बाज बहादुर के आ जाने की खबर मिली तो ओम नाटियार, जगमोहन के लिए, बाज बहादुर के ऑफिस में पहुंचा, जो कि सजा हुआ अच्छा कमरा था। वहां बड़ी-सी टेबल के पीछे बाज बहादुर बैठा था। चार कुर्सियां-टेबल के इस तरफ थी। कमरे की दीवार के साथ बैठने के लिए सोफे भी लगा रखे थे। बाज बहादुर ने सूट पहन रखा था।
"नमस्ते साहब जी ।" उसे देखते ही जगमोहन मुस्कुरा कर बोला।
बहादुर ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, फिर नाटियार से पूछा ।
'कसीनो दिखाया जगमोहन को ?"
"जी सर ।"
"ठीक है तुम जाओ ।"
नाटियार चला गया ।"
"साहब जी। सब ठीक रहा ना। अब तो वो बदमाश नहीं दिखे ?" जगमोहन ने पूछा।
"नहीं। दिखेंगे भी नहीं। अब मेरे साथ बाहर जाते वक्त सिक्योरिटी के आदमी होते हैं।" बाज बहादुर ने कहा।
"फिर तो वो आपके पास ही नहीं आएंगे।"
"अब उन बातों को भूल जाओ जगमोहन। आगे की तरफ ध्यान दो। कल तुम्हारी वजह से मैं वहां से निकल सका। इसके लिए मैं तुम्हारे वास्ते कुछ करना चाहता हूं। तुम्हें कसीनो में नौकरी दे रहा हूं ।" बाज बहादुर मुस्कुरा कर बोला।
"थैंक्यू साहब जी ।"
"तनख्वाह भी तुम्हारी ज्यादा होगी। होटल में तुम पच्चीस सौ कमाते थे, यहां तुम्हें दस हजार रुपया महीना मिलेंगे।"
"दस हजार ?" जगमोहन खुश हो गया ।
"हां । मेहनत से काम करोगे तो तनख्वाह और भी बढ़ जाएगी।"
"मैं मेहनत से काम करूंगा साहब जी ।"
"गुड । मैं तुम्हें बहुत आसान और जिम्मेवारी वाला काम दे रहा हूं ।" बाज बहादुर बोला--- "तुम्हारा काम होगा, कसीनो में आने जाने वालों पर नजर रखना। अगर तुम्हें लगे कि कसीनो में आने वाला वक्त आदमी जुआ खेलने की अपेक्षा कसीनो की बाकी चीजों में दिलचस्पी ले रहा है। जैसे कि वो बार-बार कसीनो के स्ट्रांग रूम की तरफ जा रहा है, या स्टाफ से खामखाह की पूछताछ कर रहा है तो ऐसी आदमी की खबर नाटियार को तुरंत देनी होगी। ये जासूसी वाला काम है और तुझे पसंद आएगा ।"
"जी साहब जी, मैंने जासूसी नॉवल बहुत पढ़े हैं । ये काम मैं बढ़िया ढंग से कर लूंगा।"
"बाकी काम तुम्हें नाटियार सिखा देगा । जाकर नाटियार से मिलो और काम पर लग जाओ।
■■■
जगमोहन रात के तीन बजे तक ओम नाटियार के साथ ही रहा। नाटियार उसे काम के बारे में समझाता रहा। कसीनो के स्टाफ से मिलवाता रहा । इस तरह जगमोहन क्लब का हिस्सा बनता चला गया।
रात एक बजे बाज बहादुर से मुलाकात हुई।
"काम पसंद आ रहा है जगमोहन ?" बाज बहादुर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा ।
"जी साहब जी ।"
"हर कस्टमर पर पैनी नजर रखो । उसके दिमाग में क्या है, ये जानने की चेष्टा करो ।"
नाटियार जी ने मुझे सब समझा दिया है साहब जी ।" जगमोहन ने भोलेपन से कहा।
बाज बहादुर उसका कंधा थपथपाकर आगे बढ़ गया। जगमोहन व्यस्त रहा। कसीनो करीब आधा भरा हुआ था । रौनक थी ।
करीब तीन बजे रात छुट्टी हुई तो जगमोहन कसीनो से निकलकर अपने कमरे की तरफ चल दिया। शरीर को कंपा देने वाली सर्दी थी । सड़कें सुनसान पड़ी थी । कोहरे के बादल हवा संग झूमते जैसे सड़को को छू रहे थे । स्ट्रीट लाइटों की रोशनी इतनी मध्यम थी कि वो बुझते दीये की तरह महसूस हो रही थी। खाना तो कसीनो से ही हो गया था। कसीनो के कर्मचारियों के लिए वहां अलग से किचन थी और रात बारह बजे के करीब उन्हें खाना दिया जाता था । कसीनों का काम चलता रहता था और दो-दो, चार-चार कर्मचारी, जाकर सब खाना खा लेते थे। बाज बहादुर ने उसे कहा था कि कल उसे कसीनो की वर्दी दी जाएगी । वर्दी के रूप में काला पैंट-कोट और सफेद कमीज मिलेगी।
दो दिन इसी तरह बीत गए ।
जगमोहन शाम पांच बजे पहुंचता और आधी रात के बाद तीन बजे छुट्टी मिलती । इस बीच कसीनो के कर्मचारियों के बीच अपनी जगह बनाता जा रहा था।
वर्दी के रूप में पैंट-कमीज और कोट मिल गया था। बाज बहादुर जब भी उसे देखता तो पास आकर उसका हाल-चाल पता करता। उसकी पीठ थपथपाता फिर आगे बढ़ जाता। काम में किसी तरह की परेशानी आती तो नाटियार उसे दूर कर देता। अपने काम को ठीक-से अंजाम दे रहा था । तीसरी रात उसने नाटियार को एक ऐसे जोड़े की खबर दी जो दो लोगों की जेब से पैसा खिसका चुका था और उसने देखा। वो जोड़ा हिन्दुस्तानी था । तीस का युवक, अठाईस की औरत । जब उनकी तलाशी ली गई तो उनके पास से जेब तराशी के ब्लड मिले। उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया।
बाज बहादुर ने जगमोहन को ऑफिस में बुलाकर उसकी पीठ थपथपाई ।
"तुम तो बहुत तेज निकले जगमोहन । तीन दिन की नौकरी में ही तुमने गलत लोगों को पकड़वा दिया ।" बाज बहादुर बोला ।
"मैं और लोगों को भी पकड़ लूंगा साहब जी ।"
"तुम तरक्की करोगे । ऐसे ही काम करते रहो । शाबाश ।" बाज बहादुर खुश था ।
"साहब जी, एक बात कहनी है, पर डर लगता है ।" जगमोहन सिर झुकाकर बोला ।
"डरते क्यों हो, जो कहना है, कहो ।"
"कहीं आप नाराज ना हो...।"
"तुम्हारी किसी बात पर मैं नाराज नहीं होऊंगा । अब जो भी कहना है कह दो ।"
"साब जी । मेरे भाई को भी कसीनो में नौकरी दे दीजिए ।"
"तुम्हारा भाई ?"
"हिन्दुस्तान में रहता है। हम बचपन से ही एक साथ रहे हैं। उसके बिना यहां मेरा दिल नहीं लगता। आप उसे भी कसीनो में नौकरी दे देंगे तो वो यहां आ जाएगा। हम दोनों फिर से इकट्ठा रहने लगेंगे ।" जगमोहन ने हाथ जोड़कर कहा।
बाज बहादुर सोच भरे स्वर में कह उठा।
"ठीक है । बुला लो उसे। उसकी काबिलियत के हिसाब से उसे क्लब में काम दे दिया जाएगा।"
■■■
अगले दिन ग्यारह बजे जगमोहन की आंख खुली। वो अपने कमरे पर था। कमरे में डबल बेड बिछाने-ओढ़ने के लिए गर्म कपड़े, छोटा टेबल और दो कुर्सियां थी। जिसका किराया ढ़ाई हजार रुपए महीना था। जगमोहन ने देवराज चौहान को फोन किया।
"मैंने तुम्हारे लिए नौकरी का इंतजाम कर लिया है ।" जगमोहन ने कहा ।
"कसीनो में ?" उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
"हां, वहीं । अब तुम कब आ रहे हो ?"
