“हूं।” उसकी सारी कहानी सुनने के बाद इंस्पेक्टर देशमुख गर्दन हिलाता हुआ बोला—“मिस्टर सिद्धार्थ बाली लंदन से कब लौटेंगे?"
“कम-से-कम दस दिन तो लगेंगे ही।” पूनम ने बताया। इंस्पेक्टर देशमुख ने पूनम के भोले-भाले खूबसूरत चेहरे को देखा—जिस पर अपनी कहानी सुनाने के बाद हल्की-सी उदासी नजर आ रही थी।
“आइए मिसेज बाली, अब जरा उन महाशय की तबीयत दुरुस्त करते हैं।” कहता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख खड़ा हो गया।
तेज-तेज कदम रखता हुआ वह कमरे से निकलकर सीढ़ियां उतरने लगा—पूनम भी यंत्रचालित-सी उसके पीछे बढ़ रही थी।
इंस्पेक्टर देशमुख जिस समय हॉल में पहुंचा तो सबकी उत्सुक नजरें उसी की तरफ थीं—जैसे वह किसी दिलचस्प प्रोग्राम के स्टेज का परदा हटाने जा रहा हो।
लेकिन वह बिना किसी की तरफ देखे रस्सियों से बंधे व्यक्ति की तरफ बढ़ गया और बिना किसी भूमिका के उसका गिरेबान पकड़कर बुरी तरह झंझोड़ता हुआ बोला—“मिस्टर, अब तुम केवल इतना बता दो कि तुम्हारे इस गंदे नाटक के पीछे मकसद क्या है—किसलिए तुम मिसेज बाली का पति होने का दावा कर रहे हो—अगर अब एक लफ्ज भी झूठ बोला तो ऐसी खाल उधेड़ूंगा कि खुद को पहचान भी नहीं पाओगे।"
इंस्पेक्टर देशमुख का खूंखार रूप देखकर एक क्षण के लिए तो आगंतुक सकपका गया—उसके चेहरे पर घबराहट के भाव स्पष्ट नजर आने लगे—लेकिन अगले क्षण वह अपने-आपको काफी संयत करके बोला—“ इंस्पेक्टर, पहले आप जरा अपने बात करने का ढंग ठीक कीजिए—मैं कोई जेबकतरा या सटोरिया नहीं हूं—इनकम टैक्स पेअर इज्जतदार आदमी हूं।"
“इंस्पेक्टर देशमुख का बात करने का ढंग मुजरिम के साथ एक जैसा ही होता है—चाहे वह रिक्शा ढोने काला मजदूर हो या विदेशी गाड़ियों में चलने वाला इनकम टैक्स पेअर आदमी। समझे तुम?” इंस्पेक्टर देशमुख उसका गिरेबान छोड़ कर इस बार बालों को झटका देता हुआ बोला।
“मैं मुजरिम नहीं हूं, इंस्पेक्टर!” स्वर में किसी तरह का खौफ नहीं था—“इसलिए मेरे साथ आपका यह व्यवहार ठीक नहीं है।”
“मुजरिम तो तुम उस समय ही बन चुके हो, जिस समय तुमने यह दावा पेश किया कि मिसेज बाली तुम्हारी पत्नी हैं।” कहते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने उसके बाल और अधिक सख्ती से खींचे।
आगंतुक पीड़ा से बुरी तरह बिलबिला उठा।
साथ ही चीखा भी—“यह दावा तो मैं इस समय भी कर रहा हूं इंस्पेक्टर कि यह जलील औरत मेरी पत्नी...।”
उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही इंस्पेक्टर देशमुख का दायां हाथ ‘चटाक’ की आवाज के साथ उसके गाल पर पड़ा।
हाथ इतनी ताकत से पड़ा था कि आगंतुक का गाल बुरी तरह झनझना उठा—इंस्पेक्टर देशमुख के हाथ की छाप उसके गाल पर छप गई।
“तू यह दावा इस समय तक केवल इसलिए कर रहा है—क्योंकि अभी तूने इंस्पेक्टर देशमुख की मार नहीं देखी, बेटे!” गुस्से से इंस्पेक्टर देशमुख दहाड़ा।
“मैं तुमसे पहले भी कह चुका हूं, इंस्पेक्टर, कि तुम्हारी मार से केवल मुजरिम घबराएगा—और मैं मुजरिम नहीं हूं।” आगंतुक एक बार फिर चीखा।
“लगता है, तू शराफत से कुछ नहीं बताएगा।” इंस्पेक्टर देशमुख का चेहरा सुर्ख होने लगा—आँखों से आग बरसने लगी।
लेकिन आगंतुक के चेहरे पर खौफ जैसे कोई भाव नजर नहीं आए—हां, वह उत्तेजित अवश्य नजर आ रहा था। बोला—“इंस्पेक्टर, इस समय मैं तुम्हारे कब्जे में हूं, चाहे जो कर सकते हो तुम—लेकिन मेरी इतनी बात ज़रूर याद रखना कि बाद में तुम्हें मेरे साथ किए गए इस गंदे व्यवहार के लिए पछताना पड़ेगा।”
“तू मुझे धमकी दे रहा है?”
“नहीं इंस्पेक्टर!" आगंतुक ने कहा—“धमकी नहीं, एक सच्चाई बता रहा हूं जिसका एहसास तुम इस समय नहीं कर सकते—क्योंकि तुम्हारे दिमाग पर इस समय केवल मार-पीट का भूत सवार है—तुम इस समय जेबकतरों, शराबियों और जुएबाजों पर लागू होने वाला ‘चीप’ पुलिसिया अंदाज दिखा रहे हो— अगर तुम यह समझ रहे हो कि अपने इस ढंग से तुम इस मामले को सुलझा लोगे तो यह तुम्हारी सबसे बड़ी भूल साबित होगी।”
आगंतुक के बेखौफ अंदाज और शब्दों की परिपक्वता ने इंस्पेक्टर देशमुख को कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।
उसे चुप देखकर आगंतुक ने पुन: कहा—“तुम्हारे यहां पहुंचने से पहले और इन देवी जी को ऊपर ले जाने तक मैंने तुम्हारे इस रूप की कल्पना नहीं की थी—मेरी कल्पना में तो पुलिस इंस्पेक्टर के रूप में वह खुर्राट और घाघ इंस्पेक्टर था, जो एक ही नजर में रेत के ढेर से राई का दाना निकाल ले—लेकिन तुम तो छोटे-मोटे जुर्म में बंद होने वाला मुजरिमों को हवालात में हवाई जहाज बनाने वाले साधारण-से पुलिस इंस्पेक्टर निकले।”
“तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत है—जो यह साबित कर सके कि यह तुम्हारी पत्नी है?” इंस्पेक्टर देशमुख ने पूनम की तरफ इशारा करते हुए पूछा।
इंस्पेक्टर देशमुख के पूछने का अंदाज कुछ ऐसा था है—जैसे वह अब आगंतुक को अपनी इन्वेस्टिगेशऩ दिखाना चाहता हो।
आगंतुक एक विशेष अंदाज में मुस्कराया। बोला—“सबूत तो बहुत हैं इंस्पेक्टर—लेकिन उन्हें देखने की आपने जरूरत ही कहां समझी है?”
"क्या सबूत है?”
“मेरे कोट की अंदर वाली जेब में हाथ दीजिए।”
“क्या मतलब?” हल्के-से चौंका इंस्पेक्टर देशमुख।
“घबराओ मत, इंस्पेक्टर!” आगंतुक ने मुस्कराते हुए कहा—“ मैं तुम पर अपनी जेब साफ करने का इल्जाम नहीं लगाऊंगा।"
"जेब में क्या है?"
