मैं वापिस मौकाएवारदात पर पहुंचा ।
बंगले में मुझे पुलिस फोर्स से सम्बन्धित कई व्यक्ति कार्यरत दिखाई दिये ।
लाश अभी भी पलंग पर मौजूद थी लेकिन अब उसे एक चादर से ढक दिया गया था ।
बैडरूम में मौजूद ए सी पी तलवार से मेरी निगाह मिली तो उसने मुझे इशारे से बाहर ही रहने का आदेश दिया ।
सहमति में सिर हिलाता मैं चौखट पर ठिठका रहा ।
उस घड़ी तलवार रूबी गोमेज से मुखातिब था ।
जरूर उसी ने लाश बरामद की थी क्योंकि पुलिसियों और टैकनिशियनों के अतिरिक्त वहां सिर्फ रूबी ही थी । उस घड़ी वो टाइट ब्लू जीन्स और एक काली स्कीवी पहने थी और चेहरे पर काबिज बदहवासी के बावजूद निहायत हसीन लग रही थी ।
“रोज इसी वक्त आती हो ?” - तलवार पूछ रहा था - “सात सवा सात बजे ?”
“नहीं ।” - रूबी कांपती आवाज से बोली - “आज अर्ली आया ।”
“क्यों ?”
“मैडम अर्ली आने को बोला ।”
“क्यों ?”
“मालूम नहीं । मैडम बताया नहीं ।”
“तुमने पूछा भी नहीं ?”
“हम कैसे पूछेगा ? मैडम बताना मांगता तो बताता, नहीं बताना मांगता तो नहीं बताता ।”
“हूं ।”
“हम बाहर फाटक खुला देखा तो तभी समझ गया कि कुछ गड़बड़ । पण मैडम उधर मरा पड़ा होयेंगा ये हम ड्रीम में भी नहीं सोचा ।”
वो रोने लगी ।
“हौसला रखो ।” - तलवार शुष्क स्वर में बोला - “रोने धोने से कुछ नहीं बनने वाला ।”
रूबी जीन्स की जेब से नन्हा सा रूमाल निकाल कर आंसू पोंछने लगी ।
“मैडम की प्राइवेट लाइफ के बारे में क्या जानती हो ?” - तलवार सख्ती से बोला ।
“कुछ नहीं ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“हम इधर ओनली मेड होता । मैडम हम से अपना प्राइवेट लाइफ डिसकस करना नहीं मांगता था । हम इधर कुकिंग करता सर्विस करता क्लीनिंग करता, जनरल हैण्डीमैन का जॉब करता । दैट्स आल । मैडम बॉस होता, हम सर्वेंट होता । मैडम आर्डर करता, हम आर्डर फालो करता । दैट्स आल ।”
मैं जानता था कि कम से कम उस बाबत रूबी सच नहीं बोल रही थी । हीरा और उसमें मालकिन नौकर वाला नहीं, दोस्ती वाला रिश्ता था, बल्कि बहनापा था ।
“मैडम कभी कोई पर्सनल बात तुम से नहीं करती थी ?”
“नैवर ।”
“कभी अपने फ्रेंड का जिक्र करती हो ?”
“नैवर ।”
“सब का न सही, किसी का तो जिक्र कभी करती होगी ?”
“नैवर ।”
“इस राइटिंग टेबल के दराजों को” - तलवार ने कोने में लगी टेबल की ओर इशारा किया - “मैडम ताला लगा के नहीं रखती थीं ?”
“बराबर रखता था ।” - रूबी बोली - “कभी ओपन नहीं छोड़ता था ।”
“क्यों ?”
“हम कैसे जानेगा सर ?”
“दराजों में क्या रखती थी मैडम ?”
“हम कैसे जानेगा - सर ! हम तो ड्राअर्स आलवेज क्लोज देखा कभी ओपन नहीं देखा ।”
“कभी उत्सुकता नहीं हुई ये जानने की कि दराजों में क्या था ?”
“हम समझा नहीं, सर ।”
“कभी दराज खोलने की कोशिश नहीं की ?”
“नैवर, सर ।” - रूबी तत्काल यूं बोली जैसे उस ख्याल से ही उसे दहशत हो रही हो - “हम तो ऐसा कभी सोचा भी नहीं ।”
“फिर तुम्हें ये कैसे मालूम है कि दराजों में ताला लगा होता था ? तुमने जरूर कभी दराजों को खींच कर खोलने की कोशिश की होगी !”
“नैवर सर ।”
“फिर ताले की कैसे खबर है ?”
“हम सैवरल टाइम्म मैडम को की से लॉक को ओपन और क्लोज करते देखा ।”
“चाबी कहां रखती थीं, मैडम ?”
“हम को नहीं मालूम ।”
“दराज के ताले का बारीक मुआयना ये बताता है कि हाल ही में किसी ने किसी तीखे औजार से इसे जबरन खोला था । चाबी के छेद के गिर्द ताजी बनी खरोंचे नंगी आंखों से नहीं दिखाई देतीं लेकिन मैग्नीफाइंग ग्लास से साफ देखी जा सकती हैं ।”
रूबी खामोश रही ।
“दराजों में झाड़ू फिरा हुआ है एकदम ।” - तलवार यूं बोला जैसे अपने आप से बात कर रहा हो - “कहीं कोई कागज पत्तर वगैरह नहीं । कोई चिट्ठी पतरी, कोई पुराना बिल, कोई स्टेशनरी आइटम । कुछ नहीं । यानी कि इन दराजों को खोलने के पीछे हत्यारे का जो मकसद था वो पूरा हो गया था । दराजों में जो कुछ भी सामान था, उसी की तलाश में वो था और उसकी तलाश कामयाब हुई थी । इसी वजह से उसने दराजों को वापिस ताला लगाने की भी कोशिश नहीं की थी । तुमने कल यहां की सफाई की थी ?”
“क्या बोला, सर ?” - रूबी हड़बड़ा कर बोली ।
“मैंने पूछा है तुमने कल यहां की सफाई, झाड़-पोंछ वगैरह की थी ?”
“बराबर किया था । ऐज आलवेज ।”
“तब तुम्हें ऐसा लगा था कि दराजों के साथ कोई छेड़छाड़ की गयी थी ?”
“हम कुछ नोटिस नहीं किया, सर । हम को टेबल, ड्राअर्स, लॉक, सब एकदम यूजुअल मालूम पड़ा ।” - वो एक क्षण खामोश रही और फिर बोली - “बट सर, जब आप बोलता कि ये काम मर्डरर किया तो कल...कल की होल पर स्क्रैचिज कैसे होएंगा ?”
“मैंने कहा है” - तलवार झुंझला कर बोला - “कि ये काम हत्यारे का हो सकता है । हो सकता है । है नहीं । अन्डरस्टैण्ड !”
“यस ।” - रूबी भयभीत भाव से बोली ।
तलवार कुछ क्षण और उससे इधर-उधर के, बेमानी सवाल पूछता रहा और फिर उसने उसे डिसमिस कर दिया ।
फिर उसकी तवज्जो मेरी तरफ गयी । वो बैडरूम से निकलकर बाहर मेरे करीब पहुंचा ।
मैंने उसका अभिवादन किया ।
“तुम यहां क्या कर रहे हो ?” - वो बोला ।
“हीरा मेरी फ्रैंड थी ।” - मैं सहज भाव से बोला - “उससे मिलने आया था । जानकर दिल हिल गया कि उसके साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था ।”
“तुम्हें क्या पता मरने वाली कौन है? लाश की सूरत तो देखी नहीं तुमने ?”
“रूबी के बयान से अंदाजा लगाया ।”
“तुम रूबी को भी जानते हो ?”
“हां । बतौर हीरा की मेड मैं रूबी को जानता हूं । लाश इसी ने बरामद की थी ?”
“हां । और इसी ने पुलिस को खबर की थी ।”
“कत्ल कैसे हुआ ?”
“शूट कर दिया किसी ने । गोली ऐन दिल में से गुजर गयी मालूम होती है ।”
“हथियार ?”
“नहीं मिला । लेकिन गोली से बना सुराख बताता है कि गोली पैंतालीस कैलीबर की गन से चलाई गयी थी । अलबत्ता तसदीक तभी होगी जब पोस्टमार्टम के बाद गोली बरामद होगी ।”
“आई सी ।”
“लेकिन” - वो मुझे घूरता हुआ बोला - “तुम इतने सवाल क्यों पूछ रहे हो ?”
“जनाब” - मैं विनम्र स्वर में बोला - “मैं एक प्राईवेट डिटेक्टिव हूं और मरने वाली मेरी दोस्त थी ।”
“दोस्त !”
“खास । जिगरी ।”
“दैट्स वैरी गुड । फिर तो तुम से काफी काम की बातें मालूम हो सकती हैं मरने वाली के बारे में ।” - उसने मेरी बांह थामी और बोला - “आओ, यहां से बाहर चलें ।”
हम दोनों लॉन में आ गये ।
मैंने जेब से अपना डनहिल का पैकेट निकाल कर उसे सिगरेट पेश किया जो कि उसने कबूल कर लिया । एक सिगरेट मैंने भी अपने होंठो से लगाया और फिर पहले उसका और फिर अपना सिगरेट सुलगाया ।
मुझे ये बात बड़ी राहत पहुंचा रही थी कि फिलहाल वो मेरे साथ पुलिसिया फूं फा से नहीं पेश आ रहा था ।
“सब से क्रूर” - वो सिगरेट का एक कश लगाता हुआ बोला - “सब से जघन्य अपराध मुझे कत्ल लगता है । इस लड़की का हत्यारा मेरी पकड़ में आ गया तो मैं खुद उसे गोली मार दूंगा ताकि कमीने की कोर्ट से कम सजा पा कर फूट जाने की कोई गुंजायश ही न रहे ।”
मैं खामोश रहा । मैं जानता था वो उसका रुतबा नहीं, उसका गर्म खून बोल रहा था ।
“कब से जानते थे मरने वाली को ?”
“साल से ऊपर हो गया है ।” - मैं बोला ।
“कैसे जानते थे ?”
मैंने उसे बताया कि कैसे मैं बम्बई से दिल्ली आते वक्त ट्रेन में उससे मिला था और कैसे दिल्ली में स्थापित होने में मैंने उसकी मदद की थी ।
“वो कैब्रे डांसर थी ।” - तलवार बोला ।
“तो क्या हुआ ?” - मैं बोला - “रोजी रोटी के लिये कोई भी पेशा अख्तियार किया जा सकता है । जिस अरूचि से आपने उसके कैबरे डांसर होने का जिक्र किया, उससे लगता है कि इस पेशे के लिये आपके मन में कोई अच्छी राय नहीं ।”
“पब्लिक में लार टपकाते ग्राहकों के आगे बदन उघाड़ना....”
“मना नहीं है हमारे संविधान में । कानून की कोई धारा नहीं भंग होती इससे । दिस इज ए फ्री कन्ट्री । रिमैम्बेर ।”
“तरफदारी कर रहे हो उसकी ?”
“नहीं । ये कोशिश कर रहा हूं कि मरने वाली के बारे में शुभ-शुभ बोला जाये । ऐसा ही विधान है हमारी सोसायटी में ।”
“सोसायटी के विधानों पर अमल करके कातिल का पता नहीं लगता । इसके लिये गड़े मुर्दे भी उखाड़ने पड़ते हैं और मकतूल की स्याह सफेद तमाम करतूतें भी उजागर करनी पड़ती हैं ।”
“यू आर बॉस ।” - मैं असहाय भाव से कन्धे उचकाता हुआ बोला - “यू नो बैटर, सर ।”
“मेल मुलाकात रेगुलर थी ?”
“हीरा से ?”
“हां ।”
“रोजमर्रा की तो मुलाकात नहीं थी अलबत्ता गाहे-बगाहे हो ही जाती थी ।”
“रोजमर्रा की मुलाकात क्यों नहीं थी ?”
“उसकी जिंदगी के अपनी मसरूफियात थी जिनकी वजह से रोजमर्रा की मुलाकात मुमकिन नहीं थी ।”
“और क्या मसरूफियात थीं ? तुम्हारे जैसे और भी मेल फ्रैंड्स थे उसके ?”
“होंगे ही । क्या बड़ी बात है ?”
“तुम कितनों को जानते हो ?”
“मैं तो किसी को भी नहीं जानता ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“तुम हीरा के फ्रेंड थे, उसी ने अपने किन्हीं और फ्रैंडस से तुम्हें मिलवाया हो सकता है ।”
“ऐसा कभी नहीं किया था उसने ।”
“तुम्हारा अफेयर था उससे ?”
“अफेयर !”
“लव अफेयर ! माशूक थी वो तुम्हारी ?”
“नहीं । ऐसा कुछ नहीं था हमारे बीच ।”
“क्यों नहीं था ? इतनी खूबसूरत लड़की से इतनी रंगीन, इतनी तनहा जगह तुम मिलने आते थे, फिर भी तुम्हारे मन में उसके लिये कभी कोई ख्वाहिश न जागी ?”
“ख्वाहिश का क्या है, जनाब ! वो तो दुनिया की तमाम खूबसूरत लड़कियों के लिये जाग सकती है । लेकिन सिर्फ ख्वाहिश करने से ही कुछ हासिल थोड़े ही हो जाता है । इसीलिए फिरंगियों ने कहा है कि इफ विशिज वर होर्सिज, एवरीबोडी वुड हैव बिन राइडिंग देम ।”
“बड़ा ऐश्वर्यशाली रहन-सहन था मरने वाली का । इतना बड़ा फार्म । बीच में इतना खूबसूरत बंगला । कीमती फर्नीचर । तमाम आधुनिक सुख-सुविधाएं । जबकि कारोबार सिर्फ कैबरे डांसिंग का ।”
“क्या कहना चाहते हो, जनाब ?”
“कितना पैसा कमाती थी वो कैबरे करके ?”
“पता नहीं । मैंने कभी पूछा नहीं ।”
“मुझे कोई अंदाजा बताओ, कैबरे डांसर क्या कमाती होगी ?”
