यह बात दावे से कहता था कि मोटर साइकिल वाले को अर्थात मुझे दोबारा देखते ही पहचान लेगा, लेकिन अब वह इतना घबरा गया है कि वह कोई बात दावे से नहीं कह सकता । दूसरे मनोज कुमार की शक्ल उसके दिमाग में इस बुरी तरह बैठ गई है कि जब पुलिस लाइन अप में से इसे हत्यारा पहचानने के लिये कहे तो वह मनोज की सूरत वाला आदमी ही तलाश करता रहेगा और अगर उस लाइन अप में मैं भी खड़ा होऊंगा तो सबसे पहले वह मुझे ही रिजैक्ट करेगा क्योंकि वह अभी खुद कह चुका है कि मेरे मोटर साइकिल सवार होने की तो अंशमात्र भी सम्भावना नहीं है ।”
“चलो मान लिया कि बहादुर अब तुम्हारे खिलाफ कोई ठोस गवाही नहीं दे सकता, लेकिन अभी तो तुम्हारे गले में फांसी का फंदा लटकाने के लिये रामपाल और कैरोल बाकी हैं ।”
“उनसे भी निपट लूंगा ।” - सुनील लापरवाही से बोला ।
रमाकांत चुप रहा । वह सुनील का एक सहृदय मित्र था और सच्चे अर्थों में उसके लिये चितिंत था ।
“कैरोल के विषय में कुछ पता लगा ?” - सुनील ने पूछा ।
“अभी तो नहीं । मेरे आदमी तफ्तीश कर रहे हैं । कोई विशेष बात मालूम होते ही रिपोर्ट तुम तक पहुंचा दी जायेगी ।”
“रमाकांत !” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “जो रिवाल्वर माइक की लाश के पास पड़ी मिली थी, उस रिवाल्वर से माइक की हत्या नहीं की गई है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“बस मालूम है । तुम बीच में टोको मत मेरी बात सुनो । पुलिस की लैबोरट्री में जब वह रिवाल्वर टैस्ट किया जायेगा तो यह बात फौरन प्रकट हो जायेगी कि हत्या उस रिवाल्वर से नहीं की है और पुलिस दूसरी रिवाल्वर की तलाश करनी आरम्भ कर देगी । इसलिये क्यों न पुलिस से पहले हम ही वह रिवाल्वर खोज निकालें ?”
“लेकिन कैसे ?”
“देखो रमाकांत, वह रिवाल्वर जिसकी मूठ में सुराख था, मैंने माइक की लाश के पास पड़ी देखी थी । मेरे वहां से भागने के अधिक से अधिक पांच मिनट बाद ही पुलिस वहां पहुंच गई क्योंकि माइक की कोठी की ओर जाती हुई पुलिस की जीप मुझे रास्ते में मिली थी । इसका अर्थ यह हुआ कि हत्या वाली रिवाल्वर केवल पांच मिनट में उस कमरे में से गायब हो गई थी, तुम्हारे विचार से रिवाल्वर किसने, कैसे और क्यों गायब की होगी ?”
“सीधी सी बात है ।” - रमाकांत बोला - “रिवाल्वर माइक के असली हत्यारे ने गायब की होगी । क्यों गायब की होगी का सीधा उत्तर यह है कि वह यह प्रकट करना चाहता होगा कि हत्या कमरे में पाई जाने वाली दूसरी रिवाल्वर से हुई है और कैसे का सीधा जवाब यह है कि उसने लोगों की नजर बचाकर रिवाल्वर उठाकर जेब में रख ली होगी ।”
“ताकि जब पुलिस तलाशी ले तो वह वही धर दिया जाये ।”
“तो फिर तुम्हारे विचार से उतने सीमित समय में रिवाल्वर कहां फेंक दी होगी ?”
“माइक की हत्या जिस कमरे में हुई थी, वह कोठी के पिछवाड़े में है । पिछली ओर कोई इमारत नहीं है वहां एक बहुत बड़ा मैदान है जो झाड़ियों से भरा पड़ा है । क्या यह सम्भव नहीं है कि हत्यारे ने सबकी आंख बचाकर खिड़की से रिवाल्वर उन झाड़ियों में फेंक दी हो ?”
“सम्भव है, फिर ?”
“फिर यह कि इससे पहले कि पुलिस इस लाइन पर काम करना आरम्भ कर दें, रिवाल्वर को तुम खोज निकालो ।”
“लेकिन अगर हम रिवाल्वर खोज भी लें तो असूलन हमें फौरन उसकी रिपोर्ट पुलिस को देनी पड़ेगी ।”
“तो दे देना । रिवाल्वर मिलते ही उसका नम्बर नोट कर लेना और फिर उस नम्बर की सहायता से रिवाल्वर के मालिक की तलाशी करवाना और खुद पैदल चल देना, पुलिस को रिपोर्ट देने ।”
“पैदल क्यों ?”
“ताकि तुम्हारे आदमियों को कम से कम दो घण्टे का समय मिल जाये । रिवाल्वर मिलते ही असूलन उसकी रिपोर्ट तुम्हें पुलिस स्टेशन देनी चाहिये और यही तुम करोगे भी । अन्तर इतना होगा कि पैदल चलकर पुलिस स्टेशन पहुंचने में तुम दो घण्टे लगा दोगे ।”
“हो जायेगा ।” - रमाकांत कुछ सोचकर बोला - “और कुछ ?”
“और यह कि पिछली रिपोर्ट में तुमने मुझे बताया था कि हत्या से कुछ पहले माइक की जेब में हजार-हजार रुपये के पचास नोट थे ।”
“हां !”
“माइक की जेब में पचास हजार रुपये के नोट क्यों थे ?”
“यह भी कोई सवाल हुआ ?” - रमाकांत हैरान होकर बोला - “क्या जेब में पचास हजार रुपये रखना अपराध है ?”
“तुम मेरा मतलब नहीं समझे । मैं यह कहता हूं कि आखिर कोई आदमी अपने घर जेब में पचास हजार रुपये रखकर क्यों घूमेगा ?”
“सम्भव है, वे रुपये उसे उसी समय किसी ने दिये हों और उसने उन्हें लापरवाही से जेब में डाल लिया हो । रात को वह उन्हे बैंक तो भेज नहीं सकता था । उसने सोचा होगा कि फुरसत में वह उन्हे जेब में से निकाल कर कहीं सेफ में रख देगा और सवेरे बैंक भेज देगा ।”
“आखिर तुम कहना क्या चाहते हो ?” - रमाकांत बोला ।
“मैं यह कहना चाहता हूं कि माइक किसी को ब्लैकमेल कर रहा था, वह पचास हजार रुपया उसके किसी शिकार ने दिया था उसे ।”
रमाकांत के नेत्र फैल गये ।
“यार, यह बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं ।” - वह बोला ।
“अब तो आ गई न ?” - सुनील बोला - “अब तुम यह जानने की कोशिश करो कि माइक की पार्टी में आये हुये लोगों में से किसने हत्या वाले दिन या उससे एकाध दिन पहले अपने बैंक में से एक मुश्त पचास हजार रुपये निकाले हैं ।”
“तो तुम्हारा मतलब है कि माइक की हत्या किसी ने उसकी ब्लैकमेलिंग से तंग आकर की है ?”
“जरूरी नहीं है ।” - सुनील बोला - “क्योंकि अगर पचास हजार रुपये देने वाले ने ही उसकी हत्या करनी थी तो वह रुपया क्यों देता ?”
रमाकांत चुप हो गया ।
“खैर तुम इतनी जानकारी तो हासिल करो । बाकी बातें फिर करेंगे... और मुझे यहीं उतार दो ।”
“कहां जाओगे ?” - रमाकांत गाड़ी साइड में खड़ी करके बोला ।
“होटल एम्बैसेडर रूम नम्बर तीन सौ तेरह ।” - सुनील कार में से बाहर निकलता हुआ बोला ।
“सोनिया से मिलने ?”
“हां ।”
“मोहन और राकेश सोनिया की निगरानी कर रहे हैं । अगर सहायता की आवश्यकता हो तो उनसे सम्बन्ध स्थापित कर लेना ।”
“अच्छा ।”
“ओ के दैन, सी यू ।” - रमाकांत गाड़ी स्टार्ट करता हुआ बोला ।
“मैं तुम्हें फोन करूंगा ।” - सुनील बोला ।
“अच्छा ।”
सुनील चुपचाप आगे बढ गया । उसके हैट का अगला कोना फिर उसकी नाक तक झुक आया था ।
***
सुनील ने होटल एम्बैसेडर के तीन सौ तेरह नम्बर कमरे के द्वार को धीरे से धक्का दिया । द्वार भीतर से बंद था ।
सुनील कुछ क्षण खड़ा सोचता रहा फिर उसने द्वार खटखटा दिया ।
“कौन है ?” - भीतर से सोनिया का स्वर सुनाई दिया ।
“पोस्टमैन ।” - सुनील बोला - “टेलीग्राम है ।”
“टेलीग्राम द्वार के नीचे से कमरे में डाल दो ।”
“लेकिन आपको हस्ताक्षर भी तो करने पड़ेंगे, मेम साहब !”
भीतर कुछ क्षण शांति रही । फिर बोल्ट हटाये जाने का स्वर सुनाई दिया ।
द्वार थोड़ा सा खुला और उसमें से सोनिया ने बाहर झांका ।
सुनील ने खुले दरवाजे को धक्का दिया और जल्दी अन्दर घुस गया ।
“हैव ए सीट, मादाम ।” - सुनील बोला ।
“आखिर इस हरकत का मतलब ?” - सोनिया जल कर बोली ।
“मैंने तुम्हें कहा था न मैं फिर आऊंगा । सो आ गया ।”
“आखिर तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हुये हो ?”
“मैं कहां तुम्हारे पीछे पड़ा हुआ हूं । यह बात तो तुम तब कहती जबकि मैं बीस-पच्चीस बार तुमसे मिल चुका होता और तुमने मुझे घास भी न डाली होती लेकिन मैंने फिर भी तुम्हारा ख्याल न छोड़ा होता । दूसरी मुलाकात को आप पीछे पड़ने की संज्ञा दे रही हैं ?”
“जानते हो जो आदमी यहां आने वाला है, अगर उसने तुम्हें मेरे साथ देख लिया तो वह हम दोनों की हत्या कर देगा ।”
“रामपाल इतन साहसी नहीं कि वह हम दोनों की हत्या कर दे ।”
सोनिया के नेत्र फैल गये ।
“तो तुम जानते हो ।” - सोनिया भय और आश्चर्य से मिश्रित स्वर से बोली ।
“सुनील खलीफा क्या नहीं जानते ?” - सुनील ने डींग हांकी ।
“आखिर तुम चाहते क्या हो ?” - सोनिया बेबस स्वर से बोली ।
“अगर तुम मेरे कुछ प्रश्नों का ठीक-ठीक जवाब दे दो तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा ।”
“क्या पूछना चाहते हो ?”
“रामपाल का तुमसे क्या सम्बन्ध है ?” - सुनील ने पूछा ।
“मेरे जैसी औरत का किसी अमीर आदमी से क्या सम्बन्ध हो सकता है ?” - सोनिया विष भरे स्वर से बोली ।
“मिस्ट्रेस ?”
“हां ।”
“तुम रामपाल के सम्पर्क में कैसे आयी ?”
“मैं पहले ज्यूल बाक्स में होस्टेस थी, वहीं रामपाल मेरी ओर आकर्षित हुआ था ।”
“तुम बैंक स्ट्रीट के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में कैसे पहुंची थी ?”
“वह फ्लैट रामपाल ने मेरे लिये किराये पर लिया था ।”
“क्यों !”
“तुम पर नजर रखने के लिये ।”
“तुम मेरी निगरानी क्यों कर रही थीं ?” - सुनील ने अपना सवाल दोहराया ।
“मुझे रामपाल ने ऐसा करने के लिये कहा था ।” - सोनिया बोली ।
“किस्सा क्या है ?” - सुनील परेशान होकर बोला ।
“किस्सा यह है कि रामपाल माइक का पत्ता काटना चाहता वह माइक से बहुत परेशान था क्योंकि उसका पार्टनर होने के बावजूद भी माइक उसके साथ यूं पेश आता था जैसे वह उसका नौकर हो । रामपाल अरसे से किसी ऐसे मौके की तलाश में था जिससे माइक या तो किसी पुलिस केस में फंसकर जेल पहुंच जाये या फिर ऊपर भगवान के घर को पहुंच जाये ।”
“लेकिन मैं इस तस्वीर में कहां फिट होता हूं ?”
