छत पर चमकदार शीशे लगे हुए थे। फर्श को कारपेट से पूरा ढांपा हुआ था। कीमती टेबल के एक तरफ बेहद आरामदेह चेयर मौजूद थी। दूसरी तरफ दो कुर्सियां पड़ी थीं। उस कमरे का सादापन ही जैसे सजावट में अहम भूमिका निभा रहा था।

ललित परेरा आरामदेह चेयर पर बैठता हुआ बोला।

“बैठो।”

तब तक मोना चौधरी बैठ चुकी थी।

“कहाँ, क्या बात करना चाहती हो?”

“तुमने मेरा नाम नहीं पूछा । जबकि तुम्हारा पहला सवाल ये होना चाहिये था।” मोना चौधरी का स्वर शांत था।

“अगर तुम्हारा नाम पूछना जरूरी है तो अब पूछ लेता हूं।” ललित परेरा मुस्करा पड़ा।

“इसका मतलब मुझे पहचानते हो तुम।”

“मेरे ख्याल में हमारी मुलाकात आज से पहले कभी नहीं हुई।”

“बिना मुलाकात के भी पहचान रखी जा सकती है।” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये।

ललित परेरा ने मोना चौधरी की आंखों में झांका फिर सिर हिलाकर बोला।

“मेरे ख्याल में तुम्हें अपनी बात शुरू करनी चाहिये। मुझे और भी काम है।”

“तुम्हारे आदमियों ने मेरे फ्लैट की तलाशी ली और वहां रखा पैंतीस लाख रुपया ले गये।”

ललित परेरा कई पलों तक मोना चौधरी को देखता रहा फिर कह उठा।

“मैं नहीं मानता कि पैंतीस लाख जैसी भारी रकम तुम्हारे फ्लैट में होगी।” वो बोला।

“अपने आदमियों से पूछ सकते हो। जो मेरे फ्लैट पर।”

“कुछ और कहना है?” परेरा ने टोका।

“मुझे पैंतीस लाख चाहिये।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी।

ललित परेरा के होंठों पर मुस्कान उभरी फिर लुप्त हो गई।

“जो भी कहना है कह डालो।”

“तुम्हारे आदमियों ने मेरी जान लेने की कोशिश की। जबकि...”

“उन्होंने तो कोशिश की। लेकिन तुमने तीन को मार दिया।”

“न मारती तो वो मुझे मार देते।”

“तो फिर शिकायत कैसी?”

“ये कि बेकार में मेरे पीछे अपने आदमी मत लगाओ।” मोना चौधरी के स्वर में सख्ती आ गई।

“सतीश ठाकुर ने तुम्हें क्या बताया था?”

“कुछ भी नहीं।”

“उसने तुम्हारे साथ बातें की थीं। ये नहीं हो सकता कि उसने कुछ न बताया हो।”

“वो कुछ बताना चाहता था। किसी से मेरा नम्बर लेकर मुझसे बात की और मुझे वहां बुलाया। लेकिन वो कुछ भी बता नहीं सका। उससे पहले ही तुम्हारे आदमी ने उसे शूट कर दिया।”

ललित परेरा की निगाहें मोना चौधरी के चेहरे पर रहीं। चंद पलों की वहां चुप्पी छा गई।

“मैंने जो कहना था, कह दिया। मेरा पैंतीस लाख दो, जो तुम्हारे आदमी ले आये हैं। तुम्हारा रास्ता अलग है और मेरा अलग। हम दोनों के लिए ही बेहतर है कि हम एक-दूसरे के रास्ते में न आयें। ललित परेरा एकाएक मुस्कराया फिर कह उठा।

“देवास, अपने साथ चार आदमी लेकर, तुम्हारे फ्लैट में गया था। मैं और वो भी नहीं जानता था कि तुम कौन हो। तुम्हारे फ्लैट पर पहुंचकर मालूम हुआ कि तुम मोना चौधरी हो।”

“झूठ मत बोलो । मेरे फ्लैट में ऐसा कुछ नहीं है कि सके, मैं मोना चौधरी हूं।”

“हो सकता है, तुम्हारा कहना सही हो। लेकिन देवास ने बताया कि उसकी मौजूदगी में कोई फोन आया था। वो मोना चौधरी को पूछ रहा था। इतने से ही देवास समझ गया कि वो मोना चौधरी के फ्लैट में है। उसके बाद तुम्हारा हुलिया जानना मेरे लिए मामूली बात थी और अब जब तुम मेरे पीछे आई तो तुम्हें देखते ही तुरन्त समझ गया कि मेरे सामने मोना चौधरी खड़ी है।”

“मेरा पैंतीस लाख दो परेरा।” मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर शांत स्वर में बोली।

“देवास तुम्हारे बारे में कुछ खास शब्दों का इस्तेमाल कर रहा था।”

ललित परेरा का स्वर लापरवाह सा था- “मुझे तो उसकी बात पर विश्वास नहीं आया।”

मोना चौधरी आंखें सिकोड़े, परेरा को देखती रही।

“देवास कह रहा था कि तुम मोना चौधरी हो। बहुत खतरनाक हो। किसी डाइनामाईट से कम नहीं हो। वो तुम्हें मैडम डाइनामाईट का सम्बोधन दे रहा था।” परेरा मुस्कराया- “क्या वास्तव में तुम मैडम डाइनामाईट हो?”

“मैं मोना चौधरी हूं।” कहते हुए मोना चौधरी के दांत भिंच गये।

“वो तो मालूम है। लेकिन कहने वाले तुम्हें मैडम डाइनामाईट क्यों कहते हैं?”

मोना चौधरी कुछ पलों तक ललित परेरा को घूरती रही।

“मेरे ख्याल में तुम पैंतीस लाख देने की खातिर बात बदल रहे हो।”

“ऐसी बात नहीं है। तुम नहीं जानती कि मैं तुम्हारी वजह से कितना परेशान हो रहा था कि सतीश ठाकुर ने तुम्हारे सामने मुंह फाड़ दिया है और तुम हाथ नहीं आ रही। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि तुम इतनी आसानी से हाथ आ जाओगी। खुद ही चलकर, मेरे पास।”

“सतीश ठाकुर ने मुझे कुछ नहीं बताया। बार-बार कहूं क्या, वो बताना चाहता था लेकिन ठीक वक्त पर तुम्हारे आदमी ने उसे गोली मार दी।”

“खैर, जो भी हो, मैडम डाइनामाईट ।” ललित परेरा के स्वर में सर्द से भाव आ गये- “मुझे ऊपर से सख्त आर्डर है कि तुम्हें फौरन खत्म कर दिया जाये। ऊपर वाले कोई रिस्क नहीं लेना चाहले कि...”

“ऊपर वाले।” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं- “तुम्हारे ऊपर भी कोई है?”

“हां”

“कौन?”

“बच्चों जैसे सवाल मत करो। सतीश ठाकुर ने तुम्हें कुछ बताया है या नहीं। इस बारे में ऊपर वाले कोई रिस्क नहीं लेना चाहते। वो तुम्हें खत्म हुआ देखना चाहते हैं। अब तुम आ गई हो तो ये काम भी खत्म हो ही गया मैडम डाइनामाइट।” परेरा के स्वर में खतरनाक भाव आ गये। मोना चौधरी के होंठों पर जहरीली मुस्कान उभर आई।

“तो मुझे खत्म करोगे।”

“मजबूरी है। ऊपर वालों का ऑर्डर टाला नहीं जा सकता।”

“यानि कि अब तुम मुझे मारने जा रहे हो।”

ललित परेरा के होंठों पर मौत से भरी मुस्कान उभरी।

“ऐसा है तो फिर ऊपर वालों के बारे में बताने में क्या हर्ज है। मैं तो मरने जा ही रही हूं।”

“तुम मरो या जिन्दा रहो । कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारी लाश के पास खड़े होकर भी ऊपर वालों के बारे में मुंह नहीं खोलूंगा। ये तुम्हारी जिन्दगी की पहली और आखिरी भूल रही कि, तुम यहां आ गईं।”

“मैं अपना पैंतीस लाख लेने आई हूं।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।

“और बदले में मिल रही है मौत । तुम।”

तभी मोना चौधरी ने फुर्ती से कपड़ों में छिपी रिवॉल्वर निकाल ली। रुख परेरा की तरफ।

“किसे मौत मिल रही है, ये तो अब मालूम होगा।” मोना चौधरी के दांत भिंच गये।

ललित परेरा खतरनाक ढंग से हंस पड़ा।

“वास्तव में तुम हिम्मत वाली हो मैडम डाइनामाईट।” हंसी रोकते हुए परेरा ने कहा- “मेरे आफिस में बैठकर तुम, मेरी तरफ रिवॉल्वर करके मुझे खत्म करने की धमकी दे रही हो।”

“धमकी नहीं। हकीकत है ये। पैंतीस लाख तो मैं वसूल कर ही लूंगी। लेकिन तुम जिन्दा नहीं....।”

आगे के शब्द मोना चौधरी के होंठों में ही रह गये।

उसी पल कुर्सी पर बैठे ललित परेरा ने टेबल के नीचे लगा बटन दबा दिया। मोना चौधरी जिस कुर्सी पर बैठी थी, वो बाईं तरफ किसी झूले की तरह झूली। नीचे का फर्श, अचानक ही खाली सा नज़र आने लगा। जिसके पार घुप्प अंधेरा था। कुर्सी पूरी उल्टी हो गई।

मोना चौधरी को संभलने का ज़रा भी मौका न मिला।

कुर्सी से उसका शरीर अलग होते ही उस खाली जगह के बीच धंसता चला गया। उसके कानों में ललित परेरा का जहरीला ठहाका गूंज उठा।

दूसरे ही पल उसका शरीर किसी गद्देदार या स्प्रिंग जैसी जगह से टकराया। कई बार वो उछली। फिर उसका शरीर संभल गया। ऊपर देखा। ऊपर की खाली जगह देखते ही देखते बंद हो गई। रोशनी आनी बंद हो गई और वो जहां थी। वहां घुप्प अंधेरा था। ऐसा कि हाथ को हाथ नहीं दिखाई दे रहा था।

मोना चौधरी ने हाथों से आसपास टिटोला । उसे लगा वो किसी गद्दे पर है।

इससे पहले कि उसकी आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त होती, एकाएक वहां रोशनी फैल गई। दो पलों के लिए मोना चौधरी की आंखें चुंधियाईं। फिर उसकी नज़रें आस-पास फिरने लगीं।

कमरे में फ्रिज, टी०वी० मौजूद था। वो ऐसे डबलबैड पर मौजूद थी, जो कि स्प्रिंग वाला था। यही वजह थी कि ऊपर से गिरने की वजह से चोट नहीं आई थी। मोना चौधरी ने छत की तरफ देखा, जहां से वो नीचे गिरी थी। वो जगह बंद थी और वहां ऐसा डिजाईन बना था कि, उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि उधर कोई रास्ता भी हो सकता है। मोना चौधरी बैड से नीचे उतरी और कमरे में टहलने लगी। वहां अटैच बाथरूम था।

कमरे या बाथरूम में कहीं भी कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था। दरवाजा था, लेकिन वो बंद था। तभी उसकी निगाह नीचे गिरे पड़े रिवॉल्वर पर पड़ी। जो कि उसका अपना ही था। मोना चौधरी ने फौरन रिवॉल्वर उठाया और अपने कपड़ों में छिपा लिया। वो जानती थी कि चीखने-पुकारने का कोई फायदा नहीं था। कोई नहीं आयेगा। जब भी कोई आयेगा। अपनी मर्जी से आयेगा। मोना चौधरी आगे बढ़ी और बैड पर जा लेटी।

सोचें मस्तिष्क में दौड़ने लगीं।

ललित परेरा की कैद में थी घो। सतीश ठाकुर के मामले को छोटा सा मामला समझकर वो, सीधे-सीधे परेरा के पास आ गई थी, पैंतीस लाख वापस लेने। लेकिन परेरा वो नहीं था, जो सिर्फ देखने में नजर आता था। उसकी जड़ें गहरी थीं। वो अपना मालिक खुद नहीं था। उसके ऊपर भी कोई था। ऊपर वालों का हुक्म मानना उसके लिए जरूरी था।

अब ये तो स्पष्ट हो चुका था कि वो किसी लम्बे झंझट में फंस चुकी है। सतीश ठाकुर वास्तव में कुछ खास ही जान गया था इन लोगों के बारे में। तभी उसकी जान ली गई और वो बात सतीश ठाकुर ने उसे न बता दी हो। इस वजह के तहत उसे खत्म किया जा रहा था।

आखिर क्या जान गया था सतीश ठाकुर?

