उसी रात जब चारों होटल के कमरे में खाना खा रहे थे, बातें कर रहे थे तो जुगल किशोर का फोन बजा। उसने स्क्रीन पर आया नम्बर देखा तो फौरन उठ खड़ा हुआ। उधर से वीरा त्यागी फोन पर था।

"क्या हुआ?" सोहनलाल ने पूछा--- "खाना तो खा ले।"

"एक मिनट।" जुगल किशोर दरवाजे की तरफ बढ़ते कह उठा।

"साला कमरे से बाहर जाकर बात करेगा।" जैकी मुस्कुराया--- "किसी लड़की का फोन होगा।"

जुगल किशोर ने कमरे से बाहर जाकर कॉलिंग स्विच दबाया और धीमे स्वर में बात की---

"हैलो!"

"किधर है? दिल्ली में या मुंबई में?" वीरा त्यागी की आवाज कानों में पड़ी।

"दिल्ली।"

"रिचर्ड जैक्सन वाले काम पर ही है ना?"

"हाँ, आज ही पहुंचा हूँ। कल काम शुरू करूँगा। तूने अपने लिए कुछ साथी ढूंढे?"

"दिल्ली में ही हैं मेरे काम के लोग। उसकी फिक्र मत कर। मैं कब आऊँ दिल्ली?"

"दो-चार दिन में कभी भी आ जाना। अभी काम शुरू होने में दस-पन्द्रह दिन लग सकते हैं।"

"मैं आ जाऊँगा। काम के बीच वक्त मिला तो मुंबई भी चक्कर लगा आऊँगा। यहां मेरे दो काम चल रहे हैं। लेकिन पहले तेरा काम। वक्त मिला तो मुंबई आऊँगा, नहीं तो दिल्ली ही टिका रहूँगा।"

बात करके जुगल किशोर कमरे में पहुंचा और खाने पर बैठ गया।

"किसका फोन था?" मेनन ने पूछा।

"खास था कोई...।"

"खास न होता तो तू खाना छोड़ के न जाता।"

"लड़की का होगा।" जैकी बोला।

जुगल किशोर मुस्कुरा कर रह गया।

"हमारे सामने बात करते तुझे शर्म आती है?" जैकी ने पुनः कहा।

"छोड़ो भी।" सोहनलाल ने कहा--- "फालतू की बातें मत करो।"

"वो मेरी खास है।" जुगल किशोर खाना खाते कह उठा--- "मैं उससे शादी करने की सोच रहा हूँ।"

"शादी?" मेनन के होंठों पर मुस्कान आ ठहरी।

"हाँ।" जुगल किशोर ने उसे देखा--- "ऐसा ही सोच रहा हूँ।"

"बढ़िया है। तेरा घर बस जायेगा।" जैकी बोला।

बातों के बीच खाना चल रहा था।

"मैं रिचर्ड जैक्सन के बारे में सोच रहा हूँ---।" सोहनलाल कह उठा।

"क्या?"

"कैसे हम निगरानी करेंगे उसकी?" सोहनलाल ने जुगल किशोर को देखा।

"एम्बेसी पर नजर रखनी पड़ेगी।"

"ये लंबा और कष्ट देने वाला काम हो जाएगा।"

"तो छोटा और आरामदायक काम क्या है?"

"एम्बेसी के भीतर के आदमी को फंसा कर उसके बारे में जानकारी लेनी चाहिए।" सोहनलाल ने कहा।

"अगर बात रिचर्ड जैक्सन के कानों तक पहुंच गई तो फिर वो हाथ नहीं आने वाला।

"हमें एम्बेसी के किसी ऐसे आदमी को ढूंढना होगा जो जुबान बंद रखे। जिसे पैसों की जरूरत हो।"

"कोई ना कोई तो ऐसा आदमी होगा ही।" मेनन बोला--- "हमें उसकी पहचान करनी होगी।"

"पहचान करने में गलती भी हो सकती है।" जुगल किशोर ने सोच भरे स्वर में कहा।

"इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।" मेनन ने खाना समाप्त करते हुए जुगल किशोर को देखा।

तभी सोहनलाल कह उठा---

"मैं जुगल किशोर एम्बेसी के किसी ऐसे आदमी को तलाश करेंगे और तुम दोनों एम्बेसी पर नजर रखोगे।"

"ठीक है।" मेनन बोला।

"रिचर्ड जैक्सन को पहचानते हो ना?"

"हाँ। जुगल किशोर ने उसकी तस्वीर दिखा दी है हमें।" जैकी ने सिर हिलाया।

"जुगल किशोर।" सोहनलाल बोला--- "रिचर्ड जैक्सन रात को कहां रहता है? एम्बेसी में या कहीं और---।"

"नहीं जानता।" जुगल किशोर बोला--- "परन्तु कल तुम्हें इस बात का जवाब दे दूंगा।"

होटल में दो कमरे बुक कराए गए थे। एक में जैकी और सोहनलाल सोये, दूसरे में जुगल किशोर और अजहर मेनन।

■■■

अगले दिन सुबह के साढ़े सात बजे जुगल किशोर नहा-धोकर तैयार था। तभी मेनन की आँख खुली।

"कहाँ जा रहा है इतनी सवेरे?" मेनन ने पूछा।

"साढ़े सात बज चुके हैं।" जुगल किशोर मुस्कुराया--- "मुझे कुछ कुछ काम है। तुम सब तैयार हो जाओ। उन दोनों को भी उठा दे। मैं फोन करूँगा तो अमेरिकन एम्बेसी के लिए चल देना।"

"तुझे इसी सिलसिले में काम है या दूसरा कोई काम?" मेनन ने बेड से उठते हुए पूछा।

"इसी सिलसिले में काम है।"

"हमारे अलावा कोई और भी इस काम में शामिल है?"

"नहीं। हम चार ही हैं। चूंकि ये योजना मेरी है, इसलिए मुझे ज्यादा भागदौड़ करनी पड़ रही है। सारी सिरदर्दी मेरी ही तो है।"

उसके बाद जुगल किशोर होटल से निकला और मोबाईल फोन निकालकर वजीर खान से बात की---

"कहाँ हो तुम?"

"तुम अपनी कहो।" उधर से वजीर खान बोला।

"एम्बेसी की निगरानी हो रही है?" जुगल किशोर ने पूछा।

"पूरी तरह।"

"रिचर्ड जैक्सन बाहर निकला?"

"आज रात वो एम्बेसी में ही रहा।"

"आज रात से मतलब?"

"कभी-कभी वो एम्बेसी में रात को रह जाता है, नहीं तो वो चितरंजन पार्क के एक बंगले में रात बिताता है।"

"बंगला नम्बर कितना है?"

"सात...।"

"फिर तो बंगले पर उस पर हाथ डालने में आसानी होगी।" जुगल किशोर ने कहा।

"असम्भव है वहां। बंगले पर रिचर्ड जैक्सन अकेला नहीं होता। वहाँ एम्बेसी से वास्ता रखते ऐसे अमेरिकी भी होते हैं, जिनका परिवार अमेरिका में है और वो अकेले यहाँ काम कर रहे हों। ऐसे में वहां तगड़ी सिक्योरिटी होती है। रिचर्ड जैक्सन के छः रक्षक के अलावा कम से कम बीस गनमैन वहां और होते हैं।"

"ओह...।"

"बंगले पर किले जैसी मजबूत सुरक्षा व्यवस्था है। ये कठिन काम है। आसान होता तो हम कर लेते। परन्तु पराये देश में कठिन काम पर हाथ डालकर हम कानून के जाल में नहीं फँसना चाहते।" उधर से वजीर खान ने कहा।

"मतलब कि सिर पर पड़ी मुसीबत झाड़कर तीस करोड़ में मेरे सिर पर लाद दी।"

"तीस करोड़ बड़ी रकम होती है मिस्टर जुगल किशोर। उसे पाने के लिए बड़ा काम करना पड़ता है।"

"मेरी नजर में ये छोटा काम है।"

"ये तो खुशी की बात है।"

"एम्बेसी के बाहर तुम्हारे आदमी कहाँ पर हैं? मैं उनसे मिलना चाहता हूँ और मेरे लोग उनकी जगह लेना चाहते हैं।"

"मैं तुम्हें एक फोन नम्बर देता हूँ। ये बात फोन पर तुम उससे कह सकते हो। उससे मिल सकते हो। बात कर सकते हो।"

जुगल किशोर ने वजीर खान का बताया नम्बर याद करके कहा---

"अब मेरी जरूरी बात सुन लो।"

"कहो।"

"मुझ पर या मेरे आदमियों पर नजर मत रखना।"

"हम नजर नहीं रखेंगे।"

"अगर ऐसा कुछ मुझे कहीं पर भी नजर आ गया तो मैं उसी वक्त काम छोड़ दूंगा और एडवांस लिया दस करोड़ भी वापस नहीं दूंगा।"

"जैसा तुम चाहोगे, वैसा ही होगा।"

"मेरे आदमियों को पहचानने या उनसे बात करने की भी जरूरत नहीं है। ऐसा कुछ किया तो हममें सबकुछ खत्म।"

"हम तुम्हारे किसी काम में दखल नहीं देंगे। तुम पर नजर नहीं रखेंगे।"

"ये ही अच्छा होगा। मेरा काम करने का अपना ढंग है।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा--- "मुझसे जो भी बात करना चाहते हो या मेरे काम की प्रगति जानना चाहते हो तो फोन पर मुझसे कोई भी बात कर सकता है। मैं हर चार दिन में फोन करके बताता रहूंगा।"

"जैसा तुम चाहते हो, वैसा ही किया जाएगा। एम्बेसी की निगरानी कर रहे आदमी को फोन करके उससे बात कर लो। मैं उसे बता चुका हूं कि आज से तुम काम शुरू करने जा रहे हो उन्हें छुट्टी दे दोगे।"

■■■

जुगल किशोर ने सोहनलाल, जैकी और अजहर मेनन को साढ़े ग्यारह बजे फोन करके अमेरिकन एम्बेसी के पास पहुंचने को कहा। वो तीनों दोपहर एक बजे वहां पहुंचकर जुगल किशोर से मिले।

"तुम अकेले क्यों आ गए?" सोहनलाल बोला--- "मुझे भी साथ ले लेते।"

"काम खास नहीं था। क्यों तुम्हारी नींद खराब करता। अब यहां आया तो तुम लोगों को बुला लिया।"

"यहां की क्या खबर है?" अजहर मेनन ने पूछा।

"आज से हम काम शुरु कर रहे हैं। तुम और जैकी एम्बेसी पर नजर रखो। मैं सोहनलाल के साथ मिलकर कोई ऐसा शख्स ढूंढता हूँ जो हमें एम्बेसी के भीतर की बातें, रिचर्ड जैक्सन के बारे में बता सके।" जुगल किशोर ने कहा।

"इसके लिए तुम्हें भी एम्बेसी पर नजर रखनी होगी।" जैकी बोला।

"हाँ। परन्तु हमारा नजर रखना, तुम्हारे काम से अलग होगा। हम लोग अलग-अलग काम के लिए काम करेंगे।"

सोहनलाल और जुगल किशोर एम्बेसी से दूर रहकर वहां की इमारत पर नजर रख रहे थे। एम्बेसी में लोगों का आना-जाना जारी था। कुछ लोग बाहर भी मौजूद थे। अधिकतर लोग वीजा लगवाने संबंधी कामों के लिए वहां मौजूद थे।

"ऐसे में तो पता भी नहीं चलेगा कि कौन दूतावास का कर्मचारी है और कौन नहीं।" सोहनलाल बोला।

"मेरे ख्याल में ये भीड़ दो बजे तक गायब हो जाएगी। दूतावास में पब्लिक डीलिंग दो बजे तक होती है।" जुगल किशोर बोला।

"जरूरी तो नहीं...।"

"पता चल जाएगा।"

"दो तो नहीं परन्तु तीन बजे तक भीड़ खत्म होने लगी।

"मैंने पता लगाया कि रिचर्ड जैक्सन चितरंजन पार्क के सात नंबर बंगले में रात बिताता है।" जुगल किशोर ने कहा।

"फिर तो बंगले पर हाथ डालना आसान होगा। वो...।"

"कोई आसान नहीं है। वहां एम्बेसी के और कर्मचारी भी रहते हैं और चौबीसों घंटे, बीस गनमैन वहीं पहरा देते हैं। जब रिचर्ड जैक्सन वहां पहुंचता है तो उसके पहरेदारों को मिलाकर वो छब्बीस हो जाते हैं। वहां उस पर हाथ डालना मुमकिन नहीं---।"

"ओह! तो तुम सुबह यही बात पता करने गए थे।"

"हाँ।"

"किससे पता की?"

