“भैया.... भैया.... ।”
पाँच मिनट ही हुए थे कि देवराज चौहान चौंककर उठ गया ।
युवती की तेज आवाज भैया-भैया बार-बार उसके कानों में पड़ रही थी ।
अगले ही पल कमरे के बाहर दौड़ते कदमों की आवाजें सुनाई दीं।
देवराज चौहान की निगाह बंद दरवाजे पर जाकर ठहरी कि उसी पल दरवाजा खुला, तूफान की रफ्तार से। दरवाजे पर बीस बरस की लड़की खड़ी थी। वो जीन्स-टॉप और जूतों में थी। पीठ पर वैसा पिट्ठू बैग था; जैसा कि आमतौर पर कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ इस्तेमाल करती हैं। देवराज चौहान ने देखा वो साधारण कद-काठी की लड़की थी। लम्बाई पाँच- दो थी। चेहरा खूबसूरत तो नहीं; परन्तु आकर्षक था। सिर के बाल पीछे की तरफ चिड़िया के घोंसले की तरह बाँध रखे थे। इस वक्त उसके चेहरे पर आवेश और खुशी उभरी पड़ी थी। सांस फूल-सी रही थी, शायद दौड़े आने की वजह से।
"भैया....। आप कहाँ चले गए थे।" कहने के साथ ही वो दौड़ी और देवराज चौहान की छाती से लगकर फफक कर रो पड़ी।
देवराज चौहान ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। सिर पर हाथ फेरा।
श्रेया के आँसुओं से उसने अपनी कमीज गीली होती महसूस की।
“मेरी बहन । श्रेया....।” देवराज चौहान के होंठों से बरबस ही निकला।
“आप कहाँ चले गए थे भैया.... । मुझे छोड़कर चले गए आप। सोचा नहीं आपने कि श्रेया आपके बिना कैसे रहेगी। जाना ही था तो कम-से-कम मुझे बताकर जाते। मैं...मैं.... ।” श्रेया पुनः रो पड़ी।
देवराज चौहान को समझ नहीं आया कि क्या कहे।
“मैं आ गया हूँ श्रेया....।" देवराज चौहान ने कहा।
श्रेया देवराज चौहान से लिपटी रोती रही।
“अपने को संभाल श्रेया।" देवराज चौहान का एक हाथ उसकी पीठ पर, दूसरा सिर पर फिर रहा था--- "पगली, अब रोने की क्या जरूरत है। मैं आ तो गया हूँ। अब कहीं नहीं जाऊँगा। तेरे पास ही रहूंगा।”
तभी तेजी से नोरा ने भीतर प्रवेश किया और उन दोनों को देखकर ठिठकी।
देवराज चौहान ने भी नोरा को देखा।
श्रेया का सुबकना अभी भी जारी था।
“अपने को संभाल मेरी बहना।" देवराज चौहान ने श्रेया की पीठ थपथपाई--- “अब सब ठीक है।”
नोरा पास आ पहुँची और श्रेया से मुस्कुराकर कहा---
“जब तेरे भैया चले गए थे, तब भी रोती थी और अब आ गए हैं, तो तब भी रो रही है।”
श्रेया देवराज चौहान की छाती पर सिर रखे सुबकती रही।
देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
नोरा ने श्रेया को दोनों कंधों से थामकर पीछे हटाते हुए कहा---
"भैया को तंग मत कर। कुछ देर पहले तो आए हैं। सारी शिकायतें अभी करेगी क्या?"
नोरा ने श्रेया को संभाला। श्रेया अलग हुई।
देवराज चौहान ने देखा, उसकी आँखें, गाल, सब आंसुओं से भरे थे ।
श्रेया अभी भी सुबक रही थी और देवराज चौहान को देखकर बोली---
"अब तो मुझे छोड़कर नहीं जाओगे ना भैया?"
"नहीं।" देवराज चौहान ने छोटी-सी मुस्कान के साथ श्रेया के सिर पर हाथ फेरा--- "गया तो मैं पहले भी नहीं था।"
"नहीं गए?” श्रेया के होंठों से निकला--- "तो दस महीने कहाँ रहे?"
"एक्सीडेन्ट हो गया था।" देवराज चौहान श्रेया को सामान्य कर देना चाहता था।
"तो फोन कर देते। दस महीनों में एक बार भी किसी को फोन नहीं.... ।”
"एक्सीडेन्ट के बाद मुझे ठीक से कुछ याद नहीं रहा....।"
श्रेया कुछ कहने लगी कि नोरा ने कहा---
"ज्यादा सवाल-जवाब करके अपने भैया को परेशान मत कर....।"
“भैया मेरे से कभी परेशान नहीं होते भाभी।” श्रेया ने मुँह बनाकर कहा--- “अभी तो मैंने भैया से बातें भी शुरू नहीं कीं।"
देवराज चौहान ने जेब से रूमाल निकालकर श्रेया को देते हुए कहा---
"अपना चेहरा साफ कर।" श्रेया ने फौरन रूमाल से अपना चेहरा साफ किया; परन्तु उसकी आँखों से पुनः आंसू बह निकले।
“ऐ, फिर रोने लगी।” बड़े भाई के प्यार के साथ देवराज चौहान ने श्रेया का गाल थपथपाया।
रोते हुए श्रेया ने पुनः देवराज चौहान की छाती पर सिर रख दिया।
देवराज चौहान ने प्यार भरा हाथ उसके सिर पर फेरते हुए कहा।
“ठीक है, रो ले। अब नहीं रोकूंगा ।"
श्रेया उसी पल अपने को संभालते अलग हुई और रूमाल से अपना चेहरा साफ करते कह उठी---
“अब तो नहीं जाओगे भैया?"
“नहीं। मैं तो पहले भी नहीं गया था। बताया तो....।"
“बस-बस।" नोरा बीच में बोली--- "अपने भैया को परेशान मत....।"
"मैं परेशान कर रही हूं?" श्रेया पाँव पटक कर नोरा से बोली।
जवाब में श्रेया को देखती नोरा मुस्कुराई ।
"मैंने पहले भी कहा है, भैया मेरे से कभी परेशान नहीं होते।" श्रेया ने कहकर देवराज चौहान का हाथ थामा--- "चलो भैया ।"
"कहाँ?"
“मेरे कमरे में।” श्रेया बच्चियों की तरह मचलकर बोली--- “मुझे तो भाभी बात ही नहीं करने दे....।" -
“अरे, मैंने कब मना किया है कि....।”
“ये मना ही तो है, बार-बार तुम मुझे कह रही हो कि मेरी वजह से भैया परेशान हो रहे हैं।” श्रेया ने शिकायत की।
“ठीक है ठीक है। अब नहीं कहती....तुम.... ।”
“नहीं भैया, तुम मेरे कमरे में चलो। हम वहाँ ढेर सारी बातें करेंगे।" श्रेया के स्वर में प्यार भरी जिद्द थी।
“मेरी बहन जैसा चाहती है, मैं वैसा ही करूंगा।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा।
“देखा भाभी।” श्रेया, नोरा को अंगूठा दिखाते बोली--- "दस महीनों में भैया जरा भी नहीं बदले। तुमसे ज्यादा वो मेरी बात मानते हैं। ये बात तुम पहले भी बहुत बार देख चुकी हो ।”
“हाँ-हाँ, अच्छी तरह जानती हूँ तुम भाई-बहन का प्यार.... ।”
श्रेया खिलखिला उठी।
“चलो।” श्रेया देवराज चौहान का हाथ थामें दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
देवराज चौहान ने इंकार नहीं किया और आगे बढ़ते नोरा पर नजर मारी।
नोरा मुस्कुराते हुए दोनों को देख रही थी। देवराज चौहान को पास आने का इशारा किया।
दरवाजे पर पहुँचते ही देवराज चौहान ने श्रेया के हाथ से हाथ छुड़ाते कहा---
“एक मिनट....।”
श्रेया कुछ समझ पाती, कि देवराज चौहान तेज-तेज कदमों से चलता नोरा के पास पहुँचा।
“तुम्हें याद है ना सूरज कि तुम श्रेया को चिंकी कहकर बुलाते हो।" नोरा का स्वर धीमा था।
देवराज चौहान ने सिर हिलाया और वापस श्रेया के पास जा पहुँचा।
श्रेया ने पुनः बच्चों की तरह देवराज चौहान का हाथ थामा और दरवाजे से बाहर निकल गए।
चमकती गैलरी में आगे बढ़ने लगे।
“मेरे भैया आ गए....।" श्रेया खुशी से चहकती, उछलती कह उठी ।
देवराज चौहान के चेहरे पर प्यार भरी मुस्कान थी ।
“तुम कहीं बाहर से आ रही हो चिंकी?" देवराज ने पूछा।
“कॉलेज से....।”
“पढ़ाई कैसी चल रही है?"
“एकदम बढ़िया। पर पढ़ाई की बात मत करना। अभी तो मैंने आपसे बहुत बातें करनी हैं। दस महीने की कसर पूरी करनी है। मैं आपके लिए एक-एक दिन, एक-एक हफ्ता और फिर महीने गिना करती थी।" श्रेया का स्वर भर्रा उठा--- "मेरे कमरे का कैलेण्डर देखना। मैं हर रोज सुबह उठकर, बीते दिन की तारीख पर काटा लगा देती थी कि कल भी आप नहीं आए। प्लीज भैया, मुझे छोड़कर मत जाना। मैं आपके बिना नहीं रह सकती। पापा तो रहे नहीं, अब आप ही तो मेरे.... ।”
“दिल छोटा मत कर चिंकी।" देवराज चौहान उसके मन की हालत समझता कह उठा--- "मैं अब कहीं नहीं जाने वाला। अपनी चिंकी के पास रहूंगा। बुरा वक्त निकल गया। मैं पहले की तरह तुम्हारे पास रहूंगा।"
“अब आप कहीं गए तो मैं सह नहीं सकूंगी भैया.... ।” श्रेया की आवाज अभी भी भर्राई हुई थी।
उसके साथ ही गैलरी में कई दरवाजे पार हो चुके थे कि श्रेया ने एक बंद दरवाजे को खोलते हुए कहा---
“आओ भैया। अब जी भरकर आपसे बातें करूंगी...।"
देवराज चौहान ने श्रेया के साथ कमरे में प्रवेश किया।
ये इतना ही बड़ा बैडरूम था, जितना कि नोरा का था; परन्तु इस कमरे की सजावट अलग थी। शायद ये श्रेया की पसन्द से कमरा सजाया गया था। वार्डरौब उसी दिशा में था, जिस दिशा में नोरा के बैडरूम में था; परन्तु बड़ा बैड दूसरी तरफ रखा हुआ था। सोफा और सैन्टर टेबल लगा था। राईटिंग टेबल भी कमरे में मौजूद था। एक तरफ लकड़ी की बड़ी-सी अलमारी थी, जिसके की-होल में चाबी फंसी नज़र आ रही थी। दीवार पर जंगल की खूबसूरत सीनरी लगी थी। ऐसी सीनरी कि चंद पल देखते रहने पर, देखने वाला खुद को उसी सीनरी के जंगल के भीतर महसूस करने लगता। ये कलाकार की काबलियत थी कि उसने अपने हाथों से ऐसी शानदार सीनरी बनाई थी।
देवराज चौहान की निगाह बैड के साईड में दीवार पर लगी एक तस्वीर पर जा टिकी।
तस्वीर उसकी यानि कि सूरज और श्रेया की थी।
तस्वीर में श्रेया कुछ छोटी, करीब दो साल पहले की तस्वीर लग रही थी ये।
देवराज चौहान अपलक-सा उस तस्वीर को देखता रह गया।
सूरज की तरफ ध्यान जाते ही उसके मस्तिष्क में पुनः खलबली मचने लगी थी।
“कहाँ खो गए भैया?”
श्रेया की आवाज सुनकर देवराज चौहान ने श्रेया को देखा।
“आओ भैया ।” श्रेया हाथ थामे देवराज चौहान को सोफे की तरफ खींचती बोली-- "कितने इंतजार के बाद मेरा कमरा आज खुशी से भरी सांसें ले रहा है। आप नहीं थे तो मुझे अक्सर रोना आ जाता....।"
"उस वक्त की बातें मत कर चिंकी। मैं आ गया हूँ। अब नई बातें कर।" देवराज चौहान ने प्यार से कहा।
दोनों लम्बे सोफे पर जा बैठे।
"अब सुनाओ भैया....।” श्रेया ने अभी भी देवराज चौहान का हाथ थाम रखा था।
“मैं तो तुम्हारे मुँह से बातें सुनना चाहता हूँ चिंकी।"
“मेरे मुँह से?”
“हाँ। मेरे जाने के बाद तुम्हारी जिन्दगी कैसी रही और....।"
“बहुत बुरी ।" श्रेया ने मुँह बनाया--- “कहीं भी मन नहीं लगता था। पढ़ने में भी नहीं लगता था, लेकिन पढ़ना जरूरी था। पढ़ाई बीच में रह जाती तो आज आपने बहुत नाराज होना था। मैं आपको नाराज कैसे देख सकती हूँ।"
देवराज चौहान मुस्कुराया। नजरें श्रेया पर थीं।
“अब ये मेरा आखिरी साल है पढ़ाई का याद है ना आपको वो बात?" श्रेया ने खुशी भरे स्वर में कहा।
“कौन-सी बात?"
"जब आपने कहा था कि मैं पढ़ाई पूरी कर लूँ, तब आप मेरी वो बात पूरी कर देंगे।" श्रेया ने आँख नचाई।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े; परन्तु चेहरे पर मुस्कान छाई रही।
"मुझे नहीं याद.... ।”
"झूठ। वो वाली बात आप नहीं भूल सकते। नहीं याद कहकर मुझे सताना चाहते हैं।"
“सच में, नहीं याद चिंकी। तुम बताओ।"
श्रेया के चेहरे पर हैरानी उभरी। कुछ पल वो देवराज चौहान को देखती रही।
“क्या हुआ चिंकी?”