मोना चौधरी ने कमरे के बंद दरवाजे को देखा। जो कि कभी भी खुल सकता था। उसकी जान लेने की कोशिश में, कभी भी, कोई भी आ सकता था।

बैड पर लेटी मोना चौधरी सावधान थी।

☐☐☐

दो-ढाई घंटे बाद दरवाजे पर आहट हुई।

बैड पर लेटी मोना चौधरी की आंखें खुल गईं। नज़रें दरवाजे की तरफ घूमी। उठने की चेष्टा नहीं की। देखते ही देखते दरवाजा खुला दो व्यक्तियों ने भीतर प्रवेश किया। उनके हाथों में रिवॉल्वरें थीं। मोना चौधरी वैसे ही रही।

सावधानी से कदम आगे बढ़ाते दोनों बैड से चार कदम दूर ही ठिठक गये। उनके चेहरों पर खतरनाक भाव थे। आंखों में मौत नाच रही थी।

“तुम्हारी लाश ठिकाने लगाने का पूरा इन्तजाम करके ही, तुम्हें खत्म करने आये हैं।” एक ने भिंचे स्वर में कहा।

मोना चौधरी खामोश सी लेटी, उन्हें देखती रही।

“मालूम नहीं, तुमने क्या किया है। लेकिन परेरा साहब जब किसी को खत्म करने को कहते हैं तो वो गलत नहीं कहते। तुमने यकीनन कोई भारी गड़बड़ की है।” दूसरे ने शब्दों को चबाकर कहा।

मोना चौधरी के हाव-भाव में कोई बदलाव नहीं आया।

“लगता है, अपनी मौत को सामने पाकर इस हद तक डर गई है कि हिलने की भी हिम्मत नहीं रही।”

मोना चौधरी के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभर आई।

“मैं परेरा से बात करना चाहती हूं।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

“क्यों?”

“उसे बताना चाहती हूं कि वो गलती कर रहा है। सतीश ठाकुर ने मुझे कुछ नहीं बताया।”

“परेरा साहब, अगर तुमसे बात करने की जरूरत समझते तो हमारे साथ ही आ जाते।” कड़ये शब्दों में कहा गया- “वो साथ नहीं आये तो जाहिर है कि वो तुमसे कोई बात नहीं करना चाहते। तुम्हें मरा हुआ देखना चाहते हैं। तुम्हारी मौत की खबर सुनना चाहते हैं।”

मोना चौधरी उठ बैठी।

“तो तुम लोग मुझे खत्म करने आये हो।”

“सुना नहीं। मैंने पहले ही कहा था कि तुम्हारी लाश ठिकाने लगाने

का इन्तजाम करके ही....।”

यही वो पल था कि मोना चौधरी के कपड़ों में छिपी रिवॉल्वर, उसके हाथ में आ गई। ये सब इतनी जल्दी हुआ कि वो दोनों ठीक से समझ भी नहीं पाये कि तेज धमाकों के साथ रिवॉल्वर में से दो शोले निकले और सामने खड़े दोनों व्यक्तियों के शरीरों में प्रवेश कर गये।

दोनों चीखकर नीचे गिरे। रिवॉल्वरें उनके हाथ से निकल गईं।

उसी क्षण दरवाजे पर एक और व्यक्ति नजर आया। वो मोना चौधरी का निशाना लेने जा रहा था कि मोना चौधरी ने एक के बाद एक दो फायर कर दिए।

दोनों गोलियां उसे लगीं। एक छाती पर । दूसरे गले में। वो चीख भी नहीं सका और दरवाजे से टकराता हुआ नीचे जा गिरा।

चार धमाके हो चुके थे।

दूसरों ने आवाज अवश्य सुनी होगी। वो कभी भी इधर आ सकते हैं। मोना चौधरी ने हाथ में दबी रिवॉल्वर अपने कपड़ों में छिपाई और नीचे पड़ी भरी रिवॉल्वर उठाकर दरवाजे के पास पहुंची और बाहर झांका। बाहर गैलरी थी। एक तरफ वो गैलरी बंद हो रहीं थी, जबकि दूसरी तरफ रास्ता था।

रिवॉल्वर हाथ में दबाये, किसी के आने के इन्तजार में मोना चौधरी वहीं खड़ी रही।

दो-तीन मिनट बीत गए।

न तो कोई आया और न ही कोई आहट गूंजी।

खामोशी और सन्नाटा ही छाया रहा।

रिवॉल्वर हाथ में थामे मोना चौधरी आगे बढ़ी। गैलरी में आई फिर सतर्कता से आगे बढ़ने लगी। दायें-बायें कमरे थे। लेकिन उसने किसी कमरे

को खोलने की चेष्टा नहीं की। कुछ आगे जाकर ऊपर जाती सीढ़ियां नज़र आई। बिना रुके मोना चौधरी, बे-आवाज सीढ़ियां चढ़ती चली गई।

आखिरी सीढ़ी पर पहुंचकर मोना चौधरी ठिठकी।

सामने दीवार थी।

लेकिन सीढ़ियां बता रही थीं कि वो अवश्य दरवाजा रूपी दीवार थी। रिवॉल्वर थामे मोना चौधरी पैनी निगाहों से उस जगह को देखने लगी। मध्यम सा प्रकाश फैला था वहां। ऐसा कुछ नज़र नहीं आया कह उठी।

कि जिससे दरवाजा खोला जा सके। मोना चौधरी ने दीवार के उस हिस्से को हल्के से ठकठका कर देखा तो, खोखली सी आवाज उभरी। जाहिर था कि वो दरवाजा ही था।

मोना चौधरी अपनी हथेली आहिस्ता-आहिस्ता दीवार पर फेरने लगी। ऐसा करते-करते नीचे झुकी तो पांवों के पास ही, दीवार में लगी छोटी से हुक से उसकी हथेली टकराकर रुकी।

मोना चौधरी की निगाह उस हुक पर जा टिकी, जिसे सीधे-सीधे देख पाना आसान नहीं था। उसकी उंगलियाँ हुक पर जम गईं। उसे दायें-बायें हिलाया। बाहर खींचा। भीतर की तरफ दबाया।

हुक भीतर की तरफ दबती चली गई। दूसरे ही पल, सामने नज़र आ रही दीवार, करीब डेढ़ फीट सरक गईं। उधर से आने वाली रोशनी में, मोना चौधरी पांव तक चमक उठी। रिवॉल्वर थामे मोना चौधरी खड़ी हुई। भीतर देखा। ये ललित परेरा का ही आफिस था। जहां से वो नीचे गिरी थी।

मोना चौधरी दबे पांव भीतर प्रवेश कर गई।

वो दीवार बे-आवाज वापस अपनी जगह आ गई थी।

ललित परेरा,अपनी कुर्सी पर बैठा था। इस तरफ उसकी पीठ थी उसकी। टांगों के पास कोई फाईल नजर आ रही थी। वो शायद फाईल देखने में व्यस्त था। मोना चौधरी दबे पांव उसके पास पहुंची और रिवॉल्वर की नाल उसके सिर पर लगाकर, खतरनाक स्वर में बोला।

“तुम्हारा खेल खत्म हो गया परेरा। अब मैडम डाइनामाईट का खेल शुरू हुआ है। कोई हरकत मत करना, वरना वक्त से पहले मरना पड़ेगा।”

परेरा ने कोई हरकत नहीं की।

“हाथ ऐसे ही रखना । हाथ हिले तो मैं उसी वक्त तुम्हें शूट कर दूंगी।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में कहते हुए रिवॉल्वर थामे, कुर्सी के पीछे घूमते हुए ललित परेरा के सामने आ गई।

और उसी पल मोना चौधरी चिहुंक पड़ी।

कुर्सी पर ललित परेरा ही था। लेकिन अब वो जिन्दा नहीं था। उसके ठीक दिल वाले हिस्से पर गोली मारी गई थी। वो मरा पड़ा था। देखने पर ये बात स्पष्ट तौर पर नज़र आ रही थी कि उसे गोली मारे मिनट भी नहीं बीता था। जहां गोली लगी थी, वहां से खून बह रहा था।

मोना चौधरी की निगाह कमरे में घूमी।

वहां कोई भी नहीं था।

उसने फौरन आगे बढ़कर दरवाजा खोला और बाहर झांका। सामने आगे को जाती गैलरी थी। गैलरी खाली थी। स्पष्ट था कि परेरा को शूट करने वाला जा चुका था।

इन हालातों में मोना चौधरी ने भी वहां रुकना ठीक नहीं समझा और रिवॉल्वर कपड़ों में फंसाने के बाद बाहर निकली और सामान्य गति से चलती हुई आगे बढ़ गई। दो-तीन मोड़ों के पश्चात वो रिसैप्शन वाले हिस्से में जा पहुंची। लोगों की चहल-पहल वहां बरकरार थी। सब कुछ ठीक नजर आ रहा था। लेकिन मोना चौधरी जानती थी कि कुछ भी ठीक नहीं है। अपने आफिस में ललित परेरा मरा पड़ा है। ये खबर आम होते ही हो-हल्ला हो जाना था।

मोना चौधरी बाहरी द्वार की तरफ बढ़ गई।

होटल के दरवाजे से निकलकर, पार्किंग में खड़ी कार की तरफ बढ़ रही थी कि आवाज सुनकर ठिठकी।

“मोना।” पुकारने वाला गुलशन वर्मा था।

मोना चौधरी ने देखा। वो एक कार के पास खड़ा था। हाथ में चाबियां थीं।

“हैलो!” मोना चौधरी के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी- “मिस्टर वर्मा, आप अभी तक होटल में हैं।”

“हां। गेम लम्बा हो गया था। लेकिन बढ़िया रहा । डेढ़ लाख जीत गया। तुम कहां चली गई थीं?”

“मेरा दोस्त मिल गया था।”

“कैसा दोस्त है वो। रात के वक्त अकेला छोड़ दिया तुम्हें । आओ तुम्हें, तुम्हारे घर छोड़ दूं।”

“शुक्रिया। मेरे पास कार है। बाय।”

“कल फिर आना। तुम मेरे लिए लक्की हो।”

मोना चौधरी अपनी कार की तरफ बढ़ गई।

☐☐☐

अगले दिन सुबह जब मोना चौधरी की आंख खुली तो दिन के नौ बज रहे थे। बैड पर जाते-जाते उसे सुबह के चार बज गये थे। हाथ मुंह धोने के पश्चात, बैड टी तैयार की और कुर्सी पर बैठते हुए घूँट भरने लगी। उसकी सोचों में कल रात की घटनाएं आने लगीं।

ललित परेरा उसे खत्म करना चाहता था। वजह ये कि कहीं सतीश ठाकुर ने उसे कुछ न बता दिया हो। स्पष्ट था कि सतीश ठाकुर बहुत ही महत्वपूर्ण बात जानता था। जान गया था। जो कि इन लोगों के लिए घातक हो सकती थी, अगर वो बात खुल जाती।

इसके अलावा खास बात ये थी कि परेरा किसी और के इशारे पर काम करता था। लेकिन परेरा जैसा इन्सान, किसी और के इशारे पर काम करे तो स्पष्ट था कि वो जो भी है, खतरनाक इन्सान है।

जिसने परेरा पर पूरी तरह अपना अधिकार जमा रखा था और इसमें कोई शक नहीं कि परेरा की हत्या भी उसी ने या उसके इशारे पर किसी ने की है।

मोना चौधरी जानती थी कि परेरा की मौत का कारण वह ही थी। अगर वो इस मामले में न आती तो शायद परेरा जिन्दा रहता। परेरा जिसके लिए काम करता था, वो सतर्क रहने वाला इन्सान है। उसे लगा होगा कि परेरा कहीं पर कमजोर ना पड़ जाये या फिर कोई दूसरी खास वजह होगी, उसकी जान लेने के पीछे।

लेकिन जो भी। हालात खतरनाक हो गये थे। जो परेरा को आर्डर दे रहा था। वो, अवश्य उसके बारे में जान गया होगा। ऐसे में वो चुप नहीं बैठेगा। उसकी जान लेने की पूरी कोशिश की जायेगी।

चाय का प्याला खाली करके रखा ही था कि फोन की बेल बजी।

“हैलो।” मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया।

“बेबी!” महाजन की आवाज कानों में पड़ी- “रात मैं फोन करता रहा।”

“मैं कहीं और थी। विक्रम दहिया के बारे में कुछ पता चला कि वो कहां गया है?”

“नहीं। इस काम पर बंदे लगा रखे हैं। शायद कोई खबर मिले।

एक आदमी के बारे में पता चला है, जो शायद बता सके कि दहिया इस वक्त कहां हो सकता है। मैं आता हूं। दोनों साथ ही चलते हैं।”

“आ जाओ। कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।

☐☐☐

महाजन के चेहरे पर गम्भीरता नज़र आ रही थी।

मोना चौधरी ने परेरा से वास्ता रखती सारी बात बता दी थी। उसके बाद वहां कुछ चुप्पी सी छा गई थी। महाजन ने जेब से छोटी बोतल निकालकर घूँट भरा फिर बोतल बंद करके वापस जेब में रखने के बाद सिग्रेट सुलगाई। महाजन के पहुंचने तक मोना चौधरी नहा-धोकर चेंज कर चुकी थी।

“पैतीस लाख परेरा के आदमियों के हाथों में पहुंच गये।” महाजन ने गहरी सांस ली।

“ये जुदा बात है।” मोना चौधरी ने कहा- “इसके अलावा उस मुसीबत पर ध्यान दो, जो कि खामखाह ही मेरे सिर पर आ पड़ी है और जाने कौन लोग, मेरी जान के पीछे पड़ गये हैं।”

“हां। ये और भी खतरनाक बात है।” महाजन ने कश लिया- “कुछ करना होगा।”

“तुम इस मामले में न आओ और विक्रम दहिया पर लगे रहो।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा- “इस मामले को मैं निपटाने की चेष्टा करूंगी।”

महाजन ने मोना चौधरी की आंखों में झांका।

“तुम सतीश ठाकुर वाले मामले को कैसे संभालोगी। तुम्हें तो यह भी नहीं मालूम कि सतीश ठाकुर कौन था और उसकी जेब से जो पर्स तुमने निकाला था, उसे भी वो लोग ले गये।”

“सतीश ठाकुर के बारे में मालूम करना कोई बड़ी बात नहीं है। मालूम हो जायेगा।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा- “उसके बाद पता लगाना होगा कि सतीश ठाकुर किस फेर में था। परेरा के मामले में कैसे आ फंसा? सतीश ठाकुर ने फोन पर मुझे कहा था कि अगर मैं मर गया तो, मेरे हत्यारे को ढूंढने की एवज में पच्चीस लाख रुपया मिलेगा। ऐसी उसने वसीयत कर रखी है। उसने बताया था कि हाईकोर्ट की क्त्तीस नम्बर आफिस उसके वकील का है। इस बारे में बेशक उससे बात कर लूं।”

महाजन ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया।

“तो तुमने पक्का सोच लिया है कि सतीश ठाकुर के मामले में हाथ डालोगी?”

