साढे आठ बजे ही सुनील राजनगर एयरोड्रोम के लाउन्ज में आ बैठा। वह एक शानदार सूट पहने हुए था और सिर पर सूट से ही मैच करती हुई फैल्ट हैट लगाये हुए था । उसकी आंखों पर धूप का कीमती चश्मा चढा हुआ था । उसका सूटकेस पहले ही चैक होने के लिये कस्टम पर पहुंच चुका था ।
सुनील सिगरेट पी रहा था और पीटर हाल की प्रतीक्षा कर रहा था ।
सुनील से थोड़ी दूर सुनील के प्रति अपार निर्लिप्ता का प्रदर्शन करते हुए जोजेफ और मुरली बैठे थे ।
सुनील का पासपोर्ट और एरोप्लेन टिकट उसकी जेब में था । पासपोर्ट निश्चय ही जाली था लेकिन किसी को भी उसके जाली होने का सन्देह नहीं हुआ था ।
सुनील की पिछली रात भारी कष्ट में गुजरी थी । हर तीन घन्टे बाद उसकी ऐसे रोगी जैसी हालत हो जाती थी जिसे दिल का भयंकर दौरा पड़ा हो । वह चिल्ला-चिल्ला कर जोजेफ को आवाज देता था । जोजेफ नींद में आंखे मलता हुआ जान बूझकर देर करके आता था और उसे गोली देता था । थोड़ी देर बाद उस की तबीयत सुधर जाती थी लेकिन फिर आंखों में नींद उड़ जाती थी । जब तब नींद आती थी लेकिन तब तक फिर गोली का प्रभाव खतम हो जाता था और सुनील फिर विक्षिप्त सा चिल्लाने लगता था ।
और यही सिलसिला न जाने कब तक चलने वाला था ।
सुनील सतर्कता से लाउन्ज में और उसके आसपास मौजूद लोगों का निरीक्षण कर रहा था ।
उसे कई सन्दिग्ध चरित्र वहां घूमते हुए दिखाई दिये ।
उसे पीटर हाल के निर्विरोध हांगकांग जाने वाले हवाई जहाज पर चढ पाने की सम्भावना कम दिखाई देने लगी ।
लाउन्ज के दूसरे सिरे पर एक कुर्सी पर भारी ओवरकोट पहने हुए एक आदमी बैठा हुआ था । प्रत्यक्षतः वह अपने हाथों में थमा हुआ अखबार पढने में मग्न था लेकिन रह रह कर उसकी सतर्क द्दष्टि चारों ओर घूम जाती थी ।
सुनील को आधी सूरत पहचानी हुई सी लगी ।
सुनील लापरवाही से अपने स्थान से उठा और फिर जोजेफ के समीप पड़ी एक खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
जोजेफ ने एक प्रश्नसूचक दृष्टि उसकी ओर फेंकी ।
“लाउन्ज के दूसरे सिरे पर पान के गमलों के समीप एक ओवरकोट वाला आदमी बैठा है” - सुनील बिना उसकी ओर देखे धीरे से बोला - “जो अखबार पढ रहा है ।”
“हां ।”
“तुम उसे जानते हो ?”
“तुमने कैसे सोच लिया मैं उसे जानता होऊंगा ?”
“परसों रात को मैंने उसे टूरिस्ट होटल के सामने देखा था । वह भी उन्हीं आदमियों में से एक लगा था जो मेरी प्रतीक्षा में टूरिस्ट होटल की निगरानी कर रहे थे ।”
जोजेफ चुप रहा ।
“वह तुम्हारा साथी है ?”
जोजेफ पहले हिचकिचाया और फिर उसने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“वह यहां क्या कर रहा है ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह यहां पीटर हाल की वजह से बैठा है” - जोजेफ धीरे से बोला - “अगर पीटर हाल पर पुलिस ने हाथ डाला तो वह उसे शूट कर देगा ।”
सुनील के नेत्र फैल गये ।
“यह आइडिया किसके दिमाग की उपज है ?” - वह बोला ।
“मेरे ।” - जोजेफ ने शान्ति से उत्तर दिया ।
“तुम्हारा दिमाग खराब है । तुम्हारे ख्याल से इतनी भीड़भाड़ में वह ओवरकोट वाला वक्त आने पर पीटर हाल को शूट कर पायेगा ? और फिर वह यहां से सुरक्षित निकल पायेगा ?”
जोजेफ ने एक गहरी सांस ली और होंठ सिकोड़कर बोला - “तुम तेल देखो और तेल की धार देखो ।”
सुनील चुप हो गया कुछ क्षण बाद उसने लक्की स्ट्राइक का एक नया सिगरेट सुलगाया और फिर यहां से उठकर अपने पहले वाले स्थान पर आ बैठा ।
पीटर हाल अभी तक हवाई अड्डे पर प्रकट नहीं हुआ था । उसी क्षण मार्की में एक दूतावास की गाड़ी आकर रुकी ।
कार की पिछली सीट से एक बेहद आकर्षक चीनी युवती बाहर निकली । वह लाउन्ज में आई और खोजपूर्ण निगाहों से दायें बायें देखने लगी । एक क्षण के लिए उसकी निगाहें सुनील पर भी पड़ी और फिर फौरन ही फिसलकर आगे बढ गई ।
लाउन्ज में मौजूद पिचहत्तर प्रतिशत पुरुषों की प्रशंसात्मक निगाहें उस पर पड़ रही थी ।
एकाएक वह युवती तेजी से छोटे छोटे कदम रखती हुई इन्टरनेशनल फ्लाइट्स के बैरियर की ओर बढ गई ।
हर किसी की निगाहें उसके खूबसूरत शरीर का अनुसरण कर रही थी ।
युवती के ओझल होते ही सुनील फिर बाहर की ओर देखने लगा ।
पीटर हाल अभी तक नहीं आया था ।
सुनील ने एक नया सिगरेट सुलगा लिया ।
उसने देखा, अब जोजेफ और मुरली भी उद्विग्न दिखाई दे रहे थे ।
लाउन्ज के दूसरे कोने में बैठा हुआ ओवरकोट वाला पूर्ववत बड़ी तन्मयता से अखबार चाटने का अभिनय कर रहा था ।
उसी क्षण सुनील को एक टैक्सी में से उतरता हुआ पीटर हाल दिखाई दिया ।
ओवरकोट वाले ने अखबार को अपनी जेब में रख लिया और उसका दायां हाथ अपने कोट की दाई जेब में सरक गया । उसकी उगलियां उस जेब में रखी साइलेंसर लगी रिवाल्वर की मूठ से लिपट गई ।
पीटर हाल लाउन्ज में प्रविष्ट हुआ और दायें बायें देखने लगा ।
सुनील ने उठकर उसकी ओर बढने का उपक्रम नहीं किया ।
पीटर हाल कस्टम के काउन्टर की ओर बढा ।
उसी क्षण लाउन्ज में विभिन्न स्थानों पर बैठे हुए तीन चार आदमी उठे और पीटर हाल की ओर बढे । एक ने आकर पीटर हाल की बांह पकड़ ली ।
पीटर हाल बौखला कर पीछे घूमा । सुनील को विरोधपूर्ण भाव से पीटर हाल के होंठ हिलते दिखाई दिये ।
फिर एक आदमी ने अपनी जेब में से निकालकर आइडेन्टिटी कार्ड जैसी कोई चीज पीटर हाल को दिखाई ।
पीटर के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी और वह निरन्तर विरोध कर रहा था ।
फिर उन्हीं आदमियों में से एक ने पीटर हाल के हाथ से उसका बैग ले लिया । दो अन्य आदमियों ने बायें से उसकी बाहें थामी और उसके विरोध की परवाह किये बिना उसे बाहर की ओर ले चले ।
सुनील ने अपनी फैल्ट अपनी आंखों पर झुका ली । उसे भय था कि कहीं पीटर हाल उसे देखकर सहायता के लिए की ओर न झपट पड़े । उसकी नजरों में तो सुनील अब भी सीक्रेट सरविस का एजेन्ट था और अपने देश लिए काम कर रहा था ।
भीतर रन-वे पर किसी जैट प्लेन के शक्तिशाली इंजन के स्टार्ट होने की कानफाड़ आवाज गूंज रही थी ।
जोजेफ चेहरे पर उत्कंठा के भाव लिए कभी पीटर हाल को कभी ओवरकोट वाले को और कभी सुनील को देख रहा था ।
ओवरकोट वाले ने ओवरकोट की जेब में ही रिवाल्वर की नाल को सीधा किया, उसे दो आदमियों के बीच में बाहर की ओर बढते हुए पीटर हाल की ओर साधा और और फिर बड़ी सावधानी से रिवाल्वर की ट्रीगर दबा दिया ।
एक हल्की सी किट की आवाज हुई जो जैट प्लेन के इंजन की गर्ज में खो गयी ।
गोली सीधी जाकर पीटर हाल की गरदन के पृष्ठ भाग में घुस गई । वह लड़खड़ाया और अपने साथ चलने वाले आदमियों की पकड़ से निकलकर फर्श पर ढेर हो गया ।
ओवरकोट वाले ने अपनी गोद में से अखबार उठाया और फिर यूं उसे पढने लगा जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
पीटर हाल के आस पास भीड़ एकत्रित होने लगी ।
सादी वर्दी वाले जो लोग पीटर हाल को बाहर ले जा रहे थे, उन्होंने पहले यही समझा कि पीटर हाल घबराहट से बेहोश हो गया है ।
तमाशाइयों ने पीटर के इर्द गिर्द भीड़ का घेरा सा बना लिया या ।
ओवरकोट वाला अपने स्थान से उठा उसने अखबार को लपेट लिया और यूं पकड़ लिया कि ओवरकोट में रिवाल्वर की गोली से हुआ छेद ढक गया । वह लापरवाही से लम्बे डग भरता हुआ लाउन्ज के उसी कोने में बने एक दरवाजे से बाहर निकल गया ।
किसी का ध्यान उसकी ओर नहीं था ।
जोजेफ और मुरली इन्टरनेशनल फ्लाइट्स के बैरियर की ओर बढ रहे थे ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और उठकर उनके पीछे हो लिया ‘मर गया है ! गोली लगी है ।’ - भीड़ में से किसी का उत्तेजित स्वर उसके कानों में पड़ा ।
***
“लेडीज एण्ड जन्टल मैन” - एयर इन्डिया के विशाल बोईंग प्लेन के माइक पर एयर होस्टेस की मधुर आवाज सुनाई दी - “वी आर अबाउट टु लैंड एट काई ताक एयरपोर्ट आफ हांगकांग । प्लीज, फासन यूअर सीट बैल्ट्स ।”
सुनील ने उनींदी सी आंखों से अपनी बगल में बैठी चीनी युवती की ओर देखा और सीट बैल्ट बांधने लगा ।
युवती ने मुस्कराहट का उत्तर मुस्कराहट से दिया और वह भी सीट बैल्ट बांधने लगी ।
वह बड़ी आकर्षक चीनी युवती थी जो दूतावास की गाड़ी से उतर कर हवाई अड्डे के लाउन्ज में प्रविष्ट हुई थी । संयोगवश प्लेन में सुनील को उसकी बगल वाली सीट मिली थी ।
जोजेफ और मुरली उनसे पिछली सीटों पर बैठे हुए थे ।
युवती बड़ी मिलनसार थी । अंग्रेजी भाषा अच्छी बोल लेती थी । इसलिये रास्ते में सुनील में और उसमें काफी बातें हुई थीं । युवती ने उसे अपने बारे में बहुत कुछ बताया था और सुनील के बारे में बहुत कुछ पूछा था ।
सुनील ने उसे बताया था कि वह केवल सैर करने जा रहा था ।
युवती ने अपना नाम कू ओ बताया था । वह भारत में चीनी दूतावास के किसी उच्चाधिकारी की लड़की थी । वह हांगकांग में अपने रिश्तेदारों के पास जा रही थी और कुछ दिन बाद वहां से पेकिंग जाने वाली थी जहां उसका घर था ।
“हांगकांग में कहां ठहरोगे ?” - कू ओ ने अंग्रजी में पूछा ।
“अभी कुछ निश्चित नहीं है ।” - सुनील बोला - “लेकिन जाऊंगा तो किसी होटल में ही ।”
“हांगकांग के प्रसिद्ध होटल कोलून में ही हैं और एयरोड्रोम से पास भी हैं ।” - कू ओ बोली - “पेनिसुलर मियामा या ग्लोफेस्टर में से ही किसी में जाना ।”
“हां । शायद ।” - सुनील बोला । उसने कू ओ को यह नहीं बताया था कि वह पहले भी कई बार हांगकांग में आ चुका है ।
जहाज नीचे उतरने लगा ।
“आशा है” - सुनील बोला - “कि हांगकांग में हमारी दुबारा भी मुलाकात होगी ।”
“श्योर ! वाई नाट !”
“कैसे ?”
“अगर कोलून के किसी होटल में ठहरोगे तो मैं तुम्हें रिंग करूंगी ।”
“वैरी गुड । थैंक्यू ।”
कू ओ मुस्कराई । उस उत्तेजनापूर्ण मुस्कराहट में सुनील को एक निमंत्रण की झलक दिखाई दी ।
हवाई जहाज के पहिये काई लाक इन्टर नेशनल एयरपोर्ट के रनवे को छू गये । जहाज कुछ क्षण रनवे पर भागता रहा और फिर रुक गया ।
सुनील ने सीट बैल्ट खोल दी । कू ओ ने भी ऐसा ही किया । वे लोग व्यग्रता से जहाज का द्वार खुलने की प्रतीक्षा करने लगे ।
जहाज को सीढी लगाई गई और फिर द्वार खुला । यात्री अपने स्थानों से उठकर बाहर की ओर चल दिये ।
कस्टम के बैरियर पर उन लोगों को थोड़ी देर तक रुकना पड़ा ।
सुनील कू ओ के साथ बाहर आ गया ।
जोजेफ और मुरली उनके पीछे थे ।
वे लोग कस्टम से बैगेज क्लियर होकर आने की प्रतीक्षा करने लगे ।
उसी क्षण तक थुलथुल करते शरीर वाला मोटा सा हिन्दोस्तानी उनकी ओर बढा ।
“वैलकम टु हांग कांग । वैलकम टु हांगकांग ।” - वह बोला - “मेरा नाम बक्शी है । मुझे सेठ का केबल मिल गया था ।”
सुनील ने बहुत अनिच्छापूर्ण ढंग से उससे हाथ मिलाया ।
“मुझे आधे घन्टे पहले केबल मिला था ।” - बक्शी बोला - “कि अब पांच लाख अमेरिकन डालरों का इन्तजाम करने की जरूरत नहीं रही है । वैसे मैं इन्तजाम कर चुका था ।”
सुनील ने कू ओ को देखा । वह दूसरी ओर देख रही थी । हिन्दी में चल रहे वार्तालाप में शायद उसे रूचि नहीं थी ।
“सेठ की आज्ञा के मुताबिक मैंने आपके रहने का इन्तजाम गलोकेस्टर होटल में कर दिया । वहां आप लोगों के लिये एक बहुत बड़ा सूट बुक है । आप लोग गलोकेस्टर में चलिये । मैं कस्टम से आपका सामान निकलवाकर लाता हूं ।”
सुनील कू ओ की ओर घूमा और बोला - “तुम कहां जाओगी ?”
“चेथम रोड ।” - कू ओ बोली - “वही मेरे रिश्तेदार रहते हैं ।”
“चेथम रोड कहां है ?”
“स्टेट से दूसरी ओर हांगकांग द्वीप में । यहां से मैं टैक्सी पर पहले फैरी स्टेशन जाऊंगी । वहां से हांगकांग द्वीप के लिये पांच पांच मिनट बाद किश्तियां जाती हैं । दूसरे सिरे पर पहुंच कर फिर टैक्सी । तुमने कौन से होटल में जाने का फैसला किया है ?”
“ग्लोकेस्टर ।”
“फाइन । विश यू ए नाइस टाइम ।”
“थैंक्यू ए सेम टु यू ।”
सुनील ने कू ओ के साथ हाथ मिलाया और जोजेफ और मुरली के साथ एयरोड्रोम की मारकी की ओर बढा जहां से मुसाफिर टैक्सियों में सवार हो रहे थे ।
***
सुनील के टैक्सी पर रवाना होते ही कू ओ एक टैलीफोन बूथ में घुस गई । उसने एक नम्बर घुमाया । दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोली - “च्यांग लू है ?”
“यस मैडम ।”
“उसको बोलो वह कू ओ के लिये तैयार रहे । मैं फौरन पहुंच रही हूं ।”
और उसने रिसीवर रख दिया ।
मुसाफिरों का सामान कस्टम से चैक होकर बाहर आ चुका था । कू ओ ने अपना बैग सम्भाला और एक टैक्सी में आ बैठी । फैरी स्टेशन पर उसने टैक्सी छोड़ दी । वह एक फैरी में सवार हुई वांचाई वाटर फ्रंट पर पहुंच गई । वहां से वह एक हाथ द्वारा खींची जाने वाली रिक्शा पर बैठी और एक इमारत के सामने उतरी ।
एक मोटा चीनी वहां उसकी प्रतीक्षा कर रहा था । उसने झुक कर कू ओ का अभिवादन किया और उसे इमारत के अन्दर ले गया ।
ड्राईंगरूम में कू ओ एक सोफे पर बैठ गई । उसने अपने हैंडबैग से एक मिनियेचर कैमरा निकाला और उसे मोटे की ओर बढाती हुई बोली - “च्यांग लू इस कैमरे की फिल्म को फौरन डवैलप करवाओ । फिल्म में खींची हुई तसवीर केवल एक है । उसका जितनी जल्दी हो सके प्रिंट बनवाकर लाओ ।”
“राइट मैडम ।” - च्यांग लू आदरपूर्ण स्वर से बोला और उसने कू ओ के हाथ से मिनियेचर कैमरा ले लिया । वह कमरे से बाहर निकल गया ।
पांच मिनट बाद वह वापिस आया ओर बोला - “काम हो रहा है ।”
“बैठो ।” - कू ओ ने आदेश दिया ।
च्यांग लू उसके सामने बैठ गया ।
“चौधरी का पता चला ?” - कू ओ ने पूछा ।
“तलाश जारी है मैडम ।” - च्यांग लू ने उत्तर दिया ।
“तुम्हें अभी भी पूरा विश्वास है कि वह अबरदीन हार्बर के गन्दे समुद्री पानी में तैरते हुए लाखों बजड़ों में से वह किसी एक छुपा हुआ है ?”
“इसके अतिरिक्त वह और कहीं हो ही नहीं सकता, मैडम ।” - च्यांग लू विश्वासपूर्ण स्वर से बोला - “अबरदीन हार्बर के समीप के समुद्र में ही वह पैराशूट द्वारा हवाई जहाज से कूदा था । वहां से वह केवल अबरदीन हार्बर में तैरते हुए बजड़ों में ही जा सकता था । मैंने खुद दूसरे हवाई जहाज से उसका पीछा किया था और पैराशूट द्वारा उसे समुद्र में कूदते देखा था । हांगकांग की जमीन पर चप्पे चप्पे में मेरे आदमी बिछे हुए हैं । उन बजड़ों में से बाहर निकल कर उसके हांगकांग की जमीन पर आने का इरादा करने की देर है कि मेरे आदमी उसकी बोटी बोटी अलग कर देंगे ।”
“अबरदीन हार्बर के उन लाखों बजड़ों में तुम चौधरी को कब तक तलाश करते रहोगे ?”