“मुझे कोई अंदाजा नहीं ।”
“लगाओ कोई अंदाजा । पांच हजार रूपये महीना ! दस हजार ! बीस ! और ज्यादा !”
“क्या कहना चाहते हो जनाब ?”
“तुम्हें मालूम है मैं क्या कहना चाहता हूं ! तुम्हारे इर्द-गिर्द जो ऐश्वर्य यहां बिखरा दिखाई दे रहा है, वो किसी कैबरे डांसर की कमाई से मुमकिन नहीं । तुम यहां अक्सर आते थे । ऊपर से डिटेक्टिव हो । और ऊपर से मरने वाली तुम्हारी दोस्त थी । क्या ये मानने वाली बात है कि मरने वाली के आनन फानन बन गए इतने ऊंचे लाइफ स्टाइल ने तुम्हारे मन में कोई उत्सुकता न जगाई हो और उस से पूछ कर या उससे पूछे बिना, तुमने ये जानने की कोशिश न की हो कि इतना पैसा उसके पास कहां से आता था ।”
“उत्सुकता तो जागी थी मेरे मन में ।” - मैं कठिन स्वर में बोला - “लेकिन मैंने यही सोचा था कि मुझे क्या ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो । हकीकत ये है कि तुम्हें बखूबी मालूम है कि मरने वाली कैबरे डांसर महज दिखावे को थी, असल में वो एक हाईप्राइस्ड कॉलगर्ल थी और तुम भी” - उसका स्वर एकाएक कर्कश हो उठा - “उसकी फैन क्लब के चार्टर्ड मैम्बर थे ।”  
“ऐसा आप इसलिये कह रहे हैं क्योंकि आप मुझे जानते नहीं । तलवार साहब, पैसे से हासिल होने वाली औरत में मेरी कोई रूचि नहीं ।”
“तो फिर वो वैसे ही तुम पर मेहरबान होगी । उसको दिल्ली में स्थापित करने में तुमने उसकी मदद की थी, इस वजह से वो तुम्हारा अहसान मानती होगी । और अहसान का बदला खूबसूरत औरतें कैसे चुकाती हैं, ये क्या मेरे से छुपा है ? मिस्टर कोहली, फिरंगियों की एक कहावत तुमने सुनायी, अब एक मेरे से सुनो । वन शुड नाट लुक दि गिफ्ट हार्स इन दी माउथ । हिन्दोस्तानी में कहें तो दान की बछिया के दांत नहीं गिनते । मरने वाली तुम्हारे लिये गिफ्ट होर्स थी, दान की बछिया थी इसलिये तुम उसके ऐश्वर्य के साधनों के बारे में सवाल नहीं करते थे, न कि इसलिये क्योंकि तुम्हारे मन में उस बाबत कोई उत्सुकता नहीं थी या तुम सोचते थे कि तुम्हें क्या !”
“वैरी वैल सैड, सर । वैरी वैल सैड इनडीड ।”
“तो अब कबूल करो कि तुम्हारा उससे अफेयर था ।”
“मेरे न कबूल करने से आप मान जायेंगे कि मेरा उससे अफेयर नहीं या ?”
“नहीं ।”
“तो फिर क्या फर्क पड़ता है मेरे कबूलने से या न कबूलने से ?”
“फर्क पड़ता है । इसलिये फर्क पड़ता है क्योंकि ये कोई डेक्लेमेशन कान्टेस्ट, कोई बहस मुसाहबे का मुकाबला नहीं, पुलिस इन्क्वायरी है और पुलिस इन्क्वायरी में जो सवाल पूछा जाता है उसका जवाब दिया जाता है न कि जवाब को बूझो तो जानें वाली पहेली बना दिया जाता है । समझे !”
“समझा । ये भी समझा कि मैं बड़े गलत मौके पर यहां पहुंचा । न आया होता तो आपको मेरा ख्याल तक न आता ।”
“अभी मैं तुम्हें अपनी किस्मत का मर्सिया पढ़ते नहीं सुनना चाहता, तुम्हारा जवाब सुनना चाहता हूं ।”
“मेरा जवाब ये है कि मेरा मरने वाली से अफेयर नहीं था, सिर्फ दोस्ती थी जोकि एक बालिग शख्स की दूसरे बालिग शख्स से हो सकती है और जिस पर कोई पाबन्दी नहीं ।”
“ठीक है । अभी मैं तुम्हारा ये जवाब कबूल कर लेता हूं लेकिन बाद में अगर ये साबित हुआ कि तुम ने झूठा जवाब दिया था तो...तो फिर तुम पुलिस वालों के रंग-ढंग बहुत गौर से और बहुत करीब से देखोगे ।”
“आई रीड युअर वार्निंग लाउड एण्ड क्लियर सर । अब इजाजत हो तो एक सवाल मैं भी पूछूं !”
“पूछो ।”
“इन्स्पेक्टर यादव से क्या खता हुई ?”
“क्या मतलब ?”
“सुना है वो सस्पैंड होने वाला है ।”
“किस से सुना है ?” - वो मुझे घूरता हुआ बोला ।
“एक उड़ती चिड़िया से सुना है ।”
“क्यों जानना चाहते हो ?”
“यादव मेरा दोस्त है ।”
“पुलिस वालों की दोस्ती अच्छी नहीं होती ।”
“दैट्स माई प्राब्लम । वैसे आप ये बात इस इशारे के तौर पर कह रहे हैं कि मैं आप से दोस्ती करने की कोशिश न करूं तो बात जुदा है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“गुड । तो फिर क्या जवाब है आपका ? यादव से क्या खता हुई ?”
“जवाब भी उस उड़ती चिड़िया से ही पूछना जिस से खबर सुनी थी ।”
“लेकिन....”
“नाओ गैट अलोंग । आई डोंट वान्ट यू हेयर ऐनी मोर ।”
उसके व्यवहार से मन ही मन तिलमिलाते हुए मैंने उसका अभिवादन किया और वहां से रुख्सत हो गया ।
***
मैं गोल मार्केट पहुंचा ।
वहां एक आर्म्स एण्ड एमुनीशन की दुकान थी जिसका मालिक अमोलक राम मेरा दोस्त था ।
मैंने उसके सामने वो गोली रखी जोकि मैंने हीरा के बैडरूम में उसके पलंग की मैट्रेस में से निकाली थी ।
“मैं ये जानना चाहता हूं” - मैं बोला - “कि ये गोली किस किस्म की गन से चलायी गयी है ?”
अमोलक राम ने गोली को उठा कर उसे उलटा पलटा और फिर बोला - “टाइम लगेगा ।”
“कितना ?”
“कल सुबह पता करना ।”
“ठीक है । लेकिन एक बात का ख्याल रखना । ये टॉप सीक्रेट है । किसी को इसकी भनक नहीं लगनी चाहिये । लग गयी तो मेरी दुक्की पिट जायेगी ।”
उसने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
मैं पृलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
इन्स्पेक्टर यादव मुझे वहां न मिला ।
वहां मुझे कोई ऐसा वाकिफकार भी न मिला जो मुझे यादव की बाबत कुछ बता पाता ।
तब मैंने अपने फ्लैट पर जाकर हीरा की डायरी और बाकी कागजात की पड़ताल करने का फैसला किया ।
मैं कार पर सवार हुआ और ग्रेटर कैलाश की ओर रवाना हो गया ।
ये बात मुझे बहुत तसल्ली दे रही थी कि हीरा के वो कागजात मेरे हाथ पड़े थे, न कि हत्यारे के या पुलिस के । ये बात तो निश्चित थी कि हत्यारे का मिशन सिर्फ हीरा की हत्या करना ही नहीं था, वो कागजात हासिल करना भी था । हत्या के बाद वो कागजात ही तलाश करता लेकिन गोली चलाने के बाद जरूर उसे बाथरूम में मेरी मौजूदगी की चुगली करने वाली कोई आहट मिल गयी थी जिसकी वजह से उसे फौरन वहां से कूच कर जाना पड़ा था ।
अब सवाल ये पैदा होता था कि क्या हत्यारा जानता था कि बाथरूम में कौन था ?
क्या वो जानता था कि जिन कागजात को वो हासिल करना चाहता था, वो अब मेरे कब्जे में थे ?
जानता हो सकता था ।
ए सी पी तलवार कहता था कि दराजों का ताला किसी तीखे औजार से जबरन खोला गया था जिसकी वजह से चाबी के छेद के इर्द-गिर्द खरोंचे बन गयी थीं जबकि मैंने तो वो ताला बड़ी नफासत से एक हेयरपिन से खोला और बन्द किया था ।
यानी कि मेरे बाद भी किसी ने वो ताला खोला था और वो कोई हत्यारा ही हो सकता था । दराजों में झाड़ू फिरा जरूर उसकी तवज्जो यकीनन मेरी तरफ - बाथरूम में मौजूद शख्स की तरफ गयी होगी ।
इस लिहाज से तो मेरी जान को भी खतरा था ।
जो शख्स अपने किसी हासिल के लिये एक बार कत्ल कर सकता था, वो वही कदम दोबारा उठाने से भला क्यों डरता !
लेकिन हत्यारा था कौन ?
उस सन्दर्भ में मेरे पसन्दीदा कैन्डीडेट तो कौशिक और पचौरी ही थे ।
आखिर उनहोंने ही मुझे हीरा से तत्काल मिलने के लिये उकसाया था और ऐसे हालात पैदा किये थे कि कत्ल मेरी मौजूदगी में हो ताकि ये समझा जाये कि हीरा को जिन्दा देखने वाला आखिरी शख्स मैं था ।
हीरा की किसी डायरी के अस्तित्व का आइडिया मुझे पचौरी ने दिया था और उसी ने मेरे जेहन में ये अन्देशा चस्पां किया था कि उसमें मेरा भी कोई खराब जिक्र हो सकता था ।
यानी कि मेरे पर ये इलजाम आयद हो सकता था कि हीरा की डायरी और दूसरे कागजात की खातिर मैंने ही उसका कत्ल किया था ।
वो कागजात मेरी जान का जंजाल बन सकते थे ।
मैं उनका जिक्र करता तो उनकी मेरे पास मौजूदगी की बिना पर ही मुझे हत्यारा समझ लिया जाता, खामोश रहता तो पचौरी मेरी पोल खोल सकता था क्योंकि कागजात गायब होने की खबर अखबार में पढने पर वो सहज ही ये सोच लेता कि कागजात मैं वहां से निकाल लाया था ।
अजीब सांप छछूंदर जैसी हालत हुई जा रही थी मेरी उन कागजात की वजह से ।
अब मुझे यही श्रेयस्कर लग रहा था कि मैं कागजात की फटाफट पड़ताल करूं और फटाफट ही उनसे पीछा छुड़ा लूं ।
ग्रेटर कैलाश में जाकर मैंने कार रोकी ।
सीढ़ियां बढ कर मैं पहली मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट पर पहुंचा तो ये देख कर मेरा दिल धक्क से रह गया कि फ्लैट का दरवाजा खुला था ।
दरवाजे को धक्का दे कर मैंने भीतर ड्राइंगरूम में झांका तो वहां मुझे किसी चोर की आमद की चुगली करता कोई सूत्र दिखाई न दिया ।
मैं भीतर दाखिल हुआ और बैडरूम में पहुंचा ।
वहां अव्यवस्था का बोलबाला था । किसी ने वार्डरोब की राइटिंग डैस्क की और बैड की भी भरपूर तलाशी ली मालूम होती थी ।
राइटिंग डैस्क के तीनों दराज खुले हुए थे और उनके भीतर का सामान बाहर बिखरा पड़ा था ।
और राइटिंग डैस्क के सबसे नीचे के दराज में सदा मौजूद रहने वाली मेरी अड़तीस कैलीबर की लाइसेंसशुदा स्मिथ एण्ड वैसन रिवाल्वर वहां से गायब थी ।
मैं टायलेट में पहुंचा और धड़कते दिल से मैंने टायलेट की पानी की टंकी का ढक्कन उठाया ।
जैसा कि मुझे अन्देशा था, भूरा लिफाफा वहां से गायब था ।
कागजात की चोरी के शॉक से उबरने के बाद सबसे पहले मैने फ्लैट का हुलिया सुधारा और वहां से अव्यवस्था के तमाम चिन्ह गायब किये । उस हालत में वहां पुलिस का फेरा लगता तो मेरे लिये बेशुमार बातों की जवाबदेही मुश्किल हो जाती । फिलहाल अपने घर में चोर घुसा होने की बात को छुपा कर रखने में ही मुझे अपनी भलाई दिखाई दे रही थी । मेरी रिवाल्वर लाइसैंसशुदा थी जिसकी चोरी की रपट लिखाना मेरा फर्ज बनता या लेकिन फिलहाल उस बाबत भी मैंने खामोश रहना ही मुनासिब समझा । वो रपट मैं बाद में भी लिखवा सकता था और कह सकता था कि मुझे खबर नहीं थी कि रिवाल्वर अपनी जगह से कब से गायब थी । उस रिवाल्वर से कोई कत्ल हो जाता, वो मौकायेवारदात पर पायी जाती और उसकी मिल्कियत मेरे तक ट्रेस हो जाती तो भी मैं यह कह सकता था कि मुझे नहीं खबर थी कि मेरी रिवाल्वर गायब थी । आखिर कोई रोज रोज तो अपने घर की हर चीज की पड़ताल नहीं करता ।
घर में घुसे चोर के बारे में मैं निस्संकोच कह सकता था कि हीरा का हत्यारा ही मेरा चोर था । जाहिर था कि पिछली रात को हीरा को शूट करने के बाद वो फौरन ही वहां से रुख्सत नहीं हो गया था । वो जरूर फार्म हाउस के करीब कहीं ऐसी जगह छुपा रहा था जहां से कि वो मुझे वहां से निकलता देख पाता । इस जानकारी के लिये कि हीरा के साथ बंगले में कौन मौजूद था उसका उत्सुक होना स्वाभाविक था । जरूर उसने मुझे फार्म हाउस से निकलते देखा था और फिर चुपचाप मेरे घर तक मेरा पीछा किया था फिर पहला मौका हाथ आते ही वो मेरे फ्लैट में दाखिल हुआ था, उसने वहां की तलाशी ली थी और हीरा के कागजात और मेरी रिवाल्वर खोज निकाली थी ।
यानी कि हत्यारा मुझे पहचानता था ।
लेकिन वो दावे से ये नहीं कह सकता था कि कागजात मैंने पढ़े थे या नहीं । अगर मेरे वहां से निकल कर आफिस के लिये रवाना होने तक भी वो मेरे फ्लैट की ताक में था तो वो सहज ही ये नतीजा निकाल सकता था कि या तो मैने कागजात पढे ही नहीं थे, पढे थे तो उनका कोई बहुत छोटा हिस्सा ही पढा था । क्योंकि वो मोटी डायरी और तमाम के तमाम कागजात पढने के लिये जो वक्त दरकार था वो मैंने अपने फ्लैट में नहीं लगाया था ।
लेकिन हत्यारे की पोल तो उस थोड़े से हिस्से में भी हो सकती थी जो उसकी निगाह में मैंने पढ़ा हो सकता था ।
यानी कि कागजात के वहां से चोरी चले जाने के बाद भी मेरे सिर पर मंडराता मेरी जान का खतरा अभी टला नहीं था ।
तभी टेलीफोन की घन्टी बजी ।
मैंने फोन उठाया तो पाया कि लाइन पर सरोश बैक्टर था ।
“मैंने यही मालूम करने के लिये फोन किया था” - वो बोला - “कि तुम घर पर थे । कहीं जाना नहीं । मैं दस मिनट में वहां पहुंच रहा हूं ।”
तत्काल लाइन कट गयी ।
ऐसा ही था सरोश बैक्टर । अपनी ही कहता था, दूसरे की नहीं सुनता था ।
सरोश बैक्टर शादीशुदा बालबच्चेदार आदमी था और उसका गार्मेट्स एक्सपोर्ट का धंधा था । वो भी हीरा की फैन क्लब का मैम्बर था और इत्तफाक से एक पार्टी में हीरा से उसकी पहली मुलाकात कराने वाला शख्स खुद मैं था ।
तब मुझे हीरा की वो गर्वोक्ति याद आयी कि उसकी सरकार के घर में बहुत भीतर तक पैठ थी ।
कौन था वो शख्स जो हीरा को अगना संकटमोचन लगता था, जो कि हीरा समझती थी कि उसकी हर दुश्वारी से उसे निजात दिला सकता था ! मुझे तो ऐसे किसी शख्स की कोई खबर नहीं थी लेकिन क्या कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर में से किसी को हो सकती थी ?
