हैमिल्टन रोड पर स्थित ब्राइट होटल स्टार होटल के मुकाबले में काफी अच्छा था । सुनील वापस ब्राइट होटल पहुंचा । इस बार उसका तब तक वहां इन्तजार करने का इरादा था जब तक कि मेबल गारलैण्ड होटल के अपने कमरे में वापस ने लौट आती ।
संयोगवश मेबल होटल में मौजूद थी ।
रिसैप्शनिस्ट ने उसके अनुरोध पर मेबल के कमरे में फोन किया । मेबल के लाइन पर आते ही रिसैप्शनिस्ट ने रिसीवर सुनील के हाथ में दे दिया ।
“गुड ईवनिंग, मैडम” - सुनील मधुर स्वर में बोला - “मेरा नाम सुनील है । मैं आपसे फौरन मिलना चाहता हूं ।”
“किसी सिलसिले में ?” - उत्तर में एक रुक्ष शब्द सुनाई दिया ।
“सिलसिला मैं टेलीफोन पर नहीं बताना चाहता ।”
“तो फिर...”
“लेकिन मुझे प्रेमकुमार ने आपके पास भेजा है ।” - सुनील जल्दी से बोला । उसे ऐसा लगा था जैसे मेबल टेलीफोन बन्द करने वाली हो ।
प्रेमकुमार के नाम का उस पर प्रत्याशित प्रभाव पड़ा ।
“टेलीफोन रिसैप्शनिस्ट को दो ।” - एक क्षण बाद उत्तर मिला ।
सुनील ने रिसीवर रिसैप्शनिस्ट के हाथ में थमा दिया ।
रिसैप्शनिस्ट कुछ क्षण टेलीफोन सुनता रहा फिर उसने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया और सुनील से बोला - “तशरीफ ले जाइये साहब । तीसरी मंजिल पर 62 नम्बर कमरा है ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील आगे बढ गया ।
रिसैप्शनिस्ट विचित्र नेत्रों से उसे जाता हुआ देख रहा था ।
सुनील तीसरी मंजिल पर पहुंचा । उसने 62 नम्बर का दरवाजा खटखटाया ।
“कौन है ?” - भीतर से टेलीफोन वाला ही स्वर सुनाई दिया ।
“सुनील ।” - सुनील बोला - “मैने अभी आपको रिसैप्शन से टेलीफोन किया था ।”
दरवाजा खुला । चौखट पर एक ऐंग्लो इन्डियन सुन्दरी प्रकट हुई ।
दोनों की निगाहें मिलीं ।
उसकी तस्वीर भी सुनील की जेब में थी । वह वह लड़की थी जिसका नाम लाला मंगत राम ने नैन्सी बताया था ।
“बोलो ।” - लड़की उसे सिर से पैर तक घूरती हुई बोली ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील बोला - “मैं प्रेमकुमार का दोस्त हूं ।”
“मैं प्रेमकुमार के सुनील नाम के किसी दोस्त को नहीं जानती ।”
“आप उनके सारे दोस्तों को थोड़े ही जानती होंगी ।”
“लेकिन प्रेमकुमार अपने किसी ऐसे दोस्त को भला मेरे पास क्यों भेजेगा जिसे मैं जानती नहीं ।”
“यह तो कोई ठोस दलील नहीं है ।”
“न सही, तुम मतलब की बात करो ।”
“मतलब की ही बात करने आया हूं । पहले मुझे भीतर आने दो ।”
“नहीं । यहीं खड़े-खड़े बोलो ।”
“मैं जबरदस्ती भीतर घुस सकता हूं ।”
“जरा कोशिश करके देखो ।” - मेबल चैलेन्ज भरे स्वर में बोली ।
सुनील ने चौखट पर अपनी कोहनी टिका दी और मेबल की आंखों में आंखें डाल कर बड़े प्यार भरे स्वर में बोला - “मुझे भीतर आने दो न, नैन्सी डार्लिंग ।”
नैन्सी के नाम से मेबल चौकी । उसने नये सिरे से सुनील का निरीक्षण किया और फिर विचलित स्वर में बोली - “कौन हो तुम ?”
“नाम सुनील है । प्रेमकुमार का दोस्त हूं और जल्दी ही तुम्हारा भी दोस्त बनने वाला हूं ।”
“क्या चाहते हो ?”
“फिलहाल तो भीतर आना चाहता हूं ।”
मेबल हिचकिचाई ।
“नैन्सी डार्लिंग, लाला मंगत राम के साथ शंकर रोड के मनोहर मैनशन में तुमने मारिया उर्फ सोना और कंचन के साथ जो गन्द घोला था, उसके बारे में फिलहाल मेरे सिवाय किसी को जानकारी नहीं है लेकिन अगर अगले पन्द्रह सैकेन्ड में मेरे बारे में तुम्हारा रवैया न बदला तो इस बात का ढोल मैं सारे शहर में पीट दूंगा और फिर तुम्हारी सहेली निशा की हत्या के साथ तुम्हारा भी नाम जुड़ जायेगा ।”
मेबल के मुंह से सिसकारी निकल गई । वह तुरन्त दरवाजे से हट गई ।
सुनील भीतर प्रविष्ट हुआ ।
“कमरा शानदार है ।” - सुनील चारों ओर निगाह डालता हुआ प्रभावित स्वर में बोला - “बड़े स्टाइल से रहती हो । ग्राहक यहीं आते हैं या तुम उनके साथ जाती हो ?”
“क्या बक रहे हो ?”
“सॉरी ।” - सुनील एक कुर्सी पर ढेर होता हुआ बोला - “बैठो ।”
मेबल कुछ क्षण अनिश्चयपूर्ण मुद्रा बनाये उसके सिर पर खड़ी रही और फिर उसके समीप की एक कुर्सी पर बैठ गई ।
“कौन हो तुम ?” - उसने पूछा ।
“यह सवाल कितनी बार पूछोगी ?” - सुनील हैरानी से बोला - मैं बता तो चुका हूं कि मेरा नाम सुनील है और मैं...”
“तुम प्रेमकुमार के दोस्त नहीं हो । मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत करो ।”
“अच्छी बात है ।”
“वास्तव में तुम कौन हो ?”
“मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं । नाम वही है जो मैंने बताया है ।”
“मुझसे क्या चाहते हो ?”
“प्रेमकुमार का पता-ठिकाना ।”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“देखो मैडम” - सुनील कठोर स्वर में बोला - “मेरे साथ इस तरीके से पेश आओगी तो पछताओगी । मनोहर मैनशन में तुमने अपनी दो अन्य सहेलियों के साथ लाला मंगत राम के साथ जो रासलीला रचाई थी उसकी तस्वीरें खींची गई थीं और उन तस्वीरों की वजह से उसे ब्लैकमेल किया जा सकता है । तुम्हारी जानकारी के लिये वे तस्वीरें पुलिस के हाथ में भी पड़ चुकी हैं लेकिन अभी तक मेरे अलावा तुम्हें और तुम्हारे असली नाम को कोई नहीं जानता । शायद राजनगर की चालीस लाख की आबादी में से पुलिस तुम्हें तलाश करने में कामयाब भी न हो सके लेकिन मेरे एक संकेत-भर दे देने से पुलिस तुम पर चढ दौड़ेगी ।”
“क्यों चढ दौड़ेगी ? मेरा ब्लैकमेलिंग से क्या वास्ता है ?”
“तुमने लाला मंगल राम के साथ वे तस्वीरें खिंचवाकर ब्लैकमेलिंग के लिये ग्राउन्ड पैदा की है ।”
“लेकिन मुझे तो उस समय मालूम भी नहीं था कि तस्वीरें खींची जा रही हैं ।”
“तुम क्या समझती हो कि तुम्हारी इस मासूमियत भरी बात पर पुलिस विश्वास कर लेगी ? मेबल मेम साहब, अगर यह बात खुल गई तो कोई यह नहीं मानेगा कि ब्लैकमेलिंग की स्कीम में तुम पार्टी नहीं थी और निशा की हत्या में भी किसी न किसी रूप में तुम्हारा हाथ नहीं था ।”
“यह झूठ है ।” - मेबल चिल्लाई ।
सुनील मुस्कराया ।
“तुम इस तस्वीर में कहां फिट होते हो ?”
“मैं निशा का रिश्तेदार हूं । मैं उसके हत्यारे को तलाश करने की कोशिश कर रहा हूं ।”
“क्या रिश्ता है तुम्हारा निशा से ?”
“बहुत दूर का रिश्ता है ।”
“फिर भी ?”
“किसी जामने में मेरे और निशा के पूर्वज एक ही पेड़ की शाखों में झूला करते थे ।”
मेबल ने विचित्र नेत्रों से सुनील को देखा ।
“डार्लिंग । रिमैम्बर ?” - सुनील अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“तुम प्रेमकुमार को क्यों तलाश कर रहे हो ?”