“मजबूरी है। न चाहते हुए भी अब मुझे ऐसा करना होगा। मोना-चौधरी के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था- “परेरा के ऊपर जो कोई भी है, वो अब बहुत सोच-समझकर, एक ही वार मुझ पर करना चाहेगा कि मैं बच न सकू। यानि कि मैं नहीं जानती कौन लोग मेरी जान लेना चाहते हैं। लेकिन वो जो लोग भी हैं, वो ही सतीश ठाकुर के हत्यारे हैं। ऐसे में मुझे सतीश ठाकुर के हत्यारे को तलाश करना पड़ेगा, ताकि मैं उस इन्सान तक पहुंच सकूँ जो मेरी जान लेना चाहता है।”

“और अगर इस बीच उन लोगों ने तुम्हें निशाना बना लिया तो?”

“मैं कोशिश करूंगी कि ऐसा न हो।”

“वो लोग तुम्हारी असलियत जान चुके हैं कि तुम मोना चौधरी हो। ऐसे में वो बहुत सोच-समझकर तगड़ा वार करेंगे कि तुम्हें बचने का मौका न मिले और जो परेरा के ऊपर हैं, वो लोग खतरनाक तो होंगे ही।”

“इन सब बातों का एहसास है मुझे। तुम विक्रम दहिया पर ध्यान दो।” मोना चौधरी ने महाजन को देखा- “मैं सतीश ठाकुर के बारे में मालूम करती हूं। विक्रम दहिया के बारे में कोई खास बात हो तो पारसनाथ को खबर कर देना। मैं वक्त-वक्त पर पारसनाथ को फोन करती रहूंगी।”

महाजन ने सहमति में सिर हिलाया।

“विक्रम दहिया जैसा इन्सान इस तरह अकेला गया है तो जाहिर है, किसी खास जगह गया होगा। वरना वो किसी भी कीमत पर अकेला बाहर निकलने का खतरा नहीं उठायेगा।” मोना चौधरी ने कहा। ऐसे में ये सोचा जा सकता है कि वो किसी ऐसे इन्सान से मिलने गया हो। जिसके बारे में वो नहीं जानता कि दूसरे लोग जाने।” महाजन सोच भरे स्वर में बोला- “अगर मालूम हो जाये कि वो कहां गया है, या कब वो वापस लौटेगा तो रास्ते में कहीं भी उसे घेरा जा सकता है।”

“कोशिश करो कि ये बात मालूम हो जाये। पता चले तो पारसनाथ को खबर कर देना।”

महाजन ने सिग्रेट ऐशट्रे में डाली और खड़ा हो गया।

“राधा कैसी है?” मोना चौधरी कह उठी।

“मजे कर रही है।” महाजन मुस्करा पड़ा।

“तंग तो नहीं करते उसे?”

“पूछ लेना। वैसे तंग वो करती है बेबी।” महाजन मुंह बनाकर बोला- “वो।”

“वो तुम्हें प्यार भी बहुत करती है। अपनी जान से ज्यादा चाहती है। ऐसे में तंग करने का हक भी उसके पास है। सारी उम्र बाहर खाना खाते रहे। घर का खाना, अब कैसा लगता है?”

“बहुत महंगा पड़ता है।” कहते हुए महाजन के होंठों पर मुस्कान उभरी और बाहर निकल गया।

☐☐☐

मोना चौधरी हाईकोर्ट पहुंची। पार्किंग में कार खड़ी करके, सामने वाली इमारत की तरफ बढ़ गई। जहां वकीलों के आफिस थे। इस दौरान वो बेहद सतर्क थी कि कोई उसे शूट न कर सके। उसकी पूरी कोशिश रही कि राह चलते लोगों की भीड़ के साथ रहे।-इमारत के भीतर प्रवेश करने के पश्चात बत्तीस नम्बर का आफिस तलाश करने में कोई खास दिक्कत नहीं आई। दरवाजे के बाहर स्टूल पर चपरासी बैठा था।

“वकील साहब भीतर हैं।” मोना चौधरी ने कहा।

“केस पर गये हैं। आने वाले हैं। आप भीतर बैठकर इन्तजार कर लीजिये।” चपरासी ने कहा।

मोना चौधरी ने दरवाजा धकेला । दरवाजे पर नरेश गुलाटी के नाम की पीतल की प्लेट लगी थी। भीतर प्रवेश करते ही पहला कमरा, बेटिंग रूम था। साथ ही दूसरा कमरा नज़र आ रहा था। वहां दो अन्य लोग वकील के इन्तजार में बैठे थे।

मोना चौधरी आगे बढ़ी और दूसरा दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गई। ये कमरा कुर्सी-टेबल और मोटी-मोटी किताबों के रैकों से सजा हुआ था। वहां एक युवक फाईल पर कुछ लिखने में व्यस्त था । मोना चौधरी के भीतर प्रवेश करने पर उसने सिर ऊपर उठाया।

“यस?”

“मिस्टर नरेश गुलाटी से मिलना है।”

“बाहर बैठिये। सर, आने वाले हैं।” उसने सरल स्वर में कहा।

“गुलाटी साहब ने कहा था कि मैं उनके आफिस में बैठकर इन्तजार करूं।” कहते हुए मोना चौधरी कुर्सी पर बैठ गई- “ऐसे में आप को इन्कार नहीं होना चाहिये।”

“सर, ने कहा है तो मुझे क्या एतराज हो सकता है।” वो पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया। पांच मिनट पश्चात उसने लिखना बंद किया और फाईल उठाकर जल्दी से बाहर निकल गया।

मोना चौधरी को पन्द्रह मिनट इन्तजार करना पड़ा।

नरेश गुलाटी ने भीतर प्रवेश किया। साथ में उसका असिस्टेंट था। जो फाईलें उठाये साथ था। मोना चौधरी को वहां बैठा पाकर ठिठका। मोना चौधरी उसे देखकर मुस्कराई।

“कौन है आप?” टेबल पार अपनी कुर्सी की तरफ बढ़ता हुआ बोला- “भीतर कैसे बैठी हैं?”

मोना चौधरी ने उसके असिस्टैंट पर नज़र मारी और फिर उसे देखकर कह उठी।

“जरूरी और खास बात अकेले में करनी है।”

उसने मोना चौधरी को गहरी निगाहों से देखा। उसके बाद अपने असिस्टैंट से कहा।

“कोर्ट में जाकर ध्यान रखो। अगला केस लगने वाला हो तो फौरन मुझे खबर करना।”

“यस सर।” वो बाहर निकल गया।

उसकी निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी।

“कहिये। क्या बात करना चाहती हैं आप?”

“आप सतीश ठाकुर के वकील हैं?”

“सतीश ठाकुर?” वो कुछ चौंका- “आप जानती थीं उसे?”

“इतना ही जानती हूं कि जब वो मरा। उसे गोली मारी गई तो वो मेरे से मुलाकात कर रहा था।”

“ओह! पुलिस को तो आपकी तलाश है कि...”

“शटअप।” मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा- “बात आपकी और मेरी हो रही है। पुलिस बीच में कहां से आ गई। वकीलों को पुलिस से दूर रहना चाहिये। उम्र आपकी साठ की हो रही है लेकिन समझ साठ से कम की है।”

नरेश गुलाटी ने आंखें सिकोड़कर मोना चौधरी को देखा फिर सिर हिलाकर बोला।

“आपका नाम?”

“मेरा नाम जानने की भी जरूरत नहीं। जब वक्त आयेगा। बता दूंगी।”

“वो वक्त कब आयेगा?”

“जब सतीश ठाकुर का हत्यारा कानून की गिरफ्त में होगा।” मोना चौधरी ने वकील नरेश गुलाटी की आंखों में झांका- “मेरी बात का मतलब समझ रहे हैं ना आप?”

“अभी पूरी तरह नहीं समझा।”

“समझ जायेंगे। सतीश ठाकुर ने बताया था कि ये आफिस उसके वकील का है।”

“उसने ठीक कहा था।”

“उसने ये भी कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाये तो, उसकी कातिल को कानून तक पहुंचाने वाले को पच्चीस लाख मिलेगा। अपनी वसीयत में उसने ये बात लिख दी है।”

नरेश गुलाटी ने गहरी सांस ली।

“हां। मरने से एक दिन पहले उसने वसीयत की थी और यही लिखा था। अब मैं विश्वास कर सकता हूं कि सतीश ठाकुर ने तुम्हें ये। बात बताई होगी। क्योंकि वसीयत अभी तक खोली नहीं गई। उसकी जायदाद पर कोई तकाजा करने अभी तक नहीं आया कि वसीयत खोलने की जरूरत पड़े।”

“क्या मतलब?” मोना चौधरी ने उसे देखा- “उसके घर वाले?”

“वो अपने मां-बाप की अकेली औलाद था और उसके मां-बाप अब दुनिया में नहीं हैं।”

“उसकी पत्नी या।”

“उसने शादी नहीं की थी।”

“ओह! आप बता सकते हैं कि किसने उसे मारा होगा। वसीयत करने के दौरान उसने बताया होगा।”

“कुछ नहीं बताया। वो घबराया हुआ था और जल्दी में था। मेरे पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया। वसीयत की और चला गया। आप अपने बारे में कुछ नहीं बता रही?”

“मैं सतीश ठाकुर के हत्यारे को ढूंढने की कोशिश करने जा रही नरेश गुलाटी कुछ नहीं बोला।

“सतीश ठाकुर के घर का पता बताइये।”

नरेश गुलाटी ने पता बताकर कहा।

“सतीश ठाकुर के हत्यारे में आपकी क्या दिलचस्पी है, जबकि आप उसका पता भी नहीं जानतीं।”

जवाब में मोना चौधरी मुस्कराकर उठ खड़ी हुई।

“शायद पच्चीस लाख आपकी दिलचस्पी है।” उसकी नज़रें मोना चौधरी पर ही थीं।

“ऐसा ही समझ लीजिये।”

“मैं वकील हूं। सारी उम्र सच-झूठ को परखने में लगा दी है।” नरेश गुलाटी शांत स्वर में बोला- “मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि तुम्हारी दिलचस्पी पच्चीस लाख में नहीं है।”

“तो किसमें है?” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“ये तुम जानो।”

“कोई खास बात बताना चाहेंगे। जो कि सतीश ठाकुर तक पहुंचने में मेरी सहायता करे।”

“सतीश ठाकुर ने अपनी जायदाद किसके नाम की है?”

“ये भी नहीं बता सकता। जब वसीयत खुलेगी तो सबको मालूम हो जायेगा।”

“मैं जा रही हूं।” मोना चौधरी ने कहा- “एक बार फिर कहूंगी कि वकीलों को खामखाह पुलिस से बात नहीं करनी चाहिये। आप अपना काम कीजिये। मैं अपना करूंगी और पुलिस को अपने हिसाब से काम करने दीजिये।”

☐☐☐

मोना चौधरी जब सतीश ठाकुर के घर पर पहुंची तो दोपहर का डेढ़ बज रहा था।

वो छोटा सा खूबसूरत सा बंगला था। अगल-बगल भी बंगलों की कतार थी। एक ही बार में महसूस हो जाता था कि ये पैसे वालों का इलाका है। तेज धूप होने की वजह से कम ही लोग आते-जाते नज़र आ रहे थे। कभी-कभी तो सड़क दूर तक सुनसान सी नज़र आने लगती।

लोहे का काला किन्तु खूबसूरत सा गेट लगा हुआ था। बाहर कोई दरबान नहीं था। जबकि कुछ बंगलों के बाहर दरबान मौजूद, नज़र आ रहे थे। गेट बंद था।

मोना चौधरी ने गेट के पास लगी बैल के स्विच को दबाया। साथ ही गेट के भीतर झांका । छोटा सा खूबसूरत लॉन था। लॉन की बगल से होता रास्ता, बंगले के मुख्य दरवाजे के सामने, छोटे से पोर्च से मिल रहा था। तभी बंगले का मुख्य दरवाजा खुलता नज़र आया और बाहर निकली वेहद खूबसूरत युवती।

मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गईं।

सतीश ठाकुर के वकील, नरेश गुलाटी ने बताया था कि सतीश ठाकुर के मां-बाप मर चुके थे और उसका कोई रिश्तेदार नहीं था। फिर ये युवती कौन है? नौकरानी?

नहीं। ये नौकरानी नहीं हो सकती। सजी हुई, खूबसूरत थी वो और कीमती कपड़े पहने हुए थे। चलने का ढंग भी शानदार था। मोना चौधरी की निगाह उस पर टिकी थी। वो गेट की तरफ ही आ रही थी। पास पहुंचकर उसने तसल्ली भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“यस?”

