अंशुल रास्ता बताता रहा। मोना चौधरी उसके कहे मुताबिक कार चलाती रही। उसके बताने के ढंग से जाहिर था कि वो बहुत बार अपनी मम्मी के साथ सीमा आंटी के घर जा चुका है।

करीब आधे घंटे बाद अंशुल के कहने पर मोना चौधरी ने कार रोकी।

“सीमा आंटी वहां रहती है।”

मोना चौधरी ने देखा। सामने बहुत सुन्दर अपार्टमेंट था।

“तुम्हारी आंटी का फ्लैट नम्बर क्या है बेटे?”

“हां। फ्लैट नम्बर याद है मुझे। टू-नाइन-वन।”

“दो सौ इक्यानवे...।”

“मुझे तो सिर्फ इंग्लिश में पता है। हिन्दी में बोलना मुझे नहीं आता।” अंशुल ने कहा।

मोना चौधरी ने मुस्कराकर उसका गाल थपथपाया।

“अंशुल बेटे! आप कार में ही बैठो। मैं आपकी सीमा आंटी से मिलकर आती हूं...।” मोना चौधरी बोली।

“ठीक है।”

“कहीं जाना नहीं।” मोना चौधरी कार का दरवाजा खोलते हुए बोली।

“मैं कार में ही बैठूंगा आंटी...।”

☐☐☐

लिफ्ट से मोना चौधरी दूसरी मंजिल पर पहुंची और 291 नम्बर फ्लैट को तलाश किया। हर फ्लैट के बाहर नम्बर लिखे हुए थे। ऐसे में फ्लैट को ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं आई। कॉलबेल के स्विच के पास ही सीमा पुरी के नाम की पट्टी लगी हुई थी। जिससे यह जाहिर हो रहा था कि सीमा पुरी वहां अकेली ही रहती है।

मोना चौधरी ने आस-पास निगाह मारी। कॉरिडोर में आते-जाते एक-दो लोगों के अलावा कोई नजर नहीं आ रहा था। शान्ति का माहौल था वहां। मोना चौधरी ने कॉलबेल दबाने के लिये हाथ उठाया तो ठिठक गई।

उसके कानों में स्पष्ट मध्यम-सी आवाज पड़ी।

“अगर अपनी जान की सलामती चाहती हो तो आवाज न निकालना...।”

ये स्वर दरवाजे के भीतर से आया था।

मोना चौधरी ने स्पष्ट जाना कि बंद दरवाजे के पार, पास ही में कोई है। इन शब्दों के साथ ही उसे खतरे का एहसास हुआ। तभी उसके कानों में मर्द की दूसरी दबी हुई आवाज पड़ी।

“तेरे चेहरे से ऐसा नहीं लगना चाहिये कि हम तेरे को जबर्दस्ती ले जा रहे हैं। समझ गई। ठीक कर अपने को। तेरे को एक-एक बात समझानी पड़ रही है। सीधी हो जा वरना...।” आवाज में खतरनाक भाव थे।

दो अलग-अलग आवाजों से ये तो स्पष्ट हो गया कि भीतर दो व्यक्ति तो हैं ही, जो किसी को जबर्दस्ती ले जा रहे हैं। अगर उनका साथी कोई तीसरा भी है तो जुदा बात है।

“मुझे छोड़ दो। मैं...।” युवती की घबराई-सी आवाज मोना चौधरी को सुनाई दी।

“चुप कर। दरवाजा खोल। सीधे-सीधे हमारे साथ चल। जल्दी कर वरना...।”

ये महसूस करके कि वो बाहर आने वाले हैं, मोना चौधरी दरवाजे के पास से हटी लापरवाही भरे अंदाज में चलती हुई लिफ्ट की तरफ बढ़ गई। लिफ्ट नीचे गई हुई थी। मोना चौधरी वहां इस तरह खड़ी हो गई जैसे लिफ्ट के आने का इन्तजार कर रही हो, परन्तु छिपी निगाह 291 नम्बर फ्लैट के दरवाजे पर ही थी।

