हवेली का रहस्य
विराट राणा और सुलभ जोशी एसीबी हैडक्वार्टर में बैठे मौजूदा केस पर दिमाग खपा रहे थे। वह डिस्कशन बहुत देर से जारी था, और आगे भी पता नहीं कब तक चलने वाला था।
तभी व्यवधान उत्पन्न हो गया।
विराट का मोबाईल रिंग होने लगा।
“हैलो।” कॉल अटैंड कर के वह बोला।
“इंस्पेक्टर विराट राणा?”
“जी बोल रहा हूं।”
“आपका नंबर मैंने एसीबी हैडक्वार्टर से लिया है।”
“अच्छी बात है सर, बताइये क्या मदद कर सकता हूं।”
“मैं जयशंकर सिंह, तिमारपुर गांव के सरकारी स्कूल का प्रिंसपल। सोमवार को आप मुझसे मिलने आये थे, याद आया?”
“जी सर याद है।”
“आपके जाने के बाद उसी संदर्भ में एक अध्यापक ने मुझे कुछ बताया था। जिसके बारे में मैंने तिमारपुर के ही रहने वाले स्कूल के चपरासी से पूछताछ की तो बात की पुष्टि भी हो गयी। तब मैंने सोचा कि आपको भी उसकी जानकारी दे दी जाये, क्या पता मुझे जो बात आम लग रही है वह आपके लिए खास साबित हो जाये।”
“बहुत अच्छा किया सर, बताइये।”
“बीस साल पहले जब हवेली के बाहर अजब सिंह की लाश पाई गयी थी, तो उसके कुछ दिनों बाद मुखिया प्रवीन सिंह के बेटे ने भी अपनी बीवी का कत्ल कर के आत्महत्या कर ली थी। गांव वालों की माने तो उस रात महाराज या अजब सिंह का प्रेत नंदू के शरीर पर कब्जा जमाये बैठा था, जिसके कारण उसे पता ही नहीं लगा कि जिसे वह मार रहा था वह उसकी बीवी कलावती थी। बड़ी अनोखी और यकीन में ना आने वाली घटना घटित हुई थी इंस्पेक्टर साहब। बाद में जब नंदू को होश आया और उसे ये पता लगा कि कलावती को खुद उसी ने मारा था, तो अपराधबोध से ग्रस्त होकर अपने कमरे में जा घुसा और पंखे के साथ लटकर जान दे दी।”
“और कुछ?”
“अजब सिंह के मारे जाने और नंदू के सुसाईड कर लेने के बीच के दिनों में गांव भर में इस बात की चर्चा गरम थी कि मुखिया का बेटा नंदू नपुंसक था। उस बात पर तिलमिलाकर उसने एक दो लोगों की जमकर पिटाई भी कर दी थी।”
“मतलब क्या हुआ इसका?”
“नंदू अगर नपुंसक था इंस्पेक्टर साहब तो उसके दो बेटे कहां से आ गये, जिनमें से एक उन दिनों साल भर का था जबकि दूसरा ढाई साल का?”
“तो नहीं रहा होगा नपुंसक, वैसे ही किसी ने झूठ मूठ की अफवाह उड़ा दी होगी।”
“और मान लीजिए कि अगर सच में नंदू नपुंसक था तो?”
“कमाल करते हैं सर, जब आप कह रहे हैं कि उसके दो बेटे....” कहता कहता वह सकपका कर एकदम से चुप हो गया।
“लगता है इंस्पेक्टर साहब समझ गये कि मैं क्या कहना चाहता हूं?”
“बिल्कुल समझ गया सर, आपका बहुत बहुत शुक्रिया।”
“स्वागत है, बस मुखिया को इस बारे में पता नहीं लगना चाहिए।”
“नहीं लगेगा, बेफिक्र रहिए।”
दूसरी तरफ से कॉल डिस्कनैक्ट कर दी गयी।
विराट ने तुरंत एएसआई महेश गुर्जर को कॉल कर के अपने पास बुलाया और इस हिदायत के साथ उसे तिमारपुर के लिए रवाना कर दिया कि वहां से चितरंजन नाम के आदमी को पकड़कर लाना है।
“मामले में एक नया ट्विस्ट आने की उम्मीद बन रही है जोशी साहब।”
“कैसा ट्विस्ट सर?”
विराट ने बताया।
“कमाल है, ये मुखिया का बच्चा तो कुछ ज्यादा ही गहरा धंसा मालूम पड़ता है।”
“कोई बात नहीं जरुरत दिखाई दी तो फिर से धर दबोचेंगे।”
“अभी अभी एक बात मेरे भी ध्यान में आई है सर।” जोशी बोला।
“कौन सी बात?”
“टंकी से बरामद घड़ी, जिसे हम पूरी तरह नजरअंदाज कर रहे हैं। जबकि कल सुबह सातों दोस्तों से हमें उस बारे में सवाल जरूर करना चाहिए था।”
“मैंने जानबूझकर वैसा नहीं किया था।”
“क्यों सर?”
“क्योंकि तब सातों इकट्ठे थे, उनमें से एक घड़ी के बारे में जो कुछ भी कहता, बाकी के उसी बात को गांठ बांध लेते। इसलिए मेरा इरादा उस बारे में सबसे अलग अलग पूछताछ करने का है। देखें तो सबके बयानों में कोई अंतर मिलता है या नहीं।”
“नहीं मिलेगा सर।”
“क्यों?”
“हम जिस भी पहले शख्स से सवाल कर के हटेंगे, वह बाकियों को फोन कर के फौरन इत्तिला नहीं कर देगा कि उसने हमें क्या जवाब दिया था।”
“बेशक कर दे, यही तो मैं देखना चाहता हूं।”
“मतलब?”
“मान लो वह घड़ी राहुल की थी और हम सैंडी से घड़ी की बाबत सवाल करते हैं। तब वह घड़ी को पहचानता होने से इंकार तो करता है मगर हमारे जाते ही फौरन बाकी दोस्तों को फोन या मैसेज करने में जुट जाता है, तो क्या साबित नहीं हो जायेगा कि उसके बयान में कोई भेद था, जिसे वह बाकियों को भी रटवा देना चाहता है।”
“नहीं होगा।”
“वॉट?”
“सॉरी सर, लेकिन हमारे पूछताछ के बाद अपने दोस्तों को फोन करने के पीछे उसके पास कई वजहें हो सकती हैं। वह यही बताने के लिए सबको कॉल कर सकता है कि पुलिस उससे एक घड़ी के बारे में पूछने आई थी। या ये कि पुलिस ने एक घड़ी ‘रॉयल ब्यूटी’ के पानी की टंकी से बरामद की थी जिसके बारे में उन्हें शक है कि वह राहुल की हो सकती है। और अगर सब इनोसेंट हैं तो इस बात पर तबसरा करने के लिए ही आपस में बात कर सकते हैं कि क्या उस घड़ी का राहुल के साथ कोई संबंध हो सकता है।”
“बात तो एकदम पते की कही जोशी साहब, ठीक है सातों से पूछताछ करने का आइडिया अभी ड्रॉप कर देते हैं। लेकिन नैना से सवाल जरूर करेंगे क्योंकि राहुल की जिंदगी में वह उसकी गर्लफ्रैंड हुआ करती थी। ऐसे में घड़ी अगर राहुल की ही है तो वह जरूर पहचान जायेगी।”
“पहचानता होने के बावजूद अगर इंकार कर दे तो?”
“नहीं कर सकती, जानती है कि आखिरकार तो हम उस बारे में पता लगा ही लेंगे, ऐसे में झूठ बोलकर खामख्वाह की मुसीबत क्यों मोल लेगी।”
“आप तो जैसे माने बैठे हैं कि घड़ी राहुल की ही है।”
“नहीं ऐसा नहीं है, वह राहुल की हो सकती है तो बाकी दोस्तों में से भी किसी की हो सकती है। क्योंकि उस रोज उनमें से हर कोई पानी की टंकी में उतरा था। बल्कि किसी और की भी हो सकती है, कोई ऐसा जो कभी टंकी साफ करने के लिए उसमें उतरा हो और बेध्यानी में घड़ी उसकी कलाई से खुलकर वहीं गिर गयी हो।”
“आप मजाक कर रहे हैं?”
“तुम्हें ऐसा लगता है?”
“जी हां।”
“क्यों?”
“क्योंकि रौलेक्स की घड़ी पहनने वाला शख्स किसी होटल की टंकी साफ करने नहीं जाने वाला।”
“क्या बात है जोशी साहब आज तो तुम कदम कदम पर मुझे गलत साबित किये दे रहे हो। ठीक है हम मान लेते हैं कि घड़ी आठों दोस्तों में से ही किसी एक की रही होगी, क्योंकि उनमें से हर कोई ऐसी घड़ी पहनना अफोर्ड कर सकता है।”
“आपको नहीं लगता कि फिर से कुछ मिस कर रहे हैं?”
“क्या?”
“या फिर मेरी परीक्षा ले रहे हैं, वह भी इतने आसान सवालों के जरिये जिनका जवाब पटरी पर दुकान लगाने वाला कोई शख्स भी बड़ी आसानी से दे सकता है।”
“पहेलियां मत बुझाओ यार, साफ साफ कहो क्या कहना चाहते हो?”
“यही कि घड़ी चारों दोस्तों में से किसी की रही हो सकती है ना कि आठों में से किसी की।”
“जबकि उस रात उन लोगों की संख्या आठ थी।”
“बेशक थी, लेकिन घड़ी ना सिर्फ मर्दाना है बल्कि साइज में भी इतनी बड़ी है कि कोई लड़की तो उसे पहनने के बारे में सोच भी नहीं सकती।”
“पक्का बादाम खा रहे हो आजकल।”
“या आप जानबूझकर नादान बनने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि कर ही रहे हैं। दो मामूली सी बातें आपके जेहन में नहीं आईं ये क्या मानने वाली बात है?”
“सच में नहीं आई थीं यार - कहकर उसने पूछा - ये नैना रहती कहां है, याद है तुम्हें?”
“हौजखास में, बाकी पूरा एड्रेस हमारी फाईल में मौजूद है।”
सुनकर विराट ने मेज पर रखा मोबाईल उठाया और नैना का नंबर डायल कर दिया।
दो तीन बार रिंग जाते ही दूसरी तरफ से कॉल अटैंड कर ली गयी।
“गुड मॉर्निंग इंस्पेक्टर साहब?”
“गुड मॉर्निंग, आप घर पर हैं अभी?”
“जी हां।”
“मुलाकात हो सकती है?”
“हो सकती है।”
“अभी।”
“और क्या दो साल बात की अप्वाइंटमेंट दूंगी आपको? - वह हंसती हुई बोली - बाई द वे मिलना क्यों चाहते हैं?”
