मोना चौधरी और महाजन जब बीच के पास स्थित होटल में पहुँचे तो लंच का वक्त हो रहा था । वापसी के दौरान उनमें कोई खास बात नहीं हुई । दोनों चुपचाप से ही थे ।
उनके पीछे-पीछे ही छोकरा आ गया ।
“लंच का ऑर्डर है साहब जी ?” उसने पूछा ।
“नशा किया तूने ?” महाजन ने उसे घूरा ।
“नहीं साहब !” उसने कानों को हाथ लगाया, “ये काम तो मैंने बन्द कर दिया है । कसम से । तौबा कर ली ।”
“सुखी रहेगा । घर-परिवार बस जायेगा तेरा ।” महाजन ने कहा, “बोतल लेकर आ ।”
“अभी लाया ।” कहने के साथ ही वह फौरन बाहर निकल गया ।
मोना चौधरी ने कुर्सी पर बैठकर टाँगें फैला ली थीं ।
“गणपत सेठ से क्या कहना है बेबी ?”
“यही कि यहाँ पर ऐसे हालात नहीं थे कि ड्रग्स पर हाथ डाला जाये ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।
“मेरे ख्याल में वो दो करोड़ को आसानी में नहीं भूलेगा, जो उसने पारसनाथ को दिए थे ।”
“वो दो करोड़, मेरे यहाँ तक आने और हालातों का जायजा लेने के लिए थे ।” मोना चौधरी के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था, “फिर भी उसने भारी एतराज उठाया तो उसका पैसा रखने का मेरा खास मन नहीं है । दो करोड़ उसे वापस मिल जायेगा ।”
महाजन सिर हिलाकर रह गया ।
तभी छोकरे ने भीतर प्रवेश किया और बोतल महाजन को थमा दी ।
महाजन ने बोतल खोलकर घूँट भरा फिर उसे देखा ।
“लंच के लिए ऑर्डर साहब जी ?” उसने फिर पूछा ।
“जो बढ़िया, ताजा सामान बना हो, वो ले आना । बाकी अपनी अक्ल का इस्तेमाल करना ।”
“समझ गया साहब जी !”
“क्या नाम है तेरा ?”
“बिशना ।”
“ठीक है । लंच एक घण्टे से पहले मत लाना ।”
“जी !”
“एक बात तो बता ।” महाजन ने पुनः घूँट भरा ।
“क्या साहब जी ?”
“यहाँ किसी अजीब से जानवर की बात सुनी है, उसे किसी ने देखा हो । वो न तो इंसान लगता है और न जानवर ?”
बिशना के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे ।
“मैं समझा नहीं साहब जी, आप क्या पूछना चाहते हैं ?” उसने अजीब-से स्वर में कहा ।
“नहीं समझा ?”
“नहीं !” बिशना ने इंकार में सिर हिलाया ।
“बस, यही जानना था । जा ।”
“जी !”
“जा प्यारे ! एक घण्टे बाद लंच ले आना । जो मैं पूछ रहा था, उसका जवाब मुझे मिल गया ।”
उलझन में लिपटा बिशना बाहर निकल गया ।
महाजन ने घूँट भरने के बाद बोतल बन्द करके टेबल पर रखी ।
“तुम्हारा क्या ख्याल है बेबी !” महाजन ने लापरवाही से कहा, “विनोद और सोनिया ने जो बताया वो... ?”
“वो सच है या झूठ, हमें उस बात से कोई वास्ता नहीं !” मोना चौधरी कह उठी, “मैं सिर्फ इतना जानती हूँ कि वो हमारा रास्ता नहीं ! उस बारे में हमें सोचने की जरूरत नहीं ! हम यहाँ अपने काम के लिए आये थे और अब वापस जायेंगे ।”
महाजन ने जवाब में कन्धे उचकाए और मुस्कराकर बोला ।
“अभी वापस चलना है क्या ?” सुबह जल्दी उठे थे । पैदल ही काफी लम्बा रास्ता तय किया । आराम कर लिया जाये तो ठीक रहेगा ।”
“कोई जल्दी नहीं ! तुम आराम कर सकते हो ।”
“राइट बेबी ! लंच के बाद मैं नींद मारूँगा । शाम को यहाँ से चलेंगे । हमारी कार तो रही नहीं ! बीच के पार्किंग में खड़ी कारों में से किसी कार पर चल पड़ेंगे । आगे कहीं छोड़ देंगे ।”
बिशना ठीक एक घण्टे बाद लंच ले आया । लंच बढ़िया था ।
हर जरूरत की चीज़ वह फौरन हाजिर करता था । लंच का काम खत्म हो गया तो वह बोला ।
“साहब जी ! मैंने मालिक से पैसे एडवांस लिए हैं । शाम की चाय के बाद मैं दो दिन की छुट्टी लेकर घर जा रहा हूँ । गौरी को पैसे दूँगा । वो नाराज है । उसे मना लूँगा ।”
महाजन ने मुस्कराकर उसे देखा ।
“वक्त पर समझ आ गई तेरे को ।” महाजन ने कहा, “हम थके हुए हैं । इसलिए हमें शाम की चाय देने मत आना । वैसे भी नींद के बाद हम होटल ख़ाली करके वापस जा रहे हैं ।”
“ओह, आप लोग भी जा रहे हैं !”
महाजन ने जेब से सौ-सौ के कुछ नोट निकाले और उसकी तरफ बढ़ाकर बोला ।
“ले । जो पैसे गौरी को देगा, उनमें ये पैसे भी डाल लेना । आगे की जिंदगी बन्दों की तरह जीना । नशे में, जानवर बनकर नहीं !”
“मैं याद रखूँगा साहब जी ! अब कभी भी नशा नहीं करूँगा ।” बिशना नोटों को लेते हुए खुशी से बोला, “बहुत-बहुत मेहरबानी साहब जी ! दोबारा जब भी यहाँ आएँ तो इसी होटल में ठहरियेगा । मैं आपकी सेवा करूँगा ।”
बिशना विदा लेकर चला गया ।
मोना चौधरी और महाजन थकान से भरे नींद में डूब गए ।
☐☐☐
शाम साढ़े पाँच बजे महाजन की आँख खुली ।
मोना चौधरी नहा-धोकर कपड़े बदल चुकी थी ।
“ओ•के• बेबी !” महाजन उठता हुआ बोला, “मैं आधे घण्टे में बिल्कुल तैयार हाजिर होता हूँ । फिर चलते हैं ।” कहने के साथ ही महाजन बाथरूम में चला गया ।
मोना चौधरी कमरे से बाहर आ गई । आसमान में बादल का बड़ा-सा टुकड़ा, सूर्य के सामने आ खड़ा हुआ था । जिसकी वजह से छाया फैली हुई थी । समन्दर के पानी से टकराकर आती ठण्डी हवा ने मौसम को और भी बढ़िया बना दिया था । दीवार के पास आकर मोना चौधरी ने बीच पर निगाह मारी ।
वहाँ युवा, छोटी-बड़ी उम्र के जोड़े मौज-मस्ती के दौर से गुजर रहे थे ।
आहट पाकर मोना चौधरी तुरन्त पलटी तो चालीस बरस के व्यक्ति को सीढ़ियों के पास खड़ा पाया । वह होटल का कर्मचारी ही लग रहा था । आगे बढ़ता वह कह उठा ।
“मैडम, गुड इवनिंग ! शाम की चाय या कोई और ऑर्डर हो तो कहिये ।”
“बिशना कहाँ है ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
“वो तो आधा घण्टा पहले ही गाँव चला गया । अपने घर । यहाँ से दो-चार किलोमीटर दूर ही है उसका गाँव । जाते-जाते उसने मुझसे वायदा लिया कि आपकी हर जरूरत का ख्याल रखूँ और 'टिप' नहीं लेनी है ।” कहकर वह मुस्कुरा पड़ा ।
“एक चाय ले आओ ।”
“यस मैडम !” वह चला गया ।
मोना चौधरी दीवार के पास खड़ी बीच पर नजरें दौड़ाने लगी । चेहरे पर शांत भाव थे । जल्दी ही वह चाय ले आया । खुले में पड़े टेबल पर उसने चाय का प्याला रखा और चला गया ।
मोना चौधरी कुर्सी पर बैठकर चाय के घूँट भरने लगी ।
महाजन नहा कर, कपड़े बदलकर आ पहुँचा ।
“रेडी बेबी !”
“चाय के बाद चलते हैं ।”
“कोई जल्दी नहीं ! रात भर का सफर है । जब कहो तभी चल पड़ेंगे ।”
“होटल का बिल पे कर आओ ।”
महाजन सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे चला गया ।
मोना चौधरी ने अभी आधी चाय ही समाप्त की होगी कि उसके कानों में पुलिस सायरन की आवाजें पड़ने लगीं । वह चौंकी । जल्दी से उसने चाय का प्याला टेबल पर रखा और फुर्ती के साथ होटल के सामने उस तरफ वाली दीवार के पास पहुँची और बाहर झाँकने लगी ।
नीचे सड़क थी । शाम की वजह से सड़क पर चहल-पहल थी ।
मोना चौधरी को ऊपर से दो पुलिस कारें नजर आईं, जो कि इस तरफ ही आ रही थीं । उनके सायरन बराबर बज रहे थे । लोग सड़क पर से एक तरफ होने लगे । देखते-ही-देखते पुलिस कारें नीचे सड़क पर से निकलकर आगे बढ़ गईं । इनके पीछे अन्य दो कारें भी थीं । आगे जाकर वे दायीं तरफ मुड़ती चली गईं । सायरन की आवाजें धीमी पड़ने लगी थीं अब । सड़क पर पुनः सामान्य चहल-पहल शुरू हो गई ।
मोना चौधरी ने गहरी साँस ली और वहाँ से हटकर उस तरफ वाली दीवार के पास आ खड़ी हुई, जिधर से बीच का नजारा स्पष्ट नजर आता था । चाय की गर्माहट तो खत्म हो चुकी थी इसलिए बाकी चाय नहीं पी ।
साढ़े छः बज रहे थे । शाम पूरी तरह ढलने लगी थी ।
“बहुत देर लगा दी ।” मोना चौधरी उसे देखते ही बोली, “कहीं दूर चले गए थे क्या ?”
“पुलिस सायरन की आवाज सुनी थी ।” महाजन कुर्सी पर बैठता हुआ बोला ।
मोना चौधरी सहमति से सिर हिलाती हुई कुर्सी पर आ बैठी ।
“उसके बारे में मालूम कर रहा था ।” महाजन ने कहा, “पुलिस को किसी ने वहाँ मौजूद सरकारी गनमैनों की लाशों की खबर कर दी है । हो सकता है कोई जोड़ा उधर निकल गया हो । पुलिस के साथ सरकारी महकमे के और लोग भी उधर गए हैं ।”
“हमें यहाँ से निकल चलना चाहिए ।” मोना चौधरी कह उठी ।
“क्यों ?”
“हमारी टूटी-फूटी कार वहाँ खड़ी है ।” मोना चौधरी उठ खड़ी हुई, “देर-सवेर में पुलिस कार के बारे में जानकारी अवश्य हासिल करेगी । पुलिस को आसानी से मालूम हो जायेगा कि कार वाले यहाँ ठहरे थे । छोटी-सी जगह है । कई लोगों ने कार को देखा होगा । बिशना भी कार को जानता है । वैसे भी पुलिस कार के लिए सबसे पहले होटलों को ही चेक करेगी ।”
महाजन भी खड़ा हो गया ।
“होटल के रजिस्टर में एड्रेस-पता-नाम क्या लिखाया है ?” मोना चौधरी ने पूछा ।
“नाम-पता सब गलत है । चिंता की कोई बात नहीं !”