देखते ही देखते दरवाजा खुला और बत्तीस-पैंतीस बरस की औरत बाहर निकली। छरहरे बदन की वो सुन्दर औरत थी। लम्बे कटे हुए बाल पीठ तक जा रहे थे। कमीज-सलवार पहन रखा था। वो चेहरे को सामान्य बनाने की चेष्टा कर रही थी, परन्तु मोना चौधरी उसकी घबराहट को बखूबी पहचान गई।

फिर एक आदमी निकला। उसके पीछे दूसरा।

मोना चौधरी ने छिपी निगाहों से दोनों को देखा।

दोनों ही खतरनाक किस्म के बदमाश लग रहे थे। एक कुछ सूखा-पतला था, लेकिन चेहरे पर चाकू का पुराना निशान था। दूसरा कुछ लम्बा और सेहतमंद था। उसके दोनों हाथ पेंट की जेबों में थे। जिससे कि ये स्पष्ट था कि जेब में मौजूद किसी हथियार को उसने हाथ में थाम रखा था कि जरूरत पड़ने पर फौरन निकाला जा सके। उसने ही बाहर निकलने के पश्चात् दरवाजा बंद किया और फिर तीनों उसी तरफ लिफ्ट की ओर आने लगे।

मोना चौधरी वैसे ही लापरवाही से खड़ी हो गई।

वो तीनों पास पहुंचे। एक ने लिफ्ट बुलाने के लिये बटन दबाया।

मोना चौधरी ने शांत निगाहों से तीनों को देखा।

मोना चौधरी को पूरा विश्वास था कि वो सीमा पुरी ही है, जिसके पास वो दीपा लाम्बा की बात करने आई है, परन्तु ये लोग उसे जबर्दस्ती कहीं ले जा रहे हैं। कहीं इन्हीं लोगों ने तो दीपा लाम्बा का अपहरण नहीं किया?

हो भी सकता और नहीं भी।

परन्तु एक ही दिन में दोनों सहेलियों को एक साथ अपहरण करना संयोग नहीं हो सकता।

कोई तो खास बात है ही!

उन तीनों ने भी बारी-बारी मोना चौधरी को सरसरी तौर पर देखा।

तभी लिफ्ट आ गई। दरवाजा खुला। मोना चौधरी ने पहले भीतर प्रवेश किया फिर एक-एक करके उन तीनों ने। मोना चौधरी ने बिना उनसे पूछे ग्राउंड फ्लोर का बटन दबा दिया। उन्होंने कोई दूसरा बटन नहीं दबाया। स्पष्ट था कि उन्हें भी नीचे ही जाना था। वो तीनों खामोश थे। न तो सीमा पुरी कोई बात कर रही थी और न ही वो दोनों। सीमा पुरी व्याकुलता से बारी-बारी उन दोनों को देखने लगती।

मोना चौधरी मन-ही-मन सोच चुकी थी कि सीमा पुरी को इन बदमाशों के हाथों से बचाना है और मालूम करना है कि मामला क्या है, उसे विश्वास था कि दीपा लाम्बा और अब सीमा पुरी का भी अपहरण करके ले जाना, एक ही मामले से वास्ता रखता है। दोनों सहेलियां हैं और अक्सर मिलती रहती हैं।

ग्राउंड फ्लोर पर आकर लिफ्ट रुकी। दरवाजा खुला। चारों एक-एक करके बाहर आ गये। मोना चौधरी एक तरफ हो गई। वो तीनों बाहर की तरफ बढ़ गये। सीमा पुरी के उठते कदम बता रहे थे कि वो मजबूरी में, बेबसी में आगे बढ़ रही है। उन दोनों से बचकर नहीं निकल सकती।

मोना चौधरी कुछ फासला रखकर, उनके पीछे चल पड़ी।

और लोग भी आ-जा रहे थे।

तभी मोना चौधरी ने उन्हें, एक तरफ खड़ी कार की तरफ बढ़ते देखा तो समझ गई कि वे दोनों सीमा पुरी को लेकर कार में बैठने जा रहे थे। अब उन्हें रोकना जरूरी हो गया था।