"आज अठारह तारीख है । दो या तीन दिन में आऊंगा । हमारा काम तो चौबीस या पच्चीस को ही शुरू होगा।
"लेकिन उससे कुछ दिन पहले आना ही ठीक होगा ।"
"मैं आ जाऊंगा ।"
"चलने से पहले फोन पर खबर कर देना ।" कहकर जगमोहन बंद किया और उठकर बाथरूम में लगे गीजर के गर्म पानी से नहाने के बाद कपड़े पहने और दरवाजे पर ताला लगा कर बाहर निकल गया। दोपहर का डेढ़ बज रहा था । उसने एक होटल में खाना खाया और वक्त बिताने के लिए श्वेता मछंदर नाथ मंदिर में जाकर, पार्क में धूप में बैठ गया ।
धूप आज अन्य दिनों की अपेक्षा हल्की थी और ऐसा लगता था जैसे चार बजे तक खत्म हो जाएगी। ठंडी हवा जैसे शरीर के भीतर घुसी जा रही थी। जगमोहन घास पर लेटा पर आंखें बंद कर ली। धूप सीधी उसके चेहरे पर पड़ने लगी ।
कुछ ही मिनट बीते होंगे कि उसके कानों में हल्की-सी खांसी की आवाज पड़ी।
जगमोहन ने आंखें खोल कर देखा तो देखता ही रह गया। चार कदमों की दूरी पर पत्थर की बनी थी पर वो सौंदर्य की प्रतिमा बैठी थी। काले लंबे बाल। मोटी-मोटी आंखें। गोरा रंग। तीखे नैन-नक्श । कोई मेकअप नहीं था चेहरे पर । चौबीस वर्ष उम्र रही होगी उस युवती की। शरीर पर पीला सूट और काला स्वेटर पहन रखा था। वो मध्यम-सी मुस्कान के साथ जगमोहन को देख रही थी।
जगमोहन फौरन उठ बैठा।
खूबसूरती का ऐसा जीता-जागता रुप उसने पहले कभी नहीं देखा था। बहती हवा बालों के लट् को उसके माथे पर ले आई थी, जिसे कि उसने दाएं हाथ की उंगली से पीछे किया। मंत्र-मुग्ध हो गया, जगमोहन उसे देखकर। वो नेपाली थी ।
युवती के चेहरे पर मुस्कान गहरी हो गई।
"ऐसे क्या देख रहे हो बाबू जी ?" युवती ने शरारत भरे खनकते स्वर में पूछा।
"क-कुछ नहीं ।" जगमोहन ने हड़बड़ा कर मुंह फेर लिया ।
युवती हंसी, फिर बोली ।
"तुम कल नहीं आए यहां ।"
"कल ?" जगमोहन ने फौरन युवती को देखा ।
"परसों आए थे न । मैंने देखा था । पर कल नहीं आए यहां ?" युवती ने कहा ।
"तुम्हें कैसे पता कि कल नहीं आया ?" जगमोहन के होंठों से निकला--- "तुम मुझे देख रही थी ।"
"हां ।" युवती ने सरलता से कहा ।
"क्यों ?"
"यूं ही, तुम मुझे अच्छे लगे ।" युवती ने सरल स्वर में कहा ।
"अच्छे लगे...म-मैं तुम्हें अच्छा लगा ?"
"हां । कोई किसी को अच्छा नहीं लग सकता क्या ?"
"लग सकता है । क्यों नहीं लग सकता ।" जगमोहन ने जल्दी-से कहा । नजरें उसके खूबसूरत चेहरे पर टिकी रही ।
युवती इधर-उधर आते-जाते लोगों को देखने लगी ।
"तुम यहां रोज आती हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"कभी-कभी तो रोज आती हूं तो कभी कई-कई दिन नहीं आती।" उसने मुस्कुराकर कहा ।
"इतना क्यों आती हो इस मंदिर में ?"
"सच कहूं ।" वो जगमोहन को देख कर कह उठी ।
"हां-कहो ।"
"पंडित जी ने कहा था मुझे इसी मंदिर में पति मिलेगा ।"
"इस मंदिर में ?"
"हां । हमारे पंडित जी हाथ की रेखाओं की भाषा पढ़ना खूब जानते हैं। जब मैं छोटी थी तभी उन्होंने मेरा हाथ देख कर बता दिया था कि पहली बार मैं अपने होने वाले पति से श्वेता मछंदर नाथ मंदिर में ही मिलूंगी, फिर मेरा ब्याह होगा ।"
"तो मिली उससे ?" जगमोहन मुस्कुराया ।
"अभी कहां मिला वो ।" युवती ने मुंह बनाकर कहा।
"तुम्हें कैसे पता चलेगा कि तुम अपने होने वाले पति से मिल रही हो।" जगमोहन मुस्कुरा रहा था।
"ये तो मुझे भी नहीं पता।" उसने जगमोहन को देखा।
"कहीं वो मैं तो नहीं ?"
युवती ने जगमोहन को देखा । मुस्कुराई और मीठे स्वर में कह उठी।
"ये तो पता नहीं, पर जब से तुम्हें देखा है, तभी से दिल में कुछ-कुछ हुआ जा रहा है।"
जगमोहन उसके हसीन चेहरे को देखता रह गया । इंसानी रूप में ऐसी सुंदर सूरत उसने पहले कभी नहीं देखी थी। सच बात तो ये थी कि उसे देखने के बाद, उसे भी अपना दिल गुम हो गया लग रहा था ।
"नाम क्या है तुम्हारा ?" जगमोहन ने प्यार से पूछा ।
"माला । तुम हिन्दुस्तानी हो न ?"
"हां ।"
"काठमांडू क्यों आए ? घूमने ?" माला ने पूछा ।
"मैं नौकरी करता हूं।"
"नौकरी ? अच्छा, तो काठमांडू में ही रहते हो ।" माला ने हैरानी से कहा।
"हां । किराए पर कमरा ले रखा है ।"
"पर तुम हिन्दुस्तान से काठमांडू क्यों आए ? हमारे यहां के लोग तो पैसा कमाने हिन्दुस्तान जाते हैं ।"
माला का खूबसूरत चेहरा, जगमोहन को पागल करता जा रहा था।
"मुझे काठमांडू पसंद है । अब तो और भी पसंद आने लगा है।"
"अब, और क्यों ?"
"क्योंकि तुम जो काठमांडू में रहती हो।"
"धत ।" माला का चेहरा शर्म से गुलाबी हो उठा।
"तुम भी मुझे अच्छी लगने लगी हो ।" जगमोहन के होंठों से निकला ।
"कब से ?"
"जब से तुम्हें देखा है ।"
माला बड़ी-बड़ी आंखों से जगमोहन को देखने लगी।
जगमोहन प्यार से उसे निहार रहा था।
"कहीं तुम ही तो मेरे होने वाले पति नहीं हो ?"
"क्या पता । पर मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूं ।"
"सच ?" माला खुश हो गई पर तुरंत ही खुशी गायब हो गई--- "तुम मुझसे शादी करके, मुझे छोड़कर हिन्दुस्तान चले जाओगे।"
"वो पागल होगा जो तुम्हें छोड़ेगा ।"
"मेरी एक सहेली के साथ ऐसा ही हुआ । हिन्दुस्तानी ने उससे शादी की और साल भर बाद उसे छोड़ गया ।" माला ने कहा ।
"मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं ।"
"क्या पता । वो भी तो ऐसा नहीं लगता था ।"
जगमोहन थोड़ा-सा उसके पास खिसक आया।
"यहां बैठो । सीट पर, मेरे साथ ।"
जगमोहन उठा और सीट पर उसके पास बैठ गया।
"मैं तुम्हें जितना भी देखता हूं उतना ही होश खोता जा रहा हूं ।"
"छेड़ रहे हो मुझे ।" माला ने शरारती स्वर में कहा ।
"सच में, तुम बहुत खूबसूरत हो। मेरा दिल ले लिया है तुमने ।"
"हाय राम । तुम तो दीवाने हो गए लगते हो ।" माला छाती पर हाथ रख कर बोली ।
"तुम्हारा दीवाना ।"
माला, जगमोहन को देख कर कह उठी।
"तुम मुझे बेवकूफ तो नहीं समझ रहे ।"
"क्या मतलब ?"
"ऐसा मत सोचना कि मुझे भगा कर ले जाओगे । मैं तुम्हें हाथ भी नहीं लगाने दूंगी अपने को।"
जगमोहन हंस पड़ा।
माला माथे पर बल डाले जगमोहन को देखने लगी।
"इसमें हंसने की क्या बात है। तुम तो पागलों की तरह खामखाह ही हंसे जा रहे हो ।"
जगमोहन ने हंसी रुकी और मुस्कुरा कर बोला ।
"जब तक हम शादी नहीं कर लेते, मैं तुम्हें हाथ भी नहीं लगाऊंगा ।"
"वादा ?"
"वादा रहा माला ।" जगमोहन ने प्यार से कहा ।
"तो शादी कब करेंगे ?"
"बहुत जल्दी ।"
"आज-कल में कर लेते हैं । नहीं, इतनी भी जल्दी नहीं हो सकती। तैयारी तो करनी पड़ेगी । तुम्हारे घर वाले भी तो आएंगे न? अगर उन लोगों ने मेरी मेरे में कोई खराबी निकाल दी तो, तब तुम क्या करोगे ?" माला ने कहा।
"मेरा तो सिर्फ एक भाई है, बस ।"
"चलो ये तो अच्छा हुआ ।" माला सिर हिला कर बोली--- "लड़ाई-झगड़ा नहीं होगा। सास भी नहीं, ननद भी नहीं। भाई की शादी हो गई ?"
"हां ।"
"कोई बात नहीं। उससे झगड़ा हुआ तो हम अलग रह लेंगे।
जगमोहन उसके चांद से मुखड़े को देखे जा रहा था ।
"तुम्हारे घर में कौन-कौन है ?"
"सिर्फ एक भाई है, बस। उसने तो शादी नहीं की । करेगा भी नहीं ।" माला बोली ।
"कितना बड़ा है ?"
"मेरे से चार साल ही तो बड़ा है ।"
"तुम कितनी बड़ी हो ?"