अँधेरा फैलना शुरू हो गया था ।
बीच की पार्किंग से महाजन एक कार उड़ा लाया । मोना चौधरी रास्ते में खड़ी थी । मोना चौधरी जब कार में बैठी तो महाजन ने कार आगे बढ़ा दी ।
हेडलाइट की रौशनी में सड़क का काफी बड़ा हिस्सा स्पष्ट दिखाई दे रहा था ।
“मेरे ख्याल में पुलिस नहीं जान सकेगी कि उन सरकारी गनमैनों को कैसे और क्यों मारा गया ?” महाजन बोला ।
“ठीक कहते हो । सच की तह में पहुँचना, पुलिस के लिए बेहद कठिन होगा ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“जरा सोचो ।” महाजन मुस्कराकर कह उठा, “विनोद और सोनिया अगर पुलिस को वो सब बताएँ, जो हमें बताया था तो उन बातों को सुनने के बाद पुलिस की क्या हालत होगी ?”
मोना चौधरी गहरी साँस लेकर कह उठी ।
“मेरे ख्याल में वो दोनों पुलिस के पास जाने की बेवकूफी नहीं करेंगे ।”
“ठीक कहती हो । दोनों मालूम नहीं क्यों इतना घबराये हुए थे ।”
मोना चौधरी ने महाजन को देखा फिर गंभीर स्वर में कह उठी ।
“वो बेवकूफ या पागल नहीं थे । उन्होंने ऐसा कुछ अवश्य देखा था कि उनका बुरा हाल हुआ ।”
“तो बेबी, तुम क्या सोचती हो, उन्होंने हमें जो बताया, वो वास्तव में सच था ?” महाजन ने पूछा ।
“ये मैं नहीं जानती ।”
तभी हॉर्न-पर-हॉर्न बजने लगे ।
पीछे ओपन जीप थी । जिसमें छः युवक और तीन युवतियाँ मौजूद थे । दो-तीन ने बियर की बोतलें भी पकड़ रखी थीं । वे समन्दर के किनारे से मौज-मस्ती करके लौट रहे थे । महाजन ने जीप को साइड दे दी । जीप तेजी से उन्हें पार करती हुई आगे निकल गई ।
जीप में बैठे वे सभी हल्ला-गुल्ला मचा रहे थे ।
“न आगे की फिक्र इन्हें, न पीछे की चिंता ।” महाजन मुस्कराकर बड़बड़ा उठा ।
आगे वाली जीप दूर होती जा रही थी ।
“जो भी हो । मेरे ख्याल में विनोद और सोनिया दिन में ही यहाँ से चले गए होंगे ।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा । पुश्त से सिर लगाकर आँखें बन्द कर लीं ।
तेज रफ्तार से जाती आगे वाली जीप निगाहों से ओझल हो गई थी ।
कुछ देर बाद मोना चौधरी ने आँखें खोलीं और सीधी होकर बैठ गई ।
“नींद नहीं आ रही है बेबी ?”
“सोच रही थी ।” मोना चौधरी ने खिड़की के बाहर अँधेरे में देखते हुए कहा ।
“क्या ?”
“विनोद और सोनिया की बातें । उन्होंने जो बात कही, वो झूठी क्यों कहेंगे । वो... ।”
तभी कार लड़खड़ाई । जोरों से हिली । महाजन ने फौरन डगमगाती कार पर कण्ट्रोल किया ।
“क्या हुआ ?”
“पहिया पंचर हो गया लगता है ।” कहते हुए महाजन ने उस छोटी-सी सड़क के किनारे कार रोकी । इंजन बन्द करके बाहर निकला । पहियों को चेक किया, आगे का पहिया पूरी तरह बैठा हुआ था ।
उसमें जरा भी हवा नहीं थी । पहिया चेक करके महाजन बोला, “किसी तेज धार वाली लोहे की पत्ती से टायर और ट्यूब का हिस्स कट गया है । मालूम नहीं कार में स्टेपनी भी है या नहीं !”
मोना चौधरी नीचे उतरी और पीछे पहुँचकर डिग्गी खोलकर चेक की ।
“स्टेपनी, जैक और पाना है । कोई दिक्कत नहीं ! आराम से पहिया बदल सकते हैं ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी डिग्गी में पड़ा सामान बाहर निकालने लगी ।
महाजन भी करीब आ गया ।
“हटो बेबी, ये काम मैं अभी निपटा देता हूँ !” महाजन बोला ।
मोना चौधरी डिग्गी के पास से हट गई । यूँ ही आसपास नजरें घुमाने लगी । दूर-दूर तक अँधेरा फैला नजर आ रहा था । झींगुरों की आवाजें उस जंगली वातावरण में गूँजती कानों में पड़ रही थीं । कभी-कभार दूर कुत्तों के भौंकने की आवाजें छाये सन्नाटे को भंग कर देती थीं । रात का गहरा अँधेरा होने के कारण ज्यादा दूर तक स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था । जब तक महाजन ने स्टेपनी बदली, तब तक दो कारें उनके पास से निकली थीं ।
फिर सारा सामान डिग्गी में रखकर महाजन ने हाथ झाड़े और सीट पर रखी बोतल उठाकर दो-तीन घूँट इकट्ठे गले में उतारी फिर मोना चौधरी से बोला, जो कि चंद कदमों के फासले पर टहल रही थी ।
“चलें बेबी !”
“हाँ !” कहने के साथ ही मोना चौधरी कार की तरफ बढ़ आई ।
दोनों कार में बैठे । महाजन ने कार आगे बढ़ा दी ।
अँधेरे से भरा वातावरण था । सड़क के किनारों पर स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी । कार की हेडलाइट रास्ता देखने में ज्यादा सहायता नहीं कर पा रही थी । ऐसे में महाजन ने कार की रफ्तार कुछ धीमी ही रखी हुई थी ।
दस-बारह मिनट उनके बीच खामोशी से बीत गए ।
तभी सड़क का आगे का नजारा देखकर महाजन कार की रफ्तार कम करने लगा । मोना चौधरी की नजरें भी सामने टिक चुकी थीं । सड़क का दृश्य अब स्पष्ट नजर आने लगा था ।
“बेबी ! सामने देखा ?” महाजन के होंठों से निकला ।
“देख रही हूँ ।” मोना चौधरी ने गहरी साँस लेकर कहा ।
जो ओपन जीप उनकी कार को ओवरटेक करके निकली थी । जिसमें छः युवक और तीन युवतियाँ थीं । वह जीप सड़क के बीचो-बीच उलटकर टेढ़ी पड़ी थी ।
“तेज ड्राइविंग की वजह से जीप पलट गई है ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“मेरे ख्याल में चलाने वाले ने ज्यादा पी रखी होगी । जीप कंट्रोल से बाहर हो गई ।” महाजन बोला ।
उनकी कार पास पहुँच गई थी । जीप से कुछ कदम पहले उन्होंने कार रोकी । महाजन ने इंजन बन्द किया । वह कार से बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोलने जा रहा था कि मोना चौधरी बोली ।
“वो देखो । जीप के आसपास कुछ लोग गिरे पड़े हैं । उन्हें डॉक्टरी हेल्प की जरूरत हो सकती है ।”
इसके साथ ही दोनों बाहर निकले और तेजी से जीप के पास में गिरे लोगों की तरफ बढ़े ।
ओपन जीप की हेडलाइट्स रोशन थीं । उनकी कार की हेडलाइट्स भी ऑन थीं । वहाँ काफी कुछ स्पष्ट दिखाई दे रहा था । आगे बढ़ती हुई मोना चौधरी बोली ।
“जीप बुरी तरह पलटी हुई है । वो लोग आसपास गिरे दिखाई दे रहे हैं । शायद बेहोश ।” कहते-कहते मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं ।
“बेबी !” महाजन के होंठों से हड़बड़ाया स्वर निकला ।
जीप के पास पहुँचकर दोनों ठिठक गए थे ।
हेडलाइट्स की रौशनी में सब कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था ।
“महाजन ।” एकाएक मोना चौधरी के होंठों से खरखराता-सा अजीब-सा स्वर निकला ।
“बेबी, ये तो... ये तो... ।” महाजन अपने शब्द पूरे नहीं कर सका ।
दोनों की फटी निगाहें हेडलाइट्स की रौशनी में चमकते उन शरीरों को देख रही थी, जो कि विक्षिप्त हुए बिखरे पड़े थे । वह तीन शरीर थे । दो युवक के और एक युवती का शरीर ।
उनके पेट फटे हुए थे जैसे किसी ने दोनों हाथों को पेट में घुसेड़कर, खींचकर इन्हें फाड़ दिया हो । बेहद ही अजीबो-गरीब ढंग से उनके हाथ-पाँव टूटकर झूल रहे थे । एक युवक की तो टाँग ही अलग पड़ी थी । जैसे किसी ने टाँग को घुटने से पकड़कर, खींचकर झटका दिया हो और उसे तोड़कर अलग कर दिया हो । युवती का विक्षिप्त कटा-फटा शरीर तो सीधा पड़ा था, परन्तु उसकी गर्दन घूमकर उलटी हुई, जमीन की तरफ चेहरा हुआ पड़ा था । एक युवक के चेहरे का माँस ही गायब नजर आ रहा था । जैसे किसी ने माँस नोच लिया हो । वहाँ सिर्फ खून-ही-खून था । या फिर उसके दो कान नजर आ रहे थे ।
मोना चौधरी और महाजन स्तब्ध से खड़े, आँखें फाड़े ये सब देखे जा रहे थे । उनकी आँखों की पुतलियाँ ही घूम रही थीं । वो तो जैसे जड़ हो चुके थे ।
लाशों के पास बियर की खाली हुई बोतल लुढ़की पड़ी थी ।
“महाजन !” मोना चौधरी के बुत के मानिंद होंठ हिले ।
महाजन के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । जैसे वह किसी दूसरी दुनिया से निकलकर वापस आया हो ।
“बेबी !” महाजन के होंठों से सूखा-सा स्वर निकला, “ये... ये वैसी ही लाशें हैं । जैसे स... सरकारी गनमैनों की लाशें थीं । उन... उन लाशों की हालत भी इसी तरह बुरी... ।”
“आसपास देखो ।” मोना चौधरी एकाएक तेज स्वर में कह उठी, “हाथ में रिवॉल्वर नजर आने लगी, “वो आसपास ही कहीं हो सकता है । लापरवाह मत होना ।
महाजन के हाथ में भी रिवॉल्वर आ गई ।
दोनों की सतर्क नजरें हर तरफ फिरने लगीं ।
दो मिनट इसी मौत भरी खामोशी में बीत गए ।
“महाजन !” मोना चौधरी भींचें स्वर में बोली, “निकल चलो यहाँ से ।”
“ये तीन हैं ।” महाजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, “वो ज्यादा लोग थे । बाकी लोग कहाँ हैं ?”
