अगले दिन वाडेकर की आंख खुली। दो पल वो छत को देखता रहा, फिर आंखें बंद कर ली। सुबह के ग्यारह बज रहे थे। इस वक्त वो वर्ली के मध्यम दर्जे के होटल के एक कमरे में ठहरा हुआ था।

ए.सी.पी. चंपानेरकर से उसे अब भी खतरा महसूस हो रहा था। वाडेकर सोच रहा था कि वो पागल इंसान जो कर दे, वो ही कम है। चंपानेरकर ने उसे ठंडे दिमाग से, बहुत आराम के साथ, घेरा था कि वो कुछ नहीं कर सका था। सारी जमा-पूंजी चंपानेरकर ले उड़ा था। वो खाली हो गया था। कंगाल हो गया था। चंपानेरकर के खिलाफ वो कुछ नहीं कर सकता था। सच बात तो ये थी कि चंपानेरकर से उसे अभी भी डर-सा लग रहा था या फिर उसका डर वाडेकर के दिल में बैठ गया था।

कम-से-कम अब वाडेकर की इच्छा, चंपानेरकर के सामने पड़ने की नहीं थी। कभी-कभी वो सोचता कि चंपानेरकर ने उसकी जान बख्श दी, ये ही बहुत है।

परंतु अब उसके सामने सारी जिंदगी पड़ी थी और पैसा पास में नहीं था कोई धंधा जमाने के लिए। करोड़ रुपया उसने पार्टियों को देना है। अपना पैसा लेने के लिए, वो लोग उसे तलाश करेंगे। पैसा लिए बिना उसे आगे के लिये माल नहीं देंगे और लाख समझाने पर भी वो नहीं समझेंगे कि वो कंगाल हो गया है। ये ही सोचेंगे कि पैसा ना देने के लिए बहाने बना रहा है, मन में बेईमानी आ गई है। हो सकता है उसे शूट कर दें।

रात होटल के कमरे में पहुंचने के बाद उसने पेट भरकर पी थी। इतनी पी कि उसे होश नहीं रहा और बेसुध हो गया। खाना खाना तो दूर की बात थी। अपने बदले हालातों पर वो बहुत दुखी था।

वाडेकर ने आंखें खोली और उठ बैठा। रात पिए होने के निशान अभी तक चेहरे पर बाकी थे। उसने इंटरकॉम का रिसीवर उठाकर रूम सर्विस को कॉफी लाने को कहा, फिर बाथरूम में जाकर हाथ-मुंह धोया। वापस कमरे में आया और कुर्सी पर बैठ गया। इस वक्त वो समझ नहीं पा रहा था कि सोचे तो क्या सोचे? ये तो जानता था कि जिंदगी को नये सिरे से शुरू करना है, परंतु पैसा नहीं था पास में। बीस-तीस करोड़ था, जो कि हाथ से निकल गया। चंपानेरकर ले गया।

कुछ देर बाद वेटर आया।

वाडेकर ने दरवाजा खोला।

वेटर ट्रे में कॉफी के दो प्याले रखे हुए था। वाडेकर ने सोचा कि दूसरी कॉफी किसी दूसरे कमरे के लिए होगी। वो दोनों कॉफी रखकर जाने लगा तो वाडेकर कह उठा– “मैंने एक कॉफी के लिए कहा था...।”

“दूसरी कॉफी आपके दोस्त की है। आपके दोस्त दस बजे से ही होटल की लॉबी में बैठे आपके जगने का इंतजार कर रहे थे। उनके कहने पर ही मैं दूसरी कॉफी लाया। वो अभी आपके पास पहुंच जायेंगे।”

दोस्त?

वाडेकर के दिमाग में बिजली कौंधी।

चंपानेरकर होगा?

वाडेकर के होंठ भिंच गये कि अब आखिर चंपानेरकर उससे क्या चाहता है? मन में इच्छा जोर पकड़ने लगी कि चंपानेरकर को खत्म कर दे। उसकी बरबादी के पीछे चंपानेरकर ही तो है।

तभी कदमों की आहट पड़ी कानों में।

वाडेकर ने दरवाजे की तरफ देखा।

वहां देवराज चौहान आ खड़ा हुआ था।

वाडेकर की आंखें सिकुड़ी। उसने इस इंसान को पहले कभी नहीं देखा था।

देवराज चौहान मुस्कराया और कमरे में आ गया। टेबल पर से कॉफी का प्याला उठाते हुए कहा–

“कॉफी ले लो, ठंडी हो जायेगी... ।”

“कौन हो तुम?” वाडेकर के होंठ भिंच गये।

“दोस्त...!”

“मेरा कोई दोस्त नहीं है। फिर तुम्हें तो मैंने पहले कभी देखा ही नहीं है।”

“मैं तुम्हारा नया दोस्त हूं। आज से हमारी दोस्ती की नई शुरूआत होगी।” देवराज चौहान बोला।

“तुम हो कौन?”

“देवराज चौहान।”

“कौन देवराज चौहान?”

“डकैती मास्टर देवराज चौहान। ड्रग्स के धंधे में हो। मेरा नाम तो सुन रखा होगा?” देवराज चौहान मुस्कराया।

वाडेकर के माथे पर बल दिखने लगे। होंठ भिंच गये। देवराज चौहान को देखता रहा वो।

देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।

“सच-सच बताओ कि तुम कौन हो?” एकाएक वाडेकर गुर्रा उठा।

“डकैती मास्टर देवराज चौहान। मेरा चेहरा तुमने देख लिया है। शक हो तो पुलिस रिकार्ड से मेरी तस्वीर देख सकते हो।”

“मुझसे क्या चाहते हो?”

“तुम्हारा भला करने आया हूं...।”

“भला?”

“हां, वैसे आजकल कोई किसी का भला करता नहीं है। परंतु मैंने सोचा वाडेकर का भला कर दूं।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“ए.सी.पी. चंपानेरकर ने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया। पता चला कि उसने तुम्हें बुरी तरह बरबाद कर दिया।”

होंठ भींचे वाडेकर ने कॉफी का प्याला उठा लिया।

“किससे पता चली तुम्हें ये बात?”

“मेरे हाथ बहुत लम्बे हैं। फिर ये बातें मामूली हैं, पता चल जाती हैं। सुनने में आया कि तुम्हें जान बचानी भारी पड़ गई थी। रात तुम उस ए.सी.पी. की मेहरबानी से ही जिंदा बचे, वरना तुम तो गये थे...।”

“वो हरामजादा है।” वाडेकर गुर्राकर कह उठा –“घात लगाकर उसने मेरे गिर्द जाल बुना और मौका ही नहीं मिला बचने का। बुरी तरह घेर लिया था उसने। हरामी को जान से खत्म कर दूंगा मैं।”

“तुम बहुत हिम्मती बंदे हो। हैरानी है कि तुम चंपानेरकर के हाथों मात खा गये।”

“बोला तो, चालाकी से उसने मुझे घेरा। शायद वो कई दिन से इस पर काम कर रहा था।”

“तुम्हारी सारी जमा-पूंजी भी उसके हाथों में चली गई।”

वाडेकर ने खुंदक भरे ढंग से कॉफी का घूंट भरा।

“अब क्या करोगे?”

“ए.सी.पी. को कुत्ते की मौत मारूंगा।”

“आगे क्या होगा?” देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

वाडेकर देवराज चौहान को देखने लगा।

“तुम ए.सी.पी. को मारने की सोच रहे हो। इससे तुम और भी मुसीबत में फंस जाओगे। वो तेज पुलिस वाला है और उसे भी इस बात की आशा होगी कि तुम ऐसा कर सकते हो। क्या पता वो तुम पर नजर भी रखवा रहा हो।”

वाडेकर बेचैन हो उठा।

“मेरे ख्याल में तुम्हें अपने भविष्य को दोबारा बनाने के बारे में सोचना चाहिये...।”

वाडेकर ने एक ही सांस में कॉफी समाप्त कर दी।

देवराज चौहान ने उसे देखते हुए कॉफी का घूंट भरा।

“तुम देवराज चौहान, डकैती मास्टर हो?”

“शत-प्रतिशत...।”

“मेरे पास क्यों आये हो?”

“तुम्हें अब दौलत की जरूरत है और मुझे तुम जैसे हिम्मती आदमी की, जो मेरा साथ दे सके।”

“कैसा साथ?”

“मैं कुछ करना चाहता हूं। उससे तुम्हें करोड़ों का हिस्सा मिल सकता है। तुम फिर से अपने पांवों पर खड़े हो सकते हो, मेरा साथ देकर।”

“करना क्या होगा?”

“ये अभी नहीं बताऊंगा। मौके पर बताऊंगा। परंतु तुम्हें इस तरह अपने काम में नहीं लूंगा। पहले तुम्हारे दो-तीन टेस्ट होंगे, अगर टेस्ट में तुम सफल रहे तो आगे की बात करेंगे।” देवराज चौहान बोला।

“मैं सफल ही रहूंगा।” वाडेकर दृढ़ स्वर में बोला।

“जानता हूं, तभी तो तुम्हें चुना है। परंतु टेस्ट लेना जरूरी है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो तुम तीन-चार महीनों में पुनः पहले जैसी स्थिति में आ जाओगे।” देवराज चौहान बोला –“करोड़ों रुपया होगा तुम्हारे पास...।”

वाडेकर ने गहरी सांस ली। चंपानेरकर का चेहरा आंखों के सामने नाचा।

“हरामजादा...!”

“ए.सी.पी. को गालियां देने से कुछ नहीं होगा। जो बीत गया, वो भूल जाओ और आगे के बारे में सोचो।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने जेब से हजार के नोटों की गड्डी निकालकर टेबल पर रख दी –“तुम यहीं इसी कमरे में रहोगे। कोई भी गलत काम नहीं करोगे, क्योंकि अब तुम मेरे साथ काम करने वाले हो।

जल्दी ही मैं तुमसे फिर बात करने आऊंगा।”

“अपना फोन नंबर दे दो।”

“उसकी जरूरत नहीं।”

“मेरा फोन नंबर ले लो। कभी कोई बात कहनी...!”

“अभी तुम्हारे नंबर की भी जरूरत नहीं। चार महीनों में दौलतमंद बनना चाहते हो तो तुम जरूर मेरी बात मानोगे। मेरा इंतजार करोगे, दोबारा आने का। इस दौरान तुम किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर मेंरी तस्वीर देख सकते हो। अपनी तसल्ली कर सकते हो।”

“ये तुम्हारा असली चेहरा है?” वाडेकर ने एकाएक पूछा।

“हां...।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“तुम्हें इस तरह नहीं घूमना चाहिये। पुलिस की नजर कभी भी तुम पर पड़ सकती है।” वाडेकर बोला।

“मेरी फिक्र मत करो। ऐसे मौकों पर मुझे अपने को बचाना आता है। वैसे भी पुलिस वालों के लिए मैं इतना जरूरी नहीं कि वो मेरी तस्वीर हर वक्त अपने पास रखें और मेरा चेहरा याद रखें ।”

☐☐☐

जॉन अंताओ परेरा। शातिर चोर था। महारथ हासिल थी उसे चोरी करने में।

पन्द्रह साल की उम्र से ही अपने पिता के साथ चोरियों में लग गया था। उसका पिता भी शातिर चोर था और चोरी की शिक्षा उसने अपने पिता से ही पाई थी पिता की शार्गिदी में चोरी करने में दक्ष हो गया था परेरा।

आज उसकी उम्र चालीस साल थी।

शानदार फ्लैट में रहता था वो। दो कारें रखी हुई थी। दिखावे के तौर पर एक भरे-पूरे बाजार में एक दुकान खोलकर उस पर प्रॉपर्टी डीलिंग का बोर्ड लगा रखा था, जबकि हकीकत में वहां प्रॉपर्टी के सौदे कम और चोरी के प्लान ज्यादा बनते थे। परेरा में एक खासियत थी कि अधिकतर काम वो अकेले ही करता था। जरूरत पड़ने पर चचेरा भाई पिंटो था, उसे अपने साथ में ले लेता था। जबकि पिंटो उसके साथ काम करने का ख्वाहिशमंद रहता था। क्योंकि परेरा चुन-चुनकर अपने शिकारों को खाली करने में मास्टर था और इस तरह पिंटो को ज्यादा हिस्सा मिल जाता था। परंतु परेरा यदा-कदा ही पिंटो को, किसी काम के लिए फोन करता था। हकीकत ये थी कि पिंटो मन-ही-मन परेरा से जलता था कि ये कभी पकड़ा नहीं गया और शान से जिंदगी बिता रहा है। पिंटो हमेशा सोचता कि परेरा कभी बुरी तरह फंसेगा तो उसके मन को शांति मिलेगी। पिंटो जाने कब से इस वक्त का इंतजार कर रहा था।

परंतु परेरा की सोचें आजकल कुछ बदली-बदली सी थी। बार-बार उसे अपने पिता का ध्यान आ जाता, जो कि चालीस साल की उम्र में चोरी करके भागते वक्त, रात के समय गश्त कर रही पुलिस गोली में जान गंवा बैठे थे।

वो जानता था कि उसकी उम्र भी अब चालीस की हो गई है और चोरी का काम ज्यादा देर नहीं चलने वाला। इस कामों के लिए जो फुर्ती चाहिये होती है, वो अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है। कहीं वो भी अपने पिता की तरह पुलिस की गोली का शिकार ना हो जाये या फिर पकड़ा जाये और आगे के कई साल उसे जेल में बिताने पड़े। इन सब कामों से बचने के लिए जरूरी था कि एक ही बार कहीं पर मोटा हाथ मारकर दौलत हासिल की जाये और बाकी की जिंदगी चैन से बिताये।

ऐसे विचार आने के पीछे वजह थी सिमरन नाम की लड़की।

जो कि तीस बरस की थी। अच्छे-घर की थी और उसके साथ अच्छी दोस्ती हो गई थी। वो सिमरन को पसंद करता था और सिमरन उसे पसंद करती थी। परेरा ने कई बार सोचा कि उसके साथ शादी कर लेना ठीक रहेगा। ये ही वजह थी कि अब वो बड़ा हाथ मारकर एक बार में ही इतने नोट कमा लेगा चाहता था कि सिमरन के साथ जिंदगी आराम से शरीफों की तरह कट जाये।

और दस दिन पहले परेरा ने तय कर लिया कि किसी मोटी पार्टी की औलाद का अपहरण करेगा।

बदले में पांच-सात करोड़ की फिरौती लेगा।

इस विचार के साथ ही उसने मोटी पार्टी को तलाश शुरू कर दी।

चंद दिनों की कोशिश के बाद उसने मोटी पार्टी तलाश ली। पार्टी थी जे.के. अग्रवाल और शिकार था उसकी अट्ठारह बरस की बेटी सपना अग्रवाल, जो कि कॉलेज में पढ़ रही थी। जे.के. अग्रवाल का शराब का काम था। एक सीमेन्ट की फैक्ट्री थी। परेरा ने खूब अच्छी तरह पता लगा लिया था कि पांच-सात करोड़ उसके लिए मामूली रकम है, खासतौर से तब जबकि सपना अग्रवाल उसकी इकलौती बेटी थी। परेरा ने बहुत सोच-समझकर अपना शिकार चुना था।

इसके बाद परेरा इस बात पर गौर करने लगा कि सपना अग्रवाल का कैसे अपहरण करना है। उसे कहां रखना है और फिरौती कैसे और कहां लेनी होगी? अगर जे.के. अग्रवाल पुलिस को खबर करता है तो तब वो क्या करेगा? ऐसे ढेरों विचार उसके मन में आये और वो इस नतीजे पर पहुंचा कि इस काम में उसे साथी की जरूरत है। अकेले में वो ये मामला नहीं संभाल पायेगा। सपना अग्रवाल को अपहरण के बाद जब बंधक बनाया जायेगा तो हर वक्त उसकी पहरेदारी के लिए कोई चाहिये। तब जे.के. अग्रवाल पर भी नजर रखनी होगी कि वो क्या कर रहा है। यानि कि कम-से-कम एक बंदा तो चाहिये ही।

जैसा कि जरूरत पड़ने पर हर बार हुआ, इस बार भी परेरा ने पिंटो को फोन किया।

“हैलो...।” पिंटो की आवाज कानों में पड़ी।

“क्या कर रहा है?” परेरा ने पूछा।

“खाली हूं, काम है तो बता।”

“मेरे पास पहुंच।”

“कहां?”