तफ्तीश का मुद्दा था ।
ठीक दस मिनट में सरोश बैक्टर वहां पहुंचा ।
वो खूबरसूरत आदमी था लेकिन उसकी बढ़िया पर्सनैलिटी को दागदार करने वाली जो बात थी, वो ये थी कि वो भैंगा था, इतना ज्यादा भैंगा था कि चाहता तो टैनिस का मैच बिना गर्दन घुमाये देख सकता था ।
मैंने नई दिलचस्पी के साथ उसे देखा ।
तो ये एल एल टी टी गारमेंट एक्सपोर्टर नकली स्काच विस्की का भी धंधा करता था !
उस घड़ी उसके हाथ में ईवनिंग न्यूजपेपर था ।
“अखबार पढा ।” - आते ही वो बोला ।
“नहीं ।” - मैं बोला ।
“पढ़ लो ।” - वो जबरन अखबार मुझे थमाता हुआ बोला - “फ्रंट पेज पर बस सिर्फ हीरा के ही कत्ल की खबर है ।
मैंने एक सरसरी निगाह अखबार पर डाली । कैब्रे डांसर की हत्या के शीर्षक के अन्तर्गत उस में वही कुछ छपा था जिस की मुझे पहले से खबर थी । खबर के साथ लाश की तस्वीर तो छपी ही थी, उसकी जिन्दगी की दो तस्वीर और भी छपी थीं, जिनमें से एक उसका हंसता हुआ क्लोज अप था और दूसरी कैब्रे की पोशाक में पूरी तस्वीर थी ।
मैंने अखबार को दोहरा करके वापिस उसे थमा दिया ।
“क्या कहते हो ?” - वो बोला ।
“क्या कहता हूं ?” - मैं हकबकाया सा बोला - “मैंने क्या कहना है ?”
“किस का काम होगा ये ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“कोई अन्दाजा तो होगा ! आखिर जासूस हो ।”
“खुद अपने बारे में क्या ख्याल है ।”
“पागल हुए हो !”
“मैंने महज एक ख्याल जाहिर किया था ।”
“बेहूदा ख्याल है ये । मेरे सामने जाहिर किया सो किया, किसी और के सामने मत करना ।”
“अच्छी बात है ।”
“जो छपा है, उसके अलावा क्या जानते हो ?”
“अजीब सवाल है ।”
“अखबार में तुम्हारा भी जिक्र है । पुलिस ने तुम्हारे से भी पूछताछ की थी, ऐसा छपा है इसमें । इस लिहाज से तुम्हें ऐसा कुछ मालूम हो सकता है जो तुमने पुलिस को बताया हो या पुलिस ने तुम्हें बताया हो लेकिन जो अखबार में नहीं छपा ।”
“ऐसा कुछ नहीं है । और पुलिस मेरे तक नहीं पहुंची थी, मैं पुलिस तुक पहुंचा था । इत्तफाक से । बदकिस्मती से । आज सुबह मैं हीरा से मिलने उसके फार्म हाउस पर गया था तो मुझे पता लगा था कि उसका कत्ल हो गया था और वहां पुलिस पहुंची हुई थी । मैं खुद ही वहां न जा फंसा होता तो पुलिस को मेरी भनक तक न लगती ।”
“ओह !” - वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला - “तो तुम्हें वाकई खास कुछ नहीं मालूम ।”
“नहीं मालूम । आनेस्ट ।”
“हूं !”
“लेकिन तुम क्यों इतने हलकान हो रहे हो ?”
“जैसे तुम्हें पता नहीं । पुलिस को मरने वाली से मेरे ताल्लुकात की खबर हुए बिना नहीं रहने वाली । फिर क्या वो मुझे बख्श देंगे ?”
“बख्श तो नहीं देंगे । देर सवेर उनकी नजरेइनायत तो तुम पर जरूर होगी । लेकिन जब तुम निर्दोष हो तो डरते क्यों हो ?”
“अरे, मेरे कहने भर से ही मुझे कोई निर्दोष थोड़े ही मान लेगा !” - वो झल्ला कर बोला - “वो लड़की मुझे ब्लैकमेल कर रही थी । उसके पास मेरी कुछ चिट्ठियां थीं, मेरी अक्ल मारी गयी थी, जो मैंने उसे तब लिखी थीं जब मैं तीन महीने के लिये लन्दन गया था । भावनाओं के आवेश में बह कर पता नहीं क्या कुछ अनाप-शनाप मैंने लिख डाला था उन चिट्ठियों में ! वो चिट्ठियां तो साली जैसे मेरे और उसके नाजायज ताल्लुकात का इकबालिया बयान थीं । वो चिट्ठियां अगर पुलिस के हाथ लग गयीं और आम हो गयीं तो मेरी घर गृहस्थी तो उजड़ेगी ही, पुलिस भी मेरा जी भर के जीना हराम करेगी । वो चिट्ठियां मुझे प्राइम सस्पैक्ट बना देंगी ।”
“मुझे तुमसे हमदर्दी है ।”
“तौबा ! किस जंजाल में फंस गया मैं ! जब हीरा ने मुझे पहली बार ब्लैकमेल का इशारा किया था तो जो पहली बात मेरे मन में आयी थी, वो ये ही थी कि साली मरे तो पीछा छूटे लेकिन उसने तो मर के भी पीछा नहीं छोड़ा । मुझे पहले से ज्यादा बड़े जंजाल में लपेट गई ।”
“तुम क्या चाहते थे, वो जुकाम से मरती ?”
“अरे किसी बस-वस के नीचे आ जाती, स्विमिंग पूल में डूब मरती, छत से गिर जाती, हार्ट अटैक हो जाता उसे, ब्रेन हैमरेज हो जाता । कितने ही तो तरीके थे । लेकिन मरी तो कत्ल हो के । अब मेरी ऐसी तैसी फिरे ही फिरे ।”
“बुरे काम के बुरे नतीजे ।”
“शट अप !”
“यस, बॉस ।”
“तुमने तो पुलिस के सामने मेरा नाम नहीं लिया न ?”
“नहीं लिया । लेकिन हीरा का एक्सपैन्सिव लाइफ स्टाइल पुलिस की खास पड़ताल में है । उन के सामने अहमतरीन सवाल यही है कि एक कब्रे डांसर वैसा कीमती रहन-सहन कैसे अफोर्ड कर सकती थी । ये इकलौती बात ही तुम्हारी तरफ एक बड़ा मजबूत इशारा बन जायेगी ।”
“सिर्फ मेरी तरफ क्यों ?” - वो घबरा कर बोला - “मैं क्या उसका इकतौता यार था ?”
“औरों की तरफ भी । कौशिक, पचौरी और अस्थाना की तरफ तो यकीनन ।”
“और तुम्हारी तरफ ?”
“मैं तुम लोगों जैसा धनकुबेर नहीं । होता भी तो तुम लोगों की तरह औरत पर पैसा न लुटाता ।”
“कोहली, तेरी ये होलियर दैन दाउ वाली नीयत अच्छी नहीं ।”
मैंने लापरवाही से कन्धे झटकाये ।
वो कई क्षण खामोश रहा और फिर आतुर भाव से बोला - “तुमने पुलिस के सामने मेरा नाम तो नहीं लिया था ?”
“किस सिलसिले में ?”
“किसी भी सिलसिले में । मसलन तुमने उन्हें ये बताया हो कि तुमने ही हीरा से मुझे इंट्रोड्यूस कराया था ?”
“नहीं । मैंने ऐसा कुछ नहीं बताया था । अलबत्ता पुलिस ने मेरे से सवाल जरूर किया था कि क्या मैं हीरा के किन्ही और मेल फ्रैंड्स को जानता था । मैंने ये ही जवाब दिया था कि मैं किसी को नहीं जानता था ।”
“ओह !” - उसने राहत की सांस ली - “यानी कि तुम ने मेरा ही नहीं, किसी और का भी नाम नहीं लिया ?”
“फिलहाल तो नहीं लिया लेकिन मैं ये समझने की मूर्खता नहीं कर सकता कि पुलिस ने मेरा पीछा छोड़ दिया है । पुलिस फिर मुझे तलब कर सकती है और अपना सवाल पहले से कहीं ज्यादा सख्ती से पूछ सकती है ।”
“तब तुम सबका नाम ले दोगे ?”
“तुम खामखाह हलकान हो रहे हो । बैक्टर, पुलिस को मेरी मदद के बिना भी तुम सब लोगों की पोल पट्टी, मालूम हो सकती है । इस सिलसिले में वो मेरे से किसी ओरीजिनल जानकारी की उम्मीद नहीं करने वाले, अलबत्ता हासिल जानकारी की तसदीक वो जरूर करना चाहेंगे मेरे से ।”
“एक बात बताओ । अगर मैं पुलिस को कोई नावां पत्ता चढ़ा दूं तो क्या वो मेरा नाम उछालने से बाज आ जायेंगे ?”
“आम हालात में ये हथियार कारगर साबित हो सकता था लेकिन मौजूदा हालात आम नहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“बदकिस्मती से हीरा के कत्ल की तफ्तीश पुलिस का एक उच्चाधिकारी कर रहा है । जो काम अमूमन सब-इन्स्पेक्टर करता है या बड़ी हद इन्स्पेक्टर करता है, इस केस में वो काम ए सी पी कर रहा है । औए ए सी पी ऐसा जो नौजवान है और इस ओहदे पर सीधा भारती हुआ है ।”
“ओह !”
“सो रिश्वत इज आउट, बॉस ।”
“ओह !” - वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “तुम कोई ऐसा जुगाड़ कर सकते हो कि मेरा नाम इस केस में न लपेटा जाए ?”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
“मैं तुम्हारी फीस भरूंगा ।”
मैंने फिर इन्कार में सिर हिलाया ।
“कोशिश तो कर सकते हो ?”
“हां । कोशिश तो कर सकता हूं ।”
“तो वही करो यार ।”
“ठीक है ।”
उसने जेब से सौ सौ के नोटों की एक गड्डी निकाली और उसे मेरे सामने मेज पर रखता हुआ बोला - “ऑन अकाउंट । फिलहाल ।”
“चलेगा ।” - मैं संतोषपूर्ण स्वर में बोला ।”
“बाद में जो भी कहोगे, दूंगा ।”
“चलेगा ।”
“अब एक बात बताओ ।”
“दो पूछो । अब तो तुम मेरे क्लायंट हो ।”
“अखबार में छपा है कि मौकायेवारदात से हीरा के तमाम निजी कागजात चोरी चले गये हैं । ये बात पुलिस ने कैसे जानी ?”
“उसकी राइटिंग टेबल के तीनों खाली दराजों से जानी जिनका ताला जबरन खोला गया था ।”
“ओह ! फिर तो चोरी गये कागजात में मेरे वाली चिट्ठियां भी हो सकती हैं !”
“बिल्कुल हो सकती हैं ।”
“फिर वो चिट्ठियां पुलिस के हाथ तो न पड़ीं न ?”
“जाहिर है ।”
“दैट्स गुड ।” - वो चैन की मील लम्बी सांस लेकर बोला ।
“अभी इतने निश्चिन्त होकर मत दिखाओ बॉस ! उन चिट्ठियों का बेजा इस्तेमाल उन चिट्ठियों का चोर भी कर सकता है ।”
“यानी कि” - वो फिर घबरा गया - “वो मुझे ब्लैकमेल कर सकता है ?”
