बन्दरों का प्रतिशोध

सुबह उठकर मैं दुविधा में था कि क्या रात में मैंने वास्तव में कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें सुनी हैं और उन्हें पहाड़ी के किनारे बने कॉटेज के नीचे तेज़ी से भागते देखा था कि वह सब बस मेरा एक सपना था? उनमें एक गोल्डेन कॉकर, एक रीट्रीवर, एक पीक, एक डैचशंड जाति का था और एक-दो को मैं पहचान नहीं पाया। उनके भौंकने की तेज़ आवाज़ से आधी रात को मेरी नींद खुली, वे इतना शोर मचा रहे थे कि मैंने बिस्तर से उठ कर खिड़की से बाहर देखा। चाँदनी रात में मैंने उन्हें साफ़ देखा, पाँच या छह कुत्ते लम्बी मानसून घास के बीच बहुत उत्तेजित होकर भाग रहे थे।

चूँकि उनमें कुत्तों की कई प्रजातियाँ शामिल थीं, मैं थोड़ा उलझन में पड़ गया। मुझे कॉटेज में आये एक हफ़्ता ही हुआ था लेकिन मैं अपने अधिकांश पड़ोसियों के साथ दुआ-सलाम और बातचीत के सम्बन्ध बना चुका था। भारतीय सेना से रिटायर हुए कर्नल फैनशॉ मेरे सबसे करीबी पड़ोसी थे। उनके पास ज़रूर एक कॉकर जाति का कुत्ता था लेकिन वह काला था। देवदार के पेड़ों के पीछे रहने वाली कुँवारी एंग्लो इंडियन वृद्धाओं के पास सिर्फ़ बिल्लियाँ थीं (हालाँकि मुझे यह कभी समझ नहीं आया कि बिल्लियाँ कुँवारी बूढ़ी औरतों का विशेषाधिकार क्यों होनी चाहिए)। दूधवाले ने कुछ मिश्रित जाति वाले कुत्ते पाल रखे थे। और उस पंजाबी उद्योगपति, जिसने भूतपूर्व राजकुमार का महल खरीदा था और खुद रहने नहीं आकर देखभाल के लिए एक चौकीदार रखा था, के पास एक विशाल तिब्बती मस्टिफ्फ (Mastiff) जाति का कुत्ता था।

इनमें से कोई भी कुत्ता वैसा नहीं दिखता था, जैसा मैंने पिछली रात देखा था।

“क्या यहाँ कोई रीट्रीवर रखता है?” शाम को टहलने जा रहे कर्नल फैनशॉ मिले तो मैंने पूछा।

“जितना मैं जानता हूँ कोई नहीं,” उन्होंने कहा और अपनी घनी भवों के नीचे से मुझ पर एक तेज़, भेदती हुई नज़र डाली। “क्यों, क्या तुम्हें आस-पास कोई दिखा?”

“नहीं, मुझे ऐसे ही जिज्ञासा हुई, इस जगह बहुत सारे कुत्ते हैं, हैं न?”

“ओह, हाँ। लगभग हर कोई यहाँ एक कुत्ता रखता है। यह अलग बात है कि अक्सर तेंदुआ उन्हें उठा ले जाता है। मैंने खुद अपने प्यारे नन्हे टेरियर जाति के कुत्ते को पिछली सर्दियों में ही खोया है।”

लम्बे और लाल मुँह वाले कर्नल फैनशॉ शायद इन्तज़ार कर रहे थे कि मैं उन्हें कुछ और बताऊँ—या वह पहाड़ी की कठिन चढ़ाई के बाद बस थोड़ा साँस लेने के लिए रुके थे।

उस रात मैंने फिर कुत्तों की आवाज़ें सुनीं। मैं खिड़की तक गया और बाहर झाँका। पूरा चाँद निकला हुआ था और उसकी चाँदनी में सिन्दूर के पेड़ों के पत्ते चमक रहे थे।

कुत्ते पेड़ के ऊपर देखकर भौंक रहे थे लेकिन मुझे पेड़ों पर कुछ नहीं दिखा, एक उल्लू भी नहीं।

मैंने एक आवाज़ दी और कुत्ते जंगल में गायब हो गये।

अगली सुबह मिलने पर कर्नल फैनशॉ ने मुझे उत्सुकता से देखा। मैं यह पक्के तौर पर जानता था कि वह उन कुत्तों के बारे में कुछ जानते हैं; लेकिन वह प्रतीक्षा कर रहे थे कि मैं उनसे कुछ कहूँ। मैंने उनका दिल रखने का निर्णय लिया।

“मैंने आधी रात को लगभग छह कुत्ते देखे,” मैंने कहा “एक कॉकर, एक रीट्रीवर, एक पीक, एक डैचशंड, और दो मिश्रित जाति के कुत्ते। कर्नल, मुझे पक्का विश्वास है कि आप यह अच्छी तरह जानते हैं कि वे किसके कुत्ते हैं।”

कर्नल आनन्दित थे। मैं यह उनकी आँखों की चमक देखकर कह सकता था कि उन्हें किसी को उलझन में देखकर बहुत मज़ा आ रहा था।

“तुम मिस फेयरचाइल्ड के कुत्तों को देख रहे हो,” उन्होंने बहुत ही आत्मसन्तुष्टि के भाव से कहा।

“ओह, और वह कहाँ रहती हैं?”

