देवांश को लगा- सारा खेल बिगड़ चुका है।
यह प्लान तब कामयाब था जब दिव्या उसे ड्रेसिंग में देखती नहीं। उस अवस्था में खुद उसे ही पता नहीं लग पाता उसके निप्पल पर जहर कहां से आ गया? ठकरियाल जब उससे यह सवाल करता तो यही कहती 'मुझे नहीं मालूम' और ठकरियाल तो क्या दुनिया का एक भी आदमी यह मानने को तैयार नहीं होता कि किसी औरत के निप्पल पर कोई जहर लगा गया और औरत को पता नहीं लगा अर्थात् पूरी तरह झूठी माना जाता दिव्या को।
उसके बाद - समरपाल की लंगड़ाहट ठकरियाल का ध्यान अपनी तरफ खींचती। उसके घर की तलाशी में 'विष कन्या' मिलती और वह कहानी कम्पलीट हो जाती जो दिव्या और समरपाल को फंसाने के लिए देवांश और विचित्रा ने बनाई थी, परन्तु दिव्या के देख लेने ने सारा काम बिगाड़ दिया था। अब उस ढंग से राजदान के मरने का मतलब था-उसे फांसी होना। बचने का एक ही रास्ता था- यह कि वह किसी भी तरह आज की रात दिव्या और राजदान को 'हम बिस्तर' होने से रोके। यह सोचकर वह कांप उठा कि वर्तमान हालात में दिव्या की नजरों का सामना कैसे कर सकेगा परन्तु जान बचानी थी तो सामना तो करना ही था। सो, घर पहुंचा।
यहां एक ऐसी मुसीबत सामने आई जिसकी वह स्वप्न में कल्पना नहीं कर सकता था। वह मुसीबत थी- राजदान को उसके और विचित्रा के सम्बन्धों का पता लग जाना। उन सम्बन्धों के बारे में राजदान को देवांश के मोबाइल के बिल से पता लगा था। देवांश के होश उड़ गये और उस वक्त तो उसके पैरो तले से मानो धरती ही खिसक गई जब पता लगा कि वह विचित्रा और उसकी वेश्या माँ शांतिबाई के षड्यंत्र का शिकार है। उनका उद्देश्य है-राजदान की दौलत हड़प कर जाना। राजदान बताता है -ऐसी एक कोशिश वह छ: साल पहले भी कर चुकी है। उस वक्त विचित्रा ने ठीक उसी तरह मुझे अपने रूपजाल में फंसाया था जिस तरह इस वक्त तुम्हें फंसा रखा है। उसके जादू में फंसा मैं तुम्हें अपनी जायदाद से बेदखल तक करने को तैयार हो गया था। वह तो भला हो उस घटना का जिसके कारण मुझे उनकी हकीकत और असल इरादों का पता लग गया। वक्त रहते होश आ गया मुझे और उसके बाद मैंने इस इलाके के तत्कालीन इंस्पेक्टर को खुश करके न केवल उनकी तबियत दुरुस्त कराई बल्कि उनकी ब्लैकमेलिंग के जाल में भी निकला। उन्होंने उसी वक्त मुझसे बदला लेने की कसम खाई थी ओर अब अपनी वही कसम पूरी करने के लिए उन्होंने तुम्हें फंसाया है। देवांश राजदान की कहानी पर विश्वास नहीं कर पा रहा था। उसे लगा-राजदान ने उसे विचित्रा से दूर रखने के लिए मनघड़ंत कहानी सुनाई है लेकिन उस वक्त उसे इस कहानी की सत्यता पर विश्वास करना ही पड़ा जब राजदान ने उसे वे फोटो दिखाये जिनमे बूते पर विचित्रा और उसकी मां ने राजदान को ब्लैकमेल करना चाहा था। उन फोटूंओ में विचित्रा, वह विचित्रा जिसे देवांश दूध की धुली समझता था, राजदान के साथ अभिसाररत नजर आ रही थी। देवांश की आंखें तो खुल गई मगर राजदान का सम्भावित कत्ल अब भी नंगी तलवार की तरह उसकी गर्दन पर लटक रहा था क्योंकि दिव्या वही कपड़े पहने हुए थी जो उसने स्नान से पूर्व ड्रेसिंग टेबल के टॉप पर रखे थे। वक्षस्थल को उसी ब्रा ने कस रखा था जिसकी कटोरियों में उसने जहर टपकाया था अतः राजदान से छुपाकर उसने दिव्या से एकान्त की इच्छा जाहिर की। वह दिव्या को ये इशारा देकर अपने कमरे में आ गया कि 'भैया' के साथ सोने से पहले उसे उसके कमरे में आना है। और उस वक्त एक नया ही गुल खिला जब दिव्या