“सुनते जाओ । उन्हीं दिनों ज्यूल बाक्स के उस हंगामे के बाद माइक से तुम उलझ पड़े । तुम ने ‘ब्लास्ट’ में उसकी पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी जिससे माइक हत्थे से उखड़ गया । एक बार उसने नारायण और उसके साथियों हाथों तुम्हें पिटवाना चाहा ताकि तुम उसके विरुद्ध बोलना बन्द कर दो, लेकिन नारायण और उसके साथी स्वयं ही पिट गये और तुमने माइक के खिलाफ जहर उगलना बन्द नहीं किया । माइक क्रोध से पागल हो उठा । उसने तुम्हारे फ्लैट पर तुम्हारी हत्या करवा डालने का निश्चय कर लिया । रामपाल ऐसे ही किसी मौके की तो तलाश में था । उसने तुम्हारी सामने वाला फ्लैट मेरे लिये किराये पर ले लिया । उस फ्लैट की किचन से तुम्हारे फ्लैट का हर एक भाग दिखाई देता था हर समय एक मूवी कैमरा लेकर उस खिड़की में बैठी रहती थी ताकि माइक के आदमी जब तुम्हारी हत्या करने के इरादे तुम्हारे फ्लैट में प्रविष्ट हो तो मैं उनके हर एक एक्शन को कैमरे में उतार सकूं । अगर माइक के आदमी तुम्हारी हत्या करने में सफल हो जाते और मैं मूवी कैमरे द्वारा सारी घटना की फिल्म बनाने में सफल हो जाती तो माइक रामपाल की मुट्ठी में होता । उस सबूत की मौजूदगी में अगर माइक रामपाल का कहना न मानता तो जेल जाता लेकिन हो कुछ भी नहीं पाया । माइक तो तुम्हारी हत्या करवा नहीं सका, उल्टे तुम ही ने उसका कल्याण कर दिया ।”
“यह तुमसे किसने कहा है कि माइक की हत्या मैंने की है ?” - सुनील हैरान होकर बोला ।
“रामपाल कहता है कि जो रिवाल्वर तुम मेरे से छीन कर ले गये थे, उससे तुमने माइक को गोली मार दी है ।”
“तुमने वह फ्लैट छोड़ क्यों दिया ?” - सुनील ने बात बदली ।
“अब उसकी जरूरत ही नहीं रही थी । माइक के मर जाने के बाद उसे फंसाने की साजिश करने की क्या तुक है भला !”
“अब एक बात और बता दो सोनिया, उसके बाद मैं यहां से दफा हो जाऊंगा और फिर कभी तुम्हें परेशान करने नहीं जाऊंगा ।”
“क्या !”
“माइक जुआघर कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।” - वह हकलाकर बोली ।
“तुम्हें ये तो मालूम होगा कि लोग जुआघर पहुंचाये कैसे जाते है ?”
“उन्हें ज्यूल बाक्स की होस्टेस साथ ले जाती है ।”
“तुम कभी किसी जुआरी को जुआघर लेकर नहीं गई थी ?”
“दो तीन बार गई थी । लेकिन मुझे खुद को पता नहीं चला था कि जुआघर कहां है । ज्यूल बाक्स का कोई ड्राइवर एक बन्द कार में होस्टेस और जुआरी को जुआघर ले जाता है । रास्ता केवल ड्राइवर को ही मालूम होता है । साथ में होस्टेस की आवश्यकता तो केवल इसलिये होती है कि जुआरी का ध्यान बटा रहें और वह रास्ता जानने की चेष्टा न करें ।”
“लेकिन अगर कोई जुआघर तक जाना चाहता है तो वह किससे सम्बन्ध सथापित करता है ?”
“ज्यूल बाक्स की किसी होस्टेस से । होस्टेस पहले आदमी को अच्छी तरह परखती है और पूरी तरह सन्तुष्ट हो जाने के बाद ही वह उसे जुआघर में लेकर जाती है । सन्देह हो जाने पर वह साफ वह देती है कि ज्यूल बाक्स में जुआ नहीं होता है ।”
“कोई आसान तरीका नहीं है ?” - सुनील ने परेशानी से पूछा ।
“है ।” - सोनिया बोली - “अगर आप किसी होस्टेस का नाम जानते है तो बात कुछ आसान हो जाती है । इससे वे लोग यह समझते हैं कि आप पहले कभी जुआघर के दर्शन कर चुके हैं ।”
सुनील के दिमाग में मोना की सूरत घूम गई ।
“अच्छा सोनिया ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “अब एक आखिरी बात और... तुमने अभी कहा था रामपाल की माइक से बहुत लगती थी । क्या ऐसा हो सकता है कि क्रोध में आकर रामपाल ने ही माइक को गोली मार दी हो ?”
सोनिया कुछ क्षण चुप रही और फिर बोली - “हो सकता है ।”
“सोनिया !” - सुनील धीरे से बोला - “आई फील सारी फार यू ।”
सोनिया चुप रही ।
“मैं चला । सहयोग के लिये शुक्रिया ।”
सोनिया नहीं बोली ।
“अगर रामपाल ही हत्यारा सिद्ध हो और फांसी पर चढ जाये तो तुम्हारा क्या होगा ?”
“मेरा क्या होना है ? सुनील साहब, मैं कोई उसकी ब्याहता बीवी थोड़े ही हूं । मैं फिर ज्यूल बाक्स या किसी और होटल की होस्टेस बनकर हर ऐरे-गैरे का मनोरंजन करूंगी ।” - सोनिया की आवाज कांपी ।
सुनील चुपचाप उसके कमरे से बाहर निकल गया ।
सीढियों की मोड़ पर सुनील विपरीत दिशा से आते हुये एक आदमी से जा टकराया ।
***
सुनील ने रमाकांत से उधार मांगी हुई कार को होटल ज्यूल बाक्स की लाबी में ले जाकर खड़ा कर दिया ।
बैल कैप्टन ने आगे बढ़कर उसकी शानदार इम्पाला का दरवाजा खोला और वह बड़े ठाठ से बाहर निकलकर आया । उसने बैल कैप्टन को कार की चाबी सौंपी और स्वयं होटल के भीतर की ओर चल दिया ।
“गुड ईवनिंग सर ।” - हैड वेटर चेहरे पर एक व्यावसायिक मुस्कराहट लाकर बोला ।
सुनील ने सिर को हल्का सा झटका देकर गुड ईवनिंग का उत्तर दिया और उसके पांव स्वयं ही आर्केस्ट्रा से निकलती हुई धुन पर थिरकने लगे ।
“क्या आप इतनी सुहावनी शाम अकेले ही गुजारेंगे सर ?”
“जो मेरी पसन्द है । अगर वह यहां न हुई तो यह शाम अकेले ही गुजरेगी ।” - सुनील सिगरेट का एक छोटा सा कश लेकर बोला ।
“आपकी पसन्द क्या है सर ?”
“मोना ।” - सुनील धीरे से बोला ।
लगभग दस मिनट बाद मोना अपने सुन्दर शरीर को उत्तेजक ढंग से लहराती हुई सुनील के सामने आकर खड़ी हुई ।
“मोना ।” - सुनील ने अपनी कुर्सी से उठते हुये पूछा ।
“हैलो !” - वह मुस्कराहट बिखेरती हुई बोली और सुनील के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई ।
मोना के बैठते ही वेटर सामने आ खड़ा हुआ । मोना ने स्काच का आर्डर दिया । स्विच विस्की के जिस ब्रांड का नाम मोना ने लिया था यह कम से कम पन्द्रह साल पुरानी थी ।
“यह मेरा सौभाग्य है कि आपने मेरा निमन्त्रण स्वीकार किया है ।” - वेटर के हट जाने के बाद सुनील बोला ।
“आप मुझसे कभी मिले हैं ?” - मोना ने पूछा ।
“नहीं ।”
“तो फिर आप मुझे मेरे नाम से कैसे जानते हैं ?”
“मुझे सोनिया ने बताया था ।”
“आप सोनिया को कैसे जानते हैं ?”
“जब मैं पहले यहां आया करता था, उन दिनों सोनिया यहां होस्टेस हुआ करती थी । वह मेरी पहली पसन्द थी । फिर वह एकाएक ही कहीं गायब हो गयी थी लेकिन वह मुझे इतना जरूर बता गई थी कि उसके अतिरिक्त ज्यूल बाक्स में कोई और होस्टेस अगर मेरा मनोरंजन कर सकती हैं तो वह मोना है ।”
उसी समय वेटर ने स्काच लाकर उसके सामने रख दी ।
“आपने अपना नाम बताया ही नहीं ।” - मोना स्काच की चुस्कियां लेती हुई बोली ।
“प्रिंस अल्फा बीटा गामा ।” - सुनील बोला ।
मोना स्काच का आखिरी घूंट हलक में उडेलकर बोली - “शैल वी डांस, प्रिंस अल्फा ?”
“शायद सोनिया ने तुम्हें कभी यह बताया नहीं कि प्रिंस अल्फा जब ज्यूल बाक्स में आता है तो केवल एक ही इच्छा लेकर आता है ।”
“क्या ?”
उत्तर में सुनील ने अपने दोनों हाथों से ऐसा एक्शन किया जैसे ताश के पत्ते फेंट रहा हो ।
“सोनिया तुम्हें वहां लेकर गई है कभी ?” - मोना ने पूछा ।
“कई बार ।”
मोना कई क्षण मन ही मन कुछ विचार करती रही और फिर उठती हुई बोली - “आल राइट, कम आन ।”
सुनील ने स्काच का बिल चुकाया वेटर को एक मोटी टिप दी और मोना के साथ लाबी में आ गया ।
उसने बैल-कैप्टिन को अपनी कार भिजवाने के लिये संकेत किया ।
“अपनी कार यही छोड़ दो ।” - मोना उसका संकेत समझ कर बोली - “हम ज्यूल बाक्स की कार में चलेंगे ।”
मोना के संकेत पर एक काले रंग की लम्बी चौड़ी कार उसके सामने आ खड़ी हुई । अपनी खाकी वर्दी पर ज्यूल बाक्स का पीतल का बिल्ला लगाये हुये एक शोफर कार में से निकला और उसने बड़ी तत्परता से उनके लिए कार का पिछला दरवाजा खोल दिया ।
सुनील और मोना भीतर बैठ गये ।
“शोफर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी ।”
“हम कहां जा रहे हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“जहां तुम जाना चाहते थे ।”
उसी समय कार ने एक गहरा मोड़ काटा और कुछ क्षण सीधी चलने के बाद रुक गई ।
मोना ने खिड़कियों के पर्दे हटा दिये । सुनील ने देखा गाड़ी किसी इमारत के पिछवाड़े के कम्पाउन्ड में खड़ी थी । वातावरण में प्याज भूने जाने की तीव्र गन्ध फैली हुई थी । वहां प्रकाश बिल्कुल नहीं था । सुनील ने कलाई में बंधी घड़ी देखी । ज्यूल बाक्स से यहां तक आने में उन्हें पूरे बाईस मिनट लगे थे ।
वे कार से बाहर निकल आये ।
मोना उसे पिछवाड़े एक छोटे से बरामदे में ले गई । उसने चाबी निकालकर एक द्वार खोला और भीतर घुस गई ।
सुनील भी उसके पीछे था ।
भीतर एक जीरो वाट का बल्ब जल रहा था जिससे धुंधले प्रकाश में पहली मन्जिल की ओर जाती हुई सीढियां दिखाई दे रही थी ।
मोना उसे आने का संकेत करके सीढियां चढने लगी ।
जहां सीढियां समाप्त होती थीं वहां एक ओर दरवाजा था, उसके बाद एक लम्बा गलियारा था ।
गलियारे के दूसरे सिरे का द्वार खोलते ही वे एकाएक अन्धकार से तीव्र प्रकाश में आ गये ।
सुनील ने देखा, वह एक बहुत बड़ा हाल था । उसके एक कोने में बार था । जिसके काउन्टर के सामने कई आदमी स्टूलों पर बैठे शराब पी रहे थे । बाकी हाल में जुए की मेजें फैली हुई थी जहां हर प्रकार का जुआ हो रहा था । सबसे ज्यादा भीड़ रौलेट और ताश की मेजों पर थी ।
काला सूट पहने हुए आदमी ने उसका स्वागत किया ।
“प्रिंस अल्फा !” - मोना ने कहा ।
“हाऊ डू यू डू प्रिंस ।” - वह झुककर बोला ।
“फाइन !” - सुनील ने कहा और फिर मोना की ओर मुड़कर बोला - “कौन-सा गेम पसंद है ?”