“सतीश ठाकुर से मिलना है मुझे।” मोना चौधरी ने सामान्य लहजे में कहा।

उसने भीतर से गेट खोल दिया।

मोना चौधरी ने खुले गेट से दो कदम भीतर प्रवेश किया।

“यहां का पता तुम्हें सतीश ठाकुर ने दिया है।” उसने पूछा।

“हां।” मोना चौधरी मुस्कराई- “क्या मेहमानों से गेट पर, धूप में खड़े होकर ही बात की जाती।”

“भीतर आ जाईये।” कहने के साथ ही उसने गेट को भीतर से बंद किया।

मोना चौधरी उसके साथ सजे-सजाये ड्राईंग रूम में पहुंची। मोना चौधरी युवती को लेकर उलझन में थी कि ये सतीश ठाकुर के बंगले में मौजूद है। सतीश ठाकुर की हत्या होने पर, पुलिस अवश्य यहां आई होगी। ऐसे में, ये युवती ऐसा कुछ भी जाहिर नहीं कर रही कि, जिससे उसे लगे कि सतीश ठाकुर मर चुका है।

“क्या नाम है आपका?” एकाएक मोना चौधरी ने पूछा।

“शोभा।”

“मेरा नाम मोना चौधरी है।” उसी पल मोना चौधरी ने कहा- मैडम शोभा, मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आप इस बंगले पर कैसे मौजूद हैं। जबकि सतीश ठाकुर के मां-बाप इस दुनिया में नहीं है। उसका कोई और रिश्तेदार नहीं और सतीश की हत्या की जा चुकी है।”

शोभा ने मोना चौधरी को देखा फिर बैठते हुए बोली।

“बैठ जाओ।”

मोना चौधरी भी बैठ गई।

“मैं भी तुमसे यही जानना चाहती थी कि सतीश ठाकुर की हत्या हो चुकी है तो तुम्हें उसने यहां मिलने का वक्त कैसे दे दिया?”

“तुम्हारे सवाल का जवाब मिल जायेगा। पहले मेरे सवाल का जवाब दो। कौन हो तुम?”

“मैं एक सप्ताह से सतीश ठाकुर के साथ, इसी बंगले पर रह रही थी। कुछ ही दिनों में हम शादी करने वाले थे कि उसकी हत्या हो गई।”

शोभा का स्वर गम्भीर था- “सतीश की मौत से, मैं अभी तक नहीं संभल पाई हूं।”

मोना चौधरी ने उसे गहरी निगाहों से देखा।

“सतीश ठाकुर मेरे साथ ही था, जब उसे शूट किया गया।” मीना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा।

“ओह!” शोभा की निगाह मोना चौधरी के चेहरे पर जा टिकी- “अगर ऐसा है तो क्या तुमने ही उसे गोली मारी जिसने सतीश ठाकुर को शूट किया है? यही सुना था मैंने।”

“हां। सतीश ठाकुर को मारने वाला, मेरी गोली से मारा गया।”

“सतीश से तुम्हारा क्या रिश्ता था?” शोभा ने सीधे-सीधे मोना चौधरी को देखा।

“मेरा उससे कोई रिश्ता नहीं था। जब उसे गोली मारी गई। उससे पहले मैंने उसे कभी देखा नहीं था। कभी मुलाकात नहीं हुई थी। परसों उसकी और मेरी दो मिनट से भी कम की, पहली मुलाकात थी।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- “सतीश ठाकुर कुछ खतरनाक लोगों के बारे में कोई ऐसी बात जान गया था जो कि उसे नहीं जाननी चाहिये थी। वो लोग उसकी जान के पीछे थे। अपनी जान बचाने के लिए वो भागा फिर रहा था। सतीश ठाकुर का कोई पुलिस वाला, खास पहचान का था। उसने, मेरे बारे में, उसे बताया कि, वो जिस मुसीबत में है, मैं उसे उस मुसीबत से निकाल सकती हूं। इन हालातों में सतीश ठाकुर ने मुझसे मुलाकात की। लेकिन वो कुछ भी नहीं बता पाया। उसकी जान लेने वाले उसके पीछे थे। उसे शूट कर दिया गया।”

शोभा ने मोना चौधरी को सिर से पांव तक देखा।

“तुम क्या, खास हो जो उस वक्त सतीश ठाकुर को बचा लेती। उन खतरनाक लोगों का मुकाबला कर लेती। तुम तो मुझे फैशन परस्त, मौज-मस्ती करने वाली, बड़े घर की लड़की लगती हो।”

मोना चौधरी मुस्कराई।

“मैंने ऐसा क्या कह दिया कि तुम्हें मुस्कराना पड़े।”

“मेरी खासियत ये है कि मैं मोना चौधरी हूं।”

“मोना चौधरी?”

“अण्डरवर्ल्ड के लोग और जनता में भी बहुत से लोग मेरे नाम से वाकिफ हैं। कभी-कभार अखबारों में मेरी भी हरकतें छप जाती हैं, और?”

शोभा की आंखें हैरानी से फैलकर चौड़ी होने लगीं। मोना चौधरी खामोश हो गई।

“तुम-तुम वो-वो मोना चौधरी हो?” शोभा के होंठों से निकला

“हां।”

शोभा की सांसें तेज चलने लगी थीं। वो अपने पर काबू पाने की चेष्टा करने लगी थी।

मोना चौधरी ने उसे सामान्य होने का पूरा वक्त दिया।

“बाई गॉड।” शोभा ने बहुत हद तक अपने पर काबू कर लिया था- “मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि तुम।”

“इस बात को छोड़कर काम की बात करो। अब तो समझ आ गया कि सतीश ठाकुर मुझसे क्यों मिला?”

शोभा ने सहमति से सिर हिलाया।

“वैसे तो इस मामले में मेरी कोई दिलचस्पी पैदा नहीं होती। सतीश ठाकुर ने मुझे इतना बताया था कि अगर उसकी हत्या हो जाती है तो, मेरे हत्यारे को कानून तक पहुंचाने की एवज में मुझे पच्चीस लाख मिलेगा। जो उस की हत्या करवाना चाहता था, उस असली हत्यारे की बात कर रही हूं। तब भी उस इन्सान तक पहुंचने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी।” मोना चौधरी शांत स्वर में कहा।

“तो अब क्या दिलचस्पी पैदा हो गई?”

“जिसने सतीश ठाकुर की हत्या करवाई है। जिसके बारे में वो कुछ जान गया था। वो समझता है कि सतीश ठाकुर ने मुझे वो बात बता दी है। जो वो जाने कैसे जान गया था। ऐसे में अब वो मेरी जान के पीछे पड़ा है। उसके आदमी मेरी जान लेने की कोशिश कर चुके हैं। मुझे कैद भी कर लिया था, परन्तु मैं बच निकली।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- “वो लोग मेरी जान लेने पर आमादा हो चुके हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो देर-सवेर में उनके द्वारा किया गया, कोई भी हमला कामयाब हो सकता है। और मैं नहीं जानती कि वो लोग कौन है। उस इन्सान तक पहुंचने का एक ही रास्ता है कि सतीश ठाकुर के असली हत्यारे को तलाश करूं। उस तक पहुंचूं।”

शोभा सिर हिलाकर रह गई।

“मेरे बारे में कोई और सवाल पूछना चाहती हो तो पूछ सकती हो।”

“नहीं। मुझे हर सवाल का जवाब मिल गया है।” शोभा गम्भीर थी।

“तो अब मैं जो सवाल करूं, उसका जवाब देती जाना।”

शोभा, मोना चौधरी को देखती रही।

“तुम यहां किस हैसियत से मौजूद हो?” मोना चौधरी ने पूछा।

“सतीश की प्रेमिका की हैसियत से। जो कि उसकी मौत के पहले से ही उसके साथ रह रही थी।” शोभा ने शांत स्वर में कहा- “और हम शादी करने जा रहे थे।”

“तुम्हारे यहां रहने की ये ठोस वजह नहीं है। सतीश ठाकुर का वकील तुम्हें यहां से जाने को कह...”

“उसने कहा था। लेकिन ये सुनकर यो चुप कर गया कि सतीश का बच्चा मेरे पेट में ठहर चुका है। जिसकी जानकारी सतीश को भी थी। ऐसे में उसने वसीयत में, मेरे लिए भी कुछ छोड़ा होगा। वो दो-चार लोगों के सामने वसीयत पढ़कर सुना दे। अगर मेरे लिए कुछ है तो मैं ले लूंगी। नहीं तो यहां से चली जाऊंगी। इसके बाद उसने मुझे जाने को नहीं कहा। बोला, जल्दी ही वसीयत पढूंगा। सिर्फ इस बात का इन्तजार कर रहा हूं कि सतीश ठाकुर का कोई और रिश्तेदार या दावेदार आता है या नहीं।”

“आखिरी बार तुम सतीश ठाकुर से कब मिलीं?”

“तीन दिन हो गये। उस दिन सुबह के नाश्ते के बाद हमेशा की तरह घर से फैक्ट्री गया था। फिर वो नहीं लौटा। अगले दिन दोपहर को पुलिस के आने का पता चला कि उसे किसी ने गोली मार दी है।”

“वो क्या काम करता था?”

“खिलौने बनाने की फैक्ट्री थी उसकी। अच्छी चलती है। महीने का लाख से ज्यादा कमाता था।”

“उसने तुम्हें कभी कोई खास बात बताई?”

“कैसी खास बात?” शोभा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

“कोई भी खास बात । जैसे किसी के बारे में वो कुछ जान गया हो। या फिर किसी से उसे जान का ख़तरा हो। ऐसा ही कुछ, जिससे उसकी जिन्दगी अचानक ही असामान्य हो गई हो।”

“ऐसी तो उसने कोई बात नहीं कही। न ही ऐसा कुछ उसके चेहरे से लगा।” शोभा ने मोना चौधरी को देखा- “ऐसी कोई बात होती तो मैं फौरन उसके चेहरे से भांप जाती।”

“उस दिन नाश्ता करके जब वो गया तो उसका फोन आया होगा। कुछ कहा हो उसने?” मोना चौधरी ने पूछा।

शोभा ने एकाएक पहलू बदला।

“कुछ छिपाने की कोशिश मत करना।” मोना चौधरी ने फौरन कहा।

“उसी दिन रात को ग्यारह-बारह बजे सतीश का फोन आया था।”

शोभा ने गहरी सांस ली- “तब वो घबराया हुआ था-उसने बताया कि कुछ लोग उसकी जान लेना चाहते हैं। वो खतरे में है। गलती से वो कोई ऐसी बात जान गया है कि जिसके कारण उसकी जान पर आ बनी है। ये कहने के लिए उसने फोन कया था कि वो घर नहीं आयेगा। आया तो उसके साथ-साथ मेरी जान को भी खतरा पैदा हो जायेगा। पूछने पर भी सतीश ने ये नहीं बताया कि वो कहां से बोल रहा है या किन लोगों से उसे खतरा है। यही कहता रहा कि ये बातें फोन पर नहीं बता सकता। मिलने पर बताऊंगा। इतनी ही बात हुई थी उससे।”

“उसके बाद फोन नहीं आया था उसका?”

“नहीं। मैं इन्तजार करती रही। पुलिस ही आई अगले दिन, उसकी मौत की खबर देने।” शोभा ने भारी स्वर में कहा।

कुछ पलों की खामोशी के बाद मोना चौधरी बोली।

“उसके दोस्त कौन-कौन से थे?”

“मेरे ख्याल से उसका कोई खास दोस्त नहीं था। मैंने उसके मुंह से कभी किसी का जिक्र नहीं सुना।”

“ये कैसे हो सकता है कि उसका कोई दोस्त न हो। वक्त बिताने के लिए, बातचीत के लिए वो.....”

“उसे होटल-क्लब पसन्द थे। फैक्ट्री से बो होटल क्लबों में चला जाता था। ताश खेलने का शौकीन था वो। बार रूम में बैठकर व्हिस्की पीना अच्छा लगता था उसे । कभी तो मशीनों पर भी जुआ खेलता था, परन्तु मेरे से वायदा कर चुका था कि शादी के बाद वो सब काम छोड़ देगा। फैक्ट्री से सीधा घर ही आयेगा। घर में ही ड्रिंक लेगा।” कहते हुए शोभा की आवाज भर्रा सी गई।

“जरूरी तो नहीं कि इन्सान जो सोचे वो पूरा हो। वो कौन से होटल क्लबों में जाता था?”

“धारा होटल में जाता था। वहां चोरी-छिपे ताश का जुआ होता है।” शोभा ने कहा- “निगाह क्लब जाता था, वहां ताश और मशीनों का चोरी-छिपे जुआ होता है। सूर्या होटल में चोरी-छिपे निशानेबाजी पर जुआ होता है। जिस पर लोग पैसों का दांव लगाते हैं। ये तीनों उसकी पसन्दीदा जगह थीं।”

मोना चौधरी सोच भरी निगाहों से शोभा को देखती रही।

“उस रात सतीश ठाकुर कहां गया था?”

“मैं नहीं जानती। जहां उसका मन होता। फैक्ट्री से वहीं चला जाता। लौटने पर ही बताता था कि आज वो कहां गया था। उस रात जब उसका फोन आया तो सतीश से इस बारे में कोई बात नहीं हुई।”

शोभा ने बताया।

“निगाह क्लब और सूर्या होटल कहां पर है?” मोना चौधरी ने पूछा।

“तुम सतीश ठाकुर से कहां मिली थीं?”

