सत्रह साल पहले, जयपाल यादव गोविंदपुरी इलाके का लड़कों की टोली का पहला लड़का था, जिसे काम मिला था । उस वक्त उसकी उम्र चौदह साल थी । शाम के समय व्यस्त बस स्टॉप ट्रैफिक लाइट्स वगैरा पर वह अखबार बेचा करता था । रात में लौटते वक्त वह अपने शराबी बाप के लिए देसी शराब और घर की जरुरत की दूसरी चीजें खरीदकर लाता था । साल भर बाद, उसने बाप के खिलाफ बगावत कर दी । उसका निकम्मा बाप कमाता तो एक पैसा भी नहीं था लेकिन शराब पीकर पत्नी और बच्चों की पिटाई करना उसकी रोजाना की आदत बन चुकी थी । बात पहले पुलिस तक पहुँची और फिर अदालत में । बाप घर छोड़कर चला गया और जयपाल अपनी माँ और बहन की रखवाली करने लगा ।
सत्रह साल बाद, जयपाल कभी जिस अखबार का हाकर हुआ करता था अब उसी अखबार का चीफ रिपोर्टर बन गया था । उसका बाप मर चुका था । माँ अपनी शादीशुदा बेटी के पास पटना में रहती थी और जयपाल अखबार के जरिए उसी इलाके के लोगों के खिलाफ बदले की मुहीम चला रहा था जहाँ उसने परवरिश पायी थी । इसलिए वह चाहकर भी उस इलाके को छोड़ नहीं सका था ।
फ्रांसिस के कैफे में बैठा कॉफी की चुस्कियाँ लेता हुआ जयपाल अपने बनाए नोट्स को पढ़ने में व्यस्त था । औसत कद और इकहरे जिस्म वाले जयपाल की रंगत पीली थी ।
जलीस कैफे में दाखिल हुआ । पुराने वक़्तों की तरह उसने काउंटर के पीछे से फ्रांसिस की पुरानी कुर्सी बाहर घसीट ली ।
अधेड़ फ्रांसिस को अपनी उस कुर्सी से इतना प्यार था कि कोई उस कुर्सी को हाथ भी लगा देता तो उसका पारा चढ़ जाया करता था । वह पलटकर दहाडने ही वाला था कि जलीस पर निगाह पड़ते ही झटका सा खाकर रह गया ।
जलीस ने कुर्सी जयपाल की मेज के पास रखी और बैठ गया । जयपाल ने उसकी और देखे बगैर कहा–"मुसीबत मोल लेना चाहते हो, दोस्त ?"
जवाब में जलीस ने कहकहा लगा दिया ।
पेपर्स पर जयपाल की उंगलियों कस गईं । उसने सर ऊपर उठाया ।
"जलीस ।"
"हेलो, जयपाल ।"
"यू बास्टर्ड । तुम्हारे पास पच्चासी रुपए सत्तर पैसे है ?"
"जरूर ।"
"निकालो ।" जयपाल ने मेज ठकठकाई–"यहाँ रख दो ।"
जलीस ने मुस्कराते हुए पूरी रकम गिनकर उसके पेपर्स पर रख दी । बरसों पहले जलीस ने उसकी पिटाई करके उसके पिच्चासी रुपए सत्तर पैसे छीन लिए थे ।
उसे पैसे उठाकर जेब में रखता देखकर जलीरा पुनः हँस दिया ।
"यह मेरी मेहनत की कमाई थी ।" जयपाल ने कहा–"मैंने कसम खाई थी कि तुमसे इसे जरुर वसूल करूँगा ।"
"ब्याज भी चाहिए ।"
नफरत के उबाल के कारण जयपाल के होंठों पर पसीना छलक आया था ।
"दरियादिली दिखाने की कोशिश मत करो । मैं यह रकम तुम्हारी लाश से वसूलने की उम्मीद कर रहा था ।"
"तुम्हें रकम वापस मिल गई दोस्त, अब तो शिकायत नहीं है ?"
"तुम घटिया आदमी हो, बेहद घटिया आदमी ।" जयपाल ने कहा और उसे मुस्कुराता पाकर कटुतापूर्वक पूछा–"क्या चाहते हो ?"
"मुझे किसी की तलाश है । यह मत पूछना किसकी । क्योंकि इसका जवाब तुम खुद भी जानते हो । जानते हो न ?"
"शायद ।"
"यह भी जानते हो, मैं वापस क्यों आया हूँ ?''
"जानता हूँ ।" जयपाल अपने होंठों से पसीना पोंछकर बोला–"इस बारे में बातें भी करूंगा, क्योंकि मुझे उम्मीद है तुम्हें फाँसी के फंदे पर पहुँचाने का सामान मैं जुटा सकता हूँ ।"
"उसे छोड़ो और बताओ, मैं वापस क्यों आया हूँ ?"
"तुम 'आर्गेनाइजेशन' पर कब्ज़ा करना चाहते हो । वो तुम्हें विरासत में मिली है । तुम्हें बेवकूफ़ हथियारबंद लोगों की पूरी भीड़ चाहिए ताकि भ्रष्टाचार और हिंसा का बाजार और ज्यादा गर्म कर सको । तुम और रनधीर बड़े ही गहरे दोस्त थे–'दो जिस्म एक जान ।' लड़कपन में जो गिरोह तुम लोगों ने बनाया था उसके उसूलो से आखिर तक चिपके रहे हो । तुम दोनों ने एक–दूसरे के खून की कसम खाई थी और वादा किया था । अब तुमने उसी वादे को निभाना है और कसम पूरी करनी है ।" जयपाल तनिक रुककर बोला–"क्योंकि अपने वादे के मुताबिक रनधीर ने अपने सभी धंधों, क्लब इमारतों, नगदी वगैरा को वसीयत द्वारा तुम्हारे नाम कर दिया
था ।"
"इसके लिए मैं उसका शुक्रगुज़ार हूँ ।"
"लेकिन इसमें एक रुकावट भी है...इन सब चीजों को अपने पास रखने के लिए तुम्हें कड़ी जद्दोजहद करनी पड़ेगी ।"
जलीस ने मुस्कुराते हुए देर तक उसे घूरा ।
"तुम्हें यकीन है, मैं इसीलिए वापस आया हूँ ?"
"हाँ । तुम बरसों तक यहाँ से दूर रहे हो । लेकिन अब यहाँ करोड़ो का माल और एक पूरी आर्गेनाइजेशन है । अब तुम इस सबको संभाल सकते हो । जहाँ तक हत्या का सवाल है वो एक संगीन जुर्म है और आसानी से साबित किया जा सकता है ।"
"तुम बेवकूफ़ हो, जयपाल । मुझे न तो दौलत की जरुरत है न आर्गेनाइजेशन की और न ही इसलिए मैं यहाँ आया हूँ । साथ ही एक बात और अपने भेजे में बिठा लो । रनधीर की हत्या मैंने नहीं की थी । जो भी मुझे हत्यारा समझता है, वह यकीनन पागल है ।"
जयपाल के चेहरे पर व्याप्त तनाव का स्थान उत्तेजना मिश्रित व्याकुलता ने ले लिया ।
"मेरे यहाँ आने का इकलौता मकसद है ।" जलीस ने कहना जारी रखा–"उस आदमी का पता लगाना जिसने रनधीर की हत्या की थी । मुझे किसी भी कीमत पर उसका हत्यारा चाहिए, समझे ?"