“रौलेट !” - मोना बोली ।
सुनील ने काले सूट वाले आदमी को पांच हजार रुपये दिये जिसके बदले में वह कैशियर से पीले रंग के प्लास्टिक के कटे हुए गोल टुकड़े ले आया जिन पर खुदा हुआ था सौ रुपये ।
सुनील ने बीस प्लास्टिक के पीस मोना को थमा दिये ।
वे रौलेट की एक मेज के सामने जम गये । सुनील रौलेट पर छोटे-छोटे दांव लगाने लगा ।
एक बार भी सुनील नहीं जीता ।
सुनील ने आखिरी पीस सात नम्बर पर रख दिया ।
उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि हाथी दांत की बाल सात नम्बर के खाने में आकर रुक गई ।
कैशियर ने चुपचाप जीत का सारा माल सुनील की ओर सरका दिया ।
वही एक बार थी जब सुनील जीता । अगले दस मिनट में वह फिर सारे पीस हार गया ।
मोना ने अभी तक कोई दांव नहीं लगाया था ।
सुनील ने प्रश्नसूचक दृष्टि से उसे देखा ।
मोना ने प्लास्टिक का एक-एक पीस सात, तीस और पांच पर रख दिया ।
बाल सात पर आकर रुक गई ।
मोना का चेहरा दमक उठा ।
अगली बार उसने नौ नम्बर पर पांच (अर्थात पांच सौ रुपये) रख दिये ।
बाल नौ पर आकर रुक गई ।
सुनील हैरान होकर मोना का चेहरा देखने लगा ।
अगले पांच गेमों में से चार मोना जीती ।
“अब बस करो ।” - सुनील उसके कन्धे पर हाथ रखता हुआ बोला ।
“अभी नहीं ।” - मोना झूमकर बोली - “आज तो मेरी तकदीर चमक रही है ।”
“लेकिन मैं वापिस जाना चाहता हूं ।”
“अभी से ।”
“हां ।”
मोना ने बेमन से प्लास्टिक के टुकड़े समेटे और उन्हें ले जा कर कैशियर के सामने पटक दिया ।
कैशियर ने प्लास्टिक के टुकड़ों की कीमत गिनकर मोना को नोट थमा दिये ।
सुनील यह देखकर हैरान रह गया कि मोना चौदह हजार रुपये जीती थी ।
“आप ?” - कैशियर सुनील को देखकर बोला ।
“आई एम ब्रोक !” सुनील बोला ।
“फिर तो आज मिस मोना की तकदीर बहुत अच्छी है ।”
“मेरे हारने से मोना की तकदीर का क्या सम्बन्ध है ।”
“जितना रुपया आप हारेंगे उसका पच्चीस प्रतिशत मोना को मिलेगा ।”
सुनील चुप रहा । मोना ने रुपया लेकर बैग में रखा और वे बाहर कोई की ओर चल दिये ।
रास्ते मे उन्हें काले सूट वाला आदमी मिला ।
“गुड नाइट प्रिंस !” - वह बोला - “कम अगेन ।”
“श्योर आई विल ।” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला ।
वे नीचे आकर काली कार में बैठ गये । मोना ने एक बार फिर पर्दे खींच दिये ।
कार चल पड़ी ।
“आज तो तुम रईस हो गई ।” - सुनील ने कहा ।
“उतनी नहीं जितनी तुम समझ रहे हो ।”
“क्या मतलब ?”
“इसमें से केवल पच्चीस प्रतिशत मुझे मिलेगा । बाकी लौटाना पड़ेगा ।”
“क्यों ।”
“यही नियम है यहां का ।”
“और अगर मैं जीत जाता और तुम हार जाती तो ?”
“तो मुझे कुछ नहीं मिलता । छोड़ो इन बातों को । क्या नीरस विषय ले बैठे हो । कोई और बात करो ।” - मोना ने अपनी बांहें सुनील के गले में डाल दी और अपने शरीर का सारा बोझ उस पर लाद दिया और चेहरे को निमन्त्रण के ढंग से सुनील की ओर उठा दिया ।
लेकिन सुनील ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया ।
“मोना !” - वह बोला ।
“हूं ।” - मोना ने मद भरे स्वर से उत्तर दिया ।
“एक बात बताओ ।”
“क्या !”
“यह जुआघर कहां है ?”
मोना एकदम छिटककर उससे अलग हो गई ।
“जानते हो तुम क्या पूछ रहे हो ?” - वह आंखों में भय का भाव लाकर बोली - “वे मेरी गरदन उड़ा देंगे ।” - मोना कन्धे से उसका हाथ झटकती हुई बोली - “और मैं अभी मरना नहीं चाहती ।”
“लेकिन किसी को पता कैसे लगेगा कि तुमने मुझे कुछ बताया है ।”
“सारी सर नो चांस ।”
“मोना अगर तुम...”
उसी समय एक झटके के साथ कार रुक गई ।
ड्राइवर ने कार का पिछला द्वार खोला और खिड़कियों के काले पर्दे हटाता हुआ बोला - “ज्यूल बाक्स सर ।”
“क्या !” - सुनील हैरानी से बोला - “हम ज्यूल बाक्स भी पहुंच गये ?”
“यस सर ।” - ड्राइवर भावहीन स्वर से बोला ।
सुनील ने घड़ी देखी तो वापसी में केवल सात मिनट लगे थे ।
वह कार से बाहर निकल आया ।
मोना ने बाहर आने का कोई उपक्रम नहीं किया ।
“तुम नहीं आओगी ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं मैं यहीं ठीक हूं ।” - और उसने सुनील की ओर पीठ कर ली ।
“आपकी कार मंगाऊं साहब ?” - बैल कैप्टन उसे पहचान कर बोला ।
“अभी नहीं ।”
वह होटल के भीतर घुस गया । हैड वेटर जो पहली बार उसे देखकर बिछा जा रहा था । विचित्र सी लापरवाही के साथ बोला - “सारी सर, कोई टेबल खाली नहीं है ।”
सुनील की निगाह रामपाल की तलाश में हाल में घूस रही थी, लेकिन रामपाल कहीं दिखाई नहीं दे रहा था ।
“सर ।” - हैड वेटर अवज्ञापूर्ण स्वर से बोला - “मैंने अर्ज किया है कि कोई टेबल खाली नहीं है ।”
“मुझे टेबल चाहिये भी नहीं, अंग्रेज ।” - सुनील जले भुने स्वर से बोला - “मैं जरा क्लाक रूम तक जा रहा हूं ।”
वह हैड वेटर की ओर बिना ध्यान दिये भीतर घुस गया और डांसिंग हाल को पार करता हुआ होटल के भीतरी भाग में स्थित क्लाकरूम की ओर बढ गया । जिस गलियारे में क्लाकरूम था उसी में कुछ आगे एक कमरे पर मैनेजर की तख्ती लगी हुई थी ।
सुनील ने उस कमरे में झांककर देखा । रामपाल वहां भी नहीं था ।
वह गलियारा पार करके ज्यूल बाक्स के कम्पाउन्ड में आ गया वहां एकदम अन्धेरा था । वातावरण में प्याज भूने जाने की तीव्र गन्ध फैली हुई थी। इसके पिछवाड़े एक छोटा सा बरामदा था जो उसे पहचाना सा लगा । उसने बरामदे में स्थित द्वार को खोला ।
भीतर धुंधले प्रकाश में ऊपर जाती सीढियां दिखाई दी । सुनील चुपचाप सीढियां चढ गया । सीढियों के द्वार के बाद एक लम्बा गलियारा था उसके बाद फिर द्वार था । सुनील द्वार खोलकर अन्दर घुस गया । यह वही जुआघर था जहां वह मोना के साथ आया था ।
काले सूट वाला आदमी सुनील को देखकर घबरा गया ।
“कुछ भूल गये क्या, प्रिंस अल्फा ?” - उसने स्वयं को सम्भाला ।
“भूला कुछ नहीं हूं” - सुनील ने कहा - “एक बार फिर रौलेट की मेज पर अपनी तकदीर आजमाने चला आया हूं ।”
काले सूट वाला आदमी कुछ क्षण सोचता रहा फिर सुनील से बोला - “आप कृपा करके दो मिनट यहीं ठहरिये, मैं अभी गया ।”
“ओ के बाई मी ।” - सुनील बोला ।
काले सूट वाले आदमी ने बार के पास जाकर एक वेटर से कुछ कहा । वेटर स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाता हुआ गायब हो गया । काले सूट वाला वहीं खड़ा बेचैनी से हाथ मलता रहा ।
उसी समय हाल के दूसरे सिरे पर रामपाल की सूरत दिखाई दी । काले सूट वाला लपककर उसके पास पहुंचा और अपने हाथ पैर सिर को जोर-जोर से झटका देता हुआ रामपाल को कुछ समझाने लगा । वह बार-बार छुपी नजरों से सुनील की ओर संकेत कर रहा था ।
रामपाल भी चिन्तित दिखाई देने लगा ।
रामपाल ने सिर को एक झटका दिया और सुनील के पास आकर बोला - “हैलो प्रिंस, जरा मेरे साथ तशरीफ लाइये । आपसे कुछ बातें करनी हैं ।”
“लेकिन मैं यहां मनोरंजन के लिये आया हूं ।”
“मनोरन्जन भी हो जायेगा ।”
सुनील क्षण भर हिचकिचाया और फिर बोला - “मूव ।”
“दैट्स फाइन ।” - और रामपाल उसे हाल की भीड़ में से गुजरता हुआ एक अकेले कमरे में ले गया । और एक कुर्सी की ओर संकेत करके खुद भी बैठता हुआ बोला - “आपने जुआघर कैसे तलाश किया ?”
“जब मैं मोना के साथ यहां आया था तो एक बात मुझे बहुत चुभी कि ड्राईवर ने ज्यूल बाक्स से जुआघर लाने में बाइस मिनट लगाये थे लेकिन जुआघर से ज्यूल बाक्स तक उसने मुझे सात मिनट में ही पहुंचा दिया । क्या यह हैरानी की बात नहीं है कि एक ही रफ्तार से चलती हुई कोई कार पहली ट्रिप में तो बाइस मिनट लगाये और दूसरी बार वही फासला सात मिनट में तय कर ले ।”
रामपाल चुप रहा ।
“दूसरी बात यह कि जब मोना मुझे यहां लाई थी तो पिछवाड़े का वातावरण प्याज भूने जाने की तीव्र गन्ध से महका हुआ था । वापस आकर जब मैं ज्यूल बाक्स के पिछवाडे़ गया तो वहां भी गन्ध थी । क्या इन दोनों बातों से यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि ज्यूल बाक्स की इमारत में ही जुआघर भी स्थित है ?”
“यह सब जानकारी हासिल करके तुमने अपनी मौत को आमन्त्रित किय है ।”
“कौन मारेगा मुझे ?”
रामपाल ने एक 22 कैलिवर का रिवाल्वर निकालकर अपनी गोद में रख लिया और कठोर स्वर में बोला - “मैं ।”
“गोली चलाने से पहले यह सोच लेना कि मैं भी अपनी सुरक्षा का इन्तजाम किये बिना यहां नहीं चला आया हूं ।”
“क्या मतलब ?”
“जुआघर का पता लगते ही सबसे पहले मैंने अपने मित्र रमाकान्त को फोन किया था ।” - सुनील पूरे आत्मविश्वास से झूठ बुलता हुआ बोला - “और उसे बता दिया था कि जुआघर ज्यूल बाक्स में ही है । अगर आधे घन्टे में मैंने उसे दुबारा फोन नहीं किया तो वह इसकी सूचना पुलिस में दे देगा । जान तुम्हारी भी नहीं बचेगी ।”
“तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हुए हो सुनील ?” - वह असहाय स्वर में बोला - “तुम्हारा झगड़ा तो माइक से था जो मर-खप गया ।”
“लेकिन उसकी हत्या का अपराध तो तुम मेरे सिर मन्ढ रहे हो ।”
“अगर तुम्हारा संकेत मेरी उस गवाही से है तो मैं उस विषय में अपना मुंह नहीं खोलूंगा ।”
“देखो रामपाल अगर तुम अपने वायदे पर कायम हो तो पहले मुझे बताओ कि तुमने माइक की हत्या की है ?”
“सुनील, मैं कसम खाकर कहता हूं, मैंने माइक की हत्या नहीं थी ।”
“तुम्हें सबसे पहले कब पता लगा कि माइक की हत्या हो गई है ?”
“शायद उसकी हत्या के कुछ ही मिनट बाद, जब मैं उस कमरे में घुसा था, उस समय तक माइक के शरीर से खून रिस रहा था जिससे लगता था कि कुछ ही क्षण पहले उसे गोली मारी गई थी । मैं शोर मचाने ही लगा था कि मुझे माइक की जेब में हजार-हजार रुपये के नोट दिखाई दिये । मुझे मालूम था कि माइक किसी को ब्लैकमेल कर रहा था और उस रात उसका शिकार उसे पचास हजार रुपये देने वाला था । मैंने सोचा कि यह तो ब्लैकमेल का रुपया है अगर मैं इसे ले लूं तो किसी को क्या पता लगेगा ? मैं रुपया निकालने ही वाला था कि किसी के कदमों की आहट सुनाई दी । मैं झपटकर साथ वाले दरवाजे से बाहर निकल गया । फिर कोई माइक के कमरे में घुसा । लेकिन मैंने वहां ठहरना उचित नहीं समझा । बाद में कैरोल के शोर मचाने पर जब मैंने माइक की लाश देखी तो उसकी जेब में से पचास हजार रुपये गायब थे । इसका सीधा अर्थ यह है कि जो आदमी मेरे बाद कमरे में घुसा था उसने पचास हजार रुपये चुपचाप हजम कर लिये थे ।”
“वह कैरोल थी ।” - सुनील बोला ।
“क्या मतलब ?” - रामपाल चौका ।
“जिस कमरे में माइक की हत्या हुई । मैंने उसमें से कैरोल को बाहर निकलते देखा था । वह उस समय अपने ब्लाउज में कुछ छिपा रही थी । निश्चय ही वे पचास हजार रुपये के नोट थे । मेरे द्वारा देख लिये जाने के कारण उसने मुझे धोखे से माइक की लाश के साथ बन्द करके शोर मचा दिया था ।”
रामपाल चुप रहा ।
“जब तुम कमरे में घुसे थे” - सुनील सोचता हुआ बोला - “उस समय माइक मरा पड़ा था । कैरोल तुमसे भी बाद में भीतर गई थी । इसका मतलब यह हुआ कि अगर तुम सच बोल रहे हो तो न हत्या तुमने की है और न कैरोल ने ।”
“तो फिर हत्या जगमोहन ने की होगी ।” - रामपाल ने सुझाया ।
“जगमोहन कौन है ?”