“प्रॉपर्टी वाले ऑफिस में...।” कहकर परेरा ने फोन बंद कर दिया।

पिंटो डेढ़ घंटे के बाद परेरा के प्रॉपर्टी वाले ऑफिस में, उसके सामने बैठा था।

पिंटो की हालत ही बता रही थी कि वो किसी तरह खींच-खांचकर अपनी जिंदगी की गाड़ी चला रहा है। ऐसे में मन-ही-मन परेरा से खुंदक खाना लाजिमी था।

“ये क्या कपड़े पहन रखे हैं।” परेरा बोला –“पांच-सात जोड़ी बढ़िया कपड़े क्यों नहीं सिलाता?”

पिंटो हंसकर रह गया। वो पैंतीस बरस का था।

“पांच-छ: महीने पहले तूने मेरे साथ काम करके नौ लाख कमाये थे।” परेरा आंखें सिकोड़कर बोला।

“खत्म हो गये।”

“खत्म हो गये या उड़ा दिए।”

“एक ही बात है।” पिंटो पुनः हंसा।

“तेरे पास जितना भी पैसा आ जाये तू बरबाद कर देगा।” परेरा ने मुंह बनाकर कहा।

“काम बता।” पिंटो ने कहा –“कहां हाथ मारना है?”

“चोरी नहीं करनी।” परेरा ने गंभीर स्वर में कहा –“अब ये सब काम मैं छोड़ रहा हूं...।”

“तगड़ा पैसा इकट्ठा कर लिया है।” परेरा मुस्कराया।

परेरा जानता था कि पिंटो उससे जलता है। परंतु वो विश्वासी साथी भी था।

“अभी तो इकट्ठा नहीं किया, परंतु इस बार के काम में कर लेना चाहता हूं।”

“इस बार के काम में?” पिंटो की आंखें सिकुड़ी।

“हां। अपहरण करना है।”

पिंटो होंठ सिकोड़े परेरा को देखने लगा, फिर गहरी सांस लेकर बोला–

“ये खतरनाक काम हो सकता है...।”

“चोरी करना शायद ज्यादा खतरनाक है।” परेरा बोला –“इस काम में मैंने शिकार की पहचान कर ली है। मोटा नावां है उसके पास। उसकी 18 साल की लड़की कॉलेज में पढ़ती है। उसे उठाना है। दो-चार दिन के लिए उसे बंधक बनाकर रखना है। तब तक फिरौती मिल जायेगी। ज्यादा झंझट नहीं है। मैंने सब हिसाब लगा लिया है। सब काम आसानी से हो जायेगा।”

“तो तूने शिकार की पहचान कर ली है?” पिंटो ने सोच भरे स्वर में कहा।

“हां...।”

“मुझे क्या करना होगा?”

“मेरे साथ सपना अग्रवाल, जो कि हमारी बंधक बनेगी, उसका अपहरण करना होगा। उसके बाद उसे किसी तयशुदा जगह पर रखा जायेगा और तू उसकी निगरानी करेगा। बाकी सारा काम मैं संभाल लूंगा। इस काम के तुझे दो करोड़ मिलेंगे।”

परेरा ने गंभीर निगाहों से उसे देखा।

“दो करोड़ ?” पिंटो उछल पड़ा।

“मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि दो करोड़ कभी कमा पाऊंगा।” पिंटो ने गहरी सांस लेकर कहा।

“अभी कमाया नहीं है। हम सिर्फ सोच रहे हैं कमाने की।” परेरा बोला।

पिंटो ने पहलू बदलकर उसे देखा।

“अगर ये काम करने में हम असफल रहे और कोई गड़बड़ हो जाती है तो सात से दस साल के लिए जेल जायेंगे।”

“ये मुसीबत वाली बात हैं।” पिंटो कह उठा।

“करोड़ों के नोट भी तो हैं।”

“फिरौती कितनी लेनी है?”

“सात करोड़...। ये काम मेरा है, मैंने सब कुछ तैयार किया है, इसलिए मैं पांच करोड़ लूंगा।”

“ठीक है...ठीक है, मुझे दो करोड़ में ही तसल्ली है। मैंने कुछ कहा तो नहीं।”

“तो तू तैयार है ये काम करने को?”

“दो करोड़ मिलेगा तो तैयार क्यों नहीं होऊंगा।” पिंटो मुस्कराया।

“याद रखना पिंटो, ये काम मजाक नहीं है। हमें बहुत सोच-समझकर ये काम करना है। असफल नहीं होना है। किसी भी मौके पर लापरवाही नहीं होनी चाहिये। हमें एक-एक पहलू पर गौर करना है। मैं इस काम को अपनी जिंदगी का आखिरी काम बनाना चाहता हूं कि बाकी की जिंदगी कुछ ना करना पड़े। इसके लिए पांच करोड़ की रकम मेरे लिए बहुत है।”

“शिकार कौन है?”

“जे.के. अग्रवाल...।”

“जे.के. अग्रवाल?” पिंटो बुदबुदाया –“नाम सुना-सा लगता है, कौन है ये?”

“शराब का व्यापारी और सीमेंट की फैक्ट्री का...!”

“जानता हूं उसे । आजकल अखबारों में इसकी काफी तस्वीरें आ रही हैं। सुनने में आ रहा है कि ये चुनावों में खड़ा हो सकता है। इसके पास तो तगड़ा पैसा है। सात करोड़ की फिरौती तो बहुत कम है इसके लिए।”

“परंतु हमारे लिए बहुत है।”

पिंटो ने परेरा को देखा।

“किसी की गर्दन उतनी ही दबाओ कि वो सह ले। सात करोड़ की फिरौती जे.के. अगवाल के लिए कम है, इसलिए वो सात करोड़ दे देगा। मामला आसानी से पट जायेगा। अगर हम 15 करोड़ मांगेंगे तो वो कोई सख्त कदम उठाने की भी सोच सकता है। हम सात करोड़ की फिरौती ही लेंगे और मामला निपट जायेगा।”

“जैसा तू ठीक समझे।” पिंटो ने उसकी बात मान ली –“उसकी बेटी का क्या नाम बताया...।”

“सपना अग्रवाल...!”

“हां । तूने क्या सोचा कि इसे कहां से उठाना है? कुछ सोचा?”

“मैं तीन दिन से नजर रख रहा हूं सपना अग्रवाल पर। वो ड्राईवर वाली कार से सुबह आठ बजे कॉलेज जाती है। उसे छोड़कर कार वापस आ जाती है। उसके बाद जरूरी नहीं कि सपना कॉलेज में ही रहे। तीन दिनों में एक बार तो वो कॉलेज के कुछ लड़के-लड़कियों के साथ उनकी कारों में घूमने चली गई। एक दिन वो कैंटीन में ही बैठी दोस्तों के साथ गप्पें लड़ाती रही। एक ही दिन उसने कॉलेज के लेक्चर लिए।”

“मेरे ख्याल में उस पर तब हाथ डालना ठीक होगा, जब वह दोस्तों के साथ घूमने निकले...।”

“नहीं। तब तो बिल्कुल भी नहीं।” परेरा ने सिर हिलाकर कहा –“उसके साथ तीन-चार लड़के होते हैं, दो-तीन लड़कियां होती हैं। उसका अपहरण करते वक्त किसी लड़के ने हीरो बनने की कोशिश की तो मुसीबत खड़ी हो जायेगी।”

दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

“करोड़ों के मामले में अगर एक-आध जान भी चली जाये तो...।”

“पागलों वाली बातें मत कर। फिर ये पुलिस का पक्का मामला बन जायेगा और पुलिस को इस मामले में आना ही नहीं है। ये मामला हमारा और जे.के. अग्रवाल का ही होना चाहिये। इसलिये जरूरी है कि हम खामोशी से सपना अग्रवाल का अपहरण करें।” परेरा बोला।

“ठीक है।” पिंटो गभीर स्वर में बोला –“तूने क्या सोचा कि कहां पर सपना का अपहरण किया जायेगा?”

“जब वो ड्राईवर के साथ सुबह बंगले से कॉलेज जा रही होगी। हम आसानी से उसका अपहरण कर लेंगे। ड्राईवर इस बात की सवा सीधे जे.के. अग्रवाल को देगा और वो फिरौती के लिए फोन का इंतजार करेगा।”

“अगर उसने हमारा फोन आने से पहले पुलिस को फोन कर दिया तो?” पिंटो बोला।

“वो बेवकूफ नहीं है जो ऐसा करेगा। फिर भी हम अपहरण के दौरान ड्राईवर से कह देंगे कि फिरौती के लिए हम फोन करेंगे। तब ड्राईवर ये बात जे.के. अग्रवाल को बतायेगा। ऐसी स्थिति में वो जरूर हमारे फोन का इंतजार करेगा। वो कभी नहीं चाहेगा कि उसकी किसी गलती की वजह से सपना की जान को खतरा पैदा हो। सपना उसकी एकमात्र औलाद है।”

“इकलौती लड़की है वो?” पिंटो के होंठों से निकला।

“हां...।”

“ये बात तूने पहले क्यों नहीं बताई। सात क्या वो दस करोड़ भी हंसकर देगा। हम दस करोड़ ही मांगेंगे उससे।”

“रकम सात करोड़ ही रहेगी। लालच मत करो। हमने पूरे काम को ईमानदारी से अंजाम देना है।”

“ईमानदारी?” पिंटो के चेहरे पर मुस्कान उभरी।

“बेशक ये बुरा काम है, परंतु ईमानदारी से ही करना है।”

“काम कब करना है?

“पहले हमें ऐसी कोई जगह तलाश करनी है, जहां अपहरण के बाद सपना को रखा जायेगा।”

पिंटो के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

“कोई जगह है नजर में?” परेरा ने पूछा।

“नहीं। अभी तो नहीं...।”

“तो जगह तलाश करते हैं, जो सुरक्षित हो। उसके बाद ही शिकार पर हाथ डालेंगे।”

☐☐☐

तीन दिन बाद की सुबह। सवा आठ बजे जे.के. अग्रवाल के महल जैसे बंगले से लंबी विदेशी कार निकली और सड़क पर आगे बढ़ गई। कार को वर्दीधारी ड्राईवर चला रहा था। पीछे की सीट पर सांवले रंग की 18 बरस की युवती बैठी थी। पास में एक बैग रखा था। वो सपना अग्रवाल थी। उसकी आंखें मोटी थी। वो आकर्षक थी। इस वक्त जीन्स की पैंट और स्कीवी पहन रखी थी। जब वो मुस्कराती तो सामने वाले को चित्त कर देती थी।

“काका।” सपना ड्राईवर से कह उठी –“दोपहर को मत आना। मैंने दोस्तों के साथ जाना है।”

“जी...।” ड्राईवर ने कहा।

कार मध्यम रफ्तार से बढ़ रही थी। सड़क पर ट्रैफिक काफी था। करीब एक किलोमीटर आगे जाकर कार लालबत्ती पर रुकी। आस-पास और भी अन्य वाहर रुकने लगे। पीछे रुकी कार में परेरा और पिंटो मौजूद थे। कार की आगे-पीछे की नंबर प्लेट पर मिट्टी थोपी गई थी। ये काम रात को ही कर लिया था और अब मिट्टी सूखकर चिपकी हुई थी। प्लेटों पर से कार का पूरा नंबर नहीं पढ़ा जा रहा था। पिंटो और परेरा की नजरें मिली।

दोनों के चेहरों पर गंभीरता थी।

डैशबोर्ड से पिंटो ने स्टॉकिंग्स निकाली, जिन्हें कि लड़कियां टांगों पर डालती हैं। अगले ही पल स्टॉकिंग्स उनके चेहरों पर पड़ चुकी थी। अब एकाएक उन्हें कोई पहचान नहीं सकता था। चेहरे नकाबपोशों की तरह लगने लगे थे। परेरा ने जेब से रिवॉल्वर निकाली और पिंटो को देखकर भिंचे स्वर में बोला–

“चल...।”

दोनों तेजी से बाहर निकले।

पिंटो ने पहले से ही कार में रखी ईंट उठाकर हाथ में ले ली।

जिन लोगों की नजर इन नकाबपोशों पर पड़ी, वो चौंके। समझ गये कि कुछ होने वाला है। परेरा के हाथ में रिवॉल्वर देखकर, देखने वाले सहम से गये। दोनों तेजी से आगे वाली कार तक पहुंचे। पिंटो ने ईंट की जोरदार चोट कार के पीछे वाले शीशे पर की।

ईंट की दो चोटों से शीशा टूट गया।

पिंटो ने ईंट फेंकी और भीतर हाथ डालकर दरवाजे का पिन ऊपर किया और आगे के दरवाजे का पिन भी ऊपर कर दिया ताकि परेरा ड्राईवर वाला दरवाजा खोल सके।

भीतर सपना सीट पर हक्की-बक्की बैठी थी।

वो समझ नहीं पाई थी कि क्या हो रहा है?

