अर्जुन भारद्वाज ने सिग्रेट सुलगाकर कश लिया और नीना पर निगाह मारी। नीना ड्रेसिंग टेबल वाला छोटा स्टूल लिए, कमरे के दरवाजे का आधा इंच खोले बाहर, सामने नजर आते रानी ताशा के कमरे के दरवाजे पर निगाह रखे हुए थी। अर्जुन और नीना आज सुबह से ही होटल के कमरे में बंद थे। रानी ताशा के कमरे की निगरानी कर रहे थे। सुबह नौ बजे विजय बेदी को बाहर जाते देखा तो अर्जुन उसके पीछे लग गया था। दिन भर बेदी पर निगाह रखे, उसके पीछे रहा। बेदी दिन में कई लोगों से मिला। अर्जुन भारद्वाज उन लोगों को देखते ही समझ गया कि वो सब छंटे हुए लोग थे। अर्जुन जानता था कि विजय बेदी देवराज चौहान के ठिकाने का सुराग पाने के लिए भाग-दौड़ कर रहा है कि उसे रानी ताशा से नोट मिलने हैं।

साढ़े आठ बजे विजय बेदी के पीछे-पीछे अर्जुन भारद्वाज भी कमरे में लौट आया था। अपने कमरे का दरवाजा जरा-सा खुला देखा और नीना की झांकती आंखें देखी। नीना ने उसे भीतर आने दिया और फिर उसी स्थिति में बैठ गई कि बाहर नजर रख सके। अर्जुन भारद्वाज ने नीना को बताया कि वो दिन-भर बेदी के पीछे रहा। खास बात नहीं हुई। बेदी, देवराज चौहान के ठिकाने को पता करने के लिए, लोगों से मिलता रहा। तो नीना ने भी बताया कि वो पूरा दिन इसी तरह बैठी, रानी ताशा के कमरे पर नजर रखे रही। कोई नहीं आया सिवाय दोपहर को वेटर के, जो कि लंच लेकर आया था, सोमाथ अवश्य दिन में दो बार बाहर निकला और बगल के कमरे में गया था।

अर्जुन ने नहा-धोकर नाइट सूट पहना।

“डिनर के लिए कह दूं?” अर्जुन ने पूछा।

“कह दीजिए सर। दोपहर को भी नहीं खाया। भूख लगी है।” नीना ने गर्दन घुमाकर धीमे स्वर में कहा।

“लंच क्यों नहीं किया?”

“आपकी जेब से ज्यादा खर्च ना हो, इसका मैं ध्यान रखती हूं। लंच लेती तो पंद्रह सौ ठुक जाता।” नीना ने दरवाजे पर पुनः आंख टिका दी थी-“मेरे मन ने हां नहीं की कि लंच करूं।”

अर्जुन मुस्कराया और रूम सर्विस में इंटरकॉम करके, डिनर का ऑर्डर दिया।

“डिनर आ गया सर।” कुछ देर बाद नीना स्टूल पर बैठी, गर्दन घुमाकर बोली।

“तो दरवाजे से हट जाओ। वेटर को आने दो।”

“हमारा नहीं सर, रानी ताशा के कमरे का डिनर।” नीना ने बताया।

फिर नीना ने सोमाथ को उस कमरे से निकलकर बगल के कमरे में जाते देखा। दस मिनट बाद उनका भी डिनर आ गया। नीना ने स्टूल उठाकर ड्रेसिंग टेबल के सामने रखा।

दरवाजा खोला। वेटर डिनर भीतर टेबल पर लगा गया। नीना ने दरवाजा बंद किया और स्टूल की तरफ बढ़ते बोली।

“आप डिनर लीजिए सर। मैं वहां नजर रखती हूं।”

“तुम भी ले लो। दस मिनट में क्या फर्क पड़ेगा। वो भी डिनर कर रहे होंगे।” अर्जुन उठते हुए बोला।

दोनों डिनर टेबल पर बैठ गए।

खाना खाने लगे।

“सर।” नीना बोली-“रानी ताशा के बाईं तरफ वाले, साथ वाले कमरे में भी रानी ताशा के आदमी मौजूद हैं। आज दिन भर सोमाथ तीन बार उस कमरे में गया है।”

“उस कमरे से कोई बाहर निकला?” अर्जुन भारद्वाज ने पूछा।

“नहीं सर।”

“किसी को देखा हो कि भीतर कौन है?”

“नहीं। वो दरवाजा बंद ही रखते हैं। सिर्फ वेटर के आने पर खोलते हैं, पर खोलने वाला पीछे रहता है, दिखता नहीं।”

“सोमाथ ही उस कमरे में जाता है, उस कमरे से निकलकर, कोई रानी ताशा के पास नहीं जाता?”

“ये ही बात सर।”

“तो हम सोच सकते हैं कि उस कमरे में रानी ताशा के आदमी होंगे।” अर्जुन ने सोच भरे स्वर में कहा-“सारे मामले पर निगाह दौड़ाए तो स्पष्ट है रानी ताशा अकेली नहीं आएगी। वो देवराज चौहान को लेने आई है, तो इस बात को भी जानती होगी कि रुकावटें भी आएंगी। वो पूरी तैयारी के साथ आई होगी।”

“सर, ये अजीब मामला है। दूसरे ग्रह के लोग और...”

“परंतु मुझे हालात सच लग रहे हैं। ये मामला गम्भीर है नीना और खतरनाक भी। अगर धरती के लोगों को पता चल जाए कि दूसरे ग्रह के लोग आए हैं तो हंगामा खड़ा जो जाए पृथ्वी पर।”

“सर एक आइडिया आया है।” नीना फौरन कह उठी-“हम ये मामला मिनटों में संभाल सकते हैं।”

“वो कैसे?”

“पुलिस को रानी ताशा के बारे में खबर दे देते हैं कि वो दूसरे ग्रह के लोग हैं। उसके बाद तो इनकी जान पर बन आएगी पुलिस इनकी आई-डी मांगेगी। जो कि इनके पास होगी नहीं। ये गिरफ्तार हो जाएंगे। ये जो पोपा (अंतरिक्ष यान) की बात करते हैं, उसके बारे में भी देर-सवेर में पुलिस मुंह खुलवा लेगी या हम बता देंगे कि अंतरिक्ष यान कहां पर खड़ा है। इस तरह देवराज चौहान का भी इनसे पीछा छूट जाएगा।”

अर्जुन, नीना को देखने लगा।

“मैंने ठीक कहा न सर?”

“कुछ हद तक तुम्हारी बात सही है, परंतु इस बारे में हम खुद कोई फैसला नहीं ले सकते।”

“क्यों सर?”

“हमारी क्लाइंट नगीना है। जब तक नगीना ऐसा करने को हां नहीं कहती, तब तक हम कुछ नहीं करेंगे। ये बात नगीना से डिस्कस करेंगे। इस बारे में वो क्या कहती है, वो ही हम करेंगे।”

“नगीना को क्यों एतराज होगा। वो तो खुश होगी कि, रानी ताशा से पीछा छूट गया।” नीना कह उठी।

“वो किस तरह सोचते हैं, ये तो उनसे ही पता चलेगा। परंतु इस बारे में बात करूंगा।”

खाना समाप्त करके नगीना वापस अपनी ड्यूटी पर जा पहुंची। स्टूल रखा और जरा-सा दरवाजा खोले बैठ गई। फिर सिर घुमाकर धीमे स्वर में अर्जुन से बोली।

“कॉफी का मन हो रहा है सर।”

“अभी कह दता हूं।” अर्जुन ने रूम सर्विस में दो कॉफी के लिए इंटरकॉम किए।

जब दोनों कॉफी पी रहे थे। नीना दरवाजे पर स्टूल रखे बैठी थी। अर्जुन बेड पर टेक लगाए हुए था कि तब अर्जुन को नगीना का फोन आया था। बातें गई फिर फोन बंद करके अर्जुन ने कहा।

“देवराज चौहान और बबूसा आज आधी रात को यहां आ जाएंगे।”

“यहां?” नीना हैरानी से बोली-“क्यों सर?”

अर्जुन भारद्वाज, नगीना से हुई बातचीत नीना को बताने लगा।

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रात के दो बजने वाले थे। सड़कों पर सुनसानी जैसा माहौल था दिन की अपेक्षा। वाहन आ-जा रहे थे, परंतु कम थे। कई साइकिलों वाले भी जा रहे थे, जो कि अपने काम से लौट रहे थे। कभी-कभार ही किसी हॉर्न की आवाज कानों में पड़ जाती थी। मध्यम-सी बहती हवा, राहत पहुंचा रही थी।

जगमोहन मध्यम गति से कार चला रहा था। देवराज चौहान बगल में बैठा था। बबूसा पीछे की सीट पर मौजूद था। काफी देर से कार में छाई खामोशी को तोड़ते जगमोहन ने कहा।

“तुम खतरे में जा रहे हो। रानी ताशा को तुम्हारे पास होने की भनक भी पड़ गई तो तब कुछ भी हो सकता है।”

“उसे कुछ भी मालूम नहीं होगा।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला-“वो अपने कमरे में नींद में होगी।”

“हम पहुंचने जा रहे हैं।” जगमोहन बोला।

देवराज चौहान ने सिर हिलाया।

“मैं राजा देव के साथ हूं।” बबूसा बोला-“मैं राजा देव को कुछ नहीं होने दूंगा।”

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

कुछ ही देर में कार होटल सी-व्यू पर्ल के सामने जा रुकी।

देवराज चौहान और बबूसा बाहर आ गए। दरवाजे बंद किए गए।

“सावधानी से काम करना।” जगमोहन गम्भीर-सा कह उठा-“रानी ताशा की नजरों में मत आना।”

जवाब में देवराज चौहान ने मुस्कराकर सिर हिला दिया।

जगमोहन कार को आगे बढ़ाता ले गया।

“आओ बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा और होटल के प्रवेश गेट की तरफ बढ़ गया।

बबूसा उसके साथ चलता कह उठा।

“तो रानी ताशा इस होटल में है। सोचकर मुझे कितना अजीब लग रहा है कि मैं रानी ताशा के कितने करीब हूं और वो आपको ढूंढ़ रही है। आप भी उसके कितने करीब आ चुके हैं। रानी ताशा सोच भी नहीं सकती।”

दोनों होटल के भीतर पहुंचकर लिफ्ट की तरफ बढ़ गए।

“अगर रानी ताशा मेरे सामने पड़ गई तो तब तुम क्या करोगे?” देवराज चौहान ने पूछा।

“कुछ समझ में नहीं आता। आपकी बात सुनकर मैं परेशान हो गया हूं राजा देव। रानी ताशा के साथ सोमाथ है। मुझे सोमाथ की चिंता है। वो मेरे से ताकतवर है। अगर जोबिना के साथ रानी ताशा के आदमी भी साथ में या पास में कहीं हैं तो मैं उनसे जीत नहीं पाऊंगा। परंतु मुझे हराना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा। अगर जोबिना मेरे हाथ लग जाए तो फिर मेरा मुकाबला कोई नहीं कर पाएगा। महापंडित ने बताया था कि वो मुझे मार भी सकते हैं।”

“तुम्हें तो अपनी चिंता सताने लगी बबूसा।”

“मैं आपको रानी ताशा की चालों से बचाना चाहता हूं। ये तभी हो सकेगा, जब मैं सलामत रहूं। मेरी हर चिंता आपके लिए ही है राजा देव। अगर आपको सदूर ग्रह के जन्म की याद आ जाती तो सब ठीक हो गया होता।”

दोनों लिफ्ट में सवार हुए और दूसरी मंजिल पर पहुंचे। लिफ्ट से निकलकर सुनसान गैलरी में आगे बढ़ गए। एक वेटर जाता अवश्य दिखाई दिया। देवराज चौहान को अर्जुन भारद्वाज के कमरे का नम्बर पता था। वो अर्जुन भारद्वाज के कमरे के सामने पहुंचा और सामने के बंद दरवाजों पर निगाह मारी। वो नहीं जानता था कि सामने के किस कमरे में रानी ताशा मौजूद है। देवराज चौहान ने हौले से अर्जुन के कमरे का दरवाजा थपथपाया। चंद पल बीते कि दरवाजा नीना ने खोला वो दोनों भीतर प्रवेश कर गए। दरवाजा पुनः बंद हो गया।

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रानी ताशा हड़बड़ाकर गहरी नींद से उठ बैठी। इंतेहाई खूबसूरत चेहरे पर व्याकुलता स्पष्ट नजर आ रही थी। उसने तुरंत सारे कमरे में नजरें दौड़ाईं, परंतु सब ठीक था। सोमारा उसकी बगल में सोई हुई थी। विजय बेदी लम्बे सोफे पर नींद में था। सोमाथ कुछ दूर कुर्सी पर आंखें बंद किए बैठा अपने भीतर लगी मशीन को आराम दे रहा था।

परंतु रानी ताशा के चेहरे की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। वो बेड से उतरी। शरीर पर गाऊन था। जिसमें उसके आकर्षक उरोज मध्यम गति से हिलते महसूस हो रहे थे। वो सीधे सोमाथ के पास पहुंची।

आहट पाकर सोमाथ ने फौरन आंखें खोल दीं।

“क्या बात है रानी ताशा?” सोमाथ कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।

“मुझे अभी-अभी महसूस हुआ कि राजा देव मेरे करीब आ पहुंचे हैं। मेरी आंख खुल गई।” रानी ताशा ने बेचैनी से कहा।

“ये कैसे सम्भव है रानी ताशा?”

