वन्दना को चलते-चलते अभी एक घण्टा ही बीता था कि वह नदी किनारे पहुंच गई। वह अभी तक मर्दाने भेष में थी। उसने नदी के दोनों ओर दूर-दूर तक देखा, सबकुछ उजाड़-सा पड़ा था। कहीं किसी प्राणी का नामो-निशान नहीं था, आश्वस्त होकर वन्दना पानी में कूद गई— दो पल ही बाद वह नदी के पानी के अन्दर तैर रही थी । -
अभी वह अधिक नहीं तैर पाई थी कि एक साथ पांच आदमियों ने उसे घेर लिया ।
वन्दना पांचों में से एक को भी नहीं पहचान पाई–क्योंकि सभी के चेहरों पर नकाब थे – वे पांचों, पांच दिशाओं से तेजी के साथ तैरकर उसके समीप आए और इससे पहले कि वन्दना अपने बचाव का कोई प्रयास करे, उन पांचों ने उसके विभिन्न भागों से उसे पकड़ लिया। कुछ ही देर उपरान्त वे नदी को छोड़कर पानी से भरी एक खोह में प्रविष्ट हो गए। पांचों उसे भीतर लिये पानी से ऊपर उभरे और एक लोहे की सीढ़ी पर चढ़ाते हुए ऊपर ले गए ।
ऊपर एक गुफा थी— दोनों ओर की दीवारों पर जगह-जगह मशालें जल रहीं थीं।
वन्दना यह सोचने का प्रयास कर रही थी कि ये लोग कौन हैं । उसके साथ-साथ उन सबके कपड़े भी पानी में बुरी तरह भीगे हुए थे – वन्दना का ऐयारी का बटवा भी भीग चुका था। गुफा में से गुजरकर वे उसे एक बाग में ले गए। बाग में सूर्य की रोशनी पर्याप्त थी। पश्चिम में डूबने का प्रयास करता हुआ सूर्य स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था । बाग में चारों ओर फल और मेवों के वृक्ष थे। क्यारियों में एक-से-एक सुन्दर फूल डालियों के ऊपर सीना ताने गर्व से मुस्करा रहे थे। शेष बाग में घास मखमल की भांति बिछी हुई थी ।
बाग के ठीक बीच में---संगमरमर की एक मूर्ति बनी हुई थी। दूर से ही देखने पर स्पष्ट होता था कि वह मूर्ति किसी स्त्री की है। पांचों वन्दना को लेकर उसी मूर्ति की ओर बढ़ रहे थे। जैसे ही वन्दना, उस मूर्ति के समीप पहुंची–बुरी तरह चौंक पड़ी ।
संगमरमर की मूर्ति उसी की थी – वंदना की मूर्ति ।
कई क्षण तक वन्दना उसे आश्चर्य से देखती रही ।
उन पांचों ने सम्मानित ढंग से वन्दना की मूर्ति के समक्ष सिर झुकाया और उनमें से एक वन्दना से बोला -– "महारानी के समक्ष शीश झुकाओ।"
वन्दना नहीं समझ सकी कि ये क्या चक्कर है। वह नहीं समझ सकी कि ये लोग कौन हैं और उसकी प्रतिमा को महारानी कहकर इतना सम्मान क्यों दे रहे हैं। उसने भी सबकुछ जानने के लिए अपना भेद उन पर खोलना उचित नहीं समझा। उनके आदेशानुसार उसने भी अपनी मूर्ति के समक्ष प्रणाम किया और उनके साथ बाग में एक तरफ को चल दी।
- —“ये तस्वीर किसकी थी ? " चलते-चलते वन्दना ने उन पांचों से प्रश्न कर दिया ।
— "इनका नाम हममें से कोई नहीं जानता।" उनमें से एक बोला—“केवल सूरत से इन्हें पहचानते हैं—हम सब इनके मुलाजिम हैं और इन्हें महारानी कहते हैं। इनके आदेशों का पालन करने से ही हमारा उद्धार होता है । "
— "क्या तुमने इन्हें कभी देखा है ? "
-"क्या मूर्ख आदमी है !" उनमें से एक बोला— “अगर हम महारानी को देखते नहीं तो बात कैसे करते ? उनके मुलाजिम कैसे बनते ? उनके आदेशों का पालन कैसे करते ? महारानी हम सबका खास ख्याल रखती हैं। "
-"क्या आप लोग मुझे भी उन्हीं के पास ले जा रहे हैं ?" वन्दना ने मर्दाने स्वर में प्रश्न किया ।