“जब तक चौधरी मिल नहीं जायेगा ।” - च्यांग लू निश्चय पूर्ण स्वर से बोला - “मैंने अपने तीस आदमी उन बजड़ो में केवल चौधरी को तलाश करने के लिये लगाये हुए हैं ।”
“तुम्हें चौधरी को इस प्रकार तलाश करते हुए कितने दिन हो गये हैं ?”
च्यांग लू का सिर झुक गया और वह धीरे से बोला - “बीस दिन ।”
“च्यांग लू” - कू ओ कठोर स्वर से बोली - “मेरी बात सुनो । तुम वक्त बरबाद कर रहे हो । बीस दिन में तुम कोई नतीजा नहीं हासिल कर सके हो तो मुझे सन्देह है कि तुम भविष्य में भी कुछ कर सको ।”
च्यांग लू सिर झुकाये चुपचाप बैठा रहा ।
“मेरे साथ राजनगर से हांगकांग सुनील नाम का एक हिन्दोस्तानी आया है । वह मुझे नहीं जानता लेकिन मैं उसे पहले से पहचानती हूं । वह भारतीय सीक्रेट सरविस का एजेन्ट है । हमारे न्यूक्लियर साईंटिस्ट फैग-होह-कंग की रखैल ऐरिका ओल्सन के केस में उसने काम किया था । वही एरिका ओल्सन का नकली पति बनकर उसके साथ नेपियन हिल की चौदह नम्बर इमारत में रहा था । मैंने दूरबीन द्वारा उस इमारत में सुनील को देखा था ।” (देखिये उपन्यास ‘काला मोती’)
कू ओ एक क्षण चुप रही और फिर बोली - “चौधरी हम लोगों को धोखा देकर पेकिंग से भाग निकला है और अब हांगकांग में छुपा हुआ है । वह हमारे ऐसे रहस्य जानता है जिनके सारत सरकार को पता लग जाने से हमे भारी हानि हो सकती है । चौधरी खुद उन रहस्यों को भारत सरकार तक पहुंचाने में असमर्थ है । ऐसे समय में किसी भारतीय सीक्रेट एजेन्ट का हांगकांग में आगमन तुम्हें चिन्ता का विषय नहीं मालूम होता ?”
च्यांग लू ने अपने होठों पर जुबान फेरी और बोला - “सम्भव है, वह किसी और मतलब से हांगकांग आया हो ।”
“और यह भी सम्भव है कि वह चौधरी से सम्पर्क स्थापित करने ही हांगकांग आया हो ।” - कू ओ बोली - “च्यांग लू, पिछले बीस दिन तुमने वक्त बरबाद करने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया है । अब अगर कोई नतीजा हासिल करना चाहते हो तो जो मैं कहती हूं, वह करो ।”
“फरमाइये ।”
“यह एक संयोग था कि मैं भी उसी प्लेन पर हांगकांग आई हूं जिसमें सुनील यहां आया है । रास्ते में जब वह सोया पड़ा था तो मैंने अपने मिनियेचर कैमरे से उसकी एक तसवीर खींच ली थी । उसी की तस्वीर का तुम प्रिंट बनवा रहे हो । सुनील ग्लोकेस्टर में ठहरा हुआ है । मुझे पूरा विश्वास है कि वह चौधरी के ही चक्कर में यहां आया है । तुम साये की तरह सुनील के पीछे लग जाओ । किसी न किसी माध्यम से सुनील जरूर चौधरी तक पहुंचेगा । इस प्रकार तुम्हें सहज ही चौधरी का पता लग जायेगा और फिर तुम बड़ी आसानी से चौधरी और सुनील दोनों का खातमा कर सकते हो ।”
“आप ठीक कह रही हैं ।” - च्यांग लू बोला - “लेकिन मैडम मेरी समझ में यह नहीं आता कि चौधरी हांगकांग में कहां छुपा हुआ है । इस बात की सूचना भारत तक कैसे पहुंच गई ?”
“यह मुझे नहीं मालूम लेकिन इतना मुझे विश्वास है कि वह हांगकांग में आया चौधरी के ही चक्कर में है ।”
“मैडम, क्या यह अच्छा नहीं होगा कि मैं सुनील को अपने काबू में कर लूं और जबरदस्ती उससे यह कबुलवाने की कोशिश करूं कि चौधरी कहां छुपा हुआ है । मैं लोगों की जुबान खुलवाने के बहुत तरीके जानता हूं ।” - च्यांग लू के स्वर में गर्व का पुट था ।
“मूर्ख मत बनो ।” - कू ओ तिरस्कारपूर्ण स्वर से बोली - “जरूरी नहीं है कि सुनील को चौधरी के छुपने के स्थान की जानकारी पहले से ही हो । सम्भव है यह जानकारी उसे हांगकांग आने के बाद किसी अन्य माध्यम से हासिल होने वाली हो ।”
च्यांग लू चुप रहा ।
“च्यांग लू । सुनील के पीछे लगने से तुम्हें हर हाल में फायदा होगा और आगर फायदा न भी हुआ तो नुकसान कुछ नहीं होगा । तुम अपनी मौजूदा तलाश जारी रखो और साथ ही सुनील की भी निगरानी करवाते रहो । समझे ।”
“समझ गया ।” - च्यांग लू बोला ।
उसी क्षण किसी ने द्वार खटखटाया ।
च्यांग लू उठकर द्वार के समीप पहुंचा । एक चीनी ने उसे मिनियेचर कैमरा, फिल्म और केबिनेट साइज का एक प्रिंट थमा दिया ।
च्यांग लू कुछ क्षण प्रिंट में छपी सुनील की तसवीर देखता रहा और फिर वापिस कू ओ के पास आ गया ।
“यह सुनील है, मैडम ?” - वह तसवीर की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“हां ।” - कू ओ बोली ।
“इसे ते मैंने भी देखा है ।”
“तुमने कहां से देख लिया इसे ?”
“ऐरिका ओल्सन वाले केस में अमेरिकन एजेन्ट हैरी फ्रिच इसी आदमी का पीछा करता हुआ हांगकांग आया था । आपने मुझे केबल द्वारा हैरी फ्रिच के हांगकांग के आगमन की सूचना दी थी । मैं काई ताक एयरपोर्ट से हैरी फ्रिच के पीछे लगा था और हैरी फ्रिच पहले से ही सुनील के पीछे लगा हुआ था । ऐरिका ओल्सन का पता वास्तव में केवल सुनील ही जानता था । हैरी फ्रिच सुनील का पीछा करता हुआ उस तक पहुंचा था और मैं हैरी फ्रिच का पीछा करता हुआ उस तक पहुंचा था ।”
“फिर तो और भी अच्छी बात है । तुम सुनील को पहले से ही पहचानते हो । फिर तुम्हें उसको पहचानने के लिये इस तस्वीर का सहारा लेने की भी जरूरत नहीं है ।”
“फिर भी तसवीर काम आयेगी । मैं फौरन सुनील की निगरानी का इन्तजाम करवाता हूं ।”
“एक बात का ख्याल रखना । वह अकेला नहीं है । उसके साथ उसके साथी दो और हैं । एक पतला और बेहद लम्बा आदमी है और दूसरा उससे कम से कम एक फुट छोटा है । दूसरे के चेहरे पर बड़ी बड़ी मूछें हैं । इसके अतिरिक्त हांगकांग में भी उनके सहयोगी हैं । उनमें से बक्शी नाम का एक बेहद मोटा आदमी उन्हें एयरोड्रोम पर ही मिला था ।”
“मैं उनका भी ख्याल रखूंगा ।”
कू ओ उठ खड़ी हुई और बोली - “मैं रिपल्स वे होटल में जा रही हूं । कोई महत्वपूर्ण बात हो तो मुझे वहां सूचना देना ।”
“राइट मैडम ।”
कू ओ बाहर की ओर चल दी ।
च्यांग लू ने उसका बैग उठा लिया और उसके पीछे पीछे चलने लगा ।
***
दिन भर सुनील तीन तीन घन्टों की शिफ्टों में सोता रहा । जोजेफ उसे बड़ी शराफत से हर तीन घन्टे बाद गोली देता रहा ।
“अगर मैं तीन चार गोलियां इकट्ठी खा लूं तो क्या होगा ?” - सुनील ने पूछा था ।
“मुझे नहीं मालूम ।” - जोजेफ ने स्वीकार किया - “मुझे तो सेठ ने यही कहा है कि ज्यों ही तुम्हारी जान निकलने लगे, मैं तुम्हें एक गोली दे दूं । कई गोलियां इकट्ठी खाने से नुकसान नहीं भी होता होगा तो भी मैं तुम्हें एक वक्त में एक से अधिक गोली नहीं दूंगा ।”
“अगर यही हालत रही तो सेठ का कोई काम कर पाने से पहले ही मेरे प्राण निकल जायेंगे ।”
“घबराते क्यों हो ? क्योंकि तुम्हें गोली देनी होती है इसलिये मैं भी तो तुम्हारे साथ उसी ढंग से सोता जागता हूं ।”
“लेकिन तीन घन्टे बाद मेरी तरह तुम्हें अपने प्राण निकलते तो महसूस नहीं होते और फिर तुम मुरली के साथ शिफ्ट भी लगा सकते हो ।”
“मजबूरी है ।”
सुनील चुप हो गया था ।
बक्शी ने उन्हें बताया था कि ब्लू हैवन नाइट क्लब हांगकांग द्वीप में नाथान रोड पर थी और रात के आठ बजे से पहले नहीं खुलती थी ।
बक्शी ने मुरली और जोजेफ को एक एक रिवाल्वर दी थी । लेकिन बहुत अनुरोध करने पर भी वे लोग सुनील को रिवाल्वर देने के लिये तैयार नहीं हुए थे ।
नौ बजे के करीब सुनील जोजेफ और मुरली के साथ ब्लू हैवन नाइट क्लब पहुंचा ।
हांगकांग के बेहद भीड़भाड़ वाले रास्तों से गुजरते समय सुनील यह नहीं जान पाया कि उसका पीछा किया जा रहा था । न ही इस तथ्य की जानकारी जोजेफ और मुरली को हो पाई । हांगकांग की असाधारण भीड़ के अतिरिक्त इसकी एक वजह यह भी थी कि वे लोग इस बात की आशा नहीं कर रहे थे कि उनका पीछा किया जायेगा और इसलिये असावधान थे ।
ब्लू हैवन नाइट क्लब हांगकांग में ऐश्वर्य और विलास का अड्डा प्रकट हुई । वहां बेहद कम उम्र की खूबसूरत चीनियों की लड़कियों की भरमार थी जिनकी जीविका का साधन बचपन से ही वेश्यावृत्ति था । उन लड़कियों में पिचहत्तर प्रतिशत रिफ्यूजी लड़कियां होती थी जो मकाउ के रास्ते लाल चीन से भाग कर हांगकांग पहुंचती थी । केवल एक ही काम था जो वे कर सकती थीं और वह था हांगकांग में आने वाले टूरिस्टों का भरपूर मनोरंजन करना ।
“जोजेफ” - सुनील बोला - “तुम लोग मेरी निगरानी बेशक करो लेकिन अगर तुम हर समय मेरे साथ चिपके रहे तो मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगा । हम तीनों ग्रुप बनाकर अगर किसी व्यक्ति विशेष के बारे में पूछताछ करनी आरम्भ कर देंगे तो किसी न किसी को जरूर सन्देह हो जायेगा और फिर कोई हमें कुछ भी नहीं बतायेगा, समझे ।”
जोजेफ चुप रहा ।
“तुम मेरी निगरानी जरूर करो लेकिन मुझ से अलग रहो और मुझे स्वतन्त्र रूप से कुछ करने दो ।”
जोजेफ हिचकिचाया ।
“ओके ?” - सुनील ने पूछा ।
“कोई शरारत तो नहीं करोगे ।”
“मैं क्या शरारत कर सकता हूं, मेरे बाप ।”
“अच्छी बात है । लेकिन मेरी नजरों से ओझल होने की कोशिश मत करना ।”
“प्यारे भाई” - सुनील बोला - “उल्टे मुझे यह बात कहनी चाहिये । तुम मेरी नजरों से ओझल होने की कोशिश मत करना वर्ना यहीं कहीं मेरी लाश मिलेगी तुम्हें ।”
जोजेफ चुप रहा । उसने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया ।
“और मुझे कुछ पैसा दो ।”
जोजेफ ने हांगकांग डालरों की एक कोरी गड्डी निकालकर सुनील को दे दी ।
सुनील उन लोगों से पहले क्लब में प्रविष्ट हुआ ।
क्लब में काफी भीड़ थी । वातावरण में लोगों के ठहाके खनक रहे थे और हवा सिगरेट और सिगारों के धुयें से भारी हो रही थी ।
आरम्भ में तो सुनील को उस वातावरण में घुटन महसूस हुई लेकिन शीघ्र ही वह वहां का आदी हो गया ।
बैंड बज रहा था । शराब के दौर चल रहे थे ।
एक ओर डांस फ्लोर था जिस पर रंग बिरंगी रोशनियों की बौछार के नीचे चार चीनी लड़कियां लगभग नंगी नाच रही थी ।
हाल में पुरुषों के मुकाबले में लड़कियां अधिक थी ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“हल्लो मिस्टर जन्टलमैन ।” - एक चीनी लड़की उसके समीप आकर बड़े उत्तेजक स्वर से बोली ।
सुनील ने एक उड़ती सी निगाह उस लड़की पर डाली और फिर निगाहें फेर ली ।
लड़की के चेहरे से मुस्कराहट उड़ गई । वह चुपचाप एक ओर खिसक गई ।
सुनील ने अपने समीप से गुजरते हुए एक वेटर की बांह पकड़ कर रोक लिया और अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “पीटर हाल कहां है ?”
“वह तो नहीं है, साहब ।” - वेटर आदरपूर्ण स्वर से बोला ।
“नहीं हैं । क्यों नहीं है ?”
“वह तो पिछले चार पांच दिनों से क्लब में नहीं हैं । मालिक का ख्याल है, वह कहीं बाहर चला गया ।”
“उसकी टेबलें आजकल कौन सर्व करता है ?”
“जेफ ।”
“जेफ को मेरे पास भेजो ।”
“यस सर ।”
सुनील का बात करने का ढंग इतना अधिकारपूर्ण था कि वेटर ने उसे क्लब का पुराना आने वाला समझा । उसने फौरन जेफ को उसके पास भेज दिया ।
जेफ उसके समीप पहुंचा ।
“पीटर हाल की जगह तुम काम कर रहे हो ?” - सुनील बोला ।
“यस सर ।”
“पीटर हाल हमारा फेवरेट वेटर था । हम हमेशा उसी की सर्विस पसन्द करते हैं । इसलिये हमेशा उसकी टेबल पर बेठते हैं ।”
सुनील एक क्षण रुका और फिर बोला - “कोई हमारे पसन्द की टेबल खाली है ?”
साथ ही सुनील ने एक पांच डालर का नोट निकाल कर वेटर की ओर बढा दिया ।
वेटर जेफ ने फुर्ती से नोट ले लिया और बोला - “आप पांच मिनट ठहरिये । मैं अभी इन्तजाम करता हूं ।”
“ओके ।” - सुनील बोला ।
पांच के स्थान पर वेटर दस मिनट में लौटा । वह सुनील को डांस फ्लोर के एकदम साथ की एक टेबल पर ले आया ।
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
जेफ आर्डर की प्रतीक्षा करने लगा ।
सुनील ने उसे शैम्पेन का आर्डर दिया ।
सुनील ने देखा, जोजेफ और मुरली उससे काफी मेज परे बैठे हुए थे ।
वेटर शैम्पेन ले आया ।
“मिस्टर पिलानंग पोख आजकल किस वक्त आते हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“मिस्टर पिलानंग पोख !” - वेटर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आये ।
“पिलानंग पोख को नहीं जानते तुम ! वही जो थाइलेंड के रहने वाले हैं । वे अक्सर आते हैं, यहां हमारी तरह उनका भी प्रिय वेटर पीटर हाल है ।”
“सॉरी सर ।” - वेटर खेदपूर्ण स्वर से बोला - “जब से मैं पीटर की जगह सर्व कर रहा हूं, तब से तो इस नाम के कोई साहब मेरी टेबल पर नहीं बैठे हैं और अगर बठे हैं तो मुझे पता नहीं लगा है । मैं इस नाम के किसी साहब को नहीं जानता हूं ।”
“ओह !” - सुनील बोला - “हमें उनसे बहुत जरूरी बात करनी थी और हमें यह मालूम नहीं है कि वे रहते कहां है ?”
वेटर चुप रहा ।
“जेफ, क्या इस विषय में तुम हमारी कोई मदद नहीं कर सकते ।”
“मैं लड़कियों से पूछता हूं । शायद उनमें से किसी को उनके बारे में जानकारी हो ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला और उसने पांच हांगकांग डालर का एक और नोट वेटर की ओर बढा दिया ।
वेटर कृतज्ञतापूर्ण ढंग से सिर हिलाकर वहां से विदा हो गया ।
लगभग दस मिनट बाद एक गुड़िया सी खूबसूरत चीनी लड़की उसकी टेबल के समीप आकर खड़ी हो गई ।
“हल्लो, मिस्टर हैंडसम जन्टलमैन ।” - वह मुस्कराती हुई टूटी फूटी अंग्रेजी में बोली - “मेरा नाम तान है । तुम्हें मेरी जरूरत है ।”
“नहीं । धन्यवाद ।” - सुनील शुष्क स्वर से बोला ।
“हैरानी है । जेफ तो कहता था कि तुम मुझ से मिस्टर पिलानंग पोख के बारे में कुछ पूछना चाहते हो ?”
“तुम्हें जेफ ने भेजा है ?”
“हां ।”
“तो फिर बैठो न खड़ी क्यों हो । मुझे तो तुम्हारी सख्त जरूरत है ।”
तान उसके सामने बैठने के स्थान पर उसकी बगल में उसके साथ सरक कर बैठ गई ।
सुनील ने उसके लिये भी एक गिलास मंगवाया ।
दोनों शैम्पेन पीने लगे ।
“तुम पिलानंग पोख को जानती हो ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - तान इठला कर बोली - “पिलानंग पोख मेरा प्रोफेशनल लवर है ।”
“प्रोफेशनल लवर ! क्या मतलब ?”
“प्रोफेशनल लवर नहीं समझते तुम । पचास डालर । एक रात ।”
“ओह !” - सुनील समझ गया ।
“यस । टूरिस्ट जन्टलमैन मुझ से बहुत सन्तुष्ट रहते हैं । प्रोफेशनल लव के मुझे बहुत आनन्ददायक तरीके आते हैं । तुम खुश हो जाओगे ।”
“मैं ?” - सुनील हड़बड़ा कर बोला ।
“हां । क्यों नहीं ? आई मेक प्रोफेशनल लव विद आल हैंडसम जन्टलमैन, फिफ्टी डालर । वन नाइट । नो मोर । वैरी चीप । यस ?”