"चौबीस की । पिछले महीने ही तो की हुई हूं ।" माला ने जगमोहन को देखा।
"तुम बहुत खूबसूरत हो माला ।"
"जानती हूं ।" माला शर्मा गई ।
"कैसे जानती हो ?"
"लड़के मुझे कभी-कभी छेड़ देते हैं, क्योंकि मैं खूबसूरत हूं। मेरी सहेलियां भी ये ही कहती हैं। पर एक बात जान लो ।" माला को जैसे अचानक ही ध्यान आया--- "मेरे भाई से ज्यादा उम्मीद मत लगाना दहेज की। शादी कर देगा । थोड़ा-बहुत सामान दे देगा । वो भी पता नहीं देता है या नहीं ।"
"तुम किसी बात की फिक्र मत करो। आज से तुम्हारी हर परेशानी मेरी हुई ।"
"तो शादी कब करोगे ?"
"जल्दी ही । कुछ ही दिनों बाद ।"
"तुमने अपना नाम अभी तक नहीं बताया ।"
"जगमोहन ।"
"प्यारा नाम है ।" माला सिर हिलाकर बोली--- "लेकिन बंधु को भी शादी के लिए तैयार करना पड़ेगा ।"
"बंधु कौन ?"
"मेरा भाई और कौन ।" माला ने मुंह बिगाड़ कर कहा--- "बंधु शेरपा उसका पूरा नाम है ।"
"वो क्या शादी को मना करेगा ।"
"क्या पता, पागल सा तो है वो ।"
" पागल-सा ?"
"ऐसा ही है । जो बात दिमाग में घूम गई तो घूम गई। जिस पर अड़ गया तो अड़ गया ।"
"मुझे नहीं लगता कि वो तुम्हारी शादी को मना करेगा ।"
"देखो क्या होता है । जब उसका मूड अच्छा हुआ तो बात करूंगी। तुम दहेज वगैरा तो नहीं लोगे ?"
"सिर्फ तुम्हें ही लूंगा । इसी मंदिर में ब्याह कर लेंगे ।" जगमोहन ने प्यार से कहा ।
"पंडित ने कहा था कि मेरा पति मुझे इसी मंदिर में मिलेगा। तुम्हीं मेरे होने वाले पति हो। तभी तो हममें पहली मुलाकात में शादी तक की बात हो गई ।" माला ने मुस्कुरा कर कहा--- "तुम पहले ही दिन मुझे बहुत अच्छे लगे थे।"
"और तुम्हें देखते ही मैं अपने होश खो बैठा हूं ।" जगमोहन सच में होश खोए हुए था।
"शादी के बाद मुझसे प्यार करोगे न ?" माला ने पूछा ।
"बहुत ।"
"वादा ?"
"वादा ।" जगमोहन बोला--- "तुम्हारा मोबाइल नम्बर क्या है ।"
"फोन का नम्बर ?"
"हां ।"
"वो तो मेरे पास है ही नहीं। एक बार बंधु ने मोबाइल फोन लाकर मुझे दिया था, पर वो मेरे हाथ से गिरकर टूट गया। तब बंधु ने मुझे बहुत डांटा था और दोबारा फोन ले के नहीं दिया ।" माला ने जैसे बंधु की शिकायत की ।
"मैं तुम्हें नया फोन लेकर दे देता हूं ।"
"हाय राम, बंधु तो मेरी गर्दन काट देगा कि मैं फोन कहां से ले आई । नहीं-नहीं मुझे फोन नहीं लेना ।" माला कह उठी ।
जगमोहन और माला बातें करते रहे ।
धूप चली गई, परंतु उनकी बातें खत्म नहीं हुई। जब सर्दी लगी तो माला हड़बड़ा कर कह उठी ।
"ओह, बहुत देर हो गई । मुझे घर जाना है । बंधु आ गया होगा तो मुझ पर नाराज होगा ।" वो उठी ।
"फिर कब मिलोगी ?"
"कल ।" माला भागते हुए उससे दूर होती कह उठी--- "दिन के बारह बजे ।"
माला चली गई ।
जगमोहन वहीं बैठा रहा। उसे कुछ याद रहा तो माला का खूबसूरत चेहरा। उसकी भोली-भाली बातें कानों में गूंजती रही। चेहरा आंखों के सामने नाचता रहा। और कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।
■■■
शाम पांच बजे जगमोहन ब्लू स्टार कसीनो जा पहुंचा । वो कमीज-पैंट और कोट पहने था। कसीनो के कर्मचारियों से वो गर्मजोशी के साथ मिल रहा था, परंतु आंखों में माला की खूबसूरती बसी थी। दिमाग में माला की बातें थी। माला का हंसता- मुस्कुराता चेहरा उसकी आंखों के सामने से हट नहीं रहा था। माला पूरी तरह उसके दिलो-दिमाग में बस गई थी। वो शय ही ऐसी थी कि जिसके हर समय आंखों के सामने नाचते रहने का एहसास होता रहे। जगमोहन ने कई बार माला के विचारों को अपने से दूर करना चाहा परंतु दूर नहीं कर सका । माला हर वक्त उसके सिर पर सवार रही। आंखों को नजर आती रही। सुंदरता का बेजोड़ नमूना, ऐसी वो माला थी कि जिससे गले में लगाने को दिल करे। जगमोहन, माला पर अपना दिल हार बैठा था एक ही मुलाकात में। उसकी बातें याद आती तो जगमोहन के चेहरे पर मुस्कान खिंच आती। हर समय उसके समीप रहने को दिल कर रहा था जैसे।
सात बजे ओम नाटियार मिला ।
"क्या बात है ?" नाटियार ने करीब आते ही पूछा ।
"बात ? कैसी बात " जगमोहन ने उसे देखा ।
"तुम गुम-सुम से लग रहे हो ।"
"नही ।"
"ऐसा है मेरे दोस्त । तुम किसी चिंता में हो ।"
जगमोहन एकाएक मुस्कुराया फिर कह उठा ।
"तुमने कभी प्यार किया है ?"
"प्यार ?" नाटियार की आंखें सिकुड़ी--- "मेरी शादी हो चुकी है और तीन बच्चे हैं ।"
"शादी से पहले प्यार किया होगा ।"
"मां-बाप ने शादी तय कर दी तो कर ली। शादी के बाद, पहली बार मैंने अपनी पत्नी की सूरत देखी थी ।" नाटियार ने मुंह बनाया ।
"मतलब कि तुमने कभी किसी से प्यार नहीं किया ।"
"तीन बच्चों का बाप हूं लेकिन आज तक नहीं समझ सका कि प्यार क्या होता है ।" नाटियार मुस्कुरा पड़ा--- "बात क्या है ?"
"मुझे किसी से प्यार हो गया है ।"
"खुब । नाटियार के चेहरे पर गहरी मुस्कान आ गई--- "किससे ?"
"माला से ।"
"कौन माला ?"
"है कोई ।"
"कहां मिली ।"
"श्वेता मछंदर नाथ के मंदिर में । एक ही बार में मेरा दिल ले गई।" जगमोहन ने नाटियार को देखा ।
"एक बात कहूं ।" नाटियार बोला ।
"क्या ?"
"कसीनो में ड्यूटी के वक्त चौकस रहो । यहां लापरवाह किसी ने देखा तो नौकरी से छुट्टी समझो ।"
जगमोहन ने सिर हिला दिया ।
फिर सब कुछ भूल कर जगमोहन अपनी ड्यूटी की तरफ ध्यान देने लगा । परंतु माला का ख्याल था कि दिल से जा ही नहीं रहा था। आंखों के सामने से माला का चेहरा हटता ही नहीं था। जैसे-तैसे जगमोहन ने अपना ध्यान ड्यूटी पर लगाया और आने वाले कस्टमरों को आंखों ही आंखों में जांचने में लग गया ।
रात ग्यारह बजे उसने ओम नाटियार को एक आदमी के बारे में खबर दी कि वो कसीनो में संदिग्ध ढंग से घूम-फिर रहा है। उसके बाद नाटियार ने खुद उस आदमी पर नजर रखी और आधे घंटे बाद उसे पकड़कर सिक्योरिटी रूम में ले जाया गया। तलाशी में उसके पास से कुछ ना मिला । महज पांच सौ रुपए बरामद हुआ। पूछने पर उसने बताया कि टूरिस्ट हैं और कसीनो को भीतर से देखने की खातिर यहां आ गया है। बहरहाल उसे कसीनो से बाहर कर दिया गया।
रात ग्यारह बजे जब जगमोहन खाना खाने के लिए कसीनो की किचन की तरफ जा रहा था, तो रास्ते में बाज बहादुर मिला। जगमोहन ने हाथ जोड़कर नमस्ते की ।
"अच्छा काम कर रहे हो जगमोहन । नाटियार ने मुझे बताया ।" बाज बहादुर बोला ।
"जी साहब जी ।" जगमोहन खुश हुआ ।
"तुम्हारा भाई कब आ रहा है ?"
"मैंने उसे फोन कर दिया है साहब जी । दो-तीन दिन में आ जाएगा ।"
"नाम क्या है उसका ?"