मोना चौधरी जल्दी से उनकी तरफ बढ़ी। जेब से रूमाल निकाल लिया था।

“मैडम...।” पास पहुंचते हुए मोना चौधरी बोली।

वो तीनों रुके। उन्होंने मोना चौधरी को देखा।

मोना चौधरी के चेहरे पर मीठी मुस्कान आ टिकी थी।

“मैडम, ये आपका रूमाल गिर गया था।” मोना चौधरी ने हाथ में पकड़ा रूमाल उसकी तरफ बढ़ाया।

सीमा पुरी के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे।

दोनों बदमाशों ने एक-दूसरे को देखा।

सीमा पुरी से पहले ही एक बदमाश ने हाथ बढ़ाकर, रूमाल लेते हुए कहा।

“शुक्रिया...।”

“जरूरत पड़ने पर ये रूमाल न मिलता तो मैडम को वास्तव में बहुत परेशानी होती।” दूसरे की आवाज में कुछ तीखापन था।

“यही सोचकर मैंने दे दिया।” मोना चौधरी की आवाज में हल्की-सी हंसी आई।

“आओ।” बदमाश ने अपने साथी और सीमा पुरी को देखा।

इससे पहले कि वो चंद कदमों की दूरी पर खड़ी कार की तरफ बढ़ते- मोना चौधरी बिजली की सी तेजी से हरकत में आई और एक के पेट में जोरदार घूंसा और उसी पल दूसरे के पेट में ठोकर मारी।

वो दोनों चीखते हुए नीचे गिरते चले गये।

ऐसे मौके पर मोना चौधरी एक को ही पकड़ सकती थी। उसने तुरन्त दूसरे पर छलांग लगाई जो उठने की कोशिश में था। वो संभल न सका और गिरते हुए मोना चौधरी के नीचे दब गया।

ये सब अचानक हुआ पाकर, सीमा पुरी हड़बड़ाई-सी खड़ी रह गई।

“सीमा! भाग जाओ यहां से।” मोना चौधरी चीखी- “उधर मेरी कार खड़ी है। अंशुल कार में है जाओ।”

इतना होते ही वहां जाते-आते कई लोगों की नजरें इस तरफ उठ चुकी थी।

इससे पहले की सीमा पुरी कोई कदम उठा पाती। दूसरा बदमाश उस पर झपटा और कसकर उसकी बांह पकड़ ली। इसके साथ ही उसके हाथ में रिवॉल्वर नजर आने लगा।

“खबरदार! यहीं खड़ी रहना।” स्वर में खूंखारता थी।

सीमा पुरी का चेहरा फक्क पड़ गया।

उसने रिवॉल्वर का रुख मोना चौधरी की तरफ कर दिया।

“खड़ी हो जा...।” वो दांत भींचकर रिवॉल्वर हिलाते हुए कह उठा- “मेरे साथी को छोड़। मेरा निशाना इतना बढ़िया है कि तेरी खोपड़ी उड़ा दूंगा। जल्दी कर। मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि दोबारा कहूं...।”

मोना चौधरी को उसकी आवाज से स्पष्ट अहसास हो गया था कि वो जो कह रहा है,कर भी देगा। उसके पास इस वक्त रिवॉल्वर नहीं थी- और इन हालातों में सीधे-सीधे मुकाबला करना, समझदारी वाली बात नहीं थी।

मोना चौधरी ने उस बदमाश को छोड़ा और उठ खड़ी हुई।

नीचे पड़ा बदमाश फौरन उठा और दांत किटकिटाकर, मोना चौधरी पर झपटना चाहा।

“इसे छोड़।” दूसरे ने सीमा पुरी की कलाई पकड़े खतरनाक स्वर में कहा- “कार स्टार्ट कर...।”