“मुझे एहसास हुआ है अभी कि...”

“आप हर वक्त राजा देव के बारे में सोचती रहती हैं।” सोमाथ बोला-“ऐसे में आपको वहम हुआ...”

“सोमाथ।” रानी ताशा के स्वर में दृढ़ता आ गई-“महापंडित ने राजा देव का एहसास कराने की शक्ति मेरे भीतर डाल रखी है। महापंडित ने कह रखा है कि जब भी राजा देव मेरे करीब कहीं पर होंगे तो मुझे एहसास हो जाएगा।”

“लेकिन।” सोमाथ ने कमरे में निगाहें दौड़ाईं-“कमरे में तो हम लोग ही हैं।”

“बाहर देखो।” रानी ताशा बेहद परेशान दिख रही थी-“मेरा एहसास गलत नहीं हो सकता।”

सोमाथ तेजी से दरवाजे के पास पहुंचा और दरवाजा खोलकर बाहर देखा।

राहदारी सुनसान पड़ी थी। हर कमरे का दरवाजा बंद दिखा। सोमाथ दरवाजा बंद करके पलटा।

“बाहर कोई भी नहीं है।”

“ओफ्फ। ये क्या हो रहा है।” रानी ताशा चिल्ला उठी-“राजा देव के बारे में मुझे गलत एहसास नहीं हो सकता। जरूर कोई बात है मुझे राजा देव के पास आ जाने का एहसास क्यों हुआ?”

सोमाथ खामोशी से खड़ा रहा।

रानी ताशा तेज-तेज कदमों से चलती बेड के पास पहुंची और वो यंत्र उठा लिया, जिस पर, डोबू जाति के पास खड़े पोपा (अंतरिक्ष यान) में मौजूद किलोरा से बात कर लिया करती थी। बेड पर बैठकर वो यंत्र द्वारा किलोरा से सम्पर्क बनाने लगी। दो मिनट की चेष्टा के बाद सम्पर्क बन गया। यंत्र से किलोरा की आवाज उभरी।

“कौन है?”

“मैं हूं किलोरा।”

“ओह रानी ताशा-हुक्म दीजिए।” किलोरा की आवाज उभरी।

“महापंडित की तरफ से कोई संदेशा आया?”

“नहीं, रानी ताशा।”

“मैं इस यंत्र द्वारा महापंडित से बात नहीं कर सकती। परंतु पोपा में मौजूद यंत्रों द्वारा तुम महापंडित से बात कर सकते हो। अभी महापंडित से पूछो कि मुझे राजा देव के पास होने का एहसास हुआ है, क्या राजा देव मेरे पास ही कहीं हैं?”

“मैं पूछता हूं रानी ताशा। महापंडित का जवाब मैं अभी आपको देता हूं।”

रानी ताशा ने यंत्र बंद किया। तब तक सोमारा उठ बैठी थी।

“क्या बात है ताशा?”

“मुझे गहरी नींद में राजा देव के पास ही मौजूद होने का एहसास हुआ है।” रानी ताशा ने कहा।

“ये कैसे हो सकता है।”

“राजा देव की मौजूदगी का एहसास कराने वाली शक्ति महापंडित ने मेरे भीतर डाल रखी है।”

“लेकिन यहां तो राजा देव हैं नहीं।” सोमारा ने कमरे में निगाह दौड़ाई।

“तो मुझे एहसास क्यों हुआ?” रानी ताशा ने व्याकुल स्वर में कहा-“महापंडित गलत नहीं हो सकता। एहसास कराने की शक्ति गलत नहीं हो सकती। मेरी गहरी नींद का अचानक टूट जाना...जरूर कोई बात है।”

“आपका मतलब कि राजा देव कहीं पास ही में हैं?”

“हां। ये बात सच है।”

सोमारा गम्भीर हो उठी।

“कहीं राजा देव कमरे के बाहर तो नहीं खड़े?”

“सोमाथ देख चुका है। बाहर कोई नहीं है।” रानी ताशा ने कहा।

सोमारा उठ कर दरवाजे की तरफ बढ़ गई। उसने दरवाजा खोला। बाहर झांका। राहदारी को सुनसान पाया। कहीं से कोई आहट भी नहीं उठ रही थी, रात के इस वक्त। दरवाजा बंद करके सोमारा, सोमाथ के पास पहुंची।

“क्या बात है सोमाथ? रानी ताशा को गलत एहसास नहीं हो सकता।” सोमारा बोली।

“राजा देव यहां पर नहीं हैं सोमारा।” सोमाथ शांत स्वर में बोला।

“तो कहां है। रानी ताशा को गलती होने की गुंजाईश नहीं है। भैया (महापंडित) के काम हर तरह के पक्के होते हैं। राजा देव को एहसास कराने वाली शक्ति भैया ने, रानी ताशा के भीतर डाल रखी है।”

“मेरे पास इन बातों का जवाब नहीं है।” सोमाथ बोला।

सोचों में डूबी सोमारा रानी ताशा के पास पहुंची तो रानी ताशा को सुबकते पाया।

“इसमें रोने की क्या बात है ताशा?” सोमारा उसके करीब बेड पर बैठती कह उठी।

“मेरा देव मुझे नहीं मिल रहा। कितनी तड़प रही हूं मैं। देव भी मेरे बिना तड़प रहे होंगे। जरूर वो मुझे तलाश करने के लिए होटल में आए होंगे। परंतु मैं किस कमरे में हूं ये भूल गए होंगे। वो जरूर इस कमरे के बंद दरवाजे के बाहर से निकले होंगे। वो मुझे ही ढूंढ़ रहे हैं। बबूसा की निगाहों से बचकर अपनी जगह से निकल आए होंगे, मेरे पास आने के लिए। जरूर राजा देव

कही करीब ही हैं।” भर्राए स्वर में रानी ताशा कह उठी।

“सोमाथ।” सोमारा ने कहा-“बाहर जाकर देखो, शायद राजा देव नजर आ जाएं।”

सोमाथ अपनी जगह पर खड़ा रहा।

“जाओ सोमाथ।” सोमारा ने पुनः कहा।

“मैं सिर्फ रानी ताशा का हुक्म मानता हूं या मेरे मन में जो आए वो करता हूँ।” सोमाथ शांत स्वर में बोला।

“सोमाथ को राजा देव को ढूंढ़ने को कहो ताशा।” सोमाथ ने रानी ताशा से कहा।

“जाओ सोमाथ। सोमारा ने जो कहा, वो ही करो।”

सोमाथ आगे बढ़ा और दरवाजा खोलते बाहर निकलता चला गया। बातचीत के स्वर सुनकर विजय बेदी की आंख खुल गई। वो बिगड़े स्वर में बोला।

“रात को भी चैन नहीं। क्या हो रहा है अब?”

“रानी ताशा को, राजा देव के पास में ही होने का एहसास हुआ है।” सोमारा ने कहा।

“तो अब सपने भी आने लगे।”

“सपने क्या होते हैं?” सोमारा ने पूछा।

“लगता है सपने तुम लोगों के ग्रह पर नहीं होते।” बेदी ने तीखे स्वर में कहा-“सो जाओ। देवराज चौहान पास में कहीं भी नहीं आ सकता। मुझे सोने दो। कल फिर सारा दिन भाग-दौड़ करनी है।” कहकर वो सोने का प्रयत्न करने लगा।

रानी ताशा के गाल आंसुओं से गीले थे।

“आप आराम कीजिए ताशा।” सोमारा ने कहा-“सोमाथ बाहर देखने गया है।”

“मेरा देव मुझे बांहों में लेने के लिए, कितना तड़प रहा होगा।” रानी ताशा व्याकुल स्वर में कह उठी।

“सोमाथ राजा देव को कैसे पहचानेगा?”

“महापंडित ने राजा देव की तस्वीर, सोमाथ के दिमाग में डाल रखी है। वो राजा देव को फौरन पहचान जाएगा।”

तभी यंत्र से मध्यम-सी, अजीब-सी आवाजें आने लगीं।

रानी ताशा ने तुरंत बटन दबाकर कहा।

“कहो किलोरा?”

“रानी ताशा। महापंडित से कठिनता से मेरी बात हो पाई है। सदूर ग्रह पर तूफान आया था कुछ पहले और इससे महापंडित की मशीनों को कुछ नुकसान पहुंचा है। वो कहता है मशीनें ठीक होने पर ही कुछ बता सकेगा। इस स्थिति में वो मशीनों से बात नहीं कर सकता। इतनी बात के साथ ही सम्बंध कट गया।”

“ठीक है।” रानी ताशा बोली-“डोबू जाति पर हमारा पूरा काबू है न?”

“जी रानी ताशा। डोबू जाति पर हमारी ही हुकूमत चल रही है। कोई समस्या नहीं।”

रानी ताशा ने यंत्र बंद किया और गीले गालों को साफ करने लगी।

“मेरा देव। मेरा प्यारा देव, जाने कब मिलेगा मुझे। इतनी देर क्यों लग रही है देव को पाने के लिए।”

“सब ठीक हो जाएगा ताशा। मुझे भी तो बबूसा की तलाश है। इस वक्त हमें सब्र से काम लेना चाहिए।”

तभी दरवाजा खोलकर सोमाथ ने भीतर प्रवेश किया और बोला।

“आसपास कहीं भी राजा देव मुझे नहीं दिखे। मैंने हर तरफ अच्छी तरह देखा है।”

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“तुम लोग कैसे रानी ताशा पर नजर रखे हुए हो?” देवराज चौहान ने पूछा।

“आधा इंच दरवाजा खोलकर स्टूल पर बैठकर नीना उन पर निगाह रख रही है।” अर्जुन भारद्वाज ने बताया।

देवराज चौहान कुर्सी पर बैठा था। बबूसा कमरे में गम्भीरता से टहल रहा था। नीना बेड पर बैठी थी। अर्जुन बेड के किनारे पर बैठा था।

“तो क्या देखा?”

“रानी ताशा तो बाहर ही नहीं निकली।” नीना कह उठी-“विजय बेदी सुबह चला गया था और रात को नौ बजे वापस आया। पर सोमाथ दिन में तीन बार बाहर निकला और तीनों बार बगल के कमरे में गया।”

“बगल के कमरे में?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।

“मेरे ख्याल में उस कमरे में रानी ताशा के और साथी हो सकते हैं। वो लोग कमरे से बाहर नहीं निकलते। मैंने उन्हें एक बार भी नहीं देखा। वेटर को उस कमरे में खाना ले जाते जरूर देखा है।”

बबूसा उसी पल ठिठककर कह उठा।

“वो जरूर रानी ताशा के साथी और सदूर ग्रह के लोग हैं। उनके पास जोबिना भी होगी।”

“हालातों को देखते हुए मैं ये ही सोच सकता हूं कि रानी ताशा को तुम्हारी खबर मिलने की देर है कि वो तेजी से हरकत में आ जाएगी। वो पूरी तैयारी के साथ, तुम्हारी खबर मिलने का इंतजार कर रही है।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा-“यूं भी कह सकते हो कि कभी भी खतरनाक वक्त सामने आ सकता है। रानी ताशा की खामोशी जानलेवा बन सकती है।”

“तुम यहां आ गए हो देवराज चौहान।” नीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“अब खतरा बढ़ गया है। अगर उनकी निगाह तुम पर पड़ गई तो कभी भी कुछ भी हो सकता है। हम तो पहले ही बहुत सतर्कता से यहां टिके हुए हैं, क्योंकि वो लोग हमें पहचानते हैं। हम उनके पास जा चुके हैं पहले ही।”

“मुझे सिर्फ रानी ताशा का चेहरा देखना है।” देवराज चौहान ने कहा।

“तो तुम इस बात पर यकीन करते हो कि रानी ताशा का चेहरा देखने पर, तुम्हें वो जन्म याद आने लगेगा?”