"कर ली।" जुगल किशोर ने मुस्कुराकर सोहनलाल को देखा।

"क्या कोई और भी है जो हमारे इसी काम पर, काम कर रहा है?" सोहनलाल ने पूछा।

"नहीं। हम चार ही हैं। ये बात मैंने अपने ढंग से पता की है।"

"रिचर्ड जैक्सन कब तक हमारे हाथ आ जाएगा?"

"देखते हैं। काम तो शुरू कर दिया है।"

"लंबा वक्त भी लग सकता है।"

"हमें एम्बेसी का कोई काम का आदमी मिल जाए तो सब कुछ आसान हो जाएगा।" कहकर जुगल किशोर ने फोन निकाला और मेनन को फोन करके कहा--- "तुम लोग अपने लिए कार का इंतजाम करो। रिचर्ड बाहर निकला तो उसके पीछे कैसे जाओगे?"

"जैकी अभी यही बात कह रहा था। वो कहीं से कार उठाने जा रहा है।"

"उसे समझा देना कि कार का रंग ऐसा हो जो कि लोगों की नजरों में ना चुभे, दिन भर कार खड़ी रहने पर भी। हर रोज कार बदलते रहो। जो भी काम करो, सोच-समझकर सावधानी से करना। मामला चौपट नहीं होना चाहिए।"

■■■

चार दिन बाद।

जुगल किशोर और सोहनलाल ने एक ऐसे आदमी को नोटिस किया जो कि सुबह नौ बजे अमेरिकन एम्बेसी पहुंचता था और शाम को छः बजे के बाद बाहर आता था। पहनावे से कोई खास नहीं लगता था। कभी वह बढ़िया कपड़े भी पहनकर आता था, परन्तु वह कपड़े उसके चेहरे से मेल नहीं खाते थे। आमतौर पर वह कमीज-पैंट पहने होता था। उम्र उसकी 40-45 के करीब होगी। सिर के आगे के बाल उड़े हुए थे और चेहरा देखने पर वह पक्का शराबी लगता था।

बीते दो दिनों से जुगल किशोर और सोहनलाल ने उसका पीछा किया। उसका घर देखा कि कहां पर है। एक बार तो वह सीधा घर गया था और एक बार शराब के ठिकाने पर पहुंचा और दो घंटे लगा कर खूब पी। सोहनलाल और जुगल किशोर उससे बात करने का इरादा रखते थे, परन्तु वह इतनी पी चुका था कि बात करने के काबिल नहीं रहा था। सोहनलाल और जुगल किशोर ने ही उसे उसके घर पर छोड़ा। जबकि उसे इतना होश ही कहां था कि देख पाता कि किसने उसे घर पहुंचाया है।

जब वो लड़खड़ाते हुए घर में घुसा तो भीतर की बातें बाहर खड़े उन दोनों ने सुनीं।

"आ गये नशेड़ी---।" औरत की गुस्से से भरी आवाज बाहर खड़े उन दोनों के कानों में पड़ी।

"सुनने दे कि इसके घर में क्या होता है।" जुगल किशोर शांत स्वर में बोला।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट निकाली और सुलगाकर कश लेने लगा।

"जा...जा।" उस आदमी की नशे भरी आवाज आई।

"मेरी तो किस्मत ही फूट गई थी जो तुमसे शादी कर ली। तुम तो फेरों में भी पीते रहे थे। तुम्हारे दोस्त कोकाकोला में तुम्हें मिलाकर देते रहे और तुम पीते रहे। पंडित मंत्र पढ़ता रहा और मैं शराब की बदबू सहती रही।"

"चुप। शादी की बात मत कर। पुराने जख्म हरे हो जाते हैं।

"कौन से जख्म लग गए तुम्हें मुझसे शादी करके? मैं भी तो सुनूं।" औरत के चिल्लाने की आवाज आई।

"मैंने तुमसे इसलिए शादी की कि तुम्हारा बाप नकद दस-बीस लाख देगा। लेकिन तुम्हारे बाप ने तो एक डबलबेड, एक लोहे की पेटी और एटलस की साइकिल देकर हाथ खड़े कर दिए।"

"तो क्या तुम्हें हवाई जहाज देते? पेट्रोल भरने तक के पैसे हैं क्या तुम्हारे पास?"

"कम से कम कार तो दे देता तेरा बाप।"

"कार? शुक्र है जो मेरे बाप ने कार नहीं दी। एहसान मानो उसका।"

"एहसान?"

"और नहीं तो क्या? तुम्हें कार दी होती तो एक्सीडेंट कर कब के मर-खप गए होते। तुम्हारी जिंदगी बचा ली मेरे बाप ने। उसके पैर धो-धोकर पियो। उसने तुम्हारा बहुत भला किया है।"

"तेरा बाप मुझे क्या कार देता। खुद तो बिना चैन की साइकिल लेकर घूमता रहता था। जब देखो साइकिल की चैन को कंधे पर लादकर साइकिल को धक्का देता रहता था। कहता था कि चैन ढीली होकर उतर गई है। घर जाकर मरम्मत करूंगा। बदकिस्मत साइकिल ने कभी भी मिस्त्री की शक्ल नहीं देखी होगी कि वो कैसा होता है। गलत लोगों से मैंने रिश्ता जोड़ लिया। रामलखन की बेटी से शादी की होती तो कारों में घूमता।"

"हाँ-हाँ, क्यों नहीं!" औरत ने सुलगे स्वर में कहा--- "तब तो तुम जरूर कारों में घूमते और कारें उसकी यारों की होतीं। तुम चलाते और पीछे की सीट पर वो अपने यार के साथ बैठी होती। पागल इंसान, तुम जानते नहीं कि रामलखन की बेटी की क्या करतूतें थीं। उससे शादी करते तो सोचो, तुम्हारा क्या होता। मैं तुम्हें पीने से रोकती हूँ और वो आज तुम्हारे साथ बैठी पी रही होती। नहीं, ये भी ना होता।

"तो क्या होता?"

"तुम अब तक मर चुके होते। रामलखन ने तुम्हें कार दी होती और पीकर तुमने कार चलाई होती और एक्सीडेंट करके मर गए होते। तुम अब होते ही नहीं और रामलखन की बेटी अपने आशिकों के साथ मौज कर रही होती।"

"तुम उससे जलती हो।"

"जले मेरी जूती! मैं क्यों जलूं?  मेरे बाप ने ठीक किया जो तुम्हें कार नहीं दी।"

"औकात ही कहां थी उसकी? वो दिन जब याद आता है तो मन मसोस कर रह जाता हूँ। रामलखन को जब पता चला कि मेरा ब्याह तुमसे तय होने वाला है तो वो मुझे कारों के शोरूम पर ले गया। और कारें दिखाकर बोला कि अगर मैं उसकी बेटी से शादी करूं तो वो दहेज में मुझे नई कार खरीद कर दे देगा। साथ ही...।"

"उसकी बेटी को भूल गये, जिसे वो तुम्हारे साथ बांधना चाहता था। तब तो उसका दूध भी खत्म होने को था। सूखी भैंस की तरह वो तुम्हारे साथ रहती और तुम दीवारों में टक्कर मारते फिरते कि...।"

"जो भी हो--- मैंने तुमसे शादी करके गलत किया। तुम तो---।"

"भाड़ में जाओ तुम। मैं अब तुम्हारी परवाह नहीं करती। कान खोल कर सुन लो कि अब तुम शराब पीना छोड़ दो वरना...।"

"छोड़ दूं...। पागल है।"

"क्या कहा?"

"कोई मुझे कहे कि तुम्हें छोड़ दूँ तो मैं उसकी बात कभी नहीं मानूँगा।"

"मुझमें और शराब में तेरे को फर्क नजर नहीं आता?"

"आता है। एक चढ़ती है तो दूसरी उतारती है। तुम दोनों ही अपने में पूरक हो। ये कसूर है कि मैं रोज पीता हूं। अगर तू मेरा नशा ना उतारे तो अगले दिन पीने की मुझे जरूरत ही ना रहे। मैं नशे में ही रहूँ---।"

"और नौकरी तुम्हारा बाप करेगा? एम्बेसी वाले ड्यूटी के कितने सख्त हैं, जानते हो कि नहीं?"

"पच्चीस हजार हर महीने तुम्हारे हाथ पर---।"

"एक हाथ रखते हो और दूसरे हाथ ले लेते हो। पन्द्रह हजार तो तुम शराब में ही उड़ा देते हो। महंगी-महंगी शराबें पीने का शौक लग गया तुम्हें। कितनी बार कहा है कि नशा ही चाहिए तो अफीम चाट लिया करो।" औरत खुंदक भरे स्वर में कह रही थी--- "घर में पैसे खत्म हो गए हैं।"

"पैसे खत्म हो गए! ये कैसे हो सकता है? कल ही तो तेरे पास तीन हजार---।"

"उसके में सूट ले आई हूं।"

"तीन हजार का सूट? तेरी मां ने पहना है कभी?"

"देखो, तुम मेरी मां पर मत जाओ। जो बात करनी है, मुझसे करो। हजार-हजार के तीन सूट लाई हूं।"

"कहां गई थी लेने?"

"पड़ोस की सुषमा के साथ...।"

"सुषमा!" उसके गहरी सांस लेने की आवाज आई।

"छुपा नहीं है मुझसे।" औरत ताना मारने वाले स्वर में कह उठी--- "तुम्हारी नजर उस पर है। मैं जानती हूँ।"

"नजर? कभी-कभी उसे देख लेता हूँ। ज्यादा से ज्यादा तमन्ना कर लेता हूँ। बस, ये ही कसूर है मेरा।"

"अपनी उम्र देखो सीधे हो जाओ। इस दीवाली पर तुमने मेरे हाथ से कीमती साड़ी उसके लिए भिजवाई थी।"

"तो क्या हो गया! एक साड़ी तेरे को भी तो दी---।"

"मैं तुम्हारी पत्नी हूँ और वो...।"

"पड़ोसन है। इससे ज्यादा कुछ नहीं। तुम बात को खींचा मत करो। लेकिन एक बात जरूर है... कि जब भी उसे देखता हूं तो देखता ही रह जाता हूं। कुछ और सोच ही नहीं पाता।"

"उसकी शक्ल रामलखन की बेटी से मिलती है। औरत के चीखने की आवाज आई।

"नहीं-नहीं। पर उसकी नाक जरूर मिलती है। काश उसका चेहरा पूरी तरह रामलखन की बेटी से मिलता होता।"

"तो-तो क्या हो जाता। अब पड़ोसन पर तुम्हारी नियत खराब...।"

"मेरी इतनी हिम्मत कहां! मैं तो तेरा तोता हूं मेरी रानी। मेरे लिए तो बस तू ही तू है।"

"कमीने इंसान हो तुम!"