“जिसे माइक ब्लैकमेल कर रहा था । जगमोहन ने हत्या की बात को माइक को पचास हजार रुपये दिये थे । वह नगर के एक करोड़ पति सेठ का लड़का है ।”
“जगमोहन ने हत्या की हो यह बात युक्ति संगत नहीं लगती । अगर उसने माइक की हत्या ही करनी थी तो उसने माइक को पचास हजार रूपये क्यों दिये ?”
“हालांकि कैरोल एकदम सुरक्षित स्थिति में है” - रामपाल बोला - “लेकिन न जाने क्यों मेरा मन कहता है कि हत्या उसी ने की है । मुझे उस औरत पर कभी विश्वास नहीं हुआ ।”
“लेकिन अदालत तो मन का कहना नहीं मानती ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं चला ।”
“जुआघर के मामले में अपनी जबान बन्द रखोगे न ?” - रामपाल ने व्यग्रता से पूछा ।
“बशर्ते कि मेरे मामले में तुम अपनी जबान बन्द रखोगे ।” - सुनील बोला ।
“डन ।” - रामपाल हाथ मिलाता हुआ बोला ।
“ओ के बाई मी टू ।” - सुनील बोला ।
***
सुनील ने एक पब्लिक टेलोफेन बूथ से यूथ क्लब टेलीफोन किया ।
“हैलो” - आपरेटर का मधुर स्वर सुनाई दिया - “यूथ क्लब ।”
“पुट मी टू रमाकांत ।” - सुनील बोला ।
“जस्ट होल्ड आन, प्लीज” - आपरेटर बोली - “हिज लाइन इज बिजी एट दी मूमैंट ।”
“राइट !” - सुनील बोला और फिर उसे रिसीवर कान से लगाये लगाये दो मिनट गुजर गये ।
“हैलो” - अन्त में आपरेटर का स्वर सुनाई दिया - “यू आर होल्डिंग फार ?”
“रमाकांत ।” - सुनील धैर्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“प्लीज स्पीक आन ।” - आपरेटर बोली - “ही इज आन दी लाइन ।”
“हैलो रमाकांत” - सुनील बोला - “मैं सुनील हूं । कोई नई खबर ?”
“कई हैं” - रमाकांत उत्साहपूर्ण स्वर से बोला - “सुनोगे तो फड़क जाओगे ।”
“शुरू हो जाओ” - सुनील बोला - “अधिक समय नहीं है ।”
“पहली बात यह है कि वह 22 कैलिवर की हैंडल में छेद वाली रिवाल्वर मिल गई ।”
“कहां से ?”
“वहीं जहां तुमने कहा था । माइक की कोठी के पिछवाड़े की झाड़ियों में ।”
“कुछ पता लगा कि यह रिवाल्वर किसकी है ?”
“हां जौहरी ने अभी फोन पर बताया है कि उस नम्बर की 22 कैलिवर की रिवाल्वर एक मिसेज मालती जगमोहन नाम की महिला ने खरीदी थी ।”
“ये मिसेज मालती जगमोहन कौन है ?”
“नगर के एक करोड़पति सेठ के लड़के जगमोहन की पत्नी ।”
“और ?”
“पुलिस को भी इस रिवाल्वर के विषय में पता लग गया है । इन्सपेक्टर प्रभूदयाल मिसेज मालती जगमोहन से रिवाल्वर के विषय में प्रश्न करने गया था । मालती ने बताया है कि लगभग दो सप्ताह पहले उसकी रिवाल्वर चोरी हो गई थी और उसने इस सिलसिले में अपने इलाके के पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट भी लिखवा दी थी । प्रभू ने चैक किया है, मालती की बात ठीक थी ।”
“और मेरी रिवाल्वर का क्या हुआ ?”
“उस मामले में प्रभूदयाल बड़ा बेवकूफ बना । उसने तो रिवाल्वर उठाई थी और उसे बिना देखे ही पुलिस लेबोरेटरी मे भेज दिया था । फिगर-प्रिंट सैक्शन की रिपोर्ट पढकर तो वह बहुत ही खुश हुआ क्योंकि उस रिपोर्ट के अनुसार रिवाल्वर पर तुम्हारी उंगलियों के निशान थे और तुम्हें फांसने का उसे एक नपा तुला मौका मिल रहा था लेकिन उसकी शक्ल तो उस समय देखने वाली थी जब बैलिस्टिक एक्सपर्ट की यह रिपोर्ट आई कि उस रिवाल्वर में से आज तक एक बार भी गोली नहीं चलाई गई थी । रिवाल्वर की नाल भीतर से वैसी ही साफ सुथरी पड़ी है जैसे अभी बनकर आई हो । अगर बनने के बाद उस रिवाल्वर से एक भी गोली चली होती तो उसकी नाल में बारूद के कण जरूर मिलते । फिर प्रभूदयाल ने बहादुर और रामपाल को बयान लिखावने के लिये पुलिस स्टेशन बुलाया । लेकिन दोनों ने तुम्हारे विरुद्ध बयान देने से स्पष्ट रुप से इन्कार कर दिया है । दोनों ये ही कहते हैं कि उन्होंने किसी आदमी को भागते देखा जरूर था लेकिन वे उसकी सूरत नहीं पहचान पाये थे अतः इस विषय में कोई दावा नहीं कर सकते कि वह सुनील था या कोई और ।”
“कहते जाओ ।” - सुनील सन्तुष्ट स्वर से बोला ।
“प्रभूदयाल पागल हो रहा है । वह समझता था कि तुम बच नहीं सकते थे । अब केवल एक ही इन्सान तुम्हारे विरुद्ध बोलने वाला रह गया है और वह है कैरोल ।”
“हूं ।” - सुनील विचारपूर्ण स्वर में बोला - “और कुछ ?”
“कैरोल के विषय में तो ऐसा जोरादर बात मालूम हुई है कि तुम फड़क जाओगे ।”
“क्या ?” - सुनील ने उत्सुक स्वर में पूछा ।
“सुनील, माइक, कैरोल का दूसरा पति था ।”
“क्या मतलब ? माइक ने विधवा से शादा की थी ?”
“नहीं ।” - रमाकांत का उत्तेजित स्वर सुनाई दिया - “कैरोल का पहला पति भी जिन्दा है । कैरोल ने धोखाधड़ी से माइक से शादी की होगी ।”
“लेकिन यह तो अपराध है ।” - सुनील बोला - “कोई भी औरत अपने पहले पति से तलाक लिये बिना दूसरी शादी नहीं कर सकती और अगर करती है तो नाजायज समझी जाती है ।”
“लेकिन कैरोल ने वाकई अपने पहले पति के जीवित रहते माइक से शादी की है ।”
“अगर यह बात कानून की नजर में आये तो कैरोल और माइक की शादी अवैध समझी जायेगी । उसे माइक की विधवा के रूप में मान्यता प्रदान नहीं की जायेगी नतीजा यह होगा कि उसे माइक की जायदाद में से एक पैसा नहीं मिलेगा ।”
रमाकांत चुप रहा ।
“कैरोल का पहला पति कौन है ?”
“हेनरी नाम का एक आदमी हैं । विश्वनगर में रहता है । कैरोल उसका मुंह बन्द रखने के लिये तीन सौ रूपये माहवार देती है ।”
“और कुछ ?”
“और यह कि जिस आदमी ने हत्या के दिन अपने बैंक से पचास हजार रुपये निकाले थे वह जगमोहन था ।”
“तो फिर मेरी बात सुनो ।” - सुनील बोला - “मैं जगमोहन पर पक्की निगरानी चाहता हूं, उसका कोई इन्तजाम कर सकते हो ?”
“जगमोहन ने अपने आफिस में एक पर्सनल सैक्रेटरी की वैकेन्सी निकाली है । जगमोहन उस पोस्ट पर किसी महिला को रखना चाहता है और यूथ क्लब में, तुम जानते ही हो, औरत का होना संसार का आठवां आश्चर्य है ।”
“देखो, रमाकांत, यह प्रमिला कर लेगी लेकिन उसकी सुरक्षा का पूरा इन्तजाम होना चाहिये ।”
“हो जायेगा और कुछ ?”
“और यह कि बैंक में जब भी किसी को हजार-हजार रुपये के नोटों का भुगतान किया जाता है तो नोटों के नम्बर लिख लिये जाते हैं । जो नोट जगमोहन ने बैंक में से निकाले थे तुम उनके नम्बर जानने की कोशिश करो ।”
“हो जायेगा । और ?”
“और बस प्रमिला को नौकरी मिल गई तो मैं तुम्हें फोन कर दूंगा ।”
सुनील ने फोन बन्द कर दिया ।
फिर उसने ‘ब्लास्ट’ के नम्बर डायल किये ।
“रेणु, प्रमिला है ?” - दूसरी ओर से आवाज आते ही सुनील ने पूछा ।
“सुनील !” - रेणु का स्वर सुनाई दिया - “आजकल कहां मरे हुये हो ?”
“बकवास मत करो रेणु !” - सुनील रूखे स्वर से बोला - “मेरे पास फालतू समय नहीं है । फौरन मुझे प्रमिला से कनेक्ट करो ।”
“ओ के बास !” - रेणु गम्भीरता से बोली ।
फिर उसे फोन पर प्रमिला की आवाज सुनाई दी ।
“प्रमिला !” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “जो मैं कह रहा हूं उसे गौर से सुनो - “ब्लास्ट से एक सप्ताह की छुट्टी ले लो । जगमोहन एण्ड कम्पनी में एक पर्सनल सेक्रेटरी की नौकरी है । तुम अर्जी भेजने की जगह सीधी वहां पहुंच जाओ । अगर तुम्हें वहां नौकरी मिल जाये तो मुझे इस नम्बर पर फोन कर देना ।” - सुनील ने उसे अपने होटल का नम्बर लिखवाया और इससे पहले कि प्रमिला विरोध कर पाती, उसने रिसीवर हुक पर रख दिया ।
सुनील ने काफी हाऊस से कैरोल को फोन किया ।
“हैलो !” - दूसरी ओर से कैरोल का स्वर सुनाई दिया ।
“कैरोल !” - सुनील भारी स्वर में बोला - “मैं तुमसे यहां मार्डन काफी हाऊस में कुछ बातें करना चाहता हूं ।”
“किस विषय में ?”
“हेनरी !” - सुनील ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
“मैं तुम्हें पहचानूंगी कैसे ?”
“तुम्हें जरूरत ही नहीं पड़गी । मैं पहचान लूंगा तुम्हें ।”
लगभग पन्द्रह मिनट बाद कैरोल काफी हाऊस में आई ।
“हैलो ।” - सुनील उसके पास आकर बोला ।
“तुमने फोन किया था मुझे ?”
“यह गुस्ताखी बन्दे से ही हुई थी ।” - सुनील बोला ।
“मैं अभी पुलिस को फोन करती हूं ।” - वह काउन्टर की ओर मुड़ने का उपक्रम करती हुई बोली ।
“जरूर करो नम्बर मैं बताये देता हूं और जब तुम बात कर चुको तो एक मिनट के लिये रिसीवर मुझे भी देना । इन्सपेक्टर प्रभूदयाल तुम्हारे पहले पति के विषय में जानकर बहुत खुश होगा । जालसाजी के अपराध में तुम खुद तो जेल जाओगी ही साथ में बेचारे हेनरी को भी फंसाओगी ।”
“तुम हेनरी के विषय में क्या जानते...”