उसके कमरे में आई । उसके जिस्म पर झीना नाइट गाऊन, वही ब्रा और अण्डरवियर था। राजदान को नींद की गोली देकर आई थी वह रात के उस वक्त, दिव्या को उस लिबास में अपने इतने नजदीक देखकर देवांश का विचलित होना स्वाभाविक था किन्तु अपने मनोभाव व्यक्त करने की हिम्मत नहीं थी उसमें उस वक्त तो होश ही फाख्ता हो गये पट्ठे के जब दिव्या उसी हालत में दौड़कर उससे आ लिपटी। थर-थर कांप रहा था देवांश। यह वैसी ही स्थिति थी जैसे आप किसी पेड़ पर लटके पके फल को ललचाई नजरों से देखें और उसी क्षण फल खुद टूटकर आपकी गोद में आ गिरे। सब कुछ उसकी आंखें देख रही हैं। वह सच है। मगर जो सच था वह सच था।
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पता लगा- राजदान को एड्स है। कनाडा से वह यही बीमारी लेकर आया था। वह उसकी ब्लड रिपोर्ट थी जिसे देखने के बाद उस रात दिव्या के हलक से चीख निकल गई थी। तब से, दिव्या निरंतर प्यासी थी। उस प्यासी ने जब देवांश को अपनी तरफ आकर्षित पाया, अपने ड्रेसिंग में देखा तो स्वाभाविक रूप से उससे आ लिपटी वासना के नशे में चूर देवांश उस वक्त यह भी भूल बैठा कि जिस औरत को पाने के लिए इस क्षण मरा जा रहा है। उसके निष्पल को कुछ देर पहले खुद उसी ने जहरयुक्त किया है। इस बात का ख्याल उसे तब आया जब खुद अपने हाथों से उसकी ब्रा खोल डाली। तब, जबकि दोनों उरोजों की चोचों ने गर्दन उठाकर उसकी तरफ देखा बरबस ही देवांश के होंठ उनकी तरफ बढ़ना चाहते थे कि उफ्फ! अचानक ख्याल आया। ये तो जहरयुक्त है। खुद को चुसकने वाले को ईश्वरपुरी पहुंचा देंगे। तब कुछ इस तरह दिव्या को शावर के नीचे ले गया वह कि दिव्या को लगा देवांश उन्माद मे है । वहां, उसके वक्षस्थल को देवांश ने रगड़-रगड़कर धोया। दिव्या मर्दन का आनन्द उठाती रही। समझती रही वह देवांश का स्टाईल है। उस हद तक गिर चुके दिव्या और देवांश को पतन की गर्त में गिरने से भला अब कौन बचा सकता था।
उधर, बुग्गा और कम्मो के मुताबिक उन्हें सुपारी देने वाला नकाबपोश लगड़ाकर चलता था। समरपाल की चाल में लंगड़ाहट देखकर इंस्पेक्टर ठकरियाल की तबज्जों उस पर गई। वह उससे मिला। बातचीत के बाद इस नतीजे पर पहुंचा नकाबपोश और भले ही चाहे जो हो लेकिन समरपाल नहीं है। वह जो भी है, कोई ऐसा शख्स है जो बेगुनाह समरपाल को इस झमेले में फंसाना चाहता है। अतः ठकरियाल ने समरपाल से कहा-“तुम्हें किसी की हत्या के इल्जाम में फंसाने की कोशिश की जा रही है। खैरियत चाहते हो तो जैसे ही अपने आसपास कोई असामान्य बात देखी, बगैर समय गंवाये मुझे सूचित करना। "
बेचारा समरपाल।
भला यह एहसास किसे आतंकित नहीं कर देगा कि उसे हत्या के इल्जाम में फंसाने की कोशिश की जा रही है। बुरी तरह चौकस रहने लगा वह। चौंका उस वक्त जब अपने बैडरूम से 'विषकन्या' मिली । तुरंत थाने पहुंच ठकरियाल से मिला कहा -'यह किताब मेरे बेडरूम में थी जबकि मैंने इसे कभी नहीं खरीदा'। ठकरियाल ने किताब झपटी। उन पंक्तियों तक भी पहुंच गया । जिन्हें अण्डरलाईन किया गया था। तभी, रामावतार नामक सिपाही ने छह साल पुरानी घटना बताई। कहा-वह तब भी इसी थाने पर था जब विचित्रा और शांतिबाई ने राजदान को अपने जाल में फंसाकर ब्लैकमेल करना चाहा था, परन्तु राजदान ने ब्लैकमेल होने की जगह तत्कालीन इंस्पैक्टर को पचास लाख रुपये दिये। बदले में इंस्पेक्टर ने मां-बेटी को सबक सिखया और उनसे वे फोटो बरामद करके राजदान को दे