— "इस समय तुम उन्हीं की कैद में तो हो – कल सुबह तुम्हें महारानी के सामने उनके दरबार में पेश किया जाएगा । "
इसी प्रकार की अन्य कुछ बातें उनके मध्य हुईं और चलते-चलते बाग के एक कोने में पहुंच गए । इस समय वन्दना उन सबसे आगे चल रही थी । वन्दना उस खतरे के प्रति सतर्क भी नहीं थी, जो एकदम उसके सिर पर आ गया ।
पहले वह एक शेर की दहाड़ से कांप उठी।
फिर स्वयं ही उसके पैर धरती से उखड़ गए । न चाहते हुए भी उसका जिस्म हवा में लहराता चला गया और वह केवल इतना देख पाई कि वह एक शेर के मुंह में समा गई है। भय से उसकी आंखें बन्द हो गईं। जिस्म को एक झटका लगा तो नेत्र खुल गए।
हवा में लहराती हुई वह किसी गद्देदार धरती पर आ गिरी थी । इस समय वह एक बहुत ही गहरे और संकरे से गोल कुएं की धरती पर पड़ी है। धरती पर घास बिछी हुई है। कुएं की दीवारें — यूं ही सपाट बहुत दूर तक चली गई हैं।
इस जादुई करिश्मे से वह चमत्कृत-सी रह गई थी ।
कुएं की एक दीवार पर मशाल जल रही थी —–— जिसके प्रकाश में वन्दना अपने चारों ओर की स्थिति भली-भांति देख सकती थी। न जाने क्या सोचकर उसने एक स्थान से घास हटानी शुरू कर दी। कुछ देर बाद उसने सारी घास कुएं के एक कोने में जमा कर दी। कुएं की धरती में उसे एक गड्ढा नजर आया—उसने गड्ढे में हाथ डाल दिया ।
हथेली के बीच एक लोहे की टोंटी-सी आई । टोंटी को उसने दाईं ओर घुमा दिया। उसके घूमते ही कुएं में ऐसी आवाज गूंजने लगी, जैसे कोई भारी मशीन कुएं में चल रही हो । कुएं की वह धरती, जिस पर वन्दना और घास थी, कुएं की दीवारों से उसी प्रकार सटी हुई नीचे को खिसकने लगी। कुछ देर बाद कुएं की दीवार में एक दरवाजा नजर आया। इस दरवाजे की केवल चौखट थी, किवाड़ नहीं थे। दरवाजे के निचले हिस्से से अटककर कुएं की धरती रुक गई । वन्दना उसी दरवाजे में से होकर एक कोठरी में पहुंच गई।
जैसे ही उसने कोठरी में पैर रखा -
उसके पीछे गड़गड़ाहट हुई——तेजी से पलटकर वन्दना ने पीछे देखा, कुएं और कोठरी के बीच का दरवाजा बन्द हो चुका था। इस कोठरी में चिराग जल रहा था। एक दीवार पर शानदार फ्रेम में जड़ी हुई अपनी तस्वीर
को वन्दना देखती रह गई ।
वह कुछ इस तेजी से इस मायाजाल में फंसती चली गई थी कि कुछ समझ नहीं पा रही थी ।
हर स्थान पर अपनी तस्वीर का मतलब तो उसकी समझ में बिल्कुल नहीं आया था । कोठरी में अन्य कोई वस्तु नहीं थी, वह धीरे-धीरे अपनी तस्वीर की ओर ही बढ़ गई। अभी वह तस्वीर के समीप पहुंची ही थी कि एकाएक कोठरी की छत में एक मोखला बना ।
वन्दना ने तेजी से पलटकर उधर देखा, मोखले में इस समय एक आदमी नजर आ रहा था । उसका चेहरा काली स्याही से पुता हुआ था और सूरत पहचान में नहीं आ रही थी ।
एक रस्सी उसने कमरे में लटका दी और धीरे से बोला
“महारानी... जल्दी से इस पर चढ़ जाएं । "
***
गोली अलफांसे के कान को स्पर्श करती हुई निकल गई। अनायक गति से भागता हुआ घोड़ा एकाएक अब दोनों पैरों पर खड़ा होकर जोर से हिनहिनाया। मगर अलफांसे के ऐड़ लगाते ही वह पुनः हवा से बात करने लगा। वह जानता था कि उसके पीछे आने वाले दुश्मनों की संख्या चार है।
–“धांय !”
