यही नहीं बाकी तमाम बातें भी उसके खिलाफ थीं ।


पुलिस को परवेज की लाश के पास से हालांकि कोई चली हुई गोली नहीं मिली थी जिसे तुलना के लिए प्रयोग किया जा सके । लेकिन उसकी खोपड़ी में बने सुराख का आकार उतना ही था जितना कि बत्तीस कैलीवर की गोली से बन सकता था । और विक्रम के पास बत्तीस कैलीवर का बाकायदा लाइसेंसशुदा रिवॉल्वर था ।


इसके अलावा विक्रम के पास परवेज की हत्या करने का मोटिव भी था । आम तौर पर प्रत्येक व्यक्ति जानता था कि विक्रम ने परवेज की तगड़ी ठुकाई की थी । परवेज उससे बदला लेने का कई बार ऐलान भी कर चुका था । इसलिए मौका देने की बजाय विक्रम ने मौका पाकर खुद ही उसे ठिकाने लगाकर उसका किस्सा निपटा दिया हो सकता था ।


तमाम हालात को मद्देनजर रखते हुए सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि हत्या करने का मौका और सहूलियत भी उसे हासिल थीं ।


इन सबसे बड़ी बात थी, पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद विक्रम कई बार फसाद और खुराफात के मामलों में इनवाल्व हो चुका था । यह तो एक अलग बात थी कि उन मामलात में जो दूसरे लोग उसके साथ इनवाल्व रहे थे उनमें से किसी को भी शरीफ नहीं कहा जा सकता था ।


कुल मिलाकर मुद्दा यह कि सरकमटेंशियल एवीडेंसेज की बिना पर विक्रम का पूरी तरह पुलंदा बंध सकता था ।


विक्रम ने पुनः कनखियों से चमनलाल की ओर देखा ।


उसने कॉफी सिप करके अपनी रिस्टवाच पर निगाह डाली । लेकिन उसके चेहरे पर कोई ऐसा चिह्न प्रगट नहीं हुआ जिससे पता चले कि वह किसी प्रकार की जल्दी में था ।


मगर विक्रम जानता था, चमनलाल ने ज्यादा देर इंतजार नहीं करना था । विक्रम के खाना खत्म करते ही वह और इकबाल उसके पास आ पहुंचेंगे । उन्होंने इत्मीनान से खाना खा लेने तक की मोहलत ही उसे देनी थी ।


फिर विक्रम ने बालकिशन और ईशर सिंह की ओर सरसरी निगाह डाली तो उन दोनों को अपनी ओर ही देखते पाया । वे पुलिस की वहां मौजूदगी की असली वजह भांप गए लगते थे । उनकी आंखों में याचनापूर्ण भाव थे । और खामोश गुजारिश-सी करते नजर आ रहे थे कि वह वहां से फौरन चला जाए ताकि उनकी ओर पुलिस का ध्यान न जा सके ।

'वे साले खुद अपनी फिक्र करते रहेंगे ।' विक्रम ने मनही-मन में कहा । और अपने सामने रखी बटर चिकन को प्लेट पर हाथ साफ करने लगा । चिकन स्वादिष्ट था । अंजाम की परवाह किए बगैर वह भरपेट खा लेना चाहता था । हालात को देखते हुए इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता था कि दोबारा इतना लजीज खाना उसे कब नसीब होगा ।


वह मनोयोग से खाता रहा ।


ठीक उस वक्त, जब वह लगभग खाना खत्म कर चुका था । गीली बरसाती पहने एक युवती उसकी मेज के पास आकर रुकी ।


विक्रम सिर ऊपर उठाने की बजाय कनखियों से देखता रहा ।


आगंतुका ने बरसाती के कालर से जुड़ी रेनकैप अपने सिर से पीछे खिसकाई और उसके ठीक सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गई । उसके बैठने का अंदाज ऐसा था मानो जाहिर करने की कोशिश कर रही थी कि वो टेबल सिर्फ उस अकेली के लिए ही रिजर्व थी ।