दिये जिनके बूते पर राजदान को ब्लैकमेल करने के ख्वाब देख रही थी। जैसे ही रामवतार के मुंह से ठकरियाल को पता लगा उस वक्त अपनी हर चाल पिट जाने के कारण तिलमिलाई हुई विचित्रा और शांतिबाई ने राजदान से बदला लेने की कसम खाई थी, वैसे ही उसकी आंखों के समक्ष देवांश ओर विचित्रा की जुगलबंदी चकरा उठी। -इन्हीं मां-बेटी के फेर में फंसा देवांश राजदान ओर दिव्या की हत्या के मिशन पर काम कर रहा है। कोशिश वही, समरपाल को फंसाने की जा रही है और किताब बता रही थी- 'राजदान की हत्या' विषकन्या के उरोज चुसकने से होगी। ठकरियाल के सम्मुख लगभग सारा किस्सा खुल पड़ा था। केवल यह पता लगाना बाकी था कि 'विषकन्या' कौन बनने वाली थी? केवल यह पता लगाने के लिए वह जा धमका-शांतिबाई के कोठे पर। यह वही रात थी जिस रात दिव्या और देवांश पवित्रता की दीवार तोड़कर पतन के गर्त में गिरे थे। विचित्रा और शांतिबाई ने चालाक बनने की बहुत कोशिश की। अपनी तरफ से कुछ नहीं बताया परन्तु ठकरियाल ताड़ गया है कि विषकन्या दिव्या को बनना है। सारी बातें समझ में आते ही उसने विचित्रा और शांतिबाई को गिरफ्तार कर लिया।
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सुबह ! ठकरियाल राजदान विला पहुंचा। देवांश की तरफ व्यंग्यभरी मुस्कान उछाली। दिव्या के लिए उसकी आंखों में सहानुभूति थी। राजदान से कहा- मैं एकान्त में आपसे कुछ बातें करना चाहता हूं। और एकान्त में उस वक्त राजदान के पैरो तले से धरती खिसक गई जब ठकरियाल ने सुबूतों के साथ साबित कर दिया कि कम्मो और बुग्गा के हाथों मर्सडीज में बम रखवाने वाला नकाबपोश भी देवांश था और धोखे से दिव्या के निप्पल पर जहर पहुंचाकर उसकी हत्या का प्रयास करने वाला भी देवांश है।
ठकरियाल को उम्मीद थी-जब राजदान को यह हकीकत पता लगेगी तो मारे गुस्से के वह पागल हो उठेगा। कच्चा चबा जाना चाहेगा अपने छोटे भाई को, मगर उस वक्त इंस्पैक्टर को दंग रह जाना पड़ा जब उसकी सभी आशाओं के विपरीत राजदान ने कहा-'देवांश ने जो भी किया या करना चाहता था उसमें उसका नहीं, विचित्रा और शांतिबाई का कुसूर है। उनका जहर है ही ऐसा कि इंसान के सिर पर चढ़कर बोलता है। एक बार मेरे सिर पर भी चढ़ा था। देवांश को अपनी जायदाद से बेदखल तक करने को तैयार हो गया था मैं। देवांश ही मेरे मर्डर की कोशिश कर बैठा तो कौन सी आश्चर्य की बात है? ठकरियाल हैरान रह गया। राजदान जैसा भाई देखना तो दूर, उसकी कल्पनाओ तक से परे था। जब उसने कहा-'आपकी हत्या का प्रयास करने के इल्जाम में देवांश को गिरफ्तार तो करना ही पड़ेगा मुझे।' तब राजदान गिड़गिड़ा उठा बार-बार कहने लगा यह ऐसा न करे देवांश उसकी आरजुओं का आखिरी चिराग है। ठकरियाल राजदान की तरफ उन नजरों से देखता रह गया जिन नजरों से भक्त लोग भगवान की प्रतिमाओं को देखते हैं। फिर भी, ठकरियाल था तो एक भ्रष्ट पुलिसिया ही देवांश को बखशने के उसने पचास लाख मांगे। राजदान तैयार हो गया। साथ ही कहा - तुम देवांश को कभी इल्म नहीं होने दोगे कि सब कुछ जानने के बाद तुम मुझे बता चुके थे और मैने उसे बचाने के लिए रकम दी ' , ठकरियाल ने कहा विचित्रा और शांतिबाई के जरिए उसे हकीकत पता लग सकती है। राजदान ने ठकरियाल को पच्चीस लाख और दिये। यह रकम विचित्रा और शांतिबाई को ठिकाने लगाने के लिए दी गई थी और ठकरियाल जब उन्हें ठिकाने लगाने हेतु समुद्र के बीच में ले गया तो एक बार को, खुद उसकी की जान के लाले पड़ गये। हलात ऐसे बने कि वह विचित्रा और शांतिबाई की लाश न देख सका। खुद ही को बड़ी मुश्किल से बचा पर निकल सका। फिर भी उसे पूरी उम्मीद थी ये दोनों समुद्र में मर खप गई होगी।
