बसरा से निकल भागना हैरानी की हद तक आसान साबित हुआ । सारा दिन वे अदनान उबेदी के साथ एक इमारत में छुपे रहे । रात को अदनान उबेदी, सुनील और परवीन तीनों चुपचाप एक ऐसे उजाड़ समुद्र तट पर पहुंचे जहां केवल मछियारों का ही बसेरा था । अदनान उबेदी ने पहेल से ही एक मछियारे को पटाया हुआ था । सब लोग उस मछियारे के साथ उसकी गंदी बदबूदार किश्ती में सवार हो गए ।
कुवैत का समुद्र तट उस स्थान से मुश्किल-से बीस मील दूर था । मछियारे ने उन्हें कुवैत की बन्दरगाह से दूर एक वैसे ही उजाड़ समुद्र तट पर उतार दिया जैसे कि वह बसरा से रवाना हुए थे और वहां से विदा हो गया ।
अदनान उबेदी उन्हें एक साधारण से होटल में ले आया ।
अगली सुबह अदनान उबेदी अपने साथ एक आदमी को लाया । उसने सुनील या परवीन से बिना कोई बात किये परवीन की तीन चार तस्वीरें खींची और वहां से विदा हो गया ।
चौबीस घन्टे से कम समय में परवीन के लिए एक जाली पासपोर्ट तैयार हो गया जिसके अनुसार उसका नाम शाह गुल था और वह ईरान की नागरिक थी ।
सुनील का अपना पासपोर्ट उसकी जेब में था ।
अदनान उबेदी ने उनकी हवाई जहाज की सीटें बुक करवाकर दीं । कुवैत से काहिरा तक कोई सीधा एयर रूट नहीं था । सुनील और परवीन कुवैत से बी ओ ए सी के एक प्लेन पर बेरूत के लिए रवाना हो गए ।
कुवैत एयरपोर्ट पर अदनान उबेदी और परवीन एक दूसरे से यूं अलग हुए जैसे दोनों को ही बिछुड़ने का गम हो रहा हो । अदनान उबेदी जैसे नौजवान का परवीन जैसी किसी बूढे आदमी की जवान और आधुनिक बीवी के आकर्षण में फंस जाना कोई अस्वाभाविक या हैरानी की बात नहीं थी ।
अदनान उबेदी ने परवीन से अपनी चार दिन की दोस्ती का पूरा हक अदा किया था ।
सुनील और परवीन बेरूत पहुंचे ।
बेरूत से वे एक जापान एयरलाइन्स के प्लेन पर सवार हुए जो आधी रात को काहिरा पहुंचा ।
आधी रात को सुनील परवीन के साथ अलमाजा एयरपोर्ट और काहिरा शहर के बीच का सोलह मील का फासला तय करने को तैयार नहीं था । उस समय न तो वह अकेला हसन साबरी पाशा स्ट्रीट की उस विशाल और सुनसान इमारत में जाना चाहता था जहां शास्त्री ने कर्नल मकसूद अहमद को रखा था और न ही वह अल-हैलमिया स्ट्रीट वाले शास्त्री के अड्डे पर जाना चाहता था । वह भारी कठिनाइयों का सामना करके परवीन को बसरा से निकालकर लाया था इसलिए वह नहीं चाहता था कि आखिरी क्षण पर सब गुड़गोबर हो जाये । काहिरा शास्त्री का किया क्षेत्र था इसलिए काहिरा में परवीन की हिफाजत की जिम्मेदारी अपने सिर नहीं लेना चाहता था ।
परवीन भी उसी रात अपने पति से मिलने की कोई विशेष इच्छुक नहीं थी ।
परिणामस्वरूप सुनील और परवीन एयरपोर्ट के समीप ही मौजूद एक होटल में शिफ्ट हो गये ।
सुनील को शास्त्री के अल-हैलमिया स्ट्रीट वाले अड्डे का टेलीफोन नम्बर मालूम था । अपने होटल के कमरे से उसने उस नम्बर पर टेलीफोन किया । शास्त्री से उसका तुरन्त सम्पर्क स्थापित हो गया । उसने शास्त्री को परवीन के बारे में बता दिया और उसे कहा कि वह सवेरा होने से पहले वहां न आये ।
लेकिन शास्त्री एक घन्टे बाद ही वहां आ धमका ।
दरवाजे पर दस्तक होते ही परवीन सुनील की बांहों से निकल कर बाथरूम में घुस गई ।
सुनील ने दरवाजा खोला ।
शास्त्री कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
“लड़की कहां है ?” - आते ही उसने पहला प्रश्न परवीन के बारे में किया ।
सुनील ने बाथरूम की ओर संकेत कर दिया ।
“तुम्हें यहां नहीं ठहरना चाहिए था” - शास्त्री शिकायत भरे स्वर में बोला - “तुम्हें सीधे अल-हैलमिया स्ट्रीट वाली इमारत में मेरे पास आना चाहिए था ।”
“मैंने जो ठीक समझा है, किया है ।” - सुनील तनिक उखड़े स्वर से बोला ।
“ठीक है, ठीक है । लड़की को बुलाओ । मैं अभी उसे यहां से ले जा रहा हूं ।”
“लेकिन...”
“सिक्योरिटी के नाते यह जरूरी है मिस्टर सुनील ।” - शास्त्री दृढ स्वर से बोला - “तुमने रात गुजारने के लिए बहुत गलत जगह चुनी है । यह एकदम असुरक्षित जगह है । यहां ठहरे विदेशी की तो एक घन्टे में काहिरा के बच्चे-बच्चे को खबर हो जाती है । मुझे हैरानी नहीं होगी अगर पाकिस्तानी एजेण्टों को तुम्हारी और लड़की की खबर पहले ही लग चुकी हो ।”
उसी क्षण परवीन बाथरूम से बाहर निकली । सुनील ने उसका और शास्त्री का परिचय कराया ।
“मैं आपको आपके पति के पास लिवाने के लिए आया हूं ।” - शास्त्री बोला ।
“इस वक्त ?” - परवीन हैरानी से बोली ।
“जी हां, मजबूरी है । यह जगह आपके लिए कतई महफूज नहीं है ।”
परवीन ने एक उड़ती-सी निगाह सुनील पर डाली और फिर असहाय भाव से बोली - “जैसा आप मुनासिब समझें ।”
“थैंक्यू” - शास्त्री सिर नवाकर बोला - “शैल वी मूव ?”
परवीन ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और द्वार की ओर बढी ।
तीनों कमरे से बाहर निकल आये ।
बाहर गलियारे में दो आदमी खड़े थे । दोनों के हाथ अपने कोट की दायी जेबों में थे । शास्त्री को देखकर उनमें से एक आदमी लपककर सीढियों की ओर बढ गया । शास्त्री, परवीन और सुनील उसके पीछे चल दिये । दूसरा आदमी उनके पीछे हो लिया ।
वे नीचे पहुंचे ।
नीचे रिसैप्शन के पास भी वैसे ही दो आदमी मौजूद थे । प्रत्यक्षतः वे एकदम लापरवाह और स्थिति से उदासीन दिखाई दे रहे थे लेकिन वास्तव में वे सतर्कता की प्रतिमूर्ति थे ।
वे होटल से बाहर निकले ।
बाहर होटल के सामने एक पेड़ के तने से टेक लगाये वैसे ही दो आदमी खड़े थे ।
शास्त्री बड़े तगड़े इन्तजाम के साथ आया था ।
एक कार के स्टार्ट होने की आवाज आई । फिर एक के स्थान पर दो कारें आगे पीछे होटल के मुख्य द्वार के सामने आ खड़ी हुई ।
“मैं मैडम को हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत में ले जा रहा हूं” - शास्त्री सुनील से बोला - “तुम दूसरी गाड़ी में अल-हैलमिया स्ट्रीट पहुंचो, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा ।”
सुनील ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
शास्त्री परवीन के साथ अगली कार की पिछली सीट पर बैठ गया । उसके दो आदमी आगे ड्राइवर के साथ बैठ गये । कार तुरन्त वहां से रवाना हो गयीं ।
बाकी के चार आदमी और सुनील पिछली कार में सवार हो गये ।
सुनील अल-हैलमिया वाली इमारत में पहुंचा और जाते ही सो गया ।
सुबह सात बजे ब्रेकफास्ट की टेबल पर उसकी शास्त्री से मुलाकात हुई ।
“कैसी बीती ?” - शास्त्री ने पूछा ।
सुनील ने उसे बसरा में घटी सारी घटनायें सविस्तार सुना दीं ।
शास्त्री के साधारणतया स्लेट की तरह साफ चेहरे पर सुनील के लिए गहरी प्रशंसा के भाव उभर आये ।
“जब बसरा समुद्र तट पर हमारे दो आदमी शूट कर दिये गए थे” - शास्त्री अपना काला चश्मा ठीक करता हुआ बोला - “तो मैंने तो समझ लिया था कि खेल खतम । मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि तुम परवीन को छुड़ाने की कोशिश भी करोगे । वहां की सैन्ट्रल जेल में घुसकर परवीन को वहां से निकाल लाना तो मुझे एक करिश्मा दिखाई दे रहा है । इतना बड़ा आपरेशन अकेले आर्गेनाइज करने का ख्याल तो हम रैगुलर एजेण्टों के मन में नहीं आता जिनका कि ऐसे काम रोज का धन्धा है और जो सरकार से वेतन पाते हैं । सच पूछो तो मैं कर्नल मुखर्जी के स्पेशल इन्टैलीजेंस के सदस्यों को मोम के गुड्डे समझा करता था । आज एक तरह से यह समझ लो कि मेरी आंखें खुल गई हैं ।”
“कर्नल मकसूद अहमद ने तुम्हें दूसरी लिस्ट दी ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
“अभी नहीं । वह कहता है दूसरी लिस्ट वह सुरक्षित भारत पहुंचने के बाद ही देगा ।”
“वह वहां सुरक्षित है ?”
“एकदम । मेरे इस अड्डे को और मुझे काहिरा में मौजूद लगभग हर एजेण्ट जानता है । इसलिए मैंने उन्हें यहां नहीं रखा था । मुझे पूरा विश्ववास है कि कोई भी यह नहीं जानता है कि हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत से हमारा कोई सम्बन्ध है ।”
“अब मेरे लिए क्या हुक्म है ?”
“तुम्हारा काम खत्म । अब यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम काहिरा में तफरीह के लिए रुकना चाहते हो या वापिस जाना चाहते हो ।”
“मैं वापिस जाना चाहता हूं ।”
“ठीक है । मैं इन्तजाम करवा देता हूं । अपना पासपोर्ट मुझे दो ।”
सुनील ने अपना पासपोर्ट शास्त्री के हवाले कर दिया ।
लगभग दस बजे सुनील और शास्त्री फिर मिले । शास्त्री ने उसे उसका पासपोर्ट और एक प्लेन टिकट सौंप दिया ।
“संयोग से ही सफर का बड़ा बढिया इन्तजाम हो गया है” - शास्त्री बोला - “लन्दन से राजनगर जाते हुए एयर इण्डिया के एक प्लेने में सिर्फ दो ही सीट खाली थीं । जिनमें से एक तुम्हें मिल गई है । प्लेन काहिरा से उसका डिपार्चर टाइम एक बजे है । मेरे आदमी तुम्हें हिफाजत से प्लेन तक सी आफ कर आयेंगे । हो सका तो एयरपोर्ट पर मैं भी जाऊंगा लेकिन अगर न आ सका तो माफ कर देना ।”
“नैवर माइण्ड” - सुनील बोला - “कभी फिर मुलाकात होगी ।”
“जरूर” - शास्त्री बोला - “और मेरी ओर से यह एक छोटी सी भेंट स्वीकार कर लो ।”
शास्त्री ने सुनील की ओर एक लकड़ी का डिब्बा बढाया । सुनील ने डिब्बा खोला ।
भीतर स्फिंक्स (SPHINX) का ठोस चांदी का बना हुआ एक लगभग छः इंच ऊंचा माडल था ।
“यह... यह तो” - सुनील ने नेत्र फैल गये - “बहुत कीमती चीज है, गुरू ।”
“तुम्हारे सामने कोई कीमत नहीं इसकी” - शास्त्री बोला - “शास्त्री से पता नहीं कब मुलाकात होगी तुम्हारी । कम से कम इसी बहाने शास्त्री को याद तो रखोगे ।”
सुनील ने डिब्बा बन्द कर दिया और बोला - “थैंक्यू वैरी मच ।”
शास्त्री ने बड़ी गर्मजोशी से सुनील से हाथ मिलाया ।
शास्त्री के दो आदमियों के साथ साढे बारह बजे सुनील एयरपोर्ट पर पहुंच गया ।
लगभग पौने एक बजे शास्त्री हांफता हुआ वहां पहुंचा । वह सुनील को एयरपोर्ट के बार में ले गया । उसने दो बियर का आर्डर दिया ।
“मेरे पास सिर्फ पांच मिनट का समय था” - शास्त्री बोला - “सोचा तुम्हें सी आफ कर आऊं ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील बोला ।
शास्त्री ने बियर का एक बड़ा-सा घूंट भरा ।
“एक बात बताओ” - सुनील बोला - “कर्नल मकसूद अहमद और उसकी बीवी का क्या इन्तजाम किया है तुमने ?”
“मैंने एक प्लेन चार्टर किया है । आज ही शाम को छः बजे मैं उन्हें लेकर भारत रवाना हो जाऊंगा । शायद भारत में तुमसे कल ही फिर मुलाकात हो जाये ।”
“वैरी गुड ।”
शास्त्री ने बियर का आखिरी घंट पिया और बोला - “मैं चला । मेरे आदमी तुम्हारा प्लेन टेक आफ करने तक ठहरेंगे ।”
“जैसा तुम ठीक समझो ।”
“ओके । विश यू ए हैपी जर्नी ।” - शास्त्री ने एक बार फिर बड़ी गर्मजोशी से सुनील से हाथ मिलाया और फिर अपार व्यस्तता का प्रदर्शन करता हुआ वहां से विदा हो गया ।
सुनील का प्लेन पहले से ही रन वे पर खड़ा था । सुनील प्लेन की ओर बढ गया । शास्त्री के आदमी बैरियर तक उसके पीछे आये ।
सुनील प्लेन में जा बैठा ।
उसकी बगल में एक आदमी बैठा था जो कि उर्दू की एक पत्रिका पढ रहा था । प्लेन के अधिकतर यात्री योरोपियन थे ।
सफर अच्छा रहेगा - उसने मन ही मन सोचा ।
उसने खिड़की से बाहर झांका ।
बैरियर पर शास्त्री के आदमी अभी भी खड़े थे ।
“यात्री कृपया अपनी अपनी सीट बैल्ट बांध लें” - एयर होस्टेस का मधुर स्वर माइक पर गूंजा - “प्लेन टेक आफ करने वाला है ।”
सुनील ने अपनी सीट बैल्ट बांध ली ।
ठीक एक बजे प्लेन के इंजन गर्ज उठे ।
शास्त्री के आदमी बैरियर से हट गये और दृष्टि से ओझल हो गए ।
उसी क्षण सुनील को अपनी गरदन पर हल्की सी ऐसी चुभन महसूस हुई जैसे मच्छर के काटने से होती है । उसने अपनी गर्दन को धीरे से मसला और अपनी बगल के यात्री की ओर देखा । बगल का यात्री सुनील को देखकर मुस्कराया और बोला - “इण्डिया ?”
“यस ।” - सुनील बोला ।
जहाज रन वे पर दौड़ रहा था ।
“बन्दे को आसिफ कहते हैं ।” - सहयात्री बोला ।
“मेरा नाम सु...”