“बात यकीन की नहीं है अर्जुन।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“बात ये है कि मैं हाथ पर हाथ रखकर रानी ताशा के सामने आने का इंतजार नहीं कर सकता। मुझे भी कुछ करना चाहिए। बबूसा कहता है कि इस तरह मुझे सदूर ग्रह का वो जन्म याद आएगा तो चांस लेने में क्या बुराई है।”

अर्जुन भारद्वाज ने बबूसा को देखकर गम्भीर स्वर में कहा।

“मेरा ये कहना गलत नहीं होगा कि बबूसा ने तुम लोगों का दिमाग खराब कर रखा है।”

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।” बबूसा ठिठककर बोला-“मैं राजा देव को आने वाली मुसीबत से बचाने का प्रयत्न कर रहा हूं अगर मैं न होता तो रानी ताशा कब की राजा देव के पास पहुंचकर, अपनी मनमानी कर चुकी होती। मैं राजा देव का सेवक हूं और मेरा काम राजा देव को बुराइयों से बचाए रखना है।”

“तुम कब तक राजा देव को रानी ताशा से दूर रख सकोगे?” अर्जुन बोला।

“ज्यादा देर नहीं।”

“तो फिर क्या फायदा तुम्हारी कोशिश का?”

“बहुत फायदा है। मैं राजा देव को सदूर ग्रह का जन्म याद कराने की चेष्टा में हूं। रानी ताशा के सामने आने से पहले राजा देव को सदूर ग्रह की सब बातें याद आ जाती हैं तो, फिर सब ठीक हो जाएगा। राजा देव सब संभाल लेंगे। रानी ताशा में इतनी हिम्मत नहीं कि राजा देव के हुक्म को इंकार कर सके।” बबूसा दृढ़ स्वर में बोला।

“क्या किया था रानी ताशा ने उस ग्रह पर?”

“तुम नगीना से सब कुछ जान चुके हो।”

“मैं तुमसे सुनना चाहता हूं।”

“रानी ताशा ने राजा देव को धोखा दिया। राजा देव, रानी ताशा के दीवाने थे। मोहित थे रानी ताशा पर। वो है ही इतनी खूबसूरत। तुम देख चुके हो रानी ताशा को। रानी ताशा सदूर ग्रह की सबसे खूबसूरत औरत थी। राजा देव पोपा (अंतरिक्ष यान) का निर्माण करने के लिए ग्रह के दूसरे हिस्से पर चले गए। मैं भी राजा देव के साथ था। सेनापति धोमरा के हवाले किले की देखभाल का काम दे दिया था राजा देव ने। रानी ताशा और धोमरा में प्यार हो गया। मैं बीच-बीच में किसी काम की खातिर किले में आता रहता था। जब रानी ताशा और धोमरा की बातें मैंने सुनी तो रानी ताशा को समझाने की चेष्टा की कि ये सब मैं क्या सुन रहा हूं। राजा देव जब ये बातें सुनेंगे तो उन पर क्या बुरा असर होगा। परंतु रानी ताशा ने मुझे ही धमकी दे दी कि मैं अपना मुंह बंद रखूं और नौकरों की तरह रहूं। जबकि मैं राजा देव के अलावा किसी की धमकी में आने वाला नहीं हूं। रानी ताशा भटक चुकी थी। वापस जाकर मैंने राजा देव को ये बातें नहीं बताई कि राजा देव की मेहनत मिट्टी में न मिल जाए। पोपा का निर्माण कहीं अधूरा न रह जाए। ये भी सोचा कि हो सकता है रानी ताशा को अच्छा और बुरा समझ में आ जाए और वो धोमरा से दूर हो जाए। मैंने राजा देव को ये ही कहा कि किले पर सब ठीक है। और जब पोपा का निर्माण कर लेने का बाद राजा देव ने किले से वापसी की तो, रानी ताशा ने धोमरा के दम पर बीच रास्ते में ही राजा देव पर काबू पा लिया। राजा देव तो रानी ताशा को देखकर खुश थे कि धोखे से धोमरा ने अपने तीन लोगों के साथ उन्हें पकड़ लिया और ग्रह से बाहर फेंक दिया।” कहते-कहते बबूसा का चेहरा कठोर हो गया था। थोड़ा सुर्ख भी दिखने लगा था।

“फिर क्या हुआ?”

“फिर?” बबूसा कुछ चुप्पी के बाद कह उठा-“राजा देव तो वापस लौट नहीं सकते थे। मैं राजा देव की मौत को देखकर पागल-सा हो उठा। मेरी पत्नी सोमारा ने मुझे किसी तरह संभाला। परंतु रानी ताशा भी चैन से नहीं रह सकी। राजा देव को ग्रह से बाहर फेंक देने के बाद धोमरा रानी ताशा से शादी करके ग्रह का राजा बन जाना चाहता था। उसी पल से धोमरा रानी ताशा से ब्याह करने को कहने लगा। परंतु फौरन ही रानी ताशा को अपनी गलती का एहसास हो गया कि धोमरा ग्रह के राजा बनने का गुण नहीं रखता। जो बात राजा देव में थी, वो किसी में नहीं है। अचानक ही रानी ताशा का, राजा देव के प्रति प्यार जाग उठा। वो तड़पी, रोई कि राजा देव के साथ उसने बहुत बुरा व्यवहार किया और अपनी राह में भी कांटे बिछा लिए हैं। परंतु अब कुछ भी नहीं हो सकता था। राजा देव को ग्रह के बाहर फेंका जा चुका था। उधर धोमरा, रानी ताशा पर शादी करने का दबाव बना रहा था। रानी ताशा पागल हो चुकी थी और तीसरे दिन किले के दूसरे हिस्से में मौजूद धोमरा के पास पहुंची और तलवार से एक ही वार में उसकी गर्दन अलग कर दी। ये उसके पश्चाताप का पहला कदम था।”

“रानी ताशा को तलवार चलानी आती है?” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“सब कुछ आता है रानी ताशा को।” बबूसा ने गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा-“राजा देव ने रानी ताशा को खुद शिक्षा दी थी योद्धा बनने की। राजा देव ने सब कुछ सिखाया था रानी ताशा को। ऐसे में अब रानी ताशा का मुकाबला करना आसान बात नहीं है। वो बड़े-बड़े योद्धाओं को हरा सकती है।”

अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

“तुमने कहा कि रानी ताशा को अपने किए का पश्चाताप है?”

“हां है। अगर महापंडित ने रानी ताशा से ये न कहा होता कि वो राजा देव से पुनः मिलेगी। राजा देव जिंदा हैं, तो रानी ताशा कब का अपना जीवन त्याग चुकी होती। अपने किए पर रानी ताशा बहुत दुखी है।”

“तो परेशानी किस बात की? रानी ताशा को देवराज चौहान से मिल लेने दो।”

“क्यों?”

“वो पश्चाताप में है, वो...”

“रानी ताशा राजा देव को सदूर ग्रह पर वापस ले जाने आई है। वो जिद्दी है। जो उसके मन में आता है, वो करके रहती है। रानी ताशा, राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाएगी। अगर तब तक राजा देव को कुछ भी याद न आया कि तब रानी ताशा ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया था तो रानी ताशा को सजा कैसे देंगे राजा देव। सदूर ग्रह पर रानी ताशा के कहने पर महापंडित राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा साफ कर देगा, जहां पर उस जन्म की यादें दबी हैं। ऐसा होते ही सब कुछ ठीक हो जाएगा रानी ताशा के लिए। परंतु उसे सजा कभी नहीं मिल सकेगी। मैं चाहता हूं राजा देव को सबसे पहले सदूर ग्रह का जन्म याद आ जाए। रानी ताशा का किया याद आ जाए। उसके बाद राजा देव जो भी फैसला करेंगे मैं सिर झुकाकर स्वीकार करूंगा। परंतु अभी रानी ताशा की नहीं चलने दूंगा।”

“क्या पता रानी ताशा, देवराज चौहान को जबर्दस्ती अपने साथ न ले जाए?”

“वो जरूर ले जाएगी। उसे राजा देव ही तो वापस चाहिए। इसके लिए रानी ताशा किसी भी हद तक जा सकती है। सबसे बड़ा डर तो मुझे ये है कि राजा देव, रानी ताशा को देखते ही उसके दीवाने न हो जाएं। सदूर ग्रह पर राजा देव, रानी ताशा को दीवानों की तरह प्यार करते थे। अगर अब भी रानी ताशा के दीवाने हो गए तो इन्हें उस जन्म की याद कैसे आएगी। ये तो अपनी ही दीवानगी में होंगे। मेरे सामने बहुत परेशानियां हैं। जाने इनका हाल कैसे होगा।”

“ये तो सच में उलझन भरी बातें हैं।” नीना गम्भीर स्वर में कह उठी।

“तुम इस मामले को बेहतर जानते हो। बेहतर ढंग से संभाल सकते हो।” अर्जुन भारद्वाज ने मध्यम स्वर में कहा-“जहां तक मेरी बात है, समझकर भी ये मामला अभी तक मैं ठीक से समझ नहीं पा रहा हूं।”

खामोश बैठा देवराज चौहान बोला।

“तुम रानी ताशा से मिले थे। तब तुमने क्या महसूस किया?”

“इसमें कोई शक नहीं कि वो बला की खूबसूरत है।” अर्जुन सोच भरे स्वर में बोला-“परंतु मैंने उसमें क्रूरता भी महसूस की। वो सख्त औरत लगी मुझे। उसने दूसरे ग्रह से आने की बात कही, मुझे वो सच्ची लगी, झूठ बोलती नहीं लगी। मैं यकीन से नहीं कह सकता कि ये सब क्या हो रहा है। अगर तुम्हारी और रानी ताशा की बातों को सच मान लूं तो तब सारी बात स्पष्ट हो जाती है। तुम भी मुझे झूठ बोलते नहीं लगे तो इस तरह ये मामला सच लगता है। रानी ताशा के साथ जो सोमाथ नाम का आदमी है, वो बहुत ताकतवर है। लोहे जैसा। उसका मुकाबला करना आसान नहीं होगा।”

“सोमाथ की ही तो मुझे चिंता है।” बबूसा होंठ भींचे कह उठा-“महापंडित कहता है, वो मेरे से ताकतवर है।”

देवराज चौहान की सोच भरी निगाह अर्जुन भारद्वाज पर थी।

“ये बात तो मैंने भी महसूस की है कि उन्हें सिर्फ तुम चाहिए।” अर्जुन बोला-“बीस लाख वो, तुम्हारी तलाश के लिए विजय बेदी नाम के उस इंसान को देने को तैयार है। वो पांच लाख एडवांस भी ले चुका है, बाकी का पंद्रह लाख उसे तब मिलेगा, जब वो तुम्हें ढूंढ़ देगा। बेदी इस बात की पूरी कोशिश कर रहा है कि तुम्हें ढूंढ़ सके। उसके सिर में गोली फंसी हुई है। इससे पहले कि गोली अपनी जगह से फिसले और जहर फैले, वो ऑपरेशन कराकर गोली निकलवा लेना चाहता है।”

“मुझे विजय बेदी से कोई मतलब नहीं।” देवराज चौहान ने कहा।

“तुम चोरी-छिपे रानी ताशा को देख लेना चाहते हो।”

“उसके चेहरे को। मैं देखना चाहता हूं कि चेहरा देखने के बाद मुझे कुछ याद आता है कि नहीं।”

“तुम सीधे रानी ताशा के सामने जाने की हिम्मत नहीं रखते क्या?” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।

देवराज चौहान मुस्करा पड़ा फिर बोला।

“मैं तो कब का रानी ताशा के सामने चला गया होता, परंतु बबूसा शुरू से ही मुझे ऐसा करने से रोके हुए है। इसी वजह से वो मेरे पास आया कि मैं रानी ताशा के सामने न जाऊं और वो बचाव का कुछ सोच सके।”

“तुम्हें बबूसा की बात पर भरोसा है?”