“कहीं भी हों । बचकर निकल भागे होंगे ।” मोना चौधरी ने पूर्ववत स्वर में कहा, “या उनकी लाशें भी इधर-उधर पड़ी होंगी । लेकिन हमारा यहाँ रुकना नहीं बनता । वो जो भी है, बहुत ताकतवर है ।”
दोनों रिवॉल्वर थामे सावधानी से वापस कार में आ बैठे ।
महाजन ने रिवॉल्वर गोदी में रखकर कार स्टार्ट की । सड़क पर से आगे बढ़ने का रास्ता नहीं था । जीप उलटी हुई थी । महाजन ने कार को कच्चे में उतारा और जीप के गिर्द कार को घुमाकर, नीचे पड़ी लाशों से बचाकर कार को निकाला और कार पुनः सड़क पर आ गई ।
दोनों के चेहरे पर अभी भी उलट-पलट भाव नाच रहे थे ।
मोना चौधरी की पैनी निगाह, खिड़की के बाहर अँधेरे में हर तरफ घूम रही थी ।
“बेबी !” महाजन ने सूखे स्वर में कहा, “वो... वो दोनों सच कह रहे थे । उस... उस अजीब-सी शह के बारे में ।”
“हाँ !” भिंचे स्वर में मोना चौधरी ने सिर हिलाया ।
“ये सब क्या हो रहा है ? मेरा तो दिमाग खराब होता जा रहा है ।”
“कार ठीक तरह चलाओ ।” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा ।
महाजन ने कार की रफ्तार बढ़ा दी । अजीब-सी गहरी खामोशी थी वहाँ !
“पुलिस और सरकारी लोग, गनमैनों की लाशों की तरफ गए हैं ।” कुछ देर बाद मोना चौधरी बोली, “बीच की तरफ जाने वाली ये छोटी-सी मुख्य सड़क है । सड़क पर पड़ी लाशों की बात जल्दी ही फ़ैल जायेगी । लेकिन शायद कोई भी न जान सके कि इन्हें मारने वाला कौन है ? युवक-युवतियों के साथी अगर बच निकले हैं, उन्होंने उस शह को देखा होगा तो वही पुलिस वालों को बता पाएँगे कि लाशों की ऐसी हालत करने वाला कौन है ?”
“हमने... हमने विनोद और सोनिया की बातों पर यकीन नहीं किया तो पुलिस कैसे इस बात को मान लेगी कि किसी बुरी शह ने ये सब किया है ?” महाजन के होंठों से निकला ।
“देर-सवेर में पुलिस को इस बात पर विश्वास करना ही होगा ।” मोना चौधरी ने दाँत भींचकर कहा ।
महाजन ने मोना चौधरी के चेहरे पर निगाह मारी ।
“देर-सवेर में ?” महाजन ने कहना चाहा ।
“जब पुलिस को ऐसी ही और लाशें मिलेंगी । दूसरे लोग भी उस शह को देख लेंगे... ।”
“तुम्हारा मतलब कि वो शह अभी और लोगों को भी मारेगी ?”
“हाँ ! हालात तुम्हारे सामने हैं । ऐसा अवश्य होगा । मेरे ख्याल में उसे जो भी मिलेगा, वो शह उसकी यही हालत करेगी । इन लाशों को देखकर मुझे यही महसूस हो रहा है ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा ।
“तुम ये बात कैसे कह सकती हो ?”
“छोड़ो । इन बातों से हमारा कोई वास्ता नहीं !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहते हुए सिर हिलाया ।
“मैं तो अभी तक खुद को संभाल नहीं पा रहा हूँ । गनमैनों की विक्षिप्त लाशें अभी मस्तिष्क से निकली नहीं और जीप वाले युवकों की लाशें देखने को मिल गईं । मेरा दिमाग सुन्न हुआ पड़ा है ।” महाजन ने कहते हुए बोतल से घूँट भरा ।
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।
“तुम्हारा ख्याल है, वो खतरनाक शह क्या हो सकती है ?”
“मैं नहीं जानती ।” मोना चौधरी ने गहरी साँस लेकर भारी स्वर में कहा, “लेकिन वो जो भी है, बहुत ताकतवर है । उसकी ताकत का नमूना हम अपनी आँखों से देख चुके हैं । वो किसी को टाँग-बाँह पकड़कर इस तरह उखाड़ सकती है, जैसे हम किसी पेड़ की पतली-कमजोर टहनी को तोड़ डालते हैं । मालूम नहीं वो क्या चीज़... ।”
तभी महाजन ने उसी पल ब्रेक दबाये । पहिये घिसटने की आवाज गूँजी । फिर तीव्र झटके के साथ जीप रुकी । दोनों की नजरें आठ-दस फीट आगे सड़क पर पड़े शरीर पर जा टिकीं ।
वह मानवीय शरीर विक्षिप्त अवस्था में सड़क के बीचोबीच पड़ा था । उसके शरीर का माँस पूरी तरह उधड़ा हुआ था । हाथ-पाँव टूटकर झूलने वाले ढंग में अजीब-सी मुद्रा में मुड़े हुए थे । गर्दन जैसे टूटकर लम्बी-सी हुई, माँस में अटकी पड़ी थी । आसपास खून फैला था ।
“ये भी उन्हीं में से एक होगा । जीप उलटते ही बचकर भागा होगा । लेकिन उस शह ने इसे छोड़ा नहीं !” महाजन बोला ।
कार की हेडलाइट्स की रौशनी पूरी तरह उस शरीर पर पड़ रही थी ।
रिवॉल्वर मोना चौधरी के हाथ में थी । चमक भरी निगाह अँधेरे में फिर रही थी ।
“वो खतरनाक शह पास ही हो सकती है ।”
महाजन ने भी गोदी ने रखी रिवॉल्वर हाथ में ले ली थी । चेहरा सख्त हो गया था ।
“चलें बेबी ?” महाजन ने कहा, “यहाँ रुकने का क्या फायदा ?”
होंठ भींचें मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे । एकाएक मोना चौधरी ने कार का दरवाजा खोला और बाहर आ गई । उसे देखकर महाजन भी बाहर आया ।
दोनों की नजरें हर तरफ घूम रही थीं ।
“इस तरह विक्षिप्त हालत में लाशों को देखना बहुत बुरा लग रहा है ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी, “वो शह जो भी है, पागल हो चुकी लगती है । जाने कितनों की जान लेगी ।”
“लेकिन इस बारे में हम भी क्या कर सकते हैं ।” महाजन के होंठों से निकला, “ये हमारा मामला नहीं है । पुलिस की नजरों में वो शह अब छिप नहीं सकेगी । इतनी लाशों को देखकर पुलिस खामोश नहीं बैठेगी ।”
मोना चौधरी आगे बढ़ी और सड़क पर पड़े विक्षिप्त शरीर के पास पहुँची । कार की हेडलाइट्स की रौशनी में सब कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था ।
महाजन भी पास आ पहुँचा ।
“इसे ज्यादा देर पहले नहीं मारा गया ।” मोना चौधरी ने दाँत भींचकर कहा, “सड़क पर पड़ा खून पूरी तरह गीला है ।”
“तो शह आसपास ही है ।” महाजन के होंठों से निकला । नजरें हर तरफ घूमने लगीं ।
मोना चौधरी एक कदम आगे बढ़ी और इस बात का ध्यान रखा कि सड़क पर बिखरा खून उसके जूतों में न लगे । कटे पड़े शरीर पर घूमती नजरें जब चेहरे पर गई तो उसी पल उसकी आँखें सिकुड़ गईं ।
“महाजन !”
“हूँ ।” आसपास नजरें मारता, सतर्क-सा महाजन पास पहुँचा ।
“ये वही होटल का वेटर बिशना है ।” कहते हुए मोना चौधरी की आवाज में हल्की-सी सुलगन आ गई थी ।
“बिशना, जो पैसे लेकर, अपनी बीवी के पास गाँव गया था !”
महाजन चौंका । इसके साथ ही आगे बढ़कर उसने लाश का चेहरा देखा । उस चेहरे को पहचानते ही भौचक्का रह गया । कुछ कहते न बना । हैरानी से भरी आँखें, बुत की भाँति मुँह खुला-का-खुला रह गया ।
मोना चौधरी की सख्त निगाहें अँधेरे को चीर रही थीं ।
“ओफ्फ !” महाजन के होंठ हिले । वह पलटा और गोली की तरह वापस कार तक गया और बोतल लेकर वापस आ गया । वापस आने तक तीन-चार घूँट गले में उतार चुका था ।
“बहुत बुरा हुआ ।” महाजन की आवाज में दुःख था, “खुद को सुधार लिया था बिशना ने । ड्रग्स छोड़कर अच्छी जिंदगी जीने का इरादा कर लिया था । नेक रास्ते पर चलने की सोची तो किस्मत ने उसकी जिंदगी छीन ली ।”
दाँत भींचें मोना चौधरी हर तरफ देख रही थी ।
“ये सब कैसे हुआ होगा बेबी !” महाजन ने गहरी साँस ली, “बिशना यहाँ... ?”
“अपने गाँव जा रहा होगा ।” मोना चौधरी की कठोर निगाह अभी भी आसपास घूम रही थी, “बिशना ने बताया था कि बीच से उसका गाँव तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है । पैदल ही रास्ता तय कर रहा होगा कि उस अंजानी शह ने इस पर हमला करके इसे खत्म कर दिया । हम बीच से तीन-चार किलोमीटर आ चुके हैं । इसका गाँव पास ही कहीं होना चाहिए ।”
“जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ ।” महाजन के होंठ भिंच गए । बिशना उसे अच्छा लगने लगा था ।
अभी तक उन्हें कोई नजर नहीं आया था ।
कोई कार या व्यक्ति वहाँ से नहीं गुजरा था ।
“इसकी बीवी गौरी पर क्या बीतेगी, इसकी मौत के बारे में सुनकर ।” महाजन ने घूँट भरा, “अभी तो कम उम्र है उसकी । दोनों बच्चों को कैसे पालेगी ? बिशना की मौत के साथ ही, उसकी जिंदगी नर्क बन गई बेबी !”
“तुम सिर्फ एक गौरी और बिशना की मौत के बारे में सोच रहे हो ।” मोना चौधरी के होंठों से खींझ भरा स्वर निकला, “वो गनमैन, जो सरकारी ड्यूटी पर थे और ये उसी शह के हाथों मारे गए । उनके पीछे कितने परिवार, कितने लोग होंगे, जीप में जो युवक-युवतियाँ थे, जाने उनमें से कोई जिन्दा है या नहीं ! उनके पीछे कितने लोग होंगे । बात यहीं तक होती, तब भी राहत की बात थी । लेकिन उन बेकसूरों के बारे में सोचो जिनकी जानें अभी उस खतरनाक शह ने लेनी है । महाजन वो शह, वो चीज़ पागल हो गई लगती है । जो भी सामने पड़ता है, उसकी जान ले लेती है । इस समय उस जीव ने अभी जाने कितनों को मारना है ।”
महाजन की निगाह मोना चौधरी के चेहरे पर जा टिकी ।
“पुलिस उस रहस्यमय जीव को ज्यादा देर आजाद नहीं रहने देगी बेबी !” महाजन के होंठों से शांत स्वर निकला, “वो रहस्यमय जीव ज्यादा देर इस तरह आतंक नहीं फैला सकता । सरकार उसे मार देगी या पकड़ लेगी ।”
“हो सकता है तुम्हारा ख्याल ठीक हो ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “लेकिन मुझे इस बात पर विश्वास नहीं !”
“क्या मतलब ?”