"समझ गया । लड़कपन में ली गई खून की कसम को पूरा करने के लिए तुम अपने दोस्त के हत्यारे की हत्या करना चाहते हो । जयपाल कटुतापूर्वक बोला–"ठीक है, तुम उसका पता लगाओ । मैं पूरी तरह तुम्हारा साथ दूँगा और भगवान से प्रार्थना करुंगा कि तुम वाकई उस सूअर की जान ले लो ताकि मैं तुम्हें सही स्थान दे सकूँ । रनधीर के हत्यारे का पता लगाने में मैं तुम्हारी मदद करूँगा, जलीस । मैं तो कहता हूँ इस बहाने तुम सभी पुराने बदमाशों के गिरोहों का सफाया कर दो । पूरे इलाके की ईंट से ईंट बजा दो । रनधीर के साए में पली पूरी युवा पीढ़ी जुर्म को पेशे के तौर पर अपना चुकी है ।" वह अपनी कुर्सी खिसकाकर खड़ा हो गया–"एक बात बताओ जलीस, जहाँ से तुम आए हो वहाँ तुम बहुत बड़ी चीज थे । वाकई बड़ी चीज ?"
जलीस पुनः हँसा ।
"वाकई बड़ी चीज़ ।"
जयपाल की आँखें चौड़ी हो गईं ।
"रनधीर से भी बड़े ?"
"बहुत ज्यादा बड़ा ।"
"फिर भी मैं तुम्हारी आबिच्यूरी लिखूँगा ।"
"जरुर लिखना । अगर तुम रनधीर के हत्यारे का पता लगाने में मदद करोगे तो मैं बैकग्राउंड डिटेल्स भी तुम्हें दे दूँगा ।"
"तुम्हारी मदद करके मुझे बेहद खुशी होगी ।"
"तुम सीरियस हो ?"
"बिल्कुल । तुम बचपन से मुझे जानते हो । तुम सबसे ताकतवर थे लेकिन मैं डेढ़ पसली का होते हुए भी डरपोक नहीं था । सभी बदमाश भी मुझे जानते हैं और यह भी कि मैं उनके बारे में क्या सोचता हूँ । मैं जब चाहूँ अपने अखबार के जरिए उनकी पोल खोलकर उन्हें खाक में मिला सकता हूँ । इसलिए वे मुझसे दूर ही रहते है । पेशे के लिहाज से मुझे खतरा तो वे समझते है । लेकिन मुझे हाथ नहीं लगा सकते । वे जानते हैं उस सूरत में कानून उन्हें नहीं छोड़ेगा और मेरा अखबार भी इतना शोर मचाएगा कि उनके लिए भारी मुसीबतें खड़ी हो जाएंगी ।" जयपाल के होंठों पर मुस्कराहट उभरी–"रनधीर मर चुका है और मौजूदा हालात को देखते हुए मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि अगला नंबर तुम्हारा है और मैं समझता हूँ, यह अच्छा ही होगा ।" उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं–"तुम नहीं जानते जलीस, कि तुम्हें विरासत में कितनी ज्यादा मुसीबतें मिली है ।"
"विरासत में मुझे कुछ और भी मिला है ।"
जयपाल के हाथ मेज के सिरे पर कस गए । उसने जलीस को घूरा ।
"क्या ?"
"सोनिया । सोनिया ब्रिगेजा ।"
"उससे दूर ही रहना, जलीस । अगर तुमने अपने गंदे हाथ उसे लगाए तो मैं खुद तुम्हारी जान ले लूँगा ।"
"इतना ज्यादा प्यार करते हो उससे ।"
"बको मत ।"
"जब तक रनधीर रहा, सोनिया उसकी थी । अब वह मेरी है । वह भी विरासत का एक हिस्सा है ।"
"तुम जल्दी ही मारे जाओगे, जलीस ।"
"लेकिन तुम्हारे हाथों नहीं । तुम कानून और व्यवस्था से बुरी तरह चिपके रहने वाले आदमी हो । तुम मेरी जान लेने के बारे में सिर्फ सोच सकते हो ले नहीं सकते क्योंकि तुम जानते हो तुम्हारी ऐसी कोई कोशिश कभी कामयाब नहीं होगी अलबत्ता इस चक्कर में तुम्हारी अपनी जान जरुर जाती रहेगी ।"
जयपाल कुछ नहीं बोला ।
"जलीस मुस्कुराया ।
सोनिया पहले भी काफी खूबसूरत थी लेकिन उन दिनों उसकी उम्र बहुत कम थी । मगर अब मैने सुना है, वह कयामतखेज हसीना बन चुकी है । मॉडलिंग करती है और डांसर भी है । स्टेज पर उसका डांस देखकर लोग दीवाने हो जाते है । तुम जैसा मरियल और कंजूस आदमी उसे कैसे प्यार कर सकता है ?"
"मैं उसे प्यार नहीं करता ।" जयपाल गहरी साँस लेकर बोला–"लगता है कि तुम भूल गए, उसकी विधवा माँ मेरी माँ की मुहबोली बहन थी । इस तरह वह मेरे लिए अपनी बहन जैसी है ।"
जलीस सचमुच भूल गया था लेकिन अब उसे याद आ गया ।
"ठीक है, मैं याद रखूंगा कि वह तुम्हारी बहन है । लेकिन अगर मेरे और उसके मामले में तुमने दखल दिया तो मैं तुम्हारी पिटाई कर दूँगा ।"
"पुराने वक़्तों की तरह ?"
"हाँ ।"
जयपाल कई पल खामोशी से उसे देखता रहा । फिर पूछा–"तुम मेरे पास किसलिए आए हो ?"
"बातें करने ।"
"किस बारे में ?"
"रनधीर की मौत कैसे हुई थी ?"
"तुमने अखबारों में नहीं पढ़ा ?"
"वो सब मैं पढ़ चुका हूँ । अब तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ ।"
"दस्तक के जवाब में रनधीर ने अपने अपार्टमेंट का दरवाज़ा खोला ।" जयपाल ने लापरवाही से कहा–"और हत्यारे ने सीधी उसकी गरदन में गोली मार दी ।"
"बाईस कैलीबर की पिस्तौल से ?" जलीस बोला ।
"हाँ और फायर इतना नज़दीक से किया गया था कि रनधीर की गरदन पर बारुद से जलने का निशान भी बन गया था ।" तनिक रुककर जयपाल ने कहा–"बाईस कैलीबर की पिस्तौल...यानि लेडीज वैपन ।" उसके स्वर में व्यंग का पुट था–"लेकिन इससे अपनी विरासत की फिक्र मत करना । सोनिया ने उसे शूट नहीं किया था । उस रात वह एक स्टेज शो के लिए रिहर्सल कर रही थी ।"
"और दीना कहाँ था ?"
"उसके पास उस वक्त की तगड़ी एलीबी है ।"
"यह तो अखबारों में भी छपा था कि रनधीर ने उसे वाइन शॉप से स्कॉच लाने के लिए भेजा था । लेकिन इस बारे में तुम क्या कहते हो ?"
"दीना जब वाइन शॉप में था रनधीर ने उसे फोन किया था और साथ में ब्रांडी की भी एक पेटी लाने को कहा था । वाइन शॉप में रनधीर का वो आर्डर खुद वहाँ के मालिक ने लिया था और पेटियाँ लेकर दीना के साथ वह आया भी खुद ही था । जब वे दोनों वापस पहुँचे तो रनधीर को मरा पड़ा पाया ।"
"और हर एक ने उस वारदात पर इसी ढंग से यकीन कर लिया ?"