“भरोसा है, तभी तो मैं उसकी बातें मान रहा हूं।”

“बबूसा ने आकर तुम्हें बताया और तुमने उसकी बात का भरोसा कर लिया?”

“बहुत वक्त लगा मुझे बबूसा पर भरोसा करने में।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“बबूसा की बातें ऐसी नहीं कि कोई मान ले। इस मामले में बहुत कुछ हुआ, तब जाकर भरोसा हुआ।” (ये सब विस्तार से जानने के लिए राजा पॉकेट बुक्स में अनिल मोहन के पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास-‘बबूसा’ एवं ‘बबूसा और राजा देव’ अवश्य पढ़ें)।

अर्जुन कुछ पल चुप रहकर बोला।

“नीना ने मुझे एक रास्ता सुझाया है। रानी ताशा से हम पीछा छुड़ा सकते हैं।”

“कैसे?”

“रानी ताशा के बारे में पुलिस को खबर देकर कि वो दूसरे ग्रह से आई है। अगर वो वास्तव में दूसरे ग्रह से आई है तो बचने वाली नहीं। वो लोगों की निगाहों का केंद्र बन जाएगी। सरकार उसे पकड़ लेगी कि उससे बातचीत की जा सके। टी.वी. न्यूज चैनल और अखबार वाले शोर डाल देंगे। रानी ताशा ऐसे हालातों में घिर जाएगी कि तुम्हारे बारे में सोचने का उसे वक्त नहीं मिलेगा। अगर उसका अंतरिक्ष यान डोबू जाति में कहीं खड़ा है तो उसे भी ढूंढ लिया जाएगा। मतलब कि रानी ताशा का तुमसे पीछा छूट जाएगा।”

अर्जुन भारद्वाज गम्भीर था।

देवराज चौहान एकाएक सोचों में डूबा दिखा।

बबूसा बात को कुछ समझा और कुछ नहीं समझा। परंतु चुप रहा।

नीना की निगाह देवराज चौहान पर थी।

“तुमने अच्छी बात सोची।” देवराज चौहान ने कहा।

“मैंने नहीं, नीना ने।”

“परंतु अभी मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता।”

“क्यों?”

“मैं देखना चाहती हूं कि रानी ताशा का चेहरा देखकर, क्या मुझे वास्तव में कुछ याद आता है।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा-“अगर रानी ताशा के खिलाफ हम ऐसा कुछ करना चाहते हैं तो, इसके कई मौके आगे भी हमें मिलेंगे।”

“जैसा तुम ठीक समझो।” अर्जुन भारद्वाज बोला।

“सर, मुझे नींद आ रही है। सुबह उठना भी है और नजर रखने की अपनी ड्यूटी भी देनी है।” नीना बोली।

“तुम सो जाओ नीना। हम भी सोने जा रहे हैं। कल तुमने कोशिश करनी है कि देवराज चौहान रानी ताशा का चेहरा देख सके।”

“रानी ताशा कमरे से बाहर नहीं निकलेगी तो ये कैसे सम्भव हो सकेगा।” नीना ने जवाब दिया।

अर्जुन भारद्वाज नीना के पास बेड पर लेट गया। इतनी जगह उसने देवराज चौहान को दे दी कि वो भी आराम से लेट सके। बबूसा सोचों में डूबा कमरे में घंटा भर टहलता रहा। वो इस बात को नहीं भूला था कि रानी ताशा कुछ ही कदमों दूर, सामने वाले कमरे में मौजूद है फिर वो लम्बे सोफे पर आ लेटा।

qqq

नीना सुबह छः बजे उठ गई। मोबाइल में छः का अलार्म लगाकर सोई थी।

सात बजे तक वो नहा-धोकर, कपड़े चेंज करके तैयार हुई। अर्जुन भारद्वाज, देवराज चौहान और बबूसा नींद में थे। नीना ने देवराज चौहान को हिलाकर उठाया। देवराज चौहान ने आंखें खोलकर उसे देखा।

“हां।”

“तुम यहां सोने आए हो।” नीना कह उठी-“खड़े हो जाओ। सात बज गए हैं। रानी ताशा का क्या भरोसा, कब वो अपने कमरे से बाहर निकल आए। मैं बाहर नजर रखने जा रही हूं। जब भी रानी ताशा के कमरे का दरवाजा खुलेगा, तुम्हें बुला लूंगी।” कहने के साथ नीना ने ड्रेसिंग टेबल वाला स्टूल उठाया और दरवाजे के पास जा पहुंची। दरवाजा आधा इंच भर खोला और स्टूल रखकर झिरी में आंख लगा दी। राहदारी के पार, रानी ताशा के कमरे का दरवाजा बंद दिखा।

देवराज चौहान के साथ-साथ अर्जुन भारद्वाज की आंख भी खुल गई थी।

“नीना ठीक कहती है।” अर्जुन बोला-“रानी ताशा कभी भी बाहर आ सकती है या सारा दिन बाहर न निकले। कुछ पता नहीं।”

आठ बजते-बजते देवराज चौहान और अर्जुन भारद्वाज भी लगभग तैयार हो गए थे।

“नीना।” अर्जुन पास आकर धीमे स्वर में बोला-“विजय बेदी बाहर निकले तो बताना। मैंने उस पर नजर रखनी है।”

“आप उसके पीछे जाएंगे?”

“हां। वो देवराज चौहान का ठिकाना तलाश कर...”

“आज बेदी के पीछे मैं जाऊंगी सर।” नीना दरवाजे पर आंख लगाए धीमे स्वर में कह उठी।

“तुम...?”

“हां सर। विजय बेदी को मैं संभालूंगी।”

“लेकिन तुम सारा दिन उसके पीछे...”

“उसके पीछे नहीं सर, उसके साथ रहूंगी।” नीना बोली-“सब कुछ उसके मुंह से निकलवा लूंगी कि वो क्या कर रहा है और रानी ताशा क्या कर रही है। आप सोच रहे होंगे कि मैं कैसे ये काम कर लूंगी तो आपको बता दूं कि आदमी जन्मजात बेवकूफ होते हैं, तब तो और भी ज्यादा बेवकूफ हो जाते हैं, जब कोई औरत सामने पड़ जाए। रौब मारने और हेकड़ी दिखाने के चक्कर में वो औरत के सामने अपना सब कुछ खोलकर रख देते हैं।”

अर्जुन ने गहरी सांस ली।

“आज बेदी के पीछे मैं जाऊंगी सर।”

“तुम्हारा मतलब कि मैं बेवकूफ हूं। मैं भी तो आदमी हूं।” अर्जुन भारद्वाज मुस्कराया।

“आपकी बात नहीं कर रही सर। आप तो बहुत समझदार हैं, पकड़ में ही नहीं आते। मां कई बार शादी के लिए पूछ चुकी है, परंतु मैं मां को क्या कहूं, ग्रीन लाइट ही नहीं देते आप।” दरवाजे पर आंख लगाए नीना बोली।

जवाब में अर्जुन का जवाब नहीं आया तो उसने दरवाजे से आंख हटाकर, सिर घुमाकर देखा, अर्जुन वहां से दूर जा चुका था। वो पुनः दरवाजे पर आंख लगाती बड़बड़ा उठी।

‘सब आदमी बेवकूफ होते हैं। ये तीस मारखां जासूस तो सबसे बड़ा बेवकूफ है, जो मेरा हाथ नहीं थाम रहा।’

बबूसा भी जाग गया था।

तब नौ बजे थे जब अर्जुन भारद्वाज ने नाश्ता मंगवाने की बात की।

परंतु नीना उसी पल खड़ी हो गई थी। हाथ के इशारे से अर्जुन भारद्वाज को पास बुलाया।

“सर, बेदी बाहर निकलकर गया है। मैं उसके पीछे जा रही हैं। आप मेरी जगह संभाल लें।” कहने के साथ ही नीना ने दरवाजा खोला और दरवाजा बंद करते हुए बाहर निकलते चली गई।

रानी ताशा के कमरे का दरवाजा बंद था। नीना तेजी से आगे निकल गई। लिफ्ट के पास पहुंची तो बेदी को वहां नहीं पाया। एक लिफ्ट नीचे जा रही थी। नीना समझ गई कि बेदी नीचे जा चुका है, वो तुरंत दूसरी लिफ्ट में सवार होकर नीचे पहुंची तो उसने विजय बेदी को काफी दूर होटल के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते देखा। नीना तेजी से उसकी तरफ बढ़ती चली गई।

होटल के बाहर ही था बेदी कि नीना उसके पास पहुंच गई।

“बेदी भैया आप।” नीना खुशी से कह उठी-“मैं तो हर रोज आपको याद करती हूं कि आपने उस दिन मेरी जान बचाई। साथ में मेरे सर की भी जान बचाई। वरना वो पागल लोग तो हमें मार ही देते।”

विजय बेदी ने हैरानी से नीना को देखा।

“तुम यहां कैसे? वो भी सुबह-सुबह...क्या फिर रानी ताशा के पास...”

“कानों को हाथ लगाओ।” नीना ने कान को हाथ लगाया-“उन पागलों के पास मैं तो कभी न जाऊं।”

“तो फिर यहां...?”

“इसी होटल में तो ठहरी हूं मैं।” नीना ने उसी पल कहा-“कुछ काम से मुम्बई में फंसे हुए थे। अर्जुन साहब तो रात की फ्लाइट से दिल्ली वापस चले गए। उन्हें काम था। परंतु मैं मुम्बई घूमना चाहती थी। तुम चलोगे मेरे साथ?”

“मुम्बई घूमने?” बेदी ने अजीब-से स्वर में कहा।

“हां।”

“मैंने बहुत घूम रखी है मुम्बई। तुम घूमो।” बेदी ने लापरवाही से कहा।

“मैं अकेली हूं। मेरा साथ नहीं दोगे। बोर हो जाऊंगी दिन भर में।” नीना ने मुंह लटकाकर कहा।

“तुम्हारी बात जरूर मान लेता, पर मुझे आज बहुत जरूरी काम है। इसलिए...।”

“ठीक है बेदी भैया। ऐसे नहीं तो ऐसे सही। तुम मेरे साथ नहीं तो, मैं तुम्हारे साथ रहूंगी।”

“तुम मेरे साथ?” विजय बेदी ने उलझन भरी निगाहों से नीना को देखा।

“क्या फर्क पड़ता है। घूमना ही तो है। टाइम ही तो पास करना है। तुम्हारे साथ घूम लूंगी, जहां तुम जाओगे।”

बेदी हिचकिचाकर कह उठा।

“जैसा तुम चाहो।”

उसके बाद उन्होंने टैक्सी ली। बेदी ने टैक्सी वाले को वर्सोवा चलने को कहा। टैक्सी दौड़ पड़ी। दोनों टैक्सी की पीछे की सीट पर बैठे थे।

“तुम्हारे सिर में फंसी गोली का क्या हाल है?” नीना ने मुस्कराकर पूछा।

“वो अपनी जगह पर है।” बेदी ने गहरी सांस ली-“और तुम जो देवराज चौहान की पत्नी के केस पर काम कर...”

“केस छोड़ दिया।”

“क्यों?”

“पागलों वाला मामला था। रानी ताशा खुद को दूसरे ग्रह से आया बताती है। ऐसा भी कभी होता है।” नीना ने कहा।

“सही कहती हो। मैं खुद उनकी बातें सुनकर पागल हुआ पड़ा हूं।” बेदी ने मुंह बनाकर कहा।

“तो चले क्यों नहीं जाते उनके पास से?”

“मैंने तुम्हें बताया तो था कि मुझे पैसों की जरूरत है। ऑपरेशन कराकर सिर में फंसी गोली निकलवानी है। देवराज चौहान का पता मालूम होते ही मुझे पंद्रह लाख मिल जाएंगे। पांच लाख पहले ही ले चुका हूं। वो पागल डॉक्टर वधावन ऑपरेशन करने का बारह लाख मांगता है। सीधा उसके पास जाऊंगा।” बेदी ने गहरी सांस ली।

“लेकिन देवराज चौहान का पता तुम्हें कैसे मालूम होगा?”

