अंग्रेज सिंह की टांग में फंसी गोली निकालकर, घर में मौजूद व्हिस्की की बोतल से जख्म पर व्हिस्की डाली। अंग्रेज सिंह के बेहोश चेहरे पर पीड़ा के भाव उभरे। वो कसमसाया। देवराज चौहान ने जख्म पर दवा लगाकर बैंडेज कर दी। सारा काम पन्द्रह मिनट में हो गया।
देवराज चौहान ने रजनी खांडेकर को देखा।
"घर में पेन किलर दवा है?"
"हां। रंजीत घर में ऐसी, हर चीज रखता है।"
रजनी दवा ले आई।
देवराज चौहान ने दो गोलियां पीसकर, बेहोश अंग्रेज सिंह के मुंह में डालीं और पानी के कुछ घूंट उसके मुंह में डाल दिए। ताकि दवा पेट में पहुंचकर, अपना असर दिखाने लगे। फिर देवराज चौहान और अंकल चौड़ा ने, बाथरूम जाकर अपने हाथ धोए। जब वापस आए तो तब तक जगमोहन, सुधाकर बल्ली ने, रजनी की सहायता से अंग्रेज सिंह के नीचे खून भरी चादर हटाकर, नई चादर बिछा दी थी।
मुसीबत में फंसी रजनी खांडेकर उनकी हर संभव सहायता कर रही थी कि ये लोग उसे कुछ न कहें। अगर रंजीत खांडेकर आता है, तो उसे भी कुछ न कहें।
अंकल चौड़ा के कहने पर रजनी खांडेकर सबके लिए चाय बना लाई। बाहर अभी भी पुलिस वालों की आवाजें और लाउडस्पीकर पर की जाने वाली घोषणा का स्वर उनके कानों में पड़ रहा था।
परन्तु भीतर गहरा सन्नाटा था।
सुधाकर बल्ली उनके साथ होते हुए भी अलग-सा खामोश बैठा था। वो व्याकुल बेचैनी और डर भरे विचारों के बीच डुबकियां ले रहा था।
जगमोहन भी एक तरफ कुर्सी पर बैठ चुका था।
चाय का घूंट लेते हुए देवराज चौहान ने रजनी खांडेकर को देखा।
"अगर तुम हमारे खिलाफ कोई चालाकी का इरादा नहीं बनाए हुए हो तो, निश्चिंत रहो। बिना डरे रहो। हमसे तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा।" देवराज चौहान का स्वर सख्त था।
"म...मेरे पति...?" रजनी खांडेकर के होंठ कांपे।
"मैं नहीं जानता कि तुम्हारा पति रंजीत खांडेकर कितना समझदार है?" देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा--- "अगर वो समझदार है तो अपनी जान बचाना, तुम्हारी जान बचाना उसके हाथ में होगा।"
रजनी खांडेकर के होंठ कंपकंपाकर रह गए।
"नीचे, फर्श पर बैठ जाओ।" देवराज चौहान ने कहा--- "जब तक हम न कहें उठना नहीं।"
रजनी खांडेकर फौरन नीचे बैठ गई।
देवराज चौहान ने बेहोश अंग्रेज सिंह पर निगाह मारी।
"अंग्रेज सिंह के बारे में मैंने बहुत गलत बात कही।" अंकल चौड़ा धीमे स्वर में बोला--- "उसका मुझे अफसोस है।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"यह होश में आने पर चीख सकता है।" जगमोहन बोला।
"हां। पेन किलर गोलियां, ज्यादा असर नहीं करेंगी। इसे आराम की जरूरत है।" कहते हुए देवराज चौहान ने रजनी खांडेकर को देखा--- "नींद की गोलियां हैं घर में?"
"हां---।"
"लाओ---।"
रजनी उठी। जगमोहन उसके साथ हो गया। नींद की गोलियां आई तो देवराज चौहान ने दो गोलियों को पीसकर, बेहोश अंग्रेज सिंह के मुंह में डाला और तीन-चार बूंद भी पानी मुंह में डाल दिया। ताकि ज्यादा देर नींद में रहकर, जब आंख खोले तो खुद को कुछ हद तक ठीक महसूस कर सके।
रजनी नीचे और जगमोहन कुर्सी पर बैठ चुका था।
वे सब चाय के घूंट ले रहे थे।
रजनी खांडेकर ने चाय नहीं ली थी। वो तो यूं ही डरकर, मरी जा रही थी।
"एक बात मेरी समझ में नहीं आई?" जगमोहन बोला।
सबकी निगाह जगमोहन की तरफ उठी।
"पुलिस की कारें हमारे पीछे थीं। हमें रोकने के लिए वो हम पर बराबर फायरिंग कर सकते थे।" जगमोहन ने कहा--- "परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया।"
"वानखेड़े ने फायरिंग के लिए मना कर दिया होगा। उसकी हमेशा कोशिश रही है कि मुझे जिंदा गिरफ्तार कर सके। और पुलिस द्वारा चलाई गई गोलियां मेरी जान ले सकती थीं?" देवराज चौहान बोला--- "लेकिन इससे भी अहम सवाल ये है कि पुलिस को हमारी योजना का कैसे पता चला?"
"क्या मतलब?" अंकल चौड़ा के होंठों से निकला।
देवराज चौहान ने सब पर निगाह मारी।
"हम जब अपना काम करके बाहर निकले तो बाहर पुलिस का घेरा था। घेरे के बारे में सोचा जा सकता था कि कुछ शोर-शराबा होने पर आसपास रहने वालों ने पुलिस को फोन कर दिया और पुलिस आ पहुंची। परन्तु ऐसे में पुलिस एक-आध गाड़ी में आती है, पांच-सात पुलिस वाले होते हैं। लेकिन माटुंगा के बंगले को पुलिस ने पूरी प्लानिंग के साथ घेरा था। वहां पर वानखेड़े भी मौजूद था और उसे पहले से ही खबर थी कि मैं बंगले के भीतर मौजूद हूं, क्योंकि हमारे निकलते ही वानखेड़े ने मेरा नाम लेकर वार्निंग दी थी।
अंग्रेज चौड़ा के माथे पर बल पड़े।
सुधाकर बल्ली ने पहलू बदला।
जगमोहन के होंठ भिंच गए।
"इसका मतलब वानखेड़े को पहले से ही खबर थी कि हम क्या करने जा रहे हैं।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"हां।"
"लेकिन वानखेड़े को कैसे पता चला कि---।" जगमोहन ने कहना चाहा।
अंग्रेज चौड़ा कह उठा।
"ये वानखेड़े है क्या बला?"
"पुलिस इंस्पेक्टर है।" जगमोहन ने उसे देखा--- "कहने को इंस्पेक्टर है, लेकिन पुलिस डिपार्टमेंट में खास ही महत्व रखता है। वो कब से देवराज चौहान को पकड़ने के लिए भागदौड़ कर रहा है।"
"ओह! समझा।" अंकल चौड़ा कह उठा--- "तो उसे कैसे पता चला कि तुम इस बंगले पर कुछ करने जा रहे हो?"
"यह खबर हममें से ही किसी ने बाहर पहुंचाई है।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला।
"हममें से!" अंकल चौड़ा की आंखें सिकुड़ी--- "हम में से कोई ऐसा क्यों करेगा?"
"जिसने ये किया है, इसका जवाब तो वही दे सकता है।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा--- "या तो सीधे-सीधे पुलिस को खबर दी गई है या फिर किसी ने इस बात का जिक्र अपने पहचान वाले से किया है कि बात बाहर निकल गई?"
"मैंने तो किसी से जिक्र नहीं किया।" अंकल चौड़ा के होंठों से निकला।
देवराज चौहान ने सुधाकर बल्ली को देखा।
"मुझे क्या देखते हो।" उसकी निगाहों का मतलब समझकर सुधाकर बल्ली तेज स्वर में कह उठा--- "मैं क्या अपनी मौत का इंतजाम खुद कर लूंगा।"
देवराज चौहान ने उन पर से निगाहें हटा लीं।
"जहां भी गड़बड़ हुई है, जिसने भी की है। मुनासिब वक्त आया तो ये भी मालूम हो जाएगा।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "बेहतर होगा कि अब हम वक्ती हालातों से निकलने पर बात करें।"
अंकल चौड़ा की निगाह फौरन उन काले थैलों पर गई, जिनमें पचास करोड़ नकद भरा पड़ा था और उन नोटों में से उसे अपना सुनहरा भविष्य नजर आ रहा था।
"बाहर जर्रे-जर्रे पर पुलिस बिखरी पड़ी है।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा--- "और उन लोगों को पूरा भरोसा है कि हम किसी मकान में छिपे हुए हैं। वे हमें छोड़ने वाले नहीं।"
"ठीक कहते हो।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में सिर हिलाया।
"लेकिन हमने पुलिस वालों के हाथ नहीं पड़ना है।" अंकल चौड़ा दांत भींचकर कह उठा--- "मैं किसी भी कीमत पर ये नहीं होने दूंगा। हमारे पास करोड़ों रुपया है। रुपए के साथ पकड़े जाना, पागलपन के अलावा कुछ नहीं।"
"तुम्हें अपनी जान से ज्यादा रुपए की फिक्र है।" सुधाकर बल्ली उखड़े स्वर में कह उठा--- "जब जान ही नहीं रहेगी तो इस रुपए को माथे पर लगाएंगे? पहले हमें खुद को बचाने का सोचना चाहिए।"
अंकल चौड़ा ने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा।
"तू अपना थोबड़ा बंद रख। मैंने तुझे जान बचाने से नहीं रोका। जा चला जा यहां से। मैं तो अपनी बात कर रहा हूं। मैं दौलत छोड़कर नहीं जाऊंगा।" अंकल चौड़ा ने दांत पीसते हुए कहा।
सुधाकर बल्ली होंठ भींचकर रह गया।
"जब तक हम पुलिस के अगले कदम के बारे में नहीं जानेंगे, तब तक अपनी योजना नहीं बना---।"
देवराज चौहान के शब्द अधूरे रह गए।
कॉलबेल बजने का तीव्र स्वर पूरे घर में गूंज उठा।
सब चौंके। डरी-सतर्क निगाहों से एक-दूसरे को सवालिया अंदाज में देखा। जबकि देवराज चौहान के होंठ भिंचते चले गए। नीचे बैठी रजनी खांडेकर का चेहरा फक्क पड़ गया।
देवराज चौहान की निगाह उसकी तरफ उठी।
"इसका सब-इंस्पेक्टर पति आया होगा।" अंकल चौड़ा वहशी स्वर में कह उठा।
देवराज चौहान ने बैड पर पड़े अंग्रेज सिंह पर निगाह मारी जो गहरी नींद भरी बेहोशी में था।
"तुम सब रिवॉल्वरें हाथ में लेकर पोजीशन ले लो।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "जब तक पानी सिर से ऊपर ना हो, तब तक फायर नहीं करना है और ये बात हर वक्त ध्यान रखना कि यहां जर्रे-जर्रे पर पुलिस मौजूद है, और पुलिस से जीत जाना असंभव है।"
वे सब खड़े हो गए। हाथों में रिवाल्वरें नजर आने लगीं।
नीचे बैठी रजनी उनके चेहरे के भाव देखकर कांप उठी।
जगमोहन, अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली बाहर निकलते चले गए।
देवराज चौहान खड़ा हुआ और रिवॉल्वर निकालकर रजनी खांडेकर से बोला।
"उठो।"
रजनी उठी। वो अपनी टांगों में स्पष्ट तौर पर कंपन महसूस कर रही थी।
"कौन होगा बाहर?"