"दे-देवा...।" जगमोहन कह उठा ।
"जब आ जाए तो मुझे बताना ।" कहकर बाज बहादुर आगे बढ़ गया।
खाना खाने के बाद जगमोहन पुनः ड्यूटी पर आ गया। होटल ब्लू स्टार के कसीनो में प्रवेश करने का दूसरा रास्ता था और मुख्य द्वार वाला रास्ता दूसरा था। इसके अलावा कसीनो के भीतर भी लोगों पर नजर रखनी पड़ती थी। उस जैसे वहां बीस के करीब और लोग भी थे, जो कसीनो में आने वालों पर नजर रखते थे।
जगमोहन ने अपना ध्यान पूरी तरह अपने काम पर लगा रखा था। परंतु माला की यादें उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी । जब भी जरा फुर्सत मिलती तो माला उसके जेहन में अंगड़ाई ले बैठती।
■■■
उस रात जगमोहन अपने मोबाइल फोन पर सुबह के दस बजे का अलार्म लगा कर सोया था और अगले दिन अलार्म बजते ही फौरन बिस्तर छोड़कर उठ खड़ा हुआ । जल्दी-से नहा-धोकर कपड़े पहने और दरवाजे को ताला लगाकर पांचवी के रेस्टोरेंट पहुंचा और तगड़ा नाश्ता किया। आज मौसम ठंडा था। धूप नहीं निकली थी । आसमान में कोहरे के बादल घूमते नजर आ रहे थे। उससे ऊपर काले बादल नजर आ रहे थे। जगमोहन ने जैकिट की जिप बंद कर ली और पैदल ही तेज-तेज चलने लगा। 11:40 बज रहे हैं। माला ने बारह बजे मिलने को कहा था। माला से मिलने की सोच कर उसके मन में उत्साह भरा जा रहा था । उसका चेहरा बार-बार आंखों के सामने आ रहा था।
'माला । वो बड़बड़ा उठा--- "कितना प्यारा नाम है।"
इश्क हो जाए, फिर तो भगवान ही उसकी देखभाल करता है। वो किसी काम का नहीं रहता । ये ही हाल जगमोहन का हो रहा था। तब बारह ही बज रहे थे जब जगमोहन श्वेता मछंदर नाथ मंदिर पहुंचा। मौसम और भी बिगड़ गया था। आसमान में काले बादल से और कुछ अंधेरा-सा हो रहा था। सर्दी भी बढ़ गई थी। स्पष्ट था कि कभी भी बरसात आ सकती थी। मंदिर भी आज खाली-सा था । बहुत कम लोग थे वहां । पार्क और सीटें तो बिल्कुल खाली थी। इतनी सर्दी में तो पार्क में किसी के आने का मतलब ही नहीं था।
जगमोहन ने उस बैंच को देखा, जिस पर कल माला बैठी थी ।
बैंच खाली था ।
आज माला नहीं थी वहां ।
ये सोचकर जगमोहन का दिल धड़क उठा की माला न आई तो ? मौसम भी खराब था। ठंड ज्यादा थी। बरसात भी, कभी भी आ सकती थी। ऐसे में माला ना आए तो बड़ी बात नहीं होगी।
इस विचार के साथ जगमोहन बेचैन हो उठा ।
माला आएगी कि नहीं ?
कभी उसका मन चाहता कि माला आएगी तो कभी कहता नहीं। हां और नहीं के विचार बार-बार मन में बदलते जा रहे थे। चेहरे पर उदासी आ ठहरी थी। दोनों हाथ बगलों में दबाए वो वहीं टहलता रहा । रह-रहकर उसकी निगाह उस बैंच की तरफ इस तरह उठ रही थी जैसे माला वहां बैठी हो। माला का मुस्कुराता चेहरा उसे बहुत याद आ रहा था।
वक्त बीता, परंतु माला नहीं आई । 12:30 हो गए ।
जगमोहन को विश्वास हो गया कि आज माला नहीं आएगी । मौसम भी तो बुरा...। टप... तभी बरसात की मोटी बूंद जगमोहन के चेहरे पर गिरी। बरसात शुरू हो रही थी जगमोहन तेजी से मंदिर के उसी तरफ बढ़ गया, जहां छत थी । ऐसी सर्दी में गीला होना खतरनाक था परंतु जगमोहन माला के लिए ऐसा भी कर सकता था । अगर वो आ जाए तो ।
मंदिर की छत के नीचे आ खड़ा हुआ था जगमोहन ।
वहां और भी लोग थे ।
टप-टप, बरसात की बूंदे पड़नी शुरू हो गई थी कि तभी कुछ दूर बरसात की बूंदों के बीच में उसे लगा, माला दौड़ती आ रही हो। नहीं, वो माला नहीं है, जगमोहन उदास मन से सिर को झटका देकर, पुनः उधर देखा। वो अब पहले से करीब आ गई थी। अगले ही पल जगमोहन का दिल धड़क उठा ।
वो माला ही थी ।
नीला सूट और सफेद स्वेटर पहने । सिर पर ऊनी टोपी।
जगमोहन अविश्वास-भरी निगाहों से माला को देखता रहा । वो तो उसके आने की उम्मीद ही छोड़ बैठा था। शायद माला ने उसे वहां खड़ा देख लिया था । जब माला उसके पास आ पहुंची तो बरसात एकाएक तेज हो गई।
"माला । जगमोहन ने खुशी से कांपते स्वर में कहा और उसका हाथ पकड़ लिया ।
माला खिलखिलाकर हंसी ।
जगमोहन उसके मायावी खूबसूरत चेहरे को देखता रह गया ।
"मैं भीग गई ।" माला कह उठी ।
"अभी तो बच गई ।" जगमोहन बरसात को देखता कह उठा--- "अब शुरू हुई है बरसात ।"
जगमोहन ने उसकी ऊनी टोपी। स्वेटर को छुआ। वो कुछ गीले थे ।
"इन्हें उतार दो । ये लो मेरी जैकेट तुम पहनो ।
"तुम्हें सर्दी लग जाएगी जगमोहन । ये तुम पहनो ।" माला कह उठी ।
"नहीं, तुम पहनो ।" जगमोहन ने जिद भरे स्वर में कहा ।
माला ने जगमोहन को देखा फिर अपनी टोपी और स्वेटर उतारकर, दीवार के फर्श पर रख दिया। जगमोहन की जैकिट पहन ली । जगमोहन ने जैकिट की जिप बंद कर दी ।
"वाह, इसमें तो जरा भी ठंड नही लग रही ।" माला खुशी से कह उठी ।
जगमोहन ने प्यार भरी नजरों से उसे देखा ।
"तुम्हें तो सर्दी लग रही होगी ।"
"नहीं ।"
"झूठे ।"
"तेरी कसम माला, तुम पास में होती हो तो सर्दी-गर्मी का एहसास खत्म हो जाता है ।"
"तुम बहुत अच्छी बातें करते हो ।" माला भी प्यार से कह उठी ।
"तुम मेरे करीब हो, अब तो मुझे भूख भी नहीं लगेगी ।"
"पक्के झूठे हो ।" माला खिलखिला कर हंस पड़ी--- "जब पेट में चूहे दौड़ेगे तो तब देखना अपना हाल। जानते हो जगमोहन, मैं तो आज आ ही नहीं रही थी । मैं तो घर में रजाई में बैठी थी।"
"बारह बजे तुमने मुझसे मिलने आने को कहा था ।"
"कहा तो था ।" माला सिर हिला कर बोली--- "पर हाय राम आज तो जोरों की सर्दी है। मैं तो सुबह ही समझ गई थी कि आज तो बरसात होगी। सूर्य भी नहीं निकला, फिर आने का क्या फायदा था।"
"तो फिर कैसे आ गई ?" जगमोहन मुस्कुराया।
"सच में, मैं नहीं आ रही थी । मैंने घड़ी देखी 12:10 बजे थे। तभी मुझे तुम्हारा ख्याल आया कि मुझे यहां नहीं पाओगे तो तुम्हारा दिल दुखेगा। इस सोच के साथ ही, मेरा मन भी तुम्हें मिलने को करने लगा ।" माला के चेहरे पर मीठी मुस्कान दौड़ी--- "मुझे लगा कि अगर मैं तुमसे ना मिली तो मेरा मन कहीं नहीं लगेगा ।"
"सच ?"
"कसम से । तुम्हारी कसम ।"
"जानती हो माला, इसे क्या कहते हैं । जगमोहन को सुख की अनुभूति हुई ।
"क्या ?"
"प्यार कहते हैं इसे। ये ही हाल मेरा है । कल से तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा। किसी भी पल तुम्हें नहीं भूला और...।"
"हाय राम । मेरे साथ ऐसा ही हुआ । हर पल तुम्हारा ही ख्याल आता रहा ।" माला कह उठी ।
"इसे ही तो प्यार कहते हैं ।"
"सच में ? ये ही प्यार होता है ।"
"हां, ये ही प्यार होता है।" जगमोहन ने माला का हाथ पकड़ लिया--- "जब तुम नहीं आई तो मुझे सब कुछ बुझा-बुझा सा लगने लगा था, पर जब तुम आ पहुंची तो लगा हर तरफ बहार छा गई हो ।"
"ओह, हम दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया है । पंडित जी ने सही कहा था कि मेरे पति से मेरी पहली मुलाकात श्वेता मछंदर नाथ मंदिर में ही होगी । तुम मुझे मिल गए जगमोहन ।" माला की आंखों में असीम प्यार था ।
"अपने भाई से बात की शादी की ?"