“मुझे शक है कि उसने निशा की हत्या की है ।”
“क्या मूर्खों जैसी बातें करते हो ! वह बेचारा तो निशा से खूब मुहब्बत करता था । वह निशा की हत्या नहीं कर सकता था ।”
“तुम्हारा ब्लैकमेलिंग से कोई वास्ता नहीं था ?”
“कतई नहीं था । मैंने या अन्य दो लड़कियों ने वहां जो कुछ किया था, धन्धे के तौर पर किया था । लाला ने हमें पांच-पांच सौ रुपये दिये थे और हम संतुष्ट थीं ।”
“क्या मैं यह मान लूं कि लाला मंगत राम की तुम लोगों के साथ गन्दी तस्वीरें खींची जा रही थीं और तुम्हें कुछ मालूम नहीं था ?”
मेबल एक क्षण हिचकिचाई और फिर बोली - “हमें मालूम था कि तस्वीरें खिंच रही हैं । निशा ने हमें पहले ही बता दिया था । उन तस्वीरों को खिंचवाने की एवज में उसने हमें एक एक हजार रुपये अलग से दिये थे । लेकिन उस समय हमें यह मालूम नहीं था कि निशा वे तस्वीरें लाला को ब्लैकमेल करने के लिये इस्तेमाल करने वाली थी ।”
“तुमने क्या समझा था ?”
“हमें यह बताया गया था कि लाला को ऐसी तस्वीरें देखने का शौक था इसीलिये उसके लिये वे तस्वीरें खींची जा रही थी ताकि बाद में वह उन्हें देखकर थ्रिल महसूस कर सके ।”
“वे तस्वीरें खींची ही लाला को ब्लैकमेल करने के लिये गई थी । अगर वे तस्वीरें इसलिये खींची गई होती कि लाला उन्हें बाद में देख-देखकर खुश हो सकता तो उन तस्वीरों की लाला को खबर क्यों नहीं थी और तस्वीरों में निशा क्यों नहीं थी ?”
मेबल चुप रही ।
“निशा ब्लैकमेलिंग की सारी स्कीम अकेले नहीं सोच सकती थी । सारे सिलसिले में जरूर उसका कोई सहयोगी था । मुझे निशा के इर्द-गिर्द प्रेमकुमार के सिवाय ऐसा कोई आदमी दिखाई नहीं देता जिसका कि वह भरोसा कर सकती हो ।”
“यह बात मैं मान सकती हूं लेकिन प्रेमकुमार ऐसा आदमी नहीं जो किसी का खून कर दे ।”
“मुमकिन है । शायद प्रेमकुमार के साथ बात करने के बाद मुझे भी ऐसी लगे कि वह किसी का खून नहीं कर सकता । अब तुम मुझे उसका पता बताओ । और यह मत कहना कि तुम उसका पता जानती नहीं । मुझे बड़े विश्वस्त सूत्र से पता चला है तुम उसका पता जानती हो ।”
“तुम्हें मेरा पता किसने बताया ?”
“बता दिया किसी ने । तुम प्रेमकुमार के पते की बात करो ।”
“नहीं । अगर उसे मालूम हो गया कि मैंने तुम्हें उसका पता बताया है तो वह मुझे जान से मार डालेगा ।”
“अभी तो तुम कह रही थीं कि प्रेमकुमार ऐसा आदमी नहीं है जो किसी का खून कर दे ।”
मेबल चुप रही ।
“तुम खामखाह वक्त बरबाद कर रही हो ।”
“मिस्टर सुनील, मैं कसम खाकर कहती हूं कि मेरा ब्लैकमेलिंग से और निशा की हत्या से कोई वास्ता नहीं है ।”
“कसम खाने की जरूरत नहीं । मैं वैसे ही तुम्हारी बात मान लेता हूं । इन बातों का प्रेमकुमार का पता मुझे बताने से क्या रिश्ता है ?”
“मैं उसके लिये कोई मुश्किल नहीं खड़ी करना चाहती । उसने आज तक मेरा कभी कोई बुरा नहीं किया ।”
“मैं ही कौन-सा उसे फांसी पर लटका रहा हूं ! मैं कोई पुलिस का आदमी नहीं । मैं कोई चोर-डाकू नहीं । मैं सिर्फ उससे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं । अगर वह निर्दोष है तो उसका कोई अहित नहीं होने वाला लेकिन अगर वह खूनी है तो तुम्हें वैसे ही उससे कोई वास्ता नहीं रखना चाहिये ।”
“तुम उसे यह तो नहीं बताओगे कि तुम्हें उसका पता मेरे से मालूम हुआ था ?”
“नहीं बताऊंगा ।”
“हरगिज मत बताना ।”
“हरगिज नहीं बताऊंगा ।”
“नहीं तो वह मुझे बहुत बुरा-भला कहेगा ।”
“ऐसी नौबत नहीं आयेगी ।”
“झेरी की झोल के इर्द-गिर्द आई टी डी सी के बनाये हुए टूरिस्ट काटेज देखे हैं तुमने ?”
“देखे हैं ।”
“प्रेमकुमार सात नम्बर काटेज में है ।”
“सच बोल रही हो ?”
“हां ।”
“जो गंदी तस्वीरें निशा के फ्लैट पर खींची गई थीं, उनमें से कोई तुम्हारे पास तो नहीं ?”
“नहीं । सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“तुम्हारी अन्य दो सहेलियों के पास ?”
“मुझे उम्मीद नहीं । हमारा उन तस्वीरों से कोई वास्ता ही नहीं था ।”
“हत्या या ब्लैकमेलिंग से सम्बन्धित कोई ऐसी बात जो किसी भी माध्यम से तुम्हारे कानों में पड़ी हो और जो तुमने मुझे बताई न हो ?”
“ऐसी कोई बात नहीं है ।”
“आलराइट । थैंक्यू फार ऐवरीथिंग ।”
मेबल चुप रही ।
“एक आखिरी बात और ।”
“प्रेमकुमार को यह सूचित करने की कोशिश मत करना कि मैं उससे मिलने आ रहा हूं ।”
“पागल हुए हो क्या ? ऐसी किसी हरकत का मतलब तो यह स्वीकार करना होगा कि मैंने उसका पता तुम्हे बताया है जो कि मैं सपने में नहीं चाहती ।”
सुनील ने उसका दोबारा धन्यवाद किया और कमरे से बाहर निकल आया ।
***
सुनील अपने फ्लैट पर पहुंचा ।
देशपाण्डे फ्लैट में पहले से ही मौजूद था ।
“लाला ने क्यों बुलाया था ?” - सुनील ने बड़ी मासूमियत से पूछा ।
“जैसे तुम्हे मालूम नहीं ।” - देशपाण्डे शिकायत-भरे स्वर में बोला । उसके स्वर में नाराजगी नहीं थी ।
उत्तर में सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“क्या प्रोग्रैस है ?” - देशपाण्डे बदले स्वर में बोला ।
सुनील ने सिगरेट का एक लम्बा कश लगाया और फिर उसने सिगरेट के सुलगते हुए सिर पर दृष्टि टिका ली । वह फैसला नहीं कर पा रहा था कि वह देशपाण्डे को अपना हमराज बना ले या सारे सिलसिले की बाबत अपनी जुबान बन्द रखे और स्वतंत्र रूप से काम करने की कोशिश करे ।
“स्टार होटल से” - अन्त में वह निर्णयात्मक स्वर में बोला - “मुझे तीन लड़कियों में से मारिया नाम की लड़की का पता लगा है ।”
“मारिया ?”
“हां, उसने लाला मंगत राम को अपना नाम सोना बताया था ।”
“आई सी ।”
“मारिया भी प्रेमकुमार की सहेली है । मुझे उसके निवास-स्थान का पता तो नहीं मालूम हो पाया लेकिन इतना मालूम हुआ है कि वह पैरामाउन्ट क्लब में डान्सर है ।”
“तुम पैरामाउन्ट क्लब गये ?”
“अभी नहीं । पहले मैं मेबल से मिलने ब्राइट होटल गया था ।”
“मेबल मिली ?”
“हां । वह वही लड़की है जिसका नाम लाला मंगत राम ने नैन्सी बताया था । देशपाण्डे, तीसरी लड़की कंचन का भी वास्तव में कोई और ही नाम होगा । और शायद यही वजह है कि तुम उन लड़कियों के तलाश नहीं कर पाये । तुम सोना, नैन्सी और कंचन के नाम से ही उनके बारे में पूछताछ करते रहे थे और उनकी तस्वीरें बनवाने का ख्याल तुम्हें आया नहीं था । नतीजा यह हुआ कि तुम्हें लड़कियों की हवा भी नहीं मिली ।”
देशपाण्डे ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
“मुझे मेबल से प्रेमकुमार का पता मालूम हुआ है ।”
“कहां है वह ?” - देशपाण्डे ने उत्सुक स्वर में पूछा ।
“तुमने झेरी का इलाका देखा है ?”