"म-मालूम नहीं।" रजनी खांडेकर बहुत घबरा चुकी थी--- "र- रंजीत हो सकता है।"
"और पुलिस वाले भी---।" देवराज चौहान का चेहरा चट्टान की भांति कठोर हो चुका था।
रजनी खांडेकर कुछ न कह सकी।
तभी कॉलबेल पुनः बजी।
"सामने वाले कमरे में चलो।" देवराज चौहान बेहद कठोर स्वर में कह उठा--- "दरवाजा खोलना है। मेरी रिवाल्वर तुम्हारे जिस्म से लगी होगी। रिवाल्वर की सारी गोलियां तुम्हारे शरीर में पहुंच सकती हैं। कहीं भी चालाकी की तो। अगर बाहर पुलिस वाले हैं तो तुम पुलिसवाले की बीवी होने के नाते उन्हें रोक सकती हो। कुछ देर बाद आने को कह सकती हो। अगर तुम्हारा पति हुआ तो उसे खामोशी से अंदर आने देना। समझी---।"
रजनी खांडेकर ने अपना फक्क चेहरा हिलाया।
"अपने चेहरे के रंग-ढंग ठीक करो। देखकर ऐसा न लगे कि भीतर वास्तव में गड़बड़ है। चेहरे पर सामान्य भाव लाओ। जैसा मैं कह रहा हूं। फौरन वैसा ही करो।"
रजनी अपनी चेहरे के भावों पर काबू पाने की चेष्टा करने लगी।
"चलो।" देवराज चौहान दांत भींचे आगे बढ़ा और रिवाल्वर रजनी खांडेकर की कमर से लगा दी।
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दरवाजा खोलते समय रजनी खांडेकर ने अपने चेहरे के भावों पर काफी हद तक काबू पा लिया था। लेकिन वो भाव भला कहां से आते, जो अपने पति रंजीत खांडेकर के घर आने पर आते थे। दरवाजे के ठीक बीचोबीच न होकर, एक तरफ होकर रजनी ने दरवाजा खोला था, ताकि देवराज चौहान की रिवाल्वर उसकी कमर से लगी रहे। आने वाला उसका पति रंजीत खांडेकर ही था।
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर की वर्दी पसीने से भीगी हुई थी। वह थकान से भरा हुआ था। नींद न लेने के कारण, आंखें भारी हो रही थीं। रजनी को देखकर वह थके अंदाज में मुस्कुराया।
"सॉरी डार्लिंग, तुम्हें नींद से डिस्टर्ब किया।" कहते हुए उसने भीतर प्रवेश किया चूंकि वह खुद ही उलझा हुआ था, इसलिए अपनी पत्नी के चेहरे के भावों को पहचान न पाया--- "मैं तो आधी रात से ही अपनी कॉलोनी में हूं। घर इसलिए नहीं आया कि तुम्हारी नींद खराब न हो। अब सुबह होने लगी है तो आ गया। वैसे अभी मुझे जाना है। तुम तब तक एक कप चाय पिला दो।"
रजनी ने बाहर पुलिस वालों पर निगाह मारी तो घूम रहे थे। फिर फौरन दरवाजा बंद करके पलटी। रिवाल्वर की नाल बराबर उसकी कमर से लगी हुई थी।
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर ने अभी तक पलटकर नहीं देखा था।
"पुलिस वाले से शादी की है तो अब परेशान होने की आदत डाल लो।" सिर की कैप उतारकर टेबल पर रखते हुए मजाक भरे लहजे में कहा--- "हमारी नौकरी में ऐसा ही होता है। कभी-कभी तो दो-दो दिन घर दिन घर आने का मौका नहीं मिलता। अब देखो ना---।" कहते हुए वह पलटा कि हैरानी से मुंह खुला का खुला ही रह गया। नजरें देवराज चौहान पर गईं।
देवराज चौहान कठोर निगाहों से उसे देख रहा था।
रंजीत खांडेकर का हाथ फुर्ती से होलस्टर की तरफ बढ़ा कि ठिठक गया। उसकी नजर पत्नी रजनी की कमर से लगे रिवाल्वर पर पड़ चुकी थी। पहले तो उसके चेहरे पर गुस्सा झलका। फिर वो गुस्सा धीरे-धीरे डर में बदलने लगा। उसके मस्तिष्क में बेचैनी घर करने लगी।
देवराज चौहान पैनी निगाहों से उसके बदलते रंगों को देखता रहा।
कई पल मौत से भरी खामोशी से गुजर गए।
"क-कौन हो तुम?" सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर के होंठों से हक्का-बक्का-सा स्वर निकला।
देवराज चौहान ने रिवाल्वर का दबाव डालकर रजनी को आगे बढ़ने का इशारा किया और खुद भी आगे आया फिर एक-एक शब्द चबाकर धीमे सख्त स्वर में बोला।
"मैं वही हूं, जिसकी तलाश में पुलिस वाले परेशान हो रहे हैं"
रंजीत खांडेकर के होंठों से कोई बोल ना फूटा।
"पीछे वाले कमरे में चलो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर उसकी कमर के होलस्टर का बटन खोला और रिवाल्वर निकालकर अपनी जेब में ठूंस ली।
वो तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि जिसे ढूंढते हुए पुलिस भटक रही है। वो उनके घर में ही छिपा हुआ है। अचानक ये सब देखकर वो समझ नहीं पाया कि क्या करे? सबसे ज्यादा डर उसे देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर से लग रहा था, जिसकी नाल उसकी पत्नी की कमर से लगी हुई थी। रजनी के चेहरे पर भय का पीलापन देखकर वह मन-ही-मन तड़प उठा था।
"लगता है तुम्हें अपनी नई-नवेली पत्नी की जान प्यारी नहीं।" देवराज चौहान धीमे-धीमे स्वर में गुर्राया।
"नहीं-नहीं। ऐसा मत कहो।" खांडेकर के होंठों से जल्दी से निकला।
"पीछे वाले कमरे में चलो।"
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर पीछे वाले कमरे में पहुंचा। उसके पीछे रजनी और फिर देवराज चौहान था। खांडेकर की निगाह बैड पर बेहोश पड़े अंग्रेज सिंह पर जा टिकी। एक ही निगाह में वो जान गया कि उसे गोली लगी है और टांग पर हुई बैंडेज बता रही है कि गोली निकाल दी गई है।
"इसे गोली किसने मारी? हम पुलिस वालों को तो फायरिंग करने का आर्डर नहीं दिया गया था।"
देवराज चौहान ने रंजीत खांडेकर को घूरा।
"फालतू के सवाल न करके, तुम अपने और अपनी पत्नी पर ध्यान दो।"
रंजीत खांडेकर ने परेशान निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
"तुम-तुम देवराज चौहान हो?"
"हां।"
"तुम्हारे बाकी साथी कहां हैं?" तुम लोग तो छः-छः थे?" रंजीत खांडेकर के होंठों से निकला।
तभी कमरे के दूसरे कमरे से जगमोहन, अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली ने भीतर प्रवेश किया। तीनों के हाथों में रिवाल्वरें दबी हुई थीं।
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर का चेहरा फक्क पड़ गया।
"म-मैं सोच भी नहीं सकता था कि तुम-तुम लोग मेरे ही घर में---।"
"यह महज इत्तेफाक ही रहा कि जिस घर में हमने पनाह ली, वो पुलिस वाले का घर निकला।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा--- "अब सवाल यह है कि तुम चाहते क्या हो?"
रंजीत खांडेकर ने व्याकुल निगाहों से उन सबको देखा।
"तुम लोग पांच हो। छठा कहां है?"
"हम पांच ही हैं।"
"पुलिस को मिली खबर गलत नहीं हो---।"
"हम पांच ही हैं, समझे?" देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
रंजीत खांडेकर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
"तुम...।" उसने रजनी से पूछा--- "ठीक तो हो?"
रजनी ने सहमति से सिर हिलाया। चेहरे पर भय नाच रहा था।
"इन्होंने तुम्हें तंग तो नहीं किया। मेरा मतलब कि---।"
"नहीं।" रजनी के होंठों से कांपता स्वर निकला--- "मैं बिल्कुल ठीक हूं। ठीक हूं।"
रंजीत खांडेकर की निगाह उन दो काले थैलों पर पड़ी।
"इनमें-इनमें पचास करोड़ है।"
देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"तो पुलिस वालों को ये भी मालूम है कि हमने पचास करोड़ पर हाथ मारा है।" जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा--- "यह तो खबर हमारे ही किसी आदमी ने दी है, जो पुलिस से मिला हुआ है। बता कौन है वो?"
"मैं नहीं जानता।" रंजीत खांडेकर जल्दी से बोला--- "मैं तो पेट्रोलिंग पर था। वायरलैस पर संदेश मिला तो तुम लोगों की कार के पीछे लग गए। और कोई बात मुझे मालूम नहीं।"
सबकी निगाह रंजीत खांडेकर पर टिकी थी।
देवराज चौहान ने रजनी की कमर से रिवाल्वर हटा ली।
"बाहर कितने पुलिस वाले हैं?" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर पूछा।
"पचास, साठ... सत्तर होंगे।"
"पोजीशन क्या है?"
"सख्ती से सारी कॉलोनी को घेर रखा है। इस ऑपरेशन का इंचार्ज इंस्पेक्टर वानखेड़े है। और वो बेहद सख्त है। उसे पूरा विश्वास है कि तुम लोग किसी घर में घुसे बैठे हो।" रंजीत खांडेकर ने जल्दी से कहा--- "कुछ ही देर में पुलिस वाले एक-एक घर की तलाशी लेंगे।"
"साले।" अंकल चौड़ा गुर्रा उठा--- "हम फंसना नहीं चाहते। हमारे पास पचास करोड़ रुपया है।" कहने के साथ ही वो आगे बढ़ा और गुस्से से खांडेकर के चेहरे पर चांटा मारना चाहा।
देवराज चौहान ने फुर्ती से अंकल चौड़ा की बांह पकड़ी और उसे पीछे धकेल दिया।
अंकल चौड़ा ने संभलकर देवराज चौहान को खा जाने वाली निगाहों से देखा।
"अपने हाथ-पांवों पर काबू रखो। मेरी इजाजत के बिना कुछ भी करने की कोशिश मत करना।" देवराज चौहान के स्वर में खतरनाक भाव थे और आंखों में गुस्सा।
अंकल चौड़ा दांत पीसकर रह गया।
सुधाकर बल्ली सूखे होंठों पर जीभ फेरता, ये सब देख रहा था।
देवराज चौहान की निगाह पुनः रंजीत खांडेकर पर जा टिकी।
"तुम्हें अपनी वर्दी प्यारी है या बीवी?" देवराज चौहान की आवाज में सर्द भाव थे।
"द-दोनों।" रंजीत खांडेकर की आंखों में घबराहट उछली।
"इस वक्त तुम्हें एक चीज से प्यार करना छोड़ना पड़ेगा। कौन-सी चीज चुनते हो?"
देवराज चौहान की आवाज में ऐसे भाव थे कि रंजीत खांडेकर सिहर उठा।
"र... रजनी को मत मारना।" खांडेकर की आवाज में कंपन आ गया था।
देवराज चौहान ने जेब से खांडेकर वाली रिवाल्वर निकाली और उसकी तरफ उछाल दी। रंजीत खांडेकर ने हड़बड़ाकर दोनों हाथों में रिवॉल्वर संभाली। चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
देवराज चौहान की सर्द निगाहें, खांडेकर पर थीं।
"इसे रिवाल्वर क्यों दी, ये स्यापा डाल देगा।" अंकल चौड़ा दांत पीसकर कह उठा।
खांडेकर की निगाह देवराज चौहान पर थी।
"समझे क्या?" देवराज चौहान के होंठ खुले।
रंजीत खांडेकर सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गया।
"तुम्हारी पत्नी रजनी की जिंदगी हमारी जिंदगी के साथ जुड़ चुकी है।" देवराज चौहान मौत भरे स्वर में कह उठा--- "पुलिस तुम्हारे घर की तलाशी मत ले। यह कैसे होगा। देखना तुम्हारा काम है बुरा वक्त आया तो पहले तुम्हारी पत्नी की जान जाएगी। उसके बाद हमारी। फैसला तुम्हारे हाथ में है।"
खांडेकर ने फीकी निगाहों से रजनी को देखा, फिर देवराज चौहान को।
"अगर तुम्हें अपनी पत्नी की जान प्यारी नहीं तो बाहर जाकर वानखेड़े से कह दो कि हम यहां पर हैं। और उसके बाद क्या होगा, ये बात सोचना तुम्हारा काम है।" देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा।
खांडेकर भय भरी निगाहों से, देवराज चौहान को देखे जा रहा था।
"बाहर जो हालात हैं, उन्हें देखते हुए तुम्हें ज्यादा देर यहां नहीं रहना चाहिए। जो भी फैसला करना हो, वो बाहर जाकर कर लेना। जाओ। दरवाजा खोलो और बाहर निकल जाओ। पल्ले भिड़ा देना। तुम्हारे निकलते ही हम सिटकनी लगा देंगे।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा।
खांडेकर ने व्याकुल भाव से रिवाल्वर होलस्टर में डाली और रजनी को ऐसी निगाहों से देखा, जैसे कह रहा हो कि वो फिक्र ना करे, सब ठीक कर लेगा। उसके बाद खांडेकर सब पर निगाह मारने के बाद अपने चेहरे के भावों को ठीक करता हुआ दूसरे कमरे की तरफ़ बढ़ गया।
"जगमोहन।"
देवराज चौहान का इशारा समझकर, जगमोहन उसके साथ हो गया। दूसरे कमरे से उसने कैप उठाई और सिर पर रखते हुए मुख्य द्वार पर पहुंचकर खांडेकर ठिठका और जगमोहन को देखा। चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी। जगमोहन एक तरफ हट गया। खांडेकर ने उस पर से निगाह हटाकर सिटकनी हटाई और पल्ले खोलकर बाहर निकला, फिर पल्ले भिड़ा दिए।
जगमोहन ने भीतर से से सिटकनी चढ़ाई और पीछे वाले कमरे में पहुंचा।
"गया।" जगमोहन ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।
सब टुकुर-टुकुर एक-दूसरे का चेहरा देख रहे थे।
"तुमने उसे इतनी आसानी से जाने देकर, भारी भूल की है देवराज चौहान।" अंकल चौड़ा ने कहा।
"मैंने ठीक किया है। इसके अलावा हमारे पास और कोई रास्ता भी नहीं। उसे भीतर बिठाकर रखते तो उससे हमें कुछ नहीं मिलता।" देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा--- "मेरे ख्याल से अगर उसके बस में हुआ तो वो पुलिस को यहां नहीं आने देगा।"
कोई कुछ नहीं बोला।
देवराज चौहान ने रजनी को देखा। डर के कारण उसकी हालत और भी बुरी हो रही थी।
"तुम घबराओ मत।" देवराज चौहान का स्वर कठोर ही था--- "अगर तुम्हारे पति ने हमारे साथ कोई धोखेबाजी नहीं की तो हम तुम्हारी जान नहीं लेंगे। जो कहा उसे, वो कहना जरूरी था। जिस तरह अब तक हमारे साथ सहयोग कर रही हो, उसी तरह आगे भी करती रहो। तुम्हारी जान को कोई खतरा नहीं।"
अंकल चौड़ा दांत भींचकर रह गया।
■■■
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर घर से बाहर निकला तो सामने से आते सब-इंस्पेक्टर ने पूछा।
"तुम कहां की सैर कर रहे हो?"
खांडेकर हाथ हिलाकर, मुस्कुराकर बोला।
"ये मेरा घर है।"
"यहां रहते हो।" पास आकर सब-इंस्पेक्टर ठिठका। मकान को देखा--- "बढ़िया मकान है। तुमने जाने कैसे इतना बड़ा मकान बना लिया? मैं तो जमीन तक भी नहीं खरीद पाया।"
"ये मैंने नौकरी में से नहीं बनाया।" खांडेकर हौले से हंसा--- "पुश्तैनी है। मां-बाप ने बनाया था। वह अब नहीं रहे।"
"अपनी-अपनी किस्मत है। मुझे तो पुश्तैनी कुछ नहीं मिला, बल्कि हजार रुपया घर ही भेजना पड़ता है, मां-बाप को।"
खांडेकर आसपास देखता हुआ कह उठा।
"अब क्या हो रहा है?"
"होना क्या है। पुलिस वाले बदले जा रहे हैं। रात भर के जगे होने के कारण, सब सुस्त हो रहे हैं।"
"मतलब कि रात के पुलिस वालों की जगह लेने के लिए नए पुलिस वाले आ रहे हैं?" खांडेकर बोला।
"हां। सारे तो नहीं बदले जा रहे, परन्तु अधिकतर बदले जा रहे हैं। तुमने तो महीना भर पहले ही शादी की है। कम-से-कम अपनी बीवी से तो मिलवा दो।"
"फिर कभी। इस वक्त सख्त ड्यूटी चल रही है।" खांडेकर ने लापरवाही से कहा।
"तो इस सख्त ड्यूटी में तुम घर में अपनी पत्नी के पास क्या करने गए थे?" उसने मुंह बनाया।
"चाय पीने।" खांडेकर हौले से हंसा।
"तो यार, सच बात तो यह है कि तुम्हारी बीवी से मिलने की इच्छा कम और चाय पीने की इच्छा ज्यादा है। रात भर की भागदौड़ के बाद इतनी थकान हो गई है कि कुछ भी करने का मन नहीं कर रहा।"
"अपने मन को संभालो। हमने देवराज चौहान और उसके साथियों को हर हाल में गिरफ्तार करना है।" खांडेकर ने कहा और आगे बढ़ गया। उसका चेहरा बेहद सामान्य था, परन्तु आंखों में गहरी सोच और व्याकुलता के भाव थे।
दस मिनट बाद ही पुलिस कार के पास वायरलैस पर व्यस्त वानखेडे दिखाई दिया। खांडेकर पास पहुंच कर खड़ा हो गया। वानखेड़े ने फारिग होकर उसे देखा।
"कहो खांडेकर, अपनी पहचान वालों के मकानों को चैक किया?" खांडेकर ने पूछा।
"यस सर। सब ठीक है। अपने घर का भी चक्कर लगा आया हूं। देवराज चौहान और उसके साथी कहीं भी नजर नहीं आए। जिन घरों को मैंने देख लिया है उन्हें दोबारा देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी सर?"