बाकी के शब्द सुनील के गले में ही अटक गये । उसका सिर एक ओर लटक गया ।
प्लेन रन वे छोड़ चुका था ।
आसिफ नाम के उस सहयात्री ने सुनील की बांह पर चिकोटी काटी । सुनील के शरीर में कोई हकरत नहीं हुई । आसिफ ने सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया ।
प्लेन अब आसमान में उड़ रहा था ।
“अब आप सीट बैल्ट खोल सकते हैं ।” - माइक पर एयर होस्टेस का स्वर फिर सुनाई दिया ।
आसिफ ने अपनी सीट बैल्ट खोल दी ।
साड़ी में लिपटी हुई भारतीय एयर होस्टेस प्लेन के गेंग वे में प्रकट हुई ।
आसिफ के चेहरे पर एकाएक तीव्र आतंक के भाव प्रकट हुए । वह अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और चिल्लाकर बोला - “मैडम, मैडम, जल्दी आओ ।”
एयर होस्टेस तेजी से उसकी ओर बढी ।
सारे मुसाफिर आसिफ की और देखने लगे ।
“क्या बात है ?” - एयर होस्टेस ने पूछा ।
“मेरे साथी को एकाएक कुछ हो गया है” - आसिफ घबराये स्वर से बोला - “खुदा के लिए कुछ कीजिए ।”
एयर होस्टेस ने अचेत सुनील को देखा । वह भी तनिक बौखला गई । । उसने सुनील को हिलाया डुलाया, उसकी नब्ज देखी और फिर तेज कदमों से काकपिट की दिशा में बढ गई ।
लगभग फौरन ही वह वापिस लौटी । इस बार उसके साथ एक आदमी भी था । उस आदमी ने बड़ी गौर से सुनील का मुआयना किया और फिर बोला - “समझ नहीं आती क्या बात है । आपके साथी को किसी प्रकार का दौरा तो नहीं पड़ता था ?”
“नहीं ।” - आसिफ दृढ स्वर से बोला - “साहब, खुदा के लिए कुछ कीजिये । मेरा दिल डूब रहा है । अगर मेरे साथी को कुछ हो गया तो इसका खून आपके सिर पर होगा ।”
उस आदमी और एयर होस्टेस की निगाहें मिलीं ।
आसिफ ने सुनील की कलाई टटोली और फिर बड़े ही दहशत भरे स्वर में फुसफुसाया - “इसकी नब्ज डूब रही है ।”
एयर होस्टेस घबरा गई ।
“प्लेन वापिस काहिरा उतारना होगा” - वह आदमी बोला - “आओ मेरे साथ ।”
दोनों काकपिट की ओर बढ गए ।
दस मिनट बाद प्लेन वापिस काहिरा एयरपोर्ट पर आ उतरा ।
एक स्ट्रेचर मंगाया गया और सुनील को उस पर लिटा दिया गया । दो आदमी स्ट्रेचर उठाकर एयरपोर्ट की इमारत ओर बढ गये । प्लेन की एयर होस्टेस, एक अन्य अधिकारी और आसिफ स्टेचर के साथ चल रहे थे ।
एयर होस्टेस ने क्सटम के अधिकारियों को सारी स्थिति समझाई । स्ट्रेचर कस्टम के बैरियर से बाहर निकलवा दिया गया ।
“मैं एम्बूलैंस को फोन करता हूं ।” - एयर होस्टेस का साथी बोला ।
“कोई जरूरत नहीं” - आसिफ जल्दी से बोला - “मैं इसे टैक्सी पर ले जाऊंगा ।”
“लेकिन...”
“इस सिलसिले में आपसे अच्छा इन्तजाम मैं खुद कर सकता हूं । यहां हमारे रिश्तेदार रहते हैं । वे इसे डाक्टरी सहायता ज्यादा अच्छी और ज्यादा आसानी से मुहैया करवा देंगे ।”
“जैसी आपकी मर्जी । हम प्लेन टिकट पर आपके रिफंड का इन्तजाम करवा देंगे और आप लोगों का सामान प्लेन से उतरवा कर कस्टम में पहुंचा देंगे ।”
“थैंक्यू ।”
“आप अपने दोस्त की इस दशा के लिए एयर इण्डिया को तो जिम्मेदार नहीं ठहरायेंगे न ?”
“नहीं, नहीं ।”
“थैंक्यू ।” - वह बोला ।
“वी रिपेंट दि इन्कन्वीनियेंस काज्ड टु यू ।” - एयर होस्टेस चिकने-चुपड़े स्वर से बोली ।
“नैवर माइण्ड ।” - आसिफ बदहवास स्वर में बोला ।
एयर होस्टेस और उसका साथी फिर एयरपोर्ट के भीतर की ओर बढ गए ।
आसिफ ने एक टैक्सी मंगवाकर उस पर सुनील को लादा, टैक्सी पर स्वयं सवार हुआ और टैक्सी ड्राइवर को एक पता बता दिया ।
टैक्सी तत्काल एयरपोर्ट की मारकी से बाहर निकल गई ।
एयर इण्डिया का प्लेन अपने दो यात्रियों के बिना फिर अपनी मन्जिल की ओर उड़ चला ।
टैक्सी काहिरा शहर की ओर बढ चली ।
आसिफ के होठों पर एक विजेता की मुस्कराहट थी ।
***
सुनील की आंख खुली तो उसने अपने आपको रोशनियों से जगमगाते हुए एक विशाल कमरे में पाया । वह कमरे में नंगे फर्श पर पड़ा था । उसके सामने एक पेटी पर वही आदमी मौजूद था जो प्लेन में उसकी बगल की सीट पर बैठा एक उर्दू की पत्रिका पढ रहा था और जिसने अपना नाम आसिफ बताया था । सुनील उठकर बैठ गया । उसका सिर चक्कर खा रहा था और रह रहकर आंखों के सामने अन्धेरा छा जाता था । उसने अपनी आंखें मिचमिचाई, अपने सिर को एक जोर का झटका दिया और फिर क्षीण स्वर से बोला - “मैं कहां हूं ?”
“होश आ गया, बरखुरदार ।” - आसिफ बोला ।
“मैं तो प्लेन में था ।”
“थे । लेकिन अब काहिरा में हो । मैंने प्लेन में तुम्हारी गरदन में जो इन्जेशन दिया था उससे तुम बेहोश हो गये थे और मैं तुम्हें यहां ले आया था ।”
“लेकिन प्लेन तो उड़ चुका था ?”
“फिर क्या हुआ ? क्या एक बार उड़ चुका प्लेन एयरपोर्ट पर दोबारा वापिस नहीं उतर सकता ?”
“तुम कौन हो ?”
“मैं तुम्हारा दोस्त हूं ।”
“अच्छा !”
“बशर्ते कि तुम हमारे साहब के सवालों का ठीक-ठीक जवाब दो ।”
“कौन साहब ? कैसे सवाल ?”
“अभी मालूम हो जायेगा लेकिन दोस्त, अगर तुमने हमारे साहब के सवालों का फौरन और ठीक-ठीक जवाब न दिया तो तुम्हें एक चलती फिरती लाश बनाने का नामाकूल काम मुझे ही करना पड़ेगा ।”
सुनील चुप रहा । उसका सिर अभी भी घूम रहा था । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किन लोगों के हाथों में था ।
आसिफ पेटी से उठा और कमरे से बाहर निकल गया । जाती बार वह दरवाजा बन्द करना नहीं भूला ।
सुनील लड़खड़ाता हुआ अपने स्थान से उठा । उसने दरवाजे का हैंडिल पकड़ कर अपनी ओर खींचा । दरवाजा मजबूती से बाहर से बन्द था । दायीं ओर की दीवार में एक खिड़की थी जिस पर पर्दा पड़ा हुआ था । सुनील ने खिड़की के पास पहुंचकर पर्दा एक ओर सरकाया । खिड़की के किवाड़ बन्द थे जिनमें एक बड़ा सा ताला जड़ा हुआ था ।
सुनील वापिस घूमा और आकर आसिफ द्वारा खाली की पेटी पर बैठ गया । उसने अपना सिर अपने हाथों में थाम लिया । थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला ।
सुनील ने सिर उठाया । एकाएक उसे बिजली का करेंट छू गया । उसके नेत्र फैल गये ।
सामने अब्दुल वहीद कुरेशी खड़ा था ।
कुरेशी के होंठों पर एक विषैली मुस्कराहट उभरी । वह दो कदम आगे-आगे बढा और एकदम सुनील के सामने आ खड़ा हुआ ।
उसके पीछे खड़े आसिफ ने कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया ।
कुरेशी ने अपने एक हाथ से अपने सिर पर पहनी लाल रंग की तुर्की टोपी उतारी और अपना दूसरा हाथ अपना एकदम गंजी खोपड़ी पर फिराता हुआ बोला - “हल्लो फ्रैन्ड, लांग टाइम, नो सी ।”
सुनील का चेहरा पीला पड़ गया । कुरेशी पर निगाह पड़ते ही उसके मन में एक विचित्र प्रकार का भय समा गया था । कुरेशी पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस का एक ऊंचा अफसर था और सुनील की हकीकत को वह अच्छी तरह जानता था । सुनील दो बार उसके चंगुल में फंसकर बच चुका था । (देखिये उपन्यास ‘ऑपरेशन पाकिस्तान’ और ‘लहू पुकारेगा आस्तीं का) भारत के फाकर फ्रैन्डशिप प्लेन के हाईजैक किये जाने की घटना के बाद जब सुनील लाहौर में कुरेशी के कब्जे में आ गया था तो कुरेशी ने उसकी वह गत बनाई थी कि आज भी उन दिनों को याद करके सुनील के रोंगटे खड़े हो जाते थे । कुरेशी टार्चर के जितने तरीके जानता था उसने वे सब सुनील पर आजमाये थे । उसको रोज बेपनाह मार लगाने के अलावा उसे नींद का इन्जेक्शन दे दिया जाता था लेकिन सोने नहीं दिया जाता था और खाना इतना दिया जाता था कि वह सिर्फ जिन्दा रह सके । उसके सारे शरीर को बीसियों स्थानों पर ब्लेड से काट दिया गया था और उस पर लाल चीटियां छोड़ दी गई थीं । और उसका खून चूसती रही थीं । उसकी हृदयविदारक चीखों से वातावरण गूंजता रहा था, उसके सारे जिस्म की रंगत सफेद हो गयी थी, वह एकदम मौत की दहलीज पर पहुंच गया था लेकिन कुरेशी उसे तोड़ नहीं पाया, उसकी जुबान नहीं खुलवा पाया था । पूरे एक महीने तक टार्चर का यह सिलसिला चला था । कुरेशी ने यातना के भंयकर से भंयकर तरीके उस पर आजमाये थे लेकिन सुनील की जुबान नहीं खुलवा पाया था । कुरेशी की निगाह में वह एक करिश्मा था । खुद सुनील की निगाह में वह एक करिश्मा था और ऐसा करिश्मा सुनील जैसे इन्सान की जिन्दगी में केवल एक ही बार हो सकता था । यही वजह थी कि कुरेशी की सूरत देखकर ही सुनील भयभीत हो गया था । फरवरी 1971 के कुरेशी की गिरफ्त में गुजरे एक महीने की एक-एक घटना चलचित्र की तरह उसके नेत्रों के सामने फिर गई । आज फिर वह कुरेशी की गिरफ्त में था और कुरेशी उसकी क्या गत बना सकता था इसके विचार मात्र से ही उसका कलेजा कांप उठता था । सहनशक्ति की वैसी परीक्षा कोई इन्सान अपनी जिन्दगी में दोबारा नहीं दे सकता था ।
सुनील ने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
तीन बजे थे ।
शास्त्री का चार्टर किया हुआ प्लेन कर्नल मकसूद अहमद और उसकी बीवी परवीन को लेकर छः बजे काहिरा से हिन्दुस्तान की ओर रवाना होने वाला था । अगर किसी प्रकार वह तीन घण्टे कुरेशी को लटकाये रखने में कामयाब हो जाये तो काम बन सकता था ।
“अल्लाह बड़ा कारसाज है !” - कुरेशी अपनी तुर्की टोपी अपनी गंजी खोपड़ी पर जमाता हुआ बोला ।
सुनील चुप रहा ।
“देखकर खुशी हुई कि तुम अभी जिन्दा हो ।” - कुरेशी बोला ।
“मुझे भी” - सुनील बोला - “तुम यहां कैसे टपक पड़े ?”
“आज ही सुबह सीधा रावलपिंडी से आया हूं । हिन्दुस्तानी एजेन्टों द्वारा परवीन को बसरा से निकाल ले जाने की खबर और हमारी सीक्रेट सरविस के डिप्टी डायरेक्टर कर्नल मकसूद अहमद के डिफैक्ट करके हिन्दुस्तानी एजेन्टों की हिफाजत में पहुंच जाने की खबर डिपार्टमेंट में पहुंची थी । हालात नाजुक थे इसलिए मुझे खुद आना पड़ा । अपनी जो मर्सिडीज कार तुम बसरा में छोड़ आये थे हमारे आदमियों ने उसे चैक करवाया था तो मालूम हुआ था कि वह कार काहिरा में रजिस्टर्ड हुई थी और रजिस्ट्रेशन के मुताबिक मालिक का नाम पी टी शास्त्री था । आसपास के बार्डरों पर तफ्तीश की गई तो अमान और बगदाद की चैक पोस्टों पर उसकी एन्ट्री मिली । लिहाजा यह मालूम हो गया कि कार की रवानगी काहिरा से हुई थी । फिर किसी ने मुझे उस आदमी का हुलिया बताया जो काहिरा की सैन्ट्रल जेल से परवीन को निकाल लाया था । फौरन मेरी आंखों के सामने उस बहादुर हिन्दुस्तानी जेम्स बांड का चेहरा घूम गया जिसका लाहौर में टार्चर से जुबान खुलवा पाना मेरे लिए नामुमकिन हो गया था । मैं काहिरा पहुंचा और जिस इन्तजाम के साथ हम दिन दहाड़े तुम्हारे दो बाडीगार्डों की नाक के नीचे से तुम्हें निकाल लाये हैं उसके लिए तुम्हें हमारी तारीफ करनी पड़ेगी और यह मानना पड़ेगा कि हमारी सीक्रेट सरविस इतनी निकम्मी नहीं जितनी कि आप लोग उसे समझते हैं ।”
“चाहते क्या हो ?”
“कमाल है । यह भी मुझे बताना पड़ेगा । आप मुझे यह बतायेंगे, साहब कि काहिरा में कर्नल मकसूद अहमद को आप लोगों ने कहां छुपाकर रखा हुआ है ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“इससे बेहतर जवाब की मुझे तुम्हारे से उम्मीद भी नहीं थी । अच्छी बात है । पढे लिखे शरीफ आदमी हो । सच ही बोल रहे होवोगे । माने लेते हैं कि तुम्हें कर्नल मकसूद अहमद के बारे में कुछ नहीं मालूम । लेकिन परवीन को तो तुम अपने साथ लाये थे । परवीन के बारे में ही दो कि वह कहां है ।”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“वजह । क्या तुम उसे अपने काहिरा नहीं लाये थे ?”
“लाया था लेकिन मैंने उसे फौरन ही किसी दूसरे आदमी को सौंप दिया था ।”
“किसको ? टी पी शास्त्री को ?
”हां ।
“कहां ?”
“होटल में ।”
“फिर ?”
