बरसात थमने के साथ ही अंधेरा फैल गया था।
कॉटेज की लाइट जल उठी थी। लड़की ने जैसे-तैसे देवराज चौहान की पैंट को कमर पर बांध रखा था। ऊपर उसने कमीज पहनी थी। अपनी पैंट और स्कीवी उसने सूखने के लिए पीछे वाले कमरे में डाल दी थी। बिखरे गीले बालों को वो ड्राइंग रूम में कुर्सी पर बैठी सुखाने की चेष्टा में थी। दीवान पर लेटा देवराज चौहान सिगरेट के कश ले रहा था। रह-रहकर उनके कानों में आसमान से उठती बिजली की गड़गड़ाहट पड़ जाती थी। कॉटेज की सारी खिड़कियां उन्होंने बंद कर रखी थी।
तभी दूसरे कमरे में पड़ा लड़की का फोन बज उठा।
“ओह, मम्मा का फोन होगा।” कहने के साथ ही वो कुर्सी से उठी और दूसरे कमरे की तरफ दौड़ी।
“यहीं आकर बात करना, ताकि मैं भी सुन सकूं।” देवराज चौहान ने कहा।
लड़की फौरन ही फोन लिए वापस आ गई। वो बात कर रही थी।
“मैं ठीक हूं मम्मा।...मैं नहीं जानती मैं कहां हूं, पर ये समुद्र का किनारा...पुलिस को ढूंढ़ने दो मम्मा, देर-सबेर में मुझे ढूंढ ही लेगी...मेरे को नहीं मालूम कि ये क्या चाहता है, इतना ही कहता है कि मेरी जान को खतरा है, इसलिए तुम्हें उठा लाया। कहता है कि बाजार में किसी ने मुझ पर गोली भी चलाई थी, इसकी बातें मेरी समझ से बाहर हैं।...अभी ये मुझे जाने नहीं दे रहा...नहीं, अभी तक तो कुछ नहीं किया।...मैं हिम्मत रखे हूं मम्मा। लगता नहीं कि ये रात को मुझे जाने देगा...तुम फिक्र मत करो, मैं इसे कुछ नहीं करने दूंगी।”
फोन की बातचीत खत्म हो गई।
लड़की ने फोन टेबल पर रखा और बालों को हाथों से झटक कर पीछे किया।
“नाम क्या है तुम्हारा?” देवराज चौहान ने पूछा।
“क्यों?”
“तुम्हें किस नाम से पुकारूं?”
“मुझे किसी नाम से बुलाने की जरूरत नहीं है। मुझे जाने दो। मैं अपने घर जाना चाहती हूं।”
“वो हत्यारे, हो सकता है कॉटेज के आस-पास ही घूम रहे हों।” देवराज चौहान ने कहा।
लड़की ने होंठ भींच लिए।
“तुम उस खतरे को नहीं देख पा रही, जो मैं देख रहा हूं।”
“मुझे लगता है ये सब तुम्हारी चाल है सुरेंद्र पाल साहब। पता नहीं तुम मुझसे क्या चाहते हो।”
“अगर बरसात न आती और बोट से वो तुम्हारा निशाना लेकर गोली चला देते तो इस वक्त हालात कुछ और होते।”
“क्या मतलब है तुम्हारा?”
“तब तुम मर भी सकती थी।”
“तभी मुझे बाहर लेकर गए थे कि वे गोली चलाएं और मैं मर जाऊं तुम्हें मेरी इतनी चिंता होती तो मुझे कॉटेज के बाहर लेकर ही नहीं जाते। तभी तो कह रही हूं कि मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं...।”
“शायद तुम बच भी जाती। निशाना चूक जाता गोली चलाने वाले का गोली तुम्हारे कंधे या बांह में भी लग सकती थी और मेरी बात का तुम्हें विश्वास आ जाता कि कोई तुम्हारी जान ले लेना चाहता...।”
“वाह, क्या अंदाज है विश्वास दिलाने का।” लड़की ने कड़वे स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“मान लो मिस्टर सुरेंद्र पाल। मुझे यकीन आ जाता है कि कोई मेरी जान लेना चाहता है, तब तुम क्या करोगे?”
“ये तुम पर निर्भर रहेगा।”
“वो कैसे?”
“ये बाद की बात है। पहले यकीन आ लेने दो।”
“समझो यकीन आ गया।”
“ये समझने वाला मामला नहीं है। गम्भीर मामला है और तुम अभी तक इस बात को हल्के से ले रही हो।”
“मैं कहती हूं मुझे यकीन आ गया कि...।”
“जब तुम्हें यकीन आएगा तो मुझे पता चल जाएगा।”
“तुमने कहा था कि ऐसा होने पर मुझे जाने दोगे।”
“हां।”
“और अगर उसके बाद किसी ने मेरी जान ले ली तो?”
“मैंने पहले ही कहा कि यकीन आ जाने की स्थिति में तुम पर ही सब कुछ निर्भर रहेगा कि आगे क्या करना है। तब कम-से-कम मैं तुम्हें जाने से नहीं रोकूंगा और अगर...।”
देवराज चौहान का मोबाइल बज उठा।
“हैलो।” देवराज चौहान ने बात की।
“आज वापस नहीं आ रहे क्या?” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
“नहीं। आज की वापसी नहीं है। कल या परसों देखूंगा।” देवराज चौहान ने कहा। “सरबत सिंह के पहचान वाले की योजना सुन ली क्या?” उधर से जगमोहन ने पूछा।
“हां। सब बकवास था। मैंने उसे मना कर दिया।”
“तो अब क्यों रुके हो सूरत में?”
“यूं ही। किसी लड़की की जान खतरे में है। पता चला तो उसे बचाने की चेष्टा में हूं।”
“ज्यादा पंगे वाला काम है?”
“खास नहीं। कल या परसों आ जाऊंगा।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
“किसका फोन था?” लड़की ने पूछा।
“मेरे दोस्त का।”
“मुम्बई से?”
“हां।”
“क्या कह रहा था?”
“तुम्हें जानने की क्या जरूरत है कि वो क्या कह रहा था। तुम्हें अपनी चिंता करनी चाहिए। तुम मेरी बात मानने को तैयार नहीं तो ऐसे में मैं तुम्हारे साथ ज्यादा नहीं रह सकता।” देवराज चौहान बोला।
“ये तो खुशी की बात है। तुम एक इशारा करो, मैं अभी यहां से चली जाती हूं।”
देवराज चौहान ने लड़की को घूरा।
लड़की ने गहरी सांस लेकर गीले बालों को झटका दिया।
“आज की रात यहां बिता लो। कल मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगा।” देवराज चौहान ने कहा।
“सच?” लड़की के चेहरे पर खुशी नाची।
देवराज चौहान उसे घूरता रहा।
“तुम्हारा क्या भरोसा कि सुबह मुझे जाने न दो।”
“सौ प्रतिशत कल मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगा। मैं और तुम्हारा साथ नहीं दे सकता। मैं तुम्हारा भला कर रहा हूं। तुम्हें बचाने की चेष्टा कर रहा हूं लेकिन मेरी बात को हल्के में ले रही हो। मेरा दावा है कि जब मैं तुम्हें छोड़कर जाऊंगा तो 24 घंटों के भीतर कोई तुम्हारी हत्या कर देगा।”
“बकवास। मेरा कोई दुश्मन है ही नहीं।” लड़की ने विश्वास-भरे स्वर में कहा।
“आज बरसात न आती तो ये बात जरूर स्पष्ट हो जाती।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम गर्भवती हो, ऐसे में तुम्हें मेरी बात को और भी ज्यादा गम्भीरता से लेना चाहिए था। तुम अपने पति को बुला लो यहां।”
“क्यों?”
“वो तुम्हें यहां से ले जाएगा। तुम अभी यहां से जा सकोगी।”
लड़की के होंठ भिंच गए।
कुछ पल चुप्पी के बाद लड़की ने कहा।
“तुम कल सुबह ही मुझे मेरी मां के घर छोड़ देना।”
“अपने पति को बुलाने पर क्यों हिचक रही हो?” देवराज चौहान बोला।
“तुम्हें इससे क्या।” लड़की ने गम्भीर स्वर में कहा –“इस बारे में मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
लड़की वहीं कुर्सी पर बैठी रही।
“खाने को क्या है?” लड़की ने पूछा।
“जो कुछ है। फ्रिज में है या किचन में है। खाकर रात बिताओ।”
“मैंने सोना कहां है?”
“पीछे वाले बेडरूम में। अगर रात को खिड़की के रास्ते भागना चाहो तो भाग सकती हो। जो इंसान अपना भला न चाहे तो दूसरा उसका भला कब तक कर सकता है। तुम्हारे मरने का वक्त आ चुका है तो तुम्हें कोई भी बचा नहीं सकता।”
“ये मुझे आशीर्वाद दे रहे हो या गालियां?” लड़की तीखे स्वर में बोली।
“अपना अच्छा-बुरा तुम बेहतर समझती हो।”
“मैं यहां से जाना चाहती हूं, परंतु रात के अंधेरे में नहीं। शायद सच मुझे खतरा हो।” “कल सुबह तुम जहां कहोगी, वहीं छोड़ दूंगा।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
☐☐☐
आधी रात का वक्त था।
देवराज चौहान ड्राइंग रूम में दीवान पर सोया हुआ था। वहां पर नाइट बल्ब मध्यम रोशनी फैला रहा था।
कमरे की हर चीज स्पष्ट नजर आ रही थी। भीतर भी और बाहर भी सन्नाटा छाया हुआ था। समुद्र की उछलती लहरों की मध्यम-सी आवाजें कभी-कभार कानों में पड़ जाती थी।
तभी कमरे से दबे पांव लड़की बाहर निकली। उसने जींस की पैंट और स्कीवी पहन रखी थी जो कि शाम को बरसात में गीली हो गई थी। अभी कपड़े सूखे नहीं थे, लेकिन वो पहन चुकी थी। जूते हाथ में पकड़े हुए थे कि उसके चलने का शोर न उठे। उसने ठिठककर दीवान पर सोये देवराज चौहान को देखा।
कई पलों तक देखती रही।
जब पूरा यकीन हो गया कि वो गहरी नींद में है तो दबे पांव आगे बढ़ लगी। कुर्सियों और टेबल से बचती वो दरवाजे तक जा पहुंची और पलटकर देवराज चौहान को देखा। वो सोया हुआ था।
फिर वो धीरे-धीरे बे-आवाज दरवाजे की सिटकनी खोलने लगी।
जल्दी ही इसमें वो सफल हो गई तो बहुत सावधानी से दरवाजे के बीच में लगी कुंडी खोलने लगी। इस बात का पूरा ध्यान रख रही थी कि आवाज जरा भी न उठे, जबकि दो बार कुंडी खुलने की चीं-चीं की आवाज उठी थी तो वो ठिठक गई थी।
आखिरकार उसने कुंडी खोल ली। खींचा तो दरवाजे के दोनों पल्ले बे-आवाज खुल गए। उसी पल उसने पलटकर दीवान पर सोये देवराज चौहान पर निगाह मारी फिर जूते हाथ में थामे खुले दरवाजे से बाहर निकल गई।
यही वो वक्त था जब देवराज चौहान ने आंखें खोल ली। चंद पलों तक वो खुले दरवाजे को देखता रहा फिर उठ बैठा । सिगरेट सुलगाकर कश लिया और खड़ा होते, दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम से निकलकर उस कमरे में पहुंचा जहां लड़की सोई थी। वहां कोई नहीं था। उसके जो कपड़े ने थे, वो फर्श पर बिखरे पड़े थे। कश लेता देवराज चौहान वापस ड्राइंग रूम में पहुंचा और दीवान पर आ बैठा। लड़की चली गई थी। शायद उसे भरोसा नहीं था कि वो उसे कल छोड़ देगा। इसलिए रात में मौका पाते ही फरार हो गई।
देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी।
वो जानता था कि लड़की की जान खतरे में है और लाख समझाने पर भी उसने उसकी किसी बात का यकीन नहीं किया था। अगर जरा भी यकीन किया होता तो, कम-से-कम वो रात में इस तरह बाहर न जाती। देवराज चौहान ने सिगरेट को बुझाकर एक तरफ फेंका और दीवान पर लेट गया।
मन में सुबह उठते ही मुम्बई जाने का प्रोग्राम बना लिया था। सूरत में अब उसे कोई काम नहीं था। लड़की की जान न जाए, इस वजह से वो रुक गया था।
☐☐☐
रात का आखिरी वक्त चल रहा था कि जोरों से दरवाजा भिड़भिड़ाया गया।
देवराज चौहान नींद में था कि तुरंत हड़बड़ाकर उठ गया।
पुनः तूफान की भांति दरवाजा धाड़-धाड़ खटखटाया गया और उसी लड़की की आवाज आई।
“दरवाजा खोलो सुरेंद्र पाल। ये मैं हूं। मेरी जान खतरे में है। जल्दी दरवाजा खोलो।”
देवराज चौहान ने फुर्ती से तकिए के नीचे से रिवॉल्वर निकाली और दरवाजे के पास पहुंचकर दरवाजा खोल दिया। उसके होंठ भिंचे हुए थे। आंखें सिकुड़ी थी। वो सतर्क था।
सामने लड़की बदहवास-सी खड़ी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे। गाल पर खरोंच के निशान थे जैसे कहीं गिर गई हो। उसकी स्कीवी पर भी रेत लगी हुई थी। वो डरी हुई थी।
दरवाजा खुलते ही उसने तूफान की भांति भीतर प्रवेश किया और घबराए स्वर में बोली।
“वो–वो मेरे पीछे है। उन्होंने मुझ पर गोली भी चलाई। वो मुझे मारना चाहते हैं। मुझे बचा लो सुरेंद्र पाल।” कहने के साथ ही वो बुरे हाल की हालत में पीछे वाले कमरे की तरफ दौड़ती चली गई और कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।
देवराज चौहान के दांत भिंच गए। वो दरवाजे को बंद करने जा रहा था कि इसी पल बाहर के अंधेरे से जूते की ठोकर आई और उसके रिवॉल्वर वाले हाथ पर लगी। ये सब एकदम, अचानक हुआ।
रिवॉल्वर हाथ से निकलकर कमरे में कहीं गिर गई।
तभी बाहर से एक शरीर हवा में लहराता आया और उससे टकराता, उसे साथ लेता, नीचे जा गिरा।
देवराज चौहान के होंठों से कराह निकल गई। कंधा जोरों से फर्श से जा टकराया था। इस बात की परवाह न करते हुए वो तुरंत संभला। उठने की कोशिश की। इस दौरान उसने देख लिया था कि उस पर हमला करने वाला, वो ही लड़का है जो कार के स्टेयरिंग को थपथपाता, म्यूजिक सुनता रहता था। जो बोट चला रहा था।
वो लड़का बहुत फुर्तीला था। इससे पहले कि देवराज चौहान उठ पाता, लड़का संभला और बैठे-ही-बैठे बंदर की तरह छलांग लगाकर उससे आ टकराया। दोनों नीचे लुढ़क गए और गुत्थम-गुत्था होकर उलझ गए।
तभी दरवाजे पर वो आदमी रिवॉल्वर थामे खड़ा दिखा जो कि लड़की को खत्म करने के लिए दौड़ा फिर रहा था। जिसने देवराज चौहान से कहा था कि उसने लड़की को मारने के दस लाख लिए हैं। उसके हाथ में दबी रिवॉल्वर की नाल पर साइलेंसर चढ़ा हुआ था। उसके चेहरे पर खतरनाक भाव दिख रहे थे। एक निगाह उसने लड़के और देवराज चौहान को उलझे देखा फिर भीतर आ गया और नजरें लड़की को ढूंढ़ने लगी। अपने साथी और देवराज चौहान की उसे जरा भी परवाह नहीं थी जैसे कि उसे पूरा भरोसा हो कि उसका साथी देवराज चौहान से निबट लेगा।
हाथ में रिवॉल्वर थामे उसने ड्राइंग रूम पार किया और कॉटेज के भीतरी हिस्सों की तरफ बढ़ा कि सामने का बंद दरवाजा देखकर ठिठका फिर पास पहुंचकर दरवाजा खटखटाया।
भीतर से कोई आवाज नहीं आई।
“दरवाजा खोलो। मैं जानता हूं तुम भीतर हो।” उसने कठोर स्वर में कहा –“तुम बच नहीं सकती।”
“मुझे क्यों मारना चाहते हो?” भीतर से लड़की की घबराई आवाज आई –“मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है।”
“मेरा काम ही लोगों की हत्याएं करना है। लोग मुझे पैसा देते हैं और बता देते हैं, कि किसे मारना...।”
“तो क्या मेरी जान लेने के लिए भी तुम्हें पैसा दिया।” भीतर से लड़की की आवाज आई।
“हां। बोला कि कामनी को खत्म करना है। साथ में तुम्हारी तस्वीर भी दी।” वो दांत भींचे कहे जा रहा था –“दरवाजा खोल दो वरना मैं इसे आसानी से तोड़ दूंगा। ये कमजोर है।”
“कितना पैसा दिया?”