और वे चार चालीस के बराबर हैं ।
अपने-अपने देश के माने हुए जासूस... जेम्स बांड, माइक, हुचांग और बागारोफ ।
चारों ही मौत के फरिश्तों की भांति अलफांसे के पीछे लगे हुए थे। इस समय अलफांसे का घोड़ा एक पहाड़ी दर्रे में दौड़ रहा था... कई बार पत्थरों से टकराकर घोड़ा लड़खड़ा भी चुका था। किन्तु अपनी योग्यता से अलफांसे ने उसे गिरने से बचा लिया था । अलफांसे के जिस्म पर कपड़े अवश्य थे, किन्तु तार-तार हो चुके थे। जिस्म के विभिन्न स्थानों से खून टपक रहा था । बालों में बुरी तरह धूल अटी हुई थी । सिर के चारों ओर बिखरे बाल, दाढ़ी और मूंछें इस कदर बढ़ी हुई थीं, मानो महीनों से शेव न करवाई हो ।
और वास्तव में... उसे अनुमान नहीं था कि वह कितने दिन उस कैद में रहा ।
अलफांसे—यह वही अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी अलफांसे था — जो यह दावा करता था कि दुनिया की कोई भी शक्ति मुझे मेरी इच्छा के विरुद्ध कैद नहीं कर सकती। वही अलफांसे इस बार एक ऐसी विचित्र कैद में फंसा था कि लाख चाहने के बाद भी वह स्वतन्त्र नहीं हो सका था ।
और अब...जैसे स्वयं प्रकृति ने ही उसे उस कैद से बाहर ला पटका था ।
कैद से बाहर आते ही एक नई मुसीबत उसके सामने आ खड़ी हुई ।
जेम्स बांड, हुचांग, माइक और बागारोफ।
उसने तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी कि ये चार महान हस्तियां उसे यहां मिल सकती हैं। काफी दिमाग घुमाने के बावजूद भी वह निर्णय नहीं कर पाया था कि दुनिया के विभिन्न चार देशों के वे महान जासूस दुनिया से अलग-अलग इस टापू पर क्या कर रहे हैं। हालांकि अलफांसे इन चार जासूसों से इस प्रकार डरकर भागने वाली आसामी नहीं था, किन्तु शस्त्र के नाम पर इस समय उसके पास एक कील तक नहीं थी और उन चारों के पास रिवॉल्वर थे ।
कदाचित यही कारण था कि अलफांसे उनकी नजरों से ओझल हो जाना चाहता था ।
पीछे आने वाली घोड़ों की टापों की आवाज अलफांसे को अभी तक बता रही थी कि वे लोग उसका पीछा कर रहे हैं। अलफांसे का मस्तिष्क तीव्रता से कोई ऐसा उपाय सोचने में व्यस्त था, जिससे इन चारों को काबू में किया जा सके ।
अभी वह सोच भी नहीं पाया था कि घोड़े के पैर किसी उभरे हुए पत्थर से टकराए ।
काफी प्रयासों के बाद भी इस बार अलफांसे न स्वयं सम्भल सका और न ही घोड़े को संभाल सका । वेग से भागता हुआ घोड़ा पत्थरों पर रपटा और एक साथ दो-तीन कलाबाजियां खाकर वह दूर तक लुढ़कता चला गया। अलफांसे का जिस्म हवा में लहराया | चोट इतनी जबरदस्त लगी थी कि उसे अपना मस्तिष्क सुन्न - सा होता नजर आने लगा ।
आंखों के समक्ष अन्धकार - सा छाने लगा —– किन्तु अपनी आत्मशक्ति का प्रयोग करके ही उसने स्वयं को सम्भाल लिया ।
उसके सिर पर लगे ताजे घाव से तेजी के साथ खून बह रहा था । इसके बावजूद भी अलफांसे ने कम फुर्ती का प्रदर्शन नहीं किया। उन चारों के दर्रे के मोड़ पर घूमने से पहले ही उसने स्वयं को एक विशाल पत्थर की बैक में छुपा लिया ।
• उसने देखा – दर्रे के इस तरफ एक पहाड़ी थी। पहाड़ी अधिक ऊंची नहीं थी। अलफांसे के दिमाग में आया... अगर वह इस पहाड़ी के दूसरी तरफ पहुंच जाए तो शायद वह जासूसों की पकड़ से दूर निकल सके। यह विचार दिमाग में आते ही उसने विचार को अन्जाम देना शुरू कर दिया। स्वयं को पत्थरों की बैक में रखता हुआ वह पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगा !
वह ऊपर चढ़ने में व्यस्त था कि तभी उसके कानों से जेम्स बांड का स्वर टकराया– "तुम बच नहीं सकते, अलफांसे... जहां भी छुपे हो, सामने आ जाओ।" अलफांसे ने सुना किन्तु ध्यान नहीं दिया । वह अपने कार्य में व्यस्त रहा। प्रतिपल वह पहाड़ी के दूसरी ओर पहुंचता गया। उस समय सूर्य अस्त होना चाहता था, जब वह पहाड़ी के दूसरी ओर पहुंच चुका था । अब वह जासूसों के खतरे के प्रति सन्तुष्ट हो चुका था। उसके चारों ओर सन्नाटा था। चारों ओर दूर-दूर तक फैली हुई पहाड़ियां थीं – वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि उसे किधर बढ़ना चाहिए । अनेकों प्रश्नवाचक चिन्ह उसके मस्तिष्क को जकड़े हुए थे। कुछ भी नहीं सूझा तो वह यूं ही एक तरफ को बढ़ गया ।
चलते-चलते उसे रात हो गई... इन्सान तो इन्सान, किसी प्राणी तक से उसका सामना न हो सका ।
तीन दिन और तीन रात अलफांसे भूखा-प्यासा इन पहाड़ियों में भटकता रहा। चौथे दिन का प्रभात था, जब उसने स्वयं को एक पहाड़ी की चोटी पर पाया। सामने उसे घना हरा-भरा जंगल दिखाई दे रहा था । उस जंगल तक पहुंचने के लिए पहाड़ी के नीचे उतरना था । शायद उसे यहां जीवन का कोई चिन्ह मिल जाए——यही धारणा लिए वह नीचे उतरने लगा ।
जब वह पहाड़ी से नीचे उतरा तो संध्या हो चुकी थी।
वह बुरी तरह थककर चूर हो गया था, इसलिए वहीं बैठकर सुस्ताने लगा। उस समय सूर्य की अन्तिम लालिमा से सारा गगन लाल था जब वह उठकर जंगल की ओर चला । जंगल में घुसा तो घूमते-घूमते रात हो गई । एक वृक्ष से कुछ अजीब से फल खाकर उसने अपना पेट अवश्य भर लिया था ।
उसे अनुमान नहीं था कि उस समय रात का क्या समय था, जब अचानक वातावरण में तेजी से हवा चलने लगी। कुछ ही देर बाद न जाने कहां से बादलों ने आकर गगन पर डेरा जमा लिया, देखते ही देखते तीव्र वेग से वर्षा होने लगी ।
सारा जंगल सांय-सांय करने लगा ।
वातावरण बेहद डरावना होता चला गया | जोर-जोर से बिजली कड़कने लगी। अलफांसे एक वृक्ष के तने पर भयभीत बन्दर की भांति लिपटा बैठा था। एकाएक बड़ी जोर की गड़गड़ाहट के साथ बिजली चमकी ।
सारा जंगल क्षण क्षण मात्र के लिए प्रकाश से नहा गया ।
इस प्रकाश में अलफांसे ने जंगल के मध्य बनी उस विशाल हवेली को देखा और चौंक पड़ा। बिजली चमककर पुनः विलुप्त हो गई थी। अतः अब वह उस हवेली को नहीं देख सकता था किन्तु क्षण मात्र के लिए उसे चमकने वाली ये हवेली उसके मस्तिष्क में एक अन्य प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर खड़ी हो गई ।
उसकी दृष्टि उसी ओर जमी हुई थी... | बिजली पुनः तेज गड़गड़ाहट के साथ चमकी । इस बार अलफांसे ने स्पष्ट देखा — वास्तव में जंगल के बीच एक विशाल हवेली बनी हुई थी । न जाने क्यों, अलफांसे की आंखों में चमक उभर आई। निरन्तर कई दिन से उसने किसी आदमी की सूरत नहीं देखी थी – न जाने उसे क्यों यह विश्वास सा हुआ कि इस हवेली में निश्चय ही कोई-न-कोई मानव होगा ।
हालांकि मौसम बेहद खतरनाक और डरावना था, किन्तु वह वृक्ष से
नीचे उतर आया । जंगल की धरती, जो इस समय कीचड़ में बदल चुकी थी, पर चलता हुआ अलफांसे हवेली की ओर बढ़ा | पल-पल गर्जना के साथ चमकने वाली बिजली उसका मार्गदर्शन कर रही थी ।
तब, जबकि वह हवेली के समीप पहुंचा -
सांय-सांय करती हवा के मध्य किसी दैत्य की भांति खड़ी हवेली उसे बेहद भयानक लग रही थी ।
हवेली का मुख्यद्वार किसी राजमहल के द्वार से कम बड़ा नहीं था । किन्तु मुख्यद्वार का दरवाजा न जाने कब का टूट चुका था । इस समय हवेली के अन्दर जाने के लिए कोई अवरोध नहीं था । अलफांसे द्वार से प्रविष्ट होकर अन्दर चला गया । जैसे ही वह गैलरी में घूमा, उसने एक कमरे में किसी चिराग का पीला प्रकाश देखा । वह उत्सुक सा होकर उसी तरफ बढ़ गया—किन्तु दबे-पांव ।
वह कमरे के समीप पहुंच गया, उसी समय–
- " सुना है आजकल यहां बख्तावरसिंह भी आया हुआ है । " कमरे में से निकलकर एक पुरुष का स्वर उसके कानों से टकराया ।
" - "लेकिन गौरवसिंह का नाम सुनकर उसे पसीना छूट जाता है । " किसी दूसरे पुरुष की आवाज ।
इससे पूर्व कि अलफांसे इससे अधिक कुछ सुन पाए, एक तलवार की नोक उसने अपनी पीठ पर महसूस की । वह तेजी से पलटना ही चाहता था कि पीछे से स्वर उभरा – "चालाकी की तो सर धड़ से अलग कर दूंगा।" ..