"हाँ । क्योंकि शक की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी । बाद में वाइन शॉप के मालिक ने बताया कि उसके और रनधीर के बीच एक कोड वर्ड तय था । जैसे फोन पर विस्की का आर्डर देते समय रनधीर बोला करता था 'आर्गेनाइजेशन' ताकि दूसरे लोग उसका नाम लेकर उसके एकाउंट में स्कॉच न मँगा सकें । हमेशा की तरह उस रात भी वही कोड वर्ड फोन पर बोला गया था । यानि वाइन शॉप के मालिक को पूरा यकीन था कि फोन पर ब्राँडी का आर्डर देने वाला रनधीर ही था ।"
"और इस तरह दीना साफ बच गया ।"
"हाँ । वैसे भी इतना होशियार और हौंसलामंद वह कभी नहीं रहा कि रनधीर तो क्या किसी मामूली आदमी की भी हत्या की योजना बनाकर उसे अमल में ला सके ।"
"तो फिर रनधीर की हत्या किसने की ?"
"यह पुलिस वालों से पूछो ।"
"पुलिस वाले रनधीर की मौत से इतने ज्यादा खुश है कि उसके हत्यारे का पता लगाने में कोई दिलचस्पी उन्हें नहीं है और मुझे भी जानकारी नहीं चाहिए सिर्फ दूसरों के अनुमान जानना चाहता हूँ ।"
जयपाल के चेहरे की माँसपेशियां तन गईं ।
"काश ! मैं कोई अनुमान लगा पाता । काश, मेरे पास किसी तरह की कोई लीड इस मामले में होती तो तुम्हें जरुर बताता, जलीस । क्योंकि मैं उस वक्त भी तुम्हारे पास ही रहना चाहता हूँ जब तुम हासिल करने की कोशिश करोगे ।"
"क्या ?"
"अपनी विरासत ।"
* * * * * *
बारिश पुनः आरंभ हो गई थी । हालांकि वेग ज्यादा नहीं था लेकिन सड़कें और फुटपाथ लगभग खाली नजर आ रहे थे ।
जलीस करीब अस्सी साल पुरानी एक ऐसी इमारत के सामने खड़ा था जिसे बाहरी तौर पर नई शक्ल दी जा चुकी थी लेकिन पुरानेपन की झलक अभी भी मौजूद थी । पुराने वक़्तों में हाथ से लिखे साइन बोर्ड के स्थान पर अब वहाँ नियोन साइन चमक रहा । था । मगर अक्षर अभी भी वे ही थे–प्रिंसेज पैलेस ।
रनधीर बड़ा ही जज्बाती था, जलीस ने सोचा । लड़कपन के स्लोगन 'वन्स ए प्रिंस, आलवेज ए प्रिंस' से वह आखिर तक चिपका रहा । शहर में कई शानदार अपार्टमेंटों और क्लबों का मालिक वह था । लेकिन अपना हैडक्वार्टर्स उसने उसी पुरानी जगह में रखा जहाँ से 'प्रिंसेज' ने शुरुआत की थी ।
शुरुआत से आखिर तक फर्क सिर्फ तीन खंडों का रहा था । 'प्रिंसेज' ने अपनी शुरुआत बेसमेंट से की थी । फिर एक–एक करके सभी खंडों में रहने वाले किराएदारों को वहाँ से निकालकर वे कब्ज़ा जमाते रहे । इमारत के बूढ़े मालिक का कोई वारिस तो क्या दूर का रिश्तेदार भी नहीं था । उसकी मौत के बाद पूरी इमारत 'प्रिंसेज' की मिल्कियत और उनका हैडक्वार्टर्स बन गई ।
'प्रिंसेज पैलेस यानि शहजादों का महल । शहजादों ने एक बार फिर महल में दरबार लगा रखा था । बादशाह मर चुका था और नए बादशाह के लिए वे आपस में खींचतान कर रहे थे । मगर उनको अभी बहुत कुछ सीखना था । अपनी आपसी खींचतान उन्हें बंद करनी पड़ेगी ।
नया बादशाह जो आ पहुँचा था ।
जलीस ने प्रवेश द्वार खोला । यह पहला मौका था कि दरवाज़े पर कोई नहीं था । पुराने वक़्तों में वहां हर समय एक आदमी मौजूद रहा करता था और कलाई पर बना निशान देखकर ही आगंतुकों को अंदर जाने देता था ।
ऊपर जाते समय उसने नोट किया–सीढ़ियों पर वही कारपेट बिछा था । उसमें जगह–जगह बन छेद और ज्यादा बड़े हो गए थे । काठ की मोटी रेलिंग पर अभी भी एक स्थान पर छोटा गड्ढा बना हुआ था । जहाँ महादेव मारे जाने से एक रात पहले अपने चाकू की नोंक से काफी देर तक गोलाई में लकड़ी खुरचता रहा था ।
रेलिंग का ऊपरी लैंडिंग वाला टूटा सिरा बरसों तक सैकड़ों हाथों के लाखों मर्तबा फिसलने की वजह से घिसकर चिकना और पतला हो गया था ।
लैंडिंग पर रुककर जलीस ने पैर से दरवाजे का पल्ला पीछे धकेला । वो बगैर कोई आवाज़ किए खुल गया, वहां मौजूद आदमी अपने कोट की जेबों में हाथ घुसेड़े बार से परे चबूतरे पर चल रही कार्यवाही को देखने में इस कदर मशगूल था कि होंठों में दबे सिगरेट का धुआँ उसकी आँखों में घुस रहा था मगर इस तरफ उसका कोई ध्यान नहीं था ।
दरवाजे में खड़े जलीस ने देखा । पुराने वक़्तों में जहाँ फलों की खाली पेटियों और पुरानी बैंचो पर लड़के बैठा करते थे वहीं अब थिएटर की भांति आरामदेह पुश बैक चेयर्स पर भारी बदन और कीमती लिबास वाले आदमी मौजूद थे । उनमें से कई चेहरे ऐसे थे जो अक्सर अखबारों के मुख पृष्ठ पर नजर आते रहते थे । उन सबके चेहरे भावहीन थे लेकिन आँखों में धूर्ततामिश्रित साधन सम्पन्नता की चमक साफ पढ़ी जा सकती थी ।
माइक पर जैकी से जयकिशन सबरवाल बने आदमी की आवाज़ में अभी भी वैसा ही भारीपन था । उसके बाल कनपटियों पर सफेद हो गए थे । शरीर पर चर्बी भी और ज्यादा चढ़ गई थी । सफलतम बिजनेसमैन नजर आने के बावजूद वह वही जैकी था जो कम–से–कम पंद्रह बार पुलिस के जाल से बचने में कामयाब रहा था और बीस–बाईस साल की उम्र तक ही जो लाखों रुपए की हेरोइन बेच चुका था मगर पकड़ा कभी नहीं गया ।
चबूतरे पर उसकी बगल में दीना था–दीनानाथ । पतला शरीर, पीली रंगत और पिचके गाल लगभग बीस साल से हेरोइन का नशा करते आ रहे दीना का अब तक जिंदा रहना अपने आपमें किसी अजूबे से कम नहीं था । वह शानदार सूट पहने था और उसकी उंगलियों में हीरे की अंगुठियाँ चमक रही थी ।
सहसा दरवाजे के अंदर खड़े आदमी की निगाह उस पर पड़ी और वह उसकी ओर पलट गया और किसी गावदी की भांति पलकें झपकाई ।
"आपके पास कार्ड है ?"