“वह नहीं रहतीं, मेरे बच्चे। मर गयीं। पन्द्रह साल पहले।”

“फिर उनके कुत्ते यहाँ क्या कर रहे हैं?”

“बन्दरों को खोज रहे हैं,” कर्नल ने कहा और मेरी प्रतिक्रिया देखने के लिए रुक गये।

“मुझे कुछ समझ नहीं आया,” मैंने कहा।

“चलो, मैं इस बात को ऐसे कहता हूँ,” कर्नल ने कहा। “क्या तुम्हें भूतों पर विश्वास है?”

“मैंने कभी देखा नहीं कोई,” मैंने कहा।

“लेकिन तुमने देखा, मेरे बच्चे, तुमने देखा। मिस फेयरचाइल्ड के कुत्ते सालों पहले मर गये—एक कॉकर, एक रीट्रीवर, एक डैचशंड, एक पीक और दो मौंगरल कुत्ते। वे सिन्दूर के पेड़ों के नीचे की उस छोटी पहाड़ी पर दफ़न हैं। उनकी मौत में कुछ भी असामान्य नहीं था, यह ध्यान रखना। वह सब बहुत बूढ़े थे और अपनी मालकिन के जाने के बाद बहुत दिनों तक नहीं बचे। पड़ोसियों ने मरने तक उनका ध्यान रखा था।”

“और मिस फेयरचाइल्ड उसी कॉटेज में रहती थीं जहाँ मैं रुका हूँ? क्या वह जवान थीं?”

“वह चालीस के ऊपर की एक अधेड़, हट्टी-कट्टी औरत थीं जिन्हें बाहर रहना रास आता था। उन्हें मर्दों की अधिक परवाह नहीं थी। मुझे लगा तुम उनके बारे में जानते हो।”

“नहीं, मुझे यहाँ आये बहुत दिन नहीं हुए, आप जानते हैं। लेकिन आप बन्दरों के बारे में क्या कह रहे थे? वह कुत्ते बन्दरों को क्यों खोज रहे थे।”

“आह, वह कहानी का एक रोचक हिस्सा है। क्या तुमने उन लंगूर बन्दरों को देखा जो कभी-कभी सिन्दूर के पेड़ के पत्ते खाने आते हैं?”

“नहीं।”

“तुम देखोगे, जल्दी ही। उनका एक झुंड इन जंगलों में हमेशा घूमता रहता है। उनसे कोई खतरा नहीं लेकिन अगर उन्हें मौका मिले तो वे बगीचे को नष्ट कर डालते हैं… मिस फेयरचाइल्ड को इन बन्दरों से घृणा थी। उन्हें अपने डेहलिया के फूलों से बहुत लगाव था—कुछ नायाब फूल थे उनके पास—लेकिन बन्दर रात को आकर उनके पौधों को खोद डालते और डेहलिया की कलियों को खा जाते थे। शायद उन्हें डेहलिया की कलियों का स्वाद बहुत भाता था। मिस फेयरचाइल्ड बहुत गुस्सा होती थीं। जिन लोगों को बागवानी पसन्द होती है वह अक्सर अपना आपा खो बैठते हैं अगर उनके मनपसन्द पौधे नष्ट होते हैं—यह बहुत ही सामान्य बात है, मुझे लगता है। मिस फेयरचाइल्ड अपने कुत्तों को बन्दरों के पीछे लगा देती थीं, जब भी वह कर पातीं ऐसा, यहाँ तक कि अगर आधी रात हो तब भी। लेकिन बन्दर कुत्तों को भौंकता छोड़ आराम से पेड़ों पर जा चढ़ते थे।

“फिर एक दिन—या कि एक रात—मिस फेयरचाइल्ड ने बहुत बड़ा कदम उठाया। उन्होंने एक शॉट गन उधार ली और खिड़की के पास बैठ गयीं। और जब बन्दर आये, उन्होंने उनमें से एक को गोली मार दी।”

कर्नल बोलते-बोलते रुके और उन्होंने सिन्दूर के पेड़ों के ऊपर देखा, जिसके पत्ते दोपहर की गर्म धूप में चमक रहे थे।

“उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था,” कर्नल ने कहा।

“कभी भी बन्दर को नहीं मारो। सिर्फ़ इसलिए नहीं कि वे हिन्दुओं के लिए पवित्र हैं—बल्कि वे बहुत कुछ इन्सानों जैसे हैं, जानते हो। चलो, अब मुझे चलना चाहिए। गुड डे!” और कर्नल अपनी कहानी एकाएक बीच में ही खत्म करते हुए तेज़ कदमों से देवदार के पेड़ों की तरफ़ से निकल गये।