“उसके बाद का मुझे नहीं कि शास्त्री उसे कहां ले गया ।”
“लेकिन तुम्हें शास्त्री का ठिकाना तो मालूम होगा ?”
“हां वह अल-हैलमिया स्ट्रीट की एक इमारत में...”
“बकवास मत करो” - कुरेशी उसकी बात काटकर मीठे स्वर से बोला - “वह शास्त्री का कोई गुप्त ठिकाना नहीं उसका दफ्तर है । काहिरा का बच्चा-बच्चा उस जगह के बारे में जानता है और कर्नल मकसूद अहमद और परवीन वहां नहीं हैं । तुम मुझे उसके किसी ऐसे ठिकाने के बारे में बताओ जहां वह किसी कर्नल मकसूद अहमद जैसे महत्वपूर्ण आदमी को छुपाकर रख सकता है ।”
“मैं ऐसे किसी ठिकाने के बारे में नहीं जानता ।”
“देखो दोस्त, आज से डेढ साल पहले टार्चर से मैंने तुम्हारी जुबान खुलवाने की कोशिश की थी और मैं मंजूर करता हूं कि एक महीने की भरपूर कोशिशों के बावजूद भी हमारे हाथ नाकामयाबी ही लगी थी लेकिन उसकी एक अहम वजह यह थी कि मैं टार्चर का कोई स्पैशलिस्ट नहीं हूं । लेकिन आसिफ टार्चर के मेरे से ज्यादा माडर्न और कारआमद तरीके जानता है । इसका दावा है कि बारह घन्टे से भी कम वक्त में यह तुम्हारी जुबान खुलवा देगा । इसने एक बिजली की मशीन तैयार की है जो यह तुम्हारी खोपड़ी और छाती के साथ फिट कर देगा । इसका कहना है कि दो से बारह घन्टे के बीच के समय में वो मशीन दुनिया के सख्त से सख्त आदमी को तोड़ने में कामयाब हो सकती है । तुम्हें यह सख्त से सख्त आदमी मान रहा है इसलिये इसने बारह घन्टे का वक्त मांगा है । वैसे उम्मीद यह है कि तुम बहुत पहले ही अपनी जिन्दगी की दास्तान हमें सुना रहे होवोगे । वह मशीन हमारा काम निकालने के लिए तो बहुत अच्छी है लेकिन उसमें एक खराबी है जिसकी वजह से हम लोग उस मशीन को इस्तेमाल करने के मामले में आसिफ मियां को ज्यादा बढावा नहीं देते । उसमें खराबी यह है कि उस मशीन के इस्तेमाल के बाद आदमी का दिमाग हमेशा के लिये खराब हो जाता है और कभी-कभी ब्रेन हैमरेज की वजह से अचानक मौत भी हो जाती है । अगर तुम अपनी यही गत बनाना चाहते हो तो मैं आसिफ मियां को मशीन लाने के लिये कहूं ।”
“जो जी में आये करो ।”
“आल राइट ।” - कुरेशी बोला । उसने आसिफ को संकेत किया ।
आसिफ ने अपनी जेब से हथकड़ियों का एक जोड़ा निकाला और उसे सुनील की कलाइयों में पिरो दिया । फिर वह कमरे से बाहर निकल गया ।
कुरेशी गम्भीरता की प्रतिमूर्ति बना एक दूसरी पेटी खींचकर सुनील के सामने बैठ गया ।
पांच मिनट बाद आसिफ और एक अन्य आदमी कमरे में पहुंचे । दूसरा आदमी एक स्टील की कुर्सी उठाये हुए था और आसिफ एक ट्राली लुढका रहा थ जिस पर एक इलेक्ट्रो कार्डियोग्राफ की मशीन जैसी एक भारी मशीन लदी हुई थी ।
“इसको सिर्फ बिजली का झटका देने वाली मशीन ही मत समझना” - कुरेशी बोला - “यह और भी बहुत बखेड़े करती है जिसके बारे में आसिफ ही बेहतर जानता है ।”
सुनील चुप रहा । इस समय उसके मन में एक ही ध्येय था कि कुरेशी को हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत का पता बताने से पहले जो कि देर-सवेर उसे बताना ही पड़ना था - इतना समय बरबाद कर दे कि छः बज जायें ।
उसकी हथकड़ियां खोल दी गई और उसे लोहे की कुर्सी के साथ इस प्रकार बांध दिया गया कि वह केवल अपना सिर ही हिला सकता था । फिर मशीन से निकलती असंख्य तारों को जाल की तरह उसकी छाती और खोपड़ी के गिर्द लपेट दिया गया । मशीन का सम्बन्ध बिजली के करेन्ट के साथ जोड़ दिया गया । आसिफ ने मशीन पर लगे चार पांच डायलों को दायें बायें घुमाया, डायलों के साथ लगे मीटरों पर चलती हुई सुइयों का का भी मुआयना किया और फिर सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “मैं तैयार हूं ।”
“वैरी गुड” - कुरेशी बोला - “मेरा ख्याल है सुनील साहब भी तैयार ही होंगे ।”
“नहीं !” - सुनील भयभीत स्वर में बोला ।
“नहीं !” - कुरेशी हैरानी से बोला - “अच्छा ! भला क्यों ?”
“मैं बताता हूं शास्त्री परवीन को कहां लेकर गया था ।”
“बताओ ।”
“पहले मुझे इस तारों के जाल से आजाद करवाओ ।”
“तारें हटा दो” - कुरशी आसिफ से बोला - “लेकिन जब इतनी मेहनत की है तो पहले साहब को कम ट्रेलर तो दिखा ही दो ।”
“जरूर” - आसिफ बोला - “उसने अपनी कलाई घड़ी उतारकर हाथ में ले ली और फिर मशीन में लगा एक लाल बटन दबाया ।
बटन दबने से पहले ही दहशत से सुनील के रोंगटे खड़े हो गये । उसके माथे पर पसीना आ गया । बटन दबने के बाद पहले तो उसे कुछ महसूस ही नहीं हुआ । फिर उसे ऐसा लगने लगा जैसे उसके शरीर में कोई हल्के-हल्के सुइयां चुभो रहा हो । फिर उसका शरीर तेजी से बजती हुई सितार के तारों की तरह झनझनाने लगा । फिर उसे यूं लगा जैसे उसके शरीर का सारा खून उसका दिमाग पम्प की तरह चूसे जा रहा हो । एकाएक उसे अपनी खोपड़ी फैलती महसूस होने लगी जैसे गुब्बारे में हवा भरी जा रही हो । उसने चिल्लाना चाहा लेकिन होंठों से आवाज नहीं निकली । उसका दिल उसकी पसलियों के साथ हथौड़े की तरह बजने लगा । उसे कोई दर्द या तकलीफ नहीं हो रही थी लेकिन एक विचत्र-सी अनुभूति उसके हृदय में आतंक का समावेश कर रही थी ।
उसी क्षण आसिफ ने बटन पर से उंगली हटा ली । वह अपनी घड़ी उठाकर कलाई पर बांधता हुआ बोला - “पांच सेकेण्ड ।”
“कैसा लग रहा है ?” - कुरेशी सुनील से बोला ।
सुनील में जवाब देने की हिम्मत नहीं थी । उसका चेहरा राख की तरह सफेद हो गया था और होंठ किसी घातक पंछी की तरह फड़फड़ा रहे थे ।
आसिफ ने बड़ी सावधानी से उसके शरीर से पहले तारें हटाईं और फिर उसे बन्धन मुक्त कर दिया ।
तब तक सुनील की हालत सुधरने लगी थी ।
“पानी !” - उसके मुंह से एक ही शब्द निकला ।
आसिफ का साथी एक बड़ा-सा पानी का गिलास भर लाया । सुनील यूं गटागट पानी पी गया जैसे मुद्दत से उसने पानी की शक्ल ने देखी हो । खाली गिलास उसकी उंगलियों से फिसलकर फर्श पर आ गिरा ।
“अब्दुल अजीज स्ट्रीट । इमारत नम्बर पांच ।” - कुरेशी के दुबारा प्रशन करने से पहले ही वह हांफता हुआ बोला और फिर उसने अपनी आंखें बन्द कर लीं और निढाल होकर कुर्सी में ढेर हो गया ।
“कर्नल मकसूद अहमद और परवीन वहां है ?” - कुरेशी ने पूछा ।
बिना नेत्र खोले सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“कोई घिस्सा तो नहीं दे रहे ?” - कुरेशी संदिग्ध स्वर में बोला ।
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
“आल राइट । लेकिन अगर वे लोग वहां न मिले तो फिर तुम्हारा खुदा ही मालिक है ।”
कुरेशी अपने साथियों के साथ कमरे से बाहर निकल गया । दरवाजा फिर बाहर से मजबूती से बन्द हो गया ।
जाती बार या तो आसिफ सुनील के हाथों में हथकड़ियां डालना भूल गया था और या फिर उसने यह काम जरूरी नहीं समझा था ।
सुनील ने घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
चार बज चुके थे ।
वह उठकर दरवाजे के पास पहुंचा । दरवाजे की उसने भीतर से चिटखनी चढा दी और फिर कमरे में मौजूद सारी पेटियां एक-एक करके दरवाजे के सामने चुन दी ।
वह कमरे के नंगे फर्श पर चित लेट गया और प्रतीक्षा करने लगा ।
चार बजकर पचास मिनट पर उसे बाहर के दरवाजे का ताला खोले जाने की आहट हुई । सुनील अपने स्थान से उठा और फिर दरवाजे के सामने लगी पेटियों के साथ पीठ सटाकर खड़ा हो गया ।
शीघ्र ही उसे आवाजें सुनाई पड़ने लगीं । पहले दरवा खोलने के आदेश हवा में गूंजे फिर दरवाजा न खोलने की सूरत में अंजाम की धमिकयां मिलने लगीं और फिर अंत में दरवाजा तोड़ने के इरादे से उस पर चोटें पड़ने लगीं ।
कुरेशी को दरवाजा तोड़कर भीतर घुसने में आधा घंटा लग गया । सुनील के लिये बनाई गई उस अस्थायी जेल के दरवाजे का ज्यादा मजबूत होना खुद कुरेशी के लिये ही नुकसानदेय साबित हुआ । जब कुरेशी आफिस के साथ भीतर घुसा तो उसने सुनील को एक कोने में मासूमियत की प्रतिमूर्ति बने फर्श पर बैठे पाया । कुरेशी ने उसे बालों से पकड़ा और एक झटके से उसे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया ।
“कमीने ! धोखेबाज !” - वह जहर भरे स्वर से बोला । सुनील के बालों से अपनी पकड़ ढीली किये बिना उसने ताबड़तोड़ आठ दस घूंसे सुनील के पेट में जमा दिये ।
पीड़ा से सुनील का चेहरा विकृत हो गया और उसकी आंखों से आंसू छलक आये ।
“तुमने झूठ क्यों बोला ?” - कुरेशी उसे बालों से झिझोड़ता हुआ बोला ।
“मैंने झूठ नहीं बोला ।” - सुनील बोला ।
“बकवास मत करो” - कुरेशी गला फाड़कर चिल्लाया - “अब्दुल अजीज स्ट्रीट की वह इमारत एकदम खाली पड़ी थी ।”
“लेकिन शास्त्री ने मेरे सामने उसी जगह का नाम लिया था ।”
“वहां कोई भी नहीं था ।”
“तो फिर वे लोग दूसरे अड्डे पर होंगे ।”
“दूसरा अड्डा कौन-सा ?”
“हसन साबरी पाशा स्ट्रीट की एक इमारत है ।”
“इमारत का नम्बर बोलो ।”
“नम्बर मुझे नहीं मालूम ।”
कुरेशी ने जोर स उसके बालों को झटका दिया ।
“बाई गाड, मुझे नम्बर नहीं मालूम लेकिन मैंने वह इमारत देखी हुई है । मैं तम्हें वहां ले जा सकता हूं ।”
“तुमने उस अड्डे के बारे में मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?”
“क्योंकि शास्त्री ने मुझे खुद कहा था कि वह परवीन की अब्दुल अजीज स्ट्रीट वाली इमारत में ले जा रहा है इसलिये दूसरी जगह का जिक्र करना मैंने जरूरी नहीं समझा ।”
“कोई ऐसी तीसरी या चौथी जगह है जिसका जिक्र करना तुम अब जरूरी नहीं समझ रहे हो वो ?”
“नहीं ।”
“अच्छी तरह याद कर लो ।”
“और कोई जगह मुझे मालूम नहीं ।”
“और कोई जगह है नहीं या तुम्हें नहीं ?”
“मुझे मालूम नहीं ।”
कुरेशी ने उसके बाल छोड़ दिये और आसिफ से बोला - “साहब के जरा हाथ-पैरों के नट-बोल्ट ढीले करो ताकि मुझे विश्वास हो जाये कि ये दुबारा झूठ नहीं बोल रहे हैं ।”
“ऐसी बेवकूफियों में वक्त बरबाद मत करो” - सुनील बोला - “शास्त्री रात को आठ बजे कर्नल मकसूद अहमद और परवीन के साथ एक चार्टर प्लन द्वारा हिन्दुस्तान रवाना होने वाला है । मेरे नट-बोल्ट ढीले करने में जो वक्त बरबाद करोगे अगर उसमें वे लोग निकल गये तो बाद में मुझे इल्जाम मत देना ।”
कुरेशी के नेत्र सिकुड़ गये । वह कई क्षण सुनील को घूरता रहा और फिर आसिफ से बोला - “गाड़ी निकलवाओ ।”
आसिफ तुरन्त कमरे से बाहर निकल गया ।
“तुमने दरवाजा भीतर से बन्द क्यों किया था ?” - कुरेशी ने सुनील से पूछा ।
“मैं खुदकशी करना चाहता था ।” - सुनील बोला ।
“तो फिर की क्यों नहीं ?”
“कोई तरीका नहीं सूझा ।”
“दीवार में सिर दे मारते ।”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
***
दो कारें हसन साबरी पाशा स्ट्रीट में पहुंची ।
अगली कार में आसिफ और कुरेशी के बीच सुनील बैठा था । पिछली कार में कुरेशी के छः आदमी थे और सब हथियारों ले लैस थे ।
“कौन सी इमारत है ?” - कुरेशी ने पूछा ।
“कार की रफ्तार धीमी रखो” - सुनील बोल - “अन्धेरा हो गया है । मुझे इमारत पहचानने में मुश्किल हो सकती है ।”
कार आसिफ चला रहा था । कुरेशी के कहने पर उसने कार की रफ्तार कम कर दी ।
कार उस इमारत के सामने से गुजरी जिसमें शास्त्री ने कर्नल मकसूद अहमद को रखा था लेकिन उस समय सुनील जान-बूझकर विपरीत दिशा की इमारतों की कतार को देख रहा था । कार आगे बढती चली गई ।
सुनील ने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया । छः बज चुके थे । कर्नल मकसूद अहमद और परवीन वहां पांच बजे के बाद हरगिज भी नहीं रुके होंगे क्योंकि उन्होंने छः बजे का प्लेन पकड़ना था ।
कार सड़क के आखिरी सिरे पर पहुंच गई ।
कुरेशी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील को देखा ।
“वापिस ।” - सुनील बोला ।
दोनों कारें फिर वापिस चल पड़ीं ।
इसी प्रकार सड़क के दो पूरे चक्कर लगवाने के बाद और कम से कम आधी दर्जन जगहों पर गाड़ी रुकवाने के बाद सुनील ने उसे उस इमारत के सामने ला खड़ा किया ।
सब लोग कारों से बाहर निकल आये ।
आसिफ के हाथ में अब एक लाइट मशीनगन थी । बाकी सब आदमियों के हाथों में भी रिवाल्वरें थीं । केवल कुरेशी के हाथ खाली थे ।
बारह फुट ऊंची चारदीवारी में फिट हुआ लोहे का फाटक भीतर से बन्द था । फाटक से पेड़ों के झुरमुट के पीछे मौजूद दो मंजिला इमारत नहीं दिखाई दे रही थी .