तभी पिंटो ने उसकी कलाई पकड़ी और बाहर खींचता गुर्राया– “चल। हम तेरा अपहरण कर रहे हैं। अगर तूने पंगा खड़ा किया तो गोली मारकर चले जायेंगे।”

सपना ने अगला दरवाजा खुलते और ड्राईवर की कनपटी पर रिवॉल्वर लगाते देख लिया था।

दो नकाबपोशों को देखकर सपना के होश उड़ गये थे। वो फौरन घबराकर जल्दी से बाहर आ गई। चेहरे पर डर और घबराहट नाच उठी थी। तभी हरी बत्ती हो गई। जो लोग ये सब देख रहे थे, वो तुरंत वहां से खिसकने लगे। वाहनों के इंजनों की आवाजें एकाएक तेज हो गई। उसी भीड़ में एक कार में ए.सी.पी. चंपानेरकर भी मौजूद था।

परेरा और पिंटो नहीं जान पाये थे कि दो दिन से चंपानेरकर बराबर उन पर निगाह रख रहा है और उनकी सारी हरकतें नोट कर रहा है। उसने ये भी देखा कि समंदर किनारे एक कॉटेज इन्होंने सप्ताह भर के लिए किराये पर ली है।

“चल...।” पिंटो सपना की बांह पकड़े उसे खींचता पीछे खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ा।

सपना में इतनी हिम्मत ही कहां बची थी कि इंकार कर पाती। वो बहुत डर गई थी एकाएक।

उधर परेरा ड्राईवर की कनपटी पर रिवॉल्वर लगाये दरिंदगी भरे स्वर में कह रहा था– “जे.के. अग्रवाल से कह देना कि सपना का अपहरण करके ले जा रहे हैं और फिरौती के लिए जल्दी ही फोन करेंगे। इस बीच अगर पुलिस को खबर दी तो सपना की लाश किसी सड़क पर पड़ी मिल जायेगी, कह देना जे.के. से...।”

ड्राईवर का चेहरा फक्क था।

“सुना हरामजादे कि नहीं...?” परेरा दहाड़ा।

“सु-सुना...क-ह दूंगा।”

परेरा वहां से हटकर भागकर पीछे खड़ी कार के पास आया। लाईट ग्रीन थी और इन दो कारों के अलावा वहां कोई वाहन नहीं खड़ा था। वाहन आ रहे थे और आगे जाते जा रहे थे। किसी के पास इतना वक्त नहीं था कि देखे, कारें सड़क के बीचों-बीच क्यों रुकी हुई हैं। परेरा ने ड्राईविंग डोर खोला और भीतर बैठते ही कार स्टार्ट की।

पिंटो, सपना की बांह थामे पीछे वाली सीट पर बैठा था।

सपना का चेहरा सफेद हुआ पड़ा था।

परेरा ने कार को जरा-सा बैक किया और आगे खड़ी कार की बगल से निकालता चला गया। अभी तक हरी बत्ती थी। ना भी होती तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ना था। अब उनके रुकने का कोई मतलब नहीं था।

“पीछे देख, कोई हरामजादा पीछे तो नहीं...।” परेरा गुर्राया।

सपना की बांह थामे पिंटो गर्दन घुमाकर पीछे देखने लगा।

ए.सी.पी. चंपानेरकर लालबत्ती के पार कार में बैठा था। उसने सपना का अपहरण करके उन दोनों को कार में भागते देखा। चंपानेरकर ने उनके पीछे जाने की चेष्टा नहीं की। वो जानता था कि ये लोग लड़की को समंदर के किनारे किराये पर ले रखी कॉटेज में ले जायेंगे। चंपानेरकर के होंठों पर शांत मुस्कान नाच उठी। उसने मोबाईल निकाला और फोन किया।

“हैलो।” उधर से देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

“मेरा ख्याल सही था कि ये लोग कुछ करने वाले हैं। समंदर के किनारे की कॉटेज इन्होंने इसलिये किराये पर ली कि लड़की का अपहरण करके उसे वहां रखा जाये, जब तक कि फिरौती ना मिले।” चंपानेरकर ने फोन पर कहा।

“लड़की कौन है?”

“यकीन के साथ नहीं कह सकता, परंतु संभावना है कि बहुत बड़े बिजनेसमैन जे.के. अग्रवाल की कुछ लगती होगी। सुबह जब इनके पीछे था तो ये दोनों कार पर जे.के. अग्रवाल के बंगले के पास ही मौजूद रहकर किसी का इंतजार कर रहे थे। परंतु इस बंगले से लंबी विदेशी कार निकली तो ये इसके पीछे लग गये। शायद जे.के. अग्रवाल की बेटी हो वो। पता करूंगा परंतु सालों ने बहुत हिम्मत के साथ काम किया देवराज चौहान!”

“फिर तो मुझे उनके साथ वाली कॉटेज किराये पर ले लेनी चाहिये।”

“तुम्हें किसकी जरूरत है-जॉन अंताओ परेरा की?” चंपानेरकर ने पूछा।

“हां...।”

“पिंटो की नहीं?”

“नहीं...।” इसके साथ ही उधर से देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था।

☐☐☐

एक घंटे बाद कार समंदर के किनारे कॉटेज के सामने जा रुकी।

तब तक सपना अपने पर बहुत हद तक काबू पा चुकी थी। परेरा और पिंटो ने अपने चेहरे पर पहने नकाब तो दस मिनट में ही उतार दिए थे। उनके चेहरों देखकर सपना का डर कम होना शुरू हुआ था। परंतु वो रास्ते में कुछ भी नहीं बोली थी और शांति से बैठी रही थी। चेहरे पर गंभीरता थी। पिंटो ने घंटे भर के सफर के दौरान सपना की कलाई नहीं छोड़ी थी।

कार जब कॉटेज के सामने रुकी तो सपना ने पहली बार मुंह खोला।

“यहां रखोगे मुझे...।”

पिंटो ने सपना को घूरा, मुस्कराया, फिर परेरा से कह उठा–

“लड़की तो समझदार लगती है।”

“मैं समझदार ही हूं।” सपना ने शांत स्वर में कहा।

“तेरे को हमसे डर नहीं लग रहा था?”

“पहले लगा था, अब नहीं लग रहा...।” सपना बोली।

“क्यों?”

“तब तुम लोगों ने नकाब डाल रखे थे। जब नकाब उतार दिये तो डर जाता रहा।”

पिंटो ने गहरी निगाहों से सपना को देखा।

परेरा कार का इंजन बंद करने के बाद चारों तरफ सतर्कता भरी निगाह मार रहा था। मिनट भर वो ऐसे ही करता रहा, फिर कार का दरवाजा खोलते हुए बोला– “निकल। लड़की को कॉटेज में ले जा।”

“चल।” पिंटो सपना से बोला –“कोई चालाकी मत करना, मैं तेरी कलाई छोड़ रहा हूं। कार से दोस्तों की तरह बाहर निकलना कि कोई देखे तो उसे यही लगे, हम दोस्त हैं। सब ठीक है हमारे बीच।”

सपना ने दरवाजा खोला कार का तो पिंटो कठोर स्वर बोला–

“ऐसा कोई काम मत करना कि तेरे को गोली मारनी पड़े...।”

सपना कार से बाहर आ गई। दरवाजा बंद कर दिया।

दूसरी तरफ से पिंटो तुरंत बाहर निकला।

परेरा जेबों में हाथ डाले खड़ा था। जबकि एक हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर था, नजरें सपना पर थी।

पिंटो ने आगे बढ़कर सपना की कमर में हाथ डाला तो सपना ने तीखे स्वर में कहा– “ये क्या कर रहे हो?”

“मेरी जान, लोगों को दिखा रहा हूं अगर कोई देख रहा है तो। वरना मैं तो शुद्ध बिजनेसमैन हूं। काम-धंधे के वक्त सिर्फ काम की बात ही होती। नोट मेरा ईमान खराब करते हैं। बिना कपड़ों की लड़की देखकर भी मेरा ईमान खराब नहीं होता।”

पिंटो, सपना की कमर में हाथ डाले, कॉटेज का गेट खोलते भीतर पहुंचा और सामने पड़ने वाले कॉटेज के कमरे में बंद दरवाजे के पास पहुंचकर ठिठका। जेब से चाबी निकाली और दरवाजा खोलने लगा।

परेरा भी पास आ पहुंचा था।

“मुझे भूख लग रही है। नाश्ता नहीं किया। कॉलेज की कैंटीन में नाश्ता करने का प्रोग्राम था।” सपना बोली।

“चिंता मत कर। भीतर फ्रिज भरा पड़ा है। पूरे सात दिन का इंतजाम कर रखा है खाने-पीने का।”

☐☐☐

सपना ने सैंडविच खाते हुए दोनों को देखा। वो सोफे पर बैठी थी। परेरा उसके सामने बैठा था, जबकि पिंटो कमर पर हाथ बांधे चहलकदमी कर रहा था। अब सपना के चेहरे पर जरा भी घबराहट नहीं थी। डर नहीं था। वहां खामोशी छाई हुई थी। और सैंडविच खाते वो दोनों को देख रही थी। सैंडविच उसने खुद ही तैयार किया था।

“मैंने तो सोचा भी नहीं था कि समंदर के किनारे कॉटेज में आज नाश्ता करूंगी।” सपना बोली।

पिंटो टहलता रहा।

परेरा ने सख्त निगाहों से सपना को देखा। बोला–

“हम तुम्हारा अपहरण करके लाये हैं। तुम्हें इस वक्त डरकर रहना चाहिये।”

सपना का सांवला चेहरा मुस्कराहट से भर गया।

“डरने की कोई जरूरत नहीं है।” सपना ने हंसकर कहा।

“क्यों?”

“तुम लोगों ने पापा से पैसे लेने हैं और मुझे छोड़ देना है। फिरौती के लिए ही मेरा अपहरण किया है ना?”

“हां...।”

“कितनी दौलत लेने की सोच रहे हो पापा से?”

“सात करोड़...।”

“मामूली रकम है ये पापा के लिए...।”

तभी पिंटो ठिठका और पलटकर परेरा से बोला – “मेरी मान तो रकम बढ़ा दे। ये सच में कम है।”

“चुप रह...।” परेरा ने दांत भींचकर उसे देखा।

“साला मेरी बात सुनता-समझता नहीं है।” पिंटो झल्लाकर बड़बड़ाया, फिर टहलने लगा।

सपना ने हंसकर पिंटो से कहा – “तुम्हारा साथी तो तुम्हारी बात की भी परवाह नहीं करता। इसे समझाओ कि कम से कम बीस करोड़ मांगे।”

“मैंने तुमसे सलाह नहीं मांगी।” पिंटो ने तीखे स्वर में कहा।

“तुम्हारा नाम क्या है?” सपना ने परेरा को देखा।

परेरा ने होंठ भींचकर सपना को देखा।

“मर्जी तुम्हारी, मत बताओ।”

“तुम हमसे डरकर रहना चाहिए। जबकि तुम जरा भी नहीं डर रही हो।” परेरा ने कठोर स्वर में कहा।

“शुरू-शुरू में मुझे जरूर डर लगा था।” सपना ने सैंडविच खत्म किया –“परंतु फिर मुझे पता चला कि पैसे के लिए मेरा अपहरण किया है तो डर खत्म हो गया। पापा को फोन करो। पैसे मांगो उनसे।”

“शाम को फोन करेंगे।”

“अभी क्यों नहीं?”

“दिनभर उसे बेटी के लिए तड़प लेने दो। शाम को वो ठीक से बात करेगा।”

सपना कुछ पल परेरा को देखती रही, फिर कह उठी – “अब मुझे गम्भीर बातचीत पर आ जाना चाहिए। लेकिन पहले मुझे काफी चाहिए। तुममें से कौन बनाएगा कॉफी?”

दोनों ने काफी वाली बात की परवाह नहीं की।

“तुम किस गम्भीर बातचीत की बात कर रही हो?” परेरा कह उठा।

“लगता है कि कॉफी मुझे खुद ही बनानी पड़ेगी।” सपना उठते हुए बोली – “बाकी बातचीत कॉफी के बाद। तुम लोग कॉफी लोगे?”

परंतु दोनों ही सपना को देखते रहे।

होंठों पर मुस्कान समेटे सपना किचन की तरफ बढ़ गई।

पिंटो उसके पीछे चल पड़ा, वह किचन की चौखट पर जा खड़ा हुआ।

सपना कॉफी बनाते हुए कह उठी – “मुझ पर नजर रखने की कोई जरूरत नहीं है। वैसे भी किचन में भागने का कोई भी रास्ता ही नहीं है। होता तो भी मैं नहीं भागती।”

“चुपचाप कॉफी बनाओ।” पिंटो सख्त स्वर में कह उठा –“जुबान बंद रखो।”

“जो हुक्म।” हंसकर कह उठी सपना।

पिंटो माथे पर बल डाले हुए सपना को देखता रहा। सपना फिर बोली–

“बस मुझे कॉफी बनानी और सिर्फ सैंडविच बनाने ही आते हैं। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं आता।”

पिंटो खामोश ही रहा–

सपना ने कॉफी को तीन प्यालों में डाला और अपना प्याला उठाकर कह उठी – “ये दोनों कॉफी के प्याले तुम ले लो। तुम्हारी और तुम्हारे साथी की है ये कॉफी।”

“हमें नहीं चाहिए।” पिंटो ने तीखे स्वर में कहा।

“ले लो-मैंने बनाई है, वैसे भी अब मेरी बातें सुनकर तुम दोनों को कॉफी की जरूरत पड़ेगी।”

“क्यों?”

“क्योंकि वो बातें तुम लोगों को अच्छी नहीं लगेंगी।” सपना अपना कॉफी का प्याला थामे हुए किचन से बाहर निकल गई।

पिंटो ने कॉफी के दोनों प्याले उठाए और वह बाहर आ गया। एक प्याला परेरा को थमा दिया। वो अभी तक वहीं अपनी ही जगह पर बैठा हुआ था। सपना पुनः उसके सामने सोफे पर आकर बैठ गई।

“ये कहती है।” पिंटो ने कॉफी का घूंट लेकर कहा –“ये कुछ खास बताने-कहने वाली है। जो हमें अच्छा नहीं लगेगा।”

परेरा ने सपना को देखा।

सपना ने कॉफी का घूंट भरा। उसके चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी। उसने दोनों को देखा, फिर वह बोली – “मैं जे.के. अग्रवाल की औलाद नहीं हूं।”

“क्या!” पिंटो के हाथों से काफी छलकते-छलकते बची।

परेरा फौरन उठकर खड़ा हो गया।

सपना गम्भीर दिख रही थी।

परेरा और पिंटो के चेहरों पर परेशानी दिख रही थी।

“तुम...तुम जे.के. अग्रवाल की बेटी नहीं हो?” परेरा के होंठों से निकला।

“नहीं...बिल्कुल भी नहीं। वैसे लोग मुझे जे.के. अग्रवाल की बेटी ही समझते हैं। ना किसी ने पूछा, ना किसी ने बताया। जिसने जो समझ लिया, समझ लिया। मेरे और पापा के बीच बाप-बेटी का प्यार नहीं है। एक अनजाना-सा रिश्ता है हमारे बीच। वो मुझे पसंद नहीं करता है, मैं उसे नहीं पसंद करती। परंतु यह बात दिलों में ही रहती है। एक-दूसरे के सामने पड़ने पर हम दोनों मीठे बनकर एक-दूसरे से बातें करते हैं।”

परेरा और पिंटो की नजरें मिली।

“तुम-तुम जे.के. अग्रवाल की क्या लगती हो?” पिंटो ने पूछा।

“कुछ भी नहीं।” सपना ने गंभीर अंदाज में इंकार में सिर हिला दिया –“अब वो मुझसे छुटकारा पाना चाहता है, परंतु वह सीधे-सीधे नहीं कह सकता, जाने क्यों? मेरी अपनी पढ़ाई चल रही है, इसीलिए मैं भी अपना वक्त काट रही हूं। ये तो मुझे पता ही है कि एक दिन मुझे वो जगह छोड़कर ही चले जाना है।”

“तुम्हारा रिश्ता क्या है जे.के. अग्रवाल के साथ? तुम क्यों उसके घर में रहती हो-क्यों उसे पापा कहती हो?”