उसके बैठने के चंद क्षणोंपरान्त ही वेटर द्वारा आर्डर सर्व किए जाने से स्पष्ट था कि वह रेस्टोरेंट में दाखिल होते ही खाने का आर्डर दे चुकी थी ।


युवती ने खाना आरम्भ कर दिया ।


वह बहुत ही धीरे-धीरे यूं मुंह चला रही थी मानो या तो बेमन से खा रही थी या चबाने या फिर निगलने में कोई तकलीफ हो रही थी ।


विक्रम को लगा, युवती में ऐसा कुछ था जोकि नहीं होना चाहिए था । लेकिन वह समझ नहीं सका कि वो 'ऐसा कुछ' क्या था । अलबत्ता चोर निगाहों से उसे देखते हुए समझने की कोशिश जरूर कर रहा था ।


धीरे-धीरे उसकी समझ में आने लगा ।


गोरे रंग और ऊंचे कद वाली उस युवती के कंधों तक कटे बाल घने, काले और चमकीले थे । चेहरे-मोहरे से वह इंतिहाई खूबसूरत थी । लेकिन ऐसा लगता था, उसकी उस कुदरती खूबसूरती को जान-बूझकर ऐसा बना दिया गया था कि वह कभी-कभार मुस्करा देने वाली मगर खूबसूरत औरत में तब्दील होकर रह गई थी ।


विक्रम की मान्यता थी-औरतें अजीब किस्म का जीव होती हैं । इसलिए यह सब देखकर उसे ताज्जुब नहीं हुआ ।


उसने नोट किया, युवती के होंठ पतले और रसीले थे, लेकिन उन पर लगी लिपस्टिक के शेड का चुनाव एकदम गलत था । यही बात आईब्रो पेंसिल के इस्तेमाल में नजर आ रही थी । उसके गालों की रंगत पीली थी जबकि वे निश्चित रूप से गुलाबी होने चाहिए थे । उसकी बड़ी-बड़ी कजरारी आंखों में सतर्कता मिश्रित चिन्तापूर्ण भाव थे । और आंखों के नीचे हल्की स्याह झाइयां-सी उभरी हुई थी ।


प्रत्यक्षतः युवती किसी गहन मानसिक संघर्ष में फंसी प्रतीत होती थी ।


अचानक वह उठी और अपनी बरसाती उतारकर साथ वाली खाली कुर्सी पर रखकर पुनः बैठ गई ।


विक्रम भांप गया, उसमें आई तब्दीली सिर्फ उसके चेहरे तक ही महदूद थी । उसका जिस्म खिचा-तना था और उभार आकर्षक थे । उस पुष्ट एवं सुडौल जिस्म में चाहकर भी कोई तब्दीली नहीं की जा सकती थी ।


कुल मिलाकर उस युवती में वो सब कुछ था जिसकी हर लिहाज से बेहद खूबसूरत और आकर्षक किसी औरत में होने की अपेक्षा की जा सकती है ।


विक्रम उस युवती को बराबर देखता रहना चाहता था । इसलिए वह जान-बूझकर बहुत ही धीरे-धीरे खाने लगा था । असलियत यह थी, कुछ देर पहले तक बेहद लजीज लगने वाला खाना अब उसे बेस्वाद-सा लग रहा था ।


इस पूरे दौर में युवती ने एक बार भी उससे आंखे नहीं मिलाई थीं । मगर विक्रम का अनुमान था, वह भी उसकी भांति चोर निगाहों से उसका अध्ययन करती रही थी ।


विक्रम को यह सोचकर मन-ही-मन हंसी आ गई कि रेस्टोरेंट के बाहर मौजूद परवेज आलम के भाई इस इंतजार में थे कि अन्दर मौजूद पुलिस उसे गिरफ्तार करने में न चूक जाए । और वह था कि सिर पर मंडराते भयानक खतरे के बावजूद सामने बैठी युवती की खूबसूरती से आंखें सेंक रहा था ।