“मैं नहीं चाहती कि वो रहस्यमय जीव इस तरह मासूम लोगों की जाने लेता रहे ।”
“मैं अभी भी नहीं समझा ।”
“मैं देखूँगी कि उस रहस्यमय जीव के बारे में कि पुलिस कैसा कदम उठाती है ।” मोना चौधरी ने सपाट स्वर में कहा ।
महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।
“पुलिस अपना काम करेगी । कर लेगी। तुम... ।”
“मुझे वापस जाने की जल्दी नहीं है ।” मोना चौधरी ने सीधे-सीधे महाजन को देखा, “तुम चाहो तो जा सकते हो ।”
“मैं । मुझे भी कोई खास काम नहीं है ।” महाजन के होंठों से निकला, “देर होने पर राधा की नाराजगी से सामना करना होगा । वो कर लूँगा । उसे संभाल लूँगा । लेकिन फिर कहता हूँ कि यहाँ पर हमारे रुकने की जरूरत नहीं है । उस शह को देर-सवेर में पुलिस सम्भाल ही लेगी । बिशना की मौत का मुझे बहुत दुःख हो रहा है । लेकिन हम उसे जिन्दा नहीं... !”
“जिन्दा नहीं कर सकते ।” मोना चौधरी सर्द लहजे में कह उठी, “लेकिन दूसरों को तो शायद मौत के मुँह में जाने से बचा लें ।”
“तुम रहस्यमय जीव के मामले में दखल देने की सोच बैठी हो ।” महाजन बोला ।
“ऐसा कुछ नहीं है ।” मोना चौधरी के होंठ भिंच गए, “मैं तो सिर्फ उत्सुकता के नाते ये देखना चाहती हूँ कि रहस्यमय जीव कैसा है ? पुलिस उस ताकतवर शह के साथ कैसे निपटती है ?”
महाजन ने मोना चौधरी को सोच भरी निगाहों से देखा ।
“लेकिन बेबी, हम उसे ढूँढ़ेंगे, देखेंगे कहाँ ?”
“यही तो देखना-समझना है । उस रहस्यमय जीव तक पुलिस कैसे पहुँचती है ? उसका मुकाबला कैसे करती है और देखने में वो कैसा है ?” मोना चौधरी ने सोच भरे दृढ स्वर में कहा, “अब तक इतना तो समझ में आ चुका है कि उस रहस्यमय जीव का कार्यक्षेत्र उस ड्रग्स वाली जगह से लेकर यहाँ तक है । अगर उसका कार्यक्षेत्र इतने से भी बड़ा है तो उसके बारे में जल्दी ही जानकारी मिल जायेगी । रहस्यमय जीव खामोश नहीं बैठेगा । वो जल्दी ही किसी की जान लेगा ।”
महाजन के चेहरे पर उलझन-असहमति के भाव आ ठहरे थे ।
“क्या तुम्हें नहीं लगता कि उस रहस्यमय शह के मामले में हम दखल देकर गलत कर रहे हैं ?”
“हम न तो गलत कर रहे हैं और न ही रहस्यमय जीव के मामले में दखल दे रहे हैं ।” मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी, “मैं तो सिर्फ उस जीव को देखना चाहती हूँ और जानना चाहती हूँ कि पुलिस उस ताकतवर पर काबू कैसे पाती है ?”
महाजन गहरी साँस लेकर रह गया ।
दोनों की पैनी निगाह पुनः अँधेरे में फिरने लगी ।
“हमारी कार का पहिया पंचर होना शायद ठीक रहा ।” मोना चौधरी कह उठी ।
“क्या मतलब ?”
“अगर हमारी कार का पहिया पंचर न होता तो हम ठीक वक्त पर यहाँ पहुँच जाते और उस रहस्यमय जीव से हमारा सामना हो जाता ।” मोना चौधरी का स्वर धीमा था, “और शायद हम उससे खुद को बचा नहीं पाते ।”
महाजन के होंठ भिंच गए ।
मोना चौधरी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला कि पीछे से दो कारों की हेडलाइट्स चमकती देखी । कारें पास आ रही थीं । इंजन की मध्यम-सी आवाज भी कानों में पड़ने लगी थी ।
“कुछ लोग आ रहे हैं ।” महाजन के होंठों से निकला ।
“हाँ !” मोना चौधरी की निगाह उधर ही थी ।
“इस तरह लाश के पास हमारा देखा जाना... ।”
“रिवॉल्वर पास रख लो ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा और हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर वापस कपड़ों में छिपा ली, “लाश के पास हमारे देखे जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता । आने वाले ने पीछे भी उल्टी हुई पड़ी जीप के पास लाशें देखी होंगी और वो जानते होंगे कि इन्सानी शरीरों की दुर्दशा हम जैसे शरीफ लोग नहीं कर सकते । वैसे भी अब हम यहाँ रुकने की सोच चुके हैं । उस रहस्यमय जीव को देखने के लिए और ये जानने के लिए कि पुलिस उस पर कैसे काबू पाती है ।”
तभी एक-के-बाद एक दोनों कारें पास आकर रुकीं । दोनों कारों में संभ्रांत परिवार के लोग थे । बड़े भी, बूढ़े भी, बच्चे भी । सब के चेहरों पर बदहवासी उभरी पड़ी थी ।
“हे भगवान !” एक के मुँह से निकला, “एक और लाश ।”
“वैसी ही बुरी हालत ।”
“इन लोगों को मारने वाला इंसान नहीं हो सकता । ये तो किसी शैतान का ही काम है ।” तीसरा बोला ।
वह सब बेहद घबराये से खड़े थे ।
“आप लोग कौन हैं ?” एक ने पूछा ।
“हम दोनों कार पर बीच से लौट रहे थे कि रास्ते में ये सब देखा ।” महाजन बोला ।
“हम पीछे भी ऐसी बुरी अवस्था में तीन लाशें देखकर आ रहे हैं ।”
“वो लाशें हमने भी देखी हैं ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “और अब हमें अच्छे नागरिक होने का सबूत देते हुए फौरन पुलिस को खबर कर देनी चाहिए ।”
“पुलिस !” एक के होंठों से निकला, “पुलिस तो हमें इस मामले में लपेट लेगी ।”
“नहीं लपेट सकती । हम सब साथ हैं । हमें घबराना नहीं चाहिए ।”
आखिरकार तय हुआ कि पुलिस को खबर की जाये ।
एक कार में दो लोग, महाजन के साथ पुलिस को खबर देने चले गए ।
मोना चौधरी बाकी लोगों के साथ वहीं रही । इस बात के प्रति सतर्क थी कि वह रहस्यमय जीव किसी तरफ से उन पर हमला न कर दे ।
☐☐☐
करीब एक घण्टे बाद महाजन और बाकी के दोनों व्यक्ति, पुलिस को साथ लेकर आ गए । इसके साथ ही वहाँ के शांत वातावरण में हलचल पैदा हो गई । मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने अपने ऑफिसरों को सूचना दी । दो घण्टे में ही वहाँ हर तरफ पुलिस की वर्दियाँ-ही-वर्दियाँ नजर आने लगीं ।
कुछ पुलिस वाले मोना चौधरी, महाजन और उन दोनों कारों में मौजूद लोगों को एक तरफ ले जाकर बयान लेने लगे थे । मोना चौधरी और महाजन ने ये नहीं बताया कि वह पहले भी बीच के उस तरफ ऐसी लाशें देख चुके हैं । हर कोई अटकलें लगा रहा था कि ये वीभत्स कार्य किसने किया होगा ?
बयान लेने के बाद उन सबको ये कहकर रुकने को बोला गया कि मामला गंभीर है ।
किसी ने एतराज नहीं उठाया । एतराज उठाने का फायदा भी नहीं था । पुलिस ने उन्हें रोक लेना था, अगर उनमें से कोई जाने की बात करता । रात बीतने लगी । पुलिस की सरगर्मियाँ और भी तेज हो गई, जब उन्हें उल्टी पड़ी जीप से कुछ दूर, सड़क से हटकर अन्य दो युवकों की वैसी लाशें मिली ।
पुलिस वाले भी अजीब से हाल में फँसे सकते की-सी हालत में थे । उनकी भाग-दौड़, खाना-पूरी और तफ्तीश में रात बीतती जा रही थी । ऐसी लाशों का मिलना कोई मजाक नहीं था । मामले की गंभीरता को पुलिस वाले महसूस कर रहे थे ।
पास ही गाँव था । लाशों की खबर फैलते ही गाँव वाले वहाँ पहुँचने लगे । पुलिस वाले उन्हें लाशों से दूर रखने की चेष्टा कर रहे थे कि उनके काम में किसी तरह की परेशानी न आये ।
रात के साढ़े तीन बजने का वक्त हो रहा था, जब लाशों का पंचनामा करके एम्बुलेंस में उन्हें पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेजा जाने लगा । तब किसी गाँव वाले ने बिशना को पहचान लिया कि वह उनके गाँव का ही है । इसके साथ ही वहाँ हो-हल्ला पैदा हो गया ।
तुरन्त ही गाँव में मौजूद गौरी तक ये खबर पहुँची तो रोती हुई वह आ पहुँची ।
तड़पने-रोने लगी गौरी ।
गाँव के लोग उसे जैसे-तैसे तसल्लियाँ देने लगे । लेकिन गौरी का रोना रुक नहीं रहा था ।
ठीक इसी वक्त वहाँ मौजूद पुलिस को ऊपर से खबर मिली कि बीच के दूसरी तरफ सरकारी गनमैनों की लाशें भी इसी तरह विक्षिप्त हालत में पायी गई हैं ।
ये खबर पुलिस को हिला देने वाली थी ।
आखिर कौन है, जो ये सब कर रहा है ?
सदा शांत रहने वाले इलाके में, अचानक ये तूफान किसने खड़ा कर दिया ।
☐☐☐
कुल मिलाकर हालात ऐसे हुए कि पुलिस वालों ने अस्थायी तौर पर वहीं डेरा लगा लिया । दिन निकल आया था । छोटे-छोटे तम्बू लगा लिए थे । दो टेबलें और कुर्सियाँ भी आ गई थीं, जिन्हें पेड़ के नीचे लगा लिया गया था । कुछ पुलिस वाले चले गए और कुछ नये आ गए थे । आने वालों में बड़े ऑफिसर भी मौजूद थे ।
मोना चौधरी, महाजन और अन्य दो कारों वालों से कोई जानकारी न मिलती पाकर उन्हें जाने को कह दिया गया था । ये दिन निकलने की बात थी । वह लोग तो दोनों कारों पर सवार होकर फौरन चले गए थे । मोना चौधरी और महाजन भी कार पर सवार होकर वहाँ से गए और दूर जाकर, चोरी की कार को छोड़ा और वापस पैदल ही बिशना के गाँव की तरफ बढ़ आये थे । दोनों रुकने का इरादा बना चुके थे और रुकने के लिए गौरी का घर उन्हें ठीक लगा । गौरी उन्हें देख चुकी थी । जानती थी । ऐसे में उसके घर रुकना आसान था ।
पुलिस वाले किसी नतीजे पर पहुँचने के लिए मीटिंग शुरू करने की तैयारी कर रहे थे कि गाँव वालों ने उन्हें आकर खबर दी कि वहाँ से कुछ दूर एक युवक और युवती की ऐसी ही लाशें मिली पड़ी हैं । वह युवक-युवती जीप पर सवारों में से ही थे । कुल मिलाकर सात की लाशें मिल गई थीं । जबकि जीप में नौ थे । दो अभी बाकी थे ।
पुलिस वाले उस दिशा की तरफ आये, जिधर लाशों के मिलने की खबर मिली थी ।
☐☐☐
मामले की नाजुकता को देखते हुए बड़े अधिकारियों ने इस मामले की जाँच के लिए क्राइम ब्रांच के तेज तर्रार इन्वेस्टीगेटर इंस्पेक्टर हरीश दुलानी को वहाँ भेजा । जो कि सुबह दस बजे ही वहाँ पहुँच गया । पोस्टमार्टम के लिए भेजी गई लाशों को वह देख आया था । वह जान चुका था कि मामला वास्तव में गंभीर है ।
पुलिस के बड़े अधिकारी युवक-युवती की लाशों की तरफ गए थे । इंस्पेक्टर हरीश दुलानी उस तरफ न जाकर वहाँ की आसपास की जगहों को देखता-चेक करता, वीरान जगह की तरफ निकल गया ।
बारह बजे पुलिस वाले युवक-युवतियों की लाशों का पंचनामा करके लौटे । वह सब थके हुए और परेशान लग रहे थे । हरीश दुलानी भी वहाँ लौट आया । कई पुलिस अधिकारी दुलानी से वाकिफ थे । हरीश दुलानी ने इस केस पर नियुक्ति पत्र उन्हें दिखाया । सबने गंभीरता भरे अंदाज में उसका स्वागत किया ।
“पुलिस फोटोग्राफर है यहाँ ?” हरीश दुलानी ने गंभीर स्वर में पूछा ।
“यस सर !” पुलिस अधिकारी ने कहा, “युवक-युवतियों की लाशों की तस्वीरें खींचने के लिए उसे बुलाया था । अब वो घटनास्थल यहाँ से आने ही वाला होगा । फिर वापस जायेगा ।”
“उसे रोकना । अभी काम है ।” दुलानी ने गम्भीर स्वर में कहा ।
“यस सर !”