“दस लाख। तुम्हें इसने नहीं बताया, जो तुम्हारे साथ है। मेरी इससे बात हुई थी।”
लड़की की कोई आवाज नहीं आई।
“वो कौन है जो मेरी जान लेना...।”
“फालतू के सवाल मत करो। दरवाजा खोलो।” वो गुर्राया।
“तुम मुझे नहीं मार सकते।” लड़की की तीखी आवाज भीतर आई –“सुरेंद्र पाल कहां है?”
“सुरेंद्र पाल कौन?”
“जो इस कॉटेज में मेरे साथ... ।”
“मेरे साथी का वो मुकाबला कर रहा है। तुम दरवाजा नहीं खोलती तो मैं अभी इसे तोड़ता हूं।” कहने के साथ ही उसने कंधे की जोरदार ठोकर दरवाजे पर मारी।
दरवाजा हिलकर रह गया।
उधर देवराज चौहान ने महसूस कर लिया था कि लड़का बहुत फुर्तीला है। लड़ने की कला में भी तेज है। उसे जरा भी मौका नहीं दे रहा था कि वो संभल सके। तभी देवराज चौहान के हाथ में उसके सिर के बाल आ गए। ऐसा होते ही उसने तेजी से लड़के का सिर फर्श पर टकरा दिया।
लड़के के होंठों से चीख निकली।
देवराज चौहान ने इसी प्रकार पुनः उसका सिर फर्श पर मारा।
लड़का बेदम होने लगा।
मौका मिलते ही देवराज चौहान फुर्ती से उठा और उस व्यक्ति की तरफ दौड़ा जो कि दरवाजा तोड़ रहा था और दरवाजा टूटने ही जा रहा था। उसे करीब आता पाकर वो फुर्ती से घूमा कि गोली उस पर चला सके।
परंतु तब तक देवराज चौहान उसके पास पहुंच गया था।
देवराज चौहान ने उसकी रिवॉल्वर वाली कलाई पकड़ी और घुटने की चोट उसके पेट में दे मारी।
उसके होंठों से तीव्र कराह निकली और वो दीवार से जा टकराया।
देवराज चौहान ने जोरों का घूंसा उसके पेट में मारा तो वो चीख उठा।
देवराज चौहान ने उसके रिवॉल्वर वाले हाथ पर जोर से चोट की तो रिवॉल्वर उसके हाथ से निकलकर नीचे जा गिरी तो देवराज चौहान ने जोरों का घूंसा उसके चेहरे पर मारा। वो पुनः चीखा। तभी अपने पीछे से आहट मिली।
देवराज चौहान तेजी से पलटा।
पीछे से वो ही लड़का आ गया था। इस बार उसके हाथ में चाकू था। देवराज चौहान पूरी तरह घूम भी नहीं पाया था कि चाकू चल चुका था जो कि उसकी बांह में आ धंसा। तभी देवराज चौहान ने पैर की जबर्दस्त ठोकर उसकी टांगों के बीच मारी तो दोनों हाथ वहां रखकर, चीखता हुआ, नीचे जा लुढ़का।
देवराज चौहान पुनः वापस पलटा कि तभी उस व्यक्ति ने उसे जोरों का धक्का दिया।
देवराज चौहान बुरी तरह लड़खड़ाया और पीछे की तरफ जा गिरा।
परंतु अब उसने देवराज चौहान पर झपटने की अपेक्षा बाहर की तरफ दौड़ लगा दी। लड़का जो नीचे गिरा था, वो भी उठकर बाहर की तरफ भागा और देखते-ही-देखते दोनों बाहर निकल गए।
देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे। आंखों में पीड़ा के भाव थे। बाईं बांह में अभी भी चाकू धंसा हुआ था, परंतु वो ज्यादा गहराई तक न जा सका था। देवराज चौहान खड़ा हुआ और चाकू की मूठ पकड़कर झटके से उसे बाहर खींच लिया। पीड़ा की तेज लहर उठी फिर दर्द सामान्य होकर उठने लगा। देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ा। चाकू को रास्ते में पड़ने वाले सेंटर टेबल पर रख दिया। खुले दरवाजे से बाहर आकर अंधेरे में हर तरफ नजर मारी। परंतु उन दोनों में से कोई न दिखा। आज काली रात थी। आकाश में बादल मंडरा रहे थे। चंद्रमा बादलों की ओट में छिपा हुआ था।
वापस आकर देवराज चौहान ने दरवाजा भीतर से बंद किया।
बांह से थोड़ा-थोड़ा खून निकल रहा था।
वो वापस कमरे के दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा थपथपाकर बोला।
“तुम ठीक हो?”
“ह-हां।” भीतर से लड़की की सरसराती आवाज आई।
“वो चले गए हैं। अब तुम बाहर आ सकती हो।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने नीचे झुककर वहां पड़ी रिवॉल्वर उठा ली। जिस पर साइलेंसर लगा हुआ था। जो कि हमला करने वाले आदमी की थी।
देवराज चौहान ने रिवॉल्वर की नाल को सूंघा तो बारूद की स्मेल आई। स्पष्ट था कि कुछ देर पहले इस रिवॉल्वर से गोली चलाई गई है। उसने सेंटर टेबल पर रिवॉल्वर रखी और अपनी कमीज उतारी। कमीज को फाड़कर पट्टी का रूप दिया और अपनी जख्मी बांह पर बांधने लगा।
लड़की दरवाजा खोलकर बाहर निकली।
वो घबराई हुई थी।
पट्टी बांधते देवराज चौहान ने उसे देखा।
“ओह, तुम्हें क्या हुआ?” वो फौरन पास आई।
देवराज चौहान के होंठ भिंचे हुए थे। चेहरा कठोर था।
वो पट्टी बांधने लगी।
“वो गए?” हांफते हुए लड़की ने पूछा।
“तुम्हें दिख नहीं रहा।” देवराज चौहान का स्वर तीखा था।
“बांह पर चोट कैसे लगी?”
“चाकू से।”
“ओह। मेरी वजह से तुम्हें चोट आई।” लड़की के चेहरे पर अफसोस के भाव उभरे।
“ये नौबत न आती अगर तुम इस तरह बाहर जाने की बेवकूफी न करती।” देवराज चौहान का स्वर सख्त था।
“सच में, सब कुछ मेरी बेवकूफी की वजह से हुआ। मैंने तुम पर भरोसा नहीं किया।”
पट्टी बंधवाने के बाद देवराज चौहान कमरे में अपनी रिवॉल्वर ढूंढने लगा।
रिवॉल्वर जल्दी मिल गई। उसे उसने टेबल पर रख दिया और लुढ़की पड़ी दो कुर्सियों को सीधा करके एक पर बैठ गया और लड़की को देखा।
लड़की डरी हुई थी।
“तु-तुम्हारी बांह की चोट ज्यादा गहरी तो नहीं?” लड़की सूखे होंठों पर जीभ फेरकर बोली।
“मेरी फिक्र मत करो।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा –“गई क्यों यहां से?”
“मैंने सोचा कि कहीं कल तुम मुझे जाने न दो, इसलिए मैं...।”
“बाहर क्या हुआ?”
“बाहर गहरा अंधेरा था। मुझे रास्ता तो पता नहीं था, मैं हिम्मत करके एक दिशा की तरफ बढ़ गई। पांच-सात मिनट ही बीते होंगे कि मेरी बांह के पास बहुत गर्म चीज निकली। पहले तो मैं समझ नहीं पाई कि क्या है। मैंने पीछे देखा तो दो लोगों को आते देखा। मैंने सोचा तुम हो, परंतु फौरन ही मुझे बोट वाले दो लोगों की याद आई तो मैं घबरा गई। मैं समझ गई कि वो गर्म चीज और कुछ नहीं गोली थी। वो मुझे मारना चाहते हैं। मैं भाग खड़ी हुई। आज अंधेरा बहुत है बाहर। आकाश में बादल हैं, इसी अंधेरे ने मेरी सहायता की और किसी प्रकार बचती-बचाती मैं वापस आ गई। मैंने सोचा उनसे मेरा पीछा छूट गया है, परंतु दरवाजा खटखटाते समय मैंने उन्हें दूर से इसी तरफ आते देख लिया था।” लड़की ने एक ही सांस में सब कुछ कह डाला।
देवराज चौहान कठोर निगाहों से उसे देखता रहा।
“मैं मरते-मरते बची हूं। तुमने मुझे बचा लिया, है न?” वो कांप कर कह उठी।
“दूसरी बार।”
उसने गहरी सांस ली और आंखें बंद कर ली।
“बैठ जाओ।”
लड़की ने आंखें खोली और कुर्सी पर आ बैठी।
“तो अब तुम्हें यकीन आ गया कि कोई तुम्हारी जान लेना चाहता है।” देवराज चौहान बोला।
“हां।” उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“कौन?”
“प-पता नहीं। मेरी तो किसी से दुश्मनी नहीं है। मेरी जान कौन लेगा?”
“लेकिन कोई तो लेना चाहता है।”
लड़की ने सहमति से सिर हिलाया।
“सोचो कि ऐसा कौन कर सकता है, किसके पास वजह है तुम्हें मारने की।”
लड़की, देवराज चौहान को देखती, सोचती रही।
“कमरे में जाओ। आराम करो।” देवराज चौहान बोला –“इस बारे में सुबह मुझे बताना।”
“तुम क्या करोगे?”
“कहोगी तो मैं तुम्हें बचा सकता हूं कहोगी तो तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा ये तुम पर है।”
☐☐☐
अगले दिन दस बजे देवराज चौहान की आंख खुली।
मौसम सुहावना हो रहा था बाहर। हवा चल रही थी। आकाश में बादल छाए हुए थे। सामने समुद्र की ऊपरी सतह पर लहरें, बहती हवा के संग, अठखेलियां कर रही थी।
देवराज चौहान ने कमीज नहीं पहनी हुई थी। बांह पर पट्टी बंधी थी। उसने एक निगाह बांह पर मारी फिर सामने पड़े बैग से कमीज निकालकर पहनी कि तभी लड़की कमरे से निकलकर वहां पहुंची।
देवराज चौहान ने उसे देखा।
“चाय-कॉफी लोगे?” वो बोली –“मैं बना देता हूं।”
“कॉफी।”
लड़की किचन की तरफ बढ़ गई।
देवराज चौहान टेबल पर पड़ी दोनों रिवॉल्वरों को देखा तो गहरी सांस लेकर उसने सिगरेट सुलगा ली। फिर खिड़की के पास पहुंचकर उसे खोला तो सामने नीला समुद्र दिखने लगा। कश लेता, खिड़की पर खड़ा समुद्र को देखता रहा फिर आकाश पर मंडराते काले बादलों को देखकर सोचा कि कभी भी बरसात हो सकती है।”
तभी उसके कानों में मोबाइल बजने की आवाज आई।
लड़की का फोन बज रहा था।
वो खिड़की से हटा और किचन की तरफ बढ़ गया।
मोबाइल बजने की आवाज आनी बंद हो गई थी। किचन में पहुंचा तो लड़की को फोन पर बात करते पाया।
“सब ठीक है मम्मा। मुझे किसी ने नहीं उठाया वो मेरा दोस्त था। मैं उसे पहचान नहीं सकी थी...मैं ठीक हूं मेरी फिक्र न करो...आ जाऊंगी घर भी।” कहते हुए लड़की ने देवराज चौहान पर नजर मारी –“आज तो घर नहीं आऊंगी...अपने दोस्त के साथ बहुत बातें करनी है आज...मैं अपना ख्याल रख रही हूं तुम चिंता मत करो...पुलिस को तुम समझा देना कि गलतफहमी में पड़कर अपहरण की रिपोर्ट लिखा दी थी माफी मांग लेना...।” कहकर लड़की ने फोन बंद करके, पैंट का जेब में रख लिया।
देवराज चौहान ने महसूस किया कि आज लड़की गम्भीर है अन्य दिनों की अपेक्षा। देवराज चौहान किचन से बाहर आ गया।
कुछ देर बाद वो कांच के दो गिलासों में कॉफी डाले वहां पहुंची। एक गिलास देवराज चौहान को देने के बाद दूसरा खुद थामे कुर्सी पर बैठते हुए कह उठी।
“मेरी वजह से तुम्हें बहुत चोट लगी।” उसने उसकी बांह को देखा।
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
“वो चाकू तुम्हारी छाती में भी मार सकता था।” वो पुनः बोली।
“वो पीठ पर मार रहा था, परंतु मैं उसी वक्त घूमा तो बांह पर आ लगा।” देवराज चौहान ने बताया।
“ओह। तुम सच में बहादुर हो। रात तुम न होते तो मैं बच नहीं सकती थी। मैं बेवकूफ थी जो तुम्हारी बात का विश्वास नहीं किया। मैंने यहां से बाहर जाकर बहुत बड़ी गलती की।” उसने अफसोस भरी सांस ली।
“तुम्हारा आगे का प्रोग्राम क्या है? यहां से जाना चाहती हो तो...।”
“मैंने इस बारे में बहुत सोचा है सुरेंद्र पाल जी।” उसने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम बहादुर इंसान हो और मुझे बचा सकते हो। मैं अपनी मां के पास या कहीं भी गई, तो जो लोग मेरी जान के पीछे हैं, वो मुझे खत्म करके रहेंगे। मैं कहीं पर भी सुरक्षित नहीं हूं। परंतु तुम मुझे बचा सकते हो, जैसे कि रात को बचाया। जैसे कि कल दिन में बचाया। तुम दो बार मुझे बचा चुके हो। क्या आगे भी मेरे को बचाओगे।”
“तुम चाहो तो...।”
“मैं चाहती हूं कि तुम मुझे बचाओ। ऐसा करोगे तो मैं और मेरा बच्चा, जो मेरे पेट में है, तुम्हारे एहसानमंद रहेंगे। उसकी आंखों से आंसू बह निकले –“मैं अभी मरना नहीं चाहती।”
“मैं अपनी कोशिश कर सकता हूं कि तुम्हें बचा लूं। परंतु मुझ पर पूरा भरोसा मत करना। मेरे से भी गलती हो सकती है। चूक हो सकती है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“फिर भी मुझे तुम पर भरोसा है। तुम्हारे अलावा कोई और है भी नहीं कि उस पर भरोसा कर सकूं।”
“तुम्हारा पति तो...।”
“मेरी अभी शादी नहीं हुई।”
“ओह।” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
“पर जल्दी ही शादी हो जाने की आशा है।” आंसू साफ करते उसने कहा –“जल्दी हो जाएगी।”
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
लड़की ने भी कॉफी का घूंट भरा फिर बोली।
“मेरा नाम कामनी है।”
“कामनी! हूं –तुमने सोचा होगा कि कौन तुम्हारी जान के पीछे सकता है।”
“कोई भी नहीं।”
“तुम अच्छी तरह जानती हो कि कोई तो है ही जो दस लाख देकर तुम्हें खत्म कराना चाहता है।”
“मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा।”
“तुम मुझे बताओ अपने बारे में। अपने आस-पास के लोगों के बारे में?”