“कोई है ?” - कुरेशी ने आवाज मिला ।
कुरेशी ने दो-तीन बार आवाज लगाई ।
जवाब नदारद ।
उसने जेब से सिक्का निकालकर फाटक की ओर उछाला ।
सिक्का फाटक के सीखचों से टकराकर जमीन पर आ गिरा । फाटक में करेन्ट नहीं था । कुरेशी के आदेश पर एक आदमी फाटक पर चढ गया और फिर उसे फांदकर दूसरी ओर उतर गया । उसने फाटक खोल दिया ।
सब लोग भीतर प्रविष्ट हुए । कुरेशी, आसिफ और सुनील ड्राइव वे पर चलने लगे । बाकी लोग ड्राइव वे के दोनों ओर उगे हुए पेड़ों में बिखर गये ।
वे इमारत के पास पहुंचे । रास्ते में उन्हें कहीं कोई आदमी नहीं मिला था । कुरेशी के आदमियों ने इमारत को घेर लिया ।
वे सीढियां चढकर इमारत के मुख्य द्वार पर पहुंचे । मुख्य द्वार खुला था । कुरेशी ने द्वार को धक्का दिया और द्वार खुल गया ।
“इमारत खाली मालूम होती है ।” - कुरेशी यूं सुनील से बोला जैसे उस पर इल्जाम लगा रहा हो ।
सुनील चुप रहा । मन ही मन वह खुश था कि कर्नल मकसूद अहमद और परवीन वहां से जा चुके थे । वह कुरेशी को इस हद तक अपने आप में उलझाये रखने में कामयाब रहा था कि उन लोगों को वहां से कूच कर जाने का पर्याप्त समय मिल जाये ।
आसिफ ने दरवाजा भीतर से बन्द कर दिया और उसकी बगल में पोजीशन लेकर खड़ा हो गया ।
कुरेशी ने अपने शोल्डर होल्स्टर से अपनी रिवाल्वर खींच ली और जोर से बोला - “कोई है ?”
ऊपरली मंजिल की ओर जाने वाली विशाल सीढियों के ऊपरी सिरे से हल्की-सी आहट हुई । सुनील ने उधर देखा । एक पर्दा हिला और उसके पीछे से निकलकर परवीन सीढियों के दहाने पर आ खड़ी हुई ।
सुनील का मुंह सूख गया ।
हे भगवान ! यह अभी यहीं थी ।
उसे घड़ी देखी ! साढे छः बजने को थे ।
और शास्त्री के कथनानुसार उसका चार्टर्ड प्लेन कर्नल मकसूद अहमद और परवीन को लेकर ठीक छः बजे काहिरा हवाई अड्डे से भारत की ओर उड़ने वाला था ।
कुरेशी ने रिवाल्वर वापिस शोल्डर होल्स्टर में रख ली और तनिक सिर नवाकर बोला - “गुड ईवनिंग, मैडम ।”
“कौन हो तुम ?” - परवीन बोली ।
“आपका पुराना खादिम हूं, मैडम । बड़े अफसोस की बात है कि आपने बन्दे को पहचाना नहीं ।”
हाल में अपेक्षाकृत अन्धेरा था । परवीन ने बिजली का एक स्विच दबाया । हाल की छत से लटके एक विशाल झाड़-फानूस में कई रोशनियां जगमगा उठीं ।
“कुरेशी !” - लगभग तुरन्त ही परवीन के मुंह से निकला ।
सुनील फैसला नहीं कर सका कि परवीन के स्वर में भय का पुट था या आश्चर्य का ।
“एक बार फिर से आदाब बजा लाता हूं, मोहतरमा” - कुरेशी तनिक सिर नवाकर बोला - “कर्नल साहब कहां है ?”
“ऊपर हैं ।”
“इमारत में और कौन है ?”
“हम दोनों के अलावा तो बस एक बटलर ही है ।”
“बटलर कहां है ?”
“ऊपर किचन में ।”
“वैरी गुड ।”
सुनील को यह देखकर बहुत निराशा हुई कि परवीन ने उसे भी देखा था लेकिन उसे हल्लो तक नहीं कहा था जबकि वह अपनी जान जोखम में डालकर उसे बसरा की जेल में से निकालकर लाया था ।
कुरेशी सुनील और आसिफ को वहीं ठहरने का संकेत देकर सीढियां चढ गया । कुछ क्षण बाद कुरेशी और परवीन दोनों दृष्टि से ओझल हो गये ।
लेकिन सुनील कोई शरारत करने के मूड में नहीं था । वह हैरान था । यह बात तो हैरान करने वाली थी ही कि कर्नल मकसूद अहमद और परवीन अभी तक यहीं थे, ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि वहां उन लोगों की सुरक्षा के लिए शास्त्री का कोई आदमी मौजूद क्यों नहीं था और पता नहीं कुरेशी को यह बात खटकी थी या नहीं । उसूलन उसे भी इमारत में सुरक्षा के लिए किसी भी आदमी का मौजूद न होना सन्देहास्पद जरूर लगना जाहिए था ।
दो घण्टे गुजर गये । कुरेशी ऊपर से नीचे नहीं उतरा ।
सुनील जम्हाइयां लेने लगा । भूख से भी उसका बुरा हाल था, उसने शास्त्री के साथ लिये ब्रेकफास्ट के बाद से कुछ नहीं खाया था ।
हॉल की क्लाक ने नौ बजाये तो सुनील आसिफ से बोला - “ऊपर जाकर देखो, तुम्हारा उस्ताद मर तो नहीं गया ।”
आसिफ अपने स्थान से नहीं हिला लेकिन उसके चेहरे पर चिन्ता के भाव उभर आये थे ।
उसी क्षण सीढियों के ऊपरले सिरे पर कुरेशी प्रकट हुआ ।
“आसिफ” - वह बोला - “ऊपर आओ । सुनील को भी साथ ले आओ ।”
आसिफ और सुनील ऊपर पहुंचे ।
कुरेशी, कर्नल मकसूद अहमद और परवीन एक विशाल डायनिंग हाल में मौजूद थे । कर्नल मकसूद अहमद के सामने एक शराब की तीन चौथाई खाली बोतल और गिलास पड़ा था । उसकी सूरत से ऐसा लगता था जैसे बोतल की अगर सारी नहीं तो लगभग सारी शराब उसी ने पी थी । उसका चेहरा सुर्ख था और आंखें चढी हुई थी ।
बटलर मेज पर खाना लगा रहा था ।
“बैठो ।” - कुरेशी सुनील से बोला ।
सुनील कुरेशी की बगल में एक कुर्सी पर बैठ गया । उसकी निगाहें परवीन की निगाहों से मिलीं ।
“हल्लो !” - सुनील बोला ।
“हल्लो !” - परवीन धीरे से बोली - उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं आया ।
“आसिफ !” - कुरेशी बोला - “तुम किचन में जाकर खाना खा लो ।”
आसिफ बटलर के पीछे-पीछे किचन में चला गया ।
कर्नल मकसूद अहमद ने शराब का एक इतना बड़ा नया पैग बनाया कि बोतल लगभग सारी खाली हो गई । उसने एक ही बार में गिलास खाली कर दिया और फिर खाने की ओर आकर्षित हुआ ।
सुनील सारे तकल्लुफ छोड़कर खाने पर टूट पड़ा ।
भोजन के दौरान कोई कुछ नहीं बोला ।
भोजन के बाद बटलर काफी सर्व कर गया ।
कुरेशी ने अपनी जेब से एक सिगार निकालकर सुलगाया और फिर सिगार और काफी का आनन्द लेता हुआ बोला - “मिस्टर सुनील, मुझे यह बयान करते हुए खुशी हो रही है कि मेरे आला अफसर कर्नल मकसूद अहमद ने भारत की शरण में जाने का इरादा छोड़ दिया है । दो घण्टे की मुसलसल गुफ्तगू के के बाद मैं इन्हें यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया हूं कि उनका डर बेमानी है । पाकिस्तान में उन पर कोई हर्फ आने वाला नहीं है ।”
सुनील ने कर्नल मकसूद अहमद की ओर देखा ।
कर्नल मकसूद अहमद उस समय नशे में धुत्त था । उसका सिर उसकी छाती पर झुका हुआ था और उसने अपनी काफी को हाथ भी नहीं लगाया था ।
सुनील ने लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट सुलगा लिया और फिर बोला - “कर्नल साहब ने सिर्फ डिफैक्ट करने का इरादा ही छोड़ा है या वापिस पाकिस्तान जाने का फैसला कर लिया है ?”
कुरेशी एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “वापिस पाकिस्तान जाने के मामले में अभी ये थोड़ा हिचक रहे हैं । लेकिन हालात बड़े उमीदअफ्जा हैं । इन्होंने आखिरी फैसला करने के लिए कल तक वक्त मांगा है । मुझे विश्वास है कि कल ये इसी नतीजे पर पहुंचेयेंगे कि उन्हें अपने मुल्क लौट चलने में किसी तरह का खौफ नहीं खाना चाहिए । खासतौर पर जबकि इनकी बेगम साहिबा इनके लौट चलने का इकरार कर रही है ।”
सुनील चुप रहा ।
“वैसे तो मैं इन्हें जबरदस्ती भी पाकिस्तान ले जा सकता हूं लेकिन अगर ये अपनी मर्जी से जाने के लिए तैयार हो जाएं तो मेरा काम आसान हो जाएगा । इसलिए मैंने कल तक यहां ठहरने का फैसला कर लिया है ।”
“आई सी ।”
“आज की रात यहीं गुजारेंगे । इस इमारत में मेहमानों के लिए बहुत गुंजायश है । आपके लिए बैड रूम तैयार कर दिया गया है । कल हमारे यहां से रवाना हो जाने तक आपको यहीं ठहरना पड़ेगा ताकि आप कर्नल साहब की पाकिस्तान को रवानगी के मामले में कोई बखेड़ा न खड़ा कर सकें ।”
“और आपके रवाना हो जाने के बाद मेरा क्या होगा ?”
कुरेशी ने एक सरसरा निगाह परवीन पर डाली । परवीन के चेहरे पर व्यग्रता के भाव उभर आए थे । कुरेशी ने बड़ी आश्वासनपूर्ण निगाहों से परवीन को देखा और फिर सुनील की ओर घूमकर सरल स्वर से बोला - “मेरे जाने के बाद मेरे आदमी आपको आजाद कर देंगे ।”
सुनील को यूं लगा जैसे परवीन ने कुरेशी की बात सुनकर शान्ति की गहरी सांस ली हो । वह सोच में पड़ गया । क्या परवीन ने उसकी रिहाई के लिए कुरेशी से किसी प्रकार की अपील की थी ?
सुनील ने एक जोर की जम्हाई ली और अपना सिगरेट ऐश ट्रे में डालता हुआ बोला - “अगर मुझे इजाजत हो तो मैं...”
“जरूर, जरूर” - कुरेशी उसका मन्तव्य समझकर बोला - “बटलर आपको आपका बैड रूम दिखा आता है ।”
“गुड नाइट एवरी बॉडी ।” - सुनील अपने स्थान से उठता हुआ बोला ।
“गुड नाइट ।” - परवीन धीरे से बोली ।
“गुड नाइट ।” - कुरेशी मुस्कराता हुआ बोला - “स्वीट ड्रीम्स ।”
कर्नल मकसूद अहमद का सिर डायनिंग टेबल के साथ टिक चुका था और वह खर्राटे भर रहा था ।
***
रात के एक बजे सुनील की नींद खुली ।
तीन घन्टे की आरामदेय नींद ने उसकी हालात काफी सुधार दी थी और वह वहां से निकल भागने की तरकीबें सोचने लगा था । उसे कुरेशी की इस बात का कतई विश्वास नहीं हुआ था कि कल सुबह उसके इमारत से रवाना हो जाने के बाद वह रिहा कर दिया जाएगा । कुरेशी तो उसे रिहा करने की बात सपने में भी नहीं सोच सकता था । उसे निश्चय ही शूट कर दिया जाना था ।
सुनील ने अन्धेरे में ही अपने कपड़े पहने और धीरे से बैड रूम का दरवाजा खोलकर बाहर गलियारे में आ गया । गलियारे के सिरे पर पहुंचकर उसने नीचे हाल में झांका ।
हाल के मुख्य द्वार के एकदम सामने बैठे आसिफ और दो अन्य आदमी ताश खेल रहे थे । आसिफ की मशीनगन उसकी कुर्सी के साथ टिकी खड़ी थी । उनमें से किसी का भी सोने का इरादा मालूम नहीं होता था ।
सुनील उलटे पांव वापिस लौट आया ।
उसने अपने कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया । और बाल्कनी का दरवाजा खोला । वह बाल्कनी में आ गया । उसने नीचे झांका । बाल्कनी लान से बहुत ऊंची थी । वहां से कूदना मौत को दावत देना था और वहां से नीचे उतरने का कूदने के सिवाय और कोई तरीका नहीं था ।
उस बाल्कनी की दाईं ओर दो और कमरों की बाल्कनियां थीं । तीसरी बाल्कनी के समीप से एक बेल गुजर रही थी । जिसे पकड़कर नीचे उतर पाना सम्भव हो सकता था । हर बाल्कनी की ऊंचाई पर ही दीवार के साथ एक लगभग नौ इंच चौड़ा प्रौजेक्शन बना हुआ था । सुनील सावधानी से बाल्कनी फांदकर उस प्रोजेक्शन पर उतर गया । वह धीरे-धीरे बगल की बाल्कनी की ओर सरकने लगा । काम खतरनाक था लेकिन वहां से निकासी का एक वही रास्ता था ।
सुनील बगल की बाल्कनी तक पहुंच गया ।
भीतर कमरे में से बाल्कनी पर हल्का-सा प्रकाश फूट रहा था । उसी क्षण उसने कानों में कुरेशी के बोलने की आवाज पड़ी साथ ही उसे परवीन की खनकती हुई हंसी सुनाई दी । सुनील निःशब्द बाल्कनी की रेलिंग पर चढ गया और भीतर उतर गया । उसने परदे को जरा-सा सरकाया और सावधानी से भीतर झांका ।
विशाल पलंग पर कुरेशी लेटा हुआ था । उसकी गंजी खोपड़ी बाल्कनी के दरवाजे की ओर थी । उसकी बगल में उसकी विशाल भुजाओं में लिपटी परवीन लेटी हुई थी ।
दोनों के शरीर पर कपड़े की एक धज्जी भी नहीं थी ।
सुनील ने पर्दा छोड़ दिया । कितनी ही देर वह बुत की तरह बाल्कनी में खड़ा रहा । एक बात उसके दिमाग में हथौड़े की तरह लगी ।
कुरेशी और परवीन की पुरानी आशिकी थी या यह वैसी ही वक्ती आशनाई थी जैसी वह पहले अदनान उबेदी पर और सुनील पर जहिर कर चुकी थी ।
कई सम्भावनाएं सुनील के मन में उभरने लगीं । एक बात उसे रह-रहकर खटक रही थी ।
कहीं कुरेशी और परवीन के आपसी नाजायज सम्बन्धों की वजह से कर्नल मकसूद अहमद बलि का बकरा तो नहीं बनाया जा रहा था ?