वानखेड़े ने सोच भरे अंदाज में सिगरेट सुलगाई।
"सर!" सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर ने कहा--- "सब-इंस्पेक्टर की पोस्ट पर आने से पहले मैं स्पेशल कमांडो दस्ते में था।"
वानखेड़े ने उसे देखा।
"मैं बहुत कुशल कमांडो माना जाता था सर! मैंने कई बड़े कारनामों को अंजाम दिया है।" खांडेकर ने कहा।
"गुड! तो फिर सब-इंस्पेक्टर की पोस्ट पर कैसे आ गए?"
"सर, कमांडो दस्ते को काम करने के लिए बहुत कम अवसर मिलते हैं। कभी-कभी तो साल-साल भर खाली बैठना पड़ता था। जबकि मैं अपने देश के लिए कुछ करना चाहता था। इसलिए मैंने टेस्ट पास करके, सब-इंस्पेक्टर की पोस्ट हासिल कर ली और चार साल से इसी पोस्ट पर मौजूद हूं। और दो बार मैंने अकेले ही खतरनाक अपराधियों से मुठभेड़ करके उन्हें गिरफ्तार किया और मार गिराया। आप मेरा रिकॉर्ड चैक कर सकते हैं।" खांडेकर की आवाज में जोश था।
"गुड। गुड---।" वानखेड़े ने मुस्कुराकर सिर हिलाया--- "तुम्हारा रिकॉर्ड जानकर मुझे खुशी हुई खांडेकर। लेकिन ये वक्त इन बातों का जिक्र करने का नहीं है या फिर तुम कुछ कहना चाहते हो?"
"जी, मैं अपने मन की बात आपसे कहना चाहता हूं।"
"कहो---।"
"सर! इस तरह हम देवराज चौहान और उनके साथियों को नहीं पकड़ सकेंगे। हमने हर तरफ की जगह घेर रखी है। अगर आप कालोनी के एक-एक घर की तलाशी का आदेश दे दें तो बेहतर होगा। तलाशी दस्ते में मैं सबसे आगे रहूंगा और वायदा करता हूं कि देवराज चौहान और उसके साथी अवश्य गिरफ्तार होंगे। या फिर वे जान गंवाएंगे।" कहते हुए खांडेकर के चेहरे पर जोश के भाव उमड़ पड़े थे।
वानखेड़े ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया।
"कॉलोनी के घरों की तलाशी के आदेश मैं देने ही जा रहा हूं। इसके अलावा अब मेरे पास कोई और रास्ता भी नहीं। शायद देवराज चौहान भी हमारे अगले कदम का इंतजार कर रहा होगा।" वानखेड़े का स्वर गंभीर था।
"सर, एक बात और दिमाग में आ रही है।"
"क्या?"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि हम यहां वक्त बर्बाद कर रहे हों। देवराज चौहान अपने साथियों के साथ यहां से निकल गया हो।"
"नहीं।" वानखेड़े ने सोच भरे स्वर में कहा--- "वो लोग इसी कालोनी में हैं। खांडेकर तुम एक काम करो।"
"क्या सर?"
"जहां पर, जिस गली में उन लोगों की कार मिली है। तुम उसके आसपास के पच्चीस-तीस मकानों की सावधानी से तलाशी लो।" वानखेड़े ने खांडेकर को देखा--- "मेरा ख्याल है कि वो वहीं कहीं होंगे।"
खांडेकर का दिल जोरों से उछला।
"आप फिक्र न करें सर। अगर वो वहां हुए तो, बचेंगे नहीं।" खांडेकर ने आवाज में जोश भर कर कहा।
"कोशिश करना कि देवराज चौहान को जिंदा गिरफ्तार कर सको।"
"मैं पूरी कोशिश करूंगा सर।"
"जाओ अपने काम में लग जाओ। मैं अन्य पुलिस वालों को भी तलाशी के लिए आर्डर देने जा रहा हूं। जिस मकान में जाओ भीतर प्रवेश करते समय जेहन में यही रखना कि देवराज चौहान और उसके साथी इसी मकान में हैं। लापरवाह मत होना।"
"ओ•के• सर।"
"उन्होंने किसी घर वालों को बंधक बना रखा होगा। किसी भी हाल में, निर्दोषों की जान नहीं जानी चाहिए।" वानखेड़े के लहजे में आदेश था।
■■■
इस कॉलोनी के एक-एक मकान की तलाशी का अभियान शुरू हुआ। नए पुलिस वाले भी आ गए थे। अधिकतर पुलिस वाले आक्रमक मूड में थे। तलाशी लेने के दौरान सब बेहद सतर्क थे।
सब-इंस्पेक्टर खांडेकर ने अब बाईस मकानों की निशानदेही कर दी थी, जिन्हें देख चुका था कि उनके भीतर सब ठीक-ठाक है। ऐसा उसने इसलिए किया कि पुलिस का वक्त बर्बाद न हो। उन बाईस मकानों में एक घर उसका भी था। चूंकि कार के पास का मकान उसका था, और वहां पर मकानों को छानने का काम वानखेड़े ने खांडेकर के हवाले कर दिया था, इसलिए उसके घर को भला कौन चैक करता!
इस सारी तलाशी में दोपहर के दो बज गए।
कॉलोनी में हर तरफ पुलिस की वर्दियां ही नजर आ रही थीं।
आखिरकार शाम को चार बजे पुलिस वाले इस नतीजे पर पहुंचे कि देवराज चौहान और उसके साथी मौका पाकर वहां से निकल चुके हैं। वे लोग कॉलोनी में नहीं हैं।
हालांकि वानखेड़े का दिलो-दिमाग ये बात मानने को तैयार नहीं था। परन्तु इतने सारे पुलिस वालों को वो गलत भी कैसे कह सकता था, जिन्होंने कॉलोनी का एक-एक घर छाना था।
और फिर शाम छः बजे उस कॉलोनी से पुलिस की घेराबंदी हट गई।
आठ बजे जब अंधेरा हुआ तो वहां पुलिस का एक भी आदमी नहीं था।
■■■
रात को दस बजे सब-इंस्पेक्टर खांडेकर अपने घर पहुंचा।
देवराज चौहान, जगमोहन, अंकल चौड़ा, सुधाकर बल्ली और अंग्रेज सिंह खाना खा रहे थे। अंग्रेज सिंह को दोपहर में ही होश आ गया था। जो पहले से खुद को बेहतर महसूस कर रहा था और बीतते वक्त के साथ अब टांग के जख्म को काफी कम महसूस किया। दर्द न के बराबर था। घर में पड़ी पेन किलर दवा देवराज चौहान उसे बराबर टाइम पर दे रहा था। खुद को ठीक करने में अंग्रेज सिंह का हौसला भी काम कर रहा था।
रजनी ने उन सबके लिए खाना बनाया था।
खांडेकर ने गम्भीर निगाहों से सबको देखा।
सबकी रिवाल्वरें पास ही थीं और खांडेकर के प्रति वे सावधान थे कि वह कोई हरकत न करे।
"तुम ठीक हो?" खांडेकर ने रजनी से पूछा।
"हां।" रजनी के चेहरे पर अब भय के भाव कम थे।
"किसी ने तुम्हारे साथ बदतमीजी करने की कोशिश तो नहीं की?" खांडेकर ने होंठ भींचकर पूछा।
"नहीं। अब मुझे इनसे डर नहीं लग रहा।" रजनी बोली--- "सिर्फ इनकी मौजूदगी मुझे बेचैन किए दे रही है।"
"सब ठीक हो जाएगा।" खांडेकर ने रजनी को तसल्ली दी।
"खाना दूं?"
"कुछ नहीं चाहिए।" कहते हुए खांडेकर की गम्भीर निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी--- "मैंने यहां पुलिस नहीं आने दी। सब ठीक है बाहर। बाहर कोई पुलिस वाला नहीं है। सब चले गए हैं।"
"इतना तो हम भी जान चुके हैं।" देवराज चौहान खाना समाप्त करते हुए बोला--- "लेकिन तुम जो कह रहे हो।इस बात का क्या भरोसा कि सच ही कह रहे हो? यह तुम्हारी चाल भी हो सकती है।"
"क्या मतलब?"
"ये भी संभव है कि वानखेड़े के साथ मिलकर तुमने यह सब करके कोई चाल चली हो कि जब हम निश्चिंत हो जाएं तो हम पर हाथ डाला जाए।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।
"बेवकूफी वाली बात मत करो। कोई और वक्त होता तो शायद मैं ऐसा ही करता। लेकिन ये मेरी रजनी की जिंदगी का सवाल है। जिसे मैं अपनी जान से भी ज्यादा चाहता हूं। इसलिए मैंने कोई गड़बड़ नहीं की।" खांडेकर एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठा--- "रास्ता साफ है। मैं चाहता हूं तुम लोग यहां से चले जाओ।"
अंग्रेज सिंह की आंखों में चमक आ गई।
सुधाकर बल्ली के चेहरे पर भी राहत के भाव उभरे।
"जब तक हमारी तसल्ली नहीं होती कि बाहर सब ठीक है। तब तक हम यहां से नहीं जाएंगे।" देवराज चौहान ने पक्के स्वर में कहा--- "तुम वानखेड़े के साथ मिलकर कोई भी चाल चल सकते हो।"
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठते हुए शांत स्वर में बोला।
"जैसे कहो, वैसे मैं तुम्हारी तसल्ली करा देता हूं।"
"अपनी तसल्ली मैं खुद कर लूंगा। इसमें तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।
"कैसे करोगे तसल्ली?" खांडेकर ने पूछा।
"तुम खामोश ही रहो तो बेहतर होगा।"
खांडेकर ने शांत भाव से रजनी को देखा।
"रजनी, चाय बना दो।"
रजनी फौरन सिर हिलाकर किचन की तरफ बढ़ी तो जगमोहन खाना छोड़कर हाथ में रिवाल्वर थामें उसके पीछे हो गया। यह देखकर खांडेकर गहरी सांस लेकर रह गया।
"देवराज चौहान---।" खांडेकर बोला--- "मैंने वही किया, जो तुमने चाहा। अब वायदे के मुताबिक तुम मुझे मेरी पत्नी को जाते वक्त कोई नुकसान नहीं पहुंचाओगे।"
"निश्चिंत रहो। ऐसा कुछ नहीं होगा।"
■■■
रात के बारह बज चुके थे। बीते घंटों में बाहर से रत्ती भर भी हलचल या नापसंदी वाली कोई आहट उनके कानों में नहीं पड़ी थी। घर में चुप्पी थी। अंकल चौड़ा कई बार निकल चलने को कह चुका था। सुधाकर बल्ली खामोश था।
अंग्रेज सिंह की हालत पहले से बेहतर थी।
देवराज चौहान ने खांडेकर से कहा।
"यहां का फोन नंबर दो।"
रंजीत खांडेकर ने घर का फोन नंबर बताया।
देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।
"मैं यहां से बाहर जा रहा हूं। बाहर के हालात क्या हैं, वो देखना है। अच्छी तरह तसल्ली करने के बाद मैं कॉलोनी से निकलकर दूर तक जाऊंगा, ताकि कोई मेरे पीछे हो तो मालूम हो जाए। सब ठीक रहा तो मैं यहां फोन करूंगा। तब तुम अंग्रेज सिंह को लेकर यहां से निकलोगे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने अंग्रेज सिंह को देखा--- "तुम चलने के काबिल हो?"
"क्यों नहीं!" अंग्रेज सिंह ने मुस्कुराकर कहा।
"कुछ ज्यादा भी चलना पड़ सकता है।"
"यहां से निकलने के लिए मैं बहुत ज्यादा भी चल सकता हूं।" अंग्रेज सिंह बोला।
"जगमोहन, जब तुम अंग्रेज सिंह को यहां से लेकर बाहर निकलोगे। सतर्क नजर हर तरफ रखनी पड़ेगी। सब ठीक लगा तो अंग्रेज सिंह को लेकर सोहनलाल के यहां जाओगे। वहां अंग्रेज सिंह को छोड़कर और सोहनलाल को साथ लेकर वहीं आ जाना, जहां कल शाम हम मिले थे। समझे?"
जगमोहन ने सहमति से सिर हिलाया।
"यहां तक सब ठीक रहा तो फिर यहां मौजूद अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली को फोन किया जाएगा। ये दोनों नोटों से भरे थैले लेकर वहां पहुंचेंगे।"
"लेकिन---।" अंकल चौड़ा ने टोका--- "हम यहां से कैसे निकलेंगे। कार वगैरह तो है नहीं कि जिस पर---।"
देवराज चौहान ने टोका।
"खांडेकर कहीं से कार चोरी करके ला देगा।"
"नहीं।" खांडेकर ने कहा--- "तुम लोगों के इन सब कामों के दौरान मैं यहां मौजूद नहीं रहूंगा। जो तुम लोगों के लिए कर दिया, वही बहुत है। मैं तुम्हारे साथ-साथ मैं भी यहां से निकल जाऊंगा। यहां कार आएगी। आधी रात हो रही है। कार में ये बड़े-बड़े थैले रखे जाएंगे। कॉलोनी वाले तो पहले ही कॉलोनी में हुई हलचल से परेशान हैं। कई तो अभी भी जाग रहे होंगे। कोई भी देखा सकता है कि कुछ लोग मेरे घर से आधी रात को निकल रहे हैं। कार में बड़े-बड़े थैले रख रहे हैं। ऐसे में घर पर मेरी मौजूदगी खामख्वाह मुझे फंसा सकती है। इसलिए ऐसे वक्त में मैं घर पर मौजूद रहना पसंद नहीं करूंगा। हैडक्वार्टर जाकर बैठ जाऊं तो, वो ज्यादा ठीक रहेगा। एहतियात के तौर पर मुझे ऐसा ही करना चाहिए और यही करूंगा। ताकि बाद में कोई गड़बड़ हो तो मैं साबित कर सकूं कि तुम लोगों के बारे में मुझे किसी तरह की जानकारी नहीं।"
देवराज चौहान की कठोर निगाह सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर पर जा टिकी।
"तुम बाहर नहीं जाओगे।"
"क्यों?"