"बंधु कल रात भर ही कहां आया । वो तो तीन दिन से घर नहीं आया ।" माला ने मुंह बनाकर कहा ।
"घर नहीं आया, तीन दिनों से ?"
"उसकी छोड़ो तुम । बंधु का कोई भरोसा नहीं कब जाए और कब लौटे ।" माला ने सिर हिलाया ।
"ऐसा क्यों...।"
"तुमको मुझसे शादी करनी है या बंधु से ?" माला ने मुंह फुला कर कहा ।
"तुमसे ।"
"तो मेरी बातें करो । मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूं । घर संभाल लेती हूं। शादी के बाद तुम्हें भी संभाल लूंगी । तुम्हें कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूंगी और तुम भी मेरा पूरा ध्यान रखोगे ।" माला खुशी से बोली ।
"मैं तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखूंगा ।"
"तुम्हारी पलकों पर बैठूंगी तो तुम्हारी आंखें बंद ही रहेंगी ।" माला हंसी--- "ठोकर खाकर गिर जाओगे।"
जगमोहन मुस्कुराया ।
"अब हाथ छोड़ो। यहां और लोग भी हैं। मुझे शर्म आ रही है।" माला धीमे स्वर में कह उठी।
"हाथ नहीं छोडूंगा। पूरी जिंदगी ऐसे ही पकडूंगा ।" जगमोहन सपनों में जाता जा रहा था।
"थक जाओगे, हाथ पकड़े-पकड़े ।" माला हंसी ।
जगमोहन मुस्कुरा कर उसे देखता रहा ।
"तुम काम-वाम भी करते हो या नहीं। रोज तो यहां मंदिर में आ जाते हो। काम नहीं करते तो शादी नहीं करूंगी ।"
"चिंता मत करो । काम करता हूं । मेरी नौकरी शाम पांच बजे से रात तीन बजे तक होती है ।"
"कितना कमाते हो ?"
"दस हजार ।"
"फिर ठीक है । दस हजार में से तो, हम पैसा बचा भी लिया करेंगे...।"
बरसात इतनी तेज थी कि दस फुट के बाद देख पाना कठिन हो रहा था। पानी की बूंदे गिरने का शोर बहुत हो रहा था परंतु जगमोहन और माला को एक-दूसरे के अलावा होश ही कहां था। उनकी बातें, उनका जहान तो जैसे कहीं और बस रहा था। उनकी बातें उन्हें जैसे एक नई दुनिया में ले जा रही थी।
■■■
शाम पांच बजे जगमोहन बे-मन से कसीनों की ड्यूटी पर पहुंच गया था। वो माला के पास उसके साथ रहना चाहता था । परंतु जो काम में था, वो भी पूरा करना था। उसे माला के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा था । शायद आज न ही आता, परंतु माला ने कहा कि वो और नहीं रुक सकती, उसका भाई कभी भी लौट सकता है। दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे रहे और कसमें-वादों की दुनिया में घूमते रहे। जगमोहन जितना माला को देखता, जितना उससे बात करता, उतना ही माला में डूबता जा रहा था और माला का भी हाल जुदा नहीं था। वो भी जगमोहन से दूर होने को तैयार नहीं थी।
दिन भर होने वाली बरसात ने कोहरा और ठंड बढ़ा दी थी। पांच बजे ही अंधेरा घिर आया था। ठंड इतनी तीखी थी कि सीधी हड्डियों में घुसी जा रही थी। परंतु जगमोहन को सर्दी का एहसास नहीं था, जितना की माला का एहसास था। माला की सोचों में ऐसा खोया था कि मौसम का कोई प्रभाव उस पर नहीं पड़ रहा था।
रोज की तरह कसीनो आज भी जगमगा रहा था। नीली और लाल रोशनी में चमकता उसका नियोन साइन बोर्ड दूर से ही नजर आता था। मौसम की मार से बचने के लिए आज लोग छः बजे ही कसीनो में आना शुरू हो गए थे। कसीनो के भीतर सर्दी नहीं थी। वहां लगे हीटर शरीर को बहुत आराम दे रहे थे । हीटर साधारण वाले नहीं थे । ठंडी जगहों को गर्म रखने के लिए हीटर का इंतजाम अलग से किया जाता था जो कि देखने पर साधारण तौर पर नजर नहीं आता था ।
जगमोहन की मुलाकात ओम नाटियार से हुई ।
"तुम्हारे प्यार का क्या हाल है ?" नाटियार ने मुस्कुरा कर पूछा ।
जवाब में जगमोहन मुस्कुरा कर रह गया ।
आज मिले उससे ?"
"हां ।"
"नेपाली है ?"
"हां । बहुत खूबसूरत ।"
"आज सुबह मैंने अपनी पत्नी से पूछा कि प्यार क्या होता है। उसे तुम्हारे बारे में बताया कि तुम्हें प्यार हो गया है । जानते हो उसने क्या कहा ।"
"क्या ?"
"बोली, प्यार होता ही नहीं है । शरीर का आकर्षण होता है, अपॉजिट सैक्स के शरीरों का आकर्षण । वो भी तब तक रहता है, जब तक औलाद नहीं हो जाती । औलाद होते ही सब कुछ मशीनी ढंग से चलने लगता है । आदमी कमाता है । औरत घर और बच्चों को संभालती है । शारीरिक आकर्षक तो दोनों जाने भूल जाते हैं। शारीरिक भूख है जो कि कभी-कभार मिटा ली जाती है ।"
"मेरा प्यार ऐसा नहीं है ।" जगमोहन दृढ़ स्वर में कह उठा ।
"मेरी पत्नी का कहना है कि प्यार नाम की कोई चीज नहीं होती आदमी-औरत के बीच । सब बेकार की बातें हैं ।"
"तुम्हारी बातें सुनकर तो लगता है कि प्यार नसीब वालों को ही नसीब होता है ।"
"तुम पर तो प्यार का भूत चढ़ा बैठा है ।" नाटियार मुस्कुराया ।
"प्यार का भूत नहीं, प्यार है ।"
"तो शादी कब कर रहे हो ?"
"बहुत जल्दी। दो-तीन दिन में हिन्दुस्तान से मेरा भाई आने वाला है ।" जगमोहन में सोच-भरे स्वर में कहा--- "मेरे ख्याल में जनवरी के पहले सप्ताह हम शादी कर लेंगे । जगमोहन की आंखों में सपने तैरने लगे ।
"मुझे बुलाना मत भूलना । तोहफा लेकर आऊंगा ।" नाटियार हंस पड़ा--- "तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारा भाई आ रहा है ?"
"उसने वैसे भी आना था। वो कसीनो में काम करेगा । मैनेजर साहब ने मेरे भाई को काम देने का वादा किया है ।" जगमोहन बोला ।
"ऐसा क्या है जो मैनेजर साहब तुम पर फिदा हैं ।"
जगमोहन मुस्कुरा कर रह गया ।
"ठीक है, अब ड्यूटी की तरफ ध्यान दो ।" कहकर ओम नाटियार चला गया ।
जगमोहन ड्यूटी पर अपना मन लगाने की चेष्टा करने लगा ।
परंतु सिर पर सवार माला की यादें उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी । किचन में जाकर उसने कॉफी पी और कसीनो में पहुंचकर अपने काम को अंजाम देने लगा ।
ग्यारह बजे बाज बहादुर से सामना हो गया ।
"नमस्ते साहब जी ।" जगमोहन ने हाथ जोड़कर कहा ।
"कैसे हो जगमोहन ?" बाज बहादुर ने आदत के मुताबिक उसके कंधे पर हाथ रखा ।
"आपकी कृपा है साहब जी ।"
"काम पसंद आ रहा है ?"
"बहुत ।"
"दिल लगाकर काम करो । बहुत तरक्की करोगे ।" बाज बहादुर ने उसका कंधा थपथपाया ।
"साहब जी, मेरे भाई को नौकरी...।"
"तुम्हारा भाई काठमांडू आ गया क्या ?"
"आने वाला है ।"
"फिक्र मत करो। उसे सीधा मेरे पास ले आना। नौकरी मिल जाएगी कसीनो में, कहो तो होटल में नौकरी लगा दूं उसकी ?"
"साहब जी, कसीनो में ही उसकी ड्यूटी लगा देना। यहां पैसा ज्यादा मिलते हैं ।"
"ठीक है।" बाज बहादुर मुस्कुराया--- "तुम्हें खर्चे-पानी की तो कोई दिक्कत नहीं ।"
"तनख्वाह मिलने तक का खर्चा मेरे पास है ।"
"फिर भी जरूरत पड़े तो मुझसे कह देना ।"
"वो बदमाश फिर तो नहीं दिखे साहब जी ?"
"नहीं । मुझे उनकी परवाह नहीं ।"
"पुलिस को उनके बारे में नहीं बताया ?"
"गुरंग साहब ने मना कर दिया था कि इस मामले को जितना कम उछाला जाए, उतना ही बेहतर है ।" बाज बहादुर ने कहा ।
"एक बात कहूं साहब जी ।" जगमोहन मुस्कुरा कर बोला ।
"कहो ?" बाज बहादुर की निगाह जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी ।
"मुझे प्यार हो गया है ।"
"किससे ?" बाज बहादुर के होंठों से निकला ।
"माला से ।"
बाज बहादुर ने लम्बी सांस ली और हंस कर कह उठा ।
"मैंने समझा कहीं तुम्हें मुझसे प्यार हो गया है ।"
"माला बहुत अच्छी है साहब जी । मैं उससे शादी करूंगा ।"
"बधाई हो। तुम्हारी शादी पर मैं तुम्हें पांच हजार रुपए का तोहफा दूंगा ।" बाज बहादुर ने उसका कंधा थपथपाया--- "माला नेपाल की है ?"