उसने कनखियों से चमनलाल और इकबाल की ओर देखा । इकबाल अपनी पूर्ववत् स्थिति में था जबकि चमनलाल तनिक इस ढंग से पोजीशन बदल चुका था कि अपनी ओर पीठ किए बैठी युवती पर भी निगाह रख सके ।


सहसा एक आवाज विक्रम को सुनाई दी । आवाज इतनी धीमी थी कि किसी एक जगह से आती प्रतीत नहीं होती थी । वो आवाज, वहां मौजूद ग्राहकों की धीमी आवाजों का ही हिस्सा लगती थी ।


यही वजह थी कि एक पल के लिए विक्रम समझ नहीं सका और उसने पहले की भांति खाना जारी रखा । फिर वह भांप गया कि आवाज कहां से आई थी ।


वो आवाज सामने बैठी युवती की थी ।


इस बात ने विक्रम को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया । क्योंकि बोलते वक्त युवती ने न तो होंठ हिलाए थे और न ही उसके चेहरे के भावों में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन हुआ था ।

इन सबसे बड़ी बात थी, वह इस ढंग से बैठी खाती भी रही थी मानो मेज पर बिल्कुल अकेली बैठी थी ।


"मेरी ओर देखे बगैर मुझसे बातें कर सकते हो ?"


विक्रम का उत्सुक होना स्वाभाविक ही था । वैसे भी युवती की बात सुनने में उसे हर्ज नजर नहीं आया । क्योंकि हालात पहले से ही इतने खराब थे कि और ज्यादा बदतर हो ही नहीं सकते थे ।


"गो अहेड हनी !" वह बोला । उसके बोलने का अंदाज भी युवती जैसा ही था । यानी उसे देखने वाला सिर्फ यही कह सकता था कि उसका मुंह खाने की वजह से ही चल रहा था ।


युवती को मानो ऐसे ही जवाब की अपेक्षा थी । उसने लगभग फौरन मगर हिचकिचाती-सी आवाज में पुछा-"तुम सजायाफ्ता हो ?"


"नहीं । अभी तक तो बचा हुआ हूं ।"

"क्या करते हो ?"


"आजकल बेकार हूं ।"


"पहले क्या करते थे ?"


बातचीत एक नया और खास किस्म का ऐसा रुख लेने लगी थी जिसकी अपेक्षा विक्रम ने नहीं की थी । वह युवती को ऊंचे दर्जे की वेश्या समझता रहा था । लेकिन युवती की इस बातचीत ने उसका यह अनुमान गलत साबित कर दिया । साथ ही युवती में उसकी दिलचस्पी और ज्यादा बढ़ गई ।


"पुलिस विभाग में एस० आई० था । लेकिन अपनी ईमानदारी और उसूलों की वजह से वो नौकरी मुझे रास नहीं आई । इसलिए छोड़ दी ।"


एक संक्षिप्त पल के लिए उसकी आंखों में संतुष्टिपूर्ण चमक उभरी फिर लुप्त हो गई ।


"आयम इन ट्रबल ।" वह बोली । उसके धीमे स्वर में निश्चितता का हल्का-सा पुट था ।

"एण्ड यू थिंक दैट आयम ट्रबल शूटर ?"


"मे बी । आई कान्ट से ।"


"एनी वे, वाट इज यूअर ट्रबल ?"


युवती सूप का बाउल खाली कर चुकी थी । उसे परे खिसकाकर, उसने प्लेट अपनी ओर खींच ली । जिसमें दो ब्रेड स्लाइसों के बीच आमलेट मौजूद था ।


विक्रम बटर चिकन की ग्रेवी के साथ नान के छोटछोटे निवाले निगलता हुआ वक्त गुजारता रहा ।


युवती ने डाइनिंग-हॉल में सरसरी-सी निगाहें दौड़ाईं ।


"तुम्हें मेरी मदद करनी पड़ेगी ।" अंत में वह बोली ।


"क्यों ?"