“आप लोगों ने क्या-क्या किया रात से ? मैं उस बारे में जानना चाहता हूँ ।”
एक पुलिस वाले ने रात से अब तक की सारी भागदौड़ बताकर कहा ।
“हमने मालूम किया है कि जीप बीच से जब चली तो उसमें छः युवक और तीन युवतियाँ मौजूद थीं; और कुल मिलाकर जीप वालों की हमें सात विक्षिप्त लाशें मिली हैं । पाँच युवकों की और दो युवतियों की ।”
“मतलब कि एक युवक और युवती की लाशें या फिर जिन्दा हालत में अभी नहीं मिले ?” दुलानी ने पूछा ।
“नहीं !”
“उनके बारे में कोई खबर भी नहीं मिली ?”
“नहीं सर !”
“और उस युवक के बारे में क्या कहते हो, जिसकी लाश यहाँ से कुछ आगे मिली ?”
“उसका नाम बिशना है । सामने के गाँव में रहता है । बीच पर एक होटल में वेटर का काम करता था । आज ही छुट्टी लेकर अपने घर जा रहा था कि गाँव के पास पहुँचते ही रास्ते में उसके साथ बुरा हादसा पेश आ गया ।”
“कुल कितनी लाशें मिली ?” हरीश दुलानी ने गंभीर स्वर में पूछा ।
“आठ सर !”
“आठ नहीं, तेरह ।” दुलानी ने सिर हिलाकर कहा, “पाँच ऐसी ही लाशें बीच के उस तरफ मिलीं । वो पाँचों सरकारी गनमैन थे और ड्रग्स रखवाली पर थे, जिसे आजकल में तबाह किया जाना था ।”
कोई कुछ न बोला । सब गंभीर थे ।
“सब लाशों को अच्छी तरह देख चुके हैं । मैं जानना चाहता हूँ कि इस मामले में तुम लोग किस नतीजे पर पहुँचे ?”
“सच बात तो ये है सर कि किसी भी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहे हैं ।” एक पुलिस ऑफिसर ने कहा, “लेकिन ये एक इंसान का काम नहीं है । ऐसा लगता है, जैसे कम-से-कम तीन लोगों ने मिलकर इन सबको बुरी तरह मारा-चीरा हो । दो ने पकड़ा हो और एक ने किसी खास हथियार से चीर-फाड़ दिया हो ।”
“ऐसा काम तो कोई पागल इंसान ही कर सकते हैं ।” दूसरे पुलिस वाले ने कहा ।
“लेकिन कोई ऐसा क्यों करेगा ?” तीसरे पुलिस वाले ने पूछा, “हर हत्या के पीछे कोई मकसद होता है और यहाँ कोई भी मकसद नजर नहीं आ रहा । सरकारी गनमैनों का यहाँ मरने वालों से कोई वास्ता नहीं है । कभी-कभी तो हमें लगता है कि कुछ लोग पागल हो गए हैं, जो ये काम कर रहे हैं । वो बच नहीं सकेंगे ।”
“गाँव वालों से पूछताछ की कि कोई अजनबी लोग उन्हें देखने को मिले हों ?” दुलानी ने पूछा ।
“पूछा । गाँव वालों ने ऐसा कोई आदमी नहीं देखा ।
“गाँव के किन्हीं लोगों पर किसी को शक हो ?”
“ये भी पूछा; लेकिन ऐसा कुछ नहीं !”
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ने सिर हिलाया और आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा ।
“मतलब कि किसी की निगाहों में आये बिना बाहर से लोग आये और ये काम कर गए ।”
कोई कुछ नहीं बोला ।
“उन पाँचों गनमैनों को जहाँ मारा गया, वो जगह यहाँ से बहुत दूर है ।” दुलानी ने पुलिस वालों को देखा, “इतना फासला रखकर हत्याएँ करना और किसी को नजर न आना वास्तव में अजीब बात है ।”
“सर, जहाँ गनमैनों को मारा गया, वो जगह सूनसान थी ! उन लोगों को वहाँ कोई देख नहीं पाया । यहाँ भी रात के अँधेरे में ये सब किया गया ।” एक पुलिस अफसर ने कहा, “यही वजह है कि वो लोग किसी को नजर नहीं आये । लेकिन जो भी हैं, कानून की नजरों से ज्यादा देर बचे नहीं रह सकते ।”
कुछ पलों की चुप्पी के पश्चात् हरीश दुलानी ने वहाँ मौजूद पुलिस वालों पर नजर मारी ।
“देखते हैं, आगे क्या होता है ।” दुलानी बोला, “लेकिन ये तो तय हो गया कि हत्यारे आसपास के हैं । अगर वो फिर कोई वारदात करते हैं तो जल्दी ही हमारी निगाहों में आ जायेंगे ।”
“सर !” एक पुलिस वाला कह उठा, “यहाँ आने वाले पर्यटकों में भी कोई हत्यारा हो सकता है ।”
दुलानी ने गंभीरता से सिर हिलाया ।
“ऐसा भी हो सकता है । यकीन के साथ कुछ भी नहीं कह सकते । देखते हैं ।” दुलानी ने उसे देखा, “यहाँ की आसपास की जगहों को देखो कि शायद हत्यारों के बारे में कोई सुराग मिल सके ।”
“दिन निकलने पर देखा था ।” पुलिस ऑफिसर ने कहा, “लेकिन ऐसा कुछ हमें मिला नहीं !”
“जीप में सवार एक युवक-युवती को छोड़कर सबकी लाशें मिल चुकी हैं ।” गंभीर स्वर में कहते हुए दुलानी खड़ा हो गया, “लेकिन युवक-युवती की लाशें नहीं मिलीं । उनकी लाशें तलाश करो । या फिर वो जिन्दा होंगे । मेरे ख्याल में ऐसी स्थिति में अगर वो युवक-युवती जिन्दा हैं तो ज्यादा दूर नहीं गए होंगे । हो सकता है कहीं छिप गए हैं ।”
“यस सर ! ऐसा हो सकता है ।”
“लाशें या उन्हें जिन्दा तलाश करो । इसी वक्त से ये काम शुरू कर दो ।”
पुलिस वालों ने सिर हिलाया ।
“तीन-चार पुलिस वाले और एक फोटोग्राफर लेकर मेरे साथ चलो । इधर कच्चे में पैदल ही जाना है ।”
“वहाँ कुछ खास है सर ?”
“शायद हाँ !” इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ने सोच भरे, गंभीर स्वर में कहा ।
☐☐☐
मोना चौधरी और महाजन उस गाँव में पहुँच गए जहाँ बिशना का घर था । उस गाँव से कुछ ही दूर मुख्य सड़क पर पुलिस डेरा लगाये बैठी थी । उन्हें बिशना का घर तलाश करने में कोई दिक्कत नहीं आई । गौरी अपने घर पर बुरे हाल में थी । आसपास के लोग उसे दिलासा दे रहे थे । उनके बच्चों को भी पड़ोसी संभाले हुए थे ।
दो कमरों का, ईंट का बना छोटा-सा घर था । दीवारों के बाहर पलस्तर नहीं था । कमरों के सामने काफी खाली जगह थी । वहीं बरामद वगैरह था । फिर चारदीवारी थी, परन्तु चारदीवारी में गेट का कहीं भी नामोनिशान नहीं था । गाँव में इसी तरह कच्चे-पक्के मकान बने हुए थे । पूरे गाँव में एक निगाह मारने के पश्चात् इस बात का एहसास हो जाता था कि गाँव की माली हालत ठीक नहीं है ।
दोनों चारदीवारी के रास्ते से भीतर प्रवेश कर गए ।
मिट्टी के कच्चे बरामदे में कुछ औरतें बैठी थीं । गौरी नजर नहीं आई । पास ही के एक कमरे में एक-दो औरतें गईं और आई थीं । जाहिर था कि गौरी भीतर ही है ।
“गौरी उस कमरे में है ।” मोना चौधरी बोली, “तुम रुको ! मैं उसके पास होकर आती हूँ ।”
महाजन पास ही नजर आ रहे पेड़ की तरफ बढ़ गया ।
मोना चौधरी बरामदे में बैठी औरतों को पार करते हुए कमरे में प्रवेश कर गई । उन औरतों ने मोना चौधरी से कुछ नहीं पूछा । कमरे में एक चारपाई पर पुरानी-सी चादर बिछी हुई थी । दीवार में एक तरफ खिड़की थी । जहाँ से पीछे का नजारा दिखाई दे रहा था ।
गौरी दीवार से टेक लगाये, मिट्टी के फर्श पर ही टाँगें उकड़ू किये बैठी थी । रो-रोकर उसकी आँखें सूज-सी गई थीं । पास में दो औरतें बैठी थीं ।
मोना चौधरी पर निगाह पड़ते ही गौरी फफक पड़ी । आँखों से पुनः आँसू बह निकले ।
मोना चौधरी ने पास बैठी औरतों से कहा ।
“आप दोनों कुछ देर के लिए बाहर जाएँगी । मैं गौरी से बात करना चाहती हूँ ।”
दोनों ने मोना चौधरी को देखा फिर गौरी को फफकते ।
“मैं गौरी को संभाल लूँगी । समझा दूँगी । ये मुझे जानती है ।”
बिना कुछ कहे दोनों औरतें उठीं और कमरे से बाहर निकल गईं ।
मोना चौधरी उसके पास ही बैठ गई । उसके कन्धे पर हाथ रखा । उसका रोना तेज हो गया ।
“गौरी !” मोना चौधरी ने भारी मन से कहा ।
“मेमसाहब !” गौरी जैसे फूट पड़ी । चेहरा आँसुओं में डूबा हुआ था, “ये क्या हो गया मेमसाहब ! इतना बुरा तो नहीं था बिशना कि मैं उसे घर न आने देती । वो बहुत अच्छा था । नशे ने उसे खराब करना शुरू कर दिया था । लेकिन मुझे भरोसा था कि मैं उसे सही रास्ते पर ले आऊँगी । लेकिन वो तो रूठ कर ऐसे रास्ते पर चला गया, जहाँ से कोई वापस आता ही नहीं !” कहने के साथ ही वह रो रही थी ।
भारी मन से मोना चौधरी ने उसका कन्धा थपथपाया ।
“हौसला रख गौरी ! वक्त-किस्मत और होनी से लड़ा नहीं जाता । सब मंजूर करना पड़ता है ।”
“क्या हौसला रखूँ मेमसाहब ! पहाड़ जैसी जिंदगी पड़ी है । मर्द है नहीं ! कैसे पालूँगी बच्चों को । दिन में चार-चार बार खाने को माँगते हैं और एक बार भी इनका पेट नहीं भर पाती । मैं तो... ।”
“हिम्मत मत हार गौरी !” मोना चौधरी ने उसे तसल्ली दी, “मैं तेरा इंतजाम कर दूँगी कि तुझे और तेरे बच्चों को कोई कमी नहीं रहेगी । खाना-पढ़ना सब कुछ तुम्हें मिलता रहेगा ।”
गौरी फफककर पुनः रो पड़ी ।
“क्या हुआ गौरी ?”