“तुम पिलानग पोख के बारे में बात कर रही थी ?” - सुनील विषय परिवर्तन करता हुआ बोला ।
“मैं पचास डालर के बारे में बात कर रही थी ।” - तान इठला कर बोली ।
सुनील ने एक सौ डालर का नोट उसे दे दिया ।
“पचास ।” - तान बोली ।
“रखो ।” - सुनील बोला ।
“ओह, मिस्टर जन्टलमैन ।” - खुशी से तान की बाछे खिल गई - “यू आर वन्डरफुल ।”
और एकाएक उसने अपनी बाहें सुनील के गले में डाल दीं और उसके गाल पर एक गर्म गर्म चुम्बन जड़ दिया ।
सुनील ने विरोध नहीं किया । उसने अपना दायां हाथ तान की पतली कमर में डाल दिया ।
तान ने अपने शरीर को एक दम उसके साथ सटा दिया ।
“लाइक मी !” - उसने मादक स्वर से पूछा ।
“यस । वैरी मच ।”
तान खुश हो गई ।
“अब मुझे पिलानंग पोख के बारे में बताओ । वह यहां आता है ?”
“आता तो है लेकिन कई दिनों से नहीं आया है ।”
“वह रहता कहां है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“ओह !” - सुनील निराश स्वर में बोला - “तुम तो कहती थीं कि वह तुम्हारा आशिक है ।”
“हां ।”
“फिर भी तुम्हें यह नहीं मालूम की वह रहता कहां है ।”
“कैसे मालूम हो सकता है ? वह कभी मुझे अपने घर नहीं ले गया । वह हमेशा दस डालर देता है और मेरे साथ ब्लू हैवन के ही एक कमरे में सोता है । प्रोफेशनल लवर आम तौर पर ऐसे ही करते हैं ।”
“तुम्हारे अतिरिक्त पिलानंग पोख और लड़कियों का भी प्रोफेशनल आशिक होगा ।
“है ।”
“कोई और लड़की जानती है वह कहां रहता है ?”
“मुझे शक है । लड़कियों के साथ पिलानंग पोख, दस डालर ज्यादा देकर क्लब के कमरे में ही सोना पसन्द करता है ।”
“तुम उसके किसी मित्र या परिचित को जानती हो ?”
“नहीं ।”
“क्या तुम कोई ऐसा तरीका बता सकती हो जिससे यह मालूम हो सके कि हांगकांग में पिलानंग पोख कहां रहता है ?”
तान सोचने लगी ।
“देखो तान” - सुनील उसको और अपने साथ सटाता हुआ बोला - “अगर तुम यह पता लगा सको कि पिलानंग पोख कहां रहता है तो मैं तुम्हें पांच सौ डालर और दूंगा ।”
तान के नेत्र चमक उठे ।
“पांच सौ डालर !” - वह धीरे से बोली ।
“हां ।” - सुनील बोला ।
“मैं पता लगाऊंगी” - तान निश्चयपूर्ण स्वर से बोली - “क्लब में किसी को जरूर उसके बारे में मालूम होगा ।”
“जरूर ! मैं कल इसी वक्त क्लब में फिर आऊंगा । अगर इससे पहले तुम्हें पिलानंग पोख का पता मालूम हो जाए तो तुम मुझे ग्लोकेस्टर होटल में फोन कर देना । मेरा नाम सुनील है । ओके ।”
“ओके ।” - तान स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाती हुई बोली ।
“और इस बारे में किसी के सामने जिक्र मत करना ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि किसी को यह मत बताना कि मैं तुम से पिलानंग पोख के बारे मैं पूछ रहा था और मैंने तुम्हें उसका पता मालूम करने के लिए कहा है । किसी से पूछताछ भी करो तो यह मत कहना कि यह काम तुम मेरे लिए कर रही हो ।”
“तो फिर क्या कहूं ?”
“कोई बहाना बना देना । जैसे कह देना, वह तुम्हारा बढिया प्रोफेशनल लवर था इसलिये तुम उसे तलाश कर रही हो ।”
“अच्छा ।”
सुनील शैम्पेन पीने लगा ।
तान ने अपना शैम्पेन का गिलास खाली कर दिया और बोली - “मैं तैयार हूं ।”
“काहे के लिये ?” - सुनील ने विस्मयपूर्ण स्वर से पूछा ।
“तुमसे लव करने के लिए । ब्यूटीफुल हाई क्लास लव । तुमने मुझे सौ डालर दिये हैं न ?”
“ओह, अच्छा ? वह... डार्लिंग फिर कभी ।”
“क्यों ? मैं तुम्हें पसन्द नहीं ?”
“तुम मुझे बहुत पसन्द हो लेकिन फिर भी आज नहीं ।”
“तो फिर सौ डालर ।”
“वह रखो ।”
“ओके ।” - तान बोली - “जैसी तुम्हारी मर्जी ।”
ग्यारह बजे तक सुनील तान के साथ रहा । उसके बाद वह तान से अगली रात को मिलने का वादा करके वहां से विदा हो गया ।
क्लब की भीड़ में अपने अन्य साथियों के साथ च्यांग लू भी मौजूद था ।
सुनील के जोजेफ और मुरली के साथ ब्लू हैवन नाइट क्लब से निकलने के बाद ही च्यांग लू के वे साथी भी उनके पीछे क्लब से बाहर निकल गये जो उनका ग्लोकेस्टर से पीछे करते हुए वहां तक आये थे ।
च्यांग लू ने फौरन जेफ को जा पकड़ा ।
“वह आदमी कौन था ?” - च्यांग लू ने पूछा ।
“मैं नाम नहीं जानता” - जेफ बोला - “लेकिन बातों से कोई क्लब में पुराना आने वाला मालूम होता था ।”
“कैसे जाना ?”
“पीटर नाम के जिस वेटर की जगह मेरी नियुक्ति हुई है, वह उसे जानता था और क्लब के पुराने आने वालों को भी जानता था ।”
“ऐसे किसी पुराने आने वाले के बारे में उसने तुमसे पूछा था ।”
“हां । किसी पिलानंग पोख नाम के थाइलैंड वासी के बारे में पूछ रहा था वह ।”
“क्या ?”
“कि वह कहां रहता है ।”
“तुमने बताया कुछ ?”
“मैं जानता ही नहीं था । फिर मैंने लड़कियों से पूछा । एक बोली वह पिलानंग पोख को जानती है । मैंने उसे उस आदमी के पास भेज दिया ।”
“यह वही लड़की थी जो उस आदमी की टेबल पर बैठी थी ?”
“हां ।”
“उसका नाम क्या है ?”
“तान ।”
च्यांग लू तान के पास पहुंचा । वह उसे क्लब के पिछवाड़े में बने छोटे से कम्पाउन्ड में ले आया ।
“जेफ ने तुम्हें किस आदमी के पास भेजा था, वह तुम से क्या पूछ रहा था ?” - च्यांग लू ने अधिकारपूर्ण स्वर से चीनी में पूछा ।
“तुम से मतलब !” - तान भी चीनी में बोली ।
च्यांग लू ने हाथ बढाया और अपने दायें हाथ की चुटकी में तान की नाक पकड़ ली । उसने पूरी शक्ति से तान की नाक को दबाया ।
तान ने छुड़ाने के लिए हाथ बढाये तो च्यांग लू ने अपने दूसरे हाथ से उसके दोनों हाथ पकड़ लिये ।
तान छटपटाने लगी । पीड़ा के आधिक्य से उसके नेत्रों में आंसू बहने लगे ।
अन्त में चयांग लू ने उसे छोड़ दिया ।
तान वहीं बैठ गई और अपने नन्हें हाथों में अपना मुंह छुपा कर सिसकने लगी ।
च्यांग लू ने बड़ी बेरहमी से उसे बांह से पकड़ा और एक झटका देकर उसे फिर अपने पैरों पर खड़ा कर दिया ।
“रोना धोना बन्द करो” - च्यांग लू फुंफकारा - “और जो मैं पूछ रहा हूं, उसका जवाब दो वर्ना गरदन दबा दूंगा ।”
तान चुप रही ।
“वह हिन्दोस्तानी तुमसे क्या पूछ रहा था ?”
“वह मुझ से पिलानंग पोख नाम के किसी थाईलैंड निवासी का पता पूछ रहा था ।” - तान घुटे स्वर से बोली ।
“तुम पिलानंग पोख का पता जानती हो ?”
“नहीं ।”
“फिर जेफ ने तुम्हें उसके पास क्यों भेजा था ?”
“जेफ ने केवल यह पूछा था कोई लड़की पिलानंग को पोख को जानती है । मैं पिलानंग पोख को तो जानती हूं लेकिन यह नहीं जानती कि वह रहता कहां है ।”
“तुम पिलानंग पोख को कैसे जानती हो ?”
“वह मेरा कस्टमर है ।”
“तुमने उस हिन्दोस्तानी को भी यही कहा है कि तुम पिलानंग पोख के घर का पता नहीं जानती ।”
“हां ।”
“फिर उसने क्या कहा ?”
“कुछ भी नहीं । कहानी खतम ।”
च्यांग लू ने सन्दिग्ध नेत्रों से तान की ओर देखा ।
तान के चेहरे पर च्यांग लूं के प्रति घृणा की गहरी झलक थी ।
“तुम मुझ से कुछ छुपा नहीं रही हो ?”
“तुम से छुपाने लायक मैं जानती ही क्या हूं ।”
“उसने तुम से दुबारा मिलने के बारे में कोई बात की है ?”
“हां ।”
“क्या ?” - च्यांग लू आशापूर्ण से बोला ।
“उसे मरा शरीर बहुत उत्तेजक लगा है । कहता था कि वह हांगकांग से विदा होने से पहले कम से कम एक बार और मुझ से जरूर मिलेगा ।”
च्यांग लू कुछ नहीं बोला । वह सोच रहा था ।
हांगकांग में पिलानंग पोख नाम के थाईलैंड निवासी का पता लगाना कठिन काम तो था लेकिन असम्भव नहीं था । हांगकांग में थाइलैंड निवासी बहुत कम थे । च्यांग लू को उसका पता मालूम हो जाने की काफी सम्भावना दिखाई दे रही थी ।
फिर एकाएक वह घूमा और फिर बिना दुबारा तान पर दृष्टिपात किये हुए वहा से चला गया ।
तान नेत्रों में पीड़ा और अपमान के आंसू लिए हुए वहां खड़ी रही ।
च्यागं लू के बर्बर व्यवहार के विरोध के तौर पर ही तान ने झूठ बोला था । च्यांग लू मूर्ख था । तान के साथ क्रूरता से पेश आने के स्थान पर अगर वह उसके साथ डालर की जुबान से बात करता तो तान खुशी से उसे बता देती कि वास्तव में उसे पहले से ही यह मालूम था कि पिलानंग पोख कहां रहता है ? उसने तो केवल अपनी जानकारी की कीमत हासिल करने के के लिये और उसका महत्व बढ़ाने के लिए झूठ बोला था ।
***
अगले दिन दोपहर के करीब ग्लोकेस्टर में सुनील को तान ने टैलीफोन किया ।
तान बेहद उत्तेजित स्वर से बोल रही थी ।
“मिस्टर सुनील देयर ?” - वह बोली ।
“यस ।”
“मैं तान बोल रही हूं ।”
“यस, डार्लिंग ।”
“मैंने पता लगा लिया है, पिलांनग पोख कहां रहता है ।”
“वैरी गुड ।”
“मेरी एक सहेली के ब्वाय फ्रेड को उसका पता मालूम था लेकिन मिस्टर सुनील पिलानंग पोख का पता जानने के लिये मुझे अपनी सहेली को सौ डालर देने पड़े हैं ।”
“कोई बात नहीं । वे सौ डालर तुम्हें मिं दूंगा । पिलानंग पोख कहां रहता है ।”
“मैं फैरी स्टेशन से बोल रही हूं । तुम वहां पहुंचो । फिर मैं तुम्हें पिलांनग पोख के निवास स्थान तक ले चलूंगी ।”
“ओके। मैं आता हूं ।”
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
“उस चीनी लड़की की काल थी ।” - सुनील ने बताया - “जिससे मैं कल रात ब्लू हैवन नाइट क्लब में मिला था । उसने पिलांनग पोख का पता लगा लिया है ।”
“कहां है वह ?”
“लड़की फैरी स्टेशन पर इन्तजार कर रही है । वह हमें साथ ले चलेगी ।”
“चलो ।”
“लेकिन पिलानग पोख केवल मेरी अपेक्षा कर रहा होगा ।” - सुनील बोला - “अगर तुम लोग साथ चलोगे तो उसे संदेह हो जायेगा और फिर वह हरगिज भी हमें चौधरी के पास लेकर नहीं जायेगा ।”
जोजेफ सोचने लगा ।
“हमें बॉस का आर्डर था कि हम हर वक्त तुम्हारे साथ रहें ।” - मुरली बोला ।
“साथ रहो । मुझे कोई ऐतराज नहीं है । लेकिन अगर तुम्हारे मेरे साथ रहने की वजह से ही मिशन फेल हो गया सारी गड़बड़ की जिम्मेदारी तुम्हारी सिर पर होगी ।”
“यहां से निकलो ।” - जोजेफ बीच में बोल पड़ा - “बाकी बात रास्ते में सोचना ।”
तीनों कमरे से बाहर निकले ।
होटल से उनके बाहर निकलते ही च्यांग लू ने एजेन्ट उनके पीछे लग लिया ।
सुनील वगैरह ने फैरी स्टेशन तक के लिये एक टैक्सी ली ।
चीनी एजेन्ट एक अन्य कार में उनका पीछा करने लगे ।
वे लोग फैरी स्टेशन पर पहुंचे ।
तान सुनील की प्रतीक्षा कर रही थी ।
“ये लोग कौन हैं ?” - उसने संदिग्ध नेत्रों में जोजेफ और मुरली की ओर देखते हुए प्रश्न किया ।
“ये लोग मेरे साथी हैं” - सुनील बोला - “इन्हें भी पिलानंग पोख से मिलना है ।”
तान कुछ क्षण हिचकिचाई और फिर बोली - “अच्छी बात है, चलो ।”
“कहां ?”
“पायर के सामने मेरे भाई की मोटरबोट खड़ी है ।”
“लेकिन हमे जाना कहां है ?”
“सिल्वर माइन वे । वही पिलानंग पोख का बंगला है ।”
“चलो ।” - सुनील बोला ।
चारों तान के भाई की मोटर कार में सवार हो गये । तान का भाई तान की ही शक्ल सूरत का और लगभग उसी आयु का लड़का था । उसने तत्काल मोटरबोट स्टार्ट कर दी ।
मोटरबोट विशाल सागर का सीना चीरती हुई सिल्वरी माइन वे की ओर भाग चली ।
किनारे पर खड़े च्यांग लू के एजेन्ट उल्लूओं की तरह पलके झपका रहे थे । वे इस प्रकार की किसी स्थिति के लिये तैयार नहीं थे । उन्हें यह नहीं सूझा था कि फैरी स्टेशन पर आकर उनका शिकार किश्ती या स्टीमर के स्थान पर प्राइवेट मोटरबोट में भी सवार हो सकता था और यही नहीं उनके यह जानने का भी कोई साधन नहीं था कि आखिर सुनील अपने साथियों के साथ जा किधर रहा है ।
किनारे पड़ खड़े हाथ मलते रहने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था ।
थोड़ी देर बाद तान के भाई की मोटर बोट सिल्वर माइन वे के साथ के एक टापू के साथ आ लगी ।
तान के भाई के अतिरिक्त सब स्टीमर मोटरबोट से उतर आये ।
तान उन्हें एक लम्बी पगडन्डी पर चलाती हुई एक सफेद इमारत के समीप चली आई ।
“पिलानंग पोख इस इमारत में रहता है ।” - तान उस सफेद इमारत की ओर संकेत करती हुई बोली ।
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“पिलानंग पोख इस समय भीतर है ?”
“मुझे नहीं मालूम । जब मैं पहली बार यहां आई थी तो वह था ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “तान, तुम वापिस मोटर बोट में अपने भाई के पास चली जाओ ।”
“मैं वहां प्रतीक्षा करूं ?”
“आधा घन्टा प्रतीक्षा करना अगर उतने समय में हम वापस लौट आये तो ठीक है वर्ना तुम वापिस चली जाना ।”
“फिर हम वापिस कैसे जायेंगे ?” - मुरली व्यग्र स्वर से बोला ।
“डरो मत । यहां से हर एक घन्टे बाद स्टीमर जाता है ।”
मुरली चुप हो गया ।
“और मिस्टर सुनील ।” - तान झिझकने का अभिनय करती हुई बोली - “कल रात तुमने कहा था कि अगर मैंने तुम्हारे लिये पिलानंग पोख का घर तलाश कर दिया तो तुम मुझे...” - तान ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“जोजेफ” - सुनील बोला - “इसे साढे सात सौ डालर दे दो ।”
जोजेफ ने पहले विरोध के लिये मुंह खोला और फिर कुछ सोचकर चुपचाप जेब से साढे सात सौ डालर के नोट निकाल कर तान के हवाले कर दिये ।
“पचास डालर तुम्हारे भाई के लिये हैं ।” - सुनील बोला ।
“थैंक्यू मिस्टर जन्टलमैन ।” - तान खुश होकर बोली - “थैंक्यू वैरी मच । हम आधे घन्टे तक पायर पर तुम्हारी प्रतीक्षा करेंगे ।”
“ओके ।”
तान वापिस लौट गई ।
“अब तुम्हारा क्या इरादा है ?” - सुनील जोजेफ और मुरली की ओर घूमा ।
“क्या मतलब ?” - जोजेफ बोला ।
“मुझे बेहतरी इसी में दिखाई देती है कि मैं पिलानंग पोख से अकेला मिलूं । मैं तुम्हें अपने साथ चलने से रोकूंगा नहीं लेकिन फिर गड़बड़ की जिम्मेदारी तुम पर होगी ।”
“क्या गड़बड़ हो सकती है ?”