“धारा होटल में।” शोभा ने सामान्य स्वर में कहा- “मैं वहां पर रिसैप्शनिस्ट थी। वहां, सतीश से अक्सर मुलाकात होती रहती थी। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को पसन्द करने लगे। बात शादी तक आ पहुंची। उसके कहने पर ही मैंने नौकरी छोड़ी थी। वो ही मुझे अपने घर लाया। फैक्ट्री के कामों को लेकर बहुत व्यस्त था। कुछ दिन बाद उसे फुर्सत मिलनी । तब हमारी शादी हो जानी थी।”

“कितनी देर से तुम धारा होटल में काम कर रही थीं?”

“डेढ़ बरस हो गया था।”

“धारा होटल का मालिक कौन है?”

“ललित परेरा।” शोभा ने उसे देखा।

“वो ही धारा होटल का असली मालिक है या कोई और है?”

“दूसरा क्यों होगा। परेरा ही उस होटल का मालिक है।” शोभा ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

“क्या कभी तुम्हें ऐसा लगा कि ललित परेरा किसी और के लिए काम करता है। किसी और के ऑर्डर मानता है।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।

“ऐसा तो मुझे कभी नहीं लगा। परेरा के अपने काम थे। उसका हुक्म चलता था।” शोभा ने सिर हिलाकर विश्वास भरे स्वर में कहा- “वो क्यों किसी का काम करेगा या ऑर्डर मानेगा।”

मोना चौधरी ने गहरी सांस ली। कहा कुछ नहीं।

“तुम परेरा के बारे में यह सब बातें क्यों कह रही हो?” शोभा ने एकाएक पूछा।

“सतीश ठाकुर को मारने वाले ललित परेरा के आदमी थे।” मोना चौधरी का स्वर सख्त हो गया- “ये भी जान लो कि ललित परेरा किसी और का हुक्म मानता था और।”

“था?” शोभा के होंठों से निकला- “था, का क्या मतलब?”

“क्योंकि इस वक्त वो जिन्दा नहीं है। कल रात उसकी हत्या धारा होटल में ही, उसके आफिस में गोली मारकर कर दी गई। तब मै भी करीब ही थी, परन्तु उसके हत्यारे को नहीं देख पाई।”

शोभा अविश्वास भरी निगाहों से मोना चौधरी को देखती रही।

“इसमें हैरान होने की क्या बात है?” मोना चौधरी कह उठी।

“परेरा खतरनाक इन्सान था। इस तरह कोई उसके आफिस में आकर, उसे गोली मार दे। विश्वास नहीं आता।”

“मैं कह रही हूं तो तुम्हें विश्वास कर लेना चाहिये।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।

शोभा सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गई।

कई पलों तक वहां चुप्पी सी रही।

“सतीश को मारने वाले अगर परेरा के आदमी थे तो हो सकता है उस रात को धारा होटल में ही गया हो और वहां से उसे ऐसा कुछ मालूम हुआ हो कि...”

“कुछ भी हो सकता है।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “निगाह क्लब या सूर्या होटल में भी वो जा सकता है।”

शोभा कुछ नहीं बोली। चेहरे पर सोच के गम्भीर भाव नज़र आ रहे थे।

“कोई और बात ध्यान में आ रही हो, जो मेरे काम की हो?” मोना चौधरी ने पूछा।

शोभा ने इन्कार में सिर हिला दिया।

“सतीश ठाकुर की ताजा-ताजा हत्या हुई है।” मोना चौधरी के स्वर में सख्ती आ गई- “पुलिस अभी फिर आयेगी और तुमने पुलिस को मेरे बारे में नहीं बताना है। मैं नहीं चाहती कि पुलिस जाने, मेरा इस मामले से कोई वास्ता है।”

“मैं पुलिस को तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताऊंगी।”

मोना चौधरी बंगले से बाहर निकलकर अपनी कार की तरफ बढ़ी।

“हैलो मोना डियर।”

आवाज सुनते ही मोना चौधरी ठिठकी। पीछे देखा तो उस तरफ से मुस्कराता हुआ गुलशन वर्मा आ रहा था। मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“तुम्हें यहां देखकर हैरानी भी हुई। अच्छा भी लगा।” पास पहुंचकर गुलशन वर्मा मुस्कराता हुआ कह उठा- “यहां कैसे?”

“यही बात तो मैं आपसे पूछने वाली थी कि आप यहां क्या कर रहे हैं?

“मैं यहीं रहता हूं। कुछ आगे मेरा बंगला है। लेकिन तुम्हें चाय के लिए बंगले पर नहीं ले जाऊंगा।” कहते हुए यो हौले से हंसा- “खामखाह बदनामी मोल लेने का क्या फायदा । देखने वाले तो उल्टा ही समझेंगे।”

“आप ठीक कह रहे हैं।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर कहा- “एक बात तो बताइये वर्मा साहब?”

“क्या?”

“आप धारा होटल में अक्सर खेलते हैं।”

“हां-क्यों?”

“ताश खेलने वाले अन्य खिलाड़ियों को भी जानते होंगे, जो वहां आते हैं?”

“हां। ज्यादातर को जानता हूं।”

“सतीश ठाकुर को भी जानते थे आप?”

गुलशन वर्मा ने बंगले पर निगाह मारकर कहा।

“जो यहां रहता था। जिसे किसी ने गोली से मार दिया।”

“उसी की बात कर रही हूं मैं।”

“यो धारा में ताश खेलने आया करता था। अच्छा खिलाड़ी था। बंदा भी शरीफ था। जाने क्यों मार दिया उसे।”

“एक बात याद करके बताइये कि आज से चौथी रात पहले वो धारा होटल में ताश खेलने आया था?”

“चौथी रात?”

“हां। जिस दिन सतीश ठाकुर को गोली मारी गई। उससे पहले की रात को।”

“यस। उस रात वो यहां ताश खेल रहा था।” गुलशन वर्मा ने तुरन्त कहा।

“बिना सोचे ये बात कह दी।” मोना चौधरी की निगाह गुलशन वर्मा पर थी।

“इसमें सोचने की जरूरत नहीं है।” गुलशन वर्मा ने धीमे स्वर में कहा- “अगली रात जब मैं वहां पहुंचा तो सतीश ठाकुर को शूट किए जाने की खबर वहां पहले मौजूद थी। जबकि एक दिन पहले वो वहां ताश खेल रहा था।”

“समझी।”

“लेकिन तुम ये सब बातें क्यों कर रही हो। सतीश ठाकुर तुम्हारी पहचान वाला था क्या?”

“नहीं। मैं उसे नहीं जानती।” मोना चौधरी ने कहा।

“अभी तुम उसके बंगले से निकली हो। उसके बारे में बात कर रही हो और कहती हो, उसे नहीं जानतीं।”

मोना चौधरी के चेहरे पर मादक मुस्कान उभर आई।

“बाय वर्मा साहब!”

“कहां चलीं?” गुलशन वर्मा के होंठों से निकला।

“अभी मैं व्यस्त हूँ। देर हो रही है।” मोना चौधरी आगे बढ़कर अपनी कार में बैठी और स्टार्ट करके कार आगे बढ़ा दी।

सूर्य सिर पर चढ़ा हुआ, झुलसा रहा था। मोना चौधरी सामान्य रफ्तार से कार ड्राईव कर रही थी। सोचों में सतीश ठाकुर, ललित परेरा और इस सब मामले के पीछे कौन है, ये सब बातें घूम रही थीं। ये जानना बहुत जरूरी था कि ललित परेरा किसका हुक्म मानता था। कौन था उसके ऊपर?

उस रात सतीश ठाकुर धारा होटल में था। निगाह क्लब या सूर्या होटल नहीं गया था।

यानि कि उसे फिर धारा होटल उसी जुआघर में जाना होगा। मालूम करना होगा कि सतीश ठाकुर वहां किस-किस से ताश खेला था। उनमें क्या बातें हुई। वो होटल में कहां-कहां गया? अब इस चेहरे में धारा होटल जाना खतरे से खाली नहीं था। मेकअप करके, चेहरा बदल कर जाना होगा कि कोई उसे पहचान न सके। मेकअप के लिए वो अपने अपार्टमेंट नही जा सकती थी। वहां उसके इन्तजार में कोई मौजूद हो सकता था। और इस वक्त किसी से झगड़ा लेकर, मोना चौधरी वक्त खराब नहीं करना चाहती थी।

मोना चौधरी ने पारसनाथ के यहां जाने की सोची। वहां लंच भी हो जायेगा और मेकअप भी।

ठीक इसी पल मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ गईं। वो सतर्क-सी नजर आने लगी। अजीब-सी, मध्यम सी आवाज थी, जिस पर उसने खास तवज्जो नहीं दी थी। लेकिन लगातार आने वाली आवाज पर ध्यान दिया तो ऐसा लगा जैसे कोई घड़ी टक-टक कर रही हो। दूसरे ही पल मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव दौड़ गये।

टाइम बम?

मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा।

इसके साथ ही उसने फुर्ती से कार रोकी। इंजन बंद करने का भी कष्ट नहीं किया और दरवाजा खोलकर सड़क के किनारे की तरफ दौड़ती चली गई। फुटपाथ भी पार कर गई।

तभी कानों को फाड़ देने वाला धमाका हुआ।

मोना चौधरी ठिठककर फौरन पलटी।

जलता हुए एक छोटा सा टुकड़ा उसके पास आ गिरा, जिससे उसने खुद को बचाया । बम विस्फोट में कार के परखच्चे उड़ गये थे। वो धूं-धूं करके जल रही थी। जलते हुए टुकड़े दूर-दूर तक जा गिरे थे। देखने पर ऐसा नहीं लग रहा था कि आग का वो ढेर कार का है।

ऐसी हालत हो गई थी कार की।

विस्फोट के वक्त अगर वो भी कार में होती तो कार में रखे पॉवर- फुल बम विस्फोट ने उसके शरीर को लोथड़ों में बदल देना था। किसी ने पहचान भी नहीं पाना था कि मरने वाली मोना चौधरी है। किस्मत ने साथ देकर वक्त पर सतर्क कर दिया था। वरना....।

मोना चौधरी दांत भींचे सड़क के बीचों-बीच आग के जलते गोले को देख रही थी। स्पष्ट था कि सुबह से ही उस पर नज़र रखी जा रही थी और जब वो सतीश ठाकुर के बंगले में गई, तब कार में बम फिट कर दिया गया।

सड़क पर ट्रैफिक जाम होता जा रहा था।

लोगों का इकट्ठा होना शुरू हो गया था। पुलिस कभी भी पहुच सकती थी। मोना चौधरी ने आग के जलते गोले के पीछे लगी वाहनों की लाईन में नजर मारी। कार में बम फिट करने वाले वकीनन उन्हीं में से किसी कार में थे। उसके पीछे ही आ रहे होंगे। ये देखने के लिए कि बम विस्फोट में उसके शरीर का क्या हाल होता है। यानि कि अभी भी वो खतरे में थी। दुश्मनों की नज़र में थी। मोना चौधरी पलटी और तेजी से सामने नज़र आ रही दुकानों की तरफ बढ़ गई। जो लोग भी उस पर नज़र रख रहे थे, उनकी नज़रों से बचना जरूरी था। वरना आगे का काम करना कठिन हो जायेगा।

☐☐☐

शाम के सात बज रहे थे, जब मोना चौधरी पारसनाथ के रैस्टोरेंट पहुंची।

मोना चौधरी ने उन लोगों को स्पष्ट तौर पर पहचाना था, जो उसके पीछे थे। वो दो थे। एक तीस की उम्र का था और दूसरा चालीस की। मोना चौधरी चाहती तो उनसे निपट सकती थी, परन्तु हालातों को देखते हुए उनसे पीछा छुड़ाना ही ठीक समझा और उनसे पीछा छुड़ाकर ही पारसनाथ के यहां पहुंची थी।

उस वक्त रैस्टोरेंट में दो-चार लोग ही मौजूद थे। लेकिन मोना चौधरी जानता थी कि अंधेरा होने के बाद यहां भीड़ हो जायेगी। यहां का खाना वास्तव में लाजवाब होता था।

मोना चौधरी ऊपर जाने वाले सीढ़ियों की तरफ बढ़ी।

“गुड इवनिंग मैडम।” एक वेटर ने उसे देखते ही कहा।

मोना चौधरी ने उसे देखते हुए मुस्कराकर सिर हिलाया फिर बोली।

“पारसनाथ ऊपर है?”

“यस मैडम । मालिक अभी ऊपर गये हैं।” उसने कहा।

मोना चौधरी सीढ़ियां तय करके ऊपर पहुंची।

पारसनाथ आराम की मुद्रा में सोफे पर बैठा था।

“आराम हो रहा है।” मोना चौधरी बैठते हुए कह उठी।

“यूं ही। वक्त बिता रहा था।” पारसनाथ सीधा बैठते हुए सपाट स्वर में बोला। मोना चौधरी को देखते ही अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा- “क्या हुआ?”

“क्या होना है?” मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़कर उसे देखा।

“तुम्हारी आंखों में बेचैनी है और थकी हुई लग रही हो।”

मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कराहट उभरी।

“और चेहरे पर ये नहीं लिखा कि सुबह से कुछ खाया नहीं।” पारसनाथ ने तुरन्त इन्टरकॉम पर खाने का आर्डर दिया।

“मेरे बताने लायक बात हो तो बेशक बता दी।” पारसनाथ ने कहा।

“महाजन का फोन आया?”