"जी हां । वो बहुत खूबसूरत है ।"
"तुम्हारी तरह मुझे भी प्यार हुआ था और मैंने उससे शादी कर ली थी । आज वो मेरी पत्नी है ।" बाज बहादुर ने हंसकर कहा और ये कहते आगे बढ़ गया--- "अब सब कुछ भूल कर काम पर ध्यान दो ।"
■■■
आज भी धूप नहीं थी, परंतु मौसम साफ था । नीला आसमान नजर आ रहा था । सफेद बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े आसमान में तैर रहे थे । दूर पहाड़ों की चोटियों पर, चांदी की तरह सफेद बर्फ स्पष्ट दिखाई दे रही थी । मौसम ठंडा था । रह-रहकर तीव्र हवा के झोंके चल रहे थे। श्वेता मछंदर नाथ मंदिर में आज काफी लोग नजर आ रहे थे। एक टूरिस्टों की पूरी भरी बस आई थी, जिसकी वजह से बातों का शोर काफी उठ रहा था। कल हुई बरसात का असर अभी भी मौजूद था । मंदिर के बाग की घास गीली थी । बैंच अवश्य सूखे थे । जिन पर इक्का-दुक्का लोग ही बैठे थे ।
जगमोहन आज साढ़े ग्यारह बजे ही मंदिर में पहुंच गया था । उसका चेहरा मुस्कान से भरा और खुश नजर आ रहा था । उसे माला का खूबसूरत चेहरा देखने का बेचैनी से इंतजार था । मन में ढेरों बातें थी, जो माला से करना चाहता था । माला का सामीप्य पाने को वो बेकरार था। उसका हाथ थामने की सोच कर ही खुश हो रहा था मन में। कभी-कभार मुस्कान चेहरे पर आ जाती। बार-बार व्याकुलता से कलाई पर बंधी घड़ी को देख रहा था। कमीज-पैंट के ऊपर हल्के नीले रंग का स्वेटर पहना हुआ था । आते-जाते लोगों की तरफ उसका जरा भी ध्यान नहीं था । सिर्फ माला की सूरत ही जहन में तैर रही थी ।
आज माला वक्त पर आ गई ।
बारह बजे से दो-चार मिनट पहले ही पहुंची थी वो। देखता रह गया वो माला के सौंदर्य को ।
शरीर पर काला फूलों वाला सूट और ऊपर पीले रंग का स्वेटर पहन रखा था । इन रंगों में उसका चेहरा इंतहाई खूबसूरत लग रहा था । पांवो में सफेद बैली और गले में काला दुपट्टा लपेट रखा था। बालों की मोटी-सी लट उसके चेहरे पर झूल रही थी । वो आज कुछ उत्साह में लग रही थी ।
जगमोहन को देख कर मुस्कुराई उसके पास पहुंचते हुए उसने जगमोहन का हाथ थाम लिया। उसका इस तरह हाथ थाम लेना जगमोहन को बहुत अच्छा लगा ।
"तुम्हें देख लिया तो लगता है दुनिया पा ली ।" माला प्यार से कह उठी ।
जगमोहन अपलक-सा माला के खूबसूरत चेहरे को निहारने लगा ।
"ऐ-ऐसे क्या देख रहे हो ?" माला ने छेड़ने वाले लहजे में कहा ।
"तुम्हें ।" जगमोहन ने प्यार से कहा ।
"हाय राम । अब देखना बस भी करो ।" माला ने मुंह फुलाया ।
"आज बहुत खुश लग रहे हो ।"
"हां । बहुत खुश हूं मैं...।"
"अपने भाई से शादी की बात कर ली क्या ?"
"बंधु तो अभी लौटा ही नहीं। अच्छा बताओ, मैं घर पर क्या करके आई हूं ।" माला बच्चों की तरह बोली ।
"क्या करके आई हो ?"
"तुम बताओ ।"
"मुझे नहीं पता । तुम कह दो ।"
"पालक-पनीर की सब्जी बनाई । कोफ्ते भी बनाए, तुम्हारे लिए।"
"मेरे लिए ?"
"हां । चलो घर चलते हैं । वहां ढेर सारी बातें करेंगे । मैं तुम्हें गर्म-गर्म रोटी बनाकर खिलाऊंगी। बहुत मजा आएगा। उसके बाद गर्म मसाले वाली चाय बनाकर पिलाऊंगी । तुम रजाई में बैठना। खुले में भी बैठ सकते हो । बहुत खुली जगह है वहां । आओ घर चलते हैं । वहां तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा । खूब बातें करेंगे । वहां से पहाड़ बहुत सुंदर दिखते हैं । बहुत गहरी घाटी है वहां । मैं तो कभी भी घाटी में नहीं देखती । हाय राम मुझे तो डर लगता...।"
"तुम्हारा भाई वहां आ पहुंचा तो...।"
"कितने दिन से तो आया नहीं । आज ही आएगा क्या, तुम चलो न । मैंने कितने मन से तुम्हारे लिए खाना बनाया है ।" माला आग्रह भरे स्वर में उसका हाथ पकड़े कह उठी--- "आज तुम्हें मेरे घर चलना होगा ।"
"तुम्हारा भाई आ गया तो उसे बुरा...।"
"नहीं आएगा वो । तुम चलो तो ।" माला जगमोहन का हाथ पकड़े खींचती हुई कह उठी ।
जगमोहन होंठों पर मुस्कान लिए चल पड़ा ।
"तुम्हें अपने घर ले जाते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा है जगमोहन ।" माला हंस कर बोली ।
"मुझे भी अच्छा लग रहा है ।"
मंदिर से निकल कर दोनों सड़क के किनारे-किनारे आगे बढ़ गए । अब उन्होंने हाथ नहीं पकड़ रखे थे । साथ चलते हुए जगमोहन बार-बार उसके खूबसूरत चेहरे पर नजर मार लेता था।
"इस तरह बार-बार मुझे क्यों देख रहे हो ।" माला तुनककर कह उठी ।
"जाने क्यों, तुम्हारे चेहरे से नजर नहीं हटती माला ।" जगमोहन बोला ।
"सच ?" माला मुस्कुरा पड़ी ।
"तुम में कुछ है । क्या है, मैं नहीं समझ पाया । तुम पास होती हो तो दुनिया भूल जाता हूं ।"
"देखो, शादी के बाद कहीं नौकरी मत छोड़ देना । घर चलाने के लिए पैसा बहुत जरूरी होता है । कहीं बाद में तुम कहो कि, माला तुम्हें देखने की खातिर में नौकरी छोड़ कर घर बैठ गया हूं।" एकाएक माला ने जैसे उसे पक्का करना चाहा ।
जगमोहन हंसकर रह गया ।
"हंसी क्यों ?" माला ने मुंह बनाया--- "मैंने ऐसा क्या कह दिया।"
"तेरी भोली बातों ने मुझे पागल कर दिया है । जानती हो, मेरा भाई नेपाल आ रहा है ।"
"भाई ? हमारी शादी के लिए ?" माला खुशी हो उठी ।
"हां ।"
"कब ?"
"दो-तीन दिन में आ जाएगा ।"
"अच्छा, क्या नाम है तुम्हारे भाई का ?"
"देव ।"
तभी माला ने गहरी सांस ली ।
"क्या हुआ ?" जगमोहन ने पूछा ।
"तुम्हारा भाई आने वाला है और मैंने अभी तक बंधु से शादी की बात भी नहीं की। वो जाने कब आएगा ।"
"तुम्हारे भाई के पास फोन तो होगा ।"
"मोबाइल फोन ? वो तो है ।"
"वो ही । तुम फोन पर अपने भाई से बात करो और उसे आने को कह दो ।"
"कैसे कह दूं । उसके फोन का नम्बर मुझे याद नहीं। लम्बा-सा नम्बर है । एक कागज पर लिखा था, वो कागज भी नहीं मालूम किधर गया ।" माला ने कहा--- "आज फोन नम्बर वाला कागज ढूंढूंगी ।"
"तुम्हारा भाई जाता कहां है "
"पता नहीं ।"
"वो करता क्या है ?"
"मैं तुम्हारे साथ बंधु की बात नहीं करना चाहती । हम अपनी बातें करेंगे ।" माला कह उठी ।
जगमोहन ने माला के चेहरे पर निगाह मारकर कहा ।
"क्या बात है, जब भी तुम्हारे भाई की बात करता हूं तुम मुझे रोक देती हो ।"
"यूं ही ।" माला बोली ।
"तुम मुझसे कुछ छिपा रही हो ।"
"मैं बंधु की बातें तुमसे नहीं करना चाहती । तुम उसकी बात मत करो मुझसे ।"
"कुछ मुझे भी तो पता चले ।"
"मैं उसे ज्यादा पसंद नहीं करती ।"
"क्यों ?"