“भैया, कहीं आप मेरी वो बात पूरी ना करना चाहते हों, तभी आप भूलने का बहाना कर.... ।”
“सच में, मुझे नहीं याद कि तुम किस बात की बात कर रही हो। एक्सीडेन्ट के बाद मेरे सामने कुछ समस्या आ गई कि कई बातें मैं भूलने लगा हूँ। शायद तुम्हारी ये बात भी भूल.... ।”
“सच कह रहे हो भैया कि आपको वो बात याद नहीं?” श्रेया कुछ गंभीर दिखी।
“कसम से । नहीं याद-- तुम कहो.... ।”
तभी दरवाजा खुला और नोरा ने भीतर प्रवेश किया।
“भैया के साथ घुट-घुटकर बातें हो रही हैं।” नोरा ने हंसकर कहा।
“तुम यहाँ क्यों आईं भाभी। हमें बातें करने दो।”
“करो-करो।” नोरा ने देवराज चौहान को देखा--- "चार बज रहे हैं, जब से आए हो, कुछ खाया नहीं सूरज । खाने को कुछ भिजवा दूँ। चिंकी भी खा लेगी।”
“मुझे कुछ नहीं खाना। सिर्फ भैया से बातें करनी हैं।” श्रेया कह उठी--- “और भाभी, तुम अच्छी तरह जानती हो कि भैया दोपहर का खाना नहीं खाते। तुम बहाने से यहाँ मत आओ। मुझसे बातें करने के बाद भैया तुम्हारे ही पास आएंगे, तब जी भरकर बातें कर लेना। अब जाओ भाभी, हमें बातें करने दो।”
नोरा ने मुस्कुराकर गहरी सांस ली।
“चिंकी ने पहले मुझसे कोई खास बात कही थी।” देवराज चौहान नोरा से बोला--- “क्या वो तुम्हें पता है?”
“खास बात?” नोरा ने श्रेया को देखा--- “आपने तो चिंकी की कोई खास बात मुझे नहीं बताई थी ।”
“बता भी नहीं सकते।" श्रेया खिलखिलाकर बोली--- "मैंने मना कर दिया था कि वक्त आने से पहले भैया वो बात किसी से नहीं कहेंगे, तभी तो तुम्हें वो बात नहीं बताई भैया ने।"
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“खाने को कुछ नहीं चाहिए?" नोरा भी मुस्कुरा उठी थी।
"नहीं।"
“मैं भी यहीं बैठ जाती....।" नोरा ने कहना चाहा।
“नहीं, यहाँ नहीं।” श्रेया ने इंकार में सिर हिलाया--- "मुझे भैया से अकेले में बातें करनी हैं।"
“तुम बहुत जिद्दी होती जा रही हो चिंकी।" नोरा बोली।
“भाभी, मुझे जरा भी डांटा तो भैया तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। देख लेना।" श्रेया ने आँखें नचाई।
“ठीक है, मैं जाती हूँ।”
नोरा चली गई।
देवराज चौहान ने सिगरेट निकाली सुलगाने के लिए।
“सिगरेट नहीं भैया। आप ये भी भूल गए कि मेरे पास होने पर आप सिगरेट नहीं पीते हैं।"
देवराज चौहान ने सिगरेट जेब में रखते हुए कहा---
“बताओ, तुम किस बात की बात कर रही हो?”
“अमन की।”
“अमन ?”
“मेरा ब्वॉय फ्रेंड भैया।" श्रेया ने पलटकर कहा--- “अब तो याद आ गई बात?”
चंद पल चुप रहकर देवराज चौहान ने कहा
“चिंकी! एक्सीडेन्ट में मेरे सिर पर चोट आई थी, इसकी वजह से कई बातें अब मुझे पूरी तरह याद नहीं हैं। ये बात भी मुझे याद नहीं आ रही है, पर तुम ये बात किसी को बताना नहीं कि मेरे साथ ऐसा हो गया है।" देवराज चौहान ने कहा।
"ओह!” श्रेया ने दुःख भरे स्वर में कहा--- "मुझे नहीं पता थी ये बात भैया। भाभी को बताया आपने?”
“हाँ। नोरा से ये बात कह दी है। हो सकता है आने वाले वक्त में मुझे सब कुछ याद आ चले।"
"जरूर याद आ जाएगा।" श्रेया ने देवराज चौहान का हाथ थपथपाया--- “आपका एक्सीडेन्ट जबर्दस्त था भैया ?"
“हाँ। दस महीने मैं अस्पताल में ही रहा। दो दिन पहले ही मुझे वहाँ से छुट्टी मिली।"
"ओह! तो हमें फोन क्यों नहीं किया हस्पताल से?"
"मैं सब कुछ भूल गया था।"
श्रेया की आँखों में आंसू चमक उठे।
“आपने कितनी तकलीफ उठाई। इधर हम आपके आने का इंतजार....।"
"बीती बातों को मत कर चिंकी।" देवराज चौहान ने उसके सिर पर हाथ फेरा--- “तू अमन की बात कर। एक बार फिर मुझे सब कुछ बता । जो कहना है कह दे। कुछ भी छिपा मत.... ।”
“आपसे छिपाऊँगी भैया तो किससे कहूंगी। आप ही तो मुझे सबसे प्यारे हैं। वरना मेरा है ही कौन।” श्रेया की आँखों से आंसू निकलकर गाल पर आ लुढ़का--- “आप मेरे भैया भी हैं और पापा भी....।"
“बस-बस।" देवराज चौहान ने प्यार से डाँटते उसके आँसू साफ किए--- "अमन की बात बता।”
श्रेया ने गहरी सांस ली, फिर बोली---
“अमर मेरे कॉलेज में ही पढ़ता था। मेरे से एक साल सीनियर है। वो बहुत अच्छा लड़का है भैया । मेरा बहुत अच्छा दोस्त है।" कहने के बाद वो देवराज चौहान को देखने लगी।
“फिर?” देवराज चौहान बोला।
“हम दोनों एक-दूसरे को बहुत पसन्द करते हैं और.... और शादी करना चाहते हैं।” श्रेया ने एक ही सांस में कहा।
“तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है। मुझे कोई एतराज नहीं ।"
“ये तो आप पहले भी कह चुके हैं भैया।" श्रेया कह उठी।
“तो दिक्कत कहाँ है?"
“वो गरीब है।”
देवराज चौहान सोच भरी नजरों से श्रेया को देखने लगा।
श्रेया के चेहरे पर अब कुछ सहमापन आ गया था ।
"और तुम अमीर हो।" देवराज चौहान बोला।
श्रेया, देवराज चौहान को देखती रही।
“ऐसा तो नहीं कि उसकी नजर तुम पर ना होकर, तुम्हारे पैसे पर हो?" देवराज चौहान बोला।
“नहीं भैया । अमर ऐसा लड़का नहीं है।” श्रेया ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा--- “वो मुझे बहुत चाहता है। उसमें एक ही कमी है कि वो गरीब है। हमारी तरह दौलतमंद नहीं है।"
“इन बातों को मैं चैक करूंगा कि वो कैसा लड़का है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
“ये बात आपने तब भी कही थी, जब मैंने पहले आपको सारी बात बताई। आपने ये भी कहा था कि आप अमर से मिलेंगे। मैंने अमर को बता दिया था कि भैया तुमसे मुलाकात करेंगे, पर कुछ दिन बाद ही आप अचानक गायब हो गए।" श्रेया ने देवराज चौहान का हाथ थाम रखा था--- "अब...अब दस महीनों बाद आए हैं आप।"
देवराज चौहान ने श्रेया के सिर पर हाथ फेर कर कहा---
“मैं दो-तीन दिन में ही अमर से मिलूंगा।"
"सच भैया?” श्रेया का चेहरा चमक उठा।
“हाँ। अगर वो सिर्फ गरीब है, बाकी हर तरफ से ठीक निकला तो उसके लिए कुछ करूंगा।"
“क...क्या?"
“उसे कोई बिजनेस खुलवा दूंगा कि मेरी चिंकी को जिन्दगी भर तकलीफ ना हो।"
श्रेया की आँखों से आंसू बह निकले।
"भैया।” श्रेया का स्वर कांपा--- “आ... आप कितने अच्छे हैं...।"
“बस-बस...बहुत हो गया। चल चेहरा साफ करके आ नहीं तो मैं अमर से नहीं मिलूंगा।"
आँखों में आँसू और चेहरे पर खुशी लिए श्रेया उठी और एक तरफ बने बाथरूम के दरवाजे को खोलकर भीतर चली गई। देवराज चौहान की निगाह कमरे में घूमती रही। चेहरे पर सोचें दिखाई दे रही थीं। दो मिनट में ही श्रेया बाथरूम से बाहर आ गई। उसका चेहरा अब सामान्य दिख रहा था।
श्रेया देवराज चौहान के पास बैठती कह उठी---
“भैया! अब आप आ गए हैं, तो मेरी सारी फिक्र खत्म हो गई। नहीं तो मदन चाचा से बहुत डर लगता था।"
“मदन चाचा?” देवराज चौहान की निगाह श्रेया के चेहरे पर जा टिकी।
“हाँ।" श्रेया ने चिन्तित स्वर में कहा--- "आपके जाने के बाद वो कई बार बंगले पर आ चुके हैं। कहते हैं बंगला उनका है। पापा ने उनसे 180 करोड़ रुपया लेकर बंगला उनके पास गिरवी रख दिया था। हमारा बिजनेस तो मदन चाचा ने पापा की मौत के बाद ही हड़प लिया है। उन्होंने पापा के साईन किए कागज भी दिखाए थे आपको कि पापा ने मरने से पहले बिजनेस उनके नाम कर दिया। था। अब वो हमसे बंगला भी ले लेना चाहते हैं। बीस दिन पहले जब मदन चाचा आए तो बहुत गुस्से में थे। उन्होंने भाभी को साफ-साफ कहा कि बंगला खाली करके बाकी का बीस करोड़ ले ले, नहीं तो वो सख्त कानूनी कार्यवाही करेंगे।"
"तो नोरा ने क्या कहा?" देवराज चौहान का चेहरा बिल्कुल शांत था।
"भाभी ने इतना ही कहा कि जो भी बात करनी हो, आपसे करें। इस पर मदन चाचा ने साफ-साफ धमकी दी कि उसके पास और भी रास्ते हैं बंगला खाली कराने के। सीधी तरह नहीं माने तो दूसरा रास्ता इस्तेमाल करना पड़ेगा।" श्रेया के स्वर में कम्पन था--- "भैया, मदन चाचा बहुत बुरे हैं, कभी-कभी तो मुझे उनसे डर.... ।"
"डरने की जरूरत नहीं है। मैं सब ठीक कर दूंगा।" देवराज चौहान ने कहा।
"भैया! पापा ने आपसे कहा था कि उन्होंने अपने सारे हीरे-जवाहरात और बाकी की दौलत मदन चाचा के वॉल्ट केबिन में रखे हुए हैं। भाभी ने ये बात मुझे बताई थी, पर पापा की मौत के बाद मदन चाचा ने इंकार कर दिया कि उनके पास पापा ने अपनी दौलत रखवाई थी, आपको तो सब याद होगा ही। एक बार इस बंगले में मदन चाचा से आपका खूब झगड़ा हुआ था।"
देवराज चौहान एकटक श्रेया को देखे जा रहा था।
श्रेया अब परेशान दिख रही थी।
"अब क्या होगा भैया! मदन चाचा हमारा बंगला भी ले लेंगे....तब हम कहाँ रहेंगे?"
“चिन्ता मत कर। मैं मदन चाचा से बात करूंगा।" देवराज चौहान ने इतना ही कहा ।
“पर आपने तो कहा था कि आप मदन चाचा का मुकाबला नहीं कर सकते।" श्रेया ने देवराज चौहान को देखा।
"मैं कोई रास्ता निकालूंगा। तू परेशान मत हो। अब कोई और बात कर मुझसे..... ।"
■■■
नोरा ने कमरे में प्रवेश किया तो शाम के छः बज रहे थे। देवराज चौहान और श्रेया बातों में लगे थे। श्रेया की बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं। भैया के आने की खुशी में, उसकी जुबान चली जा रही थी। देवराज चौहान उसका दिल रखने के लिए बातों में लगा हुआ था।
“तुम भाई-बहन की बातें खत्म भी होंगी कि नहीं?" नोरा ने पास आते हुए कहा।
“तुम क्यों जल रही हो भाभी। ये मेरे भैया हैं।" श्रेया ने अंगूठा दिखाकर कहा।
“हाँ-हाँ, तेरे ही भैया हैं, किसी और के तो ये कुछ लगते ही नहीं। ऐसी भी क्या बातें कि तूने मुझे पास नहीं बैठने दिया।"
"प्राईवेट बातें हैं।"
“प्राईवेट?” नोरा मुस्कुराई ।
"भैया से पूछ लो, प्राईवेट हैं कि नहीं?” श्रेया ने देवराज चौहान को देखा।
“हाँ-हाँ, हमारी बातें प्राईवेट हैं।" देवराज चौहान भी मुस्कुराया और उठ खड़ा हुआ।
"कहाँ चले भैया?” श्रेया भी उठी।
“अब कुछ आराम करूंगा।"
“मेरी बातें याद हैं भैया ?”
“हाँ।"
“ऐसी भी क्या बातें हो रही हैं भाई-बहन के बीच?” नोरा हंस पड़ी।
“ये मेरे और भैया के बीच की बात है--है ना भैया?”
"हाँ मेरी बहन।" देवराज चौहान ने श्रेया के सिर पर हाथ फेरा--- “अब तू भी आराम....।"
“आपके घर आ जाने से मैं बहुत खुश हूँ भैया।"
देवराज चौहान ने श्रेया का गाल थपथपाया।
“आओ सूरज।” पास आकर नोरा ने देवराज चौहान की बाँह थाम ली ।
देवराज चौहान और नोरा दरवाजे की तरफ बढ़ गए। पीछे से श्रेया ने कहा---
“भाभी! आज से पहले की तरह डायनिंग टेबल पर ही डिनर करेंगे।"
"जरूर। और खाने का वक्त भी पहले की तरह नौ बजे का ही होगा।" दरवाजे से बाहर जाते नोरा कह उठी।
दोनों गैलरी में आगे बढ़े तो नोरा बोली---
“क्या कह रही थी चिंकी?”
"अमर नाम के लड़के की बात कर रही थी....जो कॉलेज में उससे एक साल सीनियर है और पढ़ाई पूरी कर चुका है। दोनों एक-दूसरे को चाहते हैं और शादी करना चाहते हैं।" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा।
“ओह....।”
"तुम्हें पहले मैंने ये बात बताई?”
"नहीं। क्यों?”
