7 सितम्बर, शुक्रवार
वरुण ने अपनी बाइक की ब्रेक सुरेन्द्र कालिया के घर के आगे जाकर लगाए । सुरेन्द्र कालिया पंजाबी बिरादरी का एक अच्छा-खासा रसूखदार आदमी था और समाज में उसकी अच्छी-खासी पूछ थी । गोरा-चिट्टा रंग और शरीर अधेड़ावस्था के कारण अपनी सीमाएँ कब की लांघ चुका था । सिर पर मेहंदी अपना रंग दिखाने लगी थी । समाज व परिवार के लोगों से घिरा हुआ गमगीन मुद्रा में वह अपने ड्राइंगरूम में बैठा हुआ था ।
वरुण, सुरेन्द्र कालिया के पास जाकर अफसोस जताने वाली मुद्रा में उसके पास बैठ गया ।
आने-जाने वाले लोग सुरेन्द्र कालिया को ढाँढस बढ़ाने के लिए और उसे सांत्वना देने के लिए दो बोल बोलते, लेकिन उसका गम था कि उतना ही बढ़ जाता था । बड़ी ही दर्दनाक मौत मरा था उसका बेटा गौरव कालिया । सुरेन्द्र कालिया के सामने उसकी फोटो लगी हुई थी, जिसमें किसी हीरो की मानिंद दिखाई दे रहा था गौरव ।
“बहुत ही बुरा हुआ, कालिया साब !” वरुण बोला ।
“मेरा तो सब कुछ बरबाद हो गया बेटे ! कदी सुपन्या विच भी नी सोच्या सीगा । एन्नी माड़ी बणुगी मेरे पुत्तर नाल । मेरा फुल्लां वर्गा मेरा लाल । उसकी एन्नी माड़ी मौत ।” सुरेन्द्र कालिया आर्तनाद करता हुआ सिसकने लगा ।
“पुलिस कह रही है कि प्रथम दृष्ट्या ये आत्महत्या का केस लग रहा है ।”
“ओए ! आत्महत्या क्यों करेगा वो । कोई मेनू ए तो दस्सो ! घर में ओसनु किसी चीज दी कोई कमी नहीं थी । मेरा इकलौता वारिस था वो मुंडा । अच्छा भला गारमेंट्स का मेरा शोरूम चलदा है । भला क्यों मारेगा वो अपने आपको ! ओए ! मारा है किसी बंदे ने उसको ।” इतना कहकर वह फिर माथे पर हाथ रखकर सिसकने लगा ।
तभी समाज के और लोग वहाँ पर एकत्रित हो गए । जो लोग पहले बैठे थे, वह उठकर जाने लगे, तो वरुण भी हाथ जोड़कर उठ गया । जैसे ही वह बाहर निकलने लगा, तो असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर रोशन वर्मा वहाँ कदम सिंह के साथ दाखिल हो रहा था । उसका अभिवादन कर वरुण वहाँ से निकल गया ।
रोशन वर्मा को आया देख, सुरेन्द्र कालिया ने उनके ड्राइंगरूम के साथ वाले कमरे में बिठाने की व्यवस्था करवाई । कुछ समय बाद लोगों से फारिग होकर वह ड्राइंगरूम में पहुँचा ।
“बड़ा बुरा हुआ गौरव के साथ, सुरेन्द्र भाई !” वह बोला ।
“माड़ी होण विच कोई कसर नहीं रहगी, साब जी ! मेरे कलेजे दा टुकड़ा । कदी कपडयाँ तो मड़हा सा दाग वी नई लग्गन देन वाल्या मेरा पुत्तर, ओथे खेतां विच कोयला बनके पड़ा सी । दुनिया इक वारी जलदी ए । मेरा बेटा दो वारी जलया ।”
“हमें हमदर्दी है आपके साथ । कुछ कागजी कार्यवाही करने के लिए और आप लोगों के बयान दर्ज करने हैं हमें ।”
“अब दर्ज करने को रह ही क्या गया है, साब जी !”