“देखा है ।”
“वह झील के इर्द-गिर्द बने काटेजों में सात नम्बर काटेज में छुपा हुआ है ।”
“छुपा हुआ है ?”
“छुपा ही हुआ है । नहीं तो उसका पता बताने में मेबल की हालत क्यों खराब हुई जा रही थी ? और फिर प्रेमकुमार ऐसा आदमी नहीं जो अपनी सारी सखी-सहेलियों को छोड़कर झेरी के उजाड़ इलाके में जाकर रहे, विशेष रूप से जबकि आजकल सीजन भी नहीं है ।”
“शायद वह वहां किसी खास सहेली के साथ मौज मार रहा हो ?”
“मुमकिन है । जाकर ही पता लगेगा ।”
“कब चलें ?”
“देशपाण्डे, मैं प्रेमकुमार से मिलने अकेला जाना चाहता हूं ।”
“लेकिन...”
“मुझे तुम्हारे गर्म मिजाज का भरोसा नहीं । मेरे ख्याल से मैं अपने ढंग से ज्यादा बेहतर नतीजा हासिल कर सकता हूं ।”
“लेकिन...”
“या फिर ऐसा करो । मैं नहीं जाता, तुम चले जाओ ।”
“अच्छी बात है यार, तुम्हीं जाना ।”
“थैंक्यू ।”
“मैं यहां अकेला बैठा क्या करूंगा ?”
“तुम फिल्में देखते हो ?”
“कभी-कभार ।”
“बाम्बे टाकी देखी है ?”
“नहीं । नाम भी नहीं सुना ।”
“शशि कपूर और जेनिफर की अंग्रेजी की फिल्म है ।”
“वह जो ‘हाउसहोल्डर’ और ‘शेक्सपियरवाला’ वाली टीम ने बनाई थी ?”
“हां । बड़ी अच्छी फिल्म है । आज टैलीविजन पर आने वाली है । तुम आराम से यहां बैठकर फिल्म देखना । जब तक फिल्म खत्म होगी तब तक मैं वापस लौट आऊंगा ।”
“अच्छी बात है ।” - देशपाण्डे अनमने स्वर में बोला ।
“थैंक्यू ।”
“मेबल ने तस्वीरों के बारे में कुछ बताया ?”
“वह कहती है कि तस्वीरें खिंच रही हैं, इस बात की जानकारी उसे थी लेकिन ब्लैकमेलिंग में उसका कोई हाथ नहीं था ।”
“तो फिर उसके ख्याल से तस्वीरें क्यों खिंच रही थीं ?”
“वह कहती है कि शायद बूढा बाद में भी अपनी हरकतें देख-देखकर खुश होना चाहता था ।”
“साली बकती है । जरूर ब्लैकमेलिंग में बाकी दो लड़कियों के साथ उसका भी हाथ था । मैं वहां होता तो यूं” - देशपाण्डे ने चुटकी बजाई - “यह बात उससे मनवा लेता ।”
“अच्छा हुआ तुम वहां न हुए ।”
देशपाण्डे चुप हो गया ।
“मैं चला ।” - सुनील बोला । उसने बचा हुआ सिगरेट का टुकड़ा ऐश-ट्रे में झोंक दिया ।
देशपाण्डे ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
***
फ्लैट से निकलकर सुनील ने झेरी की ओर प्रस्थान करने के स्थान पर यूथ क्लब का रुख किया ।
जो बात उसने देशपाण्डे के सामने यूं ही कह दी थी वह अब उसे महत्त्वपूर्ण लगने लगी थी । अगर प्रेमकुमार वाकई झेरी के सात नम्बर काटेज में छुपा हुआ था तो वह खतरनाक साबित हो सकता था । इसलिये सुरक्षा का उचित प्रबन्ध किये बिना प्रेमकुमार से मिलने जाना खतरनाक साबित हो सकता था ।
सुनील ने अपनी मोटरसाइकिल क्लब के कम्पाउन्ड में पार्क की और क्लब में प्रविष्ट हो गया ।
रमाकान्त रिसैप्शन के पीछे स्थित अपने आफिस में मौजूद था । उसके सामने एक चाय का प्याला रखा हुआ था और होंठों में एक ताजी सुलगाई चारमीनार की सिगरेट थी ।
“आओ प्यारयो ।” - वह मीठे स्वर में बोला ।
सुनील उसके समीप की एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“चाय पियोगे ?” - रमाकान्त ने पूछा ।
“नहीं पिऊंगा और आमलेट भी नहीं खाऊंगा ।”
“आमलेट को किसने पूछा है ?”
“सोचा एक अच्छे मेजबान की तरह शायद पूछो ।”
“मैं न मेजबान हूं, न अच्छा हूं ।”
“च-च !”
“और न ही आमलेट के बारे में पूछने का मेरा कोई इरादा है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि मुर्गियों ने हड़ताल कर दी है और अण्डे देने बन्द कर दिये हैं ।”
“अच्छा ! क्यों ?”
“कहती हैं हर जोर-जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है । यानी कि हमारी मांगें पूरी करो ।”
“और उनकी मांग क्या है ?”
“उनकी प्रमुख मांग वह है कि मुर्गों में बहुपत्नीवाद, मेरा मतलब है, बहुमुर्गीवाद बन्द किया जाये । एक मुर्गे के लिये सिर्फ एक ही मुर्गी होनी चाहिए और हर मुर्गी का अपना निजी मुर्गा होना चाहिये ।”
“तुम क्या कर रहे हो इस बारे में ?”
“अभी तो मैं आमलेट के बिना काम चला रहा हूं ।”
“बाद में क्या करोगे ?”
“बाद में या तो मुर्गियां बड़ी शराफत से अण्डे देने लगेंगी, नहीं तो मैं कारखाने को खा जाऊंगा ।”
“यानी कि मुर्गियों को ?”
“हां । न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।”
“तुम उनकी मांगें स्वीकार क्यों नहीं कर लेते ?”
“यानी कि मैं हर मुर्गी के लिये एक मुर्गा रखूं ?”
“हां ।”
“यह मुर्गों के साथ ज्यादती होगी । मुर्गा मर्द की जात है । मैं खुद मर्द की जात होते हुए अपनी बिरादरी के साथ ऐसी ज्यादती नहीं कर सकता । यार, यह कहां की शराफत है कि एक मुर्गा सारी जिन्दगी एक ही मुर्गी के साथ चोंच लड़ाता रहे, चाहे वह मुर्गी मोटी भैंस हो जाये, चाहे उसके चेहरे पर झुर्रियां पड़ जायें, चाहें अण्डे दे-देकर उसका पेट इतना फैल जाये कि बेचारा मुर्गा उसकी कमर में हाथ तक न डाल सके, चाहे उसके सीने के गुलाब...”
“कहां बहक रहे हो ?”
“सॉरी । गाड़ी अनजाने में बड़ी लाइन पर आ गई थी ।”
“आज बहुत खुश हो ?”
“बात ही खुश होने की है । क्लब में एक नई मुर्गी आई है । आज रात को उसकी परफारमेन्स है ।”
“कहां ? मेन हाल में या तुम्हारी ऊपरी मंजिल के बैडरूम में ?”
“पहले मेन हाल में” - रमाकान्त खुश होता हुआ बोला - “फिर ऊपरी मंजिल के बैडरूम में ।”
“यानी कि आज कहीं बाहर जाने वाले नहीं हो ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । आज तो खुदा भी बुलाये तो मैं यूथ क्लब से बाहर कदम नहीं रखने का ।”
“वैरी गुड । फिर तो कुछ घण्टों के लिये अपनी कार उधार दे दो । तुम्हें तो उसकी जरूरत पड़ेगी नहीं ।”
“लानत है ।” - रमाकांत भड़ककर बोला ।
“आज सर्दी ज्यादा हो गई है । मैंने झेरी तक जाता है । मोटरसाइकिल पर गया तो मेरी कुल्फी जम जायेगी ।”
“हजार बार लानत है ।”
रमाकांत ने पहले सिगरेट के बचे हुए टुकड़े से ही नया सिगरेट सुलगा लिया ।
“क्या तुम यह पसन्द करोगे कि मैं तुम्हारी नई मुर्गी की बैडरूम वाली परफारमेन्स में कबाब की हड्डी की तरह आ फंसू ?”
