नकुल बिहारी माथुर नजदीकी ताजमहल होटल में लंच पर जाने के लिये उठने ही वाले थे कि वो टेलीफोन काल आ गयी थी ।
“सर, मैं मुकेश माथुर बोल रहा हूं । फिगारो आइलैंड से ।”
“अर्जेन्ट काल क्यों बुक कराई ?”
खुदा की मार पड़े बूढे पर - मुकेश दांत पीसता मन-ही-मन बोला - अर्जेन्ट काल की फीस पर कलप रहा था, ये नहीं पूछ रहा था कि काल उसने की क्यों थी !
“सर, आर्डिनरी काल लग नहीं रही थी ।”
“तो इन्जतार करना था काल लगने का । ऐसी क्या तबाही आ गयी है जो...”
“सर, तबाही तो नहीं आयी लेकिन...वो क्यों है कि यहां...यहां एक कत्ल हो गया है ।”
“कत्ल ! कत्ल हो गया है बोला तुमने ?”
“यस, सर ।”
“किसका कत्ल हो गया ? जरा ऊंचा बोलो और साफ बोला ।”
“सर, यहां मिस्टर ब्रान्डो के दौलतखाने पर उनकी हाउसकीपर वसुन्धरा पटवर्धन का कत्ल हो गया है । किसी ने उसे शूट कर दिया है ।”
“हाउसकीपर का...हाउसकीपर का कत्ल हुआ है ?”
“यस, सर ।”
“हमारी क्लायन्ट तो सलामत है न ?”
तौबा !
“सलामत ही होगी सर ।”
“होगी क्या मतलब ?”
“सर, वो गायब है ।”
“गायब है ? यानी कि हमें मिली खबर गलत थी । मिसेज नाडकर्णी आइलैंड पर नहीं पहुंची थी ।”
“सर, मिसेज नाडकर्णी, आई मीन मोहिनी, आइलैंड पर तो पहुंची थी, मिस्टर ब्रान्डो के मैंशन पर भी पहुंची थी लेकिन अब वो गायब है । आई मीन यहां पहुंचने के बाद के किसी वक्त से गायब है ।”
“कहां गायब है ?”
लानती ! जिसके बारे में मालूम हो कि वो कहां गायब थी, उसे गायब कैसे कहा जा सकता था !
“सर, पता नहीं ।”
“तो फिर क्या फायदा हुआ फोन करने का, अर्जेन्ट फोन काल पर कर्म का पैसा खराब करने का !”
“सर, वो क्या है कि...”
“फर्स्ट काम डाउन । एण्ड कन्ट्रोल युअरसैल्फ । अब जो कहना है साफ-साफ कहो, एक ही बार में कहो और इस बात को ध्यान में रखकर कहो, कि तुम अर्जेन्ट ट्रंककाल पर बात कर रहे हो । पैसा पेड़ों पर नहीं उगता ।”
“यस, सर । सर वो क्या है कि रात को दो बजे हाउसकीपर वसुन्धरा पूर्वनिर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक मोहिनी को पायर पर रिसीव करने गयी थी जहां से कि वो कोई तीन बजे के करीब मोहिनी के साथ वापिस लौटी थी । मोहिनी क्योंकि बहुत थकी हुई थी इसलिये वो यहां आते ही सो गयी थी । आज सुबह दस बजे तक भी जब वो ब्रेकफास्ट पर न पहुंची तो उसकी पड़ताल को गयी थी । सर, उसके कमरे में हाउसकीपर वसुन्धरा की लाश पड़ी पायी गयी थी और वो खुद वहां से गायब थी । सर, यहां आम धारणा ये है कि मोहिनी ने ही वसुन्धरा का कत्ल किया है और फिर फरार हो गयी है ।”
“आम धारणा है ! किसकी आम धारणा है ?”
“सबकी, सर । पुलिस की भी ।”
“बट दैट इज रिडीक्यूलस ! मिसेज नाडकर्णी कातिल कैसे हो सकती है ?”
“सर, पुलिस कहती है कि...”
“क्या पुलिस को मालूम नहीं कि मिसेज नाडकर्णी हमारी क्लायन्ट है । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स की क्लायन्ट है ?”
“सर, यहां की पुलिस ने हमारी फर्म का कभी नाम तक नहीं सुना ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ! हम कोई छोटी-मोटी फर्म हैं ? कलकत्ता और दिल्ली में हमारी ब्रांचें हैं । फारेन तक के केस आते हैं हमारे पास । इतने बड़े और रसूख वाले क्लायन्ट हैं हमारे । हम...”
“सर, हम अर्जेन्ट ट्रंककाल पर बात कर रहे हैं ।”
“यू और टैलिंग मी ? जो बात मुझे तुम्हारे से पहले मालूम है वो तुम मुझे बता रहे हो ?”
“बता नहीं रहा, सर, याद दिला रहा हूं ।”
“ओके ओके । अब आगे बढो । कब हुआ कत्ल ?”
“रात को ही । मोहिनी के आने के बाद किसी वक्त ।”
“उस वक्त हाउसकीपर... वाट वाज हर नेम ?”
“वसुन्धरा । वसुन्धरा पटवर्धन ।”
“उस वक्त वो क्या कर रही थी मिसेज नाडकर्णी के कमरे में ?”
“मालूम नहीं, सर । लेकिन पुलिस का कहना है कि मोहिनी ने ही किसी काम के लिये उसे अपने कमरे में तलब किया होगा और जब वो वहां पहुंची होगी तो उसने उसे शूट कर दिया होगा ।”
“क्यों ? क्यों शूट कर दिया होगा ? मिसेज नाडकर्णी की कोई अदावत थी, कोई रंजिश थी हाउसकीपर से ?”
“कैसे होगी, सर । वो दोनों तो एक-दूसरे को पहले जानती तक नहीं थीं । मोहिनी के पूरे सात साल बाद वहां कदम पड़े बताये जाते थे और हाउसकीपर को मिस्टर ब्रान्डो की मुलाजमत में अभी सिर्फ तीन महीने हुए थे ।”
“सो देयर यू आर । ये बात अपने आप में सुबूत है कि हमारी क्लायन्ट उस... उस हाउसकीपर की कातिल नहीं हो सकती ।”
“सर, वो गायब है । हाउसकीपर की लाश को पीछे अपने कमरे के फर्श पर पड़ी छोड़कर वो गायब है । सर, कत्ल मोहिनी के कमरे में हुआ । ऐसे हालात में उसका मौकायवारदात से गायब हो जाना अपनी कहानी खुद कह रहा है ।”
“वो कहीं इधर-उधर गयी होगी, लौट आयेगी ।”
“सर, पुलिस ने बहुत जगह पूछताछ की है । पुलिस ने यहां के फैरी पायर पर से पूछताछ की है, हेलीपैड से दरयाफ्त किया है, वो कहीं नहीं देखी गयी । क्योंकि आइलैंड से रुख्सत होने के ये ही दो ठिकाने हैं, हैलीकाप्टर और स्टीमर ही दो जरिये हैं इसलिये पुलिस का ख्याल है कि वो अभी भी आइलैंड पर ही कहीं छुपी हुई है ।”
“छुपी हुई है ?”
“यस, सर ।”
“जैसे क्रिमिनल्स छुपते हैं ? फ्यूजिटिव छुपते हैं ?”
“यस, सर ।”
“ओह बौश एण्ड नानसेंस । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का क्लायन्ट और क्रिमिनल ! भगोड़ा ! वो क्या...”
“सर, आई बैग टु रिमाइन्ड अगेन दैट...”
“जरूरत नहीं रिमान्ड कराने की । मुझे याद है कि हम ट्रंककाल पर, अर्जेंट ट्रंककाल पर बात कर रहे हैं । ट्रंककाल कॉस्टस मनी । अर्जेंट ट्रंककाल कॉस्ट्स मोर मनी एण्ड लाइटनिंग ट्रंककाल...”
“सर, सर ।”
“माथुर, मैं तुम्हें और काम सौंप रहा हूं । नोट करो ।”
“यस सर ।”
“नम्बर एक, मिसेज नाडकर्णी को आइलैंड पर तलाश करो । नम्बर दो, पुलिस को ये यकीन दिलाओ कि उनका मिसेज नाडकर्णी पर खूनी होने का शक करना नादानी है । हमारी क्लायन्ट खूनी नहीं हो सकती ।”
“आई नो, सर ।”
“नम्बर तीन, सोमवार सुबह साढे दस बजे मिसेज नाडकर्णी को साथ लेकर यहां आफिस में पहुंचो ताकि उसके विरसे का निपटारा किया जा सके और बतौर ट्रस्टी हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें ।”
“यस, सर । मोहिनी न मिली तो मैं आइलैंड साथ लेता आऊंगा जिसे हम अपने दफ्तर में खंगाल कर उसमें से अपनी क्लायन्ट बरामद कर लेंगे । जैसे बजरंगबली सुमेरु पर्वत उठा लाये थे तो उस पर से संजीवनी बूटी बरामद कर ली गयी थी । ईजी ।”
“वाट ! वाट डिड यू से ?”
“मैंने तो कुछ भी नहीं कहा, सर ।”
“लेकिन मैंने सुना कि...”
“लाइन में कोई खराबी हो गयी मालूम हो रही है, सर । क्रॉस टॉक हो रही है । बीच-बीच में मुझे भी कुछ अजीब-सा सुनायी दे रहा था ।”
“ओह, क्रॉस टॉक !”
“मैंने आदेश नोट कर लिये हैं, सर । मैं सब पर अमल करूंगा, सर ।”
“गुडलक, माई ब्वाय ।”
“थैक्यू, सर ।”
उसने रिसीवर हुक पर टांगा और इमारत से बाहर निकला ।
वो इमारत करीबी पोस्ट आफिस की थी जहां कि चुपचाप पहुंचकर उसने अपने बॉस को फोन किया था और अपनी हालत ‘नमाज बख्शवाने गये, रोजे गले पड़ गये’ जैसी कर ली थी ।
पैदल चलता हुआ वो ब्रान्डो की एस्टेट में वापिस लौटा ।
पोर्टिको में ही उसे एक हवलदार मिल गया जिसने उसे खबर दी कि सब-इंस्पेक्टर जोजेफ फिगुएरा उससे फिर बात करना चाहता था और वो इस बात से खफा हो रहा था कि मुकेश माथुर इस काम के लिये तुरन्त उपलब्ध नहीं था ।
वो भीतर दाखिल हुआ ।
उसने सबको लाउन्ज में मौजूद पाया । सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा कोई चालीस साल का व्यक्ति था जिसके चेहरे पर उस घड़ी बड़े कठोर भाव थे । वो एक टेबल के करीब खड़ा था और उस पर फैली कोई दर्जन भर तस्वीरों का मुआयना कर रहा था ।
उन लोगों से परे सम्मान को प्रतिमूर्ति बने, किसी आदेश की प्रतीक्षा करते हाथ बांधे चार नौकर खड़े थे ।
मुकेश करीब पहुंचा तो उसने पाया कि उन तमाम तस्वीरों में एक ही सूरत चित्रित थी । तमाम की तमाम तस्वीरें एक ही नौजवान लड़की की थीं जो कि हर तस्वीर में एक ही पोशाक पहने थी । कोई भी तस्वीर पोज्ड नहीं थी । सब सहज स्वाभाविक ढंग से, खेल खेल में खींची गयी मालूम होती थी और शायद इसीलिये ज्यादा दिलकश ज्यादा जीवन्त मालूम होती थीं ।
“किसकी तस्वीरें हैं ?” - मुकेश ने अपने मेजबान को हौले से टहोकते हुए पूछा ।
“मोहिनी की ।” - ब्रान्डो गम्भीरता से बोला । वो इस बात से बहुत आन्दोलित था कि उसकी एस्टेट में कत्ल जैसी वारदात हो गयी थी ।
“कम हेयर, प्लीज ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
मुकेश मेज के करीब पहुंचा ।
“तुमने कहा कि ये तुम्हारी क्लायन्ट थी ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “तुम्हारी फर्म में ये मिसेज श्याम नाडकर्णी के नाम से जानी जाती थी !”
“हां ।” - मुकेश बोला ।
“फिर भी तुम इसे नहीं पहचानते ?”
“नहीं पहचानता । मैं इससे कभी नहीं मिला । मैंने इसे कभी नहीं देखा ।”
“ये कभी तुम लोगों के आफिस में भी तो आयी होगी ?”
“न कभी नहीं । कम-से-कम फर्म में मेरी एम्पलायमेंट के दौरान तो नहीं ।”
“शायद कभी आयी हो लेकिन तुम्हें ध्यान न रहा हो ?”
“जनाब, ऐसी परीचेहरा सूरत एक बार देख लेने के बाद क्या कभी कोई भूल सकता है ? मरते दम तक नहीं भूल सकता ।”
“हूं । अपनी इसी खूबी की वजह से ये बहुत जल्द पकड़ी जायेगी ।” - सब-इंस्पेक्टर एक क्षण खामोश रहा और फिर ब्रान्डो की तरफ घूमा - “आप कहते हैं कि ये तमाम तस्वीरें एक ही दिन खींची गयी थीं ।”
“हां ।” - ब्रान्डो पुरानी यादों में डूबता-उतराता बोला - “सात साल पहले आज ही जैसे एक दिन । जब कि मोहिनी आखिरी बार मेरी रीयूनियन पार्टी में आयी थी ।
“तस्वीरें खींची क्यों गयी थीं ?”
“कोई खास वजह नहीं थी । बस तफरीहन खींची गयी थीं ?”
सब-इंस्पेक्टर की भवें उठीं ।
“मेरा मतलब है ये भी तफरीह के लिये आर्गेनाइज किया गया एक पार्टी गेम था । मैंने अपने तब के तमाम मेंहमानों को कैमरे, फ्लैश लाइट्स, टैलीलैंसिज, फिल्में वगैरह मुहैया करायी थीं और हर किसी को हर किसी की तस्वीर खींचने के लिये इनवाइट किया था । वो एक तरह से खेल-खेल में एक कांटेस्ट था जिसमें सबसे बढिया तस्वीर, सबसे घटिया तस्वीर, सबसे मजाकिया तस्वीर, सबसे ज्यादा शर्मिंदा करने वाली तस्वीर और सबसे बढिया एक्शन शाट पर मैंने बड़े आकर्षक इनामों की घोषणा की थी ।”
“मेरे को याद है ।” - आयशा बोली - “बहुत एन्जाय किया था हमने उस प्रतियोगिता को । कैसी-कैसी तस्वीरें खींची थी हम लोगों ने एक-दूसरे की ! सुनेत्रा, याद है बीच पर तुम्हारे बिकनी स्विम सूट की अंगिया का स्ट्रेप टूट गया था, तुम एक पेड़ के पीछे छुपकर उसे उतार कर दुरुस्त करने की कोशिश कर रही थीं कि टीना ने तुम्हारी तस्वीर खींच ली थी और तुम्हें खबर ही नहीं लगी थी । तुम्हारे ये उस तस्वीर में...”
“ओह, शटअप !” - सुनेत्रा भुनभुनाई - “ये कोई वक्त है ऐसी बातें करने का !”
“ऐनी वे ।” - टीना बोली - “इट वाज ए ग्रेट आइडिया - दैट पिक्चर कान्टैस्ट ।”
“यानी कि” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “ये तस्वीरें सात साल पुरानी है ?”
“हां ।” - ब्रान्डो बोला ।
“कोई ताजा तस्वीर नहीं है आपके पास मोहिनी की ?”
“न ।”
“किसी और के पास हो ?”
तमाम बुलबुलों के सिर इनकार में हिले ।
“सात साल बहुत लम्बा वक्फा होता है । सात साल में बहुत तबदीली आ जाती हैं इन्सान के बच्चे में । कई बार तो इतनी ज्यादा कि वो पहचान में नहीं आ पाता ।”
“जरूरी तो नहीं ।” - मुकेश बोला ।
“हां, जरूरी तो नहीं । बाज लोग तो जरा नहीं बदलते । बीस-बीस साल गुजर जाने के बाद भी वो वैसे के वैसे ही लगते हैं । मोहिनी के बारे में क्या कहते हैं आप लोग ?”
“मिस्टर पुलिस आफिसर ।” - ब्रान्डो बोला - “इस मामले में दावे के साथ हम में से कोई कुछ नहीं कह सकता । पिछले सात साल में हममें से किसी को भी मोहिनी से मुलाकात नहीं हुई है । हममें से किसी ने भी सात साल पहले की उस रीयूनियन पार्टी के बाद से मोहिनी को नहीं देखा ।”
“किसी ने तो देखा होगा ।” - सब-इंस्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
“वसुन्धरा ने देखा था । लेकिन उसने उसे अब देखा था तो पहले कभी नहीं देखा था इसलिये कोई कम्पैरीजन मुमकिन नहीं ।”
“हो भी तो” - मुकेश बोला - “वो अब अपना बयान तो नहीं दे सकती ।”
सब-इंस्पेक्टर ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया और फिर बोला - “कभी आप सब लोग इकट्ठे काम करते थे, कभी आप लोगों का एक ग्रुप था जिसमें से सबसे नहीं तो कुछ से तो उसकी जरूर ही गहरी छनती होगी । किसी से तो उसने पिछले सात सालों में कोई सम्पर्क बनाये रखने की कोशिश की होगी । ऐसा कैसा हो सकता है कि आप लोगों की कुलीग- आप लोगों की जोड़ीदार एक लड़की - एक नहीं, दो नहीं, पूरे सात सालों के लिये आप लोगों के लिये न होने जैसे हो गयी । उसका इस दुनिया में होना न होना आप लोगों के लिये एक बराबर हो गया ।”
“आप उलटी बात कह रहे हैं ।” - फौजिया बोली - “यूं कहिये कि हमारा होना या न होना उसके लिये एक बराबर हो गया ।”
“जैसे मर्जी कह लीजिये लेकिन ऐसा हुआ तो क्योंकर हुआ ?”