“तुम जानती हो” - सुनील सीधा मतलब की बात पर आता हुआ बोला - “कि अगर हेनरी से तुम्हारी शादी की बात प्रकाश में आ जाये तो तुम कानूनी तौर पर माइक की पत्नी नहीं मानी जा सकती और बिगेमी के इल्जाम में तुम्हें सजा हो सकती है ।”
कैरोल चुप रही ।
“तुम हेनरी को अपनी जबान बन्द रखने के लिये तीन सौ रुपये माहवार देती हो जिसका मतलब है कि हेनरी को भी मालूम है कि उसने जिन्दा रहते ही तूमने कानून की आंखों में धूल झोंक कर दूसरी शादी कर ली है । नतीजा यह होगा कि राज खुल जाने पर गुनाह में मददगार के रूप में हेनरी भी जेल जायेगा ।”
कैरोल के चेहरे का रंग बदलने लगा ।
“और इतना ही नहीं, इस राज के खुल जाने पर माइक की विधवा के रूप में तुम्हें मान्यता नहीं मिलेगी । परिणाम यह होगा कि माइक की जायदाद में से तुम एक पैसे की भी हकदार नहीं होगी जबकि अगर यह बात छुपी रहे तो उसकी लाखों की जायदाद की अकेली वारिस तुम हो ।”
कैरोल का चेहरा सफेद हो गया ।
“तुम चाहते क्या हो ?” - वह कम्पित स्वर में बोली ।
“तुम खूब जानती हो मैं क्या चाहता हूं ।” - सुनील का स्वर कठोर हो उठा - “कैरोल, तुमने माइक की हत्या की है । शायद माइक को यह पता लग गया था कि तुमने अपने पहले पति के जीवित रहते ही उसने शादी कर ली है । उसने तुम्हें जेल भिजवा देने की धमकी दी होगी और तुमने सदा के लिये उसका मुंह बन्द कर देने के लिये उसकी हत्या कर दी होगी और वह इल्जाम मेरे सिर मंढने के लिये तुमने मुझे उस कमरे में बन्द कर दिया था ।”
“लेकिन माइक की हत्या तो मालती जगमोहन की रिवाल्वर से हुई थी ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?” - सुनील ने तेजी से पूछा ।
“आज अखबार में छपा था ।”
“तो फिर तुमने किसी प्रकार मालती की रिवाल्वर चुरा ली होगी जगमोहन उस दिन पार्टी में कोठी पर निमन्त्रित भी थी । अगर उसका आना जाना तुम्हारी कोठी में था तो तुम लोग भी उनके घर जरूर जाते होगे । कभी मौका मिलने पर तुमने मालती की रिवाल्वर चुरा ली होगी ।”
“लेकिन मैं सच कहती हूं, मैंने माइक की हत्या नहीं की । मैं जिस समय उस कमरे में घुसी थी, माइक मरा पड़ा था और... और मिस्टर सुनील, मैंने रामपाल को साथ वाले द्वार से बाहर जाते देखा था ।”
“तो तुम्हारा मतलब है हत्या रामपाल ने की है ?”
“सम्भव है ।”
“तुम उस रात अपने ब्लाउज में क्या छुपा रही थी ।”
“कुछ भी नहीं ।” - कैरोल एकदम बौखला गई ।
“तुमने माइक की जेब से पचास हजार रुपये के नोट नहीं निकाले ?”
“नहीं । सच पूछो तो मैं उस कमरे मे वे नोट निकालने के लिये ही गई थी लेकिन रामपाल मुझसे पहले ही उन पर हाथ साफ कर चुका था ।”
“देखो कैरोल, हर बात इस ओर संकेत करती है कि हत्या तुमने की है । अगर जो बातें मुझे मालूम है वे पुलिस को मालूम हो जायें तो तुम्हारी गरदन नहीं बच सकेगी ।”
“लेकिन ये बातें पुलिस को मालूम होंगी कैसे ?”
“मैं बताऊंगा ।”
“कोई ऐसा तरीका है जिससे तुम अपना मुंह न खोलो ।”
“है ।”
“क्या ?” - वह आशापूर्ण स्वर से बोली ।
“मेरी भी हत्या कर दो ।”
कैरोल ने निसहाय भाव से एक लम्बी सांस छोड़ी ।
“एक तरीका और भी है । अगर तुम माइक की हत्या का अपराध मेरे सिर थोपने की चेष्टा न करो तो मैं अपनी जुबान बन्द रख सकता हूं ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम पुलिस को मेरे विरुद्ध बयान देने वाली हो कि तुमने मुझे माइक को लाश के साथ उस कमरे में देखा था । तुम खूब जानती हो कि मैंने माइक की हत्या नहीं की है । अगर तुम मेरे विरुद्ध बयान न दो तो मैं भी तुम्हारे विरुद्ध कुछ नहीं बोलूंगा ।”
“मुझे सोचने का समय दो ।” - कैरोल बोली ।
“इसमें सोचने वाली बात कौन सी है ?”
“मेरा दिमाग इस समय उलझनों से भरा पड़ा है ।”
“आल राइट ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं रिट्ज होटल के दो सौ बारह नम्बर कमरे में हूं । आज शाम के पांच बजे तक मैं तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा करूंगा । उसके बाद मैं पुलिस को फोन कर दूंगा ।”
“मन्जूर है ।”
सुनील उसे वहीं छोड़ककर बाहर निकल आया ।
***
सुनील अपने होटल के कमरे में बैठा कैरोल की प्रतीक्षा करता रहा ।
पांच बजने मे पांच मिनट पर किसी ने द्वार खटखटाया ।
“कम इन ।” - सुनील बोला ।
आने वाली कैरोल ही थी । लेकिन इस कैरोल में और सुबह की कैरोल में जमीन-आसमान का अन्तर था । सुबह वह सीधे-सादे वस्त्र पहने हुए थी और अब वह भारी मेकअप और चुस्त विदेशी परिधान में फिल्म एक्ट्रेसों जैसी चमकदार लग रही थी ।
सुनील उठकर खड़ा हो गया ।
कैरोल मुस्कराती हुई उसकी ओर बढी और पास आकर अपने दोनों हाथ सुनील के कन्धों पर रख दिये ।
“सुनील?” - वह मादक स्वर से बोली - “अभी तुम कैरोल को जानते नहीं हो ।”
उसकी लम्बी-लम्बी उंगलियां सुनील के गालों पर फिरने लगी ।
“मैं अपनी शत्रुओं से बहुत बुरी तरह पेश आती हूं ।” - वह बोली और सुनील से एकदम सट गई उसकी बांहें सुनील से एक दम सट गईं । उसकी बांहे सुनील की कमर से लिपट गई और हाथ पीठ पर फिरने लगे ।
“लेकिन अपने मित्रों पर सर्वस्व निछावर कर देती हूं ।” - वह बोली । उसका सारा शरीर सिर से पांव तक चिपका हुआ था सुनील अपने हर अंग मे उसके शरीर की उष्णता का अनुभव कर रहा था । कैरोल के आधे खुले हुये होंठ बड़े उत्तेजक ढंग से बढकर सुनील के होठों से चिपक गये । उसके दोनों हाथ बड़ी मजबूती से सुनील की हिप पर जमे हुये थे । फिर हाथ हिप से हटकर गालों पर आ गये ।
कैरोल का हर एक्शन इतना अप्रत्याशित था कि सुनील की चेतना जड़ हो गयी थी ।
कैरोल के होंठ सुनील के होंठों से हटकर गाल पर आ गये फिर सुनील को उसकी उंगलियों के लम्बे नाखून अपनी बाई गाल में धंसते हुये महसूस हुए । सुनील वेदना का अनुभव करने लगा ।
कैरोल ने अपनी हाथ को एक जोर का झटका दिया । और ब्लेड की तरह सुनील के गाल को चीरते चले गये । और वहां से खून बह निकला ।
कैरोल एक झटके से उससे अगल हो गई ।
“यह क्या कर रही हो तुम ?” - सुनील ने हैरान होकर पूछा ।
“अभी बताती हूं ।” - वह बोली और उसने ब्लाउज के गिरेबान में हाथ देकर उसे फाड़ डाला, गले में पड़ी मोतियों की माला नोच डाली । मोती सारे कमरे में बिखर गये ।
उसने बिजली की तेजी से अपनी स्कर्ट को नीचे से पकड़ा और एक झटके से उसे कमर तक फाड़ डाला । उसने दो तीन हाथ मारकर अपने बाल बिखरे लिये और गला फाड़कर चिल्लाई - “बचाओ ! बचाओ !”
भड़ाक से द्वार खुला और इन्सपेक्टर प्रभूदयाल दो सिपाहियों के साथ बगोले की तरह कमरे में घुसा ।
“यह... यह आदमी... कैरोल इन्सपेक्टर को देखकर अपने मजबूत शरीर को छुपाने की असफल चेष्टा करती हुई सुबक कर बोली - “मेरी इज्जत लूटना चाहता था ।”
प्रभू ने एक नजर उजड़ी सी कैरोल पर, कमरे में बिखरे हुए मोतियों पर और सुनील के चेहरे पर लगी लिपस्टिक और खरोचों पर डाली और फिर व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला - “तो अब यह काम की शुरू कर दिया है तुमने ?”
“प्रभू” - सुनील ने प्रतिवाद दिया - “यह औरत मुझे फंसाने की चेष्टा कर रही हैं और यह हालत...”
“शटअप !” - प्रभूदयाल चिल्लाया और फिर कैरोल की ओर मुड़कर बोला - “लेकिन आप यहां करने क्या आई थी ?”
“यह आदमी पिछले एक साल से मुझे ब्लैकमेल कर रहा था” - कैरोल हिचकियों के बीच में बोली - “मैं इसे हजारों रुपया दे चुकी हूं । आज भी इसने दस हजार रुपये मांगे थे । मैं यहां इसे रुपया देने आई थी । लेकिन यह नृशन्स दरिन्दे की तरह मुझ पर झपट पड़ा और मेरी इज्जत लूटने की चेष्टा करने लगा । आपने ठीक वक्त कर आकर मुझे बचा लिया इन्सपेक्टर साहब ।”
“वे दस हजार रुपये आपने इसे दे दिये हैं इसे ?” - प्रभूदयाल ने पूछा ।
“हां ।”
“रुपये निकालो ।” - प्रभूदयाल अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
“मुझे कोई रुपये नहीं दिये हैं, इसने ।” - सुनील बोला ।
“रुपये इसने पैंट की हिप पाकेट में रखे हैं ।” - कैरोल बोली ।
प्रभूदयाल ने सुनील को कन्धे पकड़कर फिरकनी की तरह घूमा दिया और उसकी हिप पाकेट में हाथ डाल दिया ।
अगले ही क्षण उसके हाथ में हजार हजार के दस नोट थे ।
“वे रुपये इसी ने मेरी जेब में डाले हैं ।” - सुनील बोला ।
“और तुम्हें पता ही नहीं लगा ।” - प्रभूदयाल ने व्यंग्य किया ।
“प्रभू, वाकई मुझे पता नहीं ।” - सुनील बोला - “यकीन मानो, यह औरत मुझे फंसाने की चेष्टा कर रही है ।”
“अच्छा !”
“अगर जो यह कह रही है सत्य है तो तुम इससे यह पूछो कि वह उसी समय क्यों नहीं चिल्लाई जब मैं इसके कथनानुसार इस की इज्जत लूटने के इरादे से इसकी ओर झपटा था ?”
“क्या मतलब ?”
“क्या यह बात तुम्हें युक्तिसंगत नहीं लगती है कि पहले मैंने इस पर काबू पाने के लिये इससे छीना झपटी करता रहा, यह बचती रही, फिर इसने मेरा मुंह खरोच डाला, फिर मैंने इसे पकड़ लिया और कपड़े फाड़ने शुरू कर दिये और जब मैंने इसके ब्लाउज नोंच कर उतार दिया, इसकी स्कर्ट फाड़ डाली तब यह मदद के लिये चिल्लाई । आखिर इसने उसी वक्त शोर क्यों नहीं मचाया जब मै बुरे इरादे से इसकी ओर झपटा था ?”
“मैं घबरा गई थी ।” - कैरोल जल्दी से बोली ।
“और फिर तुम एकाएक यहां कैसे पहुंच गये ?” - सुनील ने प्रभू से पूछा ।
“बरखुरदार, कैरोल हमें अपने साथ लायी थी । उसे पहले से ही भय था कि तुम उसे अकेले पाकर जरूर कोई उत्पात करोगे ।”
“कैरोल के कथनानुसार मैं इसे एक साल से ब्लैकमेल कर रहा हूं । तुम इससे यह पूछो कि आज ही इसे सावधानी बरतने का ख्याल कैसे आया ? एक साल में कितनी ही बार वह मुझे धक्का देने के लिये अकेली मिली होगी क्या हर बार इसी तरह वह अपने साथ पुलिस के सिपाही लाया करती थी ?”
“इससे पहले इसकी दिलचस्पी सिर्फ रुपया हुआ करती थी ।” - कैरोल बोली - “लेकिन आज सुबह जब इसने मुझे रुपया लेकर यहां आने को कहा तो इसके व्यवहार से यह स्पष्ट रूप से प्रकट हो रहा था कि अब वह रुपये के साथ साथ रुपये देने वाली को भी प्राप्त करना चाहता है ।”
“प्रभू मैं कहता हूं...”
“तुम कुछ नहीं कहते हो ।” - प्रभूदयाल हाथ उठाकर बोला - “दलीलें सुनना मजिस्ट्रेट का काम है मेरा नहीं । वर्तमान स्थिति में हर बात इस ओर संकेत कर रही है कि तुम अपराधी हो । मैं तुम्हें ब्लैकमेलिंग और बलात्कार के अपराध में गिरफ्तार करता हूं । बाद में तुम पर माइक की हत्या का भी आरोप लगाया जा सकता है ।”
“प्रभू !”