“मेमसाहब, तुम कहती हो सब कुछ मिल जायेगा ! लेकिन… लेकिन बिशना तो नहीं मिलेगा न । मैं किसे अपना सुख-दुःख सुनाऊँगी । झगड़ा करने का मन करेगा तो किससे करूँगी ।”
मोना चौधरी ने दुखी मन से होंठ भींच लिए ।
“जवाब दो मेमसाहब !”
“जो बात इंसान के बस में नहीं, उसके लिए मैं कुछ नहीं कर सकती ।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा, “बिशना अब कभी भी वापस नहीं आएगा । तू जान ही चुकी है ।”
गौरी आँसुओं भरी नजरों से मोना चौधरी को देखती रही ।
“एक बात तो बताओ मेमसाहब !” गौरी की आवाज में थरथराहट थी ।
“क्या गौरी ?”
“मेरे बिशना ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उसकी जान ले ली ?”
“गौरी !” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “जिसने तेरे बिशना को मारा है, उसने बारह और लोगों की जान भी ली है ।”
“मैं समझी नहीं !” गौरी अपलक मोना चौधरी को देखने लगी ।
“मैं अभी विश्वास के साथ नहीं कह सकती कि तेरह लोगों की जाने लेने वाला कौन है ? लेकिन उसने यूँ ही तेरह लोगों की जाने ले लीं ।” मोना चौधरी सोच और गंभीरता भरे स्वर में कह उठी, “तुम्हारा बिशना तो जिन्दा नहीं हो सकता गौरी । लेकिन क्या तुम चाहती हो कि बिशना को मारने वाले को सजा मिले ?”
“पुलिस वालों ने यहाँ चौकी बना ली है ।” गौरी ने भर्राये स्वर में कहा, “लोग बता रहे थे, वो उसे छोड़ेंगे नहीं, जिसने बिशना को मारकर मुझे विधवा और बच्चों को अनाथ बना दिया है । बाप का हाथ उनके सिर से उठ गया ।” कहते हुए गौरी की आँखों से आँसू बह निकले ।
“पुलिस वाले तो हत्यारों को तलाश कर ही रहे हैं । अगर तुम्हें एतराज न हो तो बिशना को मारने वाले को मैं और मेरा साथी भी तलाश करें ?”
“आप मेमसाहब ?” गौरी, मोना चौधरी को देखने लगी ।
“हाँ, जो भी हो ! दो-तीन दिन में बिशना हमें अच्छा लगने लगा था ।”
“ठ... ठीक है मेमसाहब !” गौरी भर्राये स्वर में कह उठी, “इसमें मेरे से पूछने की क्या जरूरत है ?”
“इसलिए कि हमारे पास रहने को जगह नहीं है । हमें यहीं पास ही रहना होगा इस काम के लिए ।”
“आप और आपका साथी मेरे घर में रह लीजिये । अगर यहाँ रह सकते हैं तो ।” गौरी हिचकिचा कर बोली ।
“हम यहाँ रह लेंगे गौरी !” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था, “वो जो भी है, उसने यहाँ कई जानें ली हैं । वो अगर पास ही कहीं रहता है तो देर-सवेर में हाथों में अवश्य पड़ेगा ।”
“मैं इन बातों को नहीं समझती मेमसाहब ! आपके मन में जो आये, वही कीजिये ।”
“हम कहाँ ठहरें ?”
“दूसरा कमरा खाली है ।” भर्राये स्वर में गौरी ने कहा, “चारपाई नहीं है । नीचे ही लेटना... ।”
“उसकी तुम फ़िक्र मत करो।”
“खाने को भी कुछ नहीं है ।” गौरी की आँखों में आँसू चमक उठे ।
मोना चौधरी ने जेब से सौ-सौ के कई नोट निकालकर गौरी के हाथ ने दबा दिए ।
“आज के बाद तुम पैसे की फिक्र मत करना । तुम्हें कभी भी पैसे की कमी नहीं होगी । मैं सब इंतजाम कर दूँगी । इन पैसों से जो भी सामान मँगाना हो मँगा लेना । लेकिन इस हालत में तुम खाना-पीना कैसे बनाओगी ? तुम्हारी तबीयत... ।”
“पड़ोसी औरतें बना देंगी मेमसाहब ! गरीबों का सहारा गरीब ही होता है । वही एक-दूसरे के दर्द को समझ सकता है ।”
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली ।
“मैं अभी दूसरा कमरा साफ़ करा देती हूँ ।”
गौरी ने बाहर मौजूद औरतों में से एक औरत को भीतर बुलाया ।
“साथ वाला कमरा साफ़ कर दे कमला ! ये मेमसाहब और साहब बिशना को जानते थे । कुछ दिन यहीं रुकेंगे ।”
कमला ने सिर हिला दिया ।
“ये लो ।” गौरी ने कमला को दो सौ रुपये भी दिए, “मेमसाहब की मेहरबानी से मिले हैं । जा राशन-पानी का इंतजाम कर ले । मेमसाहब और साहब भी यहीं खाना खाएँगे । पैसे कम पड़े तो और ले लेना । लेकिन पहले कमरा साफ़ कर दे कि ये आराम कर सकें ।”
कमला बाहर निकल गई ।
मोना चौधरी ने गम्भीरता से उसकी बाँह थपथपाई ।
“तू आराम कर गौरी !” मोना चौधरी उठते हुए बोली, “अभी तेरे को आराम की जरूरत है ।”
गौरी गीली आँखों से मोना चौधरी को देखती रही । कहा कुछ नहीं ।
मोना चौधरी बाहर निकल गई कमरे से ।
मोना चौधरी पेड़ के नीचे खड़े महाजन के पास पहुँची ।
दो औरतों ने बगल वाला कमरा साफ़ करना शुरू कर दिया ।
“क्या हुआ ?” उसके पास पहुँचते ही महाजन ने पूछा ।
“हम यहीं रहेंगे कुछ दिन ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
“कुछ दिन ?” महाजन ने मोना चौधरी की आँखों में देखा, “मतलब ये कि जब तक ये मामला निपट नहीं जाता । हम उसे तलाश नहीं कर लेते, जिसने भी ये हत्यायें की हैं ।”
“हम हत्यारे तक नहीं पहुँचेंगे ।” मोना चौधरी ने पूर्ववत लहजे में कहा, “हम तो ये देखने के लिए यहाँ रुक रहे हैं कि वो रहस्यमय जीव देखने में कैसा लगता है और पुलिस उस पर काबू कैसे पाती है ?”
महाजन ने पैंट में फँसा रखी बोतल निकालकर घूँट भरा ।
“तुम बाहर जाकर, गाँव वालों से किसी तरह मालूम करने की कोशिश करो कि किसी ने उस रहस्यमय जीव को देखा तो नहीं ! ध्यान रखना, मुख्य सड़क पर पुलिस डेरा डाले बैठी है । वहाँ तक ये बात न पहुँच जाये कि तुम ऐसी कोई पूछताछ कर रहे हो । जहाँ तक हो सके, हमें पुलिस से दूर ही रहना है ।”
“ओ•के• बेबी, मालूम करता हूँ !” महाजन के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी ।
☐☐☐
लगातार बीस मिनट तक इंस्पेक्टर हरीश दुलानी पैदल आगे बढ़ता रहा । साथ में पुलिस वाले और पुलिस फोटोग्राफर था । दूर तक जगह सूनसान थी । कहीं पेड़ थे तो कहीं काफी जगह मैदान आ जाती ।
इस दौरान उनके बीच लाशों और हत्यारों के बारे में बात होती रही ।
“सर !” तभी एक सब-इंस्पेक्टर ने टोका, “हम किधर जा रहे हैं ?”
“बस पहुँच गए । देख लेना ।” दुलानी ने कहा ।
करीब दो मिनट बाद दुलानी के रुकने पर सब रुके ।
सामने गीली जमीन थी, जैसे वहाँ बरसात होकर हटी हो । मिट्टी के कुछ हिस्से पर आगे तक ही गीलापन था ।
“यहाँ बरसात हुई थी क्या ?” दुलानी ने पूछा ।
“नहीं सर !”
“सर !” दूसरा पुलिस वाला बोला, “महीनों पहले जब भूकम्प आया तो जमीन के कई भीतरी हिस्सों से पानी फूटकर बाहर आ गया था । कहीं पर से तो अब भी पानी आ रहा है, तो कहीं पर इसी तरह से जमीन गीली रहती है जैसे जमीन से पानी रिस-रिस कर, जरा-जरा बाहर आता हो । ये जमीन नीचे से आने वाले पानी की वजह से गीली है ।”
हरीश दुलानी आगे बढ़ा ।
“ये देखो । गीली जमीन पर पाँवों के निशान हैं, लेकिन निशान अजीब से हैं । ताजे भी हैं ।” दुलानी गीली जमीन की तरफ इशारा करता हुआ कह उठा ।
सब गीली जमीन पर बने पाँवों के निशान देखने लगे, जो कि बहुत हद तक स्पष्ट थे और आगे को जा रहे थे, जैसे गीली जमीन पर चलकर कोई आगे तक गया हो ।
“सर, ये निशान ज्यादा पुराने नहीं हैं !” सब-इंस्पेक्टर ने कहा ।
“यही मेरा ख्याल है ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “सब इन निशानों को देखकर बताओ, किसके पाँवों के निशान हो सकते हैं ?”
“इंसान के पाँव हैं सर !” दूसरा बोला ।
“देखकर बताओ ।”
पुलिस वाले पाँवों के निशान देखकर आगे बढ़ गए ।
हरीश दुलानी आसपास के वातावरण का निरीक्षण करने लगा । उसने फोटोग्राफर को कह दिया कि गीली मिट्टी पर नजर आने वाले निशानों की तस्वीर हर कोण से ले ।
फोटोग्राफर फौरन अपने काम में व्यस्त हो गया ।
पाँच मिनट बाद पुलिस वाले दुलानी के पास पहुँचे ।
“सर ! ये तो किसी इंसान के ही पाँवों के निशान हैं ।” दूसरे सब-इंस्पेक्टर ने कहा ।
“लेकिन एक उलझन मन में आ रही है ।”
“कैसी उलझन... ?” दुलानी ने उसे देखा ।
“ये पाँवों के निशान ऐसे हैं, जैसे चौदह-पंद्रह साल के बच्चे हों । लेकिन उँगलियों के आगे, जमीन पर देखिये सर, वहाँ इस तरह के निशान हैं जैसे जूता फटा हो और पैर उठाते वक्त जमीन से रगड़ा जा रहा हो ।”
“जूता !” दुलानी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट उभरी, “लेकिन ये तो नंगे पाँवों के निशान हैं ।”
सबकी निगाह पुनः निशानों की तरफ गई, जो कि दूर तक जा रहे थे ।
“आप ठीक कह रहे हैं सर, ये तो नंगे पाँवों के निशान हैं ।”
“तो फिर पैर की उँगलियों के निशान के आगे की जमीन क्यों अजीब से ढंग में उधड़ी पड़ी है ।”
“इस सवाल का जवाब मुझे भी नहीं मिल पा रहा ।”
“लेकिन ये निशान हैं किसके ?”