“आप जरा निकालिए तो सही, इंस्पेक्टर—कुछ-न-कुछ तो होगा ही—अगर आप तीनों ने मुझे रस्सियों से न बांधा होता तो यह कष्ट आपको न देता—खुद ही निकालकर आपके सामने पेश कर देता।”
उसकी विवशता को समझते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने कोट की अंदर वाली जेब में हाथ दिया तो एक पर्स उसके हाथ में आ गया—पर्स को उसके सामने करता हुआ वह बोला—“इसमें तो केवल पर्स है।”
“जी हां।” आगंतुक ने बड़ी शालीनता से कहा— “मैंने इसे ही निकलवाया है—अब आप ज़रा इसे खोलिए।”
उलझन भरे अंदाज़ में इंस्पेक्टर देशमुख ने पर्स खोला।
खोलते ही वह बुरी तरह चौंक पड़ा—जैसे उसने किसी बच्चे के हाथ में जहरीला भयंकर सांप देख लिया हो।
उसकी नजर पर्स के एक कोने में पारदर्शी प्लास्टिक के नीचे लगे एक छोटे-से फोटो पर स्थिर हो गई।
इसके साथ ही वह मशीनी अंदाज में पूनम को तरफ घूमा। बोला—“मिसेज पूनम, आपका फोटो इस व्यक्ति के साथ और इसके पर्स में कैसे?”
“क्या.....!” अब चौंकने की बारी पूनम की थी—“मेरा फोटो इसके साथ—यह नहीं हो सकता, इंस्पेक्टर!”
“लेकिन यह हो गया है।” पर्स में लगा फोटो उसके सामने करता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख बोला—“देखिए इस फोटो को।”
फोटो को देखकर पूनम की आँखों में गहन आश्चर्य उभर आया—वह उसे और अधिक ध्यान से देखती हुई बोली—“फोटो तो मेरा ही लगता है—लेकिन भला इसके साथ मेरे फोटो का क्या मतलब—मैंने तो इसे आज देखा ही पहली बार है।”
“अच्छी तरह याद कीजिए मिसेज पूनम कि—आप इससे किसी पार्टी, बाजार या किसी हिल स्टेशन वगैरह पर क्षणिक भी मिली हों?”
“नहीं, ऐसा कभी नहीं हुआ।” वह दृढ़ता से बोली—“क्षणिक भी मिलना तो बहुत दूर की बात है, इंस्पेक्टर—मैंने आज से पहले कभी इसकी शक्ल तक नहीं देखी—जरूर यह इसकी कोई चाल है।”
"मिसेज पूनम, पुलिस इसकी उसी चाल तक पहुंचना चाहती है।” इंस्पेक्टर देशमुख सोचपूर्ण मुद्रा में बोला।
“इंस्पेक्टर, इसके पास यह छोटा-सा एक फोटो ही है—जिसे यह किसी तरह मेरा स्नैप हासिल करके, आधुनिक ट्रिक फोटोग्राफी से अपने स्नैप के साथ जोड़ सकता है, जबकि मेरे पास एलबम के अलावा हम पति-पत्नी के साथ-साथ खिंचे ढेर सारे फोटो हैं।”
"क्या आप अपनी एलबम दिखा सकती हैं?”
“श्योर।” कहकर वह तेजी से बेडरूम की तरफ बढ़ गई। पूनम के जाने के बाद वातावरण में एक सन्नाटा-सा खिंच गया—जिसे तोड़ने का श्रेय मिला इंस्पेक्टर देशमुख को।
वह खाली समय का उपयोग करता हुआ आगंतुक की तरफ देखकर बोल—“क्या नाम है तुम्हारा?”
“ललित—ललित जाखड़।”
“कहां रहते हो?”
"शक्तिनगर।”
"यहां कैसे आए थे?"
आगंतुक, जिसका नाम ललित था, बोला—“मैं एक साप्ताहिक विज्ञान पत्रिका ‘विशेष विज्ञान समाचार’ का रिपोर्टर हूं। उसके लिए मिस्टर सिद्धार्थ बाली का एक इंटरव्यू लेने आया था—लेकिन मिस्टर सिद्धार्थ बाली तो मिले नहीं—हां, अपनी चार महीने से गायब पत्नी मिसेज सिद्धार्थ के रूप में अवश्य मिल गई।"
अभी इंस्पेक्टर देशमुख उससे कोई और केवल करना चाहता था—तभी पूनम वापस हॉल में आ गई।
लेकिन उसके दोनों हाथ खाली थे।
“क्या हुआ?” इंस्पेक्टर देशमुख उसके खाली हाथों की तरफ देखता हुआ बोला।
पूनम के जवाब देने से पहले ही ललित व्यंग्य-भरे अंदाज में मुस्कराता हुआ बोला—“इंस्पेक्टर, एलबम खो गई है या फिर चोरी हो गई है।”
“ इस समय मिल नहीं पा रही है—शायद वह उसे अपनी सेफ में रखकर चले गए है।” कहते हुए पूनम के चेहरे पर परेशानी के-से भाव नजर अपने लगे, जैसे वह एलबम के न मिलने की वजह से काकी चिंतित हो। “ बहानेबाजी देखी आपने इंस्पेक्टर।” ललित ने कहा—“लेकिन गलती इन ‘आधुनिक’ देवीजी की भी क्या है—इन्होंने कभी यह थोड़े सोचा होगा कि मैं इन तक संयोग से पहुंच भी सकता हूं—वरना पहले से ही ये अपनी नकली शादी की एक एलबम तैयार रखतीं।”
"हमारी एलबम असली शादी की है।" पूनम गुस्से में चीखी।
“जब सबूतों की बात आ जाए तो सिर्फ कह देने से काम नहीं चला करता—अगर चल सकता होता तो अब तक इन लोगों ने तुम्हें मेरे हवाले कर दिया होता।”
"खैर मिस्टर ललित, यह तो कोई विशेष बात नहीं हुई—घर में कभी ऐसा हो भी जाता है कि कोई चीज नहीं भी मिलती—भले ही वह सबकी आँखों के आमने ही क्यों न रखी हो।” इंस्पेक्टर देशमुख चहलकदमी करता हुआ बोला—“ तुम कोई और सबूत पेश कर सकते हो?”
फोटो वाली घटना के बाद इंस्पेक्टर देशमुख का रुख ललित की तरफ से काफी बदल गया था—अब वह उससे नम्र और सभ्य लहजे में बात कर रहा था।
“इंस्पेक्टर, इन देवीजी ने पति बदलने में तो बहुत जल्दी की—लेकिन गलती से अपने गले में पड़े सुहाग की निशानी मंगलसूत्र को बदलने में जल्दी नहीं की—या फिर यूं कहिए, बीस ग्राम सोने का लालच मार गया इनको—मंगलसूत्र में लटके सोने के लॉकेट की वजह से यह इनके गले में पड़ा रह गया—यही लालच अब इनके लिए दुखदायी होने जा रहा है।” पूनम के गले में पड़े मंगलसूत्र को घूरता हुआ ललित बोला।
“तुम कहना क्या चाहते हो?”
“इनसे पूछा जाए इंस्पेक्टर कि गले में पड़ा मंगलसूत्र इन्हें किसने दिया?”
इंस्पेक्टर देशमुख ने सवालिया नजरों से पूनम की तरफ देखा।
“य...यह मुझे मेरे पति ने दिया है।” कहती हुई पूनम कुछ हड़बड़ा-सी गई।
“कौन-से पति ने दिया है?” ललित ने व्यंग्य-भरे स्वर में पूछा।
“जुबान संभालकर बात करो।” पूनम एकदम गुर्रा उठी—“मेरे कोई दस-बीस पति नहीं हैं।”
“दस-बीस न सही, लेकिन इस समय दो पति तो हो रहे हैं।" ललित ने मुस्कराते हुए कहा—“सबके सामने जरा अपने उस पति का नाम क्लीयर कीजिए—जिसने तुम्हें यह मंगलसूत्र पहनाया है।”
ललित को खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए पूनम बोली—“मिस्टर सिद्धार्थ बाली।”
“इंस्पेक्टर, अब आप जरा इनसे यह मंगलसूत्र लीजिए।”
“न....नहीं—मैं अपना मंगलसूत्र नहीं दूंगी।”
"क्यों—क्या डर है तुम्हें?”
“मैंने कहा न कि मैं अपना मंगलसूत्र नहीं दूंगी।” पूनम ने निर्णायक स्वर में कहा।
"देखा आपने, इंस्पेक्टर?"