“हथकड़ियां डालो ।” - प्रभू चिल्लाया ।
सुनील के हाथों में हथकड़ियां भर दी गईं ।
प्रत्यक्ष था कि प्रभूदयाल बुरी तरह प्रभावित था ।
“आप यहीं रहिये ।” - प्रभू मक्खन में लिपटे स्वर में कैरोल से सम्बोधित हुआ - “मैं आपके लिये नये कपड़े भिजवा दूंगा ।”
कैरोल ने सुबकते हुये सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
***
सुनील को जेल की एक कोठरी में बन्द कर दिया गया ।
लगभग ग्यारह बजे एक हवलदार आया और सुनील को प्रभूदयाल के कमरे में लिवा ले गया ।
कमरे में प्रभूदयाल पिटा सा मुंह लेकर बैठा था और उसके सामने की कुर्सियों पर गम्भीर मुद्रा बनाए प्रमिला और एक और सज्जन बैठे थे ।
प्रभूदयाल ने हाथ के इशारे से सुनील को एक कुर्सी पर बैठने का संकेत किया ।
“सोनू !” - प्रमिला बोली - “इनसे मिलो । ये मिस्टर चटर्जी हैं, वकीलों की फर्म चटर्जी एण्ड मुखर्जी के सीनियर पार्टनर । प्रभूदयाल के विरुद्ध मानहानि और फाल्स अरैस्ट का जो केस हम लड़ने जा रहे हैं उसमें ये तुम्हारी पैरवी करेंगे ।”
“आखिर बात को इतना बढाने की जरूरत क्या है !” - प्रभूदयाल दबे स्वर में बोला ।
“जरूरत है कैसे नहीं ?” - प्रमिला एकदम फट पड़ी - “आखिर तुम अपने-आपको समझते क्या हो ! तुम समझते हो थाने कि भीतर जो कुछ हो रहा है उसका हमें पता नहीं चलता ? तुमने एक बोगस केस के अन्तर्गत सुनील को पेशेवर अपराधियों और शराबियों के साथ बन्द रखा और सुबह जब सारे अपराधियों को उस कोठरी में से निकाल दिया था तो भी तुमने उसे बन्द रखा ।”
“यह एक गलतफहमी की वजह से हुआ ।” - प्रभूदयाल दबे स्वर से बोला - “हवलदार ने सुनील को भी कोई तीसरे दर्जे का मुजरिम समझा था ।”
“गलतफहमी !” - प्रमिला जहर भरी नजरों से प्रभूदयाल को देखती हुई बोली - “तुम इस गलतफहमी कहते हो ! तुमने एक दो कौड़ी की औरत के बहकावे में आकर सुनील जैसे आदमी को जेल में बन्द रखा, उसे हर प्रकार से टार्चर करने की कोशिश की और जब सारी दास्तान को गलतफहमी बताकर लीपापोती करना चाहते हो ! हूं हूं गलतफहमी । माई फुट ।”
“यहां ये सब बात करने से कोई फायदा नहीं है ।” - चटर्जी बोले - “इन्सपेक्टर साहब, मिस्टर सुनील, की बीस हजार की जमानत का कागज आपके सामने हाजिर है । यह फर्स्ट क्लास मैजिस्ट्रेट का आर्डर है अगर अब भी आपको सुनील को रिलीज करने में कोई एतराज है तो फरमाइये ।”
“मुझे क्या एतराज हो सकता है !” - प्रभूदयाल बोला - “लेकिन इतना जरूर है कि अगर कैरोल ने सुनील के साथ जो व्यवहार किया वह उसे भूल जाये तो कैरोल सुनील के विरुद्ध कोई केस नहीं करेगी ।”
“वह हरामजादी क्या खाकर केस करेगी !” - प्रमिला गरजी - “उसका लिखित बयान मेरे पास है कि उसने सुनील को फंसाने की चेष्टा की थी ।”
“तुम्हारे पास उसका बयान होना कोई मायने नहीं रखता है । वह तो कह देगी कि उसका बयान उससे जबरदस्ती लिखवाया गया है ।”
“किस्सा क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“मेरे पास कैरोल का लिखित बयान है कि उसने तुम्हें फंसाने के लिये ही यह सब ड्रामा रचा था । वास्तव में न तो तुम उसे ब्लैकमेल कर रहे थे और न ही तुमने उससे बलात्कार करने की चेष्टा की थी ।”
“तुम्हारे पास वह बयान कहां से आया ?” - सुनील ने प्रमिला से पूछा ।
“बस आ गया ।” - वह लापरवाही से बोली ।
“और प्रभू” - सुनील प्रभू की ओर मुड़ा - “तुम्हारा मतलब यह है कि अगर मैं, कैरोल ने जो मेरे साथ दुर्व्यवहार किया है उसे भूल जाऊं तो कैरोल भी मेरे विरुद्ध कोई केस नहीं करेगी और पुलिस के रिकार्ड में कुछ भी नहीं आयेगा ?”
“हां ।” - प्रभू बोला ।
“तो फिर वे दम हजार रुपये जो तुमने मेरी जेब में से निकाले थे मुझे वापिस करो ।”
“क्यों ! वे तो कैरोल के हैं ।”
“तुमने तो मेरी जेब में से बरामद किये थे न ?”
“लेकिन वह रुपया है तो कैरोल का ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“भई, वे तो वही रुपये हैं जो कैरोल ने तुम्हारी जेब में डाले थे ।”
“वकील साहब” - सुनील चटर्जी की ओर घूमा - “आप गवाह हैं कि इन्सपेक्टर प्रभूदयाल ने खुद स्वीकार किया है कि वे रुपये कैरोल ने ही मेरी जेब में डाले थे ।”
“क्या मतलब ?” - प्रभू एकदम बौखलाकर बोला ।
“मतलब यह कि अगर तुम यह कहोगे कि वे रुपये कैरोल ने मेरी जेब में डाले थे तो कैरोल के विरूद्ध जो मानहानि का मुकदमा मैं करूगा उसमें मेरे सबसे बड़े गवाह तुम होगे । तुम चाहते हो कि मैं सारी दास्तान भूल जाऊं, तो वे दस हजार रुपये तुम्हें मुझे लौटाने पड़ेंगे क्योंकि वे तुमने मेरी जेब में से निकाले थे । अगर कैरोल उस रुपये पर अपना हक जातायेगी तो उसका स्टंट प्रकाश मे आये बिना नहीं रहेगा ।”
प्रभू कुछ क्षण सोचता रहा और फिर उसने हजार-हजार रुपये के दस नोट निकालकर मेज पर पटक दिये ।
सुनील ने चुपचाप नोट उठाकर जेब के हवाले किए और फिर प्रभूदयाल की ओर बिना देखे ही प्रमिला और चटर्जी के साथ पुलिस स्टेशन से बाहर निकल आया ।
“ओ के मिस्टर चटर्जी ।” - प्रमिला बोली - “थैंक्स ए लाट फार दी ट्रबल ।”
“नैवर माइड दैट यंग लेडी ।” - चटर्जी प्रमिला का कंधा थपथपाते हुए बोले ।
सुनील ने भी उससे हाथ मिलाया ।
“तुम लोग भी मेरी कार में चलो” - चटर्जी बोले - “जहां कहोगे ड्राप कर दूंगा ।”
“नहीं वकील साहब” - सुनील बोला - “हम ठीक हैं ।”
“ओ के दैन ।” - और वकील साहब विदा हो गए ।
“ये कैरोल के लिखित बयान का क्या किस्सा है ?” - चटर्जी की कार दृष्टि से ओझल हो जाने के बाद सुनील ने पूछा ।
“रमाकांत के निर्देश पर दिनकर कैरोल की निगरानी कर रहा था” - प्रमिला ने बताया - “शाम को कैरोल और तुम्हारे बीच में जो गड़बड़ हुई थी दिनकर ही ने उसकी सूचना मुझे दी थी । मुझे उस हरामजादी पर इतना क्रोध आया कि उसके अपनी कोठी में वापिस आते ही मैं उस पर चढ दौड़ी । मैंने उसके बेडरूम में उसे पकड़ लिया । सारी खिड़कियां दरवाजे बन्द करके पहले तो मैंने उसकी धुनाई की, फिर मैं उसे फर्श पर गिरा कर उसके पेट पर बैठ गयी और तब तक बैठी रही जब तक उसने अपनी सारी बदमाशी एक कागज पर लिखकर उस पर साइन नहीं कर दिया । उस समय तक मलिक साहब ने चटर्जी की सहायता से तुम्हारी जमानत का भी इन्तजाम कर दिया था प्रभूदयाल को जब मैंने दोनों कागज दिखाये तो उसके तो होश उड़ गये । सुनील मेरा तो जी चाह रहा था कि मार मारककर उस प्रभू के बच्चे की खोपड़ी पिलपिली कर दूं तुम्हें बहुत टार्चर किया उसने ।” - अन्तिम शब्द कहते कहते प्रमिला की आवाज भर्रा गई ।
सुनील चुप रहा ।
“जगमोहन एण्ड कम्पनी में तुम्हें नौकरी मिल गई ?” - कुछ देर बाद सुनील ने पूछा ।
“नौकरी तो मुझे मिल गई गई है लेकिन वहां से कुछ हाथ लगने वाला नहीं है, सुनील । जगमोहन तो बेचारा बहुत ही भला आदमी है । मेरे ख्याल से तो हत्या उस कैरोल की बच्ची ने की है ।”
“खैर, फिर भी एक सप्ताह जगमोहन को चैक कर लेने में कोई हर्ज नहीं है ।”
“ठीक है फिर ।”
“अब तुम जाओ ।”
“और तुम ?”
“मैं पहले रमाकांत को फोन करूंगा और फिर होटल का बिल चुका कर अपने फ्लैट में चला जाऊंगा । हां, एक बात और पम्मी । अब तुम मुझे मेरे फ्लैट पर टेलीफोन करना । होटल मैं छोड़ रहा हूं ।”
“ओ के ।”
“ये जगमोहन एण्ड कम्पनी है कहां ?”
“शंकर रोड पर, मैट्रो सिनेमा के सामने ।”
सुनील ने एक टैक्सी रुकवाई और उसमें प्रमिला को भेज दिया ।
उसने एक पैट्रोल पम्प से यूथ क्लब फोन किया ।
“रमाकांत ।” - सुनील ने पूछा - “कोई नई खबर ?”
“यहां कैरोल ने तुम्हारे विरुद्ध बयान नहीं दिया है ।” - रमाकांत की आवाज सुनाई दी ।
“यह मुझे मालूम है । और कुछ ?”
“दैट्स आल ।”
“बैंक से उन हजार-हजार रुपये के नोटों की लिस्ट नहीं मिली जो जगमोहन ने माइक को देने के लिये निकाले थे ?”
“मिल गई है । मैं बताना भूल गया था ।”
“अब है बह लिस्ट तुम्हारे पास ?”
“हां है ।”
“तो मैं कुछ नम्बर बोलता हूं । तुम देखो कि ये नम्बर उस लिस्ट में हैं ?”
“बोलो ।”
सुनील ने कैरोल वाले दस नोट निकाले और फोन पर उसके नम्बर पढ दिये ।
“ये तो सारे ही हैं इस लिस्ट में ।” - रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
सुनील सोच में पड़ गया । यह बात तो निर्विवाद रूप से सिद्ध हो गई थी कि माइक की जेब में से पचास हजार रुपये कैरोल ने निकाले थे और इस तथ्य की उपस्थिति में कैरोल ने ही हत्या भी की होगी इस बात की सम्भावना अधिक दिखाई देने लगी थी ।
“रमाकांत” - वह माउथपीस में बोला - “केस तो समाप्त ही समझो । तुम इस पर से अपने आदमियों को हटा लो ।”
“लेकिन हत्यारा कौन है ?”
“यह अभी नहीं बताऊंगा । दूसरी बात यह है कि मैं होटल छोड़ रहा हूं । अब तुम मेरे फ्लैट पर फोन करना ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
***
अगले दिन शाम को लगभग छः बजे सुपरिन्टेन्डेंट रामसिंह सुनील के फ्लैट पर आया । उसके स्वभावानुसार आधा फुट लम्बा सिगार उसके दांये हाथ के अंगूठे और पहली उंगली के बीच में नाच रहा था ।
“प्रभू से फिर झड़प हो गई तुम्हारी ।” - रामसिंह अपनी पहाड़ जैसी छाती को सिगार के धुंए से भरता हुआ बोला ।
“तो खबर सुपर साहब तक पहुंच गई है ।” - सुनील बोला ।
“सुनील प्रभूदयाल के मामले में तुम भारी गलतफहमी का शिकार हो । मैं उसे अपने डिपार्टमैंट का सबसे जिम्मेदार आफिसर समझता हूं । दिक्कत सिर्फ यह है कि वह जरा लट्ठमार तरीकों में विश्वास रखता है । वह साधारण नागरिकों का कानून से खिलवाड़ करना बर्दाश्त नहीं कर सकता । तुम्हारा काम करने का तरीका उसे पसन्द नहीं है क्योंकि केस में तुम किसी न किसी तरह पुलिस से एक कदम आगे रहने की चेष्टा करते हो । प्रभू इसे क्रिमिनल एक्ट मानता है और इस मामले में वह तुमसे खुन्दक खाता है इसलिये जब भी कभी उसे तुम्हें फंसा लेने का मौका दिखाई देता है वह अपना विवेक खोकर तुम पर झपट पड़ता है और तुम्हारी किसी न किसी तिकड़म से अन्त में मूर्ख बन जाता है ।”
“सुपर साहब” - सुनील उपहासपूर्ण स्वर से बोला - “मुझसे मिलने आये हो या प्रभूदयाल की पैरवी करने ?”