“किसी के भी हो सकते हैं ।” हरीश दुलानी ने होंठ सिकोड़कर कहा, “उस हत्यारे के भी हो सकते हैं, जिसने वीभत्स लाशों का नजारा कायम किया है ।”
“आपका मतलब कि एक अकेला इंसान ये काम कर सकता है ।”
“कर भी सकता है और नहीं भी ।” दुलानी की नजरें दूर-दूर तक जाने लगीं ।
“इन पाँवों का वास्ता आप उन लाशों के साथ जोड़ रहे हैं ।”
“ऐसी बात नहीं !” हरीश दुलानी ने सिर हिलाया, “तुम लोग जब युवक-युवती की लाश देखने गए थे तो मैं टहलता हुआ इधर आ गया । तब मैंने गीली मिट्टी पर इन निशानों को देखा । अजीब-सी बात तो मुझे ये लगी कि गीली मिट्टी पर तो निशान हैं लेकिन आसपास सूखी मिट्टी पर पाँवों का निशान नहीं !”
“ये कैसे हो सकता है ?”
“देख लो ।” दुलानी ने उसे देखा, “कोई निशान मिले तो बताना । वैसे भी पाँवों की दिशा इस बात का संकेत करती है कि आने वाला उधर से आया, जिधर से हम आये हैं और आगे गया । मैंने आगे जाकर देखा था । जहाँ तक गीली मिट्टी है, वहाँ तक तो पाँवों के निशान किसी के जाने का संकेत करते हैं । लेकिन गीली मिट्टी के समाप्त होते ही पाँवों के निशान नजर आने बन्द हो जाते हैं ।”
“मतलब कि सूखी जमीन पर पाँवों के निशान नहीं मिले ?” सब-इंस्पेक्टर ने पूछा ।
“नहीं !”
“ये असम्भव-सी बात है सर !” उसके होंठों से निकला ।
“लेकिन ये सच बात है ।” इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ने गम्भीर स्वर में कहा, “इन पाँवों के निशानों के बारे में एक खास बात और भी है । निशानों को देखो । गीली मिट्टी के छोटे निशान ये तो जाहिर करते हैं कि ये चौदह-पंद्रह साल की उम्र के बच्चे के हैं, परन्तु इन निशानों की गहराई देखो ।”
सब की निगाह निशानों पर जा टिकी ।
“मैं समझा नहीं सर ।”
“चौदह-पंद्रह साल के बच्चे में इतना वजन नहीं होता कि उसका पाँव जमीन पर पड़े और पाँव गीली मिट्टी में तीन-चार इंच तक जमीन में धँस जाये । ये कीचड़ जैसी गीली मिट्टी नहीं है । सख्त तरह की गीली मिट्टी है ।”
सब के चेहरों पर हैरानी उभरी ।
“आप ठीक कह रहे हैं सर !” पुलिस फोटोग्राफर कह उठा, “पाँव इस हद तक गीली मिट्टी में नहीं धँस सकता ।”
“लेकिन ये तो धँसे हुए हैं ।” हवलदार कह उठा ।
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ने गंभीर निगाह सब के चेहरे पर मारी ।
“पाँवों के निशानों की गहराई ये बात साबित करती है कि ये निशान छोटे अवश्य हैं, परन्तु किसी बच्चे के नहीं हैं । ये किसी ऐसे के हैं, जिसका भार बहुत ज्यादा है । उसी वजह से पाँव गीली मिट्टी में धँस गए ।”
“वो कौन हो सकता है ? आपने बात स्पष्ट न करके कहा कि किसी ऐसे के हैं ।” सब-इंस्पेक्टर के होंठों से निकला ।
“किसी इंसान के ही पाँव हैं ।” इंस्पेक्टर दुलानी ने सामान्य स्वर में कहा, “दो पैरों से चलने वाला कोई जानवर होता तो गीली मिट्टी पर चलने से उसके अन्य तरह के निशान भी अवश्य देखने को मिलते ।”
“लेकिन पंजों के आगे किस चीज़ के निशान हैं गीली मिट्टी पर ?” फोटोग्राफर कह उठा ।
“ये समझ में नहीं आया अभी ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “हो सकता है, बाद में जान सकें कि पाँवों की उँगलियों के आगे जमीन की मिट्टी पर किस तरह के, किस चीज़ के निशान हैं । लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ मेरा ये शक पक्का होता जा रहा है कि जिसके पाँवों के निशान मिट्टी पर बने हैं, छोटे पाँव होते हुए भी वो शारीरिक तौर पर बेपनाह वजन का मालिक हैं । वो क्यों नहीं उन लोगों को मारकर, उनके शरीरों को चीड़-फाड़ सकता ?”
“आपका मतलब कि... ।”
“ये मेरी सोचें हैं ।” दुलानी ने होंठ भींचकर कहा, “मिट्टी पर ताजे निशानों को देखकर मेरी ये सोचें बनी हैं ।”
कई पलों तक कोई कुछ न बोला ।
वे सब बारी-बारी दुलानी को देख रहे थे । हरीश दुलानी की नजर गीली मिट्टी पर दूर तक जा रही थी । तेज धूप हो जाने की वजह से वे बदन पर पसीना महसूस करने लगे थे ।
“सर, आप कह रहे थे कि आपने देखा कि गीली मिट्टी के पार, उधर पाँवों के निशान नहीं हैं ।” सब-इंस्पेक्टर बोला ।
“हाँ !”
“ये तो जाहिर है कि गीली मिट्टी से लम्बा रास्ता पार करके वो आगे ही गया होगा ।” सब-इंस्पेक्टर ने दुलानी को देखा, “तो क्यों न हम उसी रास्ते पर आगे जाकर देखें । शायद कोई सुराग मिले ।”
“ऐसे भी जरूर देखेंगे ।” हरीश दुलानी ने कहा,”लेकिन पहले मुझे कुछ और काम निपटाने हैं । आओ, वापस चलें ।”
“यहाँ पर एक-दो पुलिस वालों को छोड़... ।”
“जरूरत नहीं ! हम नहीं जानते वो कौन है ?” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “क्यों लोगों की जाने लेता फिर रहा है ? किसी को यहाँ छोड़कर, मैं इस तरह किसी की जान खतरे में नहीं डालना चाहता ।”
☐☐☐
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी और बाकी सब वापस पहुँचे ।
लंच का वक्त था । लंच वहाँ आ चुका था । पुलिस वाले लंच शुरू कर चुके थे । दुलानी की निगाह एक कुर्सी के पास बैठे युवक और युवती पर पड़ी । वे घबराये से लग रहे थे । उनके चेहरे पीले पड़े हुए थे । रह-रहकर वे दोनों एक-दूसरे को देख लेते थे । कुर्सी पर एक कोंस्टेबिल बैठा था ।
तभी एक सब-इंस्पेक्टर पास पहुँचा और जल्दी से बोला ।
“सर ! वो युवक-युवती उधर काफी दूर बड़े-बड़े झाड़-झंझाड़ में छिपे बैठे मिले हैं । बहुत ही डरे हुए हैं । कुछ भी कह-बता नहीं पा रहे । अभी-अभी दोनों को यहाँ लाये हैं ।”
दुलानी ने कुछ दूर जमीन पर बैठे युवक-युवती को गहरी निगाहों से देखा ।
“ये दोनों जीप वालों के साथी हो सकते हैं । उन सबकी लाशें मिल गई हैं । एक युवक-युवती की नहीं !”
“सर, ये दोनों वही हैं । उन्हीं जीप वालों के साथी । मेरे पूछने पर दोनों ने सिर हिला दिया था ।”
दुलानी के होंठ सिकुड़ें ।
“इनकी घबराहट दूर करो । इन्हें विश्वास दिलाओ कि ये दोस्तों के बीच हैं । अब इन्हें कोई खतरा नहीं !” दुलानी ने धीमे स्वर में कहा, “इन्होंने अवश्य हत्यारे को देखा है । उसके बारे में ये बता सकते हैं ।”
“जी !”
“इन्हें लंच दिया ?”
“नहीं सर ! अभी पाँच मिनट ही तो हुए हैं कि इन्हें लेकर यहाँ पहुँचा हूँ ।” सब-इंस्पेक्टर ने कहा ।
“इन्हें पानी पिलाओ । लंच दो । खुद भी इनके पास बैठकर लंच करो । अपने साथ एक-दो पुलिस वालों को भी खाने के लिए बिठा लेना और इधर-उधर की बातें करना । इससे इनकी घबराहट दूर होगी ।” हरीश दुलानी ने कहा, “तब तक मैं भी लंच कर लेता हूँ । उसके बाद इनसे बात करूँगा ।”
“यस सर !”
हरीश दुलानी लंच के लिए उस टेबल की तरफ बढ़ गया, जहाँ लंच सर्व किया जा रहा था ।
आधे घण्टे बाद दुलानी ने युवक-युवती से बात की । अब तक दोनों की बहुत हद तक घबराहट कम हो चुकी थी, परन्तु दहशत के साये रह-रहकर उनके चेहरों पर नाचते नजर आ जाते थे । आँखों में खौफ उछाले मारने लगता ।
उन्होंने अपना नाम दीपक और रजनी बताया ।
“अब तुम दोनों को जरा भी घबराना नहीं चाहिए ।” दुलानी शांति भाव में मुस्कराकर कह उठा, “हम लोग पुलिस वाले हैं । तुम दोनों सुरक्षित हो । अब कोई खतरा नहीं आ सकता ।”
“वो... वो आ गया तो आप भाग जायेंगे ।” दीपक ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा ।
“वो ? कौन वो ?”
“ज... जिसने सब को मारा । उनके शरीर को फाड़-फाड़ दिया ।” दीपक का स्वर भरभरा उठा । आँखों में आँसू भर आये थे, “उनमें मेरा भाई भी था ।” दीपक ने होंठ भींच लिए । आँखों से बहते आँसू गालों को गीला करने लगे ।
“हिम्मत से काम लो ।” दुलानी ने हमदर्दी से भरे स्वर में कहा, “जो हो गया, उसे लौटाया तो नहीं जा सकता । लेकिन करने वाले को उसके किये की सजा अवश्य दी जा सकती है । उसने सिर्फ तुम्हारे भाई और तुम्हारे साथियों को ही नहीं मारा है बल्कि छः अन्य लोगों को भी इसी तरह बेदर्दी से मारा है । तभी तो पुलिस ने यहाँ डेरा लगा लिया है कि वो जो भी है, उसे हर हाल में कानून की गिरफ्त में पहुँचाया जाए ।”
“न... नहीं !” रजनी काँपकर कह उठी, “उसे कोई नहीं पकड़ सकता । वो... वो बहुत खतरनाक और ताकत वाला है ।”
हरीश दुलानी ने गम्भीर निगाहों से रजनी को देखा ।
आसपास और भी पुलिस वाले खड़े थे ।
“ओ•के• !” दुलानी धीमे स्वर में बोला, “मुझे बताओ तो ये सब कैसे हुआ ? वो कौन था ?”