राजदान ने बिस्तर पकड़ लिया। छुपाने की लाख चेष्टाओं के बावजूद उसे एड्स होने का राज ठकरियाल और भट्टाचार्य को भी पता लग गया। नहीं मालूम था तो सिर्फ बबलू को। वह दिन-रात राजदान की सेवा में लगा रहता। दूसरी तरफ दिव्या और देवांश एक बार अवैध सम्बन्धो की सड़ांध भरी दलदल में क्या गिरे कि उसी में लथपथ होकर रह गये। राजदान के खर्चीले इलाज में जमा पूंजी यूं उड़ रही थी जैसे खुले में रखा पेट्रोल उड़ा करता है। व्यापार में मंदा था सब कुछ चौपट होता जा रहा था। जिन फाइनेंसर्स ने राजदान एसोसिएट्स में पैसा लगा रखा था। उनका ब्याज तक नहीं पहुंच रहा था। इसलिए मूल को मांग करने लगे थे। छः महीने गुजर गये। इन छः महीने में दिव्या और देवांश इस कदर आर्थिक क्राईसेल का शिकार हो चुके थे कि उनका वश चलता तो जाने कब का राजदान का चल रहा महंगा इलाज बंद करा देते। इस मामले में उनकी नहीं चल रही थी। केवल भट्टाचार्य के कारण उसके रहते वे राजदान का इलाज बंद नहीं करा सकते थे जबकि खुद राजदान नहीं चाहता था उसके इलाज के नाम पर इतना मोटा खर्चा हो। वह खूब समझता था उसके कारण दिव्या और देवांश आर्थिक संकट में फंसे हुए हैं। ऐसा वह नहीं चाहता था। वो स्वप्न में भी उन दोनों में से किसी को कष्ट में नहीं देख सकता था। काश वो जानता होता कि दिव्या और देवांश, अब वे दिव्या और देवांश नहीं रह गये है जो उसके इस 'अंधे प्यार' के हकदार थे। अब तो वे, दिव्या और देवांश हैं जो उतनी ही शिद्दत से उसकी मौत की कामना किया करते हैं। जितनी शिद्दत से एक बीमार बच्चे की मां ईश्वर से उसके ठीक हो जाने की कामना करती है। नई-नई बीमारियां लग गई थीं राजदान को। ऐसी-ऐसी कि दिव्या देवांश को लगता, कहीं उनके जर्म्स उनमें भी न समा जायें। उसके नजदीक जाने से भी बचते थे वे। ऐसा महसूस भी कर लिया था राजदान ने। अंदर ही अंदर चोट सी लगी थी उसे मगर, प्यार तो वह उनसे बेइतिहा करता ही था। खुद चाहता था उन्हें उससे कोई बीमारी न लग जाये। दिव्या को खुद ही कहा था उसने-तुम मेरे पास इस कमरे में नहीं बल्कि बगल वाले कमरे में सोया करो। क्या मालूम था राजदान को कि वह दिव्या को उसकी मन मांगी मुराद दे रहा है? अकेला बबलू था जो बार-बार खुद राजदान के मना करने के बावजूद न केवल उसके पास आता था बल्कि खुद सेवा भी किया करता था। दोनों के बीच उस लड़की की भी बातें होती थी, जिससे बबलू प्यार करता था। स्वीटी था उसका नाम राजदान के अनुरोध पर एक बार बबलू उसे मिलाने के लिए लाया भी था। सचमुच बड़ी स्वीट थी वह। जब उसने राजदान के लिए लम्बी उम्र की दुआएं की तो राजदान की आंखें भर आई।
और वे, जिनके लिए राजदान ने अपनी जिन्दगी गला दी थी- वे दुआ कर रहे थे, वह घड़ी में मरता हो तो चौथाई में मर जाये। उनकी तो अब टेंशन ही राजदान का जी जला जाना थी। एक रात दिव्या ने देवांश से कहा- अगर वह तीस अगस्त से पहले नहीं मरा, उसके बाद एक दिन के लिए भी जिया तो हमारे उद्धार का जो एकमात्र रास्ता है वह भी बंद हो जायेगा | देवांश चौका। इस बात का मतलब पूछा। तब, दिव्या ने उसे एक बीमा पॉलिसी दिखाई। पांच करोड़ का बीमा था राजदान का नॉमिनी थी दिव्या। तीस अगस्त को प्रीमियम की अगली किस्त ड्यू थी। किश्त इतनी मोटी थी कि उसकी वर्तमान अवस्था में चाहकर भी जमा नहीं करा सकते थे। उस हालत में पॉलिसी लैप्स हो जानी थी अर्थात् यदि राजदान तीस अगस्त के बाद मरा तो फूटी कौड़ी नहीं मिलनी थी, एल.