“हां । लेकिन पुलिस के मुकाबले में उससे निपटना आसान होगा ।”
“मुझे पता कैसे लगेगा वो शख्स कौन है ?”
“वो खुद बतायेगा । उसकी तुम्हें ब्लैकमेल करने की नीयत होगी तो तुम्हारे से सम्पर्क तो उसे करना पड़ेगा न । जब ऐसी नौबत आये तो मुझे खबर करना फिर देखना ये पंजाबी पुत्तर क्या-क्या और क्या करता है ।”
“गुड ।” - वो उठ खड़ा हुआ - “मैं चलता हूं ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
“कोहली, कोई भी नयी बात हो, मुझे फौरन खबर करना ।”
“जरूर । अपने क्लायंट को हालात से डे टु डे बेसिज पर खबरदार रखना मेरा फर्ज है ।”
वो चला गया ।
***
अम्बरीश कौशिक होटल विक्रम की चौथी मंजिल पर स्थित एक सुइट में स्थापित था ।
मैं वहां पहुंचा तो मैंने उसे बैडरूम में अधलेटा सा पड़ा पाया । पलंग पर ही एक ट्रे पड़ी थी जिस पर एक वैट-69 की बोतल, एक सोडा सायफान और एक आइस बकेट रखी थी । उसके एक हाथ में विस्की का गिलास था और दूसरे में एक ताजा सुलगाया सिगरेट था । उसका चेहरा तममताया हुआ था और आंखें लाल थी । पता नहीं कब से वो विस्की पी रहा था ।
पलंग के करीब फर्श पर उस रोज का ईवनिंग न्यूज पड़ा था ।
“आ, कोहली ।” - मुझे देख कर वो नशे में थरथराती आवाज में बोला - “आ । बैठ ।”
मेरे स्वागत में उसने उठ कर सीधा होने का उपक्रम किया लेकिन कामयाब न हो सका । उसका मोटा, ठिगना जिस्म वापिस तकिये पर ढेर हो गया ।
मैं उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“ड्रिंक बना ले अपने लिये और मेरे साथ चियर्स बोल । गिलास उधर साइड टेबल पर से उठा लो ।”
आदेशानुसार मैंने अपने लिये ड्रिंक तैयार किया और उसके साथ चियर्स बोला ।
“खबर” - फिर मैंने फर्श पर पड़े अखबार की ओर इशारा किया - “अखबार में ही पढ़ी या वैसे ही लग गयी थी ?”
“अखबार में ही पढी ।” - वो बोला - “पढते ही तबीयत खुश हो गयी ।”
“सैलीब्रेट कर रहे हो ?”
“बिल्कुल । क्यों न करूं ? इतने बड़े जंजाल से पीछा जो छूट गया । नहीं ?”
“हां ।”
ईवनिंग न्यूज को बाजार में आये अभी एक डेढ घन्टे से ज्यादा नहीं हुआ हो सकता था । तत्काल ही वो बोतल खोल के बैठ गया होता तो भी वो इतने थोड़े वक्फे में इतना ज्यादा टुन्न नहीं हो सकता था जितना कि वो दिखाई दे रहा था । वो तो कई घंटों से पी रहा मालूम होता था । अब अगर वो हीरा की मौत की सैलीब्रेशन में पी रहा था तो कई घन्टे पहले, अखबार पढ़े बिना, उसे वो खबर कैसे लग सकती थी ?
“कोहली !” - वो प्रशंसात्मक स्वर में बोला - “तूने तो कमाल ही कर दिया ।”
“मैंने कमाल कर दिया ! कौन सा कमाल कर दिया मैंने ?”
“अरे, मैंने तो तुझे हीरा से सिर्फ मेरा पीछा छुड़वा देने के लिये कहा था, तूने तो उससे सबका ही पीछा छुड़वा दिया । भई वाह, बहुत दिलेर पट्ठा निकला तू तो । तेरे से जो चार लाख रुपये का वादा मैंने किया था, वो रकम अब हम सबको शेयर करनी चाहिये । मैं सबसे एक-एक लाख रुपया मांगूंगा । एक लाख मैं खुद दूंगा । लेकिन तू फिक्र न कर कोहली, तुझे पूरे चार लाख रुपये ही मिलेंगे । तुझे वही रकम मिलेगी जिसका कि मैंने तेरे से वादा किया था ।”
“तुम समझ रहे हो कि हीरा का कत्ल मैंने किया है और मैं यहां चार लाख रुपये लेने आया हूं ?”
“छोड़ यार, मैं कुछ नहीं समझ रहा । मैं तो उस बात का जिक्र तक करना या सुनना नहीं चाहता । बहरहाल बला टली । कोहली, तेरी रकम खरी ! कल शाम तक मैं खुद वो रकम जहां तू कहेगा, तुझे पहुंचा दूंगा । राजी ?”
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
“बढिया आदमी निकला तू । दिलेर भी । जीता रह ।”
“तो तुमने” - मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला - “हीरा के कत्ल की बाबत अखबार पढ़ के जाना ?”
“हां ।”
“अखबार में ये भी पढ़ा होगा कि उसका कत्ल सुबह सवेरे पांच बजे के करीब हुआ था ?”
“पुलिस का ऐसा अन्दाजा छपा है अखबार में । उसकी तसदीक तो पोस्टमार्टम से अभी होगी । लेकिन तेरे को ऐसी किसी तसदीक की क्या जरूरत है ? तुझे तो पक्का पता है कि कत्ल कब हुआ था । ऐसी बातों की कातिल से बेहतर जानकारी किसे हो सकती है !”
“मैं कातिल नहीं ।”
“सोच समझ के बोल, कोहली । मैं तो झट मान लूंगा कि तू कातिल नहीं । मेरी रकम जो बचेगी । लेकिन तेरा नुकसान हो जाएगा । गुनाह बेलज्जत वाली बात हो जायेगी तेरे साथ !”
“सुबह पांच बजे के आसपास तुम कहां थे ?”
“यहीं था ।”
“क्या कर रहे थे ?”
“वही जो अब कर रहा हूं ।”
“रात से ही पी रहे हो ?”
“हां । तेरा इन्तजार जो था । तेरे जरिये गुड न्यूज का इन्तजार जो था ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।”
“क्या !”
“रात से अब तक लगातार पी रहे होते तो कब के होश खो बैठे होते ।”
“बीच में” - वो लापरवाही से बोला - “एकाध बार ऊंघ गया होऊंगा ।”
“मेरी राय में कत्ल तुमने किया है और ये विस्की पीने का ड्रामा तुम अपनी करतूत को कवर करने के लिये कर रहे हो ।”
“मेरे से जो मर्जी कह ले, कोहली, लेकिने ये वाहियात, बेबुनियाद बात तूने किसी और से कही तो तेरी खैर नहीं !”
“धमकी दे रहे हो ?”
“हां ।”
“एक कत्ल का तजुर्बा हो चुकने के बाद दिलेरी आ गयी मालूम होती है ! दूसरा कत्ल करने का हौसला आ गया मालूम होता है !”
“जो मर्जी कह ले । दोस्तों में सब चलता है । लेकिन पीठ पीछे नहीं । पीठ पीछे नहीं कोहली ।”
“हीरा की डायरी, कागजात वगैरह सब मौकायेवारदात से गायब हैं ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया । उसकी आंखें मुन्दी जा रही थीं । वो बड़ी कठिनाई से उन्हें खुला रख पा रहा था ।
“उन्हें तू रखे तो नहीं बैठा अपने पास !” - एकाएक वो सशंक भाव से बोला - “फूंक फांक तो दिया न उन्हें या उनका भी कोई सौदा करने की फिराक में है ? ऐसा है तो साफ बोल ।”
“साफ मैं बोलूंगा । बहुत कुछ साफ बोलूंगा लेकिन इस वक्त बोलने का कोई फायदा मुझे नहीं दिखाई दे रहा ।” - मैं उठ खड़ा हुआ - “मैं फिर आऊंगा ।”
“कब ?”
“जब तुम्हारे होशोहवास ठिकाने होंगे ।”
“वो तो अभी भी ठिकाने हैं ।”
“वहम है तुम्हारा ।”
“ठीक है, फिर ही आना । सच पूछे तो मुझे भी अभी कहीं जाना है ।”
“इसी हालत में ?”
“क्यों, भई ? क्या हुआ है मेरी हालत को ?”
“कुछ नहीं हुआ । मैं चलता हूं ।”
“ठीक है ।”
***
मैं लाजपत नगर पहुंचा ।
मुझे पहले से मालूम था कि वहां की इरोज सिनेमा के करीब की एक इमारत के टॉप फ्लोर पर एक डेढ़ कमरे के फ्लैट में रूबी गोमेज अकेली रहती थी । वहां इमारत की सीढियां इस प्रकार की थीं कि उसके बाहर से ही सीधे टॉप फ्लोर पर पहुंचा जा सकता था ।
मैंने काल बैल बजायी तो दरवाजा यूं कोई आधा फुट खुला कि दरवाजे और चौखट के बीच एक लोहे की जंजीर तन गयी । जंजीर के आरपार हम दोनों की निगाहें मिलीं ।
मैंने देखा कि उस घड़ी भी वो वही पोशाक पहने थी जिस में मैंने उसे सुबह फार्म हाउस में देखा था । उस घड़ी उसके हाथ में एक खुला हुआ बाल पॉइंट पैन था जो ये जाहिर करता था कि वो कुछ लिखती हुई उठी थी ।
“हल्लो !” - मैं मुस्कराता हुआ बोला ।
वो बड़े अनमने भाव से क्षण भर को मुस्कराई और फिर संजीदा हो गयी ।
“क्या मांगता ?” - वो बोली ।
“तुम्हारे से बात करना मांगता ।” - मैं मीठे स्वर में बोला ।
“क्या बात करना मांगता ?”
“मैडम के कत्ल की बाबत बात करना मांगता ।”
“हम नहीं मांगता । हम को जो मालूम सब पुलिस को बोल के रखा ।”
“मेरे से भी बोलने में क्या हर्ज है ?”
“हम डिटेक्टिव लोगों से बात नहीं करता ।”
“रूबी, मैं पुलिस का डिटेक्टिव नहीं हूं प्राइवेट डिटेक्टिव हूं ।”
“वाट डिफ्रेंस !”
“बहुत डिफ्रेंस । पुलिस तुम्हारे खिलाफ जबकि मैं तुम्हारी तरफ हूं ।”
“वाट डू यू मीन ?”
“मैं तुम्हें ये चेतावनी देने आया हूं कि पुलिस ने अभी तुम्हारा पीछा कोई छोड़ नहीं दिया हुआ । पुलिस वालों का ये तरीका होता है कि वो पहले जान बूझ कर ढील होते हैं और फिर एकाएक खींचते हैं ।”
“हम को क्या खींचना मांगता पुलिस वाला लोग ? हम सब कुछ साफ-साफ बोला ।”
“लेकिन पुलिस वाला लोग तुम को सब कुछ साफ-साफ नहीं बोला । जैसे वो ये नहीं बोला कि वो तुम्हारी मैडम के कत्ल का शक तुम पर कर रहे हैं ।”
“सांता मारिया !” - वो दहशतभरे स्वर में बोली ।
“वो जरूर-जरूर तुम्हारे पास फिर आयेंगे या तुम्हें तलब करेंगे ।”
“सांता मारिया !”
“नाओ मे आई कम इन ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया और दरवाजे की जंजीर हटा दी । मैं भीतर दाखिल हुआ तो उसने मेरे पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
“प्लीज सिट डाउन ।” - वो बोली ।
मैं एक सोफे पर बैठ गया । वो कुछ क्षण अनिश्चित सी मेरे सामने खड़ी रही और फिर मेरे सामने एक सोफाचेयर पर बैठ गयी ।
मैंने चारों तरफ निगाह दौड़ाई ।
वो फ्लैट छोटा जरूर था लेकिन बड़े करीने से सजा हुआ था । शहरी रहन-सहन की जरूरतों वाली कलर टेलीविजन वी सी आर, रेफ्रीजरेटर - यहां तक कि टेलीफोन भी तमाम चीजें वहां दिखाई दे रही थी । मैं जानता था कि वो सब हीरा की वजह से ही सम्भव था । अपनी जिन्दगी में निश्चय ही हीरा अपनी उस गोवानी मेड पर बहुत मेहरबान थी ।
एक कोने में मुझे एक राइटिंग दिखाई दी । उस पर उस घड़ी एक खुला लैटर पैड पड़ा था । शायद वो कोई चिट्ठी पत्री करती उठ कर दरवाजा खोलने गयी थी ।
“आप इधर” - वो अनमने भाव से बोली - “हम को खाली वार्न करने के वास्ते आया ?”
“और वजह से भी आया ।” - मैं सावधानी से शब्द चयन करता हुआ बोला - “वो क्या है कि जैसे वो पुलिस वाले तुम्हारे बारे में सोचते हैं कि तुमने जितना उन्हें बताया था, तुम उससे ज्यादा जानती हो ऐन ऐसा ही वो मेरे बारे में भी सोचते हैं । वो समझते हैं कि कुछ मैं छुपा रहा हूं, कुछ तुम छुपा रही हो । लिहाजा मैंने सोचा कि अगर हम दोनों पुलिस से फिर वास्ता पड़ने से पहले आपस में मिल के बात कर लें तो हम दोनों पुलिस से फिर वास्ता पड़ने से पहले आपस में मिल के बात कर लें तो हम दोनों ही किसी एक बयान पर टिक सकते हैं । जब दो जने अलग-अलग एक ही बात कहेंगे तो उन्हें हमारी स्टोरी सच्ची मालूम पड़ेगी और फिर वो हमारा पीछा छोड़ देंगे । अन्डरस्टैण्ड ?”