“होने की वजह है तो सही एक ।” - शशिबाला धीरे-से बोली ।
“क्या ?” - सब-इंस्पेक्टर आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“अब मैं क्या बताऊं । आयशा, तू बता ।”
“हां ।” - ब्रान्डो ने भी समर्थन किया - “आयशा को बताने दो ।”
मुकेश ने महसूस किया कि जो बात प्रत्यक्षतः शशिबाला और ब्रान्डो के जेहन में थी, उससे आयशा ही नहीं, बाकी लड़कियां भी नावाकिफ नहीं थीं लेकिन हर कोई उस बात के जिक्र का जिम्मा अपने सिर लेने से कतराती मालूम हो रही थी इसीलिये हर किसी ने ब्रान्डो की बात का पुरजोर समर्थन किया ।
आयशा ने सहमति में सिर हिलाया, एक गहरी सांस ली और फिर कठिन स्वर में बोली - “मिस्टर ब्रान्डो की सात साल पहले की वो रीयूनियन पार्टी, जिसमें मोहिनी ने आखिरी बार हमारे साथ शिरकत की थी और जिसकी कि ये चन्द तस्वीरें हैं यहां नहीं हुई थी, वो पणजी से कोई चालीस किलोमीटर दूर डोना पाला बीच के एक उजाड़ हिस्से में बने एक पुर्तगाली महल में हुई थी जिसे कि कोई डेढ सौ साल पहले, जबकि गोवा पुर्तगाल के अधिकार में था, तत्कालीन पुर्तगाली गर्वनर का आवास बताया जाता था । तब मोहिनी की श्याम नाडकर्णी से शादी हुए अभी तीन महीने ही हुए थे इसलिये सात साल पहले की उस रीयूनियन पार्टी में वो अपने पति को साथ लेकर आयी थी । दोनों आपस में इतने खुश थे और अपनी खुशियों में इतनी जल्दी उन्होंने हमें भी शरीक कर लिया था कि एक तरह से उस बार की पार्टी उनके सम्मान में दी गयी पार्टी बन कर रह गयी थी । बहुत अच्छा माहौल रहा था, बहुत एन्जाय किया था, हम सबने, सब कुछ बहुत ही बढिया चला था, सिवाय इसके कि श्याम नाडकर्णी ने बोतल के जरा ज्यादा ही हवाले होना शुरु कर दिया था ।”
“ड्रिंकिंग चौबीस घण्टे का मेला बन गया था तब उसका ।” - शशिबाला बोली - “लंच, ब्रेकफास्ट, डिनर सब विस्की की जुगलबन्दी से ही चलता था ।”
“इसलिये” - आयशा बोली - “उस शाम को भी वो पूरी तरह से टुन्न था जब कि वो.. वो वारदात हुई ।”
“क्या वारदात हुई ?” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
आयशा ने बेचैनी से पहलू बदला और फिर बोली - “उस शाम को वो बहुत पी चुका था और अभी और पी रहा था । जश्न का माहौल था इसलिये किसी ने उसे रोका भी नहीं । काफी देर रात तक उस रोज जाम चले थे । फिर महफिल बर्खास्त होने लगी तो पाया गया कि नाडकर्णी हम लोगों के बीच में नहीं था । तब यही सोचा गया था कि इधर-उधर कहीं होगा, आ जायेगा । लेकिन काफी रात गये तक भी जब वो न लोटा तो मोहिनी का कलेजा मुंह को आने लगा । हम सबने मोहिनी के साथ उसे आसपास तलाश करने की कोशिश की तो वो मिला नहीं । हमने यही सोचा कि नशे में वो बीच पर कहीं निकल गया था और फिर बीच पर ही कहीं उंघ गया था । मोहिनी का फिक्र से बुरा हाल था । हम सबने उसे यही तसल्ली दी कि उसका पति जहां भी था, ठीक था, नशा टूटेगा तो शर्मिन्दा होता अपने आप लौट आयेगा लेकिन वो न लौटा । असल में क्या हुआ था, उसकी खबर तो हमें अगले दिन लगी ।”
“आगे बढिये ।” - आयशा को खामोश होती पाकर सब-इंस्पेक्टर उतावले स्वर में बोला ।
“महल से दो किलोमीटर दूर समुद्र तट पर एक पहाड़ी थी जिसकी चोटी एक बाल्कनी की तरह ऐन समुद्र पर झुकी हुई थी और जिसका ख्याल इत्तफाक से ही हमें आ गया था । असब में वो उस पहाड़ी पर से समुद्र में जा गिरा था और... और...”
आयशा ने बड़े विवादपूर्ण भाव से गरदन हिलायी ।
“ओह !”
“साफ पता लग रहा था कि वो चोटी पर कहां से नीचे गिरा था । गिरने से पहले चोटी के दहाने पर उगी झाड़ियों की कुछ टहनियां उसके हाथ में आ गयी थी लेकिन वो टहनियां इतनी मजबूत न निकलीं कि उसके जिस्म का भार सम्भाल पातीं । नतीजतन टहनियां टूट गयीं और वो नीचे समुद्र में जाकर गिरा । उस रोज समुद्र उफान पर था जो कि लाश को पता नहीं कहां से कहां बहाकर ले गया ।”
“यानी कि लाश बरामद नहीं हुई थी ?”
“न । पुलिस ने, कोस्टल गार्डस ने, मिस्टर ब्रान्डो के एंगेज किये दक्ष मछुआरों ने दूर-दूर तक समुद्र को खंगाला था लेकिन लाश बरामद नहीं हुई थी ।”
“आई सी ।”
“सच पूछो तो” - शशिबाला दबे स्वर में बोली - “मोहिनी के पति की जान समुद्र ने नहीं, शराब ने ली थी । वो समुद्र में नहीं, शराब में डूब के मरा था ।”
“उस वारदात का” - ब्रान्डो बोला - “मोहिनी के दिल पर बहुत बुरा असर हुआ था । वो जल्दी ही बम्बई वापिस लौट गयी थी और बड़ी तनहा जिदगी गुजारने लगी थी । कोई तीन या चार महीने ही कहते हैं कि वो बम्बई में कफ परेड की एक आलीशान इमारत मे स्थित अपने पति के फ्लैट में रही थी, फिर एक दिन उसने तमाम नौकरों-चाकरों को डिसमिस कर दिया था और खुद भी वहां से कूच कर गयी थी ।”
“कहां ?”
“क्या पता कहां । मैं हर साल उसे रीयूनियन पार्टी के निमंत्रण की टेलीग्राम भेजता था लेकिन उसके जवाब में न कभी वो आयी, न कभी उसका कोई सन्देशा आया । सिवाय इस बार के । कल दोपहर को जब उसका फोन आया था और उसने कहा था कि वो आइलैंड पर पहुंची हुई थी तो यकीन जानो, मैं खुशी से उछल पड़ा था । आखिर साल साल बाद, पूरे सात साल बाद मेरी एक खोई हुई बुलबुल ने मेरे से सम्पर्क किया था । मिस्टर पुलिस आफिसर, मेरी उतावला होने की उम्र नहीं लेकिन मैं बयान नहीं कर सकता कि मैं किस कदर उतावला हो रहा था मोहिनी को देखने को, उससे मिलने को, उसकी अपने गरीबखाने पर मौजूदगी महसूस करने को ।”
“सात साल !” - सब-इंस्पेक्टर ने दोहराया, फिर वो मुकेश से सम्बोधित हुआ - “इस वक्फे का तुम्हारी यहां मौजूदगी से रिश्ता है ।”
“जो कि मैं बयान कर चुका हूं ।” - मुकेश बोला - “अब मिस्टर श्याम नाडकर्णी को कानूनी तौर पर मृत करार दिया जा सकता है और उसकी बेवा को उसकी वो सम्पति सौंपी जा सकती है जिसके कि हम ट्रस्टी हैं ।”
“आप लोगों ने मोहिनी को पहले कभी तलाश करने की कोशिश नहीं की थी ?”
“जी नहीं । कोई वजह ही नहीं थी । पहले हमने उससे क्या लेना-देना था ? हमारा असल काम तो सात साल का वक्फा खत्म होने पह शुरु होता था । वो वक्फा खत्म होते ही हम ने मोहिनी की तलाश के लिये कुछ कदम उठाये, जिनमें से एक के नतीजे के तौर पर मैं यहां पहुंचा हूं । तलाश न कामयाब होती तो हम और कदम उठाते, और कदम उठाते ।”
“फिर भी न कामयाब होती तो ?”
“तो” - मुकेश कन्धे उचकाता हुआ बोला - “विधवा की किस्मत ।”
“एक तरह से देखा जाये तो तलाश तो आपकी अभी भी नाकाम ही है ।”
“इतनी नाकाम नहीं है । अब हमें मालूम है कि वो इसी आइलैंड पर कहीं है और आप अगर काबिल पुलिस अधिकारी हैं तो उसे तलाश कर ही लेंगे ।”
“तुम्हें मेरी काबलियत पर शक है ?” - सब इंस्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला ।
“जरा भी नहीं । इसीलिये तो कहा कि मेरी तलाश इतनी नाकाम नहीं । हमारा मिशन अभी फेल नहीं हो गया ।”
“हूं ।” - वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर ब्रान्डो से सम्बोधित हुआ - “तो मोहिनी ने कल दोपहर को आपको फोन किया था !”
“हां । पायर पर से ।”
“यानी कि आइलैंड पर पहुंचते ही ?”
“जाहिर है ।”
“फिर भी आपके यहां वो रात के तीन बजे आकर लगी ?”
“उसे ईस्टएण्ड पर कोई निहायत जरूरी काम था ।”
“क्या काम था ?”
“ये तो बताया नहीं था उसने ?”
“चौदह घण्टे का जरूरी काम था ?”
“अब मैं क्या कहूं ?”
“ईस्टएण्ड कोई बहुत बड़ा इलाका नहीं । हम मालूम कर लेंगे कि उसे वहां क्या काम था, कहां काम था, किस के साथ काम था और क्यों कर उसे पहले से मालूम था कि उस काम से वो रात दो बजे से पहले फारिग नहीं होने वाली थी ।”
“असल में” - मुकेश बोला - “वो उसके भी बाद फारिग हुई थी । वसुन्धरा कहती थी कि वो निर्धारित समय के काफी बाद पायर पर पहुंची थी ।”
“आई सी ।”
“मुमकिन है” - ब्रान्डो ने राय जाहिर की - “उस वक्फे में वो वापिस पणजी का भी एक चक्कर लगा आयी हो ।”
“सब मालूम पड़ जायेगा । सब सामने आ जायेगा । फिलहाल आप मुझे मोहिनी में और अपनी मकतूला हाउसकीपर में कोई कनैक्शन समझाइये ।”
“मुझे तो नहीं दिखाई देता कोई कनैक्शन । मुझे तो ये भी उम्मीद नहीं कि वसुन्धरा ने पहले कभी मोहिनी का नाम भी सुना हो ।”
“शादी से पहले का या बाद का ? मिस मोहिनी पाटिल या मिसेज मोहिनी नाडकर्णी ?”
“कोई भी ।”
“वो कब से आपके यहां मुलाजिम थी ?”
“यही कोई तीन महीने से ।”
“आपने रखा था उसे ?”
“नहीं, मैंने नहीं । मैं तो यहां होता नहीं । मैं तो अमूमन बाहर रहता हूं । मेरी गैरहाजिरी में मेरे केयरटेकर ने मुझे रोम में फोन करके बताया था कि हाउसकीपर नौकरी छोड़ गयी थी । मैंने उसे कहा कि वो खुद ही किसी दूसरी हाउसकीपर का इन्तजाम कर ले । उसने कर लिया ।”
“यानी कि वसुन्धरा बतौर आपकी हाउसकीपर आपके केयरटेकर की खोज थी ?”
“हां ।”
“उसने कहां से खोजी ? क्या अखबार में इश्तिहार दिया ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“है कहां वो ?”
“आजकल छुट्टी पर है । बेलगाम गया है । हफ्ते में लौटकर आयेगा ।”
“आप यहां कब लौटे ?”
“एक महीना पहले ।”
“यानी कि अपनी हाउसकीपर से आपकी वाकफियत महज एक महीने की थी ?”
“हां । लेकिन वो मुझे फौरन पसन्द आ गयी थी । वो जरा गैरमिलनसार थी, मोटी थी, शक्ल सूरत में खस्ताहाल थी लेकिन बहुत जिम्मेदार थी, बहुत कार्यकुशल थी और बहुत ही सिंसियर थी । एक महीने में ही मैं उसका इतना आदी बन गया था, उस पर इतना निर्भर करने लगा था कि उसके बगैर मैं अपनी कल्पना नहीं कर पाता था । मुझे उसकी मौत का हमेशा अफसोस रहेगा और अगर सच में ही मोहिनी ने उसका कत्ल किया है तो - तो खुदा गारत करे कम्बख्त को ।”
“मूल रूप से वो कहां की रहने वाली थी ?”
“मालूम नहीं । केयरटेकर को मालूम होगा ।”
“उसने” - आयशा बोली - “मुझे बताया कि वो शोलापुर की रहने वाली थी ।”
“उसके परिवार के बारे में आपको काई जानकारी है या वो भी आपका केयरटेकर ही आयेगा तो बतायेगा ?”
“परिवार नहीं है उसका । मेरा मतलब है मां-बाप, अंकल-आंटी, भाई-बहन जैसा कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं था उसका ।”
“अनाथ थी ?”
“ऐसा ही था कुछ । शुरु से नहीं तो बाद में सब मर खप गये होंगे ।”
“पहले क्या करती थी ?”
“बम्बई और पूना में कई जगह सेल्सगर्ल की नौकरी कर चुकी थी । हाउसकीपर की ये उसकी पहली नौकरी थी ।”
“अपनी पिछली नौकरियों के बारे में कभी कुछ बताया हो उसने आप को ?”
“नहीं । सच पूछो तो मैंने इस बाबत उससे कभी कुछ नहीं पूछा था । अपनी संकोची प्रवृत्ति की वजह से वो बातचीत से कतराती थी इसलिये मैं भी उसे कुरेदने की कोशिश नहीं करता था ।”
“बहरहाल आपकी हाउसकीपर के और मोहिनी के समाजी रुतबे में तो बहुत फर्क हुआ ?”
“बिल्कुल हुआ । वसुन्धरा तो, ये कह लीजिये कि, सर्वेन्ट क्लास थी जब कि, कर्टसी लेट श्याम नाडकर्णी, कम-से-कम पिछले सात साल से तो मोहिनी का समाजी रुतबा बड़ा था । वो एक पैसे और रसूख वाले आदमी की बीवी थी... बेवा थी ।”
“यानी कि दोनों में कुछ कामन नहीं था ?”
“जाहिर है ।”
“तो फिर कत्ल का उद्देश्य क्या हुआ ? क्यों मोहिनी ने उसका कत्ल....”
“नहीं किया ।” - एकाएक सुनेत्रा तीखे स्वर में बोली - “मोहिनी ने उसका कत्ल नहीं किया ।”
“कौन बोला ?” - सब-इंस्पेक्टर सकपकाया-सा उपस्थित परियों के चेहरों पर निगाह घुमाता हुआ बोला ।
“मैं बोली ।” - सुनेत्रा बोली । वो जोश में उठकर खड़ी हो गयी थी । वो इतनी आन्दोलित दिखाई दे रही थी कि अमूमन रोब और शाइस्तगी दिखाने वाला उसका चेहरा उस घड़ी तमतमाया हुआ था - “मिस्टर सब-इंस्पेक्टर, उद्देश्य ढूंढते ही रह जाओगे । क्योंकि उद्देश्य है ही नहीं । क्योंकि मोहिनी ने हाउसकीपर का कत्ल नहीं किया है । मोहिनी की बाबत ऐसा सोचना भी जहालत और कमअक्ली होगी ।”
“आप” - सब-इंस्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला - “ये सोच-समझ के ऐसा कह रही हैं कि हाउसकीपर वसुन्धरा की लाश अभी भी ऊपर मोहिनी के कमरे में पड़ी है और मोहिनी फरार है ।”
“वो फरार नहीं है ।”
“ओके । वो गायब है ।”
“वो गायब भी नहीं है ।”
“तो क्या हमारे बीच में बैठी हुई है ?”
“वो... वो सिर्फ यहां नहीं है । किसी के किसी एक जगह पर न पाये जाने का मतलब ये नहीं होता कि वो गायब है या... या फरार है । जब वो यहां से गयी थी तब उसे मालूम तक नहीं था कि उसके पीछे यहां क्या हुआ था । उसे नहीं पता था कि यहां कोई कत्ल हो गया था । कसम उठवा लीजिये उसे नहीं पता था । मेरे से बेहतर मोहिनी को कोई नहीं जानता और मैं ये जानती हूं कि वो मुझे धोखा नहीं दे सकती, वो मेरे से झूठ...”
वो ठिठक गयी, वो अपने होंठ काटने लगी ।
“हां हां ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “कहिये । आगे बढिये ।”
जवाब में सुनेत्रा ने यूं होंठ भींचे और यूं उनके आगे अपनी बंद मुट्ठी लगायी जैसे अपनी जुबान दोबारा न खुलने देने का सामान कर रही हो ।
“मैडम !” - सब-इंस्पेक्टर तीखे स्वर में बोला ।
“यस ।” - सुनेत्रा फंसे कण्ठ से बोली ।
“इधर मेरी तरफ देखिये ।”
उसने बड़ी कठिनाई से सब-इंस्पेक्टर की तरफ सिर उठाया ।
“आप मोहिनी से मिली थीं ।”
“नहीं, नहीं !”
“आप न सिर्फ मोहिनी से मिली थीं, आपने उससे बात भी की थी । कबूल कीजिये ।”
जवाब में वो धम्म से वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ गयी । उसने सिर झुका लिया और बार-बार बेचैनी से पहलू बदलने लगी ।
“जवाब दीजिये ।” - सब-इंस्पेक्टर अपने खास पुलसिया अन्दाज से कड़ककर बोला ।
“हां ।” - सुनेत्रा बड़ी मुश्किल से बोल पायी - “मैं मिली थी उससे । हमारे में बातचीत भी हुई थी ।”
“कब ? किस वक्त ?”
“वक्त की मुझे खबर नहीं क्योंकि मैंने घड़ी नहीं देखी थी । लेकिन तब अभी अन्धेरा था और पौ फटने के अभी कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे थे । मेरी एकाएक नींद खुल गयी थी और मोहिनी के बारे में सोचती मैं दोबारा सो नहीं सकी थी । मिस्टर ब्रान्डो ने मोहिनी से हमारी मुलाकात ब्रेकफास्ट पर कराने की बात कही थी और मैं अपने पुराने तजुर्बे से जानती थी कि यहां ब्रेकफास्ट नौ बजे से पहले नहीं होता था । यानी कि मोहिनी से मुलाकात के लिये मुझे नौ बजने का इन्तजार करना पड़ता जो कि उस घड़ी मेरे से नहीं हो रहा था । आखिर वो मेरी इतनी पुरानी फ्रेंड थी । इतना कुछ हम दोनों में कामन था । हम दोस्त ही नहीं, एक तरह से बहनें थीं...”
“आई अन्डरस्टैण्ड । मतलब ये हुआ कि आप तभी उठकर उसके कमरे में चली गयीं जहां कि आपकी उससे मुलाकात हुई ?”
“नहीं, वहां नहीं । उसके कमरे में नहीं । वो... वो मुझे बाल्कनी में सीढियों के दहाने पर मिली थी । मुझे देखकर उसने होंठों पर उंगली रखकर मुझे खामोश रहने को कहा था और नीचे चलने का इशारा किया था । मैं उसके पीछे-पीछे सीढियां उतरी थी और फिर लाउन्ज पार करके पोर्टिको में पहुंच गयी थी जहां कि मेरी उससे बात हुई थी ।”
“वो क्या वाक पर जा रही थी ?”
“नहीं । वाक वाली ड्रैस नहीं थी उसकी । वो तो यहां से पलायन करने की तैयारी में थी ।”
“वो चुपचाप यहां से खिसक रही थी ?” - ब्रान्डो हैरानी से बोला - “बिना किसी से मिले ? बिना अपने बुलबुल ब्रान्डो से मिले ? बिना किसी से राम-सलाम भी किये ?”
“हां । वो कहती थी कि उसने यहां आकर ही गलती की थी । उसे यहां नहीं आना चाहिये था । वो कहती थी कि वो हम लोगों के और मिस्टर ब्रान्डों के रूबरू होने की ताब अपने आप में नहीं ला पा रही थी । वो बहुत जज्बाती हो उठी थी । कहने लगी थी कि यहां आकर सात साल पुरानी यादें यूं तरोताजा होने लगी थीं जैसे वो वारदात अभी कल की बात थी....”
“कौन-सी वारदात ? उसके पति के साथ सात साल पहले की डोना पाला वाल पार्टी में हुआ हादसा ?”
“हां । जिसमें कि उसके पति की जान गयी थी । कहती थी कि सात साल बाद भी वो उस वारदात को भुला नहीं पायी थी । हर वक्त वो हादसा उसे सताता रहता था । उस वक्त भी वो एकाएक फफककर रोने लगी थी और कहने लगी थी कि अपने मौजूदा मनहूस मूड में यहां रुक कर वो पार्टी का मजा खराब नहीं करना चाहती थी । बार-बार कह रही थी कि उसे यहां नहीं आना चाहिये था । और उस घड़ी वो अपनी उसी गलती को सुधार रही थी कि उसका मेरे से सामना हो गया था ।”
“यानी कि वो आपसे मिलकर खुश नहीं थी ?”