“एक बार में दोनों काम भी तो हो सकते हैं ।”
“हो सकते हैं बशर्ते कि होस्ट इजाजत दे ।”
“मुझे भरोसा है कि...”
उसी समय फोन की घण्टी बज उठी ।
सुनील ने मेज के कोने में पड़े दो टेलीफोनों पर नजर डाली । घन्टी उस फोन की बज रही थी जिसका नम्बर डायरेक्ट्री में अंकित नहीं था ।
“यह जरूर प्रमिला का फोन होगा ।” - वह फोन की ओर झुकता हुआ बोला ।
उसने जल्दी से रिसीवर उठाया और उसे कान से लगाकर बोला - “हैलो ।”
दूसरी ओर कोई मानव स्वर सुनाई नहीं दिया । केवल हल्की सी ठक... ठक की आवाज आती रही ।
“हैलो, हैलो !” - सुनील तनिक ऊंचे स्वर से बोला ।
लेकिन दूसरी ओर से ओपन लाइन की सांय-सांय और ठक... ठक के विचित्र स्वर के अतिरिक्त और कुछ सुनाई न दिया ।
“हैलो ।” - सुनील चिल्लाया ।
उसी समय दूसरी ओर से रिसीवर भड़ाक से क्रेडिल पर मारे जाने का स्वर सुनाई दिया और कनैक्शन कट गया ।
सुनील कुछ क्षण अवाक सा रिसीवर को देखता रहा । फिर उसने बिजली को तेजी से यूथ क्लब के नम्बर डायल किये ।
“रमाकांत को बुलाओ ।” - सुनील फोन पर दहाड़ा ।
“आप कौन बोल...”
“बी क्विक, यू फूल ।” - सुनील आपरेटर की बात काटकर चिल्लाया - “फौरन रमाकांत को कनैक्ट करो ।”
कुछ ही क्षण बाद उसे टेलीफोन पर रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
“रमाकांत !” - सुनील ने उतावली से पूछा - “तुमने फोन किया था मुझे ?”
“कब ?”
“अभी ?”
“नहीं तो ।”
सुनील ने रिसीवर क्रेडिल पर पटका, कुर्सी पर से कोट उठाया और फ्लैट से बाहर की ओर भागता हुआ बोला - “कम आन रामसिंह जल्दी । वक्त नहीं है ।”
रामसिंह क्षण भर हिचकिचाया और फिर सिगार फेंककर सुनील के पीछे भागा ।
“तुम पुलिस कार पर आये हो ?” - सुनील ने गलियारे में भागते हुए पूछा ।
“हां लेकिन हो क्या गया है ?”
“उसमें सायरन लगा हुआ है ?”
“हां, लेकिन...”
“जल्दी चलो ।”
सुनील तूफान की गति से सीढियां उतरा और सड़क पर खड़ी पुलिस कार में जा बैठा । उसके पीछे-पीछे हांफता हुआ रामसिंह उतरा और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ।
“मामला क्या है ?” - उसने स्टेयरिंग सम्भालते हुये पूछा ।
“कुछ बताने की फुरसत नहीं है । रामसिंह, यह जिंदगी और मौत का सवाल है । सायरन आन कर दो और कार को जितनी तेज चला सकते हो, चलाओ ।”
“जाना कहां है ?”
“शंकर रोड पर । मैट्रो सिनेमा के सामने ।”
रामसिंह ने गाड़ी स्टार्ट की, गाड़ी में लगा पुलिस का एमरजेन्सी सायरन आन किया, कार को एक गहरा यू टर्न दिया और फिर लाल सिगनलों की परवाह किये बिना सड़कों को उधेड़ता हुआ कार को शंकर रोड की ओर भागने लगा ।
“जल्दी... जल्दी !” - सुनील बेसब्री से चिल्लाये जा रहा था - “स्पीड बढाओ न यार । क्या चींटी की रफ्तार से सरक रहे हो ।”
“एक्सीडेंट करवाओगे क्या ?”
“कुछ नहीं होता । तुम जल्दी करो ।”
कार के शंकर रोड में प्रविष्ट होते ही सुनील बोला - “अब सायरन बन्द कर दो नहीं तो वे लोग सचेत हो जायेंगे ।”
रामसिंह ने सायरन बन्द कर दिया ।
“अगर यह सब तुम उस टेलीफोन काल के मारे कर रहे हो ।” - रामसिंह बोला - “तो कम से कम मुझे इतना तो बता दो कि उसमें कहां क्या गया था ?”
“कुछ भी नहीं ।”
“क्या ?” - रामसिंह हैरानी से चिल्लाया और उसका पांव अपने आप ब्रेक पर जा पड़ा ।
“स्पीड कम मत करो । रामसिंह वह टेलीफोन काल इसलिये इतनी महत्वपूर्ण थी क्योंकि उसमें कुछ कहा नहीं गया था । दुनिया में केवल दो ही आदमी उस टेलीफोन का नम्बर जानते हैं एक प्रमिला, दूसरा रमाकांत । और रमाकांत कहता था कि उसने टेलीफोन नहीं किया ।”
“हे भगवान !” - रामसिंह मुंह बिगाड़ कर बोला - “क्या अक्ल का दिवाला निकाला है तुमने भी । भाई मेरे, किसी को गलत नम्बर मिल गया होगा । जब उसने तुम्हारी आवाज सुनील वह समझ गया कि गलत नम्बर मिल गया है सो उसने टेलीफोन बंद कर दिया और मैं मूर्खों की तरह यहां कार भगाये चला आया ।”
“लेकिन दूसरी ओर वाले ने मेरी आवाज नहीं सुनी । दूसरी ओर से तो किसी ने रिसीवर उठाया और क्रेडिल पर पटक दिया रिसीवर जरूर तार के सहारे नीचे लटका हुआ होगा । रिसीवर के मेज या किसी और चीज के साथ बजने की ठक-ठक की आवाज मुझे अपने फोन में सुनाई दे रही थी । प्रमिला ने किसी तरह नम्बर तो डायल कर लिया होगा लेकिन वह बात करने की स्थिति में नहीं होगी ।”
रामसिंह ने बुरा सा मुंह बनाया । प्रत्यक्ष था कि उसे सुनील की दलील पसंद नहीं आई थी ।
“सिनेमा के सामने रोक दो ।” - सुनील बोला ।
कार रुकते ही सुनील उसमें से कूद पड़ा । उसने सामने इमारत पर लगे हुए बोर्ड देखने आरम्भ कर दिये । तीसरी मंजिल पर नियोन साइन लगा हुआ था - “जगमोहन एण्ड कम्पनी ।”
“सुनील तुम जरूर किसी मुसीबत...”
लेकिन सुनील ने सुना ही नहीं । वह लपकता हुआ इमारत की ओर भागा और उसकी सीढियां चढने लगा ।
रामसिंह भी उसके पीछे भागा ।
सुनील ने जगमोहन एण्ड कम्पनी के आफिस के सामने जाकर द्वार को हल्का सा धक्का दिया । द्वार भीतर से बन्द था ।
सुनील द्वार से कुछ कदम पीछे हटा और फिर उसने पूरे जोर से अपने शरीर को द्वार से टकरा दिया । द्वार चरमरा गया ।
“सुनील ?” - रामसिंह घबराया - “दिस इज क्रिमिनल एक्ट । दिस इज ट्रेसपासिंग । विदाउट सर्च वारन्ट...”
“तुम देखते जाओ ।” - सुनील बोला उसने द्वार को एक और भरपूर धक्का दिया और द्वार चौखट से उखड़ गया ।
आफिस खाली पड़ा था ।
सुनील आफिस के फर्नीचर को क्रास करता हुआ पिछले कमरों की ओर लपका । रामसिंह उसके पीछे था ।
एक कमरे पर प्लेट लगी हुई थी - “जगमोहन, प्रोप्राइटर ।”
सुनील के द्वार को धकेलने से पहले ही द्वार भीतर की ओर से खुल गया और द्वार में लगभग तीस साल का एक युवक दिखाई दिया ।
“तुम जगमोहन हो ?” - सुनील ने बेसब्री से पूछा ।
“हां ।” - वह रुके स्वर से बोला - “लेकिन तुम लोग भीतर कैसे आये, कौन हो तुम ?”
सुनील ने देखा । उस कमरे के पीछे भी एक और कमरा था जिसका द्वार बन्द था ।
सुनील जगमोहन के उत्तर की परवाह किये बिना उसे धकेलता हुआ उस द्वार की ओर बढा ।
“खबरदार !” - वह चिल्लाया - “उस दरवाजे को हाथ मत लगाना ।”
उसने लपककर सुनील की बांह थाम ली और उसे वापिस घसीटने लगा ।
सुनील का दांया हाथ घूसे की शक्ल में घूमा और पूरे जोर से जगमोहन के जबड़े से टकराया ।
जगमोहन लड़खड़ाकर पीछे की ओर गिरा ।
सुनील ने झपटकर द्वार खोल दिया और भीतर घुस गया ।
भीतर एक पलंग पर प्रमिला पड़ी थी । उसके हाथ-पांव बंधे हुये थे और मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था ।
जगमोहन सुनील के पीछे झपटा । वह क्षण भर के लिये रुका और फिर घूमकर वापिस भागा ।
लेकिन रामसिंह का पहाड़ जैसा शरीर यूं द्वार पर छाया हुआ था कि एक चूहा भी नहीं निकल सकता था ।
“सुनील, क्या बात है ?” - रामसिंह ने पुकार कर पूछा
“यहां आकर देख लो ।” - सुनील बोला ।
रामसिंह ने मजबूती से जगमोहन की एक बांह पकड़ी और फिर आगे आकर भीतर कमरे में झांका ।
उसे बंधी हुई प्रमिला दिखाई दे गई । सुनील प्रमिला के मुंह में ठूंसा कपड़ा निकाल चुका था और अब रस्सी की गांठें खोल रहा था ।
“छोड़ो मुझे ।” - जगमोहन अपनी कलाई छुड़ाने की चेष्टा करता हुआ बोला ।
रामसिंह ने जगमोहन को गिरहबान से पकड़ा और उसकी पीठ को भड़ाक से दीवार के साथ दे मारा और बोला - “चुप खड़े रहो ।”
सुनील ने प्रमिला के बंधन खोल दिये ।
प्रमिला खड़ी हो गई और कुछ क्षण शरीर में रक्त के संचार को व्यव्स्थित करने के लिये हाथ-पांव चलाती रही ।
“तुम ठीक हो ?” - सुनील ने व्यग्रता से पूछा ।
“हां ।” - वह बोली ।
“हुआ क्या था ?”
“आज जगमोहन की पत्नि मालती आफिस में आई थी । दोनों बड़ी गम्भीरता से बातें कर रहे थे । मैं द्वार से कान लगा कर उनकी बातें सुन रही थी । जगमोहन अपनी पत्नी से कह रहा था उसे पूरा विश्वास है कि माइक की हत्या उसने की है लेकिन जब तक वह उस तथ्य को अपने मुंह से स्वीकार नहीं कर लेगी, वह भारी बेचैनी का अनुभव करता रहेगा ।”
“मालती ने माना था कि हत्या उसने की है ?” - सुनील ने व्यग्रता से पूछा ।
“हां, और अभी तो वह बहुत कुछ कहती लेकिन उसी समय जगमोहन को मेरी उपस्थिति का आभास हो गया । उसने मुझे पकड़ लिया और मेरे हाथ-पांव बांधकर मुझे इस कमरे में डाल दिया । मैंने धीरे-धीरे टेलीफोन की ओर सरकना आरम्भ कर दिया । हाथ-पांव बंधे होने के कारण मैं ढंग से तो टेलीफोन कर नहीं सकती थी इसलिये मैंने पैर मार-मार कर किसी तरह रिसीवर को क्रेडिल के नीचे गिरा दिया और पांव से ही तुम्हारा अनलिस्टेड नम्बर मिलाया । मैं बात तो नहीं कर सकती थी लेकिन फिर भी मुझे भरोसा था कि तुम सिग्नल समझ जाओगे । रिसीवर तार के सहारे नीचे झूल रहा था और पलंग के पाये के साथ टकरा रहा था । जगमोहन ने वह ठक-ठक की आवाज सुनी और वह यह देखने के लिये चला आया कि इस कमरे में क्या हो रहा है । उसने मुझे टेलीफोन से धकेल दिया और रिसीवर को उठा कर बाहर क्रेडिल पर पटक दिया लेकिन उसे यह पता नहीं लगा था कि मैंने काल कम्पलीट कर ली थी ।”
“यह झूठ है ।” - जगमोहन ने प्रतिवाद किया - “यह औरत सरासर झूठ बोल रही है । मैंने तो उसे दफ्तर में चोरी करते पकड़ा था । मैं तो...”