उसका सिर तो सहमति में हिला लेकिन उसके चेहरे पर ऐसे भाव न आये जैसे कि वो मेरी बात समझ रही हो ।
“फिर कातिल तुमसे भी तो खौफजदा होगा !”
“वाट ?”
“मर्डरर । अफ्रेड आफ यू ।”
“वाई ?”
“हीरा तुम्हें अपनी मेड नहीं, सहेली समझती थी । बल्कि बहन समझती थी । तुम उसकी हर बात में राजदां समझी जाती थीं । इस लिहाज से हत्यारा, मर्डरर, ये समझ सकता है कि हीरा के जो कागजात गायब हैं, उन में क्या था, इसकी खबर तुम्हें भी होगी ।”
“सो ?”
“रूबी, हत्यारे को तुम्हारा भी मुंह बन्द करने की जरूरत महसूस हो सकती है ।”
“सांता मारिया !”
“लेकिन तुम्हें कुछ नहीं होगा । फोरवार्न्ड इज फोरआर्म्ड । नो ?”
“यस ।”
“तुमने पुलिस को बोला था कि तुम मैडम की राइटिंग टेबल के दराज को कभी नहीं खोलती थी लेकिन पुलिस को तुम्हारी इस बात पर एतबार नहीं है । उनका ख्याल है कि जो कागजात चोरी गये हैं, उन में क्या था ये तुम्हें बखूबी मालूम था । रूबी, ऐन यही ख्याल कातिल का भी हो सकता है ।”
उसके शरीर ने जोर से झुरझुरी ली ।
“अब अगर पुलिस का ख्याल सच है कि तुम्हें इस बात की वाकफियत थी कि मैडम के कागजात में क्या था तो फिर तो तुम्हें ये अन्दाजा हो सकता है कि हत्यारा कौन था । या कम से कम ये तो मालूम हो ही सकता है कि हत्यारा किन लोगो में से कोई एक हो सकता था ।”
“बट, सर,” - वो तीव्र प्रतिवादपूर्ण स्वर में बोली - “हम वो पेपर्स कभी नहीं पढा । नैवर ।”
“ये बात मौजूदा हालात में अहम नहीं है कि तुमने उन कागजात को पढ़ा या नहीं पढ़ा था । अहम बात ये है कि तुम्हें उन कागजात को पढने की सुविधा हासिल थी । मैडम तुम पर निर्भर करती थीं । मुझे जाती तौर पर मालूम है कि अक्सर वो तुम्हें पीछे फार्म हाउस पर छोड़ कर शहर चली जाती थी । मैडम अपनी चाबियां कहां रखती थीं, इसकी जानकारी तुम्हें सहज ही रही हो सकती थी । मैडम की गैरहाजिरी में तुम बड़ी आसानी से राइटिंग टेबल के दराज चाबी लगा कर खोल सकती थीं और भीतर मौजूद कागजात को खंगाल सकती थीं ।”
“सर !” - वो तमतमाए स्वर में बोली - “हम ऐसा इनसल्टिंग बात सुनना नहीं मांगता ।”
“रूबी । रूबी । मैं तुम पर कोई इलजाम नहीं लगा रहा । मैं सिर्फ ये बता रहा हूं कि पुलिस क्या सोचती होगी ! हत्यारा क्या सोचता होगा !”
“हम मरना नहीं मांगता ।”
“कौन मरना मांगता है । बूढा बीमार शख्स मरना नहीं मांगता । तुम तो माशाअल्ला जवान हो, हसीन हो ।”
“हम क्या करे ?”
“तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं । या तो तुम पुलिस पर एतबार कर सकती हो, या फिर मेरे पर । मैं मैडम का पक्का फ्रेंड था । मालूम ?”
“मालूम ।”
“मालूम, तो तुम्हें पुलिस से ज्यादा मेरे पर एतबार होना चाहिए । नो ?”
“यस ।”
“गुड । अब अगर तुमने उन कागजात को पढ़ा है तो मुझे बताओ कि क्या पढ़ा है ! नहीं पढ़ा है तो अपने दिमाग पर जोर दो और याद करने की कोशिश करो कि हीरा ने कभी किसी शख्स का कोई खास जिक्र किया हो, किसी के बारे में कोई खास, गैरमामूली बात कही हो, किसी का नाम बार-बार लिया हो !”
वो सोचने लगी ।
“मैं तुमसे वादा करता हूं कि जो कुछ भी तुम मुझे बताओगी, वो मेरे से बाहर नहीं जाएगा जब कि पुलिस से ऐसा कोई आश्वासन तुम्हें हासिल नहीं हो सकता । पुलिस को हासिल जानकारी का प्रैस को लीक हो जाना आम बात है । उस सूरत में तुम्हारी जान को खतरा और भी ज्यादा होगा ।”
“हम आपको सब बोलेंगा तो आगे क्या होयेंगा ?”
“आगे मैं तफ्तीश करूंगा । जिन लोगों के नाम तुम लोगी, मैं उनकी पड़ताल करूंगा और ये जानने की कोशिश करूंगा कि हीरा के कत्ल के वक्त के आसपास वो कहां थे, किस के साथ थे । यूं कातिल का पता लग जाना महज वक्त की बात होगा ।”
“उतना वक्त में मर्डरर इधर आयेंगा और हम को शूट कर के जायेंगा । हम ऊपर मैडम के पास । आप को जो बोला वो वेस्ट ।”
“वेस्ट क्यों ? उससे कातिल का पता लगेगा ।”
“उससे हमारा लाइफ कैसे बचेगा ? हम ही गॉड के पास पहुंच गया तो हम को क्या लेना मांगता होता कि मैडम का मर्डर कौन किया !”
“बात तो तुम्हारी ठीक है ।” - मुझे कबूल करना पड़ा - “इस का एक ही हल है कि तुम कुछ दिनों के लिये चुपचाप कहीं चली जाओ ?”
“किधर ?”
“कहीं भी । कहीं किसी रिश्तेदार के पास । है कोई रिश्तेदार तुम्हारा ?”
“इधर नहीं है । आगरा में एक सिस्टर है । बाकी अक्खा फैमिली गोवा में है ।”
“तुम चुपचाप अपनी बहन के पास आगरा चली जाओ । वहां से तुम तभी लौटना जब तुम्हें मेरे से ये खबर हासिल हो जाये कि हत्यारा पहचाना गया था और पकड़ा गया था । और यकीन जानो कि अगर तुम मेरी मदद करोगी तो हत्यारा बहुत जल्द पकड़ा जायेगा ।”
“हूं ।”
बाल पैन को अपनी उंगलियों में नचाती वो खामोश बैठी रही । मैं व्यग्र भाव से उसको देखता रहा और उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
“लिसन ।” - आखिरकार वो बोली - “हम पुलिस को बोला कि हीरा मैडम का मेल फ्रेंड को हम नहीं जानता । हमारा माइंड बोलता कि हम को अपना एक ही स्टेटमेंट पर पक्का रहना मांगता । फिर भी हम कुछ बोलना मांगता तो पुलिस को बोलना मांगता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि हम को मैडम का रीयल बिजनेस मालूम । मैडम एंटरटेंड जेंटलमैन फॉर मनी । पुलिस को भी ये बात अभी तक मालूम हो चुका होयेंगा । तब पासिबल है कि पुलिस हम को भी सेम बिजनेस में समझे ।”
“जिससे कि तुम्हें एतराज है !”
“बिजनेस से ऐतराज नहीं पण उस बिजनेस में समझे जाने से एतराज है । एक्सपोजर से एतराज है ।”
“कमाल है !”
“मिस्टर कोहली, हम पुलिस को एली बना कर रखेगा तो वो हमको बादर नहीं करेंगा । हम आपको कुछ बोलेगा तो पुलिस और एंग्री हो जायेगा कि हम कुछ बोला तो पुलिस को नहीं बोला, प्राइवेट डिटेक्टिव को बोला, मिस्टर सुधीर कोहली को बोला ।”
“रूबी रूबी...”
“सर, आई वुड रादर टेक ए चांस विद पोलीस ।”
“तुम तो मेरा दिल तोड़ रही हो !”
वो चुप रही ।
“इतना तो मानती हो न कि तुम्हारे पास कुछ बताने लायक है जरूर ?”
“आई एक्सेप्ट नथिंग ।” - वो दृढ स्वर में बोली ।
“लेकिन...”
“सर प्लीज लीव । हम आगरा लैटर डालना मांगता है । हम अपनी सिस्टर को लैटर फिनिश करना मांगता है ।”
वो एकाएक उठकर खड़ी हो गयी ।
बड़े अनिच्छापूर्ण भाव से मैं भी उठा ।
“शाम को क्या कर रही हो ?” - फिर मैं आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“काहे वास्ते पूछता आप ?” - वो बोली ।
“अगर डिनर मेरे साथ हो जाये तो...”
“सॉरी । अभी हम को मैडम का डैथ का मातम होता । जोकि आप को भी होना मांगता । कैसा फ्रेंड था आप मैडम का ?”
“तुम तो मुझे बेइज्जत कर रही हो ।”
वो खामोश रही ।
“ठीक है ।” - मैंने जेब से अपना एक विजिटिंग कार्ड निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाया, उसने कार्ड को थामने की कोशिश न की तो मैंने उसे उसके सामने सैन्टर टेबल पर डाल दिया - “इस पर मेरा नाम, पता और टेलीफोन नम्बर दर्ज हैं । इरादा बदल जाए तो फोन करना ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
***
मैं विक्रम होटल वापिस पहुंचा ।
हाउस टेलीफोन से मैंने कौशिक के सुइट में फोन किया ।
कोई जवाब न मिला ।
मैंने फोन रख दिया और रिसैप्शन पर पहुंचा । वहां रिसैप्शन क्लर्क उस घड़ी होटल के किसी तभी वहां पहुंचे मेहमान को बुक करने में व्यस्त था ।
मैंने पीछे की बोर्ड पर निगाह डाली तो पाया कि कौशिक के सुइट की चाबी वहां मौजूद नहीं थी ।
इसका क्या मतलब था ?
उसने कहा तो था कि उसने कहीं जाना था लेकिन अगर वो गया था तो क्या चाबी रिसैप्शन पर जमा कराने की जगह अपने साथ ले गया था ?
या वो होटल में ही कहीं मौजूद था ?
वो बात मुझे जंची । मैंने होटल की उन तमाम जगहों पर झांकना शुरू किया जहां कि कौशिक हो सकता था ।
वो मुझे कॉफी शाप में मिला । उस घड़ी दरवाजे की तरफ उसकी पीठ थी और वो एक मीनू पढ़कर उस में से वेटर को आर्डर दे रहा था ।
यानी कि वो तभी वहां पहुंचा था ।
मैं तत्काल वहां से हटा और लिफ्ट पर सवार हो कर चौथी मंजिल पर पहुंचा ।
उस फ्लोर पर उस घड़ी कोई नहीं था ।
कौशिक की अपने कमरे से गैरहाजिरी का फायदा उठाने की पूरी तैयारी करके मैं वहां आया था । मेरा अपना एक दोस्त मलकानी पहाड़गंज में होटल चलाता था । उससे मुझे एक ऐसी मास्टर की हासिल हुई थी जिसके बारे में उसका दावा था कि वो होटलों के कमरों के नब्बे पर्सेन्ट ताले खोल सकती थी ।
भगवान से ये प्रार्थना करता कि उस होटल के ताले बाकी दस पर्सेन्ट किस्म के न हों, मैं कौशिक के सुइट के बंद दरवाजे के सामने पहुंचा । मैंने एक बार गलियारे में दायें-बायें निगाह दौड़ाई और फिर चाबी के छेद में मास्टर की डाली ।
ताला पहली ही कोशिश में खुल गया ।
मैं चुपचाप भीतर दाखिल हुआ अपने पीछे मैंने दरवाजा बंद कर लिया और फुर्ती से वहां की भरपूर तलाशी लेने के काम में जुट गया ।
मुझे निराशा ही हाथ लगी ।
मेरे फ्लैट से चोरी गये कागजात वाला भूरा लिफाफा वहां कहीं नहीं था ।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि कौशिक निर्दोष था । हाथ में आते ही उसने वो कागजात नष्ट कर दिये हो सकते थे ।
या उसने वो कागजात छुपाने के तिये अपने होटल सुइट के अलावा कोई और ठिकाना चुना था ।
अगर कौशिक हत्यारा था तो समझ में आने वाली बात ये ही थी कि हाथ आते ही वो कागजात को नष्ट कर देता । लेकिन शायद ऐसा उसने तत्काल न किया हो । शायद वो ये जानने को उत्सुक हो उठा हो कि उसकी तरह और कौन-कौन लोग हीरा से फंसे हुए थे, कैसे फंसे हुंए थे ।
बहरहाल मेरे हाथ वहां से कुछ नहीं लगा था ।
विक्रम होटल सें आई टी ओ तक का लम्बा रास्ता तय करके मैं वापिस पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
मुझे वहां इन्स्पेक्टर यादव से मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन वहां उसका रावत या कृपाल सिंह जैसा कोई मातहत पुलिसिया भी मिल जाता तो मुझे मालूम हो सकता था कि यादव के साथ आखिर क्या हादसा गुजरा था ।
मुझे यादव ही मिला ।
वो अपने कमरे में मौजूद था और अपनी मेज के दराजों में से कुछ सामान निकाल कर एक ब्रीफकेस में भर रहा था ।
उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मुझे उसके चेहरे पर मुर्दनी साफ दिखाई दी ।
“कैसे आये ?” - वो बोला ।
“तुम्हीं से मिलने आया था ।” - मैं बोला - “तुम्हारी बाबत कुछ सुना था । यकीन नहीं हुआ था इसलिए तुमसे तसदीक करने चला आया । सुबह से कान्टैक्ट की कोशिश कर रहा हूं मैं ! सुबह मैसेज भी छोड़ा था ।”
“किस के पास ?”
“कोई सब-इन्स्पेक्टर मकबूल सिंह था ।”
“उसने तो मुझे कुछ नहीं बताया ।”
“मिला था वो तुम्हें ?”