“एक तरीके से खुश थी भी, दूसरे तरीके से खुश नहीं भी थी । खुश थी कि कम-से-कम किसी से तो वो यहां मिलकर जा रही थी, नाखुश इसलिये थी कि उसे अपनी अन्दरूनी हालत मेरे सामने बयान कर देनी पड़ी थी ।”
“आई सी ।”
“फिर उसने मुझे बताया कि उसने टैक्सी स्टैण्ड पर फोन करके एक टैक्सी मंगवाई थी जो कि उसे बाहर पब्लिक रोड पर मिलने वाली थी । मैं उस घड़ी नाइटी में थी, मैंने उसे कहा कि मैं पांच मिनट में कपडे़ बदलकर आती हूं और उसकी पायर पर छोड़ने उसके साथ चलती हूं लेकिन उसने मेरी बात ही न सुनी । पहले ही मुझे पोर्टिको में खड़ी छोड़कर वहां से दौड़ चली ।”
“ये नहीं हो सकता कि उसने फोन करके टैक्सी मंगवाई हो ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि इस आइलैंड पर एक ही टैक्सी स्टैण्ड है और उस पर फोन नहीं है । वो टैक्सी स्टैण्ड पायर के बुकिंग आफिस के करीब है और टैक्सी के लिये काल भी बुकिंग आफिस पर आती हैं जिन्हें बुकिंग क्लर्क सुनता है और आगे टैक्सी स्टैण्ड पर मैसेज ट्रांसफर करता है । सात साल बाद जिस लड़की के कदम इस आइलैंड पर पडे़ं हों, उसे इस इन्तजाम की खबर नहीं हो सकती ।”
“मिस्टर पुलिस आफिसर” - ब्रान्डों बोला - “सात साल बाद मोहिनी के कदम मेरी एस्टेट में पडे़ थे, न कि आइलैंड पर । तुम भूल रह हो कि उसने खुद कहा था कि उसको यहां ईस्टएण्ड पर भी किसी से कोई काम था । जरूरी । वक्त खाऊ । लिहाज पिछले सात सालों में पहले कभी एक या एक से ज्यादा बार वो यहां ईस्टएण्ड पर आयी हो सकती है और यूं उसे टैक्सी स्टैण्ड वालों के फोन से ताल्लुक रखते इन्तजाम की वाकफियत हो सकती है ।”
“वो वाकफियत वैसे ही इतनी अहम कहां है ?” - मुकेश बोला - “यहां आटोमैटिक एक्सचेंज तो है नहीं कि जिसमें कि नम्बर डायल करके फोन मिलाया जाता है । यहां तो मैनुअल एक्सचेंज है । मैं अगर फोन उठाकर आपरेटर को बोलूं कि मुझे एक टैक्सी की जरूरत थी तो क्या मुझे वो बताने की जगह कि टैक्सी स्टैण्ड पर टेलीफोन कनैक्शन नहीं था, वो मुझे सहज ही पायर के बुकिंग आफिस की लाइन पर नहीं लगा देगी जहां कि बकौल आपके, टैक्सी के लिये मैसेज रिसीव किये जाते हैं ?”
“सो, देअर ।” - ब्रान्डो विजेता के से स्वर में बोला ।
सब इंस्पेक्टर के चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव आये लेकिन वो मुंह से कुछ न बोला ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“आपने” - फिर सब-इंस्पेक्टर इलजाम लगाती आवाज में सुनेत्रा से सम्बोधित हुआ - “ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?”
“माई हनी चाइल्ड ।” - ब्रान्डो आहत भाव से बोला - “इस बात पर तो मेरा भी गिला रिकार्ड कर लो । तुमने ये बात हम सबको क्यों न बताई ? और तो और तब भी न बताई जब कि हम ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठे मोहिनी के वहां पहुंचने का इन्तजार कर रहे थे और सिर्फ तुम्हें मालूम था कि वो तो कब भी यहां से जा चुकी थी ।”
“आई एम सारी, डार्लिंग ।” - सुनेत्रा रुआंसे स्वर में बोली - “लेकिन मैं क्या करती ? मोहिनी ने मेरे से कसम उठवाकर वादा लिया था कि इस बाबत मैं तुम्हें कुछ न बताऊं । वो कहती थी कि अगर तुम्हें पता लग जाता कि वो चोरों की तरह यहां से खिसक रही थी तो तुम उसके पीछे दौड़ पड़ते और उसे जबरन वापिस लिवा लाते ।”
“लेकिन आप तो” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “ये जान चुकने के बाद भी कि हाउसकीपर का कत्ल हो गया था, इस बाबत खामोश रहीं ? क्यों खामोश रहीं ? इसलिये खामोश रहीं क्योंकि आप जानती थीं कि कत्ल मोहिनी ने किया था ?”
“नहीं ।” - सुनेत्रा तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली ।
“और वो इसीलिये चोरों की तरह यहां से खिसक रही थी क्योंकि उसने कत्ल किया था ?”
“हरगिज नहीं ।”
“आप खामोश रहकर उसे चुपचाप, सुरक्षित यहां से खिसक जाने का मौका दे रही थीं ।”
“मैंने उसे चुपचाप यहां से चले जाने दिया था क्योंकि वो ही ऐसा चाहती थी, क्योंकि अपनी बहन जैसी सहेली की बात रखना मेरा फर्ज था । इसलिये नहीं क्योंकि उसने कत्ल किया था और वो मौकायवारदात से खिसक रही थी ।”
“खिसक तो वो रही थी ।” - सब-इंस्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
“हम लोगों से बचने के लिये, न कि कत्ल की जिम्मेदारी से बचने के लिये । आप खुद कबूल करते हैं कि उसके पास कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं था उसके और हाउसकीपर के बीच में कोई दूर-दराज का भी सम्बन्ध मुमकिन नहीं था ।”
“खिसक तो वो रही थी ।” - सब-इंस्पेक्टर ने फिर दोहराया ।
इस बार सुनेत्रा सकपकायी, उसने उलझनपूर्ण भाव से सब-इंस्पेक्टर की तरफ देखा और फिर बोली - “क्या मतलब है आपका ? कोई खास ही मतलब मालूम होता है ।”
“आपने कहा कि जब आप मोहिनी से मिली थीं, उस वक्त अभी भी अन्धेरा था और अभी पौ फटने के भी आसार नहीं दिखाई दे रहे थे । आप बता सकती हैं किे आखिरकार पौ कब फटी थी ?”
“मेरे अपने कमरे में वापिस लौट आने के थोड़ी देर बाद ।”
“बहरहाल कत्ल सवेरा होने से पहले हुआ था और जब आप पोर्टिको में खड़ी मोहिनी से बात कर रही थीं, तब तक कत्ल हो चुका था । ठीक ?”
“आप ऐसा इसलिेये कह रहे हैं क्योंकि आप मोहिनी को कातिल मानकर चल रहे हैं ।”
“थोड़ी देर के लिये आप भी ऐसा ही मानकर चलिये और मुझे ये बताइये कि जब मोहिनी आपको मिली थी, उस वक्त क्या वो भयभीत दिखाई देती थी ?”
“भयभीत ?”
“खौफजदा ! आतंकित !”
“किस बात से ?”
“किसी भी बात से । देखिये मुझे ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती जिस के तहत मोहिनी ने - या आप में से किसी ने - हाउसकीपर का कत्ल किया हो । न ही हाउसकीपर में और मोहिनी में - या आप लोगों में - कोई आपसी रिश्ता, कोई लिंक दिखाई देता है । लेकिन आप तमाम युवतियों का, जो कि मैंने सुना है कि ब्रान्डो की बुलबलों के नाम से जानी जाती हैं और भूतपूर्व बुलबुल मोहिनी से - भले ही वो आप लोगों में शामिल होने के लिये सात साल के लम्बे वक्फे के बाद यहीं आयी थी - बड़ा स्प्ष्ट लिंक स्थापित है । अब इस बात में ये अहम बात जोड़िये कि हाउसकीपर का कत्ल मोहिनी के कमरे में हुआ था । ओके ?”
कोई कुछ न बोला । अलबत्ता सबके चेहरे पर असमंजस के भाव थे ।
“बाई दि वे” - सब-इंस्पेक्टर मेज पर फैली तस्वीरों पर निगाह डालता हुआ बोला - “कद कितना था मोहिनी का ?”
“ऐन मेरे जितना ।” - शशिबाला निसंकोच बोली - “पांच फुच सात इंच ।”
“यानी कि तकरीबन उतना ही जितना कि हाउसकीपर का है । वो मोटी होने के कारण लम्बी कदरन कम लगती है लेकिन पंचनामे के लिए मैंने फीते से उसका कद नापा था जो कि पांच फुट साढे आठ इंच था ।”
“तो ?” - ब्रान्डो उलझनपूर्ण स्वर में बोला - “तो क्या हुआ ?”
“आप कहीं ये तो नहीं कहना चाहते” - मुकेश बोला - “कि मोहिनी के धोखे में हाउसकीपर का कत्ल हो गया था ?”
“मैं ऐसी ही किसी सम्भावना पर विचार कर रहा हूं । दोनों की हाइट तकरीबन बराबर थी । अन्धेरा हो तो हाइट के सिवाय और क्या दिखता है ?”
“लेकिन” - ब्रान्डो बोला - “मोहिनी के कमरे में वसुन्धरा का क्या काम ?”
“होगा कोई क्राम ।” - सब-इंस्पेक्टर लापरवाही से बोला ।
“होगा तो मोहिनी की मौजूदगी में होगा । कातिल ने एक गवाह की मौजूदगी में कत्ल करने का हौसला कैसे किया होगा ?”
“उस एक नाजुक घड़ी में मोहिनी वहां मौजूद नहीं रही होगी ।”
“वहां मौजूद नहीं रही होगी ? तो कहां चली गयी होगी ?”
“पता नहीं । लेकिन ये एक सम्भावना है जो कि समझ में आती है । बशर्ते कि बहस के तौर पर मैं” - उसने सुनेत्रा की और इशारा किया - “मैडम की ये जिद मान हूं कि मोहिनी कातिल नहीं हो सकती । अब देखिये उससे आगे बात कैसे बढती है । मोहिनी भला हाउसकीपर का कत्ल क्यों करेगी ? कोई प्रत्यक्ष वजह सामने नहीं । उसने ऐसा किया तो यहां पहुंचकर अपने कमरे में क्यों किया जब कि रात के ढाई और तीन बजे के बीच वो पायर से लेकर यहां तक के सुनसान रास्ते पर हाउसकीपर के साथ अकेली थी ?”
“दैट्स वैरी गुट रीजनिंग ।” - ब्रान्डो प्रभावित स्वर में बोला ।
“इसका मतलब ये है कि मोहिनी कल यहां से इसलिये चुपचाप खिसक रही थी क्योंकि यहां उसे अपनी जान का खतरा दिखाई दे रहा था । कोई बड़ी बात नहीं कि उसने अपने धोखे में हाउसकीपर का कत्ल होता देखा हो और तब फौरन, चुपचाप, चोरों की तरह, जान लेकर भाग निकलने में ही उसे अपनी भलाई दिखाई दो हो ।”
“ओह !” - सुनेत्रा बोली - “तो इसलिये आप मेरे से पूछ रहे थे कि क्या मोहिनी मुझे खौफजदा दिखाई दी थी ?”
“जी हां । जिसे अपने सिर पर मौत मंडराती दिखाई दे रही हो, वो खौफजदा तो होगा ही ।”
“अगर” - ब्रान्डा बोला - “ऐसा कुछ था तो उसने इसका जिक्र सुनेत्रा से तो किया होता जो कि उसकी बैस्ट फ्रैंड थी ?”
“जब दिलोदिमाग पर दहशत सवार हो तो हर कोई नाकाबिले एतबार लगने लगता है ।”
“लेकिन फिर भी...”
“फिर भी ये कि हो सकता है कि मोहिनी को लगता हो कि उसको अपनी बैस्ट फ्रैंड, अपनी बहनों जैसी सहेली सुनेत्रा से हो खतरा था ।”
“क्या कहने ?” - सुनेत्रा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “फिर तो मैंने बहुत सुनहरा मौका खो दिया, एक बार चूक जाने के बात कामयाबी से मोहिनी का कत्ल करने का । या शायद आप भूल गये हैं कि यहां जब हर कोई घोड़े बेचकर सोया पड़ा था, तब मैं नीचे पोर्टिको में मोहिनी के साथ अकेली थी ।
“मैं आप पर इलजाम नहीं लगा रहा, मैडम । मैं किसी पर इलजाम नहीं लगा रहा । मैं तो महज मोहिनी की एक खास वक्त की खास मनोवृति को हाइलाइट करने की कोशिश कर रहा था ।”
सुनेत्रा खामोश रही ।
“बहरहाल तुझे यकीन है कि मोहिनी अभी आइलैंड पर ही कहीं है । और आप सब लोग भी अभी आइलैंड पर ही हैं और, माइन्ड इट, जब तक मैं यहां से जाने की इजाजत न दूं, आइलैंड पर ही रहेंगे । अब देखते हैं कि मोहिनी तक पहले पुलिस पहुंचती है या आपमें से कोई ।”
सब भौचक्के-से सब-इंस्पेक्टर का मुंह देखने लगे जो कि साफ-साफ ये इलजाम उनके बीच उछाल रहा था कि कातिल उन्हीं में सो कोई था ।
“वाट नानसेंस !” - फिर ब्रान्डो भड़ककर बोला - “हममें से कोई कातिल कैसे हो सकता है ! हम सब तो उसको दिलोजान से चाहते हैं । हम तो उसका बाल भी बांका नहीं होने दे सकते । समझे, मिस्टर पुलिस आफिसर !”
सब-इंस्पेक्टर केवल मुस्कराया ।
“ये तस्वीरें” - फिर वो मेज पर फैली तस्वीरें बटोरता हुआ बोला - “फिलहाल मैं अपने पास रखना चाहता हूं । मिस्टर ब्रान्डो, आपको कोई एतराज ?”
ब्रान्डो ने इनकार में सिर हिलाया ।
“मैडम” - सब-इंस्पेक्टर सुनेत्रा से सम्बोधित हुआ - “आपने ये तस्वीरें देखी हैं ?”
“हां ।” - सुनेत्रा बोली ।
“अच्छी तरह से ?”
“हां ।”
“चाहें तो एक बार फिर देख लें ?”
“जरूरत नहीं ।”
“गुड । यहां आप ही एक इकलौती हस्ती है जिसके साथ सात साल बाद मोहिनी पाटिल उर्फ नाडकर्णी के रूबरू होने का इत्तफाक हुआ था । मेरा आपसे जो सवाल है वो ये है कि क्या आज भी मोहिनी देखने में अपनी इन तस्वीरों जैसी ही लगती है ?”
“हां । हूबहू । कोई तब्दीली नहीं आयी उसमें । गुजश्ता सात सालों में उसके लिये तो जैसे वक्त ठहर गया था । फिर भी कोई तब्दीली आयी थी तो ये कि वो पहले से ज्यादा हसीन, ज्यादा दिलकश लगने लगी थी ।”
“पोशाक क्या पहने थी वो ?”
सुनेत्रा सकपकाई ।
“पोशाक क्या पहने थी वो ?” - सब-इंस्पेक्टर ने अपना प्रश्न दोहराया ।
“पोशाक ?”
“लिबास ! ड्रैस !”
“मालूम नहीं ।”
“मालूम नहीं ! क्यों मालूम नहीं ?”
“क्योंकि... क्योंकि वो एक लम्बा कोट पहने थी जो कि उसके गले से लेकर घुटनों से नीचे तक आता था । कोट के तमाम बटन बन्द थे इसलिये ये दिखाई नहीं देता था कि वो नीचे क्या पहने थी ।”
“आई सी । कोट कैसा था ?”
“सफेद फर का था वो कोट । बड़ा कीमती मालूम होता था ।”
“ये तो कोई उसकी पहचान का पुख्ता जरिया नहीं । यहां ठण्ड रात को ही होती है जब कि आउटडोर्स में कोट पहनने की जरूरत महसूस होती है । दिन में कोट पहन के रखने की जरूरत नहीं होती - खासतौर से नौजवान लोगों को । उसके कोट उतार लेने के बाद सकी पहचान का ये जरिया तो गया ।”
“जाहिर है ?”
“वो खाली हाथ थी ?”
“हां ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? अपना कोई सामना पीछे तो छोड़ नहीं गयी वो । रात गुजारने आयी लड़की खाली हाथ कैसे हो सकती थी ?”
“मेरा मतलब ये था कि उसके पास कोई भारी सामान - जैसे कोई सूटकेस या ट्रंक वगैरह - नहीं था । बस एक छोटा-सा एयरबैग जैसा बैग उठाये थी वो जिसमें कि ओवरनाइट स्टे के लिये साजो-सामान और कपड़े होंगे ।”
“एयरबैग कैसा था ?”
“वैसा ही जैसा बड़ी एयरलाइन्स अपने यात्रियों को उपहारस्वरूप देती हैं ।”
“फिर तो उस पर एयरलाइन्स का नाम होगा !”
“होगा लेकिन मुझे दिखाई नहीं दिया था । उस घड़ी मेरी तवज्जो मोहिनी की तरफ थी, न कि उसके साजो-सामान की तरफ । सच पूछें तो मुझे तो कोट भी इसलिये याद रह गया है क्योंकि वो बहुत शानदार था ।”
“हूं । आपको ख्याल से कत्ल किस वक्त हुआ होगा ?”
“जाहिर है कि मोहिनी के यहां से जाने से पहले किसी वक्त ?”
“यानी कि पांच बजे से पहले किसी वक्त । भले ही वो खुद कत्ल करके यहां से खिसकी जा रही हो या कत्ल के बाद अपनी जान को खतरा पाकर चुपचाप यहां से कूच कर रही हो । रात तीन बजे वो वसुन्धरा के साथ वहां पहुंची थी । कुछ वक्त यहां पहुंचने के बाद उसने कमरे में सैटल होने में भी लगाया होगा । इस लिहाज से मेरा सेफ अन्दाजा ये है कि कत्ल रात साढे तीन और सुबह पांच बजे के बीच के वक्फे में हुआ था । इस वक्फे को और कम करने में पोस्ट-मार्टम की रिपोर्ट सहायक सिद्ध हो सकती है जो कि हमें हासिल होते-होते होगी क्योंकि ऐसे कामों का यहां आइलैंड पर कोई इन्तजाम नहीं । बैलेस्टिक्स का मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं - सच पूछिये तो कत्ल के केस की तफ्तीश की ही मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं, क्योंकि इस शान्त आइलैंड पर कत्ल कोई रोजमर्रा की बात नहीं । पिछले साल यहां चर्चिल अलेमाओ नाम के एक साहब के बंगले पर उग्रवादियों के हमले जैसी एक वारदात जरूर हुई थी जिसमें कि काफी खून-खराबा मचा था, उसके अलावा कम-से-कम मेरी यहां पोस्टिंग के दौरान ऐसी कोई कत्ल ही वारदात यहां हुई नहीं । बहरहाल अब ये गले पड़ा ढोल बजाना तो पड़ेगा ही ।” - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “कत्ल का जो वक्फा मैंने मुकर्रर किया, उसमें आप लोग कहां थे ?”
“भई, वहीं जहां हम लोगों को होना चाहिये था ।” - ब्रान्डो अप्रसन्न स्वर में बोला - “अपने-अपने बिस्तर पर । नींद के हवाले ।”
“आप सबकी तरफ से सामूहिक बयान दे रहे हैं ?”
“वाट द हैल ! अरे, ये कोई सवाल है ?”
“क्यों नहीं है ?”
“क्यों नहीं है ? तुम्हें नहीं पता क्यों नहीं है ? रात को क्या कोई अपने साथ गवाह लेकर सोता है ? हममें से किसी को क्या मालूम था कि वहां कत्ल होने वाला था जो कि कोर्ई अपने लिये एलीबाई का एडवांस इन्तजाम करके रखता ।”
“एक जने को तो यकीनन मालूम था ।”
“किसको ?”
“कातिल को ।”
“फिर पहुंच गये उसी पुरानी जगह पर ! अरे, मैं बोला न कि हममें कोई कातिल नहीं हो सकता ।”
“कातिल बाहर से आया भी नहीं हो सकता ।”
“ये बात” - मुकेश बोला - “आप उस शख्स को जेहन में रख के कह रहे हैं जिसने कल रात पोर्टिको में हाउसकीपर पर हमला किया था ?”
“हमला नहीं किया था, सिर्फ धक्का दिया था ।”
“धक्का भी हमला ही होता है ।”
“उसने जो किया था, पकड़े जाने से बचने के लिये किया था ।”
“यानी कि वो ही शख्स फिर लौट आया नहीं हो सकता ? हत्या करने के इरादे से ?”