“मिसेज बाली, आपसे यह मंगलसूत्र सिर्फ देखने के लिए मांगा जा रहा है—पुलिस देखना चाहती है कि इससे मिस्टर ललित क्या साबित करना चाहते हैं?” इंस्पेक्टर देशमुख ने दोनों के बीच हस्तक्षेप करते हुए कहा।
“नहीं इंस्पेक्टर, मैं अपना मंगलसूत्र हरगिज नहीं दिखा सकती।” कहते हुए पूनम के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।
“क्यों?” इंस्पेक्टर देशमुख ने आश्चर्य से पूछा।
“मेरी कोई व्यक्तिगत मजबूरी है इंस्पेक्टर।”
“कैसी मजबूरी?”
“मैं ये किसी को नहीं बता सकती।”
“मंगलसूत्र दिखाने में तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं हो सकती मिसेज, बाली।” इंस्पेक्टर देशमुख ने शंकित स्वर में कहा—“इसे दिखाने के नाम पर आप इतना घबरा क्यों रही हैं—देखिए, आपके माथे पर कितना पसीना आ गया है!”
“इनकी उस मजबूरी के बारे में मैं बताता हूं, इंस्पेक्टर!” ललित जोश भरे स्वर में चीखा—“क्योंकि यह अच्छी तरह जानती हैं कि इनका मंगलसूत्र किसी और के हाथ में जाते ही इनका मिसेज सिद्धार्थ बाली बनी रहने का नाटक खत्म हो जाएगा—लोगों की निगाहों में इनकी ‘सती-सावित्री’ वाली इमेज खत्म हो जाएगी—और मैं जो कह रहा हूं, वह एक कठोर सच्चाई के रूप में सबके सामने आ जाएगा—है न इंस्पेक्टर इनकी जायज मजबूरी?”
“यह बात नहीं है।” पूनम ने जोरदार प्रतिरोध किया।
“तो फिर बात क्या है?” इंस्पेक्टर देशमुख ने कठोर लहजे में पूछा।
“म...मैं नहीं बता सकती।”
“मिसेज पूनम, इस केस में पुलिस के लिए यह आवश्यक और अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया है कि वह आपका मंगलसूत्र देखे।” इंस्पेक्टर देशमुख का स्वर पूनम के प्रति निरंतर कठोर होता जा रहा था।
पूनम एकदम गिड़गिड़ा उठी—“न...नहीं इंस्पेक्टर—प्लीज, मुझे अपना मंगलसूत्र दिखाने के लिए मजबूर मत कीजिए—म...मैं आपके ह....हाथ जोड़ रही हूं—प...प्लीज इंस्पेक्टर...!”
सब लोग आश्चर्य से पूनम को देख रहे थे।
“हाथ जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है मिस पूनम—सिर्फ अपना मंगलसूत्र दिखा दीजिए।”
“ओफ्फो!” पूनम ने लगभग रो देने वाले अंदाज में कहा—“आप समझने की कोशिश क्यों नहीं करते इंस्पेक्टर, इसे न दिखाने के पीछे मेरी कोई बहुत बड़ी मजबूरी है।”
“अब आप मंगलसूत्र न दिखाकर पुलिस के काम में बाधा डालने की कोशिश कर रही हैं। ऐसी स्थिति में पुलिस को आपके प्रति अपना नर्म रवैया बदलना पड़ सकता है।” इंस्पेक्टर देशमुख ने धमकी दी।
“इ...इंस्पेक्टर… !”
“अब आप अपना मंगलसूत्र खुद देती हैं या फिर पुलिस जबरदस्ती हासिल करे?”
अचानक पूनम ने गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए कहा—“आपको इस बात का कोई अधिकार नहीं है, इंस्पेक्टर कि आप जबरदस्ती किसी की कोई चीज देखें।"
“अधिकार है मिसेज पूनम!” इंस्पेक्टर देशमुख उसके बदले हुए रूप को देखकर मुस्कराता हुआ बोला—“पुलिस शक के आधार पर किसी की भी तलाशी ले सकती है—और आप मंगलसूत्र दिखाने में जितना विरोध और देर कर रही हैं—उतनी ही आप पुलिस की निगाहों में संदिग्ध होती जा रही हैं—अच्छा यही होगा कि आप तुरंत इसे दिखा दें।”
पूनम परेशान-सी होकर कुछ सोचने लगी, जैसे अपने सामने आई इस अजीबो-गरीब मुसीबत से बचने का कोई रास्ता ढूंढ रही हो।
करीब एक मिनट सोचते रहने के बाद वह बोली—“क्या आप मुझे इतनी छूट दे सकते हैं कि मैं पांच मिनट के लिए अपने बेडरूम में चली जाऊं—इसके बाद अपना मंगलसूत्र बिना किसी विरोध के आपको सौंप दूंगी।”
“नहीं इंस्पेक्टर!” रस्सियों से बंधा ललित चिल्लाया—“ऐसी इजाजत हरगिज़ मत देना—वरना यह उस सबूत को खत्म कर देगी—जो मैं आप सबको दिखाना चाहता हूं।”
“आप यकीन कीजिए इंस्पेक्टर—इसमें ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे इस व्यक्ति के झूठे और बेबुनियाद दावे को कोई मदद मिल सके।” पूनम ने विनती भरे स्वर में कहा।
“तो फिर आप इसे दिखाने में हिचक क्यों रही हैं, मिसेज बाली?” इंस्पेक्टर देशमुख ने नजरों से पूनम के चेहरे का ‘एक्सरे’ करते हुए पूछा।
“उफ्फ—इंस्पेक्टर, आप… ।"
लेकिन उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही—
“मिस मंजु!” लेडी सब-इंस्पेक्टर की तरफ पलटकर इंस्पेक्टर देशमुख बोला—“मिसेज बाली के गले से मंगलसूत्र निकाल लो।”
“नहीं....!” पीछे हटती हुई पूनम चीखी—“यह आप मेरे साथ ठीक नहीं कर रहे हैं इंस्पेक्टर—म....मैं आपकी शिकायत करूंगी… ।"
घबराई हुई पूनम अपने मंगलसूत्र को मुट्ठी में दबाए इस तरह पीछे हट रही थी—जैसे किसी गरीब व्यक्ति की जिन्दगी-भर की कमाई कोई छीनने का प्रयास कर रहा हो। लेडी सब-इंस्पेक्टर मिस मंजु मेहता उसकी तरफ बढ़ती हुई बोली—“मिसेज बाली! आपको अपना मंगलसूत्र दिखाने से इंकार नहीं करना चाहिए—मैं नहीं समझती कि इससे आपको कोई नुकसान होगा।”
“अ...आप गलत समझ रही हैं, मिस मेहता—मैं इसे दिखाने के लिए इसलिए इंकार नहीं कर रही कि मुझे इसे दिखाने से अपने किसी नुकसान का डर है—मंगलसूत्र न दिखाने की मेरी वजह कुछ और है—बहुत-सी बातें फायदे-नुकसान से अलग हटकर भी होती हैं।” गिड़गिड़ाते हुए कहा पूनम ने।
एकाएक इंस्पेक्टर देशमुख झुंझलाकर बोला—“समय खराब मत करो मिस मंजु, मिसेज बाली के गले से फौरन मंगलसूत्र निकाल लो—हम बातों के जरिए इनसे काफी कह चुके हैं।”
“अभी लीजिए सर !” कहने के साथ ही मिस मंजु चीते जैसी फुर्ती के साथ पूनम की तरफ झपटी।
“मैं अपना मंगलसूत्र नहीं दूंगी।” अपनी तरफ से पूनम ने जोरदार प्रतिरोध किया।
दोनों हाथों से गले में पड़े मंगलसूत्र के लॉकेट को सख्ती से भींच लिया उसने।
लेकिन यह उसका आखिरी प्रतिरोध साबित हुआ।
क्योंकि दिल्ली पुलिस के ‘विशेष अपराध दस्ते’ की चुस्त सब-इंस्पेक्टर मिस मंजु मेहता के सामने उसका प्रतिरोध कितनी देर चलना था?
मुश्किल से आधे मिनट में पूनम के पूर्ण प्रतिरोध के बावजूद उसके गले में पड़ा मंगलसूत्र मिस मेहता के हाथ में था।
“लीजिए सर!” वह उसे इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ बढ़ाती हुई बोली।
“अभी इसे अपने हाथ में ही पकड़े रहो, मिस मंजु!” कहने के साथ ही वह ललित की तरफ घूमकर बोला—“ मिस्टर, अब तुम बोलो, इससे क्या साबित करना चाहते हो तुम?”