"ऐसा कह कर दिल मत जला। मत भूल कि रामलखन की बेटी के बदले मैंने तेरे को पसंद किया था और---।"

"तभी तो अब तक जिंदा हो। कल मुझे पैसे दे देना। घर के खर्चे के लिए कुछ नहीं है।"

"कहां से दूं। मेरे पास एक भी एक पैसा नहीं...।"

"बेटी कानपुर में नर्स की ट्रेनिंग कर रही है। उसे भी भेजना है। तारीख पास आती जा रही है। तुम्हें शराब पीने से फुर्सत हो तो कुछ याद रहे। कल चुपचाप पैसे ले आना, बेशक कहीं से भी लाना...।"

सोहनलाल ने जुगल किशोर की बांह पकड़ी और मकान से दूर आ गया।

"उसे पैसे की जरूरत है।" जुगल किशोर बोला--- "हम उसे फांस सकते हैं।"

"कोई फायदा नहीं। ऐसे शराबियों को मैं अच्छी तरह जानता हूँ। ये लोग पियक्कड़ जरूर होते हैं, परन्तु अपने काम-धंधे से बेईमानी नहीं करते। वो ना माना तो बात बाहर भी जा सकती है।"

"एक बार कोशिश करके...।"

"निशाना कितना सही है, ये बाद की बात है। पहले तय कर लो कि क्या तुम ठीक चीज का निशाना लेने जा रहे हो।" जुगल किशोर सोहनलाल को देखने लगा।

"इसकी पत्नी का इस्तेमाल करो---।"

"क्या?" जुगल किशोर अचकचाया।

"पैसों पर औरतें जल्दी फिसल जाती हैं।"

"लेकिन हमने तो इस आदमी से रिचर्ड जैक्सन के बारे में जानकारी लेते रहना है। इसकी पत्नी से हमें क्या...।"

"सब होगा। सब होगा। हम कल तब यहां आएंगे, जब ये ऑफिस जा चुका होगा।"

■■■

रात जुगल किशोर और सोहनलाल होटल में ही सोये। रात खाने से पहले दो-दो पैग लगाए थे। जैकी और अजहर मेनन रात होटल नहीं आए थे। जबकि पिछली रात वो दस बजे आए थे और सुबह सात बजे वापस अपनी ड्यूटी पर चले गए थे।

जुगल किशोर हमेशा की तरह आज भी पहले तैयार हो गया था।

सोहनलाल तब नहा रहा था, जब जुगल किशोर का मोबाइल बजने लगा है।

"हैलो।" जुगल किशोर ने बात की।

"मैं, वीरा।"

"ओह...।" जुगल किशोर के होंठों से निकला। वीरा को तो वो जैसे भूल ही गया था--- "मैं व्यस्त था इसलिए...।"

"मैं समझता हूं।" वीरा की आवाज कानों में पड़ी--- "मैं रात ही दिल्ली पहुंचा। काम की क्या पोजीशन है?"

"काम तो अभी शुरुआती दौर में है। चार दिन हो गए, कोई प्रगति नहीं हुई...।"

"मतलब कि तुम लोग काम पर लग चुके हो?"

"हाँ।"

"कोई बात नहीं, प्रगति भी हो जाएगी...।"

"तुम्हारा अभी कोई काम नहीं। दिल्ली आने से पहले एक बार मुझसे बात कर लेते।"

"कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां पर मेरे दो लोग हैं। मैं उनसे बात करके उन्हें फिक्स कर आता हूँ। मुंबई में अभी एक काम चल रहा है, तीन-चार दिन उस काम में लगाकर पूरा करके तुम्हें फोन करूंगा।"

"ये ठीक रहेगा।"

"कोई खास बात हो तो मुझे फोन कर देना, मैं पहले आ जाऊंगा।"

तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और टॉवल लपेटे सोहनलाल बाहर निकला।

सोहनलाल पर नजर मारकर जुगल किशोर फोन पर बोला---

"हम फिर बात करेंगे।" कहकर जुगल किशोर ने मोबाइल बंद करके, जेब में रख लिया।

"किसका फोन था?"

"उसी लड़की का...।" जुगल किशोर मुस्कुरा पड़ा।

"मेरे आते ही बात खत्म हो गई।" सोहनलाल कपड़े डालता बोला।

"इत्तेफाक से, तुम्हारे बाथरूम से बाहर निकलते ही बात खत्म हो गई।" जुगल किशोर ने गहरी सांस लेकर कहा--- "मैं नाश्ता मंगवाता हूँ। उसके बाद हम कल वाले शराबी आदमी की पत्नी से बात करेंगे। उसे तुमने संभालना है।"

"याद है।" सोहनलाल ने कहा--- "हमें पैसों की जरूरत पड़ेगी।"

"पैसे मैं लेकर ही दिल्ली आया हूँ। जानता हूँ इन कामों में खर्चा भी होता है।" जुगल किशोर ने कहा और नाश्ते का आर्डर देने के लिए इंटरकॉम की तरफ बढ़ गया।

साढ़े दस बजे वो दोनों उसी शराबी आदमी के घर के बाहर खड़े थे।

"वो ऑफिस जा चुका होगा।" जुगल किशोर आसपास देखता कह उठा।

"हमें उसका नाम भी नहीं मालूम।" सोहनलाल बोला।

"असल काम तो नोटों ने करना है।" जुगल किशोर ने सोहनलाल को देखा--- "देखना ये है कि तुम कैसे बात बनाते हो। मैं अभी तक नहीं समझ पाया कि जब रिचर्ड जैक्सन के बारे में, एम्बेसी में काम करने वाला ही जानकारी दे सकता है--- उसकी पत्नी से हमारा काम कैसे संभव होगा?"

"देखते जाओ। आओ।" सोहनलाल आगे बढ़ता कह उठा--- "ऐसे शराबी अपने काम के प्रति वफादार होते हैं। मेरा ऐसा अनुभव है। वो बात बिगाड़ भी सकता है, परन्तु उसकी पत्नी सब मामला संभाल लेगी। देखना अभी---।"

जुगल किशोर, सोहनलाल के साथ चल पड़ा।

दोनों मकान के दरवाजे पर पहुंचे। कॉलबेल नहीं दिखी तो सोहनलाल ने दरवाजा थपथपाया।

कुछ पलों बाद दरवाजा खुला। चालीस बरस की सांवले रंग की औरत सामने खड़ी थी।

"कहिये?" वो दोनों को देख कर बोली।

उसकी आवाज सुनकर दोनों को पता चल गया कि ये ही वो औरत है जो कल रात बोल रही थी।

"नमस्कार।" सोहनलाल हाथ जोड़कर बोला--- "भाई साहब घर में नहीं है क्या?"

"भाई साहब!" औरतों के चेहरे पर सवालिया निशान दिखे।

"आपके पति, जो अमेरिकन एम्बेसी में काम करते हैं।"

"वो तो ऑफिस गये। लेकिन आप लोग कौन हैं?"

सोहनलाल दो पल खामोश रहकर कह उठा---

"मैं आपके पति के बारे में आपसे कुछ बात करना चाहता हूँ। क्या हम भीतर बैठ कर बात कर सकते हैं।"

औरत शंका में दिखने लगी।

"उन्होंने क्या कोई गड़बड़ कर दी है? देखिये, वो दिल के बहुत अच्छे हैं। एक ही खराब आदत है... शराब पीने...।"

"ऐसा कुछ भी नहीं है।" सोहनलाल मुस्कुरा पड़ा--- "आपके पति ने कोई गड़बड़ नहीं की। हम आपके पति के बारे में कुछ और बात करना चाहते हैं। अगर आपको हमारी बात ठीक लगे तो हम आपको एक लाख दे सकते हैं।"

"एक लाख!" वो अचकचा उठी।

"हाँ।" सोहनलाल ने सिर हिलाया--- "मैं सच कह रहा हूँ।"

"आईये भीतर आईये...।" औरत फौरन पीछे हटती कह उठी।

सोहनलाल और जुगल किशोर ने भीतर प्रवेश किया। ये साधारण सा ड्राइंगरूम था। पुराने से सोफे पड़े थे। छत पर पुराना पंखा कम स्पीड में चल रहा था। उससे आवाज निकल रही थी। दोनों एक बड़े सोफे पर बैठ गये। औरत ने एक तरफ रखी कुर्सी खींची और बैठते हुए बोली---

"क्या लेंगे आप? चाय बना देती हूँ। ठंडा बाजार से लाना पड़ेगा, कोल्ड ड्रिंक की बोतलें तो घर में बहुत पड़ी हैं, परन्तु सब खाली हैं। ये शराब में कोल्डड्रिंक मिलाकर पीते...।"

"हमें कुछ नहीं चाहिए।" सोहनलाल बोला, फिर जुगल किशोर से कहा--- "पचास हजार की गड्डी दे।"

जुगल किशोर ने फौरन जेब से पचास हजार की गड्डी निकाल कर दी। सोहनलाल ने गड्डी लेकर सामने पड़ी पुरानी सी सेंटर टेबल पर रख दी। औरत की आंखें सिकुड़ी। वो बोली---

"ये क्या?"

"ये पचास हजार रुपया है। अगर आपको मेरी बात पसंद आती है तो ये आपका।"

"मेरा?"

"हाँ...।"

"सिर्फ बात पसंद आने पर?" उसकी आंखों में चमक आ चुकी थी।

"आपने बात को सही समझा है। सिर्फ हमारी बात पसंद आने पर ये आपका।"

"आप बात बताइये।" बार-बार औरत की निगाह, नोटों की गड्डी पर जा रही थी।

"आपके पति का क्या नाम है?"

"सोमनाथ बाली।"

"मिसेज बाली।" सोहनलाल शांत स्वर में बोला--- "अमेरिकन एम्बेसी में एक अमरीकी है। हमें उसके बारे में रोज के रोज की जानकारी चाहिए कि वो क्या करता है, कहां जाता है और आने वाले दिनों में उसका कहां जाने का प्रोग्राम है।"

"बस इतनी सी बात है!" मिसेज बाली बेसब्री से कह उठी।

"इतनी ही बात है। सोच-समझकर बता दीजिए। जल्दी मत करें।" कहने के साथ ही सोहनलाल उठा और टेबल पर से पचास हजार की गड्डी उठाकर मिसेज बाली को देता कह उठा--- "जब तक हमारी बात चल रही है, ये आप रख लीजिए। जब बात पसंद ना आए तो गड्डी लौटा देना।"

मिसेज बाली ने तुरन्त गड्डी थामकर दोनों हाथों में दबाई और सिर हिलाया।

सोहनलाल वापस सोफे पर बैठकर सिगरेट निकालता बोला---

"मैं सिगरेट सुलगा सकता हूँ?"

"क्यों नहीं, जरूर-जरूर।" मिसेज बाली तुरन्त कह उठी।

सोहनलाल ने सिगरेट सुलगाई। कश लिया।

जुगल किशोर बेहद शांत, शरीफों की तरह बैठा था। वो नहीं जानता था कि सोहनलाल के मन में क्या है, परन्तु उसे सोहनलाल पर भरोसा था कि वह जो भी करेगा, ठीक करेगा।

"मिसेज बाली।" सोहनलाल गंभीर स्वर में कह उठा--- "याद है मैंने आपसे क्या कहा?"

"आपने कहा है कि अमेरिकन एम्बेसी में एक अमेरिकी है। आपको उसके बारे में जानकारी चाहिए कि वह क्या करता है, कहां जाता है और उसके कहां-कहां जाने का प्रोग्राम होता है।" मैसेज बाली ने कहा।

"रोज की रोज जानकारी चाहिए।"

"मैं समझ गई।" मिसेज बाली ने हाथ में दबी गड्डी को देखा--- एकाएक उनकी खुशी कम होने लगी।

"यह पचास हजार रुपये हैं। बीस दिन बाद जानकारी मिलते रहने पर, पचास हजार आपको और दिया जाएगा। अगर तब तक हमारा काम नहीं हुआ तो हर बीस दिन में पचास हजार आपको मिलेगा।"

"क्या नाम है उस अमरीकी का?"