“अगर तुम्हें मालूम हो गया कि फलां आदमी मेरी जान लेना चाहता है तो तुम क्या करोगे?”
“अभी मैं कुछ नहीं कह सकता कि क्या करूंगा ।ये सब तो आगे के हालातों पर निर्भर है।” देवराज चौहान ने कहा –“लेकिन इतना वादा करता हूं कि तुम्हें इस मुसीबत से निकाल दूंगा।”
“मेरे लिए तुम इतना कर रहे हो। क्या तुम मुझे पसंद करने लगे हो।” कामनी बोली –“ऐसा है तो तुम्हें निराशा हाथ लगेगी। मैं अपना जीवन साथी चुन चुकी हूं। मेरे पेट में उसी का बच्चा है।”
“मैं शादीशुदा हूं। ये बात तुम्हें बता चुका हूं। मेरी जिंदगी में पहली और आखिरी सिर्फ मेरी पत्नी ही है। इंसानियत के नाते मैं तुम्हारी सहायता कर रहा हूं क्योंकि मुझे नहीं लगता कि कोई तुम्हारी जान ले, तो वो ठीक करेगा।”
“मैंने तो कभी किसी को कोई नुकसान नहीं दिया।”
“तुम अपने बारे में बताओ। इतना तो स्पष्ट है कि तुम्हारी हत्या करने वाला, तुम्हारे आस-पास का ही है।”
कामनी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“किसी के बारे में बताना भूल मत जाना। क्योंकि कोई भी वो इंसान हो सकता है, जो तुम्हारी जान के लिए दस लाख खर्च कर रहा हो सकता है। अपने आस-पास के सब लोगों के बारे में मुझे बताओ।”
कामनी कुछ पल चुप रहकर कह उठी।
“मेरे आस-पास कोई खास लोग नहीं हैं। मेरे परिवार में मेरी मां, पापा और छोटा भाई हैं। भाई पढ़ रहा है, मैं मुम्बई में मॉडलिंग करती हूं और जानी-पहचानी मॉडल बनती जा रही हूं। सूरत में मेरे मां-बाप रहते हैं, मेरा परिवार सूरत का ही है। जब भी काम से फुर्सत मिलती है तो मैं घर पर आ जाती हूं। अब भी चार दिन पहले मुम्बई से मैं सूरत अपने घर आई थी और आज-कल में मेरा मुम्बई जाने का प्रोग्राम था कि तुमसे मुलाकात हो गई।”
“मुम्बई कहां रहती हो?”
“मलाड।”
“सूरत में और किस-किससे तुम्हारी पहचान है?” देवराज चौहान ने पूछा –“मेरे कोई खास पहचान नहीं थी। दो सहेलियां थी स्कूल के वक्त की उनकी शादी हो चुकी है। सूरत में तो मेरा रहना कम ही होता है। आती हू तो घर पर ही रहती हूं।” कामनी ने बताया।
“तुम्हारे परिवार वालों से तुम्हारा क्या रिश्ता है?”
“बहुत ही बढ़िया।”
“तुम्हारा मतलब कि सूरत में ऐसा कोई नहीं, जो तुम्हारी जान लेने की चाहत रखे।”
“ऐसा इंसान तो कहीं भी नहीं है जो मुझे मार...।”
“मुम्बई में, अपने बारे में बताओ।”
“मलाड में रहती हूं और मॉडलिंग का काम करती हूं। बहुत लोगों से, बहुत कम्पनियों से मेरी पहचान है। कुछ लोग मुझे काम दिलाते हैं, कमीशन लेते हैं। सबसे बनाकर रखनी पड़ती है, काम ही ऐसा है।”
“इसका मतलब, मुम्बई से वास्ता हो सकता है तुम्हारी हत्या की कोशिश का।”
“कौन मुझे मारना चाहेगा?”
“कोई भी। कोई ऐसी मॉडल जिसका काम तुमने कई बार छीना हो। तुमसे खफा हो सकती है।”
“ये मामूली बात है। ऐसा अक्सर होता रहता है। कोई मेरा काम छीन लेता है तो कभी मैं किसी का काम हासिल कर लेती हूं। इस बात के पीछे कोई किसी की हत्या नहीं करवाता।” कामनी ने परेशान निगाहों से उसे देखा।
“ये तुम कहती हो, पर हत्यारे के विचार दूसरे हो सकते हैं।”
“मैं नहीं मानती।”
“सोचो कि पिछले दिनों में तुमने किसी दूसरी मॉडल को तगड़ी चोट दी हो।”
“ऐसा कुछ नहीं है। सब कुछ सामान्य चल रहा है। मैंने जानबूझ कर किसी का काम नहीं छीना। वैसे भी मुझे अक्सर काम मिलता रहता है। तुम टी.वी. देखते हो सुरेंद्र पाल?” कामनी ने एकाएक पूछा।
“बहुत कम।”
“शायद तुमने टी.वी. में मुझे विज्ञापनों में देखा हो, मैं गुलाब साबुन और काली मेहंदी की ऐड में...।”
“बेकार की बातें मत करो।”
“ये बेकार की बातें हैं?” कामनी के होंठों से निकला।
“इस वक्त मैं ये जानने की चेष्टा कर रहा हूं कि कौन तुम्हारी जान ले सकता है। अगर ये रंजिश मॉडलिंग को लेकर है तो तब मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकूँगा। ये इन्वेस्टिगेशन का काम है। तुम्हें पुलिस के पास जाना होगा।”
“अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम हत्यारे को संभाल लोगे और अब...।”
“मॉडलिंग की दुनिया से मैं हत्यारे को नहीं ढूंढ़ सकता। इसमें मुझे समस्या आएगी। अगर पता चल जाए कि कौन ऐसी कोशिश करता हो सकता है तो उसे मैं संभाल सकता हूं। या फिर तुम मुझे सोचकर बताओ कि कौन ऐसी हरकत कर सकता है।”
“अगर मुझे किसी पर शक भी होता तो तुम्हें फौरन कह देती –परंतु...।”
“पेट का बच्चा किसका है?”
“हरीश मर्चेंट का।”
“ये कौन है?”
“ये मुम्बई का नामी बिजनेस मैन है। पैंतीस वर्ष का है और इसकी कई कम्पनियां हैं।” कामनी ने कहा –“जूते की कम्पनी, अंडरवियर-बनियान की कम्पनी और शैम्पू की कम्पनी। इसकी कम्पनियों का माल बाहर विदेश में भी जाता है। पुश्तैनी धंधा है, परंतु अकेला ही मालिक है। पांच साल पहले पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई। भाई-बहन हैं नहीं। सिर्फ मां है।”
“हरीश मर्चेंट से कैसे मिली तुम?”
“अंडरवियर-बनियान की ऐड में मैं मॉडल बनी थी। हालांकि ये मर्दों के कपड़े हैं परंतु कुछ नया करने की खातिर एक लड़के मॉडल के साथ, ऐड में मैंने भी काम किया। तब पहली बार हरीश मर्चेंट से मुलाकात हुई थी। वो मुझे पसंद करने लगा। मैं भी उसे पसंद करने लगी। वो हैंडसम तो है ही, उसके पीछे अरबों की दौलत भी है। परंतु मैं हरीश के साथ बहुत संभलकर चली। हम मिलने लगे। दस-पंद्रह दिन में एक बार तो हम मिल लेते थे। लंच एक साथ लेते। इस दौरान उसके व्यवहार से मुझे इस बात का एहसास हो गया कि वो मुझ पर फिदा है। सच बात तो ये है कि मैं भी उसे फंसाने पर लगी थी। किसी लड़की को ऐसा दौलतमंद इंसान मिल जाए तो उसे और क्या चाहिए।”
“फिर?”
“इन बातों का, इस वक्त का क्या फायदा?” कामनी कह उठी।
“तुम बताती रहो।” देवराज चौहान बोला –“मुझे सब कुछ जानना है, तभी कुछ पता चलेगा।”
गहरी सांस लेकर कामनी ने सिर हिलाया फिर बोली।
“इसी दौरान हरीश ने अपनी कम्पनी के शैम्पू की पांच-छ: ऐड मुझे मॉडल लेकर तैयार करवाई और टी.वी. पर चला दी। मैं जब ऐड शूट के लिए मेकअप करती हूं तो डबल खूबसूरत लगती हूं। तुमने अभी देखा नहीं मुझे –मैं...।”
“काम की बात करो।” देवराज चौहान का स्वर सख्त हुआ।
“हां। मेरी उन ऐडों से शैम्पू की बिक्री में काफी बढ़ोतरी हो गई। हरीश मुझ पर और भी फिदा हो गया और मेरे सामने शादी करने की ऑफर रख दी। मैं भी ये ही चाहती थी, कुछ दिनों बाद मैंने उसे हां कह दी। उसके बाद हम लगभग रोज ही मिलने लगे। मुम्बई में उसके चार-पांच घर हैं। कभी-कभी हम रातें भी वहां बिताने लगे। हममें पति-पत्नी के सम्बंध बन गए थे।”
“शादी क्यों नहीं की?” देवराज चौहान ने पूछा।
“वो कहता है कि अभी शादी करने में व्यक्तिगत समस्या है। दो-तीन महीने बाद शादी करेगा। ये बात महीना पहले की है और पंद्रह दिन पहले मैंने उसे खबर दी कि मैं उसके बच्चे की मां बनने वाली हूं।”
“तो?”
“ये सुनकर वो खास खुश नहीं हुआ। कहने लगा शादी से पहले मां बनना ठीक नहीं । बच्चा गिरा दूं।”
“फिर?”
“मैंने उसे समझाया कि ये हमारे प्यार की निशानी है। इसे दुनिया में आने दो। हमारी शादी हो ही जानी है। क्या फर्क पड़ता है। कई दिन समझाने पर वो माना मेरी बात।”
“मान गया?”
“हां।”
“खुशी से माना?”
“कह नहीं सकती, परंतु वो मान गया।” कामनी ने देवराज चौहान को देखा।
“ये बात पंद्रह दिन पहले की है?”
“हां।”
“और अब तुम सूरत पहुंची तो तुम्हारी हत्या की कोशिशें होने लगी।”
“तो?”
“तुम्हारे और हरीश के रिश्ते को और कौन जानता है? लोग जानते हैं?”
“लोग तो नहीं जानते। हरीश ने ही मना कर रखा है कि ये बातें मैं किसी को बताऊं। शादी हो जाए तो तब बेशक बताना। मेरे मां-बाप इस बारे सब कुछ जानते हैं।” कामनी ने कहा।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
कुछ खामोशी छा गई।
कामनी उसे देखती रही फिर बोली।
“क्या हुआ। चुप क्यों हो गए?”
“तुम बहुत भोली हो।” देवराज चौहान ने कहा।
“क्या मतलब?”