“बताया तो, जे.के. अग्रवाल के साथ मेरा कोई रिश्ता नहीं है। उसे पापा कहना मेरी मजबूरी है। जैसे कि वो मुझे बेटी कहकर बुलाता है, जो कि उसकी मजबूरी है। वो जानता है कि अगर उसने मुझे अपनी बेटी बनाया तो उसकी बेपनाह दौलत की मैं मालकिन बन जाऊंगी। परंतु वो नहीं चाहता कि उसकी बेपनाह दौलत की मैं मालकिन बनूं, इससे बेहतर वो समझता है, पैसे को लुटा देना।”

“क्यों?”

“वो मुझसे नफरत करता है।”

“वजह?”

सपना चंद पलों के लिए चुप रही, फिर वह कॉफी का एक घूंट भरकर कह उठी–

“बीस साल पहले जे.के. अग्रवाल को एक नेहा नाम की लड़की से प्यार हो गया था। नेहा भी जे.के. अग्रवाल को पसंद करती थी। सालभर दोनों की दोस्ती रही और फिर उन दोनों ने शादी का फैसला भी कर लिया। परंतु फिर एक दिन जे.के. अग्रवाल को यह पता चला कि नेहा उसके दोस्त की तरफ आकर्षित हो गई है। दोनों के रिश्तों में दरार पड़ गई। नेहा ने अग्रवाल के दोस्त से शादी कर ली, जो कि अग्रवाल के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। दोस्त ने दगा दिया, प्रेमिका ने बेवफाई की। साल भर बाद ही नेहा ने मुझे जन्म दिया।”

“ओह! तुम नेहा की बेटी हो?” परेरा कह उठा।

“हां। अपने दोस्त को तो अपना पक्का दुश्मन समझता था अग्रवाल। मुझे जन्म देने के दो महीने बाद ही मेरे मम्मी और पापा एक एक्सीडेंट में अपनी जान गवां बैठे। मुझे संभालने वाला कोई भी रिश्तेदार नहीं था। जे.के. अग्रवाल को जब ये खबर मिली तो वो अपनी प्रेमिका की बेवफाई को भूलकर, मुझे अपने घर पर ले आया। परंतु वो ये कभी भी नहीं भूला कि मैं उनके दुश्मन की बेटी हूं। मुझे पालने में उसने कोई कसर-कमी नहीं छोड़ी। परंतु एक बाप का प्यार उसने मुझे कभी नहीं दिया। साल भर पहले जब मैंने कॉलेज जाना शुरू हुई तो उसने स्पष्ट मुझे कह दिया था कि अपनी पढ़ाई पूरी करके, मुझे कहीं और ठिकाना ढूंढना होगा। शादी के लिए लड़का भी वो नहीं ढूंढेगा। अलबत्ता शादी का खर्चा वो दे देगा।”

परेरा और पिंटो सपना को देखे ही जा रहे थे।

“अब ये तुम दोनों को सोचना है कि जे.के. अग्रवाल मुझे छुड़ाने के लिए सात करोड़ क्यों देगा।”

परेरा के होंठ भिंच गए।

पिंटो के चेहरे पर सकपकाहट के भाव थे।

“वो सात करोड़ नहीं देगा।” परेरा कह उठा।

“वो सात लाख भी देने वाला नहीं है।” सपना ने गम्भीर स्वर में कहा –“परंतु कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है। कोशिश करके देख लो कि मन में ये बात ना रहे कि कोशिश नहीं की।”

परेरा ने कॉफी टेबल पर रखी और वह पिंटो को देखकर बोला–

“अगर ये सच कहती है तो सब कुछ गड़बड़ हो गया। हमें एक पैसा भी मिलने वाला नहीं है।”

“जे.के. अग्रवाल के मन में मेरे लिए कोई जगह नहीं है।” सपना बोली –“उसकी पहुंच ऊपर तक है। पुलिस के कई कमिश्नर तो उसके दोस्त हैं। अब तक तो उसने पुलिस को मेरे अपहरण के बारे में बता भी दिया होगा।”

परेरा बहुत ही व्याकुल दिखने लगा।

यही हाल पिंटो का भी था।

“तू सच कह रही है?” परेरा ने होंठ भींचकर कहा।

“हां-मैंने कुछ भी झूठ नहीं कहा।” कहने के साथ ही सपना ने पैंट की जेब में अपना हाथ डाला और एक सौ का नोट निकालकर दोनों को दिखाया –“मैं जे.के. अग्रवाल की बेटी नहीं हूं। इसलिए वो सौ रुपए मुझे रोज की जेबखर्ची के देता है। कभी-कभी तो वो भी नहीं देता। परंतु मैं यही सोचकर उसकी शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे पढ़ा-लिखा दिया। मेरा उसने कभी भी बुरा नहीं किया। मैं उसे सिर्फ इसलिए पसंद नहीं करती, क्योंकि वो मुझे पसंद नहीं करता। मेरे से पीछा छुड़ाना चाहता है। मेरी मां की बात भी सालभर पहने उसने ही मुझे अपने मुंह से बताई थी कि कहीं मैं सच में ही उसे अपना पापा ना मान लूं। जब मुझे हकीकत का ज्ञान हुआ कि मैं उनकी अपनी बेटी नहीं हूं तो तब मुझे ऐसा लगा कि मानो जैसे कि किसी ने मुझे नीचे फर्श पर पटक दिया हो। सप्ताह भर तक तो मैं कॉलेज भी नहीं गई थी।”

“मैं इसके बारे में पता करने जा रहा हूं।” परेरा ने पिंटो से कहा –“मैं ये भी मालूम करता हूं कि क्या जे.के. ने पुलिस को खबर दी है।”

पिंटो ने सिर हिला दिया।

“तुम इसे एक पल के लिए भी अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देना। हो सकता है कि ये हमसे कोई खेल खेल रही हो।” परेरा का स्वर सख्त था।

“ये चिंता छोड़ दो –मैं इसके सिर पर ही सवार रहूंगा।” पिंटो ने कहा।

सपना ने सोफे की पुश्त से सिर टिकाया। वो गंभीर थी और वह दोनों को देखकर कह उठी– “मैंने जो भी कुछ कहा है, वो सही है। जे.के. अग्रवाल एक पैसा भी तुम लोगों को नहीं देगा। ऐसी स्थिति में तुम लोग मेरा क्या करोगे?”

दोनों की निगाहें मिली।

सपना दोनों को ही देख रही थी। उन्हें चुप पाकर वह कह उठी– “मुझे मार दोगे क्या?”

“अभी हमारी सोचें यहां तक नहीं पहुंचीं।” परेरा बोला –“ऐसे हालात हमें दिखे तो तब हम इस बारे में कोई फैसला करेंगे। बेहतर होगा कि तब तक तुम शराफत से यहां रहो। तुम्हारी तरफ से कोई भी गड़बड़ न हो...।”

यही वो वक्त था जब कॉटेज की बेल बजी।

परेरा, पिंटो चौंके। नजरें मिली।

सपना ने व्याकुल भाव से दोनों को देखा।

सन्नाटा-सा छा गया वहां।

किसी को नहीं आना था, फिर ऐसे मौके पर कौन आ गया वहां?

परेरा ने रिवॉल्वर निकाली और पिंटो को इशारा किया। पिंटो दरवाजे की तरफ बढ़ा।

तभी कॉलबेल पुनः बज उठी।

पिंटो दरवाजे के पास ठिठका। पलटकर परेरा को देखा। परेरा ने रिवॉल्वर वाला हाथ पीठ पीछे कर लिया। उसके चेहरे पर कठोरता और उसकी आंखों में बेचैनी भर चुकी थी। सपना गम्भीरता से अपनी जगह पर ही बैठी हुई थी।

पिंटो ने दरवाजा खोला।

सामने देवराज चौहान खड़ा था।

देवराज चौहान मुस्कराया और बोला–

“मैं आपकी बगल वाली कॉटेज में ठहरा हुआ हूं। देखने आया था कि यहां पर कोई है या यह कॉटेज खाली ही है।” कहते हुए देवराज चौहान ने भीतर आना चाहा, परंतु पिंटो ने अपनी जगह नहीं छोड़ी। वह दरवाजे के बीच ही खड़ा रहा। देवराज चौहान मुस्कराता हुआ ठिठका और पिंटो को देखा।

“देख लिया कि यहां कोई ठहरा हुआ है?” पिंटो कुछ सख्त स्वर में बाला।

देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिला दिया।

“और हम यहां किसी से दोस्ती करने नहीं आए। थोड़ा वक्त चैन से बिताने आए हैं। मेहरबानी होगी अगर आप दोबारा हमें परेशान ना करें।” पिंटो ने बहुत ही शांत परंतु सख्त स्वर में कहा।

“जरूर...जरूर। मैं तो यूं ही आ गया। मेरा नाम देवराज चौहान है। किसी भी चीज की जरूरत पड़े तो बेशक आप मुझे याद कर लीजिएगा। मैं अकेला ही हूं और मुझे अकेला रहने की आदत नहीं है। मैंने सोचा दो-चार बातें हो जाएंगी, परंतु लगता है कि आप व्यस्त रहने वाले लोग हैं। उधर वाली कॉटेज में गया था, परंतु वह खाली है।”

पिंटो उसे देखता ही रहा।

“चलता हूं।” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा और वह पलटकर वापस चल पड़ा।

पिंटो चंद पल उसे जाता हुआ देखता रहा, फिर वह दरवाजा बंद करके पलटा।

“कौन था?” परेरा ने पूछा।

“कोई बेवकूफ है जो बगल वाली कॉटेज में ठहरा है। गप्पें मारने के इरादे से आ गया था।” पिंटो बोला।

परेरा ने रिवॉल्वर जेब में रखा और बोला– “मैं जा रहा हूं। तुम इसका ध्यान रखना।”

पिंटो ने सिर हिला दिया।

परेरा आगे बढ़ा और मेन डोर खोलकर बाहर निकल गया।

पिंटो दरवाजा बंद करके पलटा और सोफे पर बैठी सपना कहा उठी–

“जे.के. अग्रवाल तुम लोगों को एक पैसा भी नहीं देगा। वो मुझे पसंद नहीं करता तो वो मेरे ऊपर अपना पैसा खर्च क्यों करेगा? पुलिस को मेरे अपहरण के बारे में बताकर उसने छुट्टी पा ली होगी। अब तुम क्या मुझे मार दोगे?”

“चुपचाप बैठी रहो। पहले हमें हालातों का पता लगाने दो। उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।”

☐☐☐

परेरा कॉटेज से बाहर निकला। कार सामने ही खड़ी थी। परंतु कार ले जाने का उसने इरादा ही छोड़ दिया। कुछ घंटे पहले ही इसी कार को अपहरण में इस्तेमाल किया गया था। ऐसे में अभी इसे दोबारा इस्तेमाल करने की गलती नहीं कर सकता था। अगर सपना की बात सही थी कि जे.के. अग्रवाल ने अपहरण की खबर पुलिस को दे ही होगी तो पुलिस इस वक्त सड़कों पर ऐसी ही कार की तलाश कर रही होगी। परेरा पैदल ही आगे बढ़ गया। समंदर की लहरों का शोर कानों में पड़ रहा था। तभी परेरा की निगाह बगल वाली कॉटेज पर पड़ी। अगले ही पल उसकी आंखें सिकुड़ी।

कॉटेज के बाहर खड़ा देवराज चौहान उसे ही देख रहा था। उसे देखते हुए पाकर देवराज चौहान ने हाथ हिलाया।

परेरा देवराज चौहान को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था।

देवराज चौहान ने पुनः हाथ हिलाया।

☐☐☐

देवराज चौहान ने ए.सी.पी. चंपानेरकर को फोन किया।

“हैलो...।”

“कमिश्नर!” देवराज चौहान ने कहा –“परेरा बाहर गया है –पिंटो लड़की के साथ कॉटेज में ही है।”

“परेरा बाहर की खबर पाने गया होगा कि जे.के. अग्रवाल क्या कर रहा है। उसने पुलिस को खबर दी कि नहीं।”

“दी?”

“मैं नहीं जानता और मुझे इसकी परवाह भी नहीं है। परंतु एक अजीब-सी बात पता चली है।”

“क्या?”

“वो लड़की जे.के. अग्रवाल की बेटी नहीं है।”

“ये कैसे हो सकता है?” देवराज चौहान के होंठों से निकला –“परेरा ने सोच-समझकर ही उसका अपहरण किया होगा।”

“ये बात जग-जाहिर नहीं है कि वो जे.के. अग्रवाल की बेटी नहीं है। उसी के बंगले में हो रहती है और वह जे.के. को पापा भी कहती है। परंतु ये पक्का है कि वो जे.के. की बेटी नहीं है।” ए.सी.पी. चंपानेरकर की आवाज कानों में पड़ी।

“फिर तो इस अपहरण के हालात अजीब-से हो गए। जे.के. क्यों फिरौती की रकम देगा?”

“हमें इससे कोई मतलब नहीं है। मैंने अपनी योजना बना रखी है कि मैंने क्या करना है।”

“तुम कब हरकत में आओगे?”

“देवराज चौहान!” ए.सी.पी. चंपानेरकर की आवाज कानों में पड़ी –“अभी तो वो अपहरण करके कॉटेज में पहुंचे हैं। ऐसे में पीछे-पीछे पुलिस कैसे पहुंच सकती है? पुलिस कोई जादू का चिराग तो नहीं है कि पता चल जाए कि अपराधी कहां पर है। मतलब कि अभी वक्त को बीतने दो। इतना वक्त बीत जाए कि पुलिस के पहुंचने पर वो सोचें कि हां पुलिस ने ढूंढ लिया होगा उन्हें। किसी तरह उनका पता लगा लिया होगा। दो-चार बार उन्हें जे.के. से भी बात कर लेने दो। फिरौती को सौदेबाजी की।”

“वो जब जे.के. की बेटी नहीं है तो वो क्यों फिरौती देगा?”