"क्योंकि बाहर जाकर तुम कोई भी चालाकी कर सकते हो। हमारे काम के अंतिम समय में तुम सारी बाजी उलट सकते हो। तुम---।"
"देवराज चौहान मेरा यहां से जाना इसलिए जरूरी है कि अगर कोई यहां से तुम लोगों की रवानगी देखकर कंट्रोल रूम में खबर कर दे तो मैं खुद को इस मामले से अलग कर सकूं। कह सकूं कि उस वक्त मैं हैडक्वार्टर में था और पुलिस का घेरा उठने तक, मेरे घर में सब ठीक था। बाद में ही तुम लोग जाने कहां से आए और फिर गए। रजनी पुलिस को जवाब दे लेगी। चूंकि मैं पुलिस वाला हूं, इसलिए पुलिस वाले खास तोड़-फोड़ वाले सवाल नहीं करेंगे।" रंजीत खांडेकर अपने शब्दों पर जोर देकर समझाने वाले स्वर में बोला--- "वैसे भी रजनी यहां होगी। अपनी पत्नी को बचाने के लिए ही, मैंने तुम सबको बचाया है। वरना मैं अपनी मर्जी से धोखा नहीं करता। यहां मौजूद मेरी पत्नी इस बात की गारंटी होगी कि मैं कोई गड़बड़ नहीं करूंगा।"
देवराज चौहान कठोर निगाहों से खांडेकर को देखता रहा।
"अगर तुम कोई चाल खेलना चाहते हो तो, मैं उसकी पूरी छूट तुम्हें दे देता हूं।" देवराज चौहान के स्वर में खतरनाक भाव झलक उठे--- "मैं भी तो देखूं कि आखिर क्या खेल है तुम्हारा। लेकिन इतना ध्यान रखना कि मेरे हाथ पुलिस वालों की तरह अंतहीन लंबे तो नहीं हैं, लेकिन इतने लंबे अवश्य हैं कि गड़बड़ होने पर तुम्हारे और तुम्हारी बीवी के टुकड़े कर सकूं। मेरा निशाना अक्सर ठीक बैठता है।"
"शक में मत पड़ो। अपने बचाव की खातिर मैं यहां से निकलना चाहता हूं कि मेरी नौकरी खतरे में न पड़े। मैं मुसीबत में न पड़ूं। तुम मेरी पोजीशन को समझने की कोशिश करो। कभी मैं कमांडो दस्ते में था और अपनी जान पर खेलकर बड़े-बड़े कारनामों को अंजाम दिया। राष्ट्रपति से मुझे मैडल मिले। और अगर ये बात खुल गई कि मैंने तुम लोगों को बचाया है तो मैं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगा। यही वजह है कि मैं चाहता हूं कि तुम लोग मेरी मौजूदगी की अपेक्षा, मेरी ग़ैरमौजूदगी में यहां से निकलो कि मेरी इज्जत बची रहे।"
"बेशक तुम जा सकते हो।" देवराज चौहान ने पूर्ववतः लहजे में कहा--- "लेकिन हमारे खिलाफ कुछ भी करने से पहले अपना और अपनी बीवी का अंजाम सोच लेना।"
कई पलों तक वहां खामोशी रही।
खांडेकर ने शांत निगाहों से रजनी को देखा। कहा कुछ नहीं।
देवराज चौहान ने चेहरे पर सख्ती समेटे अंकल चौड़ा को देखा।
"जब जगमोहन का फोन आएगा तो तुम फोन डैड करके, बाहर कहीं से कार लेने चले जाओगे। सुधाकर बल्ली, खांडेकर की बीवी के पास रहेगा। बल्ली तुम, इसकी बीवी को संभाल सकते हो कि अगर ये शरारत करे या कोई चालाकी करने की---।"
"मैं कुछ नहीं करूंगी।" रजनी जल्दी से कह उठी।
"संभाल लूंगा।" सुधाकर बल्ली विश्वास भरे स्वर में बोला--- "मेरे पास रिवाल्वर है। लेकिन तुम ही कार लेकर क्यों नहीं आ जाते, अगर बाहर सब कुछ ठीक है तो---?"
"समझदारी इसी में है कि जो यहां से निकल जाए, वो वापस न पलटे। एक-एक करके हमें यहां से निकलना है।" देवराज चौहान ने कहा--- "पहले मैं बाहर जा रहा हूं। सिर्फ इसलिए कि अगर पुलिस वाले कोई खेल-खेल रहे हैं तो मालूम हो सके और वक्त रहते तुम लोग बच सको। मेरे ख्याल में यह काम मैं ज्यादा अच्छी तरह कर सकता हूं। अगर तुममें से कोई पहले बाहर जाना चाहता है तो मुझे कोई एतराज नहीं। इस मामले में जो कहोगे, मैं वही करूंगा।"
अंकल चौड़ा ने तुरन्त कहा।
"पहले तुम्हारा ही बाहर जाना ठीक रहेगा।"
"तुम और बल्ली थैलों को कार में रख लोगे?" देवराज चौहान ने पूछा।
"क्यों नहीं!" अंकल चौड़ा खुलकर मुस्कुराया--- "दौलत का बोझ उठाने में भला क्या परेशानी!"
"दौलत बड़े-बड़ों के दिमाग खराब कर देती है।"
अंग्रेज सिंह की आंखे सिकुड़ी। वो देवराज चौहान से बोला।
"क्या मतलब?"
"ये तो मालूम ही होगा कि दौलत से भरे दोनों थैले लेकर कहां पहुंचना है?" स्वर शांत था।
"मालूम है। जहां कल शाम हम मिले थे। वहां का रास्ता मैं किसी भी हालत में नहीं भूलूंगा। जुबान वाला बंदा हूं। और फिर हेराफेरी करूंगा भी किसके साथ, क्या देवराज चौहान के साथ?"
देवराज चौहान ने खांडेकर को देखा।
"तुम संभलकर रहना। दोबारा चेतावनी दे रहा हूं।"
"मुझ पर भरोसा रखो। मैं अपनी पत्नी की खातिर तुम लोगों के प्रति ईमानदार हूं।"
देवराज चौहान ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर चैक की फिर जगमोहन से बोला।
"मैं जा रहा हूं। दरवाजा बंद कर लो। मेरे फोन का इंतजार करना।"
देवराज चौहान चला गया।
जगमोहन ने सिटकनी चढ़ा ली।
दस मिनट बाद सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर भी बाहर निकल गया।
■■■
करीब एक घंटे बाद देवराज चौहान का फोन आया, जगमोहन ने बात की।
"सब ठीक है।" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी--- "अब जानते हो, तुमने क्या करना है?"
"हां।" जगमोहन ने कहा--- "अंग्रेज सिंह को साथ लेकर यहां से निकलता हूं और अंग्रेज सिंह को सोहनलाल के यहां छोड़कर सोहनलाल को साथ लेकर, वहीं पहुंचना है, जहां कल शाम हम सब मिले थे।"
"ठीक है। मैं वहीं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं?" कहने के साथ ही उधर से देवराज चौहान ने लाइन काट दी।
जगमोहन ने रिसीवर रखा और सब पर निगाह मारकर बोला।
"मैं अंग्रेज सिंह को यहां से ले जा रहा हूं।"
अंग्रेज सिंह उठने लगा तो आगे बढ़कर अंकल चौड़ा ने उसकी सहायता की और उसे टांगों पर खड़ा कर दिया। जख्म से पीड़ा तो उठ रही थी परन्तु वो सहनीय थी।
"शेर है ये, मेरा शेर।" अंकल चौड़ा हंसा--- "कोई और होता तो अब भी न चल सकता।"
रजनी खांडेकर शांत निगाहों से उन सबको देख रही थी।
"ठीक है?" जगमोहन ने अंग्रेज सिंह से पूछा।
"हां।" अंग्रेज सिंह ने सिर हिलाया--- "यहां से निकलने के लायक तो हूं ही।"
जगमोहन ने अंकल चौड़ा को देखा।
"हम जा रहे हैं। तुम वहीं पहुंच जाना, कहीं रास्ता भूल जाओ।" जगमोहन का लहजा तीखा था।
"क्यों शक करता है यार, मैंने पहले भी कहा है कि मैं शरीफ बंदा हूं?" अंकल चौड़ा मुस्कुराया।
जगमोहन ने गहरी निगाहों से अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली को देखा फिर अंग्रेज सिंह के साथ दरवाजे तक पहुंचा। जख्म और पीड़ा की वजह से अंग्रेज सिंह धीमे-धीमे चल रहा था।
"दरवाजा बंद कर लो।" जगमोहन ने पास मौजूद अंकल चौड़ा से कहा--- "मेरा फोन आने के बाद हरकत में आना।"
"कोशिश करना कि फोन जल्दी कर सको और जाते वक्त, रास्ते में नजरें दौड़ाते जाना कि पुलिस वाले कोई चाल तो नहीं चल रहे हमसे। जब तक तेरा फोन नहीं आएगा। मैं यहां से नहीं निकलूंगा।" अंकल चौड़ा ने कहा।
जगमोहन ने सिर हिलाया और अंग्रेज सिंह के साथ बाहर निकल गया। अंकल चौड़ा ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया। इस वक्त रात के दो बज रहे थे।
■■■
जगमोहन और अंग्रेज सिंह की सतर्क निगाह कॉलोनी के अंधेरे रास्तों पर फिर रही थी। वे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। कॉलोनी के भीतर बहुत कम स्ट्रीट लाइटें थीं। जहां थीं, वहां मध्यम प्रकाश फैला हुआ था। हर तरफ गहरा सन्नाटा व्याप्त था। कहीं कोई शोर नहीं। कल रात की भागा-दौड़ी की वजह से आज रात शायद सब, अच्छी तरह घर के दरवाजे बंद करके सोए हुए थे। दूर, चौकीदार की जमीन पर डंडे मारने और सीटी बजाने की आवाजें कानों में पड़ रही थीं।
उसी प्रकार चलते-चलते दस मिनट में वे मकानों और गलियों को पार करके सड़क पर आ गए।
सड़क पर रोशनी की पूर्ण व्यवस्था थी। स्ट्रीट लाइटें और मरकरी बल्ब लाइन में जगमग करते दूर तक जा रहे थे। इस रोशनी ने उन्हें राहत दी।
"सब ठीक है। कोई खतरा नहीं।" अंग्रेज सिंह दीवार का सहारा लेकर खड़ा होता हुआ बोला।
"लगता तो ऐसा ही है। लेकिन वक्त का कोई भरोसा नहीं। तुम्हारी क्या हालत है?"
"ठीक है। अभी चल सकने के लायक हूं।"
"तो यहां से कुछ दूर और निकल चलो। फिर देखेंगे कि सोहनलाल के यहां कैसे पहुंचना है।"
"सोहनलाल अपने घर पर नहीं हुआ तो?" अंग्रेज सिंह ने कहा।
"उसकी फिक्र मत करो। उसके एक कमरे के फ्लैट के दरवाजे का ताला मैं खोल लूंगा। जगमोहन ने कहा--- "वैसे इस वक्त उसे घर पर ही होना चाहिए। देखते हैं।"
जगमोहन और अंग्रेज सिंह पुनः आगे बढ़े।
पन्द्रह मिनट वे और चले और उस कॉलोनी से काफी दूर आ गए। परन्तु अब अंग्रेज सिंह की पीड़ा बढ़ने लगी थी। उसकी चाल की लड़खड़ाहट बढ़ गई थी। ये बात जगमोहन ने भी महसूस की।
"तुम यहीं कहीं रुको। मैं किसी कार का इंतजाम करके आता हूं।" जगमोहन ने इधर-उधर नजर मारी फिर एक अंधेरे से भरी जगह की तरफ देखकर बोला--- "उधर अंधेरे में जाकर मेरे आने का इंतजार करो।"
अंग्रेज सिंह धीमे-धीमे अंधेरे की तरफ बढ़ा।
जगमोहन तेजी से आगे बढ़ गया।
पच्चीस मिनट बाद जगमोहन एक कार पर लौटा, जो उसने गली में खड़ी उठाई थी। अंग्रेज सिंह करीब आया और कार में बैठ गया। जगमोहन ने तेजी से कार आगे बढ़ा दी। इस दौरान, बराबर उसने ध्यान रखा कि कोई उनके पीछे न हो। परम् सब ठीक रहा। कोई पीछे नहीं था।
आधे घंटे बाद वे सोहनलाल के एक कमरे के फ्लैट पर पहुंचे। सोहनलाल कमरे में ही था। कार रुकने की आवाज सुनते ही उसने दरवाजा खोला था। लाइट ऑन की थी। शायद वो लेटा बेचैनी से करवटें ले रहा होगा कि देवराज चौहान और जगमोहन किस स्थिति में होंगे।
जगमोहन और अंग्रेज सिंह को देखते ही सोहनलाल का चेहरा खिल उठा।
वे दोनों भी मुस्कुराये।
"इसका मतलब तुम सब बच निकले।" सोहनलाल की आवाज में खुशी से भरी हंसी थी।
जगमोहन, अंग्रेज सिंह के साथ भीतर आया।
"तुम्हारा ये सवाल बता रहा है कि तुम्हें सारे हालातों की जानकारी थी।" जगमोहन कह उठा।
"हां। मुझे सब मालूम था कि तुम लोग किस स्थिति में फंसे हुए हो, लेकिन मैं तुम लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकता था। उस कॉलोनी के पास फटकना भी मेरे लिए खतरनाक था। वानखेड़े के हाथ जढ़ जाता तो वो मेरा बुरा हाल कर देता। मुझे कम ही आशा थी कि तुम लोग बच निकलोगे। लेकिन ये सब हुआ कैसे?"