जलीस ने जवाब नहीं दिया । वह जानता था कि अब सभी मेम्बर्स के लिए कार्ड रखना जरुरी था । जब उसे लगा कि वह आदमी गौर से उसे देख चुका था तो उसने अपने कोट और कमीज की आस्तीने खिसकाकर दायीं कलाई उसके सामने कर दी जहाँ बरसों पहले चाकू की नोंक से अंग्रेजी के अक्षर पी.पी. बनाये जाने के जख्मों के पुराने निशान अभी भी साफ नजर आ रहे थे ।
वह झटका सा खाकर तनिक पीछे हट गया ।
जलीस आगे बढ़ा और कुर्सियों की पिछली कतार में सिरे पर जा बैठा । बगल में औसत कद और इकहरे जिस्म का जो आदमी मौजूद था उसका नाम पीटर रोडरिक था । मगर उसकी चुस्ती–फूर्ती को देखते हुए मुद्दत पहले जलीस ने उसका नाम बिलाव रख दिया था । फिर सब उसे इसी नाम से पुकारने लगे थे । पीटर यानि बिलाव उनके जासूस का काम किया करता था ।
"हैलो, बिलाव ।" वह बोला ।
पीटर बुरी तरह चौंका ।
"ओह, माई गॉड...जलीस । तुम कब...।"
"क्या हो रहा है ?"
"ओह ! जलीस खान...।"
"मैंने तुमसे कुछ पूछा था, बिलाव ।"
"हम क्लब यानि आर्गेनाइजेशन को रीआर्गेनाइज...जैकी का ख्याल था...।"
"वह बॉस कब बना ?"
पीटर ने कठिनता से थूक निगला ।
"रनधीर की मौत के बाद ही बन गया था । ओह ! जलीस । दरअसल क्लब बहुत बड़ा है । बगैर बॉस के इसे कंट्रोल नहीं किया जा सकता ।"
जलीस ने हाथ हिलाकर उसे चुप होने का संकेत कर दिया ।
माइक के सामने खड़ा जैकी पूरे जोश में था । नए बॉस के रूप में वह अपना नाम पेश कर रहा था और उसके चेहरे पर व्याप्त भावों से जाहिर था, उसे पूरा यकीन था कि इसका विरोध नहीं किया जाएगा ।
'शहज़ादे' अब अपने आपमें तोप ची ज से थे । उनके पास दौलत थी । प्रत्येक प्रकार के साधन थे । पुलिस विभाग पर उनका प्रभाव था । राजनीति में भी उनका पूरा दखल था । लेकिन जैकी में ये तमाम 'ख़ूबियाँ सबसे ज्यादा थीं ।
जलीस ने दूसरों की प्रतिक्रिया जानने के लिए आस–पास निगाहें दौड़ाईं । पुराने वक़्तों की तरह, उसने नोट किया–उन लोगों को यह पसंद तो नहीं आया था लेकिन फिलहाल खुलकर विरोध करना भी वे नहीं चाहते थे । वक्ती तौर पर वे सभी इसे स्वीकार कर रहे प्रतीत हुए ।
जब जैकी मुस्कुराया तो जलीस समझ गया कि उसकी स्पीचं खत्म हो चुकी थी । अब वे सब उठकर बार में जाएंगे और स्वयं को इस मामले में एकमत जाहिर करने के लिए एक साथ जाम पिएंगे ।
"अब...किसी को कोई सवाल करना है ?" जैकी ने पूछा ।
जलीस खड़ा हो गया ।
"मुझे कुछ कहना है, जैकी ।"
बगल में बैठा पीटर खांसा और अपनी कुर्सी में दुबक–सा गया ।
सभी की गरदनें जलीस की ओर घूम गई थीं । कानाफूसी शुरु हो गई । जोर से बोलकर उसका नाम लेने की पहल कोई नहीं करना चाहता था ।
कानाफूसी के स्वर तेज होने लगे ।
करीब दो मिनट तक यही माहौल रहा तो जैकी समझ गया कि बाजी उसके हाथ से निकल गई थी । उसने लोगों को खामोश कराने की कोशिश की तो दीना ने उसे कोहनी से टहोका लगाकर रोक दिया ।
"कौन हो तुम ?" जैकी मे पूछा ।
"गौर से देखो ।" जलीस बोला–"खुद ही पहचान जाओगे ।"
तभी दूर एक सिरे पर किसी ने कहा–"जलीस खान ।" अगले ही पल हर एक गरदन तेजी से वापस घूम गई । लगभग हर एक के मुंह से आगे–पीछे निकलता यही नाम जैकी के कानों तक भी जा पहुंचा । उसका चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा लेकिन उसके बगल में पत्थर की मूर्ति की तरह खड़े दीना का पीला चेहरा सफेद पड गया ।
जब सब खामोश हो गए तो जलीस ने कहा–"अगर तुम नए लोगों में से किसी को नियमों की जानकारी नहीं है तो मैं बताता हूँ ।" उसका स्वर ठोस था–"यहाँ कोई भी कुछ भी रीआर्गेनाइज नहीं करेगा । पूरी आर्गेनाइजेशन को मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ । अभी और इसी वक्त से ।"
जैकी ने सहारे के लिए माइक का स्टैंड थाम लिया ।
"नहीं, जलीस । तुम वापस आकर यहाँ...।"
"यहाँ आओ, जैकी ।"
एकाएक भारी खामोशी छा गई ।
"यहाँ आओ, जैकी ।" जलीस ने पुनः कहा । इस दफा उसके लहजे में आदेश था–"दस बड़े कदम उठाओ फिर तीन छोटे ।"
चबूतरे पर जैकी ने पहला हिचकिचाहट भरा बड़ा कदम उठाया...। फिर एक और...फिर सीढ़ियों से नीचे उतरा...और फिर रुक गया ।
"यहाँ आओ, जैकी ।"
उसका चेहरा पीला पड़ गया था । वह बार–बार होंठों पर जीभ फिरा रहा था । धीरे–धीरे चलकर वह जलीस के सामने आ खड़ा हुआ ।
जलीस को जब यकीन हो गया कि सबकी निगाहें उधर ही थी, उसने जैकी के चेहरे पर खुले हाथ का झापड़ जमा दिया ।
तड़ाक !
बुरी तरह लड़खड़ा गया जैकी, पीछे दीवार से टकराया फिर नीचे जा गिरा ।
"दीना...।" जलीस ने पुकारा ।
पीछे दरवाजे में खड़े आदमी ने गहरी सांस ली ।
पीटर अपनी कुर्सी में और ज्यादा दुबक गया ।
दीना सधे हुए कदमों से आगे आया । उसकी आँखों की चमक और हिंसक मुस्कुराहट से स्पष्ट था कि हेरोइन की फिल्स लिए ज्यादा देर नहीं हुई थी और इस समय नशे के इतने ज्यादा प्रभाव में था कि वह भूल गया कि उसकी बारीक फल वाली नुकीली और दोधारी छूरी से न डरने वाला भी कोई था ।
जलीस ने उसे अपने एकदम पास आने दिया । फिर इतनी सफाई और फूर्ती से उसके हाथ से छुरी खींच ली कि उसे तभी पता चल सका जब जलीस ने छुरी को उसकी ठोढी में गड़ाकर खून निकाल दिया ताकि सब देख सकें । फिर उसके मुँह पर हाथ जमा दिया ।
दीना भी नीचे जैकी के पास जा गिरा और वहीं पड़ा हाँफता रहा ।
सब अपलक जलीस को देख रहे थे ।
जलीस उनकी ओर देखकर मुस्कराया ।
"अब आप सबको रूल्स का पता चल गया ।" वह बोला–"आर्गेनाइजेशन में डेमोक्रेसी नहीं डिक्टेटरशिप चलती है और मैं नया बॉस हूँ । हम जिस तरह चाहते हैं एक से दूसरे को बॉस की कुर्सी सौंप देते हैं । जब भी आप लोगों को लगे आप इतने बड़े हो गए हैं कि बॉस की कुर्सी छीन सकते हैं तो कोशिश कर सकते हैं । सिर्फ कोशिश । लेकिन उससे पहले यकीनी तौर पर जरुर जान लेना कि वाकई आप इतने बड़े हो गए हैं ।"
जलीस ने उन पर निगाहें दौड़ाई । सबके चेहरों पर कृत्रिम मुस्कुराहट थी । उनमें से कुछेक ने गरदने झुका लीं । कुछेक ने सर हिलाकर सहमति जताई और कुछेक नफरत से घूरने लगे । लेकिन उनमें से अधिकांश सहम चुके थे ।
"पिछले कुछ वर्षों में कुछेक चीजें बदल गई हैं ।" जलीस ने आगे कहा–"मैं नए चेहरे देख रहा हूँ । महत्वपूर्ण लोग भी । मैं जानता हूँ आप यहाँ क्यों मौजूद है और क्यों क्लब से जुड़े हैं । मुझे उम्मीद है, आपमें से कोई भी किसी किस्म का तमाशा खड़ा करने की कोशिश नहीं करेगा । इस धंधे की सबसे ज्यादा समझ मुझे है । यह बात आप सबको याद रखनी है । जब तक मैं सभी मामलात पर एक नजर नहीं डाल लेता हूँ, आर्गेनाइजेशन उसी तरह चलती रहेगी जैसे रनधीर के होते हुए चलती थी । अब... किसी को कुछ पूछना है ?"