"इसलिए कि मुझे मदद की सख्त जरूरत है ।"


"लेकिन इस काम के लिए तुमने मुझे ही क्यों चुना ?"


"क्योंकि सिर्फ तुम ही इस काबिल नजर आते हो ।"


"किस काबिल ?"


उसने अपना प्याला उठाकर कॉफी सिप की ।


"जरूरत पड़ने पर बेहिचक किसी की भी जान ले सकते हो ।"


विक्रम मन-ही-मन चौंका । लेकिन अपने हाव-भाव से ऐसा कुछ जाहिर नहीं होने दिया । अलबत्ता उसे लगा मानो एकाएक गले में कुछ आ फंसा था ।


"तुमने ऐसा कैसे समझ लिया ?" उसने कठिन स्वर में पूछा ।

"क्या मैं गलत समझ रही हूं ?"


विक्रम ने जवाब नहीं दिया ।


युवती ने भी इस बारे में बहस नहीं की ।


"सुनो, मैं जानती हूं, तुम मुझे कोई जबरदस्ती गले पड़ने वाली चालू या बाजारू औरत समझ रहे हो ।" वह बोली-"लेकिन ऐसा नहीं है । मैं इंटेलीजेंस ब्यूरो की एजेंट हूं । मेरा नाम किरन वर्मा है । मैं 'ऑप्रेशन अंडरवाटर' पर काम कर रही हूं । मेरे मुंह में एक कैपसूल है । जिसमें माइक्रोफिल्म की एक स्ट्रीप मौजूद है । उस कैपसूल का हमारे चीफ के पास जल्दी-से-जल्दी पहुंचना निहायत जरूरी है ।" उसने कॉफी की चुस्की ली फिर कहा-"यह देश की सुरक्षा का सवाल है । समझे ? नेशनल सिक्योरिटी ? मैं स्लाइसों और आमलेट के सैंडविच को खाने के लिए दांतों से काटते वक्त कैपसूल को सैंडविच में घुसेड़कर नीचे रख दूंगी । मेरे यहां से चले जाने के बाद तुमने वो कैपसूल स्थानीय आई० बी० हेडक्वाटर्स तक पहुंचाना है । क्या तुम ऐसा कर सकते हो ?"


"श्योर ।" अनजाने में ही विक्रम कह तो गया । लेकिन उसकी समझ में वो सिलसिला आया नहीं था । इसलिए, वह पूछ ही बैठा-'यह काम तुम खुद ही क्यों नहीं कर देती ?"

"मैं नहीं कर सकती ।"


"तो फिर पुलिस की मदद ले लो । यहां तो पुलिस अफसर भी मौजूद हैं ।"


"पुलिस की मदद भी मैं नहीं ले सकती ।"


"क्यों ?"


"इसलिए कि तब यह बात छुपी नहीं रहेगी । और उन लोगों को पता लगते ही कि मैं अपने मिशन में कामयाब हो गई हूं । सारी मेहनत बेकार हो जाएगी । तमाम करे-धरे पर पानी फिर जाएगा ।"


"तुम किन लोगों की बात कर रही हो ?"