पीछे से उभरने वाली इस चेतावनी ने अलफांसे को ठिठका दिया।
“कौन है, गुलशन ?” कमरे से एक आवाज उभरी।
–“कोई ऐयार लगता है, छुप-छुपकर बातें सुन रहा था।" अलफांसे के पीछे वाले ने कहा ।
कमरे से बाहर एकदम तीन आदमी निकले। तीनों ने अच्छी तरह अलफांसे की सूरत का मुआयना किया और इसके बाद उसे कमरे में ले जाया गया। कमरे में उसे एक दीवार के सहारे खड़ा कर दिया गया ।
चारों उसके सामने खड़े उसे घूर रहे थे ।
- "पहचान में नहीं आता – शायद सूरत बदल रखी है।" उसमें से एक बोला ।
–“जी, मैं कोई ऐयार नहीं हूं।” अलफांसे ने कहा—“मैं तो एक मुसीबत का मारा हूं जो इस टापू पर फंस गया हूं।"
-"क्या नाम है तुम्हारा ?” उनमें से एक ने पूछा ।
—“अलफांसे।"
—“अलफांसे !” उसका नाम सुनते ही चारों एकदम चौंककर बोले। ये चारों ही इस प्रकार हैरत के साथ अलफांसे की सूरत देख रहे थे, मानो दुनिया में उनके लिए सबसे अधिक आश्चर्य की वस्तु अलफांसे का नाम है। उन चारों के चेहरों पर अजीब-से भाव उभर आए थे, उस पर से नजर हटाकर चारों ने हैरत के साथ एक-दूसरे की ओर देखा— —मानो उन्हें विश्वास न हो कि सामने खड़ा व्यक्ति अपना नाम ठीक बता रहा है। अलफांसे चमत्कृत-सा उन चारों के चेहरे देख रहा था ।
–“बकते हो तुम।" उन चारों में से एक बोला – “तुम्हारा नाम अलफांसे नहीं हो सकता।"
बुरी तरह चौंका अलफांसे । यह वाक्य उसने पहली बार सुना था । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर आज एकदम उसके नाम में क्या विशेषता उभर आई है जो चारों में से एक भी व्यक्ति उसका नाम अलफांसे मानने को तैयार नहीं है। अलफांसे यह भी जानता था कि अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर उसका नाम प्रसिद्ध है, किन्तु यह तो उसने कल्पना भी नहीं की थी कि दुनिया से बिल्कुल अलग इस टापू पर भी व्यक्ति उसके नाम से परिचित ही नहीं, बल्कि ऐसे लोग होंगे जो उसके नाम पर सन्देह भी करने लगें । वह नहीं समझ पा रहा था कि दो-चार दिन में ही आखिर उसके नाम में क्या विशेषता पैदा हो गई है, वह बोला – मैं बकता नहीं हूं जनाब, वाकई मेरा नाम अलफांसे है।”
—"तुम ही अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी के नाम से विख्यात हो ?”
" – "बिल्कुल हूं।" अलफांसे बोला— “लेकिन आप लोगों को मेरे बारे में कैसे पता ?"
— " तो तुम यहां कैसे आ गए ?" एक ने प्रश्न किया । चमत्कृत रह गया अलफांसे ।
जो एकदम असाधारण था, वह एकदम हो गया । पलक झपकते ही उन चारों व्यक्तियों में से एक ने फुर्ती के साथ तलवार निकाली और केवल एक क्षण के लिए उसकी तलवार हवा में चमकी और क्षण मात्र उसने अलफांसे से प्रश्न करने वाले अपने ही साथी की गर्दन धड़ से अलग कर दी। उसकी गरदन और धड़ एक पल अलग होकर तड़पे और में शान्त हो गए।
सनाक__सनाक___!
शेष बचे हुए दो व्यक्तियों ने भी तलवारें खींच लीं। पैंतरा बदलकर तीनों अलग-अलग दिशाओं में फैल गए ।
" इसे मैं गिरफ्तार करूंगा।" वह बोला, जिसने अपने एक साथी की गर्दन उड़ा दी थी।
- "इतने खूबसूरत नहीं हो तुम। " एक अपनी तलवार को लहराता हुआ बोला— “ये मेरा शिकार है। "
— "तुम दोनों के धड़ मैं एक ही पल में अपनी तलवार से अलग कर दूंगा । " तीसरा भी पैंतरा बदलकर बोला – "किसकी ताकत है जो गुलशन के होते उसके शिकार पर आंख भी उठा सके।" -
अलेफांसे—वह अवाक् था – चमत्कृत !