“कोई बेवकूफ भी समझ सकता है कि तुम्हारी जान लेने का ख्वाहिशमंद हरीश मर्चेंट है।”
“क्या बकवास कर रहे हो।” कामनी भड़ककर कह उठी।
“मैं सही कह रहा...।”
“तुम सही नहीं कह रहे। गलत कह रहे हो। हरीश मुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहता है।”
“सिर्फ दिखावे के लिए।”
“पागलों वाली बातें मत करो। वो मेरा होने वाला पति है। उसका बच्चा मेरे पेट में...।”
“जबकि हकीकत ये है कि वो तुम्हें प्यार नहीं करता। तुम्हें पाना चाहता था और तुम्हें बातों में फंसाकर अपना काम निकाल लिया। वो तुम्हें इसी तरह बेवकूफ बनाता रहता, परंतु बीच में बच्चा आ गया। इस खबर ने उसे परेशान कर दिया कि तुम कभी भी उसके लिए मुसीबत खड़ी कर सकती हो। ऐसे में उसने तुम्हें रास्ते से हटा देना ही बेहतर समझा। तुम इधर सूरत आई तो हत्यारे तुम्हारे पीछे...।”
“लेकिन हरीश तो मेरे सूरत आने से एक दिन पहले चीन गया था बिजनेस के सिलसिले में।”
“तुम पर उन लोगों को लगा गया, जो अब तुम्हारे पीछे हैं। वो मुम्बई से ही तुम्हारे पीछे सूरत पहुंचे हैं और...।”
“मैं नहीं मानती। तुम बकवास कर रहे हो।” कामनी तेज स्वर में बोली।
“तुम पहले भी मेरी बातों को बकवास समझ रही थी और अब मान रही हो उन बातों को।”
“वो अलग बात थी। मैं नहीं मान सकती कि हरीश मेरी जान लेगा। वो मुझे प्यार...।”
“वो प्यार का नाटक चला रहा था और अब तुम्हारी मौत के साथ ही नाटक खत्म हो जाएगा। वो पैसे वाला इंसान है तुम्हारी जान लेने के लिए दस लाख खर्च कर देना उसके लिए मामूली बात है।” देवराज चौहान ने कहा।
कामनी के होंठ भिंच गए।
वो देवराज चौहान को देखती रही।
देवराज चौहान कश लेकर कह उठा।
“सिर्फ एक वो ही है तुम्हारी जिंदगी में, जिसके पास वजह है तुम्हारी जान लेने की। आराम से मेरी बात पर सोचो। गौर करो कि क्या हरीश तुमसे पीछा छुड़ाने की चाहत रखता है या नहीं?”
कामनी देवराज चौहान को देखे जा रही थी।
एकाएक कामनी मुस्करा पड़ी।
देवराज चौहान ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा फिर कहा।
“इसमें मुस्कराने वाली तो कोई बात नहीं है। ये गम्भीर मामला है।”
“तुम खतरनाक आदमी हो, जो दो बार मुझे बचाया। परंतु तुम शरीफ बहुत हो।” कामनी ने गहरी सांस लेकर कहा।
“मैं समझा नहीं।”
“सुरेंद्रपाल साहब। तुम बिना किसी लालच के मेरी जान बचाने पर लगे हो। जबकि इस मामले से तुम्हें कोई लेना-देना नहीं है। तुम अच्छे इंसान हो। वरना आजकल कौन किसी के काम आता है।”
देवराज चौहान ने कामनी की आंखों में देखते, शांत स्वर में कहा।
“मुझे शरीफ समझने की भूल मत करना। इस वक्त बात कुछ दूसरी है और पलटकर दूसरी बात पर आ...।”
“अब ही तो मैं सही बात पर आ रही हूं तुम असल में हो कौन?”
“सुरेंद्र पाल हूं। इससे ज्यादा जानने की तुम्हें जरूरत भी नहीं है।”
“मतलब कि तुम अपने बारे में कुछ नहीं बताओगे।”
“तुम्हारी जान खतरे में है, तुम्हें सिर्फ इस बारे में सोचना चाहिए।” देवराज चौहान ने कहा।
कामनी पुनः मुस्कराई। बोली।
“तुमने मुम्बई जाना है न?”
“हां क्यों?”
“मैंने भी मुम्बई जाना है। क्या तुम मुझे सुरक्षित मुम्बई तक पहुंचा सकते हो?”
“तुम अपने ऊपर हो रहे हमलों को लेकर अभी तक गम्भीर नहीं...।”
“मैं गम्भीर हूं। परंतु इन बातों का मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“क्या मतलब?”
“सब कुछ जानना चाहते हो?”
“क्या सब कुछ?”
“मुझ पर हमले क्यों हो रहे हैं और कौन...।”
“मैंने बोला ना, हरीश ही तुम्हारी जान लेना चाहता है।” देवराज चौहान ने कहा।
“ऐसा कुछ नहीं है।”
“क्या मतलब?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गईं।
“मैं तुम्हें इस बारे में कई नई बातें बता सकती हूं क्योंकि तुमने बिना किसी लालच के मेरी सहायता की है। परंतु वो बातें मुम्बई एयरपोर्ट पर बताऊंगी शाम के पांच बजे तक मुझे सांताक्रूज एयरपोर्ट पर पहुंचा दो। रास्ते में मैं कोई बात नहीं करूंगी इस बारे में। जब तुम मुझे एयरपोर्ट पर पहुंचा दोगे तो तब मैं तुम्हें कई नई बातें बताऊंगी।”
देवराज चौहान सतर्क हो उठा।
“मतलब कि मुझे बताने के लिए तुम्हारे पास बहुत कुछ है?” देवराज चौहान कह उठा। “हां।”
“क्या है?”
“जैसे कि हमले कौन करवा रहा है। या फिर मैं कौन हूं ऐसी ही बातें...।”
देवराज चौहान टकटकी लगाए, कामनी को देखने लगा।
“क्या हुआ?”
“मतलब कि तुम कामनी नहीं हो?”
“हूं। कामनी ही हूं, नाम के अलावा मैंने तुम्हें हर बात गलत बताई।”
“क्यों?”
“क्योंकि मैं तुम्हें जानती नहीं थी कि तुम कौन हो। जानती तो अब भी नहीं, परंतु इतना तो पक्का है कि तुम मेरे दुश्मन नहीं हो। इसलिए कुछ बातें अपने बारे में बताऊंगी।” कामनी का स्वर शांत था।
“और वो हरीश...?”
“कोई हरीश नहीं है मेरी जिंदगी में।”
देवराज चौहान अजीब-सी नजरों से उसे देखने लगा।
“कोई मेरी मम्मा नहीं है। सूरत में कोई मेरा परिवार नहीं है।”
“तो तुम मुझे बेवकूफ बना रही थी?”
“ऐसा मत कहो। मैं तुम्हें बेवकूफ नहीं बना रही थी, बल्कि ये जानने की कोशिश कर रही थी कि तुम कहीं मेरे दुश्मनों में से तो नहीं हो। मैं तुम्हें समझने की चेष्टा कर रही थी।” कामनी ने कहा।
“फोन किसके आते रहे तुम्हें?”
“मेरी पहचान का है।”
“मुम्बई एयरपोर्ट पर तुम्हें क्या काम है?”
“सवा सात बजे मेरी दुबई की फ्लाइट है। पांच बजे तक मेरा एयरपोर्ट पहुंचना जरूरी है। तुम ये काम नहीं कर सकते तो मेरे पास और भी रास्ते हैं, मुझे कोई समस्या नहीं है।”
“जो लोग तुम्हारे पीछे हैं?”
“उनसे निबटने का भी इंतजाम है।”
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लिया।
कामनी उसे देखे जा रही थी।
“तुम्हारा बदला रूप देखकर मुझे हैरानी हो रही है।”
“मेरा रूप नहीं बदला बल्कि अब तुम हकीकत से वाकिफ होने लगे हो। मैं जो पहले थी, वो ही अब हूं। बहरहाल जो भी हो तुमसे मिलकर मैं खुश हूं। तुम बढ़िया इंसान हो।”
“तुम प्रेग्नेंट हो?”
“नहीं। वो तो मैंने तुम्हें यूं ही कहा था।” कामनी सामान्य लहजे में बोली।
“अपने बारे में बताओ। ये बताओ कि ये सब क्या हो रहा...।”
“सब कुछ बताऊंगी, परंतु मुम्बई एयरपोर्ट पर पहुंचकर। अगर तुम मुझे वहां नहीं ले जाना चाहते तो...।”
“चलो। तैयार हो जाओ।” देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से देखा –“मैं तुम्हें पांच बजे तक मुम्बई एयरपोर्ट पहुंचा दूंगा।”
“मैं तो तैयार ही हूं।” कामनी मुस्कराई।
उसने मोबाइल निकाला –“तैयारी तो तुमने करनी है। अपने कपड़े बैग में रखो। और कुछ है तो वो भी ले लो। बांह के इस जख्म के साथ कार ड्राइव कर लोगे?”
“हां” देवराज चौहान कामनी को गहरी निगाहों से देख रहा था।
कामनी ने मोबाइल से नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया बात हो गई।
“हैलो।” उधर से आवाज आई।
“मेरा सूटकेस तैयार है?”
“जी मैडम।”
“कहां पर दोगे मुझे?”
“पलसाना के चौराहे पर मैं मिलूंगा।”
“एक मिनट रुको।” फिर कामनी देवराज चौहान से बोली –“हम कब यहां से चलेंगे?”
“बीस मिनट में।”
“पलसाना नाम की जगह जानते हो? सूरत में ही है।”
“नहीं जानता।”
“ठीक है, किसी से पूछ लेंगे। वहां से मैंने सूटकेस लेना है।” फिर वो फोन पर बोली –“एक घंटे बाद तुम पलसाना के चौराहे पर मिलना। मुझे देर हो जाए, तो भी तुम वहीं रहना। वहां पहुंचकर, फोन पर सम्पर्क करूंगी तुमसे।” कहने के साथ ही कामनी ने फोन बंद करके देवराज चौहान को देखा।
“तुम्हारा बदला रूप देखकर मुझे अजीब-सा लग रहा है।”
“अभी तो तुमने मेरे मुंह से ऐसी कई बातें जाननी हैं, जो तुम्हें परेशान कर देगी सुरेंद्रपाल।”
“ऐसा कुछ था तो ये बात तुम्हें पहले ही कह देनी चाहिए कि...।”
“मैं तुम्हारी शुक्रगुजार हूं कि तुमने दो बार मेरी जान बचाई। अब यहाँ से चलो। दिन के बारह बजने वाले हैं, अभी पलसाना के चौराहे से उस आदमी से मैंने अपना सूटकेस भी लेना है, उसमें मेरा पासपोर्ट, कपड़े और टिकट हैं।”
“तुम दुबई से आई हो?”
“हां।”
“कहां की हो तुम?”
“हिन्दुस्तान की। मुम्बई पहुंची थी कभी फिल्मों में काम पाने के लिए कि मेरा रास्ता बदल गया। ये बातें मुम्बई एयरपोर्ट पर पहुंचकर करेंगे। बहुत कुछ बताऊंगी तुम्हें। अब चलने की तैयारी करो।”
☐☐☐
पलसाना एक बड़ी जगह थी और भीड़ भरी जगह थी। पलसाना के मुख्य चौराहे पर तो और भी ज्यादा भीड़ थी। ट्रैफिक का शोर, लोगों के आने जाने का शोर। ये पुराना इलाका था सूरत का। देवराज चौहान ने सड़क किनारे, कार एक जगह रोकी और कामनी को देखा। देवराज चौहान चुप-चुप सा था।
कामनी ने आसपास देखते हुए कहा।
“ये ही है पलसाना का चौराहा?” साथ ही उसने फोन निकाला।
“हां।”
कामनी ने फोन मिलाकर अपने आदमी से बात की।
“मैं पलसाना के चौराहे पर हूं तुम कहां हो?”
“मैडम आप बताइए किधर हैं?”
कामनी ने देवराज चौहान से कहा।
“उसे क्या बताऊं कि हम किधर हैं?”
देवराज चौहान ने आसपास देखते हुए कहा।
“पंजाब नेशनल बैंक के सामने, सड़क पार।”
कामनी ने ये ही शब्द फोन पर कहे।
कुछ ही मिनटों में एक युवक मीडियम साइज का सूटकेस थामे उनके पास आ गया।
“पीछे वाली सीट पर रख दो।”
“यस मैडम।” कहते हुए उसने पीछे वाली सीट पर सूटकेस रखा और दरवाजा बंद करके चला गया।
देवराज चौहान ने बिना कुछ कहे कार आगे बढ़ा दी।
“तुम चुप-चुप क्यों हो?” कामनी बोली।
“मैं तुम्हें समझने की कोशिश कर रहा हूं कि तुम क्या हो।” देवराज चौहान ने कहा।
“मुम्बई एयरपोर्ट पर पहुंचकर बताऊंगी। हम चार घंटों में मुम्बई पहुंच जाएंगे?” वो बोली।
“साढ़े तीन घंटे।” देवराज चौहान ने कहा और कार को बारडोली जाने वाली सड़क पर डाल चुका था।
“रास्ते में कौन-कौन सी जगह आएंगी?”
“बारडोली नाम की जगह, फिर वलोड, उसके बाद बुहारी, वैन साडा रोड, पिमपरी, सुपुत्रा और फिर हम महाराष्ट्र में प्रवेश कर जाएंगे। साढ़े तीन घंटे में हम मुम्बई एयरपोर्ट पर होंगे।”
“बांह के जख्म की वजह से कार चलाने में अगर परेशानी हो रही हो तो मैं कार ड्राइव कर लेती हूं।”
“मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही।” देवराज चौहान शांत था।
“मैं कार बहुत अच्छी ड्राइव करती हूं।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“तुम मेरी बातें सुनने के बाद चुप-चुप से क्यों हो गए हो?”
“मैंने एक मजबूर, मुसीबत की मारी लड़की की सहायता करने की सोची थी, परंतु शायद मेरा ख्याल गलत निकला। तुम मजबूर नहीं हो और तुम कहती हो कि हमले के बारे में तुम्हें पहले से ही यकीन था कि...।”
“हां, मुझे पता था कि कौन मेरी जान लेने की कोशिश कर रहा है, परंतु सूरत पहुंचकर मैंने सोचा कि उन लोगों से मेरा पीछा छूट गया है, परंतु मैं गलत थी और जब तुम इस मामले में आए तो मैं समझ गई कि मैं खतरे में हूँ।”
“फिर तुम मुझे ये क्यों दिखाती रही कि तुम्हें हमले के बारे में कुछ नहीं पता”
“पहले तो मैंने तुम्हें उन लोगों का ही आदमी समझा जो मुझ पर हमला कर रहे थे। मैं इस बारे में हर वक्त तैयार थी कि अगर तुम मुझे नुकसान पहुंचाते हो तो तुम्हें सबक सिखा सकूँ। लेकिन तुम सही आदमी निकले। फिर कल रात जब मैं कॉटेज से निकल भागी, उन दोनों हत्यारों की वजह से मुझे वापस आ जाना पड़ा और वे भी पीछे आ गए और तुमने उनका मुकाबला करके उन्हें भगा दिया तो तब मुझे तुम पर पूरा यकीन आ गया कि तुम मेरे खिलाफ कोई चाल नहीं चल रहे। तुम कमाल के आदमी हो सुरेंद्र पाल।”
“अपने बारे में बताओ।”
“अभी नहीं। ये छोटा-सा सफर निकल जाने दो। मुम्बई एयरपोर्ट पर तुम जो भी जानना चाहोगे, बताऊंगी।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
कामनी के चेहरे पर शांत भाव थे।
हाईवे आ चुका था और कार सौ से ऊपर की रफ्तार पर दौड़ रही।
“तुम क्या काम करते हो सुरेंद्र पाल?”