दूर एक हाथ ऊपर उठा ।
"जलीस खान...।"
"कौन है ?"
"सोहन लाल ।"
"बोलो सोहन ।"
"तुम बॉस बनने ही आए हो ?"
"हाँ । अगर कोई और भी बॉस बनने की कोशिश करना चाहता है तो तुम चुन सकते हो कि किसका साथ देना है ।"
"मुझे खुशी है कि तुम वापस आ गए, जलीस खान ।"
"शुक्रिया ।" जलीस ने कहा, तनिक रुककर बोला–"अमोलक राय सभी पेपर्स को संभाल रहा है । उसके लिए कोई परेशानी पैदा मत करना । मुझे कम्पलीट लिस्ट चाहिए सभी मेम्बर्स की और उन तमाम चीजों की जो रनधीर की थी । अगर कोई जानकारी छिपाने की कोशिश करेगा तो उसके लिए मुश्किल हो जाएगी...ठीक वैसी ही जैसी कि पुराने वक़्तों में हुआ करती थी ।"
जलीस की ओर देखते एक आदमी के सपाट चेहरे पर तिरस्कार भरे भाव उत्पन्न हो गए । भारी बदन के उस आदमी के होंठों पर चाकू के पुराने ज़ख्म के निशान थे ।
"बशीर ।" जलीस बोला–"तुम यकीन कर रहे नहीं लगते ।"
बशीर अहमद कुछ नहीं बोला ।
सुलेमान पाशा के चेहरे पर भी उपहासपूर्ण भाव थे ।
"मुझे भी यह सब अजीब सा लग रहा है, खान साहब ।"
"अच्छा ?" जलीस उसे गौर से देखता हुआ बोला–"तुम्हारी बगल में एक मिस्टर कमल किशोर बैठे हैं । इन दिनों स्थानीय प्रशासन तकरीबन इनकी मुट्ठी में है । क्या तुम इन्हें अच्छी तरह जानते हो ?"
"जी हाँ ।"
"कभी इनका नंगा पेट देखने का मौका मिला है ?"
"साथ–साथ टर्किश बाथ लेते हुए कई बार देखा है ।"
"तब तो इनके पेट पर जख्मों के पुराने निशान भी जरुर देखे होंगे ।"
"जी हाँ । देखे हैं ।"
"इन्होंने कभी बताया कि वे ज़ख्म कैसे लगे थे ?"
"नहीं ।"
"इनसे पूछना फिर यह सब अजीब नहीं लगेगा ।"
सुलेमान पाशा की मुस्कराहट गायब हो गई ।
तीन–चार स्थानों से धीमी हुंकार सी उभरी तो जलीस समझ गया कि पुराने साथियों में से कुछेक अभी भी मौजूद थे ।
"अब मैं आखिरी बात कहता हूँ ।" एक सीट की पुश्त पर तनिक झुककर वह बोला–"जिसने रनधीर की हत्या की थी उसके लिए बेहतर होगा कि वह दौड़ना शुरु कर दे । क्योंकि मैं उसे नहीं छोडूंगा । जब भी वह मेरे हाथ पड़ जाएगा वही उसकी जिंदगी का आखिरी दिन होगा ।"
अब तक जैकी और दीना भी खड़े हो चुके थे लेकिन जो हो चुका था उसे उनके दिमाग अभी भी क़बूल नहीं कर पा रहे थे । फिर उनके चेहरों से लगा कि वे सत्रह साल पहले की उन खौफनाक बातों को याद कर रहे थे जो इसी इमारत के बेसमेंट में हुआ करती थीं और फिर वे समझ गए कि वही बातें दोबारा हो रही थीं ।
जलीस को यह अच्छा लगा ।
पीटर गौर से उसे देख रहा था ।
"आओ, बिलाव ।" जलीस बोला–"चलते हैं ।"
पीटर हँसता हुआ खड़ा हो गया ।
बाकी सब भी उठने के लिए तैयार नजर आ रहे थे ।
"अन्य लोगों को मेरे आदेश मिलते रहेंगे ।" जलीस ने कहा–"उन पर आपने सही ढंग से अमल करना है ।"
दरवाजे पर खड़े आदमी ने अदब से सर झुकाकर दरवाज़ा खोल दिया ।
जलीस और पीटर बाहर निकलकर सीढ़ियाँ उतरने लगे ।
वे नीचे उस कमरे में पहुँचे जहाँ अमोलक पेपर्स, फाइलों वगैरा को व्यवस्थित करने में व्यस्त था । वह दीवार पर लगे स्पीकर की ओर देखकर बोला–"इंटरकाम" ।
"इसका मतलब है, तुम सब सुन चुके हो ?" जलीस ने पूछा–"और जान गए हो कि तुम मेरे साथ हो ?"
"हाँ, जलीस खान । मैं जानता हूँ मुझे क्या करना है ।"
"दैट्स गुड ।"
पीटर को साथ लिए जलीस प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया ।
दोनों बाहर सड़क पर आ गए ।
अचानक पीटर रुककर खाँसने लगा । कई बार बलगम थूकने के बाद खाँसी रुक गई तो भी वह देर तक हाँफता रहा ।
"मुझे अपने साथ क्यों लिया, जलीस ?" अंत में उसने पूछा ।
"पुराने वक़्तों की तरह तुम्हारी चुस्ती, फुर्ती और आँखों–कानों की अभी भी मुझे जरुरत है । जहाँ कोई नहीं जा सकता तुम वहाँ भी जा सकते हो ।"
"नहीं, जलीस । अब मैं पहले की तरह बिलाव वाले काम नहीं कर सकता ।"
"क्यों ? बीमार हो ?"
"मुझे टी.बी. है । दोनों फेफड़े बेकार हो गए । फिर भी इतनी जल्दी नहीं मरूँगा जितना कि तुम मरने वाले हो ।"
"तुम ऐसा समझते हो ?"
"हाँ, जलीस । वे किसी भी कीमत पर तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे । आर्गेनाइजेशन को अपने खास ढंग से चलाने की बड़ी–बड़ी योजनाएं उन्होंने बना रखी हैं ।"
"क्या करना चाहते हैं वे ?"
"ड्रग्स के धंधों से करोड़ों कमाते रहना ।" पीटर राजदाराना लहजे में बोला–"और बड़े–बड़े राजनीतिबाजों की मेहरबानियाँ हासिल करने के लिए उनके इशारों पर मजहबी जुनून फैलाना । जबकि तुम उन्हें ऐसा करने नहीं दोगे और अपनी योजनाओं को पिटते वे नहीं देख सकेंगे । तुम्हें ऐसा नहीं लगा कि कोई भी तुमसे खुश नहीं था ?"