उस रात मैंने कुत्तों की आवाज़ें नहीं सुनीं। लेकिन अगले दिन मैंने बन्दरों को देखा—असली बन्दर, भूत नहीं। वे संख्या में लगभग बीस थे, बूढ़े और जवान, पेड़ों पर बैठे सिन्दूर के पत्ते खा रहे थे। उन्होंने मुझ पर कोई खास ध्यान नहीं दिया और मैं थोड़ी देर तक उन्हें देखता रहा।

वे सुन्दर प्राणी थे, उनके रोएँ चमकीले भूरे रंग के थे और पूँछ लम्बी और लहरदार। वे बहुत ही सभ्य ढंग से पेड़ों पर उछल-कूद रहे थे और एक-दूसरे के प्रति उनका व्यवहार बहुत ही विनम्र और शालीन था—मैदानी इलाकों में पाये जाने वाले धृष्ट बल्कि असभ्य लाल बन्दरों से बहुत अलग। उनमें से कुछ छोटे बन्दर पहाड़ियों की तरफ़ उछल-कूद मचाते, स्कूली बच्चों की तरह एक-दूसरे के साथ खेल रहे थे और कुश्ती लड़ रहे थे।

वहाँ उन्हें तंग करने के लिए कुत्ते नहीं थे—और ललचाने के लिए बगीचे में खिले डेहलिया के फूल भी नहीं।

लेकिन उस रात मैंने फिर से कुत्तों का भौंकना सुना। वे पहले से भी कहीं अधिक उत्तेजित होकर भौंक रहे थे।

“इस बार मैं इनकी वजह से नहीं उठने वाला,” मैं बुदबुदाया और कम्बल को अपने कानों तक खींच लिया।

लेकिन भौंकने की आवाज़ें तेज़ और तेज़ होती जा रही थीं और उनके साथ अब कुछ और भी आवाज़ें सम्मिलित हो गयी थीं, कुछ चिचियाहट और घसीटे जाने की आवाज़ें।

तभी अचानक एक औरत की कानों को भेदनेवाली चीख जंगल में गूँज उठी। यह बहुत ही रहस्यमय और अस्वाभाविक आवाज़ थी, जिसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गये।

मैं बिस्तर से कूदा और तेज़ी से खिड़की पर गया।

एक औरत ज़मीन पर गिरी हुई थी, तीन या चार विशालकाय बन्दर उसके ऊपर थे, उसे बाँहों पर काट रहे थे और गर्दन से खींच रहे थे। कुत्ते चीख रहे थे और बन्दरों को खींचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कुछ बन्दर उन्हें पीछे से परेशान कर रहे थे। औरत ने फिर खून को जमा देने वाली चीख मारी और मैं कमरे में तेज़ी से लौटा और एक छोटी कुल्हाड़ी लेकर बगीचे की ओर भागा।

लेकिन सभी—कुत्ते, बन्दर और वह चीखती औरत—गायब हो गये, और मैं वहाँ पहाड़ी के पास अपने पायजामे में अकेला खड़ा, हाथ में कुल्हाड़ी पकड़े खुद को मूर्ख-सा महसूस कर रहा था।

अगले दिन कर्नल ने कुछ ज़्यादा ही आत्मीयता से मेरा अभिवादन किया।

“अब भी देख रहे हो कुत्तों को?” उन्होंने मज़ाकिया लहज़े में पूछा।

“मैंने बन्दरों को भी देखा,” मैंने कहा।

“ओह, हाँ, वे फिर आ रहे हैं आजकल। लेकिन वे वास्तविक हैं और बिलकुल भी नुकसानदेह नहीं।”

“मैं जानता हूँ—लेकिन मैंने उन्हें पिछली रात कुत्तों के साथ देखा।”

“ओह! क्या सच में? यह तो विचित्र है, बहुत विचित्र।”

कर्नल ने मुझसे आँखें चुराने की कोशिश की, लेकिन मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई थी।

“कर्नल,” मैंने कहा। “आपने मुझे बताया नहीं कि मिस फेयरचाइल्ड कैसे मरीं।”

“ओह, क्या मैंने नहीं बताया? ज़रूर मेरे दिमाग से निकल गया होगा। मैं बूढ़ा हो रहा हूँ, लोगों को पहले की तरह याद नहीं रख पाता। लेकिन, मिस फेयरचाइल्ड मुझे ज़रूर याद हैं, बेचारी औरत। बन्दरों ने उन्हें मार दिया। तुम नहीं जानते क्या? टुकड़े कर दिये उनके…”

उनकी आवाज़ धीमी हो गयी थी और वह विचारमग्न एक कैटरपिलर (कीड़े) को देख रहे थे जो उनकी छड़ी पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था।

“उन्हें उस बन्दर को गोली नहीं मारनी चाहिए थी,” वह बोले, “बन्दर को कभी मत मारो—वे इन्सान जैसे ही हैं, जानते हो…”