रमाकांत ने मेज की दराज में से चाबियां निकालकर उसकी ओर उछाल दीं ।
“हुजूर माई-बाप” - सुनील दुआयें देने लगा - “हुजूर का इकबाल बुलन्द हो । हुजूर की मुर्गियां जुड़वे अण्डे दें ।”
“जहन्नुम में जाओ ।”
“पहले झेरी जाऊंगा, वहां से शायद जहन्नुम का भी प्रोग्राम बन जाये ।”
“मेरी कार वापस करके जाना ।”
“यानी कि अगर तुम्हारा इकलौता यार जहन्नुम रसीद हो जाये तो तुम्हें कोई एतराज नहीं ?”
“मोटरसाइकिल छोड़कर कार ले जाये तब तो एतराज है लेकिन अगर कार छोड़कर मोटरसाइकिल ले जाने वाला हो तो कोई एतराज नहीं ।”
“लेकिन मैं तो मोटरसाइकिल छोड़कर कार ले जा रहा हूं इसलिये जाहिर है कि तुम्हें एतराज है ?”
“जाहिर है ।”
“यानी कि तुम नहीं चाहते कि मैं तुम्हारी कार लेकर जहन्नुम में जाऊं ?”
“नहीं चाहता ।”
“तो फिर अपने शब्द वापस लो ।”
“मैंने अपने शब्द वापस लिये” - रमाकांत ने यूं हवा में हाथ मारा जैसे अपने शब्द लपक रहा हो - “तुम जहन्नुम में मत जाना ।”
“ठीक है, तुम कहते हो तो नहीं जाऊंगा । अब एक रिवाल्वर दिलाओ ।”
“क्या ?” - रमाकांत आंखें निकालकर बोला ।
“प्यारेलाल” - सुनील प्यार भरे स्वर में बोला - “अगर रिवाल्वर नहीं दोगे तो अगर किसी ने मुझे जहन्नुम भेजने की कोशिश की तो मैं अपना बचाव कैसे करूंगा ?”
“यह बात है ?”
“बिल्कुल ।”
“अच्छा प्यारयो” - रमाकांत एकाएक बड़े अपनत्वभरे स्वर में बोला - “नगदऊ का क्या प्रोग्राम है ?”
“नगदऊ का कोई प्रोग्राम नहीं ।”
“यानी कि यूं ही खाली-पीली जहन्नुम रसीद हो रहे हो ?”
“हां ।”
“लानत है ।”
“लानत तुम हमें पहले ही भेज चुके हो ।”
“वह जुदा लानत थी । वह जुदा लानत है यानी कि डबल लानत है । लानत स्क्वायर ।”
“अब जरा रिवाल्वर की ओर भी हाथ बढाओ ।”
रमाकांत ने एक आह भरी, चाबी लगाकर मेज का एक अन्य दरवाजा खोला और उसमें से एक रिवाल्वर निकालकर मेज पर रख दी ।
“इस रिवाल्वर पर नम्बर नहीं है” - रमाकान्त गम्भीर स्वर में बोला - “रेती से घिसकर मिटा दिया गया है । इसलिए किसी को यह कहने की कोशिश मत करना कि रिवाल्वर रमाकांत की है । मैं साफ मुकर जाऊंगा कि मैंने तुम्हें कभी कोई रिवाल्वर दी थी । बाई गॉड, मैं तुम्हारी शक्ल पहचानने से इन्कार कर दूंगा ।”
“इसमें गोलियां हैं ?”
“तुमने रिवाल्वर मांगी थी, गोलियां कहां मांगी थीं ।”
“तुम अपने बैडरूम में किसी नौजवान लड़की की लाश के साथ हमबिस्तर होना पसन्द करोगे ?”
“क्या मतलब ?”
“उस सूरत में अगर कोई तुम्हें यह कहे कि तुमने लड़की मांगी थी, यह कब कहा था कि उसमें जान भी हो ।”
“लानत है । ..यह पहली दो लानतों से जुदा लानत है । यानी ट्रिपल लानत । लानत का क्यूब ।”
सुनील हंसा ।
रमाकांत ने कारतूसों का एक डिब्बा निकालकर सुनील के सामने पटक दिया ।
सुनील ने रिवाल्वर में गोलियां भरीं और रिवाल्वर को अपनी पतलून की बैल्ट में खोंसकर ऊपर से कोट के बटन बन्द कर लिये ।
“बन्दा चला ।” - वह बोला ।
“हां-हां । जरूर जाओ और पांच-सात साल सूरत मत दिखाना ।”
“यानी कि कार लौटाने भी न आऊं ?”
“मत आना । मुझे फोन कर देना कार कहां खड़ी है । मैं मंगवा लूंगा ।”
“और रिवाल्वर ?”
“अपने पास ही रख लेना । आत्महत्या करने के काम आयेगी ।”
“ओके । थैंक्यू फार ऐवरीथिंग ।”
सुनील कमरे से बाहर निकल आया ।
कम्पाउन्ड में आकर वह रमाकांत की गाड़ी में सवार हुआ । उसने इंजन स्टार्ट किया, कार को गियर में डाला और उसे बाहर की ओर ले चला ।
उसी क्षण दरवाजे पर रमाकांत प्रकट हुआ ।
सुनील ने कार रोकी ।
“यार” - वह चिन्तित स्वर में बोला - “कोई सीरियस मामला है क्या ? मैं भी साथ चलूं ?”
“बड़ी देर में ख्याल आया ?” - सुनील तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“जो पूछा जाये उसका जवाब दो ।” - रमाकांत झुंझलाकर बोला ।
“तुम्हारी उस मुर्गी का क्या होगा जिसकी आज रात तुम्हारे बैडरूम में परफारमेन्स है ?”
“अहे झाड़ू मारो, यार, उसे । मुर्गियां तो आती-जाती रहती हैं । यार कभी-कभी मिलता है ।” - रमाकांत गम्भीर था ।
“फिक्र मत करो, प्यारे” - सुनील हंसकर बोला - फिलहाल ऐसा कोई बखेड़ा नहीं है जिसे मैं अकेला नहीं भुगत सकता ।”
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“खाओ सोफिया लोरेन की कसम ?”
“यह आजकल तुम पर बन्दर का असर कैसे होने लगा है ?”
“आजकल रोज यहां आता है ।”
“अच्छा, मैं चला ।”
“ज्यूंदा रह मित्तरा ।” - रमाकांत प्यार-भरे स्वर में बोला ।
सुनील ने ब्रेक से पांव हटा लिया, एक्सीलेटर दबाया और गाड़ी मुख्य सड़क परे ले आया ।
वह झेरी की ओर उड़ चला ।
रास्तों पर ट्रैफिक अधिक नहीं था इसलिये झेरी पहुंचने में उसे केवल एक घण्टा लगा ।
उन दिनों सीजन नहीं था इसलिये न इलाके में भीड़भाड़ थी और न काटेजों में रौनक । झील एकदम शान्त थी । केवल कुछ ही काटेजों में प्रकाश दिखाई दे रहा था । सात नम्बर काटेज तलाश करने में सुनील को कोई दिक्कत नहीं हुई । उसने काटेज से थोड़ी दूर ही कार रोक दी ।
सात नम्बर काटेज उन कुछ काटेजों में से था जिसमें प्रकाश दिखाई दे रहा था । बगल के काटेज में फुल वाल्युम पर रेडियो बज रहा था ।
सुनील कार से बाहर निकला । अपनी पतलून की पैन्ट में से उसने रिवाल्वर निकाली और उसे अपनी कोट की दाईं जेब में डाल लिया । अपना दायां हाथ उसने कोट की दाईं जेब में रिवाल्वर की मूठ पर ही रहने दिया ।
वह आगे बढा ।
लाल बजरी बिछी राहदारी से होता हुआ वह काटेज मुख्य द्वार पर पहुंचा । उसने दरवाजा खटखटाया ।
एक खूबसूरत युवक ने दरवाजा खोला । प्रेमकुमार का जो हुलिया सुनील को बताया गया था, उसके अनुसार वह युवक प्रेमकुमार हो भी सकता था और नहीं भी हो सकता था ।
“प्रेमकुमार ?” - सुनील बोला ।
“कौन प्रेमकुमार ?” - युवक बोला - “यहां कोई प्रेमकुमार नहीं रहता ।”
“बनने की कोशिश मत करो, प्रेमकुमार ।”
“तुम कौन हो ?”
“भीतर चलो, बताता हूं ।”
“क्या चाहते हो ?”