“शटअप ।” - रामसिंह गरजा और उसने जगमोहन को एक कुर्सी में पटक दिया ।
“रामसिंह ।” - सुनील बोला - “माइक की हत्या उसकी पत्नि ने की है और अगर हम समय पर न पहुंच गये होते तो शायद वे लोग प्रमिला को भी मार डालते ।”
रामसिंह ने प्रश्नसूचक दृष्टि से जगमोहन की ओर देखा ।
“तुम लोग क्या बकवास कर रहे हो, मुझे कुछ मालूम नहीं है ।” - जगमोहन बोला - “तुम लोग द्वार तोड़कर मेरे आफिस में घुसे हो । इसके लिये तुम्हें पछताना पड़ेगा ।”
“तुम सच नहीं बोलोगे ?” - रामसिंह ने पूछा ।
जगमोहन चुप रहा ।
“मैं बुलवाता हूं तुम्हें ।” - रामसिंह बोला ।
उसने अपना कोट उतारकर एक कुर्सी पर पटका और फिर अपनी बांहें ऊपर चढाता हुआ बोला - “सुनील, हमारी पुलिस फोर्स कितनी ही सभ्य और सुसंस्कृत क्यों न हो जाये फिर भी इन्सपेक्टर प्रभूदयाल के धक्केशाही के तरीके कभी-कभी बहुत करामाती साबित होते हैं । उसका एक ज्वलन्त उदाहरण मैं तुम्हें अभी देता हूं । प्रमिला, जरा दूसरे कमरे में चली जाओ और तुम” - वह जगमोहन की ओर घूमा - “खड़े हो जाओ प्यारेलाल !”
जगमोहन यूं बैठा रहा जैसे उसने सुना ही न हो ।
रामसिंह का मन भर का हाथ इतनी जोर से उसके जबड़े पर पड़ा कि वह कुर्सी समेत दूसरी ओर उलट गया । रामसिंह ने कोट का कालर पकड़कर उसे उठाया और एक भरपूर झापड़ उसके मुंह पर जड़ दिया ।
“माइक की हत्या के बारे में तुम क्या जानते हो ?” - रामसिंह दहाड़ा ।
जगमोहन के मुंह से एक शब्द नहीं फूटा लेकिन उसके नेत्रों में आतंक का भाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था ।
रामसिंह ने उसे बोलता न देखकर उसके पेट में एक घूंसा जड़ दिया, जगमोहन दर्द से दोहरा हो गया । रामसिंह ने उसे सिर के बालों से पकड़कर सीधा कर दिया और कहा - “मैं तो तुम्हें सिर्फ ट्रेलर दिखा रहा हूं । पुलिस स्टेशन पर जो दुर्गति तुम्हारी सिपाही करेंगे, उसकी तो तुम कल्पना भी नहीं कर सकते ।”
“मैं... मैं” - वह हांफता हुआ बोला - “मैं बताता हूं ।”
“यह हुई न अक्लमन्दी की बात ।” - रामसिंह उसे एक कुर्सी पर ढेर करता हुआ बोला - “अब शुरू हो जाओ ।”
“मालती ने माइक की हत्या की ।” - वह अपनी सांसों को व्यवस्थित कर बोला - “माइक मुझे तीन साल से ब्लैकमेल कर रहा था, तीन साल में उसने मुझसे लाखों रुपया ले लिया था । मैं इस ब्लैकमेलिंग से बहुत परेशान था माइक के भय से मेरा दम निकला जा रहा था । लगभग छः महीने पहले मेरी पत्नी को यह पता लग गया कि माइक मुझे ब्लैकमेल कर रहा है । उसने चुपचाप बिना मुझसे जिक्र किये माइक के खून की स्कीम बनानी आरम्भ कर दी । पहले उसने एक रिवाल्वर खरीदी । फिर कुछ महीनों बाद उसने यह घोषित कर दिया कि रिवाल्वर चोरी हो गई । उस रात माइक की पार्टी में मालती भी मेरे साथ गई थी । माइक की पचास हजार रुपये देकर लौटने के थोड़ी देर बाद ही वह उस कमरे में घुसी और उसने माइक को गोली मार दी । फिर रिवाल्वर को वहीं फेंककर चुपचाप बाहर निकल आई । मुझे माइक की हत्या का तब पता लगा जब उसी पत्नी कैरोल ने शोर मचाया हम द्वार तोड़कर भीतर घुसे । माइक की लाश के पास पड़े रिवाल्वर की मूठ में छेद था इसीलिये मुझे उसकी पहचान थी । तब मुझे पहली बार इस बात का संदेह हुआ था कि शायद मालती ने एक नपी तुली स्कीम के अनुसार माइक की हत्या कर दी है ताकि माइक से मेरा पीछा छूट जाये । उसी कमरे में ही 22 कैलिवर का एक और रिवाल्वर भी पड़ा था । मैंने मालती वाला रिवाल्वर चुपचाप उठाया और सबकी नजर बचाकर खिड़की से बाहर झाड़ियों में फेंक दिया मैंने तो यह काम इस आधार पर किया था कि शायद मालती ने माइक की हत्या की हो । लेकिन साथ में मुझे यह भी लगता था कि सम्भव है कि मालती की रिवाल्वर सच में ही चोरी हो गई हो और जिसने रिवाल्वर चुराई हो उसी ने माइक की हत्या भी की हो । मैं बहुत बेचैन था । मैं रोज मालती से इस विषय में पूछता था लेकिन वह बताती नहीं थी । फिर पुलिस को मालती की रिवाल्वर झाड़ियों में से मिल गई । पुलिस हमारी कोठी पर पूछताछ करने आई तो मैं और भी घबरा गया । मैंने मालती को और भी जोर देकर पूछना शुरू कर दिया क्योंकि इस समय तो मेरे ख्याल से कुछ किया भी जा सकता था । एक बार अपनी तफ्तीश के फलस्वरूप अगर पुलिस मालती तक पहुंच जाती तो उसे बचाना कठिन हो जाता । आज मालती ने स्वीकार किया था कि माइक की हत्या उसने की है लेकिन वह बात प्रमिला ने भी सुन ली । मैंने इसे पकड़कर बांध दिया लेकिन यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी कि हम प्रमिला का मुंह बन्द रखें तो कैसे ? अन्त में हमने इसे यूं ही ही छोड़कर भाग निकलने का फैसला किया । मैंने मालती को आवश्यक सामान लेने के लिये घर भेजा और यहां बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था कि आप लोग आ धमके ।”
“तो इसका मतलब है कि मालती यहीं आने वाली है ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“मालती आ गई है ।” - एक स्त्री का स्वर सुनाई दिया।
सबके नेत्र द्वार की ओर घूम गये । मालती द्वार की चौखट पकड़े खड़ी थी । उसके पांव लड़खड़ा रहे थे और नेत्र मूंदे जा रहे थे ।
“मालती ।” - जगमोहन चिल्लाया और उसकी ओर झपटा ।
“आफिसर ।” - मालती जगमोहन की बांहों में झूमती हुई धीमे स्वर से रामसिंह से सम्बोधित हुई - “मैं मालती जगमोहन स्वीकार करती हूं कि हत्या मैंने की है । मेरे पति का इसमें कोई हाथ नहीं है । और विश्वास रखो, आफिसर, उस अधम पुरुष की हत्या करके मुझे तनिक भी दुख नहीं हुआ है । लोगों के सुख-चैन के लिये उसका मरना ही श्रेयस्कर था । मैं जा रही हूं । उसकी हत्या की जो सजा मुझे मिलनी है वह अब मुझे ऊपर की अदालत में ही मिलेगी ।”
“मालती ।” - जगमोहन रूंधे कंठ से बोला - “क्या किया है तुमने ?”
“मैंने जहर खाया है ।”
जगमोहन की आंखें फट पड़ी ।
“विदा ।” - मालती कठिन स्वर में बोलीं - “विदा मेरे मालिक ।”
और उसका शरीर जगमोहन की बांहों में झूल गया ।
जगमोहन फूट-फूटकर रो पड़ा ।
***
सुनील और प्रमिला एक टैक्सी में बैठे हुये थे । टैक्सी मेहता रोड की ओर अग्रसर हो रही थी ।
“मैंने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा कि हत्या मालती ने की होगी । मुझे तो लगभग विश्वास ही हो गया था कि कैरोल हत्यारी है ।”
“बहुत ट्रेजिक अन्त हुआ बेचारी का ।” - प्रमिला दर्द भरे स्वर से बोली ।
“भावनात्मक दृष्टिकोण से तो यह अन्त वाकई ट्रेजिक है लेकिन अगर वह जीवित रह भी जाती तो यह तो डैलीब्रेट कोल्ड ब्लडिड मर्डर का केस था । कम से कम उमर कैद तो होती ही उसे ।”
“बेचारी ने अपने पति का जीवन सुखी करने के लिये अपना जीवन होम कर दिया ।” - प्रमिला स्त्री सुलभ सम्वेदना से भरे स्वर से बोली ।
सुनील चुप रहा ।
सुनील ने टैक्सी कैरोल की कोठी के सामने रुकवाई और टैक्सी से बाहर निकल आया ।
“तुम टैक्सी में यहीं बैठो, मैं अभी आया ।” - वह प्रमिला से बोला और कोठी सें घुस गया ।
कैरोल ड्राइंग रूम में ही मिल गई ।
“तुम !” - सुनील को देखते ही उसका चेहरा पीला पड़ गया ।
“इतनी जल्दी भूल गईं ।” - सुनील विष भरे स्वर में बोला - “अभी तो चौबीस घन्टे ही गुजरे हैं और मैं तो, तुम्हारे कथनानुसार तुम्हें एक साल से ब्लैकमेल कर रहा हूं ।”
कैरोल घबराई सी उसका मुंह देखती रही ।
“और मैं तुमसे बलात्कार करने की चेष्टा कर रहा था ।” - सुनील ने उसे कन्धे पकड़ कर झिंझोड़ डाला ।
कैरोल की आंखों से आंसू बह निकले ।
“मुझसे भूल हो गई ।” - वह कांपती हुई बोली - “मुझे माफ कर दो ।”
“मैं ईसामसीह का चेला नहीं हूं ।” - सुनील बोला - “जो तुम्हारी इतनी भयानक हरकतों के बाद भी तुम्हें माफ कर दूं । मैं तो राग-द्वेष प्रभावित एक साधारण आदमी हूं और जैसे को तैसा में विश्वास रखता हूं । अब मैं देखूंगा कि तुम्हें माइक की जायदाद में से एक कौड़ी भी कैसे मिलती है मैं आज ही पुलिस को तुम्हारे पहले पति के विषय में बताता हूं ।”
“भगवान के लिये ऐसा मत करना ।” - कैरोल घबराकर बोली ।
“क्यों ?”
“मैं तबाह हो जाऊंगी ।”
“तो इससे मुझे क्या फर्क पड़ेगा ?” - सुनील द्वार की ओर बढता हुआ बोला ।
“सुनील प्लीज ।” - कैरोल उसकी ओर झपटी और एकदम उसके पैरों में गिर पड़ी - “मुझ पर दया करो ।
“एक शर्त पर मैं अपनी जुबान बन्द रख सकता हूं ।”
“मुझे तुम्हारी हर शर्त मजूर है ।”
“रामपाल से प्रापर्टी सेटलमैंट के बाद तुम्हें जितना रुपया मिलेगा अगर उसमें से आधा तुम उस युवक के परिवार को देना स्वीकार करो, जिसकी होटल ज्यूल बाक्स में हत्या हुई थी तो मैं हेनरी के विषय में अपनी जुबान नहीं खोलूंगा ।”
“मुझे मन्जूर है ।”
“और इस बार तुमने कोई चाल चली तो तुम्हारा भगवान ही मालिक है ।” - सुनील द्वार की ओर बढता हुआ बोला ।
“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है ।” - कैरोल अपनी पूरी संजीदगी से बोली ।
“और तुम्हारी बैल बुद्धि में घुसे तो एक बात तुम्हें और कहना चाहता हूं ।” - क्षण भर रुककर सुनील बोला - “दुनिया में सब कुछ रुपया ही नहीं होता । इन्सान का मोरल भी बहुत बड़ी चीज होती है । अगर मानवता का जरा सा भी अंश तुममे बाकी है तो अपने पहले पति के पास वापिस लौट जाओ ।”
सुनील कोठी से बाहर निकल आया और वापिस टैक्सी में आ बैठा
“बैंक स्ट्रीट ।” - वह ड्राइवर से बोला ।
“क्या हुआ ?” - प्रमिला ने पूछा ।
“मैं सोचता हूं पम्मी ।” - सुनील गम्भीर स्वर से बोला - “राजनगर में कैसी हस्तियां रहती हैं । एक मोना है जो हर रात एक नये ग्राहक को यह विश्वास दिलाती है कि उसका सारा प्यार उसी के लिये सुरक्षित है । एक सोनिया है जो स्वंय को यह भुलावा देने की चेष्टा करती रहती है कि रखैल और पत्नी में कोई विशेष अन्तर नहीं होता । एक कैरोल है जो इन्सान ही उसे मानती है जिसके पास रुपया हो । एक मालती थी पति की सुख शांति ही जिसका आदर्श था और एक प्रमिला है जो मुझे घास भी नहीं डालती ।”
प्रमिला बड़ी गम्भीरता से सुनील की बात सुन रही थी । आखिरी वाक्य सुनते ही वह चिल्लाई - “सोनू... यू सन आफ ए गन ।”
“आई श्योर एम मादाम ।” - सुनील सिर झुका कर बोला ।
और प्रमिला का भरपूर हाथ भड़ाक से उसके झुके हुये सिर पर पड़ा ।
समाप्त
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