ठाकुर साहब बहुत खुश थे, आखिर गांव में ऐसी शादी किसी ने ना देखी ना सुनी... पढ़ी लिखी सुन्दर सी बहू साथ में अपार दहेज और क्या चाहिए.....थोड़ा उन्नीस बीस जो था वो छुपा रहा गांव वालों से, नखराती इट्ठलाती बहू का आखिर गृहप्रवेश हो गया, साथ में कांसे, पीतल और फूल के बर्तन से रसोई भर गया, बैठक में सोफ़ा ओर गोल मेज लग गई तो बिस्तर बंद, गद्दा और शीशम की खाट अंदर कमरे में लग गई.... घर पर पहले से मौजूद बड़ी बहू मुंह खोले देखती रह गई....पिछले पांच साल की सेवा की मेवा झट से छुटकी बहू ले गई... सास मुंह पुछाई में लग गई... नई बहू कम ही बोलती बहुत समय तक तो लोग गूंगी समझते रहे पर मुस्करा कर दो चार शब्द बोल ही दिए तो सब निहाल हो उठे।

ठाकुर साहब बैठक में बैठे गांव प्रधान बड़े बेटे और सरकारी विद्यालय के प्रधााध्यापक छोटे बेटे के साथ बैठे थे... सब कुछ सही से सेट हो गया पर सोफ़ा कुछ अड़चन पैदा करने लगा... तीन सीट का सोफ़ा कमरे की जिस दीवाल से लगता तो उसका एक हिस्सा आगे की ओर निकला रहता  तो कुछ समय के लिए सोफ़ा बाहर बरामदे में डाल दिया गया.... बड़ी बहू को ये देख कुछ तो राहत हुई....छोटी बहू मुंह बना बैठी.... सोफ़ा तो उसके साथ आए सामान की जान थी.... घर पर जब देखा दिखाई हुई तो भी वह सोफे पर बैठी थी.... आखिर उन्नीसवीं सदी में सोफ़ा मान सम्मान था.....उसके मायके में उसके घर ही सबसे पहला सोफा आया था....पर यहाँ तो सोफे रखने को जगह ही नही....अब बरामदे में रखा सोफ़ा का पैर चेन से बांधकर सब घर में सोने चले गए।
दूसरे दिन सुबह उठे तो देखा सोफ़ा गायब था....अब तो पूछो मत क्या हड़कंप मचा पूरे गांव भर में.... सोफ़ा गायब होना वो भी ठाकुर साहब का मानो गले से सोन हार चोरी हो गया हो.... सारे कारिंदे को गांव में भगवाया गया पर सुबह से शाम हो गई हाथ कुछ ना लगा... अब तो सब उसके साथ साथ कोई किस्सा कहानी जोड़ने लगे कि भूत लग गया होगा....घर से एकाएक कभी सामान गायब होता है.... बहू के मायके का सामान गया ये सही सगुन नहीं था..... बहू तो सारा दिन कमरे में सुबकती पड़ी रही।
ठाकुर साहब की तो त्योरियां ही चढ़ गई.... उनकी नाक के नीचे से ये क्या हो गया...अब जैसे तैसे रात इसी गम में डूबे सब सोने चले गए।
अगली सुबह ठाकुर साहब उठे भी नहीं कि हल्ला शोर मच गया.... घर के बाहर सोफ़ा देखकर सब पहले डरे फिर ऐंठ गए कि हो न हो ठाकुर साहब की रसूख से सब डर गए होंगे...अब बरामदे में अपनी तय जगह फिर सोफा मौजूद था|
बस पूरा दिन ठाकुर साहब सोफे पर जड़े रहे उतरे भी नहीं... बहू फिर निहाल हो उठी पर रात होते होते अचानक ठाकुर साहब को लकवा मार गया अब तो पूछो मत क्या मातम छा गया घर में... सास दहेज के कारण कुछ ना कह सकी पर बहू के आगमन पर मुंह बना ली।
अगले दिन सेवा करने में बड़ा बेटा पूरा दिन बरामदे में उसी सोफे पर बैठा रहा.... शाम होते होते उसकी छाती पकड़ ली.... घर तो दुख की जद में आ घिरा... छोटे बेटा ने स्कूल छोड़ बरामदे के उसी सोफे पर डेरा जमा लिया आखिर घर को देखने भालने वहीं था अब।
ये तो किसी ने सोचा नहीं था पर हुआ तो सबकी दबी जुबान में कई बातों ने घर कर लिया.... छोटे बेटा को पैर मुड गया..... घर में बैठे बिठाए ऐसी मोच कि दो कदम चलने को मोहताज हो गया.... क्या हो गया... सब हैरान देखते रहे  अब तो बहू बेचारी छुपी छुपी रहने लगी....कोई उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहता और सोफे को छत पर डाल दिया गया....बहू कुछ विरोध भी न कर सकी|
अगले दिन देखा तो सोफ़ा फिर बरामदे में था, सब को तो जैसे सांप सूंघ गया।
अब तो कोई उसमे बैठने की हिम्मत नहीं कर सका।
सास तो मारे गुस्से को उसे सड़क की ओर धकेल कर अन्दर चली अाई.... कुछ समय बाद बाहर आई तो उसे वहीं रखा देख सकते में आ गई  अब तो भूत बाधा के लिए तांत्रिक, पंडित सब बुलाए गए... सबने सोफे पर तंत्र मंत्र किया और  बताया कि कोई अधूरी इच्छा वाला पिशाच है शायद गांव का कोई दलित रहा होगा जिसकी ऐसे सोफे में बैठने की इच्छा रही होगी वही इसपर आन बैठा है और सबको बीमार कर रहा है....ठाकुर साहब को झट से अपने सारे करम याद हो आए कि कैसे खुद ऊँचे स्थान पर बैठ अछूत को वे लतिया देते....मन ही मन कसम खा ली कि अबसे किसी दलित को नहीं लातियाएंगे...पर अब इस अधूरी इच्छा वाले पिशाच का क्या करे.....तो तंत्र मन्त्र से उस पिशाच को बांध दिया गया... दूसरे दिन वाकई सोफ़ा अपनी जगह से नहीं हिला.....सास गुस्से में आकर उसमें बैठ गई... शाम होते होते सास को चक्कर आ गए और वह गिर पड़ी।
बड़ी बहू को तो मौका मिल गया और आनन फानन में सोफे पर केरोसिन छिड़क कर आग लगा दी। छोटी बहू चित्कारती रह गई।
अगले दिन वाकई सब कुछ धीरे धीरे सामान्य होने लगा... सबकी तबीयत सही हो गई अब सोफे की राख बगिया में डाल दी गई।
सब जब सहज हो गया तो छोटी बहू चुपके से बगिया गई और सोफे का बचा पावा घर के कोने में छुपा बैठी... ये सोचकर कि अगला सोफ़ा बनवाते वक़्त कहीं जुड़वा देगी आखिर मायके की याद आसानी से कैसे जाने दे|
अब रात को अक्सर घर के बाहर बरामदे में सोफे की जगह का सामान अपने आप किनारे सरक जाता और वहां सबको राख पड़ी दिखती।।।