“नहीं । हम पहले ही कह चुक हैं कि वो कोई लोकल छोकरा था जो कि यहां मौजूद सुन्दरियों को ताकने-झांकने की नीयत से एस्टेट में घुस आया था । कोई पीपिंग टॉम था वो । उसको, यहां से कतई नावाकिफ शख्स को, ये खबर नहीं हो सकती थी कि इतने बड़े मैंशन में मोहिनी कहां उपलब्ध थी !”
“कत्ल” - ब्रान्डो बोला - “मोहिनी का नहीं हुआ ।”
“सर, लाइक दैट वुई विल बी बैक टु स्कवायर वन । जब हम पहले से ही इस सम्भावना पर विचार कर रहे हैं कि हाउसकीपर का कत्ल मोहिनी के धोखे में हुआ हो सकता है तो...”
“ओके । ओके ।”
सब-इंस्पेक्टर की निगाह पैन होती हुई उपस्थित लोगों पर फिरी और फिर वो बोला - “तो मैं मिस्टर ब्रान्डो के जवाब को ही आप लोगों का भी जवाब समझूं ?”
तमाम सिर सहमति में हिले ।
“आप लोगों में कोई भी ऐसा नहीं जिसकी रात साढे तीन से सुबह पांच बजे तक की कोई मूवमेंट जिक्र के काबिल हो ?”
किसी ने जवाब न दिया ।
“किसी ने गोली चलने की आवाज सुनी ?”
तमाम सिर इनकार में हिले ।
“रात के सन्नाटे में चली गोली की आवाज तो इमारत में काफी जोर से गूंजी होगी !”
“इमारत में गूंजी होगी ।” - ब्राडो बोला - “लेकिन बन्द दरवाजों को न भेद पायी होगी । ऊपर से रात एक बजे तक यहां ड्रिंक्स का दौर चल रहा था जिसके बाद, जाहिर है कि, हर कोई घोड़े बेचकर सोया होगा । ऐसे माहौल में तो यहां तोप ही चलती तो शायद किसी को सुनाई देती ।”
“ऊपर से” - मुकेश बोला - “नींद से एकाएक जागे ऐसे किसी व्यक्ति को क्या सूझ जाता कि वो गोली की आवाज थी ?”
“यानी कि किसी ने गोली की आवाज सुनी थी लेकिन उसे ये नहीं सूझा था कि वो गोली की आवाज थी ?”
“मैंने ये कब कहा !” - मुकेश हड़बड़ाकर बोला - “मैंने तो महज एक मिसाल दी थी ।”
“मिसाल दी थी ! हूं । तो गोली की आवाज किसी ने नहीं सुनी थी ?”
तमाम सिर फिर इनकार में हिले ।
“अभी मैंने कहा था कि बैलेस्टिक्स का मुझे कोई खास तजुर्बा नहीं लेकिन इतना मैं फिर भी कह सकता हूं कि कत्ल किसी हैण्ड गन से - किसी पिस्तौल से या रिवॉल्वर से - हुआ था । लेकिन आलायकत्ल, वो गन, मौकायवारदात से बरामद नहीं हुई है । जिसका मतलब ये है कि घातक वार करने के बाद हत्यारा अपनी गन अपने साथ ले गया था ।”
“जोकि” - ब्राडो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “आप समझते हैं कि वो अभी भी अपने पास ही रखे होगा ?”
“लाइसेंसशुदा हथियार को और उसके मालिक को ट्रेस करना आसान होता है । लाइसेंसशुदा हथियार उसके मालिक की जिम्मेदारी होता है जिससे वो आसानी से किनारा नहीं कर सकता । मांगे जाने पर उसे वो हथियार इन्स्पेक्शन के लिये पेश करना पड़ सकता है । न पेश कर पाने पर और भी सख्त जवाबदेही से दो-चार होना पड़ सकता है । यानी कि जहां एक कत्ल का दख्ल हो, वहां ऐसा जवाब कि ‘मेरी पिस्तौल यहीं थी, पता नहीं कहां चली गयी’ या ‘किसी ने इसे इस्तेमाल करके वापिस रख दिया होगा’ जैसा जवाब नहीं चल सकता । अब मेरा सवाल है कि क्या आपमें से किसी के पास कोई हथियार है ?”
तमाम बुलबुलों का और मुकेश का सिर इनकार में हिला ।
सब-इन्स्पेक्टर ने ब्रान्डो की तरफ देखा ।
“माई डियर, सर ।” - ब्रान्डो हड़बड़ाया-सा बोला - “मेरे पास तो हथियार नहीं है लेकिन हथियारों का यहां क्या घाटा है ?”
“क्या मतलब ?”
“यहां लायब्रेरी में बाकायदा शस्त्रागार है । तोप को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा फायरआर्म होगा जो कि वहां नहीं है ! लायब्रेरी की एक दीवार दायें से बायें तक और ऊपर से नीचे तक रायफलों, बन्दूकों, रिवॉल्वरों, पिस्तौलों वगैरह से ही भरी हुई है । तुम्हारे खास इस बाबत सवाल पूछने से पहले मुझे तो इस बात का ख्याल ही नहीं आया था ।”
“वो सब हथियार लाइसेंसशुदा है ?”
“हां ।”
“सबका आपके पास रिकार्ड है ?”
“हां । बिल्कुल । लायब्रेरी में बाकायदा एक फायरआर्म्स रजिस्टर मौजूद है ।”
“वारदात के बाद आपने जाकर अपने फायर आर्म्सकलैक्शन का मुआयना किया ?”
“नहीं । सूझा तक नहीं मुझे ऐसा करना ।”
“जब कि हो सकता है कि कातिल ने आलायकत्ल आपके कलैक्शन से ही मुहैया किया हो ।”
ब्रान्डो खामोश रहा लेकिन अब उसके चेहरे पर परेशानी के भाव दिखाई देने लगे थे ।
“आप फायरआर्म्स को ताले में नहीं रखते ?”
“नहीं ।”
“लायब्रेरी की तो ताला लगता होगा ?”
“यहां किसी चीज को ताला नहीं लगा । ऐसी पाबन्दियों को मैं मेहमानों की खिदमत के खिलाफ मानता हूं और उनकी हत्तक मानता हूं । यहां किसी मेहमान का शूटिंग का मूड बन जाये तो क्या वो रायफल और कारतूत मुहैया करने के लिये मेरे से इजाजत मांगेगा ? मेरे से किसी ताले की चाबी मांगेगा ? ऐसा नहीं चल सकता । यहां जो ब्रान्डो का है, वो उसके मेहमान का है इसलिये...”
“ओके । ओके । लेकिन वहां से कोई हथियार चोरी गया पाया गया तो आप तब भी वहां कहीं ताला लगायेंगे या नहीं ?”
“मैं तो जरूरत नहीं समझता । लेकिन तुम कहोगे तो लगा दूंगा ।”
“हां । जरूर ।”
“लेकिन तभी जब कि वहां से कोई हथियार गायब पाया गया ।”
“न गायब पाया गया तब भी ।” - सब-इंस्पेक्टर सख्ती से बोला - “मिस्टर ब्रान्डो, फायरआर्म्स अन्डर लॉक एण्ड की ही होने चाहिये । उन तक हर किसी की पहुंच नहीं होनी चाहिये ! यू आर ए रिस्पांसिबल सिटिजन । यू शुड नो दिस । नो ?”
ब्रान्डो से जवाब देते न बना ।
तभी एक हवलदार ने वहां कदम रखा ।
“सर” - वो सब-इंस्पेक्टर से बोला - “पणजी से फोटोग्राफर और बैलेस्टिक एक्सपर्ट आ गये हैं ।”
“गुड ।” - सब-इंस्पेक्टर उठता हुआ बोला - “मिस्टर ब्रान्डो, मैं ऊपर मौकायवारदात पर महकमे के लोगों की हाजिरी भरने जा रहा हूं । आप तब तक बरायमेहरबानी अपने फायरआर्म्स कलैक्शन को चौकस कर लीजिये । अगर आपको वहां कोई घट-बढ मिले तो याद रखियेगा कि आपने फौरन मुझे उसकी खबर करनी है ।”
ब्रान्डो ने सहमति में सिर हिलाया ।
***
जैसी बादशाही ब्रान्डो की एस्टेट की हर चीज थी, वैसी ही वहां की लायब्रेरी और उसका मिनी शस्त्रागार निकला जिसकी बाबत ब्रान्डो की खुद नहीं मालूम था कि वहां कुल जमा कितने हथियार थे । उसकी दरख्वास्त पर मुकेश उसके साथ लायब्रेरी में गया था जहां कि उन दोनों ने मिलकर हथियारों का जायजा लिया था । मुकेश हथियारों पर से उनके सीरियल नम्बर पढकर बोलता रहा था और ब्रान्डो उन्हें फायरआर्म्स रजिस्टर में टिक करता रहा था । नतीजतन एक हथियार कम निकला था ।
एक अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर वहां से गायब पायी गयी थी ।
ब्रान्डो उस खोज से बहुत घबराया था । तब उसने लायब्रेरी के दरवाजे पर एक मजबूत ताला जड़ दिया था और चाबी सम्भालकर अपने पास रख ली थी ।
शाम चार बजे चाय पर सब लोग दोबारा इकट्टे हुए ।
तब तक पुलिस का फोटोग्राफर और बैलेस्टिक एक्सपर्ट वहां से रुख्सत हो चुके थे ।
“मिस्टर ब्रान्डो” - तब सब-इंस्पेक्टर बोला - “आई हैव ए प्रॉब्लम हेयर ।”
“क्या ?” - ब्रान्डो सशंक भाव से बोला ।
“पुलिस का डाक्टर पणजी से आज यहां नहीं आ सकता । एम्बूलैंस भी कल सुबह से पहले उपलब्ध नहीं । इसलिये पोस्टमार्टम के लिये लाश को कल सुबह से पहले पणजी नहीं ले जाया जा सकता ।”
“इसका क्या मतलब हुआ ?” - ब्रान्डो हड़बड़ाकर बोला - “क्या लाश ऊपर मोहिनी के कमरे में ही पड़ी रहेगी ?”
“मजबूरी है, जनाब ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ! बंगले में एक लाश की मौजूदगी में मेरे मेहमान कैसे कम्फर्टेबल महसूस करेंगे ? नहीं-नहीं । आप लाश हटवाइये यहां से ।”
“सारी । लाश पुलिस के डाक्टर की देखरेख में ही हटवाई जा सकती है ।”
“देखरेख वो कहीं और कर ले । आप लाश को अपनी चौकी पर ले जाइये ।”
“वहां जगह नहीं है लाश रखने के लिये ।”
“मिस्टर पुलिस आफिसर, मैं हरगिज बर्दाश्त नहीं कर सकता कि रात-भर लाश मेरे बंगले में पड़ी रहे ।”
“शायद आपके मेहमानों को एतराज न हो !”
“मुझे एतराज है । आई कैन नाट स्लीप विद ए कार्प्स इन माई नेबरहुड ।”
“कल भी तो सोये थे !”
“कल मुझे लाश की खबर नहीं थी ।”
“लेकिन...”
“नो, सर । लाश यहां नहीं रहेगी ।”
“आपकी इतनी बड़ी एस्टेट है, आप कोई और जगह सुझाइये जहां लाश की ओवरनाइट मौजूदगी से आपको एतराज न हो ।”
“ग्रीन हाउस ।”
“ये क्या जगह हुई ?”
“यहां से काफी परे गार्डन में एक काटेज है जो ग्रीन हाउस के नाम से जाना जाता है ।”
“ठीक है । जाने से पहले मैं लाश को वहां शिफ्ट करा दूंगा और रात-भर के लिये वहां एक हवलदार भी तैनात कर दूंगा । ओके ?”
ब्रान्डो ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“अब बोलिये, फायरआर्म्स की आपकी पड़ताल का क्या नतीजा निकला ?”
तब मुरझाई सूरत के साथ ब्रान्डो ने लायब्रेरी में से एक अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर के गायब होने की घोषणा की ।
“हूं ।” - सब-इंस्पेक्टर गम्भीरता से बोला - “मोहिनी आज से पहले यहां कब आयी थी ?”
“आठ साल पहले ।” - ब्रान्डो बोला - “जबकि इस किस्म की पहली पार्टी यहां हुई थी ।”
“मैंशन में आपके शस्त्रागार का अस्तित्व तब भी था ?”
“हां ।”
“यानी कि मोहिनी को खबर थी कि यहां हथियार उपलब्ध था और कहां उपलब्ध था ?”
“वो तो ठीक है लेकिन ये क्या कोई मानने की बात है कि रात तीन बजे यहां पहुंचने के बाद अपने कमरे में जाकर रैस्ट करने की जगह वो हथियार की टोह में निकल पड़ी हो !”
“हथियार कमरे में किसी और जरिये से पहुंचा हो सकता है ।”
“और जरिया ! और जरिया कौन-सा ?”
“आपकी हाउसकीपर वसुन्धरा । वो इतनी रात गये मोहिनी को लिवा लाने के लिये अकेली पायर पर गयी थी । हो सकता है अपनी हिफाजत के लिये उसने अपने पास किसी हथियार की जरूरत महसूस हो ।”
“हो तो सकता है ।” - ब्रान्डो के मुंह से स्वयमेव निकला ।
“यानी कि जो रिवॉल्वर आपने अपने शस्त्रागार से गायब पायी है, उसे वसुन्धरा अपने साथ लेकर गयी होगी । जब वो मोहिनी के साथ लौटी होगी तो जाहिर है कि वो रिवॉल्वर तब भी उसके पास होगी । अब मिस फौजिया खान का बयान है कि उन्होंने रात तीन बजे के बाद किसी वक्त मोहिनी के कमरे में मोहिनी और वसुन्धरा के बीच तकरार होती सुनी थी । वो तकरार आगे कब तक जारी रही, ये इन्हें खबर नहीं क्योंकि ये कहती हैं कि मोहिनी के उस वक्त के मूड से खौफ खाकर ये उलटे पांव वापिस लौट आयी थीं । लेकिन हकीकतन मोहिनी के बन्द कमरे में तकरार ने कोई खतरनाक रुख अख्तियार कर लिया, नतीजतन हाउसकीपर ने ताव खाकर रिवॉल्वर निकाल ली, रिवॉल्वर देखकर मोहिनी उस पर झपटी, छीना-झपटी में इत्तफाकन रिवॉल्वर चल गयी, गोली हाउसकीपर की छाती में जा लगी, वो मरकर गिर पड़ी, मोहिनी के छक्के छूट गये और फिर वो वहां से भाग खड़ी हुई ।”
“यानी कि” - मुकेश बोला - “हाउसकीपर का कत्ल महज एक हादसा था ?”
“हो सकता है । कत्ल इरादतन किया जाता है तो बचाव की कोई सूरत पहले सोच के रखी जाती है, मसलन कोई ऐसा जुगाड़ किया जाता है कि वो आत्महत्या लगे या बतौर कातिल किसी और की करतूत लगे । कत्ल दुर्घटनावश हुआ इसलिये मोहिनी का माथा फिर गया और वो यहां से भाग खड़ी हुई ।”
“यानी कि” - ब्रान्डो बोला - “अब आप अपनी पहली थ्योरी से किनारा कर रहे हैं कि हाउसकीपर का कत्ल मोहिनी के धोखे में हुआ और मोहिनी अपनी जान को खतरा मानकर यहां से भाग खड़ी हुई ?”
“नहीं । फिलहाल मेरी पसन्दीदा थ्योरी वही है लेकिन पुलिस के लिये हर सम्भावना पर विचार करना जरूरी होता है । ये भी एक सम्भावना है जो अभी मेरे जेहन में आयी है और जिसे मैंने आप लोगों के सामने बयान किया है ।”
“आई सी ।”
“अब” - सब-इंस्पेक्टर गम्भीरता से बोला - “ये स्थापित हो चुका है कि आपकी हाउसकीपर की जान अड़तीस कैलीबर की गोली लगने से ही हुई है । कोई बड़ी बात नहीं कि गोली उसी रिवॉल्वर से चलाई गयी थी जो कि आपके फायरआर्म्स कलैक्शन में से गायब है । ये बात अपने आप में सुबूत है कि कातिल बाहर से नहीं आया था । वो यहीं मौजूद था । लेडीज एण्ड जन्टलमैन, वो रिवॉल्वर, यकीनी तौर पर यहीं से बरामद होगी ।”
“कातिल” - मुकेश बोला - “कत्ल करने के बाद क्या अभी तक उसे अपने पास रखे बैठा होगा ?”
“हो सकता है । कत्ल का तजुर्बा हर किसी को नहीं होता । और नातजुर्बेकार कातिल ऐसी कोई गलती कर सकता है ।”
किसी के चेहरे पर आवश्वासन के भाव नहीं आये ।
“आप लोगों की जानकारी के लिये यहां आसपास के इलाके को रिवॉल्वर की तलाश में इसी घड़ी छाना जा रहा है । रिवॉल्वर मिस्टर ब्रान्डो के प्राइवेट बीच के समुद्र में भी फेंकी गयी होगी तो बरामद हो जायेगी ?”
“इतनी दूर जाने की क्या जरूरत है !” - ब्रान्डो बोला - “जबकि इस काम को अंजाम देने के लिये तो करीब ही एक बड़ी उम्दा जगह है ।”
“कौन-सी ?”
“पिछवाड़े में एक कुआं है जो कि सौ से ज्यादा साल पुराना है और जो कभी इस्तेमाल नहीं होता । सबसे ज्यादा आसानी से तो रिवॉल्वर वहीं फेंकी जा सकती है । मिस्टर पुलिस आफिसर, मेरी राय में आपको सबसे पहले उस कुएं को खंगालना चाहिये ।”
सब-इंस्पेक्टर सोचने लगा ।
“यकीन जानिये, ऐसा करके आप बहुत ढेर सारी वक्तबर्बादी से बच जायेंगे वर्ना सारी एस्टेट की और मेरे प्राइवेट बीच की तलाशी में तो बहुत ज्यादा वक्त लगेगा और आपके कई आदमियों को जानकारी करनी पड़ेगी । आप देख लीजियेगा, रिवॉल्वर उस कुएं से बरामद होगी ।”
“आप बहुत यकीन से कह रहे हैं ऐसा ?”
“बिकाज दिस स्टैण्ड्स टु रीजन । कम-से-कम अगर मैं कातिल होता तो रिवॉल्वर उस कुएं में ही फेंकता ।”
“आप कातिल हैं ?”
“ओह, माई गॉड ! ओह, नो । नैवर । मैंने तो एक मिसाल दी थी !”