जलीस मुस्कुराया ।
"लगा था । उनकी खामोशी उनकी नापसंदगी का सबूत थी ।"
"तुमने अचानक और बड़ी तेजी से उन पर हमला बोल दिया । जबकि वे लोग पुरानी ट्रिक्स के आदी नहीं है । आजकल उनके तौर–तरीके बिल्कुल अलग है । उनकी सोच ऊंची हो गयी है । पुराने वक़्तों में तुम लोग अपने दम–खम पर बेसमेंट में जो किया करते थे वैसा अब वे नहीं करते । हुक्म देकर नीचे के लोगों से मारा–मारी कराते हैं । लेकिन तुमने अचानक नमूदार होकर पहले तो उन्हें चौंकाया फिर पुरानी ट्रिक्स इस्तेमाल करके उनके छक्के छुड़ा दिए । इन बातों से मुझे भी डर लगता है । अब वो सब मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता ।"
"वे भी नहीं कर सकते । क्योंकि अब उनमें न तो हौसला है और न ही ताक़त । हालात बदल गए हैं ।"
पीटर हंसा ।
"मैं तुम्हारे साथ हूँ । हालांकि यह साथ लंबा नहीं चलेगा फिर भी मैं आखिर तक साथ दूँगा ।"
"तुम मरने से नहीं डरते ?"
"मैं जीने से डरता हूँ दोस्त । मुझे तिल–तिल करके मरना पड़ रहा है ।" पीटर ने मुस्कुराकर कहा और दोनों आगे बढ़ गए ।
* * * * * *
कांस्टेबल वही था जो बरसों पहले भी उसी इलाके में गश्त लगाया करता था । ऊंचा, मजबूत कसरती शरीर और नाम था–बलराम सिंह । ईमानदार, फर्ज का पाबंद और हैकड़ । चालीस पार कर चुकने के बावजूद उसकी चाल में वही चुस्ती थी, और कदमों में वही दृढ़ता । डंडे पर पकड़ भी पहले की भांति मजबूत थी । इलाके के तमाम लोगों से बखूबी वाक़िफ़ बलराम सिंह से वहाँ की कोई भी अच्छी–बुरी बात छिपी नहीं थी ।
वह जलीस के ठीक सामने आकर रुका ।
"मैंने सुना था तुम वापस आ गए हो, जलीस खान ।"
"ऐसी ख़बरें तेजी से ही फैला करती है ।" जलीस बोला ।
"मैंने यह भी सुना था कि फसाद शुरु हो चुका है ।"
"सही मायने में नहीं ।"
बलराम सिंह ने उसके सीने पर बांयी ओर अपनी अंगुली हृदयाकार आकृति बनाते हुए घुमाई ।
"यह शरीर का सबसे नाजुक हिस्सा है । एक गोली या चाकू का एक ही बार हमेशा के लिए इसका धड़कना बंद कर देता है ।"
पुराने वक़्तों की तरह बातें कर रहे हो, बलराम ।"
"तुम भी तो वही कर रहे हो. जो पुराने वक़्तों में किया करते थे ।" कांस्टेबल का स्वर कठोर हो गया–"सुनो जलीस, अब तक यहाँ शांति रही है । किसी को शूट नहीं किया गया है ।"
"सिवाए रनधीर के ।"
"उसका तो यही अंजाम होना था । लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ । मारा–मारी से कोई बात नहीं बनती ।"
"तुम्हारा हृदय काफी बदल गया है वर्ना करीब उन्नीस साल पहले तुम्हीं ने हथकड़ियों से मुझे तगड़ी मार लगाई थी ।"
"मुझे भी याद है । लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ ।"
"थोड़ा सा हुआ था । मैं जान गया हूँ कि हथकड़ियों की मार कैसी होती है । दोबारा ऐसा नहीं होगा ।"
"ऐसा दावा मत करो ।" कांस्टेबल ने उसे घूरा–"अब तुम बड़े भारी बखेड़े में फँस गए हो । अपने दिन गिनने शुरु कर दो । ज्यादा दिन नहीं बचे हैं ।"
जलीस हँसा और डंडा झुलाते उसके हाथ पर निगाह डाली ।
कांस्टेबल का चेहरा सुर्ख हो गया ।
"तुम होशियार आदमी हो, जलीस ।"
"शुक्रिया ।"
"अब तक कितने लोगों को शूट कर चुके हो ?"
"आठ को । दो को अभी करना बाकी है ।"
"मेरी गश्त के वक्त कोई गड़बड़ मत करना ।"
"कोशिश करूँगा, जेबों में हाथ घुसेड़कर जलीस ने लापरवाही से कहा–"लेकिन अगर कुछ होता है तो तुम भी सावधान रहना । तुमसे खास किस्म का लगाव है मुझे ।" और आगे बढ़ गया ।
वह जानता था, उसका पीछा करते लोग यह सब देख और सुन चुके थे । जल्दी ही वे इन बातों को आगे फैला देंगे और वो इस बात का संकेत होगा कि इलाके में अमन–चैन के दिन लद चुके थे ।
* * * * * *
भोलाराम मार्केट ।
वास्तव में एक ऐसी पुरानी तीन मंजिला इमारत थी जिसमें नीचे सब्जी–फल वगैरा की दुकानें थी और ऊपर की मंजिलों पर रिहाइशी फ्लैट थे । सत्रह साल के अर्से में वहाँ इकलौती तबदीली यह आयी थी कि बाहर फुटपाथ पर भी लोगों ने दुकानें लगा ली थीं ।
इमारत के सामने वाले भाग की बगल में बने दरवाजे से सीढ़ियों द्वारा ऊपर की मंजिलों पर जाया जा सकता था ।
सीढ़ियों के दहाने के पास दीवार पर कई लैटर बॉक्सेज़ लगे थे । उनमें से एक पर पेन्ट से लिखा था–माला सक्सेना, सैकेंड फ्लोर ।
जलीस ने सीढ़ियाँ चढ़नी आरंभ कर दी ।
दूसरे खंड की लैंडिंग पर सिर्फ दो दरवाजे थे लेकिन उनमें एक के नीचे से ही रोशनी बाहर झाँक रही थी ।
वहाँ फैले गत्ते के डब्बों और खाली बोतलों से बचते हुए जलीस ने उसी दरवाजे पर दस्तक दी ।
जवाब में अंदर हलचल सी तो हुई लेकिन न तो कोई बोला और न ही द्वार खोला गया ।
जलीस ने पुनः दस्तक दी ।
इस दफा फर्श पर सैंडलों की ठक्–ठक् सुनाई दी फिर दरवाज़ा खोलकर जो युवती प्रकट हुई वह इंतिहाई खूबसूरत थी । गोरा रंग, ऊंचा कद, सुडौल शरीर, उन्नत एवं पुष्ट उभार और जबरदस्त सैक्स अपील ।
जलीस उसे पहचान गया था ।
"हैलो ।" वह प्रशंसापूर्ण स्वर में बोला ।
युवती भौहें सिकोड़े उसे देख रही थी ।
"कहिए ?"
"मुझे माला सक्सेना से मिलना है ।"
युवती ने धीरे से सर हिलाया ।
"सॉरी, वह किसी से नहीं मिल सकती । किसी से भी नहीं ।"
"क्यों ?"