“आपका गम हम समझते हैं । मकतूल की और उसके आसपास के लोगों से उसके बारे में छानबीन तो करनी पड़ेगी । मौका-ए-वारदात पर तो कोई खास सुराग हमें नहीं मिला है और वहाँ के हालात आत्महत्या की तरफ... ।”
“बस थानेदार साहब !” बीच में ही बिफर पड़ा सुरेन्द्र कालिया, “मेरा लड़का जिन्दगी को पूरी तरह जीने में यकीन करदा सी । मैं किवें माना के ओनु आत्महत्या कीती ए ।”
“आपकी यह बात तो सही है, पर हम सिर्फ बातों पर तो यकीन नहीं कर सकते हैं न । इस बात का कोई क्लू या सबूत तो हमें मिले कि गौरव के साथ कोई अनहोनी हुई है ।”
“क्लू-व्लू तो आप ढूंढो । असां तां अपने घर दा चिराग खोया ए । पुलिस आत्महत्या-आत्महत्या करके अपनी जान छुड़ाना चाहन्दी ए । पर मैं ऐसा होण नईं देवांगा ।”
“कालिया साब ! आप सदमे में हैं, दुःख में है, इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं । आप पुलिस पर अपनी भड़ास निकाल सकते हैं । पर हमारे हाथ तो मौके पर मिले हुए सबूत ही मजबूत करते हैं । खैर, अभी मैं चलता हूँ । आप जब ठीक महसूस करें तो थाने आ जाइए या हम फिर आ जायेंगे ।”
इतना कहकर रोशन अपनी जगह से खड़ा हो गया और उसने कदम सिंह को चलने का इशारा किया । सुरेन्द्र कालिया से विदा ले रोशन प्रेम नगर सिटी थाने की ओर चल पड़ा । वहाँ रणवीर कालीरमण अपने दफ्तर में फाइलों में उलझा हुआ था । रोशन वर्मा उसके सामने सैल्यूट करने के बाद बैठ गया । रणवीर ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा ।
“सुनाओ, क्या रहा, वर्मा जी ? क्या सुरेन्द्र कालिया से आपकी बात हो पाई ?” रणवीर ने वर्मा से पूछा ।
“कोई खास बात नहीं हो पाई सुरेन्द्र कालिया से । वहाँ अभी माहौल भी नहीं था बात करने का या उनके बयान लेने का । वह लोग इसे आत्महत्या मानने के लिए तैयार नहीं हैं । सुरेन्द्र कालिया तो पुलिस पर साफ-साफ कोताही बरतने का दोष लगा रहा था ।”
“ये तो दुनिया के लिए सबसे आसान काम है, वर्मा जी ! खैर, छोड़ो इन बातों को । सबसे पहले तो इसके लड़के गौरव कालिया के बारे में बाजार में पूछताछ करवाकर उसकी जन्मपत्री तैयार करवाओ । जिस जगह लाश मिली है, वहाँ से थोड़ी दूर मेन-रोड है । वीरू के ढाबे से लेकर शहर तक कई होटलनुमा ढाबे खुल गए हैं । उनमें से कइयों पर सीसीटीवी कैमरे भी जरूर लगें होंगे । उनसे वो सारी फुटेज मँगवाकर देखो । इस गौरव की कोई फ़ोटो भी मँगवा लो ताकि लोगों की पहचान में आए और अपने लोगों को पूछताछ में आसानी हो ।”
“फोटो तो मैं मोबाइल में ले आया हूँ । वहाँ पर हॉल में लगी हुई थी । अब ऑफिशियली भी मँगवा लेता हूँ । लाश का पंचनामा किया था, तब भी ली थी पर वह तो किसी काम की नहीं ।”
“चलो, ये अच्छा किया तुमने । उसका प्रिंट आउट निकलवा लो । दुकान के कैश काउंटर या दुकान में जहाँ कहीं भी वह बैठता था, वहाँ से उसके फिंगरप्रिंट भी उठवाने का प्रबंध करो । उनकी दुकान पर भी कई कैमरे लगे होंगे । उनकी फुटेज भी चेक करो ।”
“इतना काम और इतनी दौड़-धूप, जबकि ये वारदात हमें आत्महत्या लग रही है ।”
“आत्महत्या लग रही है तब भी ये बात पक्की तो करनी पड़ेगी कि वह खुद मरा या नहीं मरा । अपनी तैयारी शुरू कर दो । आजकल लोग हमारी कम सुनते हैं, अपनी ज्यादा सुनाते हैं ।”
“ठीक है । मैं लगाता हूँ अपने लोगों को इस काम पर ।” यह कहकर रोशन वर्मा ऑफिस से बाहर आ गया ।
रणवीर ने घंटी बजाई और अर्दली को अनिल कुमार और कृष्ण को बुलाने के लिए कहा । अनिल हेड कॉन्स्टेबल था और ग्रेजुएट था । पुलिस की नौकरी में जॉइन करने के बाद भी पत्राचार से मनोविज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहा था । पुलिस में आने के बाद भी वह काहिली और बेदिली जैसे अवगुणों से बचा हुआ था । इसीलिए जब कभी रणवीर को कोई काम मुस्तैदी से करवाना होता था तो वो काम वह अनिल को सौंपता था । आज तक उसने रणवीर को कभी निराश नहीं किया था ।
अनिल ऑफिस में पहुँचकर रणवीर से मुखातिब होकर बोला, “जी जनाब !”