“शायद तुम्हारी मौजूदगी में पिलानंग पोख अपनी जुबान खोलना पसन्द न करे ।”
“उसकी जुबान मैं खुलवा लूंगा ।”
“लेकिन अभी तो इस बात का बात का भी भरोसा नहीं है कि हम ठीक आदमी के पास जा रहे हैं ।”
जोजेफ सोचने लगा ।
“आल राइट ।” - अन्त में वह बोला - “तुम अकेले जाओ । हम यहां प्रतीक्षा करते हैं । लेकिन अगर आधे घन्टे में तुम वापिस नहीं लौटे तो हम भी इमारत में घुस आयेंगे ।”
“ओके ।” - सुनील बोला और इमारत की ओर बढ गया ।
“मुरली” - सुनील के जाते ही जोजेफ मुरली से बोला - “तुम इमारत के पिछवाड़े में चले जाओ । मैं यहां ठहरता हूं ।”
इमारत ऊंची चारदीवारी से घिरी हुई थी । सामने की ओर एक विशाल फाटक था जिसके समीप कालबैल लगी हुई थी ।
सुनील ने कालबैल के पुश पर उंगली रख दी ।
थोड़ी देर बाद फाटक में एक छोटी सी खिड़की खुली और एक चीनी ने बाहर झांका ।
“मिस्टर पिलनांग पोख हैं ?” - सुनील ने अंग्रेजी में पूछा ।
चीनी ने उत्तर नहीं दिया । वह मूर्खों की तरह सुनील को घूरता रहा ।
“मेरा नाम सुनील है” - सुनील अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “मैं भारत से आया हूं । पिलानंग पोख को बोलो, मैं उससे मिलना चाहता हूं ।”
चीनी ने धीरे से स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिलाया । फिर उसने खिड़की बन्द करली ।
पांच मिनट बाद खिड़की फिर खुली और चीनी ने उसे भीतर आने का संकेत किया ।
सुनील खिड़की लांघ कर भीतर घुस गया ।
चीनी ने उसे अपने पीछे आने का संकेत किया ।
वह उसे योरोपियन ढंग से सुसज्जित एक विशाल कमरे में ले गया ।
कमरे में एक लम्बा आदमी बैठा था ।
“प्लीज कम इन ।” - वह बोला ।
सुनील उसके सामने की एक कुर्सी पर आ बैठा ।
चीनी नौकर विदा हो गया ।
“फरमाइये ?” - वह बोला ।
“फरमाने के लिये आया हूं ।” - सुनील विनोदपूर्ण स्वर से बोला - “बशर्ते कि आपका ही नाम पिलनांग पोख हो ।”
“मैं पिलानंग पोख हूं ।” - वह आदमी बोला ।
“बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर” - सुनील ने उससे हाथ मिलाया और फिर बोला - “मेरा नाम सुनील है । मैं भारत से आया हूं ।”
“वह तो मैं सुन चुका हूं मिस्टर सुनील” - पिलानंग पोख बोला - “लेकिन मैं आपको जानता नहीं । आप मुझे कैसे जानते हैं ?”
सुनील चुप रहा । उसने एक सरसरी दृष्टि से कमरे का निरीक्षण किया और फिर बोला - “क्या आपको विश्वास है कि यहां मैं जो बात कहूंगा, वह केवल आप ही के कानों में पड़ेगी ।”
“इतनी गम्भीर बात है ?”
“जी हां ।”
“यहां जो कहना चाहते हैं, निसंकोच कहिये । यहां आपकी बात मेरे अतिरिक्त कोई नहीं सुन सकेगा ।”
सुनील फिर चुप हो गया और फिर बड़ी सावधानी से शब्द चयन करता हुआ गम्भीर स्वर से बोला - “मैं भारतीय सीक्रेट सर्विस का एजेन्ट हूं ।”
“अच्छा !” - पिलनांग पोख धैर्यपूर्ण स्वर से बोला ।
“भारत में पीटर हाल हम से मिला था ।” - सुनील रहस्यपूर्ण स्वर से बोला । उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि उसके किसी भी कथन की पिलनंग पोख पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही थी ।
“कौन पीटर हाल ?” - पिलानंग पोख भावहीन स्वर से बोला ।
“आप किसी पीटर हाल को नहीं जानते ?”
“मिस्टर सुनील, आप मुझसे सवाल मत कीजिये । आप अपनी बात कहने आये हैं, इसलिये अपनी ही बात कहिये ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर बोला - “मैं उस पीटर हाल की बात कर रहा हूं जो ब्लू हैवन नाइट क्लब में वेटर था, जिसे आपने नगेन्द्र सिंह चौधरी की वजह से भारत भेजा था ।”
कई क्षण कोई नहीं बोला । सुनील गौर से पिलनंग पोख की सूरत देख रहा था लेकिन उसका चेहरा सलेट की तरह साफ था ।
“पीटर हाल कहां है ?” - कई क्षण बाद पिलनंग पोख पूर्ववत भावहीन स्वर से बोला ।
“पीटर हाल के अब आपको कभी दर्शन नहीं हो पायेंगे ।” - सुनील ने उत्तर दिया - “वह भारत के हवाई अड्डे पर हांगकांग में हवाई जहाज पर हांगकांग में जहाज पर सवार होने से पहले शूट कर दिया गया था ।”
“ऐसा किन लोगों ने किया ?”
“मुझे नहीं मालूम । मैं केवल इतना जानता हूं कि पीटर हाल ने मेरे चीफ को फोन किया था । उसने हमारे एजेन्ट नगेन्द्र सिंह पता बताने के बदले में पांच लाख अमरिकन डालर की मांग थी । जो हमने स्वीकार ली थी ।”
“पांच लाख अमरिकन डालर !”
“जी हां । फिर वह मुझे साथ लेकर हांककांग आने वाला था ताकि वह मुझे चौधरी तक ले जा सके । लेकिन इससे पहले ही दुश्मनों ने उसका काम तमाम कर दिया ।”
“उसका ही क्यों ? आप का क्यों नहीं ?”
“शायद उन लोगों को मेरे बारे में जानकारी नहीं थी । और या फिर उन्हें विश्वास था कि सहायता के बिना हरगिज भी चौधरी तक नहीं पहुंच पाऊंगा ।”
“आई सी ! आप मुझ तक कैसे पहुंच गये ?”
“पीटर हाल ने आपका जिक्र किया था उसके कथानुसार आप ही ने पीटर हाल को भारत भेजा था ।”
“आप मुझ तक कैसे पहुंच गये ?”
“मैंने ब्लू हैवन नाइट क्लब में आपके बारे में पूछताछ की थी । पीटर हाल ने मुझे बताया था कि वह वहां वेटर था और वहीं आपकी और उसकी मुलाकात हुई थी । ब्लू हैवन में मुझे तान नाम की लड़की मिली थी उसी ने मुझे आपका यहां का पता बताया था ।”
“आप बहुत फास्ट वर्कर हैं, मिस्टर सुनील ।”
सुनील चुप रहा ।
“अब आप मुझ से क्या चाहते हैं ?”
“चौधरी का पता वास्तव में आप जानते हैं । इसीलिये मैं आपसे अपेक्षा करता हूं कि आप मुझे चौधरी के पास ले चलें । आखिर आपने पीटर हाल को भारत में इसीलिये तो भेजा था वह अपने साथ भारतीय सीक्रेट सर्विस का कोई एजेन्ट लेकर आये जो बाद में आपके माध्यम से चौधरी से मिल लें ।”
“मैं यह कैसे मान लूं कि आप ही सही आदमी हैं और पीटर हाल की मौत की जो कहानी आपने जो सुनाई है वह ठीक है ।”
“अगर मैं सही आदमी नहीं हूं तो जो बातें मैंने आपको बताई है वह मैं कैसे जानता हूं और फिर यह तसवीर देखिये यह तसवीर खुद पीटर हाल ने मुझे दी थी ।”
और सुनील ने अपनी जेब से चौधरी और पीटर हाल की वह तसवीर निकाल कर पिलानंग पोख के सामने रख दी जो पीटर हाल ने उसे दी थी ।
“पीटर हाल ने मुझे बताया था कि यह तसवीर आप ही ने खींची थी ।”
पिलानंग पोख कुछ क्षण तस्वीर देखता रहा और फिर बोला - “इन तमाम बातों से यह सिद्ध नहीं होता मिस्टर सुनील कि आप ही वह आदमी हैं । आप पीटर हाल के साथ आये होते तो बात और थी लेकिन आपके अकेले आने से हजारों सन्देहों की गुंजायश निकल आई है । शायद आप उसी पक्ष के आदमी हों जो चौधरी का खून का प्यासा है । शायद आपको किसी प्रकार पीटर हाल की जानकारी हो गई हो । आप लोगों ने उसे पकड़ लिया हो और फिर उसे यातनायें देकर प्रमाण के रूप में मेरे सामने प्रस्तुत कर रहे हैं । अपने आपको मेरे स्थान पर रख कर सोचिये, मिस्टर सुमील, क्या वर्तमान स्थिति में मेरा आप पर सन्देह करना स्वाभाविक नहीं है ।”
“अगर मैं दुश्मनों का आदमी होता तो क्या मैं इस समय आपके सामने बैठा आपसे प्रार्थना कर रहा होता कि मिस्टर पिलानंग पोख, कृपा मुझे चौधरी के पास ले चलिये । अगर पीटर हाल को यातना देकर उससे कोई बात कुबलवाई जा सकती है तो वही तरीका आप पर क्यों नहीं आजमाया जा सकता, साहब ।”
पिलानंग पोख चुप रहा । सुनील का उस पर अपने तर्क का प्रभाव दिखाई दे रहा था ।
“चौधरी आपको जानता है ?” - अन्त में पिलानंग पोख ने पूछा ।
“बिल्कुल जानता है ।”
“आप कोई ऐसी घटना बता सकते हैं, जो आपके और चौधरी में ही घटित हुई हो और जिसे कोई तीसरा आदमी न जानता हो ।”
सुनील सोचने लगा ।
“चौधरी ने” - थोड़ी देर बाद सुनील बोला - “राजनगर में एक रखैल पाली हुई थी, जिसे वह पांच सौ रुपये महीना दिया करता था । उसका नाम रजनी था और वह रिचमंड रोड पर सात नम्बर इमारत के एक फ्लैट में रहती थी । मेरे ख्याल से चौधरी की उस बात की जानकारी मेरे अतिरिक्त किसी को नहीं है ।”
“वैरी गुड । आपके पास अपना पासपोर्ट है ?”
“है ।”
“मुझे दे दीजिये ।”
सुनील ने पासपोर्ट निकाल कर उसे दे दिया ।
“पासपोर्ट में आपकी तस्वीर है । इसकी वजह से मैं चौधरी को आपका हुलिया बयान करने की जहमत से बच जाऊंगा । आपको अपना पासपोर्ट मेरे पास छोड़ जाने में कोई एतराज तो नहीं ?”
“मुझे कोई एतराज नहीं ।”
“आप कहां ठहरे हुए हैं ?”
“कोलूत के ग्लोकेस्टर होटल में ।”
“मैं आप से जल्दी ही सम्पर्क स्थापित करूंगा ।” - पिलानंग पोख वार्तालाप का पटाक्षेप सा करता हुआ बोला ।
उसी क्षण इमारत में वही बैल बज उठी ।
“काई...!” - पिलानंग पोख ने आवाज दी ।
पहले वाला चीनी नौकर कमरे के दरवाजे पर प्रकट हुआ ।
“अगर कोई मेरे बारे में पूछ रहा हो तो कह देना मैं घर पर नहीं हूं ।”
नौकर स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला कर चला गया ।
“मैं इस समय किसी से नहीं मिल सकता ।” - पिलानंग पोख यूं बोला जैसे अपने आपसे बातें कर रहा हो - “मुझे चौधरी के बारे में कुछ करना है ।”
सुनील उठ खड़ा हुआ और बोला - “मैं आप की काल की प्रतीक्षा करूंगा ।”
“मैं जल्दी ही आप से मिलूंगा ।” - पिलानंग पोख कुछ क्षण रुका और फिर बोला - “बशर्ते कि आप सही आदमी हुए ।”
सुनील मुस्कराया ।
“आप कृपा करके पिछले दरवाजे से निकल जाइयेगा । नौकर आपको रास्ता बता देगा ।”
“ओके ।” - सुनील बोला । उसने पिलानंग पोख से हाथ मिलाया और कमरे से बाहर निकल गया ।
***
बाहर द्वार पर जो आदमी घन्टी बजा रहा था, वह चीनी एजेन्ट च्यांग लू था । जब से उसे पिलानंग पोख की जानकारी हुई थी, तब से वह निरन्तर उसके बारे में पूछताछ करवा रहा था और अन्त में उसे पिलानंग पोख का पता मालूम हो ही गया था ।
पिलानंग पोख से दो चार होने के लिये वह खुद आया था ।
चीनी नौकर ने फाटक की छोटी सी खिड़की खोल कर बाहर झांका ।
“मिस्टर पिलानंग पोख हैं ?” - च्यांग लू ने चीनी में प्रश्न किया ।
“नहीं ।” - उत्तर मिला ।
“कहां गये हैं ?”
“मालूम नहीं ।”
“कब लौटेंगे ?”
“मालूम नहीं ।”
“यहां टैलीफोन है ?”
“है ।”
“नम्बर बताओ ।”
नौकर ने नम्बर बता दिया ।
च्यांग लू ने नम्बर नोट कर लिया और वहां से हट गया ।
उसके पास यह जानने का कोई साधन नहीं था कि सुनील पहले ही पिलानंग पोख से सम्पर्क स्थापित कर चुका था । उसकी नजर में उसके आदमी बड़ी होशियारी से सुनील का पीछा कर रहे थे । इसी वजह से उसका ध्यान इमारत से थोड़ी ही दूर पेड़ों के समीप खड़े जोजेफ की ओर नहीं गया ।
***
रात को नौ बजे ग्लोकेस्टर में सुनील के सूट के टेलीफोन की घन्टी बजी । जोजेफ ने टेलीफोन की ओर हाथ बढाया लेकिन सुनील ने उसे रोक दिया । उसने टेलीफोन से रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला - “हल्लो ।”
“कौन साहब बोल रहे हैं ?” - दूसरी ओर से पिलानंग पोख की आवाज आई ।
“सुनील ।” - सुनील ने उत्तर दिया ।
“मैं पिलानंग पोख बोल रहा हूं ।”
“मैंने आपकी आवाज पहचान ली है ।”
“मैंने चौधरी से बात कर ली है । चौधरी आपको जानता है । उसने मुझे विश्वास दिलाया है कि आप सही आदमी हैं ।”
“वैरी गुड ।”
“चौधरी आपसे फौरन मिलना चाहता है । एकाएक उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई है । वह किसी भी क्षण जान से हाथ धो सकता है । मैं आपको फौरन उसके पास ले जाना चाहता हूं ।”
“मुझे क्या करना होगा ?”
“मैं आपके होटल में ड्रिंकर्स बे की ओर समुद्र के किनारे के साथ साथ एक सड़क जाती है । आप फौरन उस सड़क पर रवाना हो जाइये । लगभग चार मील आगे जाने पर एक पेट्रोल पम्प आयेगा । उससे थोड़ी ही दूर सड़क से हट कर एक पेड़ों का झुरमुट है । आपको वहां एक लाल रंग की स्टेशन वैगन खड़ी दिखाई देगी । आप उस स्टेशन वैगन तक पहुंच जाइये ।”
“फिर ?”
“फिर की बात मैं फिर करूंगा ।”
“आल राइट ।”
“और इस बात का ख्याल रखिये कि कोई आप का पीछा न करे । चीनी एजेन्ट चौधरी की तलाश में हांगकांग का चप्पा-चप्पा छान रहे हैं अगर कोई आपके पीछे लग गया तो सारा खेल बिगड़ जायेगा ।”
“मेरे पीछे कौन लग सकता है ? मुझे यहां कौन जानता है ?”
“फिर भी आप ख्याल रखियेगा । मैं आपको फिर चेतावनी दे रहा हूं मिस्टर सुनील, कोई आपका पीछा न करने पाये ।”
“मैं ख्याल रखूंगा ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
“कौन था ?”
“पिलानंग पोख ।” - सुनील ने बताया - “वह मुझे अभी चौधरी के पास ले जाना चाहता है ।”
“बड़ी अच्छी बात है ।” - जोजेफ बोला - “चलो ।”
“लेकिन वह चाहता है कि मैं अकेला आऊं ।”
“यह नहीं हो सकता ।” - जोजेफ निश्चयात्मक स्वर से बोला - “अब हम तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकते ।”
“लेकिन हर्ज क्या है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“लेकिन अगर मैं अकेला काम करूंगा तो मैं ज्यादा सहूलियत से चौधरी का काम तमाम कर सकूंगा । अगर हम तीनों वहां गये तो चौधरी की हत्या करने के बाद हम में से कोई न कोई जरूर फंस जायेगा ।”
“देखा जायेगा ।”
“पिलानंग पोख ने मुझे अकेले आने को कहा है । तुम लोगों को देखकर सम्भव है वह मुझे चौधरी तक ले जाने का इरादा ही छोड़ दे ।”
“तुम उसे विश्वास दिलाना कि हम तुम्हारे साथी हैं ।”
“वह नहीं मानेगा ।”
“तो फिर उसे मैं मना लूंगा । अपने तरीके से ।”
“जोजेफ” - सुनील असहाय स्वर से बोला - “तुम जानते हो कि मैं तीन घन्टे से ज्यादा तुमसे अलग नहीं रह सकता । फिर तुम्हें मुझको अकेले जाने देने में एतराज क्या है ।”
“बॉस का आर्डर है कि हम हर वक्त तुम्हें अपनी निगाहों में रखें ।” - जोजेफ बोला - “और फिर यह भी सम्भव है कि चौधरी की हत्या के बाद तुम कोई ऐसे कागजात वगैरह गबन कर दो जिनकी बास को बहुत जरूरत हो ।”
“अच्छी बात है ।” - सुनील हथियार डालता हुआ बोला - “चलो ।”
वे होटल के बाहर निकल गये और एक टैक्सी में आ बैठे ।
टैक्सी जिन ड्रिंकर्स बे की ओर चल दी ।
च्यांग लू के वे आदमी जिनके हाथों से सुनील वगैरह दोपहर में तान के भाई की मोटर बोट की वजह से निकल गये थे, तत्काल उनका पीछा करने लगे । सुनील को दुबारा अपनी निगाहों में देखकर उनकी जान में जान आ गई थी ।
जिन ड्रिंकर्स बे की ओर जाने वाली सड़क पर रात को उस समय ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था इसलिये फोरन ही सुनील को मालूम हो गया कि उनका पीछा किया जा रहा था । चीनियों की पीले रंग की फोर्ड ग्लोकेस्टर से ही उसे अपनी टैक्सी के पीछे दिखाई दे रही थी ।
“हमारा पीछा किया जा रहा है ।” - सुनील हिन्दोस्तानी में बोला ।
जोजेफ चौंका । उसने घूमकर पीछे देखा ।
“पीली फोर्ड ।” - सुनील ने बताया ।
जोजेफ सोचने लगा ।
“हमें इनसे पीछा छुड़ाना ही पड़ेगा ।” - सुनील बोला - “पिलानंग पोख ने विशेष रूप से चेतावनी दी थी कि कोई मेरा पीछा न करने पाये ।”
“इन्हें डाज देने की कोशिश करें ?”
“इतनी खुली, सीधी और सपाट सड़कों पर इन्हें डाज देना बहुत मुश्किल होगा और फिर हमारे पास ज्यादा समय भी नहीं है ।”
“तो फिर क्या कसें ?”
सुनील के मस्तिष्क में एक स्कीम जन्म लेने लगी ।
“तुम दोनों के पास रिवाल्वर है ?” - सुनील ने पूछा ।
“है ।” - उत्तर जोजेफ ने दिया ।
“पिछली कार में मुझे चार आदमी दिखाई दे रहे हैं । उन्हें शूट कर दो ।” - सुनील बोला ।
“कैसे ? हमारी टैक्सी में और उनकी कार में बहुत फासला है और फिर सड़क पर थोड़ा बहुत ट्रेफिक भी है ।”
“इसका इन्तजाम मैं करता हूं ।”
“क्या करोगे ?”