"रिचर्ड जैक्सन।" सोहनलाल बोला--- "हमने आपसे बात करना ठीक समझा। आप बेहतर जानती हैं कि इस बारे में अपने पति से...।"

"वो नहीं मानेगा।" मिसेज बाली के होंठों से निकला।

सोहनलाल की आंखें सिकुड़ी। वो मिसेज बाली को देखने लगा।

"वो अपने ऑफिस की बात किसी से नहीं करता। कभी मेरे से कर लेता है। अमेरिकन एम्बेसी वालों की पहली शर्त है कि उनके भीतर की कोई भी बात बाहर नहीं जानी चाहिए। सोमनाथ इस शर्त को पूरी तरह स्वीकार करता है।"

"आप उसे मजबूर कर सकती हैं कि वो हमारी बात मान ले।"

"नहीं। मैं उसे मजबूर नहीं कर सकती। वो नहीं मानेगा।" मिसेज बाली ने परेशानी भरी नजरों से हाथ में दबी गड्डी को देखा।

"फिर तो आप काफी बड़ी रकम से हाथ धो लेंगीं। हम आपको काफी पैसा देने वाले थे।"

मिसेज बाली और भी परेशान हो उठी।

सोहनलाल ने सोच भरे ढंग में कश लिया।

कुछ देर के लिए वहां चुप्पी छा गई। मिसेज बाली ने ही उस खामोशी को तोड़ा---

"क्या आप ऐसा रास्ता नहीं निकाल सकते कि पैसा मुझे मिलता रहे और आपका काम हो जाये?" वो बहुत बेचैन थी।

"मैं ऐसा ही कुछ सोच रहा हूं, परन्तु उसमें आपकी समझदारी की बहुत जरूरत पड़ेगी।"

"उसकी आप फिक्र ना करें, मैं बहुत समझदार हूं।" वो जल्दी से कह उठी।

सोहनलाल ने सिगरेट को खुले दरवाजे से उछाला और कह उठा---

"मैं आपको कुछ समझाता हूं कि आपने किस तरह काम करना है। अपनी समझ को भी मेरी बातों में मिक्स कर लीजिये। तभी आपको हम इसी तरह मोटी-मोटी गड्डियाँ देते रहेंगे।"

उसने दाएं-बाएं इस तरह सिर हिलाया जैसे छोटा बच्चा टॉफी के लिए ललचा रहा हो।

सोहनलाल उसे समझाने लगा।

मिसेज बाली समझने लगी। नोटों की गड्डी को दोनों हाथों के बीच दबा रखा था।

जुगल किशोर मासूम सा बना बैठा, सब देख सुन रहा था।

सोहनलाल और मिसेज बाली के सवाल-जवाब 45 मिनट तक चले।

मिसेज बाली सोहनलाल की बात से समझ गई थी कि काम कैसे करना है। अब फिर उसके चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी चमक लौटने लगी थी।

"ये काम मैं आसानी से कर लूंगी! परन्तु रिचर्ड जैक्सन के बारे में जानकर आप क्या करना चाहते हैं?" मिसेज बाली ने पूछा।

"आपको नोट चाहिए मिसेज बाली?"

"हां।"

"तो बेकार का कोई सवाल मत पूछिये, जिसका आपसे कोई मतलब ना हो। सोमनाथ एम्बेसी में काम क्या करता है?"

"वो वहां के किचन का इंचार्ज है। सुबह नौ बजे से छः बजे तक उसकी ड्यूटी होती है। वैसे ड्यूटी तो साढ़े आठ बजे से लेकर साढ़े पांच बजे तक होती है, परन्तु आर्डर है उसे है कि आधा घंटा पहले पहुंचना है और छः बजे ऑफिस से बाहर निकलना है। उससे मिलने एम्बेसी में कोई नहीं आ सकता। वो लोग काम के वक्त काम चाहते हैं।"

"सोमनाथ की ड्यूटी में क्या-क्या काम शामिल है?"

"वो जानता है कि एम्बेसी के किस आदमी को खाने-पीने में क्या चाहिए। मसलन कोई कैसा खाना खाता है, कॉफी कैसी पीता है। किसी को नमक या मीठा कैसा चाहिए। कितने बजे किसको क्या देना है। वो एम्बेसी के लोगों की चीजें तैयार करता है और वहां के चपरासी सामान को सर्व करते हैं।" मिसेज बाली बता रही थी--- "अगर कभी सोमनाथ छुट्टी कर लेता है तो एम्बेसी के लोगों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाती है कि उनकी जरूरत का खाना-पीना कौन देगा। शाम साढ़े पांच बजे से ढाई बजे तक दूसरे किचन संभालने वाले की ड्यूटी होती है और ढाई बजे से सुबह साढ़े नौ बजे तक तीसरा किचन संभालता है। एम्बेसी में सुबह का आया स्टाफ शाम को जाता है, दो-चार ही रह जाते हैं। शाम को आने वाला स्टाफ रात भर काम करता है।"

"मतलब कि सोमनाथ का वास्ता एम्बेसी के हर आदमी से पड़ता है।"

"हां। परन्तु ज्यादातर वो किचन में सामान तैयार करता है। चपरासी ही सामान को सर्व करते हैं, परन्तु तुम फिक्र मत करो। रिचर्ड जैक्सन के बारे में वो सारी जानकारी मिल जाएगी, जो तुम चाहते हो। बीस दिन बाद तुम पचास हजार मुझे और दोगे?"

"हां...।"

"उसके बीस दिन बाद पचास हजार और दोगे?"

"हां, तब तक तुम्हें पैसा मिलता रहेगा जब तक कि हमारा वो काम नहीं हो जाता जो हम करना चाहते हैं। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा काबिल बन कर दिखाओ। तुमने ऐसा किया तो हम पैसा बढ़ा भी सकते हैं।"

"ओह सच!" वो खुश हो गई--- "आप देखना मैं कैसा काम करती हूं।" कहकर वो सामने पड़े फोन के पास पहुंची और रिसीवर उठाकर नंबर मिलाती कह उठी--- "सुन लेना। मैंने अपना काम शुरू कर दिया है।"

सोहनलाल और जुगल किशोर उसे देखते रहे।

वो रिसीवर कानों में लगाए खड़ी रही, तभी उसके कानों में सोमनाथ की आवाज पड़ी---

"क्या आफत आ गई जो मुझे फोन कर दिया?"

"आज आप ऑफिस से सीधे घर आना।" मिसेज बाली तेज स्वर में कह उठी।

"क्यों... आज क्या हो गया?"

"6 बजे ऑफिस से निकल कर 6:45 पर घर पहुंच जाना।" उसने पूर्ववत स्वर में कहा।

"ऐसी क्या आफत आ गई जो...।"

"आपने सुना नहीं, मैंने जो कहा...।"

"आज शाम को तो मेरी पार्टी है। सुखविंदर और...।"

"भाड़ में गई आपकी पार्टी। आज से आप घर बैठ कर पिया करेंगे। समझे! बाहर पीना बंद।"

"ये नहीं हो सकता...। मैं...।"

"तो आप मेरी बात भी सुन लीजिए। 6:45 तक आप घर नहीं आए तो 6:50 पर मैं आत्महत्या कर लूंगी। रात को आओगे तो मेरी लाश देखोगे। अब फैसला कर लेना कि पार्टी पसंद है या मेरी लाश देखना पसंद है।" गुस्से से कहते हुए मिसेज बाली ने रिसीवर वापस रखा और मुस्कुराकर सोहनलाल से पूछा--- "मैंने ठीक बात की ना?"

"ये पति-पत्नी का मामला है। तुम जानो कि उसे घर कैसे बुलाना है--- परन्तु बात क्या और कैसे करनी है, वो मैंने तुम्हें बता दिया है। कहो तो एक बार फिर बता देता हूं...।" सोहनलाल ने कहा।

"वो सब याद है मुझे...।"

तभी वहां पड़ा फोन बज उठा।

"सोमनाथ का ही होगा।" कहते हुए मिसेज बाली ने रिसीवर उठाया---

"हैलो...।"

"ये तेरे को क्या हो गया।" सोमनाथ बाली की आवाज कानों में पड़ी--- "पहले तो तूने कभी ऐसी बात नहीं की जो...।"

"6:45 पर घर आते हो या 6:50 पर मैं फांसी लगा लूँ...?" मिसेज बाली ने गुस्से से कहा।

"आ जाऊंगा। आ जाऊंगा।"

"अपनी बोतल भी लेते आना।"

"क...क्यों?"

"आज मेरे पास बैठकर पीना। मैं तुम्हें अपने हाथों से पिलाऊंगी।"

"तू अपने हाथों से पिलायेगी तो नशा नहीं चढ़ने वाला आज। कहीं तेरा बाप तो नहीं मिला तो तुझे आज...।"

"बाप बीच में कहां से आ गया?"

"उसने तेरे को समझाया हो कि...।"

"मुझे किसी ने नहीं समझाया। तुम 6:45 पर बोतल लेकर घर पहुंच जाना।" कहकर उसने फोन बंद कर दिया।

जुगल किशोर ने सोहनलाल को देखा।

सोहनलाल की निगाह, मिसेज बाली पर थी।

"मैं सब संभाल लूंगी।" मिसेज बाली ने कहा।

"मैं शाम को छः बजे आऊंगा।"

"छः नहीं, सात...।" मिसेज बाली ने कहा।

"ये ठीक रहेगा।" मिसेज बाली ने सिर हिलाया।

सोहनलाल और जुगल किशोर घर से बाहर आ गये।

"औरत तेज है, अपने पति को संभाल लेगी।" जुगल किशोर गहरी सांस लेकर मुस्कुराया।

"हाँ, वो हमारा काम आसान कर देगी।"

"तुमने अच्छा रास्ता निकाला जानकारी पाने का। ऐसे ही करना ठीक है।"

"इस तरह बात खुलने का खतरा नहीं रहेगा। हर औरत पैसे की लालची होती है। हर औरत जैसे-तैसे अपने पति को संभाल लेती है। या यूं कह लो कि औरत के सामने आकर पति सीधा होकर चलता है।" सोहनलाल ने मुस्कुराकर कहा।

"तो तुम्हारा भी ये ही हाल है।" जुगल किशोर हँसा।

"अभी तक तो खैर है। हम-दोनों एक-दूसरे के लिए सीधे हैं। घर में रहना हो तो सीधे रहना ही पड़ता है। अगर कोई कहे कि वो अपनी पत्नी की परवाह नहीं करता तो वो झूठ कहता...।"

तभी जुगल किशोर का फोन बजने लगा।

जुगल किशोर ने मोबाइल निकालकर बात की। दूसरी तरफ जैकी था।

"तुम्हारे पास अगर वक्त हो तो यहां आकर हमारी जगह ले लो। हमें आराम की जरूरत है।" जैकी की आवाज कानों में पड़ी।

"रात तुम लोग होटल में नहीं आये...।"

"रिचर्ड जैक्सन के पीछे थे। वो रात किसी पार्टी में गया था।"

"कहाँ?"

"अशोका होटल...।" उधर से जैकी ने कहा--- "हिन्दुस्तान के जाने-माने बिजनेसमैन साराभाई अम्बाबाई की दी पार्टी थी।"

"रिचर्ड किसी फेर में होगा। यूँ तो वो ऐसी पार्टी में जाने वाला नहीं।"

"सुबह तीन बजे लौटा। उसके बाद हम कार में ही सो गए थे। सारा बदन टूट रहा...।"

"जब वो एम्बेसी से निकला तो उसके आसपास कैसी सुरक्षा थी?" जुगल किशोर ने पूछा।

"वो कुल तीन कारें थीं। आगे वाली कार में चार गनमैन थे। पीछे वाली कार में दो आदमी थे। बीच की कार में वो ड्राइवर के साथ खुद था।

शायद हमें पता भी नहीं चलता उसके बाहर जाने का, क्योंकि वह रात ग्यारह बजे कार पर निकला था--- परन्तु वह अपनी सुरक्षा व्यवस्था की वजह से पहचाना गया। एक कार आगे, एक कार पीछे। अपनी कार वह हमेशा एक ही इस्तेमाल करता है।"

"सोचा कि उस पर हाथ डाला जाये तो कैसे डाला जाये?"

"आसान नहीं है। आगे-पीछे की कार में बैठे गनमैनों से निपटना होगा। तुम आ रहे हो?"

"मैं और सोहनलाल आ रहे हैं। तुम और मेनन होटल के लिए चल दो, परन्तु शाम पांच बजे हम वहां से हट जाएंगे। हमें कहीं पहुंचना है। तुम लोग पांच बजे तक आकर हमारी जगह ले लेना।"

जैकी के गहरी सांस लेने की आवाज आई। फिर उसने कहा--- "चौबीसों घंटे इस तरह नजर रखना आसान काम नहीं है। तुम अपना काम हमें दे दो। हमारा तुम ले लो।"

"तुम और मेनन इसी काम में अच्छे लगते हो। हम जो कर रहे हैं वो हमें करने दो।"

■■■

सोहनलाल और जुगल किशोर शाम छः बजे सोमनाथ बाली के घर पहुंचे। मिसेज बाली मिली। सोमनाथ के घर पर आने में अभी वक्त था। मिसेज बाली खुश नजर आ रही थी। पचास हजार जो मिल गए थे। बीस दिन बाद फिर पचास हजार मिलने थे और उसके बीस दिन बाद फिर पचास हजार मिलने थे। नोटों की एवज में जो काम उसने करना था, वो उसको मामूली लग रहा था।

मिसेज बाली के कुछ सवाल तैयार थे। सोहनलाल ने समझाकर उसकी तसल्ली की और उसे एक बार फिर अच्छी तरह समझाया कि रिचर्ड जैक्सन के बारे में क्या-क्या जानना चाहते हैं।

उसके बाद सोहनलाल जुगल किशोर के साथ घर से बाहर निकला तो छः बज रहे थे।

जुगल किशोर का फोन बजा। जुगल किशोर ने मोबाइल पर आया नंबर देखा जो कि वीरा का था।

"हैलो...।" जुगल किशोर, सोहनलाल से कुछ हटकर, बात करने लगा।

"अभी काम तो नहीं है जुगल किशोर?"