“मैं अभी हाजिर हुआ ।” - सब-इंस्पेक्टकर बोला और लम्बे डग भरता हुआ वहां से बाहर निकल गया ।
“आपकी बात” - मुकेश बोला - “जंच गयी मालूम होती है उसे ।”
ब्रान्डो ने बड़े सन्तुष्टिशपूर्ण भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
तभी सुनेत्रा ने अपना चाय का कप खाली किया और ‘एक्सक्यूज मी प्लीज’ बोलकर टेबल पर से उठ गयी ।
किसी ने उससे ये न पूछा कि वो कहां जा रही थी ।
मुकेश ने एक फरमायशी जमहाई ली, फिर वो भी उठ खड़ा हुआ । उसने भी ‘एक्सक्यूज मी’ बोला और लाउन्ज से बाहर की ओर बढ चला ।
आधे रास्ते में उसने एक बार घूमकर पीछे देखा तो पाया टीना उसे अपलक देख रही थी ।
वो पिछवाड़े में पहुंचा ।
वहां थोड़ा-सा ही भटकने के बाद उसने कुआं तलाश कर लिया ।
कोई पुलिस वाला तब तक वहां नहीं पहुंचा था ।
उसने कुएं के भीतर झांका तो पाया कि कुआं इतना गहरा था कि उसके तलहटी का बस बड़ा अस्पष्ट-सा आभास ही मिलता था जबकि सूरज अभी अपनी पश्चिम की यात्रा की ओर अग्रसर होता आसमान में मौजूद था ।
उसे कबूल करना पड़ा कि कोई चीज हमेशा के लिये गायब कर देने के लिये वो कुआं वाकेई बहुत मुनासिब जगह थी ।
वो वापिस लौटा । इस बार इमारत का घेरा काटकर सामने पहुंचने की जगह वो पिछवाड़े से ही, किचन के पहलू से गुजरते रास्ते से भीतर दाखिल हुआ ! किचन में उसे घड़ी कोई नहीं था । उसके साथ जुड़ी पेन्ट्री की खाली थी । पिछवाड़े की सीढियों के नीचे एक छोटा-सा स्टोर था जिसके बन्द दरवाजे के पीछे से उसे हल्की-सी आहट की आवाज सुनायी दी
वो ठिठका । वो कान लगाकर सुनने लगा । सन्नाटा ।
जरूर उसे वहम हुआ था । वो कदम आगे बढाने ही लगा था कि इस बार उसे एक दबी-सी जनाना हंसी सुनायी दी ।
“कौन ही भीतर ?” - वो बन्द दरवाजे से सम्बोधित हुआ ।
खामोशी । उसने आगे बढकर दरवाजे को खोलने की कोशिश की तो पाया कि वो भीतर से बन्द था । उसने उस पर दस्तक दी और फिर अपना सवाल दोहराया ।
दरवाजा धीरे-से खुला और कोई बीसेक साल के एक सुन्दर युवक ने झिझकते हुए बाहर कदम रखा । मुकेश ने देखा उसके बाल बिखरे हुए थे और कमीज के सामने के बटन खुले हुए थे । फिर उसने यूं जल्दी-जल्दी उन्हें बन्द करना शुरु किया जैसे उसे तभी अहसास हुआ हो कि वो खुले थे ।
मुकेश को वसुन्धरा के पिछली रात के आक्रमणकारी का ख्याल आया ।
“कौन हो तुम ?” - वो सख्ती से बोला ।
“रो... रोमियो !” - युवक घबराया-सा बोला ।
“रोमियो कौन ?”
“केयरटेकर का लड़का हूं ।”
“ऐस्टेट में ही रहते हो ?”
“जी हां । काम में पापा का हाथ बंटाता हूं ।”
“यहां क्या कर रहे हो ?”
“कु... कुछ नहीं ।”
“अन्धेरे स्टोर में अन्दर से कुंडी लगाकर घुसे बैठे हो और कहते हो कि कुछ नहीं !”
“सर, सर । वो... वो...”
“एक तरफ हटो ।”
उसे जबरन परे धकेलकर मुकेश ने स्टोर का दरवाजा पूरा खोला और उसके भीतर झांका ।
भीतर कबूतरी की तरह सहमी रोमियो की ही हमउम्र एक लड़की एक पेटी पर बैठी हुई थी ।
“ओह !” - मुकेश बोला - “तो ये बात है ।”
“सर ।” - युवक गिड़गिड़ाता-सा बोला - “मिस्टर ब्रान्डो से न कहियेगा । किसी ने न कहियेगा ।”
“ये कौन है ?”
“माली की लड़की है ।”
“तुम्हारा बाप बेलगाम गया हुआ है न ?”
“जी हां ।”
“उसके पीछे ये गुल खिलाते हो ?”
“सर, माफ कर दीजिये । प्लीज ।”
“मैंशन में एक कत्ल हो गया है । पुलिस आयी हुई है । सबकी जान सांसत में है और तुम यहां रंगरेलियां मना रहे हो !”
“नो, सर । आई मीन यस, सर । आई मीन सारी, सर ।”
“लड़की को खराब करते हो !”
“सर, आई लव हर । शादी बनाना मांगता हूं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“क्रॉस माई हार्ट । एण्ड होप टु डाई ।”
“भाग जाओ ।”
“आप किसी को बोलेंगे तो नहीं, सर !”
“भाग जाओ ।”
“ओह, थैंक्यू, सर । थैंक्यू, सर ।”
वो बाहर को भागा ।
“तुम भी चलो ।” - वो भीतर बैठी लड़की से बोला ।
लड़की वहां से बाहर निकली, भयभीत हिरणी की तरह उसने मुकेश की तरफ देखा और फिर हिरणी की तरह कुलांचें भरती वहां से भाग गयी ।
मुकेश वापिस लाउन्ज की तरफ बढा ।
लाउन्ज में मौजूद हर किसी की निगाहें स्वयंमेव ही उधर उठ गयीं ।
लाउन्ज का नजारा उसने वैसा ही पाया जैसा कि वो उसे छोड़कर गया था । सब-इंस्पेक्टर तब भी वहां नहीं था और सब लोग आपस में बतिया रहे थे । उसे देखकर टीना ने सोफे पर अपने पहलू की खाली जगह थपथपाई ।
मुकेश जाकर उसके पहलू में बैठ गया ।
“कहां गये थे ?” - वो बोली ।
“हवा खाने ।” - वो बोला - “यहां दम घुट रहा था ।”
“अब ठीक है दम ?”
“हां ।”
“शुक्र है वक्त रहते उठ के चले गये वर्ना... हो जाता काम ।”
“वही तो ।”
तभी पोर्टिको में एक सफेद टयोटा कार आकर रुकी । उसमें से एक फैशन माडल्स जैसा खूबसूरत नौजवान बाहर निकला । वो एक सफारी सूट पहने था और आंखों पर काला चश्मा लगाये था ।
“विकी !” - टीना के मुंह से निकला ।
“विकी कौन ?” - मुकेश उत्सुक भाव से बोला ।
“विकास निगम ! सुनेत्रा का हसबेंड ।”
“तुम वाकिफ मालूम होती हो इससे ?”
“मैं क्या, सभी वाकिफ हैं । याद नहीं सुबह ब्रेकफास्ट के दौरान इसको लेकर सुनेत्रा और शशिबाला में कितनी झैं-झैं हुई थी ।”
“ओह ! करता क्या है ये ?”
“कुछ नहीं करता । सुनेत्रा का हसबैंड होना ही उसकी फुल टाइम जॉब है ।”
“मेरे को तो इसके लच्छन प्ले ब्वायज जैसे लगते हैं ।”
“प्ले ब्वाय ही है । सच पूछो तो ये सुनेत्रा का कीमती खिलौना है जिसकी मेनटेनेंस में बेचारी का इतना खर्चा होता है कि जितना कमा ले थोड़ा है ।”
“कार तो बड़ी कीमती है ।”
“वो खुद बड़ा कीमती हैं । ऊपर से लाडला भी । ऐसे बच्चे का खिलौना कीमती नहीं होगा तो क्या होगा !”
“ओह !”
विकास कार से बाहर निकला, बांहें फैलाये भीतर दाखिल हुआ और सब बुलबुलों से गले लग-लग के मिला ।
बुलबुलें किलकारियां मार रही थीं, विकास से चुहलबाजी कर रही थीं और क्षण भर को बिल्कुल भूल गयी मालूम होती थीं कि वहां एक कत्ल होकर हटा था । पुलिस तफ्तीश की वजह से वहां फैली मनहूसियत को हटाने में उसे आदमी की आमद ने जैसे कोई जादूई असर किया था ।
फिर दो ब्रान्डो की तरफ आकर्षित हुआ ।
“विकी, माई ब्वाय ।” - ब्रान्डो बांहें फैलाये उसकी तरफ बढता हुआ बोला - “वैलकम ! वैलकम टु माई हम्बल अबोड ।”
उसने करीब आकर विकी से बगलगीर होते हुए उसकी बायीं बांह थामी तो विकी के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे किसी ने उसे गोली मार दी हो । बन्धनमुक्त होने की कोशिश में उसने इतनी जोर से अपनी बांह को झटका दिया कि ब्रान्डो का सन्तुलन बिगड़ गया और वो गिरता-गिरता बचा ।
“डोंट टच मी ।” - वो बड़े हिंसकभाव से बोला - “हाथ मत लगाओ ।”
“क... क... क्या ?” - हकबकाया-सा ब्रान्डो बड़ी कठिनाई से पाया - “क... क्या... !”
“तुम जानते हो मेरे से हाथापाई बर्दाश्त नहीं होती ।” - फिर जैसे एकाएक वो भड़का था, वैसे ही एकाएक शान्त हो गया । वो जोर से हंसा और फिर ब्रान्डो की छाती को टहोकता हुआ बोला - “सारी, बॉस । बहुत थका हुआ हूं । बहुत हलकान हूं । इसलिये माथा गर्म है ।”
“नैवर माइन्ड ।” - ब्रान्डो अनमने स्वर में बोला ।
“फीमेल हैंडलिंग के लिये बनी मेरी बॉडी, मुझे अफसोस है कि, तुम्हारी मर्दाना जकड़ बर्दाश्त न कर पायी । बॉस, मेरा ये हाल हुआ, किसी बुलबुल का क्या हाल होता होगा !”
ब्रान्डो बेमन से हंसा ।
“अब बोलो” - विकास ने फिर उसकी छाती को टहोका - “कि तुमने मुझे माफ किया ।”
“माई डियर ब्वाय, माफी वाली कोई बात ही नहीं हुई ।”
“फिर भी बोलो माफ किया ।”
“अच्छा, माफ किया ।”
“गॉड ब्लैस यू, बॉस । नाओ आई एम रिलीव्ड ।”
“बहरहाल आमद का शुक्रिया ।”
“सीधा आगरा से आ रहा हूं । कोई उन्नीस घण्टे की ड्राइव नॉन स्टाप । इतना लम्बा और बोर सफर अकेले करना पड़ा । तौबा बुल गयी !”
“आगरा क्या करने गये थे ?” - शशिबाला ने पूछा ।
“टयोटा की डिलीवरी लेने गया था ।” - वो बड़े गर्व से पोर्टिको में खड़ी अपनी कार की तरफ देखता हुआ बोला ।
“ओह ! एकदम नयी मालूम होती है ।”
“नयी तो नहीं है । है तो सैकेण्ड हैण्ड ही । लेकिन ए-वन कन्डीशन में है । बस जरा एयर कन्डीशनर काम नहीं करता जो तक ठीक करवाना पड़ेगा ।”
“करवा लेना । जल्दी क्या है । इधर तो मौसम वैसे ही सुहावना है ।”
“इधर है । रास्ते में नहीं था । आगरा नर्क । ग्वालियर महानर्क । भोपाल नर्क नर्क नर्क । गर्मी ने बर्बाद कर दिया ।”
“अब ठण्डी हवायें खाना और पिछली कसर भी निकाल लेना ।”
“आपकी तारीफ ?”
मुकेश ने अनुभव किया कि सवाल उसकी बाबत था लेकिन किया ब्रान्डो से गया था ।
ब्रान्डो ने मुकेश का उससे परिचय करवाया । उसने उसे वहां हुई वारदात की बाबत भी बताया ।
“ओह !” - विकास संजीदगी से बोला - “ये तो रंग में भंग पड़ने वाली बात हुई ।”
“वहीं तो ।” - ब्रान्डो बोला - “पार्टी का मजा मारा गया ।”
जिसके लिये कि - मुकेश ने बड़े वितृष्णापूर्ण भाव से मन-ही-मन सोचा - बेचारी मरने वाली कसूरवार थी ।
“भई, हमारी बेगम नहीं दिखाई दे रहीं ।” - विकास बोला ।
“अभी तो यहीं थी” - ब्रान्डो बोला - “अभी उठकर गयी है । ऊपर अपने कमरे में होगी ।”
“उसका कमरा कहां है ?”
“आओ मैं बताती हूं ।” - आयशा बोली ।
तत्काल विकास आयशा के साथ हो लिया ।
उसके पीठ फेरते ही ब्रान्डो के चेहरे से फर्जी हंसी गायब हो गयी । वो फिर अप्रसन्न दिखाई देने लगा ।
आलोक ब्रान्डो के करीब पहुंची और बड़े प्यार से उसका कन्धा थपथपाती हुई - “डोंट माइन्ड हिम, हनी । वहशी है साला । बीवी के लाड का बिगड़ा हुआ है ।”
“मूड खराब कर दिया ।” - ब्रान्डो बोला - “कहता है डोंट टच मी । हाथ न लगाओ । जैसे शीशे का बना हुआ हो । जरा-सी ठेस लगने से टूट सकता हो । इतने नखरे तो कोई लड़की नहीं करती ।”
“अब छोड़ो भी । बोला न, पागल है वो ।”
तभी सब-इंस्पेक्टर वहां वापिस लौटा तो उस अप्रिय प्रसंग का पटाक्षेप हुआ । आते ही वो सीधा आलोका के सामने पहुंचा । उसके हाथ में गुलाबी रंग का एक रेशमी रुमाल था जो उसने आलोका की गोद में डाल दिया । तत्काल आलोका यूं चिहकी जैसे वो रुमाल न हो, जीता जागता सांप हो ।
“ये आपका है ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “मुकरने का इरादा हो तो ये ख्याल कर लीजियेगा कि इस पर आपके नाम के प्रथमाक्षर कढे हुए हैं ।”
“इसमें मु... मुकरने की क्या बात है ?” - आलोका फंसे कण्ठ से बोली - “हां, ये रुमाल मेरा है ।”
“आपका है तो आपके पास क्यों नहीं है ?”
“मु... मुझे नहीं मालूम था कि ये मेरे पास नहीं था । आपको कहां से मिला ?”
“वहीं से जहां आपने इसे छोड़ा था ।”
“कहां ?”
“आपको नहीं मालूम ?”
“नहीं ।”
“याद करने की कोशिश कीजिये ।”
“मैं क्या याद करने की कोशिश करूं ! मुझे तो यही मालूम नहीं था कि ये खोया हुआ था ।”
“खोया हुआ था या आप इसे कहीं रख के भूल गयी थीं ।”
“कहां ?”
“मसलन मिस्टर ब्रान्डो की कोन्टेसा में ।”
“कोन्टेसा में ?”
“जहां से कि ये मुझे मिला है । ये स्टियरिंग व्हील के नीचे गाड़ी के फर्श पर पड़ा था ।”
“वहां कैसे पहुंच गया ?”
“आप बताइये ?”
“म... मैं क्या बताऊं ?”
“आप अभी भी अपने इस बयान पर कायम हैं कि रात को ड्रिंक डिनर की पार्टी खत्म होने के वक्त से लेकर सुबह हाउसकीपर की लाश की बरामदी के वक्त तक आपने यहां से बाहर कदम नहीं रखा था ?”
“हां ।”
“पार्टी रात एक बजे खत्म हुई थी जबकि आप सोने के लिये अपने कमरे में चली गयी थीं । ब्रेकफास्ट टेबल पर आप सुबह नौ बजे पहुंची थीं । इस वक्फे के दौरान आप हर घड़ी अपने कमरे में थीं ?”
“हां ।”
“आज सुबह माली ने मिस्टर ब्रान्डो को नयी कोन्टेसा का अगला बम्फर दायीं साइड से पिचका हुआ पाया था । कल शाम को उसने जब जिप्सी को धोया था तो तब बम्फर ठीक था । इसका साफ मतलब ये है कि रात को किसी घड़ी किसी ने वो गाड़ी चलाई थी । गाड़ी में स्टियरिंग के नीचे, ड्राइविंग सीट के सामने आपका रुमाल पड़ा पाया गया है । मैडम, इसका मतलब मैं आपको समझाऊं या आप खुद समझ जायेंगी ?”
आलोका ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“कल रात को” - सब-इंस्पेक्टर अपलक उसे घूरता हुआ बोला - “कोन्टेसा चलाकर कहां गयी थीं आप ?”
“कि... किसी खास जगह नहीं ।” - आलोका बड़ी कठिनाई से कह पायी - “यूं ही जरा ड्राइव के लिये निकल पड़ी थी ।”
“यूं ही ! जरा ड्राइव के लिये ! जिसकी बाबत आप मुझे अब बता रही हैं ।”
“वो-वो मामूली बात थी ।”
“आपने खुद ही फैसला कर लिया कि वो मामूली बात थी ?”
वो खामोश रही । उसने पनाह मांगती निगाहों से ब्रान्डो की तरफ देखा ।
“आपने अपने मेजबान की नयी गाड़ी ठोक दी, आपका फर्ज नहीं बनता था कि लौटकर आप मिस्टर ब्रान्डो को इस बाबत बतातीं ।”
“आई डोंट माइन्ड ।” - ब्रान्डो बोला ।
“वो जुदा मसला है । बात इस वक्त आपकी नहीं, इनकी हो रही है ।”
“मैंने कोई एक्सीडेंट नहीं किया था ।” - आलोका ने आर्तनाद किया - “मुझे तो पता भी नहीं था कि बम्फर पिचक गया था ।”
“आप को ये पता नहीं कि आपसे गाड़ी ठुक गयी थी ?”
“नहीं पता । आप से सुनकर ही मालूम हो रहा है । लेकिन जब जरा-सा बम्फर ही पिचका है तो जाहिर है कि वो किसी मोड़ पर बस कहीं जरा-सी टच ही हुई होगी । इसीलिये मुझे खबर न लगी । खबर लगने लायक ठोकर मैंने मारी होती तो क्या जरा-सा बम्फर ही पिचकता ?”
“आप गयी कहां थी ?”
“कहीं भी नहीं । बस यूं ही जरा ताजा हवा खाने के लिए ड्राइव पर निकल गयी थी । ड्रिंक डिनर जरा हैवी हो गया था, जिसकी वजह से मेरी तबीयत खराब हो रही थी, सिर भारी हो रहा था । ऐसे मौकों पर ताजा हवा लगने से मेरी तबीयत हमेशा सुधर जाती थी इसलिये मैं जीप लेकर ड्राइव पर निकल गयी थी ।”
“बिना किसी को बताये ?”
“हां ।”
“किसी को गाड़ी की जरूरत पड़ सकती थी !”
“गाड़ी की जरूरत सिर्फ हाउसकीपर को थी । पायर पर से मोहिनी को लिवा लाने के लिये । लेकिन मुझे मालूम था कि वो सीडान स्टेशन वैगन लेकर जाने वाली थी । और अभी जिप्सी भी यहां मौजूद थी ।”
“जाने वाली थी ? यानी कि आप उससे पहले ड्राइव पर गयी थीं ?”
“बहुत पहले । तब तो अभी पार्टी जारी थी !”
“कितना अरसा ड्राइव पर रही थीं आप ?”
“यही कोई पन्दरह या बीस मिनट ।”
“खली नहीं किसी को पार्टी से आपकी गैरहाजिरी ?”
“मेरे ख्याल से तो नहीं । मैं किसी को कुछ बोलकर तो गयी नहीं थी और लेडीज का इतना अरसा तो आम टायलेट में लग जाता है । मेकअप सुधारने में, बाल ठीक करने में, ड्रैस ठीक करने में...”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।” - फिर वो बाकी लोगों की तरफ घूमा और बोला - “कल रात पार्टी के दौरान आप लोगों में से किसी की तवज्जो इस तरफ नहीं गयी थी कि ये आप लोगों के बीच में नहीं थी ?”
“नहीं ही गयी थी ।” - आयशा कठिन स्वर में बोली - “मुझे तो याद नहीं कि आलोका कभी पन्दरह-बीस मिनट के लिये हम लोगों के बीच में से उठकर चली गयी थी । लेकिन ऐसा हुआ हो तो सकता है । ये कहती है तो हुआ ही होगा ।”
“कल सब ड्रिंक्स की वजह से हवाई घोड़ों पर सवार थे” - शशिबाला बोली - “कल खुद की खबर रखना मुहाल था, किसी और की खबर क्या रहती !”
“लेकिन” - ब्रान्डो एकाएक बोला - “मुझे याद पड़ रहा है कि आलोका थोड़ी देर के लिये पार्टी छोड़कर गयी थी ।”
“आपने सवाल नहीं किया कि ये कहां जा रही थीं ?”
“नहीं ।”
“इनके लौटने पर भी नहीं पूछा कि ये कहां गयी थीं ?”
“नहीं ।”
“आप भी पार्टी में थे ।” - सब-इंस्पेक्टर मुकेश से सम्बोधित हुआ - “आप क्या कहते हैं ? आपने नोट किया था मैडम का पार्टी छोड़कर जाना और वापिस लौटना ?”