ललित के होठों पर ऐसी मुस्कराहट थी, जैसे उसने कोई बहुत बड़ी बाजी जीत ली हो। बोला—“इंस्पेक्टर, इसमें नीचे लटक रहे सोने के लॉकेट को उसके किनारे पर अंगूठा लगाकर खोलिए।”
पूनम ने अपना सिर दीवार से टिकाकर उस चूहे की तरह अपनी आंखें बंद कर लीं, जो बिल्ली को अपनी तरफ झपटता देखकर बचने का कोई रास्ता न पाकर जहां-का-तहां अपनी आंखें बंद करके सोचता है कि शायद इसी तरह बच जाए।
इंस्पेक्टर देशमुख ने मिस मंजु की तरफ इस प्रकार देखा, जैसे उसे आज्ञा दे रहा हो कि वह ललित के बताए अनुसार उसे खोले।
मिस मंजु ने तुरंत उसके मूक आदेश का पालन किया।
उसके बाद!
लॉकेट के खुलने पर मिस मंजु मेहता इस तरह उछली, जैसे उसके आसपास कोई भयानक बम फटा हो।
वह फटी-फटी आँखों से कभी उस लॉकेट को देखती तो कभी ललित को।
“तुम इस तरह चौंक क्यों गईं, मिस मंजु?” उसकी तरफ बढ़ते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने जिज्ञासा भरे स्वर में पूछा—“ क्या है इसके अंदर?”
सकते की-सी हालत में मिस मंजु ने वह लॉकेट इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ बढ़ा दिया।
बोली कुछ नहीं वह।
उस लॉकेट को देखने के बाद अब उछलने की बारी इंस्पेक्टर देशमुख की थी।
वह आश्चर्य भरी नजरों से ललित और पूनम की तरफ बारी-बारी से देख रहा था।
ललित के होंठों पर विजयी मुस्कराहट थी।
लेकिन पूनम का चेहरा जर्द पड़ता चला गया—चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं— ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने भरे बाजार में उसे नंगा कर दिया हो।
मंगलसूत्र के उस लॉकेट ने वातावरण में एक धमाका-सा किया।
वहां उपस्थित हर व्यक्ति उस लॉकेट को देख चुका था—और लॉकेट को देखने के बाद हर व्यक्ति ने चौंककर ललित की तरफ और फिर शंकित नजरों से पूनम की तरफ देखा था।
उनके चौंकने का कारण था—लॉकेट में उसके आकार का ही कटिंग किया हुआ छोटा-सा फोटो। उस फोटो को पहचानने में किसी को एक क्षण के लिए भी कोई दिक्कत पेश नहीं आई।
वह ललित का फोटो था।
पूनम सहमे हुए अंदाज में सबकी नजरों का सामना कर रही थी।
“ओह, तो मंगलसूत्र न दिखाने की आपकी मजबूरी यह थी मिसेज पूनम?” व्यंग्यपूवर्क कहा इंस्पेक्टर देशमुख ने।
पूनम कुछ नहीं बोली—खामोशी के साथ चेहरा झुकाए अपने पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदती रही।
“मिसेज पूनम, आप इस फोटो के विषय में कुछ नहीं कहेंगी?” मंगलसूत्र का लॉकेट उसके सामने करते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा।
फोटो का जिक्र आते ही पूनम को ऐसे लगा, जैसे किसी ने उसे एक बार फिर भरे बाजार में नंगा कर दिया हो।
लॉकेट की तरफ देखे बिना ही उसने कहा—“इंस्पेक्टर, मैं इस फोटो के न दिखाने के लिए ही तो मंगलसूत्र देने से इंकार कर रही थी।”
“क्या मतलब?” इंस्पेक्टर देशमुख बुरी तरह चौंका।
"आप मेरी मजबूरी अब अच्छी तरह समझ गए होंगे।”
पूनम ने सिर झुकाए हुए झेंपे स्वर में कहा।
इंस्पेक्टर देशमुख को अपनी खोपड़ी अंतरिक्ष में तैरती महसूस हुई। दिमाग बुरी तरह ‘भिन्ना’ गया—उसे बड़ा अजीब-सा लगा कि कुछ क्षण पहले तक ललित की बात का चीख-चीखकर विरोध करने वाली पूनम ने यह बात कितनी आसानी से स्वीकार कर ली थी कि वह इस फोटो को न दिखाने की वजह से ही इतना विरोध कर रही थी।
“इसका मतलब यह है, मिसेज पूनम—कि मिस्टर ललित जो दावा कर रहे हैं, वह एकदम सच है?”
पूनम ने तुरंत अपना चेहरा उठाकर इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ देखा और चौंके हुए स्वर में बोली—“ इंस्पेक्टर, मेरे लॉकेट के इस फोटो से इस व्यक्ति की बात का क्या सबंध?”
“क्या बेवकूफी-भरी बात कर रही हैं आप?” इंस्पेक्टर देशमुख झुंझलाकर बोला।
“बेवकूफी-भरी बात आप कर...।” कहते हुए उसकी नजर अपने लॉकेट की तरफ चली गई।
यही वह क्षण था, जब उसका पूरा अस्तित्व कांप गया—चेहरा एकदम ‘फक्क’ पड़ गया था।
काटो तो खून नहीं।
एक क्षण में उसका चेहरा निचुड़े हुए सफेद कपड़े की तरह नजर आने लगा।
आँखों के सामने अंधेरा छाता चला गया।
अब उसे इंस्पेक्टर देशमुख की हथेली पर लटका अपना मंगलसूत्र ऐसा नजर आ रहा था, जैसे भयानक सर्प लटक रहा हो।
¶¶
"मिस्टर ललित को खोल दो, अनोखेलाल!” इंस्पेक्टर देशमुख ने अनोखेलाल को आदेश दिया।
उसने अपनी तोंद के नीचे खिसकी पैंट ऊपर करते हुए तुरंत आदेश का पालन किया।
रस्सियों से खुलकर ललित ने राहत की सांस ली।
जेब से ‘फोर स्क्वायर’ का पैकेट और माचिस निकालकर उसने एक सिगरेट सुलगाई।
पैकेट और माचिस इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ बढ़ाते हुए पूछा उसने—“आप सिगरेट लेंगे, इंस्पेक्टर?”
“नो,थैंक्स—मैं पीता नहीं।”
ललित ने पैकेट और माचिस पुन: अपनी जेब में रख ली।
इंस्पेक्टर देशमुख ने पूनम को घूरते हुए उसके चारों तरफ चक्कर लगाने के बाद पूछा—“अब आपको इस फोटो के विषय में कुछ कहना है, मैडम?”
“मेरे लॉकेट में यह फोटो नहीं था, इंस्पेक्टर!”
“अभी एक क्षण पहले तो आपने स्वीकार किया था कि इस फोटो की वजह से ही आप अपना मंगलसूत्र देने से इंकार कर रही थीं—और अब आप कह रही हैं कि यह फोटो… ।”
“मैंने जिस फोटो के विषय में यह बात कही थी—वह दूसरा फोटो था, इंस्पेक्टर!” पूनम परेशान-सी होकर बोली।
“फिर आपके मंगलसूत्र में मिस्टर ललित का फोटो कैसे आ गया?” इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा—“क्या मिस मेहता ने या मैंने यह फोटो आपके लॉकेट में रख दिया—क्योंकि अभी यह मंगलसूत्र मिस मंजु या मेरे अलावा किसी और के हाथों में नहीं आया?”
"यह तो मैं नहीं जानती इंस्पेक्टर, कि मेरे लॉकेट में इस व्यक्ति का फोटो कैसे आ गया—लेकिन हां, यह जरूर लग रहा है कि मेरे विरुद्ध कोई भयानक साजिश रची जा रही है।”
"तू यही कहना चाहती है न खुदगर्ज औरत कि वह भयानक साजिश मैं रच रहा हूं।” ललित एकदम भड़ककर बोला—“तुझे अपनी पत्नी कहने का दावा मैं किसी प्रतिज्ञा के तहत कर रहा हूं?”