“दे भी सकता है। लड़की उसके बंगले पर ही रहती है। उसे पापा कहती है परंतु मुझे इस बात की परवाह नहीं है। मैंने अपना काम करना है और वैसे ही करना है, जैसे कि सोच रखा है।”

चंपानेरकर के शब्द देवराज चौहान के कानों में पड़े।

“वाडेकर कहता है कि उसकी दौलत बीस-तीस करोड़ की थी।” देवराज चौहान बोला।

“तो?”

“तुमने मोटा हाथ मार लिया ए.सी.पी.।”

“उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं। तुमने जो भी काम कहा है, वो मैं पूरी ईमानदारी से पूरा कर रहा हूं जिसका एक करोड़ तुम्हें देना होगा।”

“जरूर दूंगा, हममें जो सौदा हुआ है वो पूरा जरूर होगा।”

☐☐☐

दोपहर हो रही थी।

पिंटो सतर्कता से सपना पर नजर रखे हुए था। जबकि सपना तब से ही उसी सोफे पर बैठी हुई थी। यो गम्भीर थी और कभी-कभार अपनी आंखें भी बंद कर लेती थी।

“तुम्हारा नाम क्या है?” पूछा सपना ने।

“मेरा कोई नाम नहीं है। अपनी जुबान बंद ही रखो।” पिंटो ने सख्त निगाहों से उसे घूरा।

सपना मुस्कराई और कह उठी–

“प्यार से बोलो मुझसे –मैं तुम्हें कुछ बुरा तो नहीं कह रही हूं। कितने आराम से बैठी हूं-मैंने तुम्हें जरा भी तंग नहीं किया।”

पिंटो चुप ही रहा।

“यहां मैं बोर हो रही हूँ –क्या तुम मुझे समंदर तक घुमा सकते हो? समंदर से पानी की आवाजें आ रही हैं तो उन्हें सुनकर घूमने का मन कर रहा है। वैसे भी समंदर देखना मुझे अच्छा लगता है।”

पिंटो के चेहरे पर व्यंग्य के भाव आ रहे थे।

“तुम ये बात क्यों भूल रही हो कि इस वक्त तुम कैदी हो? तुम्हारा अपहरण हो चुका है?”

“याद है मुझे-परंतु मेरा विश्वास करो कि...।”

तभी पिंटो का मोबाइल बज उठा।

“हैलो...।” पिंटो ने बात की।

“पिंटो...।” परेरा की उत्साह से भरी आवाज कानों में पड़ी –“बहुत अच्छी खबर है –जे.के. ने सपना के अपहरण की खबर पुलिस को नहीं दी।”

“ओह, ये तो वास्तव में ही बढ़िया खबर है।” पिंटो का चेहरा चमक उठा। बुरे अंदेशे छंट गए थे।

“लड़की कैसी है?”

“वो ठीक है। आराम से बैठी है। जे.के. को कब फोन करेगा, शाम को ही या अभी?”

“शाम को। उसे वक्त दो। ताकि बुरे से बुरे विचार उसके मन में जगह बना लें। वो जरूर हमारे फोन का इंतजार कर रहा होगा।”

“क्या ये जे.के. की औलाद है।”

“नहीं, उसकी औलाद नहीं है। बंद करता हूं, फोन। लड़की का ध्यान रख। मैं और खबरें पाने की कोशिश में हैं।”

पिंटो ने फोन बंद करके जेब में रखा और मुस्कराकर सपना से बोला।

“तुम्हारे लिए राहत की खबर है कि जे.के. ने तुम्हारे अपहरण की सूचना पुलिस को नहीं दी है।”

“ओह!” सपना के होंठों से निकला।

“इससे स्पष्ट है कि वो जरूर फिरौती देगा।”

“मुझे यकीन नहीं है कि वो मेरे पर कोई पैसा खर्च करेगा।” सपना अजीब से स्वर में कह उठी।

“तुम्हारा यकीन गलत है, पुलिस को खबर न देने का मतलब है कि वो पैसा देने के मूड में है।”

“हो सकता है कि जे.के. तुम लोगों के गिर्द जाल बुन रहा हो।”

“जाल?”

“हां –तुम लोग जब उससे पैसों के लिए फोन करो तो तब तुम लोगों को फंसाने के लिए वो कुछ सोचे।”

पिंटो की आंखें सिकुड़ी।

वो सपना को देखता रहा।

सपना के चेहरे पर गम्भीरता की छाप स्पष्ट नजर आ रही थी।

“तुम हमारे लिए परेशान क्यों हो?” पिंटो कह उठा।

“तुम लोगों के लिए परेशान नहीं हूं, बल्कि अपने लिए परेशान हूं कि जे.के. मेरे लिए कभी भी फिरौती नहीं देगा।”

“तुम मुझे समझाने की कोशिश मत करो कि हमने क्या करना है।” पिंटो सख्त स्वर में बोला –“जुबान बंद रखो और –।”

“छोड़ो।” सपना उठते हुए बोली –“मुझे सामने समंदर तक घुमा लाओ।”

“चुपचाप बैठ जाओ –तुम यहां से बाहर नहीं जाओगी।”

सपना ने एक गहरी सांस ली और सोफे पर वापस जा बैठी।

“मैं सोच रहा हूं कि मैं तुम्हारे हाथ-पांव बांध दूं।” पिंटो कड़वे स्वर में बोला।

“मैं आराम से बैठी हूं। तुम परेशान क्यों हो रहे हो। मेरा यहां से भागने का इरादा जरा भी नहीं है। क्योंकि मैं तुमसे पीछा छुड़ाने में जरा भी सफल नहीं हो सकती।” सपना ने शांत स्वर में कहा।

☐☐☐

जे.के. अग्रवाल साठ बरस का एक सफल बिजनेसमैन था। जिस काम में भी वह हाथ डालता था, उसे उस काम में सफलता ही मिलती थी। बीस साल पहले वो कुछ भी नहीं था। परंतु एकाएक उसकी किस्मत ने साथ दिया तो वह दौलत को अपना बनाता चला गया। आज उसे दौलत की कोई परवाह नहीं थी। करोड़ों रुपया उसके लिए मामूली-सी बात थी।

परंतु आज सुबह सपना का अपहरण होने के बाद वो सोचों में डूबा हुआ दिखाई दिया। ड्राइवर ने आकर उसे पूरी रिपोर्ट दी थी कि कैसे सपना का अपहरण हुआ था। क्या उसे कहा गया। वो दो लोग थे सपना का अपहरण करने वाले। चेहरे पर नकाब थे, सब कुछ सुना, परंतु उसने जवाब में कुछ भी नहीं कहा। ग्यारह बजे एक जरूरी मीटिंग थी, उसे अटैण्ड करने के बाद दो बजे वो अपने बंगले पर लौट आया था। ड्राइवर ने कहा था कि अपहरणकर्ताओं ने शाम को फोन करने को कहा है।

जे.के. अग्रवाल ने शाम होने का इंतजार किया। वो परेशान होने की अपेक्षा निश्चिंत दिखाई दे रहा था। उसके हाव-भाव में स्थिरता थी। उस वक्त शाम के 7:10 हो रहे थे कि उसका मोबाइल बजने लगा।

“हैलो...।” जे.के. अग्रवाल ने शांत स्वर में बात की।

“जे.के. हो तुम?” परेरा था दूसरी तरफ।

जे.के. अग्रवाल मुस्कराया, वो समझ गया था कि इसी फोन का उसे इंतजार था।

“हां।” जे.के. अग्रवाल शांत स्वर में बोला।

“हमने सपना का अपहरण किया है। तुमने समझदारी दिखाई जो कि तुमने इस बारे में पुलिस को कोई खबर नहीं दी।”

जे.के. अग्रवाल खामोश ही रहा।

“अगर तुम सपना की जिंदगी चाहते हो तो फिर तुम्हें हमें पूरे सात करोड़ देने होंगे।” परेरा की आवाज में दरिंदगी भरी थी।

“वो मेरी कुछ भी नहीं लगती।”

“जान चुका हूं –सपना ने बताई थी ये बात। फिर भी तुम उसकी लाश नहीं देखना चाहोगे। वो तुम्हारी माशूका की औलाद है।”

जे.के. अग्रवाल खामोश ही रहा, उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।

“समझ रहे हो मेरी बात?”

“हां –ड्राइवर ने बताया था कि तुम दो लोग हो।”

“हम दो नहीं पूरे बीस हैं –हमारा एक पूरा गैंग है –हम...।”

“तुम दो ही हो।” जे.के. अग्रवाल ने शांत स्वर में कहा –“तुम्हारा कोई गैंग नहीं है। अगर तुम्हारा गैंग होता और तुम लोग ज्यादा होते तो सात करोड़ की जगह चालीस करोड़ मांगा होता। तुम्हें सात ही चाहिए?”

“हां।”

“जरूर दूंगा। परंतु उससे पहले तुम्हें मेरे सवाल का जवाब देना होगा।” जे.के. अग्रवाल बोला।

“बोल।”

“सात करोड़ का बंटवारा कैसे होगा?”

“इससे तुम्हें क्या...?”

“स्पष्ट सुन लो कि मैं क्या जानना चाहता हूं। मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम तीन लोग कितनी-कितनी रकम बांटोगे?”

“तीन? हम तो दो हैं।”

“तीसरी सपना भी तो है।”

“क्या?” उधर से परेरा अचकचा ही उठा।

“मुझसे बातें करने में चालाकी का इस्तेमाल मत करो। मैं जानता हूं कि यह सारा प्लान सपना का ही है। वो मुझसे रुपए ऐंठने की कोशिश में है कि अपना भविष्य सुरक्षित कर सके।” जे.के. अग्रवाल ने साधारण से अंदाज में कहा –“मुझे पहले ही शक था कि वो कुछ ऐसा भी कर सकती है। तो मैं यह पूछ रहा हूं कि तुम तीनों में सात करोड़ का बंटवारा कैसे...?”

“तुम पागल हो।”

“तुम अपनी बातों से जे.के. अग्रवाल को बेवकूफ नहीं बना...।”

“साले-हरामी मैं सही कह रहा हूं। हम दो हैं और सपना का हमने अपहरण किया है।”

“मैं इस बात पर यकीन नहीं करने वाला।”

“तो फिर तुम क्या चाहते हो?” उधर से परेरा गुस्से में बोला।

“तुम्हें सात करोड़ चाहिए, मैं दे दूंगा। मेरे लिए यह छोटी रकम है, परंतु तुम्हें सब बताना ही होगा।”

“सच हो तो बता रहा हूं कि हम दो हैं और सपना हमारी कैद में है। अगर तुमने सात करोड़ ना दिए तो हम उसे मारकर उसकी लाश को किसी भी सड़क पर फेंक देंगे और पुलिस से तुम्हें लाश के बारे में खबर मिल जाएगी।”

“मार दो उसे।”

“क्या...!” उधर से परेरा बुरे हाल में कह उठा।

‘मार दो उसे। मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। तुम क्या सोचते हो कि मैं तुम्हारी बातों में फंस जाऊंगा? सपना मुझे इस तरह से बेवकूफ नहीं बना सकती। मैं उसकी सारी चाल समझता हूं। तुम क्या उसके साथ कॉलेज में पढ़ते हो?”

“कॉलेज में...तू तो पूरा पागल है। क्या सुनना चाहता है तू?”

“ये ही कि सपना ने अपने अपहरण का प्लान खुद ही बनाया है कि वह मुझसे करोड़ों रुपया झटक सके।”

“नहीं, ये गलत है।”

“मैं तुम्हारी बातों में फंसने वाला नहीं हूं।”

चंद पलों के लिए परेरा की आवाज नहीं आई।

जे.के. अग्रवाल ने मोबाइल कान से लगाए रखा।

“ठीक है। तू यही सुनना चाहता है तो तू यही सुन ले। सपना ने अपना अपहरण खुद ही करवाया है। वो तीन करोड़ लेगी और दो-दो करोड़ हम लेंगे। ऐसा ही कुछ तू सुनना चाहता था। मैंने सुना दिया। परंतु ये सच नहीं है।”

“सच नहीं है?”

“नहीं।”

“सपना अपने अपहरण में शामिल नहीं है?” जे.के. अग्रवाल ने सख्त स्वर में कहा।

“दूर-दूर तक शामिल नहीं है। हमने उसका अपहरण किया है और रिहाई के बदले पूरे सात करोड़...।”

“पैसा क्या पेड़ पर लगता है जो सात करोड़ तुम लोगों को दे दूं।” जे.के. अग्रवाल गुर्रा उठा।

“क्या मतलब...?”

“सपना अपने अपहरण में शामिल नहीं है?”

“नहीं।”

“तुम लोगों को कोई पैसा नहीं दिया जाएगा।” जे.के. अग्रवाल कठोर स्वर में बोला।

“तुम जानते हो कि तुम्हारे इस जवाब के बाद हम उसकी लाश सड़क पर फेंक सकते हैं?” उधर से परेरा दांत किटकिटाकर बोला।

“फेंक दो।” जे.के. अग्रवाल ने कहा और अपना फोन बंद कर दिया।

☐☐☐

“नौ बज गए।” सपना बोली –“तुम्हारा साथी अभी तक नहीं आया।”

“आ जाएगा –तू उसकी चिंता मत कर।”

“जे.के. से उसने बात कर ली होगी?” सपना ने पूछा।

“पता नहीं –चुपचाप बैठी रह। ऐसे सवाल मत पूछ।”

उसी समय कॉलबेल बज उठी।

पिंटो का दिल धड़क उठा था कि कहीं बाहर पुलिस तो नहीं है।

सपना की निगाह पिंटो पर जा टिकी।

“तुम डर रहे हो तो फिर मैं दरवाजा खोलूं?” सपना बोली।

पिंटो ने हिम्मत इकट्ठी की और वह दरवाजे के पास जा पहुंचा।

“पिंटो...।” इस बार परेरा की पुकार पिंटो ने सुनी।

पिंटा ने चैन की सांस ली और दरवाजा खोल दिया।

परेरा भीतर आया तो पिंटो दरवाजा बंद करके पलटता हुआ बोला–

“जे.के. अग्रवाल से बात की?”

“हां” परेशान से परेरा ने सपना पर नजर मारी और वह चेयर पर बैठता हुआ पिंटो से कह उठा –“वो तो बहुत ही बड़ा पागल है।”

“पागल है, क्या मतलब?” पिंटो के माथे पर बल पड़े –“फिरौती दे रहा है या नहीं?”