वो ठिठका और मोना चौधरी को घूरते हुए कार की तरफ बढ़ गया।

कई लोग ये सब देख रहे थे। लेकिन किसी ने पास आने की चेष्टा नहीं की। शायद रिवॉल्वर की वजह से।

सीमा पुरी की कलाई दबोचे, रिवॉल्वर थामे क्रूर निगाहों से वो मोना चौधरी को देखते हुए बोला।

“वक्त नहीं है, वरना तेरा हाल तबीयत से पूछ कर जाते।”

मोना चौधरी एकटक उसे देख रही थी।

“कौन हो तुम लोग? सीमा को जबर्दस्ती कहां ले जा रहे हो?”

मोना चौधरी कह उठी।

“चुपचाप खड़ी रह...।” वो गुर्राया।

तभी दूसरा साथी कार स्टार्ट करके पास ले आया। वो, सीमा पुरी को लिए कार में बैठा । रिवॉल्वर उसने सावधानी से पकड़ी रही। नजरें मोना चौधरी पर थी। देखते ही देखते वो कार आगे बढ़ी और अपार्टमेंट के मुख्य गेट से बाहर निकलती चली गई। मोना चौधरी गहरी सांस लेकर रह गई।

हालातों ने उसे ठीक मौका नहीं दिया था कि बदमाशों का मुकाबला कर पाती। उसे ये भी ख्याल नहीं था कि उनके पास रिवॉल्वर हो सकती है। जबकि इस वक्त उसके पास रिवॉल्वर नहीं थी। दूर खड़े तमाशा देखने वाले लोग, उस कार के जाते ही फौरन मोना चौधरी के पास आ पहुंचे।

“क्या हुआ? वे उसे क्यों ले गये?”

“मैं जानता हूं वो लेडी, दूसरी मंजिल में कहीं रहती है।”

मोना चौधरी ने एक निगाह उन लोगों पर मारी।।

“आप लोगों को तब आगे आना चाहिये था, जब वो बदमाश उसे जबर्दस्ती ले जा रहे थे।” मोना चौधरी ने कहा।

“उनके पास रिवॉल्वर थी। हम क्या कर सकते थे?”

मोना चौधरी जानती थी कि उनका यही जवाब होगा।

☐☐☐

मोना चौधरी वापस सीमा पुरी के फ्लैट पर पहुंची।

दरवाजा लॉक्ड नहीं था।

दरवाजा खोलकर मोना चौधरी भीतर प्रवेश कर गई। सजा-सजाया फ्लैट था। हर चीज ढ़ंग से लगा रखी थी और सजावट में पैसा भी खर्च किया गया था। मोना चौधरी कमर पर हाथ रखे कुछ पल इधर-उधर नजरें घुमाती रही। फिर दूसरे कमरे के दरवाजे तरफ जाने वाली थी कि फोन की घंटी बजने लगी।

मोना चौधरी की निगाह तुरन्त घूमी और कुछ कदम दूर फोन पर जा टिकी। फिर वो जल्दी से आगे बढ़ी और पास पहुंचकर रिसीवर उठाया।

“हैलो...।”

“सीमा, मैं रंजना...।” उधर से आवाज आई।

पल भर की चुप्पी के बाद मोना चौधरी कह उठी।

“कैसी हो रंजना...?”

लाइन पर एकाएक खामोशी-सी छा गई।

“रंजना...।” मोना चौधरी ने छाई खामोशी को तोड़ते हुए कहा।

“कौन हो तुम?” इस बार रंजना के स्वर में सतर्कता थी।

“मैं, सीमा की सहेली हूं। मोना चौधरी।” वो समझ गई थी कि रंजना, सीमा की आवाज बहुत अच्छी तरह पहचानती है।

ऐसे में उसकी ये चालाकी नहीं चल सकेगी।

“तुम अभी खुद को सीमा क्यों कह रही थीं? इस झूठ का मतलब?”