मुकेश कुछ हिचकिचाया, फिर उसने इनकार में सिर हिला दिया ।
“हूं ।” - सब-इंस्पेक्टर फिर आलोका की ओर आकर्षित हुआ - “अब बोलिये गयी कहां थीं आप ?”
“किसी खास जगह नहीं ।” - आलोक नर्वस भाव से बोली - “मैं बस यूं ही मेन रोड पर निकल गयी थी । थोड़ी देर बाद ही मुझे अहसास हुआ था कि मैं ठीक से ड्राइव नहीं कर पा रही थी इसलिये मैं वापिस लौट पड़ी थी । गाड़ी वापिस घुमाने में ही शायद उसका बम्फर किसी चट्टान से टकरा गया था जिसका कि यकीन जानिये तब मुझे अहसास नहीं हुआ था । वापिस आकर मैंने गाड़ी गैरेज में खड़ी की थी और फिर पार्टी में शामिल हो गयी थी । बस, इतनी-सी तो बात थी ।”
“फिर भी आपने इस बाबत मुझे पहले नहीं बताया !”
“इसीलिये नहीं बताया न, क्योंकि ये...”
एकाएक वो बोलते-बोलते चुप हो गयी । सब-इंस्पेक्टर ने नोट किया कि उसकी निगाह उसकी पीठ पीछे कहीं उठी हुई थी ।
“रोशी !” - फिर आलोका के मुंह से निकला और वो सब-इंस्पेक्टर के पीछे उसी क्षण आन खड़े हुए एक व्यक्ति की ओर लपकी ।
रोशन बालपाण्डे ने अपनी खूबसूरत बीवी को अपनी बांहों में भर लिया और फिर आंखें तरेरकर उन लोगों की तरफ देखा जिनकी कि मजाल हुई थी उसकी बीवी को अपसैट करने की ।
***
टीना पिछवाड़े में एक गार्डन चेयर पर बैठी थी जबकि मुकेश यूं ही भटकता-सा उधर पहुंचा ।
उस घड़ी सूरज डूब रहा था और वहां अंधेरा छाने लगा था । नीम अन्धेरे में टीना के अलावा जो पहली चीज उसे दिखाई दी, वो उसके हाथ में थमा गिलास था ।
“कॉफी है ।” - वो बोला ।
“अरे” - मुकेश हकबकाकर बोला - “मैंने कब कहा कुछ और है ।”
“तुमने नहीं कहा । तुम्हारी सूरत ने कहा ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस । कॉफी पियोगे ?”
मुकेश ने सहमति में सिर हिलाया ।
“रोजमेरी !” - उसने उच्च स्वर में कुक को आवाज लगायी - “साहब के लिये भी कॉफी लाना ।”
“यस, मैडम ।” - किचन का खिड़की में से झांकती रोजमेरी बोली ।
“बैठो ।” - टीना बोली ।
“शुक्रिया ।” - मुकेश उसके करीब एक अन्य गार्डन चेयर पर बैठ गया और फिर तनिक झिझकता-सा बोला - “बुरा न मानो तो एक बात पूछूं ?”
“पूछो ।”
“कल रात तुम्हारी मोहिनी से मुलाकात हुई थी ?”
“नहीं तो ।”
“पक्की बात ?”
“हां, पक्की बात । मैं सुनेत्रा जैसी नहीं हूं । वैसे भी मेरे पेट में तो कोई मामूली बात हज्म नहीं होती, ये तो बड़ी अहम बात है जो मैंने उस सब-इंस्पेक्टर को फौरन बतायी होती । अपनी मर्जी से, न कि सुनेत्रा की तरह दबाव में आकर ।”
“मुलाकात की तमन्नाई तो बहुत थीं तुम ?”
“उसमें क्या बड़ी बात है ! हम सब ही मोहिनी से मुलाकात के बहुत तमन्नाई थे । यहां तक कि तुम भी ।”
“तुम्हारी मंशा उससे फौरन मिलने की थी, इसीलिये रात को तुम चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थीं और मेरे पुकारने पर लपककर नीचे लाउन्ज में पहुंच गयी थीं और ड्रिंक की तलब का बहाना करने लगी थीं ।”
“बहाना !” - उसकी भवें उठीं ।
“अपनी असल मंशा छुपाने के लिये क्योंकि तुम्हारी उम्मीद के खिलाफ मैं तुम्हारे रास्ते में जो आ गया था ।”
“लेकिन बहाना ?”
“हां, बहाना । तब तुम नशे में नहीं थीं । तब तुम और विस्की पीने की भी तमन्नाई नहीं थीं । बार पर बोतल और गिलास को तुमने महज मुझे दिखाने के लिये अपने काबू में किया था ।”
“मैं कल रात लाउन्ज में थी ?”
“हां । मोहिनी के यहां पहुंच चुकने के बाद किसी वक्त । अब ये न कहना कि तुम्हें नींद में चलने की बीमारी है और तुम्हें ऐसी किसी बात की खबर ही नहीं ।”
“नींद में चलने की बीमारी मुझे नहीं है लेकिन रात तीन बजे के बाद लाउन्ज में अपनी मौजूदगी की सच में ही खबर नहीं मुझे । कल मैं बहुत ज्यादा पी गयी थी इसलिये...”
“बिल्कुल झूठ । हकीकत ये है कि मोहिनी के आगमन की खबर सुनते ही तुमने ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था । उस घड़ी के बाद से तुमने पीने का महज बहाना किया था, पी नहीं थी । तब विस्की का गिलास जरूर हर घड़ी तुम्हारे हाथ में था लेकिन तुमने कभी उसे खाली नहीं किया था, अलबत्ता उसे अपने होंठों तक ले जाकर चुस्की मारने का बहाना तुम बराबर करती रही थीं । एक बार तो तुम बार पर जाकर खुद अपना जाम तैयार करके उसे मुंह तक लगाये बिना वहां वापिस रखकर चली गयी थीं । मैं खुद गवाह हूं तुम्हारी इस हरकत का ।”
“हो सकता है ।” - वो लापरवाही से बोली - “लेकिन बाद में मैंने अपने कमरे में जाकर भी तो पी थी ।”
“तुम अपने साथ बोतल रखती हो ?”
“साथ रखने की क्या जरूरत है ? ब्रान्डो का माल यहां हर जगह उपलब्ध है । कहो तो यहीं मंगाऊं ? रोजमेरी ही ले आयेगी ।”
मुकेश ने जोर से इनकार में सिर हिलाया ।
“भई, यहां तो स्काच की नदियां बहती हैं । बाथरूम में शावर खोलो तो विस्की निकलती है, सिंक का नलका खोलो तो विस्की निकलती है ।”
“सब बहाना है तुम्हारा । स्टण्ट है । मेरा दावा है कि कल रात मोहिनी की आमद की घोषणा के बाद तुमने ड्रिंक्स से ऐसा हाथ खींचा था कि दोबारा उसके करीब नहीं फटकी थीं । लाउन्ज में तुमने मुझे शराब में शिकरत करने या दफा हो जाने के लिये कहा ही इसलिये था क्योंकि असल में उस घड़ी तुम मुझे वहां से दफा ही करना चाहती थीं... ताकि मैं तुम्हारी मोहिनी से मुलाकात में विघ्न न बन पाता । अब बोलो मोहिनी से मुलाकात हुई थी तुम्हारी ?”
“मुझे याद नहीं कि कल रात एक बार अपने कमरे में पहुंच जाने के बाद मैं वहां से बाहर निकली थी लाउन्ज में गयी तो मैं हो ही नहीं सकती । मैं तो घोड़े बेचकर सोई थी ।”
“यानी कि मैं झूठ बोल रहा हूं ?”
“तुमने सपना देखा होगा या मुझे नहीं, किसी और को देखा होगा । हम सब एक ही जैसी तो लगती हैं । फिर तुम भी तो नींद से जागे होगे ।”
“जागा तो मैं” - उसके मुंह से निकला - “नींद से ही था ।”
“सो देअर यू आर । ऊंघ में तुमने किसी और को टीना समझ लिया था ।”
“मैंने तुम्हें नाम लेकर पुकारा था, तुमने जवाब दिया था...”
“मुझे याद नहीं । मुझे कुछ याद नहीं ।”
तभी रोजमेरी वहां पहुंची ।
“लो” - टीना विषय परिवर्तन की नीयत से बोली - “तुम्हारी कॉफी आ गयी ।”
रोजमेरी ने कॉफी का गिलास मुकेश के सामने टेबल पर रखा ।
“थैंक्यू, रोजमेरी ।” - मुकेश बोला ।
“सर” - रोजमेरी बोली - “जो हाउसकीपर का मर्डर किया, वो पकड़ा जायेंगा न ?”
“जरूर पकड़ा जायेगा । और अपनी करतूत की सख्त सजा पायेगा ।”
“बहुत बुरा हुआ बेचारी के साथ । शी वाज सच ए नाइस वुमन । कैसे कोई उसका मर्डर करना सकता !”
“वो फांसी पर लटकेगा । हाउसकीपर से तुम्हारा मेलजोल कैसा था, रोजमेरी ?”
“ओके था । वो बहुत सीरियस नेचर का था । कभी ज्यास्ती बात करना नहीं मांगता था । खामोश रहता था । कभी कोई पर्सनल बात डिसकस करना नहीं मांगता था ।”
“यानी कि वो अपनी पिछली लाइफ या अपनी फैमिली के बारे में कोई बात नहीं करती थी ?”
“नो । नैवर । मैं एक दो-बार ऐसा सवाल किया, वो जवाब नहीं दिया । सो आई टुक दि हिन्ट । दोबारा नहीं पूछा ।”
“उसकी यहां कोई चिट्ठी-पत्री आती थी ?”
“नो ।”
“वो खुद तो किसी को लिखती होगी ?”
“नैवर । नो लेटर । नो पर्सनल टेलीफोन काल । नो नथिंग । वो बहुत खामोश, बहुत सैल्फकन्टेन्ड होना सकता । ज्यास्ती बात नहीं । मसखरी नहीं । नो नथिंग ।”
“आई सी । बाई दि वे” - मुकेश इस बार तनिक मुस्कराता हुआ बोला - “कल मैं तुम्हारे ब्वाय फ्रेंड से मिला था । बहुत स्मार्ट था । बहुत हैण्डसम था । अलबत्ता थोड़ा कद में मार खा गया था ।”
“मेरा ब्वाय फ्रेड !” - रोजमेरी की भवें उठीं ।
“हां । जो कल रात तुम्हें यहां से लेने आया था । वो बाहर सड़क पर मुझे तुम्हारा इन्तजार करता मिला था ।”
“मेरा ब्वाय फ्रेंड ! वो बोला ऐसा ?”
“हां । ये भी बोला कि जल्दी ही वो तुमने शादी बनाने वाला था ।”
“सर, कोई बंडल मारा । मेरे को तो शादी बनाये नौ साल हो गया ।”
“क्या !”
“मैं तो नौ साल से मैरिड है । दो बाबा लोग भी है ।”
“कमाल है ! कल रात तुम घर कैसे पहुंची थीं ?”
“हाउसकीपर छोड़कर आया । स्टेशन वैगन पर ।”
“तो फिर वो किस फिराक में था जो कहता था कि तुम्हें ले जाने के लिये बाहर मेन रोड पर मौजूद था ?”
“अगर वो रोजमेरी को जानता था” - टीना बोली - “तो रोजमेरी भी उसे जानती हो सकती है । तुम इसको उसका हुलिया बोलो ।”
मुकेश ने बोला ।
रोजमेरी ने इनकार में सिर हिलाया ।
“उसकी गाड़ी !” - एकाएक मुकेश बोला - “वो ऐसी थी कि कहीं भी पहचानी जा सकती थी ।”
“कैसा था गाड़ी ?” - रोजमेरी बोली ।
“खटारा फियेट ! सूरत में एकदम कण्डम । कई रंगों में रंगी हुई । ड्राइविंग साइड का पिछला दरवाजा रस्सी से बंधा था...”
“वो तो मारकस रोमानो का गाड़ी है ।”
“मारकस रोमानो । वो कौन है ?”
“छोकरा है ।”
“छोकरा !”
“अभी स्कूल में पढता है ।”
“लेकिन वो जो अपने आपको तुम्हारा ब्वाय फ्रैंड बता रहा था, वो तो उम्र में मेरे से भी बड़ा लगता था ।”
“मालूम नहीं कौन होयेंगा ।”
“क्या पता” - टीना सस्पेंसभरे स्वर में बोली - “वही मोहिनी का कातिल हो !”
“लेकिन वो था कौन ?” - मुकेश बोला ।
“वो छोकरा - जिसकी कि वो गाड़ी थी, मारकस रोमानो - उसे जानता हो सकता है ।”
“बशर्ते कि उसकी गाड़ी उसने चुराई न हो ।”
“ऐसी गाड़ी कौन चुरायेगा जो दमकल की तरह सारे आइलैंड पर पहचानी जा सकती हो ।”
“ये भी ठीक है । रोजमेरी, ये मारकस रोमानो पाया कहां जाता है ?”
“ईस्टएण्ड पर । अभी उधर किसी बार में बैठ बीयर पीता होयेंगा ।”
“ईस्टएण्ड ।”
***
मुकेश और टीना ब्रान्डो की जीप पर सवार ईस्टएण्ड की ओर जा रहे थे । जीप टीना चला रही थी और उसी ने वो ब्रान्डो से हासिल की थी । ईस्टएण्ड मुकेश के साथ चलने की पेशकश भी उसी ने की थी जो कि मुकेश ने तत्काल स्वीकार कर ली थी, क्योंकि एक तो वो इलाके से वाकिफ नहीं था और दूसरे इतना हसीन साथ छोड़कर अकेले एक अनजानी जगह पर टक्करें मारने का उसका कोई इरादा नहीं था ।
जीप ब्रान्डो की एस्टेट से निकलकर मेन रोड पर पहुंची तो एकाएक उसके सामने एक टैक्सी आ खड़ी हुई जिसमें से गले से कैमरा लटकाये एक युवक बाहर निकला और हाथ हिलाता जीप की ओर लपका ।
“तुम टीना टर्नर हो ।” - वो जीप की ड्राइविंग साइड में पहुंचकर तनिक हांफता हुआ बोला - “मुझे अपनी एक तस्वीर खींच लेने दो ।” - उसकी कैमरे की फ्लैश चमकी - “थैंक्यू ।”
“ये” - माथुर भड़का - “ये क्या बद्तमीजी है ?”
“आपकी तारीफ ?” - युवक मुस्कराता हुआ बोला ।
“ये मिस्टर मुकेश माथुर हैं ।” - टीना बोली - “वकील हैं ।”
“जरूर, मोहिनी के वकील होंगे । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के यहां से । फिर तो” - फ्लैश फिर चमकी - “एक तस्वीर आप दोनों को भी...”
“वाट नानसेंस !”
टीना ने मुकेश का हाथ दबाया और युवक से बोली - “तुम कौन हो ? मुझे कैसे जानते हो ?”
“मैं प्रैस रिपोर्टर हूं । यहां हुए कत्ल की कवरेज के लिये खास बम्बई से आया हूं ।”
“एक मामूली हाउसकीपर के कत्ल...” - मुकेश ने कहना चाहा ।
“जिसका कत्ल हुआ है वो मामूली है” - युवक बोला - “लेकिन जिसके यहां कत्ल हुआ है, वो मामूली नहीं, इसलिये... एक तस्वीर और ।”
“मुझे कैसे जानते हो ?” - टीना ने फिर सवाल किया ।
“बाम्बे !” - वो बत्तीसी निकालता बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “बोरीबन्दर ! सेलर्स क्लब...”
टीना ने एक झटके से जीप आगे बढा दी ।
रिपोर्टर पीछे चिल्लाता ही रह गया ।
कुछ क्षण सफर खामेशी से कटा ।
“ये, ब्रान्डो” - एकाएक मुकेश बोला - “बादशाह ब्रान्डो, तुम लोगों का होस्ट, वाकेई कोई काम-काज नहीं करता ?”
“हनी, ही इज फिल्दी रिच ।” - टीना बोली ।
“फिल्दी रिच भी कामकाज करते हैं । अम्बानी करता है, टाटा करता है, बिरला करता है, डालमिया करता है, मोदी करता है...”
“ब्रान्डो नहीं करता । वो लोग नादान हैं । दौलत के दीवाने हैं । ब्रान्डो ऐसा नहीं है । वो कहते हैं न कि अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम । ब्रान्डो अजगर है । पंछी है ।”
“बिना कुछ डाले निकालते रहने से तो कुबेर का खजाना खाली हो जाता है ।”
“जब होगा, तब देखा जायेगा । अभी तो ऐसा कोई अन्देशा नहीं । अब जब अन्देशा होगा तो सबसे पहले वो यहां की शाहाना पार्टिया ही बन्द करेगा ।”
“ये भी ठीक है । वो देश-विदेश विचरने वाला आदमी है, हो सकता है उसका कोई ऐसा कारोबार हो जिसकी तुम्हें खबर न हो ।”
“अरे, भाई, कारोबार के लिये उसके पास वक्त कहां है ! मौजमेला, तफरीह, पार्टीबाजी, सैर-सपाटा, उसकी फुल टाइम जॉब हैं । उसे तो इन्हीं कामों के लिये टाइम का तोड़ा रहता है । इस मामले में उसे भगवान से खास शिकायत है कि दिन सिर्फ चौबीस घण्टे का बनाया, हफ्ता सिर्फ सात दिनों का बनाया, महीना सिर्फ चार हफ्तों का बनाया, साल सिर्फ बारह महीने का बनाया ।”
“ओह ! उसकी फैमिली के बारे में बताओ कुछ ?”
“नो फैमिली । कभी शादी नहीं की ।”
“तुममें से किसी पर भी दिल नहीं आया उसका ? कभी अपनी किसी बुलबुल को शादी के लिये प्रोपोज नहीं किया उसने ?”
“नहीं ।”
“यानी कि उसकी स्पैशल बुलबुल कभी कोई नहीं थी ?”
“न । ब्रान्डो सबको एक बराबर चाहता था । उसकी कभी किसी एक में कोई खास रुचि नहीं बनी थी ।”
“मोहिनी में भी नहीं ?”
“नहीं, मोहिनी में भी नहीं ।”
“या सभी को अपना माल मानता होगा ! किंग सोलोमन समझता होगा अपने आपको ?”
“ऐसी कोई बात नहीं । होती तो दस साल तक उसकी बुलबुलों का उसके लिये परम आदर-भाव न बना रहता । तो ब्रान्डो के एक इशारे पर दौड़ी चली आना वो अपना फर्ज न समझती होतीं । तो गैरहाजिरी का सिलसिला एक-एक दो-दो करके शुरु होता और एक दिन ऐसा आता कि ब्रान्डो अपनी एस्टेट में अकेला बैठा स्टिल लाइफ की तस्वीरें खींच रहा होता ।”
“यू आर-राइट देयर । तुम्हें उसके शस्त्रागार की खबर थी ?”
“हां । थी तो सही ।”
“तुम्हें ये नहीं सूझा था कि कातिल ने कत्ल करने के लिये हथियार वहां से मुहैया किया हो सकता था ?”
“सूझा तो था ?”
“तो बोली क्यों नहीं ?”
“मैं क्यों बोलती ? जब ब्रान्डो नहीं बोल रहा था तो मैं क्यों बोलती ? ये हथियार वाली बात पहले उसे सूझनी चाहिये थी या किसी और को ?”
“बात तो दमदार है तुम्हारी ।”
“मैंने सोचा था कि या तो वो अपने हथियार पहले ही चौकस कर चुका होगा या फिर उसके उस बाबत खामोश रहने की कोई वजह होगी । मेरा फर्ज अपने इतने मेहरबान मेजबान की मर्जी के मुताबिक चलना था या पुलिस की मर्जी के मुताबिक ?”
“केस की तफ्तीश में पुलिस के लिये ये बात मददगार साबित हो सकती थी ।”
“अब हो ले साबित मददगार ये बात । अब तो ये बात पुलिस जानती है । ये इतनी ही अहम बात है तो पकड़ क्यों नहीं लेती पुलिस कातिल को ?”