सपना की नजरें भी परेरा पर जा टिकी।

परेरा धके, उलझे, परेशान अंदाज में आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठता हुआ कह उठा– “इसने सुबह जो बताया था, वो सब सच था।”

“वो सात करोड़ दे रहा है या नहीं?” पिंटो व्याकुलता से पुनः बोला।

“नहीं।”

पिंटो के मस्तिष्क को एक झटका लगा।

सपना एक गहरी सांस लेकर रह गई। चिंतित थी वो।

“क्यों नहीं दे रहा?”

“उसका यह ख्याल है कि सपना का अपहरण नहीं हुआ है –बल्कि सपना ने खुद ही ये सब ड्रामा रचा है कि उससे करोड़ों रुपया हासिल करके अपना भविष्य सुरक्षित कर सके।” परेरा ने गुस्से में कहा।

सपना के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी।

“ये कैसे हो सकता है –हमने इसका अपहरण किया है, तुमने उसे बताया नहीं कि...।”

“बताया।”

“तो...?”

“वो मेरी बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं है। वो मुझे सपना के साथ पढ़ने वाला कॉलेज का कोई लड़का समझता है।”

“उल्लू का पट्ठा है वो!” पिंटो कसमसाया –“उसे यह समझना चाहिए कि हमने सच में ही सपना का अपहरण...।”

“ये बात वो समझने को तैयार ही नहीं है।”

पिंटो ने सपना को देखकर कहा।

“अब तुम क्या कहती हो?”

“मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है –जे.के. का जवाब तो तुम लोगों ने सुन ही लिया है कि वो मेरे बारे में क्या सोचता है।”

“ये तो अजीब मुसीबत वाली बात हो गई।”

“जे.के. कहता है कि बेशक सपना को मार दो। वो यही सोचता है कि ये सब ड्रामा हो रहा है।” परेरा ने होंठ भींचकर कहा।

“सपना उस हरामी की अपनी औलाद जो नहीं है, तभी तो वह ऐसा कहता है।” पिंटो गुर्राकर बोला –“ये बात हमें नहीं पता थी, पता होती तो हम इसे उठाते ही नहीं। हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। तुमने उसे बताया कि हम सात करोड़ की फिरौती चाहते हैं?”

“हां। वह जवाब में बोला कि हम उसका बंटवारा कैसे करेंगे –सपना को कितना मिलेगा।”

“कुत्ता कहीं का। हमें जे.के. का अपहरण ही करना चाहिए था। तब साला हमारे सामने करोड़ों का ही ढेर लगा देता।”

खामोशी-सी आ ठहरी वहां।

करीब पांच मिनट बाद सपना कह उठी – “अब तुम लोग मेरा क्या करोगे –जे.के. तो तुम लोगों को कुछ भी देने को तैयार ही नहीं है।”

“कैसे नहीं देगा वो!” पिंटो ने कलपकर कहा और उसने मोबाइल निकाला –“मैं उससे बात करता हूं –नम्बर बता।”

सपना खामोशी से उसे देखती रही।

परेरा ने उसे नम्बर बताया तो पिंटो ने नम्बर मिलाकर बात की–

“हैलो...।”

“जे.के. अग्रवाल है तू?” पिंटो गुर्राया।

“हां।”

“हमने सपना का अपहरण किया है –और तू मजाक समझ रहा है। हम उसकी जान ले लेंगे।”

“ले लो।”

“क्या?” पिंटो के होंठों से निकला।

“तुम लोग मेरे साथ जो ड्रामा कर रहे हो, वो चलने वाला नहीं है। तुम तो...।”

“हरामजादे हम सच ही कह रहे हैं।” पिंटो गुर्रा उठा।

“ये सब सपना की चाल है, मुझसे पैसा ऐंठने की। परंतु मैं उसे एक पैसा भी नहीं देने वाला।”

“मैं ये ही तुझे समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि ये सब सपना की चाल नहीं है –हमने उसका अपहरण –।”

“क्या सोचकर किया कि मैं उसके बदले में तुम्हें करोड़ों की दौलत दे दूंगा? वो मेरी कुछ भी नहीं लगती कि उसके बदले मैं पैसा खराब करूं।”

“वो तेरी माशूका की औलाद है।”

“वो दगाबाज थी।”

“तो उसकी बेटी को अपने घर पर रखकर, उसे पाल-पोसकर बड़ा क्यों किया?”

“मेरा दिमाग खराब हो गया था –परंतु अब मैं तुम्हारी बातों में आकर और नहीं भुगतना चाहता।”

“तो तू सात करोड़ नहीं देगा?”

“नहीं –बिल्कुल भी नहीं।”

“एक करोड़ कम कर ले।”

उधर से जे.के. अग्रवाल ने फोन बंद कर दिया।

पिंटो होंठ भींचे हुए खड़ा रहा। फोन वाला हाथ नीचे कर लिया।

“क्या कहता है?'' परेरा ने उखड़े हुए स्वर में कहा।

“कहता है कि बेशक सपना को मार दो –वो एक पैसा भी नहीं देगा।”

परेरा फीके अंदाज में मुस्करा पड़ा।

सपना थके हुए से अंदाज में अपनी ही जगह बैठी हुई थी।

दोनों ने सपना को देखा।

सपना व्याकुल हो उठी।

“जे.के. तो तेरे पर एक पैसा भी लगाने को तैयार नहीं है।” परेरा ने सपना से कहा –“वो तो यह सोचता है कि तुमने ही अपना अपहरण कराया है। यानि कि उससे पैसा ऐंठने का ड्रामा कर रही हो तुम।”

“मेरे को लेकर वो इसी तरह के विचार अपने मन में रखता है।” सपना कह उठी –“अब मेरे लिए हालात और भी ज्यादा खराब हो गए हैं –अगर मैं वापस बंगले पर गई तो वो सोचेगा कि पैसा ना मिलने की वजह से ही मैं वापस आ गई हूं। शायद वो मुझे वहां से जाने को कह दे।”

परेरा और पिंटो की नजरें मिली।

“इसका क्या करना है?” पिंटो गम्भीर स्वर में बोला।

“इसने हम दोनों को बहुत अच्छी तरह देखा है।” परेरा बोला –“बाद में ये हम दोनों को फंसा सकती है।”

“मैं ऐसा क्यों करूंगी?” सपना घबराकर बोली –“वैसे भी मेरे अपहरण की बात तो पुलिस को पता ही नहीं है।”

“तुझे छोड़ा तो तू पुलिस के पास भी जा सकती है। तू जे.के. के सामने यह साबित करने की कोशिश कर सकती है कि सच में तेरा अपहरण हुआ था। तेरे को छोड़ना ठीक नहीं होगा।” परेरा ने कहा –“तू हमारे लिए खतरा भी बन सकती है।”

“ऐसा न कहो –मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी। मैं तो अब खुद ही मुसीबत में फंस गई हूं...कि जे.के. अब मुझे भरपूर शक की नजरों से देखेगा। मैं तुम लोगों के खिलाफ पुलिस में नहीं जाऊंगी –मैं तो –।”

तभी उन लोगों के कानों में स्पष्ट आहट पड़ी।

आहट पीछे वाले कमरे से आई थी।

परेरा और पिंटो ने चौंककर एक-दूसरे को देखा।

“उधर कोई है क्या?” परेरा के हाथों में रिवॉल्वर नजर आने लगी।

“यूं ही कुछ गिर गया होगा। बंद कॉटेज में भला कौन आ सकता है।” कहकर पिंटो उस कमरे की तरफ ही बढ़ गया।

पिंटो ने बेडरूम में प्रवेश किया।

कमरे में रोशनी थी।

नजरें हर तरफ गईं, परंतु कोई भी न दिखा।

लेकिन पीछे की खिड़की खुली हुई थी।

पिंटो की आंखें सिकुड़ गई। उसे अच्छी तरह से याद था कि उसने कमरे की खिड़की बंद की थी तो अब खुल कैसे गई?

पिंटो आगे बढ़ा और उसने खिड़की बंद की। पलटा कि उसी पल वह ठिठक गया।

दरवाजे की ओट में रिवॉल्वर थामे हुए ए.सी.पी. चंपानेरकर खड़ा था। वह खतरनाक निगाहों से उसे ही देख रहा था और रिवॉल्वर का रुख उसी की तरफ ही था। चंपानेरकर सादे कपड़ों में था।

पिंटो ठगा सा खड़ा हुआ उसे देखता रह गया। उसके चेहरे पर घबराहट के भाव आ गए थे।

चंपानेरकर आगे बढ़ा और उसने उसके पास पहुंचकर पिंटो की छाती पर रिवॉल्वर रख दी।

पिंटो की टांगें कांपी, चेहरा फक्क पड़ गया।

“क्या बात है वहां?” परेरा की आवाज सुनाई दी।

“बोल, सब ठीक है।” चंपानेरकर गुर्राया।

“सब ठीक है।” पिंटो ने ऊंचे स्वर में कहा। उसकी खौफ भरी निगाहें चंपानेरकर पर थी।

“चल –अब उसी कमरे में चल।” चंपानेरकर कठोर स्वर में बोला।

रिवॉल्वर उसे लगाए हुए चंपानेरकर वहां आ पहुंचा जहां परेरा और सपना थे।

परेरा ने ये नजारा देखा तो फुर्ती से जेब में रख चुके रिवॉल्वर के पुनः वापस निकालने के लिए हाथ बढ़ाया।

“मरना चाहता है क्या?” चंपानेरकर गुर्रा उठा।

परेरा का अपनी जेब की तरफ बढ़ता हुआ हाथ ठिठका। वो फौरन कुर्ती से खड़ा हो गया। हैरान या, अंजान आदमी को कॉटेज में मौजूद पाकर। उसने पिंटो को देखा, जिसकी कमर से चंपानेरकर को रिवॉल्वर लगी थी। पिंटो डरा सा दिखा।

“कौन हो तुम?” पररा ने आंखें सिकोड़कर पूछा।

“तेरे को ये पिंटो बताएगा।” चंपानेरकर अपनी जेब में हाथ डालता हुआ बोला।

“मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो?”

सपना के कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है।

चंपानेरकर ने अपना हाथ जेब से निकाला, जिसमें कि आई-कार्ड था। कार्ड खोलकर पिंटो के सामने किया।

“परेरा को बता कि मैं कौन हूं।”

पिंटो ने आई-कार्ड देखा तो उसके पैरों के नीचे से जमीन सरकती हुई महसूस हुई।

“बता।” नाल का दबाव कमर में बढ़ाता हुआ चंपानेरकर गुर्रा उठा।

“ए.सी.पी. चंपानेरकर...।” पिंटो कार्ड पर नजरें टिकाए हुए घबराकर कह रहा था।

सामने खड़ा पुलिसवाला है, ये सुनकर परेरा का दिल जोरों से धड़क उठा।

चंपानेरकर ने कार्ड अपनी जेब में डाला और पिंटो को आगे धकेल दिया।

पिंटो चार-पांच कदम आगे जाकर लड़खड़ाया और ठिठककर पलटा।

चंपानेरकर दोनों को देखकर, सपना पर निगाह मारकर कह उठा– “मैंने दूसरे कमरे में रहकर सब-कुछ सुना। तुम लोगों की हालत तो कुत्तों जैसी हो गई है।”

परेरा और पिंटो की नजरें मिली।

“जे.के. अग्रवाल तुम लोगों को पैसा देने को तैयार नहीं है। वो कहता है कि लड़की को बेशक मार दो।” चंपानेरकर मुस्कराया –“अब लड़की को छोड़ते हो तो फंसते हो। मारते हो तो भी फंसते हो। बुरी तरह से फंस गए हो अब तुम दोनों।”

“तुम....तुम यहां कैसे पहुंच गए?” परेरा ने अपनी हालत पर काबू पाते हुए पूछा।

“मैं हमेशा वहाँ ठीक वक्त पर ही पहुंचता है, जहां पर कोई गड़बड़ हो रही होती है।'' चंपानेरकर ने व्यंग्य भरे हुए स्वर में कहा और रिवॉल्वर वाला हाथ सपना की तरफ सीधा किया और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, उसने गोली चला दी।

“धांय...।”

गोली सपना की छाती में जा लगी।

“धांय...।” एक और गोली चली।

वो गोली भी सपना की छाती में लगी।

इसके साथ ही सपना वहीं सोफे पर ही लुढ़क गई। शांत हो गई थी वो।

पैना सन्नाटा आ ठहरा था। गोलियां चलने के बाद।

परेरा और पिंटो को समझ नहीं आया कि चंद पल में ही क्या हो गया है।

फिर एकाएक परेरा ने चंपानेरकर को देखकर घबराए हुए स्वर में कहा–

“ये-ये तुमने क्या किया बेवकूफ?”

उसी पल चंपानेरकर ने रिवॉल्वर परेरा की तरफ उछाल दी।

रिवॉल्वर तेजी से परेरा को लगने जा रही थी, अगर वो रिवॉल्वर को न थामता तो। परंतु परेरा ने हड़बड़ाकर रिवॉल्वर को थाम लिया। पकड़ लिया। ऐसा होते ही चंपानेरकर जहरीले अंदाज में मुस्कराया और उसने जेब से दूसरी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में थाम ली।

परेरा घबराया-सा कभी हाथ में थमी रिवॉल्वर को देखता, तो कभी सपना की लाश को, तो कभी चंपानेरकर को।

परंतु पिंटो की आंखें सिकुड़ चुकी थी।

चंपानेरकर रिवॉल्वर थामे हुए आगे बढ़ा। सोफे के पास पहुंचा और झुककर सपना की बांह को चेक किया। फिर सीधा खड़े होकर दोनों को देखकर शांत स्वर में कह उठा–

“ये तो मर गई...!”

परेरा और पिंटो की निगाहें चंपानेरकर पर थी।

“पुलिस वाला होकर तुमने इसकी हत्या कर दी, तुमने –।”

“मैंने नहीं।” चंपानेरकर सिर हिलाता, होंठ भींचे हुए कह उठा –“तुमने हत्या की। जिस रिवॉल्वर से हत्या हुई –वो तो तुम्हारे हाथ में ही है। अभी मैं पुलिस को फोन करने जा रहा हूं। पुलिस आएगी और सपना की हत्या के इल्जाम में तुम्हें और पिंटो को पकड़ लेगी। स्टोरी ये होगी कि तुमने अपने साथी के साथ मिलकर सपना का अपहरण किया कि फिरौती ले सको। परंतु जे.के. अग्रवाल ने जब फिरौती देने से मना कर दिया तो गुस्से में आकर तुमने सपना की हत्या ही कर दी। सीधा-सा अपहरण और हत्या का मामला है। तुम लोगों ने जे.के. अग्रवाल से फिरौती के लिए फोन पर बात की है। वो आसानी से तुम दोनों की आवाजों की शिनाख्त कर...!”