“मिस्टर ललित, जब तक पूरी तरह कुछ साबित न हो जाए—तब तक आप मिसेज पूनम के लिए किसी किस्म के अपशब्द का प्रयोग नहीं करेंगे।” इंस्पेक्टर देशमुख ने ललित को चेतावनी दी।
“सॉरी, इंस्पेक्टर!” ललित ने सामान्य होकर कहा—“मुझे इनके सफेद झूठ ने उत्तेजित कर दिया था।”
“तो मैडम, आप यह कहना चाहती हैं कि आपकी जानकारी में आपके मंगलसूत्र में यह फोटो नहीं था—कोई दूसरा फोटो था?” पूनम की तरफ देखकर इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा।
“जी।”
"क्या आप यह बता सकती हैं कि वह दूसरा फोटो किसका था?”
“मेरा और मिस्टर सिद्धार्थ का।”
“फिर आप उसे दिखाने में इतना विरोध क्यों कर रही थीं?”
प्रत्युत्तर में पूनम खामोश रही—जैसे वह इस बात का जवाब न देना चाहती हो।
“अभी मैं आपको एक चीज और दिखाना चाहता हूं, इंस्पेक्टर!”
सवालिया नजरों से इंस्पेक्टर देशमुख ने ललित की तरफ देखा।
जबकि हवलदार अनोखेलाल, साथ आए अन्य दो कांस्टेबल और हर व्यक्ति ललित की तरफ इस तरह देख रहा था, मानो वह कोई मदारी हो, जो अपने मुंह से ढेर सारे बड़े-बड़े लोहे के गोले निकालने वाला हो।
“इंस्पेक्टर, अब आप जरा इस लॉकेट की पीठ पर देखिए, क्या लिखा है?”
उत्सुकता-भरे अंदाज में इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे पलटकर देखा।
एक नजर से देखने में तो वह बिल्कुल सपाट नजर आया—लेकिन उसे आंखों के पास ले जाकर बहुत ध्यान से देखने पर चमका कि सुई जैसी किसी नुकीली चीज से इंगलिश के कैपिटल अक्षरों में 'ललित' लिखा हुआ था।
पढ़कर एक बार फिर इंस्पेक्टर देशमुख बुरी तरह चौंका।
“अब मैं आपसे एक सवाल करता हूं, मैडम!” पूनम की तरफ मुखातिब होकर इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा—“आपके मंगलसूत्र में मिस्टर ललित का फोटो और नाम कहां से आ गए?”
“मुझे नहीं मालूम—मुझे नहीं मालूम।” कहती हुई पूनम रो पड़ी—“ लेकिन हां, अब इतना जरूर लग रहा है कि यह व्यक्ति हमारी पारिवारिक जिन्दगी को तबाह करने के लिए कोई बहुत बड़ा खेल खेल रहा है।”
“इंस्पेक्टर, अब मैं अपने इस खेल का एक और गोल करना चाहता हूं।”
“क्या?”
“ कथित मिसेज सिद्धार्थ बाली से यह पूछा जाए कि क्या इनके पास कोई लाल रंग का वी.आई.पी. ब्रीफकेस है?”
“ह...हां, है।” कहते हुए पूनम का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
“उसे उठाकर ला सकती हो?”
किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में पूनम खड़ी रह गई।
“इंस्पेक्टर, जरा इनसे आप लाल रंग का वी.आई.पी. ब्रीफकेस मंगवाइए।” ललित ने इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ देखकर कहा।
“मिसेज बाली...।”
इंस्पेक्टर देशमुख का वाक्य पूरा होने से पहले ही पूनम एक बार फिर अपने बेडरूम की तरफ बढ़ गई।
और लगभग दो मिनट बाद जब लौटी तो उसके हाथ में लाल रंग का एक मीडियम साइज का वी.आई.पी. ब्रीफकेस था।
उसने वह ब्रीफकेस इंस्पेक्टर देशमुख को सौंप दिया।
इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे ललित की तरफ बढ़ा दिया—ललित उसे लेकर सोफे पर बैठ गया—ब्रीफकेस को उसने सेंटर टेबल पर रखकर खोला।
अंदर से ब्रीफकेस खाली था—शायद पूनम उसे खाली करके लाई थी।
ललित जिस सोफे पर बैठा था—उसके चारों तरफ अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई थी—जैसे वह कोई जादू का खेल दिखाने जा रहा हो।
ललित बड़े इत्मीनान से उसके नीचे लगे कपड़े के ‘कवर’ की सिलाई फाड़ रहा था।
किसी के भी द्वारा उसके कार्य में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया।
लगभग एक मिनट बाद ललित ने कवर की सिलाई फाड़कर उसमें से एक कार्ड निकाला—वैडिंग कार्ड।
“लीजिए इंस्पेक्टर, यह है हमारी शादी का कार्ड—यह एक कार्ड मैंने ‘स्वीट मैमोरी’ के लिए इस ब्रीफकेस में रख दिया था।” ब्रीफकेस से निकले उस वैडिंग कार्ड को इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ बढ़ाता हुआ ललित हल्की-सी मुस्कराहट के साथ बोला—“लेकिन मैं क्या जानता था कि एक दिन यह कार्ड स्वीट मैमोरी की जगह मुझे अपने और पूनम के संबंधों को साबित करने के लिए एक सबूत के रूप में पेश करना पड़ेगा।”
इन सब घटनाओं के दौरान ललित पहली बार इतना गंभीर और उदास नजर आया।
इंस्पेक्टर देशमुख ने इंगलिश में छपे उस कार्ड को देखा—जिसमें लड़के के नाम के स्थान पर ललित और लड़की के नाम के स्थान पर पूनम छपा हुआ था— विवाहस्थल गाजियाबाद का कोई पता था।
शादी की तारीख पंद्रह जनवरी अंकित थी।
“इस वैडिंग कार्ड के बारे में आपको क्या कहना है मैडम?” अपनी पैनी नजरों से पूनम को घूरते हुए इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा।
“मैं इस कार्ड के बारे में कुछ नहीं जानती।” परेशान-सी नजर आने लगी थी पूनम। बोली—“लेकिन इस बात पर हैरत जरूर है कि यह अजनबी कार्ड हमारे ब्रीफकेस में आया कैसे?“
"सर, मैडम झूठ बोल रही हैं—अब पूरी तरह साबित हो चुका है कि यह इन्हीं की पत्नी हैं।” किसी और के कुछ कहने से पहले ही हवलदार अनोखेलाल ललित की तरफ इशारा हुआ बोला।
"तुम चुप रहो अनोखेलाल!” इंस्पेक्टर देशमुख गुर्राया।
अनोखलाल ने सहमकर अपनी तोंद पर से बार-बार खिसक जाने वाली पैंट को ऊपर चढ़ाया और किसी नई नवेली दुल्हन की तरह अपना चेहरा कैप में छिपाने की कोशिश करने लगा।
“मैडम, आपकी मिस्टर सिद्धार्थ से बताई हुई शादी की तारीख बीस अप्रैल ही थी न?” अपने को कंफर्म करने के लिए इंस्पेक्टर देशमुख ने पूनम से पूछा।
“ज...जी।”
“तो इसका मतलब यह है, मैडम कि—आपकी और मिस्टर ललित की बताई शादियों में तीन महीने पांच दिन का ‘डिफरेंस’ है।” इंस्पेक्टर देशमुख पूनम के सामने चहलकदमी करता हुआ बोला।
पूनम चुप रही।
तभी एकाएक कॉर्निस पर रखे फोन की घंटी घनघना उठी।
सबका ध्यान उधर आकर्षित हुआ।
पूनम तेजी से फोन की तरफ झपटी और दूसरी बार बैल बजने से पहले ही उसने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया।
बोली—“हैलो, मैं मिसेज बाली बोल रही हूं।”
“हम आपके गुलाम बोल रहै हैं, डार्लिंग!” दूसरी तरफ से कहा गया।
“अरे, आप...!” पूनम ने प्रसन्नता-भरे स्वर में पूछा—
“कहां से बोल रहे हैं?”
“मुम्बई से, स्वीटहार्ट!”