“कुछ दिखाना है आपको।”
“क्या?”
“मिलकर दिखाता हूं।”
“ऐज यू विश, वैसे आपको पता तो है न कि मैं सिंगल नहीं हूं?”
“इसका क्या मतलब हुआ?”
“यही कि मैं सिंगल नहीं हूं।”
“बहुत बड़ी राज की बात बता दी।”
“इसलिए आपकी कोई भी कोशिश बेकार ही जायेगी।”
“डोंट वरी हमारी मुलाकात पूरी तरह ऑफिशियल है।”
“ठीक है आ जाइये।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
दोनों कमरे से निकलकर विराट की गाड़ी में सवार हो गये।
जोशी की तेज रफ्तार ड्राईविंग ने उन्हें बीस मिनट के भीतर हौजखास के इलाके में पहुंचा दिया, आगे नैना का घर ढूंढने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी।
गेट पर एक गार्ड खड़ा था जिसने उनके कहने पर भीतर फोन कर के इजाजत हासिल की और फाटक खोलकर दोनों को अंदर भेज दिया।
रास्ते में एक नौकर मिला जो उन्हें ड्राईंगरूम तक छोड़ गया।
“आईये इंस्पेक्टर साहब, वैलकम - एक सोफे पर टांग पर टांग चढ़ाकर बैठी नैना बोली - छत्तीस घंटों में ये तीसरी मुलकात हो रही है हमारी।”
“तीसरी?” विराट बैठता हुआ बोला।
“ऑफ कोर्स तीसरी, पहली परसों रात हवेली में, दूसरी कल सुबह हैडक्वार्टर में और तीसरी अब - कहकर उसने पूछा - बताइये क्या लेना पसंद करेंगे आप दोनों?”
“एक गिलास पानी।”
“हाजिर है सर।” एक नौकर वहां पहुंचता हुआ बोला।
“थोड़ी देर बाद कॉफी दे जाना - कहकर नैना ने विराट की तरफ देखा - कहिये कैसे आना हुआ?”
जवाब में जोशी ने जेब से प्लास्टिक की एक थैली निकाली जिसमें टंकी से बरामद घड़ी रखी हुई थी, फिर जिप खोलकर घड़ी को नैना के सामने सेंटर टेबल पर पलट दिया।
“पहचानती हो इसे?” विराट ने पूछा।
“हां, राहुल की है - उसने बिना हिचकिचाये जवाब दिया - आपको कहां से मिली?”
“रौलेक्स की घड़ी पहनने वाला वह अकेला तो नहीं रहा होगा।”
“नहीं, कैसे हो सकता था?”
“फिर भी इसे हाथ में लिए बिना दावा कर दिया कि राहुल की है?”
“हां कर दिया, इसके चारों तरफ जो दिल के आकार वाले डायमंड जड़े देख रहे हैं आप, वह घड़ी के साथ नहीं मिलते, इन्हें बाद में जड़वाया था मैंने।”
“तुमने?”
“हां, बर्थ डे पर गिफ्ट किया था, इसलिए देखते ही पहचान गयी।”
“आखिरी बार इस घड़ी को उसके हाथ में कब देखा था?”
“पक्का याद नहीं है, लेकिन जब से उसे दिया था हर वक्त पहनकर रखता था, इसलिए उम्मीद है ‘रॉयल ब्यूटी’ की पॉर्टी में भी पहनकर ही पहुंचा होगा - कहकर वह क्षण भर को रुकी फिर हैरानी से बोली - मिल गया वो आपको?”
“नहीं।”
“ओह माई गॉड - उसने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया - यू मीन डैडबॉडी बरामद हुई है?”
“खामख्वाह की कल्पनायें मत करो, दोनों ही बातें गलत हैं।”
“फिर ये घड़ी?”
“उस टंकी से बरामद हुई है, जिसमें राहुल आखिरी बार गेम खेलने के लिए उतरा था, तुम बता सकती हो कि उस दौरान ऐसा क्या हुआ जो ये घड़ी उसकी कलाई से खुलकर टंकी में जा गिरी?”
“सॉरी आई कांट।”
“देखो वैसा जोर का झटका लगे बिना नहीं हुआ हो सकता, इसलिए याद करो कि जिस वक्त राहुल टंकी में घुसा था क्या उसका हाथ कहीं टकराया था?”
“अगर बाहर कहीं टकराया होता इंस्पेक्टर साहब तो घड़ी टंकी में नहीं मिली होती, और टंकी में भला ऐसा होता ही क्या है जहां टकराकर ये खुल जाती। फिर वैसा कुछ हुआ होता तो क्या राहुल को खबर नहीं लगी होती?”
“तर्क बढ़िया दे लेती हो, मगर घड़ी मिली तो हमें वहीं से है।”
“मैं नहीं जानती कैसे पहुंची, हो सकता है जिस वक्त चुड़ैल उसे आसमान में उठाये ले जा रही थी, उसी वक्त घड़ी राहुल के हाथों से टूटकर टंकी में जा गिरी हो।”
“तब क्या टंकी का ढक्कन खुला हुआ था?”
“जी हां, बल्कि बाद में भी उसे बंद करने का ख्याल हमें नहीं आया था। असल में उस घटना ने हमें कितना आंदोलित कर दिया था, उसका अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि राहुल को तलाशने में नाकाम होकर हम सीधा हरिद्वार के लिए निकल गये थे।”
“शांति कि तलाश में?”
“ऑफ कोर्स।”
“तुम्हें मालूम है कत्ल की सजा कितनी होती है?”
“शादी जितनी।”
विराट ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“इसलिए मुझे डराने की कोशिश करना बेकार होगा। और पहले ये तो साबित कीजिए कि राहुल का या हनी का कत्ल हुआ था, उसके बाद बेशक मुझे गिरफ्तार कर लीजिएगा।”
“तुम्हें शायद पता नहीं है कि हनी की लाश बरामद हो चुकी है।”
“वॉट?”
“यानि नहीं पता था?”
“नहीं, कब हुई, कहां से हुई?”
विराट ने बताया।
“ओह गॉड, ओ माई गुड गॉड।” उसने एक बार फिर अपने चेहरे को दोनों हथेलियों के बीच छिपा लिया, फिर कुछ देर तक सिसकती रही और जब हाथ हटाया तो उसका पूरा चेहरा आंसुओं से गीला हुआ पड़ा था।
“अंदेशा तो हमें पहले से ही था इंस्पेक्टर साहब, लेकिन फिर भी उम्मीद कर रहे थे कि हनी सही सलामत वापिस लौट आयेगी। काश कि हम उस हवेली में गये ही नहीं होते।”
“उससे क्या हो जाता?”
“हनी किसी पिशाच का आहार बनने से बच जाती और क्या हुआ होता।”
“पहले तो तुम लोग ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’ का एग्जॉम्पल दे रहे थे, इस वक्त तुम्हारी वह थ्योरी कहां चली गयी?”
नैना से जवाब देते नहीं बना।
“देखो इतना तो मुझे यकीन है कि हनी को तुम लोगों ने नहीं मारा हो सकता, लेकिन ये नहीं मान सकता कि तुम सातों को उसकी मौत की कोई खबर ही न लगी हो। इसलिए सच बोलो, इसी में तुम्हारा और तुम्हारे बाकी के दोस्तों का भला है।”
“सच के नाम पर बताने को मेरे पास कुछ नहीं है, सॉरी।”
“तुम मामले की गंभीरता को नहीं समझ रही, कातिल आजाद घूम रहा है, वह राहुल और हनी की जान ले चुका है और आगे तुममें से किसी की भी बारी आ सकती है - कहकर विराट ने पूछा - तुम मरना चाहती हो?”
“अगर मेरी मौत इसी तरह लिखी है इंस्पेक्टर तो आप भला कैसे बचा लेंगे। इसलिए बेवजह की बातें करना बंद कर दीजिए क्योंकि आचार्य जी कहते हैं कि नियति अटल है, उसे बदला नहीं जा सकता, टाला भी नहीं जा सकता।”
“आचार्य जी?”
“आचार्य परमानंद, जिनसे मिलने हम हरिद्वार गये थे, बताया तो था आपको।”
“सॉरी दिमाग से उतर गया था।”
“मैं फिर कहता हूं सर - जोशी तिलमिलाता हुआ बोला - हमें इन लोगों को सख्ती के साथ इंटेरोगेट करना चाहिए, वरना तो ये यूं ही फैंसी बातें कर के हमारा वक्त बर्बाद करते रहेंगे, बल्कि पुलिस का तो जैसे मजाक ही बनाकर रख दिया है।”
“शांत हो जाओ जोशी साहब - विराट मुस्कराता हुआ बोला - ये उन सातों में सबसे अच्छी और समझदार लड़की है, फिर राहुल की मौत का गम भी सबसे ज्यादा इसी को है क्योंकि वह इसका ब्वॉयफ्रैंड था - कहकर उसने नैना से पूछा - ठीक कह रहा हूं न, राहुल के जाने का गम तो है न तुम्हें, या नहीं है?”
“बहुत है, इतना ज्यादा कि उसके जुदा होने के सवा महीना बाद ही मैंने नया ब्वॉयफ्रैंड नहीं बना लिया होता तो जरूर सुसाइड ही कर लेती इंस्पेक्टर साहब।”
सुनकर दोनों हैरानी से उसका मुंह तकने लगे।
“नया ब्वॉफ्रैंड जो कि जयदीप है। वह जयदीप जो रिश्ते में राहुल का कजन लगता था, है न?”
“आपको कोई प्रॉब्लम है?”
“नहीं, लेकिन हैरानी इस बात की हो रही है कि तुम्हारे जैसी मॉर्डन लड़की सवा महीने इंतजार कर गयी, जबकि होना ये चाहिए था कि उसी रात कोई नया ब्वॉयफ्रैंड तलाश लेती।”
“तंज मत कसिये इंस्पेक्टर साहब। बात को यूं समझिये कि आपकी कोई प्यारी चीज आपसे खो गयी है, आप तड़प रहे हैं, आंसू बहा रहे हैं, तभी कोई आपके पास पहुंचकर वैसी ही एक दूसरी चीज आपको थमा देता है। तब दुख आपका खत्म तो नहीं हो जाता, लेकिन कुछ हद तक आपको रिलेक्स फील जरूर होने लगता है।”
“ब्वॉयफ्रैंड चीज होता है? लाईक अ डॉल, है न?”