“ये भी ठीक है ।”
“ऐसी बातों से तफ्तीशें नहीं रुकतीं । ऐसी बात की अहमियत तब हो सकती थी जब कि हथियार का मालिक कहे कि कत्ल उसने नहीं किया था और पुलिस की जिद हो कि कत्ल उसी के हथियार से हुआ था इसलिये वो मालिक का कारनामा था ।”
“ब्रान्डो हथियार का मालिक है । वो कातिल हो सकता है ?”
“ब्रान्डो मक्खी नहीं मार सकता । मुझे पूरा यकीन है कि वो भरी रिवॉल्वर को हाथ में थामने-भर से बेहोश हो जायेगा ।”
“फिर भी इतने हथियार रखता है !”
“वो हथियार स्टेटस सिम्बल के तौर पर यहां मौजूद हैं और लायब्रेरी की सजावट का हिस्सा हैं । लायब्रेरी में हजारों की तादाद में किताबें हैं । तुम क्या समझते हो कि ब्रान्डो ने उन्हें पढने के लिये रखा हुआ है ? हरगिज भी नहीं । वो वहां महज सजावट के लिये मौजूद हैं, मेहमानों को प्रभावित करने के लिये मौजूद हैं । ब्रान्डो ने तो कभी कोई एक किताब खोलकर भी नहीं देखी होगी । उसे तो किताबों के सब्जैक्ट तक ही नहीं मालूम होंगे । मिस्टर, लायब्रेरी की किताबों वाला दर्जा ही वहां के हथियारों का है । समझे ?”
“समझा ।”
“ब्रान्डो रंगीला राजा है । उसका शगल, उसका कारोबार, जिन्दगी की बाबत सोचना है, मौत की बाबत नहीं । फिर जिस आदमी की रात एक बजे ऐसी हालत थी कि उसके बुलबुलें उसे उठाकर ऊपर उसके बैडरूम में छोड़कर आयी थीं वो क्या दो ही घण्टे बाद चाक-चौबन्द होकर कत्ल करने की तैयारी में अपने पैरों पर खड़ा हो सकता था ?”
“शायद वो भी कल रात टुन्न होने का बहाना ही कर रहा हो । ऐन वैसे ही जैसे... जैसे...”
“मैं कर रही थी ?”
“हां ।”
“नानसेंस । ब्रान्डो और कातिल ! नामुमकिन । और कातिल भी किसका ? अपनी हाउसकीपर का ! कतई नामुमकिन ।”
“इस बात से काफी लोगों को इत्तफाक मालूम होता है कि मोहिनी के धोखे में उसका कत्ल हो गया था ।”
“दैट इज अटर नानसेंस । अगर ब्रान्डो ने मोहिनी का कत्ल करना होता तो क्या वो हमें मोहिनी के आगमन की खबर करता ? वो मोहिनी की फोन काल की बाबत खामोश रहता और रात को अपनी हाउसकीपर को उसे लिवा लाने के लिये भेजने की जगह चुपचाप खुद पायर पर जाता और उसका कत्ल करके उसकी लाश वहीं समुद्र के हवाले कर आता । उसे घर बुलाकर उसका कत्ल करने की हिमाकत भला वो क्यों करता ?”
“यानी कि ब्रान्डो कातिल नहीं हो सकता ?”
“मेरी निगाह में तो नहीं हो सकता ।”
“तो फिर कौन है कातिल ?”
“मुझे नहीं पता । मुझे नहीं पता कि कातिल कौन है लेकिन मुझे ये पता है कातिल कौन नहीं है ?”
“कौन नहीं है ।”
“मैं ।”
“ओह ! तुम नहीं हो, मैं नहीं हूं, ब्रान्डो भी नहीं है तो फिर बाकी की पांच बुलबुलों में से कोई ? नौकरों-चाकरों में से कोई ? या वो आदमी जो अपने आपको रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड बता रहा था ?”
“तुम दो कौवों को भूल रहे हो ।”
“कौन से कौवे ? ओह ! दो बुलबुलों के हसबैंड ! विकास निगम और रोशन बालपाण्डे ?”
“हां ।”
“लेकिन वो तो अभी यहां पहुंचे हैं ?”
“पब्लिक के सामने ।” - वो ताकीद करने के अन्दाज से बोली - “पब्लिक के सामने अभी यहां पहुंचे हैं । हकीकतन आइलैंड पर वो पता नहीं कब से विचर रहे हों । हकीकतन कौन जानता है कि आलोका का हसबैंड उसी गाड़ी के किसी और डिब्बे में सवार नहीं था जिसमें कि उसने आलोका को सवार कराकर पूना से रुख्सत किया था ! हकीकतन कौन जानता है कि विकी सच में ही आगरा से उन्नीस घण्टे की नान स्टॉप कार ड्राइव के बाद यहां पहुंचा है !”
“वो कार, वो टयोटा, जो वो कहता है कि उसने आगरा से पिक की थी...”
“कार यहां है, कार का मालिक यहां है, इसका ये तो मतलब जरूरी नहीं कि कार को मालिक ही ड्राइव करके यहां लाया था ? उन्नीस घण्टों का सफर प्लेन से दो घण्टों में भी हो सकता है और कार कोई भी ड्राइव करके आगरे से यहां ला सकता है ।”
“बड़ा खुराफाती दिमाग पाया है तुमने ।”
“ये अगर तुमने मेरी तारीफ की है तो शुक्रिया ।”
“इस घड़ी क्योंकि तुम्हारा दिमाग सही गियर में है और सही रफ्तार पकड़े हुए है इसलिये एक बात और बताओ ।”
“पूछो ।”
“तुमने नोट किया था कि सब-इंस्पेक्टर के सामने हमारा मेजबान मर्डर वैपन की बरामदी की मामले में पिछवाड़े के कुएं पर कुछ ज्यादा ही जोर दे रहा था ?”
टीना ने एक क्षण के लिये सड़क पर से निगाह हटाकर घूरकर उसे देखा ।
“जोर क्या दे रहा था, यकीनी तौर से कह रहा था कि रिवॉल्वर वहीं से बरामद होगी । ये तक कहा उसने कि अगर वो कातिल होता तो वो रिवॉल्वर उस कुएं में ही फेंकता ।”
“क्या पता वो वहीं से बरामद हो ?”
“नहीं हुई ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“खुद सब-इंस्पेक्टर ने बताया था । उत्सुकतावश मैंने खास उससे पूछा था ।”
“ओह ! ब्रान्डो को तो इससे बड़ी मायूसी हुई होगी !”
“नाटक किया तो था उसने मायूसी होने का ।”
“नाटक !”
“एक राज की बात बताऊं ?”
“क्या ?”
“मुझे लगता है कि ब्रान्डो को रिवॉल्वर से कुछ लेना-देना नहीं था । उसका वहां से बरामद होना या न होना उसके लिये बेमानी थी । वो तो महज इतना चाहता था कि पुलिस पहले - आई रिपीट, पहले - कुएं की तलाशी ले ले ।”
“क्यों ? क्यों चाहता था ?”
“क्योंकि... एक बात बताओ । कोई खास चीज छुपाने के लिये बेहतरीन जगह कौन-सी होती है ?”
“वहीं जहां कोई न झांकने वाला हो ।”
“एक जगह इससे भी बेहतर होती है ।”
“कौन-सी ?”
“वो जहां पर कोई झांक चुका हो ।”
“ओह माई गॉड, तुम ये कहना चाहते हो कि उस कुएं में ब्रान्डो कुछ छुपाना चाहता है ।”
“उसका ऐसा कोई इरादा हो सकता है । जिस जगह की भरपूर तलाशी एक बार हो चुकी हो, उसकी दोबारा तलाशी भला क्यों होगी ? इस लिहाज से कोई चीज छुपाने के लिये कुआं तो सबसे सुरक्षित जगह हुआ ।”
“इसीलिये वो बार-बार कुएं की दुहाई दे रहा था क्योंकि वो चाहता था कि उसकी तलाशी पहले हो जाये ?”
“हां ।”
“लेकिन कुआं खुले में है और उस मैंशन की हर खिड़की में से देखा जा सकता है ।”
“वो हर किसी के सो जाने का इन्तजार कर सकता है । देख लेना, वो तभी कुएं की तरफ अपना कदम बढायेगा जबकि उसे यकीन आ चुका होगा कि इमारत में कर कोई सो चुका था ।”
“लेकिन बढायेगा जरूर कदम !”
“उम्मीद तो है । वर्ना कुआं-कुआं भजने की उसे क्या जरूरत थी ?”
“ओह ! हमें... हमें पुलिस की खबर करनी चाहिये ।”
“हमें ?”
“मेरा मतलब है तुम्हें ?”
“मेरा अन्दाजा गलत निकला तो जानती हो क्या होगा ?”
“क्या होगा ?”
“पुलिस तो फटकार लगायेगी ही कि मैंने खामखाह उनका वक्त बरबाद किया, तुम्हारा बुलबुला ब्रान्डो भी मुझे कान पकड़कर अपनी एस्टेट से बाहर निकाल देगा ।”
“ओह !”
वो कुछ क्षण सोचती रही और फिर उत्साहपूर्ण स्वर में बोली - “ब्रान्डो की तरह हम भी हर किसी के सो जाने का इन्तजार कर सकते हैं । हम ऐसा जाहिर करेंगे कि हम सो चुके हैं लेकिन हकीकतन हम कुएं की - और जाहिर है कि ब्रान्डो की - ताक में रहने की कोई जुगत भिड़ायेंगे ।”
“तुमने फिर ‘हम’ कहा ?”
“हनी, रात को मैं तुम्हारे साथ । जैसे इस घड़ी मैं तुम्हारे साथ । बशर्ते कि तुम्हें एतराज न हो ।”
“लो । मुझे भला क्यों एतराज होगा ? नेकी और पूछ-पूछ ।”
“गुड । आई एम ग्लैड । ईस्टएण्ड आ गया है ।”
मुकेश ने सिर उठाया तो स्वयं को रोशनियों से नहाये एक बाजार के दहाने पर पाया । बाजार में खूब भीड़ थी और मेले का सा माहौल था ।
“ये है ईस्टएण्ड ?” - वो बोला ।
“का बाजार ।” - टीना बोली - “जो कि आसपास के रिहायशी इलाके के बीच में है । सारा इलाका सामूहिक तौर पर ईस्टएण्ड कहलाता है ।”
“बड़ी रौनक है यहां ।”
“त्यौहार के दिन हैं न आजकल ।”
“जीप तो यहां कहीं छोड़ देनी चाहिये ।”
टीना ने सहमति में सिर हिलाया और फिर जीप को बाजू में लगाकर रोका । फिर जीप छोड़कर वे बाजार में आगे बढे ।
“यहां तो कई बार हैं ।” - मुकेश एकाएक बोला ।
“सारे गोवा में ऐसा ही है । गोवानी काजू की शराब फेनी और बीयर के ठीये तो यहां टी-स्टालों की तरह हैं ।”
“वो तो खुशी से हों लेकिन मैं तो समझा था कि यहां एक ही बार होगा जिसमें बैठा मारकस रोमानो नाम का झांकी फियेट वाला वो छोकरा हमें आते ही मिल जायेगा ।”
वो हंसी ।
छोकरा उन्हें उस चौथे बार में मिला जो कि ‘पैड्रोज’ के नाम से जाना जाता था । मुकेश से मिलकर उसने खुशी प्रकट की । टीना से मिलकर उसने ज्यादा खुशी प्रकट की ।
“रोमानो !” - मुकेश मतलब की बात पर आता हुआ बोला - “तुम्हारे पास एक फियेट कार है । बहुत पुरानी ! रंग-बिरंगी ! हैण्ड पेंटिड !”
“हां ।” - वो गर्व से बोला - “है । अपुन भाड़े पर देता है । मांगता है ? बहुत कम भाड़ा । ओनली टू सेवेन्टी फाइव पर किलोमीटर । वन थाउजेंड डाउन । घट-बढ बाद में । मांगता है ?”
“तुमने कल किसी को गाड़ी भाडे़ पर उठाई थी ?”
“हां । पापुलर गाड़ी है अपना । चीप एण्ड पापुलर । नई एस्टीम का माफिक दौड़ता है । मांगता है ?”
“किसको दी थी ?”
“क्यों जानना मांगता है ?”
“वो क्या है कि...”
“रोमानो, माई डियर ।” - टीना अपने स्वर में मिश्री घोलती हुई बोली - “मैं जानना मांगता है ।”
“दैट्स डिफ्रेंट ।” - वो निहाल होता हुआ बोला - “मैडम को तो अपुन मैडम जो पूछेगा बतायेगा ।”
“थैंक्यू । कौन था वो आदमी जो कल तुम्हारी गाड़ी भाड़े पर लिया ?”
“नाम तो मेरे को मालूम नहीं ।”
“नाम जाने बिना गाड़ी उसके हवाले कर दी ?”
“बट वन थाउजेंड डाउन पेमेंट लेकर ! वो मेरे को अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया, मैं नाम भी पढा, पण... भूल गया ।”
“वो गाड़ी ले के भाग जाता तो ?”
“हीं हीं हीं । आइलैंड पर किधर ले के भागेगा ? मैं उधर पायर पर सबको फिट करके रखा, अपुन की गाड़ी को स्टीमर पर तभी चढाने का है जब मैं साथ हो । क्या !”
“वो इधर का आदमी था या कोई बाहर से आया था ?”
“बाहर से आया था । होटल में ठहरा था ।”
“कौन-से होटल में ठहरा था ।”
“नाम बोला था वो पण...”
“भूल गया ?”
“हां । - पण वो इधर ईस्टएण्ड के ही किसी होटल में था ।”
***
ईस्टएण्ड में हर फेनी के अड्डे और बीयर बार के ऊपर ‘होटल’ लिखा हुआ था अलबत्ता वहां तीन-चार होटल ढंग के भी थे जहां उन्होंने हुलिया बताकर अपने आदमी की पूछताछ शुरु की ।
तीसरे होटल के रिसैप्शन क्लर्क से माकूल जवाब मिला । मुकेश ने अभी उसका हुलिया बयान करना शुरु ही किया था कि वो सहमति में गरदन हिलाने लगा था ।
“वो साहब इधर आया था ।” - वो बोला ।
“गुड ।” - मुकेश बोला - “कौन था वो ? नाम क्या नाम था उसका ?”
“आप क्यों पूछता है ? उधर ब्रान्डो एस्टेट में हुए मर्डर की वजह से ?”
“उसकी खबर यहां तक पहुंच भी गयी ?”
“कब की ? बॉस, इधर तो किसी को जुकाम हुए का खबर नहीं छुपता । मर्डर का खबर कैस छुपेगा !”
“ओह !”
“मैं पुलिस को पहले ही सब बोल दिया है । उसका भी और दूसरे आदमी का भी ।”
“दूसरा आदमी ? दूसरा आदमी कौन ?”
“जो उसका माफिक ही लास्ट ईवनिंग इधर पहुंचा था । दोनों किसी मोहिनी पाटिल को पूछता था ।”
“क्या पूछते थे वो मोहिनी पाटिल की बाबत ?”
“यही कि क्या वो इधर होटल में स्टे करता था ।”
“वो... वो दोनों आदमी एक-दूसरे के साथ थे ? इकट्ठे यहां आये थे ?”
“नहीं । जिस आदमी का हुलिया आप बोलता है, वो पहले आया था । नौ बजे । या थोड़ा बाद में । वो पूछा कि क्या मोहिनी पाटिल इधर होटल में स्टे करता था ! मैं नक्को बोला तो वो इधर से चला गया । फिर ग्यारह बजे दूसरा आदमी आया । वो भी मोहिनी पाटिल को पूछा और चला गया ।”
“दोनों में से किसी ने नाम नहीं बताया था अपना ?”
“नो । वो दोनों खाली मोहिनी पाटिल को पूछा और चला गया ।”
“दूसरा आदमी देखने में कैसा था ?”
“पहले का माफिक ही था ।”
“उसका हुलिया बयान कर सकते हो ?”
“हुलिया ?”
“आई मीन कैन यू डिस्क्राइब हिम ? कद कैसा था ? रंग कैसा था ? हेयर स्टाइल कैसा था ? दाढ़ी या मूंछ या दोनों रखता था या नहीं ? चश्मा लगाता था या नहीं ? पोशाक क्या पहने था, वगैरह ?”
उसने जो टूटा-फूटा-सा हुलिया बयान किया वो बहुत नाकाफी था ।
“तुम उसे दोबारा देखोगे तो पहचान लोगे ?” - टीना ने पूछा ।
“आई होप सो ।”
“पहले वाले को भी ?”
“यस ।”
“अगर उन दोनों में से कोई तुम्हें फिर दिखाई दिया तो क्या तुम ब्रान्डो साहब के यहां हमें खबर कर दोगे ?”
“मैं पुलिस को खबर करेगा ।”
“पुलिस को भी करना लेकिन हमें भी...”
“मैं खाली पुलिस को खबर करेगा । पुलिस मेरे को ऐसा बोला कि...”
“ठीक है, ऐसी ही करना ।” - मुकेश पटाक्षेप के ढंग से बीच में बोल पड़ा - “नाम क्या है तुम्हारा ?”
“जार्जियो ।”
“और होटल का ?”
“डायमंड । बाहर चालीस फुट का बोर्ड टंगा है ।”
“थैंक्यू, जार्जियो ।”
वे होटल से बाहर निकले और फिर भीड़ में जा मिले ।
“दो जने !” - वो बोला - “दोनों मोहिनी की तलाश में । कुछ ज्यादा ही पापुलर थी ये मोहिनी नाम की तुम्हारी फैलो बुलबुल ।”
“पता नहीं क्या चक्कर है !” - टीना बड़बड़ाई ।
“वो दूसरे के हुलिये से तुम्हारे जेहन में कोई घण्टी खड़की हो ?”
“न ।”
“कोई फायदा नहीं हुआ यहां आने का ।”
“अभी तो यहां आये हैं । उस पहले वाले की तलाश तुम अभी बन्द थोड़े ही कर दोगे ?”
“अब क्या फायदा उसके पीछे खराब होने का ! अब तो उसे पुलिस भी तलाश कर रही है । वो पुलिस को नहीं मिल रहा तो क्या हमें मिलेगा ?”
“तो क्या इरादा है ? वापिस चलें ?”
“हां । जीप किधर खड़ी की थी ?”
“ध्यान नहीं ।”
“उधर चलते हैं ।”
अन्दाजन वो एक तरफ बढे ।
रास्ते में एक छोटा-सा पार्क था जिसके करीब वो ठिठके । वहां बेतहाशा भीड़ थी । भीड़ की वजह वहां पार्क के बीच में बना बैण्ड स्टैण्ड था जिस पर बैंड बज रहा था और जिसकी धुन पर नौजवान जोड़े नाच रहे थे । वहां बजते गोवानी संगीत ने वहां बढिया समां बांधा हुआ था ।
तभी ड्रम बजाते युवक के पीछे, बैंड स्टैण्ड से नीचे मुकेश को एक परिचित चेहरा दिखाई दिया । मुकेश के नेत्र फैले, उसने टीना की बांह दबोची और उत्तेजित स्वर में बोला - “टीना ! वो रहा हमारा आदमी ।”
“कहां ?” - टीना हकबकाई-सी बोली ।
“बैंड स्टैंड की परली तरफ । वो ड्रमर के पीछे वहां...”