"बाहर तीन आदमी मौजूद हैं । वे उस कैपसूल को पाने की खातिर मेरी जान ले लेंगे । जबकि मैं न तो कैपसूल गंवाना चाहती हूं और न ही अपनी जान ।"

विक्रम को खाना खत्म करना पड़ा । वह और ज्यादा देर तक नहीं टाल सकता था । उसने नोट किया, चमनलाल और इकबाल के हाव-भाव से जाहिर था, वे भी ज्यादा देर सब्र करने के मूड में नहीं थे ।


उसने वेटर को कॉफी लाने का संकेत किया ।


चंद क्षणोपरान्त वेटर आया और कॉफी रखकर चला गया ।


"और कुछ ?" उसने कॉफी सिप करने के बाद पूछा ।


वह बेख्याली में अपना होंठ काट बैठी । फिर शायद ऐन वक्त पर उसे याद आया कि ऐसा कुछ नहीं करना था इसलिए कॉफी सिप करने के बहाने उसने अपनी उस हरकत को छुपा लिया ।


"वे लोग बाहर सडक पर मुझे शूट करने के लिए लगभग तैयार थे ।" वह बोली-"वे जानते हैं, यहां मेरा कोई कांटेक्ट नहीं है । उनके विचारानसार मैं किसी खास जगह कैपसूल पहुंचाने जा रही हूं । इसलिए वे समझते हैं कि इस रेस्टोरेंट में सिर्फ डिनर लेने के लिए आई हूं । मेरे कहने का मतलब है, वे नहीं जानते कि मैं जान गई हूं कि वे मेरा पीछा कर रहे हैं और कैपसूल की वजह से मेरी जान लेना चाहते हैं ।"


"सुनो, तुम सीरियस हो...।"


"मैं पूरी तरह सीरियस हूं !" वह बोली । उसका स्वर पूर्ववत् धीमा होने के बावजूद सपाट तो था ही । साथ ही सर्द और खौफनाक भी था । जो इस बात का साफ सबूत था कि वह झूठ नहीं बोल रही थी ।


"क्या मैं इस मामले में पुलिस की मदद ले सकता है ?"


"मेरी मौजूदगी में तुम किसी की मदद नहीं ले सकते । तुम सिर्फ वही करोगे जो मैंने कहा है । क्योंकि कैपसूल सही हाथों में पहुंचने तक इसकी गंध भी किसी को नहीं मिलनी चाहिए । इस सारे सिलसिले में गोपनीयता सबसे अहम पहलू है और मेरे सामने बड़ी भारी मुश्किल है कि इस काम को अंजाम देने के लिए मेरे पास तुम्हारे अलावा और कोई जरिया नहीं है ।" कहकर वह तनिक रुकी फिर बोली-"मुझे बेवकूफ मत समझो । मैं हालात से बखूबी वाकिफ हूं । इस धन्धे में इतना अर्सा मुझे हो गया है कि अपने तजुर्बे की बिना पर बहुत-सी बातें मैं सूंघकर ही जान लेती हूं । और मेरे अनुमान अमूमन गलत नहीं होते । हालांकि किसी नातजुर्बेकार को अपने काम के लिए इस्तेमाल करना मेरे उसूलों के खिलाफ है । लेकिन तुम्हें इस काम के लिए चुनने से पहले मैं नोट कर चुकी थी कि तुम्हारे अन्दर वे तमाम बातें हैं जो किसी ऐसे आदमी में होती हैं जो कानून की हिफाजत के लिए कानून भी तोड़ सकता है । और जिसके अपने कुछ उसूल भी होते हैं । और मुझे यकीन है कि इस काम को तुम पूरी जिम्मेदारी के साथ अंजाम दोगे ।"


विक्रम चाह कर भी प्रतिवाद या विरोध नहीं कर सका ।


युवती ने सैंडविच उठाकर उसमें दांत गड़ा दिए । बाकी जो काम उसने किया बड़ी फुर्ती के साथ किया । और मुंह बनाते हुए सैंडविच वापस प्लेट में रख दिया । मानों उसका स्वाद उसे जरा भी पसन्द नहीं आया था ।


उसने अपनी काफी खत्म की ।


हालांकि ये काम उसने तेजी से किए थे मगर उसने अपने हाव-भाव से जरा भी जल्दबाजी जाहिर नहीं होने दी थी ।


वह खड़ी हो गई और अपनी बरसाती उठाकर पहन ली ।