“अपने बारे में तुम्हें बताने की जरूरत नहीं समझता।”
“सोच लो। तुम मुझे ठीक आदमी लगे। मैं तुम्हें बढ़िया काम दिला सकती हूं जिससे बढ़िया पैसा मिलेगा और...।”
“मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए।” देवराज चौहान ने कहा।
कामनी ने देवराज चौहान को देखा फिर कह उठी।
“लाख, दो लाख महीना कैसा रहेगा?”
“मेरे बारे में सोचना छोड़ दो।”
कामनी गहरी सांस लेकर रह गई। बोली।
“अगर तुम ज्यादा काम के निकले तो और भी ज्यादा पैसा मिल सकता है।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
कई मिनट से उसकी निगाह शीशे पर जा रही थी, जहां से कार के पीछे का दृश्य दिखता था।
“तुम अच्छे आदमी हो। तुमने एक बार भी मेरे शरीर के अंगों को घूरने की कोशिश नहीं की।”
“ये सोचो कि मैंने तुम्हें दो बार मरने से बचाया है।”
“हां। पहली बार तो मैं जरूर मारी जाती। वो आदमी मुझे आसानी से गोली मार सकता था।”
“और दूसरी बार?”
“कल रात तुमने मेरी सहायता अवश्य की, परंतु तब मैं खुद को बचा भी सकती थी।”
“छोड़ो। अभी तुम मुझे ठीक से जानते नहीं।”
“वो ही तो जानना चाहता हूं कि मैंने अनजाने में किस लड़की की सहायता कर दी।” देवराज चौहान होंठ भींचे बोला –“मैंने तुम्हें साधारण-सी शरीफ लड़की समझा था, जबकि तुम ऐसी नहीं हो।”
कामनी मुस्करा पड़ी।
“तुम सब जानती थी कि तुम पर जानलेवा हमले हो रहे हैं परंतु तुम अनजान बनती रही और मैं बेवकूफों की तरह तुम्हें यकीन दिलाने में लगा रहा कि तुम पर सच में जानलेवा हमला हुआ है। तुम्हें सतर्क रहना चाहिए।”
“लगता है कि तुम इस बात का बुरा मान गए सुरेंद्र पाल।”
“अपनी बेवकूफी पर मुझे गुस्सा आ रहा है।”
“ऐसा मत कहो। मैंने तुम्हें कभी भी बेवकूफ नहीं समझा।”
देवराज चौहान ने शीशे में पीछे का दृश्य देखा फिर बोला।
“तुम बढ़िया कार चला लेती हो?”
“बहुत बढ़िया।”
“तो ड्राइविंग सीट संभाल लो। हमारे पीछे एक कार लगी है और वो कार पास आने का प्रयत्न कर रही है। उनके इरादे ठीक नहीं लगते। उनसे मुझे तुम्हारी नहीं, अपनी जान बचानी है। मैं बिना वजह इस मामले में आ फंसा।”
कामनी ने फौरन गर्दन घुमाकर पीछे देखा।
चंद पल पीछे देखने के बाद बोली।
“नीले रंग की कार है न?”
“हां।”
कामनी के होंठ भिंच गए। चेहरे पर खतरनाक भाव आ गए। वो सीट से उठी और पीछे वाली सीट पर जाने का प्रयत्न करने लगी। ये देखकर देवराज चौहान कह उठा।
“मैंने तुम्हें कार की ड्राइविंग संभालने को कहा है।”
“वो तुम संभालो। पीछे आने वालों को संभालना मेरे लिए मामूली बात है।” कामनी के होंठों से मध्यम-सी गुर्राहट निकली।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए, उसकी गुर्राहट महसूस करके कामनी पीछे वाली सीट पर पहुंच गई। अपना सूटकेस खोला।
देवराज चौहान का ध्यान पूरी तरह ड्राइविंग पर था।
कामनी ने कपड़ों के नीचे हाथ डालकर रिवॉल्वर निकाली, जिसकी नाल, अन्य नालों से इंच भर ज्यादा लम्बी थी। उसकी मैंग्जीन चेक की। जो कि फुल थी। फिर सूटकेस में कपड़ों के नीचे हाथ मारकर साइलेंसर निकाला और नाल पर चढ़ाने लगी। कामनी के खूबसूरत चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे। देवराज चौहान रह-रहकर शीशे में निगाह मारकर, पीछे वाली सीट पर मौजूद कामनी की हरकतों को देख लेता था। उसके हाथ में रिवॉल्वर देखकर, देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता आ गई थी।
कामनी ने पीछे आती नीली कार पर निगाह मारी।
“तुम क्या करने वाली हो?” देवराज चौहान ने पूछा।
“देखते रहो सुरेंद्र पाल।”
“निशाना लगा लेती हो? कहीं सब कुछ गड़बड़ मत कर देना।”
कामनी के खतरनाक चेहरे पर जहरीली मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई। उसने एक तरफ का शीशा नीचे कर लिया। तेज हवा में उसके बाल उड़ने लगे। सीट पर पोजिशन लेकर वो दुबक गई और बोली।
“कार को थोड़ा धीमे करो। उन्हें पास आने दो।”
“क्या तुम इस काबिल हो, जो करने जा रही हो।” देवराज चौहान ने कहा।
“जो कहा है वो करो सुरेंद्र पाल। जवाब तुम्हें खुद-ब-खुद ही मिल जाएगा।” कामनी गुर्रा उठी।
उसका ये लहजा सुनकर देवराज चौहान के दांत भिंच गए। पहले की कामनी और अबकी कामनी में जमीन-आसमान का अंतर था। वो समझ गया कि अब तक कामनी के बारे में धोखे में रहा है।
देवराज चौहान ने कार की रफ्तार कुछ धीमी की।
पीछे आती कार एकाएक समीप आने लगी थी।
कामनी साइलेंसर लगी रिवॉल्वर थामे, पोजिशन लिए हुए थी।
“थोड़ा और धीमे करो।” कामनी के होंठों से मौत-भरा स्वर निकला।
देवराज चौहान ने ऐसा ही किया।
अगले चंद पलों में कारें ठीक बराबर में आ गईं।
उस कार को वो ही लड़का चला रहा था जो कि म्यूजिक सुनने का शौकीन था। बगल में वो ही आदमी बैठा था जो कामनी की जान लेने का प्रयत्न कब से कर रहा था।
कामनी रिवॉल्वर वाला हाथ ऊपर कर चुकी थी।
दूसरी कार में बैठे व्यक्ति के हाथों में गन की झलक मिली।
वो उसी पल गन को इस्तेमाल करने जा रहा था।
तभी कामनी ने निशाना लेते हुए ट्रिगर दबा दिया।
‘पिट’ मध्यम-सी आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी।
अगले ही पल कामनी ने दूसरी कार चलाते लड़के की कनपटी में सुराख पैदा होते देखा और वो कार हाईवे पर बे-काबू होकर एकाएक लुढ़कती चली गई।
देवराज चौहान ने उसी पल कार की रफ्तार बढ़ा दी।
कामनी ने फुर्ती से कार का शीशा ऊपर कर लिया। उसका चेहरा कठोर हुआ पड़ा था। आंखों में दरिंदगी नाच रही थी। दो-तीन लम्बी सांसें ली उसने।
“तुम तो वास्तव में बहुत तगड़ी निशानेबाज हो।” देवराज चौहान कह उठा।
कामनी के चेहरे पर तनाव कम होता जा रहा था। वो मुस्करा पड़ी।
“मैंने बहुत ही गलत लड़की की सहायता की। मैंने तुम्हें मासूम समझा था।”
कामनी ने रिवॉल्वर सीट पर रखी और ठीक से सीट पर बैठती बोली –“वो लोग मेरी जान लेना चाहते थे। दो बार कोशिश कर चुके थे। जब मैं मुम्बई एयरपोर्ट पर उतरी थी और टैक्सी लेकर वहां से निकली तो तब भी मुझ पर जानलेवा हमला किया गया। मैं कठिनता से बची। परंतु टैक्सी का ड्राइवर मारा गया था। मुझे भी तो सालों को सबक सिखाना था।” स्वर में तीखे भाव थे।
“कौन थे कार वाले?”
“वो ही दोनों।” कामनी बोली –“जो कार चला रहा था, मैंने उसका निशाना लिया।”
“तुम बहुत खतरनाक हो।”
“तुम्हारे लिए नहीं।” कामनी ने कहा और अपना खुला पड़ा सूटकेस चेक करने लगी।
“तुम्हारे मामले में मैं धोखा खा गया और तुम्हें हत्यारों से बचाने की चेष्टा में लग गया। ये मेरा पागलपन था। तब मैं तुम्हारी हकीकत से वाकिफ नहीं था कि तुम बहुत खतरनाक हो।”
“मैं जैसी भी हूं, पर जब तुमने मुझे बचाया तो तब मैं सच में मरने वाली थी। ये तब की बात है, जब मैं शोरूम से साड़ी खरीद कर निकली थी। तुमने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया सुरेंद्र पाल।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
कार तेजी से दौड़े जा रही थी।
कामनी सूटकेस चेक करती रही। सामान को चेक करती रही।
“अपना पासपोर्ट दिखाओगी?” देवराज चौहान ने कहा।
“क्यों?”
“यूं ही।”
कामनी ने सूटकेस में से पासपोर्ट निकाला और देवराज चौहान को दिया।
कार चलाते देवराज चौहान सावधानी से पासपोर्ट के पन्ने पलटने लगा।
दो मिनट में देख लेने के बाद पासपोर्ट लौटाता कह उठा।
“पासपोर्ट पर तुम्हारा नाम नसरीन शेख है।”
“मैं कामनी भी हूं और नसरीन शेख भी।” कामनी सूटकेस में पड़े सामान को चेक करते बोली।
“हिन्दू और मुस्लिम नाम, दोनों ही तुम्हारे कैसे हो सकते हैं?”
“दुबई में मैं नसरीन शेख हूं और इंडिया में कामनी।”
“असली नाम क्या है?”
“कामनी।”
“तुम मेरे लिए पहेली की तरह बनती जा रही हो।” देवराज चौहान कहा।
“ऐसा कुछ नहीं है। मुम्बई एयरपोर्ट पर पहुंचकर, तुम्हारे सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा।”
“तो तुम जानती हो कि तुम्हारी हत्या करने की जो कोशिश कर रहे हैं, वो कौन हैं।”
“हां।”
“हमारे पास मुनासिब वक्त है, तुम अपने बारे में मुझे बता सकती...।”
“मैं नहीं जानती तुम कौन हो। ऐसे में मैं तुम्हें अपने बारे में बताकर सफर में रुकावट नहीं डालना चाहती।”
“सफर में रुकावट? मैं समझा नहीं...।”
“जरूरी तो नहीं कि मेरा परिचय तुम्हें पसंद आए।”
“तुम्हारा परिचय कुछ भी हो। मुझे क्या लेना देना। तुम्हें मुम्बई एयरपोर्ट पर पहुंचा के रहूंगा।”
कामनी चुप रही।
“क्या तुम अपने बारे में बताना शुरू करने वाली हो?”
“नहीं।”
देवराज चौहान ने फिर कुछ नहीं कहा।
कामनी ने अपना सूटकेस बंद कर दिया।
☐☐☐
शाम 5.40 पर देवराज चौहान ने कार मुम्बई के सांताक्रूज एयरपोर्ट पर रोक दी।
कामनी मुस्कराकर बोली।
“तुम भी बढ़िया ड्राइवर हो, मेरी तरह। सुनो, कार की सीट के नीचे मेरी रिवॉल्वर पड़ी है, वो तुम्हारी हुई उसे मैं अपने साथ तो दुबई ले जा नहीं सकती।”
देवराज चौहान ने पलटकर पीछे देखते हुए कहा।
“तुम यहां अपने बारे में कुछ बताने वाली थी।”
“जरूर।” कामनी ने कहा और कार का दरवाजा खोला। बाहर निकली। अपना सूटकेस भी बाहर खींच लिया फिर दरवाजा बंद किया और सूटकेस खींचते, देवराज चौहान के तरफ वाली खिड़की के पास जा पहुंची।
देवराज चौहान उसे देख रहा था।
कामनी के चेहरे पर मीठी मुस्कान थी।
“तुम बढ़िया बंदे हो सुरेंद्र पाल। न भूलने वाले। तुम मेरे बारे में जानना चाहते हो। वैसे तो तुम्हें न बताती, परंतु तुमने मेरी जान बचाई है इसलिए बता रही हूं। तुमने इकबाल खान सूरी उर्फ भगता ठाकुर का नाम तो सुन रखा होगा।”
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
“तुम उस अंडरवर्ल्ड डॉन की बात कर रही हो, जो मुम्बई लाशें बिछाकर दुबई भाग गया था।”
“वो ही। मैं उसी इकबाल की प्रेमिका हूं और उसकी सिक्योरिटी कंट्रोल करती हूं।”
देवराज चौहान अपलक कामनी को देखता रह गया।
“यकीन नहीं आया?” कामनी मुस्कराई।
देवराज चौहान के दिमाग में अजीब-सा तूफान उठ खड़ा हुआ था।
“मुझ पर हमले करवाने वाला, मुम्बई अंडरवर्ल्ड का डॉन बाबा रतनगढ़िया है। उसकी और इकबाल खान सूरी की लगी रहती है। जाने उसे कैसे पता चल गया कि मैं मुम्बई पहुंच रही हूं। इकबाल के किसी आदमी ने ही बाबा रतनगढ़िया को मेरे आने की खबर दी। दुबई पहुंचकर उस गद्दार को ढूंढ़ने की कोशिश करूंगी।” कहते हुए कामनी की आंखों में दरिंदगी के भाव उछले –“तुमने मेरी जान बचाई, इसलिए ये बातें तुम्हें बताई। तुम जो जानना चाहते थे, वो मालूम हो गया है तुम्हें। अब मैं चलती हूं सुरेंद्र पाल। मुझे भीतर जाकर कागज चेक कराने हैं। दुबई की फ्लाइट पकड़नी है। बाय।” कामनी ने दायां हाथ हिलाया और सूटकेस खींचते, एयरपोर्ट के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गई।
इकबाल खान सूरी।
देवराज चौहान के मस्तिष्क में धमाके हो रहे थे।
हिन्दुस्तान को इकबाल खान सूरी की सख्त जरूरत थी। अखबारों और टी.वी. न्यूज के दम पर उसे इतनी जानकारी थी कि इकबाल खान सूरी ने दुबई और पाकिस्तान में अपने ठिकाने बना रखे हैं, परंतु भरपूर चेष्टा के बाद भी हिन्दुस्तान की सरकार उसे पकड़ नहीं पा रही थी।
कामनी उर्फ नसरीन शेख उसी इकबाल खान सूरी की प्रेमिका है और उसकी सिक्योरिटी के इंतजाम भी देखती है और अब हिन्दुस्तान में खुले आम घूम रही है।
देवराज चौहान ठगा-सा बैठा कामनी को देखता रहा जो कि उसके देखते-ही-देखते एयरपोर्ट की इमारत में प्रवेश कर गई थी। अजीब-से भाव छाए थे देवराज चौहान के चेहरे पर। क्या हिन्दुस्तान सरकार को कामनी के इंडिया आने की खबर नहीं लगी? वो आराम से आई और चली भी गई।
तभी ट्रैफिक पुलिस वाला पास पहुंचा तो उसकी सोचें टूटी।
“चलो यहां से।” वो कह उठा।
देवराज चौहान ने कार स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि तीन दिन उसने इकबाल खान सूरी की प्रेमिका कामनी के साथ बिताए हैं। उसे ध्यान आने लगा कि एक बार टी.वी. में इकबाल खान की प्रेमिका कामनी के बारे में सुना था। ये करीब दो-तीन साल पहले की बात थी।
और वो अनजाने में उसी कामनी की सहायता में लग रहा। उसकी जान बचाई उसने। जबकि अगर उसे हकीकत पता होती तो वो कभी भी कामनी को बचाने की चेष्टा न करता...। इन्हीं सोचों में उलझे देवराज चौहान कार को एयरपोर्ट से बाहर ले आया था।
कामनी का चेहरा बार-बार उसकी आंखों के सामने नाच रहा था। वो सच में खतरनाक थी। सिर्फ एक गोली में उसने, पीछे लगे हत्यारों की बाजी पलट दी थी। वो बाबा रतनगढ़िया के भेजे हत्यारे थे। बाबा रतनगढ़िया जो कि आज मुम्बई अंडरवर्ल्ड में अपना नाम रखता था। खतरनाक था वो अनजाने में वो अंडरवर्ल्ड के बड़े दादाओं के मामले में आ फंसा था परंतु उसके लिए अब ये ही काफी था कि वो खामोशी से मामले के बाहर भी आ गया था।
तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा।
सोचों से बाहर निकलकर देवराज चौहान ने कॉल रिसीव की। दूसरी तरफ जगमोहन था।
“कामनी दुबई गई है ना?” उधर से जगमोहन ने कहा –“तभी तो वो एयरपोर्ट पर आई।”
देवराज चौहान बुरी तरह चौंका।
जगमोहन को ये सब बातें कैसे पता चली?