“अनिल ! कृष्ण को साथ ले जाओ और रोशन वर्मा को कहकर गौरव कालिया की फ़ोटो का प्रिंट आउट निकलवा लो । वीरू के ढाबे और आसपास के होटल्स में जाकर ये पता करवाओ कि इस लड़के गौरव कालिया का रूटीन में वहाँ पर कहीं आना-जाना था या नहीं और उसके संगी-साथी कौन-कौन थे । आज शाम तक तुम ये काम पूरा करके मुझे बताओ ।”
रणवीर से आदेश लेने के बाद अनिल ऑफिस से बाहर निकल गया और कृष्ण, जो कि मुंशी के पास बैठा था, को रणवीर के निर्देश बताए और सादे कपड़ों में दोनों बाइक पर सवार होकर वीरू के ढाबे की तरफ चल पड़े ।
7 सितम्बर, शुक्रवार, दोपहर तीन बजे
दोपहर तीन बजे के आसपास सुरेन्द्र कालिया अपने साथ अपनी बिरादरी के पंद्रह-बीस लोगों को लेकर सिटी पुलिस स्टेशन में पहुँचा । उस समय रणवीर कालीरमण अपने ऑफिस में बैठा हुआ गौरव कालिया की फाइल को ही देख रहा था । इतने लोगों को आया देख रणवीर ने अर्दली से सिर्फ चार लोगों को अपने ऑफिस में भेजने के लिए कहा ।
सुरेन्द्र कालिया अपने भतीजे सौरभ कालिया और दो भाइयों के साथ रणवीर के सामने ऑफिस में आकर बैठ गया । रणवीर ने उनसे ऑफिस में आने का कारण पूछा ।
सुरेंद्र बोला, “इंस्पेक्टर साहब ! मैं गौरव कालिया का पिता हूँ । हमारे बेटे की मौत के बारे में आपसे बात करने आए हैं । आज सुबह मिस्टर रोशन वर्मा हमारे घर आए थे, मगर उनसे सही ढंग से बात नहीं हो पाई । इसलिये हम लोग यहाँ पर आए हैं ।”
“बहुत अच्छा किया आपने । देखिए, मैं आपके दर्द को समझता हूँ । घर में उस वक्त सही ढंग से बात हो भी नहीं सकती थी । क्योंकि तब माहौल अलग होता है । मौका-ए-वारदात पर जिस हालत में डैड बॉडी मिली है, वह तो इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि गौरव ने आत्महत्या की है । हालांकि इस बात के कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं; लेकिन उसकी उस जगह पर ही हत्या हुई है, इस बात का भी कोई ठोस सबूत नहीं है । क्योंकि किसी भी प्रकार की हाथापाई, छीना-झपटी के निशान वहाँ पर मौजूद नहीं है । न ही कोई खून के निशान वहाँ है, जिससे ऐसा लगे वहाँ कोई हादसा हुआ है । बाकी हम हर कोण से जाँच-पड़ताल कर रहे हैं । फिलहाल धारा 306 और 309 का केस हमने दर्ज कर दिया है ।”
“306 और 309 !” असमंजस में पड़े सुरेन्द्र कालिया ने रणवीर की तरफ देखा ।
“देखिए कालिया साहब ! अभी तो सिर्फ शुरुआती तहकीकात जारी है । यदि कल को कुछ और पता चलता है या हमें कुछ और सबूत मिलते हैं तो हम इस मामले से संबन्धित और भी धाराएँ इसमें जोड़ सकते हैं ।”
“मेरे पुत्तर दा कतल होया ए, इंस्पेक्टर साब ! तुसां इस आत्महत्या वाली गल्ल नु छड्डो । ए सीधा-सादा कतल दा मामला है । तुसी ओस कातिल दी तलाश करो । ऐवें ई इस मामले नु ढीला ना छोड़ो ।” कहते-कहते सुरेन्द्र कालिया के चेहरे पर दर्द, बेबसी और गुस्से के सम्मिलित भाव बरसने लगे ।
“आप बिल्कुल सही कह रहे हैं कि हमने मामले को ढीला छोड़ा हुआ है । इसकी कमी दो तरीके से पूरी हो सकती है ।” इंस्पेक्टर रणवीर कालीरमण बड़े सब्र के साथ एक सर्द लहजे में कालिया की नजरों में उतरता हुआ आगे बोला, “या तो आप हमें कातिल के घर का पता बता दें या सरकार कोई अलादीन का चिराग हमें मुहैया करवा दे कि पब्लिक के कहते ही हम उसे घिसे और जिन्न कातिल को पकड़ के हमारे सामने ले आए ।”
सुरेन्द्र हकबकाकर रणवीर की तरफ देखने लगा ।
“कालिया साहब ! मेरे पास या पुलिस के पास ऐसी कोई तकनीक नहीं है कि पलक झपकते ही किसी को मुजरिम बनाकर और सोने-चाँदी का वर्क लगाकर कातिल को आपके सामने पेश कर दें । मुजरिम पकड़े जाते हैं । उसके लिए समय और सब्र की दरकार होती है । वह किसी के कहने पर खड़े पैर तैयार नहीं किये जा सकते । उसके लिए हमें समय, सहयोग और आपके विश्वास की दरकार होती है, जो पब्लिक से हमें कम ही मिलता है ।”
सुरेन्द्र सकपकाया हुआ-सा रणवीर के मुँह की तरफ देखने लगा । उसे इस बात का अंदाजा हो गया था कि शायद उसकी बात रणवीर को पसंद नहीं आयी थी ।
“मेरे कहने का ये मतलब नहीं था इंस्पेक्टर साब ! आप मेरी बात का गलत मतलब समझ गए ।”
“सब तरह के मतलब पता है मुझे, कालिया साहब ! हम अपना काम कर रहे हैं और बिना किसी लाग-लपेट के करते रहेंगे । इंस्पेक्टर रणवीर न तो भीड़ देखकर डरता है, न किसी को अकेला देखकर गुर्राता है । कानून की हद में अपना काम करता है । आपसे हमें हमदर्दी है और उम्मीद है कि गौरव कालिया के मामले में आप हमें सहयोग करेंगे ।”
रणवीर के तेजाबी तेवर देख सुरेन्द्र कालिया ने वहाँ से उठने में ही अपनी भलाई समझी । इससे पहले बची-खुची हमदर्दी भी खत्म हो जाए सुरेन्द्र रणवीर से हाथ मिलाकर दफ्तर से बाहर निकला । उसे लग रहा था जैसे उसने जलता हुआ लावा हाथ में पकड़ लिया हो ।
इंस्पेक्टर रणवीर ने उन्हें बिना किसी फरमाइशी रवायत के वहाँ से जाने दिया । अपने मोबाइल से वह वरुण का नम्बर लगाने लगा और उसे शाम को थाने में मिलने को कहा ।
शाम को पाँच बजे वरुण उसके सामने दफ्तर में मौजूद था । रणवीर ने अर्दली को चाय लाने के लिए कहा ।
“और कैसा है वरुण ?” रणवीर बोला ।
“आपकी ठंडी छाया रहनी चाहिए, बड़े दरोगा जी ! ठीक ही रहूँगा ।” वरुण ने अपने स्वर को थोड़ा नाटकीय पुट देते हुए कहा ।
“तुम सीधे-सीधे मुझे इंस्पेक्टर नहीं कह सकते । ये दरोगा वाला जमाना तो कब का गया हिंदुस्तान से ।” रणवीर हँसते हुए बोला ।
“बड़े दरोगा जी ! दरोगा कहने में जो मजा है वह इंस्पेक्टर कहने में कहाँ । एक ऐतिहासिक-सी फीलिंग आती है । मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है ।”
“अच्छा भई, पत्रकार जी ! मुझे दरोगा कहने में तुम खुश होते हो तो दरोगा ही सही ।”
“बड़े दरोगा जी, आज कैसे याद किया आपने ? बाइ गॉड, आज तो मैं अपने आपको बड़ा वीआईपी-सा फील कर रहा हूँ । थाने में थाने के दरोगा जी का निमंत्रण । भई, हम तो धन्य-धन्य हुए आज !”