"नहीं...।"

"मैंने उन लोगों से मिल लिया है, जिन्हें इस काम पर लेना है। सब मामला फिट है। रात की फ्लाइट से मैं मुम्बई जा रहा हूँ। जब भी यहां काम हो, मेरे को फोन करना, मैं तभी आ जाऊंगा।"

जुगल किशोर बात खत्म करके, सोहनलाल के पास वापस आया।

"उसी लड़की का फोन था?" सोहनलाल मुस्कुराया।

"हाँ...।"

"किसी के पास खड़ा रहकर, तेरे को बात करने में परेशानी है, जो हर बार दूर जाकर बात करता है?"

"कुछ भी कह ले...।" जुगल किशोर मुस्कुराया।

"शादी कर रहा है उससे?"

"प्रोग्राम तो है। लेकिन लड़की का बाप पंगा डाल रहा है। उसने कोई और अपनी पसंद का लड़का देख रखा है।"

"आराम से काम ले। धीरे-धीरे वह मान जाएगा।"

"ख्याल तो मेरा भी है। मैं सोचता हूं कि रिचर्ड जैक्सन के काम से काफी पैसा मिल जाएगा। बाकी की जिंदगी आराम से बिताऊंगा।"

सोहनलाल आसपास देखता कह उठा---

"सोमनाथ आने वाला होगा। उसे इसी रास्ते से आना है। हम उसके सामने ना पड़ें तो अच्छा है।"

"वो हमें किसी भी रुप में नहीं पहचानता।"

"फिर भी उसकी नजरों से दूर रहना बेहतर है।"

"उसने दूसरे कमरे की खिड़की खोल दी।"

"वहां हमें 7 बजे से पहले नहीं जाना है।" सोहनलाल ने कहा।

■■■

सोमनाथ बाली 6:45 पर घर पहुंच गया। हाथ में बैग थमा था।

मिसेज बाली ने दरवाजा खोला तो वह भीतर प्रवेश करता नाराजगी भरे स्वर में कहा उठा---

"आज तो सच में तेरा दिमाग खराब हो गया--- जो मुझे इस तरह बुला लिया।"

"मैंने फैसला कर लिया है।" मिसेज बाली दरवाजा बंद करते कह उठी--- "आज से तुम घर पर ही पिया करोगे।"

"कभी नहीं।" सोमनाथ बैग से बोतल निकाल कर टेबल पर रखता कह उठा--- "तुम्हारी बकवास से पीने का मजा खराब हो जाता है।"

"मैंने बकवास करना बंद कर दी है।" मिसेज बाली मुस्कुराई--- "अब मैं तुम्हें अपने हाथों से पिलाया करूंगी।"

सोमनाथ ने आँखें सिकोड़कर अपनी पत्नी को देखा।

"तुम अपने हाथों से पिलाओगी?' स्वर में भारी तौर पर शंका थी।

"हां। यकीन नहीं आ रहा क्या?"

"यकीन कैसे होगा--- तुम तो शराब को लेकर हमेशा भाषण देती...।"

"मैंने सोचा कि तुमने पीकर ही मरना है तो क्यों ना घर पर ही मरो। बाहर से पीकर आने से तो घर पर ही पड़े रहना अच्छा है। आज से तुम पियोगे और मैं पिलाऊंगी। साथ में तुम्हें कभी पनीर तो कभी बटर चिकन बनाकर खिलाऊंगी।"

"बटर चिकन! तुम खिलाओगी?"

"हां। आज तो मैं बाहर से लाई हूं, परन्तु आगे से तुम्हें अपने हाथों से खिलाऊंगी। पनीर के पकौड़े। तुम्हें पालक के पकौड़े पसंद है ना, वो सब खिलाऊंगी। अब मैं बदल गई हूं।"

"भगवान ही जाने कि अब क्या मुसीबत मेरे सिर पर आने वाली है।"

"मैं तुम्हारा बहुत ध्यान रखूंगी। चलो कपड़े बदलो। मैं गिलास और कोल्डड्रिंक लाती हूं। आज सब कुछ मेरे हाथों से होगा। मैं तुम्हारे लिए छः बोतलें कोल्डड्रिंक की लाई हूं ताकि तुम मिलाकर अपना गिलास तैयार कर सको।"

"तुम लाई हो?" सोमनाथ अजीब स्वर में बोला।

"हां...मैं...।" मिसेज बाली सीना फुलाकर बोली।

"पहले तो तुम कहा करती थी कि टूंटी का पानी मिलाकर पिया करो। कोल्डड्रिंक में क्यों पैसा खराब करते हो?"

"पहले की सब बातें मैं छोड़ चुकी हूं।"

"यकीन नहीं आता।"

"याद रखो अब से तुम 6:45 पर हर शाम को घर आओगे। हर रोज तुम्हारे लिए चिकन तैयार होगा। जिस दिन तुम 6:50 तक घर नहीं आये, उसी दिन मैं फांसी लगाकर मर जाऊंगी। कभी आजमाना हो तो आजमा लेना।"

"लगता है तुम अब गर्दन पर छुरी रखकर पिलाने का इरादा रखती हो।"

"बातें मत करो अभी। पीते हुए करना। चलो कपड़े बदलकर हाथ-मुंह धो लो और पीने बैठो...।"

"इसे क्या हो गया है भगवान!" सोमनाथ बड़बड़ाया--- "मुझे तो इससे डर लगने लगा है।"

"क्या कहा?"

"कुछ नहीं। मैं सोच रहा था कि कल तुम कह रही थी कि पैसे नहीं हैं और आज...।"

"पैसे तो तुमसे मांगने ही वाली थी। चिकन और कोल्डड्रिंक उधार लाई हूं। बेटी को भी कानपुर पैसे भेजने हैं। लाए हो तुम पैसे?"

"चार हजार लाया हूं।"

"बस चार हजार! कोई बात नहीं। अभी मैं इसी से काम चला लूंगी। ढाई हजार कल बेटी को भेज दूंगी। तुम अभी तक यहीं खड़े हो? चार हजार मुझे दो और जल्दी से हाथ-मुंह धोकर आ जाओ। मैं तुम्हारे लिए गिलास तैयार कर रही हूं।"

■■■

सोमनाथ ने पहला पैग समाप्त किया, तो मिसेज बाली तुरन्त दूसरा तैयार करने लगी।

"सब्र रख भाग्यवान।" सोमनाथ कह उठा--- "पहले इसका तो असर होने दे।"

"मुर्गा खाओ...।" वह टेबल पर रखी प्लेट उसकी तरफ सरकाती कह उठी।

सोमनाथ ने मुर्गे की टांग उठाई और खाने लगा।

मिसेज बाली ने पैग तैयार करके उसकी तरफ सरका। दिया वो खुद भी बढ़िया साड़ी पहने थी। मेकअप कर रखा था। बढ़िया लग रही थी वो। मुर्गे की टांग चबाता सोमनाथ कह उठा---

"ये बता कि तेरे में कायाकल्प कैसे हो गया? तू मुझे पिला रही है। खुद भी बनी-ठनी है। सब ठीक तो है?"

"बोतल बंद कर दूं क्या?" मिसेज बाली ने मुंह बनाया।

"ऐसा गजब मत करना। अभी तो शुरुआत ही हुई है। मुर्गा बढ़िया है। किससे लाई है?"

"ये पूछो कितने का आया है?"

"पीने-पिलाने के वक्त खर्चे की बात मत किया कर। नशा हिल जाता है। तू भी गिलास ले आ।"

"गिलास?"

"एक पैग तू भी तो ले...।"

"तो चढ़ गई अब तुम्हें... जो ऐसी बातें करने लगे।"

"गलत क्या कह दिया मैंने, सोचा तेरा मन भी होगा।"

"मेरा मन?" मिसेज बाली व्यंग्य से कह उठी--- "पहले कभी पी है जो आज पियूंगी।"

"पहले कभी तूने इतने प्यार से बिठाकर पिलाई भी तो नहीं?"

"गिलास उठा। खाली कर इसे, तो मैं अगला तैयार करूं।"

सोमनाथ में गिलास उठा कर आधा पिया और बाकी रख दिया।

"नशा चढ़ रहा है ना?" मिसेज बाली ने पूछा।

"क्यों पूछ रही है?"

"क्योंकि तू कहता है कि मैं सामने होती हूं तो नशा उतर जाता है।"

"वह तो मैंने ऐसे ही कहा था।" सोमनाथ हँसा--- "आज तो नशा दुगुना हो रहा है।"

तभी मिसेज बाली उठी और दूसरे कमरे में चली गई। वहां सोहनलाल और जुगल किशोर को मौजूद पाया। कमरे की खिड़की खुली पड़ी थी। योजना के मुताबिक दोनों वहां से भीतर आए थे और बातें सुन रहे थे।

मिसेज बाली वापस सोमनाथ के सामने जा बैठी।

सोमनाथ ने बाकी का आधा गिलास भी खाली कर दिया था और मुर्गा चबा रहा था।

मिसेज बाली पुनः गिलास तैयार करते कह उठी---

"कल से 6:45 पर घर आयेगा ना?"

"हाँ...।"

"घर पर ही पियेगा। अब घर से बाहर पीना बंद।"

"तू इसी तरह प्यार से पिलायेगी तो घर पर ही पिऊंगा।"

"चिंता मत कर। तू कहेगा तो गोद में बैठकर पिलाऊंगी या तुम्हें गोद में बिठाकर पिलाऊंगी। जैसा तू चाहेगा।"

"लगता है सपना देख रहा हूं...।"

"सपने देखना बंद कर। मैं तेरे सामने बैठी हूँ। एक बात तो बता।"

"क्या?"

"तेरे ऑफिस में बहुत से अंग्रेज काम करते हैं?"

"अंग्रेज नहीं। अमेरिकन लोग हैं वो।"

"वो ही, वो ही। तू जब भी पिया करेगा, मुझे उन्हीं लोगों की बताया कर। क्या-क्या नाम हैं उनके?"

"तू क्या करेगी जानकर?"

"आज दोपहर को मैं सोई तो मुझे सपना आया। सपने में अमरीकन दिखा जो कि...।"

"तेरे को कैसे पता कि सपने में जो दिखा, वो अमरीकन था या नेपाली...।"

"उसने बताया कि वो अमरीकन है और अपना नाम भी कुछ बता रहा था रिचर्ड करके...।"

"रिचर्ड जैक्सन तो नहीं?" सोमनाथ नशे में कह उठा।

"हाँ-हाँ, वो ही। पर तेरे को कैसे पता?"

"वो हरामी एम्बेसी में ही काम करता है। साला बहुत खतरनाक आदमी है।"

"खतरनाक है वो?" गिलास तैयार करके उसकी तरफ सरकाती कह उठी।

"बहुत। वो जब एम्बेसी में मौजूद होता है तो सब सीधे रहते हैं। उससे डरते हैं। सुना है वह अमरीकी सरकार का खास आदमी है। साला दिन में आठ बार कड़वी कॉफी पीता है। लेकिन तेरे से वो सपने में क्यों मिला?"