“तुम बता दो।”

“मैं? क्या बात करते हो बेदी भैया, डकैती मास्टर देवराज चौहान मुझे अपना ठिकाना क्यों बताने...।”

“तुमने और अर्जुन भारद्वाज ने कहा तो था कि देवराज चौहान का ठिकाना जानते हो।” बेदी ने उसे देखा।

“सही कहा था। परंतु तब देवराज चौहान और नगीना हम से खार के डीलक्स होटल में मिले थे। तब तो हम जानते थे कि देवराज चौहान कहां है परंतु दो दिन पहले उसने हमारे सामने होटल खाली किया। हमने तो अपनी फीस ले ली थी। उसके बाद देवराज चौहान कहां गया, कुछ पता नहीं।”

“कोई बात नहीं। आज मुझे देवराज चौहान का ठिकाना पता चल सकता है।” बेदी बोला।

“अच्छा। ये तो खुशी की बात है। पर कैसे पता चलेगा?”

“एक आदमी जगमोहन का ठिकाना जानता है। जगमोहन और देवराज चौहान एक साथ ही रहते हैं।”

“ये तो तुमने सही कहा।” नीना ने फौरन सिर हिलाया।

“मैं आज उस आदमी से मिलने वाला हूं। कोई मुझे उस आदमी से मिलवाएगा। जगमोहन का ठिकाना बताने के बदले वो दो लाख रुपया मांगता है।” बेदी ने अपनी जेब थपथपाई-“दो लाख रानी ताशा से ले आया हूं।”

“अब तुम किसके पास जा रहे हो?” नीना ने पूछा।

“उस आदमी के पास, जो मुझे उस आदमी से मिलवाएगा। जो जगमोहन का पता जानता है।”

“समझ गई। मैं तो चाहूंगी कि जल्द से तुम्हारा ऑपरेशन हो जाए। तुम्हारे सिर में फंसी गोली निकल जाए। मुझे पूरा भरोसा है कि तुम देवराज चौहान का पता लगा लोगे।” नीना ने सामान्य स्वर में कहा।

“इन पागल लोगों से मैं दूर हो जाना चाहता हूं। वो मुझे अच्छे नहीं लगते। हर वक्त राजा देव या बबूसा की बातें करते हैं तो कभी किसी ग्रह की बातें करने लगते हैं। बेसिर-पैर की बातें सुनकर मेरा दिमाग खराब होना शुरू हो जाता है। दिल करता है भाग जाऊं पर पंद्रह लाख की वजह से मैंने कदम रोक रखे हैं।”

“और वो सोमाथ।” नीना आंखें फैलाकर बोली-“कितना ताकतवर है। अर्जुन सर की तो बुरी हालत कर दी। बेहोश कर दिया उन्हें। वैसे सर बड़े-बड़ों की हवा निकाल देते हैं पर उस दिन तो ‘सर’ की ही हवा निकल गई थी।”

“अजीब इंसान है सोमाथ।” विजय बेदी गम्भीर स्वर में कह उठा-“मैंने उसे कभी भी आराम करते नहीं देखा। उसे कभी खाना खाते, चाय-कॉफी पीते नहीं देखा। पूछने पर कहता है कि उसे इन चीजों की जरूरत नहीं पड़ती। मुझे तो वो सब सिरे से पागल लगते हैं। उनकी कोई बात मेरी समझ में नहीं आती।”

“छोड़ो भी बेदी भैया। तुमने समझकर क्या करना है। आज तुम्हें देवराज चौहान के ठिकाने का पता मिल ही जाना है। रानी ताशा को वो ठिकाना दिखाओ। अपने पंद्रह लाख के नोट गिनो और नमस्ते करके चलते बनो।”

“ये ही मैंने सोच रखा है।” बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा।

दोनों में इसी प्रकार बातें होती रहीं।

टैक्सी वर्सोवा पहुंची तो एक जगह बेदी ने टैक्सी रुकवाई। किराया देकर नीना के साथ आगे बढ़ गया। एक गली में गया, जहां साधारण-से फ्लैट बने हुए थे।

“तुम यहीं रुको, मैं अभी आता हूं।” एकाएक विजय बेदी ने कहा।

“क्यों, मेरे साथ चलने में क्या है?”

“वैसे तो कोई हर्ज नहीं, फिर भी तुम।”

“मैं तुम्हारे साथ ही जाऊंगी बेदी भैया। अकेली लड़की को इस तरह खड़े देखकर, लोग क्या सोचेंगे?”

“ठीक है, साथ ही आ जाओ।”

नीना, विजय बेदी के साथ रही। बेदी सामने नजर आ रही सीढ़ियां चढ़कर पहली मंजिल पर पहुंचा और एक बंद दरवाजे के बाहर लगी बेल का स्विच दबा दिया। भीतर घंटी बजने की आवाज सुनी।

कुछ पलों बाद कदमों की आहट के साथ दरवाजा खोला गया। दरवाजा खोलने वाला पके बालों वाला व्यक्ति था। चेहरा सख्त-सा था। उसने गहरी निगाहों से नीना को देखा।

“नमस्ते जी।” नीना ने फौरन मुस्कराकर दोनों हाथ जोड़े।

“लड़की कौन है?” उस आदमी ने बेदी से पूछा।

“ये-ये मेरी बहन है।” बेदी ने जल्दी-से कहा-“इसकी फिक्र मत करो। काम निबटाओ।”

“पैसा लाए हो?”

“हां।”

“आओ।” वो दरवाजे से हटता बोला।

बेदी और नीना भीतर प्रवेश कर गए। कमरे में डबल बेड के अलावा दो कुर्सियां और एक टेबल रखा था। पंखा चल रहा था।

“नोट दिखाओ।” उसने बेदी से कहा।

बेदी ने फौरन दो जेबों से, हजार-हजार के नोटों की गड्डियां निकाली।

“दो लाख है।” बेदी बोला।

उसने फोन उठाया और नम्बर मिलाकर, कान से लगा लिया।

दूसरी तरफ बेल गई। फिर आवाज कानों में पड़ी।

“बोल हेगडे।”

“वो दो लाख ले आया है मुन्ना।”

“खास ही काम होगा जगमोहन से जो सुबह-सुबह ही आ पहुंचा नोट लेकर।” उधर से मुन्ना ने कहा।

“जगमोहन का पता बताएगा या इसे नोटों के साथ तेरे पास भेजूं।”

“मेरे पास भेजने की क्या जरूरत है। तू नोट रख ले। शाम को तेरे होटल में आकर ले लूंगा।” कहने के साथ ही उधर से मुन्ना ने एक पता बताया फिर कहा-“पहले नोट लेना, फिर पता बताना।”

“चिंता न कर।” उसने फोन बंद करके रखा और बेदी से बोला-“नोट मुझे दे।”

“पहले जगमोहन का पता...”

“नोट लेने के बाद ही तो पता बताऊंगा। नोट दे, पता सुन ले।”

बेदी ने दोनों गड्डियां उसके हाथ में थमाई।

उसने जगमोहन के बंगले का पता बता दिया।

पता सुनते ही नीना ठगी-सी रह गई। बिल्कुल सही पता था।

“पक्का है न कि जगमोहन यहीं रहता है।” बेदी गम्भीर स्वर में कह उठा।

“खोटे धंधे में हम बेईमानी नहीं करते।” उसने शांत स्वर में कहा-“शाम तक ये नोट मेरे ही पास हैं। अगर इस पते पर जगमोहन न रहता हो तो आकर पैसे वापस ले जाना। ये ही नोट वापस मिलेंगे। शाम तक का वक्त है तेरे पास।”

“मैं डकैती मास्टर देवराज चौहान के साथी जगमोहन की बात कर रहा हूं। किसी और जगमोहन की बात नहीं कर रहा।”

“मैं भी उसी जगमोहन की बात कर रहा हूं। पर तेरे को काम क्या है जगमोहन से?”

“कोई काम लेना है उससे। तभी उसे ढूंढ़ रहा हूं।”

“किसी को साफ करवाना हो तो ये काम मैं भी करवा सकता हूं।” वो बोला।

“दूसरा काम है। ये काम जगमोहन ही कर सकता है।”

विजय बेदी नीना के साथ वहां से बाहर से आ गया। चेहरे पर गम्भीरता थी और सोच रहा था कि क्या उसे सही पता बताया गया है। दो लाख पानी में तो नहीं फेंक दिए। उधर नीना चिंता में थी कि बेदी को देवराज चौहान के बंगले का पता लग गया है। लेकिन उसे इस बात की राहत थी कि देवराज चौहान वहां नहीं है।

“अब तुम ये पता करोगे कि वहां देवराज चौहान रहता है या नहीं?” नीना बोली।

“पता करने के चक्कर में देवराज चौहान ने मुझे पकड़ लिया तो?”

“तब क्या करने का इरादा है?”

“मेरे ख्याल में तो मुझे रानी ताशा को लेकर बंगले पर पहुंचना चाहिए। क्या पता मुझे सही पता बताया गया हो।”

नीना का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।

“ऐसा करना बुरा नहीं। अगर पता गलत हुआ तो तब रानी ताशा को क्या जवाब दोगे?” नीना बोली।

“वही जो अब तक देता आया हूं कि जल्दी ही देवराज चौहान का पता ढूंढ़ लूंगा।”

बेदी ने एक टैक्सी को हाथ देकर टोका।

“वापस होटल जा रहे हो?”

“हां। रानी ताशा को लेकर, उस पते पर जाऊंगा। तुम भी साथ चलो।”

“वापस होटल जाकर क्या करूंगी। घूमने निकली हूं।” नीना ने मुस्कराकर कहा-“तुम जाओ।”

विजय बेदी टैक्सी में बैठकर चला गया। नीना ने उसी पल फोन निकाला और अर्जुन भारद्वाज के नम्बर मिलाए। बात हो गई।

“विजय बेदी को देवराज चौहान के बंगले का पता मिल गया है। अब वो वापस होटल आ रहा है। उसका प्रोग्राम है कि रानी ताशा को उस बंगले पर लेकर जाएगा।” नीना ने जल्दी से कहा।

“तुम्हें, ये बात कैसे पता लगी?” उधर से अर्जुन ने पूछा।

नीना ने सब कुछ बता दिया।

“ये तो बहुत गलत हुआ।”

“ज्यादा गलत भी नहीं हुआ सर। पहली बात है कि देवराज चौहान बंगले पर नहीं है। ऐसे में रानी ताशा वहां पहुंचकर भी कुछ नहीं कर सकेगी। दूसरी बात है कि बेदी जब रानी ताशा के साथ कमरे से निकले तो देवराज चौहान रानी ताशा का चेहरा देख सकता है। बेदी ने वर्सोवा से अभी टैक्सी पकड़ी है होटल के लिए। एक घंटा तो लग ही जाएगा, उसे होटल पहुंचने में।”

“तुम तो पूरी जासूस बनती जा रही हो।”

“आप मेरे से खुश हैं सर?”

“बहुत। तुमने बढ़िया काम किया।

“तो मुझे भी खुश कर दीजिए।” नीना के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“कैसे?”

“मां मेरे से शादी के बारे में पूछ रही थी कि कब...”

“हैलो-हैलो...।” उधर से अर्जुन की आवाजें आने लगीं।

“फोन बंद मत कीजिए सर। अभी और भी मुझे कहना है।” नीना कह उठी।

“क्या?”

“बंगले पर तीन लोग हैं। जगमोहन, नगीना और धरा। इन्हें वहां से हटाया भी जा सकता है।”

“सब कुछ तुम बताओगी तो मैं बेकार हो जाऊंगा।” अर्जुन की आवाज आई।

“अब तो आप खुश हैं कि मैं भी जासूस बनती जा रही...” उधर से अर्जुन भारद्वाज ने फोन बंद कर दिया था।

“कोई बात नहीं अर्जुन साहब। कभी तो खुश होकर, मेरे से लिपटोगे।” नीना मुंह बनाकर कह उठी।

qqq

अर्जुन भारद्वाज ने फोन बंद करते ही, देवराज चौहान को सारी बात बताई।

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

बबूसा ने भी सुना और सिर हिलाकर उसी पल कह उठा।

“ये तो बहुत अच्छी बात हुई। राजा देव उन्हें वहां नहीं मिलेंगे। अच्छा हुआ हम यहां आ गए।”

“इतना कह देने से बात नहीं बनेगी बबूसा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“क्या पता मेरे न मिलने से जगमोहन, नगीना या धरा को वो कोई नुकसान पहुंचा दें। ये चिंता वाली बात है। हमें वहां जाना होगा।”

“क्या?” अर्जुन चौंका-“तुम वहां जाओगे?”