“एकदम सही समझे आप, राहुल के बाद अगर जयदीप मुझे नहीं मिल गया होता, तो यकीनन मैंने अपनी जान दे दी होती, मगर उसने मुझे संभाल लिया, और उसके बाद कभी राहुल के जाने का अफसोस भी नहीं होने दिया। बल्कि तमाम पापी दोस्तों ने मिलकर संभाला था मुझे। यहां तक कि दुख की उस घड़ी में मनीराज ने भी बहुत साथ दिया, कई बार मुझे जबरन सर्कस दिखाने ले गया, जो मुझे पसंद तो नहीं था, मगर हंसी बराबर आई थी मेरे चेहरे पर। आईम सो लकी कि मेरे इतने अच्छे दोस्त हैं।”
तभी नौकर वहां कॉफी रख गया।
“ये जयदीप करता क्या है?”
“पिछले साल ही इंजीनियरिंग कर के हटा है, अभी जॉब की तलाश में है। मैंने पापा से बात भी कर ली है, जल्दी ही उसे कोई नौकरी दिला देंगे।”
“फिर तुम्हारे स्टेटस का तो नहीं हुआ?”
“मेरे स्टेटस का बराबर है क्योंकि हम दोनों ही कुछ नहीं कमाते, हां डैड के स्टेटस का नहीं है। उसके फादर एस्ट्रोलॉजर हैं, लाजपत नगर में उनकी ‘प्योर जैम्स’ के नाम से एक बड़ी दुकान है। इसलिए खाते पीते घर का तो बराबर है।”
“और तुम्हारे फादर, वो क्या करते हैं?”
“आपने ‘पेसमेकर प्राईवेट लिमिटेड’ का नाम सुना है?”
“हां सुना है।”
“वो मेरे फॉदर की है।”
“तुम मुकंद सबरवाल साहब की बेटी हो?”
“हां, आप जानते हैं उन्हें?”
“बहुत अच्छी तरह से, मेरे पिता जी के खास दोस्त हुआ करते थे।”
“अब दोस्ती टूट गयी?”
“नहीं पापा के जीवन की डोर टूट गयी।”
“ओह, आई एम सॉरी।”
“इट्स ओके, कई साल बीत चुके हैं।”
“अगर आपके डैड और मेरे डैड कभी दोस्त हुआ करते थे, तो ऐसा क्योंकर है कि मैं आपको नहीं जानती?”
“क्योंकि मैं बिजनेसमैन का बेटा कभी बन ही नहीं पाया - कहकर उसने कॉफी खत्म की और उठता हुआ बोला - इसलिए पापा के दोस्तों की फेमिली के साथ भी कभी फ्रैंडली नहीं हो पाया।”
“जा रहे हैं?”
“तुम कुछ बताना चाहती हो?”
“डैड के दोस्त का बेटा पूछता तो शायद बता देती, मगर आप तो पुलिसवाले हैं विराट साहब, इसलिए जाइये और जाकर केस को इंवेस्टिगेट कीजिए।”
“इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपने के लिए थैंक यू, तुम नहीं कहती तो मैं केस को अधर में ही लटका छोड़ देने वाला था।” कहकर वह जोशी के साथ बाहर निकल आया।
दोनों एक बार फिर फॉरर्च्यूनर में सवार हो गये।
“ये लड़की पक्का कुछ छिपा रही है सर।”
“उसमें क्या हैरानी की बात है, वह तो उसके यार दोस्त भी बराबर करते दिखाई दे रहे हैं।”
“वैसे आपको क्या लगता है, राहुल की घड़ी उस टंकी में क्यों पड़ी मिली हमें?”
“एक ख्याल जेहन में आ तो बराबर रहा है जोशी साहब, मगर सच है या नहीं अभी कुछ कह नहीं सकता।”
“कैसा ख्याल?”
“टंकी में पानी के नीचे ज्यादा से ज्यादा देर तक बने रहने का गेम खेल रहे थे आठों, ऐसे में हो सकता है कि राहुल उस रात हद से ज्यादा नशे में रहा हो, जिसके कारण वक्त रहते टंकी से बाहर नहीं आ सका, नतीजा ये हुआ कि उसका दम घुट गया।”
“ठीक है घुट गया, मगर घड़ी कैसे खुल गयी?”
“वह जरूर बाद में उसकी कलाई से निकली होगी। मेरे ख्याल से तब जब बाकी दोस्तों ने उसे टंकी से बाहर निकालने की कोशिश की होगी। वह जिंदा होता तो बड़ी आसानी से बाहर आ जाता, मगर एक लाश को टंकी के छोटे से मुहाने से बाहर खींचना बहुत दुरूह काम साबित होना था। उसी दौरान उसका नीचे को लटका हाथ टंकी के मुंह के साथ रगड़ खाता बाहर निकला होगा इसलिए घड़ी खुलकर भीतर गिर गयी।”
“ऐसा था तो बाकी लोगों ने तुरंत पुलिस को खबर क्यों नहीं कर दी? ये बात तो बड़ी आसानी से साबित हो जाती कि राहुल हादसे का शिकार बना था, ना कि किसी ने उसका कत्ल कर दिया था।”
“मेरे ख्याल से तो सब डर गये होंगे कि कहीं उन्हें उसका कातिल ही न समझ लिया जाये, इसलिए पुलिस को खबर करने की बजाये लाश गायब करने में जुट गये।”
“डरने वाले जीव तो कमीने लगते नहीं हैं, मगर आपकी बात मान भी ली जाये तो लाश गायब करने में भी कैसे कामयाब हो सकते थे?”
“बहुत आसान काम था?”
“फिर तो जरूर बताइये।”
“राहुल मर तो चुका ही था, इसलिए उसकी डैडबॉडी को इमारत के पिछले हिस्से में पार्क के भीतर फेंक दिया गया होगा, या किसी रस्सी के सहारे नीचे लटका दिया होगा। फिर कुछ देर तक सब ने उसे ढूंढने की एक्टिंग की और होटल से निकल गये। पार्क में पहुंचकर उसकी लाश उठाई और कहीं दूर ले जाकर ठिकाने लगा दिया।”
“जो कि पुलिस को कॉल करने की अपेक्षा ज्यादा फसादी काम था। बाद में वे लोग अगर लाश के साथ कहीं धर लिए जाते तो कोई भी इस बात पर यकीन नहीं करता कि राहुल की मौत महज एक हादसा थी। तब कत्ल का केस बनता और सब जेल में होते। किसी तरह उनके रईस बाप बचाने में कामयाब हो भी जाते तो वैसा होते होते हुआ होता।”
“भई एक्साइटमेंट की तलब ने भी तो उन्हें वैसा करने को मजबूर कर दिया हो सकता है, जिसके वे लोग नशे की हद तक दीवाने जान पड़ते हैं। जरा सोचकर देखो पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ना, होटल से एक गेस्ट को अगवा करना, किसी लड़की का सात लोगों के सामने न्यूड डांस करना, ये सब क्या मामूली काम हैं, इसके आगे राहुल की लाश को ठिकाने लगाना तो किसी गिनती में नहीं आता क्योंकि वह गुपचुप तरीके से किया जाने वाला काम था।”
“ऐसा ही हुआ था, इस बात का पता कैसे लगेगा हमें?”
“जंजीर की सबसे कमजोर कड़ी पर वार करना होगा हमें, उससे राहुल की मौत पर तो रोशनी शायद ही पड़े, लेकिन हनी के कत्ल की गुत्थी जरूर सुलझा लेंगे हम।”
“आपका मतलब है जयदीप पर जोर आजमाईश करनी पड़ेगी?”
“बेशक - विराट का स्वर इस बार थोड़ा रूखा था - बहुत हो ली पुच-पुच, अब वक्त है एक्शन में आने का।”
“जिसके लिए हम भी पहला वार मजलूम पर ही करेंगे, जैसा कि हमारे डिपार्टमेंट के बाकी लोग आम करते दिखाई दे जाते हैं, इसलिए क्योंकि ताकतवर पर उनका जोर नहीं चलता।”
“ऐसा नहीं है जोशी साहब, जयदीप को उठाने का मतलब ये नहीं है कि हम डंडे के जोर पर उसका बयान हासिल करने की कोशिश करने लग जायें। निशाने पर तो मैं उसे इसलिए लेना चाहता हूं क्योंकि पूरी मंडली में एक वो ही है जो मुझे बेकसूर जान पड़ता है।”
“मैं समझा नहीं सर।”
“भई जब हम ये मानकर चल रहे हैं कि राहुल और हनी दोनों का कातिल कोई एक ही शख्स है, और जयदीप को पहले ही राहुल की हत्या के इल्जाम से बरी कर चुके हैं, तो जाहिर है कि हनी का कातिल भी वह नहीं हो सकता। इसलिए मुझे पूरी उम्मीद है कि हम उसकी जुबान खुलवाने में कामयाब हो जायेंगे।”
“ठीक है फिर उठा लेते हैं?”
“चुपचाप उठाना होगा, कुछ इस तरह कि बाकी दोस्तों को भनक तक न लगे, वरना आसमान सिर पर उठा लेंगे। खासतौर से अगर हनी का कत्ल उन लोगों ने ही किया है तो उनकी पहली कोशिश यही होगी कि किसी भी तरह जयदीप को आजाद करा लिया जाये, जिसमें आखिरकार तो कामयाब हो ही जायेंगे।”
“नो प्रॉब्लम सर, एक लड़के को उठाना ही तो है, और ऐसा काम क्या हम पहली बार करेंगे, सब मैनेज हो जायेगा। कमीने ढूंढते ही रह जायेंगे कि उनका एक दोस्त गया तो आखिर गया कहां।”
“गुड।”
“ये बताइये कि अभी कहां चलना है?”
“ऑफिस चलो, उम्मीद है महेश अब तक चितरंजन को ले आया होगा।”
सुनकर जोशी ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।
ऑफिस पहुंचकर विराट ने महेश गुर्जर के बारे में पता किया तो मालूम पड़ा कि वह तब तक वापिस नहीं लौटा था। उसे कुछ हैरानी सी हुई, तो उसने महेश का नंबर डॉयल कर दिया।
“कहां रह गये भई?”
“काम पर ही हूं सर, पहले तो यही पता नहीं लग पाया कि चितरंजन गया कहां है। फिर बहुत पूछताछ के बाद एक लड़के ने जानकारी दी कि पानीपत में किसी रिश्तेदार के यहां जाने की बात कह रहा था। तब हम उसके घर पहुंचे जहां किसी को उसके पानीपत जाने की जानकारी नहीं थी, या फिर झूठ बोल रहे थे।
“मुद्दे पर आओ यार।”
“हमने फिर से उस लड़के को तलाश किया और उससे चितरंजन को फोन कराया तो पता लगा कि वह पानीपत में ही था और छह बजे वहां से निकलने वाला था। हम ये सोचकर यहां रुक गये सर कि छह बजे का पानीपत से निकला नौ बजे तक तो वापिस लौट ही आयेगा।”
“इसे टू द प्वाइंट बात करना कहते हैं महेश?”