“अभी बताता हूं ।”
वे चुप हो गये ।
चीनी टैक्सी ड्राइवर हालात से बेखबर टैक्सी चलाता रहा ।
“टैक्सी रोको ।” - एकाएक सुनील बोला ।
ड्राइवर ने टैक्सी को तत्काल सड़क की साइड में करके रोक दिया । इससे पहले कि ड्राइवर सावधान हो पाता सुनील ने कैरट चाप का एक नपा तुला हाथ ड्राइवर की गरदन पर रसीद कर दिया । ड्राइवर के मुंह से हाय भी नहीं निकली और वह बेहोश हो गया ।
सुनील ने उसके निर्जीव शरीर को एक ओर धकेल दिया और स्वयं ड्राइविंग सीट पर आ बैठा ।
उसने टैक्सी स्टार्ट की और उसे फिर सड़क पर डाल दिया ।
जोजेफ और मुरली पिछली सीट पर बैठे रहे ।
पीली फोर्ड जो टैक्सी रुकती देखकर रुक गई थी, फिर उनके पीछे लग गई ।
सुनील तेज रफ्तार से टैक्सी चलाता रहा ।
एकाएक उसने टैक्सी को दाईं ओर मुड़ती हुई एक लम्बी सड़क पर डाल दिया । वह सड़क ट्रेफिक के नाम पर सुनसान थी ।
पीली फोर्ड भी उधर मुड़ गई ।
दोनों कारों के बीच में लगभग एक फलांग का फासला था ।
लगभग आधा मील आगे सुनील को बाईं ओर पेड़ों से घिरी हुई एक पतली सी अन्धेरी सड़क दिखाई दी ।
सुनील ने टैक्सी उस सड़क पर मोड़ दी और भीतर प्रविष्ट होते ही उसने एकाएक पूरे जोर से ब्रेकें लगा दीं ।
“बाहर निकलो ।” - वह तीव्र स्वर से बोला - “ज्यों ही पीली फोर्ड पास आये फायरिंग शुरु कर देना ।”
जोजेफ और मुरली टैक्सी के दोनों ओर के दरवाजे खोलकर फौरन बाहर निकल गये । दोनों एक दूसरे से अलग हो गये और पेड़ों के पीछे जा छुपे । रिवाल्वरें उनके हाथ में थीं ।
सुनील भी ड्राइविंग सीट से निकलकर एक अन्य पेड़ के पीछे छुप गया । पीली फोर्ड मोड़ के समीप से घूमी और फिर एकाएक ब्रेकों की चरचराहट की आवाज सुनाई दी ।
सुनील ने टैक्सी इस प्रकार तिरछी करके छोड़ी थी कि सारा रास्ता रुक गया था ।
जोजेफ और मुरली ने अपनी अपनी दिशाओं से कार पर फायर करने आरम्भ कर दिये ।
शान्त वातावरण गोलियों की धांय धांय से गूंज उठा ।
पीली फोर्ड के ड्राइवर ने कार बैक करने की कोशिश की लेकिन तभी तक गोली कार का शीशा तोड़ती हुई आई और उसकी खोपड़ी में घुस गई । स्टियरिंग से उसका हाथ हट गया । उसका सिर उसकी छाती पर लटक गया और कार पीछे हटती हुई सड़क के मोड़ के एक पेड़ से जा टकराई ।
फिर कार में से भी फायर होने लगे ।
सुनील दूर खड़ा तमाश देखता रहा ।
फिर कार में से किसी और की चीख सुनाई दी ।
कुछ गोलियां कार के अगले टायरों से आकर टकराईं ।
उसी क्षण कार की पिछली ओर के दरवाजे खुले । दो चीनी जोजेफ और मुरली की दिशा में फायर करते हुए बाहर निकले और विपरीत दिशा में भागे ।
एकाएक सुनील को मुरली की चीख सुनाई दी । उसके हाथ से रिवाल्वर निकल गई थी और वह अपने कन्धे को पकड़े हुए था ।
सुनील उसकी ओर लपका । उसने मुरली के हाथ से गिरी रिवाल्वर उठा ली और बोला - “घबराओ मत । मैं सम्भालता हूं उन्हें ।”
मुरली कन्धा पकड़ कर अपने स्थान पर बैठ गया ।
सुनील ने भागते हुए चीनियों की ओर गोली चलाने का प्रयत्न नहीं किया । जोजेफ सड़क के दूसरी ओर पेड़ के पीछे छुपा हुआ उन पर फायर कर रहा था ।
सुनील ने रिवाल्वर चैम्बर खोल कर देखा भीतर केवल दो गोलियां मौजूद थीं ।
उसी क्षण सुनील ने पहले भागते हुए एक चीनी को और फिर दूसरे चीनी को लड़खड़ा कर सड़क पर गिरते देखा ।
सुनील ने मुरली की खोपड़ी से रिवाल्वर सटाई और ट्रीगर दबा दिया ।
मुरली का भेजा उड़ गया । उसकी लाश सुनील के पैरों के पास लुड़क गई ।
“जोजेफ, इधर ।” - सुनील जोर से चिल्लाया - “मुरली को गोली लग गई है ।”
चीनियों का काम तमाम हो ही चुका था । जोजेफ हाथ में रिवाल्वर थामे सड़क पार करके सुनील की दिशा में लपका ।
सुनील ने सावधानी से निशाना लगाया और फिर फायर कर दिया ।
गोली सनसनाती हुई जोजेफ की छाती में घुस गई । उसके मुंह से एक तेज चीख निकली और वह लड़खड़ा कर सड़क पर गिर गया ।
सुनील ने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया और फिर मुरली की लाश पर झुक कर उसकी तलाशी लेने लगा । मुरली की जेब से सारे नोट उसने अपनी जेब के हवाले किये । उसकी जेब में रिवाल्वर की पन्दरह सोलह गोलियां और मौजूद थी । सुनील ने अपनी बैल्ट में खुंसी रिवाल्वर का चैम्बर भर लिया और बाकी राउन्ड अपनी जेब में डाल लिये ।
फिर वह सड़क के बीच में पड़ी जोजेफ की लाश की ओर बढा । उसने बड़ी व्यग्रता से उसकी जेबें टटोलनी आरम्भ कर दीं । एक घन्टा पहले होटल में जब जोजेफ ने सुनील को गोली दी थी तो सुनील ने उसे गोलियों की शीशी अपनी जेब में रखते देखा था ।
सुनील को जोजेफ की पतलून की जेब में गोलियों की शीशी मिल गई । सुनील ने कांपते हाथों से शीशी का ढक्कन खोला और शीशी को अपनी हथेली पर उलट लिया ।
भीतर पांच गोलियां मौजूद थीं ।
सुनील ने एक गहरी सांस ली और गोलियां वापिस शीशी में डाल दीं । उसने शीशी अपने कोट की भीतरी जेब में रख ली ।
पांच गोलियां उसे पन्दरह घन्टे जिन्दा रख सकती थीं ।
सुनील ने बड़ी बारीकी से जोजेफ की सारी जेबों की फिर से तलाशी ली । नोटों के एक बंडल के अतिरिक्त उसे और कोई महत्वपूर्ण चीज नहीं मिली ।
सुनील टैक्सी की ओर बढा । उसने ड्राइविंग सीट का द्वार खोला ।
सीट के नीचे खाली स्थान में चीनी टैक्सी ड्राईवर पड़ा था और भय और आतंक की प्रतिमूर्ति बना सुनील की ओर देख रहा था । शायद गोलियों की आवाज से उसे होश आ गया था ।
“उठो ।” - सुनील ने आदेश दिया ।
ड्राइवर उठ गया ।
सुनील दूसरी ओर से घूमकर आया और उसकी बगल में बैठ गया ।
“गाड़ी स्टार्ट करो ।” - सुनील बोला ।
ड्राइवर ने कांपते हाथों से गाड़ी स्टार्ट की ।
“सब ठीक है ?”
ड्राइवर ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
कुछ गोलियां टैक्सी में भी टकराई थीं लेकिन टैक्सी के इंजन या टायरों को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंची थी । केवल पिछला शीशा टूट गया था और बाडी में तीन चार छेद हो गये थे ।
“चलो ।” - सुनील बोला ।
ड्राइवर ने तत्काल गाड़ी आगे बढा दी ।
पीछे रास्ता नहीं था ।
“यह सड़क पहचानते हो ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।”
“आगे से रास्ता है ?”
“है ।”
“वापिस मेन रोड पर चलो और फिर जिन ड्रिंकर्स बे की ओर चलो ।”
ड्राइवर ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
टैक्सी के दृष्टि से ओझल होते ही सड़क पर पड़े दो चीनियों में से एक के शरीर में हरकत हुई । वह मरा नहीं था । गोली उसकी जांघ में लगी थी ।
वह सड़क पर घिसटता हुआ गोलियों से छलनी हुई फोर्ड की ओर बढा ।
गाड़ी के समीप पहुंच कर उसने गाड़ी के बाहर की ओर झूलते हुये द्वार का सहारा लेकर स्वयं को अपने पैरों पर खड़ा किया । उसने भीतर घुसकर ड्राइविंग सीट पर मरे पड़े चीनी की जेबें टटोलनी आरम्भ कर दी । उसके कोट की भीतर की जेब में उसे अपनी इच्छित वस्तु मिल गई ।
वह एक निश्चित फ्रीक्वेंसी पर ट्यून किया हुआ एक छोटा सा ट्रांसमीटर था । चीनी ने उसके एक कोने में से खींच कर एरियल निकाला और उसमें लगा हुआ एक बटन बार बार दबाने लगा ।
थोड़ी देर बाद उसे सिग्नल मिला ।
“बास, मैं तुंग बोल रहा हूं, ओवर ।” - चीनी बोला और ओवर कहते ही उसने ट्रांसमीटर अपने कान से लगा लिया ।
“क्या खबर है ? ओवर ।”
“वे लोग भाग निकले हैं । उन्होंने हम पर हमला कर दिया था । तीन आदमी मर गये है । केवल मैं ही जीवत बचा हूं । मैं भी घायल हूं । ओवर ।”
“और ? ओवर ।”
“और सुनील ने अपने दोनों साथियों को भी गोली से उड़ा दिया है । ओवर ।”
दूसरी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
“अब सुनील किधर गया है ? ओवर ।”
“मालूम नहीं । पहले वह जिन ड्रिंकर्स बे की ओर बढ रहा था । ओवर ।”
“ओके । ओवर ।”
“मेरे लिये क्या आदेश है । मैं घायल हूं । ओवर ।”
“तुम भी अपने तीन साथियों की तरह जल्दी ही प्राण छोड़ने की कोशिश करो ।”
और सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
चीनी ने ट्रांसमीटर बन्द कर दिया । उसके चेहरे हर तीव्र निराशा, बेबसी और क्रोध के मिले-जुले भाव उभर आये ।
उसकी जांघ में से अब भी रक्त बह रहा था ।
धीरे धीरे उस पर बेहोशी छाने लगी ।
दूसरी ओर च्यांग लू ने ट्रांसमीटर आफ किया और क्रोध में अपने बाल नोचने लगा । हार का अहसास इसीलिये और तीव्र हो गया था क्योंकि उस समय वहां पर कू ओ मौजूद थी ।
“क्या हुआ ?” - कू ओ ने प्रश्न किया ।
“मेरे आदमियों को चोट हो गई है ।” - च्यांग लू दबे स्वर से बोला - “वे सुनील और उसके साथियों का पीछा कर रहे थे । उन्होंने उल्टा मेरे आदमियों पर आक्रमण कर दिया । तीन आदमी मर गये हैं । चौथा घायल हो गया है और वही रिपोर्ट कर रहा था ।”
“मतलब यह कि सुनील साफ साफ तुम्हारे हाथ से निकल गया है और तुम्हारे पास यह जानने का कोई साधन नहीं है कि इस समय वह कहां है ।” - कू ओ व्यंग्य पूर्ण स्वर से बोली ।
च्यांग लू का सिर झुक गया ।
“अब तुम क्या करोगे ?” - कू ओ ने पूछा ।
“ग्लोकेस्टर में उसके लौटने की प्रतीक्षा करूंगा । ....मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि सुनील ने अपने साथियों को क्यों शूट कर दिया है ।” - च्यांग लू बड़बड़ाया ।
“क्या ?” - कू ओ तीव्र स्वर से बोली - “अभी क्या कहा था तुमने ?”
“तुमने रिपोर्ट की है कि मेरे आदमियों के खतम हो जाने के बाद सुनील ने अपने दोनों साथियों को भी गोली से उड़ा दिया था ।”
“च्यांग लू” - कू ओ पूर्ववत् तीव्र स्वर से बोली - “इसका एक ही मतलब हो सकता है । सुनील इसी क्षण सीधा चौधरी के पास जा रहा है । किसी कारणवश वह अपने साथियों को चौधरी तक नहीं ले जाना चाहता था, इसीलिये उसने उन्हें शूट कर दिया है या सम्भव है वे लोग सुनील के साथी हो ही नहीं । सम्भव है अपना मतलब हल करने के लिये वे जबरदस्ती सुनील को अपने साथ फंसाये हुए हों ।”
च्यांग लू चुप रहा । बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी ।
“तुम्हें पिलानंग पोख मिला ?” - कू ओ ने पूछा ।
“नहीं । मैंने उसके घर का पता मालूम कर लिया है । मैं खुद उससे मिलने के लिये सिल्वर आइक बे गया था लेकिन वह घर पर नहीं था ।”
“अभी फौरन फिर उसके घर जाओ । किसी भी प्रकार पिलानंग पोख का पता लगाओ और फिर उसी से पूछो कि चौधरी कहां छुपा हुआ है । पिलानंग पोख से तुमने किसी भी हालत में चौधरी का पता पूछना है चाहे इसके लिये तुम्हें उसकी बोटी बोटी अलग कर देनी पड़े । हमें किसी भी हालत में सुनील से पहले चौधरी तक पहुंचना है । अगर सुनील हम से पहले चौधरी तक पहुंच गया तो यह हमारी भरपूर हार होगी । अब हमारी हारी हुई बाजी को केवल पिलानंग पोख ही बचा सकता है ।”
“मैं अभी जाता हूं ।”
“और अबरदीन हार्बर पर फैले हुए अपने आदमियों को भी सतर्क कर दो ।”
“ओके ।” - च्यांग लू बोला और तेजी से इस कमरे से बाहर निकल गया ।
कू ओ चिन्ता प्रतिमूर्ति बनी वहां बैठी रही ।
***
पिलानंग पोख द्वारा बताये गये पैट्रोल पम्प से थोड़ी दूर सुनील ने ड्राइवर को टैक्सी रोकने का आदेश दिया । रात को अन्धकार में पेड़ों का वह झुरमुट एक विशाल धब्बे जैसा दिखाई दे रहा था जिसका पिलानंग पोख ने टेलीफोन पर जिक्र किया ।
सुनील टैक्सी से उतर आया । उसने सौ सौ डालर के दो नोट टैक्सी ड्राइवर को दिये और बोला - “टैक्सी की मरम्मत करवा लेना ।”
ड्राइवर ने कृतज्ञतापूर्ण ढंग से दान्त निकाल दिये ।
सुनील के टैक्सी से अगल हटते ही ड्राइवर ने टैक्सी को स्टार्ट किया, उसे बीच सड़क पर यू टर्न दिया और फिर पूरी रफ्तार से गाड़ी ड्राइव करता हुआ वापिस विक्टोरिया हार्बर की ओर यूं भागा, जैसे भूत देख लिया हो ।
सुनील पेड़ों के झुरमुट की ओर बढा ।
समीप पहुंचकर उसने रिवाल्वर अपने हाथ में ले ली और रिवाल्वर वाला हाथ अपनी पीठ पीछे छुपा लिया ।
पेड़ों झुरमुट में उसे एक स्टेशन वैगन खड़ी दिखाई दी । स्टेशन वैगन की ड्राइविंग सीट पर कोई बैठा था । सुनील समीप पहुंचा ।
ड्राइवर ने उसकी ओर का वैगन का दरवाजा खोल दिया ।
सुनील द्वार के समीप पहुंच कर ठिठक गया ।
“मिस्टर सुनील ।” - ड्राइवर से पूछा ।
आवाज पिलानंग पोख की नहीं थी और न ही ड्राइवर का आकार पिलानंग पोख जैसा था ।
“हां ।” - सुनील सर्तक स्वर से बोला - “तुम कौन हो ? पिलानंग पोख कहां है ?”
“मैं पिलानंग पोख का लड़का हूं । भीतर तशरीफ लाइये ।”
“पिलानंग पोख कहां है ?”
“वे घर पर हैं । आपकी सेवा के लिये उन्होंने मुझे भेजा है ।”
“तुम क्या सेवा करोगे ?”
“मैं आपको चौधरी के पास ले जाऊंगा ।”
“तुम्हें उसका पता मालूम है ।”
“हां ।”
“लेकिन तुम्हारे डैडी क्यों नहीं आये ।”
“वे शाम को चौधरी के पास गये थे । अबरदीन हार्बर में खड़े बजड़े चीनी एजेन्टों से भरे पड़े हैं । उन बजड़ों के आसपास एक ही सूरत बार-बार दिखाई देनी लोगों के लिये सन्देह का विषय बन सकती है । इसीलिये पापा ने आपकी सेवा के लिए मुझे भेजा है ।”
“तुम पहले कभी चौधरी के छुपने के स्थान पर गये हो ?”
“हां । दो-तीन बार गया हूं ।”
“कहां है वह ?”
“वही है जहां चीनियों को भी मालूम है कि वह है, लेकिन फिर भी वे लोग उसे तलाश कर लेने असमर्थ हैं ।”
“अबरदीन हार्बर में ?”
“हां ।”
“हम यहां से अबरदीन हार्बर कैसे पहुंचेंगे ?”