“चिंकी कहती है कि वो ये बात मुझे पहले भी बता चुकी है।"
“पर तुमने तो इस बारे में मुझे कभी कुछ नहीं बताया।"
“पता नहीं। मुझे याद नहीं।"
दोनों पहले वाले बैडरूम में प्रवेश कर गए।
“तुमने श्रेया से क्या कहा?"
“यही कि अमन से मिलूंगा। देखूंगा उसे। बात करूंगा। वो लड़का गरीब है, चिंकी ने कहा।”
नोरा ने कुछ नहीं कहा।
देवराज चौहान चेयर पर बैठता बोला---
"नीरज कहाँ है?”
"वो तो पूना में है।" नोरा भी सामने बैठ गई।
“पूना?" देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
"क्या बात है, तुम्हें तो कुछ भी याद नहीं। तुम्हें याद नहीं कि नीरज पूना में पढ़ता है।"
देवराज चौहान ने सिर हिलाकर गम्भीर स्वर में कहा---
"तुम्हें बता चुका हूँ कि मैं अधिकतर बातें भूल चुका हूँ।"
नोरा ने चेयर उसके पास खिसकाई और हाथ पकड़कर प्यार से कह उठी।
“फिक्र मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। कुछ ही दिनों में तुम पहले की तरह रहने लगोगे।"
देवराज चौहान नोरा को देखकर मुस्कुराया ।
“घंटा भर पहले ही मैंने नीरज को तुम्हारे आने की खबर दे दी है। सुनकर वो बहुत खुश हुआ। उसने कहा कि कल वो मुम्बई पहुँच जाएगा। तुम्हारे भाई-बहन तुम्हें शुरू से ही बहुत चाहते हैं। तुम भी तो उन पर जान देते हो।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"मैं अपने घर के बारे में सब कुछ जानना चाहता हूँ।" देवराज चौहान ने कहा।
"सब कुछ?"
“हाँ। मेरे यहाँ से जाने से पहले की बातें या मेरे जाने के बाद की बातें। इससे दो फायदे होंगे--- एक तो मैं वर्तमान के हालात समझ सकूंगा, उन बातों से। दूसरे सम्भव है किसी बात को सुनकर मेरी याददाश्त लौट आए।"
“तुम थके हुए हो। आज ही आए.... ।”
“मैं ठीक हूँ। तुम मुझे सब कुछ बताओ।"
“कॉफी मंगा लूँ तुम्हारे लिए?” नोरा ने देवराज चौहान का हाथ थपथपाकर कहा ।
“मंगवा लो।"
नोरा उठी और इन्टरकॉम के पास पहुँचकर किचन का नम्बर मिलाया। बात हो गई।
“बाबू, साहब जी के लिए कॉफी लेकर आओ।" कहकर नोरा ने रिसीवर रखा और वापस आकर कुर्सी पर बैठी। चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे, फिर बोली--- “मैं तुम्हें उतनी ही बातें बता सकती हूँ सूरज-- जब से मैं इस घर में आई, तुम्हारी और मेरी शादी हुई थी जब, तब से अब तक की ही बातें बता सकती हूँ।"
“वही मैं जानना चाहता हूँ।" देवराज चौहान ने कश लिया।
कुछ चुप रहकर नोरा कह उठी---
"मुझे आज साढ़े चौदह महीने, यानि कि एक साल ढाई महीने हो गए, यहाँ तुम्हारी दुल्हन बनकर आए। हमारी शादी साढ़े चौदह महीने पहले, जून में हुई थी।" पलभर रुक कर नोरा ने पुनः कहा--- "हम मौर्या होटल में पहली बार मिले थे। एक ही मुलाकात में हम एक-दूसरे को पसन्द करने....।”
“लव मैरिज थी हमारी?" देवराज चौहान ने पूछा।
"हाँ। तुम तो सब भूल गए हो।" नोरा ने दुःखी स्वर में कहा, फिर बोली--- “उसके बाद हम मिलने लगे और हम दोनों की हालत ये हो गई कि हम लगभग रोज ही मिलने लगे।" नोरा मुस्कुराई--- “आखिरकार हमने अपने-अपने घरों में बात की इस बारे में। सब ठीक रहा, किसी ने ऐतराज नहीं किया और हमारी शादी हो गई।"
देवराज चौहान की निगाह नोरा के चेहरे पर टिकी थी। वो जानना चाहता था कि नोरा कितना सच और कितना झूठ कह रही है; परन्तु नोरा के चेहरे पर झूठ की कोई झलक नहीं मिली।
“शादी के बाद भी हमारा प्यार कम नहीं हुआ, बढ़ता ही गया। मैं भाग्यशाली रही कि मुझे तुम जैसा पति और श्रेया-नीरज जैसे परिवार के सदस्य मिले। तुम्हारे पापा (शिवचंद) तो मुझे बहुत ही अच्छे लगे। हंसमुख, खुशमिजाज, जिन्दादिल इन्सान थे। वो तुम्हें और नीरज-श्रेया को बहुत प्यार करते थे। मुझे बहू की तरह नहीं, बेटी की तरह मानते थे, परन्तु मेरा उनका साथ सिर्फ तीन महीने का ही रहा। इससे ज्यादा मैं उनके साथ नहीं रह सकी....।" नोरा की आँखें भर आई।
"क्यों ?"
"उन्हें हार्ट-अटैक आ गया था। वो जिन्दा ना रहे... उस दिन वो अपने छोटे भाई मदन से मिलने गए थे। पता चला कि उनके और मदन के बीच जबर्दस्त तकरार हुई थी, जिसकी वजह से उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो चल बसे। बाद में तुमने ही मुझे बताया कि उस दिन पापा, मदन से अपनी दौलत वापस मांगने गए थे।"
“अपनी दौलत-- कौन-सी दौलत?”
“पापा, मदन पर बहुत भरोसा करते थे। मदन उनसे सिर्फ दस साल छोटा है; परन्तु वो मदन को अपने बेटे की तरह मानते थे। सारा बिजनेस पापा का ही खड़ा किया है; परन्तु उन्होंने मदन को पार्टनर बना लिया था कभी। मदन ने वॉल्ट में छोटा-सा केबिन किराये पर लिया था। मदन के कहने पर पापा (शिवचंद) ने भी अपना सोना, हीरे, जवाहरात जो कि बहुत बड़ी संख्या में था, उसी वॉल्ट के केबिन में रख दिया, जबकि वो केबिन मदन के नाम था। मदन ही उसका मालिक था। मदन जब चाहे उसे खोल सकता है; परन्तु पापा तो उस वॉल्ट के भी भीतर नहीं जा सकते। इस प्रकार वो सारी दौलत मदन के अधिकार में चली गई। तुमने ही मुझे बताया था कि पापा ने करीब पचास करोड़ की दौलत मदन के उस केबिन में रखवाई थी, लेकिन तुम्हारी शादी के तीन महीने बाद पापा के मन में जाने क्या आया, या उन्हें मदन की नियत पर किसी तरह का शक हो गया था, जो भी हो, पापा मदन से वॉल्ट के कबिन में रखी अपनी दौलत मांगने गए। इन्हीं बातों को लेकर दोनों के बीच तकरार हो गई थी और पापा को दिल का दौरा पड़ गया था।”
देवराज चौहान की निगाह नोरा के चेहरे पर थी।
नोरा ने गहरी सांस ली। कुछ कहने लगी कि तभी दरवाजा थपथपाया गया।
“कौन?” नोरा ने दरवाजे को देखा।
“मालकिन....कॉफी....।" इस बार कोई नई आवाज थी।
“आ जाओ।” नोरा ने कहा।
तभी दरवाजा खुला और तीस-बत्तीस बरस के एक नौकर ने भीतर प्रवेश किया वो खुश नजर आ रहा था। कमरे में प्रवेश करते ही वो ऊँचे स्वर में कह उठा---
"राम-राम मालिक। आप आ गए, बहुत खुशी हुई। मैं बाजार गया था, सब्जी लेने। एक-दो और काम भी ले। प्रेमवती ने मोबाईल फोन पर ही आपके आ जाने की खबर मुझे दे दी थी।" दोनों हाथों में थमी ट्रे में कॉफी का प्याला रखा था।
देवराज चौहान ने उसे देखकर सिर हिलाया। फिर मुस्कुराकर पूछा।
"कैसे हो?"
“भानू...।" नोरा ने हौले से देवराज चौहान को नौकर का नाम बताया।
“आपकी दुआ से बेहतर हैं मालिक।" भानू ने ट्रे में से प्याला उठाकर देवराज चौहान के सामने टेबल पर रखा--- “ये कॉफी मैंने बनाई है। बाबू खुद बनाने जा रहा था, पर हमने उसको पीछे कर दिया कि मालिक के लिए कॉफी हम बनाएंगे और हम ही देकर आएंगे। दिल बोत खुश हुआ आपको देखकर मालिक।”
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।
“आपके आ जाने से घर में बहार आ गई। अपना हाथ इसी तरह हमारे सिर पर रखे रहियेगा मालिक।”
“जा भानू ।" नोरा बोली-- “रात के खाने की तैयारी कर।”
“आज तो और भी बढ़िया खाना बनेगा मालकिन। साब जी की पसन्द की चीजें बनाऊँगा।”
भानू चला गया।
“ये प्रेमवती का पति भानू है।" नोरा ने बताया ।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और प्याला उठाकर कॉफी का घूंट भरा।
“बंगले का सारा काम बाबू, प्रेमवती और भानू ही संभालते हैं। बंगले के पीछे नौकरों के रहने के लिए छोटे-छोटे छः कमरे बने हैं। सब वहीं रहते हैं। ड्राईवर और दरबान भी उन्हीं कमरों में रहते हैं।" नोरा ने बताया।
देवराज चौहान ने पुनः घूंट भरकर कहा---
“आगे बताओ।"
“अभी तक तुम्हें कुछ याद नहीं आया?" नोरा ने पूछा ।
“नहीं।"
चंद पल चुप रहकर नोरा पुनः बोली---
"पापा की मौत के बाद मदन चाचा रोज आता रहा कि जैसे उसे पापा की मौत का बहुत दुःख हो। एक बात मैं बता दूं--- ये बात तुमसे पहले भी कही थी कि जिस दिन से इस घर में मैं आई हूं, तब से ही मदन चाचा जाने क्यों मुझे कभी अच्छा नहीं लगा, परन्तु जब-जब वो आता था, मैं उसके पैर छूती रही, लेकिन जब से मदन चाचा की हकीकत सामने आई, उसका कमीनापन मुझे दिख गया, तो मैंने उसके पांव छूने बन्द कर दिए। वो ऐसा नाग है, जो हमारे परिवार को खत्म करने की पूरी चेष्टा कर रहा है। सब कुछ हड़प कर वो हमें फुटपाथ पर बिठा देना चाहता है। उस जैसा बुरा इन्सान कभी नहीं देखा।"
“आगे क्या हुआ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"पापा की मौत को बीस दिन बीत गए थे कि मदन आया और सीधा तुमसे बात की, कहा कि--- मैं जो कह रहा हूँ उसका मुझे बहुत दुख है सूरज, पर ये सच है कि भैया (शिवचंद) ने ये बंगला उसके पास 180 करोड़ रुपये लेकर गिरवी रखा हुआ था। बंगले की कुल कीमत दो सौ करोड़ है, ऐसे में बाकी का बीस करोड़ लेकर बंगला खाली कर दो। साथ ही उसने बंगला गिरवी रखे जाने के नकली कागजात दिखाये, जिन पर तुम्हारे पापा के नकली साईन थे।"
"फिर मैंने क्या कहा?" देवराज चौहान बोला।
"तुमने बोला कि पापा ने दो महीने पहले ही बंगला मेरे नाम कर दिया था। फिर बंगला गिरवी कैसे हो सकता है, तो मदन ने कहा— "ये बंगला दो साल से उसके पास गिरवी है; परन्तु भाई होने के नाते, बंगला गिरवी रखते समय मैंने भैया से बंगले के कागजात नहीं मांगे थे, परन्तु तुमने स्पष्ट मना कर दिया कि गिरवी वाले कागजातों पर पापा के असली साइन नहीं हैं। तुमने कहा कि पापा के साईन पहचानने में तुम कभी भी धोखा नहीं खा सकते। ये नकली साईन हैं। ये सुनते ही मदन गुस्से में तुम्हें धमकियाँ देने लगा। उसने बिजनेस के कागजातों की फाईल सामने रख दी कि भैया ने सारा बिजनेस उसके नाम कर दिया था और तुम्हें वहाँ पाँव रखने को भी मना कर दिया। उन कागजातों पर हुए साईन और गिरवी वाले कागजातों पर हुए साईन, एक जैसे ही थे। तुमने उन कागजातों को झूठा कहा कि उन पर साईन पापा के नहीं हैं, नकली हैं।" कहते-कहते नोरा रुकी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिख रही थी। वो थकी-सी, हारी-सी दिखने लगी थी।
"फिर?"