उसी क्षण परवीन की तृप्तिपूर्ण मादक हंसी की आवाज फिर उसके कानों में पड़ी ।
सुनील को झटका सा लगा । वह चुपचाप बाल्कनी फांदकर तीसरी बाल्कनी की ओर वाले प्रोजेक्शन पर पहुंच गया ।
उस कमरे की बाल्कनी का दरवाजा खुला था और आगे पर्दा भी नहीं पड़ा हुआ था । सुनील ने भीतर झांका । पलंग पर कर्नल मकसूद अहमद का एक ढीले ढाले नाइट सूट में ढका विशाल शरीर पसरा हुआ था । सुनील भीतर घुस गया । उसने कर्नल मकसूद अहमद को पहले धीरे से और फिर जोर से हिलाया ।
कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई ।
नशे में धुत कर्नल मकसूद अहमद एकदम बेसुध पड़ा था ।
सुनील ने उसके जूते उठाकर उसके पैरों में फंसाए और फिर उसे अपने कन्धे पर लादकर बाल्कनी में ले आया । वापिस कमरे में जाकर उसने पलंग की चादर उठाई । खिड़कियों के पर्दे उतारे और सबको एक दूसरे से बांध दिया । उस प्रकार रस्सी का एक सिर से खोल दिया ।
रात को किसी समय हल्की-सी बारिश हुई मालूम होती थी जिसकी वजह से जमीन गीली और चिपचिपी हो गई थी ।
सुनील ने कर्नल को उसके पैरों पर खड़ा किया । उसकी एक बांह अपनी गर्दन के गिर्द डाली, अपनी एक बांह उसकी कमर में डाली और उसे नींद की हालत में ही चलाता हुआ पेड़ों के झुरमुट से होता हुआ फाटक की ओर बढा ।
फाटक का कुंडा भीतर से बन्द था लेकिन उसमें ताला नहीं लगा हुआ था । फाटक की बगल में एक लकड़ी का केबिन था जिसमें एक आदमी मेज पर सिर टिकाए सोया पड़ा था । सुनील ने कर्नल को अपने कन्धे पर लाद लिया और दबे पांव फाटक की ओर बढा । उसने धीरे से फाटक का कुंडा खोला और फिर फाटक को ठेलकर निःशब्द बाहर निकल गया । अपने पीछे फाटक के लोहे के द्वार उसने फिर भिड़का दिये ।
सुनील कर्नल मकसूद अहमद का भारी बोझ अपने कन्धे पर लादे हुए हांफता हुआ सड़क पर आगे बढा ।
वह इमारत की चारदीवारी पार कर गया । उह ज्यादा देर कर्नल को उठाए नहीं रह सकता था । फौरन कोई सवारी मिलनी बहुत जरूरी थी ।
“स्टाप !” - एकाएक अपने पीछे से उसे अधिकारपूर्ण स्वर सुनाई दिया - “और बिल्कुल कोई हरकत मत करना । मेरे हाथ में रिवाल्वर है और उसका रुख तुम्हारी ओर है ।”
सुनील रुक गया ।
एक आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
सुनील अन्धकार में उसका चेहरा नहीं देख पाया ।
“क्या किस्सा है ?” - उस आदमी ने पूछा ।
“मेरा दोस्त ज्यादा शराब पी जाने की वजह से बीमार हो गया है । मैं उसको अस्पताल पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं ।”
“अपने कन्धे पर उठाकर ?”
“कोई सवारी नहीं मिल रही ।”
“इतनी रात गए कौन सी सवारी मिलेगी तुम्हें ?”
“शायद कोई लिफ्ट दे दे ।”
“इस सड़क से इतनी रात गए प्राइवेट कारें नहीं गुजरतीं ।”
सुनील चुप रहा ।
एक टार्च का तीव्र प्रकाश सुनील के चेहरे पर पड़ा । सुनील की आंखें चौधिया गयीं । फिर टार्च बन्द हो गई । उस आदमी ने मुंह में दो उंगलियां डालकर सीटी बजाई । कहीं पास से ही एक गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज आई । कुछ ही क्षण बाद एक जीप उनकी बगल में आ खड़ी हुई ।
“जीप में बैठो ।” - उस आदमी ने रिवाल्वर की नाल से सुनील को टहोका ।
सुनील चुपचाप जीप में सवार हो गया । कर्नल को उसने अपनी बगल में बिठा लिया । कर्नल पूर्ववत् बेसुध था । वह आदमी भी उनके सामने आ बैठा । रिवाल्वर अभी भी उसके हाथ में थी ।
जीप तेजी से सड़क पर दौड़ चली ।
“कहां ले जा रहे हो ?” - सुनील ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“जहां तुम जाना चाहते हो ।” - उत्तर मिला ।
सुनील चुप हो गया ।
नील नदी को पार करके उसके दूसरे किनारे पर कार एक स्थान पर रुकी । वहां एक विशाल कारवां खड़ा था । उस आदमी के संकेत पर सुनील जीप से उतरा और उसने फिर कर्नल को अपने कन्धे पर लाद लिया ।
उस आदमी ने कारवां का दरवाजा खटखटाया । दरवाजा खुला । कारवां भीतर से प्रकाशित था । उस आदमी के संकेत पर कर्नल को उठाये-उठाये सुनील कारवां में प्रविष्ट हो गया ।
उस आदमी ने उनके पीछे कारवां का दरवाजा बन्द कर दिया ।
कारवां एक टेलीविजन स्टूडियो की तरह सुशोभित था । उसकी पूरी लम्बाई में काम से कम छः टेलीविजन स्क्रीन लगी हुई थीं । उनमें से एक पर हसन साबरी आशा स्ट्रीट वाली इमारत के कुरेशी के बैडरूम का दृश्य अंकित था । उस समय स्क्रीन पर कुरेशी और परवीन एक दूसरे की बांहों में लिपटे सोये पड़े दिखाई दे रहे थे ।
टेलीविजन स्क्रीन के सामने एक कुर्सी पर शास्त्री बैठा हुआ था । वह उस समय भी आंखों पर काला चश्मा लगाए हुए था ।
“हल्लो !” - वह मुस्कराता हुआ बोला ।
सुनील ने कर्नल का शरीर फर्श पर डाल दिया और स्वयं धम्म से शास्त्री की बगल में एक कुर्सी पर बैठ गया ।
शास्त्री ने उसकी ओर एक विस्की का गिला बढा दिया ।
सुनील ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया और फिर अपनी उखड़ी सांसों को व्यवस्थित करता हुआ बोला - “मुझे देखकर हैरानी नहीं हुई तुम्हें ?”
“उहूं ।” - शास्त्री पूर्ववत् मुस्कराता हुआ बोला ।
“यानी कि तुम्हें मालूम था कि मैं ऐन मौके पर जहाज से उतार लिया था ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“नहीं । मेरे आदमियों ने तुम्हें तब देखा था जब तुम कुरेशी के साथ जीप में बैठे हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत की ओर जा रहे थे । मेरे आदमी निगरानी के लिये उस इमारत में ही नहीं नील नदी के पुल तक तैनात थे । उन्होंने तुम्हें और कुरेशी दोनों को पहचान लिया था । मुझे फौरन सूचना दी गई थी । मैं तभी समझ गया था कि तुम किसी तरह कुरेशी की पकड़ में आ गये हो और वह तुमसे हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत का पता जानने में कामयाब हो गया है । तब दिमाग में कर्नल मकसूद अहमद के साथ-साथ कुरेशी को भी फांस लेने की स्कीम उभरी ।”
“स्कीम बाद में सुनूंगा” - सुनील बीच में बोल पड़ा - “पहले मुझे एक बात बताओ ।”
“पूछो ।”
“तुम तो कल शाम छः बजे एक चार्टर प्लेन द्वारा कर्नल मकसूद अहमद और परवीन को लेकर हिन्दुस्तान रवाना होने वाले थे ?”
“था लेकिन रवाना हो नहीं पाया । ऐन मौके पर प्लेन के कल-पुर्जों में कोई खराबी पैदा हो गई थी । अब प्लेन कल दोपहर तक ठीक हो पायेगा ।”
“आई सी ।”
शास्त्री ने अपना चश्मा ठीक किया और फिर बोला - “हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत के हर कमरे में टेलीविजन के कैमरे और माइक्रोफोन फिट हैं और उसका कन्ट्रोल इस कारवां में है इसलिए हम इमारत में घटने वाली छोटी से छोटी घटना पर निगाह रख सकते थे । हमने यहीं बैठे-बैठे कुरेशी और कर्नल मकसूद अहमद में हुआ पूरा वार्तालाप सुना था । कुरेशी ने बड़े सब्र से कर्नल को समझाया था कि उसे पाकिस्तान लौट चलना चाहिये लेकिन कर्नल को विश्वास नहीं हो रहा था कि पाकिस्तान में उस पर कोई आंच नहीं आयेगी । अन्तिम निर्णय लेने के लिये उसने कल तक का समय मांगा था । हमारा प्रोग्राम यह था कि कल जब कुरेशी कर्नल को लेकर इमारत से बाहर निकलेगा तो हम रास्ते में ही उसे घेर लेंगे और दोनों को अपने अधिकार में कर लेंगे ।”
“लेकिन यह काम तो अभी कर सकते हो । इस वक्त तो उल्टे कुरेशी सोया पड़ा है ।”
“इमारत में कुरेशी को अधिकार में करना खतरनाक काम है । मेरे और उसके आदमियों में गोलियां चलीं तो कुरेशी काहिरा की पुलिस को फोन कर देगा और मैं इस मामले में स्थानीय पुलिस के दखल से हर हालत में बचना चाहता हूं ।”
“इमारत के टेलीफोन कटवा दो ।”
“फिर भी कोई फायदा नहीं होगा । गोलियां चलने की आवाज सुनकर कोई पड़ोसी पुलिस को फोन कर देगा । पुलिस को इस सिलसिले की भनक भी पड़ने से सारी स्कीम चौपट हो सकती है । मैं यह जाहिर करना चाहता हूं कि अपने अफसर कर्नल मकसूद अहमद की तरह कुरेशी भी अपनी मर्जी से भारत की शरण में आ गया है । अगर कुरेशी ने इमारत से हिफाजत के लिए स्थानीय पुलिस को फोन कर दिया तो यह बात आम हो जायेगी कि हम कुरेशी को भगाकर ले गए हैं ।”
“लेकिन वास्तव में तो आप लोग कुरेशी को भगाकर ही ले जायेंगे ।”
“शायद कुरेशी राजी से ही हमारी शरण में आने को तैयार हो जाये” - शास्त्री रहस्यपूर्ण स्वर से बोला - “अगर ऐसा हो जाए तो हम पाकिस्तानी सीक्रेट सरविस को काफी नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो जायेंगे ।”
“लेकिन कुरेशी मानेगा कैसे ?” - सुनील बोला ।
“एक तुरप का पत्ता है हमारे हाथ में ।”
“क्या ?”
“टेलीविजन स्क्रीन पर तुम कुरेशी के बैडरूम का हाल देख ही रहे हो । इस बैडरूम में कुरेशी और परवीन के बीच में जो कुछ गुजरा है हमने उसकी एक शानदार फिल्म तैयार की है ।”
“अंधेरे में ? बैडरूम में तो अंधेरा है ।”
“हमने स्पैशल इन्फ्रारैड फिल्म वाला कैमरा इस्तेमाल किया है । इन्फ्रारैड कैमरे के लिए रोशनी की जरूरत नहीं होती । वह अंधेरे में भी तस्वीरें खींच सकता है ।”
“आई सी ।”
“और फिल्म ही नहीं, हमने इमारत में हुआ एक-एक वार्तालाप रिकार्ड किया है । अपनी प्रेमलीला के दौरान में कुरेशी और परवीन जैसी-जैसी बातें करते रहे हैं उन्हें तुम सुनोगे तो गश खा जाओगे । अब जरा कुरेशी की जगह स्वयं को रखकर सोचो कि हम उसकी किस हद तक हालत खराब कर सकते हैं । कुरेशी काहिरा आता है, कर्नल मकसूद अहमद को डिफैक्ट करने से रोकने के लिए और उसे वापिस पाकिस्तान लाने के लिए । कर्नल से सम्पर्क स्थापित हो जाने के बाद वह क्या करता है । वह उसे तो - यानी कि अपने बॉस को - ढेर सारी शराब पिलाकर नशे में धुत्त कर देता है और स्वंय उसकी बीवी के साथ रंगरलियां मनाने लगता है यानी कि जैसे वह काहिरा कर्नल को वापिस लाने नहीं उसकी बीवी के साथ हम बिस्तर होने आया हो । हम यह फिल्म पहले कुरेशी को ही दिखायेंगे और उसको यह भी बतायेंगे कि यह प्रचार उसका कितना नुकसान कर सकता है कि उसे काहिरा तक परवीन की आशनार्ई खींचकर लाई थी, कर्नल को हमारे हाथ न पड़ने देने की जिम्मेदारी नहीं । अगर ऐसा न होता तो वह कर्नल की इच्छा, अनिच्छा की परवाह किये बिना उसे कल शाम को ही अपने साथ लेकर काहिरा से रवाना हो जाता । हमें विश्वास है कि वर्तमान हालात में खुद कुरेशी ही पाकिस्तान जाना पसन्द नहीं करेगा ।”
“लेकिन अगर तुम्हारा विश्वास गलत निकला ?”
“तो भी हम कुरेशी को छोड़ेंगे नहीं । फिर हम इस फिल्म की एक कापी पाकिस्तानी अधिकारियों को भेज देंगे और फिल्म की कुछ चुनी हुई तस्वीरें एक मसालेदार कहानी के साथ किसी योरोपियन अखबार में छपवा देंगे । उस हालत में पाकिस्तानी कुरेशी के मामले में चुप रहना ही पसन्द करेंगे । वह अगर यह दावा करेंगे भी कि यह हमारा उनके खिलाफ खड़ा किया हुआ एक स्टण्ट है और हमने कुरेशी को जबरदस्ती भगाया है तो उनकी बात में कोई दम नहीं होगा । हर कोई यह ही मानेगा कि क्योंकि कुरेशी पाकिस्तान में मुंह दिखाने काबिल नहीं रहा इसलिए वह भारत की शरण में चल गया है ।”
“कोई जमावदार बात नहीं है यह । मुझे तुम्हारी सारी दलीलें बड़ी लचर लग रही हैं ।”
“मैं मानवीय प्रवृत्तियों को तुमसे बेहतर समझता हूं । वक्त आने दो, जब कोई ठोस नतीजा तुम्हारे सामने आएगा - जो कि जरूर आएगा - तो तुम्हें ये बातें लचर नहीं लगेंगी । मिस्टर सुनील, कई बार आदमी की जिन्दगी पर हमला उसको उतना नहीं डराता जितना उसे उसके चरित्र पर हमला डराता है ।”
“लेकिन अब तो तुम्हारी स्कीम बेकार हो गई है । मैं तो कर्नल मकसूद अहेमद को यहां ले आया हूं ।”
शास्त्री एक क्षण चुप रहा और फिर गम्भीर स्वर में बोला - “तुम अभी इस वक्त कर्नल को लेकर वापिस जा रहे हो ।”
“नहीं ।”
“वजह ?”
“कुरेशी मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा ।”
“कुरेशी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा । जब तक परवीन वहां है तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा । कल मैंने कुरेशी और परवीन का वार्तालाप सुना था । परवीन बड़ी मुश्किल से कुरेशी को यह वादा करने के लिए तैयार कर पाई थी कि वह तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा ।”
“परवीन ने ऐसा क्यों किया ?” - सुनील के मुंह से अपने आप निकल गया ।
“इसकी बेहतर जानकारी तो तुम्हें होनी चाहिए” - शास्त्री बोला - “कहीं तुम्हारी और उसकी कोई कन्टीन्यूटी तो नहीं मिल गई है ?”