“बस-बस । अब ये ड्रामा छोड़ो । अब मतलब की बात पर आते हैं कि मैंने तुम्हें यहाँ पर क्यों बुलाया है । वैसे तो मैंने इस काम पर रोशन और अनिल को लगा दिया है, पर फिर भी मैं चाहता हूँ कि गौरव कालिया के बारे में तुम भी अपने लेवल पर खोजबीन करो । भई, तुम आखिर अपना लोकल चैनल ‘खबरनामा’ चलाते हो । पुलिस वालों को उसके दोस्त या परिवार वाले शायद कोई सच्चाई न बताएँ लेकिन तुम पब्लिक का आदमी बनकर उनके बीच में जाओगे तो तुम्हें सही जानकारी अवश्य मिलेगी । इसलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है । फिर आगे देखते हैं कि हमें कोई सही जानकारी मिलती है या तुम कुछ नया खोजकर लाते हो ।”
“बड़े दरोगा जी ! आप मज़ाक तो नहीं कर रहे हैं ! इस देश की सर्वशक्तिमान पुलिस मुझसे ऐसा सहयोग चाह रही है । मुझे तो विश्वास नहीं होता ।”
तभी चाय भी आ गई ।
रणवीर ने चाय का कप वरुण की तरफ सरकाते हुए कहा, “वरुण ! ऐसा नहीं है कि ये हमारे तरीके से ये काम नहीं हो सकता । हो सकता है । पर मैं पुलिसिया तरीकों से इस केस पर शुरुआत नहीं करना चाहता । क्योंकि मामला कुछ सेंटिमेंट्स का भी है । मेरे लोग लगे हुए हैं इस मामले की खोजबीन में । मैं चाहता हूँ कि तुम मुझे सिर्फ गौरव कालिया के दोस्तों की और उनके कारोबार की अंदरूनी जानकारी बताओ ।”
“कमाल है दरोगा जी ! पुलिस कब से लोगों के सेंटिमेंट्स के बारे में सोचने लगी !” वरुण चाय का कप उठाते हुए बोला ।
“जमाना बदल गया है, वरुण !” रणवीर मुस्कुराता हुआ बोला । वो जमाने गए जब लट्ठ के दम पर पुलिस लोगों पर चढ़ दौड़ती थी । अब हमारी जवाबदेही पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई है । आजकल हमें बहुत सोच-समझ के कदम उठाने पड़ते हैं । हर कोई आजकल हाथ में मोबाइल लिए घूम रहा है । कोई भी, कहीं से भी, कुछ भी वीडियो बनाकर वायरल कर देता है । खैर, छोड़ो इस बात को । जो मैंने तुमसे कहा है, तुम वह काम करो । तुम्हारी रिपोर्ट से क्रॉस चेकिंग भी हो जाएगी कि ये बात एक ही दिशा में आगे बढ़ रही है या नहीं ।”
“ठीक है, बड़े दारोगा जी ! मैं करता हूँ छानबीन इस सौरभ कालिया के अतीत की ।” वरुण अपनी कुर्सी से उठता हुआ बोला । रणवीर ने भी मुस्कुराते हुए सहमति से सिर हिलाया ।
शाम को सात बजे रोशन वर्मा और हवलदार अनिल, इंस्पेक्टर रणवीर के सामने पूरे दिन की कार्यवाही का ब्यौरा पेश कर रहे थे । रोशन ने दिन में गौरव कालिया की दुकान पर लगे अपने फेरे के बारे में बताया और दुकान की पिछले एक महीने की वीडियो रिकॉर्डिंग की हार्ड डिस्क मेज पर रणवीर के सामने रख दी ।
“गौरव रूटीन में हर रोज अपनी दुकान पर ग्यारह बजे के आसपास आता था । शोरूम आमतौर पर सुरेन्द्र कालिया या उनका सीनियर सेल्समैन बन्टी ही खोलता था । गौरव के आने के बाद सुरेन्द्र समाजसेवा के कामों की वजह से कहीं जाना हो तो चला जाता था, नहीं तो शोरूम से दो बजे के आसपास अपने घर आ जाता था । शाम को दो-तीन घंटे के लिए वह दुकान पर होता था । गौरव एक बार सुबह घर से आकर रात को दुकान बंद होने तक शोरूम पर रहता था ।” रोशन ने रणवीर को बताया ।
“दुकान पर सेल्समैन वगैरह कितने हैं ?” रणवीर ने पूछा ।
“शोरूम पर सेल्समेन भी हैं और सेल्सगर्ल्स भी । कोई बीस से ऊपर वर्कर उनकी दुकान पर काम करते हैं ।”
“शौक और दोस्त गौरव के ? कोई खास बात इसके बारे में पता चली हो ?”