“सॉरी सर, चितरंजन को अभी थोड़ी देर पहले ही उठाया है हमने, आधे घंटे में हैडक्वार्टर पहुंचकर आपको रिपोर्ट करता हूं।”
“ओके आई विल वेट।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
“चितरंजन में कुछ ज्यादा ही उम्मीद नजर आ रही है सर को, है न?”
“है तो कुछ ऐसा ही जोशी साहब।”
“जबकि मुझे ये लगता है कि अभी तक अटकलबाजी के अलावा हमने कुछ किया ही नहीं है। बस सोच रहे हैं कि ऐसे हुआ हो सकता है, वैसे हुआ हो सकता है। इसने किया हो सकता है तो उसने भी किया हो सकता है, वगैरह वगैरह।”
“काहे बेइज्जती कर रहे हैं भाई आप, मेहनत तो हम कर ही रहे हैं।”
“खामख्वाह की, पुलिसिया स्टाईल से अलग हटकर। संदिग्धों के साथ बड़े ही प्यार से पेश आकर। ऐसे में तो कुछ भी हमारे हाथ नहीं लगने वाला।”
“अरे बोल तो चुका हूं कि अब हम पुलिस ऑफिसर बनकर संदिग्धों के साथ पेश आयेंगे। और दिल छोटा करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे अंदर से आवाज आ रही है कि ये केस बस सॉल्व होने ही वाला है।”
तभी एक सिपाही ने वहां पहुंचकर उनका अभिवादन किया फिर बोला, “साहब ने याद किया है आप दोनों को।”
“साहब तो मैं हूं भई।” विराट बोला।
“बड़े वाले साहब ने जनाब।”
“तो ऐसे क्यों नहीं बोला कि साहब को साहब ने याद किया है?” जोशी ने पूछा।
“मुझे बातों में मत फंसाइये आप लोग, एसीपी साहब बुला रहे हैं।”
“अच्छा यही बता दे कि मूड कैसा है उनका?”
“ठीक तो नहीं लग रहा।”
“अगर ऐसा है तो हमारा एक काम कर के दिखा।”
“क्या सर?”
“जाकर उनसे बोल दे कि हम दोनों फील्ड में हैं।”
“नहीं बोल सकता, सॉरी।”
“क्यों?”
“थोड़ी देर पहले ये खबर उनको मैंने ही दी थी कि आप दोनों लौट आये हैं, तभी तो फौरन बुलाकर लाने के लिए भेज दिया।”
“यानि चुगलखोरी की?”
“अरे मुझे क्या पता था कि आपको एसीपी साहब से मिलने में डर लगता है, कांपने लग जाते हैं आप दोनों उनका नाम सुनकर। पता होता तो साहब से ये कहा होता कि मैं आप दोनों से पूछकर आता हूं कि आप यहां हैं या नहीं।”
“इज्जत मत उतार यार, पहुंचते हैं हम।”
सिपाही वापिस लौट गया।
दोनों उठकर राजावत के कमरे में पहुंचे तो पाया कि वह अकेला वहां नहीं बैठा था, अतुल कोठारी भी उसके सामने मौजूद था, और दोनों के हाथ में चाय के भरे हुए कप थे।
राजावत को सेल्यूट करने के बाद दोनों ने कोठारी का अभिवादन किया फिर उसके बगल में बैठते हुए विराट ने एसीपी से पूछा, “आपने बुलाया सर?”
“हां बुलाया, कोठारी साहब जानना चाहते हैं कि हम इनकी बेटी के हत्यारे को तलाशने के लिए कौन से कदम उठा रहे हैं, कुछ कर भी रहे हैं या नहीं? बल्कि साफ-साफ हमारी तरफ से निराश होकर दिखा रहे हैं।”
“सॉरी सर - कहकर उसने कोठारी की तरफ देखा - मधु के साथ जो कुछ भी हुआ उसका मुझे दिल से अफसोस है। इतनी कमउम्र बच्ची की जान जिस किसी ने भी ली है, वह बेशक गोली मार देने के काबिल है। और यकीन जानिये वह फांसी के फंदे पर ही झूलेगा। रही बात हमारी कोशिशों की तो उस बारे में बस इतना बता सकता हूं कि कुछ लीड्स हासिल हुई हैं, जिनके जरिये हम जल्दी ही हत्यारे तक पहुंच जायेंगे।”
“कितनी जल्दी?”
“बड़ी हद दो या तीन दिनों में।”
“सोच समझकर जवाब देना इंस्पेक्टर, मैं यहां झूठा भरोसा हासिल करने नहीं पहुंचा हूं।”
“मैं गारंटी करता हूं सर कि तीन दिनों के भीतर आपकी बेटी का कातिल सलाखों के पीछे होगा।”
“ना हुआ तो?”
“मैं मान लूंगा कि उस वर्दी के काबिल हरगिज भी नहीं हूं जिसे मैंने पहन रखा है, चौथे दिन रिजाइन कर दूंगा।”
“लीड्स क्या हासिल हुई है, अगर बहुत ज्यादा कांफिडेंशियल न हो तो मैं सुनना चाहूंगा।”
“सारी बातें तो आपको नहीं बता सकता सर, लेकिन उनमें से एक फिर भी सुन लीजिए। आपकी बेटी का कत्ल और उसके दोस्त राहुल हांडा की गुमशुदगी, दोनों किसी एक ही शख्स का किया धरा जान पड़ता है।”
“तुम कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि राहुल का भी कत्ल हो चुका है?”
“यस सर, मैं यही सोच रहा हूं।”
“नकुल ने अनुष्ठान के दौरान सात लोगों का जिक्र किया था इंस्पेक्टर, और अब क्योंकि मधु के बारे में कही उसकी बात सच साबित हो चुकी है, तो ये क्यों नहीं हो सकता कि वह सातों उसके दोस्त ही रहे हों? उनकी तरफ ध्यान क्यों नहीं दे रहे हो तुम?”
“हम हर तरफ ध्यान दे रहे हैं सर, तभी तो आपसे बस तीन दिनों का वक्त मांग रहा हूं। कुछ हासिल नहीं हुआ होता तो ऐसी गारंटी भला क्योंकर कर पाता मैं?”
“ठीक है तीन दिन बाद मिलता हूं तुमसे।”
“जरूरत नहीं पड़ेगी सर।”
“क्यों?”
“कातिल गिरफ्तार हो जायेगा तो उसकी खबर तो आपको वैसे ही लग जानी है।”
“ठीक है।”
कहकर उसने उठने की कोशिश की तभी विराट जल्दी से बोल पड़ा, “इजाजत दें तो कुछ सवाल मैं भी कर लूं आपसे?”
कोठारी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया, “पूछो क्या जानना चाहते हो?”
“यहां नहीं, कहीं और चलकर बात करते हैं।”
सुनकर अतुल कोठारी तो सकपकाया ही, मगर उससे कहीं ज्यादा हैरानी एसीपी राजावत को हुई।
“इसका क्या मतलब हुआ? क्या तुम एसीपी साहब से कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हो?”
“जी नहीं, मगर सवाल बेहद निजी हैं, जिनका जवाब कई लोगों के सामने देने में आपको हिचकिचाहट हो सकती है - कहकर उसने राजावत की तरफ देखा - उम्मीद है सर मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे।”
“नो नॉट ऐट ऑल।” एसीपी मुस्कराया।
“ठीक है तुम चलो, मैं थोड़ी देर में जहां कहीं भी होगे, पहुंच जाऊंगा।”
“थैंक यू सर।” कहकर विराट उठ खड़ा हुआ।
आगे एसीपी के कमरे से निकल कर विराट के कमरे तक पहुंचने में कोठारी ने पूरा आधा घंटा लगा दिया। हैरानी की बात थी कि वह शख्स उतनी देर तक राजावत से बातचीत करता रहा था, जबकि विराट उनकी बातों का पटाक्षेप तभी हुआ मान चुका था जब जोशी के साथ एसीपी के कमरे में पहुंचा था।
तब तक रात के आठ बज चुके थे।
कोठारी उनके सामने एक कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, “शुरू करो, क्या जानना चाहते हो?”
“सवाल का ताल्लुक आपके ब्रदर इन लॉ से जुड़ा हुआ है सर। मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकता था कि आप जैसे बड़े उद्योगपति का कोई रिलेटिव तांत्रिक भी हो सकता है, क्या आपको पहले से पता था उस बारे में?”
“क्यों पूछ रहे हो?”
“मामूली सवाल है सर, इसलिए सवाल के बदले सवाल न करें, बल्कि रिक्वेस्ट समझकर ही जवाब दे दीजिए।”
“देखो कनिका ने एक बार बताया तो जरूर था मुझे उस बारे में, मगर यकीन नहीं आया। बल्कि ऐसी बातों पर मेरा विश्वास कभी बना ही नहीं। लेकिन बीते रोज जिस तरह से उसने मेरी बेटी की डैडबॉडी ढूंढ निकाला, उसको देखते हुए ये कहना सरासर गलत होगा कि ऐसे गुणी लोग संसार में नहीं होते।”
“अगर नकुल को सच में ऐसी कोई दूर दृष्टि प्राप्त है सर तो उसने मधु के गायब होने के तुरंत बाद ही अनुष्ठान क्यों नहीं कर दिखाया, इंतजार करने की क्या जरूरत थी?”
“उसकी वजह भी मैं ही था, कनिका तो मुझसे पहले ही दिन से कह रही थी, लेकिन हर बार मैं उसे झिड़क देता था - कहकर उसने गहरी सांस ली - काश मैं उसकी बात मान गया होता।”
“आप बेवजह स्वयं को दोष दे रहे हैं सर, शायद आपको पता नहीं है कि मधु - ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दें - शनिवार की रात ही अपनी जान से हाथ धो बैठी थी।”
“कैसे पता, जबकि फॉरेंसिक वालों ने उस बारे में कोई भी दावा करने से साफ इंकार कर दिया था, मैंने खुद पूछा था उनसे।”
“इसलिए कर दिया सर क्योंकि वे लोग अटकलों के बिना पर कुछ नहीं कहते, लेकिन हमें पक्के तौर पर मालूम है कि आपकी बेटी की मौत शनिवार की रात को ही, या बड़ी हद रविवार की सुबह हो चुकी थी।”
“लेकिन ये नहीं मालूम कि उसके साथ क्या हुआ था? या तुम ये कहने वाले हो कि किसी प्रेत ने ही उसकी जान ले ली थी?”
“नहीं, मैं कहना भी चाहूं तो नहीं कह सकता, अलबत्ता उस रात जो कुछ भी घटित हुआ था वह एक नजर में प्रेतलीला ही जान पड़ता है। मगर जल्दी ही हम असलियत की तह तक पहुंच जायेंगे, जैसा कि मैं पहले ही आपसे कह चुका हूं।”
“और कुछ पूछना है?”