"उसके बाद तुम्हारे और मदन के बीच अक्सर तीखी बातें होने लगीं। मदन हर चौथे-पाँचवें दिन यहाँ आ जाता और तुमसे बंगला खाली करने को कहता। धीरे-धीरे तुमने उसकी परवाह करनी बंद कर दी। तुम दोनों में अक्सर झगड़ा होता था। तुमने मदन से वॉल्ट के लॉकर में रखी दौलत वापस मांगी तो उसने कहा--- भैया ने ऐसी दौलत कभी वॉल्ट में रखी ही नहीं। उसके केबिन में भैया अपनी दौलत रखेंगे ही क्यों? वो साफ मुकर गया, जबकि तुम मुझे बता चुके हो कि पापा ने कई बार तुमसे कहा था कि पचास करोड़ के लगभग हीरे-जवाहरात, सोना, मदन के वॉल्ट में लिए लॉकर में रखे हुए हैं। तुमने पापा से कई बार कहा भी कि वो चाचा का वॉल्ट है, वहाँ से अपनी दौलत निकाल लें; परन्तु पापा कहते थे--- कोई फर्क नहीं पड़ता, वो भाई है मेरा। मेरे से मदन कभी भी बेईमानी नहीं कर सकता। तुम्हारे और मदन के बीच झगड़े बढ़ते जा रहे थे। फिर मदन कोर्ट जाने की धमकी देने लगा, वो लगातार तुम्हें परेशान करता रहता था। तुम मदन चाचा से दुखी आ चुके थे। तुमने मुझे साफ कहा था कि मदन जैसे कमीने इन्सान का तुम मुकाबला नहीं कर सकते। ये सब चल ही रहा था कि एक दिन तुम घर से गए तो तुम्हारी कार यहाँ से कुछ दूर खड़ी मिली; परन्तु तुम नहीं मिले और गायब हो गए। अब दस महीनों बाद लौटे हो।"
"गायब हो गया?” देवराज चौहान की निगाह नोरा पर थी।
नोरा भी गंभीर निगाहों से उसे देख रही थी।
“एक बात कहूँ सूरज?" नोरा ने देवराज चौहान का हाथ थाम लिया।
“हाँ....।”
“मैं छोटे घर में भी रह लूंगी। नीरज और चिंकी भी ये बात मान लेंगे। मदन को दे दो ये बंगला । जो भी बीस करोड़ देता है, वो ले लो। हम यहाँ से कहीं और चले जाएंगे।" नोरा के स्वर में प्यार के साथ-साथ हार के भाव थे।
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।
नोरा की आँखें गीली हो गई थीं।
“मदन को एक-आध दिन में ही पता चल जाएगा कि तुम वापस आ गए हो। वो फिर आएगा और....।"
“मैं मिलूंगा उससे...।”
"सूरज तुम.... ।"
"बात करूंगा मदन से। सब ठीक हो जाएगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।
फिर वार्डरोब की तरफ नजर मारकर बोला---
"वो तिजोरी पापा ने मेरे कमरे में क्यों लगा....।"
“ये पहले पापा का कमरा था। उनकी डैथ के बाद तिजोरी की वजह से हम इस कमरे में शिफ्ट हो गए थे।"
“ओह समझा....।"
“पापा की डैथ के बाद तुमने ये कमरा बंद कर दिया था। फिर महीने बाद तुम मेरे साथ इस बैडरूम में शिफ्ट हो गए। तब तुमने मुझे इस तिजोरी के बारे में बताया कि इसकी वजह से तुमने अपना कमरा बदला है।" नोरा ने कहा।
"और किसे पता है इस तिजोरी के बारे में?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मुझे नहीं पता। पापा ने किसी और को बताया होगा तो उसे भी पता होगा।”
देवराज चौहान के चेहरे पर सोचें थीं। नोरा बोली---
“मेरी बात मानोगे सूरज....।"
"क्या?"
“मदन बुरा इन्सान है, उससे झगड़ा मत करो। तुम सच में उसका मुकाबला नहीं कर सकते....। मैं अपनी शांत जिन्दगी में कोई और मुसीबत नहीं चाहती। हमें आपस में ही खुश रहना चाहिए। दौलत ही सब कुछ नहीं होती।”
“खुश रहने के लिए दौलत का होना जरूरी है।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
“इतनी दौलत तो हमारे पास है ही कि खुश रह सकें । छोटी-सी जिन्दगी बितानी है, वो इसी तरह बीत जाएगी। फिर पापा की सारी दौलत भी तो मेरी है। मैं उनकी इकलौती बेटी हूँ। हमें किस चीज की कमी है।" नोरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- “मैं चाहती हूँ तुम मदन को भूल जाओ। मैं नहीं चाहती कि मदन तुम्हें कोई नुकसान पहुँचा दे।"
“वो मुझे कुछ नुकसान नहीं पहुँचा सकता। मैं मदन से बात करूंगा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
“ये सब कुछ मैं रोकना चाहती हूँ।”
देवराज चौहान ने नोरा को देखा। कहा कुछ नहीं।
"क्या तुम मदन को बंगला देने को तैयार हो?" नोरा ने बेचैनी से पूछा ।
"नहीं।" देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया।
"हालातों को समझो सूरज। मदन तुम्हारी जान लेने का इंतजाम करवा सकता है।"
"तुम्हें....!" देवराज चौहान बोला---- "मुझ पर भरोसा है?"
"किस बारे में?"
"कि मैं मदन से बात कर लूंगा। सब ठीक हो जाएगा।"
"ये तुम कह रहे हो?" नोरा की आँखें सिकुड़ीं।
"क्यों.... मैंने क्या गलत कहा?"
"तुम....तुम मदन का मुकाबला नहीं कर सकते। ये बात तुम अपने मुँह से कह चुके हो कि वो बुरा इंसान है। उसकी बराबरी करने की तुम्हारी हिम्मत नहीं और आज.....आज कहते हो कि...।"
"मैं ठीक कह रहा हूँ नोरा।"
नोरा, देवराज चौहान को देखने लगी, फिर कहा---
“तुमने ही मुझे कहा था कि मदन कई खतरनाक बदमाशों को जानता है, वो कुछ भी करवा सकता है।"
“मुझे सोचने दो।" देवराज चौहान ने कहा और चेयर से उठकर टहलने लगा।
नोरा वहीं बैठे-बैठे उसे देखते कह उठी---
"मेरी मानो तो पापा (सुन्दरलाल) से सलाह ले लो, वो कल आएंगे यहाँ।"
"मुझे सोचने दो।"
फिर नोरा कुछ नहीं बोली।
जबकि देवराज चौहान के मस्तिष्क में तेजी से सोचें दौड़ रही थीं। उसे अभी तक ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ था कि वो नोरा की किसी बात पर शक कर पाता। महसूस होता कि साजिश हो रही है उसके खिलाफ। नोरा भी सच कहती दिखी। श्रेया में भी कोई बनावट नहीं दिखी, ना ही सुन्दरलाल में। तिजोरी उसके हवाले कर देने से इस बात का अहसास स्पष्ट तौर पर होने लगा। था कि उसके चेहरे और कद-काठी वाले सूरज का अस्तित्व है।
ये सब झूठ का जाल नहीं है।
आने वाले वक्त में उसके सामने और भी कई खुलासे हो जाने थे इस सिलसिले में।
अब देवराज चौहान का ध्यान मदन चाचा की तरफ गया।
जब सूरज गायब हुआ, तब उसका सूरज के साथ झगड़ा चल रहा था। तो क्या सूरज के गायब हो जाने के पीछे मदन का हाथ है? मदन वॉल्ट में रखी सूरज की दौलत हड़प चुका है। बिजनेस पर अपना अधिकार जमा लिया। अब इस बंगले को भी ले लेना चाहता है। ऐसे में सूरज के गायब हो जाने के में पीछे उसका हाथ सम्भव हो सकता है।
देवराज चौहान सोचता रहा।
अब तक जो कुछ उसके सामने आया था, उन्हीं बातों पर दिमाग दौड़ाता रहा।
सूरज के बिना यहाँ के हालात नाजुक थे। नोरा, श्रेया और नीरज- मदन जैसे इन्सान का मुकाबला नहीं कर सकते थे। सूरज ने तो पहले ही कह दिया था कि वो मदन का मुकाबला नहीं कर सकता। ऐसे में सोचने वाली बात ये थी कि सूरज खुद ही परेशान होकर घर से चला गया था, उसके गायब हो जाने के पीछे मदन का हाथ है?
आठ बज चुके थे। बंगले की लाईटें रोशन हो गई थीं। देवराज चौहान बैडरूम में था, बाहर नहीं निकला था। नोरा अवश्य दो बार बाहर गई थी। देवराज चौहान चेयर पर बैठा सिगरेट के कश ले रहा था। सोच रहा था।
“तुम क्या सोच रहे हो सूरज?" नोरा पास आकर कह उठी।
देवराज चौहान ने सिर उठाकर नोरा को देखा, फिर कहा---
“यही सब बातें।”
"इतना मत सोचो, नहीं तो पहले की तरह फिर तुम्हें सिरदर्द होने लगेगा। अपनी सेहत से ज्यादा कुछ नहीं है।" नोरा ने देवराज चौहान के कंधे पर हाथ रखा--- “ये बंगला छोड़ देने के बाद भी हमारी जिन्दगी अच्छी कटेगी, और प्रॉपर्टी भी तो है तुम्हारे पास ।"
"प्रॉपर्टी ?”
"याद नहीं क्या? पापा (शिवचंद) ने कई जगह प्रॉपर्टी खरीद रखी है। कांदीवली में छोटा बंगला है। लोअर परेल में सुपर H.I.G. फ्लैट है। लोनावाला में फार्म हाऊस है। गोवा में भी एक छोटा बंगला है। हम कहीं भी सैटल हो सकते हैं। खुश रह सकते हैं। हमें इस बंगले की जरूरत नहीं है। हमें अपने परिवार को खुश रखना है। हमने खुशी से रहना है....।"
"मदन ने बिजनेस छीन लिया। पापा की दौलत छीन ली। अब वो इस बंगले को भी छीन ले, वो क्या इतना ताकत वाला है कि हम उसके खिलाफ नहीं खड़े हो सकते? ये तो कोई बात नहीं हुई।" देवराज चौहान बोला।
"कम-से-कम हम मिलकर भी उसका मुकाबला नहीं कर सकते।"
"मैं मदन से बात करूंगा।"
“तुम कोई नई मुसीबत खड़ी कर दोगे सूरज।" नोरा बेचैन स्वर में बोली--- “आज ही तो दस महीनों के बाद घर आए हो, अब मदन का झंझट खड़ा हो गया, तो हमारी जिन्दगी का चैन छिन जाएगा। श्रेया और नीरज की भी सोचो कि....।”
“उन दोनों का सोच रहा हूँ।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला--- “तभी तो मदन से बात करने को कह रहा हूँ।”
“तो तुम कोई मुसीबत खड़ी करके ही रहोगे।”
देवराज चौहान चुप रहा।
“सूरज.... ।” नोरा उसके सामने चेयर पर बैठते कह उठी--- “अगर मुझे पता होता कि तुम मदन का मुकाबला कर सकते हो तो मैं तुम्हें कभी नहीं रोकती। पर तुम मदन का मुकाबला नहीं कर सकते। अगर कुछ करना ही है तो कानूनी कार्यवाही करो।"
“कानूनी कार्यवाही ?”
“तुम्हें याद होगा कि हम एक वकील के पास गए थे। उसने कहा था कि कानूनी कार्यवाही का पहला कदम है कि पुलिस में जाकर मदन के खिलाफ रिपोर्ट लिखाओ कि उसने तुम्हारा बिजनेस नकली कागजों के आधार पर छीन लिया है। इसी प्रकार नकली कागजों के दम पर तुम्हारा बंगला भी छीनने की कोशिश में है। वॉल्ट के लॉकर में पापा ने जो दौलत रखवाई थी, उसे तो हम साबित नहीं कर सकते, इसलिए उसके वापस मिलने का तो मतलब ही नहीं होता।"
"मैं पुलिस के पास जाना ठीक नहीं समझता।"
“क्यों?"
देवराज चौहान ने नोरा देखा। कहा कुछ नहीं।
“बताओ तो, तुम पुलिस के पास क्यों नहीं जाना चाहते?" नोरा ने पूछा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हारे जाने के बाद एक बार पापा मेरा हाल पूछने आये हुए थे। तब पापा सप्ताह में दो बार तो जरूर आते थे। ऐसे में एक बार ऊपर से मदन आ गया।" नोरा ने गंभीर स्वर में कहा--- "मदन पापा के सामने ही मुझे धमकाने लगा कि बंगला खाली कर दे, तो पापा ने बीच में दखल दिया। थोड़ी-सी कहासुनी हुई तो मदन ने पापा से कहा--- लड़की वाले हो तो लड़की वाले बनकर रहो। शिवचंद के बाद उसके घर का मालिक बनने की चेष्टा मत करना। तब पापा चुप कर गए। वो बात को बढ़ाना नहीं चाहते थे। मदन ज्यादा देर चुप नहीं बैठेगा, वो तुम्हारे आ जाने पर कुछ भी कर सकता है। मेरी मानो तो जो वो दे रहा है, वो लेकर बंगला खाली कर देते हैं। इसी में.... ।"
"तुम इस मामले की चिन्ता मत करो नोरा।" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में कहा--- "मैं सब कुछ देख लूंगा।"
“फिर वो ही बात....।"
“बाथरूम कहाँ है?" देवराज चौहान बोल पड़ा।
"ओफ-फो-तुम तो सब कुछ भूल गए हो, वो रहा बाथरूम का दरवाजा।" नोरा ने एक दरवाजे की तरफ इशारा किया।
“मैं नहाने जा रहा हूँ। मेरा नाईट सूट कहाँ है?"
"वार्डरौब में है। तुम नहाकर आओ। मैं नाइट सूट निकाल देती हूँ।"
"टॉवल ?"
“देती हूँ न ।" कहने के साथ ही नारा वार्डरोब तक पहुँची और उसे खोलकर टॉवल निकालकर देवराज चौहान को दिया।
देवराज चौहान बाथरूम में चला गया।
दस मिनट बाद नहाकर अण्डरवियर पहने बाहर निकला।
नोरा ने नाईट सूट उसे दिया।
नाईट सूट पहनने के बाद देवराज चौहान ने गीले बालों को हाथों से पीछे किया और बार काऊंटर की तरफ बढ़ गया, जो कि एक तरफ बना था। नाईट सूट उसे इस तरह पूरा आया था जैसे नाप लेकर बनवाया हो। मन-ही-मन सूरज पर हैरान हो रहा था, जो बिल्कुल उसकी कॉपी था। एक बार तो उसे देखने की इच्छा जरूर मन में थी। अपने जैसे चेहरे वाले को उत्सुकता के नाते कौन नहीं देखना चाहेगा। यही सामान्य उत्सुकता देवराज चौहान के मन में भी थी।
काउंटर के पीछे पहुँचकर देवराज चौहान ने अपनी पसन्दीदा व्हिस्की की बोतल शैल्फ से उठाकर काउंटर पर रखी और काउंटर के नीचे रखे गिलास नजर आए तो एक उठाकर ऊपर रखा। गिलास बिल्कुल साफ था। देवराज चौहान अपना गिलास तैयार करने लगा। उधर नोरा इन्टरकॉम पर बाबू से कह रही थी---
"साहब के लिए ड्रिंक के साथ कुछ खाने को भी लाओ।" कहकर नोरा ने रिसीवर रख दिया।
देवराज चौहान ने काउंटर के पीछे ही खड़े होकर गिलास से घूंट भरा।
नोरा पास आई और काउंटर पर दोनों कोहनियाँ रखकर बड़े प्यार से बोली---
“वापस घर आकर तुम्हें कैसा लग रहा है?"