"मुझे कह रहा था कि तेरे को अमेरिका ले चलता हूं। गिलास बना दिया है, खाली कर।"

सोमनाथ ने फौरन गिलास उठा कर घूंट भरा।

"तेरे से वहां झाड़ू-सफाई करायेगा।"

"वो तो कह रहा था कि मुझे अपनी रानी बनाकर अमेरिका में रखेगा।"

"क्यों? अमरीकी लड़कियां मर गई हैं या तू दुनियां में अकेली औरत है जो उसने तुझे ऐसा कहा?" सोमनाथ तगड़े नशे में आ चुका था।

"मेरे को नहीं पता, पर वो एम्बेसी में करता क्या है?"

"पता नहीं क्या करता रहता है। मैं तो अपने काम में व्यस्त रहता हूं...।"

"तू मुझे रोज रिचर्ड जैक्सन के बारे में बताया कर।"

"रोज क्यों?"

"यूं ही! मेरा मन होता है उसके बारे में जानने में कि वो क्या करता है, कहां-कहां जाता है। तू मुझे उसके बारे में रोज बताया कर। नहीं बताया तो तेरी शराब पूरी बंद कर दूंगी। मेरी शर्त सुन ली?"

"सुन ली... पर...।"

"मानेगा?"

"मानूंगा। पर तेरे को उससे क्या लेना जो...।"

"वो मेरे सपने में क्यों आया, मैं यह जाने की कोशिश कर रही हूं।"

"समझा। मैं तेरे को रोज उसके बारे में बताया करूंगा, पर तेरे को सपना कितने बजे आया?"

"मैं 2 बजे सोई थी और साढ़े तीन बजे उठी।"

"दो से साढ़े तीन बजे।" सोमनाथ ने सोच भरे स्वर में कहा--- "तब तो वह एक केबिन में बैठा था। दो बार मैंने उसके लिए कॉफी बनाई, तब वो सपने में कैसे आ सकता है?"

"तो क्या मैं झूठ बोल रही हूं...।"

"म...मेरा मतलब ये नहीं था।" सोमनाथ ने गिलास उठा कर घूंट भरा--- "मैं तो यह कह...।"

"मुर्गा खा...।"

"मुर्गा! हां...।" सोमनाथ का ध्यान मुर्गे की तरफ हो गया--- "मुर्गा अच्छा है।"

"रिचर्ड जैक्सन से मिलने कौन-कौन आता है?"

"बहुत लोग आते हैं। कभी कोई नहीं आता।"

"उसका कहां-कहां जाने का प्रोग्राम है?"

"कहां का प्रोग्राम? मैंने तो नहीं सुना कि वह कहीं जाने वाला है।"

"सुन, उसका जब भी कहीं जाने का प्रोग्राम हो, मुझे बताना। उसकी बातों का ध्यान रखा कर। पूछताछ करता रह। मेरे को उसके बारे में तूने सब कुछ बताना है कि वह क्या करता है, कहां जाता है और कितनी कॉफी पीता है।"

"बताऊंगा। लेकिन तू क्यों यह सब...।"

"वो दोबारा मेरे सपने में आया तो ये सब बातें मैं उसे बता कर हैरान कर दूंगी।"

"तू मेरी नौकरी खतरे में डालेगी...।"

"क्यों?"

"तूने उसे ये भी बता दिया कि तेरे को सोमनाथ ने बताया है तो वो मुझे...।"

"ये नहीं बताऊंगी।"

"नहीं बताएगी--- पक्का?"

"पक्का। तू मुझे रिचर्ड जैक्सन के बारे में बातें बताता रहेगा। उसके बारे में जानकारी ही देगा तो तुझे इसी तरह घर में बिठाकर प्यार से पिलाऊंगी। नहीं जानकारी देगा तो तेरा पीना बंद कर दूंगी, तू तरसेगा पीने को।"

"इतना बड़ा पहाड़ मेरे सिर पर मत फोड़। मैं तेरे को रिचर्ड जैक्सन की हर बात बताया करूँगा।"

"सुबह भूल तो नहीं जाएगा?"

"पक्का शराबी हूं। पीकर जो बात करता हूं वो याद रहती है।"

"गिलास उठा।"

सोमनाथ ने मुर्गा छोड़कर गिलास उठा लिया। वो तगड़े नशे में था। घूंट भरा।

"एक बात और सुन ले।"

"क्या?"

"रिचर्ड जैक्सन का अचानक कहीं जाने का प्रोग्राम बने तो तूने शाम होने का इंतजार नहीं करना है कि तू घर आएगा... मैं बोतल खोलूंगी... तो पिएगा और फिर मुझे बताएगा। तूने उसी वक्त मुझे फोन करके बताना है कि वह बाहर जा रहा है और किस तरह, किसके साथ जा रहा है, वो सब भी बताना है।"

"बताऊंगा। पर तू...क्यों जानना चाहती...।"

"वो मेरे सपने में क्यों आया? मुझे गुस्सा है उस पर। तू मेरी बातें ध्यान से सुन रहा है ना?"

"हां... भूलने वाला नहीं...।"

"एक दिन भी तू मुझे रिचर्ड जैक्सन की बात बताना भूल गया तो तेरी शराब बंद या फिर मैं आत्महत्या कर लूंगी।"

"आत्महत्या की बात मत किया कर। सुनने में अच्छा नहीं लगता।"

"तूने मुझे वो सब बताना है जो मैंने तेरे को कहा है। ना बताया तो मेरी आत्महत्या को तू भूलना मत...।"

"नशा मत उतार दिल तोड़ने वाली बात करके...।"

"मुर्गा खा सारा। तूने ही खत्म करना है।"

"तू नहीं खाएगी क्या?"

"नहीं, पेट भरा हुआ है। शाम को बाजार गई थी तो ढेर सारी चाट-पकौड़ी खाई थी।"

"खाया कर। पहले से कमजोर हो गई है तू। ले मुर्गे की एक टांग तू खा ले।" सोमनाथ ने एक टांग उसकी तरफ बढ़ाई।

मिसेज बाली ने शराफत से मुर्गे की टांग पकड़ ली।

"अब और नहीं पिएगा। सुबह टेम पर ऑफिस पहुंचना है। तेरे को उठाने में बहुत परेशानी होती है। तू उठता नहीं। तेरी आधी तनख्वाह तो मुझे मिलनी चाहिए, अगर मैंने तेरे को सोते से उठाने का जिम्मा ना लिया होता तो तेरी नौकरी कब की छूट चुकी होती है।"

■■■

अगले दिन सुबह आठ बजे सोमनाथ बाली ऑफिस जाने को तैयार था। वो खुश था। चेहरे पर रात खाये मुर्गे और घर में बैठकर पत्नी के हाथों से पीने की चमक अभी तक बरकरार थी। उसकी पत्नी उसे टिफिन देते हुए बोली---

"याद है ना आज से रिचर्ड जैक्सन के बारे में तुम्हें खबरों को पता करते रहना है और मुझे बताना है।"

"सब याद है, लेकिन तू क्यों उसके पीछे...।"

"शाम को पीते हुए हममें कुछ बातचीत होनी चाहिए। मैं नहीं चाहती कि तुम पियो और मैं किचन में लगी रहूं। इसलिए बातों का आधार ढूंढ लिया है मैंने। वो मेरे सपने में क्यों आया...।"

"तुम तो खामख्वाह ही...।"

"कान खोल कर सुन लो। मुझे रिचर्ड जैक्सन के बारे में सच्ची बातें बतानी हैं। ऐसा करके मैं यह भी देखना चाहती हूं कि शराब ने तुम्हारा दिमाग खराब कर दिया है या अभी तक चाक-चौबंद हो।"

"मैं जो बताऊंगा, उससे तुम्हें कैसे पता चलेगा कि मैं सच कह रहा...।"

"अगर तुमने मुझे कोई बात झूठी बताई तो फिर तुम शराब को तरसोगे या मैं आत्महत्या कर लूंगी। मुझे पता चल जाएगा कि तुम मुझे झूठी बातें बता रहे हो या सच्ची...।"

"वो तो ठीक है, पर तुम क्यों रिचर्ड जैक्सन के पीछे पड़...।"

"शाम को बात करना, जब तुम्हारे हाथ में गिलास हो और सामने मुर्गा पड़ा हो। आज मुर्गा मैं अपने हाथों से बनाऊंगी। ये बात भूलना नहीं कि अगर वह दिन में कहीं जाने की तैयारी करता है तो तुम यह बात मुझे फोन कर बताओगे।"

सोमनाथ बाली बैग थामे एम्बेसी के लिए निकल गया।

मिसेज बाली फौरन फोन के पास पहुंची और रिसीवर उठाकर नंबर मिलाने लगी।

■■■

मिसेज बाली का फोन आने पर सोहनलाल की आंख खुली। तब सवा आठ बज रहे थे। रात खाने के दौरान उसने और जुगल किशोर ने दो-दो पैग लिए थे। रात वहां से वो दस बजे होटल आ पहुंचे थे।

"हैलो...।" सोहनलाल ने मोबाइल उठाकर बात की।

"सोहनलाल जी, मैं मिसेज बाली, पहचाना?"

"पहचान लिया। कोई खबर?"

"अभी तो कोई नहीं। मैंने ये बताने के लिए फोन किया था कि मेरे पति लाइन पर हैं। वो रिचर्ड जैक्सन की खबरें मुझे देते रहेंगे।"

"उस पर दबाव बनाए रखना। हमें रिचर्ड जैक्सन की हर खबर चाहिए।"

"मैंने पक्का कर दिया है उन्हें। वो बताएंगे। कोई खास बात होगी तो वो फोन करके मुझे बता देंगे।"

"अभी तक तुम बढ़िया काम कर रही हो।"

"आगे भी बढ़िया काम होगा। उन्नीस दिन बाद आपने पचास हजार फिर देना है। एक दिन तो कल का निकल गया।"

"चिंता मत करो। नोट तुम्हें मिलते रहेंगे। खबरें हम तक पहुंचाना तुम्हारा काम है।"

सोहनलाल ने फोन बंद करके रखा कि बैड के दूसरे हिस्से पर सोया जुगल किशोर जाग गया।

"मिसेज बाली थी?" जुगल किशोर ने आंखें मलते पूछा।

"हां... पैसे की बहुत लालची है। अपने पति को कैसे जलवे दिखा कर लाइन पर ले आई।"

"मेरे ख्याल में हर मर्द शरीफ होता है। औरतें ही मर्द को नचाकर अच्छा-बुरा बनाती हैं।"

"पता नहीं...।"

"तुम तो शादीशुदा हो?"

"तो---।"

"इन बातों का तुम्हें ज्यादा पता होगा।"

"मुझे खुशी है कि अभी मैं इन झंझटों से दूर हूँ।"

"शादी तो करने वाले हो।"

"अभी पता नहीं।" जुगल किशोर उठते हुए बोला--- "उसका बाप शादी को तैयार नहीं हुआ तो मैं शादी नहीं करूंगा।"

जुगल किशोर ने इंटरकॉम पर चाय के लिए कहा।

■■■

दस बजे जैकी और अजहर मेनन आ पहुंचे। रात भर के वो थके से लग रहे थे।

"तुमने जिस आदमी का हुलिया बताया था, वो नौ बजने में पांच मिनट पर एम्बेसी के भीतर आया तो हम चल पड़े।" जैकी ने कहा।

"उसका नाम सोमनाथ बाली है।" जुगल किशोर बोला--- "किसी के द्वारा हमने उसे फंसाया है कि वो रिचर्ड जैक्सन की खबरें हमें देगा।"

"किसके द्वारा उसे फंसाया?"