“हां । कई बार । मेरी सीट संभालने के सपने जो देख रहा है ।”
“यानी कि जो मैंने सुना है वो सच है ।”
“क्या सुना है तुमने ?”
“तुम सस्पैंड होने वाले हो ।”
“ये मकबूल सिंह ने कहा ?”
“हां ।”
“उसकी मां की..”
“माजरा क्या है ?”
“थोड़ी देर खामोश बैठो ।”
खामोश बैठने के लिये मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
फारिग होने में यादव ने दस मिनट लगाये ।
“गाड़ी लाये हो ?” - उसने पूछा ।
“हां ।”
“किधर जाओगे ?
“जिधर तुम कहोगे ?”
“वैसे किधर जाओगे ?”
“घर ।”
“ठीक है । मुझे मूलचन्द के चौराहे पर उतार देना ।”
“लेकिन वो खबर...”
“बातें रास्ते में होंगी ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया और उस के साथ हो लिया ।
इमारत से निकल कर हम कार पर सवार हो गये । कार को मैंने ग्रेटर कैलाश जाने वाले रास्ते पर डाल दिया ।
“अब बोलो क्या हुआ ?” - मैं बोला ।
“मेरी कम्पलेंट है ।”
“किस बात की ?”
“रिश्वत खाने की । तुम्हारे दोस्त और क्लायंट लेखराज मदान से उसकी बीवी मधु को छोड़ने की एवज में एक लाख रुपये की रिश्वत्त खाने की ।”
“क्या !”
वो खामोश रहा ।
“शिकायत किसने की ? मदान ने ?”
“नहीं । मेरे ही एक मातहत सिपाही ने । मैटकाफ रोड पर मकतूल शशिकान्त की कोठी पर जब मैं पहुंचा था तो दो सिपाही मेरे साथ थे । जिन्होंने तुम्हारी राय पर मर्डर वैपन की तलाश में कोठी का कम्पाउंड खंगाला था । उनमें से एक चितकबरे चेहरे वाला बडी-बड़ी मूछों वाला सिपाही था । याद आया ?”
“हां ।”
“सेवक राम नाम था उसका । उस कमीने ने मेरी शिकायत की है कि उसने मुझे लेखराज मदान से लाख रुपये रिश्वत मांगते अपने कानों से सुना था ।”
“लेकिन वो तो पुरानी बात है ।”
“इतनी पुरानी नहीं है । अभी दो महीने ही तो हुए हैं मदान के भाई शशिकान्त के कत्ल की वारदात को हुए ।”
“दो महीने भी कोई कम वक्फा नहीं होता । क्यों खामोश रहा वो इतना अरसा ?”
“कहता है बड़े अफसर की बात थी, फुल इंस्पेक्टर की बात थी इसलिए खौफ खाता रहा था ।”
“असल बात क्या है ?”
“असल बात ये है कि वो हरामजादा उस रकम में मेरा हिस्सेदार बनना चाहता था । मैंने फटकार दिया तो वो मेरे खिलाफ हो गया । उसने मेरे ए सी पी से शिकायत कर दी । तलवार वैसे ही मेरे से, मेरी कामयाबी से कुढ़ता रहता है । मेरे को नीचा दिखाने की नीयत से उसने सेवक राम को गले लगा के उसकी बात सुनी और फिर मेरे गले पड़ गया ।”
“एक सुनी सुनाई बात की बिना पर ! तुम्हारे सिपाही ने तुम्हें मदान से लाख रुपया मांगते सुना हो सकता है लेकिन लेते देखा तो नहीं हो सकता !”
“वो ठीक है । तभी तो अभी सस्पैंड कर दिया जाने की धमकी ही मिली है, सस्पैंड किया नहीं गया हूं मैं । लेकिन विभागीय इन्क्वायरी तो होगी । मदान से भी पूछताछ होगी ।”
“तुम उसकी फिक्र न करो । वो तुम्हारे खिलाफ कोई बयान नहीं देगा, इसकी गारंटी मैं करता हूं ।”
“फिर मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला ।”
“ये अजीब बात नहीं कि तलवार ने तुम्हारा - एक इन्स्पेक्टर की बात का - यकीन करने की जगह सेवक राम का - एक सिपाही की बात का - यकीन किया ।”
“मैंने बोला न कि मेरा ए सी पी मेरे से कुढ़ता है और मुझे नीचा दिखाना चाहता है ।”
“क्यों ?”
“मैं अपने स्पेशल स्क्वाड के काम को, अपनी नौकरी को इतनी कामयाबी से अंजाम जो दे रहा हूं । तुम खुद गवाह हो कि मेरा विशेष दस्ता बनाये जाने के बाद से जितने भी कत्ल के केस मुझे सौंपे गये हैं, मैंने सबके सब हल करके दिखाये हैं । यही वजह है कि जिस महकमे में एस आई से इन्स्पेक्टर बनने मे बीस-बीस साल लग जाते है उसमें मैं पांच से भी कम सालों में इन्स्पेक्टर बना था । और भी कितने ही मैडल, कितने ही प्रशस्तिपत्र मुझे मिल चुके हैं । अमरजीत ओबराय के कत्ल के केस में जब मैंने ओबराय मोटर्स से चरस और अफीम का मोटा जखीरा पकड़ा था तो खुद कमिश्नर साहब ने मुझे अपने आफिस में बुलाकर शाबाशी दी थी । कल्याण खरबन्दा और उसकी सैक्रेट्री श्री लेखा के कत्ल के केस में भी...”
“नौकरी को” - मैं धीरे से उसकी बात काटता हुआ बोला - “कामयाबी से अंजाम देने से रिश्वत लेने का लाइसेंस तो नहीं मिल जाता ।”
उसको जैसे एकाएक ब्रेक लगी । उसने आहत भाव से मेरी तरफ देखा । मैंने केवल एक क्षण को गर्दन घुमाकर उसकी निगाह से निगाह मिलायी और फिर सामने देखने लगा ।
कई क्षण खामोशी रही ।
“मेरी छ: बेटियां हैं ।” - फिर यादव धीरे से बोला - “और अभी छ: की छ: कुआंरी हैं ।”
“प्राब्लम तो है भई तुम्हारी ।” - मैं सहानुभूतिरहित स्वर में बोला ।
“एक गलती मेरे से ये भी हुई” - वो बोला - “कि जब कभी भी जो कोई रकम भी हाथ आयी, वो मैं खुद ही हज्म कर गया । मैंने ए सी पी को भी हिस्सेदार बनाया होता तो मेरे से पूछताछ की नौबत ही न आती, उसी ने सेवक राम को डांट के भगा दिया होता ।”
“आइन्दा ये सबक याद रखना ।”
“ये भी कोई कहने की बात है !”
“अब पोजीशन क्या है ?”
“अब पोजीशन ये है कि मुझे डैस्क वर्क दिया जा रहा है जिसे करने को मैं तैयार नहीं । अगर मैं सस्पैंड हो गया तो फिर तो सिलसिला लम्बा चलेगा, डैस्क वर्क से निजात न मिली तो मैं लम्बी छुट्टी पर चला जाऊंगा लेकिन डैस्क वर्क नहीं करूंगा । मैं क्या कोई क्लर्क हूं ! मुंशी हूं !”
“तुम्हारे खिलाफ चार्ज साबित हो गया तो ?”
“तो बहुत बुरा होगा ।” - वो चिन्तित भाव से बोला - “तो नौकरी तो जायेगी ही जायेगी और भी बुरा हो सकता है ।”
और भी बुरा हो सकने के ख्याल से उसके शरीर ने झुरझुरी ली ।
“तुम सेवक राम को अपनी शिकायत वापिस लेने के लिये तैयार नहीं कर सकते ?”
“मैंने ऐसी कोई कोशिश भी की तो ये मेरे खिलाफ अपने आप में सबूत मान लिया जायेगा । अहमतरीन सबूत ।”
“ओह !”
“मैं फिर कहता हूं कि अगर मदान ने मेरे खिलाफ गवाही न दी तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा । फिर बात इतने में ही झूलती रह जायेगी कि सेवक राम कहता रहेगा कि मैंने रिश्वत ली, मै कहता रहूंगा कि मैंने नहीं ली ।”
“हिज वर्ड अगेंस्ट युअर वर्ड ?”
“ऐग्जेक्टली ।” - फिर वो व्यग्र भाव से बोला - “कोहली, मदान से बात कर न ।”
“अभी करता हूं । साथ चलो तुम भी ।”
“मैं नहीं जा सकता । मेरा उसके पास जाना भी वही रंग लायेगा जो सेवक राम के पास जाना रंग लायेगा ।”
“ठीक है । मैं कल ही मदान से मिलूंगा ।”
“आज ही क्यों नहीं मिलता ? अभी क्यों नहीं मिलता ?”
“अभी तुम जो साथ हो ।”
“अरे मुझे गोली मार । मुझे यहां फेंक सड़क पर । तू ये काम पहले कर और कल मुझे कोई गुड न्यूज दे ।”
“ठीक है ।”
कार उस वक्त सुन्दरनगर से गुजर रही यी । मैंने उसे एक किनारे करके रोका ।
“शुक्रिया ।” - वो कार का अपनी ओर का दरवाजा खोलता हुआ बोला ।
“एक बात और बताते जाओ ।” - मैं जल्दी से बोला ।
“पूछो ।”
“तुम्हें शुक्ला फार्म्स पर हुए हीरा ईरानी के कत्ल की खबर है ?”
“खबर है । मेरा ए सी पी खुद तो भागा फिर रहा है उसकी तफ्तीश के लिये ।”
“कुछ कर गुजरेगा ?”
“क्या पता ? फील्ड वर्क का कोई तजुर्बा तो है नहीं उसे । न ही ए सी पी रैंक का कोई पुलिस अफसर ऐसे इंडिपेंडेंट तफ्तीश करता है । वो तो मुझे नीचा दिखाने की नीयत से जोश में मेरी जगह खुद मौकायेवारदात पर पहुंच गया था । कोई बड़ी बात नहीं कि अब अपने रुतबे के लिहाज से अपनी हेठी महसूस कर रहा हो और पछता रहा हो । ये भी कोई बडी बात नहीं कि वो तफ्तीश को अधर में छोड़कर ही केस को किसी मातहत के - जैसे मकबूल सिंह के ही - मत्थे मढ़ दे ।”
“कल आफिस जाओगे ?”
“जब तक सस्पैंड नहीं हो जाता या मेरी छुट्टी कबूल नहीं हो जाती तब तक तो जाना ही पड़ेगा ।”
“बैठागे कहां ?”
“अपनी सीट पर और कहां ।”
“आज तो वहां मकबूल सिंह बैठा था ।”
“मालूम है ! मैंने जाके उसकी मां की बहन की करके उसे कान पकड़ के उठाया था ।”
“ठीक है । कल मैं तुम्हें फोन करूंगा ।”
वो एडवांस मे मेरा शुक्रगुजार होता कार में से उतर गया ।
मैंने कार को वापिस मैटकाफ रोड की ओर दौड़ा दिया ।
अपने भाई शशिकांत के कत्ल के बाद से लेखराज मदान ने अपना बारहखम्बा रोड के होटल वाला पैन्थाउस अपार्टमैंट छोड़ दिया हुआ था और अब वो मैटकाफ रोड पर शशिकान्त वाली कोठी में रहता था ।
***
मदान से मुकम्मल बातचीत करके, उसे यादव के हक में पूरी तरह से सांठ कर जब मैं वापिस ग्रेटर कैलाश अपने फ्लैट पर पहुंचा तब तक नौ बज चुके थे ।
मैं वहां घुसा ही था कि फोन की घन्टी बजने लगी ।
मैंने फोन उठाया ।
रूबी के गोवानी लहजे की वजह से मैंने उसकी आवाज फौरन पहचानी ।
“मिस्टर कोहली !” - वो व्यग्र भाव से बोली - “हम रूबी बोलता । आप पहचाना ?”
“हां, पहचाना ।” - मैं संशय और उत्सुकता मिश्रित भाव से बोला - “कैसे फोन किया ?”
“मिस्टर कोहली, हम मच डेलीब्रेशन के बाद ये नतीजा पर पहुंचा है कि हम को पुलिस पर नहीं आप पर ऐतबार करना मांगता है ।”
“दैट्स वैरी गुड न्यूज । मुझे मालूम था कि तुम्हारा ख्याल बदलेगा ।”
“बदला । तभी हम आपको फोन लगाया । अब हम आपको सब बताना मांगता है । ऐवरीथिंग । आप अभी का अभी इधर आना सकता है ?”
“इधर किधर ?”
“हमारा फ्लैट पर ।”
“तुम अपने फ्लैट से बोल रही हो ?”
“हां ।”
“मैं आता हूं । फौरन आता हूं ।”
“गॉड ब्लैस यू सर ।”
लाइन कट गयी ।
दस मिनट में मैं लाजपत नगर में रूबी के फ्लैट पर था ।
पिछली बार जो दरवाजा मुझे बंद मिला था, जो खुलने पर भी चेन लाक वाले जंजीर के सहारे खुला था, अब वो मुझे बिल्कुल खुला मिला ।
किसी अज्ञात आशंका से आशंकित मैंने चौखट से भीतर कदम रखा ।
भीतर रोशनी थी जिसमें मुझे जो नजारा दिखाई दिया, उसने सिद्ध कर दिया कि मेरी आशंका निर्मूल नहीं थी ।
फर्श पर रूबी की लाश पड़ी थी ।
वो उस घड़ी भी अपनी पहले वाली ही पोशाक में थी लेकिन अब उसकी काली स्कीवी खून से तर दिखाई दे रही थी । खून अभी भी बह रहा था जो इस बात का सबूत था कि उसे गोली लगे ज्यादा देर नहीं हुई थी ।
वैसे भी दस मिनट पहले तो वो फोन पर मेरे से बात कर रही थी इसलिये उसके साथ वो हादसा पिछले दस मिनट के भीतर ही गुजरा होना लाजमी था ।
मैंने झुक कर उसकी नब्ज टटोली ।
नब्ज गायब थी लेकिन, जैसा कि अपेक्षित था, जिस्म अभी गर्म था ।
फिर मुझे लाश से थोड़ी दूर पड़ी रिवाल्वर दिखाई दी ।
अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवाल्वर ।
मेरी रिवाल्वर !