“क्या आप लंदन नहीं गए?” पूनम ने कनखियों से सबकी तरफ देखते हुए फोन पर सवाल किया।
“नहीं।” दूसरी तरफ से प्रन्नता भरी आवाज आई—“अचानक मुम्बई में मौसम खराब होने की वजह से फ्लाइट बारह घंटे लेट हो गई और उसके बाद हमने जाना बेकार समझा।”
“क्यों?”
“क्योंकि हम ठीक समय पर कॉन्फ्रेंस में नहीं पहुंच सकते थे—इसलिए वापस दिल्ली आ रहे हैं।”
पूनम खामोश रही।
“तुम चुप क्यों हो गईं?” दूसरी तरफ से शिकायत-भरा स्वर उभरा—“क्या हमारे जल्दी लौटने पर तुम्हें खुशी नहीं हुई, पूनम?”
“न...नहीं तो…यह बात नहीं है।”
“तो फिर बात क्या है?”
“उस कॉन्फ्रेंस में भाग लेना आपके कैरियर के लिए बहुत जरूरी था—कॉन्फ्रेंस मिस करके आपने अच्छा नहीं किया।”
“ओफ्फो पूनम—जब फ्लाइट ही लेट ही गई तो इसमें मैं क्या कर सकता था—बाद में जाने का तो कोई फायदा नहीं था— अरे छोड़ो डार्लिंग, जो मिस हो गई—हो जाने दो—बल्कि मैं तो खुश हूं—कम-से-कम अब मुझे अपनी ‘जिंदगी’ से दस-पंद्रह दिन दूर तो नहीं रहना पड़ेगा।”
फोन पर ही गंभीर-सी नजर आने लगी पूनम। बोली—“किस समय तक पहुंच रहे हैं आप दिल्ली?”
“यार पूनम, तुमने भी हमारी दुखती रग पर हाथ रख दिया।” दूसरी तरफ से दुखी स्वर उभरा—“लन्दन जाने वाली फ्लाइट को मिस करके हमारा दिल तो ऐसा कर रहा था कि उड़कर सेकंड के सौवें हिस्से में तुम्हारे पास पहुंच जाएं—लेकिन नाश हो इस खराब मौसम का कि कल दोपहर से पहले दिल्ली के लिए कोई फ्लाइट ही नहीं है—इसलिए हम ‘राजधानी’ से आ रहे हैं—यह कल सुबह दिल्ली पहुंचेगी।”
“ठीक है, मैं स्टेशन पर आपको रिसीव करूंगी।”
“थैंक यू, डार्लिंग।”
“ओoकेo।” पूनम ने बात समाप्त करते हुए कहा।
“क्या बात है, माई डियर—बहुत जल्दी में हो?”
“न...नहीं तो...।
“और कोई नई बात?”
“नहीं।”
“लगता है, डार्लिंग, तुम मेरे कॉन्फ्रेंस में न जाने की वजह से नाराज हो—इसलिए फोन पर तुम्हारा मूड उखड़ा हुआ है—खैर, अब आकर ही हम तुम्हारा मूड ठीक करेंगे… ओoकेo?”
“ओoकेo।” कहकर पूनम ने रिसीवर रख दिया।
रिसीवर रखकर पलटी ही थी कि—
“तो मिस्टर सिद्धार्थ बाली कल सुबह यहां पहुंच रहे हैं?” इंस्पेक्टर देशमुख ने पूछा।
“जी।” उसने दुखी मन से सिर्फ इतना ही कहा।
"चलिए, यह भी अच्छा हुआ।” इंस्पेक्टर देशमुख ने कहा—“अब यह झमेला ज्यादा लंबा नहीं खिंचेगा।”
न जाने क्यों इस फोन के आने के बाद पूनम पहले से अधिक परेशान नजर आ रही थी।
¶¶
अब वहां का माहौल बदल गया।
कुछ देर पहले तक ‘विलेन’ नजर आने वाला ललित अब लोगों की नजरों में हीरो-सा बन गया था।
इस समय हर व्यक्ति की सहानुभूति और समर्थन ललित के साथ नजर आ रहा था।
यह ललित द्वारा पेश किए गए सबूतों का परिणाम था।
लेकिन इसके बाद भी सब लोग इंस्पेक्टर देशमुख के नतीजे का इंतजार कर रहे थे। लेडी सब-इंस्पेक्टर मिस मंजु मेहता भी—क्योंकि ललित के सबूतों ने उसकी सारी सोचों को बुरी तरह झकझोर दिया था—उसके दिमाग को पूनम के खिलाफ सोचने के लिए मजबूर कर दिया था।
अब वह इस मामले में अपने डिपार्टमेंट में ‘शरलाक होम्स’ के नाम से विख्यात इंस्पेक्टर देशमुख के नतीजे का इंतजार कर रही थी।
वह इस केस के विषय में इंस्पेक्टर देशमुख की ओपीनियन जानने के लिए बेहद उत्सुक थी—बड़ी बेताबी से मिस मंजु उस वक्त का इंतजार कर रही थी जब अकेले में वह इंस्पेक्टर देशमुख से बात कर सके।
उधर इंस्पेक्टर देशमुख पूनम की कहानी, ललित द्वारा पेश किए गए सबूतों और अब तक की तमाम घटनाओं की गोटों को अपने दिमाग में ‘फिट करके उन्हें एक-दूसरे से जोड़ने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन अभी उसे उन सब गोटों के बीच ढेर सारी दरारें नजर आ रही थीं।
उन दरारों को भरने के लिए वह न जाने क्या सोचता रहा।
काफी देर सोचने के बाद ललित से बोला—“मिस्टर ललित, मैं आपकी पूरी कहानी जानना चाहता हूं—आपकी कथित पत्नी मिसेज पूनम से आपकी शादी किस तरह, कहां और कब हुई—साथ ही उसके घर से गायब होने तक की सारी घटना।"
कहने से पहले ललित ने अपनी मनपसंद 'फोर स्क्वायर' की सिगरेट सुलगाई और बोला—“इंस्पेक्टर, यह तो आपको पहले ही बता चुका हूं कि मैं एक साप्ताहिक विज्ञान पत्रिका ‘विशेष विज्ञान समाचार' का रिपोर्टर हूं—विज्ञान क्षेत्र में हमारी पत्रिका बहुत लोकप्रिय है—क्योंकि उसमें हर हफ्ते विज्ञान से संबंधित नई-नई जानकारियां मिलती हैं—उसे विज्ञान में रुचि लेने वाले पाठकों से लेकर वैज्ञानिक लोग तक बड़े चाव से पढ़ते हैं। मैं पत्रिका के काम से अक्सर ‘भाभा विज्ञान संस्थान’ में जाता रहता था—वही मेरी मुलाकात पूनम से हुई। यह वहां रिसेप्शनिस्ट थी।”
ललित कहता जा रहा था—“न जाने क्यों और कैसे पहली मुलाकात में ही यह मेरे दिलो-दिमाग पर बुरी तरह छा गई— मैं नहीं जानता कि इसके चेहरे या इसकी बातों में उस वक्त क्या जादू था कि मैं क्षणिक मुलाकात में ही इसके लिए किसी दीवाने प्रेमी की तरह पागल हो गया था—दिल-ही-दिल में इससे प्यार करने लगा—इसकी एक झलक देखने और बात करने के लिए लालायित रहने लगा—अब मैं विज्ञान संस्थान पत्रिका के काम से कम और इसके सामीप्य के लिए ज्यादा जाने लगा—एक कहावत है कि प्यार और बैर छुपाए नहीं छुपते—वह कहावत मेरे साथ पूरी तरह चरितार्थ हुई—कुछ दिनों बाद ही पूनम ने यह जान लिया कि मैं उसकी तरफ आकर्षित हूं और उस वक्त मेरी खुशी का कोई ठिकाना न रहा—जब उसने थोड़े-से विरोध के बाद अपने प्यार की स्वीकृति दे दी—मुझे ऐसा लगा, जैसे संसार की सबसे बड़ी दौलत मिल गई हो—उसके बाद हम दोनों पूनम के ऑफिस टाइम के बाद अक्सर किसी पार्क या रेस्तरां में मिलने लगे—एक-दूसरे के सुख-दुख और प्यार बांटने लगे। पूनम की जिंदगी में सबसे बड़ा दुख यह था कि इसे परिवार अच्छा नहीं मिला था—मां बचपन में ही मर गई थी—बाप और एक बड़ा भाई था, लेकिन सिर्फ कहने मात्र के लिए— दोनों ने कभी पूनम के प्रति अपने दायित्व को नहीं निभाया— जब भी मुझसे मिलती, अपने घर के दुखड़े अवश्य सुनाया करती—साथ ही बेहद गरीबी में पली होने की वजह से इसकी अमीर बनने की महत्वाकांक्षा भी इसकी बातों से नजर आया करती—यह अक्सर विज्ञान संस्थान व देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक मिस्टर सिद्धार्थ बाली की चर्चा किया करती थी—मिस्टर सिद्धार्थ से यह काफी प्रभावित थी…लेकिन उस समय मैंने यह नहीं सोचा था कि यह उनसे सिर्फ प्रभावित ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नी बनने के ख्वाब भी देख रही है।”