“यह भी भीतर आकर ही बताऊंगा ।”
युवक के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभरे । फिर एकाएक वह रास्ते से हट गया और बोला - “आओ ।”
युवक पिछले कमरे की ओर बढा ।
सुनील मुख्य द्वार से भीतर प्रविष्ट हुआ और उसके पीछे हो लिया ।
एकाएक सुनील की खोपड़ी के पृष्ठ भाग से कोई भारी चीज टकराई और उसकी आंखों के सामने सितारे नाच गए । उसके घुटने जमीन के साथ टकराये । उसका रिवाल्वर वाला हाथ रिवाल्वर लिये कोट से बाहर निकला लेकिन मूठ पर उसकी गिरफ्त बनी न रह सकी । रिवाल्वर धीरे से उसकी उंगलियों से निकल जमीन पर जा गिरी साथ ही वह भी औंधे मुंह जमीन पर लोट गया ।
चेतना लुप्त होने से पहले उसने दरवाजे के पीछे एक अन्य आदमी को खड़ा देखा जिसके हाथ में नाल की ओर से पकड़ी हुई एक रिवाल्वर थी और होंठों पर एक कमीनी मुस्कराहट थी ।
लेकिन वह अधिक देर तक बेहोश नहीं रहा ।
“मर तो नहीं गया ?” - उस के कान में उस युवक का आतंकित स्वर सुनाई दिया जिसने दरवाजा खोला था ।
“इतनी आसानी से मरने वाला नहीं यह ।” - रिवाल्वर वाला बोला - “अच्छा-खासा हट्टा-कट्टा आदमी है ।”
“इसे होश में लाओ ताकि हमें मालूम हो सके कि यह ब्राइट होटल में मेबल के पास कैसे पहुंच गया ।”
“सब मालूम हो जाएगा । तुम जरा थोड़ा पानी लेकर आओ ।”
पहला युवक बाथरूम की ओर बढ गया ।
रिवाल्वर वाला सुनील की जेबें टटोलने लगा ।
“हूं” - वह उसकी जेब से निकले प्रैस कार्ड पर निगाह डालता हुआ बोला - “सुनील कुमार चक्रवर्ती, स्पेशल कारस्पान्डेन्ट, ‘ब्लास्ट’ ।”
कुछ देर वह उसकी जेब का बाकी सामान टटोलता रहा । फिर उसने सब कुछ वापस उसकी जेब में डाल दिया ।
उसी क्षण सुनील के मुंह से एक कराह निकली ।
“प्रेम !” - रिवाल्वर वाले ने आवाज दी - “वापस आ जाओ । इसे वैसे ही होश आ गया है ।”
सुनील सिर झटकता हुआ उठकर बैठ गया ।
रिवाल्वर वाला उससे परे हटकर खड़ा हो गया । उसका रिवाल्वर वाला हाथ सुनील की ओर तन गया ।
सुनील ने अपने सिर को झटका दिया और रिवाल्वर वाले की दिशा में अपनी आंखें फोकस करने का प्रयत्न करने लगा ।
पहले उसकी निगाह अपनी ओर तनी रिवाल्वर की नाल पर पड़ी । नाल पर साइलेन्सर चढा हुआ था । फिर उसकी निगाह रिवाल्वर से उचटकर रिवाल्वर वाले के चेहरे पर पड़ी ।
वह एक लगभग चालीस साल का गठीले बदन का ठिगना-सा आदमी था । सिर पर, साफ मालूम हो रहा था कि, यह नकली बालों का विग पहने हुए था ।
“जाओ मोहन प्यारे !” - वह विष भरे स्वर में बोला ।
सुनील की निगाह उसकी बगल में आ खड़े हुए प्रेमकुमार पर पड़ी । उसकी रिवाल्वर प्रेमकुमार के हाथ में पहुंच चुकी थी ।
“जग्गी” - प्रेमकुमार व्यग्र स्वर में बोला - “इससे मतलब की बात पूछो ।”
“उठकर खड़े हो जाओ ।” - जग्गी कर्कश स्वर में बोला ।
सुनील लड़खड़ाता हुआ उठ खड़ा हुआ । उसका सिर अभी भी चकरा रहा था । उसका दायां हाथ अपने आप ही उसकी खोपड़ी के पृष्ठ भाग पर पहुंच गया । वहां एक टेनिस की गेंद जितना बड़ा गूमड़ निकल आया था ।
“तुम्हें मेबल का पता कैसे लगा ?” - जग्गी ने पूछा ।
“तुम लोगों को मेरा पता कैसे लगा ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्या मतलब ?”
“जिस तैयारी से मेरा स्वागत हुआ है, उससे लगता है कि तुम लोगों को पहले ही मालूम था कि मैं आ रहा हूं ।”
“करैक्ट” - जग्गी के चेहरे पर एक कमीनी मुस्कराहट उभरी - “हमें मेबल ने फोन किया था ।”
“मुझे उससे ऐसी उम्मीद नहीं थी ।”
“तुम्हें मेबल का पता कैसे लगा ?”
“मेरे पास उसकी तस्वीर थी । लोगों को उसकी तस्वीर दिखाकर पूछता-पूछता मैं उस तक पहुंच गया ।”
“तुम्हारे पास उसकी तस्वीर कहां से आई ?”
“बस आ गई कहीं से ।”
“मेरे सामने ऐसे जवाब नहीं चलेंगे, मिस्टर” - जग्गी कहरभरी निगाहों से उसे घूरता हुआ बोला - “बाई गॉड, जिन्दा जला दूंगा । पैट्रोल से नहलाकर माचिस दिखा दूंगा ।”
जग्गी के चेहरे पर लिखा था कि जो कुछ वह कह रहा था, उसे कर गुजरने में वह पूरी तरह समर्थ था ।
“तुम लाला मंगत राम के लिए काम कर रहे हो ?” - एकाएक प्रेमकुमार बोला ।
सुनील चुप रहा ।
“यह जरूर लाला मंगत राम के लिए काम कर रहा है ।” - प्रेमकुमार जग्गी से बोला - “उन नंगी तस्वीरों में से ही इसने मेबल की तस्वीर बनवाई होगी ।”
“यानी कि बाकी दो लड़कियों और बूढे समेत ?” - जग्गी बोला ।”
“सिर्फ लडकी का चेहरा ।” - सुनील बोला ।
“समझदार आदमी हो ।” - जग्गी बोला - “मैं भी कहूं बूढा पूरी तस्वीर तुम्हारे हवाले करने के लिए तैयार कैसे हो गया । वह तस्वीर किसे दिखाई थी तुमने ? किसने उसको पहचानकर उसका पता बताया था ?”
“राजेश ने ।” - सुनील बोला ।
“यह झूठ बोल रहा है ।”- प्रेमकुमार बोला - “मेबल राजेश नाम के किसी युवक को नहीं जानती ।”
“राजेश को कौन नहीं जानता ?” - सुनील शान्ति से बोला - “हिन्दुस्तान की हर नौजवान लड़की उसे जानती है ।”
“अच्छा !” - जग्गी बोला - “कौन है वह ? कहां रहता है ? क्या करता है ?”
“फिल्म स्टार है । बम्बई रहता है । फिल्मों में काम करता है ।”
“उल्लू का पट्ठा !” - प्रेमकुमार दांत पीसता हुआ उसकी ओर बढा - “यह हरामजादा राजेश खन्ना की बात कर रहा है । साला, मजाक कर रहा है ।”
“ठहरो !” - जग्गी अधिकारपूर्ण स्वर में बोला - “इसे कर लेने दो मजाक । जिन्दगी के आखिरी चन्द लम्हों में मजाक नहीं करेगा तो कब करेगा !”
प्रेमकुमार ठिठक गया ।
“तुम प्रेमकुमार को क्यों तलाश कर रहे थे ?”
“क्योंकि मैं निशा के हत्यारे को तलाश कर रहा था ।” - सुनील बोला ।
“यानी कि”- जग्गी के होंठ सिकुड़ गये - “तुम समझ रहे हो कि निशा की हत्या प्रेमकुमार ने की है ?”
“नहीं की क्या ?” - सुनील ने भोलेपन से पूछा ।
“तुम्हारी अक्ल खराब है क्या ? सूरत से तो तुम बड़े समझदार आदमी लगते हो । हम लाला मंगत राम को ब्लैकमेल कर रहे हैं और उससे ढेरों रुपया ऐंठने की कोशिश कर रहे हैं । पचास हजार रुपया हम उससे हासिल कर भी चुके हैं । हम भला निशा की हत्या के बारे में लाला मंगत राम को फंसाने की कोशिश क्यों करेंगे ? निशा ब्लैकमेलिंग में हमारी पार्टनर थी । हमें तो उसकी मौत का सबसे ज्यादा अफसोस है । एक तो निशा गई, ऊपर से उसकी हत्या के इल्जाम में लाला फांसी चढ जाये या उम्र कैद के लिये नप जाये तो हमारी ब्लैकमेलिंग की स्कीम भी चौपट हो जाये । हम तो नहीं चाहते कि लाला को जुकाम भी हो । हम तो सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को हर तरह फलता-फूलता देखना चाहते हैं ।”
“तो फिर निशा की हत्या किसने की ?”