आई.सी. से। अतः ज्यों-ज्यो तीस अगस्त नजदीक आता जा रहा था, उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उन्हें लगा- राजदान का जो इलाज चल रहा है उसे फौरन बंद कर देना चाहिए ताकि उसके तीस अगस्त से पहले मरने के चांस बढ़ जाएं। वे फैसला नहीं कर पा रहे थे कि भट्टाचार्य के रहते ऐसा कैसे हो सकता है। उधर राजदान भी अपनी के लिए उतना ही बल्कि उनसे भी कहीं ज्यादा व्याकुल था । एक दिन उसने एकान्त में भट्टाचार्य को पकड़ लिया, कहा- देख दोस्त, मैं दिव्या और देवांश की वर्तमान आर्थिक हालत के बारे में अच्छी तरह जानता हूं इलाज बंद में, क्या फर्क पड़ता है मुझ पर। परन्तु मेरी दिव्या और देवांश के भविष्य पर जमीन-आसमान का फर्क पड़ जायेगा ' राजदान की विडम्बना तथा दिव्या और देवाश के पति उसका प्यार देखकर भट्टाचार्य फफक-फफक कर रो पड़ा था। एक हद तक राजदान को ठीक भी मानता था पर डाक्टर होने के नाते कैसे दवायें बंद करके उसे मरने के लिए छोड़ सकता था? एक ही बात कही उसने-'किसी के इस तरह मर्डर के इल्जाम में फांसी पर नहीं झूलना मुझे।' जब राजदान की भट्टाचार्य पर एक न चली तो सीधे-सीधे दिव्या और देवांश को ही पकड़ा उसने सब कुछ बताने के बाद कहा-'उम्मीद है, तुम व्यर्थ की भावुकता दिखाने के लिए भले ही दवाएं खरीदते भी रहो मगर मैं खाऊंगा नहीं। इस काम में तुम्हें मेरी मदद करनी होगी। तभी तीस अगस्त में पहले मर सकूंगा जो कि जरूरी है। सुनकर, बल्लियों उछलने लगे थे दिव्या और देवांश के दिल । मुर्ख खुद वह कह रहा था जो वे चाहते थे नाराजगी का ड्रामा करते हुए उन्होंने राजदान को यह डिमांड मान ली मगर होनी को तो पता नहीं क्या मंजूर था। दवायें बंद होने के बावजूद राजदान के प्राण नहीं निकल रहे थे। तीस अगस्त नजदीक आता चला गया। जाहिर है - दिव्या और देवांश की बेचैनी बढ़ गई।
अब चर्चा इस बात पर होने लगी-वह तीस अगस्त तक नहीं मरा तो क्या होगा? उधर, राजदान अपनी मीत को लेकर उनसे कहीं ज्यादा बेचैन था। जब कोई और रास्ता नहीं मिला तो सुसाइड का फैसला कर लिया।
उसने दिव्या और देवांश के नाम एक लेटर लिखा । बहुत ही भावुक लेटर था वह और वही उसका सुसाइड नोट भी था। अपने कमरे के बाहर बालकनी में फांसी लगाकर मरने का प्लान बनाया था उसने। मरने ही वाला था कि कि उसने दिव्या और देवांश को एक-दूसरे की बाहों में देख लिया। उफ्फ! दोनों में से एक के भी जिस्म पर कपड़े की एक कतरन तक नहीं थी। हां, हाथों में जाम जरूर थे दोनों के वे किचन लॉन में, एक झरने के नीचे थे। उस झरने के नीचे जिसे राजदान ने जाने कितने अरमानों के साथ दिव्या के लिए बनवाया था। पहले तो उस दृश्य को देखकर राजदान को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन सच्चाई को कब तक झुठला सकता है आदमी ? जो सच था, वह था। और सच केवल इतना ही नहीं था। वे उसकी हत्या का प्लान बना रहे थे। राजदान ने अपने कानों से सुना, दिव्या नामक बोतल के नशे में चूर देवांश ने कहा-'अगर उनतीस की रात तक वह खुद नही मरा तो हमें करना पड़ेगा यह नामुराद काम, हत्या को आत्महत्या जाहिर करना हमारे लिए जरा भी मुश्किल नहीं होगा।