“नहीं। आना था क्या?”

“हां। वो मेरे लिए गैराज देगा।” गोना चौधरी ने कहा “विक्रम दहिया को जानते हो?”

“विक्रम दहिया?” पारसनाथ के होठों से निकला।

“शहर में एक ही विक्रम दहिया है।”

“जानता हूँ।” पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा- “उसका नाम और कारनामे सुन रखे हैं। वो बहुत ही खतरनाक इन्सान माना जाता है। उससे तुम्हारा वास्ता कैसे हो गया?”

“उसकी हत्या का ठेका मिला है-सत्तर लाख में।”

“बहुत सस्ते में सौदा कर लिया।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा- “वैसे दहिया के मामले में न आना ही ठीक था।”

“पैंतीस लाख एडवांस मेरे पास पहुंच चुका है।”

पारसनाथ ने सिग्रेट सुलगा ली। कहा कुछ नहीं।

“महाजन, विक्रम दहिया के बारे छानबीन कर रहा है जिससे उसे शूट किया जा सकता है।” मोना चौधरी बोली।

“खतरनाक काम है। मेरे ख्याल में तो विक्रम दहिया को देख पाना भी आसान काम नहीं।” पारसनाथ ने कहा।

“काम हाथ में लिया है तो पूरा करना ही पड़ेगा।” मोना चौधरी सामान्य स्वर में बोली।

तभी वेटर ट्रे में खाना रखे लाया और टेबल पर लगाकर चला गया।

पारसनाथ कश लेता अपनी जगह पर बेठा रहा। मोना चौधरी ने खाना शुरू कर दिया।

“एक मामला और भी है, जो बिना बुलाये गले पड़ गया।” खाने के दौरान मोना चौधरी बोली।

“क्या?”

मोना चौधरी ने सतीश ठाकुर और बाकी जो हुआ सब बताया। सुनकर पारसनाथ की आंखें सिकुड़ गई। खुरदरे चेहरे पर कोई भाव नहीं उभरा।

“इसका मतलब सतीश ठाकर हत ही खास बात जान गया कि उन लोगों ने उसका मुंह बंद कर...।”

“और अब वो, जो भी है। मेरे पीछे पड़ा है।”

“इसलिए कि, सतीश ठाकुर ने तुम्हें कुछ बताया हो तो वो बात तुम्हारी मौत के साथ के साथ ही खत्म हो जाये।” पारसनाथ ने ठण्डे स्वर में कहा- “तुमने जो बताया है, उससे स्पष्ट है कि तुम्हारी जान लेने वाला दम-खम वाला इन्सान है। पहुंच रखता है। जो परेरा की पीठ पर हाथ रख सकता है, वो क्या नहीं कर सकता। जबकि परेरा अपने आप में खतरनाक हस्ती रखता था।”

खाते-खाते मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा।

“मालूम कर सकते हो कि परेरा किसके लिए काम करता था?” मोना चौधरी ने कहा।

“मैं भी यही सोच रहा हूँ।” पारसनाथ ने कश लिया और उंगली खुरदरे चेहरे पर रगड़ी- “आज से पांच साल पहले परेरा को कोई जानता भी नहीं था। वो अचानक ही उभरा और अण्डरवर्ल्ड में नाम कमाता चला गया तब मैंने भी यही सोचा था कि उसके पीछे अवश्य कोई ताकत\ है। जो अपने लिए उसे खड़ा कर रही है।”

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा। पुनः खाने में व्यस्त हो गई। सोच के पश्चात पारसनाथ ने पास ही तिपाई पर मौजूद फोन का रिसीवर उठाया और नम्बर पुश करने लगा। कुछ ही क्षणों में फोन पर उसकी बात हुई।

“हैलो।” दूसरी तरफ ते कानों में आवाज पड़ी।

“बाबूराव से बात करा।” पारसनाथ का स्वर भावहीन था।

“तुम कौन?”

“पारसनाथ।”

“रुको। अभी बाबूराव आता है।”

करीब आधा मिनट लाईन पर खामोशी रही। फिर नया स्वर कानों में पड़ा।

“कैसे हो पारसनाथ। आज कैसे याद कर लिया।”

“ये मालूम करने के लिए कि सलामत हो।”

“अपुन को कौन उंगली लगायेगा। बता क्या बात है?”

“परेरा को किसी ने गोली मार दी है?”

“हां। ठीक दिल पर गोली मारी है। मर गया। परेरा की स्टोरी खत्म। आगे बोल?”

“मालूम हुआ है कि परेरा किसी के लिए काम करता था।”

“तेरा मतलब कि वो तालाब की मछली था। मगरमच्छ नहीं।”

“ठीक समझा तू।”

“आगे बोल?”

“मालूम कर कि परेरा किसके लिए काम करता था।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।

“ये कैसे पता चलेगा?”

“तेरे लिए क्या दिक्कत है?”

“परेरा का मामला है। अगर परेरा किसी के लिए काम करता था तो वो बहुत बड़ा हरामजादा होगा। ये तो खतरे वाली बात हो गई।” बाबूराव की आवाज कानों में पड़ी।

“तू कब से डरने लगा?”

“डर नहीं रहा। बात कर रहा हूं कि...”

“मालूम करके बता।”

“परेरा के होटल में एक आदमी काम करता है। मेरी मानता है। उससे बात करके देखता हूं।”

“जल्दी बताना मुझे।” कहने के साथ ही पारसनाथ ने रिसीवर रख दिया।

मोना चौधरी खाने से फुर्सत पा चुकी थी।

“जिन हालातों में तुम फंस चुकी हो। ऐसे में हो सकता है कि यहां पहुंचने तक, तुम पर नज़र रखी गई हो।”

“ऐसा हो रहा था, लेकिन मैंने उनसे पीछा छुड़ा लिया।” मोना चौधरी ने कहा।

“हो सकता है वो अभी भी तुम्हारे पीछे हो।”

“असम्भव।” मोना चौधरी पक्के स्वर में बोली। पारसनाथ ने कश लेकर सिग्रेट ऐशट्रे में डाल दी।

“मेकअप का सामान दो। अपना चेहरा और हुलिया. बदलकर रात धारा होटल जाना है।”

“वहां तुम खतरे में पड़ सकती हो मोना चौधरी।” पारसनाथ का स्वर सपाट था।

“ये सब करना मेरी मजबूरी है।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “आखिरी रात सतीश ठाकुर धारा होटल के जुआघर में था। वहां ही उसे वो बात मालूम हुई जिसकी वजह से उसे जान गंवानी पड़ी। यानि की वहां से मुझे उस इन्सान के बारे में मालूम हो सकता है, जो मेरी जान के पीछे पड़ा है। शायद में उस तक पहुंच सकू। वरना हो सकता है, ये मामला मेरी मौत के साथ ही खत्म हो।”

“ये भी हो सकता है कि परेरा की मौत के साथ, होटल का काम बंद हो गया हो।”

मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

“ये हो सकता है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

तभी फोन की बेल बजी।

“हेलो।” पारसनाथ ने रिसीवर उठाया।

“बाबूराव बोलता है।”

“बोलो।”

“मैंने उस आदमी से बात की है, वो परेरा के यहां काम करता है। वो बोला कि अगर परेरा किसी के नीचे काम करता था तो इस बात की उसे खबर नहीं है।”

“परेरा के होटल की क्या पोजिशन है? वो अभी बंद है या....?”

“बहुत बढ़िया पोजिशन है। बंद क्यों होगा। चकाचक पहले की तरह होटल चल रहा है। मैंने मालूम किया है। परेरा की मौत का, होटल के काम-धंधे पर कोई फर्क नहीं पड़ा।”

पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा।

“ये कैसे हो सकता है।” पारसनाथ ने सोच भरे स्वर में कहा- “होटल का मालिक परेरा था। वो मरा तो होटल का काम रुक जाना चाहिये। बिना मालिक के होटल नहीं चलता।”

“धारा होटल तो दौड़ रहा है। परेरा का भाई आ गया है। वो सब चला रहा है।” बाबूराव की आवाज आई।

“परेरा का कोई भाई भी है?”

“होगा। मैंने तो पहली बार सुना है। अब तो पुलिस भी होटल के चक्कर नहीं काट रही। लगता है परेरा की मौत को दबाने के लिए, पुलिस को भेंट चढ़ा दी गई है। वरना पुलिस आसानी से होटल का पीछा न छोड़ती।”

“क्या नाम है परेरा के भाई का?”

“अविनाश परेरा।”

पारसनाथ ने रिसीवर रखकर मोना चौधरी से कहा।

“होटल चल रहा है। सब काम पहले की तरह हो रहे हैं। होटल का चार्ज ललित परेरा की मौत के बाद उसके भाई अविनाश परेरा ने ले लिया है। यानि कि वहां के हालात ऐसे होंगे कि जैसे ललित परेरा की हत्या हुई ही न हो।”

“ललित परेरा के मरने से पहले कोई अविनाश परेरा को जानता था?” मोना चौधरी बोली।

“क्या मतलब?

“क्या मालूम, वो उसका भाई न होकर, उसका आदमी हो, जिसके लिए परेरा काम करता था। खुद को ललित परेरा का भाई बनाकर पेश कर दिया। पुलिस को नोटों से संभाल लिया।”

“कुछ भी हो सकता है।” पारसनाथ खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा- “खुद को अविनाश परेरा कहने वाला वास्तव में ललित परेरा का भाई होता तो, उसकी मौत के दुःख में दो-चार दिन तो होटल के काम बंद रखता।”

“आज रात मैं होटल जाऊंगी। मालूम करूंगी ये बात कि अविनाश परेरा को पहले भी जाना-देखा गया है या वो अचानक ही उसका भाई बनकर सामने आया है।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा।

“मैं चलूं तुम्हारे साथ?” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।

“नहीं। ये काम मैं खुद ही कर लूंगी । तुम महाजन के आने वाले फोन को सुनना।”

☐☐☐

मोना चौधरी के सिर पर लम्बे बालों की बिग थी। बालों को खूबसूरत जूड़ा बनाकर सिर के ऊपर लगा रखा था। गहरे रंग की लीपिस्टिक हॉटों पर थी। वैसे ही रंग की माथे पर गोल बिंदी। कानों मैं बड़ी-बड़ी गोल बालियां । शरीर पर कमीज-सलवार पहन रखा था। चेहरे के कुछ हिस्सों पर पारक के छोटे-छोटे टुकड़े इस तरह चिपकाकर ऊपर मेकअप किया था कि चेहरा ही बदल गया था।

अब वो मोना चौधरी न लगकर, दूसरी युवती लग रही थी। बाकी की कसर मांग में लगे सिंदूर ने पूरी कर दी थी। वो किसी खाते-पीते घर की सुन्दर वधू लग रही थी।

मोना चौधरी ने धारा होटल में जब प्रवेश किया तो रात के नौ बज रहे थे।

कल जैसी ही रंगीनियां नज़र आईं। ऐसी कोई बात देखने को नहीं मिली कि होटल के मालिक की हत्या का असर वहां हुआ हो। अलबत्ता चंद गनमैन सतर्क से वहां निगरानी रखते नज़र आये।

मोना चौधरी लापरवाही से आगे बढ़ने लगी। उसने जुआघर में जाना था। जहां हर कोई नहीं जा सकता था। कल तो वहां गुलशन वर्मा की मेहमान बनकर पहुंच गई थी। आज वहां पहुंचने के लिए-किसी का सहारा तलाश करना था। जुआघर में जाने का एक रास्ता वो जानती थी, जो ललित परेरा के बैडरूम में खुलता था, परन्तु वहां पहुंचना खतरनाक था। उधर कोई भी मौजूद हो सकता था। कल के हालात दूसरे थे और आज हालात पूरी तरह बदल चुके थे। हर तरफ नजर रखी जा रही होगी।

मोना चौधरी बार रूम में पहुंची।

उसी पल ठिठक भी गई।

एक टेबल पर उसे गुलशन वा बैठा नज़र आया। टेबल पर रखे गिलास से व्हिस्की की चुस्कियां ले रहा था। मोना चौधरी आगे बढ़ी और वर्मा के टेबल के पास जा पहुंची।

गुलशन वर्मा ने नजरें उठाकर उसे देखा।

“हलो।” मोना चौधरी ने मीठे स्वर में कहा। आवाज पूरी तरह बदली हुई थी कि वर्मा पहचान न सके।

“हलो।” गुलशन वर्मा ने मुस्कराकर कहा- “बैठिये।”

“थैंक्स।” कहते हुए मोना चौधरी बैठ गई।

“खूबसूरत हैं आप।” वर्मा के होंठों पर बराबर मुस्कान थी- “क्या लेंगी आप?”

“जो भी मिल जाये।” मोना चौधरी ने खनकते मीठे स्वर में कहा। वर्मा ने वेटर को बुलाकर विस्की के पेग का आर्डर दिया।

“इसे मैं इत्तफाक ही कहूंगा कि कल यहीं पर एक खूबसूरत युवती से मुलाकात हुई और आज आपसे हो गई।”

“आपने कहा, कल खूबसूरत युवती से मुलाकात हुई।” मोना चौधरी मुस्कराई- “मुझसे ज्यादा खूबसूरत थी क्या वो?”