“आपने कोई वसीयत कर रखी है?”
“बहुत पहले की थी, कनिका के साथ शादी से करीब दो साल पहले।”
“जिसे आपने बाद में खारिज करवा दिया होगा, है न?”
“नहीं भई, पहले वक्त नहीं मिला और मधु की मौत हो जाने की सूरत में अब उस वसीयत के कोई मायने नहीं बचे हैं, क्योंकि उसके अनुसार मेरी तमाम चल अचल संपत्ति की मालिक वही बनने वाली थी।”
“और उसी वजह से आपकी पत्नी आप पर दबाव डाल रही थीं कि आप या तो उस वसीयत को खारिज करें, या जायदाद को मधु और उनके बीच बराबर में बांट दें।”
“तुम्हें कैसे पता है वो बात?” कोठारी ने बड़ी हैरानी से पूछा।
“लगाना पड़ता है सर, मामला जब किसी के कत्ल से जुड़ा हो तो हर किसी के बारे में जानकारियां निकालनी पड़ती हैं। यू नो, छोटी से छोटी बातों पर ध्यान देना पड़ता है।”
“वो तो ठीक है लेकिन ये क्योंकर मुमकिन हुआ कि हमारी निजी बातें जो कि कमरे के अंदर हुई थीं, उसकी खबर पुलिस को लग गयी - कहकर उसने संदिग्ध निगाहों से विराट को घूरा - कहीं तुम लोगों ने मेरे बंगले में कोई माइक्रो फोन वगैरह तो नहीं लगा रखा है?”
“नहीं सर, भला ऐसा क्यों करेंगे हम? फिर जरा सोचकर देखिये कि मैडम के साथ आपकी वह बातचीत कब हुई थी? जाहिर है मधु की गुमशुदगी से बहुत पहले, और उस वक्त पुलिस के पास कोई वजह नहीं थी ऐसा कुछ करने की, बल्कि आज भी नहीं है।”
“फिर कैसे जाना?”
“कातिल को गिरफ्तार हो जाने दीजिए सर, फिर इस सवाल का जवाब मैं जरूर दूंगा आपको, अभी इसलिए नहीं दे सकता क्योंकि बात अगर लीक हो गयी तो हत्यारे को बेनकाब करना मुश्किल हो जायेगा।”
“तुम लोग कनिका पर शक कर रहे हो?” वह बौखलाये अंदाज में बोला।
“क्या हमें करना चाहिए?”
“हरगिज भी नहीं।”
“और नकुल पर?”
“उसपर भी नहीं, मैं नहीं समझता कि उन दोनों में से कोई भी इतना नीचे गिर सकता है कि जायदाद हासिल करने के लिए मेरी बेटी को मौत की नींद सुला दे।”
“मान लीजिए खुदा न करें कल को आप भी किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं, तो ऐसे में आपकी संपत्ति का बंटवारा किन लोगों के बीच होगा?”
“बंटवारे की नौबत ही कहां आयेगी विराट, मेरी बच्ची दुनिया से जा चुकी है, ऐसे में जो कुछ भी होगा वह कनिका का ही तो होगा, आखिर वाईफ है मेरी।”
“हां ये तो एकदम सही कहा आपने, एनी वे अब और कुछ नहीं पूछना आपसे, थैंक यू।”
“लेकिन मैं पूछना चाहता हूं।”
“वैलकम सर।”
“क्या तुम लोगों को सच में मेरी बीवी या साले पर कोई शक है? समझ लो रिक्वेस्ट कर रहा हूं, इसलिए झूठ मत बोलाना। ये सोचकर ही सच्चाई बता दो कि कत्ल अगर जायदाद के लालच में किया गया है, तो कल को मुझे भी रास्ते से हटाने की कोशिश की जा सकती है। ऐसे में तुम्हारा जवाब अगर हां में हुआ तो मैं सावधानी तो बरत पाऊंगा।”
“सिर्फ एक बात है सर जो आपके साले नकुल पर शक करने की वजह बन रही है, हालांकि वह बेबुनियाद भी हो सकती है।”
“क्या?”
“आपने उस बारे में नकुल से सवाल जवाब कर लिया तो हमारे लिए मुश्किल खड़ी हो जायेगी, हां सावधानी बरतने में कोई बुराई नहीं है, इसलिए जी भर कर बरतना शुरू कर दीजिए।”
“तुम मुझे ये सोचने को मजबूर कर रहे हो इंस्पेक्टर की मेरे घर में आस्तीन के सांप पल रहे हैं। ये बहुत बड़ी बात है, इसलिए मुझे साफ साफ बताओ उस बारे में। मैं वादा करता हूं कि किसी को उसकी भनक तक नहीं लगने दूंगा। और क्यों लगने दूंगा? मैं क्या अपनी बेटी के हत्यारे को बचाने की कोशिश करूंगा?”
“नहीं वो तो खैर आप नहीं करने वाले।”
“फिर बता क्यों नहीं देते?”
“ठीक है सुनिये, उस रोज आपके घर में जो कुछ भी अनुष्ठान के रूप में किया गया, या उसका जो भी रिजल्ट सामने आया, उसपर हमें जरा भी यकीन नहीं है। मैं मान ही नहीं सकता कि किसी इंसान के पास ऐसी शक्तियां हो सकती हैं, जिससे वह पास्ट में जाकर किसी के कत्ल की कथा यूं कह सुनाये, जैसे सबकुछ कहीं से देख या पढ़कर बता रहा हो।”
“मान लो उसके पास कोई शक्ति नहीं है। उसने जो कुछ भी किया था वह सब नौटंकी ही थी, तो क्या इतने से वह मेरी बेटी का हत्यारा भी साबित हो जाता है, अगर तुम्हारा जवाब हां में है तो बताओ कैसे?”
“जवाब बेहद मामूली है सर। अगर नकुल के पास उतनी चमत्कारिक शक्ति नहीं है, जितना होने का एहसास उसने अनुष्ठान के दौरान हम सभी को कराया था, तो सवाल ये है कि मधु के साथ गुजरे हादसे की खबर उसे क्योंकर है?”
कोठारी का चेहरा एकदम से गंभीर हो उठा।
“अगर वह सब नकुल की नौटंकी थी तो जाहिर है वह पहले से जानता था कि मधु की लाश कहां पड़ी है? और जानता था तो उसने आपको बताया क्यों नहीं?”
“इसलिए नहीं बताया क्योंकि तब उससे ये सवाल जरूर पूछा गया होता कि उसे कैसे पता कि मधु के साथ क्या घटित हुआ था? और मालूम इसलिए था क्योंकि मेरी बेटी का कातिल वही कमीना है।”
“अभी इस बात की गारंटी नहीं की जा सकती सर कि कातिल वही है। मगर शक हम बराबर कर रहे हैं उसपर। बस आप इतना याद रखिये कि किसी भी हाल में गोपनीयता भंग नहीं करनी है। वरना कातिल अगर सच में वही है तो चौकन्ना हो जायेगा, और उसी अनुपात में उसके खिलाफ सबूत जुटाना भी मुश्किल हो जायेगा।”
“पता कैसे लगेगा कि कातिल वही है या कोई और?”
“वैसे ही जैसे कि तमाम केसेज में पुलिस आखिरकार तो लगा ही लेती है। तब तक आपको सब्र के साथ इंतजार करने की जरूरत है। हां सावधान बराबर रहियेगा।”
“राजावत के सामने तुमने कहा था कि राहुल और मधु का हत्यारा एक ही है, अगर ऐसा है तो कातिल नकुल कैसे हो सकता है? जहां तक मुझे पता है राहुल को तो वह जानता तक नहीं रहा होगा।”
“वह भी एक संभावना है सर, मगर गारंटी अभी दोनों बातों में से किसी एक की भी नहीं की जा सकती, ये भी हो सकता है कल को कोई तीसरी और ज्यादा मजबूत बात सामने आ जाये, जो कि केस का रुख ही बदल कर रख दे।”
“ठीक है समझ लो मैं अभी और इसी वक्त भूल गया कि तुमने नकुल पर किस तरह का शक जताया था, हां प्रीकॉशन मैं जरूर लूंगा, ताकि धोखे का शिकार न बन सकूं।”
कहकर वह उठ खड़ा हुआ।
“थैंक यू सर।”
जवाब में उसने हौले से मुंडी हिलाई और कमरे से बाहर निकल गया।
“कमाल है सर जी - कोठारी के जाते ही जोशी बोल पड़ा - नकुल के बारे में आप यहां तक सोच बैठे और मैं यही समझता रहा कि तंत्र मंत्र पर आपका यकीन बढ़ता जा रहा है।”
विराट हंसा।
“बस एक बात मेरी समझ में नहीं आई।”
“क्या?”
“अगर आपको नकुल से रिलेटेड थ्योरी को राज रखना ही था तो कोठारी के सामने जिक्र करने की ही क्या जरूरत थी? अभी तो हो सकता है गुस्से में आकर वह घर पहुंचते ही वाही तबाही बकना शुरू कर दे। नहीं भी करेगा तो आइंदा दिनों में उसका जरूरत से ज्यादा एहतियात बरतना ही उसे शक के दायरे में ले जाकर खड़ा कर देगा।”
“बेशक कर दे जोशी साहब, लेकिन सावधान रहेगा तो कम से कम मरने से तो बच जायेगा। असल में तो मैंने बस बरामद होने वाली लाशों में से एक को कम करने की कोशिश भर की है।”
“आपको यकीन है कि कातिल नकुल ही है?”
“या जो कुछ हुआ वह दोनों भाई बहनों की मिली भगत का नतीजा है। मगर है तो सब तुक्का ही, असल में क्या हुआ था, इसका अंदाजा तो दूर दूर तक नहीं है हमें।”
“नकुल को हत्यारा मानने के लिए तो इतना ही काफी है सर कि हम उसकी तंत्र-मंत्र की शक्ति को झूठा मान लें। बस हो गया वह कातिल। आगे तो बस उसके खिलाफ सबूत जुटाना भर बाकी बचता है जो कि हम कर ही लेंगे।”
“पहले केस के तमाम पहलुओं को उजागर हो लेने दो जोशी साहब, उसके बाद हम कातिल को संदिग्धों की भीड़ से छांटकर अलग कर लेंगे।”
तभी महेश गुर्जर इजाजत लेकर अंदर आ गया।
“कर आये शिकार?”
“जी सर।”
“चाय पानी मंगवाई जाये तुम्हारे लिए?”
“क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं सर?”