राजदान को तो बस एक ही अफसोस था-उनके ऐसे 'प्रवचन' सुनकर उसके कानों के पर्दे क्यों नहीं फट गये? क्यों नहीं वह उस नंगे दृश्य को देखने के साथ ही अंधा हो गया? आखिर किन हालात में आदमी का 'हार्टफेल' होता है? इतना सब कुछ देखने-सुनने के बावजूद कैसे कैसे ठीक-ठाक थड़क रहा था उसका दिल? क्यों नहीं फट रही थी वह धरती? आसमान आखिर गिर क्यों नहीं रहा था? किसी सवाल का जवाब नहीं था उस पर।
जी चाहा-कूदकर उनके सामने पहुंच जाए । जाने क्या-क्या कहे उन्हें! मगर, फिर लगा देवांश अभी, यही गला दबाकर उसकी इहलीला समाप्त कर देगा और वह इतना कमजोर हो चुका है कि देवांश की मजबूत पकड़ के बीच एक मिनट से ज्यादा छटपटा तक नहीं सकेगा। अतः देवांश और दिव्या को वहां अपनी मौजूदगी का भान नहीं होने दिया उसने उन्हें नहीं पता लगने दिया वह क्या देख और जान चुका है।
उसके बाद, दो दिन तक राजदान का व्यवहार बड़ा अजीब और रहस्यमय रहा।
ऐसा, जैसे वह किसी प्लान पर काम कर रहा हो।
जो अपनी बीमारी के कारण पिछले चार महीने से किसी से नहीं मिला था उसने समरपाल को विला पर बुला लिया। उससे मिला। बंद कमरे में जाने क्या बातें की उससे मारे सस्पैंस के दिव्या का बुरा हाल था। उस वक्त वह उन बातों को जानने के लिए मरी जा रही थी जब विला में एक नया करेक्टर आया। वकीलचंद था उसका नाम। वह नाम से ही नहीं, पेशे से भी वकील था। और बस-यह बात दिव्या के दिमाग को 'भक्क' से उड़ाये हुए थी कि राजदान ने वकील को क्यों बुलाया है जबकि राजदान का कहना था-वकीलचंद मेरे बचपन का दोस्त है। मिलने का मन था उससे दिव्या का दिलो-दिमाग मानने को तैयार नहीं था कि बात बस इतनी सी है। वक्त उसने देवांश से राजदान नभर की गतिविधियों का जिक्र किया परन्तु देवांश ने कहा- 'बेवजह की बातें सोचकर अपना दिमाग खराव मत करो। वह जो करेगा हमारे अच्छे के लिए करेगा। हमारे खिलाफ कुछ करना तो दूर, कुछ सोच नहीं सकता वह। परन्तु अगले दिन, राजदान को बाहर जाने के लिए तैयार देखकर दिव्या हैरान रह गई। उसके बार- बार पूछने पर भी राजदान ने नहीं बताया कि वह कहां जा रहा था? दिव्या ने साथ चलने के लिए कहा। इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ वह अकेला गया। ड्राइवर के रूप में केवल बन्दूकवाला साथ था। करीब दो घंटे बाद लौटा आया। दिव्या ने फिर पूछा कहां गया था। राजदान ने नहीं बताया और उस वक्त तो दिव्या की खोपड़ी बुरी तरह घूमकर रह गई जब उसने इस बारे में बन्दूकवाला से बात की बन्दूकवाला ने बताया- मेरे साथ तो वे केवल जुहू बीच तक गए । वहां गाड़ी रुकवाई। एक टैक्सी पकड़ी। मुझे वहीं रुककर इंतजार करने के लिए कहा और टैक्सी में बैठकर जाने कहां चले गये? करीव डेढ़ घण्टे बाद दूसरी टैक्सी में लौटे। गाड़ी में बैठे और 'यह' आ गये' बन्दूकवाला का यह बयान, दिव्या के ही नहीं, देवांश के दिमाग में भी खलबली मचा देने के लिए काफी था। उस वक्त वह राजदान से उसकी रहस्मय गतिविधियों के बारे में बात करने के बारे में सोच ही रहा था जब खुद राजदान ही ने उन दोनों को अपने कमरे में बुलवाया। एक लिफाफा दिया। उसमें करीब पचास लाख के शेयर्स थे । राजदान ने कहा-'मेरे बैंक लॉकर में पड़े थे। आज ही दिन में निकालकर लाया हूं। कल समरपाल ने बताया था कि रामभाई तह बार-बार अपनी रकम मांगकर तुझे परेशान कर रहा है । साईन कर दिये हैं मैने कल उसके कर्जे से मुक्त हो जाना । तब, देवांश ने दिव्या की तरफ ऐसी नजरों से देखा जैसे कह रहा हो- 'देखो, मैं न कहता था-वह जो भी कर रहा होगा, हमारे फायदे के लिए कर रहा होगा