उसकी समझ में नहीं आया कि उसका नाम सुनते ही वे एक-दूसरे के दुश्मन कैसे बन गए। अलफांसे मूर्ख-सा उन्हें देखता रह गया और उनमें तलवारी जंग छिड़ गई । अलफांसे दीवार के सहारे चुपचाप खड़ा सारी स्थिति को समझने का प्रयास कर रहा था ।
तीनों एक-दूसरे पर घातक हमले कर रहे थे ।
एकाएक अलफांसे को न जाने क्या सूझा — उसने मृत व्यक्ति की म्यान से तलवार खींच ली। तलवार सम्भालकर वह दरवाजे की ओर बढ़ा, किन्तु तभी तीनों में से एक तलवार लेकर उसके सामने आ गया – “कहां जाते हो ?"
— "तुम मूर्खो से दूर । " अलफांसे ने कहा।
बाकी दोनों एक-दूसरे से लड़ने में व्यस्त थे ।
“ठहरो !" उसी समय कमरे में एक अन्य आवाज गूंजी। अलफांसे के साथ-साथ चौंककर तीनों ने दरवाजे की ओर देखा — वहां एक सफेद नकाबपोश खड़ा था। उनमें से एक ने गुर्राकर पूछा —— "कौन हो तुम ?"
— “मेरा परिचय चाहते हो ?" सफेद नकाबपोश ने कहा – “मैं ये हूं।" कहने के साथ ही उसने पत्थर का बना एक छोटा-सा बन्दर आगे कर दिया—–पत्थर का ये बन्दर ठीक इस प्रकार का था, जैसे बच्चों के खेलने का खिलौना।
बन्दर को देखते ही तीनों के मुंह से एक भयानक चीख निकल गई।
अलफांसे को लगा, जैसे उसके दिमाग की समस्त नसें कांप रही हैं ।
पत्थर के उस बन्दर में उसे किसी प्रकार की विशेषता नजर नहीं आ रही थी, किन्तु वे तीनों इस प्रकार कांप रहे थे, मानो नकाबपोश के हाथ में रिवॉल्वर हो ।
***
अब हम अपने पाठकों को विजय, विकास, रघुनाथ, रैना, ठाकुर साहब और ब्लैक ब्वॉय के पास ले चलते हैं। आपको याद होगा कि इन पांचों ने मिलकर विजय को बेहोश कर दिया था लेकिन जैसे ही विकास विजय को उठाने के लिए आगे बढ़ा, वहां एक आवाज गूंजी, जिसने विजय को अपना पिता बताया और उसने सबको विजय से दस-दस कदम पीछे हट जाने का आदेश दिया।
विकास से लेकर ठाकुर साहब तक का दिमाग भन्नाकर रह गया।
विजय का लड़का |
यह उन सबके लिए विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य था। हतप्रभ - से उन सभी ने आदेश का पालन किया। उसी समय अंधेरे में से एक साया निकलकर बेहोश पड़े हुए विजय के पास आ गया। उसके सारे जिस्म पर काले कपड़े थे, चेहरे पर काला नकाब उसने विजय की हालत देखी और एकदम भयानक ढंग से चीख पड़ा – “ये हालत किसने की है, मेरे पिता की ?"
- "पहले तुम बताओ, तुम कौन हो ?” विकास ने पूछा।
-"बहरे तो नहीं लगते तुम !" नकाबपोश बोला – “बता चुका हूं कि मैं मिस्टर विजय का लड़का हूं।"
-"अभी तो गुरु की शादी भी नहीं हुई।" विकास बोला – "फिर तुम इतने लम्बे-चौड़े उनके बेटे कहां से आ गए ?"