“मस्त आदमी बताते हैं । खाने-पीने का खासा शौकीन था । वैसा ही जैसा इस उम्र के जवान लड़के अक्सर होते है । ड्रिंकिंग रूटीन का भी वर्कर्स ने कोई खास खुलासे से नहीं बताया । उनके मुताबिक वह डेली या डैड-ड्रिंकर नहीं था ।”
“सर !” अनिल बोला, “वीरू के ढाबे पर भी इसकी हाजिरी महीने में अपने यार-दोस्तों के साथ महीने में तीन-चार बार लगती थी । कैमरे वहाँ पर लगे तो हुए हैं, पर काउंटर वाले कैमरे पर ही रिकॉर्डिंग का सिस्टम है । बाकी सब खराब ही बताते हैं । उनकी माली हालत भी बाजार में लोग बाग ठीक बताते हैं । कोई रंजिश नहीं किसी से । न बाप की, न ही बेटे की किसी से दुश्मनी बताते हैं ।” रोशन बोला ।
“न रंजिश, न कोई फसाद, तो जड़ कहाँ है मामले की ! कोई लड़की-वड़की का चक्कर ? ऐसे कैसे ये गौरव खेतों में जाकर अचानक मर गया और वह भी इस तरह जल के ! अनिल, कल ये सारी फुटेज, दुकान की और ढाबे की एक बार ध्यान से देख और जो भी आदमी गौरव के पास रूटीन से कुछ ज्यादा ही फेरा लगाता है उनकी फोटो निकाल । उनके बारे में पूछताछ कर और उनकी लिस्ट बना । रोशन, उसका मोबाइल रिकॉर्ड का डाटा भी निकलवाओ और उसके मोबाइल की लोकेशन भी ट्रेस करवाओ ।” रणवीर दोनों से मुखातिब होते हुए निर्देश दे रहा था कि लैंडलाइन पर फ़ोन पर घंटी बजी ।
रणवीर ने खुद फ़ोन उठाया और वह फ़ोन पर जैसे-जैसे सूचना सुनता गया, उसके चेहरे पर वितृष्णा के भाव गहराते गए । फिर फ़ोन रखते हुए रोशन से बोला –
“तैयारी करो चलने की । एक और महाशय जल-भुनकर परलोक जा पहुँचे हैं ।”
7 सितम्बर, शुक्रवार, दुर्गा कॉलोनी
इंस्पेक्टर रणवीर अपने स्टाफ सदस्यों, असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर रोशन वर्मा, हवलदार कदम सिंह, अनिल व कृष्ण के साथ मौका-ए-वारदात पर पहुँचा । घटना स्थल गोल चक्कर से कोई आधा किलोमीटर आगे जाकर दुर्गा कॉलोनी में चौड़ी सड़क पर एक संकरी गली में एक तीन मंजिला मकान था । मकान नंबर 32/11 । उस मकान की दूसरी और तीसरी मंजिल पर दो-दो कमरों के किराये पर देने के लिए फ्लैटनुमा अपार्टमेंट का निर्माण किया हुआ था ।
मकान मालिक का नाम पुरुषोत्तम गोयल था और प्रेम नगर में रिफाइंड ऑयल का थोक का काम करता था । घटना स्थल तीसरी मंजिल पर बना अपार्टमेंट था । मकान में मेन-गेट से एन्ट्री के बाद सीढ़ियाँ सामने से ही नुमाया हो रही थीं, जो तीनों मंजिल तक घूमते हुए बाहर से ही ऊपर पहुँचती थीं और सीधा छत पर जाकर खुलती थीं ।
जब इंस्पेक्टर रणवीर अपने दल के साथ वहाँ पहुँचा तो मकान मालिक पुरुषोत्तम गोयल वहाँ पहले से ही मौजूद था । नीचे गली में और ऊपर की मंजिल पर काफी लोग मौजूद थे । पुलिस के वहाँ पहुँचने के बाद दूसरी व तीसरी मंजिल पूरी तरह से खाली करवायी गई ।
पुलिस को वहाँ पहुँचा देख मकान मालिक पुरुषोत्तम गोयल अपना परिचय देते हुए इंस्पेक्टर रणवीर से मिला । रणवीर ने पुरुषोत्तम को बड़े ध्यान से देखा । कोई पचपन से साठ साल के पेटे में पहुँचा हुआ आदमी था । उसकी संपन्नता उसके हावभाव के साथ-साथ पहनावे से भी झलक रही थी ।
“फैक्टरी में मेरे पास यहाँ से फ़ोन आया था कि ऊपर वाले अपार्टमेंट में कुछ गड़बड़ लग रही थी ।” रणवीर के पास जाकर वह बोला, “बराबर वाले पड़ोसी श्याम के मकान का मेरे घर की छत के साथ लगता हुआ कमरा है । उन लोगों को कल से कुछ जलने की और सड़ने की बदबू आ रही थी, इसलिए मकान की छत से उन लोगों ने अपने घर की छत से वहाँ पर झाँककर देखा । मेरे मकान में से ही बदबू आ रही थी । उन लोगों को कुछ गड़बड़ी का अंदेशा हुआ । मैंने यहाँ आकर जब देखा तो आप लोगों को सूचना देना उचित समझा ।”
“क्या ये मकान हमेशा बंद रहता है ?” रणवीर ने पूछा ।
“नहीं, इंस्पेक्टर साहब ! सबसे ऊपर वाला अपार्टमेंट अनिकेत नाम के एक लड़के को किराये पर दे रखा है । पिछले डेढ़ साल से वह यहाँ पर रह रहा है ।”
“ठीक है, गोयल साहब ! आप यहाँ पर बाहर ही रुकें । लाश की शिनाख्त के लिए हमें आपकी जरूरत पड़ेगी । अंदर घटनास्थल पर आपकी जरूरत होगी तो हम आपको बुला लेंगे । कदम, तुम यहाँ रुको और लोगों की भीड़ को दोबारा यहाँ पर इकट्ठा मत होने देना !”