“यूं तो खूबसूरती नापने का कोई पैमाना नहीं होता। वैसे कल जो मिली, वो वास्तव में आपसे ज्यादा खूबसूरत थी।”

“मुझे खुशी हुई कि आपने स्पष्ट कहा। वरना लोग तो सिर्फ सामने बैठी को ही खूबसूरत कहते हैं।” मोना चौधरी हंसी।

वेटर व्हिस्की का पैग सर्व कर गया।

“मुझमें और लोगों में फर्क है।” वर्मा भी होले से हंसा- “मैं उम्र के उस दौर को पार कर चुका हूं जहां औरतों को पाने के लिए उनकी चापलूसी की जाती है। इसलिए अब औरतों के बारे में सच कहने में मुझे कोई एतराज नहीं।”

मोना चौधरी ने गिलास उठाकर घूँट भरा।

“अकेली हैं आप?” गुलशन वर्मा ने कहा।

“हां। घर में बोर हो रही थी। पतिदेव जी शहर से बाहर गये हुए हैं।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा- “तो यूं ही घूमने का प्रोग्राम बना लिया। दो-चार घंटे बीत जायेंगे। डिनर भी हो जायेगा।”

“सोच बुरी नहीं।”

“आपका साथ भी बुरा नहीं।” मोना चौधरी फौरन कह उठी- “हम इक्कठे डिनर करें तो कैसा रहेगा। डिनर मेरी तरफ से होगा। मुझे कम्पनी मिल जायेगी।”

“ख्याल भी बुरा नहीं। गुलशन वर्मा मुस्कराया- “लेकिन दो घंटे से पहले मैं डिनर नहीं ले सकता।”

“कोई बात नहीं। दो घंटे बाद डिनर ले लेंगे। लेकिन दो घंटे आप करेंगे क्या?”

“ताश खेलने का शौक है। जब तक दो-चार गेम न हो जाये, तब तक डिनर का मन नहीं करता।” वो हंसा।

“ताश? कहां खेलेंगे गेम? यहां?” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने घूँट भरा।

“होटल में छिपा हुआ जुआघर है। वहां हर कोई नहीं जा सकता।”

“रियली।” मोना चौधरी ने हैरानी से कहा- “मुझे वहां ले चलेंगे?”

“गेम खेलने के लिए?”

“नहीं, देखूंगी।” मोना चौधरी ने उत्सुकता से कहा- “उसके बाद डिनर करेंगे।”

“श्योर।” गुलशन वर्मा मुस्कराया- “मेरी मेहमान बनकर तुम वहां जा सकती हो। तुमने अपना नाम नहीं बताया।”

“सपना।”

“गिलास खाली करो। मेरे खेल का वक्त हो रहा है। वहां चलते हैं।”

☐☐☐

कल जैसा माहौल ही था, जुआघर में।

कोई फर्क या बदलाव नहीं।

गुलशन वर्मा ने मोना चौधरी का हाथ पकड़ा हुआ था।

“कैसा लगा यहां का जुआघर देखकर?” वर्मा ने पूछा।

“बहुत अच्छा। दोबारा जब भी आई। पैसे लेकर आऊंगी। एक-दो गेम मैं भी खेलूंगी।”

वर्मा की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी। होंठों पर गहरी मुस्कान आ ठहरी थी।

“मोना!” वर्मा ने धीमे स्वर में कहा- “तुमने मेकअप अच्छा किया है। लेकिन मैं तुम्हें पहचान गया।”

मोना चौधरी की नजरें वर्मा के चेहरे पर ठहर गईं। जहां विश्वास के भाव थे।

दो पल चुप्पी में से गुजर गये।

जुआघर में जायज-सा शोर हो रहा था।

“कैसे पहचाना?” मोना चौधरी का स्वर शांत था।

“तुम्हारी आंखों से। मैं किसी की आंखें देख लूं तो आंखों के दम पर ही उसे आसानी से दोबारा पहचान लेता हूं। तुम्हें कॉन्टैक्ट लैंस लगा लेने चाहिये थे।” वर्मा के चेहरे पर मुस्कान थी।

“सलाह का शुक्रिया। भविष्य में इस बात का अवश्य ध्यान रखूंगी।” मोना चौधरी मुस्कराई।

“लेकिन इस तरह खुद को बदलकर यहां क्यों आई?”

“आपने बताया था कि सतीश ठाकुर की जब हत्या की गई, उससे पहली रात वो यहां आया था।” मोना चौधरी ने वहां नजरें घुमाते हुए कहा- “उसकी हत्या की वजह की शुरूआत यहां से ही हुई थी मिस्टर वर्मा। इससे ज्यादा आपको कुछ नहीं बता सकती। उस रात को किन लोगों के साथ जुआ खेला था। मैं उनसे पूछताछ करना चाहती हूं कि उस रात सतीश ठाकुर ने उनसे क्या बातचीत की थी। ये जानकर मेरे को शायद कुछ फायदा मिले।”

गुलशन वर्मा ने मोना चौधरी को गहरी निगाहों से देखा।

“कम से कम मुझे ये तो बता सकती हो कि सतीश ठाकुर तुम्हारा क्या लगता था। उसमें तुम इतनी दिलचस्पी क्यों....?”

“प्लीज वर्मा साहब! अभी मैं आप के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकती।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा- “वैसे आप चाहें तो इस वक्त मेरी सहायता कर सकते हैं।”

“वो कैसे?”

“ये बताकर कि उस रात सतीश ठाकुर किन लोगों के साथ गेम खेला था। किससे बात की थी?” मोना चौधरी ने कहा।

गुलशन वर्मा के चेहरे पर सोच के भाव नज़र आने लगे। नज़रें हॉल में मौजूद लोगों पर फिरने लगीं।

कुछ क्षण खामोशी में बीत गये।

“क्या सोचने लगे?” मोना चौधरी की निगाह वर्मा पर टिकी।

“यही कि उस रात सतीश ठाकुर कौन-सी टेबल पर किन लोगों के साथ था।” वर्मा ने सोच भरे स्वर में कहा- “मैं जब भी यहां आता हूं। इधर-उधर न देखकर, अपनी गेम पर ही ध्यान रखता हूं।”

“शायद ध्यान आ...”

“हां। अगली शाम को नारायण दास ने कहा था कि अच्छा-भला सतीश कल मेरे साथ खेल रहा था और आज वो दुनिया में नहीं है।

कितना अजीब लग रहा है।” वर्मा ने एकाएक कहा।

“कौन नारायण दास?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।

“यहां अक्सर खेलने आता रहता है।” कहने के साथ ही गुलशन वर्मा की नज़रें जुआधर में फिरने लगीं।

“अब नरायण दास है यहां?” मोना चौधरी ने पूछा।

“वो ही देख रहा हूं।”

मोना चौधरी की नज़रें भी वहां मौजूद लोगों पर जाने लगीं। कुछ देर बाद गुलशन वर्मा बोला।

“अभी शायद वो आया नहीं। हो सकता है आ जाये। तुम मेरे साथ ही रहो। मैं कुछ गेम खेल लेता हूं। तब तक नारायण दास  गया तो तुम्हें उससे मिलवा दूंगा।”

गुलशन वर्मा कब का खेल में व्यस्त हो चुका था।

ग्यारह बज रहे थे। इस दौरान पास खड़ी मोना चौधरी धीमे स्वर में वर्मा को याद दिलाती रही कि उसने नारायण दास को भी देखना है।

गुलशन वर्मा को अभी तक नारायण दास नज़र नहीं आया था।

साढ़े ग्यारह बजे वर्मा गेम खत्म करके उठ खड़ा हुआ।

“मेरे ख्याल में नारायण दास आज नहीं आयेगा। बहुत वक्त हो

चुका है।” वर्मा बोला।

“लेकिन मेरा, उससे बात करना बहुत जरूरी है।”

“सॉरी अब मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता।” वर्मा ने गहरी सांस ली- “तुम कल आना। तब।”

“आपको नारायण दास के घर का पता होगा।” एकाएक मोना चौधरी ने कहा।

“नहीं। मैं उसका घर नहीं जानता।” वर्मा ने उसे देखा।

“ये तो मालूम करके बता सकते हैं कि वो कहां रहता है?” मोना चौधरी ने कहा।

“उसके घर का पता शायद मालूम हो सके। लेकिन इतनी रात शायद वो तुम्हें अपने घर में नहीं आने देगा।”

“मैं कोशिश करूंगी कि उससे बात कर सकूँ। आप मालूम कीजिये वो कहां रहता है।”

वर्मा सिर हिलाकर वहां से हटा और अन्य टेबल की तरफ बढ़ गया। वही खड़ी मोना चौधरी उसे देखती रही। वो दो-तीन टेबलों पर गया। कुछ लोगों से बात की। चौथे मिनट ही वापस लौटा।

“मालूम हुआ नारायण दास कहां रहता है?” मोना चौधरी ने पूछा वर्मा ने नारायण दास का पता बताकर कहा।

“वहां पहुंचने में तुम्हें एक घंटा लग जायेगा। रात को वो तुमसे मिलेगा या नहीं। कह नहीं सकता।”

“मैं चलती हूं।”

“कमाल है! तुमने डिनर एक साथ के लिए कहा था। मुझे तो भूख भी लग रही है।”

“मैंने नहीं कहा था।” मोना चौधरी मुस्कराया।

“तुमने नहीं कहा तो किसने कहा था।” वर्मा ने उसे देखा।

“सपना ने। तब मैं सपना थी। बाय वर्मा साहब। इसी तरह फिर मिलेंगे।” कहने के साथ ही मोना चौधरी पलटी और बाहर जाने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ी।

गुलशन वर्मा भी पास आकर साथ-साथ चलने लगा।

“आप?”

“मैंने भी बाहर तक जाना है।” वर्मा हौले से हंसकर बोला- “फिर तुम मेरी मेहमान हो। तुम्हें बाहर तक छोड़ना मेरा फर्ज़ बनता है। कल खेल में व्यस्त था। तुम जाने कब चली गई।”

मोना चौधरी ने सिर हिलाया। कहा कुछ नहीं।

दोनों वहां से निकलकर रास्ते तय करके रिसैप्शन तक पहुंचे।

“अब तुम जा सकती हो। मेरा फर्ज पूरा हुआ।” वर्मा मुस्कराया

“शुक्रिया।” मोना चौधरी आसपास देखती कह उठी- “एक बात तो बताइये वर्मा साहब।”

“क्या?”

“मालूम हुआ कि कल रात किसी ने ललित परेरा को गोली मार दी। वो मर गया?”

“हां”

“वो होटल का मालिक था। उसकी मौत पर कुछ दिन तो होटल बंद रहना चाहिये था।” मोना चौधरी बोली।

“तुम्हें या मुझे क्या।” वर्मा ने लापरवाही से कहा- “उसका भाई अविनाश परेरा होटल को बंद नहीं रहने देना चाहता। उसने फौरन आकर सब कुछ संभाल लिया। उसकी मर्जी।”

“आपने पहले अविनाश परेरा को देखा था। सुना था कि ललित परेरा का कोई भाई भी है?”

“मैंने न देखा, न सुना। आज सुबह ही पता चला कि ललित परेरा के भाई अविनाश परेरा ने होटल को अपने अधिकार में ले लिया है। मैंने तो अविनाश परेरा को अभी तक देखा भी नहीं।”

“हो सकता है वो उसका भाई न हो। यूं ही कोई हो।”

“होने को तो कुछ भी हो सकता है।” वर्मा ने मोना चौधरी को देखा- “लेकिन ऐसा होगा नहीं। क्योंकि इस मामले में कई कानूनी बातें हैं। सबसे पहले उसे साबित करना है कि वो ललित परेरा का भाई है। फिर उसे ये भी साबित करना पड़ेगा कि वो ही अपने भाई का वारिस है। ये सब उसने किया होगा।”

“नोटों के दम पर भी तो ये बात साबित कर सकता है।” मोना चौधरी कह उठी।

“इतना बड़ा होटल सामने हो तो, नोटों से ये काम नहीं हो सकता। पुलिस वाले पूरा होटल खा जायेंगे। और वो साबित नहीं कर सकेगा कि, वो ही परेरा का भाई है। मेरे ख्याल में नकली भाई इस मामले में फिट नहीं हो सकता।”

“मतलब कि अविनाश परेरा, ललित परेरा का असली भाई है।”

“जो भी हो। बेकार की बात में मैं सिर नहीं खपाना चाहता।” वर्मा ने मुंह बनाकर कहा- “मुझे तो समझ नहीं आता कि बेकार की बातों में तुम क्यों दखल दे रही हो।”

“मुझे घूमने-फिरने की आदत है। मैं इसी तरह वक्त बिताती हूं।” मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।

गुलशन वर्मा ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“कल तुम दूसरे चेहरे में यहां आईं और आज दूसरी शक्ल में। ये कोई मामूली बात नहीं है। मैं नहीं जानता तुम किस फेर में हो। लेकिन इस तरह वक्त बिताने से तुम कभी भी मुसीबत में फंस सकती हो।”

वर्मा ने शांत स्वर में कहा।

“ओ०के० मिस्टर वर्मा।” मोना चौधरी ने हाथ हिलाया- “चलती वर्मा ने कुछ नहीं कहा। उसे देखता रहा।

मोना चौधरी होटल से बाहर निकलती चली गई।

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पॉश कालोनी में बना वो छोटा सा, लेकिन महंगा मकान था। रात का अंधेरा होने के बावजूद भी उस मकान के नम्बर को ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई। कालोनी में लाईट का पूरा इन्तजाम था। कार से बाहर निकलकर वो मकान के गेट पर पहुंची। गेट पर ताला नहीं था। गेट खोलकर मोना चौधरी आगे बढ़ी मुख्य दरवाजे के पास बरामदे में जा पहुंची। वहां जीरो वॉट का बल्ब रोशन था। उसने दरवाजे के पास ही लगे बेल के स्विच को दबाया तो भीतर बेल बजने की आवाज आई। रात का एक बज रहा था।

दूसरी बार बेल दबाने की जरूरत नहीं पड़ी। जल्द ही दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाली पैंतालिस बरस की औरत थी। गाऊन पहना हुआ था। उसकी आंखें बता रही थीं कि वो अभी नींद में नहीं थी।

“कहिये।” मोना चौधरी को सामने पाकर उसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।

“नारायण दास जी से मिलना है।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर कहा।

“वो मेरे पति हैं। मुझसे कहिये ऐसा क्या काम है जो आधी रात को आना पड़ा।” औरत का स्वर कड़वा हो गया- “अगर तुम मेरे पति के बच्चे की मां बनने वाली हो। ये बताने आई हो तो दफा हो जाओ। वो पहले से ही तीन बच्चों का बाप है। उसे न तो बीवी की जरूरत है और न ही बच्चे की। कपड़े उतारने से पहले सोचना चाहिये था कि तुम जो मजे लेने जा रही हो, उसके बाद बच्चा भी ठहर सकता है। इधर-उधर की धमकी तो देना मत। मेरे साथ कॉलेज में लड़का पढ़ता था। वो आजकल इसी इलाके के थाने का इंस्पेक्टर है। कभी-कभार मिलने भी आ जाता है। उससे कहकर तेरे को उल्टे केस में बंद करवा दूंगी। दोबारा यहां मत आना। समझीं।”

मोना चौधरी खुलकर मुस्कराई।

“कह लिया आपने।”

“बहुत कम कहा है। दफा हो जा और..”