“तुमने मारा है सपना को।” परेरा ने दांत भींचकर कहा।

“कैसे साबित करोगे?” मुस्कराया चंपानेरकर।

“ये रिवॉल्वर तुम्हारी है।” परेरा ने अपने हाथ में दबी रिवॉल्वर को देखा।

“मेरी रिवॉल्वर तो मेरे हाथ में ही है। जो तुम्हारे पास है, वो मेरी नहीं है। उसी से हत्या की गई। तुम्हारी उंगलियों के निशान उस पर हैं और ये बात पिंटो अदालत में कहेगा।” चंपानेरकर ने पिंटो को देखा।

“मैं...मैं परेरा के खिलाफ गवाही क्यों दूंगा?”

“क्योंकि गवाह बनकर तुम दो साल में ही छूट जाओगे। नहीं तो दस साल के लिए अंदर जाओगे। ये बाद की बात है। अब मैं पुलिस को बुलाने जा रहा हूं।” चंपानेरकर ने अपनी जेब से मोबाइल निकालते हुए कहा।

“रुको।” परेरा ने घबराते हुए कहा –“तुम चाहते क्या हो?”

“कुछ भी नहीं। तुमने अपहरण किया। हत्या की तो मेरा फर्ज बनता है कि तुम्हें कानून के हवाले... ।”

“बकवास मत करो सपना को तुमने मारा है।” परेरा झल्ला उठा –“तुमने ऐसा क्यों किया?”

“मामले को संगीन बनाने के लिए। ताकि तुम दोनों कम से कम दस साल के लिए अंदर जाओ।”

“तुम्हें हम दोनों के नाम कैसे पता हैं?”

“पता हैं।”

“तुम इस प्रकार हमारे पास आ पहुंचे, जैसे कि तुम सब कुछ जानते हो कि हम क्या कर हो और जानते भी हो –तुमने बेवजह सपना की जान ले ली। जरूर तुम्हारे मन में कुछ चल रहा है। तुम...।”

“मेरे मन में बस इतना ही चल रहा है कि तुम दोनों को लम्बे समय के लिए जेल पहुंचा दूं।” कहकर चंपानेरकर नम्बर मिलाने लगा।

परेरा के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे। उसने उसी पल रिवॉल्वर सीधी की और ट्रिगर दबा दिया।

“टक...।”

रिवॉल्वर का लीवर खाली बजकर रह गया।

परेरा ने हड़बड़ाकर चंपानेरकर पर दो-तीन बार गोली चलानी चाहीं।

“टक...टक...टक...।”

लीवर बजकर रह गया। आवाज स्पष्ट सुनी गई।

परेरा का चेहरा फक्क पड़ गया।

चंपानेरकर ने सिर उठाकर उसे देखा और शांत स्वर में बोला–

“तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं भरी रिवॉल्वर मौके पर तुम्हारे हाथ में दूंगा...?”

परेरा अपने आपको चारों तरफ से फंसा हुआ महसूस करने लगा।

तभी पांच कदम दूर खड़ा हुआ पिंटो चंपानेरकर पर झपट पड़ा।

चंपानेरकर सावधान था। उसने फुर्ती से अपनी टांग घुमा दी।

जूता पिंटो की कमर से जा लगा और वह लड़खड़ाकर गिरते-गिरते बचा।

“मैं कभी भी लापरवाह नहीं होता।” चंपानेरकर सख्त स्वर में कह उठा –“तुम दोनों...।”

उसी पल कॉटेज की कॉलबेल बज उठी।

परेरा और पिंटो चिहुंककर उछल पड़े। एक-दूसरे को देखा, आंखें भय से फैल चुकी थीं।

चंपानेरकर एक हाथ में रिवॉल्वर, दूसरे हाथ में फोन थामे हुए दोनों को देख रहा था।

“पु...पुलिस होगी।” पिंटो के होंठों से घबराया-सा स्वर निकला।

“ये अभी पुलिस को बुला नहीं सका है।” परेरा गुर्रा उठा –“पुलिस नहीं हो सकती।”

रिवॉल्वर थामे हुए चंपानेरकर दरवाजे की तरफ बढ़ता हुआ कह उठा।

“कोई चालाकी मत करना –मेरी नजरें तुम दोनों पर ही हैं। जरूरत पड़ी तो मैं तुम दोनों को शूट भी कर सकता हूं।”

परेरा और पिंटो दोनों अपनी-अपनी जगह पर ठगे-से खड़े थे।

उन पर नजर रखे हुए चंपानेरकर ने दरवाजा खोला। बाहर देवराज चौहान खड़ा था।

चंपानेरकर ने दरवाजा पूरा खोल दिया।

भीतर खड़े हुए परेरा ने भी देवराज चौहान को देखा।

“मैंने।” देवराज चौहान भीतर झांकते हुए चंपानेरकर से कह उठा –“दो गोलियां चलने की आवाज सुनी थी।”

“कौन हो तुम?”

“बगल वाली कॉटेज में ठहरा हुआ हूं।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये तो अच्छी बात है। मुझे ऐसे मौके पर किसी गवाह की सख्त जरूरत थी।” पीछे हटता हुआ चंपानेरकर कह उठा –“तुम भीतर आ जाओ।”

“तुम कौन हो?” पूछा देवराज चौहान ने।

“मैं पुलिसवाला हूं –मैंने अभी-अभी इन दो मुजरिमों को पकड़ा है। मैं बीच पर ठहल रहा था कि दो गोलियां चलने की आवाज सुनकर पीछे की खिड़की से कॉटेज में आ गया तो मैंने देखा कि इन दोनों ने उस लड़की का अपहरण करके उसे बंधक बना रखा है। और अभी-अभी इन दोनों ने बताया कि फिरौती ना मिलने की वजह से ही लड़की को इन्होंने शूट कर दिया। रिवॉल्वर अभी भी इसके हाथ में ही है। इसने मुझे भी मारने की कोशिश की, परंतु रिवॉल्वर में गोलियां खत्म हो –।”

“बकवास करता है।” परेरा गुर्रा उठा –“मैंने सपना को नहीं मारा। इसी ने सपना को शूट किया और रिवॉल्वर भी इसी ने ही मेरी तरफ उछाल दी –जो कि मैंने पकड़ ली। ये खामख्वाह में ही हमें संगीन जुर्म में फंसाने की चेष्टा कर रहा है।”

चंपानेरकर ने शांत स्वर में देवराज चौहान से कहा।

“तुम इनकी बातों पर जरा भी ध्यान मत दो। हर मुजरिम जुर्म करके यही कहता है कि उसने जुर्म किया ही नहीं है। पुलिस इन्हें सीधा कर देगी एक घंटे में ही। तुम इस बात के गवाह हो कि तुमने दो गोलियां चलने की आवाज सुनी और जब इस कॉटेज में पहुंचे तो तुमने सोफे पर लड़की की लाश और इसे हाथ में रिवॉल्वर पकड़े हुए देखा। इतनी गवाही ही बहुत है, इन्हें फंसाने के लिए। तुम पुलिस के गवाह हो। तुम लोगों की वजह से ही पुलिस ठीक से अपना काम कर पाती है। नाम क्या है तुम्हारा?”

“देवराज चौहान...।”

“ये बकवास कर रहा है।”

“चुप रहो।” चंपानेरकर गुर्रा उठा।

“क्यों चुप रहूं-तुम झूठ कह रहे...।”

“क्या तुमने इस लड़की का अपहरण नहीं किया?” चंपानेरकर गुस्से से बोला।

“किया।”

“परंतु जे.के. अग्रवाल ने तुम्हें फिरौती देने से इंकार कर दिया?”

“हां, ये सही है परंतु –।”

“फिरौती न मिलती देखकर तुमने लड़की को ही शूट कर दिया।”

“ये झूठ है।” परेरा चीखा।

“जैसे बाकी बातें सच हैं, ये भी एक सच है। तुमने इस गवाह के सामने सब कुछ कबूला है।”

“मैंने हत्या नहीं कबूली।”

“थाने पहुंचकर पुलिस कबूलवा लेगी, तुम वहां डण्डे की तरह सीधे –।”

परेरा ने देवराज चौहान को देखकर ऊंचे स्वर में कहा–

“मैंने लड़की को नहीं मारा है। इसी ने ही इस लड़की को मारा है और अब यह इल्जाम मुझ पर लगा रहा है।”

“मेरा साथी ठीक कहता है।” पिंटो बोला।

देवराज चौहान ने वहां पर हर तरफ नजर मारी।

“तुम पुलिस के पक्के गवाह बने रहना।” चंपानेरकर बोला –“बाकी हम देख लेंगे।”

देवराज चौहान ने चंपानेरकर से कहा–

“तुम सच में पुलिसवाले हो?”

“ये देखो।” चंपानेरकर ने अपनी जेब से अपना आई-कार्ड निकाला।

देवराज चौहान उसके पास पहुंचा, उसने आई-कार्ड देखा।

“तुमने पुलिस को खबर दी, यहां के हालातों के बारे में?”

“बस, देने ही वाला था...मैं तो–।”

तभी देवराज चौहान ने फुर्ती से चंपानेरकर के रिवॉल्वर वाले हाथ पर अपना हाथ मारा।

रिवॉल्वर चंपानेरकर के हाथों से निकलकर नीचे गिर पड़ी।

चंपानेरकर ने हड़बड़ाकर नीचे गिरी अपनी रिवॉल्वर पर झपटना चाहा कि देवराज चौहान ने ठोकर मारकर उसकी रिवॉल्वर को दूर किया और अपनी रिवॉल्वर निकालकर उसकी कमर से लगा दी।

चंपानेरकर ठिठककर रह गया।

परेरा और पिंटो हक्के-बक्के से ये सब देख रहे थे।

“ये क्या कर रहे हो तुम?” चंपानेरकर गुस्से से कह उठा।

“तुमने गलत आदमी को अपना गवाह बना लिया है।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।

“क्या मतलब?”

“मैं देवराज चौहान हूं –डकैती मास्टर देवराज चौहान। सुना है नाम कभी?”

“क्या...?” चंपानेरकर चौंका –“तुम डकैती मास्टर देवराज चौहान हो!”

“हां –वो ही हूँ मैं। इसीलिए मैं तुम्हारा गवाह नहीं बन सकता।” देवराज चौहान ने कड़वे स्वर में कहा।

परेरा और पिंटो चौंके कि वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है।

“तुम पुलिस-कानून के काम में बाधा डाल रहे हो।” चंपानेरकर कसमसाकर कह उठा।

“बाधा डालना ही मेरा काम है।” देवराज चौहान ने कहा और रिवॉल्वर के नाल की चोट उसके सिर पर मारी।

चंपानेरकर तड़प उठा।

उसी पल पुनः एक दूसरी चोट उसके सिर पर मारी।

चंपानेरकर के घुटने मुड़ते ही चले गए और वो नीचे गिरकर लुढ़क गया।

परेरा और पिंटो हक्के-बक्के से ये सब देखे जा रहे थे।

देवराज चौहान ने परेरा को देखकर कहा–

“इसे चेक करो कि ये सच में ही बेहोश है या ये बेहोशी का नाटक कर रहा है।”

परेरा लड़खड़ाती हुई टांगों से आगे बढ़ा। पास आया और उसने चंपानेरकर को चेक किया।

“ये बेहोश है।” परेरा हड़बड़ाकर कह उठा।

देवराज चौहान मुस्कराया और उसने रिवॉल्वर जेब में रख ली।

“अब तुम दोनों ही आजाद हो और खिसक जाओ यहां से।” देवराज चौहान बोला।

परेरा और पिंटो की निगाहें देवराज चौहान पर टिकी थीं। उनके चेहरों पर राहत आ गई थी।

“हमारा यकीन करो –हमने सपना को नहीं मारा है।” पिंटो बोला –“इसी ने ही मारा था और हम पर...।”

“किसी ने भी मारा हो, मुझे क्या। वैसे मैं इस मामले में न आता। परंतु ये मुझे गवाह बनाने जा रहा...।”

“तुम वास्तव में ही देवराज चौहान हो? वो डकैती मास्टर?” परेरा ने कहा।

“हां।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“तुम तो हमारे लिए भगवान बनकर आए।” पिंटो बोला –“हमें बचा लिया।”

“ऐसे मौकों पर मैं कभी भी पुलिस की सहायता नहीं करता।”

“शुक्रिया।” परेरा ने एक गहरी सांस लेकर कहा।

“शुक्रिया की कोई जरूरत नहीं –निकल जाओ यहां से। अपहरण की योजना तुममें से किसकी थी?”

“इसकी।” पिंटो ने परेरा की तरफ इशारा किया।

“फिरौती नहीं मिल रही थी?” देवराज चौहान ने पूछा।

“नहीं –हमने इस लड़की को जिसकी बेटी समझा था –ये उसकी लड़की नहीं थी –गलती में थे हम।”

“कितनी फिरौती मांगी थी?”

“सात करोड़...।”

“कहां रहते हो तुम?”

देवराज चौहान के इस सवाल पर हिचकिचाया परेरा।

“अगर मेरे पास तुम्हारे लायक कुछ काम हुआ तो तुमसे मिलूंगा।” देवराज चौहान ने कहा।

परेरा ने अपनी प्रॉपर्टी वाली दुकान का पता बता दिया।

उसके बाद तीनों एक साथ ही कॉटेज से बाहर निकले।

कॉटेज का दरवाजा खुला रहा। भीतर रोशनी जल रही थी।

“इन हालातों में मेरा बराबर की कॉटेज में रहना ठीक नहीं है। मुझे भी अब यहां से जाना होगा। तुम्हारे पास कार है। किसी टैक्सी स्टैंड पर छोड़ देना मुझे।”

☐☐☐

अगले दिन मोबाइल की बेल लगातार बजते रहने से देवराज चौहान की आंखें खुली।

“हैलो...।” देवराज चौहान ने कॉल रिसीव की -आंखें बंद ही थीं।

“मेरा सिर अभी तक दर्द कर रहा है।” चंपानेरकर की आवाज कानों में पड़ी –“रात तुमने दो बार मेरे सिर पर जोरों का वार किया।”

“तुम्हें बेहोश जो करना था।”

“वो तो पहले से ही तय था। मैं गिरकर बेहोश हो जाता। इतनी जोर से चोट मारने की क्या जरूरत थी?”