“क्या-तुम-तुम...।”
“दो रातें और तीन दिन तुमने उसके साथ बिताए। तुम्हें हैरानी हो रही होगी कि मुझे ये सब कैसे पता चला?”
“हां।” देवराज चौहान के होंठों से निकला। उसका दिमाग हवा में उड़ रहा था।
“दस मिनट पहले ही मामा जी आए हैं। वो पहले भी आए थे। उन्हीं से।”
“कौन मामा जी?”
“मार्शल।”
देवराज चौहान कान से फोन लगाए कार ड्राइव करता रह गया। उसके होंठों से कुछ भी नहीं निकला। मार्शल उसके बंगले पर? वो कामनी के बारे में खबर रखता है, जबकि वो तो सोच रहा था कि भारत सरकार की एजेंसियों को कामनी के आने-जाने की खबर नहीं हो सकी।
“मार्शल का नाम सुनते ही चुप क्यों हो गए?” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
देवराज चौहान संभाला।
“मार्शल क्या कहता है?” देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
“आ जाओ, तुम्हारे इंतजार में बैठा...।”
“वो अगर मेरा सम्बंध इकबाल खान सूरी से समझता है तो उसे समझा दो कि...।”
“ये बात नहीं है।”
“तो?”
“काम लेकर आया है हमारे लिए। पर अभी बताया कुछ नहीं। कहता है देवराज चौहान के सामने बताऊंगा।”
“मार्शल मुझ पर नजर रख रहा था?”
“हां वो...रुको...मार्शल मुझे मना कर रहा है बात न करूं और तुम्हें पहुंचने को कहूं।”
“मैं आ रहा हूं।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
सिर घूमा हुआ था देवराज चौहान का।
अभी-अभी उसने शुक्र किया था कि इकबाल खान सूरी की प्रेमिका कामनी से जान छूटी और किसी को पता नहीं चला कि वो कामनी के साथ था, परंतु मार्शल को पता था कि वो कामनी के साथ दो रातें और तीन दिन बिताकर आया है। मार्शल बंगले पर था। ये बात अपने आप में ही खतरे की तरफ इशारा करती थी क्योंकि मार्शल जैसा इंसान कहीं पर भी बिना वजह नहीं जाता। वो समझ नहीं पा रहा था कि मार्शल को ऐसा क्या काम पड़ गया, जबकि अभी ‘मैं पाकिस्तानी’ में मार्शल का काम निबटाया था।
☐☐☐
देवराज चौहान बंगले पर पहुंचा।
मार्शल और जगमोहन को मौजूद पाया।
मार्शल उसे देखकर मुस्कराया और कह उठा।
“अगर कोई जान ले कि तुमने कुछ दिन इकबाल खान सूरी की प्रेमिका के साथ बिताए हैं तो हल्ला मच जाए। सुनने वाले फौरन तुम्हारा सम्बंध इकबाल खान सूरी से जोड़ देंगे कि तुम उसके लिए काम करते हो।”
“ऐसा कुछ नहीं है मार्शल।” देवराज चौहान परेशान-सा कह उठा –“मैं तो ये भी नहीं जानता था कि वो कौन है उसका नाम ही जानता था। उसने एयरपोर्ट पर पहुंचकर अपनी हकीकत बताई।”
“मेरे एजेंट शुरू से इस मामले पर निगाह रखे थे और हम जानते हैं कि इकबाल खान सूरी से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं है।”
देवराज चौहान सोफे पर जा बैठा।
“मेरे एजेंटों ने बताया कि रास्ते में पीछे लगी कार के ड्राइवर पर कामनी ने गोली चलाई। उस दौरान तुम कार चला रहे थे। उस कार में वो ही लोग थे जो कामनी की हत्या करना चाहते थे। उनसे ही तुम कामनी को बचा रहे थे।”
“तुम्हें कैसे पता?”
“मेरे एजेंट तब से ही कामनी पर नजर रखे थे जब वो मुम्बई पहुंची थी। उसकी जान लेने की कोशिश के पीछे अंडरवर्ल्ड डॉन बाबा रतनगढ़िया का हाथ रहा।” मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम तो सब जानते हो।”
“ये मेरा मामला था। मेरे लोग कामनी पर नजर रखे थे कि तुम बीच में आ गए। अगर तुम बीच में न आते तो शायद कामनी उसी दिन, सूरत में मारी जाती। तुमने उसे क्यों बचाया देवराज चौहान?”
“मैंने उसे शरीफ लड़की समझकर बचाया। देखने पर वो शरीफ ही लगती है।” देवराज चौहान बोला।
“वो बहुत खतरनाक है।”
“इस बात का एहसास हो चुका है मुझे।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“दो रातें और तीन दिन तुम उससे क्या बातें करते रहे?” मार्शल ने पूछा।
“मैंने बताया न, एक घंटा पहले एयरपोर्ट पर उसने मुझे अपनी हकीकत बताई।”
“सफाई मत दो। मैंने पूछा है उसके साथ बिताए वक्त में तुम लोग क्या बातें करते रहे?”
देवराज चौहान ने बताया।
सब कुछ बताया।
मार्शल ने चेहरे पर गम्भीर भाव समेटे सब कुछ सुना।
देवराज चौहान के खामोश होते ही मार्शल बोला।
“तुम हाथ-मुंह धो लो। तुमसे बात करनी है मुझे।”
“कैसी बात?”
“तुम्हें मेरा काम करना होगा।”
“अभी तो ‘मैं पाकिस्तानी’ में मैं तुम्हारा काम करके हटा...।”
“मेरे मामले में तुमने ही दखल दिया है। बेशक अनजाने में सही। परंतु कामनी के साथ तुम्हारी इस तरह से पहचान हो जाना मेरे मिशन के लिए बहुत फायदेमंद है। ये ही वजह है कि मैंने तुम्हें इस काम में लेने की सोची और योजना भी तैयार है मेरी। मेरे एजेंट तुम्हारे इंतजार में दुबई और पाकिस्तान में तैयार हो चुके हैं।”
“क्या मतलब?” जगमोहन के होंठों से निकला –“तुम हमें दुबई और पाकिस्तान भेज रहे हो।”
“हां।”
“बकवास मत करो।” जगमोहन भड़क उठा –“हम तुम्हारा कोई काम नहीं करने वाले। तुम कौन होते हो हमारे बारे में फैसला करने वाले कि हम तुम्हारा काम करें। नौकर नहीं हैं तुम्हारे जो...।”
“ये काम तो करना ही पड़ेगा।” मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्यों?” जगमोहन का चेहरा गुस्से से भर उठा।
“क्योंकि देवराज चौहान ही मेरे काम में आ पहुंचा...।”
“हम तुम्हारा काम नहीं करेंगे।” जगमोहन ने दृढ़ स्वर में कहा।
एकाएक मार्शल मुस्करा पड़ा।
“कम-से-कम सुन तो सकते हो कि मैं क्या कहना चाहता हूं।”
जगमोहन ने उखड़ी निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“हमें मार्शल की बात सुन लेनी चाहिए जगमोहन।” देवराज चौहान बोला।
“लेकिन हम काम नहीं करेंगे इसका।” जगमोहन तीखे स्वर में कहा।
मार्शल के होंठों पर शांत मुस्कान थी।
“देखते हैं। पहले ये तो जान लो कि ये कहना क्या चाहता है। तुम कॉफी बना लो।” कहने के साथ ही देवराज चौहान बंगले के भीतर की तरफ बढ़ गया।
जगमोहन ने खा जाने वाली निगाहों से मार्शल को देखा और वहां से चला गया।
मार्शल चेहरे पर गम्भीरता समेटे, कमर पर हाथ बांधे टहलने लगा।
☐☐☐
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।
मार्शल के हाथ में कॉफी का प्याला थमा था।
जगमोहन की कॉफी टेबल पर पड़ी थी। तीनों सोफे पर बैठे थे, उनके बीच गहरी खामोशी थी।
“अब तुम दोनों ये तो समझ ही चुके हो कि ये मामला इकबाल खान सूरी वे वास्ता रखता है। जो कि कभी मुम्बई अंडरवर्ल्ड का जाना पहचाना नाम था, परंतु मुम्बई में उसने ऐसी तबाही मचाई कि उसे दुबई भागना पड़ा।” मार्शल ने खामोशी को तोड़ते हुए गम्भीर स्वर में कहा –“तुम इकबाल खान सूरी के बारे में क्या जानते हो?”
“उतना ही, जितना कि बाकी लोग जानते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
मार्शल कुछ कहने लगा कि जगमोहन उखड़े स्वर में बोला।
“मैं कुछ कहूं?”
“क्या?” मार्शल ने उसे देखा।
“मैं पहले भी कई बार कह चुका हूं और आज भी कह रहा हूं तुम कमीने और घटिया इंसान हो।”
मार्शल ने मुस्कराकर, जगमोहन को देखा।
‘डेथ वारंट’ में तुमने तगड़ी कमीनगी दिखाई। ‘मैं पाकिस्तानी’ में भी तुमने कोई कसर नहीं छोड़ी। अब फिर हमारे पीछे आ पड़े हो और हमें पाकिस्तान और दुबई भेजने की सोचे बैठे हो, हमसे पूछा तक नहीं। तुम हमसे अपने एजेंटों की तरह बात कर रहे हो। लेकिन तुम भूल में हो कि हर बार हम तुम्हारी बात मान जाएंगे या तुम हमें किसी तरह फंसा लोगे।”
“तुम हमेशा मेरे से नाराज क्यों रहते हो?” मार्शल बोला।
“क्योंकि तुम महा कमीने इंसान हो। हमें हर बार मौत के मुंह में फेंककर खुद दूर खड़े तमाशा देखते रहते हो और...।”
“ऐसा कुछ नहीं...।”
“क्या पिछली दोनों बार ऐसा नहीं हुआ क्या?”
“वो सिर्फ इत्तेफाक था कि दोनों बार...।” मार्शल ने कहना चाहा।
“वो इत्तेफाक क्या तीसरी बार नहीं हो सकता।” जगमोहन उखड़े अंदाज में बोला फिर देवराज चौहान से कहा –“ये हमें दुबई और पाकिस्तान भेजने का इरादा रखता है। पराए देशों में ढेरों अंजाने खतरे हम पर...।”
“मेरी बात तो सुन लो।” मार्शल मुस्कराया।
“क्या मैं गलत कह रहा हूं?”
“हां।”
“खतरे नहीं आएंगे?”
“इस बार तुम दोनों को ऐसा काम करना होगा कि खतरा दूर ही रहेगा।”
“तुम इतने ज्यादा कमीने और मक्कार हो कि अपने काम की खातिर कुछ भी कर सकते हो। इकबाल खान सूरी से वास्ता रखता काम है और कहते हो कि खतरा नहीं है। कौन मानेगा तेरी बात?”