यह कहकर रणवीर उस अपार्टमेंट के अंदर की तरफ बढ़ा और उसके साथ में रोशन वर्मा भी था । हवलदार अनिल और कृष्ण पहले से ही अंदर मौजूद थे । फॉरेंसिक टीम अपने इंचार्ज वेदपाल के साथ तब तक वहाँ पहुँच चुकी थी । हेड-कॉन्स्टेबल अनिल कुमार उनके साथ बाहर ड्राइंगरूम में फोटोग्राफी और फिंगरप्रिंट सैम्पल्स लेने के लिए उनके साथ जुड़ गया था और वेदपाल के साथ आए साथी सतीश कुमार के साथ फिंगरप्रिंट उठाने में मशगूल हो गया था ।
अंदर घुसते ही उनकी नाक से जलने और सड़ने की मिली-जुली बदबू का तीखा सामना हुआ, जिसका असर नाक पर रुमाल बांधने के बाद भी कम नहीं हुआ । चारों तरफ की खिड़कियाँ खोलने के कारण अब उन कमरों की हवा कुछ साँस लेने लायक हो गई थी ।
मुख्य-द्वार से अंदर जाने के बाद पहले एक ड्राइंगरूम था, जिसमें टेबल पर चार गिलास और सोडे की बॉटल्स पड़ी थी । बीयर की खाली बॉटल्स दीवार के पास लुढ़की हुई पड़ी थी । वहाँ के हालात ये बता रहे थे कि वहाँ पिछले दिनों अनिकेत की महफ़िल हाल ही में उसके दोस्तों के साथ जमी थी जिसमें जी भरकर शराब का लुत्फ उठाया गया था । पर इस मजे में मौत ने उन्हें कब अपने शिकंजे में ले लिया ये उन लोगों को पता ही नहीं चला ।
ड्राइंगरूम से एक दरवाजा बीचोबीच लॉबी में खुल रहा था । लॉबी के साथ लगती हुई किचन थी । किचन की सिंक जूठे बर्तनों से भरी पड़ी थी और बचे हुए खाने पर अब फंगस लगने लगी थी । लॉबी में पीछे वाले दोनों कमरे खुलते थे । एक एंट्रेंस लॉबी में सीढ़ियों की तरफ से भी जाता था, जो सीधी तीसरी मंजिल तक जाती थी । किचन के साथ लगता हुआ कमरा ही इस वीभत्स घटना का केंद्र लगता था ।
आस-पड़ोस के लोगों ने सीढ़ियों की साइड का दरवाजा, जो लॉबी में खुलता था, तोड़कर उस अपार्टमेंट को खोला था । पर किसी अनहोनी की आशंका के कारण वो लोग वहाँ से आगे नहीं बढ़े थे और फिर एक पड़ोसी श्याम ने पुरुषोत्तम को और फिर पुरुषोत्तम ने पुलिस को फ़ोन किया था ।
“तुमने किचन का हाल देखा ?” रणवीर बोला, “रोशन, मुझे तो ये मामला दो या तीन दिन पहले का लगता है ।”
“बिल्कुल सही कह रहे हो आप, सर ! बर्तनों पर लगी हुई फफूंदी और यहाँ उठती हुई दुर्गन्ध तो यही बता रही है ।”
“दोस्तों का मौज-मेला होते-होते मौत का खेला हो गया यहाँ । इस किचन के साथ वाला कमरे में ही कांड हुआ लगता है । रोशन, खोलो इसे ! ये ध्यान रहे कि कोई भी निशान न मिटे । ये ख्याल रखना ।”
रोशन ने अपना रुमाल हाथ में लेते हुए दरवाजे की कुंडी खोल दी । फिर दोनों ने अंदर कदम रखा तो कमरे में घुप्प अंधेरा था । मोबाइल से रोशनी से कमरे के अंदर रोशन वर्मा ने लाइट का स्विच ढूँढ़कर लाइट ऑन की । दोनों के दोनों जहाँ थे, वहीं थमककर खड़े रह गए । उनके सामने ऐसा दृश्य था कि देखने वाले के प्राण काँप उठे ।
बड़ा ही हौलनाक दृश्य दोनों के सामने था । एक आदमी मुँह के बल अधजली अवस्था में पड़ा हुआ था । उसकी पीठ का हिस्सा बुरी तरह जला हुआ था । उसके मुँह का जो हिस्सा जमीन से ऊपर था, वह झुलसा हुआ था । दीवार के साथ रखा हुआ दीवान आग की तपिश से काला हो गया था पर पूरी तरह जल नहीं पाया था । कमरे की छत पर भी आग की कालिमा पहुँची हुई थी ।
तभी कृष्ण उनके पीछे-पीछे तेजी से कमरे में दाखिल हुआ । उसका पैर एकदम से फिसल गया और बड़ी मुश्किल से चौखट को पकड़ के अपने आपको उसने धराशायी होने से बचाया ।
“संभालकर चल, भई ! थोड़ी और तेजी दिखाओगे तो इन साहब के बगल में करवटें बदलते दिखोगे ।” रणवीर मुस्कुराते हुए बोला ।