“लाला मंगत राम ने ।”
“वह तो कहता है उसने हत्या नहीं की है ।”
“वह झूठ बोलता है । आर तुम उसकी बात का इसीलिए विश्वास कर रहे हो क्योंकि शायद वह तुम्हें नावां दिखा रहा है ।”
“उसने निशा की हत्या की है” - प्रेमकुमार आवेगपूर्ण स्वर में बोला - “और यह सोचकर की है कि उसको मार देने से और उसके फ्लैट में मौजूद तस्वीरें बरामद कर लेने से उसका ब्लैकमेलिंग से पीछा छूट जायेगा लेकिन उसे मालूम नहीं था कि निशा के पास सारी तस्वीरें नहीं थीं । इतनी तस्वीरें अभी मेरे पास भी हैं” - और प्रेमकुमार ने अपने कोट की भीतरी जेब से कुछ तस्वीरें निकालकर सुनील के चेहरे के सामने लहराई - “बाई गॉड, मैं उस बूढे का जीना हराम कर दूंगा ।”
सुनील को उन तस्वीरों में से एक-दो की झलक ही दिखाई दी थी लेकिन वह झलक ही उसे यह जताने के लिए काफी थी कि वे लाला मंगत राम और तीन लड़कियों की उसी प्रकार की गन्दी तस्वीरें थी जैसी वह लाला के पास देख चुका था ।
अब तक यह भी स्पष्ट हो गया था कि उन लोगों का उसे जिन्दा छोड़ने का इरादा नहीं था । इसीलिए वे दोनों उससे इतने खुले दिल से बात कर रहे थे और यह छुपाने तक की कोशिश नहीं कर रहे थे कि वे लाला मंगत राम को ब्लैकमेल कर रहे थे ।
“तुममें से किसी ने पहले कभी लाला की हत्या करने की कोशिश की है ?” - सुनील ने पूछा ।
“क्या मतलब ?” - प्रेमकुमार बोला ।
“लाला ने तुम्हारी पिटाई करवाई थी जिसके फलस्वरूप तुम दस दिन अस्पताल में पड़ रहे थे । उसके बाद दिल्ली में लाला की हत्या का प्रयत्न किया गया था । किसी ने उसकी कार में बम फिट कर दिया था । क्या उस घटना में तुम्हारा कोई हाथ था ?”
“नहीं !” - प्रेमकुमार तीव्र स्वर में बोला ।
“उसके दो महीने बाद किसी ने शिमला में लाला पर गोली चलाई थी ?”
“मुझे ऐसी किसी घटना की कोई जानकारी नहीं ।”
“यानी कि तुमने कभी लाला की हत्या करने ही कोशिश नहीं की ?”
“सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“इसका मतलब यह है कि आत्मसम्मान की भावना तुममें कतई नहीं है । लाला ने तुम्हें पिटवाया और तुम्हारे मन में लाला से बदला लेने का ख्याल तक नहीं आया ।”
“क्यों नहीं आया ? मैं उसे ब्लैकमेल कर रहा हूं या नहीं ? यह उससे बदला लेना नहीं है तो और क्या है ?”
“पिटाई के इतने अरसे बाद ?”
“मैं लाला के आश्वस्त होने का इन्तजार करता रहा था । अपनी स्कीम में मैं निशा की मदद के बिना कामयाब नहीं हो सकता था । और तब मेरे और निशा के सम्बन्ध प्रकट हो जाने की वजह से लाला निशा पर सन्देह करने लगा था । सन्देह के बादल छंटने के बाद तक मेरा इन्तजार करना जरूरी था । इसीलिए उस दौर में मैं राजनगर से ही कूच कर गया । अभी भी शायद ही मेरे किसी परिचित को मालूम हो कि मैं राजनगर वापस लौटा आया हूं ।”
“इसका मतलब तो यह हुआ कि कोई तीसरा आदमी है जिसने लाला को फंसाने के लिए निशा की हत्या की है । हत्या के दो सीधे प्रयत्नों में जब वह कामयाब न हुआ तो उसने लाला को फंसाने का यह तरीका सोचा । उसने इस प्रकार निशा की हत्या की कि सन्देह सीधा लाला पर जाये ।”
“ऐसा ही मालूम होता है । लेकिन वह तीसरा आदमी अनजाने में ही हमारी ब्लैकमेलिंग की स्कीम का पटड़ा किये दे रहा है । अगर लाला को कुछ हो गया तो हम उससे चार आने भी वसूल करने के लायक नहीं रहेंगे ।”
“फिर तो तुम्हें चाहिये कि तुम उस तीसरे आदमी को तलाश करके उसका काम तमाम कर दो ताकि वह तुम्हारे और लाला के रास्ते में रुकावट न बन सके ।”
“लेकिन हम उसे कैसे तलाश कर सकते हैं ? पता नहीं वह कौन है ? पता नहीं ऐसा कोई आदमी है भी या नहीं ।”
“इस मामले में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं ।”
“तुम क्या मदद कर सकते हो ?”
“मैं उस आदमी को तलाश कर सकता हूं ।”
“कैसे ?”
“बस कर सकता हूं । मेरे साधन हैं । मुझे खुद भी ऐसे मामलों का बहुत तजुर्बा है ।”
“यह आदमी जान बचाने के लिए हमें पुड़िया दे रहा है ।” - एकाएक जग्गी बोला ।
प्रेमकुमार चुप हो गया ।
“हम तुम्हें यहां से बचकर जाने नहीं दे सकते मिस्टर” - जग्गी बोला - “तुम्हारी मौत निश्चित है । हम तुम्हें शूट करके तुम्हारी लाश के साथ वजन बांधकर झील में फेंक देंगे । किसी की खबर भी नहीं लगेगी ।”
“तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते ।” - सुनील बोला ।
सुनील के स्वर में आत्मविश्वास का ऐसा पुट था कि एक बार जग्गी के नेत्रों में भी सन्देह की छाया तैर गई ।
“क्या मतलब ?” - वह सुनील को घूरता हुआ बोला ।
“तुम क्या समझते हो कि मैं यहां अकेला चला आया हूं ?”
दोनों चौंके । दोनों की निगाहें मिलीं ।
“यह घिस्सा देने की कोशिश कर रहा है ।” - प्रेमकुमार बोला - “मैंने खिड़की में से कार को आता देखा था । उस कार में निकलने वाला अकेला आदमी था ।”
“शायद कोई कार के भीतर बैठा रहा हो” - जग्गी चिन्तित स्वर में बोला - “और वह अंधेरे में तुम्हें दिखाई न दिया हो ।”
“लेकिन...”