सांस लेने के लिए ललित रुका, फिर बोला—“काफी दिनों तक हमारा प्यार यूं ही चलता रहा—और एक दिन हम दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया—लेकिन उस शादी में उसे वही अड़चन आई—पूनम के पिता और भाई की तरफ से—वे पूनम की शादी नहीं करना चाहते थे—क्योंकि पूनम ही उन दोनों को पाल रही थी। उनके लाख बुरे होने के बावजूद पूनम की यही इच्छा थी कि उसकी शादी अपने घर से, पिता और भाई के हाथों से ही हो। पिता ही उसका कन्यादान करे। वर-वधु के दांपत्य सूत्र में बंधने वाली गांठ जो भाई लगाता है—वह मोहन ही लगाए। लेकिन उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई हम दोनों के संबंधों का जिक्र सुनकर ही उन दोनों ने इसे खूब मारा। इस बात से दुखी होकर हमने गाजियाबाद जाकर शादी की। गाजियाबाद में मेरा एक दोस्त रहता है। मैंने उसके मम्मी-पापा को लड़की वाले बनाकर विधिवत तरीके और खूब धूमधाम से पंद्रह जनवरी को पूनम से शादी की।
लेकिन उससे दस दिन पहले ही मैंने अपनी पुरानी कोठी बेचकर शक्तिनगर में नई कोठी खरीद ली थी और गाजियाबाद से सीधे आकर हम शक्तिनगर वाली कोठी में रहने लगे। लेकिन एक दिन यानी बारह अप्रैल, जिसे मैं अपनी जिंदगी की सबसे मनहूस तारीख कहूंगा—मैं काम से निकला। जब शाम को वापस आया तो घर पर पूनम नहीं थी—घर की नौकरानी ने केवल इतना ही बताया कि मेमसाहब लाल रंग का ब्रीफकेस लेकर दोपहर से कहीं गई हुई हैं। कहां गई हैं, यह उसे नहीं मालूम था और न ही आज यहां आने से पहले तक मुझे पता लगा—उस दिन मैं रात-भर दिल्ली की सड़कों पर इसे पागलों की तरह ढूंढता रहा—यह कहां-कहां जा सकती है, अपने दिमाग में सोच-सोचकर मैं हर उस जगह गया जहां मुझे इसके जाने की संभावना थी—दिल में इस आशंका ने भी जन्म लिया कि कहीं यह अपने पिता और भाई के हाथ न लग गई हो—यह सोचकर मैं किशनगंज, गंदा नाला रोड स्थित इसके मकान पर भी गया—जहां मुझे इसके पिता और भाई के गुस्से का सामना करना पड़ा—क्योंकि इससे शादी करने के बाद मैं उन दोनों का सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा था। वहां उन्होंने मेरी काफी बेइज्जती की और हाथापाई करने पर आमादा हो गए—लेकिन उस रात मैं लड़ने के मूड में नहीं था—मैं केवल पूनम का पता लगाना चाहता था। सब जगह देखने के बाद थक-हारकर मैं घर लौट आया। सारी रात परेशानी की अवस्था में इसका इंतजार करता रहा, लेकिन यह नहीं लौटी—क्योंकि इसको लौटना ही नहीं था। कई दिनों तक ढूंढने के बाद आखिर मैं थक-हारकर चुप बैठ गया। दिल को यही समझाया कि उसका और मेरा इतने दिन का ही साथ था।”
“आपने इस मामले की पुलिस में ‘रपट’ लिखवाई थी?” ललित की कहानी के बीच इंस्पेक्टर देशमुख ने पहली बार उससे कोई सवाल किया।
“नहीं इंस्पेक्टर, मैंने कोई 'रपट' नहीं लिखवाई।”
“क्यों?” इंस्पेक्टर देशमुख ने शंकित अंदाज़ में पूछा।
“क्योंकि मैं अपना प्यार सड़कों पर नहीं लाना चाहता था, इंस्पेक्टर। मैंने सोचा कि कल जब पूनम वापस लौटेगी तो लोग उसे शक की नजरों से देखेंगे—जमाने की नजरें उसके लिए अच्छी नहीं रह जाएंगी।”
“खैर, आपने चाहे जो सोचा हो मिस्टर ललित—लेकिन आपने यह कानूनन ठीक नहीं किया।”
“अब इस बारे में मैं क्या कह सकता हूं इंस्पेक्टर।” ललित बोला—“उस समय पुलिस में रपट न लिखवाने के पीछे मेरी जो भावना थी, वह मैंने आपको बता दी।”
“अच्छा, आप आगे सुनाइए।”
“उसके बाद मेरी दुनिया पूरी तरह वीरान हो गई, इंस्पेक्टर! सच तो यह है कि मैंने पूनम से ज्यादा अपनी जिन्दगी में किसी से भी प्यार नहीं किया—टूट-टूटकर चाहा था मैंने इसको।” कहते हुए ललित की आवाज भर्रा गई—“इसे खोने के बाद मेरा अपनी जिंदगी से कोई लगाव नहीं रह गया था, जिंदा रहने के लिए सिर्फ एक ही बहाना था कि शायद पूनम मिल ही जाए, इसी बहाने के साथ एक तरह से मैंने दुबारा जीना शुरू कर दिया था—लेकिन आज अचानक इसे अपने सामने देखकर दिल में सोया हुआ ज्वालामुखी फट पड़ा और अच्छा तो यह होता इंस्पेक्टर कि—यह बेवफा मुझे कभी मिलती ही नहीं—कम-से-कम मैं इसके आने की आशा और अपनी कल्पनाओं के सहारे जिंदा तो रहता— लेकिन मेरी बदनसीबी तो देखो है मैं विज्ञान संस्थान में मिस्टर सिद्धार्थ के न मिलने पर पत्रिका के लिए उनका हंटरव्यू लेने यहां चला आया—अपनी पत्नी का यह रूप देखने से पहले काश, मैं मर जाता इंस्पेक्टर तो अच्छा होता।”
लोगों की आंखों में उसके लिए सहानुभूति नजर आ रही थी।
जबकि पूनम उसकी तरफ नफरत से देखती हुई चीखी—“ इंस्पेक्टर, इस मक्कार आदमी ने किसी तरह मेरे पारिवारिक हालात मालूम करके, उन पर मेरे और अपनी प्रेम-कहानी से लेकर शादी और उसके बाद इसे धोखा देकर घर से भागने तक की एक कोरी काल्पनिक कहानी गढ़ डाली—मेरे पारिवारिक हालात छोड़कर इसकी कहानी का एक-एक शब्द झूठ है।
इंस्पेक्टर साहब, मैंने आपको जो कुछ भी सुनाया है, आप उसकी खोजबीन कर सकते हैं—अगर उसमें ज़रा भी झूठ हो तो आप मुझे वह सजा देना, जो बड़े-से- बड़े मुजरिम को देते हैं।” इंस्पेक्टर देशमुख की तरफ देखता हुआ ललित बोला।
"मिस्टर ललित, यह आपको किस तरह पता चला कि मिसेज पूनम आपके घर से जिस लाल ब्रीफकेस को ले गई थीं, वह घर बदलने के बाद भी इनके पास ही है?”