" — "तुम अभी बच्चे हो । " नकाबपोश ने कहा – "ठाकुर साहब, मेरी मां, पिता को पुकार रही है, कृपया इन्हें मेरे साथ जाने दें । "
- "तुम्हारी मां का क्या नाम है ? " ठाकुर साहब ने बात की गहराई तक पहुंचना चाहा।
"कांता ।" नकाबपोश ने कहा।
नाम सुनते ही पांचों अवाक्-से रह गए। यह नाम उनके लिए एक गहरा रहस्य बनकर रह गया था। अचानक ही न जाने कैसे विजय को इस नाम की धुन लग गई थी। वह हर हालत में कान्ता के पास पहुंचना चाहता था। अभी कांता का रहस्य स्पष्ट हुआ नहीं था कि एक यह व्यक्ति और उत्पन्न हो गया था, जो स्वयं को विजय और कान्ता का लड़का कहता था।
''तुम्हारी मां कहां है ?" ठाकुर साहब ने प्रश्न किया।
-"यह मैं पिताजी के अलावा और किसी को नहीं बताऊंगा।" उसने दृढ़ता के साथ कहा। "
-"तब तुम गुरु को इस तरह यहां से ले जा भी नहीं सकोगे।विकास ने दृढता के साथ कहा।
– "मैं जानता हूं कि तुम्हारा नाम विकास है... पूरे विश्व में आजकल तुम्हारे नाम का डंका बजता है। तुमसे टकराने वाले मौत से टकराना सरल समझते हैं। यह भी मैं जान चुका हूं कि अमेरिका और चीन का एक-एक नागरिक तुम्हारे नाम से कांपता है, लेकिन तुम नहीं जानते कि मेरा नाम गौरव है और विजय जैसे पिता का खून मेरी रगों में दौड़ रहा है। मैं यहां से पिता को लेकर ही जाऊंगा।"
-" विकास के होते यह नामुमकिन है ।" ताव-सा आ गया विकास को ।
–“तुम मुझे ऐसे मर्द नजर नहीं आते।" गौरव ने भी बेहिचक कहा – “अगर अपने अन्दर गौरव से टकराने की शक्ति समझते हो तो इस आग उगलने वाले तमन्चे को फेंककर अकेले आ जाओ मैदान में । "
-" आज फैसला इसी बात पर रहा।" विकास का चेहरा कनपटी तक सुर्ख हो गया—“अगर तुमने मुझे परास्त कर दिया तो तुम विजय गुरु को आराम से ले जा सकते हो, अगर मुझसे परास्त हो गए तो तुम्हें अपना सारा रहस्य बताना होगा । "
" — "मुझे खुशी है कि यहां कोई मर्द तो मिला ।" गौरव ने म्यान से तलवार निकालकर एक तरफ फेंकते हुए कहा।
“आज तक विकास को भी तुम्हारी तरह चैलेंज करने वाला नहीं मिला था । ” कहने के साथ ही विकास आगे बढ़ा |
रघुनाथ ने उसकी कलाई थाम ली, बोला – “ठहरो, विकास । "
–“छोड़ो डैडी ।" विकास ने क्रोध में एक झटके के साथ हाथ छुड़ाया ।
विकास एक बार जो दिल में ठान ले, उसे तो खुदा भी नहीं निकाल सकता । सब देखते ही रह गए और विकास उछलकर गौरव के समीप पहुंच गया। गौरव भी एकदम सतर्क नजर आने लगा । विकास का एक-एक अंग क्रोध से कांप रहा था ।
पांचों ने देखा, गौरव नामक ये नकाबपोश किसी भी प्रकार विकास से कम लम्बा नहीं था । जिस्म तो उसका विकास से भी कहीं अधिक स्वस्थ था। मगर विकास भला इन बातों की कब परवाह करता था ? उसने अपने आज तक के जीवन में न जाने कितने शक्तिशाली लोगों को परास्त किया था ।
पलक झपकते ही विकास का जिस्म हवा में लहराया ।
और — गौरव कुछ समझ भी नहीं पाया था कि विकास की फ्लाइंग किक उसके चेहरे पर पड़ी। लड़खड़ाकर वह धड़ाम से कीचड़ में जा गिरा । मगर उस समय विकास भी चमत्कृत रह गया, जब गौरव को अगले ही क्षण उसने अपने सामने खड़ा पाया। इस बार विकास पुनः तेजी से उछला — किन्तु इस बार पासा उलट चुका था। फ्लाइंग किक इस बार गौरव के चेहरे पर लगने के स्थान पर गौरव के हाथों में आ गई। गौरव ने उसकी दोनों टांगें हवा में लपकीं और घुमाकर कीचड़ में पटक दिया ।
कीचड़ में दूर तक फिसलता चला गया विकास।
भयानक तेजी के साथ गौरव ने उस पर जम्प लगा दी। वह भी विकास के पीछे-पीछे फिसलता हुआ विकास तक पहुंच गया। गौरव की बांहें विकास की गरदन में लिपट गई थीं और विकास की कलाइयां गौरव की गरदन में ।
दोनों अपनी-अपनी पकड़ का कसाव बढ़ाते जा रहे थे।
दोनों का ही गला घुटने लगा... कुछ ही देर में विकास को अहसास हो गया कि शारीरिक शक्ति के मामले में गौरव उससे अधिक ही है, किन्तु इस बीच विकास यह भी जान चुका था कि दांव-पेच के मामले में गौरव उसके पासंग भी नहीं है...तभी
उसने गौरव की गरदन छोड़कर !