“अरे भई हम भी तो लेंगे।”
“मैं बोलकर आता हूं न।”
“कुछ स्नैक्स भी लाने को कह देना, खाना तो पता नहीं कब नसीब होगा आज रात।”
“जी बोले देता हूं।” कहकर वह बाहर निकल गया।
थोड़ी देर में चाय नाश्ता वहां पहुंच गया। तीनों ने उसपर हाथ साफ किया फिर विराट राणा महेश की तरफ देखता हुआ बोला, “शादी हो गयी है तुम्हारी?”
“आप जानते हैं सर कि हो गयी है।”
“जानता हूं तभी तो बता रहा हूं, घर जाना चाहो तो निकल लो, हमारे साथ रहोगे तो खामख्वाह रात खोटी हो जायेगी।”
“आपका हुक्म होगा तो मैं खोटी कर सकता हूं सर।”
“फिर तो तुम निकल ही लो यार।”
“थैंक यू सर।” कहकर वह उठा और कमरे से बाहर निकल गया।
“चलें जोशी साहब?”
“कहां घर?”
“इंटेरोगेशन रूम में।”
“इंकार करूंगा तो आप मान तो जायेंगे नहीं, इसलिए चल ही लेता हूं।” कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ।
आगे दोनों कमरे से निकलकर इंटेरोगेशन रुम में पहुंचे, जो कि पंद्रह बाई पंद्रह का बड़ा कमरा था, और हवालात से एकदम सटा हुआ था।
विराट ने जेब से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाला, जिसे जोशी ने फौरन उसके हाथों से लपक लिया, “मैं सुलगाता हूं न सर।”
“इसे चमचागिरी कहते हैं जोशी साहब।”
“तब नहीं कहते जब सीनियर सैकड़ों बार जूनियर के लिए सिगरेट सुलगा चुका हो। मुल्जिम बस यहां पहुंचने ही वाला है, कहीं उसने आपको ऐसा करते देख लिया तो इंप्रेशन खराब हो जायेगा।”
उसी वक्त चितरंजन को दायें बायें से थामे दो सिपाही कमरे में दाखिल हुए। उसके चेहरे से हवाइयां उड़ रही थीं। इतनी बुरी तरह बौखलाया हुआ था जैसे उसे फांसी पर चढ़ाने के लिए ले जाया जा रहा हो।
“क्या करना है सर?” एक सिपाही ने पूछा।
“एक नंबर का झूठा है ये कम्बख्त, उल्टा लटका दो साले को।”
“अरे साहब मैंने क्या किया है?” चितरंजन घबरा सा उठा।
“सबकुछ तूने ही किया है बहन चो...” विराट को सिगरेट थमाता जोशी गुस्से से बोला - मगर तेरा झूठ चल नहीं पाया क्योंकि प्रवीन सिंह ने सारी सच्चाई बयान कर दी है।”
“कैसी सच्चाई?” वह हकबकाया।
“यही कि तेरे दोस्त अजब सिंह को किसी पिशाच ने नहीं मारा था - विराट बोला - बल्कि तूने ही अपने दूसरे दोस्त बबलू के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी थी। मगर मुखिया जी क्योंकि तुझे बहुत मान देते थे, इसलिए तेरे गिड़गिड़ाने पर उस बात पर पर्दा डालते हुए उसी रात लाश को फुंकवा दिया था।”
“ये झूठ है सर।” वह आवेश के साथ बोला।
“जो चाहे बकता रह, यहां किसे परवाह है? - कहकर उसने फिर से सिपाहियों की तरफ देखा - मुंह क्या देख रहे हो मेरा। उल्टा लटका कर तब तक मार लगाओ इस कमीने को, जब तक कि अपना जुर्म कबूल नहीं कर लेता।”
“गरीब आदमी पर जुल्म मत करो साहब जी - सिपाहियों से अपना हाथ छुड़ाकर चितरंजन विराट के कदमों में झुक गया - मैंने कुछ नहीं किया था, मां कसम।”
“मर गयी या जिंदा है?”
“क....कौन?”
“तुम्हारी मां?”
“वह तो सालों पहले मर गयी थी साहब जी।”
“फिर झूठी कसम खाने में तेरा क्या जाता है?”
“मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा साहब जी।”
“उठ कर खड़ा हो जा।”
जोशी ने घुड़का, तो चितरंजन ने विराट के पांव छोड़ दिये।
“अब मेरी बात ध्यान से सुन। बीस साल पहले तूने क्या किया था, उस बात से हमारा कोई लेना देना नहीं है। ना तो वह केस दिल्ली पुलिस का है, ना ही उस मामले में कोई रिपोर्ट कभी दर्ज कराई गयी थी। हम तो बस ये साबित करना चाहते हैं कि चंद्रशेखर महाराज के भूत का जो हौव्वा तिमारपुर और उससे लगते इलाकों में व्याप्त है वह खत्म हो जाये। क्योंकि सच यही है कि वहां कोई भूत पिशाच नहीं रहता। ऐसे में तेरी भलाई इसी बात में है कि सबकुछ सच सच बता दे हमें। वरना मुखिया ये बयान देने को तैयार हो चुका है कि अजब सिंह का कत्ल तूने ही अपने दोस्त के साथ मिलकर किया था। ऐसे में हमारी बात नहीं मानेगा तो जेल जाकर रहेगा।”
“मैंने नहीं मारा था साहब जी।”
“ये हरामजादा ऐसे नहीं मानेगा सर - कहकर उसने सिपाहियों को घुड़का - सुना नहीं साहब ने क्या हुक्म दिया था?”
तत्काल दोनों ने मिलकर चितरंजन को नीचे गिराया और पैरों में एक रस्सी बांध दी, तभी दूसरा सिपाही दूर एक कोने में रखी लोहे की सरिया उठा लाया, जिसे छत से लटके दो तीन तीन फीट के जंजीरों में लगे हुकों में फंसा दिया।
अगले ही पल रस्सी को उस सरिये के ऊपर से गुजार कर सिपाहियों ने नीचे खींचना शुरू किया तो चितरंजन का शरीर पैरों की तरफ से ऊंचा उठता चला गया।
“आप गलत कर रहे हो साहब - उसने जोर का आर्तनाद किया - मैंने कुछ नहीं किया था, मुखिया झूठ बोल रहा है।”
“जरा देखिये तो सर - जोशी हंसता हुआ बोला - मुखिया जी जैसे सम्मानित व्यक्ति को झूठा करार दे रहा है। जबकि गांव के लोग उन्हें बेहद भला इंसान बताते हैं। ऐसा इंसान जो हर किसी के दुःख दर्द में काम आकर दिखाता है।”
“हां झूठ ही बोला था उस कमीने ने।” उल्टा लटका चितरंजन इस बार चिल्ला ही पड़ा।
“बकवास बंद कर - कहकर जोशी ने सिपाहियों की तरफ देखा - इसकी तब तक धुलाई करो जब तक कि ये अपना गुनाह कबूल नहीं कर लेता। वैसे भी मुखिया जी ने साफ-साफ कहा था कि अजब सिंह को इसी ने मारा था।”
“रहम करो साहब - चितरंजन रोता हुआ बोला - मैंने अजब को नहीं मारा था। वह तो मेरा भाई जैसा दोस्त था, उसकी हत्या भला क्यों करता मैं?”
“क्यों किया था ये जानने के लिए ही तो हमने तुझे उल्टा लटकाया है बेटा। डंडों की मार झेल भी गया तो कोई बात नहीं, और भी बहुतेरे रास्ते हैं हमारे पास तेरे जैसों की जुबान खुलवाने के।”
“गलत कर रहे हो साहब जी, मैंने कुछ नहीं किया था।”
“फिर किसने किया?”
“जुबान खोलूंगा तो मुखिया मेरी लाश का भी पता नहीं लगने देगा।”
सुनकर विराट और जोशी के होंठों पर एक साथ मुस्कान रेंग उठी। चितरंजन पर कोई खास शक उन्हें नहीं था, मगर उसकी कही आखिरी बात ने पलक झपकते ही समझा दिया कि मामले का राज उसी के सीने में दफ्न है।
“सच्चाई बता बेटा - विराट बोला - हम वादा करते हैं कि मुखिया तक एक बात भी नहीं पहुंचने देंगे।”
चितरंजन ने कसकर होंठ भींच लिये।
“तू मार खाने के ही काबिल है।” कहकर जोशी ने एक डंडा उठाया और तेजी से यूं कंधों के पीछे लेकर गया जैसे उसका भरपूर वार चितरंजन के जिस्म पर करना चाहता हो।
“मारना नहीं साहब, मैं सब बताता हूं।”
“अच्छी बात है बोल अजब सिंह को किसने मारा था?”
“मुखिया के बेटे नंदू ने - वह जैसे फट पड़ा - उस कमीने ने हमारी आंखों के सामने नोंच नोंच कर अजब सिंह के शरीर से गोश्त के टुकड़े अलग किये थे, और हमें जबरन वह नजारा देखने के लिए वहीं बैठाये भी रखा था।”
दोनों पुलिस अफसर हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे।
“नीचे उतार दो इसे।” विराट बोला।
तत्पश्चात चितरंजन के बंधन खोलकर उसे विराट के सामने एक कुर्सी पर बैठा दिया गया।
“मैं सच कह रहा हूं साहब जी, नंदू ने ही मारा था अजब सिंह को।”
“यकीन तो नहीं आ रहा हमें, लेकिन कोई बात नहीं, तू बोल क्या कहना चाहता है। सबकुछ विस्तार से बता, कुछ भी छूटना नहीं चाहिए। अगर तू बेगुनाह है तो अभी और इसी वक्त तुझे आजाद कर देंगे हम।”
“उससे क्या फायदा होगा साहब जी, आप छोड़ देंगे तो मुखिया मार डालेगा, मुझ गरीब की जान तो हर हाल में जाकर रहेगी।”
“टेंशन मत ले, मुखिया को खबर भी नहीं लगेगी कि तूने उसके बारे में मुंह फाड़ा है। वैसे भी पूरा किस्सा बयान किये बिना तू हमें इस बात का यकीन कैसे दिला पायेगा कि अजब सिंह का कत्ल नंदू ने किया था।”
“उसी ने किया था साहब।”
“क्यों?”
“नंदू नपुंसक था, जबकि उसकी बीवी बहुत सुंदर और छबीली थी। जाने कैसे एक रोज नंदू के नपुंसक होने की बात अजब सिंह को पता लग गयी, और वह बहानों से उसके घर आना जाना करने लगा, फिर जल्दी ही दोनों के संबंध बन गये।”
“झूठ मत बोल, नंदू दो बच्चों का बाप था।”
“वह बच्चे भी अजब सिंह के ही थे साहब जी, नंदू के बस का तो कुछ था ही नहीं, औलाद कहां से पैदा कर लेता?”