रणवीर की मुस्कान वातावरण को बोझिल होने से न बचा सकी । वहाँ फैली मौत की गंध से बचने के लिए सबको मजबूरन अपने चेहरे पर रुमाल रखना पड़ रहा था ।
कृष्ण के फिसलने की वजह से रणवीर का ध्यान फर्श की तरफ आकर्षित हुआ । फर्श पर भूरे रंग की महीन-सी परत दिखाई दे रही थी । ये भूरा रंग लाश के पास काला हो गया था । दीवारों के पास फर्श पर लालिमा बढ़ गई थी । इसका मतलब आग की लपटें ज्यादा दूर तक नहीं फैली थीं ।
“मरने वाले ने फर्श तो बड़ा रंग-बिरंगा बना दिया है, रोशन ! कहीं लाल, कहीं भूरा और कहीं काला ।”
“सही कह रहें है, सर ! लगता है मरने के बाद भी अपनी रंगीन तबीयत का आदमी होने का इशारा कर रहा है । खून सारे कमरे में फैल गया है । अब सवाल यह है कि आग पहले लगी या खून पहले फैला ।”
“आग पहले लगी होती तो खून कहाँ से आना था, रोशन ! जाहिर है, खून पहले फर्श पर आया । खून पहले फर्श पर आया है तो ये बंदा जख्मी होना चाहिए । ये बंदा… ! क्या नाम बताया था गोयल ने इस किरायेदार का ? अनिकेत... ! हम्म ! जलने से पहले ये दुनिया छोड़ चुका था ।”
“इसके लिए तो फॉरेंसिक वालों का और पोस्टमार्टम का वेट करना पड़ेगा ।”
“इसकी पीठ बुरी तरह जली हुई है रोशन !” रणवीर नजदीक से मुआयना करते हुए बोला, “सिर के पीछे या कमर पर तो चोट या जख्म का कोई निशान नहीं है । ये आदमी कमरे के बीचोबीच मरा पड़ा है । कोई आदमी अगर होश-ओ-हवास में हो और जल रहा हो तो यक़ीनन इस तरह से कमरे के बीच तो आराम से पड़ा नहीं रह सकता है । क्या ख्याल है, रोशन ?”
“हाँ सर ! अगर ये आदमी जख्मी हालत में भी होता या थोड़े से भी होश-हवास में होता और जल रहा होता तो बाहर की तरफ भागता या जाने की कोशिश करता ।”
“हम्म । दरवाजा हम खोलकर आए हैं और जैसा पुरुषोत्तम कहता है, यहाँ तक उन लोगों में से कोई नहीं आया और ये आदमी कमरे के बीच में पड़ा है । इसका मतलब, या तो ये पहले ही मर चुका था या इतना बेबस था कि मौत की आहट पर भी उठ न सका । अनिल !”
“यस सर !” अनिल ड्राइंगरूम से उस कमरे में आते हुए बोला ।
“वेद पाल से कहो कि पहले यहाँ का काम निपटाए । इस कमरे में से ब्लड सैंपल सभी कोनों से ले लो । कमरे की तलाशी कृष्ण ले लेगा । रोशन, इस कमरे के साथ में जो दूसरा कमरा है, उसे भी खोलो !”
रोशन वर्मा तुरंत साथ वाले कमरे की तरफ बढ़ गया । रणवीर उन लोगों को काम करता छोड़ उस कमरे से बाहर निकलकर साथ वाले कमरे की तरफ बढ़ गया । कमरे के बाहर भी पहले वाले की तरह कुंडी लगी हुई थी । रोशन ने बड़े एहतियात के साथ दरवाजा खोला । बासी खून की घुटी हुई हवा उनके नथुनों से टकराई । रोशन मुँह ढँककर वापिस बाहर की ओर पलटने लगा तो कमरे की तरफ बढ़ते हुए इंस्पेक्टर रणवीर से टकराते-टकराते बचा ।
“क्या हुआ रोशन ?”
“लगता है पूरा घर ही मुर्दा घाट बना हुआ है, जनाब !” कमरे से बाहर लॉबी में आकर बड़ी गहरी-गहरी साँसे लेने की कोशिश करता हुआ रोशन बड़ी मुश्किल से बोला ।
रणवीर ने कमरे की लाइट जलाई तो उसकी गर्दन अविश्वास और अफसोस के साथ हिलने लगी । कमरे में एक डबल बेड पड़ा था और वह सारा-का-सारा खून से लथपथ था । जैसे किसी ने वहाँ खून उड़ेल दिया हो । खून फर्श पर तो सूख गया था लेकिन बेड पर हाथ से दबाने पर अभी भी चादर के नीचे खून की नमी महसूस हो रही थी ।
“लगता है, आज सारी रात यहीं पर काली हो जाएगी ।” कमरे में घुसता हुआ रणवीर बोला ।
“इस बेड पर इतना सारा खून ! क्या माजरा है ये, जनाब ?”