“आप भीतर तशरीफ तो लाइये । आपको ठीक जगह पहुंचाना मेरी जिम्मेदारी है ।”
सुनील ने रिवाल्वर पतलून की जेब में सरका दी और ड्राइवर के साथ बैठ गया ।
“यह आपका पासपोर्ट ।” - ड्राइवर पासपोर्ट उसकी ओर बढाता हुआ बोला - “पापा ने दिया है ।”
सुनील ने पासपोर्ट जेब में रख लिया ।
ड्राइवर ने इग्नीशन आन किया । डैशबोर्ड पर छोटी सी बत्ती जल पड़ी । उस प्रकाश में सुनील ने देखा ड्राइवर एक मुश्किल से बीस साल का खूबसूरत लड़का था ।
लड़का बड़ी दक्षता से स्टेशन वैगन ड्राइव करता हुआ मुख्य सड़क पर आ गया । और जिन ड्रिंकर्स बे की ओर चल दिया ।
“हम तो विपरीत दिशा में जा रहे हैं ।” - सुनील तीव्र स्वर से बोला ।
“आप देखते जाइये मिस्टर सुनील” - लड़का शान्ति से बोला - “मैं आपको एक दम ठीक जगह पर पहुंचाऊंगा ।”
सुनील चुप हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
लड़का चुपचाप स्टेशन वैगन ड्राइव करता रहा ।
समुद्र के एक सुनसान किनारे के समीप लाकर उसने स्टेशन वैगन रोक दी ।
उसने इग्नीशन आफ किया और गाड़ी से बाहर निकल आया ।
सुनील भी अपनी ओर का द्वार खोलकर बाहर कूद गया ।
वे रेत पर चलते हुए समुद्र की ओर बढे ।
समुद्र के पानी में एक लकड़ी का ऊंचा प्लेटफार्म बना हुआ था जिसके साथ एक मोटरबोट बन्धी हुई खड़ी थी । वे प्लेटफार्म पर चलते हुए मोटर बोट के समीप पहुंचे और फिर बारी बारी मोटरबोट में कूद गये ।
लड़के ने इंजन स्टार्ट कर दिया ।
मोटरबोट पानी को चीरती हुई आगे बढी ।
“हम लोग समुद्र का बहुत लम्बा चक्कर काट कर अबरदीन हार्बर पहुंचेंगे ।” - लड़के ने बताया ।
सुनील चुप रहा ।
लड़का लगभग आधे घन्टे तक चुपचाप मोटर बोट ड्राइव करता रहा ।
फिर सुनील को हांगकांग द्वीप की रोशनियां और अबरदीन हार्बर के गन्दे पानी में तैरते हुए असंख्य बजड़े दिखाई देने लगे ।
लड़का मोटर बोट को बजड़ों के समीप ले जाने का प्रयत्न नहीं कर रहा था । वह काफी देर बजड़ों से दूर-दूर ही पानी में मोटरबोट चलाता रहा ।
समुद्र में बजड़े सौ-सौ, ढेड-डेढ सौ की कतारों में इस प्रकार खड़े थे और इनके दोनों समुद्र में इस प्रकार सीधा रास्ता छुपा हुआ था जैसे वे सीधे सपाट रास्तों वाले दोतरफा खुले सरकारी क्वार्टर हों ।
बजड़ों से दूर समुद्र के पानी में से एक चट्टान सिर उठाये खड़ी थी । लड़के ने मोटरबोट को उसके साथ लगा कर रोक दिया । फिर उसने नीचे उतरकर एक रस्से की सहायता से मोटरबोट को चट्टान में खड़ी एक लोहे की कील के साथ बान्ध दिया । और फिर वापिस मोटरबोट में सुनील की बगल में आकर बैठ गया ।
“थोड़ी देर प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ।” - लड़का बोला ।
सुनील चुप रहा ।
फिर रात के अन्धकार में काले धब्बे जैसा दिखाई देने वाला एक बजड़ा उनकी ओर बढा । एक चीनी हाथ में लम्बा सा चप्पू थामे नाव की तरह उसे खे रहा था ।
“कोई इधर आ रहा है ।” - सुनील बोला उसका हाथ अपने आप ही रिवाल्वर की ओर रेंग गया ।
“घबराइये नहीं ।” - लड़का बोला - “दोस्त है ।”
लड़का मोटरबोट में से बजड़ें में कूद गया । सुनील ने उस का अनुसरण किया । दोनों बजड़े पर बनी गन्दी सी झोंपड़ी के भीतर घुस गये । भीतर एक चीनी औरत और तीन चार गन्दे गन्दे बच्चे सोये हुए थे । आहट सुनकर औरत ने नेत्र खोले लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोली । सुनील और वह लड़का भी उन्हीं के बीच में एक ओर बैठ गये । बजड़ा फिर अबरदीन हार्बर में खड़े असंख्य बजड़ों की ओर चल दिया ।
फिर उनका बजड़ा और बजड़ों की दो लम्बी कतारों में से गुजरता हुआ आगे बढा । बाईं ओर की कतार में एक स्थान खाली था । बाहर चप्पू लेकर खड़े चीनी ने बड़ी सफाई से उस स्थान में अपने बजड़े को घुमा दिया । बजड़ा जब स्थिर हुआ तो वह दायें बायें के दो बजड़ों के साथ सटा हुआ था ।
लड़का कई क्षण चुपचाप बैठा रहा और फिर सुनील से बोला - “आओ ।”
दोनों झोंपड़े से बाहर निकल आये । लड़का निशब्द बगल के बजड़े पर कूद गया ।
सुनील भी उसके पीछे कूदा ।
इसी प्रकार एक बजड़े से दूसरे बजड़े पर कूदते हुए वे छ: बजड़े आगे निकल गये । फिर लड़का रुक गया । वह बजड़ा और बजड़ों के मुकाबले में थोड़ा बड़ा था । उसमें भी उसी प्रकार की लकड़ी और तिरपाल की एक बड़ी सी झोंपड़ी बनी हुई थी ।
झोंपड़ी के बाहर कुछ लोग सोये पड़े थे । आहट सुनते ही एक आदमी उठ खड़ा हुआ । उसने पहले लड़के की ओर और फिर सुनील की ओर देख और फिर लड़के से बोला - “आ गये तुम ?”
“हां ।” - लड़का बोला ।
“यह वह आदमी है ?”
“हां ।”
“आओ ।”
उस आदमी ने झोंपड़ी का द्वार खोला ।
वे भीतर प्रविष्ट हो गये ।
भीतर एक लालटेन जल रही थी । उस आदमी ने लालटेन की बत्ती ऊंची कर दी । झोंपड़े की दीवारों पर लालटेन का पीला बोमार सा प्रकाश पड़ने लगा ।
सुनील ने देखा, भीतर तीन आदमी बैठे हुए थे । दो उसके लिये नितान्त अपरिचित चीनी थे और तीसरा - तीसरा नगेन्द्र सिंह चौधरी था । वह एकदम हड्डियों का ढांचा मालूम हो रहा था । उसका चेहरा लाश की तरह सफेद था और उसकी खाली खाली बुझी हुई आंखें शून्य में कहीं झांक रही थी ।
उसके साथ लेटे चीनियों ने भी आंखें खोल दी । उनके साथ आये चीनी ने संकेत किया वे दोनों उठकर झोपड़े से बाहर चले गये ।
लड़के ने चौधरी को सहारा देकर उठाया और दीवार के साथ उसकी पीठ लगा दी । फिर उसने सुनील को चौधरी के सामने बैठ जाने का संकेत किया ।
चीनी ने लालटेन समीप रख दी और फिर चीनी और लड़का दोनों उन्हें वहां अकेला छोड़कर झोंपड़े से बाहर निकल गये ।
“सुनील ।” - चौधरी के मुंह से क्षण सी आवाज निकली । उसने सुनील को पहचान लिया था ।
“हां चौधरी ।” - सुनील । स्थिर स्वर से बोला ।
“अच्छा हुआ तुम आ गये ।” - चौधरी की आवाज कांप रही थी - “शायद मेरे प्राण तुम्हारे इन्तजार में अटके हुए थे । अब मैं शान्ति से मर सकूंगा ।”
सुनील चुप रहा । उसे समझ नहीं आ रही थी कि ऐसे मौके पर उसे क्या कहना चाहिये ।
“मुझ में ज्यादा बोलने की शक्ति नहीं है ।” - चौधरी बोला - “लेकिन मुझे बहुत कुछ कहना है । तुम मेरे और समीप आ जाओ ।”
सुनील और उसके पास सरक गया ।
चौधरी के कांपते हुए हाथ उसके मुंह की ओर बढे । फिर उसने अपना एक नकली दांत निकाल कर सुनील की ओर बढा दिया ।
“यह क्या है ?” - सुनील दांत लेता हुआ बोला ।
“यह दांत खोखला है । इसके भीतर दो माइक्रो फिल्में हैं । इसमें शत्रुओं के वे गुप्त भेद दिये हुए हैं जो मैंने चार साल शत्रुओं के बीच में रह कर इकट्ठे किये हैं । हमारे देश को इनकी बहुत जरूरत है । इन माइक्रो फिल्मों को सुरक्षित हाथों में पहुंचा पाने की आस में ही मैं इतने दिनों से मौत से जूझ रहा था, सुनील । अगर मैं खतम हो जाता तो ये माइक्रो फिल्में भी मेरे साथ खतम हो जातीं और फिर मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाती । एक महान मिशन में सफल हो जाने के बाद भी मैं असफल रह जाता ।”
“मिशन ! कैसा मिशन ?” - सुनील दांत को अपने कोट के भीतरी जेब में रखता हुआ बोला ।
चौधरी ने कई गहरी गहरी सांसे ली और फिर अपनी बची खुची शक्ति संचित करता हुआ बोला - “सुनील, लोग मुझे गद्दार समझते हैं । लोग समझते हैं कि मैं अपने देश को धोखा देकर, दुश्मन से जा मिला था । लेकिन वास्तव में यह बात नहीं थी जो कुछ मैंने किया था वह मैंने कर्नल मुखर्जी के निर्देश पर ही किया था । मुखर्जी की स्कीम थी कि मैं पहले अपने देश को दगा देकर शत्रुओं से जा मिलूं । शत्रु हमारे देश की एस्पियानेज एक्टिविटीज की जानकारी हासिल करने के लिये मेरे जैसे किसी आदमी का खुले दिल से स्वागत करेगा और ऐसा ही हुआ भी । चीनियों ने मुझे हाथों हाथ लिया । उनका विश्वास हासिल करने के लिये मैंने धीरे-धीरे अपने देश के ऐसे कुछ भेद भी उन पर खोल दिये जो मुखर्जी के कथनानुसार वास्तव में कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं थे । मुखर्जी की चाल चल गई । दो साल के अन्दर अन्दर मैं चीनियों का अच्छा खासा विश्वासपात्र बन गया और फिर उन्हीं की एस्पियानेज सिस्टम की एक कड़ी बन गया । वे हमेशा यही समझते रहे कि मैं कोई दौलत का लोभी देशद्रोही हूं । मैं पेकिंग में चीनियों की छत्रछाया में पलता रहा और जैसे जैसे मुझे मौका मिलता रहा मैं उनके भेद जानता रहा । बाद के दो सालों में मैंने उन सीक्रेट सरविस की कई महत्वपूर्ण फाइलें देख डालीं और काम के रिकार्ड की तसवीरें भी उतार लीं । मेरी दो साल की मेहनत का परिणाम वे माइक्रो फिल्में हैं जो मैंने अभी तुम्हें दी हैं ।”
सुनील मन्त्रमुग्ध सा चौधरी की बातें सुनता रहा । वह यह सोचकर हैरान हो रहा था कि जिसे सारा देश गद्दार समझ रहा था, वही वास्तव में शत्रु से मिलकर देश के लिये भारी काम का कार्य कर रहा था ।
“फिर एकाएक एक दिन मैं उनकी फाइलों की तसवीरें लेता हुआ रंगे हाथों पकड़ा गया । उनकी सीक्रेट सरविस के जिन आदमियों ने मुझे देखा, मैंने फौरन उन्हें गोली से उड़ा दिया लेकिन फिर भी मेरी वास्तविकता चीनी अधिकारियों पर खुल गई । बड़ी मुश्किल से मैं अपनी जान बचाकर वहां से भाग पाया । मैं एक हवाई जहाज द्वारा पेकिंग से भागा । दुश्मन मेरा पीछा कर रहे थे । हांगकांग के समुद्र के ऊपर से उड़ते समय हवाई जहाज में कोई खराबी पैदा हो गई और फिर मैं पैराशूट द्वारा समुद्र में कूद गया । जिस बजड़े में मैं इस समय मौजूद हूं, उन्हीं के निवासियों ने मुझे समुद्र से निकाला और मुझे अपने यहां शरण दी । मेरे साथ ढेर सारा नकद धन था जो मैंने रिश्वत के रूप में इन लोगों को दे दिया । आरम्भ में तो ये लोग केवल धन के लालच में ही मुझे शरण दिये हुये थे लेकिन बाद में तो मेरी हालत पर तरस खाकर ही इन्होंने मेरी सहायता करनी आरम्भ कर दी । इन्हें मालूम था कि मेरे शत्रु मेरी तलाश में एक एक बजड़ा छान रहे हैं । यह इन्हीं लोगों के चातुर्य का कमाल है कि हर बजड़े अबरदीन हार्बर में मौजूद हर बजड़े की कई बार तलाशी हो चुकने के बावजूद भी इस बजड़े तक एक बार भी शत्रुओं की पहुंच नहीं हुई ।”
“तुम पिलानंग पोख को कैसे जानते हो ?”
“मैं नहीं जानता था । मुझे शरण देने वालों में से ही कोई पिलानंग पोख को जानता था । उसी ने मुझे कहा था कि उस मामले में पिलानंग पोख मेरी मदद कर सकता है । बाद में पिलानंग पोख ने कर्नल मुखर्जी तक सन्देश पहुंचाने के लिये जो किया वह तुम जानते ही हो । सुनील, मैं यहां चूहे की तरह पिंजड़े में फंसा हुआ था । दुश्मन के आदमी अबरदीन हार्बर के चप्पे-चप्पे पर मेरी तलाश कर रहे थे । यहीं मुझे अपनी सुरक्षा के आसार दिखाई देते थे । फिर मैं एकाएक यहां के गन्दे समुद्री खाने और वातावरण की वजह से बुरी तरह बीमार हो गया । मैं हिलने डुलने तक के काबिल नहीं रहा । इलाज मैं करवा नहीं सकता था क्योंकि मैं डाक्टर के पास जा नहीं सकता था और मैं चाहता नहीं था कि डाक्टर यहीं आये । ऐसी हालत में पिलानंग पोख पर भरोसा करने के इलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था विशेष रूप से जबकि मेरे एक निजी प्रयत्न से कोई परिणाम नहीं निकला था ।”
“तुमने क्या किया था ?”
“पहले मैंने कोड भाषा में अपनी हालात की सूचना देते हुए मुखर्जी को एक पत्र लिखा लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं । शायद मुखर्जी को वह पत्र नहीं मिल पाया ।”
“मुखर्जी को ऐसा कोई पत्र नहीं मिला ।”
“मेरा भी यही ख्याल था । हांगकांग में चीनियों के एजेन्ट हर कहीं हैं । शायद वह पत्र उन लोगों के हाथ लग गया हो । पत्र कोड में होने की वजह से उन्होंने उसे आगे तो न जाने दिया हो लेकिन साथ ही वे कोड में निहित सन्देश को भी नहीं समझ सके होंगे वर्ना वे कब के यहां आ धमके होते ।”
“खैर, फिर ?”
“फिर मैंने सादी भाषा में अपनी लड़की को एक पत्र लिखा । मैंने पत्र में उसे तुम्हारा नाम और टेलीफान नम्बर बताया और कहा कि वह तुमसे सम्पर्क स्थापित करे और मुलाकात हो जाने पर मेरा वह पत्र वह तुम्हें दे दे । लेकिन उसका पता भी नहीं, क्योंकि कोई नतीजा नहीं निकला, या तो पहले पत्र की तरह वह पत्र भी अपने गन्तव्य स्थान तक नहीं पहुंच पाया और या फिर मेरी बेटी ने ही अपने को दुनिया की नजरों में गद्दार बाप की खातिर खानदान की जहमत मोल नहीं लेनी चाही ।”
सुनील के नेत्र फैल गये । उसके नेत्रों के सामने लीला चौधरी की सूरत घूम गई ।
“चौधरी” - वह बोला - “कहीं तुम्हारी बेटी का नाम लीला चौधरी तो नहीं ?”
“हां ।” - चौधरी के नेत्रों में एक क्षण सी चमक उभरी - “तुम जानते हो उसे ?”
सुनील कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “चौधरी मुझे अफसोस है कि मैं तुम्हें एक बुरी खबर सुनाने जा रहा हूं । तुम्हारी बेटी अब इस संसार में नहीं ।”
“क्या !” - चौधरी व्याकुल स्वर से बोला - “क्या हुआ उसे ?”
“उसको तुम्हारा पत्र मिल गया था और वह तुम्हारे निर्देशानुसार मुझसे सम्पर्क स्थापित करने राजनगर भी आई थी लेकिन दुर्भाग्यवश जब भी उसने तुम्हारे द्वारा मालूम हुए मेरे अनलिस्टिड नम्बर पर मुझे फोन किया तो मैं फोन रिसीव करने के लिये फ्लैट पर मौजूद नहीं था । पन्द्रह दिन बाद कहीं वह टैलीफोन पर मुझसे बात न कर सकी । वह वाई डब्ल्यू सी ए के होस्टल में ठहरी हुई थी । जब मैं उससे मिलने के लिये वहां पहुंचा तो कमरे में उसकी लाश पड़ी हुई थी । शत्रु के आदमियों ने पहले उसे बुरी तरह टार्चर किया था और फिर मार डाला था ।”
“हे भगवान !” - चौधरी कांपती आवाज से बोला - “हे मेरे भगवान !”
सुनील खेदपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप बैठा रहा ।
“लीला के हत्यारों का कुछ पता चला ?” - थोड़ी देर बाद चौधरी ने पूछा ।
“लीला के हत्यारों को तो मैं भगवान के घर भेज चुका हूं । वे मेरे अंगरक्षक बनकर हांगकांग तक मेरे साथ आये थे ।”
“क्या मतलब ?”
सुनील ने उसे सारा किस्सा सुनाया ।
“तो यह सेठ दौलतराम की करतूत थी ।” - चौधरी बड़बड़ाया ।
सुनील चुप रहा ।
“सुनील, सेठ दौलतराम चीनी एजेन्ट रह चुका है । जो माइक्रो फिल्में मैंने तुम्हें दी हैं, उसमें दौलतराम का भी कच्चा चिट्ठा है । दौलतराम चीनी एजेन्टों से हासिल हुए पैसे के दम पर ही करोड़पति बना है । सेठ दौलतराम जैसे और भी आदमियों के विरुद्ध सबूत इन माइक्रो फिल्मों में मौजूद हैं । हमारे देश के उन गद्दारों के के चीनी सीक्रेट के हैडक्वार्टर में रखे जाने वाले रिकार्ड की तस्वीरें इन माइक्रो फिल्मों में हैं ।”
चौधरी एक क्षण रुका और फिर बोला - “मेरे भाग निकालने की सूचना सेठ दौलतराम को चीनी एजेन्टों से मिली होगी । चीनियों ने उसे यह भी बताया होगा कि मैं उसकी वास्तविकता जान गया हूं और उसके विरुद्ध ढेर सारे सबूत भी पेकिंग से चुराकर ले गया हूं । सेठ दौलतराम के हाथ पांव फूल गये होंगे । उसे किसी प्रकार मालूम हो गया होगा कि लीला मेरी बेटी है । वह उसकी निगरानी करवा रहा होगा । तुम्हारे कथनानुसार वह यह जानता है कि तुम भारतीय सीक्रेट सरविस के एजेन्ट हो । उसने समझा कि मैं अपनी बेटी के माध्यम से तुम तक छुपने के स्थान का पता पहुंचा रहा हूं । इसलिये इससे पहले कि तुम लीला से मिल पाते उसने लीला की हत्या करवा दी । उसके आदमियों ने पहले लीला को यातना देकर मेरा पता जानना चाहा होगा, जबकि वास्तव में वह मेरा पता जानती ही नहीं थी ।”
“लेकिन चौधरी अगर वह कुछ जानती नहीं थी तो फिर मुझे उससे मिलने से क्या लाभ होता ।”
“मैंने इन्तजाम ही ऐसा किया था कि मैं कहां छुपा हुआ हूं, इसकी सूचना तुम तक पहुंच जाती लेकिन लीला को कुछ भी पता नहीं लगता ।”
“कैसे ?”