“मुझे इस बात का पता नहीं था, इंस्पेक्टर कि—वह ब्रीफकेस इसके पास है।” ललित ने ‘है’ पर अधिक जोर देकर कहा—“हां, इस बात की आशा जरूर थी कि वह इसके पास ही हो सकता है।”
“क्यों?”
“इसलिए कि पूनम का इस ब्रीफकेस से विशेष लगाव था—क्योंकि यह ब्रीफकेस इसे मेरे दोस्त के मम्मी-मापा ने दिया था—जहां गाजियाबाद में हमारी शादी हुई थी—यह इस ब्रीफकेस को अपने घर की तरफ से एकमात्र दहेज की चीज मानती थी और इस ब्रीफकेस को इतने ध्यान से रखती थी कि मैं अगर कभी इसे अपने काम के लिए मांगता तो यह एकदम मना करते हुए कहती कि ‘खराब हो जाएगा’—इस ब्रीफकेस के साथ इसका भावनात्मक लगाव रहा है—मैंने यही सोचकर कि शायद उसने उससे बेवफाई न दिखाई हो—ऐसी आशा कर ली थी, इंस्पेक्टर।”
इंस्पेक्टर देशमुख ने उसके तर्क पर बुरा-सा मुंह बनाया।
अचानक तभी एक बूढ़ा व्यक्ति अंदर आया और बारी-बारी से सबको चकित नजरों से देखने लगा—शरीर पर सस्ता-सा धोती-कुर्ता और कंधे पर एक लाल रंग का ‘अंगोछा’ पड़ा था—सिर व दाढ़ी के ज्यादातर बाल सफेद हो चुके थे—लेकिन उसके बाद भी वह चेहरे से चुस्त नजर आ रहा था।
भीड़ को आश्चर्य से देखता हुआ वह पूनम को तरफ बढ़ गया—हिचकता हुआ-सा बोला—“बीबीजी—य...यह...यह....भीड़...।”
उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही इंस्पेक्टर देशमुख का कड़कता स्वर—“मैडम, यही है आपका नौकर?”
प्रत्युत्तर में पूनम ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी।
“यहां आओ।”
इंस्पेक्टर देशमुख के बुलाए जाने पर बूढ़ा व्यक्ति सिर से पांव तक कांप-सा गया—कंपकंपाती टांगों से वह उसके पास पहुंचा।
“क्या नाम है तुम्हारा?” उसी कड़कती आवाज में इंस्पेक्टर ने पूछा।
“जी...जी...सा...ह...ब...र...रामू!”
"कहां गए थे?"
“ब...बाजार स...साहब....!” कठिनता से कह पाया वह—“स...सब्जी लेने।” ललित की तरफ इशारा करता हुआ इंस्पेक्टर देशमुख एकदम बोला—“इस आदमी से मिलकर तुमने अपनी मालकिन के खिलाफ इस कोठी में जो साजिश रची थी—वह खुल गई है—तुम्हें अपने साथ शामिल करने वाले इस व्यक्ति ने पुलिस को सबकुछ साफ-साफ बता दिया है—तुम केवल इतना बताओ कि तुम्हारे साथ इस साजिश में और कौन शामिल था?”
रामू एकदम 'जूड़ी' के मरीज की तरह कांपने लगा—चेहरा सफेद पड़ गया, मानो शरीर का सारा खून जम गया हो।
बूढ़ा दिल पानी में डाले गए किसी पत्थर की तरह नीचे बैठता चला गया।
हर व्यक्ति इंस्पेक्टर देशमुख के इस अजीब रवैये पर एकदम भौंचक्का रह गया था—सांस जहां-की-तहां रुक गई।
“चुप क्यों हो तुम?” इंस्पेक्टर देशमुख दहाड़ा—“जवाब क्यों नहीं देते कि कौन-कौन शामिल था इस साजिश में?”
“स...सा...ह...ब...!”
“झूठ बोला तो तेरी खाल उधेड़ दूंगा, बुड्ढे!” इंस्पेक्टर देशमुख उसका कुर्ता पकड़कर बुरी तरह झंझोड़ता हुआ खूंखार अंदाज में दहाड़ा।
बूढ़ा रामू रो पड़ा।
“ह...हम...स...सच कह रहे हैं साहब—इस आदमी को जानते तक नहीं हैं—प...प....ता नहीं इसने अ...आपसे हमारा नाम क्यों लिया....?”
“लगता है तू ऐसे नहीं बकेगा।” इंस्पेक्टर देशमुख अपने अंगूठे और उसकी बराबर वाली उंगली से रामू का गले से कुछ बाहर निकला ‘टेंटुआ’ पकड़ता हुआ दहाड़ा।
“स...साहब....जब हम कुछ जानते ही नहीं तो बकें क्या?” रामू ने दयनीय स्वर में कहा।
“ अब मैं तुझसे आखिरी बार पूछता हूं, बुड्ढे!” इंस्पेक्टर देशमुख ने उसका टेंटुआ छोड़कर बाल पकड़ लिए गुर्राया—“अगर इस बार तूने नहीं बताया तो ठोकरें मार-मारकर यहीं खत्म कर दूंगा तुझे—बोल तेरे साथ नौकरानी कम्मो भी शामिल थी या नहीं?”
रोता हुआ रामू बोला—“अ...आप प...पुलिस के स…साहब हैं—हम गरीब नौकर हैं—ख...खूब मार सकते हैं—च...चाहे जान से ही मार दें—ल...लेकिन हम स...सच कह रहे हैं साहब…हम किसी योजना में शामिल नहीं हैं—न कम्मो का पता है और न इस आदमी के बारे में हम कुछ जानते हैं।” वह लगातार रो रहा था—“स...सच तो यह है साहब कि हम तो यह जानते तक नहीं कि आप हमसे पूछ क्या रहे हैं? कौन-सी योजना है, जिसमें इस आदमी ने ह....हमें भी शामिल कर लिया?”
इंस्पेक्टर देशमुख ने उसे छोड़ दिया।
पूनम की तरफ घूमा। बोला—“मैडम, कल मिस्टर बाली मुम्बई से यहां कितने बजे तक पहुंच रहे हैं?”
"राजधानी एक्सप्रेस शायद सुबह साढ़े ग्यारह बजे तक दिल्ली आती है।” पूनम ने कहा।
“ठीक है, मैं कल फिर आऊंगा—लेकिन मैडम,एक बात का ध्यान रखना।” इंस्पेक्टर देशमुख ने चेतावनी देने वाले अंदाज में कहा है—“ऐसी कोई हरकत न हो, जिससे कानूनी कार्यवाही में बाधा पहुंचे—तब तक एक कांस्टेबल भी आपकी कोठी पर तैनात रहेगा।”
“मेरी तरफ से आप निश्चिंत रहें इंस्पेक्टर—लेकिन इतनी प्रार्थना अवश्य है कि पुलिस कार्यवाही ऐसी हो, जिससे हमारे पारिवारिक जीवन में जहर न घुल पाए।” पूनम के स्वर में विनती थी।
“मिसेज पूनम, मैं तो आपको केवल इतना विश्वास दिला सकता हूं कि मुझसे सच्चे पक्ष का अहित नहीं होगा।”
उन दोनों से कुछ दूर खड़े ललित ने मुस्कराते हुए कहा—“मैं भी यही चाहता हूं, इंस्पेक्टर कि—जीत सच्चाई की ही हो।”
पूनम ने उसे खा जाने वाली निगाहों से घूरा।
इंस्पेक्टर देशमुख कोठी का निरीक्षण-सा करता हुआ थोड़ा आगे बढ़ गया।
लेकिन तभी उसके पीछे लेडी इंस्पेक्टर मिस मंजु मेहता लपकी—जैसे वह इंस्पेक्टर देशमुख के थोड़ा अकेले होने का ही इंतजार कर रही थी।
“सर मैं आपसे कुछ बात करना चाहती हूं।” मिस मंजु उसके बिल्कुल पास पहुंचकर बोली।
“देख रहा हूं, बहुत देर से बेचैन हो तुम।” उसकी तरफ देखकर इंस्पेक्टर देशमुख ने मुस्कराते हुए कहा—“ऑफिस में बैठकर बातें करेंगे।”
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