“शटअप ! अभी दो मिनट में पता लग जायेगा कि वह घिस्सा दे रहा है या सच बोल रहा है । दो मिनट में कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है ।”
“यह शर्तिया घिस्सा दे रहा है ।”
“तुम गधे हो ।”
प्रेमकुमार तिलमिलाया लेकिन चुप रहा ।
“बाहर जाकर देख कर आओ । अगर कार में कोई बैठा हो तो उसे बेहिचक शूट कर देना । अपने हाथ की रिवाल्वर मुझे दो और यह साइलेन्सर वाली रिवाल्वर तुम ले जाओ ।”
दोनों ने रिवाल्वरें बदल लीं । प्रेमकुमार साइलेन्सर लगी रिवाल्वर लेकर काटेज के बाहर निकल गया । सुनील वाली रिवाल्वर जग्गी के हाथ में आ गई ।
वातावरण में ब्लेड की धार जैसा पैनापन छा गया । सुनील का एक-एक क्षण पहाड़-सा गुजरने लगा । प्रेमकुमार के वापस आकर यह घोषणा करने की देर थी कि कार में कोई नहीं था कि खेल खत्म हो जाता ।
सुनील का मुंह सूखने लगा ।
जग्गी की गिद्ध दृष्टि उस पर टिकी हुई थी और कान बाहर की ओर लगे हुए थे । वह पूर्णतया सतर्क था । उस पर छलांग लगाकर रिवाल्वर पर काबू पा सकना असम्भव था ।
सुनील उसका ध्यान बंटाने की तरकीब सोचने लगा ।
ज्यों-ज्यों समय गुजरता जा रहा था, उसका कलेजा मुंह को आता जा रहा था । जग्गी की निगाहें पूर्ववत् उस पर टिकी थीं और रिवाल्वर उसकी ओर तनी हुई थी ।
एकाएक बाहर से एक साथ दो फायर होने की आवाज आई ।
जग्गी चौंका ।
प्रेमकुमार तो साइलेन्सर लगी रिवाल्वर लेकर गया था ।
एक क्षण, केवल एक क्षण के लिए उसकी निगाह खिड़की की ओर उठ गई ।
सुनील ने असावधानी के उस क्षण का भरपूर फायदा उठाया । उसने बिजली की फुर्ती से जग्गी पर छलांग लगा दी ।
जग्गी चिहुंककर वापस घूमा । उसने फायर किया लेकिन तब तक सुनील का हाथ उसके रिवाल्वर वाले हाथ से उलझ चुका था ।
रिवाल्वर में से एक शोला-सा लपका । गोली काटेज के फर्श में धंस गई ।
सुनील ने अपने सिर की एक भरपूर ठोकर उसके चेहरे पर जमाई और साथ ही अपने दोनों हाथों से उसके रिवाल्वर वाले हाथ को झटका दिया । रिवाल्वर तो उसके हाथ नहीं निकली लेकिन सुनील के हाथों की पकड़ उससे छूट गई ।
जग्गी भरभराकर पीछे को जा गिरा । वह तुरन्त सम्भला । गिर-गिरे ही उसने रिवाल्वर वाला हाथ उठाया ।
एक स्टूल सुनील के हाथ में आ गया । सुनील ने पूरी शक्ति से स्टूल उस पर फेंक मारा ।
जग्गी का निशाना फिर चूक गया । इस बार गोली सुनील के पीछे दीवार से कहीं जाकर टकराई ।
सुनील का फेंका स्टूल उसकी छाती से जा टकराया ।
रिवाल्वर उसके हाथ से छिटककर बगल के कमरे की दहलीज के समीप जा गिरी ।
सुनील रिवाल्वर की ओर झपटा ।
जग्गी अभी स्टूल की चोट से सम्भलने की कोशिश कर रहा था ।
रिवाल्वर पर सुनील का हाथ पड़ा ।
उसके सीधा होने तक जग्गी भी उठ खड़ा हुआ था सुनील के उसकी ओर घूमने से पहले ही जग्गी ने बिजली का स्विच आफ कर दिया ।
काटेज में अंधेरा छा गया ।
सुनील ने जग्गी का साया काटेज से बाहर की ओर लफकते देखा ।
सुनील भी काटेज के बाहर भागा ।
बगल के काटेज में बजता रेडियो बन्द हो चुका था ।
कॉटेज के बाहर जग्गी सुनील को कहीं दिखाई नहीं दिया ।
एकाएक एक कार स्टार्ट होने की आवाज आई । कुछ फासले पर एक कार उसे अंधेरे में मोड़ काटती दिखाई दी । कार की हैडलाइट्स नहीं जल रही थीं । कार तूफानी रफ्तार से भागती हुई दृष्टि से ओझल हो गई ।
सुनील रिवाल्वर हाथ में लिए सावधानी से अपनी कार की ओर बढा ।
प्रेमकुमार कहीं दिखाई नहीं दे रहा था ।
एकाएक सुनील ने किसी भारी चीज की ठोकर खाई । वह गिरते-गिरते बचा ।
सुनील सम्भला । उसने जेब से लाइटर निकालकर जलाया और जमीन पर उसका प्रकाश डाला ।
उसके पैरों के पास प्रेमकुमार की लाश पड़ी थी । दो गोलियां उसके सीने से गुजर गई थीं । साइलेन्सर लगी रिवाल्वर उसके दांयें हाथ के पास जमीन पर पड़ी थी ।
उसने जेब से फाउन्टेन पैन निकाला । पैन को उसने रिवाल्वर की नाल में डाल कर रिवाल्वर को उठाया । उसने रिवाल्वर की नाल को अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघा ।
नाल में से बारूद की गन्ध नहीं आ रही थी । प्रेमकुमार को रिवाल्वर इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिला था ।
उसी क्षण दूर कहीं से आती हुई फ्लाइंग स्कवायड के सायरन की आवाज सुनील के कानों में पड़ी ।
उसने रिवाल्वर यथास्थान फेंक दी और अपनी कार की ओर लपका ।
वह प्रेमकुमार की जेब में वह गन्दी तस्वीरें टटोलना चाहता था जो उसने थोड़ी देर पहले काटेज में उसे दिखाई थीं लेकिन अब समय नहीं था । पुलिस किसी भी क्षण वहां पहुंच सकती थी और वह पुलिस के वहां पहुंचने से पहले वहां से खिसक जाना चाहता था ।
अपने हाथ में थमी अपनी रिवाल्वर उसने अपने कोट की जेब में डाल ली और कार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा ।
अगले ही क्षण वह वापस राजनगर की ओर भागा जा रहा था ।
फ्लाइंग स्क्वायड की जीप रास्ते में उसकी बगल से गुजरी ।
शायद किसी पड़ोसी ने फायरिंग की आवाज सुनकर पुलिस को फोन कर दिया था ।
उसने थोड़ा आगे जाकर कार वापस घुमाई और झेरी के इकलौते होटल की ओर बढा । होटल झील से थोड़ा हटकर बना हुआ था ।
होटल में पहुंचते ही उसने रिसैप्शनिस्ट के हाथ पर एक दस का नोट रखा और उसे ब्लास्ट के न्यूज एडीटर राय का नम्बर बताकर कहा कि वह उस नम्बर पर एक ट्रंककाल बुक कर दे ।
रिसैप्शनिस्ट ने तुरन्त ट्रंककाल बुक कर दी ।
सुनील लाबी में मौजूद कई कुर्सियों में से एक पर बैठ गया और प्रतीक्षा करने लगा । उसने अपना लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला, एक सिगरेट सुलगाया और पैकेट और लाइटर अपनी बगल में रख लिया ।
चौथे सिगरेट की शुरुआत में रिसैप्शन पर रखे फोन की घंटी बजी ।
सुनील सतर्क हो गया ।
रिसैप्शनिस्ट फोन सुनता रहा ।
सुनील आशापूर्ण नेत्रों से उसको देख रहा था ।
एकाएक रिसैप्शनिस्ट ने सुनील को देखकर लाबी में रिसैप्शन के सामने की दीवार के साथ बने टेलीफोन बूथ की ओर संकेत किया ।
सुनील लपककर बूथ में घुस गया । उसने उस पर टंगा रिसीवर उठ लिया और रिसैप्शनिस्ट को संकेत किया ।
रिसैप्शनिस्ट ने टेलीफोन रख दिया ।
“हैल्लो !” - सुनील जोर से बोला ।
“यस, राय स्पीकिंग ।” - उसे राय का स्वर सुनाई दिया ।
“दादा” - सुनील बोल - “सुनील बोल रहा हूं ।”
“कहां से ?”
“झेरी से ।”
“वहां क्या कर रहे हो ?”
“ऊटपटांग सवाल मत करो । मेरी बात सुनो ।”
“सुनाओ ।”
“यहां प्रेमकुमार नाम के एक आदमी का कत्ल हो गया है ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“अरे मेरे बाप, बात सुनते रहो । बीच में मत टोको ।”
“अच्छा ।”
“अभी-अभी यहां प्रेमकुमार का कत्ल हो गया है । प्रेमकुमार का शंकर रोड के मनोहर मैनशन में हुई लाला मंगत राम की रखैल निशा की हत्या से सम्बन्ध है । सम्बन्ध क्या है, यह मैं दफ्तर में लिखकर दे जाऊंगा । मैं अभी यहां से रवाना हो रहा हूं । पुलिस अभी-अभी घटनास्थल पर पहुंची है । किसी वजह से मैं आन दि स्पाट कवरेज के लिए यहां नहीं रुक सकता । क्या झेरी में हमारा कोई कारस्पान्डेन्ट है ?”
“हां ।”
“उसका नाम-पता बताओ । अगर उसके पास कोई टेलीफोन नम्बर हो तो वह भी बताओ ।”
राय ने उसे कारस्पान्डेन्ट का नाम, पता और टेलीफोन नम्बर बता दिया ।
“ओके । मैं दफ्तर में आकर रिपोर्ट दे जाऊंगा ।”
“बारह बजे से पहले आना ।”
“पहले ही आऊंगा ।”
सुनील ने सम्बन्धविच्छेद कर दिया ।
सुनील ने ‘ब्लास्ट’ के कारस्पान्डेन्ट का वह नम्बर डायल किया जो राय ने उसे अभी बताया था ।
सौभाग्य से उसका कारस्पान्डेन्ट में तुरन्त सम्पर्क स्थापित हो गया ।
“मैं ‘ब्लास्ट’ से बोल रहा हूं ।” - सुनील सीधा मतलब की बात पर आता हुआ बोला - “झील के किनारे काटेज नम्बर सात के सामने एक कत्ल हो गया है । फौरन वहां पहुंचो । और रिपोर्ट बारह बजे से पहले न्यूज एडीटर राय के घस पहुंच जानी चाहिए ।”
“ओके । आप कौन बोल रहे हैं ?”