“मैंने उसे लिखा था कि वह तुमसे सम्पर्क स्थापित करे और मेरी उसके नाम लिखी वह चिट्ठी वह तुम्हें दे दे । उस चिट्ठी के लिफाफे पर जो टिकटे लगी हुई थीं, उनके पीछे एक माइक्रो फिल्म का आलपिन के सिर जितना छोटा टुकड़ा चिपकाया हुआ था । उस माइक्रो फिल्म के टुकड़े की स्लाइड बनाकर अगर तुम उसे स्कीम पर प्रोजेक्ट करते तो कर्नल मुखर्जी के नाम मेरा पत्र और मेरा छुपने का स्थान तुम्हारे सामने आ जाता ।”
“चौधरी” - सुनील धीरे से बोला - “ट्रेजेडी यह है कि वह हांगकांग की टिकटें लगा वह लिफाफा मेरे हाथ में भी आया और मैं उसका महत्व नहीं समझ सका । लीला के हत्यारे तुम्हारी चिट्ठी तो साथ ले गये थे लेकिन लिफाफे को बेकार समझकर उसे लीला के पर्स में ही छोड़ गये थे । उस समय तुम्हारा तो मुझे ख्याल तक नहीं था और तुम्हारी लड़की को मैं जानता नहीं था । इसलिये मैं उस लिफाफे का महत्व नहीं समझ सका । अगर वह लिफाफा मुझे लीला के हाथों से मिला होता और मैंने तुम्हारा लीला को लिखा पत्र भी देख लिया होता तो मैं समझ जाता कि उस मामूली से लगने वाले पत्र में जरूर कोई महत्वपूर्ण बात है नहीं तो लीला अपने नाम आया हुआ पत्र मुझे क्यों दे रही है । उस सूरत में लिफाफे पर लगी टिकटों के पीछे छुपा हुआ माइक्रो फिल्म का टुकड़ा मेरी निगाहों से छुपा नहीं रह पाता लेकिन...”
सुनील ने असहाय भाव से कन्धे झटकाये ।
चौधरी ने एक गहरी सांस ली ।
“सेठ दौलतराम मेरे लिये भारी रहस्य बना हुआ था । अब मेरी समझ में आया है कि वह क्यों चाहता था कि मैं तुमसे मिलते ही तुम्हारी हत्या कर दूं और अगर तुम्हारे पास कोई कागजात वगैरह हों तो वह मैं भारत आकर उसके हवाले कर दूं । सेठ दौलतराम जानता था कि तुम्हारा सही सलामत भारत पहुंच जाना उसकी मौत होगी । लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता कि सेठ दौलतराम को पीटर हाल की जानकारी कैसे हो गई ?”
“उसका सोर्स होगा !”
“लेकिन सवाल तो है कि हांगकांग में मौजूद चीनी एजेण्ट...” - उसी क्षण झोपड़ी का दरवाजा खुला और पिलानंग पोख का लड़का भीतर प्रविष्ट हुआ ।
“दो मोटरबोट तेजी से इधर आ रही हैं” - वह घबराये स्वर से बोला - “प्राइवेट मोटरबोट का बजड़ों के बीच में आना अपने आप में खतरे आ अलार्म होता है । अच्छा यही है कि आप अभी यहां से निकल चलिये ।”
सुनील तत्काल उठ खड़ा हुआ और बोला - “चौधरी तुम भी मेरे साथ चलो ।”
“नहीं ।” - चौधरी निश्चित स्वर से बोला ।
“लेकिन क्यों ? मैं तुम्हें बड़े आराम से यहां से निकाल ले जाऊंगा ।”
“मैं नहीं जाऊंगा । मेरे में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं अपने पैरों पर खड़ा भी हो सकूं । तुम मुझे अपने साथ ले जाने के चक्कर में पड़े तो तुम भी यहां से नहीं निकल सकोगे ।”
“लेकिन...”
“वक्त बरबाद मत करो ।” - चौधरी तीव्र स्वर से बोला - “तुम फौरन यहां से निकल जाओ । मैं तो लगभग मर ही चुका हूं । मुझे तो यही हैरानी है कि मैं अभी तक जिन्दा कैसे हूं ।”
सुनील हिचकिचाया ।
“जल्दी करो ।” - चौधरी व्यग्रतापूर्ण स्वर से बोला - “सुनील, भगवान के लिये भागो यहां से ।”
“आल राइट ।” - सुनील बोला - “गुड बाई चौधरी ।”
“गुडबाई ।” - चौधरी होठों में बुदबुदाया ।
सुनील और लड़का झोपड़े से बाहर निकल गये ।
उन के दृष्टि से ओझल होते ही चौधरी ने अपने तकिये के नीचे से एक रिवाल्वर निकाली । उसने कांपते हाथों से रिवाल्वर को ऊंचा किया, उसकी नाल को अपनी कनपटी से लगाया और फिर धीरे से ट्रीगर दबा दिया ।
***
च्यांग लू अपने चार साथियों के साथ सिल्वरआइन बे पर पिलानंग पोख के मकान के सामने पहुंचा ।
फाटक के समीप पहुंचकर उसने घन्टी बजाई ।
जितनी देर तक द्वार नहीं खुला, उतनी देर च्यांग लू अंगारों पर लोटता रहा ।
फाटक में बनी खिड़की खुली और एक चीनी नौकर ने बाहर झांका ।
च्यांग लू न खुद बोला और न उसे बोलने का अवसर दिया । उसने रिवाल्वर नौकर की छाती पर रख दी ।
“पीछे हटो ।” - वह गुर्राया ।
नौकर ने तत्काल आज्ञा का पालन किया ।
पहले च्यांग लू और फिर उसके साथी खिड़की के रास्ते भीतर प्रविष्ट हो गये । सब ने रिवाल्वरें निकाल ली थीं ।
“पिलानंग पोख घर में है ?” - च्यांग लू ने कठोर स्वर से पूछा ।
नौकर ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“रास्ता दिखाओ ।” - वह बोला ।
नौकर आगे आगे चल दिया ।
एक बन्द दरवाजे के सामने आकर वह रुक गया ।
“भीतर ।” - वह चीनी में बोला ।
च्यांग लू ने उसे एक ओर धकेल दिया । उसने पांव की ठोकर मार कर द्वार खोला और भीतर घुस गया । उसके दो साथियों ने उसका अनुसरण किया ।
भीतर एक दीवान पर पिलानंग पोख लेटा हुआ था । आवाज सुनकर वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ ।
च्यांग लू ने अपनी रिवाल्वर उसकी ओर तान दी ।
“यह क्या तमाशा है ?” - पिलानंग पोख क्रोधित स्वर से बोला - “तुम लोग कौन हो ?”
“तुम्हारा नाम पिलानंग पोख है ?” - च्यांग लू ने प्रश्न किया ।
“हां । लेकिन...”
च्यांग लू ने फायर किया । गोली सनसनाती हुई पिलानंग पोख ने कान के पास से गुजर गई ।
पिलानंग के चेहरे का रंग उड़ गया ।
“तुम... तु... तुम... लोग... क... क्या चाहते हो तुम लोग ?” - वह लड़खड़ाये स्वर से बोला ।
“तुम अभी, इसी वक्त तुम हमें नगेन्द्र सिंह चौधरी के पास लेकर चलोगे ।” - च्यांग लू एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला ।
“कौन नगेन्द्र सिंह चौधरी ?”
“तुम किसी चौधरी को नहीं जानते ?”
“नहीं ।”
च्यांग लू ने अपने साथियों को संकेत किया ।
दोनों ने रिवाल्वर जेब में रख लीं और पिलानंग पोख की ओर बढे ।
पिलानंग पोख भयभीत सा पीछे हटने लगा ।
एक ने आगे बढकर उसे दबोच लिया और उसकी बांहों को पीठ पीछे मोड़ कर उन्हें मजबूती से पकड़ लिया ।
दूसरे आदमी ने ताबड़ तोड़ उसके पेट में घूंसे बरसाने आरम्भ कर दिये ।
पिलानंग पोख की चीखों से कमरा गूंज उठा । उसके नेत्रों से पीड़ा के आंसुओं के धारे बहने लगे ।
च्यांग लू ने उन्हें रुकने का संकेत किया ।
वे लोग अलग हट गये ।
पिलानंग पोख ने दोनों हाथों से अपना पेट पकड़ लिया और सोफे पर उकड़ू होकर बैठ गया ।
“तुम चौधरी को जानते हो ?” - च्यांग लू ने प्रश्न किया ।
पिलानंग पोख ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“और यह भी जानते हो कि यह कहां छुपा हुआ है ?”
उसने उत्तर नहीं दिया ।
“चुप रहने से कोई फायदा नहीं होगा, पिलानंग पोख अगर तुमने जुबान नहीं खोली तो ये लोग मार मार कर तुम्हारा कीमा बना देंगे ।”
“जानता हूं ।” - पिलानंग पोख कठिन स्वर से बोला ।
“गुड ।” - च्यांग लू बोला - “उठ कर खड़े हो जाओ । तुम लोग अभी हमें चौधरी के पास ले चल रहे हो ।”
पिलानंग पोख लड़खड़ाता हुआ उठ खड़ा हुआ ।
च्यांग लू के साथियों ने उसे दायें बायें से सहारा दिया ।
वे कमरे से बाहर निकल आये ।
“अपने नौकरों से कह दो कि वे पुलिस में रिपोर्ट करने जैसा कोई काम न करे ।” - च्यांग लू ने आदेश दिया ।
पिलानंग पोख ने आज्ञा का पालन किया ।
वे लोग इमारत से बाहर निकल आये और फिर समुद्र के किनारे पहुंचकर एक मोटर बोट में बैठ गये ।
मोटरबोट चल पड़ी ।
“किधर ?” - च्यांग लू ने पूछा ।
“अबरदीन हार्बर की ओर ।” - पिलानंग पोख धीरे से बोला ।
मोटर बोट अबरदीन हार्बर की ओर चल दी ।
थोड़ी ही देर में मोटरबोट बजड़ों के समीप पहुंच गई ।
तभी दूर कहीं टार्च का तेज प्रकाश दो बार चमका और फिर बुझ गया ।
च्यांग लू के एक साथी ने भी एक टार्च निकाली और उसे उसी प्रकार दो बार जलाया बुझाया ।
फिर एक मोटरबोट तेजी से चलती हुई उसके समीप भी गया । उस मोटरबोट में भी तीन चार आदमी बैठे थे । उन्होंने हाथ हिला कर च्यांग लू का अभिवादन किया ।
“अब ?” - च्यांग लू ने प्रश्न किया ।
पिलानंग पोख रास्ता बताने लगा ।
मोटर बोट उसके निर्देशानुसार बजड़ों की दो लम्बी कतारों के बीच पानी में घुस गई । दूसरी मोटरबोट ने उसका अनुसरण किया । काफी आगे चलकर पिलानंग पोख ने बाईं ओर की कतार के एक बजड़े की ओर संकेत कर दिया ।
मोटरबोट उस बजड़े के साथ जा लगी और वे च्यांग लू अपने साथियों के साथ बजड़े पर कूद गया ।
सब ने फिर रिवाल्वरें निकाल ली थीं ।
उन्होंने बजड़े पर सोये आदमियों को ठोकर मार कर जगाया । च्यांग लू के आदमियों ने उन्हें घेर लिया ।
च्यांग ने भड़ाक से झोपड़े का द्वार खोल दिया ।
भीतर से किसी प्रकार की आहट नहीं सुनाई दी ।
च्यांग लू हाथ में रिवाल्वर थामे सावधानी से आगे बढा । झोपड़ के भीतर कदम रखते ही वह ठिठक गया ।
लालटेन की रोशनी में उस फर्श पर पड़ी उसे चौधरी की लाश दिखाई दी । उसकी कनपटी में से खून के धारे बह रहे थे ।
च्यांग लू फौरन बाहर निकल आया ।
“इस बजड़े का मालिक कौन है ?” - च्यांग लू ने प्रश्न किया ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
च्यांग की साइलेंसर लगी रिवाल्वर ने भाप उगली और एक आदमी कटे वृक्ष की तरह पानी में जा गिरा ।
“इसी प्रकार मैं एक एक करके सब को गोली से उड़ दूंगा, वर्ना जो मैं पूछता हूं, उसका जवाब दो ।” - च्यांग लू क्रूर स्वर में बोला ।
एक आदमी थोड़ा आगे बढा ।
“अभी अभी कोई हिन्दोस्तानी यहां आया था ?” - च्यांग लू ने चीनी में प्रश्न किया ।
उस आदमी ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“उसे यहां से गये हुए कितनी देर हुई है ?”
“अभी गया है ।” - उत्तर मिला ।
“वह चौधरी के पास कितनी देर ठहरा था ?”
“पन्द्रह मिनट ।”
“वह यहां तक आया कैसे था ?”
“मोटरबोट पर ।”
“अकेला था ?”
“साथ में एक आदमी और था ।”
“कौन था ?”
“मैं नहीं जानता ।” - वह आदमी बोला ।
च्यांग लू अपने आदमियों की ओर घूमा ।
“बाकी मोटर बोट वालों को सचेत कर दो” - वह बोला - “सुनील अभी यहां से गया है । उसे निकलने का मौका नहीं मिलना चाहिये ।”
वे लोग लपककर फिर मोटरबोट पर चढ गये । एक आदमी मोटरबोट में लगे ट्रांसमीटर पर सिग्नल प्रसारित करने लगा ।
च्यांग लू पिलानंग पोख के सामने पहुंचा और बोला - “पिलानंग पोख, अगर तुमने फौरन जुबान खोल दी होती तो हमारा दुश्मन इस वक्त हमारे कब्जे में होता ।”
और उसने अपना रिवाल्वर वाला हाथ पिलानंग पोख की ओर उठाया ।
“नहीं ।” - पिलानंग पोख आतंकपूर्ण स्वर से चिल्लाया और पागलों की तरह च्यांग लू की ओर झपटा ।
च्यांग लू ने लगातार दो फायर किये ।
दोनों गोलियां पिलानंग पोख के सीने में घुस गई । गोलियों की चोट से वह फिरकनी की तरह घूम गया और फिर उसका निर्जीव शरीर रेलिंग पर जा गिरा । च्यांग लू ने पांव की ठोकर मारकर उसे पानी में गिरा दिया ।
दोनों मोटरबोट वापिस घूमी और बजड़ों की कतारों से बाहर की ओर भाग निकली ।
***
सुनील और पिलानंग पोख का लड़का तेजी से बजड़े फांदते चले गये ।
दो मोटरबोट तेजी से उनके पास से गुजर गई ।
आखिरी बजड़े पर पहुंचकर वे दोनों रुक गये । दोनों हाफ रहे थे ।
“अब हम मोटर बोट तक कैसे पहुंचेंगे ?” - सुनील ने पूछा ।
लड़का चुप रहा ।
सुनील उसका मुंह देखता रहा ।
“मैं आपके साथ नहीं जाऊंगा ।” - एकाएक लड़का कठिन स्वर से बोला ।
“क्या मतलब ?”
“वे लोग आपके साथ मुझे भी मार डालेंगे ।”
“तो तुम कहां जाओगे ?”
“यहीं किसी बड़े जबड़े में छुप जाऊंगा ।”
“तो मुझे भी अपने साथ वहीं छुपा लेना ।”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“वे लोग जरूर हमें ढूंढ लेंगे । वे मुझे नहीं पहचानते । वे आपकी तलाश में हैं । अगर मैं आपके साथ रहा तो मैं भी मारा जाऊंगा । मैं आपसे अलग होना चाहता हूं । मैं आपसे अभी, इसी इसी क्षण अलग होना चाहता हूं ।” - लड़का बहुत तेजी से बोल रहा था । वह एकाएक बेहद भयभीत दिखाई देने लगा था ।
“अच्छी बात है लेकिन मुझे तो मोटरबोट तक पहुंचाओ ।”
“मैं अब आपकी कोई मदद नहीं कर सकता । आप मोटरबोट तक तैर जाइये और भगवान के लिए जल्दी कीजिये ।”
“पागल हुए हो । इतना बड़ा समुद्र है । इतना अन्धेरा है । मैं भला ऐसी हालत में मोटरबोट कैसे तलाश कर पाऊंगा ।”
“आप तलाश कर लेंगे । वह चट्टान जिसके साथ मोटर बोट बन्धी है, यहां से केवल आधा मील दूर है । आप एकदम सीधे तैरते चले जाइये । आप सीधे चट्टान पर पहुंचेंगे ।”
“लेकिन...”