“मैं भी हैरान हूँ, वर्मा जी ! यहाँ इतना बड़ा कांड हो गया और आस-पड़ोस में से किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई । ऊपर से ये मामला कोई आज का भी नहीं लगता । कम-से-कम दो या तीन दिन तो जरूर हो गए हैं इस वारदात को हुए ।”
रणवीर बेड के पास जाकर मुआयना करने की कोशिश करने लगा । रोशन वर्मा की साँस अब थोड़ी व्यवस्थित हो चली थी । वह भी रणवीर के पास आकर खड़ा हो गया । बेड पर चादर में सलवटें किसी के वहाँ खाली जगह पर लेटा हुआ होने का संकेत दे रही थी ।
“जनाब, चादर में वह सुराख देख रहे हैं आप ?”
“मैं वही देख रहा हूँ, वर्मा जी ! ये गोली के सुराख हैं । गोली या तो नीचे गद्दे में या पलंग की प्लाइ में उलझी मिलेगी । वेदपाल और अनिल का काम यहाँ भी निकल आया था । यहाँ भी खून, उस कमरे में भी खून । वहाँ तो खून के साथ आदमी की लाश मौजूद है पर यहाँ सिर्फ खून ही खून । इधर का आदमी किधर गया ?” रणवीर अपने आपसे कुछ सोचते हुए बोला ।
“सर !” अनिल बराबर के कमरे से वहाँ आकर बोला, “वहाँ का काम पूरा हो चुका है । आप अगर कहें तो बॉडी की पोजीशन चेंज कर दें ।”
“हाँ, बिलकुल । चलो ! उन साहब की शक्ल भी देख लें ।” इतना कहकर रणवीर, रोशन वर्मा के साथ पहले वाले कमरे में वापिस पहुँचा ।
वेदपाल वहाँ कमरे के अलग-अलग हिस्सों से ब्लड सैंपल्स इकट्ठे कर रहा था । मौका-ए-वारदात की फ़ोटोग्राफी और फिंगरप्रिंट्स उठाने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो चुकी थी । लाश चूंकि पेट के बल थी और कमर से ऊपर का हिस्सा बुरी तरह जल गया था इसलिये रणवीर उस लाश को पलटकर ऑब्सर्व करना चाहता था ।
“क्या बात है वेदपाल ! आज बड़ा चुपचाप काम पर लगा हुआ है ।”
“अब इन सड़ी हुई लाशों के बीच में तुम मुझसे मिलोगे तो क्या गाना गाते हुए मिलूँगा । कल सारी रात नहीं सोया और आज भी वही कहानी दोबारा होती दिखाई दे रही है ।”
“मरने वालों को कहना पड़ेगा, दिन में मरा करें ।” रणवीर ने वेदपाल को कहा । वेदपाल अपनी हँसी को दबा गया ।
वेदपाल, अनिल और कृष्ण ने दो और सिपाहियों की मदद से पीठ के बल पड़ी लाश को एक प्लास्टिक की शीट पर बड़ी मुश्किल से सीधा किया क्योंकि बॉडी अकड़ी हुई थी । जब बॉडी पीठ के बल हुई तो उसका आधा चेहरा, जो जमीन की तरफ था, जलने से कुछ हद तक बचा हुआ था और सीने की तरफ भी आग का असर नहीं था । जो बात सभी को साफ-साफ दिखाई दी, वह मरने वाले के सीने पर दो गोलियों के निशान थे ।
पुलिसिया कार्यवाही और फॉरेंसिक वालों की कार्यवाही के बाद पुरुषोत्तम गोयल को रणवीर ने वहाँ उस आदमी की शिनाख्त के लिए बुलाया । पुरुषोत्तम ने बड़ी मुश्किल से मौका-ए-वारदात पर कदम रखा ।
“आओ, गोयल साहब ! जरा पहचानिए अपने किराएदार को ।” रणवीर बोला ।
वहाँ खड़ी पुलिस की टीम के बीच कलेजे पर पत्थर और रुमाल को हलक तक ठूँसकर पुरुषोत्तम गोयल ने लाश के चेहरे पर एक निगाह डाली और बड़ी तेजी से गर्दन दाएँ-बाएँ हिलाने लगा । वह फौरन भागकर बाहर चला गया और उल्टी कर दी । उसके बाद हाँफते हुए अस्पष्ट-सी आवाज निकालने लगा ।
“क्या कहना चाहते हो ? जरा मुँह से बोलो, मिस्टर पुरुषोत्तम गोयल !” उसके पीछे-पीछे आते हुए रणवीर ने ऊँची आवाज में पूछा ।
“ये... ये अनिकेत नहीं है ।” हाँफता हुआ-सा पुरुषोत्तम लाश से मुँह फेरकर लंबी-लंबी साँसें लेता हुआ फँसे हुए स्वर में बोला ।
हैरान-परेशान रणवीर कभी लाश की तरफ, कभी पुरुषोत्तम की तरफ तो कभी अपने साथियों की तरफ देखने लगा ।
अगर ये वह किरायेदार अनिकेत नहीं है तो फिर ये आदमी कौन है ? पुरुषोत्तम गोयल का वह किरायेदार फिर गया कहाँ ? क्या इस आदमी का खून करके फरार हो गया ? दो-तीन दिन से क्या इस घर में कोई नहीं आया ? ऐसे अनेक प्रश्न थे जो इंस्पेक्टर रणवीर के सामने मुँह बाए खड़े थे और उनका उत्तर उसे अब ढूँढ़ना ही था ।
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