"माला बीमार है । आप मेहरबानी करके...।"
जलीस ने अधखुला दरवाज़ा पूरा खोला, और युवती की बगल से गुजरकर अंदर चला गया । दरवाज़ा पुनः बंद करके वह बैड रूम की ओर बढ़ गया ।
बिजली के बल्ब की पीली रोशनी में माला पीठ के बल पलंग पर पड़ी थी । उसका चेहरा सफेद था, मानों शरीर में खून ही नहीं था । आँखे बंद थीं और साँस बहुत ही धीरे चल रही थी । वह गहरी नींद में सोयी नजर आ रही थी ।
"क्या हुआ इसे ।"
"नींद की गोलियाँ निगल ली थीं ।" बैड रुम में उसके पीछे आ खड़ी हुई युवती ने उत्तर दिया ।
"क्यों ?"
"किसी वजह से बेहद डर गई थी ।"
"अब ठीक है ?"
"पहले से बेहतर है ।" युवती ने गहरी साँस ली–"तुम जाओ और इसे...।"
"मैं अभी नहीं जाऊँगा ।" माला को देखते हुए जलीस ने कहा ।
"तुम्हें अभी जाना होगा वर्ना पछताओगे ।"
"क्यों ?"
"तुम्हारे हाथ–पैर तुड़वा दिए जाएंगे ।"
"मेरे हाथ–पैर बहुत ज्यादा मजबूत हैं ।"
"बेवकूफी मत करो । तुम नहीं जानते मैं कौन हैं ।"
"मैं जानता हूँ बेबी ।" कई सेंकेड की खामोशी के बाद जलीस बोला ।
या तो युवती ने सुना नहीं था या फिर परवाह नहीं की ।
"करीम भाई दारुवाला मेरा...दोस्त है ।" वह बोली–"और तुम जैसे आदमियों को वह बिल्कुल पसंद नहीं करता ।"
जलीस उसकी ओर पलटा और ठोढी के नीचे अंगुली लगाकर उसका चेहरा तनिक ऊपर उठाया ।
"तो फिर उसे मेरी तरफ से कह देना कि वह सिर्फ एक दुच्चा बदमाश है । यह भी कह देना कि उसकी दुम में झरोखा खोलने के लिए मैने एक गोली पर उसका नाम लिख दिया है । अगर वह मेरे रास्ते में आएगा तो उस गोली को इस्तेमाल करने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाऊंगा ।"
जलती निगाहों से घूरती युवती ने उसका हाथ परे झटक दिया ।
"अपना नाम तो बता दो ताकि पता चल सके कौन है जो इतनी जल्दी मरने के लिए उतावला हो रहा है ।" वह गुर्राती–सी बोली ।
जलीस मुस्कुराया ।
"क्या तुम्हारी याद्दाश्त इतनी बुरी है ?" उसने पूछा–"मैंने एक बार तुम्हें एक ऐसे आदमी से बचाया था जो रेप करने वाला था । बख्तावर के गिरोह के उन दो आदमियों से भी बचाया था जो तुम्हें जबरन टैक्सी में डालने की कोशिश कर रहे थे और इस सबसे पहले एक स्टोर के सिन्धी मालिक की गालियाँ भी मुझे सुननी पड़ी थीं क्योंकि उसका ख्याल था कि मैंने उसके सूटकेस से चार चाकलेट चुरा ली थीं । जबकि चाकलेट तुमने चुराई थीं । अब याद आया ?"
वह तनिक पीछे हटकर आँखें फाड़े उसे देखने लगी । "ज...जलीस…।"
"हाँ । तुम्हारी याद्दाश्त तेज नहीं है, सोनिया ।"
युवती के चेहरे से कठोरता गायब होने लगी ।
"जलीस...।" वह पुनः फँसी सी आवाज़ में बोली ।
"तुम प्यार से भी मेरा नाम ले सकती हो बेबी ।"
युवती को धीरे–धीरे याद आने लगा–यही इलाका लड़कों का गिरोह...स्कूल की शरारतें...और एक पुराने मकान की वो छत जहाँ दो बच्चों ने अपना प्यार जाहिर करने के लिए पहली बार एक–दूसरे को किस किया था ।
फिर उसे सब याद आ गया किशोरावस्था की तमाम बातें । हेकड़ी, स्ट्रीट फाइटिंग, शूटिंग और 'प्रिंसेज पैलेस' । उसका चेहरा पुनः कठोर हो गया ।
"तुम पागल हो गए हो, जलीस ।"
"मेरे बारे में यही आम राय है ।" जलीस खोजपूर्ण निगाहों से उसे देख रहा था–"तुम बहुत खूबसूरत हो सोनिया । हालांकि यह कोई बड़ी तब्दीली नहीं है । तुम शुरु से ही खूबसूरत थी ।'
"जानती हूँ ।"
"अपनी खूबसूरती को खूबसूरत ढंग से इस्तेमाल करना भी तुम जानती हो ।" जलीस के स्वर में कटुता का पुट था–"इसलिये आजकल करीम भाई दारुवाला के साथ चिपकी हुई हो ।
कड़ी निगाहों से घूरती सोनिया का हाथ उसके चेहरे की ओर लपका ।
लेकिन जलीस ने कलाई पकड़कर उसका हाथ नीचे झटका और उसे खींचकर स्वयं से सटा लिया ।
"आइंदा ऐसी हरकत मत करना बेबी ।" वह पूर्ववत् स्वर में बोला–"मुझे हाथ लगाने वाला दोबारा हाथ उठाने के काबिल नहीं रहता और मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे साथ ऐसा हो । मुझे उस टुच्चे बदमाश करीम जैसा समझने की गलती भी मत करना, और अगर तुम खुद को अपने स्तर पर रखना चाहती हो, तो मेरे साथ तुम्हें सही ढंग से पेश आना होगा बिल्कुल सही ढंग से । समझीं ? अगर दोबारा मेरे साथ ऐसी हरकत करने की कोशिश की तो तुम्हारे चेहरे का नक्शा हमेशा के लिए बदल दूँगा ।"
"तुम पागल हो, जलीस ।" वह हाँफती सी बोली–"यहां वापस लौटकर तुमने खुद को मौत के मुँह में धकेल दिया है ।"
"यह मैं पहले भी सुन चुका हूँ । लेकिन न तो मैं पहले मरूँगा और न ही अकेला । मुझसे पहले बहुत लोगों को जानें गंवानी पड़ेगी ।"
"यह तुम्हारी भूल है और यही तुम्हें ले डूबेगी ।"
"भूल कौन कर रहा है । जल्दी ही तुम्हें पता लग जाएगा ।"
जलीस ने उसे छोड़ दिया ।
सोनिया पीछे हटकर अपनी कलाई सहलाने लगी ।
"तुम निहायत घटिया आदमी हो, जलीस ।" वह नफरत से भरे स्वर में बोली ।
"माला को क्या हुआ ?"
"पता नहीं । इसने मुझे फोन किया था । इसकी बातों से मुझे लगा कि यह नशे में थी इसलिए मैने कह दिया कि सो जाए । जब मैं यहाँ पहुंची तो यह कुर्सी में बेहोश पड़ी थी । स्लीपिग पिल्स की दस टेबलेट वाली खाली स्ट्रिप इसके पास पड़ी थी ।"
"तुमने डॉक्टर को बुलाया था ?"
"हाँ ।"
"इसकी कंडीशन सीरियस है ।"
"जिस्मानी तौर पर तो नहीं है ।"
"इसने तुम्हें ही फोन क्यों किया, सोनिया ? तुम पॉश एरिये में शान से रहती हो । बारह साल की उम्र में ही तुम यह इलाक़ा छोड़कर चली गई थी । इस वक्त तुम्हारी यहाँ मौजूदगी टाट में मखमल के पैबंद जैसी है ।"
"तुम वाकई निहायत घटिया आदमी हो ।"
"यह मेरे सवाल का जवाब नहीं है ।"
"ठीक है, मैं मानती हूँ कि पॉश एरिये में शान और इज़्ज़त से रहती हूँ । लेकिन फ्रेंडशिप भी तो कोई चीज होती है ।"
"माला तुम्हारी फ्रेंड है ?"