मोना चौधरी का मस्तिष्क तेजी से काम कर रहा था।

“मैं बहुत परेशान थी, इसलिए...।” मोना चौधरी ने जानबूझकर शब्दों को अधूरा छोड़ दिया।

“कैसी परेशानी? मैंने कभी नहीं सुना कि सीमा की मोना चौधरी नाम की कोई सहेली है। सीमा कहां है, उसे बुलाओ।”

“उसे दो आदमी उठाकर ले गये हैं।”

“क्या?” रंजना का चौंका हुआ स्वर, मोना चौधरी के कानों में पड़ा- “सीमा को कोई उठा ले गया है।”

“हां। वो...।”

“कब की बात है ये?”

“अभी पन्द्रह मिनट पहले। मैं और सीमा चाय पी रहे थे कि डोर बेल बजी। सीमा ने दरवाजा खोल दिया कि तभी दो आदमी भीतर आये। उनके पास रिवॉल्वर थी। वो जबर्दस्ती सीमा को ले गये। तभी तुम्हारा फोन आ गया। वरना मैं तो यहां से जाने वाली थी।” मोना चौधरी ने अफसोस भरे स्वर में कहा।

रंजना की आवाज नहीं आई।

“रंजना!” मोना चौधरी बोली।

“हां...।” अब रंजना की आवाज में फीकापन-सा था।

“तुम कहां रहती हो? मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।” मोना चौधरी ने कहा।

“क्यों? मैं तो तुम्हें जानती नहीं। सीमा ने कभी तुम्हारा जिक्र नहीं...।”

“कभी जरूरत नहीं पड़ी होगी मेरे बारे में जिक्र करने की। तुम दीपा को जानती हो, दीपा लाम्बा- ?”

“हां। वो भी मेरी सहेली है।”

“वो मेरी भी सहेली है।” मोना चौधरी ने दुःख भरे स्वर में कहा- “दो घंटे पहले उसका भी कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया। उसका बेटा अंशुल इस वक्त मेरे पास है। मैं, सीमा से इस सिलसिले में बात करने आई थी कि मेरे सामने ही उसे भी कुछ लोग उठाकर ले गये।”

“ओह... ! ये तो बहुत बुरा हुआ। तुम उन दोनों को अच्छी तरह पहचानती हो, जो सीमा को ले गये हैं?”

“हां। मैं...।”

“जो दीपा को ले गये हैं, वो वही थे, जो सीमा को...?”

“दीपा को जिसने उठाया, मैंने उसे नहीं देखा।” मोना चौधरी बहुत संभल कर जवाब दे रही थी कि रंजना फोन न रख दे। वो रंजना से मिलकर मालूम करना चाहती थी कि आखिर ये सब क्या हो रहा है?

रंजना शायद सोचने लग गई थी, तभी उसकी तरफ से आवाज नहीं आई थी।

“रंजना...।” मोना चौधरी बोली।

“हां...।” उसकी आवाज बहुत धीमी थी।

“मैं तुमसे इस सिलसिले में बात करना चाहती हूं। मुझे नहीं मालूम दीपा और सीमा को ले जाने वाले कौन थे? उन दोनों का एक ही दिन अपहरण क्यों हुआ है? शायद हम उन्हें किसी तरह बचा सकें।”

“नहीं...।” रंजना की थकी-सी आवाज मोना चौधरी के कानों में पड़ी- “शायद हम उन्हें नहीं बचा सकते।”

मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी।

“क्यों...? क्यों नहीं बचा सकते उन्हें?”

रंजना की तरफ से आवाज नहीं आई।

“तुम जानती हो रंजना कि सीमा और दीपा को क्यों उठाया गया है? कौन लोग उन्हें...?”

“शायद, जानती हूं...।”

मोना चौधरी एकाएक सतर्क-सी हो गई।

“रंजना! मैं तुमसे मिलना चाहती हूं। मुझे अपना पता बताओ। मैं आ जाती हूं।”

रंजना ने पता बता दिया।

“तुम वहीं रहना। मैं अभी यहां से चल रही हूं...।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।

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