लड़का उसकी बात सुनने के लिए वहां नहीं रुका । वह एकाएक खूंटा तुड़ाई हुई गाय की तरह वापिस भाग खड़ा हुआ ।
सुनील तेजी से अपने कपड़े उतारने लगा उसने अपने शरीर पर केवल अन्डरवियर रहने दिया । बाकी कपड़ों की उसने गठरी बनाई और अपनी टाई की सहायता से उन्हें अपनी पीठ पर बान्ध लिया ।
फिर उसने समुद्र में छलांग लगा दी ।
वह एक दम सीधा तैरने लगा ।
वह जानता था कि अगर वह अन्धकार में जरा सा भी भटक गया तो वह कभी मोटर बोट तक नहीं पहुंच पायेगा और फिर उसकी हालत उस समुद्र में तिनके जैसी हो जायेगी ।
कहीं दूर से मोटरबोट के इंजन की आवाज आ रही थी ।
सुनील पूरी शक्ति से तैरता रहा ।
लेकिन फिर भी सभी सौभाग्य ने उसका साथ नहीं छोड़ा था । वह भटका नहीं था ।
सामने काले धब्बे जैसी चट्टान दिखाई देने लगी थी ।
सुनील मोटर बोट में चढ गया । उसने अपने शरीर से पानी निचोड़ा और अपनी धौंकनी की तरह चलती हुई सांस को व्यवस्थित करने लगा ।
फिर उसने कपड़े पहन लिये । उसने अपनी जेबे टटोली चौधरी का माइक्रो फिल्मों वाला दांत और गोलियों की वह शीशी सुरक्षित थी जो उसने जोजेफ की जेब से निकाली थी । और जिसमें उस समय केवल चार गोलियां रह गई थी । एक गोली वह इस बीच खा चुका था ।
सुनील ने मोटरबोट का रस्सा खोला और इंजन स्टार्ट कर दिया । वह सीधा विक्टोरिया हार्बर या वांचाई की दिशा के किनारे की ओर जाने के स्थान पर उस ओर बढा जिधर से पिलानंग पोख का लड़का उसे लाया था । वह केवल अनुमान से ही मोटरबोट ड्राइव कर रहा था । मोटरबोट को रास्ता दिखाने वाली लाइट उसने नहीं जलाई थी ।
एकाएक उसके कानों में किसी अन्य मोटर बोट के इंजन की आवाज पड़ी । उसने दृष्टि घुमाकर आवाज की दिशा में देखा ।
दाईं ओर से तीन मोटरबोट तेजी से उसकी ओर बढ रही थी ।
उसी क्षण पीछे से सनसनाती हुई कई गोलियां आईं और उसके सिर के ऊपर से गुजर गई ।
उसने घूमकर पीछे देखा, कई मोटरबोट तेजी से उसकी ओर बढ रही थीं ।
सुनील के होंठ भिंच गये । उसे घेरा जा रहा था । उसने अपनी मोटरबोट का स्टियरिंग बाईं ओर घुमा दिया और मोटरबोट की रफ्तार तेज कर दी ।
मोटरबोट समुद्र की छाती को चीरती हुई किनारे से विपरीत दिशा में भाग निकली ।
लेकिन शायद दूसरी बोटों के इंजन अधिक शक्तिशाली थे ।
कई मोटरबोट हर दिशा में उसकी ओर बढ रही थीं । और उसमें और शत्रुओं में फासला निरन्तर घटता जा रहा था । उसी क्षण उसे एकदम सामने से एक मोटरबोट उसकी ओर मुड़ा, अब बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था ।
हर ओर से उस पर गोलियां चलाई जा रही थी । वे लोग समीप होते जा रहे थे । वह हर ओर से घिर चुका था । सुनील जिधर भी अपनी मोटरबोट मोड़ता था, उधर ही शत्रुओं की मोटरबोट झुंड के रूप में उमड़ पड़ती थी ।
बच निकलने का कोई तरीका सुनील को नहीं सूझ रहा था ।
उसी क्षण सर्च लाइट का तीव्र प्रकाश सुनील पर पड़ा और एक क्षण के लिये सुनील के निकट वाली मोटर बोट भी जग मगा उठी । प्रकाश तत्काल लुप्त हो गया । सर्चलाइट का प्रकाश शत्रुओं की मोटरबोट की ओर से नहीं बल्कि आकाश की ओर से प्रकट हुआ था । सुनील ने सिर उठाकर ऊपर देखा ।
आसमान में उसकी मोटरबोट के एकदम ऊपर एक विशाल हैलीकाप्टर उड़ रहा था ।
यह क्या मुसीबत आई - सुनील मन ही मन बड़बड़ाया ।
फिर सुनील को हैलीकाप्टर में से कोई चीज अपनी मोटर बोट की ओर गिरती हुई दिखाई दी । अगले ही क्षण सुनील ने देखा, एक लम्बी रस्सी का एक सिरा मोटर बोट के ऊपर लटक रहा था । हैलीकाप्टर में से सर्चलाइट का प्रकाश एक बार फिर उस पर पड़ा और फिर तत्काल गायब हो गया ।
सुनील तत्काल स्टियरिंग के पीछे से उठ खड़ा हुआ और उसने रस्सी थाम ली ।
हैलीकाप्टर तत्काल ऊंचा उठने लगा ।
सुनील पर हर ओर से फायर होने लगे लेकिन सौभाग्यवश एक भी गोली सुनील को नहीं लगी । फिर शीघ्र ही वह गोलियों के रेंज से बाहर निकल गया ।
रस्सी हैलीकाप्टर में खींची जाने लगी । सुनील हैरान था कि एकाएक यह खुदाई मदद कहां से पहुंच गई थी ।
कुछ ही क्षण बाद वह हैलीकाप्टर के भीतर था ।
हैलीकाप्टर का ड्राइवर विंग कमांडर रामू था और उसके पीछे गोपाल बैठा था । दो अन्य आदमी जिन्हें सुनील जानता नहीं था, रस्सी समेट रहे थे ।
“क्या हाल है, प्यारे भाई !” - रामू विनोदपूर्ण स्वर से बोला ।
आश्चर्य के भाव से कितने ही क्षण सुनील के मुंह से बोल नहीं फूटा । वह आंखे फाड़ फाड़ कर कभी रामू की और कभी गोपाल को देखता रहा ।
“तुम लोग यहां कैसे पहुंच गये ?” - अन्त में सुनील के मुंह से निकला ।
“हम तो हमेशा तभी पहुंचते हैं, जब हमारी सबसे ज्यादा जरूरत होती है ।” - गोपाल बोला ।
“फिर भी...”
“हमें भी चौधरी का पता लग गया था ।” - गोपाल ने बताया ।
“कैसे ?”
“लीला चौधरी की हत्या के समाचार के साथ उसकी तस्वीर भी अखबार में छपी थी । कर्नल मुखर्जी जानते थे कि वह नगेन्द्र सिंह चौधरी की लड़की है और वह उसे सूरत से पहचानते भी थे । अखबार में छपी लीला चौधरी की तसवीर वे फौरन पहचान गये । जिस रहस्यपूर्ण ढंग से उसकी हत्या हुई थी, उससे उनके कान खड़े होन भी स्वाभाविक थे । उन्होंने केस में दिलचस्पी लेनी आरम्भ कर दी । लीला चौधरी के पर्स में पुलिस को एक लिफाफा मिला था जिस पर लीला चौधरी का पता लिखा हुआ था और उस पर हांगकांग की टिकट लगी हुई थी लेकिन लिफाफे के बीच में चिट्ठी नहीं थी । पुलिस के लिये वह लिफाफा एकदम महत्वहीन था लेकिन कर्नल मुखर्जी लिफाफे पर लिखे पते से नगेन्द्र सिंह चौधरी का हैंडराइटिंग पहचान गये । वे बड़ी मेहनत से कितना ही अरसा उस लिफाफे को ऐनेलाइज करने में लगे रहे अन्त में डाक टिकटों के पीछे उन्हें माइक्रो फिल्म का एक नन्हा सा टुकड़ा दिखाई दिया । उस फिल्म की सलाइड बनाकर उसे स्क्रीन पर प्रोजेक्ट किया तो रहस्य खुल गया । वह चौधरी का मुखर्जी के नाम एक लम्बा पत्र था जिसमें यह भी लिखा हुआ था कि वह हांगकांग में कहां छुपा हुआ है । कर्नल साहब की सिफारिश पर वायु सेना का एक प्लेन हमें यहां तक लाया है । हांगकांग पहुंचकर हम सीधे अबरदीन हार्बर पहुंचे । बड़ी आसानी से हम चौधरी के छुपने के स्थान तक भी पहुंच गये । लेकिन वहां हमें चौधरी के स्थान पर उसकी लाश मिली । बजड़े पर मौजूद लोगों से हमें मालूम हआ कि पहले कोई हिन्दोस्तानी वहां आया था, जो चौधरी के पास काफी देर ठहरा था । उसके जाते ही चौधरी किसी अपने ही आदसी से मिला । हमें फौरन तुम्हारा ख्याल आया । फिर हमें मालूम हुआ चीनी एजेन्ट तुम्हारे बाद वहां पहुंच गये थे और उस समय बहुत बड़ी फोर्स के साथ तुम्हें समुद्र में तलाश कर रहे थे । समुद्र में तो तुम्हें तलाश कर पाना सम्भव नहीं था इसलिये हम फौरन किनारे की ओर भागे । सौभाग्यवश फौरन ही हमें यह हैलिकाप्टर मिल गया । हम हैलिकाप्टर लेकर समुद्र की ओर उड़ चले । फिर हमने देखा कि एक मोटरबोट को कई मोटरबोट घेर रही थीं । हम समझ गये कि अकेली पार्टी में तुम हो और अगर तुम नहीं हो तो फिर जो कोई भी है, उसके हमारा मित्र होने की ज्यादा सम्भावना थी । हमने तुम्हारी मोटरबोट के ऊपर पहुंचकर तुम पर सर्च लाइट का प्रकाश फेंका । हम तुम्हें फौरन पहचान गये । उसके बाद जिस प्रकार हमने तुम्हें बचाया है, वह तुमने देखा ही है ।”
“अब हम सुरक्षित हैं ?”
“बिल्कुल ।” - उत्तर रामू ने दिया - “जिन ड्रिंकर्स वे में एक प्राईवेट हवाई पट्टी पर हमारा जहाज खड़ा है । जब तक दुश्मन समुद्र में से किनारे पर आयेंगे तब तक हम अपने हवाई जहाज पर पहुंच जायेंगे जो हमारे पहुंचते ही फौरन भारत के लिए रवाना हो जायेगा ।”
सुनील ने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया ।
“लेकिन तुमने मुखर्जी को रिपोर्ट क्यों नहीं किया ? वे तुम्हारे बारे में बहुत चिन्तित थे । उन्होंने तो यही समझा था कि तुम्हारा राजनगर में ही खात्मा हो गया । आखिर माजरा क्या था ? तुम बिना कर्नल मुखर्जी को सूचित किये बिना हांगकांग कैसे पहुंच गये और तुमने चौधरी का पता कैसे लगा लिया ?”
“सब कुछ बताऊंगा, पहले यह सम्भालो ।” - और सुनील ने अपनी जेब से चौधरी का दिया हुआ दान्त निकालकर गोपाल की ओर बढा दिया ।
“यह क्या है ?” - गोपाल बोला ।
“यह मुझे चौधरी ने दिया था । इसमें दो माईक्रो फिल्में हैं जिसमें चीनियों के कई गुप्त रहस्य छुपे हुए हैं ।”
“इसे तुम अपने ही पास रखो न ।”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि नौ दस घन्टे से अधिक मेरी जिन्दगी बाकी नहीं है ।”
गोपाल हैरानी से सुनील का मुंह देखने लगा । रामू की भी गरदन एक क्षण के लिये सुनील की ओर घूमी ।
“क्या बक रहो ?” - गोपाल बोला ।
सुनील ने उन्हें सारी कहानी सुना दी ।
“हे भगवान !” - सारी बात सुन चुकने के बाद रामू और गोपाल के मुंह से निकल गया ।
“लेकिन सुनील” - गोपाल बोला - “जोजेफ और मुरली के पास जरूर और गोलियां रही होंगी यह कैसे सम्भव है कि उनके पास केवल यही पांच गोलियां बाकी हों जो तुमने जोजेफ की जेब से निकाली हैं । जरूर होटल के कमरे में उनके सामान में और गोलियां होंगी ।”
“सम्भव है ।” - सुनील बोला - “लेकिन अब मुझे ग्लोकेस्टर जाने का रिस्क लेना ठीक नहीं मालूम होता ।”
“हम जायेंगे” - राम निश्चयपूर्ण स्वर में बोला - “गोपाल इसे तुम अपने पास रख लो । जिन ड्रिंर्कस वे पहुंचने पर तुम प्लेन पर सवार हो जाना । हांगकांग बहुत बड़ा है । वे हमें जल्दी तलाश नहीं कर सकते और जिन ड्रिंर्कस वे की उस हवाई पट्टी का तो उन्हें हरगिज भी ख्याल नहीं आयेगा । मैं सुनील के साथ ग्लोकेस्टर जाऊंगा । अगर हम दो घन्टे में वापिस न लौटे तो तुम प्लेन से अकेले भारत रवाना हो जाना ।”
गोपाल ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
***
सुनील ने रामू के साथ ग्लोकेस्टर में अपने सूट का चप्पा चप्पा छान मारा और गोलियां नहीं मिलीं ।
“गोलियां जरूर बक्शी नाम के उस आदमी के पास होंगी” - सुनील बोला - “जो हमें काई ताक एयरोड्रोम पर मिला था लेकिन मैं उस आदमी का पता नहीं जानता और हांगकांग में उस आदमी को तलाश कर पाना असम्भव है ।”
“फिर क्या किया जाये ?” - रामू चिन्तित स्वर में बोला ।
“एक ही रास्ता है । फौरन राजनगर पहुंचकर सेठ दौलतराम को दबोचा जाये । क्या हम समय से पहले राजनगर पहुंच सकते हैं ?”
“पहुंच सकते हैं ।” - रामू बोला ।
वे एक भी क्षण नष्ट किये बिना वहां से रवाना हो गये ।
जिन ड्रिंर्कस वे पहुंचकर वे भारतीय वायुसेना के प्लेन पर सवार हुये । प्लेन फौरन टेक आफ कर गया ।
वे लोग निर्विघ्न भारत पहुंच गये ।
वे राजनगर एयरोड्रोम पर उतरे ।
“सुनील” - रामू बोला - “तुम गोपाल के साथ फौरन विक्टोरिया हस्पताल पहुंचो । मैं सेठ दौलतराम की खबर लेता हूं और कर्नल मुखर्जी को सूचित करता हूं ।”
“जो कर सकते हो जल्दी करना । वक्त बहुत कम है ।” - सुनील बोला - “आखिरी गोली भी वह दो घन्टे पहले ले चुका था ।”
“तुम घबराओ मत” - रामू बोला - “तुम घबराओ मत, मैं कोशिश में कोई कसर उठा नहीं रखूंगा ।”
सुनील गोपाल और रामू अपने अपने गन्तव्य स्थान की ओर रवाना हो गये ।
सुनील के विक्टोरिया हास्पिटल पहुंचते पहुंचते ही कर्नल मुखर्जी भी पहुंच गये । शायद रामू ने पहले ही फोन कर दिया था ।
कर्नल मुखर्जी के दखल की वजह से विक्टोरिया हास्पिटल के सबसे बड़े डाक्टर ने उसे अटैन्ड किया ।
सुनील ने उसे सारी स्थिति समझाई । ज्यों ज्यों वह सुनील की कहानी सुनता गया, वह गम्भीर होता गया ।
“कमाल है” - अन्त में वह बोला - “मेरे चालीस साल मैडिकल प्रैक्टिस में गुजर गये हैं, लेकिन मैंने ऐसे किसी इन्जैक्शन या ऐसी किसी गोली के बारे में नहीं सुना ।”
डाक्टर ने सुनील के कई प्रकार के टैस्ट किये लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला । उसकी जांच के मुताबिक सुनील एकदम स्वस्थ था । उसे किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं थी ।
रामू लौटकर नहीं आया ।
अन्त में जब सुनील के अनुसार दौरा पड़ने में केवल दस मिनट रह गये तो डाक्टर ने उसे एक इन्जैक्शन दिया और फिर उसे एक पलंग पर लिटा कर आक्सीजन लगा दी ।
समय धीरे धीरे गुजरने लगा ।
वातावरण में एक विचित्र प्रकार की टेंशन छाई हुई थी । सब लोग यूं सांस रोके खड़े थे जैसे किसी भी क्षण कोई बम फटने वाला हो ।
प्रत्यक्षत: सुनील एकदम स्वस्थ था ।
फिर एकाएक उसके दिल की धड़कन तेज होने लगी । उसकी नब्ज तेज चलने लगी । आक्सीजन की सप्लाई के बावजूद भी वह यूं तेजी के सांस लेने लगा जैसे उसका दम घूट रहा हो ।
उसका चेहरा पसीने से डूब गया ।
“पानी...” - वह हांफता हुआ बोला ।
एक नर्स ने जल्दी से उसके मुंह में पानी डाला ।
डाक्टर ने फुर्ती से उसे एक और इन्जैक्शन लगाया और स्टेथस्कोप से उसके दिल की धड़कन चैक करने लगा ।
सुनील के दिल की धड़कन की आवाज स्टेथस्कोप के माध्यम से एम्पलीफाई होकर डाक्टर के कानों में तोप के गोलों की गर्जन की तरह बजने लगी ।
सुनील पलंग पर पड़ा मछली की तरह तड़पने लगा ।
डाक्टर के चेहरे पर भी पसीने की बूंदे चुहचुहा आई थी । आक्सीजन और इन्जैक्शनों का उसकी स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा था ।
हर कोई जड़ सा खड़ा सुनील को मरता देख रहा था ।
रामू अभी तक नहीं आया था ।
फिर एकाएक जैसे करिश्मा हो गया ।
धीरे धीरे सुनील की उछलती हुई नब्ज की गति घटने लगी । उसके दिल की धड़कन व्यवस्थित होने लगी । उसकी सांस ठीक चलने लगी ।
तीन मिनट बाद सुनील एकदम यूं स्वस्थ दिखाई देने लगा था जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
“डाक्टर, शायद आपका इन्जैक्शन काम कर गया है ।” - कोई बोला ।
“नहीं” - डाक्टर नकारात्मक ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “वह इन्जैक्शन ऐसा था कि या तो उसका तत्काल असर होता है और या फिर उसका कोई असर होता ही नहीं ।”
“तो फिर सुनील ठीक कैसे हो गया ?”
“मैं खुद हैरान हूं ।”
“यही स्थिति तीन घन्टे बाद फिर आयेगी ।”
“तब यही इन्जैक्शन लगाकर देखेंगे । इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं किया जा सकता ।” - डाक्टर बोला ।
लेकिन तीन घन्टे बाद वैसी स्थिति नहीं आई । तीन घन्टे के बाद निश्चित समय पर सुनील को वैसा दौरा नहीं पड़ा ।
डाक्टर हैरान था ।
सुनील खुद हैरान था ।
फिर सेठ दौलतराम पकड़ा गया तो रहस्य खुला ।
सुनील के मामले में सेठ दौलतराम ने भारी चालाकी से काम लिया था । उसने पहली बार सुनील को जो इन्जैक्शन दिया था, उसी के प्रभाव की वजह से सुनील को तीन घन्टे बाद दौरा पड़ा था जो बाद में सुनील के ख्याल से गोली खाने से ठीक हो गया था लेकिन वास्तव में उस इन्जैक्शन का वह भूकम्पकारी प्रभाव केवल पांच मिनट ही रहता था । उस इन्जेक्शन में यह शक्ति थी कि दिये जाने के तीन घन्टे बाद वह पांच मिनट के लिये आदमी के सिस्टम को इस बुरी तरह से आन्दोलित कर देता था कि जैसे प्राण निकलने वाले हों । पांच मिनट बाद इन्जेक्शन का प्रभाव समाप्त हो जाता था और आदमी अपने आप ठीक हो जाता था । सुनील को जो गोली दी जाती थी, वह उसी दवाई की थी, जिसका इन्जेक्शन था । गोली खाकर सुनील यह समझता था कि वह गोली की वजह से ठीक हुआ है जबकि गोली का काम यह होता था कि वह बगले तीन घन्टे बाद दुबारा सुनील की हालत खराब कर दे ताकि उसके मन में मौत का डर बना रहे और वह सेठ दौलतराम को धोखा देने की कोशिश न करे ।
अन्त में सुनील डाक्टर के इन्जैक्शन की वजह से ठीक नहीं हुआ था बल्कि गोली का भयंकर प्रभाव पांच मिनट बाद समाप्त हो गया था और वह अपने आप ठीक हो गया था । दुबारा क्योंकि उसने वह घातक गोली खाई नहीं इसलिये उसे दौरा भी नहीं पड़ा ।
चौधरी द्वारा भेजी माइक्रो फिल्मों में निहित सूचना के आधार पर सारे देश में चीनीयों के लिए काम करने वाले सेठ दौलतराम जैसे कई एजेन्ट पकड़े गये जिन पर मुकदमे चले और उन्हें लम्बी लम्बी सजायें हो गई ।
आपरेशन डबल एजेन्ट सफल रहा लेकिन उस सफलता की कीमत कदाचित डबल एजेन्ट नगेन्द्र सिंह चौधरी ने अपनी और अपनी बेटी की जान से अदा की ।
समाप्त
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