“ऐसा कुछ नहीं हुआ है ।”
“नहीं हुआ होगा । बहरहाल बेगम साहिबा तुम पर फिदा हैं । इसीलिए वे कुरेशी से इतना बड़ा वादा लेने में कामयाब हो गई हैं ।”
“जैसे कुरेशी अपना वायदा पूरा करेगा ?”
“जरूर करेगा । वादा उसने अपनी माशूक से किया है किसी काले चोर से नहीं ।”
“लेकिन मैं फिर भी कर्नल को वापिस इमारत में नहीं ले जा सकता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैंने उसे दूसरी मंजिल की एक बाल्कनी में से चादर में बांधकर नीचे लटकाया था, अब उसे उसे रास्ते वापिस चढाना मेरे बस का काम नहीं ।”
“मरवाया ।”
शास्त्री कितनी ही देर चुप रहा और फिर बोला - “मुझे तुम्हारे साथ आदमी भेजने पड़ेंगे लेकिन दोस्त, वापिस तो तुम्हें जाना ही पड़ेगा ।”
“अच्छी बात है ।” - सुनील अनिच्छा पूर्ण स्वर से बोला ।
***
वापिसी में फाटक से भीतर इमारत में प्रविष्ट होना असम्भव था । दो आदमी फाटक के पास खड़े बातें कर रहे थे और उनका वहां से टलने का कोई इरादा नहीं मालूम होता था । शास्त्री के आदमियों की सहायता से सुनील ने एक स्थान से दीवार फांदी और कर्नल - जोकि अभी तक भी बेहोश था - को भी पार उतारा । शास्त्री के आदमियों ने ही बड़ी होशियारी से उन दोनों का अपने-अपने कमरे में पहुंचाया और लौट गये ।
जाती बार एक आदमी सुनील की हथेली में एक छोटी सी रिवाल्वर रख गया । सुनील ने रिवाल्वर अपने कमरे में एक कुर्सी के गद्दे के नीचे छुपा दी और सो गया ।
सुबह उसे आसिफ ने झिंझोड़कर जगाया ।
उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । आठ बज चुके थे । नित्यकर्म से निवृत्त होकर वह डायनिंग हाल में पहुंचा । वहां अकेला कुरेशी बैठा था ।
“हल्लो, गुड मार्निंग” - कुरेशी मीठे स्वर से बोला - “आसिफ, साहब के लिए ब्रेकफास्ट लाओ ।”
लगभग फौरन उसे ब्रेकफास्ट सर्व हो गया ।
“बाकी लोग कहां हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“अगर तुम्हारा इशारा कर्नल और उनकी बेगम साहिबा की ओर है तो कर्नल साहब तो अभी तक बिस्तरे में ही हैं और उनकी बेगम साहिबा मेरे एक आदमी के साथ बजार गई हैं । कुछ खरीद-फरोख्त करने । कहती थीं पता नहीं जिन्दगी में कभी फिर काहिरा आने का इत्तफाक हो या न हो ।”
और कोई वार्तालाप उन दोनों में नहीं हुआ ।
ब्रेकफास्ट समाप्त करके सुनील अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ । कुरेशी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“अपने कमरे में जा रहा हूं” - सुनील बोला - “कोई एतराज ?”
“कतई नहीं साहब” - कुरेशी बोला - “शौक से जाइए लेकिन कमरे में ही जाइएगा, कहीं और नहीं ।”
सुनील बिना कुछ बोले वापिस अपने कमरे में आ गया । कमरे में कुछ पुरानी पत्रिकायें पड़ी थीं जिन्हें वह उलटने-पुलटने लगा ।
लगभग आधा घन्टा गुजर गया ।
एकाएक एक फायर की आवाज से सारी इमारत गूंज गई ।
सुनील लपक कर अपने कमरे से बाहर निकला । आवाज डाइनिंग रूम की दिशा से आई थी । वह डाइनिंग रूम में प्रविष्ट हुआ ।
रिवाल्वर कुरेशी के हाथ में थी और वह उसकी नाल में से निकलता धुंआं उड़ा रहा था । उसके सामने एक कुर्सी पर कर्नल मकसूद अहमद की लाश पड़ी थी । कर्नल के माथे के बीचोंबीच एक सुराख दिखाई दे रहा था ।
सुनील ने हैरानी से कुरेशी की ओर देखा ।
कुरेशी ने रिवाल्वर अपने शोल्डर होल्स्टर में डाल ली और फिर एक नफरत भरी निगाह कर्नल पर डालता हुआ बोला - “मैं भूल गया था कि एस्पियानेज के धन्धे में आखिर कर्नल साहब मेरे बॉस हैं और इसलिए मुझसे ज्यादा काबिल हैं । मुझे सोचना चाहिए था कि ये कोई न कोई स्टण्ट मारेंगे ।”
“क्या हुआ था ?” - सुनील के मुंह से अपने आप ही निकल गया ।
“धोखा ! सरासर धोखा ! कर्नल मकसूद अहमद ने सिर्फ वक्त हासिल करने के लिए ही मुझे यह अहसास दिला दिया था कि ये अपना डिफैक्ट करने का इरादा तकरीबन छोड़ चुके थे जब कि इन्होंने यह ख्याल एक लम्हे के लिए भी अपने मन से नहीं निकाला था । पिछली रात को कर्नल साहब चुपचाप इमारत से बाहर निकले थे और शास्त्री से या किसी और हिन्दुस्तानी सीक्रेट एजेण्ट से मिलकर आए थे ।”
“तुमने कर्नल साहब को इमारत से बाहर जाते देखा था ?” - सुनील ने डरते डरते पूछा । अगर उसने कर्नल को देखा था तो उसे भी जरूर देखा होगा ।
“नहीं !” - कुरेशी बोला ।
सुनील की जान में जान आई ।
“उन्होंने खुद बताया था ?” - उसने पूछा ।
“वो भला क्यों बताते ?” - कुरेशी बोला - “मुझे तो इत्तफाक से यह बात मालूम हो गई थी । इनकी बेगम साहिबा ने रात को इनके कमरे में झांका था । तब ये कमरे में नहीं थे । अभी ये ब्रेकफास्ट के लिए तशरीफ लाये तो मैंने इनसे पूछा कि रात को वे कहां थे । फरमाने लगे अपने कमरे में थे । मुझे और भी शक हो गया । मैंने इनके जूते और कपड़े चैक किये । जूतों पर, पाजामे के पहुंचों पर कीचड़ लगी हुई थी । वह कीचड़ रात को बारिश के बाद ही पैदा हुई थी जिससे साफ जाहिर होता था कि ये इमारत से बाहर निकले थे । और फिर बाहर चारदीवारी के पास मुझे जीप के टायरों के ताजा बने निशान भी मिले थे ।”
सुनील का मुंह सूखने लगा । वैसी कीचड़ तो उसके अपने जूतों पर भी जरूर होगी । वह मन ही मन भगवान से दुआएं मांगने लगा कि कुरेशी का ध्यान उसके जूतों की ओर न जाए ।
“ये तमाम बातें मैंने कर्नल साहब से भी कहीं” - कुरेशी कह रहा था - “लेकिन उनका एक ही जवाब था कि वे इमारत से बाहर नहीं गए । इनके मुतवातर झूठ बोलने का नतीजा तुम्हारे सामने मौजूद है ।”
“अगर कर्नल साहब इमारत से निकलने में कामयाब हो गए थे तो वापिस क्यों लौटे ?”
“परवीन की खातिर ! अपनी जवान बीवी कर्नल मकसूद अहमद की सबसे बड़ी कमजोरी है लेकिन ये हिन्दुस्तानी सीक्रेट एजेण्टों के साथ अपनी रिहाई का कोई इन्तजाम जरूर करके आये होंगे । शायद मैं कर्नल साहब और परवीन के साथ एयरपोर्ट पर पहुंचता तो वहां काहिरा की पुलिस हमारे इस्तकबाल के लिए तैयार होती । कर्नल साहब कहते कि उन्हें भगा के ले जाया जा रहा है और अरब सरकार से पोलिटिकल असाइलम (राजनैतिक शरण) की मांग करते जो कि उन्हें मिल जाती । नतीजा यह होता कि मुझे अपना-सा मुंह लेकर खाली हाथ पाकिस्तान लौटना पड़ता ।”
एकाएक कुरेशी अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और चिल्लाकर बोला - “आसिफ !”
आसिफ दौड़ता हुआ डायनिंग हाल में घुसा ।
“अपनी एम्बैसी में फोन करो । उन्हें कहो कि वे एक सी डी की नम्बर प्लेट वाली बड़ी सी कार यहां भेजे ।”
“यस सर ।” - आसिफ तत्पर स्वर में बोला ।
“बेगम साहिबा बाजार से कब लौटेंगी ?”
“दोपहर से पहले लौट आयेंगी ।”
“अपने सारे आदमियों को आगाह कर दो कि कोई बेगम साहिबा के सामने उनके खाविंद की मौत का जिक्र न करे । अगर पूछें तो यही कहा जाये कि कर्नल साहब पहले ही एयरपोर्ट तशरीफ ले जा चुके हैं ।”
“यस सर ।”
“और काहिरा की पुलिस को फोन करके उनसे पुलिस एस्कार्ट की मांग करो । उनसे कहो कि हमें पता लगा है कि हिन्दुस्तानी एजेन्ट कुरेशी साहब को एयरपोर्ट के रास्ते में अपने कब्जे में करके उन्हें जबरदस्ती भगाकर ले जाने की कोशिश करेंगें ।”
सुनील को शास्त्री की सारी स्कीम धराशायी होती दिखाई दे रही थी । कर्नल मकसूद अहमद मर ही गया था और अगर कुरेशी और परवीन अरब पुलिस की हिफाजत में काहिरा रवाना होने वाले थे तो उन्हें भी रास्ते में घेरकर अपने अधिकार में कर पाना असम्भव था और शास्त्री ने अपने टेलीन्जिन कैमरों की सहायता से कर्नल मकसूद अहमद को शूट किए जाने का नजारा जरूर देखा होगा । क्या वह अपने कारवां में बैठा कुरेशी को कर्नल पर गोली चलाने से रोक पाया था और जब कुरेशी ऐसे ही सुनील के माथे में एक सुराख बना देगा तो क्या शास्त्री उसे रोक पायेगा ?
शास्त्री का प्लान किया हुआ सारा आपरेशन उसे अपनी आंखों के सामने धराशायी होता दिखाई दे रहा था ।
दस मिनट बाद आसिफ वापिस लौटा । उसने कुरेशी को बताया कि सब इन्तजाम हो गया है ।
“वैरी गुड” - कुरेशी सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “अब जो मैं कहता हूं उसे गौर से सुनो । तुम्हें मिस्टर सुनील की हर तरह से हिफाजत करनी है और इस बात का पूरा ख्याल रखना है कि ये यहां से निकल भागने में कामयाब न हो पायें लेकिन अगर इन्हें कोई तकलीफ हुई या हमारी मेहमाननवाजी से कोई शिकायत हुई तो मैं तुम्हारी गर्दन उड़ा दूंगा । समझ गए ?”
आसिफ ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“इन्हें इनके बैडरूम में ले जाओ और वहीं तुम भी इनके साथ बैठो ।”
“यस सर ।”
लगता था परवीन ने वाकई कुरेशी को सुनील की जानबख्शी के लिए तैयार कर लिया था ।
कुरेशी ने सुनील की ओर देखा । उसके होंठों पर एक रहस्यपूर्ण मुस्कराहट थी । उसने धीरे से अपने सिर से तुर्की टोपी उतारी और अपने गंजे सिर पर हाथ फिराने लगा । फिर वह सुनील पर निगाह जमाये आसिफ से सम्बोधित हुआ - “मेरे और बेगम साहिबा के इमारत से रवाना होने के ठीक दस मिनट बाद साहब को शूट कर देना ।”
***
आसिफ ने बैडरूम का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया और चाबी जेब में डाल ली । वह बाल्कनी के द्वार के पास एक कुर्सी घसीटकर बैठ गया । सुनील को यह देखकर बहुत निराशा हुई कि आसिफ ने संयोगवश अपने लिए वही कुर्सी चुनी थी जिसके नीचे सुनील ने रिवाल्वर छुपाई थी । सुनील एक अन्य कुर्सी पर आसिफ के समीप ही बैठ गया ।
लगभग एक घण्टे बाद पाकिस्तानी दूतावास की कार वहां पहुंची । लगभग दस मिनट बाद सुनील ने एक बड़ा-सा ट्रंक कार की डिका में लादा जाते देखा ।
“ट्रंक में क्या है ?” - सुनील ने पूछा ।
“कर्नल मकसूद अहमद की लाश ।” - आसिफ ने बताया ।
“मेरा भी यही ख्याल था । शायद कुरेशी सबूत के तौर पर कर्नल की लाश अपने साथ ले जा रहा है ताकि वह रावलपिंडी में अपने आकाओं को विश्वास दिला सके कि वह निश्चित रूप से कर्नल को हिन्दुस्तानी एजेन्टों के हाथों में पड़ने से रोकने में कामयाब हो गया है । कुरेशी को इस काम के लिए कोई मैडल मिलने वाला है क्या ?”
“कुरेशी को मैडल से भी बड़ा इनाम मिलने वाला है । कर्नल साहब की मौत के बाद अब पाकिस्तानी सीक्रेट सरविस का डिप्टी डायरेक्टर कुरेशी बन जायेगा ।”
“अच्छा ! कुरेशी को तो कर्नल की मौत से बहुत फायदा हुआ ।”
“क्यों न होता ! आखिर सारा फसाद भी तो खुद उसका अपना खड़ा किया हुआ है ।”
“क्या मतलब ?”