“बहुत अच्छा।” देवराज चौहान का स्वर सामान्य था--- "मुझे नहीं पता था कि मेरा घर यहाँ है, वरना पहले ही आ गया होता।"
"मैंने तुम्हें बहुत 'मिस' किया।" नोरा की आवाज में प्यार के भाव थे।
देवराज चौहान उसे देखकर मुस्कुराया ।
“मेरी एक-एक रात, एक-एक दिन, काटे नहीं कटता था तुम्हारे बिना सूरज..... !" नोरा की आँखों में पानी चमक उठा।
“बुरे वक्त के बाद अच्छा वक्त जरूर आता है।"
नोरा ने आंखें साफ की और बोली---
“कल रीटा के तीन साल बेटे का जन्मदिन है। पाँच दिन पहले ही उसने मुझे आने को कह दिया....।"
"रीटा कौन?"
“मेरी सहेली, वो तुम्हें जरूर याद होगी।" नोरा एकाएक हंस पड़ी।
“नहीं। पर उसे क्यों याद रखना चाहिए मुझे?” देवराज चौहान ने पूछा।
“क्योंकि वो तुम पर लाईन मारती है। मैं जरा भी इधर-उधर होती हूँ तो बातें करते हुए वो तुम्हारा हाथ थाम लेती है। एक बार तो मैंने उसे तुम्हारे साथ सटे बातें करते देखा था। रीटा का बस चले तो तुम्हें खा जाए।" नोरा पुनः हंसी ।
“और मेरे क्या विचार हैं रीटा के बारे में?"
“मुझे तुम पर हमेशा ही भरोसा रहा है, पर रीटा को लेकर मैं अक्सर तुम्हें छेड़ती रहती हूँ। बोलो, कल चलोगे रीटा के घर । तुम्हें देखकर वो बहुत खुश होगी। तुम जब से अचानक चले गए, तब से रीटा कम-से-कम सौ बार फोन करके तुम्हारे बारे में पूछ चुकी है और तीस बार वो बंगले पर मेरे से मिलने आ चुकी है। उसने हमेशा मुझे कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम जब भी चाहो मुझे फोन कर दो, मैं हर तरह से तुम्हारे काम आऊँगी। वो सच में मेरी काफी चिन्ता करती रही।"
तभी दरवाजा थपथपाया गया।
"आ जाओ।"
अगले ही पल बाबू ने ट्रे में प्लेटें रखे भीतर प्रवेश किया।
एक प्लेट में नमकीन काजू थे और दूसरी प्लेट में नमकीन था। वो वहीं पास आकर बार काउंटर पर प्लेटें रखता बोला---
“मालिक, आप ये लें, तब तक मैं कोई बढ़िया चीज़ बनाकर लाता....।"
“बस।” देवराज चौहान ने कहा--- "इतना ही बहुत है।"
बाबू चला गया।
"तुम चली जाना। मैं कल नहीं जा पाऊँगा।" देवराज चौहान ने काजू का दाना उठाकर मुँह में रखते हुए कहा।
“मैं अकेली जाऊँगी?” नोरा ने मुँह बनाया।
देवराज चौहान ने घूँट भरा, फिर बोला---
"अभी मेरा दिमाग ठीक नहीं है। कई महीनों बाद घर लौटा हूँ....और मुझे ठीक से कुछ याद भी नहीं। मैं रीटा से फिर मिल लूंगा।"
"पहले तो तुम रीटा के पास जाने को कभी इंकार नहीं करते थे....।" नोरा ने कहा।
“अभी मेरा मन ठीक नहीं है।"
“तुम कहो तो मैं भी नहीं जाती।”
“तुम जाओ। रीटा तुम्हारी सहेली है। तुम नहीं गईं तो वो नाराज हो जाएगी। फिर कल नीरज भी आने वाला है। उससे भी....।"
“तुम्हें तो कुछ याद नहीं। ऐसे में मेरा घर रहना जरूरी...।"
"नीरज की तुम फिक्र मत करो। मैं संभाल लूंगा। उसकी कोई तस्वीर मुझे दिखा देना।"
"मैं किसी डॉक्टर का पता करूं, जो तुम्हारी याददाश्त का इलाज....।"
"जिस डॉक्टर ने मेरा इलाज किया, उसने कहा था कि कभी भी, अचानक ही मेरी याददाश्त लौट आएगी।"
नोरा ने देवराज चौहान के हाथ पर हाथ रख दिया।
“आज मैं बहुत खुश हूँ। बहुत खुश....।"
तभी दरवाजा खुला और श्रेया ने तेजी से भीतर प्रवेश किया।
“भैया, नौ बजे खाना लग जाएगा। आप तो गिलास लेकर शुरू हो गए।" श्रेया पास आती कह उठी--- "कोई बात नहीं, नौ के दस भी बज जायें, खाना तो मैं आपके साथ ही करूंगी। तब तक बातें-वातें मार लेते हैं, क्यों भैया....।”
■■■
रात के 11:30 बजे देवराज चौहान और नोरा वापस अपने बैडरूम में पहुँचे। डिनर के पश्चात् श्रेया के साथ ड्राइंग हॉल में बैठे बातें करते रहे थे। नोरा और श्रेया ने कॉफी पी थी, देवराज चौहान ने नहीं पी। श्रेया ने कहा था कि कल वो कॉलेज नहीं जाएगी और भैया के साथ जी-भर कर बातें करेगी।
नोरा इस वक्त देवराज चौहान के करीब रहकर खुश थी।
“सूरज!” नोरा दरवाजा बंद करते हुए बोली--- “अब तुम्हें यहाँ सब कुछ अपना-अपना-सा लग रहा होगा।”
“हाँ!” देवराज चौहान सामान्य था--- "सब-कुछ अपनों जैसा।”
“अगर तुम्हें कुछ याद नहीं भी आता, तो परेशानी की कोई बात नहीं। कुछ ही दिन में तुम यहाँ के माहौल के अभ्यस्त होकर खुद को सामान्य महसूस करने लगोगे। सब ठीक से चलने लगेगा।"
“लेकिन रिश्तों पर अच्छी पकड़ बनाने लिए जरूरी है....सब कुछ याद आ जाना।" देवराज चौहान बोला।
“मैं जानती हूँ। शायद तुम्हें सब कुछ याद आ जाए। याददाश्त लौट आए।”
दस मिनट बाद दोनों बैड पर लेटे थे।
देवराज चौहान नाईट सूट में था और नोरा नाईटी में देवराज चौहान की तरफ करवट लिए लेटी थी, जबकि देवराज चौहान सीधा लेटा छत को देख रहा था।
“मदन चाचा का फोन नम्बर क्या है?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा।
“क्यों?” नोरा के होंठों से निकला।
“बताओ मुझे।”
“लेकिन तुम क्यों पूछ रहे हो सूरज?"
“यूँ ही।"
नोरा उसी मुद्रा में देवराज चौहान को देखती रही।
"नम्बर बताओ।"
"नहीं। तुम्हारे दिमाग में कुछ उल्टा चल रहा है, ठीक कहा ना मैंने?"
"ऐसी बात नहीं।" देवराज चौहान बोला।
"या तुम उसकी बात मानकर, उसके कहे मुताबिक बीस करोड़ लेकर, बंगला उसे देने की सोच रहे हो। "
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"बंगला उसे देना ठीक रहेगा। हम लम्बे झगड़े से बच जाएंगे सूरज। मदन अच्छा आदमी नहीं है। मैं तुम्हें कल मदन का नम्बर दूंगी। तुम फोन करके उसे बुला लेना और इस झगड़े को खत्म कर देना।" नोरा कह उठी--- "तब भी हमारे पास इतना पैसा होगा कि श्रेया और नीरज के साथ हम चैन से जिन्दगी बिता सकें।"
"मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रहा।" देवराज चौहान का स्वर गंभीर था।
"तो...?"
"मैं कुछ भी नहीं सोच रहा। मैंने यूँ ही मदन का मोबाईल नम्बर जानना चाहा...।"
"देखो सूरज ! अनाड़ीपन में कोई गलत कदम मत उठा लेना। मैं जानती हूँ और तुम भी जानते हो कि तुम मदन जैसे इन्सान का मुकाबला नहीं कर सकते। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती। मदन कुछ भी कर सकता....।”
“तुम्हें चिन्ता हो रही है?"
“क्यों ना होगी?”
“मुझ पर भरोसा रखो। मैं वही काम करूंगा, जो मेरे बस का होगा।"
“मैं अभी भी नहीं समझी कि....।"
“सो जाओ। कुछ मत समझो।" देवराज चौहान ने कहकर आँखें बंद कर लीं।
नोरा कई पलों तक देवराज चौहान को देखती रही फिर प्यार से बोली---
“मेरे पास नहीं आओगे ?"
“मैंने पहले ही कहा था कि....।"
“मैं तुम्हारे पास आऊँ सूरज.....।" नोरा के स्वर में आग्रह था।
देवराज चौहान ने आँखें खोलकर नोरा को देखा, फिर कहा---
"मैंने तुम्हें शाम को समझाया था कि अभी हमें कुछ देर रुकना होना। मैं अपने को इस माहौल में एडजस्ट....।"
"ठीक है।" नोरा ने गहरी सांस ली--- "तुम जैसा चाहोगे, मैं वैसा ही करूंगी, लेकिन जब तुम्हारा मन हो तो मुझे बुलाना जरूर।"
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सिर हिला दिया।
नोरा ने दूसरी तरफ करवट ले ली। अब उसकी पीठ नजर आने लगी।
देवराज चौहान ने आँखें बंद कर लीं।
■■■
अगले दिन ।
दिन के ग्यारह बज रहे थे।
ब्रेकफास्ट हो चुका था दस बजे । देवराज चौहान सुबह आठ बजे उठा था। नौ बजे तक नहा-धोकर तैयार हो गया था। नोरा ने वार्डरौब से कमीज-पैन्ट निकालकर उसे पहनने को दी, जो कि उसे पूरी आई थी। देवराज चौहान मन-ही-मन अजीब स्थिति में था कि उसके और सूरज के नाप में जरा भी फर्क नहीं है।
जब सूरज उसके सामने आएगा तो वो वक्त कैसा होगा?
बेशक रात उनके बीच कुछ नहीं हुआ जो पति-पत्नी के बीच होता है; परन्तु सुबह उठने पर नोरा के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी, वो खुश थी, सामान्य थी। सूरज की वापसी से वो प्रसन्न थी ।
तभी श्रेया आ गई।
उनके बीच इधर-उधर की बातें शुरू हो गईं। श्रेया की खुशी का ठिकाना नहीं था। रोज सुबह उठती, तो बंगले में खामोशी होती; परन्तु आज पहले की तरह हलचल थी। ये बात श्रेया ने देवराज चौहान से कही थी।
9:45 पर बाबू ने आकर कहा कि नाश्ता लग गया है।
वे तीनों कमरे से निकलकर, नीचे हॉल के पीछे बने डायनिंग रूम में पहुंचे। इस बीच श्रेया ने देवराज चौहान की बाँह थाम रखी थी और बच्चों की तरह मचल रही थी।
नाश्ते की टेबल गर्मागर्म खाने से सजी पड़ी थी। बाबू वहीं मौजूद था।
हंसने-खेलने वाली बातों के बीच उन तीनों ने नाश्ता किया था।
“नीरज कब आएगा भाभी?” श्रेया ने पूछा था ।
"दिन में कभी भी आ सकता है।" नोरा बोली--- "क्या पता वो पूना से चल पड़ा हो।"
"मैं नीरज से फोन करके पूछूंगी। फोन मेरे कमरे में रह गया है।"
बाबू, प्रेमवती और भानू ने बहुत अच्छी तरह से नाश्ता कराया। तीनों भी खुश थे।
नाश्ते के बाद श्रेया उठती हुई बोली---
"मैं नीरज को फोन करके आती हूँ।" श्रेया के जाते ही देवराज चौहान और नोरा उठ खड़े हुए।
“नाश्ता कैसा लगा मालिक?" बाबू ने पूछा।
“बहुत अच्छा। पहले की तरह।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "ज्यादा खा लिया।”
“लंच में और भी बढ़िया....।" प्रेमवती ने कहना चाहा।
“लंच करने की मेरी आदत नहीं है।" कहकर देवराज चौहान ने नोरा पर निगाह मारी--- “तुम्हें तो पता ही है।"
नोरा हल्के से मुस्कुराई
“मैं अभी से डिनर की तैयारी पर लग जाता हूँ।" भानू बोला।
देवराज चौहान और नोरा वहाँ से बाहर आ गए।
"मैं बंगला देखना चाहता हूँ। हर तरफ....।" देवराज चौहान ने कहा।
“आओ।” नोरा ने देवराज चौहान का हाथ थामा--- “मैं दिखाती हूँ।”
उसके बाद नोरा देवराज चौहान को बंगला दिखाने लगी।
ऊपर-नीचे, आगे-पीछे, दाएँ-बाएँ, सर्वेन्ट क्वार्टर। सब कुछ देखा। आधा घंटा बंगला देखने में लग गया।
“जब मैं नई-नई शादी करके आई थी तो इसी प्रकार तुमने मुझे सारा बंगला दिखाया था।" नोरा बोली।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
“अभी तुम्हें कुछ भी याद नहीं आया सूरज ?”
देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिला दिया।
“कोई बात नहीं।" नोरा, देवराज चौहान का हाथ थामे प्यार कह उठी--- "कुछ दिन बाद तुम्हें सब ठीक लगने लगेगा। तुम इसी प्रकार चलते-चलते इस लाईफ में एडजस्ट हो जाओगे।"
“पर इससे काम नहीं चलेगा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- “मुझे अपनी जिन्दगी याद आ जानी चाहिए।"
"हम इस बारे में डॉक्टर से बात करेंगे।" देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
पूरा बंगला देख आने के बाद वे दोनों ड्राइंगरूम में पहुंचे, तो देवराज चौहान बोला---
"तुम्हें आज रीटा के बेटे के जन्मदिन पर जाना है।"
"वो शाम पांच बजे... तुम भी चलो ना?" नोरा ने आग्रह किया।
"अभी कहीं भी जाने का मेरा मन नहीं है। मैं अपने बारे में कुछ सोचना चाहता हूँ...।" देवराज चौहान नोरा को देखकर मुस्कुराया।
“जैसा तुम ठीक समझो सूरज।" नोरा देवराज चौहान का हाथ थपथपाकर बोली--- “मैं चली जाऊँगी।"
"श्रेया को साथ ले जाना।"
“हाँ, आज उसने छुट्टी ली है। श्रेया से चलने को कहूँगी।" नोरा ने सिर हिलाया।
देवराज चौहान ने बंगले के हॉल में नजरें दौड़ाते सिगरेट सुलगा ली।
“बीच पर घूमने चलें?" नोरा ने प्यार से कहा।
“बीच पर?"