“कभी नहीं।” बबूसा दृढ़ स्वर में कह उठा-“आप वहां नहीं जाओगे राजा देव। आपको रानी ताशा के सामने नहीं जाना...।”

“बंगले पर मेरी पत्नी है, जगमोहन है और धरा...”

“रानी ताशा का चेहरा देखने का आपको बहुत बढ़िया मौका मिलने जा रहा है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“आप इस मौके को कैसे छोड़ सकते हैं। महापंडित के मुताबिक रानी ताशा का चेहरा देख लेने के बाद आपको सदूर ग्रह का जन्म याद आना शुरू हो जाएगा। हम यहां पर इसी कारण आए हैं कि आप रानी ताशा का चेहरा देख सकें।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और सोच भरे स्वर में बोला।

“इन हालातों में मेरा, उनके पास रहना जरूरी...”

“आप भूल कर रहे हैं राजा देव। मैं जिस बात से आपको बचाने की चेष्टा कर रहा हूं आप उसी तरफ मुड़ने को कह रहे हैं। आप वहां पर हुए और रानी ताशा सामने पड़ गई और उसका चेहरा देखते ही आप उसके दीवाने हो सकते हैं। ऐसे में आपको संभालूंगा या सोमाथ का मुकाबला करूंगा। रानी ताशा आपको अपने साथ ले जाएगी। आप उसके प्यार में इस कदर डूब जाएंगे कि आपको सदूर ग्रह के जन्म का कुछ भी याद नहीं आएगा। वो आपको पोपा में बैठाकर सदूर ग्रह पर ले जाएगी और तब महापंडित आपके दिमाग के उस हिस्से को साफ कर देगा, जहां पर उस जन्म की यादें मौजूद हैं। परंतु ये बात भी पक्की है कि मैं रानी ताशा को सफल होने से रोकूँगा। हो सकता है इस कोशिश में सोमाथ मेरी जान भी ले ले।” देवराज चौहान ने बबूसा को देखा।

अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर गम्भीरता थी।

“आपके साथ के लोग, जगमोहन, नगीना भी तो रानी ताशा को रोकना चाहेंगे राजा देव?”

“हां।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“तो उनकी जान भी खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए अभी आप रानी ताशा के सामने मत जाएं। रानी ताशा का चेहरा देखें और सदूर ग्रह की बातें याद आने का इंतजार करें।” बबूसा गम्भीर था-“मेरी मेहनत खराब न करें। मैं आपको रानी ताशा से बचाना चाहता हूं। एक बार तो वो अपनी मनमानी कर चुकी है। आपको जबर्दस्त धोखा दे चुकी है। परंतु दूसरी बार मैं ऐसा नहीं होने देना चाहता। मैं चाहता हूं आप रानी ताशा को सजा दें उसके किए की। ये तभी हो सकता है जब आप मेरे कहने पर चलें। अगर रानी ताशा आपको सदूर ग्रह पर ले जाने पर कामयाब हो गई तो महापंडित की सहायता से आपके दिमाग के उस हिस्से को साफ करा देगी। फिर आपको कभी भी कुछ भी याद नहीं आ सकेगा। और रानी ताशा आपकी सजा से बच जाएगी। वो आपको हासिल कर लेगी। ऐसा हुआ तो बहुत गलत हो जाएगा।”

देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता थी।

“महापंडित जाने क्या चाल खेल रहा है राजा देव। वो चाहता तो अपनी मशीनों का सहारा लेकर, आपके सदूर ग्रह के जन्म की हर बात याद दिला सकता था। परंतु उसने ऐसा नहीं किया। वो रानी ताशा के साथ है। उसकी बातें मान रहा है। महापंडित भी सजा का हकदार हो चुका है। उसे रानी ताशा का साथ नहीं देना चाहिए। दोनों आपके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं।”

“तुम ऐसी बातों का जिक्र कर रहे हो जो मुझे जरा भी याद नहीं।” देवराज चौहान बोला।

“मैं आपको याद दिलाने की ही तो चेष्टा में हूं राजा देव। आपको यहीं रहना है और रानी ताशा का चेहरा देखना है। रानी ताशा को बंगले पर जाने दीजिए। आप वहां नहीं होंगे तो रानी ताशा के पास करने को कुछ नहीं होगा।”

“बेहतर होगा कि।” देवराज चौहान ने अर्जुन को देखा-“हम उन्हें बंगला छोड़ देने को कह दें।”

“मैं ये ही सुझाव देने वाला था देवराज चौहान। बंगले में रानी ताशा को कोई न मिले, तो ठीक होगा।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।

देवराज चौहान ने फोन निकाला और जगमोहन के नम्बर मिलाने लगा।

फौरन ही बात हो गई। जगमोहन ने छूटते ही पूछा।

“रानी ताशा को देखा क्या?”

“नहीं। लेकिन अपने काम की बात सुनो। रानी ताशा को बंगले के बारे में पता चल गया है।” देवराज चौहान ने कहा।

“ओह।”

“मेरे ख्याल में वो दो घंटे तक वहां पहुंच सकती है। तुम लोगों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। मुझे वहां मौजूद न पाकर, वो तुम लोगों का साथ बुरा बर्ताव कर सकती है। तुम तीनों अभी बंगले से निकल जाओ।”

“ऐसा करना जरूरी है क्या?”

“हां। मैं वहां नहीं मिलूंगा तो तुम लोगों का बुरा कर सकती...”

“अगर हम बंगले में ही रहें तो...”

“मेरा ख्याल में तुम लोगों का वहां से चले जाना ही ठीक होगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“इस तरह हम कब तक रानी ताशा से भागते रहेंगे। एक बार उसका सामना करके देखते हैं कि...”

“बबूसा के मुताबिक हमने तब तक रानी ताशा के सामने पड़ने से बचना है, जब तक मैं रानी ताशा का चेहरा न देख लूं और मुझे कुछ याद न जाए। इसलिए तुम लोग भी...”

“रानी ताशा को तुम चाहिए। हमसे रानी ताशा को कोई मतलब नहीं।” जगमोहन की आवाज आई।

देवराज चौहान कुछ चुप रहकर बोला।

“नगीना वहां है?”

“भाभी यहीं है। उसे फोन दूं?”

“नहीं। तुम लोग आपस में सलाह कर लो। जो ठीक लगे। वो ही करो।”

देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।

अर्जुन भारद्वाज दरवाजे की तरफ बढ़ता कह उठा।

“विजय बेदी आने वाला होगा। मैं बाहर नजर रखता हूं। जब बेदी आ जाएगा उस कमरे में तो तब तुम्हें बाहर नजर रखनी होगी। रानी ताशा जल्दी ही, तुम्हारे बंगले पर जाने के लिए, बेदी के साथ बाहर निकलेगी।”

qqq

जगमोहन ने नगीना को सारी बात बताई।

धरा ने भी सब कुछ सुना और व्याकुल हो उठी। बोली।

“देवराज चौहान ठीक कहता है। हमें ये जगह छोड़ देनी चाहिए।”

जबकि नगीना के चेहरे पर दृढ़ता आ गई थी

“जगमोहन भैया।” नगीना शब्दों को चबाकर कह उठी-“हम यहीं रहेंगे।”

“सोच लो भाभी।” जगमोहन गम्भीर था।

“उन्हें आने दो। मैं रानी ताशा को देखना चाहती हूं कि वो क्या करती है।” नगीना के चेहरे पर कठोरता आ गई।

“ये क्या कह रही हो तुम।” धरा ने तेज स्वर में कहा-“वो देवराज चौहान के लिए यहां आ रहे हैं। देवराज चौहान उन्हें नहीं मिलेगा तो गुस्से में वो हमारा बुरा कर सकते हैं। क्या पता वो कैसी सोच रखते हैं। दूसरे ग्रह के लोग हैं। उनकी आदतें भी कुछ जुदा होंगी। बबूसा का कहना है कि रानी ताशा का भरोसा नहीं किया जा सकता कि कब वो क्या कर दे।”

“यही तो देखना है कि रानी ताशा क्या करती है।” नगीना गुर्रा उठी।

“हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते। रानी ताशा के साथ सोमाथ है जो बबूसा से भी ताकतवर है।”

“उसके बारे में मुझे अर्जुन भारद्वाज बता चुका है कि वो कितना ताकतवर है।”

“फिर भी तुम यहीं जमे रहना चाहती हो।”

“हम बबूसा की बातों को ही सच मानकर अभी तक चल रहे हैं। हमें भी तो देखना है कि वो कैसे लोग हैं।”

“देखने-देखने के चक्कर में हमारी जान चल गई तो?”

“तुम डर रही हो तो यहां से जा सकती हो।”

“मैं डर जरूर रही हूं परंतु आने वाले वक्त के प्रति सतर्कता भी बरतना चाह रही हूं। मेरी बात को समझने की...”

“हम यहीं रहेंगे।” नगीना ने दृढ़ स्वर में कहा-“मैं रानी ताशा से जरूर मिलना चाहूंगी जो मेरे पति को अपना कह रही है।”

“ये वक्त पति के बारे में नहीं, खतरे के बारे में सोचने का है। रानी ताशा का क्या भरोसा कि...”

“चुप रहो। मैंने जो करना है, उसका फैसला ले लिया है।” नगीना ने दो टूक स्वर में कहा।

धरा ने आहत भाव से जगमोहन को देखा।

जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता और व्याकुलता थी।

“क्या तुम भी नगीना की बातों से सहमत हो?”

“काफी हद तक। हमें एक बार रानी ताशा का सामना करना चाहिए। वो हमारी तरफ बढ़ रही है और हम बचते फिर रहे हैं। ये बात ठीक नहीं है। देवराज चौहान की अपनी मजबूरी होगी, बबूसा उसे अपने हिसाब से चला रहा है। परंतु हमारे सामने कोई मजबूरी नहीं है। वो देवराज चौहान को तलाश कर रही है, हमें नहीं।”

“तुम पागल हो। लोग कुएं से बचने की कोशिश करते हैं और तुम कुएं में छलांग लगा रहे हो।”

“क्या तुम रानी ताशा को देखना नहीं चाहती। जानना नहीं चाहती कि यहां आकर वो क्या करती है।”

“बेवकूफ।” धरा झल्ला उठी-“जरा ये तो सोचो कि अगर यहां पर उसे देवराज चौहान नहीं मिला और गुस्से में उसने हमें ही मार दिया तो? क्या पता वो कैसे दिमाग की है। बबूसा की बातों से तो लगता है वो खतरनाक है।”

“इसका इंतजाम मैं पहले ही करके रखूंगा।” जगमोहन का स्वर कठोर हो गया।

“कैसा इंतजाम?”