मैंने झपट कर उसे उठा लिया और उसका सीरियल नम्बर पढा ।
निश्चय ही मेरी रिवाल्वर ।
फिर तत्काल मुझे अहसास होने लगा कि जोश में मेरे से भारी भूल हो गयी थी ।
साफ जाहिर था कि कत्ल उसी रिवाल्वर से हुआ था । वो रिवाल्वर मर्डर वैपन थी । मुझे उसको यूं नहीं उठाना चाहिये था । न उठाता तो शायद उस पर से कातिल की उंगलियों के निशान बरामद होते लेकिन अब तो उस पर खुद मेरी उंगलियों के निशान बन गये थे ।
अब मैं क्या करूं ? रिवाल्वर पर से उंगलियों के निशान मिटाऊं और चुपचाप वहां से खिसक जाऊं ?
मुझे वही काम मुफीद लगा ।
लेकिन ऐसा कुछ कर पाने का मौका मुझे नसीब न हुआ ।
“खबरदार !” - एक कड़कती आवाज मेरे कानों में पड़ी ।
मैंने घूमकर देखा तो ए सी पी तलवार को चौखट पर खड़े पाया ।
“आप” - मैं वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला - “कहां से टपक पड़े, आला हजरत ?”
“रंगे हाथों पकड़े गये हो, मिस्टर प्राइवेट डिटेक्टिव ।”
“क्या मतलब ? आप समझ रहे हैं खून मैंने किया है ?”
“शक की कोई गुंजायश है ? रिवाल्वर अभी भी तुम्हारे हाथ में है ।”
“मैंने खून नहीं किया ।”
“पकड़े जाने पर हर खूनी ये ही कहता है ।”
“मैं खूनी नहीं हूं । मेरी इस लड़की से क्या अदावत थी ?”
“ये तफ्तीश का मुद्दा है ।”
तभी पीछे सीढियों की तरफ कदमों की आहट हुई । मेरी निगाह अनायास ही उधर उठी । तलवार ने भी घूम कर उधर देखा ।
एक वृद्ध व्यक्ति दरवाजे पर प्रकट हुआ । वो फटी-फटी आंखों से रूबी की फर्श पर पड़ी लाश को देखने लगा ।
इससे पहले कि उसकी निगाह मेरी तरफ उठती, मैंने रिवाल्वर वाला हाथ पीठ पीछे कर लिया ।
“क-क- क्या” - वो हकबकाया - “क्या हुआ ?”
“तुम कौन हो ?” - तलवार डपट कर बोला ।
“म-मकान मालिक ।”
“यहां कैसे आये ?”
“किराये की बा- बाबत पूछने आया था । रूबी ने इ - इस महीने का कि-किराया नहीं दिया अभी तक इस- इसलिये...”
“नीचे जाओ । मैं असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर हूं । रूबी का खून हो गया है ।”
वो चौखट से तो हट गया लेकिन वहां से रुखसत न हुआ । थर्राया सा वो सीढ़ियों के दहाने पर जाकर खड़ा हो गया ।
तलवार फिर मेरी तरफ घूमा ।
“आप यहां कैसे पहुंचे ?” - उसके मुंह खोलने से पहले मैं बोल पड़ा ।
“रूबी से ही एक बार फिर बात करने आया था ।” - वो सहज भाव से बोला ।
“अकेले ?”
“और वर्दी के बिना । लड़की की तसल्ली को खातिर । बिना पुलिसिया रोब के इसे अपने कान्फीडेंस में लेने की खातिर । लेकिन तुमने वो नौबत ही न आने दी । पहले ही इसक खून कर दिया ।”
“मैं कई बार कह चुका हूं कि मैंने इसका खून नहीं किया ।”
“फिर तो रिवाल्वर जरूर जादू के जोर से तुम्हारे हाथ में पहुंच गयी होगी ।”
“लेकिन....लेकिन..”
“रिवाल्वर जहां से उठाई थी” - वो कर्कश स्वर में बोला - “वापिस वहीं रख दो । फौरन ।”
“आपको मेरी बात पर एतबार नहीं ?”
“सुना नहीं ।”
“हुजूर यहां अकेले आये हैं ।”
“तो ?”
“अगर आप की जिद मुझे ही खूनी समझने की है तो मैं अभी आपको भी शूट कर देता हूं और चुपचाप यहां से खिसक जाता हूं ।” - मैंने पीठ पीछे से हाथ सामने लाकर रिवाल्वर की नाल का रुख उसकी तरफ किया - “ऐनी प्राब्लम ?”
उसके छक्के छूट गये ।
“वो...वो..वो...बूढा...रूबी का मकान मालिक...”
“ओह ! उसे तो मैं भूल ही गया था । खूब याद दिलाया, जनाब । गोली चलने की आवाज सुनकर उत्सुकता का मारा वो शर्तिया यहां आएगा । ये देखने कि क्या हो गया था ! फिर...”
मैंने रिवाल्वर का घोड़ा खींचने का अभिनय किया और बड़े सहज भाव से मुस्कराया ।
“तो...तो...तुम कहते हो कि खून तुमने नहीं किया है ?”
“नहीं किया है । मैं आप के आगे-आगे ही यहां पहुंचा हूं । ये मुझे वैसे ही यहां मरी पड़ी मिली थी जैसे आप देख रहे हैं ।”
“आये क्यों थे यहां ?”
“इसी के बुलाने पर आया था । ये मुझ से कोई बात करना चाहती थी जिसकी वजह से इसने मुझे फोन करके यहां आने को कहा था ।”
“क्या बात करना चाहती थी ?”
“मालूम नहीं । जिन्दा मिलती तो बताती !”
“फोन पर कुछ नहीं बताया इसने ?”
“नहीं ।”
“तुमने पूछा भी नहीं था ?”
“पूछा था लेकिन इसने कुछ बताया नहीं था । मैंने ज्यादा जिद इसलिए नहीं की थी क्योंकि मैंने करीब से ही - ग्रेटर कैलाश से - यहां पहुंचना था ।”
“तुम से क्यों बात करना चाहती थी ?”
“मैं दिन में इससे मिला था । मौकायेवारदात पर जब आप इससे पूछताछ कर रहे थे तो मुझे लगा था कि ये कुछ छुपा रही थी ।”
“वो तो मुझे भी लगा था । तभी तो मैं फिर यहां आया ! अकेला । बिना वर्दी के । इसे अपने कांफिडेंस में लेकर इससे कुछ उगलवाने की नीयत से ।”
“ऐन ऐसी ही नीयत से मैं इससे मिलने यहां आया था लेकिन मेरी दाल नहीं गली थी । अपनी उम्मीद के खिलाफ मुझे इससे ये जवाब मिला था कि इसका ऐतबार एक प्राइवेट डिटेक्टिव के मुकाबले में पुलिस में ज्यादा था ।”
“समझदार लड़की थी ।”
“लेकिन अपनी समझ पर इसने अमल तो न किया । इसने पुलिस को फोन तो न किया । उसने तो मुझे फोन किया !”
“क्या कहने के लिये ?”
“यही कि इसका इरादा बदल गया था । अब इसको पुलिस से ज्यादा मेरे पर एतबार था । ये मुझे सब कुछ बताने को तैयार थी इसलिये मैं यहां दौड़ा चला आया ।”
“ये क्या सब कुछ बोलने को तैयार थी, इसका इसने हिंट तक नहीं दिया था ?”
“न ।”
“लेकिन खास कुछ जानती जरूर थी ये ?”
“जाहिर है ।”
“तुम्हारा अंदाजा क्या है ? क्या जानती थी ?”
“कातिल के बारे में ही कुछ जानती होगी । इसे मालूम होगा कि इसकी एम्प्लायर का कातिल कौन था या कौन हो सकता था ! कातिल भी इससे आशंकित होगा इसलिए जाहिर है कि वो भी इस की टोह में रहा होगा । फिर इससे पहले कि ये अपनी जुबान खोल पाती, उसने इसकी जुबान को हमेशा के लिये बंद कर दिया ।”
“तुम्हारी इस स्टोरी से ही मैं यकीन नहीं कर लेने वाला कि कातिल तुम नहीं हो ।”
“मैं कातिल नहीं हूं । सौ बार कहा । मैं तो महज...”
“रिवाल्वर तुम्हारे हाथ में क्यों थी ?”
“मैंने हड़बड़ी में उठा ली थी जो कि मेरी गलती थी ।”
“हड़बड़ी की वजह ?”
“ये रिवाल्वर मेरी है ।”
“क्या ?”
“मैं खुद सख्त हैरान हुआ था इसे यहां देखकर । मुझे तो पता भी नहीं था कि ये चोरी जा चुकी थी ।”
“रिवाल्वर यहां कहां पड़ी थी ?”
मैंने फर्श पर उस जगह की ओर इशारा किया जहां से मैंने रिवाल्वर उठाई थी ।
“तुमने फासले से फर्श पर पड़ी रिवाल्वर देखी और पहचान ली कि वो तुम्हारी थी ?”
“हां । अपनी चीज की पहचान ऐसे हो ही जाती है, जनाब । फिर सीरियल नंबर चैक करने पर तस्दीक हो गयी थी कि रिवाल्वर सच में ही मेरी थी ।”
“तुम्हें रिवाल्वर यूं नहीं उठानी चाहिये थी ।”
“मैं शर्मिन्दा हूं अपनी गलती पर ।”
“तुम्हारी रिवाल्वर कब चोरी गयी ?”
“क्या पता कब चोरी गयी ? मुझे ये यहां न दिखाई दे जाती तो मेरी निगाह में तो ये अभी भी मेरे फ्लैट पर मेरी मेज के दराज में मौजूद थी ।”
“आखिरी बार वहां रिवाल्वर कब देखी थी ?”
“ध्यान नहीं लेकिन एक डेढ़ महीना तो हो ही गया होगा ।”
“तुम्हारे पास लाइसेंस है रिवाल्वर का ?”
“हां ।”
“कब से है ?”
“पांच साल से ।”
“रिन्युड अपटुडेट ?”
“हां ।”
“हथियार को सम्भाल कर लॉक एण्ड की में रखना लाइसेंसधारी का फर्ज होता है, उसकी जिम्मेदारी होती है ।”
“मैं अपने फर्ज से वाकिफ हूं ।” - मैं चिड़ कर बोला - “गैरजिम्मेदार भी नहीं मैं । लेकिन चोरी किसी की भी हो सकती है ।”
“यू शुड दी मोर केयरफुल ।”
“रिवाल्वर वापिस मिल जायेगी तो हो लूंगा मोर केयरफुल ।”
“ये तो अब मिलते मिलते ही मिलेगी । ये मर्डर वैपन है । शायद न भी मिले ।”
“न भी मिले !” - मैं हैरानी से बोला - “क्या मतलब ?”
“अगर तुम कातिल साबित हुए तो रिवाल्वर तुम्हें - कातिल को ही - कैसे सौंप दी जायेगी ?”
“ओह माई गॉड !”
“रिवाल्वर को वापिस वहीं रखो जहां से उसे उठाया था ।”
मैंने अनिश्चित भाव से उसकी तरफ देखा ।
“जैसा कहा है, वैसा करो ।” - वो नम्र स्वर में बोला - “धमकी देने में और उस पर अमल करके दिखाने में बहुत फर्क होता है । तुम यूं एक सीनियर पुलिस आफिसर को शूट नहीं कर सकते । आल हैल विल ब्रेक लूज इफ यू डू दैट ।”
वो ठीक कह रहा था ।
मैंने उसकी आज्ञा का पालन किया ।
“दैट्स लाइक ए गुड बॉय ।”
“तब मेरी तवज्जो राइटिंग टेबल की तरफ गयी । मैंने देखा कि खुला लैटरपैड और उस पर रखा बालपैन अभी भी वहां मौजूद थे लेकिन लैटरपैड का ऊपरला पन्ना एकदम खाली था ।
“शाम को जब मैं यहां आया था” - मैं बोला - “तो ये आगरे में रहती अपनी बहन को चिट्ठी लिख रही थी । हो सकता है जो कुछ ये मुझे बताना चाहती थी, वो उसने चिट्ठी में अपनी बहन को लिखा हो ।”
“बहन का नाम पता बोलो ।” - तलवार बोला ।
“वो तो मुझे नहीं मालूम ।”
“फिर क्या फायदा हुआ ?”
“यहां की तलाशी में बहन का पता बरामद हो जाना कोई बड़ी बात नहीं । कोई पुरानी चिट्ठी, कोई पतों की डायरी...”
“ठीक है । ठीक है ।”
“चिट्ठी वो बालपैन से लिख रही थी । बालपैन पेपर पर गहरी छाप छोड़ता है जो कि पैड के अगले पेपर तक भी पहुंच जाती है । अगर उसने बहन को चिट्ठी लिखने के बाद और भी चिट्ठियां नहीं लिखी होंगी तो इस लैटरपैड के सब से ऊपरले कागज पर...”
“आई अन्डरस्टैंड ।” - वो यूं अप्रसन्न भाव से बोला जैसे वो वो सलाह मेरे से हासिल होने पर उसकी हेठी हो रही हो - “आई नो माई बिजनेस बैटर दैन यू ।”
उसने मेज पर से लैटरपैड उठाकर अपने अधिकार में ले लिया ।
“अब मैं” - फिर वो टेलीफोन की ओर बढ़ता हुआ बोला - “महकमे में फोन करता हूं ।”
लेकिन फोन करने की जरूरत न पड़ी । वो अभी टेलीफोन के करीब भी नहीं पहुंचा था कि धड़-धड़ करते कई पुलिसिये वहां घुस आये ।
सब वही लोग थे जिन्हें मैं यादव के स्पेशल स्क्वाड के साथ अक्सर देखा करता था ।
तलवार को देखकर सब एकाएक ठिठके, फिर सबने सैल्यूट मारा ।
“कैसे आ गये ?” - तलवार हैरानी से बोला - “कैसे खबर लगी ?”