“भूल गए क्या, तुम अक्सर मुझे लेकर दोपहर में समन्दर के किनारे, पेड़ की छाया में बैठना पसन्द करते हो।" नोरा ने कहा।
“अभी नहीं।" देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया--- "फिर तुमने रीटा के यहाँ भी जाना है।"
“अच्छी बात है, हम कमरे में बैठकर ही बातें.... ।”
तभी श्रेया पास आती कह उठी---
“भैया! नीरज तो अभी पूना से चला ही नहीं। कहता है, दोपहर बाद चलूंगा। अभी पूना में बिजी है।"
"शाम तक आ जाएगा नीरज ।" नोरा बोली।
“पर नीरज तो अभी पूना में ही.... ।”
“चिंकी!” देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा--- “आज तूने अपनी भाभी के साथ बर्थडे पर जाना है।"
“बर्थडे? किसका?”
"रीटा के बेटे का।” नोरा ने कहा।
“तो आज रीटा आंटी के बेटे का जन्मदिन है। पर भैया आप और भाभी....।”
"मैं नहीं जा पाऊँगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम नोरा के साथ चली जाना।"
"मैं? ठीक है, मेरी एक शर्त पूरी होगी तो तभी मैं भाभी के साथ बर्थडे पर जाऊँगी।"
"कैसी शर्त?" देवराज चौहान की नजर श्रेया के शरारती से चेहरे पर थी।
"आप मेरे साथ क्रिकेट खेलेंगे।"
"क्रिकेट?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।
“हाँ। दो घंटे मेरे साथ क्रिकेट खेलेंगे तो मैं भाभी के साथ बर्थडे पर जाऊँगी।”
देवराज चौहान ने नोरा को देखा।
नोरा ने मुस्कुराकर सहमति से सिर हिला दिया।
स्पष्ट मतलब था कि सूरज और श्रेया बैट-बॉल खेलते रहते थे।
“ठीक है चिंकी, तुम्हारी शर्त मानी।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“थैंक्यू भैया।” श्रेया उछल पड़ी--- "कितने समय बाद आपके साथ बैट-बॉल खेलूंगी। मैं अभी पोर्च में खड़ी सारी गाड़ियाँ बाहर निकलवाती हूँ।” कहने के साथ ही भागती श्रेया बाहर निकल गई।
“क्रिकेट पोर्च में खेली जाती थी?”
"हां!" नोरा ने खुशी से कहा--- ""तुम्हारे आने से हमारी खुशियाँ पुनः वापस आ गई हैं। चिंकी बुझी-बुझी रहती थी तुम्हारे जाने के बाद, मुझे कभी याद नहीं मैंने उसे हंसते-मुस्कुराते देखा हो। "
“सब ठीक हो जाएगा।” देवराज चौहान ने इतना ही कहा।
देवराज चौहान ने पोर्च में दो घंटे श्रेया के साथ क्रिकेट खेली। नोरा एम्पायर बनी और बाबू, प्यारेलाल, रतन सिंह ने फिल्डिंग का काम संभाला और समा बंध गया। श्रेया काफी अच्छा क्रिकेट खेल लेती थी। खेल के दौरान नोरा ने देवराज चौहान को बताया कि तुमने श्रेया को क्रिकेट खेलने की आदत डाली है।
दो बजे तक उनका खेल चलता रहा। गर्मी बढ़ गई थी, पसीना सबके चेहरों पर दिख रहा था।
उसके बाद खेल बंद कर दिया गया।
देवराज चौहान और नोरा अपने बैडरूम में पहुँचे।
सबसे पहले देवराज चौहान नहाया, फिर बाहर आकर नोरा से पूछा---
“किचन इन्टरकॉम का नम्बर क्या है?"
"चार । श्रेया के कमरे का छः है।”
“तुम कॉफी लोगी?" इन्टरकॉम की तरफ बढ़ते देवराज चौहान ने पूछा।
“मंगा लो।” नोरा बाथरूम की तरफ बढ़ती बोली--- "तब तक मैं नहा लूँ।”
देवराज चौहान ने इन्टरकॉम का रिसीवर उठाया और चार नम्बर दबाया।
दूसरी तरफ बजर बजने लगा। फिर बाबू की आवाज कानों में पड़ी---
“जी?”
“बाबू, दो कॉफी बना लाओ।" कहकर देवराज चौहान ने रिसीवर रखा ।
नोरा बाथरूम में जा चुकी थी।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और चेयर पर जा बैठा। चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे। वो सिर्फ ये ही सोच रहा था कि वो इस तरह यहाँ दिन नहीं बिता सकता, जो भी हालात सामने आए हैं, उसके मुताबिक ही उसे आगे बढ़ना होगा। आगे बढ़ने का मतलब एक ही था---मदन चाचा।
इस सारे मामले में मदन चाचा इन्वॉल्व था।
बिजनेस पर उसने अधिकार जमा लिया था ।
सूरज के पिता शिवचंद की दौलत, जोकि वॉल्ट में रखी थी, वो भी हड़प ली थी।
अब बंगला भी हथिया लेने के फेर में था।
देवराज चौहान के लिए सबसे बड़ी बात तो ये थी कि जब सूरज गायब हुआ तो उसके और मदन चाचा के बीच तल्खी चल रही थी। इस बात की पूरी संभावना थी कि सूरज के गायब होने के पीछे मदन चाचा का हाथ हो।
मदन चाचा से बात करनी जरूरी हो गई है।
देवराज चौहान सोच रहा था कि सूरज वापस मिल सके या ना मिले, कम-से-कम वो जाने से पहले इन लोगों की जिन्दगी को परेशानियों से मुक्त बना दे।
बाबू कॉफी रख गया।
तभी नोरा भी नहाकर बाथरूम से निकल आई थी। उसने पिंक कलर का सूट डाल रखा था। उसका निखरा चेहरा इस वक्त उसे और भी खूबसूरत बना रहा था। उसकी बिल्लौरी आँखें सामने वाले की जान लेने के लिए काफी थीं, लेकिन देवराज चौहान के मस्तिष्क में कुछ और ही उथल-पुथल मची थी।
अब ढाई बज गए थे।
देवराज चौहान कॉफी का घूंट लेता बोला---
"तुमने चार बजे रीटा के यहाँ जाना है?"
“चार के पाँच भी बज जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" नोरा बैठी और कॉफी का प्याला उठा लिया।
देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरकर कहा--- “मदन का मोबाईल नम्बर दो।"
नोरा की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकी।
देवराज चौहान के चेहरे पर सामान्य भाव थे।
“क्या बात करोगे मदन से?” नोरा ने धीमे स्वर में पूछा।
“कुछ खास नहीं। हाल पूछना है।"
“उस कमीने इन्सान का तुम हाल पूछना चाहते हो? जानते हो ये पता चलते ही, तुम आ गए हो, वो यहाँ आ धमकेगा और.... ।”
"मैंने रात भी कहा था कि मुझ पर भरोसा रखो ।”
“पर तुम उसका मुकाबला नहीं कर.... ।”
“मेरे ख्याल में मदन को वैसे भी दो-तीन दिन में मालूम हो जाएगा कि मैं घर आ चुका हूँ। वो.... ।”
“जब पता चलेगा, तब चलेगा, तुम क्यों बताते.... ।”
“मुझे मदन का नम्बर दो।” देवराज चौहान का स्वर सख्त होता गया--- “तुम्हें किसी तरह की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। एक्सीडेन्ट के बाद मुझे किसी से डर नहीं लगता। पहले की बात और थी।”
नोरा के चेहरे पर बेचैनी सी ठहरी थी। देवराज चौहान को देखती रही वो ।
“मदन राक्षस नहीं है कि तुम मुझे इस तरह छिपाकर रखो।"
नोरा ने व्याकुल भाव से कॉफी का प्याला टेबल पर रखा और उठकर साइड टेबल पर रखा अपना मोबाईल उठा लाई और फीड कर रखा नम्बर मिलाया और फोन देवराज चौहान को थमाते हुए गंभीर स्वर में कहा---
“कर लो बात।"
देवराज चौहान ने मोबाईल कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जा रही थी कि तभी मर्दाना स्वर कानों में पड़ा---
"कैसी हो बहूरानी?" स्वर में जबर्दस्ती मिठास डाली गई लगती थी।
"मदन चाचा।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "कैसे हो?"
दो पल की खामोशी के बाद मदन का हैरानी भरा स्वर सुनने को मिला।
“सू-सूरज तुम....।”
“मैं ही हूँ।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।
“तुम....तुम घर पर हो... कब आए?”
“कल ही। आपके बिना मेरा दिल नहीं लग रहा था तो सोचा चाचा को फोन कर....।”
“दस महीनों से तुम कहाँ थे। मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा....।”
"मैं जानता हूँ चाचा, तुम नोरा से भी ज्यादा परेशान रहे होगे, मेरे लिए।”
नोरा ने हाथ का इशारा करके देवराज चौहान से कहा, ऐसा मत कहो। नोरा परेशान दिखी।
“मजाक कर रहे हो चाचा से।" उधर से मदन हौले से हंसा।
“आप ही कहो चाचा, कुछ गलत कहा मैंने?”
“तुम....तुम्हारा इस वक्त का स्वभाव, मुझे समझ नहीं आ रहा...। तुम.... ।”
“मैं सूरज हूँ चाचा। मेरा स्वभाव भी वो ही है, जो पहले था...।"
“तुम्हारी बातें बदली-बदली सी लग रही...।”
“कुछ नहीं बदला, सब कुछ वैसा ही है, क्यों चाचा।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।
चंद क्षणों की खामोशी के बाद मदन की आवाज कानों में पड़ी।
“आज मैं व्यस्त हूँ सूरज, फिर भी कोशिश करूंगा कि तुमसे मिलने आ सकूँ।”
“जरूर आना।"
“अगर व्यस्तता की वजह से आज नहीं आ सका तो कल जरूर मिलूंगा।"
"मुझे मुलाकात का इंतजार रहेगा।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद करके टेबल पर रख दिया।
नोरा उलझन भरी नजरों से देवराज चौहान को देख रही थी।
"क्या हुआ?"
"तुम सच में बहुत बदल गए हो सूरज...।"
"क्यों?"
"तुम....तुम मदन से इस तरह बात करोगे, मैं सोच भी नहीं सकती थी।"
"मैंने क्या गलत कहा?"
"तुम जरा भी घबरा नहीं रहे थे। तुमने पूरे विश्वास के साथ मदन से बात की। तुम्हारे बात करने के अन्दाज में तीखापन था। जबकि मदन से तुम घबराते थे और.... और....।"
"बोला तो एक्सीडेन्ट के बाद मुझमें बदलाव आ गया है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "अब मुझे मदन से डर नहीं लगता। वैसे भी पीछे की बातें मुझे याद नहीं। मदन मेरे लिए अजनबी....।"
"वो अब यहाँ आएगा।"
"मैं भी तो ये ही चाहता हूँ, वो आए।" देवराज चौहान के होंठों के बीच छोटी-सी मुस्कान उभरी और लुप्त हो गई।
नोरा बेचैनी भरी नजरों से देवराज चौहान को देखती रही।
देवराज चौहान ने नोरा से नजरें हटाकर, कॉफी का प्याला उठाया और घूंट भरा।
"तुम... तुमने कुछ सोच रखा है सूरज कि मदन.... मदन से तुमने क्या बात करनी है।"
"मदन की बातें मेरे लिए ही रहने दो। मैं ही उसे....।"
"मैंने आज रीटा के यहाँ जाना है। मेरे पीछे से मदन आ गया तो---।”
"तुम्हें किसी बात की फिक्र करने की जरूरत नहीं..... ।"
“पर मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकती। मैं चाहती हूँ मदन जब आये तो मैं भी यहाँ रहूँ।" नोरा के खूबसूरत चेहरे पर परेशानी नजर आ रही थी--- "मैं रीटा के यहाँ नहीं जाऊँगी। मैं यहीं.... ।"
“तुम जाओगी।" देवराज चौहान ने नजर उठाकर नोरा की बिल्लौरी आँखों में झाँका--- "मदन ने कल आने को कहा है। आज वो व्यस्त है। तुम्हें रुकने की जरूरत नहीं है।"
"वो आ गया तो?"
"तो भी सब ठीक रहेगा।"
“वो खतरनाक इन्सान है और तुम बेहद शरीफ हो। वो कमीना-मक्कार और बुरा.....।"
"तुम चिंकी के साथ रीटा के यहाँ बर्थडे पार्टी में जाओ। मैं अकेले रहकर कुछ सोचना चाहता हूँ । मदन की तरफ से निश्चिन्त रहो। वो आज नहीं आयेगा।" देवराज चौहान का स्वर कुछ सख्त हो गया था।
■■■
शाम के साढ़े पाँच बज गये थे।
आधा घंटा पहले ही नोरा और श्रेया सजधज कर रीटा के बेटे के जन्मदिन पर, रीटा के घर गये थे। ड्राईवर प्यारेलाल उन्हें गाड़ी में ले गया था।
नीरज अभी तक पूना से नहीं आया था।
देवराज चौहान बंगले के ड्राईंग हाल में बैठा था। बाबू, भानू, प्रेमवती, रतन सिंह बंगले पर ही मौजूद थे। नोरा कह गई थी कि वो आज रात खाना नहीं खायेंगे। ऐसे में प्रेमवती ने देवराज चौहान से आकर पूछा कि डिनर में वो क्या खाना पसन्द करेंगे। देवराज चौहान ने कहा, जो भी उन्हें ठीक लगे, बना लें।
शाम साढ़े सात बजे तक देवराज चौहान हाल में ही बैठा रहा।
जब अंधेरा होने लगा तो बाबू बंगले की लाइट रोशन करता, हाल में आया और वहाँ की लाइटें ऑन कीं।
देवराज चौहान सोचों से बाहर निकला। बाबू को देखा।
“कुछ लेंगे मालिक?” बाबू ने पास आकर पूछा।
देवराज चौहान ने इन्कार में सिर हिला दिया।
“तबीयत तो ठीक है ना मालिक ?”