"वो है ही ऐसा । जब घर पर होता है तो रोटी-सब्जी बनाने तक ही उससे मतलब रखती हूं । वैसे भी घर पर टिकता ही कहां है। कभी-कभार ही घर पर रहता है । छोड़ो, कोई और बातें करो ।"
■■■
आबादी से कुछ हटकर, छोटी-सी पहाड़ी पर वो अकेला मकान था । मकान क्या, काफी शानदार जगह थी वो । बीस मिनट में वे वहां पहुंच गए थे । थोड़ा-सा सुनसान रास्ता भी पड़ता था । वहां दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ लिया था ।
उस मकान को देखकर स्पष्ट पता लग रहा था कि वो पुराना बना हुआ है ।
आठ कमरे नीचे थे और दो कमरे छत पर भी बने दिखे । लोहे का पुराना गेट लगा था। जिसके भीतर काफी खुली जगह के बाद मकान शुरू होता था। मकान के बाहर ही छोटा-सा छः फुट लम्बा झूला था, जिस पर धूप में बैठा जा सकता था । वहां पास ही फूलों के गमले रखे हुए थे। दाईं तरफ तो पहाड़ी का हिस्सा था, परंतु बाईं तरफ गहरी खाई थी जिस पर कंटीले तारों के बाड़ लगी रखी थी। वहां से दूर बर्फ से ढके पहाड़ों का दृश्य बहुत ही सुंदर नजर आ रहा था। कुछ मकान वहां से काफी दूर बने दिख रहे थे। इस पहाड़ी की तरफ लम्बी-पतली-सी सड़क आती थी। बहुत ही शांत वातावरण था यहां ।
"ये तुम्हारा घर है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"हां। ये ही है। ये तो पापा-मां ने बनवाया था, वरना बंधु की हिम्मत कहां जो इतना बड़ा घर बना पाता ।"
"तुम्हारे पापा और मां को क्या हुआ था ?"
"उनकी कार पहाड़ में गिर गई थी । तब मैं आठ साल की थी ।" माला में गहरी सांस ली ।
"ओह, बुरा हुआ ।"
"आओ, मैं तुम्हें अपना घर दिखाती हूं ।" माला हाथ पकड़े जगमोहन को घर के भीतर ले गई। वो सारा घर, कमरों के दरवाजे खोल-खोलकर खुशी से दिखाने लगी ।
सब कुछ था घर में ।
जरूरत का हर सामान ।
माला अच्छी जिंदगी जी रही थी ।
पन्द्रह मिनट तक अपना घर दिखाती रही जगमोहन को, फिर बोली ।
"अब मैं तुम्हें गर्मा-गर्म रोटियां बना कर खिलाती...।"
"बना लो । हमें इकठ्ठे खाएंगे " जगमोहन प्यार से बोला ।
"नहीं । मैं तुम्हें गर्मा-गर्म एक-एक करके बनाकर खिलाऊंगी । पालक पनीर और कोफ्ते बना रखे हैं । तुम बताना कि मैं खाना कैसा बनाती हूं ।" माला ने प्यार से जगमोहन को देखते हुए कहा ।
"तुम जैसा भी बनाती हो, मुझे पसंद है ।"
"ऐसे नहीं, खाकर बताना ।" माला बोली--- "अब कहीं भी बैठ जाओ, जो जगह तुम्हें पसंद हो । मैं किचन में जा रही हूं और तुम्हारा थाल तैयार करके, तुम्हारे पास ले आऊंगी ।"
माला किचन में पहुंची ।
जगमोहन भी उसके पीछे किचन में पहुंच गया ।
"तुम आओ न ।" माला मुंह फुला कर बोली--- "मैं तुम्हें आराम से बैठा कर खिलाऊंगी ।"
"मैं यहीं रहूंगा । तुम्हें काम करते देखूंगा ।" जगमोहन मुस्कुराया।
"ऐसे नहीं। शादी के बाद ऐसा करना। अभी नहीं। मुझे शर्म आती है ।"
जगमोहन किचन से बाहर निकल आया । ड्राइंग रूम में पहुंचा। ये जगह बड़ी थी । एक तरफ आग जलाने वाले अंगीठी थी और चिमनी ऊपर तक जा रही थी। सोफा रखा था, परंतु वो पुराना हो चुका था । वो कमरों में घूमने लगा । एक कमरे में व्हिस्की की महंगी बोतलें पड़ी दिखीं ।
पुनः सारा घर घूमने के बाद वो वापस किचन में पहुंचा ।
"सब्जियां गर्म हो गई ।" माला तवे पर रोटी सेकते कह उठी--- "पांच मिनट में थाल लाई ।"
"तुम्हारा घर मुझे पसंद आया माला ।"
"अब ये मत कहना कि शादी के बाद तो इसी घर में रहोगे । बंधु नहीं रहने देगा ।" माला कह उठी ।
जगमोहन मुस्कुरा पड़ा ।
वो मकान से बाहर निकला और खुले में आ गया । कुछ पल हर तरफ नजरें घुमाता रहा फिर कंटीली तारों की बाड़ की तरफ बढ़ गया । जिधर घाटी थी वहां पास पहुंचकर घाटी में झांका तो वो काफी गहरी दिखी । नीचे कहीं, दूर झरना बहता भी दिखा ।
जगमोहन वहां से वापस पलट आया ।
तभी माला हाथ में थाल पकड़े बाहर दिखाई दी ।
"तुम यहां हो और मैं तुम्हें सारे घर में ढूंढती फिर रही हूं ।"
जगमोहन ने नजरें घुमा कर माला को देखा ।
उसने माला को झूले पर थाल रखते देखा और वो ऊंचे से बोली।
"खाना शुरू करो । मेरी रोटी जल रही है ।" कहने के साथ ही वो वापस भीतर चली गई ।
जगमोहन झूले के पास पहुंचा और वहीं बैठ कर खाना खाने लगा। सब्जियां बढ़िया थी । ये जानकर उसे खुशी हुई कि माला इतना बढ़िया खाना बनाती है । माला दूसरी रोटी भी दे गई थी ।
तभी जगमोहन की निगाह बाहरी गेट पर पड़ी तो खाना, खाना रुक सा गया । खुले गेट से काले रंग की एक कार भीतर तक प्रवेश कर रही थी। उसकी नजरें कार पर ही टिकी रह गई । कार भीतर आई और कम गति से उसकी तरफ आने लगी । जगमोहन झूले पर बैठा कार को देखता रहा । खाना भूल चुका था वो । कार पास आकर रुकी। पीछे का दरवाजा खुला और दो व्यक्ति बाहर निकले। वो तीस साल के होंगे । दोनों नेपाली थेर। दोनों की तीखी निगाह जगमोहन पर थी । आगे का दरवाजा खुला और पच्चीस वर्ष के करीब की उम्र का युवक बाहर निकला ।
तभी कार का इंजन बंद होने की आवाज आई, फिर ड्राइविंग डोर खुला और जो युवक बाहर निकला वो पच्चीस-तीस के भीतर का भी हो सकता था । वो भी नेपाली था । मैली हो रही जींस की पैंट और काली लेदर की जैकिट पहनी थी, जो कि आगे से खुली थी। लाल रंग की कमीज पहन रखी थी उसने । शेव कुछ बड़ी हुई थी और सिर्फ के बाल छोटे थे । वो हिराकत भरी निगाहों से जगमोहन को देखता उसकी तरह बढ़ा ।
जगमोहन झूले से खड़ा हो गया ।
"वो पास पहुंचा और जगमोहन को घूरने के बाद झूले पर पड़े खाने के थाल को देखा ।
"वाह, पालक-पनीर । कोफ्ते ।" उसने कड़वे स्वर में कहते हुए थाल उठाया और पड़ी रोटी को खाना शुरु कर दिया--- "तो यहां पर पूरी मौज उड़ाई जा रही है । गोरखा ।"
एक आदमी उसके पास आ पहुंचा ।
"ये कुत्ता मुझे पहचाना-सा लग रहा है, तुझे भी ऐसा लगता है क्या ?"