“ठीक आगे बढ़।”
“रात में अजब और नंदू की बीवी अक्सर हवेली के पास ही मिला करते थे, क्योंकि वह जगह एकदम उजाड़ पड़ी थी और उधर कोई आता-जाता नहीं था।”
“उन्हें भूत प्रेतों से डर नहीं लगता था?”
“तब तक वैसी कोई बात ही सामने नहीं आई थी, हां गांव के लोग इतना जरूर कहते थे कि हवेली में आत्माओं का वास है, लेकिन कभी किसी ने देखा नहीं था। इसीलिए दोनों को वह एकदम सुरक्षित जगह महसूस होती थी।”
“कत्ल वाले रोज क्या हुआ था?”
“हम तीनों दोस्त एक दूसरे के बहुत करीब थे, इसलिए अक्सर अजब सिंह पर दबाव बनाते रहते थे कि वह किसी तरह हमें भी अपनी माशूका के जिस्म का स्वाद चखने का मौका दे।”
“जैसे वह कोई मिठाई थी?”
“मिठाई तो बराबर थी साहब जी, हां ये बात अलग थी कि वह सिर्फ अजब को ही हासिल थी। मगर कत्ल वाले रोज आखिरकार वह हमारी बात मान गया।”
“क्यों मान गया, क्या नंदू की बीवी को तुम दोनों के साथ रंगरलियां मनाने को तैयार कर चुका था?”
“नहीं, उसने प्लानिंग ये की थी कि जिस वक्त वह दोनों वहां एकाकार हो रहे होंगे, ऊपर से मैं और बबलू भी पहुंच जायेंगे। फिर उसे धमकी देते कि या तो वह हमें भी मजे कराये या फिर हम जाकर उसके पति को सबकुछ बता देंगे, बल्कि पूरे गांव को उसके और अजब के चक्कर की खबर कर देंगे।”
“इतनी रात को वह निकल कैसे आती थी घर से?”
“सर्दी हो या गरमी नंदू हमेशा छत पर मौजूद एक कमरे में ही सोया करता था, शायद इसलिए क्योंकि बीवी के पास जाकर अपनी बेइज्जती नहीं कराना चाहता था। और मुखिया अपनी बीवी के साथ बाहर बरामदे में सोता था। उनके घर के पीछे भी एक दरवाजा है, कलावती रात को वहीं से बाहर निकल आती थी, कई बार तो नंदू को उसी रास्ते से अंदर भी बुला लिया करती थी।”
“खैर कत्ल की नौबत क्यों आई?”
“हमारी किस्मत जो खराब थी साहब जी। उस रात अजब और कलावती हवेली के करीब गये और एक जगह अंधेरे में लिपटा-झपटी करने लगे, फिर थोड़ी देर बाद योजना के मुताबिक हम दोनों उधर को बढ़ चले, तभी पता नहीं कहां से वहां नंदू आ गया, उसके हाथ में एक हंसिया थी - (घास काटने के काम आने वाला हथियार) उसने आव देखा न ताव अंधाधुंध अजब सिंह पर हंसिया से वार करता चला गया, जगह जगह से मांस नोंच लिया, फिर भी जी नहीं भरा तो उसके मुंह में हंसिये का एक हिस्सा घुसाकर पूरा का पूरा चीरता चला गया। वह तो जैसे जानवर ही बन गया था उस वक्त। मैं बबलू और कलावती वहां खड़े थर थर कांपते रहे, इतना भी नहीं हुआ कि वहां से भाग जाते, वैसे भी भागकर कहां जाते, बाद में तो वह हमें ढूंढ ही लेता।”
“फिर क्या हुआ?”
“हमने ये कहकर अपनी जान बचाई कि हम नहीं जानते थे वहां क्या चल रहा था। उसकी बीवी को हमारे आने के बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए हमारा झूठ चल गया। फिर उसने मुझे गांव से चुपचाप अपने बाप को बुला लाने के लिए भेज दिया। जाने और आने में मुझे दस मिनट लग गये। मुखिया ने जब बेटे की करतूत देखी, तो पलक झपकते ही समझ गया कि वहां क्या हुआ था। तब उसने हमें गांव पहुंचकर सबको इकट्ठा करने और वह कहानी सुनाने को कहा जो मैंने आप लोगों को पहली मुलाकात में सुनाया था।”
“यानि वह बस कहानी ही थी?”
“जी साहब जी, इधर मैं अपने दोस्त के साथ गांव पहुंचा उधर नंदू अपनी बीवी के साथ घर लौट गया। उसके बाद मुखिया भी अपने बरामदे में जाकर लेट गया, तब हमने चिल्ला चिल्लाकर गांव वालों को इकट्ठा किया और उन्हें ये बताया कि महाराज चंद्रशेखर के प्रेत ने कितने भयानक ढंग से अजब सिंह को मार गिराया था।”
“किसी को शक नहीं हुआ?”
“मैं नहीं जानता, फिर मुखिया के सामने किसी की जुबान खोलने की मजाल भी तो नहीं थी। उसने पता नहीं कैसे गांव के एक पंडित और ओझा को तैयार किया कि दोनों कहने लगे प्रेत के शिकार को फौरन जला देने में ही भलाई थी, बाकी लोगों ने तुरंत उस बात पर सहमति जता दी। यहां तक कि अजब के वृद्ध़ मां बाप ने भी स्वीकृति दे दी, फिर वहीं हवेली के सामने चिता सजाकर उसकी लाश जला दी गयी।”
“और बाद में जो नंदू पर प्रेत सवार होने की बात सामने आई, जिसमें उसने अपनी बीवी को मार गिराया और बाद में आत्महत्या भी कर ली, वह क्या था?”
“उस मामले में जो कुछ किया मुखिया ने किया, उसी ने सबको बताया कि कैसे चंद्रशेखर महाराज की आत्मा ने नंदू पर सवार होकर उसके हाथों उसकी बीवी को मरवा डाला था।”
“अरे कोई वजह भी तो रही होगी?”
“गांव में सबको पता लग गया था कि नंदू नपुंसक है, लड़के उसे देखकर मुस्कराने लग जाते थे, छिपे लहजे में फब्तियां भी कसते थे। मगर जिस रोज उसने अपनी बीवी को मारा, उस रोज शाम को एक लड़के ने ये कहकर उसका दिमाग खराब कर दिया कि ‘नंदू भाई की रसमलाई है तो बहुत मजेदार लेकिन अफसोस कि उसका स्वाद नहीं चख सकते ये।” सुनकर वह इतना आगबबूला हुआ कि उस लड़के को पीट पीट कर अधमरा कर दिया, वो तो मुखिया वहां पहुंच गया वरना जान से ही मार देता। उसी रात नंदू ने अपनी बीवी को मार डाला और फिर खुद भी आत्महत्या कर ली थी।”
“यानि हवेली में कोई प्रेत नहीं रहता?”
“रहता है या नहीं मैं नहीं जानता साहब जी, हां गांव वालों को पूरा यकीन है कि वहां महाराज की आत्मा भटकती है, जो रात को भूले भटके उधर पहुंच जाने वालों को अपना शिकार बना लेती है।”
“अजब सिंह के बाद क्या कोई और भी मारा गया था हवेली में, या उसके आस-पास?”
“अभी हाल ही में एक लड़की की लाश मिली थी, आपको तो पता ही होगा।”
“उसके अलावा?”
“नहीं साहब जी और तो कोई लाश कभी नहीं निकली वहां से।”
“स्कूल के एक टीचर ने हमें बताया था कि उसकी बीवी ने एकबार अपनी छत से हवेली के ऊपर किसी प्रेत को मंडराते देखा था।”
“मैंने भी सुना था वह किस्सा। उसके बाद महीनों तक मास्टरनी बिस्तर पर पड़ी रही थी। मगर ये भी तो हो सकता है साहब जी कि अमावस की अंधेरी रात में उसे कोई भ्रम हो गया हो, आखिर उसका घर भी तो बहुत दूर है हवेली से।”
“हो सकता है, अच्छा ये बताओ कि हाल ही में जिस लड़की की लाश हवेली के पास से बरामद हुई थी, उसके बारे में क्या जानते हो?”
“कुछ भी नहीं साहब जी, मां कसम मुझे नहीं पता।”
“गांव में कोई सुगबुगाहट?”
“वो तो हमेशा होती ही रहती है, इसलिए गांव वाले आजकल बहुत डरे हुए हैं, उनको यही लगता है कि वह काम महाराज की प्रेतात्मा ने ही किया था।”
“मगर तुम्हें उनके कहे पर यकीन नहीं है, है न?”
“लाश जली हुई नहीं मिली होती साहब जी तो कर लेता, ऊपर से जब पहली घटना के बारे में मैं जानता हूं कि उसमें किसी प्रेत का हाथ नहीं था, तो दूसरी पर कैसे यकीन कर लेता?”
“और कुछ बताना चाहते हो?”
“नहीं साहब जी, मैंने आपको सारी सच्चाई बता दी है, अब आपके हाथ में है कि मुझ बेकसूर को जाने देते हैं या जेल भिजवा देते हैं।”
“एक शर्त पर आजाद कर सकता हूं।”
“मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है।”
“पहले सुन तो लो।”
“मुझे बिना सुने मंजूर है साहब जी।”
“ठीक है तुम जा सकते हो, बस इतना ध्यान रखना कि हमारे बीच हुई बातचीत की भनक किसी को भी नहीं लगनी चाहिए।”
“वो तो आप नहीं भी कहते सर तो मैंने चुप ही रहना था, जुबान खोलकर क्या मरना है मुझे।”
“ठीक है जाओ।”
“शुक्रिया सर जी।”
“पैसे हैं जेब में?”