“हाँ, ठीक है।” कहते हुए देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
देवराज चौहान पहली मंजिल पर स्थित अपने बैडरूम में पहुँचा। चेहरे पर सोचें बराबर ठहरी हुई थीं। उसने बार कॉउंटर के पीछे पहुँचकर व्हिस्की का गिलास तैयार किया और घूँट भरा फिर बैड के पास आकर साईड टेबल पर रखी नोरा और सूरज की तस्वीर को देखने लगा।
मिनट भर वो तस्वीर में सूरज को देखता रहा, फिर वहाँ से हट गया ।
तभी उसका मोबाईल बजा। दूसरी तरफ नोरा थी।
"हैलो!” देवराज चौहान ने कॉल रिसीव की। दूसरी तरफ से म्यूजिक का भरपूर शोर उठ रहा था।
"तुम भी यहाँ आ जाते तो मजा आ जाता। पार्टी में खूब धमाल हो रहा है।" उधर नोरा का स्वर खुशी से भरा था ।
"तुम मजे करो।"
"रीटा तुम्हें याद कर रही है।" नोरा ने हँसी के साथ कहा--- "वो नाराज है कि तुम नहीं आये।"
"उसे कहने दो।"
"क्या कर रहे हो?"
"पैग बनाया है।"
“ज्यादा मत पीना और वक्त पर खाना खा लेना। मैं और चिंकी यहीं पर खाना खायेंगे।"
"ठीक है।"
"मदन आया?"
"नहीं। तुम उसके बारे में मत सोचो और पार्टी के मजे लो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
उस वक्त साढ़े आठ बज रहे थे।
देवराज चौहान एक पैग खत्म करके दूसरा बनाने की सोच रहा था कि इन्टरकॉम का बजर बजने लगा।
"हैलो!" देवराज चौहान ने रिसीवर उठाकर कहा।
"मालिक!" बाबू की आवाज कानों में पड़ी--- “आपके चाचा आये हैं।"
सुनते ही देवराज चौहान के शरीर में तनाव सा उभर आया।
"कहाँ हैं?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।
"ड्राईंग हाल में।"
देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया। आँखों में अजीब सी चमक आ गई थी। वो सिर्फ इतना सोच रहा था कि मदन इस परिवार पर ग्रहण के तौर मौजूद है। इन लोगों की परेशानियों का कारण सिर्फ मदन है।
देवराज चौहान कमरे से निकला और गैलरी में आगे बढ़ गया। वो खुद भी मदन जैसे इन्सान से मिलना चाहता था। गैलरी समाप्त करके बॉलकनी पर पहुँचा और नीचे देखता सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
ड्राइंग हाल में मौजूद मदन उसे दिख गया था। वो पचपन अट्ठावन साल के भीतर का था। शरीर पर कीमती सूट पहन रखा था। साधारणा कद था। दूर से ही गले में सोने की भारी चेन फंसी नजर आ गई थी। बाएं हाथ की तीन उंगलियों में डायमंड की रिंग्स चमक रही थीं। दौलत उसके अंग-अंग में भरी पड़ी थी।
सीढ़ियाँ उतर कर देवराज चौहान नीचे आ गया।
मदन भी उसे ही देख रहा था। वो तेजी से देवराज चौहान की तरफ बढ़ा।
"सूरज बेटे, तुम कहाँ चले गये थे? तुम्हारी वजह से सब परेशान हो रहे थे। तुम---।"
"आप भी तो परेशान थे चाचा।" देवराज चौहान ने मुस्कुरा कर कहा।
“मैं क्यों नहीं परेशान होऊँगा। आखिर तुम---।"
"वहाँ बैठकर बात करते हैं।" देवराज चौहान ने सोफों की तरफ इशारा किया।
"इतने महीनों के बाद लौटे हो। मेरे गले नहीं लगोगे....।"
“उसके बिना भी तो काम चल रहा है....।" देवराज चौहान पुनः मुस्कुराया।
"ये तुम कैसी बातें कर रहे हो। फोन पर भी तुम अजीब ढंग से बात कर रहे थे।"
देवराज चौहान आगे बढ़कर सोफे पर जा बैठा।
मदन ने गहरी नजरों से देवराज चौहान को देखा फिर पास आकर सामने के सोफे पर जा बैठकर बोला।
“तबीयत तो ठीक है बेटे ?"
"बाबू!" देवराज चौहान ने दूर खड़े बाबू को देखकर कहा।
बाबू तुरन्त पास आ गया।
"इनसे पूछो कि चाय-पानी में क्या लेना चाहते हैं?" देवराज चौहान ने कहा।
बाबू ने मदन को देखा। कुछ हिचकिचाया।
“पूछो।” देवराज चौहान ने पुनः कहा।
"सिर्फ पानी।" मदन कह उठा।
"व्हिस्की की इच्छा हो तो कह दो चाचा....।"
“सूरज ! इस तरह से तो तुमने पहले कभी मुझसे बात नहीं की।" मदन के स्वर में नाराजगी आ गई।
“वो मेरी गलती थी।”
"क्या मतलब?"
"बाबू! चाचा को पानी ला दो। जग लाना। शायद इन्हें ज्यादा पानी की जरूरत पड़ेगी।"
बाबू तुरन्त चला गया।
मदन की निगाह सूरज के चेहरे पर टिकी रही। वो बोला।
"बेटा, तुम्हें क्या हो गया है? तुम मुझसे कैसी बातें कर रहे---।"
"मैंने क्या बात गलत कर दी?"
मदन, देवराज चौहान को देखता रहा।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली। कश लिया।
“पहले तुमने कभी मेरे सामने सिग्रेट नहीं पी....।" मदन बोला।
“वो भी मेरी गलती थी।"
“तुम्हारा व्यवहार मेरी समझ में नहीं आ रहा। आखिर तुम किस तरह की बातें कर रहे---।”
"काम की बात बोलो।"
“काम की बात ?"
“मेरे गायब हो जाने से तुम क्यों परेशान हो रहे थे चाचा?” देवराज चौहान बोला।
मदन कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा, फिर कह उठा।
"तुम्हें सब कुछ पता है कि हमारे बीच क्या बातें चल रही थीं। तुम अचानक ही---।"
“जो भी कहना चाहते हो, शुरू से कहो। दस महीने बाहर रहकर मैं पुरानी बातें भूल गया हूँ।”
“भूल गये?” मदन के माथे पर बल पड़े।
“आज से हमारी फिर बात शुरू होगी। कहो, क्या कहना चाहते हो?” देवराज चौहान की निगाह मदन के चेहरे पर थी।
तभी बाबू ट्रे में जग और गिलास लेकर आया। उन्हें टेबल पर रखा और गिलास को पानी से भरा और खाली ट्रे उठाई और पलट कर देवराज चौहान को देखा।
“आपके लिए क्या लाऊँ मालिक?" बाबू ने पूछा।
“कुछ नहीं। तुम यहाँ से जाओ और यहाँ हो रही बातों को मत सुनना ।"
बाबू चला गया।
मदन की निगाह इस दौरान देवराज चौहान के चेहरे पर ही रही। वो कुछ उलझन में नजर आ रहा था। शायद देवराज चौहान (सूरज) का व्यवहार उसकी समझ से बाहर हो रहा था।
“कहो।” देवराज चौहान ने मदन को देखा--- “पानी पियो।”
मदन ने सिर हाँ-ना में हिलाया, फिर कह उठा---
“मेरे ख्याल में तुम ऐसा व्यवहार करके, असल मुद्दे से मेरा ध्यान हटाना चाहते हो।"
"तुम असल मुद्दा कहो।" देवराज चौहान ने कश लिया।
“ये बंगला, बड़े भैया ने मेरे पास गिरवी रखा था। एक सौ अस्सी करोड़ मैं बड़े भैया (शिवचंद) को दे चुका हूँ। बीच-बीच में वो मेरे से पैसा लेते रहते थे। मेरे पास सारी लिखा पढ़ी के कागजात हैं।" मदन ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- “आज इस बंगले की कीमत दो सौ करोड़ है--- या तो तुम मुझे 180 करोड़ दे दो या मेरे से बाकी का बीस करोड़ लेकर बंगला खाली कर दो। ये पैसे का मामला है और पैसे में रिश्तेदारी नहीं चलती।”
“मैं दस महीने गायब रहा।" देवराज चौहान बोला।
"तो?"
"तुम उन कागजों के साथ कोर्ट में जा सकते थे। गये क्यों नहीं?"
“मैं चाहता हूँ ये मामला हम बातों से ही निपटा लें।”
“तुम्हें कोर्ट में जाना---।”
“ये परिवार का मामला है। मैं चाहता हूँ तमाशा ना ही खड़ा हो तो ठीक होगा।"
“तो तुम्हें परिवार की चिन्ता है?” देवराज चौहान मुस्कराया।
“क्यों ना होगी? आखिर ये मेरे भाई के परिवार का हिस्सा है जो कि---।"
"मैं समझ गया कि तुम्हें बहुत चिन्ता है अपने भाई के परिवार की। इतनी चिन्ता है कि तुम हम सबको फुटपाथ पर पहुँचा देना चाहते हो। जबकि तुम्हारे पास जो कागजात हैं, उन पर पापा के साईन नहीं हैं।"
“कौन कहता है?” मदन की आँखें सिकुड़ीं ।
“मैं कहता हूँ।”
"मैं ऐसी धोखेबाजी नहीं कर सकता। वो भी अपने भाई की मौत के बाद...।"
"तुमने हमारा सारा बिजनेस उन्हीं नकली साईन के दम पर हड़प लिया। जानते हो जब मैं कोर्ट में जाऊँगा तो तुम्हारा क्या हाल होगा? नकली साईन तो नकली ही होते हैं।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
“साईन असली हैं।" मदन के स्वर में गुस्सा आ गया।
“नकली हैं।”
“वो बड़े भैया ने साइन किए.....।"
"ये बात तो कोर्ट में साबित होगी।"
"तो तुम कोर्ट में जाने की सोच रहे हो?"
"जाना ही पड़ेगा।"
"सूरज!" मदन ने शब्दों को चबाकर धमकी भरे स्वर में कहा--- "तुम किसी भी सूरत में मेरा मुकाबला नहीं कर सकते। अभी मुझे ठीक से जानते नहीं। बड़े भैया के बाद अभी तक मैं तुम्हारा लिहाज कर रहा हूँ।"
“क्या करोगे मेरे साथ?" देवराज चौहान ने मदन की आँखों में झाँका।
"तुम्हें अभी पता नहीं, मैं क्या कर सकता हूँ।" मदन ने शब्दों को चबाकर कहा।
“तुम जो चाहो, कर सकते हो।"
मदन ने देवराज चौहान को घूरा।
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, जो मेरे से इस तरह बात कर रहे हो। तुम्हारी इतनी हिम्मत कि---।"
“पापा ने वॉल्ट के तुम्हारे केबिन में काफी मोटी दौलत रखी थी।" देवराज चौहान बोला।
“मैंने पहले भी कहा है कि तुम्हें गलतफहमी है कि बड़े भैया ने कोई पैसा---।"
“पापा ने मुझे झूठ बताया क्या?"
“मैं नहीं जानता कि बड़े भैया ने ऐसी बात तुमसे क्यों कही कि---।"
“पापा गलत नहीं कह सकते।” देवराज चौहान बेहद शांत दिख रहा था।
“बड़े भैया ने गलत कहा है तुमसे, या तुम झूठ कह रहे हो सूरज । मुझे तो इस बात की भी हैरानी है कि जो बात तुम्हें बतानी थी, बड़े भैया ने वो तुमसे क्यों नहीं कहा?" मदन झुंझलाकर बोला।
"कौन-सी बात?”
“बंगला गिरवी रखने की बात ।"
“कब गिरवी रखा था ? अपनी मौत से कितनी देर पहले?”
"साल भर पहले ।”
“जबकि अपनी मौत के तीन महीने पहले पापा ने बंगला मुझे गिफ्ट कर दिया था। अगर बंगला गिरवी होता तो पापा क्या मेरे को कहते नहीं? स्पष्ट है कि तुम झूठ कह रहे हो। तुम---।"
“होश में आओ सूरज । तुम मुझ पर उंगली उठा रहे हो। मैं ये बातें बर्दाश्त नहीं कर सकता।"
देवराज चौहान मुस्कराया और मदन को देखकर बोला---
“अब मैं तुमसे सीधी बात करूँगा मदन ।"
“मदन? क्या तुम बातचीत की तमीज भी भूल गये हो?" मदन गुर्रा उठा ।
"मैं सूरज नहीं हूँ।" देवराज चौहान ने कहा।
“क्या?” मदन के चेहरे पर तीखे भाव उभरे--- “क्या कहा, तुम सूरज नहीं हो?"
“मैं सुरेन्द्रपाल हूँ। सूरज नहीं।"
“इस वक्त दिन है, क्या तुम मानोगे?”
“नहीं।"
“तो फिर मैं तुम्हारी बेकार की बकवास कैसे मान सकता हूँ। पर ये तो जरूर है कि तुम बहुत बदले-बदले से हो।"
"मैं सूरज नहीं हूँ।"
“तुम बंगला मेरे हवाले करने को तैयार हो या नहीं?" मदन ने देवराज चौहान की आँखों में देखा।
“ये तुम्हारा नहीं है। बंगला तुम्हारा नहीं। बिजनेस तुम्हारा नहीं और वॉल्ट में रखी दौलत--।"
“बकवास बंद करो अपनी।" मदन गुर्रा उठा।
“ये बात अपने दिमाग में रख लो कि मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ। तब मेरे से बात करो। वैसे मुझे यहाँ देखकर, मेरी आवाज फोन पर सुनकर, तुम्हें हैरानी तो जरूर हुई होगी।"
“क्या कहना चाहते हो?"
“दस महीने पहले, जब सूरज गायब हुआ, तब तुममें और सूरज में बंगले को लेकर काफी तकरार चल रही---।”
“तुमने सूरज-सूरज क्या लगा रखी है।" मदन ने दाँत भींचकर कहा--- “क्या तुम ये साबित करना चाहते हो कि तुम सूरज नहीं हो? मैं तुम्हारी पागलपन की बातों में नहीं उलझने वाला। एक बात कान खोलकर सुन लो कि ये बंगला मेरा है। बड़े भैया को 180 करोड़ मैं दे चुका हूँ, ठीक ये ही होगा कि बाकी का बीस करोड़ लो और---।"
“इस बात का फैसला सूरज ही कर सकता है। उसके आने का इन्तजार करो अगर तुमने उसे मार नहीं दिया तो!"