“आप मुझे गलत समझ रही हैं। मैंने तो आज तक आपके पति को देखा तक नहीं।

“देखा नहीं।” उसके माथे पर बल पड़े।

“नहीं।”

“वो कोई ऐसी चीज नहीं है कि आधी रात को उसे देखने आना पड़े। मैं भुगत रही हूं उसे। मुझे ही भुगतने दो।”

“आप ही भुगतिये।” मोना चौधरी मुस्कराकर बोली- “मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। मुझे आपके पति के दोस्त गुलशन वर्मा साहब न भेजा है। आपके पति से कुछ बात करनी है।”

उसके चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

तभी मोना चौधरी की निगाह पैंतालिस-सैंतालिस बरस के व्यक्ति पर गई जो पीछे से आकर उस औरत के पास खड़ा होकर, मोना चौधरी को देखने लगा था।

“क्या बात है?” उसने पूछा।

“तुमसे मिलने आई है आधी रात को।” औरत ने पलटकर, अपने पति को देखा।

“मुझसे? मैं तो इसे जानता तक नहीं।”

“जानने में क्या देर लगती है।” जले स्वर में कहते हुए वो एक तरफ सरक गई- “लो जान लो अच्छी तरह।”

“कौन हो तुम?”

“मेरा नाम मोना चौधरी है। मुझे गुलशन वर्मा ने आपके पास भेजा है। अगर आप नारायण दास ही हैं तो?”

“मैं नारायण दास ही हूं। लेकिन गुलशन वर्मा कौन है?”

“धारा होटल के जुआघर में....।”

“ओह-हां। आओ भीतर आ जाओ।”

मोना चौधरी भीतर आ बैठी।

वो औरत खा जाने वाली निगाहों से अपने पति को देखे जा रही थी।

“क्या बात है?” नारायण दास ने सीधे-सीधे पूछा।

“गुलशन वर्मा जी ने कहा था कि, मेरा नाम लेने पर आप ठीक जवाब दोगे।” मोना चौधरी कह उठी- “सतीश ठाकुर की तो आपको याद होगी ही, जिसकी हत्या हो गई। जब एक रात पहले वो आपके साथ धारा होटल में जुआ खेल रहा था। मैं सिर्फ ये जानना चाहती हूं कि उस रात आपने उसमें कोई खास बात देखी। क्या वो जल्दी में था। खुश था। घबराया हुआ था या....”

“घबराया हुआ था।” नारायण दास के होंठों से निकला।

“ये आप कैसे कह सकते हैं?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।

“कुछ अजीब सी हालत में था वो। परेशान भी, बेचैन भी, उत्तेजित भी। मुझे अच्छी तरह याद है कि रह-रहकर वो रूमाल से चेहरे का पसीना पौंछ रहा था, जबकि उसके चेहरे पर पसीना था ही नहीं। मैंने उसकी तबीयत के बारे में पूछा तो बोला ठीक है। जबकि वो ठीक नहीं था।”

नारायण दास ने गम्भीर स्वर में कहा- “ग्यारह बजे के बाद वो वहां आया था और पन्द्रह मिनट में ही एक गेम खेलकर, उसने टेबल छोड़ दी थी। पूछने पर उसने कहा कि खेलने का मन नहीं है। निगाह क्लब से खेल कर आ रहा हूं।”

मोना चौधरी मन ही मन चौंकी।

“निगाह क्लब से खेलकर आ रहा है। सतीश ठाकुर ने ये कहा?”

“उसके बाद?”

“उसके बाद वो वहां से चला गया।” नारायण दास ने गहरी सांस ली- “अगले दिन उसकी हत्या की खबर सुनी।”

“निगाह क्लब कहां पड़ता है?” मोना चौधरी ने पूछा।

नारायण दास ने बताया।

“क्लब का मालिक कौन है”

“सावरकर साहब है। सब उसे इसी नाम से पुकारते हैं।”

“मतलब कि उस रात सतीश ठाकुर निगाह क्लब से जुआ खेलकर, धारा होटल के जुआघर में आया और वहां करीब पन्द्रह मिनट रुककर चला गया।” मोना चौधरी बोली।

नारायण दास ने सहमति में सिर हिलाया।

मोना चौधरी उसे धन्यवाद देकर बाहर निकल गई।

“शुक्र है। इसने ये नहीं कहा कि, ये तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली है।” पीछे से उसकी बीवी का सुलगा स्वर कानों में पड़ा। मोना चौधरी अपनी कार तक जा पहुंची।

अब हालात और स्पष्ट हो गये थे। सतीश ठाकुर को जो भी मालूम हुआ, निगाह क्लब से मालूम हुआ। धारा होटल से नहीं। ये जुदा बात है कि धारा होटल के मालिक ललित परेरा के आदमियों ने सतीश ठाकुर को गोली मारी।

इससे स्पष्ट था कि धारा होट और निगाह क्लब में कोई भीतरी सम्बन्ध है? ललित परेरा को सावरकर साहब से कोई रिश्ता था। हो सकता है सावरकर साहब का हाथ ही परेरा की पीठ पर हो। मोना चौधरी कार में बैठने लगी कि उसी क्षण कंधे को गर्म हवा देता गर्म शोला निकल गया। मोना चौधरी चौंकी। इसके साथ ही फुर्ती\ के साथ कार की ओट में बैठ गई। हाथ रिवॉल्वर आ गया। होंठ भिंच गये। उसका निशाना लिया गया था। हत्यारे उसके पीछे थे। साईलैंसर लगे हथियार का इस्तेमाल किया गया था।

रिवाल्वर लिए कार की ओट में वो खामोशी से बैठी रही। फिर गोली नहीं चली।

मोना चौधरी समझ नहीं पाई कि मेकअप में उसे कैसे पहचान लिया गया? उसे पूरा विश्वास था कि पारसनाथ के यहां जब पहुंची तो अपने पीछे लगे, बदमाशों से पीछा छुड़ा चुकी थी। और जब बाहर निकली तो मेकअप में थी। किसी के द्वारा पहचाने जाने का सवाल ही नहीं था। उसकी कार बम विस्फोट में तबाह हो गई थी। मेकअप के बाद उसने पारसनाथ की कार इस्तेमाल की थी। धारा होटल में भी उसे कोई नहीं पहचान सकता था?

सिर्फ वर्मा ही उसके बारे में जानता था।

ऐसे में दुश्मनों को कैसे उसकी खबर हो गई। कैसे उसे पहचान लिया? जबकि उसे पहचान पाना असम्भव सी बात थी। उसी पल मोना चौधरी को मध्यम सी, धीमी सी आहट सुनने को मिली।

मोना चौधरी रिवॉल्वर लिए, बिजली की सी फुर्ती के साथ पलटी। चंद कदमों की दूरी पर कोई था। जो उसका निशाना लेने के लिए रिवॉल्वर सीधी कर रहा था। उस पर लगा साईलैंसर स्पष्ट नजर आया। उसी पल दांत भींचे मोना चौधरी ने ट्रेगर दबा दिया। फायर की तेज आवाज के साथ चीख गूंजी। गोली उस व्यक्ति की बांह में लगी थी। रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गई। उसने पलटकर भागना चाहा कि मोना चौधरी ने उसके सिर का निशाना लिया। फायर का पुनः स्वर गूंजा, परन्तु इस बार चीख नहीं गूंजी। गोली ने उसका सिर बिखरा दिया था।

वो उसी पल नीचे जा गिरा। ठण्डा पड़ गया।

मोना चौधरी ने तुरन्त हर तरफ निगाह घुमाई।

कुछ दूर सड़क पार कार और पास में एक व्यक्ति खड़ा नज़र आया। वो इधर ही देख रहा था। यकीनन वो मरने वाले का ही साथी था। इतना वक्त नहीं था कि उससे निपटा जा सके। फायर के तीव्र धमाके गूंजे थे, रात के सन्नाटे में। भरी-पूरी कालोनी थी। अभी लोगों ने इकट्ठे होना शुरू हो जाना था। कुछ मकानों की लाईट भी जल उठी थी। नारायण दास के घर की लाईट भी जली।

मोना चौधरी जल्दी से कार में बैठी। रिवॉल्वर गोदी में रखी और कार स्टार्ट करके तेजी से आगे बढ़ा दी। पीछे से गोली चली। लेकिन वो कार को छू भी नहीं सकी। फौरन ही मोना चौधरी कार के साथ उस कालोनी से बाहर हो चुकी थी। जल्द ही उसे महसूस हो गया कि उसका पीछा किया जा रहा है।

मोना चौधरी की आंखों में दरिन्दगी झलक उठी। उसने मोड़ काटा और फौरन ही कार रोककर जल्दी से बाहर निकली और पास ही अंधेरे में जा छिपी।

तभी पीछे आने वाली कार मुड़ी। उसकी हैडलाईट में मोना चौधरी वाली कार चमक उठी। कार को खड़े पाकर वो कार भी रुक गई। उसमें से एक आदमी निकला। हाथ में रिवॉल्वर दबी हुई थी। सावधानी भरी निगाहों से वो आसपास देखने लगा।

मोना चौधरी की निगाह उस पर टिक चुकी थी। दांत भिंचे हुए थे। कुछ न नज़र आने पर, वो आदमी रिवॉल्वर थामे, मोना चौधरी की कार के पास पहुंचा। भीतर झांका। फिर इधर-उधर देखने लगा। वो समझ गया था कि उसका शिकार अंधेरे में, कहीं पास ही छिपा पड़ा है और आसानी से उसका निशाना ले सकता है। वो वास्तव में मोना चौधरी के निशाने पर था।

मोना चौधरी ने उसकी टांग का निशाना लिया और ट्रेगर दबा दिया। आवाज गूंजी।

गोली निशाने पर लगी। वो चीखकर नीचे गिरा और टांग पकड़कर तड़पने लगा। रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल चुकी थी। मोना चौधरी उसी पल उसके सिर पर जा पहुंची।

“मुझे मत मारना।” मौत के डर से वो चीख उठा।

“जिन्दा रहना चाहते हो?” मोना चौधरी ने दरिन्दगी भरे स्वर में कहा।

“ह-हां।”

“कहां से मेरे पीछे लगे?” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।

“धारा होटल से।” वो टांग पकड़े पीड़ा को दबाता हुआ बोला।

“किसने कहा कि मुझे मार दो।”

“परेरा साहब ने।”

“कौन सा परेरा? जो मर गया है वो या जो नया आया है वो?” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में पूछा।

“जो अब आया है। अविनाश....परेरा ने हमें तुम्हें खत्म करने को कहा था। जब तुम होटल से निकलीं तभी उसने तुम्हारी तरफ इशारा कर दिया कि तुम्हें खत्म करना है।”

“तब अविनाश परेरा और तुम दोनों कहां थे?”

“वहीं। पार्किंग में। अंधेरे में खड़े थे।”

उसी पल मोना चौधरी की आंखों में वहशी भाव चमके। ट्रेगर पर रखी उंगली दबा दी। गोली उसकी छाती में प्रवेश करती चली गई। वो बिना पानी की, मछली की तरह तड़पने लगा। मोना चौधरी जानती थी कि वो बचेगा नहीं। रिवॉल्वर वापस कपड़ों में फंसाई और अपनी कार में बैठकर आगे बढ़ गई। इन हालातों में अपने फ्लैट पर जाना ठीक नहीं था। उसके इन्तजार में, अपार्टमेंट में नज़र रखी जा रही हो सकती है। पारसनाथ का रेस्टारट दूर था, परन्तु महाजन का घर ज्यादा दूर नहीं था। वहां पर राधा होगी।

महाजन से भी शायद मुलाकात हो जाये।

मोना चौधरी कुछ ही देर में महाजन के घर जा पहुंची।

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