"वक्त कम है। रास्ते में बताऊंगा। अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली दौलत के साथ वहीं हैं, वे मेरा फोन पहुंचने पर ही निकलेंगे। यहां से चलो। उन्हें फोन करना है। अंग्रेजी सिंह यहीं आराम करेगा।" जगमोहन ने कहा।
तब तक अंग्रेज सिंह वहां बिछे फोल्डिंग पर पड़कर लेट चुका था।
"हम जाएं?" जगमोहन ने अंग्रेज सिंह से पूछा।
अंग्रेज सिंह ने सहमति से सिर हिला दिया।
"तीन-चार घंटों में दिन निकल आएगा। उसके बाद सोहनलाल आकर, डॉक्टर से ठीक तरह तुम्हारा इलाज करा देगा। मेरे ख्याल में दो दिन में तुम बहुत ठीक हो जाओगे।"
जवाब में अंग्रेज सिंह मुस्कुरा पड़ा।
जगमोहन और सोहनलाल वहां से बाहर निकले। दरवाजे के पल्ले भिड़ा दिए। जगमोहन ने अंधेरे में भरपूर निगाह हर तरफ मारी, फिर सोहनलाल के साथ कार की तरफ बढ़ गया। अगले ही पलों में कार को तेजी से आगे बढ़ा दिया। रास्ते में कम शब्दों में जगमोहन ने सोहनलाल को बताया कि उसके कार से निकलने के बाद वे वक्त के कैसे दौर से गुजरे।
"इत्तेफाक से इंस्पेक्टर के घर में घुस गए।" सोहनलाल ने गहरी सांस ली--- "तभी बचे। अगर किसी दूसरे घर में घुसे होते तो फिर शायद न बच पाते।"
रास्ते में सड़क के किनारे मौजूद पब्लिक बूथ के पास जगमोहन ने कार रोकी।
"मैं खांडेकर के घर अंग्रेज सिंह को फोन पर, वहां से चलने के लिए कह दूं। वो मेरे फोन के इंतजार में होगा।" कहने के साथ ही जगमोहन कार से निकला और बूथ की तरफ बढ़ गया।
दो मिनट बाद जगमोहन परेशान हाल लौटा।
सोहनलाल ने अंधेरे में ही, उसके हाव-भाव को पहचान लिया।
"क्या हुआ?" सोहनलाल ने पूछा।
"बेल जा रही है, लेकिन कोई रिसीवर नहीं उठा रहा।" जगमोहन के स्वर में व्याकुलता के भाव थे।
"ये कैसे हो सकता है?" सोहनलाल चौंका।
"मुझे क्या मालूम कैसे हो सकता है? लेकिन ऐसा हो रहा है।" जगमोहन के स्वर में चीख के भाव थे।
सोहनलाल उलझन भरी निगाहों से देखने लगा।
"तुमने फोन नंबर तो सही लगाया है ना?"
"हां। नंबर के मामले में मैं धोखा नहीं खा सकता। वो नंबर उस खांडेकर का ही है।" जगमोहन ने पक्के स्वर में कहा।
"तो फिर वहां से रिसीवर उठना चाहिए। अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली एक पांव पर खड़े तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहे हैं। फिर ये कैसे हो सकता है कि वो रिसीवर न उठाएं?" सोहनलाल बोला।
मध्यम-सी रोशनी में दोनों की निगाहें मिलीं।
"इसका मतलब वहां कोई गड़बड़ हो चुकी है।" जगमोहन के होंठों से भिंचा स्वर निकला।
"तुम फिर नंबर ट्राई करो।" सोहनलाल ने सोच भरे स्वर में कहा।
जगमोहन पुनः बूथ की तरफ बढ़ गया।
तीन-चार मिनट बाद लौटा और कार की स्टेयरिंग सीट पर जा बैठा।
"बेल जा रही है। लेकिन रिसीवर कोई नहीं उठा रहा!" जगमोहन होंठ भींचकर कह उठा--- "मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे और अंग्रेज सिंह के निकलने के बाद वहां कोई गड़बड़ हो गई है वरना फोन अवश्य उठाया जाता।"
"कैसी गड़बड़ हो सकती है---?"
जगमोहन ने तीखी निगाहों से सोहनलाल को देखा।
"वो हरामजादा अंकल चौड़ा, पचास करोड़ रुपया लेकर चलता बना होगा। सुधाकर बल्ली को भी उसने अपने साथ मिला लिया होगा या उसे ठिकाने लगा दिया होगा।" जगमोहन एक-एक शब्द चबा कर कह उठा--- "अंकल चौड़ा जाने क्यों मुझे पहले ही, कुछ ठीक नहीं लग रहा था। या फिर...।"
"क्या, या फिर?"
"या फिर वो सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर ने कोई चाल चली है, जिससे अंकल चौड़ा, सुधाकर बल्ली, पचास करोड़ के साथ फंस गए हैं।" जगमोहन के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था।
"रंजीत खांडेकर वाली बात नहीं जमती।" सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।
"क्या मतलब?"
"अगर उस पुलिस वाले ने कोई चाल चलकर उन्हें फांसा तो वहां पुलिस मौजूद होती। या फिर खांडेकर होता। कम-से-कम उसकी पत्नी तो होती। जो फोन का रिसीवर उठाती।"
"तुम ठीक कह रहे हो।" जगमोहन ने अपना कठोर चेहरा हिलाया--- "उस पुलिस वाले ने कोई गड़बड़ की होती तो, वहां कोई-न-कोई अवश्य मौजूद होता। यानी कि कोई और ही गड़बड़ है।"
"कोई और गड़बड़ यही हो सकती है कि अंकल चौड़ा, पचास करोड़ ले भागा है।"
"सुधाकर बल्ली क्यों नहीं?"
"ऐसा कुछ करना उसके बस का नहीं है। वो डरपोक किस्म का इंसान है।" जगमोहन के दांत भिंच गए।
"खांडेकर के घर चलें।" सोहनलाल बोला--- "मालूम तो हो कि---?"
"नहीं। वहां जाना ठीक नहीं होगा। पहले इस बात की खबर देवराज चौहान को देनी है। अंकल चौड़ा ने जो गड़बड़ की है, उसकी जानकारी देवराज चौहान को हो जानी चाहिए।"
जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी।
बीस मिनट बाद जगमोहन ने एक जगह कार छोड़ी और सोहनलाल के साथ उस तरफ पैदल ही आगे बढ़ गया, जिस बस्ती के एक मकान में देवराज चौहान उनका इंतजार कर रहा था।
■■■
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया और सामने बैठे जगमोहन, सोहनलाल को देखा। देवराज चौहान के चेहरे पर सोच और गंभीरता के भाव थे।
जगमोहन तो करोड़ों की दौलत हाथ से जाने पर सुलगा पड़ा था।
जबकि सोहनलाल की सोचें किसी किनारे पर नहीं पहुंच रही थीं।
"वहां, दौलत के पास मुझे रुकना चाहिए था।" जगमोहन तीखे स्वर में कह उठा--- "ताकि अंकल चौड़ा या सुधाकर बल्ली कोई गड़बड़ न कर पाते। उससे पहले वहां से आकर, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी।"
"हमारे पास पक्की कोई खबर नहीं कि तुम्हारे वहां से आने के बाद, वहां क्या हुआ है।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- "अगर अंकल चौड़ा के मन में कोई बेईमानी होती तो मैं अवश्य भांप चुका होता।"
"तुम्हारा मतलब कि ये काम सुधाकर बनल्ली ने किया होगा।" जगमोहन ने सुलगे स्वर में कहा।
"मैंने अभी अपना कोई मतलब कायम नहीं किया है।" देवराज चौहान ने कश लिया।
"जो भी हो, दौलत तो हाथ से निकल गई।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं है। पहले हमें पहचानना है कि तुम्हारे और अंग्रेज सिंह के वहां से आने के बाद वहां क्या हुआ है? इसका जवाब खांडेकर की पत्नी रजनी से अच्छी तरह मिल सकता है। सोहनलाल...!"
"हां।" सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।
"मैं तुम्हें सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर के घर का पता बताता हूं, वहां सावधानी से फेरा लगाकर आओ। अगर सब ठीक है तो हम सब रजनी खांडेकर से मिलेंगे। उससे सच बात मालूम हो सकेगी।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सोहनलाल को खांडेकर के घर का पता बताया।
सोहनलाल बाहर निकल गया।
सुबह के साढ़े चार बज रहे थे। कुछ ही देर में दिन निकलने वाला था।
"सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर कोई गड़बड़ कर सकता है क्या?" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन जो सच है, वो जल्द ही मालूम हो जाएगा।" देवराज चौहान गंभीर था।
"जो भी हो, करोड़ों की दौलत तो हाथ से गई।"
■■■
सोहनलाल साढ़े सात बजे लौटा।
उसके चेहरे के भावों को देखकर देवराज चौहान और जगमोहन चौंके।
सोहनलाल का चेहरा फक्क, आंखों में व्याकुलता और हाव-भाव बेकाबू से थे। वो गोली वाली सिगरेट के बराबर कश ले रहा था। जैसे कोई बात बर्दाश्त करने की चेष्टा कर रहा हो। या फिर कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी कल्पना वो सपने में भी नहीं कर सकता था।
"क्या हुआ?" देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर जा टिकी।
सोहनलाल कुर्सी पर ढेर हो गया।
"वो हो गया जो किसी भी हाल में नहीं होना चाहिए था।" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"क्या?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
सोहनलाल ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
"सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर के घर पर पुलिस ही पुलिस है। इंस्पेक्टर वानखेड़े भी वहां है।" सोहनलाल फीके स्वर में कह उठा--- "और---।"
"इसका मतलब रंजीत खांडेकर हमसे चाल चल गया कि...?" जगमोहन ने कहना चाहा।
"पहले सुन तो लो---?" सोहनलाल ने सिर हिलाकर टोका।
दोनों की निगाह सोहनलाल पर थी।
"मैं तो भीतर किसी भी हाल में नहीं जा सकता था। बाहर लोगों के जमकर से जो मालूम हुआ वो यह कि सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर के घर में ही देवराज चौहान और उसके साथी करोड़ों की दौलत के साथ छिपे हुए थे। खांडेकर की पत्नी को उन लोगों ने बंधक बना रखा था, इसलिए खांडेकर ने मजबूरी में उनका साथ दिया और वहां ढूंढती पुलिस से उन्हें बचा लिया। देवराज चौहान और उसके साथी जब वहां से गए तो जाने से पहले उन्होंने खांडेकर की पत्नी से बलात्कार किया और अपने एक साथी को भी मार दिया। यानी कि वहां खांडेकर की पत्नी रजनी और एक और लाश मिली है। सुबह चार बजे सब-इस्पेक्टर रंजीत खांडेकर हैडक्वार्टर से घर लौटा तो इस हादसे का पता चला।"
जगमोहन हैरानी से उछलकर खड़ा हो गया।
देवराज चौहान बुत-सा बना सोहनलाल को देखता रहा।
"ये कैसे हो सकता है?" जगमोहन के होंठों से तेज स्वर निकला।
"क्यों नहीं हो सकता?" सोहनलाल अभी तक बेकाबू था।
"हम तो वहां से आ गए थे। वहां तो अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली मौजूद थे। हमारा नाम हत्या और बलात्कार जैसे मामले में घसीटा जा रहा है।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
देवराज चौहान ने पहलू बदला।
"ये बात तो हम ही जानते हैं कि हम वहां से आ गए थे और वहां दौलत के साथ अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली मौजूद थे। पुलिस वाले तो ये बात नहीं जानते।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "खांडेकर की पत्नी इस बात की गवाह थी, परन्तु वो मरी पाई गई। खांडेकर जानता था कि मैं वहां से जा चुका हूं। परन्तु मेरे बाद खांडेकर भी वहां से चला गया। ऐसे में वो ये भी सोच सकता है कि रास्ता साफ देखकर, मैं तुम लोगों के पास उसके कमरे में आ गया होऊं और उसके बाद ये हादसा हुआ।"
सोहनलाल के होंठ भिंच गए।
जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"तुम क्या कहना चाहते हो?"
"यही कि पुलिस इस सारे काम को मेरे द्वारा अंजाम दिया कारनामा समझेगी।" देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे--- "मेरे चेहरे पर एक ऐसे काले कारनामे की छाप लग जाएगी, जो मैंने नहीं किया।"
"जो काम हमने नहीं किया, उसे हम पर कैसे थोपा जा सकता है?" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा।
देवराज चौहान की आंखों में कठोरता उभरी पड़ी थी।
"खुद को पुलिस वालों की जगह पर रखकर सोचो तो, तुम्हें यही लगेगा कि ये काम हम लोगों ने ही किया है। सारे हालात हम लोगों के खिलाफ हैं। और हम किसी भी हालत में अपनी सफाई नहीं दे सकते। वहां कोई ऐसी कौन-सी बात है, जो हम लोगों के हक में जाएगी। वहां कोई ऐसा है ही नहीं, जो हमारे लिए ये कह सके कि जब ये हादसा हुआ तो वहां सिर्फ अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली ही मौजूद थे। हम वहां से जा चुके थे।" देवराज चौहान के स्वर में तीखे भाव आ गए थे--- "जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ। हमारे हक में तो बहुत ही बुरा और खांडेकर की पत्नी ने हमारी हर जगह सहायता की थी। गलत हुआ, सब कुछ गलत हुआ।"
गहरा सन्नाटा छा चुका था वहां।
हर कोई एक-दूसरे को देख रहा था।
उनके नाम पर ऐसा घृणित काम हो चुका था, जिससे वो मीलों दूर थे।
काफी देर बाद, देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
"इस बात को एक ही इंसान साफ करता है, कि ये काम हमने नहीं किया।
"कौन?"
"अंकल चौड़ा या सुधाकर बल्ली, जो जिंदा हैं। वहां मौजूद जिसकी लाश नहीं है। उसी ने यह काम किया है।"
"ओह---!"
"सोहनलाल!"