"उसकी पत्नी है बीच में। वो नहीं जानता कि उसकी पत्नी हमारे इशारे पर रिचर्ड जैक्सन की खबरें पाना चाहती है। उसे पचास हजार दिया गया है। अगले बीस दिन तक काम नहीं बना तो पचास हजार और दिया जाएगा। सोमनाथ अपनी पत्नी की बातों को बेवकूफी से भरी समझकर उसे रिचर्ड जैक्सन की खबरें देगा और वो हमें बतायेगी। 9 से 6 बजे तक सोमनाथ की ड्यूटी होती है। तब तक तुम दोनों आराम करो। 6 बजे वहां पहुंच जाना।" जुगल किशोर ने कहा।

"इस तरह तो मामला लंबा खिंच जाएगा।" मेनन बैठते हुए बोला--- "बहुत वक्त लगेगा।"

"दस करोड़ का मामला लंबा भी हो तो चुभता नहीं है।"

"क्या पता हाथ लगते भी हैं या नहीं।"

"लगते हैं। मुझ पर यकीन करो, वो दिन जल्दी आएगा, जब दस करोड़ डॉलर हमारे पास होंगे।"

"रिचर्ड जैक्सन कम बाहर निकलता है, जैसे कि दो दिन में एक बार की तरह और वो सिक्योरिटी में होता है।" जैकी ने कहा।

"कभी तो हमें मौका मिलेगा।" जुगल किशोर ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

"तुम लोग आराम करो।" सोहनलाल बोला--- "रात के लिए अपने को तैयार कर लो।"

"आज रात तुम दोनों वहां जाकर पहरा क्यों नहीं देते?" मेनन बोला।

"हमें हमारे काम भी करने हैं। कई बातें हैं पूरा करने को। कोई भी काम, किसी भी वक्त पड़ सकता है। तुम दोनों जो काम कर रहे हो, वो करो। हम खाली नहीं बैठे हैं।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा।

"सारी मुसीबत हमारे सिर पर ही पड़ी है।" जैकी मुस्कुराया--- "रोज-रोज रातों को जागना कहाँ आसान है!"

"तुम तो...।" सोहनलाल ने कहना चाहा कि तभी जुगल किशोर का मोबाइल बजा।

जुगल किशोर ने मोबाइल निकालकर स्क्रीन पर आया नम्बर देखा। फिर बाहर की तरफ बढ़ गया।

"लड़की का होगा।" जैकी ने हँसकर कहा।

जुगल किशोर ने दरवाजा खोलते हुए मुस्कुराकर तीनों को देखा और बाहर निकल गया। कुछ आगे जाकर उसने फोन पर बात की। दूसरी तरफ हुसैन था। हुसैन ने कहा---

"कई दिन से तुम्हारा फोन नहीं आया तो सोचा मैं ही फोन कर लूं।"

"अच्छा किया। मुझ पर नजर तो नहीं रखवा रहे?"

"तुमने मना किया तो फिर नजर कैसी?"

"मुझे पसंद नहीं कि कोई मुझ पर नजर रखे।"

"हमें नहीं मालूम तुम कहाँ हो और क्या कर रहे हो। क्या बताओगे कि क्या कर रहे हो?"

"तुम्हारा ही काम कर रहा हूँ।"

"शुक्रिया। अब तक तुमने सारे हालात जान लिए होंगे?" हुसैन की आवाज शांत थी।

"हां। काफी कुछ समझ आया है इस मामले में।"

"क्या ख्याल है कि कब तक काम हो जायेगा?"

"ये बात नहीं बता सकता। क्योंकि रिचर्ड जैक्सन हर वक्त हथियारबंद लोगों से घिरा रहता है।"

"हम जानते हैं कि ये काम आसान नहीं होगा।"

"मेरी कोशिश है कि जल्दी से जल्दी ये काम खत्म कर दूं।"

"जल्दबाजी करके काम बिगाड़ मत देना मिस्टर जुगल किशोर। बेशक लम्बा वक्त लग जाये, परन्तु रिचर्ड जैक्सन हमें चाहिए।"

"वो अमरीकी तुम लोगों को मिल जायेगा।"

हमें भरोसा है कि तुम हमारा काम हर हाल में पूरा करोगे।" हुसैन का स्वर सामान्य था।

"मैं ये बात हमेशा याद रखता हूँ कि मैंने तुम लोगों से दस करोड़ रुपया एडवांस लिया है और बीस अभी लेना है।"

"वो बीस तो हमने कबसे तैयार कर रखा है। इस बात का इंतजार है कि तुम कहो काम पूरा हो गया।"

"ये बात जल्दी कहूंगा। कोई काम की बात हुई तो फोन कर दूंगा। मैं तुम लोगों का ही काम कर रहा हूँ।"

बात करने के बाद जुगल किशोर कमरे में आया।

"लड़की का बाप माना?" कुर्सी पर बैठे सोहनलाल ने पूछा।

मेनन और जैकी सोने के लिए बेड पर जा लेटे थे।

"अभी तो नहीं।" जुगल किशोर ने इंकार में सिर हिलाया।

"सोने दो यार।" जैकी की आवाज उनके कानों में पड़ी--- "रात फिर जागना है।"

■■■

इसी तरह दिन बीतते चले गए।

पन्द्रह दिन बीत गए।

अजहर मेनन और जैकी रात को एम्बेसी पर नजर रखते। रिचर्ड जैक्सन कई बार रात को भी बाहर जाता, परन्तु हमेशा सुरक्षा घेरे में होता। उन्हें मौका नहीं मिला उस पर हाथ डालने का।

जुगल किशोर और सोहनलाल, मिसेज बाली से संबंध बनाए हुए थे। मिसेज बाली से उन्हें बराबर खबरें मिलती रहतीं कि रिचर्ड जैक्सन कब, कहां जा रहा है। मिसेज बाली की बताई सब खबरें ठीक होतीं। जब-जब मिसेज बाली ने कहा, तभी रिचर्ड जैक्सन बाहर गया था। मिसेज बाली ने सोमनाथ को ठीक रास्ते पर लगा रखा था। यूँ वो सोहनलाल को याद दिला देती थी कि बीस दिन पूरे होने वाले हैं, और उसे पचास हजार देना है उसने।

मुंबई से वीरा त्यागी का फोन कई बार जुगल किशोर को आ चुका था। परन्तु जुगल किशोर ने हर बार उससे यही कहा कि वो अभी मुंबई में ही रहे। दिल्ली में उसका कोई काम नहीं है।

जुगल किशोर को शेख, जाकिर, मौला, हुसैन का भी फोन आ जाता था। वो सिर्फ ये जानते थे कि मामला कहां तक पहुंचा है, उसके बाद फोन बंद कर देते।

"पन्द्रह दिन बीत चुके हैं।" सोहनलाल ने एक दोपहर जुगल किशोर से कहा।

"जल्दी मत करो।" जुगल किशोर मुस्कुराया--- "तुम्हारे ये शब्द हताशा की तरफ इशारा करते हैं।"

"हो सकता है अगले पन्द्रह दिन भी बीत जायें या फिर ज्यादा। दस करोड़ डॉलर का काम है, वक्त तो लगेगा ही।"

"मेरे ख्याल में हमें ऐसा प्लान बनाना चाहिए कि रिचर्ड जैक्सन के आदमियों पर हमला बोलकर, रिचर्ड को उठाया जा सके।"

"ये बात नहीं, मैं...।"

"मैं ऐसे काम कर चुका हूँ। ऐसे काम जिनमें लगता था कि शिकार पर हाथ डालने का कभी मौका नहीं मिलेगा--- और उसके बाद एक ऐसा वक्त आता है कि शिकार आसानी से हाथ में आ जाता है।"

सोहनलाल गहरी सांस लेकर रह गया।

"एक बार एक शिकार के इंतजार में मुझे एक महीना लगा था, परन्तु मैं उसका अपहरण करके ही रहा।"

"मेरा हौसला कम नहीं हुआ।" सोहनलाल ने कहा--- "मैं खाली बैठे-बैठे परेशान हो गया हूँ।"

"सब्र के साथ चलो। मौका मिलेगा। जरूर मिलेगा।"

तभी सोहनलाल का फोन बजा।

"हैलो...।" सोहनलाल ने बात की।

"सोहनलाल जी।" मिसेज बाली की आवाज कानों में पड़ी--- "एक खबर दी अभी सोमनाथ ने फोन पर...।"

"क्या?"

"वो कहता है कि शाम को पांच बजे रिचर्ड जैक्सन किसी से मिलने चांदनी चौक जाएगा। यहां से तो वो सुरक्षा में होगा, परन्तु आगे जाकर वो अकेला ही जाएगा, किसी से मिलने के लिए।"

सोहनलाल उसी पल सतर्क हो उठा।

"पक्की खबर है?"

"सोमनाथ मुझे सच्ची बातें ही बताता है। रोज उसे शराब और मुर्गा खिलाती हूँ। अब तो उसने रिचर्ड जैक्सन को खाने का सामान और कॉफी सर्व करना शुरू कर दिया है। ताकि उसे ज्यादा खबरें मिल सकें। ये खबर भी उसने रिचर्ड जैक्सन को फोन पर किसी से कहते हुए सुनी। तब वो उसके कमरे में उसे लंच देने गया था। ये अमरीकन क्या नहीं खाते-पीते हैं। पर लंच के नाम पर तीन इंच का पिज्जा खाया और लंच हो गया। हम हिन्दुस्तानी तो जब तक चार-छः परांठे ना खा लें तब तक...।"

"चांदनी चौक में रिचर्ड जैक्सन कहाँ पर किसी से मिलेगा?"

"वो नहीं पता। जो सोमनाथ जानता था, वो मैंने आपके बता दिया। यही उसने मुझे बताया।"

"ठीक है।" सोहनलाल ने फोन बंद करना चाहा।

"याद है आपको?"

"क्या?" सोहनलाल के होंठों से निकला।

"पचास हजार देने की तारीख पास आती जा रही है... मैं...।"

"तुम्हें सही तारीख पर पचास हजार मिल जाएगा।" सोहनलाल ने फोन बंद कर के जुगल किशोर से कहा--- "शायद हमें बढ़िया मौका मिलने जा रहा है रिचर्ड जैक्सन पर हाथ डालने का। मिसेज बाली ने बताया कि रिचर्ड जैक्सन चांदनी चौक में किसी से मिलने जाने वाला है। एम्बेसी से तो वो पूरी सुरक्षा से निकलेगा, परन्तु चांदनी चौक में वह अकेला हो जाएगा किसी से मिलने के लिए...।"

"किसी खास बंदे से मिलना होगा। जासूसी वाला काम होगा उसका।" जुगल किशोर के होश उड़ गये--- "ये बढ़िया मौका है उस पर हाथ डालने का।"

"दूसरे कमरे में मेनन और जैकी सोये पड़े हैं। उन्हें उठाओ। हमें फौरन हरकत में आना होगा।"

■■■

शाम के सात बज रहे थे।

सोहनलाल, जुगल किशोर, जैकी और अजहर मेनन दो कारों में, आगे जा रहे रिचर्ड जैक्सन की तीन कारों के छोटे से काफिले का सावधानी से पीछा करते चांदनी चौक पहुंचे थे। दो कारों में इसलिए पीछा किया कि अगर एक की नजरों से तीनों कार छूट जायें तो दूसरी पार्टी पीछा करती रहे। एक कार में सोहनलाल और जुगल किशोर थे, दूसरी में जैकी, मेनन। दोनों कारें चोरी की थीं। चारों की जेबों में रिवाल्वर में भरी थीं।

लाल किले के सामने पार्किंग में वो तीनों कारें जा रुकीं। पीछा करने वाली दोनों कारें भी पार्क की गई कारों की भीड़ में जा खड़ी हुईं। कुछ ही देर में अंधेरा छाने लगा था। सोहनलाल, जुगल किशोर, जैकी, मेनन अपनी कारों से बाहर निकलकर देखने लगे।

पांच मिनट बाद रिचर्ड जैक्सन दिखा, जो कि छः लोगों के साथ सड़क की तरफ बढ़ने लगा था। यूं तो वह छह लोग खाली हाथ दिख रहे थे, परन्तु उनमें हर किसी के पास रिवाल्वर है, इस बात का एहसास चारों को था।

चारों दो-दो में बंटे उनके पीछे लग गये।

वहां काफी भीड़ थी। काफी लोग आ-जा रहे थे। पीछा किए जाने का उन्हें शक नहीं हो सकता था। आगे जाकर उन्होंने सड़क पार की और भागीरथ पैलेस की बगल में जाती सड़क पर किनारे-किनारे आगे बढ़ने लगे, जो कि शीशगंज गुरुद्वारे की तरफ जाती थी। दो सौ कदम आगे जाकर उन्हें रुकते देखा।

शाम का वक्त होने की वजह से वहां काफी भीड़ दिख रही थी। सड़क पर रिक्शे, छोटी बसें, पैदल आते-जाते लोग... स्टेशन जैसा कोहराम मचा महसूस हो रहा था।