राजदान ने उन्हें एक रिवाल्वर भी दिखाया।
उसका लाइसेंसी रिवाल्वर था वह। कहा-यह भी बैंक लॉकर में ही रखा था।'
उसके बाद, राजदान ने जितनी बातें की उनसे एक ही बात ध्वनित हो रही थी। यह कि वह उन्हें पांच करोड़ दिलाने के लिए समय रहते आत्महत्या करने वाला है। उसने उन्हें यह आभास भी दिया कि लॉकर से वह इसी इरादे को पूरा करने के लिए रिवाल्वर निकालकर लाया है। वास्तव में राजदान क्या खिचड़ी पका रहा था। इस बारे में तो वे सोच तक नहीं सकते थे।
*********
उनतीस अगस्त की रात।
यह वह रात थी जहां से दिव्या और देवांश की दुश्वारियो शुरू हुई।
दुश्वारियो भी ऐसी जैसी उनसे पहले किसी ने नहीं झेली होंगी। रात के करीब बारह बजे तक वे सोच भी नहीं सकते थे। हालात इस कदर पलटा खाने वाले हैं। वह रात भी उनकी अन्य रातों की तरह रंगीनियों से ही शुरू कर हुई थी। कमरा दिव्या का बैडरूम था।
कम्बल के नीचे दोनों प्राकृतिक अवस्था में थे। एक बार सहवास के दौर से भी गुजर चुके थे। संतुष्टि होने के बाद अगल-बगल लेटे दोनों ने एक-एक सिगरेट सुलगा ली थी। दो-तीन कश लगाने के बाद दिव्या ने कहा था- “अब केवल चौबीस घण्टे बचे हैं देव। अगर वह कल इस वक्त तक नहीं मरा तो।"
“मरने के लिए एक क्षण चाहिए। सिर्फ एक क्षण" देवांश ने उसकी बात काटकर कहा था“और अभी पूरे चौबीस घण्टे बाकी हैं। मुझे पूरा विश्वास है वह समय रहते खुद को खत्म कर लेगा। वैसे भी, उसकी हर गतिविधि से जाहिर है जीने का कोई इरादा नहीं है उसका।"
“मैं कुछ और ही सोच रही थी।"
“क्या?”
"कितनी मुश्किल में होगा वह? खुद को खत्म कर लेना इतना आसान नहीं होता।"
“बात तो एकदम दुरुस्त है।"
"अगर कोशिश के बावजूद वह खुद को नहीं मार सका तो?”
“इस 'तो' के आगे की बात हम पहले ही सोच चुके हैं। हमें उठानी होगी वह जहमत काम जरा भी मुश्किल नहीं है। सुसाईड नोट हमारे पास हैं। बस उसके उसके रिवाल्वर से, उसकी कनपटी पर गोली मारनी होगी। रिवाल्वर उसके हाथ में पकड़ा दिया जायेगा।" कहने के बाद थोड़ा रुका देवांश। एक कश लेने के बाद पूछा- “तुम्हें पता है उसने रिवाल्वर कहां रखा है?"
“ऐसा कभी हुआ है तुमने कुछ पता करने के लिए कहा हो, मैंने न किया हो ?”
“कहां है?"
“सोफे की पुश्त और गद्दी के बीच जो गैप है रिवाल्वर उसने वहीं रख रखा है। अपनी समझ में उसने उसे वहां इसलिए रखा है ताकि मैं न ढूंढ सकूं जबकि मैंने उसे वहां रखते हुए ही देख लिया था। मैं तो यह भी देख चुकी हूं-छः की छः गोलियां हैं उसमें।"
“उस बेचारे के लिए तो आधी ही काफी होगी।" कहकर हंसा था देवांश।
दिव्या के कुछ कहने के पहले ही इन्टरकॉम की घण्टी घनघना उठी ।
दोनों चौंके।
एक-दूसरे की तरफ देखा।
देवांश ने दिव्या को रिसीवर उठाने का इशारा किया। दिव्या ने रिसीवर उठाकर कान से लगाया। दूसरी तरफ से राजदान ने पूछा- “सो रही थी?"
“हां।” दिव्या ने अजसाये स्वर में कहा-“कहिए क्या बात है?"
“मुझे तुम्हारी जरूरत है।"
“इस वक्त?”
"हां! इसी वक्त ।"
“लगता है नींद की गोलियों ने असर करना बंद कर दिया है।"
“आ रही हो न?”
“आती हूं।" कहने के बाद रिसीवर कान से हटाकर वापस क्रेडिल पर रखने ही वाली थी कि राजदान की आवाज पुनः कान में पड़ी-“छोटे को भी ले आना।"
कांप सी उठी दिव्या ।
क्या उसे मालूम है देवांश यहीं है?
मुंह से केवल इतना ही निकल सका-“द-देवांश को?”