"हां।"
"हम लोगों का वहां जाना किसी भी हाल में ठीक नहीं। तुम वहां जाओ। छिपे तौर पर मालूम करो कि मरने वाला कौन था। ताकि मालूम हो सके कि दोनों में से कौन बचा है। जो बचा है वो करोड़ों की दौलत भी ले गया होगा। फिर भी मालूम कर लेना कि नोटों से भरे थैले वहां हैं या नहीं।" देवराज चौहान का चेहरा क्रोध से भरा हुआ था--- "मैं इस बुरे अंजाम को कभी भी अपने सिर पर नहीं आने दूंगा।"
सोहनलाल उठ खड़ा हुआ।
"अब यहां कोई नहीं आएगा। हम बंगले पर ही मिलेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
सोहनलाल ने सिर हिलाया।
"पुलिस वालों की, खासतौर से वानखेड़े की तफ्तीश के बारे में भी जानने की चेष्टा करना कि वो किस नतीजे पर पहुंचा है। इसके अलावा जो भी हमारे काम की बात हो, वो जान लेना।"
"ठीक है।" सोहनलाल बाहर निकल गया।
देवराज चौहान उठा और जगमोहन से बोला।
"तुम सोहनलाल के कमरे में मौजूद अंग्रेज सिंह के पास जाओ। सारे हालातों की जानकारी उसे दे दो और उसके जख्म का डॉक्टर से इलाज करवाकर, उसके खाने-पीने का इंतजाम करके, बंगले पर आ जाना। अंग्रेज सिंह से कह देना कि वो बाहर निकलने की कोशिश न करे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान उस मकान से बाहर निकल आया। चेहरे पर गंभीरता उभरी पड़ी थी।
पूर्व से सूर्य निकल चुका था। साढ़े आठ बज रहे थे।
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रजनी की लाश पर, कपड़ा तो क्या, एक धागा भी नहीं था। उसके शरीर की हालत देखकर स्पष्ट हो रहा था कि उसके साथ बलात्कार किया गया है। चाकू से बुरी तरह पेट फाड़ दिया गया था। जैसे उससे कोई पुरानी दुश्मनी निकाली गई हो। पेट के भीतरी अंग भी बाहर निकले हुए थे। बेड पर उसका खून
दिया गया आगे से उससे कोई पुरानी दुश्मनी निकाली गई हो पेट के भीतरी अंग भी बाहर निकले हुए थे। बैड पर उसका शरीर बुरे हाल में पड़ा था। बैड के जर्रे-जर्रे पर खून-ही-खून था।
पास ही फर्श पर अंकल चौड़ा की लाश पड़ी थी। उसकी फटी हुई, खुली आंखें बता रही थीं कि जिसने उसे मारा, उससे उसे इस बात की आशा जरा भी नहीं रही होगी कि वह उसकी जान ले लेगा। उसके गले पर चाकू से सिर्फ एक ही वार किया गया था, जो कि घातक रहा। उसका गला खून से डूबा हुआ था। गले के आसपास भी फर्श पर खून था। उसके मृत शरीर की हालत देखकर स्पष्ट लग रहा था कि उसे अपने बचाव का मौका नहीं मिल पाया था।
जबकि रजनी की लाश की हालत ये भी दर्शा रही थी कि हत्यारे का मुकाबला करने को उसने भरपूर कोशिश की। परन्तु सफल नहीं हो पाई।
अपनी प्यारी पत्नी की हालत देखकर सब-इस्पेक्टर रंजीत खांडेकर पागल हो उठा था। चीखने लगा था। आसपास के लोग उठकर उसके घर की तरफ भागे, तब मालूम हुआ कि क्या हो गया है। फौरन पुलिस को खबर की गई। तब खांडेकर ने खुद हैडक्वार्टर फोन करके इंस्पेक्टर वानखेड़े को आने को कहा। पूछने पर भी नहीं बताया कि बात क्या है।
खांडेकर पागल-सा हुआ पड़ा था। आस-पास वालों ने उसे संभाला। पैट्रोलिंग पुलिस कार वाले और इलाके के पुलिस वाले आ गए, परन्तु खांडेकर ने उन्हें भीतर नहीं जाने दिया। यही कहा कि सबसे पहले इंस्पेक्टर वानखेड़े भीतर जाएगा।
चूंकि वो भी पुलिस वाला था, इसलिए इस वक्त उस पर ज्यादा जोर-आजमाइश उसके साथ किसी ने नहीं की।
बाहर मौजूद पुलिसवालों को ज्यादा देर इंतजार न करना पड़ा।
उनके पहुंचने के दस मिनट बाद ही इंस्पेक्टर वानखेड़े पुलिस कार में वहां पहुंचा। उसके साथ एक सब-इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर था। उनके आने की खबर खांडेकर को मिली तो वो अपने मकान के सदर दरवाजे पर पहुंचा। अजीब-सी हालत हो रही थी खांडेकर की।
दुख और गुस्से में वो डूबा हुआ था। लाल हो रही आंखों से रह-रहकर आंसू बह रहे थे। चेहरे पर गुस्सा था। भिंचे हुए होंठ जोकि रह-रहकर फफक पड़ते। बाल बिखरे हुए थे। अभी तक वह वर्दी में था। जो कि पसीने से भरी हुई थी। कई जगह खून के धब्बे थे। जो कि यकीनन रजनी की लाश से लिपटकर रोने की वजह से लगे थे।
वानखेड़े को देखते ही, खांडेकर फफक पड़ा।
वानखेड़े के चेहरे पर गंभीरता के भाव थे। वो जान चुका था कि भीतर क्या हुआ पड़ा है। परन्तु पूरे हालातों से वह ठीक तरह वाकिफ नहीं था।
"सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "अपने आप पर काबू रखो।"
खांडेकर गालों पर बहते आंसू पूछते हुए पुनः रो पड़ा।
"और कितना काबू रखूं! वो लोग मेरी पत्नी को मार गए। मेरा परिवार बसने से पहले ही तबाह कर दिया देवराज चौहान और उसके साथियों ने। वे-वे मुझे मुझे बर्बाद कर गए।"
वानखेड़े की आंखें सिकुड़ी।
बाकी सब पुलिस वाले भी चौंके।
"देवराज चौहान।" वानखेड़े के होंठों से निकला--- "इसका मतलब वो यहां, तुम्हारे यहां छुपा था।"
"हां।" खांडेकर फफक पड़ा--- "वो पांच थे। सबके पास हथियार थे। उन्होंने मेरी पत्नी को कैद कर रखा था। ऐसे में मैं उनकी बात मानने के अलावा कर ही क्या सकता था। मैं-मैं मजबूर हो गया था। रात को मैं हैडक्वार्टर में था। आज रात उन्होंने निकल जाना था और जाते-जाते...।" खांडेकर रो पड़ा।
वानखेड़े ने एक कदम आगे बढ़ाया और चौखट पर खड़े होकर खांडेकर का कंधा थपथपाया।
"हौसला रखो। रास्ता दो।" वानखेड़े के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे पड़े थे।
"सर!" खांडेकर भर्राए स्वर में कह उठा--- "मैं नहीं चाहता कि मेरी पत्नी जिस अवस्था में पड़ी है, ऐसे में उसे सब देखें। आप एक नजर अकेले में मुआयना कर लें, फिर---।"
"ठीक है।" वानखेड़े ने सिर हिलाया और अपने साथ इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर को भीतर ले गया।
भीतर के हालात देखते ही वानखेड़े के होंठ भिंच गए। आवश्यक मुआयना करने के बाद उसने एक चादर से गले तक रजनी का शरीर ढांपा और बाहर मौजूद पुलिसवालों को भीतर आने को कह दिया, ताकि वह जरूरी कार्यवाही कर सकें।
मकान के भीतर जर्रे-जर्रे पर पुलिस फैल गई।
फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने जब फुर्सत पाई तो पुलिस वाले अपनी कार्रवाई में व्यस्त हो गए। मकान के बाहर कॉलोनी वालों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। अधिकतर पुलिस वालों के चेहरों पर सख्ती छाई हुई थी, क्योंकि उनके साथी की पत्नी की हत्या का मामला था।
सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर एक तरफ दीवार के साथ सटा बैठा, घुटनों के सिर दिए कभी रोने लगता तो कभी खाली, सूनी निगाहों से उस कमरे की तरफ देखने लगता, जिसमें उसकी पत्नी की लाश मौजूद थी। वो सलामत रहे इसके लिए उसने अंत तक कोशिश की थी। परन्तु वो असफल रहा।
दोनों लाशों का पंचनामा करते-करते दिन के ग्यारह बज गए। जब लाशों को एंबुलेंस में डालकर पोस्टमार्टम के लिए, वहां से रवाना किया गया। अभी भी वहां कई पुलिसवाले मौजूद थे।
सब-इंस्पेक्टर वानखेड़े, उसी मुद्रा में बैठे, सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर के पास पहुंचा।
"खांडेकर!" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "कुछ सवाल पूछने जरूरी हैं। पुलिस कार्यवाही से तुम अच्छी तरह वाकिफ हो। हो सकता है वे, लोग अभी पकड़े जाएं।"
खांडेकर ने आंसुओं भरा चेहरा उठाकर वानखेड़े को देखा फिर रो पड़ा।
"सर! देवराज चौहान मुझे बर्बाद कर गया मैं---।"
"तुम तो खतरनाक कमांडो दस्ते में रह चुके हो।" वानखेड़े ने अपनेपन से कहा--- "मुझे तुम्हारे दुख का पूरा एहसास है। पूरा पुलिस डिपार्टमेंट तुम्हारे साथ है। देवराज चौहान और उसके साथी अब किसी भी सूरत में बच नहीं सकते। ये बताओ, कमरे में जो मरा पड़ा है, उसका नाम क्या है?"
"देवराज चौहान ने उसे अंकल चौड़ा कहकर पुकारा था खांडेकर ने गालों से आंसू साफ करते हुए कहा।
"वे कुल कितने थे?"
"प-पांच थे।" खांडेकर किसी तरह उठकर खड़ा हो गया।
"पांच---।" वानखेड़े ने सोचभरे स्वर में कहा--- "ठीक है उनमें से एक देवराज चौहान, दूसरा मरने वाला अंग्रेज सिंह। तीसरे-चौथे-पांचवे का नाम मालूम है?"
"हां।" खांडेकर का स्वर कांप रहा था। जाने कब वो रो पड़े--- "एक अंग्रेज सिंह था। उसकी टांग में गोली लगी हुई थी। वो घायल था। बैड पर ही लेटा रहता था। एक का नाम जगमोहन था और एक को सुधाकर बल्ली कहकर बुलाया जा रहा था।"
"ये ही पांच थे---?"
"हां।" खांडेकर पुनः रो पड़ा--- "इन्हीं पांचों ने मेरी पत्नी की जान ले ली। मार दिया उसे। बर्बाद कर गए वो मुझे। कुछ नहीं बचा। कुछ नहीं बचा। एक को देवराज चौहान और उसके साथी मार गए हैं। ये काम बाकी चारों ने किया है।" खांडेकर एकाएक गुस्से से तपने लगा--- "मैं उन हरामजादों को जिंदा नहीं छोडूंगा सर! वो...।"
"अपने पर काबू रखो। तुम डिपार्टमेंट के जिम्मेदार---।"
"काहे का जिम्मेदार सर। वो लोग मेरी पत्नी को बुरी मौत दे गए।" खांडेकर गला फाड़कर चिल्ला उठा--- "मैंने क्या नहीं किया उन लोगों के लिए, वर्दी से धोखा किया। सारी रात भर यहां दौड़ते, उन्हें तलाश करते, अपने पुलिस भाइयों के साथ धोखा करके उन्हें बचाया। ताकि वो मेरी पत्नी को कोई भी नुकसान न पहुंचाएं। बहुत अच्छा सिला दिया उन्होंने मुझे। वे कुत्ते हैं। कुत्ते हैं। कुत्ते हैं।"
वानखेड़े होंठ भींचे, खांडेकर को देखे जा रहा था। वो जानता था कि इस वक्त उसे खांडेकर की हालत देखते हुए पूछताछ नहीं करनी चाहिए। परन्तु ये सब पूछना जरूरी था।
"उन्होंने अपने किसी ठिकाने का जिक्र किया था। ऐसी कोई बात उनके मुंह से निकली हो।"
"जिक्र किया था। परन्तु वे कहां की बात कर रहे हैं, मैं नहीं समझ पा रहा था।"
"मर्डर वैपन नहीं मिला। जो कि तेज धार का चाकू है। तुमने चाकू देखा कहीं?"
खांडेकर ने इंकार में सिर हिलाया।
तभी एक हवलदार ने भीतर प्रवेश किया और सैल्यूट मारकर वानखेड़े से बोला।
"सर ! वायरलैस पर अभी-अभी खबर मिली है कि यहां से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर नाले के पास एक लाश मिली है। ताजी लाश है। अगर इजाजत हो तो मैं पैट्रोलिंग कार पर वहां जाऊं सर?"
वानखेड़े ने हवलदार को देखा। होंठ सोच भरी मुद्रा में सिकुड़ गए।
"खांडेकर!" वानखेड़े ने रंजीत खांडेकर को देखा--- "तुम्हारे साथ जो हुआ, उसका मुझे सख्त अफसोस है। यहां जो भी हुआ है। मैं बहुत उलझकर रह गया हूं। इस वक्त मैं इतना ही कहूंगा कि तुम इन हालातों को स्वीकार करो। बाद में मैं तुमसे सिलसिलेवार सब कुछ मालूम करूंगा। दो पुलिस वाले तुम्हारे पास रहेंगे। ऐसी हालात में तुम्हारा अकेले रहना ठीक नहीं।
खांडेकर की पुनः रुलाई फूट पड़ी।
वानखेड़े ने उस हवालदार से कहा।
"चलो। मैं भी उस लाश को देखना चाहता हूं।"
■■■
वो लाश सुधाकर बल्ली की थी।
चौड़े नाले के पुश्त पर पड़ी थी। आधी नीचे लटक रही थी। आधी ऊपर थी। वो करवट लिए पड़ी थी। पेट से बहने वाला खून जो कि थम चुका था, नजर आ रहा था। कच्ची मिट्टी पर खून बहकर, सूखने को था। इससे स्पष्ट था कि उसे मरे ज्यादा देर नहीं हुई। खास ध्यान देने वाली बात तो यह थी कि उसके दाएं हाथ में चाकू दबा हुआ था। जिससे लग रहा था कि उसने आत्महत्या की है।
ये सब देखकर वानखेड़े की आंखें सिकुड़ी।
वहां इकट्ठे हो रहे लोगों को पुलिस वाले पीछे करने लगे।
सुधाकर बल्ली के हाथ में दबे चाकू का फल दो इंच चौड़ा और छः इंच लंबा था।
"सर!" पास मौजूद इंस्पेक्टर ने कहा--- "मेरे ख्याल में इसने आत्महत्या की है।"
वानखेड़े ने इंस्पेक्टर को देखा। फिर शांत स्वर में बोला।
"वो पांच थे। इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर ने यही बताया था। देवराज चौहान और जगमोहन को मैं जानता हूं। अंकल चौड़ा नाम का व्यक्ति खांडेकर के घर में मरा पाया गया। चौथा गोली लगने की वजह से घायल था। और अब बचा पांचवा सुधाकर बल्ली नाम का शख्स। यह सुधाकर बल्ली हो सकता है।"
"लेकिन यह बात पक्की तो नहीं?"
"ठीक कहते हो।" वानखेड़े की निगाह पुनः सुधाकर बल्ली पर जा टिकी--- "इंस्पेक्टर जयदेव खड़के, सारी कार्रवाई पूरी करके लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो और इस चाकू का खास ध्यान रखना जो कि लाश के हाथ में दबा हुआ है। हमें ये देखना है कि रजनी खांडेकर और अंकल चौड़ा की हत्या इसी चाकू से तो नहीं हुई। साथ ही जल्दी-से-जल्दी लाश की तस्वीरें इंस्पेक्टर खांडेकर को दिखाओ और पूछो, ये सुधाकर बल्ली तो नहीं।" कहने के साथ ही गंभीर चेहरा लिए वानखेड़े पुलिस कार की तरफ बढ़ गया।
वानखेड़े परेशान और व्याकुल-सा मुंबई हैडक्वार्टर के एक केबिन में था, जो कि वक्ती तौर पर उसे काम करने के लिए दिया गया था। आंखें बंद किए जाने कब से वो कुर्सी की लंबी पुश्त से सिर टिकाए बैठा था। टेबल पर पड़ी चाय कब की ठंडी हो चुकी थी। उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि जैसे वो किसी नतीजे पर पहुंचने की चेष्टा कर रहा हो।
फोन की घंटी बजने पर ही उसने आंखें खोलीं। सोचों से बाहर निकला। दो के तीन बज रहे थे।
दूसरी तरफ जयदेव खड़के था।
"आपका ख्याल ठीक निकला कि वो लाश सुधाकर बल्ली नाम के आदमी की ही है। मैंने खांडेकर को लाश की तस्वीरें दिखाकर पक्के तौर पर मालूम कर लिया है।"
इंस्पेक्टर जयदेव खड़के के ये शब्द कानों में पड़ते ही वानखेड़े के होंठ सिकुड़ गए।
"खड़के!"