एकदम अपनी दो अंगुलियां नकाब में से झांकती उसकी आंखों में मारीं ।
गौरव के कंठ से चीख निकल गई। उसकी पकड़ से न केवल विकास की गरदन मुक्त हो गई, बल्कि वह कीचड़ में जा गिरा।
इसके बाद — विकास भला शत्रु को सम्भलने का अवसर क्यों देता ! अपने बूट की एक ठोकर उसने गौरव के नकाब से ढके चेहरे पर जोर से मारी। एक चीख के साथ गौरव उछलकर दूर जा गिरा। विकास ने तुरंत दूसरी ठोकर रसीद कर दी।
इस प्रकार लड़के ने उसे अपनी ठोकरों पर रख लिया ।
और शायद नवीं अथवा दसवीं ठोकर पर बुरी तरह मात खा गया विकास ।
गौरव के हाथ में उसकी टांग आई और उसने एक तेज झटका दिया। फिरकनी की भांति हवा में लहराया विकास और कच्च-से कीचड़-भरी धरती पर गिरा। उसने फुर्ती से उठना चाहा, किन्तु गौरव का एक जबरदस्त घूंसा विकास के चेहरे पर पड़ा ।
जैसे कोई फौलादी घूंसा हो ।
विकास को लगा—जैसे उसके चेहरे का भूगोल बदल गया हो।
इस बार जैसे गौरव की घुट्टी चढ़ गई। गौरव भी यह अच्छी तरह महसूस कर चुका था कि अगर उसने विकास को अवसर दे दिया तो वह किसी भी प्रकार स्वयं को पराजित होने से नहीं बचा सकेगा। उसने झपटकर कीचड़ में पड़े हुए विकास की एक टांग पकड़ी और दूर तक घसीटता ले गया। विकास अपना सन्तुलन नहीं बना पा रहा था । एक पर ठहरकर गौरव अपने सारे जिस्म का भार गरदन पर डालता हुआ बोला— “बोलो, दुनिया में हरेक का बाप है या नहीं ?"
और एक ही क्षण में चकरा गया गौरव |
उस बेचारे को तो यह भी मालूम नहीं हो सका कि नीचे पड़े हुए विकास ने आखिर कौन-से दांव का प्रयोग किया... उसे तो केवल इतना महसूस हुआ कि न जाने कैसे उसका जिस्म हवा में उछलता चला गया। जब नीचे आया तो एक ठोकर उसकी पसलियों में पड़ी। एक चीख के साथ गौरव कीचड़ में फिसलता चला गया ।
विकास पर खून हावी हो चुका था। अगले पल गौरव ने केवल इतना देखा कि विकास उसके सीने पर सवार था। उसके दोनों हाथ गौरव की गर्दन पर थे और विकास की ये खूनी गुर्राहट — “ये तो बहुत पहले से मानता हूं बेटे कि दुनिया में सबका बाप है, लेकिन हममें से कौन बाप और कौन बेटा ?"
और गौरव की दोनों टांगें उसके सिर से टकराईं ।
उसके बाद !
गौरव और विकास का खूनी द्वन्द्वयुद्ध |
“भैंसा... जैसे दो खूनी गेंडे भिड़ गए हों। उतनी जबरदस्त लड़ाई, पांचों सांस रोककर देखते रहे। कभी विकास बुरी तरह गौरव पर हावी हो जाता कभी ऐसा लगता कि विकास गौरव के सामने एक बच्चा मात्र है। दोनों पूरी तरह कीचड़ के पुतले बन चुके थे। ठाकुर साहब से लेकर रैना तक के रोंगटे खड़े हो गए । तीस मिनट तक निरन्तर ये युद्ध चला... एक-दूसरे को परास्त करने में वे इतने लीन थे कि एक-दूसरे के अतिरिक्त उन्हें अपने आसपास की स्थिति का किंचित-भर भी अहसास न रहा ।
यहां तक कि लड़ते-लड़ते दोनों खूनी दलदल में जा गिरे।
दलदल में भी एक-दूसरे के खून के प्यासे गौरव और विकास लड़ते रहे। दोनों एक-दूसरे से भिड़े हुए दलदल के गर्त में डूबने लगे। उस समय विकास बुरी तरह चौंक पड़ा... उसने महसूस किया कि किसी जानवर ने उसके जिस्म को बुरी तरह लपेट लिया है ।
उसी समय किसी अजगर की फुंफकार वहां गूंजी।
विकास की हड्डियां जैसे चरमराने की सीमा तक पहुंच गईं। उसके जिस्म पर दलदल के जहरीले अजगर का दवाब बढ़ता जा रहा था। उसी समय विकास ने अपनी आंखों के सामने लहराते अजगर के फन को देखा — विकास के हाथ तक उस अजगर ने अपने जिस्म से लपेट रखे थे।
गौरव ने यह भयानक दृश्य देखा ।
जंगली जानवरों से लड़ने का अभ्यस्त गौरव ।
गौरव... जैसे दुनिया का सबसे भयानक इन्सान था। खूनी ढंग से वह झपटा...अजगर का फन उसने अपनी दोनों हथेलियों के बीच फंसा लिया, अजगर ने अपना भयानक जबड़ा खोलना चाहा, किन्तु गौरव उसका फन भींचने में अपने जिस्म की सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा था। यहां तक कि अजगर के कंठ से कंपकंपा देने वाली चीख निकल गई।
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