“मेरी बात सुनोगे तो समझोगे कि मैं जो कह रहा हूं वो सही है।”
“तुम तो...।”
“जगमोहन।” देवराज चौहान कह उठा –“इसकी बात सुन लो।”
जगमोहन ने होंठ भींचकर मुंह घुमा लिया।
मार्शल ने कॉफी का घूंट भरा।
देवराज चौहान की निगाह मार्शल पर थी।
“मैं शुरू से बात शुरू करता हूं। सबसे पहले इकबाल खान सूरी को बताता हूं कि वो अंडरवर्ल्ड में महत्त्वपूर्ण हिस्सा कैसे बना। इसमें उसकी कुछ व्यक्तिगत बातें भी हैं।” मार्शल ने कहा –“इकबाल खान मुम्बई के साधारण-से मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ था। जब ढाई साल का था तो हाजी अली की दरगाह पर वो परिवार सहित गया और वहां इकबाल खान गुम हो गया और उस भीड़ में इकबाल खान राकेश नाथ सूरी नाम के व्यक्ति को मिल गया सूरी ने बहुत कोशिश की कि उस बच्चे को उसके परिवार से मिला दूं परंतु उसकी कोशिश कामयाब नहीं हो सकी और इकबाल खान को वो अपने साथ ले गया। ढाई साल का इकबाल खान सिर्फ अपना नाम ही बोल पाता था। सूरी के परिवार में उसके दो लड़के और पत्नी थी। इकबाल खान भी उनके बीच रहकर पलने लगा। सूरी ने उसे स्कूल में भी डाल दिया। सूरी छोटा-सा बिजनेस मैन था। परंतु जबसे इकबाल खान ने उसके घर में कदम रखा उसका बिजनेस बढ़ने लगा। इकबाल खान को सूरी अपने लिए लक्की मानने लगा। यूं भी वो इकबाल खान को अपने बेटों के बराबर प्यार करता था। बाकी परिवार वाले भी उसे प्यार से बच्चों की तरह रखते थे।” जगमोहन की निगाह भी अब मार्शल पर जा टिकी थी।
“अगले दो सालों में सूरी पैसे वाला आदमी बन गया। इकबाल खान आने से पहले सूरी का सिर्फ काम ही चलता था, परंतु अब वो पैसे से खेलने लगा था। इकबाल खान स्कूल में पढ़ने जाता था। सूरी की जिंदगी बढ़िया हो गई। पैसा आ जाने से वो नए-नए कामों में हाथ डालने लगा और उसने ड्रग्स का काम शुरू कर दिया। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से ड्रग्स मंगवाता और हिन्दुस्तान में भारी मुनाफे पर बेचता। विदेशों में भी ड्रग्स भेजता। इस तरह राकेश नाथ सूरी के कदम अंडरवर्ल्ड में पड़ गए, जो कि इकबाल खान के अपराधों की दुनिया की बुनियाद थी।”
मार्शल के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।
“इकबाल खान जब आठ साल का हुआ तो उसे उसका पिता मिल गया, जो कि सूरी की ड्रग्स को लाने, ले जाने का काम करता था। उसने अपने बेटे इकबाल खान को पहचान लिया था। परंतु तब तक सूरी को उससे बेटे की तरह प्यार हो गया था। दूसरे की औलाद लौटानी तो थी ही, सूरी ने इच्छा जताई कि इकबाल खान अपने नाम के आगे सूरी लगाए, ताकि ये रिश्ता इकबाल खान को हमेशा याद रहे। इकबाल खान के पिता ने बात मान ली, इस तरह इकबाल खान, इकबाल खान सूरी बन गया। इकबाल खान के जाने के बाद, सूरी के काले धंधे बढ़ते चले गए।”
मार्शल कहते-कहते रुका।
देवराज चौहान और जगमोहन ध्यान से उसकी बातों को सुन रहे थे। इकबाल खान के बारे में ये जानकारी उनके लिए नई थी। ये सब उन्होंने पहले नहीं सुना था।
“सालों बाद सूरी अंडरवर्ल्ड में जाना-पहचाना नाम बन गया। उसके धंधे काफी फैल चुके थे। उसके दोनों बेटे अमेरिका में सैटल हो चुके थे। तभी सत्रह साल का इकबाल खान सूरी, सूरी के पास आया और उसके साथ काम करने की इच्छा जाहिर की। सूरी को उस वक्त विश्वसनीय आदमी की सख्त जरूरत थी। वो ये भी सोचता था कि इस धंधे में जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, अगर उसे कुछ हो गया तो उसके धंधों को कौन संभालेगा, ऐसे में सूरी ने खुशी-खुशी इकबाल खान सूरी को अपने साथ ले लिया। इकबाल खान को तो सूरी वैसे भी पसंद करता था। अपनी औलाद की तरह मानता था। सूरी उसे धंधा सिखाने लगा। अगले दो सालों में इकबाल खान, सूरी की आशा से कहीं ज्यादा धंधों में अपने पैर जमाता चला गया। सूरी को बहुत अच्छा लगा इकबाल खान की कामयाबी देखकर, उसने इकबाल खान को अपना वारिस घोषित कर दिया। बीस का होते-होते इकबाल खान का नाम अंडरवर्ल्ड में सुनाई देने लगा। सूरी से सब कुछ सीख चुका था इकबाल खान। वो सूरी को पीछे और खुद को हर काम में आगे रखने लगा। अब वो कामों के बारे में सूरी से राय भी नहीं लेता था और खुद ही फैसले करने लगा था। धंधा चलाने लगा। सूरी को उस पर पूरा भरोसा था। इकबाल बीस का था और उसे धंधे में तीन साल हो गए थे। वो खतरनाक माना जाने लगा था। सूरी के सारे धंधों पर अपना कंट्रोल कर चुका था। ऐसे में एक दिन सड़क पर कार में जाते सूरी को दो लड़कों ने गोलियों से भून दिया।”
“दो लड़के?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
“आज तक पता नहीं चल सका कि सूरी को मारने वाले दो लड़के कौन थे। उस समय अंडरवर्ल्ड में जो सुगबुगाहट उठी वो ये थी कि सूरी को इकबाल खान ने ही रास्ते से हटाया है। परंतु ऐसी बातें, बातें बन कर ही रह गईं, क्योंकि सच सामने नहीं आ सका और इकबाल खान सूरी, सूरी के धंधों का मालिक बन बैठा। अपने नाम के आगे वो सूरी लगाता था, ताकि उसे हर कोई सूरी का वारिस समझे। सूरी की मौत के बाद, वारिस को लेकर, सूरी के खास आदमी ब्यावर पालेकर ने पंगा खड़ा किया तो एक दिन उसे भी किसी ने गोलियों से भून दिया। उसके बाद इकबाल खान सूरी के खिलाफ किसी ने आवाज नहीं उठाई और बीस साल के इकबाल खान सूरी के अपराधों का सफर शुरू हो गया। वो जवान था, हिम्मती था, अंडरवर्ल्ड में नाम कमाना चाहता था, उसके पास ताकत थी, पैसा था। अपने सफर में उसने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ ही सालों में अंडरवर्ल्ड का बड़ा बन गया। पंद्रह सालों तक पूरी ताकत के साथ इकबाल खान सूरी ने अंडरवर्ल्ड पर राज किया और राजा बन कर रहा।”
मार्शल ने खामोश होकर दोनों पर निगाह मारी।
“फिर?” जगमोहन ने कहा।
“जब इकबाल खान सूरी पैंतीस बरस का था तो अंडरवर्ल्ड में दूसरी ताकतें सिर उठाने लगी, जो कि इकबाल खान सूरी का राज खत्म करके अपना पंचम लहराना चाहती थी। इन्हीं में से एक ताकत थी ओम भोंसले। ओम भोंसले मुम्बई की झोपड़पट्टी से उठकर अंडरवर्ल्ड में आया था और ख्वाब लिए था कि उसे, इकबाल खान सूरी की जगह लेनी है। कई सालों की मेहनत के बाद वो अंडरवर्ल्ड में पांव जमा चुका था और धीरे-धीरे इकबाल खान सूरी से मुकाबले को भी तैयार करता रहा। वो अपने आदमियों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखता था, इसलिए उसके आदमी उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। सबसे पहले ओम भोंसले ने मुम्बई की उस पुलिस को तोड़ा जो इकबाल खान सूरी की बराबर सहायता करती थी। इन पुलिस वालों के पास नोटों से भरे ब्रीफकेस पहुंचने लगे। काम सिर्फ ये था कि जब ओम भोंसले कहे, तब उन्हें, इकबाल खान सूरी की तरफ से सहायता के हाथों को खींचना होगा। ओम भोंसले चुपचाप पूरी योजना से चल रहा था। पुलिस वालों के पास ओम भोंसले की तरफ से बार-बार नोटों के भरे ब्रीफकेस पहुंचने लगे। इस प्रकार ओम भोंसले ने पुलिस को तोड़ा और अपने आदमियों के दल भेज दिए इकबाल खान सूरी के ठिकानों पर हमला करने के लिए एक ही दिन में उसने इकबाल खान के पंद्रह ठिकाने गोलियों और बमों से तबाह कर दिए। चालीस-पचास लोग इकबाल खान के मरे। ओम भोंसले के इशारे पर पुलिस इकबाल खान सूरी को तलाश करने लगी। इस कत्लेआम और तबाही का जिम्मेवार इकबाल खान सूरी को माना गया और कानून इकबाल खान सूरी के खिलाफ हो गया। चूंकि ये सब अचानक हुआ, ऐसे में इकबाल खान सूरी को अंडरग्राउंड हो जाना पड़ा। इस प्रकार ओम भोंसले और इकबाल खान सूरी में जंग छिड़ गई। परंतु पुलिस पर ओम भोंसले के भेजे नोटों से भरे ब्रीफकेस का बोझ था, जो कि वो अब भी भेज रहा था। कानून को अपने खिलाफ पाकर इकबाल खान सूरी कमजोर पड़ने लगा।”
“फिर?” जगमोहन बोला।
“ओम भोंसले ने अपनी चालों से इकबाल खान सूरी को हरा दिया। इकबाल बान सूरी ने ओम भोंसले का भरपूर जवाब दिया परंतु जहां भी ओम भोंसले कमजोर पड़ता, पुलिस को आगे कर देता। इकबाल खान सूरी की सबसे बड़ी गलती या मजबूरी ये रही कि उसके आदमियों के हाथों बारह-पंद्रह पुलिस वाले मारे गए। ऐसे में पुलिस वाले गुस्से से भर उठे और उन्होंने इकबाल खान सूरी को जड़ से उखाड़ फेंकने की मुहिम चला दी। ये देखकर ओम भोंसले आराम से बैठ गया कि अब इकबाल खान सूरी बचने वाला नहीं, जो कि सही बात भी थी। पूरा पुलिस डिपार्टमेंट इकबाल खान सूरी के पीछे था। तभी पुलिस को एक जगह इकबाल खान सूरी के मौजूद होने की खबर मिली आनन-फानन पुलिस के डेढ़ सौ हथियारबंद जवान उस जगह पर जा पहुंचे जहां इकबाल खान सूरी के होने की खबर थी। परंतु ये सब इकबाल खान सूरी की पागलपन से भरी चाल थी। वो हताश हो चुका था इन हालातों से और जानता था कि अब वो कभी खड़ा नहीं हो पाएगा अंडरवर्ल्ड में। क्योंकि उसके आदमियों के हाथों पंद्रह से ऊपर पुलिस वाले मारे जा चुके थे। और कुछ न पाकर पैंतीस वर्ष के इकबाल खान सूरी ने इस झूठी खबर के बहाने, पुलिस वालों को एक जगह इकट्ठा किया, जहां कि उसने पहले ही बारूद बिछा दिया था। जब पुलिस वाले वहां पहुंचे तो उन्हें बारूद से उड़ा दिया गया। इस दिन अड़सठ पुलिस वाले मारे गए। यानी कि करीब चौरासी-पिचासी पुलिस वालों का हत्यारा बन गया इकबाल खान सूरी। ओम भोंसले ने उसकी जिंदगी पलटाकर रख दी। पिचासी पुलिस वालों को इस तरह मार देने से हिन्दुस्तान में कोहराम मच गया। हर पुलिस वाला पागल हुआ उसे ढूंढ़ रहा था कि तभी खबर आई कि दो दिन पहले पानी के रास्ते इकबाल खान सूरी दुबई जा पहुंचा है। दुबई की सरकार के साथ हिन्दुस्तान की ऐसी कोई संधि नहीं है कि वहां से हिन्दुस्तान भगोड़े अपराधी को पकड़ सके। हिन्दुस्तान में इकबाल खान सूरी को पकड़ने या मार देने की कोशिशें होने लगी। परंतु दुबई में अंडरग्राउंड हुआ वो सुरक्षित रहा। उसे मोस्ट वांटेड अपराधियों की श्रेणी में डाल दिया गया और देखते ही मार देने के आदेश जारी कर दिए गए। परंतु सब जानते थे कि वो हिन्दुस्तान आने वाला नहीं। पिचासी पुलिस वालों का हत्यारा, हिन्दुस्तान में पांव रखने का भी हौसला नहीं करेगा। चंद महीने बीते कि मुम्बई में फिर से इकबाल खान सूरी का नाम गूंजने लगा। दुबई में बैठे-बैठे उसने, मुम्बई में अपना गिरोह फिर से तैयार कर लिया। अपने बिखरे आदमियों को इकट्ठा किया और उसके नाम पर फिर से काम होने लगे। फिर एक दिन ओम भोंसले को सरेआम उसके ठिकाने पर पहुंचकर कुछ लड़कों ने उसे गोलियों से भून दिया। ये इकबाल खान सूरी का बदला था उससे। अपने सबसे खास दुश्मन को उसने खत्म कर दिया।”
मार्शल चुप हुआ।
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह उस पर थी।
मार्शल पुनः गम्भीर स्वर में कह उठा।
“वक्त बीतने लगा। सालों-साल बीतने लगे। इकबाल खान सूरी का नाम अक्सर हिन्दुस्तान के अखबारों में आता रहा। उसे पकड़ने के असफल प्लान बनते रहे। दुबई के कानून के मुताबिक, हिन्दुस्तान की पुलिस दुबई जाकर इकबाल खान सूरी को नहीं पकड़ सकती थी। दुबई इकबाल खान सूरी का घर बन गया। पांच सालों में, हिन्दुस्तान में उसे ‘दुबई का आका’ कहने लगे। क्योंकि दुबई में बैठे-बैठे वो मुम्बई के अंडरवर्ल्ड को संभाल रहा था। पुलिस परेशान थी कि उसे कैसे खत्म किया जाए। सरकार को भी वो हर हाल में चाहिए था क्योंकि पिचासी पुलिस वालों की हत्या उसके सिर पर थी। आए दिन अखबारों और टी.वी. न्यूज चैनलों में असफलता की बात कही जाने लगी कि सरकार उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। फिर खबर लगी थी कि इकबाल खान सूरी हिन्दुस्तान आया था चुपके से नेपाल के रास्ते। अपने आदमियों का हौसला बढ़ाने। तब तक वो चालीस साल का हो चुका था। उसका खौफ हिन्दुस्तान में अपनी जगह कायम था। उसका मामला इंटेलिजेंस ब्यूरो के पास था परंतु आई.बी. भी उस तक नहीं पहुंच सकी। अब कुछ ऐसे ही चलता रहा और वो पैंतालीस साल का हो गया। दस साल बीत गए। बात अगर यहीं तक ही रहती तो, सब कुछ ऐसे ही चलता रहता, परंतु अब इकबाल खान सूरी ने पाकिस्तान की सरकार और वहां के आतंकवादियों से हाथ मिला लिया है। उसके पांव पाकिस्तान में जम चुके हैं। पाकिस्तान की सरकार उसे भरपूर सुरक्षा और सुविधाएं दे रही है और वो वहां से ड्रग्स के बिजनेस को संभाले संसार-भर में ड्रग्स भेजकर मोटा पैसा कमाता है। सैंकड़ों-करोड़ों रुपया उसने पाकिस्तान की सरकार को दिया है। वहां पर बड़े-बड़े बिजनेस फैलाकर वो शक्तिशाली हो गया है। हाल ही में जो मुम्बई पर हमला हुआ, उसमें भी उसका हाथ माना जा रहा है। वो पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों को बताता है कि हिन्दुस्तान को कमजोर करने के लिए कहां-कहां पर हमला करना चाहिए। सबसे बड़ी बात तो ये है कि इकबाल खान सूरी को शरण देकर पाकिस्तान हमारे देश को नीचा दिखा रहा है। उसने हमारे पिचासी पुलिस वालों की जान ली है और हम उस तक कभी पहुंच भी नहीं पाए। ये सच में बुरी बात है। पूरा हिन्दुस्तान देखता है कि इकबाल खान सूरी कभी दुबई में होता है तो कभी पाकिस्तान में, परंतु हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे। हद तो अब इस बात की हो गई कि वो पाकिस्तान के साथ मिलकर, हिन्दुस्तान के खिलाफ साजिशें रच रहा है। ये ही शर्म की बात है हमारे लिए। छ: महीने पहले सरकार ने मुझे ये मामला सौंपा। इन छ: महीनों में मैंने इकबाल खान सूरी पर पूरी स्टडी की। दुबई स्थित अपने एजेंटों से, पाकिस्तान स्थित एजेंटों से इकबाल खान की सारी जानकारी इकट्ठी की। मैं कोई योजना बनाना चाहता था। इकबाल खान सूरी के लिए
कि तभी दुबई स्थित मेरे एजेंट कमल चावला ने मुझे खबर दी कि इकबाल खान सूरी की प्रेमिका कामनी उर्फ नसरीन शेख मुम्बई आ रही है। पैंतालीस वर्ष के इकबाल खान सूरी ने दस साल पहले कामनी को मुम्बई से दुबई बुलवा लिया था। टी.वी. में उसके विज्ञापन देखकर, इकबाल खान ने उसे पसंद किया था। परंतु आज की तारीख में कामनी, उसकी सबसे खास बनी हुई है और उसकी सुरक्षा के कामों को भी संभालती है। वो खतरनाक है। शायद तुमने ये बात महसूस कर ली होगी देवराज चौहान।”
“कह नहीं सकता।” देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा –“मुम्बई आते वक्त तो उसने पीछे लगी कार पर शानदार निशाना लिया था, परंतु उससे एक रात पहले जब वो चुपके से कॉटेज से निकल गई थी, बाद में जब लौटी तो घबराई हुई थी और भीतर आते ही उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया। मैंने ही उन दोनों का मुकाबला किया। अगर उसमें दम-खम होता तो वो खुद को कमरे में न बंद कर लेती। उनसे निबटने में मेरा साथ देती।”
मार्शल ने कुछ नहीं कहा।
परंतु जगमोहन बोला।
“पीछे लगे उन दोनों हत्यारों के पास रिवॉल्वरें थी?”