तभी वो चेहरा वहां से गायब हो गया ।
तत्काल भीड़ में से रास्ता बनाता, लोगों को धक्के देता, लोगों के धक्के खाता, मुकेश उसके पीछे लपका ।
उस घड़ी टीना की उसे इतनी भी सुध नहीं थी कि वो पीछे ही ठिठकी खड़ी रह गयी थी या उसके पीछे आ रही थी ।
आगे भीड़ में अपनी पहचानी सूरत उसे एक बार फिर दिखाई दी और फिर एक छलावे की तरह फिर उसकी दृष्टि से ओझल हो गयी ।
लोगों की गालियां-कोसने झेलता वो भीड़ को धकियाता भीड़ से पार पार्क की परली तरफ पहुंच गया । वो आदमी वहां कहीं नहीं था । पराजित-सा वो वापिस लौटा ।
टीना को जहां वो छोड़कर गया था, वो वहां नहीं थी ।
अब उसके सामने एक नया काम मुंह बाये खड़ा था । उस भीड़ भरे माहौल में से उसने टीना को तलाश करना था ।
वो बाजार में अन्दाजन उधर बढा जिधर कि जीप हो सकती थी और जिधर टीना गयी हो सकती थी ।
वो बाजार के इकलौते सिनेमा के पहलू से गुजरते वक्त ठिठका ।
सिनेमा की मारकी में उसे टीना खड़ी दिखाई दी । उस घड़ी उसकी मुकेश की तरफ पीठ थी लेकिन फिर भी उसने उसे साफ पहचाना ! वो अपने दोनों हाथ सामने पोस्टरों से अटी दीवार पर टिकाये थी और...
ठिठका हुआ मुकेश अब थमककर खड़ा हो गया ।
...उसकी बांहो के घेरे में से उस आदमी का सिर झांक रहा था । जिसे कि वो इतनी देर से तलाश कर रहा था ।
उसका मन प्रशंसा से भर उठा । टीना ने न केवल उसे उससे पहले तलाश कर लिया था बल्कि वो यूं उसे अपने और दीवार के बीच गिरफ्तार किये हुए थी कि वो भाग नहीं सकता था ।
वो लपकर उनके करीब पहुंचा ।
“शाबाश, टीना ।” - वो उत्साह से बोला - “तुमने तो कमाल ही कर दिया जो इसे...”
टीना दीवार पर से एक हाथ हटाकर उसकी तरफ घूमी और फिर बोली - “हनी, मीट माई ओल्ड फ्रेंड...”
“युअर ओल्ड फ्रेंड !” - मुकेश भौंचक्का-सा बोला ।
“...धर्मेंद्र अधिकारी ।”
“हल्लो !” - वो आदमी बोला ।
“लेकिन” - मुकेश आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “ये तो वही आदमी है जो कल रात अपने आपको रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड बता रहा था ।”
टीना ने अचकचाकर उसकी तरफ देखा ।
“एक्सक्यूज मी, डार्लिंग” - अधिकारी बोला फिर एकाएक एक छलांग मारकर टीना से परे हटा और जाकर बाजार की भीड़ में विलीन हो गया ।
मुकेश उसके पीछे भागने लगा तो टीना ने उसे बांह पकड़कर वापिस घसीट लिया ।
“कोई फायदा नहीं होगा ।” - वो बोली - “इतनी भीड़ में वो हमारे हाथ नहीं आने वाला ।”
“पहले तुम्हारे हाथ कैसे आ गया था ?”
“मुझे क्या पता था कि ये वो आदमी था !”
“मैंने इतनी बारीकी से उसका हुलिया बयान किया था ।”
“मुझे नहीं सूझा था कि वो... लेकिन अधिकारी कैसे हो सकता है वो आदमी ? तुम्हें पक्का है कि कल रात तुमने इसे ही देखा था ?”
“मैं क्या अन्धा हूं ?”
“ओह हनी, तुम तो नाराज हो रहे हो ।”
“तुम्हें कैसे मिल गया ये ?”
“बस, यूं ही राह चलते । अभी कोई बातचीत शुरु हो ही नहीं पायी थी कि तुम आ गये । फिर... फिर वो ये जा वो जा ।”
“उसका यूं भाग खड़ा होना ही ये साबित नहीं करता कि वो वही आदमी था ?”
“उसके यूं भाग खड़ा होने की कोई और वजह हो सकती है । कई और वजह हो सकती हैं ।”
“मसलन क्या ?”
“छोड़ो । फिर मिलेगा तो उसी से पूछेंगे ।”
“है कौन वो ? और तुम कैसे जानती हो उसे ? कब से जानती हो ?”
“सालों से जानती हूं । एजेन्ट है वो ?”
“इंश्योरेंस का ?”
“नहीं ।”
“प्रापर्टी ?”
“ओह, नो । अधिकारी फिल्म एजेन्ट है । बहुत बड़े-बड़े स्टार्स का सैक्रेट्री रह चुका है । अपनी शशिबाला को भी स्टार बनाने वाला वो ही है । दस साल पहले जिन दिनों, कर्टसी ब्रान्डो, हमारे फैशन शो हुआ करते थे, उन दिनों ये हमारे इर्द-गिर्द बहुत मंडराता था । ब्रान्डो की आठ की आठ बुलबुलों की फिल्मों में एन्ट्री कराना चाहता था । लेकिन तब हममें से किसी ने भी उसकी प्रपोजल को गम्भीरता से नहीं लिया था । आई मीन सिवाय शशिबाला के जो कि इसकी मेहरबानी से फिल्म स्टार बन गयी थी ।”
“ये अभी भी शशिबाला का सैक्रेट्री है ?”
“मालूम नहीं ।”
“यहां आइलैंड पर क्या कर रहा है ?”
“पता नहीं । पूछने की नौबत ही कहां आयी !”
“इसको सामने पाकर भी तुम्हें नहीं सूझा कि मैं इस आदमी का हुलिया बयान कर रहा था ?”
“नहीं सूझा न, यार । मैं इसे यहां एक्सपैक्ट जो नहीं कर रही थी । ऊपर से मुद्दत बाद तो दिखाई दिया था आज ।”
“ये कोई भी था, कल ब्रान्डो की एस्टेट के गिर्द क्यों मंडारा रहा था ? इसने ये झूठ क्यों बोला कि ये रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड था ओर उसी को घर लिवा ले जाने की खातिर वहां मौजूद था ?”
“क्या पता ?”
“साफ क्यों न बोला कि कौन था ? और ये कि ये ब्रान्डो की तमाम बुलबुलों से वाकिफ था । खासतौर से शशिबाला से ?”
“क्या पता ?”
“शशिबाला को इसकी आइलैंड पर मौजूदगी की खबर होगी ?”
“क्या पता ?”
“अरे” - मुकेश झल्लाया - “क्या पता’ के अलावा क्या कोई जवाब नहीं है तुम्हारे पास ?”
“सारी, डार्लिंग ।”
“जीप का पता लगा ?”
“हां । उधर खड़ी है ।”
“आओ वापिस चलें । यहां टक्करें मारना अब बेकार है । जिस आदमी की हम यहां तलाश में आये थे, वो तो तुम्हारा बरसों पुराना वाकिफकार निकल आया ।”
“मुझे लगता है तुम्हें ही कोई धोखा हुआ है अधिकारी को पहचानने में । वो कल रात वाला आदमी नहीं हो सकता ।”
“ओह, कम ओन ।”
टीना फिर न बोली ।
***
फिगारो आइलैंड की पुलिस चौकी पायर से ईस्टएण्ड को जोड़ने वाली सड़क पर स्थित थी । मुकेश ने आती बार एक एकमंजिली लाल खपरैलों वाली इमारत पर ‘पुलिस पोस्ट, फिगारो आइलैंड’ का बोर्ड लगा देखा था । जीप उधर से गुजरी तो मुकेश एकाएक बोला - “रोको ।”
टीना ने तत्काल ब्रेक लगाई ।
“क्या हुआ ?” - वो सकपकाई-सी बोली ।
“मैं एक मिनट चौकी में जाना चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“वो होटल का रिसैप्शन क्लर्क बोलता था कि जो दो आदमी मोहिनी को पूछने आये थे, उनकी बाबत उसने पुलिस को भी बताया था । हो सकता है पुलिस ने उसकी तलाश के मामले में कोई तरक्की की हो ।”
“लेकिन...”
“यूं कम-से-कम ये तो पता लग जायेगा कि उन दो में से एक तुम्हारा वो फिल्म एजेन्ट-कम-सैक्रेट्री धर्मेन्द्र अधिकारी था या नहीं । तुम जीप में ही बैठो, मैं बस गया और आया ।”
प्रतिवाद में टीना के कुछ बोल पाने से पहले ही वो जीप में से बाहर कूदा और लपककर चौकी की इमारत में दाखिल हो गया ।
भीतर लम्बे बरामदे में एक कमरे पर उसे सब-इंस्पेक्टर जोजेफ फिगुएरा ने नाम की नेम प्लेट लगी दिखाई दी । भीतर से बातों की धीमी-धीमी आवाजें आ रही थीं । वो एक क्षण हिचकिचाया और फिर दरवाजे पर पड़ी चिक हटाकर भीतर दाखिल हो गया ।
भीतर दो व्यक्ति मौजूद थे जो उसे देखते ही खामोश हो गये । भीतर एक सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा ही था, उसके सामने बैठे व्यक्ति की वर्दी पर तीन सितारे दिखाई दे रहे थे जो कि उसके इंस्पेक्टर होने की चुगली कर रहे थे ।
फिगुएरा ने अप्रसन्न भाव से कमरे में यूं घुस आये व्यक्ति की तरफ देखा, उसने मुकेश को पहचाना तो तत्काल उसके चेहरे से अप्रसन्नता के भाव उड़ गये ।
“मिस्टर माथुर !” - वो बोला - “वैलकम ।”
“थैंक्यू ।” - मुकेश इंस्पेक्टर के पहलू में एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“ये इंस्पेक्टर सोलंकी हैं !” - फिगुएरा बोला - “पणजी के उस थाने से आये हैं जिसके अन्डर हमारी ये चौकी है । मर्डर केस की आदन्दा तफ्तीश ये ही करेंगे । अब मेरा दर्जा इनके सहायक का है ।”
मुकेश ने इंस्पेक्टर सोलंकी का अभिवादन किया ।
“मैंने आपकी बाबत सुना है ।” - सोलंकी बोला - “आपकी बाबत भी और आपकी यहां आमद की वजह की बाबत भी ।”
“कैसे आये ?” - फिगुएरा बोला ।
“यूं ही ईस्टएण्ड तक आया था” - मुकेश बोला - “सोचा आपसे मिलता चलूं । सोचा शायद मोहिनी की कोई खोज-खबर लगी हो आपको ।”
“अभी तो नहीं लगी ।”
“इतनी छोटी-सी जगह पर...”
“मैं भी हमेशा इसे छोटी-सी जगह कहकर ही पुकारता था लेकिन अब पता चला कि जगह आखिरकार इतनी छोटी नहीं है । हमें दो और आदमियों की भी तलाश है जो कि हमें पता चला है कि कल रात ईस्ट एण्ड में मोहिनी की बाबत पूछताछ करते फिर रहे थे ।”
“जनाब, उनमें से एक आदमी कल रात मिस्टर ब्रान्डो की एस्टेट के गिर्द मंडरा रहा था और उसका नाम धर्मेन्द्र अधिकारी हो सकता है ।”
दोनों पुलिस अधिकारी सकपकाये, फिर वो भौचक्के से मुकेश का मुंह देखने लगे ।
“क्या किस्सा है ?” - फिर सोलंकी उसे घूरता हुआ बोला ।
मुकेश ने संक्षेप में उसे सारी बात कह सुनायी ।
“ओह !” - फिगुएरा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “तो आप जासूसी करने निकले थे ?”
“नहीं ।” - मुकेश बड़े इत्मीनान से बोला - “टाइम पास करने निकला था । जासूसी तो आप लोगों का काम है जिसे आप बखूबी अंजाम दे रहे हैं । नतीजा भले ही कोई नहीं निकल रहा लेकिन अपना काम तो आप कर ही रहे हैं ।”
फिगुएरा के चेहरे पर क्रोध के भाव आये लेकिन प्रत्यक्षत: वो अपने सीनियर की वहां मौजूदगी की वजह से खामोश रहा ।
“ये आदमी” - सोलंकी बोला - “ये धर्मेन्द्र अधिकारी नाम का आदमी, कातिल हो सकता है ।”
“और आपका ये कथित कातिल अभी दस मिनट पहले तक ईस्टएण्ड के मेन बाजार में था । और अगर मोहिनी इसी के खौफ से मिस्टर ब्रान्डो की एस्टेट से भागी है तो उसकी भलाई इसी में है कि वो आइलैंड से पहले ही कूच कर चुकी हो ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है !” - फिगुएरा बोला - “हमने उधर पायर पर हैलीपैड पर बोल के रखा है कि अगर वो वहां पहुंचे तो उसे पुलिस के आने तक रोक के रखा जाये ।”
“आप बच्चे बहला रहे हैं । आइलैंड से कूच करने का जरिया स्टीमर और हैलीकाप्टर ही नहीं है । यहां दर्जनों की तादाद में ब्रान्डो जैसे रईस लोग बसे हुए हैं । सबके पास नहीं तो काफी सारों के पास अपनी प्राइवेट मोटर बोट होंगी । आप उन तमाम मोटर बोट्स की मूवमेंट्स को मानीटर कर सकते हैं ?”
“रात को नहीं कर सकते ।” - फिगुएरा सोलंकी से निगाहें चुराता कठिन स्वर में बोला ।
“जनाब, आप लोगों का केस में दखल होने से पहले ही मोहिनी ऐसी किसी मोटरबोट पर सवार होकर मेन लैंड पर पहुंच चुकी हो सकती है ।”
“ही इज राइट देयर ।” - सोलंकी गम्भीरता से बोला - “अगर धर्मेन्द्र अधिकारी नाम का ये आदमी कातिल है और मोहिनी आइलैंड पर नहीं है तो वो सेफ है ।”
“और वो दूसरा आदमी ?” - मुकेश बोला ।
“उसकी अभी हमें कोई खोज-खबर नहीं लगी” - फिगुएरा बोला - “लेकिन तलाश जारी है ।”
“और शायद जारी रहेगी ।”
“जाहिर है ।”
“कयामत के दिन तक ।”
“मिस्टर माथुर !”
सोलंकी ने हाथ उठाकर फिगुएरा को शान्त रहने को कहा और फिर मुकेश से सम्बोधित हुआ - “आप बरायमेहरबानी, मुझे अपनी क्लायन्ट के बारे में कुछ बताइये ।”
“क्या जानना चाहते हैं आप ?”
“आज की तारीख में वो ढाई करोड़ रुपये की रकम की वारिस है । राइट ?”
“राइट ।”
“खुदा न खास्ता, रात मिस्टर ब्रान्डो के यहां हाउसकीपर की जगह उसी का कत्ल हुआ होता तो इतना पैसा कहां जाता ? कौन होता इतनी बड़ी रकम का क्लेमेंट ?”
“कह नहीं सकता । अगर मोहिनी ने आगे अपनी वसीयत की हुई है तो जाहिर है कि वो शख्स जो कि वसीयत में मोहिनी का वारिस करार दिया गया है ।”
“वसीयत न हो तो ?”
“तो जो कोई भी उसका सबसे नजदीकी रिश्तेदार हो । मां-बाप में में कोई, कोई भाई, कोई बहन...”
“आपके आफिस में मोहिनी की ऐसी किसी वसीयत का रिकार्ड हो सकता है ?”
“हो तो सकता है । लेकिन नहीं भी हो सकता । वो सात साल से गायब थी, अगर उसने उस दौरान अपनी वसीयत की होगी तो हमें उसकी खबर भला क्योंकर होगी ! अलबत्ता अगर पहले की होगी, जब के वो मिसेज श्याम नाडकर्णी थी तो...”
“आप मालूम तो कीजिये अपने आफिस से ।”
“ठीक है । मैं करूंगा ।”
“और ये भी मालूम कीजिये कि क्या आपके आफिस को उसके किसी नजदीकी रिश्तेदार की वाकफियत है ।”
“ओके ।”
“कल आप हमें अपना जवाब दीजियेगा ।”
“जरूर ।”
“अब जरा इस धर्मेन्द्र अधिकारी पर फिर लौटिये । तो वो फिल्मी आदमी है ? एजेन्ट है ?”
“हां ।”
“और वो ब्रान्डो की बुलबुलों के नाम से जाने जानी वाली तमाम लड़कियों से वाकिफ है । तब से वाकिफ है जब कि उसके फैशन शोज ने सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी ?
“हां ।”
“और आप कहते हैं कि अभी जब वो आपको सिनेमा के करीब मिला था तो जब वो मिस टीना टर्नर के साथ घुट-घुट के बातें कर रहा था ?”
“हां ।”
“और वो कहती है कि वो वो आदमी नहीं हो सकता था जिसके कि आप पीछे भागे थे या जो होटल से मोहिनी की बाबत पूछताछ कर रहा था जो आपको मिस्टर ब्रान्डो की एस्टेट के बाहर इस बहाने के साथ मिला था कि वो कुक का इन्तजार कर रहा था ?”
“हां ।”
“वो लड़की झूठ बोलती हो सकती है । वो जानबूझकर आपको ये पट्टी पढाने की कोशिश कर रही हो सकती है कि धर्मेन्द्र अधिकारी वो आदमी नहीं था जिसकी कि आपको तलाश थी ।”
“क्यों ?” - मुकेश हैरानी से बोला ।
“वो शख्स उस लड़की का पुराना, बहुत पुराना, वाकिफ था । आपकी उससे मुश्किल से चौबीस घण्टे की वाकफियत है । ऐसे में वो आपकी तरफदारी करती या उसकी ?”
“तरफदारी ! कैसी तरफदारी ?”
“टीना ने उसे बताया हो सकता है कि आप जान चुके थे कि उसका कुक रोजमेरी से कुछ लेना-देना नहीं था, आप जान चुके थे कि उसने झूठ बोला था कि वो रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड था और उसी की इन्तजार में कल मिस्टर ब्रान्डो की एस्टेट के करीब मौजूद था । आगे आप ये भी जान चुके थे कि वो ईस्टएण्ड पर मोहिनी की तलाश में उसके बारे में पूछताछ करता फिर रहा था ।”
“टीना ने ऐसा किया होगा ?”
“न सिर्फ ये, उसने उसकी आपके हाथों में पड़ने से बेचने में भी मदद पहुंचाई हो सकती है ।”
“जब... जब वो भागा था तो टीना ने मुझे उसके पीछे भागने से तो रोका था । उसने मुझे ये... ये तो कहा था कि वो इतनी भीड़ में मेरे हाथ नहीं आने वाला था ।”
“सो, देअर यू आर ।”
“लेकिन इसका... इसका मतलब क्या हुआ ?”
“आप बताइये ।”
“मेरी निगाह में तो कोई मतलब न हुआ । सिवाय इसके कि उसने अपने चौबीस घण्टे के वाकिफ के मुकाबले में अपने पुराने वाकिफकार के लिये ज्यादा जिम्मेदारी दिखाई । सिर्फ इतने से ये मतलब तो नहीं निकाला जा सकता था कि टीना उसके किसी गुनाह में शरीक थी, अगर वो कातिल था तो टीना कातिल की मददगार थी !”
“अच्छा ! नहीं निकाला जा सकता ?”
मुकेश कुछ क्षण सोचता रहा, फिर दृढ स्वर में बोला - “नहीं । नहीं निकला जा सकता ।”
“लड़की की ऐसी हिमायत आप उस पर लट्टू होकर तो नहीं कर रहे हैं ?”
मुकेश से जवाब देते न बना ।
“कल शाम से आप उसकी सोहबत में हैं । उसके व्यवहार में तब से आप ने ऐसी कोई बात नहीं देखी, या महसूस की, जो कि खटकने वाली हो ?”
मुकेश और भी खामोश हो गया और सोचने लगा कि क्या वो उस पुलिस इंस्पेक्टर को बताये कि कल शाम मोहिनी के आगमन की बाबत सुनकर टीना के छक्के छूट गये थे, उसने तत्काल ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था और रात को मोहिनी के ब्रान्डो के यहां पहुंच जाने के बाद वो चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थी और उसमें एकाएक आमना-सामना हो जाने पर उसने टुन्न होने का बहाना किया था !
उसकी आंखों के सामने टीना की हसीन सूरत घूम गयी थी ।
उसने फिलहाल खामोश रहने का ही फैसला किया ।
“नहीं” एकाएक वो उठता हुआ बोला “मैंने उसके व्यवहार में खटकने वाली कोई बात नोट नहीं की थी ।”
“पक्की बात ?”
“जी हां । मैं...मैं चलता हूं ।”
भारी कदमों से मुकेश वहां से बाहर निकला ।
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