आसिफ एक क्षण हिचकिचाया और बोला - “तुम थोड़ी ही देर बाद अल्ला मियां के घर पहुंचने वाले हो इसलिए तुम्हें बताने में कोई हर्ज नहीं है । कुरेशी बड़ा घाघ आदमी है । उसकी तरक्की में कर्नल मकसूद अहमद सबसे बड़ी रुकावट था । उस रुकावट को दूर करने के लिए ही कुरेशी ने यह खतरनाक चाल चली थी । कर्नल मकसूद अहमद सरकारी काम से बसरा आया तो कुरेशी ने उसके कान में यह बात डाल दी कि जब वह वापिस पाकिस्तान लौटेगा तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उस पर मुकदमा चलाया जाएगा । कर्नल मकसूद अहमद डरपोक आदमी था और कुछ हद तक बंगलादेश के मामले में अपने आप को गुनहगार भी मानता था । वह मानता था कि पूर्वी पाकिस्तान में उसने अच्छा काम नहीं किया था । इसलिए उसे कुरेशी की बात पर विश्वास हो गया । दूसरी ओर कुरेशी ने हमारी सीक्रेट सरविस के डायरेक्टर के भी कान भरने शुरू कर दिये कि कर्नल मकसूद हिन्दुस्तान डिफैक्ट कर जाने की कोशिश में है । डायरेक्टर ने कुरेशी को ही कर्नल मकसूद अहमद के पीछे लगा दिया ।”
“लेकिन यह कैसे मुमकिन है” - सुनील हैरानी से बोला - “अगर कर्नल मकसूद अहमद को डिफैक्ट करे के लिए प्रेरित करने वाला आदमी खुद कुरेशी था तो कल रात वह दो घन्टे तक कर्नल को पाकिस्तान लौट चलने के लिए क्यों तैयार करता रहा था ? और कर्नल उसके साथ पाकिस्तान चला जाता तो उसे तो मालूम हो जाता कि उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होने वाला था यह बात झूठी थी कि वह पाकिस्तान लौटते ही गिरफ्तार हो जाने वाला था ।”
“कुरेशी इतनी कच्ची गोलियां नहीं खेला । उसे मालूम था कि एक बार हिन्दुस्तान को डिफैक्ट कर जाने की ख्वाहिश जाहिर कर चुकने के बाद अब कर्नल हरगिज भी पाकिस्तान वापिस नहीं लौटेगा । पहले उस पर कोई एक्शन होने वाला था या नहीं था लेकिन इस नई बात से उस पर एक्शन जरूर होता । कुरेशी से उसे पाकिस्तान लौट चलने के लिए सारा लैक्चर अपनी पोजीशन मजबूत करने के लिए पिलाया था । कल रात का अपना और कर्नल का सारा वार्तालाप उसने टेप रिकार्ड कर लिया है । उसे मालूम था कि कर्नल मानेगा नहीं और उसे कर्नल को शूट करने का बहाना मिल जायेगा । वह कह सकता था जो कि वह अब भी कहेगा, कि कर्नल का कत्ल कर देना इसलिए जरूरी था क्योंकि वह हिन्दुस्तानियों के हाथ पड़ने वाला था ।”
“लेकिन जब कुरेशी ने ही पहले कर्नल को यह कहा था कि पाकिस्तान वापिस लौटने पर वह गिरफ्तार हो जायेगा तो बाद में कर्नल यह कैसे मान जाता कि अब पाकिस्तान लौटने पर उसका कोई अहित नहीं होगा ।”
“यह बात कर्नल ने भी कही थी । जवाब में कुरेशी ने बड़ी मासूमियत से कहा था कि उससे गलती हो गई थी । हकीकत में एक्शन सीक्रेट सरविस के डायरेक्टर पर होने वाला था न कि डिप्टी डायरेक्टर पर ।”
“कर्नल को उसकी बात पर विश्वास हो गया था ?”
“नहीं और न ही कुरेशी चाहता था कि कर्नल को उसका बात पर विश्वास हो । दूसरी ओर कर्नल ने सोच विचार के लिए कल तक का वक्त इस उम्मीद में मांग लिया था कि शायद कल तक शास्त्री उसे उस इमारत से रिहा करा ले ।”
“लेकिन थोड़ी देर के लिए मान लो कि कर्नल कुरेशी के साथ पाकिस्तान वापिस जाने के लिए तैयार हो जाता तो ?”
“तो कुरेशी उसके कत्ल का कोई दूसरा बहाना ढूंढ लेता ।”
“टेप रिकार्डर में तो कुछ ऐसी बातें भी आ गई होंगी जिनसे यह जाहिर होता था कि सारे फसाद की जड़ ही कुरेशी था ।”
“ऐसी कई बातें आ गई थीं लेकिन कुरेशी ने उन सबको निकालकर नया टेप तैयार कर लिया है ।”
“और परवीन का क्या किस्सा है ?”
“कुरेशी और परवीन में गहरी आशनाई है । कर्नल के रास्ते से हट जाने से कुरेशी को दूसरा बड़ा फायदा यह भी था कि उसे परवीन हासिल हो सकती थी ।”
“तुम इतनी बातें कैसे जानते हो ?”
“कुरेशी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी रखने में ही मेरा फायदा है ।”
“तुम्हारा क्या फायदा है ?”
“मैं भी मौका आने पर कुरेशी की वही गत बनाने का इरादा रखता हूं जो कुरेशी ने कर्नल मकसूद अहमद की बनाई है ।”
“यानी कि” - सुनील हैरानी से बोला - “जैसे कुरेशी ने कर्नल मकसूद अहमद से दगाबाजी की है वैसे ही तुम कुरेशी से दगाबाजी करोगे ?”
“बिल्कुल करूंगा ।”
सुनील चुप हो गया और फिर उसे अपने साथ भीतर ले गया ।
थोड़ी देर बाद तो शक्तिशाली इन्जन वाली मोटर साइकिल से वातावरण गूंज उठा । सुनील ने देखा अरब पुलिस के दो सशस्त्र सिपाही वहां पहुंच गए थे ।
लगभग दस मिनट बाद कुरेशी वहां से रवाना हो गया । पाकिस्तानी दूतावास की गाड़ी की पिछली सीट पर वह और परवीन बैठे थे । अगली सीट पर ड्राइवर के साथ कुरेशी के दो आदमी बैठे हुए थे । अब पुलिस का एक सिपाही अपनी मोटर साइकिल पर कार के आगे था दूसरा कार के पीछे था ।
उनके इमारत से निकलते ही सुनील अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ।
“क्या बात है ?” - आसिफ तीव्र स्वर में बोला ।
“बाथरूम में जा रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
आसिफ एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “ठहरो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं ।”
दोनों उस कमरे के ही सम्बद्ध बाथरूम में पहुंचे । जितनी देर सुनील पेशाब करता रहा, आसिफ उससे थोड़ी दूर हटकर दीवार के साथ सहारा लिए खड़ा रहा ।
सुनील बाथरूम से पहले बाहर निकल आया और लम्बे डग भरता हुआ जाकर आसिफ द्वारा खाली की हुई कुर्सी पर बैठ गया । उसका हाथ अपने आप गद्दी के नीचे सरक गया । रिवाल्वर की मूठ से उंगलियां टकराते ही उसे जैसे राहत सी मिली । आसिफ एक हाथ में रिवाल्वर सम्भाले और दूसरे हाथ से पतलून के बटन बन्द करता हुआ बाथरूम से बाहर निकला ।
सुनील ने बिजली की फुर्ती से गद्दी के नीचे से रिवाल्वर निकाली और उस पर फायर कर दिया ।
गोली आसिफ के कन्धे पर लगी । उसके चेहरे पर पीड़ा से ज्यादा हैरानी के भाव उभरे । उसका रिवाल्वर वाला हाथ सीधा हुआ और उसने सुनील पर फायर किया ।
आतंकित सुनील फायर होने से केवल एक क्षण पहले कुर्सी सहित पीछे को उलट गया । वह सम्भला और उसने फिर आसिफ पर फायर किया ।
इस बार गोली आसिफ के पेट में लगी और वह दोहरा हो गया ।
सुनील ने दो और फायर किये ।
दोनों गोलियां उसकी खोपड़ी में घुस गयीं ।
आसिफ फर्श पर ढेर हो गया । रिवाल्वर उसकी उंगलियों से निकल गई ।
सुनील लपककर आगे बढा । आसिफ की जेब से चाबी निकालकर उसने कमरे का दरवाजा खोला और बाहर निकल आया । वह भागता हुआ इमारत से बाहर निकला ।
गेट के पास एक पुरानी-सी कार के हुड से पीठ लगाये एक आदमी खड़ा था । सुनील पर निगाह पड़ते ही उसकी आंखें फट गयीं । उसका हाथ फुर्ती से अपने कोट की जेब की ओर बढा ।
सुनील ने बिना हिचक उसे शूट कर दिया ।
सुनील ने रिवाल्वर जेब में डाली और कार में सवार हो गया । उसने कार स्टार्ट की, उसे गियर में डाला और फिर पूरी शक्ति से एक्सीलेटर दबा दिया ।
कार तोप से छूटे गोले की तरह इमारत से बाहर निकली ।
सुनील को मालूम था कि कुरेशी एयरपोर्ट गया था और सुनील उसके हवाईजहाज में सवार होने से पहले एयरपोर्ट पहुंचना चाहता था ।
सुनील अन्धाधुन्ध गाड़ी ड्राइव कर रहा था ।
कुरेशी को रोकने की एक तरकीब उसके दिमाग में थी और वह यह थी कि एयरपोर्ट पर पहुंचकर वह हल्ला कर दे कि कुरेशी की कार की डिकी में एक आदमी की लाश है और कुरेशी ने उसकी हत्या की है । उसे विश्वास था कि लाश देखकर अगर पुलिस वाले कुरेशी को गिरफ्तार नहीं करेंगे तो कम से कम वे तफ्तीश से पहले उसे पाकिस्तान रवाना नहीं होने देंगे ।
कुरेशी की कार को उसने एयरपोर्ट पहुंचने से काफी पहले ही पकड़ लिया ।
उसी क्षण कार में से एक अजीब तरह की पट-पट की आवाज निकलने लगी । सुनील की निगाह पैट्रोल की सुई पर पड़ी और उसका मुंह सूखने लगा । पैट्रोल लगभग समाप्त था और अभी एयरपोर्ट बहुत दूर था । कार किसी भी क्षण रुक सकती थी ।
कुरेशी की कार थोड़ी धीमी हो गई । आगे एक ट्रक फंस गया था । पलक झपकते ही सुनील ने अपना कदम निर्धारित कर लिया । उसने अपनी कार का दायीं ओर का दरवाजा खोल लिया, फिर कार को थोड़ा दायीं ओर घुमाया, फिर तेजी से स्टियरिंग को बायीं ओर मोड़ा ।
पिछली मोटर साइकिल वाला सिपाही जोर से चिल्लाया ।
सुनील ने उसकी परवाह किये बिना अपनी कार भड़ाक से कुरेशी की कार के पृष्ठ भाग में दे मारी । कारों के टकराने से एक क्षण पहले वह कार से कूद गया ।
सुनील ने सड़क पर दो लुढकनियां खायीं और एक खड्ड में जा गिरा । उसे अपने अंजर-पंजर अलग होते महसूस हुए ।
दोनों कारें एक भयंकर आवाज के साथ एक दूसरे से टकराई थी । कार के पीछे वाला सिपाही सम्भलते-सम्भलते भी कार से जा टकराया था और अपनी मोटर साइकिल समेत सड़क पर उलट गया था ।
सुनील बड़ी मुश्किल से उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो पाया था ।
कुरेशी की कार के पृष्ठ भाग का कचूमर निकल गया था । डिकी का ढक्कन अपने आप खुल गया और आसमान की ओर उठ गया । डिकी के अन्दर रखा ट्रंक भी पिचककर टूट गया था और उसमें से कर्नल मकसूद अहमद की लाश बाहर झांक रही थी । कार की सवारियां एक तरफ को झुकी हुई कार से बाहर निकल रही थीं । कार से आगे वाला सिपाही अपनी मोटर साइकिल सड़क के किनारे खड़ी कर चुका था और अब वापिस लौट रहा था ।
उसी क्षण परवीन की निगाह अपने पति की लाश पर पड़ी । उसके मुंह से एक चीत्कार निकली और वह कार की ओर लपकी लेकिन कुरेशी ने उसे पकड़ लिया ।
उसी क्षण सुनील जोर से चिल्लाया - “आफिसर ! आफिसर ! ये पाकिस्तानी स्पाई हैं और सब हथियारबन्द हैं । तुम सिर्फ दो हो । ये तुम्हें शूट कर देंगे ।”
सिपाही ने हड़बड़ा कर अपनी भारी रिवाल्वर निकाल ली और उससे सबको कवर कर लिया ।
तब तक दूसरा सिपाही भी उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था ।
“तुम कौन हो ?” - पहले सिपाही ने सुनील से पूछा ।
“मैं एक हिन्दुस्तानी टूरिस्ट हूं । मैंने इन लोगों को एक आदमी का कत्ल करके उसकी लाश को ट्रंक में बन्द करते देखा था ।”
“लाश !” - और तब पहली बार सिपाही की निगाह लाश पर पड़ी । उसका मुंह खुल गया ।
कुरेशी और सुनील की निगाहें मिलीं । प्रत्यक्षतः कुरेशी एकदम शान्त था । केवल सुनील ने उसके जबड़े भिंचते देखे । फिर कुरेशी ने परवीन को छोड़ दिया । उसने अपनी तुर्की टोपी उतारी और अपने गंजे सिर पर हाथ फेरने लगा ।
“गंजे की तलाशी लो” - सुनील जोर से बोला - “इसी ने कत्ल किया है । रिवाल्वर जरूर अभी भी इसकी जेब में होगी ।”
पहले सिपाही ने दूसरे को संकेत किया । दूसरे सिपाही ने आगे बढकर कुरेशी को जेबें टटोलनी आरम्भ कर दीं । रिवाल्वर कुरेशी के पास नहीं निकली । वह कुरेशी की बगल में खड़े कार के ड्राइवर की ओर बढा ।
उसी क्षण एक आदमी धीरे-धीरे पीछे को सरकने लगा ।
“आफिसर !” - सुनील चिल्लाया - “वह आदमी भागने की कोशिश कर रहा है ।”
रिवाल्वर वाले सिपाही की निगाह उस आदमी पर पड़ी । उसने अधिकारपूर्ण स्वर में उसे रुकने के लिए कहा लेकिन रुकने के स्थान पर वह एकदम घूमा और तेजी से वहां से भाग खड़ा हुआ ।
सिपाही ने फायर किया ।
गोली उस आदमी की खोपड़ी पर लगी । वह वहीं ढेर हो गया ।
दोनों मोटर साइकिलों में वायरलैस ट्रान्समीटर फिट था । रिवाल्वर वाले सिपाही ने उसके पुलिस कन्ट्रोल को दुर्घटना की सूचना दे दी ।
दस मिनट से भी कम समय में वहां पुलिस की तीन गाड़ियां पहुंच गई ।
सबको गाड़ियों में लादा गया और गाड़ियां पुलिस हैडक्वार्टर पहुंच गई ।
सुनील पुलिस हैडक्वार्टर जाने के बारे में चिन्तित नहीं था । उस पर अधिक से अधिक लापरवाही से गाड़ी चलाने का अभियोग लग सकता था जबकि कुरेशी कत्ल के इल्जाम में फंसने वाला था ।
पाकिस्तानियों को एक बड़े से कमरे में ले जाया गया । सुनील को उसकी बगल के एक छोटे कमरे में एक सार्जेण्ट के पास बिठा दिया गया ।
“मैं टेलीफोन करना चाहता हूं ।” - सुनील सार्जेण्ट से बोला ।
“बाद में ।” - सार्जेण्ट बोला ।
सुनील चुप हो गया ।
बगल के कमरे के लोगों के जोर-जोर से बोलने की आवाजें आ रही थी ।
थोड़ी देर बाद सार्जेण्ट भी वहां से उठकर चला गया ।
सुनील बैठा बोर होता रहा ।
लगभग एक घण्टे बाद सार्जेण्ट वापिस आया ।
“आधा पाकिस्तानी दूतावास पुलिस हैडक्वार्टर पहुंच गया है ।” - सार्जेण्ट बोला ।
“क्यों ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्या मूर्खों जैसा सवाल पूछ रहे हो । पाकिस्तानी अपने आदमियों को छुड़ाना चाहते हैं लेकिन पुलिस चीफ उन्हें छोड़ना नहीं चाहता । खासतौर पर पाकिस्तानी राजदूत कुरेशी की गिरफ्तारी पर बहुत हल्ला कर रहा है । वह कहता है कुरेशी दूतावास से सम्बन्धित है पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर सकती ।”
“डिप्लोमैटिक इम्यूनिटी ?”
“हां ।”
“लेकिन वह हत्यारा है ।”
“अभी कुछ सिद्ध नहीं हो पाया है ।”
“अब मुझे टेलीफोन तो कर लेने दो ।”
“तुम भी अपने दूतावास में फोन करना चाहते हो क्या ?”