"सर!"
"सुधाकर बल्ली के हाथ में जो चाकू दबा था, क्या उसी से रजनी खांडेकर और अंकल चौड़ा नाम के व्यक्ति की हत्या की गई है?" वानखेड़े ने पूछा।
"सर, एक घंटे तक चाकू की और तीनों लाशों की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिल जाएगी। मैं सारा तामझाम लेकर, जल्दी ही आपके पास आता हूं।" खड़के का स्वर आया।
"खड़के, मेरा पक्का ख्याल है कि उसी चाकू से उन दोनों की हत्या की गई है।"
"यह तो रिपोर्ट से मालूम होगा।"
"मैं बिना रिपोर्ट के ही दावा कर रहा हूं।" वानखेड़े ने शब्दों को चबाकर कहा--- "खांडेकर की क्या पोजीशन है?"
"वो खास ठीक नहीं लग रहा। अभी भी सदमे में है।"
"उसके पास मौजूद पुलिस वालों से कहो कि उसके दिलो-दिमाग को हल्का करने की कोशिश करें। उससे पूछताछ करना बहुत जरूरी है। समझे खड़के?"
"हां। मैं अभी उनसे बात करता हूं।"
"मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। पोस्टमार्टम और लैब की रिपोर्ट लेकर जल्दी-से-जल्दी मुझ तक पहुंचो।"
"ओ•के• सर।"
वानखेड़े ने सोचों में डूबे रिसीवर रखा और सिगरेट सुलगाकर घंटी बजाई।
आधे मिनट में ही चपरासी ने भीतर प्रवेश किया।
"सलाम साब!"
वानखेड़े सिर हिलाकर बोला।
"ये चाय ले जाओ और दूसरी लाओ---।"
"जी।" चपरासी ने आगे बढ़कर ठंडा हुआ चाय का कप उठा लिया।
"इंस्पेक्टर शाहिद खान अपने ऑफिस में हैं?" वानखेड़े ने पूछा।
"जी साब! कुछ देर पहले ही उन्होंने लंच लिया है।" चपरासी ने कहा।
"उनसे कहो, मैंने याद किया है।"
चपरासी सिर हिलाकर चाय का प्याला लिए चला गया। दस मिनट पश्चात ही इंस्पेक्टर शाहिद खान ने भीतर प्रवेश किया। वो सादे कपड़ों में था। उसकी उम्र पचास को छूने जा रही थी। उसका चेहरा ही चुगली कर देता था कि वो पुलिस वाला है। छः फीट कद या उसके हाव-भाव में सख्ती भरी लापरवाही हमेशा मौजूद रहती थी।
"हैलो वानखेड़े?" भीतर आते ही शाहिद खान ने मुस्कुराकर कहा।
"हैलो। मालूम हुआ तुमने लंच ले लिया।" वानखेड़े मुस्कुराया।
"हां।" शाहिद खान बैठता हुआ बोला--- "लगता है तुमने नहीं लिया?"
"नहीं।"
"मुझे नहीं मालूम था।" शाहिद खान मुस्कुराया--- "वरना तुम्हें बुला लेता। मेरा तो ख्याल था कि तुम कहीं पर भागदौड़ कर रहे हो। रात की बातें मालूम हुईं। हाथ आकर भी देवराज चौहान---।"
"शाहिद।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में बात काटी--- "कुछ खास बातें पूछनी हैं।"
"क्या?" शाहिद खान की निगाह वानखेड़े पर जा टिकी।
"सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर को जानते हो?"
"हां। दो सालों से उसकी ड्यूटी हैडक्वार्टर में, पैट्रोलिंग कार पर है।"
"उसका रिकॉर्ड कैसा है?"
शाहिद खान की निगाह वानखेड़े पर जा टिकी।
"मैं समझा नहीं।"
"सीधा-सा सवाल है। समझने की क्या बात है?"
"तुम खांडेकर पर, किसी तरह का शक कर रहे हो।"
वानखेड़े कश लेकर गंभीर स्वर में बोला।
"शाहिद! हम पुलिस वाले हैं। आम लोगों मैं और हममें सिर्फ यह फर्क है हमारे जिस्म पर वर्दी होती है, जबकि आम लोगों को वर्दी नहीं मिलती। हमारा फर्ज है कि हम अपराधियों को पकड़ें। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वर्दी पहनने के बाद, हम लोग कोई जुर्म नहीं कर सकते। बल्कि वर्दी की आड़ में, हम लोग, आम लोगों से ज्यादा बेहतर ढंग से जुर्म को अंजाम देकर बच सकते हैं।"
शाहिद खान की आंखें सिकुड़ी।
"मतलब कि तुम रंजीत खांडेकर पर शक कर रहे हो?"
"मैं किसी पर शक नहीं कर रहा, बल्कि हर पन्ने को अच्छी तरह देखकर मामले की तह तक पहुंचना चाहता हूं। वैसे खांडेकर पर शक करना बेवजह नहीं है। उसने देवराज चौहान और उसके साथियों को अपने घर पर पनाह दी। बेशक वो पनाह जबरदस्ती ली गई हो। उसकी वजह से वे बच निकले। और जाते-जाते वे अपने एक साथी अंग्रेज सिंह और खांडेकर की पत्नी रजनी को मार गए। खांडेकर का ब्याह रजनी के साथ मात्र महीना पहले हुआ था। क्या खांडेकर अपनी पत्नी से पीछा छुड़ाने के लिए ये सब नहीं कर सकता?"
"बकवास। दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा?" शाहिद खान ने मुंह बनाया।
"क्यों?"
"खांडेकर अपनी बीवी को प्यार करता था। इसी वजह से उसने देवराज चौहान और उसके साथियों को बचाया कि वो उसकी पत्नी को कुछ न कहें। महीने भर की शादी में क्या इतना फर्क आ जाता है कि बीवी की जान ले ली जाए? वैसे भी मैंने उसे शादी के बाद कभी दुखी नहीं देखा।" शाहिद खान तीखे स्वर में बोला--- "वानखेड़े तुम्हें सलाह दूं?"
"दो।"
"तुम्हें ये केस किसी और के हवाले कर देना चाहिए।"
"क्यों?"
"क्योंकि तुम इस केस के तथ्यों को पकड़ नहीं पा रहे हो। जैसे कि खामख्वाह खांडेकर पर शक करने---।"
"मैं शक नहीं कर रहा, बल्कि इस केस को हर नजरिए से देख रहा हूं।" वानखेड़े ने बात काटी--- "खांडेकर का कहना है कि वो सुबह पांच बजे हैडक्वार्टर से घर लौटा। मुझे ये तो देखना है कि वो सच कह रहा है।"
"कि वो हैडक्वार्टर में था या नहीं?"
"हां।"
"तो तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि खांडेकर कल रात डेढ़ बजे हैडक्वार्टर में मुझसे मिला था। तब मैं घर जाने की तैयारी कर रहा था। उसने मुझसे पूछा कि अगर कोई काम न हो तो रेस्टरूम में जाकर नींद ले लूं। वो बहुत थका हुआ था। मैंने उसे सोने के लिए कह दिया। यकीनन रेस्टरूम में और भी कोई पुलिस वाले होंगे। वो खांडेकर के बारे में बता सकते हैं कि वो रात वहीं था। सोया था और सुबह आंख खुलने पर घर गया था। इस बात की पूछताछ करके मैं घंटे भर में बता दूंगा।"
"जरूर बताना।"
इंस्पेक्टर शाहिद खान ने टेबल पर पड़ा इंटरकॉम रिसीवर उठाया और बटन दबाकर लाइन मिलाई।
"हैलो।" दूसरी तरफ से आवाज आई।
"मैं, शाहिद खान, सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर कल रात हैडक्वार्टर के चौथे माले के रुम में सोया था। ये मालूम करो कि वो कितने बजे रेस्टरूम में गया और कितने बजे बाहर निकला। तब वहां और भी पुलिस वाले होंगे।"
"यस सर।"
शाहिद खान ने रिसीवर रखा।
तभी चपरासी का प्याला लिए भीतर आया और वानखेड़े के सामने रखा।
"चाय लोगे?" वानखेड़े ने पूछा।
"नहीं।"
चपरासी चला गया।
"ये काम देवराज चौहान और उसके साथियों ने किया है।"
इंस्पेक्टर शाहिद खान ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा--- "ये सब कैसे हुआ, ये तो वो लोग ही जानें। लेकिन जहां तक मुझे समझ में आता है, जब खांडेकर की पत्नी के साथ बलात्कार किया जाने वाला था तो उनके ही एक साथी ने बलात्कार पर ऐतराज उठाया तो उसकी हत्या कर दी गई। उसके बाद वे बलात्कार कर, उसे मारकर वहां से निकल भागे। ये सीधी-सीधी बात है, तुम्हें चाहिए था कि हर जगह की नाकेबंदी कराकर देवराज चौहान और उसके साथियों को गिरफ्तार करने की कोशिश करते।"
वानखेड़े ने चाय का घूंट भरा।
"शाहिद खान!" वानखेड़े का स्वर शांत और गंभीर था--- "देवराज चौहान और जगमोहन को मैं इतना ज्यादा जानता हूं, जितना कि तुम मुझे और मैं तुम्हें नहीं जानता। यूं समझो कि मैं जाती तौर पर पूरी तरह देवराज चौहान से वाकिफ हूं। उसकी फाइल में उसके सारे गैरकानूनी काम और मेरे पर्सनल विचार भी मौजूद हैं। देवराज चौहान जो काम करता है। दौलत के लिए करता है। वो किसी भी कीमत में बलात्कार जैसा काम नहीं कर सकता और न ही इस काम में किसी को सहयोग देगा और ये काम उसकी आंखों के सामने भी नहीं हो सकता। ये जुदा बात है कि वो मजबूर हो उस वक्त। जिसके चांसेस न के बराबर हैं। अगर वो तब मजबूर होता तो वहां देवराज चौहान की लाश मिलती। अंकल चौड़ा की नहीं।"
शाहिद खान ने अजीब-सी निगाहों से वानखेड़े को देखा।
"एक पुलिस वाले का कमाल का विश्वास है अपराधी पर---।"
"इस वक्त यूं समझो कि एक इंसान, दूसरे इंसान के प्रति अपनी राय दे रहा है।" वानखेड़े ने दृढ़ स्वर में कहा।
इंस्पेक्टर शाहिद खान, उलझन भरी निगाहों से वानखेड़े को देखने लगा।
"मैं अभी ये साबित कर सकता हूं कि ये काम देवराज चौहान और उसके साथियों ने नहीं किया। क्योंकि सारे हालात मेरे सामने हैं, और वे हालात कह रहे हैं कि ये काम उनके अलावा किसी और का है।"
"ये सोचकर तुम खांडेकर को ही लपेटे में लेने लगे।"
"नहीं। ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि मैं उस आदमी को ढूंढ निकालने की कोशिश कर रहा हूं, जिसने ये सब किया है। चूंकि मेरे सामने खांडेकर ही है, तो मैंने उस पर विचार कर लेना, बेहतर समझा।"
"तुम किस आधार पर इस नतीजे पर पहुंचे हो कि ये काम देवराज चौहान और उसके साथियों ने नहीं किया?"
वानखेड़े ने चाय का घूंट भरा और बोला।
"देवराज चौहान और जगमोहन को तो इस मामले से निकाल दो कि---।"
"मैं तुम्हारी इस बात से सहमत नहीं हूं।" शाहिद खान ने टोका
"न सहमत होते हुए भी वक्ती तौर पर मेरी बात मान लो।"
"यानी---।"
"बाकी बचे तीन। अंग्रेज सिंह, अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली नाम के व्यक्ति---।"
"जो इस काम में देवराज चौहान के साथ थे?"
"हां।"
"आगे?"
"अंकल चौड़ा, खांडेकर की बीवी के पास ही मरा पाया गया। खांडेकर के मुताबिक अंग्रेज सिंह की टांग में गोली लगी थी। वहां उन्होंने गोली निकालकर बैंडेज कर दी थी और खांडेकर ने उसे बैड पर ही लेटे देखा। यानी कि अंग्रेज सिंह नाम का व्यक्ति न तो बलात्कार करने के काबिल था और न ही अंकल चौड़ा जैसे स्वस्थ व्यक्ति की हत्या करने के लायक था। उसके बाद बचा सुधाकर बल्ली जो कि खांडेकर के घर से डेढ़ किलोमीटर दूर मरा पाया गया। लाश की हालत देखकर, लगता है जैसे उसने आत्महत्या की है। परन्तु मैं दावे के साथ कह सकता हूं उसकी हत्या की गई है। और उन दो काले थैलों में करोड़ों रुपया था, जो कि कहीं भी नहीं मिला। यानी कि कोई ऐसा व्यक्ति है, जो इन सब पर शुरू से ही नजर रख रहा था और मौका मिलते ही वो अपना काम कर निकला।"
शाहिद खान उठ खड़ा हुआ।
"वानखेड़े! तुम्हारी बातों में अधूरापन है। तुम देवराज चौहान और जगमोहन को मामले में ही नहीं ले रहे। उधर पोस्टमार्टम और लैब की रिपोर्ट आए बिना ही, पक्के तौर पर कह रहे हो कि सुधाकर बल्ली ने आत्महत्या नहीं की। रही बात खांडेकर की तो, उसका जुर्म सिर्फ इतना है कि देवराज चौहान और उसके साथी घर में, उसकी पत्नी को बंधक बनाए हुए थे। वो नहीं चाहता था कि उसकी पत्नी को कोई नुकसान पहुंचे। इसलिए उसने उन लोगों को बचाया। खांडेकर की जगह मैं होता तो शायद मैं भी अपनी पत्नी को बचाने के लिए मजबूरी में कुछ ऐसा ही कदम उठाता। तुम कुछ आराम कर लो। फिर शायद ठीक ढंग से सोच सको।" मुस्कुराकर कहने के साथ शाहिद खान केबिन से बाहर निकलता चला गया।
वानखेड़े परेशानी भरे अंदाज में, गहरी सांस लेकर रह गया।
■■■
डेढ़ घंटे बाद इंस्पेक्टर शाहिद खान ने भीतर प्रवेश किया। उसके साथ एक हवलदार था। वानखेड़े ने निगाह उठाकर उन्हें देखा।
"ये हवलदार पांडे है। कल रात ये भी उसी रेस्टरूम में था, जहां खांडेकर था। इसका कहना है कि डेढ़ बजे के करीब खांडेकर रेस्टरूम में आया और सो गया। जो पूछना है, इससे पूछ लो।"
वानखेड़े ने उस हवलदार को देखा फिर इंकार में सिर हिलाया।
"कुछ नहीं पूछना?"