“एक करोड़ कमाने के लिए तो ये सस्ता सौदा है।”

“ये बात गलत की तुमने।” चंपानेरकर का शिकायत से भरा स्वर उसके कानों में पड़ा।

“आधे से ज्यादा काम तुमने कर दिया है। अब सिर्फ कन्हैया लखानी बचा है। वो देखा, क्या कर रहा है वो। उसके बाद करोड़ तेरा और हमारे रास्ते अलग-अलग। ये काम भी जल्दी से पूरा कर दे।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।

☐☐☐

शाम के चार बज रहे थे।

परेरा ने लंच के बाद आकर ही प्रॉपर्टी वाला ऑफिस खोला था। इस वक्त परेरा में उत्साह नाम की कोई चीज नजर नहीं आ रही थी। चेहरा मुरझाया हुआ था। कल का बीता दिन उसके लिए बहुत बुरा था। फिरौती नहीं मिल रही थी तो कोई बात नहीं थी। दौलत कमाने का वो कोई दूसरा रास्ता देख लेता। परंतु चंपानेरकर नाम के पुलिसवाले ने वहां पहुंचकर सपना को शूट कर दिया था। ये गम्भीर बात हो गई थी। ए.सी.पी. चंपानेरकर ने तो उसे फंसा देना था, परंतु भला हो डकैती मास्टर देवराज चौहान का, जिसने ठीक मौके पर आकर उसे और पिंटो को बचा लिया था।

वे बीती रात बुरी तरह फंसते-फंसते बचे थे।

सपना का चेहरा उसकी आंखों के सामने ही घूम रहा था कि उसे खामख्वाह ही अपनी जान गंवानी पड़ी। परेरा को इस बात की ज्यादा चिंता थी कि चंपानेरकर उसे कहीं ढूंढ ना निकाले।

पहली बार ही वो अपने किसी काम में इस बुरी तरह से असफल हुआ था।

तभी उसने ऑफिस का काले शीशे वाला दरवाजा खोलकर किसी को भीतर आते हुए देखा।

जब आने वाले के चेहरे पर निगाहें पड़ी तो वह थमककर रह गया।

“तुम?” उसके होंठों से निकला।

आने वाला देवराज चौहान था।

आगे बढ़कर वो कुर्सी पर बैठा और कह उठा–

“मुझे आशा नहीं थी कि हम इतनी जल्दी मिलेंगे। परंतु एक काम नजर में आ गया है।”

परेरा ने जल्दी से अपने को संभाला।

“मेरे साथ काम करना पसंद करोगे?”

“तुम्हारे साथ कौन नहीं काम करना चाहेगा!” परेरा के शरीर में उत्साह का संचार होने लगा।

“काम से पहले मैं तुम्हारा टेस्ट लूंगा –ताकि ये देख सकूँ कि तुम काम के लायक हो भी या नहीं।”

“लायक हूं मैं।”

“जरूर होंगे –परंतु मैं तुम्हारा टेस्ट अवश्य लूंगा।”

“वो कैसे?”

“वो टेस्ट भी काम के रूप में ही होंगे। उन टेस्टों से ही तुम करोड़ों रुपया कमा लोगे। उसके बाद अगर तुम मुझे ठीक लगे तो ठीक, नहीं तो अपने हिस्से का करोड़ों रुपया लेकर, अपने रास्ते पर चले जाना।”

“करोड़ों रुपया...!” उसके होंठों से हड़बड़ाया-सा स्वर निकला।

“डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथ काम करोगे तो रकम करोड़ों से कम क्या होगी।” देवराज चौहान मुस्कराया।

“और ये टेस्ट की रकम होगी।”

“हां।”

“तो काम की रकम क्या होगी, जो काम बाद में करना है?”

“जब उसका वक्त आएगा तो तब उसकी भी बात हो जाएगी। अभी तो टेस्ट देने को तैयार रहो।”

“कब?”

“कुछ दिन का इंतजार करना होगा। परंतु आज से तुम कोई और काम नहीं करोगे। एकदम शांत बैठ जाना होगा।”

“ठीक है।” सिर हिलाया परेरा ने –“टेस्ट कितने दिन तक चलेंगे?”

“एक हफ्ते से ज्यादा नहीं।”

“और एक हफ्ते में मुझे करोड़ों की रकम मिल जाएगी?” परेरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“पक्का-अगर तुमने टेस्टों में अपना काम ठीक से पूरा किया तो –।”

“मैं हर काम को ठीक से करना जानता हूं।”

“ये तो अच्छी बात है।” देवराज चौहान यह कहकर उठ खड़ा हुआ।

“सुनो।” परेरा बेचैनी से कह उठा –“मैं ए.सी.पी. चंपानेरकर के बारे में सोच रहा था।”

“वो रात वाला पुलिसवाला?”

“हां, कहीं वो-वो मेरे सामने पड़ गया तो–?”

“ऐसी बातों की परवाह नहीं करते। उसे भूल जाओ और आगे की सोचो, बड़ा बनने की सोचो।”

“तुम जा रहे हो?”

“हां।”

“तो...तो कब आओगे...मैं...मैं...।”

“कुछ दिन शांत ही बैठे रहो। मैं जल्दी ही आऊंगा और इस बारे में पिंटो से या किसी और से कोई भी बात मत करना।”

☐☐☐

स्टार रेस्टोरेंट!

उस भीड़ भरी सड़क के किनारे पर स्थित था। सड़क पर से सारा दिन ट्रैफिक निकलता रहता था। सड़क के किनारे पर लोग-बाग पैदल ही आते-जाते रहते थे। रेस्टोरेंट सुबह आठ बजे ही खुल जाता था और रात बारह बजे बंद होता था। नाश्ता, लंच और डिनर चलता रहता था। सुबह बारह बजे तक नाश्ता समाप्त होता था तो लंच चालू हो जाता था। लंच चार बजे समाप्त होता था तो सात बजे डिनर शुरू हो जाता था।

दिनभर खाने वालों की वहां भीड़ लगी रहती थी।

रेस्टोरेंट खासा चलता था।

रेस्टोरेंट का मालिक कन्हैया लखानी था। चालीस बरस का एक स्वस्थ इंसान था वो। चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूंछें। सिर पर हमेशा ही उस्तरा फिरवाकर रखता था और टोपी डाले रहता था। दाएं कान में एक नन्हीं-सी बाली रहती थी। शरीर पर सफेद कुर्ता-पायजामा ही हर वक्त नजर आता था। रेस्टोरेंट में कुल मिलाकर पंद्रह कर्मचारी थे, जो कि हर वक्त काम में ही लगे दिखाई देते थे। कन्हैया लखानी हर वक्त छोटे से कैश काउंटर पर बैठा हुआ दिखता था। कहीं काम होता, जाना होता तो अपने विश्वासी कर्मचारी कुन्दन को कैश पर बिठाकर जाता था। चार सालों से उसका रेस्टोरेंट बहुत बढ़िया चल रहा था।

जबकि कन्हैया लखानी कानून का फरार मुजरिम था।

सात साल पहले दादागिरी करते वक्त उसने और उसके साथियों ने आठ लोगों की एक साथ हत्या कर दी थी और भागने से पहले ही पुलिस के हाथों में पहुंच गया था। उसके बाद वह जेल पहुंचा। केस चला। डेढ़ साल जेल में रहने के साथ केस भी चलता रहा। परंतु पुलिस गवाहों का इंतजाम नहीं कर पाई। हत्याओं के वक्त आंखों देखे गवाह शरीफ लोग थे, और कोई भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया था कि ऐसे लोगों के खिलाफ गवाही दे, जिन्होंने आठ हत्याएं कर दी थीं।

इसी का फायदा उठाकर लखानी के वकील ने उसकी जमानत की अर्जी लगा दी।

महीने भर बाद जमानत के आधार पर कन्हैया लखानी जेल से बाहर आ गया। परंतु लखानी जानता था कि वो बचने वाला नहीं है। पुलिस साबित करके रहेगी कि वो हत्यारा है। केस कितना भी कमजोर पड़ जाए, परंतु उसे कम से कम उम्रकैद तो होगी ही, जबकि लखानी जेल में सड़ना नहीं चाहता था।

कन्हैया लखानी जमानत जम्प कर गया।

यानि कि वह फरार हो गया। लापता हो गया।

पुलिस ने उसे काफी ढूंढा परंतु वह हाथ नहीं आया तो साल भर बाद उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया।

लखानी जानता था कि अब पुलिस के हाथ नहीं पड़ना है। पड़ गया तो उम्रभर वह जेल से नहीं निकल सकेगा। उसने नोटों का जुगाड़ किया और शराफत से जिंदगी बिताने के लिए छः साल पहले ये रेस्टोरेंट खरीद लिया था। इतना तो वो समझ ही चुका था कि अब शराफत से जिंदगी बितानी होगी, अगर जेल जाने से बचना है तो।

अपना हुलिया भी बदल लिया। चेहरे पर दाढ़ी-मूंछें रख ली थीं। सिर गंजा कराकर रहता।

इतने सालों से सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था और अब तो वो यह बात भी भूलने लगा था कि वो एक भगोड़ा है। परंतु इस बात का ख्याल उसे कभी नहीं आया कि जब मुसीबत आती है तो बे-आवाज, दबे पांव, खामोशी से आकर गले में लिपट जाती है। वो कहीं भी जा छिपे-कितने भी चेहरे बदल ले, मुसीबत अपने शिकार के गले तक पहुंच ही जाती है, और लखानी की मुसीबत बना ए.सी.पी. चंपानेरकर।

चंपानेरकर ने रेस्टोरेंट में कदम रखा और ठिठककर निगाह हर तरफ मारी।

भीड़ थी रेस्टोरेंट में। पच्चीस-तीस लोग खाने में लगे हुए थे। चार वेटर उन्हें सामान पहुंचाने में लगे हुए थे।

चंपानेरकर उस छोटे से कैश काउंटर की तरफ बढ़ गया, जिसके पास कुर्सी पर लखानी बैठा हुआ था। पास पहुंचकर चंपानेरकर ने कुछ दूर पड़ी कुर्सी खींची और वह कन्हैया लखानी के पास आ बैठा।

लखानी ने अपनी आंखें सिकोड़कर उसे देखा और बोला– “खाना खाना है तो फिर उधर बैठो –यहां मेरे पास क्यों बैठे हो?”

चंपानेरकर ने अपना आई-कार्ड निकाला और उसे काउंटर पर रखते हुए कह उठा– “इसे देख।”

लखानी ने कार्ड देखकर जाना कि वो ए.सी.पी. है तो उसका दिल जोरों से धड़क उठा कि वह उससे क्या चाहता है?

“ओह! आप एक पुलिसवाले हैं।” लखानी मुस्कराकर कार्ड उसे देता हुआ मुस्कराया –“आप तो मालिक हैं –कहीं भी बैठ जाइए। कहिए, क्या लेंगे खाने में। यहीं पर ही मैं आपके लिए टेबल लगवा देता हूं। पुलिसवालों का तो मैं खास ध्यान रखता हूं।”

चंपानेरकर ने कार्ड जेब में रखा और बोला– “नाम बता अपना।”

“कन्हैया...।”

“पूरा नाम...”

“बस, कन्हैया ही है।”

“जमानत जम्प कर रखी है तूने।”

लखानी को अपने पांवों के नीचे से जमीन निकलती हुई-सी महसूस हुई।

चंपानेरकर लखानी के चेहरे पर बदलते हुए भावों को देख रहा था, फिर उसने जेब से तस्वीर निकालकर उसके सामने रख दी।

ये वो तस्वीर थी जब उसे आठ हत्याओं के जुर्म में पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उसकी थाने में तस्वीर खींची थी। उसके सिर पर बाल थे। चेहरा क्लीन शेव्ड था। तब वो जवान जैसा दिखता था।

लखानी ने हड़बड़ाकर चंपानेरकर को देखा ।

चंपानेरकर ने तस्वीर वापस जेब में रखी और बोला– “नाम क्या है तेरा?”

“कन्हैया लखानी।”

“जमानत जम्प करके तुमने सोचा कि तुम कभी भी पकड़े नहीं जाओगे? आठ हत्याओं का जुर्म तेरे सिर पर है।”

लखानी ने अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा–

“साहब जी, कसम से मैं अब शराफत से अपनी जिंदगी बिता रहा हूं। आप यह देख रहे हैं कि...।”

“मैं देख रहा हूं कि एक भगोड़ा कितनी मौज से अपनी जिंदगी बिता रहा है, और नोट कूट रहा है।” चंपानेरकर मुस्कराया।

लखानी का चेहरा फक्क था।

“बोल, क्या करूं तेरा?”

“मुझे छोड़ दीजिए साहब जी, मैं...।”

“कीमत भारी चुकानी पड़ेगी।”

“मैं दूंगा-सब कुछ दूंगा।”

“मैं तेरे शरीर पर पड़े हुए ये कपड़े भी उतरवा लूंगा, जो कि तेरे को मंजूर नहीं होगा।”

“मुझे यह भी मंजूर होगा।” लखानी ने जल्दी से कहा।

“तू कानून से जरूर बच जाएगा, परंतु तू फक्कड़ हो जाएगा।” चंपानेरकर बोला।

“कानून का ही तो डर है मुझे।”

“इस वक्त तू हां पे हां करता जा रहा है –जब देने को कहा तो तू तड़पेगा।”

लखानी ने चंपानेरकर को देखा।

“तुझे जेल में ही पहुंचा देना ठीक होगा। तब –।”

“क्या बात करते हो माई बाप-ऐसा कहकर क्यों मेरी जान लेते हो?” लखानी तड़प उठा।

“मेरी बात सुनकर तेरी जान निकलती है?”

“हां...।”

“जब छोड़ने की कीमत मांग लूंगा तो तेरी जान ज्यादा निकलेगी।”

“नहीं निकलेगी।”

“माल कितना इकट्ठा किया है अब तक?”

“तीस-चालीस लाख होगा।”

“वो सब मेरे को दे दो।”

“जी-दे दूंगा।” फौरन ही सिर हिलाया लखानी ने।

“ये रेस्टोरेंट।”

“क्या ये रेस्टोरेंट?” अब लखानी ने सूखे होंठों पर अपनी जीभ फेरकर उसे देखा।

“जिसके नाम कहूं, उसके नाम लगा देना और तू हाथ झाड़कर यहां से चले जाना।”

लखानी का चेहरा उतर गया।

“क्या हुआ?”

“ये रेस्टोरेंट वाली बात तो गलत है।”

“मैंने तो यह पहले ही कहा था कि मैं तेरे कपड़े भी उतार लूंगा। नहीं मन मानता तो कोई बात नहीं –जेल चलने की तैयारी कर लो।”

“ये आप क्या कह रहे हैं माई बाप?” लखानी परेशान-सा कह उठा –“मैं यह रेस्टोरेंट भी दे दूंगा।”

“कल देवेंद्र नागर नाम का आदमी तेरे पास आएगा –रेस्टोरेंट उसके नाम लगा देगा कोर्ट जाकर।”

लखानी ने सिर हिला दिया।

“चल उठ।”

“उठ-क्यों?”

“अब तूने यहां बैठकर करना क्या है? सारा माल तो अब पराया हो गया। पल्ले जो तीस-चालीस लाख रुपया है वो भी तू मुझे दे दे। एक ही जगह रखा है या फिर अलग-अलग जगह पर?” चंपानेरकर ने पूछा।

“अलग-अलग जगह पर...।”

“इसका मतलब कि मुझे सारा दिन आज तेरे साथ ही बरबाद करना होगा। कोई बात नहीं, उठ जा, नोट इकट्ठे करते हैं।”

☐☐☐