"नहीं । जिंदगी में मैने एक ही सहेली बनाई थी और वह माला की बड़ी बहन थी । तुम्हें वह याद नहीं होगी । क्योंकि उन दिनों लड़कियों की कोई खास अहमियत तुम्हारे लिए नहीं थी । वह मेरी हमउम्र थी और हम दोनों एक ही क्लास में थीं । जानते हो उसके साथ क्या हुआ ?"
माला बार में जलीस को बता चुकी थी ।
"हाँ ।" वह बोला–"रनधीर ने उसे हेरोइन एडिक्ट बना दिया था ।"
सोनिया का चेहरा पुनः कठोर हो गया ।
"और उसने छत से कूद कर ख़ुदकुशी कर ली ।" वह विप भरे । स्वर में बोली–"और इसके लिए जिम्मेदार था तुम्हारा दोस्त ।
"तो ?"
"तो यह कि तुम बेहद कमीने हो ।"
जलीस ने उसके मुंह पर तमाचा जड़ दिया ।
"मेरे साथ तमीज से पेश आओ ।"
सोनिया के चेहरे पर व्याप्त भावों में कोई अंतर नहीं आया ।
"तुम बहुत होशियार, हौसलामंद और सख्तजान हो ?"
"बेशक ।"
"मैं तुम्हारे साथ रहकर तुम्हें मरते देखना चाहती हूँ । तुम्हें ऐतराज है ?"
"बिल्कुल नहीं ।"
"शुक्रिया, मैं तुम्हारी मौत का इंतजार करुंगी, और उस नज़ारे को पूरी तरह एनज्वॉय करुंगी ।"
"मैं उस नज़ारे को दिलकश बनाने की कोशिश करुंगा ।"
"मैं इसमें तुम्हारी मदद करूँगी और इस बात की भी पूरी कोशिश करूंगी कि तुम्हें तड़पा–तड़पा कर मारा जाए ।"
जलीस कुछ नहीं बोला ।
सोनिया ने अपने कथन को वजन देने के लिए तेजी से उसके गले में बाँहें डालकर उसके होंठों पर चुंबन जड़ दिया, मौत का चुंबन । जिसमें हैलो और गुडबाई एक साथ थे । फिर उतनी ही तेजी से उससे अलग भी हो गई ।
"तुम यहाँ क्यों आए हो ?"
"तुम नहीं समझोगी ।" जलीस बोला ।
"समझाने की कोशिश तो करो ।"
जलीस ने अपनी जेब से माला के नाम का चैक निकालकर उसे दिखाया ।
"एक लाख रुपए का है ।"
"इसकी बहन की जिंदगी इससे कहीं ज्यादा कीमती थी ।"
"तुम बेवकूफ़ हो । यह हर्जाना नहीं है ।"
"फिर क्या है ?"
"जानकारी की कीमत ।"
"तुमने कैसे सोच लिया कि माला तुम्हें कोई जानकारी देगी ?"
जलीस ने उसे घूरा ।
"क्योंकि यह भी तुम्हारी तरह है । यह भी मुझे मरता देखना चाहती है । मुझे मरवाने के लिए वह कुछ भी, जो मैं चाहूँगा मुझे दे देगी ।"
"नहीं, माला ऐसा नहीं करेगी ।"
"लेकिन तुम करोगी । तुम कुछ भी मुझे दे दोगी ।"
"सोनिया की साँसें अव्यवस्थित थी और आँखें नफरत से सुलग रही प्रतीत होती थीं ।
"हाँ । बस मुझे इतना यकीन हो जाए कि इससे तुम मारे जाओगे ।"
जलीस ने एक कागज पर संक्षिप्त नोट लिखकर उसे चैक के साथ नत्थी किया और दोनों चीजें माला की बगल में रखे तकिए के नीचे रख दी ।
"देखते हैं तुम अपनी बात पर कितनी खरी उतरोगी ।" वह बोला–"आओ ।"
दोनों फ्लैट से बाहर आ गए ।
उसी इमारत में रहने वाली एक औरत को जलीस ने सौ रुपए रोज पर माला के पास ठहरने के लिए रजामंद कर लिया । एक ऐसा डॉक्टर भी मिल गया जो पाँच सौ रुपए की रक़म में हर छह घंटे बाद माला को देखने आने के लिए तैयार हो गया । अमोलक को फोन करके एक ऐसे आदमी का प्रबंध भी जलीस ने कर दिया जिसने इमारत की निगरानी करते हुए इस बात का ध्यान भी रखना था, कि वहाँ कोई गड़बड़ न होने पाए ।
अंत में सोनिया को साथ लिए वह सड़क पर पहुंचा ।
सोनिया के चेहरे पर अभी भी नफरत भरे भाव थे ।
जलीस ने एक टैक्सी रोककर ड्राइवर को क्लब का नाम बताया और सोनिया सहित पिछली सीट पर बैठ गया ।
टैक्सी सड़क पर फिसलने लगी ।
"तुमने माला के लिए यह सब क्यों किया ?" सोनिया ने पूछा । उसके स्वर में उत्सुकता थी ।
"क्योंकि वह मुझसे बेहद नफरत करती है और इतनी नफरत करने वाले किसी भी शख्स के पास ऐसी कोई चीज होनी भी जरुरी है जिसे मैं इस्तेमाल कर सकता हूँ ।"
"किसलिए ?"
"रनधीर के हत्यारे का पता लगाने के लिए ।"
"बड़ा ही नेक काम बताया है ।"
"और तुम मुझे मरवा देना चाहती हो ।"
"तुम्हें मरता देखने के लिए वहाँ मौजूद भी रहना चाहती हूँ ।"
"उस नजारे को बर्दाश्त कर सकोगी ?"
"शायद नहीं । फिर भी देखना चाहती हूँ ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि माला की तरह मैं भी बेहद नफरत करती हूँ । हर उस चीज से जो बच्चों को बेईमानी की राह दिखाती है । शराफत और इंसानियत से जीना सिखाने की बजाय उन्हें जुर्म के रास्ते पर धकेल देती है और उनकी जिंदगी का इकलौता मकसद रह जाता है–दौलत या ताकत या फिर दोनों चीजें हासिल करना । मुझे नफरत है सियासत अय्याशियों और लालच से जिसकी वजह से भले लोगों को सिर्फ इसलिए गुमराह किया जाता है, ताकि एक आदमी खुद को बड़ा बना सके । मुझे हर बुरी चीज से नफरत है, इसीलिए तुमसे नफरत करती हूँ ।"
"फिर भी तुम करीम भाई दारुवाला की...सहेली हो ?" इस बार जलीस ने हिकारत से पूछा ।
"यह एक ऐसी बात है जिसे शायद तुम नहीं समझ सकोगे । फिर भी मैं तुम्हें बताऊंगी ।" सोनिया ने बेहिचक जवाब दिया–"उसकी...सहेली होने से उसके असर के जरिए, मैं कुछ लोगों की मुश्किलें आसान कर सकती हूँ ।"
"और दूसरों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हो ?"
"हो सकता है ।"
"क्या तुम्हें वो रात याद है जब एक सुनसान मकान की छत पर हमने पहली बार एक–दूसरे को किस किया था ?"
जलीस मुस्कुराया–
"लेकिन वो याद भी तुम्हें अपने सामने मारा जाता देखने की मेरी चाहत को नहीं रोक सकती । यह होता देखने के लिए मैं कुछ भी दे दूंगी ।"
"कुछ भी ?"
"हाँ ।" सोनिया ने पूरी संजीदगी से कहा–"कुछ भी ।"
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