"तुम जाओ।" शाहिद ने हवलदार से कहा तो वो चला गया।
शाहिद ने वानखेड़े को देखा फिर कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
"कोई नया विचार, नई सोच, दिमाग में आई या अभी तक उन्हीं बातों पर अड़े हुए हो?"
वानखेड़े लगभग जबरन वाले अंदाज में मुस्कुराया।
"पोस्टमार्टम और लैब की रिपोर्ट आने के बाद ही...।"
तभी इंस्पेक्टर जयदेव खड़के ने भीतर प्रवेश किया।
"हैलो शाहिद।" उसके चेहरे पर तसल्ली के भाव थे, फिर वो वानखेड़े से बोला--- "सारा मामला निपट गया सर!"
"क्या मतलब?"
इंस्पेक्टर खड़के ने हाथ में दबा रखी तीनों फाइलें, वानखेड़े के सामने टेबल पर रखते हुए कहा।
"मिसेज रजनी खांडेकर, अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और लैबोट्री की भी रिपोर्ट आ गई है। जिस चाकू से सुधाकर बल्ली ने आत्महत्या की, उसी चाकू से ही अंकल चौड़ा और रजनी खांडेकर को मारा गया था।"
वानखेड़े ने फाइलों को देखा फिर खड़के को।
"तुम तो कह रहे थे मामला निपट गया?"
"हां। सब कुछ साफ है।" इंस्पेक्टर जयदेव खड़के ने कुर्सी संभाल ली--- "वहां से निकलने से पहले सुधाकर बल्ली की, रजनी खांडेकर पर नियत खराब हो गई। उसने रजनी खांडेकर पर हाथ डालना चाहा, लेकिन ये बात अंकल चौड़ा नाम के, वहां मौजूद आदमी को पसंद नहीं आई। उसने सुधाकर बल्ली की हरकत पर एतराज किया। इस हद तक एतराज किया कि, गुस्से में सुधाकर बल्ली ने चाकू से उस अंकल चौड़ा को मार डाला और फिर रजनी खांडेकर के साथ बलात्कार किया और फिर उसे चाकू से उसका पेट फाड़कर उसकी भी जान ले ली और वहां से निकल गया।"
कहते हुए जयदेव खड़के पल भर के लिए ठिठका।
वानखेड़े और इंस्पेक्टर शाहिद खान की निगाहें खड़के पर ही थीं।
खड़के ने पुनः कहा।
"वहां से निकलने के बाद सुधाकर बल्ली की आत्मा ने उसे झिंझोड़ा होगा कि उसने क्या कर डाला। इस अपराध बोध के दबाव में वो, अपना मानसिक संतुलन खो बैठा और उसी चाकू से आत्महत्या कर ली।"
खड़के कहकर खामोश हो गया।
"मतलब कि सुधाकर बल्ली ने आत्महत्या के लिए, नाले की सुनसान जगह चुनी।"
"क्या मतलब?"
"जहां सुधाकर बल्ली मरा पाया गया, नाले का वो हिस्सा, मुख्य सड़क से काफी हटकर था। तुम्हारा मतलब कि आत्महत्या के लिए खासतौर पर वो वहां गया होगा।"
"नहीं। हो सकता है उस वक्त अपने बुरे काम पर पश्चाताप करता हुआ वहां तक पहुंच गया हो और तभी उसका विचार अपने आप को खत्म कर लेने का बना हो।" खड़के ने कहा।
इंस्पेक्टर शाहिद खान बारी-बारी दोनों को देख रहा था।
वानखेड़े ने सिर हिलाकर कहा।
"तुम्हारे मुताबिक सुधाकर बल्ली ने पहले अंकल चौड़ा को मारा। रजनी के साथ बलात्कार किया और वहां से डेढ़ किलोमीटर दूर जाकर उसी चाकू से आत्महत्या कर ली।"
"हां।"
"इंस्पेक्टर खड़के। तुमने सुधाकर बल्ली की लाश देखी थी?" वानखेड़े ने अपनी जगह उसके चेहरे पर टिका दी।
"हां।"
"जिस इंसान ने दो हत्याएं की हों। बलात्कार किया हो। उसके कपड़ों पर खून का एक भी छींटा न हो, ये कैसे हो सकता है। इसके कपड़ों पर फालतू का कोई बल भी नजर ना आए, ये कैसे हो सकता है। जिसने चाकू अपने पेट पर मारकर आत्महत्या की हो, उसके हाथ पर भी खून न लगा हो, ये कैसे हो सकता है खड़के?"
खड़के से कुछ कहते न बना।
"उसके कपड़े सुरक्षित रखे होंगे। अभी भी तुम उन कपड़ों को चैक कर सकते हो। सुधाकर बल्ली के पेट वाले हिस्से पर ही कमीज पर खून है। जो उसके पेट से निकला है।" वानखेड़े गंभीर था।
इंस्पेक्टर शाहिद खान ने फौरन सिर हिलाय।
"तुम्हारी बात मुझे जंची वानखेड़े।"
इंस्पेक्टर जयदेव खड़के के चेहरे पर नजर आ रहा उत्साह कम होने लगा।
वानखेड़े ने, खड़के की लाई पोस्टमार्टम और लैब की रिपोर्ट पढ़ी।
"रजनी और अंकल चौड़ा की पोस्टमार्टम और लैब रिपोर्ट सामान्य है।" वानखेड़े की निगाह अभी भी फाइलों पर थी--- "परन्तु सुधाकर बल्ली की डॉक्टरी रिपोर्ट में विशेष टिप्पणी की गई है कि अगर कोई आदमी, दो इंच चौड़े और छः इंच लंबे फल का चाकू तीन बार अपने पेट में, पूरा-का-पूरा घुसेड़ सकता है तो इसे आत्महत्या माना जाए। लेकिन आमतौर पर आत्महत्या करने वाला, पहला वार तो आवेश में पूरी ताकत से करेगा। परन्तु दूसरा वार पीड़ा और मौत के एहसास की वजह से कम वेग से करेगा। पहले दोनों वारों में हर हाल में, वारों की शक्ति का फर्क होगा, परन्तु लाश के पेट में तीन बार चाकू गया है और तीनों बार छः इंच लंबा पूरा फल गया है और एक बार तो चाकू पेट फाड़ते हुए बाहर आया। कोई भी इंसान अपने हाथ से अपने पेट पर इस तरह वार नहीं कर सकता। डॉक्टरों के मुताबिक यह हत्या है।" वानखेड़े ने फाइल पर से निगाह उठाकर खड़के को देखा--- "खड़के तुमने शायद डॉक्टर की रिपोर्ट नहीं पढ़ी?"
"नहीं। सीधा यहां आ पहुंचा हूं।" खड़के ने होंठ सिकोड़े।
इंस्पेक्टर शाहिद खान बोला।
"सुधाकर बल्ली की हत्या की गई है। रिपोर्ट से साफ जाहिर है।"
"अब एक सवाल और खड़ा होता है कि वो करोड़ों के नोटों से भरे दोनों थैले कहां गए?" वानखेड़े बोला।
"मैं बताऊं?" शाहिद बोला।
"हां।"
"देवराज चौहान के पास है।"
"क्या मतलब?"
"देवराज चौहान और बाकी सब नोटों से भरे थैलों के साथ बाहर निकले, और रास्ते में सुधाकर बल्ली को इसलिए खत्म कर दिया गया कि उसे दौलत में से उसका हिस्सा न देना पड़े।"
"नहीं। ये नहीं हो सकता।" इंस्पेक्टर वानखेड़े ने दांत पीसकर कहा--- "क्योंकि देवराज चौहान के बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूं। उसके होते हुए बलात्कार नहीं हो सकता। वो दौलत के लिए अपने साथी की हत्या नहीं करता।"
"तो फिर ऐसा हुआ होगा जैसा खड़के ने कहा है। बलात्कार और हत्या करने के बाद जब सुधाकर बल्ली वहां से निकला तो देवराज चौहान को उसकी हरकत पसंद नहीं आई और देवराज चौहान ने इसी वजह के तहत सुधाकर बल्ली की हत्या कर दी।"
"सुधाकर ल्ली की हत्या का ये कारण ठीक बैठता है।" वानखेड़े ने कहा--- "लेकिन ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि जब रजनी के साथ बलात्कार हो रहा था, तब देवराज चौहान कहां था और फिर एकाएक देवराज चौहान कहां से आ गया। बात कुछ जम नहीं रही।"
इस्पेक्टर शाहिद खान ने गहरी सांस ली।
"वानखेड़े! मेरे ख्याल में तुम सीधे-सीधे मामले की, बाल की खाल निकालकर, मामला टेढ़ा कर रहे हो।"
"जब तक केस मेरी समझ में नहीं आता, तब तक मैं फाइल बंद नहीं करता शाहिद खान।" वानखेड़े ने शब्दों को चबाकर कहा--- "मेरे सामने कई रास्ते हैं और कई कड़ियां हैं, उन्हें जोड़ने में वक्त तो लगेगा ही।"
"तुम ही सारे मामले को उलझा रहे हो।" इंस्पेक्टर शाहिद खान ने उखड़े स्वर में कहा--- "जाने क्यों इन सब बातों का इल्जाम तुम देवराज चौहान पर लगाने से क्यों कतरा रहे हो। जबकि ये सारा मामला उसी से वास्ता रखता है। सीधा-सीधा मामला है। देवराज चौहान ने यह सब किया और चलता बना, करोड़ों की दौलत लेकर।"
"तो फिर वो घायल अंग्रेज सिंह कहां गया। उसकी लाश भी मिलनी चाहिए। वो तो घायल था। दौलत में से हिस्सा न देना पड़े। इसके लिए देवराज चौहान आसानी से उसे खत्म कर सकता था। उसकी लाश क्यों नहीं मिली?"
"ये बिल्कुल ताजा मामला है। हो सकता है, उसकी लाश कहीं पड़ी हो और अभी नजर न आई हो। देर-सवेर में उसकी लाश भी मिल जाएगी।" शाहिद खान ने कड़वे स्वर में कहा--- "इंतजार करो।"
वानखेड़े ने शाहिद खान को देखा। कहा कुछ नहीं।
शाहिद खान उठ खड़ा हुआ।
"चलता हूं। मुझे और भी काम हैं।" वो बाहर निकल गया।
इंस्पेक्टर जयदेव खड़के ने कहा।
"मैं अपने केबिन में हूं। जरूरत पड़े तो बुला लेना।"
वानखेड़े ने सिर हिलाया तो खड़के भी केबिन से चला गया। वानखेड़े पुनः पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और लैब की रिपोर्टों को चैक करने लगा।
■■■
वानखेड़े ने सारे हालातों पर गौर किया। वह जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहता था। यह मामला उसे इतना सीधा नजर नहीं आ रहा था जितना कि लग रहा था। वो जुदा बात थी कि अगर वो देवराज चौहान की आदतों से वाकिफ न होता तो, दूसरे पुलिसवालों की तरह यही सोचता कि ये सब देवराज चौहान का ही किया धरा है।
शाम हो गई। पोस्टमार्टम और लैब की रिपोर्ट देखता वो उलझा रहा।
यह भी तो हो सकता है कि जब ये सब हुआ हो, तब देवराज चौहान या जगमोहन वहां मौजूद ही न हों। ये विचार वानखेड़े को जंचा। परन्तु विचार तो विचार ही था। सच्चाई का पहुंचना जरूरी था। जिन जवाबों के लिए वह परेशान हो रहा था, उनका जवाब देवराज चौहान दे सकता था।
देवराज चौहान?
यानी कि देवराज चौहान से मिलना जरूरी था। उसे तलाशना जरूरी था और उसके पास इस बात की हवा भी नहीं थी कि देवराज चौहान से कहां मिला जा सकता है?
मन-ही-मन वानखेड़े ने निश्चय किया कि देवराज चौहान को जैसे भी हो ढूंढना ही पड़ेगा। रात के दस बज गए थे, उसे केबिन में बैठे-बैठे तभी शाहिद खान ने भीतर प्रवेश किया।
"अभी तक तुम यहीं जमे हुए हो।" इंस्पेक्टर शाहिद खान बैठते हुए बोला।
वानखेड़े, इंस्पेक्टर शाहिद खान को देखकर मुस्कुराया।
"घर नहीं गए?" वानखेड़े ने पूछा।
"नहीं। हत्या के केस की तफ्तीश से लौटा हूं---।" शाहिद खान ने गहरी सांस ली--- "आधी तो हो ही जाएगी, रिपोर्ट तैयार करने में।" फिर घर जाऊंगा। तीन बार घर से फोन आ चुका है। डिनर लिया तुमने?"
"डिनर नहीं।" वानखेड़े अपनी सोचों के दायरे से बाहर आता हुआ बोला--- "थक गया हूं। आराम करने की सोच रहा था।"
"चलो डिनर लेते हैं कैंटीन से। मुझे भूख लग रही है, फिर मत कहना अकेले ही ले लिया।"
वानखेड़े मुस्कुराया। उठा।
चलो दोनों कैंटीन में पहुंचे।
कुछ देर बाद डिनर में व्यस्त हो गए।
"कुछ आगे बढ़े केस में?" डिनर के दौरान शाहिद खान ने पूछा।
"अभी तो सोचों को ही आगे बढ़ा रहा हूं। मेरी निगाहों में ये मामला उलझा हुआ है।" वानखेड़े ने कहा।
"सोचें कहां पहुंचीं?"
"देवराज चौहान से मालूम करना पड़ेगा कि क्या हुआ था? वो क्या कहता है?" वानखेड़े खाते हुए बोला।
इंस्पेक्टर शाहिद खान मुस्कुराया।
"इसका मतलब देवराज चौहान को तुम बे-कसूर मानकर चल रहे हो।"
"हां। देवराज चौहान ऐसा गिरा हुआ काम नहीं कर सकता और ऐसे काम में सहायक भी नहीं हो सकता।"
शाहिद खान ने वानखेड़े के चेहरे पर निगाह मारी।
"ठीक है। कहां मिलेगा देवराज चौहान। मालूम है?" शाहिद खान ने पूछा।
"नहीं। मैं नहीं जानता, कहां ढूंढ पाऊंगा उसे। तुम अपने मुखबिरों को टटोलो तो शायद कुछ फायदा हो।"
"अच्छी बात है। मेरे जो भी खास लोग हैं, उन्हें देवराज चौहान की कोई खबर पाने को कह देता हूं।"
"आज रात आराम करने के बाद मैं कल देवराज चौहान के बारे में कोई जानकारी पाने की चेष्टा करूंगा।" इस विचार के साथ ही वानखेड़े ने खुद को हल्का महसूस किया।
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