“हां।”
“उसके पास रिवॉल्वर नहीं थी?”
“शायद नहीं।”
“तो तब ये ही वजह उसके घबरा जाने की थी कि रात के अंधेरे में हत्यारे रिवॉल्वरें लिए उसके पीछे थे और उसके पास रिवॉल्वर नहीं थी। रही बात कि कॉटेज पर आकर उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया तो ऐसा दिखावा करना उसकी मजबूरी थी, क्योंकि तुम्हारे सामने वो साधारण लड़की बनी हुई थी। अगर तब वो कुछ करती तो उसके साधारण लड़की न होने का भेद खुल जाता। इसलिए उसने तुम्हारा साथ नहीं दिया लड़ाई में।”
“ये सम्भव है।”
“वो बेहद खतरनाक है।” मार्शल कह उठा –“इकबाल खान सूरी की खास वो यूं ही नहीं बनी। उसे खतरनाक बनाने में इकबाल खान का हाथ है। उसे यूरोप भेजा कि जूडो-कराटे सीख सके। ब्लैक बैल्ट हासिल की उसने और पाकिस्तान जाकर निशानेबाजी सीखी। वो तेज दिमाग की है और इकबाल खान सूरी का साथ पाकर वो खतरनाक बन गई।”
“तुम हमसे क्या चाहते हो?” देवराज चौहान बोला।
“कामनी यहां किस काम से आई, अभी तक समझ नहीं आया मुझे, जबकि मेरे आदमी उस पर बराबर नजर रखते रहे। वैसे वो मुम्बई में सड़क पर राह चलते तीन अलग-अलग आदमियों से कुछ-कुछ मिनटों के लिए मिली।
इसी प्रकार सूरत में दो अलग-अलग लोगों से मिली। वो पांचों लोग मेरे आदमियों की नजर में है। परंतु मेरे लिए सबसे अच्छी बात ये रही कि तुम इस मामले में आ गए। कामनी को लेकर मैंने कुछ और ही योजना बना रखी थी कि उसे अब दुबई नहीं जाने दूंगा। एयरपोर्ट पर उसके सामान से ड्रग्स की बरामदगी दिखाकर उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उस स्थिति में उससे सौदा किया जाता कि वो इकबाल खान सूरी को पकड़वाने या उसे शूट करने में हमारी मदद करे। परंतु जब तुम्हारे बारे में खबर मिली कि, सूरत में उस लड़की पर हमला हुआ और तुमने ऐन मौके पर आकर उसे बचा लिया तो मुझे अपनी योजना बदलनी पड़ी और नई योजना।”
“तुम सीधे-सीधे काम की बात पर क्यों नहीं आते?” जगमोहन कड़वे स्वर में बोला।
मार्शल ने मुस्कराकर जगमोहन को देखा और कह उठा।
“मेरे एजेंट दुबई और पाकिस्तान में सक्रिय हैं। यहां तक कि प्रभाकर पहले दुबई और अब चोरी-छिपे पाकिस्तान पहुंच चुका है।”
“प्रभाकर?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े।
“मेरा ऐसा बेहतरीन एजेंट जिसके साथ तुम दो बार काम कर चुके जगमोहन।”
“वो वास्तव में बेहतरीन है।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
मार्शल ने दोनों को देखकर सिर हिलाया फिर कह उठा।
“मैं चाहता हूं तुम दोनों इकबाल खान सूरी के ठिकाने का सही पता लगाओ कि वो कहां पर है। तुम दोनों को सिर्फ ये ही पता लगाना है और खबर प्रभाकर को दे देनी है, बस, ये ही काम है।”
“प्रभाकर क्या करेगा?” देवराज चौहान बोला।
“बाकी एजेंटों की सहायता से इकबाल खान सूरी को खत्म कर देगा।” मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।
“बहुत आसान काम है। मैं नहीं समझता कि तुम लोगों को ये काम करके कोई खतरा आएगा। इकबाल खान सूरी के ठिकाने का सही पता लगाकर सिर्फ प्रभाकर को बताना है और तुम लोगों का काम खत्म। इकबाल खान सूरी की प्रेमिका और उसकी सुरक्षा का ध्यान रखने वाली कामनी उर्फ नसरीन शेख से तुम्हारी पहचान हो चुकी है देवराज चौहान। ये अच्छी बात रही और तुम चाहो तो इस बात का फायदा भी उठा सकते हो इस काम में।”
“तुम्हारा मतलब कि कामनी मुझे इकबाल खान सूरी की सारी खबर दे देगी।”
मार्शल ने देवराज चौहान को देखकर गम्भीर स्वर में कहा।
“ये तुम पर निर्भर है। क्या मालूम उससे तुम्हारी पहचान किस हद तक हुई है।”
“गलत मत सोचो। तुम इतना कह सकते हो कि हममें नई पहचान हुई है।” देवराज चौहान बोला।
“दोस्तों की तरह?”
“पूरी तरह तो ये बात नहीं कह सकता। लेकिन हमारे बीच हालात ठीक ही रहे।”
“तुमने उसकी जान बचाई, ये बात वो मानती है?”
“हां।”
“इतना ही काफी है कि इस बात को मानती है। अगर तुम समझदारी से चलो तो उससे जान सकते हो कि...।”
“वो मुझे मजबूत लड़की लगी।”
“वो मजबूत है। चालाक है, फुर्तीली है। उसने तुम्हें अंत तक महसूस नहीं होने दिया कि वो असल में क्या है। तुम्हें भी इस बात का शक नहीं हुआ कि वो कुछ हो सकती है।” मार्शल ने पूछा।
“नहीं हुआ।”
“वो जानती है कि तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो।”
“वो मुझे सुरेंद्र पाल के नाम से जानती है।”
“वो तुम्हारी हकीकत भी जान ले तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कम-से-कम तुम पुलिस के आदमी नहीं हो। हिन्दुस्तान सरकार के आदमी नहीं हो। इस काम के लिए तुम्हारा डकैती मास्टर होना प्लस प्वाइंट है। बोलो, मेरा ये आसान-सा काम करना चाहोगे? इकबाल खान सूरी का सही ठिकाना, मालूम करके, पाकिस्तान में मौजूद प्रभाकर को...।”
“ये काम तो तुम्हारे एजेंट भी कर...।”
“मेरे एजेंट दुबई में ताजा-ताजा धोखा खा चुके हैं। वो इकबाल खान सूरी के काफी करीब पहुंचने जा रहे थे कि अचानक ही इकबाल खान सूरी गायब हो गया। इस बात को महीना हो गया परंतु वो इकबाल खान सूरी की कोई खबर हासिल नहीं कर पाए कि वो कहां पर है। ये भी पता नहीं चल पाया कि उसे किसी प्रकार का शक हो गया था तब वो गायब हुआ या कहीं जाने का प्रोग्राम उसका पहले से ही था। मेरे एजेंट दुबई में इन बातों में उलझे पड़े थे कि तभी कामनी के मुम्बई आने की खबर आई। उधर मुझे लगा कि हो सकता है इकबाल खान सूरी पाकिस्तान न पहुंच गया हो। पाकिस्तान में मेरे ढेरों एजेंट काम कर रहे हैं, सबको इकबाल सूरी के बारे में खबर देने को कहा गया, परंतु वो भी महीने भर से कोई खबर नहीं दे सके तो मैंने प्रभाकर के हवाले ये काम करके उसे दुबई भेज दिया। ये दस दिन पहले की बात है। इस वक्त प्रभाकर पाकिस्तान पहुंच चुका है, इकबाल खान सूरी की तलाश में। परंतु अब तुम इस मामले में आ गए, तुम्हारी कामनी से पहचान हो गई तो मुझे लगा कि तुमसे ये काम लेना बेहतरीन होगा। तुम कामनी की पहचान का फायदा उठा सकते हो।”
“हाल ही में अमेरिका ने भी पाकिस्तान में कुछ ऐसा किया है।” देवराज चौहान बोला। “हां। अपने दुश्मन आतंकवादी को ढूंढकर उसकी हत्या कर दी।” मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा –“सच बात तो ये है कि अमेरिका की इस हरकत से ही मुझे ऐसी योजना बनाने का ख्याल आया। वो पाकिस्तान में अपने दुश्मन को ढूंढकर उसे मार सकता है तो हम क्यों नहीं दुबई या पाकिस्तान में ऐसे मिशन को अंजाम दे सकते।”
चंद पलों के लिए वहां चुप्पी छा गई।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।
“इस काम में सबसे ज्यादा फायदा इस बात का मिलेगा देवराज चौहान कि कामनी से अच्छे माहौल में मुलाकात हो चुकी है तुम्हारी। और वो इस बात को भी मानती है कि तुमने उसकी जान बचाई।”
“वो इकबाल खान सूरी का खास है?”
“बेहद खास।”
“और तुम समझते हो कि वो मुझे इकबाल खान का ठिकाना बता देगी उस मुलाकात की खातिर।”
“ये तो तुम पर निर्भर है कि तुम कामनी को कैसे संभालते हो।”
“तुम गलत सोच रहे हो मार्शल। वो कभी नहीं बताएगी मुझे, इकबाल खान का ठिकाना।”
“ये तुम जानो।” मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा –“इस बार मेरा काम बहुत कम खतरे वाला है। इकबाल खान सूरी का ठिकाना मालूम करो और पाकिस्तान में मौजूद प्रभाकर को बता दो। प्रभाकर का फोन नम्बर तुम्हें मिल जाएगा। यहां से तुम दोनों दुबई जाओगे। वहां मेरे एजेंट तुम लोगों को मिलेंगे। जो जानकारी उनके पास होगी, तुम्हें बता देंगे। आगे तुमने देखना है कि काम कैसे करना है। इस सारे काम के बदले मैं तुम लोगों को एडवांस में मोटी रकम दूंगा।”
“कितनी?” जगमोहन के होंठों से निकला।
मार्शल ने मुस्कराकर जगमोहन को देखा।
“क्या खयाल है तुम्हारा।” जगमोहन बोला –“हम ये काम करेंगे नहीं?”
देवराज चौहान ने कश लेकर सिर हिलाया फिर बोला।
“इकबाल खान सूरी का पता लगाकर, प्रभाकर को बताना है। हम सकते हैं ये काम।”
“सुन लो मार्शल, सिर्फ इतना ही काम है।”
“इतना ही काम है।” मार्शल शराफत से बोला –“हिन्दुस्तान के लिए इकबाल खान सूरी को खत्म करना, नाक का सवाल बन गया है। वो पिचासी पुलिस वालों को हत्यारा है और अब पाकिस्तान के साथ मिलकर, हमारे देश के खिलाफ काम कर रहा है। अमेरिका ने हमें रास्ता दिखा दिया कि हम भी ऐसा कर सकते हैं।”
“लेकिन हमारा काम इतना ही है कि इकबाल खान सूरी को खोजकर, उसके ठिकाने के बारे में प्रभाकर को बताना। इसके अलावा मामले से हमारा कोई मतलब नहीं है।” जगमोहन ने जैसे बात पक्की की।
“तुम लोगों का इतना ही काम है।” मार्शल गम्भीर था –“दोनों मेरे साथ चलो।”
“कहां?”
“मेरे ठिकाने पर। वहां तुम लोगों के पासपोर्ट तैयार किए जाएंगे और कल की फ्लाइट से दुबई...।”
“पहले जरा नोटों की बात कर लें।” जगमोहन मुस्कराकर कह उठा –“नोट ले भी लूं। उसे ठिकाने भी लगा दूं। इस काम में शाम हो जाएगी। उसके बाद तुम्हारे काम शुरू होंगे।” वो उठते हुए बोला –“इधर आना जरा।”
“क्यों?” जबकि मार्शल सब समझ रहा था।
“नोटों की बात हो जाए।”
मार्शल और जगमोहन वहां से कई कदम दूर जाकर धीमे स्वर में बात करने लगे।
देवराज चौहान ने उन्हें देखा। कश लिया और नजरें घुमा ली। चेहरे पर सोचें नाच रही थी। वो गम्भीर था। आंखों के सामने कामनी का चेहरा नाच रहा था।
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