सोहनलाल, जुगल किशोर एक जगह ठिठके से उन्हें देख रहे थे।

दूसरी तरफ जैकी और मेनन भी रिचर्ड जैक्सन की तरफ देख रहे थे।

"भीड़ बहुत है।" जुगल किशोर कह उठा।

"उस पर नजर टिकाए रहो।" सोहनलाल बोला--- "वो नजरों से ओझल ना हो। मिसेज बाली ने कहा था कि वो अकेला ही किसी से मिलने वाला है। ये बात सच है तो शायद वो अब अपने लोगों से अलग हो रहा हो।"

"हमें मौका मिल जाएगा, उस पर हाथ डालने का।"

"ये आसान नहीं होगा।" सोहनलाल गंभीर स्वर में बोला--- "वो खुद एक सफल जासूस है।"

"जब कमर में रिवाल्वर लगी होगी तो कोई शरारत नहीं कर पाएगा।"

दो पलों की खामोशी के बाद सोहनलाल ने कहा---

"वो शायद अलग हो रहा है।"

"हां, आओ। वो उन्हें छोड़कर आगे बढ़ रहा है।" जुगल किशोर उत्तेजना भरे स्वर में उसकी बांह पकड़कर कह उठा।

रिचर्ड जैक्सन को उन छः को वहीं छोड़कर, वहां से आगे बढ़ते देखा। उसके हाथ में मोबाइल फोन था और किसी के नंबर मिलाने के पश्चात उसे कान से लगा लिया था।

"जिससे मिलना है उसी को फोन कर रहा होगा।" जुगल किशोर ने कहा। दोनों आगे बढ़ने लगे थे। रिचर्ड जैक्सन के छह के छह साथ वाले व्यक्ति सड़क के किनारे अपनी जगह पर खड़े थे।

सोहनलाल और जुगल किशोर उन लोगों के पास से निकल गए। परन्तु उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। दोनों की नजरें आगे जाते रिचर्ड जैक्सन पर थीं। जो कि पचास कदम पर था और कभी वह भीड़ में छिप जाता तो कभी आगे बढ़ता दिखाई देने लगता। वह दुकानों के साथ फुटपाथ पर सामान्य चाल से आगे बढ़ा जा रहा था।

"फासला ज्यादा है।" जुगल किशोर ने बेचैनी से कहा--- "थोड़ा तेज चलो। उसे घेर लेना चाहिए। ये बढ़िया मौका है।"

"वो अब हमारे हाथों में फँसकर ही रहेगा।" सोहनलाल कह उठा।

तभी जुगल किशोर का मोबाइल बजा।

"हां...।" जुगल किशोर ने जेब से फोन निकालकर, कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाया। नजरें रिचर्ड जैक्सन पर थीं।

"हम रिचर्ड जैक्सन से दस कदम पीछे हैं।" अजहर मेनन की आवाज कानों में पड़ी--- "यहां भीड़ बहुत है, हम आसानी से उसके कमर में रिवाल्वर लगा सकते हैं। किसी को पता भी नहीं चलेगा और वह हमारे कब्जे में होगा।"

"हम तुमसे थोड़ा पीछे हैं। अगले दो मिनट में तुम्हारे पास होंगे।" जुगल किशोर ने जल्दी से कहा--- "दो मिनट बाद तुम हरकत में आ जाना और उसे लाल किले की तरफ नहीं ले जाना है। उधर उसके आदमी खड़े हैं। आगे की तरफ सीधा ले जाना है। फव्वारे के पास से कोई टैक्सी मिल जाएगी। उससे कुछ आगे स्टेशन है। यानी कि उसे लेकर निकलने का वो रास्ता ठीक होगा।"

"ऐसा ही करेंगे हम।"

"तुम दो मिनट बाद हरकत में आ जाना। उसकी कमर से रिवाल्वर लगाना और दोस्तों की तरह उसके साथ चलने लग जाना। जैकी को समझा दो। यह मौका हाथ से नहीं जाना चाहिए। बस हम भी तुम्हारे पास पहुंच रहे हैं।" जुगल किशोर ने फोन जेब में रखा और सोहनलाल से कह उठा--- "काम शुरू हो रहा है। जल्दी करो। हमें मेनन और जैकी के पास पहुंचना है।"

"मैंने उन्हें देख लिया है। तुम्हारी बातें भी सुन ली हैं।" सोहनलाल ने कदम तेज कर दिए।

"दस करोड़ डॉलर।" जुगल किशोर के होंठों से गुर्राहट निकली।

■■■

चांदनी चौक की दुकानों के सामने सात फीट चौड़े फुटपाथ पर गजब की भीड़ आ-जा रही थी। किसी को फुटपाथ का फर्श नजर नहीं आ रहा था, जिस पर लोग आ-जा रहे थे। दुकानों के दलाल, दुकान की दहलीज में खड़े लोगों को आवाजें मार-मार के बुला रहे थे। अजहर मेनन और जैकी, रिचर्ड जैक्सन से सिर्फ पांच कदम दूर थे।

"जैकी।" मेनन साथ चलते जैकी के कान में फुसफुसाया--- "तैयार?"

"हां। जुगल किशोर-सोहनलाल किधर हैं?"

"हमारे पीछे, वो शिकार को देख रहे हैं।" कहते हुए अजहर ने जेब में हाथ डाला और रिवाल्वर पर उंगलियां लिपट गईं।

"चल।" जैकी बोला--- "घेरें इसे...।"

ठीक उसी पल।

सामने से दो सजी-धजी युवतियां आईं। जिन्होंने ऊंची एड़ी के सैंडिल पहन रखे थे। हाथों में शॉपिंग किए कई लिफाफे थाम रखे थे। उनमें से एक युवती के सैंडिल की ऊंची एड़ी जूती से अलग हो गई। अचानक ही वो जोरों से लड़खड़ाई, उसके होंठों से छोटी सी चीख निकली और वह सामने से आते मेनन की छाती से जा टकराई।

मेनन इसके लिए तैयार नहीं था।

हड़बड़ाकर मेनन ने युवती को संभालना चाहा कि उसका बैलेंस भी बिगड़ गया। वह जैकी से जा टकराया।

मेनन के टकराते ही जैकी का ध्यान रिचर्ड जैक्सन से भंग हो गया। तभी किसी की टांगों के बीच उसका जूता फंसा और वह लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा। गिरते-गिरते एक औरत को भी साथ ले गिरा।

आधे मिनट के लिए वहां हड़बड़ाहट फैल गई।

आते-जाते लोगों में अवरोध पैदा हुआ, फिर सब उठ गये। सब कुछ सामान्य हो गया और लोग पहले की तरह आने-जाने लगे। परन्तु ऐसी भीड़ भरी जगह पर किसी के गुम होने के लिए आधा मिनट बहुत ज्यादा होता है।

मेनन और जैकी ने पुनः भीड़ पर नजरें घुमाईं।

रिचर्ड जैक्सन का नामोनिशान नहीं दिखा भीड़ में।

दोनों के चेहरे फक्क पड़ गए थे।

तभी पीछे से सोहनलाल उनके पास पहुंचा।

"वो निकल गया नजरों से?" सोहनलाल बोला।

"तुम?" मेनन ने रुखे होंठों पर जीभ फेरी--- "व...वो आगे होगा। आओ।" तीनों को जल्दी से फुटपाथ पर बाहर सड़क पर उतरे और फुटपाथ पर जाते लोगों पर निगाह भरते, आगे--- जाते जा रहे थे। रिचर्ड जैक्सन को देख लेने पर बेताब थे वो।

परन्तु चांदनी चौक तो ऐसी जगह है, जो एक बार नजरों से खो जाये, फिर उसे ढूंढा नहीं जा सकता।

"जुगल किशोर कहां गया?" एकाएक सोहनलाल को जुगल किशोर का ख्याल आया। उसने आसपास देखा। परन्तु जुगल किशोर वहां था ही नहीं।

■■■

जुगल किशोर ने अचानक उस लड़की को लड़खड़ाकर, मेनन पर गिरते देखा--- तो एक ही पल में समझ गया कि खामख्वाह की गड़बड़ होने जा रही है। परन्तु उसकी निगाह रिचर्ड जैक्सन पर से नहीं हटी। वहां लोग चंद पलों के लिए गुड़मुड़ हो गए थे। सोहनलाल जल्दी से उन लोगों की तरफ लपका। उसका ध्यान मेनन और जैकी पर चला गया था।

परन्तु जुगल किशोर ने तुरन्त फुटपाथ छोड़ा और सड़क पर आ गया। उसकी निगाह भीड़ में फुटपाथ पर जाते रिचर्ड जैक्सन पर थी कि एकाएक उसने रिचर्ड जैक्सन को पास की एक गली में जाते देखा।

जुगल किशोर भी उसी गली में प्रवेश कर गया। वहां भी लोग आ-जा रहे थे। रिचर्ड जैक्सन उससे दस कदम की दूरी पर था। उसकी चाल में सामान्य भाव थे। शायद उसे गुमान भी नहीं था कि इस वक्त उसका पीछा हो सकता है। जुगल किशोर हर हाल में रिचर्ड जैक्सन का आज अपहरण कर लेना चाहता था। वो जानता था कि ये वक्त हाथ से गया तो फिर जाने कब मौका मिले।

परन्तु पीछे अपने किसी साथी को आते नहीं देखा।

सोहनलाल, मेनन, जैकी कोई भी नहीं दिखा।

जुगल किशोर ने उसी पल मोबाइल निकाला और सोहनलाल का नंबर मिलाया।

"हैलो...।" सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी।

"तुम कहां हो?" जुगल किशोर ने पूछा।

"अमरीकन के पीछे। तुम लोग...।"

"वो कहां है, हम तीनों उसे ढूंढ रहे...।"

"बेवकूफ हो तुम लोग!" जुगल किशोर दबे स्वर में झल्ला उठा--- "जहां पर लड़की मेनन से टकराई थी, उसके साथ ही एक गली है, अमरीकन और मैं उसी गली में हैं...।"

"तुमने पकड़ लिया उसे?"

"नहीं। तुम लोग जल्दी गली में पहुंचो।"

सोहनलाल की आवाज नहीं आई।

जुगल किशोर बातें करता चला जा रहा था। नजर रिचर्ड जैक्सन पर थी, जो आगे बढ़ रहा था।

"सुना नहीं तुमने...।"

"ये तो मुसीबत वाली बात हो गई।" सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी--- "उस जगह को ढूंढने में ही बहुत देर लग जाएगी जहां पर वो लड़की और मेनन गिरे थे। ये भीड़, ये चांदनी चौक की गलियां, एक मिनट, गली का नाम क्या है?"

"भाड़ में जाओ!" जुगल किशोर ने कहा और फोन बंद करके जेब में रख लिया। उसकी निगाह रिचर्ड जैक्सन पर थी, जो ठिठक गया था। रिचर्ड जैक्सन सामने से आते एक व्यक्ति के पास रुका, उस व्यक्ति ने उसे छोटा सा पैकेट दिया और रिचर्ड जैक्सन ने उसे जेब से एक लिफाफा निकाल कर दिया, जो कि थोड़ा मोटा था। यकीनन उसमें नोट थे।

बस, इतना ही लेन-देन हुआ उनमें और वो आदमी गली में आगे बढ़ आया। जुगल किशोर के पास से निकला। रिचर्ड जैक्सन वापस नहीं लौटा और आगे बढ़ गया। जुगल किशोर पुनः उसका पीछा करने लगा। आगे गली का मोड़ था। रिचर्ड जैक्सन मोड़ मुड़कर नजरों से ओझल हो गया। जुगल किशोर ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। तभी गली के मोड़ में एक रिक्शा सामान लादे प्रकट हुआ। गली तंग थी। जुगल किशोर दीवार से सटकर खड़ा हो गया। रिक्शा निकल गया तो जुगल किशोर तेजी से आगे बढ़कर मोड़ मुड़ा कि ठिठक गया। रिचर्ड जैक्सन कहीं भी नहीं दिखा। सामने गली तीन-मुंही हो रही थी। एक-एक रास्ता दाएं बाएं जाता था और तीसरा सीधा जा रहा था। जुगल किशोर पागलों की तरह खड़ा रहा। वो समझ नहीं पाया कि अमरीकन किधर गया होगा...।

■■■