“रिवॉल्वर पर साइलेंसर लगा होगा कि जरूरत पड़े तो अपना बचाव किया जा सके।”

धरा होंठ भींचे जगमोहन को देखने लगी।

जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक भाव थे।

“भाभी हम यहीं रहेंगे।” जगमोहन कह उठा-“रानी ताशा से मिलेंगे।”

“जरूर मिलेंगे। मैं उसे देखना चाहती हूं जो मेरा पति, ले जाने आई है।” नगीना के दांत भिंच गए।

जगमोहन उठा और भीतर कमरे की तरफ बढ़ गया।

“सुनो तो।” धरा परेशान-सी कह उठी-“जल्दी में फैसला न लो। सोच लो, वो सोमाथ सबको मार देगा।”

जगमोहन वहां से चला गया।

“तुम सबको खतरे में डालोगी।” धरा, नगीना को देखकर गुस्से से बोली।

“मैंने पहले ही कहा है कि तुम जा सकती हो यहां से। बबूसा के पास चली जाओ।” नगीना ने कहा।

“मैं यहीं रहूंगी।” धरा गम्भीर-व्याकुल स्वर में बोली-“तुम लोगों के साथ ही रहूंगी।”

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अर्जुन भारद्वाज ने बता दिया था कि विजय बेदी रानी ताशा के कमरे में आ पहुंचा है। इसके बाद देवराज चौहान दरवाजे के पास रखे स्टूल पर आ बैठा था। दरवाजा आधा इंच खुला था। देवराज चौहान ने झिरी पर आंख लगा दी। कुछ दूर बाद सोमाथ को निकलकर साथ वाले कमरे में जाते देखा। साथ वाले कमरे के दरवाजे का आधा हिस्सा देवराज चौहान को नजर आ रहा था। देवराज चौहान ने इशारे से अर्जुन को पास बुलाकर कहा।

“मैंने एक आदमी की उस कमरे से निकलकर दूसरे कमरे में जाते देखा है।”

अर्जुन ने सोमाथ का हुलिया बताया कि क्या वो ये आदमी था।

देवराज चौहान के सहमति से सिर हिलाने पर, अर्जुन ने कहा।

“वो सोमाथ है। रानी ताशा का आदमी। लोहे जैसे ताकत रखता है। मैं फौरन ही उससे हार गया था।”

देवराज चौहान ने दरवाजे की झिरी पर आंख लगा रखी थी।

“सोमाथ बगल वाले कमरे में गया है। वहां उनके और लोग हैं।” पास खड़ा अर्जुन भारद्वाज कह उठा-“मेरे ख्याल में वो चलने की तैयारी कर रहे हैं। वो कभी भी बाहर निकल सकते हैं।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। अर्जुन फिर बोला।

“याद रखना कमरे में दो औरतें हैं, मतलब कि दो युवतियां...”

“दो?”

“हां। दोनों ही खूबसूरत हैं, परंतु एक बहुत ज्यादा खूबसूरत है। वो रानी ताशा है। तुम देखते ही समझ जाओगे।”

देवराज चौहान उसी स्थिति में बाहर देखता रहा।

बबूसा सोफे पर गम्भीर-सा बैठा इधर ही देख रहा था। अर्जुन उसके पास पहुंचा।

“रानी ताशा शायद बाहर निकलने वाली है।” अर्जुन बोला।

बबूसा ने सिर हिला दिया।

“तुम उसे देखना चाहो तो...।”

“मैं क्यों देखू? बहुत देखा है उसे।” बबूसा नाराजगी से बोला-“वो धोखेबाज औरत है।”

“तुम रानी ताशा से खासे नाराज लगते हो।”

“राजा देव को जो कष्ट देगा, वो मुझे बहुत बुरा लगेगा। रानी ताशा ने राजा देव को धोखा दिया फिर ग्रह से बाहर फेंक दिया ये बात मैं कभी भी भूल नहीं सकता। मैं राजा देव का सेवक हूं तो रानी ताशा मुझे क्यों अच्छी लगेगी?” बबूसा उठते हुए बोला-“राजा देव रानी ताशा को कभी भी देख सकते हैं। ऐसा न हो कि राजा देव को उसे देखते ही, सब कुछ याद आ जाए और वो दरवाजा खोलकर रानी ताशा की तरफ दौड़ पड़ें। अब मुझे हर वक्त राजा देव के पास ही रहना होगा।”

“तुम्हारा मतलब कि देवराज चौहान रानी ताशा को देखेगा तो खतरनाक वक्त भी आ सकता है।” अर्जुन गम्भीर हो गया।

“कुछ भी हो सकता है।” बबूसा ने कहा और देवराज चौहान के पास पहुंचकर खड़ा हो गया।

“क्या दिख रहा है राजा देव?”

“सोमाथ को देखा था, वो दूसरे कमरे में गया है, जहां उसके और साथी हैं।” देवराज चौहान धीमे स्वर में कहा।

“देखने में कैसा है सोमाथ?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“बहुत ही सेहतमंद। चौड़े कंधे, भरा सीना, लम्बा, देखने में ही ताकतवर लगता है।”

“वो मुझसे भी लम्बा-चौड़ा है?”

“हां। कुछ ज्यादा ही है।”

बबूसा ने गम्भीरता से सिर हिलाया।

अर्जुन भारद्वाज सोफे पर बैठा और नीना को फोन किया।

“तुम कहां हो?” अर्जुन ने पूछा।

“होटल के बाहर।”

“यहां आ जाओ।”

“बेदी, रानी ताशा के साथ जरूर बाहर आने वाला होगा। मैं नहीं चाहती कि मेरा उनसे सामना हो जाए।” उधर से नीना ने कहा।

“मेरे ख्याल में वो कुछ ही देर में निकलने वाले हैं। सोमाथ अपने साथियों के कमरे में गया है।”

“देवराज चौहान के बंगले की क्या स्थिति है?” नीना ने पूछा।

“देवराज चौहान ने उन्हें कह दिया है कि रानी ताशा वहां पहुंच रही है। वो बंगले से जाना चाहें तो जा सकते हैं।”

“उन्हें बंगले से चले जाना चाहिए।”

“ये फैसला वो ही करेंगे।”

“और आपके कमरे में क्या हो रहा है सर?” उधर से नीना ने पूछा।

“देवराज चौहान दरवाजे पर है। बाहर देख रहा है। बबूसा उसके पास खड़ा है कि कहीं रानी ताशा को देखते ही देवराज चौहान, रानी ताशा का पहले की तरह दीवाना न हो जाए। अगर ऐसा कुछ हुआ तो शोर-शराबा जरूर होगा। रानी ताशा का ध्यान इस तरफ भी आकर्षित हो सकता है। ये बहुत परेशान करने वाला मामला है। क्योंकि मैं बबूसा या देवराज चौहान की बातें तो सुन सकता हूं परंतु बातों की सत्यता की जांच नहीं कर सकता। ये मेरे लेवल का मामला नहीं है। मैं प्राइवेट जासूस हूं। मर्डर, खोए लोगों को ढूंढ़ना, किसी मामले की तफ्तीश करना, परंतु ये मामला तो बिल्कुल ही जुदा है।”

“मैंने तो पहले ही कहा था सर कि इस मामले से अलग हो जाते हैं। परंतु आप नहीं माने।”

“मैं देखना चाहता हूं कि आगे क्या होता है।”

“देखते-देखते हमें ही तारे दिख गए तो बहुत बुरा होगा सर।”

“जब तक तुम डरना नहीं छोड़ोगी, पूरी तरह जासूस नहीं बन सकतीं।” अर्जुन मुस्कराकर बोला।

“बन जाऊंगी सर। जब आप मुझे ट्रेनिंग दे रहे हैं तो क्यों नहीं बनूंगी। आज मैंने आपको खुश कर दिया न, ये बताकर कि बेदी को देवराज चौहान के बंगले का पता चल गया है, आप भी मुझे खुश कर देते तो...”

अर्जुन भारद्वाज ने फोन बंद कर दिया।

qqq

करीब एक घंटे बाद देवराज चौहान ने पुनः सोमाथ को रानी ताशा के कमरे से निकलकर बगल वाले कमरे की तरफ जाते और उसमें प्रवेश करते देखा फिर फौरन ही सोमाथ बाहर आया, उसके साथ तीन आदमी और भी थे जो पैंट-कमीज पहने हुए, साधारण लोगों की तरह दिखाई दे रहे थे। उसी पल रानी ताशा के कमरे का दरवाजा खुला और सोमारा बाहर निकली। देवराज चौहान ने स्पष्ट तौर पर सोमारा को देखा, जो बाहर आकर रुक गई थी।

फिर विजय बेदी को बाहर निकलते देखा देवराज चौहान ने और उसके पीछे रानी ताशा बाहर आई।

बेदी ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।

रानी ताशा की खूबसूरती देखकर, देवराज चौहान ठगा-सा रह गया। स्पष्ट नजर आ रही थी रानी ताशा। उसका चेहरा भी, करीब बीस सेकेंड तक देवराज चौहान की निगाह रानी ताशा के चेहरे पर रही फिर वो राहदारी में आगे बढ़ते चले गए। देवराज चौहान की निगाहों से ओझल होते चले गए।

देवराज चौहान बुत-सा बना अभी भी स्टूल पर बैठा बाहर देखे जा रहा था। आधा मिनट बीत गया कि एकाएक देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ। आंखों में अजीब-सी चमक थी। होंठ सिकुड़े हुए थे।

“क्या हुआ राजा देव?” बबूसा फौरन बोला।

अर्जुन भारद्वाज की निगाह भी देवराज चौहान की तरफ उठी।

“म-मैंने उसे देखा-वो-वो...”

“किसे?” बबूसा चौंका।

“रानी ताशा को-वो-वो बहुत ही खूबसूरत है, वो-वो...” उसी पल देवराज चौहान को चक्कर आया और नीचे गिरने को हुआ कि बबूसा ने फुर्ती से उसे संभाल लिया बांहों में।

अर्जुन जल्दी से पास आया।

देवराज चौहान बेसुध था।

“बेहोश हो गया है।” अर्जुन भारद्वाज ने देवराज चौहान की टांगें थामते हुए कहा-“इसे बेड पर लिटाओ।”

देवराज चौहान को बेड पर लिटाया गया।

“राजा देव बेहोश क्यों हो गए?” बबूसा उलझन भरे स्वर में बोला-“कह रहे थे कि रानी ताशा को देख लिया है।”

“रानी ताशा को देखने पर देवराज चौहान बेहोश हो गया। ये क्या रहस्य है?” अर्जुन के माथे पर बल पड़े। पास पहुंचकर देवराज चौहान की बेहोशी को चेक करने लगा।

बबूसा की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।

“ये सब महापंडित की चाल है जो राजा देव, रानी ताशा को देखते ही बेहोश हो गए।” बबूसा बोला-“लेकिन ये अच्छा हुआ जो राजा देव ने रानी ताशा का चेहरा देख लिया। महापंडित ने रानी ताशा के चेहरे पर ऐसी कोई ताकत डाल रखी होगी कि राजा देव, रानी ताशा का चेहरा देखें तो उस पर गहरा असर हो।”

“ये बातें मुझे मत कहो।” अर्जुन, देवराज चौहान को चेक करता गम्भीर स्वर में बोला।

“क्यों?”

“मैं नहीं जानता महापंडित कौन है क्या करता...”

“तुम्हें सब बता तो रखा है राजा देव की पत्नी ने-सब जानते हो तुम।” बबूसा बोला।

“और ये महापंडित दूसरे ग्रह पर रहता है। सदूर ग्रह पर?” अर्जुन ने बबूसा को देखा।

“हां।”

“मुझसे इस ग्रह के लोगों की बातें करो। मैं प्राइवेट जासूस हूं मेरी बांह इतनी लम्बी नहीं है कि दूसरे ग्रह तक पहुंच सके। मेरे से उन लोगों की बात करो, जिन तक मैं पहुंच सकूं।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम्हें लगता है कि मैं तुमसे झूठ कह रहा हूं...”

“मुझे कुछ नहीं लगता।” अर्जुन भारद्वाज मुस्करा पड़ा-“पर तुम्हारी बातें सुनकर दिमाग खराब हो जाता है। तुम वो बातें करते हो जो मैं नहीं जानता। हालात मालूम करने सदूर ग्रह पर भी नहीं जा सकता। इसलिए तुम्हारी बातें मेरे लिए बेकार हैं। मैं ये नहीं कहता कि तुम झूठ कह रहे हो, पर मैं तुम्हारी बातें समझने की जरूरत नहीं समझता। मैडम नगीना ने मुझे जो काम सौंपा है मैं उसे पूरा करने की कोशिश में हूं कि उनकी ज्यादा-से-ज्यादा सहायता कर सकूँ इस मामले में।”

“तुम्हें मेरी बातों का पूरी तरह यकीन करना चाहिए।”

“मेरे यकीन करने से कुछ नहीं होगा। क्या तुम मुझे सदूर ग्रह पर ले जा सकते हो?”

“नहीं।”

“तो फिर वहां की कोई बात मुझसे मत करो।”

“अजीब आदमी हो-तुम तो...”