“हां। तुमसे पहले उससे ही सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा था। उसके कमरे में लगातार बेल जा रही है पर उठा नहीं रहा। बहुत ही पक्की नींद में सोया लगता है पट्ठा।"
“म-मगर।” उसने देवांश की तरफ देखते हुए पूछा था-"ऐसा क्या काम है जिसके लिए रात के इस वक्त हम दोनों की जरूरत है ?”
“बस यूं समझो।” इतना कहने के बाद उसने थोड़ा विराम दिया, फिर बोला- "अंतिम बार जरूरत है तुम दोनों की आज रात के बाद फिर कभी परेशान नहीं करूंगा।"
मन ही मन बल्लियों उछलती दिव्या ने अपने लहजे में शिकायत भरते हुए कहा-"कैसी बातें कर रहे हैं आप? कितनी बार कहा है ऐसी बातें मत किया कीजिए।"
“छोटे को लेकर आ रही हो न?”
“पांच मिनट में हाजिर होती हूं।” कहने के बाद रिसीवर लगभग पटक दिया उसने। बड़बड़ाई-“पता नहीं मरने से पहले कितने ड्रामे करेगा कम्बख्त ?"
“कपड़े पहनो। वह बुला रहा है।" कहने के बाद वह अपने नंगे जिस्म की परवाह किये बगैर कम्बल से निकली और बैड के चारों तरफ फर्श पर छितराये पड़े कपड़े उठा-उठाकर पहनने लगी। कपड़े पहनने के दरम्यान उसने राजदान से हुई बातें विस्तार से बता दीं।
“क्या हुआ?” देवांश ने पूछा।
अण्डरवियर और बनियान के ऊपर नाईट गाऊन डालते देवांश ने कहा-“बातों से लगता है वह घड़ी आ पहुंची है जिसका हमें इंतजार था मगर, यह बात समझ में नहीं आई, हमें क्यों बुला रहा है वह?
“कहा तो है।" नाईटी पहनती दिव्या के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव थे-“चुपचाप मर भी नहीं सकता कम्बख्त देख लेना जरूर कोई नाटक करेगा।"
“मतलब तो यही है दोनों को बुलाने का।" देवांश ने नाइट गाऊन की डोरी बांध ली।
दिव्या ने कहा- “चलो।"
“यूं?” देवांश उसकी तरफ देखकर मुस्कराया था - "यूं चलोगी तुम?"
दिव्या ने अपने लिबास पर ध्यान दिया। हल्के आसमानी कलर की, वगैर बाजू वाली नाइटी इतनी झीनी थी कि वक्षस्थल पर कसी ब्रा और गुप्तांग को ढके पेन्टी साफ नजर आ रही थीं। उसके जिस्म का रसास्वादन करते देवांश ने कहा- "अगर उसने देख लिया तुम इस लिबास में मुझे जगाने गई थीं तो जल-भूनकर राख हो जायेगा बेचारा अंतिम समय पर उसे यह 'शॉक' देना किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता।"
दिव्या ने बगैर कुछ कहे कबर्ड से निकालकर रेशमी कपड़े का ऐसा गाऊन पहन लिया जिसने उसकी सारी नग्नता ढांप ली। गाऊन फुल बाजू का था। गिरेहवान के बटन बंद करती दरवाजे की तरफ बढ़ गई। यह सवाल दोनों को मथ रहा था कि उसने उन्हें बुलाया क्यों है? मरना भी चाहता है तो क्या उनके सामने?
आखिर क्या है उसके मन में?
राजदान के कमरे का दरवाजा उन्होंने कुछ ऐसी हड़बड़ाहट का प्रदर्शन करते हुए खोला जैसे उसके बुलावे पर लपक-झपककर आये हों परन्तु दरवाजा खोलते ही चौंक जाना पड़ा।
कमरा सिगार के धुएं से भरा पड़ा था। सारी लाइटें ऑन थीं। इतना ज्यादा प्रकाश था कि वहां की कालीन पर पड़ी सुई को भी दूर से देखा जा सकता था। सोफे पर बैठा था वह। जिस्म पर था - "काली-सफेद पटियों वाला उसका पसंदीदा गाऊन। तरोताजा था। वह देखने ही से लगता था कुछ ही देर पहले नहाया है। शेव भी बनाई थी उसने। सिगार के धुंए की बदबू के बीच आफ्टर शेव लोशन की भीनी-भीनी खुश्बू फैली हुई थी। अंगुलियों के बीच फंसा अभी भी एक सिगार सुलग रहा था। चेहरे पर वेदना सही थी- चौंकाने वाली बात थी उसके सामने पड़ी सेन्टर टेबल पर व्हिस्की की बोतल, सोडे की बोतलें, आईस बकेट, काजू और बादाम की प्लेटें तथा एक ऐसा गिलास जिसमें आधा पैग अभी-भी था। कांच के बाकी दो गिलास खाली थे। वे उल्टे रखे थे।
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