"गोरखा ने जगमोहन को देखा, फिर इंकार में सिर हिलाया ।
"मैंने इससे पहले कभी नहीं देखा ।"
"तो फिर पहली नजर में ही, ये मुझे देखा हुआ चेहरा क्यों लगा ?" वो खाता फिर बोला ।
जगमोहन शांति से इन लोगों को देख रहा था
तभी पीछे से एक पास आता कह उठा ।
मुझे भी ये पहचाना-सा लग रहा है ।"
"देखा ।" उसने गोरखे से कहा--- "पदम सिंह को भी पहचाना-सा लग रहा है तो कोई बात होगी ही ।"
"कौन हो तुम ?" जगमोहन बोला ।
उसने थाल को वापस झूले पर फेंका और जोरदार घूंसा जगमोहन के पेट में मारा ।
जगमोहन पेट पकड़कर दोहरा होता चला गया ।
"साले, मेरे घर में बैठकर खाना खा रहा है और पूछता है कौन हूं मैं । बंधु शेरपा को नहीं पहचाना, जिसका माल तू उड़ा रहा है।" उसने कहने के साथ ही जगमोहन को धक्का दिया तो जगमोहन झूले पर पड़े बर्तनों पर जा गिरा । खुद को संभाला और शांत निगाहों से बंधु शेरपा को देखने लगा ।
बंधु शेरपा ने जहर बुझी निगाहों से उसे देखते सिगरेट सुलगाई।
"इस हरामी को खड़ा कर ।" बंधु शेरपा ने कश लेते कहा।
पदम सिंह ने जगमोहन को बाहं से पकड़ कर उसे झूले से उठाया ।
तभी बंधु शेरपा की ठोकर उसके पेट में आ लगी ।
जगमोहन के होंठों से हल्की-सी चीख निकली और वो नीचे गिरता चला गया । बंधु शेरपा ने अपना जूता जगमोहन के पेट पर रखा और दबाव बढ़ाता कह उठा ।
"इसी पेट में जा रहे थे पालक-पनीर और कोफ्ता । साले मैं तेरा पेट ही फाड़ दूंगा ।" फिर वो नीचे झुका और दांत पीसकर उठा--- "मेरे पीछे से तुम लोग यहां मौज मस्ती करने में लगे हो। खुद--- तुम तो...।"
"बंधु ।" तभी माला चीखती हुई बाहर निकली--- "ये क्या कर रहा है...।"
"पकड़ साली को ।"
गोरखा ने झपट्टा मारा और आगे बढ़ती माला की बांह पकड़ कर मरोड़ दी ।
माला कराह कर चीखी ।
"ये सब मत करो बंधु। मैं इससे प्यार करती हूं । हम शादी करने वाले हैं ।"
बंधु शेरपा तड़पकर हटा और पास पहुंचकर माला के गाल पर चांटा मारा ।
"हरामजादी, मेरे पीछे से गुलछर्रे उड़ाते रहती है तू । काट कर फेंक दूंगा तुझे ।"
माला चीख उठी ।
जगमोहन तड़पकर उठा कि पदम सिंह ने रिवॉल्वर निकालकर उसकी कमर में लगाते कहा---
"ज्यादा होशियारी मत दिखा । वो भाई-बहन का मामला है ।"
"मैं माला से प्यार करता हूं ।" जगमोहन ने बंधु से कहा--- "हम शादी करने जा रहे हैं ।"
बंधु शेरपा दांत भींचकर पलटा और खतरनाक नजरों से जगमोहन को घूरने लगा।
"भगवान के लिए बंधु इसे कुछ मत कह ।" माला की आंखों से आंसू बह निकले ।
बंधु जगमोहन के करीब आया और जोरदार घूंसा उसके चेहरे पर मारा ।
जगमोहन तड़प उठा ।
पदम सिंह ने अभी भी उसकी कमर से रिवॉल्वर लगा रखी थी।
"अपनी बहन की शादी मैं वहीं करूंगा जहां मैं चाहूंगा और माला की शादी मैं अपने दोस्त के साथ फिक्स कर आया हूं ।
"नहीं बंधु ।" जगमोहन ने तड़पकर कहना चाहा ।
"बंधु मैं जगमोहन से ही शादी करूंगी ।" माला तड़पकर कह उठी ।
गोरखा ने अभी तक माला की बांह मरोड़ रखी थी ।
"जगमोहन । हूं तो तेरा नाम जगमोहन है ।" बंधु ने कड़वे स्वर में कहा और जगमोहन के गाल पर थप्पड़ मारा ।
जगमोहन का सिर झनझना उठा ।
"उसे मत मार बंधु, मत मार, वो मेरा प्यार है। पंडित जी ने कहा था कि जो मेरा पति बनेगा, उससे पहली मुलाकात श्वेता मछंदर नाथ मंदिर में होगी ये मुझे मछंदर नाथ मंदिर में ही मिला था । ये ही मेरा पति...।"
"चुप कर हरामजादी ।" बंधु माला की तरफ पलट कर गुर्रा उठा।
माला सहम-सी गई ।
"तेरी शादी मैं फिक्स कर आया हूं । दस दिन में ही तेरी शादी कर...।"
"नहीं, मैं जगमोहन से ही शादी करूंगी ।"
"इस हरामजादी को भीतर ले जा गोरखा । नहीं तो मर जाएगी मेरे हाथ से ।"
"चल ।" गोरखा माला की बांह पकड़कर, उसे खींचता बोला ।
"मैं नहीं जाऊंगी । मुझे जगमोहन के पास ही...।"
तभी गोरखा का हाथ घूमा और माला के गाल पर जा पड़ा ।
जगमोहन ने तड़प कर आगे बढ़ना चाहा ।
पदम सिंह की रिवॉल्वर तेजी से कमर में चुभी ।
"होशियारी मत दिखा ।" पदम सिंह गुर्राया--- "नहीं तो गोली मार दूंगा ।"
जगमोहन दांत भींचकर खड़ा रह गया ।
माला की आंखों से आंसू बह रहे थे ।
"धीमे हाथ चला गोरखा । शादी करनी है इसकी । दांत-वांत न टूट जाए ।" बंधु कड़वे स्वर में बोला ।
गोरखा माला को खींचते हुए मकान के भीतर ले जाता गया ।
"वो बहन है तुम्हारी ।" जगमोहन अपने गुस्से पर काबू पाता कह उठा--- "तुम उसके साथ कैसे सलूक कर रहे हो ।"
"अच्छा ।" बंधु व्यंग से भरे कड़वे स्वर में बोला--- "अब तू मुझे बताएगा कि मुझे माला से कैसे बात करनी है ।"
"तुम ।"
"तो बहुत मौज उड़ाई, मेरी बहन के साथ तुमने ।"
"क्या बकवास कर रहे...।"
उसी पल बंधु का घूंसा जगमोहन के पेट में लगा ।
जगमोहन कराह कर दोहरा हुआ तो बंधु ने उसके सिर के बालों से पकड़ कर उसे सीधा किया ।
"कब फांसा था मेरी बहन को ?"
"ऐसी भाषा का इस्तेमाल मत...।"
"बता कब फांसा था ? कब से चल रहा है ये सब ?"
"कुछ नहीं चल रहा ।" जगमोहन गुस्से से बोला--- "हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी...।"
बंधु का घूंसा पुनः उसके पेट में पड़ा ।
जगमोहन पीड़ा से दोहरा हो गया ।
"बता कब फांसा था मेरी बहन को ?"
"त-तीन दिन हो गए ।" जगमोहन पेट थामे कह उठा ।
"सिर्फ तीन दिन ?" बंधु हैरानी से कह उठा--- "तीन दिन में मामला इतना आगे पहुंच गया कि माला तुझे घर लाकर खाना खिलाने लगे। हरामजादे झूठ बोलता है। ये तो महीनों का मामला लगता है, सच बता...।" बंधु गुर्रा उठा ।
"तीन दिन ही हुए हैं ।"
"ये तो बहुत हैरानी वाली बात है कि तीन दिन में तीस सीढ़ियां चढ़ गए। बहुत तेजी दिखाई । खूबसूरत है न माला ।"
जगमोहन ने गुस्से भरी निगाहों से बंधु को देखा ।
"बोल, खूबसूरत है न, तभी तो तूने उसे फांसा...।"
"तुम्हें अपनी बहन के बारे में इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए ।" जगमोहन कह उठा ।
"साला उपदेशक ।" बंधु का थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा और पदम सिंह से बोला--- "ये बहुत बड़ा हरामजादा लगता है । नेपाली भी नहीं है । हिन्दुस्तान का लगता है । इसे भीतर वाले कमरे में ले चल । बहुत बातें करनी है इससे ।"
"चल ।" पदम सिंह उसकी कार से रिवॉल्वर लगाए बोला ।
"तेरे को याद आया कि इसे कहां देखा है ।"
"नहीं ।" पदम सिंह बोला--- "याद आ गए जाएगा ।"
"याद कर । जिसे हम पहचानते हो, वो तो कभी भी ठीक बंदा नहीं हो सकता ।" कड़वे स्वर में बंधु ने कहा ।
"चल अंदर ।" पदम सिंह ने जगमोहन की कमर से लगाए रिवॉल्वर से धक्का दिया ।
जगमोहन ने गर्दन घुमा कर बंधु शेरपा को देखते हुए कहा ।
"देखो, तुम मुझे और माला को गलत समझ रहे हो । हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं । तुम्हारी हां की जरूरत है और माला तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी कि तुमसे बात कर सके ।"
"अच्छा ।" बंधु ने जहरीली निगाहों से जगमोहन को देखकर कहा ।
"यहां कुछ भी गलत नहीं हो रहा, मैं और माला...।"
"विजय ।" बंधु ने पुकारा ।
अब तक कार के पास खड़ा तीसरा भी करीब आ पहुंचा ।
"ये भीतर जाने से इंकार करे तो इसे गोद में उठाकर ले चल ।" बंधु ने विजय से कहा ।
विजय ने आगे बढ़कर जगमोहन की कमीज का कॉलर पकड़ा।
"क्यों मजनू की औलाद। हाथ-पांव तोड़ें क्या?" विजय ने खतरनाक स्वर में कहा ।
"मुझे गलत क्यों समझ रहे...।"
तभी विजय ने धड़ाधड़ दो घूंसे जगमोहन के पेट में जड़े। इससे पहले कि जगमोहन दोहरा होता विजय ने जगमोहन को एक झटके के साथ कंधे पर लादा और भीतर लेता चला गया । पीछे पदम सिंह और बंधु शेरपा चल पड़े ।
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