"मैंने सूरज को मार दिया?" मदन ने दाँत पीसे--- “पागल, तुम मेरे सामने हो और---।"
“मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ।"
मदन खा जाने वाली नजरों से देवराज चौहान को देखता रहा।
"इसका मतलब तुम बंगला मुझे देने को तैयार नहीं हो।"
"मैं सूरज नहीं जो ये फैसला कर सकूँ...।"
"समझ गया।" मदन गुस्से से भरा उठ खड़ा हुआ--- "तुम नहीं चाहते कि ये मामला शराफत से निपटे ।"
"मैं क्या चाहता हूँ, जानना चाहते हो?"
मदन क्रोध भरी नजरों से देवराज चौहान को देखता रहा।
"मैं चाहता हूँ तुम सुधर जाओ। अब तुम्हारा कुछ नहीं चलेगा। क्योंकि मैं सुरेन्द्रपाल हूँ। तुम्हें वॉल्ट में रखा शिवंचंद का पैसा भी लौटाना होगा। शिवचंद के हिस्से का बिजनेस भी लौटाना होगा और बंगले को भूल---।"
“मेरे बच्चे!" मदन ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा--- “बिना पंख के हवा में मत उड़ो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला। भला इसी में है कि तुम सिर्फ मेरी बात मानो। ये बंगला मुझे दे दो। वरना तुम कहीं के भी नहीं रहोगे।”
“तो तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आई?” देवराज चौहान बोला--- “तुम बात को बढ़ाना चाहते हो?"
“मुझे धमकी दे रहे हो?” मदन गुर्रा उठा ।
“समझा रहा हूँ, परन्तु तुम समझ नहीं रहे कि मेरे सामने तुम कुछ नहीं कर सकते।"
“मुझे लगता है तुम्हें अब समझाना ही पड़ेगा।" मदन का लहजा स्पष्ट तौर पर धमकी से भर गया था।
“तुम मुझे अभी भी सूरज समझ रहे हो, तभी ऐसा कह रहे हो।"
“अपनी बकवास अपने पास रखो।" मदन ने तीखे स्वर में कहा--- “और अब देखो मैं क्या करता हूँ। ये बंगला मेरा है। 180 करोड़ मैं दे चुका हूँ बड़े भैया को। अगर बंगला मुझे नहीं मिला तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ। ये भूल जाओ कि मैं तुम पर कोई कानूनी कार्यवाही करूँगा। मैं दूसरा रास्ता इस्तेमाल करूँगा।"
“तो तुम नहीं मानने वाले---।" देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं।
“भतीजे ! चाचा से मुकाबला करोगे तो कहीं के नहीं रहोगे। मैं तुम्हें---।"
“एक बार फिर सुन लो कि मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ। ये बंगला तुम्हें कभी नहीं मिलेगा। इस मुलाकात को तुम मेरा समझाना कह सकते हो। अगर मेरी बात नहीं समझे तो दूसरी मुलाकात तुम पर भारी भी पड़ सकती---।"
मदन गुर्राया और लम्बे-लम्बे कदम उठाता गुस्से से बाहर की तरफ बढ़ गया।
■■■
रात बारह बजे नोरा और श्रेया वापस लौटीं ।
देवराज चौहान तब जाग रहा था। वो नाईट सूट में था। कुर्सी पर बैठा था कि नोरा ने भीतर प्रवेश किया। सफेद साड़ी में वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। कंधों तक लहराते खुले बाल आकर्षित कर रहे थे। वो बहुत प्रसन्न लग रही थी। उसका चेहरा चमक रहा था। स्पष्ट था कि पार्टी में उसे बहुत मजा आया था।
"जाग रहे हो।" नोरा उसे देखते ही बोली--- “मेरा इन्तजार कर रहे होगे.....।"
“चिंकी कहाँ है?” देवराज चौहान ने उसे देखकर पूछा।
"सोने चली गई। सुबह कॉलेज जाना है उसने।” नोरा ने कहा और गहरी सांस लेकर कुर्सी पर आ बैठी और शरारती नजरों से देवराज चौहान को देखते कह उठी--- "तुमने तो आज हद कर दी सूरज..... ।”
“क्या मतलब?” देवराज चौहान की आँखें सिकुड़ीं।
"कम से कम रीटा के पति का तो ख्याल कर लेते। किस तरह पार्टी में तुम रीटा साथ चिपके तस्वीरें खिंचवा रहे थे। तुम्हें देखकर चिंकी हंसे जा रही थी। तुम्हें क्या हो गया है? रीटा का पति मेरे पास आकर बोला कि तुम्हारा पति कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ रहा है। ये ही हाल रहा तो सूरज तुम्हारे हाथ से निकल जायेगा ।"
देवराज चौहान टकटकी बांधे नोरा को देखते बोला---
“पार्टी में मैं?”
"मुझे समझ नहीं आता कि तुम्हें रीटा के इतने करीब जाने की जरूरत क्या थी । ये क्यों भूलते हो, वो मेरी सहेली है। आज तो मुझे पूरा विश्वास हो गया कि वो तुम्हें चाहती है। उसने भी कोई कमी नहीं छोड़ी, तुमसे चिपकने में। बड़ी बात नहीं कि तुम्हें लेकर रीटा और उसके पति में तकरार भी हो गई हो ।”
“लेकिन---।" देवराज चौहान ने कहना चाहा।
"कहीं तुम्हारा और रीटा का कोई चक्कर तो नहीं चल रहा?” एकाएक नोरा कह उठी।
देवराज चौहान की सिकुड़ी निगाह नोरा पर थी।
"मैं घर पर था।" देवराज चौहान के होंठों से निकला--- ""बंगले पर---।"
नोरा ने अजीब-सी नजरों से देवराज चौहान को देखा।
"तुम पार्टी में आये थे और---।"
"मैं नहीं आया।" देवराज चौहान के मस्तिष्क में छोटे-छोटे धमाके होने लगे थे।
“मजाक मत करो.....।"
"मैं बंगले पर था। नौकरों से पूछ लो।" देवराज चौहान गम्भीर था।
"चिंकी से पूछ लो। तुम पार्टी में आये थे। इस तरह का मजाक करके क्यों मुझे परेशान....।"
"मैं पार्टी में नहीं था। बंगले पर था। मदन आया था, उससे मेरी बात---।"
“तुम नौ बजे रीटा के यहाँ पार्टी में पहुँचे थे।" नोरा ने उखड़े स्वर में कहा--- “मेरे पूछने पर कि तुम कैसे आ गये, तुमने कहा कि ये सोच कर आ गया कि तुम्हें साथ मिल जायेगा। जबकि मैंने मजाक में कहा, तुम जरूर रीटा से मिलने आये हो। उसके बाद तुम पार्टी में साढ़े दस तक रहे। तुमने दो पैग भी लिए। मैं और चिंकी तुम्हारे साथ थीं तब। हमने डीजे पर जाकर डांस भी किया। तब रीटा भी आ गई थी। तुमने रीटा के साथ भी डांस किया। साढ़े दस बजे तुम मुझे ये कहकर चले गये कि तुम्हें कुछ काम है, किसी से मिलना है। उसके बाद बंगले पर चले जाओगे।"
“लेकिन मैं रीटा के यहाँ गया ही नहीं। मैं तो बंगले पर था।" देवराज चौहान बराबर नोरा को देख रहा था।
"क्या पागलों वाली बातें कर---।"
“मैं सच कह रहा हूँ। वो मैं नहीं.... ।”
"तुम नहीं तो क्या वो तुम्हारा भूत था?” नोरा झल्ला उठी--- "क्यों मुझे पागल बना रहे---।"
"नोरा!” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा--- “वो, वो सूरज था । "
"सूरज?"
“हाँ। वो तुम्हारा पति सूरज था।"
“मेरा पति सूरज, सूरज तो तुम हो। तुम हो मेरे पति.....।"
“नहीं। मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ। तुम्हारा पति नहीं हूँ।”
नोरा मूर्खों की तरह देवराज चौहान को देखने लगी।
“वो सूरज था, तुम्हारा पति, वो मुम्बई में है और तुम पर नजर रखे---।"
"देखो सूरज । बस बहुत हो गया।" नोरा ने हाथ उठाकर कहा--- "तुम रीटा की बात दबाने के लिए, ये उल्टी-पुल्टी बातें कर रहे हो। आज तुम रीटा को अपनी बाँहों में लेने को मरे जा रहे---।"
“तुम यकीन क्यों नहीं करती कि वो मैं नहीं था।"
“कैसे यकीन करूँ ? तुम पार्टी में मेरे साथ थे और---।"
“मैं बंगले पर था और मैंने मदन से बात की। वो आया था। उसके बाद नीरज के आने का इन्तजार करता---।"
“नीरज का फोन आया था। वो कल आयेगा। उसके पास तुम्हारा नम्बर नहीं था, नहीं तो वो तुम्हें फोन करता।" नोरा उठते हुए कह उठी--- "मैं चेंज करने जा रही हूँ और मेरे से पागलों वाली बातें करना बंद करो।”
देवराज चौहान का दिमाग बहुत तेजी से दौड़ रहा था।
नजरें नोरा पर थीं जो कि वार्डरौब से नाईट ड्रेस निकालकर, वहीं खड़ी साड़ी खोलने लगी थी ।
देवराज चौहान समझ चुका था कि पार्टी में सूरज आ पहुँचा था। स्पष्ट था कि सूरज को पता था कि वो घर पर है। उसका पार्टी में आने का कोई इरादा नहीं। तभी तो वो पार्टी में पहुँचा।
नोरा नाईट ड्रेस लिए, बाथरूम में चली गई थी।
सूरज को बंगले की भी हर खबर थी।
क्या बंगले का कोई नौकर सूरज को खबरें दे रहा है?
पर सूरज इस तरह छिपा क्यों है? सामने क्यों नहीं आता ?
उसकी ये शंका तो बेकार गई कि मदन ने सूरज के साथ कुछ बुरा किया होगा। सूरज सही सलामत था। पर नोरा मानने को तैयार नहीं थी कि पार्टी में वो नहीं, सूरज पहुँचा था। नोरा दोनों को एक ही मान रही थी। नोरा अपनी जगह सही थी। नोरा तो ये ही जानती थी कि वो ही सूरज है। वो ही पार्टी में पहुँचा था।
लेकिन नोरा उसकी बात को झुठला नहीं सकती थी। बंगले के नौकर इस बात के गवाह थे कि वो हर पल बंगले पर रहा। उनके सामने रहा। अब नहीं तो सुबह नौकरों से बात करके, नोरा को उसकी बात का यकीन करना ही होगा कि पार्टी में वो नहीं, बल्कि सूरज था।
नोरा बाथरूम से बाहर आ गई। वो काले रंग की नाईटी और गाऊन में थी।
देवराज चौहान नोरा को ही देख रहा था।
उसे देखते पाकर नोरा मुस्कराई और बोली---
"रीटा का भूत सिर से उतर गया हो और मेरी जरूरत हो, तो आऊँ पतिदेव....?"
"मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ।"
"रीटा की बात?" नोरा के होंठों से निकला।
"नहीं। रीटा की पार्टी की बात---।"
"पार्टी की जो बात थी, मैंने तुम्हें कह दी कि तुम रीटा से चिपक-चिपक.....।"
"यहाँ बैठो, कुर्सी पर---।" देवराज चौहान गम्भीर था।
नोरा उसके सामने कुर्सी पर बैठते कह उठी---
"कहीं तुम मुझे ये तो नहीं बताने वाले कि तुम्हारा सच में रीटा के साथ चक्कर चल रहा....।"
“मेरी बात ध्यान से सुनो नोरा।" देवराज चौहान बोला--- “मैं सूरज नहीं, सुरेन्द्रपाल हूँ।"
"फिर वो ही----।"
“मेरी बात सुनो।” देवराज चौहान का स्वर कुछ सख्त हुआ--- "मैं अपनी बात को साबित भी कर सकता हूँ।"
“तुम साबित कर सकते हो कि तुम सुरेन्द्रपाल हो, सूरज नहीं?" नोरा के माथे पर बल पड़े।
“हाँ।"
“देखो सूरज ।” नोरा ने गम्भीर स्वर में कहा--- “तुमने मुझे बता रखा है कि तुम्हारा एक्सीडेंट---।"
"वो मैंने झूठ कहा था ।"
"क्या मतलब?"
“यहाँ के हालात जानने और यहाँ रुककर, मामला समझने के लिए मैंने झूठ कहा---।"
"तुम्हारे कंधे और टांग के भीतरी तरफ तिल हैं ना?"
“हाँ, मैं---।"
“तो अब फालतू की बातें मुझसे ना करो। हिले दिमाग की तरह बातें मत--।"
"तुम्हें बंगले के नौकरों पर तो भरोसा है?” एकाएक देवराज चौहान बोला।
"क्या कहना चाहते हो?"
"सुबह नौकरों से पूछ लेना कि क्या मैं बंगले से बाहर गया या बंगले पर ही था। तुमने कहा मैं पार्टी में नौ बजे पहुँचा।"
"हाँ---।"
"नौ बजे मदन मुझसे मिल कर गया था। उसके बाद मैंने दो और पैग लिए। 10:45 बजे डिनर किया। तब से मैं इसी बैडरूम में मौजूद हूँ। साढ़े ग्यारह बजे बाबू ने इन्टरकॉम पर पूछा कि मैडम कब आयेंगी? उसके बाद---।"
“तुम्हारी बातें मेरा दिमाग खराब कर रही हैं।" नोरा उखड़े स्वर में झल्ला उठी।
“दिमाग तो तुम्हारा तब खराब होगा जब सुबह तुम नौकरों से बात करोगी।" देवराज चौहान गम्भीर था।
नोरा ने गहरी साँस ली, फिर बोली---
“मदन से क्या बात हुई?"
“अभी तो कई बार बात होनी है। वो आसानी से मानेगा नहीं, पर उसे मानना पड़ेगा। वो मानेगा, लेकिन वक्त लेगा।"
“तुम्हारी बात सुनकर मुझे बहुत अजीब लग रहा है कि तुम पार्टी में नहीं थे, वो तुम्हारा भूत था। इन बातों के बाद मुझे अच्छी नींद आयेगी । गुडनाईट पतिदेव। मुझे लगता है आज तुमने ज्यादा पी ली है।"
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