“नहीं । मैं अपने एक दोस्त से बात करना चाहता हूं ।”
सार्जेन्ट एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “आओ मेरे साथ ।”
सार्जेन्ट सुनील को एक अन्य कमरे में ले आया । वहां एक मेज पर टेलीफोन पड़ा था । सुनील को शास्त्री का अल-हैलमिया स्ट्रीट वाले ठिकाने का नम्बर मालूम था । उसने वहां फोन किया । शास्त्री वहां नहीं था लेकिन जब सुनील ने अपना नाम बताया तो दूसरी ओर से किसी ने कहा कि उसका संदेश शास्त्री तक पहुंचाया जा सकता है ।
“मैं पुलिस हैडक्वार्टर से बोल रहा हूं” - सुनील बोला - “कुरेशी, उसके कुछ साथी और पाकिस्तानी राजदूत सहित आधा पाकिस्तानी दूतावास यहां मौजूद है । उसे जल्दी से जल्दी सन्देश पहुंचवाओ कि वह जल्दी से जल्दी पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचे ।”
“लेकिन शास्त्री साहब तो वहीं हैं ।” - दूसरी ओर से उत्तर मिला ।
“कहां ?” - सुनील हैरानी से बोला - “पुलिस हैडक्वार्टर में ?”
“जी हां ।”
सुनील ने धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया । उसने असहाय भाव से गरदन हिलाई और सार्जेन्ट के साथ हो लिया । सार्जेन्ट उसे फिर पहले वाले कमरे में छोड़ गया ।
लगभग आधे घन्टे बाद शास्त्री वहां प्रकट हुआ ।
“सब घोटाला हो गया” - शास्त्री मेज के साथ सहारा लेकर सुनील के सामने खड़ा हो गया और बड़ी संजीदगी से बोला - “पहले कुरेशी को शक हो गया कि मेरे आदमी हसन साबरी पाशा स्ट्रीट वाली इमारत की निगरानी कर रहे हैं, इसीलिये मुझे वहां से अपने आदमी हटाने पड़े । फिर उसने दूतावास की गाड़ी और पुलिस के आदमी बुलवा लिये और हमारी उसे रास्ते में अपने अधिकार में कर लेने की स्कीम धराशायी हो गई । हम अरब पुलिस की मौजूदगी में कुछ नहीं कर सकते थे । अगर हार मान लें और कुरेशी को निकल जाने दें । ऐन मौके पर तुमने कुरेशी के रास्ते में भारी रुकावट तो जरूर लगा दी । लेकिन उससे कुरेशी हमारे हाथ में आने वाला नहीं है ।”
“और कर्नल मकसूद अहमद पहले ही खुदा के घर पहुंच गया है ।”
“हां । मैंने टेलीविजन की स्क्रीन पर कुरेशी को उसे शूट करते देखा था ।”
“और ऐसे ही टेलीविजन स्क्रीन पर तुम आसिफ को मुझे शूट करते देखते ?” - सुनील तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“कुरेशी बहुत दगाबाज आदमी है” - शास्त्री सहज स्वर में बोला - “मैंने उसे परवीन से वादा करते सुना था कि वह तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचायेगा ।”
सुनील चुप रहा ।
“ऐसा ही वादा उसने कर्नल मकसूद अहमद के बारे में किया था लेकिन वह उसे शूट करने में हिचका तक नहीं । अगर रास्ते में गड़बड़ न होती तो परवीन को अपने पति की मौत की खबर तभी लगती जब वह पाकिस्तान पहुंच जाती । परवीन की कुरेशी में आशनाई सही और उसकी पति से लाख नफरत सही लेकिन फिर भी वह यह जरूर चाहती थी कि उसके पति की जिन्दगी पर कोई हर्फ न आये । कुरेशी से वह वादा लेने के बाद ही वह उसके साथ पाकिस्तान लौटने के लिए तैयार हुई थी लेकिन कुरेशी तो लगता है वादा करना ही जानता है निभाना नहीं । वादाखिलाफी उसकी खासियत मालूम होती है ।”
“अब क्या पोजीशन है ?”
“हमारे हक में तो नहीं । कुरेशी तो आजाद हो ही जायेगा । पाकिस्तानी राजदूत पुलिस पर भारी दबाव डाल रहा है । फिर शायद कुरेशी की बख्तरबन्द गाड़ी में एयरपोर्ट भेजा जायेगा ताकि रास्ते में दोबारा कोई गड़बड़ नहीं । फिर कोई पाकिस्तानी वायु सेना का प्लेन उसे पाकिस्तानी ले जायेगा । कहने का मतलब यह है कि कुरेशी अब हमारे हाथ में आने वाला नहीं है ।”
“लेकिन कुरेशी ने तो खून किया है । पुलिस उसे कैसे छोड़ सकती है ? खून के इल्जाम से तो पाकिस्तान का राजदूत भी उसे बरी नहीं करवा सकता ।”
“कौन कहता है कि उसने खून किया है ?”
“मैं कहता हूं ।”
जिस रिवाल्वर से कर्नल मकसूद अहमद का खून हुआ है वह उस आदमी की जेब में पाई गई थी जा दुर्घटना के बाद भागने की कोशिश करता हुआ पुलिस द्वारा शूट कर दिया गया था ।
“इससे क्या होता है ? कुरेशी ने रिवाल्वर उसे सौंप दी होगी । और उसकी कार की डिकी में कर्नल मकसूद अहमद की लाश बरामद हुई थी ।”
“कुरेशी कहता है कि उसे कार की डिकी में मौजूद लाश की कोई जानकारी नहीं थी ।”
“पुलिस को उसकी बात पर कभी विश्वास नहीं आयेगा ।”
“इसके विपरीत पुलिस उसकी बात पर विश्वास कर चुकी है । जो आदमी किसी का खून करके लाश को अपनी कार की डिकी में बन्द करके एयरपोर्ट ले जा रहा हो वह क्या पुलिस से संरक्षण की मांग करेगा ?”
“कर सकता है । खासतौर पर कुरेशी जैसा हरामी आदमी कर सकता है । वह लाश को दूतावास की कार में ले जा रहा था । कार पर सी डी की नंबर प्लेट लगी हुई थी । ऐसी कार की कौन तलाशी लेगा ?”
शास्त्री चुप रहा ।
“और फिर कुरेशी की करतूत का मैं चश्मदीद गवाह हूं । मेरी शहादत के दम पर वह फांसी पर लटक सकता है ।”
“तुम ऐसी कोई शहादत नहीं दोगे ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि बात को कम से कम तूल देने में ही हमारी भलाई है । यह मत भूलो कि तुम भी यहां पुलिस हैडक्वार्टर में गिरफ्तार हो । अगर तुम कुरेशी के मामले में कोई हंगामा खड़ा करने की कोशिश करोगे तो पाकिस्तानी इसका बदला तुम्हें ज्यादा से ज्यादा फंसाने की कोशिश करके लेंगे । कुरेशी पर तो सिर्फ एक ही इल्जाम लगेगा कि शायद उसने खून किया है लेकिन तुम्हारे पर तो आधी दर्जन इलजाम है... जैसे थैफ्ट आफ ए कार, रैश एण्ड नैंग्लिजेंट ड्राइविंग, एक्सीडेंट, डैंमेज टू एम्बैसीज एक्सपैंसिव कार, स्लाइन्डरस स्टेटमेंट्स अगेंस्ट डिप्लोमेटिक परसनल्स और पता नहीं क्या-क्या ! हालात इस वक्त बड़े नाजुक दौर से गुजर रहे हैं, सुनील । अगर तुमने कुरेशी के मामले में कोई हल्ला खड़ा करने की कोशिश की तो मेरे लिये तुम्हें आजाद करना असम्भव नहीं तो कठिन जरूर हो जायेगा ।”
“इसका मतलब तो यह हुआ कि हम इस आपरेशन में अपनी मुकम्मल हार मान लें ?”
“नहीं । अभी एक तुरप की दुक्की हमारे हाथ में हैं ।”
“वह क्या ?”
“परवीन । उसको यह कहा जा रहा है कि वह गैरकानूनी ढंग से काहिरा में घुसी है इसलिये वह वहां नहीं रह सकती । उसे पाकिस्तान वापिस जाना ही पड़ेगा जबकि वर्तमान स्थिति में उसको पाकिस्तान जाने में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है । कुरेशी ने वादाखिलाफी करके उसके पति की हत्या की है और हमने यह बात परवीन के कान में डाल दी है कि कुरेशी एयरपोर्ट रवाना होने से पहले तुम्हारी भी मौत का इन्तजाम कर आया था । परवीन को अब पाकिस्तान में अपना भविष्य सुरक्षित दिखाई नहीं देता । मैंने स्थानीय प्रेस रिपोर्टरों को सारा स्थिति समझा दी है । हालांकि परवीन दूतावास के लोगों की देखरेख में एयरपोर्ट पर लाई जायेगी लेकिन‍ फिर भी प्रेस रिपोर्टर उसे इन्टरव्यू के लिये घेर लेंगे और उसे यह बतायेंगे कि वह पोलिटिकल रिफ्यूजी के तौर पर अरब में रह सकती है । परवीन के एक बार पाकिस्तान जाने से इन्कार करने की देर है और फिर पाकिस्तानियों की कोई चाल भी उसे काहिरा से बाहर नहीं करवा पायेगी । इसके बाद परवीन बड़ी आसानी से हमारे हाथ में आ जायेगी ।”
“फायदा क्या होगा ?”
“नुकसान क्या होगा ? और फायदा शायद कोई हो जाये ।”
सुनील चुप हो गया ।
***
कुरेशी और उसके साथी छूट गये । वे सब लोग और परवीन पाकिस्तानी राजदूत और दूतावास के अन्य अधिकारियों के साथ एक जलूस की सूरत में पुलिस हैडक्वार्टर से रवाना हो गये ।
उनको वहां से विदा होने के बाद सुनील को इमारत के पिछवाड़े के एक दरवाजे से बाहर निकाल दिया गया ।
शास्त्री उसे अल-हैलमिया स्ट्रीट वाली इमारत में ले आया ।
अगली शाम को अलमाजा एयरपोर्ट पर शास्त्री की लगाई छोटी-सी चिंगारी एक भीषण ज्वाला के रूप में भड़क उठी । जैसे शास्त्री ने इन्तजाम किया था परवीन के दूतावास के अधिकारियों के साथ एयरपोर्ट पर प्रकट होते ही प्रेस रिपोर्टरों ने उसे घेर लिया । दूतावास के अधिकारियों के तीव्र विरोध के बावजूद भी प्रेस रिपोर्टरों ने उसका पीछा नहीं छोड़ा । फिर फ्लैशलाइट के बटन चमक उठे । एक पाकिस्तानी ने एक प्रेस रिपोर्टर का कैमरा छीनना चाहा लेकिन कामयाब नहीं हो सका ।
छीना-झपटी मच गई ।
अन्य प्रेस रिपोर्टरों ने छीना-झपटी की तस्वीरें भी खींच लीं ।
पाकिस्तानी और नाराज हो गये और नौबत हाथापाई पर पहुंच गई ।
पलक झपकते ही वहां पाकिस्तानी दूतावास के अधिकारियों और प्रैस रिपोर्टरों में गदर मच गया ।
पुलिस आ गई ।
बड़ी मुश्किल से दोनों पार्टियों को ठंडा किया गया ।
लेकिन पाकिस्तानी जैसे आसमान से गिरे और खजूर में अटक गये ।
परवीन गायब थी ।
हंगामे के उस दौर में शास्त्री और सुनील परवीन को लेकर खिसक गये ।
पाकिस्तानियों ने बहुत हो-हल्ला मचाया कि परवीन को हिन्दुस्तानी एजेन्ट भगाकर ले गये लेकिन उनके पास अपना दावा सिद्ध करने का कोई साधन नहीं था । उनके दुर्व्यवहार के शिकार प्रैस रिपोर्टर पहले ही उनके खिलाफ हो चुके थे । पुलिस द्वारा पूछे जाने पर लगभग सभी ने यही जवाब दिया कि उल्टे पाकिस्तानी परवीन नाम की युवती को जबरदस्ती अपने साथ पाकिस्तान ले जाना चाहते थे । सब इस बात की गवाही देने को तैयार थे कि युवती पाकिस्तान जाने को कतई तैयार नहीं थी ।
अगले दिन काहिरा समाचार पत्रों में दो बड़े महत्वपूर्ण समाचार छपे ।
पहले समाचार में पाकिस्तान दूतावास से सम्बन्धित व्यक्तियों के प्रैस रिपोर्टरों के साथ दुर्व्यवहार की तीव्र भर्त्सना की गई और पाकिस्तानी राजदूत से मांग की गई कि अपने आदमियों के घटिया व्यवहार के लिये वह निजी रूप से प्रैस से क्षमायाचना करे । उस समाचार के साथ कितनी ही ऐसी तस्वीरें छापी गईं जिनमें पाकिस्तानी प्रैस रिपोर्टरों से हाथापाई करते और उनके कैमरे तोड़ने के लिये उन पर झपटते दिखाये गये थे ।
दूसरे समाचार में परवीन के चित्र के साथ उसका बयान छपा था कि वह अपनी इच्छा से, बिना किसी की जोर जबरदस्ती के, एक पोलिटिकल रिफ्यूजी के नाते भारत से शरण मांग रही है
पाकिस्तानियों ने बहुत हो-हल्ला मचाया और इसे एक ‘फिल्थी इण्डियन प्लाट’ की संज्ञा दी लेकिन बात कुछ बनी नहीं ।
परवीन से उन्हें कोई नई जानकारी तो हासिल नहीं हुई लेकिन पाकिस्तानियों की किरकिरी करने के लिये वह बहुत बड़ा साधन सिद्ध हुई ।
कुरेशी अभी काहिरा में ही था इसलिये शास्त्री अपने निजी संरक्षण में सुनील और परवीन को भारत छोड़ आया ।
परवीन के अलीगढ में सम्बन्धी रहते थे । वह उनके पास चली गई और फिर सदा-सदा के लिये भारत की होकर रह गई ।
कर्नल मकसूद अहमद से मिली बांगलादेश में छुपे बारह सौ गद्दारों की लिस्ट विदेश मंत्रालय को सौंप दी गई जहां से वह लिस्ट बांगलादेश में मुनासिब हाथों में पहुंच गई ।
अगले दिन बांगलादेश में वे पूरे बारह सौ के बारह सौ आदमी चुपचाप गिरफ्तार कर लिये गये । गिरफ्तार आदमियों के माध्यम से तफ्तीश आगे चली और उनके लीडरों के खिलाफ बड़े भयंकर सबूत मिले ।
लीडरों को फांसी की सजा हुई ।
बाकियों में से कुछ पंजाबी मुसलमानों को डिपोर्टेशन आर्डर मिल गये । उन्हें चौबीस घन्टे के अन्दर-अन्दर बांगलादेश से निकल जाने का आदेश मिला ।
बाकियों को जेल की लम्बी-लम्बी सजायें सुना दी गईं ।
स्पेशल इण्टैलीजेंस के इतिहास का यह पहला केस था जिसमें हंगामा इतना मचा था लेकिन हासिल कुछ भी नहीं हुआ था ।
जिस दिन सुनील ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में पहुंचा उसी दिन उसे मलिक साहब से यह लिखित चेतावनी मिल गई कि अगर दुबारा कभी वह यूं बिना छुट्टी का आवेदन-पत्र दिये कहीं गायब हुआ तो वह अपने आपको नौकरी से बर्खास्त समझे ।
समाप्त