“कन्ट्रोल रूम में फोन आया था, सर ।” - उड़द की दाल के आटे की तरह अकड़ा खड़ा युवा ए एस आई रावत तत्पर स्वर में बोला - “कि यहां एक कत्ल हो गया था और कातिल अभी भी मौकायेवारदात पर ही मौजूद था ।”
“फोन करने वाला कौन था ?”
“मालूम नहीं, सर । उसने अपना नाम नहीं बताया था ।”
“ये पता चला कि फोन कहां से हुआ था ?”
“अभी नहीं लेकिन चल जाएगा, सर ।”
मैं जानता था कि वो बात रावत इतने विश्वास के साथ कैसे कह रहा था । दिल्ली के हर टेलीफोन एक्सचेंज में ऐसा इन्तजाम था कि जिस किसी फोन से भी पुलिस कंट्रोल रूम का 100 नम्बर डायल किया जाता था, वो फोन तब तक हैल्ड अप ही रहता था जब तक कि उसे एक्सचेंज से फ्री नहीं किया जाता था । यूं एक्सचेंज से पुलिस को खबर लग जाती थी कि 100 नम्बर कहां से डायल किया गया था ।
“सर” - भूपसिंह बोला - “आप यहां कैसे...”
“मैं भी तफ्तीश के लिये ही आया था ।” - तलवार बोला - “लेकिन कत्ल की खबर मुझे यहीं आकर लगी थी ।”
“ओह !” - रावत बोला, फिर उसने उलझनपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा ।
“साहब को हिरासत में ले लो ।” - तलवार ने आदेश दिया ।
“क्या !” - मैं हैरानी से चिल्लाया ।
“शट अप !” - वो मेरे से ज्यादा ऊंची आवाज में चिल्लाया ।
मैं हकबका कर चुप हो गया ।
अब मुझे अहसास हो रहा था कि उसकी पुच-पुच निहायत फर्जी थी, वक्ती थी, मेरे से रिवाल्वर वापिस रखवाने की खातिर थी ।
दो सिपाही मेरे दायें-बायें आ खड़े हुए ।
“अगर” - एकाएक मैं बोला - “मुझे हिरासत में लेना है तो पहले मेरी तलाशी लो ।”
“क्या !” - तलवार अचकचा कर बोला ।
“मैं मांग करता हूं कि हिरासत में लिये जाने से पहले मेरी मुकम्मल जामातलाशी ली जाये ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मैं ऐसा चाहता हूं ।”
“तुम्हारी बकझक सुनना हमारे लिये जरूरी नहीं ।”
“ए सी पी साहब आप के इस पुलिस दल बल में कम से कम तीन सूरतें ऐसी हैं जिन्हें मैं बहुत अच्छी तरह से पहचानता हूं । ये ए एस आई कृपाल सिंह है, ये ए एस आई रावत है, ये सिपाही अनन्त राम है । इतने जने मेरे गवाह हैं कि हिरासत से पहले मैंने अपनी जामातलाशी की मांग की जो कि आपने कबूल न की ।”
“लेकिन तुम ऐसा चाहते क्यों हो ?”
“वजह तलाशी से सामने आ जायेगी ।”
“तुम्हारे पास ऐसा कुछ है जो तुमने मेरे आने से पहले यहां से उठाया है ?”
“मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है । होता तो मैं तलाशी की मांग करता !”
“तुम किस फिराक में हो ?”
“मैंने और कुछ नहीं कहना ।”
“ठीक है । हवालात में बन्द किये जाने से पहले तुम्हारी तलाशी ली जायेगी जैसा कि कायदा है ।”
“कायदा मुझे मालूम है । मैं चाहता हूं कि तलाशी अभी इसी वक्त हो और मेरे पास मौजूद हर चीज की एक लिस्ट बने जिसकी कि एक प्रति मुझे भी मिले ।”
“तुम पागल हो ।”
“तो हवालात की जगह पागलखाने भिजवा दीजिये हुजूर, लेकिन तलाशी वहां भी होती है ।”
“सर” - युवा ए एस आई रावत खुशामदभरे स्वर में बोला - “इसी की मान जाइये । मामूली बात है ।”
“लेकिन कोई वजह तो हो...”
“अभी इसकी मान जाइये, सर । बाद में जब ये हवालात में होगा तो देख लेंगे इसे ।”
तलवार को उसकी वो बात जंची ।
“आल राइट ।” - वो मेरे से बोला - “अनड्रैस ।”
मैंने अपने कपड़े उतार कर सोफे पर डाल दिये ।
“ये भी ।” - वो मेरे अन्डरवियर की ओर इशारा करता हुआ बोला ।
मेरे कपड़े बारीकी से टटोले गये, उनमें से बरामद सामान की लिस्ट बनाकर एक तसदीकशुदा कापी मुझे दी गयी और फिर मेरा सामान और मेरे कपड़े मेरे हवाले कर दिये गये ।
मैंने कपड़े पहन लिये ।
“क्या मिला ?” - तलवार भुनभुनाया ।
“आपको कुछ नहीं मिला ।” - मैं शान्ति से बोला - “मुझे मिला ।”
“क्या ?”
“जो नहीं मिला ।”
“क्या नहीं मिला ?”
“जो मिलता तो आपको मिलता । नहीं मिला तो मुझे मिला ।”
“तुम...तुम पागल हो ।”
मैं केवल मुस्कराया ।
“इसे” - वो रावत से बोला - “ले जा के नीचे जीप में बिठाओ ।”
रावत ने सहमति से सिर हिलाया और मेरी बांह थामता हुआ बोला - “चलो भई ।”
“मैं फोन करना चाहता हूं ।” - मैं बोला ।
“किसे ?” - तलवार सख्ती से बोला ।
“अपने वकील को ।”
“नीचे कहीं से फोन करवा देना इसे ।” - वो रावत से बोला ।
“यस, सर ।” - रावत तत्पर स्वर में बोला ।
“यहीं से क्यों नहीं ?” - मैं बोला ।
“शट अप !” - तलवार गुर्राया ।
“लेकिन जब फोन यहीं....”
“रावत ! सुना नहीं !”
“चलो भई ।” - बौखलाता हुआ रावत मुझे बांह पकड़ कर घसीटने लगा ।
मैं रावत के साथ हो लिया ।
फोन के मामले में रावत ने मेरा लिहाज किया । उसने मुझे एक नहीं, कई फोन कर लेने दिये । मैंने आननफानन दिल्ली शहर में अपने परिचित उन तमाम लोगों के फोन खटखटा दिये जो कि मेरी मौजूदा दुश्वारी से मुझे निजात दिलवा सकते थे ।
जैसे हीरा की फैन क्लब के चारों चार्टर्ड मैम्बर कौशिक, पचौरी, अस्थाना, बैक्टर ।
जैसे शहर का बड़ा दादा जान पी एलैग्जेंडर ।
जैसे शहर का बड़ा डाक्टर प्रदीप कोठारी ।
जैसे नौजवान धनाड्य विधवा परमसुंदरी कमला ओबराय ।
जैसे गल्ले का व्यापारी मशहूर काला बाजारिया लाला हवेली राम ।
जैसै कांग्रेसी नेता जनार्दन गुप्ता ।
जैसे न्यू पंजाब काटन मिल का मालिक त्रिलोचन सिंह ।
जैसे फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर और एग्जीबिटर अहमद खान ।
जैसे मेरा स्टाक ब्रोकर दोस्त नरेन्द्र कुमार ।
जैसे पब्लिशर और बुक डिस्ट्रीब्यूटर पंचानन मेहता ।
जिंदगी की किसी न किसी स्टेज पर मैं इनमें से हर किसी के काम आया था और मैं उम्मीद कर रहा था कि मेरी दुश्वारी की घड़ी में वो मेरे काम आयेंगे । किसी से मेरी सीधे बात हुई तो किसी के लिये मैंने सन्देश छोड़ा ।
नतीजा सामने आने तक आधी रात हो गयी ।
ए सी पी तलवार तब भी हैडक्वार्टर में मौजूद था जिसने कि बड़ी अनिच्छा से मुझे बताया कि मैं फिलहाल रिहा किया जा रहा था लेकिन मैंने शहर से कहीं खिसक नहीं जाना था ।
उसी ने मुझे बताया कि मेरी रिहाई का इन्तजाम जान पी एलैग्जेंडर ने करवाया था ।
यानी कि दिल्ली शहर में वहां के संभ्रांत गणमान्य व्यक्तियों के मुकाबले में एक गैंगस्टर का रसूख ज्यादा था ।
“जनाब” - मैं तलवार से बोला - “वो मेरी रिवाल्वर...”
“नहीं मिल सकती ।” - वो सख्ती से बोला - “पहले भी बोला ।”
“मुझे उसकी जरुरत है ।”
“क्यों जरूरत है ?”
“क्योंकि मौजूदा हालात का इशारा जो मुझे मिल रहा है, वो ये है कि मुझे प्रोटेक्शन की जरुरत है । मैं हीरा से मिलने गया तो उसका कत्ल हो गया । मैं रूबी से मिलने गया तो उसका कत्ल हो गया । मुझे तो लनता है कि हत्यारा, जो कोई भी वो है साये की तरह मेरे पीछे लगा हुआ है । वो जानता था कि रूबी मुझे कुछ बताने वाली थी इसलिए उसने उसका कत्ल कर दिया । अब अगर उसे ये अंदेशा हुआ कि रूबी मुझे कुछ बता के मरी थी तो वो मेरी जान लिये बिना भी नहीं मानेगा । जनाब, मौजूदा हालात में मेरा हरदम तैयार और चौकन्ना रहना जरूरी है और ये काम हथियार बिना नहीं हो सकता ।”
“रिवाल्वर नयी खरीद लो ।”
“आप तो यूं कह रहे हैं जैसे बात लॉलीपोप खरीदने की हो रही हो । रिवाल्वर लाख रुपये की आती है जनाब, बल्कि सवा लाख की !”
“दैट्स युअर प्राब्लम ।”
“कम से कम ये अख्तियार तो मुझे दीजिये कि जब तक मेरी रिवाल्वर पुलिस के कब्जे में है, तब तक मैं कोई और रिवाल्वर - खरीद कर या किसी से उधार लेकर - अपने पास रख सकता हूं ।”
वो कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने अपना लैटरपैड निकाला और उस पर चन्द शब्द घसीट कर कागज मेरे सामने फेंक दिया ।
“ये अधिकार पत्र” - वो तसल्ली से बोला - “मैं इस उम्मीद के साथ तुम्हारे नाम जारी कर रहा हूं कि बहुत जल्द तुम फिर कोई कत्ल करोगे और इस बार मैं तुम्हें गिरफ्तार करने की जगह मौकायेवारदात पर ही शूट कर दूंगा । मुझे अफसोस है कि ऐसा मैं इस बार नहीं कर सका ।”
“क्योंकि ऊपर से रूबी का मकान मालिक आ गया या था ?” - मैं उपहासपूर्ण स्वर में बोला ।
“क्योंकि मैं वर्दी में नहीं था और इसलिये हथियारबंद नहीं था ।”
“आप मजाक कर रहे हैं ।”
“जान पी एलैग्जेन्डर को कैसे जानते हो ?”
“प्रायमरी स्कूल में हम दोनों इकट्ठे पढ़ते थे ।”
उसने कोई सख्त बात कहने को मुंह खोला लेकिन तभी फोन की घंटी बज पड़ी । उसने हाथ बढ़ाकर फोन उठाया और उसे कान से लगा लिया । तत्काल मैंने उसके चेहरे पर सम्मान के भाव आते देखे । वो कुछ क्षण फोन पर यस सर, यस सर करता रहा और फिर उसने रिसीवर वापिस क्रेडल पर रख दिया । फिर उसने ऐसे विचित्र भाव से मेरी तरफ देखा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया का प्राणी था ।
“लेफ्टिनेंट गवर्नर का फोन था ।” - फिर उसने स्वयं बताया - “तुम्हारी ही बाबत ।”
“कमाल है ! मैंने तो उन्हें कभी करीब से भी नहीं देखा ।”
“कोई डाक्टर प्रदीप कोठारी उन तक पहुंचे थे । आधी रात को । तुम्हारी रिहाई की खातिर । अभी भी वो लेफ्टिनेंट गवर्नर हाउस में ही मौजूद हैं जहां कि उन्होने एल जी साहब को सोते से जगाया है और यहां फोन करवाया है ।” - उसने फिर घूर कर मुझे देखा और बोला - “क्या चीज हो, भई, तुम ?”
“खिदमतगार । अहसान मानने वाले लोगों का । अहसान फरामोशों का भी । सुधीर कोहली, दि ओनली वन ।”
“अब जाओ और जा कर अपनी आजादी एनजाय करो वरना ऐसा न हो कि मैं अपने पर पड़ते दबाव को नजरअन्दाज कर दूं और तुम्हारी बाबत अपना ख्याल बदल दूं ।”
मैं तत्काल उठ कर खड़ा हुआ और मैंने बड़ी मुस्तैदी से उसे पुलिसिया सैल्यूट मारा ।
“जाने से पहले एक बात बता के जाओ ।” - वो अप्रसन्न स्वर में बोला ।”
“कौन-सी बात ?”
“जामातलाशी की इतनी जिद क्यों थी तुम्हारी ?”
“कोई खास वजह नहीं थी । सिवाय इसके कि कभी पुलिसियों के बीच नंगे खड़े होने की मेरी बड़ी पुरानी ख्वाहिश थी ।”
“तुम जरूर पागल हो ।”
“गुडनाइट, सर । रादर गुडमोर्निंग, सर ।”
उसने जवाब न दिया ।