उत्तर के स्थान पर सुनील ने रिसीवर हुक पर टांग दिया । उसने रिसैप्शनिस्ट का फिर से धन्यवाद किया और होटल से बाहर निकल आया ।
वह कार पर सवार हुआ और फिर राजनगर की ओर उड़ चला ।
***
सुनील ब्राइट होटल पहुंचा ।
कार से उतरते समय उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
दस बजने को थे ।
वह होटल में प्रविष्ट हुआ ।
संयोगवश उस समय रिसैप्शन पर कोई नहीं था । वह सीधा लिफ्ट की ओर बढ गया । स्वचालित लिफ्ट द्वारा वह तीसरी मंजिल पर पहुंचा ।
मेबल उतनी सीधी और मासूम लड़की नहीं साबित हुई थी जितनी कि वह सूरत से लग रही थी । उसने सुनील से वादा किया था कि वह उसके आगमन की सूचना प्रेमकुमार को नहीं देगी जबकि मालूम होता था कि सुनील को पीठ करते ही उसने प्रेमकुमार को फोन कर दिया था ।
उसने 62 नम्बर कमरे का दरवाजा खटखटाया ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
बाहर बरामदे में खड़े-खड़े यह निर्णय कर पाना कठिन था कि मेबल सो चुकी थी या कमरे में नहीं थी ।
सुनील ने एक बार फिर दरवाजा खटखटाया ।
उत्तर नदारद ।
तीसरी बार दरवाजा खटखटाने से पहले सुनील ने एक बार दरवाजे का हैंडिल घुमाया ।
हैंडल बड़ी आसानी से घूम गया ।
आश्चर्यान्वित होते हुए सुनील ने धीरे से दरवाजे को भीतर की ओर धक्का दिया ।
दरवाजा खुल गया ।
झिझकते हुए सुनील ने भीतर कदम रखा ।
“कोई है ?” - उसने धीरे से आवाज लगाई ।
कमरे में उसकी अपनी ही आवाज गूंज गई ।
“मेबल !”
सन्नाटा ।
सुनील ने दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया और टटोलकर बिजली का स्विच आन किया ।
कमरा रोशनी में नहा गया ।
उसने चोरों ओर दृष्टि फिराई
कमरा खाली था ।
बाथरूम भी खाली था ।
सुनील ने बड़े सलीके से कमरे की तलाशी लेनी आरम्भ कर थी ।
मेज के एक दराज में उसे कारतूसों का आधा भरा डिब्बा मिला ।
गोलियों की मौजूदगी इस बात का पर्याप्त सबूत थी कि मेबल के पास रिवाल्वर थी । लेकिन रिवाल्वर उस कमरे में कहीं नहीं थी ।
जरूर रिवाल्वर मेबल अपने साथ ले गई थी ।
क्यों ?
शायद इस्तेमाल करने के लिए ।
एक नई सम्भावना सुनील के मस्तिष्क में उपजी ।
निशा प्रेमकुमार से मुहब्बत करती थी ।
क्या यह हो सकता था कि ईर्ष्या की भावना से वशीभूत होकर मेबल ने निशा की हत्या कर दी हो !
और अभी कुछ समय पहले झेरी में प्रेमकुमार को भी उसी ने शूट किया हो ।
एक भग्नहृदय प्रेमिका कुछ भी कर सकती थी । जनून सवार हो जाने पर अपने प्रेमी की हत्या भी । और फिर पहले खून के मुकाबले में दूसरा खून करना हमेशा ही आसान होता है ।
सुनील ने बत्ती बुझाई और कमरे से बाहर निकल आया । अपने पीछे उसने दरवाजा पूर्ववत् बन्द कर दिया ।
वह लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचा और होटल से बाहर निकल आया ।
संयोगवश रिसैप्शन उस समय भी खाली था ।
सुनील फिर रमाकान्त की शानदार इम्पाला पर सवार हुआ और यूथ क्लब पहुंचा ।
उस समय यूथ क्लब का कम्पाउण्ड कारों से भरा पड़ा था । सुनील बड़ी मुश्किल से इम्पाला को पार्क करने के काबिल स्थान तलाश कर पाया ।
लगता था कि मेन हाल में रमाकान्त की नई ‘मुर्गी’ की परफारमेन्स आरम्भ हो चुकी थी ।
दरबान सुनील को पहचानता था । सुनील ने इम्पाला की चाबियां उसी के हवाले कर दीं और अपनी मोटरसाइकिल पर जा सवार हुआ ।
वह बैंक स्ट्रीट पहुंचा ।
उसके फ्लैट का दरवाजा भीतर से बन्द नहीं था । ड्राइंगरूम में टेलीविजन स्क्रीन पर रोशनी थी लेकिन प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं दे रहे थे । स्क्रीन पर केवल ऊबड़खाबड़ धारियां आ रही थीं । प्रोग्राम का समय समाप्त हो चुका था । सोफे पर देशपांडे लेटा हुआ था । मेज पर एक जानीवाकर की खुली हुई बोतल और खाली गिलास रखा था । लगता था देशपाण्डे टेलीविजन देखता और विस्की पीता हुआ सो गया था । नशे के आधिक्य से या अनायास नींद आ जाने की वजह से उसे टेलीविजन बन्द करना तक याद नहीं रहा था ।
सुनील ने सबसे पहले टेलीविजन बन्द किया ।
फिर उसने जानीवाकर की बोतल उठाई । बोतल अभी आधी से ज्यादा भरी हुई थी ।
वह किचन से एक गिलास और रेफ्रीजरेटर में से एक सोडा निकाल लाया । उसने अपने लिए एक बड़ा पैग बनाया, उसका एक लम्बा घूंट लिया, बड़े तृप्तिपूर्ण ढंग से अपने होंठ चटकाये, लक्के स्ट्राइक का एक सिगरेट सुलगाया, विस्की का एक और घूंट लिया और फिर धीरे से देशपाण्डे को झंझोड़ा ।
देशपान्डे हड़बड़ाकर उठ बैठा ।
“हल्लो !” - देशपाण्डे आंखें मिचमिचाता हुआ बोला - “आ गए ?”
“जाहिर है ।” - सुनील बोला ।
“भीतर कैसे आए ?”
“दरवाजा खुला था । तुमने दरवाजा बन्द किया ही नहीं था ।”
“और मैं सो रहा था ?”
“जाहिर है ।”
“सॉरी ।”
“पिक्चर कैसी थी ?”
“पिक्चर !” - देशपाण्डे के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे - “पिक्चर ? ओह, पिक्चर ! टेलीविजन की फिल्म ! तुम बाम्बे टाकी की बात कर रहे हो ?”
“हां ।”
“अच्छी थी । अंग्रेजी फिल्म में, यार, शशिकपूर तो हिन्दोस्तानी एक्टर ही नहीं लगता । और उसकी बीवी का भी क्या शानदार काम था । कभी पहले फिल्म में आई है जेनिफर ?”
“फिल्म में नहीं आई लेकिन स्टेज एक्ट्रेस रह चुकी है । अभिनय का अच्छा-खासा तजुर्बा है उसे । सुना है शशिकपूर और जेनिफर के कुछ हाट सीन भी थे फिल्म में ?”
“थे ।” - देशपाण्डे भावहीन स्वर में बोला ।
“विस्की पियो ।”
“बस । काफी पी चुका ।”
“खाना खाया ?”
“नहीं । अभी कहीं चलते हैं खाने । तुम सुनाओ । कैसे बीती ?”
“प्रेमकुमार इस दुनिया से किनारा कर गया ।”
“अरे ! कैसे ?”
सुनील ने उसे सारी घटना कह सुनाई ।
“कमाल है ! प्रेमकुमार का हत्यारा कौन हो सकता है ?”
मेबल के हत्यारा होने की सम्भावना की ओर संकेत करती हुई जो थ्योरी सुनील ने सोची थी, वह देशपाण्डे को कह सुनाई ।
“मुझे तो यह बहुत ज्यादा मुमकिन नहीं लगता ।” - देशपाण्डे बोला ।
“इस संसार में कुछ भी मुमकिन है ।”
“बहरहाल हत्यारा मेबल हो या कोई और तुम्हें तो उसका शुक्रगुजार होना चाहिये । हत्यारे की वजह से तुम्हारी जान बच गई ।
“सच कह रह हो ।”
“इसीलिए तो कहता था कि मुझे साथ ले चलो । मैं ऐसी सिचुएशन हैंडिल करने में ज्यादा माहिर हूं ।”
“अब मुझे कोई सपना थोड़े ही आना था कि मेरे स्वागत का वहां पहले से ही इन्तजाम होगा । न ही मुझे यह उम्मीद थी कि मेबल धोखा दे जायेगी ।”
“मेबल की तो तुम्हें गरदन मरोड़ देनी चाहिये ।”
“वही करने गया था लेकिन वह होटल में मिली नहीं ।”
“आओ खाना खाने चलें । पेट में चूहे दौड़ रहे हैं ।”
सुनील ने अपना गिलास खाली किया । सिगरेट का आखिरी कश लगाकर उसे ऐश-ट्रे में झोंका और उठ खड़ा हुआ ।