“मैं देवराज चौहान के बारे में सोच रहा हूं कि इसकी बेहोशी बहुत गहरी है।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।

“मतलब कि राजा देव देर तक बेहोश रहेंगे।”

“हां। मेरे ख्याल से ऐसा नहीं होना चाहिए। लगता है इसके मस्तिष्क को किसी तरह का झटका लगा है।”

“बताया तो, ये सब महापंडित की ही करतूत होगी। उसी ने रानी ताशा के चेहरे पर ऐसी ताकत डाली है कि राजा देव जब उसका चेहरा देखें तो इनकी ये हालत हो जाए।” बबूसा गुस्से से कह उठा-“बुरा कर रहा है महापंडित।”

सोचों में डूबे अर्जुन भारद्वाज ने मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाया।

फोन कान से लगाया।

“फोन रहने दो। राजा देव की तरफ ध्यान दो। मुझे राजा देव की बेहोशी की चिंता हो रही है। होश में आने पर राजा देव जाने किस हाल में होंगे। ऐसे भी हो सकता है कि होश आने पर राजा देव को सदूर ग्रह का सब याद आ जाए।”

“मैं मैडम नगीना को बताने जा रहा हूं कि रानी ताशा उनके पास आने को चल चुकी है।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा।

बबूसा के चेहरे पर सोचें नाच रही थीं। उसका दिमाग उलझा हुआ था।

वो चिंता में भी दिख रहा था। उसने बेहोश पड़े देवराज चौहान पर निगाह मारी फिर दरवाजे के पास पहुंचा। सावधानी से दरवाजा खोलकर राहदारी में झांका। दो-तीन लोग जाते दिखे। दो वेटर भी दिखे। बबूसा ने रानी ताशा के कमरे के बंद दरवाजे पर निगाह मारी फिर बगल वाले उस कमरे के दरवाजे को भी देखा, जो कि बंद था। कुछ पल बबूसा सोचता रहा फिर दरवाजे से हटकर कमरे में आ गया।

अर्जुन भारद्वाज बात करके फोन बंद कर चुका था।

“मैं जोबिना तलाश करने रानी ताशा के कमरे में जा रहा हूं।” बबूसा ने कहा।

“जोबिना? ये क्या है?” अर्जुन ने पूछा।

“सदूर ग्रह वालों का जबर्दस्त हथियार है। सामने वाले पर इस्तेमाल करने पर, वो राख हो जाता है। (जोबिना के बारे में विस्तार से जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा और राजा देव’।) अगर मुझे जोबिना मिल गया तो मैं सोमाथ का मुकाबला आसानी से कर सकूँगा।”

“कहीं रानी ताशा के कमरे में उसका कोई आदमी न हो?” अर्जुन बोला।

“सोमाथ के अलावा कोई भी मेरा मुकाबला नहीं कर सकता। मैं किसी से नहीं डरता। तुम राजा देव का ख्याल रखो।” कहने के साथ ही बबूसा बाहर निकल गया। दो मिनट बाद ही वापस लौटा-“दरवाजा बंद है।” बबूसा बोला-“अगर मैं उसे तोड़ता हूं तो ये गलत हो जाएगा। मेरे पास बहुत अच्छा मौका था। जोबिना तलाश करने का।”

“कहो तो मैं दरवाजा खोल देता हूं।” अर्जुन ने कहा।

“तुम?”

“अर्जुन अपने सूटकेस के पास पहुंचा। उसमें से चार इंच लम्बी, खास ढंग से मुड़ी तार निकाल ली।

“ये क्या है?” बबूसा उसके हाथ में थमी तार को देखता बोला।

“इससे दरवाजे का लॉक खुल जाएगा।” कहकर वो दरवाजों की तरफ बढ़ गया।

“सुनो, जो दूसरा कमरा है, जिसमें रानी ताशा के आदमी मौजूद हैं, उस दरवाजे का ताला भी खोल देना।”

अर्जुन भारद्वाज बाहर निकल गया।

पांच मिनट बाद वापस लौटा और बबूसा से कहा।

“दोनों दरवाजों के लॉक खुले हैं, जाओ।”

बबूसा बाहर निकलता चला गया।

तभी नीना कमरे में आ पहुंची।

“बबूसा कहां है?” बबूसा को वहां न पाकर उसके होंठों से निकला।

“वो रानी ताशा के कमरे की छानबीन कर रहा है। मैंने तो सोचा था कि तुम रानी ताशा के पीछे जाओगी।” अर्जुन बोला।

“सोचा तो मैंने भी था। परंतु इरादा छोड़ दिया।” नीना बेड पर लेटे देवराज चौहान को देखा-“ये नींद में क्यों है?”

“बेहोश है।”

“क्यों?”

“देवराज चौहान ने रानी ताशा का चेहरा देखा और बेहोश हो गया। बहुत गहरी बेहोशी है।”

“हैरानी है कि रानी ताशा का चेहरा देखकर, देवराज चौहान बेहोश हो गया। आप सच कह रहे हैं सर?” नीना हैरानी से कह उठी।

अर्जुन ने सिर हिलाया।

“अजीब मामला है।” नीना बैठती हुई बोली-“इस समय आपको नगीना के पास होना चाहिए। रानी ताशा देवराज चौहान के बंगले पर गई है। सोमाथ भी साथ में है। वहां कोई झगड़ा हो गया तो?”

“देवराज चौहान को इस हाल में छोड़कर जाना ठीक नहीं।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा-“बल्कि मेरा तो ख्याल है कि देवराज चौहान को, रानी ताशा के इतने पास रहना ही नहीं चाहिए। चेहरा देखना था, वो इसने देख लिया है।”

“तो आप देवराज चौहान को कहीं और ले जाना चाहते हैं?”

“समझदारी तो इसी में है। परंतु मेरे पास कोई जगह नहीं है, जहां देवराज चौहान को रख सकूँ। वैसे भी इस हाल में देवराज चौहान को बाहर नहीं ले जाया जा सकता। ये बेहोश है। होटल वाले कई सवाल पूछेगे।”

नीना कुछ पल चुप रही। फिर कह उठी।

“आपको क्या लगता है कि रानी ताशा, देवराज चौहान के बंगले पर पहुंचकर क्या करेगी। देवराज चौहान तो उसे मिलेगा नहीं।”

“वहां कुछ भी हो सकता है। देवराज चौहान के न मिलने पर रानी ताशा क्रोध में आ सकती है। उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है। मुझे नहीं मालूम कि रानी ताशा किस तरह से सोचती है। परंतु वो खतरनाक है। कुछ भी कर सकती है।”

“लेकिन सर, हम इस मामले से जुड़े क्या कर रहे हैं। हमारे लायक यहां कोई काम तो है नहीं।”

“मैडम नगीना चाहती है कि मैं उसके लिए काम करता रहूं। मुझे फीस मिल रही है तो मैं मामले से जुड़ा रहूंगा। मैं भी देखना चाहता हूं कि आखिर ये सब हो क्या रहा है।”

“रानी ताशा कहती है कि उसका अंतरिक्ष यान डोबू जाति के पास खड़ा है। उसने हमें बताया भी था कि डोबू जाति कहां पड़ती है। तो क्यों न हम वहां जाकर उस अंतरिक्ष यान को देखें। ऐसा करना ठीक रहेगा सर?” नीना ने अर्जुन को देखा।

“मैं ठीक से नहीं समझ पाया कि डोबू जाति कहां पर है। इतना ही समझ पाया कि लाहौल स्पीति के टाकलिंग-ला कस्बे से डोबू जाति को रास्ता जाता है। धरा का कहना है कि डोबू जाति खतरनाक है। क्या तुम वहां जाना चाहोगी?”

“मैं तो आपके साथ हूं सर।” नीना मुस्कराई-“जैसा आप हुक्म दें।”

“डोबू जाति से हमारा कोई मतलब नहीं। हमारा मतलब नगीना, देवराज चौहान और रानी ताशा से...”

तभी बबूसा ने भीतर प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर दिया।

“मिला?” उसे देखते ही अर्जुन ने पूछा।

“नहीं। दोनों कमरों में कहीं भी जोबिना नहीं मिला। जोबिना को वो जरूर अपने साथ ले गए हैं।” बबूसा ने कहा।

“जोबिना?” नीना बोली-“ये क्या चीज है?”

“सदूर ग्रह का हथियार है, जो सामने वाले को राख बना देता है।” अर्जुन ने बताया।

नीना ने सिर हिलाया फिर बबूसा से बोली।

“तुम्हें चिंता नहीं है कि रानी ताशा, सोमाथ के साथ, देवराज चौहान के बंगले पर गई है।”

“मुझे चिंता क्यों होगी? राजा देव तो यहां पर हैं।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा।

“वहां पर और लोग भी तो हैं।”

“मुझे सिर्फ राजा देव की परवाह है। मैं राजा देव का सेवक हूं।”

“वो सब देवराज चौहान के खास लोग हैं।”

“मेरा फर्ज सिर्फ राजा देव को देखना है।”

“वहां धरा भी है। वो तो तुम्हारी पहचान की है।”

“मेरे लिए राजा देव सबसे पहले हैं।” बबूसा ने नीना को देखा।

“तुम अजीब-से इंसान हो।”

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मेरी बात तुम्हें आने वाले वक्त में समझ आएगी। राजा देव खतरे में हैं। वो खतरा तुम नहीं, मैं देख रहा हूं। रानी ताशा आज राजा देव के बंगले पर पहुंच गई है तो वो जल्दी ही राजा देव तक भी आ जाएगी। तब मुझे राजा देव को बचाना होगा रानी ताशा से कि वो राजा देव को न ले जा सके। मन-ही-मन मैं उस वक्त की तैयारी कर रहा हूं। अगर मुझे जोबिना मिल जाती तो मैं सोमाथ का मुकाबला आसानी से कर लेता। उसे राख बना देता, परंतु जोबिना नहीं मिली। मुझे सिर्फ सोमाथ की चिंता है। कोई और मेरे मुकाबले पर नहीं टिक सकता।”

“देवराज चौहान तो रानी ताशा को देखते ही बेहोश हो गया।” नीना कह उठी।

“इस बात से मैं बहुत ज्यादा व्याकुल हूं कि रानी ताशा को देखकर राजा देव के मस्तिष्क पर गहरा असर हुआ है। ये सब महापंडित की चाल है। उसने रानी ताशा के चेहरे पर ऐसा प्रभाव छोड़ रखा है कि राजा देव उसे देखते ही अपने होश गुम कर बैठें। होश आने पर राजा देव जाने किस हाल में होंगे।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“ये तो अच्छा हुआ कि देवराज चौहान रानी ताशा को देखकर दीवाना नहीं हो गया।” नीना मुस्कराई।

“तुम मुस्करा रही हो, जबकि ये बात काफी गम्भीर है। तुम अभी भी हालातों को नहीं समझ रही।”

तभी अर्जुन बोला।

“अगर रानी ताशा ने उन लोगों से जान लिया कि देवराज चौहान यहां है तो हम मुसीबत में पड़ सकते हैं।”

“वो सब देवराज चौहान के खास हैं।” नीना बोली-“वो नहीं बताने वाले।”

“वहां धरा भी है। वो तो बता सकती है।” अर्जुन ने कहा।

“धरा बहुत समझदार लड़की है।” बबूसा ने अर्जुन को देखा-“वो आसानी से नहीं बताने वाली।”

“फिर भी।” अर्जुन ने सिर हिलाकर कहा-“देवराज चौहान को रानी ताशा के पास वाले कमरे में रखने से खतरा है।”

“तो क्या करें?” बबूसा ने पूछा।

“देवराज चौहान ने रानी ताशा का चेहरा देख लिया है। अब इसे यहां से कहीं और ले जाना चाहिए।”

“ऐसा करना ठीक रहेगा।”

“तुम्हारे पास कोई जगह है, जहां देवराज चौहान को ले जाया जाए। बंगले पर देवराज चौहान को ले जाना ठीक नहीं होगा। वहां पर इस वक्त रानी ताशा है और वो दोबारा भी वहां जरूर जाएगी।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं ऐसी किसी जगह को नहीं जानता जहां राजा देव को रख सकूं।” बबूसा ने कहा-“मैं तो सिर्फ डोबू जाति को जानता हूं या सदूर ग्रह को जानता हूं। पृथ्वी ग्रह मेरे लिए अजनबी जगह है।”

“सर।” नीना बोली-“हमें इंतजार करके पहले ये देखना होगा कि रानी ताशा देवराज चौहान के बंगले पर क्या करती है।”

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