“हां पचास रूपये पड़े हैं।”
सुनकर विराट ने पांच सौ का एक नोट पर्स से निकालकर उसके हवाले कर दिया, “रख लो, शेयरिंग ऑटो ना मिले तो कोई गाड़ी बुक कर लेना।”
चितरंजन ने डरते डरते नोट अपने काबू में किया और दोनों को नमस्कार कर के वहां से बाहर निकल गया।
“ये तो कमाल ही हो गया सर, जो बात चालीस हजार की फीस और अनुष्ठान के लिए बीस हजार का सामान खरीदने के बाद भी हमारी समझ में नहीं आई, वह चितरंजन पांच सौ में समझा गया, वह भी आपने बिना मांगे दिया है उसे।”
“इसी बात पर एक मजेदार कहानी सुनो, जो मैंने कुछ दिनों पहले किसी अखबार या मैग्जीन में पढ़ा था।”
“जरूर सुनाइये सर।”
“एक आदमी का बेटा मर्डर के इल्जाम में गिरफ्तार हुआ तो वह एक वकील के पास पहुंचा। वकील साहब ने पूरी कहानी सुनी और उससे कहा कि पांच हजार की फीस में वह उसके बेटे की पैरवी करने को तैयार है। सुनकर उस शख्स को बड़ी हैरानी हुई, उसने सोचा कि इतनी कम फीस लेने वाला वकील तो भला क्या कर पायेगा। इसलिए वहां से उठकर चला गया। उस घटना के करीब दो साल बाद दोनों इत्तेफाक से एक मार्केट में आमने सामने आ गये, तब वकील साहब ने सवाल किया कि ‘तुम्हारे बेटे का क्या हुआ?’ जवाब मिला ‘उसे तो फांसी हो गयी’ वकील ने पूछा ‘जिस एडवोकेट को हॉयर किया था उसने फीस कितनी ली थी?’ जवाब मिला ‘पांच लाख’। तब वकील साहब मुस्कराते हुए बोले, ‘तुमने खामख्वाह इतनी बड़ी रकम खर्च कर दी, जबकि वह काम तो मैं पांच हजार में ही करने को तैयार था’।”
सुनकर जोशी ने जोर का ठहाका लगाया, फिर बोला, “वैसे प्लॉन गजब का था मुखिया का, उसे देखकर तो कोई सोच भी नहीं सकता कि वह इतना बड़ा खिलाड़ी होगा। खामख्वाह एक हवेली को हमेशा के लिए अभिशप्त साबित कर के रख दिया।”
“और कर भी क्या सकता था, इकलौते बेटे को जेल जाने से बचाना तो बनता ही था।”
“जो कि आखिरकार मारा ही गया - जोशी बोला - और नये सिनेरियो में ये बात भी साबित हो जाती है कि नकुल ने ही अपनी भांजी का कत्ल किया था। जब कोई भूत वहां रहता ही नहीं तो उसे दिखाई कैसे दे सकता है।”
उसी वक्त आईटी टीम का इंचार्ज मिश्रा वहां पहुंच गया।
“बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते।”
“कहने के लायक अभी-अभी कुछ हाथ लगा है।”
“क्या?”
“जिस रात मधु कोठारी का कत्ल हुआ - मिश्रा ने जैसे धमाका ही कर दिया - उस रात नकुल का मोबाईल भी तिमारपुर के इलाके में एक्टिव था।”
“वॉट?” दोनों हकबका कर उसकी शक्ल देखने लगे।
“हालांकि हवेली के एकदम करीब की लोकेशन तो हमें नहीं मिली - कहकर एक फुलस्केप शीट उनके सामने मेज पर रखता हुआ बोला - लेकिन बीच बीच में कई बार उसकी लोकेशन गायब हो गयी दिखाई देती है, जिसमें से सबसे लंबा वक्फा बीस मिनटों का है। मेरे ख्याल से तो वही वह वक्त रहा होगा जब अपना मोबाईल ऑफ कर के उसने हवेली में कदम रखा होगा।”
“और बाकी के बारे में क्या कहते हो - विराट लोकेशन शीट पर निगाह मारता हुआ बोला - जैसे कि एक मिनट, तीन मिनट, बल्कि एक बार तो महज तीस सेकेंड के लिए उसका मोबाईल आउट ऑफ नैटवर्क हुआ दिखाई दे रहा है। उतने छोटे वक्फे के लिए उसने अपना मोबाईल क्यों बंद किया होगा?”
“नहीं जानता, हो सकता है उस दौरान सच में कोई नैटवर्क इशू आ गया हो, जो कि खराब मौसम में ऐसी जगहों पर आम हो जाया करता है, जहां पहले से कवरेज की समस्या चली आ रही हो।”
“वैसा आधे घंटे वाले वक्फे में भी तो हुआ हो सकता है?”
“हो सकता है - मिश्रा थोड़ा चिढ़कर बोला - बस वह नहीं हो सकता जो कि मैं कह रहा हूं। जबकि इतना तुम खुद भी मानोगे कि उतनी रात को नकुल के पास उस इलाके में जाने की कोई वजह नहीं रही हो सकती, सिवाय इसके कि वह मधु कोठारी का कत्ल करने पहुंचा हो।”
“बाकी सातों के मोबाईल की क्या पोजिशन है?”
“मॉनिटरिंग जारी है, मगर सब के सब अपने घरों में बैठे हैं। जहां थोड़ी बहुत मूवमेंट बराबर दिखाई देती है, मगर वह बस पांच सौ से हजार फीट के दायरे में है, जो कि घर के भीतर की हो सकती है।”
“ठीक है मिश्रा जी, थैंक यू।”
जवाब में हौले से गर्दन हिलाता वह कमरे से बाहर निकल गया।
“ये तो कमाल ही हो गया जोशी साहब।”
“बेशक हो गया सर। केस यूं सॉल्व हो जायेगा, मैंने तो सोचा तक नहीं था। अब क्योंकि नकुल को गिरफ्तार कर के इंटेरोगेट करने की पर्याप्त वजह है हमारे पास, इसलिए उसका जुर्म कबूल करवा लेना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। और अलग से जो एडवांटेज हासिल है, वह ये है कि कोठारी के मन में आप पहले ही शक का बीज रोप चुके हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अपने साले की गिरफ्तारी में वह कोई अड़ंगा डालने की कोशिश करेगा। यानि इस बात का अब नकुल को कोई लाभ नहीं मिलने वाला कि उसका जीजा मल्टी मिलेनियर है।”
“लेकिन एक सवाल तो अभी भी हमारे सामने मुंह बाये खड़ा है जोशी साहब।”
“ये कि राहुल का कत्ल किसने किया था?”
“एग्जैक्टली, मधु को अगर नकुल ने खत्म कर दिया था, तो राहुल की हत्या किसने की थी, जबकि हम इस बात के प्रति श्योर हैं कि दोनों कत्ल किसी एक ही शख्स ने किये थे। या अब तुम उस बात में कोई जोड़ घटाव करना चाहते हो?”
“नहीं सर, क्योंकि मौत से पहले राहुल और मधु दोनों ही अपने दोस्तों के बीच थे। दोनों ही वारदातों को पापियों की पार्टी में अंजाम दिया गया था। दोनों ही बार गेम हार चुके लोगों को खत्म किया गया। और दोनों ही मामलों में भूत प्रेतों की संलिप्तता दिखाई दी थी। ऐसे में कातिल जुदा शख्स कैसे हो सकते हैं?”
“तो फिर नकुल हत्यारा क्योंकर हुआ, वह ना तो उनकी पार्टी में शामिल था, ना ही राहुल के साथ उसका कोई लिंक अभी तक सामने आया है।”
“लिंक सामने इसलिए नहीं आया सर क्योंकि आज से पहले नकुल की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं गया। अब गया है तो कुछ ना कुछ खोज निकालेंगे। बल्कि उसी की जुबानी कबूल करवायेंगे कि उसने राहुल का कत्ल क्यों किया था?”
“मेरे ख्याल से तो उसपर हाथ डालने से पहले हमें राहुल के साथ उसका कोई संबंध ढूंढ निकालना चाहिए, तब उसकी बोलती बंद करना ज्यादा आसान काम होगा क्योंकि बच निकलने के कोई चांस नहीं होंगे।”
“इस केस में हर रोज आपका एक नया रूप देख रहा हूं सर, जिसकी वजह मेरी समझ से परे है। क्या आप इस दुविधा को दूर करना चाहेंगे?”
“मनोकामना अवश्य पूरी होगी बालक। बात सिर्फ इतनी है कि कुछ दिनों पहले मैंने गूगल पर एक ऐसी केस फाईल पढ़ी थी, जिसमें सबको पता था कि कातिल कौन है, मगर सबूत कोई नहीं था, इसलिए हत्यारा आजाद घूम रहा था। केस यूएस का था जिसे एफबीआई ने हैंडल किया। वे लोग पूरे मनोयोग के साथ हत्यारे के खिलाफ सबूत जुटाने में लगे रहे। उस दौरान अपराधी को टच तक करने की कोशिश नहीं की गयी, क्योंकि जानते थे कि गिरफ्तार कर भी लिया तो कोर्ट से वह सहज ही रिहा हो जायेगा। देखते ही देखते दो सालों का लंबा वक्त गुजर गया। मुजरिम को यकीन आ गया कि वह कानून की निगाहों में धूल झोंकने में कामयाब हो गया था। इसलिए लापरवाह भी हो गया, और उसी लापरवाही में एक ऐसी गलती कर बैठा, जिससे हाथ के हाथ एफबीआई को उसके खिलाफ सबूत हासिल हो गये। इसलिए हो गये क्योंकि वे लोग हर वक्त उसपर निगाहें बनाये हुए थे। हत्यारा तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और महीना भर बाद ही अदालत ने उसे मौत की सजा भी सुना दी थी। समझ लो मैं कुछ वैसा ही धैर्य इस मामले में बरतने की कोशिश कर रहा हूं।”
“ये यूएस नहीं है सर इंडिया है - जोशी हंसता हुआ बोला - जहां एक केस पर दो साल तो छोड़िये तीन महीने से ज्यादा का वक्त भी नहीं लगा सकते हम। उसके बाद सब ठंडे बस्ते में चले जाते हैं - कुछ अपवादों को छोड़कर - जिनके बारे में बाद में इत्तेफाकन कोई क्लू मिल जाता है तो सॉल्व हो जाते हैं वरना तो मिस्ट्री बस मिस्ट्री ही बनकर रह जाती है। फिर दो सालों में तो हमारे यहां के हर थाने में हजारों एफआईआर दर्ज हो चुके होते हैं, कैसे पॉसिबल है नंबर एक के पीछे इतने लंबे वक्त तक बने रहना?”
“थैंक यू मिस्टर जोशी।”
“किस बात के लिए सर?”
“इतने ज्ञान की बात बताने के लिए।”
“सॉरी सर, मैं खामख्वाह सूरज को दीया दिखा रहा था - कहकर उसने पूछा - तो कुल मिलाकर आपकी बातों का मतलब ये हुआ कि अभी हमें नकुल से दूर दूर ही रहना है, है न?”
“नहीं पूछताछ तो हम उससे बराबर करेंगे, मगर गिरफ्तार कर के नहीं। हां सवाल-जवाब के दौरान अगर पक्का ही यकीन आ जाये कि कातिल वही है तो और बात है।”
“आपको अभी भी उसके हत्यारा होने पर शक है?”
“नहीं होगा, अगर राहुल के साथ उसका कोई कनेक्शन निकल आये।”
“अभी क्या करना है, या कुछ नहीं करना?”
“करना है, बेहद जरूरी काम।”
“वो क्या सर?”
“घर चलते हैं।”
कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ।
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