कुछ लम्बी खामोशी के बाद दीपक सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा ।
“मैं और रजनी अपने दोस्तों के साथ बीच पर मौज-मस्ती करके लौट रहे थे । बियर की बोतलों में कभी-कभार घूँट भी भर लेते थे । अँधेरा हो चुका था । हमारी जीप वापसी के लिए तेजी के साथ भाग रही थी । तभी रास्ते में वो नजर आया । सड़क के बीचोबीच खड़ा था वो । कार की हेडलाइट्स में वो साफ़-साफ़ दिखा । उसे देखते ही जीप चलाने वाले दोस्त ने जोर से चीख मारी । इसके साथ ही जीप कंट्रोल से बाहर होकर सड़क पर लुढ़क गई । उसके बाद जो देखा वो कँपा के लिए बहुत था । उसने सबको मारना शुरू कर दिया । बहुत ही वहशियाना तरीके से वो जान ले रहा था । दहशत के अंत तक का नजारा मैंने अपनी आँखों से देखा । मेरे देखते-ही-देखते वह मेरे दो साथियों को मार चुका था । फिर नीचे पड़े तीसरे की ओर बढ़ा । तभी हमारे दो दोस्त चीखते हुए वहाँ से भागे तो मुझे होश आया । मैं भी भागा । मेरे पीछे रजनी भी आई । अपनी जान बचाने के लिए हम दहशत में डूबे वहाँ से दूर निकल जाना चाहते थे । हम दोनों दूर निकल भी गए । उसके बाद क्या हुआ हम नहीं जानते । उसका डर हमारे दिलो-दिमाग के भीतर तक घुस चुका था । फिर हमें अँधेरे में बहुत बड़ा झाड़-झंझाड़ दिखा तो हम उसमें दुबक कर बैठ गए । रात बीत गई, दिन निकल आया लेकिन बाहर निकलने की हमारी हिम्मत नहीं हुई । हमें यही एहसास होता रहा कि वो हमारे पास ही कहीं है और बाहर निकलते ही हमें मार देगा । अपने साथियों की मौत देखकर हम अभी तक काँपे हुए हैं । बहुत बड़ा जल्लाद है वो ।”
उसके खामोश होते ही वहाँ चुप्पी छा गई ।
दीपक और रजनी के चेहरे फक्क थे । कभी-कभार वे बहुत बेचैन हो उठते ।
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी गंभीरता से दोनों के चेहरों को देख रहा था ।
पुलिस वालों की निगाहें भी उन दोनों पर थी ।
“अब तुम दोनों को नहीं डरना चाहिए । हम सब तुम्हारे साथ हैं ।” दुलानी ने शांत स्वर में कहा ।
दीपक ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
“ह... हमारे दोस्त ?” रजनी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए कहना चाहा ।
“तुम दोनों खुशकिस्मत हो कि बच गए ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में गहरी साँस लेकर कहा ।
“क्या मतलब ?” दीपक के होंठों से निकला, “मतलब कि हमारे बाकी दोस्त... ।”
“उनके बारे में मुझे अफसोस है ।” हरीश दुलानी ने भारी मन से कहा, “उनकी लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई हैं ।”
“दीपक !” रजनी के होंठों से थरथराता स्वर निकला । उसने हाथ बढ़ाकर सख्ती से उसकी कलाई पकड़ ली ।
दीपक के होंठ भिंच गए । आँखें गीली हो उठीं ।
“बहुत बुरा हुआ ।” दीपक के होंठ खुले, “मैं... ।”
“बहुत ही ज्यादा बुरा हुआ ।” दुलानी बोला, “दोबारा किसी के साथ ऐसा न हो, यही कोशिश हम कर रहे हैं ।”
दीपक और रजनी की निगाहें इंस्पेक्टर हरीश दुलानी के चेहरे पर थी ।
“अगर तुम लोग ठीक महसूस कर रहे हो तो आगे बात करें ।” दुलानी ने कहा ।
दीपक ने अपना आँसुओं भरा चेहरा दुखी मन से हिला दिया ।
“कौन था वो, जिसने तुम्हारे भाई और दोस्तों की जान ली ? वो एक था या ज्यादा ?”
“एक ।” दीपक के स्वर में कम्पन उभरा ।
“उसके बारे में बताओ ।” हरीश दुलानी की गंभीर निगाह दीपक और रजनी के चेहरे पर जा टिकी ।
दीपक और रजनी की निगाहें फौरन मिलीं । आँखों में खौफ था ।
“वो... वो दरिंदा था ।” दीपक के होंठों से थरथराता स्वर निकला ।
“हम देख लेंगे उसे ।” दुलानी के स्वर में कठोरता आ गई, “तुम हमें उसके बारे में बताओ ।”
फिर दीपक और रजनी ने जैसे-तैसे उस रहस्यमय जीव के बारे में बताया । वही बताया जो मोना चौधरी और महाजन को विनोद और सोनिया ने बताया था ।
उस रहस्यमय जीव का पूरा ब्यौरा सुनने के बाद, वहाँ मौजूद हर पुलिस वाला स्तब्ध रह गया ।
“ये असम्भव है सर !” उनकी बात पूरी होते ही एक पुलिस वाला कह उठा, “जिसके बारे में ये बता रहे हैं, ऐसा न तो कोई इंसान हो सकता है और न ही जानवर ।”
“हो सकता है रात के वक्त हमला करने वाले को पहचानने-देखने में इनसे भूल हो गई हो । उस हादसे की वजह से दहशत इनके दिलो-दिमाग में इस हद तक बैठ गई है कि ये ठीक से जवाब भी नहीं दे पा रहे हैं ।” दूसरे पुलिस वाले ने कहा ।
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी कुर्सी से उठा और कमर पर हाथ बाँधे टहलने लगा ।
दीपक और रजनी के चेहरों पर व्याकुलता नाच रही थी ।
“तुम दोनों शांत दिमाग से सोचो ।” एक पुलिस ऑफिसर ने दोनों से कहा, “हमें जवाब सुनने की जल्दी नहीं है । अपने दिमाग से हमला करने वाले का डर भगाकर सोचो ।”
“सिर्फ एक, एक साथ इतनों को ऐसी बुरी मौत नहीं दे सकता ।” एक सब-इंस्पेक्टर ने कहा, “वो कम-से-कम तीन-चार लोग होंगे । जीप की हेडलाइट्स में उन्हें ठीक से देख नहीं पाये और... ।”
“हमने... हमने ठीक से देखा था ।” रजनी काँपते स्वर में कह उठी ।
“फिर सोचो, कहीं-न-कहीं तुम लोगों से गलती... ।”
“हम सच कह रहे हैं ।” एकाएक दीपक गला फाड़कर चिल्ला उठा, “आप लोग विश्वास क्यों नहीं करते ।”
पुलिस वालों से कुछ कहते न बना ।
हरीश दुलानी चहलकदमी करते ठिठका । उसने गंभीर निगाहों से दोनों को देखा ।
“मुझे तुम्हारी बात पर पूरा विश्वास है ।” दुलानी ने कहा ।
दीपक और रजनी की निगाह दुलानी के चेहरे पर जा टिकी ।
“उसके पाँव छोटे-छोटे थे ?” दुलानी ने पूछा ।
“हाँ !” दीपक के होंठों से काँपता स्वर निकला, “छोटे-छोटे भारी जैसे पाँव थे ।”
“वो ज्यादा भारी शरीर का था ?” दुलानी ने पुनः पूछा ।
“नहीं ! शरीर भारी नहीं था उसका, सामान्य ही था ।” रजनी के होंठों से निकला ।
“उसका वजन ज्यादा होगा ?” दुलानी की नजरें दोनों पर थी ।
“नहीं मालूम । तब ये सब देखने-समझने का होश ही कहाँ था ।” काँपते स्वर में दीपक बोला ।
“लेकिन जैसा तुमने उसका हुलिया बताया है, उसको मद्देनजर रखते हुए सोचा जा सकता है कि वो वजनी शरीर वाला हो सकता है ।” हरीश दुलानी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा, “वो अवश्य ज्यादा वजन वाला होगा ।”
दीपक-रजनी की निगाह दुलानी पर थी ।
कई पुलिस वाले भी उलझन से भरे इंस्पेक्टर हरीश दुलानी को देख रहे थे ।
“सर !” तभी एक इंस्पेक्टर बोला, “ऐसा कोई इंसान या जानवर नहीं हो सकता जैसा हुलिया इन्होंने बताया है ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?” दुलानी ने कहा ।
“नहीं हो सकता सर ! इस हुलिये वाला कोई भी नहीं हो सकता । मेरा दिल नहीं मानता ।” उस पुलिस वाले ने कहा ।
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा ।
“ये दोनों मुझे किसी भी तरह से घबराये या पागल नहीं लगते और जो कह रहे हैं, सोच-समझकर, होशो-हवास में कह रहे हैं । क्या तुम्हें इनकी किसी हरकत से लगा कि ये असामान्य हैं ? होशो-हवास में नहीं हैं ?” दुलानी ने शांत स्वर में कहा, “इन्होंने जो अपनी आँखों से देखा, वही बताया । ये ठीक है कि इन्होंने एक ऐसी शख्सियत का हुलिया बताया है, जिसे हम न तो इंसान कह सकते हैं और न ही जानवर । मालूम नहीं वो क्या चीज़ है । उसके बारे में पता लगाना पड़ेगा ।”
कई पुलिस वालों के चेहरे पर असहमति के भाव नजर आने लगे ।
इंस्पेक्टर हरीश दुलानी ने दीपक और रजनी को देखा ।
“एक बार फिर मुझे उस शख्सियत का हुलिया बताओ, जिसने तुम लोगों पर हमला किया । इतनी जानें लीं ।
हरीश दुलानी दीपक और रजनी से बात करने के बाद, अलग हटकर कुर्सी पर जा बैठा था । चेहरे पर सोच और गंभीरता सिमटी हुई थी । पाँच मिनट बाद ही उसने इंस्पेक्टर को पास बुलाया ।
“यस सर !”
“बीस जवान तैयार करो । मेरे साथ चलेंगे ।” दुलानी ने सोच भरे स्वर में कहा ।
“कहाँ सर ?”
“उस तरफ जहाँ मिट्टी पर ताजे पैरों के निशान देखे गए हैं ।” दुलानी ने इंस्पेक्टर को देखा, “मेरे ख्याल में वही है, जिसने यहाँ और बीच के दूसरी तरफ वीभत्स लाशें बिछाई हैं । हमें ये देखना है कि वो आगे किस तरफ गया है ।”
फोटोग्राफर भी पास आ पहुँचा था । वह बोला, “लेकिन क्या मालूम, वो वहाँ से आगे किधर गया है ? आगे हर तरफ खुली जगह है और वो जगह दूर-दूर तक भूकंप प्रभावित जगह है । आगे जाकर वो किसी अन्य दिशा की तरफ मुड़ा हो सकता है ।”
“वो सारी जगह हमें देखनी होगी । उसे तलाश करना होगा । आखिर कितनी दूर जायेगा वो । उधर तो न कोई बस्ती है और न कोई सड़क ।” हरीश दुलानी की सोच भरी निगाह पुलिस फोटोग्राफर पर थी ।
“बात तो आपकी ठीक है ।” पुलिस फोटोग्राफर ने धीमे स्वर में कहा ।
“चलने की तैयारी करो ।” दुलानी ने इंस्पेक्टर से कहा ।
“अभी चलना है सर ?”
“हाँ ! अभी दिन छिपने में चार-पाँच घण्टे बाकी हैं ।”
☐☐☐
0 Comments